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• शबं रवैरर-शरावतग-मम्बुजदल-ववपुललोचनोदारं ।
कंबगु लमवनलवदष्टं वबम्बज्ववलतोष्टमेकमालम्बे ॥ ॥३॥
• दूरीकृतसीतावतयः प्रकटीकृतराम-वैभवस्फूवतयः।
दाररत-दशमुि-कीवतयः पुरतो मम भातु हनुमतो मूवतयः ॥ ॥४॥
• वानर-वनकराध्र्क्षं दानवकुल-कुमुदरववकर-सदृशम् ।
दीनजनावनदीक्षं पवन-तपः पाकपुञ्जमिाक्षम् ॥ ॥५॥
॥ सङ्कटमोचन हनुमानाष्टकम् ॥
▪ ततः स तुलसीदासः सस्मार रघुनन्दनम् ।
हनमू न्तं तत्परु स्तात् तष्टु ाव भक्तरक्षणम् ॥ ॥ १॥
▪ धनबु ायण धरोवीरः सीता लक्ष्मण सर्ुतः ।
रामचन्िस्सहार्ो मां वकं कररष्र्त्र्ुर्ं मम ॥ ॥ २॥
▪ ॐ हनुमानञ्जनी सूनो वार्ुपुत्रो महाबलः ।
महालाङ्गूल वनक्षेपैवनयहताविल राक्षसाः ॥ ॥ ३॥
▪ श्रीराम हृदर्ानन्द ववपत्तौशरणं तव ।
लक्ष्मणे वनवहते भूमौ नीत्वा िोणाचलं र्ुतम् ॥ ॥ ४॥
▪ र्र्ा जीववत वा नाद्य ता शवक्तं प्रकटीं कुरु ।
र्ेन लङ्के श्वरो वीरो वनःशङ्कः वववजतस्त्वर्ा ॥ ॥ ५॥
▪ दुवनयरीक्ष्र्ोऽवपदेवानी तद्बलं दशयर्ाधनु ा ॥ ॥ ६॥
▪ र्र्ा लङ्कां प्रववश्र् त्वं ज्ञातवान् जानकी स्वर्ं ।
रावणातं ः परु ेऽत्र्ग्रु ेतां बवु द्धं प्रकटी कुरु ॥ ॥ ७॥
▪ रुिावतार भक्तावतय ववमोचन महाभुज ।
कवपराज प्रसन्नस्त्वं शरणं तव रक्ष माम् ॥ ॥ ८॥
▪ इत्र्ष्टकं हनुमतः र्ः पठे त् श्रद्धर्ावन्वतः ।
सवयकष्ट वववनमयक्त
ु ो लभते वावञ्च्छतफलम् ॥
▪ ग्रहभतू ावदयतेघोरे रणे राजभर्ेऽथवा ।
वत्रवारं पठे नाच्रीघ्रं नरो मुच्र्ेत् सङ्कटात् ॥
॥ हनूमद् भुजङ्गस्तोत्रम् ॥
उदरान्तरङ्गं सदारामभक्तं घनानां घनानां सुराणाञ्चमागे
समुद्दण्डवृवत्तं विषद्दण्डलोलम् । नटन्तं चलन्तं हनूमन्तमीडे ॥ ॥४॥
अमोघानुभावं तमोघातदक्षं
तनूकृत्प्रतापं हनूमन्तमीडे ॥ ॥१॥ समुिान्तरङ्गाङ्िसान्िां वववनिां
ववलङ््र्ावदतेर्ैः स्तुतो मत्र्यसङ्घैः ।
करोद्भावसटङ्कं वकरीवटध्वजाङ्कं वनरातङ्कमानी च लङ्कां ववशङ्को
हृताशेषपङ्कं रणेवनववयशङ्कम् । भवानेव सीताररहा पापहारी ॥ ॥५॥
वत्रलोकीमृगाङ्कं क्षणाद्भस्मलङ्कं
भजे वनष्कलङ्कं हनूमन्तवमडे ॥ ॥२॥ नमस्ते महासत्त्ववाहार् तुभ्र्ं
नमस्ते महावज्रदेहार् तुभ्र्म् ।
प्रसन्नानरु ागं प्रभाकाञ्चनाङ्गं नमस्ते कृता रामकार्ायर् तुभ्र्ं
जगत्क्षेमशौर्ं तषु ारावददैत्र्म् । नमस्ते कृतब्रह्मचर्ायर् तभ्ु र्म् ॥ ॥६॥
तृणीभूतहेवतं रणोद्यविभूवतं
भजे वार्ुपुत्रं हनूमन्तमीडे ॥ ॥३॥ हनमू द्भुजङ्गप्रर्ातं प्रभाते
प्रदोषे वदवा चाधयरात्रे च मत्र्यः ।
रणे भीषणे मेघनादे सनाथे पठन् देवशकोऽपीह मक्त ु ान्तरार्-
सरोषं समारोप्र् सौवमवत्रमान्र्े । स्सदा सवयदा रामभवक्तं प्रर्ावत ॥ ॥७॥
▪ पद्मरागमवणकुण्डलवत्वषा पाटलीकृतकपोलमस्तकम् ।
वदव्र्हेमकदलीवनान्तरे भावर्ावम पवमाननन्दनम् ॥ ॥ २॥
▪ उद्यदावदत्र्सङ्काशमुदारभजु ववक्रमम् ।
कन्दपयकोवटलावण्र्ं सवयववद्याववशारदम् ॥ ॥ ३॥
▪ श्रीरामहृदर्ानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम् ।
अभर्ं वरदं दोभ्र्ां कलर्े मारुतात्मजम् ॥ ॥ ४॥
▪ वामहस्ते महाकृच्रदशास्र्करमदयनम् ।
उद्यिीक्षणकोदण्डं हनमू न्तं वववचन्तर्ेत् ॥ ॥ ५॥
▪ नानारत्नसमार्ुक्तकुण्डलावदववभूवषतम् ।
सवयदाभीष्टदातारं सतां वै दृिमाहवे ॥ ॥ २॥
▪ प्रवतग्रामवस्थतार्ाथ रक्षोभूतवधावथयने ।
करालशैलशस्त्रार् िुमशस्त्रार् ते नमः ॥ ॥ १३॥
▪ बालैकब्रह्मचर्ायर् रुिमूवतयधरार् च ।
ववहङ्गमार् सवायर् वज्रदेहार् ते नमः ॥ ॥ १४॥
▪ कौपीनवाससे तभ्ु र्ं रामभवक्तरतार् च ।
दवक्षणाशाभास्करार् शतचन्िोदर्ात्मने ॥ ॥ १५॥
▪ कृत्र्ाक्षतव्र्था्नार् सवयक्तलेशहरार् च ।
स्वाम्र्ाज्ञापाथयसङ्ग्रामसङ्ख्र्े सञ्जर्धाररणे ॥ ॥ १६॥
▪ भक्तान्तवदव्र्वादेषु सङ्ग्रामे जर्दावर्ने ।
वकवल्कलाबुबुकोच्चारघोरशब्दकरार् च ॥ ॥ १७॥
▪ सपायवघनव्र्ावधसंस्तम्भकाररणे वनचाररणे ।
सदा वनफलाहारसन्तृप्तार् ववशेषतः ॥ ॥ १८॥
▪ महाणयववशलाबद्धसेतबु न्धार् ते नमः ।
वादे वववादे सङ्ग्रामे भर्े घोरे महावने ॥ ॥ १९॥
▪ वसंहव्र्ाघ्रावदचौरेभ्र्ः स्तोत्रपाठाद् भर्ं न वह ।
वदव्र्े भूतभर्े व्र्ाधौ ववषे स्थावरजङ्गमे ॥ ॥ २०॥
▪ राजशस्त्रभर्े चोग्रे तथा ग्रहभर्ेषु च ।
जले सवे महावष्टृ ौ दुवभयक्षे प्राणसम्प्लवे ॥ ॥ २१॥
▪ पठे त् स्तोत्रं प्रमुच्र्ेत भर्ेभ्र्ः सवयतो नरः ।
तस्र् क्तवावप भर्ं नावस्त हनुमत्स्तवपाठतः ॥ ॥ २२॥
▪ सवयदा वै वत्रकालं च पठनीर्वमदं स्तवम् ।
सवायन् कामानवाप्नोवत नात्र कार्ाय ववचारणा ॥ ॥ २३॥
▪ ववभीषणकृतं स्तोत्रं ताक्ष्र्ेण समुदीररतम् ।
र्े पवठष्र्वन्त भक्तत्र्ा वै वसद्ध्र्स्तत्करे वस्थताः ॥ ॥ २४॥
॥ इक्तत श्री सुिशकन संक्तहतायां क्तवभीषण-गरुड संवािे क्तवभीषण कृ तं हनमु त् स्तोत्रम् सम्पूणकम् ॥
ॐ ह्ां ह्ीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनमु ते ॐ ह्ां ह्ीं ह्ूं ह्ैं ह्ौं ह्ः आं हां हां हां
हां ॐ सौं एवह एवह ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ।
• अथ मन्त्र उच्र्ते ॐ ऐ ं ह्ीं श्रीं ह्ां ह्ीं ह्ूं ह्ैं ह्ौं ह्ः । ॐ ह्ीं ह्ौं ॐ नमो भगवते महाबल
पराक्रमार् भूत-प्रेत वपशाच शावकनी डावकनी र्वक्षणी पूतनामारी महामारी
भैरव-र्क्ष-वेताल-राक्षस-ग्रहराक्षसावदकं क्षणेन हन-हन भञ्जर्-भञ्जर्
मारर्-मारर् वशक्षर्-वशक्षर् महामाहेश्वर रुिावतार हुं फट् स्वाहा ।
॥ इक्तत ॐ ब्रह्माण्ड पुराणान्तगकते नारि अगस्त्य संवािे श्री एकमुखी हनुमत् कवचम् सम्पूणमक ् ॥
ॐ श्री पञ्चवदनार्ाञ्जनेर्ार् नमः । ॐ अस्र् श्री पञ्चमुि हनुमन् मन्त्रस्र् ब्रह्मा ऋवषः । गार्त्री
छन्दः । पञ्चमुि ववराट् हनुमान् देवता । ह्ीं बीजम् । श्रीं शवक्तः । क्रौं कीलकम् । क्रूं कवचम् । क्रैं
अस्त्रार् फट् । इवत वदघबन्धः ।
इदं कवचं पवठत्वा तु महाकवचं पठे न्नरः । सप्तवारं पठे वन्नत्र्ं सवयसौभाघर्दार्कम् ॥ १८॥
एकवारं जपेत्स्तोत्रं सवयशत्रुवनवारणम् ॥ ५॥ अष्टवारं पठे वन्नत्र्वमष्टकामाथयवसवद्धदम् ।
विवारं तु पठे वन्नत्र्ं पुत्रपौत्रप्रवधयनम् । नववारं पठे वन्नत्र्ं राजभोगमवाप्नुर्ात् ॥ १९॥
वत्रवारं च पठे वन्नत्र्ं सवयसम्पत्करं शभ ु म् ॥१६॥ दशवारं पठे वन्नत्र्ं त्रैलोक्तर्ज्ञानदशयनम् ।
चतवु ायरं पठे वन्नत्र्ं सवयरोगवनवारणम् । रुिावृवत्तं पठे वन्नत्र्ं सवयवसवद्धभयवेद्ध्रवु म् ॥२०॥
पञ्चवारं पठे वन्नत्र्ं सवयलोकवशङ्करम् ॥१७॥ वनबयलो रोगर्क्त
ु श्च महाव्र्ाध्र्ावदपीवडतः ।
षड्वारं च पठे वन्नत्र्ं सवयदेववशङ्करम् । कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नर्ु ात् ॥ २१॥
॥ इक्तत श्री सिु शकन सक्तं हतायां श्री रामचन्र सीताप्रोिं श्री पञ्चमख
ु हनमु त् कवचम् सम्पणू कम् ॥
र् इदं कवचं वनत्र्ं सप्तास्र्स्र् हनुमतः । राजानं स वशं नीत्वा त्रैलोक्तर्ववजर्ी भवेत् ।
वत्रसन्ध्र्ं जपते वनत्र्ं सवयशत्रवु वनाशनम् ॥ १९॥ इदं वह परमं गोप्र्ं देर्ं भवक्तर्ुतार् च ॥ २१॥
पत्रु पौत्रप्रदं सवं सम्पिाज्र्प्रदं परम् ।
सवयरोगहरं चाऽऽर्ुःकीवत्तयदं पुण्र्वधयनम् ॥ २०॥ न देर्ं भवक्तहीनार् दत्वा स वनरर्ं व्रजेत् ॥ २२॥
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज वनज मनु मुकुरु सुधारर ।
बरनउँ रघुबर वबमल जसु जो दार्कु फल चारर ॥
बुवद्धहीन तनु जावनके सुवमरौं पवन-कुमार ।
बल बवु ध वबद्या देहु मोवहं हरहु कलेस वबकार ॥
॥ चौपाई ॥
जर् हनुमान ज्ञान गुन सागर । भीम रूप धरर असुर सँहारे ।
जर् कपीस वतहुँ लोक उजागर ॥ ॥१॥ रामचन्ि के काज सँवारे ॥ ॥१०॥
राम दूत अतुवलत बल धामा । लार् सञ्जीवन लिन वजर्ार्े ।
अञ्जवन-पत्रु पवनसतु नामा ॥ ॥२॥ श्रीरघबु ीर हरवष उर लार्े ॥ ॥११॥
महाबीर वबक्रम बजरङ्गी । रघपु वत कीिी बहुत बडाई ।
कुमवत वनवार सुमवत के सङ्गी ॥३॥ तुम मम वप्रर् भरतवह सम भाई ॥१२॥
कञ्चन बरन वबराज सुबेसा । सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
कानन कुण्डल कुवञ्चत के सा ॥ ॥४॥ अस कवह श्रीपवत कण्ठ लगावैं ॥१३॥
हाथ बज्र औ ध्वजा वबराजै । सनकावदक ब्रह्मावद मुनीसा ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥ ॥५॥ नारद सारद सवहत अहीसा ॥ ॥१४॥
सङ्कर सुवन के सरीनन्दन । जम कुबेर वदगपाल जहाँ ते ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥ ॥६॥ कवब कोवबद कवह सके कहाँ ते ॥१५॥
वबद्यावान गनु ी अवत चातरु । तमु उपकार सग्रु ीववहं कीिा ।
राम काज कररबे को आतुर ॥ ॥७॥ राम वमलार् राज पद दीिा ॥ ॥१६॥
प्रभु चररत्र सुवनबे को रवसर्ा । तुह्मरो मन्त्र वबभीषन माना ।
राम लिन सीता मन बवसर्ा ॥ ॥८॥ लङ्के स्वर भए सब जग जाना ॥ ॥१७॥
सक्ष्ू म रूप धरर वसर्वहं वदिावा । जगु सहस्र जोजन पर भानु ।
वबकट रूप धरर लङ्क जरावा ॥ ॥९॥ लील्र्ो तावह मधुर फल जानू ॥ ॥१८॥
॥ बजरंग बाण ॥
• किली वृक्ष के नीचे बजरंग बाण का पाठ करने से क्तववाह की बाधा खत्म हो जाती है । यहां तक क्तक तलाक
जैसे कुयोग भी िलते हैं बजरंग बाण के पाठ से ।
• अगर क्तकसी प्रकार के ग्रहिोष से पीक्त़ित हों, तो प्रात:काल बजरंग बाण का पाठ, आिे के िीप में लाल बत्ती
जलाकर करें । ऐसा करने से ब़िे से ब़िा ग्रह िोष पल भर में िल जायेगा ।
• अगर शक्तन, राहु, के तु जैसे क्रूर ग्रहों की िशा, महािशा चल रही हो तो आपको क्ततल के तेल का िीपक
जलाकर क्तसफक 3 बार बजरंग बाण का पाठ करना होगा ।
• अगर क्तकसी कारण वश आप या आपके संबंधी जेल में बंि हो तो उसे मुि कराने के क्तलए हनुमान जी की पूंछ
पर क्तसंिरू से 11 िीका लगाकर 11 बार बजरंग बाण पढ़ने से कारागार योग से मुक्ति क्तमल जाती है ।
• अगर आप हनमु ान जी को 11 गल ु ाब चढ़ाते हैं या क्तफर चमेली के तेल में 11 लाल बत्ती के िीपक जलाते हैं
तो ब़िे से ब़िे कोिक के स में भी आपको जीत क्तमल जायेगी ।
• कई बार पेि की गंभीर बीमारी जैसे लीवर, अल्सर या कैं सर जैसे रोग हो जाते हैं, ऐसे रोग अशुभ मंगल की
वजह से होते हैं । अगर इस तरह के रोग से मक्तु ि पानी हो तो हनमु ान जी को 21 पान के पत्ते की माला चढ़ाते
हुए 5 बार बजरंग बाण राहुकाल में घी का िीपक जला कर पढ़ना चाक्तहये ।
• अगर नौकरी छूिने का डर हो या छूिी हुई नौकरी िोबारा पानी हो तो बजरंग बाण का पाठ रात में नक्षत्र िशकन
करने के बाि करें । इसके क्तलए आपको मंगलवार का व्रत भी रखना होगा ।
• कई बार घर में वास्तुिोष के चलते कई समस्या हो जाती है । तो वास्तिु ोष िरू करने के क्तलए 3 बार बजरंग
बाण का पाठ करना चाक्तहए । घर में सकारात्मक ऊजाक के क्तलए पंचमुखी हनुमान की प्रक्ततमा घर के मुख्य द्वार
पर लगायें ।
• दोहा वनश्चर् प्रेम प्रतीवत ते, वबनर् करैं सनमान ।
तेवह के कारज सकल शुभ, वसद्ध करैं हनुमान ॥
• चौपाई जर् हनुमंत संत वहतकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ ॥ १॥
▪ जन के काज वबलंब न कीजै । आतुर दौरर महा सि ु दीजै ॥ ॥ २॥
▪ जैसे कूवद वसंधु मवहपारा । सुरसा बदन पैवठ वबस्तारा ॥ ॥ ३॥
▪ आगे जार् लंवकनी रोका । मारेहु लात गई सुरलोका ॥ ॥ ४॥
▪ जार् वबभीषन को सुि दीन्हा । सीता वनरवि परमपद लीन्हा ॥ ॥ ५॥
▪ बाग उजारर वसंधु महँ बोरा । अवत आतुर जमकातर तोरा ॥ ॥ ६॥
▪ अक्षर् कुमार मारर संहारा । लूम लपेवट लंक को जारा ॥ ॥ ७॥
▪ लाह समान लक ं जरर गई । जर् जर् धुवन सुरपुर नभ भई ॥ ॥ ८॥
▪ अब वबलम्ब के वह कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरर्ामी ॥ ॥ ९॥
▪ जर् जर् लिन प्रान के दाता । आतुर ह्ै दुि करहु वनपाता ॥ ॥१०॥
▪ जै हनुमान जर्वत बल-सागर । सुर-समूह-समरथ भट-नागर ॥ ॥११॥
▪ ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले । बैररवह मारु बज्र की कीले ॥ ॥१२॥
▪ गदा बज्र लै बैररवहं मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ॥ ॥१३॥
▪ ॐ कार हक ुं ार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु ववलम्ब न लावो ॥ ॥१४॥
▪ ॐ िीं िीं िीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरर उर सीसा ॥ ॥१५॥
▪ सत्र् होहु हरर सपथ पाइ कै । राम दूत धरु मारु धाइ कै ॥ ॥१६॥
▪ जर् जर् जर् हनुमंत अगाधा । दुि पावत जन के वह अपराधा ॥ ॥१७॥
▪ पूजा जप तप नेम अचारा । नवहं जानत कछु दास तुम्हारा ॥ ॥१८॥
▪ बन उपबन मग वगरर गृह माहीं । तम्ु हरे बल हौं डरपत नाहीं ॥ ॥१९॥
▪ पार्ं परों कर जोरर मनावौं । र्वह अवसर अब के वह गोहरावाँ ॥ ॥२०॥
▪ जर् अज ं वन कुमार बलवतं ा । शक ं रसवु न बीर हनमु तं ा ॥ ॥२१॥
▪ बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहार् सदा प्रवतपालक ॥ ॥२२॥
▪ भतू , प्रेत, वपसाच वनसाचर । अवगन बेताल काल मारी मर ॥ ॥२३॥
▪ इन्हें मारु, तोवह सपथ राम की । रािु नाथ मरजाद नाम की ॥ ॥२४॥
▪ जनकसुता हरर दास कहावौ । ताकी सपथ वबलंब न लावौ ॥ ॥२५॥
▪ जर् जर् जर् धुवन होत अकासा । सुवमरत होर् दुसह दुि नासा ॥ ॥२६॥
▪ चरन पकरर, कर जोरर मनावौं । र्वह औसर अब के वह गोहरावौं ॥ ॥२७॥
▪ उठु, उठु, चलु, तोवह राम दुहाई । पार्ँ परौं, कर जोरर मनाई ॥ ॥२८॥
▪ ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥ ॥२९॥
▪ ॐ हं हं हाँक देत कवप चंचल । ॐ सं सं सहवम पराने िल-दल ॥ ॥३०॥
▪ अपने जन को तुरत उबारौ । सवु मरत होर् आनंद हमारौ ॥ ॥३१॥
▪ र्ह बजरंग-बाण जेवह मारै । तावह कहौ वफरर कवन उबारै ॥ ॥३२॥
▪ पाठ करै बजरंग-बाण की । हनमु त रक्षा करै प्रान की ॥ ॥३३॥
▪ र्ह बजरंग बाण जो जापैं । तासों भूत-प्रेत सब कापैं ॥ ॥३४॥
▪ धूप देर् जो जपै हमेसा । ताके तन नवहं रहै कलेसा ॥ ॥३५॥
• दोहा प्रेम प्रतीवतवह कवप भजै, सदा धरै उर ध्र्ान ।
तेवह के कारज सकल सभ ु , वसद्ध करैं हनमु ान ॥
▪ गो-पद पर्ोवध करर, होवलका ज्र्ों लाई लंक, वनपट वनःसंक पर पुर गल बल भो ।
िोन सो पहार वलर्ो ख्र्ाल ही उिारर कर, कंदुक ज्र्ों कवप िेल बेल कै सो फल भो ॥
सकं ट समाज असमज ं स भो राम राज, काज जगु पगू वन को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तलु सी को नाई जा की बाँह, लोक पाल पालन को वफर वथर थल भो ॥६॥
▪ कमठ की पीवठ जाके गोडवन की गाडऐ ं मानो, नाप के भाजन भरर जल वनवध जल भो ।
जातुधान दावन परावन को दुगय भर्ो, महा मीन बास वतवम तोमवन को थल भो ॥
कुम्भकरन रावन पर्ोद नाद ईधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, साररिो वत्रकाल न वत्रलोक महाबल भो ॥७॥
▪ दूत राम रार् को सपूत पूत पौनको तू, अंजनी को नन्दन प्रताप भूरर भानु सो ।
सीर्-सोच-समन, दुररत दोष दमन, सरन आर्े अवन लिन वप्रर् प्राण सो ॥
दसमुि दुसह दररि दररबे को भर्ो, प्रकट वतलोक ओक तुलसी वनधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ॥ ॥८॥
▪ दवन दुवन दल भुवन वबवदत बल, बेद जस गावत वबबुध बंदी छोर को ।
पाप ताप वतवमर तवु हन वनघटन पटु, सेवक सरोरुह सिु द भानु भोर को ॥
लोक परलोक तें वबसोक सपने न सोक, तल ु सी के वहर्े है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास बामदेव को वनवास। नाम कवल कामतरु के सरी वकसोर को ॥९॥
▪ महाबल सीम महा भीम महाबान इत, महाबीर वबवदत बरार्ो रघुबीर को ।
कुवलस कठोर तनु जोर परै रोर रन, करुना कवलत मन धारवमक धीर को ॥
दुजयन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुवमरे हरन हार तुलसी की पीर को ।
सीर्-सिु -दार्क दुलारो रघुनार्क को, सेवक सहार्क है साहसी समीर को ॥१०॥
▪ रवचबे को वबवध जैसे, पावलबे को हरर हर, मीच माररबे को, ज्र्ाईबे को सुधापान भो ।
धररबे को धरवन, तरवन तम दवलबे को, सोविबे कृसानु पोवषबे को वहम भानु भो ॥
िल दुःि दोवषबे को, जन पररतोवषबे को, माँवगबो मलीनता को मोदक दुदान भो ।
आरत की आरवत वनवाररबे को वतहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ॥११॥
▪ सेवक स्र्ोकाई जावन जानकीस मानै कावन, सानुकूल सूलपावन नवै नाथ नाँक को ।
देवी देव दानव दर्ावने ह्ै जोरैं हाथ, बापरु े बराक कहा और राजा राँक को ॥
जागत सोवत बैठे बागत वबनोद मोद, ताके जो अनथय सो समथय एक आँक को ।
सब वदन रुरो परै पूरो जहाँ तहाँ तावह, जाके है भरोसो वहर्े हनुमान हाँक को ॥१२॥
▪ सानगु सगौरर सानुकूल सल ू पावन तावह, लोकपाल सकल लिन राम जानकी ।
लोक परलोक को वबसोक सो वतलोक तावह, तुलसी तमाइ कहा काह बीर आनकी ॥
के सरी वकसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरवत वबमल कवप करुनावनधान की ।
बालक ज्र्ों पावल हैं कृपालु मुवन वसद्धता को, जाके वहर्े हुलसवत हाँक हनुमान की ॥१३॥
▪ आपने ही पाप तें वत्रपात तें वक साप तें , बढई है बाँह बेदन कही न सवह जावत है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकावद वकर्े, बावद भर्े देवता मनार्े अधीकावत है ॥
करतार, भरतार, हरतार, कमय काल, को है जगजाल जो न मानत इतावत है ।
चेरो तेरो तल
ु सी तू मेरो कह्यो राम दूत, िील तेरी बीर मोवह पीर तें वपरावत है ॥३०॥
▪ दूत राम रार् को, सपतू पतू वार् को, समत्व हाथ पार् को सहार् असहार् को ।
बाँकी वबरदावली वबवदत बेद गाइर्त, रावन सो भट भर्ो मुवठका के धार् को ॥
एते बडे साहेब समथय को वनवाजो आज, सीदत सस ु ेवक बचन मन कार् को ।
थोरी बाँह पीर की बडई गलावन तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभार् को ॥३१॥
▪ देवी देव दनुज मनुज मुवन वसद्ध नाग, छोटे बडए जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना वपसाची जातुधानी जातुधान बाग, राम दूत की रजाई माथे मावन लेत हैं ॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुवन छाडत वनके त हैं ।
क्रोध कीजे कमय को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे वतनको जो दोष दुि देत हैं ॥३२॥
▪ तेरे बल बानर वजतार्े रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भर्े घर घर के ।
तेरे बल राम राज वकर्े सब सरु काज, सकल समाज साज साजे रघबु र के ॥
तेरो गनु गान सवु न गीरबान पल
ु कत, सजल वबलोचन वबरवं च हररहर के ।
तलु सी के माथे पर हाथ फे रो कीस नाथ, देविर्े न दास दुिी तोसो कवनगर के ॥३३॥
▪ पालो तेरे टूक को परेह चूक मूवकर्े न, कूर कौडई दूको हौं आपनी ओर हेररर्े ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोवष तोवष थावप आपनो न अव डेररर्े ॥
अँबु तू हौं अँबु चूर, अँबु तू हौं वडंभ सो न, बूवझर्े वबलंब अवलबं मेरे तेररर्े ।
बालक वबकल जावन पावह प्रेम पवहचावन, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फे ररर्े ॥३४॥
▪ घेरर वलर्ो रोगवन, कुजोगवन, कुलोगवन ज्र्ौं, बासर जलद घन घटा धुवक धाई है ।
बरसत बारर पीर जाररर्े जवासे जस, रोष वबनु दोष धूम मूल मवलनाई है ॥
करुनावनधान हनुमान महा बलवान, हेरर हँवस हाँवक फूंवक फौंजै ते उडआई है ।
िार्े हुतो तुलसी कुरोग राढ राकसवन, के सरी वकसोर रािे बीर बररआई है ॥३५॥
• सवैर्ा राम गल ु ाम तु ही हनमु ान गोसाँई ससु ाँई सदा अनकु ू लो ।
पाल्र्ो हौं बाल ज्र्ों आिर दू वपतु मातु सों मगं ल मोद समलू ो॥
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर वनवाररर्े पीर रहौं दरबार परो लवट लूलो ॥३६॥
• घनाक्षरी काल की करालता करम कवठनाई कीधौ, पाप के प्रभाव की सुभार् बार् बावरे ।
बेदन कुभाँवत सो सही न जावत रावत वदन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ॥
लार्ो तरु तुलसी वतहारो सो वनहारर बारर, सींवचर्े मलीन भो तर्ो है वतहुँ तावरे ।
भूतवन की आपनी परार्े की कृपा वनधान, जावनर्त सबही की रीवत राम रावरे ॥३७॥
▪ पाँर् पीर पेट पीर बाँह पीर मुंह पीर, जर जर सकल पीर मई है ।
देव भूत वपतर करम िल काल ग्रह, मोवह पर दवरर दमानक सी दई है ॥
हौं तो वबनु मोल के वबकानो बवल बारे हीतें, ओट राम नाम की ललाट वलवि लई है ।
कँु भज के वकंकर वबकल बढू ए गोिरु वन, हार् राम रार् ऐसी हाल कहँ भई है ॥३८॥
▪ बाहकु सबु ाहु नीच लीचर मरीच वमवल, मुँह पीर के तज
ु ा कुरोग जातुधान है ।
राम नाम जप जाग वकर्ो चहों सानुराग, काल कै से दूत भूत कहा मेरे मान है ॥
सुवमरे सहार् राम लिन आिर दौऊ, वजनके समूह साके जागत जहान है ।
तुलसी सँभारर ताडका सँहारर भारर भट, बेधे बरगद से बनाई बानवान है ॥ ॥३९॥
▪ बालपने सूधे मन राम सनमि ु भर्ो, राम नाम लेत माँवग िात टूक टाक हौं ।
परर्ो लोक रीवत में पुनीत प्रीवत राम रार्, मोह बस बैठो तोरर तरवक तराक हौं ॥
िोटे िोटे आचरन आचरत अपनार्ो, अंजनी कुमार सोध्र्ो रामपावन पाक हौं ।
तुलसी गसु ाँई भर्ो भोंडे वदन भूल गर्ो, ताको फल पावत वनदान पररपाक हौं ॥४०॥
▪ असन बसन हीन वबषम वबषाद लीन, देवि दीन दूबरो करै न हार् हार् को ।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ वकर्ो, वदर्ो फल सील वसध ं ु आपने सुभार् को ॥
नीच र्वह बीच पवत पाइ भरु हाईगो, वबहाइ प्रभु भजन बचन मन कार् को ।
ता तें तनु पेवषर्त घोर बरतोर वमस, फूवट फूवट वनकसत लोन राम रार् को ॥ ॥४१॥
▪ जीओ जग जानकीजीवन को कहाइ जन, मररबे को बारानसी बारर सुरसरर को ।
तल
ु सी के दोहँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँऊ, जाके वजर्े मर्ु े सोच कररहैं न लरर को ॥
मोको झँटू ो साँचो लोग राम कौ कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरर को ।
भारी पीर दुसह सरीर तें वबहाल होत, सोऊ रघबु ीर वबनु सकै दूर करर को ॥ ॥४२॥
▪ सीतापवत साहेब सहार् हनुमान वनत, वहत उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन कार् सरन वतहारे पाँर्, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ॥
ब्र्ावध भूत जवनत उपावध काहु िल की, समावध की जै तुलसी को जावन जन फुर कै ।
कवपनाथ रघनु ाथ भोलानाथ भतू नाथ, रोग वसध ं ु क्तर्ों न डाररर्त गार् िरु कै ॥४३॥
▪ कहों हनुमान सों सज ु ान राम रार् सों, कृपावनधान सक ं र सों सावधान सुवनर्े ।
हरष ववषाद राग रोष गुन दोष मई, वबरची वबरञ्ची सब देविर्त दुवनर्े ॥
मार्ा जीव काल के करम के सुभार् के , करैर्ा राम बेद कहें साँची मन गवु नर्े ।
तुम्ह तें कहा न होर् हा हा सो बुझैर्े मोवहं, हौं हँ रहों मौनही वर्ो सो जावन लवु नर्े ॥४४॥
॥ सुन्दरकाण्ड ॥
• श्लोक शान्तं शाश्वतमप्रमेर्मनघं वनवायणशावन्तप्रदं,
ब्रह्माशम्भुफणीन्िसेव्र्मवनशं वेदान्तवेद्यं ववभुम् ।
रामाख्र्ं जगदीश्वरं सरु गरुु ं मार्ामनष्ु र्ं हररं,
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामवणम् ॥१॥
▪ नान्र्ा स्पृहा रघुपते हृदर्ेऽस्मदीर्े,
सत्र्ं वदावम च भवानविलान्तरात्मा ।
भवक्तं प्रर्च्छ रघुपुंगव वनभयरां मे,
कामावददोषरवहतं कुरु मानसं च ॥२॥
▪ अतुवलतबलधामं हेमशैलाभदेहं,
दनुजवनकृशानुं ज्ञावननामग्रगण्र्म् ।
सकलगुणवनधानं वानराणामधीश,ं
रघुपवतवप्रर्भक्तं वातजातं नमावम ॥३॥
• चौपाई जामवतं के बचन सुहाए । सुवन हनुमंत हृदर् अवत भाए ॥
▪ तब लवग मोवह पररिेहु तुम्ह भाई । सवह दुि कंद मूल फल िाई ॥
▪ जब लवग आवौं सीतवह देिी । होइवह काजु मोवह हरष वबसेषी ॥
▪ र्ह कवह नाइ सबवन्ह कहुँ माथा । चलेउ हरवष वहर्ँ धरर रघुनाथा ॥
▪ वसंधु तीर एक भूधर सदुं र । कौतक
ु कूवद चढेउ ता ऊपर ॥
▪ बार-बार रघुबीर सँभारी । तरके उ पवनतनर् बल भारी ॥
▪ जेवहं वगरर चरन देइ हनुमंता । चलेउ सो गा पाताल तुरंता ॥
▪ वजवम अमोघ रघपु वत कर बाना । एही भाँवत चलेउ हनमु ाना ॥
▪ जलवनवध रघुपवत दूत वबचारी । तैं मैनाक होवह श्रम हारी ॥
▪ जोजन भरर तेवहं बदनु पसारा । कवप तनु कीन्ह दुगनु वबस्तारा ॥
▪ सोरह जोजन मुि तेवहं ठर्ऊ । तुरत पवनसुत बवत्तस भर्ऊ ॥
▪ जस जस सुरसा बदनु बढावा । तासु दून कवप रूप देिावा ॥
▪ सत जोजन तेवहं आनन कीन्हा । अवत लघु रूप पवनसतु लीन्हा ॥
▪ बदन पइवठ पुवन बाहेर आवा । मागा वबदा तावह वसरु नावा ॥
▪ मोवह सुरन्ह जेवह लावग पठावा । बुवध बल मरमु तोर मैं पावा ॥
• दोहा - २३ मोहमल
ू बहु सल ू प्रद त्र्ागहु तम अवभमान ।
भजहु राम रघुनार्क कृपा वसंधु भगवान ॥२३॥
• चौपाई जदवप कही कवप अवत वहत बानी । भगवत वबबेक वबरवत नर् सानी ॥
▪ बोला वबहवस महा अवभमानी । वमला हमवह कवप गुर बड घर्ानी ॥
▪ मृत्र्ु वनकट आई िल तोही । लागेवस अधम वसिावन मोही ॥
उलटा होइवह कह हनुमाना । मवतभ्रम तोर प्रगट मैं जाना ॥
▪ सवु न कवप बचन बहतु विवसआना । बेवग न हरहु मढू कर प्राना ॥
सनु त वनसाचर मारन धाए । सवचवन्ह सवहत वबभीषनु आए ॥
▪ नाइ सीस करर वबनर् बहता । नीवत वबरोध न माररअ दूता ॥
आन दंड कछु कररअ गोसाँई । सबहीं कहा मत्रं भल भाई ॥
▪ सुनत वबहवस बोला दसकंध र । अंग भंग करर पठइअ बंदर ॥
• चौपाई सोइ रावन कहुँ बनी सहाई । अस्तुवत करवहं सनु ाइ सुनाई ॥
▪ अवसर जावन वबभीषनु आवा । भ्राता चरन सीसु तेवहं नावा ॥
▪ पुवन वसरु नाइ बैठ वनज आसन । बोला बचन पाइ अनुसासन ॥
▪ जौ कृपाल पवूँ छहु मोवह बाता । मवत अनरूु प कहउँ वहत ताता ॥
▪ जो आपन चाहै कल्र्ाना । सज ु सु समु वत सभ
ु गवत सि ु नाना ॥
▪ सो परनारर वललार गोसाई ं । तजउ चउवथ के चदं वक नाई ं ॥
▪ चौदह भुवन एक पवत होई। भूत िोह वतष्टइ नवहं सोई॥
▪ गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ ॥
309. ॐ मधुराय नमः । 344. ॐ वेिाङ्गाय नमः । 378. ॐ परस्मै ब्रह्मणे नमः ।
310. ॐ अक्तमतक्तवग्रहाय नमः । 345. ॐ वेिपारगाय नमः । 379. ॐ ब्रह्मणे नमः ।
311. ॐ उड्डीनोड्डीनगक्ततमते नमः 346. ॐ प्रक्ततग्रामक्तस्र्ताय नमः । 380. ॐ ब्रह्मपरु ातनाय नमः ।
312. ॐ सद्गतये नमः । 347. ॐ सद्यःस्फूक्ततकिात्रे नमः । 381. ॐ एकाय नमः नमः ।
313. ॐ पुरुषोत्तमाय नमः । 348. ॐ गुणाकराय नमः । 382. ॐ अनेकाय नमः ।
314. ॐ जगिात्मने नमः । 349. ॐ नक्षत्रमाक्तलने नमः । 383. ॐ जनाय नमः ।
315. ॐ जगद्योनये नमः । 350. ॐ भूतात्मने नमः । 384. ॐ शुक्त्लाय नमः ।
316. ॐ जगिन्ताय नमः । 351. ॐ सुरभये नमः । 385. ॐ स्वयञ्ज्योक्ततषे नमः ।
317. ॐ अनन्तराय नमः । 352. ॐ कल्पपािपाय नमः । 386. ॐ अनाकुलाय नमः ।
318. ॐ क्तवपाप्मने नमः । 353. ॐ क्तचन्तामणये नमः । 387. ॐ ज्योक्ततज्योक्ततषे नमः ।
319. ॐ क्तनष्कलङ्काय नमः । 354. ॐ गुणक्तनधये नमः । 388. ॐ अनाियेनमः ।
320. ॐ महते नमः । 355. ॐ प्रजाद्वाराय नमः । 389. ॐ साक्तत्वकाय नमः ।
321. ॐ महिहङ्कृतये नमः नमः 356. ॐ अनत्त
ु माय नमः । 390. ॐ राजसाय नमः ।
322. ॐ खाय नमः । 357. ॐ पण्ु यश्लोकाय नमः । 391. ॐ तमसेनमः ।
323. ॐ वायवे नमः । 358. ॐ पुरारातये नमः । 392. ॐ तमोहत्रे नमः ।
324. ॐ पृक्तर्व्यैनमः । 359. ॐ मक्ततमते नमः । 393. ॐ क्तनरालम्बाय नमः ।
325. ॐ अि्् यः नमः । 360. ॐ शवकरीपतये नमः । 394. ॐ क्तनराकाराय नमः ।
326. ॐ वह्नयेनमः । 361. ॐ क्तकक्तल्कलारावसन्त्रस्त भूत 395. ॐ गुणाकराय नमः ।
327. ॐ क्तिशे नमः । प्रेत क्तपशाचकाय नमः । 396. ॐ गुणाश्रयाय नमः ।
328. ॐ कालाय नमः । 362. ॐ ऋणत्रयहराय नमः । 397. ॐ गुणमयाय नमः ।
329. ॐ एकलाय नमः । 363. ॐ सूक्ष्मायनमः । 398. ॐ बृहत्कायाय नमः ।
330. ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः । 364. ॐ स्र्ल ू ायनमः । 399. ॐ बृहद्यशसे नमः ।
331. ॐ क्षेत्रपालाय नमः । 365. ॐ सवकगतये नमः । 400. ॐ बृहद्धनष
ु े नमः ।
332. ॐ पल्वलीकृ तसागराय नमः 366. ॐ पस ुं े नमः । 401. ॐ बृहत्पािाय नमः ।
333. ॐ क्तहरण्मयाय नमः । 367. ॐ अपस्मारहराय नमः । 402. ॐ बृहन्मूध्ने नमः ।
334. ॐ पुराणायनमः । 368. ॐ स्मत्रे नमः । 403. ॐ बृहत्स्वनाय नमः ।
335. ॐ खेचराय नमः । 369. ॐ श्रुतये नमः । 404. ॐ बृहत्कणाकय नमः ।
336. ॐ भूचराय नमः । 370. ॐ गार्ायै नमः । 405. ॐ बृहन्नासाय नमः ।
337. ॐ मनवेनमः । 371. ॐ स्मृतये नमः । 406. ॐ बृहद्बाहवे नमः ।
338. ॐ क्तहरण्यगभाकय नमः । 372. ॐ मनवे नमः । 407. ॐ बृहत्तनवे नमः ।
339. ॐ सूत्रात्मने नमः । 373. ॐ स्वगकद्वाराय नमः । 408. ॐ बृहद्गलाय नमः ।
340. ॐ राजराजाय नमः । 374. ॐ प्रजाद्वाराय नमः । 409. ॐ बृहत्कायाय नमः ।
341. ॐ क्तवशाम्पतये नमः । 375. ॐ मोक्षद्वाराय नमः । 410. ॐ बृहत्पच्
ु छाय नमः ।
342. ॐ वेिान्तवेद्याय नमः । 376. ॐ यतीश्वराय नमः । 411. ॐ बृहत्कराय नमः ।
343. ॐ उद्गीर्ाय नमः । 377. ॐ नािरूपाय नमः । 412. ॐ बृहद्गतये नमः ।
623. ॐ रुष्ट क्तचत्त प्रसािनाय नमः 657. ॐ ब्रह्मेशाय नमः । 692. ॐ मत्स्याय नमः ।
624. ॐ पराक्तभचार शमनाय नमः 658. ॐ श्रीधराय नमः । 693. ॐ कूमाकय नमः ।
625. ॐ िःु खघ्ने नमः । 659. ॐ भिवत्सलाय नमः । 694. ॐ क्तनधये नमः ।
626. ॐ बन्ध मोक्षिाय नमः । 660. ॐ मेघनािाय नमः । 695. ॐ शयाय नमः ।
627. ॐ नव द्वार पुराधाराय नमः । 661. ॐ मेघरूपाय नमः । 696. ॐ वराहाय नमः ।
628. ॐ नव द्वार क्तनके तनाय नमः 662. ॐ मेघवृक्तष्टक्तनवारणाय नमः । 697. ॐ नारक्तसंहाय नमः ।
629. ॐ नर नारायण स्तुत्याय नमः 663. ॐ मेघजीवनहेतवे नमः । 698. ॐ वामनाय नमः ।
630. ॐ नव नार् महेश्वराय नमः । 664. ॐ मेघकयामाय नमः । 699. ॐ जमिक्तग्नजाय नमः ।
631. ॐ मेखक्तलने नमः । 665. ॐ परात्मकाय नमः । 700. ॐ रामाय नमः ।
632. ॐ कवक्तचने नमः । 666. ॐ समीरतनयाय नमः । 701. ॐ कृ ष्णाय नमः ।
633. ॐ खड्क्तगने नमः । 667. ॐ धात्रे नमः । 702. ॐ क्तशवाय नमः ।
634. ॐ भ्राक्तजष्णवे नमः । 668. ॐ तत्त्व क्तवद्या-क्तवशारिाय नमः । 703. ॐ बुद्धाय नमः ।
635. ॐ क्तजष्णस
ु ारर्ये नमः । 669. ॐ अमोघाय नमः । 704. ॐ कक्तल्कने नमः ।
636. ॐ बहु योजन क्तवस्तीणक 670. ॐ अमोघवृष्टये नमः । 705. ॐ रामाश्रयाय नमः ।
पच्ु छाय नमः । 671. ॐ अभीष्टिाय नमः । 706. ॐ हरये नमः ।
637. ॐ पुच्छ हता सुराय नमः । 672. ॐ अक्तनष्टनाशनाय नमः । 707. ॐ नक्तन्िने नमः ।
638. ॐ िष्टु हन्त्रे नमः । 673. ॐ अर्ाकय नमः । 708. ॐ भृङ्क्तगणे नमः ।
639. ॐ क्तनयक्तमत्रे नमः । 674. ॐ अनर्ाकपहाररणे नमः । 709. ॐ चक्तण्डने नमः ।
640. ॐ क्तपशाच ग्रहशातनाय नमः । 675. ॐ समर्ाकय नमः । 710. ॐ गणेशाय नमः ।
641. ॐ बालग्रहक्तवनाक्तशने नमः । 676. ॐ रामसेवकाय नमः । 711. ॐ गणसेक्तवताय नमः ।
642. ॐ धमकनेत्रे नमः । 677. ॐ अक्तर्कनन
े मः । 712. ॐ कमाकध्यक्षाय नमः ।
643. ॐ कृ पाकराय नमः । 678. ॐ धन्यायनमः । 713. ॐ सरु ारामाय नमः ।
644. ॐ उग्रकृ त्याय नमः । 679. ॐ असरु ारातये नमः । 714. ॐ क्तवश्रामाय नमः ।
645. ॐ उग्रवेगाय नमः । 680. ॐ पण्ु डरीकाक्षाय नमः । 715. ॐ जगतीपतये नमः ।
646. ॐ उग्रनेत्राय नमः । 681. ॐ आत्मभव
ु े नमः । 716. ॐ जगन्नार्ाय नमः ।
647. ॐ शतक्रतवे नमः । 682. ॐ सङ्कषकणाय नमः । 717. ॐ कपीशाय नमः ।
648. ॐ शतमन्युस्तुताय नमः । 683. ॐ क्तवशुद्धात्मने नमः । 718. ॐ सवाकवासाय नमः ।
649. ॐ स्तुत्यायनमः । 684. ॐ क्तवद्याराशये नमः । 719. ॐ सिाश्रयाय नमः ।
650. ॐ स्तुतये नमः । 685. ॐ सुरेश्वराय नमः । 720. ॐ सुग्रीवाक्तिस्तुताय नमः ।
651. ॐ स्तोत्रेनमः । 686. ॐ अचलोद्धारकाय नमः । 721. ॐ िान्ताय नमः ।
652. ॐ महाबलाय नमः । 687. ॐ क्तनत्याय नमः । 722. ॐ सवककमकणे नमः ।
653. ॐ समग्रगण ु शाक्तलने नमः । 688. ॐ सेतुकृतेनमः । 723. ॐ प्लवङ्गमाय नमः ।
654. ॐ व्यग्राय नमः । 689. ॐ रामसारर्ये नमः । 724. ॐ नखिाररतरक्षसे नमः ।
655. ॐ रक्षोक्तवनाशनाय नमः । 690. ॐ आनन्िाय नमः । 725. ॐ नखयद्ध ु क्तवशारिाय नमः ।
656. ॐ रक्षोऽक्तग्निावाय नमः । 691. ॐ परमानन्िाय नमः । 726. ॐ कुशलाय नमः ।
830. ॐ परमेश्वराय नमः । 865. ॐ अष्टाङ्गयोगफलभुवे नमः । 900. ॐ अनन्त मङ्गलाय नमः ।
831. ॐ क्तश्लष्टजङ्घाय नमः । 866. ॐ सत्यसन्धाय नमः । 901. ॐ अष्ट मक्तू तकधराय नमः ।
832. ॐ क्तश्लष्टजानवे नमः । 867. ॐ परु
ु ष्टुताय नमः । 902. ॐ नेत्रे नमः ।
833. ॐ क्तश्लष्टपाणये नमः । 868. ॐ कमशान स्र्ान क्तनलयाय नमः । 903. ॐ क्तवरूपाय नमः ।
834. ॐ क्तशखाधराय नमः । 869. ॐ प्रेतक्तवरावणक्षमाय नमः । 904. ॐ स्वर सुन्िराय नमः ।
835. ॐ सुशमकणे नमः । 870. ॐ पञ्चा क्षरपराय नमः । 905. ॐ धूम के तवे नमः ।
836. ॐ अक्तमतधमकणे नमः । 871. ॐ पञ्च मातृकाय नमः । 906. ॐ महा के तवे नमः ।
837. ॐ नारायणपरायणाय नमः । 872. ॐ रञ्जनाय नमः । 907. ॐ सत्य के तवे नमः ।
838. ॐ क्तजष्णवे नमः । 873. ॐ ध्वजाय नमः । 908. ॐ महा रर्ाय नमः ।
839. ॐ भक्तवष्णवे नमः । 874. ॐ योक्तगनी वृन्िवन्द्यक्तश्रये नमः । 909. ॐ नन्िी क्तप्रयाय नमः ।
840. ॐ रोक्तचष्णवे नमः । 875. ॐ शत्रुघ्नाय नमः । 910. ॐ स्वतन्त्राय नमः ।
841. ॐ ग्रक्तसष्णवे नमः । 876. ॐ अनन्तक्तवक्रमाय नमः । 911. ॐ मेखक्तलने नमः ।
842. ॐ स्र्ाणवे नमः । 877. ॐ ब्रह्मचाररणे नमः । 912. ॐ डमरु क्तप्रयाय नमः ।
843. ॐ हरयेनमः । 878. ॐ इक्तन्रयवपष
ु े नमः । 913. ॐ लोक्तहताङ्गाय नमः ।
844. ॐ रुरानुकृते नमः । 879. ॐ धृतिण्डायनमः । 914. ॐ सक्तमधे नमः ।
845. ॐ वृक्षकम्पनाय नमः । 880. ॐ िशात्मकाय नमः । 915. ॐ वह्नये नमः ।
846. ॐ भूक्तमकम्पनायनमः । 881. ॐ अप्रपञ्चाय नमः । 916. ॐ षडृ तवे नमः ।
847. ॐ गुणप्रवाहाय नमः । 882. ॐ सिाचाराय नमः । 917. ॐ शवाकय नमः ।
848. ॐ सूत्रात्मने नमः । 883. ॐ शूरसेनाय नमः । 918. ॐ ईश्वराय नमः ।
849. ॐ वीतरागाय नमः । 884. ॐ क्तविारकाय नमः । 919. ॐ फल भुजे नमः ।
850. ॐ स्तुक्ततक्तप्रयाय नमः । 885. ॐ बुद्धाय नमः । 920. ॐ फलहस्ताय नमः ।
851. ॐ नागकन्याभयध्वक्तं सने नमः 886. ॐ प्रमोिाय नमः । 921. ॐ सवक कमक फलप्रिाय नमः
852. ॐ कृ तपण
ू ाकय नमः । 887. ॐ आनन्िायनमः । 922. ॐ धमाकध्यक्षाय नमः ।
853. ॐ कपालभृते नमः । 888. ॐ सप्तक्तजह्वपतये नमः । 923. ॐ धमकफलाय नमः ।
854. ॐ अनुकूलाय नमः । 889. ॐ धराय नमः । 924. ॐ धमाकय नमः ।
855. ॐ अक्षयाय नमः । 890. ॐ नवद्वारपुराधाराय नमः । 925. ॐ धमकप्रिाय नमः ।
856. ॐ अपायाय नमः । 891. ॐ प्रत्यग्राय नमः । 926. ॐ अर्किाय नमः ।
857. ॐ अनपायाय नमः । 892. ॐ सामगायनायनमः । 927. ॐ पञ्च क्तवंशक्तत तत्त्वज्ञाय नमः
858. ॐ वेिपारगाय नमः । 893. ॐ षि्चक्रधाम्ने नमः । 928. ॐ तारकाय नमः ।
859. ॐ अक्षराय नमः । 894. ॐ स्वलोकभयहृते नमः । 929. ॐ ब्रह्म तत्पराय नमः ।
860. ॐ पुरुषाय नमः । 895. ॐ मानिायनमः । 930. ॐ क्तत्रमागक वसतये नमः ।
861. ॐ लोकनार्ाय नमः । 896. ॐ मिाय नमः । 931. ॐ भीमाय नमः ।
862. ॐ त्र्यक्षाय नमः । 897. ॐ सवकवकयकराय नमः । 932. ॐ सवक िवे नमः
863. ॐ प्रभवे नमः । 898. ॐ शिये नमः । 933. ॐ िष्ट
ु क्तनबहकणाय नमः ।
864. ॐ दृढाय नमः । 899. ॐ अनन्ताय नमः । 934. ॐ ऊजकःस्वाक्तमने नमः ।
॥ हनुमान जी की आरती ॥
▪ आरती वकजे हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ टेक ॥
▪ जाके बल से वगरवर काँपे । रोग दोष जाके वनकट ना झाँके ॥ ॥ १ ॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ अंजनी पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥ ॥२॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ दे वीरा रघनु ाथ पठार्े । लक
ं ा जार्े वसर्ा सध
ु ी लार्े ॥ ॥३॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ लक
ं ा-सी कोट समिु सी िाई । जात पवन सतु बार न लाई ॥ ॥ ४ ॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ लंका जारर असुर संहारे । वसर्ा राम जी के काज सँवारे ॥ ॥५॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ लक्ष्मण मुवछय त पडे सकारे । आवन संवजवन प्राण उबारे ॥ ॥६॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ पैवठ पताल तोरर जम कारे । अवहरावण की भुजा उिारे ॥ ॥७॥
▪ आरती क्तकजे हनमु ानलला की ..... ॥
▪ बार्ें भुजा असुर दल मारे । दाहीने भज
ु ा संत जन तारे ॥ ॥८॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ सुर नर मुवनजन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ॥ ॥९॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ कचंन थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजनी माई ॥ ॥१०॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥
▪ जो हनमु ान जी की आरती गार्े । बसवहं बैकुंठ परम पद पार्ै ॥११॥
▪ आरती क्तकजे हनुमानलला की ..... ॥