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शलन-सम्बन्धी-कुछ-लवशेष-ग्रह-यरग
1. र्न्मकुोंडिी िें यलद शलन िकर, कुम्भ या तुिा रालश िें हरकर केंद्र
(1,4,7,10) िें हर तर ऐसा व्यन्दि उच्च पद कर प्राप्त करता है और
अपने कररयर िें लवशेष उन्नलत करता है ।
2. शलन यलद कुोंडिी के आठवें भाव िें हर तर आयु कर बढ़ाता है
परन्तु ऐसे व्यन्दि कर पाचन तोंत् और ज्वाइों ट्स पेन से सम्बोंलधत
सिस्याएों बनी रहती हैं ।
3. यलद शलन कुोंडिी के बारहवे भाव िें शत्ु रालश या नीच रालश िें हर
तर ऐसे व्यन्दि के पास धन न्दथथर नहीों रह पाता और धन की हिेशा
किी बनी रहती है ।
5. यलद शलन कुोंडिी के नवि भाव िें उच्च रालश िें हर या नवि िें
बैठकर बृहस्पलत से दृष्ट हर तर व्यन्दि आध्यान्दत्मक पथ पर आगे बढ़ता
है ।
6. यलद शलन कुोंडिी के सप्ति भाव िें हर या सप्ति भाव कर दे खता
हर तर लववाह िें लविम्ब कराता है ।
7. कुोंडिी िें शलन, िोंगि का यरग हर या शलन से नवि-पोंचि िोंगि हर
तर तकनीकी कायों (इों र्ीलनयररों ग आलद ) िें सििता लििती है ।
8. कुोंडिी िें शलन और बृहस्पलत का यरग बहुत शु भ हरता है ऐसा
व्यन्दि अपने कायों से लवशेष कीलता प्राप्त करता है ।
र्न्म कुोंडिी िें नीच ग्रह भी बना सकते हैं रार्यरग …..
लकसी र्न्म कुोंडिी िें ग्रह लर्तने अलधक बिी हरते हैं , र्न्म कुोंडिी
उतनी ही अलधक प्रभाव शािी िानी र्ाती हैं । िाना र्ाता हैं लक
लर्स र्न्म कुोंडिी िें लर्तने अलधक उच्च ग्रह हरोंगे वह उतनी ही
िर्बूत र्न्म कुोंडिी हरती है । इसके लवपरीत नीच के ग्रह हरने पर
र्न्म कुोंडिी प्रभाव हीन िानी र्ाती हैं , आर्कि तर यह प्रथा सी बन
गयी हैं लक नीच ग्रह कर दे खते ही सारे अशुभ िि का कारक उसे
ही घरलषत कर लदया र्ाता हैं । भिे ही वह प्रभाव लकसी भी अन्य
ग्रह के द्वारा लदया गया हर । इस सबिे सबसे बडे दु भाा ग्य लक बात
यह हरती हैं की लर्स वर्ह से व्यन्दि वास्तलवक रूप से परे शान था,
उस वर्ह कर गौण कर लदया र्ाता हैं , और सिस्या र्ैसी की तैसी
बनी रहती हैं । उनके िलित िें र्िीन आसिान का िका हरता हैं ।
हिारे अिग अिग ज्यरलतलषय ग्रन्थर िें इस बात का वणान हैं की र्न्म
कुोंडिी िें नीच ग्रह का बुरा प्रभाव भोंग भी हर र्ाता हैं । कई
पररन्दथथलत िें तर यह नीच ग्रह रार्यरग तक का लनिाा ण करते हैं ।
इनका िि आश्चया र्नक रूप से प्राप्त हरता हैं । र्र लदखता हैं वर
वैसा ही हर यह र्रुरी नही हैं , अथाा त हकीकत लबल्कुि लवपरीत हैं
र्न्म कुोंडिी िें सभी नीच ग्रह अशुभ िि नही दे ते हैं । अलधकतर
इनका िि उसकी न्दथथलत तथा अन्य ग्रहर का उस पर पडने वािे
िि पर लनभार करता हैं ।
लर्न र्ातकर की र्न्म कुोंडिी िें नीचभोंग रार्यरग हरता हैं वर र्ातक
चट्टानर से र्ि लनकािने की क्षिता रखते हैं । ऐसे र्ातक बहुत
अलधक िेहनती हरते है , और अपने दि पर एक िुकाि हालसि करते
हैं । ये र्ातक लर्स क्षेत् िें भी र्ाते हैं वही अपनी अलिट छाप बना
दे ते हैं । चाहे दु लनया इनके पक्ष िें हर या लवपक्ष िें इनकर सििता
लििना तय हरता हैं । कैसे बनते हैं ये यरग इस पर चचाा करे –
1- लकसी नीच ग्रह से करई उच्च का ग्रह र्ब दृष्टी सम्बोंध या क्षेत्
सम्बोंध बनाता हैं तर यह न्दथथलत नीच भोंग रार् यरग बनाने वािी हरती
हैं ।
2- नीच का ग्रह अपनी उच्च रालश के स्वािी के प्रभाव िें हर ( युलत
या दृष्टी सम्बोंध हर) नीच भोंग यरग बनता हैं ।
3- परस्पर दर नीच ग्रहर का एक दू सरे कर दे खना भी नीच भोंग यरग
हरता हैं ।
4- नीच रालश के स्वािी ग्रह के साथ हरना या उसके प्रभाव िें हरना
नीच भोंग हरता हैं ।
5- चोंद सूया से केंद्रगत हरने पर भी नीच ग्रह का दरष सिाप्त हर
र्ाता हैं ।
6- र्न्म कुोंडिी के यरगकारक ग्रह तथा िग्नेश से सम्बों ध हरने पर नीच
भोंग रार्यरग बनता हैं
7- नीच ग्रह नवाों श कुोंडिी िें उच्च का हर तर नीच भोंग रार्यरग बनता
हैं ।
8- दर उच्च ग्रहर के िध्य न्दथथत नीच ग्रह भी उच्च सिान िि दायी
हरता हैं ।
9- नीच का ग्रह वक्री हर तर नीच भोंग रार् यरग बनता हैं ।
10- नीच रालश िें न्दथथत ग्रह उच्च ग्रह के साथ न्दथथत हर तर नीच भोंग
रार्यरग बनाता
िघु पाराशरी लसद्ाों त – सभी 42 सू त्
ज्यरलतष की एक नहीों बन्दल्क कई धाराएों साथ साथ चिती रही हैं ।
वतािान िें दशा गणना की लर्न पद्लतयरों का हि इथ्तेिाि करते हैं ,
उनिें सवाा लधक प्रयुक्त हरने वािी लवलध पाराशर पद्लत है । सही कहें
तर पारशर की लवों शरत्तरी दशा के इतर करई दू सरा दशा लसथ्टि
लदखाई भी नहीों दे ता है । िहलषा पाराशर के िलित ज्यरलतष सोंबोंधी
लसद्ाों त िघु पाराशरी िें लििते हैं । इनिें कुि र्िा 42 सूत् हैं ।
1. यह श्रुलतयरों का लसद्ाों त है लर्सिें िें प्रर्ापलत के शुद् अों त:करण,
लबम्बिि के सिान िाि अधर वािे और वीणा धारण करने वािे तेर्,
लर्सकी अराधना करता हों , कर सिलपात करता हों ।
2. िैं िहलषा पाराशर के हरराशाथ्त् कर अपनी िलत के अनुसार
लवचारकर ज्यरलतलषयरों के आनन्द के लिए नक्षत्रों के ििरों कर सूलचत
करने वािे उडूदायप्रदीप ग्रोंथ का सोंपादन करता हों ।
3. हि इसिें नक्षत्रों की दशा के अनुसार ही शुभ अशुभ िि कहते
हैं । इस ग्रोंथ के अनुसार िि कहने िें लवशरोंतरी दशा ही ग्रहण करनी
चालहए। अष्टरतरी दशा यहाों ग्राह्य नहीों है ।
4. सािान्य ग्रोंथरों पर से भाव, रालश इत्यालद की र्ानकारी ज्यरलत शाथ्त्रों
से र्ानना चालहए। इस ग्रोंथ िें र्र लवररध सोंज्ञा है वह शाथ्त् के
अनुररध से कहते हैं ।
5. सभी ग्रह लर्स थ्थान पर बैठे हरों, उससे सातवें थ्थान कर दे खते हैं ।
शलन तीसरे व दसवें , गुरु नवि व पों चि तथा िोंगि चतुथा व अष्टि
थ्थान कर लवशेष दे खते हैं ।
6. (अ) करई भी ग्रह लत्करण का थ्वािी हरने पर शुभ ििदायक हरता
है । (िग्न, पोंचि और नवि भाव कर लत्करण कहते हैं ) तथा लत्षडाय
का थ्वािी हर तर पाप ििदायक हरता है (तीसरे , छठे और ग्यारहवें
भाव कर लत्षडाय कहते हैं ।)
6. (ब) अ वािी न्दथथलत के बावर्ूद लत्षडाय के थ्वािी अगर लत्करण
के भी थ्वािी हर तर अशु भ िि ही आते हैं । (िेरा नरट: लत्षडाय के
अलधपलत थ्वरालश के हरने पर पाप िि नहीों दे ते हैं - काटवे।)
7. सौम्य ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र और पू णा चोंद्र) यलद केन्द्ररों के थ्वािी हर
तर शुभ िि नहीों दे ते हैं । क्रूर ग्रह (रलव, शलन, िोंगि, क्षीण चोंद्र और
पापग्रथ्त बुध) यलद केन्द्र के अलधपलत हरों तर वे अशुभ िि नहीों दे ते
हैं । ये अलधपलत भी उत्तररतर क्रि िें बिी हैं । (यानी चतुथा भाव से
सातवाों भाव अलधक बिी, तीसरे भाव से छठा भाव अलधक बिी)
8. िग्न से दू सरे अथवा बारहवें भाव के थ्वािी दू सरे ग्रहरों के सहचया
से शुभ अथवा अशुभ िि दे ने िें सक्षि हरते हैं । इसी प्रकार अगर वे
थ्व थ्थान पर हरने के बर्ाय अन्य भावरों िें हर तर उस भाव के
अनुसार िि दे ते हैं । (िेरा नरट: इन भावरों के अलधपलतयरों का खुद
का करई आत्िलनभार ररर्ल्ट नहीों हरता है ।)
9. अष्टि थ्थान भाग्य भाव का व्यय थ्थान है (सरि शब्दरों िें आठवाों
भाव नौोंवे भाव से बारहवें थ्थान पर पड़ता है ), अत: शुभििदायी नहीों
हरता है । यलद िग्नेश भी हर तभी शुभ िि दे ता है (यह न्दथथलत
केवि िेष और तुिा िग्न िें आती है )।
10. शुभ ग्रहरों के केन्द्रालधपलत हरने के दरष गुरु और शुक्र के सोंबोंध िें
लवशेष हैं । ये ग्रह केन्द्रालधपलत हरकर िारक थ्थान (दू सरे और सातवें
भाव) िें हरों या इनके अलधपलत हर तर बिवान िारक बनते हैं ।
11. केन्द्रालधपलत दरष शुक्र की तुिना िें बुध का कि और बुध की
तुिना िें चोंद्र का कि हरता है । इसी प्रकार सूया और चोंद्रिा कर
अष्टिेष हरने का दरष नहीों िगता है ।
12. िोंगि दशि भाव का थ्वािी हर तर शुभ िि दे ता है । लकोंतु यही
लत्करण का थ्वािी भी हर तभी शु भििदायी हरगा। केवि दशिेष हरने
से नहीों दे गा। (यह न्दथथलत केवि कका िग्न िें ही बनती है )
13. राह और केतू लर्न लर्न भावरों िें बैठते हैं , अथवा लर्न लर्न भावरों
के अलधपलतयरों के साथ बैठते हैं तब उन भावरों अथवा साथ बैठे भाव
अलधपलतयरों के द्वारा लििने वािे िि ही दें गे। (यानी राह और केतू
लर्स भाव और रालश िें हरोंगे अथवा लर्स ग्रह के साथ हरोंगे, उसके
िि दें गे।)। िि भी भावरों और अलधपलतयर के िु तालबक हरगा।
14. ऐसे केन्द्रालधपलत और लत्करणालधपलत लर्नकी अपनी दू सरी रालश भी
केन्द्र और लत्करण कर छरड़कर अन्य थ्थानरों िें नहीों पड़ती हर, तर ऐसे
ग्रहरों के सोंबोंध लवशेष यरगिि दे ने वािे हरते हैं ।
15. बिवान लत्करण और केन्द्र के अलधपलत खुद दरषयुक्त हरों, िेलकन
आपस िें सोंबोंध बनाते हैं तर ऐसा सों बोंध यरगकारक हरता है ।
16. धिा और किा थ्थान के थ्वािी अपने अपने थ्थानरों पर हरों अथवा
दरनरों एक दू सरे के थ्थानरों पर हरों तर वे यरगकारक हरते हैं । यहाों किा
थ्थान दसवाों भाव है और धिा थ्थान नवि भाव है । दरनरों के
अलधपलतयरों का सोंबोंध यरगकारक बताया गया है ।
17. नवि और पोंचि थ्थान के अलधपलतयरों के साथ बिवान केन्द्रालधपलत
का सोंबोंध शुभििदायक हरता है । इसे रार्यरग कारक भी बताया गया
है ।
18. यरगकारक ग्रहरों (यानी केन्द्र और लत्करण के अलधपलतयरों) की दशा
िें बहुधा रार्यरग की प्रान्दप्त हरती है । यरगकारक सोंबोंध रलहत ऐसे शु भ
ग्रहरों की दशा िें भी रार्यरग का िि लििता है ।
19. यरगकारक ग्रहरों से सोंबोंध करने वािा पापी ग्रह अपनी दशा िें
तथा यरगकारक ग्रहरों की अोंतरदशा िें लर्स प्रिाण िें उसका थ्वयों का
बि है , तदअनुसार वह यरगर् िि दे गा। (यानी पापी ग्रह भी एक
करण से रार्यरग िें कारकत्व की भूलिका लनभा सकता है ।)
20. यलद एक ही ग्रह केन्द्र व लत्करण दरनरों का थ्वािी हर तर
यरगकारक हरता ही है । उसका यलद दू सरे लत्करण से सोंबोंध हर र्ाए
तर उससे बड़ा शु भ यरग क्या हर सकता है ?
21. राह अथवा केतू यलद केन्द्र या लत्करण िें बैइे हरों और उनका
लकसी केन्द्र अथवा लत्करणालधपलत से सोंबोंध हर तर वह यरगकारक हरता
है ।
22. धिा और किा भाव के अलधपलत यानी नविेश और दशिेश यलद
क्रिश: अष्टिेश और िाभेश हरों तर इनका सोंबोंध यरगकारक नहीों बन
सकता है । (उदाहरण के तौर पर लिथुन िग्न)। इस न्दथथलत कर
रार्यरग भोंग भी िान सकते हैं ।
23. र्न्ि थ्थान से अष्टि थ्थान कर आयु थ्थान कहते हैं । और इस
आठवें थ्थान से आठवाों थ्थान आयु की आयु है अथाा त िग्न से तीसरा
भाव। दू सरा भाव आयु का व्यय थ्थान कहिाता है । अत: लद्वतीय एवों
सप्त््ति भाव िारक थ्थान िाने गए हैं ।
24. लद्वतीय एवों सप्त््ति िारक थ्थानरों िें लद्वतीय थ्थान सप्त््ति की तुिना
िें अलधक िारक हरता है । इन थ्थानरों पर पाप ग्रह हरों और िारकेश
के साथ युन्दि कर रहे हरों तर उनकी दशाओों िें र्ातक की िृतयु ् हरती
है ।
25. यलद उनकी दशाओों िें िृतयु ् की आशोंका न हर तर सप्त््तिेश और
लद्वतीयेश की दशाओों िें िृतयु
् हरती है ।
26. िारक ग्रहरों की दशाओों िें िृतयु ् न हरती हर तर कुण्डिी िें र्र
पापग्रह बिवान हर उसकी दशा िें िृत्यु हरती है । व्ययालधपलत की दशा
िें िृतयु
् न हर तर व्ययालधपलत से सोंबोंध करने वािे पापग्रहरों की दशा िें
िरण यरग बनेगा। व्ययालधपलत का सोंबोंध पापग्रहरों से न हर तर
व्ययालधपलत से सोंबोंलधत शु भ ग्रहरों की दशा िें िृतयु
् का यरग बताना
चालहए। ऐसा सिझना चालहए। व्ययालधपलत का सोंबोंध शुभ ग्रहरों से भी
न हर तर र्न्ि िग्न से अष्टि थ्थान के अलधपलत की दशा िें िरण
हरता है । अन्यथा तृतीयेश की दशा िें िृतयु ् हरगी। (िारक थ्थानालधपलत
से सोंबोंलधत शु भ ग्रहरों कर भी िारकत्व का गुण प्राप्त््त हरता है ।)
27. िारक ग्रहरों की दशा िें िृतयु
् न आवे तर कुण्डिी िें र्र बिवान
पापग्रह हैं उनकी दशा िें िृतयु
् की आशोंका हरती है । ऐसा लवद्वानरों कर
िारक कन्दित करना चालहए।
28. पापिि दे ने वािा शलन र्ब िारक ग्रहरों से सोंबोंध करता है तब
पूणा िारकेशरों कर अलतक्रिण कर लन:सोंदेह िारक िि दे ता है । इसिें
सोंशय नहीों है ।
29. सभी ग्रह अपनी अपनी दशा और अों तरदशा िें अपने भाव के
अनुरूप शु भ अथवा अशुभ िि प्रदान करते हैं । (सभी ग्रह अपनी
िहादशा की अपनी ही अोंतरदशा िें शुभिि प्रदान नहीों करते हैं –
िेखक)
30. दशानाथ लर्न ग्रहरों के साथ सोंबोंध करता हर और र्र ग्रह दशानाथ
सरीखा सिान धिाा हर, वैसा ही िि दे ने वािा हर तर उसकी
अोंतरदशा िें दशानाथ थ्वयों की दशा का िि दे ता है ।
31. दशानाथ के सोंबोंध रलहत तथा लवरुद् िि दे ने वािे ग्रहरों की
अोंतरदशा िें दशालधपलत और अोंतरदशालधपलत दरनरों के अनुसार
दशािि कल्पना करके सिझना चालहए। (लवरुद् व सोंबोंध रलहत ग्रहरों
का िि अोंतरदशा िें सिझना अलधक िहत्वपूणा है – िेखक)
32. केन्द्र का थ्वािी अपनी दशा िें सोंबोंध रखने वािे लत्करणेश की
अोंतरदशा िें शु भिि प्रदान करता है । लत्करणेश भी अपनी दशा िें
केन्द्रे श के साथ यलद सोंबोंध बनाए तर अपनी अोंतरदशा िें शुभिि
प्रदान करता है । यलद दरनरों का परथ्पर सोंबोंध न हर तर दरनरों अशुभ
िि दे ते हैं ।
33. यलद िारक ग्रहरों की अोंतरदशा िें रार्यरग आरों भ हर तर वह
अोंतरदशा िनुष्य कर उत्तररतर राज्यालधकार से केवि प्रलसद् कर दे ती
है । पूणा सु ख नहीों दे पाती है ।
34. अगर रार्यरग करने वािे ग्रहरों के सोंबोंधी शुभग्रहरों की अोंतरदशा िें
रार्यरग का आरों भ हरवे तर राज्य से सुख और प्रलतष्ठा बढ़ती है ।
रार्यरग करने वािे से सोंबोंध न करने वािे शुभग्रहरों की दशा प्रारों भ
हर तर िि सि हरते हैं । ििरों िें अलधकता या न्यूनता नहीों लदखाई
दे गी। र्ैसा है वैसा ही बना रहे गा।
35. यरगकारक ग्रहरों के साथ सोंबोंध करने वािे शुभग्रहरों की िहादशा
के यरगकारक ग्रहरों की अोंतरदशा िें यरगकारक ग्रह यरग का शुभिि
क्वलचत दे ते हैं ।
36. राह केतू यलद केन्द्र (लवशेषकर चतुथा और दशि थ्थान िें ) अथवा
लत्करण िें न्दथथत हरकर लकसी भी ग्रह के साथ सोंबोंध नहीों करते हरों तर
उनकी िहादशा िें यरगकारक ग्रहरों की अोंतरदशा िें उन ग्रहरों के
अनुसार शुभयरगकारक िि दे ते हैं । (यानी शुभारुढ़ राह केतू शु भ
सोंबोंध की अपे क्षा नहीों रखते। बस वे पाप सोंबोंधी नहीों हरने चालहए तभी
कहे हुए अनुसार ििदायक हरते हैं ।) रार्यरग रलहत शुभग्रहरों की
अोंतरदशा िें शु भिि हरगा, ऐसा सिझना चालहए।
37-38. यलद िहादशा के थ्वािी पापििप्रद ग्रह हरों तर उनके असोंबोंधी
शुभग्रह की अों तरदशा पापिि ही दे ती है । उन िहादशा के थ्वािी
पापी ग्रहरों के सोंबोंधी शुभग्रह की अों तरदशा लिलश्रत (शुभ एवों अशु भ)
िि दे ती है । पापी दशालधप से असों बोंधी यरगकारक ग्रहरों की अोंतरदशा
अत्योंत पापिि दे ने वािी हरती है ।
39. िारक ग्रहरों की िहादशा िें उनके साथ सोंबोंध करने वािे शुभग्रहरों
की अोंतरदशा िें दशानाथ िारक नहीों बनता है । परन्तु उसके साथ
सोंबोंध रलहत पापग्रह अोंतरदशा िें िारक बनते हैं ।
40. शुक्र और शलन अपनी अपनी िहादशा िें अपनी अपनी अोंतरदशा
िें अपने अपने शु भ िि दे ते हैं । यानी शलन िहादशा िें शुक्र की
अोंतरदशा हर तर शलन के िि लििेंगे। शुक्र की िहादशा िें शलन के
अोंतर िें शुक्र के िि लििेंगे। इस िि के लिए दरनरों ग्रहरों के
आपसी सोंबोंध की अपेक्षा भी नहीों करनी चालहए।
41. दशि थ्थान का थ्वािी िग्न िें और िग्न का थ्वािी दशि िें ,
ऐसा यरग हर तर वह रार्यरग सिझना चालहए। इस यरग पर लवख्यात
और लवर्यी ऐसा िनुष्य हरता है ।
42. नवि थ्थान का थ्वािी दशि िें और दशि थ्थान का थ्वािी नवि
िें हर तर ऐसा यरग रार्यरग हरता है । इस यरग पर लवख्यात और
लवर्यी पुरुष हरता है ।
कब हरगा लववाह ?
वतािान िें युवक-युवलतयाों का उच्च लशक्षा या अच्छा कररयर बनाने के
चक्कर िें अलधक उम्र के हर र्ाने पर लववाह िें कािी लविोंब हर
र्ाता है । उनके िाता-लपता भी असुरक्षा की भावनावश अपने बच्चरों के
अच्छे खाने -किाने और आत्मलनभार हरने तक लववाह न करने पर
सहित हर र्ाने के कारण लववाह िें लविोंब-दे री हर र्ाती है ।इस
सिस्या के लनवारणाथा अच्छा हरगा की लकसी लवद्वान ज्यरलतषी कर
अपनी र्न्म कुोंडिी लदखाकर लववाह िें बाधक ग्रह या दरष कर ज्ञात
कर उसका लनवारण करें ।
ज्यरलतषीय दृलष्ट से र्ब लववाह यरग बनते हैं , तब लववाह टिने से लववाह
िें बहुत दे री हर र्ाती है । वे लववाह कर िेकर अत्यों त लचोंलतत हर र्ाते
हैं । वैसे लववाह िें दे री हरने का एक कारण बच्चरों का िाों गलिक हरना
भी हरता है । इनके लववाह के यरग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वषा िें
बनते हैं । लर्न युवक-युवलतयरों के लववाह िें लविोंब हर र्ाता है , तर
उनके ग्रहरों की दशा ज्ञात कर, लववाह के यरग कब बनते हैं , र्ान
सकते हैं । लर्स वषा शलन और गुरु दरनरों सप्ति भाव या िग्न कर
दे खते हरों, तब लववाह के यरग बनते हैं । सप्तिेश की िहादशा-अोंतदा शा
या शुक्र-गुरु की िहादशा-अोंतदा शा िें लववाह का प्रबि यरग बनता है ।
सप्ति भाव िें न्दथथत ग्रह या सप्तिे श के साथ बैठे ग्रह की िहादशा-
अोंतदा शा िें लववाह सोंभव है ।
लववाह काि का लनणाय
शुक्र चोंद्रिा की िहादशा िे र्ब दे वगुरू का अोंतर आए तर लववाह
हरता है ।
दशि भाव के स्वािी की िहादशा िें र्ब अष्टि भाव के स्वािी का
अोंतर आए तर भी लववाह हरता है ।
यलद कुोंडिी िें शुक्र ग्रह से अन्य करई ग्रह युलत कर रहा हर तर ऎसे
ग्रह की िहादशा िें गुरू, शुक्र व शलन के अोंतर काि िें लववाह
प्रकरण तय हरते हों ैै।
िग्न भाव के स्वािी व सप्ति भाव के स्वािी के स्पष्ट रालश यरग के
सिान रालश िे उसी अोंश पर दे वगु रू आते हैं तर लववाह हरता है ।
यलद िहादशा सप्ति भाव के स्वािी चि रही तर उस (सप्ति) भाव
िे न्दथथत ग्रह, बृहस्पलत व शलन के अोंतर काि िे लववाह लनलश्चत हरता
है ।
सप्ति भाव के स्वािी व शुक्र के स्वालित्व वािे भाव िें र्ब चोंद्र व
गु रू की गरचरीय युलत हर तर लववाह हरता है ।
अन्य यरग
िग्नेश, र्ब गरचर िें सप्ति भाव की रालश िें आए।
र्ब शुक्र और सप्तिेश एक साथ हर, तर सप्तिेश की दशा-अोंतदा शा
िें।
िग्न, चोंद्र िग्न एवों शुक्र िग्न की कुोंडिी िें सप्तिेश की दशा-अोंतदा शा
िें।
शुक्र एवों चोंद्र िें र्र भी बिी हर, चोंद्र रालश की सोंख्या, अष्टिेश की
सोंख्या र्रड़ने पर र्र रालश आए, उसिें गरचर गुरु आने पर।
िग्नेश-सप्तिेश की स्पष्ट रालश आलद के यरग के तुल्य रालश िें र्ब
गरचर गुरु आए।
दशिेश की िहादशा और अष्टिेश के अोंतर िें ।
सप्तिेश-शुक्र ग्रह िें र्ब गरचर िें चोंद्र गु रु आए।
लद्वतीयेश लर्स रालश िें हर, उस ग्रह की दशा-अोंतदा शा िें।
लववाह िें बाधक यरग
र्न्म कुोंडिी िें 6, 8, 12 थथानरों कर अशुभ िाना र्ाता है । िोंगि, शलन,
राहु-केतु और सूया कर क्रूर ग्रह िाना है । इनके अशु भ न्दथथलत िें हरने
पर दाों पत्य सु ख िें किी आती है । सप्तिालधपलत द्वादश भाव िें हर
और राह िग्न िें हर, तर वैवालहक सु ख िें बाधा हरना सोंभव है । सप्ति
भावथथ राह युि द्वादशालधपलत से वै वालहक सुख िें किी हरना सोंभव
है । द्वादशथथ सप्तिालधपलत और सप्तिथथ द्वादशालधपलत से यलद राह
की युलत हर तर दाों पत्य सु ख िें किी के साथ ही अिगाव भी उत्पन्न
हर सकता है । िग्न िें न्दथथत शलन-राह भी दाों पत्य सु ख िें किी करते
हैं । सप्तिेश छठे , अष्टि या द्वादश भाव िें हर, तर वै वालहक सुख िें
किी हरना सोंभव है । षष्ठे श का सोंबोंध यलद लद्वतीय, सप्ति भाव,
लद्वतीयालधपलत, सप्तिालधपलत अथवा शु क्र से हर, तर दाों पत्य र्ीवन का
आनोंद बालधत हरता है । छठा भाव न्यायािय का भाव भी है । सप्तिेश
षष्ठे श के साथ छठे भाव िें हर या षष्ठे श, सप्तिेश या शुक्र की युलत
हर, तर पलत-पनी िें न्यालयक सोंघषा हरना भी सोंभव है ।यलद लववाह से
पूवा कुोंडिी लििान करके उपररि दरषरों का लनवारण करने के बाद
ही लववाह लकया गया हर, तर दाों पत्य सुख िें किी नहीों हरती है । लकसी
की कुोंडिी िें कौन सा ग्रह दाों पत्य सुख िें किी िा रहा है । इसके
लिए लकसी लवशेषज्ञ की सिाह िें।
लववाह यरग के िुख्य कारक…
सप्ति भाव का स्वािी खराब है या सही है वह अपने भाव िें बैठ
कर या लकसी अन्य थथान पर बै ठ कर अपने भाव कर दे ख रहा है ।
सप्ति भाव पर लकसी अन्य पाप ग्रह की लद्रलष्ट नही है । करई पाप ग्रह
सप्ति िें बैठा नही है । यलद सप्ति भाव िें सि रालश है । सप्तिेश
और शुक्र सि रालश िें है । सप्तिेश बिी है । सप्ति िें करई ग्रह नही
है । लकसी पाप ग्रह की लद्रलष्ट सप्ति भाव और सप्तिे श पर नही है ।
दू सरे सातवें बारहवें भाव के स्वािी केन्द्र या लत्करण िें हैं ,और गुरु से
लद्रष्ट है । सप्तिेश की न्दथथलत के आगे के भाव िें या सातवें भाव िें
करई क्रूर ग्रह नही है ।
लववाह नही हरगा अगर…
सप्तिेश शु भ थथान पर नही है । सप्तिेश छ: आठ या बारहवें थथान
पर अस्त हरकर बै ठा है । सप्तिेश नीच रालश िें है । सप्तिेश बारहवें
भाव िें है ,और िगनेश या रालशपलत सप्ति िें बैठा है । चन्द्र शुक्र साथ
हरों,उनसे सप्ति िें िोंगि और शलन लवरार्िान हरों। शुक्र और िोंगि
दरनरों सप्ति िें हरों। शुक्र िोंगि दरनर पोंचि या नवें भाव िें हरों। शुक्र
लकसी पाप ग्रह के साथ हर और पोंचि या नवें भाव िें हर। शुक्र बुध
शलन तीनर ही नीच हरों। पोंचि िें चन्द्र हर,सातवें या बारहवें भाव िें दर
या दर से अलधक पापग्रह हरों। सूया स्पष्ट और सप्ति स्पष्ट बराबर का
हर।
लववाह िें दे री…
सप्ति िें बुध और शुक्र दरनर के हरने पर लववाह वादे चिते रहते
है ,लववाह आधी उम्र िें हरता है । चौथा या िगन भाव िोंगि
(बाल्यावथथा) से युि हर,सप्ति िें शलन हर तर कन्या की रुलच शादी
िें नही हरती है ।सप्ति िें शलन और गुरु शादी दे र से करवाते हैं ।
चन्द्रिा से सप्ति िें गु रु शादी दे र से करवाता है ,यही बात चन्द्रिा की
रालश कका से भी िाना र्ाता है । सप्ति िें लत्क भाव का स्वािी
हर,करई शुभ ग्रह यरगकारक नही हर,तर पुरुष लववाह िें दे री हरती
है ।सूया िोंगि बु ध िगन या रालशपलत कर दे खता हर,और गुरु बारहवें
भाव िें बैठा हर तर आध्यान्दत्मकता अलधक हरने से लववाह िें दे री हरती
है ।िगन िें सप्ति िें और बारहवें भाव िें गुरु या शुभ ग्रह यरग
कारक नही हरों,पररवार भाव िें चन्द्रिा किर्रर हर तर लववाह नही
हरता है ,अगर हर भी र्ावे तर सोंतान नही हरती है ।िलहिा की कुन्डिी
िें सप्तिेश या सप्ति शलन से पीलडत हर तर लववाह दे र से हरता
है ।राहु की दशा िें शादी हर,या राहु सप्ति कर पीलडत कर रहा हर,तर
शादी हरकर टू ट र्ाती है ,यह सब लदिागी भ्रि के कारण हरता है ।
लववाह का सिय…
सप्ति या सप्ति से सम्बन्ध रखने वािे ग्रह की िहादशा या अन्तदा शा
िें लववाह हरता है ।कन्या की कुन्डिी िें शुक्र से सप्ति और पुरुष की
कुन्डिी िें गुरु से सप्ति की दशा िें या अन्तदा शा िें लववाह हरता
है ।सप्तिे श की िहादशा िें पुरुष के प्रलत शुक्र या चन्द्र की अन्तदा शा
िें और स्त्री के प्रलत गुरु या िोंगि की अन्तदा शा िें लववाह हरता
है ।सप्तिे श लर्स रालश िें हर,उस रालश के स्वािी के लत्करण िें गुरु
के आने पर लववाह हरता है । गुरु गरचर से सप्ति िें या िगन िें या
चन्द्र रालश िें या चन्द्र रालश के सप्ति िें आये तर लववाह हरता है ।गुरु
का गरचर र्ब सप्तिेश और िगने श की स्पष्ट रालश के र्रड िें आये
तर लववाह हरता है । सप्तिेश र्ब गरचर से शुक्र की रालश िें आये
और गुरु से सम्बन्ध बना िे तर लववाह या शारीररक सम्बन्ध बनता है ।
सप्तिेश और गुरु का लत्करणात्मक सम्पका गरचर से शादी करवा दे ता
है ,या प्यार प्रेि चािू हर र्ाता है ।चन्द्रिा िन का कारक है ,और वह
र्ब बिवान हरकर सप्ति भाव या सप्तिेश से सम्बन्ध रखता हर तर
चौबीसवें साि तक लववाह करवा ही दे ता है ।