“म ां भय त् सर्वतो रक्ष, श्रियां र्र्व य सर्वद । शरीर रोग्यां मे दे श्रि, दे र्-दे र् नमोऽस्तु ते।।” श्रर्श्रर्- ‘दीप र्ली’ की र त्री य ‘ग्रिण’ के समय उक्त मन्त्र क श्रितन िो सके, उतन िप करे । कम से कम १० म ल िप करे । ब द में एक बतवन में स्वच्छ िल भरे । िल के ऊपर ि थ रखकर उक्त मन्त्र क ७ य २७ ब र िप करे । श्रिर िप से अश्रभमन्त्रन्त्रत िल को रोगी को श्रपल ए। इस तरि प्रश्रतश्रदन करने से रोगी रोग मुक्त िो ि त िै। िप श्रर्श्व स और शुभ सांकल्प-बद्ध िोकर करें ।
रोग से मु क्ति हे तु-
“ॐ ि ां ॐ िां सः भभुवर्ः स्वः त्र्यम्बकां यि मिे सुगन्त्रधां पुश्रिर्द्धव नम्। उर् व रुकश्रमर् बधन त् मृत्योमुवश्रक्षय म मृत त् स्वः भभुवर्ः सः िां ॐ ि ां ॐ।।” श्रर्श्रर्- शुक्ल पक्ष में सोमर् र को र श्रत्र में सर् न बिे के पश्च त् श्रशर् लय में भगर् न् श्रशर् क सर् प र् दर् से दु ग्ध श्रभषेक करें । तदु पर न्त उक्त मन्त्र की एक म ल िप करें । इसके ब द प्रत्येक सोमर् र को उक्त प्रश्रिय दोिर यें तथ दो मुखी रुद्र क्ष को क ले र् गे में श्रपरोकर गले में र् रण करने से शीघ्र िल प्र प्त िोग ।
रोग निवारणार्थ औषनि खािे का मन्त्र
‘‘ॐ नमो मि -श्रर्न यक य अमृतां रक्ष रक्ष, मम िलश्रसन्त्रद्धां दे श्रि, रूद्र-र्चनेन स्व ि ’’ श्रकसी भी रोग में औषश्रर् को उक्त मन्त्र से अश्रभमन्त्रन्त्रत कर लें, तब सेर्न करें । औषश्रर् शीघ्र एर्ां पणव ल भ करे गी।