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जिस क्रुपामई िगतिननी के अपार क्रुपासे कलम चालन

करके , अजतत के पाांडुजलजप मे छुपे रहस्य तथा सांस्कृजत को


जिजित करने िाराहा हूँ , िजह जललामई िगतिनजन माूँ
महाकाली के पदारजिन्द मॆ पुस्तक रुजप पुष्प को भजि के
नेिेद्य स्वरुप अपपण करता हूँ |
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कसी भि साधना में साधक का सरु ख्या अत्यभधक जरुरी है | अगर
सरु ख्या ना रखा जाये तो साधक के साधना के समय साधक को
शभियों अत्यभधक पररसान करती है | ईभस भिए कोई भि साधना
हो सरु ख्या घेरा जरुरी है | आज में आफ सव को दस भदगपाि
बधं न भवहान बता राहा हु | इस से कोई भि उचकोभि के साधना मे
ईस का प्रयोग कर सकते है | अगर भनम्न कोभि के साधना में
भकया जाये तो शभि प्रत्यक्ष नहीं होंगी | एस के भिए भपिा सरसों
चाभहए भजस को एकादशी के भदन इस को बस 108 बार
अभिमंभित कर के रख िें उस के बाद प्रयोग कर सकते है |

अजभमांजित करण जवजि


पहेिे गणपभत भशव गरू और िैरव के मंि का एक एक मािा जप
कर िीजे | उस के बाद अपने सामने एक जगह पे भफिा सरसों

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रख िों | उस के बाद उग्र नभसिंग मंि 108 बर जप करके भपिा
सरों अभिमंभित करें | और उस के बाद दगु ाा सप्तशती के 4 मंिो
का 5 बार अभिमंभित करें | इस के बाद प्रयोग आभद कर सकते है
|
अभिमंभित करने के भिए 108 बार जप करके हि में जि िेके
बोिेन के मेने भजतना जप भकया है उस का सारा ऊजाा में इस
भपिा सरसो में समभपात करता हूँ बोि के जि भपिा सरसों में
छोड़ दें | उस के बाद भफर दगु ाा सप्तशती के 4 मिं को भपिा
सरोसों के उपर हाथ रख के 5 बार पड़ें |

उग्र नजशिंग मांि:-क्षों नभृ सहं ाय नमः{108 जप करके अिी मंभित


करें }

दुगाप सप्तशती के 5 मांि :-

शि ू ेन पाभह नो देभव पाभह खड्गेन चाभम्बके । घण्िास्वनेन नः


पाभह चापज्याभनःस्वनेन च
प्राचयां रक्ष प्रतीचयां च चभण्डके रक्ष दभक्षणे । भ्रामणेनात्मशि
ू स्य
उत्तरस्यां तथेश्वरर
सौम्याभन याभन रूपाभण िैिोक्ये भवचरभतत ते । याभन
चात्यथाघोराभण तै रक्षास्मास्ं तथा िवु म्
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खड्गशि ू गदादीभन याभन चास्त्राभन तेऽभम्बके । करपल्िवसङ्गीभन
तैरस्मान् रक्ष सवातः

प्रयोग जवजि :-
साधना के भदग बंधन के समये भनम्न के दो प्रयोग करें भनम्न का
मिं भबघ्नो सारण मिं है | इस प्रयोग से साधना के समय के सारे
भबघ्न हि जाते है |

जिघ्नोसारण मांि:
{हाथ में अजभमांजित जपला सरसों लेके जनम्न मांि पढ़े |}

ॐ अपसपाततु ते ितू ा: ये ितू ा:िभू म सभं स्थता:।


ये ितू ा: भबघ्नकताारस्तेनश्यततु भशवाज्ञया॥
अपक्रामततु ितू ाभन भपशाचा: सवातो भदशम।
सवेषामभवरोधेन पजू ा कमासमारभ्िे॥
क्षों नभृ सहं ाय नमः (3)

(हाथ में भिया हुआ भपिा सरसों अप्ने चारो तरफ फे के )


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जदगिांिन
"सदु शानाय अस्त्राय फि्"..

ईस मिं के 3 बार ताभि बजाये…


भिर भनम्न मिं से प्राथाना करें ओर भदगबधं न करे

ॐ सदु शानं महाज्विं कोभि सयु ा समप्रिं


अग्यातदस्य में देबं भवष्णु मागिं प्रदसायेत ll

अब अप्ने left हात मे भपिा सरसों िेके भदशाऑ के बंधन मंि


पड्ते हुए उस भदसामे भपिेसरसों को फे क के उस भदसाभक ओर
चिु ् भक बजायें l

ॐ एंभि भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l (पबु ा)

ॐ अग्नये भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l (अभग्न


कोण)

ॐ जम्या भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l (दभखण)

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ॐ नेरुत्य भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(नेरुत्य)

ॐ वारूणी भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(पभस्चम)

ॐ बायभब भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(बाय)ु

ॐ कोबेरर भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(उत्तर)

ॐ ईसाभन भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(ईसान)

ॐ उर्द्ा भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(उपर)

ॐ अधो भदसं चक्रेण बध्नाभम नमस्चक्राय स्वाहा l(भनचे)

अब भदसाबंधन के बाद भजन देबताऑ को भदसा बंधन के भिये


भनयोभजत भकयागया हे अब उन का प्राथाना भनम्न मंि से करें l

"ॐ इतिोमां पातु भदग पबु े मग्नयां मभग्न देबता,जाम्यो जमः


सदापातु नेरुत्यां नेरुत प्रिःु , पभस्चमे बरुण पातु
बायब्ये बायु देबता,उत्तर धनदः पात,ु इसाने भमस्वर प्रिःु
उर्द्े भपतामहं पातु आधो अनतत भबिःु सधा..
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एबं दस भदसोरक्षां कुबाततु देबता गणाः "

KARMAKAND BY S ACHARYA

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