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श न-चं का वष योग  जून 2013

सीताराम सह

फलद पका’ ंथ के अनुसार ‘‘आयु, मृ यु, भय, ख, अपमान, रोग, द र ता, दासता, बदनामी, वप , न दत काय, नीच लोग से सहायता,
आलस, कज, लोहा, कृ ष उपकरण तथा बंधन का वचार श न ह से होता है। ‘‘अपने अशुभ कारक व के कारण श न ह को पापी तथा
अशुभ ह कहा जाता है। परंतु यह पूणतया स य नह है। वृष, तुला, मकर और कुंभ ल न वाले जातक के लए श न ऐ य द, धनु व मीन ल न
म शुभकारी तथा अ य ल न म वह म त या अशुभ फल दे ता है। श न पूवज म म कये गये कम का फल इस ज म म अपनी भाव थ त
ारा दे ता है। वह 3, 6, 10 तथा 11 भाव म शुभ फल दे ता है। 1, 2, 5, 7 तथा 9 भाव म अशुभ फलदायक और 4, 8 तथा 12 भाव म
अ र कारक होता है। बलवान श न शुभ फल तथा नबल श न अशुभ फल दे ता है। यह 36व वष से वशेष फलदाई होता है। श न क
वशो री दशा 19 वष क होती है। अतः कुंडली म श न अशुभ थत होने पर इसक दशा म जातक को लंबे समय तक क भोगना पड़ता है।
श न सब से धीमी ग त से गोचर करने वाला ह है। वह एक रा श के गोचर म लगभग ढाई वष का समय लेता है। चं मा से ादश, चं मा पर,
और चं मा से अगले भाव म श न का गोचर साढ़े -साती कहलाता है। वृष, तुला, मकर और कुंभ ल न वाल के अ त र अ य ल न म ायः यह
समय क कारी होता है। श न एक श शाली ह होने से अपनी यु त अथवा ारा सरे ह के फलादे श म यूनता लाता है। स तम
के अ त र उसक तीसरे व दसव भाव पर पूण होती है। श न के वपरीत चं मा एक शुभ परंतु नबल ह है। चं मा एक रा श का
सं मण केवल 2( से 2) दन म पूरा कर लेता है। चं मा के कारक व म मन क थ त, माता का सुख, स मान, सुख-साधन, मीठे फल,
सुगं धत फूल, कृ ष, यश, मोती, कांसा, चांद , चीनी, ध, कोमल व , तरल पदाथ, ी का सुख, आ द आते ह। ज म समय चं मा बलवान,
शुभ भावगत, शुभ रा शगत, ऐसी मा यता है क श न और चं मा क यु त जातक ारा पछले ज म म कसी ी को दये गये क को दशाती
है। वह जातक से बदला लेने के लए इस ज म म उसक मां बनती है। माता का शुभ व बल होने पर वह पु को ख, दा र य ् तथा धन नाश
दे ते ए द घकाल तक जी वत रहती है। य द पु का शुभ व बल हो तो ज म के बाद माता क मृ यु हो जाती है अथवा नवजात क शी मृ यु
हो जाती है। इसक संभावना 14व वष तक रहती है। दशाती है, जसका अशुभ भाव म य अव था तक रहता है। श न के चं मा से अ धक
अंश या अगली रा श म होने पर जातक अपयश का भागी होता है। सभी यो तष ंथ म श न-चं क यु त का फल अशुभ कहा है। ‘‘जातक
भरणम्’ ने इसका फल ‘‘परजात, न दत, राचारी, पु षाथहीन’’ कहा है। ‘बृहद्जातक’ तथा ‘फलद पका’ ने इसका फल ‘‘परपु ष से उ प ,
आ द’’ बताया है। अशुभ फलादे श के कारण इस यु त को ‘‘ वष योग’’ क सं ा द गई है। ‘ वष योग’ का अशुभ फल जातक को चं मा और
श न क दशा म उनके बलानुसार अ धक मलता है। कंटक श न, अ म श न तथा साढ़े साती क बढ़ाती है। ऐसी मा यता है क श न और
चं मा क यु त जातक ारा पछले ज म म कसी ी को दये गये क को दशाती है। वह जातक से बदला लेने के लए इस ज म म उसक मां
बनती है। माता का शुभ व बल होने पर वह पु को ख, दा र य ् तथा धन नाश दे ते ए द घकाल तक जी वत रहती है। य द पु का शुभ व
बल हो तो ज म के बाद माता क मृ यु हो जाती है अथवा नवजात क शी मृ यु हो जाती है। इसक संभावना 14व वष तक रहती है। कुंडली
म जस भाव म ‘ वष योग’ थत होता है उस भाव संबंधी क मलते ह। नजद क प रवारजन वयं खी रहकर व ासघात करते ह। जातक
को द घकालीन रोग होते ह और वह आ थक तंगी के कारण कज से दबा रहता है। जीवन म सुख नह मलता। जातक के मन म संसार से
वर का भाव जागृत होता है और वह अ या म क ओर अ सर होता है। व भ भाव म ‘ वष योग’ का फल थम भाव (ल न) इस योग के
कारण माता के बीमार रहने या उसक मृ यु से कसी अ य ी (बुआ अथवा मौसी) ारा उसका बचपन म पालन-पोषण होता है। उसे सर और
नायु म दद रहता है। शरीर रोगी तथा चेहरा न तेज रहता है। जातक न साही, वहमी एवं शंकालु वृ का होता है। आ थक संप ता नह
होती। नौकरी म पदो त दे री से होती है। ववाह दे र से होता है। दांप य जीवन सुखी नह रहता। इस कार जीवन म क ठनाइयां भरपूर होती
ह। तीय भाव घर के मु खया क बीमारी या मृ यु के कारण बचपन आ थक क ठनाई म तीत होता है। पैतृक संप मलने म बाधा आती
है। जातक क वाणी म कटु ता रहती है। वह कंजूस होता है। धन कमाने के लए उसे क ठन प र म करना पड़ता है। जीवन के उ रा म
आ थक थ त ठ क रहती है। दांत, गला एवं कान म बीमारी क संभावना रहती है। तृतीय भाव जातक क श ा अपूण रहती है। वह नौकरी से
धन कमाता है। भाई-बहन के साथ संबंध म कटु ता आती है। नौकर व ासघात करते ह। या ा म व न आते ह। ांस के रोग होने क संभावना
रहती है। चतुथ भाव माता के सुख म कमी, अथवा माता से ववाद रहता है। ज म थान छोड़ना पड़ता है। म यम आयु म आय कुछ ठ क रहती
है, परंतु अं तम समय म फर से धन क कमी हो जाती है। वयं खी द र होकर द घ आयु पाता है। उसके मृ योपरांत ही उसक संतान का
भा योदय होता है। पु ष को दय रोग तथा म हला को तन रोग क संभावना रहती है। पंचम भाव वष योग होने से श ा ा त म बाधा
आती है। वैवा हक सुख अ प रहता है। संतान दे री से होती है, या संतान मंदबु होती है। ी रा श म क याय अ धक होती ह। संतान से कोई
सुख नह मलता। ष भाव जातक को द घकालीन रोग होते ह। न नहाल प से सहायता नह मलती। वसाय म त ं द हा न करते ह। घर
म चोरी क संभावना रहती है। स तम भाव ी क कुंडली म वष योग होने से पहला ववाह दे र से होकर टू टता है, और वह सरा ववाह करती
है। पु ष क कुंडली म यह यु त ववाह म अ धक वलंब करती है। प नी अ धक उ क या वधवा होती है। संतान ा त म बाधा आती है।
दांप य जीवन म कटु ता और ववाद के कारण वैवा हक सुख नह मलता। साझेदारी के वसाय म घाटा होता है। ससुराल क ओर से कोई
सहायता नह मलती। अ म भाव द घकालीन शारी रक क और गु त रोग होते ह। टांग म चोट अथवा क होता है। जीवन म कोई वशेष
सफलता नह मलती। उ लंबी रहती है। अंत समय क कारी होता है। नवम भाव भा योदय म कावट आती है। काय म वलंब से सफलता
मलती है। या ा म हा न होती है। ई र म आ था कम होती है। कमर व पैर म क रहता है। जीवन अ थर रहता है। भाई-बहन से संबंध अ छे
नह रहते। दशम भाव पता से संबंध अ छे नह रहते। नौकरी म परेशानी तथा वसाय म घाटा होता है। पैतृक संप मलने म क ठनाई आती
है। आ थक थ त अ छ नह रहती। वैवा हक जीवन भी सुखी नह रहता। एकादश भाव बुरे दो त का साथ रहता है। कसी भी काय मं◌े
लाभ नह मलता। 1 संतान से सुख नह मलता। जातक का अं तम समय बुरा गुजरता है। बलवान श न सुखकारक होता है। ादश थान
जातक नराश रहता है। उसक बीमा रय के इलाज म अ धक समय लगता है। जातक सनी बनकर धन का नाश करता है। अपने क के
कारण वह कई बार आ मह या तक करने क सोचता है। मह ष पराशर ने दो ह क एक रा श म यु त को सबसे कम बलवान माना है। सबसे
बलवान योग ह के रा श प रवतन से बनता है तथा सरे नंबर पर ह का योग होता है। अतः श न-चं क यु त से बना ‘ वष योग’ सबसे
कम बलवान होता है। इनके रा श प रवतन अथवा पर पर संबंध होने पर ‘ वष योग’ संबंधी बल भाव जातक को ा त होते ह। इसके
अ त र श न क तीसरी, सातव या दसव जस थान पर हो और वहां ज मकुंडली म चं मा थत होने पर ‘ वष योग’ के समान ही फल
जातक को ा त होते ह। उपाय शवजी श नदे व के गु ह और चं मा को अपने सर पर धारण करते ह। अतः ‘ वषयोग’ के भाव को कम
करने के लए दे व के दे व महादे व शव क आराधना व उपासना करनी चा हए। सुबह नान करके त दन थोड़ा सरस का तेल व काले तल
के कुछ दाने मलाकर शव लग का जला भषेक करते ये ‘ऊँ नमः शवाय’ का उ चारण करना चा हए। उसके बाद कम से कम एक माला
‘महामृ युंजय मं ’ का जप करना चा हए। श नवार को श न दे व का सं या समय तेला भषेक करने के बाद गरीब, अनाथ एवं वृ को उरद क
दाल और चावल से बनी खचड़ी का दान करना चा हए। ऐसे को रात के समय ध व चावल का उपयोग नह करना चा हए य क इससे
चं मा और नबल हो जाता है।
वष योग

रा क व भ ह के साथ
यु त फल

चं -श न यु त अथात्
वषयोग

श न मंगल यु त

मंगली होना दोष नह , ब क


योग है

श न के फल का व भ
य से अ ययन

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