Professional Documents
Culture Documents
TIRUPATI
राष्ट्रियसंस्कृतष्ट्िश्वष्ट्िद्यालय ष्ट्तरुपष्ट्तिः
ज्योतिषवास्ितु वभागश्च
Online Diploma Program in Jyotisha & Vastu
प्रश्नपत्रसंख्या (Paper No) = 3
इकाई (Unit) - 5
ु
विषयः – ग्रहगोचरफलविमर्ःश ग्रहिास्तदोषाःउपचाराश्च
् य
अद्यतनीयं पञ्चाङ्गम (स ू ोदयकावलकम )्
स्थानम –् वतरुपवतः,भारतम ् 03/09/2022
् 1944
र्कसंित = ् 2079
विक्रमसंित =
अयनम =् दविणायनम ,् गोलः = उत्तरगोलः, ऋतःु = िषा श
् अनराधा
नित्रम = ु ्
, योगः= िैधवृ त , करणम =िवणज,
सयू ोदयकालः = 06-01am, सय ू ास्त
श कालः = 06-21 pm,
सय ू रश ावर्ः = वसंह , सय ् िू फ
ू नश ित्रम =प ु ,
श ाल्गनी
चन्द्ररावर्ः = िृवश्चक, चन्द्रनित्रम ् = अनराधा
ु ,
गोचर का स्वरूप और उसका आधार
आकार्स्थ ग्रह अपन े-अपन े मागश और अपनी-अपनी गवत से सदैि भ्रमण करते हुए एक रावर् से दूसरी
रावर् में प्रिेर् करते रहते हैं ।जन्म समय में ये ग्रह वजस रावर् में पाए जाते हैं िह रावर् उनकी जन्म
कालीन अिस्था कहलाती है जो वक जन्म कुण्डली का आधार है और जन्म समय के अनन्तर वकसी भी
समय िे अपनी गवत से वजस रावर् में भ्रमण करते हुए वदखाई देत े हैं िहां उस रावर् में उनकी वस्थवत
'गोचर' अ िा संचार वस्थवत कहलाती है । 'गो' र्ब्द संस्कृत भाषा की ‘गम' ् धात ु से बनता है और इसका
अ श है 'चलन े िाला' ।आकार् में करोड़ों तारे हैं । िे सब वस्थर प्रायः हैं । ताऱों से ग्रह़ों की पृ क्ता को
्
दर्ाशन े के वलए उनका नाम 'गो' अ ाशत चलन े िाला रखा गया । ‘चर' र्ब्द का अ श भी चाल अ िा चलन
्
है, तो 'गोचर' र्ब्द का अ श हुआ — ग्रह़ों का चलन, अ ाशत चलन एिं अवस्थर अिस्था में ग्रह का
पवरितशन प्रभाि ।
गोचर ग्रह़ों के प्रभाि उनकी रावर् पवरितशन के सा -सा बदलते रहते हैं । जातक पर चल रहे ितशमान
समय की र्भु ार्भु जानकारी-सरल और उपयोगी साधन है। िष श की जानकारी गरुु और र्वन से, मास की
सूय श से और प्रवतवदन की चन्द्रगोचर से की जा सकती है। िास्तविकता तो यह है वक गोचर का फल चाहे
ु ू ल ही कहना चावहए न
िह वकसी भी ग्रह से सम्बवित हो उस ग्रह की अन्य प्रत्येक ग्रह से वस्थवत के अनक
वक के िल उस ग्रह की चन्द्रमा की वस्थवत से । इस सन्दभश को िृहद ् जातक अध्याय ६ श्लोक १ में स्पष्ट वकया
ु -अमक
गया है वक चन्द्रमा से अमक ु भाि़ों में सूय श कब अच्छा फल करता है । अ िा अमक
ु -अमक
ु भाि़ों में
मंगल अच्छा फल करता है आवद-आवद । ग्रह़ों की चन्द्र से वकस भाि में वस्थवत है इस बात पर फल़ों का
वनणशय वकया गया है । ज्योवतषर्ास्त्र के वपता न े (बृहत्पारार्र होरार्ास्त्र अध्याय १२, श्लोक ११में) कहा है
्
“एिं चन्द्राच्च विज्ञेय ं फलं जातककोविदै:”अ ाशत ज्योवतष र्ास्त्र के पवण्डत़ों को लग्न की भांवत चन्द्र लग्न से
भी फलादेर् कहना चावहए।
गोचर में ग्रह़ों का विचार लग्न से वकया जािे अ िा जन्म रावर् से—
यह एक महत्त्वपूण श प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर 'ज्योवतवन शबि'का वनम्नवलवखत श्लोक कुछ हद तक उपवस्थत
करता है : -
"वििाहे सिशमाङ्गल्ये यात्रादौ ग्रहगोचरे
जन्मरार्ेः प्रधानत्वं नाम रावर् न वचन्तयेत”
्
अ ाशत वििाह और अन्य मंगल कायों में यात्रा आवद में, और ग्रह़ों के 'गोचर' विचार में जन्म रावर् की
प्रधानता है न वक नाम रावर् की । प्रवसद्ध ज्योवतष ग्रन्थ 'फलदीवपका' में भी चन्द्र लग्न से अ ाशत जन्म ् रावर्
से गोचर विचार करन े का वनदेर् है :
ु ष्ववपसत्सहु ोतेचन्द्रलग्नं प्रधानं खलु गोचरेष ु ।“
"सिेषलग्ने
अ ाशत सब ् प्रकार की लग्ऩों (लग्न, सूय श लग्न, चन्द्र लग्न ) के भी गोचर विचार में प्रधानता चन्द्र लग्न ही की
है। िैस े भी चन्द्र लग्न की महानता ज्योवतषर्ास्त्र में कुछ कम नहीं । चन्द्र लग्न की महानता का कुछ
अन्दाजा आपको 'जातक पावरजात' के राजयोग अध्याय ७ के वनम्नवलवखत श्लोक १३ से भी हो जाएगा
नीचं गतो जन्मवन यो ग्रह स्थात्तद ् रावर् ना ोऽवप तदुच्च ना ः
सचन्द्र लग्नाद ् यवद के न्द्रिती राजा भिेद धावमशक चक्रिती।"
प्राक्पिे धिले ( बलि ? ) र्र्ी यवद र्भु ः पस ं ु ांवस पिः र्भु ः
कृ ष्णे चेदर्भु ास्तदा र्भु करो व्यत्यासतो वनष्फलः।
तारािीयशिच्छर्ी विधबले ु दृष्टो रिेः संक्रमः ।
ु
र्स्ता भानबलाद ् भिवन्त खचरा दुष्टाः वस्थतः गोचरे ॥
(राजिल्लभिास्त,ु अ12,1)
ु पि के पहले वदन परुष
वकसी माह में र्क्ल ु का चंद्रमा र्भु हो तो पूरा र्भु कारी मानना चावहए। यवद
ु का चंद्रमा वनबशल हो, लेवकन तारा प्रर्स्त हो तो उस तारा के बल से िह भी
कृ ष्णपि के प्र म वदन परुष
र्भु कारी हो जाता है। इसके विपरीत हो तो वनष्फल मानें । यवद र्क्ल
ु पि के प्र म वदन चंद्रमा वनबशल हो,
लेवकन तारा बलिान हो या कृ ष्ण पि के पहले वदन चंद्रमा बलिान और तारा वनबशल हो तो िह पि
वनष्फल जाना मानें। इसी तरह वजस वदन सूय श की रावर् बदले उस वदन चंद्रमा बलिान हो तो श्रेष्ठ है।
मंगल इत्यावद दुष्ट ग्रह हैं , उनकी रावर् बदले उस समय सूय श बलिान हो तो श्रेष्ठ है ।
ग्रहाणां गोचरफलावन
सिे ग्रहा लाभगताः र्भु ाः स्यवु स्त्रषविर्ाकश स्य त ैि राहुः ।
र्वनवस्त्रषष्ठः र्भु कृ न्महीज: क्रूरा ग्रहा गोचरगा: स्वरार्ेः ॥ (राजिल्लभिास्त,ु अ12,2)
यवद सभी ग्रह ग्यारहिें या लाभ के स्थान के ह़ों तो र्भु मान े जाते हैं । तीसरे, छठे और दसिें स्थान के सूय श ि राहू र्भु मानें
। तीसरा ि छठा र्वन और मंगल र्भु होता है।क्रूर ग्रह अपनी रावर् से गोचरस्थ होकर र्भु कारी होते हैं ।
चन्द्रे षविदर्ाद्य्सप्तमर्भु : र्क्ल
ु े ऽङ्कपञ्चाविगो
ज्ञो यग्ु मेऽन्त्यवििवजशतः सरग ु माशस्तधीयग्ु मतः ।
ु रुधश
ु ोऽस्तावरवििवजशतश्च सकले चन्द्रः सदालोक्यते
र्क्र
होरा साद्धशघटीद्वयं वनजवदनात ष् ष्ठी च षष्टी भिेत ॥ ् (राजिल्लभिास्त,ु अ12,3)
ु वर्िाहौ र्क्र
द्व्यन्त्ये निार्ेऽवद्रगणे ु ःकुनागे वद्वनगेऽवग्नरूपे।
िेदांबरे पंचवनधौ गजेषौ नंदर् ु वर्िाग्नौ ॥ ३ ॥
े योभाशनरसे
शभ
ु म् 5 2 9 2 11
गर
ु ः
वेधम ् 4 12 10 3 8
शभ
ु म् 1 2 3 4 5 8 9 12 11
शुक्रः
वेधम ् 8 7 1 10 9 5 11 6 3
ग्रह़ों के गवतिर् से रवि, चन्द्रमा, मंगल, र्वन और राहु का फल-
जन्मरावर् से छटे स्थान में सूय श र्भु है परन्त ु उस समय में जब वक बारहिें स्थानमें
र्वनके विना कोई ग्रह न हो । जो बारहिें स्थानमें कोई ग्रह न हो तो सूय श र्भु है। उसी प्रकार
दर्म सूय श र्भु है यवद चौ े र्वनके विना कोई ग्रह न हो तो। तीसरे स्थानमें सूय श र्भु है यवद
निम स्थानमें र्वनके विना कोई दूसरा ग्रह न हो तो । ग्यारहिें स्थान में सूय श र्भु है यवद पांचिें
स्थानमें र्वनको छोड कोई ग्रह न हो तो। छठे स्थान में मंगल र्भु है यवद निम स्थान में कोई
ग्रह न हो तो, ग्यारहिां मंगल र्भु है यवद पांचिें स्थानमें कोई ग्रह न हो तो, तीसरे मंगल र्भु है
जो बारहिें स्थानमें कोई ग्रह न हो तो। छठे स्थानमें र्वन र्भु है यवद निम स्थानमें सूय श के विना
कोई ग्रह न हो तो। तीसरे में र्वन र्भु है जो बारहिें स्थानमें सूय श के विना कोई ग्रह न हो तो।
छठे में राहु र्भु है यवद निम स्थानमें कोई ग्रह न हो तो। ग्यारहिें में राहु र्भु पांचिें में कोई ग्रह
न हो तो। तीसरे में राहु र्भु है यवद बारहिें में कोई ग्रह न हो तो ।
जन्मका र्क्रु र्भु है, जो आठिें कोई ग्रह न हो तो । दूसरे र्क्र ु र्भु है, जो
सातिें कोई ग्रह न हो तो। तीसरे र्क्रु र्भु है जो जन्म का कोई ग्रह न हो तो। चौ े
ु र्भु है यवद दसिें कोई ग्रह न हो तो । पांचिें र्क्र
र्क्र ु र्भु है, जो निें कोई ग्रह न
हो तो। आठिें र्क्र ु र्भु है, जो पांचिें कोई ग्रह न हो तो। निें र्क्र
ु र्भु है, जो
ग्यारहिें कोई ग्रह न हो तो । बारहिें र्क्र ु र्भु है, जो छठ कोई ग्रह न हो तो।
ु र्भु है, जो तीसरे में कोई ग्रह न हो तो।
ग्यारहिें र्क्र
ु पि में चंद्रबल कहते हैं -
विपवरतिेध और र्क्ल
इस क्रमसे र्भु और विद्ध ग्रह होते हैं । वपता और पत्रु का िेध नहीं होता ।
ज ैसे सयू श और र्वनका चंद्रमा और बधका ु इत्यावद। विपरीत िेधसे पाप ग्रह भी र्भु
हो जाता है, ज ैसे बारहिें स्थानमें सयू श र्भु है जो छठे स्थान में र्वनके विना कोई
ु
ग्रह न हो तो । जो र्क्लपिका चंद्रमा दूसरे निें पांचिें इन स्थाऩों में हो तो िह र्भु
फल देता है।
अत्र ग्रहाणां विवहतवनवषद्धस्थानफलावन
ु पत्रस्थान
सखं ु े रुजमवप च कुयाशदवरगृहे
ु
स्थानधनावन ददावत स चाये द्वादर्गस्तनमानसपीडाम ।् ।
र्क्र ु
ु :- जन्मन्यवरियकरो भृगजोऽ ु
शदोऽ े दुवश्चक्यग: सखकरो धनदश्चत ु शः ।
ु
जनयवत विविधाम्बरावण धमे न सखकरो दर्मवस्थस्त ु र्क्र
ु ः।