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'िकनद पुराण' के बहोतर खंड मे कथा आती है िक 'काशीनरेश की कनया कलावती के साथ मथुरा के दाशाहण नामक राजा का
िववाह हआ ु । िववाह के बाद राजा न र े ा न ी क ो अ प न प े ल ं ग प रबुलायाल
धमकी दी। रानी न क े हाः"ििी के साथ संसार -वयवहार करना हो तो बलपयोग नही, िनहे पयोग करना चािहए। नाथ ! मै भले आपकी
रानी हँ,ू लेिकन आप मेरे साथ बलपयोग करके संसार -वयवहार न करे।"
लेिकन वह राजा था। रानी की बात सुनी-अनसुनी करके नजदीक गया। जयो ही उसन र े ा , तयोिकया
नीकािपशण ही उसे
िवदतु जैसा करि ं लगा। उसका िपशण करते ही राजा का अंग -अंग जलन ल े ग ा । वहदरू"हिाऔरबोलाः िया बात है? तुम इतनी सुनदर
और कोमल हो िफर भी तुमहारे शरीर के िपशण से मुझे जलन होन ल े गी ?"
रानीः "नाथ ! मैन ब े ा ि य क ा ल म े द व ु ा स ा ऋ ,िषसे िशवम
इसीिलए मै आपके नजदीक नही आती थी। जैसे अंधेरी रात और दोपहर एक साथ नही रहते , वैसे ही आपन श े र ाबपीनवेाली
साथ और कुलिाओं के साथ जो संसार -भोग भोगे है उससे आपके पाप के कण आपके शरीर , मन तथा बुिद मे अिधक है और मैन ज े प
िकया है उसके कारण मेरे शरीर मे ओज , तेज व आधयाितमक कण अिधक है। इसीिलए मै आपसे थोडी दरू रहकर पाथणना करती थी।
आप बुिदमान है, बलवान है, यशिवी है और धमण की बात भी आपन स े ुन, रखीहै
लेिकन आपन श े र ा बपीनवेालीवेशयाओ
के साथ भोग भी भोगे है। "
राजाः "तुमहे इस बात का पता कैसे चल गया ?"
रानीः "नाथ ! हृदय शुद होता है तो यह खयाल आ जाता है। "
राजा पभािवत हआ ु और रानी से बोलाः "तुम मुझे भी भगवान िशव का वह मंि दे दो।"
रानीः "आप मेरे पित है, मै आपकी गुर नही बन सकती। आप और हम गगाचायण महाराज के पास चले। "
दोनो गगाचायण के पास गये एव उ ं न स े प ा थ ण न ा की । ग ग ा चायणनउ े नहेि
अपन ि े श वि व र प क ेधयानमे , िफर
बैिकरउनहे
िशवमंििनगाहसे
देकर पशाभवी
ावनिकयादीका से राजा के ऊपर शिितपात िकया।
कथा कहती है िक देखते ही देखते राजा के शरीर से कोिि -कोिि कौए िनकल-िनकल कर पलायन करन ल े गे। काले कौए
अथात् तुचछ परमाणु। काले कमों के तुचछ परमाणु करोडो की संखया मे सूकमदिृष के दषाओं दारा देखे गये। सचचे संतो के चरणो मे
बैिकर दीका लेन व े ा ल े स भी स ा ध कोकोइसपकारक , बुिद मे पडे े लहएाभहोते
ु तुचछहीहैकु। ंिकार भी िमिते है। आतम -
समन
परमातमपािपत की योगयता भी िनखरती है। वयिितगत जीवन मे सुख शाित, सामािजक जीवन मे सममान िमलता है तथा मन-बुिद मे
सुहावन स े ं िक ा र भ ी प ड तेहैऔ , मनमु
रभीअनिगनतलाभहोते
ख लोगो की किपना मे भीरे नही आ सकते। मंिदीका के पभाव
हैजोिनगु
से हमारे पाचो शरीरो के कुसंिकार व काले कमों के परमाणु कीण होते जाते है। थोडी ही देर मे राजा िनभार हो गया एव भ ं ी तरकेसुखसे
भर गया।अनुकम
शुभ-अशुभ, हािनकारक एव स ं ह ा यक ज ी व ा ण ु ह म ा र े शरीरमे रहत
उस पर लाखो जीवाणु पाये जाते है यह वैजािनक अभी बोलते है। लेिकन शाििो न त े ो ल ा ख ोवषणपहलेहीकहिदयाः
- ।
जब आपके अंदर अचछे िवचार रहते है तब आप अचछे काम करते है और जब भी हलके िवचार आ जाते है तो आप न चाहते हएु
भी गलत कर बैिते है। गलत करन व े ा ल ा क ईब ा र -शरीर पुत
अ चछाभीकरताहै णयोमाननापडे
और पापगािकमनु
का िमशण षय है।
आपका अंतःकरण शुभ और अशुभ का िमशण है। जब आप लापरवाह होते है तो अशुभ बढ जाते है अतः पुरषाथण यह करना है िक
अशुभ कीण होता जाय और शुभ पराकाषा तक परमातम-पािपत तक पहँच ु जाय।
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लोग घरबार छोडकर साधना करन क े े ि ल ए सा धु, बगृनते
हिथधमण
है।घरमेिनभाते
रहतेहहए
एु ु नारी ऐसी उग साधना कर
सकती है िक अनय साधुओं की साधना उसके सामन फ े ी क ी प ड ज ाय।ऐसीदे-धमण हीेपऐसा
िवयोक ासएकपितवर
अमोघ त ा है,
शिि
िजसके सममुख बडे -बडे वीरो के शिि भी कुिणित हो जाते है। पितवरता ििी अनायास ही योिगयो के समान िसिद पापत कर लेती है ,
इसमे िकंिचत् माि भी संदेह नही है।
महिषण याजविियजी की दो पििया थीः मैिेयी और कातयायनी। मैिेयी जयेष थी। कातयायनी की पजा सामानय ििियो जैसी ही
थी िकंतु मैिेयी बहवािदनी थी।
एक िदन याजवािियजी न अ े प न ी द ो न ोपिियोकोअपनप"मेरा िवचारे ासबु नयास लेन क े ा
जबलसंायाऔरकहाः है।अतःइस
िथान को छोडकर मै अनयि चला जाऊँगा। इसके िलए तुम लोगो की अनुमित लेना आवशयक है। साथ ही , मै यह भी चाहता हूँ िक घर
मे जो कुछ धन -दौलत है उसे तुम दोनो मे बराबर-बराबर बाि दँ त ू ा ि कम े र े च " े ेबादइसकोलेकरआ
ल ेजानक
यह सुनकर कातयायनी तो चुप रही िकंतु मैिेयी न पेू छाः"भगवन् ! यिद यह धन-धानय से पिरपूणण सारी पृथवी केवल मेरे ही
अिधकार मे आ जाय तो िया मै उससे िकसी पकार अमर हो सकती हूँ?"
याजविियजी न क े हाः"नही। भोग-सामिगयो से संपन मनुषयो का जैसा जीवन होता है , वैसा ही तुमहारा भी जीवन हो जायेगा।
धन से कोई अमर हो जाय, उसे अमरतव की पािपत हो जाय, यह कदािप संभव नही है।"अनुकम
तब मैिेयी न के हाः"भगवन् ! िजससे मै अमर नही हो सकती उसे लेकर िया करँगी ? यिद धन से ही वाितिवक सुख िमलता तो
आप उसे छोडकर एकानत अरणय मे ियो जाते? आप ऐसी कोई वितु अवशय जानते है, िजसके सामन इ े स ध न एवगं ृहिथीकास
सुख तुचछ पतीत होता है। अतः मै भी उसी को जानना चाहती हूँ। । केवल िजस वितु को आप
शीमान अमरतव का साधन जानते है, उसी का मुझे उपदेश करे।"
मैिेयी की यह िजजासापूणण बात सुनकर याजविियजी को बडी पसनता हईु। उनहोन म े ै ि े यीकीपशंसाकरतेहएुकहा
"धनय मैिेयी ! धनय ! तुम पहले भई मुझे बहत ु िपय थी और इस समय भी तुमहारे मुख से यह िपय वचन ही िनकला है। अतः
आओ, मेरे समीप बैिो। मै तुमहे तततव का उपदेश करता हूँ। उसे सुनकर तुम उसका मनन और िनिदधयासन करो। मै जो कुछ कहूँ , उस
पर िवय भ ं ी ि व चा रकरक "ेउसेहृदयमेधारणकरो।
इस पकार कहकर महिषण याजविियजी न उ े प देशदेन"मै ! तुम जानती हो िक ििी को पित और पित को ििी
िेयं ी िकयाः
ाआरभ
ियो िपय है? इस रहिय पर कभी िवचार िकया है? पित इसिलए िपय नही है िक वह पित है , बििक इसिलए िपय है िक वह अपन क े ो
संतोष देता है, अपन क े ा म आ त ा ह ै । इ स ी , अिपतु इसिलए िपय होती है िक
प क ा रपितकोििीभीइसिलएिपयनहीहोतीिकवहिि
उससे िवय क ं ो स ु , धन, बाहण, कििय,
ख िमलता।इसीनयायसे पुि लोक, देवता, समित पाणी अथवा संसार के संपूणण पदाथण भी आतमा
के िलए िपय होन स े े ह ी ि प य ज ा ? अपना
न पडते है।अतःसबसे
आतमा। िपयतमवितुियाहै
।
मैिेयी ! तुमहे आतमा की ही दशणन, शवण, मनन और िनिदधयासन करना चािहए। उसी के दशणन , शवण, मनन और यथाथणजान से
सब कुछ जात हो जाता है। "
( 4-6)
तदनतंर महिषण याजविियजी न िेभन-िभन दष ृ ानतो और युिितयो के दारा बहजान का गूढ उपदेश देते हएु कहाः "जहा
अजानाविथा मे दैत होता है , वही अनय अनय को सूँघता है, अनय अनय का रसािवादन करता है, अनय अनय का िपशण करता है, अनय
अनय का अिभवादन करता है, अनय अनय का मनन करता है और अनय अनय को िवशेष रप से जानता है। िकंतु िजसके िलए सब कुछ
आतमा ही हो गया है, वह िकसके दारा िकसे देखे ? िकसके दारा िकसे सुने ? िकसके दारा िकसे सूँघे ? िकसके दारा िकसका रसािवादन
करे? िकसके दारा िकसका िपशण करे ? िकसके दारा िकसका अिभवादन करे और िकसके दारा िकसे जाने ? िजसके दारा पुरष इन सबको
जानता है, उसे िकस साधन से जाने ?
इसिलए यहा ' - ' इस पकार िनदेश िकया गया है। आतमा अगाह है , उसको गहण नही िकया जाता। वह अकर है ,
उसका कय नही होता। वह असंग है , वह कही आसित नही होता। वह िनबणनध है , वह कभी बनधन मे नही पडता। वह आनदंिवरप है ,
वह कभी वयिथत नही होता। हे मैिेयी ! िवजाता को िकसके दारा जाने ? अरे मैिेयी ! तुम िनशयपूवणक इसे समझ लो। बस, इतना ही
अमरतवह है। तुमहारी पाथणना के अनुसार मैन ज े ा त "अनुकमशदेिदया।
व यतततवकाउपदे
ऐसा उपदेश देन क े े प शा त ् य ा ज व ि ि य जीसंनयासीहोगय
संपित है िजसे मैिेयी न प े ा प ! जो बाह मधन-
त िकयाथा।धनयहै ैिेयसंी पित से पापत सुख को तृणवत् समझकर वाितिवक संपित को
अथात् आतम-खजान क े ो प ा न क े ापु!रआज
षाथणककी
रतीहै
नारी
।काशमैिेयी के चिरि से पेरणा लेती ....
( )
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बहवािदनी िवदषुी गागी का नाम वैिदक सािहतय मे अतयत ं िवखयात है। उनका असली नाम िया था, यह तो जात नही है िकंतु
उनके िपता का नाम वचकु था। अतः वचकु की पुिी होन क े े 'वाचकवी' पड गया। गगण गोि मे उतपन होन क े ेकारण
कारणउनकानाम
लोग उनहे गागी कहते थे। यह गागी नाम ही जनसाधारण से पचिलत हआ ु ।
'बृहदारणयक उपिनषद म ् े ग ा ग ी केशाििाथणकापसंगविणणतहैः
िवदेह देश के राजा जनक न ए े क ब ह त ु ब ड ा ज ा न य ज िकयाथा।उसमेकुर
हएु थे। राजा जनक बडे िवदा-वयासंगी एव स ं त स ं ग ी थ े । उनहेश-ाििक
चचा े गहीूढ तततवोकािववे नएवपंरमाथण
अिधक िपय चथी।
इसिलए उनके मन मे यह जानन क े ी इ च छ ा ह ई ु ि क य ह ा आ य ?ेहएुिवदानब
इस परीका के िलए उनहोन अ े प न ी ग ौ श ा ल ा म े एकहजारगौएब -दस पादँ ध ँ (एक
वादी।सबगौओं )
केसीगोपरदस
पाचीन माप-कषण
सुवणण बध
ँ ा हआु था। यह वयविथा करके राजा जनक न उ े -समुदाय से कहाः
पििथतबाहण
"आप लोगो मे से जो सबसे बढकर बहवेता हो, वह इन सभी गौओं को ले जाये।"
राजा जनक की यह घोषणा सुनकर िकसी भी बाहण मे यह साहस नही हआ ु िक उन गौओं को ले जाय। सब सोचन ल े गेिक
'यिद हम गौए ल ँ े ज ा नके ो आ ग े ब ढ त े ह ै त ो य ेसभीबाहणहम
जीत सकेगे या नही, िया पता? यह िवचार करते हएु सब चुपचाप ही बैिे रहे।
सबको मौन देखकर याजविियजी न अ े प "हे सौमय ! तू क
न बेहचारीसामशवासे इनहाःसब गौओं को हाक ले चल।"
बहचारी न आ े ज ा प ा क र व ै स ा ह ी ि क य ा। यहदेखकर
याजविियजी से पूछ बैिेः "ियो? िया तुमही बहिनष हो? हम सबसे बढकर बहवेता हो?
यह सुनकर याजविियजी न न े मतापूवणककहाः
"नही, बहवेताओं को तो हम नमिकार करते है। हमे केवल गौओं की आवशयकता है , अतः गौओं को ले जाते है।"अनुकम
िफर िया था? शाििाथण आरभ ं हो गया। यज का पतयेक सदिय याजविियजी से पश पूछन ल े गा।याजवािि
िवचिलत नही हएु। वे धैयणपूवणक सभी के पशो का कमशः उतर देन ल े ग े।अशलनच-चुनकरे ुनिकतन ह े ीपशिकये , िकंतु उिचत उतर
िमल जान क े े क ा र ण व े च ु प ह ो क र ब ै ि ग य े ।तबजरतकार
िमल गया, अतः वे भी मौन हो गये। िफर कमशः लाहायिन भुजयु, चाकायम उषित एव क ं ौ ष ी त केय कहोलपश
गये। इसके बाद वाचकवी गागी न पेूछाः "भगवन ! यह जो कुछ पािथणव पदाथण है , वे सब जल मे ओत पोत है। जल िकसमे ओतपोत है?
याजविियजीः "जल वायु मे ओतपोत है।"
"वायु िकसमे ओतपोत है?"
"अनतिरकलोक मे।"
"अनतिरकलोक िकसमे ओतपोत है?"
"गनधवणलोक मे।"
"गनधवणलोक िकसमे ओतपोत है?"
"आिदतयलोक मे।"
"आिदतयलोक िकसमे ओतपोत है?"
"चनदलोक मे।"
"चनदलोक िकसमे ओतपोत है?"
नकिलोक मे।"
"नकिलोक िकसमे ओतपोत है?"
"देवलोक मे।"
"देवलोक िकसमे ओतपोत है?"
"इनदलोक मे।"
"इनदलोक िकसमे ओतपोत है?"
"पजापितलोक मे।"
"पजापितलोक िकसमे ओतपोत है?"
"बहलोक मे।"
"बहलोक िकसमे ओतपोत है?"
इस पर याजविियजी न क े हाः"हे गागी ! यह तो अितपश है। यह उतर की सीमा है। अब इसके आगे पश नही हो सकता। अब
तू पश न कर, नही तो तेरा मितक िगर जायेगा।"अनुकम
गागी िवदषुी थी। उनहोन य े ा ज व ि ि य ज ी क े अ ि भ पायको
पशोतर िकये। इसके पशात् पुनः गागी न स े म ि त ब ाहणोकोसं "यिदबआपकी
ोिधतकरते
अनुहएम
ु कहाः
ित पापत हो जाय तो मै
याजविियजी से दो पश पूछूँ। यिद वे उन पशो का उतर दे देगे तो आप लोगो मे से कोई भी उनहे बहचचा मे नही जीत सकेगा। "
बाहणो न क े हाः"पूछ लो गागी !"
तब गागी बोलीः "याजविियजी ! वीर के तीर के समान ये मेरे दो पश है। पहला पश हैः दल ु ोक के ऊपर , पृथवी का िनम, दोनो
का मधय, िवय द ं ो न ो औ र भ ू त?"भिवषयतथावतणमानिकसमेओतपोतहै
याजविियजीः "आकाश मे।"
गागीः "अचछा... अब दस ू रा पशः यह आकाश िकसमे ओतपोत है?"
याजविियजीः "इसी तततव को बहवेता लोग अकर कहते है। गागी यह न िथूल है न सूकम, न छोिा है न बडा। यह लाल,
दव, छाया, तम, वायु, आकाश, संग, रस, गनध, नि े , कान, वाणी, मन, तेज, पाण, मुख और माप से रिहत है। इसमे बाहर भीतर भी
नही है। न यह िकसी का भोिता है न िकसी का भोगय।"
िफर आगे उसका िवशद िनरपण करते हएु याजविियजी बोलेः "इसको जान ि े , यज, तप
ब न ाहजारोवषों आिद के फल
कोहोम
नाशवान हो जाते है। यिद कोई इस अकर तततव को जान ि े ब न ा ह ी मर ज ा य त ो वहकृपणहैऔरजानलेतोय
यह अकर बह दष ृ नही, दषा है। शुत नही, शोता है। मत नही, मनता है। िवजात नही, िवजाता है। इससे िभन कोई दस ू रा
दषा, शोता, मनता, िवजाता नही है। गागी ! इसी अकर मे यह आकाश ओतपोत है।"
गागी याजविियजी का लोहा मान गयी एव उ ं न ह ोनिेनणण "इस ेहएुकहाः
यदेतसभा मे याजविियजी से बढकर बहवेता कोई नही
है। इनको कोई परािजत नही कर सकता। हे बाहणो ! आप लोग इसी को बहत ु समझे िक याजविियजी को नमिकार करन म े ािसे
आपका छुिकारा हएु जा रहा है। इनहे परािजत करन क े ा ि वपदे" खनावयथणहै।
राजा जनक की सभा ! बहवादी ऋिषयो का समूह ! बहसमबनधी चचा ! याजविियजी की परीका और परीकक गागी ! यह
हमारी आयण के नारी के बहजान की िवजय जयनती नही तो और िया है ?
िवदषुी होन प े र भ ी उ न क े म न म े अ प न प े क क ोअनुिचतरपस
संतुष हो गयी एव द ं स ू र े क ी ि व दताकीउनहोनमेुितकणिसेपशंसाभीकी।
धनय है भारत की आयण नारी ! जो याजविियजी जैसे महिषण से भी शाििाथण करने िहचिकचाती नही है। ऐसी नारी, नारी न
होकर साकात् नारायणी ही है, िजनसे यह वसुनधरा भी अपने -आपको गौरवािनवत मानती है। अनुकम
(' ' ' ' )
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शाणडािलनी का रप-लावणय और सौनदयण देखकर गालव ऋिष और गरडजी मोिहत हो गये। 'ऐसी सुनदरी और इतनी तेजििवनी
! वह भी धरती पर तपियारत ! यह ििी तो भगवान िवषणु की भाया होन क े ेय....'
ोगयहै ऐसा सोचकर उनहोन श े ा णडािलनीकेआ
वाितव रखा।
शाणडािलनीः "नही नही, मुझे तो बहचयण का पालन करना है।"
यह कहकर शाणडािलनी पुनः तपियारत हो गयी और अपन श े ुद-बुद िवरप की ओर यािा करन ल े गी।
गालवजी और गरडजी का यह देखकर पुनः िवचारन ल े गे'अपसराओं िक को भी मात कर देन व े ा ले सौनदयण कीिवाि
यह शाणडािलनी अगर तपिया मे ही रत रही तो जोगन बन जायेगी और हम लोगो की बात मानगेी नही। अतः इसे अभी उिाकर ले चले
और भगवान िवषणु के साथ जबरन इसकी शादी करवा दे। '
एक पभात को दोनो शाणडािलनी को ले जान क े े ि ल ए आ य े । श ा ण ड ािलनीकीदिृष
गयी िक 'अपन ि े ल, िक ं तु अपनी इचछा पूरी करन क े
एतोनही े ि ल ए इ न क ी न ी य त ब ुरीहईु है। जबम
की इचछा के आगे ियो दबूँ ? मुझे दो बहचयण वरत का पालन करना है िकंतु ये दोनो मुझे जबरन गृहिथी मे घसीिना चाहते है। मुझे िवषणु
की पिी नही बनना, वरन् मुझे तो िनज िवभाव को पाना है।'
गरडजी तो बलवान थे ही, गालवजी भी कम नही थे। िकंतु शाणडािलनी की िनःिवाथण सेवा, िनःिवाथण परमातमा मे िवशािनत की
यािा न उ े स क ो इ त न ा त ो सा म थ य ण 'गालव ! तुम गल जाओ
व ानबनािदयाथािकउसक ेदारापानीक
औरेछीिेमारक
गालव को सहयोग देन व े ालेग!रड
तुम भी गल जाओ।' दोनो को महसूस होन ल े ग ा ि -ही-
क उ न क ीशिितकीणहोरहीह
भीतर गलन ल े गे।
िफर दोनो न ब े ड ा प , तब भारत की उस िदवय कनया शाणडािलनी न उ
ायिशतिकयाऔरकमायाचनाकी े न हे माफिकयाऔ
पूवणवत् कर िदया। उसी के तप के पभाव से 'गलतेशर तीथण' बना है।
हे भारत की देिवयो ! उिो.... जागो। अपनी आयण नािरयो की महानता को, अपन अ े त ी त क े गौरवकोयादकर
सामथयण है, उसे पहचानो। सतसंग, जप, परमातम-धयान से अपनी छुपी हईु शिितयो को जागत करो।
जीवनशिित का हास करन व े ा ली प ा -मनिक
शातयसं को
ृितक दिेअ
ू षत
ंधानुकरन
करणसे े
व बचकरतन ालीफैशनपरि
िवलािसता से बचकर अपन ज े ी व न क ो ज ी व न द ा त ा क ेपथपरअगसरकरो।अगरऐसाक , जब िवश तुमहारे
िदवय चिरि का गान कर अपन क े ानगेक
ोकृताथणमअनु ा।म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
ईषया-देष और अित धन-संगह से मनुषय अशात होता है। ईषया-देष की जगह पर कमा और सतपवृित का िहिसा बढा िदया जाय
तो िकतना अचछा !
दयुोधन ईषयालु था, देषी था। उसन त े ी न म ह ी न त े , उनक
कदव े िशषयो की भी सेवा की।
ु ासाऋिषकीभलीपकारसे सेवाकी
दयुोधन की सेवा से दवुासा ऋिष पसन हो गये और बोलेः
"माग ले वतस ! जो मागना चाहे माग ले।"अनुकम
जो ईषया और देष के िशकंजे मे आ जाता है , उसका िववेक उसे साथ नही देता लेिकन जो ईषया-देष रिहत होता है उसका िववेक
सजग रहता है वह शात होकर िवचार या िनणणय करता है। ऐसा वयिित सफल होता है और सफलता के अह म ं े ग रकनहीहोता।क
असफल भी हो गया तो िवफलता के िववाद मे नही डू बता। दष ु दयुोधन न ई े ष या ए वदंेषकेवशीभूतहोकरकहाः
"मेरे भाई पाणडव वन मे दर-दर भिक रहे है। उनकी इचछा है िक आप अपन ह े जा र ि श षयोकेसाथउनकेअ
अगर आप मुझ पर पसन है तो मेरे भाइयो की इचछा पूरी करे लेिकन आप उसी वित उनके पास पहँिुचयेगा। जब दौपदी भोजन कर चुकी
हो।"
दयुोधन जानता था िक "भगवान सूयण न प े ा ण ड व ो क ो अकयपाििदयाहै-सामगी िमलती
।उसमेरहती है, जब
सेतबतकभोजन
तक दौपदी भोजन न कर ले। दौपदी भोजन करके पाि को धोकर रख दे िफर उस िदन उसमे से भोजन नही िनकलेगा। अतः दोपहर के
बाद जब दवुासाजी उनके पास पहँच ु ेगे , तब भोजन न िमलन स े े क ु ि प त हो ज ा य ेगे औरपाणड
सवणनाश हो जायेगा।"
इस ईषया और देष से पेिरत होकर दयुोधन न द े व ु ा स ाजीकीपसनताकालाभउिानाचाहा।
दवुासा ऋिष मधयाह के समय जा पहँच ु े पाणडवो के पास। यु िधिषर आिद पाणडव एव द ं ौ प द ीदवुासाजीकोिशषय
के रप मे आया हआ ु देखकर िचिनतत हो गये। िफर भी बोलेः "िवरािजये महिषण ! आपके भोजन की वयविथा करते है। "
अंतयामी परमातमा सबका सहायक है, सचचे का मददगार है। दवुासाजी बोलेः "िहरो िहरो.... भोजन बाद मे करेगे। अभी तो
यािा की थकान िमिान क े े ि "
ल ए िनानकरनज े ारहाहूँ।
इधर दौपदी िचिनतत हो उिी िक अब अकयपाि से कुछ न िमल सकेगा और इन साधुओं को भूखा कैसे भेजे ? उनमे भी दवुासा
ऋिष को ! वह पुकार उिीः "हे केशव ! हे माधव ! हे भितवतसल ! अब मै तुमहारी शरण मे हूँ...." शात िचत एव प ं िविहृदयस
दौपदी न भ े ग व ा न श "दौपदी ! कुछ खान क े ृषणआये
ी क ृषणकािचनतनिकया।भगवानशीक !"औरबोलेः
ोतोदो
दौपदीः "केशव ! मैन त े ो प "
ा ि कोधोकररखिदयाहै ।
शी कृषणः "नही, नही... लाओ तो सही ! उसमे जरर कुछ होगा। "
दौपदी न प े ा ि ल ा कर र खि द य ा त ो द ै व य ोगसे उसमे तादलु
करके उस तादल ु के साग का पता खाया और तृिपत का अनुभव िकया तो उन महातमाओं को भी तृिपत का अनुभव हआ ु वे कहन ल े गे िकः
"अब तो हम तृपत हो चुके है , वहा जाकर िया खायेगे? युिधिषर को िया मुँह िदखायेगे?"
शात ि ं च त स े क ी ह -कराया भी चौपि।ईषयालु
ई ु प ा थ ण नाअवशयफलतीहै एवदंहैेषजबिक
हो जाता ीिचतसेत
नमोिकया
और
शात िचत से तो चौपि हईु बाजी भी जीत मे बदल जाती है और हृदय धनयता से भर जाता है। अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
( 12 , 21 2002 , ( . .)
' '
1781
)
पयागराज इलाहाबाद मे ियोदशी के कु ंभ -िनान का पवण-िदवस था। कु ंभ मे कई अखाडेवाले , जित-जोिग, साधु-संत आये थे।
उसमे कामकौतुकी नामक एक ऐसी जाित भी आयी थी जो भगवान के िलए ही राग -रािगिनयो का अभयास िकया करती थी तथा
भगवदगीत के िसवाय और कोई गीत नही गाती थी। उसन भ े -कायणकम कु ंभ मेले रखा था।
ीअपनागायन
ं ेरी मिाधीश शी सोमनाथाचायण भी इस कामकौतुकी जाितवालो के संयम और राग -रािगिनयो मे उनकी कुशलता के बारे मे
शृग
जानते थे, इसिलए वे भी वहा पधारे थे। उस कायणकम मे सोमनाथाचायण जी की उपििथित के कारण लोगो को िवशेष आनदं हआ ु और जब
गुणमंजरी देवी भी आ पहँच ु ी तो उस आनदं मे चार चाद लग गये।
गुणमंजरी देवी न च े ा न द ा य णऔ र क ृ चछवर-त
तपिकये
और थे।संशरीरक े ालेसेजसाधा
यम कोेदोषोकोहरनव
अचछी तरह प
था। लोगो न मेन-ही-मन उसका अिभवादन िकया।
गुणमंजरी देवी भी केवल गीत ही नही गाती थी , वरन् उसन अ े प न ज े ी व न म े दैवीगुणोका
चाहे अपनी दैिवक सिखयो को बुला सकती थी, जब चाहे बादल मँडरवा सकती थी, िबजली चमका सकती थी। उस समय उसकी
खयाित दरू-दरू तक पहँच ु चुकी थी।
कायणकम आरमभ हआ ु । कामकौतुकी जाित के आचायों न श े ब द ो क ी प ु ष पाजलीसे ईश
गुणमंजरी देवी से पाथणना की गयी।
गुणमंजरी देवी न व े ी ण ा प र अ प नीउँग-िणडीिलयारखी।माघकामहीनाथा।िणडी
हवाए च ँ ल न ल े गी।थोडीह
गरजन ल े गे, िबजली चमकन ल े ग ी औ र ब ा ि र श क ा म ा ह ौ ल बनगया।आन
लगा। इतन म े "बैिे रहना।
े सोमनाथाचायण े िकसी
जीनक हाः को िचनता करन क े ी ज रर त न ह ी है।येबादल
गुण मंजरी देवी की तपिया और संकिप का पभाव है।"अनुकम
संत की बात का उिलंघन करना मुिितफल को तयागना और नरक के दार खोलना है। लोग बैिे रहे।
32 राग और 64 रािगिनया है। राग और रािगिनया के पीछे उनके अथण और आकृितया भी होती है। शबद के दारा सृिष मे
उथल-पुथल मच सकती है। वे िनजीव नही है , उनमे सजीवता है। जैसे 'एयर कंडीशनर' चलाते है तो वह आपको हवा से पानी अलग
करके िदखा देता है , ऐसे ही इन पाच भूतो मे ििथत दैवी गुणो को िजनहोन स े , वे शबद की धविन के अनुसार मुझे दीप जला
ाधिलयाहै
सकते है, दिृष कर सकते है - ऐसे कई पसंग आपने -हमने -देखे-सुन ह े ो ग े । ग ु ण म ं जरीदेवीइसपक
माहौल शदा-भिित और संयम की पराकाषा पर था। गुणमंजरी देवी न व े ी ण ा ब ज ाते हएु आकाशकी
बादलो मे से िबजली की तरह एक देवागना पकि हईु। वातावरण संगीतमय-नृतयमय होता जा रहा था। लोग दगं रह गये ! आशयण को भी
आशयण के समुद मे गोते खान पेडे , ऐसा माहौल बन गया !
लोग भीतर ही भीतर अपन स े ौ भ ा ग य कीसराहनािकये , उनकी आँज खारहे
े उस ृ य को पी जाना चाहती थी। उनके
थे।दशमानो
कान उस संगीत को पचा जाना चाहते थे। उनका जीवन उस दशृय के साथ एक रप होता जा रहा था .... 'गुणमंजरी, धनय हो तुम !'
कभी वे गुणमंजरी को को धनयवाद देते हएु उसके गीत मे खो जाते और कभी उस देवागना के शुद पिवि नृतय को देखकर नतमितक हो
उिते !
कायणकम समपन हआ ु । देखते ही देखते गुणमंजरी देवी न द े े व ा , आँखे आसमाने हाथजु
ग न ा कोिवदाईदी।सबक की डेहएुथे
ओर िनहार रही थी और िदल अहोभाव से भरा था। मानो, पभु-पेम मे, पभु की अदभुत लीला मे खोया-सा था.....
शृग
ं ेरी मिाधीश शी सोमनाथाचायणजी न ह े ज ा "सजजनो ! इसमे
र ो लोगोकीशातभीडसे कहाःआशयण की कोई आवशयकता नही
है। हमारे पूवणज देवलोक से भारतभूिम पर आते और संयम, साधना तथा भगवतपीित के पभाव से अपन व े ा ि छ तिदवयल
यािा करन म े े -कोईथबहिवरप
स फलहोते े। कोई परमातमा का शवण, मनन, िनिदधयासन करके यही बहमय अननत बहाणडवयापी
अपन आ े तम-ऐशयण को पा लेते थे।
समय के फेर से लोग सब भूलते गये। अनुिचत खान -पान, िपशण-दोष, संग-दोष, िवचार-दोष आिद से लोगो की मित और
सािततवकता मारी गयी। लोगो मे छल कपि और तमस बढ गया, िजससे वे िदवय लोको की बात ही भूल गये, अपनी असिलयत को ही
भूल गये..... गुणमंजरी देवी न स े ं ग द ो षसेब-चकरसं
भजन िकया
यमसेस
तोाधन
उसका देवतव िवकिसत हआ ु और उसन द े ेवागनाको
बुलाकर तुमहे अपनी असिलयत का पिरचय िदया !
तुम भी इस दशृय को देखन क े , जब तुमुन क
े कािबलतबहए े ु ं भक , ेइपयागराज
सपवणपर के पिवि तीथण मे संयम और शदा -
भिित से िनान िकया। इसके पभाव से तुमहारे कुछ किमष किे और पुणय बढे। पुणयातमा लोगो के एकिित होन स े े गुणमंजरीदेवीक
संकिप मे सहायता िमली और उसन त े ु म ह े य "
ह दशृयिदखाया।अतःइसमे आशयणनकरो।
आपमे भी ये शिितया छुपी है। तुम भी चाहो तो अनुिचत खान -पान, संग-दोष आिद से बचकर, सदगुर के िनदेशानुसार साधना -
पथ पर अगसर हो इन शिितयो को िवकिसत करन म े े स फ ल ह ो सकते, वरन् ेवलइतनाहीनही
हो।कपरबह- परमातमा को पाकर
सदा-सदा के िलए मुित भी हो सकते हो , अपन म े ु ि त ि व .... अनुकजमीअनुभवकरसकतेहो
रपकाजीते
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सौनदयण सबके जीवन की माग है। वाितिवक सौनदयण उसे नही कहते जो आकर चला जाये। जो कभी कीण हो जाये , नष हो
जाये वह सौनदयण नही है। संसारी लोग िजसे सौनदयण बोलते है वह हाड-मास का सौनदयण तब तक अचछा लगता है जब तक मन मे िवकार
होता है अथवा तो तब तक अचछा लगता है जब तक बाहरी रप-रगं अचछा होता है। िफर तो लोग उससे भी मुँह मोड लेते है। िकसी
वयिित या वितु का सौनदयण हमेशा ििक नही सकता और परम सौनदयणिवरप परमातमा का सौनदयण कभी िमि नही सकता।
एक राजकुमारी थी। वह सुनदर , संयमी एव स ं द ा च ा र ी थ ी त थ ासदगनथोकाप
सेवा मे एक िवधवा दासी रखी गयी थी। उस दासी के साथ राजकुमारी दासी जैसा नही बििक वृदा मा जैसा वयवहार करती थी।
एक िदन िकसी कारणवशात् उस दासी का 20-22 साल का युवान पुि राजमहल मे अपनी मा के पास आया। वहा उसने
राजकुमारी को भी देखा। राजकुमारी भी करीब 18-21 साल की थी। सुनदरता तो मानो, उसमे कूि -कूि कर भरी थी। राजकुमारी का
ऐसा सौनदयण देखकर दासीपुि अतयत ं मोिहत हो गया। वह कामपीिडत होकर वापस लौिा।
जब दासी अपन घ े र ग य ी त ो द े ख ा ि क अ प न ापुिमु"ँहमेलिकाये
री शादीबतुैिमाहै।दासीक
उस राजकुमारी के साथ करवा दो। "
दासीः "तेरी मित तो नही मारी गयी? कहा तू िवधवा दासी का पुि और कहा वह राजकुमारी ? राजा को पता चलेगा तो तुझे
फासी पर लिका देगे।"
लडकाः "वह सब मै नही जानता। जब तक मेरी शादी राजकुमारी के साथ नही होगी , तब तक मै अन का एक दाना भी
खाऊँगा। "
उसन क े ... दो िदन... तीन िदन.... ऐसा करते-करते पाच िदन बीत गये। उसन न े कख
म सखाली।एकिदन ुछ ाया, न कुछ
िपया। दासी समझाते-समझाते थक गयी। बेचारी का एक ही सहारा था। पित तो जवानी मे ही चल बसा था और एक-एक करके दो पुि
भी मर गये थे। बस, यह ही लडका था, वह भी ऐसी हि लेकर बैि गया।
समझदार राजकुमारी न भ े ा प -उदास रहती है। जरर उसे कोई परेशानी सता रही है। राजकुमारी ने
िलयािकदासीउदास
दासी से पूछाः "सच बताओ, िया बात है? आजकल तुम बडी खोयी-खोयी-सी रहती हो?"
दासीः "राजकुमारीजी ! यिद मै आपको मेरी वयथा बता दँ त ू ो आ प म ु झ े औ र मेरेबेि"ेकोराजयसेबाहरिनक
ऐसा कहकर दासी फूि -फूिकर रोन ल े गी। अनुकम
राजकुमारीः "मै तुमहे वचन देती हँ।
ू तुमहे और तुमहारे बेिे को कोई सजा नही दँगूी। अब तो बताओ !"
दासीः "आपको देखकर मेरा लडका अनिधकारी माग करता है िक शादी करँगा तो इस सुनदरी से ही करँगा और जब तक शादी
नही होती तब तक भोजन नही करँगा। आज पाच िदन से उसन ख े ाना -पीना छोड रखा है। मै तो समझा-समझाकर थक गयी।"
राजकुमारीः "िचनता मत करो। तुम कल उसको मेरे पास भेज देना। मै उसकी वाितिवक शादी करवा दँगूी।"
लडका खुश होकर पहँच ु गया राजकुमारी से िमलन। े राजकुमारी न उ े ससेक"मुहाः
झसे शादी करना चाहता है?"
"जी हा।"
"आिखर िकस वजह से?"
"तुमहारे मोहक सौनदयण को देखकर मै घायल हो गया हँू।"
"अचछा ! तो तू मेरे सौनदयण की वजह से मुझसे शादी करना चाहता है ? यिद मै तुझे 80-90 पितशत सौनदयण दे दँ त ू ोतुझेतृिपत
होगी? 10 पितशत सौनदयण मेरे पास रह जायेगा तो तुझे तृिपत होगी? 10 पितशत सौनदयण मेरे पास रह जायेगा तो तुझे चलेगा न?"
"हा, चलेगा।"
"िीक है.... तो कल दोपहर को आ जाना।"
राजकुमारी न र े ा त क ो ज म ा ल ग ो ि े क ा ज ु ल ाबले िलयािजस
पेि की सफाई करके सारा कचरा बाहर। राजकुमारी न स े ु न द र न क ा श ी द ारकुणडे मेअपनपेेि
बाद उसे िफर से हाजत हईु तो इस बार जरीकाम और मलमल से सुसिजजत कु ंडे मे राजकुमारी न क े च र ा उतारिदया।
चारपाई के एक -एक पाये के पास रख िदया। उसके बाद िफर से एक बार जमालघोिे का जुलाब ले िलया। तीसरा दित तीसरे कुणडे मे
िकया। बाकी का थोडा-बहत ु जो बचा हआ ु मल था, िवषा थी उसे चौथी बार मे चौथे कु ंडे मे िनकाल िदया। इन दो कु ंडो को भी चारपाई
के दो पायो के पास मे रख िदया।
एक ही रात जमालगोिे के कारण राजकुमारी का चेहरा उतर गया , शरीर खोखला सा हो गया। राजकुमारी की आँखे उतर
गयी, गालो की लाली उड गयी, शरीर एकदम कमजोर पड गया।
दसू रे िदन दोपहर को वह लडका खुश होता हआ ु राजमहल मे आया और अपनी मा से पूछन ल े गाः"कहा है राजकुमारी जी ?"
दासीः "वह सोयी है चारपाई पर।"
राजकुमारी के नजदीक जान स े े उ स क ा उ त र ा ह आ ु म ु ँह देखकरदास
बोलाः
"अरे ! तुमहे या िया हो गया? तुमहारा चेहरा इतना फीका ियो पड गया है? तुमहारा सौनदयण कहा चला गया?" अनुकम
राजकुमारी न ब े ह "मैन त के हाः ु झ े क ह ाथानिकमै
त ु धीमीआवाजमे 90 पितशत
तुझे अपनासौनदयण दँगूी, अतः मैन स े ौनदयण
िनकालकर रखा है।"
"कहा है?" आिखर तो दासीपुि था, बुिद मोिी थी।
"इस चारपाई के पास चार कु ंडे है। पहले कु ंडे मे 50 पितशत, दस ू रे मे 25 पितशत सौनदयण दँगूी, अतः मैन स े ौनदयणिनकालकर
रखा है।"
"कहा है?" आिखर तो दासीपुि था, बुिद मोिी थी।
"इस चारपाई के पास चार कु ंडे है। पहले कु ंडे मे 50 पितशत, दस ू रे मे 25 पितशत तीसरे कु ंडे मे 10 पितशत और चौथे मे 5-6
पितशत सौनदयण आ चुका है।"
"मेरा सौनदयण है। रािि के दो बजे से सँभालकर कर रखा है। "
दासीपुि हैरान हो गया। वह कुछ समझ नही पा रहा था। राजकुमारी न द े ा स ी प ु ि कािववेक जाग
समझाते हएु कहाः "जैसे सुशोिभत कु ंडे मे िवषा है ऐसे ही चमडे से ढँके हएु इस शरीर मे यही सब कचरा भरा हआ ु है। हाड -मास के
िजस शरीर मे तुमहे सौनदयण नजर आ रहा था, उसे एक जमालगोिा ही नष कर डालता है। मल-मूि से भरे इस शरीर का जो सौनदयण है ,
वह वाितिवक सौनदयण नही है लेिकन इस मल-मूिािद को भी सौनदयण का रप देन व े ा ला वह प ! तू
र मातमाहीवाितवमे
उस सौनदयणवान परमातमा को पान क े े ि ल ए आग े ?"
बढ।इसशरीरमेियारखाहै
दासीपुि की आँखे खुल गयी। राजकुमारी को गुर मानकर और मा को पणाम करके वह सचचे सौनदयण की खोज मे िनकल पडा।
आतम-अमृत को पीन व े ा ल े स ं त ो क े द ा र पररहाऔरपरमसौनदयणकोपापतकरकेजीवनमुितहोगय
कुछ समय बाद वही भूतपूवण दासी पुि घूमता -घामता अपन न े ग र क ी ओ र आ य ाऔरसिरतािक
लगा। खराब बाते फैलाना बहत ु आसान है िकंतु अचछी बाते , सतसंग की बाते बहत ु पिरशम और सतय माग लेती है। नगर मे कोई हीरो या
हीरोइन आती है तो हवा की लहर के साथ समाचार पूरे नगर मे फैल जाता है लेिकन एक साधु , एक संत अपन न े ग र मे, आ ऐसेयेहएुहै
समाचार िकसी को जिदी नही िमलते।
दासीपुि मे से महापुरष बन ह े ए ु उ न स ं तक े ब ा र े म े भीशु-धीरेरआतमे
बात फ ैलने
िकसीकोपतानह
लगी। बात फैलते -फैलते राजदरबार तक पहँच ु ी िक 'नगर मे कोई बडे महातमा पधारे हएु है। उनकी िनगाहो मे िदवय आकषणण है , उनके
दशणन से लोगो को शाित िमलती है।'
राजा न य े ह ब ा त र ा ज कु म ा र ी स े क ही।राजातोअ
साथ मे लेकर वह महातमा के दशणन करन गेयी।
पुषप-चंदन आिद लेकर राजकुमारी वहा पहँच ु ी। दासीपुि को घर छोडे 4-5 वषण बीत गये थे, वेश बदल गया था, समझ बदल
चुकी थी, इस कारण लोग तो उन महातमा को नही जान पाये लेिकन राजकुमारी भी नही पहचान पायी। जैसे ही राजकुमारी महातमा को
पणाम करन ग े य ी ि क अ च ा न कव े म ह ा त म ा राजकुमारीकोपहच
दडं वत् पणाम िकया।अनुकम
राजकुमारीः "अरे, अरे.... यह आप िया रहे है महाराज !"
"देवी ! आप ही मेरी पथम गुर है। मै तो आपके हाड -मास के सौनदयण के पीछे पडा था लेिकन इस हाड -मास को भी सौनदयण
पदान करन व े ा ल े प र म स ौ न द य ण व ा न प र म ा तमाकोपानक े ीपेर
मुझे योगािद िसखाया वे गुर बाद के। मै आपका खूब -खूब आभारी हूँ।"
यह सुनकर वह दासी बोल उिीः "मेरा बेिा !"
तब राजकुमारी न के हाः "अब यह तुमहारा बेिा नही, परमातमा का बेिा हो गया है.... परमातम-िवरप हो गया है।"
धनय है वे लोग जो बाह रप से सुनदर िदखन व े ा ल े इ स श र ी र क ीवाितिवकििथि
परमातमा के मागण पर चल पडते है .....
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
यह जोधपुर (राजिथान) के पास के गाव की महान नारी फुलीबाई की गाथा है। कहते है िक उनके पित शादी के थोडे समय बाद
ही िवगण िसधार गये थे। उनके माता -िपता न क े हाः
"तेरा सचचा पित तो परमातमा ही है , बेिी ! चल, तुझे गुरदेव के पास से दीका िदलवा दे। "
उनके समझदार माता -िपता न स े म थ ण ग ु र म ह ा त म ा भ ू रीबाईसे उन
अनुसार साधना मे लीन हो गयी। पाणायाम, जप और धयान आिद करते-करते उनकी बुिदशिित िवकिसत होन ल े ग ी ।वे इसबात
खूब अचछे से समझन ल े ग ी ि , सचचे िवामी
क पाणीमािक े परमिहतैतोषीएकमाि परमातमा ही है। धीरे-धीरे परमातमा के रगं मे अपने
जीवन को रेगते-रेगते, पेमाभिित से अपन ह -भरते वे सुषुपत शिितयो को जागृत करन म े
े ृदयकोभरते े सफलहोगयी।
लौिकक िवदा मे अनपढ वे फुलीबाई अलौिकक िवदा पान म े े स फ लह ो ग य ी । अ बवेिनराधारन
पिरपूणण हो गयी। उनके िचत मे नयी िदवय िफुरणाए ि ँ फ ु ि र तहोनल -े पकाश
गी।उनकाजीवनपरमातम
से जगमगान ल े गा।ऐिहकर
से फुलीबाई बहत ु गरीब थी िकंतु उनहोन व े ा ि त िवकधनकोपािलयाथा।
गोबर के कणडे बना -बनाकर वे अपनी आजीिवका चलाती थी िकंतु उनकी पडोसन उनके कणडे चुरा लेती। एक बार फुलीबाई को
उस ििी पर दया आयी एव बंोलीः
"बहन ! यिद तू चोरी करेगी तो तेरा मन अपिवि होगा और भगवान तुझसे नाराज हो जायेगे। अगर तुझे चािहए तो मै तुझे पाच-
पचीस कणडे दे िदया करँगी िकंतु तू चोरी करके अपना , मन, एव ब ं ु ि द क ा ए वअ "अनु
ं पनक े ुिकुमबकासतयानाशमतकर।
म
वह पडोसन ििी तो दष ु ा थी। वह तो फुलीबाई को गािलयो पर गािलया देन ल े ग ी । इस स े फुलीबाईकेिचत
ु वरन् उनके िचत मे दया उपजी और वे बोलीः
हआ
"बहन ! मै तुझे जो कुछ कह रही हूँ , वह तुमहारी भलाई के िलए ही कह रही हूँ। तुम झगडो मत। "
चोरी करन व े ा ल ी म ि ह ल ा क ोजयादागु-सा िसुसाआगया।िफरफु
ना िदया। झगडालबढन ीबाईनभ े ीथोडाे ग ातोगावका
ल
मुिखया एव गंाम-पचं ायत इकटी हो गयी। सबसे एकिित देखकर वह चोरी करन व े ालीमिहलाबोलीः
"फुलीबाई चोर है , मेरे कणडे चुरा जाती है। "
फुलीबाईः "चोरी करन क े ो म "
ैपापसमझतीह ँ।
ू
तब गाव का मुिखया बोलाः "हम नयाय कैसे दे िक कणडे िकसके है ? कणडो पर नाम तो िकसी का नही िलखा और आकार भी
एक जैसा है। अब कैसे बताये िक कौन से कणडे फुलीबाई के है एव क ं ौ न सेउ?" सकीपडोसनके
जो ििी चोरी करती थी, उसका पित कमाता था िफर भी मिलन मन के कारण वह चोरी करती थी। ऐसी बात नही िक कोई
गरीबी के कारण ही चोरी करता है। कई बार तो समझ गरीब होती है तब भी लोग चोरी करते है। िफर कोई कलम से चोरी करता है ,
कोई िरशत के रप मे चोरी करता है , कोई नत े ा बनकर जनता से चोरी करता है। समझ जब कमजोर होती है तभी मनुषय हराम के पैसे
लेकर िवलासी जीवन जीन क े ी इच छ ा क रत ा ह ै औ र स म झ ऊ ँचीहोतीहैतोमन
भी वह भले सादा जीवन िजये लेिकन उसके िवचार बहत ु ऊँचे होते है।
फुलीबाई का जीवन खूब सादगीपूणण था लेिकन उनकी भिित एव स ं म झ ब ह त "यह ििी मेरे कणडे
ु बढगयीथी।उनहोनक े हाः
चुराती है इसका पमाण यह है िक यिद आप मेरे कणडो को अपन क े ा न ो क े प ा स र ख ेगेतोउनमेसेरा
कणडो मे राम-नाम की धविन िनकले उनहे आप मेरे समझना और िजनमे से न िनकले उनहे इसके समझना। "
गाम-पच ं ायत के कुछ सजजन लोग एव म ं ु ि ख य ा उ स म ि ह लाकेय-एक हागयेकणडा । उसक े कणडोकेढेर मे से ए
उिाकर
कान के पास रखकर देखन ल े ग े ।ि ज स क ण ड े म े स े र 50 कणडे
ा मनामकीधविनकाअनु भवह
िनकले।
मंिजप करते-करते फुलीबाई की रगो मे नस -नािडयो मे एव प ं ू र े श र ी र मे म ,
ं िकापभावछा
उनमे भी मंि की सूकम तरगंो का संचार हो जाता था। गाव के मुिखया एव उ ं न स ज ज न ो कोफुलीबाईकाय
पित आदर भाव हो आया। उन लोगो न फ े ु लीबाईकासतकारिकया।
मनुषय मे िकतनी शिित है ! िकतना सामथयण है ! उसे यिद योगय मागणदशणन िमल जाये एव व ं ह त त प र तासेलगजाय
कर सकता?
फुलीबाई न ग े ु र म ं ि प ा प त क र क े ग ु र केिनदेशानुसार
कणडो से भी राम नाम की धविन िनकलन ल े गी।
एक िदन राजा यशवत ं िसंह के सैिनको की एक िुकडी दौडन क े े ि ल ए ि न क ल ी।उसमे स
पहँच
ु ा एव उ ं नसेपानीमागा।
अनुकम
फुलीबाई न क े हाः "बेिा ! दौडकर तुरत ं पानी नही पीना चािहए। इससे तदंरिती िबगडती है एव आ ं ग े जाकरखूबहािनह
दौड लगाकर आये हो तो थोडी देर बैिो। मै तुमहे रोिी का िुकडा देती हूँ , उसे खाकर िफर पानी पीना।"
सैिनकः "माताजी ! हमारी पूरी िुकडी दौडती आ रही है। यिद मै खाऊँगा तो मुझे मेरे सािथयो को भी िखलाना पडेगा। "
फुलीबाईः "मैन द े ो रो ि ल े ब न ा येहैगुव-ारफलीकीसबजीहै िुकडा खा लेना।" ।तुमसबलोगिुकडा
सैिनकः "पूरी िुकडी केवल दो रोिले मे से िुकडा -िुकडा कैसे खा पायेगी ?"
फुलीबाईः "तुम िचंता मत करो। मेरे राम मेरे साथ है। "
फुलीबाई न द े ो र ो ि ल े ए वस -कान ककोिदया।क
ं बजीकोढँ पानी का
ुिलेक
िपशणरकेआकराया।
ँख 'हम जो देखे पिवि देखे,
हम जो सुने पिवि सुने....' ऐसा संकिप करके आँख -कान को जल का िपशण करवाया जाता है।
फुलीबाई न स े बजी -रोिी को कपडे से ढँककर भगवतिमरण िकया एव इ ं ष मंि-मेहोते िुकडी के सैिनको को रोिले
तिलीनहोते
का िुकडा एव स ं ब ज ी द े त ी ग यी । फ ु ल ी ब ा ई क ेहाथोसेबनउ े स
संतुष हईु। उनहे आज तक ऐसा भोजन नही िमला था। उन सभी न फ े ु ल ी बा ई क ो पणामिकयाएवव -से ं े िव
झोपडे मे इतना सारा भोजन कहा से आया !
सबसे पहले जो सैिनक पहले जो सैिनक पहँच ु ा था उसे पता था िक फुलीबाई न क े े व ल द ो र ोिलेएवथ ं ोड
िकंतु उनहोन ि े जस ब तण न म े भो जन र ख ाहैवहबतणनउनकीभिितकेपभावसेअकयपािबनगय
ं
यह बात राजा यशवतिसंह क कानो तक पहँच े ु ी। वह रथ लेकर फुलीबाई क दशणन करन क े े े ि ल ए आ या।उसनरेथ
खडा रखा, जूते उतारे, मुकुि उतारा एव ए ं क स ा ध ा र ण न ा ग ि र ककीतरहफु -सी लीबाईक
झोपडी है और आज उसमे जोधपुर का समाि खूब नम भाव से खडा है ! भिित की िया मिहमा है ! परमातमजान की िया मिहमा है िक
िजसके आगे बडे -बडे समाि तक नतमितक हो जाते है !
यशवत ं िसंह न फ े ु ली ब ा ई क , सतसं
े चरणोमे पणामिकया।थोडीदे
ग सुना। फुलीबाईर बातचीतकी नअ े प नअ े नुभवकीब
बडी िनभीकता से राजा यशवत ं िसंह को सुनायी-
"बेिा यशवत ं ! तू बाहर का राजय तो कर रहा है लेिकन अब भीतर का राजय भी पा ले। तेरे अंदर ही आतमा है , परमातमा है।
वही असली राजय है। उसका जान पाकर तू असली सुख पा ले। कब तक बाहर के िवषय -िवकारो के सुख मे अपन क े ोगरककरता
रहेगा? हे यशवत ं ! तू यशिवी हो। अचछे कायण कर और उनहे भी ईशरापणण कर दे। ईशरापणण बुिद से िकया गया कायण भिित हो जाता
है। राग-देष से पेिरत कमण जीव को बध ं न मे डालता है िकंतु तििथ होकर िकया गया कमण जीव को मुिित के पथ पर ले जाता है।
अनुकम
हे यशवत ं ! तेरे खजान म े े ज ो ध न है,ववह पजा के पसीन क े
हतेरतोानहीहै ी क म ा ई ह ै -
।उसधनकोजोर
िवलास मे खचण कर देता है, उसे रौरव नरक के दःुख भोगन प े डते, कुहंभै ीपाक जैसे नरको मे जाना पडता है। जो राजा पजा के धन का
उपयोग पजा के िहत मे , पजा के िवािथय के िलए , पजा के िवकास के िलए करता है वह राजा यहा भी यश पाता है और उसे िवगण की भी
पािपत होती है। हे यशवत ं ! यिद वह राजा भगवान की भिित करे , संतो का संग करे तो भगवान के लोक को भी पा लेता है और यिद वह
भगवान के लोक को पान क े ी भ ी इ च छ ा न क र े व र न ् भ गवानकोहीजान
भगवतिवरप, बहिवरप हो जाता है।"
फुलीबाई की अनुभवयुित वाणी सुनकर यशवत ं िसंह पुलिकत हो उिा। उसन अ े तयत ं -भिित
शदा से फुलीबाई के चरणो मे
पणाम िकया। फुलीबाई की वाणी मे सचचाई थी , सहजता थी और बहजान का तेज था, िजसे सुनकर यशवत ं िसंह भी नतमितक हो
गया।
कहा तो जोधपुर का समाि और कहा लौिकक दिृष से अनपढ फुलीबाई ! िकंतु उनहोन य े श व ं िसंह कोजा
त
बहजान है ही ऐसा िक िजसके सामन ल े ौ ि क क िवदाकाकोईमूियनहीहोता।
यशवत ं िसंह का हदृ य िपघल गया। वह िवचार करन ल े गािक 'फुलीबाई के पास खान क े े ि ल एिवशे , रहन े े
क
ष भोजननहीहै
िलए अचछा मकान नही है, िवषय-भोग की कोई सामगी नही है िफर भी वे संतुष रहती है और मेरे जैसे राजा को भी उनके पास आकर
शाित िमलती है। सचमुच, वाितिवक सुख तो भगवान की भिित मे एव भ ं गव , बाकी रको
त प ापतमहापु षोकसंे शसीचरणोमे
ार मे हीहै
जल-जलकर मरना ही है। वितुओं को भोग-भोगकर मनुषय जिदी कमजोर एव ब ं ी , जबिक फुलीबाई िकतनी मजबूत िदख
मारहोजाताहै
रही है !'
यह सोचते-सोचते यशवत ं िसंह के मन मे एक पिवि िवचार आया िक 'मेरे रिनवास मे तो कई रािनया रहती है परत ं ु जब देखो तब
बीमार रहती है, झगडती रहती है, एक दस ू रे की चु ग ली और एक- दस
ू रे से ईषया करती रहती है । यिद उनहे फु
ल ीबाई जै स ी महान आतमा
का संग िमले तो उनका भी कियाण हो।'
यशवत ं िसंह न ह े ा थ जोडकरफुलीबाईसेकहाः
"माताजी ! मुझे एक िभका दीिजए।"
समाि एक िनधणन के पास भीख मागता है ! सचचा समाि तो वही है िजसन आ े त म र ा ज यपािलयाहै। ब
िकया हआ ु मनुषय तो अधयातममागण की दिृष से कंगाल भी हो सकता है। आतमराजय को पायी हईु िनधणन फुलीबाई से राजा एक िभखारी की
तरह भीख माग रहा है।
यशवत ं िसंह बोलाः "माता जी ! मुझे एक िभका दे।"
फुलीबाईः "राजन ! तुमहे िया चािहए?"
यशवत ं िसंहः "बस, मा ! मुझे भिित की िभका चािहए। मेरी बुिद समागण मे लगी रहे एव स ं ं त ोकासं" गिमलतारहे।
फुलीबाई न उ े सबुिदमान , पिविातमा यशवत ं िसंह के िसर पर हाथ रखा। फुलीबाई का िपशण पाकर राजा गदगद हो गया एवं
पाथणना करन ल े गाः"मा ! इस बालक की एक दस ू री इचछा भी पूरी करे। आप मेरे रिनवास मे पधारकर मेरी रािनयो को थोडा उपदेश देने
की कृपा करे , तािक उनकी बुिद भी अधयातम मे लग जाय।"
फुलीबाई न य े श व त ं ि स ं ह , कीिवनमतादे
उनहे रिनवासखकरउनकीपाथण
से िया काम? नअनु ािवीकारकरली।नहीत
कम
े
ये वे ही फुलीबाई है िजनक पित िववाह होते ही िवगण िसधार गये थे। दस ू री कोई ििी होती तो रोती िक 'अब मेरा िया होगा? मै
तो िवधवा हो गयी...' परत ं ु फुलीबाई के माता -िपता न उ े न ह े भ ग व ा न क े र ा ि तेलगािदया।
चलकर अब फुलीबाई 'फुलीबाई ' न रही बििक 'संत फुलीबाई ' हो गयी तो यशवत ं िसंह जैसा समाि भी उनका आदर करता है एव उ ं नकी
चरणरज िसर पर लगाकर अपन क े ो , 'उनहे माता' कहकर संबोिधत करता है। जो कणडे बेचकर अपना जीवन िनवाह
भागयशालीमानताहै
करती है उनहे हजारो लोग 'माता' कहकर पुकारते है।
धनय है वह धरती जहा ऐसे भगवदभित जनम लेते है ! जो भगवान का भजन करके भगवान के हो जाते है। उनहे 'माता' कहने
वाले हजारो लोग िमल जाते है , अपना िमि एव स ं म ब न ध ी म ा नन क े -िपता के
ेिलएहजारोलोगतै यारहो
साथ, सचचे सगे-समबनधी के साथ , परमातमा के साथ अपना िचत जोड िलया है।
यशवत ं िसंह न फ े ु ली ब ा ईकोराजमहलमे"इनहे खूब बआदर के साथ रिनवास
ुलवाकरदािसयोसे कहाः मे जाओ तािक रािनया
इनके दो वचन सुनकर अपन क े ा न क ो ए व द ं शणनकरक " ेअपननेि े ोकोपिविकरे।
फुलीबाई के वििो पर तो कई पैबदं लगे हएु थे। पैबदंवाले कपडे पहनन क े ेबावजूद, बाजरी के मोिे रोिले खान ए े वझ ं ोपडे
मे रहन क े े ब ा व ज ू द फ ु ? पितिदन
ल ीबाईिकतनीतद नये-नये वयज
ं रितऔरपसनथीऔरयशवत ं न खाती थी, ं िसंनये -नये
हकीरािनया
विि पहनती थी, महलो मे रहती थी िफर भी लडती-झगडती रहती थी। उनमे थोडी आये इसी आशा से राजा न फ े ुलीबाईकोरिनवास
मे भेजा।
दािसया फुलीबाई को आदर के साथ रिनवास मे ले गयी। वहा तो रािनया सज -धजकर, हार-शृंगार करके, तैयार होकर बैिी
थी। जब उनहोन प े ै ब द ं ल ग े म ो ि े व ि ि प ह न ी हईु फुलीबाईक
कौन सा पाणी आया है?"
फुलीबाई का अनादर हआ ु िकंतु फुलीबाई के िचत पर चोि न लगी ियोिक िजसन अ े प नाआदरकरिलया, अपनी आतमा का
आदर कर िलया, उसका अनादर करके उसको चोि पहँच ु ान म े े द ि ु न य ा क ा क ोईभीवयिितस
न हआ ु , गलािन न हईु, कोध नही आया वरन् उनके िचत मे दया उपजी िक इन मूखण रािनयो को थोडा उपदेश देना चािहए। दयालु एवं
समिचत फुलीबाई न उ े "बेिा ! बैिो।"
नरािनयोकहाः
दािसयो न ध े ीरे-से जाकर रािनयो को बताया िक राजा साहब तो इनहे पणाम करते है , इनका आदर करते है और आप लोग कहती
है िक "कौन सा पाणी आया?" राजा साहब को पता चलेगा तो आपकी...."
यह सुनकर रािनया घबरायी एव च ं ुपचापबैिगयी।
फुलीबाई न क े हाः "हे रािनयो ! इस हाड-मास के शरीर को सजाकर िया बैिी हो ? गहन पेहनकर, हार-शृग ं ार करके केवल शरीर
को ही सजाती रहोगी तो उससे तो पित के मन मे िवकार उिेगा। जो तुमहे देखेगा उसके मन मे िवकार उिेगा। इससे उसे तो नुकसान
होगा ही, तुमहे भी नुकसान होगा।"अनुकम
शाििो मे शृंगार करन क े ी मन ा ह ी न ह ी ह ै प र तं ुस, ािततवकपि
वैसा करो। पहले वनिपितयो से शृग ं ार के ऐसे साधन बनाये जाते थे िजनसे मन पफुििलत एव प ं , तन नीरोग रहता था।
िविरहताथा
जैसे िक पैर मे पायल पहनन स े े अ म ु कन ा -रका मे मदद
डीपरदबावरहताहै एवउ ं िमलती
ससे बहचयण
है। जैसे बाहण लोग जनऊ े
पहनते है एव प ं े श ा ब क रत े स म य क ा नपरजनऊ 'कणणे पीडनासन'
लपेितेहैतका लाभ िमलता है औरे ेउनहे
ोउसनाडीपरदबावपडनस
िवपदोष की बीमारी नही होती। इस पकार शरीर को मजबूत और मन को पसन बनान म े े स ह ा यकऐसीहमारीवैिदकस
आजकल तो पाशातय जगत के ऐसे गंदे शृंगारो का पचार बढ गया है िक शरीर तो रोगी हो जाता है , साथ ही मन भी िवकारगित
हो जाता है। शृग ं ार करन व े ा ल ी ि ज स ि द न श ृ ं ग ा र नहीकरतीउस
कोमलता नष हो जाती है। पाउडर, िलपिििक वगैरह से तवचा की पाकृितक ििनगधता नष हो जाती है।
पाकृितक सौनदयण को नष करके जो कृििम सौनदयण के गुलाम बनते है , उनसे पाथणना है िक वे कृििम पसाधनो का पयोग करके
अपन प े ा क ृ ि त क , कुमकुकमोनषनकरे
सौनदयण का ितलक । चूकरन क े ी ी मनाईनहीहै
िडयापहननक , परत ं ु पफ-पाउडर, लाली
िलपिििक लगाकर, चमकीले-भडकीले विि पहनकर अपन श े रीर, मन, कुिुिमबयो एव स ं म , ऐसी कृपा करे। अपने
ा जकाअिहतनहो
असली सौनदयण को पकि करे। जैसे मीरा न ि े क, गागी
याथाऔर मदालसा न ि े क याथा।
फुलीबाई न उ े "हे रािनयो ! तुम इधर-उधर िया देखती हो? ये गहने -गािे तो तुमहारे शरीर की शोभा है और
न रािनयोकोकहाः
यह शरीर एक िदन िमटी मे िमल जान व े ा लाहै-।धजाकर इसेसजाकब तक अपन ज े ी व ? िवषय िवकारो
नकोनषकरतीरहे गी मे कब
तक खपती रहोगी? अब तो शीराम का भजन कर लो। अपन व े ा ि त िवकसौनदयणकोपकिकरलो।
, ।
' ' , ?
'गहने -गािे शरीर की शोभा है और शरीर िमटी क कचचे बतणन जैसा है। अतः पितिदन राम का भजन करो। इस तरह वयथण
े
लडन स े ?'
ेियालाभ
िवषय-िवकार की गुलामी छोडो, हार शृंगार की गुलामी छोडो एव प ं ा ल , जो परम
ोउसपरमे शरकोसुनदर है।"
राजा यशवत ं िसंह के रिनवास मे भी फुलीबाई की िकतनी िहममत है ! रािनयो को सतय सुनाकर फुलीबाई अपन ग े ावकीतरफ
चल पडी।
बाहर से भले कोई अनपढ िदखे, िनधणन िदखे परत ं ु िजसन अ े ं द र का र ा ज य प ा िलयाहै वहधनव
रखता है और िवदानो को भी अधयातम-िवदा पदान कर सकता है। उसके थोडे -से आशीवाद माि से धनवानो के धन की रका हो जाती है ,
िवदानो मे आधयाितमक िवदा पकि होन ल े ग , आतमजान
तीहै ।आतमिवदामे
मे ऐसा अनुपम-अदभुत सामथयण है और इसी सामथयण से संपन
थी फुलीबाई। अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
िसंहल देश (वतणमान शीलंका) के एक सदाचारी पिरवार मे जनमी हईु कनया िसरमा मे बाियकाल से ही भगवदभिित पिफुिित हो
चुकी थी। वह िजतनी सुनदर थी, उतनी ही सुशील भी थी। 16 वषण की उम मे उसके मा -बाप न ए े क धन वानपिरवारकेयुवक
के साथ उसकी शादी करवा दी।
शादी के पशात् सुमंगल िवदेश चला गया। वहा वह वितुओं का आयात -िनयात करता था। कुछ वषों मे उसन क े ाफीसंपित
इकटी कर ली और िवदेश लौि चला। कुिुंिबयो न स े ो च ा ि क स ुम, ंगअतः लवषोंउसका
बादघरलौिरहाहै
आदर-सतकार होना चािहए
गाव भर के जान म े ा न ल े ो ग ो क ो आ म ं ि ि त ि क यागयाऔ
थी।
मंदारमाला के सौनदयण को देखकर सुमंगल मोिहत हो गया एव स ं ु म ं ग ल क े आकषणक वय
गयी। भीड को समझते देर न लगी िक दोनो एक-दस ू रे से घायल हो गयी। सुमंगल को लेकर शोभायािा उसके घर पहँच ु ी। सुमंगल को
उदास देखकर बोलीः
"देव ! आप बडे उदास एव व ं य ि थ त ल ग र ह े ह ै।"आपकीउदासीएववंयथाकाकारणमैजानतीह
सुमंगलः "जब जानती है तो िया पूछती है? अब उसके िबना नही रहा जाता। "अनुकम
यह सुनकर िसरमा न अ े पन ा स ं त ु ल न न ख ो य , िववेक-
ा ियोिकवहपितिदनभग
वैरागयरपी धन और िवपितयो मे भी पसन रहन क े ी स म झ काधनउसकेपासथा।
सुिवधाए ह ँ ो औ रआपपसनरहे- इतना तो लािलया, मोितया और कािलया कुता भी जानता है। वह भी जलेबी देखकर पूँछ िहला
देता है और डड ं ा देखकर पूंछ दबा देता है। सुख मे सुखी एव द ं ः ु ख म े द ः ु ख ीनहीहोताले-दःुख कोिकनसवोत
सपना मानता है एव स ं ि च च दानदंपरमातमाकोअपनामानताहै।
िसरमा न क े हाः"नाथ ! आपकी परेशानी का कारण तो मै जानती हूँ , उसे दरू करन म े े म ै प ू रासहयोगदँगूी।
परेशािनयो को िमिान म े े म े र े प ू र े "
अ िधकारकाउपयोगकरसकते है।कोईउपायखोजाजायेगा।
इतन म े े ह ी म ं दारमालाकीनौकरानीआकरबोलीः
"सुमंगल ! आपको मेरी मालिकन अपन म े ह ल मेब"ुलारहीहै।
िसरमा न क े हाः"जाकर अपनी मालिकन से कह दो िक इस बडे घर की बहूरानी बनना चाहती हो तो तुमहारे िलए दार खुले है।
िसरमा अपन स े ा र े अ ि ध क ा र तु म ह े स ौ प न क े ोतैयारहैलेिक
मत लगाओ। यह मेरी पाथणना है।"
िसरमा की नमता न म े ं द ा र म ा ल ा के ह ृ द य कोदिवतक
गयी। िसरमा न द े ो न ो क ा ग ं ध व ण ि व व ा ह क र व ािदयाऔ
मंिजाप की ततपरता न उ े से ऋ -िसिद
िद की मालिकन बना िदया। िसरमा का मनोबल, बुिदबल, तपोबल और यौिगक सामथयण इतना
िनखरा िक कई साधक िसरमा को पणाम करन आ े नल े गे।
एक िदन एक साधक, िजसका िसर फूिा हआ ु था और खून बह रहा था , िसरमा के पास आया। िसरमा न पेूछाः "िभकुक ! तुमहारा
िसर फूिा है .... िया बात है?"
िभकुकः "मै िभका लेन क े े ि ल ए स ु मं गल क े घ र ग य ा थ ा।मंदारम
मारा। इससे मेरा िसर फूि गया। "
िसरमा को बडा दःुख हआ ु िक मंदारमाला को पूरी जायदाद िमल गयी और मेरा ऐसा सुनदर, धनी , पिवि िवभाववाला
वयापारी पित िमल गया, िफर वह ियो दःुखी है? संसार मे जब तक सचची समझ, सचचा जान नही िमलता, तब तक मनुषय के दःुखो का
अंत नही होता। शायद वह दःुखी होगी।.... और दःुखी वयिित ही साधुओं को दःुख देगा। सजजन वयिित साधुओं को दःुख नही देगा
वरन् उनसे सुख लेगा, आशीवाद ले लेगा। मंदारमाला अित दःुखी है, तभी उसन ि े भ क ु ककोभीदःुखीकरिदया।
िसरमा गयी मंदारमाला के पास और बोलीः "मंदारमाला ! उस िभकुक के, अिकंचन साधु के िभका मागन प े र त ूिभकानहीदेती
तो चलता, लेिकन उसका िसर ियो फोड िदया?" अनुकम
मंदारमालाः बहन ! मै बहत ु दःुखी हँू। सुमग ं लनत े ु झ े छ ो ड क र म ु झ से शादीकीऔ
यहा जाता है। वह मुझसे कहता है िक मै परसो उसके साथ शादी कर लूँगा। मैन त े ो अ प न स े ु खकोसँभाल
सदा ििकता नही है। तुमहारा िदया हआ ु यह िखलौना अब दस
ू रा िखलौना लेन क े ा "
भागरहाहै ।
िसरमा को दःुखाकार वृित का थोडा धका लगा, िकंतु वह सावधान थी। रािि को वह अपन क े क म े द ीयाजलाकर
पाथणना करन ल े गीः'हे भगवान ! तुम पकाशिवरप हो, जानिवरप हो। मै तुमहारी शरण आयी हँ। ू तु म अगर चाहो तो सु म ग
ं ल को वाितव
मे सुमंगल बना सकते हो। सुमग ं ल, िजससे जिदी मृतयु हो जाये ऐसे भोग-पर-भोग बढा रहा है एप न ं र क क ी यािाकररहा
सतपेरणा देकर, इन िवकारो से बचाकर, अपन िेनिवणकारी, शात, आनदं एव म ं ा ध ु यणि!वरपमे
तुम सकमलगानम े ेहेपभु
हो...'
िसरमा पाथणना िकये जा रही है एव ि ं क ि क ी ल ग ा क र -करते
दीयेक ीलौकोदे
िसरमा
खेजारहीहैशात ।
होधयानकरते
गयी।
उसकी शाित ही परमातमा तक पैगाम पहँच ु ान क े ा स ा -करते उसे कब नीद आ गयी, पता नही। लेिकन जो नीद
धनबनगयी।धयानकरते
के समय भी तुमहारे िचत की चेतना को , रितवािहिनयो को सता देता है, वह पयारा कैसे चुप बैिता ?
पभात मे सुमंगल को भयानक िवप आया िक 'मेरा िवकारी-भोगी जीवन मुझे घसीिकर यमराज के पास ले गये एव त ं मामभोिगयो
की जो ददुणशा हो रही है, वही मेरी भी होन ज े ा रहीहै ! मै यह िया देख रहा हूँ?' सुमंगल चौक उिा और उसकी आँख खुल गयी।
।हाय
पभात का िवप सतय का संकेत देन व े ालाहोताहै।
सुबह होते-होते सुमगं ल न अ े -समपित गरीब-गुरबो मे बािकर एव स
पनीसारीधन ं त क म ो ं मे लगाकर
िसरमा िजस रािते जा रही है, भोग के कीचड मे पडा हआ ु सुमग ं ल भी उसी रािते अथात् आतमोदार के रािते जान क े ा संकिपकरकेचल
पडा।
वह अंतःचेतना कब, िकस वयिित के अंतःकरण मे जागत हो और वह भोग के दलदल से तथा अहक ं ार के िवकि मागण से बचकर
सहज िवभाव को अपनाकर सरल मागण से सत्-िचत्-आनदंिवरप ईशर की ओर चल पडे, कहना मुिशकल है।
धनय है िसरमा, जो िवय त ं , साथ ही अपन ि
ो उ स पथपरचलीही े व क ा र ी प ि त क ोभीउसपथ
!
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
(भगवदभिित से िया संभव नही है? सब संभव है। भिितमती जनाबाई के जीवन पसंगो पर पकाश डालते हएु पूजयशी कहते है )
भगवान कब, कहा और कैसे अपनी लीला पकि करके भितो की रका करते है , यह कहना मुिशकल है ! भितो का इितहास
देखते है, उनका चिरि पढते है तब भगवान के अििततव पर िवशेष शदा हो जाती है। अनुकम
गोदावरी नदी के ति पर ििथत गंगाखेड (िज. परमणी, महाराषट) गाव मे दमाजी के यहा जनाबाई का जनम हआ ु था। जनाबाई के
बचपन उसकी मा चल बसी। मा का अिगनसंिकार करके जब िपता घर आये तब ननही -सी जना न पेूछाः
"िपताजी ! मा कहा गयी?"
िपताः "मा पढ
ं रपुर मे भगवान िवटल के पास गयी है। "
एक िदन, दो िदन... पाच िदन... दस िदन... पचचीस िदन बीत गये। "मा अभी तक नही आयी? पढ ं रपुर मे िवटल के पास बैिी है ?
िपता जी ! मुझे भी िवटल के पास ले चलो। " ननही सुकनया जना न ि े ज दकी।
िपता बेिी को पढं रपुर ले आये। चंदभागा नदी मे िनान करके िवटल के मंिदर मे गये। ननही -सी जना िवटल से पूछन ल े गीः"मेरी
मा कहा गयी? िवटल ! बुलाओ न, मेरी मा को।"
'िवटल, िवटल...' करके जना रोन ल े गी । ि प त ा न स े म झ ा नक ? बकोिशश
े ीखू
इतन म े े व ह ा द ा म ा श े ि ए व उ ं न क ी धमणपिीगोणाईबा
जाग उिा। उनहोन ज े न ा केिपतासेकहाः
"अब यह पढ ं रपुर छोडकर तो जायेगी नही। आप इसे यही छोड जाइये। हम इसे अपनी बेिी के समान रखेगे। यह यही रहकर
िवटल के दशणन करेगी और अपनी मा के िलए िवटल के दशणन करेगी और अपनी मा के िलए िवटल को पुकारते -पुकारते अगर इसे भिित
का रगं लग जाये तो अचछा ही है।"
जना के िपता सहमत हो गये एव ज ं न ा ब ा ई क ो व ह ी छ ो ड ग ये।जनाकोबाि
वहा रहकर िवटल के दशणन करती एव घ ं रकेक-ामकाज मे हाथ बि ँ ाती थी। धीरे-धीरे जना की भगवदभिित बढ गयी।
समय पाकर नामदेव जी का िववाह हो गया। िफर भी जना उनके घर के सब काम करती थी एव र ं ो ज ि न यमसेिवटलक
करन भ े ीजातीथी।
एक बार काम की अिधकता से वह िवटल के दशणन करन द े े र स े ज ापायी।रातहोगयीथी, सब लोग जा चुके थे। िवटल के
दशणन करके जना घर लौि आयी लेिकन दस ू रे िदन सु ब ह िवटल भगवान क े गले मे जो िवणण की माला थी , वह गायब हो गयी !
मंिदर के पुजारी न क े हाः "सबसे आिखर मे जनाबाई आयी थी।"
जनाबाई को पकड िलया गया। जना न क े हाः"मै िकसी की सुई भी नही लेती तो िवटल भगवान का हार कैसे चोरी करँगी ?"
लेिकन भगवान भी मानो, परीका करके अपन भ े ि त क ा आ त म ब ल औ रयशबढानाच
िदयाः "जना झूि बोलती है। इसको सरे बाजार से बेत मारते -मारते ले जाया जाये एव ज ं ह ा स ब , वहीलीपरचढायाजात
कोसू सूली
पर चढा िदया जाय।"
िसपाही जनाबाई को लेन आ े य े । ज न ा बाईअपनि "हे मेरे वटलकोपु
िवटल ! मैकारतीजारहीथीः
िया करँ? तुम तो सब जानते
ही हो..."
गहन ब े न ा न स े े प ू व ण ि व ण ण को त प ा य ा जाताहै।
उस कसौिी को पार कर जाते है, बाकी के लोग भिक जाते है। अनुकम
सैिनक जनाबाई को ले जा रहे थे और रािते मे उसके िलए लोग कुछ -का-कुछ बोलते जा रहे थेः "बडी आयी भितानी ! भिित
का ढोग करती थी... अब तो तेरी पोल खुल गयी।" यह देख सजजन लोगो के मन मे दःुख हो रहा था।
ऐसा करते-करते जनाबाई सूली तक पहँच ु गयी। तब जिलादो न उ े ससे"पअब ूछाः तुमको मृतयुदड ं िदया जा रहा है , तुमहारी
आिखरी इचछा िया है?"
जनाबाई न क े हाः"आप लोग तिनक िहर जाये तािक मरते-मरते मै दो अभगं गा लूँ।"
आप लोग चौपाई, दोहे, साखी आिद बोलते हो ऐसे ही महाराषट मे 'अभगं' बोलते है। अभी भी जनाबाई के लगभग तीन सौ अभगं
उपलबध है। जनाबाई भगवतिमरण करके शदा भिित भरे हृदय स अभगं दारा िवटल से पाथणना करन ल े गीः
, !
।।
, !
शदाभिित पूणण हृदय से की गयी पाथणना हृदयेशर, सवेशर तक अवशय पहँच ु ती है। पाथणना करते -करते उसकी आँखो से
अशुिबनद छ ु ल क प ड े औ र , वह ल
िजससू सूीपरउसे
ली पानीलहो गयी !
िकायाजानाथा
सचचे हृदय की भिित पकृित के िनयमो मे भी पिरवतणन कर देती है। लोग यह देखकर दगं रह गये ! राजा न उ े ससे - कमा
याचना की। जनाबाई की जय-जयकार हो गयी।
िवरोधी भले िकतना भी िवरोध करे लेिकन सचचे भगवदभित तो अपनी भिित मे दढ ृ रहते है। िीक ही कहा हैः
, ।
, ।।
हे भारत की देिवयो ! याद करो अपन अ े त ी .... तुमहारा जनम भी उसी भूिम पर हआ
तकीमहाननािरयोको ु है, िजस पुणय भूिम
भारत मे सुलभा, गागी, मदालसा, शबरी, मीरा, जनाबाई जैसी नािरयो न ज े न म ि ल य ा थ ा ।अनक े िवघब
को न िडगा पायी थी।
हे भारत की नािरयो ! पाशातय संिकृित की चकाचौध मे अपन स े ं ि क ृ ि त क ?ीगिरमाकोभु
पतन की लाबैिनाक
ओर ले जानवेाली संिकृित का अनुसरण करन क े ी अ प े क ा अ प न ी संि, कतुृितकोअपनाओत
महारी
संतान भी सवागीण पगित कर सके और भारत पुनः िवशगुर की पदवी पर आसीन हो सके .... अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
-
े र एव स
शीिनवृितनाथ, जानश ं ो प ा न द े व क ी , परम िवरित
छोिीबहनथीमु ं चचे हीचारो
िताबाई।जनमसे
एव स
भगवदभित थे। बडे भाई िनवृितनाथ ही सबके गुर थे।
ननही सी मुिता कहतीः "िवटल ही मेरे िपता है। शरीर के माता -िपता तो मर जाते है लेिकन हमारे सचचे माता-िपता, हमारे
परमातमा तो सदा साथ रहते है।"
उसन स े त स ं गमे 'िवटल केवल मंिदर मे ही नही , िवटल तो सबका आतमा बना बैिा है। सारे शरीरो मे उसी की
सुनरखाथािक
चेतना है। वह कीडी मे छोिा और हाथी मे बडा लगता है। िवदानो की िवदा की गहराई मे उसी की चेतना है। बलवानो का बल उसी
परमेशर का है। संतो का संततव उसी परमातम-सता से है। िजसकी सता से आँखे देखती है , कान सुनते है, नािसका शास लेती है, िजहा
िवाद का अनुभव करती है वही िवटल है।'
मुिताबाई िकसी पुषप को देखती तो पसन होकर कह उिती िक िवटल बडे अचछे है।
एक िदन मुिताबाई कह उिीः "िवटल ! तुम िकतन ग े ं द "
े ह ो।ऐसीगं दगीमेरहतेहो।
िकसी न पेूछाः"कहा है िवटल?"
मुिताबाईः "देखो न, इस गंदी नाली मे िवटल कीडा बन ब े ैिेह"ै।
मुिताबाई की दिृष िकतनी सािततवक हो गयी थी ! वह सवणि अपन ि े व ट ल केदीदारकररहीथी।
चारो बचचो को एक संनयासी के बचचे मानकर कटरवािदयो न उ े न ह े न म ा जसेब-ाहरकरिदयाथा।उनक
िपता के साथ तो ेमाता
जुिम िकया ही था, बचचो को भी समाज से बाहर कर रखा था। अतः कोई उनहे मदद नही करता था। पेि को आहिुत देन क े ेिलएवे
बचचे िभका मागन ज े ातेथे।
दीपावली के िदन वह बारह वषीया मुिताबाई िनवृितनाथ से पूछती हैः "भैया ! आज दीपावली है, िया बनाऊँ?"
िनवृितनाथः "बहन ! मेरी तो मजी है िक आज मीिे चीले बना ले। "
जानश े रः "तीखे भी तो अचछे लगते है। "
मुिताबाई हषण से बोल पडीः "मीिे भी बनाऊँगी और नमकीन भी। आज तो दीपावली है। "
बाहर से तो दिरदता िदखती है, समाजवालो न ब े ि ह, नषकृतधन है, न दौलत, न बैक बैलेनस है। न कार है न
कररखाहै
बगँला। साधारण सा घर है, िफर भी िवटल के भाव मे सराबोर हृदय के भीतर का सुख असीम है।
मुिताबाई न अ े ं द र जा क र द े खा तो त व ा ह ी न हीथाियोिक
तवे के चीले कैसे बनेगे ? वह "भैया ! मै कुमहार के यहा से रोिी सेकन क े ा त वाले"आऐसा तीहूँ।
कह जिदी से िनकल पडी तवा लाने
के िलए। लेिकन िवसोबा चािी न स े भ ी क ु म 'खबरदार ! इसको तवा िदया तो तुमको जाित से बाहर
ह ारोकोडािकरमनाकरिदयाथािक
करवा दँगूा।'
घूमते-घूमते कुमहारो के दार खिखिाते हएु आिखर उदास होकर वापस लौिी। मजाक उडाते हएु िवसोबा चािी न पेूछाः "ियो?
कहा गयी थी?"
मुिता न स े र "मैउतरिदयाः
लतासे बाहर से तवा लेन ग े य ी थ ी ल ेिकनकोईदे" ताहीनहीहै।
घर पहँच ु ते ही जानशे रनउ े स क ी उ द ा स ी क ाकारणपूछातोमुितानस े ाराहालसुनािदया।
जानश े रः "कोई बात नही। तू आिा तो िमला।"अनुकम
मुिताबाईः "आिा तो िमला िमलाया है।"
जानश े र नगंी पीि करके बैि गये। उन योिगराज न प े ा ण ो क ा स ं य म क र केपीिपरअिग
भाित लाल हो गयी। "ले िजतनी रोिी या चीले सेकन हेो, इस पर सेक ले।"
मुिताबाई िवय य ं ो ि ग न ी थ ी । भ ा इ य ो की श िितकोजानत
िफर कहाः "भैया ! अपन त े व "
े कोशीतलकरलो।
जानश े रनअ े ि ग न धारणकाउपसंहारकरिदया।
संकिप बल से तो अभी भी कुछ लोग चमतकार करके िदखाते है। जानश े र महाराज न अ े ि ग न त ततवकीधारण
पकि कर िदया था। वे सतय-संकिप एव य ं ोगशिित-संपन पुरष थे। जैसे आप िवप मे अिगन, जल आिद सब बना लेते है, वैसे ही
योगशिित-संपन पुरष जागत मे िजस तततव की धारणा करे उसे बढा अथवा घिा सकते है।
जल तततव की धारणा िसद हो जाये तो आप जहा जल मे गोता मारो और हजारो मील दरू िनकलो। पृथवी तततव की धारणा िसद
है तो आपको यहा गाड दे और आप हजारो मील दरू पकि हो जाओ। ऐसे ही वायु तततव, अिगन तततव आिद की धारणा भी िसद की जा
सकती है। कबीरजी के जीवन मे भी ऐसे चमतकार हएु थे और दस ू रे योिगयो के जीवन मे भी देखे -सुन ग े येथे।
मेरे गुरदेव परम पूजय िवामी शीलीलाशाहजी महाराज न न े ी म क े पेड'तूकोआजादीिक अपनी जगह पर जा।' तो वह पेड चल
पडा। तबसे 'लीलाराम' मे से 'शी लीलाशाह' के नाम से वे पिसद हएु। योगशिित मे बडा सामथयण होता है।
आप ऐसा सामथयण पा लो, ऐसा मेरा आगह नही है, लेिकन थोडे से सुख के िलए , किणक सुख के िलए बाहर न भागना पडे ऐसे
िवाधीन हो जाओ। िसिदया पान क े ी क ु ब े र -दःुख के झिको से बचन
साधनाकरनाआवशयकनहीहै क े ख ीसरलसाधना
लेिकनसु
अवशय कर लो।
िनवृितनाथ भोजन करते हएु भोजन की पशंसा कर रहे थेः "मुिित न ि े न ि म ण त ि क य े औरजान
िवाद का िया पूछना !"
िनवृितनाथ, जानश े र एव स ं ो प ा न द े व ती न ो भ ा इ य ोनभ े ोजनकरिल
चीले लेकर भागा।
िनवृितनाथ न क े हाः"अरे, मुिता ! मार जिदी इस कुते को। तेरे िहिसे के चीले वह ले जा रहा है। तू भूखी रह जायेगी। "
मुिताबाईः "मारँ िकसे ? िवटल ही तो कुता बन गये है। िवटल काला -कलूिा रप लेकर आये है। उनको ियो मारँ?"
तीनो भाई हस ँ पडे। जानश े र न पेूछाः"जो तेरे चीले ले गया वह काला कलूिा कुता तो िवटल है और िवसोबा चािी ?"
मुिताबाईः "वे भी िवटल ही है।"अनुकम
अलग-अलग मन का िवभाव अलग-अलग होता है लेिकन चेतना तो सबमे िवटल की ही है। वह बारह वषीया कनया मुिताबाई
कहती हैः "िवसोबा चािी मे भी वही िवटल है।"
िवसोबा चािी कुमहार के घर से ही मुिता का पीछा करता आया था। वह देखना चाहता था िक तवा न िमलन प े र येसबिया
करते है? वह दीवार के पीछे से सारा खेल देख रहा था। मुिताबाई के शबद सुनकर िवसोबा चािी का हृदय अपन ह े ा थोमेनहीरहा।
भागता हआ ु आकर सू ख े बास की नाई मु ि ताबाई के चरणो मे िगर पडा।
"मुितादेवी मुझे माफ कर दो। मेरे जैसा अधम कौन होगा? मैन ब े ह क ा न व े ालीबाते सुन
आप लोग मुझ पामर को कमा कर दे। मुझे अपनी शरण मे ले ले। आप अवतारी पुरष है। सबमे िवटल देखन क े ी भ ावनामेसफल
गये है। मै उम मे तो आपसे बडा हूँ लेिकन भगवदजान मे तुचछ हूँ। आप लोग उम मे छोिे है लेिकन भगवदजान मे पूजनीय , आदरणीय
है। मुझे अपन च े र णोमे" िथानदे।
कई िदनो तक िवसोबा अनुनय-िवनय करता रहा। आिखर उसके पशाताप को देखकर िनवृितनाथ न उ े स े उपदेश िदयाऔ
मुिताबाई से दीका-िशका िमली। वही िवसोबा चािी पिसद महातमा िवसोबा खेचर हो गये। िजनके दारा पिसद संत नामदेव न द े ीकापापत
की।
बारह वषीया बािलका मुिताबाई केवल बािलका नही थी , वह तो आदशिित का िवरप थी। िजनकी कृपा से िवसोबा चािी जैसा
ईषयालु पिसद संत िवसोबा खेचर हो गये !
नारी ! तू नारायणी है। देवी ! संयम-साधना दारा अपन आ े त मिवरपकोपहचानले।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
गुजरात के सौराषट पानत मे नरिसंह मेहता नाम के एक उचचकोिि के महापुरष हो गये। वे जब भजन गाते तो शोतागण भिितभाव
से सराबोर हो उिते थे।
दो लडिकया नरिसंह मेहता की बडी भिितन थी। लोगो न अ े फव ा ह फ ै ला द ीकीउनदोकुंवार
का कुछ गलत समबनध है। अफवाह बडी तेजी से फैल गयी।
किलयुग मे बुरी बात फैलाना बडा आसान है। िजसके अनदर बुराइया है वह आदमी दस ू रो की बुरी बात जिदी से मान लेता है।
उन लडिकयो के िपता और भाई भी ऐसे ही थे। उनहोन ल े ड ि क य ोकीखू "तुबमिपिाईकीऔरकहाः
लोगो न त े ोहमारीइजजत
खराब कर दी। हम बाजार से गुजरते है तो लोग बोलते है िक इनही की दो लडिकया है , िजनके साथ नरिसंह मेहता का ...."
खूब मार-पीिकर उन दोनो को कमरे मे बनद कर िदया और अलीगढ के बडे -बडे ताले लगा िदये। िफर चाबी अपनी जेब मे
डालकर दोनो चल िदये िक 'देखे', आज कथा मे िया होता है।' अनुकम
उन दोनो लडिकयो मे से एक रतनबाई रोज सतसंग-कीतणन के दौरान अपन ह े ा थ ो स े प ानीकािगलासभ
गान व े ा ल े न र ि स ं हम े ह त ा क े ह , बििकजपानी
ो िोतकले िपलाने े तनबा
ातीथी।लोगोनर
की बाह िकया को देखकर उलिा अथण लगा िलया।
सरपचं नघ "आज से नरिसंह मेहता गाव के चौराहे पर ही सतसंग -कीतणन करेगे, घर पर नही।"
े ोिषतकरिदयाः
नरिसंह मेहता न च -कीतणनग िकया। िववािदत बात िछडन क े
े ौराहेपरसतसं े क ा र ण -करते रािी नकर
भीडबढगयीथी।कीतण
के 12 बज गये। नरिसंह मेहता रोज इसी समय पानी पीते थे , अतः उनहे पयास लगी।
इधर रतनबाई को भी याद आया िक 'गुरजी को पयास लगी होगी। कौन पानी िपलायेगा?' रतनबाई न ब े द ं क मरेमेहीमि
से पयाला भरकर, भावपूणण हृदय से आँखे बदं करके मन -ही-मन पयाला गुरजी के होिो पर लगाया।
जहा नरिसंह मेहता कीतणन-सतसंग कर रहे थे, वहा लोगो को रतनबाई पानी िपलाती हईु नजर आयी। लडकी का बाप एव भ ं ाई
दोनो आशयणचिकत हो उिे िक 'रतनबाई इधर कैसे ?'
वाितव मे तो रतनबाई अपन क े म र े म े ह ी थ ी , लेिकन उसकी भाव की िपलारही
। पानीकापयालाभरकरभावनासे
एकाकारता इतनी सघन हो गयी िक वह चौराहे के बीच लोगो को िदखी।
अतः मानना पडता है िक जहा आदमी का मन अतयत ं एकाकार हो जाता है , उसका शरीर दस ू री जगह होते हएु भी वहा िदख
जाता है।
रतनबाई के बाप न प े ुिसेप"ूछरतन ाः इधर कैसे ?"
रतनबाई के भाई न क े हाः "िपताजी ! चाबी तो मेरी जेब मे है !"
दोनो भागे घर की ओर। ताला खोलकर देखा तो रतनबाई कमरे के अंदर ही है और उसके हाथ मे पयाला है। रतनबाई पानी
िपलान क े ी म ु द ा म े ह ै।दोनोआशयण ! चिकतहोउिेिकयहकैसे
संत एव स ं म ा जके ब ी च स द ा स े ह ी ऐ स ा ह ीचलताआयाहै।
की कोई भी कसर बाकी नही रखते। िकंतु संतो-महापुरषो के सचचे भित उन सब बदनािमयो की परवाह नही करते , वरन् वे तो लगे ही
रहते है संतो के दैवी कायों मे। अनुकम
िीक ही कहा हैः
।
।।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
[ परम पूजय बापूजी की बहलीन मातुशी मा महगँीबा (पूजनीया अममा) के कुछ मधुर संिमरण िवय प ं ू जयबापू....]
जीकेशबदो
मा बालक की पथम गुर होती है। बालक पर उसके लाख -लाख उपकार होते है। वयवहािरक दिृष से मै उनका पुि था िफर
भी मेरे पित उनकी गुरिनषा िनराली थी !
े हाः"दही आपके िलए िीक नही रहेगा। "
एक बार वे दही खा रही थी तो मैन क
उनके जाने (महापयाण) के कुछ समय पूवण ही उनकी सेिवका न म े ुझे ब"तायािक
अममा न ि े फ र क भीदहीनहीखाय
गुरजी न म े "
नािकयाथा।
इसी पकार एक अनय अवसर पर मा भुटा (मकई) खा रही थी। मैन क े हाः"भुटा तो भारी होता है, बुढापे मे देर से पचता है। ियो
खाती हो?"
मा न भ े ु ट े -तीसरे िदन उनहे भुू टरेा िदया गया तो वे बोलीः "गुरजी न म े
ख ानाभीछोडिदया।िफरदस 'ना' । गुर
न ािकयाहै
बोलते है को िया खाये?"
मा को आम बहत ु पसद था िकंतु उनके िवािथय के अनुकूल न होन क े े क ा र ण म ै न उे सकेिलएभीमन
खाना छोड िदया।
मा का िवशास बडा गजब का खा था ! एक बार कह िदया तो बात पूरी हो गयी। अब, 'उसमे िविािमनस है िक नही..... मेरे िलए
हािनकारक है या अचछा....' उनको कुछ सुनन क े ी ज र रतनहीहै 'ना' बोल।बापू
िदयाने तो बात पूरी हो गयी।
शदा की हद हो गयी ! शदा इतनी बढ गयी, इतनी बढ गयी िक उसन ि े व श ा स क ा र पधारणक
फकण है। शदा सामनवेाले की महानता को देखकर करनी पडती है , जबिक िवशास पैदा होता। शीरामचिरतमानस मे आता हैः
।
मा पावणती शदा का और भगवान िशव िवशास का िवरप है। ये शदा और िवशास िजसमे है समझो, वह िशव-पावणतीिवरप हो
गया। मेरी मा मे पावणती का िवरप तो था ही, साथ मे िशव का िवरप भी था। मै एक बार जो कह देता, उनके िलए वह पतथर पर लकीर
हो जाता।
पुि मे िदवय संिकार डालन व े ा ल ी प ु ण य श ी ल ा म ा त ा एतँोइसधर
ही उचच संिकार डाले थे। बाियकाल से ही िशवाजी मे भारतीय संिकृित की गिरमा एव अ ं ि िम त ाकीरकाकेस
उनकी माता जीजाबाई ही थी, लेिकन पुि को गुर मानन क े .... देवहूित के िसवाय िकसी अनय माता मे मैन आ
ाभाव े ज तकनहीदेखा
था।
मेरी मा पहले तो मुझे पुिवत पयार करती थी लेिकन जबसे उनकी मेरे पित गुर की नजर बनी, तबसे मेरे साथ पुिरप से
वयवहार नही िकया। वे अपनी सेिवका से हमेशा कहती-
"साईजी आये है.... साईजी का जो खाना बचा है वह मुझे दे दे ...." आिद-आिद।
एक बार की बात है। मा न म े ुझसे"क
पसाद
हाः दो।"
हद हो गयी ! ऐसी शदा ! पुि मे इस पकार की शदा कोई साधारण बात है? उनकी शदा को नमन है बाबा ! अनुकम
मेरी ये माता शरीर को जनम देनवेाली माता तो है ही, भिितमागण की गुर भी है, समता मे रहन व े ा ली औरसमाजक
पेरणा देन व े ा ल ी माताभीहै, इन ।
सबसे बढकर इन माता न ए े
यहीनही क ऐ स ी ग जब क ीभूिमकाअदाकीह
इितहास मे कभी-कभार ही िदखाई पडता है। सितयो की मिहमा हमन पे ढी, सुनी, सुनायी.... अपन प े ि त कोपरमातमामा
की सूची भी हम िदखा सकते है, लेिकन पुि मे गुरबुिद..... पुि मे परमातमबुिद... ऐसी शदा हमन ए े क द ेवहिू ,तमातामे
जो किपलदेखी
मुिन को अपना गुर मानकर, आतम-साकातकार करके तर गयी और दस ू री ये माता मेरे धयान मे है।
एक बार मै अचानक बाहर चला गया और जब लौिा तो सेिवका न ब "माताजी बात नही करती है।"
े तायािक
मैन पेूछाः"ियो?"
सेिवकाः "वे कहती है िक साई मना कर गये है िक िकसी से बात नही करना तो ियो बातचीत करँ?"
मेरे िनकिवती कहलान व े ा ल े ि श ष य भ ीमे,रजै
ीआजापरऐसाअमलनहीकरते
सा इन देवीिवरपा माता नहोगेअ े मलकरके
िदखाया है। मा की शदा की कैसी पराकाषा है ! मुझे ऐसी मा का बेिा होन क े ा व य ा व ह ा ि र कगवणहैऔ
भी गवण है।
' ! ....'
मेरी मा मुझे बडे आदर भाव से देखा करती थी। जब उनकी उम करीब 86 वषण की थी तब उनका शरीर काफी बीमार हो गया
था। डॉििरो न क े हाः"लीवर और िकडनी दोनो खराब है। एक िदन से जयादा नही जी सकेगी।"
23 घणिे बीत गये। मैन अ े प न व े ै द क ो भ े ज ा "बापू ! एक
त ोवैद भीउतराहआ ँह लेकसेरमेरेपासआ
ु मुघणिे
जयादा नही िनकाल पायेगी मा।"
मैन के हाः"भाई ! तू कुछ तो कर ! मेरा वैद है... इतन ि े ..."
च िकतसालयदेखताहै
वैदः "बापू ! अब कुछ नही हो सकेगा। "
मा कराह रही थी। करवि भी नही ले पा रही थी। जब लीवर और िकडनी दोनो िनिषकय हो तो िया करेगे आपके इज ं ेिशन और
दवाएँ ? मै गया मा के पास तो मा न इ े सढ ं गसे,हजान
ाथजोडे
कमानोे ी आ ज ा म ा गरहीहो।िफरधीरे - सेबोली
"पभु ! मुझे जान देो।"
ऐसा नही िक, 'बेिा मुझे जान देो..' नही, नही। मा न क े हाः"भगवान ! मुझे जान देो.... पभु ! मुझे जान देो।"
मैन उ े नक -भाव
ेपभु और भगवान भाव का जी भरकर फायदा उिाया और कहाः
"मै नही जान द े े त ा।तु , मैमदेकैख
से ज हँू।"
ताातीहो
मा बोलीः "पभु ! पर मै करँ िया ?"
मैन के हाः"मै िवािथय का मंि देता हँ। ू " अनुकम
उवणर भूिम पर उलिा-सीधा बीज बडे तो भी उगता है। मा का हृदय ऐसा ही था। मैन उ े न क ो मंि िदयाऔरउ
चालू िकया। एक घणिे मे जो मरन क े ी न ौबतदे , अब एक घणिे के बाद उनके िवािथय मे सुधार शुर हो गया . िफर एक
ख रहीथी
महीना... दो महीने .... पाच महीने ... पदंह महीने ... पचचीस महीने .... चालीस महीने .... ऐसा करते-करते साि से भी जयादा महीन ह े ोगये।
तब वे 86 वषण की थी, अभी 92 वषण पार कर गयी। जब आजा िमली... रोकन क े ा स ं क ि प ल ग ायातोउसेहि
अतः आजा िमलन प े र ह ी उनहोनश े -रीरछोडा।गु
पालन का कर ैसआजा
ा दढ ृ भाव !
मुझे इस बात का पता अभी तक नही थी, अभी रसोइये न औ े र द स ू र े ल ो ग ोनबे तायािक
े
जाता तो मा उसक पास िवय च ं ल ी ज ा त "एकचबार
ीथी।सं ालकरामभाईनब
मै बहत े
ु बीमार पड गया तो मा आयी और मेरे
तायािक
ऊपर से कुछ उतारा करके उसे अिगन मे फेक िदया। उनहोन ऐ े स ा त ी नि "
द नतकिकयाऔरमै िीकहोगया।
दसू रे लडको न भ े "हमको भी कभी कुछ होता और मा को पता चलता तो वे देखन आ जाती
ीबतायािक े ही थी। "
एक बार आशम मे िकसी मिहला को बुखार हो गया तो मा िवय उ ं स क ा ि स र द बानबे ैि गयी।
सािधका बीमार पडती तो मा उसका धयान रखती। यिद वह ऊपर के कमरे मे होती तो मा कहती - "बेचारी को नीचे का कमरा दो, बीमारी
मे ऊपर-नीचे आना-जाना नही कर पायेगी।" ऐसा था उनका परदःुखकातर हृदय ! अनुकम
' ....'
एक बार आशम के एक बुजुगण साधक न ए े क लडकेक-ाकचछा
लँगोि गंदा देखा तो उसको फिकार लगायी। लेिकन मा तो ऐसे
कई कचछे -लँगोि चुपचाप धोकर बचचो के कमरे के िकनारे रख देती थी। कई गंदे -मैले कचछे , िजनहे खुद भी धोन म े े घृ,णऐसे
ाहोतीहो
कपडो को धोकर मा बचचो के कमरो के िकनारे चुपचाप रख िदया करती।
कैसा उदार हदृ य रहा होगा मा का ! कैसा िदवय वातसियभाव रहा होगा ! अंतः करण मे वयावहािरक वेदानत की कैसी िदवय धारा
रही होगी ! सभी के पित कैसी िदवय संतान भावना रही होगी !
सफाई के िजस कायण को लोग घृिणत समझते है , उस कायण को करन म े े भ ी म ा क ो घ ृणानहीहोतीथी।ि
! सचमुच, वे शबरी मा ही थी।
?
िजस िदन मेरे सदगुरदेव का महािनवाण हआु , उसी िदन मेरी माता का भी महािनवाण हआु । 4 नवमबर, 1999 तदनुसार एकादशी
का िदन, काितणक का महीना, गुजरात के मुतािबक आिशन , संवत 2055 एव ग ं ु , न ं आिसीजन
रवार।नइज ेिशनभुकवाये
पर रही, न
अिपताल मे भती हईु वरन् आशम की एकात जगह पर, बाहमुहूतण मे 5 बजकर 37 िमनि पर िबना िकसी ममता- आसिित के उनका नशर
देह छू िा। पछं ी िपज
ं रा छोडकर आजाद हआ ु , बह हआ ु तो शोक िकस बात का?
वयवहारकाल मे लोग बोलते है िक 'बापू जी ! यह शोक की वेला है। हम सब आपके साथ है ...' िीक है, यह वयवहार की भाषा है
लेिकन सचची बात तो यह है िक मुझे शोक हआ ु ही नही है। मुझमे तो बडी शाित, बडी समता है ियोिक मा अपना काम बनाकर गयी है।
, ...
मा न आ े त मज ा न क े उ जा ल े म े द े , वासना को िमिाने
हकातयागिकयाहै ।शरीरसेिवयक ं
की कु ंजी उनके पास थी , यश और मान से वे कोसो दरू थी। ॐ....ॐ.... का िचंतन-गुंजन करके, अंतमणन मे यािा करके दो िदन के बाद वे
िवदा हईु।
जैसे किपल मुिन की मा देवहिू त आतमारामी हईु ऐसे ही मा महगँीबा आतमारामी होकर, नशर चोले को छोडकर, शाशत सता मे
लीन हईु अथवा संकिप करके कही भी पकि हो सके , ऐसी दशा मे पहँच ु ी। ऐसी मा के िलए शोक िकस बात का ?
िजनके जीवन मे कभी िकसी के िलए फिरयाद नही रही , ऐसी आतमाए ध -कभार ही आती है। इसीिलए यह वसुनधरा
ँ रतीपरकभी
ििकी हईु है।
मुझे इस बात का भी संतोष है िक आिखरी िदनो मे मै उनके ऋण से थोडा मुित हो पाया। इधर -उधर के कई कायणकम होते
रहते थे लेिकन हम कायणकम ऐसे ही बनाते िक मा याद करे और हम पहँच ु जाये।
मेरे गुरजी जब इस संसार से िवदा हएु तो उनहोन भ े ी म े र ी ह ी ग ो द मे महापयाणिकय
भगवान न म े ु झेय-हअवसरिदया
इस बात का मुझे संतोष है।
मंगल मनाना यह तो हमारी संिकृित मे है लेिकन शोक मनाना – यह हमारी संिकृित मे नही है। हम शीरामचंदजी का पाकटय
िदवस – रामनवमी बडी धूमधाम से मनाते है लेिकन शीकृषण और शीरामजी िजस िदन िवदा हएु , उसे हम शोकिदवस के रप मे नही मनाते
है, हमे उस िदन का पता ही नही है। अनुकम
शोक और मोह – ये आतमा की िवाभािवक दशाए न ँ ह ी ह ै । श ो क औ र म ो हतोजगतको
इसीिलए अवतारी महापुरषो की िवदाई का िदन भी हमको याद नही िक िकस िदन वे िवदा हएु और हम शोक मनाये।
हा, िकनही-िकनही महापुरषो की िनवाण ितिथ जरर मनाते है जैसे , वािमीिक िनवाण ितिथ, बुद की िनवाण ितिथ, कबीर, नानक,
शीरामकृषणपरमहस ं अथवा शीलीलाशाहजी बापू आिद बहवेता महापुरषो की िनवाण ितिथ मनाते है , लेिकन उस ितिथ को हम शोक िदवस
के रप मे नही मनाते वरन् उस ितिथ को हम मनाते है उनके उदार िवचारो का पचार -पसार करन क े ेिलए , उनके मागिलक कायों से
सतपेरणा पान क े ेिलए।
हम शोक िदवस नही मनाते है ियोिक सनातन धमण जानता है िक आपका िवभाव अजर, अमर, अजनमा, शाशत और िनतय है और
मृतयु शरीर की होती है। हम भी ऐसी दशा को पापत हो, इस पकार के संिमरणो का आदान -पदान िनवाण ितिथ पर करते है , महापुरषो के
सेवाकायों का िमरण करते है एव उ ं न के ि द व य जी –व न स े पेरणापाकरिवयभ ं ीउनतह
ॐ
(
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अममा अथात् पूणण िनरिभमािनता का मूतण िवरप। उनका परोपकारी सरल िवभाव, िनषकाम सेवाभाव एव प ं रिहतिचंतनिक
को भी उनके चरणो मे िवाभािवक ही झुकन क े े ि ल ए प े ि र त क र द े।अनक , तब
े ोसाधकजबअममाक
कई बार ेद
संसार के ताप से तपत हृदय उनके समक खुल जातेः "अममा! आप आशीवाद दो न ! मै परेशािनयो से छू ि जाऊँ ..."
अममा का गुरभित हदृ य सामन व े ा ले क े ह ृ द य म े उ त स ं मंग क
ाहएवउ
देता। वे कहती- "गुरदेव बैिे है न ! हमेशा उनहीसे पाथणना करो िक "हे गुरवर ! हम आपके साथ का यह समबनध सदा के िलए िनभा सके
ऐसी कृपा करना .... हम गुर से िनभाकर ही इस संसार से जाये..." मागना हो तो गुरदेव की भिित ही मागना। मै भी उनके पास से यही
मागती हँ।
ू अतः तुमहे मेरा आशीवाद नही अिपत गुरदेव का अनुगह मागते रहना चािहए। वे ही हमे िहममत देगे। बल देगे। वे शिितदाता
है न !"
साधना-पथ पर चलनवेाले गुरभितो को अममा का यह उपदेश अपन ह े ृ द य प िल पर िवण
चािहए। अनुकम
अममा पातःकाल सूयोदय से पूवण 4-5 बजे उि जाती और िनतयकमण से िनवृत होकर पहले अपन ि े न यमकरती।
कायण हो, पर एक घणिा तो जप करती ही थी। यह बात तब की है जब तक उनके शरीर न उ े न क ा स ाथिदया।ज
कारण थोडा अशित होन ल े ग ा त ो ि फ र तोिदनभरजपकरतीरहतीथी।
82 वषण की अविथा तक तो अममा अपना भोजन िवय ब ं न ा कर ख , रसोईघरे अकी
ातीथी।आशमक नयसेवाकाय
देखरेख करती। बगीचे मे पानी िपलाती, सबजी आिद तोडकर लाती बीमार का हालचाल पूछकर आती एव र ं ा ििमे-दो भीएक
बजे आशम
का चकर लगान ि े न क ल प , कोई िंड से िििुर रहा होता तो चुपचाप उसे कंबल ओढा आती। उसे
डती।यिदशीतकालकामौसमहोता
पता भी नही चलता और वह शाित से सो जाता। उसे शाित से सोते देखकर अममा का मातृहदृ य संतोष की सास लेता। इसी पकार
गरीबो मे भी ऊनी वििो एव क ं ं ब -करवाती।
ल ोकािवतरणपू जनीयाअममाकरती
उनके िलए तो कोई भी पराया न था। चाहे आशमवासी बचचे हो या सडक पर रहन व , सबके िलए उनके
े ाले दिरदनारायण
वातसिय का झरना सदैव बहता ही रहता था। िकसी को कोई कष न हो, दःुख न हो, पीडा न हो इसके िलए िवय क ं ो कषउिानाप
तो उनहे मंजूर था, पर दस
ू रे की पीडा, दस
ू रे का कष उनसे न दे ख ा जाता था।
उनमे िवावलंबन एव प ं र द ः ु खक ा त र त ा काअदभु , कोई तगवण
सिममशणथा।वहभ
नही।
"सबमे परमातमा है अतः िकसी को दःुख ियो पहँच ु ाना?" यह सूि उनक े पू रे जीवन मे ओतपोत नजर आता था। वयवहार तो िीक , वाणी के
दारा भी कभी िकसी का िदल अममा न द े ख ,ु ऐसा
ायाहोदेखन म े ेनहीआया।
सचमुच, पूजनीया अममा के ये सदगुण आतमसात् करके पतयेक मानव अपन ज े ी व न कोिदवयबनासकताहै।
जब अममा पािकितान मे थी तब तो िनतय िनयम से छाछ-मिखन बािा ही करती थी, लेिकन भारत मे आन प े र भीउनकायह
कम कभी नही िूिा। अपन आ े शम-िनवास के दौरान अममा अपन ह े ा थ ो स े -मिखन बािती।
ं ोगोमेछजब
ह ीछाछिबलोतीएवल ाछ तक
शरीर न स े ा थ ि , लेिकन 82
द यातबतकिवयद वषण की अविथा के बाद जब शरीर असमथण हो गया , तब भी दस
ं हीिबलोवा ू रो से मिखन
िनकलवाकर बािा करती।
अपन ज े ीवनकेअ3-4
ंितमवषण अममा न ए , शात िथल 'शाित वाििका' मे िबताये। वहा भी अममा कभी-कभार
े कदमएकात
आशम से मिखन मँगवाकर वाििका के साधको को देती। अनुकम
अपनी जीवनलीला समापत करन स े े 4-5 महीन पूवण अममा िहममतनगर आशम मे थी। वहा तो मिखन िमलता भी नही था, तब
अमदावाद आशम से मिखन मँगवाकर वहा के साधको मे बि ँ वाया। सबको मिखन बािन म े े प ू ज नीयाअममाबडीतृि
करती। ऐसा लगता मानो, मा यशोदा अपन गेोप-बालको को मिखन िखला रही हो !
पूजनीया मा का िवभाव अतयतं परोपकारी था। गरीबो की वेदना उनके हदृ य को िपघलाकर रख देती थी। कभी भी िकसी की
दःुख-पीडा की बात उनके कानो तक पहँचु ती तो िफर उसकी सहायता कैसे करनी है – इसी बात का िचंतन मा के मन मे चलता रहता था
और जब तक उसे यथा योगय मदद न िमल जाती, तब तक वे चैन से बैिती तक नही।
एक गरीब पिरवार मे कनया की शादी थी। जब पूजनीया मा को इस बात का पता चला तो उनहोन अ े त य त ं दकताकेसाथ
मदद करन क े ी य ो ज न ा ब न ा डा ल ी । उ स पिरवारकीआि
शादी के खचण का बोझ कुछ हलका हो – इस ढंग से आिथणक मदद भी की और वह भी इस तरह से िक लेन व े ा ल े कोपतातकनच
पाया िक यह सब पूजनीया मा के दयालु िवभाव की देन है। कई गरीब पिरवारो को पूजनीया मा की ओर से कनया की शादी मे यथायोगय
सहायता इस पकार से िमलती रहती थी मानो उनकी अपनी बेिी की शादी हो !
भारतीय संिकृित के पतयेक पवण तयोहारो को मनान क े े ि ल ए अ म म ा स भ ी कोपोतसािहत
अनुरप सबको पसाद बािा करती थी। जैसे मकर-सकाित पर ितल के लडडू .... आिद। आशम के पैसो से दान का बोझ न चढे , इसिलए
अपन ज े य े ष प ु ि ज े ि ा नदंसेपैस
अनु
ेलेकरपू
म जनीयाअममापवोंपरपसादबािाकरती।
िसंिधयो का एक िवशेष तयोहार है 'तीजडी' जो रकाबनधन के तीसरे िदन आता है। उस िदन चाद के दशणन पूजन करके ही िििया
भोजन करती है। अममा की सेिवका न भ े ी त ी ज ड ी क ा वर त र ख ा थ ा।उसवित
अममा से भोजन के िलए पाथणना की तो अममा बोल पडी - "तू चाद देखकर खायेगी। नयाणी (कनया) भूखी रहे और मै खाऊँ? नही जब
चाद िदखेगा, मै भी तभी खाऊँगी। "
अममा भी चाद की राह देखते हएु कुसी पर बैिी रही। जब चाद िदखा , तब अपनी सेिवका के साथ ही अममा न रे ािि -भोजन
िकया। कैसा मातृहदृ य था अममा का ! िफर हम उनहे 'जगजजननी' न कहे तो िया कहे !
अममा अमदावाद आशम मे रहती थी तब की यह बात है। कई लोग आशम मे दशणन करन क े , 'बड बादशाह' की
े िलएआते
पिरकमा करते एव व ं ह ा क ा ज ल ल े ज ा त े । यि द उ न ह े पानीकीखालीब
दे देती। अममा के पास इतनी सारी बोतले कहा से आती थी , जानते है? अममा पूरे आशम मे चकर लगाती तब यि-ति पडी हईु, फेक दी
गयी बोतले ले आती। उसे गमण पानी एव स ं ा ब ु न स े स ा फकरकेसँभालकररखदेतीऔरजररतमंदोक
इसी पकार िशिवरो के उपरात कई लोगो की चपपले पडी होती थी , उनकी जोडी बनाकर रखती एव उ ं न ह ेगरीबोमेबािदेती।
ऐसा था उनका खराब मे से अचछा बनान क े ािवभाव ! 'मै िवशसनीय संत की मा हूँ....' यह अिभमान तो उनहे छू तक न सका
था। बस, पतयेक चीज का सदपुयोग होना चािहए िफर वह खान क े -ओढन क
ी च ीजहोयापहनने े ी।
अममा के सेवाकायण का केि िजतना िवशाल था उतनी ही उनकी िनिभमानता भी महान थी। उनके सेवाकायण का िकसी को पता
चल जाता तो उनहे अतयत ं संकोच होता। इसीिलए उनहोन अ े प न ा स े व ा क े ि इसपकारिव
चलता िक दाया हाथ कौन सी सेवा कर रहा है।
यिद कोई कृतजता वयित करन क े े ि ल ए उ न ह े प ण ा म क र े तातोवे न
नआ
बडी सावधानी रखती िक कोई अममा को पणाम करन न े आये।
िजनहोन ज े ी व न म े क , उनसे
ेवलदे नाहीसीखाऔरिसखायाहो
नमन का ऋण भी सहन नही होता था। वे केवल इतना ही
कहती- "िजसन स े बि द "
य ा ह ैउसपरमातमाकोहीनमनकरे ।
उनकी मूक सेवा के आगे मितक अपने -आप झुक जाता है। उनकी िनरिभमानता, िनषकामता एव म ं ू क सेव-यु
ाकीभावनायु
गो गो
तक लोगो के िलए पेरणादायी एव पंथ -पदशणक बनी रहेगी। अनुकम
( )
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
( ?
)
भिितमती मीराबाई का एक पिसद भजन हैः
। ,
। ,
। ,
। ,
।
एक बार संत रैदास जी िचतौड पधारे थे। रैदासजी रघु चमार के यहा जनमे थे। उनकी छोिी जाित थी और उस समय जात -
पात का बडा बोल बाला था। वे नगर से दरू चमारो की बिती मे रहते थे। राजरानी मीरा को पता चला िक संत रैदासजी महाराज पधारे
है लेिकन राजरानी के वेश मे वहा कैसे जाये ? मीरा एक मोची मिहला का वेश बनाकर चुपचाप रैदासजी के पास चली जाती , उनका
सतसंग सुनती, उनके कीतणन और धयान मे मगन हो जाती।
ऐसा करते-करते मीरा का सततवगुण दढ ृ हआ े ोचाः'ईशर के रािते जाये और चोरी िछपे जाये ? आिखर कब तक?'
ु । मीरा न स
िफर मीरा अपन ह े ी व े श म े उ नचमारोकीबितीमेजानल े गी।
मीरा को उन चमारो की बिती मे जाते देखकर अडोस-पडोस मे कानाफूसी होन ल े ग ी । प ू रेमेव'ऊ
ाडमे
ँची कुहराममच
जाित की, ऊँचे कुल की , राजघरान क े ी म ी र ा न ी च ी जा ि त, क
मीरा ऐसी है.... वैस
े चमारोकीबितीमे जीाकरसाधुओ
है.....' ननद उदा न उ े सेबहतु समझायाः
"भाभी ! लोग िया बोलेगे? तुम राजकुल की रानी और गंदी बिती मे , चमारो की बिती मे जाती हो? चमडे का काम करनवेाले
चमार जाित के एक वयिित को गुर मानती हो ? उसको मतथा िेकती हो? उसके हाथ से पसाद लेती हो ? उसको एकिक देखते-देखते
आँखे बदं करके न जान िेया -िया सोचती और करती हो? यह िीक नही है। भाभी ! तुम सुधर जाओ।"
सासु नाराज, ससुर नाराज, देवर नाराज, ननद नाराज, कुिुंबीजन नाराज .... उदा न क े हाः
, ।
, , ।
, ।।
'मीरा ! अब तो मान जा। तुझे मै समझा रही हँू , सिखया समझा रही है, राणा भी कह रहा है, रानी भी कह रही है, सारा पिरवार
कह रहा है.... िफर भी तू ियो नही समझती है? इन संतो के साथ बैि -बैिकर तू कुल की सारी लाज गँवा रही है। ' अनुकम
।
।।
तब मीरा न उ े तरिदयाः
।
।।
'मै संतो के पास गयी तो मैन प े ी हरकाक, ससु राल का कुल तारा , मौसाल का और निनहाल का कुल भी तारा है। '
ुलतारा
मीरा की ननद पुनः समझाती हैः
! ।
।
! ।।
।
।
।
।
।।
उदा न म े ी र ा क ो ब ह त ु सम झ ा य ा ल े ि क नमीराकीशदाऔर
।
, , ।।
।
।।
'मीरा की बात अब जगत से िछपी नही है। साधु ही मेर माता-िपता है, मेर िवजन है, मेर िनहेी है , जानी है। मै तो अब संतो के
े े े
हाथ िबक गयी हूँ, अब मै केवल उनकी ही शरण हूँ। '
ननद उदा आिद सब समझा-समझाकर थक गये िक 'मीरा ! तेरे कारण हमारी इजजत गयी... अब तो हमारी बात मान ले।'
लेिकन मीरा भिित मे दढ ृ रही। लोग समझते है िक इजजत गयी िकंतु ईशर की भिित करन प े र आ ज त क िकसीकीलाज
है। संत नरिसंह मेहता न क े हाभीहैः
, ....
मूखण लोग समझते है िक भजन करन स े े इ जज त च ल ीजातीहैवाितवमेऐसानहीहै।
।
।। अनुकम
मीरा की िकतनी बदनामी की गयी, मीरा के िलए िकतन ष े ड य ि ं ि क य े ग ये लेिकनमीरा
गया। आज भी लोग बडे पेम से मीरा को याद करते है , उनके भजनो को गाकर अथवा सुनकर अपना हृदय पावन करते है।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
जैन धमण मे कुल 24 तीथणक ं र हो चुके है। उनमे एक राजकनया भी तीथणक ं र हो गयी िजसका नाम था मििलयनाथ।
राजकुमारी मििलका इतनी खूबसरत थी िक कई राजकुमार व राजा उसके साथ बयाह रचाना चाहते थे लेिकन वह िकसी को
पसंद नही करती थी। आिखरकार उन राजकुमारो व राजाओं न आ े प स म े ए क ज ु ि ह ो करमििलकाक
मििलका का अपहरण करन क े ीयोजनाबनायी।
मििलका को इस बात का पता चल गया। उसन र े ा ज क "आप लोगकमुोकहलवायािक
ुमारोवराजाओं झ पर कुबान है तो मै भी
आप सब पर कुबान हूँ। ितिथ िनिशत किरये। आप लोग आकर बातचीत करे। मै आप सबको अपना सौनदयण दे दँगूी। "
इधर मििलका न अ े प न ज े ै स ी ह ी ए क सु-चार
नदरमूिदन
ितणबपहले ं निशतकीगयीितिथसे
से वह
नवायीएवि अपना भोजन दो
उसमे डाल िदया करती थी। िजल हॉल मे राजकुमारी व राजाओं को मुलाकात देनी थी , उसी हॉल मे एक ओर वह मूितण रखवा दी गयी।
िनिशत ितिथ पर सारे राजा व राजकुमार आ गये। मूितण इतनी हबू हू थी िक उसकी ओर देखकर राजकुमार िवचार ही कर रहे थे
िक 'अब बोलेगी...अब बोलेगी....' इतन म े े म ि ि ल का ि व य आ ं 'वाितिवकराजावराज
यीतोसारे
मििलका हमारे सामन ब े ै ि ी है!'तोयहकौनहै
मििलका बोलीः "यह पितमा है। मुझे यही िवशास था िक आप सब इसको ही सचची मानेगेऔर सचमुच मे मैन इ े समेसचचाई
छुपाकर रखी है। आपको जो सौनदयण चािहए वह मैन इ े स मेछ"ुपाकररखाहै।
यह कहकर जयो ही मूितण का ढकन खोला गया, तयो ही सारा कक दगुणनध से भर गया। िपछले चार-पाच िदन से जो भोजन उसमे
डाला गया था उसके सड जान स े े ऐ स ी भ य क 'िछः-िछः...'
ं रबदबू िनकलरहीथीिकसब
कर उिे।
तब मििलका न व े ह ा आ ये ह ए ु "भाइयो
स भीराजाओं ! िजस
वराजकु मारोकोसमबोिधतकरते
अन, जल, दध ू , फल,
हएु कहाः
सबजी इतयािद को खाकर यह शरीर सुनदर िदखता है , मैन व े ेहीखाद -सामिगया चार-पाच िदनो से इसमे डाल रखी थी। अब ये सड कर
दगुणनध पैदा कर रही है। दगुणनध पैदा करन व े ा ल े इ न ख ा द ा न ो स े ब न ी हईु चमडीपरआ
बना कर सौनदयण देन व े ा ल ा ! भाइयो ! अगर
यहआतमािकतनासु आप इसका खयाल रखते तो आप भी इस चमडी के सौनदयण का
नदरहोगा
आकषणण छोडकर उस परमातमा के सौनदयण की तरफ चल पडते। " अनुकम
मििलका की सारगिभणत बाते सुनकर कुछ राजा एव र ं ा ज क ु म ारिभकु-िवकार
कहोगयेसेऔअपना
रकुछनक ेिपणड
ाम छुडाने
का संकिप िकया। उधर मििलका संतशरण मे पहँच ु गयी, तयाग और तप से अपनी आतमा को पाकर मििलयनाथ तीथणक ं र बन गयी।
अपना तन-मन परमातमा को सौपकर वह भी परमातममय हो गयी।
आज भी मििलयनाथ जैन धमण के पिसद उनीसवे तीथणक ं र के नाम से सममािनत होकर पूजी जा रही है।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सन् 1634 के फरवरी मास की घिना हैः जोधपुर नरेश का सेनापित आसकरण जैसलमेर िजले से गुजर रहा था। जेमल गाव मे
उसन द े े ख ा ि कग ा व क े ल ो - 'हाय
ग डरक ेमारेकष,
भागदौडमचारहे
हाय मुसीबत,
हैऔरपु
बचाओ....
काररहेहबचाओ....'
ै
आसकरण न स 'कही मुगलो न ग े ा
े ोचािक व क ो ल ू ि न -बेिंी नहीकरिदयाअथवािकसीकीब
ा तोआरभ की इजजत तो नही
लूिी जा रही है?' गाव के लोगो की चीख -पुकार सुनकर आसकरण वही रक गया।
इतन म े े उ स न द े े ख ा ि क द ो भ ै से आ प सम े लडरहीहै।
वाले की िहममत नही हो रही है िक पास मे जाय। सारे लोग चीख रहे थे। मैन द े े ख ीहैभैस,ोकीलडाई
बडी भयकं र होती है।
इतन म े े ए क क न य ा आ य ी । उ सक े ि स र प र पानीकेतीनघड
उतार िदये। अपनी साडी का पिलू कसकर बाधा और जैसे शेर हाथी पर िूि पडता है ऐसे ही उन भैसो पर िूि पडी। एक भैस का
सीग पकडकर उसकी गरदन मरोडन ल े ग ी । भ ै स उ स क े आ ग े रभ े गीलेिकन
ँ ानल
भाग गयी।
सेनापित आसकरण तो देखता ही रह गया िक इतनी कोमल और सुनदर िदखन व े ा ल ी क ! पूरगे गाव
नयामे जबकीशिितहै
की
रका के िलए एक कनया न क े म र क स ी औ र ल ड त ी ह ई ु भैसकोिगरािदया।जररयहदगुाक
उस कनया की गजब की सूझबूझ और शिित देखकर सेनापित आसकरण न उ े स क े ि प तासे उसकाह
का िपता गरीब था और एक सेनापित हाथ माग रहा है , िपता के िलए इससे बढकर खुशी की बात और िया हो सकती थी ? िपता ने
कनयादान कर िदया। इसी कनया न आ े ग े च ल क र वीरदगुअनु ादासजै
कम सेपुिरिकोजनमिदया।
एक कनया न प े ू र े ज े म ल ग -बेिियो
ावकोसु रिकतकरिदया।साथहीहजारोबह
को यह सबक िसखा िदया िक ू भयजनक
पिरििथितयो के आगे कभी घुिन न े िेको। लुचचे , लफंगो के आगे कभी घुिन न े िेको। शेष , सदाचारी, संत-महातमा से, भगवान और
जगदबंा से अपनी शिितयो को जगान क े ी य ो ग ि व द ा स ी ख ल ो । अपनीिछपीहई, ु श
भगवद भ ् ि ि त ए व ज ं ा न क े स ु नदरसंिकारोकािसंचनकरकेउनहेदेशकाएकउतमनाग
राजिथान मे तो आज भी बचचो को लोरी गाकर सुनाते है-
।
अपन ब , उदमी, धैयणवान, बुिदमान और शिितशाली बनान क े
े चचोकोसाहसी ा -िपता को करना चािहए। सभी
पयाससभीमाता
िशकको एव आ ं च ा -सदाचारसबढे
य ोंकोभीबचचोमे ंयम तथा उनका िवािथय मजबूत बन इ े स 'युपवकािशत
ह ेतुआशमसे ाधन सुरका' एवं
'योगासन' पुितको का पिन-पािन करवाना चािहए, तािक भारत पुनः िवशगुर की पदवी पर आसीन हो सके।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
।
।।
'िजस परमातमा से सवणभूतो की उतपित हईु है और िजससे यह सवण जगत वयापत है उस परमेशर के अपन ि े वाभािवककमो
पूजकर मनुषय परम िसिद को पापत होता है।'
( 18.46)
अपन ि े व ा भ ा ि व क क म ण र प ी प ु ष ,पोदारासवण
िफर वयापक
भले ही वह कोई बडा सेि हो या छोिा-सा गरीब वयिित।
शयामो नामक एक 13 वषीया लडकी की शादी हो गयी। साल भर बाद उसके पित की मृतयु हो गयी और वह लडकी 14 वषण की
छोिी सी उम मे ही िवधवा हो गयी। शयामो न स 'अपन ज
े ोचािक , पमादी या िवलासी बनाना – यह समझदारी नही है। '
े ीवनकोआलसी
अतः उसन द े सू र ी श ा द ी न क र क ेपिविजीवनजीनक -िपता को भीे ािनशयिकयाऔरइसक
राजी कर िलया। उसक ेिलएअपनम
े े ात
माता-िपता महागरीब थे।
शयामो सुबह जिदी उिकर पाच सेर आिा पीसती और उसमे से कुछ कमाई कर लेती। िफर नहा -धोकर थोडा पूजा-पाि आिद
करके पुनः सूत कातन ब े ै ि ज ा त ी ।इ स प क ा र उ स न े पनक
अ े ोकम
ततपरता से करती। ऐसा करन स े े उ स े न ी द भ ी ब ि ढ य ा आ त ी औ रथोडीदेरपूजाप
ऐसा करते-करते शयामो न द े े खा ि क-यहासे
जाते हैज, ोयािीआते
उनहे बडी पयास लगती। शयामो न आ े िापीसकर , सूत कातकर,
िकसी के घर की रसोई करके अपना तो पेि पाला ही , साथ ही करकसर करके जो धन एकिित िकया था , अपन प े ू रेजीवनकीउस
संपित को लगा िदया। पिथको के िलए कुआँ बनवान म े े।मुंग-भागलपु ेर र रोड पर ििथत वही 'पका कुआँ ', िजसे 'िपसजहारी कुआँ ' भी
कहते है, आज भी शयामो की कमणिता, तयाग, तपिया और परोपकािरता की खबर दे रहा है। अनुकम
पिरििथितया चाहे कैसी भी आये िकंतु इनसान उनसे हताश -िनराश न हो एव त ं त प र त ा पूवणकशुभकमणक
सेवाकायण भी पूजा पाि हो जाते है। जो भगवदीय सुख , भगवतसंतोष, भगवतशाित भित या योगी के हदृ य मे भिित भाव या योग से आते है ,
वे ही भगवतपीतयथण सेवा करन व े ा ले क ेहृदयमेपकिहोतेहै।
14 वषण की उम मे ही िवधवा हईु शयामो न द े ब ु ा र ा श ा द ी न क रकेअपनज े
िकया वरन् पिविता, संयम एव स ं द ा च ा र क ा प ा ल न क र त े हएु ततपरता
धरती पर नही है, पर उसकी कमणिता, परोपकािरता एव त ं य ा ग की य श ोगाथातोआजभीगायीजारहीहै।
काश ! लडने -झगडन औ े र क ल ह क रनवे! ाले
घर,
लोगउससे णापायेमे सेवा और िनहे की सिरता बहाये
कुिुमब वपेरसमाज
तो हमारा भारत और अिधक उनत होगा। गाव-गाव को गुरकुल बनाये .... घर-घर को गुरकुल बनाये ....
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
संयम मे अदभुत सामथयण है। िजसके जीवन मे संयम है , िजसके जीवन मे ईशरोपासना है। वह सहज ही मे महान हो जाता है।
आनदंमयी मा का जब िववाह हआ ु तब उनका वयििततव अतयत ं आभासंपन थी। शादी के बाद उनके पित उनहे संसार -वयवहार मे ले जाने
का पयास करते रहते थे िकंतु आनदंमयी मा उनहे संयम और सतसंग की मिहमा सुनाकर, उनकी थोडी सेवा करके, िवकारो से उनका मन
हिा देती थी।
इस पकार कई िदन बीते, हफते बीते, कई महीन ब े ी त ग ये ल े ि कन आ नदंमयीमानअ े पनपेित
आिखरकार कई महीनो के पशात् एक िदन उनके पित न क े हाः "तुमन म े ु झस े श ा द ी क ीहैिफरभीियोमुझ
हो?"
तब आनदंमयी मा न ज "शादी तो जरर की है लेिकन शादी का वाितिवक मतलब तो इस पकार हैः शाद अथात्
े वाबिदयाः
खुशी। वाितिवक खुशी पापत करन क े -पिी एक दस
ेिलएपित ू रे के सहायक बने न िक शोषक। काम -िवकार मे िगरना यह कोई शादी
का फल नही है।"
इस पकार अनक े युिितयो और अतयत ं िवनमता से उनहोन अ े प न प े ि तक ो सम झािदया।व
भी अपन प े ि त क ी ब ह त ु अ च छ ी त रहसे -गमणसभोजन बनाकर िखलाती। अनुेघक
ेवाकरतीथी।पितनौकरीकरक रआते
म तोगमण
वे घर भी धयानाभयास िकया करती थी। कभी-कभी ििोव पर दाल चढाकर, छत पर खुले आकाश मे चंदमा की ओर िािक
करते-करते धयानिथ हो जाती। इतनी धयानमगन हो जाती िक ििोव पर रखी हईु दाल जलकर कोयला हो जाती। घर के लोग डािते तो
चुपचाप अपनी भूल िवीकार कर लेती लेिकन अनदर से तो समझती िक 'मै कोई गलत मागण पर तो नही जा रही हँू ...' इस पकार उनके
धयान-भजन का कम चालू ही रहा। घर मे रहते हएु ही उनके पास एकागता का कुछ सामथयण आ गया।
एक रािि को वे उिी और अपन प े ि त क ो भ ी उ ि ा य ा । िफर िवयमं ह
िदयाः "महाकाली की पूजा करो।" उनके पित न उ े न क ा प ू ज न कर ि द या।आनदंमयीम
आनदंमयी मा को पणाम िकया।
तब आनदंमयी मा बोली- अब महाकाली को तो मा की नजर से ही देखना है न?"
पितः "यह िया हो गया।"
आनदंमयी मा- "तुमहारा कियाण हो गया।"
कहते है िक उनहोन अ े प न पे ि त क ो दी क ा देदीऔरसाधुबनाकरउतरकाशीकेआशममेभ
कैसी िदवय नारी रही होगी मा आनदंमयी ! उनहोन अपन प े ि त को भ ी प र म ा तमाकेरगं मे रगँ
करता था उसे भगवान की माग का अिधकारी बना िदया। इस भारतभूिम मे ऐसी भी अनक े सनािरया हो गयी ! कुछ वषण पूवण ही आनदंमयी
मा न अ े प न ा शर ी र त य ा ग ा ह ै । हिरदारमेएककरोडबीसलाखरपयेखच
ऐसी तो अनक े ो बगंाली लडिकया थी, िजनहोन श , पुिो को जनम िदया, पढाया-िलखाया और मर गयी। शादी करके
े ादीकी
संसार वयवहार चलाओ उसकी ना नही है, लेिकन पित को िवकारो मे िगराना या पिी के जीवन को िवकारो मे खतम करना , यह एक-दस ू रे
के िमि के रप मे एक -दस ू रे के शिु का कायण है । सं य म से सं त ित को जनम िदया यह अलग बात है । िकं तु िवषय - िवकारो मे फँ स मरने
के िलए थोडे ही शादी की जाती है।
बुिदमान नारी वही है जो अपन प े ि त को ब ह च य ण प ा ल न म े मददकरे और
पिी का मन हिाकर िनिवणकारी नारायण के धयान मे लगाये। इस रप मे पित पिी दोनो सही अथों मे एक दस ू रे के पोषक होते है ,
सहयोगी होते है। िफर उनक घर मे जो बालक जनम लेत है वे भी धुव , गौराग, रमण महिषण, रामकृषण परमहस या िववेकानदं जैसे बन
े े ं
सकते है।
मा आनदंमयी को संतो से बडा पेम था। वे भले पधानमंिी से पूिजत होती थी िकंतु िवय स ं ं त ोकोपूजकरआ
थी। शी अखणडानदंजी महाराज सतसंग करते तो वे उनके चरणो मे बैिकर सतसंग सुनती। एक बार सतसंग की पूणाहूित पर मा
आनदंमयी िसर पर थाल लेकर गयी। उस थाल मे चादी का िशविलंग था। वह थाल अखणडानदंजी को देते हएु बोली-
"बाबाजी ! आपन क े , दिकणा
थासु नायीहैले लीिजए।"
मा- "बाबाजी और भी दिकणा ले लो।"
अखणडानदंजीः "मा ! और िया दे रही हो?"
मा- "बाबाजी ! दिकणा मे मुझे ले लो न !"
अखणडानदंजी न ह े ा थ पकडिलयाएवक ं हाः
"ऐसी मा को कौन छोडे? दिकणा मे आ गयी मेरी मा।"
कैसी है भारतीय संिकृित ! अनुकम
हिरबाबा बडे उचचकोिि के संत थे एव म ं ा आ न दं म य ी क े स म क ालीनथे।वेए
"उनका िवािथय काफी लडखडा गया और मुझे उनकी सेवा का सौभागय िमला। उनहे रितचाप भी था और हृदय की तकलीफ भी थी।
उनका कष इतना बढ गया था िक नाडी भी हाथ मे नही आ रही थी। मैन म े ा 'मा ! अब बाबाजी हमारे बीच नही रहेगे।
क ोफोनिकयािक
5-10 िमनि के ही मेहमान है। ' मा न क े हाः'नही, नही। तुम 'शीहनुमानचालीसा' का पाि कराओ मै आती हूँ।'
मैन स े ो च ? मा को आते-गआते
ा िकमाआकरियाकरे ी आधा घणिा लगेगा। 'शीहनुमानचालीसा' का पाि शुर कराया गया और
िचिकतसा िवजान के अनुसार हिरबाबा पाच -सात िमनि मे ही चल बसे। मैन स े ा र ा प र ीकणिकया।उन
पिस (नाडी की धडकन) देखी। इसके बाद 'शीहनुमानचालीसा' का पाि करन व े ा लो क े आ ग े वानसेकहाि
िलए सामान इकटा करे। मै अब जाता हूँ।
घडी भर मा का इत ं जार िकया। मा आयी बाबा से िमलन। े हमन म े ासेक"हाः मा ! बाबाजी नही रहे... चले गये।"
माः "नही,नही.... चले कैसे गये ? मै िमलूँगी, बात करँगी। "
मै- "मा ! बाबा जी चले गये है।"
मा- "नही। मै बात करँगी। "
बाबाजी का शव िजस कमरे मे था, मा उस कमरे मे गयी। अंदर से कुणडा बदं कर िदया। मै सोचन ल े ग ा िककईिडिग
मेरे पास। मैन भ े , ेस
ी क ईक कई ेहै भवो से गुजरा हूँ। धूप मे बदले सफेद नही िकये है , अब मा दरवाजा बदं करके बाबाजी से
देखअनु
िया बात करेगी?
मै घडी देखता रहा। 45 िमनि हएु। मा न क े ु ण ड ा ख "बाबाजी
ोलाएवह ं स रा आगह माने गये
ँ तीहईुमेआयी।उनहोनक हाः है। वे
अभी नही जायेगे।"
मुझे एक धका सा लगा ! 'वे अभी नही जायेगे? यह आनदंमयी मा जैसी हिती कह रही है ! वे तो जा चुके है !
मै- "मा ! बाबाजी तो चले गये है।"
मा- "नही, नही.... उनहोन म े े र ा आ ग हमानिलयाहै " ।अभीनहीजायेगे।
मै चिकत होकर कमरे मे गया तो बाबाजी तिकये को िेका देकर बैिे -बैिे हस ं रहे थे। मेरा िवजान वहा तौबा पुकार गया ! मेरा
अह त ं ौबापु! कारगया
बाबाजी कुछ समय तक िदिली मे रहे। चार महीन बेीते , िफर बोलेः "मुझे काशी जाना है।"
मैन के हाः"बाबाजी ! आपकी तबीयत काशी जान क े े ि ल एट े न म े ब ैिनक े ेक"ािबलनहीहै।आपनहीजासक
बाबाजीः "नही... हमे जाना है। हमारा समय हो गया।"
मा न क े हाः"डॉििर ! इनहे रोको मत। इनहे मैन आ े ग ह क र क े च ा र म हीनते ककेिलएह
िनभाया है। अब इनहे मत रोको।" अनुकम
बाबाजी गये काशी। ििेशन से उतरे और अपन ि े न व ा स प र र ा त के द ोबजे पहँच
ु े।
े
छोडकर सदा क िलए अपन श े ा श तरपमे “ वयापगये।
‘बाबाजी वयाप गये’ ये शबद डॉििर न न े हीिलखे , ‘नशर’ आिद शबद नही िलखे लेिकन मै िजस बाबाजी के िवषय मे कह रहा हँू
वे बाबाजी इतनी ऊँचाईवाले रहे होगे।
कैसी है मिहमा हमारे महापुरषो की ! आगह करके बाबा जी तक को चार महीन क े े ि ल ए ! कैसी
रोकिलयामाआनद ं
िदवयता रही है हमारे भारत की सनािरयो की !
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
भौितक जगत मे भाप की शिित, िवदत ु की शिित, गुरतवाकषणण की शिित बडी मानी जाती है मगर आतमबल उन सब
शिितयो का संचालक बल है। आतमबल के सािनधय मे आकर पगंु पारबध को पैर आ जाते है , दैव की दीनता पलायन हो जाती है,
पितकूल पिरििथितया अनुकूल जो जाती है। आतमबल सवण िसिदयो का िपता है।
नारी शरीर िमलन स े े अ प नक?े लघु
ोअबलामानतीहो
तागंिथ मे उलझकर पिरििथितयो मे पीसी जाती हो? अपना जीवन-
दीन बना बैिी हो? तो अपन भ े ी त र स ु ष ु प त आ त म बल क ोजगाओ।शरीर
जीते है, अपन म े न क े ग ुल, ामहोकरजोजीते
वे ििी है और पकहै ृित के बनधन से पार अपन आ े त म िवरपकीपहचान
ली, अपन म े न क ी ग ु ल ा मी क ी ब े ि ड या त ,ोडकरिजनहोनफ
तुम तो शरीरे ेकदीहैवेपुर
से पार िनमणल आतमा हो।
जागो, उिो.... अपन भ े ी त र स , सवणकाल मे सवोतम आतमबल
ोये हएु आतमबलकोजगाओ।सवण देश को अिजणत करो।
आतमा-परमातमा मे अथाह सामथयण है। अपन क े ोदीन -हीन अबला मान बैिी तो जगत मे ऐसी कोई सता नही है जो तुमहे ऊपर उिा
सके। अपन आ े त म ि व र प मे प ि त ि ष त ह ोगयीतोतीनोलोकोमेभीऐसीकोईहितीनहीज
कशमीर मे तकणरि, नयायाचायण पिंडत रहते थे। उनहोन च े ा र , िजनसे बडे-बडे िवदान तक पभािवत थे।
प ुितकोकीरचनाकीथी
इतनी िवदता होते हएु भी उनका जीवन अतयत ं सीधा-सादा एव स ं र ल थ ा ।उ न -सादा जीवन-
क ीपिीभीउनहीकेसमानसरलएवस
ं
यापन करन व े ालीसाधवीथी।
अनुकम
उनके पास संपित के नाम पर एक चिाई , लेखनी कागज एव क ं ु छ प ु ि तक े त थादोजोडीवि
मागते न थे और न ही दान का खाते थे। उनकी पिी जगंल से मूँज कािकर लाती, उससे रिसी बनाती और उसे बेचकर अनाज-सबजी
आिद खरीद लाती। िफर भोजन बना कर पित को पेम से िखलाती और घर के अनय कामकाज करती। पित को तो यह पता भी न रहता
िक घर मे कुछ है या नही। वे तो बस , अपन अे धययन-मनन मे मित रहते।
ऐसी महान साधवी िििया भी इस भारतभूिम मे हो चुकी है। धीरे-धीरे पिंडत जी की खयाित अनय देशो मे भी फैलन ल े गी।अनय
देशो के िवदान लोग आकर उनके देख कशमीर के राजा शंकरदेव से कहन ल े गेः
"राजन ! िजस देश मे िवदान, धमातमा, पिविातमा दःुख पाते है , उस देश के राजा को पाप लगता है। आपके देश मे भी एक ऐसे
पिविातमा िवदान है, िजनके पास खान प े ी न क े , ाििकानानहीहै
िफर भी आप उनकी कोई सँभाल नही रखते?"
यह सुनकर राजा िवय प ं ि ं ड त ज ी क ी "भगवन्
क ुिियामे पहँच ! आपके पास कोई
ु गया।हाथजोडकरउनसे पाथणन
कमी तो नही है?"
पिंडतजीः "मैन ज े ो , उनमे मुझहे तो
च ारगनथिलखे ै कोई कमी नही िदखती। आपको कोई कमी लगती हो तो बताओ।"
राजाः "भगवन् ! मै शबदो की, गनथ की कमी नही पूछता हूँ, वरन् अन जल विि आिद घर के वयवहार की चीजो की कमी पूछ
रहा हँू।"
पिंडतजीः "उसका मुझे कोई पता नही है। मेरा तो केवल एक पभु से नाता है। उसी के िमरण मे इतना तिलीन रहता हूँ िक मुझे
घर का कुछ पता ही नही रहता। "
जो भगवान की िमृित मे तिलीन रहता है, उसके दार पर समाि िवय आ ं जाते है , िफर भी उसे कोई परवाह नही रहती।
राजा न ख े ू ब ि व न म भावसे "भगवन् ! िजस
पुनःपाथण देशं मेहाःपिविातमा दःुखी होते है , उस देश का राजा पाप का
नाकीएवक
भागी होता है। अतः आप बतान क े ी क ृ प ा करे?" िकमैआपकीसेवाकरँ
जैसे ही पिंडतजी न य े े व च न स ु न ि े क त ु र त ं अ पनीचिा
उिाते हएु अपनी पिी से कहाः "चलो देवी ! यिद अपन य े ह ा र ह न स े े इ , इस राजय को लाछन
नराजाकोपापकाभागीहोनापडताह
लगता हो तो हम लोग कही ओर चले। अपन र े ह न स े ,ेिकसीकोदःयह तो िीक ु खहोनही है । "
यह सुनकर राजा उनके चरणो मे िगर पडा एव बं ोलाः "भगवन् ! मेरा यह आशय न था, वरन् मै तो केवल सेवा करना चाहता
था।"
िफर राजा पिंडत जी से आजा लेकर उनकी धमणपिी के समक जाकर पणाम करते हएु बोलाः "मा ! आपके यहा अन -जल-
वििािद िकसी भी चीज की कमी हो तो आजा करे, तािक मै आप लोगो की कुछ सेवा कर सकू। ँ " अनुकम
पिंडत जी की धमणपिी भी कोई साधारण नारी तो थी नही। वे भगवतपरायण नारी थी। सच पूछो तो नारी के रप मे मानो साकात्
नारायणी ही थी। वे बोली- "निदया जल दे रही है, सूयण पकाश दे रहा है, पाणो के िलए आवशयक पवन बह ही रही है एव स ं बकोसता
देनवेाला वह सवणसताधीश परमातमा हमारे साथ ही है , िफर कमी िकस बात की? राजन ! शाम तक का आिा पडा है, लकिडया भी दो िदन
जल सके, इतनी है। िमचण-मसाला भी कल तक का है। पिकयो के पास तो शाम तक का भी ििकाना नही होता , िफर भी वे आनदं से जी
लेते है। मेरे पास तो कल तक का है। राजन ! मेरे विि अभी इतन फ े ि े न ह ी िकमै?उिबछान क े ूँ े
नहे पहननसक िलएचिाईए
ओढन क े े ि ल....
एचादरभीहै । कहूँ? मेरी चूडी अमर है और सबमे बसे हएु मेरे पित का तततव मुझमे भी धडक रहा है। मुझे
और मै िया
अभाव िकस बात का, बेिा !"
पिंडतजी की धमणपिी की िदवयता को देखकर राजा की भी गदगद हो उिा एव च ं र "मा ! आप गृिहणी है िक
णोमेिगरकरबोलाः
तपििवनी, यह कहना मुिशकल है। मा ! मै बडभागी हूँ िक आपके दशणन का सौभागय पा सका। आपके चरणो मे मेरे कोिि -कोिि पणाम है
!"
जो लोग परमातमा का िनरत ं र िमरण करते रहते है , उनहे वेश बदलन क े , जररत भी नही होती।
ी फ ुसणतहीनहीहोती
जो परमातमा के िचंतन मे तिलीन है , उनहे संसार के अभाव का पता ही नही होता। कोई समाि आकर उनका आदर करे तो उनहे
हषण नही होता, उसके पित आकषणण नही होता। ऐसे ही यिद कोई मूखण आकर अनादर कर दे तो शोक नही होता , ियोिक हषण-शोक तो
वृित से भासते है। िजनकी परमातमा के शरण चली गयी है , उनहे हषण-शोक, सुख-दःुख के पसंग सतय ही नही भासते तो िडगा कैसे सकते
है। उनहे अभाव कैसे िडगा सकता है ? उनके आगे अभाव का भी अभाव हो जाता है।
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मा अंजना न त े प क र क े ह नु मा न जै से प ुिकोपायाथा।व
थी, िजसके फलिवरप हनुमानजी मे शीराम -भिित का पादभ ु ाव हो गया। आगे चलकर वे पभु के अननय सेवक के रप मे पखयात हएु –
यह तो सभी जानते है।
भगवान शी राम रावण का वध करके मा सीता , लकमण, हनुमान, िवभीषण, जाबवत आिद के साथ अयोधया लौि रहे थे। मागण मे
हनुमान जी न श े ी र ा म ज ी "पभु ! े दअगर
स े अपनीमाक आप आजा दे तो मै माता जी के चरणो मे मतथा िेक
शणन कीआजामागीिक
आऊँ। "
े हाः"हनुमान ! िया वे केवल तुमहारी ही माता है ? िया वे मेरी और लखन की माता नही है? चलो, हम भी चलते है।"
शीराम न क
पुषपक िवमान िकिषकंधा से अयोधया जाते -जाते काचनिगिर की ओर चल पडा और काचनिगरी पवणत पर उतरा। शीरामजी िवयं
सबके साथ मा अंजना के दशणन के िलए गये।
हनुमानजी न द े ौ ड क र ग द ग द क ं ि ए व अ ं श ु पूिरतनि े ोसे म
अतयत ं हिषणत होकर हनुमान का मितक सहलान ल े गी।
मा का हदृ य िकतना बरसता है यह बेिे को कम ही पता होता है। माता -िपता का िदल तो माता-िपता ही जाने ! अनुकम
मा अंजना न प े ु िक ो ह ृ दय स े ल गा ि ल य ा।हनु 'मा ! मयेानजीनम े ाकोअपनस
शीरामचनदजी े ाथयेल
है, ये मा सीताजी है और ये लखन भैया है। ये जाबवत ं जी है , ये मा सीताजी है और ये लखन भैया है। ये जाबवत जी है .... आिद आिद।
भगवान शीराम को देखकर मा अंजना उनहे पणाम करन ज े ा ह ी र "मा ! मै दशरथपु
ह ीथीिकशीरामजीनक े हाःि राम आपको
पणाम करता हँ। ू "
मा सीता व लकमण सिहत बाकी के सब लोगो न भ े ी उ न क ो प ण ा म ि क या।माअ
एव स ं जल न ि े ोसे"हबेनुिमाानजीसे हनुमानक!हाःआज मेरा जनम सफल हआ ु । मे र ा मा कहलाना सफल हआु । मे र ा दध ू तूने
साथणक िकया। बेिा ! लोग कहते है िक मा के ऋण से बेिा कभी उऋण नही हो सकता लेिकन मेरे हनुमान ! तू मेरे ऋण से उऋण हो
गया। तू तो मुझे मा कहता ही है िकंतु आज मयादा पुरषोतम शीराम न भ े ीमु'मा' झे कहा है ! अब मै केवल तुमहारी ही मा नही , शीराम,
लखन, शिुघ और भरत की भी मा हो गयी, इन असंखय पराकमी वानर-भालुओं की भी मा हो गयी। मेरी कोख साथणक हो गयी। पुि हो
तो तेरे जैसा हो िजसन अ े प न ा सव ण ि व भ ग व ा नक े च र णोमे समिपणतक
कृताथण िकया। "
हनुमानजी न ि े फ र स े अप न ी म ा क ेशीचरणोमे "मा !मपभु
तथािेजीकाऔरहाथजोडते
का राजयािभषेकहएुहोनव कहाः े ाला
था परत ं ु मंथरा न क े ै क , िजससे पभुजी को 14 वषण का बनवास एव भ
ेयीकोउलिीसलाहदी ं र त क ोराजगदीिमलीराजग
करके भरतजी उसे शीरामजी को लौिान क े े ि ल ए आ य े ल े ि क न ि प त ाकेमनोरथ
लौिे।
मा ! दष ु रावण की बहन शूपणणखा पभुजी से िववाह के िलए आगह करन ल े ग ी ि कं तुप, भुलखन
जीउसकीबातोमे
जी नह
भी नही आये और लखन जी न श े ू प ण ण खा क े ना क क ा न क ािकरउसे दे िद
रावण बाहण का रप लेकर मा सीता को हरकर ले गया।
करणािनधान पभु की आजा पाकर मै लंका गया और अशोक वाििका मे बैिी हईु मा सीता का पता लगाया तथा उनकी खबर
पभु को दी। िफर पभु न स े म ु द परपु-लभालु बध ँ ओ
वायाऔरवानर
ं को साथ लेकर राकसो का वध िकया और िवभीषण को लंका का
राजय देकर पभु मा सीता एव ल ं ख न "
क े साथअयोधयापधाररहे है।
अचानक मा अंजना कोपायमान हो उिी। उनहोन ह े न ु म ा न "हि जा, मेरे सामन।
कोधकामारिदयाऔरकोधसिहतकहाः े तूने
वयथण ही मेरी कोख से जनम िलया। मैन त े ु झ े व य थ ण ह ी अ प न ा द ध ू िपलाया।तू ?" नमे
शीराम, लखन भैयासिहत अनय सभी आशयणचकित हो उिे िक मा को अचानक िया हो गया ? वे सहसा कुिपत ियो हो उिी ?
अभी-अभी ही तो कह रही थी िक 'मेरे पुि के कारण मेरी कोख पावन हो गयी .... इसके कारण मुझे पभु के दशणन हो गये ....' और सहसा
इनहे िया हो गया जो कहन ल े गीिक 'तून म े े रादध' ू अनु
लजायाहै
कम ।
हनुमानजी हाथ जोडे चुपचाप माता की ओर देख रहे थे। .... माता सब तीथों की
पितिनिध है। माता भले बेिे को जरा रोक-िोक दे लेिकन बेिे को चािहए िक नतमितक होकर मा के कडवे वचन भी सुन ले। हनुमान जी
के जीवन से यह िशका अगर आज के बेिे -बेििया ले ले तो वे िकतन म े ह !
ानहोसकते है
मा की इतनी बाते सुनते हएु भी हनुमानजी नतमितक है। वे ऐसा नही कहते िक 'ऐ बुिढया ! इतन स े ा र े लोगोकेसामनत े
इजजत को िमटी मे िमलाती है? मै तो यह चला....'
आज का कोई बेिा होता तो ऐसा कर सकता था िकंतु हनुमानजी को तो मै िफर-िफर से पणाम करता हूँ। आज के युवान -
युवितया हनुमानजी से सीख ले सके तो िकतना अचछा हो?
मेरे जीवन मे मेरे माता-िपता के आशीवाद और मेरे गुरदेव की कृपा न िेया -िया िदया है उसका मै वणणन नही कर सकता हूँ।
और भी कइयो के जीवन मे मैन द े े ख ा ह ै ि क ि , िपता
ज नहोनअ
क े े िदल
पनीमाताक
की दआेिुदलकोजीताहै
पायी है और सदगुर के हृदय
से कुछ पा िलया है उनके िलए ििलोकी मे कुछ भी पाना कििन नही रहा। सदगुर तथा माता -िपता के भित िवगण के सुख को भी तुचछ
मानकर परमातम-साकातकार की योगयता पा लेते है।
मा अंजना कहे जा रही थी- "तुझे और तेरे बल पराकम को िधकार है। तू मेरा पुि कहलान क े े ल ा य कहीनहीहै।
पीन व े ा ल े प ुिनप?े भुअरे , रावण को लंकासिहत समुद मे डालन म े े
कोशमिदया त ू स म थ ण थ ा ।तेरेजीिवत
सेतु-बध ं न और राकसो से युद करन क े ा क ष उ ि ा न ा प ड ा।तू! नअबमेेरादध झे अपना मुँह मत
तूू मुलिजजतकरिदया।िधकारहै त
िदखाना।"
हनुमानजी िसर झुकाते हएु कहाः "मा ! तुमहारा दध ू इस बालक न न े ! मुझे लं।कमाा भेजन व
ह ीलजायाहै े ा ल ोनक े हाथािक
तुम केवल सीता की खबर लेकर आओगे और कुछ नही करोगे। अगर मै इससे अिधक कुछ करता तो पभु का लीलाकायण कैसे पूणण
होता? पभु के दशणन दसू रो को कैसे िमलते ? मा ! अगर मै पभु-आजा का उिलंघन करता तो तुमहारा दध ू लजा जाता। मैन प े भुकीआजा
का पालन िकया है मा ! मैन त े े र ादध ू " नहीलजायाहै।
तब जाबवत ं जी न क े हाः"मा ! कमा करे। हनुमानजी सतय कह रहे है। हनुमानजी को आजा थी िक सीताजी की खोज करके
आओ। हम लोगो न इ े न क े स े व ा क ा य ण ब ा ध र ख ेथे।?अगरनहीबाधते
पभु के िदवय तोपभुकी
कायण मे अनय वानरो को जुडन क े ा अवसरक ? ैस
दष रावण का उदार कैसे होता और पभु की िनमणल कीितण गा -गाकर लोग अपना
ेु िमलता
िदल पावन कैसे करते ? मा आपका लाल िनबणल नही है लेिकन पभु की अमर गाथा का िवितार हो और लोग उसे गा-गाकर पिवि हो,
इसीिलए तुमहारे पुि की सेवा की मयादा बध ँ ी हईु थी।"
शीरामजी न क े हाः"मा ! तुम हनुमान की मा हो और मेरी भी मा हो। तुमहारे इस सपूत न त े ु म ह ारादध! इसने
ू नहीलजायाह
तो केवल मेरी आजा का पालन िकया है , मयादा मे रहते हएु सेवा की है। समुद मे जब मैनाक पवणत हनुमान को िवशाम देन क े ेिलएउभर
आया तब तुमहारे ही सुत न क े हाथा। अनुकम
।।
मेरे कायण को पूरा करन स े े प ू व ण त ो इ से! ितुवशामभीअचछानहीलगताहै
म इसे कमा कर दो।" ।मा
रघुनाथ जी के वचन सुनकर माता अंजना का कोध शात हआ ु । िफर माता न े
क हाः
"अचछा मेरे पुि ! मेरे वतस ! मुझे इस बात का पता नही था। मेरा पुि , मयादा पुरषोतम का सेवक मयादा से रहे – यह भी
उिचत ही है। तून म े े र , वतस
ादध !"
ू नहीलजायाहै
इस बीच मा अंजना न द े े ख ि ल य ा ि क ल क मणक 'अंजे चना
ेहरे पमारकुको
छ रेइतना
खाएउ ँ भररहीहै िक दे ध
गवण है अपन ू
पर?' मा अंजना भी कम न थी। वे तुरत ं लकमण के मनोभावो को ताड गयी।
"लकमण ! तुमहे लगता है िक मै अपन द े ध ू क ी ,अिधकसराहनाकररहीह
िकंतु ऐसी बात नही है। ूँ तुम िवय ह ं ीदेख"लो। ऐसा
कहकर मा अंजना न अ े प न ी छ ा त ी क ो द ब ा कर ! लकमण भैय
द ध ू कीधारसामनव े ाले
ा पवणतपर
देखते ही रह गये। िफर मा न ल े कमणसे "मेकराहाः
यही दध ू हनुमान न ि े प य ा ह ै । मेरादध ू "कभीवयथणनहीजासकता।
हनुमानजी न प े ु न ः म ा के चर ण ो मेमतथािे "बेिक ! सदा ज
ा ा।माअं कोे शीचरणो
पभुनानआ शीवाददेतमेेहएुरहना।
कहाः
तेरी मा ये जनकनिंदनी ही है। तू सदा िनषकपि भाव से अतयत ं शदा-भिितपूवणक परम पभु शी राम एव म ं ा स ीताजीकीसेवाक
रहना।"
कैसी रही है भारत की नािरया , िजनहोन ह े न ु म ा न ज ी ज ै स े प ुिोकोजनमही
गये संिकारो पर भी उनका अिल िवशास रहा। आज की भारतीय नािरया इन आदशण नािरयो से पेरणा पाकर अपन ब े चचोमेहनुमानजी
जैसे सदाचार, संयम आिद उतम संिकारो का िसंचन करे तो वह िदन दरू नही, िजस िदन पूरे िवश मे भारतीय सनातन धमण और संिकृित
की िदवय पताका पुनः लहरायेगी।
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अनुकम