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ज्योतिष शास्त्र में वेश्यावत्ति


प्रिय दर्शकों/पाठकों, ज्योतिष एक अथाह सागर है जो जीवन के हर पहलू पर रोशनी
डालता है | एक अच्छे ज्योतिष विद्यार्थी को ज्योतिष की सभी शाखाओं को सीखना
चाहिए और अपने अनुभव से उनका प्रयोग कंु डली पर करना चाहिए|

हमारे समाज का बेहद कड़वा सच है वैश्‍यावत्ति


ृ । कहीं दे ह व्‍यापार को कानूनी मान्‍यता
प्राप्‍त है तो कहीं ये काम कानून के नियमों का उल्‍लंघन माना जाता है । कानून के
प्रतिबंध के बावजद
ू भी वैश्‍यावत्ति
ृ का व्‍यापार सभी जगह खब
ू फलता-फूलता है । इसी
प्रकार क्‍या आपने कभी सोचा है कि ग्रहों की दशा का प्रभाव भी महिलाओं के दे ह
व्‍यापार के दलदल में फंसने का एक महत्‍वपूर्ण कारण है । हमारे समाज में सबसे
घणि
ृ त कार्यों में से एक माना जाता है वेश्यावत्ति
ृ । अक्सर इसके पीछे कई मजबरि
ू यां
होती हैं जब कोई लड़की हवस के सौदागारों को अपना जिस्म बेचने के लिए तैयार
होती है । अगर प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया जाए तो मालूम होता है कि इसका
इतिहास बहुत परु ाना है । आचार्य चाणक्य ने भी अपने ग्रंथ में इसका उल्लेख किया
है । दनि
ु या का शायद ही कोई दे श हो जहां वेश्यावत्ति
ृ न हो। कुछ दे शों में इसे कानूनी
मान्यता है और वहां वेश्याओं के संबंध में लोगों का नजरिया थोड़ा अलग है । वहीं
ज्यादातर दे शों में इसे बेहद घणि
ृ त माना जाता है और इस पर पाबंदी है । जन्म
कंु डली में बनने वाले हर योग का कोई न कोई प्रभाव हमारे जीवन पर जरुर होता है ।
ग्रहों की चाल लोगों को गलत के साथ-साथ अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है ।
मंगल और शुक्र ऐसे दो ग्रह है , जब इनकी युति बनती है तो वैवाहिक जीवन तो
डिस्टर्ब होता ही है , साथ ही गैर महिला के प्रति पुरुषों का आकर्षण बढ़ता है । कभी-
कभी तो स्थिति ये हो जाती है कि जातक सेक्स पर बेतहाशा रुपया खर्च करने को
तैयार रहता है ।

चूंकि वेश्यावत्ति
ृ का इतिहास बहुत पुराना रहा है , इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी इसका
उल्लेख आता है । इसके मुताबिक, कंु डली में ग्रहों का खास योग किसी महिला को
वेश्यावत्ति
ृ की ओर धकेल सकता है । यही नहीं, ऐसे ज्यादातर मामलों में महिला को
उसके प्रेमी द्वारा बहला-फुसलाकर दे ह व्यापार के गंदे धंधे में धकेल दिया जाता है ।
इसलिए जिसकी कंु डली में ऐसा योग हो, उसे प्रेम प्रसंग और धोखेबाज प्रेमी से बचना
चाहिए।
जी हां, महिलाओं के व्‍यापार में फंसने का ज्‍योतिषीय कारण होता है । ग्रहों की कुछ
विशेष स्थिति में महिलाएं दे ह व्‍यापार करने पर मजबरू हो जाती हैं।

—जिस यव
ु क / यव
ु ती की कंु डली में चौथे भाव में शक्र
ु तथा मंगल इकट्ठे होंगे , तो वह
अत्यधिक कामुक ( sexy ) होगा । किसी नजदीकी सम्बन्धी से सेक्स सम्बन्ध होने के
कारण उसका अपना ग्रहस्थ जीवन डावांडोल होता है । लेकिन ऐसा वयक्ति घर में
ध्यान न दे बाहर ही अपने आमोद प्रमोद में मगन रहे गा , ऐसा जानना चाहिए ।
चतुर्थ भाव सुख स्थान का है ।
—-जिसकी कंु डली में चौथे भाव में पाप ग्रह हों , वह रोमांस करने वाला ( mood ) होता
है ।
—चतुर्थ भाव आचरण दर्शाता है और जब सुखों में भारी विघ्न पड़े , तो उसमे
प्रमख
ु त: मुख्य स्थान चतुर्थ भाव का होता है ।
—चतर्थ
ु में पाप ग्रह होना अन्य जगह ( सेक्स ) सम्बन्ध होना कारण है ।
—–जातक/जातिका की कंु डली में गुरु और शुक्र समसप्तक हो तो भी वे अतिकामुक
योग है , और ये योग वैवाहिक जीवन married life के निजी सुखो personal relationship
में वद्धि
ृ करता है । जातक के मामले में यदि मंगल और शक्र
ु समसप्तक हो तो ये
योग की सार्थकता सिद्ध होती है ।
—धनु , मीन लग्न वाले स्त्री पुरुषों को शय्या सुख अन्यत्र खोजने की आवश्यकता
पड़ती है ।
—किसी भी जातक की लग्न कंु डली में मंगल+शुक्र की युति काम वासना को उग्र कर
दे ती है , जन्म के ग्रह जन्मजात प्रवति
ृ की ओर इशारा करते हैं, और वह जातक इस के
प्रभाव से आजीवन प्रभावित-संचालित होता है । किसी व्यक्ति में इस भावना का
प्रतिशत कम हो सकता है , और किसी में ज्यादा हो सकता है ।
—–यदि लग्न और बारहवें भाव के स्वामी एक हो कर केंद्र /त्रिकोण में बैठ जाएँ या
एक दस
ू रे से केंद्रवर्ती हो या आपस में स्थान परिवर्तन कर रहे हों तो पर्वत योग का
निर्माण होता है । इस योग के चलते जहां व्यक्ति भाग्यशाली , विद्या -प्रिय ,कर्म
शील , दानी , यशस्वी , घर जमीन का अधिपति होता है , वहीं अत्यंत कामी और कभी
कभी पर स्त्री गमन करने वाला भी होता है ।
—यदि लग्न का स्वामी बारहवें भाव में हो तथा बारहवें भाव का स्वामी लग्न में हो ,
तो ऐसे कंु डली वालर चाहे यव
ु क हो या यव
ु ती अत्यंत सेक्सी प्रवर्ति के होते हैं ।
क्योंकि द्वादश भाव दस
ू री स्त्री के सेक्स सख
ु का भी स्थान कहलाता है । जैसे शरीर
होता है , तो वह मुख्य है । पर इसके अंदर जो प्राण हैं , वह जीव है , वह अत्यंत
प्रमख
ु होता है । इसी तारतम्य को शद्ध
ु तापर्व
ू क परीक्षण करने हे तु जन्म कंु डली होती
है ।
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मंगल-शक्र
ु का प्रभाव
मंगल व्यक्तित्व का और शुक्र प्यार का ग्रह है । जब दोनों की युति होती है तो
रिलेशनशिप में प्रॉब्लम की संभावना हो जाती है । मंगल, अग्नि और शुक्र, जल का
कारक है , यानि सौम्यता में अग्नि के मिलन से शक्र
ु के कारक तत्व में उछाल आता
है । मंगल विल पॉवर है जो हमारे अंदर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है । यह
बहुत आवेगपूर्ण भी होता है । गुस्से को बढ़ाता है । यह सेक्सअ
ु ल एनर्जी, फिजीकली
एनर्जी को रिप्रजेंट करता है ।
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है प्पीनेस को प्रजेंट करता है शक्र

शुक्र के पास रिश्तों को निभाने और समझौता कराने की क्षमता होती है । शुक्र पेशंस ,
है प्पीनेस और कल को प्रजेंट करता है । शुक्र भोग गह
ृ स्थी, सुंदरता और सौम्यता का
कारक है । दोनों की यति
ु में जातक के अंदर अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण रहता है
और रिलेशनशिप में स्ट्रॉगं सेक्सअ
ु ल संबध
ं चाहता है । ऐसे जातक दसू रों की तरफ
जल्दी आकर्षित होने वाला धर्त
ू , चालाक भी हो सकता है ।
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आइए जानते हैं कि ग्रहों की किस स्थिति में स्‍त्री को वेश्‍या बनना पड़ता है -:
– यदि किसी महिला की कंु डली में सातवें , आठवें और दसवें घर में बुध या शुक्र ग्रह
विराजमान हों तो ऐसी स्थिति में उस स्‍त्री के वैश्‍यावत्ति
ृ के व्‍यापार में आने के योग
बनते हैं।
– वैश्‍यावत्ति
ृ के लिए शुक्र और मंगल अधिक प्रभावकारी और महत्‍वपूर्ण होते हैं। शुक्र
और मंगल के दसवें और सातवें भाव में होने पर ऐसा होना संभव है ।
—-जिस इंसान की कुडली मे चाहे वह महिला हो या परु
ु ष 7th भाव और 8th भाव
मंगल + शुक् से संबंधित हो या मंगल लगन भाव में और चंद्रमा 7 th भाव में हो वह
इंसान बहुत कामक
ु होता है इसके साथ राहु हो जाये मतलब दृष्टि -यत
ु ी -nakshtr –
भाव में तो porn पिक्चर का शौक होता है ।
—इस संबंध में महिला की कंु डली के सातवें , आठवें और दसवें भाव का अध्ययन जरूर
करना चाहिए।
—-ज्योतिष की मान्यता है कि यदि इन भावों में बुध अथवा शुक्र विराजमान हों तो
इस बात की काफी संभावना होती है कि वह महिला वेश्यावत्ति
ृ में चली जाए।
खासतौर पर यदि शक्र
ु और मंगल कंु डली के सातवें अथवा दसवें भाव में विराजमान
हों। यह योग अगर अन्य क्रूर ग्रहों की युति एवं दृष्टि से बने तो महिला का जीवन
तबाह हो जाता है । उसे अपने जीवन का काफी समय वेश्यावत्ति
ृ में बिताना पड़ता है ।
—-उच्च का चंद्रमा प्रेम प्रसंग में सफलता प्रदान करता है लेकिन यही जब नीच राशि
में स्थित होता है तो जीवन में कष्ट लेकर आता है ।
—अगर महिला की कंु डली में नीच का चंद्रमा हो और अन्य ग्रह शुभ न हों तो वह
भविष्य में दे ह व्यापार का मार्ग चुन लेती है । इस प्रकार शुक्र, मंगल और चंद्रमा का
दोषपूर्ण संबंध महिला के जीवन की राह निर्धारित करता है ।
—-तुला राशि में चन्द्रमा और शुक्र की युति जातक की काम वासना को कई गुणा
बड़ा दे ती है । अगर इस युति पर राहु /मंगल की दृष्टि भी तो जातक अपनी वासना
की पर्ति
ू के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ।
—शनि और राहु का संबंध ज्योतिष शास्त्र में अच्छा नहीं माना जाता। यह महिलाओं
के लिए बहुत कष्टपूर्ण होता है । इन दोनों ग्रहों का संबंध वेश्यावत्ति
ृ का योग बनाता
है ।
–इसी प्रकार अष्टम में शुक्र या शनि, शुक्र व मंगल की युति किसी महिला के जीवन
का कड़ा इम्तिहान लेती है और उसे दे ह व्यापार में धकेल दे ती है । शुक्र और राहु का
योग भी वेश्यावत्ति
ृ के लिए जिम्मेदार होता है ।
– किसी महिला की कंु डली में शुक्र और मंगल का आपस में संबंध हो अथवा यह दोनों
ग्रह पीडित हों।
– कंु डली में चंद्रमा ग्रह नीच स्‍थान में अथवा पीडित हो तो भी स्‍त्री के दे ह व्‍यापार में
आने की संभावना प्रबल हो जाती है ।
– शुक्र ग्रह का अष्‍
टम भाव में होना, शनि-शुक्र की युति होना और शनि, शुक्र और
मंगल की यति
ु होने पर।
– जिस स्‍त्री की कंु डली में शुक्र और राहु की युति बन रही हो उसके दे ह व्‍यापार से
जुड़ने की संभावना रहती है ।
– कंु डली में अष्‍
टमेश का प्रबल होना, चंद्रमा बारहवें भाव में उपस्थि‍
त होना एवं दशम
भाव में राहु का उपस्थित होना बहुत ज्‍यादा खराब स्थिति को दर्शाता है ।
– शनि और राहु के संबंध में भी वैश्‍यावत्ति
ृ के योग बनते हैं।
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नवांश कंु डली और अवैध सम्बन्ध–

ज्योतिष एक अथाह सागर है जो जीवन के हर पहलू पर रोशनी डालता है | एक अच्छे


ज्योतिष विद्यार्थी को ज्योतिष की सभी शाखाओं को सीखना चाहिए और अपने
अनुभव से उनका प्रयोग कंु डली पर करना चाहिए| पाराशर ज्योतिष के अनुसार कंु डली
दे खते समय जन्म कंु डली,वर्ग कंु डली, दशा, नक्षत्र और गोचर का विश्लेषण जरूरी होता
है | सभी वर्गों में नवांश को अत्यधिक महत्ता दी गई है इसी वजह से आज का यह
लेख नवांश पर आधारित है कि किस प्रकार नवांश कंु डली से आप अपने और अपने
जीवनसाथी के बीच अंतरं ग संबंधों को दे ख सकते है |

मनुष्य के जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जहाँ उसे नैतिक और अनैतिक में से
एक का वरन करना होता है और इस कलयग
ु में मनष्ु य की लिप्सा और तष्ृ णा का
कोई अंत नहीं है चाहे वह स्त्री हो या परु
ु ष.
आज के समय में किसी को अच्छे बुरे की परवाह नहीं है और सभी लोग अंधों की
तरह अपने स्वार्थों की पर्ती
ू करने में लगे हुए हैं. हम रोज़ ही अखबारों में पढ़ते रहते हैं
की फलां स्त्री का अनैतिक यौन समबन्धों के कारण क़त्ल हो गया, फलां के साथ वैसा
हो गया.

आजकल स्वाप्पिंग का चलन भी बहुत हो चुका है और हमारे जाने बिना यह बढ़ता ही


जा रहा है . कॉलसेंटर कल्चर ने भी स्त्री परु
ु ष के विवाह पर्व
ू और विवाहे तर समबन्धों
को बढाने में बहुत योगदान दिया है . इन्हीं सब कारणों के चलते विवाह नाम की क्रिया
और परिवार नाम का संस्थान बहुत अन्धकार में जा चक ू ा है . यहाँ तक की बड़े
परिवारों में रक्त सम्बंधोयों के मध्य ही यौन सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं और किसी
को पता नहीं चलता. जब तक पता चलता है तब तक दे र हो चुकी होती है .

पंचम भाव और पंचम का उपनक्ष्त्र स्वामी विवाह पूर्व प्रेम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध
आदि के होते है अन्य बातों के अलावा, शुक्र काम का मुख्य करक गह
ृ है और रोमांस
प्रेम आदि पर इसका अधिपत्य है . मंगल व्यक्ति में पाशविकता और तीव्र कामना भर
दे ता है और शनि गुप्त रास्तों से कामाग्नि की पूर्ती करने को प्रेरित करता है .

जैसा की ज्योतिष के सभी विधार्थियों को ज्ञात है कि सप्तम भाव, सप्तम भाव का


स्वामी और शुक्र से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है | इन भावों के अलावा
द्वादश भाव कामक
ु संबंधों के लिए, दस
ू रा भाव कुटुंब के लिए, चौथा भाव परिवार के
लिए भी दे खे जाते है | यदि इन भावों का संबंध या इनके स्वामियों का संबंध मंगल,
शनि, राहु एवं केतु से हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता है |

कामवासना बढ़ाने में द्वादश भाव के स्वामी का मुख्य रोल होता है अगर इस का
स्वामी सप्तम भाव में आए या लग्न में आजाये और वह मख्
ु यत: शक्र
ु या मंगल हो,
ऐसा जातक स्वभाव से लंपट और बहुत सारी स्त्रियों से रिश्ता रखता है 4 7 या 12 वे
में हो, अथवा ईन दोनों ग्रहों का संबंध बन रहा हो तो, यह जातक के अत्यंत कामी
sexy होने का संकेत है । ये ग्रह अधिक बलवान हों तो, जातक समय और दिन-रात की
मर्यादा भल
ू कर सदै व सेक्स sex को आतुर रहता है । मंगल जोश है , और शुक्र भोग
अतः इन दोनों की युति होने पर अधिकांश कंु डलियों में ये प्रभाव सही पाया गया है ।
ये बात वैध और अवैध दोनों संबंधो पर लागू होती है ।

यदि शक्र
ु मेष,सिंह, धनु, वश्चि
ृ क में हो या नीच का हो और मंगल राहु केतु या शनि
के साथ हो तो यह व्यक्ति में अत्यधिक सेक्स इच्छा दर्शाते है | कई बार व्यक्ति
विवाह की मर्यादा को तोड़कर विवाह के बाद बाहर ही संबंध बनाता है निश्चय ही यह
अच्छी बात नहीं है परं तु ऐसे कौन से योग है जिसके कारण व्यक्ति भी इस तरह की
इच्छा उत्पन्न होती है आइए जानते हैं की ज्योतिष ग्रंथों में इसके बारे में क्या बताया
गया है | विवाह से बाहर शारीरिक संबंध बनाने के लिए पहले तो व्यक्ति बौद्धिक रूप से
तैयार होना चाहिए उसकी बद्धि
ु ऐसी होनी चाहिए जो उसको इस ओर धकेल रही हो |
पंचम भाव और चंद्रमा दर्शाता है कि व्यक्ति की सोच क्या है तो यदि आपकी कंु डली
में पंचम भाव पर मंगल, शनि, राहु का प्रभाव है और चंद्रमा भी पीड़ित है तो ऐसी
सोच उत्पन्न होती है | यही योग यदि नवांश में बन जाए तो वह इस तरह की सोच
पर मोहर लगा दे ते हैं|

अब बात करते हैं ऐसे कुछ लोगों की जो ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में दिए हुए है |

नवांश कंु डली में शनि शुक्र की राशि में और शुक्र शनि की राशि में हो तो महिला की
शारीरिक भूख अधिक होती है |

नवांश कंु डली में शुक्र मंगल की राशि में हो और मंगल शुक्र की राशि में तो व्यक्ति
अपने जीवनसाथी के अलावा बाहर शारीरिक संबंध बनाने में नहीं हिचकिचाते है |

शक्र
ु मंगल आत्मकारक की नवांश राशि से बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन
होता है |

केतु आत्मकारक की नवांश राशि से नवम भाव में हो तो वद्ध


ृ ावस्था तक भी व्यक्ति
पर परु
ु ष या पर स्त्री के बारे में सोचता रहता है |

शुक्र सभी वर्गों में केवल मंगल या शनि की राशियों में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता
है |
यदि शुक्र पर मंगल की द्रष्टि हो , दोनों गह
ृ एक दस
ु रे की राशियों में हो तो व्यक्ति
का अपनी बहिन या भाई या रक्त सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित होता है . और
साथ ही यदि शुक्र के साथ चन्द्रमा हो – परु
ु ष की कंु डली में , तो वह अपनी बहिन या
अन्य निकट सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करता है . यदि वही शुक्र गुरु के
साथ हो स्त्री की कंु डली में तो वह अपने भाई या अन्य निकट सम्बन्धियों से
सम्बन्ध स्थापित करती है .

शुक्र पर शनि की द्रष्टि अथवा शनि शुक्र के मध्य नक्षत्र परिवर्तन हो तो वह


सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध दर्शाता है .स्त्री की कंु डली में यह पुत्र अथवा दामाद से
सम्बन्ध दर्शाता है और यदि सर्य
ू की जगह चन्द्र हो और शक्र
ु मंगल सर्य
ू के पहले हों
तो यह परु
ु ष की कंु डली में पुत्री अथवा बहु और स्त्री की कंु डली में पिता, चाचा अथवा
अन्य सम्बन्धियों से यौन सम्बन्ध प्रदर्शित करता है .

नवांश कंु डली में चंद्रमा के दोनों ओर शनि और मंगल हो तो पति-पत्नी दोनों ही
व्याभिचार करते हैं|

जन्म कंु डली का सप्तम का स्वामी नवांश कंु डली में बद्ध
ु की राशि में बैठा हो और
बुध उसे दे ख ले तो आपका जीवन साथी द्विअर्थी बातें करते हैं और लोगों को रिझाने
का काम करते हैं|

जैसा की आप सबको भी ज्ञात होगा कि पंचम और सप्तम भाव से संतान प्राप्ति


दे खते हैं| यदि दोनों का संबंध छठे भाव से हो जाए तो व्यक्ति विशेष में प्रजनन
शक्ति कम होती है | जातक अलंकार के अनस
ु ार यदि शुक्र मंगल की राशियों में हो तो
वह अपने जीवनसाथी को सेक्स संबंधों में खुश नहीं रख पाता है | इसी तरह यदि शनि
शक्र
ु का योग दशम भाव में हो तो व्यक्ति में नपंस
ु कता के योग होते हैं | संकेत निधि
के अनुसार यदि शुक्र चंद्रमा की युति नवम भाव में हो तो ऐसे जातक की पत्नी
कुटिल होती है |

कंु डली के चौथे भाव से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जाता है और बार-बार सेक्स
संबंधों में आपकी रुचि को दर्शाता है किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही इन
दोनों भावों का गहन विश्लेषण आवश्यक है | हमारा आप सब से अनुरोध है कि यह
नियम सीधे कंु डलियों पर ना लगाएं अपितु परू ी कंु डली का विश्लेषण करने के बाद ही
इन लोगों को जांचे|

कंु डली का अष्टम भाव अन्य बातों के अलावा यौन संबंधों और क्रिया से सम्बन्ध
रखता है .
यदि किसी व्यक्ति का १,५,११ भाव का सम्बन्ध मंगल शक्र
ु शनि से हो , वह
स्वामित्व भी हो सकता है और राशी नक्षत्र और उपनक्ष्त्र के रूप में भी हो सकता है
और मंगल शुक्र १ और ११ के कार्येष गह
ृ हो सकते हैं जिन पर शनि की द्रष्टि पड़
रही हो तब निश्चित ही व्यक्ति के अन्दर , चाहे स्त्री हो या परु
ु ष , उन्मक्
ु तता की
भावना रहे गी और दशा अंतर आने पर वह इन कृत्यों में लिप्त होकर ही रहे गा.

स्त्री की कंु डली


22-8-1962, doha, qatar.
यह एक अत्यधिक सद
ुं र स्त्री की कंु डली है जिसको १९ वर्ष में ही क़तर एयरलाइन्स
में होस्टे स की नौकरी मिल गयी थी. एक यात्री को वह बहुत पसंद आ गयी और उसने
इस महिला से शादी कर ली. वह व्यक्ति करोडपति है . बहुत साल की शादी के बाद
दोनों का तलाक हो गया , इस स्त्री के एक २१ वर्षीय लड़के से अनैतिक सम्बन्ध था
जिसके कारण उसने अपने पति को छोड़ दिया . वह लड़का उसके पुत्र का सहपाठी था.
जब उस लड़के का मतलब निकल गया तो उसने इस स्त्री को छोड़ दिया. इस स्त्री के
अनगिनत लोगों से सम्बन्ध रहे और इसने कभी भी उसको अनै तिक नहीं समझा. मैंने
जब इसका हाथ दे खा था तो मैंने इसको बता दिया था की इसका किसी बहुत मक
आयु के परु
ु ष से प्रेम सम्बन्ध है और इसका तलाक होने वाला है . २००१ के बात है .
यह अब बॉम्बे में किसी धनवान व्यक्ति के साथ गज
ु र बसर कर रही है .

प्रथम भाव शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्ष्त्र में है ,पंचम भाव भी शुक्र के नक्षत्र
और शनि के उपनक्ष्त्र मैं है ,११वें भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी शनि है . शुक्र पर मंगल की
द्रष्टि है .यह अत्यधिक मदिरा पान करती थी और अन्य नशों की भी इसको लत थी .
22-10-1968, पुरुष , 77E43-22N45
शक्र
ु स्वयं ही लग्न में है और मंगल से द्रष्ट है .शक्र
ु मंगल की राशि में है . ११वें भाव
का उपनक्ष्त्र स्वामी शुक्र है ,पंचम भाव शनि के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है
,अष्टम का उप्नाक्ष्त्र स्वामी लाभ में है , गुरु भी शनि के उपनक्ष्त्र में है . इस व्यक्ति
को याद भी नहीं है की इसका कितनी महिलाओं से यौन सम्बन्ध रह चक
ू ा है .

परु
ु ष ,19-3-1973, 83E24, 21N54.
शनि लग्न में है और शुक्र पर द्रष्टि है , पंचम भाव शुक्र के नक्षत्र और मंगल के
उपनक्ष्त्र में है . ११वे भाव का उपनक्ष्त्र स्वामी सूर्य है जो शनि के नक्षत्र और उपनक्ष्त्र
में है . सर्य
ू बधु शक्र
ु ११वे भाव में हैं. ये समाचार मीडिया के एक बहुत बड़े संस्थान में
बहुत बड़े पद पर विराजमान है .इसके जीवन में कई इस प्रकार के सम्बन्ध रहे हैं.

20-3-1955,13:42:40.
शनि की मंगल और लग्न पर द्रष्टि है , शक्र
ु सप्तम में चन्द्र के साथ है ,शनि शक्र

के उपनक्ष्त्र में है , मंगल शनि के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्ष्त्र में है . इस जातक के कई
दे शी और विदे शी महिलाओं से शारीरिक सम्बन्ध रहे हैं. यह स्वयं बहुत ख्यति प्राप्त
विद्वान ् ज्योतिषी है .

कुण्डलियाँ बहुत दी जा सकती हैं मगर मझ ु े उम्मीद है की पाठक समझ गए होंगे की


किन ग्रहों की युति द्रष्टि नक्षत्र आदि के कारण व्यक्ति इन सब कार्यों की ओर
अग्रसर हो जाता है . दशा भुक्ति और अन्तर का इसमें सबसे बड़ा योगदान होता है
क्योंकि ऐसे योग हो तो बहुत लोगों की कंु डली में सकते हैं मगर फलीभत
ू तभी होते
हैं जब सही दशा मिल जाती है . गुरूजी कृष्णामर्ति
ू जी की पद्धति अचूक और सटीक है
इसमें कोई दो मत नहीं है .
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कामक
ु ता और ज्योतिष—-

मेरे जीवन साथी और मेरी काम इच्छाएं अलग अलग हैं मुझे क्या करना चाहिए ?
एक सर्वे के अनुसार 20% तलाक का कारण पति पत्नी में काम इच्छाओ का अलग
होना है | यह एक ऐसा विषय है जिस पर चर्चा करना समाज में अच्छा नहीं माना
जाता परन्तु एक सभ्य और शिक्षित समाज में जीवन से जुड़े सभी पहलुओ पर विचार
करना आवश्यक है |

भारत में भी अधिकतर दे शो की तरह परु


ु ष प्रधान समाज रहा है , परन्तु पिछले दो
दशको से विशेषतः शहरी क्षेत्रो में महिलाएं आगे आ रही है | अब महिलाएं भी खल
ु कर
अपनी मांग समाज के आगे रखती है | आज से तीस वर्ष पहले भारत में कोई महिला
Sexual incompatibility के कारण तलाक लेती थी, तो उसे समाज की निंदा का पात्र
बनना पड़ता था| आज के आधनि
ु क यग
ु में इस विषय पर खल
ु कर बात होनी
आवश्यक है |

अब पछताय क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत

जब आप अपने लिए जीवन साथी चुनते है तो आप उसकी शिक्षा, परिवार, सुन्दरता


और आर्थिक स्थिति को दे ख और परख सकते है परन्तु काम इच्छाएं बहुत ही निजी
पहलु है जिसका पता अधिकतर शादी के बाद ही चलता है | तब तक बहुत दे र हो
चुकी होती है |

ज्योतिष एक ऐसा शास्त्र है जो आपको व्यक्तिगत जानकारी दे सकता है | यदि


ज्योतिषी अनुभवी और शिक्षित हो तो वह आपको ऐसी जानकारी दे सकता है जो
शायद व्यक्ति को स्वयं भी ना पता हो | आइये अब दे खते हम कैसे कंु डली दे खकर
व्यक्ति की काम उत्तेजना दे ख सकते हैं :-
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काम सम्बन्ध और द्वादश भाव

कंु डली में 12 वां भाव शैया सुख को दर्शाता है | पति पत्नी के बीच मैथुन सम्बन्ध को
द्वादश भाव दर्शाता है | भिन्न भिन्न ग्रहों का द्वादश भाव में होने से निम्नलिखित
परिणाम होता है :
सूर्य – ज्योतिष शास्त्र अनुसार सूर्य अलगाव वादी ग्रह है | यदि द्वादश भाव में सूर्य हो
तो पति पत्नी में रात के समय टकराव की स्थिति बनती है | सम्बन्ध स्थापित करते
समय दोनों साथियों में से एक मालिक की तरह दस
ु रे को हुक्म दे ता है | मैथुन क्रिया
महीने में 2-3 बार ही होती है |

उपाय – शयन कक्ष में अहंकार की बातें नहीं करें |

चन्द्र – चन्द्र मन का कारक है | यदि द्वादश भाव में है तो व्यक्ति की बहुत सी


कामक ु इच्छाएं होती है | अत्यधिक मैथन
ु की सोच के कारण व्यक्ति की इन्द्रियाँ क्षीण
होती है | साथी और आप में मधुर सम्बन्ध होते है | सप्ताह में 2 या इससे अधिक बार
मैथुन की संभावना होती है |

मंगल – ज्योतिष अनस


ु ार मंगल ऊर्जा का प्रतीक है | मैथुन क्रिया में उग्रता रहती है |
आव़ाज अधिक करते है | मैथन
ु क्रिया में अलग अलग आसन और तरीको को इस्तेमाल
करने में पीछे नही हटते है |ऊर्जा अधिक होती है , स्नेह कम होता है | इस भाव में मंगल
हो तो व्यक्ति मांगलिक भी कहलाता है |

बुध – बुध नपुंसक ग्रह है | बुध द्वादश में हो तो व्यक्ति सम्बन्ध के समय हंसी
मजाक और माहौल को हल्का रखता है |

नाम बड़े और दर्शन छोटे —-

परू े दिन कामक


ु बातें कर सकता है परन्तु सम्बन्ध के समय शीघ्रता रहती है | आप
कह सकते है की यदि बुध द्वादश में हो तो
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व्यभिचारिणी योग :-

यह योग बहुत घातक होता है । क्योकि व्यभिचार सारे अनर्थों की जड़ है । इसके कारण
कुल अथवा परिवार की मर्यादा और यश का सर्वनाश हो जाता है । इस योग से भरे
परू े परिवार का सफाया हो जाता है । इसलिए स्त्री की कंु डली में यदि ये योग हो तो
विवाह नही करना चाहिए।
—-यदि कंु डली में सप्तम भाव में कर्क राशि में सर्य
ू व मंगल हो तो लड़की
व्यभिचारिणी होती है तथा इस योग से वह खद
ु के जीवन कओ नष्ट कर लेती है ।
——मेष , वश्चि
ृ क , मकर , अथवा कुम्भ , राशि का लग्न हो और उसमे शुक्र व
चन्द्रमा दोनों ही बैठें हो तथा इन पर पापी ग्रह की दृष्टि हो तो लड़की के साथ उसकी
माता भी व्यभिचार करती है ।
—-चन्द्र ,मंगल , व शुक्र , तीनों अथवा इनमे से कोई दो ग्रह यदि सप्तम भाव में हो
तो लड़की चरित्रहीन होती है ।
—-मंगल व शुक्र यदि एक दस
ू रे के नवांश में हो तो स्त्री व्यभिचारिणी होती है ।
——अगर मंगल का त्रिशांश कंु डली में हो तो स्त्री दबंग, पति को वश में रखने वाली,
स्वेच्छाचारिणी, परु
ु षवत ् आचरण करने वाली तथा पति से हमेशा द्वेष रखने वाली
होती है । अगर शनि का त्रिशांश हो तो स्त्री दरिद्र, उम्र से अधिक दिखने वाली, परपरु
ु ष
गामिनी एवं सौभाग्यहीन मानी जाती है । अगर बुध का त्रिशांश हो तो स्त्री कपट करने
वाली, गढ़
ू मन वाली तथा दस
ू रों पर डोरे डालने वाली होती है । शक्र
ु के त्रिशांश के
चारित्रिक चंचल, परपरु
ु ष की कामना करने वाली और गुरु के त्रिशांश वाली स्त्री
सौभाग्यशाली, पुत्रवती एवं भाग्यवान होती है ।
—–तल
ु ा या वष
ृ लग्न में शनि का नवांश हो तथा उस पर शुक्र अथवा शनि की दृष्टि
हो तो स्त्री अप्राकृतिक तरीके से अपनी कामवासना को शांत करती है ।
——यदि शनि व शुक्र एक दस
ू रे के नवांश में हो और एक दस
ू रे को दे खते हो तो भी
ये उपरोक्त फल होता है ।
—-यदि मंगल व शनि एक दस
ू रे के नवांश में हो तो स्त्री गलत कर्मों से धन अर्जित
करती है ।
—–अगर स्त्री की कंु डली में लग्र या चंद्रमा से सप्तम भाव ग्रहरहित या निर्बल हों
तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो वह स्त्री डरपोक स्वभाव वाले , दब्बू एवं कामचोर परु
ु ष
की पत्नी बनती है । सप्तम में बुध या शनि हों तो उस स्त्री का पति अन्य स्त्रियों से
शारीरिक संबंध रखने वाला, कम संतान वाला तथा परदे श में रहने वाला होता है ।
अगर सप्तम भाव में चरराशि हो या सप्तमेश चरराशि से नवांश हो गया हो तो उस
स्त्री का पति निश्चित रूप से परदे श में रहने वाला ही होता है ।
—-यदि लग्न चन्द्र व लग्नेश तीनों ही चर राशि में हो तथा उन्हें कोई पापी ग्रह
दे खता हो तो वह स्त्री विवाह से पहले ही अनेक परु
ु षों से सम्बन्ध रखती है जो विवाह
के बाद भी रहते है ।
—-यदि लग्न व चन्द्र दोनों ही चर राशि में हो और कोई बली पाप ग्रह किसी केंद्र में
हो तो वह स्त्री कामवासना से ग्रसित होकर दरु ाचार करती है ।
—जिस कन्या की कंु डली में सातवें भाव में राहु अथवा केतु हो तथा सप्तमेश पापी
ग्रहों के साथ तथा सप्तम भाव पर भी पापी ग्रह की दृष्टि हो तो वह स्त्री किसी
मजबरू ी में अथवा बरु ी संगत में आकर गलत कार्य करती है ।
—स्त्री की कंु डली के सप्तम में सूर्य हो तो स्त्री का पति से संबंध-विच्छे द तथा मंगल
हो तो विधवा का योग बनता है । अगर सप्तमस्थ शनि को कोई पाप ग्रह दे ख रहा हो
तो कन्या का विवाह या तो बहुत विलम्ब से होता है या फिर होता ही नहीं। अगर
सप्तम में सभी पाप ग्रह हों तो स्त्री विधवा, शभ
ु एवं अशभ
ु दोनों ही हो तो दस
ू रा
पति पाने वाली, सप्तम में चंद्र, शुक्र एवं मंगल हों तो पति की इच्छा से पर पुरुष
सम्पर्क रखने वाली होती है ।
—यदि शुक्र से सातवें भाव में मंगल या सूर्य दोनों हो तो स्त्री गुप्त रूप से अन्य
पुरुष से सम्बन्ध रखती है ।
—-आठवें भाव में सूर्य और सातवें भाव में शुक्र हो तो स्त्री वेश्या बनती है ।
—-शुक्र व मंगल एक दस
ू रे की राशि में हो तो भी स्त्री दरु ाचार ही अपनाती है ।
—-किसी केंद्र भाव में पापी ग्रह के साथ मंगल हो तो वह स्त्री स्वसुख के लिए अन्य
पुरुष से सम्बन्ध बनाती है ।

विशेष :- प्राचीन शास्त्रो में इस प्रकार के व्यभिचार के योग दिए गए है । परन्तु यह


अंतिम निर्णय नही है । इसके अतिरिक्त कंु डली में अन्य योगो का सूक्ष्म विचार करके
ही अंतिम निर्णय पर पहुँचना चाहिए।

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