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दान की प रभाषा और कार


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ि हे तु षड् िध ानाम षडं गम च ि पा ु क् । चतु कारं ि िविधम ि नाशम


दा ु ाते ।।

स भ – राजा धम वमा दान का त जानने की इ ा से ब त वष तक तप ा


की, तब आकाशवाणी ने उनसे उपरो ोक कहा । िजसका अथ है

“दान के दो हे तु, छः अिध ान, छः अं ग, दो कार के प रणाम (फल), चार


कार, तीन भेद और तीन िवनाश साधन ह, ऐसा कहा जाता है ।”

यह एकमा ोक कह कर आकाशवाणी मौन हो गयी और राजा धम वमा के


बार बार पू छने पर भी आकाशवाणी ने उसका अथ (िव ार) नहीं बताया । तब
राजा धम वमा ने िढढोरा िपटवा कर घोषणा की िक जो भी इस ोक की ठीक
ठीक ा ा कर दे गा उसे राजा सात लाख गाय, इतनी ही ण मु ा तथा सात
गाँ व िदया जायेगा । कई ा णों ने इस के िलए यास िकया पर कोई भी ोक
की ठीक ठीक ा ा नहीं कर पाया । इस मु नादी को नारद जी ने भी सुना जो
उन समय आ म बनाने के िलए पया भूिम की तलाश म थे इस दु िवधा म थे की
वह दान म ली ई भू िम और िबना राजा की भूिम पर आ म नहीं बनाना चाहते थे
। वह केवल अपने ारा अिजत भू िम पर ही आ म बनाना चाहते थे और उ ये
मुनादी से 7 गाँ व के बराबर भूिम अिजत करने का मन बनाया और वृ ा ण
का वे ष रख कर राजा धम वमा के दरबार म इस ोक की ा ा करने प चे ।

राजा धम वमा ने नारद जी से बड़ी िवन ता से पुछा की दान के कौन से दो हे तु,


कैसे भेद और फल होते ह ? कृपया ोक का अथ बताये िजसे बड़े बड़े ानी भी
नहीं बता पाए । तब नारद जी ने ऐसा बताया –

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दान के दो हे तु ह : दान का थोडा होना या ब त होना अ ुदय का कारण नहीं


होता, अिपतु ा और श ही दान की वृ और य का कारण होती है ।
यिद कोई िबना ा के अपना सव दे दे अथवा अपना जीवन ही िनछावर कर
दे तो भी यह उसका फल नहीं पाता, इसिलए सबको ालु होना चािहए । ा
से ही धम का साधन िकया िकया जाता है , धन की ब त बड़ी रािश से नहीं ।
दे हधा रयों के िलए ा तीन कार की होती है – सा क, राजसी और तामसी ।
सा क ा वाले पु ष दे वताओं की पू जा करते ह, राजसी ा वाले पु ष य
और रा सों की पू जा करते ह और तामसी ा वाले पु ष दै , िपशाच की पू जा
करते ह । श के बारे म कहा गया है िक जो कुटुं ब के भरण पोषण से अिधक
हो वही धन दान दे ने यो है वही मधु के सामान है और पु करने वाला है और
इसके िवपरीत करने पर वह िवष के समान होता है । अपने आ ीयजन को दु ःख
दे कर िकसी सुखी और समथ पु ष को दान करने वाला मधु की जगह िवष का ही
पान कर रहा है । वह धम के अनु प नहीं, िवपरीत ही चलता है । जो व ु बड़ी
तु हो अथवा सव साधारण के िलए उपल हो वह ‘सामा ’ वा ु कहलाती है
। कहीं से मां ग कर लायी ई वा ु को ‘यािचत’ कहते ह । धरोहर का ही दू सरा
नाम ‘ ास’ है । बं धक रखी ई व ु को ‘आिध’ कहते ह । दी ई वा ु ‘दान’ के
नाम से पुकारी जाती है । दान म िमली ई वा ु को ‘दान धन’ कहते ह । जो धन
एक के यहाँ धरोहर रखा हो और िजसके यहाँ रखा हो वह यिद उस धरोहर को
िकसी और को दे दे तो उसे ‘अ ािहत’ कहते ह । िजस को िकसी के िव ास
पर उसके यहाँ छोड़ िदया हो उस धन को ‘िनि ’ कहते ह । वं शजो के होते ए
भी अपना सब कुछ दान करने को ‘ सा ाय सव दान’ कहते ह । िव ान पु ष
को उपरो नव व ु ओ का दान नहीं करना चािहए वरना वह बड़े पाप का भागी
होता है

छः अिध ान – दान के छः अिध ान ह, उ बताता ँ – धम, अथ, काम,


ल ा, हष और भय – ये दान के छः अिध ान बताये गए ह । सदा ही िकसी
योजन की इ ा न रखकर केवल धमबु से सु पा यों को जो दान िदया
जाता है उसे ‘धम दान’ कहते ह । मन म कोई योजन रखकर ही संगवश जो
कुछ िदया जाता है , उसे ‘अथ दान’ कहते ह । वह इस लोक म ही फल दे ने वाला
होता है । ीगमन, सु रापान, िशकार और जु ए के संग म अनिधकारी मनु ों को

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य पू वक जो कुछ िदया जाता है , वह ‘काम दान’ कहलाता है । भरी सभा म


याचको के मां गने पर ल ावश दे ने की ित ा करके उ जो कुछ िदया जाता है
वह ‘ल ा दान’ माना गया है । कोई ि य काम दे ख कर या ि य समाचार सुन कर
हष ास से जो कुछ िदया जाता है , उसे धमिवचारक ‘हष दान’ कहते ह । िनं दा,
अनथ और िहं सा का िनवारण करने के िलए अनु पकारी यों को िववश हो
कर जो कुछ िदया जाता है , उसे ‘भय दान’ कहते ह ।

छः अंग – अब छः अंगो का वणन सु िनए । दाता, ित हीता, शु , धम यु


दे य व ु , दे श और काल – ये दान के छः अं ग माने गए ह । दाता िनरोग,
धमा ा, दे ने की इ ा रखने वाला, सन रिहत, पिव तथा सदा अिन नीय
कम से आजीिवका चलने वाला होना चािहए । इन छः गु णों से दाता की शंसा
होती है । सरलता से रिहत, ाहीन, दु ा ा, दु सनी, झूठी ित ा करने वाला
तथा ब त सोने वाला दाता तमोगुणी और अधम माना गया है । िजसके कुल,
िव ा और आचार तीनो उ वल हो, जीवन िनवाह की वृ ि भी शु और सा क
हो, वह ा ण दान का उ म पा ( ित ह का सव म अिधकारी) कहा जाता है
। याचकों को दे ख कर सदा स मु ख हो, उनके ित हािदक े म होना, उनका
स ार करना तथा उनम दोष ि न रखना, ये सब सद् ु गण दान म शु कारक
माने गए ह । जो धन िकसी दु सरे को सताकर न लाया गया हो, अित कुंठा उठाये
िबना अपने य से उपािजत िकया गया हो, वह थोडा हो या अिधक, वही दे ने
यो बताया गया है । िकसी के साथ कोई धािमक उ े लेकर जो व ु दी
जाती है उसे धमयु दे य कहते ह । यिद दे य व ु उपरो गु णों से शू हो तो
उसके दान से कोई फल नहीं होता । िजस दे श अथवा काल म जो जो पदाथ
दु लभ हो, उस उस पदाथ का दान करने यो वही वही दे श और काल े है ;
दू सरा नहीं । इस कार दान के छः अं ग बताये गए ह ।

दो प रणाम (फल) – अब दान के दो फलों का वणन सुनो । महा ाओं ने दान


के दो प रणाम (फल) बतलाये ह । उनम से एक तो परलोक के िलए होता है और
एक इहलोक के िलए । े पु षों को जो कुछ िदया जाता है , उसका परलोक म
उपभोग होता है और असत पु षों को जो कुछ िदया जाता है , वह दान यहीं भोग
जाता है । ये दो प रणाम बताये गए ह ।

चार कार – अब दान के चार कारों का वण करो । ुव, ि क, का और

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नै िमि क – इस म से ि जों ने वैिदक दान माग के चार कार बतलाये ह ।


कुआँ बनवाना, बगीचे लगवाना तथा पोखर खुदवाना आिद काय म, जो उपयोग
म आते ह, धन लगाना ु व कहा गया है । ितिदन जो कुछ िदया जाता है , उस
िन दान को ‘ि क’ कहते ह । सं तान, िवजय,ऐ य, ी और बल आिद के
िनिम तथा इ ा पूत के िलए जो दान िकया जाता है , वह ‘का ’ कहलाता है ।
नै िमि क दान तीन कार का बतलाया गया है । वह होम से रिहत होता है । जो
हण और सं ां ित आिद काल की अपे ा से दान िकया जाता है , वह ‘काला े प’
नै िमि क दान है । ा आिद ि याओं की अपे ा से जो दान िकया जाता है , वह
‘ि या ेप’ नै िमि क दान है तथा सं ार और िव ा अ यन आिद गुणों की
अपे ा रख कर जो दान िदया जाता है , वह ‘गुणा े प’ नै िमि क दान है ।

तीन भेद – इस कार दान के चार कार बताये गए ह । अब उसके तीन भेदों
का ितपादन िकया गया है । आठ व ुओं के दान उ म माने गए ह । िविध के
अनुसार िकये गए चार दान उ म माने गए ह और शेष किन माने गए ह । यही
दान की ि िविधता है िजसे िव ान लोग जानते ह । गृह, मंिदर या महल, िव ा,
भू िम, गौ, कूप, ाण और ण – इन व ु ओं का दान अ व ुओं की अपे ा
उ म माना गया है । अ , बगीचा, व तथा अ आिद वाहन – इन म म े णी
के ों के दान को म म दान कहते ह । जूता, छाता, बतन, दही, मधु, आसन,
दीपक, का और प र आिद व ु ओं के दान को े पु षों ने किन दान
बताया है । ये दान के तीन भे द बताये गए ह ।

दान नाश के तीन हे तु – िजसे दे कर पीछे प ाताप िकया जाए, जो अपा को


िदया जाए और जो िबना ा के अपण िकया जाए – वह दान न हो जाता है ।
प ाताप, अपा ता और अ ा – ये तीनो दान के नाशक ह । यिद दान दे कर
प ाताप हो तो वह असु र दान है , जो िन ल माना गया है । अ ा से जो िदया
जाता है वह रा स दान कहलाता है । वह भी थ होता है । ा ण को डां ट
फटकार कर और कटु वचन सु ना कर जो दान िदया जाता है अथवा दान दे कर जो
ा ण को कोसा जाता है वह िपशाच दान कहते ह और उसे भी थ समझाना
चािहए । यह तीनो भाव दान के नाशक ह ।

इस कार सात पदों म बं धे ए दान के उ म महा को मने तु सु नाया है

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धम वमा बोले – आज मे रा ज सफल आ । आज मु झे अपनी तप ा का फल


िमल गया । िव ा पढ़ कर भी यिद मनु दु राचारी हो गया तो उसका स ूण
जीवन थ है । ब त ेश उठा कर जो प ी ा की गयी हो, वह यिद
कटु वािदनी िनकली तो वह भी थ है । क उठा कर जो कुआँ बनवाया
गया, उसका पानी यिद खारा िनकला तो वह भी िनरथक है तथा अनेक
कार के े श सहन करने के प ात जो मनु ज िमला, वह यिद
धमाचरण के िबना िबताया गया तो उसे भी थ ही समझाना चािहए । इसी
कार मेरी तप ा भी थ चली गयी थी उसे आज आपने सफल बना िदया
। आपको बार ार नम ार है ।

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