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अनुकर्म

'बबब बबबबबबब बबबबबबब'


बबबबबबबबब
बबबबबबबबबब
िजस पर्कार की नींव होती है उसी के अनुरूप उस पर खड़े भवन की मजबूती भी होती है। यिद नींव
ही कमजोर हो तो उस पर भव्य भवन का िनमार्ण कैसे हो सकता है ? बच्चे भावी समाज की नींव होते हैं।
ले िकनआ ज के दूिष त वातावरणमे बच चोपर ऐ से-ऐसेगलतसंस्कार पड़रहे हैं
िक उनकाजीवनपतनकी ओरजारहाहै।बालकरूपीनींव
ही कच्ची हो तो सुदृढ़ नागिरकों से युक्त समाज कहाँ से बनेगा ?
िकसी भी पिरवार, समाज अथवा राष्टर् का भिवष्य उसके बालकों पर िनभर्र होता है। उज्जवल
भिवष्य के िलए हमें बालकों को सुसंस्कािरत करना होगा। बालकों को भारतीय संस्कृित के अनुरूप िक् श षा
कककक
देकर हम एक आदर्शर ाष्टर् के िनमार्ण में सहभागी हो सकते हैं।
बर्ह्मिनष्ठ संत शर्ी आसारामजी बापू के मागर्दर्शन में हो रही बाल िवकास की िविभन्न सेवा -
पर्वृित्तयों द्वारा बच्चों को ओजस्वी, तेजस्वी, यशस्वी बनाने हेतु भारतीय संस्कृित की अनमोल
कुंिजयाँ पर्दान की जा रही हैं। इन्हीं सत्पर्वृित्तयों में मुख्य भूिमका िनभा रहे हैं देश में व्यापक
स्तर पर चल रहे 'बबब बबबबबबब बबबबबबब'।
इन केनदो मे िविभन महापुरषो के जीवन चिरत पर आधािरत पसंगो के माधयम से िवदािथरयो मे ससंसकारो का िसंचन िकया जाता
है। उनमें हमारी िदव्य संस्कृित, जीवन जीने की उत्तम कला िसखाने वाले महापुरूषों तथा माता-िपता
एवं गुरजनो के पित शदाभाव जगे, कसे कथा-पर्संग बताये जाते हैं।
बाल संस्कार केन्दर् संचालन िनदेर्श िकामें दी हुई 2 घँटे की कायर्पर्णाली में से पवर् मिहमा,
ऋतुचयार्, कथा-पर्संग एवं अन्य महत्त्वपूणर् िवषयों पर पर्ित सप्ताह िवस्तृत पाठ्यकर्म के रूप में यह
पुिस्तका पर्स्तुत की जा रही है। देशभर में चल रहे सभी केन्दर्ों में एकरूपता व सामंजस्यता स्थािपत
हो यह इस पुिस्तका के पर्काशन का मुख्य उद्देश् यहै।
बाल संस्कार केन्दर् संचालक इस बात ध्यान रखें िक िजस माह से वे इस पुस्तक के अनुसार
पढ़ाना शुरू करें, उस माह के त्यौहार, जयंितयाँ, ऋतुचयार् कैलेण्डर में देखें। िफर इस पुस्तक की
अनुकर्मिणका में उससे सम्बिन्धत लेख देखकर उससे सम्बिन्धत सतर् से पढ़ाना शुरू करें। पुस्तक
में िदया हुआ पहला सतर् जनवरी के पर्थम सप्ताह में पढ़ाने के िलए है।
यह पाठ्यकर्म वषर् भर में आने वाले वर्त, त्यौहार तथा महापुरूषों की जयंितयों आिद के आधार
पर बनाया गया है। केन्दर् संचालकों से िनवेदन है िक अन्य वषोर्ं में वर्त त्यौहार, महापुरूषों की
जयंित-ितिथयों, तारीखों के अनुसार िवषयों को बदल कर पढ़ा सकते हैं।
सतर् 1 से 52 तक का अिभपर्ायः वषर् के 52 सप्ताहों से है। पर्त्येक वषर् सतर् 1 जनवरी के
पर्थम सप्ताह से शुरू होगा।
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बबबबबबबबबबब
पर्स्तावना िशवाजी का बुिद चातुयर
माता-िपता-गुरू की सेवाका महत्त्व वसंत ऋतुचयार्
धमर की वेदी पर बिलदान देने वाले चार अमर शहीद परीक्षा में सफलता कैसे पायें ?
ितलकः बुिद्धबल एवं सत्त्वबलवधर्क मन का पर्भाव तन पर
मकर सकर्ांित िशवजी का अनोखा वेशः देता है िदवय सनदेश
मातृ-िपतृभक्त पुण्डलीक महाश िवराितर्का पूजन
सबमें गुरू का ही स्वरूप नजर आता है यह कैसा मनोरंजन ?
शरीर से िहनदुसतानी परंतु िदमाग से अंगेज टी.वी. द्वारा पनपती बुराइयों का िवरोध अत्यंत
भारतीय संस्कृित की गिरमा के रक्षकः स्वामी आवशय ् क-अपने नौ-जवानों को बचाने का पर्यास
िववेकानन्द करें।
स्वभाषा का पर्योग करें भेद में अभेद के दर्शन कराता हैः
'हाय-हेलो' से बड़ों का अपमान न करें..... होिलकोत्सव
पिरशर्म के पुष्प व्यिक्त की परख रंगों से
सत्य के समान कोई धमर् नहीं गामापहलवानकी सफलताका रहस्य
शिकत संचय का महान सोतः मौन पर्ेमावतार का पर्ागट्य-िदवसः जन्माष्टमी
वास्कोिडगामा ने भारत खोजा नहीं अिपतु लूटा था दयालु बालक शतमन्यु
स्वधमेर् िनधनं शर्ेयः अभ्यास में रूिच क्यों नहीं होती ?
जरूरत है लगन और दृढ़ता की.... आपचाकलेटखा रहेहैय ं ािनदोर्षबछड़ोंका मांस?
िवद्याथीर् छुिट्टयाँ कैसे मनाएँ ? असफल िवद्यािथर्यों को सफल बनाने के नुस्खे
बाल्यकाल से ही भिक्त का पर्ारंभ िनराकार हुए साकार जब..........
समय की कीमत गणपितजीका शर्ीिवगर्हःमुिखयाका आदर्शकक
गर्ीष्मऋतु मेआ
ं हारिवहार जन्मिदन कैसे मनाएँ ?
महापुरूषों के मागर्दर्शन से सँभल जाता है मांसाहार छोड़ो...... स्वस्थ रहो
जीवन कोलेस्टरोल िनयंितर्त करने का आयुवैर्िदक
हक की रोटी उपचार
रतनबाई की गुरूभिक्त मांसाहारः गंभीर बीमािरयों को बुलावा
साित्त्वक, राजसी तथा तामिसक – भोजन से होता मांसाहारी मांस खाता है परंतु मांस उसकी
है तदनुसार स्वभाव का िनमार्ण हिड्डयों को ही खा जाता है !
माता सीता जी का आदर्शकक अण्डाः रोगों का भण्डार
दर्ौपदी का अक्षयपातर् पौिष्टकता की दृिष्ट से शाकाहारी सिब्जयों से
सौन्दयर् पर्साधन हैं सौन्दयर् के शतर्ु अण्डे की तुलना
मम्मी-डैडी कहने से माता-िपता का आदर या आध्याित्मकदृिष्टसेमानवजीवनपरअण्डासेवनका दुष्पर्भाव
हत्या ? अण्डा जहर है
गुरू तेगबहादुरःधमर्की रक्षाकेिलएिकयापर्ाणोंका बिलदान कहीं आप भी सॉफ्ट िडर्ंक पीकर मांसाहार तो
देववर्त की भीष्म पर्ितज्ञा नहीं कर रहे हैं ?
ज्ञान का आदर िवज्ञापनी फरेब का पदार्फाश-चारदेशोंनेकोका कोला
हे िवद्यािथर्यों ! िजज्ञासु बनो को अस्वास्थ्यकर बताकर पर्ितबंिधत िकया....
भगवद् आराधना, नामसंकीतर्न का फल आरतीःमानवजीवनको िदव्यबनानेकी वैज्ञािनकपरम्परा
मनोिनगर्ह की अदभुत साधना, एकादशी वरत आरतीको कैसेविकतनीबारघुमाये?ं
िनजर्ला एकादशी बालक धर्ुव
िडब्बापैक फलों के रस से बचो नवराितर् में गरबा
ताजा नाश् ताकरना न भूलें नवराितर् में सारस्वत्य मंतर् अनुष्ठान से
िनदर्ा के सामान्य िनयम चमत्कािरकलाभ
वषार् ऋतु में स्वास्थ्य-रक्षा के कुछ आवश् यक सारस्वत्य मंतर् का चमत्कारः वैज्ञािनक भी
िनयम चिकत
संत िनंदा िजसके घर, वह घर नहीं, यम का दर िवजयादशमीः दसों इिन्दर्यों पर िवजय
काशीनरेश की न्यायिपर्यता राजकुमारी मिल्लका
असीम करूणा के धनीः संत एकनाथ जी महाराज छत स ा ल की वीरत ा
सूयोर्पासना अिधकांश टूथपेस्टों में पाया जाने वाला
रामभक्त लतीफशाह फलोराइड कैसर को आमंतण देता है.....
गुरभू क्तसंदीपक पेप्सोडेंट के पर्योग से सड़ने लग हैं दाँत
नेताजी सुभाषचन्दर् बोस की महानता का रहस्य पवोर्ं का पुंजः दीपावली
भगवान स्वयं अवतार क्यों लेते हैं ? दीपावली का पवर्पंचक
िकतने सुरिक्षत हैं कर्ीम तथा टेलकम पाउडर ? भारत का कुत्ता भी भिक्त की पर्ेरणा देता है
सौन्दयर् पर्साधनों में िछपी हैं कई मूक चीखें तर्ाटक साधना
कैन्सर का खतरा बढ़ा रहे हैं झागवाले शैम्पू िबन्दु तर्ाटक
जब वीर सावरकर ने 'कालापानी' में – मूितर् तर्ाटक
धमानतरण के िवरद िकया उग आनदोलन दीपज्योित तर्ाटक
पीिनयल गर्न्थी (योग में-आज्ञाचकर् ) की िवद्यािथर्यों के िलए िवशेष
िकर्याशीलता का महत्त्व गुटखा-पानमसाला खाने वाले सावधान ! अब
शुभ संकलपो का पवर रकाबनधन कत्थे के स्थान पर जानलेवा 'गैिम्य बर' का
स्मरणशिक्त कैसे बढ़ायें ? पर्योग.....
बौिद्धक बल बढ़ाएँ गुटखाखानेका शौक िकतनामहँगापड़ा!
िदमागी ताकत के िलए कुछ उपाय मौत का दूसरा नामः गुटखा-पान मसाला
महामूखर् कौन ? दंत सुरक्षा
फैशन से बीमारी तक...... टू थपेसट करने वालो के िलए दंतरोग िवशेषज्ञों की
सेवा की मिहमा िवशेष सलाह
िविवध रोगों में आभूषण िचिकत्सा अन्न का पर्भाव
स्वास्थ्य के िलए हािनकारक ऊँची एड़ी के भैंस के खून से भी बनते हैं टॉिनक
सैंिडल फासट फूड खाने से रोग भी फासट (जल्दी) होते हैं
नानक ! दुःिखया सब संसार.... पर्ितभावान बालक रमण
चाय-काफीः एक मीठा जहर जािगये – पर्ातः बर्ाह्ममुहूतर् में
आयुवैर्िदकचाय दृढ़ संकल्प सफलता का पर्थम सोपान
दीक्षाः जीवन का आवश ् यकअंग सुरक्षाचकर् का चकर्व्यूह
असाध्य बीमािरयों में औषध के साथ पर्ाथर्ना त्यागो लापरवाही को.......
औ र ध यानभी अत यनतआ वश यकहै क्या है तुम्हारा लक्ष्य ?
तेजस्वी जीवन की कुंजीः ितर्काल सन्ध्या शी अरिवंद की िनिशंतता
ितर्काल सन्ध्या से लाभ पूज्य बापू जी की पावन पर्ेरणा
मैदे से बनी डबल रोटी (बर्ेड) खाने वाले
सावधान !
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बबबबबब बबबबबबबबब
(बबबब 1)
बबबब-बबबब-बबबब बब बबबब बब बबबबबबब
बबबबबबबबब बब बबबबब "भारत ! धमर का यह मागर बहुत बडा है तथा इसकी बहुत सी शाखाएँ है। इन धमों से
आपिकसकोिवशेषरूप सेआचरणमेल ं ानेयोग्यसमझतेहै?ं सब धमोर्ं में से आप िकसको
िवशेष रूप से आचरण में लाने योग्य समझते हैं ? सब धमोर्ं में कौन-सा कायर्
आपकोशर्ेष्ठजानपड़ताहै , िजसका अनुष्ठान करके मैं इहलोक और परलोक में भी परम
धमर का फल पापत कर सकूँ ?"
बबबबब बब बब बबबब "राजन ! मुझे तो माता-िपता तथा गुरूजनों की पूजा ही अिधक
महत्त्व की वस्तु जान पड़ती है। इस लोक में इस पुण्यकायर् में संलग्न होकर
मनुष्य महान यश और शर्ेष्ठ लोक पाता है।
तात् युिधिष्ठर ! भिलभाँित पूिजत हुए वे माता-िपता और गुरूजन िकस काम के िलए
आज्ञद
ाे
, ंउसका पालन करना ही चािहए।
जो उनकी आज्ञा के पालन में संलग्न है, उसके िलए दूसरे िकसी धमर् के आचरण की आवश् यकता
नहीं है। िजस कायर् के िलए वे आज्ञा दें, वही धमर् है, ऐसाधमार्त्मकािन ाओं श्चय
है।
माता-िपता और गुरूजन ही तीनों लोक हैं, ये ही तीनों आशर्म हैं, ये ही तीनों वेद हैं तथा ये
ही तीनों अिग्नयाँ हैं।
िपता गाहर्पत्य अिग्न हैं, माता दिक्षणािग्न मानी गयी हैं और गुरू आहवनीय अिग्न का स्वरूप हैं।
लौिकक अिगनयो की अपेका माता-िपता आिद ितर्िवध अिग्नयों का गौरव अिधक है।
यिद तुम इन तीनों की सेवा में कोई भूल नहीं करोगे तो तीनों लोकों को जीत लोगे। िपता की सेवा
से इस लोक को, माता की सेवा से परलोक को तथा िनयमपूवर्क गुरू की सेवा से बर्ह्मलोक को भी लाँघ
जाओगे।
भरतनन्दन ! इसिलए तुम ितिवध लोकसवरप इन तीनो के पित उतम बताव करो। तुमहारा कलयाण हो। ऐसा करने से तुमहे यश
और महान फल देने वाले धमर की पािपत होगी।
इन तीनो की आजा का कभी उललंघन न करना, इनको भोजन कराने के पहले सवयं भोजन न करना, इन पर कोई दोषारोपण न
करना और सदा इनकी सेवा में संलग्न रहना, यही सबसे उत्तम पुण्यकमर् है। नृपशर्ेष्ठ ! इनकी सेवा से तुम
कीितर्, पिवतर् यश और उत्तम लोक सब कुछ पर्ाप्त कर लोगे।
िजसने इन तीनों का आदर कर िलया, उसके द्वारा सम्पूणर् लोकों का आदर हो गया और िजसने
इनका अनादर कर िदया, उसके सम्पूणर् शुभ कमर् िनष्फल हो गये।
शतुओं को संताप देने वाले नरेश ! िजसने इन तीनों गुरूजनों का सदा अपमान ही िकया है, उसके िलए न तो
यह लोक सुखद है और न परलोक। न इस लोक में और न ही परलोक में ही उसका यश पर्काश ितहोता है।
परलोक में जो अन्य कल्याणमय सुख की पर्ािप्त बतायी गयी है, वह भी उसे सुलभ नहीं होती है।
मैं तो सारा शुभ कमर् करके इन तीनों गुरूजनों को ही समिपर्त कर देता था। इससे मेरे उन सभी
शुभ कमों का पुणय सौगुना और हजारगुना बढ गया है। युिधिषर ! इसी से तीनो लोक मेरी दृिष के सामने पकािशत हो रहे है।
आचायर् यानीशास्तर्ोक
ं ेअनुसारआचरणबतानेवालासदादस शर्ोितर् योंयानीशास्तर्ोक
ं ी कथा करनेवालेसेबढ़करहै।उपाध्याय
यानी िवद्यागुरू दस आचायोर्ं से अिधक महत्त्व रखता है। िपता दस उपाध्यायों से बढ़कर है और माता
का महत्त्व दस िपताओं से भी अिधक है। वह अकेली ही अपने गौरव के द्वारा सारी पृथव ् ी को भी ितरस्कृत
कर देती है। अतः माता के समान दूसरा कोई गुरू नहीं है।
......परंतु मेरा िवश् वासयह है िक बर्ह्मवेत्ता सदगुरू का पद िपता और माता से भी बढ़कर है,
क्योंिक माता-िपता तो केवल इस शरीर को जन्म देते हैं जबिक सदगुरू जीव के िचन्मय वपु को जन्म देते
हैं।
भारत ! िपता और माता के द्वारा स्थूल शरीर का जन्म होता है परंतु सदगुरू का उपदेश पर्ाप्त करके
जीव को जो िद्वतीय जन्म उपलब्ध होता है, वह िदव्य है, अजर-अमर है।
माता-िपता यिद कोई अपराध करें तो भी वे सदा अवध्य ही हैं, क्योंिक पुतर् या िष् शयम ाता-िपता
और गुर के पित अपराध करके भी उनकी दृिष मे दूिषत नही होते है। वे गुरजन पुत या िशषय पर सनेहवश दोषारोपण नही करते है बिलक
सदा उसे धमर् के मागर् पर ही ले जाने का पर्यत्न करते हैं। ऐसे माता-िपता आिद गुरूजनों का महत्त्व
महिषर्यों सिहत देवता ही जानते हैं।
जो सत्कमर् और यथाथर् उपदेश के द्वारा पुतर् या िष् शयक ो कवच की भाँित ढँक लेते हैं ,
सत्यस्वरूप वेद का उपदेश देते हैं और असत्य की रोक-थामकरतेहै , ंउन गुरू को ही िपता और माता समझें
और उनके उपकार को जानकर कभी उनसे दोह न करे।
जो लोग िवद्या पढ़कर गुरू का आदर नहीं करते, िनकट रहकर मन, वाणी और िकर्या द्वारा गुरू की
सेवा नहीं करते, उन्हें गभर् के बालक की हत्या से भी बढ़कर पाप लगता है। संसार में उनसे बड़ा
पापी दूसरा कोई नहीं है। जैसे, गुरओ ू ंका कत्तर्व्यहै िष्य
श क ो आत्मोन्नितकेपथ परपहुँचाना , उसी तरह िष् शयकों ा धमर्
है गुरूओं का पूजन करना।
अतः जो पुरातन धमर् का फल पाना चाहते हैं, उन्हें चािहए की वे गुरूओं की पूजा-अचर्ना करें
और पयतपूवरक उनहे आवशयक वसतुएँ समिपरत करे।
मनुष्य िजस कमर् से िपता को पर्सन्न करता है, उसी के द्वारा पर्जापित बर्ह्माजी भी पर्सन्न होते
हैं तथा िजस बतार्व से वह माता को पर्सन्न कर लेता है, उसी के द्वारा समूची पृथव ् ी की भी पूजा हो जाती
है।
िजस कमर् से िष् शयग ुरू को पर्सन्न करता है , उसी के द्वारा परबर्ह्म परमात्मा की पूजा सम्पन्न हो
जाती है। अतः माता-िपता से भी अिधक पूजनीय गुरू हैं।
गुरओ ू ंकेपूिजतहोनेपरिपतरोंसिहतदेवताऔरऋिषभीपर्सन्नहोतेहै , ंइसिलए गुर परम पूजनीय है।
िकसी भी बतार्व के कारण गुरू अपमान के योग्य नहीं होते। इसी तरह माता और िपता भी अनादर के
योग्य नहीं हैं। जैसे, गुरू माननीयहैव ंैसेहीमाता-िपता भी माननीय हैं।
वे तीनों कदािप अपमान के योग्य नहीं है। उनके िलए िकये हुए िकसी भी कायर् की िनन्दा नहीं
करनी चािहए। गुरूजनों के इस सत्कार को देवता और महिषर् भी अपना सत्कार मानते हैं।
गुरू, िपता और माता के पर्ित जो मन, वाणी और िकर्या द्वारा दर्ोह करते हैं, उन्हें भर्ूणहत्या से
भी बढ़कर महान पाप लगता है। संसार में उनसे बढ़कर दूसरा कोई पापाचारी नहीं है।
जो िपता-माता का दत्तक पुतर् है, पाल पोसकर बड़ा कर िदया गया है, वह यिद अपने माता-िपता का
भरण-पोषण नहीं करता है तो उसे भर्ूणहत्या से भी बढ़कर पाप लगता है और जगत में उससे बड़ा
पापात्मा दूसरा कोई नहीं है।
िमतर्दर्ोही, कृतघ्न, स्तर्ीहत्यारे और गुरूघाती, इन चारो के पाप का पायिशत हमारे सुनने मे नही आया है।
इस जगत मे पुरष के दारा जो पालनीय है, वे सारी बातें यहाँ िवस्तार के साथ बतायी गयी हैं। यही
कल्याणकारी मागर् है। इससे बढ़कर दूसरा कोई कत्तर्व्य नहीं है। सम्पूणर् धमोर्ं का अनुसरण करके
यहाँ सबका सार बताया गया है।
(महाभारत शांितपवर्)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबब बब बबबब बब बबबबबब बबबब बबबब
बबब बबब बबबब
धमर की पिवत यजवेदी मे बिलदान देने वालो की परमपरा मे गुर गोिवनद िसंह के चार लाडलो को, अमर शहीदों को भारत भुला
सकता है ? नहीं, कदािप नहीं। अपने िपतामह गुरूतेगबहादुर की कुबार्नी और भारत की स्वतन्तर्ता के िलए
संघषर्रत िपता गुरू गोिवन्दिसंह ही उनके आदर्शथ े। तभी तो इस नन्हीं सी 8-10 वषर् की अवस्था में
उन्होंने वीरता और धमर्परायणता का जो पर्दर्शन िकया उसे देखकर भारतवासी उनके िलये शर्द्धा से
नतमस्तक हो उठते हैं।
गुरू गोिवन्दिसंहकी बढ़तीहुई शिक्तऔरशर ू ताको देखकरऔरंगजेबझुंझलायाहुआथा। उसनेशाहीफरमानिनकालािकः
"पंजाब के सभी सूबों के हािकम और सरदार तथा पहाड़ी क्षेतर्ों के राजा िमलकर आनन्दपुर को बबार्द
कर डालो और गुरू गोिवन्दिसंह को िजन्दा िगरफ्तार करो या उनका िसर काटकर शाही दरबार में हािजर करो।"
बस, िफर कया था ? मुगल सेना द्वारा आनंदपुर पर आकर्मण कर िदया गया। आनंदपुर िकले में
उपिस्थत मुट्ठी भऱ िसक्ख सरदारों की सेना ने िवशाल मुगल सेना को भी तर्स्त कर िदया। िकन्तु धीरे-धीरे
िकले में रसद-सामान घटने लगा और िसक्ख सेना भूख से व्याकुल हो उठी। आिखरकार अपने सािथयों की
सलाह से बाध्य हो अनुकूल अवसर पाकर गुरू गोिवन्द िसंह ने आधी रात में सपिरवार िकला छोड़ िदया।
.....िकन्तु न जाने कहाँ से यवनों को इसकी भनक लग गयी और दोनों सेनाओं में हलचल मच गयी।
इसी भाग-दौड़ में गुरूगोिवन्दिसंह के पिरवार वाले अलग-अलग होकर भटक गये। गुरू गोिवन्दिसंह की
माता अपने दो छोटे-छोट े पौत ो – जोराव रिसं ह तथा फत े ह िसं ह क े साथ दूस री ओर िन कल पड ी ।
उनके साथ रहने वाले रसोइये के िवश् वासघातके कारण ये लोग िवपिक्षयों द्वारा िगरफ्तार िकये
गयेऔरसरिहंदभेजिदयेगये।सरिहंदसूबाकेसरदारवजीदखाँनेगुरू गोिवन्दिसंहकेहृदयको आघातपहुँचानेकेख्यालसेउनकेदोनों
छोट े ब च च ो को मु स ल मा न बनान े का िन श य िकया।
भरे दरबार में गुरू गोिवन्दिसंह के इन दोनों पुतर्ों से उसने पूछाः
"कबच्
कककचको!कतुम लोगों को इस्लाम धमर् की गोद में आना मंजूर है या कत्ल होना ?"
दो तीन बार पूछने पर जोरावरिसंह ने जवाब िदयाः
"हमें कत्ल होना मंजूर है।"
कैसी िदलेरी है ! िकतनी िनभीर्कता ! िजस उमर् में बच्चे िखलौनों से खेलते रहते हैं, उस
नन्हीं सी सुकुमार अवस्था में भी धमर् के पर्ित इन बालकों की िकतनी िनष्ठा है !"
वजीद खाँ बोलाः "बच्चों ! इसलाम धमर मे आकर सुख से जीवन वयतीत करो। अभी तो तुमहारा फलने -फूलने का समय है।
मृत्यु से भी इस्लाम धमर् को बुरा समझते हो ? जरा सोचो ! अपनी िजंदगी व्यथर् क्यों गँवा रहे हो ?"
गुरू गोिवन्दिसंहकेलाड़लेवेवीरपुत.....
र् मानों गीता के इस ज्ञान को उन्होंने पूरी तरह आत्मसात् कर िलया
थाःबबबबबबबब बबबबब बबबबबब बबबबबबब बबबबब। मरने से बढ़कर सुख देने वाला दुिनया
में कोई काम नहीं। अपने धमर् की मयार्दा पर िमटना तो हमारे कुल की रीित है। हम लोग इस क्षणभंगुर
जीवन की परवाह नहीं करते। मर-िमटकर भी धमर् की रक्षा करना ही हमारा अंितम ध्येय है। चाहे तुम
कत्ल करो या तुम्हारी जो इच्छा हो, करो।"
बबबब बबबबबबबबबबब बब बबबबब बबबब ब बबबबब बबबब बबब बबबबबबब.......
इसी पकार फतेहिसंह ने भी बडी िनभीकतापूवरक धमर को न तयागकर मृतयु का वरण शेयसकर समझा। शाही दरबार आशयरचिकत हो
उठा िकः "इस ननही-सी आयु में भी अपने धमर् के पर्ित िकतनी अिडगता है ! इन ननहे-नन्हें सुकुमार बालकों
में िकतनी िनभीर्कता है !" िकन्तु अन्यायी शासक को भला यह कैसे सहन होता ? कािजयों एवं मुल्लाओं
की राय से इन्हें जीते जी दीवार में िचनवाने का फरमान जारी कर िदया गया।
कुछ ही दूरी पर दोनों भाई दीवार में िचने जाने लगे, तब धमार्ंध सूबेदार ने कहाः
"ऐ बालकों ! अभी भी चाहो तो तुम्हारे पर्ाण बच सकते हैं। तुम लोग कलमा पढ़कर मुसलमान धमर्
स्वीकार कर लो। मैं तुम्हें नेक सलाह देता हूँ।"
यह सुनकर वीर जोरावरिसंह गरज उठाः
"अरे अत्याचारी नराधम ! तू क्या बकता है ? मुझे तो खुश ी है िक पंचम गुरू अजुर्नदेव और दादागुरू
तेगबहादुर के आदशोर् ंको पूरा करने के िलए मैं अपनी कुबार्नी दे रहा हूँ। तेरे जैसे अत्याचािरयों
से यह धमर् िमटने वाला नहीं, बिल्क हमारे खून से वह सींचा जा रहा है और आत्मा तो अमर है, इसे कौन
मार सकता है ?" दीवार शरीर को ढँकती हुई ऊपर बढ़ती जा रही थी। छोटे भाई फतेहिसंह की गदर्न तक
दीवार आ गई थी। वह पहले ही आँखों से ओझल हो जाने वाला था। यह देखकर जोरावरिसंह की आँखों
में आँसू आ गये। सूबेदार को लगा िक अब मुलिजम मृत्यु से भयभीत हो रहा है। अतः मन ही मन पर्सन्न
होकर बोलाः "जोरावर ! अब भी बता दो तुम्हारी क्या इच्छा है ? रोने से क्या होगा ?"
जोरावरिसंहः "मैं बड़ा अभागा हूँ िक अपने छोटे भाई से पहले मैंने जन्म धारण िकया, माता
का दूध और जन्मभूिम का अन्न-जल गर्हण िकया, धमर की िशका पाई िकनतु धमर के िनिमत जीवन-दान देने का सौभाग्य
मेरे से पहले मेरे छोटे भाई फतेह को पर्ाप्त हो रहा है। इसीिलए मुझे आज खेद हो रहा है िक
मुझसे पहले मेरा छोटा भाई कुबार्नी दे रहा है।"
लोग दंग रह गये िक िकतने साहसी है ये बालक ! जो पर्लोभनों और जुिल्मयों द्वारा अत्याचार िकये जाने पर
भी वीरतापूवर्क स्वधमर् में डटे रहे।
उधर गुरू गोिवन्दिसंह की पूरी सेना युद्ध में काम आ गई। यह देखकर उनके बड़े पुतर् अजीतिसंह
से नहीं रहा गया और वे िपता के पास आकर बोल उठेः
"िपता जी ! जीते जी बन्दी होना कायरता है, भागना बुजिदली है। इससे अच्छा है लड़कर मरना।
आपआज्ञक ा रे
, ंइन यवनो के छके छुडा दूँ या मृतयु का आिलंगन करँ।"
वीर पुतर् अजीतिसंह की बात सुनकर गुरू गोिवन्दिसंह का हृदय पर्सन्न हो उठा और वे बोलेः
"शाबाश ! धनय हो, पतर् ! जाओ, स्वदेश और स्वधमर् के िनिमत्त अपना कत्तर्व्यपालन करो। िहन्दू धमर्
को तुम्हारे जैसे वीर बालकों की कुबार्नी की आवश् यकताहै।
िपता की आज्ञा पाकर अत्यंत पर्सन्नता एवं जोश के साथ अजीतिसंह आठ-दस िसक्खों के साथ
युद्ध-स्थल में जा धमका और देखते ही देखते यवन सेना के बड़े-बड़े सरदारों को मौत के घाट
उतारते हुए खुद भी शहीद हो गया।
ऐसेवीरबालकों की गाथासेहीभारतीयइितहासअमरहोरहाहै।
अपने बड़े भाइयों को वीरगित पर्ाप्त करते देखकर उनसे छोटा भाई जुझारिसंह भला कैसे चुप
बैठता ? वह भी अपने िपता गुरू गोिवन्दिसंह के पास जा पहुँचा और बोलाः
"िपता जी ! बड़े भैया तो वीरगित को पर्ाप्त हो गये इसिलए मुझे भी भैया का अनुगामी बनने की
आज्ञदा ीिजए।" गुरू गोिवन्दिसंहका हृदयभरआयाऔरउन्होंने जझ
ु ारको गलेलगािलया। वेबोलेः"जाओ, बेटा ! तुम भी अमरपद
पर्ाप्त करो, देवता तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।"
धनय है पुत की वीरता और धनय है िपता की कुबानी ! अपने तीन पुतर्ों की मृत्यु के पश् चात्सव
् देश एवं
स्वधमर्-पालन के िनिमत्त अपने चौथे एवं अंितम पुतर् को भी पर्सन्नता से धमर् एवं स्वतन्तर्ता की
बिलवेदी पर चढ़ने के िनिमत्त स्वीकृित पर्दान कर दी !
वीर जुझारिसंह 'सत् शर्ी अकाल' कहकर उछल पड़ा। उसका रोम-रोम शतर्ु को परास्त करने के िलए
फडकाने लगा। सवयं िपता ने उसे वीरो के वेश से सुसिजजत करके आशीवाद िदया और वीर जुझार िपता को पणाम करके अपने कुछ सरदार
सािथयों के साथ िनकल पड़ा युद्धभूिम की ओर। िजस ओर जुझार गया उस ओर दुश् मनोंका तीवर्ता से
सफाया होने लगा और ऐसा लगने लगा मानों महाकाल की लपलपाती िजह्वा सेनाओं को चाट रही है।
देखते-देखते मैदान साफ हो गया। अंत में शतर्ुओं से जूझते वह वीर बालक भी मृत्यु की भेंट चढ़
गया। देखने वालेदुश् मनभीउसकी पर्शंसािकयेिबनान रहसके।
अनुकर्म
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सतर् 2
बबबबब बबबबबबबब बबब बबबबबबबबबबबबब
ललाट पर दोनो भौहो के बीच िवचारशिकत का केनद है। योगी इसे आजाचक कहते है। इसे िशवनेत अथात् कलयाणकारी िवचारो
का केन्दर् भी कहा जाता है।
यहाँ िकया गया चन्दन अथवा िसन्दूर आिद का ितलक िवचारशिक्त एवं आज्ञाशिक्त को िवकिसत करता
है। इसिलए िहन्दू धमर् में कोई भी शुभ कायर् करते समय ललाट पर ितलक िकया
जाता है।
पूज्यपाद संत शर्ी आसाराम बापू को चन्दन का ितलक लगाकर सत्संग करते
हुए लाखों-करोड़ों लोगों ने देखा है। वे लोगों को भी ितलक करने के िलए
पर्ोत्सािहत करते हैं। भाव पर्धान, शदापधान केनदो मे जीने वाली मिहलाओं की समझ बढाने के
उद्देश् यसे ऋिषयों ने ितलक की परम्परा शुरू की। अिधकांश िस्तर्यों का मन
स्वािधष्ठान एवं मिणपुर केन्दर् में ही रहता है। इन केन्दर्ों में भय, भाव और कल्पना की अिधकता होती
है। वे भावना एवं कल्पनाओं में बह न जायें, उनका िवनेतर् कककककक , िवचारशिक्त का केन्दर् िवकिसत

होता हो इस उद्देश् यसे ऋिषयों ने िस्तर्यों के िलए िबन्दी लगाने का िवधान रखा है।
गागीर्
, शािणडली, अनुसूया एवं अन्य कई महान नािरयाँ इस िहन्दू धमर् में पर्गट हुई हैं। महान वीरों,
महान पुरूषों, महान िवचारकों तथा परमात्मा के दर्शन कराने का सामथ्यर् रखने वाले संतों को जन्म
देने वाली मातृशिक्त को आज कई िमशनरी स्कूलों में ितलक करने से रोका जाता है। इस तरह का
अत्याचार िहन्दुस्तानी कहाँ तक सहते रहेंगे ? िमशनिरयों के षडयंतर्ों का िकार
श क ब तक बनते
रहेंगे ?
सरकार में घुसे िमशनिरयों के दलाल, चमचेऔरधनलोलुपअखबारवालेजोगर्ीसव रोमकी तरहइस भारतदेश
को तबाह करने पर उतारू हैं, उन िधक्कार के पातर्ों को खुले आम सबक िसखाओ।
अनुकर्म
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बबब-बबबबबबबबब
जनवरी माह की 12 से 14 तारीख के बीच मकर सकर्ािन्त का पवर् आता है। इस समय सूयर् मकर राशि
में पर्वेश करता है, इसीिलए इसे मकर सकािनत कहते है। खगोलशािसतयो ने 14 जनवरी को मकर सकर्ािन्त का िदवस
तय कर िलया है। बाकी तो सूयर् का मकर राश िमेंपर्वेश कभी 12 से होता है, कभी 13 से तो कभी 14
तारीख से। ऐसा भी कहते हैं िक इस िदन से सूयर् का रथ उत्तर िदशा की ओर चलता है, अतः इसे
उत्तरायण कहते हैं।
हमारे छः महीने बीतते है तब देवताओं की एक रात होती है और छः महीने का एक िदन। मकर
सकर्ािन्त के िदन देवता लोग भी जागते हैं। हम पर उन देवताओं की कृपा बरसे, इस भाव से भी यह पवर मनाया
जाता है। कहते हैं िक इस िदन यज्ञ में िदये गये दर्व्य को गर्हण करने के िलए वसुंधरा पर देवता
अवतिरत होते हैं। इसी मागर् से पुण्यात्मा पुरूष शरीर छोड़कर स्वगार्िदक लोकों में पर्वेश करते
हैं, इसिलए यह आलोक का अवसर माना गया है। धमरशासतो के अनुसार इस िदन पुणय, दान, जप तथा धािमर्क अनुष्ठानों का
अत्यंत महत्त्व है। इस अवसर पर िदया हुआ दान पुनजर्न्म होने पर सौ गुना होकर पर्ाप्त होता है।
यह पर्ाकृितक उत्सव है, पर्कृित से तालमेल कराने वाला उत्सव है। दिक्षण भारत में तिमल वषर्
की शुरूआत इसी िदन से होती है। वहाँ यह पवर् 'थई पोंगल' के नाम से जाना जाता है। िसंधी लोग इस पवर् को
'ितरमौरी' कहते है। उत्तर भारत में यह पवर् 'मकर सकर्ािन्त के नाम से और गुजरात में 'उत्तरायण'
नाम से जाना जाता है।
आजका िदवसिवशेषपुण्यअिजर्तकरनेका िदवसहै।आजकेिदन िवजी श न े अपनेसाधकोंपर , ऋिषयों पर िवशेष कृपा
की थी। ऐसा भी माना जाता है आज के िदन भगवान िव श न े िवष्णु जी को आत्मज्ञान का दान िदया था।
तैत्तीरीय उपिनषद् में आता हैः बबब बब बबबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबब । देवों का
संवत्सर िगनने का यह एक ही िदन है। िवकर्म संवत्सर के पूवर् इसी िदन से संवत्सर की शुरूआत मानी
जाती थी, कसाभीवणर्आ न ताहै।
मकर सकर्ािन्त के िदन िकये गये सत्कमर् िवशेष फल देते हैं। आज के िदन भगवान िव श को
ितल-चावलअपर्णकरनेका िवशेषमहत्त्वमानागयाहै।ितलका उबटन, ितलिमशि र्त जल से स्नान, ितलिमशि र्त जल का
पान, ितल-हवन, ितल-भोजन तथा ितल-दान सभी पापनाशक पर्योग हैं। इसिलए इस िदन ितल और गुड़ या ितल
और चीनी से बने लडडू खाने तथा दान देने का अपार महततव है। ितल के लडडू खाने से मधुरता और िसनगधता पापत होती है तथा शरीर पुष
होता है। शीतकाल में इनका सेवन लाभपर्द है। महाराष्टर् में आज के िदन एक-दूसरे को ितल-गुड़देकर
मधुरता का, सामथ्यर् का, परस्पर आंतिरक पर्ेमवृिद्ध का और आरोग्यता का संकल्प िकया जाता है। वहाँ
के लोग परस्पर ितल-गुड़पर्दानकरकेकहतेहै -ंबबब बबबब बबबब । बबब बबब बबबबब अथार्त् ितल-गुड़लो
और मीठा-मीठा बोलो।
यह तो हुआ लौिकक रूप से संकर्ांित मनाना िकंतु मकर सकर्ांित का आध्याित्मक तात्पयर् है जीवन
में सम्यक् कर्ािन्त। अपने िचत्त को िवषय िवकारों से हटाकर िनिवर्कारी नारायण में लगाने का और
सम्यक् कर्ांित का संकल्प करने का यह िदन है। अपने जीवन को परमात्म-धयान, परमात्म-ज्ञान और
परमात्म पर्ािप्त की ओर ले जाने संकल्प का बिढ़या से बिढ़या जो िदन है, वही संकर्ांित का िदन है।
मानव सदा ही सुख का प्यासा रहा है। उसे सम्यक् सुख नहीं िमलता है तो अपने को असम्यक् सुख
में खपा-खपा कर कई जन्मों तक जन्मता-मरता रहता है। अतः अपने जीवन में सम्यक् सुख पाने के िलए
पुरूषाथर् करना चािहए। वास्तिवक सुख क्या है ? बबबबबबबब-बबबबबबबब। अतः उस परमात्म-पर्ािप्त
का सुख पाने के िलए किटबद्ध होने का िदवस ही है सकर्ांित। संकर्ांित का पवर् हमें िसखाता है िक
हमारे जीवन में भी सम्यक् कर्ािन्त आ जाये। हमारा जीवन िनभर्यता और पर्ेम से पिरपूणर् हो जाय।
ितल-गुड़का आदान-पर्दान परस्पर पर्ेमवृिद्ध का ही तो द्योतक है !
संकर्ांित के िदन दान का िवशेष महत्त्व है। अतः िजतना संभव हो सके, उतना िकसी गरीब को
अन्नदान करें। ितल के लड्डू भी दान िकये जाते हैं। आज के िदन सत्सािहत्य के दान का भी सुअवसर
पर्ाप्त िकया जा सकता है। तुम यह सब न कर सको तो भी कोई हजर् नहीं िकन्तु हिरनाम का रस तो जरूर
िपलाना। अच्छे में अच्छा तो परमात्मा है। उसका नाम लेते लेते यिद अपने अहं को सदगुरू के
चरणोंमे
, ंसंतों के चरणों में अिपर्त कर दो तो फायदा ही फायदा है।...... और अहंदान से बढकर तो कोई दान नही है।
अगर अपना आपा संतों के चरणों में, सदगुरू के चरणों में दान कर िदया जाय तो िफर चौरासी का चक्कर
सदा के िलए िमट जाय।
संकर्ािन्त के िदन सूयर् का रथ उत्तर की ओर पर्याण करता है। उसी तरह तुम भी इस मकर संकर्ांित
के पवर् पर संकल्प कर लो िक अब हम अपने जीवन को उत्तर की ओर अथार्त् उत्थान की ओर ले
जायेंगे। अपने िवचारों को उत्थान की तरफ मोड़ंगे। यिद ऐसा कर सको तो आज का िदन तुम्हारे िलए
परम मांगिलक िदन हो जायेगा। पहले के जमाने में आज के िदन लोग अपने तुच्छ जीवन को बदलकर
महान बनाने का संकल्प करते थे।
हे साधक ! तू भी आज संकल्प कर िक अपने जीवन में सम्यक् कर्ािन्त-संकर्ांित लाऊँगा। अपनी
तुच्छ, गंदीआदतोंको कुचलदूँगाऔरिदव्यजीवनिबताऊँगा। पर्ितिदनपर्ाथर् नाक रूँगा, जप ध्यान करूँगा, स्वाध्याय करूँगा
और अपने जीवन को महान बनाकर ही रहँूगा। पािणमात के जो परम िहतैषी है, उन परमात्मा की लीला में पर्सन्न रहूँगा।
चाहेमानहोचाहेअपमान, चाहेसुख िमलेचाहेदुःख, िकंतु सबके पीछे देने वाले के करूणामय हाथों को ही
देखूँगा। पर्त्येक पिरिस्थित में सम रहकर अपने जीवन को तेजस्वी-ओजसवी और िदवय बनाने का पयास अवशय
करूँगा।
बबब ब....ब......ब......ब......
अनुकर्म
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सतर् 3
बबबब-बबबबबबबब बबबबबबबब
शासतो मे आता है िक िजसने माता-िपता तथा गुरू का आदर कर िलया उसके द्वारा संपूणर् लोकों का आदर हो
गयाऔरिजसनेइनकाअनादरकरिदयाउसकेसंपूणर् शभु कमर्
िनष्फलहोगये।वेबड़ेहीभाग्यशालीहै ,ंिजन्होंने माता-िपता और
गुरू की सेवाकेमहत्त्वको समझातथाउनकी सेवामेअ ं पनाजीवनसफलिकया। ऐसा हीएकभाग्यशालीसपूत था - पुण्डिलक।
पुण्डिलक अपनी युवावस्था में तीथर्यातर्ा करने के िलए िनकला। यातर्ा करते-करते काशी
पहुँचा। काशी में भगवान िवश् वनाथके दर्शन करने के बाद उसने लोगों से पूछाः क्या यहाँ कोई पहुँचे
हुए महात्मा हैं, िजनके दर्शन करने से हृदय को शांित िमले और ज्ञान पर्ाप्त?हो
लोगो ने कहाः हा है। गंगापर कुकुर मुिन का आशम है। वे पहुँचे हुए आतमजान संत है। वे सदा परोपकार मे लगे रहते है। वे इतनी
उँची कमाई के धनी हैं िक साक्षात माँ गंगा, माँ यमुना और माँ सरस्वती उनके आशर्म में रसोईघर की
सेवा के िलए पर्स्तुत हो जाती हैं। पुण्डिलक के मन में कुक्कुर मुिन से िमलने की िजज्ञासा तीवर् हो
उठी। पता पूछते-पूछते वह पहुँच गया कुक्कुर मुिन के आशर्म में। मुिन के देखकर पुण्डिलक ने मन ही
मन पर्णाम िकया और सत्संग वचन सुने। इसके पश् चातपुण्डिलक मौका पाकर एकांत में मुिन से िमलने
गया। मुिननेपूछाःवत्स! तुम कहाँ से आ रहे हो?
पुण्डिलकः मैं पंढरपुर (महाराष्टर्) से आया हूँ।
तुम्हारे माता-िपता जीिवत हैं?
हाँ हैं।
तुम्हारे गुरू हैं?
हाँ, हमारे गुरू बर्ह्मज्ञानी हैं।
कुक्कुर मुिन रूष्ट होकर बोलेः पुण्डिलक! तू बड़ा मूखर् है। माता-िपता िवद्यमान हैं, बर्ह्मज्ञानी
गुरू हैिफरभीतीथर्
ं करनेकेिलएभटक रहाहै ? अरे पुण्डिलक! मैंने जो कथा सुनी थी उससे तो मेरा जीवन बदल
गया। मैत ंझु ेवहीकथा सुनाताहूँ। तू ध्यानसेसुन।
एक बार भगवान शंकर के यहा उनके दोनो पुतो मे होड लगी िक, कौन बड़ा?
िनणर्य लेने के िलए दोनों गय़े िव क -पावर्ती के पास। िव
श श -पावर्ती ने कहाः जो संपूणर् पृथव
क ् ी
की पिरकर्मा करके पहले पहुँचेगा, उसी का बड़प्पन माना जाएगा।
काितर्केय तुरन्त अपने वाहन मयूर पर िनकल गये पृथव ् ी की पिरकर्मा करने। गणपित जी चुपके-
से एकांत में चले गये। थोड़ी देर शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय िमल गया। जो ध्यान
करते हैं, शात बैठते है उनहे अंतयामी परमातमा सतपेरणा देते है। अतः िकसी किठनाई के समय घबराना नही चािहए बिलक भगवान का
धयान करके थोडी देर शात बैठो तो आपको जलद ही उस समसया का समाधान िमल जायेगा।
िफर गणपित जी आये िशव-पावर्ती के पास। माता-िपता का हाथ पकड़ कर दोनों को ऊँचे आसन पर
िबठाया, पतर्-पुष्प से उनके शर्ीचरणों की पूजा की और पर्दिक्षणा करने लगे। एक चक्कर पूरा हुआ तो
पर्णाम िकया.... दूसरा चक्कर लगाकर पर्णाम िकया.... इस पकार माता-िपता की सात पर्दिक्षणा कर ली।
िशव-पावर्ती ने पूछाः वत्स! ये पर्दिक्षणाएँ क्यों की?
गणपितजीःबबबबबबबबबबबब बबबब... बबबबबबबबबब बबबब... सारी पृथ्वी की पर्दिक्षणा
करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की पर्दिक्षणा करने से हो जाता है, यह शास्तर्वचन है।
िपता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है। िपता देवस्वरूप हैं। अतः आपकी पिरकर्मा
करके मैंने संपूणर् पृथ्वी की सात पिरकर्माएँ कर लीं हैं। तब से गणपित जी पर्थम पूज्य हो गये।
िशव-पुराण में आता हैः
बबबबबबबबब बबबबब बबबबबब बबबबबबबबबबबब ब बबबबब बब। बबबब बब
बबबबबबबबबबबबब बबबब बबबबबबबबब ।
बबबबब बबबब बब बब बबबबब । बबबबबबबबबबबबबबब बबबब बबबब बबब
बबबबबबबब बबबब ।। ब बबबबबबबबबब
बबबबबबबब ब बबबबबबबबबब । बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब बब
बबबब बब बबबबब बबबबबबबबबबबब बबबब।।
बबब बबबबबबबब बबबबबब बबबबब बबबबबबबबबब। बबबबबबबब ब
बबबबबबबबबबबबब बबबबबब ।। बबबब बबबबबबबबबब
जो पुतर् माता-िपता की पूजा करके उनकी पर्दिक्षणा करता है, उसे पृथ्वी-पिरकर्माजिनत फल सुलभ
हो जाता है। जो माता-िपता को घर पर छोड़ कर तीथर्यातर्ा के िलए जाता है, वह माता-िपता की हत्या से
िमलने वाले पाप का भागी होता है क्योंिक पुतर् के िलए माता-िपता के चरण-सरोज ही महान तीथर् हैं।
अन्य तीथर् तो दूर जाने पर पर्ाप्त होते हैं परंतु धमर् का साधनभूत यह तीथर् तो पास में ही सुलभ है।
पुतर् के िलए (माता-िपता) और सती के िलए (पित) सुंदर तीथर् घर में ही िवद्यमान हैं।
(बबब बबबबब, बबबबब बब.. बब बब.. - 20)
पुण्डिलक मैंने यह कथा सुनी और अपने माता-िपता की आज्ञा का पालन िकया। यिद मेरे माता-
िपता में कभी कोई कमी िदखती थी तो मैं उस कमी को अपने जीवन में नहीं लाता था और अपनी शर्द्धा को
भी कम नहीं होने देता था। मेरे माता-िपता पर्सन्न हुए। उनका आशीवार्द मुझ पर बरसा। िफर मुझ पर
मेरे गुरूदेव की कृपा बरसी इसीिलए मेरी बर्ह्मज्ञा में िस्थित हुई और मुझे योग में भी सफलता िमली।
माता-िपता की सेवा के कारण मेरा हृदय भिक्तभाव से भरा है। मुझे िकसी अन्य इष्टदेव की भिक्त करने
की कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी।
बबबबबबबब। बबब । बबबबबबबब। बबबबबबबबबबबब बबब
मंिदर में तो पत्थर की मूितर् में भगवान की कामना की जाती है जबिक माता-िपता तथा गुरद ू ेव में
तो सचमुच परमात्मदेव हैं, ऐसामानकरमैंने उनकीपर्सन्नपर्
तााप्की।
त िफरतोमुझन
े वषोर्
तक , न ही अन्य
ं तपकरनापड़ा
िविध-िवधानों की कोई मेहनत करनी पड़ी। तुझे भी पता है िक यहाँ के रसोईघर में स्वयं गंगा-यमुना-
सरस्वती आती हैं। तीथर् भी बर्ह्मज्ञानी के द्वार पर पावन होने के िलए आते हैं। ऐसा बर्ह्मज्ञान
माता-िपता की सेवा और बर्ह्मज्ञानी गुरू की कृपा से मुझे िमला है।
पुण्डिलक तेरे माता-िपता जीिवत हैं और तू तीथोर्ं में भटक रहा है?
पुण्डिलक को अपनी गल्ती का एहसास हुआ। उसने कुक्कुर मुिन को पर्णाम िकया और पंढरपुर आकर
माता-िपता की सेवा में लग गया।
माता-िपता की सेवा ही उसने पर्भु की सेवा मान ली। माता-िपता के पर्ित उसकी सेवािनष्ठा
देखकर भगवान नारायण बड़े पर्सन्न हुए और स्वयं उसके समक्ष पर्कट हुए। पुण्डिलक उस समय माता-
िपता की सेवा में व्यस्त था। उसने भगवान को बैठने के िलए एक ईंट दी।
अभी भी पंढरपुर में पुण्डिलक की दी हुई ईंट पर भगवान िवष्णु खड़े हैं और पुण्डिलक की मातृ-
िपतृभिक्त की खबर दे रहा है पंढरपुर तीथर्।
यह भी देखा गया है िक िजन्होंने अपने माता-िपता तथा बर्ह्मज्ञानी गुरू को िरझा िलया है, वे
भगवान के तुल्य पूजे जाते हैं। उनको िरझाने के िलए पूरी दुिनया लालाियत रहती है। वे मातृ-
िपतृभिक्त से और गुरूभिक्त से इतने महान हो जाते हैं।
जो माता-िपता, स्वजन, पित आिद सत्संग या भगवान के रास्ते, ईश् वरकेरास्तेजानेसेरोकतेहैतं ोउनकी बात
नहीं माननी चािहए। जैसे, मीरा ने पित की बात ठुकरा दी और पर्ह्लाद ने िपता की।
गोस्वामीजीकेवचनहैिंकः
बबबब बबबबब ब बबब बबबबबब, बबबब बबबब बबबब बबबब बब, बबबबबब बबब
बबबबब।
भागवत में भी कहा हैः
बबबबबबब ब बबबबबबबबबबबब ब ब बबबबबब बबबब ब ब बबबबबबबबबब ब बब
बबबबबब।
बबबब ब बबबबबबबबबब बबबबबब ब बबबबबबब बबबबबबबबब
बबबबबबबबबबबबबब।।
'जो अपने िपर्य सम्बन्धी को भगवद् भिक्त का उपदेश देकर मृत्यु की फाँसी से नहीं छुड़ाता, वह
, स्वजन स्वजन नहीं है, िपता िपता नहीं है, माता माता नहीं है, इषदेव इषदेव नही है और पित पित नही
गुरू नहींहै
है।'
(शीमद् भागवतः 5.5.18)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबब बबबब बब बब बबबबबब बबब बबब बब
गुरू गोिवन्दिसंहका िष्य
श क न्हैया युद्धकेमैदानमेप ं ानीकी प्याऊलगाकरसभीसैिनकोंको पानीिपलाताथा। कभी -कभी
मुगलों के सैिनक भी आ जाते थे पानी पीने के िलए।
यह देखकर िसक्खों ने गुरू गोिवन्दिसंह से कहाः "गुरज ू ी! यह कन्हैया अपने सैिनकों को तो जल
िपलाता ही है िकन्तु दुश् मनसैिनकों को भी िपलाता है। दुश् मनोंको तो तड़पने देना चािहए न ?"
गुरू गोिवन्दिसंहनेकन्हैयाको बुलाकरपूछाः"क्यों भाई ! दुश् मनोंको भी पानी िपलाता है ? अपनी ही फौज को
पानी िपलाना चािहए न ?"
कन्हैयाः "गुरू जी! जब से आपकी कृपा हुई है तब से मुझे सबमें आपका ही स्वरूप िदखता है।
अपने-पराये सबमें मुझे तो गुरूदेव ही लीला करते नजर आते हैं। मैं अपने गुरूदेव को देखकर
कैसे इन्कार करूँ ?"
तब गुरू गोिवन्दिसंह ने कहाः "सैिनकों ! कन्हैया ने िजतना मुझे समझा है, इतना मुझे िकसी ने नही
समझा। कन्हैया को अपना काम करने दो।"
िजन्हें परमात्मतत्त्व का, गुरत ू त्त्वका बोधहोजाताहै , उनके िचत्त से शतर्ुता, घृणा, ग्लािन
, भय, शोक,
पर्लोभन, लोलुपता, अपना-पराया आिद की सत्यता, ये सब िवदा हो जाते हैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 4
बबबब बब बबबबबबबबबबबब बबबबब बबबबब बब
बबबबबबब
वत्तर्मान समय में अंगर्ेजी भाषा का पर्चलन इस कदर हमारे बीच में फैल गया िक हमारी
संस्कृित का दम घुट रहा है और हमें पता ही नहीं िक हमारे बोलने से, खाने पीने से, उठने बैठने
से और परस्पर व्यवहार से आज अंगर्जीयत की बू आती है। इसमें अंगर्ेजी भाषा तो इस पर्कार छा गई
है िक उसके िबना कोई काम ही नहीं होता ! पाश् चात्य िक्श षपा द्धित ने हमको हमारी भारतीय संस्कृित से
कोसों दूर लाकर खड़ा कर िदया है। अंगर्ेजों के द्वारा लायी गयी इस िक् श षपा द्धित के पीछे हमारा
िकतना बड़ा पतन िछपा है इसको हमने जानने की कभी कोश श ि ही नहीं की।
अंगर्ेजों का 1858 में 'इंिडयन एजुकेशन एकट' बनाने के पीछे लाडर् मैकाले की िकतनी िघनौनी
योजना थी, उससे हम अपिरिचत तो नहीं हैं, िफर भी हमने कभी इस ओर धयान देने की जररत ही नही समझी। लाडर मैकाले
कहा करता थाः 'यिद इस देश को हमेशा के िलए गुलाम बनाना चाहते हो तो िहन्दुस्तान की स्वदेशी िक् श षा
कककक
पद्धित को समाप्त कर उसके स्थान पर अंगर्जी िक् श षपा द्धित लाओ। िफर इस देश में शरीर से तो
िहन्दुस्तानी लेिकन िदमाग से अंगर्ेज पैदा होंगे। जब वे लोग इस देश के िवश् विवद्यालयसे
िनकलकर शासन करेंगे तो वह शासन हमारे िहत में होगा।' यह थी लाडर् मैकाले की िक् श षपा द्धित।
परंतु हम समझते हैं िक इसी पद्धित से हम आगे बढ़े हैं लेिकन वास्तव में आगे बढ़ने का िदखावा
मातर् करते हुए आज हम इतने पीछे चले गये िक हम कहाँ से चले थे वह स्थान ही भूल गये।
मैकाले का वह िघनौना षडयंतर् आज हम सबके सामने अपनी जड़ें फैला रहा है और हम उसे
खाद पानी देते जा रहे हैं। आज िवद्यालयों में फैल रही अनैितकता, अपराधीकरण तथा िवद्यािथर्यों
के मानिसक असंतुलन का कारण यही लाडर् मैकाले की िक् श षपा द्धित है िजसने िहन्दुस्तान को काले
अंगर्ेजों का देश बनाने में लगभग सफलता हािसल कर ली है। आज के िहन्दुस्तान को काले
अंगर्ेजों का देश बनाने में लगभग सफलता हािसल कर ली है। आज के िहन्दुस्तान को कोई देखे तो
यह अनुमान नहीं लगा सकता िक इस देश में कभी शर्ीकृष्ण, शीराम व युिधिषर जैसे महान राजाओं को जनम देने वाली
गुरूकलु िक्
शषाप द्धित रहीहोगी।
गाँधीजीव स्वामीिववेकानन्दकेजीवनको अगरदेखे तोम
ं ैकालेिक्शषाप द्धित की असिलयतसाफनजरआतीहै।मैकाले पद्धितसे
ऊँ ची िशक ाप ापतकर के भी जब अपने जीवन को नीरसजाना तो गा धीजी ने भारतीयशासत ोव िव वे कानं दजीने सदग ुर की शरण ली तथा
अंगर्ेजों की इस पद्धित का जोरदार िवरोध िकया और अपने पूरे जीवन को अंगर्िजयत के िखलाफ
संगर्ाम करने में लगा िदया।
इिनडयन ऐजुकेशन नाम का यह एकट िजसे हम अपनी भारतीय संसकृित पर बदनुमा दाग भी कह सकते है को 1858 में
अंगर्ेजी सरकार ने लागू िकया। इसके बाद कलकत्ता, मुंबई तथा मदर्ास िवश् विवद्यालयकी स्थापना हुई।
इनमे जो कानून 1858 में चलता था वही आज भी चलता है। ये तीनों िवश् विवद्यालयहमारी गुलामी के
पर्तीक के रूप में इस देश में खड़े हैं और हमको इन िवश् विवद्यालयोंमें पढ़ने का अिभमान होता
है। िकतनी गुलामी भर गयी है हमारे जीवन में ! अगर अपने जीवन को टटोलकर देखें तो हम आज भी
वही गुलामी की िजन्दगी जी रहे हैं जो 50 वषर् पहले जी रहे थे। हम भले अपने आपको िकतना भी
आगेबढ़ाहुआसमझनेका ढोंगकरतेहोंिकन्तु यिदठीक सेदेख,ेंस्वतंतर्ता की दृिष्ट से देखें तो हम अब वहाँ भी नहीं
हैं जहाँ हम पहले थे। हम उससे भी लाखों कोस पीछे जा चुके हैं। हम आज 50 वषर् पुरानी गुलामी से
भी बदतर गुलामी का जीवन जी रहे हैं। क्योंिक 50 वषर् पहले अंगर्ेजों ने गोिलयों के बल से हमारे
शरीर को गुलाम बनाया था लेिकन आज हम सवेचछा से अपने मन व समपूणर जीवन को अंगेिजयत का गुलाम बना चुके है।
इस गंभीर िसथित मे हमे चािहए िक हम अपनी मधुर व िहतभरी सवदेशी भाषा का इसतेमाल करे। अपने गुरओं के दारा चलायी गयी
गुरूकल ु पद्धितद्वाराभारतीयसंस्कृितकेउच्चसंस्कारोंसेिवद्याथीर्
केजीवनको िसंिचतकर उसेमहानएवंतेजस्वीनागिरकबनायें।उसे
गुलामनहींवरन्स्वतंतर् देशका सम्मानीयस्वतंतर्
पुरष
ू बनायेिजसस
ं ेहमअपनेदेशकेखोयेगौरवको पुनःपर्ाप्तकर सकें।हमअपनेबच्चों
को अपनी राष्टर्भाषा, मातृभाषा का पर्योग िसखाएँ। उन्हें पाश् चात्यसंस्कृित के मोहजाल में फँसने
से बचाएँ। उन्हें कान्वेंट स्कूलों में न पढ़कर भारतीय पद्धित के अनुसार गुरूओं की पद्धित द्वारा
जैसे िववेकानन्द महान बने उस पद्धित द्वारा संयम और सदाचार का जीवन जीना िसखाएँ तािक उनके
द्वारा भी हमें हजारों िववेकानंद, रामतीथर्, रामकृष्ण, गुरन ू ानकजैसे रत्नपर्ाप्तहोसकेव
ं अपनीमातृभूिमकेगौरवको
चारचाँदलगासकें।
अनुकर्म
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बबबबबब बबबबबबबब बब बबबबब बब बबबबबब
बबबबबब बबबबबबबबब
आजसे104 वषर् पूवर् सन् 1893 में िकागो शम ें जब िवश् वधमर्पिरषद
(World
Religious Parliament) का आयोजन हुआ था तब भारत के धमर्पर्ितिनिध के रूप में
स्वामी िववेकानंद वहाँ गये थे। िवश् वधमर्पिरषद वाले मानते थे िक ये तो भारत
के कोई मामूली साधू हैं। इन्हें तो पर्वचन के िलए पाँच िमनट भी देंगे तो भी
शायद कुछ नही बोल पाएँगे....
उन्होंने स्वामी िववेकानंद के पर्ित उपेक्षापूणर् व्यवहार िकया और उनका
मखौल उड़ाते हुए कहाः "सब धमर्गर्न्थों में आपका गर्ंथ सबसे नीचे है, अतः
आपशन ू ्यपरबोलें।"
पर्वचन की शुरूआत में स्वामी िववेकानंद द्वारा िकये गये उदबोधन 'मेरे प्यारे अमेिरका के
भाइयों और बहनों !' को सुनते ही शर्ोताओं में इतना उल्लास छा गया िक दो िमनट तक तो तािलयों की
गड़गड़ाहटहीगूँजतीरही। तत्पशच
् ातस्वामीिववेकानंदनेमानोिसंहगजर्
नाकरतेहुएकहाः
"हमारा धमर्गर्ंथ सबसे नीचे है। उसका अथर् यह नहीं है िक वह सबसे छोटा है अिपतु सबकी
संस्कृित का मूलरूप, सब धमोर्ं का आधार हमारा धमर्गर्ंथ ही है। यिद मैं उस धमर्गर्ंथ को हटा लूँ तो
आपकेसभीगर्ंथिगरजाएँगे।भारतीयसंस्कृितहीमहानहैतथासवर् संस्कृितयोंका आधारहै।बबबब.... बबबब.... करते हुए
वेद िजसका वणर्न करने में अपनी असमथर्ता पर्कट करते है उस चैतन्य तत्त्व का ज्ञान पाना यही
भारत की आध्याित्मक संस्कृित का बीज मंतर् है और इसीिलए भारतीय संस्कृित िवश् वमें सवोर्च्च है,
सवोर्पिर है।"
िहंदू धमर् को ऊपर-ऊपर से देखकर टीका करने वालो के समक गंभीरता एवं सामथयर से सचचाई पेश करने मे उनहोने कीितर-
अपकीितर् के पर्श् नकी परवाह नहीं की। पिरषद में अपने पर्वचन के दौरान उन्होंने सभा को ललकारते
हुए कहाः
"िजन्होंने स्वयं िहंदू धमर् के शास्तर् पढ़कर, इस धमर का जान पापत िकया हो – ऐसे लोग हाथ ऊपर उठाये।"
......और उस िवशाल सभा मे िकतने हाथ ऊपर उठे ? बस, केवल तीन-चार। देश-िवदेश के धमार्ध्यक्ष एवं
सरकारी पुरूषों की सभा में िहंदू धमर् का ज्ञान रखने वाले केवल तीन-चारव्यिक्तहीथे।
तत्त्पश् चात्सभाजनों पर मधुर कटाक्ष करते हुए िववेकानन्द ने कहाः
".....और इसके बावजूद भी आप हमारा मूलयाकन करने की धृषता कर रहे हो ?"
उस धमर्पिरषद में िववेकानंद को पर्वचन के िलए पाँच िमनट देने में भी िजन्हें तकलीफ
होती थी, वे ही आयोजक उनके पर्वचनों के िलए शर्ोताओं की ओर से पर्ाप्त सम्मान को देखकर िवमूढ़
हो रहे थे।
िवश् वधमर्पिरषदके िवज्ञान शाखा के ऑनरेबल मेरिवन-मेरी-स्नेल ने िलखा हैः "धमरपिरषद पर
एवं अिधकाश अमेिरकन लोगो पर िहनदू धमर ने िजतना पभाव अंिकत िकया उतना अनय िकसी धमर ने अंिकत नही िकया।"
ऐसीमहानसंस्कृिए तवंधमर्की सुरक्षकरने
ा की बजायहमपशि ्चकी म संस्कृिकत ा अंधानुकरण करनेसेमुक्तनहीं
होरहेहैं
यह
हमारे समाज और देश के िलए िकतनी शमर्जनक बात है !
अनुकर्म
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सतर् 5
बबबबबबब बब बबबबबब बबबब
मागर्रेट नोबल आयरलैण्ड की एक मिहला थी जो बाद में स्वामी िववेकानन्द की िष् शयबा नी और
भिगनी िनवेिदता के नाम से पर्िसद्ध हुई।
िमदनापुर में स्वामी जी का भाषण चल रहा था। सब मंतर्मुग्ध होकर सुन रहे थे। कुछ युवकों ने
हषर् से 'िहप-िहप-हुरेर्.....' का उदघोष िकया।
इस पर सवामी जी ने भाषण बीच मे रोककर उनहे डाटते हुए कहाः "चुप रहो। लज्जाआनीचािहएतुम्हें।क्यातुम्हेअपनीभाषाका

तिनक भी गवर् नहीं ? क्या तुम्हारे िपता अंगर्ेज थे ? क्या तुम्हारी माँ गोरी चमड़ी की यूरोिपयन थी ?
अंगर्ेजों की नकल क्या तुम्हें शोभा देती है ?"
यह सुनकर युवक स्तब्ध रह गये। सबके िसर झुक गये। िफर भिगनी िनवेिदता ने कहा िकः "भाषण की
कोई बात अच्छी लगे तो स्वभाषा में बोला करो। सिच्चदानंद परमात्मा की जय..... भारत माता की जय....
सदगुरू की जय......" युवकों ने तत्काल उस िनदर्श का पालन िकया।
भारत में पर्ाचीन काल से ही पर्सन्नता के ऐसे अवसरों पर 'साधो-साधो' कहने की पर्था थी जो
पाश् चात्यसंस्कृित के अंधानुकरण से लुप्त हो गयी। अंगर्ेज तो चले गये, पर अंगर्ेजी नहीं गई।
अंगर्ेजों की गुलामी से तो मुक्त हुए, पर अंगर्ेजी के गुलाम हो गये।
अतः स्वतंतर् भारत के परतंतर् नागिरकों से िनवेदन है िक वे भिगनी िनवेिदता के वचनों को
याद रखें, स्वभाषा का पर्योग करें।
अनुकर्म
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'बबब-बबबब' बब बबबबब बब बबबबब ब बबबब......
हमारी सनातन संस्कृित में माता-िपता तथा गुरूजनों को िनत्य चरणस्पर्शक रके पर्णाम करने का
िवधान है। चरणस्पर्शक रके पर्णाम न कर सकें तो दोनों हाथ जोड़कर ही नमस्कार करें। कन्याओं को
तो िकसी भी पुरूष के पैर छूकर पर्णाम करना ही नहीं चािहए। शास्तर्ों में आता हैः
बबबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबबबबबबबब। बबबबबबब बबबब
बबबबबबबबबब बबबबबबबबबबब।। बबब बबबबबब
'जो नमर्ताशील हैं तथा िनत्य बड़ों की सेवा करता है उसके आयु, िवद्या, यश एवं बल ये चारों
बढ़ते हैं।'
हमारी संस्कृित में अिभवादन करना 'गुड मािनर्
ं'ग
, 'गुड इविनंग
' अथवा 'हेलो-हाय' की भाँित एक िनरथर्क
व्यापार नहीं है िजसमें लाभ तो कुछ होता नहीं अिपतु व्यथर् की वाणी नष्ट होती है और चंचलता आती
है। मनु आिद महिषर्यों ने हमारी संस्कृित की अिभवादन पद्धित के चार लाभ बताये हैं – आयुवृिद्ध,
िवद्यावृिद्ध, यशवृिद्ध एवं बलवृिद्ध। यही चार वस्तुएँ धमर्, अथर्, काम और मोक्ष के िलए आवश् यकहैं।
अथार्त् बड़ों के चरणस्पर्शक रने से पुरष ू ाथर् चातुष्टय साधने में सहायता िमलती है।
यह मातर् कल्पना नहीं अिपतु एक ऐसा कठोर सत्य है िजसे स्वीकार करने के िलए आज का िवज्ञान
भी मजबूर हो गया है।
पर्त्येक मनुष्य के शरीर में धनात्मक एवं ऋणात्मक िवद्युतधारायें सतत पर्वािहत होती रहती
हैं। शरीर के दायें भाग में धनात्मक एवं बायें िहस्से में ऋणात्मक िवद्युतधाराओं की अिधकता
होती है।
इस िसदानत को हम पकाघात रोग के दारा भी समझ सकते है। इस रोग मे वयिकत के शरीर का एक िहससा जड हो जाता है जबिक
दूसरा िहस्सा पूवर्वत् िकर्याशील बना रहता है। अतः मानव शरीर एक होने के बावजूद भी उसके दो िहस्सों
में दो अलग-अलग पर्कार की िवद्युतधारायें बहती रहती हैं।
जब हम माता-िपता तथा गुरूजनों को पर्णाम करते हैं तो स्वाभािवक रूप से हमारे दायें-बायें
अंग उनके दायें-बायें अंगों से िवपरीत होते हैं। जब हम अपनी ऋिषपरम्परा के अनुसार अपने
हाथों से चौकड़ी (X) का िचन्ह बनाते हुए अपने दायें हाथ से उनका दायाँ चरण तथा बायें हाथ से
बायाँ चरण छूते हैं तो हमारे तथा उनके शरीर की धनात्मक एवं ऋणात्मक िवद्युतधाराएँ आपस में िमल
जाती हैं िजसे वैज्ञािनक लोग औरा (Aura) बोलते हैं।
इसके बाद जब वे आदरणीय पणाम करने वाले के िसर, कंधों अथवा पीठ पर अपना हाथ रखते हैं तो इस िस्थित
में दोनों शरीरों में बहने वाली िवद्युत का एक आवतर् (वलय) बन जाता है। आज कल िवश िष्टपर्कार के
कैमरा िनकले हैं जो उस तेजोवलय का िचतर् भी खींचते हैं।
यहाँ पर यह बताना भी आवश् यकहोगा िक ये िवद्युतधाराएँ मातर् शरीर में ही नहीं बहती हैं अिपतु
इनकी सूकम तरंगे शरीर के रोमकूपो तथा नुकीले मागों से बाहर भी िनकलती है। इनही तरंगो को हमारे ऋिषयो ने 'तेजोवलय' का नाम
िदया है।
शरीर दारा होने वाली चेषाओं का मूल केनद मिसतषक है। िकसी भी कायर दारा िनणरय करने के पशात उसकी आजानुसार शरीर के
सभी अंग अपना-अपना कायर् करते हैं। मिस्तष्क के िवचारों के पूरे शरीर तक पहुँचाने में इस
िवद्युतशिक्त का बड़ा योगदान होता है। नारी अपने मस्तक पर भर्ूमध्य में ितलक करे। कन्याओं के िलए
भी ितलक आत्मबलवधर्क है।
मनोिवज्ञान के अनुसार जब कोई व्यिक्त कर्ोध अथवा िकसी बुरे िवचार से उिद्वग्न होता है तो
उसके शरीर से िनकलने वाले िवद्युत कणों के सम्पकर् में आने वाला दूसरा व्यिक्त भी उिद्वग्न सा हो
जाता है। वह उसके नजदीक नहीं रहना चाहता या अपनी सामान्य मनःिस्थित से िवचिलत हो जाता है।
कहने का तात्पयर् है िक हमारे मिस्तष्क के िवचार िवद्युतशिक्त के द्वारा शरीर में फैलते हैं
तथा यही िवद्युतशिक्त जब तेजोवलय के रूप में शरीर से बाहर िनकलती है तो उसमें उन िवचारों का
समावेश भी होता है इसीिलए उसके तेजोवलय के सम्पकर् में आनेवाले व्यिक्त को भी उसके िवचार
पर्भािवत कर देते हैं।
जब हम अपने आदरणीय जनों के चरण स्पर्शक रते हैं तो हमारे मिस्तष्क में पर्सन्नता के
साथ-साथ उनके पर्ित आदर, सम्मान एवं कृतज्ञता के िवचार उत्पन्न होते हैं। जब दोनों की
िवद्युतधाराएँ आपस में िमलती हैं तो दोनों में भावनाओं का आदान पर्दान होता है। इस पर्कार
आदरणीयजनोंकी ऊँचीभावनायेजबिवद् ं युततरंगोंकेमाध्यमसेहमारेमिस्तष्कतक पहुँचतीहैतोवहअपनीगर्हणशीलपर्कृितकेअनुसार
उन्हें संस्कारों के रूप में संिचत कर लेता है। ये संस्कार ही मनुष्य को उत्थान अथवा पतन की ओर
ले जाते है।
इस िसदानत का एक वयावहािरक उदाहरण है िक जब एक वयिकत परदेश से आकर अपने िमतो से िमलता है तो वह पसन होकर
हँसी-मजाक करता है। परन्तु जैसे ही वह अपने माता िपता एवं गुरूजनों को पर्णाम करता है उसके
िवचार स्वाभािवक ही गम्भीर हो जाते हैं। उसके मिस्तष्क में उन्नत होने के कुछ िवचार उत्पन्न होते
हैं।
जैसे जले हुए दीपक के संपकर् में आने पर दूसरा दीपक भी उसके पर्काश आिद समस्त गुणों को
गर्हणकर लेताहैपरन्तुइससेउस जलेहुएदीपकको कुछ हािननहींहोती, इसी पकार गुरजनो के दैवी गुण पणाम-पद्धित के अनुसार
पर्णामकतार् में आ जाते हैं परन्तु पर्णम्य गुरूजनों की शिक्त में इससे कोई कमी नहीं होती।
साधारण सी िदखने वाली हमारी अिभवादन-पद्धित में हमारे ऋिषयों ने िकतनी महान उन्नित
संजोयी है परन्तु उन्हीं ऋिषयों की हम सन्तानें पशि ्चमवािसयों का अंधानुकरण करके'हाय-हेलो'
कहकर अपने आदरणीयजनों की जीवनशैली एवं महान पूवर्जों का अपमान करते हैं।
िजससे हमारा जीवन ऊध्वर्गामी एवं महान बने ऐसी सनातन अिभवादन पद्धित को छोड़कर 'गुड-
मािनर्ंग' अथवा 'हाय-हेलो' कहना कौवे की काँव-काँव तथा तोते की टें-टे से िकसी भी पकार भी बडा नही है।
अनुकर्म
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सतर् 6
बबबबबबब बब बबबबब
मतंग ऋिष अपनी एकागर्ता से, तप से, योग से, िवद्या से, शासतजान से ऋिष-मुिनयों के जगत में
सुपर्िसद्ध थे। शबरी ने उन्हें गुरू मानकर उनके आशर्म में तप िकया था। उनके आशर्म में दूर-दूर से
भक्त आकर एकांतवास का लाभ लेते थे। मतंग ऋिष के आशर्म बािरश के आने से पहले ही इंधन
एकितत कर िदया जाता था, परंतु एक वषर् ऐसा आया िक इंधन एकितर्त करने वाले साधक नहीं आये और िकसी
को याद नहीं रहा। मतंग ऋिष को याद आया िक वह टुकड़ी तो नहीं आयी जो इंधन एकितर्त करती थी। मतंग
ऋिष ने उठाया कुल्हाड़ा। कौन जाने कब बािरश आ जाये? वे लकिड़याँ इकट्ठी करने के िलए जंगल की
ओर चल पडे। उनका कुलाडा उठाना था िक सब साधक अपना-अपना साधन छोड़कर गुरू के पीछे हो िलये। वे सब
दोपहर तक लकिड़याँ काटते रहे। अपने-अपने बल के अनुसार लकिड़यों का एक गट्ठर उठाया। साधकों
ने भी अपने-अपने बल के अनुसार लकिड़यों के गट्ठर उठा िलये। नीचे धरती तवे जैसी तपी हुई थी
और ऊपर भगवान भासकर ! गिमर् योक
ं ेआिखरीिदनथे, बािरश आने सा समय था, साधकों का शरीर पसीने से तरबतर हो
रहा था। पसीने की बूँदें टपक टपककर जमीन पर िगर रही थीं। कैसे भी करके सब आशर्म में पहुँचे
और सनानािद करके अपना-अपना िनत्य िनयम िकया।
चार-छः िद न बीत े । मतं ग ऋिष सरोव र पर स नान करन े गय े तो द े ख ा िक बड ी सु गं ध आ रही ह ै !
मगर सुगंध कहां से आ रही है?
"देखो जरा, हवा में ऐसी जोरदार सुगंध कहाँ से आ रही है?"
िशषयो ने पता लगाकर बताया िक "चार-छः िद न पहल े हम लकिड य ा ल े क र िज स रा स त े स े आ रह े थ े , उस
रास्ते पर जहाँ-जहाँ हमारे पसीने की बूँदे िगरीं, वहाँ-वहाँ फूलों के पौधे उग गये हैं और उन
फूलो की महक पूरे वातावरण को महका रही है।
जब साधक के पसीने की बूँदें कहीं िगरती हैं तो वह पुष्पवािटका बन जाती है तो ऐसा साधक
अपनी योग्यता तुच्छ बातों में और राग-द्वेष के वातावरण में न खपाकर मेहनती हो जाय, एकाग हो जाय तो
उसकी योग्यता और अिधक िनखरती है। एकागर्ता के कई योग्यताएँ िवकिसत होती है। तुम्हारे उस
सिच्चदानंदघन परबर्ह्म परमात्मा में तो अनुपम रस से भरा है। तुम्हारे अंदर सबको रस देने वाला
रसस्वरूप परमात्मा है, िचत्तकीिवषमताकेकारणउस रसदेनेवालारसस्वरूप परमात्माहै , िचत्तकीिवषमताकेकारणउस रसका
अनुभव नहीं होता।
अतः िवषमता िमटाने और समता के िसंहासन पर पहुँचाने वाले सत्संग साधन स्मरण में
तत्परता से लग जायें।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबब बब बबबब बबब बबबब बबबब
संतों ने ठीक ही कहा हैः
बबबब बबबब बब बबबब, बबब बबबब । बबबब बबबबबबबब बबबबब बबबब बब , बबबब
बबबबब।। बबबब
'सत्य के समान कोई तप नहीं है एवं झूठ के समान कोई पाप नहीं है। िजसके हृदय में सच्चाई
है, उसके हृदय में स्वयं परमात्मा िनवास करते हैं।'
गोस्वामीतुलसीदासजीनेभीकहाहैःबबब ब बबबबब बबबब बबबबब।
सत्य के समान दूसरा कोई धमर् नहीं है।
मोहनदास कमर्चन्द गांधी ने अपने िवद्याथीर् काल में सत्यवादी राजा हिरश् चन्दर्नामक नाटक
देखा। उनके जीवन पर इसका इतना पर्भाव पड़ा िक उन्होंने दृढ़ िनणर्य कर िलयाः 'कुछ भी हो जाय, मैं
सदैव सत्य ही बोलूँगा।
उन्होंने सत्य को ही अपना जीवनमंतर् बना िलया।
एक बार पाठशाला मे खेलकूद का कायरकम चल रहा था। उनकी खेलकूद मे रिच नही थी, अतः
उपिस्थित देने के िलए वे जरा देर से आये। देर से आया देखकर िक् श षनक े पूछाः
"इतनी देर से कयो आये ?"
मोहनलालः "खेलकूद में मेरी रूिच नहीं है और घर पर थोड़ा काम भी था, इसिलए
देर से आया।"
िशककः "तुम्हें एक आने का अथर्दण्ड देना पड़ेगा।"
दण्ड सुनकर मोहनलाल रोने लगे। िक् श षनक े उन्हें रोते देखकर कहाः
"तुम्हारे िपता करमचंद गाँधी तो धनवान आदमी हैं। एक आना दण्ड के िलए क्यों रोते हो ?"
मोहनलालः "एक आने के िलए नही रोता िकनतु मैने आपको सच-सच बता िदया, िफर भी आप मुझ पर िवशास नही करते।
मैंने बहाना नहीं बनाया है, िफर भी आपको मेरी बात पर िवशास नही होता इसीिलए मुझे रोना आ गया।"
मोहनलाल की सच्चाई देखकर िक् श षनक े उन्हें माफ कर िदया। ये ही िवद्याथीर् मोहन लाल आगे
चलकरमहात्मागाँधीकेरूप मेक ं रोड़ों
-करोड़ों लोगों के िदलों-िदमाग पर छा गये।
एक बार सकूल मे िवदािथरयो के अंगेजी जान की परीका के िलए िशका िवभाग के कुछ अंगेज इनसपैकटर आये हुए थे। उनहोने कका
के समस्त िवद्यािथर्यों को एक-एक कर पाच शबद िलखवाये। अचानक कका के अधयापक ने एक बालक की कापी देखी िजसमे
एक शबद गलत िलखा था। अधयापक ने उस बालक को अपना पैर छुआकर इशारा िकया िक वह पास के लडके की कापी से अपना गलत
शबद ठीक कर ले। ऐसे ही उनहोने दूसरे बालको को भी इशारा करके समझा िदया और सबने अपने शबद ठीक कर िलये, पर उस बालक
ने कुछ न िकया।
इनसपैकटरो के चले जाने पर अधयापक ने भरी कका मे उसे डाटा और िझडकते हुए कहा िक इशारा करने पर भी अपना शबद ठीक
नहीं िकया ? िकतना मूखर् है !
इस पर बालक ने कहाः "अपने अज्ञान पर पदार् डालकर दूसरे की नकल करना सच्चाई नहीं है।"
अध्यापकः "तुमने सत्य का वर्त कब िलया और कैसे िलया ?"
बालक ने उत्तर िदयाः "राजा हिरश् चन्दर्के नाटक को देखकर, िजन्होंने सत्य की रक्षा के िलए
अपनी पत्नी, पुतर् और स्वयं को बेचकर अपार कष्ट सहते हुए भी सत्य की रक्षा की थी।"
तब िमतर्गण बोल उठेः "भाई ! नाटक तो नाटक होता है। उसमें पर्दशि र् त िकसी आदर्शस े बँधकर
उसे जीवन में घटाना ठीक नहीं।"
इस पर बालक ने कहाः "कसान कहोिमतर् ! पक्के इरादे से सब कुछ हो सकता है। मैंने उसी नाटक को
देखकर जीवन में सत्य पर चलने का िनश् चयिकया है। अतः मैं सत्य की अपनी टेक कैसे छोड़ दूँ ?"
यह बालक कोई ओर नहीं बिल्क मोहनलाल करमचन्द गाँधी ही थे।
सत्य के आचरण से अंतयार्मी ईश् वरपर्सन्न होते हैं, सत्यिनष्ठा दृढ़ होती है एवं हृदय में
ईश् वरीयिक्
श तपर्गटहोजातीहै।सत्यिनष्ठव्यिक्तकेसामनेिफरचाहेकैसीभीिवपित्त आ जाय, वह सत्य का त्याग नहीं करता।
बब बबबब बबबब बबबबब बब, बबबब-बबबब बब । बब बबबबबबब बबबब बब बब बबब
बबब, बबबबबब बबबब बब बबबब ?
सत्य का आचरण करने वाला िनभर्य रहता है। उसका आत्मबल बढ़ता है। असत्य से सत्य
अनंतगुना बलनान है। जो बात बात में झूठ बोल देते है, उनका िवश् वासकोई नहीं करता है। िफर एक झूठ
को िछपाने के िलए सौ बार झूठ भी बोलना पड़ता है। अतः इन सब बातों से बचने के िलए पहले से ही
सत्य का आचरण करना चािहए। सत्य का आचरण करने वाला सदैव सबका िपर्य हो जाता है। शास्तर्ों में
भी आता हैः बबबबब । बबब।बबबबबब बबब
सत्य बोलो। धमर् का आचरण करो। जीवन की वािस्तवक उन्नित सत्य में ही िनिहत है।
अनुकर्म
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सतर् 7
बबबबबब बब बबबबबब बबबबबबब
नरकेसरी वीर िवाजी श आ जीवन अपनी मातृभूिम भारत की स्वतन्तर्ता के िलए लड़ते रहे। वे न तो
स्वयं कभी पर्मादी हुए और न ही उन्होंने दुश् मनोंको चैन से सोने िदया। वे कुशल राजनीितज्ञ तो थे ही
साथ ही उनका बुिद्ध चातुयर् भी अदभुत था। वीरता के साथ िवद्वता का संगम यश देने वाला होता है।
िशवाजी के जीवन मे कई ऐसे पसंग आये िजनमे उनके इन गुणो का संगम देखने को िमला। इसमे से एक मुखय पसंग है –
आिदलशाहकेसेनापितअफजलखाँकेिवनाश का।
िशवाजी के साथ युद करके उनहे जीिवत पकड लेने के उदेशय से इस खान सरदार ने बहुत बडी सेना को साथ मे िलया था। तीन
साल चले इतनी युद्ध-सामगर्ी लेकर वह बीजापुर से िनकला था। इतनी िवशाल सेना के सामने टक्कर
लेने हेतु िशवाजी के पास इतना बडा सैनय बल न था।
िशवाजी ने खान के पास संदेश िभजवायाः
'मुझे आपके साथ नहीं लड़ना है। मेरे व्यवहार से आिदलशाह को बुरा लगा हो तो आप उनसे
मुझे माफी िदलवा दीिजए। मैं आपका आभार मानूँगा और मेरे अिधकार में आनेवाला मुल्क भी मैं
आिदलशाहको खुशी सेसौंपदूँगा।'
अफजल खान समझ गया िक िवाजी शम ेरी सेना देखकर ही डर गया है। उसने अपने वकील कृष्ण
भास्कर को िवाजी
शक े साथ बातचीत करने के िलए भेजा। िवाजी शन े कृष्ण भास्कर का सत्कार िकया और
उसके द्वारा कहलवा भेजाः
'मुझे आपसे िमलने आना तो चािहए लेिकन मुझे आपसे डर लगता है। इसिलए मैं नहीं आ
सकता हूँ।'
इस संदेश को सुनकर कृषण भासकर की सलाह से ही खान ने सवयं िशवाजी से िमलने का िवचार िकया और इसके िलए िशवाजी के
पास संदेश भी िभजवा िदया।
िशवाजी ने इस मुलाकात के िलए खान का आभार माना और उसके सतकार के िलए बडी तैयारी की। जावली के िकले के आस पास
की झािड़याँ कटवाकर रास्ता बनाया तथा जगह-जगह पर मंडप बाँधे। अफजलखान जब अपने सरदारों के
साथ आया तब िवाजी शन े पुनः कहला भेजाः
'मुझे अब भी भय लगता है। अपने साथ दो सेवक ही रिखयेगा। नहीं तो आपसे िमलने की मेरी
िहम्मत नहीं होगी।'
खान ने संदेश स्वीकार कर िलया और अपने साथ के सरदारों को दूर रखकर केवल दो तलवारधारी
सेवकों के साथ मुलाकात के िलए बनाये गये तंबू में गया। िवाजी शक ो तो पहले से ही खान के कपट
की गंध आ गयी थी, अतः अपनी स्वरक्षा के िलए उन्होंने अपने अँगरखे की दायीं तरफ खंजर छुपाकर
रख िलया था और बायें हाथ में बाघनखा पहनकर िमलने के िलए तैयार खड़े रहे।
जैसेही खान दोनों हाथ लंबे करके िवाजी शक ो आिलंगन करने गया , त्यों ही उसने िवाजी
शक े
मस्तक को बगल में दबा िलया। िवाजी शस ावधान हो गये। उन्होंने तुरंत खान के पाशवर् ् में खंजर भोंक
िदया और बाघनखे से पेट चीर डाला।
खान के दगा... दगा... की चीख सुनकर उसके सरदार तंबू में घुस आये। िवाजी शए वं उनके सेवकों
ने उन्हें सँभाल िलया। िफर तो दोनों ओर से घमासान युद्ध िछड़ गया।
जब खान के शव को पालकी में लेकर उसके सैिनक जा रहे थे, तब उनके साथ लड़कर िवाजी श कक
कक
के सैिनकों ने मुदेर् का िसर काट िलया और धड़ को जाने िदया !
खान का पुतर् फाजल खान भी घायल हो गया। खान की सेवा की बड़ी बुरी हालत हो गयी एवं िवाजी शक ी
सेना जीत गयी।
इस युद मे िशवाजी को करीब 75 हाथी, 7000 घोड़े, 1000-1200 के करीब ऊँट, बड़ा तोपखाना, 2-3 हजार
बैल, 10-12 लाख सोने की मुहरे, 2000 गाड़ीभरकरकपड़ेएवंतंबूवगैरहका सामानिमलगयाथा।
यह िवाजी
शक ी वीरता एवं बुिद्धचातुयर् का ही पिरणाम था। जो काम बल से असंभव था उसे उन्होंने
युिक्त से कर िलया !
अनुकर्म
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बबबब बबबबबबबब
मीन एवं मेष राशी के सूयर् का समय वसंत ऋतु कहा जा सकता है।
वसंत ऋतु की मिहमा के िवषय में किवयों ने खूब िलखा है। गुजराती किव दलपतराम ने
कहा हैः
बबबबब बबब ब बबबबबब बबबबब। बबबबब बबबब बबबबब बबबबबबब।।
अथार्त् बबबब, बबबबब बब ।बबबबबब बबबबबबबब बबबब बब बब
बबबबब।।
वसंत का असली आनंद जब वन में से गुजरते हैं तब उठाया जा सकता है। रंग
िबरंगे पुष्पों से आच्छािदत वृक्ष.... मंद-मंद एवं शीतल बहती वायु..... पर्कृित मानो,
पूरे बहार में होती है। कसेमें सहज ही मे पर्भु का स्मरण हो जाता है, सहज ही में
धयानावसथा मे पहुँचा जा सकता है।
ऐसीसुंदरऋतु में आयुवेर्नेखानपानमें
द संयम
की बातकहकरव्यिक्एतवंसमाजकी नीरोगता का ध्यानरखाहै।
शीतऋतु मे मेथीपाक, सूखे मेवे खाने से स्वाभािवक ही मधुर रसवाले तथा बल-पुिष्टवधर्क पदाथर् खाने के
कारण शरीर में स्वाभािवक ही कफ का संचय हो जाता है। यह संिचत कफ वसंत ऋतु में सूयर् िकरणों के
सीधे ही पड़ने के कारण िपघलने लगता है। इसके फलस्वरूप कफजन्य रोग जैसे िक सदीर्, खाँसी,
बुखार, खसरा, चेचक, दस्त, उलटी, गले मे खराश, टािनसलस का बढना, िसर भारी-भारी लगना, सुस्ती, आलस्यवगैरहहोने
लगता है।
िजस पर्कार पानी अिग्न को बुझा देता है वैसे ही िपघला हुआ कफ जठरािग्न को मंद कर देता है।
इसीिलए इस ऋतु मे लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें
खाने के िलए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है।
देखो, आयुवेर्िदवज्ञानकी दृिष्टिकतनीसूकषम
् है! मन को पर्सन्न करे एवं हृदय के िलए िहतकारी हो ऐसे
आसव, अिरष्ट जैसे िक मध्वािरष्ट, दर्ाक्षािरष्ट, गन्नक े ा रस, िसरका वगैरह पीना इस ऋतु में लाभदायक
है।
नागरमोथ अथवा सौंठ का उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है।
वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्योहार इस ओर संकेत करता है िक शरीर को थोड़ा सूखा सेंक
देना चािहए िजससे कफ िपघलकर बाहर िनकल जाय। सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौड़ना अथवा
गुलािटयाँखानेका अभ्यासलाभदायकहोताहै।
मािलश करके सूखे दर्व्य, आँवल,ेितर्फला अथवा चने के आटे आिद का उबटन लगाकर गमर् पानी
से स्नान करना िहतकर है। आसन, पर्ाणायाम एवं टंकिवद्या की मुदर्ा िवशेष रूप से करनी चािहए।
िदन में सोना नहीं चािहए। िदन में सोने से कफ कुिपत होता है। िजन्हें राितर् में जागना
आवशय ् कहैवेथोड़ासोयेतोठीक
ं है।इस ऋतु मेरंाितर्
जागरणभीनहींकरनाचािहए।
वसंत ऋतु में सुबह खाली पेट हरड़े के चूणर् को शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
वसंत ऋतु में कड़वे नीम में नयी कोंपलें फूटती है। नीम की 15-20 कोंपलों को 2-3 काली िमचर् के
साथ खूब चबाकर खाना चािहए। 15-20 िदन यह पर्योग करने से आरोग्यता की रक्षा होती है। इसके अलावा
कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 िदन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेिरया जैसे ज्वर से भी
बचाव होता है।
मधुर रसवाले पौिष्टक पदाथर् एंव खट्टे-मीठे रसवाले फल वगैरह पदाथर् जो िक शीत ऋतु में
खाये जाते हैं उन्हें खाना बंद कर देना चािहए। वसंत ऋतु के कारण स्वाभािवक ही पाचन शिक्त कम हो
जाती है अतः पचने में भारी पदाथोर्ं का सेवन नहीं करना चािहए। ठंडे पेय, आइसकर्ीम, बफर् के गोले,
चाकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही वगैरह पदाथर् िबल्कुल त्याग देना चािहए।
धािमरक गनथो के वणरनानुसार 'अलौने वर्त (िबना नमक के वर्त) चैतर् मासकेदौरानकरनेसेरोग-पर्ितकारक शिक्त
बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, हाई.बी.पी., िकडनी आिद के रोग नहीं होते हैं।
यिद कफ ज्यादा हो तो रोग होने से पूवर् 'वमन कमर्' द्वारा कफ को िनकाल देना चािहए िकन्तु वमन
कमर् िकसी योग्य वैद्य की िनगरानी में करना ही िहतावह है। सामान्य उलटी करनी हो तो आशर्म से
पर्काश ितयोगासन पुस्तक में बतायी गयी िविध के अनुसार गजकरणी की जा सकती है। इससे अनेक रोगों
से बचाव हो सकता है।
अनुकर्म
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सतर् 8
बबबबबबब बबब बबबबब बबबब बबबब ?
िकसी ने कहा हैः
बबब बबब बबब बब, बबबब बबब बब । बबबब बबबब बबबबबब बबब बबब बब , बबबबब
बब बबब बबबब बबबब बब।।
यह कहने का तात्पयर् यही है िक जीवन में कसाकोई कायर् नहीं िजसे मानव न कर सके। जीवन
में ऐसी कोई समस्या नहीं िजसका समाधान न हो।
जीवन में संयम, सदाचार, पर्ेम, सिहष्णुता, िनभर्यता, पिवतर्ता, दृढ़ आत्मिवश् वासऔर उत्तम
संग हो तो िवद्याथीर् के िलए अपना लक्ष्य पर्ाप्त करना आसान हो जाता है।
यिद िवद्याथीर् बौिद्धक-िवकास के कुछ पर्योगों को समझ लें, जैसे िक सूयर् को अघ्यर् देना,
भर्ामरी पर्ाणायाम करना, तुलसी के पत्तों का सेवन, तर्ाटक करना, सारस्वत्य मंतर् का जप करना आिद तो
परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीणर् होना िवद्यािथर्यों के िलए आसान हो जायगा।
िवद्याथीर् को चािहए िक रोज सुबह सूयोर्दय से पहले उठकर सबसे पहले अपने इष्ट का, गुरू का
स्मरण करे। िफर स्नानािद करके पूजा कक्ष में बैठकर गुरूमंतर्, इषमंत अथवा सारसवतय मंत का जाप करे। अपने
गुरू याइष्टकी मूितर्
की ओरएकटकिनहारतेहुएतर्ाटककरे।अपनेश्वासोच्छवासकी गितपरध्यानदेते
हुएमनको एकागर्
करे।भर्ामरी
पर्ाणायाम करे जो िवद्याथीर् तेजस्वी तालीम ििवर श म ें िसखाया जाता है।
पर्ितिदन सूयर् को अघ्यर् दे एवं तुलसी के 5-7 पत्तों को चबाकर 2-4 घूँट पानी िपये।
रात को देर तक न पढ़े वरन् सुबह जल्दी उठकर उपरोक्त िनयमों को करके अध्ययन करे तो इससे
पढ़ा हुआ शीघर् याद हो जाता है।
जब परीक्षा देने जाये तो तनाव िचन्ता से युक्त होकर नहीं वरन् इष्ट गुरू का स्मरण करके,
पर्सन्न होकर जाये।
पर्श् नपतर् आने पर उसे एक बार पूरा पढ़ लेना चािहए एवं जो पर्श् नआता है उसे पहले करे।
ऐसानहीं िक जोनहीं आताउसेदेखकर घबराजाये।घबराने सेतोजोपर्शआ
्न ताहैवहभीभूलजायेगा।
जो पर्श् नआते हैं उन्हें हल करने के बाद जो नहीं आते उनकी ओर ध्यान दें। अंदर दृढ़
िवश् वासरखे िक मुझे ये भी आ जायेंगे। अंदर से िनभर्य रहे एवं भगवत्स्मरण करके एकाध िमनट
शानत हो जाये, िफर िलखना शुर करे। धीरे-धीरे उन पशो के उतर भी िमल जायेगे।
मुख्य बात यह है िक िकसी भी कीमत पर धैयर् न खोये। िनभर्यता एवं दृढ़ आत्मिवश् वासबनाये
रखें।
िवद्यािथर्यों को अपने जीवन को सदैव बुरे संग से बचाना चािहए। न तो वह स्वयं धूमर्पानािद
करे न ही ऐसे िमतर्ों का संग करे। व्यसनों से मनुष्य की स्मरणशिक्त पर बड़ा खराब पर्भाव पड़ता है।
व्यसन की तरह चलिचतर् भी िवद्याथीर् की जीवन शिक्त को क्षीण कर देते हैं। आँखों की रोशनी को
कम करने के साथ ही मन एवं िदमाग को भी कुपर्भािवत करने वाले चलिचतर्ों से िवद्यािथर्यों को सदैव
सावधान रहना चािहए। आँखों के द्वारा बुरे दृश् यअंदर घुस जाते हैं एवं वे मन को भी कुपथ पर ले
जाते हैं। इसकी अपेक्षा तो सत्संग में जाना, सत्शास्तर्ों का अध्ययन करना अनंतगुना िहतकारी है।
यिद िवद्याथीर् ने अपना िवद्याथीर् जीवन सँभाल िलया तो उसका भावी जीवन भी सँभल जाता है क्योंिक
िवद्याथीर् जीवन ही भावी जीवन की आधार िलाह श ै। िवद्याथीर् काल में वह िजतना संयमी , सदाचारी,
िनभर्य एवं सिहष्णु होगा, बुरे संग एवं व्यसनों को त्याग कर सत्संग का आशर्य लेगा, पर्ाणायाम
आसनािदको सुचारू रूप सेकरेगाउतनाहीउसका जीवनसमुननत ् होगा। यिदनींवसुदढृ ़होतीहैतोउस परबनािवशालभवनभीदृढ़एवं
स्थायी होता है। िवद्याथीर्काल मानव-जीवन की नींव के समान है अतः उसको सुदृढ़ बनाना चािहए।
इन बातो को समझकर उन पर अमल िकया जाय तो केवल लौिकक िशका मे ही सफलता पापत होगी ऐसी बात नही है वरन् जीवन
की हर परीक्षा में िवद्याथीर् सफल हो सकता है।
हे िवद्याथीर् ! उठो....जागो..... कमर कसो। दृढ़ता एवं िनभर्यता से जुट पड़ो। बुरे संग एवं व्यसनों
को त्यागकर, संतों-सदगुरूओं के मागर्दर्शन के अनुसार चल पड़ो ..... सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी।
धनय है वे लोग िजनमे ये छः गुण है ! अन्तयार्मी देव सदैव उनकी सहायता करते हैं।
बबबबबब बबबबब बबबबबब । बबबबबब बबबबब बबबबबबबबब
बबबबब बबबब बबबबबबबब ।। बबबब बबबब बबबबबबबबबब
'उद्योग, साहस, धैयर, बुिद्ध, शिकत और पराकम – ये छः गुण िजस वयिकत के जीवन मे है, देव उसकी सहायता करते
है।'
अनुकर्म
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बब बब बबबबबब बब बब
कुछ मनचले छातर्ों ने आपस में तय िकया िक आज मास्टर को स्कूल से वापस करना है। जब वे
कक्ष में आये, तब एक ने कहाः "सर ! आजआपकीआँखेथोड़ीअंदरधँसगयीहै
ं ं।"
दूसरे छातर् ने 'सर' की नाड़ी पकड़ी, िफर बोलाः "सर ! आपकोरातको बुखारआयाथा क्या? अभी भी शरीर
थोड़ागमर्
है।"
सरः "नहीं तो !"
तीसरा छातर्ः "सर ! आपकोअपनीसेहतका कुछ पतानहींहै।आपकाममेव ं ्यस्तरहतेहैऔ
ं रअपनेशरीरकािबल्कुल
ख्याल नहीं रखते हैं। सचमुच ! आपकोबुखारहै।"
चौथाछातर्ः"वाकई सर ! आपकोबुखारहै।"
पाँचवाँ छातर्ः "सर ! यिद आप बुखार में काम करते रहेंगे तो हो सकता है ज्यादा बीमार पड़
जायें। अगर आपको न्यूमोिनया हो जायेगा तो ? कृपया, आरामकिरये।आपथकेहुएहैऔ ं रबुखारका असरभीहै।"
छठव ा छात ः "अभी दो महीने बाद परीक्षाएँ भी होने वाली हैं। अगर आप जबरदस्ती पढ़ायेंगे
तो हो सकता है परीक्षाओं के िदनों में आपको न्यूमोिनया हो जाये। क्षमा करें सर ! आपआरामकरें।"
देखते ही देखते मास्टक का िसर ददर् से फटने लगा और पैर काँपने लगे। उनको बुखार आ
गया। वेजल्दी-जल्दी घर पहुँचे एवं रजाई ओढ़कर सो गये।
.....तो मानना पड़ेगा िक मन का असर तन पर पड़े िबना नहीं रहता। आपके दो शरीर होते हैं – एक
अन्नमय और दूसरा मनोमय। मनोमय शरीर जैसा सोचता और िनणर्य करता है, अन्नमय शरीर में वैसे ही
पिरवतर्न होने लगते हैं।
मन िजतना सूक्ष्म होता है, शरीर पर उसका पभाव उतना ही गहरा पडता है। केवल अपने शरीर पर पभाव पडता है ऐसी
बात नहीं है बिल्क दूसरों के शरीर पर भी आपके सूक्ष्म मन का पर्भाव पड़ सकता है। संकल्प में इतनी
शिकत होती है !
एक घिटत घटना हैः
एक लडका भगवान शंकर का बडा भकत था। नमरदा िकनारे रहता था एवं ब बबब बबबबब मंतर् का जप करता था।
उसे सारा िदन िवभिक् श क त रते देख उसके घरवाले परेशान रहते थे।
िशवराित के िदन उसके बडे भाई ने उसकी िपटाई की और उसे एक कमरे मे बंद कर िदया। घर के लोग िनिशनत होकर सो गये
िकः अब कैसे जा पायेगा मंिदर में ?
......लेिकन भकत को तो राित जागरण करना था। उसने िशवभिकत न छोडी। वह बनद कमरे मे ही िशवजी की मानसपूजा करते-
करते इतना मग्न हो गया िक उसका शरीर मंिदर में पहुँच गया !
सुबह लोगों ने िखड़की से देखा तो लड़का कमरा में नहीं है और बाहर से ताला लगा है !
उन्हें बड़ा आश् चयर्हुआ ! िजस मंिदर में वह लड़का जाता था उसी मंिदर में जाकर उन लोगों ने देखा
तो वह िवजी श क ा आिलंगन करके बैठा हुआ िमला। पूछाः "तू यहाँ कैसे आया ?"
लडके ने कहाः "मुझे कुछ पता नहीं। िवजी श ल ाये होंगे तो आ गया। "
िशवजी उठाकर मंिदर मे नही लाये होगे। यह तो उसके तीवर िचनतन का पभाव था उसका तन भी िशवालय मे पहुँच गया।
ऐसेहीदूसरीएकघटनाहैः बड़ौदा
केआगे ताजपुरहै।
ा ताजपुरमें ा मेरे
िमतर्
संतनारायणस्वामीरहतेहैं।उनकेआशर्मका नामहै
नारायण धाम। जब नारायण धाम नहीं बना था और वे साधना करते थे तब वहाँ एक छोटा सा मंिदर था। उस
मंिदर का पुजारी रजनी कला स्नातक था। उसने मुझसे कहाः
"बापू ! बापू (नारायण स्वामी) का तो कुछ कहा नहीं जा सकता।"
मैंने पूछाः "क्या हुआ ? जरा बताओ।"
पुजारीः "मैं एक िदन पूजा वगैरह करके शटर को दो ताले लगाकर घर चला गया क्योंिक जंगल का
मामला था और तब आशर्म इतना िवकिसत नहीं था। सुबह जब शटर खोला तो देखा िक मंिदर के अंदर बापू
(नारायण स्वामी) िशविलंग को आिलंगन करके बैठे हुए थे ! मैं तो यह देखकर चिकत रह गया िक बापू मंिदर के
अंदर कैसे ? मैंने अंदर एक िबल्वपतर् और फूल तक नहीं रखा था। िफर बापू को अंदर बंद करके कैसे
चलागया, मुझे कुछ पता नहीं है।"
मैंने कहाः "कसानहीं होगा
, कुछ राज होगा।"
पुजारीः "कुछ राज ही है। मैं तो मंिदर की सफाई करने के बाद ताला लगाकर घर चला गया था।"
वे तो मेरे िमतर् संत हैं। मैंने उनसे पूछाः "यह सब कैसे हुआ था ? आपसंकल्पकरके िवालय श म ें
पहुँचे थे िक आपने योग का उपयोग िकया था ? आपऋिद्-धिसिद्ध के बल वहाँ पहुँचे थे या भगवान शंकर
स्वयं आपको पकड़कर अंदर डाल गये थे ? सच बताओ।"
नारायण स्वामी ने कहाः "यह तो मुझे पता नहीं लेिकन पर्भु का ऐसा तीवर् िचन्तन हुआ िक मैं नहीं
रहा। जब सुबह हुई और पुजारी ने मंिदर खोला तब मुझे भान हुआ िकः "मैं इधर कैसे ?" िफर तो मै पभु.....!
पर्भ.ु ...... !! करके एक मील तक दौड़ता चला गया।"
.....तो मानना पड़ेगा िक आपका मन िजसका तीवर्ता से िचन्तन करता है वहीं आपका तन भी पहुँच
जाता है। जब आपका मन िकसी चीज का इतना तीवर् िचन्तन करता है िक काम, कर्ोध, लोभ, मोह, दपर्,
अहंकार सब छूट जाते हैं तब आपका तन भी वहाँ पर्कट हो जाता है और अपने स्थान से गायब हो जाता
है। यही बात 'शीयोगवािशष महारामायण' वश िष्ठजी महाराज भी कहते हैं िकः "हे राम जी ! जीव का जो शरीर
िदखता है वह वास्तिवक नहीं है। वास्तिवक शरीर तो मनोमय शरीर है। मनोमय शरीर का िकया हुआ सब होता
है।"
जैसे, कार िदखती है तो उसमें दो चीजें हैं- कार का बाह्य ढाँचा और अंदर का इंजन, िगयरबाक्स
आिद। कारभागतीहुई िदखतीहैलेिकनउसका मूलकारणअंदरकेपुजेर् हैं।कारआगेपीछेभीचलाईजातीहै , धीरे भी चलती है, तेजी
से भी चलती हुई िदखती है और चलाने वाला भी िदखता है। कार को डर्ाइवर चलाता है और डर्ाइवर को
उसके अंदर का संकल्प चलाता है। कार और डर्ाइवर दोनों का संचालन करने वाली सूक्ष्म सत्ताएँ हैं।
आपकोगाड़ीिदखेगी, अंदर का िगयर बाक्स नहीं िदखेगा। ऐसे ही डर्ाइवर के हाथ िदखेंगे, उसके
अंदर का संकल्प नहीं िदखेगा। जो िदखेगा उसकी स्वतंतर् सत्ता नहीं होती। चलाने वाली सत्ता कोई और
होती है। उसी सत्ता के बल पर सब कायर् होते हैं। उस सत्ता के मूल को जान लो तो बेड़ा पार हो जाये।
स्नेह सिहत उस सत्ता के मूल का स्मरण और उस सत्ता के मूल में शांित व आनंद पाने में लग जाओ।
सारी सत्ताओं का मूल है आत्मा-परमात्मा।
अनुकर्म
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सतर् 9
बबबबब बब बबबबब बबबब बबबब बब बबबबब बबबबब
'िशव' अथार्त् कल्याण स्वरूप। भगवान िव श त ो हैं ही पर्ािणमातर् के परम िहतैषी ,
परम कल्याण कारक लेिकन उनका बाह्य रूप भी मानवमातर् को एक मागर्दर्शन पर्दान करने
वाला है।
िशवजी का िनवास-स्थान है कैलास िखर। शज ञ ् ान हमेशा धवल िखर श प र रहता है
अथार्त् ऊँचे केन्दर्ों पर रहता है जबिक अज्ञान नीचे के केन्दर्ों में रहता है।
काम, कर्ोध, भय आिद के समय मन पर्ाण नीचे के केन्दर् में, मूलाधार केन्दर् में
रहते हैं। मन और पर्ाण अगर ऊपर के केन्दर्ों में हों तो वहाँ काम िटक नहीं सकता।
िशवजी को काम ने बाण मारा लेिकन िशवजी की िनगाहमात से ही काम जलकर भसम हो गया। आपके िचत मे भी यिद कभी काम आ जाये तो
आपभीऊँचेकेन्दर्ोम ंेआ
ं जाओतािकवहाँकामकी दालन गलसके।
कैलास िखर श ध वल है , िहमश िखरधवल है और वहाँ िवजी शि न वास करते हैं। ऐसे ही जहाँ
सत्त्वगुण की पर्धानता होती है, वहीं आत्मश िवरहता है।
िशवजी की जटाओं से गंगा जी िनकलती है अथात् जानी के मिसतषक मे से जानगंगा बहती है। उनमे तमाम पकार की ऐसी योगयताएँ
होती हैं िक िजनसे जिटल से जिटल समस्याओं का समाधान भी अत्यंत सरलता से हँसते-हँसते हो
जाता है।
िशवजी के मसतक पर िदतीया का चाद सुशोिभत होता है अथात् जो जानी है वे दूसरो का ननहा-सा पर्काश, छोटा -सा गुण भी
िशरोधायर करते है। िशवजी जान के िनिध है, भण्डार हैं, इसीिलए तो िकसी के भी जान का अनादर नही करते है वरन् आदर ही करते
हैं।
िशवजी ने गले मे मुणडो की माला धारण की है। कुछ िवदानो का मत है िक ये मुणड िकसी साधारण वयिकत के मुणड नही, वरन्
ज्ञानवानों के मुण्ड हैं। िजनके मिस्तष्क में जीवनभर के ज्ञान के िवचार ही रहे हैं, ऐसेज्ञानवानों की
स्मृित ताजी करने के िलए उन्होंने मुण्डमाला धारण की है। कुछ अन्य िवद्वानों के मतानुसार िवजी शन े
गले मे मुणडो की माला धारण करके हमे बताया है िक गरीब हो चाहे धनवान, पिठत हो चाहे अपिठत, माई हो चाहे भाई लेिकन
अंत समय में सब खोपड़ी छोड़कर जाते हैं। आप अपनी खोपड़ी में चाहे कुछ भी भरो, आिखरवहयहींरह
जाती हैं।
भगवान शंकर देह पर भभूत रमाये हुए हैं क्योंिक वे िव श ह ैं, कल्याणस्वरूप हैं। लोगों को याद
िदलाते हैं िक चाहे तुमने िकतना ही पद पर्ितष्ठावाला, गवर् भराजीवनिबतायाहो, अंत में तुम्हारी देह का
क्या होने वाला है, वह मेरी देह पर लगायी हुई भभूत बताती है। अतः इस िचताभस्म को याद करके आप भी
मोह ममता और गवर् को छोड़कर अंतमुर्ख हो जाया करो।
िशवजी के अनय आभूषण है बडे िवकराल सपर। अकेला सपर होता है तो मारा जाता है लेिकन यिद वही सपर िशवजी के गले मे,
उनते हाथ पर होता है तो पूजा जाता है। ऐसे ही आप संसार का व्यवहार केवल अकेले करोगे तो मारे
जाओगे लेिकन िवतत् श म त्व ें डुबकी मारकर संसार का व्यवहार करोगे तो आपका व्यवहार भी आदर्शकक
व्यवहार बन जायेगा।
िशवजी के हाथो मे ितशूल एवं डमर सुशोिभत है। इसका तातपयर यह है िक वे सततव, रज एवं तम – इन तीन गुणों के
आधीननहींहोते , वरन् उन्हें अपने आधीन रखते हैं और जब पर्सन्न होते हैं तब डमरू लेकर नाचते हैं।
कई लोग कहते हैं िक िवजी श क ो भाँग का व्यसन है। वास्तव में तो उन्हें भुवन भंग करने का
यानी सृिष्ट का संहार करने का व्यसन है, भाँग पीने का नहीं। िकन्तु भँगेिड़यों ने 'भुवन भंग' में से
अकेले 'भंग' शबद का अथर 'भाँग' लगा िलया और भाग पीने की छू ट ले ली।
उत्तम माली वही है जो आवश् यकताके अनुसार बगीचे में काट-छा ट करता रहता ह ै , तभी बगीचा
सजा धजा रहता है। अगर वह बगीचे में काट छाँट न करे तो बगीचा जंगल में बदल जाये। ऐसे ही
भगवान िव श इ स संसार के उत्तम माली हैं , िजन्हें भुवनों को भंग करने का व्यसन है।
िशवजी के यहा बैल-िसंह, मोर-साँप-चूहाआिदपरस्परिवपरीतस्वभावकेपर्ाणीभीमजेसेएकसाथिनिवर्घ्न रहलेते हैं।क्यों
? िशवजी की समता के पभाव से। ऐसे ही िजसके जीवन मे समता है वह िवरोधी वातावरण मे, िवरोधी िवचारों में भी बड़े मजे
से जी लेता है।
जैसे, आपनेदेखाहोगािक गुलाबकेफूल को देखकरबुिद्धमानव्यिक्तपर्सन्नहोताहैिकः 'काँटों के बीच भी वह
कैसे महक रहा है ! जबिक फिरयादी व्यिक्त बोलता है िकः 'एक फूल और इतने सारे काटे ! क्या यही संसार है,
िक िजसमें जरा सा सुख और िकतने सारे दुःख !'
जो बुिद्धमान है, िशवतततव का जानकार है, िजसके जीवन में समता है, वह सोचता है िक िजस सत्ता से
फूल िखला है, उसी सत्ता ने काँटों को भी जन्म िदया है। िजस सत्ता ने सुख िदया है, उसी सत्ता ने दुःख को
भी जन्म िदया है। सुख दुःख को देखकर जो उसके मूल में पहुँचता है, वह मूलों के मूल महादेव को भी पा
लेता है।
इस पकार िशवतततव मे जो जगे हुए है उन महापुरषो की तो बात ही िनराली है लेिकन जो िशवजी के बाह रप को ही िनहारते है वे
भी अपने जीवन में उपरोक्त दृिष्ट ले आयें तो उनकी भी असली िवराितर् श ककककक , कल्याणमयी राितर् हो
कक
जाये.....
अनुकर्म
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बबबबबबबबबबबब बब बबबब
फालगुन कृषण चतुदरशी अथात् महािशवराित। पृथवी पर िशविलंग के सथापन का जो िदवस है, भगवान िव श क े िववाह का जो
िदवस है और पर्ाकृितक िनयम के अनुसार जीव-िशव के एकतव मे मदद करने वाले गह-नक्षतर्ों के योग का जो
िदवस है – वही है महाश िवराितर्का पावन िदवस। यह राितर्-जागरण करने की राितर्, सजाग रहने की
राितर्, ईश् वरकी आराधना-उपासना करने की राितर् है।
िशवजी की आराधना िनषकाम भाव से कही भी की जा सकती है िकंतु सकाम भाव से आराधना िविध-िवधानपूवर्क की जाती
है। िजन्हें संसार से सुख-वैभव पर्ाप्त करनी होती है, वे भी िवजी श क ी आराधना करते हैं।
िशवजी की पूजा का िवधान यह है िक पहले जहा िशवजी की सथापना की जाती है वहा से िफर उनका सथानातर नही होता, उनकी
जगह नहीं बदली जाती। िवजी श क ी पूजा के िनमार्ल(पतर् ्य -पुष्प, पंचामृतािद) का उल्लंघन नहीं िकया
जाता। इसीिलए िवजी श क े मंिदर की पूरी पर्दिक्षणा नहीं होती क्योंिक पूरी पर्दिक्षणा करने से िनमार्ल्य
उल्लंिघत हो जाता है।
िशविलंग िविवध दवयो से बनाये जाते है। अलग-अलग दर्व्यों से बने िविलंगोंशक े पूजन के फल भी अलग -
अलग पर्कार के होते हैं। जैसे, ताँबे के िविलंग शक े पूजन से आरोग्-य पर्ािप्त होती है। पीतल के
िशविलंग के पूजन से यश, आरोग्य-पर्ािप्त एवं शतर्ुनाश होता है। चाँदी के िवजी श ब नाकर उनकी पूजा करने से
िपतरों का कल्याण होता है। सुवणर् के िवजी श ब नाकर उनकी पूजा करने से तीन पीिढ़यों तक घर में धन -
धानय बना रहता है। मिण-माणेक का िविलंग शब नाकर उसकी पूजा करने से बुिद्, ध आयुष्य, धन, ओज-तेज बढ़ता है
लेिकन बहिचंतन करने से, िशवतततव का िचंतन करने से ये चीजे सवाभािवक ही पगट होने लगती है। परमातमतततव मे, िशवतततव मे डुबकी
मारने से बुिद्ध का पर्काश बढ़ने लगता है, िपतरों का उद्धार होने लगता है, िचत्तकी चंचलतािमटनेलगतीहै ,
िदल की दिरदर्ता दूर होने लगती है एवं मन में शांित आने लगती है। िवपू श कजन ा महा फल यही है िक
मनुष्य िवतत्
श क त्व ो पर्ाप्त हो जाये।
िशवराित को भिकतभाव से राित-जागरण िकया जाता है। जल, पंचामृत, फल-फूल एवं िबलवपत से िशवजी का पूजन
करते है। िबल्वपतर् में तीन पत्ते होते हैं जो सत्त्व, रज एवं तमोगुण के पर्तीक हैं। हम अपने ये
तीनों गुण िवापर्
श क ण रके गुणों से पार हो जायें , यही इसका हेतु है। पंचामृत-पूजा क्या है ? पृथव ् ी, जल,
तेज, वायु और आकाश इन पाँचमहाभूतों का ही सारा भौितक िवलास है। इन पंचमहाभूतों का भौितक िवलास
िजस चैतन्य की सत्ता से हो रहा है उस चैतन्यस्वरूप िव श म ें अपने अहं को अिपर्त कर देना , यही
पंचामृत-पूजा है। धूप और दीप द्वारा पूजा माने क्या ? धूप का तातपयर है अपने 'िशवोऽहम्' की सुवास 'आनन्दोऽहम्' की
सुवास और दीप का तात्पयर् है आत्मज्ञान का पर्काश।
चाहेजंगलयामरूभिू ममेक ं ्योंन हो, रेती या िमट्टी के िवजी श ब ना िलये , पानी के छींटे मार िदये,
जंगली फूल तोड़कर धर िदये और मुँह से ही नाद बजा िदया तो िवजी श प र्सन्न हो जाते हैं एवं भावना
शुद होने लगती है।
आशु तोषजोठहरे! जंगली फूल भी शुद्ध भाव से तोड़कर िविलंग शप र चढ़ाओ तो िवजी श प र्सन्न हो
जाते हैं और यही फूल कामदेव ने िवजी श क ो मारे तो िवजी श न ाराज हो गये। क्?यक्ोंयोंिक फूल
फेकने के पीछे कामदेव का भाव शुद नही था इसीिलए िशवजी ने तीसरा नेत खोलकर उसे भसम कर िदया। िशवपूजा मे वसतु का मूलय नही,
भाव का मूल्य है।
बबबब बब बबबबबबब बबबब......
आराधनाका एकतरीकायहहैिक पतर् , पुष्प, पंचामृत, िबल्वपतर्ािद से चार पर्हर पूजा की जाये। दूसरा
तरीका यह है िक मानिसक पूजा की जाये।
कभी-कभी योगी लोग इस राितर् का सदुपयोग करने का आदेश देते हुए कहा है िकः "आजकी राितर् तुम
ऐसीजगहपसंदकर लोिक जहाँ तुमअकेले बैठसको, अकेले टहल सको, अकेले घूम सको, अकेले जी सको। िफर
तुम िवजी
श क ी मानिसक पूजा करो और उसके बाद अपनी वृित्तयों को िनहारों , अपने िचत्त की दशा को
िनहारो। िचत्त में जो-जो आ रहा है और जो जो जा रहा है उस आने और जाने को िनहारते-िनहारते
आनेजानेकी मध्यावस्थाको जानलो।
दूसरा तरीका यह है िक िचत्त का एक संकल्प उठा और दूसरा उठने को है, उस िवस् श ववरूप क
आत्मस्वरूप मध्यावस्थाको तुम मैरं ू प मेस
ं ्वीकारकर लो, उसमें िटक जाओ।
तीसरा तरीका यह भी है िक िकसी नदी या जलाशय के िकनारे बैठकर जल की लहरों को एकटक
देखते जाओ अथवा तारों को िनहारते-िनहारते अपनी दृिष्ट को उन पर केिन्दर्त कर दो। दृिष्ट बाहर की
लहरो पर केिनदत है और वह दृिष केिनदत है िक नही, उसकी िनगरानी मन करता है और मन िनगरानी करता है िक नहीं
करता है, उसको िनहारने वाला मैं कौन हूँ ? गहराईसेइसकािचन्तनकरते -करते आप परम शांित में भी
िवशर्ांित कर सकते हो।
चौथातरीकायहहैिक जीभन ऊपरहोन नीचेहोबिल्कतालू केमध्यमेह ं ोऔरिजह्वापरहीआपकीिचत्तवृित्िस्
त थरहो। इससे
भी मन शांत हो जायेगा और शांत मन में शांत िवतत् श क त्व ा साक्षात्कार करने की क्षमता पर्गट होने
लगेगी।
साधक चाहे तो कोई भी एक तरीका अपनाकर िवतत् श म त्व ें जगने का यत्न कर सकता है।
महाश िवराितर्का यही उत्तम पूजन है।
अनुकर्म
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सतर् 10
बब बबबब बबबबबबब ?
वतर्मान समय में टी.वी. चैनलो,ंिफलमो तथा पत-पितर्काओं में मनोरंजन के नाम देकर समाज के
ऊपर िजसे थोपा जा रहा है, वह मनोरंजन के नाम पर िवनाशक ही है।
पतर्-पितर्काओं के मुख-पृष्ठों तथा अन्दर के पृष्ठों पर अश् लीलिचतर्ों की भरमार रहती है। इस
िदशा में अपनी पितर्काओं में नई-नई कल्पनाओं को लाने के िलए पाश् चात्यपितर्काओं का अनुकरण
िकया जाता है।
िफलमी जगत तथा टी.वी. चैनलतोमानोंइस स्पधार्केिलएहीआरिक्ष तहैं।हरबारनये-नये उत्तेजक तथा टी.वी. चैनल
तो मानों इस स्पधार् के िलए ही आरिक्षत हैं। हर बार नये-नये उत्तेजक दृश् यों, अपराध की िवधाओं,
िहंसा के तरीकों का पर्दर्शन करना तो मानों इनका िसद्धान्त ही बन गया है।
वास्तव में मनोरंजन से तो मन हल्का होना चािहए, िचंताओंका दबावकम होनाचािहएपरन्तुयहाँतोसब कुछ
उल्टा ही होता है। ऐसी पाशवी वृित्तयों को पर्ोत्साहन िमलता है िजनकी िनत्य जीवन की गितिविधयों में
कोई गुंजाइश ही नहीं होती। मिस्तष्क की िराओं शप र दबाव, िचतर्पटदेखनेकेबादमनमेक
ं ोलाहलतथापर्चंडउद्वेग।एक
काल्पिनक कथा पर बनी िफल्म बब बबबब बब बबब को देखकर सैंकड़ों युवक युवितयों द्वारा
आत्महत्याजैसापापकरनातथाबबबबबबबब धारावािहक मे उडते हएु कालपिनक वयिकत को देखकर कई मासूम बचचो का छतो व
िखड़िकयों से कूदकर जान से हाथ धो बैठना, क्या यह िवनाश की पिरभाषा नहीं है ?
बबबबबबबब (बबब.) से 26 जनवरी 2000 को पर्काश ितएक समाचार पतर् का एक लेख छपा था। इस
लेख का शीषरक थाः बब.बब. बबबबबब बब बबबब बब बबबबबबबबब बबब बबबबब बब बबबब। इस लेख
में वत्तर्मान समय में पतनोन्मुख समाज को आध्याित्मक िदशा की ओर अगर्सर करने वाले संत समाज
के ऊपर बड़ी आलोचनात्मक िटप्पणी की गई थी।
इसी अदरसापतािहक की पृष संखया दो पर एक लेख छपा था। इसका शीषरक था, बबबबब बब बबबब बबब बबब
बबबबब बब बबब बब बब बबबब बब बबबबब बबबब ?
यह लेख िकसी सॉकर्ेटीज के िलए एक पतर् है िजसमें सूरत (गुजरात) की सुरूपा नामक युवती
(बी.काम. में अध्ययनरत) ने अपने जीवन के बारे में पर्श् नपूछा है।
इितहास तो बताता है िक साकेटीज (सुकरात) आजसेलगभग2350 वषर् पूवर् अपने शरीर को त्याग चुके हैं।
अब यहाँ कौन से सुकरात पैदा हुए, यह तो भगवान ही जानें।
अपनी जीवनगाथा िलखते हुए वह युवती कहती है िक उसे अपने ही मुहल्ले का अभय नाम का युवक
पसन्द आ गया और उसने उसके साथ शारीिरक संबंध बना िलया। उसके बाद उसे कॉलेज में पढ़ रहे
िनष्काम और शेखर के पर्ित भी आकषर्ण हो गया। अब वह सुरूपा घर में अभय, कालेज में िनष्काम तथा
रिववार को शेखर के िलए आरिक्षत है। अपर्ैल में उसकी परीक्षा पूरी होगी तथा उसके माता-िपता उसकी
शादी कर देगे।
अब वह युवती साकर्ेटीज महोदय से पर्श् नकरती है िक ऐसी िस्थित में मैं क्या करूँ ? क्योंिक
मुझे तीनों लड़के पसंद हैं।
क्या उपरोक्त कहानी एक भारतीय कन्या के नाम पर बदनुमा दाग नहीं है ? हमारे शास्तर्ों में
आदर्शआयर्कन्या केरू प मेस ं तीसािवतर्ीका नामआताहैिजसनेसत्यवानको अपनेपितकेरू प मेव ं रणिकयाथा। जबसबकोपतालगा
िक सत्यवान अल्पायु है तो सभी ने सािवतर्ी पर दबाव डाला िक वह िकसी दूसरे युवक का वरण कर ले परन्तु
भारत की वह कन्या अपने धमर् पर अिडग रहती है और उसकी इसी िनष्ठा ने उसे यमराज के पास से
उसके पित के पर्ाण वापस लाने में समथर् बना िदया।
अब आप स्वयं िवचार कीिजए िक भारत की कन्याओं के जीवन को महान बनाने के िलए 'संदेश' के
पर्काशन िवभाग की सती सािवतर्ी की कथा छापनी चािहए या सुरूपा की ?
सुरूपा के बाद आइये सॉकर्ेटीज महोदय के पास चलते हैं। देिखये िक वे सुरूपा के पर्श् नका
कैसा जवाब देते हैं।
सॉकर्ेटीज महोदय कहते हैं- "आपकाकुछ नहींहोगा। आपचौथेको पसंदकरोगीऔरशेषजीवनमेस ं ंसारकेतमाम
सुख भोगोगी, यह बात मैं छाती ठोककर कहता हूँ। आपने तीन युवकों के साथ िनकटता रखी और उनका
भरपूर उपयोग िकया, इस बात पर मुझे कोई आशयर नही होता। यह उमर ही ऐसी है। आपके इस अहोभागय से अनय युवितया ईषया भी
कर सकती हैं।
इस पकार का एक लमबा चौडा जवाब साकेटीज महोदय ने िदया है। आप जरा सोिचये िक संसार तथा शरीर को नशर समझने वाले
आत्मिनष्ठाकेधनीसाकर्ेटीजकेपासयिदयहबातजातीतोक्यावह ऐसा जवाबदेते ? यह तो समाज के साथ बहुत बड़ा धोखा हो
रहा है। यह तो अखबार के नाम पर भारतीय सनातन संस्कृित को तोड़क भोगवादी संस्कृित का सामर्ाज्य
फैलाने का एक िघनौना षडयंत है।
पाश् चात्यजगत का अंधानुकरण करके भारतीय समाज पहले ही पतन के बड़े गतर् में िगरा हुआ
है। फैशनपरस्ती, भौितकता तथा भोगवासना ने समाजोत्थान के मानदण्डों को ध्वस्त कर िदया है। युवा
वगर् व्यसनों तथा भोगवासना की दुषप ् र्वृित्तयों का िकार
श ब न रहा है। ऐसी िस्थित में संतसमाज द्वारा
धयान योग िशिवरो, िवद्याथीर् उत्थान ििवरोंश ककक
कक , रामायण तथा भागवत, गीताऔरउपिनषदोंकी कथा-सत्संगों के
माध्यम से िगरते हुए मानव को अशांित, कलह तथा दुःखी जीवन से सुख, शाित एवं िदवय जीवन की ओर अगसर करने
के महत् कायर् िकये जा रहे हैं। इन कायर्कर्मों से लाखों-लाखो भटके हुए लोगो को सही राह िमल रही है। इसके
कई उदाहरण हैं। बबबब बबबबबबब तथा बबबब बबबब जैसी पर्ेरणादायी पुस्तकों से तेजस्वी
जीवन जीने की पर्ेरणा व कला िमल रही है। यिद िववेक-बुिद्ध से िवचार िकया जाय तो भारत का अन्न
खानेवाले इन लोगों को अपनी सस्कृित के उत्थान के िलए सहयोग करना चािहए परन्तु ये तो समाज की
उन्नित में बाधा बनकर देशदर्ोही की भूिमका िनभा रहे हैं। ऐसे लेख छापकर व्यिभचार और पाश् चात्य
संस्कृित को बढ़ावा देने का कुकृत्य कर रहे हैं।
पाश् चात्यदेशों के अिधकांश लोग अपनी संस्कृित छोड़कर, उच्छर्ंखलता से बाज आकर सनातनी
संस्कृित की ओर बढ़ रहे हैं परन्तु सनातनी संस्कृित के कुछ लोग पशि ्चम की भोगवादी संस्कृित को
अपना रहे हैं और उसका बड़े जोर-शोर से पचार कर रहे है। यह कैसी मूखरता है ?
िजनसे समाज की शांित, सत्पर्ेरणा, उिचत मागर्दर्शन तथा िदव्य जीवन जीने की कला िमल रही है ,
उनका तो िवरोध होता है और िजनसे समाज में कुकमर्, व्यिभचार तथा चिरतर्हनन जैसी कुचेष्टाओं को
बढ़ावा िमले – ऐसे लेख पर्काश ितहो रहे हैं। अब आप स्वयं िवचार कीिजए िक ऐसे लोग मानवता व
संस्कृित के िमतर् हैं या घोर शतर्ु ?
मोहनदास करमचंद गाँधी ने बचपन में केवल एक बार बबबबबबबब बबबबबबबबबबब नाटक
देखा था। उस नाटक का उन पर इतना गहरा पर्भाव पड़ा िक उन्होंने आजीवन सत्यवर्त लेने का संकल्प
ले िलया तथा इसी वरत के पभाव से वे इतने महान हो गये।
एक चलिचत का एक बालक के जीवन पर िकतना गहरा पभाव पडता है, यह गाँधी जी के जीवन से स्पष्ट हो जाता
है। अब जरा िवचार कीिजए िक जो बच्चे टी.वी. के सामने बैठकर एक ही िदन में िकतने ही िहंसा,
बलात्कार और अश् लीलताके दृश् यदेख रहे हैं वे आगे चलकर क्या बनेंगे ? सड़क चलते हुए हमारी
बहन, बेिटयों को छेड़ने वाले लोग कहाँ से पैदा हो रहे हैं ? उनमें बुराई कहाँ से पैदा होती है ?
कौन हैं ये लोग जो 5 और 10 साल की बिच्चयों को भी अपनी हवस का िकार श ब ना लेते हैं ? इनको यह सब
कौन िसखाता है ? क्या ये िकसी स्कूल से पर्श िक्षणलेते हैं ?
िकसी भी स्कूल में ऐसा पाप करने का पर्श िक्षणनहीं िमलता। कोई भी माता-िपता अपने बच्चों से
ऐसापापनहीं करवाते। इसकेबावजूदभीऐसेलोगसमाजमेंहैं
तोउसकेकारणहैंटी.वी., िसनेमा तथा गन्दे पतर्-
पितर्कायें िजनके पृष्ठों पर अश् लीलिचतर् तथा सामिगर्याँ छापी जाती हैं।
कुछ समय पूवर् 'पाञ्चजन्य' में छपी एक खबर के अनुसार हैदराबाद के समीप चार युवकों ने रात
के अँधेरे में राह चलती एक युवती को रोका तथा िनकट के खेतों में ले जा कर उसके साथ बलात्कार
िकया। जब वे युवक पकड़े गये तो उन्होंने बताया िक वे उस समय िसनेमाघर से ठीक वैसा ही दृश् यही
देखकर आ रहे थे िजसका दुष्पर्भाव उनके मन पर बहुत गहरा उतर गया था।
िजस देश के ऋिषयों ने कहाः बबबब बबबबबबबबब बबबबबबबब बबबबबब बबबब
बबबबब उसी देश की नािरयों के िलए घर से बाहर िनकलना भी असुरिक्षत हो गया है। यह कैसा
मनोरंजन है ? यह मनोरंजन नहीं है अिपतु घर-घर में सुलगती वह आग है जो जब भड़केगी तो िकसी से
देखा भी नहीं जायेगा। िजस देश की संस्कृित में पित-पत्नी के िलए भी माता-िपता तथा बड़ों के सामने
आपसीबातेकरनं ेकी मयार्दारखीगयीहै , उसी देश के िनवासी एक साथ बैठकर अश् लीलदृश् यदेखते हैं,
अश् वलीलगाने सुनते हैं। यह मनोरंजन के नाम पर िवनाश नहीं तो और क्या हो रहा है ?
यिद आप अपनी बहन-बेिटयों की सुरक्षा चाहते हैं, यिद आप चाहते हैं िक आपका बच्चा िकसी
गली का मािफया न बने , डॉन न बने अथवा तो बलात्कार जैसे दुष्कमोर्ं के कारण जेलों में न सड़े, यिद
आपचाहतेहैिंक आपकेनौिनहालसंयमी, चिरतर्वानतथामहानबनेत ं ोआजसेहीइनकेबलकनेक्शनों, िसनेमाघरों तथा
अश् लीलताका पर्चार करने वाले पतर्-पितर्काओं का बिहष्कार कीिजए। हमें नैितक तथा मानिसक रूप से
उन्नत करने वाली िफल्मों की आवश् यकताहै। हमें ऐसे पर्सारण चािहए, ऐसेदृश्यचािहए िजनसे स्नेह
, सदाचार,
सहनशीलता, करूणाभाव, आत्मीयता, सेवा-साधना, सच्चाई, सच्चिरतर्ता तथा माता-िपता, गुरज ू नोंएवंअपनीसंस्कृित
के पर्ित आदर का भाव पर्गट हो िजससे हमारा देश िदव्यगुण सम्पन्न हो, आध्याित्मकक्षेतर् का िसरताजबने।इसके
िलये जागृत होकर हम सबको िमलकर पयास करना चािहए।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बब.बब. बबबबबब बबबबब बबबबबबबब बब बबबबब बबबबबब बबबबबब
बबबब बब-बबबबबब बब बबबबब बब बबबबबब बबबब
िहन्दुस्तान की िमट्टी में ऐसी खािसयत है िक यहाँ कोई भगत िसंह हो जाता
है, कोई दयानंद हो जाता है, कोई िववेकानंद हो जाता है। यह इस माटी की
खािसयत है िक यह माटी कभी वीरिवहीन नहीं रही है। हजारों वषोर्ं से इस देश
का यही इितहास है। इससे पाश् चात्यदेशों के लोगों को डर लगता है। उस डर को
खत्म करने के िलए उन्होंने ने यह सूतर् अपनाया िक िहन्दुस्तान का कोई भी
नौजवान स्वामी िववेकानन्द न होने पाय। िहन्दुस्तान का हर नौजवान माइकल
जैक्सन हो जाय। इसकी तैयारी वे लोग कर रहे हैं। उनको पता है िक इस देश में माइकल जैक्सन हो
जायेंगे तो िचन्ता की कोई बात नहीं क्योंिक वे इस देश को बेचने का ही काम करेंगे। भारतीय
संस्कृित को ही बेचने का काम करेंगे। अगर कोई दूसरा िववेकानन्द खड़ा हो गया तो इस देश से
बहुराष्टर्ीयवाद को मार-मारकर भगा देगा। इससे बचने के िलए उन्होंने एक िघनौना षडयंतर् रचा िक
िहन्दुस्तान के नौजवानों का चिरतर् खत्म करो और इस कायर्कर्म को सफल बनाने के िलए वे लोग
जी.टी.वी., स्टार टी.वी., पर्ाइम स्टार जैसे चौदह-पन्दर्ह टेिलिवजन चैनल इस देश में लाये और इन
चैनलोंपररातिदनको कुछिदखायाजाताहैवहमनोरंजननहींबिल्कहमारेचिरतर्को बबार्दकर देने का एकसाधनहै।आजलोगोंसेपूछा
जाता है िक आपके घर में एंिटना से िडश ऐंिटना कैसै लगा तो जवाब िमलता है मनोरंजन के िलये।
तो क्या िडश ऐंिटना के िबना िकसी का मनोरंजन नहीं होगा ? इस बात पर िवचार करे। िजसके पास िडश ऐंिटना नही है
उसने केबल कनेक्शन ले िलया इसका मतलब यही होता है िक बबार्दी का साधन ले िलया और वो भी
मनोरंजन के नाम पर ! इस देश मे धनय तो वे लोग है जो िडश और केबल कनेकशन देकर अपने घर और पडोसी के घर मे भी आग
लगा रहे है। िजस िकसी घर मे घुसो तो वहा टी.वी. चलरहाहोताहै।पूछोिक क्याकर रहेहै?ं तो जवाब िमलता है िक िदनभर
काम से थक जाते हैं इसिलए कुछ तो मनोरंजन के िलए चािहए न। छोटे-छोट े ब च च े , उनके माता-िपता
और दादा-दादी तीन-तीन पीिढ़याँ एक साथ बैठी हैं और देख क्या रही हैं ? ऐसेअश्लीलदृश्य, गानेजोहमअपनी
माताओं और बहनों के सामने गा नहीं सकते, सुन नहीं सकते कसेगीत अपने बच्चों को क्यों िदखाये
और सुनाये जाते है ? गीतिलखनेवालोंनेतोअपनाशरीर, अपनी कला, अपना ईमान यह सब कुछ बेच डाला है, जीवन
बबार्द कर डाला है। उससे भी बुरी बात दूसरी यह है िक घर-घर में जहाँ अभी भी भारतीय संस्कृित की
बातें कहीं जाती हैं, िजस देश में बचपन से ही यह िसखाया जाता है िक 'यतर् नायर्स्तु पूजयन्ते,
रमन्ते ततर् देवता'. अभी उसी देश ये अश् लीलदृश् यऔर गाने िदखाकर इस देश की संस्कृित का कबाड़ा
नहीं तो और क्या कर रहे हैं ? वास्तव में इस देश के युवकों को गाना चािहए 'मेरा रंग दे बसंती
चोला, हम भारत देश के वासी हैं, हम ऋिषयों की संतानें हैं, हम परमगुरू के बच्चे हैं' लेिकन इसकी
जगह हम गा रहे हैं अश् लीलगाने। यह संस्कृित का िवनाश नहीं तो और क्या है ?
यह मनोरंजन नहीं है बिल्क घर-घर में सुलगती वह आग है जो जब भड़केगी तो आपसे देखा
नहीं जायेगा िक आपके बच्चे क्या कर रहे हैं। टेलीिवजन में जो िफल्में िदखाई जाती हैं वे
अक्सर दो ही चीजें िदखाती हैं। एक तो अश् लीलताऔर दूसरी िहंसा। दोनों ही चीजें इतनी मातर्ा में
िदखायी जाती हैं िक आदमी के िदल-िदमाग पर ये िचतर् छप जाते हैं। क्या आप जानते हैं िक आपके
ये नौिनहाल बालक िजनको आप तो डॉक्टर, इनजीिनयर, िशकक बनाने का सपना देखते है लेिकन आप इनहे खुद कया िदखा रहे है
? सामान्यतः एक छोटा बच्चा एक िदन में पाँच घण्टे टी.वी. देखता है और होता क्या है िक स्कूल से
आया, बस्ता फेंका और टी.वी. खोल कर बैठ गया। अब माँ बोलेगी िक बेटा ! गृहकायर करो तो वह टी.वी. के
सामने करेगा, भोजन भी टी.वी. के सामने करेगा। माँ बोलेगी िक बेटा ! खेलने जाओ तो बच्चा जवाब
देता है िक िफल्म आ रही है, गानेआरहेहैं।हमनहींजाएँगे।गानेसुनेंग , ेटी.वी. देखेंगे आिद। इससे बच्चों का
आपसमेख ं ेलने
सेजोघुलिमलजानेका, पर्ेमभाव का वातावरण जो उनके मिस्तष्क में बनना चािहए वह न बनकर
अब उसकी जगह अश् लीलताव िहंसा ने ले ली है और बच्चों को ही बात नहीं बड़ों को भी देिखये िक एक
बार टी.वी. खोलकर बैठ गये और उन्हें लग भी रहा है िक यह दृश् यनहीं देखना चािहए, िफर भी हमारा उसे बनद
करने का दृढ़ िववेक नहीं होता। हम इतने गुलाम हो गये हैं, कमजोर हो गये हैं, भर्ष्ट हो गये है।
आपकेबच्चेउन दृश् योंको कई-कई घंटे देखते रहते हैं। कुछ िनकाले गये आँकड़ों के अनुसार एक 3 साल
का बच्चा जब टी.वी. देखना शुरू करता है और उसके घर में यिद केबल कनेक्शन पर 12-13 चैनलउपलब्धहैं
तो पर्ितिदन 5 घंटे के िहसाब से वह बच्चा 20 साल की उमर् में जब पहुँचता है तो अपनी आँखों के
सामने 33 हजार हत्याएँ देख चुकता है और लगभग 72 हजार बार वह बच्चा अश् लीलताव बलात्कार के
दृश् यदेखता है। यहाँ एक बात गम्भीरता से सोचने है िक मोहनदास करमचंद गाँधी नाम का एक छोटा सा
बच्चा एक या दो बार हिरश् चन्दर्का नाटक देखने के बाद सत्यवादी हो गया और वही बच्चा महात्मा गाँधी
के नाम से आज भी पूजा जा रहा है और पूजा जाता रहेगा। तो हिरश् चन्दर्का नाटक जब िदमाग पर इतना
असर करता है िक िजन्दगीभर सत्य और अिहंसा का पालन करने वाला हो गया तो जो बच्चे 33 हजार बार
हत्याएँ और 70-72 हजार बार बलात्कार के दृश् यदेख रहे हैं वे क्या बनने वाले हैं ? आपभलेझूठी
उम्मीद करें िक आपका बच्चा बड़ा इंजीिनयर बनेगा, वैज्ञािनक बनेगा, योग्य सज्जन बनेगा, महापुरूष
बनेगा, लेिकन 72 हजार बलात्कार और 33 हजार हत्याएँ देखने वाला बच्चा क्या खाक बनेगा ? लेिकन यह बात
सत्य है िक आपका बच्चा हो सकता है िक कहीं गली का मािफया बन जाय, डॉन बन जाय। यही बालक िदन रात
टी.वी. पर बलात्कार और अश् लीलदृश् यदेखेगा तो आप देखेगा िक उमर् के एक दौर में पहुँचकर सड़क
के िकनारे खड़ा हो जायेगा और कोई भी बहन जायगी तो सीटी बजाएगा, टोट कसेगा। आप जरा अपने आपसे तो
पूिछये िक हमारी बहन-बेिटयों को सड़क चलते छेड़ने वाले ये लोग कहाँ से पैदा हो रहे हैं ?
उनमें बुराई कैसे फैलती है ? कौन हैं ये लोग ? इतनी हैवािनयत और राकसी वृितवाले वयिकत जो 5 और 10 साल की
बिच्चयों को भी नहीं छोड़ते और उन्हें अपनी अंधी हवस का िकार श ब ना लेते हैं ऐसे लोग कहाँ से
आतेहै?ं इनको ये सब कौन िसखाता है ? क्या िकसी स्कूल में पढ़ाया जाता है या कहीं ऐसी टर्ेिनंग दी जाती है ?
िहन्दुस्तान की कौन सी स्कूल और कौन सी िकताब में यह सब पढ़ाया जाता है ? जब ये बुराई िकसी स्कूल
में नहीं पढ़ाई जाती, घर में भी नहीं िसखाई जाती उसके बावजूद भी ये बुरे लोग कहाँ से आ जाते हैं
? उसके दो ही कारण हैं या तो टी.वी. या िफर िसनेमा। इस िहंसा का असर इतना खतरनाक होता है िक
िजतनी बार आपका बच्चा मारामारी और िहंसक दृश् यदेखता है उतनी बार उसके हृदय से दयाभाव,
करूणाभाव व पर्ेमभाव खत्म हो जाता है।
हमारे शास्तर्ों में कहा गया है िकः जब हमारे हृदय से दया ही खत्म हो जायगी तो िफर धमर् कहाँ
से बचेगा ?
यह िहंसा हमें जानबूझकर िदखाई जा रही है। ऐसा नहीं है िक अच्छे कायर्कर्म िदखाने वाले
लोग नही है। अचछे कायरकम बनाने वाले लोग भी है और िदखाने वाले लोग भी है लेिकन जानबूझकर वे सेकस अथवा मारामारी ही तो िदखाते
हैं। यह िहंसा, कर्ूरता, छल -कपट, अश् लीलताके दृश् यदेखते-देखते आज हम इतने संवेदनशू न्यहो
गयेहैिक 1984 में भोपाल में जब 10000 लोग मर गये तो िकसी की आँखो मे आँसू नही िनकले। िसनेमा और टी.वी. पर
मारामारी देखकर हमारे िदल की करूणा जो िनतांत आवश् यकहै वो आज िबल्कुल सूख चुकी है। हमारे
सामने कत्ल हो जाता है और हम सामने से चुपचाप िनकल जाते हैं। सारी इन्सािनयत, सारी मानवीयता
एक तरफ धरी रह जाती है। टी.वी. का असर इतना हावी होता है। इसिलए टी.वी. के इस आकर्मण को हम रोक लें
नहीं तो हमारा घर भी नहीं बचेगा. देश बचेगा या समाज बचेगा यह तो दूर की बात है। हम िसफर् अपना ही
घर बचा लें तो बहुत है। हम घर को बचाने से समाज, देश व िवश् वबच सकेगा हर माँ-बाप के िलए अपना
बच्चा दुिनया में सबसे लाडला व्यिक्त होता है और उसी को हमने उन भेिड़यों के बीच झोंक िदया है
जो यह तक नहीं जानते िक मानवीयता क्या होती है ? दया क्या होती है ? आजघर-घर में टी.वी. के िलए
होड़ लग गई है। क्या आप जानते हैं िक यह आपको क्या िसखाता है ? घर की बढ़े शान, पड़ोसी की जले
जान और नेवसर् एनवी ओनसर् पर्ाइड अथार्त् आपके घर की शान तब बढ़ेगी जब पड़ोसी की जान जलेगी।
आपकाधमर् कहताहै'वसुधैव कुटुम्बकम्' और टी.वी. कहता है िक पड़ोसी की जान जलाओ और हम अपने पड़ोसी
की जान जलाने के िलए ओिनडा खरीद लाय और पड़ोसी हमारी जान जलाने के िलए ओिनडा खरीद लाय
और दोनो पडोसी एक दूसरे की जान जलाने के िलए लगे हुए है। कब दोनो के घर जल जाएँगे िकसी को नही मालूम। एक बात गंभीरता से
सोचने की है िक जब िकसी ईमानदार युवक के िदमाग में यह बात बैठ जायेगी िक घर की शान तब बढ़ेगी
जब ओिनडा आयेगा लेिकन उसकी जेब में दस रूपया भी नहीं है और ओिनडा टी.वी. के िलए 17000 रूपये
चािहएतोरातिदनउसकेिदमागमेय ं हधनचक्करशु रू होजाएगाऔरएकिदन ऐसा आयेगािक 17000 रूपये के िलए वह अपने
ईमानको, अपने देश को बेच देगा, क्योंिक ओिनडा जो लाना है। और यहीं से एक ईमानदार आदमी के
बेईमान होने की कहानी शुरू हो जाती है। यही बात जब उसके िपता के मन में आती है तो वे कहते हैं
िक लाओ, कहीं से िरश् वतक्योंिक इसके िबना घर की शान नहीं है और मान लीिजए िक यही बात अगर उसकी
माँ के िदमाग में बैठ गई और वह कहीं नौकरी नहीं करती, गृिहणी है तो जानते है वह कया कहेगी ? कहेगी के अब
इस लडके की जब शादी करेगे तो दहेज मे लेगे। तो एक ईमानदार मा बेईमान होगी। शादी के बाद पता चला िक घर मे सारा सामान आ गया
लेिकन एक टी.वी. नहीं आया तो आने वाली उस दुल्हन को हम दहेज के िलए िजन्दा जला देंगे। ऐसा भी इस
देश में बहुत जगह होता है। एक टी.वी. के िलए हम एक जीती जागती मिहला को जला देते हैं। इससे
ज्यादा संस्कृित की िनकृष्टता क्या हो सकती है िक हमारे समाज में एक जीती जागती बहन से ज्यादा
कीमत टी.वी. की हो गई है और जबसे ऐसी कीमतें लगनी शुरू हो गई हैं तबसे आप देिखये अखबारों में
कोई िदन बाकी नहीं जाता जब दहेज के िलए िकसी की हत्या न होती हो।
तो इन सब तथ्यों को पढ़ जान लेने के बाद हमें चािहए िक हम आज से ही वंश नाशनी, कुल
कलंकनी चैनलों से अपने पिरवार की रक्षा करें। काट दो कनेक्शनों को।
सभी देशवासी िमलकर कदम उठायें, कन्धे से कन्धा िमलाकर उन िहंसक, भर्ष्ट, दयाभाव से रिहत,
दुगुर्ण अिभवधर्क चैनलों का कड़ा िवरोध करें। हमें चािहए समािजक, नैितक एवं मानिसक रूप से
उन्नत करने वाली िफल्में िजससे हमारी संस्कृित सुरिक्षत रह सके। हमारे जीवन का उत्थान करने
हेतु उच्च गुण सम्पन्न कायर्कर्मों को चलाने की माँग की जाय िजससे बालकों, युवाओं में दुगुर्ण,
दुभार्व न पनपकर स्नेह, सदाचार, सहनशीलता, करूणाभाव, आत्मीयता, सेवा-साधना, सच्चाई, ईश् व-भिक् र त, माता-
िपता व गुरूजनों के पर्ित आदरभाव जैसे महान गुण पनपें िजससे हमारा भारत देश िदव्य गुण सम्पन्न
हो। आध्याित्मक क्षेतर् में िफर से िसरताज बने। हमें इसके िलए जागृत होकर बुराई को हटाने का
िनभर्यता से पुरूषाथर् करना चािहए। हम अपने भाग्य के िवधाता स्वयं हैं।
अनुकर्म
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सतर् 11
बबब बबब बबबब बब बबबबब बबबबब बबब
बबबबबबबबबब
फालगुन पूिणरमा को मनाया जाने वाला पवर 'होली' वषर् का अंितम पवर् है। यह कसापवर् है िजसमें सभी वणोर्ं
के लोग िबना िकसी सदभाव के सिम्मिलत होते हैं।
पर्ाचीन काल में होिलकोत्सव के अवसर पर वेद के बबबबबबबब बबबबबबब.... आिदराक्षस
िवनाशक मंतर्ों से यज्ञ की अिग्न में हवन िकया जाता था और इसी पूिणर्मा से पर्थम चतुमार्स सम्बन्धी
वैश् वदेवनामक यज्ञ का आरंभ होता था, िजसमें लोग खेतों में तैयार की हुई नयी आषाढ़ी फसल के
अन्न – गेहूँ, जौ, चनाआिदकी आहुितदेकरउस अथार्तबचेहुएअन्नको यज्ञशेषपर्सादकेरू प मेग ं र्हणकरतेथे। यज्ञांतमेल
ं ोग
उस भस्म को िसर पर धारण करके वंदना िकया करते थे, िजसका िवकृत रूप आज राख को बलात् लोगों पर
उड़ाने के रूप में रह गया है। उस समय का धूिलहारी शब्द ही आज ही िवकृत होकर धुलैंडी बन गया है।
शबदकोष गनथो के अनुसार भुने हुए अन को संसकृत भाषा मे होलका नाम से पुकारा जाता है। अतः इसी नाम पर होिलकोतसव का
पर्ारंभ मानकर इस पवर् को हम वेदकालीन कह सकते हैं। आज भी होिलकादहन के समय डंडे पर बँधी
गेहू
-ँजौ की बािलयों को भूनते हैं – यह पर्ाचीन होिलकोत्सव की ही स्मृित िदलाता है।
वैिदक काल में यज्ञ के रूप में मनाये जाने वाले पवर् होिलकोत्सव में समय के साथ अनेक
ऐितहािसकघटनाएँ जुड़तीगयीं।नारदपुराणकेअनुसारयहपिवतर् िदनपरमभक्प तर्ह्लकीिवजय
ाद औरिहरण्यश क ि की
पु बहनहोिलकाके
िवनाश की स्मृित का िदन है।
भिवष्य पुराण में इस पवर् से सम्बिन्धत एक और घटना का उल्लेख िमलता है। कहा जाता है िक
महाराजा रघु के राज्यकाल में ढुण्ढा नामक राक्षसी के उपदर्वों से भयभीत पर्जाजनों ने महिषर्
वश िष्ठके आदेशानुसार बालकों को लकड़ी की तलवार ढाल आिद देकर हो हल्ला मचाते हुए (राक्षसी
िवनाशाथर् आचरण का अिभनय करते हुए) स्थान-स्थान पर अिग्न-पर्जव ् लन तथा अिग्न-कर्ीड़ा आिद का
आयोजनिकयाथा औरइस पर्कारवहराक्षसीबाधावहाँसवर्थाशांतहोगयीथी। वत्तर्मानमेह ं ोिलकोत्सवमेबं ालकोंका उपदर्वकरनाऔर
हो हल्ला मचाना आिद बातें इसी घटना की देन कही जाती है।
मानव समाज के िहत को ध्यान में रखते हुए हमारे अन्य पवोर्ं की भाँित होली के पीछे भी ऋिष-
मुिनयों का एक िवशेष दृिष्टकोण रहा है। होली मनाने की रीित मानव-स्वास्थ्य पर बड़ा पर्भाव डालती है।
देशभर में एक साथ एक रात में संपन्न होने वाला होिलकादहन शीत और गर्ीष्म ऋतु की संिध में होने
वाली अनेक बीमािरयों जैसे – खसरा, मलेिरया आिद से रक्षा करता है। जगह-जगह पर पर्ज्विलत
महाअिग्न की पर्दीप्त ज्वालाएँ आवश् यकतासे अिधक ताप द्वारा समस्त वायुमंडल को उष्ण बनाकर जहाँ
एक ओर रोग के कीटाणुओं को संहार कर देती है, वही दूसरी ओर पर्दिक्षणा के बहाने अिग्न की पिरकर्मा करने से
शरीरसथ रोग के कीटाणु को भी नष करने मे समथर होती है।
इस ऋतु मे शरीर के कफ के िपघलने के कारण सवाभािवक ही आलसय की वृिद होती है। महिषर सुशुत ने वसंत को कफ-कोपक
ऋतु माना हैः
बबबबबबबब बब बबबबबब बबबबबबबबबबबबब बबबबबब।
बबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबबबबब बबबबबब बबबबब।।
'िशिशर ऋतु मे इकटा हुआ कफ वसंत मे िपघल-िपघलकर कुिपत होकर जुकाम, खाँसी, शास, दमा आिद नाना
पर्कार के रोगों की सृिष्ट करता है।'
इसका शमन करने के िलए कहा गया हैः
बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब । बबबबबब
बबबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबबबबब।।
'तीक्षण वमन, तीक्षण नस्य, लघु रक भोजन, व्यायाम, उद्वतर्न और आघात आिद का पर्योग कफ को शांत
करता है।'
होली के िदन िकया जाने वाला गाना-बजाना, कूदना-फादना, भागना-दौड़ना आिद सब ऐसी ही िकर्याएँ
हैं िजनसे कफ पर्कोप शांत हो जाता है और सहसा कोई कफजन्य रोग या अन्य बीमारी नहीं होती।
होली रंग का त्योहार है। इस पवर् पर िजस रंग के पर्योग का िवधान शास्तर्कारों ने िकया है वह
है पलाश अथार्त् ढाक के फूलों टेसुओं का रंग। हमारी संस्कृित में ढाक एक पुनीत वृक्ष माना जाता है।
बर्ह्मचारी को उपनयन के समय ढाक का ही दंड धारण करवाया जाता है एवं सवर् साधारण के िलए यथाथर्
सिमधा भी ढाक की ही बतलायी गयी है।
ढाक के फूलो से तैयार िकया गया रंग एक पकार से उसके फूलो का अकर ही होता है। उस रंग मे भीगा हुआ कपडा शरीर पर डाल
िदया जाय तो रंग शरीर के रोमकूपों के द्वारा आभ्यान्तिरक स्नायु मंडल पर अपना पर्भाव डालता है और
संकर्ामक बीमािरयों को शरीर के पास फटकने तक नहीं देता। यज्ञ मधुसूदन के अनुसारः
बबबबबबबब बबब बबबबबब । बबबबबब बबबब बबबबबबबब
बबबब बबबबबब बबबबबबबब ।। बबबबबबबबबबब ब बबबबबबबबब
'ढाक के फूल कुष, दाह, वात, िपत्त, कफ, तृषा, रक्तदोष एवं मूतर्कृच्छ आिद रोगों का नाश करने में
सहायक है।'
िसंघाड़े के आटे से तैयार िकया गया गुलाल भी ऐसी ही पिवतर् वस्तुओं में से है। पर्ाचीन
भारत की होली में पलाश के पुष्पों का रंग, गुलाल, अबीर और चंदन का ही उपयोग िकया जाता था। वत्तर्मान
में िजन रंगों का पर्योग िकया जाता है उनका िनमार्ण िविभन्न रासायिनक (कैिमकल) तत्त्वों से होता
है जो श्वास एवं रोमकूपों द्वारा शरीर को बड़ी हािन पहुँचाते हैं। अतः इन रासायिनक रंगों से सावधान
रहें.....
जब वैिद ढंग से होली मनायी जाती थी, उस जमाने में मानिसक तनाव-िखंचाव आिद नहीं होते
थे, िकन्तु आज जहरीले रंगों के पर्योग से, कीचड़ आिद उछालने से एवं शराब आिद पीने िपलाने से
होली का रूप बड़ा िवकृत हो गया है।
जहरीले रंगों की जगह पलाश के रंग का पर्योग करें तो अच्छा है। इससे भी बढ़कर है िक परम
पावन परमात्मा के नाम संकीतर्न में रंगे-रँगायें एवं छोटे बड़े, मेरे-तेरे के भेदभाव को
भूलकर सभी में उसी एक सत्यस्वरूप, चैतन्यस्वरूपपरमात्मािकिनहारेत
ं थाअपनाजीवनधन्यबनानेकेमागर्
परअगर्सरहों....
अनुकर्म
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बबबबबबब बब बबब बबबबब बब
मानव के सवार्ंगीण िवकास में उसका व्यिक्तत्व एक अहम् भूिमका अदा करता है और उसके
व्यिक्तत्व के िवकास में रंगों का अपना अलग महत्व है। यिद िकसी व्यिक्त को पहचानना हो, उसके
स्वभाव का आकलन करना हो, उसके व्यिक्तत्व का अनुमान लगाना हो तो वह उसकी वेशभूषा और उसके
द्वारा पसंद िकये गये रंगों के आधार पर सहजता से लगाया जा सकता है।
एक सजजन और शात सवभाव की मिहला ने घर बदला और नये घर मे िडजाइनयुकत कलर करवाया... लाल, गुलाकुछिदनोंकेबाद
उस मिहला का स्वभाव बड़ा िचड़िचड़ा हो गया, िखन्न हो गया। इस बात की जाँच की गयी िक वह नये मकान
में आकर िचड़िचड़े स्वभाव की क्यों हो गयी ? जाँच करते करते पता चला िक उसके िनजी कक्ष की
दीवारों के रंग का उसके मन पर असर हुआ है।
आपकेमनपररंगोंका पर्भावपड़ताहैऔरआपकेस्वभावकेअनुसारहीआपकोकुछिवशेषरंगअच्छेलगतेहैं।आपकोिकस रंग
के वस्तर् पसंद हैं ? इसके आधार पर आपके सवभाव को मापा जा सकता है। जैसे
बबबब बबबब िजसको गेरू रंग के वस्तर् (िमल के नहीं) पसंद हैं तो समझो िक वह व्यिक्त
संयमिपर्य है, तपिपर्य है और भगवा रंग तप करने में मदद भी करता है। ऐसा व्यिक्त स्वच्छता पसंद
करता है और उसके स्वभाव में सज्जनता का गुण पर्बल होता है यह भगवे रंग का पर्भाव है।
बबब बबबब अगर आपको लाल रंग पसंद है या आप लाल रंग के वस्तर् पहनते हैं तो यह
मांगल्य का सूचक है। लाल रंग अथार्त् ितलक (कंकु) लगाने वाला या गुलालवाला लाल रंग गाढा लाल नही। एकदम गाढा
लाल रंग तो कामुकता की खबर देता है,लेिकन कुमकुम, गुलालआिदको मांगल्यमानाजाताहै , इसीिलए ितलक करने और पूजन मे इनका
पर्योग िकया जाता है। ऐसा रंग शौयर्िपर्यता का पर्तीक है और िवजयी होने की पर्ेरणा भी देता है।
बबबब बबबब पीला रंग ज्ञान, िवद्या, सुख-शाितमय सवभाव और िवदता का पतीक है। पीला अथात् हलदीमय
पीला।
बबब बबबब अगर आप हरा रंग पसंद करते हैं या हरी-भरी पर्कृित को पसंद करते हैं तो इससे
सुंदरता, मन की शांित, हृदय की शीतलता तथा उद्योगी, चुस्तऔरआत्मिवशवासी ् िचत्तकी खबरआतीहै।
बबबब बबबब अगर िकसी को आसमानी नील रंग पसंद है तो इससे िसद्ध होता है िक उसके िचत्त
में औदायर् है, व्यापकता है। नीला रंग पसंद करने वाले व्यिक्त में पौरूष, धैयर, सत्य और धमर्रक्षण
की वृित्त दृढ़ होती है।
एक संनयासी एक पिसद सकूल मे गये और उनहोने बचचो से पूछाः
"शीकृषण का वणर शयाम कयो है ?"
सब बच्चे और िक् श षतक ाकते रह गये , लेिकन कुछ देर बाद पूरे सकूल की लाज रखने वाला एक िवदाथी उठा और
बोलाः "भगवान शर्ीकृष्ण का वणर् श्याम इसिलए है िक शर्ीकृष्ण व्यापक हैं।"
संन्यासीः "इस बात का कया पमाण है ?"
िवद्याथीर्ः "जो वस्तु व्यापक होती है वह नील वणर् की होती है। जैसे सागर और आकाश व्यापक
हैं, अतः उनका रंग नीला है। ऐसे ही परमात्मा व्यापक हैं। उनकी व्यापकता को बताने के िलए उनके
साकार शर्ीिवगर्ह का रंग नील वणर् बताया गया है।"
पूछने वाले संन्यासी थे स्वामी िववेकानंद और उत्तर देने वाला िवद्याथीर् था मदर्ास के
होनहार मुख्यमंतर्ी राजगोपालाचायर्।
बबबबब बबबब इसमे सब रंगो का आंिशक समावेश पाया जाता है। यह रंग पिवतता, शुदता, शाितिपयता और िवदािपयता
का पर्तीक है।
बबबब बबबब काला रंग, शोक, दुःख, िनराशा, पतन, पलायनवािदता और स्वाथर्िपर्यता को दशार् ता
है।
बबबबबब बबबब मटमैला रंग गंभीरता, िवनमर्ता, सौम्यता, लजजा और कमरठता का पतीक माना गया है।
इस पकार रंग मानव-स्वभाव का िचतर्ण करने में अपनी महत्त्वपूणर् भूिमका अदा करते हैं।
इन सब वसतो के रंग तो ठीक है.....अच्छे हैं, लेिकन धोते-धोते फीके पड जाते है, जबिक आत्मरंग कसारंग है जो
कभी फीका नहीं पड़ता, बदरंग नहीं होता। शर्ी भोले बाबा कहते हैं-
बब बब बबब बबबबब बबबब बबब बब बबब बबबबब बबब बबबब।
और वह पका रंग है – बबबबबब बबबबबबबबबब बब बबब, बबबबबबब-बबब।
मीरा ने भी कहाः
बबबबब बबबब बबबब बबब बब बबबबबबब, बबब बबब बब बबब बबबबब बबबब,
बबबब बबबब बबबब बबबब बबबबबब.....
हमारी इिन्दर्यों पर, हमारे मन पर संसार का रंग पड़ता है। रंग लगता भी है और बदलता भी
रहता है, लेिकन भिकत और जान का रंग यिद एक बार भी लग जाय तो मृतयु के बाप की भी ताकत नही है िक उस भिकत और जान के रंग
को छुड़ा सके।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 12
बबबब बबबबबब बब बबबबब बब बबबबब
घिटत घटना हैः पर्िसद्ध गामा पहलवान, िजसका मूल नाम गुलाम हुसैन था, से पतर्कार जैका
फेड ने पूछाः "आपएकहजारसेभीज्यादाकुशि ्तयाँखेलचुकेहैं।कसमखानेकेिलएभीलोगदो-पाँच कुशि ्तयाँ हार जाते
हैं। आपने हजारों कुशि ्तयों में िवजय पायी है और आज तक हारे नहीं हैं। आपकी इस िवजय का
रहस्य क्या है ?"
गुलामहुसैन(गामापहलवान) ने कहाः "मैं िकसी मिहला की तरफ बुरी नजर से नहीं देखता हूँ। मैं जब
कुश् तीमें उतरता हूँ तो गीता नायक शर्ीकृष्ण का ध्यान करता हूँ और बल की पर्ाथर्ना करता हूँ। इसीिलए
हजारों कुशि ्तयों में मैं एक कुश् तीभी हारा नहीं हूँ, यह संयम और शर्ीकृष्ण की ध्यान की मिहमा है।"
बर्ह्मचयर् का पालन एवं भगवान का ध्यान.... इन दोनो ने गामा पहलवान को िवशिवजयी बना िदया ! िजसके
जीवन में संयम है, सदाचार है एवं ईश् वर-पर्ीित है वह पर्त्येक क्षेतर् में सफल होता ही है इसमें
सन्देह नहीं है।
युवानों को चािहए की गामा पहलवान के जीवन से पर्ेरणा लें एवं िकसी भी स्तर्ी के पर्ित कुदृिष्ट
न रखें। इसी पर्कार युवितयाँ भी िकसी पुरूष के पर्ित कुदृिष्ट न रखें। यिद युवक-युवितयों ने इतना भी कर
िलया तो पतन की खाई मे िगरने से बच जायेगे कयोिक िवकार पहले नेतो से ही घुसता है बाद मे मन पर उसका पभाव पडता है। िफलम के
अश् लीलदृश् यया उपन्यासों के अश् लीलवाक्य मनुष्य के मन को िवचिलत कर देते हैं और वह भोगों में
जा िगरता है। अतः सावधान !
मन को ऐसे ही दृश् यिदखायें िक मन भगवन्मय बने। ऐसा ही सत्सािहत्य पढ़ें िक मन में ईश् वर-
पर्ािप्त के, ईश् व-रपर्ीित के िवचार आयें। िकसी के भी पर्ित कुदृिष्ट न रखें। जैसे गामा पहलवान ने यह
सूतर् अपनाया और सफल रहा वैसे ही यिद भारत का युवावगर् यह सूतर् अपना ले तो हर क्षेतर् में सफल
हो सकता है।
शाबाश, भारत के नौजवानो, शाबाश ! आगेबढ़ो..... संयमी व सदाचारी बनो.... भारत की गौरवमयी गिरमा को
पुनः लौटा लाओ..... िवश् वमें पुनः भारत की िदव्य संस्कृित की पताका फहराने दो....
संयम-सदाचार व भगवद्पर्ीित से पिरपूणर् जीवन तुम्हें तो उन्नित के िखर श प र आरूढ़ करेगा ,ही
तुम्हारे देश की आन-बान और शान की रक्षा में भी सहायक होगा ! करोगे न िहम्मत ! 'युवाधन सुरक्षा
अिभयान' के तहत भारत के युवा आप तो चेतेंगे ही, औरो को भी दलदल मे िगरने से बचाये.... पर्यत्न करना िक
भारत के हर युवक तक 'युवाधन सुरक्षा' की पुस्तकें (भाग 1 व 2) पहुँचे। सभी युवक-युवितयाँ बर्ह्मचयर् की
मिहमा को समझें, समझायें एवं जीवन को ओजस्वी-तेजस्वी बनायें।
अनुकर्म
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बबबबब-बबबब बब बबबब बबबबबब बबब
मौन का अथर् है अपनी वाक् शिक्त का व्यय न करना। मनुष्य जैसे अन्य इिन्दर्यों के पर्योग से
अपनी शिक्त खचर् करता है, वैसे ही बोलकर भी अपनी शिक्त का बहुत व्यय करता है। अन्य इिन्दर्यों के
माध्यम से अपनी शिक्त खचर् करने में मनुष्य, पशु ओंएवं पिक्षयों में समानता है परन्तु वाणी के
पर्योग के सम्बन्ध में मनुष्य की िस्थित अन्य पर्ािणयों से िभन्न है। मनुष्य वाणी के संयम द्वारा
अपनी शिक्त का िवकास कर सकता है। अतः अपनी शिक्त को अपने अन्दर संिचत करने के िलए मौन धारण
करने की आवश् यकताहै।
बबब बब बबबबबब पर्ायः देखा गया है िक मनुष्य अपनी बोलने की शिक्त का अपव्यय करता है,
दुरूपयोग करता है। संसार में अिधकांशतः झगड़े वाणी के अनुिचत पर्योग के कारण ही होते हैं। यिद
मनुष्य समय-समय पर मौन धारण करे अथवा कम बोलकर वाणी का सदुपयोग करे तो बहुत सारे झगड़े तो
अपने आप ही िमट जावेंगे।
बबब बबबबबबब वास्तव में, मौन शीघर् ही साधा जा सकता है परन्तु लोगों को बोलने की ऐसी
आदतपड़गईहैिक सरलतासेसधनेवालामौनभीउन्हेकिठनमालूमहोताहै।मनकोिस्
ं थररखनेमेम ं ौनबहुतहीसहायकहोताहै।
िस्थर मन से मनुष्य में िछपी हुई आन्तिरक शिक्तयों एवं साित्त्वक दैवी गुणों का िवकास होता है। अतः
सामथ्यर् की वृिद्ध के िलए कम बोलना अथवा िजतना सम्भव हो सके मौन धारण करना आवश् यकहै।
बबबबबब बबब-बबबबब बबबब बबबब बब बबबब बब बब बबब बबब बबबब बबब।
आयुवेर्द
गर्न्थकश् यप-संिहता
कश् यपसंिहता आयुवेर्दशास्तर् का उत्तम गर्न्थ है। उसमें बोलने की पर्िकर्या बताते हुए कहा
गयाहैिक बबबबबबबबब-बबबबबब अथार्त् बोलने में स्पष्टता होनी चािहए लेिकन िवसंवाद नहीं होना
चािहए। िजसको कहनेसेलोगवाद-िववाद करने लगें, ऐसीिववादास्पबातको द लोगों
केसामने रखने की कोईआवश्यकतानहीं
होती। जो लोग बात बढ़ाने वाली बात नहीं बोलते, उनके शरीर में रोग नहीं होते। यिद स्वस्थ रहना
चाहतेहोतोवादिववादबढ़ाने वालीबातेमुँहसे
ं मतबोलो। वाद-िववाद बढ़ाने वाली बातों से शरीर में कई पर्कार के
रोगों का उदय हो जाता है। यह कश् यप-संिहता का मत है।
बबब बब बबब तोता हरे रंग का होता है। अतः जब वह िकसी हरे वृक्ष पर बैठा होता है तो
िचड़ीमारको वहनहींिदखतापरन्तुजबवहटे -टे
ं करता है तो िचडीमार उसे देख लेता है और बंदक
ू से िनशाना लगाकर उसे मार िगराता है।
जब तक तोता मौन था, तब तक आनंद में था परन्तु जब मुख से आवाज िनकली तो गोली का िकार श ह ो गया।
इसी पकार मनुषय मे भले ही हजारो दोष कयो न हो, मौन अथवा शान्त होकर ईश् वरका नाम जपने से वे दोष दूर होने
लगते है।
अनुकर्म
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सतर् 13
बबबबबबबबबबबब बब बबबब बबबब बबबब बबबबब
बबबब बब
जमशेदपुर (िबहार) में आयोिजत सत्संग समारोह में िवद्यािथर्यों के िलए रखे गये िवशेष
कायर्कर्म में बालकों को सम्बोिधत करते हुए पूज्य बापू ने कहाः "बबबबबब बबबब बबबब बबब
बबबबबबब बब बबब बबबबबबबब बबबबब बबबब बबबबबब बब। बबबबबबबबब बबबबब ।
बबब बब बबबबबबब बब बबबबबबब बबब बबबबबबबबबबबब बब बबबब बब बबब बब बब
बबबब बबबबबबबबबब बब । बब बब बबबबब बबबबबब बबबबब बब बबबब बब बबबब बब
बबबबब बब बबबबबबब बब बबबबब बबबब बबब बबबबबबबबब बब बबबबब बबबब बबब-
बबब। बबबबब बबबबब बबबब (बबब) बबब बब बबबबबबब बबबबबब बबब बबबब
बबबबबबबबबब बब बबबबब बबबबब बबब बबबबब बबबबब बब बबब बबबबब बब बबब।
बबबबब बबबबबबब बब बबब बब बबब । बबब बबब बबबबबबब बब बबब बबबबबबबबबब बब
बबबबबबब बब बबबबबब बबब बबबबबबबबबबबब । बब बबबबबबब बबब बब बबबबब
बबबबबब बब बबबबब बबब बबबबबबब बबबबबबब बबबबबब बबब बबबब 80 बबबब बबबबब
बब बबबबब बब बबबबबबबब बब बबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबब। ।
बबबबबब-बबबबबबब बबबबबबबबबब । बबब बबबबबबब बबबब बबबबबब बबब बबबब बब
बबबब बबबब बब बबबबबब बबबब-बब बबबब बबबबब बबब, बबबबबब बबब – बबब बबबब
बबबबबब बबबबबबबबबब बबब बबबबब बब बबबब बबबब बबबब बब बबबबब बबबब बब।
बबबब बब बबबबबब बबबबबबबबबबबब ब बबबब बबबब बबबबबबब बब बबबबब बब। बबबब
बबब बबबब बबबब बब बबबब बब बबबबबब । बबब बबबब बब बबबब बबबब बब बबबबब
बबबब बबब, बबब बबबबबब बब बबबब बबब बबब बबबबबब बबब बबबब बबबब बब बबबब
बबब बब बबब।"
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबबब बबबबब बबबबबब
पर्त्येक मनुष्य को अपने धमर् के पर्ित शर्द्धा एवं आदर होना चािहए। भगवान शर्ीकृष्ण ने भी
कहा हैः
बबबबबबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब।
बबबबबबबब बबबबब बबबबबब बबबबबबबब बबबबबब।।
"अच्छी पर्कार आचरण िकये हुए दूसरे के धमर् के गुणरिहत भी अपना धमर् अित उत्तम है। अपने
धमर मे मरना भी कलयाणकारक है और दूसरे का धमर भय को देने वाला है।"
(गीताः3.35)
जब भारत पर मुगलों का शासन था, तब की यह घिटत घटना हैः
चौदहवषीर्यहकीकतरायिवद्यालयमेप ं ढ़ने
वालािसंधीबालकथा। एकिदनकुछ बच्चोंनेिमलकरहकीकतरायको गािलयाँदीं।
पहले तो वह चुप रहा। वैसे भी सहनशीलता तो िहन्दुओं का गुण है ही..... िकन्तु जब उन उद्दण्ड बच्चों ने
गुरओ
ू ंकेनामकी औरझूलेलालव गुरू नानककेनामकी गािलयाँदेनाशु रू िकयातबउस वीरबालकसेअपनेगुरू औरधमर् का अपमान
सहा नहीं गया।
हकीकत राय ने कहाः "अब हद हो गयी ! अपने िलये तो मैंने सहनशिक्त का उपयोग िकया लेिकन
मेरे धमर्, गुरू औरभगवानकेिलएएकभी शब्दबोलोगेतोयहमेरीसहनशिक्तसेबाहरकी बातहै।मेरे पासभीजुबानहै।मैभं ीतुम्हें
बोल सकता हूँ।"
उद्दण्ड बच्चों ने कहाः "बोलकर तो िदखा ! हम तेरी खबर लेंगे।"
हकीकत राय ने भी उनको दो चार कटु शब्द सुना िदये। बस, उन्हीं दो चार शब्दों को सुनकर मुल्ला
मौलिवयों का खून उबल पड़ा। वे हकीकत राय को ठीक करने का मौका ढूँढने लगे। सब लोग एक तरफ और
हकीकतराय अकेला एक तरफ।
उस समय मुगलों का ही शासन था इसिलए हकीकत राय को जेल में कैद कर िदया गया।
मुगल शासकों की ओर से हकीकत राय को यह फरमान भेजा गया िकः "अगर तुम कलमा पढ़ लो और
मुसलमान बन जाओ तो तुम्हें अभी माफ कर िदया जायेगा और यिद तुम मुसलमान नहीं बनोगे तो तुम्हारा
िसर धड़ से अलग कर िदया जायेगा।"
हकीकत राय के माता-िपता जेल के बाहर आँसू बहा रहे थे िकः "बेटा ! तू मुसलमान बन जा। कम-
से-कम हम तुम्हें जीिवत तो देख सकेंगे !" ....लेिकन उस बुिदमान िसंधी बालक ने कहाः
"क्या मुसलमान बन जाने के बाद मेरी मृत्यु नहीं होगी ?"
माता-िपताः "मृत्यु तो होगी।"
हकीकत रायः "तो िफर मैं अपने धमर् में मरना पसंद करूँगा। मैं जीते-जीते जी दूसरों के
धमर मे नही जाऊँगा।"
कर्ूर शासकों ने हकीकत राय की दृढ़ता देखकर अनेकों धमिकयाँ दीं लेिकन उस बहादुर िकशोर पर
उनकी धमिकयों का जोर न चल सका। उसके दृढ़ िनश् चयको पूरा राज्य-शासन भी न िडगा सका।
अंत में मुगल शासक ने उसे पर्लोभन देकर अपनी ओर खींचना चाहा लेिकन वह बुिद्धमान व वीर
िकशोर पर्लोभनों में भी नहीं फँसा।
आिखरकर्रमुू सलमानशासकोंनेआदेशिदयािकः "अमुक िदन बीच मैदान में हकीकत राय का िरोच् श ि छेद क या
जायगा।"
उस वीर हकीकत राय ने गुरू का मंतर् ले रखा था। गुरूमंतर् जपते-जपते उसकी बुिद्ध सूक्ष्म हो गयी
थी। वहचौदहवषीर्यिकशोरजल्लादकेहाथमेच ं मचमातीहुई तलवारदेखकरजराभीभयभीतन हुआवरन्वहअपनेगुरू केिदयेहुएज्ञान
को याद करने लगा िकः "यह तलवार िकसको मारेगी ? मार-मारकर इस पंचभौितक शरीर को ही तो मारेगी
और ऐसे पंचभौितक शरीर तो कई बार िमले और कई बार मर गये। ....तो क्या यह तलवार मुझे मारेगी ? नहीं। मैं तो
अमर आत्मा हूँ.... परमात्मा का सनातन अंश हूँ। मुझे यह कैसे मार सकती है ? ॐ....ॐ.....ॐ......."
हकीकत राय गुरू के इस ज्ञान का िचंतन कर रहा था, तभी कर्ूर कािजयों ने जल्लाद को तलवार
चलानेका आदेशिदया। जल्लादनेतलवारउठायीलेिकनउस िनदोर्षबालकको देखकरउसकी अंतरात्माथरथराउठी। उसकेहाथोंसे
तलवार िगर पड़ी और हाथ काँपने लगे।
काजी बोलेः "तुझे नौकरी करनी है िक नहीं ? यह तू क्या कर रहा है ?"
तब हकीकत राय ने अपने हाथों से तलवार उठायी और जल्लाद के हाथ में थमा दी। िफर वह
िकशोर हकीकत राय आँखें बंद करके परमात्मा का िचंतन करने लगाः "हे अकाल पुरूष ! जैसे सांप
केंचुली का त्याग करता है वैसे ही मैं यह नश् वरदेह छोड़ रहा हूँ। मुझे तेरे चरणों की पर्ीित देना
तािक मैं तेरे चरणों में पहुँच जाऊँ.... िफर से मुझे वासना का पुतला बनकर इधर-उधर न भटकना पड़े.....अब तू
मुझे अपनी ही शरण में रखना.... मैं तेरा हूँ..... तू मेरा है.....हे मेरे अकाल पुरूष !"
इतने मे जललाद ने तलवार चलायी और हकीकत राय का िसर धड से अलग हो गया।
हकीकत राय ने 14 वषर् की नन्हीं सी उमर् में धमर् के िलए अपनी कुबार्नी दे दी। उसने शरीर
छोड िद या ल े िक न धमर न छोड ा।
बबबबबबबबबबबबब बबबबबब, बबबब बबबबब ! बबबबबबबबब,
बबब बबबब बबब ब बबबबबबब....
हकीकत राय ने अपने जीवन में यह चिरताथर् करके िदखा िदया।
हकीकत राय तो धमर् के िलए बिलवेदी पर चढ़ गया लेिकन उसकी कुबार्नी ने िसंधी समाज के
हजारों लाखों जवानों में एक जोश भर िदया िकः
"धमर की खाितर पाण देना पडे तो देगे लेिकन िवधिमरयो के आगे कभी नही झुकेगे। भले अपने धमर मे भूखे मरना पडे तो सवीकार है
लेिकन परधमर को कभी सवीकार नही करेगे।"
ऐसेवीरोंकेबिलदान केफलस्वरूपहीहमें आजादीपर्ाप्हुतई हैऔरऐसेलाखों -लाखो पाणो की आहुित दारा पापत की गयी इस
आजादीको हमकहींव्यसन, फैशन एवं चलिचतो से पभािवत होकर गँवा न दे ! अब देशवािसयों को सावधान रहना होगा।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 14
बबबबब बब बबब बब बबबबबब बब.......
एक िशषय ने अपने गुर से कहाः "गुरू जी! आपकेपासरहतेहुएमुझे22 साल हो गये। मैं रोज नंगे पैर चलता
हूँ, िभक्षा माँगकर खाता हूँ, संसार के आकषर्ण से बचा हूँ िफर भी अभी तक मुझे कोई अनुभूित नहीं हुई,
अभी तक साक्षात्कार नहीं हुआ ?"
गुरजू ी नेिचट्ठीिलखकर कहाः
"तू राजा जनक के पास ज्ञान लेने के िलए जा।"
िशषय चल पडा। जाते-जाते रास्ते में सोचने लगाः "गुरज ू ी नेराजाजनक केपाससेज्ञानलेने केिलएकहाहै
लेिकन राजा जनक तो राजय कर रहे है, राज्य-सुख भोग रहे हैं वे मुझे आत्मसुख कैसे देंगे ?"
राजा जनक के दरबार में पहुँचने पर िष् शयन े देखा िक 'राजा जनक िसंहासन पर बैठे हैं,
सुंदिरयाँ चँवर डुला रही हैं, भाट-चारणजयघोषकर रहेहै , ंसामने महिफल की तैयारी है। राजा जनक का
अिभवादन करते हुए िष् शयन े कहाः
"गुरज ू ी नेमुझेआपकेपासज्ञानलेनेकेिलएभेजाहै।मै2ं2 साल से गुरूजी के साथ हूँ िफर भी साक्षात्कार का
अनुभव नहीं हुआ है। मैं गलती से आ तो गया हूँ, अब आप मुझे उपदेश दीिजये।"
राजा जनक समझ गये िक 'यह बाहर के सदोष शरीर को देख रहा है, वास्तिवकता का इसे पता ही
नहीं है। राजा जनक ने कहाः
"यहाँ जो आता है उसे एक बार महल अवश् यघूमना पड़ता है। महल भूलभुलैया जैसा है। िदया
लेकर जाओ। िदया बुझ जायेगा तो उलझ जाओगे। यिद िदया जलता रहेगा तो बाहर िनकल जाओगे।"
िशषय हाथ मे िदया लेकर गया। राजा ने कहा था, महल भूल भूलैया जैसा है। िदया बुझ न जाये इसिलए खूब
जतन से, खूब सँभल-सँभलकर, बड़ी सतकर्ता से िष् शयम हल घूमकर आ गया एवं राजा जनक के पास गया।
जनकः "महल कैसा लगा ? महल में क्या-क्या देखा ? महल में कैसे-कैसे िचतर् लगे थे ?
तिख्तयों पर क्या-क्या िलखा था ? कैसे-कैसे आकषर्क गलीचे िबछे थे ?"
िशषयः "मैंने कुछ नहीं देखा। मुझे कुछ पता नहीं है। मेरी नजर तो िदये पर थी िक कहीं िदया न
बुझ जाये ! मैं महल में जरूर था, गलीचे पर जरर घूम रहा था लेिकन मेरा धयान न महल मे था न गलीचे पर वरन् केवल िदये
पर था।"
जनकः "वत्स ! ऐसेहीमैं ज्ञानरूिदये
पी केसाथरहताहूँ।बाहरसेसाराव्यवहार करते हुएभीअंदर सेसतकर्रहताहूँिक ज्ञान
का िदया बुझ न जाये। खाते समय भी मैं साक्षी रहता हूँ िक भोजन शरीर कर रहा है। मच्छर काटता है तो
मैं उसका भी साक्षी रहता हूँ िक शरीर को मच्छर ने काटा है। उसको भगाने का भी साक्षी रहता हूँ। कर्ोध
के समय भी उसका साक्षी रहता हूँ। इस पर्कार ज्ञानरूप िदये को कभी बुझने नहीं देता।"
'मैं शरीर से अलग हूँ' ऐसाज्ञानरूिदयाअगरपी सततजलतारहे तोकर्ोधकेसमयकर्ोध तपानहीं सकता, लोभ के समय
लोभ िडगा नही सकता, मोह मोिहत नहीं कर सकता, अहंकार उलझा नहीं सकता। ज्ञानरूपी िदया जलता रहे तो
आपभीसंसाररूपीभूल भूलैयामेन ं हींउलझसकते।
12 वषर् वर्त उपवास करने से जो पुण्य नहीं होता, वह पुण्य, वह लाभ इस सतकर्ता से हो जाता है।
िफर राजा जनक ने िशषय को भोजन करने के िलए बैठाया। वह जहा भोजन करने बैठा था वहा कया देखता है िक ऊपर एक बडी
िशला एक पतले धागे के साथ लटक रही है। िशषय भोजन तो कर रहा था लेिकन आँखे ऊपर लगी थी िक कही िशला िगर न जाये ?
भोजन करके जब वह राजा जनक के पास आया तो राजा ने पूछाः "एक-से-एक, बिढ़या से बिढ़या
व्यञ्जन थे। कौन सा अच्छा लगा ?"
िशषयः "महाराज ! मैंने तो बस खा िलया। क्या बिढ़या था इसका मुझे पता नहीं है। मुझे तो ऊपर
मौत िदख रही थी। िलाक श हीं िगर न जाय , उसी पर मेरी दृिष्ट लगी थी।
जनकः "बस, ऐसेहीहमारीदृिष्टलगीरहतीहै िक कहींहमाराएकपलभीपरमात्मके ािचंतन सेखालीन जाये।इसीिलए हम
राजकाज करते हुए भी िनलेर्प रहते हैं।
अब मैं तुझे उपदेश करता हूँ। अगर राितर् के बारह बजे तक तुझे साक्षात्कार नहीं हुआ तो जो
यह तलवार टँगी है, इससे तेरा मसतक काट िदया जायगा।
िशषयः "महाराज मुझे ज्ञान-धयान कुछ नही करना है। बस, मुझे जाने दो।"
जनकः "यहाँ एक बार जो आता है उसे हम खाली नहीं जाने देते। यहाँ का यही िरवाज है।"
िशषयः "22 साल में जो काम नहीं हुआ वह एक िदन में कैसे हो जायेगा।"
जनकः "नहीं होगा तो मस्तक कट जायेगा। इतना समय िबगाड़ा और तुम अज्ञानी रहे ?"
िशषय उपदेश सुनने के िलए बैठा। 'कहीं मस्तक न कट जाये' इस डर से बडे धयान से, एकाग होकर उपदेश सुनने लगा।
जनकः "तुझे लगन नहीं थी इसीिलए 22 साल गुजर गये वरना 22 घण्टे भी काफी हो जाते हैं।"
जैसे कोई परीक्षा होती है तो बालक िकतनी एकागर्ता से पढ़ता है िकंतु परीक्षा रद्द कर दो तो
उतनी एकागर्ता नहीं रह जाती। अतः साधक को चािहए िक पूणर् एकागर्ता के साथ गुरूपदेश का शर्वण करे,
मनन िनिदध्यासन करे।
वह िष् शयभ ी एकागर् होकर उपदेश सुनने लगा , उसका मन धीरे-धीरे शात होता गया एवं बुिद बुिददाता मे
पर्ितिष्ठत होने लगी। काम बन गया।
जरूरत है तो पूणर् लगन की। यिद साधक के जीवन में लगन है, उत्साह है, एकागता है और ततपरता है तो
वह अवश् यअपनी मंिजल हािसल कर सकता है।
एक बाहण कई िदनो से एक यज कर रहा था, िकन्तु उसे सफलता नहीं िमल रही थी। राजा िवकर्मािदत्य वहाँ
से गुजरे। बर्ाह्मण का उतरा हुआ चेहरा देखकर पूछाः "बर्ाह्मण देव ! क्या बात है ? आपइतनेउदासक्योंहैं
?"
बर्ाह्मणः "मैं इतने िदनों से यज्ञ कर रहा हूँ पर मुझे अभी तक अिग्न देवता के दर्शन नहीं
हुए।"
िवकर्मािदत्यः "यज्ञ ऐसे थोड़े ही िकया जाता है।"
बर्ाह्मणः "तो कैसे िकया जाता है ?"
िवकर्मािदत्य ने म्यान में से तलवार िनकाली और संकल्प िकया िक 'यिद आज शाम तक अिग्नदेव
पर्कट नहीं हुए तो इसी तलवार से अपने मस्तक की आहुित दे दूँगा।'
िवकर्मािदत्य ने कुछ आहुितयाँ ही दीं और अिग्नदेव पर्कट हो गये ! बोलेः "वर माँगो।"
िवकर्मािदत्य ने कहाः "इन बाहण देवता की इचछा पूरी करे, देव।"
बर्ाह्मणः "मैंने िकतने पर्यत्न िकये आप पर्गट नहीं हुए। राजा ने जरा सी आहुितयाँ दीं और
आपपर्गटहोगये।यहकैसे?"
अिग्नदेवः "राजा ने जो िकया दृढता से और लगन से िकया। दृढ़ता एवं लगनपूवर्क िकया गया
कायर् जल्दी पिरणाम लाता है। इसिलए मैं शीघर् पर्गट हो गया।"
साधन-भजन भी िदलचस्पी से होना चािहए। पूणर् लगन-उत्साह एवं दृढ़ता से िकया हुआ साधन भजन
शीघ फल देता है नही तो वषों बीत जाते है थोडा-थोड़ाजमाहोताहैवहभीबेवकूफीकेकारणिटकता नहीं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबबबबब बबबबबबबबब बबबब बबबबबब ?
एक वषर की कडी मेहनत के बाद िवदािथरयो को डेढ माह की छुिटयो का समय िमलता है िजसमे कुछ करने का, कुछ सोचने-
समझने का अच्छा खासा अवसर िमलता है। लेिकन पर्ायः ऐसा देखा गया है िक िवद्याथीर् इस कीमती
समय को टी.वी., िसनेमा आिद देखने में तथा गन्दी व फालतू पुस्तकों को पढ़ने में बबार्द कर देते
हैं। समय का जो दुरप ू योग करता है उसके जीवन का दुरूपयोग हो जाता है एवं जो अपने समय का सदुपयोग
करता है उसका जीवन मूल्यवान हो जाता है। अतः िमली हुई योग्यता एवं िमले हुए समय का सदुपयोग उत्तम
से उत्तम कायोर्ं के संपादन में व्यतीत करना चािहए। बड़े धनभागी होते हैं वे मानव िक जो समय का
सदुपयोग कर समाज की सेवा कर अपने जीवन को उन्नत बना लेते हैं। मागर्दर्शन की अपेक्षा रखने
वालों के िलए िनम्निलिखत सुझाव िदये जाते हैं-
िवद्यािथर्यों को ज्यादा समय अपनी साधना को आगे बढ़ाने में लगाना चािहए। शास्तर् कहते
हैं- 'बुिद्धमान मनुष्य वह है जो अपने जीवन में सबसे महत्त्वपूणर् कायर् का सबसे पहले सम्पन्न
करता है। मनुष्य जीवन का सबसे महत्त्वपूणर् कायर् है आत्मसाक्षात्कार और बुिद्धमान को उसे पर्ाप्त
करने के िलए जीवन जीना चािहए। इसी जन्म में ईश् वरपर्ािप्तका हमे अिधकार िमला है। उस अिधकार का
लाभ उठाना चािहए।
महापुरुषों का सत्संग सुनना चािहए तथा ध्यान योग ििवरों शक ा लाभ लेना चािहए। अगर इनका लाभ न
ले सके तो घर बैठे ही आशम दारा पकािशत पुसतक 'पंचामृत' का अध्ययन-मनन अवश् यकरना चाहे। इसी पंचामृत
पुस्तक में भगवान िव श -पावर्ती संवाद में विणर्त शर्ीगुरूगीता भोग व मोक्ष दोनों देने में सक्षम है।

सत्शास्तर्ों का अध्ययन करना चािहए। योगवाश िष्ठमहारामायण, िवचारसागर, पंचदशी, शीमद् भगवद्
गीता, स्वामी िवानंद
शक ृत गुरूभिक्त योग एवं आत्मलाभ के इच्छुकों को शर्ीअवधूत गीता या शर्ी अष्टावकर्
गीताका अध्ययनकरनाशर्ेयस्करहै।
अपने से छोटी कक्षाओं वाले िवद्यािथर्यों को पढ़ाना चािहए। बब बबबबबब बब
बबबबबबबबब। 'असली िवद्या वही है जो मुिक्त दे।' बालकों को रूिचकर कथाएँ सुनानी व पढ़ानी चािहए।
बालकों को शर्ीमद् भागवत में विणर्त भक्त धर्व ु की कथा व दासीपुतर् नारद के पूवर्जन्म की कथा एवं
पर्ह्लाद की कथा अपने साथी-िमतर्ों के साथ सुनने व सुनाने से परमात्मपर्ािप्त में मदद िमलती है।
अपने सािथयों के साथ अपने गली, मुहल्ले में सफाई अिभयान चलाना चािहए।
िपछड़े क्षेतर्ों में जाकर वहाँ के लोगों को पढ़ाई तथा संतों के पर्ित जागरूक करना चािहए।
अस्पतालों में जाकर वहाँ सेवा-कायर् करें। करें सेवा िमले मेवा।
अपने से अिधक योग्यता व िक् श षि ावाले व द्यािथर्यों के ही साथ रहकर िवनोद व िक् श षसा ंबंधी
चचार्करनीचािहए।
अपनी िदव्य सनातन संस्कृित के िवकास हेतु भरपूर पर्यास करना चािहए।
पर्ाचीन ऐितहािसक धािमर्क स्थलों में जाकर अपने िववेक-िवचार को बढ़ाना चािहए।
अपनी पढ़ाई को छुट्टी के दौरान एकदम नहीं छोड़ना चािहए। अध्ययन करते रहना चािहए।
इस पकार के दैवी कायों से आप अपनी इन छुिटयो को िवशेष रप दे सकते है। जीवन बहत
ु थोडा है तथा बीता हुआ समय कभी
वापस नहीं आता इसिलए अपने जीवन के इस कीमती समय को गन्दी पुस्तकों को पढ़ने, टी.वी., िसनेमा
आिददेखनेमेब ं बार्दन करकेसमाजकल्याणकेकायोर्म ंेल
ं गायेतथाहमसभीअपन
ं ेजीवनको उन्नितकी ओरलेजायें।परमात्माएवं
सदगुरू हम पर आशीवार्द करते रहें।
अनुकर्म
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सतर् 15
बबबबबबबब बब बब बबबबब बब बबबबबबब
सावन का महीना था। काली अंधेरी अमावस की राितर् के बारह बजे थे। माँ ने झाँका तो देखा िक
पुतर् अभी तक बैठा हुआ है, सोया नहीं है।
माँ- "मेरे लाल ! रात बीती जा रही है। सब अपने-अपने िबस्तरों पर खुरार्टें भर रहे हैं।
पक्षी भी अपने घोंसले में आराम कर रहे हैं। बेटा ! तू कब तक जागता रहेगा ? जा, अब तू भी सो जा।2
भगवान की याद में डूबे हुए उस लाल ने अपनी दरी िबछायी और ज्यों लेटने को गया, त्यों पपीहा
बोला उठाः "िपहूऽऽऽ..... िपहूऽऽऽ...." यह सुनकर उसने िबछायी हुई दरी िफर से लपेटकर रख दी और अपने
पर्भु को पुकारने बैठ गया।
माँ- "क्या हुआ लाल ! सो जा। बहुत रात हो गयी है।"
पुतर्ः "माँ ! तुम सो जाओ। मैं अभी नहीं सो सकता। पपीहा अपने िपया को पुकारे िबना नहीं रहता
तो मैं अपने िपर्यतम पर्भु को कैसे भुला सकता हूँ ?"
सोलह वषर्, छः महीन े और पं द ह िद न का वही बालक आग े चलकर गुर नानकद े व क े रप म े
पर्िसद्ध हुआ।
जो अनन्य भाव से परमात्मा का िचंतन करता है वह अवश् यमहान बनता है और ऐसा नहीं िक बड़े
होकर ही भजन िकया जाये। ना.... ना.... भजन तो बाल्यकाल से ही आरंभ कर देना चािहए। पर्ह्लाद, धुव,
उद्धव, मीरा, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी िववेकानंद, पूज्यपाद लीलाशाहजी महाराज आिद सभी ने बाल्यकाल
से ही भिक्त करना आरंभ कर िदया था। आगे चलकर वे िकतने महान बने, दुिनया जानती है।
गुरू नानकजीकेपासकथा मेए ं कलड़कापर्ितिदनआकरबैठजाताथा। एकिदननानकजीनेउससेपूछाः
"बेटा ! काितर्क के महीने में सुबह इतनी जल्दी आ जाता है, क्यों ?"
वह बोलाः "महाराज ! क्या पता कब मौत आकर ले जाये ?"
नानक जीः "इतनी छोटी-सी उमर् का लड़का ! अभी तुझे मौत थोड़े मारेगी ? अभी तो तू जवान होगा,
बूढ़ा होगा, िफर मौत आयेगी।"
लडकाः "महाराज ! मेरी माँ चूल्हा जला रही थी। बड़ी-बड़ी लकिड़यों को आग ने नहीं पकड़ा तो
िफर उनहोने मुझसे छोटी-छोटी लकिड य ा म ँ ग व ा य ी। मा न े छोटी -छोटी लकिड य ा डाली तो उन ह े आग न े
जल्दी पकड़ िलया। इसी तरह हो सकता है मुझे भी छोटी उमर् में ही मृत्यु पकड़ ले। इसीिलए मैं अभी
से कथा में आ जाता हूँ।"
नानकजी बोल उठेः "है तो तू बच्चा, लेिकन बात बडे-बुजुगोर्ं की तरह करता है। अतः आज से तेरा
नाम 'भाई बुड्ढा' रखते हैं।'
उन्हीं भाई बुड्ढा को गुरू नानक के बाद उनकी गद्दी पर बैठने वाले पाँच गुरूओं को ितलक करने का
सौभाग्य िमला। बाल्यकाल में ही िववेक था तो िकतनी ऊँचाई पर पहुँच गये ! शासत मे आता हैः
बबबबबबबबब ब बब बबबबबबबब बबब बबबबबब बबबबबबबब।
बबबबबबबबबबब बबबबबबबब ।। बबबबबबबबबब बबबबबबबब
'इस शास का कोई भरोसा नही है कब रक जाये। अतः बालयकाल से ही हिर के जान-धयान व कीतरन मे पीित करनी चािहए।
अनुकर्म
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बबब बब बबबब
एक दिरद वयिकत िकसी राजा के दरबार मे गया। उसने राजा से अपनी दिरदता की करण कथा कहकर धन की याचना की। राजा
को उसकी दिरदर्ावस्था देखकर दया आ गयी। फलस्वरूप राजा ने दिरदर् से कह िदयाः "आजसूयार्स्तहोनेतक
खजाने में से िजतना भी धन ले जा सको, ले जाओ।"
दिरदर् व्यिक्त राजा की बात सुनकर बहुत पर्सन्न हुआ और सोचने लगाः "वाह ! अब क्या िचन्ता है,
सूयार्स्त होने में तो अभी बहुत देर है, तब तक तो मैं बहुत धन राजकोष से ले जा सकूँगा।'
राजदरबार से िनकल कर वह अपने घर गया। उसने अपनी धमर्पत्नी से राजा की उदारता की बात
कही। पत्नी भी अत्यन्त आनिन्दत हुई और बोलीः "यह तो बड़े सौभाग्य की बात है। आप अभी शीघर् चले
जाइये और वहाँ से अिधक से अिधक िजतना धन ला सके, ले आइये।"
दिरदर् बोलाः "मूखर् स्तर्ी ! दो िदन से मैंने भोजन नहीं िकया, भूखा रहकर धन कैसे ढोकर ला
सकूँगा ? पहले तू कहीं से उधार लाकर अच्छा भोजन तो बना। मैं तो खाकर ही जाऊँगा। सारा िदन तो पड़ा
ही है धन लाने के िलए, अभी ऐसी जल्दी भी क्या है ?"
बेचारी स्तर्ी तुरन्त गयी और बिनये से सामान उधार लेकर आयी। शीघर्ता से उसने खाना बना
िदया। पित के भोजन करने के पश् चातउसने पित से राजमहल जाने को पुनः कहा। दिरदर् ने आज खूब
डटकर खाया था। खाते ही उसे आलस्य आने लगा, अतः उसने सोचा िक अभी थोड़ी ही देर में जाकर धन
ले आऊँगा, वह िवशर्ाम करने के िलए लेट गया। लेटते ही उसे नींद आ गयी। कुछ देर बाद उसकी पत्नी ने
उसे बड़ी किठनाई से जगाया और राजमहल के िलए रवाना िकया।
दिरदर् उठकर चल तो िदया, पर थोड़ी ही दूर गया होगा िक मागर् में उसने एक नट को बड़ा ही सुन्दर
अिभनय करते हुए देखा। उसने सोचा, "कुछ समय तक यह नाट्य देख लूँ, िफर राजमहल तो जाना ही है। वहा से यिद
एक बार भी ढेर सारे हीरे-जवाहरात बाँधकर ले आऊँगा तो भी िजन्दगीभर के िलए आराम हो जायेगा।"
दिरदर् व्यिक्त नाट्य देखने बैठ गया और देखते-देखते वह राजमहल तथा धन लाने की बात
एकदम भूल गया। जब नाटय समापत हुआ तो उसे धन लाने की बात याद आयी, िकन्तु अफसोस िक उस समय तक सूयार्स्त हो
चुका था। अबराजमहलमेप ं हुँचनेपरभीसूयर्अस्तहोजानेकेकारणउसेएककौड़ीतक निमली। वहजोरजोरसेरोताऔरिसर
पीटता हुआ िनराश हो खाली हाथ घर लौट आया। उसने समय की कीमत को नहीं पहचाना, इसिलए पछताना पडा। पर
बब बबबबबबब बबब बबबब ?
परमात्मा के अनुगर्हस्वरूप मनुष्य-जीवन का दुलर्भ संयोग िमलने पर भी जो इसी जीवन में अपने
सत्य और शिक्त का सदुपयोग परमात्म-पर्ािप्त हेतु नहीं करते, उन्हें भी अन्ततः इसी पर्कार पछताना
पड़ता है।
अनुकर्म
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सतर् 16
बबबबबबब बबब बबब बबबब-बबबबब
स्वस्थ व िनरोगी रहने हेतु पर्त्येक ऋतु में उस ऋतु के अनुकूल आहार-िवहार करना जरूरी होता
है लेिकन गर्ीष्म ऋतु में आहार िवहार पर िवशेष ध्यान देना पड़ता है क्योंिक इसमें पर्ाकृितक रूप
से शरीर के पोषण की अपेक्षा शोषण अिधक होता है। अतः उिचत आहार-िवहार में की गयी लापरवाही
हमारे िलए कष्टदायक हो सकती है।
िशिशर, वसन्त और गर्ीष्म ऋतु का समय 'आदानकाल' होता है। गर्ीष्म ऋतु इस आदान काल की चरम सीमा
होती है। यह समय रूखापन, सूखापन और उष्णता वाला होता है। शरीर का जलीयांश भी कम हो जाता है। िपत्त
के िवदग्ध होने से जठरािग्न मंद हो जाती है, भूख कम लगती है, आहारका पाचनशीघर्तासेनहींहोता। इस ऋतु में
दस्त, उलटी, कमजोरी, बेचैनी आिद परेशािनयाँ पैदा हो जाती हैं। ऐसे समय में आहार कम लेना व
शीतल जल पीना आवशयक है।
स्वास्थ्य-रक्षक, िहतकारी और शरीर को स्वस्थ व बलवान बनाये रखने वाले आहार-िवहार को पथ्य
कहते हैं। पर्त्येक ऋतु में पथ्य आहार-िवहार का ही पालन करना चािहए।
बबबबबब बबबब बबबबब बबबबबबबबबबबबबबब । बबब बबबबबब
(बबब बबबबबब)
अथार्त् गर्ीष्मकाल में मधुर रसयुक्त, शीतल, िस्नग्ध और तरल पदाथोर्ं का सेवन करना िहतकारी
होता है। ऐसे पदाथोर्ं के सेवन करने से शरीर में तरावट, शीतलता व िसनगधता (िचकनाई) बनी रहती है। इस
ऋतु में हलके मीठे भोजन का पर्योग करें। दर्व्य आहार में दूध, घी, छा छ , खीर आिद लें। छाछ व खीर
िवपरीत आहार हैं, अतः इनको एक साथ न लें। शाक-सब्जी में पत्तीदार शाकभाजी, परवल, लौकी, पके लाल
टमाटर, हरी मटर, करेला, हरी ककड़ी, पुदीना, हरी धिनया, नींबू आिद और दालों में िसफर् िछलकासिहत मूँग
और मसूर की दाल का सेवन करे। चने या अरहर की दाल खाये तो चावल के साथ खाये या शुद घी का तडका लगाकर खाये तािक दालो
की खुश् कीदूर हो जाय। फलो में मौसमी फलों का सेवन करें जैसे खरबूजा, तरबूज, मौसम्बी, सन्तरा, पका
मीठा आम, मीठे अंगूर, अनार आिद।
बबबबबब इस ऋतु मे पातः वायुसेवन, योगासन, व्यायाम, तेल की मािलश िहतकारी है। दोनों समय सुबह-
शाम शौच-स्नान आवश् यकहै।
बबबबबब गर्ीष्मकालमेक ं ड़व,ेखट्टे, चटपटे, नमकीन, रूखे, तेज िमचर् मसालेदार, तले हुए, बेसन
के बने हुए, लाल िमचर और गरम मसालेयुकत व भारी पदाथों का सेवन न करे। बासी, जूठा, दुगर्न्धयुक्त और अभक्ष्य
पदाथोर्ं का सेवन पर्त्येक ऋतु में हािनकारक है। खट्टा दही न खायें, रात में दही न खायें। उड़द की
दाल, खटाई, इमली व आमचूर, शहद, िसरका, लहसुन, सरसों का तेल आिद पदाथोर्ं का सेवन न करें। पूड़ी,
परांठे का सेवन न करें। िजतनी भूख हो उससे कम भोजन करें। ज्यादा न खायें और जल्दी-जल्दी न
खाकर, धीरे-धीरे खूब चबा-चबाकरखायेत ं ािकपाचनठीक सेहो। देरराततक जागना, सुबह देर तक सोना, िदन में सोना,
अिधक देर तक धूप में घूमना, कठोर पिरशर्म, अिधक व्यायाम, स्तर्ी पुरूष का सहवास, भूख-प्यास सहन करना,
मल-मूतर् के वेग को रोकना हािनपर्द है। सावधान !
बबबबबब गर्ीष्णऋतु मेिपत्ं तदोषकी पर्धानतासेिपत्तकेरोगअिधकहोतेहैं।जैसे दाह, उष्णता, आलस्य, मूच्छार्,
अपच, दस्त, नेतर्िवकार आिद। अतः गिमर्यों में घर से बाहर िनकलते समय लू से बचने हेतु िसर पर
कपड़ा रखें व पानी पीकर िनकलें। बाहर से घर में आते ही चाहे कैसी भी तेज प्यास लगी हो पानी
नहीं पीना चािहए। 10-15 िमनट ठहरकर ही पानी पीयें। िफर्ज का ठंडा पानी पीने से गले, दाँत, आमाशयव
आँतोंपरपर्ितकूलपर्भावपड़ताहै
, पाचनशिक्त मंद हो जाती है। अतः िफर्ज का पानी न पीकर मटके या सुराही का ही
पानी िपयें।
गमीर्
केिदनोंमेच
ं न्दनऔरगुलाबका शरबतयातोघरमेब ं नायेयागािज
ं याबादसिमितजोिक गुलाबव चन्दनडालकरशरबत
बनाती है, से पर्ाप्त कर सकते है। बाजारू शरबतों में तो एसेन्स और सेकर्ीन का ही पर्योग िकया जाता
है, केवल लेबल ही बिढ़या लगाते हैं। अगर घर में शरबत बनाने के इच्छुक हों तो पीपल की लकड़ी
का बुरादा (चूण)र्और चनदन के पैकेट आशम से पापत कर शरबत बना ले जो गमी के दोषो मे रामबाण का काम करेगे। पीपल की लकडी से
बने हुए िगलास में पानी पीने से िपत्तदोष दूर होता है। हरे पीपल का पेड़ कटवाना हािनकारक है।
पीपल के जो पेड़ पुराने होकर सूख जाते हैं उसी की लकड़ी के बने िगलास में रखा हुआ पानी पीने
से िपत्तदोष का शमन होता है और वह व्यिक्त को मेधावी बनाता है।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबबबबब बब बबबबबबबबबब बब बबबब बबबब बब
बबबब
मगध समर्ाट शर्ेिणक के युवा पुतर् राजकुमार मेघ को भगवान महावीर के धमोर्पदेश
आत्मपर्काशकी ओरलेजानेवालेपर्तीतहुए। मेघनेअनुभविकयािक तृष्णा, वासना और अहंकार के जाल में
जकड़ा जीवन नष्ट होता चला जा रहा है, परन्तु इच्छाएँ हैं िक शान्त होने का नाम ही नहीं
लेती बिलक और बढती ही जाती है। उनकी पूितर हेतु और अिधक अनैितक कृतय करने पडते है िजससे पापो की गठरी बढ रही है। काल
दौड़ा चला आ रहा है। इसके मुख में पहुँचते ही सारे भोगों का अन्त हो जायेगा। क्षणभंगुर जीवन में
शरीर का नाश करने वाला कण कब उपिसथत हो जाय कोई पता नही। इसके बाद पशाताप के अितिरकत और कुछ हाथ आने वाला नही है।
िवषय-वासनाओं के कीचड़ में फँसे जीवन को िववेक-दृिष्ट से देखने पर मेघ को अपना जीवन बहुत
घृणास्पद लगा।
'कामािदक िवकार, द्वेष, घृणा, ितरस्कार, अनैितकता, अवांछनीयताएँ यिद यही संसार है तो इसमें
और नरक मे अनतर ही कया है ? कलुिषत कल्पनाओं में झुलसते मायावी जीवन में भी भला िकसी को शांित िमल
सकती है ? तीथर्ंकर महावीर और सभी महापुरूष यही तो कहते हैं िक मनुष्य को आत्मानुसंधान करके
परमात्मा में िस्थत हो जाना चािहए। उसके िबना न आत्मकल्याण सम्भव है और न ही लोक कल्याण बन
पड़ेगा। अतः मुझे तपस्वी जीवन जीना चािहए।' – ऐसादृढ़िनश्चक य रकेराजकुमार मेघनेभगवानमहावीर सेअध्यात्मागर्

की दीक्षा ली और उनके सािन्नध्य में रहकर साधना में लग गये।
िवरक्त मन को उपासना से असीम शािन्त िमलती है। नीरस जीवन में आत्मज्योित पर्कट होने
लगती है। मन, बुिद्ध अलौिकक स्फूितर् से भर जाते हैं। मेघ की िनष्ठा को और अिधक सुदृढ़ करने हेतु
तीथर्ंकर ने अब उसे िविवध कसौिटयों में कसना पर्ारम्भ कर िदया। मेघ ने कभी रूखा भोजन नहीं िकया
था। अबउसेरू खा भोजनिदयाजानेलगा, कोमल शय्या के स्थान पर भूिमशयन, आकषर्कवेशभूषाकी जगहमोटेवल्कलऔर
सुखद सामािजक सम्पकर् के स्थान पर बन्द कुटीर व आशर्म के आस-पास की स्वच्छता, सेवा-व्यवस्था
करना आिद। मेघ को एक-एक कर इन सबमे िजतना अिधक लगाया जाता, उसका मन उतना ही उत्तेिजत होता,
महत्त्वाकांक्षाएँ िसर पीटतीं और अहंकार बार-बार खड़ा होकर कहताः 'अरे मूखर् मेघ ! जीवन के सुख-
भोग छोड़कर कहाँ आ फँसा ? मेघ को उसका मन लगातार िनरूत्सािहत करता। मन में उठते िवचारों के
ज्वार-भाटे उससे पूछते, क्या यही साधना है िजसके िलये तुमने समस्त राजवैभव का त्याग िकया ?
आशर्ममेस ं फाईकरना, झाडू लगाना, यहाँ की सेवा-व्यवस्था में सामान्य सेवक की तरह जुटे रहना, क्या इसी से
आत्मोपलिब्ध होजायेगी? इस पकार मन मे िछडे अनतदरनद से मेघ िदगभिमत हो गया।
राजकुमार होने का गौरव, राजमहलों की सुख-सुिवधा, यश, ऐश्वयर् सेभरपूरजीवनभीछूटगयाऔरअध्यात्मपथ की
ओर भी गित नही। कहा तो उसने कलपना संजोयी थी िक महावीर के सािनधय मे रहकर वह भी लोकपूजय बनेगा। उसने महावीर के शीचरणो
में समर्ाटों तथा धनकुबेरों को दण्डवत और िवनीत भाव में देखा था। भगवान महावीर की दीघर् दृिष्ट ने,
अमोघ वाणी ने उसे इस ओर आकिषर्त िकया था। उसने सोचा था िक वह भी तप करके यही सब पायेगा और
उसके पर्भाव से एक िदन समाज-संसार चकाचौंध हो जायगा। इन सब सोच-िवचारों के चलते एक िदन
उसने तीथर्ंकर के चरणों में झुककर पर्णाम करके कहाः "भगवन् ! आपनेमुझेकहाँइनछोट-ेछोट े कामो म े
फँसा रखा है ? मुझसे तो साधना कराइये, तप कराइये, िजससे मेरा अन्तःकरण पिवतर् बने।"
भगवान महावीर मुस्कराये और बोलेः "वत्स ! यही तो तप है। िवपरीत पिरिस्थितयों में मानिसक
िस्थरता और एकागर्ता, तन्मयता तथा समता का भाव िजसमें आ गया, वही सच्चा तपस्वी है। तप का
उद्देश् य'अहं' का मूलोच्छेद है। िजन साधकों ने सश ित् ष्य कीोंतरह अपने अन्दर सामान्य सेवक की
शतर सवीकार कर ली है, जो हर छोटे-बड़े काम को सदगुरू की सेवा और ईश् वरकी उपासना मानकर करने लगा,
िफर उसका अहं कहा रह जायेगा ? यह गुण िजसमें आ गया उसका अन्तःकरण स्वतः पिवतर् और िनमर्ल बनता
जायगा।
मेघ की आँखें खुल गयीं और वह एक सच्चे योद्धा की भाँित मन को जीतने के िलए तत्पर हो
गया। उलझेहुएको सुलझादे , ंहारे हुए को िहम्मत से भर दें। मनमुख को मधुर मुस्कान से ईश् वरोन्मुखबना दें,
हताश में आशा-उत्साह का संचार कर दें तथा जन्म-मरण के चक्कर में फँसे मानव को मुिक्त का अनुभव
करा दें – ऐसे केवल सदगुरू ही होते हैं। वे उंगली पकड़कर, अंधकारमय गिलयों से बाहर िनकालकर
खेल-खेल में, हास्य िवनोद में िष् शयक ो परमात्-म पर्ािप्तरूपी यातर्ा पूणर् करा देते हैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 17
बब बब बबबब
गुरू नानकघूमतेघामतेएमनाबादपहुँचे।वहाँएकअमीरसेठरहताथा मिलकभागो। नानकजीपर्िसद्ध
संत थे, अतः उसने नानक जी को संदेशा भेजाः "हे फकीर ! इस दार पर बडे-बड़े संत,
पीर, औिलया आये है। परसो का िदन शुभ है। आप मेरा आमंतण सवीकार करे एवं उस िदन आप मेरे यहा भोजन
करने के िलए पधारें।"
न्यौता भेजकर सेठ तैयािरयाँ करने लगा। न्यौते का िदन आया िकन्तु नानक जी उसके यहाँ न
गये।एकआदमीबुलानेआयाः
"फकीर ! चिलये।"
नानक जीः " हाँ, आतेहैं।"
थोड़ीदेरमेदं स
ू राआदमीबुलानेआया, तीसरा आदमी आया िकन्तु नानक जी न गये। सेठ को हुआ िकः "ये
फकीर कैसे है ! मेरे पास आते तो इनका नाम होता िक इतने बड़े सेठ के यहाँ भोजन करने का अवसर
िमला.... साथ में दिक्षणा भी देता और फकीर का काम बन जाता।"
.....लेिकन उस मूखर को पता नही िक फकीर उसका भोजन सवीकार करते तो उसका भागय बन जाता। वह फकीर का कया काम
बनाता ? फकीर ने तो अपना असली काम बना रखा था।
बब बबबबब बब बब बब बबबब बबबबबबब बब बबबब.....
देर होती देखकर सेठ खुद ही आया एवं बोलाः "फकीर ! बहुत देर हो गयी। आप चिलए िभक्षा
लेने।"
नानक जीः "अभी समय नहीं िभक्षा-िवक्षा का। इधर ही टुकड़ा पा लेंगे।"
सेठ को हुआ िकः "अब तो मेरी इज्जत का सवाल है। कैसे भी करके, इधर लाकर भी इनको िभका करवानी
पड़ेगी। यहीं पकवान आिद का थाल मँगवाना पड़ेगा। नगर में नाम होगा िक फकीर मेरे घर का भोजन
करके गये। मेरे घर से कोई साधु खाली हाथ नहीं गया।" यह सोचकर उसने वहीं पर पकवान से भरा थाल
मंगवा िलया। इतने में एक गरीब भक्त लालो भी अपने घर से िभक्षा ले आया-सूखी रोटी और तांदुल की
भाजी।
यह देखकर सेठ को हुआ िक मैं पकवानों से भरा थाल ले ही आया हूँ तो यह क्यों लाया ? नानक जी
ने एक हाथ में उठायी लालो की सूखी रोटी और तांदुल की भाजी एवं दूसरे हाथ में उठाये सेठ के
पकवान। ज्यों ही नानक जी ने लालो की रोटी दबायी तो उसमें से दूध की धार िनकल पड़ी और सेठ के
पकवान को दबाया तो रक्त की धार बह चली। लोग आश् चयर्चिकतहो उठे ! सेठ भागो भी दंग रह गया िक
मेरे व्यंजनों से रक्त की धार और लालो की सूखी रोटी से दूध की धार ! यह कैसे हुआ ?
नानकजीः "लालो ने पसीना बहाकर हक की कमाई की है इसिलए इसका अन दूध के समान है, जबिक तुमने गरीबों से
ब्याज लेकर, उनका खून चूसकर संपित्त इकट्ठी की है इसिलए तुम्हारे अन्न से रक्त की धार बह चली है।"
सेठ मिलक भागो का िसर शमर् से झुक गया।
हराम के धन के ऐश-आरामसेहक की रू खी-सूखी रोटी भी िहतकारी है।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबब बब बबबबबबबबब
गुजरातकेसौराष्टर्पर्ान्तमेन
ं रिसहंमेहतानामकेएकउच्चकोिटकेमहापुरष
ू होगयेहैं।वेजबभजनगातेथेतब शर्ोतागण
भिक्तभाव से सराबोर हो उठते थे।
दो लड़िकयाँ नरिसंह मेहता की बड़ी भिक्तन थीं। लोगों ने अफवाह फैला दी िक उन दो कुँवारी
युवितयों के साथ नरिसंह मेहता का कुछ गलत सम्बन्ध है। किलयुग में बुरी आदत फैलाना बड़ा आसान
है। िजसके अंदर बुराइयाँ हैं वह आदमी दूसरों की बुरी बात जल्दी से मान लेता है। अफवाह बड़ी तेजी
से फैल गयी। उन लड़िकयों के िपता और भाई ऐसे ही थे। उन दोनों के भाई एवं िपता ने उनकी खूब
िपटाई की और कहाः
"तुम लोगों ने तो हमारी इज्जत खराब कर दी। हम बाजार से गुजरते हैं तो लोग बोलते हैं िक
इनही की वे लडिकया है, िजनके साथ नरिसंह मेहता का...."
खूब मार-पीटकर उन दोनों को कमरे में बन्द कर िदया और अलीगढ़ के बड़े बड़े ताले लगा
िदये एवं चाबी अपने जेब में डालक चल िदये िक 'देखें, आजकथा मेक ं ्याहोताहै।'
उन दोनों में से एक रतनबाई रोज सत्संग-कीतर्न के दौरान अपने हाथों से पानी का िगलास
भरकर भाव भरे भजन गाने वाले नरिसंह मेहता के होठों तक ले जाती थी। लोगों ने रतनबाई का भाव
एवं नरिसंह मेहता की भिकत नही देखी, बिल्क पानी िपलाने की बाह्य िकर्या को देखकर उलटा अथर् लगा िलया।
सरपंच ने घोिषत कर िदयाः "आज सेनरिसंहमेहतागाँवकेचौराहेपर ही सत्संग-कीतर्न करेंगे, घर पर
नहीं।"
नरिसंह मेहता ने चौराहे पर सत्संग-कीतर्न िकया। िववािदत बात िछड़ने के कारण भीड़ बढ़
गयीथी। कीतर्नकरते -करते रातर्ी के 12 बज गये। नरिसंह मेहता रोज इसी समय पानी पीते थे, अतः उन्हें
प्यास लगी।
इधर रतनबाई को भी याद आया िक 'गुरज
ु ी को प्यासलगीहोगी। कौन पानीिपलायेगा ?' रतनबाई ने बंद कमरे में ही
मटके में से प्याला भरकर, भावपूणर् हृदय से आँखें बंद करके मन-ही-मन प्याला गुरुजी के होठों पर
लगाया।
जहाँ नरिसंह मेहता कीतर्न-सत्संग कर रहे थे, वहाँ लोगों को रतनबाई पानी िपलाती हुई नजर
आयी। लड़कीका बापएवंभाईदोनोंआशच ् यर्
चिकतहोउठेिक 'रतनबाई इधर कैसे?'
वास्तव में तो रतनबाई अपने कमरे में ही थी। पानी का प्याला भरकर भावना से िपला रही थी,
लेिकन उसकी भाव की एकाकारता इतनी सघन हो गयी िक वह चौराहे के बीच लोगो को िदखी।
अतः मानना पड़ता है िक जहाँ आदमी का मन अत्यंत एकाकार हो जाता है, उसका शरीर दूसरी जगह
होते हुए भी वहाँ िदख जाता है।
रतनबाई के बाप ने पुतर् से पूछाः "रतन इधर कैसे?"
रतनबाई के भाई ने कहाः "िपताजी ! चाबीतोमेरीजेबमेह ंै!"
दोनों भागे घर की ओर। ताला खोलकर देखा तो रतनबाई कमरे के अंदर ही है और उसके हाथ में
प्याला है। रतनबाई पानी िपलाने की मुदर्ा में है। दोनों आश् चयर्चिकतहो उठे िक यह कैसे !
संत एवं समाज के बीच सदा से ही ऐसा ही चलता आया है। कुछ असामािजक तत्त्व संत एवं संत
के प्यारों को बदनाम करने की कोई भी कसर बाकी नहीं रखते। िकंतु संतों-महापुरुषों के सच्चे भक्त उन
सब बदनािमयों की परवाह नहीं करते, वरन् वे तो लगे ही रहते हैं संतों के दैवी कायोर्ं में। ठीक ही
कहा हैः
बबबबबब बबबबबबबबबब बब बबबबबब बबबबब बबब बबब।
बबबब बबबबब बबबबब बब।।बब बबब बब बबबबब बबबब बबबबब
अनुकर्म
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सतर् 18
बबबबबबबबब, बबबबबब बबब बबबबबब बबबब
बब बबबब बब बबबबबबब बबबबबब बब बबबबबबब
बबबब बबबबबब बबबबबबबबबबबबब । बबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबबब
'आहारकी शुिद्ध सेसत्त्वकी शुिद्ध
होतीहै।सत्त्वकी शुिद्धसेबुिद्ध
िनमर्लऔरिनशच ् यीबनजातीहै।पिवतर्औरिनशच ् यीबिु द्ध
से
मुिक्त भी सुलभता से पर्ाप्त होती है।'
खाये हुए भोजन से ही रस व रक्त की उत्पित्त होती है। इनमें वे ही गुण आते हैं जो गुण हमारे
भोजन के थे। भोजन हमारे मन, बुिद्ध, अन्तःकरण के िनमार्ण में सहायक हैं। जो व्यिक्त मांस, शराब
और उतेजक भोजन करते है वे संयम से िकस पकार रह सकते है ? वे शुद्ध बुिद्ध का िवकास कैसे कर सकते हैं और
वे दीघार्यु कैसे हो सकते हैं ? भगवान शर्ीकृष्ण ने शर्ीमद् भगवद् गीता में सत्त्वगुण, रजोगुण और
तमोगुण उत्पन्न करने वाले भोजनों की सुन्दर व्याख्या की है। िजस व्यिक्त का जैसा भोजन होगा, उसका
आचरणभीतदनुकल ू होताजायगा। भोजनसेहमारीइिन्दय र्औरमनसंयु
ाँ क्तहैं।साित्त्वक
, सौम्य आहार करने वाले व्यिक्त
अध्यात्म मागर् में दृढ़ता से अगर्सर होते हैं। परमात्मपथ में उन्नित करने के इच्छुकों को, पिवतर्
िवचार और अपनी इिन्दर्यों को वश में रखने वाले तथा ईश् वरीयतेज पर्ाप्त करने वाले अभ्यािसयों
को साित्त्वक आहार करना चािहए।

बबबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब
बबबबबब बबबबबबबबब बबबबबब ।। बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब
'आयु, बुिद्ध, बल, आरोग्य, सुख और पर्ीित को बढ़ाने वाले रसयुक्त, िचकनेऔरिस्थररहनेवालेतथास्वभावसे
ही मन को िपर्य – कसेआहार अथार्त् भोजन करने के पदाथर् साित्त्वक पुरष ू को िपर्य होते हैं।'
(गीताः17.8)
जो अन्न बुिद्धवधर्क हो, वीयर्रक्षक हो, उत्तेजक न हो, तमोगुणी न हो, कब्ज न करे, सुपाच्य हो वह
सत्त्वगुणयुक्त आहार है। हरे ताजे शाक, अनाज-गेहू ,ँचावलआिद, दालें, दूध, शुद घी, मक्खन, बादाम, सन्तरे,
सेव, अंगूर, केले, अनार, मौसमी इत्यािद साित्त्वक आहार हैं। साित्त्वक भोजन से शरीर में स्फूितर्
रहती है िचत्त िनमर्ल रहता है। साित्त्वक भोजन करने वाले व्यिक्त िचंतनशील और मधुर स्वभाव के
होते हैं। उन्हें अिधक िवकार नहीं सताते। उनके शरीर के आतंिरक अवयवों में िवष एकितर्त नहीं
होते। जहाँ अिधक भोजन करने वाले, िदन में सोनेवाले व्यिक्त अजीणर्, िसरददर्, कब्ज, सुस्ती से
परेशान रहते हैं वहीं पिरिमत भोजन करने वालों को ये रोग तो नहीं ही होते साथ ही उनके आन्तिरक
अवयव शरीर में एकितर्त होने वाले कूड़े कचरे को बाहर फेंकते रहते हैं, उनके शरीरों में िवष-
संचय नहीं होता। हमारे ऋिषयों ने अिधक खाये हुए अन्न, पदाथर् को पचाने और उदर को िवशर्ाम देने
के िलए उपवास की व्यवस्था की है। उपवास से काम, कर्ोध, रोगािद फीके पड़ जाते हैं और मन में
राजसी, तामसी िवचार स्थान नहीं लेते। अमावस्या, एकादशी, पूनम का उपवास िहतकारी है। इन िदनों में
िनराहार रहें अथवार तो दूध या फलों का सेवन करें। दूध-फल भी अिधक माता मे न हो। इससे िजहा पर िनयंतण तो
होता ही है साथ ही संकल्प-सामथ्यर् भी बढ़ता है। केला कफ भी करता है, मोटापा भी लाता है। अतः मोटे
व्यिक्त सावधान ! अपनी अवस्था, पर्कृित, ऋतु तथा रहन-सहन के अनुसार िवचारकर शीघर् पचने वाला
साित्त्वक भोजन ही करना चािहए।
बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब। बबबबब बबबबबबबबबबबब
बबबबबबबबबबबबबबबब।।
बबबबबबब बबबबब बबबब । बबबबबबबबब ब बबबबबबबबबबबबबबब बबबबबबबब
।।
बबबबब बबबबबबबबबबबब ब
'कड़वे, खट्टे, लवणयुकत, बहुत गरम, तीखे, रूखे, दाहकारक और दुःख, िचन्तातथारोगोंको उत्पन्नकरनेवाले
आहारअथार्त्भोजनकरनेकेपदाथर्
राजसपुरष ू कोिपर्यहोतेहैं।जोभोजनअधपका, रसरिहत, दुगर्न्धयुक्त, बासी और जूठा
है तथा जो अपिवतर् भी है वह भोजन तामस पुरूष को िपर्य होता है।'
(गीताः17.9,20)

राजसी आहार करने वाले व्यिक्त यह भूल जाते हैं िक उत्तेजक भोजन करने से साधन-भजन,
स्वाध्याय का संयम िबखर जाता है। हमारे द्वारा पर्युक्त भोजन का तथा हमारे िवचारों का घिनष्ठ
सम्बन्ध है। भोजन हमारे स्वभाव, रूिच तथा िवचारों का िनमार्ता है। यिद भोजन साित्त्वक है तो मन में
उत्पन्न होने वाले िवचार पिवतर् होंगे। इसके िवपरीत राजसी, तामसी भोजन करने वालों के िवचार
अशु द्ध, िवलासी तथा िवकारमय होंगे। िजन लोगों के भोजन में मांस, अण्डे, लहसुन, प्याज, मिदरा
इतयािद पयोग िकये जाते है, जो पर्दोषकाल में भोजन और मैथुन करते हैं, वे लोग पर्ायः कलुिषत िवचारों से
िघरे रहते हैं, उनका जीवन पतन की ओर अगर्सर हो जाता है। मैथुन के िलए पवर् भी पर्दोषकाल माना
गयाहै।भोजनका पर्भावपर्त्येकजीवपरपड़ताहै।पशु ओंको लीिजए– बैल , गाय, भैंस, घोड़े, गधे, बकरी, हाथी इत्यािद
शारीिरक शम करने वाले पशुओं का मुखय भोजन घास-चाराआिदहीहै।फलतःवेसहनशील, शात व मृदु होते है। इसके िवपरीत िसंह,
चीते, भेिड़ये, िबल्ली इत्यािद मांसभक्षी जीव चंचल, उगर्, कर्ोधी और उत्तेजक स्वभाव के बन जाते
हैं। इसी पर्कार राजसी, तामसी भोजन करने वाले व्यिक्त कामी, कर्ोधी, झगडालू व अिशष होते है। वे सदा
आलस्य, कलह, िनंदा में डूबे रहते हैं, िदन रात में आठ-दस घण्टे तो वे सोकर ही नष्ट कर देते हैं।
राजसी –तामसी भोजन से मन िवक्षब ु ्ध होता है, िवषय वासना में लगता है। शास्तर्ों में प्याज तथा
लहसुन विजरत है। ये दोनो सवासथयपद होते हुए भी सािततवक वयिकतयो के िलए विजरत है। इसका पमुख कारण यह है िक ये उतेजना उतपन
करते हैं। मिदरा, अण्डे, मांस-मछली, मछिलयों के तेल, तम्बाकू, गुटखा, पान-मसाला इत्यािद तामसी
वृित्त तो उत्पन्न करते ही हैं, साथ ही अनेकानेक रोगों के कारण भी बनते हैं। फास्टफूड जैसे
नूडल्स, िपज्जा, बगर्र, बन, चायनीजिडशेज, बर्ेड आिद का सेवन न करें। जैम, जैल मामर्लेड, चीनी,
आइसकर्ीम , पुिडंग, पेस्टर्ी केक, चॉकलेटतथाबाजारू िमठाइयोंसेदूर रहें।तलीभुनीचीजेजैस ं े – पूरी, परांठा, पकौड़ा,
भिजया, समोसा आिद न खायें। खटाई, िमचर्-मसालों का पर्योग कम से कम करें। बासी भोजन, अिधक
छौ क लगाय े ह ु ए भोजन , पनीर व मशरूम आिद न खायें। चाय, काफी और मादक न नशीले पदाथोर्ं का सेवन
कतई न करें। साफ्ट िडर्ंक्स न पीयें न िपलायें। इनकी जगह आप ताजे फलों का रस, नींबू िमला पानी,
नािरयल पानी, लससी, छा छ या शरबत ल े ।
भोजन में सुधार करना शारीिरक कायाकल्प करने का पर्थम मागर् है। जो व्यिक्त िजतनी शीघर्ता
से दोषयुक्त आहार से बचकर साित्त्वक आहार करने वाले हो जायेंगे, उनके शरीर दीघर्काल तक
सुदृढ़, पुष्ट और स्फूितर्मान बने रहेंगे। क्षिणक िजह्वासुख को न देखकर भोजन से शरीर, मन और बुिद्ध
का जो संयोग है उसे सामने रखना चािहए। जब तक अन्न शुद्ध नहीं होगा, अन्य धािमर्क, नैितक या
सामािजक कृत्य सफल नहीं होंगे। अन्नशु िद्धहेतु आवश् यकहै िक अन्न शुद्ध कमाई के पैसे का हो। झूठ,
कपट, छल , बेईमानी आिद न हो – इस पर्कार की आजीिवका से उपािजर्त धन से जो अन्न पर्ाप्त होता है
वही शुद्ध अन्न है। यह बात भी ध्यान रखने योग्य है िक िजस पातर् में उस भोज्य वस्तु को तैयार िकया
जाये, वह पातर् शुद्ध हो और जो व्यिक्त भोजन बनाये वह भी स्वच्छ, पिवतर् और पर्सन्न मनवाला होना
चािहए।
अनुकर्म
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बबबब बबबबबब बब बबबबब
राम रावण युद्ध के दौरान दशमुख रावण मारा गया तथा मयार्दा पुरूषोत्तम
भगवान शर्ीरामचंदर्जी िवजयी हुए। इस शुभ समाचार को लेकर हनुमान जी लंका
िस्थत अशोक वािटका में माता जानकी के पास गये। यह सुनकर जनकनिन्दनी के
हषर् का िठकाना न रहा। वे हनुमानजी के उपकारों के कारण मानों कृतज्ञता से
दर्वीभूत हो गयीं। उन्होंने कहाः "हनुमान ! तुमने जो साहस के कायर् िकये हैं,
तुमने जो उपकार िकया है, उसे व्यक्त करने के िलए मेरे पास शब्द नहीं हैं। तुम्हारे ऋण से मैं
कभी उऋण नहीं हो सकूँगी।"
हनुमानजी ने कहाः "माँ, आपकैसीबातकर रहीहै?ं पुतर् तो माँ के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता।
माँ ! मेरी इच्छा है, आपकहेत ं ोउसेपूराकर लूँ।"
माता जानकी ने कहाः "कौन सी इच्छा है हनुमान ?"
हनुमानजीः "इसके पहले िजस समय मै यहा आया था, उसी समय रावण आपके पास आया था। जब आपने उसकी
बात नहीं मानी, तब वह इन राक्षिसयों को आज्ञा दे गया िक "सीता को भाँित भाँित की यातनाएँ दो।"
राक्षिसयों ने आपको बहुत पीिड़त िकया है, भाँित-भाँित की यातनाएँ दी हैं। अब इन्हें देखकर मेरे
हाथ खुजला रहे हैं। आपकी आज्ञा हो तो इन्हें दो-दो थप्पड़ जमा दूँ, आपकोकष्टदेने का मजाचखादूँ, इनकी
थोड़ीसेमरम्मतकर दूँ।"
यह सुनकर सीता जी ने कहाः " ना-ना...कसाकभीमतकरना। अरे हनुमान! तुम समझते नहीं। उस समय ये
बेचारी परवश थीं, दूसरे के अधीन थीं। मनुष्य अपनी िस्थित से िववश होकर न करने योग्य कायर् भी
करता है। पिरिस्थितयाँ उसे ऐसा करने पर िववश कर देती हैं। ये सब-की-सब िनरपरािधनी हैं।
पवनतनय ! इनहे थपपड मारकर तुमहे कया िमलेगा ? इनहे दणड देने से मुझे अतयनत दुःख होगा। बेटा ! कोई िकसी को सुख-दुःख नहीं
देता। सब काल करवा लेता है। ये काल की कर्ूर चेष्टाएँ हैं। सबल पुरूष को िनबर्ल पर दया करनी
चािहए। तुम तोदो-दो थप्पड़ की बात करते हो, ये तो तुम्हारे एक ही थप्पड़ में धराशायी हो जायेंगी। उस
समय ये रावण के अधीन थीं। जो भी करती थीं, रावण की आज्ञा से करती थीं। इनके कायोर्ं का
उत्तरादाियत्व रावण के ऊपर था। जब रावण ही मर गया तो वे बातें भी समाप्त हो गयीं। अब तो ये
तुम्हारी कृपा की इच्छुक हैं, इन पर कृपा करो, इनहे पािरतोिषक दो।"
बबबबब बबबब बबबब-ब-बबब बबबब बबबबब बबब बबब।
बबबबबब बब बबबबब ।। बब बबब बब बबब बबबबब
कैसी है सीता जी का समता, उदारता ! औरो को टोटा चबाने की अपेका खीर-खाँड िखलाने का कैसा मधुर
स्वभाव है भारत की देिवयों का !
अनुकर्म
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सतर् 19
बबबबबबब बब बबबबबबबबबबब
ईष्यार्
-द्वेष और अित धन-संगर्ह से मनुष्य अशांत होता है। ईष्यार्-द्वेष की जगह पर क्षमा और
सत्पर्वृित्त का िहस्सा बढ़ा िदया जाये तो िकतना अच्छा !
दुयोर्धन ईष्यार्लु था, द्वेषी था। उसने तीन महीने तक दुवार्सा ऋिष की भली पर्कार से सेवा की,
उनके िष् शयकों ी भी सेवा की। दुयोर्धन की सेवा से दुवार्सा ऋिष पर्सन्न हो गये और बोलेः
"माँग ले वत्स ! जो माँगना चाहे माँग ले।"
जो ईष्यार्-द्वेष के िकंजेशम ें आ जाता है , उसका िववेक उसे साथ नहीं देता है लेिकन जो
ईष्यार्
-द्वेष से रिहत होता है उसका िववेक सजग रहता है। वह शांत होकर िवचार या िनणर्य करता है। ऐसा
व्यिक्त सफल होता है और सफलता के अहं में गरकाव नहीं होता। कभी असफल भी हो गया तो िवफलता
के िवषाद में नहीं डूबता। दुष्ट दुयोर्धन ने ईष्यार् एवं द्वेष के वशीभूत होकर कहाः
"मेरे भाई पाण्डव वन में दर-दर भटक रहे हैं। उनकी इच्छा है िक आप अपने हजार िष् शयकों े
साथ उनके अितिथ हो जायें। अगर आप मुझ पर पर्सन्न हैं तो मेरे भाइयों की इच्छा पूरी करें लेिकन
आपउसी वक्तउनकेपासपहुँिचयेगज ा बदर्ौपदीभोजनकर चुकी हो।"
दुयोर्धन जानता था िकः 'भगवान सूयर् ने उन्हें अक्षयपातर् िदया है। उसमें से तब तक भोजन-
सामगर्ी िमलती रहती है जब तक दर्ौपदी भोजन न कर ले। दर्ौपदी भोजन करके पातर् को धोकर रख दे िफर
उस िदन उसमें से भोजन नहीं िनकलेगा। अतः दोपहर के बाद दुवार्साजी उनके पास पहुँचेंगे तब
भोजन न िमलने से कुिपत हो जायेंगे और पाण्डवों को शाप दे देंगे। इससे पाण्डव वंश का सवर्नाश हो
जायेगा।'
इस ईषया और देष से पेिरत होकर दुयोधन ने दुवासाजी की पसनता का लाभ उठाना चाहा।
दुवार्सा ऋिष मध्याह्न के समय जा पहुँचे पाण्डवों के पास। युिधिष्ठर आिद पाण्डव एवं दर्ौपदी
दुवार्साजी को िष् शयसों मेत अितिथ के रूप में आये हुए देखकर िचिन्तत हो गये। िफर भी बोलः
"िवरािजये महिषर् ! आपकेभोजनकी व्यवस्थाकरतेहैं।"
अन्तयार्मी परमात्मा सबका सहायक है, सच्चे का मददगार है। दुवार्साजी बोलेः "ठहरो ठहरो....
भोजन बाद में करेंगे। अभी तो यातर्ा की थकान िमटाने के िलए स्नान करने जा रहा हूँ।"
इधर दौपदी िचिनतत हो उठी िक अब अकयपात से कुछ न िमल सकेगा और इन साधुओं को भूखा कैसे भेजे ? उनमें भी
दुवार्सा ऋिष को ! वह पुकार उठीः "हे केशव ! हे माधव ! हे भक्तवत्सल ! अब मैं तुम्हारी शरण में हूँ....."
शात हृदय एवं पिवत िचत से दौपदी ने भगवान शीकृषण का िचंतन िकया। भगवान शीकृषण आये और बोलेः
"दर्ौपदी कुछ खाने को तो दो !"
दर्ौपदीः "केशव ! मैंने तो पातर् धोकर रख िदया है।"
शीकृषणः "नहीं,नहीं... लाओ तो सही ! उसमें जरूर कुछ होगा।"
दर्ौपदी ने लाकर िदया पातर् तो दैवयोग से उसमें तांदुल की भाजी का एक पत्ता बच गया था।
िवश् वात्माशर्ीकृष्ण ने संकल्प करके उस तांदुल की भाजी का पत्ता खाया और तृिप्त का अनुभव िकया तो उन
महात्माओं को भी तृिप्त का अनुभव हुआ। वे कहने लगे िकः "अब तो हम तृप्त हो चुके हैं, वहाँ जाकर क्या
खायेंगे ? युिधिष्ठर को क्या मुँह िदखायेंगे ?"
शातिचत से की हुई पाथरना अवशय फलती है। ईषयालु एवं देषी िचत से तो िकया-कराया भी चौपट हो जाता है जबिक
नमर् और शांत िचत्त से तो चौपट हुई बाजी भी जीत में बदल जाती है और हृदय धन्यता से भर जाता है।
अनुकर्म
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बबबबबबबब बबबबबबब बबब बबबबबबबब बब बबबबब
सौन्दयर् पर्साधनों का पर्योग िकतना घातक हो सकता है, यह बात भी अब िविभन्न परीक्षणों से
सामने आती जा रही है। यिद कहा जाय िक ये सौंदयर् पर्साधन हमारे नैसिगर्क सौन्दयर् को छीनने में
लगे है तो गलत नही होगा।
सौन्दयर् पर्साधनों में भारी मातर्ा में कृितर्म रसायनों, कृितर्म अकर् और सुगंिधयों का पर्योग
िकया जा रहा है। ये पर्साधन हमारे िलए कैसे घातक िसद्ध हो सकते हैं, इसके िलए यह जानना भी जररी है िक
िकस पर्साधन में कौन से रासायिनक तत्त्व िमलाये जाते हैं।
सौंदयर्-गृह 'पाइवट-प्वाइंट' की भारतीय शाखा की पर्बंध िनदेश िकाएवं सौन्दयर् िवशेषज्ञा
शीमती बलासम कोचर बताती है- "बबबबबब बबब बबब बबब बब बबबबबब बबबबब बबबबबब बबबब
बबबब बब, बब बबबबब बब बबब बबबब बबबबबबबब बबबब बबबब बबबबबब बबबबब बब
बबबबब बबबबबब बब बबबबबबब बबबब बब बब-बबब बबबब बबबबबबबबबब बब बबब
बबबब बबब, बब बबबबब बब बबबबब । बब बबबब बबबबब बबबबबबबबबब बबबबब बब
बबबबबब । बबबबबबबबब बब बबबबबब बब बबबब बबबबबब बबबब , बबबबब, बबबबबबब बब
बब बबबब बबबबब।" केश सज्जा में िकया जाने वाला बबबब बबबबबब एक पकार का अलकोहल होता है,
िजसमें गोंद, रेिजन, िसिलकॉन और सुगन्ध िमली होती है। रेिजन और गोंद की परत बालों को सेट भले
ही करती हो, िकन्तु उसमें मौजूद िचपकाने वाला पदाथर् बालों के िलए हािनकारक होता है, क्योंिक जब वह
बालों से िखंचाव बढ़ता है और वे तेजी से टूटने लगते हैं। इसमें मौजूद िसिलकॉन हमारे िलए
बेहद हािनकारक होता है। इससे कैंसर होने का खतरा भी रहता है।
बबबब बबबबबबब में अरंडी का तेल और लेड होता है। आँखों के भीतरी भाग में लेड के
जाने से भारी नुक्सान हो सकता है। पलकों की बरौिनयों पर लगाया जाने वाला मस्करा लेड रंग और
पी.वी.सी. से बना होता है। पी.वी.सी. की परत से बरौिनयों के बाल कड़े हो जाते हैं और इसे साफ
करने पर टूटकर झड़ने भी लगते हैं। शर्ीमती ब्लासम के अनुसार मस्कारे की जगह अलसी का तेल
बरौिनयों पर लगाने से बाल बढ़ेंगे और सुंदर भी होंगे।
चेहरे
परलगायेजानेवालेपाउडर, रूज या फाउंडेशन में अगर कोई हािनकारक तत्त्व हैं तो वह हैं इनके
रंगों की क्वािलटी। रंगों की हल्की क्वािलटी के इन पर्साधनों के पर्योग से चमर्रोग जैसे एलजीर्,
दाद या सफेद दाग होने की आशंका बनी रहती है।
बबबबबबबब में कारनोबा वैक्स, बी वैक्स (मधुमक्खी के छत्ते का मोम), अरंडी का तेल और
रंगों का पर्योग िकया जाता है। इनमें पर्योग होने वाले रंगों की घिटया क्वािलटी से होंठ काले पड़
जाते हैं।
बबबबबबबब बबबबब यिद त्वचा का रंग साफ करती है, तो उसके पर्योग में बरती गयी तिनक-
सी लापरवाही से त्वचा काली पड़ सकती है। इसमें अमोिनया की मातर्ा का ध्यान रखना बेहद आवश् यक
है। इसी पर्कार गोरेपन की कर्ीम में अन्य तत्त्वों के अलावा पाये जाने वाले आइडर्ोक्वीनींन से
चेहरे
परस्थायीरूप सेसफेद-सफेद धब्बे पड़ने लगते हैं।
िविभन्न सौंदयर् में पशु ओंकी चबीर् और पैटर्ोकेिमकल्स, कृितर्म सुगंिधयों जैसे गुलाब की
सुगंध के िलए इथाइतर्, िजरानाइन, अल्कोहल, िफनाइल और िसटोनेलस िमलाया जाता है। ये तततव तवचा मे एगजीमा, दाद
और एलजी जैसी बीमािरयो को जनम देते है। इसी पकार इत, िजनमें हाडर्क्सीिसटर्ोन बेंजीसेिलिसलेट की मातर्ा
अिधक होती है िजनसे डरमेटाइिटस का खतरा बना रहता है। अतः नैसिगर्क सौंदयर् की आभा के िलए
हमें पर्कृित से ही उपादान जुटाने चािहए, तािक हम कृितर्म सौंदयर् पर्साधनों की मार से बच सकें।
अनुकर्म
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सतर् 20
बबबबब बबबब बबबब बब बबबब-बबबब बब बबब बब
बबबबब ?
'बबबबबबबब बब बबबबबबबब बब बबबबबब बबबब बब। ' का उपदेश देनेवाले वेदों की
धरा पर अंगेजो का अंधानुकरण करने वाले पढे िलखे मूखर लोग अपने जनमदाता माता-िपता को जीते जी मृत बना देते हैं।
आजकलमाता-िपता को मम्मी डैडी कहना एक फैशन बन गया है परन्तु इन दोनों शब्दों का अथर् कोई छोटी-
मोटी गाली देना नहीं है।
बबब (Mummy) बबबबबबब बबबबबब बबबबबब बब
पर्ाचीन काल में िमशर् के िपरािमडों में ख्याित पर्ाप्त लोगों के शव रखने की परम्परा थी।
मसाला लगाकर िपरािमड में वषोर्ं पूवर् जो शव गाड़े गये थे उनको ममी कहते हैं। मम्मी शब्द ममी का
ही अपभर्ंश हैं। इस शब्द का दूसरा कोई अथर् नहीं है।
'माँ' शबद की अपनी एक गिरमा है। जननी को मा कहकर पुकारने मे उसके पित जो आदर एवं सममान का भाव जागृत होता है
उसका एहसास मम्मी कहने वाले तोछड़े लोग नहीं जान सकते। माँ अथार्त् मंगलमूितर्, ममतामयी,
मधुरता देने वाली, महान बनाने वाली देवी और मम्मी अथार्त् अधसड़ा शव इससे अिधक और कुछ नहीं।
बबबब बबबब बबब (Dead) बबबबबबब बबब बबबबबबब
डैडी का मूल शब्द है डेड और डेड का अथर् है मृत व्यिक्त। वैसे भी डैडी को पर्ेम से लोग
डेड भी बोल देते हैं। कुछ तकर्वादी यहाँ पर यह भी कह सकते हैं िक डेड और डेडी की स्पैिलंग
अलग-अलग होती है, परन्तु जब िकसी शब्द का उच्चारण िकया जाता है तो उसके उच्चारण के भाव को ही
देखा जाता है उसकी स्पेिलंग को नहीं।
हमें यह बात समझ लेनी चािहए िक शब्द का अपना पर्भाव होता है। भारतीय ऋिषयों ने शब्द के
पर्भाव की सूक्ष्म खोज करके मंतर्ों को पर्गट िकया और भारतीय मंतर्-िवज्ञान को आज का िवज्ञान भी
दण्डवत पर्णाम करता है। एक समझदार व्यिक्त को गधा कहने पर जैसा बुरा पर्भाव पड़ेगा, वैसा ही माँ
को मम्मी और िपता को डैडी कहने पर पड़ेगा।
आजकलसंगीतिचिकत्सापद्धित(Musicotherapy) िवकिसत हो रही है, िजसमें संगीत की धुनों एवं रागों
के द्वारा मानिसक रोगों का इलाज िकया जाता है।
इस िचिकतसा पदित िनषणात मनोिवजानी कहते है िक पतयेक शबद का हमारी मानिसक िसथित पर गहरा पभाव पडता है अथात् हम
जैसा शब्द बोलते हैं और शब्द के जोर से हमारे शरीर के िजस केन्दर् में स्पन्दन होता है उसका
पर्भाव हमारे मनोभावों पर तुरन्त पड़ता है।
माताशर्ी, िपताशर्ी कहने से मन में जो पिवतर् तरंग, पिवतर् भाव उत्पन्न होते हैं वैसे मम्मी
अथार्त् अधसड़ा शव और डैडी अथार्त् मृत व्यिक्त कहने से नहीं होते।
िजन माता-िपता ने इतने कष्ट सहकर अपने बच्चों को बड़ा िकया अथवा कर रहे हैं उनको जीते-
जी मृत कहना कहाँ की सभ्यता है ? जो अंगर्ेज अपने सभ्य होने की डींग हाँकते हैं वे अपने
पूवर्जों को बंदर मानते हैं, जबिक हमारे पूवर्ज बर्ह्माजी और आिदनारायण हैं।
स्वामी िववेकानंद ने कहा है िक पाश् चात्यएवं भारतीय अध्यात्म में जमीन-आसमानका अन्तरहै।
एक पाशातय कहता हैः "मैं यह शरीर हूँ और िफर मेरे पास आत्मा नाम की वस्तु भी है।" जबिक एक भारतीय की
दृिष्ट में वह पहले आत्मा है और बाद में उसके पास एक शरीर रूपी कपड़ा भी है िजसे एक िदन छोड़ना
है।
इसीिलए पाशातयो के सारे िकया-कलाप शारीिरक सुख के िलए ही होते हैं, जबिक एक भारतीय सांसािरक
िकर्या-कलापों को थोड़े िदन का व्यवहार समझकर आित्मक उत्थान का पर्यास भी करता रहता है।
यह तो आध्याित्मक क्षेतर् की बात हुई परन्तु व्यावहािरक क्षेतर् में भी इसी पर्कार की एक बड़ी
दूरी है। कोई भी व्यिक्त जब अपने पूवर्जों को याद करता है तो उनके कमोर्ं से उसे स्वयं पर गवर् या
ग्लािनहोतीहै।
चोरका बेटासमाजकेबीचअपनेिपतापरगवर् नहींकर सकता, जबिक चिरतर्वान, सज्जन एवं परोपकारी की
संतान अपने पूवर्जों पर गवर् करती है और उनसे उसे पर्ेरणा भी िमलती है।
एक भारतीय वयिकत गवर से कहता है िक मै भगवा शीराम, शीकृषण एवं ऋिष-मुिनयों की संतान हूँ, जबिक एक पाश् चात्य
कहता है िक हमारे पूवर्ज बंदर थे।
बबबबब बब बबबबबब बब बबबबब बबबब बबबब बबबबबब बब बबबब बबबब, बबबब
बबबब बब बबबबब बबबब बबबब बबबबबबबबब बबबब अब। आप स्वयं िनणर्य करें िक आपको
िकसी की पंिक्त में बैठना है ? गवर् सेकहोः"हम भारतवासी हैं, ऋिषयों की संतानें हैं।"
अनुकर्म
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बबबब बबब बबबबबबब बबबब बब बबबबब बब बबब
बबबब बबबबबबब बब बबबबबब
भगवत्पर्ाप्त महापुरुष परमात्मा के िनत्य अवतार हैं. वे नश् वरसंसार व शरीर की
ममता को हटाकर शाश् वतपरमात्मा में पर्ीित कराते हैं। कामनाओं को िमटाते हैं।
िनभर्यता का दान देते हैं। साधकों-भक्तों को ईश् वरीयआनन्द व अनुभव में सराबोर
करके जीवन्मुिक्त का पथ पर्शस्त करते हैं।
ऐसेउदारहृदय, करूणाशील, धैयरवान सतपुरषो ने ही समय-समय पर समाज को संकटों से उबारा
है। इसी शर्ृंखला में गुरू तेगबहादुरजी हुए हैं। िजन्होंने बुझे हुए दीपकों में सत्य की
ज्योित जगाने के िलए, धमर की रका के िलए, भारत को कर्ूर, आततायी, धमानध राजय-सत्ता की दासता की जंजीरों से
मुक्त कराने के िलए अपने पर्ाणों का भी बिलदान कर िदया।
िहन्दुस्तान में मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन काल था। औरंगजेब ने यह हुक्म िकया िक कोई
िहन्दू राज्य के कायर् में िकसी उच्च स्थान पर िनयुक्त न िकया जाय तथा िहन्दुओं पर जिजया (कर) लगा िदया
जाये। उस समय अनकों नये कर केवल िहन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से अनेकों िहन्दु मुसलमान हो
गये।हरओरजुल्मका बोलबालाथा। िनरपराधलोगबंदीबनायेजारहेथे।पर्जाको स्वधमर् पालनको भीआजादीनहींथी। जबरनधमर्
पिरवतर्न कराया जा रहा था। िकसी की भी धमर्, जीवन और सम्पित्त सुरिक्षत नहीं रह गयी थी। पाठशालाएंए
बलात बन्द कर दी गयीं।
िहन्दुओं के पूजा-आरतीतथाअन्यसभीधािमर्ककायर् बन्दहोनेलगे।मंिदरोंको तोड़करमिस्जदेबनवायीगयीं
ं एवंअनेकों
धमातमा मरवा िदये गये। िसपाही यिद िकसी के शरीर पर यजोपवीत या िकसी के मसतक पर ितलक लगा हुआ देख ले तो िशकारी कुतो की
तरह उन पर टूट पड़ते थे। उसी समय की उिक्त देख लें िक रोजाना सवा मन यज्ञोपवीत उतरवाकर ही
औरंगजेब रोटी खाता था....
उस समय कश् मीरके कुछ पंिडत िनराशि र्तों के आशर्य, बेसहारों के सहारे गुरू तेगबहादुरजी के
पास मदद की आशा और िवश् वाससे पहुँचे।
पंिडत कृपाराम ने गुरू तेगबहादुर से कहाः "सदगुरूदेव ! औरंगजेब हमारे ऊपर बडे अतयाचार कर रहा है। जो
उसके कहने पर मुसलमान नहीं हो रहा, उसका कत्ल िकया जा रहा है। हम उससे छः महीने की मोहलत
लेकर िहनदु धमर की रका के िलए आपकी शरण आये है। ऐसा लगता है, हममें से कोई नहीं बचेगा। हमारे पास दो ही
रास्ते हैं – धमार्ंतिरत हो जायें या िसर कटाओ।'
पंिड़त धमर्दास ने कहाः "सदगुरूदेव ! हम समझ रहे हैं िक हमारे साथ अन्याय हो रहा है। िफर
भी हम चुप हैं और सब कुछ सह रहे हैं। कारण भी आप जानते हैं। हम भयभीत हैं, डरे हुए है। अन्याय
के सामने कौन खड़ा हो ?"
"जीवन की बाजी कौन लगाये ?" गुरू तेगबहादुरकेमुँहसेअस्फुटस्वरमेिनकला। ं िफरवेगुरनू ानककी पंिक्तयाँ
दोहराने लगे।
बब बब बबबबब । बबबब बब बबबब ।। बबब बब बबब बबब बबबब बबबब
बब बबबब बबब बबब बब। बबब बबबब।।बबब ब बबबबबब
गुरू तेगबहादुरका स्वरगंभीरहोताजारहाथा। उनकी आँखोंमेद ंढ
ृ ़िनशच
् यकेसाथ गहराआशव ् ासनझाँकरहाथा। वेबोलेः
"पंिडत जी ! यह भय शासन का है। उसकी ताकत का है, पर इस बाहरी भय से कहीं अिधक भय हमारे मन का
है। हमारी आित्मक शिक्त दुबर्ल हो गयी है। हमारा आत्मबल नष्ट हो गया है। इस बल को पर्ाप्त िकये
िबना यह समाज भयमुक्त नहीं होगा। िबना भयमुक्त हुए यह समाज अन्याय और अत्याचार का सामना नहीं कर
सकेगा।"
पंिडत कृपारामः "परन्तु सदगुरूदेव। सिदयों से िवदेशी पराधीनता और आन्तिरक कलह में डूबे हुए
इस समाज को भय से छुटकारा िकस तरह िमलेगा ?"
गुरतू ेगबहादुरः"हमारे साथ सदा बसने वाला परमात्मा ही हमें वह शिक्त देगा िक हम िनभर्य होकर
अन्याय का सामना कर सकें।"
बबबब बबबबब बब बबब । बबब बबबब बब बबबबबबब बबबब बबब बबबबब बबब बबब
बबब।।बबबबब
इस बीच नौ वषर के बालक गोिबनद भी िपता के पास आकर बैठ गये।
गुरत ू ेगबहादुरः"अन्धेरा बहुत घना है। पर्काश भी उसी मातर्ा में चािहए। एक दीपक से अनेक दीपक
जलेंगे। एक जीवन की आहुित अनेक जीवनों को इस रास्ते पर लायेगी।
पं. कृपाराम आपने क्या िनश् चयिकया है, यह ठीक-ठीक हमारी समझ मे नही आया। यह भी बताइये िक हमे कया
करना होगा ?"
गुरत ू ेगबहादुरमुस्करायेऔरबोलेः"पंिडत जी ! भयगर्स्त और पीिड़तों को जगाने के िलए आवश् यकहै िक
कोई ऐसा व्यिक्त अपने जीवन का बिलदान दे, िजसके बिलदान से लोग िहल उठें, िजससे उनके अंदर की
आत्माचीत्कारकर उठे।मैंनिन े शच् यिकयाहैिक समाजकी आत्माको जगानेकेिलएसबसेपहलेमैअ ं पनेपर्ाणदूँगाऔरिफरिसरदेनेवालों
की एक शर्ृंखला बन जायेगी। लोग हँसते-हँसते मौत को गले लगा लेंगे। हमारे लहू से समाज की
आत्मापरचढ़ीकायरताऔरभयकी काई धुल जायेगीऔरतब.....।"
"और तब शहीदो के लहू से नहाई हुई तलवारे अतयाचार का सामना करने के िलए तडप उठेगी।"
यह बात बालक गुरूगोिबन्द िसंह के मुँह से िनकली थी। उन सरल आँखों में भावी संघषर् की
िचनगािरयाँफूटनेलगींथीं।
तब गुरू तेगबहादुरजी का हृदय दर्वीभूत हो उठा। वे बोलेः "जाओ, तुम लोग बादशाह से कहो िक हमारा
पीर गुरूतेगबहादुर है। यिद वह मुसलमान हो जाय तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।"
पंिडतों ने यह बात कश् मीरके सूबेदार शेर अफगान को कही। उसने यह बात औरंगजेब को िलख
कर भेज दी। तब औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर को िदल्ली बुलाकर बंदी बना िलया। उनके िष् शयम ितदास,
दयालदास और सतीदास से औरंगजेब ने कहाः "यिद तुम लोग इस्लाम धमर् कबूल नहीं करोगे तो कत्ल कर
िदये जाओगे।"
मितदासः "शरीर तो नशर है और आतमा का कभी कतल नही हो सकता।"
तब औरंगजेब ने मितदास को आरे से चीरने का हुक्म दे िदया। भाई मितदास के सामने जल्लाद
आरालेकरखड़े िदखाईदेरहेथे।उधरकाजीनेपूछाः
"मितदास तेरी अंितम इच्छा क्या है ?"
मितदासः "मेरा शरीर आरे से चीरते समय मेरा मुँह गुरूजी के िपंजरे की ओर होना चािहए।"
काजीः "यह तो हमारा पहले से ही िवचार है िक सब िसक्खों को गुरू के सामने ही कत्ल करें।"
भाई मितदास को एक िकंजे शम ें दो तख्तों के बीच बाँधा गया। दो जल्लादों ने आरा िसर पर
रखकर चीरना शुरू िकया। उधर भाई मितदास जी ने 'शी जपुजी सािहब' का पाठ शुरू िकया। उनका शरीर दो टुकड़ों
में कटने लगा। चौक को घेरकर खड़ी िवशाल भीड़ फटी आँखों से यह दृश् यदेखती रही।
दयालदास बोलेः "औरंगजेब ! तूने बाबरवंश को एवं अपनी बादशािहयत को िचरवाया है।"
यह सुनकर औरंगजेब ने दयालदास को गरम तेल में उबालने का हुक्म िदया।
उनके हाथ पैर बाँध िदये गये। िफर उन्हें उबलते हुए तेल के कड़ाहे में डालकर उबाला
गया। वेअंितमश्वासतक 'शी जपुजी सािहब' पाठ करते रहे। िजस भीड़ ने यह नजारा देखा, उसकी आँखें पथरा सी
गयीं।
तीसरे िदन काजी ने भाई सतीदास से पूछाः "क्या तुम्हारा भी वही फैसला है ?"
भाई सतीदास मुस्करायेः "मेरा फैसला तो मेरे सदगुरू ने कब का सुना िदया है।"
औरंगजेब ने सतीदास को िजनदा जलाने का हुकम िदया। भाई सतीदास के सारे शरीर को रई से लपेट िदया गया और िफर उसमे
आगलगादीगयी। सतीदासिनरन्तरशर्ीजपुजीसािहबका पाठकरतेरहे।शरीरधू-धूकर जलने लगा और उसी के साथ भीड की पथराई
आँखे िपघलउठींऔरवहचीत्कारकर
ं उठी।
अगले िदन मागर्शीषर् पंचमी संवत् सतर्ह सौ बत्तीस (22 नवम्बर सन् 1675) को काजी ने गुरू
तेगबहादुर से कहाः "ऐ िहन्दुओ के
ं पीर! तीन बातें तुम को सुनाई जाती हैं। इनमें से कोई एक बात स्वीकार
कर लो। वे बाते हैं-
इसलाम कबूल कर लो।
करामात िदखाओ।
मरने के िलए तैयार हो जाओ।
गुरतू ेगबहादुरबोलेः"तीसरी बात स्वीकार है।"
बस, िफर कया था ! जािलम और पत्थरिदल कािजयों ने औरंगजेब की ओर से कत्ल का हुक्म दे िदया।
चाँदनीचौक केखुलेमैदानमेिव ं शालवृकष् केनीचेगुरू तेगबहादुरसमािधमेब ंैठेहुएथे।
जल्लाद जलालुद्दीन नंगी तलवाल लेकर खड़ा था। कोतवाली के बाहर असंख्य भीड़ उमड़ रही थी।
शाही िसपाही उस भीड को काबू मे रखने के िलए डंडो की तीवर बौछारे कर रहे थे। शाही घुडसवार घोडे दौडाकर भीड को रौद रहे थे।
काजी के इशारे पर गुरू तेगबहादुर का िसर धड़ से अलग कर िदया गया। चारों ओर कोहराम मच गया।
बबबब बबब बबबब बबबब बबबब। बबबबब बबब।। बबब बबब बबबबबब
बबबब बबब बबबब बबब बबबब। बबब बबबब बब बबबबब ब बबबब ।।
बबबब बबब बबबब बबब बबब। बबब बबबब बब बब ब बबबब।।
धनय है ऐसे महापुरष िजनहोने अपने धमर मे अिडग रहने के िलए एवं दूसरो को धमातरण से बचाने के िलए हँसते-हँसते अपने
पर्ाणों की भी बिल दे दी।
बबबबबबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब। बबबबबबबब
बबबबब बबबबबब।। बबबबबबब बबबबबबबब
अच्छी पर्कार आचरण में लाये हुए दूसरे के धमर् से गुणरिहत भी अपना धमर् अित उत्तम है।
अपने धमर् में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धमर् भय को देने वाला है।
(शीमद् भगवद् गीताः 3.35)
अनुकर्म
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सतर् 21
बबबबबबब बब बबबबब बबबबबबबबब
बबबबबबबबबबबब बबबबबबबबबब । बबबबबब बबबबबब बब बबबबब
बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब ब बब बबबबब बबबबब।।
"मैं तीनों लोकों का राज्य, देवताओं का सामर्ाज्य अथवा इन दोनों से भी अिधक महत्त्व की वस्तु
को भी एकदम त्याग सकता हूँ, परन्तु सत्य को िकसी पर्कार नहीं छोड़ सकता।'
(महाभारत, आिदपवर्ः103.15)
िपता को खुशी की खाितर आजीवन बर्ह्मचयर्-पालन की पर्ितज्ञा करने वाले, परमवीर, सत्यिनष्ठ
भीष्म आठवें वसु थे। महिषर् वश िष्ठके शाप के कारण आठों वसुओं को मनुष्य लोक में जन्म लेना था।
शी गंगा जी की कोख से जनम लेने पर सात वसुओं को तो गंगाजी ने अपने जल मे डालकर उनके लोक भेज िदया िकनतु आठवे वसु दौ को
महाराज शान्तनु ने रख िलया। इसी बालक का नाम था देववर्त।
एक बार वन मे िवचरण करते हुए महाराज शानतनु की दृिष केवट दाशराज की पािलत पुती सतयवती पर पडी। सतयवती का हाथ
माँगा, िकन्तु दाशराज चाहते थे िक उनकी पुतर्ी की सन्तान ही िसंहासन पर बैठने की अिधकािरणी मानी
जाय। इसी शतर् पर वे सत्यवती का कन्यादान महाराज शान्तनु को दे सकते थे।
महाराज शान्तनु के िलए िवषम पिरिस्थित उत्पन्न हो गयी। एक ओर तो वे अपने ज्येष्ठ पुतर्
देववर्त का अिधकार उससे छीनना नहीं चाहते थे और दूसरी ओर सत्यवती को भुला नहीं पा रहे थे।
अतः वे उदास रहने लगे। जब देववर्त को िपता की उदासी का कारण मालूम हुआ तो वे तुरन्त दाशराज के
पास पहुँच गये एवं बोलेः "मैं राज्यासन नहीं लूँगा।"
िकन्तु दाशराज को इतने पर संतोष न हुआ। उन्होंने शंका व्यक्त कीः "तुम तो राजगद्दी पर नहीं
बैठोगे िकन्तु तुम्हारी सन्तान राज्य के िलए झगड़ सकती है।"
तब देववर्त ने उसी समय दूसरी किठन पर्ितज्ञा कीः "मैं आजीवन बर्ह्मचयर्-पालन करूँगा।"
देवताओं ने कुमार देववर्त की इस भीष्म-पर्ितज्ञा से पर्सन्न होकर उन पर पुष्पवषार् की और ऐसी भीष्ण
पर्ितज्ञा करने के कारण उनको 'भीष्म' कहकर संबोिधत िकया।
महाराज शान्तनु ने अपने पुतर् की िपतृभिक्त से खूब सन्तुष्ट होकर उसे आशीवार्द िदयाः "बेटा !
जब तुम चाहोगे तभी तुम्हारा शरीर छूटेगा। तुम्हारी इच्छा के िबना मृत्यु तुम्हारा कुछ भी नहीं िबगाड़
सकेगी।"
अपनी पर्ितज्ञा पर दृढ़ रहने के कारण बाद में अत्यावश् यकहोने पर भी न तो भीष्म राजगद्दी पर
बैठे और न ही िववाह िकया। जब सत्यवती के दोनों पुतर् िचतर्ांगद एवं िविचतर्वीयर् मर गये, तब
भरतवंश की रक्षा एवं राज्य के पालन के िनिमत्त सत्यवती ने भीष्म को िसंहासन पर बैठने तथा
सन्तानोत्पित्त करने के िलए कहा। भीष्म ने माता से कहाः
पंचभूत चाहे अपना गुण छोड़ दें, सूयर् चाहे तेजोहीन हो जाय, चन्दर्माचाहेशीतलन रहे , इनद मे से बल और
धमरराज मे से धमर चाहे चला जाय, पर ितर्लोकी के राज्य के िलए भी मैं अपनी पर्ितज्ञा नहीं छोड़ सकता। माता
! तुम इस िवषय में मुझसे कुछ मत कहो।" धनय है उनकी सतयिनषा !
महाभारत के अठारह िदन के युद्ध में दस िदनों तक तो केवल भीष्म ने ही कौरव सेना का
नेतृत्त्व िकया। उन्होंने पूरी शिक्त से दुयोर्धन को भी अपनी शस्तर् गर्हण न करने की पर्ितज्ञा को
तोड़ने के िलए बाध्य होना पड़ा। िकन्तु हृदय से धमर् पर िस्थत पाण्डवों की िवजय ही भीष्म िपतामह को
अभीष्ट थी। उनकी उपिस्थित में पाण्डवों के िलए कौरवसेना को परास्त करना किठन था। आिखरकार
पाण्डव द्वारा पूछने पर उन्होंने स्वयं अपनी मृत्यु का उपाय बताया और युिधिष्ठर को अपने वध के िलए
आज्ञदा ी। धन्यहैउनकी वीरता!
िजस समय युद्ध में ममार्हत होकर भीष्म धराशायी हुए उस समय उनका रोम-रोम बाणों से िबंध गया
था। उन्हींबाणोंकी शय्यापरवेसो गये।उस समयसूयर्दिक्षणायनमेथ ं ा। दिक्षणायनमेदंेहत्यागकेिलएउपयुक्तकालन समझकरवे
अयन पिरवतर्न के समय तक उसी शरशय्या पर पड़े रहे क्योंिक िपता के वरदान से मृत्यु उनके अधीन
थी। अन्नजलका पिरत्यागकरके , बाणों की ममार्न्तक पीड़ा सहते-सहते उन्होंने वीरता के साथ-साथ धैयर्
एवं सहनशिकत की पराकाषा िदखा दी। िवश के िकसी भी देश मे ऐसा योदा न था, और न हो सकता है।
महाभारत की युद्ध की समािप्त एवं युिधिष्ठर के राज्यिभषेक के पश् चात्एक बार युिधिष्ठर के
शीकृषण के पास जाने पर सवरशेष जाता, नैिष्ठक बर्ह्मचारी िपतामह भीष्म के न रहने पर जगत के ज्ञान का सूयर्
अस्त हो जायेगा। अतः वहाँ चलकर तुमको उनसे उपदेश लेना चािहए।"
युिधिष्ठर शर्ीकृष्ण को लेकर भाइयों के साथ वहाँ गये जहाँ भीष्म शरशय्या पर पड़े रहे थे।
बड़े-बड़े जती-जोगी, तपस्वी-िवद्वान, ऋिष-मुिन वहाँ पहले से ही उपिस्थत थे। िफर भगवान शर्ीकृष्ण
की आज्ञा से िपतामह भीष्म ने युिधिष्ठर को धमर् के समस्त अंगों का उपदेश िदया।
अन्त में सूयर् के उत्तरायण होने पर एक सौ पैंतीस वषर् की अवस्था में माघ शुक्ल अष्टमी को
सैंकड़ों साधु-संतों के बीच शरशय्या पर पड़े हुए िपतामह भीष्म ने अपने सम्मुख खड़े पीताम्बरधारी
शीकृषणचनद का दशरन करते हएु , उनकी स्तुित करते हुए िचत्त को उस परम पुरूष में एकागर् करके शरीर का त्याग
कर िदया। यह िदन उनकी पावन स्मृित में 'भीष्माष्टमी' के रूप में मनाया जाता है।
भीष्म की कोिट के महापुरूष संसार में िवरले ही होते हैं। यद्यिप भीष्म अपुतर् ही मरे, िफर भी सारे
तर्ेवािणर्क िहन्दू आज तक िपतरों का तपर्ण करते समय उन्हें जल चढ़ाते हैं।
यह गौरव िवश् वके इितहास में और िकसी भी मनुष्य को पर्ाप्त नहीं है। इसीिलए सारा जगत आज भी
उन्हें िपतामह के नाम से पुकारता है एवं उनका नाम बड़ी शर्द्धा-भिक्त एवं आदर से लेता है।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबब बब बबब
एक बार भोज के दरबार मे सुंदर वसताभूषण पहने हुए एक वयिकत का आगमन हुआ। अपनी वेशभूषा से वह बडा पंिडत लग रहा था।
उसको आते देखकर राजा भोज स्वयं िसंहासन से उठ खड़े हो गये और उसका स्वागत करते हुए उसे
बैठने के िलए एक उच्च आसन िदया।
कुछ ही देर बाद एक कृशकाय व्यिक्त फटे-पुराने कपड़े पहने दरबार में पर्िवष्ट हुआ। राजा भोज
ने वाणी से भी उनका सत्कार नहीं िकया। वह व्यिक्त अपने आप ही एक साधारण सी जगह पर बैठ गया।
सभा पूरी होने पर राजा भोज ने िजसके आगमन पर सम्मान िकया था, उसे जाते वक्त पूछा तक
नहीं, िकन्तु िजसका वाणी द्वारा सत्कार तक नहीं िकया था, उसे जाते वक्त आदर देते हुए कहाः
"आपकृपाकरकेराजसभामेद ंब
ु ारापधािरयेगा।" िफर िवनमता और सममान से उसे दार तक जाकर िवदाई दी। यह वयवहार
देखकर लोग दंग रह गये और वजीर ने तो पूछ ही िलयाः
"राजन् ! आनेपरिजसेआपनेआदरसिहकिबठाया, िवदा के समय उसके द्वारा 'मैं जाता हूँ' कसाकहने परभी
आपनेध्यानतक नहींिदया। लेिकनउस फटे -पुराने कपड़े पहने हुए कृशकाय व्यिक्त को धन्यवाद देकर छोड़ने
के िलए आप द्वार तक गये ! यह रहस्य हमारी समझ में नहीं आ रहा है, कृपा करके समझाइये।"
राजा भोज ने कहाः
"व्यिक्त जब आता है तब उसके वस्तर्ाभूषण का आदर होता है और जब जाता है तब उसके ज्ञान
का आदर होता है। वह कृशकाय व्यिक्त बाहर से भले गरीब िदख रहा था, िकन्तु भीतर से ज्ञान-धन से पिरपूणर
था। ज्ञानएकअनोखीपर्ितभाहोतीहै
, इसीिलए उसका इतना आदर िकया गया।"
िजसके जीवन में ज्ञान का िजतना आदर होता है, उतना ही वह कदम-कदम पर आनंद और पर्ेम को
पर्गटाने वाला होता है। बाह्य साज-सज्जा तो कुछ ही देर में नष्ट हो जाती है िकन्तु ज्ञान अनंत काल
तक शाश् वतबना रहता है। अतः पर्त्येक मनुष्य को चािहए िक अपने जीवन में ज्ञान का आदर करे।
अनुकर्म
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सतर् 22
बब बबबबबबबबबबबब ! बबबबबबबब बबब
िवश् वकी सारी बड़ी-बड़ी खोजें – चाहे वे किहक जगत की हों, बौिद्धक जगत की हों, धािमरक जगत की
हों अथवा ताित्त्वक जगत की हों – सब खोजें हुई हैं िजज्ञासा से ही। इसिलए अगर अपने जीवन को
उन्नत करना चाहते हो तो िजज्ञासु बनो। वे ही लोग महान बनते हैं, िजनके जीवन में िजज्ञासा होती
है।
थामसअल्वाएडीसनतुम्हारेजैसेहीबच्चेथे। वेबहरेभीथे। पहलेरेलगािड़योम
ं ेअ
ं खबार, दूध की बोतलें आिद बेचा
करते थे। लेिकन उनके जीवन में िजज्ञासा थी अतः आगे जाकर उन्होंने अनेक आिवष्कार िकये।
िबजली का बल्ब आिद 2500 खोजें उन्हीं की देनें हैं। बबबब बबब । बबबब बबबब िजसके जीवन में
िजज्ञासा है वह उन्नित के िखर श ज रूर सर कर सकता है। जीवन में यिद कोई िजज्ञासा नहीं हो तो िफर
उन्नित नहीं हो पाती।
हीरा नामक एक लड़का था, जो िकसी सेठ के यहाँ नौकरी करता था। एक िदन उसने अपने सेठ से
कहाः
"सेठ जी ! मैं आपका 24 घण्टे का नौकर हूँ और मुनीम तो केवल एक दो घण्टे के िलए आकर
आपसेइधर-उधर की बातें करके चला जाता है। िफर भी मेरा वेतन केवल 500 रूपये है और मुनीम का
5000 रूपये। ऊपर से सुिवधाएँ भी उसको ज्यादा। ऐसा क्यों ?"
सेठः "हीरा ! तुझमें और मुनीम में क्या फकर् है यह जानना चाहता है तो जा, जरा घोघा बंदरगाह
होकर आ। वहाँ अपना कौन सा स्टीमर आया है, उसकी जाँच करके आ।"
नौकर गया एवं राितर् को लौटा। उसने सेठ से कहाः
"सेठ जी ! अपना एक स्टीमर आया है।"
सेठः "उसमें क्या आया है ?"
हीराः "यह तो मुझे पता नहीं।"
वह पुनः दुसरे िदन गया और सामान का पता करके आया। िफर बोलाः
"बादाम और काली िमचर् आयी है।"
सेठः "और कया माल आया है ?"
वह िफर पूछने गया एवं आकर बोलाः
"लौग भी आयी है।"
सेठः "यह िकसने बताया ?"
हीराः "एक आदमी ने कहा िक लौग भी आयी है।"
सेठः "अच्छा, वह आदमी कौन था ? जवाबदार मुख्य आदमी था िक साधारण ?"
हीराः "यह तो पता नहीं है।"
सेठः "जाओ, जाकर मुख्य आदमी से पूछो िक कौन-कौन सी चीज आयी है और िकतनी-िकतनी आयी है
?"
हीरा िफर गया और सामान एवं उसकी मातर्ा िलखकर लाया।
सेठः "ये चीजें िकस भाव में आई हैं और इस समय बाजार में क्या भाव चल रहा है, यह पूछा
तूने ?"
हीराः "यह तो मैंने नही पूछा।"
सेठः "अरे मूखर् ! कसाकरते -करते तो महीना बीत जायेगा।"
िफर सेठ ने मुनीम को बुलाया और कहाः
"घोघा बन्दरगाह जाकर आओ।"
मुनीम दो घण्टे के बाद आया और बोलाः
"सेठ जी ! इतने मन बादाम है, इतने मन काली िमचर है, इतने मन लौग है और इतने -इतने मन फलानी चीजे है। सेठ जी हमारा
स्टीमर जल्दी आ गया है। दूसरे स्टीमर एक दो िदन बाद आयेंगे तो बाजार-भाव में मंदी हो जायगी। अभी
बाजार में माल की कमी है। अतः अभी हम अपना माल खींचकर चुपके से बेच देंगे तो लाभ होगा। यहाँ
आनेजानेमेद ंेरहोजाती, अतः मैं आपसे पूछने नहीं आया और माल बेच िदया। अच्छे पैसे िमले हैं और
यह रहा दो लाख का चेक।"
सेठ ने नौकर से कहाः "देख िलया फकर् ? अगर तू केवल चक्कर काटता रहता और दो चार िदन
िवलंब हो जाता तो मुझे पाँच लाख का घाटा पड़ता। यह मुनीम पाँच लाख के घाटे को रोककर दो लाख का
नफा करके आया है। इसको मैं 5000 रूपये देता हूँ तो भी सस्ता है और तुझको 500 रूपये देता हूँ िफर
भी महँगा है। मूखर् ! तुझमें िजज्ञासा नहीं है।"
िबना िजज्ञासा का मनुष्य आलसी-पर्मादी हो जाता है, तुच्छ रह जाता है जबिक िजज्ञासु मनुष्य हर
कायर् में तत्पर एवं कमर्ठ हो जाता है। िजसके अंदर िजज्ञासा नहीं है वह रहस्य को देखते हुए भी
अनदेखा कर देगा। िजज्ञासु की दृिष्ट पैनी होती है, सूक्ष्म होती है। वह हर घटना को बारीकी से देखता
है, खोजता है और खोजते-खोजते रहस्य को भी पर्ाप्त कर लेता है।
िकसी कक्षा में पचास िवद्याथीर् पढ़ते हैं िजसमें िक् श षतक ो सबके एक ही होते हैं ,
पाठ्यपुस्तकें भी एक ही होती हैं िकन्त जो बच्चे िक् श षककों ी बाते ध्यान से सुनते हैं एवं िजज्ञासा
करके पर्श् नपूछते हैं वे ही िवद्याथीर् माता-िपता एवं स्कूल का नाम रोशन कर पाते हैं और जो
िवद्याथीर् पढ़ते समय ध्यान नहीं देते, सुना-अनसुना कर देते हैं वे थोड़े से अंक लेकर अपने
जीवन की गाड़ी बोझीली बनाकर घसीटते रहते हैं एवं बड़े होकर िफर िकस कोने में मर जाते हैं,
पता ही नहीं चलता। अतः िजज्ञासु बनो।
जब िक् श षपक ढ़ाते हों उस समय ध्यान देकर पढ़ो। यिद समझ में न आये तो अपने -आपउसको
समझने की कोश श ि करो। अपने-आपउत्तरनिमलेतोसाथीसेया िक् शषक
स े पूछलो। ऐसा करकेअपनीिजज्ञासाको बढ़ाओ।
िजसके पास िजज्ञासा नहीं है उसको तो बर्ह्माजी उपदेश करें तो भी क्या होगा ? जो व्यिक्त िजतने
अंश में िजज्ञासु होगा, तत्पर होगा वह उतने ही अंश में सफल होगा।
अगर िजज्ञासा नहीं होगी, तत्परता नहीं होगी तो पढ़ाई में पीछे रह जाओगे, बुिद्ध में पीछे
रह जाओगे और मुिक्त में भी पीछे रह जाओगे। तुम पीछे क्यों रहो ? िजज्ञासु बनो, तत्पर बनो। सफलता
तुम्हारा ही इंतजार कर रही है। ऐिहक जगत के िजज्ञासु होते-होते मैं कौन हूँ ? शरीर मरने के बाद भी मै रहता
हूँ.... मैं आत्मा हूँ तो आत्मा और परमात्मा में क्या भेद है ? बर्ह्म-परमात्मा की पर्ािप्त कैसे हो ?
िजसको जानने से सब जाना जाता है, िजसको पाने से सब पाया जाता है वह तत्त्व क्या है ? ऐसीिजज्ञासा
करो। इस पर्कार की बर्ह्मिजज्ञासा करके बर्ह्मज्ञानी जीवन्मुक्त होने की क्षमताएँ तुममें भरी हुई
हैं। शाबाश वीर ! शाबाश !
अनुकर्म
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बबबबब बबबबबब, बबबबबबबबबबब बब बब
चन्दर्माकी चाँदनीधरतीपरआकरचारोंओरशीतलताफैलारहीथी। मधुरसुगिन्धतपवनपूरेवातावरणको महकारहाथा। एक
भगवद् भक्त चांडाल वीणा लेकर भिक्तगीत गाते हुए एकान्त अरण्य में िस्थत मिन्दर की ओर जा रहा था।
चांडालहोतेहुएभीराितर्केस्तब्धपर्हरमेम
ं ंिदरमेब
ंैठकरभगवानकी आराधनाकरनाउसकािनत्यिनयमथा। यहिनयमअनेकवषोर्से

अबाधगित से चल रहा था। उसी की पूितर् में तल्लीन होकर वह चला जा रहा था।
अचानक वह चौंक उठा, पर भयभीत नहीं हुआ। एक भयंकर बर्ह्मराक्षस ने उसे अपनी बिलष्ठ
भुजाओं में पकड़कर अपना कौन सा अभीष्ट िसद्घ करना चाहते हो ?
डरावनी हँसी से वनक्षेतर् को झकझोरते हुए उस राक्षस ने कहाः "भोजन के िबना पूरी दस रातें
बीत गयी हैं। आज क्षुधातृिप्त करने हेतु बर्ह्मा ने तुम्हें भेज िदया है।" चांडालतोभगवानकेगुणानुवादके
िलए लालाियत था। उसने बहराकस से िवनय के सवर मे कहाः "मैं जगदीश् वरके पद्यगान के िलए उत्सुक हूँ। अपने
आराध्यदेवकी उपासनाकरकेमैल ं ौटजाऊँ, तब तुम अपनी आकांक्षा की पूितर् कर लेना। मैंने जो वर्त ले रखा
है, उसे पूणर् हो जाने दो।"
क्षुधातुर राक्षस ने कठोर स्वर में कहाः "अरे मूखर् ! क्या मृत्यु के मुख से भी कोई बचकर गया है
?" तब चांडाल ने उत्तर िदयाः "अपने िनिन्दत कमोर्ं के कारण िनःसन्देह मैं चांडाल योिन में उत्पन्न
हुआ हूँ, परन्तु अपने जागरण-वर्त को पूणर् करने हेतु मैं तुम्हारे सामने सत्य पर्ितज्ञा करता हूँ िक
मैं अवश् यलौटकर आऊँगा। मैं सत्य की दुहाई देता हूँ िक यिद अपने वचन का पालन न करूँ तो मुझे
अधोगित पर्ाप्त हो।"
बर्ह्मराक्षस ने कुछ सोचकर उसे मुक्त कर िदया। चांडाल राितर्पयर्न्त भिक्तभाव में िनमग्न
अपने आराध्य के समक्ष नृत्य-गानमेत ं ल्लीनरहाऔरपर्ातःअपनीपर्ितज्ञानुसारबर्ह्मराक्षसकेपासजानेहेतुचलपड़ा। मागर्
में
एक पुरष ने से रोककर परामशर भी िदयाः "तुम्हें उस राक्षस के पास कदािप नहीं जाना चािहए। वह तो शव तक को खा
जाने वाला अत्यन्त कर्ूर और िनदर्यी है।" चांडालनेकहाः"मैं सत्य का पिरत्याग नहीं कर सकता। मेरा
िनश् चयअटल है। मैं उसे वचन दे चुका हूँ।" वह चांडाल राक्षस के समक्ष उपिस्थत हो गया और राक्षस
से िनभर्यतापूवर्क बोलाः "महाभाग ! मैं आ गया हूँ। अब आप मुझे भक्षण करने में िवलम्ब न करें।
आपकेअनुगर्हकेपर्ितमेकंत ृ ज्ञहूँ।"
बर्ह्मराक्षस आश् चयर्चिकतहो उस दृढ़वर्ती को देखता रहा और मधुर स्वर में बोलाः "साधो ! साधो
! मैं तुम्हारी सत्य पर्ितज्ञा के समक्ष नतमस्तक हूँ। भदर् ! यिद जीतने की आकांक्षा है तो मैं तुम्हें
अभयदान देता हूँ, परन्तु तुमने जो राितर् में िवष्णु मंिदर में जाकर गायन िकया है उसका फल मुझे दे
दो।" चांडालनेआशच ् यर्
चिकतहोकरपूछाः"मैं कुछ समझ नहीं पाया, तुम्हारे वाक्य का अिभपर्ाय क्या है ? पहले
तो तुम मुझे खाने को लालाियत थे और अब भगवद् गुणानुवाद का पुण्य क्यों चाहते हो ?"
बर्ह्मराक्षस ने अनुनय-िवनय कर िगड़िगड़ाते हुए कहाः "शेष पुरष ! बस, तुम मुझे एक पर्हर के
गीतका हीपुण्यदेदो। यिदइतनान देसको तोएकगीतका हीफल देदो।"
"पर बर्ह्मराक्षस ने अपना पिरचय देते हुए कहाः "मैं पूवर्जन्म में चरक गोितर्य सोमशमार्
यायावर बर्ाह्मण था। वेदसूतर् और मंतर्ों से पूणर्तः अनिभज्ञ होते हुए भी मैं लोभ-मोह से आकृष्ट
मूखोर्ं का पौरोिहत्य करने लगा। एक िदन मैं 'पंचरातर्-संज्ञक यज्ञ करवा रहा था। इतने में ही मुझे
उदर शूल उत्पन्न हुआ। मंतर्हीन, स्वरहीन, अिविधपूवर्क कराये गये यज्ञ की पूणार्हुित के पूवर् ही मेरी
मृत्यु हो गयी, िजस कारण मुझे इस दशा में उत्पन्न होना पड़ा। आपके गीत का पुण्य मुझे इस अधम शरीर
से मुक्त कर सकता है।"
चांडालतोउत्तमवर्तीथा ही, उसने कहाः "यिद मेरे गीत से तुम शुद्धमना और क्लेशमुक्त हो सकते हो
तो मैं सहषर् अपने सवोर्त्कृष्ट गायन का फल तुम्हें पर्दान करता हूँ।" चाण्डालकेइतनाकहतेहीवहबर्ह्मराक्षस
तत्काल एक िदव्य पुरष ू का रूप धारण करके ऊध्वर्लोक में चला गया।
मातर् राितर् की आराधना के फल को पाकर बर्ह्मराक्षस अधम योिन से मुक्त हो सकता है तो मनुष्य
परमात्मा की आराधना-उपासना-नामसंकीतर्न द्वारा अन्तःकरण की सम्पूणर् मिलनताओं से भी मुक्त हो
सकता है।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबबबब बब बबबबब बबबबबब बबबबबब बबबब
बबबबबब बबबब बब बब बबबबबबबबब बबबबबबबब

सभी धमार्नुष्ठानों का अंितम लक्ष्य चंचल मन को वश में करना है। मन के


संयत होने से सभी इिन्दर्याँ वश में हो जाती हैं। शास्तर्ों ने मन को ग्यारहवीं
इिनदय माना है। सनातन धमर के अनुसार बह (आत्मा) िनिष्कर्य है तथा शरीर जड़ है अथार्त्
उसमें कायर् करने का सामथ्यर् नहीं है। यह मन ही है जो आत्मा की शिक्त (सत्ता)
लेकर शरीर से िविभन पकार की चेषाएँ करवाता है। दूसरे शबदो मे, आत्माको कोई बंधननहींऔरशरीरनश् वरहैतो
िफर जनम-मरण के चकर् में कौन ले जाता है ? यह मन ही है जो सूक्ष्म वासनाओं को
साथ लेकर एक शरीर के बाद दूसरा शरीर धारण करता है। इसीिलए कहा गया हैः बब बब
बबबबबबबबबब बबबबब बबबबबबबबबब। मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
िविभन्न धमार्नुष्ठानों के द्वारा मन को पिवतर् करके इससे मुिक्त का आनंद भी िमल सकता है और
यिद इसे स्वतंतर् या उच्छर्ंखल बनने िदया जाये तो यही मन िमल सकता है और यिद इसे स्वतन्तर् या
उच्छर्ंखल बनने िदया जाय तो यही मन जीव को जन्म मरण की परम्परा में भटकाकर अनेक कष्टों में
डालता रहता है।
हमारे ऋिषयों का िवज्ञान बड़ा ही सूक्ष्मतम िवज्ञान है। उन्होंने मातर् भौितक जड़ वस्तुओं को
ही नहीं अिपतु जो परम चैतन्य है और िजससे जड़ चेतन सत्ता पर्ाप्त करके िस्थत हुए हैं उसको भी
अनुभव िकया।
अपनी संतानों को भी उस परम चैतन्य का अनुभव कराने के िलए उन महापुरूषों ने वेदों,
उपिनषदों तथा पुराणों में अनेक पर्कार के िविध-िवधानों तथा धमार्नुष्ठानों का वणर्न िकया। ऐसे ही
धमानुषानो मे आता है 'एकादशीवरत'।
पर्त्येक माह में दो एकादश ियाँआती हैं एक शुक्ल पक्ष में तथा दूसरी कृष्ण पक्ष में। एकादशी
के िदन मनःशिक्त का केन्दर् चन्दर्मा िक्षितज की एकादशवीं (ग्यारहवीं ) कक्षा पर अविस्थत होता है। यिद
इस अनुकूल समय मे मनोिनगह की साधना की जाय तो वह अतय़िधक फलवती होती है।
एकादशी को उपवास िकया जाता है। भारतीय योग दशरन के अनुसार मन का सवामी पाण है। जब पाण सूकम होते है तो मन भी वश
हो जाता है। आधुिनक िवज्ञान के अनुसार जब हम भोजन करते हैं तो उसे पचाने के िलए आक्सीजन की
आवशय ् कताहोतीहै।इसीआक्सीजनको भारतीययोिगयोंने'पर्ाणवायु' कहा है। जब हम भोजन नहीं करते तो इतनी
पर्ाणवायु खचर् नहीं होती िजतनी भोजन करने पर होती है। योग िवज्ञान के अनुसार शरीर में सात चकर्
होते हैं – मूलाधार, स्वािधष्ठान, मिणपुर, अनाहत, िवशु द्धाख्या, आज्ञाचकर् एवंसहसर्हार। हृदयमेिस्
ं थतअनाहतचकर्
के नीचे के तीन चकर्ों में मन तथा पर्ाणों की िस्थित साधारण अथवा िनम्नकोिट की मानी जाती है जबिक
अनाहत चकर् से ऊपर वाले चकर्ों में मन तथा पर्ाणों की िस्थित साधारण अथवा िनम्नकोिट की मानी
जाती है जबिक अनाहत चकर् से ऊपर वाले चकर्ों में मन तथा पर्ाण िस्थत होने से व्यिक्त की गित
ऊँची साधनाओं मे होने लगती है।
भोजनको पचाने के िलए पर्ाणवायु को नीचे के केन्दर्ों (पेट में िस्थत आँतों) में आना पड़ता
है। मन तथा पर्ाणों का आपस में घिनष्ठ सम्बन्ध है अतः पर्ाणों के िनचले केन्दर्ों में आने से मन
भी इन केन्दर्ों में आता है। योग शास्तर् में इन्हीं केन्दर्ों को काम, कर्ोध, लोभ आिद िवकारो का सथान बताया
गयाहै।
उपवास रखने से मन तथा पर्ाण सूक्ष्म होकर ऊपर के केन्दर्ों में रहते हैं िजससे
आध्याित्मकसाधनाओंमेंगितिमलतीहैतथाएकादशीको मनःशिक्तका केन्दर् चन्दर्माकी ग्यारहवींकक्षापरअविस्थतहोनेसेइस समय
मनोिनगर्ह की साधना अिधक फिलत होती है। अथार्त् उपयुक्त समय भी हो तथा मन और पर्ाणों की िस्थित
ऊँचे केनदो पर हो तो यह बबबब बबब बबबबबब वाली बात हो गयी। ऐसे समय जब साधना की जाय तो उससे
िकतना लाभ िमलेगा इस बात का अनुमान सभी लगा सकते हैं।
इसी वैजािनक आशय से हमारे ऋिषयो दारा एकादशेिनदयभूत मन को एकादशी के िदन वरत-उपवास द्वारा िनगृहीत करने
का िवधान िकया गया है।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबब बबबबबब
बबबबबबबबब बब बबब : जनादर्न ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो,
कृपया उसका वणर्न कीिजये ।
बबबबब बबबबबबबबब बबबब : राजन् ! इसका वणरन परम धमातमा सतयवतीननदन वयासजी करेगे, क्योंिक
ये सम्पूणर् शास्तर्ों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत िवद्वान हैं ।
बब बबबबबबबबबब बबबब बबब : दोनों ही पक्षों की एकादश ियोंके िदन भोजन न करे ।
द्वादशी के िदन स्नान आिद से पिवतर् हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । िफर िनत्य कमर् समाप्त
होने के पश् चात्पहले बर्ाह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और
मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चािहए ।
बब बबबबब बबबबबब बबबब : परम बुिद्धमान िपतामह ! मेरी उत्तम बात सुिनये । राजा
युिधिष्ठर, माता कुन्ती, दर्ौपदी, अजुर्न, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा
मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं िक : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ िकन्तु मैं उन लोगों
से यही कहता हूँ िक मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।
बबबबबब बब बबब बबबबब बबबबबबब बब बबब : यिद तुम्हें स्वगर्लोक की पर्ािप्त अभीष्ट
है और नरक को दूिषत समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के िदन भोजन न करना ।
बबबबबब बबबब : महाबुिद्धमान िपतामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार
भोजन करके भी मुझसे वर्त नहीं िकया जा सकता, िफर उपवास करके तो मै रह ही कैसे सकता हँू? मेरे उदर में
वृक नामक अिग्न सदा पर्जव ् िलत रहती है, अत: जब मैं बहुत अिधक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है ।
इसिलए महामुने ! मैं वषर्भर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । िजससे स्वगर् की पर्ािप्त सुलभ हो तथा
िजसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसाकोईएकवर्त िनश्चय करकेबताइये । मैं
उसकायथोिचतरुप से
पालन करुँगा ।
बबबबबबब बब बबब : भीम ! ज्येष्ठ मास में सूयर् वृष राश िपरहो या िमथुन राश िपर, शुकलपक मे
जो एकादशी हो, उसका यत्नपूवर्क िनजर्ल वर्त करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के िलए मुख में जल
डाल सकते हो, उसको छोड़कर िकसी पर्कार का जल िवद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा वर्त भंग हो
जाता है । एकादशी को सूयौर्दय से लेकर दूसरे िदन के सूयौर्दय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह
वर्त पूणर् होता है । तदनन्तर द्वादशी को पर्भातकाल में स्नान करके बर्ाह्मणों को िविधपूवर्क जल और
सुवणर् का दान करे । इस पर्कार सब कायर् पूरा करके िजतेिन्दर्य पुरुष बर्ाह्मणों के साथ भोजन करे ।
वषर्भर में िजतनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल िनजर्ला एकादशी के सेवन से मनुष्य पर्ाप्त कर
लेता है, इसमे तिनक भी सनदेह नही है । शंख, चकर्औरगदाधारणकरनेवाले भगवानकेशवनेमुझसेकहाथािक: ‘यिद मानव सबको
छोडकर एकम ात म े र ी शरण म े आ जाय और एकादशी को िन राह ा र रह े तो वह सब पापो स े छू ट जाता ह ै ।’
एकादशी वरत करनेवाले पुरष के पास िवशालकाय, िवकराल आकृित और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर
यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करनेवाले
और मन के समान वेगशाली िवषणुदत ू आिखर इस वैषणव पुरष को भगवान िवषणु के धाम मे ले जाते है । अत: िनजर्ला एकादशी को
पूणर् यत्न करके उपवास और शर्ीहिर का पूजन करो । स्तर्ी हो या पुरष ु , यिद उसने मेरु पवर्त के बराबर भी
महान पाप िकया हो तो वह सब इस एकादशी वर्त के पर्भाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस िदन जल के
िनयम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक एक पर्हर में कोिट कोिट स्वणर्मुदर्ा दान
करने का फल पर्ाप्त होता सुना गया है । मनुष्य िनजर्ला एकादशी के िदन स्नान, दान, जप, होम आिद जो
कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान शर्ीकृष्ण का कथन है । िनजर्ला एकादशी को
िविधपूवर्क उत्तम रीित से उपवास करके मानव वैष्णवपद को पर्ाप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के
िदन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर
दुगर्ित को पर्ाप्त होता है ।
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को पर्ाप्त
होंगे । िजन्होंने एकादशी को उपवास िकया है, वे बर्ह्महत्यारे, शराबी, चोरतथागुरद ु र्ोहीहोनेपरभीसब पातकों
से मुक्त हो जाते हैं ।
कुन्तीनन्दन ! ‘िनजर्ला एकादशी’ के िदन शर्द्धालु स्तर्ी पुरष ु ों के िलए जो िवशेष दान और
कत्तर्व्य िविहत हैं, उन्हें सुनो: उस िदन जल में शयन करनेवाले भगवान िवष्णु का पूजन और जलमयी
धेनु का दान करना चािहए अथवा पतयक धेनु या घृतमयी धेनु का दान उिचत है । पयापत दिकणा और भाित भाित के िमषानो दारा यतपूवरक
बर्ाह्मणों को सन्तुष्ट करना चािहए । ऐसा करने से बर्ाह्मण अवश् यसंतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट
होने पर शर्ीहिर मोक्ष पर्दान करते हैं । िजन्होंने शम, दम, और दान मे पवृत हो शीहिर की पूजा और राित मे जागरण
करते हुए इस ‘िनजर्ला एकादशी’ का वर्त िकया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीिढ़यों को और
आनेवालीसौ पीिढ़योंको भगवानवासुदेवकेपरमधाममेप ं हुँचािदयाहै। िनजर्लाएकादशीकेिदनअन्न , वस्तर्, गौ, जल, शैयया,
सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चािहए । जो शर्ेष्ठ तथा सुपातर् बर्ाह्मण को जूता दान करता
है, वह सोने के िवमान पर बैठकर स्वगर्लोक में पर्ितिष्ठत होता है । जो इस एकादशी की मिहमा को
भिक्तपूवर्क सुनता अथवा उसका वणर्न करता है, वह स्वगर्लोक में जाता है । चतुदर्शीयुक्त अमावस्या को
सूयर्गर्हण के समय शर्ाद्ध करके मनुष्य िजस फल को पर्ाप्त करता है, वही फल इसके शर्वण से भी
पर्ाप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह िनयम लेना चािहए िक : ‘मैं भगवान केशव की पर्सन्न्ता के
िलए एकादशी को िनराहार रहकर आचमन के िसवा दूसरे जल का भी तयाग करँगा ।’ दादशी को देवेशर भगवान िवषणु का पूजन करना
चािहए। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्तर् से िविधपूवर्क पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते
हुए िनम्नांिकत मंतर् का उच्चारण करे :
बबबबबब बबबबबबबब । बबबबबबबबबबबबबब ब
बबबबबबबबबबबबबबब बब बबब बबबबब बबबबब॥
‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव हर्षीकेश ! इस जल के घडे का दान करने से आप मुझे परम गित की
पर्ािप्त कराइये ।’
भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका िनजर्ल वर्त करना
चािहए। उस िदन शर्ेष्ठबर्ाह्मणोक
ं ो शक्करकेसाथ जलकेघड़ेदानकरनेचािहए। ऐसा करनेसेमनुष्यभगवानिवष्णुकेसमीपपहुँचकर
आनन्दका अनुभवकरताहै। तत्पशच ् ात्द्वादशीको बर्ाह्मणभोजनकरानेकेबादस्वयंभोजनकरे। जोइस पर्कारपूणर्रुप सेपापनाश िनी
एकादशी का वरत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को पर्ाप्त होता है ।
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का वर्त आरम्भ कर िदया । तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव
द्वादशी’ के नाम से िवख्यात हुई ।
अनुकर्म
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सतर् 24
बबबबबबबबब बबबब बब बब बब बबब
बंद िडब्बों का रस भूलकर भी उपयोग न करें। उसमें बेन्जोइक एिसड होता है। यह एिसड तिनक भी
कोमल चमड़ी को स्पर्शक रे तो फफोले पड़ जाते हैं और , उसमें उपयोग में लाया जाने वाला
सोिडयम बेन्जोइक नाम का रसायन यिद कुत्ता भी दो गर्ाम के लगभग खा ले तो तत्काल मृत्यु को पर्ाप्त हो
जाता है। उपरोक्त रसायन फलों के रस, कन्फेक्शनरी, अमरूद-जेली, अचार आिद में पर्युक्त होते
हैं। उनका उपयोग मेहमानों के सत्काराथर् या बच्चों को पर्सन्न करने के िलए कभी भूलकर भी न करें।
'फेशफूट' के लेबल में िमलती िकसी भी बोतल में िडब्बे में ताजे फल अथवा उनका रस कभी नहीं
होता। बाजार में िबकता ताजा 'ऑरेंज' कभी भी संतरा-नारंगी का रस नहीं होता। उसमें चीनी, सैकर्ीन
और कृितम रंग ही पयुकत होते है जो आपके दातो और आँतिडयो को हािन पहुँचाकर अंत मे कैसर को जनम देते है। बंद िडबबो मे िनिहत फल
या रस जो आप पीते हैं उन पर जो अत्याचार होते हैं वे जानने योग्य हैं।
सवर्पर्थम तो बेचारे फल को उफनते गरम पानी में धोया जाता है िफर पकाया जाता है। ऊपर का
िछ लका िन कालकर इसम े चाशनी डाली जाती ह ै और रस ताजा रह े इसक े िल ए उसम े िव िव ध रसायन
(कैिमकल्स) डाले जाते हैं। उसमें कैश िल् नाइटर् यम ेट, और मैगनेिशयम कलोराइड आिद उडेला जाता है िजसके
कारण अँतिड़यों में छेद हो जाते हैं, िकडनी को हािन पहुँचती है, मसूढ़े सूज जाते हैं। पुलाव के
िलए बाजार के बंद िडबबो के जो मटर उपयोग मे लाये जाते है उनहे हरे ताजे रखने के िलए उनमें मैिग्नशयम क्लोराइड डाला
जाता है। मक्की के दानो को ताजा रखने के िलए सल्फर डायोक्साइड नामक िवषैला रसायन (कैिमकल)
डाला जाता है। एरीथर्ोिसन नामक रसायन कोकटेल में पर्युक्त होता है।
टमाटर के रस मे नाइटेटस डाला जाता है। शाकभाजी व फलो के िडबबो को बंद करते समय उसमे जो नमक डाला जाता है वह
साधारण नमक से 45 गुनाअिधकहािनकारकहोताहै।
इसिलए अपने और बचचो के सवासथय के िलए और मेहमान-नवाजी के फैशन के िलए भी ऐसे बंद िडब्बों की
शाकभाजी का उपयोग करके सवासथय को सथायी जोिखम मे न डाले।
अनुकर्म
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बबबब बबबबबब बबबब ब बबबबब
आजकेव्यस्तजीवनमेल ं ोगोंद्वाराखानपानकेमामलेमेब
ं रती जारहीलापरवािहयोंसेिदन-पर्ितिदन बीमािरयों की वृिद्ध
हो रही है। घर पर बने शुद्ध एवं ताजे भोजन को छोड़कर बाजारू फास्ट-फूड आिद खाना तो मानो फैशन ही बन गया
है। यह बात िदखने में तो बहुत छोटी लगती है परंतु इसके पिरणाम बहुत बड़े होते हैं।
कनाडा के टोरंटो यूिनविसर्टी में हुए एक अध्ययन में पाया गया िकः "नाश् तेके पर्ित लापरवाह
रहने वाले युवाओं की अपेक्षा नाश् तेके पर्ित सजग रहने वाले बुजुगोर्ं की स्मरणशिक्त अच्छी थी।
मैदा आंतों के िलए हािनकारक है िफर कई घंटों पहले मैदे तथा पाचनतंतर् के िलए हािनकारक
पदाथोर्ं से बनी डबलरोटी व बर्ेड स्वास्थ्यपर्द कैसे हो सकती है ? डबलरोटी, पीजा, बगर्र, कॉफी, चाय
एवं तली हुई बाजार चीजो की अपेका गरम-गरमरोटी, दूध अथवा ताजे फलों का सेवन करें। फैशनवाले नाश् तेहािन
होती है जबिक घर में बना हुआ साित्त्वक नाश् तालाभदायक होता है। ऐसे बाजारू नाश् तेका सेवन करने
वाले 63 पर्ितशत अमेिरकी लोग अिनदर्ा के िकार श ह ैं। इस पर्कार के फास्ट फूड आगे चलकर स्मृित व
स्वास्थ्य को ले डूबते हैं। अतः सावधान !
अनुकर्म
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बबबबबब बब बबबबबबब बबबब
िजन्हें वीयर् रक्षण करना है, आरोग्य-सम्पन्न बनना है तथा जो स्वयं की
शीघ उनित चाहते है, उन्हें जल्दी सोने और जल्दी जागने का अभ्यास अवश् यही करना
मे9
चािहए। राितर् ं से 12 बजे के बीच हर एक घण्टे की नींद 3 घण्टे की नींद के
बराबर लाभ देती हैं। 12 से 3 बजे के बीच पर्त्येक घण्टे की नींद डेढ़
घंटे की नींद के बराबर है। 3 से 5 बजे के बीच पर्त्येक 1 घंटे की नींद 1
घंटे के बराबर एवं 6 बजे अथवा सूयोर्दय के बाद की नींद आलस्य, तमोगुण वधर्क है, स्वास्थ्य के
िलए हािनकारक है। रोगी और िशशु के अितिरकत िकसी को भी छः घणटे से जयादा कदािप नही सोना चािहए। अिधक सोने वाला कभी भी
स्वस्थ व पर्गितशील नहीं हो सकता। पर्ातः बर्ह्ममुहूतर् में (सूयोर्दय से सवा दो घंटे पहले) ही जाग
जाना चािहए क्योंिक वीयर्नाश पर्ायः राितर् के अिन्तम पर्हर में ही हुआ करता है। पर्ातः काल हो जाने
पर सूयोर्दय के बाद भी जो पुरूष िबस्तर पर ही पड़ा रहता है वह तो अभागा ही है। इितहास और अनुभव
हमें स्पष्ट बतलाते हैं िक बर्ह्ममुहूतर् के िदव्य अमृत का सेवन करने वाले व्यिक्त ही महान कायर्
करने में सफल हुए हैं।
िजन कमरों में िदन में सूयर् का पर्काश पहुँचता हो तथा राितर् में स्वच्छ हवा का आवागमन हो,
ऐसेस्थानोपरशयनकरनालाभदायकहै।चादर, कम्बल, रजाई आिद से मुँह ढककर सोना हािनकारक है क्योंिक नाक
और मुँह से काबरन डाई ऑकसाइड गैस िनकलती है जो सवासथय पर बुरा असर डालने वाली गैस है। मुँह ढके रहने पर शसन-िकर्या
द्वारा यही वायु बार-बार अन्दर जाती रहती है और शुद्ध वायु (आक्सीजन) न िमलने से मनुष्य िनश् चयही
रोगी और अल्पायु बन जाता है।
ओढने के कपडे सवचछ, हलके और सादे होने चािहए। नरम-नरम िबस्तर से इिन्दर्यों में चंचलता
आतीहै , अतः ऐसे िबस्तर का पर्योग न करें। राितर् में िजन वस्तर्ों को पहनकर सोते हैं, उसका उपयोग
िबना धोये न करें। इससे बुिद्ध मंद हो जाती है। अतः ओढ़ने, पहनने के सभी वस्तर् सदा स्वच्छ होने
चािहए। रजाईजैसे मोटेकपड़ेयिदधोनेलायकन होंतोकड़ीधूप मेड ं ालनाचािहएक्योंिकसूयर्केपर्काशसेरोगाणुमरजातेहैं।
िदन में सोने से ितर्दोषों की उत्पित्त होती है। िदन काम करने के िलए और राितर् िवशर्ाम के
िलए है। िदन मे सोना हािनकारक है। िदन मे सोने वाले लोगो को राती मे नीद नही आती और िबसतर पर पडे-पड़े जागते रहने की
िस्थित में उनका िचत्त दुवार्सनाओं की ओर दौड़ता है।
सोने से पहले पेशाब अवश् यकर लेना चािहए। सदीर् या अन्य िकसी कारणवश पेशाब को रोकना
ठीक नही, इससे सवपदोष हो सकता है।
सोने से पूवर् ठंडी, खुली हवा में टहलने या दौड़ने से तथा कमर से घुटने तक का सम्पूणर् भाग
और िसर भीगे हुए तौिलये या कपडे से पोछने से िनदा शीघ आती है।
सोने से कम-से-कम एक-डेढ़ घण्टा पहले भोजन कर लेना चािहए। राितर् में हलका भोजन अल्प
मातर्ा में लें। राितर् में सोने से पूवर् गरम दूध पीने एवं खाने के बाद तुरंत सोने से स्वप्नदोष की
संभावना बढ़ जाती है, अतः ऐसा न करें।
सोते समय िसर पूवर् या दिक्षण िदशा की ओर रहना चािहए।
िनदर्ा के समय मन को संसारी झंझटों से िबल्कुल अलग रखना चािहए। राितर् को सोने से पहले
आध्याित्मकपुस्तकपढ़नीचािहए। इससेवेहीसतोगुणीिवचारमनमेघ ंम ू तेरहेंगऔ
े रहमारामनिवकारगर्स्तहोनेसेबचारहेगाअथवातो
मंतर्जप करते हुए, हृदय में परमात्मा या शर्ीसदगुरूदेव का ध्यान िचन्तन करते हुए सोयें। ऐसी िनदर्ा
भिक्त और योग का फल देने वाली िसद्ध होगी।
उठते समय नेतर्ों पर एकाएक पर्काश न पड़े। जागने के बाद हाथ धोकर तामर्पातर् के जल से
नेतर्ों को धोने से नेतर्िवकार दूर होते हैं।
अनुकर्म
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सतर् 25
बबबबब बबब बबब बबबबबबबबब-बबबबब बब बबब
बबबबबब बबबब
वषार् ऋतु से 'आदानकाल' समाप्त होकर दिक्षणायन हो जाता है और िवसगर्काल शुरू हो
जाता है। इन िदनों हमारी जठरािग्न अत्यंत मंद हो जाती है। वषार्काल में मुख्य रूप
से वात दोष कुिपत रहता है। अतः इस ऋतु में खान पान तथा रहन-सहन पर ध्यान देना
अत्यंत जरूरी हो जाता है।
गमीर्
केिदनोंमेम ं नुष्यकी पाचकअिग्न मंदहोजातीहै।वषार्ऋतुमेय ं हऔरभीमंदहोजातीहै।फलस्वरूप अजीणर् , अपच,
मंदािग्न, उदरिवकार आिद इस ऋतु में अिधक होते हैं।
बबबबब इन िदनो मे देर से पचने वाला आहार न ले। मंदािगन के कारण सुपाचय और सादे खाद पदाथों का सेवन करना ही
उिचत है। बासी, रूखे और उष्ण पर्कृित के पदाथोर्ं का सेवन न करें। इस ऋतु में पुराना जौ, गेहू ,ँ साठी
चावलका सेवनिवशेषलाभपर्दहै।वषार्ऋतुमेभ ं ोजनबनातेसमयआहारमेथ ं ोड़ा-सा मधु (शहद) िमला देने से मंदािग्न दूर
होती है व भूख खुलकर लगती है। अल्प मातर्ा में मधु के िनयिमत सेवन से अजीणर्, थकानऔरवायुजन्य
रोगों से भी बचाव होता है।
इन िदनो मे गाय-भैंस के कच्ची घास खाने से उनका दूध दूिषत रहता है। अतः शर्ावण मास में दूध
एवं पतीदार हरी सबजी तथा भादो मे छाछ का सेवन करना सवासथय के िलए हािनकारक माना गया है।
तेलों में ितल के तेल का सेवन करना उत्तम है। यह वात रोगों का शमन करता है।
वषार् ऋतु में उदर रोग अिधक होते हैं, अतः भोजन में अदरक व नींबू का पर्योग पर्ितिदन करना
चािहए। वषार्ऋतु मेहं ोनेवालीबीमािरयोंकेउपचारमें नींबू बहुत ही लाभदायक है।
इस ऋतु मे फलो मे आम तथा जामुन सवोतम माने गये है। आम आँतो को शिकतशाली बनाता है। चूसकर खाया हुआ आम पचने मे
हल्का तथा वायु एवं िपत्तिवकारों का शमन कत्तार् है। जामुन दीपन, पाचन करता है तथा अनेक उदर रोगों
में लाभकारी है।
वषार्काल के अिन्तम िदनों में व शरदऋतु का पर्ारंभ होने से पहले ही तेज धूप पड़ने लगती
है और संिचत िपत्त कुिपत होने लगता है। अतः इन िदनों में िपत्तवधर्क पदाथोर्ं का सेवन नहीं करना
चािहए।
इन िदनो मे पानी गनदा व जीवाणुओं से युकत होने के कारण अनेक रोग पैदा करता है। अतः इस ऋतु मे पानी उबालकर पीना चािहए
या पानी में िफटकरी का टुकड़ा घुमाएँ िजससे गन्दगी नीचे बैठ जाय।
बबबबबब इन िदनो मे मचछरो के काटने पर उतपन मलेिरया आिद रोगो से बचने के िलए मचछरदानी लगाकर सोये। चमररोग से
बचने के िलए शरीर की साफ-सफाई का भी ध्यान रखें। अशु द्धव दूिषत जल का सेवन करने से चमर्रोग,
पीिलया, हैजा, अितसार जैसे रोग हो जाते हैं।
िदन में सोना, निदयों में स्नान करना व बािरश में भींगना हािनकारक होता है।
वषार्काल में रसायन के रूप में बड़ी हरड़ का चूणर् व चुटकीभर सैंधव नमक िमलाकर ताजे फल
के साथ सेवन करना चािहए।
अनुकर्म
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बबब बबबबब बबबबब बब, बब बब बबबब, बब बब बब
सदा भगवत्पर्ेम में िनमग्न रहनेवाले ज्ञानी संत शर्ी तुकाराम जी जब
कीतर्न करने लगते, तब उनके शर्ीमुख से ज्ञान, वैराग्य तथा भिक्त के गूढ़
रहस्यों के बोधक अभंग पर्कट होते थे। बड़े-बड़े िवद्वान, साधु, भक्त एवं
शदालुजन उनका सतसंग-सािन्नध्य पर्ाप्त करते। देहू गाँव से नौ मील दूर बाघौली में
रहने वाले कमर्िनष्ठ वेद-वेदान्त के एक पिण्डत शर्ी रामेश् वरभट्ट को यह बहुत
अनुिचत लगा। उन्होंने स्थानीय अिधकारी से कहाः 'तुकाराम शूदर् होकर वेदों का
सार अपने अभंगों से बोलता है। उसे देहू गाँव छोड़कर चले जाने की आज्ञा
दी जानी चािहए।'
यह समाचार तुकाराम जी के पास पहुँचा तो वे स्वयं रामेश् वरभट्ट के पास गये तथा उन्हें
अिभवादन करके बोलेः "मेरे मुख से अभंग शर्ी पाण्डुरंग की पर्ेरणा से ही िनकले हैं। आप कहते
हैं तो अब मैं अभंग नहीं बनाऊँगा। अब तक जो अभंग बने हैं, और िलखे है, उनकाक्या करूँ यह बतलाने
की कृपा करें।"
"उन्हें नदी में डुबा दो।" रामेश् वरभट्ट ने झल्लाकर कहा।
संत तुकाराम जी देहू लौट आये।अभंगिलखी सब बिहयाँउन्होंने इन्दर्ायणीनदीमेडु ादीं। 'हे िवट्ठल ! आपकानाम,
ंब
रूप, गुण, महात्म्यािद भी बोलना, िलखना एक शासतज िवदान ने विजरत कर िदया। आपकी जैसी मजी हो वह पूणर हो।' ऐसािनश्चय
करके तुकारामजी शर्ी िवट्ठल मिन्दर के सामने जाकर बैठ गये। उन्होंने अन्न, जल तथा िनदर्ा भी
छोड दी। िल ख े ह ु ए अभं ग ो की बिह य ा भल े ही नदी म े डु ब ा दी गयी , परन्तु वे सदा सशरीर िवट्ठलमय
थे। उनकी देहकी छायाभीिवट्ठलबनगयीथी, उनकी िजह्वा पर सदा िवट्ठल ही िवराजमान थे, िवट्ठल के िसवा
उन्हें दूसरा कुछ िदखता, सूझता, भाता ही नहीं था। तेरह िदन पश् चातशर्ीहिर ने बालवेशधारण कर उन्हें
दर्शन िदये और अपने हृदय से लगा िलया। मैंने तुम्हारी अभंगों की बिहयाँ इन्दर्ायणी में सुरिक्षत
रखी थीं। आज उन्हे तुम्हारे शर्द्धालुओं को दे आया हूँ। ऐसा कहकर तुकाराम जी के हृदय में वे
लीलामय शी िवटल समा गये। उधर बाघौली मे रामेशर भट पर पकृित का कोप हुआ। भगवान से देष करे तो वे सह लेते है पर अपने भकत
का दर्ोह उनसे सहा नहीं जाता। कंस रावणािद हिरदर्ोही अन्त में मुिक्त पा गये, पर भक्त का दर्ोह करने
वाला यिद समय रहते सावधान होकर पश् चातापन करे तथा परमात्मा और परमात्म-पर्ाप्त संत की शरण न
ले तो वह िनशय ही नरकगामी होता है। पाणीमात पर अहैतुकी कृपा बरसाने वाले, सबका िहत साधने वाले भगवत्स्वरूप
महापुरूष सबके अन्तर में व्यापे रहते हैं। इस कारण उन्हें कष्ट देना भूपित भगवान को ही कष्ट देना
है। उदार हृदय महापुरूष तो सब सहन कर लेते हैं परन्तु पर्कृित और परमात्मा उन्हें कठोर दण्ड देते
हैं।
तालाब में ज्यों ही रामेश् वरभट्ट नहाये त्यों ही उनके सारे शरीर में जलन होने लगी।
उनका सारा शरीर जैसे दग्ध होने लगा। ताप-शमन के अनेक उपचार उनके िशषयो ने िकये, पर सब व्यथर् ! शरीर मे
असह्य वेदना होने लगी। सब उपचार करके भी जब दाह शान्त नहीं हुआ, तब रामेश् वरभट्ट आलन्दी में
जाकर ज्ञानेश् वरमहाराज का जप करने लगे। उन्हें एक रात तो स्वप्न आया िक महावैष्णव तुकाराम से
तुमने द्वेष िकया, इस कारण तुमहारा सब पुणय नष हो गया है। संत को सताने के पाप से ही तुमहारी देह जल रही है। इसिलए
अन्तःकरण को िनमर्ल करके नमर् होकर तुकाराम की ही शरण में जाओ। इससे इस रोग से ही नहीं, भवरोग
से भी मुक्त हो जाओगे। इसे ज्ञानेश् वरमहाराज का ही आदेश जानकर वे अपने िकये पर बहुत
पछताये। इसी बीच उन्हें यह वातार् सुनाई पड़ी िक नदी में फेंकी हुई अभंग की बिहयाँ जल ने उबार
ली। तब तो उनके पशाताप का कुछ िठकाना ही न रहा, वे फूट-फूट कर रोने लगे। उनकी आँखे खुल गयी, िफर उनहोने जाना िक ईशर
भिक्त के आगे कमर्काण्ड और कोरे पािण्डत्य का कोई मूल्य नहीं है। जब उन्होंने यह जाना िक तुकाराम
भगवान के अत्यन्त िपर्य हैं तो उनका अहंकार चूर-चूर होगया। भक्तका कायर् बनानेकेिलएस्वयंभगवानसाकारहो
गयेऔरहमारेपािण्डत्यमेइंतनाभीसामथ्यर् नहींिक शरीरमेह ं ोनेवालेदाहका शमनकर सके।यहजानकरउनका अिभमानपानी-पानी
हो गया।
उन्होंने एक पतर् िलखकर गदगद अन्तःकरण से उनकी बड़ी स्तुित की। तुकारामजी ने उसके उत्तर
में एक अभंग िलख भेजा। िजसका अथर् इस पर्कार हैः "अपना िचत्त शुद्ध हो तो शतर्ु भी िमतर् हो जाते
हैं, िसंह और साँप भी अपना िहंसा भाव भूल जाते हैं, िवष अमृत हो जाता है, अिहत िहत में बदल जाता
है, दूसरों के दुव्यर्वहार अपने िलए नीित का बोध कराने वाले होते है। दुःख सवर्सुखस्वरूप फल देने
वाला बनता है, आगकी लपटेठ ंण्डी-ठणडी हवा के समान हो जाती है। िजसका िचत शुद है उसको सब जीव अपने जीवन के समान
प्यार करते हैं, कारण िक सबके अन्तर में एक ही परमात्मा है। तुका कहता है, मेरे अनुभव से आप
यह जानें िक नारायण ने ऐसी ही आपदाओं में मुझ पर कृपा की।"
इस उतर को बार-बार रामेश् वरभट्ट ने पढ़ा और खूब मनन िकया। पश् चातापसे िनमर्ल हुए उनके
िचत्तमेबं ोधका यहबीजजमगया। उनकेशरीरऔरमनका तापभीउससेशमनहुआ। रामेशव् रभट्टअबवहरामेशव् रभट्टन रहे।वे
तुकाराम महाराज के चरणों में पहुँचे और पर्ाथर्ना कीः "देहबुिद्ध के कारण तथा वणार्िभमान से,
मैंने आपको नहीं जाना और बड़ा कष्ट पहुँचाया, पर आप दयाधन हैं, मुझे अपनी शरण दीिजये, अब
मेरी उपेक्षा मत कीिजए।' पश् चातापपूवर्कऐसी िवनय करते हुए उन्होंने परमात्मा से पर्ाथर्ना की िक
संत तुकाराम महाराज के शर्ीचरणों के पर्ित मेरे अन्तःकरण में जो यह िनमर्ल भाव उत्पन्न हुआ है
वह कभी मिलन न हो।
अनुकर्म
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सतर् 26
बबबबबबबब बब बबबबबबबबबबबब
'सत्कथा गर्न्थ की यह कथा है।
काशीनरेश बड़े धमार्त्मा, सत्य एवं न्यायिपर्य राजा थे। उनके पास कई िवद्वान पंिडत आते
जाते रहते थे।
एक बार उनकी पटरानी को काितरक मास मे गंगासनान के िलए जाने की इचछा हुई। पटरानी थी, अतः उसके िलए काफी
बन्दोबस्त िकया गया तािक िकसी की नजर उस पर न पड़े। गंगा तट पर से बस्ती को हटा िदया गया एवं आस-
पास जो झोंपड़े थे उनमें रहने वाले गरीबों को भी रानी की आज्ञा से भगा िदया गया।
जब रानी स्नान करके बाहर आयी तो उसे ठंड लगने लगी। उसने एक दासी को हुक्म िकयाः "सामने
जो झोंपिड़याँ हैं उनमें से एक झोंपड़ी जला दे तािक मैं जरा हाथ सेंक लूँ।"
िजसे हुक्म िदया गया था वह थी तो दासी, िकन्तु उसे धमर् का ज्ञान था। वह बोलीः "महारानी जी !
आपकोिजतनाअपनामहलएवंराज-पिरवार िपर्य है उतना ही इन गरीबों को अपना झोंपड़ा एवं कुटुम्ब प्यारा है।
दूसरों की पीड़ा का ख्याल करके आप जरा सह लीिजए। आपको िदन में भी ठंड लग रही है तो वे बेचारे
राितर् में इतनी ठंडी में कहाँ सोयेंगे ? इसका तो जरा खयाल कीिजए !"
महारानी का नाम तो करूणा था, पर हृदय कठोरता से भऱा था। उसने उस दासी को जोरदार तमाचा
मारते हुए कहाः "आयीबड़ीधमोर्पदेदेन श े वाली। चलहट, नालायक कहीं की...."
उस बेचारी दासी को हटा िदया गया एवं जो चापलूसी करने वाली दािसयाँ थीं, उन्हें बुलाकर
झोपडे को जलाने की आजा कर दी।
दािसयों ने जला िदया झोंपड़ा। सब झोंपड़े पास-पास ही थे। अतः एक झोंपड़े को जलाते ही
हवा के कारण एक-एक करके सभी झोपडे जल उठे। महारानी झोपडो की होली जलती देखकर बडी खुशी हुई एवं राजमहल मे वापस
लौटी। इतने मे पजा के कुछ समझदार लोग एवं िजनकी झोपिडया जला दी गयी थी, वे गरीब लोग आये राजा के पास
िशकायत करने।
लोगो की िशकायत सुनकर राजा गये महल मे एवं अपनी पटरानी से पूछाः "लोग जो बात कह रहे है, क्या वह सच है ?"
महारानीः "हाँ, मुझे ठण्ड लग रही थी। एक झोंपड़ी जलवायी तो सब जल गयीं। महा होली का नजारा
देखने का आनंद आया।"
तब राजा ने सोचाः "जो व्यिक्त सदैव सुखों में ही पला है, उसे दूसरों के दुःख का पता नहीं
चलता। जोमहलोंमेरंहताहैउसेझोंपड़व ेालोंकेआँसुओंका ख्यालनहींरहता। जोरजाइयोंमेिछपाहै
ं उसेफटेकपड़ेवालोंकेदुःख का
एहसास नही होता। मै भी कया ऐसी रानी का बातो मे आ जाऊँ ? नहीं।
उन्होंने अपनी दािसयों को आदेश िदयाः
"इस अभािगनी के राजसी वसत अलंकार तुरत ं उतारकर झोपडी मे रहने वाली सती के फटे िचथडे वसत पहना दो और राजदरबार
में पेश करो।"
राजाज्ञा का उल्लंघन भला कौन सी दासी करती ? तुरंत राजाज्ञा का पालन िकया गया। राजदरबार
में रानी के आने पर राजा ने फरमान जारी िकयाः
"इस रानी ने िजनके झोपडे जलाये है, उन्हें पुनः यह रानी जब तक अपनी मेहनत मजदूरी से अथवा भीख
माँगकर बनवा न देगी, तब तक यह महल में आने के कािबल न रहेगी।"
महारानी को राजाज्ञा का पालन करना ही पड़ा। आज्ञापालन के पश् चातही उसे महल में पर्वेश
िमला।
ऐसान्यायिपर् राजा
य हीवास्तवमेंराज्य भोगने का अिधकारीहोताहै।दूसरों केदुःखोंको समझकरउन्हदूें रकरने की कोि
शश
करने वाला ही वास्तव में मानव कहलाने का अिधकारी होता है। वह मानव ही क्या िजसमें मानवीय
संवेदना का नाम नहीं ? वह मानवता कैसी िजसे दूसरों के दुःख ददर् का एहसास नहीं ?
अनुकर्म
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बबबब बबबबब बब बबबब बबब बबबबब बब बबबबबब
सवर्तर् आत्मदृिष्ट रखने वाले, परमात्मा के साथ एकत्व को पर्ाप्त हुए संत
एकनाथ जी महाराज एक िदन मधयाह संधया के िलए गोदावरी के तट पर जा रहे थे। रासते मे एक महार
(हिरजन) का बच्चा अपनी माँ के पीछे दौड़ता जा रहा था। माँ पानी भरने जा रही
थी, जल्दी में कुछ आगे बढ़ गयी और बच्चा पीछे कहीं लड़खड़ा कर िगर पड़ा।
बालू का वह मैदान सूयर् की पर्खर िकरणों से तप रहा था। बच्चे के मुख से लार और
नाक से लीट िनकल रही थी। धूप से परेशान उस बच्चे को देखकर असीम करूणा से
ओतपोत हृदय वाले एकनाथ जी महाराज ने उसे गोद मे उठा िलया। उसका नाक-मुँह साफ िकया तथा
उसे अपनी धोती ओढ़ाकर धूप से बचाते हुए महारों की बस्ती में ले आये और
उसके घर की खोज की। घर में से उस बच्चे के िपता दौड़ते हुए बाहर आये, इतने
में माँ भी पानी से भरी हुई मटकी लेकर आ पहुँची। एकनाथजी महाराज ने बच्चे को उसके माता िपता के
हवाले िकया और "बच्चों को ऐसे ही छोड़ देना उिचत नहीं, उनके पालन-पोषण का ध्यान रखना चािहए,
इसमे लापरवाही करना ठीक नही" इतयािद उपदेश देकर गोदावरी के तट पर चले गये। मधयाह सनान-संध्यािद करके महाराज घर
गयेऔरिनत्यकमर् मेल
ं गगये।
इस घटना के कुछ िदन बाद तयंबकेशर का एक वृद बाहण जो कुष रोग से पीिडत था, पैठण में एकनाथ जी महाराज
के घर पहुँचा। मध्याह्न का समय था। महाराज ज्यों ही दरवाजे के बाहर आये तो इस दुःखी बर्ाह्मण ने
अपना नाम पता बताकर कहाः "मेरा रोग िमट जाय इसके िलए मैंने त्र्यंबकेश् वरमें अनुष्ठान िकया।
आठिदनहुए, भगवान शंकर ने स्वप्न में दर्शन देकर मुझसे कहा िक तुम पैठण में जाकर एकनाथ से िमलो
और उनहोने एक महार के बचचे के पाणो की जो रका की वह उनहे याद िदलाओ। उस उपकार का पुणय यिद वे तुमहारे हाथ पर संकलप करके
दें तो तुम रोगमुक्त हो जाओगे।" यह कहकर वह बर्ाह्मण रोने लगा और एकनाथ जी के चरणों में िगर
पड़ा।
एकनाथ जी महाराज ने कहाः "मेरे न कोई पाप है न कोई पुण्य ही। मैंने क्या पुण्य िकया यह भगवान
त्र्यंबकेश् वरही जानें ! मैंने जो भी पुण्य इस शरीर से जन्म से लेकर आज तक िकया है वह मैं
आपकोअपर्णकरताहूँ।" यह कहकर एकनाथ जी महाराज ने जलपातर् हाथ में िलया और संकल्प करने ही
वाले थे, इतने मे उस बाहण ने रोका और कहाः "नहीं, आपकासब पुण्यमुझेनहींचािहए, केवल उतना ही चािहए िजतने
के िलए त्र्यंबकेश् वरमहादेव की आज्ञा हुई है।"
बर्ाह्मण की इच्छानुसार एकनाथजी महाराज ने वैसा ही संकल्प िकया और जल उसके हाथ पर
छोड ा। उसी क ण उस ब ाह ण ् का कोढ नष हो गया और उसकी काया िन मर ल हो गयी। वह ब ाह ण कु छ
िदनों तक एकनाथ जी महाराज के यहाँ रहा, उनके अलौिकक गुणों और आत्मभाव को देखकर उसकी
पर्सन्नता िदन-पर्ितिदन बढ़ती गयी और वह उनके गुण गाते हुए त्र्यंबकेश् वरलौट गया।
ज्ञानािग्न में साधक के सम्पूणर् कमर् दग्ध हो जाते हैं और वह िसद्ध अवस्था को पर्ाप्त करता
है, िफर कमर उनहे बाध नही सकते। परमातमा के साथ एकरपता को पापत जीवनमुकत महापुरषो के दारा सवयं परमातमा ही कायर करते है।
उनके दर्शन, सािन्नध्य, सत्संग अथवा िचन्तन मातर् से सांसािरक जीवों के ितर्तापों का शमन होता है।
ऐसेमहापुरूषको
ों पुण्यअजर्कन रने की भीइच्छनहीं
ा होती।सारे पुण्यऔरपुण्यफल
इसबर्ह्माण्में
रहते
ड हैं औरवेमहापुरूषतत्त्वरूप से
पूरे बर्ह्माण्ड को ढाँके हुए होते हैं। उनका अनुभव शब्दों में नहीं आता। ऐसे महापुरूष िवरले होते
हैं। आजकल उनकी िकताबें पढ़कर, उनकी कैसेटें सुन के कई लोग गुरू बन बैठे हैं।
अनुकर्म
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सतर् 27
बबबबबबबबबबब
भगवान की आराधना और पर्ाथर्ना जीवन में सफलता पर्ाप्त करने की
कुञ्जी है। सच्चे भक्तों की पर्ाथर्ना से समाज एवं देश का ही नहीं, वरन् समगर्
िवश् वका कल्याण हो सकता है।
ऋग्वेद में आता है िक सूयर् न केवल सम्पूणर् िवश् वके पर्काशक,
पर्वत्तर्क एवं पर्ेरक हैं वरन् उनकी िकरणों में आरोग्य वधर्न, दोष-िनवारण
की अभूतपूवर् क्षमता िवद्यमान है। सूयर् की उपासना करने एवं सूयर् की िकरणों का सेवन करने से
अनेक शारीिरक, बौिद्धक एवं आध्याित्मक लाभ होते हैं।
िजतने भी सामािजक एवं नैितक अपराध हैं, वे िवशेषरूप से सूयार्स्त के पश् चातअथार्त् राितर्
में ही होते हैं। सूयर् की उपिस्थित मातर् ही इन दुष्पर्वृित्तयों को िनयँितर्त कर देती है। सूयर् के उदय
होने से समस्त िवश् वमें मानव, पश-ु पक्षी आिद िकर्याशील होते हैं। यिद सूयर् को िवश् व-समुदाय का
पर्त्यक्ष देव अथवा िवश् व-पिरवार का मुिखया कहें तो भी कोई अितश् योिक्तनहीं होगी।
वैसे तो सूयर् की रोशनी सभी के िलए समान होती है परन्तु उपासना करके उनकी िवशेष कृपा
पर्ाप्त कर व्यिक्त सामान्य लोगों की अपेक्षा अिधक उन्नत हो सकता है तथा समाज में अपना िवश िष्ट
स्थान बना सकता है।
सूयर् एक शिक्त है। भारत में तो सिदयों से सूयर् की पूजा होती आ रही है। सूयर् तेज और
स्वास्थ्य के दाता माने जाते हैं। यही कारण है िक िविभन्न जाित, धमर एवं समपदाय के लोग दैवी शिकत के रप मे
सूयर् की उपासना करते है।
सूयर् की िकरणों में समस्त रोगों को नष्ट करने की क्षमता िवद्यमान है। बबबबब बब
बबबबबब – बबबबबबबब बब बबबबबब बबबब बब बबबबबबबब बबब बबबब बबब बबबबब
बबब। स्वास्थ्य, बिलष्ठता, रोगमुिक्त एवं आध्याित्मक उन्नित के िलए सूयोर्पासना करनी ही चािहए।
सूयर् िनयिमतता, तेज एवं पर्काश के पर्तीक हैं। उनकी िकरणें समस्त िवश् वमें जीवन का
संचार करती हैं। भगवान सूयर् नारायण सतत् पर्काश ितरहते हैं। वे अपने कत्तर्व्य पालन में एक
क्षण के िलए भी पर्माद नहीं करते, कभी अपने कत्तर्व्य से िवमुख नहीं होते। पर्त्येक मनुष्य में भी
इन सदगुणो का िवकास होना चािहए। िनयमतता, लगन, पिरशर्म एवं दृढ़ िनश् चयद्वारा ही मनुष्य जीवन में सफल हो
सकता है तथा किठन पिरिस्थितयों के बीच भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है।
बबबबब बबबबबब बब। बबबबबबबबब बबब बबबबबबबबबबबबबबबबब बब
बबबबबबबब बबबबबबबब बब बबबबबबब बबबब बब बबबब बब बबबबबबबब बब बबबबबब
बबबब ।बबबबबबबबबबबब बबबब बबब बब बबबबबबबब बब बबबबबबब बबबब बबबबबब
ब बबबबब बबबबब बबबबब बब बबबबबबब बबब।
बब बबबबबब बबबबबबबबबबबब बब बबब बब बबबब बब बबब बबब बबबबबबब बब बब
बबबबबबबब बबबब बब।
सूयोर्दय के बाद जब सूयर् की लािलमा िनवृत्त हो जाय तब सूयार्िभमुख होकर कंबल अथवा िकसी
िवद्युत कुचालक आसन् पर पद्मासन अथवा सुखासन में इस पर्कार बैठें तािक सूयर् की िकरणें नािभ पर
पड़े। अब नािभ पर अथार्त् मिणपुर चकर् में सूयर् नारायण का ध्यान करें।
यह बात अकाट्य सत्य है िक हम िजसका ध्यान, िचन्तनव मननकरतेहै , ंहमारा जीवन भी वैसा ही हो जाता
है। उनके गुण हमारे जीवन में पर्गट होने लगते हैं।
नािभ पर सूयर्देव का ध्यान करते हुए यह दृढ़ भावना करें िक उनकी िकरणों द्वारा उनके दैवी गुण
आपमेप ं र्िवष्टहोरहेहैं।अबबायेनथु
ं नेसेगहराश्वासलेते
हुएयहभावनाकरेिंक सूयर्
िकरणोंएवंशुद्धवायुदवारादैवीगु
् णमेरे
भीतरपर्िवष्टहो
रहे हैं। यथासामथ्यर् श्वास को भीतर ही रोककर रखें। तत्पश् चात्दायें नथुने से श्वास बाहर छोड़ते
हुए यह भावना करें िक मेरी श्वास के साथ मेरे भीतर के रोग, िवकार एवं दोष बाहर िनकल रहे हैं।
यहाँ भी यथासामथ्यर् श्वास को बाहर ही रोककर रखें तथा इस बार दायें नथुने से श्वास लेकर बायें
नथुने से छोड़ें। इस पर्कार इस पर्योग को पर्ितिदन दस बार करने से आप स्वयं में चमत्कािरक
पिरवतर्न महसूस करेंगे। कुछ ही िदनो के सतत् पर्योग से आपको इसका लाभ िदखने लगेगा। अनेक
लोगो को इस पयोग से चमतकािरक लाभ हुआ है।
भगवान सूयर् तेजस्वी एवं पर्काशवान हैं। उनके दर्शन व उपासना करके तेजस्वी व पर्काशमान
बनने का पर्यत्न करें।
ऐसेिनराशावादीऔरउत्साहहीन लोगिजनकीआशाएँ , भावनाएँ व आस्थाएँ मर गयी हैं, िजन्हें भिवष्य में
पर्काश नहीं, केवल अंधकार एवं िनराशा ही िदखती है ऐसे लोग भी सूयोर्पासना द्वारा अपनी जीवन में
नवचेतन का संचार कर सकते हैं।
अनुकर्म
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बबबबबबब बबबबबबब
महाराष्टर् के महान भक्तों, संतों में मुिस्लम राम-भक्त लतीफशाह का नाम उल्लेखनीय है।
मुसलमान होकर भी लतीफशाह बड़े ऊँचे स्तर के रामभक्त थे। वे राम, शीकृषण और िवटल को अिभन
समझते थे। संत एकनाथ की कृपा और स्नेह इन्हें पर्ाप्त था।
ये 16 वीं शताब्दी में हुए और मराठी के साथ ही िहन्दी में भी पद-रचना की। इनका एक पद है-
बबब बबब ।बबबब बबबबब
बबबबब बबबब बबबब बबबबब, बबबबब बबबब । बबबब बबबबबब
बबबबब बबबब बबबबबब बब, बबबबबबबब बब बबबबबब बबबब बबबबब।
बबब 'बबबब' बबब बबबब बबब, बबबबब बबब।।बब बबबबबबबबब
रामनाम पर लतीफ का इतना िवश् वासऔर भरोस है िक उससे पर्ाणी संसार-सागर से पार उतर सकता
है-
बबब-बबब बबबबब, बबबबब बबब-बबब बबबबबब ।
बब बब बबबबबब बबब बब बबबबब, बब बबब बबबब बबब बब।।
बबब 'बबबब' बबब बबबबब बबबब, बबबबबब बबबबबबब बब।।
कठमुल्ले काजी और मौलवी लतीफ को मुसलमान मानने के बजाय 'कािफर' कहते थे और पर्ायः
वहाँ के मुसलमान बादशाह से लतीफ की िकायत शक रते रहते थेः "यह आदमी हमेशा कुफर् फैलाता रहता
है, दीने इस्लाम का बड़ा नुक्सान करता है, इसलाम की तौहीन होती है। इसे शरीयत के मुतािबक सजा दी जानी चािहए।
वे कान भरते रहे, तो बादशाह ने हुक्म िदयाः "लतीफशाह को दरबार मे हािजर (उपिस्थत) िकया जाय।"
शाही फरमान लेकर बादशाह के िसपाही लतीफ के पास पहुँचे तो वहा कया देखा िक लतीफशाह बहुत सारे लोगो से िघरे कोई मोटी-सी
पुस्तक पढ़ रहे हैं और उसका अथर् भी बड़ी भावुकता के साथ समझाते हैं। वहाँ िवद्यमान हर व्यिक्त
बड़ी ही पिवतर् भाव-धारा मे डू बा है। िसपाही एकाएक उस वातावरण मे लतीफशाह को शाही फरमान सुना नही सके, बिल्क सोचा,
कुछ देर ठहर क्यों न जायें। बैठ गये वे िसपाही भी उसी सत्संग में... और संगित का पभाव तो पडता ही है।
बैठे-बैठे उन िसपािहयों को भी उस कथा का रस आ ही गया। वह कथा थी, भागवत की। उसमें शर्ीकृष्ण का
लीलामय चिरत विणरत है। लतीफशाह भागवत कथा के बडे पेमी थे।
उधर बादशाह उन िसपािहयों की पर्तीक्षा ही करता रह गया। जब देर तक वे न लौटे तो बादशाह
कर्ुद्ध हुआ और ताव-तैश खाकर स्वयं घोड़ा दौड़ाकर, तलवार तौलाता लतीफशाह के पास पहुँचा। िकन्तु जो
दृश् यवहाँ उसने देखा, उससे वह चिकत रह गया। उसने देखा, लतीफशाह के मुख पर जैसे खुदाई नूर (िदव्य तेज)
बरस रहा है और वे एक िकताब (गर्न्थ) से कुछ पढ़कर लोगों को सुना समझा रहे हैं, कभी भगवद् िवरह में
आँसूबहातेहैत ं ोकभी भगवत्स्नेहमेआ ं निन्दत, पुलिकत होते हैं। उनके साथ ही सुनने वालों का भी तार ऐसा जुड़ा
हुआ है िक उन बातों को सुनते हुए वे भी भाव-िवभोर हो जाते हैं, लतीफ के साथ। 'ऐसाजादूहैइस शख्सकी जुबान
में, तौबा है ! अच्छा, जरा हम भी जायजा लें, लतीफ की िकससागोई (कथा-वचन) का।"
बादशाह भी घोड़े से उतरकर वहीं बैठ गया। तलवार म्यान में रख ली। लतीफशाह की यह दशा थी
िक उन्हें कोई भी अंतर नहीं पड़ा, चाहेवहाँहिथयारबंदिसपाहीआयेयास्वयंबादशाह। उनकािदव्यकथा-रस अजसर्
सर्ािवत होता रहा। लतीफ और शर्ोता समाज सब सुध-बुध िबसारे उस िदव्य कथा-रस में डूबे रहे। कहा न
'बबब बब बब' वह (बर्ह्म) रस ही है। अब एक दृिष्ट जो बादशाह ने लतीफ की लम्बी चौड़ी बैठक में डाली
तो देखता है िक वहाँ हर दीवार पर िहन्दू देवी-देवताओं के िचतर् लगे हुए हैं। उनमें एक िचतर्
बादशाह को बड़ा सुन्दर लगा। वह दृश् ययह था िक शर्ीकृष्ण को राधारानी अपने हाथ से पान का बीड़ा दे रही
है। अब यह िचतर् देखा तो बादशाह को लतीफशाह का मखौल उड़ाने की सूझी। कहने लगाः
"िमयाँ लतीफ, तुम कैसे बन्दे हो इस्लाम के, िक ये कुफर् से लबरेज तस्वीरें लगा रखी हैं
यहाँ ! ये बेमानी और बेअसर होने के साथ ही जहालत की िनशानी है।" लतीफ ने पहचाना बादशाह को और वहा
शानत बैठे िसपािहयो को भी। िफर बडे पेम से कहाः "जनाब ! इनहे फकत तसवीरे न समझे। इनमे यह ताकतोताब (तेजोबल) मौजूद
है जो इन्सानी चोले में नहीं।"
बादशाह बोलाः "कैसे यकीन कर लूँ ? अब (संकेत करके) उस तस्वीर को ही देखो। तस्वीर तो वाकई
बड़ी खूबसूरत है, लेिकन उसका मतलब कया ? जो लड़की िकशन जी को पान नजर कर रही है, वे उसे खा कहाँ
रहे हैं ? नहीं खा सकते। आिखर कागजी तस्वीर ही तो है, वरना वे यह पान कभी का खा चुके होते। पान
क्या अब तक हाथ में ही थमा रहता ?"
लतीफशाह को बात लग गयी। वे कृष्ण-राधा का अपमान सहन न कर सके। हाथ जोड़कर उस िचतर् के
सामने आ खड़े हुए। िनवेदन िकयाः
"संसारी जीव आपकी मिहमा क्या समझे ! वह तो नासमझी-नादानी करता है। हे हिर ! हे मुरलीधर !
अपने िवरद रखो। राधारानी से आपका पर्ेम सनातन है। वे आपको पर्ेम से पान दे रही है। अब आप
उनका बीड़ा स्वीकार करके खा ही लें। यह नाचीज लतीफ देखने को तरस रहा है।" इतना कहना था िक िवसमय
से बादशाह ने, सब शर्ोता समाज ने देखा िक कृष्ण जी ने मुँह बढ़ाकर राधाजी का पान ले िलया और िफर
उन्हें पान चबाते देखा गया। बादशाह को लगा िक क्या वह कोई स्वप्न तो नहीं देख रहा !
या खुदा ! या परवरिदगार ! यह क्या माजरा है ? िफर देखा लतीफ की ओर, तो वे भक्त पर्वर झर-झर आँसू
रोये जा रहे थे। लतीफशाह के आँसू थम नहीं रहे थे। और तब बादशाह को जैसे अन्दर से कोई पुकार
आयी। वहलतीफशाहकेचरणोंमेझ ंकु ा।
धनय है िहनदू धमर के भिकतयोग की मिहमा एवं धनय है इसके रस का आसवादन करके जीवन को परम परमातम-रस से तृप्त
करने वाले !
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 28
बबबबबबबब बबबबबब
महान संत शर्ी गोरखनाथ जी ने अपने िष् शयकों ो यह कथा सुनायी थीः
गोदावरीनदीकेतट परमहात्मावेदधमर् िनवासकरतेथे।उनकेपासआकरअनेक िष्य श व ेद शास्तर्ोकं ा अध्ययनकरतेथे।
उनके सभी िष् शयमों ें संदीपक नामक िष् शयब ड़ा मेधावी एवं गुरूभिक्तपरायण था।
एक िदन वेदधमर ने अपने सभी िशषयो को बुलाकर कहाः
"मेरे पूवर्जन्म के दुष्ट पर्ारब्ध के कारण अब मुझे कोढ़ होगा, मैं अंधा हो जाऊँगा एवं पूरे
शरीर से बदबू िनकलेगी। अतः मै आशम छोडकर चला जाऊँगा। ऐसा किठन काल मै काशी जाकर िबताना चाहता हँू। जब तक मेरे दुष
पर्ारब्ध का क्षय न हो जाय, तब तक मेरी सेवा के तुममें से कौन-कौन मेरे साथ काशी आने के िलए
तैयार है ?"
गुरज
ू ी की बातसुनकर िष्यों
श म ेंसन्नाटाछागया। इतनेमेस ं ंदीपकउठाऔरिवनमर्तापूवर्कबोलाः
"गुरज ू ी! मैं पर्त्येक िस्थित, पर्त्येक स्थान में आपके साथ रहकर आपकी सेवा करने के िलए
तैयार हूँ।"
गुरज
ू ीः"बेटा ! शरीर मे कोढ िनकलेगा, बदबू होगी, अंधा हो जाऊँगा। मेरे कारण तुझे भी बड़ी तकलीफ
उठानी पड़ेगी। तू ठीक से िवचार कर ले।"
संदीपकः "गुरद ू ेव! कृपा कीिजये। मुझे भी अपने साथ ले चिलये।"
दूसरे ही िदन वेदधमर् ने संदीपक के साथ काशी की ओर पर्याण िकया। काशी पहुँचकर वे
मिणकिणर्का घाट के उत्तर की ओर िस्थत कंवलेश् वरनामक स्थान पर रहने लगे।
दो चार िदन के बाद ही वेदधमर् के योगबल के संकल्प से उनके शरीर में कोढ़ िनकल आया।
थोड़ेिदनोकेपश् चातउनकी आँखोंकी रोशनीभीचलीगयी। अंधत्वएवंकोढ़केकारणउनका स्वभावभीउगर् , िचड़िचड़ा
, िविचतर् सा
हो गया।
संदीपक िदन-रात गुरूजी की सेवा में लगा रहता। वह गुरू को नहलाता, गुरू केघावोंसेिनकलताहुआमवाद
साफ करता, औषिध लगाता। उनके वसत साफ करता। समय पर गुरजी को भोजन कराता।
सेवा करते-करते संदीपक की सब वासनाएँ जल गयीं। उसकी बुिद्ध में पर्काश छा गया। सेवा
में उसे बड़ा आनन्द आता था।
बब बबब बबबब बबबबब बबबबब। बबबबब बबबबब ब बबबब।।
यिद मनमुख होकर साधना करोगे तो कुछ भी हाथ न आयेगा, भटक जाओगे। लेिकन गुरू के बताये
हुए मागर् के अनुसार चलोगे तो भटकोगे नहीं। इसीिलए वेदव्यासजी महाराज ने कहा हैः
बबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबब।
गुरजू ी की सेवाकरते -करते वषोर्ं बीत गये। संदीपक की गुरूसेवा से पर्सन्न होकर एक िदन भगवान
शंकर उसके आगे पगट हुए एवं बोलेः
"संदीपक ! लोग तो काशी िवशनाथ के दशरन करने आते है लेिकन मै तेरे पास िबना बुलाये आया हँू कयोिक िजनके हृदय मे 'मैं'
सोऽहं स्वरूप से पर्गट हुआ है ऐसे सदगुरू की तू सेवा करता है। िजनके हृदय में बर्ह्म-परमात्मा पर्गट
हुए हैं उनके तन की िस्थित बाहर से भले गंदगी िदखती, िफर भी उनमे िचनमय तततव जानकर उनकी सेवा करता है। मै
तुझ पर अत्यंत पर्सन्न हूँ। बेटा ! कुछ माँग ले।"
संदीपकः "पर्भु ! बस, आपकीपर्सन्नतापयार्प्तहै।"
िशवजीः "पर्सन्न तो हूँ लेिकन कुछ माँग।"
संदीपकः "बस, गुरू की कृपापयार्प्तहै।"
िशवजीः "नही, संदीपक ! कुछ माँग ले। तेरी गुरूभिक्त देखकर मैं िबना बुलाये तेरे पास आया हूँ।
मैं तुझ पर अत्यंत पर्सन्न हूँ। कुछ माँग ले।"
संदीपकः "हे महादेव ! आपमुझपरपर्सन्नहुएहै ,ंयह मेरा परम सौभाग्य है लेिकन वरदान माँगने में
मैं िववश हूँ। मेरे गुरूदेव की आज्ञा के िबना मैं आपसे कुछ नहीं माँग सकता।"
िशवजीः "...........तो तेरे गुरू के पास जाकर आज्ञा ले आ।"
संदीपक गया गुरू के पास एवं बोलाः
"आपकीकृपासे िवजी श म ुझ परपर्सन्नहुएहैएवंवरदानमाँगने केिलएकह रहेहैं।अगरआपकीआज्ञह ा ोतोआपकाकोढ़एवं
अंधत्व ठीक होने का वरदान माँग लूँ।"
यह सुनकर वेदधमर् बड़े कुिपत हो गये एवं बोलेः
"नालायक ! सेवा से बचना चाहता है ? दुष्ट ! मेरी सेवा करते-करते थक गया है इसिलए भीख
माँगता है ? िशवजी दे-देकर क्या देंगे ? दे भी देंगे तो शरीर के िलए देंगे। पर्ारब्ध शरीर भोगता है
तो भोगने दे। क्यों भीख माँगता है िवजी श स े? जा, तू भी चला जा। मैं तो पहले ही तुझ मना कर रहा था
िफर भी साथ आया।"
संदीपक गया िवजी श क े पास और बोलाः "पर्भु ! मुझे क्षमा करो। मैं कोई वरदान नहीं चाहता।"
िशवजी संदीपक की गुरिनषा देखकर भीतर से बडे पसन हुए लेिकन बाहर से बोलेः "ऐसेकैसे गुरू हैिक िशष्इय तनी सेवा करता
है और ऊपर से डाँटते हैं ?"
संदीपकः "पर्भु ! आपचाहेजोकहेल ं ेिकनमैंनभ
ेीसोचिलयाहैःबबबबबबबब बब बबबबबब..... बबबब
बबबबब बब बबबब बब बबबब बबबबबबब बब।"
िशवजी गये भगवान िवषणु के पास एवं बातचीत के दौरान बोलेः !हे नारायण ! बड़े-बड़े मुनीश् वरमेरे दर्शन के
िलए वषों तक जप-तप करते हैं िफर भी उन्हें दर्शन नहीं होते। अभी काशी नगरी में संदीपक नामक िष् श य
ककक
की गुरूिनष्ठा देखकर मैं स्वयं उसके सामने पर्गट हुआ एवं इिच्छत वरदान माँगने के िलए कहा िकन्तु
गुरू की आज्ञन ा िमलनेपरउसनेवरदानलेने सेस्पष्टइन्कारकरिदया। मैंनउ ेसकी परीक्षालीिकः 'ऐसेगुरू का क्याचेला बनताहै
?' .....लेिकन वह मेरी कसौटी पर भी खरा उतरा। मेरे िहलाने पर भी वह न िहला। गुरदार की झाडू-बुहारी, िभक्षा माँगना, गुरू
को नहलाना-िखलाना, गुरू केसेवाकरनायहीउसकी पूजा-उपासना है।"
िशवजी की बात सुनकर भगवान िवषणु को भी आशयर हुआ एवं उनहे भी संदीपक की परीका लेने का मन हुआ।
संदीपक के पास पर्गट होकर भगवान िवष्णु बोलेः
"वत्स ! तेरी अनुपम गुरूभिक्त से मैं तुझ पर अत्यंत पर्सन्न हूँ। ....लेिकन एक बात का मुझे दुःख है।
िशवजी को भी दुःख हुआ। तूने िशवजी से वरदान नही िलया... गुरू केिलएभीनहींिलया। अबअपनेिलएलेले।तेरीजोइच्छाहो, वह
माँग ले।"
संदीपकः "ना, ना, पर्भु ! कसान कहें। "
िवष्णुः "देवता आते हैं तो िबना वरदान िदये नहीं जाते। कुछ तो माँग लो !
संदीपकः "हे ितर्भुवनपित ! गुरूकप ृ ासेतोमुझेआपकेदर्शन हुएहै।मैआ ं पसेकेवलइतनाहीवरदानमाँगताहूँिक
गुरचू रणोंमेम
ंेरीअिवचलभिक्तबनीरहेएवंउनकीसेवामेम ंैिनरंतरलीनरहूँ।"

संदीपक की बात सुनकर िवष्णु भगवान अत्यंत पर्सन्न हुए एवं बोलेः "वत्स ! तू सचमुच धन्य है !
तेरे गुरू भी धन्य हैं ! तुझे वरदान देता हूँ िक गुरूचरणों में तेरी भिक्त िनरंतर दृढ़ होती रहेगी।"
ऐसाकहकरिवष्णभगवान ु अन्तध्यहोगये।
ार्न
संदीपक गया गुरू के पास एवं िवष्णु भगवान के िदये गये आशीवार्द की बात िवस्तारपूवर्क सुना दी।
संदीपक की बात सुनकर वेदधमर् के आनंद का कोई पार न रहा। अपने िपर्य िष् शयक ो छाती से लगा कर
बोलेः
"बेटा ! तू सवर्शर्ेष्ठ िष् शयह ै। तू समस्त िसिद्धयों को पर्ाप्त करेगा। तेरे िचत्त में िरिद्-ध
िसिद्ध का वास रहेगा।"
संदीपकः "गुरव ू र! मेरी िरिद्ध-िसिद्धयाँ आपके शर्ीचरणों में समायी हुई हैं। मुझे आप नश् वर
के मोह में न डालें। मुझे तो शाश् वत्आनंद की आवश् यकताहै और वह तो आपके शर्ीचरणों की भिक्त
से िमलता ही है।"
तभी संदीपक ने साश् चयर्देखा िक गुरद ू ेव का कोढ़ संपूणर्तः गायब है.... उनका शरीर पूवर्वत्
स्वस्थ एवं कांितमान हो गया है !
िशषय को पेमपूवरक गले लगाते हुए वेदधमर ने कहाः "बेटा ! िशषयो की परीका लेने के िलए ही मैने यह सब खेल रचा था। मै तुझ
पर अत्यन्त पर्सन्न हूँ। बर्ह्मिवद्या का िवशाल खजाना मैं तुझे आज देता हूँ।"
सश ित् संदीपक
ष्य की जन्म-जन्मांतरों की सेवा-साधना सफल हुई। गुरूदेव की कृपा से संदीपक
परमात्मा के साथ एकाकार हो गया। धन्य है संदीपक की गुरूभिक्त !
(कहीं-कहीं यह पावन कथा पाठान्तर भेद से भी आती है िफर भी संदीपक की दृढ़ गुरूभिक्त की
पर्शंसा गोरखनाथजी ने अपने िष् शयकों े समक्ष मुक्त कण्ठ से की है। )
अनुकर्म
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बबबब बब बबबबबबबबबबब बबब बब बबबबबब बब
बबबबब
शी जानकीनाथ जी के घर मे शोक का वातावरण था। लोग इधर उधर दौड भाग कर रहे थे।
उनकी पत्नी कमरे में बैठकर यह कह कहकर रो रही थीः "हाय ! मेरा नन्हा लाडला
पता नहीं कहाँ चला गया ? अब कैसे िमलेगा वह ? आजचारिदनतोहोगये! हे
भगवान मेरे बच्चे की रक्षा करना।"
अड़ोस-पड़ोस की मिहलाएँ उन्हें धैयर् बँधा रहा थीं। दरअसल
जानकीनाथ का पुतर् कहीं खो गया था। कहाँ चला गया कुछ पता नहीं चल रहा था।
बच्चे ने स्वयं भी तो कोई सूचना नहीं दी। पता नहीं वह िकस पिरिस्थित में होगा।
थोड़ी-थोड़ीदेरमेख
ं ोजकरनेवालाकोई-न-कोई व्यिक्त आता जानकीनाथ की पत्नी बड़ी
उम्मीद से उससे पूछतीः "मेरे बच्चे का कुछ पता लगा ?" परन्तु उसका झुका हुआ
िसर और िनराशा से भरी आँखें देखकर ममतामयी माँ का हृदय िफर तड़प उठता। चार िदन से गुम हुए पुतर्
की कोई सूचना न िमलने पर उनके हृदय में तरह-तरह की शंकाएँ-डरावनी कल्पनाएँ उठतीं। कभी-कभी वे
पागलों की तरह जोर-जो से कहतीः "नहीं, नहीं, ऐसानहीं होसकता। मुझभ ेगवानपरपूराभरोसाहै।वहमेरे लालकी रक्षा
करेगा। उसे कुछ नहीं होगा।"
चौथेिदनकी शामहोनेको आयीपरन्तुपत ु र्की कोई खबरनहींिमली। सभीलोगएक-एक करके अपने -अपने घर चले
गये।जानकीनाथजीकी धमर्पत्नअ ी पनेलाडलेपुतर्केवस्तर्ोक
ं ो सीनेसेलगायेिससक रहीथी। तभीपीछेसेिकन्हींनन्हेहाथों
ं नेउनकी
आँखोंको बंदकरिदया।
नन्हें हाथों के स्पर्शस े माता अपने नटखट लाल को पहचान गयी और उसे अपनी छाती से लगा
िलया। बेटा सुरिकत है, यह देखकर माँ ने पूछाः "क्यों रे ! इतने िदन कहा रहा ? कहाँ चला गया था िबना बताये ?"
बालक ने अपने नन्हें हाथ जोड़कर कहाः "माँ ! पासवाले गाँव में हैजा फैल गया है।
बीमारों की संख्या बहुत है और उनकी सेवा करने वाले बहुत कम। ऐसी पिरिस्थित देखकर मैं वहाँ
बीमारों की सेवा में लग गया और इतना व्यस्त हो गया िक आपको सूचना भेजने का समय भी नहीं िमला।"
जानकीनाथजी की धमर्पत्नी बेटे के खो जाने का दुःख और िमलने की खुशी दोनों भूल गयीं। उनकी
आँखोंसेदोआँसूिगरपड़े।उनकेयेआँसूपहलेकेभाँितहषर् या शोक केनहींअिपतुगौरवकेआँसूथे।
पुतर् को हृदय से लगाते समय उनके मुख से िनकलाः "बबबब बबबब बबबबब बब बबबब
बबबब बबब बब बबबब बबबबब बब बबबबबबबब बब बबबबबबबबबब बब बबब।"
अनुकर्म
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सतर् 29
बबबबब बबबबब बबबबब बबबबब बबबब बबब ?
एक बार अकबर ने बीरबल से पूछाः "तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फकर् है। हमारा खुदा तो
अपना पैगम्बर भेजता है जबिक तुम्हारा भगवान बार-बार आता है। यह क्या बात है ?"
बीरबलः "जहाँपनाह ! इस बात का कभी वयवहािरक तौर पर अनुभव करवा दूँगा। आप जरा थोडे िदनो की मोहलत दीिजए।"
चार-पाँच िदन बीत गये। बीरबल ने एक आयोजन िकया। अकबर को यमुनाजी में नौकािवहार कराने
ले गये। कुछ नावो की वयवसथा पहले से ही करवा दी थी। उस समय यमुनाजी िछछली न थी। उनमे अथाह जल था। बीरबल ने एक युिकत
की िक िजस नाव में अकबर बैठा था, उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात िश ु शके साथ बैठा िदया
गया। सचमुचमेव ं हनवजात िश ु शनहीं था। मोमका बालकपुतलाबनाकरउसेराजसीवस्तर्पहनायेगयेथेतािकवहअकबरका बेटा
लगे। दासी को सब कुछ िसखा िदया गया था।
नाव जब बीच मझधार में पहुँची और िहलने लगी तब 'अरे.... रे... रे.... ओ.... ओ.....' कहकर दासी
ने स्तर्ी चिरतर् करके बच्चे को पानी में िगरा िदया और रोने िबलखने लगी। अपने बालक को बचाने-
खोजने के िलए अकबर धड़ाम से यमुना में कूद पड़ा। खूब इधर-उधर गोते मारकर, बड़ी मुशि ्कल से
उसने बच्चे को पानी में से िनकाला। वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था।
अकबर कहने लगाः "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है। तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के
िलए ही ऐसा िकया।"
बीरबलः "जहाँपनाह ! आपकीबेइज्जतीकेिलएनहीं, बिल्क आपके पर्श् नका उत्तर देने के िलए ऐसा ही
िकया गया था। आप इसे अपना िश ु शसमझकर नदी में कूद पड़े। उस समय आपको पता तो था ही इन सब नावों
में कई तैराक बैठे थे, नािवक भी बैठे थे और हम भी तो थे ! आपनेहमकोआदेशक्योंनहींिदया ? हम कूदकर
आपकेबेटे की रक्षाकरते!"
अकबरः "बीरबल ! यिद अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंितर्यों को या तैराकों को कहने की फुरसत
कहाँ रहती है ? खुद ही कूदा जाता है।"
बीरबलः "जैसे अपने बेटे की रक्षा के िलए आप खुद कूद पड़े, ऐसेहीहमारे भगवानजबअपने बालकों
को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर-वैगम्बर को नहीं भेजते,
वरन् खुद ही पर्गट होते हैं। वे अपने बेटों की रक्षा के िलए आप ही अवतार गर्हण करते है और
संसार को आनंद तथा पर्ेम के पर्साद से धन्य करते हैं। आपके उस िदन के सवाल का यही जवाब है,
जहाँपनाह !"
अकबरः "बीरबल ! तुम धन्य हो !"
अनुकर्म
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बबबबब बबबबबबबब बबब बबबबब बबब बबबबब बबबबब
?
त्वचा को कोमल तथा सुन्दर बनाने के िलए आजकल तरह-तरह की कर्ीमों का पर्योग िकया जाता है।
उत्पाद कंपिनयाँ टी.वी., रेिडयो आिद के द्वारा अपने-अपने कर्ीमों तथा पाउडरों के िवज्ञापन
करवाकर उनकी शर्ेष्ठता बताते हुए उपभोक्ताओं को आकिषर्त करती हैं। त्वचा को कोमल तथा सुन्दर
बनाने के िलए िजन कर्ीमों का पर्योग िकया जाता है, उनमें से कइयों में ब्लीिचंग उत्पर्ेरक
'हाइडर्ोक्वीनोन' िमला होता है। यह मेलािनन ने सर्ाव को रोक देता है। मेलािनन शरीर में िवद्यमान
एक ऐसा पदाथर है जो सूयर की हािनकारक िकरणो से तवचा की रका करता है।
धूप लगने से इस पदाथर के अभाव मे तवचा पर धबबे पड सकते है तथा पहले की अपेका तवचा काली हो सकती है। धयातवय है िक
'हाइडर्ोक्वीनोन' का लम्बे समय तक पर्योग िकये जाने पर त्वचा का कैन्सर होने की संभावना रहती है।
'पर्दूषण िनयंतर्ण अिधिनयम' के अनुसार गोरेपन की कर्ीम में 2 % से अिधक हाइडर्ोक्वीनोन
नहीं होना चािहए। परन्तु त्वचा रोग िवशेषज्ञों के अनुसार 2 % हाइडर्ोक्वीनोन भी यिद लम्बे समय तक
अथवा अिधकांशतः पर्योग िकया जाय तो वह खतरनाक हो सकता है।
इसी पकार सनान के बाद अिधकाश वयिकत अपने शरीर पर टेलकम पाउडर का पयोग करते है िजसे िछडकते समय उसके कण
हवा में फैल जाते हैं। यिद वे कण लगातार कुछ िदनों तक श्वास के द्वारा फेफड़ों में पहुँचते
रहें तो स्वास्थ्य को बहुत नुकसान हो सकता है। यिद कोई बर्ाँकाइिटस (शास निलकाओं का शोथ) और दमा का रोगी
अथवा धूमर्पानकत्तार् है तो उसे इससे और भी अिधक खतरा होता।
अनुकर्म
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सतर् 30
बबबबबबबब बबबबबबबबब बबब बबबब बबब बब बबब
बबबबब
'सौन्दयर्-पर्साधन' एक ऐसा नाम है िजससे पतयेक वयिकत पिरिचत है। गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन जीने वालो को
छोड क र समाज क े सभी वगर सौ न दयर प स ा ध न ो का उपयो ग करक े अपन े को भीड म े खू ब सू र त तथा
िवशेष िदखाने की होड़ में रहते हैं। सौन्दयर् पर्साधनों का पर्योग करके अपने को खूबसूरत तथा
िवशेष िदखने होड़ में आज िसफर् नारी ही नहीं, वरन् पुरूष भी पीछे नहीं हैं। समाज का कोई भी आयु
वगर् इनकी गुलामी से नहीं बचा है।
हम िविभन्न पर्कार के तेल, कर्ीम, शैमपू एवं इत आिद लगाकर भीड मे अपने को आकषरक बनाना चाहते है। परनतु इसी
आकषर्णकी होड़मेह ं मनेसमाजमेव ं ्यिभचारएवंशोषणको भीमहत्त्वपूणर्
स्थानदेिदयाहै।िवषयलोलुपताबनतीहमारीवत्तर्मानयुवापीढ़ी
के पतन के पीछे इन सौन्दयोर्ं पर्साधनों का भी एक महत्त्वपूणर् स्थान है।
आकषर्किडब्बोंतथाबोतलोआिदकी पैिकंगमेआ ं नेवालेपर्साधनोंकी कहानीइतनीहीनहींहै।सच तोयहहैिक इसकी
वास्तिवकता का हमें ज्ञान ही नहीं होता। हजारों लाखों िनरपराध बेजुबान पर्ािणयों की मूक चीखें इन
सौन्दयर् पर्साधनों की वास्तिवकता है। मनुष्य की चमड़ी को खूबसूरत बनाने के िलए कई िनदोर्ष पर्ािणयों
की हत्या.... यही इन पर्साधनों की सच्चाई है। िजस सेंट को िछड़ककर मनुष्य स्वयं को िवशेष तथा
आकषर्किदखानाचाहताहैउसकेिनमार्णकेिलएलाखोंबेजुबानपर्ािणयोंकी हत्याकी जातीहै।
सेंट उत्पादन के िलए मारे जाने वाले पर्ािणयों में बबबबबब का नाम भी आता है। िबज्जू
िबल्ली के आकार का एक नन्हा सा पर्ाणी है। इसे सेंट उत्पादन के िलए पकड़ा जाता है। िबज्जू से िजस
पर्कार से सेंट पर्ाप्त िकया िकया जाता है वह िकर्या जल्लादी से कम नहीं। िबज्जू को बेंतो से पीटा
जाता है। बेंतों एवं कोड़ों की मार सहता यह पर्ाणी चीखता हुए भी अपनी कहानी िकसी भी अदालत में
नहीं सुना पाता। अत्यिधक मार से उिद्वग्न होकर िबज्जू की यौन-गर्िन्थ सेएकसुगिन्धतपदाथर् सर्ािवतहोताहै।इस
पदाथर् को तेज धारवाले चाकू से िनमर्मता से खरोंच िलया जाता है िजसमें कैिमकल िमलाकर िविभन्न
पर्कार के इतर् बनाये जाते हैं।
मूषक के आकार का बबबब नामक पर्ाणी भी इसी उत्पादन के िलए तड़पाया जाता है। बीबर से
केस्टोिरयम नामक गन्ध पर्ाप्त होती है। बीबर के शरीर से पर्ाप्त होने वाला तेल भी सौन्दयर् पर्साधन
के िनमार्ण में काम आता है। बीबर को पकड़कर उसे 15-20 िदनों तक एक जाली में बन्द करके तड़पाया
जाता है। जब भूखा-प्यासा एवं नाना पर्कार के संतर्ास सहता यह पर्ाणी अपनी जान गँवा बैठता है, तब
इसके शरीर से पापत गंध का उपयोग मनुषय अपनी गनध-तृिप्त के िलए करता है।
मनुष्य की घर्ाणेिन्दर्य की पिरतृिप्त के िलए ही िबल्ली की जाित के बबबबब नाम के पर्ाणी की भी
जान ले ली जाती है। िहन्दी में इसे बबबब बबबबबब के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है िक
सीवेट िजतना कर्ोिधत आता है उससे उतनी ही अिधक तथा उत्तम गन्ध पर्ाप्त होती है। अतः इसे एक
िपंजरे में डालकर इस पर्कार से सताया जाता है िक इसकी करूणा चीखों से पर्कृित भी से पड़ती होगी।
इस पकार मानव के जुलमो को सहते-सहते यह पर्ाणी अपनी जान से हाथ धो बैठता है। तब उसका पेट चीरकर
उससे वह गर्िन्थ िनकाल ली जाती है, िजसमें गन्ध एकितर्त होती है तथा आकषर्क िडजाइनों में इसे
सौन्दयर् पर्साधनों की दुकानों पर रख िदया जाता है।
लेमूर जाित के बबबबब नामक छोटे बंदर को भी उसकी सुन्दर आँखों एवं िजगर के िलए मारा जाता
है िजन्हें पीसकर सौन्दयर् पर्साधन बनाये जाते हैं।
पुरूष अपनी दाढ़ी बनाने के िलए िजन लोशनों का उपयोग करता है, उसके िलए भी बबबब बबब
नामक एक पर्ाणी की जान ली जाती है। िगनी िपग चूहों की जाित का एक छोटा-सा पर्ाणी है। यह िवश् वभरमें
पाया जाता है। मनुष्य की दाढ़ी बनाने के िलए िनिमर्त साबुन (सेिवंग लोशन) की संवेदनशीलता की जाँच
का पर्योग इस पर्ाणी पर िकया जाता है क्योंिक इसकी त्वचा का कोमल तथा रोयेंदार होती है। लोशन से
मनुष्य की त्वचा को कोई हािन न पहुँचे इसिलए उस लोशन को पहले िगनी िपग पर आजमाया जाता है। इस
पर्कार त्वचा के रोग अथवा तो रासायिनक दुष्पर्भाव (कैिमकल िरएक्शन) के कारण हजारों िगनी तड़प-
तड़पकर मर जाते हैं।
बाजारों में रासायिनक पदाथोर्ं से बने कई पर्कार के शैम्पू िमलते हैं िजनका पर्योग मनुष्य
अपने केशों को सुन्दर एवं चमकदार बनाने के िलए करता है। परन्तु शायद आप नहीं जानते िक उनमें
खरगोश का अंधत्व एवं उसकी मौत घुली हुई है।
जैसा िक स्पष्ट है, शैमपू कई पकार के रसायनो से बनाया जाता है। अतः इनका उपयोग करने वाले मनुषय की कोमल आँखो
को शैम्पू से कोई हािन न पहुँचे, इसके िलए उसका परीकण िकया जाता है। इस परीकण के िलए एक िनदोष पाणी खरगोश को
बिल की बेदी पर चढ़ाया जाता है। शैम्पू को बाजार में लाने से पहले खरगोश की नन्हीं सी आँखों में
डाला जाता है। इससे खरगोश को िकतनी वेदना होती होगी, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस
िकर्या के िलए उसे बाँध िलया जाता है। खरगोश की आँखें खुली रहें इसके िलए 'आईओपनसर् ' का उपयोग
िकया जाता है तथा खरगोश की आकषर्क आँखों में शैम्पू की बूँदे डाली जाती हैं। इससे खरगोश की
आँखोंसेखून िनकलनेलगताहैक्योंिकमनुष्यखरगोश को उसकी खालकेिलएभीमरताहैअतःउस तड़पतेहुएपर्ाणीका इलाजकरनेकी
भी आवश् यकतानहीं होती िजससे वह स्वतः ही मृत्यु को पर्ाप्त हो जाता है।
अपनी इिन्दर्यों की तृिप्त के िलए मानव इन िनदोर्ष पर्ािणयों पर जो कहर पा रहा है, यह उसकी एक
झलक मात है। यह पूणर अधयाय नही, परन्तु पूणर् अध्याय की हम कल्पना कर सकते हैं िक अपनी इिन्दर्य-लोलुपता
की महत्त्वकांक्षा में हम िकतना बड़ा घृिणत पापकमर् कर रहे हैं।
ईश् वरसेमनुष्यशरीरतथासवर्पर्ािणयोंमेश
ंर्ेष्ठबुिद्ध
हमेइसिल
ं एिमलीहैतािकपरमात्माकी सृिष्टको सँवारनेमेभ
ं ागीदारबनसकें।
बबबबबब बबबबबबबबबब की भावना से सबकी सेवा करके सबमें बसे उस वासुदेव को पर्ाप्त कर
ले तथा उसी के हो जाये। सबमे उसी का दशरन करके उसीमय हो जाये।
तो आज से हम संकल्प करें िक िजन सौन्दयर् पर्साधनों में हजारों-लाखो िनदोष बेजुबान पािणयो की
ददर्नाक मृत्यु की गाथा िछपी है, उन सौन्दयर् पर्साधनों का त्याग करेंगे व करवाएँगे। लाखों पर्ािणयों
की आह लेकर बनाये गये सौन्दयर् पर्साधनों से नहीं, वरन् सत्संग एवं सदगुणों से अपने शाश् वत
सौन्दयर् को पर्ाप्त करेंगे। सबमें उसी राम का दर्शन कर शर्ीराम , शीकृषण, रामतीथर्, िववेकानन्द,
लीलाशाहजी बापू तथा मीरा, मदालसा, गागीर्, अनुसूया, सािवतर्ी और माता सीता की तरह परम सौन्दयर्वान् हो
जाएँगे।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबब बब बबबब बबबब बबब बबब बबबबबबब
बबबबबब
शैमपू या टू थपेसट मे खूब सारा झाग बनता हो तो िकसे अचछा नही लगता ? लेिकन इस झाग की तरफ देखने से पहले शैमपू या
टू थपेसट के कवर पर िलखे उन रासायिनक पदाथों की सूची मे पढ ले िजनको िमलाकर इसे बनाया गया है। इसके पित सावधानी न बरतने
वालों को शीघर् ही कैन्सर का िकार श ह ोने की आशंका है।
उल्लेखनीय है िक िवश् वमें सन् 1980 के आसपास आठ हजार व्यिक्तयों में से एक व्यिक्त को
कैन्सर होने का खतरा होता था। लेिकन इस तरह के रसायनयुक्त सौंदयर्पर्साधनों और खाद्य पदाथोर्ं
के लगातार उपयोग से यह दर लगातार बढ़ती जा रही है। वषर् 1980 के दशक में तीन हजार व्यिक्तयों
में से एक व्यिक्त को कैन्सर हो रहा है। िवकिसत देशों के रहन-सहन और खान-पान को अपनाने के
कारण भारत जैसे िवकासशील देशों में भी कैन्सर का पर्कोप बढ़ाता जा रहा है।
भारत में िबकने वाले अनेक पर्कार के शैम्पूओं और टूथपेस्टों में 'सोिडयम लॉरेल
सल्फेट' का इस्तेमाल िकया जा रहा है। इस रसायन का उपयोग करने में मँहगे शैम्पू और बहुत
लोकिपय टू थपेसट बनाने वाली कमपिनया भी पीछे नही है। अनेक उतपादन इस रसायन का पूरा नाम िलखने के सथान पर केवल 'एस. एल.
एस.' ही िलख देते हैं। िवदेशी और बहुराष्टर्ीय कम्पिनयों के उत्पादों में इसका अत्यिधक उपयोग िकया
जा रहा है, लेिकन अनेक सवदेशी और छोटी कमपिनयो के उतपादो मे यह रसायन पयोग नही िकया जाता है।
िवश् वके िवकिसत देशों में दवाओं की तरह सभी तरह के सौन्दयर् पर्साधनों के िडब्बों पर यह
िलखना आवशयक है िक उस उतपाद को बनाने के िलए िकन-िकन रसायनों का उपयोग िकया गया है। भारत में दवाओं
के िनमार्ण में तो उपयोग िकय गये पदाथोर्ं का नाम िडब्बे पर िलखना कानूनी तौर पर अिनवायर् कर िदया
गयाहै , लेिकन सौदयर पसाधनो के उतपादो पर अिनवायर रप से ऐसा नही िलखा जा रहा है। इस कारण आम उपभोकताओं के िलए
सौन्दयर्पर्साधनों के िनमार्ण में पर्युक्त पदाथोर्ं को जानना भी किठन है। इसिलए उपभोक्ता संगठनों
ने इस बारे में आवाज उठानी शुरू कर दी है।
अमेिरका के पेिन्सलवािनया िवश् वािवद्यालयमें स्वास्थ्य िवभाग में कायर्रत माईकेल हेल
ने इस बारे में उपभोक्ताओं को चेताने का पर्यास शुरू िकया है। उनका कहना है िक शैम्पू या टूथपेस्ट
में खूब सारा झाग पैदा करने के िलए अनेक कम्पिनयाँ सोिडयम लॉरेल सल्फेट का इस्तेमाल करती
हैं। यह रसायन बहुत सस्ता होता है और बहुत झाग पैदा करता है। इस रसायन का उपयोग गैरेज के
फशर साफ करने या कारखानो की गनदगी साफ करने के िलए आमतौर पर िकया जाता है। लेिकन उपभोकताओं को आकिषरत करने के िलए
और अपने उतपाद मे खूब सारा झाग िदखाने के िलए अनेक बहुराषटीय कमपिनयो ने इसका उपयोग करना शुर कर िदया है।
माईकेल हेल ने बताया है िक यह बात सािबत हो चुकी है िक सोिडयम लॉरेल सल्फेट के
दीघर्कालीन उपयोग से कैन्सर हो सकता है। उन्होंने अनेक घरों उपयोग िकये जा रहे शैम्पुओं की
जाँच की तो उनमें यह तत्त्व पाया गया। इस बारे में उन्होंने एक बहुराष्टर्ीय कम्पनी ने पूछताछ की।
शी हेल के अनुसार उस कमपनी के अिधकािरयो ने इस बात को सवीकार िकया िक उनहे यह पता है िक उनके शैमपू मे इस तरह के रसायन का
उपयोग िकया जा रहा है। लेिकन झाग पैदा करने के िलए इससे अिधक पर्भावी एवं सस्ता और कोई
रसायन अभी तक बाजार में उपलब्ध न होने के कारण इसका उपयोग जारी है।
बहुराष्टर्ीय कम्पिनयों के इन उत्पादों का भारत के समृद्ध पिरवारों में बहुत शान के साथ उपयोग
िकया जाता है। लेिकन लगातार िवज्ञापन के कारण अब इनका उपयोग भारत के मध्यम वगर् में भी बढ़
रहा है। इसको देखते हुए अमेिरकी िवशि ्वद्यालय के इस अिधकारी की उपरोक्त चेतावनी भारत के
उपभोक्ताओं के िलए बहुत उपयोगी िसद्ध हो सकती है।
भारत के हबर्ल पर्साधन िवशेषज्ञों का कहना है िक इस तरह के िवदेशी शैम्पू के स्थान पर
हमारे देश में कृिष उत्पादों से बनने वाले शैम्पू कहीं ज्यादा उपयोगी और स्वास्थ्य के अनुकूल हैं।
आँवला, िशकाकाई, रीठा जैसे पदाथोर्ं का िमशर्ण करके तो गर्ामीण क्षेतर् की मिहलाएँ भी बिढ़या शैम्पू
स्वयं बना लेती हैं िजनके इस्तेमाल से उनके बाल स्वस्थ एवं सुन्दर रहते हैं। शहरी क्षेतर्ों में
संचािलत खादी गर्ामोद्योगों में सतरीठा या इसी तरह के नामों से िबकने वाले शैम्पू बहुराष्टर्ीय
कम्पिनयों के उत्पादों से कहीं बेहतर और उपयोगी होते हैं। इनकी दरें भी रसायनों से बनाने वाले
शैमपुओं के मुकाबले एक चौथाई से भी कम होती है। लेिकन बहुराषटीय कमपिनयो के लगातार िवजापन और यूरोप की तरफ देखने की गुलामी
की आदत के कारण, भारतीय मिहलाएँ भी उनके इस तरह के कैन्सर पैदा करने वाले उत्पादों का उपयोग
करके रोगों का िकार श ब न रही हैं।
अनुकर्म
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सतर् 31
बब बबब बबबबबब बब 'बबबबबबबब' बबब
बबबबबबबबब बब बबबबबबब बबबब बबबब बबबबबबब
पर्खर िचंतक, दूरदशीर् नेता एवं पर्िसद्ध स्वतंतर्ता सेनानी सावरकर ने भारत की वोट बटोरू
राजनीित को देखकर आज से लगभग 50 वषर् पूवर् ही उन खतरों को बता िदया था िजनसे आज भारतवषर्
तर्स्त है।
वीर सावरकर भारत के पर्थम राजनेता थे िजन्होंने भारत-िवभाजन एंव भारत को धमर्िनरपेक्ष
राष्टर् बनाने का कड़ा िवरोध िकया था परंतु इसके बदले में तथा किथत महान लोगों द्वारा उन्हें
साम्पर्दाियक घोिषत िकया गया।
सन् 1912 में सावरकर ने देखा िक एक पठान वाडर्न ने एक मदर्ासी कैदी की चोटी पकड़कर उसे
गालीदीतोवेउसकेइननीचतापूणर्कायर्को सहनन कर सकेऔरपठानवाडर्नको उसकी करनीका मजाचखािदया।
अंडमान में एक ओर अंगर्ेज अिधकारी िहन्दू कैिदयों को ईसाई बनने पर मजबूर करते थे तो
दूसरी ओर पठान वाडर्न मुसलमान बनाने के िलए उनका उत्पीड़न करते थे। कई लोग उनकी कर्ूरता से
बचने से िलए अपना धमर् पिरवितर्त कर लेते थे।
एक िदन पठानो ने जौनपुर िनवासी मुललू यादव को इसलाम धमर सवीकार करने के िलए तैयार कर िलया। सावरकर को जैसे ही इस
घटना का पता लगा वे बेचैन हो उठे। वे कहते थेः "धमर-पिरवतर्न का स्पष्ट अथर् राष्टर्िनष्ठा में
पिरवतर्न होता है।" अतः उन्होंने िहन्दू कैिदयों के साथ होने वाले इस अत्याचार के िवरूद्ध एक
आन्दोलनछेड़नके ी योजनाबनाती। उन्होंनिेहन्दू कैिदयोंको एकतर्कर इसकेिलयेतैयारिकयातथािसक्ख भाइयोंको उनकेदस गुरओ ू ं
की धमर्िनष्ठा याद िदलायी और इस अत्याचार को रोकने की पूरी योजना बना ली।
िजस समय मुल्लू यादव को मुसलमान बनाने की िविध हो रही थी, उसी समय सभी िहन्दू वीरों ने वहाँ
पर धावा बोलकर उसे उनके चंगुल से छुड़ा िलया। इतने में मुल्लू ने भी स्वीकार कर िलया िक पठानों
ने मुसलमान बनाने के िलए उस पर अत्याचार िकये, िजनसे तर्स्त होकर उसने समपर्ण कर िदया।
सभी पठानों को धूल चटाने के बाद सावरकर-मण्डली ने धमार्न्तिरत िहन्दुओं की शुिद्ध पर उन्हें
पुनः स्वधमर् में लाने का अिभयान चलाया और इसमें वे सफल भी हुए। भाई परमानंद जी जैसे आयर्
समाजी कैिदयों ने शुिद्धकरण के इस अिभयान में उनका भरपूर साथ िदया।
'कालापानी' के िहन्दुओं में आयी इस जागृित के कारण अब अंगर्ेजों तथा पठानों ने चुपचाप
बैठने में ही अपनी खैर समझी।
इस पकार लमबे समय से जारी उतपीडन का यह िसलिसला वीर सावरकर की धमरिनषा एवं अनय धमरवीरो के सहयोग से समापत हो
गया।
अनुकर्म
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बबबबबब बबबबबबब (बबब बबब-बबबबबबबबब) बब
बबबबबबबबबबब बब बबबबबबब
पीिनयल गर्न्थी से आशय मानव शरीर में िनिहत एक गर्न्थी िवशेष से है। यह गर्िन्थ भर्ूमध्य
में अविस्थत होती है। यह अत्यंत छोटी िकन्तु अत्यिधक महत्त्वपूणर् गर्िन्थ है। वस्तुतः लाखों वषर्
पूवर् मानव मिस्तष्क के िवकास में इस गर्िन्थ की अित सिकर्य भूिमका रही है। अतः उस समय लोगों की
शारीिरक और आधयाितमक कमता कही अिधक थी, भावनाओं पर अिधक िनयंतर्ण था, िकन्तु समय के कर्म से यह
गर्िन्-थहर्ास को पर्ाप्त हुई। आज अवशेषी यह एक लघु गर्िन्थ है और यिद हम इसकी सुरक्षा के समुिचत
पर्बंध नहीं कर सके तो कुछ हजार वषोर्ं से यह पूणर्तः नष्ट हो जायेगी।
योग में इस गर्िन्थ का सम्बन्ध आज्ञाचकर् से है। रहस्य वािदयों और तािन्तर्कों ने इसे तृितय
नेतर् माना है तथा दर्शन शास्तर्ी इसे परा मन कहते हैं। यह पीिनयल गर्िन्थ बच्चों में बहुत
िकर्याशील होती है िकन्तु आठ से दस वषर् की अवस्था पर्ाप्त होते-होते उत्तरोत्तर िनिष्कर्य होने
लगती है और बडे लोगो मे तो अतयलप शेष रह जाती है या जीवन मे इसका कायर ही नही रह जाता।
यह अत्यंत दुभार्ग्यपूणर् िस्थित है क्योंके योग में यह गर्िन्थ मिस्तष्क को िनयंितर्त एवं
व्यविस्थत रखने वाला केन्दर् है। िजस पर्कार हवाई अड्डे पर िनयंतर्क टावर होता है उसी पर्कार यह
पीिनयल गर्िन्थ मानव मिस्तष्क का िनदेर्शक िनयंतर्क एवं व्यवस्थापक टावर है। योग में इसे
आज्ञाचकर् कहतेहैं।'आज्ञ' ाशबद अपने आप मे िनयंतण एवं आदेश पालन के अथर को वयकत करता है। जब पीिनयल गिनथ का हास आरंभ
होता है तो पीयूष गर्िन्थ सिकर्य हो जाती है। इससे मनोभाव तीवर् हो जाते हैं यही कारण है िजससे
कई बच्चे भावनात्मक रूपसे असंतुिलत हो जाते हैं और िकशोरावस्था में या िकशोरावस्था पर्ाप्त होते
ही व्याकुल हो जाते हैं एवं न करने जैसे काम कर बैठते हैं। इसका मिस्तष्क की िकर्याशीलता पर
संतुिलत पर्भाव होता है जो सम्पूणर् मिस्तष्क को गर्हणशील िस्थित में रखता है। िजन बच्चों में यह
गर्िन्िथनयंितर्तऔरसुरिक्षतहोतीहैवेबच्चेकहींज्यादागर्हणशीलपायेजातेहैअ ं पेक्षाकृतउन बच्चोंसेिजनकीयहगर्िन्थ
ज्यादािदन
िकर्याशील नहीं रह पाती।
दूसरी महत्त्वपूणर् बात यह िक एिडर्नल गर्िन्थ बच्चों के नैितक आचरण में अित महत्त्वपूणर्
भूिमका िनभाती है। अिधकांशतः अपराधी मनोवृित्तवाले बच्चों की एिडर्नल गर्िन्थ आवश् यकतासे अिधक
िकर्याशील होती है। बच्चों की िक् श षदा ेने के कर्म में यह एक महत्त्वपूणर् तथ्य है।
एिडनल गिनथ िनयंितत रहे, आवेगो
, ंआवेशोंएवंअपराधोंमेमं ननिगरे
, इसिलए पीिनयल गनथी (आज्ञाचकर्) का िवकास अत्यंत
आवशय ् कहै, िहतकारी है एवं बच्चों के िलए सवोर्पिर सहायक केन्दर् है।
पीिनयल गर्िन्थ के िवकास की िविध 'िवद्याथीर् तेजस्वी तािलम ििवर श म ें बतायी जाती है , पर्योग
कराये जाते हैं। बालकों के िहतैिषयों को चािहए िक उन्हें अथाह संपित्त अिधकार की अपेक्षा अथाह
समझ एवं अथाह आंतिरक सामथ्यर् देने वाले इस पर्योग में उन्हें आगे बढ़ायें, पर्ोत्सािहत करें।
इससे िवदािथरयो का मंगल होगा, जीवन के िजस क्षेतर् में होंगे अच्छी तरक्की कर पायेंगे। आवेगों, आवेशों
और नकारातमक िवचारो से बचेगे। सफलताएँ उनके चरण चूमेगी। कभी-कभार िवफलता आ भी गई तो वे समता के िसंहासन
पर अचल रहेंगे।
यिद देशवासी इस सामथ्यर्दायी तीसरे नेतर् का लाभ उठाने की कला सीखलें तो भारत हँसते-
खेलते िफर से िवश् वगुरब ू न जायेगा।
अनुकर्म
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सतर् 32
बबब बबबबबबबब बब बबबब बबबबबबबबब
रक्षाबंधन का पवर् भाई और बहन के पर्ेम को पर्कट करने का पवर् है। पर्ेम
में परवशता होती है। भगवान भी पर्ेम के वश में होते हैं। भाई-बहन, िशषय एवं गुर
आिदपर्ेमकेवश मेह ं ोकरहीपर्ेम की भावनाओंका सदुपयोगकरतेहैत ं थापर्ेमास्पदतक पहुँचतेहैं।
अपने व्यवहार में भी आप पर्ेम भर दीिजए। पर्ेम का आशय यहाँ िफल्मी
दुिनया के पर्ेम से नहीं है, क्योंिक वह तो मोह है। सच्चा पर्ेम तो वह है िजसमें
िदये िबना न रहा जाय जबिक मोह में तो िलये िबना नहीं रह जाता है। पर्ेम में
बहन भी भाई को कुछ-न-कुछ िदये िबना नहीं रहती तथा भाई भी अपनी बहन को कुछ-न-
कुछ िदये िबना नहीं रहता।
हमारी भारतीय संस्कृित में त्याग की बड़ी मिहमा है, जो देने में िवश् वासरखती है, लेने मे नही।
ब बबबबबबबबबबब बबबबब । बबबबबबब बबबबबबब बबबबब
बबब बबबबबबबब बबबबबबबब ।। बब बबबब बबबबबबबबबबबबबबबब
''यह सारा जगत ईश् वरकी सत्ता से ओत-पर्ोत है। इसमें त्याग से िजयो। पिरगर्ह करके कब तक
िजयोगे ?"
भाई के पास कुछ है तो बहन के िलए त्याग करे। गरीब-से-गरीबबहनभीअपनेभैयाकेिलएकुछ-न-कुछ
शुभकामना तो कर ही लेती है। भाई-बहन, संत और साधक तथा गुरू और िष् शयक े बीच की शुभकामनाएँ व भावनाएँ
फिलत करने के िलए यह पवर मनाया जाता है।
अपने साधन की रक्षा के िलए आज हम भगवान और गुरू की कृपा को आमंितर्त करेंगे। ऐिहक
वस्तुओं की रक्षा भले भाई लोग करें, परन्तु परम तत्त्व के मागर् पर जाते हुए साधकों के साधन की
रक्षा के िलए परम तत्त्व को पाये हुए बर्ह्मवेत्ता महापुरूषों तथा सिच्चदानंदघन परबर्ह्म परमात्मा की
कृपा तो अिनवायर् है।
भगवद् पर्ािप्त की इच्छा दृढ़ होती जाये.... जीवनरूपी सूयर् अस्त होने से पूवर् ही हमारी मोक्ष की
यातर्ा पूरी हो जाय..... इस हेतु शीहिर से पाथरना करे िक इस रकाबंधन के पावन पवर पर हमारी सतयपािपत की िजजासा तथा सतयसवरप
हिर के अनुभव से उठी पिवतर् वृित्तयों की रक्षा हो।
आजकेपावनिदवसपरअपनेपरमपावनस्वरूप मेिव ं शर्ांितपानेका संकल्पकरतेहुएशर्ीहिरएवंईश् वरपर्ापतसंतको
् स्नेहकरतेहुए
हम अपनी आध्याित्मक साधना की सुरक्षा एवं अपने लक्ष्य 'ईश् वरपर्ािप् ' के
त मागर् में आने वाले पर्लोभनों
से रक्षा के िलए पर्ाथर्ना करते हैं- "हे मेरे सदगुरूदेव ! हे पर्भु !! हमारी रक्षा करना। संसार की
तुच्छ वासनाओं, इचछाओं मे ही हमारा जीवन कही समापत न हो जाये, ऐसीकृपाकरना।"
रक्षाबंधन का पवर् हमें सावधान करता है िक हे साधक ! तू िवकारों से अपनी रक्षा चाहता है तो
आजसंकल्पकर। मोहमायासेरक्षाचाहताहैतोसंकल्पकर औरउस अन्तयार्मीपर्भुव गुरद ू ेवसेपर्ाथर्
नाकर िकः
"हे मेरे सदगुरूदेव ! जब-जब दुिनया की उलझनों और आकषर्णों से मैं िगर जाऊँ, तब-तब आप
मेरी रक्षा करना। हे व्यापक चैतन्य में रमण करने वाले आत्मवेत्ता, बर्ह्मवेत्ता गुरूदेव ! हम
आपकोधागेकी राखीनहीं, परन्तु शर्द्धा तथा पर्ाथर्ना की राखी भेज रहे हैं िक जब-जब संसार में उलझ
जायें तब-तब आप हमारे अन्तर-पर्देश को परमात्मा की ओर, अपनी ज्ञानिनष्ठा की ओर, अपनी
पर्ेमाभिक्त व हिरभिक्त की ओर आकिषर्त करना, आनंिदतकरना।"
सदगुरू को राखी का धागा बाँधने के बावजूद भी अगर तुम्हारे जीवन में संयम नहीं, संकल्प की
दृढ़ता नहीं, पर्ेम की शुिद्ध नहीं तो तुमने रक्षाबंधन के महत्त्व को ठीक से जाना ही नहीं। असावधान
मनुष्य भारी-भारी रािखयाँ बाँधने के बावजूद भी अगर तुम्हारे जीवन में संयम नहीं, संकल्प की दृढ़ता
नहीं, पर्ेम की शुिद्ध नहीं तो तुमने रक्षाबंधन के महत्त्व को ठीक से जाना ही नहीं। असावधान मनुष्य
भारी-भारी रािखयाँ बाँधने के बाद भी िफललता रहता है। साधन-भजन करके िजन्होंने अपना संयम
बढ़ाया है उनकी छोटी-सी राखी तो क्या, मातर् उनके शुभ भाव का छोटा सा धागा भी अपने सदगुरू के
आध्याित्मककृपा-पर्साद को आत्मसात् करने में सक्षम बना देता है।
संकल्पों में अथाह शिक्त होती है। शरीर और मन की रक्षा करने के िलए संकल्प करने का नाम
है रक्षाबंधन। िजन वस्तुओं से हमारा, हमारे शरीर तथा मन का पतन होता है, उन वस्तुओं अथवा
व्यवहार को सदा के िलए त्यागने के संकल्प करने का िदन है रक्षाबंधन। संकल्पों को साकार करने
के िलए ही ऋिषयों ने ए एक छोटा-सा धागा ढूँढ िलया। इस छोटे से धागे को कमार्वती ने हुमायूँ के
पास भेजा तो वह मुसलमान राजा भी उसके शुभ संकल्प से बँध गया। संकल्प को िसद्ध करने के िलए ही
तुम सूयर्नारायण को अघ्यर् देते हो। सूयर्नारायण को पानी पहुँचता होगा या नहीं....... यह पर्श् ननहीं है,
परन्तु तुम्हारे संकल्प को साकार करने के िलए पानी का लोटा एक साधन है। ऐसे ही राखी भी संकल्प
साकार करने में िनिमत्त बनती है।
रक्षाबंधन के िदन संकल्प करना चािहए िक मेरी मनःशिक्त कहीं इधर-उधर न िबखर जाय,
कुसंस्कार मुझ पर कहीं कब्जा न जमा लें क्योंिक सच्चिरतर्ता का बल धन, सत्ता और सौन्दयर् के बल से
बहुत बड़ा होता है।
रक्षाबंधन के शुभ िदवस पर कोई ऐसी गाँठ बाँध लो, िनयम ले लो िक पर्ितिदन कम-से-कम ग्यारह
माला तो करेंगे ही.... महीने-पन्दर्ह िदन में कम-से-कम एक-दो िदन मौन रहेंगे, एकात रहेगे, बारह
महीने में एक सप्ताह 'मौन-मंिदर में रहकर तपस्या करेंगे.... ऐसीकुछगाँठ बाँधलो, अपना काम बन
जायेगा..... बेड़ा पार हो जायेगा।
कोई बहन नहीं चाहती िक 'मेरा भाई दीन-हीन या दुबर्ल व्यिक्त की नाई संसार में घसीटा जाय'
अिपतु चाहती है िक 'मेरा भैया बल, बुिद्ध, ऐश्व,यर् ज्ञान से सम्पन्न हो।' ऐसी शुभ भावनासेउसकेललाटपरितलक
करती है, मानो उसे ितर्लोचन बनाती है, िशवनेत खोलने की शुभकामना करती है, दीघार्यु, बुिद्धमान, वीयर्वान्,
ज्ञानवान होने का शुभ भाव बरसाती है और अपने हाथों से ितलक करती है, राखी बाँधती है।
रक्षाबंधन....... 'मेरे भैया की रक्षा हो और िजस सत्य, ज्ञान, पर्काश से मानव में देवत्व जागता है,
ऐसािदव्यज्ञानपर् शक
रूपा िशवनेतर्
प र्गटहोमेरे भैया का। आयुष्य, बलवान्
वान् तो हो, ऐिहकज्ञान
केसाथआत्म-परमात्
ा मा के
ज्ञान से भी मेरा भैया संपन्न हो। भुिक्त-मुिक्त (भोग-मोक्ष) िमले मेरे स्नेहपातर् सहोदर भैया को....'
कसास्नेह-पर्साद से पर्फुिल्लत होकर उसकी रक्षा करना एवं उसके जीवन में आने वाली किठनाइयों में
उसकी सहायता करना अपना कत्तर्व्य मानता है...... और केवल अपनी सहोदर बहन तो कया, अड़ोस-पड़ोस की बहनों
के पर्ित भी कहीं मन में िवकार की आँधी आती है तो यह रक्षाबंधन का िदवस और राखी का यह कच्चा
धागा पका संयम और उतम समझ देने मे सहायक होता है। अडोस-पड़ोस के भाई-बहन यौवन के िवकारी आवेगों से
बचने के िलए भी एक-दूसरे को राखी के इस पिवतर् बंधन में बाँधकर िवकारों के वेगों से अपनी
रक्षा कर लेते हैं। कैसी है भारत के ऋिषयों की दूरदृिष्ट !
कुन्ताजी ने अिभमन्यु को राखी बाँधी थी, लकमी जी ने राजा बिल को, कमार्वती ने हूमायूँ को राखी भेजी
थी। हुमायूँभाई-बहन के इस पिवतर् भाव से बँधकर भक्षक भाव को छोड़ रक्षक बन गया था। छोटे एवं पतले
इस सूत के धागे ने कई सपूतो को सुरका करने का संकलप ले।
यौवन केअन्धे िवकारों से बचाकर यह पिवतर् धागा सन्मागर् की ओर ले जाता है। संयम, साहस,
सदाचार और परस्पर भलाई की भावना से भरे इस सुन्दर उत्सव को शर्ावणी पूिणर्मा, रक्षाबंधन और
नािरयली पूिणर्मा भी कहते हैं। समुदर्ी नािवक इस िदन समुदर्देव को अपनी सुरक्षा के िलए पर्ाथर्ना
करते हुए नािरयल अपर्ण करते हैं। बहादुर समुदर्ी नािवक अपनी उँगली का एक बूँद रक्त अपर्ण कर
सागर देव से पर्ाथर्ना करते हैं िकः "तेरे िवशाल जलराश िमेंहम अपना काम-काज करके सुरिक्षत
िजयें।' बर्ाह्मण लोग इस पूिणर्मा को अपना जनेऊ बदलते हैं, सप्त ऋिषयों को याद करते हैं, उनके
आत्मज्ञान
, समता और परम सुख देने वाले परमात्म-ज्ञान की यातर्ा में दृढ़ होने का संकल्प करते हैं।
हम भी इस पवर् का पूणर् लाभ उठाएँ और िकये हुए शुभ संकल्प पर अिडग रहें। ब.....ब.....
बबबबबब ! ब......ब...... बबबबबबबब ! ब....ब..... बबबबबबबबब ! ब.....ब...... बबबबबबबबबबब !
ब बबबबबब..... ब बबबबबब...... ब बबबबबब...... ब बबबब......
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबबबबब बबबब बबबबबबब ?
अच्छी और तीवर् स्मरणशिक्त के िलए हमें मानिसक और शारीिरक रूप से स्वस्थ, सबल और नीरोग
रहना होगा। जैसे आप हँसना और गाल फुलाना दोनों एक साथ नहीं कर सकते, वैसे ही आप मानिसक और
शारीिरक रप से सवसथ और सशकत हएु िबना अपनी समृित को भी अचछी और तीवर बनाये नही रख सकते।
आपयहबातठीक सेयादरखेिंक हमारीयादशिक्तहमारेध्यानपरऔरमनकी एकागर्तापरिनभर्रकरतीहै।हमिजस तरफ
िजतनी ज्यादा एकागर्तापूवर्क ध्यान देंगे, उस तरफ हमारी िवचारशिक्त उतनी ज्यादा केिन्दर्त हो
जायगी। इस कायर् में िजतनी अिधक तीवर्ता, िस्थरता और शिक्त लगाई जायेगी, उतनी गहराई और मजबूती
से वह वस्तु हमारे स्मृित-पटल पर अंिकत हो जायगी।
स्मृित को बनाये रखना ही स्मरणशिक्त है और इसके िलए जरूरी है सुने हुए व पढ़े हुए िवषयों की
बार-बार आवृित्त करना, अभ्यास करना। जो बातें लम्बे समय तक हमारे ध्यान में नहीं आतीं, उन्हें
हम भूल जाते हैं और जो बातें हमारे ध्यान में बराबर आती रहती हैं, उनकी याद बनी रहती है।
िवद्यािथर्यों को चािहए िक वे अपने पाठ्यकर्म (कोसर्) की िकताबों को पूरे मनोयोग से एकागर्िचत्त
होकर पढ़ा करें और बारंबार िनयिमत रूप से दोहराते भी रहें। फालतू सोच-िवचार करने से, िचन्ताकरने
से, ज्यादा बोलने से, फालतू बाते करने से, झूठ बोलने से या बहानेबाजी करने से तथा वयथर के कामो मे उलझे रहने से समरणशिकत
नष्ट होती है।
अच्छी स्मरणशिक्त के िलए मानिसक स्वास्थ्य के साथ शरीर का भी स्वस्थ और बलवान होना जरूरी
होता है।
बब बबबबब बबबबबबब शंखावली (शंखपुषपी) का पंचांग कूट-पीसकर, छानकर , महीन चूणर् करके
शीशी मे भर ले। रात मे सोते समय बादाम की 2 िगरीऔर5-5 गर्ामचारोंमगज(तरबूज, खरबूज, पतली ककड़ी और मोटी खीरा
ककड़ी) के बीज, 2 िपस्ता, 1 छु ह ार ा , 4 इलायची(छोटी ), 5 गर्ामसौंफ, 1 चम्मचमक्खनऔरएकिगलासदूध लें।
बबबबब रात में बादाम, िपस्ता, छु ह ा र ा और चारो मगज 1 कप पानी में डालकर रख दें। पर्ातः
काल बादाम का िछलका हटाकर दो-चारबूँदपानीकेसाथ पत्थरपरिघस लेऔ ं रउस लेपको कटोरीमेल ं ेलें।िफरिपस्ता,
इलायची के दाने व छुहारे को बारीक काट-पीसकर उसे िमला लें।चारों मगज भी उसमें ऐसे ही डाल लें। अब
इनको अचछी तरह िमलाकर खूब चबा-चबाकरखा जायें।उसकेबाद3 गर्ामशंखावलीका महीनचूणर्मक्खनमेिमलाकरचाटलें औ
ं रऊपर
से एक िगलास कुनकुना मीठा दूध 1-1 घूँट करके पी लें। अंत में, थोड़ासौंफमुँहमेड ं ालकरधीर-ेधीरे 15-20 िमनट
तक चबाते रहें और उसका रस चूसते रहें। चूसने के बाद उस िनगल जाएँ।
बबबब यह पर्योग िदमागी ताकत, तरावट और स्मरणशिक्त बढ़ाने के िलए बेजोड़ है। साथ-ही-
साथ यह शरीर में शिक्त व स्फूितर् पैदा करता है। लगातार 40 िदन तक पर्ितिदन सुबह िनत्य कमोर्ं से
िनवृत्त होकर खाली पेट इसका सेवन करके चमत्कािरक लाभ देख सकते हैं। दो घण्टे बाद भोजन करें।
उपरोक्त सभी दर्व्य पंसारी या कच्ची दवा बेचने वाली दुकान से इकट्ठे ले आएँ और 15-20 िमनट का
समय देकर पर्ितिदन तैयार करें। इस पर्योग को आप 40 िदन से भी ज्यादा, जब तक चाहें सेवन कर
सकते हैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबब बब बबबबबबब
बुिद्ध कहीं बाजार में िबकने या िमलने वाली चीज नहीं है, बिल्क अभ्यास से पर्ाप्त करने की
और बढाई जाने वाली चीज है। इसिलए आपको भरपूर अभयास करके बुिद और जान बढाने मे जुटे रहना होगा।
िवद्या, बुिद्ध और ज्ञान को िजतना खचर् िकया जाय उतना ही ये बढ़ते जाते हैं जबिक धन या
अन्य पदाथर् खचर् करने पर घटते जाते हैं। इसका मतलब यही है िक हम िवद्या की पर्ािप्त और बुिद्ध
के िवकास के िलए िजतना पर्यत्न करेंगे, अभ्यास करेंगे, उतना ही हमारा ज्ञान और बौिद्धक बल
बढ़ता जायगा।
सतत अभ्यास और पिरशर्म करने के िलए यह भी जरूरी है िक आपका िदमाग और शरीर स्वस्थ और
ताकतवर भी रहे। यिद अल्प शर्म में ही थक जाएँगे तो पढ़ाई-िलखाई मे जयादा समय तक मन नही लगेगा।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबब बबबब बब बबब बबब बबबब
एक गाजर और पात गोभी के लगभग 50-60 गर्ामअथार्त्10-12 पत्ते काटकर प्लेट में रख लें। इस पर हरा
धिनया काट कर डाल ले। िफर उसमे सेधा नमक, कालीिमचर् का पाउडर और नींबू का रस िमलाकर खूब चबा-चबाकरनाश्ते
के रूप में खाया करें।
भोजन के साथ एक िगलास छाछ भी िपया करें।
रात को 9 बजे के बाद पढ़ाई के िलए जागरण करें तो आधे-आधेघण्टेकेअंतरपरआधािगलासठण्डापानी
पीते रहें। इससे जागरण के कारण होने वाला वात-पर्कोप नहीं होगा। वैसे 11 बजे से पहले ही सो
जाना ठीक होता है।
लेटकर या झुके हुए बैठकर न पढा करे। रीढ की हडडी सीधी रखकर बैठे। इससे आलसय या िनदा का असर नही होगा और
स्फूितर् बनी रहेगी। सुस्ती महसूस हो तो थोड़ी चहलकदमी कर िलया करें। नींद भगाने के िलये चाय या
िसगरेट का सेवन न करें।
टी.वी. प ज्यादा कायर्कर्म न देखा करें क्योंिक एक तो इससे समय नष्ट होता है और दूसरे, आँखें
खराब होती हैं। टी.वी. पर कोई बहुत ही ज्ञानवधर्क कायर्कर्म हो तभी देखा करें। फालतू कायर्कर्म
देखकर अपने समय, अपनी पढ़ाई िलखाई और अपनी आँखों का सत्यानाश न करें।
यिद िवद्याथीर्गण इन िनयमों पर सच्चाई से अमल करेंगे तो उनकी िदमागी शिक्त खूब बढ़ेगी।
इससे वे खूब अचछी पढाई कर सकेगे। पिरणामसवरप आगामी परीकाओं मे खूब अचछे नमबरो से उतीणर हो सकेगे। इसी तरह भावी जीवन की
परीक्षाओं में भी सफल होते रहेंगे।
अनुकर्म
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सतर् 33
बबबबबबबबबब बब बबबबबबबब-बबबबब
बबबबबबबबबब
िचत्तकीिवशर्ांितसेसामथ्यर्
का पर्ागट्यहोताहै।सामथ्यर्
क्याहै? िबना व्यिक्त, िबना वस्तु के भी
सुखी रहना – ये बड़ा सामथ्यर् है। अपना हृदय वस्तुओं के िबना, व्यिक्तयों के िबना परम
सुख का अनुभव करें – यह स्वतंतर् सुख माधुयर् बढ़ाने वाला है।
शीकृषण के जीवन मे सामथयर है, माधुयर् है, पर्ेम है। िजतना सामथ्यर् उतना ही अिधक
माधुयर्, उतना ही अिधक शुद्ध पर्ेम है शर्ीकृष्ण के पास।
पैसों से पर्ेम करोगे तो लोभी बनायेगा, पद से पर्ेम करोगे तो अहंकारी
बनायेगा, पिरवाक से पर्ेम करोगे तो मोही बनायेगा लेिकन पर्ािणमातर् के पर्ित
समभाववाला पर्ेम रहेगा, शुद पेम रहेगा तो वह परमातमा का दीदार करवा देगा।
पर्ेम सब कर सकते हैं। शांत सब रह सकते हैं और माधुयर् सब पा सकते हैं। िजतना शांत
रहने का अभ्यास होगा उतना ही माधुयर् िवकिसत होता है, िजतना माधुयर् िवकिसत होगा उतना ही शुद्ध पर्ेम
िवकिसत होता है और ऐसे पर्ेमीभक्त को िकसी चीज की कमी नहीं रहती। पर्ेमी सबका हो जाता है, सब
पर्ेमी के हो जाते हैं। पशु भी पर्ेम से वश हो जाते हैं, मनुष्य भी पर्ेम से वश हो जाते हैं और
भगवान भी पर्ेम से वश हो जाते हैं।
शीकृषण जेल मे जनमे है। वे आननदकंद सिचचदानंद जेल मे पगटे है। आनंद जेल मे पगट तो हो सकता है लेिकन आनंद का िवसतार
जेल में नहीं हो सकता। जब तक यशोदा के घर नहीं जाता, आनंदपर्ेममयनहींहोपाता। योगीसमािधकरतेहैए ं कांतमे,ं
जेल जैसी जगह में आनंद पर्गट तो होता है लेिकन समािध टूटी तो आनंद गया. आनंदपर्ेम सेबढ़ताहै ,
माधुयर् से िवकिसत होता है।
पर्ेम िकसी का अिहत नहीं करता। जो स्तनों में जहर लगाकर आयी उस पूतना को भी शर्ीकृष्ण ने
स्वधाम पहुँचा िदया। पूतना कौन थी ? पूतना कोई साधारण नहीं थी। पूवर्काल में राजा बिल की बेटी थी,
राजकन्या थी। भगवान वामन आये तो उनका रूप सौन्दयर् देखकर उस राजकन्या को हुआ िकः 'मेरी सगायी हो
गयीहै।मुझेसा
ऐ बेटाहोतोमैग ं लेलगाऊँऔरउसको दूध िपलाऊँ।' लेिकन जब ननहा-मुन्हा वामन िवराट हो गया और
बिलराजा का सवर्स्व छीन िलया तो उसने सोचा िकः 'मैं इसको दूध िपलाऊँ ? इसको तो जहर िपलाऊँ, जहर।'
वही राजकन्या पूतना हुई। दूध भी िपलाया और जहर भी। उसे भी भगवान ने अपना स्वधाम दे िदया।
पर्ेमास्पद जो ठहरे.....!
पर्ेम कभी फिरयाद नहीं करता, उलाहना देता है। गोिपयाँ उलाहना देती हैं यशोदा कोः
"यशोदा ! हम तुम्हारा गाँव छोड़कर जा रही हैं।"
"क्यों ?"
"तुम्हारा कन्हैया हमारी मटकी फोड़ देता है।"
"एक के बदले दस-दस मटिकयाँ ले लो।"
"ऊँ हूँ..... तुम्हारा ही लाला है क्या ! हमारा नहीं है क्या ? मटकी फोड़ी तो क्या हुआ ?"
"अभी तो फिरयाद कर रही थी, गाँवछोड़ने की बातकर रहीथी ?"
"वह तो ऐसे ही कर दी। तुम्हारा लाला कहाँ है ? िदखा दो तो जरा।"
उलाहना देने के बहाने भी दीदार करने आयी हैं, गोिपयाँपर्ेम मेप
ं रेशानीनहीं, झंझट नही केवल तयाग होता है,
सेवा होती है। पर्ेम की दुिनया ही िनराली है।
बबबबब ब बबबबब बबबब, बबबबब ब ।बबब बबबबबब
बबबब बबबब बबबबब ।। बबबब बबब बबबब बब बबबबब
पर्ेम खेत में पैदा नहीं होता, बाजार में भी नहीं िमलता। जो पर्ेम चाहे वह अपना शीश, अपना
अिभमान दे दे ईश् वरके चरणों में, गुरच ू रणोंमें
.....
एक बार यशोदा मैया मटकी फोडनेवाले लाला के पीछे पडी िकः "कभी पर्भावती, कभी कोई, कभी कोई....रोज-रोज
तेरी फिरयाद सुनकर मैं तो थक गयी। तू खड़ा रह।"
यशोदा ने उठाई लकड़ी। यशोदा के हाथ में लकड़ी देखकर शर्ीकृष्ण भागे। शर्ीकृष्ण आगे, यशोदा
पीछे.... शीकृषण ऐसी चाल चलते िक मा को तकलीफ भी न हो और मा वापस भी न जाये ! थोड़ादौड़त,ेथोड़ारू कते। कसाकरते -
करते देखा िकः "अब माँ थक गयी है और माँ हार जाये तो उसको आनंद नहीं आयेगा।' पर्ेमदाता
शीकृषण ने अपने को पकडवा िदया। पकडवा िलया तो मा रससी लायी बाधने के िलए। रससी है माया, मायातीत शर्ीकृष्ण को कैसे
बाँधे ? हर बार रस्सी छोटी पड़ जाये। थोड़ी देर के बाद देखा िकः "माँ कहीं िनराश न हो जाये तो
पर्ेम के वशीभूत मायातीत भी बँध गये।" माँ बाँधकर चली गयी और इधर ओखली को घसीटते-घसीटते
ये तो पहुँचे यमलाजुर्न (नल-कुबर) का उद्धार करने..... नल-कूबर को शर्ाप से मुिक्त िदलाने.... धडाकधूम
वृक्ष िगरे, नल-कूबर पर्णाम करके चले गये..... अपने को बँधवाया भी तो िकसी पर करूणा करने हेतु,
बाकी उस मायातीत को कौन बाँधे ?
एक बार िकसी गोपी ने कहाः "देख, तू ऐसा मत कर। माँ ने ओखली से बाँधा तो रस्सी छोटी पड़ गयी
लेिकन मेरी रससी देख। चार-चारगायेबँधसके
ं इ
ं तनीबड़ीरस्सीहै।तुझेतो ऐसा बाँधूगीिक तू भीयादरखेगा , हाँ।"
कृष्णः "अच्छा बाँध।"
वह गोपी कोमल-कोमल हाथों में रस्सी बाँधना है, यह सोचकर धीरे-धीरे बाधने लगी।
कृष्णः "तुझे रस्सी बाँधना आता ही नहीं है।"
गोपीः"मेरे बाप ! कैसे रस्सी बाँधी जाती है।"
कृष्णः "ला, मैं तुझे बताता हूँ।" ऐसाकरकेगोपीकेदोनों हाथपीछे करकेरस्सीसेबाँधकर िफरखंभे सेबाँध िदयाऔर
दूर जाकर बोलेः
"ले ले, बाँधने वाली खुद बँध गयी..... तू मुझे बाँधने आयी थी लेिकन तू ही बँध गयी।
ऐसेहीमायाजीवको बाँधने आये उसकीजगहजीवहीमायाको बाँध देमैं
यहीिसखाने आयाहूँ।"
कैसा रहा होगा वह नटखिटया ! कैसा रहा होगा उसका िदव्य पर्ेम ! अपनी एक-एक लीला से जीव की उनित
का संदेश देता है वह पर्ेमस्वरूप परमात्मा !
आनंदपर्गटतोहोजाताहैजेलमेल ं ेिकनबढ़ताहैयशोदाकेयहाँ, पर्ेम से।
यशोदा िवशर्ांित करती है तो शिक्त आती है ऐसे ही िचत्त की िवशर्ांित सामथ्यर् को जन्म देती है
लेिकन शिकत जब कंस के यहा जाती है तो हाथ मे से छटक जाती है, ऐसेहीसामथ्य अहंकारी
र् केपासआताहैतोछटकजाताहै।जैसे ,
शिकत अहंकार रिहत के पास िटकती है ऐसे ही पेम भी िनरिभमानी के पास ही िटकता है।
पर्ेम में कोई चाह नहीं होती। एक बार देवताओं के राजा इन्दर् पर्सन्न हो गये एवं शर्ीकृष्ण से
बोलेः "कुछ माँग लो।"
शीकृषणः "अगर आप कुछ देना ही चाहते हैं तो यही दीिजए िक मेरा अजुर्न के पर्ित पर्ेम बढ़ता
रहे।"
अजुर्न अहोभाव से भर गया िकः "मेरे िलए मेरे स्वामी ने क्या माँगा ?"
पर्ेम में अपनत्व होता है, िनःस्वाथर्ता होती है, िवश् वासहोता है, िवनमर्ता होती है और त्याग
होता है। सच पूछो तो पर्ेम ही परमात्मा है और ऐसे परम पर्ेमस्वरूप, परम पर्ेमास्पद शर्ीकृष्ण का
जन्मोत्सव ही है – जन्माष्टमी।
आपसबकेजीवनमेभ ं ीउस परमपर्ेमास्पदकेिलएिदव्यपर्ेमिनरंतरबढ़तारहे।आपउसी मेख ं ोयेरहेउं सी केहोतेरहेॐ

माधुयर्.... ॐ शािन्त.... मधुमय माधुयर्दाता, पर्ेमावतार, िनत्य नवीन रस, नवीन सूझबूझ देने वाली गीता, जो
पर्ेमावतार का हृदय है – बबबब बब बबबबब । बबबबबब "गीतामेराहद ृ यहै।"
पर्ेमावतार शर्ीकृष्ण के हृदय को समझने के िलए गीता ही तो है। आप हम पर्ितिदन गीता ज्ञान
में परमेश् वरीयपर्ेम में खोते जायँ, उसमय होते जाएं... खोते जाएँ... होते जाएँ।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबब बबबब बबबबबबब
यह घटना सतयुग की है।
एक बार हमारे देश मे अकाल पडा। वषा के अभाव के कारण अन पैदा नही हुआ। पशुओं के िलए चारा नही रहा। दूसरे वषर भी वषा
नहीं हुई। िदनों िदन देश की हालत खराब होती चली गई। सूयर् की पर्खर िकरणों के पर्भाव से पृथ्वी का
जल-स्तर बहुत नीचे चला गया। फलतः धरती के ऊपरी सतह की नमी गायब हो गयी। नदी-तालाब सब सूख
गये।वृकष् भीसूखनेलगे।मनुष्योंऔरपशु ओंमेह ं ाहाकारमचगया।
अकाल की अविध बढ़ती गयी। एक वषर् नहीं, दो वषर् नहीं, पूरे बारह वषोर्ं तक बािरश की एक बूँद भी
धरती पर नही िगरी। लोग तािह माम्-तर्ािह माम् पुकारने लगे। कहीं अन्न नहीं, कहीं जल नहीं। वषार् और शीत
ऋतुएँ नहीं। सवर्तर् सदा एक ही गर्ीष्म ऋतु पर्वत्तर्मान रही। धरती से उड़ती हुई धूल और तपती तेज लू
में पश-ु पक्षी ही नहीं, न जाने िकतने मनुष्य काल-कविलत हो गये, कोई िगनती नहीं। भूखामरी के कारण
माताओं के स्तनों में दूध सूख गया। अतः दूध न िमलने के कारण िकतने ही नवजात िश ु शमृत्यु की गोद
में सदा के िलए सो गये। इस पर्कार पूरे देश में नर-कंकालों एवं अन्य जीव-जन्तुओं की हिड्डयों का
ढेर लग गया। एक मुटी अन कोई िकसी को कहा से देता ? पिरिस्थित िदनों िदन िबगड़ती ही चली गयी। अन्न जल के
लाले पड गये।
इस दौरान् िकसी ने कहा िक नरमेध यज िकया जाय तो वषा हो सकती है। यह बात अिधकाश लोगो को जँच गयी।
अतः एक िनशि ्चत ितिथ और िनशि ्चत स्थान पर एक िवशाल जनसमूह एकतर् हुआ। पर सभी मौन थे।
सभी के िसर झुके हुए थे। पर्ाण सबको प्यारे होते हैं। जबरदस्ती िकसी को भी बिल नहीं दी जा सकती थी
क्योंिक यज्ञों का िनयम ही ऐसा था।
इतने मे अचानक सभा का मौन टू टा। सबने दृिष उठायी तो देखा िक एक बारह वषर का अतयनत सुनदर बालक सभा के बीच मे
खड़ा है। उसके अंग-पर्त्यंग कोमल िदखाई दे रहे थे। उसने कहाः
"उपिस्थत महानुभावों ! असंख्य पर्ािणयों की रक्षा एवं देश को संकट की िस्थित से उबारने के
िलए मै अपनी बिल देने को सहषर पसतुत हूँ। ये पाण देश के है और देश के काम आ जाये, इससे अिधक सदुपयोग इनका और कया हो सकता
है ? इसी बहाने िवशातमरप पभु की सेवा इस नशर काया के बिलदान से हो जायेगी।"
"बेटा शतमन्यु ! तू धन्य है ! तूने पूवर्जों को अमर कर िदया।" ऐसाउदघोषकरते हुएएकव्यिक्न
तेदौड़कर
उसे अपने हृदय से लगा िलया।
वह व्यिक्त कोई और नहीं वरन् स्वयं उसके िपता थे। शतमन्यु की माता भी वहीं पर उपिस्थत थीं।
वे भी शतमन्यु के पास आ गईं। उनकी आँखों से झर-झर करके अशुधारा पवािहत हो रही थी। मा ने शतमनयु को अपनी
छात ी स े इस प क ा र लगा िल या ज ै स े उस े कभी नही छोड े ग ी ।
िनयत समय पर यज्ञ-समारोह यथािविध शुरू हुआ। शतमन्यु को अनेक तीथोर्ं के पिवतर् जल से
स्नान कराकर नये वस्तर्ाभूषण पहनाये गये। शरीर पर सुगिन्धत चंदन का लेप लगाया गया। उसे
पुष्पमालाओं से अलंकृत िकया गया।
इसके बाद बालक शतमनयु यज मणडप मे आया। यज सतमभ के समीप खडा होकर वह देवराज इनद का समरण करने लगा। यज
मण्डप एकदम शांत था। बालक शतमन्यु िसर झुकाये हुए अपने-आपकाबिलदानदेने को तैयारखड़ाथा। एकितर्त
जनसमूह मौन होकर उधर एकटक देख रहा था। उसी क्षण शून्य में िविचतर् बाजे बज उठे। शतमन्यु पर
पािरजात पुरूषों की दृिष्ट होने लगी। अचानक मेघगजर्ना के साथ वजर्धारी इन्दर् पर्कट हो गये। सब लोग
आँखेफाड़
ं -फाडकर आशयर के साथ इस दृशय को देख रहे थे।
शतमनयु के मसतक पर अतयनत सनेह से हाथ फेरते हएु सुरपित बोलेः "वत्स ! तेरी देशभिक्त और जनकल्याण की
भावना से मैं संतुष्ट हूँ। िजस देश के बालक अपने देश की रक्षा के िलए अपने पर्ाणों को न्योछावर
करने के िलए हमेशा उद्यत रहते हैं, उस देश का कभी पतन नहीं हो सकता। तेरे त्यागभाव से संतुष्ट
होने के कारण तेरी बिल के िबना ही मैं यज्ञ फल पर्दान कर दूँगा।" इतना कहकर इनद अनतधयान हो गये।
दूसरे ही िदन इतनी घनघोर वषार् हुई िक धरती पर सवर्तर् जल-ही-जल िदखने लगा। पिरणामस्वरूप
पूरे देश में अन्न जल, फल-फूल का पाचूयर हो गया। देश के िलए पाण अिपरत करने वाले शतमनयु के तयाग, तप एवं
जनकल्याण की भावना ने सवर्तर् खुश ियाँही खुश ियाँिबखेर दीं। सबके हृदय में आनंद के िहलोरे
उठने लगे।
धनय है भारतभूिम ! धनय है भारत के शतमनयु जैसे लाल ! जो देश की रक्षा के िलए अपने पर्ाणों का उत्सगर्
करने को भी तैयार रहते हैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 34
बबबबबब बबब बबबब बबबबब बबबब बबबब ?
सत्संग-पर्संग पर एक िजज्ञासु ने पूज्य बापू से पर्श् निकयाः "स्वामी जी ! कृपा करके बतायें िक
हमें अभ्यास में रूिच का क्यों नहीं होती ?"
पूज्य स्वामी जीः "बाबा ! अभ्यास में तब मजा आयेगा जब उसकी जरूरत महसूस करोगे।
एक बार एक िसयार (गीदड़) को खूब प्यास लगी। प्यास से व्याकुल होकर दौड़ता-दौड़ता वह एक नदी के
िकनारे गया और जल्दी-जल्दी पानी पीने लगा। िसयार की पानी पीने की इतनी तड़प देखकर नदी में
रहने वाली एक मछली ने उससे पूछाः "िसयार मामा ! तुम्हें पानी से इतना सारा मजा क्यों आता है ?
मुझे तो पानी में इतना मजा नहीं आता।"
िसयार ने जवाब िदयाः "मुझे पानी से इतना मजा क्यों आता है यह तुझे जानना है ?" मछली ने
कहाः "हाँ मामा !"
िसयार ने तुरन्त ही मछली को गले से पकड़कर तपते हुए बालू पर फेंक िदया। मछली बेचारी
पानी के िबना बहुत छटपटाने लगी, खूब परेशान हो गई और मृत्यु के एकदम िनकट आ गयी। तब िसयार ने
उसे पुनः पानी में डाल िदया। िफर मछली से पूछाः "क्यों ? अब तुझे पानी में मजा आने के कारण समझ
में आया ?"
मछलीः "हाँ, अब मुझे पता चला िक पानी ही मेरा जीवन है। इसके िसवाय मेरा जीना असम्भव
है।"
इस पकार मछली की तरह जब तुम भी अभयास की जररत महसूस करोगे तब तुम अभयास के िबना रह नही सकोगे। रात-िदन
उसी में लगे रहोगे।
एक बार गुर नानकदेव से उनकी माता ने पूछाः
"बेटा ! रात िदन क्या बोलता रहता है ?"
नानकजी ने कहाः "माता जी ! बबबब बबबबब । बबबबब बबबबरात िदन जब मैं अकाल पुरूष के
नाम का स्मरण करता हूँ तभी तो जीिवत रह सकता हूँ। यिद नहीं जपूँ तो मेरा जीना मुशि ्कल है। यह सब
पर्भुनाम स्मरण की कृपा है।"
इस पकार सतपुरष अपने साधनाकाल मे पभुनाम समरण के अभयास की आवशयकता का अनुभव करके उसके रंग मे रँगे रहते है।"
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बब बबबबबब बब बबब बबब बब बबबबबबब बबबबबब बब
बबबब ?
चाकलेटका नामसुनतेहीबच्चोंमेग ं दु गुदीन हो, ऐसाहोहीनहीं
सकता। बच्चको
ों खुश करने
का एकपर्चिलत साधनहै
चाकलेट।बच्चोंमेह ं ीनहीं, वरन् िकशोरों तथा युवा वगर् में भी चाकलेट ने अपना िवशेष स्थान बना रखा है।
िपछले कुछ समय से टॉिफयों तथा चाकलेटों का िनमार्ण करने वाली अनेक कंपिनयों द्वारा अपने
उत्पादों में आपित्तजनक अखाद्य पदाथर् िमलाये जाने की खबरें सामने आ रही हैं। कई कंपिनयों
के उत्पादों में तो हािनकर रसायनों के साथ-साथ गायों की चबीर् िमलाने तक की बात का रहस्योदघाटन
हुआ है।
गुजरातकेसमाचारपतर्'गुजरातसमाचार' में पर्काश ितएक समाचार के अनुसार, 'नेस्ले यू.के. िलिमटेड'
द्वारा िनिमर्त 'िकटकेट' नामक चाकलेट में कोमल बछड़ों के 'रेनेट' (मांस) का उपयोग िकया जाता है।
यह बात िकसी से िछपी नहीं है िक 'िकटकेट' बच्चों में खूब लोकिपर्य है। अिधकतर शाकाहारी पिरवारों
में भी इसे खाया जाता है। नेस्ले यू.के.िलिमटेड की नयूिटशन आिफसर शीमित वाल एनडसरन ने अपने एक पत मे बताया
िकः 'िकटकेट के िनमार्ण में कोमल बछड़ों के रेनेट का उपयोग िकया जाता है। फलतः िकटकेट
शाकाहािरयो के खाने योगय नही है।" इस पत को अनतराषटीय पितका 'यंग जैन्स' में पर्काश ितिकया गया था। सावधान
रहो कसीकंपिनयों के कुचकर्ों से ! टेिलिवजन पर अपने उतपादो को शुद दूध पीने वाले अनेक कोमल बछडो के मास की पचुर
मातर्ा अवश् यहोती है। हमारे धन को अपने देशों में ले जाने वाली ऐसी अनेक िवदेशी कंपिनयाँ
हमारे िसद्धान्तों तथा परम्पराओं को तोड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। व्यापार तथा
उदारीकरण की आड़ में भारतवािसयों की भावनाओं के साथ िखलवाड़ हो रहा है।
सन् 1857 में अंगर्ेजों ने कारतूसों में गायों की चबीर् का पर्योग करके सनातन संस्कृित को
खिण्डत करने की सािजश की थी परन्तु मंगल पाण्डेय जैसे वीरों ने अपनी जान पर खेलकर उनकी इस
चालको असफलकरिदया। अभीिफरयहनेस्ले कम्पनीचालेचलरहीहै।अभीमंगलपाण्ड
ं ेयजैसे
वीरोंकी जरूरत है। ऐसेवीरोंक आगे
आनाचािहए। देशको खण्ड-खण्ड करने के मिलन मुरादेवालों और हमारी संस्कृित पर कुठाराघात करने वालों
को सबक िसखाना चािहए। लेखकों, पतर्कारों, पर्चारकों को उनका डटकर िवरोध करना चािहए। देव
संस्कृित, भारतीय समाज की सेवा में सज्जनों को साहसी बनना चािहए। इस ओर सरकार का भी ध्यान
िखंचवाना चािहए।
ऐसेहािनकारक
उत्पादों
केउपभोगको बंदकरकेहीहमअपनीसंस्कृिक
त ी रक्षकर
ा सकते
हैं।
इसिलएहमारीसंस्कृिक
त ो तोड़ने
वाली ऐसी कम्पिनयों के उत्पादों के बिहष्कार का संकल्प लेकर आज और अभी से भारतीय संस्कृित की
रक्षा में हम सबको कंधे से कंधा िमलाकर आगे आना चािहए।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबब बबबबबबबबबबबबब बब बबब बबबबब बब
बबबबबब
सामान्यतः यह देखा जाता है िक जैसे-जैसे परीक्षाएँ नजदीक आने लगती हैं वैसे-वैसे
ही िवद्याथीर् िचिन्तव व तनावगर्स्त हो जाते हैं लेिकन िवद्यािथर्यों को कभी भी िचिन्तन नहीं होना
चािहए। अपनीमेहनतव भगवत्कृपापरपूणर्िवशव् ासरखकरपर्सन्निचत्तसेपरीक्षाकी तैयारीकरनीचािहए। सफलताअवशय ् िमलेगीऐसा दृढ़
िवश् वासरखना चािहए। नीचे िलखे गये िबन्दुओं को अवश् यध्यान में रखें-
िवद्याथीर् जीवन में िवद्यािथर्यों को अपने अध्ययन के साथ-साथ िनयिमत जप-धयान का अभयास
करना चािहए तथा परीक्षाओं में तो दृढ़ आत्मिवश् वासके साथ सतकर्ता से करना चािहए।
परीक्षाओं के िदनों में पर्सन्निचत्त होकर पढ़ें, न िक िचन्ता करते-करते।
5-7 तुलसी के पत्ते खाकर एक िगलास पानी रोज सुबह खाली पेट पीने से यादशिक्त बढ़ती है।
सूयर्देव को मंतर्सिहत अघ्यर् देने से यादशिक्त बढ़ती है।
पेपर शुरू करने से पूवर् िवद्याथीर् को अपने इष्टदेव, भगवान या गुरू का स्मरण अवश् यकर लेना
चािहए।
सवर्पर्थम पूरे पर्श् नपतर्को एकागर्िचत्त होकर पढ़ना चािहए।
िफर सबसे पहले सरल पशो के उतर देना चािहए।
पर्श् नोत्तरसुंदर व स्पष्ट अक्षरों में देना चािहए।
िकसी पर्श् नका उत्तर न आये तो घबराना नहीं चािहए, शात िचत से पभु से, गुरद ू ेवसेपर्ाथर्नाकरेतं ोलाभहोगा।
देर रात तक न पढ़ें। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके ध्यान करने के पश् चात्याद करेंगे तो
जल्दी याद होगा।
सारस्वत्य मंतर् का िनयिमत जाप करने से यादशिक्त में चमत्कािरक लाभ होता है।
भर्ामरी पर्ाणायाम करना चािहए। भर्ामरी पर्ाणायाम एवं सारस्वत्य मंतर् के िलए िवद्यािथर्यों को
िशिवर भरना चािहए।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 35
बबबबबबब बबब बबबबब बब....
जहाँ दृढ़ िवश् वासएवं शर्द्धा होती है, वहाँ पर्भु स्वयं साकार रूप धारण करके भोजन स्वीकार
करें, इसमे कया आशयर !
गणपितकेभक्तमोरयाबापा, िवट्ठल के भक्त तुकारामजी एवं शर्ीरघुवीर के भक्त शर्ी समथर्-तीनों आपस
में िमतर् संत थे। िकसी भक्त ने हक की कमाई करके, चालीसिदनकेिलएअखंडकीतर्नका आयोजनकरवाया।
पूणार्हूित के समय दो हजार भक्त कीतर्न कर रहे थे। उन भक्तों के िलए बड़ी साित्त्वकता एवं पिवतर्ता
से भोजन बना था।
िकसी ने कहाः "शी समथरजी को शी िसयाराम साकार रप मे दशरन देते है। तुकाराम जी महाराज की भिकत से पसन होकर
िवट्ठल साकार रूप पर्गट कर लेते हैं। बबबबबब बबबब । बबब बबबबबबब इिनदयगण के जो सवामी है,
सिच्चदानंद आत्मेदव हैं। वे मोरया बापा की दृढ़ उपासना के बल से िनगुर्ण-िनराकार होकर भी सगुण-
साकार गणपित के रूप में पर्गट हो जाते हैं। ये तीनो महान संत हमारी सभा में िवराजमान हैं। क्यों
न हम उन्हें हृदयपूवर्क पर्ाथर्ना करें िक वे अपने-अपने इष्टदेव का आवाहन करके, उन्हें भोजन-
पर्साद करवायें, बाद मे हम सब पर्साद गर्हण करें ?"
सबने सहमित पर्दान कर दी। तब उन्होंने शर्ी समथर् से पर्ाथर्ना की। शर्ी समथर् ने मुस्कुराते
हुए तुकोबा की तरफ नजर फेंकी और कहाः "यिद तुकोबा िवट्ठल को बुलायें तो मैं िसयाराम का आवाहन
करने का पर्यत्न करूँगा।"
तुकारामजी मंद-मंद मुस्कुराते एवं िवनमर्ता का पिरचय देते हुए बोलेः "अगर समथर् की आज्ञा
है तो मैं जरूर िवट्ठल को आमंितर्त करूँगा लेिकन मैं शर्ी समथर् से यह पर्ाथर्ना करता हूँ िक वे शर्ी
िसयाराम के दर्शन करवाने की कृपा करें। "
िफर दोनो संतो ने मीठी नजर डाली मोरया बापा पर और बोलेः
"बापा ! अगर िवघ्निवनाशक शर्ी गजानन नहीं आयेंगे तो हमारा काम कैसे चलेगा ? आपकीउपासना
से शर्ी गजानन संतुष्ट हैं अतः आप उनका आवाहन किरयेगा।"
मोरया बापा भी मुस्करा पड़े।
उदयपुर के पास नाथद्वारा है। वहाँ वल्लभाचायर् के दृढ़ संकल्प और पर्ेम के बल से भगवान
शीनाथजी ने उनके हाथ से दूध का कटोरा लेकर िपया था। शी रामकृषण परमहंस के हाथो से मा काली भोजन का सवीकार कर लेती थी।
धना जाट के िलए भगवान ने िसलबटे से पगट होकर उसका रखा-सूखा भोजन भी बड़े पर्ेम से स्वीकार िलया था।
शी समथर रामदास ने आसन लगाये। तुकाराम जी एवं मोरया बापा ने सममित दी और तीनो संत आभयातर-बाह्य शुिच करके
अपने-अपने इष्टदेव का आवाहन करने लगे।
शीरामकृषण परमहंस कहते है- "जब तुम्हारा हृदय और शब्द एक होते हैं तो पर्ाथर्ना फिलत होती है।"
तीनों अपने अपने इष्टदेव का आवाहन कर ही रहे थे िक इतने में देखते ही देखते एक
पर्काशपुंज धरती की ओर आने लगा। उस पर्काशपुंज में िसयाराम की छिब िदखने लगी और वे आसन पर
िवराजमान हुए। िफर िवट्ठल भी पधारे तथा गणपित दादा भी पधारे एवं अपने-अपने आसन पर िवराजमान
हुए।
दो हजार भक्तों ने अपने चमर्चक्षुओं से उन साकार िवगर्हों के दर्शन िकये एवं उन्हें पर्साद
पाते देखा। उनके पर्साद पाने के बाद ही सब लोगों ने पर्साद िलया।
इस घटना को महाराषट के लाखो लोग जानते-मानते हैं। कैसी िदव्य मिहमा है संतों महापुरूषों की ! िकतना
बल है दृढ़ िवश् वासमें !
अनुकर्म
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बबबबब बब बब बबबबबबबबबबब बबबबबब बब बबबबब
गणेषचतुथीर् ..... एक पावन पवर.... िवघ्नहतार् पर्भु गणेष के पूजन-आराधनका पवर् ...
गणोंका जोस्वामीहै– उसेगणपितकहतेहैं।
कथा आती है िक माँ पावर्ती ने अपने योगबल से बालक पर्गट िकया और उसे
आज्ञदा ीिकः "मेरी आज्ञा के िबना कोई भी भीतर पर्वेश न करे।"
इतने मे िशवजी आये, तब बालक ने पर्वेश के िलए मना िकया। िवजी श औ र वह बालक
दोनों िभड़ पड़े और िवजी श न े ितर्शू लसे बालक का िरोच् श कछेद र िदया। बाद में
माँ पावर्ती से सारी हकीकत जानकर उन्होंने अपने गणों से कहाः "जाओ, िजसका भी
मस्तक िमले ले आओ।"
गणलेआयेहाथीका मस्तकऔर िवजी श न े उसेबालककेिसरपरस्थािपतकरिदयाऔरउसेजीिवत
कर िदया – वही बालक भगवान 'गणपित' कहलाये।
यहाँ पर एक शंका हो सकती है िक बालक के धड़ पर हाथी का मस्तक कैसे िस्थत हुआ होगा ?
इसका समाधान यह है िक देवताओं की आकृित भले मानुषी हो लेिकन उनकी काया मानुषी काया से िवशाल होती है।
अभी रूस के कुछ वैज्ञािनकों ने पर्योग िकया िक एक कुत्ते के िसर को काटकर, दो कुत्तों का िसर
लगा िदया। वह दोनो मुखो से खाता है और जीिवत है। रस के वैजािनक आज ऑपरेशन दारा कुते के ऊपर दूसरे कुते का िसर लगाकर
पर्योग कर सकते हैं। इससे भी लाखों-करोड़ों वषर् पहले िवजी श क े संकल्प द्वारा बालक के धड़ पर
गजका मस्तकिस्थतहोजाय– इसमेश ंंकानहींकरनीचािहए। आजकािवज्ञानशल्यिकर्याद्वाराकुत्ते केएकिसरकी जगहदोिसर
लगाने मे सफल हो सकता है। िशवजी के संकलप, योग व सामथ्यर् समाज को आश् चयर्, कूतुहल और िजज्ञासा जगाकर
सद्पर्ेरणा देना चाहते हैं। इस समय भी कुछ ऐसे महापुरूष हैं जो चाँदी की अंगूठी हाथ में लेकर
स्वणर्मयी बना देते हैं। लोहे के कड़े को अपने यौिगक सामथ्यर् से स्वणर् बना िदया। उनके पर्ित
ईष्यार्
रखनेवालेभलेउन्हेजादूगरकह
ं दें।स्वामीिवशु द्धानन्दपरमहंसजैसे महापुरष
ू केइससेभीअदभुतयौिगकपर्योगपं. गोपीनाथ
किवराज ने देखे।
छोटी मित -गितकेलोगशर्ीगणपितजीकेिलएकुछ भीकह देऔ ं रअपनास्वाथर्
िसद्धकरनेकेिलएअशर्द्धापैदाकर देप
ं रन्तु
सच्चे, समझदार, अष्टिसिद्ध व नविनिध के स्वामी, इिनदयिजत, व्यासजी की पर्ाथर्ना से पर्सन्न होकर
18000 शलोको वाली शीमद् भागवत के लेखक लोक मागलय के मूतर सवरप शी गणपित जी के िवषय मे िवषणु भगवान ने बोला हैः
ब बबबबबबबबबब बबब बबबबबब ब बबबबबबबबबब बबब.....
'पावर्ती जी से बढ़कर कोई साध्वी नहीं और गणेश जी से बढ़कर कोई संयमी नहीं।'
(बर्ह्मवैवतर् गण. स्वं. 44.75)
भगवान ने तो उपदेश के द्वारा हमारा कल्याण करते हैं जबिक गणपित भगवान तो अपने
शीिवगह से भी हमे पेरणा देते है और हमारा कलयाण करते है।
हाथी की सूँड लम्बी होती है – िजसका तात्पयर् है िक समाज में जो बड़ा हो या कुटुम्बािद में जो
बड़ा हो उसे दूर की गँध आनी चािहए।
हाथी की आँखें छोटी-छोटी होती ह ै िक न तु सु ई ज ै स ी बारीक चीज भी उठा ल े त ा ह ै , वैसे ही
समाज आिद के आगेवान की, मुिखया की सूक्ष्म दृिष्ट होनी चािहए।
हाथी के कान सूपे जैसे होते हैं जो इस बात की ओर इंिगत करते हैं िकः "समाज के 'गणपित'
अगुआ के कान भी सूपे की तरह होनी चािहए जो बातें तो भले कई सुने िकन्तु उसमें से सार-सार उसी
तरह गर्हण कर ले, िजस तरह सूपे से धान-धान बच जाती है और कचरा-कचरा उड़ जाता है।"
गणपितजीकेदोदाँतहै–ं एकबड़ाऔरएकछोटा। बड़ादाँतदृढ़शर्द्धाका औरछोटादाँतिववेकका पर्तीकहै।अगरमनुष्यके
पास दृढ़ शर्द्धा हो और िववेक की थोड़ी कमी हो, तब भी शर्द्धा के बल से वह तर जाता है।
गणपितकेहाथमेम ं ोदकऔरदण्डहैअथार्त्जोसाधन-भजन करके उन्नत होते हैं, उन्हें वे मधुर पर्साद
देते हैं और जो वकर्दृिष्ट रखते हैं, उन्हें वकर्दृिष्ट िदखाकर दण्ड से उनका अनुशासन करके, उन्हें
आगेबढ़ने की पर्ेरणादेते
हैं।
गणपितजीका पेटबड़ाहै– वेलम्बोदरहैं।उनका बड़ापेटयहपर्ेरणादेताहैिकः 'जो कुटुम्ब-समाज का बड़ा है उसका
पेट बड़ा होना चािहए तािक इस-उसकी बात सुन तो ले िकन्तु जहाँ-तहाँ उसे कहे नहीं। अपने पेट में
ही उसे समा ले।'
गणेशजीकेपैरछोटेहैज ं ोइस बातकी ओरसंकेतकरतेहैिंक धीरासो गंभीरा, उतावला सो बावला। कोई भी कायर्
उतावलेपन से नहीं, बिल्क सोच-िवचारकर करें, तािक िवफल न हों।
गणपितजीका वाहनहै– चूहा। इतनेबड़ेगणपितऔरवाहनचूहा! हाँ, माता पावर्ती का िसंह िजस िकसी से हार
नहीं सकता, िशवजी का बैल नंदी भी िजस-िकसी के घर नहीं जा सकता, लेिकन चूहा तो हर जगह घुसकर भेद ला सकता है इस
तरह क्षद ु र्-से-क्षुदर् पर्ाणी चूहे तक को भगवान गणपित ने सेवा सौंपी है। छोटे-से-छोट े व यिकत स े
भी बड़े-बड़े काम हो सकते हैं क्योंिक छोटा व्यिक्त कहीं भी जाकर वहाँ की गँध ले आ सकता है।
इस पकार गणपित जी का शीिवगह समाज के, कुटुम्ब के गणपित अथार्त् मुिखया के िलए पर्ेरणा देता है िकः
'जो भी कुटुम्ब का, समाज का अगुआ है, नेता है उसे गणपित की तरह लम्बोदर बनना चािहए, उसकी दृिष्ट
सूक्ष्म होनी चािहए, कान िवशाल होने चािहए और गणपित की नाईं वह अपनी इिन्दर्यों पर (गणोंपर) अनुशासन
कर सके।'
कोई भी शुभ कमर् हो – चाहे िववाह हो या गृह-पर्वेश, चाहेिवद्यारंभहो, चाहेभूिमपूजन, चाहे िव श की पूजाहोचाहे
नारायण की पूजा – िकन्तु सबसे पहले गणेशजी का पूजन जरूरी है।
गणेशचतुथीर्केिदनभगवानशर्ीकृष्णनेयुिधिष्ठरसेभगवानगणपितका वर्त-उपवास करवाया था तािक युद्ध में
सफलता िमल सके।
गणेशचतुथीर्केिदनभगवानगणपितका पूजनतोिवशेषफलदायीहै , िकन्तु उस िदन चाँद का दर्शन कलंक
लगानेवाला होता है, क्यों ?
पुराणों में कथा आती है िकः
एक बार गणपितत कही जा रहे थे तो उनके लमबोदर को देखकर चाद के अिधषाता चंददेव हँस पडे। उनहे हँसते देखकर गणेशजी
ने शर्ाप िदया िकः "िदखते तो सुन्दर हो, िकन्तु आज के िदन तुम मेरे कलंक लगाते हो। अतः आज के िदन
जो तुम्हारा दर्शन करेगा उसे कलंक लग जायेगा। '
यह सच्चाई आज भी पर्त्यक्ष िदखती है। िवश् वासन हो गणेश-चतुथीर्केचंदर्माका दर्शन करकेदेखलेना।
भगवान शर्ीकृष्ण तक को गणेश-चतुथीर्केिदनचंदर्माकेदर्शन करनेपर 'स्यमंतकमिण की चोरी' का कलंक सहना पड़ा
था। बलरामजीको भी शर्ीकृष्णपरसंदेहहोगयाथा। सवेर्व शर
,् लोकेशर शीकृषण पर भी जब चौथ के चाद-दर्शन करने पर कलंक
लग सकता है तो साधारण मानव की तो बात ही कया ?
िकन्तु यिद भूल से भी चतुथीर् का चंदर्मा िदख जाये तो शर्ीमद् भागवत में 'शीकृषण की सयमंतकमिण चोरी
के कलंकवाली जो कथा आयी है उसका आदरपूवर्क शर्वण अथवा पठन करने से एवं तृितया तथा पंचमी का
चंदर्मादेखनेसेउस कलंकका पर्भावदूर होताहै।जहाँतक होसकेभादर्पदकेशक ु ्लपक्षकी चतुथीर्िदनांक22.8.2009 को चंदर्मा
न िदखे, इसकी सावधानी रखे।
अनुकर्म
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सतर् 36
बबबबबबब बबबब बबबबब ?
जमशेदपुर (िबहार) में आयोिजत सत्संग समारोह में पूज्य बापू ने जन्मिदवस मनाने की
पाश् चात्यपद्धित को गलत बताया और उसके स्थान पर भारतीय संस्कृित के अनुसार जन्मिदवस मनाने की
िविध को िवस्तारपूवर्क समझाते हुए कहाः "लोग 'केक' बनवाते हैं, उस पर मोमबित्तयाँ जलाते हैं और
िफर फूँक मारकर उनहे बुझाते है।
जो लोग िवज्ञान पढ़े हैं वे लोग जानते होंगे िक पानी का प्याला एक बार होठों पर लगाने से
उसमें लाखों कीटाणु पाये गये। जब िसफर् एक बार मुँह से लगाने पर प्याले में लाखों की संख्या में
कीटाणु जा सकते हैं तब मोमबित्तयाँ बुझाने के िलए बार-बार फूँक मारने से उस 'केक' में िकतने
कीटाणु चले जाते होंगे।
दूसरी बात यह िक आप दीप बुझाकर पर्काश से अंधकार की ओर जाने की भूल करते हैं। मनुष्यता
से पशु ताकी ओर जा रहे हैं। फूँकना, थूकनाऔरअंधेराकरकेपाश्चात्यभोगवािदयोंका अनुसरणकरतेहुएजन्मिदवसमनाना
भारतवािसयों के िलए शमर् की बात है।
जन्मिदन मनाना हो तो खूब पर्ेम से मनाओ परन्तु ऋिष-मुिनयों की भाँित आिधभौितक का
आध्याित्मकीकरणकरो।
यह शरीर पाँच भूतों से बना हुआ है – पृथव ् ी, जल, तेज, वायु और आकाश। इन पाँचों भूतों के
अलग-अलग रंग हैं – पृथ्वी का पीला, जल का सफेद, अिग्न का लाल, वायु का हरा और आकाश का नीला। इन
पाँचों रंगों से चावलों को रँग लो और उनसे एक 'स्विस्तक' बना लो। िजसका जन्मिदवस मना रहे हो वह
िजतने वषर् का हो चुका है उतने दीये जलाओ। मानो, आपके30 वषर् पूरे हो गये और 31 वाँ पर्ारम्भ हो
रहा है तो आपके स्नेही 30 दीये जलाकर उस स्विस्तक के ऊपर रख दें। िफर स्विस्तक के बीचों बीच
जहाँ उसकी चारों भुजाएँ िमलती हैं वहाँ पर अन्य दीयों से बड़े आकारवाला 31 वाँ दीया रखो। उस
बड़े दीयेको उस व्यिक्त के द्वारा जलवाओ जो आपके कुटुम्ब में शर्ेष्ठ हो, ऊँची समझवाला तथा
भिक्तभाववाला हो।
इसके बाद िजसका जनमिदन मना रहे हो उसके िलए सब िमलकर पाथरना करोः "पृथ्वी आपके िलए सुखद हो..... जल
आपकेिलएअनुकल ू हो.... तेज आपके िलए अनुकूल हो.....वायु आपके िलये सुखद हो.... आकाश आपकेिलएसुखद हो....
सभी िमतर् व स्नेही सम्बन्धी आपके िलए सुखद हों....यहाँ तक िक सभी िदशाएँ व देवी-देवता आपके िलए
सुखद व अनुकूल हों (पुतर् का जन्मिदवस है तो माता-िपता व स्नेही अनुकूल हों, पुतर्ई का जन्म िदवस है तो
िपता, भाई, बन्धु व स्नेही अनुकूल हों, पित का जन्मिदवस है तो पत्नी आपके अनुकूल हो, पत्नी का
जन्मिदवस है तो पित व पिरवार आपके अनुकूल हो।) सभी िमतर्ों का िमतर्, स्नेिहयों का स्नेही, सभी देवो
का देव परमात्मदेव, आपकेअन्तरमेब ंैठे अन्तयार्मीदेवआपकोिवशेष -िवशेष सदबुिद्ध दे, आपकेभीतरिवशेष-िवशेष
पर्काश िखले। 30 वषोर्ं में जो पर्कास व सुख िमला उससे शुरू होने वाला ये 31 वाँ वषोर्ं में जो पर्काश
व सुख िमला उससे शुरू होने वाला ये 31 वाँ वषर् आपके िलए िवशेष पर्कार से सुखमय, ज्ञानमय हो। पर्भु
की करूणा-वरूणा का दीप आपके िदल में जगमगाता रहे। सुख-शाित व आनंद बढता रहे, िनखरता रहे, बहता रहे।
आपकेदीघर् जीवनका दीयाजगमगातारहे।हमसभीस्नेहीआपकेजन्मिदवसपरमधुर-मधुर बधाइयाँ देते हैं और पर्भु से
पर्ाथर्ना करते हैं िक आप दीघार्यु हों, दृढ़ िनश् चयीहों, शुभकता हो, संयमी भोक्ता हों, परमात्मा के
प्यारे हों, सबके िदल के दुलारे हों आिद-आिदबधाईहो, बधाई हो।"
जन्मिदवस पर भगवन्नाम कीतर्न, आरती, 'गीता' व 'शीरामचिरतमानस' का पाठ आिद आयोिजत कर सकते
हैं। भगवान को भोग लगाकर पर्साद बाँटना बड़ा लाभकारी है। फूँकने, थूकनेव 'केक' काटने से बहुत
बिढ़या रीित है भारत की उक्त पद्धित। क्यों ? त्यागोगे न फूँकना, थूकनाऔरमनाओगेन साित्त्वकशभ ु कामनासिहत
जन्मिदवस। कृपया आप भी इसे करें व औरों को भी पर्ेिरत करें।
अनुकर्म
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बबबबबबबब बबबबब... बबबबबब बबब
"यिद हृदयरोग, कैन्सर, मधुमेह, रक्तचाप, अस्थमा तथा नपुंसकता जैसी बीमािरयों से बचना हो
अथवा उनकी असंभावना करनी हो तो आज से ही मांसाहार पूणर्रूप से बंद करके पूणर् शाकाहारी बन
जाइये।"
यह चेतावनी अमेिरका के 'िफिजिशयन कमेटी फॉर िरसपॉिनसबल मेिडसन' के चेयरमैन डॉ. नील बनार्डर्
ने अमदावाद के 'एन. एच. एल. म्युिनिसप मेिडकल कॉलेज' में दी। जो भारतीय मांसाहार करते हैं उनके
पर्ित आश् चयर्व्यक्त करते हुए डॉ. बनार्डर् ने कहाः "संसार के अत्यंत ठंडे देशों की जनता मौसम के
अनुकूल होने की दृिष्ट से मांसाहार का सेवन करती है परन्तु वह जनता भी अब जागृत होकर सम्पूणर् रूप
से शाकाहारी बन रही है। ऐसे में भारत जैसे गमर् देश की जनता मांसाहार िकसिलए करती है, यह
समझ में नहीं आता।
मांसाहार से शरीर में चबीर् की परतें जम जाती हैं और धीरे-धीरे रकत की गाठे बनने लगती है।
रक्तसंचरण की िकर्या पर इसका िवपरीत पर्भाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप अनेक बीमािरयाँ उत्पन्न
होती हैं। इसके अलावा पर्ािणयों के मांस में िवद्यमान हािनकारक रासायिनक पदाथर् भी कैन्सर की
संभावना बढ़ाते हैं। पर्ािणयों के मांस में कौन-कौन से जहरीले पदाथर् होते हैं, यह एक आम
आदमीनहींजानता। पूणर्शाकाहारीएवंसंतुिलतआहारलेनेवालव े्यिक्तकी तुलनामेमं ांसाहारीव्यिक्तमेह
ंद
ृ यरोगएवंकैन्सरकी संभावना
कहीं अिधक बढ़ जाती है, यह पर्योगों द्वारा िसद्ध हो चुका है।
हृदय रोग का िकारश म ांसाहारी मरीज भी यिद शाकाहारी बन जाय तो वह अपने हृदय को पुनः तन्दुरूस्त
बना सकता है। पर्ािणयों की चबीर् और कोलस्टरोल मानव शरीर के िलए अत्यंत हािनकारक है। पर्ािणयों
का मांस वास्तव में शरीर को धीरे-धीरे किबसतान मे बदल देता है। यिद िसतया मासाहार अिधक करती है तो उनमे सतन कैनसर
की संभावना बढ़ जाती है। मांसाहािरयों की शाकाहािरयों की अपेक्षा 'कोलोना कैन्सर' अिधक होता है।
अण्डे भी इस िवषय में इतने ही हािनकारक हैं। पर्ोस्टेट कैन्सर में मांसाहार एवं अण्डे
कारणरूप सािबत हो चुके हैं। अिधक चबीर्युक्त पदाथर् शरीर में 'एसटोजन' की मातर्ा बढ़ाते हैं। इससे
यौन हामोर्न्स में गड़बड़ी होती है तथा स्तन एवं गभार्शय के कैन्सर और नपुंसकता की संभावनाएँ
बढ़ जाती हैं।
शाकाहारी वयिकतयो के रकत मे कैनसर कोषो से लडने वाले पाकृितक कोषो एवं शेत रकतकणो का उतम संयोजन होता है।
यिद पूणर् मांसाहारी मनुष्य भी मातर् तीन सप्ताह तक के िलए शाकाहारी बन जाय तो उसका
कोलेस्टरोल, रक्तचाप, हायपरटेंशन आिद काफी मातर्ा में िनयंितर्त हो सकता है।
मांसाहारी व्यिक्त के शरीर में कैश िल् ,यम ऑक्सेलेट एवं युिरक अम्ल अिधक मातर्ा में पैदा
होते हैं िजससे पथरी होने का खतरा बना रहता है। शरीर में कैश िल् का यमहोना जरूरी है परन्तु
उसके िलए मांसाहार की आवश् यकतानहीं है। िवटािमन बी-12 भी कंदमूल से बहुत अिधक मातर्ा में िमल
जाता है। इस संदभर् में हजारों वषर् पहले भारत का शुद्ध-साित्त्वक आहार आदर्शम ाना जा सकता है। "
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबबबबबबब बबबब बब बबबबबबबबबब
बबबबब
आधुिनकभाषामेिजस
ं ेकोलेस्टरोलकहतेहै , ंउसे िनयंितर्त करने का सुगम उपाय यह है िक दालचीनी (तज)
का पाउडर बना लें। एक से तीन गर्ाम तक पाउडर पानी में उबालें। उबला हुआ पानी कुछ ठंडा होने पर
उसमें शहद िमलाकर पीने से कोलेस्टरोल जादुई ढंग से िनयंितर्त होने लगता है। एक माह तक यह
पर्योग करें। तज का पाउडर गमर् पर्कृित का होता है। इसका ज्यादा पर्योग करने से शरीर में अिधक
गमीर्
उत्पन्नहोजातीहै
, इस बात का धयान रखना चािहए। सिदरयो मे यह पयोग बहुत ही लाभदायक है। अतः ठणडी मे इसकी माता बढा
सकते हैं िकन्तु गमीर् में कम कर देना चािहए।
तज के पाउडर को दूध में लेना हो तो दूध उबालने के पहले उसमें उसे डाल लें। दूध के साथ
शहद िवरद आहार है, अतः हािनकारक है। डायिबटीजवाले उसमें िमशर्ी िमला सकते हैं अथवा उसे फीका भी
पी सकते हैं। इससे धातु भी पुष्ट होती है तथा वीयर्क्षय को रोकने में मदद िमलती है।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबबब बबबबबबबबब बब बबबबबब
मांसाहार से होने वाले घातक पिरणामों के िवषय में सभी धमर्गर्न्थों में बताया गया है
परन्तु आज के समाज का अिधकांश पर्त्येक पहलू को िवज्ञान की दृिष्ट से देखना पसन्द करता है। देखा
जाय तो पर्ायः सभी धमर् गर्न्थों के पर्ेरणासर्ोत ऐसे महापुरष
ू रहे हैं िजन्होंने पर्कृित के रहस्यों
को जानने में सफलता पर्ाप्त की थी तथा पर्कृित से भी आगे की यातर्ा की थी। फलतः उनके पर्कृित से
भी आगे के रहस्य को जानने वाला आज का िवज्ञान भला कैसे झुठला सकता है, अथार्त् िवज्ञान ने भी
अपनी भाषा में शास्तर्ों की उसी बात को दोहराया है।
मांसाहार पर हुए अनेक परीक्षणों के आधार पर वैज्ञािनकों ने कहा है िक मांसाहार का
अिभपर्ाय है गम्भीर बीमािरयों को बुलावा देना। मांसाहार से कैन्सर, हृदय रोग, चमर्रोग, कुष्ठरोग, पथरी
एवं गुदों से समबिनधत बीमािरया िबना बुलाये ही चली आती है।
व्यापािरक लाभ की दृिष्ट से पशु ओंका वजन बढ़ाने के िलए उन्हें अनेक रासायिनक िमशर्ण
िखलाये जाते हैं। इन्ही िमशर्णों में से एक का नाम है डेस(डायिथिस्टल-बेस्टर्ाल)। इस िमशर्ण को
खाने वाले पशु के मांस के सेवन से गभर्वती मिहला के आनेवाली संतान को कैन्सर हो सकता है।
यिद कोई पुरूष इस पर्कार के मांस का भक्षण करता है तो उसमें 'स्तर्ैणता' आजातीहैअथार्त्उसमेस ं ्तर्ीके
हारमोन्स अिधक िवकिसत होने लगते है तथा पुरष ू त्व घटता जाता है।
मांस में पौिष्टकता के नाम पर यूिरक अम्ल होता है। िबर्टेन के पर्िसद्ध िचिकत्सक डॉ.
अलेक्जेण्डर के अनुसार यह अम्ल शरीर में जमा होकर गिठया, मूतर्िवकार, रक्त िवकार, फेफडो की रगणता,
यक्षमा, अिनदर्ा, िहस्टीिरया, एिनमीया, िनमोिनया, गदर्नददर्तथायकृत की अनेकबीमािरयोंको जन्मदेताहै।
मांसाहार से शरीर में कोलेस्टर्ोल की मातर्ा अत्यिधक बढ़ जाती है। यह कोलेस्टर्ोल धमिनयों
में जमा हो जाता है तथा उनको मोटा कर देता है िजससे रक्त के पिरवहन में अवरोध पैदा होता है।
धमिनयो मे रकत-पिरवहन सुचारू तथा पर्ाकृितक रूप से न होने के कारण हृदय पर घातक असर पड़ता है तथा
िदल का दौरा, उच्च रक्तचाप आिद की संभावना शत-पर्ितशत बढ़ जाती है।
जापान के सुपर्िसद्ध वैज्ञािनक पर्ोफेसर बेंज के अनुसार, 'बूचड़खानों में मृत्यु के झूले
में झूलते तथा यातनायें सहते पर्ाणी के शरीर में दुःख, भय तथा कर्ोध आिद आवेशों से युक्त
हारमोन्स तीवर् गित से पैदा होते हैं। ये हारमोन्स कुछ ही क्षणों में रक्त घुल जाते हैं तथा मांस
पर भी उनका िनयिमत पर्भाव पड़ता है। ये ही हारमोन्स जब मांस के माध्यम से मनुष्य के शरीर तथा
रक्त में जाते हैं तो उसकी सुप्त तामिसक पर्वृित्तयों को उत्तेिजत करने का कायर् बड़ी तेजी से
करते हैं।"
डॉ. बेंज ने तो अपने अनेक पर्योगों के आधार पर यहाँ तक कह िदया है िक, "मनुष्य में कर्ोध,
उद्दण्डता, आवेग , आवेश, अिववेक, अमानुिषकता, आपरािधकपर्वृित्तथाकामु
त कताजैसे दुष्टकमोर्
को
ं भड़कानेमेमं ांसाहारका
बहुत ही महत्त्वपूणर् हाथ है।"
मांसाहार में पर्ोटीन की व्यापकता की दुहाई देने वालों के िलए वैज्ञािनक कहते हैं िक,
"मांसाहार से पर्ाप्त पर्ोटीन समस्या नहीं, अिपतु समस्याएँ की कतारें खड़ी कर देता है। इससे
कैश िल् के यम संिचत कोष खाली हो जाते हैं तथा गुदोर्ं को बेवजह पिरशर्म करना पड़ता है िजससे वे
क्षितगर्स्त हो जाते हैं।"
मांसाहार कब्ज का जनक है क्योंिक इसमें रेशे (फाइबर) की अनुपिस्थित होती है िजससे आँतों
की सफाई नहीं हो पाती। इसके अितिरक्त कत्लखाने में कई पर्कार की संकर्ामक बीमािरयों से गर्स्त
पशु ओंका भी कत्ल हो जाता है। ये रोग मांसाहारी के पेट में मुफ्त में पहुँच जाते हैं। आिथर्क दृिष्ट
से मांसाहार इतना मंहगा है िक एक मांसाहारी की खुराक में लगे पैसों से कई शाकाहािरयों का पेट
भरा जा सकता है।
इस पकार मासाहार की हािनयो को उजागर करने वाले सैकडो तथय है। असतु मासाहार िक िवरोध तो आषरदृषा ऋिषयो ने ,
सन्तों-कथाकारों ने सत्संग में भी िकया, वही िवरोध अब िवज्ञान के क्षेतर् में भी हुआ है। िफर भी
आपकोमांसाहारकरनाहै , अपनी आनेवाली पीढ़ी को कैन्सर गर्स्त करना है, अपने को बीमािरयों का िकार श क
कक
बनाना है तो आपकी मजीर्। अगर आपको अशान्त-िखन्न-तामसी होकर जल्दी मरना है, तो किरये मांसाहार,
नहीं तो त्यािगये मांसाहार। गुटखा, पान-मसाला, शराब को तयािगये भैया ! िहम्मत कीिजये.... अपनी सोई हुई
सज्जनता जगाइये.... अपनी महानता में जािगये.....
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबब बबबब बब बबबबब
बबबब बबबब बबबबबबबब बब बब बब बबबब बब !
सेन फर्ांिसका िस्थत कैिलफौिनर्या िवश् विवद्यालयके मेिडकल सेन्टर, माउण्ट जीओन में डॉ.
सेलमायर द्वारा िकये गये एक नवीन शोध के अनुसारः "पशु ओंकी चबीर् से िमलने वाले पर्ोटीन का
अिस्थक्षय एवं हिड्डयाँ टूटने के रोगों से घिनष्ट संबंध है।"
अम्ल को क्षार में रूपान्तिरत करने वाला रसायन (बेज़) िसफर् फल एवं शाकाहार से ही पर्ाप्त
होता है। मांसाहार से शरीर में अम्ल की मातर्ा बढ़ जाती है। उसे क्षार में रूपान्तिरत करने के िलए
हिड्डयों की मज्जा में िस्थत बेज़ को काम में लाना पड़ता है, क्योंिक हिड्डयाँ मज्जा एवं कैश िल् यम
से बनी होती हैं अतः मज्जा के क्षय होने से हिड्डयाँ धीरे-धीरे गलने लगती है। इससे अिसथकय की बीमारी
उत्पन्न होती है अथवा छोटी-सी चोट लगने पर भी व्यिक्त की हिड्डयाँ टूटने की समस्या पैदा हो जाती
है।
अनुकर्म
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सतर् 37
बबबबबब बबबबब बब बबबबबब
आजकेयुग मेिवज्
ं ञाननेिजतनीउन्नितकी है , उतनी ही हमारे जीवन की अधोगित भी हुई है। धन की लोलुपता
एवं वयापािरक सािजशो ने जनता के खाद-अखाद्य के िववेक को नष्ट कर िदया है।
टेलीिवजन, रेिडयो एवं अखबारों में अखाद्य वस्तुओं के िदखाये, सुनाये एवं पर्काश ितिकये
जाने वाले कपटपूणर् तथा भड़कीले िवज्ञापनों ने इन वस्तुओं से होने वाली हािनयों पर पदार् डाल
िदया है, िजसके कारण इन अखाद्य वस्तुओं के उपयोग से हम अपने अमूल्य जीवन को बीमािरयाँ का एक
घर बना लेते हैं। ऐसा ही एक अखाद्य पदाथर् है 'अण्डा'। टी.वी. तथा रेिडयो पर पुिष्टदायक बताये जाने
वाले अण्डे में वास्तव पुिष्ट के नाम पर बीमािरयों का भण्डार िछपा है।
अण्डे का पीतक (पीला भाग) कोलेस्टर्ोल का सबसे बड़ा सर्ोत है। कोलस्टर्ोल धमिनयों को
िसकोड़ देता है, िजससे उपयुक्त रक्त-संचार न होने के कारण लकवा तथा िदल का दौरा पड़ने जैसी
बीमािरयों का जन्म होता है।
अितिरक्त कोलेस्टर्ोल चमर् की पतोर्ं तथा नसों में जमा हो जाता है, िजससे अण्डा खाने वाले
को जेंथोमा नामक बीमारी हो सकती है। इतना ही नही, शरीर मे कोलसटोल की मात अिधक हो जाने पर हायपर
कोलेस्टर्ोलेिमया नामक बीमारी हो सकती है, जो िक आगे चलकर रक्तचाप (ब्लड पर्ेशर) का रूप ले
लेती है।
1985 के नोबेल पुरस्कार िवजेता अमरीका के पर्िसद्ध हृदयरोग िवशेषज्ञ डॉ. माइकल एस. बर्ाउन
एवं डॉ. जोसेफ एल. गोल्डस्टीननेहृदयरोगसेबचनेकेिलएअण्डोंका सेवनन करनेकी सलाहदीथी। डॉ. बर्ाउन व
गोल्डस्टीनकेअनुसारअण्डेमेक ं ोलेस्टर्ोलकी मातर्ाअिधकहोनेकेकारणइससेहाटर् अटैक(हृदय की गित का अचानक रूक
जाना), जोड़ों में ददर्, चमर्रोग , स्टर्ोक तथा िपत्ताशय व मूतर्ाशय में पथरी आिद के रोग उत्पन्न होते
हैं।
अण्डे में सोिडयम लवण की मातर्ा अिधक होती है। एक अण्डा खाने से एक चम्मच नमक खाने
के बराबर पर्भाव पड़ता है।
अण्डे में काबोर्हाईटर्ेटल की अनुपिस्थित होती है। फलतः यह कब्ज तथा जोड़ों ददर् जैसी
बीमािरयों को पैदा कर सकता है।
पौल्टर्ी फामर् की मुिगर्यों को महामारी से बचाने के िलए डी.डी.टी. नामक जहरीली दवा का पर्योग
िकया जाता है। यह जहर मुिगर्यों द्वारा खाये जाने वाले चारे के साथ उनके पेट में चला जाता है।
मुगीर् के पेट में िस्थत अण्डों में लगभग 15000 सूक्ष्म िछदर् होते हैं, िजनके द्वारा अण्डे
की गमीर्, नमी एवं वायु पर्ाप्त होती है। इन्हीं िछदर्ों के द्वारा गमीर्, नमी एवं वायु के साथ अण्डे
डी.डी.टी. को भी सोख लेते हैं। ऐसे िवषाक्त अण्डे खाने से व्यिक्त को असाध्य रोग हो जाते हैं तथा
ददर्नाक मौत की कहानी उसके जीवन में जुड़ जाती है।
अण्डे में सेल्मोनेला एंटराडीस फेज टाइप-4 (पी.टी.) नामक बैक्टीिरयम होता है। सन् 1988
में इंगलैंड तथा वेल्स में इसी बैक्टीिरयम के कारण सोलह सौ अिधक लोगों को अपनी जान से हाथ
धोना पडा था। इसी कारण िबिटश सरकार को लगभग चालीस करोड अणडो एवं चालीस लाख मुिगरयो को नष करना पडा था इन नुकसानो
को ध्यान में रखते हुए हाँगकाँग में भी 10 िमिलयन से अिधक मुिगर्यों को रातों रात जला िदया गया
था।
अण्डे में साल्मोनेला कीटाणु के साथ-साथ आँतों में भयंकर रोग उत्पन्न करने वाला
कैम्पीलोबैक्टर भी पाया जाता है।
अण्डे का सफेद भाग अत्यिधक हािनकारक होता है, क्योंिक इसमें एवीिडन नामक िवषैला तत्त्व
पाया जाता है। इससे खुजली, दाद, एिगजमा, एलजी, चमर्रोग , त्वचा का कैन्सर, लकवा, दमा तथा सफेद कोढ़ आिद
भयंकर रोग उत्पन्न होते हैं।
अण्डा मातर् 8 िडगर्ी सेिल्सयस तापमान पर सड़ने लगता है। जब वह सड़ना पर्ारम्भ करता है,
तब सवर्पर्थम उसका जलीय कवच भाप बनकर उड़ने लगता है। तत्पश् चातउस पर रोगाणुओं का आकर्मण
शुर हो जाता है, जो कवच में अपनी जगह बनाकर उसे सड़ा देते हैं। इस पर्कार के रोगाणुयुक्त अण्डों के
सेवन से हमारे पाचन-तंतर् में कभी भी िकसी-भी पर्कार का सड़न उत्पन्न हो सकता है।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बब बबबबबब बब बबबबबबबब
बबबबबबबब बब बबबबब बब बबबबब
कुछ लोगों में यह भर्ांित होती है िक अण्डा भी सब्जी ही है अथवा अण्डा वनस्पितयों से पौिष्टक
होता है। यह भर्म टेिलिवजन तथा रेिडयो के माध्यम से धन बटोरने वाली कंपिनयों द्वारा पैदा िकया
हुआ है। अण्डे अपेक्षा वनस्पित एवं सिब्जयाँ हमारे शरीर को अिधक पुिष्ट पर्दान करती हैं।
एक अणडे मे 13.3 पर्ितशत पर्ोटीन होता है, जबिक इतनी ही मातर्ा की मूँगफली तथा हरे चने में
पर्ोटीन की मातर्ा कर्मशः 43.2 तथा 31.5 पर्ितशत होती है।
एक अणडे (50 गर्ाम) से शरीर को 86.5 कैलौरी ऊजार् पर्ाप्त होती है जबिक इतनी ही मातर्ा के गेहूँ
के आटे से 176.5 कैलोरी ऊजार् पर्ाप्त होती है।
यिद धिनया और अण्डे की तुलना करें तो हम पायेंगे िक धिनया अण्डे से कई गुना अिधक
पौिष्टक है। दो अण्डों (वजन 100 गर्ाम ) में 13.3 गर्ामपर्ोटीन, 0.6 गर्ामकैश िल्, यम गर्ामफासफोरसएवं2.1 गर्ामलोहाहोता
.22
है। इतने अण्डे से कुल 173 कैलोरी ऊजार् बनती है। अण्डे में काबोर्हाइडर्ेटस अनुिस्थत होते हैं।
जबिक धिनया से 14.1 गर्ामपर्ोटीन, 16.1 गर्ामवसा, 4.4 गर्ामखिनजलवण, 63 गर्ामकैश िल्, य .37म गर्ामफासफोरस, 17.9 गर्ामलोहा
तथा 21.6 गर्ामकाबोर्हाइडर्
ेटसपर्ाप्तहोताहैएवं288 कैलोरी ऊजार् बनती है।
अण्डे एवं मेथी की तुलना करने पर इस पर्कार का पिरणाम पर्ाप्त होता है। 100 गर्ामअण्डेमेप ं र्ोटीनकी
मातर्ा 13.3 गर्ामजबिकउतनीहीमेथीमेप ं र्ोटीनकी मातर्ा26.2 गर्ामहोतीहै।इस पर्कारदोनोंकेसमानवजनसेअण्डेद्वारा173
कैलोरी ऊजार् एवं मेथी द्वारा 333 कैलोरी ऊजार् शरीर को िमलती है। इसके अितिरक्त मेथी
कोलेस्टर्ोल की सफाई करती है, जबिक अण्डा कोलेस्टर्ोल का समृद्ध सर्ोत है।
इसी पकार मूँगफली मे भी अणडे की अपेका अिधक पौिषक तततव पाये जाते है।
दो अण्डे में 13.3 गर्ामजबिकइतनीहीमातर्ाकी मूँगफलीमे3ं1.4 गर्ामपर्ोटीनहोताहै।100 गर्ामअण्डेसेमातर्173
कैलोरी जबिक उतनी ही मूँगफली से 459 कैलोरी ऊजार् िमलती है।
अनुकर्म
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बबबबबबबबबब बबबबबब बब बबबब बबबब बब बबबबब
बबबब बब बबबबबबबबबब
हमारे शास्तर्ों में कहा गया है बबब बबबब । बबब बबब मन को इिन्दर्यों का स्वामी भी कहते
हैं। अतः इिन्दर्याँ जो गर्हण करती हैं, उसका सीधा पर्भाव मन पर पड़ता है। जो शुद्ध आहार तथा
आचार-िवचार से व्यवहार करता है, उसका मन भी शुद्ध होता है। मन की शुिद्ध से मनुष्य की बुिद्ध भी कुशागर्
होती है।
शासतो मे आया हैः बबब बब बबबबबबबबबब बबबबब बबबबबबबबबबब।
शुद आहार एवं आचार-िवचार से शुद्ध हुआ मन जीव को परमात्मा की ओर ले जाता है, जबिक अशु द्ध
आहारसेमिलनहुआमनमनुष्यकोिवनाश की ओरलेजाताहै।
अण्डा जहाँ पौिष्टकता की दृिष्ट से उपयुक्त न होने के कारण शरीर में अनेक रोग उत्पन्न करता
है, वहीं यह अनेक िवकृत भावों से युक्त होने के कारण हमारे मन-बुिद्ध पर भी कुपर्भाव डालता है।
पौल्टर्ी फामोर्ं में एक छोटी सी जगह पर कई मुिगर्यों को भर िदया जाता है। वे एक दूसरे से
लडकर लहूलुहान न हो, इसिलए उनकी चोचे काट दी जाती है। इस घृिणत कायर के िलए रात का समय चुना जाता है। रात के समय भूरे
पर्काश में मुगर् मुिगर्याँ जब लगभग अन्धे हो जाते हैं, तब उनकी चोंचें काट दी जाती हैं। यिद इस
कायर् में चूक हो जाय तो ये बेजुबान पर्ाणी जीवनभर के आहार से वंिचत हो जाते हैं। कई िदन तक तो
उन्हें चोंच में हुए घाव के कारण भूखे ही रहना पड़ता है। ऐसी िस्थित में भी उन्हें िदन-रात अँधेरे
में रखा जाता है।
जरा िवचार कीिजए िक यह अंधकार अण्डे में से होकर उसे खाने वाले के खून में नहीं
उतरेगा ? उजाले को तरसते इन बेसहारों के िदए हुए अण्डों को खाने से क्या हमारा जीवन पर्काशमय
हो पायेगा ?
पर्ायः यह भी देखा गया है िक अण्डों का सेवन करनेवाला व्यिक्त कई बार अित संवेदनशील
होकर बबर्र आदतों का िकार श ह ो जाता है।
मुगीर् पालन (पौल्टर्ी फामोर्ं) में मुगीर् जैसे जीते-जागते पर्ाणी को अण्डा पैदा करने वाली
मशीन से अिधक कभी नहीं समझा जाता है। छोटे से स्थान में उसे नाना पर्कार के संतर्ासों तथा
तनावों के बीच कैद करके रखा जाता है। अण्डा अथवा इन असहायों का मांस खाने वाले लोगों के रक्त
में यही संतर्ासयुक्त वातावरण पहुँचकर उनके जीवन में तनाव, िचंता, शोक, भय, िनराशा तथा कर्ोध जैसे
दुगुर्ण स्वाभािवक ही उत्पन्न कर देता है।
आजकलटी.वी. में बबबब बब बब बबबब, बबब बबब बबबबब कहकर बच्चों को अण्डारूपी
जानलेवा जहर खाने के िलए पर्ेिरत िकया जाता है। िकन्तु हॉिप्कन्स इन्स्टीच्यूट ऑफ बाम्बे ने
चेतावनीदीहैिक बबबब बब बबब बबबब बब बब बबबबबब बब बबबबब नहीं िखलाना चािहए क्योंिक
अण्डों के सेवन से बच्चों में खाँसी, नजला, जुकाम, दमा, पथरी, एलजी, आँतोंमेम ं वाद, हाटर् अटैक, उच्च
रक्तचाप, हाजमा खराब तथा पाचनशिक्त का हर्ास होता है एवं उनकी स्मरणशिक्त कमजोर हो जाती है।
अण्डों के सेवन से बच्चों को पीिलया रोग भी होता है।
इसिलए वयिकतमात ही नही, वरन् समस्त िवश् वके कल्याण के िलए यही उिचत होगा िक िवकार पैदा करने
वाले खाद्य पदाथोर्ं का बिहष्कार करके पूणर् साित्त्वक आहार ही लें, िजससे पर्त्येक व्यिक्त का जीवन
साित्त्वकता से पूणर् हो तथा सम्पूणर् िवश् वमें पर्ेम एवं शांित की मधुर सुवास फैले।
आपतोसमझगयेहोंग,ेआपतोसावधानहोगयेहोंगे।अबऔरोंको भीसावधानकरनेकी कृपाकरें।
अनुकर्म
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बबबबब बबब बब
भारतीय जनता की संस्कृित और स्वास्थ्य को हािन पहुँचाने का यह एक िवराट षडयंतर् है। अंडे
के भर्ामक पर्चार से आज से दो-तीन दशक पहले िजन पिरवारों को रास्ते पर पड़े अण्डे के खोल के
पर्ित भी ग्लािन का भाव था, इसके िवपरीत उन पिरवारो मे आज अंडे का इसतेमाल सामानय बात हो गयी है।
अंडे अपने अवगुणों से हमारे शरीर के िजतने ज़्यादा हािनकारक और िवषैले हैं उन्हें
पर्चार माध्यमों द्वारा उतना ही अिधक फायदेमंद बताकर इस जहर को आपका भोजन बनानो की सािजश की
जा रही है।
अण्डा शाकाहारी नहीं होता लेिकन कर्ूर व्यावसाियकता के कारण उसे शाकाहारी िसद्ध िकया जा रहा
है। िमश िगनयूिनविसर्टी के वैज्ञािनकों ने पक्के तौर पर सािबत कर िदया है िक दुिनया में कोई भी
अण्डा चाहे वह सेया गया हो या िबना सेया हुआ हो, िनजीर्व नहीं होता। अफिलत अण्डे की सतह पर
पर्ाप्त इलैिक्टर्क एिक्टिवटी को पोलीगर्ाफ पर अंिकत कर वैज्ञािनकों ने यह सािबत कर िदया है िक
अफिलत अण्डा भी सजीव होता है। अण्डा शाकाहार नहीं, बिल्क मुगीर् का दैिनक (रज) सर्ाव है।
यह सरासर गलत व झूठ है िक अण्डे में पर्ोटीन, खिनज, िवटािमन और शरीर के िलए जरूरी सभी
एिमनो एिसडस भरपूर है और बीमारो के िलए पचने मे आसान है।
शरीर की रचना और सनायुओं के िनमाण के िलए पोटीन की जररत होती है। उसकी रोजाना आवशयकता पित िक.गर्.ावजन पर
1 गर्ामहोतीहैयािन60 िकलोगर्ाम वजन वाले व्यिक्त को पर्ितिदन 60 गर्ामपर्ोटीनकी जरूरत होतीहैजो100 गर्ामअण्डेसे
मातर् 13.3 गर्ामहीिमलताहै।इसकीतुलनामेप ं र्ित100 गर्ामसोयाबीनसे43.2 गर्ाम
, मूँगफली से 31.5 गर्ाम
, मूँग और उड़द
से 24, 24 गर्ामतथामसूरसे25.1 गर्ामपर्ोटीनपर्ाप्तहोताहै। शाकाहारमेअ ं ण्डाव मांसाहारसेकहींअिधकपर्ोटीनहोतेहैं।इस बातको
अनेक पाश् चात्यवैज्ञािनकों ने पर्मािणत िकया है।
केिलफोिनर्या के िडयरपाकर् में सेंट हेलेना हॉिस्पटल के लाईफ स्टाइल एण्ड न्यूिटर्शन
पर्ोगर्ाम के िनदेर्शक डॉ. जोन ए. मेक्डूगल का दावा है िक शाकाहार में जरूरत से भी ज्यादा पर्ोटीन
होते हैं।
1972 में हावर्डर् यूिनविसर्टी के ही डॉ. एफ. स्टेर ने पर्ोटीन के बारे में अध्ययन करते हुए
पर्ितपािदत िकया िक शाकाहारी मनुष्यों में से अिधकांश को हर रोज की जरूरत से दुगना पर्ोटीन अपने
आहारसेिमलताहै।200 अण्डे खाने से िजतना िवटािमन सी िमलता है उतना िवटािमन सी एक नारंगी (संतरा)
खाने से िमल जाता है। िजतना पर्ोटीन तथा कैश िल् अण् यम डे में हैं उसकी अपेक्षा चने, मूँग, मटर
में ज्यादा है।
िबर्िटश हेल्थ िमिनस्टर िमसेज एडवीना क्यूरी ने चेतावनी दी िक अण्डों से मौत संभािवत है
क्योंिक अण्डों में सालमोनेला िवष होता है जो िक स्वास्थ्य की हािन करता है। अण्डों से हाटर् अटैक
की बीमारी होने की चेतावनी नोबेल पुरस्कार िवजेता अमेिरकन डॉ. बर्ाउन व डॉ. गोल्डस्टीननेदीहैक्योंिक
अण्डों में कोलेस्टर्ाल भी बहुत पाया जाता है.
डॉ. पी.सी. सेन, स्वास्थ्य मंतर्ालय, भारत सरकार ने चेतावनी दी है िक अण्डों से कैंसर होता
है क्योंिक अण्डों में भोजन तंतु नहीं पाये जाते हैं तथा इनमें डी.डी.टी. िवष पाया जाता है।
जानलेवा रोगों की जड़ हैः अण्डा। अण्डे व दूसरे मांसाहारी खुराक में अत्यंत जरूरी
रेशातत्त्व (फाईबसर) जरा भी नहीं होते हैं। जबिक हरी साग, सब्जी, गेहू ,ँबाजरा, मकई, जौ, मूँग, चना, मटर,
ितल, सोयाबीन, मूँगफली वगैरह में ये काफी मातर्ा में होते हैं।
अमेिरका के डॉ. राबटर् गर्ास की मान्यता के अनुसार अण्डे से टी.बी. और पेिचश की बीमारी भी हो जाती
है। इसी तरह डॉ. जे. एम. िवनकीन्स कहते हैं िक अण्डे से अल्सर होता है।
मुगीर् के अण्डों का उत्पादन बढ़े इसके िलये उसे जो हामोर्न्स िदये जाते हैं उनमें स्टील
बेस्टेरोल नामक दवा महत्त्वपूणर् है। इस दवावाली मुगीर् के अण्डे खाने से िस्तर्यों को स्तन का
कैंसर, हाई ब्लडपर्ैशर, पीिलया जैसे रोग होने की सम्भावना रहती है। यह दवा पुरूष के पौरूषत्व को
एक िनिशत अंश मे नष करती है। वैजािनक गास के िनषकषर के अनुसार अणडे से खुजली जैसे तवचा के लाइलाज रोग और लकवा भी होने
की संभावना होती है।
अण्डे के गुण-अवगुण का इतना सारा िववरण पढ़ने के बाद बुिद्धमानों को उिचत है िक अनजानों
को इस िवष के सेवन से बचाने का पर्यत्न करें। उन्हें भर्ामक पर्चार से बचायें। संतुिलत शाकाहारी
भोजन लेने वाले को अण्डा या अन्य मांसाहारी आहार लेने की कोई जरूरत नहीं है। शाकाहारी भोजन
सस्ता, पचने में आसान और आरोग्य की दृिष्ट से दोषरिहत होता है। कुछ दशक पहले जब भोजन में
अण्डे का कोई स्थान नहीं था तब भी हमारे बुजुगर् तंदरूस्त रहकर लम्बी उमर् तक जीते थे। अतः अण्डे
के उत्पादकों और भर्ामक पर्चार की चपेट में न आकर हमें उक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर ही अपनी
इस शाकाहारी आहार संसकृित की रका करनी होगी।
बबबब बबबबबब। बबबब बबबबबबबब
1981 में जामा पितर्का में एक खबर छपी थी। उसमें कहा गया था िक शाकाहारी भोजन 60 से 67
पर्ितशत हृदयरोग को रोक सकता है। उसका कारण यह है िक अण्डे और दूसरे मांसाहारी भोजन में चबीर् (
कोलेस्टर्ाल) की मातर्ा बहुत ज्यादा होती है।
केिलफोिनर्या की डॉ. केथरीन िनम्मो ने अपनी पुस्तक हाऊ हेल्दीयर आर एग्ज़ में भी अण्डे
के दुष्पर्भाव का वणर्न िकया गया है।
वैज्ञािनकों की इन िरपोटोर्ं से िसद्ध होता है िक अण्डे के द्वारा हम जहर का ही सेवन कर रहे
हैं। अतः हमको अपने-आपकोस्वस्थरखनेव फैलरहीजानलेवाबीमारीयोंसेबचनेकेिलएऐसेआहारसेदूर रहनेका संकल्प
करना चािहए व दूसरों को भी इससे बचाना चािहए।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 38
बबबब बब बब बबबबबबबबबबब बबबब बबबबबबबब बब
बबबब बब बबब बबब ?
'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो' वाले देश में कोक तथा पेप्सी जैसे सॉफ्ट िडर्ंक लोगों के
िदलो िदमाग को इस कदर दूिषत कर चुके हैं िक अब लोग दूध को भी भूल गये हैं।
एक समय लोग दारा िसंह का उदाहरण देकर बचचो से कहते थेः "देखो वह दूध पीता है, घी खाता है, सिदर्यों में
बादाम खाता है इसीिलए तो बड़े-बड़े पहलवानों को कुछ ही समय में धूल चटा देता है।" यह सुनकर
बच्चे दूध घी के पर्ित आकिषर्त होते थे तथा स्वस्थ एवं हट्टे कट्टे रहते थे।
आजकेबच्चेटी.वी. पर कुछ िकर्केट के िखलािड़यों और िफल्मी कलाकारों को कोक-पेप्सी पीकर
अपना कमाल िदखाते हुए देखते हैं। उनको तो एक-एक िवजापन के कई लाख-करोड़ रूपये िमलते हैं परन्तु
बेचारे नादान बच्चे समझते हैं िक यह सब कोक-पेप्सी का चमत्कार है इसिलए हम भी िपयेंगे तो
कसेबनजायेंगे।
सॉफ्ट िडर्ंक्स की बोतलों को खाली करने वाले श ायद नहीं जानते िक वे अपने स्वास्थ्य के साथ
िखलवाड़ तो कर ही रहे हैं साथ ही मांसाहार भी कर रहे हैं। हैं न चौंकाने वाली बात !
अमेिरका में िद अथर् आइलैण्ड जनरल नामक पितर्का ने शोध करके जािहर िकया िक पर्त्येक
कोकाकोला व पेप्सी की बोतल में 40 से 72 िम.गर्.ातक के नशीले तत्त्व िग्लसरॉल, अल्कोहल, ईस्टरगमतथा
पशु ओंसे पर्ाप्त होने वाला िग्लसरॉल होता है। अतः शाकाहारी इस भर्म में न रहें िक यह मांसाहार
नहीं है।
उपरोक्त पितर्का में पर्काश ितिरपोटर् के सभी तथ्य चौंकाने वाले हैं। िरपोटर् के अनुसारः
इसमे साइिटक एिसड है। शीतल पेय की एक बोतल को शौचालय मे उडेल दो। एक घंटे बाद आप पाओगे िक उसने िफनाइल की
तरह शौचालय को साफ कर िदया है।
कपड़े में दाग लगने पर उसे शीतल पेय तथा साबुन से धोओ, कुछ देर में गर्ीस तक के दाग भी
ढू ँढते रह जाओगे।
सबसे खतरनाक बात यह है िक मनुष्य की हिड्डयों को गलाने के िलए धरती को भी एकाध वषर् का
समय लग जाता है जबिक इन पेयों में हड्डी डालकर रखने से वह मातर् दस िदन में ढूँढने पर भी नहीं
िमलती।
अमेिरका के िद लानसेंट मेिडकल जनरल में पर्काश ितएक िरपोटर् के अनुसार वहाँ के
वैज्ञािनकों ने बच्चों के स्वास्थ्य पर सॉफ्ट िडर्ंक के पर्भाव पर शोध की।
अमेिरका के मेशाच्यूटस नामक शहर की अलग-अलग पिब्लक स्कूलों के साफ्ट िडर्ंक पीने वाले
548 बच्चों पर दो वषर् तक परीक्षण िकया गया।
िनष्कषर् में उन्होंने पाया िक पर्ितिदन एक सॉफ्ट िडर्ंक पीने से शरीर के बॉडी मास इन्डेक्स
में 0.18 की वृिद्ध हो जाती है। यिद एक िदन में एक से अिधक बोतल पी ली जाय तो उनके स्थूल होने की
संभावनाएँ 60 % तक बढ़ जाती हैं।
साफ्ट िडर्ंक के रूप में लोग अपने पसीने की कमाई से अपने िलए जहर खरीद लेते हैं।
हािनकारक व दूिषत शीतल पेयों की अपेक्षा घऱ में बनाया गया है नींबू का शबर्त, फलो का रस एवं ताजी लससी
शुद, साित्त्वक एवं पौिष्टक होती है। अतः समझदार लोग िवज्ञापन बाजी से पर्भािवत न होकर अपने धन
एवं सवासथय दोनो को िवनष होने से बचाये तथा औरो को भी सही समझ दे।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबब बब बबबबबबबब
बबब बबबबब बब बबबब बबबब बब बबबबबबबबबब बबबबब
बबबबबबबबबब बबबब.....
अमेिरका की कोक कंपनी अपने पेय पदाथर् कोका कोला को बेचने के िलए बड़े-बड़े
िखलािड़यों एवं िफल्मी कलाकारों के माध्यम से तरह-तरह के िवज्ञापन िदखाती है। परन्तु िवज्ञापन
में बताये जाने वाले असली स्वाद की असिलयत का पता अब लग रहा है। इस िवज्ञापनी फरेब का
पदार्फाश उस समय हुआ जब बेिल्जयम के सैंकड़ों बच्चे कोका कोला पीने से बीमार पड़ गये। कोका
कोला पीने के बाद उन्हें पेट में मरोड़ उठने, उिल्टयाँ आने, चक्करआनेजैसीव्यािधयाँसतानेलगीं।बेिल्ज यम
की सरकार ने इसी समय कोका कोला की जाँच करायी। जाँच के दौरान वहाँ के स्वास्थ्य मंतर्ालय ने
लगभग डेढ करोड ऐसी बोतले पकडी िजनमे भरा गया पेय पदाथर सवासथय के िलए अतयंत हािनकारक था।
इस घटना के कुछ ही समय बाद फास मे भी कोका कोला पीने से कई लोग बीमार पड गये। इन घटनाओं के बाद बेिलजयम एवं फास
की सरकारों ने अपने-अपने देशों में कोका-कोला पर पर्ितबंध लगा िदया। जब कोका कोला के विरष्ठ
अिधकािरयों ने फर्ांस में कोका कोला पर लगे पर्ितबंध को हटाने के िलए वहाँ की संसद से पर्ाथर्ना
की तो वहाँ के उपभोक्ता मंतर्ालय के पर्वक्ता ने कहाः
"बब बब बबबबब बबब बब बबबब बबबब बबब बब बब बबब बबबबब बबब बबब बबब।
बबब बबबबबबबब बबबबब । बब बबबब बब बबबब बबबबब"
बेिल्जयम एवं फर्ांस की सरकार ने कोका कोला के अलावा कोक कंपनी द्वारा बनाये जाने वाली
अन्य सभी उत्पादों को भी पर्ितबंिधत कर िदया।
इसके बाद सपेन और इटली ने भी बैिलजयम एवं फास की तरह कोक कंपनी के उतपादो की िबकी पर रोक लगा दी।
पोलैण्ड के एक स्वास्थ्य िवशेषज्ञ ने दावा िकया िक वहाँ पर बनाये जाने वाले कोका कोला
में दूिषत जल का उपयोग िकया गया है।
इसके पूवर इंगलैणड की सरकार ने भी कोका कोला को कैनसर पैदा करने वाला पेय बताया है। वहा पर इसकी जाच होने पर इसमे
बैंजीन की बहुत अिधक मातर्ा पाई गई। फलस्वरूप वहाँ की सरकार ने कोका कोला की 22 लाख बोतले तुडवाकर
फेकवा दी।
वेस्टइंडीज में िबकने वाले कोका कोला की बोतलों पर तो बबबबबब बब बबब बबबब बब इस
पर्कार की चेतावनी छपी रहती है। मेिक्सको में भी कोका कोला की बोतलों पर बबबबबबब बबबबबबब
बबब बबब बबब बब बबबब बब बब बबबबबब बब बबब बबबब बब यह चेतावनी िलखी जाती है।
लेिकन भारत के बाजार मे अनेक फरेबी िवजापनो के माधयम से असली सवाद के नाम पर इसका जोर-शोर से पचार हो रहा है। कया इस देश
की जनता के स्वास्थ्य की कोई कीमत नहीं है ?
अनुकर्म
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बबबबब बबबब बबबब बब बबबबब बबबबब बब
बबबबबबबबब बबबबबबब
िहन्दुओं के धािमर्क कायोर्ं में आरती का एक िवशेष स्थान है। शास्तर्ों में इसे 'आराितर्क'
अथवा 'िनराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। हमारे धमर्शास्तर्ों के अनुसार इष्ट-आराध्यकेपूजनमेज ंो
कुछ भी तर्ुिट या कमी रह जाती है, उसकी पूितर् आरती करने से हो जाती है। इसीिलए िहन्दुओं के
संध्योपासना एवं िकसी भी मांगिलक पूजन में आरती का समावेश िकया गया है।
"स्कन्दपुराण" में भगवान शंकर माँ पावर्ती से कहते हैं-
बबबबबबबबब बबबबबबबबबब । बबब बबबब बबबबब बबबबब
बबबब बबबबबबबबबबबबबब बबबब बबबबबबब बबबब ।।
'हे िवे श
कक ! भगवान का मंतर्रिहत एवं िकर्या (आवशय
् किविधिवधान) रिहत पूजन होने पर भी आरती
कर लेने से उसमें सारी पूणर्ता आ जाती है।'
साधारणतया पाँच बित्तयोंवाले दीप से आरती की जाती है, िजसे पंचपर्दीप कहा जाता है।
इसके अलावा एक, सात अथवा िवषम संख्या के अिधक दीप जलाकर भी आरती करने का िवधान है।
अनुकर्म
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बबबब बब बबबब ब बबबबब बबब बबबबबबब ?
आरतीमेइं ष्ट-आराध्यकेगुण-कीतर्न के अलावा उनका मंतर् भी सिम्मिलत िकया जाता है। भक्त मुख से
तो भगवान का गुणगान (आरती) करता है तथा हाथ में िलए दीपक से उनके मंतर् के अनुरूप आरती घुमाता
है।
पर्त्येक देवता का एक मंतर् भी होता है िजसके द्वारा उनका आह्वान िकया जाता है। आरती
करने वाले को दीपक इस पर्कार घुमाना चािहए िक उससे उसके इष्ट देवता का मंतर् बन जाय। परंतु यिद
मंतर् बड़ा हो तो किठनाई होती है। अतः हमारे ऋिषयों ने मंतर् की जगह िसफर् 'ॐ' का आकृित बनाने का
भी िवधान रखा है क्योंिक ॐकार सभी मंतर्ों का बीज है इसीिलए पर्त्येक मंतर् से पहले ॐकार को
जोड़ा जाता है। अथार्त् भक्त हाथ में िलये दीये को इस पर्कार घुमाये िक उससे हवा में ॐ की आकृित
बन जाये। इस पर्कार आरती में भगवान का गुण-कीतर्न एवं मंतर् साधना दोनों का िमशर्ण होने से सोने
पे सुहागा जैसा हो जाता है।
आरतीको िकतनीबारघुमानाचािहए? भक्त िजस देवता को अपना इष्ट मानता हो उनके मंतर् में िजतने
अक्षर हों उतनी बार आरती घुमानी चािहए।
आरतीकेमहत्त्वको आजकेिवज्ञाननेभीथोड़ा-बहुत समझा है। आरती के द्वारा व्यिक्त की भावनाएँ तो
पिवतर् होती ही हैं, साथ ही आरती के दीये में जलने वाला गाय का घी तथा आरती के समय बजने वाला
शंख वातावरण के हािनकारक कीटाणुओं को िनमूरल करता है, इसे आज का िवजान भी िसद कर चुका है।
बबबबब बबबबबबब बबब-बबबबब
दीपक के समक्ष िनम्न श्लोक के वाचन से शीघर् सफलता िमलती हैः
बबबब बबबबबबब बबब बबबबबब । बबबब बबबबबबबबबबबबबबबबब
बबबब बबबब बबब बबबब बबबबबबबबब ! बबबबबबबब ।। बबबब
बबबब बबबबब बबबबबबब बबबबबबब बबबबबबबबबब।
बबबबबबबबबबबबबबबबब ब ।। बबबबबबबबबबबबबबबबबबब बबबब
दीपक के लौ की िदशा पूवर् की ओर रखने से आयुवृिद्ध, पशि ्चम की ओर दुःख वृिद्ध, दिक्षण की ओर
हािन और उत्तर की ओर रखने से धनलाभ होता है। लौ दीपक के मध्य में लगाना शुभफलदायी है। इसी
पर्कार दीपक के चारों ओर लौ पर्ज्विलत करना भी शुभ है।
'िवष्णुधमोर्त्तर पुराण' के अनुसार जो धूप, आरतीको देखताहैवहअपनीकई पीढ़ीयोंका उद्धारकरताहै। ऐसेही
ह्यात ईश् वरपर्ाप्तभगवद् पुरूष के आरती, दर्शन व सािन्नध्य का अिमट फल िमलता है।
अनुकर्म
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सतर् 39
बबबब बबबबब
राजा उत्तानपाद की दो रािनयाँ थीं। िपर्य रानी का नाम सुऱूची और अिपर्य रानी का नाम सुमित था।
दोनों रािनयों को एक-एक पुत था। एक बार रानी सुमित का पुत धुव खेलता-खेलता अपने िपता की गोद में बैठ गया।
रानी ने तुरंत ही उसे िपता की गोद से नीचे उतार कर कहाः
िपता की गोद में बैठने के िलए पहले मेरी कोख से जन्म ले। धर्ुव रोता-रोता अपना माँ के
पास गया और सब बात माँ से कही। माँ ने धर्ुव को समझायाः बेटा! यह राजगद्दी तो नश् वरहै परंतु तू
भगवान का दर्शन करके शाश् वतगद्दी पर्ाप्त कर। धर्व ु को माँ की सीख बहुत अच्छी लगी। और तुरंत ही दृढ़
िनश् चयकरके तप करने के िलए जंगल में चला गया। रास्ते में िहंसक पशु िमले िफर भी भयभीत नहीं
हुआ। इतने में उसे देविषर् नारद िमले। ऐसे घनघोर जंगल में मातर् 5 वषर् को बालक को देखकर नारद
जी ने वहाँ आने का कारण पूछा। धर्ुव ने घर में हुई सब बातें नारद जी को बता दीं और भगवान को पाने
की तीवर् इच्छा पर्कट की।
नारद जी ने धर्ुव को समझायाः “तू इतना छोटा है और भयानक जंगल में ठण्डी-गमीर् सहनकरकेतपस्या
नहीं कर सकता इसिलए तू घर वापस चला जा।“ परन्तु धर्व ु दृढ़िनश् चयीथा। उसकी दृढ़िनष्ठा और भगवान को
पाने की तीवर् इच्छा देखकर नारदजी ने धर्व ु को ‘ú बबब बबबबब बबबबबबबबब ’ का मंतर् देकर
आशीवार्दिदयाः “ बेटा! तू शर्द्धा से इस मंतर् का जप करना। भगवान ज़रूर तुझ पर पर्सन्न होंगे।“ धर्व
ु तो
कठोर तपस्या में लग गया। एक पैर पर खड़े होकर, ठंडी-गमीर् , बरसात सब सहन करते-करते नारदजी के
द्वारा िदए हुए मंतर् का जप करने लगा।
उसकी िनभर्यता, दृढ़ता और कठोर तपस्या से भगवान नारायण स्वयं पर्कठ हो गये। भगवान ने
धुव से कहाः “ कुछ माग, माँग बेटा! तुझे क्या चािहए। मैं तेरी तपस्या से पर्सन्न हुआ हूँ। तुझे जो चािहए
वर माँग ले।“ धर्ुव भगवान को देखकर आनंदिवभोर हो गया। भगवान को पर्णाम करके कहाः “हे भगवन्!
मुझे दूसरा कुछ भी नहीं चािहए। मुझे अपनी दृढ़ भिक्त दो।“ भगवान और अिधक पर्सन्न हो गए और बोलेः
बबबबबबब। मेरी भिक्त के साथ-साथ तुझे एक वरदान और भी देता हूँ िक आकाश में एक तारा ‘धर्ुव’
तारा के नाम से जाना जाएगा और दुिनया दृढ़ िनश् चयके िलए तुझे सदा याद करेगी।“ आज भी आकाश में
हमें यह तारा देखने को िमलता है। ऐसा था बालक धर्ुव, ऐसीथीभिक्तमें उसकीदृढ़िनष्ठा।पाँच
वषर्
केधर्ुव
को भगवान
िमल सकते हैं तो हमें भी क्यों नहीं िमल सकते? ज़रूरत है भिक्त में िनष्ठा की और दृढ़ िवश् वासकी।
इसिलए बचचो को हर रोज िनषापूवरक पेम से मंत का जप करना चािहए।
अनुकर्म
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बबबबबबबब बबब बबबब
शासतो मे आता हैः
बब बबबब बबबबबबबबब बबबबबबबबबब बबबबबबबबब।
बबबबबबबबब बबबबबबबबब बबबबबबबबब बबब बबब।।
'जो सभी भूतों में शिक्तरूप से िस्थत हैं उन माँ जगदम्बा को
नमस्कार है, नमस्कार है, नमस्कार है !'
ईश् वरअनेकरू पोंमेप
ं र्गटहोताहै
, वैसे ही मातृरूप में भी पर्गट होता है।
शिकतरप से, करूणारूप से, क्षमारूप से, दयारूप से उत्पन्न होने वाली परबर्ह्म परमात्मा की जो वृित्त है
उसी को 'माँ' कहा गया है एवं उन्हीं 'माँ' की उपासना-अचर्ना के िदन हैं नवराितर् के िदन।
नवराितर् के िदनों में वर्त-उपवास, माँ की उपासना-अचर्ना के अितिरक्त गरबे गाये जाते हैं।
गरबेक्योंगायेजातेहै?ं पैर के तलुओं एवं हाथ की हथेिलयों में शरीर की सभी नािड़यों के केन्दर्िबन्दु
हैं िजन पर दबाव पड़ने से एक्युपर्ेशर का लाभ िमल जाता है एवं शरीर में नयी शिक्त-स्फूितर् जाग
जाती है। नृत्य से पर्ाण-अपान की गित सम होती है तो सुषुप्त शिक्तयों को जागृत होने का अवसर िमलता
है एवं गाने से हृदय में माँ के पर्ित िदव्य भाव उमड़ता है इसीिलए नवराितर् के िदनों में गरबे
गानेकी पर्थाहै।
....लेिकन बहुत गाने से शिकत कीण होती है अतः गाओ तो ऐसा गाओ िक आपका आतमबल बढे, ओज-तेज बढ़े एवं सुषुप्त
शिकत जागृत हो।
गरबागात-ेगातेआपऐसेरहोिक आपकीइिन्दय र्आपकोकहींखींच
ाँ ेनहीं, मन आपको धोखा न दे, बुिद्ध िवकारों की
तरफ न ले जाये वरन् मन, बुिद्ध, िचत्त , अहंकार ये चार अंतःकरण एवं पाँच ज्ञानेिन्दर्याँ – ये नौ के
नौ उस परबर्ह्म परमात्मा में डूब जायें और नृत्य के बाद भावसमािध का थोड़ा सा आनंद उभरने लगे,
काम-िवकार पलायन हो जायें, रामरस आने लगे। यिद ऐसा कर सको तो नवराितर् सफल हो जायेगी।
अनुकर्म
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बबबबबबबब बबब बबबबबबबबब बबबबब बबबबबबबब
बब बबबबबबबबब बबब
आजकेभौितकवादीयुग मेिजतनीयंतर्िक्
ं श तपर्भावीहोसकतीहैउससेकहींअिधकपर्भावीएवंसूक्ष्ममंतर्िक्श तहोतीहै
. मंतर्
द्वारा मनुष्य अपनी सुषप ु ्त शिक्तयों का िवकास करके महान बन सकता है। मंतर् के जाप से चंचलता दूर
होती है, जीवन में संयम आता है, चमत्कािरकरूप सेएकागर्ताएवंस्मरणशिक्तमेव ं िृ द्ध
होतीहै। शरीरकेअलग-अलग
केन्दर्ों पर मंतर् का अलग-अलग पर्भाव पड़ता है। मंतर् शिक्त की मिहमा जानकर आज तक कई महापुरूष
िवश् वमें पूजनीय एवं आदरणीय स्थान पर्ाप्त कर चुके हैं जैसे महावीर, बुद्ध, कबीर, नानक,
िववेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी रामतीथर् आिद। नारद जी की कृपा से 'मरा....मरा जपते-जपते
वािलया लुटेरा भी वाल्मीिक ऋिष बन गया।
यंतर्शिक्त का पर्भाव केवल लौिकक व्यवहार-जगत में ही तथा सीिमत देश-काल में ही पड़ सकता
है जबिक मंतर्शिक्त का पर्भाव अन्य लोक तक जा सकता है। तभी तो
अजुर्न सशरीर स्वगर् में गया था। सित अनसूया ने बर्ह्मा-िवष्ण-ु महेश को मंतर्शिक्त से दूध
पीते बच्चे बना िदया था। बौिद्धक जगत के बादशाह कहलाने वाले बीरबल की बुिद्ध एवं चातुयर् के
पीछे भी सारस्वत्य मंतर् का पर्भाव था। अकबर जैसा मुगल बादशाह भी कुशागर् बुिद्ध-वाले बीरबल की
सलाह लेकर कायर् करता था।
सारस्वत्य मंतर् के जप से िवद्यािथर्यों की स्मरणशिक्त बढ़ती है, बुिद्ध कुशागर् बनती है।
मंतर्शिक्त की मिहमा को जानकर वे अपनी कुशागर् बुिद्ध को मेधा व पर्ज्ञा बनाकर परबर्ह्म परमात्मा का
साक्षात्कार भी कर सकते हैं। हमारे भीतर वह शिक्त को जगा देने का सामथ्यर् रखने वाले सदगुरू के
मागर्दर्शन के मुतािबक मंतर्जाप िकया जाय तो िफर िवद्याथीर् के जीवन -िवकास में चार चाँद लग जाते
हैं।
अतः आप अपने समय का पूणर् सदुपयोग करें। नवराितर् में सारस्वत्य मंतर् का अनुष्ठान कर
बुिद्ध की देवी सरस्वती की कृपा को पर्ाप्त कर जीवन को ओजस्वी-तेजस्वी बना सकते हैं। नवराितर् के
नौ िदनों में सारस्वत्य मंतर् का अनुष्ठान करने से चमत्कािरक लाभ होता है। सरस्वती देवी पर्सन्न
होती है एवं स्मरणशिक्त का िवकास होता है।
बबबबब शीगुरगीता मे भगवान िशव मा पावरती से कहते है िक 'तीथर् स्थान या सदगुरू के आशर्म अनुष्ठान के
िलए योगय है। अगर िकनही कारणो से वहा नही जा सके तो अपने घर के साफ-सुथरे कमरे में धूप, दीप, चन्दन, पुष्पािद
द्वारा मनभावन वातावरण तैयार कर सकते हैं। माँ सरस्वती की वीणावादक सौम्यमूितर् की स्थापना उस
कमरे में करें। स्वच्छ सफेद वस्तर् धारण करें तथा सफेद आसन पर ही बैठे। भोजन में सफेद
वस्तु जैसे की चावल की बनी खीर आिद ही गर्हण करें। भूिम पर शयन करें, मौन रहें, संयम रखें एवं
एकागता से रोज 108 माला का जप करें। हो सके तो स्फिटक माला का पर्योग करें अथवा सामान्य माला का भी
पर्योग कर सकते हैं।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबबब बब बबबबबबबब बबबबबबबबब
बब बबबब
िवद्याथीर् जीवन जीवनरूपी इमारत की नींव है। िजतना हम ईश् वरके साथ जुड़कर कदम आगे रखते
जायेंगे उतना ही हमारा जीवन मजबूत होगा िकन्तु ईश् वरके साथ हृदय िमलाने की कला िसखाने के िलए
सत्पुरूषों की, सदगुरू की आवश् यकताहोती है। िजन भाग्यशाली िवद्यािथर्यों को ऐसे महापुरूषों का संग िमल
जाता है, उनका कृपा पर्साद िमल जाता है वे िवद्याथीर् एक िदन स्वयं भी महान आत्मा बन जाते हैं।
हमारे इितहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
मुंबई के पास एक छोटे से गाँव में एक सातवीं कक्षा पढ़ा हुआ िवद्याथीर् रहता था। उसका नाम
था, रामानुजम। उस िवद्याथीर् के िपता गरीब थे, इसिलए उनहोने उसे एक बडे सेठ की दुकान पर चपरासी की नौकरी पर लगा
िदया। दुकान पर काम करने वाले मुनीम जब िहसाब करते-करते परेशान होकर थक जाते तब रामानुजम
उनके पास आता और पूछता िक 'क्या बात है ?' तो मुनीम उसे डाँटते िक 'तेरे को क्या पता ? तू झाड़ू
लगा।' ऐसाकई बारहुआ। एकिदनएकमुनीमनेकहािक हररोजपरेान श करताहै , चलबैठ।मेराएकखातानहीिमलताइसेठीक से
िमलाकर िदखा। रामानुजम ने क्षणभर में वह खाता मुनीम को सही-सही िमलाकर दे िदया। मुनीम आश् चयर्
में पड़ गया िक कहाँ सातवीं पढ़ा हुआ यह लड़का और कहाँ मैं वषोर्ं से खाते बनाने वाला मुनीम ! यह
मुझसे भी आगे कैसे िनकल गया ? उसके बाद तो िजस िकसी मुनीम को िहसाब िकताब में परेशानी आती
वह रामानुजम को बुलाता और रामानुजम गिणत का उलझा हुआ बड़े से बड़ा मसला भी देखते-देखते
क्षणभर में पूरा हल कर देते।
रामानुज की िवलक्षण बुिद्ध को देखकर लोगों ने रामानुजम से कहाः 'इस समय हािडर िवश का सबसे बडा
गिणतज्ञहै।तुम उसेअपनीयोग्यतािलखकर भेजो।' रामानुजम ने अपना पिरचय और गिणत के कुछ नमूने हािडर् के
पास भेज िदये। नमूनों को देखकर हािडर् चिकत रह गया। उसने रामानुजम को बुलाया और रामानुज को
गिणतकेकई सवालपूछे।हािडर् जोभीसवालपूछतारामानुजमउसका तुरन्तजवाबदेदेते।आिखरभारतकेइस सातवींपढ़े िवद्याथीर्
ने
िवश् विवख्यातगिणतज्ञ हािडर् को भी चिकत कर िदया।
हािडर् ने रामानुजम की परीक्षा लेने के िलए बड़े-बड़े गिणतज्ञों और मनोवैज्ञािनकों की
एक बैठक बुलायी और बैठक मे आये सभी गिणतजो को कह िदया िक गिणत के िवषय मे िजसको जो भी पश पूछना हो वह रामानुजम से पूछ
ले। वे लोग जो भी पश करते रामानुजम उसे धयानपूवरक सुनते तथा कणभर के िलए शात हो जाते है। िफर वे जो उतर देते थे वह िबलकुल
सही होता था।
इस घटना को देखकर मनोवैजािनक भी दंग रह गये। अंत मे उनहोने रामानुज से ही पूछाः ''आपनेइतनेमहानगिणतज्ञको भीपीछे
कर िदया। आिखर आपके पास ऐसी कौन-सी कला है िक यहाँ आये सारे बड़े-बड़े गिणत के िवशेषज्ञ
आपकेआगेमूक होगये।"
तब रामानुज बोलेः "बबबब बबबब बबबब बबबबबबब बबब बब बबब बबबब बब। बब बब
बबबबबबबब बब बबबब बबबब बब बब बबबबबबबबबबब बब बब बबबबब बब बबबबबब
बबबबबबबबब बबबबब बबबब बब बबबबबबबबब बब बब बब बबबब बबबबब बब बबबब बबबब
बबबब बबबबब बबबब बबबबब बबबब बब बबब बब बबबबबब । बबब बबबबब बब बबबबबब बब
बबबब बबबब बबबबबबबब बब बबबबब बबबबबब बबब बबबब बब। "
पर्त्येक िवद्याथीर् के पास आज अगर लौिकक िवद्या के साथ सदगुरू पर्दत्त आध्याित्मक िवद्या भी
हो तो जीवन में चार चाँद लग जाते हैं ऐसे अनेक उदाहरण हैं। थोड़ी-सी लौिकक िवद्या हो परन्तु
आध्याित्मकिवद्याकी बाहुल्यताहोतोसातवींकक्षातक पढ़े रामानुजमगिणतकेिवशेषज्ञ बनजातेहैं।िकन्तु बहुतलौिककिवद्याहोतथा
अध्यात्म िवद्या से रिहत हो, िशका के साथ यिद दीका नही हो तो उस िवदाथी का जीवन नशे तथा िवकारो मे फँस जाता है।
अश ििक्षतउतना िवनाश नहीं कर सकता िजतनी अदीिक्षत। आज िजन िवनाशकारी हिथयारों ने सबके िदलों
दहशत फैला रखी है ऐसे हिथयार भी िकन्हीं दीक्षाहीन ििक् शक षतों े द्वारा ही बनाये गये हैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 40
बबबबबबबबबब बबबब बबबबबबबबबब बब बबबब
भारतीय सामािजक परम्परा की दृिष्ट से िवजयादशमी का िदन तर्ेता युग की वह पावन बेला है जब
कर्ूर एवं अिभमानी रावण के अत्याचारों से तर्स्त सवर्साधारण को राहत की साँस िमली थी। कहा जाता है
िक इस िदन मयार्दा पुरष ू ोत्तम शर्ीराम ने आततायी रावण को मारकर वैकुंठ धाम को भेज िदया था। यिद
देखा जाय तो रामायण एवं शर्ीरामचिरतमानस में शर्ीराम तथा रावण के बीच के िजस युद्ध का वणर्न
आताहैवहयुद्धमातर्उनकेजीवनतक हीसीिमतनहींहैवरन्उसेहमआजअपनेजीवनमेभ ं ीदेखसकतेहैं।
िवजयादशमी अथार्त् दसों इिन्दर्यों पर िवजय। हमारे इस पंचभौितक शरीर में पाँच
ज्ञानेिन्दर्याँ एवं पाँच कमेर्िन्दर्याँ हैं। इन दसों इिन्दर्यों पर िवजय पर्ाप्त करने वाला महापुर,ू
िदिग्वजी हो जाता है। रावण के पास िवशाल सैन्य बल तथा िविचतर् मायावी शिक्तयाँ थीं परन्तु शर्ीराम
के समक्ष उसकी एक भी चाल सफल नहीं हो सकी। कारण िक रावण अपनी इिन्दर्यों के वश में था जबिक
शीराम इिनदयजयी थे।
िजनकी इिन्दर्याँ बिहमुर्ख होती हैं, उनके पास िकतने भी साधन क्यों न हों ? उन्हें जीवन में
दुःख और पराजय का ही मुँह देखना पड़ता है। तथाकिथत रावण का जीवन इसका पर्त्यक्ष उदाहरण है।
जहाँ रावण की दसों भुजाएँ तथा दसों िसर उसकी दसों इिन्दर्यों की बिहमुर्खता को दशार् तेहैं वहीं
शीराम का सौमयरप उनकी इिनदयो पर िवजय-पर्ािप्त तथा परम शांित में उनकी िस्थित की खबर देता है। जहाँ
रावण का भयानक रूप उस पर इिन्दर्यों के िवकृत पर्भाव को दशार् ताहै, वहीं शर्ीराम का पर्सन्नमुख एवं
शात सवभाव उनके इिनदयातीत सुख की अनुभूित कराता है।
बबबबबबबबब बब बबबब
बबबब बबबबबबबबबब बब बबबब बब बबबब बब। बबबबब बब बबबब बब बबबब बब
। बबब
बबबब
बबबबबबबबबब बब बबबबबबबबबब । बब बबबब बब बबबब बबबबबबबबब बब बबबबब
बब बबबब बब बबबब बब।
बबबबबबब बब बबबबबब । बब बबबब बब बबबब बबबबबबबबब बब बबबबबबब बब
बबबब बब । बबबब बबब
बबबबबबबबबब बब बबबबबबबबब । बब बबबब बब बबबब बबबबबब बब बबब बब
बबबब बब । बबबब बबब
बबबबबबब बब बबबबबब बब बबबब बब बबबब बब बबब, बबबबबब बब बबबबबब बब
बबबब बब । बबबब बबब
दसों इिन्दर्यों में दस सदगुण एवं दस दुगुर्ण होते हैं। यिद हम शास्तर्सम्मत जीवन जीते हैं तो
हमारी इिन्दर्यों के दुगुर्ण िनकलते हैं तथा सदगुणों का िवकास होता है। यह बात शर्ीरामचन्दर्जी के
जीवन में स्पष्ट िदखती है। िकन्तु यिद हम इिन्दर्यों पर िवजय पर्ाप्त करने के बजाय भोगवादी
पर्वृित्तयों से जुड़कर इिन्दर्यों की तृिप्त के िलए उनके पीछे भागते हैं तो अन्त में हमारे जीवन
का भी वही हसर् होता है जो िक रावण का हुआ था। रावण के पास सोने की लंका तथा बड़ी-बड़ी मायावी
शिकतया थी परनतु वे सारी-की-सारी सम्पित्त उसकी इिन्दर्यों के सुख को ही पूरा करने में काम आती थीं। िकन्तु
युद्ध के समय वे सभी की सभी व्यथर् सािबत हुईं। यहाँ तक िक उसकी नािभ में िस्थत अमृत भी उसके काम
न आ सका िजसकी बदौलत वह िदिग्वजय पर्ाप्त करने का सामथ्यर् रखता था।
संक्षेप में, बिहमुर्ख इिन्दर्यों को भड़काने वाली पर्वृित्त भले ही िकतनी भी बलवान क्यों न हो
लेिकन दैवी समपदा के समक उसे घुटने टेकने ही पडते है। कमा, परोपकार, साधना, सेवा, शासतपरायणता, सत्यिनष्ठा,
कत्तर्व्य-परायणता, परोपकार, िनष्कामता एवं सत्संग आिद दसों इिन्दर्यों के दैवीगुण हैं। इन
दैवीगुणों से संपन्न महापुरूषों के द्वारा ही समाज का सच्चा िहत हो सकता है। इिन्दर्यों का बिहमुर्ख
होकर िवषयों की ओर भागना, यह आसुरी सम्पदा है। यही रावण एवं उसकी आसुरी शिक्तयाँ हैं। िकन्तु दसों
इिनदयो का दैवी समपदा से पिरपूणर होकर ईशरीय सुख मे तृपत होना, यही शर्ीराम तथा उनकी साधारण-सी िदखने वाली परम
तेजस्वी वानर सेना है।
पर्त्येक मनुष्य के पास ये दोनों शिक्तयाँ पायी जाती हैं। जो जैसा संग करता है उसी के
अनुरूप उसकी गित होती है। रावण पुलस्त्य ऋिष का वंशज था और चारों वेदों का ज्ञाता था। परन्तु बचपन
से ही माता तथा नाना के उलाहनों के कारण राक्षसी पर्वृित्तयों में उलझ गया। इसके ठीक िवपरीत
संतों के संग से शर्ीराम अपनी इिन्दर्यों पर िवजय पर्ाप्त करके आत्मतत्त्व में पर्ितिष्ठत हो गये।
अपनी दसों इिन्दर्यों पर िवजय पर्ाप्त करके उन्हें आत्मसुख में डुबो देना ही िवजयादशमी का
उत्सव मनाना है। िजस पर्कार शर्ीरामचन्दर्जी की पूजा की जाती है तथा रावण को िदयािसलाई दे दी जाती
है, उसी पर्कार अपनी इिन्दर्यों को दैवीगुणों से सम्पन्न िवषय-िवकारों को ितलांजली दे देना ही
िवजयादशमी का पवर् है।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबबबबब
जैन धमर् में कुल 24 तीथर्ंकर हो चुके हैं। उनमें एक राजकन्या भी तीथर्ंकर हो गयी िजसका
नाम था मिल्लकानाथ।
राजकुमारी मिल्लका इतनी खूबसूरत थी की कई राजकुमार व राजे उसके साथ ब्याह रचाना चाहते थे
लिकन वह िकसी को पसंद नही करती थी। आिखरकार उन राजकुमारो व राजाओं ने आपस मे एकजुट होकर मिललका के िपता को िकसी
युद्ध में हराकर मिल्लका का अपहरण करने की योजना बनायी।
मिल्लका को इस बात का पता चल गया। उसने राजकुमारों व राजाओं को कहलवाया िकः "आपलोगमुझ
पर कुबार्न हैं तो मैं भी आप सब पर कुबार्न हूँ। ितिथ िनशि ्चत किरये। आप लोग आकर बातचीत करें।
मैं आप सबको अपना सौन्दयर् दे दूँगी।"
इधर मिललका ने अपने जैसी ही एक सुनदर मूितर बनवायी थी एवं िनिशत की गयी ितिथ से दो चार िदन पहले से वह अपना भोजन
उसमें डाल िदया करती थी। िजस हाल में राजकुमारों व राजाओं को मुलाकात देनी थी, उसी हाल एक ओर
वह मूितर् रखवा दी गयी।
िनशि ्चत ितथी पर सारे राजा व राजकुमार आ गये। मूितर् इतनी हू-ब-हू थी िक उसकी ओर देखकर
राजकुमार िवचार कर ही रहे थे िकः "अब बोलेगी.... अब बोलेगी.....' इतने मे मिललका सवयं आयी तो सारे राजा व
राजकुमार उसे देखकर दंग रह गये िकः "वास्तिवक मिल्लका हमारे सामने बैठी है तो यह कौन है !"
मिल्लका बोलीः "यह पर्ितमा है। मुझे यही िवश् वासथा िक आप सब इसको ही सच्ची मानेंगे और
सचमुच में मैंने इसमें सच्चाई छुपाकर रखी है। आपको जो सौन्दयर् चािहए वह मैंने इसमें छुपाकर
रखा है।"
यह कहकर ज्यों ही मूितर् का ढक्कन खोला गया, त्यों-ही सारा कक्ष दुगर्न्ध से भर गया। िपछले
चार-पाँच िदन से जो भोजन उसमें डाला गया था उसके सड़ जाने से ऐसी भयंकर बदबू िनकल रही थी िक
सब छीः छीः कर उठे।
तब मिल्लका ने वहाँ आये हुए सभी को संबोिधत करते हुए कहाः
शरीर सुनदर िदखता है, मैंने वे ही खाद्य-सामिगर्याँ चार-पाँच िदनों से इसमें डाल रखी थीं। अब
ये सड़कर दुगर्न्ध पैदा कर रही हैं। दुगर्न्ध पैदा करने वाले इन खाद्यान्नों से बनी हुई चमड़ी पर
आपइतनेिफदाहोरहेहोतोइस अन्नको रक्तबनाकरसौन्दयर् देनेवालीयहआत्मािकतनीसुंदरहोगी! भाइयों ! अगर आप इसका
ख्याल रखते तो आप भी इस चमड़ी के सौन्दयर् का आकषर्ण छोड़कर उस परमात्मा के सौन्दयर् की तरफ
चलपड़ते।"
मिल्लका की ऐसी सारगिभर्त बातें सुनकर कुछ राजकुमार िभक्षुक हो गये और कुछ राजकुमारों ने
काम िवकार से अपना िपण्ड छुड़ाने का संकल्प िकया। उधर मिल्लका संतशरण में पहुँच गयी, त्याग और
तप से अपनी आत्मा को पाकर मिल्लयनात तीथर्ंकर बन गयी। अपना तन-मन सौंपकर वह भी परमात्मामय हो
गयी।
आजभीमिल्यनाथजैनधमर् केपर्िसद्धउन्नीसवे
तीथर्
ं ंकरकेनामसेसम्मािनतहोकरपूजीजारहीहैं।
अनुकर्म
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सतर् 41
बबबबबबब बब बबबबब
बात उस समय की है जब िदल्ली के िसंहासन पर औरंगजेब बैठ चुका था।
िवंध्यावािसनी देवी के मंिदर में उनके दर्शन हेतु मेला लगा हुआ ,था जहाँ लोगों की खूब भीड़
जमा थी। पन्नानरेश छतर्साल वक्त 13-14 साल के िकशोर थे। छतर्साल ने सोचा िक 'जंगल से फूल
तोड़कर िफर माता के दर्शन के िलए जाऊँ। ' उनके साथ हमउमर् के दूसरे राजपूत बालक भी थे। जब वे
लोग जंगल मे फूल तोड रहे थे, उसी समय छः मुसलमान सैिनक घोड़े पर सवार होकर वहाँ आये एवं उन्होंने
पूछाः "ऐ लड़के ! िवन्ध्यवािसनी का मंिदर कहाँ है ?"
छत स ा ल ः "भाग्यशाली हो, माता का दर्शन करने के िलए जा रहे हो। सीधे सामने जो टीला िदख
रहा है वहीं मंिदर है।"
सैिनकः "हम माता के दर्शन करने नहीं जा रहे , हम तो मंिदर को तोड़ने के िलए जा रहे हैं।"
छत स ा ल ः न े फू लो की डिल या एक दूस र े बालक को पकड ा य ी और गरज उठाः
"मेरे जीिवत रहते हुए तुम लोग मेरी माता का मंिदर तोड़ोगे ?"
सैिनकः "लडके ! तू क्या कर लेगा ? तेरी छोटी सी उमर्, छोटी सी तलवार .... तू क्या कर सकता है ?"
छत स ा ल न े एक गहरा श ा स िल या और ज ै स े हािथ यो क े झुं ड पर िसं ह टू ट पड त ा ह ै , वैसे ही
उन घुड़सवारों पर वह टूट पड़ा। छतर्साल ने ऐसी वीरता िदखाई िक एक को मार िगराया, दूसरा बेहोश हो
गया.....लोगो को पता चले उसके पहले ही आधा दजरन फौिजयो को मार भगाया। धमर की रका के िलए अपनी जान तक की परवाह नही की
वीर छतर्साल ने। वही वीर बालक आगे चलकर पन्नानरेश हुआ।
भारत के वीर सपूतों के िलए िकसी ने कहा हैः
बबब बबबबब बब बबबबब बबब, बबबब बबब । बबबबब बबब
बबब बबबबब बब बबबबबब बबब, बबबब बबबबब ।। बबबबबब बबबब
बबब बबबबब बबबबबब-बबब, बबबबब बबब । बबबबब बबब
बबब बबबबबबब बब बबबबबब बब, बबब बबबबबबबब ।। बब बबबबबबबबबबब
बबबब बबबबब बब बबब बब, बबब बबबबबब बब बबबबबबबब बबब।
बबब बबब बबब बबबबबब बब, बबब बबबबबब बब बबब बब।।
बबबबबब बबबबब बब बबबबबबब बब, बबब बबबबबबब बब बबबबबब बब।
िदनांकः 18 मई, 1999 को इस वीर पुरूष की जयंती है। ऐसे वीर धमर्रक्षकों की िदव्य गाथा यही याद
िदलाती है िक दुष्ट बनो नहीं और दुष्टों से भी डरो नहीं। जो आततायी व्यिक्त बहू-बेिटयों की इज्जत से
खेलता है या देश के िलए खतरा पैदा करता है, ऐसेबदमाशोंका सामनासाहसकेसाथकरनाचािहए।अपनीशिक्त
जगानी चािहए। यिद तुम धमर् एवं देश की रक्षा के िलए कायर् करते हो तो ईश् वरभी तुम्हारी सहायता करता
है।
'हिर ॐ...... हिर ॐ..... िहम्मत....साहस...... ॐ....ॐ..... बल... शिकत.... हिर ॐ.....ॐ......ॐ...' कसाकरकेभी
तुम अपनी सोयी हुई शिक्त को जगा सकते हो। अभी से लग जाओ अपनी सुषुप्त शिक्त को जगाने के कायर्
में और पर्भु को पाने में।
अनुकर्म
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बबबबबबब बबबबबबबबबब बबब बबबब बबबब बबबब
बबबबबबबब बबबबब बब बबबबबबब बबबब बब....
आजकलबाजारमेिबकन ं ेवालेअिधकांशटूथपेस्टोंमेफं ्लोराइडनामकरसायनका पर्योगिकयाजाताहै।यहरसायनशीशेतथा
आरसेिनकजैसािवषैलाहोताहै।इसकी थोड़ीसेमातर्ाभीयिदपेटमेप ं हुँचजायेतोकैंसरजैसे
रोगपैदाहोसकतेहैं।
अमेिरका के खाद्य एवं स्वास्थ्य िवभाग ने फ्लोराइड का दवाओं में पर्योग पर्ितबंिधत िकया
है। फ्लोराइड से होने वाली हािनयों से संबंिधत कई मामले अदालत तक भी पहुँचे हैं। इसेक्स
(इंगलैणड) के 10 वषीर्य बालक के माता-िपता को 'कोलगेट पामोिलव' कंपनी द्वारा 265 डॉलर का भुगतान िकया
गयाक्योंिकउनकेपुतर्को कोलगेटकेपर्योगसेफ्लोरोिससनामकदाँतोंकी बीमारीलगगयीथी।
अमेिरका के नेशनल कैंसर इन्सटीच्यूट के पर्मुख रसायनशास्तर्ी द्वारा की गयी एक शोध के
अनुसार अमेिरका में पर्ितवषर् दस हजार से भी ज्यादा लोग फ्लोराइड से उत्पन्न कैंसर के कारण
मृत्यु को पर्ाप्त होते हैं।
टू थपेसटो मे फलोराइड की उपिसथित िचनताजनक है, क्योंिक यह मसूढ़ों के अन्दर चला जाता है तथा अनेक
खतरनाक रोग पैदा करता है। छोटे बच्चे तो टूथपेस्ट को िनगल भी लेते हैं। फलतः उनके िलए तो यह
अत्यन्त घातक हो जाता है।
हमारे पूवर्ज पर्ाचीन समय से ही नीम तथा बबूल की दातौन का उपयोग करते रहे हैं। इनसे होने
वाले अनमोल लाभ 'लोक कलयाण सेतु' के अंक कर्मांक 33 तथा 10 में िवस्तारपूवर्क पर्काश ितिकये जा
चुकेहैं।
अनुकर्म
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बबबबबबबबबब बब बबबबबब बब बबबबब बबब बबब
बबबब
दाँतों को मजबूत बनाने और कीटाणुओं को दूर करने का दावा करने वाली टूथपेस्ट कंपिनयाँ आम
जनता के स्वास्थ्य के साथ िखलवाड़ कर रही हैं। सांस को ताजी तथा दाँतों को चमकदार बनाने के िलए
इन कंपिनयो दारा िजस रसायन का पयोग टू थपेसट बनाने मे िकया जा रहा है, उसकी पाक पूरी न हो पाने के कारण यह रसायन
जहर बनता जा रहा है, िजससे दाँतों के साथ-साथ मसूढ़ों को घातक बीमािरयों का सामना करना पड़ रहा
है।
इंिडयन मेिडकल एसोिसएशन (आई.एम.ए.) द्वारा पर्मािणत टूथपेस्ट बबबबबबबबबब बब बबबबबब बब
अपने लोकिपर्य िवज्ञापनों के बल पर िबकर्ी का रेकाडर् तोड़ रहे हैं जबिक िवज्ञान स्पष्ट कहता है
िक टूथपेस्ट में कैिल्सयम क्लोराइड का पर्योग िकया जाना तभी उिचत है जब वह पूरी तरह से पक गई हो।
उसका कच्चा पर्योग खतरनाक होता है। बाजार में टूथपेस्ट बेचने वाली कंपिनयों में कच्चे
कैिल्सयम क्लोराइड का सबसे अिधक पर्योग पेप्सोडेंट द्वारा िकया जा रहा है।
हालाँिक पेप्सोडेंटे कंपनी अपने टूथपेस्ट के िवज्ञापन अिभयान में लाखों रूपये खचर् कर
बाजारों के अिधकांश पर अपना अिधकार जमा रही है लेिकन मेिडकल िवटनेस (िचिकत्सासाक्ष्य ) के िहसाब
से पेप्सोडेंट को खतरनाक घोिषत िकया जा चुका है।
गतवषर् पेप्सोडेंटनेस्कूल मेब
ंच्चोंको मुफ्तपेप्सोडेंटटूथपेस्टिदयेथेतािकबच्चेइसको पसंदकरें।पेप्सोडेंटका कच्चा
कैश िल् क् यमलोराइड दाँतों को गला देता है िजससे एक पीला पदाथर् दाँतों पर चढ़ जाता है। इसके
बच्चे कैश िल् के यम छोटे टुकड़े दाँतों को नुकसान पहुँचाते हैं। पेप्सोडेंट में पर्योग िकया जाने
वाला रसायन दाँतों पर एक सफेद गीली परत बनाता है िजसके पर्भाव से मसूढ़े िछल जाते हैं। इन
रसायनों से मसूढ़ों की पकड़ ढीली हो जाती है और उसके िकनारे काले हो जाते हैं।
कुछ सूतर् बताते हैं िक सरकार ऐसी टूथपेस्ट कंपिनयों के िखलाफ कायर्वाही करने की योजना
बना रही है जो मेिडकल िफटनेस से परे हैं। ऐसे में पेप्सोडेंट जैसी कंपिनयों पर गाज िगर
सकती है।
भारत में एक ऐसी वनस्पित है जो पर्ाचीन काल से दाँतों को स्वस्थ बनाये रखने के िलए पर्योग
में लायी जाती है। उन वनस्पित का नाम है 'बबब'। नीम भारत के पर्ायः सभी स्थानों में पाया जाता है।
गाँवोंमेरंहनेवालेबुजग
ु र्
व्यिक्ततोआजभीनीमकी हीदातौनकरतेहैं।नीममेक
ं ीटाणुओंका मारनेवालेअनेकपर्ाकृितकरसायनहोतेहैं
िजससे दाँतों के कीड़े लगने अथवा दाँतों के कमजोर होने की सम्भावना ही नहीं रहती। इसके
अितिरक्त नीम का दातौन करने से मुँह में लार बनती है और यही लार भोजन को पचाने में अत्यन्त
सहयोगी होती है। अिधक लार बनने से भोजन जल्दी एवं अच्छी तरह से पचता है। अथार्त् नीम के
दातौन से पाचन-तंतर् को भी लाभ िमलता है तथा पाचन-संबन्धी अनेक बीमािरयाँ िबना दवाई के ही ठीक
हो जाती है।
अतः ऐसे जहरीले टूथपेस्टों के स्थान पर हमें पर्कृितदत्त सुरिक्षत साधनों का उपयोग करना
चािहए। इससेहमारास्वास्थ्यतोठीक रहताहीहै, साथ ही साथ हमारी मेहनत की कमाई को लूटकर ले जाने वाली
िवदेशी कंपिनयों के चंगुल से भी हमारे धन की सुरक्षा होती है तथा देश की आिथर्क िस्थित सुदृढ़ हो
जाती है।
अनुकर्म
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सतर् 42
बबबबबब बब बबबबब बबबबबबब
उत्तरायण, िशवराती, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरातर्ी, दशहरा आिद त्यौहारो को मनाते-मनाते
आ जातीहैंपवोर्क
ं ी हारमाला-दीपावली। पवोर्ं के इस पुंज में 5 िदन मुख्य हैं- धनतेरस, काली चौदस, दीपावली,
नूतन वषर् और भाईदूज। धनतेरस से लेकर भाईदूज तक के ये 5 िदन आनंद उत्सव मनाने के िदन हैं।
शरीर को रगड-रगड़ कर स्नान करना, नये वस्तर् पहनना, िमठाइयाँ खाना, नूतन वषर् का अिभनंदन
देना-लेना. भाईयों के िलए बहनों में पर्ेम और बहनों के पर्ित भाइयों द्वारा अपनी िजम्मेदारी
स्वीकार करना – ऐसे मनाये जाने वाले 5 िदनों के उत्सवों के नाम है 'दीपावली पवर्।'
बबबबबबब धनवंतिर महाराज खारे-खारे सागर में से औषिधयों के द्वारा शारीिरक स्वास्थ्य-संपदा
से समृद्ध हो सके, ऐसी स्मृितदेता हुआजोपवर् है
, वही है धनतेरस। यह पवर् धन्वंतिर द्वारा पर्णीत आरोग्यता
के िसद्धान्तों को अपने जीवन में अपना कर सदैव स्वस्थ और पर्सन्न रहने का संकेत देता है।
बबबब बबबबब धनतेरस के पशात आती है 'नरक चतुदर्शी (काली चौदस)'। भगवान शर्ीकृष्ण ने नरकासुर
को कर्ूर कमर् करने से रोका। उन्होंने 16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी
और नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया। नरकासुर पतीक है – वासनाओं के समूह और अहंकार का। जैसे, शीकृषण ने उन कनयाओं को अपनी
शरण देकर नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया, वैसे ही आप भी अपने िचत्त में िवद्यमान नरकासुररूपी अहंकार और
वासनाओं के समूह को शर्ीकृष्ण के चरणों में समिपर्त कर दो, तािक आपका अहं यमपुरी पहुँच जाय और
आपकीअसंख्यवृित्तयाश ँर्ीकृष्णकेअधीनहोजायें।ऐसा स्मरणकराताहुआपवर् हैनरक चतुदर्शी।
इन िदनो मे अंधकार मे उजाला िकया जाता है। हे मनुषय ! अपने जीवन में चाहे िजतना अंधकार िदखता हो, चाहे
िजतना नरकासुर अथार्त् वासना और अहं का पर्भाव िदखता हो, आपअपनेआत्मकृष्णको पुकारना। शर्ीकृष्ण रुिक्मणीको
आगेवानीदेकरअथार्त्अपनीबर्ह्मिवद्यक
ा ो आगेकरकेनरकासुरको िठकानेलगादेंगे।
िस्तर्यों में िकतनी भी शिक्त है। नरकासुर के साथ केवल शर्ीकृष्ण लड़े हों , कसीबातनहींहै।
शीकृषण के साथ रिकमणी जी भी थी। सोलह-सोलह हजार कन्याओं को वश में करने वाले शर्ीकृष्ण को एक स्तर्ी
(रुक्मणीजी) ने वश में कर िलया। नारी में िकतनी अदभुत शिक्त है इसकी याद िदलाते हैं शर्ीकृष्ण।
बबबबबबबब िफर आता है आता है दीपो का तयौहार – दीपावली। दीपावली की राती को सरसवती जी और लकमी जी का
पूजन िकया जाता है। ज्ञानीजन केवल अखूट धन की पर्ािप्त को लक्ष्मी नहीं, िवत्त मानते हैं। िवत्त से
आपकोबड़-ेबड़े बँगले िमल सकते हैं, शानदार महँगी गािडया िमल सकती है, आपकी लंबी-चौड़ीपर्शंसाहो सकती हैपरंतु
आपकेअंदरपरमात्माका रस नहींआ सकता। इसीिलएदीपावलीकी रातर्ीको सरस्वतीजीका भी पूजन िकया जाता है, िजससे
लकमी के साथ आपको िवदा भी िमले। यह िवदा भी केवल पेट भरने की िवदा नही वरन् वह िवदा िजससे आपके जीवन मे मुिकत के पुषप
महकें। बब बबबबबब । बब बबबबबबबबबब किहक िवद्याके साथ-साथ कसी मुिक्तपर्दायक िवद्या,
बर्ह्मिवद्या आपके जीवन में आये, इसके िलए सरसवती जी का पूजन िकया जाता है।
आपकािचत्तआपकोबाँधनेवालान हो, आपकाधन आपकाधन आपकीआयकरभरनेकी िचंताको न बढ़ाय,ेआपकािचत्तआपको
िवषय िवकारों में न िगरा दे, इसीिलए दीपावली की राित को लकमी जी का पूजन िकया जाता है। लकमी आपके जीवन मे महालकमी
होकर आये। वासनाओं के वेग को जो बढ़ाये, वह िवत्त है और वासनाओं को शर्ीहिर के चरणों में
पहुँचाए, वह महालक्ष्मी है। नारायण में पर्ीित करवाने वाला जो िवत्त है, वह है महालक्ष्मी।
बबबब बबबबब दीपावली वषर् का आिखरी िदन है और नूतन वषर् पर्थम िदन है। यह िदन आपके
जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का िदन है।
दीपावली की रातर्ी में वषर्भर के कृत्यों का िसंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वषर् के िलए
शुभ संकलप करके सोये। उस संकलप को पूणर करने के िलए नववषर के पभात मे अपने माता-िपता, गुरज
ु नों, सज्जनों, साधु-संतों
को पर्णाम करके तथा अपने सदगुरु के शर्ीचरणों में जाकर नूतन वषर् के नये पर्काश, नये उत्साह और
नयी पर्ेरणा के िलए आशीवार्द पर्ाप्त करें। जीवन में िनत्य-िनरंतर नवीन रस, आत्मरस, आत्मानंदिमलता
रहे, ऐसाअवसरजुटाने कािदनहै'नूतन वषर्।'
बबबबबबब उसके बाद आता है भाईदूज का पवर्। दीपावली के पवर् का पाँचनाँ िदन। भाईदूज
भाइयों की बहनों के िलए और बहनों की भाइयों के िलए सदभावना बढ़ाने का िदन है।
हमारा मन एक कल्पवृक्ष है। मन जहाँ से फुरता है, वह िचदघन चैतन्य सिच्चदानंद परमात्मा
सत्यस्वरूप है। हमारे मन के संकल्प आज नहीं तो कल सत्य होंगे ही। िकसी की बहन को देखकर यिद मन
दुभार्व आया हो तो भाईदूज के िदन उस बहन को अपनी ही बहन माने और बहन भी पित के िसवाये 'सब पुरुष
मेरे भाई हैं' यह भावना िवकिसत करे और भाई का कल्याण हो – ऐसा संकल्प करे। भाई भी बहन की उन्नित
का संकल्प करे। इस पर्कार भाई-बहन के परस्पर पर्ेम और उन्नित की भावना को बढ़ाने का अवसर देने
वाला पवर् है 'भाईदूज'।
िजसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में िवकास भी नहीं है। िजसके जीवन में उत्सव
नहीं, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के करीब भी नहीं है।
भारतीय संस्कृित के िनमार्ता ऋिषजन िकतनी दूरदृिष्टवाले रहे होंगे ! महीने में अथवा वषर्
में एक-दो िदन आदेश देकर कोई काम मनुष्य के द्वारा करवाया जाये तो उससे मनुष्य का िवकास संभव
नहीं है। परंतु मनुष्य यदा कदा अपना िववेक जगाकर उल्लास, आनंद, पर्सन्नता, स्वास्थ्य और स्नेह का गुण
िवकिसत करे तो उसका जीवन िवकिसत हो सकता है। मनुष्य जीवन का िवकास करने वाले ऐसे पवोर्ं का
आयोजनकरकेिजन्होंने हमारेसमाजका िनमार्णिकयाहै
, उन िनमार्ताओं को मैं सच्चे हृदय से वंदन करता हूँ....
अभी कोई भी ऐसा धमर् नहीं है, िजसमें इतने सारे उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग धयानमगन हो जाते
हों, भाव-समािधस्थ हो जाते हों, कीतर्न में झूम उठते हों। जैसे, स्तंभ के बगैर पंडाल नहीं रह
सकता, वैसे ही उत्सव के िबना धमर् िवकिसत नहीं हो सकता। िजस धमर् में खूब -खूब अच्छे उत्सव हैं,
वह धमर् है सनातन धमर्। सनातन धमर् के बालकों को अपनी सनातन वस्तु पर्ाप्त हो, उसके िलए उदार
चिरतर्बनानेका जोकामहैवहपवोर् , ंउत्सवों और सत्संगों के आयोजन द्वारा हो रहा है।
पाँच पवोर्ं के पुंज इस दीपावली महोत्सव को लौिकक रूप से मनाने के साथ-साथ हम उसके
आध्याित्मकमहत्त्वको भीसमझ,ेंयही लक्ष्य हमारे पूवर्ज ऋिष मुिनयों का रहा है।
इस पवरपुंज के िनिमत ही सही, अपने ऋिष-मुिनयों के, संतों के, सदगुरुओं के िदव्य ज्ञान के आलोक
में हम अपना अज्ञानांधकार िमटाने के मागर् पर शीघर्ता से अगर्सर हों – यही इस दीपमालाओं के
पवर् दीपावली का संदेश है।
आपसभीको दीपावलीहेतु, खूब-खूब बधाइयाँ.... आनंद-ही-आनंद... मंगल-ही-मंगल....
अनुकर्म
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बबबबबबब बब बबबबबबबब
धनतेरस, नरक चतुदर्शी (काली चौदस), लकमी-पूजन (दीपावली), गोवधर्नपूजन
(अन्नकूट) या नूतन वषर् और भाई-दूज, इन पाच पवों के पुंज का नाम ही है दीपावली का
पावन त्यौहार। दीपावली का पावन पवर् अंधकार में पर्काश करने का पवर्
है। वह हमें यह संदेश देता है िक हम भी अपने हृदय से अज्ञानरूपी
अंधकार को िमटाकर ज्ञानरूपी पर्काश भर सकें।
बाह्य दीप जलाने से बाहर पर्काश होता है, भीतर नहीं और जब तक
भीतर का दीप, ज्ञान का दीप पर्ज्जविलत नहीं होता, तब तक वास्तिवक
दीपावली भी नहीं मनती, केवल लौिकक दीपावली ही मनायी जाती है।
भगवान शर्ीराम लंका िवजय करके िजस िदन अयोध्या लौटे थे, उस िदन अयोध्यावािसयों ने घर-
आँगनकी साफ-सफाई करके अनेकों दीप जलाये थे। उसी िदन से दीपावली का पवर् मनाया जाने लगा, कसीभी
एक मानयता है। हमारे अनतःकरण मे भी काम, कर्ोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष, ममता, अहंतारूपी कूड़ा-कचरा भरा है,
अिवद्यारूपी अंधकार भरा है। िजस िदन हम अपने अंतःकरण से इन कूड़े कचरों को, इन दोषो को हटा देगे,
बर्ह्मज्ञानरूपी दीपक को जलाकर अज्ञान अंधकार को िमटा देंगे, उसी िदन हमारे हृदयरूपी अवध में
आनंददेवका, शीराम का आगमन हो जायगा। यही है पारमािथरक दीपावली।
मैं दीपावली के इस पावन पवर् पर तुम्हारे भीतर ज्ञान का ऐसा दीप पर्ज्जविलत करना चाहता हूँ,
िजससे अज्ञानतापूवर्क स्वीकार की गयी तुम्हारी दीनता-हीनता, भय और शोकरूपी अंधकार नष्ट हो जाय।
िफर तुमहे हर वषर की तरह िभकापात लेकर तुचछ सुखो की भीख के िलए अपने उन िमत और कुटुिमबयो के समक खडे नही रहना पडेगा, जो
िक स्वयं भी माँगते रहते हैं। मैं तुम्हारे ही भीतर छुपे हुए उस खजाने के द्वार खोलना चाहता हूँ,
िजससे तुम अपने स्वरूप में जग जाओ और अपने सुख के मािलक आप बन जाओ।
परम ओजस्वी-तेजस्वी जीवन िबताओ, यही इस दीपावली पर शुभकामना है।
अनुकर्म
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बबबब बब बबबबबब बब बबबबब बब बबबबबबब बबबब
बब
महान संत शर्ी बाबा रामदेव की स्मृित में जैसलमेर (राज.) में रामदेवरा मेला लगा था। उनकी
समािध के दर्शनों के िलए हजारों शर्द्धालु पैदल यातर्ा करके अथवा अन्य साधनों से रामदेवरा
पहुँचे।
गुजरातराज्यकेबनासकांठानामकस्थानसेभी शर्द्धालुभक्तपैदलहीबाबाकी समािधकेदर्शनों हेतुिनकले।इन्हींपदयाितर्योक ंे
साथ एक कुत्ता भी हो िलया। लगभग आठ सौ िक.मी. की पदयातर्ा के दौरान पदयातर्ीगण तो मागर् में राितर्-
िवशर्ाम के समय सुबह-शाम भोजन करते परनतु इस कुते ने पदयाता पारमभ होते ही अन जल का तयाग कर िदया। पदयाितयो ने मागर
में उसे पानी एवं दूध िपलाने के भरसक पर्यास िकये परन्तु उसने हर बार मुँह फेर िलया। भोजन
सामगर्ी को तो वह छूता भी नहीं था।
यह पदयातर्ी जत्था जब रामदेवरा िस्थत एक धमर्शाला में पहुँचा तो वह कुत्ता भी अन्दर आ गया।
इस पर जब धमरशाला के संचालक ने कुते के अनदर आने पर आपित जताई तो पदयाितयो ने उनहे वसतुिसथित से अवगत कराया। लगभग
20 िदन की यातर्ा के कारण कुत्ता भूखा-प्यासा मरणासन्न िस्थित में पहुँच चुका था। जब धमर्शाला के
संचालक ने कुत्ते को दूध तथा पानी िपलाने की कोश श ि की तो कुत्ते ने उसकी तरफ आँख उठाकर भी नहीं
देखा। इस पर धमर्शाला में ठहरे हुए अन्य यातर्ीगण भी कुत्ते की इस भिक्त-भावना को देखकर गदगद हो
गये।सभीनेइस भक्तकेपर्ितहाथजोड़कसम्मानपर्दशि र्तिकया।
बनासकांठा से आये हुए पदयाितर्यों की इच्छा थी िक सुबह ही बाबा के दर्शन करेंगे परन्तु
कुत्ते की दशा को देखकर धमर्शाला के संचालक ने उन्हें राितर् में ही दर्शन करने की सलाह दी तथा
मिन्दर सिमित के मुनीम से कुत्ते को मंिदर में पर्वेश देने की िसफािरश की।
पदयाितर्यों ने कुत्ते को कंधे पर ले जाकर बाबा रामदेव की समािध के दर्शन कराये। याितर्यों
का कहना था िक कुत्ते ने अत्यन्त शर्द्धा भावना के साथ समािध के दर्शन िकये तथा उसकी आँखों से
आँसुओंकी धाराबहनेलगी।
दर्शन करने के पश् चातउसने भरपेट पानी िपया तथा अन्न गर्हण िकया।
अनुकर्म
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बबबबबब बबबबब
तप कई पर्कार के होते हैं। जैसे शारीिरक, मानिसक, वािचक आिद। ऋिषगण कहते हैं िक मन की
एकागता सब तपो मे शेष तप है।
िजसके पास एकागर्ता के तप का खजाना है, वह योगी िरद्धी-िसद्घी एवं आत्मिसिद्ध दोनों को
पर्ाप्त कर सकता है। जो भी अपने महान कमोर्ं के द्वारा समाज में पर्िसद्ध हुए हैं, उनके जीवन में
भी जाने-अनजाने एकागर्ता की साधना हुई है। िवज्ञान के बड़े-बड़े आिवष्कार भी इस एकागर्ता के
तप के ही फल हैं।
एकागता की साधना को पिरपकव बनाने के िलए ताटक एक महततवाकाकी सथान रखता है। ताटक का अथर है िकसी िनिशत आसन
पर बैठकर िकसी िनशि ्चत वस्तु को एकटक देखना।
तर्ाटक कई पर्कार के होते हैं। उनमें िबन्दु तर्ाटक, मूितर् तर्ाटक एवं दीपज्योित तर्ाटक पर्मुख
हैं। इनके अलावा पर्ितिबम्ब तर्ाटक, सूयर् तर्ाटक, तारा तर्ाटक, चन्दर्
तर्ाटकआिदतर्ाटकोंका वणर्नभी शास्तर्ोम
ं ें
आताहै।यहाँपरपर्मुखतीनतर्ाटकोंका हीिववरणिदयाजारहाहै।
बबबबब िकसी भी पर्कार के तर्ाटक के िलए शांत स्थान होना आवश् यकहै, तािक तर्ाटक
करनेवाले साधक की साधना में िकसी पर्कार का िवक्षेप न हो।
भूिम पर स्वच्छ, िवद्युत-कुचालक आसन अथवा कम्बल िबछाकर उस पर सुखासन, पद्मासन अथवा
िसद्धासन में कमर सीधी करके बैठ जायें। अब भूिम से अपने िसर तक की ऊँचाई माप लें। िजस वस्तु
पर आप तर्ाटक कर रहे हों, उसे भी भूिम से उतनी ही ऊँचाई तथा स्वयं से भी उस वस्तु की उतनी ही दूरी
रखें।
अनुकर्म
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बबबबबब बबबबबब
8 से 10 इंच की लमबाई व चौडाई वाले िकसी सवचछ कागज पर लाल रंग से सवािसतक का िचत बना
ले। िजस िबनदु पर सविसतक की चारो भुजाएँ िमलती है, वहाँ पर सलाई से काले रंग का एक िबन्दु
बना लें।
अब उस कागज को अपने साधना-कक्ष में उपरोक्त दूरी के अनुसार स्थािपत कर
दें। पर्ितिदन एक िनशि ्चत समय व स्थान पर उस काले िबन्दु पर तर्ाटक करें। तर्ाटक
करते समय आँखों की पुतिलयाँ न िहलें तथा न ही पलकें िगरें, इस बात का धयान रखे।
पर्ारम्भ में आँखों की पलकें िगरेंगी िकन्तु िफर भी दृढ़ होकर अभ्यास
करते रहें। जब तक आँखों से पानी न टपके, तब तक िबन्दु को एकटक िनहारते रहें।
इस पकार पतयेक तीसरे चौथे िदन ताटक का समय बढाते रहे। िजतना-िजतना समय अिधक बढ़ेगा, उतना ही अिधक
लाभ होगा।
अनुकर्म
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बबबबबब बबबबबब
िजन िकसी देवी-देवता अथवा संत-सदगुरू में आपकी शर्द्धा हो, िजन्हें आप स्नेह करते हों,
आदरकरतेहोंउनकी मूितर् अथवाफोटोको अपनेसाधना-कक्ष में ऊपर िदये गये िववरण के अनुसार स्थािपत कर
दें।
अब उनकी मूितर् अथवा िचतर् को चरणों से लेकर मस्तक तक शर्द्धापूवर्क िनहारते रहें। िफर
धीरे-धीरे अपनी दृिष को िकसी एक अंग पर िसथत कर दे। जब िनहारते-िनहारते मन तथा दृिष्ट एकागर् हो जाय, तब आँखों
को बंद करके दृिष्ट को आज्ञाचकर् में एकागर् करें।
इस पकार का िनतय अभयास करने से वह िचत आँखे बनद करने पर भी भीतर िदखने लगेगा। मन की वृितयो को एकाग करने मे यह
तर्ाटक अत्यन्त उपयोगी होता है तथा अपने इष्ट अथवा सदगुरू के शर्ीिवगर्ह के िनत्य स्मरण से साधक
की भिक्त भी पुष्ट होती है।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बबबबबब
अपने साधना कक्ष में घी का दीया जलाकर उसे ऊपर िलखी दूरी पर रखकर उस पर तर्ाटक करें।
घी का दीया न हो तो मोमबत्ती भी चल सकती है परन्तु घी का दीया हो तो अच्छा है।
इस पकार दीये की लौ को तब तक एकटक देखते रहे, जब तक िक आँखों से पानी न िगरने लगे। तत्पश् चात्
आँखेबन्दकरके
ं भृकट ु ी (आज्ञाचकर्) में लौ का ध्यान करें।
तर्ाटक साधना से अनेक लाभ होते हैं। इससे मन एकागर् होता है और एकागर् मनयुक्त व्यिक्त
चाहेिकसी भीक्षेतर्
मेक ं ायर्रतहो, उसका जीवन चमक उठता है। शर्ेष्ठ मनुष्य इसका उपयोग आध्याित्मक उन्नित
के िलए ही करते हैं।
एकाग मन पसन रहता है, बुिद्ध का िवकास होता है तथा मनुष्य भीतर से िनभीर्क हो जाता है। व्यिक्त का
मन िजतना एकागर् होता है, समाज पर उसकी वाणी का, उसके स्वभाव का एवं उसके िकर्या-कलापों का
उतना ही गहरा पर्भाव पड़ता है।
साधक का मन एकागर् होने से उसे िनत्य नवीन ईश् वरीयआनंद व सुख की अनुभूित होती है। साधक
का मन िजतना एकागर् होता है, उसके मन में उठने वाले संकल्पों (िवचारों) का उतना ही अभाव हो जाता
है। संकल्प का अभाव हो जाने से साधक की आध्याित्मक यातर्ा तीवर् गित से होने लगती है तथा
उसमें सत्य संकल्प का बल आ जाता है। उसके मुख पर तेज एवं वाणी में भगवदरस छलकने लगता है।
इस पकार ताटक लौिकक एवं आधयाितमक दोनो केतो के वयिकतयो के िलए लाभकारी है।
अनुकर्म
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सतर् 43
बबबबबबबबबबबबब बब बबब बबबबब
गुरू वश िष्ठजीमहाराजभगवानशर्ीरामचन्दर्जीसेकहतेहै-ं
बबब बबब बबबबबबबब।बबबब बबबबबबब बबबबबबब
बबबबबब बबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबबब।।
'िकसी भी पर्कार से िकसी भी देहधारी को सन्तोष देना यही ईश् वर-पूजन है।'
(शी योग वािशष महारामायण)
कैसे भी करके िकसी भी देहधारी को सुख देना, सन्तोष देना यह ईश् वरका पूजन है, क्योंिक
पर्त्येक देहधारी में परमात्मा का िनवास है।
बब बबबबबब बबबब ।बबबब बब बबबब बब बबबब
बबबबबब बब बबबब।।बबब बबब बबब बब बबबबब
हमारा शरीर चल है, इसका कोई भरोसा नही। िकसकी िकस पकार, िकस िनिमत्त से मृत्यु होने वाली है कोई
पता नहीं।
मोरबी (सौराष्टर्) में मच्छू बाँध टूटा और हजारों लोग बेचारे यकायक चल बसे। भोपाल गैस
दुघर्टना में एक साथ बीस-बीस हजार लोग काल के गर्ास बन गये। कहीं पाँच जाते हैं कहीं पच्चीस
जाते हैं। बदर्ीनाथ के मागर् पर बस उल्टी होकर िगर पड़ी, कई लोग मौत का िकार श ब न गये। इस देह का
कोई भरोसा नहीं।
बब बबबबबब बबबब ।बबबब बब बबबब बब बबबब
वैभव चल है। करोड़पित, अरबपित आदमी कब फूटपाथित हो जाय, कोई पता नहीं। यौवन कब
वृद्धावस्था में पिरवितर्त हो जायेगा, कब बीमारी पकड़ लेगी कोई पता नहीं। आज का जवान और
हट्टाकट्टा िदखने वाला आदमी दो िदन के बाद कौन-सी पिरिस्थित में जा िगरेगा, कोई पता नहीं। अतः
हमें अपने शरीर का सदुपयोग कर लेना चािहए।
शरीर का सदुपयोग यही है िक िकसी देहधारी के काम आ जाना। मन का सदुपयोग है िकसी को आशासन देना, सान्तवना
देना। अपने पास साधन हों तो चीज़-वस्तुओं के द्वारा जरूरतमन्द लोगों की यथायोग्य सेवा करना।
ईश् वरकी दीहुई वस्तु ईश् व-रपर्ीत्यथर् िकसी के काम में लगा देना। सेवा को सुवणर्मय मौका समझकर सत्कमर्
कर लेना।
वश िष्ठजीमहाराज कहते हैं- "हे राम जी ! येन केन पर्कारेण....।" िकसी भी देहधारी को कैसे
भी करके सुख देना चािहए, चाहेवहपालाहुआकुत्ताहोयाअपनातोताहो, पड़ोसी हो या अपना भाई या बहन हो, िमतर्
हो या कोई अजनबी इन्सान हो। अपनी वाणी ऐसी मधुर, िस्नग्ध और सारगिभर्त हो िक िजससे हम सभी की
सेवा कर सके।
शरीर से भी िकसी की सेवा करनी चािहए। रासते मे चलते वकत िकसी पंगु मनुषय को सहायरप बन सकते हो तो बनना चािहए।
िकसी अनजान आदमी को मागर्दर्शन की आवश् यकताहो तो सेवा का मौका उठा लेना चािहए। कोई वृद्ध,हो
अनाथ हो तो यथायोग्य सेवा कर लेने का अवसर नहीं चूकना चािहए। सेवा लेने वाले की अपेक्षा
सेवा करने वाले को अिधक आनन्द िमलता है।
भूखे को रोटी देना, प्यासे को जल िपलाना, हारे हुए, थकेहुएको स्नेहकेसाथ सहायकरना, भूले हुए को
मागर् िदखाना, अश ििक्षतको िक् श षदा ेना और अभक्त को भक्त बनाना चािहए। बीड़ी , िसगरेट, शराब और जुआ
जैसे व्यसनों में कैसे हुए लोगों को स्नेह से समझाना चािहए। सप्ताह में पन्दर्ह िदन में एक बार
िनकल पड़ना चािहए अपने पड़ोस में, मुहल्लों में। अपने से हो सके ऐसी सेवा खोज लेनी चािहए।
इससे आपका अनतःकरण पिवत होगा, आपकीछुपीहुई शिक्तयाँजागृतहोंगी।
आपकेिचत्तमेप ं रमात्माकी असीमशिक्तयाँहैं।इनअसीमशिक्तयोंका सदुपयोगकरनाआजायतोबेड़ापारहोजाय।
कलकत्ता में 1881 में प्लेग की महामारी फैल गयी। स्वामी िववेकानन्द सेवा में लग गये।
उन्होंने अन्य िवद्यािथर्यों एवं संन्यािसयों से कहाः
"हम लोग दीन-दुःखी, गरीबलोगोंकी सेवामेल ं गजायें।"
उन लोगों ने कहाः "सेवा में तो लग जायें लेिकन दवाइयाँ कहाँ से देंगे ? उनको पौिष्टक
भोजन कहाँ से देंगे ?"
िववेकानन्द ने कहाः "सेवा करते-करते अपना मठ भी बेचना पड़े तो क्या हजर् है ? अपना
आशर्मबेचकरभीहमेसेवा ं करनीचािहए।"
िववेकानन्द सेवा में लग गये। आशर्म तो क्या बेचना था ! भगवान तो सब देखते ही हैं िक ये
लोग सेवा कर रहे है। लोगो के हृदय मे पेरणा हुई और उनहोने सेवाकायर उठा िलया।
स्वामी िववेकानन्द का िनश् चयथा िक सेवाकायर् के िलए अपना मठ भी बेचना पड़े तो साधु-
संन्यािसयों को तैयारी रखना चािहए। जनता-जनादर्न की सेवा में जो आनन्द व जीवन का कल्याण है वह
भोग भोगने में नहीं है। िवलासी जीवन में, ऐश आरामकेजीवनमें वहसुख नहीं
है।
िबहार में 1967 में अकाल पड़ा। रिवशंकर महाराज गुजरात में अहमदाबाद के िकसी स्कूल में
गयेऔरबच्चोंसेउन्होंने कहाः
"बच्चों ! आपलोगयुिनफामर् पहनकरस्कूल मेप ं ढ़नेकेिलएआतेहैं।आपकोसुबहमेन ं ाश्तािमलताहै
, दोपहर को भोजन
िमलता है, शाम को भी भोजन िमलता है। िकंतु िबहार मे ऐसे बचचे है िक िजन बेचारो को नाशता तो कया, एक बार का भरपेट भोजन भी
नसीब नहीं होता। ऐसे भी गरीब बच्चे हैं िजन बेचारों को पहनने के िलए कपड़े नहीं िमलते। ऐसे भी
बच्चे हैं िजनको पढ़ने का मौका नहीं िमलता।
मेरे प्यारे बच्चों ! आपकेपासतोदो-पाँच पोशाक होंगे िकन्तु िबहार में आज ऐसे भी छातर् हैं
िजनके पास दो जोड़ी कपड़े भी नहीं हैं। िबहार में अकाल पड़ा है। लोग तड़प-तड़पकर मर रहे हैं।
सबके देखते ही देखते एक िनदोर्ष बालक उठ खड़ा हुआ। िहम्मत से बोलाः
"महाराज ! आपयिदवहाँजानेवालेहोंतोमैअ ं पनेयेकपड़ेउतारदेताहूँ। मैए
ं कसप्ताहतक शामका भोजनछोड़दूँगाऔर
मेरे िहस्से का वह अनाज घर से माँग कर ला देता हूँ। आप मेरी इतनी सेवा स्वीकार करें।"
बच्चों के भीतर दया छुपी हुई है, पर्ेम छुपा हुआ है, स्नेह छुपा हुआ है, सामथ्यर् छुपा हुआ है।
अरे ! बच्चों के भीतर भगवान योगेश् वर, परबर्ह्म परमात्मा छुपे हुए हैं।
देखते ही देखते एक के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा.... करते-करते सब बच्चे गये अपने घर अनाज
लाकर सकूल मे ढेर कर िदया।
रिवशंकर महाराज ने थोड़ी सी शुरूआत की। वे जेतलपुर के स्कूल में गये और वहाँ पर्वचन
िकया। वहाँ एक िवद्याथीर् खड़ा होकर बोलाः
"महाराज ! कृपा करके आप हमारे स्कूल में एक घण्टा ज्यादा ठहरें।"
"क्यों भाई ?"
"मैं अभी वापस आता हूँ।"
कहकर वह िवद्याथीर् घर गया। दूसरे भी सब बच्चे घर गये और वापस आकर स्कूल में अनाज व
कपड़ों का ढेर कर िदया।
बाद में सेठ लोग भी सेवा में लग गये। लाखों रूपयों का दान िमला और िबहार में सेवाकायर्
शुर हो गया।
रिवशंकर महाराज कहते हैं-
"मुझे इस सेवाकायर् की पर्ेरणा अगर िकसी ने दी है तो इन नन्हें-मुन्ने बच्चों ने दी। मुझे
आजपताचलािक छोट-ेछोट े िव द ा िथर य ो म े भी कु छ स े व ा कर ल े न े की त त प रत ा होती ह ै , कुछ देने की
तत्परता होती है। हाँ, उनकी इस तत्परता को िवकिसत करने की कला, सदुपयोग करने की भावना होनी
चािहए।"
िवद्यािथर्यों में देने की तैयारी होती है। और तो क्या, अपना अहं भी देना हो तो उनके िलये
सरल है। अपना अहं देना बड़ों को किठन लगता है। बच्चे को अगर कहें िक ''बैठ जा" तो बैठ जायेगा
और कहे 'खड़ा हो जा' तो खड़ा हो जायगा। उठ बैठ करायेंगे तो भी करेगा क्योंिक अभी वह िनखालस है।
यह बाल्यावस्था आपकी बहुत उपयोगी अवस्था है, बहुत मधुर अवस्था है। आपको, आपकेमाता-िपता को,
आचायोर्को
ं इसका सदुपयोगकरनेकी कलािजतनीअिधकआयेगीउतनेअिधकआपमहानबनसकेंगे।
राजा िवकर्मािदत्य अपने अंगरक्षकों के स्थान पर, अपने िनजी सेवकों के स्थान पर िकशोर वय
के बच्चों को िनयुक्त करते थे। राजा जब िनदर्ा लेते तब छोटी-सी तलवार लेकर चौकी करने वाले
िकशोर उमर् के बच्चे उनके पास ही रहते थे।
िकसी को कहीं सन्देश भेजना हो, कोई समाचार कहलवाना हो तो िकशोर दौड़ते हुए जायेगा। बड़ा
आदमीिकशोरकी तरहभागकरनहींजाता।
आपकीिकशोरावस्थाबहुतहीउपयोगीअवस्थाहै , साहिसक अवस्था है, िदव्य कायर् कर सको कसीयोग्यता
पर्कट करने की अवस्था है।
भगवान रामचन्दर्जी जब सोलह साल के थे उन िदनों में गुरू वश िष्ठजीने उपदेश िदया है िकः
'बबब बबबब बबबबबबबब.....'
आपसेहोसकेउतनेपर्ेम सेबातकरो। आपमाँकी थकानउतारसकतेहो। िपतासेकुछ सलाहपूछो, उनकी सेवा करो।
िपता के हृदय में अपना स्थान ऊँचा बना सकते हो। पड़ोसी की सहाय करने पहुँच जाओ। आपके पड़ोसी
िफर आपको देखकर गदगद हो जायेगे। सकूल मे तनमय होकर पढो, समझो, सोचो, तो िक्
श षकक ा हृदय पर्सन्न होगा।
पर्ातःकाल उठकर पहले ध्यानमग्न हो जाओ। दस िमनट मौन रहो। संकल्प करो िक आज के िदन खूब
तत्परता से कायर् करना है, उत्साह से करना है। 'येन केन पर्कारेण.....।' िकसी भी पर्कार से िकसी के
भी काम में आना है, उपयोगी होना है। ऐसा संकल्प करेंगे तो आपकी योग्यता बढ़ेगी। आपके भीतर
ईश् वरकी असीमशिक्तयाँहैं।िजतनेअंशमेआ
ं पिनखालसहोकरसेवामेल ं गजायेंगउतनीवे
े शिक्तयाँजागृतहोंगी।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबब-बबबबबबबब बबबब बबबब बबबबबब !
बब बबबबब बब बबबबब बब बबबबबबब 'बबबबबबबब' बब
बबबबबब.....
गुटखापानमसालाकेसेवनसेकैन्सरका रोगहोताहै , यह बात सभी जानते हैं। लेिकन इस बात को शायद ही
कोई जानता होगा िक गुटखा पानमसाले अब पहले से भी अिधक जानलेवा हो गये हैं क्योंिक अब
िनमार्ता कंपिनयाँ इनमें कत्थे के स्थान पर एक बहुत ही खतरनाक रसायन गैिम्बयर का पर्योग कर रही
हैं। इससे कैन्सर का रोग पहले की अपेक्षा जल्दी होगा तथा अिधक घातक भी होगा।
गैिम्यबरएकजहरीलारसायनहैिजसका रंगकत्थेजैसाहीहोताहै।अिधकांशतःइसकाउपयोगचमड़े को रंगने
मेिकयाजाता

है। यह कत्थे से बहुत ही सस्ता होता है अतः ज्यादा कमाई करने की लालच में गुटखा-पानमसालों के
िनमार्ता इसका उपयोग करने लगे हैं।
डॉक्टरों के अनुसा, "गैिम्य बरका सेवनकरनेपरएकपर्कारका नशापैदाहोताहैिजससेपहलेतोमजाआताहै , परन्तु
बाद में सेवन करने वाला इसका इतना आदी हो जाता है िक इसके िबना वह रह नहीं सकता। एक बार
गैिम्य
बरयुक्तगुटखाखानेवालेव्यिक्तकेिलएइसेछोड़नाबहुतकिठनहोजाताहै।"
गैिम्यबरयुक्तगुटखाखानेसेनिसफर्कैन्सरअिपतुपसीनाआना, चक्करआना, मानिसक असंतुलन तथा मानिसक
अवसाद जैसी भयानक बीमािरयाँ भी होती हैं।
अनुकर्म
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बबबबब बबबब बब बबब बबबबब बबबबब बबबब !
गुटखाखानेसेमुँहका कैन्सरहोताहै , यह बात िकसी से िछपी नहीं है। बड़े-बड़े डॉक्टर एवं
स्वास्थ्यिवद् इसकी पुिष्ट कर चुके हैं परन्तु इसके शौकीन लोग अपनी वासना को ही उत्तम मानकर बाकी
लोगो को बेवकूफ समझते है।
बबबबबब (महा.) िनवासी पर्वीण सरोदे ऐसा ही व्यिक्त था। सब कुछ जानते हुए भी वह बड़े शौक
से गुटखा खाता था। पिरणाम यह िमला िक उसको जबड़े तथा अन्न नली का कैन्सर हो गया। डॉक्टरों ने
उसके इलाज के िलए इतनी राश िमाँगीिजतनी वह अपने पूरे जीवन में भी नहीं कमा सकता था।
अपने तथा अपने पिरवार के कष्टमय भिवष्य को देखते हुए वह िनराशा की अंधेरी खाई में िगर
गया। अपनेगलतशौक का दुष्पिरणामभिवष्यकी यातना.... उसे अपने आप ग्लािन आ रही थी।
शुकवार िदनाक 8 िदसम्बर 2000 की राितर् को वह सो नहीं पा रहा था। मध्य राितर् के बाद उसके रक्त
में घुले हुए गुटखे के जहर ने अपना आिखरी कमाल िदखाना आरम्भ कर िदया। सवर्पर्थम उसने अपनी
30 वषीर्य पत्नी पूनम का गला घोंट िदया। उसके बाद अपने 7 वषीर्य पुतर् सोहन तथा 5 वषीर्य पुतर्ी
देवयानी का मुँह तिकये के नीचे दबाकर उन्हें भी मौत के घाट उतार िदया। ....और अंततः सवयं भी नाइलोन की
रस्सी गले में फाँसकर आत्महत्या कर ली। इस पर्कार एक हँसते खेलते पिरवार का कारूिणक अंत हो
गया।
पर्वीण सरोदे का एक सुखी पिरवार था। वह महाराष्टर् राज्य पिरवहन महामंडल में नौकरी करता
था। घरमेस ं ब कुछ ठीक-ठाक ही था, कोई कमी नहीं थी। यिद कुछ बुरा था तो उसका गुटखा खाने का शौक, िजसने
एक हँसते-खेलते पिरवार को बेमौत मार डाला।
अनुकर्म
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बबब बब बबबबब बबबब बबबबब-बबब बबबबब
पर्ायः देखा गया है िक जो लोग तम्बाकूयुक्त अपदर्व्यों का पर्योग करते हैं उनमें मुख, गले तथा
फेफडो के रोग अिधकतर पाये जाते है। चूने मे िघसकर जदा खाने वालो के मसूढो व होठो को जोडने वाली तवचा कट जाती है एवं मसूढो के
िनरन्तर कटते रहने से उनके दाँत िगर जाते हैं।
जो लोग बार-बार तथा अिधक मातर्ा में गुटखे का सेवन करते हैं, वे लोग पाल्मोनरी-टयूबर
कुलोिसस रोग से गर्िसत रहते हैं। गुटखा खाने वाले व्यिक्त के दाँत अपने स्वाभािवक रंग को
त्यागकर लाल अथवा पीले हो जाते हैं।
गुटखेव पानमसालोंमेिमलाय
ं ेगयेिछपकलीकेपाउडरतथातेजाबसेगालोंकेभीतरकी अितनाजुक त्वचागलजातीहै। ऐसी
िस्थित में ऑपरेशन द्वारा गाल को अलग करना पड़ता है। हाल ही में हुई खोजों से तो यहाँ तक पता
चलाहैिक गुटखोंतथापान-मसालों में पर्योग िकया जाने वाला सस्ती क्वािलटी का कत्था मृत पशु ओंके रक्त
से तैयार िकया जाता है। अनेक अनुसंधानों से पता चला है िक हमारे देश में कैन्सर से गर्स्त
रोिगयों की संख्या का एक ितहाई भाग तम्बाकू तथा गुटखे आिद का सेवन करने वाले लोगों का है। गुटखा
खाने वाले व्यिक्त की साँसों में अत्यिधक दुगर्न्ध आने लगती है तथा चूने के कारण मसूढ़ों के
फूलने से पायिरया तथा दंतकय आिद रोग उतपन होते है।
तम्बाकू में िनकोिटन नाम का एक अित िवषैला तत्त्व होता है जो हृदय, नेतर् तथा मिस्तष्क के
िलए अतयनत घातक होता है। इसके भयानक दुषपभाव से अचानक आँखो की जयोित भी चली जाती है। मिसतषक मे नशे िक पभाव के कारण
तनाव रहने से रक्तचाप उच्च हो जाता है।
व्यसन हमारे जीवन को खोखलाकर हमारे शरीर को बीमािरयों का घर बना लेते हैं। पर्ारम्भ में
झूठा मजा िदलाने वाले ये मादक पदाथर वयिकत के िववेक को हर लेते है तथा बाद मे अपना गुलाम बना लेते है और अनत मे वयिकत को दीन-
हीन, क्षीण करके मौत की कगार तक पहुँचा देते हैं। जीवन के उन अंितम क्षणों में व्यिक्त को
पछतावा होता है िक यिद दो साँसें और िमल जाय तो मैं इन व्यसनों की पोल खोलकर रख दूँ िकन्तु मौत
उसे इतना समय भी नहीं देती। इसिलए व्यसन हमें अपने मायाजाल में फंसाये, इससे पहले ही हमे जागना
होगा तथा अपने इस अनमोल जीवन को परोपकार, सेवा, संयम, साधना तथा एक सुन्दर िवश् वके िनमार्ण
में लगाना होगा। पहल हमको ही करनी होगी। भारत जागा तो िवश् वजागेगा। अतः हमें मान-बड़ाई एवं पद
पर्ितष्ठा का पर्लोभन छोड़कर ईमानदारी से दैवीकायर् में लगना होगा। यह आप पढ़ें औरों को
पढ़ायें। आप दैवीकायर् में लगे एवं औरों को भी दैवीकायर् के िलए पर्ोत्सािहत करें। भारत को पुनः
अपने िवश् वगुरू की गिरमा में जगायें....
अनुकर्म
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सतर् 44
बबबबबबबब बबब ?
आशर्ममेपं ूज्यस्वामीजीथोड़ेसेभक्तोंकेसामनेसत्संगकर रहेथे, तब एक गृहस्थी साधक ने पर्श् नपूछाः
"गृहसथाशम मे रहकर पभुभिकत कैसे की जा सकती है ?"
पूज्य स्वामी जी ने पर्श् नका जवाब देते हुए एक सारगिभर्त बात कहीः
"ज्ञानचंद नामक एक िजज्ञासु भक्त था। वह सदैव पर्भुभिक्त में लीन रहता था। रोज सुबह उठकर
पूजा पाठ, धयान-भजन करने का उसका िनयम था। उसके बाद वह दुकान में काम करने जाता। दोपहर के
भोजन के समय वह दुकान बन्द कर देता और िफर दुकान नहीं खोलता था। बाकी के समय में वह साधु-संतों
को भोजन करवाता, गरीबोंकी सेवाकरता, साधु-संग एवं दान पुण्य करतात। व्यापार में जो िमलता उसी में
संतोष रखकर पर्भुपर्ीित के िलए जीवन िबताता था। उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश् चयर्होता और
लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः
'यह तो महामूखर् है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है। िफर दुकान भी थोड़ी देर के
िलए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा-पाठ में गँवा देता है। यह तो पागल ही है।'
एक बार गाव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी। नगरसेठ ने वह टोपी जानचंद को देते हुए
कहाः
'यह टोपी मूखोर्ं के िलए है। तेरे जैसा महान मूखर् मैंने अभी तक नहीं देखा, इसिलय यह टोपी तुझे
पहनने के िलए देता हूँ। इसके बाद यिद कोई तेरे से भी ज्यादा बड़ा मूखर् िदखे तो तू उसे पहनने के
िलए दे देना।'
ज्ञानचंद शांित से वह टोपी लेकर घर वापस आ गया। एक िदन वह नगरसेठ खूब बीमार पड़ा।
ज्ञानचंद उससे िमलने गया और उसकी तिबयत के हालचाल पूछे। नगरसेठ ने कहाः
"भाई ! अब तो जाने की तैयारी कर रहा हूँ।''
ज्ञानचंद ने पूछाः "कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो ? वहाँ आपसे पहले िकसी व्यिक्त को सब
तैयारी करने के िलए भेजा िक नही ? आपकेसाथ आपकीस्तर्,ीपुतर्, धन, गाड़ी, बंगला वगैरह आयेगा िक नहीं
?'
'भाई ! वहाँ कौन साथ आयेगा ? कोई भी साथ नहीं आने वाला है। अकेले ही जाना है। कुटुंब-
पिरवार, धन-दौलत, महल-गािड़याँसब छोड़करयहाँसेजानाहै।आत्मा-परमात्मा के िसवाय िकसी का साथ नहीं रहने
वाला है।'
सेठ के इन शब्दों को सुनकर ज्ञानचंद ने खुद को दी गयी वह लाल टोपी नगरसेठ को वापस देते
हुए कहाः "आपहीइसेपहनो।"
नगरसेठः "क्यों ?"
ज्ञानचंदः"मुझसे ज्यादा मूखर् तो आप हैं। जब आपको पता था िक पूरी संपित्त, मकान, पिरवार
वगैरह सब यहीं रह जायेगा, आपकाकोई भीसाथीआपकेसाथ नहींआयेगा , भगवान के िसवाय कोई भी सच्चा सहारा
नहीं है, िफर भी आपने पूरी िजंदगी इनही सबके पीछे कयो बरबाद कर दी ?
बबब बबब बब बबबब बबब बबबब बबब बबबबब बबबब।
बबबब बबबब बबब बबब बबबबब बबब ब बबब बबबब।।
जब कोई धनवान एवं शिक्तवान होता है तब सभी 'सेठ..... सेठ.... साहब..... साहब.....' करते रहते
हैं और अपने स्वाथर् के िलए आपके आसपास घूमते रहते हैं। परंतु जब कोई मुसीबत आती है तब कोई
भी मदद के िलए पास नहीं आता। ऐसा जानने के बाद भी अपने क्षणभंगुर वस्तुओं एवं संबंधों के साथ
पर्ीित की, भगवान से दूर रहे एवं अपने भिवष्य का सामान इकट्ठा न िकया तो ऐसी अवस्था में आपसे
महान मूखर् दूसरा कौन हो सकता है ? गुरू तेगबहादुर जीनेकहाहैः
बबबब बबबब बब ब बबब बबबब बबब बब बबब।
बबबब बबबब बबब बबब ।। बब बबब बबबब बबबबब
सेठ जी ! अब तो आप कुछ भी नहीं कर सकते। आप भी देख रहे हो िक कोई भी आपकी सहायता करने
वाला नहीं है।
क्या वे लोग महामूखर् नहीं हैं जो जानते हुए भी मोह माया में फँसकर ईश् वरसे िवमुख रहते
हैं ? संसार की चीजों में, संबंधों में आसिक्त रखते हुए पर्भु-स्मरण, भजन, धयान एवं सतपुरषो का संग एवं
दान-पुण्य करते हुए िजंदगी व्यतीत करते तो इस पर्कार दुःखी होने एवं पछताने का समय न आता।
अनुकर्म
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बबबब बब बबबबबब बब.......
'बुरे काम का बुरा नतीजा' तो होता ही है। फैशनपरस्त लोगों ने यिद समाज को संयमहीन एवं
िववेकहीन बनाने का पाप िकया है तो फैशन उन्हें बीमािरयों के रूप में अनेक इनाम भी दे रहा है।
कुछ समय से एक नया रोग देखने में आया है िजसका नाम है, 'वेिरकोस वेन'। भारत में कुल
आबादीकेदस सेबीसपर्ितशतलोगइस बीमारीके िकार श ह ैंतथामिहलाओंमेय ं हबीमारीपुरष ू ोंकी अपेक्षच
ा ारगुनाअिधकहै।
फैशनपरसती इस रोग का सबसे बडा कारण है। जब तक इस देश मे आधुिनकतावादी उचछृ ंखल लोगो की कमी थी तब तक यह
रोग बहुत कम मातर्ा में देखने को िमलता था।
'इनदपसथ अपोलो असपताल', िदल्ली के विरष्ठ 'कािडर्यो वैस्कुलर सजर्न' के अनुसार आजकल फैशन
एवं िदखावे की बढती होड मे ऊँची एडी की सैिनडल एवं जूते तथा अतयनत चुसत कपडे पहनने से यह समसया बढ रही है।
'वेिरकोस वेन' पैरों में होने वाला रोग है। 'वेिरकोस वेन' वे िरायें शह ैं जो शरीर के
अशु द्धरक्त को शुिद्धकरण के िलए हृदय में पहुँचाती हैं। िराओं शक ो गुरूत्वाकषर्ण शिक्त के िवपरीत
कायर् करते हुए रक्त को ऊपर की ओर ले जाना होता है। इसके िलए इनमें वाल्व लगे होते हैं। जब
रक्त ऊपर की ओर जाता है तो वाल्व खुल जाते हैं परंतु जब हम चलते-िफरते या खडे रहते है तब गुरतवाकषरण के
कारण रक्त ऊपर से नीचे की ओर बहने लगता है ऐसे समय में इन िराओं शक े वाल्व बन्द हो जाते
हैं।
चुस्तकपड़ेपहननेसेइन िराओं श प र दबावपड़ताहैिजससेइनमेरक्तका ं पर्वाहरू क जाताहै।इससेइनकेवाल्वकायर् करना
बन्द कर देते हैं। फलतः िरायें शर क्तपर्वाह को िनयंितर्त नहीं कर पातीं हैं तथा दबाव से फूल जाती
हैं और यहाँ से 'वेिरकोन वेन' नामक रोग की शुरूआत होती है।
इस रोग के कारण पैरो मे सथायी सूजन एवं भारीपन आ जाता है। पैरो तथा जाघो मे नीले रंग की गुचछेदार नसे उभर आती है,
िजससे खड़े रहने या चलने-िफरने मे भयंकर ददर होता है। आगे चलकर पैरो मे एिगजमा तथा कभी न भरने वाले घाव
(वेिरकोन अल्सर) हो जाते हैं। बाद में इनमें भारी रक्तसर्ाव होता है और अंततः रोगी अपािहज बन
जाता है।
इसी पकार गिमरयो के िदनो मे पयोग िकये जाने वाले टेलकम पावडर शरीर के रोमकूपो को बंद करके समसया खडी कर देते है।
शरीर के जो िवजातीय हािनकारक दव पसीने के दारा बाहर िनकलने चािहए वे अनदर ही रक जाते है और समय आने पर अपना कमाल
िदखाते हैं। पावडरों में पर्युक्त होने वाले दुगर्न्धनाशक पदाथर् (िडयोडोरेंट) से 'डमेटाइिटस'
नामक चमर्रोग तक हो सकता है।
मुलतानी िमट्टी से स्नान करने पर रोम कूप खुल जाते हैं। मुलतानी िमट्टी से रगड़कर स्नान
करने पर जो लाभ होते हैं साबुन से उसके एक पर्ितशत लाभ भी नहीं होते। स्फूितर् और िनरोगता
चाहनेवालोंको साबुनसेबचकरमुलतानीिमट्टीसेनहानाचािहए। जापानीलोगहमारीवैिदकऔरपौरािणकिवद्याका लाभउठारहेहैं।शरीर
में उपिस्थत व्यथर् की गमीर् तथा िपत्तदोष का शमन करने के िलए, चमड़ीएवंरक्तसम्बन्धीबीमािरयोंको ठीक करने
के िलए जापानी लोग मुलतानी िमट्टी के घोल से 'टबबाथ' करते हैं तथा आधे घंटे के बाद शरीर को
रगड़कर नहा लेते हैं। आप भी यह पर्योग करके स्फूितर् और स्वास्थ्य का लाभ ले सकते हैं। साबुन
में तो चबीर्, सोडा खार एवं जहरीले रसायनों का िमशर्ण होता है।
बालों को काला करने के िलए पर्योग िकये जाने वाले 'हेयर डाई' में पेरा िफनाइल डाई अमीन
रसायन होता है जो भयानक एलजीर् उत्पन्न करता है। कुछ वषर् पहले चण्डीगढ़ िस्थत पोस्ट गर्ेजुएट
मेिडकल इन्स्टीच्यूट के डॉक्टरों ने एक अध्ययन के बाद िनष्कषर् िनकाला िक हेयर डाई का अिधक समय
तक इस्तेमाल करने से मोितयािबंद तक हो सकता है।
फैशन की शुरआत तो अचछा िदखने की अंधी होड से होती है परंतु अंत होता है खतरनाक बीमािरयो के रप मे। कुछ लोग कहते
हैं, हमें तो ऐसा कुछ नहीं हुआ परंतु भैया आज नहीं हुआ तो कल होगा। आज लोग िजतने दुःखी एवं
बीमार हैं, आजसेपचासयासौ सालपहलेइतनेनहींथे। कारणस्पष्टहैिक अशु द्धखान-पान एवं अिनयिमत रहन सहन।
इसीिलए संतजन कहते है-
बबबबब बब बब बबबब बब बब बबबब, बबबबब बबबब बबब । बब बब बबबबबबब
हमारी महान संस्कृित बाहरी सौन्दयर् की अपेक्षा आंतिरक सौन्दयर् को महत्त्व देती हैं। सदगुण,
शील एवं चिरत ही मनुषय का असली सौनदयर है। संसार मे जो भी महान एवं पिवत आतमाएँ हुई है उनहोने इसी सौनदयर को िनखारा। िफर चाहे
मीरा, शबरी, गागीर्
, सुलभा, सीता, अनुसूया आिद हों या नानक, कबीर, बुद्ध, महावीर, शंकराचायर, ज्ञानेश् वर,
लीलाशाहजी महाराज आिद हो।
बाहर के सौन्दयर् को िनखारकर मैकाले पुतर्ों द्वारा 'िमस इंिडया' या 'िमस वल्डर्' का िखताब भले
ही िमल जाये लेिकन चािरितर्क महानता-पिवतर्ता एवं दैवीगुणों की शांितमय सुवास तो भारतीय संत और
संस्कृित ही दे सकती है।
अनुकर्म
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सतर् 45
बबबब बब बबबबब
िवकर्मािदत्य की िनजी सेवा करने वाले कुछ िकशोर थे। उनमें एक लड़का था िजसका नाम भी
िकशोर था। महाराज िवकर्मािदत्य जब सोते तब िकशोर पहरा देता, चौकीकरता। एकबारमध्यराितर् केसमयकोई
दीन-दुःखी मिहला आकर्न्द कर रही हो ऐसी आवाज आयी। बुिद्धमान् िवकर्मािदत्य चौंककर जाग उठे।
"अरे ! कोई रूदन कर रहा है ! जा िकशोर ! तलाश कर। पास वाले मंिदर की ओर से यह आवाज आ रही
है। क्या बात है जाँच करके आ।"
वह िहम्मतवान िकशोर गया। देखा तो मंिदर में एक स्तर्ी रो रही है। िकशोर ने पूछाः "तू कौन है ?"
वह कुलीन स्तर्ी बोलीः "मैं नगरलक्ष्मी हूँ, नगरशर्ी हूँ। इस नगर का राजा िवकर्मािदत्य बहुत दयालु
इनसान है। दीन-दुःखी लोगों के दुःख हरने वाला है। िकशोर बच्चों को स्नेह करने वाला है। पर्ािणमातर् की
सेवा में तत्पर रहने वाला है। ऐसे दयालु, पराकर्मी, उदार और पर्जा का स्नेह से लालन-पालन करने
वाले राजा के पर्ाण कल सुबह सूयोर्दय के समय चले जायेंगे। मैं राज्यलक्ष्मी िकसी पापी के हाथ
लगूँगी। मेरी कया दशा होगी ! अतः मैं रो रही हूँ।"
िवकर्मािदत्य का िनजी सेवक, अंगरक्षक िकशोर कहता हैः
"हे राज्यलक्ष्मी ! मेरे राजा साहब कल स्वगर्वासी होंगे ?"
"हाँ।"
"नहीं..... मेरे राजा साहब को मैं जाने नहीं दूँगा।"
"संभव नहीं है बेटा ! यह तो काल है। कुछ भी िनिमत्त से वह सबको ले जाता है।"
"इसका कोई उपाय ?"
"बेटे ! उपाय तो है। राजा िवकर्मािदत्य के बदले में कोई िकशोर वय का बालक अपना िसर दे तो
उसकी आयु राजा को िमले और राजा दीघार्यु बन जायें।"
म्यान से छोटी सी तलवार िनकालकर अपना बिलदान देने के िलए तत्पर बना हुआ िकशोर कहने
लगाः
"हजारों के आँसू पोंछने वाले, हजारों िदलों में शांित देने वाले और लाखों नगरजनों के
जीवन को पोसने वाले राजा की आयु दीघर् बने और उसके िलए मेरे िसर का बिलदान देना पड़े तो हे
राज्यलक्ष्मी ! ले यह बिलदान।"
तलवार के एक ही पर्हार से िकशोर ने अपना िसर अपर्ण कर िदया।
राजा िवकर्मािदत्य का स्वभाव था िक िकसी आदमी को िकसी काम के िलए भेजकर 'वह क्या करता है'
यह जाँचने के िलए स्वयं भी छुपकर उसके पीछे जाते थे। आज भी िकशोर के पीछे-पीछे छुपकर चल
पड़े थे और िकशोर क्या कर रहा था यह छुपकर देख रहे थे। उन्होंने िकशोर का बिलदान देखाः "अरे !
िकशोर ने मेरे िलए अपने पर्ाण भी दे िदये !" वे पर्कट होकर राज्यलक्ष्मी से बोलेः
"हे राज्यलक्ष्मी ! हे देवी ! मेरे िलए पर्ाण देने वाले इस बालक को आप जीिवत करो। मुझे इस
मासूम बच्चे के पर्ाण लेकर लम्बी आयु नहीं भोगनी है। मेरी आयु भले शांत हो जाय लेिकन इस बालक
के पर्ाण नहीं जाने चािहए। हे देवी ! आपमेरािसरलेलोऔरइस बच्चेको िजन्दाकर दो।" राजा ने अपने म्यान
से तलवार िनकाली तो राज्यलक्ष्मी आद्या देवी ने कहाः "हाँ हाँ राजा िवकर्म ! ठहरो। आप आराम करो। सब
ठीक हो जायगा।"
िवकर्मािदत्य देवी को पर्णाम करके अपने महल में गये। देवी ने पर्सन्न होकर अपने संकल्प
बल से िकशोर को िजन्दा करके वापस भेज िदया। िकशोर पहुँचा तो राजा अनजान होकर िबछौने पर बैठ
गये।उन्होंने पूछाः
"क्यों िकशोर ! क्या बात थी ? इतनी देर, क्यों लगी ?"
"तब वह िकशोर कहता हैः "राजा साहब ! उस मिहला को जरा समझाना पड़ा।"
"कौन थी वह मिहला ?"
"कोई मिहला थी, महाराज ! उसकी सास ने उसे डाँटकर घर से िनकाल िदया था। मैं उसको सास के
घर ले गया और समझाया िक इस पर्कार अपनी बहू को परेशान करोगी तो मैं महाराज साहब से िकायत श कक
कक
कर दूँगा। सास-बहू दोनों के बीच समझौता कराके आया, इसमे थोडी देर हो गयी और कुछ नही था। आप आराम महाराज
!"
राजा िवकर्मािदत्य छलाँग मारकर खड़े हो गये और िकशोर को गले लगा िलया। बोलेः
"अरे बेटा ! तू धन्य है ! इतना शौयर..... इतना साहस.....! मेरे िलये पर्ाण कुबार्न कर िदये और वापस
नवजीवन पर्ाप्त िकया ! इस बात का भी गवर न करके मुझसे िछपा रहा है ! िकशोर..... िकशोर.... तू धन्य है ! तूने मेरी
उत्कृष्ट सेवा की, िफर भी सेवा करने का अिभमान नही है। बेटा ! तू धन्य है।"
सेवा करना लेिकन िदखावे के िलए नहीं अिपतु भगवान को िरझाने के िलए करना। ध्यान करना
लेिकन भगवान को पसन करने के िलए, कीतर्न करना लेिकन पर्भु को राजी करने के िलए। भोजन करें तो भी
'अंतयार्मी परमात्मा मेरे हृदय में िवराजमान हैं उनको मैं भोजन करा रहा हूँ..... उनको भोग लगा रहा
हूँ....' इस भाव से भोजन करे। ऐसा भोजन भी पभु की पूजा बन जाता है।
बच्चों में शिक्त होती है। इन बच्चों में से ही कोई िववेकानन्द बन सकता है, कोई गाँधी बन
सकता है, कोई सरदार वल्लभभाई बन सकता है कोई रामतीथर् बन सकता है और कोई आसाराम बन सकता
है। कोई अन्य महान योगी, संत भी बन सकता है।
आपमेईं श् वरकी असीमशिक्तहै।बीजकेरूप मेव ं ह शिक्तसबकेभीतरिनिहतहै।कोई बच्चीगागीर्बनसकतीहै , कोई
मदालसा बन सकती है।
मनुष्य का मन और मनुष्य की आत्मा इतनी महान है िक यह शरीर उसके आगे अित छोटा है। शरीर
की मृत्यु तो होगी ही, कुछ भी करो। शरीर की मृत्यु तो होगी ही, कुछ भी करो। शरीर की मृत्यु हो जाय उसके
पहले अमर आत्मा के अनुभव के िलए पर्ािणमातर् की यथायोग्य सेवा कर लेना यह ईश् वरको पर्सन्न
करने का मागर् है।
आँखको गल्तजगहन जानेदेनायहआँखकी सेवाहै।िजह्वासेगलतशब्दनिनकलनायहिजह्वाकी सेवाहै।कानोंसेगन्दीबातें
न सुनना यह कान की सेवा है। मन से गलत िवचार न करना यह मन की सेवा है। बुिद्ध से हलके िनणर्य न
लेना यह बुिद की सेवा है। शरीर से हलके कृतय न करना यह शरीर की सेवा है। जैसे अपने शरीर की सेवा करते है ऐसे दूसरो को भी गलत
मागर् से बचाना, उन्हें सन्मागर् की ओर मोड़ना उनकी सेवा है।
ऐसाकोईिनयमलेलोिक सप्ताह मेंएकिदननहीं तोदोघण्टसहीे , लेिकन सेवा अवशय करेगे। अडोस-पड़ोस के इदर्-िगदर्
कहीं कचरा होगा तो इकट्ठा करके जला देंगे, कीचड़ होगा तो िमट्टी डालकर सुखा देंगे। अपने इदर्-िगदर्
का वातावरण स्वच्छ बनायेंगे।
ऐसाभीिनयमलेलोिक सप्ताह मेंचारलोगोंको 'हिर ॐ...... ॐ...... गायेजा
.....' ऐसािसखायेंगे।
सप्ताह मेंएकदोसाधकों को,
भक्तों को भगवान के लाडले बनायेंगे, बनायेंगे और बनायेंगे ही।
यह िनयम या ऐसा अन्य कोई भी पिवतर् िनयम ले लो। क्यों, लोगे न ?
शाबाश वीर ! शाबाश ! िहम्मत रखो, साहस रखो। बार-बार पर्यत्न करो। अवश् यसफल होगे..... धनय बनोगे।
अनुकर्म
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बबबबब बबबबब बबब बबबबब-बबबबबबबब
भारतीय समाज में स्तर्ी पुरूषों में आभूषण पहनने की परम्परा पर्ाचीनकाल
से चली आ रही है। आभूषण धारण करने का अपना एक महत्त्व है, जो शरीर और मन
से जुड़ा हुआ है। स्वणर् के आभूषणों की पर्कृित गमर् है तथा चाँदी के गहनों की
पर्कृित शीतल है।
आभूषणोंमेिकसीिवपरीतधातु
ं केटाँकेसेभीगड़बड़ीहोजातीहै
, अतः सदैव टाँकारिहत
आभूषणपहननाचािहएअथवायिदटाँकाहोतोउसी धातु का होनाचािहएिजससेगहनाबनाहो।
िवद्युत सदैव िसरों तथा िकनारों की ओर से पर्वेश िकया करती है। अतः मिस्तष्क के दोनों भागों
को िवद्युत के पर्भावों से पर्भावशाली बनाना हो तो नाक और कान में िछदर् करके सोना पहनना चािहए।
कानों में सोने की बािलयाँ अथवा झुमके आिद पहनने से िस्तर्यों में मािसक धमर् संबंधी
अिनयिमतता कम होती है, िहस्टीिरया में लाभ होता है तथा आँत उतरने अथार्त हिनर्या का रोग नहीं
होता है। नाक में नथुनी धारण करने से नािसका संबंधी रोग नहीं होते तथा सदीर्-खाँसी में राहत
िमलती है। पैरों की उंगिलयों में चाँदी की िबिछया पहनने से िस्तर्यों में पर्सवपीड़ा कम होती है,
साइिटका रोग एवं िदमागी िवकार दूर होकर स्मरणशिक्त में वृिद्ध होती है। पायल पहनने से पीठ, एडी एवं
घुटनों के ददर् में राहत िमलती है, िहस्टीिरया के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोग की संभावना दूर हो
जाती है। इसके साथ ही रक्तशु िद्धहोती है तथा मूतर्रोग की िकायतशन हीं रहती।
मानवीय जीवन को स्वस्थ व आनन्दमय बनाने के िलए वैिदक रस्मों में सोलह शर्ृंगार अिनवायर्
करार िदये गये हैं, िजसमें कणर्छेदन तो अित महत्त्वपूणर् है। पर्ाचीनकाल में पर्त्येक बच्चे को,
चाहेवहलड़काहोयालड़की, के तीन से पाँच वषर् की आयु में दोनों कानों का छेदन करके जस्ता या सोने
की बािलयाँ पहना दी जाती थीं। इस िविध का उद्देश् यअनेक रोगों की जड़ें बाल्यकाल ही में उखाड़
देना था। अनेक अनुभवी महापुरष ू ों का कहना है िक इस िकर्या से आँत उतरना, अंडकोष बढ़ना तथा
पसिलयों के रोग नहीं होते हैं। छोटे बच्चों की पसली बार-बार उतर जाती है उसे रोकने के िलए
नवजात िश ु शज ब छः िदन का होता है तब पिरजन उसे हँसली और कड़ा पहनाते हैं। कड़ा पहनने से िशक ुश
के िसकुड़े हुए हाथ-पैर भी गुरूत्वाकषर्ण के कारण सीधे हो जाते हैं। बच्चों को खड़े रहने की िकर्या
में भी बड़ा बलपर्दायक होता है।
यह मान्यता भी है िक मस्तक पर िबंिदया अथवा ितलक लगाने से िचत्त की एकागर्ता िवकिसत होती
है तथा मिस्तष्क में पैदा होने वाले िवचार असमंजस की िस्थित से मुक्त होते हैं। आजकल िबंिदया
में सिम्मिलत लाल तत्त्व पारे का लाल आक्साइड होता है जो िक शरीर के िलए लाभपर्दायक िसद्ध होता
है। िबंिदया एवं शुद्ध चंदन के पर्योग से मुखमंडल झुरीर्रिहत बनता है। माँग में टीका पहनने से
मिस्तष्क संबंधी िकर्याएँ िनयंितर्त, संतुिलत तथा िनयिमत रहती हैं एवं मिस्तष्कीय िवकार नष्ट होते
हैं लेिकन वत्तर्मान में जो केिमकल की िबंिदया चल पड़ी है वह लाभ के बजाय हािन करती है।
बबब बब बबबब बबबब बबबबब बबब बबबबबब बबबबब बब बबबब बब बबबब ब
बबबबबब बब बबबबब बबबब बब बबब बबबब, बब, बबब बबब बब बबबबबबबब बब बबबब
बबबब । बबब स्वणर् के आभूषण पिवतर्, सौभाग्यवधर्क तथा संतोषपर्दायक हैं। रत्नजिड़त आभूषण धारण
करने से गर्हों की पीड़ा, दुष्टों की नजर एवं बुरे स्वप्नों का नाश होता है। शुकर्ाचायर् के अनुसार पुतर्
की कामनावाली िस्तर्यों को हीरा नहीं पहनना चािहए।
अनुकर्म
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बबबबबबबबब बब बबब बबबबबबबब बबबब बबबब बब
बबबबबब
एक सवेकण के अनुसार ऊँची एडी की चपपले पहनने वाली मिहलाओं मे से लगभग 60 पर्ितशत के पैरों में ददर् की
िशकायत रहती है। परनतु ये युवितया इस ओर तिनक भी धयान नही देती।
ऊँची एडी के जूते-चप्पलपहननेसेजांघकी क्वािडर्सेपमांसपेशीको ज्यादामेहनतकरनीपड़तीहैऔरइससेघुटनेकी कटोरीपर
दबाव बढ़ता है। ऊँची एड़ी की चप्पलें शरीर पर अनावश् यकभार डालती है। इन चप्पलों को पहनने से
पैर आरामदायक िस्थित में नहीं रह पाते। यह नेतर्ज्योित पर भी कुपर्भाव डालती है।
छोटा कद होन े की हीन ग िनथ को मन स े िन काल द े न ा चािह ए। जापा न म े लोग िठ गन े होन े पर भी
ऊँची एडी के जूते-चप्पलका पर्योगनहींकरतेऔरिसरऊँचाकरकेजीतेहैं।जापानमेज ं बअितिथआताहैतोसवर्पर्थमउसकेपाँवठंडे
पानी से धुलाये जाते हैं। ऐसा करने का उनका उद्देश् यअितिथ का स्वागत करने के साथ-साथ आगन्तुक
की थकान उतारना भी होता है।
हमारे देश में भी अितिथ के पाँव धोने से उक्त वैज्ञािनक परम्परा पुरातन काल से चली आ
रही है। अतः पैरों की सुिवधा के िलए जूते चप्पलों का पर्योग करें न िक फैशन से पर्भािवत होकर रूप
सज्जा के िलए।
अनुकर्म
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सतर् 46
बबबब ! बबबबबबब बब बबबबब.....
दो िमतर् चार-पाँच वषर् के बाद एक-दूसरे से िमले और परस्पर खबर पूछने लगे। एक िमतर् ने
दुःखी मन से कहाः
''मेरे पास एक सुन्दर बड़ा घर था। दस बीघा जमीन थी। दस-बारह बैल थे। गायें थीं, पाँच बछड़े
भी थे परन्तु मैंने वह सब खो िदया। मेरी पत्नी और मेरे बच्चे भी मर गये। मेरे पास केवल ये
पहने हुए कपड़े ही रह गये हैं।"
यह सुनकर उसका िमतर् हँसने लगा। उसको हँसता हुआ देखकर इसको गुस्सा आया। वह बोलाः
"तू मेरा िजगरी दोस्त है। मेरी इस दशा पर तुझे दुःख नहीं होता और ऊपर से मजाक करता है ?
तुझे तो मेरी हालत देखकर दुःखी होना चािहए।"
िमतर् ने कहाः "हाँ.... तेरी बात सच्ची है। परन्तु अब मेरी बात भी सुनः मेरे पास पैंसठ बीघा
जमीन थी। लगभग तीस मकान थे। मैंने शादी की और 21 बच्चे पैदा हुए। लगभग तीस बैल और गायें
थीं। 'िसंध नेशनल बेंक' में मेरे पाँच लाख रूपये थे। मैंने वह सब खो िदया। मैंने अपनी
पिरिस्थित का स्मरण िकया तो मेरी तुलना में तेरा दुःख तो कुछ भी नहीं है। इसिलए मुझे हँसी आ गई।
िवचार करें तो संसार और संसार के नश् वरभोग-पदाथोर्ं में सच्चा सुख नहीं है। यह सब आज है
और कल नही। सब पिरवतरनशील है, नाशवान है।
एक सेठ पितिदन साधु संतो को भोजन कराता था। एक बार एक नवयुवक संनयासी उसके यहा िभका के िलए आया। सेठ का
वैभव-िवलास देखकर वह खूब पर्भािवत हुआ और िवचारने लगाः
'संत तो कहते हैं िक संसार दुःखालय है, परन्तु यहाँ इस सेठ के पास िकतने सारे सोने चाँदी
के बतर्न हैं ! सुख के सभी साधन हैं। यह बहुत सुखी लगता है।' ऐसामानकरउसने सेठ सेपूछाः
"सेठ जी ! आपतोबहुतसुखी लगतेहैं।मैम ं ानताहूँिक आपकोकोई दुःख नहींहोगा।"
सेठजी की आँखों से टप-टप आँसू टपकने लगे। सेठ ने जवाब िदयाः "मेरे पास धन-दौलत तो बहुत है
परन्तु मुझे एक भी सन्तान नहीं है। इस बात का दुःख है।"
संसार में गरीब हो या अमीर, पर्त्येक को कुछ-न-कुछ दुःख अथवा मुसीबत होती ही है। िकसी को
पत्नी से दुःख होता है तो िकसी को पत्नी नहीं है इसिलए दुःख होता है। िकसी को सन्तान से दुःख होता है
तो िकसी को सन्तान नहीं है इस बात का दुःख होता है। िकसी को नौकरी से दुःख होता है तो िकसी को नौकरी
नहीं है इस बातका दुःख होता है। कोई कुटुम्ब से दुःखी होता है तो िकसी को कुटुम्ब नहीं है इस बात का दुःख
होता है। िकसी को धन से दुःख होता है िकसी को धन नहीं है इस बात का दुःख होता है। इस पर्कार िकसी-न-
िकसी कारण से सभी दुःखी होते हैं।
बबबब ! बबबबबबब बब बबबबब.....
तुम्हें यिद सदा के िलए परम सुखी होना हो तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो,
आनन्दस्वरूप हो..... ऐसािचन्तनकरो। तुमशरीरनहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुिद्ध को होता है। भूख-
प्यास पर्ाणों को लगती है। पर्ारब्धवश िजन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो िकः 'मेरे कमर् कट
रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।'
एक बार लकमण ने भगवान शीराम से कहाः "कैकेयी को मजा चखाना चािहए।"
भगवान शर्ीराम ने लक्ष्मण को रोका और कहाः
"कैकेयी तो मुझे मेरी माता कौशल्या से भी ज्यादा पर्ेम करती हैं। उस बेचारी का क्या दोष ?
सभी कुछ पर्ारब्ध के वश में है। कैकेयी माता यिद ऐसा न करतीं तो वनवास कौन जाता और राक्षसों को
कौन मारता ? याद रखो िक कोई िकसी का कुछ नहीं करता।"
बबब बबब बबबबब बबब, बब बब बबब । बबबबबब
बबबबबबब ब बबबब बब, बबबबब बबबब ।। बबबब बबबबबब
जो समय बीत गया वह बीत गया। जो समय बाकी रहा है उसका सदुपयोग करो। दुलर्भ मनुष्य योिन बार-
बार नहीं िमलती इसिलए आज से ही मन में दृढ़ िनश् चयकरो िक "मैं सत्पुरूषों का संग करके,
सत्शास्तर्ों का अध्ययन करके, िववेक और वैराग्य का आशर्य लेकर, अपने कत्तर्व्यों का पालन करके
इस मनुषय जनम मे ही मोक पद की पािपत करँगा..... सच्चे सुख का अनुभव करूँगा।" इस संकलप को कभी-कभार दोहराते
रहने से दृढ़ता बढ़ेगी।
अनुकर्म
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बबब-बबबबब बब बबबब बबब
वत्तर्मान समय में िवदेशों के साथ-साथ भारत में भी चाय का पर्योग िदन-पर्ितिदन बढ़ रहा है।
लोगो मे एक भम है िक चाय-काफी पीने से शरीर तथा मिस्तष्क में स्फूितर् उत्पन्न होती है। वास्तव में
स्वास्थ्य के िलए चाय-काफी बहुत हािनकारक है। अनुभवी डॉक्टरों के पर्योगों से यह िसद्ध हो चुका है
िक चाय-काफी के सेवन से नींद उड़ जाती है, भूख मर जाती है, िदमाग में खुश् कीआने लगती है तथा
डायबटीज जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।
एक संशोधन से जात हुआ है िक चाय के एक पयाले मे कई पकार के िवष होते है जो हमारे सवासथय पर अपना-अपना दुष्पर्भाव
डालते है। चाय के एक प्याले में 18 % 'टैनीन' नामक िवष होता है। इसके दुष्पर्भाव से पेट में घाव
तथा गैस पैदा होते हैं। चाय में उपिस्थत दूसरे िवष का नाम है 'थीन'। इसकी मातर्ा 3 % तक होती है।
इससे खुशकी होती है तथा फेफडो एवं िदमाग मे भारीपन पैदा होता है। तीसरे िवष का नाम है 'कैफीन'। इसकी मातर्ा 2.75 % होती
है। यह शरीर में अम्ल (Acid) बनाता है तथा गुदोर्ं को कमजोर करता है। गमर् चाय पीते समय इसकी
उड़ने वाली वाष्प आँखों पर हािनकारक पर्भाव डालती है। 'काबोर्िनल अम्ल' से एिसिडटी होती है।
'पैमीन' से पाचन-शिकत कमजोर होती है। 'एरोमोिलक' आँतोंमेख ंशु ् कीपैदाकरताहै। 'साइनोजेन' से अिनदर्ा तथा
लकवा जैसी भयानक बीमािरया उपजती है। 'आक्सेिलकअम्ल' शरीर के िलए अतयनत हािनकारक है तथा 'िस्टनायल' नामक दसवाँ
िवष रक्त-िवकार एवं नपुंसकता पैदा करता है।
थकानअथवानींदआनेपरव्यिक्तयहसोचकरचायपीताहैिक, 'मुझे नयी स्फूितर् पर्ाप्त होगी' परन्तु वास्तव
में चाय पीने से शरीर का रक्तचाप काफी बढ़ जाता है। इससे शरीर की माँसपेश ियाँअिधक उत्तेिजत
हो जाती हैं तथा व्यिक्त स्फूितर् का अनुभव करता है। इस िकर्या से हृदय पर बहुत ही िवपरीत पर्भाव
पड़ता है तथा िदल के दौरे पड़ने की बीमारी पैदा होती है।
चायकेिवनाशकारीव्यसनमेफ ं ँसेहुएलोगस्फूितर् का बहानाबनाकरहारेहुएजुआरीकी तरहउसमेअ ं िधकािधकडूबतेचलेजाते
हैं। अपने शरीर, मन, बुिद्ध तथा पसीने की कमाई को व्यथर् में गँवा देते हैं और भयंकर व्यािधयों
के िकारश ब न जाते हैं।
यिद िकसी का चाय-कॉफी का व्यसन छूटता न हो, िकसी कारणवशात् चाय-कॉफी जैसे पेय की
आवशय ् कतामहसूसहोतीहोतोउससेभीअिधकरू िचकरऔरलाभपर्दएकपेय(क्वाथ) बनाने की िविध इस पर्कार हैः
अनुकर्म
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बबबबबबबबबब बबब
बबबबबबबब गुलबनप्शा25 गर्ाम , छा य ा म े सुख ाय े हु ए तु ल सी क े पत े 25 गर्ाम , तज 25 गर्ाम
, बड़ी
इलायची 12 गर्ाम
, सौंफ 12 गर्ाम
, बर्ाह्मी के सूखे पत्ते 12 गर्ाम , िछ ल ी ह ु ई ज े ठ ी मध क े 12 गर्ाम।
बबबबब उपरोक्त पर्त्येक वस्तु को अलग-अलग कूटकर चूणर् करके िमशर्ण कर लें। जब चाय-
कॉफी पीने की आवश् यकतामहसूस हो तब िमशर्ण में से 5-6 गर्ामचूणर्400 गर्ामपानीमेउ ं बालें।जबआधापानीबाकीरहे
तब नीचे उतारकर छान लें। उसमें दूध शक्कर िमलाकर धीरे-धीरे िपये।
बबबब इस पेय को लेने से मिसतषक मे शिकत आती है, शरीर मे सफूितर आती है, भूख बढ़ती है एवं पाचन िकर्या
वेगवती बनती है। इसके अितिरक्त सदीर्, बलगम, खाँसी, दमा, शास, कफजन्य ज्वर और न्यूमोिनया जैसे
रोग होने से रूकते हैं।
अनुकर्म
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सतर् 47
बबबबबबब बबबब बब बबबबबब बबब
जैसे डॉक्टरी पास करने पर भी बड़े डॉक्टर के साथ रहना, देखना, सीखना जरूरी
होता है और वकालत पास करने पर भी वकील के पास रहना-सीखना जरूरी होता है,
वैसे ही ईश् वरसे िमलने के िलए, अनजाने रास्ते पर चलने के िलए िकसी
जानकार की सहायता लेना आवश् यकहै।
बाह्य वस्तुओं को तो आप आँख से देख भी सकते हैं, नाक से सूँघ भी सकते हैं
और जीभ से चखकर जान भी सकते है परनतु ईशर एक ऐसी वसतु है, सत्य एक ऐसी वस्तु है जो
इिनदयो का िवषय भी नही है, जो आपकी सभी इिन्दर्यों को संचािलत करने वाला है, वह
अन्तयार्मी आपका आत्मा ही है। िकसी भी इिन्दर्य की ऐसी गित नहीं है िक वह
उल्टा होकर आपको देखे। उसके िलए पर्माण होता है वाक्य।
बबबबबब बबबब ।बबबबब बबबबबबबबबबब बबब बबबब बबब
बबबबबबब।।
गुरू हमारीछठीइिन्दयर्का दरवाजाखोलदेते है
, ंहमें बाहर की चीजों को देखने वाली आँख की जगह भीतर
देखने वाली आँख, आत्मा-परमात्मा को देखने वाली शिक्त का दान करते हैं। माने, गुरू ईश् वरका दानकरतेहैं
और िशषय उसको गहण करता है, पचा लेता है। ईश् वरका दान करने को 'दी' बोलते हैं और पचाने की शिक्त को
'क्षा' बोलते हैं। इस तरह बनता है 'दीक्षा'। दीक्षा माने देना और पचाना। गुरू का देना और िष् शयक ा
पचाना।
िजसका कोई गुरू नहीं है, उसका कोई सच्चा िहतैषी भी नहीं है। क्या आप ऐसे हैं िक आपका लोक-
परलोक में, स्वाथर्-परमाथर् में कोई मागर् िदखाने वाला नहीं है ? िफर तो आप बहुत असहाय है। कया आप इतने
बुिद्धमान हैं और अपनी बुिद्ध का आपको इतना अिभमान है िक आप अपने से बड़ा ज्ञानी िकसी को
समझते ही नहीं ? यह तो अिभमान की पराकाष्ठा है भाई !
दीक्षा कई तरह से होती हैः आँख से देखकर, संकल्प से, हाथ से छूकर और मंतर्-दान करके।
अब, जैसी िष् शयक ी योग्यता होगी , उसके अनुसार ही दीक्षा होगी। योग्यता क्या है ? िशषय की योगयता है शदा
और गुर की योगयता है अनुगह। जैसे वर-वधू का समागम होने से पुतर् उत्पन्न होता है, वैसे ही शर्द्धा और
अनुगर्ह का समागम होने से जीवन में एक िवशेष पर्कार के आत्मबल का उदय होता है और िष् शयक े
िलए इष का, मंतर् का और साधना का िनश् चयहोता है तािक आप उसको बदल न दें। नहीं तो कभी िकसी से
कुछ सुनेंगे, कभी िकसी से कुछ, और जो िजसकी तारीफ करने मे कुशल होगा, अपने इष्ट व मंतर् की खूब-खूब
मिहमा सुनायेगा, वही करने का मन हो जायेगा। िफर कभी 'योगा' करेंगे तो कभी 'िवपश् यना' करेंगे, कभी
वेदान्त पढ़ने लगेंगे तो कभी राम-कृष्ण की उपासना करने लगेंगे, कभी िनराकार तो कभी साकार।
आपकेसामनेजोसुन्दरलड़कायालड़कीआवेगी , उसी से ब्याह करने का अथर् होता है िक एक ही पुरूष या एक
ही स्तर्ी हमारे जीवन में रहे, वैसे ही मंतर् लेने का अथर् होता है एक ही िनष्ठा हमारे जीवन में
हो जाय, एक ही हमारा मंत रहे और एक ही हमारा इष रहे।
एक बात आप और धयान मे रखे। िनषा ही आतमबल देती है। यही भकत बनाती है। यही िसथतपज बनाती है। परमातमा एक अचल
वस्तु है। उसके िलए जब हमारा मन अचल हो जाता है, तब अचल और अचल दोनों िमलकर एक हो जाते
हैं।
इसिलए, गुरू हमकोअपनेइष्टमे , ंअपने ध्यान में, अपनी पूजा में, अपने मंतर् में अचलता, िनष्ठा
देते हैं और जो आप चाहते हैं सो आपके देते हैं। देने में और िदलाने में वे समथर् होते
हैं। हम तो कहते हैं िक वे लोग दुिनयाँ में बड़े अभागे हैं, िजनके गुरू नहीं हैं।
देखो, यह बात भी तो है िक यिद कोई वेश् याके घर में भी जाना चाहे तो उसे मागर्दर्शक चािहए ,
जुआ खेलना चाहे तो भी कोई बताने वाला चािहए, िकसी की हत्या करना चाहे तो भी कोई बताने वाला
चािहए, िफर यह जो ईशर-पर्ािप्त का मागर् है, भिक्त है, साधना है उसको आप िकसी बताने वाले के िबना, गुरू
के िबना कैसे तय कर सकते हैं, यह एक आश् चयर्की बात है।
गुरू आपकोमंतर्भीदेते, ंसाधना भी बताते हैं, इष का िनशय भी कराते है और गलती होने पर उसको सुधार भी देते है।
है
आपबुरान मान,ेंएक बात मै आपको कहता हँू- ईश् वरसब है
, इसिलए उसकी पािपत का साधन भी सब है।
सब देश में, सब काल में, सब वस्तु में, सब व्यिक्त में, सब िकर्या में, सब िकर्या में ईश् वर
की पर्ािप्त हो सकती है। केवल आपको अभी तक पहचान करानेवाला िमला नहीं है, इसी से आप ईशर को पापत
नहीं कर पाते हैं। अतः दीक्षा तो साधना का, साधना का ही नहीं जीवन का आवश् यकअंग है। दीक्षा के
िबना तो जीवन पश-ु जीवन है।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबब बबबबबबबबब बबब बबब बब बबब
बबबबबबबबब बब बबबबब बब बबबबबबब बबबबबब बब
हमारे ऋिष मुिनयों तथा योिगयों ने पर्ेम, शदा, पूजा (पर्ाथर्ना) तथा जप ध्यान के द्वारा मानव
के सवार्ंगीण िवकास का मागर् पर्शस्त िकया है। भारत के इन महापुरूषों के ऐसे सूतर्ों के अिमट पर्भाव
को आज के िवज्ञान को भी स्वीकार करना पड़ रहा है। अनेक शोधकत्तार्ओं ने भारतीय शास्तर्ों का
अध्ययन करके उनमें बताये गये सूतर्ों को िवज्ञान की आधुिनक पद्धित द्वारा िसद्ध करने का पर्यास
िकया तथा कुछ को उसमें आंश िकरूप से सफलता भी िमली।
अवार्चीन वैज्ञािनक भी मानते हैं िक पर्ेम, शदा, पर्ाथर्ना एवं ध्यान के द्वारा चमत्कािरक रोग
पर्ितकारक शिक्त पैदा होती है। यही क्षमता असाध्य माने जाने वाले रोगों को भी िमटाने में
अत्यिधक मददरूप बनती है।
चेिरंगकर्ॉसअस्पतालकेहृदयरोगिवशेषज्ञ
डॉ. पीटर िनक्सन ने कोरोनरी थर्ोम्बोिसस और ऐक्यूट हाटर्
िडसीसेज़ के इलाज के िलए 'केबल इन्टेिसव केयर यूिनट' (ICU) का ही नहीं अिपतु 'धयान' का पर्योग
करके आश् चयजर्नकसफलता पर्ाप्त की। डॉ. िनक्सन ने अपने मरीजों को 'ह्यूमन फंक्शन कवर्' िसखाया
िजससे शीघर् ही ददर् का शमन हो जाता है। उच्च रक्तचाप के मरीजों का रक्तचाप इस पर्युिक्त से स्वतः
ही सामान्य हो जाता है।
सॉन फर्ांिसस्को को जनरल हॉिस्पटल के हृदय रोग िवशेषज्ञ डॉ. रेन्डोल्फ बायडर् द्वारा एक
पर्योग िकया गया है। डॉ. रेन्डोल्फ ने ऐसे आठ सौ मरीजों को चुना िजनकी हृदय रोग होने के कारण
सजर्री की जाने वाली थी। इनमें से चार सौ मरीजों के अच्छे स्वास्थ्य के िलए अलग-अलग स्थानों
के पर्ाथर्ना की गई। डॉ. रेन्डोल्फ ने जब अपने पर्योग को पिरणाम िनकाला तो स्वयं भी आश् चयर्चिकत
हो गया। अमेिरकन हाटर् एसोिसयेशन की बैठक में डॉ. रेन्डोल्फ ने बताया िक 'िजन मरीजों के िलए
पर्ाथर्ना पद्धित का उपयोग िकया गया था वे मरीज सजर्री में होने वाली दुघर्टनाओं तथा सजर्री के
बाद होने वाले इन्फेक्शन के िकार श न हीं बने। '
उपरोक्त सभी पर्योग स्थूल वस्तुओं पर िकये गये हैं परन्तु भारतीय ऋिषयों के इन सूतर्ों का
पर्भाव यहीं तक सीिमत नहीं रहता। यह कहना गलत नहीं होगा िक आज के िवज्ञान की खोजें िजस छोर पर
जाकर समाप्त हो जाती हैं अथार्त् आज के िवज्ञान का जहाँ पर अन्त होता है वहाँ से भारत के ऋिष-
िवज्ञान का पर्ारम्भ होता है। इसीिलए िजन सूतर्ों को कभी िवज्ञािनयों ने आडम्बर तथा अंधशर्द्धा कहा
था आजउन्हीसूतर्े केद्वारावे
ं अपनेतथाकिथतिवकिसतिवज्ञानको आगेबढ़ारहेहैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सतर् 48
बबबबबबब बबबब बब बबबबबब बबबबबबब-बबबबबब
भगवान राम संध्या करते थे, भगवान शर्ीकृष्ण संध्या करते थे, भगवान राम के गुरूदेव वश िष्ठजी
भी संध्या करते थे। मुसलमान लोग नमाज पढ़ने में इतना िवश् वासरखते हैं िक वे चालू ऑिफससे भी
समय िनकालकर नमाज पढ़ने चले जाते हैं, जबिक हम लोग आज पशि ्चम की मैली संस्कृित तथा नश् वर
संसार की नश् वरवस्तुओं को पर्ाप्त करने की होड़-दौड़ में संध्या करना बन्द कर चुके हैं भूल चुके
हैं। शायद ही एक-दो पर्ितशत लोग कभी िनयिमत रूप से संध्या करते होंगे।
एक ही धातु से दो शबदो की उतपित हुई है – धयान और संधया। मूल रप से दोनो का एक ही लकय है। धयान करने से िचत शुद
होता है, संध्या करने से मन िनमर्ल होता है। संध्या में आचमन, पर्ाणायाम, अंग-पर्क्षालन तथा
बाह्यभ्यांतर शुिच की भावना करने का िवधान होता है। पर्ाणायाम के बाद भगवन्नाम जप व भगवान का
धयान करना होता है। इससे शरीर शुद, मन पर्सन्न व बुिद्ध तेजस्वी होती है तथा भगवान का ध्यान करने से
िचत्तचैतन्यमयहोताहै।
पर्ातःकाल में सूयोर्दय के पूवर् ही संध्या आरंभ कर देनी चािहए, मध्यान्ह में दोपहर 12 बजे
के आसपास व शाम को सूयार्स्त के पूवर् संध्या में संलग्न हो जाना चािहए।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबब बबबबबब बब बबबब
ितर्काल संध्या करने वाले की कभी अपमृत्यु नहीं होती।
ितर्काल संध्या करने वाले बर्ाह्मण को िकसी के सामने हाथ फैलाने का िदन कभी नहीं आता है।
शासतो के अनुसार उसे रोजी रोटी की िचनता सताती नही है।
ितर्काल संध्या करने वाले व्यिक्त का िचत्त शीघर् िनदोर्ष हो जाता है, पिवतर् हो जाता है, उसका
मन तन्दुरूस्त रहता है, मन पर्सन्न रहता है तथा उसमें मन्द और तीवर् पर्ारब्ध को पिरवितर्त करने का
सामथ्यर् आ जाता है। वह तरतीवर् पर्ारब्ध का उपभोग करता है। उसको दुःख, शोक, हाय-हाय या िचन्ता कभी
अिधक नहीं दबा सकती।
ितर्काल संध्या करने वाली पुण्यशीला बहनें और पुण्यात्मा भाई अपने कुटुम्बी और बाल-बच्चों को
भी तेजिस्वता पर्दान कर सकते हैं।
ितर्काल संध्या करने वाले का िचत्त आसिक्तयों में इतना अिधक नहीं डूबता। ितर्काल संध्या
करने वाले का मन पापों की ओर उन्मुख नहीं होता।
ितर्काल संध्या करने वाले व्यिक्त में ईश् वर-पर्साद पचाने का सामथ्यर् आ जाता है।
शरीर की सवसथता, मन की पिवतर्ता और अन्तःकरण की शुिद्ध भी संध्या से पर्ाप्त होती है।
ितर्काल संध्या करने वाले भाग्यशािलयों के संसार-बंधन ढीले पड़ने लगते हैं।
ितर्काल संध्या करने वाली पुण्यात्माओं के पुण्य-पुंज बढ़ते ही जाते हैं।
ितर्काल संध्या करने वाले के िदल और फेफड़े स्वच्छ और शुद्ध होने लगते हैं। उसके िदल
में हिरगान अनन्य भाव से पर्कट होता है तथा िजसके िदल में अनन्य भाव से हिरतत्त्व स्फुिरत होता
है, वह वास्तव में सुलभता से अपने परमेश् वरको, सोऽहम् स्वभाव को, अपने आत्म-परमात्मरस को यहीं
अनुभव कर लेता है।
ऐसेमहाभाग्शयालीसाधक-सािधकाओं के पर्ाण लोक-लोकातर मे भटकने नही जाते। उनके पाण तो पाणेशर मे िमलकर
जीवन्मुक्त दशा का अनुभव करते हैं। जैसे आकाश सवर्तर् है वैसे ही उनका िचत्त भी सवर्व्यापी होने
लगता है।
जैसे ज्ञानी का िचत्त आकाशवत् व्यापक होता है वैसे ही उत्तम पर्कार से ितर्काल संध्या और
आत्मज्ञानकािवचारकरनेवालेसाधक को सवर्तर् शांित, पर्सन्नता, पर्ेम तथा आनन्द िमलता है।
जैसे पापी मनुष्य को सवर्तर् अशांित और दुःख ही िमलता है वैसे ही ितर्काल संध्या करने
वाले को दुश् चिरतर्ताकी मुलाकात नहीं होती।
जैसे गारूड़ी मंतर् से सपर् भाग जाता है, वैसे ही गुरूमंतर् से पाप भाग जाते हैं और ितर्काल
संध्या करने िष् शयक े जन्-म जन्मांतर के कल्मश, पाप, ताप जलकर भस्म हो जाते हैं।
हाथ में रखकर सूयर् नारायण को अघ्यर् देने से भी अच्छा साधन आज के युग में मानिसक
संध्या करना होता है, इसिलए जहा भी न रहे, तीनों समय थोड़े से जल के आचमन से, ितर्बन्ध पर्ाणायाम
के माध्यम से संध्या कर देना चािहए तथा पर्ाणायाम के दौरान अपने इष्ट मंतर् का जप करना चािहए।
भगवान सदाश िवपावर्ती से कहते हैं, शीकृषण अजुरन से कहते है- धयान मे अननय भाव से भगवान का िचनतन करने
वाला भगवान को सुलभता से पर्ाप्त करता है, उसके िलए भगवान सुलभ हो जाते हैं।
बबबबबब बबबबबबबब बबबबबबब। बबबबबब बबबबब बबब बबबबबब। बबबबबब
बबबबबबबब । बबबबबबबब
धयान के समान कोई तीथर नही। धयान के समान कोई यज नही। धयान के समान कोई सनान नही।
िजस पर्कार आकाश जीवों के िलए सुलभ है, िजस पर्कार पापी के िलए दुःख और अशांित सुलभ है,
धनाढय के िलए संसारी वसतुएँ सुलभ है, उसी पर्कार अनन्य भाव से भगवान को भजने वालों के िलए भगवान सुलभ
हैं। सवर्व्यापक चैतन्य के दर्शन करने का उसका सौभाग्य शीघर् पूणर् होने लगता है।
बबबबबबब बबबबब बबबबबब....।
हकीकत तो यह है िक भगवान और अपने बीच में तिनक भी दूरी नहीं है। संसार और शरीर नश् वर
हैं, कायम रह नहीं सकते, लेिकन आतमा और परमातमा िकसी से दूर नही होते। जैसे घडे का आकाश महाकाश से दूर नही होता।
अथवा यूँ किहये िक तरंग और पानी कभी अलग नहीं होते उसी पर्कार जीवात्मा और परमात्मा कभी अलग
नहीं होते। अन्य-अन्य में आसिक्त के कारण जो दूरी की भर्ांित िसद्ध हुई है यह भर्ांित हटाने के िलए
भगवान कहते हैं- "हे अजुर्न ! जो मेरे स्वरूप का िचन्तन करता है, अपने आत्मस्वरूप को खोजता है
उसके िलए मैं सुलभ हो जाता हूँ।"
अनुकर्म
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बबबब बब बबब बबब बबबब (बबबबब) बबबब बबबब
बबबबबब !
आजकेसमाजमेम ंैदेसेिनिमर्तडबलरोटीका पर्योगएकआमबातहोगईहै।पर्ायःसभीवगोर्केलोगना
ं श्तेमेअ
ं िधकांशतःडबल
रोटी का ही पर्योग करते हैं परन्तु इस डबल रोटी का अिधक सेवन हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता
है। इससे मोटापा, िपत्त की थैली में पथरी, हृदयरोग, बंधकोश, किब्जयत, मधुमेह, आंतर्पुच्छ , आँतोंका कैन्सर
तथा बवासीर जैसे रोगों के उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
आयुवेर्दमेत
ं ोसभीवैद्यकहतेहै , ंजानते हैं िक मैदा से ये हािनयाँ होती हैं लेिकन अभी-अभी डॉ.
डेिनस पी. बकीर्ट द्वारा मैदेवाली डबल रोटी पर िकये गये अध्ययनों से पता चलता है िक यह आँतों
में िचपक जाती है। कुछ िचिकत्सकों ने तो आँतों पर इसकी जमने की तुलना सीमेंट से की है। आँतों
में इसके जमने से आँतों की अवशोषण क्षमता तथा आंकुचन-पर्कुंचन पर बुरा पर्भाव पड़ता है।
डबल रोटी बहुत महीन मैदे से बनायी जाती है, िजसमें रेशा जैसी कोई चीज ही नहीं होती। इसी
कारण यह आँतों में जाकर जम जाती है। फलतः डबल रोटी का उपयोग करने वाले लोग पर्ायः कब्ज के
िशकार रहते है तथा धीरे-धीरे बदहजमी, गैिस्टक र्(पेट में गैस बनने) जैसी बीमािरयों की चपेट में आ जाते
हैं। इस पर्कार पाचनतंतर् के दुषप ् र्भािवत होने से शरीर के अन्य तंतर्ों पर भी बुरा पर्भाव पड़ता है
तथा िविभन्न पर्कार की बीमािरयाँ उत्पन्न होती हैं।
अनुकर्म
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बबब बबबबबबब
80 से 90 % बालक िवशेषकर दाँतों के रोगों से, उसमें भी दंतकृिम से पीिड़त होते हैं।
वत्तर्मान में बालकों के अितिरक्त बड़े लोगों में भी दाँत के रोग िवशेष रूप से देखने को िमलते
हैं।
खूब ठंडा पानी अथवा ठंडा पदाथर् खाकर गमर् पानी अथवा गमर् पदाथर् खाया जाय तो दाँत जल्दी
िगरतेहैं।
अकेला ठंडा पानी और ठंडे पदाथर् तथा अकेले गमर् पदाथर् तथा गमर् पानी से सेवन से भी
दाँत के रोग होते हैं। इसीिलए ऐसे सेवन से बचना चािहए।
भोजन करने के बाद दाँत साफ करके कुल्ले करने चािहए। अन्न के कण कहीं दाँत में फँस तो
नहीं गये, इसका िवशेष धयान रखना चािहए।
महीने में एकाध बार राितर् को सोने से पूवर् नमक और सरसों का तेल िमलाकर, उससे दाँत
िघसकर, कुल्ले करके सो जाना चािहए। ऐसा करने से वृद्धावस्था में भी दाँत मजबूत रहेंगे।
सप्ताह में एक बार ितल का के तेल के कुल्ले करने से भी दाँत वृद्धावस्था तक मजबूत
रहेंगे।
आइसकर्ीम, िबिस्कट, चॉकलेट, ठंडा पानी, िफज के ठंडे और बासी पदाथर, चाय, कॉफी आिद के सेवन से बचने से
भी दाँतों की सुरक्षा होती है। सुपारी जैसे अत्यन्त कठोर पदाथोर्ं के सेवन से भी िवशेष रूप से बचना
चािहए।
अनुकर्म
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बबबबबबबब बबबब बबबबब बब बबब बबबबबब
बबबबबबबबबब बब बबबबब बबबब
नई िदल्ली में 28 जनवरी 2000 से पर्ारम्भ हुए 'कॉमनवेल्थ डेन्टल एसोिसएशन' (सी.डी.ए.) के एक
सम्मेलन में दंतरोग िवशेषज्ञों ने कहा िकः 'टू थपेसटो के बढते हुए पयोग के बाद भी िवकासशील देशो मे दंतरोगो की
समस्याएँ बढ़ती ही जा रही हैं। बहुराष्टर्ीय कंपिनयों द्वारा बनाये जाने वाले अिधकांश टूथपेस्ट
दाँतों के रोगों को रोकने में सक्षम नहीं हैं।
टू थपेसटो की गुणवता मे सुधार लाने के िलए िनमाणकतों पर कडे िनयम लागू करने की आवशकता है।'
टू थपेसट से दातो की सफाई करने वालो को िवशेष सलाह देते हुए िवशेषज ने कहा िक 'लोगो को मँहगे एवं गुणवतारिहत टू थपेसटो
के बजाय नीम आिद के दातुनों का अिधकािधक पर्योग करना चािहए।'
नीम का दातुन िसफर् दाँतों को ही नहीं अिपतु पाचनतंतर् की भी सुरक्षा करता है। जब व्यिक्त नीम
का दातुन चबाता है तो उसके मुँह में अिधक लार बनती है और िजतनी अिधक लार बनेगी उतना ही
पाचनतंतर् अिधक सुदृढ़ होगा। इसीिलए िचिकत्सक सलाह देते हैं िक खाना चबा-चबाकरखानाचािहएक्योंिक
इससे अिधक लार बनेगी जो िक भोजन को पचाने के िलए अित महततवपूणर होती है।
अिधकांश रोग तो पाचनतंतर् की खराबी के कारण ही होते हैं। यिद पाचनतंतर् अच्छा होगा तो
शरीर की रोग-पर्ितकारक शिक्त बढ़ेगी। अब स्वयं फैसला कीिजए िक आप महँगे तथा गुणवत्ताहीन
टू थपेसटो का पयोग करेगे अथवा बहुउपयोगी, सस्ते तथा सुलभ नीम के दातुन का ? दातुन का चबाया हुआ भाग काटकर
बाकी का टुकड़ा तीन-चारिदनतक काममेल ं ायाजासकताहै।िकतनासस्ताव स्वास्थ्यपर्द!
पूज्य लीलाशाह बापू रोज सुबह खाली पेट नीम के पत्तों और तुलसी के पत्तों का रस या पत्ते
लेते थे, िजससे उन्हें कभी बुखार नहीं आता था एवं उनका स्वास्थ्य हमेशा अच्छा ही रहता था।
पूज्य बापू सत्संग में कई बार यह बात कहते हैं िक िजस वस्तु की हमें अत्यंत आवश् यकताहोती
है वह हमें बड़ी आसानी से िमल जाती है जैसे िक हवा, पानी की हमें आवश् यकताहोती है तो वह
आसानीसेिमलजाताहै।उसी पर्कारनीमहमारेिलएअत्यंतउपयोगीहैअतःवहभीसरलतासेिमलजाताहै।आसानीसेिमलनेवाले
नीम, तुलसी, करंज, िशरीष आिद वनसपितयो का उपयोग सवयं िकया जा सकता है।
जो व्यिक्त मीठे, खट्टे, खारे, तीखे, कड़वे और तूरे, इन छः रसो का मातानुसार योगय रीित से सेवन करता है
उसका स्वास्थ्य उत्तम रहता है। हम अपने आहार में गुड़, शकर, घी, दूध, दही जैसे मधुर, कफवधर्क
पदाथर् एवं खट्टे, खारे और मीठे पदाथर् तो लेते हैं िकन्तु कड़वे और तूरे पदाथर् िबल्कुल नहीं
लेते िजसकी हमे सखत जररत है। इसी कारण से आजकल अलग-अलग पर्कार के बुखार, मलेिरया, टायफायड, आँतकेरोग,
डायिबटीज, सदीर्, खाँसी, मेदवृिद्ध, कालेस्टर्ोल का बढ़ना, ब्लडपर्ेशर जैसी अनेक बीमािरयाँ बढ़ गई
हैं।
भगवान अितर् ने 'चरकसंिहता' में िदये गये उपदेश में कड़वे रस का खूब बखान िकया है जैसे
िकः बबबबबब बबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबब बबबबबबबब
बबबबब बबबबब बबबबबबबबबबब बबबबब । बबबबबबबबबबबबबब बबबबबबबबबबबब
(चरक संिहताःसूतर्स्थान, अध्याय 26)
अथार्त् कड़वा रस स्वयं ही अरूिचकर है, िफर भी आहार के पित अरिच दूर करता है। कडवा रस शरीर के िविभन
जहर, कृिम और बुखार को दूर करता है। भोजन के पाचन में सहाय करता है तथा स्तन्य को शुद्ध करता है।
स्तनपान करने वाली माता यिद उिचत रीित से नीम आिद कड़वी चीजों का उपयोग करे तो बालक स्वस्थ
रहता है।
आयुवेर्द(िवज्ञान) को इस बात को स्वीकार करना ही पड़ा है िक नीम का रस यकृत की िकर्याओं को खूब
अच्छे से सुधारता है तथा रक्त को शुद्ध करता है। त्वचा के रोगों में, कृिम तथा बालों की रूसी में नीम
अत्यंत उपयोगी है।
संक्षेप में, हमें हमारे जीवन में यही उतारने का पर्यास करना चािहए िक जैसे परम पूज्य
लीलाशाह बापू िनयिमत रप से नीम का सेवन करते थे वैसे ही हम भी नीम, तुलसी, हरड़ जैसी वस्तुओं का सेवन करें
िजससे हमारा स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे।
केवल भर्ामक पर्चार से करोड़ों रूपये लूटने वाली कंपिनयाँ लाखों रूपये िवज्ञापन में
लगायेगी, आपकीजेबे खालीकरे
ं ंगी।येकंपिनयाँऔरउनकेटूथपेस्टव बर्शआपकेदाँतोंव मसूड़ोंको कमजोरकरेंगे।अगरयेकंपिनयाँ
कई करोड़ रूपये नहीं लूट पातीं तो कई लाख रूपये िवज्ञापनों में कैसे लगातीं ?
ऐसेहीिमलावटी तैयारमसालों केचक्कमें रआकरअपने व अपने कुटुंिबयों
का आरोग्दयाँव परन लगायें। िमलावटरिहतशुद्ध
मसाले कूट पीसकर अपने काम में लायें। आकषर्क पैिकंग व िवज्ञापनों से पर्भािवत नहीं होना
चािहए।
आजकल आटाथैिलयोंमेआ ं नेलगाहै।आटािजसिदनिपसा, उसके आठ िदन के अंदर ही काम में आ जाना
चािहए। उसकेबादपोषकतत्त्वकम होनेलगतेहैं।कुछ पोषकतत्त्वतोज्यादापावरवालीमशीनोंमेप ं ीसनेकेकारणहीनष्टहोजातेहैं
और कुछ आठ िदन से अिधक रखने के कारण नष हो जाते है। अतः अपना पीसा हुआ ताजा आटा ही काम मे लाना बुिदमानी है। आठ िदन
के बादवाला बासी आटा स्वास्थ्य के िलए पोषक व उिचत नहीं है।
अनुकर्म
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सतर् 49
बबबब बब बबबबबब
हमारे जीवन के िवकास में भोजन का अत्यिधक महत्त्व है। वह केवल हमारे तन को ही पुष्ट नहीं
करता वरन् हमारे मन को, हमारी बुिद्ध को, हमारे िवचारों को भी पर्भािवत करता है। कहते भी हैं-
बबबब बबब बबबब । बबबब बबबब बबब
महाभारत के युद्ध में पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे िदन केवल कौरव कुल के लोग ही मरते
रहे। पांडवों के एक भी भाई को जरा सी भी चोट नहीं लगी।
पाँचवा िदन हुआ। आिखर दुयोर्धन को हुआ िक हमारी सेना में भीष्म िपतामह जैसे योद्धा हैं िफर
भी पांडवों का कुछ नहीं िबगड़ता, क्या कारण है ? वे चाहें तो युद्ध में क्या से क्या कर सकते हैं।
िवचार करते-करते वह आिखर इस िनष्कषर् पर आया िक भीष्म िपतामह पूरा मन लगाकर पांडवों का
मूलोच्छेद करने को तैयार नहीं हुए हैं। इसका क्या कारण है ? यह जानने के िलए सत्यवादी युिधिष्ठर
के पास जाना चािहए। उनसे पूछना चािहए िक हमारे सेनापित होकर भी वे मन लगाकर युद्ध क्यों नहीं
करते ?
पांडव तो धमर् के पक्ष में थे। अतः दुयोर्धन िनःसंकोच पांडवों के ििवर श म ें पहुँच गया। वहाँ
पर पांडवों ने उसकी यथायोग्य आवभगत की। िफर दुयोर्धन बोलाः "भीम ! अजुर्न ! तुम लोग जरा बाहर
जाओ। मुझे केवल युिधिष्ठर से बात करनी है।"
चारोंभाईयुिधिष्ठरके ििवर
श स े बाहरचलेगये।िफरदुयोर्धननेयुिधिष्ठरसेपूछाः
"युिधिष्ठर महाराज ! पाँच-पाँच िदन
हो गये हैं। हमारे कौरव पक्ष के लोग ही मर रहे हैं िकन्तु आप लोगों का बाल तक बाँका नहीं होता।
क्या बात है ? चाहेतोदेववर्
ं तभीष्मतूफानमचासकतेहैं।"
युिधिष्ठरः "हाँ, मचा सकते हैं।"
दुयोर्धनः "वे चाहें तो भीषण युद्ध कर सकते हैं, पर नहीं कर रहे हैं। क्या आपको लगता है िक
वे मन लगाकर युद्ध नहीं कर रहे हैं ?"
सत्यवादी युिधिष्ठर बोलेः "हाँ, गंगापुतर् भीष्ममनलगाकरयुद्धनहींकर रहेहैं।"
युिधिष्ठरः "वे सत्य के पक्ष में हैं। वे पिवतर् आत्मा हैं अतः समझते हैं िक कौन सच्चा है
और कौन झूठा, कौन धमर् में है तथा कौन अधमर् में। वे धमर् के पक्ष में हैं, सत्य के पक्ष में हैं
इसिलए उनका जी चाहता है िक पाडव पक की जयादा खून खराबी न हो।"
दुयोर्धनः "वे मन लगाकर युद्ध करें इसका उपाय क्या है ?"
युिधिष्ठरः "यिद वे सत्य और धमर् का पक्ष छोड़ देंगे, उनका मन गलत हो जायेगा तो िफर वे मन
लगाकर युद करेगे ?"
दुयोर्धनः "इसके िलए कया उपाय है ?"
युिधिष्ठरः "यिद वे पापी के घर का अन्न खायेंगे तो सत्य एवं धमर् का पक्ष छोड़ देंगे और
उनका मन युद्ध में लग जायेगा।"
दुयोर्धनः "आपहीबताइयेिक ऐसा कौनसा पापीहोगािजसकेघरका अन्नखानेसेउनका मनसत्यकेपक्षसेहट जायेऔरवे
पूरे मन से युद्ध करने को तैयार हो जायें ?"
युिधिष्ठरः "सभा में भीष्म िपतामह, गुरू दर्ोणाचायर् जैसे
महानलोगबैठेथे, हम बैठे थे िफर भी दर्ौपदी को
नग्न करने की आज्ञा और अपनी जाँघ ठोककर उस पर दर्ौपदी को बैठने का इशारा करने की दुष्टता तुमने
की थी। ऐसा धमर्िवरूद्ध और पापी आदमी दूसरा कहाँ से लाया जाये ? तुम्हारे घर का अन्न खाने से उनकी
मित सत्य और धमर् के पक्ष से हट जायेगी, िफर वे मन लगाकर युद करेगे।"
दुयोर्धन ने युिक्त पा ली। कैसे भी करके, कपट करके, अपने यहाँ का अन्न भीष्म िपतामह को
िखला िदया। भीष्म िपतामह का मन बदल गया और छठवें िदन से उन्होंने घमासान युद्ध करना आरंभ कर
िदया।
कहने का तात्पयर् यह है िक जैसा अन्न होता है वैसा ही मन होता है। भोजन करे तो शुद्ध भोजन
करें। मिलन और अपिवतर् भोजन न करें। भोजन के पहले हाथ-पैर जरूर धोयें। भोजन साित्वक हो,
पिवतर् हो, पर्सन्नता देने वाला हो, तन्दुरुस्ती बढ़ाने वाला हो।

बबबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबब
ठूँस-ठूँसकर भोजन न करे। चबा-चबाकरहीभोजनकरें।भोजनकेसमयशांतएवंपर्सन्निचत्तरहें।पर्भुका स्मरणकरकेभोजन
करें। जो आहार खाने से शरीर तन्दुरूस्त रहता हो वही आहार करें और िजस आहार से हािन होती हो ऐसे
आहारसेबचें।खान-पान में संयम बरतने से बहुत लाभ होता है।
भोजन अपनी मेहनत का हो, साित्त्वक हो। वह लहसुन, प्याज, मांस आिद और ज्यादा तेल-िमचर्-
मसाले वाला न हो। उसका िनिमत्त अच्छा हो और अच्छे ढंग से, पर्सन्न होकर, भगवान को भोग लगाकर
िफर भोजन करे तो उससे आपका भाव पिवत होगा। रकत के कण पिवत होगे, मन पिवतर् होगा। िफर संध्या पर्ाणायाम
करेंगे तो मन में साित्त्वकता बढ़ेगी। मन में पर्सन्नता, तन में आरोग्यता का िवकास होगा। आपका
जीवन उन्नत होता जायगा।
संसार में अित पिरशर्म करके खप मरने, िवलासी जीवन िबताकर या कायर रहकर जीने के िलए
िजंदगी नहीं िमली है। िजंदगी तो चैतन्य की मस्ती को जगाकर परमात्मा का आनंद लेकर इस लोक और
परलोक में सफल होने के िलए है। मुिक्त का अनुभव करने के िलए िजंदगी है।
अनुकर्म
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बबबब बब बबब बब बब बबबब बबब बबबबब
शरीर मे िहमोगलोिबन के अभाव की पूितर के िलए अनेक पकार के आयरन टॉिनक िनिमरत िकये जाते है। परंतु शायद आप यह नही
जानते होंगे िक कई कंपिनयाँ अपने उत्पादों में हीमोग्लोिबन का िनमार्ण भैंस के खून द्वारा करती
हैं। जीिवत भैंसों को काटने के बाद िजतना खून िनकलता है उस मातर्ा का आधा हीमोग्लोिबन बनता है।
एक भैस को काटने पर 8 िकलो खून िनकलता है िजससे 4 िकलो हीमोग्लोिबन बनता है।
आयरनटॉिनकोंकेिलएपर्िसद्धमानीजानेवालीकुछ कंपिनयोंकेिनमार्णकेन्दर् तो ऐसेकत्लखानोंका आस-पास पाये गये।
देश के अिधकांश कत्लखाने उत्तर भारत में हैं अतः यहाँ की औषध कंपिनयाँ हीमोग्लोिबन के
िनमार्ण के िलए भैंसों का रक्त इकट्ठा करती हैं और हीमोग्लोिबन बनाकर देश के अन्य क्षेतर्ों में
भेजती हैं।
इससे पहले चॉकलेट-टॉफी तथा टू थपेसट मे भी जानवरो के मास तथा हिडडयो के चूणर िमलाये जाने के समाचार पढने सुनने मे
आये।
सच तो यह है िक आयुवैर्िदक दृिष्ट से िलया गया आहार भी टॉिनक का कायर् करता है। आज से
वषोर्ं पहले जब ऐसे टॉिनक नहीं बनते थे तब भी हमारे पूवर्ज िविभन्न रोगों की सफल िचिकत्सा करते
थे। जबसेअसंतुिलतआहार-व्यवहार तथा हािनकारक एलौपैिथक दवाओं का पर्चलन बढ़ा है तभी से अनेक
बीमािरयाँ भी बढ़ी हैं। कई दवाएँ तो मरीजों की जेब खाली करने के िलए बेवजह भी िलख दी जाती हैं।
अतः अपने आहार-व्यवहार को शास्तर्ीय िविध के अनुसार संयत बनायें तथा िकसी पर्कार की
बीमारी होने पर एकादशी वर्त और आयुवैर्िदक पद्धित का उपयोग करके जाने-अनजाने कसीअभक्ष्य
दवाओं के सेवन से बचें।
अनुकर्म
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बबबबब बबब बबबब बब बबब बब बबबबब (बबबबब)
बबबब बबब
हैदराबाद िस्थत राष्टर्ीय संपोषण संस्थान (नेशनल इन्स्टीच्यूट ऑफ न्यूटर्ीशन) के िवशेषज्ञों
के अनुसार, 'फासट फूड खाने वाले लोगो को हृदय रोग, रक्तचाप, मोटापा, कुपोषण, रक्ताल्पता, मधुमेह, हिड्डयाँ
कमजोर होना, आँतोंका कैन्सरतथा श्वासकेरोगहोनेकी सौ पर्ितशतसंभावनारहतीहै।'
एम.एस. यूिनविसर्टी, वड़ोदरा (गुज.) के खाद्य एवं पोषण िवभाग के िवशेषज्ञों ने उपरोक्त बातों
का समथर्न करते हुए कहा है िकः "िदनोंिदन बढ़ रहे पर्दष ू ण, तनावयुक्त जीवनशैली तथा व्यस्त जीवन
के कारण लोग पोषण तथा स्वास्थ्य की परवाह िकये िबना पशि ्चमवािसयों का अंधानुकरण करके फास्ट फूड
खाने की गलती करते हैं। फास्ट फूड के बनने से पहले ही उसके िवटािमन आिद पोषक तत्त्व नष्ट हो
जाते हैं। िफर अत्यिधक वसायुक्त, मीठा, चरपराहोनेतथाबार-बार तलने-पकाने से उसमें कैन्सर उत्पन्न
करने वाले तत्त्व पैदा हो जाते हैं।"
िवश् वस्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 'सामान्य व्यिक्त के शारीिरक पोषण के िलए 55 से 65 %
काबोर्हाइडर्ेटस, 10 से 15 % पर्ोटीन तथा 15 से 30 पर्ितशत वसा की आवश् यकताहोती है।'
फासट फूड मे वसा (चबीर्
) और काबोहाइडेटस आवशयकता से कही अिधक होते है तथा पोटीन नही के बराबर होता है। उसमे
िवटािमन तथा खिनज तत्त्व तो िमलते ही नहीं हैं। ऐसे असंतुिलत तथा पोषकतत्त्विवहीन खाद्यों से
अकाल मृत्यु के मुँह में धकेलने वाली कई बीमािरयाँ होती हैं।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सतर् 50
बबबबबबबबबब बबबब बबब
महाराष्टर् में एक लड़का था। उसकी माँ बड़ी कुशल और सत्संगी थी। वह बच्चे को थोड़ा बहुत
धयान िसखाती थी। लडका जब 14-15 साल का हुआ, तब तक उसकी बुिद्ध िवलक्षण बन गयी।
चारडकैतथे।उन्होंने कहींडाकाडालातोहीर-ेजवाहरात का बक्सा िमल गया। उसे सुरिक्षत रखने के िलए
चारोंएकईमानदारबुिढ़याकेपासगये।बक्सादेते हुएबुिढ़यासेबोलेः
"माता जी ! हम चारो िमतर् व्यापार-धंधा करने के िलए िनकले है। हमारे पास कुछ पूँजी है। यहा कोई जान-पहचान
नहीं है। इस जोिखम को कहाँ साथ लेकर घूमें ? आपइसेरखेऔ ं रजबहमचारोंिमलकरएकसाथ लेने केिलएआय,ेंतब
लौटा देना।"
बुिढ़या ने कहाः "ठीक है।"
बक्सा देकर चोर रवाना हुए, आगेगयेतोएकचरवाहादूध लेकरबेचने जारहाथा। इनलोगोंको दूध पीनेकी इच्छाहुई ।
पास में कोई बतर्न तो था नहीं। तीन डकैतों ने अपने चौथे साथी को कहाः "जाओ, वह बुिढ़य़ा का घर िदख
रहा है, वहाँ से बतर्न ले आओ। हम लोग यहाँ इंतजार करते हैं।"
डकैत बतर्न लेने चला गया। रास्ते में उसकी नीयत िबगड़ गयी। वह बुिढ़या के पास आकर
बोलाः "माता जी ! हम लोगों ने िवचार बदल िदया है। यहाँ नहीं रूकेंगे। आज ही दूसरे नगर में चले
जायेंगे। अतः हमारा बक्सा लौटा दो। मेरे तीन दोस्त सामने खड़े हैं। मुझे बक्सा लेने भेजा है।"
बुिढ़या को जरा सन्देह हुआ। बाहर आकर उसके सािथयों की तरफ देखा तो तीनों खड़े थे। बुिढ़या
ने बात पक्की करने के िलए उनको इशारे से पूछाः "इसको दे दूँ ?"
डकैतों को लगा िक माई पूछ रही है, इसको बतरन दूँ ? तीनों ने दूर से ही कह िदयाः "हाँ, हाँ उसको दे
दो।"
बुिढ़या घर में गयी। िपटारे से बक्सा िनकालकर उसे दे िदया। वह चौथा डकैत लेकर दूसरे
रास्ते से पलायन हो गया।
तीनों साथी काफी इंतजार करने के बाद बुिढ़या के पास पहुँचे। उन्हें पता चला िक चौथा साथी
बक्सा ले भागा है। अब तो वे बुिढ़या पर ही िबगड़ेः "तुमने एक आदम को बक्सा िदया ही क्यों ? चारोंको
साथ में देने की शतर् की थी।"
झगडा हो गया। बात पहुँची राजदरबार मे। डकैतो ने पूरी हकीकत राजा को बतायी। राजा ने माई से पूछाः
"क्यों जी ! इन लोगो ने बकसा िदया था ?"
"जी महाराज !"
"ऐसाकहाथािक जबचारों िमलकरआवे तबलौटाना?"
"जी महाराज"
"तुमने एक ही आदमी को बक्सा दे िदया, अब इन तीनों को भी अपना अपना िहस्सा िमलना चािहए।
तेरी माल-िमिल्कयत, जमीन जायदाद, जो कुछ भी हो उसे बेचकर इन लोगों का िहस्सा चुकाना पड़ेगा। यह
हमारा फरमान है।" राजा ने बुिढ़या को आदेश िदया।
बुिढ़या रोने लगी। वह िवधवा थी। घर में छोटे-छोट े ब च च े थ े । कमान े वाला कोई था नही ।
संपित्त नीलाम हो जायेगी तो गुजारा कैसे होगा। वह अपने भाग्य को कोसती हुई, रोती पीटती रास्ते से
गुजररहीथी। 15 साल के रमण ने उसे देखा तो पूछने लगाः
"माता जी ! क्या हुआ ? क्यों रो रही हो ?"
बुिढ़या ने सारा िकस्सा कह सुनाया। आिखर में बोलीः
"क्या करूँ बेटा ! मेरी तकदीर ही फूटी है, वरना मैं उनका बक्सा लेती ही क्यों ?"
रमण ने कहाः "माता जी ! आपकीतकदीरका कसूर नहींहै , कसूर तो राजा की खोपड़ी का है।"
संयोगवश राजा गुप्तवेश में वहीं से गुजर रहा था। उसने सुन िलया और पास आकर पूछने लगाः
"क्या बात है ?"
"बात यह है िक नगर के राजा को न्याय करना नहीं आता। इस माता जी के मामले में गलत िनणर्य
िदया है।" रमण ने िनभर्यता से बोल गया।
राजाः "अगर तू न्यायाधीश होता तो कैसा न्याय देता ?" िकशोर रमण की बात सुनकर राजा की
उत्सुकता बढ़ रही थी।
रमणः "राजा को न्याय करवाने की गरज होगी तो मुझे दरबार में बुलायेंगे। िफर मैं न्याय
दूँगा।"
दूसरे िदन राजा ने रमण को राजदरबार में बुलाया। पूरी सभा लोगों से खचाखच भरी थी। वह बुिढ़या
माई और तीन िमतर् भी बुलाये गये थे। राजा ने पूरा मामला रमण को सौंप िदया।
रमण ने बुजुगर् न्यायाधीश की अदा से मुकद्दमा चलाते हुए पहले बुिढ़या से पूछाः
"क्यों माता जी ? चारसज्जनोंनेआपकोबक्सासँभालनेकेिलएिदयाथा। "
बुिढ़याः "हाँ।"
रमणः "चारोंसज्जनिमलकरएकसाथ बक्सालेने आयेतभीबक्सालौटान
ं ेकेिलएकहाथा ?"
"हाँ।"
रमण ने अब तीनों डकैतों से कहाः "अरे, अब तो झगड़े की कोई बात ही नहीं है। सदगृहस्थो !
आपनेसा
ऐ हीकहाथा निक हमचारिमलकरआयेतबहम ं ेबक्सालौटादेना
ं ?"
डकैतः "हाँ, ठीक बात है। हमने इस माइ से ऐसा ही तय िकया था।"
रमणः "ये माता जी तो अभी भी आपका बक्सा लौटाने को तैयार हैं, मगर आप ही अपनी शतर् भंग
कर रहे हैं।"
"कैसे ?"
"आपचारोंसाथीिमलकरआओतोअभीआपकीअमानतिदलवादेताहूँ। आपतोतीनहीहैं।चौथाकहाँहै?"
"साहब ! वह तो..... वह तो....."
"उसे बुलाकर लाओ। जब चारों साथ में आओगे, तभी आपको बक्सा िमलेगा। नाहक में इन बेचारी
माता जी को परेशान कर रहे हो ?"
तीनों व्यिक्त मुँह लटकाये रवाना हो गये। सारी सभा दंग रह गयी। सच्चा न्याय करने वाले
पर्ितभासंपन्न बालक की युिक्तयुक्त चतुराई देखकर राजा भी बड़ा पर्भािवत हुआ।
पर्ितभा िवकिसत करने की कुंजी सीख लो। जरा-सी बात में िखन्न न होना, मन को स्वस्थ व शांत
रखना। ऐसी पुस्तकें पढ़ना जो संयम और सदाचार बढ़ायें, परमात्मा का ध्यान करना और सत्पुरूषों का
सत्संग करना – ये ऐसी कुंिजयाँ हैं, िजनसे तुम भी पर्ितभावान बन सकते हो। वही बालक रमण आगे
चलकरमहाराष्टर्
मेम
ं ुख्यन्यायाधीशबनाऔरमिरयाड़ारमणकेनामसेसुिवख्यातहुआ।
अनुकर्म
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बबबबबब – बबबबबब बबबबबबबबबबबबबब बबब
यिद आप दीघर्जीवी बनना चाहते हैं, अपने हृदय को बसन्ताकालीन वायु-पर्वाह की तरह
आनन्दोल्लाससेपूणर्करना, रखना चाहते हैं, आयुको बढ़ाने वालीपुष्प-फल रकत की धारा पवािहत करने की अिभलाषा रखते है,
आयुको बढ़ाने वालीपुष्प-फल आिद की सुगंध से पूणर पातः कालीन वायु का सेवन करके अपने जीवन की तेजिसवता बढाने की इचछा रखते है
तो बर्ाह्ममुहूतर् में शैय्या-त्याग करने का अभ्यास करें।
पर्ातः काल, जब पर्कृित माँ अपने दोनों हाथों से स्वास्थ्य, बुिद्ध, मेधा, पर्सन्नता और सौन्दयर्
के अिमट वरदानों को लुटा रही होती है, जब जीवन और पर्ाणशिक्त का अपूवर् भण्डार पर्ाणीमातर् के िलए
खुला हुआ होता है तब हम िबस्तरों पर पड़े िनदर्ा पूरी हो जाने पर भी आलस्य-पर्मादवश करवटें बदल-
बदलकर अपने शरीर में िवद्यमान इन सम्पूणर् वस्तुओं का नाश कर रहे होते हैं।
हमें यह ज्ञान भी नहीं होता िक पर्भात के उस पुण्यकाल में िनदर्ा की गोद में पड़े-पड़े हम
पर्कृित के िकतने वरदानों से वंिचत हो रहे हैं। राितर् के अिन्तम पर्हर का जो तीसरा भाग है, उसको
बर्ाह्ममुहूतर् कहते हैं। शास्तर्ों में यही समय िनदर्ा त्याग के िलए उिचत बताया गया है।
मनुस्मृित में आता हैः बबबबबबबब बबबबबबबब बब बबबबबब बब
बबबबबबबबबबबबबबब।
पर्ातःकाल की िनदर्ा पुण्यों एवं सत्कमोर्ं का नाश करने वाली है।
मनु महाराज ने पर्ातः न उठने वाले के िलए वर्त तथा पर्ायशि ्चत का िवधान िनशि ्चत िकया है।
पर्ातः काल पर्ाकृितक रूप से बहने वाली वायु के एक-एक कण मे संजीवनी शिकत का अदभुत िमशण रहता है। यह वायु
राितर् में चन्दर्मा द्वारा पृथव ् ी पर बरसाये हुए अमृत िबन्दुओं को अपने साथ लेकर बहती है। जो
व्यिक्त पर्ातः िनदर्ा त्याग कर इस वायु का सेवन करते हैं उनकी स्मरण शिक्त बढ़ती है, मन पर्फुिल्लत
हो जाता है और पर्ाणों में नवचेतना का अनुभव होने लगता है। इसके अितिरक्त संपूणर् राितर् के
पश् चात्पर्ातः जब भगवान सूयर् उदय होने वाले होते हैं तो उनका चैतन्यमय तेज आकाशमागर् द्वारा
फैलने लगता है। यिद मनुषय सजग होकर सूयोदय से पूवर सनानािद से िनवृत हो भगवान सूयर की िकरणो से अपने पाणो मे उनके अतुल तेज
का आह्वान करे तो वह स्वस्थ जीवन पर्ाप्त कर सकता है। िवज्ञान के अनुसार वायु में 20 % ऑक्सीजन, 6
% काबर्नडाई आक्साइड तथा 73 % नाइटर्ोजन के परमाणु होते हैं। संपूणर् िदन में वायु का यही
पर्वाहकर्म रहता है िकन्तु पर्ातः और सायं यह कर्म पिरवितर्त होता है और ऑक्सीजन की मातर्ा बढ़
जाती है। संसार के सभी महापुरूषों ने पर्कृित के इस अलभ्य वरदान से बड़ा लाभ उठाया है। पर्ातः
जागरण में िजन लाभों का ऊपर वणर्न िकया गया है वह स्वास्थ्य-शासत सममत है, जैसे
बबबब बबबबबब बबब बबबबबबबब । बबबबबबबबबबबबबबबब बबबबबबबब
बबबबबबबब बबबबबबबब बबबबबबबबबबबबब ।। बब बबबबब बबबबब
(बबबबबब बबबब 63)
बर्ाह्ममुहूतर् में उठने वाला पुरूष सौन्दयर्, लकमी, स्वास्थ्य, आयुआिदवस्तुओंको पर्ाप्तकरताहै।उसका
शरीर कमल के समान सुनदर हो जाता है।
पर्ातः बर्ाह्ममुहूतर् में 4-5 बजे उठने के िलए रात को 9-10 बजे के भीतर ही सो जाना चािहए।
सोते समय सभी िवचारों को मन से हटाकर शांतिचत्त होकर ईश् वरतथा गुरद ू ेव का स्मरण करते हुए, पर्ातः
जल्दी जगने का दृढ़ संकल्प करके भगवन्नाम-स्मरण करते हुए सोयें। भगवन्नाम का स्मरण और
आत्मस्वरूप कािचंतनआपकीिनदर्ाको योगिनदर्ामेब
ं दलदेगा।आपकीिनदर्ाभीईश् वरकी भिक्तहोजायेगी।
महात्मा गाँधी पर्ितिदन पर्ातः 3 बजे उठकर ही शौच-स्नान आिद से िनवृत्त हो जाते थे और ईश् वर-
पर्ाथर्ना के बाद अपने दैिनक कायोर्ं में लग जाया करते थे। िवद्यािथर्यों के िलए अध्ययन हेतु
इससे अिधक उपयुकत समय हो ही नही सकता है। एकानत और सवरथा शात वायुमंडल मे जबिक मिसतषक िबलकुल तरोताजा होता है,
ज्ञानतंतु राितर् के िवशर्ाम के बाद नवशिक्तयुक्त होते हैं मनुष्य यिद कोई बौिद्धक कायर् करे तो उसे
इसके िलए िवशेष शम नही करना पडेगा। इसिलए हमे पकृित के इस अमूलय वरदान का लाभ उठाना चािहए।
अतः यिद आप इस जीवन में कोई महत्त्व का कायर् करके अपने मानवजन्म को साथर्क बनाना
चाहतेहै
, ंयिद अकाल मृत्यु से बचने की इच्छा रखते हैं तो पर्यत्नपूवर्क िनयिमत रूप से बर्ाह्ममुहूतर् में
उठा करें। सूयोर्दय से सवा दो घंटे पहले बर्ाह्ममुहूतर् शुरू हो जाता है।
अनुकर्म
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सतर् 51
बबबब बबबबबब बबबबब बब बबबबब बबबबब
पर्ितष्ठानपुर में राजा शालीवाहन राज्य करते थे। वे बड़े वीयर्वान, बलवान और बुिद्धमान थे।
उनकी 500 रािनयाँ थीं। वे एक िदन रािनयों के साथ जलकर्ीड़ा करने गये। जलाशय में कर्ीडा करते-
करते वे चंदर्लेखा नाम की िवदुषी रानी को जल से छींटे मारने लगे। वह रानी शांत पर्कृित की थी।
उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। िवदुषी रानी ने संस्कृत भाषा में कहाः
'मा मोदकैः पूरय।' (मा मा उदकैः पूरय अथार्त् मुझ पर पानी मत डालो।)
शालीवाहन संसकृत भाषा नही जानते थे। वे समझे िक यह िवदुषी रानी कह रही है िक मुझे मोदक दीिजए, पानी नहीं चािहए।
रानी ने तो कहा था िक मुझ पर पानी नहीं डािलये, लेिकन शालीवाहन समझे 'मा मोदकैः पूरय' माने मेरी लड्डू
की इच्छा पूणर् कीिजए। स्नान का कायर्कर्म पूरा हुआ। राजा ने मंतर्ी से कह लड्डूओं का थाल मँगवाकर
रानी के आगे रख िदया और कहाः "ले ये मोदक।"
रानी ने देखा िक राजा संस्कृत के ज्ञान से िबल्कुल अनिभज्ञ हैं। उसको हँसी आ गयी। उसे
हँसते देख पर्ितष्ठानपुर के नरेश शालीवाहन िचढ़े नहीं और न ही उिद्वग्न हुए। उसकी हँसी से लम्पट
भी नहीं हुए, अिपतु उससे हँसी का कारण पूछा। राजा ने ज्ञान का आदर िकया और िजज्ञासा बढ़ायी।
राजाः "क्यों हँसी ? सच बता।" उसने कहाः "मैंने तो आपसे कहा था, 'मा मोदकैः पूरय.... मा मा
उदकैः पूरय। मुझ पर उदक माने पानी नहीं डालो। आप समझे मोदक माने लड्डू और लड्डू का थाल धर रहे
हो, इसिलए हँसी आ रही है।"
शालीवाहन को लगा िक मुझे संसकृत का जान पाना चािहए। दृढ िनशय करके बैठ गये तीन िदन तक एक कमरे मे। सचचे हृदय से,
तत्परता से सरस्वती माँ का आह्वान िकया।
िजनके पास पर्ाणबल होता है, वे िजधर लगते हैं उधर पार हो जाते हैं। आधा इधर, आधाउधर....
ऐसेआदमीभटकजाते हैं।
शालीवाहन की ततपरता से तीन िदन के अंदर ही सरसवती माता पकट होकर बोली- "वरं बर्ूयात।" अथार्त् वर माँगो।
राजाः "माँ ! अगर आप संतुष्ट हैं तो मुझ पर कृपा कीिजए िक मैं संस्कृत का िवद्वान हो जाऊँ।
मुझे संस्कृत का ज्ञान जल्दी से पर्ाप्त हो जाये।"
माँ- "एवं असतु।"
मनुष्य िजस वस्तु को चाहता है उसे जरूर पाता है, अगर वह संकल्प में िवकल्प का कचरा नहीं
डाले.... तो अपने को अयोग्य मानने की बेवकूफी न करे तो। अरे ! यह तो ठीक है, सरस्वती माता से
राजा ने संस्कृत का ज्ञान पाने का आशीवार्द िलया, लेिकन वह चाहता िक मुझे बहजानी गुर िमल जाये और इन िवकारी
सुखों से बचकर मैं िनिवर्कारी नारायण का साक्षात्कार कर लूँ तो माँ वैसा वरदान भी दे देतीं।
उस बुिद्धमान लेिकन राजसी बुिद्धवाले नरेश शालीवाहन ने माँ से संस्कृत का ज्ञान माँगा और
माँ ने वरदान दे िदया। वह संस्कृत का इतना बिढ़या िवद्वान हुआ िक उसने सारस्वत्य व्याकरण की रचना
की और दूसरे गर्न्थ भी रचे। उस राजा के नाम से संवत्सर चला है, शालीवाहन संवत् ! जैसे िवकर्म संवत
चलताहै, वैसे ही शालीवाहन संवत् चलता है।
कहने का तात्पयर् है िक हे मनुष्य ! तू अपने को तुच्छ, दीन-हीन मत मान। चाहे तेरे पास मकान,
वैभव कम हो, चाहेज्यादाहो, चाहेतेरिेरशत
् -ेनाते बड़े लोगों से हों, चाहेछोटेलोगोंसेहों, लेिकन बडे-बड़े जो
परमात्मा हैं, उनके साथ तो तेरा सीधा िरश् ता-नाता है।
हे आत्मा ! तू परमात्मा का अिभन्न अंग है। उसके िवषय में जानकारी पा ले। सत्पुरूषों को खोज
उनकी शरण ले सत्य स्वरूप परमेश् वरका साक्षात्कार कर ले। आत्मारामी संतों से ध्यान और जप की
िविधयाँ जान ले।
अनुकर्म
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बबबबबबबबबबब बब बबबबबबबबब
'कोलगेट पॉमोिलव' नामक बहुराष्टर्ीय कंपनी के टूथपेस्ट 'कोलगेट' का िवज्ञापन टी.वी. पर
िदखाया जाता है। िवज्ञापन में एक ऐसे व्यिक्त को िदखाया जाता है िजसकी साँसों से बदबू आती है।
इसी कारण उसकी पती उससे दूर रहती है। इसके इलाज के िलए जब वह दातो के िवशेषज के पास जाता है तो वह उसे 'कोलगेट'
नामक टूथपेस्ट से दाँत साफ करने की सलाह देता है। जैसे ही वह व्यिक्त घर जाकर 'कोलगेट' से
दाँत रगड़ता है वैसे ही उसकी साँसों की बदबू िमट जाती है और उसकी पत्नी उसके िनकट आ जाती है
और बोला जाता हैः 'दूिरयाँ नजदीिकयाँ बनीं।' िफर उसके चारो ओर एक चक सा बन जाता है िजसे 'कोलगेट का
सुरक्षाचकर्' कहा जाता है।
हमारे शास्तर् और बुजुगर् कहते हैं िक पित-पत्नी का िरश् तापारस्पिरक पर्ेम, िवश् वास, शदा एवं
संयम द्वारा मजबूत बनता है परन्तु 'कोलगेट पॉमोिलव' कंपनी कहती है िक हमारा टूथपेस्ट नहीं िघसा तो
आपएकदूसरेसेदूर होजाओगे।
'कोलगेट का सुरक्षाचकर्' वास्तव में 'बीमारी का सुरक्षाचकर्' है, यह शायद आप नहीं जानते
होंगे।
अमेिरका में िबकने वाले कोलगेट के सभी बर्ाण्डों की पैिकंग पर इस पर्कार की सूचना िलखी
होती हैः "2 से 6 वषर् तक के बच्चों के िलए मटर के दाने की बराबर मातर्ा में पेस्ट का इस्तेमाल
करें और मंजन तथा कुल्ला करते समय बच्चे पर नज़र रखें तािक वह अिधक मातर्ा में पेस्ट को
िनगल न ले। 2 वषर् से कम उमर् के बच्चों की पहुँच से दूर रखें। पेस्ट अचानक िनगलने से दुघर्टना
होने पर तुरन्त िचिकत्सक या 'जहर िनयंतर्ण केन्दर्' (प्वॉइज़न कन्टर्ोल सेन्टर) से सम्पकर् करें।"
अमेिरका की तरह भारत में भी कोलगेट के बर्ाण्डों की पैिकंग पर ऐसा कुछ िलखा होना चािहए
तािक लोगों को पता लगे िक यह 'सुरक्षाचकर्' नहीं अिपतु जहर है। क्या हमारे देश के बच्चों का
स्वास्थ्य अमेिरका के बच्चों के स्वास्थ्य से कम महत्त्वपूणर् है ? इसके अलावा अमेिरका मे िबकने वाले कोलगेट
की तरह यहाँ िबकने वाले कोलगेट पर इस्तेमाल करने की अंितम ितिथ (Expiry Date) भी नजर नहीं
आती।
स्वास्थ्य संगठनों द्वारा िकये गये सवेर्क्षण बताते हैं िक कोलगेट जैसे टूथपेस्ट रगड़ने
वालों की अपेक्षा िनयिमत रूप से नीम तथा बबूल आिद की दातून करने वालों के दाँत अिधक सुरिक्षत
रहते हैं। इसके अलावा िचिकत्सकों का कहना है िक साँस की बदबू के िलए दाँतों की सफाई की अपेक्षा
िवटािमन 'सी' की कमी, पेट की गड़बड़ी तथा पानी की कमी अिधक िजम्मेदार है। अब आप स्वयं िवचािरये
िक कोलगेट से िवटािमन सी िमलता है या पेट की गड़बड़ी अथवा पानी की कमी दूर होती है। और तो और,
िवज्ञापनों में कोलगेट को िजस 'डेिन्टस्ट एसोिसयेशन' द्वारा पर्मािणत बताया जाता है, उस नाम से
इस देश मे कोई भी डेिनटसट एसोिसएशन पंजीकृत ही नही। गैर-पंजीकृत एसोिसएशन है भी तो वह कोलगेट कंपनी के
अपने ही डाक्टरों की है।
अब आप स्वयं समझ सकते हैं िक िवज्ञापन के द्वारा िकस पर्कार झूठ को सच बनाकर हमारे
सामने पर्स्तुत िकया जाता है। यह तो एक उदाहरण है, ऐसेसैंकड़ों झूठअलग-अलग कंपिनयाँ हमारे सामने
िवज्ञापनों के द्वारा सच बनाकर पर्स्तुत करती हैं।
अनुकर्म
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सतर् 52
बबबबबब बबबबबबबब बब......
बब बब बबब बब बबबबब बब, बब बबबब बबबब बबबबब बब।
बबबबबब बब बबबबबब बब, बब बबबबब बब बब-बबबबब ।। बबबब
बब बबबबब बब बबब बबब बब, बब बब बबब । बब बब बबबब
बब बब बबबबबबब बबबबब बबब, बबबबबबब-बबबबब ।। बबबब
मनुष्य को चािहए िक वह अपना कायर् तत्परता एवं उत्साह से करे। कभी भी, िकसी भी कायर् को
अपनी मूखर्ता, आलस्यअथवालापरवाहीकेकारणिबगड़नेन दे।
िवद्याथीर् अगर अध्ययन करता हो तो उसे पूरे मनोयोग से अध्ययन करना चािहए एवं आज का
गृहकायर आज ही पूरा कर लेना चािहए। यिद वह आज का काम कल पर छोडेगा तो उसे कल दुगुना काम करना पडेगा। इसी पकार वह
आलस्यको पोसतारहेगातोउसेआलस्यकरतेरहनेकी आदतपड़जायेगी।िफरबहुत साराकायर् एकसाथ करनापड़ेगत ा ोबोलेगाः
"हाय ! नहीं होता है।" तब िक् श षककों ो दोष देगा िकः "िकतना सारा गृहकायर् देते हैं !" िफर िसर कूटते हुए
अपना काम िनपटायेगा। ये अच्छे िवद्याथीर् के लक्षण नहीं हैं।
यिद अच्छा िवद्याथीर् बनना हो तो उसकी कुछ कुंिजयाँ हैं, िजनका उपयोग करके वैसा बना जा
सकता हैः
कक्षा में पढ़ाई के समय पूरा ध्यान दें।
िजस िदन जो गृहकायर् िदया जाये, उसे उसी िदन ठीक से पूरा कर लें।
िजस िवषय का अभ्यास िकया हो, उसे उसी िदन ठीक से पूरा कर लें। हर रोज याद कर लें। इससे
साल पूरा होने तक सभी िवषयों के पर्श् नठीक से याद भी हो जायेंगे और अच्छे अंक से उत्तीणर्
होने में कोई तकलीफ नहीं होगी।
िजस वक्त जो करना है वह अगर नहीं करते हैं, आलस्य-पर्माद करते हैं तो काम िबगड़ जाता है
और उसका पिरणाम भी बुरा आता है। इसीिलए कहा गया हैः
बब बबबबब बबबब बबबबब बबब, बब बबबबब बबब बबबबब बब।
बब बब बबबब बब बबबबब बब, बबबब बबब बब बबब बब।।
बब बबब बब बबब बबबब, बबब बबबब बबबब बबब बबब।
बबबब बबबबबब बब बबब बब, बब बब बबबबब बबब बबबबबब।।
नेपोिलयन बोनापाटर् िहम्मती, पर्बद ु ्ध पर्शासक, दृढ़ िनश् चयीऔर समय पालन के पर्ित चुस्त
आगर्हीथा। मुल्कपरमुल्कजीतनेवालोंमेन ंेपोिलयनका नामथा। वहयुद-्धिवद्या में इतना िनपुण था िक कैसा भी युद्ध
जीत लेना उसके बायें हाथ का खेल था। िफर भी वाटरलू के युद्ध में बुरी तरह हार गया। उसका कारण
क्या था ? जरा-सी लापरवाही। नेपोिलयन ने िजस िकले पर धावा बोलकर उसे जीत लेने की योजना बनायी
थी, उसमें वह केवल दस िमनट देर से पहुँचने के कारण हार गया।
वाटरलू के युद्ध में नेपोिलयन का सेनापित दस िमनट देर से पहुँचा। उसकी लापरवाही के कारण
नेपोिलयन को मुँह की खानी पड़ी। इसके बाद उसे अफर्ीका के एक िनजर्न द्वीप में िस्थत सेंट
हेलेना टापू पर कैदी के रूप में रखा गया। अंत में नेपोिलयन वहीं पर मर गया।
इतना बडा िवजेता होते हुए भी समय की जरा-सी लापरवाही के कारण नेपोिलयन को युद्ध में मुँह की खानी
पड़ी। मनुष्य हो चाहे देवता हो, गंधवर् होयािकन्नरहो, आलस्यका, पर्माद का, लापरवाही का फल सभी को भुगतना पडता
है। इसिलए आलस्य, पर्माद एवं लापरवाही रूपी दुगुर्ण को अपने जीवन में कभी भी फटकने नहीं देना
चािहए। ठीक हीकहाहैः
बबब बबबबब ब बबबबब, बबब बबब । बब बबबबब
बबब बब बबबबबब बबब, बब बबबबबब ।। बब बबबबबब
सन् 1972 की घटना हैः अमेिरका को शुकर् गर्ह पर रॉकेट भेजना था। इसके िलए उसने करोड़ों
डालर खचर् िकये थे। िकन्तु जब रॉकेट भेजा गया तो वह वापस आया ही नहीं और इस पर्कार करोड़ों
डालर का नुकसान सहना पड़ा। यही नहीं, अमेिरका को िवश् वभरके वैज्ञािनकों के आगे नीचा देखना
पड़ा।
इस घटना को लेकर एक जाच कमीशन बैठाया गया िक करोडो डालर खचर िकये गये, िफर भी रॉकेट कैसे लापता हो गया ?
जाँच कमीशन द्वारा खूब बारीकी से जाँच करने पर पता चला िक छोटी-सी लापरवाही के कारण
राकेट लापता हो गया। वह गलती क्या थी ? िकसी भी राकेट को गर्ह पर भेजने से पूवर् 'माइलेज' िगनेजाते
हैं। माइलेज िगनने में गिणत की जरूरत पड़ती है और उसमें धन () एवं ऋण () के िचह्न होते हैं। धन
() एवं ऋण () का िचह्न तो जरा सा होता है, िकन्तु जब उसे देखने में लापरवाही को गयी तो करोड़ों डालर
यानी अरबों रूपये गुड़-गोबरहोगयेइज्जतगयीसो अलग। गलतीतोजरासी थी, परंतु पिरणाम बहुत बुरा भुगतना
पड़ा।
जीवन में लापरवाही जैसा और कोई दुश् मननहीं है। अतः मनुष्य को सदैव इससे सावधान रहना
चािहए।
हर क्षण सावधानी बरतने से जीवन सुखदायी होता है, उन्नत होता है। एक एक िवचार कैसा उठ रहा
है, उस पर भी नजर रखो। सावधान होकर बुरे एवं दुबर्ल िवचारों को काट दो और अच्छे, ऊँचे, बलपर्द एवं
सज्जनता के िवचारों को बढ़ाओ तथा पोिषत करो।
एक-एक कायर पर सतकरतापूवरक िनगरानी रखो। 'अमुक कायर् का पिरणाम क्या आयेगा ? इसमे दूसरो की हािन तो नही
होगी ? कहीं समय व्यथर् तो नहीं चला जायेगा ? इस पकार की सतकरता से मनुषय का जीवन अतयंत उनत हो जाता है जबिक
जरा सी लापरवाही करते-करते मनुष्य अत्यंत नीचे आ जाता है। अतः पर्त्येक पल सावधान रहो, सतकर्
रहो, लापरवाही का तयाग कर दो। आलसय-पर्माद को ितलांजिल दे दो, तो जीवन के हर क्षेतर् में सफल होना
आसानहोजायेगा।
अनुकर्म
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बबबब बब बबबबबबबब बबबबबब ?
मानव के अन्दर ऐसी अनेक शिक्तयाँ िछपी हैं िजनके द्वारा मनुष्य बड़े-बड़े कायर् कर सकता
है। परन्तु खेद है, आजका मानवअपनेसामथ्यर् को भूलाबैठाहैएविवशर्ान्तहोगयाहै।अपनेवास्तिवककत्तर्व्योएं वंआदशोर्को

त्यागकर वह मृग-मरीिचका के पीछे दौड़ रहा है। उसके जीवन में महत्त्वाकांक्षाओं के ज्वार-भाटे
तो हैं िकन्तु आलस्य, अकमर्ण्यता, लापरवाही एवं उतरदाियतव की नयूनता के कारण वह अनधकार मे भटक रहा है। दुराचरण
की ओर लालाियत होकर वह ऐसे दौड़ रहा है जैसे कोई मक्खी घाव से मवाद बहता देखकर उस पर टूट
पड़ती है। इन सब बातों का कारण क्या है ?
यिद गौर से देखा जाये तो इन सबका यही एक मातर् कारण है िक मानव अपने आपको भूल चुका है।
उसे आत्म-बोध नहीं है। आत्मा स्वयं पर्काश है, परन्तु िवषय-वासनाओं के घने बादल उसके पर्काश को
चारोंओरसेआवृत्तकर देते हैऔरवहचक्षुिवहीनव्यिक्तकी भाँितमागर् टटोलतािफरताहै।
आजनवयुवकोंकेसामनेकोई स्पष्टिदशानहींहै।जबकोई अच्छावक्ताउसकेसामनेअपनाजोशीलावक्तव्यदेताहैतोउसके
मन में अच्छा वक्ता बनने की भावना आ जाती है। जब वह िकसी धनाढ्य व्यिक्त को चमचमाती हुई कार से
उतरता देखता है तो उसके मन में धनपित बनने की लालसा पैदा होती है। जब वह कोई आकषर्क
चलिचतर् देखताहैतोउसकेमनमेअ ं िभनेता
-अिभनेतर्ी बनने की तीवर् इच्छा उत्पन्न हो जाती है। परन्तु उसके
जीवन का कोई एक स्पष्ट लक्ष्य नहीं होता। इस कारण वह अपने चंचल मन के पीछे-पीछे भागता रहता
है तथा जीवनभर भटकने के बाद भी उसे कुछ पर्ाप्त नहीं होता।
अपने जीवन को ऊँचा बनाने के िलए लक्ष्य सदा एक तथा सवोर्त्तम होना चािहए। इस लक्ष्य की
ओर चलते हुए यिद वह अपने गनतवय सथान से कुछ भी दूर भी रह जायेगा तो भी उसका जीवन चमक उठेगा। अपने लकय का साकाररप देने
के िलए यिद वह अपनी इच्छाशिक्त को तदनुसार िकर्यािन्वत कर दे तो लक्ष्यपर्ािप्त में कोई देर न
लगेगी।
आजहमारेनौजवानोंकेजीवनमेक ंछु ऐसेशतर्लगगय
ु ेहै
, ंिजनके कारण वे अपना िवकास नहीं कर पाते। बीड़ी,
िसगरेट, पान-मसाला, तम्बाकू, शराब, अफीम, गुटखातथादुराचरणजैसे घातक शतर्ओं
ु सेवहपर्ितक्षणिघरारहताहै।कभी-
कभी इनसे दुःखी होकर वह छुटकारा पाने को व्यगर् हो जाता है तथा अपने जीवन में सदाचरण को
अपनाने का पर्यत्न करता है। परन्तु पूवर् के व्यसन तथा दुष्टआचरण की आदतें उसके सत्यपर्यास में
बाधक बन जाती हैं तथा उसे लक्ष्य तक नहीं पहुँचने देतीं।
पाटिलपुतर् नामक नगर में एक अन्धा व्यिक्त रहता था। एक बार अनेक दुःखों के कारण उसे नगर
छोड क र कही बाहर जान े की इ च छ ा ह ु ई तथा िकसी व यिकत स े उसन े नगर क े बाहर जान े का मागर पू छ ा।
उस व्यिक्त ने बताया िक नगर के बाहर जाने का एक ही मागर् है। अतः उसे िकले की दीवार के सहारे
जाना चािहए तथा चलते-चलतेजहाँद्वारआय,ेवहीं से बाहर िनकल जाना चािहए।
यह बात सुनकर अन्धा व्यिक्त िदवाल पकड़कर उसी के सहारे चल िदया। दुभार्ग्य से उस
चक्षुिवहीनकेशरीरपरदादका रोगथा। दुभार्ग्यसेउस चक्षुिवहीनकेशरीरपरदादका रोगथा। चलत-ेचलतेजबिकलेकेद्वारकेिनकट
पहुँचा तो दाद में खुजली आने के कारण िदवाल से हाथ हटाकर खुजलाते हुए आगे बढ़ गया। जब वह दाद
को खुजला चुका तब पुनः िकले की भीत पर उसका हाथ पड़ा िकन्तु चलते-चलतेद्वारिनकल चुका था। इसिलएवह
बेचारा पुनः िकले का चक्कर काटने लगा। नगर बड़ा था। बेचारे को मागर् में कहीं काँटा तो कहीं
पत्थर लगता। इस पर्कार अनेक दुःख सहन करता हुआ वह चक्षुिवहीन जब-जब द्वार पर पहुँचता तब-तब
भाग्यदोष से दाद में खुजली उठती और नगर का द्वार पीछे रह जाता था। इस पर्कार वह बार-बार कष्ट
उठाता।
उस अन्धे व्यिक्त की तुलना भारतीय संस्कृित से िवमुख होकर पतन की ओर दौड़ रहे भारतीय
युवाओं से कर सकते हैं। आज के नवयुवक की अज्ञानता उसका अन्धापन है, वह िकला उसका िवलासी
जीवन है, द्वार उसकी इिच्छत आकांक्षाओं का लक्ष्य है तथा दाद उसे जीवन की अनेक बुरी आदते हैं।
जब-जब अकमर्ण्यता से ऊबकर नवयुवक अपना वांिछत लक्ष्य पर्ाप्त करना चाहता है तब दादरूपी कुित्सत
आदतेउसे
ं पुनःव्यसनोंमेस ं ंलग्नकर देतीहैऔ
ं रउसेइिच्छतलक्ष्यतक नहींपहुँचनेदेतीं।
भारत माँ की आशाओं को दीपकों ! यिद आपको अपने जीवन का उत्थान करना है, अपने
आध्याित्मकलक्ष्यको पर्ाप्तकरनाहैतोआपकोमहात्मासूरदासजीकेइन शब्दोंपरध्यानदेनाहोगा-
बबबबबब बब बबब । बबबबबब बब बबबब
बबबब बबब बबबबबब बबबब बब, बबब बबब ।।बबब बबबबब
ईश् वरकृपासेहमनेमानवशरीरपायाहै।मानवयोिनिवशव ् की योिनयोंमेस
ं वोर्त्तमरचनाहै।महाकिवसुिमतर्ानन्दनजीकहतेहै
-ं
बबबबबब बब बबबबब, बबबब बबबबबब, बबबब बबब बबबब । बबबबबबबबबब संसार की चौरासी
लाख योिनयो को पार करने के पशात् यह मानव शरीर पापत होता है। अतः हमे ईशर के पित कृतजता जािपत करते हुए दृढ संकलप के साथ
जीवन के महान लक्ष्य की ओर चल देना चािहए। बड़े में बड़ा लक्ष्य है 'ईश् व-पर् र ािप्त' अथवा
'आत्मसाक्षात्कार' िजसके िलए भगवान बुद्ध ने िवशाल राज-पाट का त्याग कर िदया, िजसके िलए स्वामी
रामकृष्ण परमहंस रात-रात भर रोया करते थे, िजसके िलये युवकों के आदर्शस्वरूप स्वामी िववेकानंद
िवदेशों से िमली िडिगर्यों को ठोकर मारकर रामकृष्ण परमहंस के चरणों में समिपर्त हुए थे। वह
लकय ही जीवन का सवोचच लकय है तथा इस महान लकय की पािपत िकनही सदगुर की कृपा से ही हो सकती है। यह सच है िक ऐसे गवर होना
चािहएिक हमारेदेशकी यहपावनधराकभी ऐसेमहापुरष ू ोंसेिवहीननहींरहीतथाआजभी ऐसेमहापुरष ू हमारेबीचउपिस्थतहैजोभारत
के सुनहरे भिवष्य के िलए िनत्य नई आध्याित्मक खोजें करते रहते हैं। अतः हमें चािहए िक ऐसे
महापुरूषों के मागर्दर्शन में अपने जीवन की उन्नित की ओर जायें तथा समस्त िवश् वको शांित एवं
पर्ेम का संदेश देकर एक बार िवश् वशांित का पताका फहरायें।
अनुकर्म
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बबबब बबबबबबब बब बबबबबबबबबबब
शी अरिवनदघोष ने अपने जीवन काल मे वरत िलये थेः भारत मा को आजाद कराना, आजादीकेिलएपर्ाणोंकी बिलतक देदेनातथा
यिद ईश् वरहै, सत्य है तो उसका दर्शन करना।
उनकी यह मान्यता थी िक भगवान केवल अिहंसा के अथवा केवल िहंसा के दायरे में नहीं हैं।
भगवान सवर्तर् हैं तो िहंसा अिहंसा सब उसी में है। अंगर्ेजों को भारत से भगाने के िलए यिद
अिहंसा वर्त की आवश् यकतापड़ी तो उसका उपयोग करेंगे और िहंसा की आवश् यकतापड़ी तो उसका भी
उपयोग करेंगे लेिकन भारतमाता को आजाद कराके रहेंगे उन्होंने शपथ ली थी।
शीकृषण उनके इषदेव थे और गीता के पित उनकी अटू ट शदा थी। िवदेशी वसतुओं के बिहषकार के िलए तो अरिवनद ने अिहंसा का
मागर् स्वीकार िकया था लेिकन जो युवक थे, िजनमें पर्ाणबल था और गरम खून था, जो भारतमाता के िलए
पर्ाण देने को तत्पर थे, ऐसेलोगों को साथलेकर अंगर्कोेजोंभगाने
केिलएिहंसात्मपर्
क वृित्त
आरंभ
याँ की। उनकाकायर् थाबम
बनाना, उपदर्व करना तथा ऐसी मुसीबतें पैदा करना िक भारतवािसयों को भून डालने वाले शोषक, हत्यारे,
जुल्मी, अंगर्ेजों की नाक में दम आ जाये। केवल 'सर-सर' कह कर िगड़िगड़ाने से ये मानेंगे नहीं,
ऐसासमझकरयुवाओं को अरिवन्ने द यहमागर्
बतलायाथा।
उनके भाई ने जब पर्ाथर्ना की मुझे भी भारतमाता की आजादी की लड़ाई में कुछ काम सौंपा जावे
तब अरिवन्द घोष ने उन्हें एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में भगवद् गीता देकर शपथ िदलाई की
'जान भी जाय तो दे देंगे लेिकन रहस्य िकसी को नहीं बतायेंगे। भारत माता को आजाद कराकर
रहेंगे।'
युवकों ने अपना कायर् आरंभ िकया। कुछ बम बनाते, कुछ िवदर्ोह फैलाते, कुछ अंगर्ेजों की
सम्पित्त नष्ट करते। इससे अंगर्ेजों की नाक में दम आ गया।
देहाध्यासी आदमी अिहंसा से नहीं मानता, वह भय से काबू में रहता है। सज्जन पुरष ू के आगे
आपनमर्होजाओतोआपकीनमर्तापरवेपर्सन्नहोजायेंगलेिक े नदुजर्नकेआगेआपिवनमर्होजाओगेतोवहआपकाशोषणकरेगा , आपको
बुद्धू मानेगा लेिकन जो उदार आत्मा हैं, सज्जन हैं, संत हैं उनके आगे आपकी िवनमर्ता की कदर्
होगी।
शी अरिवनद घोष की िहंसातमक पवृितयो के अपराध मे अनेक युवा पकडे गये, अनकों को फाँसी लगी, सैंकड़ों को
आजीवनकारावासकी तथाकईयोंको कालेपानीकी सजादीगई। उन सबकामूलअरिवन्दघोषको मानाऔरउन्हेपकड़करजेल ं मेबंन्द
कर िदया। िबर्िटश शासन यह चाहता था िक कैसे भी करके उन्हें अपराधी सािबत करके शीघर् ही फाँसी
लगवा दी जाये।
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबब बबबब बब बब बबबब बबबबबबब
िकसी ने इतना तप िकया तो आपको सत्संग िमला। अब आप भी कुछ तप (सेवा) करें तािक दूसरे
बच्चों को सत्संग िमल जाये, अच्छे संस्कार िमल जायें। अपने इलाके में सप्ताह में 1-2 िदन आस-
पड़ोस के बच्चों को एकतर् कर बाल संस्कार केन्दर् चलाइये।
िजन पड़ोिसयों के बच्चे आपके पास आयेंगे उनके िदल की दुआ आपको िमलेगी और आपके
पर्ित उनका पर्ेम व आदर भी बढ़ जायेगा। लेिकन आप उनके आदर या पर्ेम की वासना से नहीं बिल्क
भगवान की सेवा समझकर केन्दर् चलाइये।
अगर आप बाल संस्कार केन्दर् खोलते हो तो केन्दर् में संस्कार पाकर दूसरों के बच्चों के
साथ आपके बच्चे सहज ही उन्नत होने लगेंगे और बच्चों के साथ यह सेवा करोगे तो आप में बहुत
िनदोर्षता आ जायेगी।
शेखी बघारना, चुगलीकरनाइससेबिढ़यातोयहहैिक बालसंस्कारकेन्दर्
केमध्यमसेबच्चोंमेस
ं ंस्कारडाले
, ंजो आपके
िलए अचछा सतकमर है।
कभी बाल संस्कार केन्दर् में बच्चे बढ़ जायें तो अिभमान नहीं करना और कभी कम हो जायें तो
िसकुड़ना मत। शाश् वततत्त्व एकरस है और माया में उतार-चढ़ावहुएिबनारहताहीनहीं।
बबबबबब ब बबब बबबब बबबब, बबब बबबबबब बब।
बबबबब बबबब बबब बबबबबब, बब बबबब ।। बब बबबब
जो बाल संस्कार केन्दर् चलाते हैं उनको आनंद भी आता होगा, सम्मान भी िमलता होगा और कभी
कोई उनकी िनंदा भी करता होगा तो फकर् क्या पड़ा, मजबूत होते हैं। िनंदा हुई तो मजबूत हुए, गलती सुधरी या
पाप कटे और पर्शंसा हुई तो दैवी कायर् में मदद िमली, दोनों हाथों में लड्डू।
पक्का इरादा करो िक बाल संस्कार केन्दर् और बढ़ायेंगे। भगवान भी कहते हैं िक 'मुझे लक्ष्मी
इतनी िपय नही है, वैकुण्ठ भी उतना िपर्य नहीं है िजतना मेरा ज्ञान बाँटने वाला मुझे प्यारा लगता है और
मैं उसके साथ एक हो जाता हूँ।'
अनुकर्म
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