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प्रथम सं �रण – १,००० प्रितयाँ

प्रका�शत २८ फरवरी २०२३


फा�ुन, शु�प�, रंगीली होली, नवमी, २०७९ िवक्रमी स�त्

ाि-ान
मान मिर, बरसाना

फोन – ९९२७३३८६६६

एवं

े वाल ालय
ीराधा खंडल

अठखा बाजार, वृावन

फोन – ९९९७९७७५५१

ी मा नम ि र सेवा सं ान
गरवन, बरसाना, मथरु ा (उ..)

फोन – ९९२७३३८६६६

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�ी रमे श बाबा जी महाराज

गुण-ग�रमागार, क�णा-पारावार, युगललब्ध-साकार इन िवभूित


िवशेष गु��वर पूज्य बाबा�ी के िवलक्षण िवभा-वैभव के वणर्न का
आ�न्त कहाँ से हो यह िवचार कर मन्द मित क� गित िवथिकत हो जाती
है ।
िविध ह�र हर किव कोिवद बानी ।
कहत साधु मिहमा सकु चानी ॥
सो मो सन किह जात न कै से ।
साक बिनक मिन गु न गन जै से ॥
(�ीरामच�रतमानस, बालकाण्ड -३क)
पुनरिप
जो सु ख होत गोपालिह गाये ।
सो सु ख होत न जप तप क�न्हे , कोिटक तीरथ न्हाये ।
(सूर-िवनयपि�का)
अथवा
रस सागर गोिवन्द नाम है रसना जो तू गाये ।
तो जड़ जीव जनम क� ते री िबगड़ी ह� बन जाये ॥
जनम-जनम क� जाये मिलनता उ�वलता आ जाये ॥
(बाबा�ी �ारा रिचत 'बरसाना' से सं�हीत)
कथनाशय इस पिव� च�र� के लेखन से िनज कर व िगरा पिव�
करने का स्वसुख व जनिहत का ही �यास है ।
अध्येतागण अवगत ह� इस बात से िक यह 'लेख' मा� सांकेितक
प�रचय ही दे पाएगा अशेष ��ास्पद (बाबा�ी) के िवषय में ।
सवर्गणु समिन्वत इन िदव्य-िवभूित का �कषर्-आषर् जीवन-च�र� कह�
लेखन-कथन का िवषय है?
एक
"करनी क�णािसन्धु क� मु ख कहत न आवै "
(सूर-िवनयपि�का)
मिलन अन्तस् में िस� सन्त� के वास्तिवक वृ� को यथाथर् �प से
समझने क� क्षमता ही कहाँ, िफर लेखन क� बात तो अतीव दूर है तथािप
इन लोक-लोकान्तरो�र िवभूित के च�रतामृत क� �वणािभलाषा ने
असंख्य� के मन को िनके तन कर िलया, अतएव सावर्भौम महत् वृ� को
शब्दब� करने क� धृ�ता क� ।
तीथर्राज �याग को िजन्ह�ने जन्मभूिम बनने का सौभाग्य-दान
िदया । माता-िपता के एकमा� पु� होने से उनके िवशेष वात्सल्यभाजन
रहे । ई�रीय-योजना ही मूल हेतु रही आपके अवतरण में । दीघर्काल
तक अवत�रत िदव्य दम्पित स्वनामधन्य �ी बलदेव �साद शु� ('शु�
भगवान्' िजन्हें लोग कहते थे) एवं �ीमती हेमे�री देवी को सन्तान-
सुख अ�ाप्य रहा, सन्तान-�ाि� क� इच्छा से कोलकाता के समीप
तारके �र में जाकर आतर् पुकार क�, प�रणामतः सन् १९३० पौष मास
क� स�मी को राि� ९:२७ बजे कन्यारत्न �ी तारके �री (दीदी जी) का
अवतरण ह�आ, अनन्तर दम्पि� को पु�-कामना ने व्यिथत िकया ।
पु�-�ाि� क� इच्छा से किठन या�ा कर रामे�र पह�ँचे, वहाँ जला� त्याग
कर िशवाराधन में त�ीन हो गये, पु� कामेि� महायज्ञ िकया । आशुतोष
हैं रामे�र �भु, उस ती�ाराधन से �स� हो तृतीय राि� को माता जी
को सवर्जगि�वासावास होने का वर िदया । िशवाराधन से सन् १९३८
पौष मास कृ ष्ण पक्ष क� स�मी ितिथ को अिभिजत मुह�तर् मध्या� १२
बजे अ�ुत बालक का ललाट देखते ही िपता (िव� के �ख्यात व �काण्ड
ज्योितषाचायर्) ने कह िदया –
“यह बालक गृहस्थ �हण न कर नैि�क ��चारी ही रहेगा, इसका
�ादुभार्व जीव-जगत के िनस्तार िनिम� ही ह�आ है ।”
वही ह�आ, गु�-िशष्य प�रपाटी का िनवार्हन करते ह�ए िशक्षाध्ययन
को तो गये िकन्तु बह� अल्पकाल में अध्ययन समापन भी हो गया ।

दो
"अल्पकाल िव�ा बह� पायी"
गु�जन� को गु� बनने का �ेय ही देना था अपने अध्ययन से ।
सवर्क्षे�-कु शल इस �ितभा ने अपने गायन-वादन आिद लिलत
कलाओं से िवस्मयािन्वत कर िदया बड़े-बड़े संगीत-मातर्ण्ड� को ।
�यागराज को भी स्वल्पकाल ही यह सािनध्य सुलभ हो सका "तीथ�
कु वर्िन्त तीथार्िन" ऐसे अिचन्त्य शि� सम्प� असामान्य पु�ष का ।
अवतरणो�ेश्य क� पूितर् हेतु दो बार भागे जन्मभूिम छोड़कर �जदेश क�
ओर िकन्तु माँ क� पकड़ अिधक मजबूत होने से सफल न हो सके । अब
यह तृतीय �यास था, इिन्�यातीत स्तर पर एक ऐसी �ि�या सि�य ह�ई
िक तृणतोड़नवत् एक झटके में सवर्त्याग कर पुनः गित अिवराम हो गई
�ज क� ओर ।
िच�कू ट के िनजर्न अरण्य� में �ाण-परवाह का प�रत्याग कर
प�र�मण िकया; सूयर्वंशमिण �भु �ीराम का यह वनवास-स्थल
'पूज्यपाद' का भी वनवास-स्थान रहा । “स रिक्षता रक्षित यो िह गभ�”
इस भावना से िनभ�क घूमे उन िहंसक जीव� के आतंक संभािवत
भयानक वन� में ।
आराध्य के दशर्न को तृषािन्वत नयन, उपास्य को पाने के िलए
लालसािन्वत �दय अब बार-बार 'पाद-प��' को �ीधाम बरसाने के
िलए ढके लने लगा, बस पह�चँ गए बरसाना । मागर् में अन्तस् को झकझोर
देने वाली अनेकानेक िवलक्षण िस्थितय� का सामना िकया । मागर् का
असाधारण घटना संघिटत वृ� य�िप अत्यिधक रोचक, �ेरक व पुष्कल
है तथािप इस िदव्य जीवन क� चचार् स्वतन्� �प से िभ� �न्थ के िनमार्ण
में ही सम्भव है, अतः यहाँ तो संिक्ष� चचार् ही है । बरसाने में आकर
तन-मन-नयन आध्याित्मक मागर्दशर्क के अन्वेषण में तत्पर हो गए ।
�ीजी ने सहयोग िकया एवं िनरन्तर राधारससुधा िसन्धु में अविस्थत,
राधा के प�रधान में सुरिक्षत, गौरवणार् क� शु�ो�वल कािन्त से
आलोिकत-अलङ्कृ त युगल सौख्य में आलोिडत, नाना
पुराणिनगमागम के ज्ञाता, महावाणी जैसे िनगूढ़ात्मक �न्थ के

तीन
�ाक�कतार् “अनन्त �ी सम्प� �ी �ी ि�याशरण जी महाराज” से
िशष्यत्व स्वीकार िकया ।
�ज में भािमनी का जन्म स्थान 'बरसाना', बरसाने में भािमनी क�
िनज कर िनिमर्त 'ग�र-वािटका' "बीस कोस वृन्दािविपन पुर वृषभानु
उदार, तामें गहवर वािटका जामें िनत्य िवहार" और उस ग�रवन में भी
महासदाशया मािननी का मनभावन मान-स्थान '�ीमानमिन्दर' ही
मानद (बाबा�ी) को मनोनुकूल लगा । 'मानगढ़' ��ाचलपवर्त क� चार
िशखर� में से एक महान िशखर है । उस समय तो यह 'बीहड़ स्थान'
िदन में भी अपनी िवकरालता के कारण िकसी को मिन्दर-�ा�ण में न
आने देता । मिन्दर का आन्त�रक मूल-स्थान चोर� को चोरी का माल
िछपाने के िलए था । चौरा�गण्य क� उपासना में इन िवभूित को भला
चोर� से क्या भय?
भय को भगाकर भावना क� – "तस्कराणां पतये नमः" – चोर� के
सरदार को �णाम है, पाप-प� के चोर को भी एवं रकम-बैंक के चोर
को भी । '�जवासी चोर भी पूज्य हैं हमारे' इस भावना से भािवत हो
�ोहाहर्ण� (�ोह के योग्य) को भी कभी �ोह-�ि� से न देखा, अ�े�ा के
जीवन्त स्व�प जो ठहरे । िफर तो शनैः-शनैः िवभूित क� िव�म�ा ने
स्थल को जा�त कर िदया, अध्यात्म क� िदव्य सुवास से प�रव्या� कर
िदया ।
जग-िहत-िनरत इस िदव्य जीवन ने असंख्य� को आत्मो�ित के
पथ पर आ�ढ़ कर िदया एवं कर रहे हैं । �ीम�ैतन्यदेव के प�ात्
किलमलदलनाथर् नामामृत क� निदयाँ बहाने वाली एकमा� िवभूित के
सतत् �यास से आज ३२ हजार से अिधक गाँव� में �भातफे री के
माध्यम से नाम िननािदत हो रहा है । �ज के कृ ष्णलीला सम्बिन्धत िदव्य
वन, सरोवर, पवर्त� को सुरिक्षत करने के साथ-साथ सह�� वृक्ष
लगाकर सुसि�त भी िकया । अिधक पुरानी बात नह� है, आपको स्मरण
करा दें - सन् २००९ में “�ीराधारानी �जया�ा” के दौरान �जयाि�य�
को साथ लेकर स्वयं ही बैठ गये आमरण अनशन पर इस संकल्प के
साथ िक जब तक �ज-पवर्त� पर हो रहे खनन �ारा आघात को सरकार
चार
रोक नह� देगी, मुख में जल भी नह� जायेगा । समस्त �जया�ी भी
िन�ापूवर्क अनशन िलए ह�ए ह�रनाम-संक�तर्न करने लगे और उस समय
जो उ�ाम गित से नृत्य-गान ह�आ; नाम के �ित इस अटू ट आस्था का
ही प�रणाम था िक १२ घंटे बाद ही िवजयप� आ गया । िदव्य िवभूित
के अपूवर् तेज से सा�ाज्य-स�ा भी नत हो गयी । गौवंश के रक्षाथर् गत
१५ वषर् पूवर् माताजी गौशाला का बीजारोपण िकया था, देखते ही देखते
आज उस वट बीज ने िवशाल त� का �प ले िलया, िजसके आतप�
(छाया) में आज ५५,००० से अिधक गाय� का मातृवत् पालन हो रहा
है । सं�ह-प�र�ह से सवर्था परे रहने वाले इन महापु�ष क� 'भगव�ाम'
ही एकमा� सरस सम्पि� है ।
परम िवर� होते ह�ए भी बड़े-बड़े कायर् सम्पािदत िकये इन �ज-
संस्कृ ित के एकमा� संरक्षक, �व�र्क व उ�ारक ने । गत ७० वष� से
�ज में क्षे�सन्यास (�ज के बाहर न जाने का �ण) िलया एवं इस सु�ढ़
भावना से िवराज रहे हैं । �ज, �जेश व �जवासी ही आपका सवर्स्व
हैं । असंख्य जन आपके साि�ध्य-सौभाग्य से सुरिभत ह�ये, आपके
िवषय में िजनके िवशेष अनुभव हैं, िवलक्षण अनुभिू तयाँ हैं, िविवध िवचार
हैं, िवपुल भाव-सा�ाज्य है, िवशद अनुशीलन हैं; इस लोको�र
व्यि�त्व ने िवमुग्ध कर िदया है िववेिकय� का �दय । वस्तुतः
कृ ष्णकृ पालब्ध पुमान् को ही गम्य हो सकता है यह व्यि�त्व । रसोदिध
के िजस अतल-तल में आपका सहज �वेश है, यह अितशयोि� नह�
िक रस-ज्ञाताओं का �दय भी उस तल से अस्पृ� ही रह गया ।
'आपक� आन्त�रक िस्थित क्या है' यह बाहर क� सहजता, सरलता
को देखते ह�ए सवर्था अगम्य है । आपका अन्तरंग लीलानन्द, सुग�ु
भावोत्थान, युगल-िमलन का सौख्य इन गहन भाव-दशाओं का
अनुमान आपके सृिजत सािहत्य के पठन से ही सम्भवहै । आपक�
अनुपम कृ ितयाँ – �ी रिसया रसे�री, स्वर वंशी के शब्द नूपरु के ,
�जभावमािलका, भ��य च�र� इत्यािद �दय�ावी भाव� से भािवत
िवलक्षण रचनाएँ हैं ।

पाँच
आपका �ैकािलक सत्संग अनवरत चलता ही रहता है । साधक-
साधु-िस� सबके िलए सम्बल हैं आपके �ैकािलक रसा�र्वचन । दैन्य
क� सुरिभ से सुवािसत अ�ुत असमोध्वर् रस का �ो�वल पु� है यह िदव्य
रहनी, जो अनेकानेक पावन आध्यात्मास्वाद के लोभी मधुप� का
आकषर्ण के न्� बन गयी, सैकड़� ने छोड़ िदए घर-�ार और अ�ाविध
शरणागत हैं; ऐसा मिहमािन्वत-सौरभािन्वत वृ� िवस्मयािन्वत कर देने
वाला स्वाभािवक है ।
रस-िस�-सन्त� क� परम्परा इस �जभूिम पर कभी िविच्छ� नह�
हो पाई । �ीजी क� यह 'ग�र-वािटका' जो कभी पुष्पिवहीन नह� होती,
शीत हो या �ीष्म, पतझड़ हो या पावस, एक न एक पुष्प तो आराध्य
के आराधन हेतु �स्फु िटत ही रहता है । आज भी इस अजरामर,
सुन्दरतम, शुिचतम, मह�म, पुष्प (बाबा�ी) का जग 'स्विस्तवाचन'
कर रहा है । आपके अप�रसीम उपकार� के िलए हमारा अनवरत वन्दन
अनुक्षण �णित भी न्यून है ।

छः
ीराधारस

मांक ु
पदानमिणका पृांक
१. दोहे ........................................................ १ - १४
२. सवैय े ..................................................१५ - २९
३. कीरत महारानी, वृषभान ु आिद गोप-गोपी................३०
४. पायौ बड़े भािगिन स आसरौ िकशोरीजू कौ.............३०

५. मेरे ग-माता-िपता लाड़ली िकशोरी एक................३०
ु परयौ नवल िकशोरी जू कौ.................३१
६. सहज सभाव
७. ाम तन ाम मन ाम ही हमारो धन...............३१

८. टे ढ़े ँ सर ु कहे बैन...................३२
न ैन, टे ढ़े मख
ु ु ट देख, चिका की चटक देख...............३२
९. माथे प ै मक
१०. टे ढ़ी चिका है याकी कुटी िचतवन है टे ढ़ी.............३२
११. छैल है छबीला महाबली महीपित है...................३३
१२. ा के ान म न आवै कभू एक िछन..................३३
ु -चंद  प ै बािर डार..................३४
१३. न ैन-चकोर मख
१४. पहले ही जाय िमले गनु म वन, फे री....................३४
१५. कौन प, कौन रंग, कौन सोभा, कौन अ................३४
ु ा प ै िचंतामिण वािर डार..................३५
१६. एक रज-रेणक
१७. िगिर कीज ै गोधन मयूर नव कुन को..................३५
१८. वृाबन धाम नीको ज को िवाम नीको................३५

एक
ीराधारस

१९. वृावन आन िबहार चा दित के ....................३६


२०. सहज ै ीकृ -कथा ठौर-ठौर होत तहाँ...................३६
ु के पग-पग प ै याग जहाँ...................३७
२१. कीरत सता
२२. गायो न गोपाल मन लाय के िनवािर लाज.................३७
२३. िचकर सँवारे नािहं अ-अ ामा-ाम.............३७

२४. कहा रसखान सख-सं ु महँ......................३८
पित समार
२५. कं चन के मिरन दीिठ ठहरात नािहं....................३८
२६. ठे  न राजा बाते क नह काजा...................३९

२७. गनीजन सेवक अ चाकर चतरु के ह ......................३९
२८. दास तौ ितहारे, जो उदास तौ ितहारे........................३९
२९. अर उदेह दाह, आँिखन वाह आँस.ू ...................४०
३०. तेरी बाट हेरत िहराने औ िपराने पत.......................४०
३१. काले परे कोस चिल चिल थक गये पाँय.................४१
३२. इन िखयांन कूँ न च ैन सपने  िमौ.....................४१
३३. हम तौ ितहारे सब भांित स कहाव सदा...................४१

३४. गजन बरज रहे री ब भांित मोिह........................४२
३५. मन े रटना लगाई रे, राधा नाम की........................४२
३६. मन भूल मत जइयो राधा रानी के चरण...................४३
३७. वृषभान ु की लली या सामिलया स नेहरा लगायकै .....४३
ु तीर..........................४४
३८. अके ली मत जइये राधे यमना
दो
ीराधारस

३९. आज मेरे अँगना म आओ नलाल.......................४४


४०. आज ठाड़ौ री िबहारी यमनु ा तट प ै........................४५
४१. झाँकी बनी िवशाल बाँके िगरधर की.......................४५
४२. झ ूला झ ूलत िबहारी वृावन म...........................४६
४३. वृावन धाम अपार भजे जा राधे राधे...................४६
४४. बल ेम के पाले पड़कर....................................४७
४५. कजरारी तेरी आँख म ा...................................४८
४६. ा चाल शान अलबेली है................................४८
४७. गौर-ाम बदनारिबंद पर...................................४८
४८. देखो री यह न का छोरा.................................४८
४९. ीवृाबन रज दरसावे सोई िहतू हमारा है............४९
५०. इतना तो करना ामी, जब ाण तन से िनकले..........४९
५१. ए री अलबेलो छैल छबीलो ज म बाँकेिबहारी लाल....५१
५२. बाँकेिबहारी की बाँकी मरोर, िचत लीा है चोर..........५१
५३. तेरी भोरी सी सूरितया मेरे मन गई है समाय.............५२
५४. नेकु नािच दै िबहारी मेरे अँगना म आय.................५३
५५. नाना भाँित नचायौ, भन न ै मोय.......................५३
५६. भन कौ िहतकारी म कृ मरु ारी........................५५
५७. कै सौ माँग े दान दही कौ, रोकै मारग िगरधारी.............५६
५८. वािलन किरदै मोल दही कौ, मोकूँ माखन तिनक.......५७
तीन
ीराधारस

५९. अपनो गाँव रखो नरानी ! हम कह और बसगी.......५८


६०. ऐसौ ारौ लग ै न कोई ज ैसौ ारौ मोय बृज धाम.......५८
६१. पकरौ री जनािर कैया होरी खेलन आयौ है.....५९
६२. धिन धिन रािधका के चरन..................................६१
६३. चाँपत चरन मोहनलाल....................................६१
६४. लगन नह टै एरी बीर..................................६१
६५. बस मेरे नयनन म नलाल..............................६१
६६. लटकत आवत कु भवन ते...............................६२
ु ु ट पर वारी जाऊँ नागर ना.........................६२
६७. मक
ु मोरी............................६२
६८. ीराधे दे डारो ना बाँसरी
६९. ीकृ  गोिव हरे मरु ारे, हे नाथ नारायण..............६२
७०. संकट हरैगी करेगी भली वृषभान की लली................६४
७१. ामी कृ च भगवान कुमर रानी यशधु ा के ह .......६५
७२. पाँड़ े पूछ रौ वालन ते भैया कहाँ नंद कौ ार...........६७
७३. ऐसी कृ पा करौ नंदलाल सदाँ हम बृज म कर .............७०
७४. िनमल जमनु ा जल करवे को भ ु ने नाो................७०
७५. ाण बनक कृ मरु ार पधारे बिल राजा के ार........७४
७६. मेरौ िनज वृावन धाम लगे मोय जग ते ारौ..........७६
७७. जीवन मूर अनूठी मत जान ै झठँ ू ी, अमर अनूठी..........७८
७८. चंचल चपल चतरु चाविल चालै चटक मटक.........७९
चार
ीराधारस

७९. कै स े आव हो कैया तेरी बृजनगरी......................८५


८०. कोई किहयो रे हिर आवन की................................८६
८१. िमलता जाो हो गु ानी................................८६
ु ु ट पर वारी जाऊँ , नागर नंदा...........................८६
८२. मक

८३. कृ िपया मोरी रंग दे चनिरया.......................८७
८४. मनमोहन ान ारे, टुक गली हमारी ओर..............८७
८५. जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय ी राधे.............८८
ु ीवृ  विते िलोकशोकहािरिण.........८९
८६. म न

८७. गृहे राधा वने राधा पृ े राधा परःिता....................९२

८८. अधरं मधरु ं वदनं मधरु ं नयनं मधरु ं हिसतं मधरु म........९३

पाँच
ीराधारस

ीराधारसाित दोहे
मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागिर सोय ।
जा तन की झा परत, ाम हिरत ित होय ॥

ीराधा राधा रट, राधा ही कौ ान ।


सदाँ लाल बलबीर उर, राधा नाम धान ॥

बरसानो जानो नह, रौ न राधा नाम ।


तौ तैन जाौ कहा, ज को त महान ॥

राधा राधा जे कहत, चँ िदश ितनिहं हमेश ।


आयधु लै रा करत, हिर हर वण सरेु श ॥

ज की रज म लोटकर, यमनु ा जल कर पान ।


ीराधा राधा रटते, या तन स िनकल ान ॥

मीठौ राधा नाम यश, िजन चाौ एक बार ।


बिर न आये गभ म, उतर गये भव पार ॥

राधा मेरी सदा, िजय की जीवन-मूल ।


राधा राधा रट सदा, रोम-रोम अनकूु ल ॥


ीराधारस
किबरा धारा अगम की, सदग् ु दई बताय ।
उलट तािह पिढ़ए सदा, ामी संग लगाय ॥

अहो िकशोरी ािमनी, गोरी परम दयाल ।


तिनक कृ पा की कोर लिख, कीज ै मोिह िनहाल ॥

काल डरै, जमराज डरै, ितँ लोक डरै, न करै क बाधा ।


रक च िफरै ता ऊपर, जो नर भूिल उचारै राधा ॥

राधा राधा रटत ही, सब बाधा िमट जाय ।


कोिट जनम की आपदा, राधा नाम ते जाय ॥

राधा राधा जे कह , ते न पर भव-फ ।


जास ु क प ै कमल कर, धरे रहत जच ॥

राधा राधा नाम कूँ , सपने  जो लेय ।


ताक मोहन साँवरौ, रीिझ अपन क देय ॥

राधा राधा कहत ह , जे नर आठ याम ।


ते भविस ु उलँिघ क , बसत सदा जधाम ॥

राधा ीराधा रटूँ, िनिसिदन आठ याम ।


जा उर ीराधा बस, सोइ हमारौ धाम ॥


ीराधारस
सब ारन क छाँिड़ क , आयौ तेरे ार ।
अहो भान ु की लािड़ली, मेरी ओर िनहार ॥

अहो रािधके ािमनी, गोरी परम दयाल ।


सदा बसौ मेरे िहये, किरक कृ पा कृ पाल ॥

राधे ! मेरी लािड़ली, मेरी ओर तू देख ।


म तोिह राख न ैन म, काजर की सी रेख ॥

कँ ु विर िकसोरी नाम स, उपौ ढ़ िवास ।


कणािनिध मृिच अित, ताते बढ़ी िजय आस ॥

ामा पद ढ़ गह सखी, िमिलह िनय ाम ।


ना मान ै ग देिख लै, ामा पद िबच ाम ॥

ीराधा सवरी, रिसके र घनाम ।


करँ िनरर वास म, ीवृावन धाम ॥


गोरी मन मोरी अहो, ीराधे सखरास ।

चरन कमल वंदन कर, पजवौ जनकी आस ॥

ी राधे राधे रट, राधे कौ उर ान ।


मम कुल देवी देवता, राधारमण सजान
ु ॥


ीराधारस
ीराधा राधा रट, ाग जगत की आस ।
ज वीिथन िबचरत रह, किर वृावन वास ॥

ु ु मािर जू, िवनय कर सिन


ीवृषभानक ु कान ।
दे िनरर आपने, चरनकमल कौ ान ॥

द सरोवर ेम जल, तमु पद हद अरिव ।


मन िमिल चाहत िये, सदा-सदा मकर ॥


जयित-जयित ीरािधका, चरण जगल किर नेम ।
जाकी छटा कास त, पावत पामर ेम ॥

तिज तीरथ हिर रािधका, तन ित किर अनराग ु ु ।


िजिह ज-के िल-िनकँ ु ज-मग, पग-पग होत ु याग ु ॥

ीकृ ेमाित दोहे


ु ु ट किट काछनी, कर मरु ली उर माल ।
मोर मक
यह बिनक मो मन बसौ, सदा िवहारी लाल ॥

कर लकुटी मरली
ु गह , घूघ
ँ र वारे के स ।
यह बािनक मो िहय बसौ, ाम मनोहर वेस ॥

आओ ारे मोहना, पलक झाँिप तोिह लेउँ ।


ना म देखूँ और क, ना तोिह देखन देऊँ ॥


ीराधारस
मोहन मूरित ाम की, मो मन रही समाय ।
 महदी के पात म, लाली लखी न जाय ॥

मेरे ारे मोहना, वंशी नेकु बजाय ।



तेरी वंशी मन हरयौ, ु
घर अँगना न सहाय ॥

लतन तरे ठाड़ौ कबँ, कबँ जमनु ा तीर ।


नारायन न ैनन बसी, मूरित ाम सरीर ॥

कजरारी अँिखयान म, बौ रहत िदन-रात ।


ीतम ारौ री सखी, तात साँवल गात ॥

किबरा काजर रेख , अब तौ दई न जाय ।


न ैनिन ीतम रिम रौ, जौ कहाँ समाय ॥


या अनरागी िच की, गित समझु ै निहं कोय ।
- बूढ़ ै ाम रंग, - उल होय ॥


जाके मन म बस रही, मोहन की मसान ।
नारायन ताके िहये, और न लागत यान ॥

किह न जाय मख ु स क, ाम ेम की बात ।


नभ - जल - थलचर अचर सब, ामिह ाम लखात ॥


ीराधारस
 नह माया नह, नह जीव निहं काल ।
ु ना रही, रौ एक नंदलाल ॥
अपनी  सिध

नारायन जाके दय, सरु ाम समाय ।


डार पात फल फू ल म, ताक वही लखाय ॥

ग मो चाहै नह, चाहै निकशोर ।



सघढ़ सलौनौ साँवरौ, मरु लीधर मन चोर ॥

मनमोहन मन मोहना, मनमोहन मन माँिह ।


या मोहन ते सोहना, तीन लोक म नाँिह ॥

ु ु ट की लटक पर, अटक रहे ग मोर ।


मोरमक
का कँ ु वर जमनु ा तट , नटवर न िकसोर ॥

ु ु ट की िनरिख छिव, लाजत मदन करोर ।


मोर मक
चवदन सख ु सदन प ै, भावकु न ैन चकोर ॥


दोऊ हाथ उठाइ कै , कहत पकािर-प ु
कािर ।
ु भलौ, तौ भिज ले मरु ािर ॥
जो चाहौ अपनौ

ु सब ओर स, तोरौ भव के जाल ।


मोरौ मख

छोरौ सब साधन सनौ, भजौ एक नंदलाल ॥


ीराधारस

भरित नेह नव नीर िनत, बरसत सरस अथोर ।
जयित अपूरव धन कोऊ, लिख नाचत मनमोर ॥

ीेम-रस

तन पलिकत रोमांच किर, न ैनिन नीर बहाव ।
ेम मगन उ ै, राधा राधा गाव ॥

ेम विनज कीो तौ, नेह नफा िजय जाँिन ।


अब ारे िजय की परी, ान पूिँ ज म हाँिन ॥

िपय-िपय रिट िपयरी भई, िपय री िमले न आिन ।


लाल-िमलन की लालसा, लिख तन तजत न ािन ॥

जेिह लिह िफिर क लहन की, आस न िचत म होय ।


जयित जगत पावन करन, ेम वरन यह दोय ॥

थम सीस अरपन करै, पाछै करै वेस ।



ऐसे ेमी सजन कौ, है वेस यिह देस ॥

यानी िढंग गंभीर हिर, सत-िचत-ान ।


ेम संग खेलत सदा, चंचल ेमान ॥


ीराधारस
जब म था तब हिर नह, अब हिर ह म नाँिह ।
ेम गली अित साँकरी, ताम दो न समाँिह ॥

ऐरे किठन अहीर के , नक पीर पिहचािन ।


तब मखु दशन कारन ै, छाँिड़ दई कुल काँिन ॥

ेम सरोवर ेम की, भरी रहै िदन रैन ।


जँह जँह ारी पग धर , लाल धरे दोऊ न ैन ॥

इ िमले अ मन िमले, िमले भजन रसरीित ।


िमिलये तािह िनसंक ै, कीज ै ितन स ीित ॥

बत िमले सो संग निहं, ारी ारी भाँित ।


ु ल ेम रस मगन जे, तेई अपनी पाँित ॥
यग

िबभरन पोषन करन, क तरोवर नाम ।


सो भ ु दिध चोरी करत, ेम िबवस भगवान ॥

जँह ियतम ितिह देस की, ारी लागत पौन ।


ु समझ
ेम छटा जान ै िबना, यह सख ु ै कौन ॥

किबरा हाँसन िर कर, रोने स कर ीित ।


िबन रोये निहं पाइये, ेम िपयारौ मीत ॥


ीराधारस
हँस-हँस क न पाइया, िजन पाया ितन रोय ।
हँिस खेल िपय िमलै तौ, कौन हािगिन होय ॥

बँध े पच के पच पर, पच-पच म पच ।


िफर िनकस ै सरकै न मन, ऐसे पच कुपच
 ॥

गौर ाम तन मन रँग,े ेम ाद रस सार ।


िनकसत निहं ितिह ऐन ते, अटके सरस िबहार ॥

ऐसे रस म िदन मगन, निहं जानत िनिस भोर ।


वृावन म ेम की, नदी बहै चँ ओर ॥

न ैना बड़े गरीब ह , रहत पलक की ओट ।


बरजे ते मान नह, करत लाख म चोट ॥

सीस कािट भूई धरै, ता प ै राख ै पाँव ।


इक चमन के बीच म, ऐसा हो तो आव ॥

मिु  कहै गोपाल स, मेरी मिु  बताय ।


जरज उिड़ मक लग ै, मिु  म
ु है जाय ॥

कँ ु विर चरन अंिकत धरिन, देखत जेिह-जेिह ठौर ।


ियाचरन रज जािनकै , ठत रिसक िसरमौर ॥


ीराधारस
धन वृावन धाम है, धन वृावन नाम ।

धन वृावन रिसक जे, सिमर ामा ाम ॥

वृावन के वृ कौ, मरम न जान ै कोय ।


डार डार अ पात प ै, राधे राधे होय ॥

वृावन म बास किर, साग पात िनत खात ।


ितनके भागन क िनरख, ािदक ललचात ॥

ारौ है सब लोक त, वृावन िनज गेह ।


खेलत लािड़ली लाल जहँ, भीजे सरस सनेह ॥

ु कमल स, नारद क समझ


ीपित ीमख ु ाइ ।
वृावन रस सबन त, राौ िर राइ ॥

िशव िविध उव सबन की, यह आशा है िच ।


गु लता ै िसर धर , ीवृावन रज िन ॥


वृा िविपन भाव सिन, ु ही गनु देत ।
अपनौ
ज ैसे बालक मिलन क, मात गोद भिर लेत ॥

और देस के बसत ही, घटत भजन की बात ।


वृावन म ारथिहं, उलिट भजन ै जात ॥

१०
ीराधारस
बिस कै वृािविपन म, ऐसी मन म राख ।
ान तज वन ना तज, कहौ बात कोउ लाख ॥


चलत िफरत सिनयत यहै, (ी) राधावभलाल ।
ऐसे वृािविपन म, बसत रहौ सब काल ॥

खंड खंड ै जाइ तन, अ अ सत टूक ।


वृावन निहं छाँिड़ये, छँिड़वौ है बिड़ चूक ॥

तिज वृा िविपन क, और तीथ जे जात ।


छाँिड़ िवमल िचामणी, कौड़ी क ललचात ॥


जीरन पट अित दीन लट, िहये सरस अनराग ।

िवबस सघन बन म िफरै, गावत जगल ु
सहाग ॥

ारो चौदह लोक त, वृावन िनज भन ।


तहाँ न कब लगत है, महा लय की पौन ॥

कदम कं ु ज ैह कबै, ीवृावन माँिह ।


लिलत िकसोरी लािड़ले, िवहर ग े तेिहं छाँिह ॥

कब ह सेवाकं ु ज म, ैह ाम तमाल ।


लितका कर गिह िवरिम ह , लिलत लड़ैतीलाल ॥

११
ीराधारस

समन वािटका िविपन म, ै ह कब ह फू ल ।
कोमल कर दोउ भाँवते, धिर है बीन कू ल ॥

िमिल है कब अ छार ै, ीवन वीिथन धूर ।



पिर है पद पंकज जगल, मेरी जीवन मूर ॥

कब गर की गिलन म, िफिर ह होय चकोर ।



जगलचं
द मखु िनरिख ह, नागिर नवलिकसोर ॥

कब कािली कू ल की, ै ह तवर डार ।


लिलत िकशोरी लािड़ली, झ ूल झ ूला डार ॥

जोग ान आवै नह, जय भाग ना लेय ँ ।


ताक ज की गोिपका, हँिस-हँिस माखन देय ँ ॥

वृावन म पिर रहौ, देिख िबहारी प ।


तास ु बराबिर को करै, सब भूपन कौ भूप ॥

सबस िहत िनाम मित, वृावन िवाम ।


राधावभ लाल कौ, दय ान मखु नाम ॥

बृावन म जो कबँ, भजन क निहं होय ।


रज तौ उिड़ लाग ै तनिहं, पीवै जमनु ा तोय ॥

१२
ीराधारस

ज ै-ज ै ीवृािविपन, ज ै-ज ै ी सख रास ।
ज ै-ज ै रिसकन ान-धन, मम उर कर िनवास ॥


तीन लोक ते सरस है, ीवृावन सखक ।
जहँ िनिसिदन िबहरत रहै, ीराधा गोिव ॥

ु देह के , और जगत के फ ।
तज गेह सख

जगल चरन स ीत कर, बस वृावनच ॥

महारानी ीरािधका, अ सिखन के झड ंु ।


डगर बहु ारत साँवरौ, ज ै-ज ै राधा कुड ॥


वृावन बािनक बौ, मर करत गार ।
लहिन ारी रािधका, लह न कुमार ॥

ज चौरासी कोस म, चार गाम िनज धाम ।


वृावन अ मधपु री,
ु बरसानौ नगाँम ॥

ज समु मथरु ा कमल, वृावन मकर ।


ज-बिनता सब प ु र गोकुलच ॥
ु ह , मधक


नारायन जभूिम क, सरपित नावै माथ ।
जहाँ आय गोपी भये, ीगोपीर नाथ ॥

१३
ीराधारस

दर िदवार दरपन भये, िजत देख ितत तोिह ।


काँकर पाथर ठीकरी, भये आरसी मोिह ॥

लोक चतदु श  मक ु ु टमिण, सदा सव सखक


ु ।
ीवृषभान ु कुमािर कौ, ीवृावन च ॥

चलौ सखी तहँ जाइये, जहाँ बस ै जराज ।


गोरस-बेचन हिर िमलन, एक प ै काज ॥

मेरे ारे मोहना, वंशी नकु बजाय ।



तेरी वंशी मन हरयौ, ु
घर अँगना न सहाय ॥

कामधेन ु कलपत रही, ह न भई ज गाय ।


राधा देती दोहनी, मोहन हते आय ॥

लाली मेरे लाल की, िजत देखूँ ितत लाल ।


लाली देखन म गई, म भी ै गई लाल ॥

१४
ीराधारस

ीरािधकाेम की अनता

आँख िमली मनमोहन स, वृषभानलली ु
मन म मसकानी ।
भह मरर क सर ओर, क वह घूघ ँ ट म शरमानी ॥
देिख िनहाल भई सजनी, वह सूरित या मनमाँिह समानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

खेलत-खेलत कं ु जन म, जब ास लगी अित ही अकुलानी ।



लिलता सर कौ जलपान करायक , लालन सेज प ै लाय सलानी ।
चाँपत लाल िपया पग क, रसभाव महा क जातन जानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

लाल भये िजनके बस म, उनक लिखक िबनमोल िबकानी ।


के िल कर यमनु ा तट प ै, अँिखयाँ िजनकी गई ेम िदवानी ।
रसरंग रह उरझ सरझु , सिख एकिदप ै निहं होय लखानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

पूनम की रजनी सजनी यह, चाँदनी फै ल रही सखदानी ु ।


यमनु ा तट प ै मरु ली सिनक ु
ु , वृषभानलली अित ही सकुचानी ।
रास िकयौ हिर के सँग म, अित चाव भरी निहं जात बखानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

शु करै तन क मन क, सिख ेम सरोवर कौ यह पानी ।


किरक अान इहाँ हमको, ज की रज क िनज शीष चढ़ानी ।

बास िमलै जमडल कौ, िबनती हमक इतनी ही सनानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

१५
ीराधारस
जमडल के रिसया हम ह , िनत ीत कर हिर स मनमानी ।
डोलत कु िनकुन म, गनु गान कर रस ेम कहानी ।
जो मनमोहन संग रहै, वह भानलली ु हमन पिहचानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

नाम महाधन है अपनौ, निहं सिर सित और कमानी ।


छोड़ अटारी अटा जग के , हमक कुिटया जमाँिह छवानी ।
ु महारानी ।
टूँक िमल रिसक रिसकन के सदा, अ सेव सदा यमना
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

वास कर ज म िफर सरे, देसन की कँ राह न जानी ।


ेम समाय रौ िहय म, बिनहै कब न िवरागी न ानी ।
संग रह रिसक के सदा, अ बात कर रसकी रस सानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥

िजनके पग चाँपत नलला, वो तो वेद िस सभायनु म ।


सरु तेितस कोिट की कौन गन ै, जहाँ  रौ लपटायन म ॥

किवलाल गपाल के जीवनमूल, शिशकांित की कोिट भाइन म ।

ररे मन तोस कँ िवनती, वृषभानिकसोरी के पाँयन म ॥

ेमसरोबर छाँिड़क तू, भटकै ह  िच की चायन म ।



जहँ गदा गलाब अनेक िखले, बैठौ  करीर की छाँयन म ।

ेमी कह ेम कौ पंथ यही, रिहवौ किर सूध े सभायन म ।

मन तोिह िमलै िवाम यही, वृषभानिकशोरी के पाँयन म ॥

१६
ीराधारस
च सौ आनन कं चन सौ तन, हौ लिखके िबन मोल िबकानी ।
औ अरिव-सी आँिखन क ‘हठी’ देखत मेरी ये आँख िसरानी ॥
राजत है मनमोहन के सँग, बार म कोिट रमा रित बानी ।
जीवन मूिर सबै ज की, ठकुरानी हमारी ीरािधकारानी ॥


नवनीत गलाब ु
से कोमल ह , ‘हठी’ क की मंजलता इनम ।

गललाला ु
गलाल वाल जपा, छिव ऐसी न देखी ललाइनम ।
मिु न मानसमिर म बस ै, बस होत है सूध े सभायनु म ।

ररे मन तू िचत चाहन स, वृषभानिकसोरी के पायन म ॥


 म ढूँढयौ परानन कानन, वेद िरचा सनी ु चौगनेु चायन ।
देौ सौ ु कब न िकतै, वह कै स े सप औ कै स े सभायन
ु ॥
् ‘रसखान’ बतायौ न लोग गाइन ।
टे रत हेरत हािर िफरयौ
देौ रयौ वह कं ु जकुटीर म, बैठ ्यौ पलोटत रािधका पायन ॥

साँविर रािधका मान िकयौ, पिर पाँयन गोरे गोिवंद मनावत ।


न ैन िनचोहे रह उनके निहं, वैन िवन ै के न ये किह आवत ॥
हारी सखी िसख दै ‘रतनाकर’ हेिर मख ु ाजु फे िर हँसावत ।
ठान न आवत मान उ , उनको निहं मान मनावत आवत ॥

हे अिल री लिख आज ु कौ खेल, बखान कहाँ ल करै मित मोरी ।


राधे के शीश प ै मोरपखा, मरु ली लकुटी किट म पट डोरी ॥
वैनी िवराजत लाल के भाल, ओ चूनर रंग कसूम म बोरी ।
मान ै मोहन बैिठ रहे, सो मनावत ीवृषभान ु िकशोरी ॥

१७
ीराधारस
अपनी ओर की चाह िलखी, िलिख जात कथा उत मोहन ओर की ।
ारी दयाकिर बेिग िमलौ, सिहजात था निहं मैन मरोर की॥
आपिहु बाँचत अंग लगावित, है िकन आिन िचठी िचतचोर की ।
रािधका मौन रही धर ान स, है गई मूरित नंद िकशोर की ॥

सोहत मोरपखा िसर प ै, कल भाल प ै के सर खोर िदये जू ।


झ ूमत घूमत जात िसहात, नवीन सून के हार िहये जू ॥
दीज ै कहा उपमा ‘बलवीर’ पड़ी पिछतात लजात िहये जू ।
या छिव स िवहर जमनु ा तट, रािधका ाम िसंगार िकये जू ॥

डोलत बोलत रािधका रािधका, राधा रटौ सख ु होय अगाधा ।


सोवत जागत रािधका रािधका, रािधका नाम सबै सखु साधा ॥
लेत देत रािधका रािधका, तौ बलवीर टरै जग बाधा ।
होय अन अगाधा तबै, िदन रैन कहौ मख ु राधा ीराधा ॥

ीवृषभानस ु ता
ु पदपंकज, मेरी सदा यह जीवन मूर है ।
याही के नाम स ान रहै, िनत जाके रहे जग कं टक र है ॥
ीवनराज िनवास िदयौ, िजन और िदयौ सख ु भरपूर है ।
ु धूर है ॥
याक िबसार जो और भजौ, ‘बलबीर’ जू जािनये तौ मख

ीवृषभानसु ता
ु पदपंकज, म िनिसवासर ान लगायौ ।
मेरी तौ जीवन मूर यही, कलप ु सोई मखु गाय सनायौ
ु ॥
जाकौ अहो ‘बलवीर’ िलोक के , नायक  िनत सीस नवायौ ।
ु व दया किर रािधका, मं िसरोमिन नाम बतायौ ॥
ीगदे

१८
ीराधारस
ीकृ रस
जामा बौ जिरतािरकौ सर,ु लाल है ब अ जद िकनारी ।
झालरदार बौ पटुका अ, मोितन की छिब लागत ारी ॥
ज ैसी ये चाल चल जराज, अहो बिलहारी है मौज िबहारी ।
ु झाँकी झरोखे म बाँकेिबहारी ॥
देखत न ैनन तािक रहे झिक,

अ ही अ जड़ावजड़े, अ सीसबनी पिगया जिरतारी ।


मोितन माल िहय ै लटकै , लटुआ लटक लट घूघ ँ रबारी ॥

पूरन पन ते ‘रसखान’, ये माधरु ी मूरित आन िनहारी ।
चार िदसा के महा अघनाशक, झाँकी झरोके म बाँकेिबहारी ॥

मोरपखा गरे गकीु माल, िकये बरवेष बड़ी छिब छाई ।


पीतपटी पटी किटम, लपटी लकुटी ‘हठी’ मो मन भाई ॥
टी लट डुल कुडल कान, बज ै मरु ली धिु न म सहाई
ु ।

कोिटन काम गलाम िकये, जब का ै भानललीु बन आई ॥

रािधका पायकै स ैन सब ै, झपटी मनमोहन प ै जनारी ।


छीन पीतार कामिरया, पिहराई कसूमर सर ु सारी ॥
आँखन काजर पाँय महावर, साँवरो न ैनन खात हहारी ।

भानललीकी गली म अली न, भलीिविध नाच नचाये िबहारी ॥

१९
ीराधारस
ितरछा है िकरीट कसा उर म, ितरछा बनमाल पड़ा रहता है ।

ितरछी किट-काछनी है िजसम, सखिस ु सदा उमड़ा रहता है ॥
ितरछे पदक कद तेर,े ितरछे ग तान खड़ा रहता है ।
िकस भाँित िनकाल कहो िदलसे, ितरछा घनयाम अड़ा रहता है ॥

पहने यह कुडल यही रहो, अलकाविल यही सँवारे रहो ।


अधरामृत पान कराते ए, मरु ली कर-क म धारे रहो ॥
नह और िवशेष करो कुछ तो, अिनयारे ग से िनहारे रहो ।
कह जाओ न मोहन ! छोड़ हम, बने जीवनाण हमारे रहो ॥

यिद कुलकाले सँवारे ही थे, तो कपोल प ै य लटका ना नथा ।


जब कलरेख लगायी थी तो, ितरछे ग बाण चलाना न था ॥
पहना पटपीत मनोहर तो, हर बार उसे फहराना न था ।
यह सरु वेश बनाया था तो, इस भाँित हम तड़पाना न था ॥

जमडल का ही िसतारा नह, जगती तल का उिजयारा है तू ।


मनमोहकता इतनी तझ ु म, सबके मन को अित ारा है तू ॥
यह जीवन  न िनछाबर हो, जब जीवन का ही सहारा है तू ।
िकसभांित िबसाँ बता तझु को, मनमोहन ाणिपयारा है तू ॥


मसकान से काम तमाम आ, ितरछे ग  अब तानता है ।
अित सरु गोल कपोल तेर,े भृकुटी-लकुटी पिहचानता है ॥
पिरणाम म ःखको जानता है, पर हाय नह हठ ठानता है ।
बतेरा कहा पर तेरे िबना, मन मेरा न मोहन ! मानता है ॥
२०
ीराधारस

मखच मनोहर देख े िबना, अब तो सखु मोहन होता नह ।
तमु माया के वेशधरो िकतने, पर म अब खाऊँ गा गोता नह ।
सच मान िवयोग म आपके म, िदन म जगता िनिश सोता नह ।
ु नह तमु तो, इतना कभी भूल के रोता नह ॥
यिद िच चराते

मेवा भई ब काबल ु म, औ वृावन आय करील उगाये ।


ीरािधका सी सक ु ु मािर िवहाय क , कू बरी स अितनेह बढ़ाये ॥
मेवा तजी यधन की, िछलका िवराइन के घर खाये ।
‘ठाकुर’ ठाकुर की किहये कहा, ठाकुर बावरे होते ही आये ॥

जभ-गरीब गपालचु ै, तिज आयो िसंहासन ीपरु को ।


तहाँ शेष की सेज प ै स ु कहाँ, यहाँ िन िफरै रज म रको ॥
कन तिज साधनु के कर स, सतआ ु िनतभोग ौ गरको ु ।
भिगजा अरे यानी गमानीु धनी, यहाँ राज है बावरे ठाकुरको ॥

ु ।
भाय तौ छोटो िदयौ िविध न, सोऊ हाथ िवलाँिदन आंगरको
नह देौ सोु ो काननत, बैकुठ बड़ौ परमेसरु को ॥
बौरे सबै जवासी लौ कब, ान कृ पा किर सरको ु ।
ये ही उतािर है पार हम, है भरोसो या बावरे ठाकुरको ॥

िजतल चािबिदये  ैलोक, बौ बिल ार प ै आप िभखारी ।



इ क मेिटक पाहन पूिज, पजाय ु
बौ तहाँ आप पजारी ॥
ीित तजी जगोिपन स, जािह कू बरी नाइन लागत ारी ।
वेद बावरे नेित कह , ऐसे बाबरे ठाकुर की बिलहारी ॥

२१
ीराधारस
िज भ अजािमल पापी िकयो, िशव शीष चढाय िदयौ गनरीलाु ।
मांगत छाछ िफरयौ ज म, भरे भ धनाघर धानकुठीला ॥
ािरका की पटरानी तज, जाइ रीछ की छोरी प ै रीयौ रंगीला ।
शंका करै िशर पाप कमावै को, बावरे ठाकुर की बावरी लीला ॥


खेलत फाग म लािड़लीलाल कौ, लै मसाइ गई एक गोरी ।
ु धार दई बरओरी ॥
सीस प ै सारी सजा तरतार की, कं चकी

लै बलबीर िदयौ ग अंजन, दीनौ बनाय गपाल क गोरी ।
अंग लगाइ, कही मस ु काइ, लला िफर खेलन आइयो होरी ॥

खन न ैन फं से िपंजरा, छिव नांिह रह िथर कै से माई ।


िट गयौ कुलकािन सखी, ‘रसखािन’ लखी मस ु कािन सहाई
ु ।
िच कढे से रह मेरे न ैन, न बैन कढ मखु दीनी हाई ।
कै सी करौ िजत जाँउ अरी, सब बोिल उठ यह बाबरी आई ॥

कानन दै अंगरी ु रिहवो, जबह मरली


ु धिनु म बज ै है ।
मोहनी तानन स ‘रसखािन’ अटा चिढ़ गोधन ग ैहै तो ग ैहै ॥
टे िर कह िसगरे ज लोगिन, काि कोऊ िकतनी समझ ु ै है ।
माई री वा मख ु की मसकािन,
ु संभारी न ज ैहै न ज ैहै न ज ैहै ॥

बाौ करै िदनही िछनही, िछन कोिट उपाय करौ न बझाई ु ।


दाहत लाज समाज सख ु की भय नद सबै संग लाई ॥
ु ै ग,
छीजत देह के साथ म ान, हा ‘हिरचंद’ कर का उपाई ।
ु  निहं आँस ू के नीरन, लालन कै सी दवािर लगाई ॥
  बझ

२२
ीराधारस
जवासी िवयोिगन के घर म, जग छांिड़ क  जनमाई हम ।
िमिलतौ बड़ी र रौ ‘हिरचंद’, दई इकनाम धराई हम ॥
जग के िसगरे सखु स ठिग क , सिहने क यह है िजवाई हम ।
के िह बरस हाय दई िविधना, ख देिखने ही क बनाई हम ॥

मारग ेम कौ को समझ ु ै, ‘हिरचंद’ यथारथ होत यथा है ।



लाभ क न पकारन म, बदनाम ही होन की सारी कथा है ॥
जानत है िजय मेरौ भली, िविध और उपाय सबै िवरथा है ।
बाबरे ह ज के सगरे, मोिह नाहक पूछत कौन िवथा है ॥

रोकिहं जो तो अमंगल होय, औ ेम नस ै जो कहै िपय जाइये ।


जो कह जा न तौ भता, ु जो क न कह तौ सनेह नसाइये ।
जौ ‘हिरचंद’ कह तमु रे, िबन जीह न तौ यह  पितयाइये ।
तास पयान समै तमु रे, हम का कह आप ै हम समझाइये
ु ॥

इन न ैनन म वह सांवरी मूरित, देखत आिन अरी सो अरी ।


अबतो है िनबािहबौ याको भलौ, ‘हिरचंद’ जू ीित करी सो करी ॥
उन खंजन के मद गंजन स, अंिखया ये हमारी लरी सो लरी ।
अब लोग बचाव करौ तो करौ, हम ेम के फं द परी सो परी ॥

ु प िबलोिक सखी, मन हाथ त मेरे भयो सो भयौ ।


वह सर
िचत माधरु ी मूरित देखत ही, ‘हिरचंद’ जाय पयौ सो पयौ ।
मोिह औरन स क काम नह, अब तौ जो कलं क लयौ सो लयौ ।
रंग सरौ और चढैगौ नह, अिल सांवरौ रंग रंयौ सो रंयौ ॥

२३
ीराधारस
मनमोहन त िबरी जब स, तन आंसनु स सदा धोती ह ।
‘हिरचंद’ जू ेमके फं द पर, कुल की कुल लाजिन खोवती ह ॥
ख के िदन क कोऊ भांित िवतै, िवरहागम रैन संजोवित ह ।
हम ह अपनी सदाँ जान सखी, िनिस सोवत ह िकध रोवती ह ॥

धारन दीिजए धीर िहए, कुल कािन क आज ु िबगारिन दीिजए ।


मारन दीिजए लाज सबै ‘हिरचंद’ कलंक पसारन दीिजए ॥
चार चवार क चँ ओर स, सोर मचाइ पकारन ु दीिजए ।
ु ै, भिर लोचन आज ु िनहारन दीिजए ॥
छांिड संकोच न चंद मख

घन आनंद जीवन मूल सजान, ु की कधन  न कँ दरस ।


सनु जािनये ध िकत छाय रहे, ग चाितक ान तपे तरस ॥
िबन पावस तो इन ावसहो न, स ु  किरये अब सो परस ।
बदरा बरस ऋत ु म िघिरके , िनतही अंिखयाँ उघरी बरस ॥

अंतरहौ, िकध अंतरहौ, गफािर िफरिक अभािगिन भीर ।


आिगजर, अिक पािनपर, अब कै सी कर, िहय का िविध धीर ।
जो घनआनंद ऐसी ची, तौ कहा बसहै अहा ानन पीर ।
ु  , धरनी म धंसके अकासिहं चीर ॥
पाऊँ कहाँ हिरहाय त

पर काजिहं देह क धािर िफरौ, परज जथारथ ै दरसौ ।


ु के समान करौ, सबही िविध सनता सरसौ ॥
िनिधनोर सधा
‘घन आनंद’ जीवनदायक हौ, क मोिर ये पीर िहये परसौ ।

कबवा िवसासी सजान ु िनिहलै बरसौ ॥
के आँगन, मो अँसवा

२४
ीराधारस
उठती अिभलाषा यही उर म, उनके वनमाल का फू ल बनूँ ।
किट काछनी हो िलपटूँ किट म, अथवा पटपीत कू ल बनूँ ।

‘हरेकृ’ िपऊँ अधरामृत को, यिद म मरली रसमूल बनूँ ।

पद पीिडताहो सखपाऊँ महा, कही भाय से जो ज धूल बनूँ ॥

िकस भाँित ऐ ं अपने करसे, पद पंकज है सक ु ु मार तेरा ।


‘हरेकृ’ बसा इन नयनन म, अित सर ु प उदार तेरा ॥
नह और िकसी की जरत है, हमको बस चािहए ार तेरा ।
तनप ै, मनप ै, धनप ै, सबप ै, इस जीवन प ै अिधकार तेरा ॥

हरेकृ सदा कहते कहते, मन चाहे जहाँ वहाँ घूमा कँ ।


मध ु मोहन प का पीकर के , उसम उ हो झ ूमा कँ ।
अित सरु वेश जेश तेरा, रमा रोमही रोमम मा कँ ।
मनमिर म िबठलाके तझेु , पग तेरे िनरर चूमा कँ ॥

तजते घर बार वृथा सब , यिद मोहन तेरा इशारा न होता ।


रहते हम भी भवसागर म, पहले जो िकसी को उबारा न होता ।
हम रोते ही  िबलखाकर के , यिद तू मन ाण हमारा न होता ।
इस ेम के प म हाय भो, िसर देकर भी टकारा न होता ॥

ु  को िछपाये रं ।
ग की इस ाम कनीिनका म, घनयाम त
पल मा को जाने न बाहर ँ, परदा पलक का िगराये रं ।
बस चाह यही मनमोहन ! है, चरण प ै सदा िचतलाये रं ।
ु ारा रं म बना, तमु को अपना ही बनाये रं ॥
सब भांित त

२५
ीराधारस
ु वह सर
निहं िच िलखा न चिर सना, ु ाम को मान े ही ा ?
मन म न बसा मनमोहन तो, वह ठान िकसी पर ठाने ही ा ?
िजस बर ने इमली ही चखी, वह ाद सधा ु पिहचाने ही ा ?
िजसने कभी ेम िकया ही नह, वह ेम की आह को जाने ही ा ?

जगदीश से नाता जड़ाु जब है, तब ा जगकी परवाह कर ।


बस याद म होते ए उनकी, पलक पर अ ु वाह कर ।
उतनी वह र भग हमसे, िजतनी उनकी हम चाह कर ।
ु अदभ् तु ेम की पीड़ा म है, हम आह कर वह वाह कर ॥
सख

ु  कल और को चाह ।
ऐसे नह हम चाहनहार जो, आज त
फिक द आँिख िनकािस दोऊ, जोप ै और की ओर लख, औ लखाव ॥
लाख िमलौ तमु स बिढकै , तमु ही क चह तमु ही को सराह ।
ान रह जब ल उर म, तब ल हम नेह कौ नातौ िनबाह ॥

२६
ीराधारस

ीज-मिहमाित पद
वृावन धाम को बास भलौ, जहँ पास बह जमना ु पटरानी ।
जो नर ाइ के ान धर , ितनक बैकुठ िमले रजधानी ।
चार वेद बखान कर , अ स गनीन ु मनु ी मनमानी ।
जमनु ा जम तन टारत है, भव तारत ह ीरािधकारानी ॥

ज धूिरही ान स ारी लग ै, जमडल मांिह बसाये रहौ ।


रिसक के ससं ु ग म म रं, जग जाल स मोिह बचाये रहौ ॥
िनत बाँकी ये झाँकी िनहारा कँ, छिब छाक स नाथ छकाये रहौ ।
अहो बाँकेिबहारी यही िवनती, मेरे न ैन से न ैना िमलाये रहौ ॥

हे वृषभान ु सतेु लिलते ! हम कौन िकयौ अपराध ितहारौ ।


कािढ़ िदयौ जमडल ते, क और दड रौ अितभारी ।
सो किर ले, हम पिन ु दे, िनकु कुटी यमनु ा तट ारौ ।
अपनौ जन जािन दया की िनधान, भई सो भई अब बेिग सँभारौ ॥

हरेकृ ही कृ  का कीतन म, मचता रहै घनघोर यहाँ ।



सनलो ु
सनलो यमनु ाजल म, मरु लीिन का वह शोर यहाँ ॥

त राधे ही राधे पकार रहे, िखंचता मन है बरजोर यहाँ ।
कर ेम कोई लख ले उसको, रहता अब भी िचतचोर यहाँ ॥

ु के मिर म, जो मोदभरा जधाम म है ।


वह मोद न मि
उतनी छिवरािश अन कहाँ, िजतनी छिवसर ु याम म है ॥

शिश म न सरोज सधारस म, न ललाम लता अिभराम म है ।
उतना सखु और कह भी नह, िजतना सख
ु कृ  के नाम म है ॥

२७
ीराधारस
कह मानिता िमले न िमले, अपमान गले म बंधाना पड़े ।
जल भोजन की परवाह नह, करके त ज िबताना पड़े ॥
अिभलाषा नह सखु की कुछ भी, ख िन नवीन उठाना पड़े ।
जभूिम के बाहर िकं त ु भो, हमको कभी भूल न जाना पड़े ॥


न बौ कोई वेदपराण पढ़े, न बौ कोई सीस रखाये जटा ।
न बौ कोई जंगलवास िकये, न बौ कोई ऊँ ची िचनाये अटा ।
ारथ कौ पिरवार बौ, ये चार िदना के ह ठाठ ठटा ।
भज ले हिरकृ  अरी रसने, तोिह घेरत आवत काल घटा ॥

णभंगरु जीवन की किलका, कल ात को जाने िखली न िखली ।


मलयाचल की शिु च शीतल, मंद सगंु ध समीर िमली न िमली ।
किलकाल कुठार िलये िफरता, तन न है चोट िझली न िझली ।
भज ले हिरनाम अरी रसने, िफर अ समय म िहली न िहली ॥

ु बड़ी चतराई
बि ु बड़ी, मनम ममता अितसय िलपटी है ।
ान बड़ौ धन धाम बड़ौ, करतूत बड़ी जग म गटी है ॥
गज बािज  ार मनु हजार, तो इ समान म कौन घटी है ।
ु नािर की नाक कटी है ॥
सो सब कृ  की भि िबना, मान सर

जब दांत न थे तब ध िदयो, दांत िदये तो क अ  दैह ै ।


जल म थल म पश ु पिन म, सबकी सिध
ु लेत वो तेरी  लैह ै ।
जान को देत अजान को देत, जहान को देत वे तोक भी दैह ै ।
रे मनमूरख सोच करै ू,ं सोच करे क हाथ न ऐ है ॥

२८
ीराधारस
जाकी कृ पा शकु ानी भये, अित दानी औ ानी भए िपरारी
ु ।

जाकी कृ पा िविध ( वेद ) रचे, भए ास परानन के अिधकारी ।
जाकी कृ पा ते िलोकी धनी, स ु कहावत ीजच िबहारी ।
लोक घटी ते ‘हठी’ क बचाउ, कृ पा किर ीवृषभान ु लारी ॥

तात िमल गजमािन िमल , सतु ात िमल यवती ु ु


सखदाई ।
राज िमल गज वािज िमल , सब साज िमल मनबाँिछत पाई ।
लोक िमल सरु लोक िमल , िविध लोक िमल अ बैकुठिहं जाई ।

सर और िमलै सबही सख, ु स समागम लभ भाई ॥

तू क और िवचारत है नर, तेरो िवचार धरयौ ही रहैगो ।


कोिट उपाय करै धन के िहत, भाग िलौ िततनौई लहैगो ॥
भोर की सांझ घरी पल मांझ, सो काल अचानक आय गहैगो ।
राम भौ न सकाम ु ु
िकयौ, सर य पिछताइ रहैगो ॥

पंकज सो मख ु म ु महा, मृ ब ैन बदे िु त के अनसारी


ु ।

अंग सठौन अनंग भा, ग सािख सभासद ् आनंदकारी ॥

सर बाम रम रित , िहत कोिट पितत के अिधकारी ।
ऐसे भये तौ कहा हिरदास, लखे निहं िन िकशोर िबहारी ॥

२९
ीराधारस
किव
रिसकारा राधा
कीरत महारानी, वृषभान ु आिद गोप-गोपी,
कै स ै या किल के मािह ध कहलावते ।
कौन तप करतो या ज मािह बिसवे को,
कौन सो बैकं ु ठ  के सख
ु िबसरावते ॥
नागिरया जौ प ै राधे गट  होती नािहं,
याम पर कामँ के िवपती कहावते ।
छाय जाती जड़ता, िबलाय जाते किव सब,
जर जातो रस तो रिसक कहा गावते ॥

पायौ बड़े भािगिन स आसरौ िकशोरीजू कौ,


और िनरबाही नीक तािह गही गिह रे ।
न ैनिन ते िनरिख लड़ैती को वदन च,
ु लिह रे ॥
तािह कौ चकोर ैकै प सधा
ािमनी की कृ पा त अधीन ैह जिनिध,
ताते रसना स िनत ामा नाम किह रे ।
मेरे मन मीत जो कही मान ै मेरी तौ तू,
राधा पद क कौ मर ै क रिह रे ॥

मेरे ु
ग-माता-िपता लाड़ली िकशोरी एक,
इनह को बल राख िनस-िदन मन म ।
इनह ु
की दासी, सखरासी ु चां सदा,
सख
ारी छिब देख कभी जमनु ा-पिलन
ु म ॥

३०
ीराधारस
िनत उठ चाव स िनहाँ बाट ारी जू की,
छिब देख-देख जीऊँ न ैनन की स ैनन म ।
लाड़ली जू एक बार हार बार-चार-चार,
चूड़ी पिहराऊ िनत ारी सखी जन म ॥

सहज सभाव ु परयौ नवल िकशोरी जू कौ,


मृता दयाता-कृ पाता की रािस है ।
नेकँ न िरस कँ, भूले न होत सखी,
रहत स सदा िहये मख ु हािस है ॥
ऐसी सकु ु मारी ारे लाल की ान ारी,
ध-ध-ध तेई िजनके उपािस है ।
िहत वु और सख ु जहाँ लिग देिखयत,

सिनयत तहाँ लिग सबै ःख पािस है ॥

ीकृ ाराधना
ाम तन ाम मन ाम ही हमारो धन,
आठ याम ऊधो हम ाम ही स काम है ।
ाम हीये, ाम जीये, ाम िबन ु नािहं तीये,
आंध े की-सी लाकरी अधार नाम ाम है ।
ाम गित, ाम मित, ाम ही ह ानपित,
ाम ु
सखदाई स भलाई सोभा धाम है ।
ऊधौ तमु भये बौरे पाती लैके आये दौरे,
योग कहाँ राख ै यहाँ रोम-रोम ाम है ॥

३१
ीराधारस
टे ढ़े  सर ु ु
न ैन, टे ढ़े मख कहे ब ैन,
टे ढ़ो  मक ु ु ट, बात टे ढ़ी क कहै गयो ।
टे ढ़े घघं ु राले बाल, टे ढ़ी गल फू ल माल,
टे ढ़ो  बल ु ाक मेरे िच म बस ै गयो ॥
टे ढ़े पग ऊपर नपु रु झनकार कर ,
बाँसरीु बजाय मेरे िच को चरैु गयो ।
ऐसी तेरी टे ढ़ीन को ान धर मयाराम,
लटपटी पाग से लपेट मन लै गयो ॥

ु ु ट देख, चिका की चटक देख,


माथे प ै मक
छिब की लटक देख, प रस पीिजये ।
लोचन िवशाल देख, गरे गमाल ु देख,
अधर रसाल देख, िचत चप कीिजए ॥
कं ु डल हलन देख, अलक बलन देख,
पलक चलन देख, सरबस दीिजये ।
पीतार छोर देख मरु ली की घोर देख,
सांवरे की ओर देख, देखवो ही कीिजये ॥

टे ढ़ी चिका है याकी कुटी िचतवन है टे ढ़ी,


टे ढ़-े टे ढ़े लण अनेक का कारे के ।
टे ढ़े पट टे ढ़ी ीट टे ढ़े ह वु ण प, ु
सीधे से िहये म बसत िनपट बारे के ॥
टे ढ़े स स टे ढ़ी बातन स अित स,

३२
ीराधारस

टे ढ़-े टे ढ़े अर कढ़त मख ारे के ।
हम स टे ढ़ाई भूल मत किरयो कोऊ,
हम ह उपासी एक टे ढ़ी टांग बारे के ॥

छैल है छबीला महाबली महीपित है,


जाको नाम लेत होत सफल जारो है ।
िच है िविच अिन न िन जाक,
देखत जांगना आवत तमारौ है ॥
बाँकी है िभंगी है यंभ ू है सनातन है,
सब जीव ज ु पश ु पिन कौ सहारौ है ।
चोर है लवार स ु लट चटोकरा है,
टे ढ़ी टांग बारौ इ देवता हमारौ है ॥

ा के ान म न आवै कभू एक िछन,


शंकर समािध लाय ान धरत गाढ़ो है ।
ऋिष और मिु न जाकौ रैन-िदन धर ान,
ान म न आवै कभू तासौ हेत बाढ़ो है ॥
सोई िनरन जाकी माया को न आवे अ,
ानी ान लाय रहै सह धूप जाड़ो है ।
देखो भाय ज बिनतन के री आज आली,
ै के  अन नवनीत माँग ै ठाढ़ो है ॥

३३
ीराधारस

न ैन-चकोर मख-चंद  प ै बािर डार,
बािर डारौ िचिह मनमोहन िचतचोर प ै ।
ान क वािर डारौ हँसन दसन लाल,
हेरन कुिटलता और लोचन की कोर प ै ॥
ु ग-अंग ामा-ाम,
वािर डार मनिह सअं
महल िमलाप रस-रास की झकोर प ै ।
अितिह सघर ु बर सोहत िभंगी लाल,
सरबस वार वा ीवा की मरोर प ै ॥

पहले ही जाय िमले गनु म वन, फे री


प सधा ु मिध कीनो, न ैन पयान है ।
हँसिन, नटिन, िचतविन, ु कािन,
मस ु

सघराई, रिसकाई िमली मितपय पान है ॥
मोिह-मोिह मोहनमयी री मन मेरो भयो,
‘हरीच’ भेद न परत पहचान है ।
का भए ानमय, ान भए कामय,
िहये म न जान परै का है िक ान है ॥

कौन प, कौन रंग, कौन सोभा, कौन अ,


कौन काज महाराज िया वेष िकयो है ।
नाक म न, ह चूिरन भरे ह लाल,
कानन म कण फू ल, बदी भाल िदयो है ॥
चहार उर राज ै, चकली कं ठ साज,
मकु ु ट उतार ओढ़ चूनरी को लीयो है ।
नारायन ामी देख ची गई ारी भेख,
िखल-िखल हँिस राधे पट मख ु दीयो है ॥

३४
ीराधारस
ीजरस
एक रज-रेणक ु ा प ै िचंतामिण वािर डार,
बािर डार िव सेवाकु के िबहार प ै ।
लतन की पन प ै कोिट क वािर डार,
रंभा को वािर डार गोिपन के ार प ै ॥
ज की पिनहािरन प ै शची-रित वािर डार,
बैकुठ ं वािर डार कािलं दी की धार प ै ।
कह अभैराम एक राधाजू को जानत ह,
देवन को वािर डार न के कुमार प ै ॥

िगिर कीज ै गोधन मयूर नव कुन को,


पश ु कीज ै महाराज न के बगर को ।
नर कीज ै तौन जौन राधे-राधे नाम रटै,
तट कीज ै वर कू ल कािलं दी कगर को ।
इतने प ै जोई क कीिजये कँ ु वर का,
रािखये न आन फे र हठी के झगर को ।
गोपी-पद-पंकज पराग कीज ै महाराज,
तृन कीज ै रावरेई गोकुल नगर को ॥

वृाबन धाम नीको ज को िवाम नीको,


यामा-याम नाम नीको मिर अन को ।
कालीदह-ना नीको, यमनु ा को नीर नीको,

३५
ीराधारस
ु ा को खान नीको, ाद नीको क को ॥
रेणक
राधा-कृ  कुड नीको, सन को संग नीको,
गौर याम रंग नीको, अ यग ु च को ।
नील-पीतपट नीको, बंसीवट तट नीको,
लिलत िकसोरी नीकी, नट नीको न को ॥

वृावन आन िबहार चा दित के ,



ताको िदन-रात बात सिन-स ु िजयो कँ ।
िन
लिलत िहंडोरा, सांझी, रास रंग दीप माला,
फू लिन कु िच रचना िकयो कँ ॥
िनत ही बस यहाँ होरी िचत चोरी चाव,
नागिरया के िल ये सके िल के िलयो कँ ।
िदयो कँ येई और येई सख ु िलयो कँ,
येही िदन रैन रिसकन कौ िपयो कँ ॥

सहज ै ीकृ -कथा ठौर-ठौर होत तहाँ


कीरतन-धिु न मीठी िहय के उलास त ।
ामा-ाम प-गनु लीला-रंग रंग े लोग,
ितनके न ांत उर ेम के कास तै ॥
एरे मन ! मेरे चेत उनही स किर हेत,
नागर ड़ाय देत जग ःख-पास त ।
काम-ोध लोभ मोह मरता राग ेष,
चाह दाह ज ैह सब वृावन-बास त ॥

३६
ीराधारस
कीरत सता ु के पग-पग प ै याग जहाँ,
के शव की के िल कु कोिट-कोिट काशी ह ।
जमनु ा म जगाथ रेणक ु ा म रामेर,
त-त प ै परे जहाँ अयोा िनवासी ह ॥
गोिपन के ािर-ािर प ै हिरार जहाँ,
बी के दार तहाँ िफरत दास दासी ह ।
ग अपवग सख ु लेके करंग े कहा,
जानते नह हो हम वृावन वासी ह ॥

रिसकजन की िशा
गायो न गोपाल मन लाय के िनवािर लाज,
पायो न साद साध-ु मंडली म जाय के ।
छायो न धमक वृािविपन की कुन म,
रौ न शरन जाय िबलेस राय के ॥
नाथ जू न देख छो िछन है छबीली छिब,
िसंह पौिर परयो निहं शीश ँ नवाय के ।
कहै हिरदास तोिह लाज न आवै नेक,
जनम गँवायो, ना कमायो क आय के ॥

िचकर सँवारे नािहं अ-अ ामा-ाम,


ऐरी िधार और नाना कम कीवे प ै ।
पायन के धोइ िनज करन ना पान िकयो,

३७
ीराधारस
आली अार पर सीतल जल पीवे प ै ॥
िबचरे न वृावन कं ु ज लतान तरे,
गाज िगरै अ फुलबारी-सख ु लीवे प ै ।
‘लिलत िकशोरी’ बीते बरस अनेक ग,
देख े न ान ारे, छार ऐसे जीवे प ै ॥

कहा रसखान सख-सं ु पित समारु महँ,


कहा महायोगी ै लगाये अ-छार को ।
कहा साधे पानल, कहा सोये बीच जल,
कहा जीत लीने राज-िसंध ु वार-पार को ॥
जप बार-बार, तप संयम अपार त,
तीरथ हजार, अरे बूझत लवार को ।
सोई है गँवार िजिह कीनो निहं ार,
निहं सेयो दरबार यार न के कुमार को ॥

कं चन के मिरन दीिठ ठहरात नािहं,


सदा दीपमाल लाल रतन उजारे स ।
और भताई ु सब कहाँ ल बखान,
ितहािरन की भीर भूप टरत न ारे स ॥
गंगा जू म ाय मक ु ु ताहल टाय,
बेद बीस बार गाय ान कीजत सकारे स ।
ऐसे ही भये तौ कहा की रसखान,
जोप ै िच दै न की ीित पीत पटवारे स ॥

३८
ीराधारस
ठे  न राजा बाते क नह काजा,
एक तू ही महाराजा और कौन को सरािहये ।
ठे  न भाई, वाते क न बसाई,
एक तूही है सहाय और कौन पास जाइये ॥
ठे श-ु िम-उदासीन आठ जाम,
एक रावरे चरनन के नेह को िनबािहये ।
लोक सब झ ूठा एक तू ही है अनूठा,
सब चूमग े अँगठू ा, भ ु तू न ठा चािहये ॥


ीयगलरसाराधना

गनीजन सेवक अ चाकर चतरु के ह ,
किवन के मीत िच िहत गनु गानी के ।
सीधेन स सीधे महाबाँके हम बाँकन स,
हरीच नकद दमाद अिभमानी के ।
चाहवे की चाह, का की न परवाह क,
नेही नेह के िदबाने, सूरत िनवानी के ।
सवस रिसकन के सदास ु दास ेिमन के ,
सखा ारे कृ  के गलाम ु राधारानी के ॥

दास तौ ितहारे, जो उदास तौ ितहारे,


र पास तौ ितहारे, आम ख़ास तौ ितहारे ह ।
दीन तौ ितहारे, मित हीन तौ ितहारे,

३९
ीराधारस
जो नवीन तौ ितहारे, ाचीन तौ ितहारे ह ।
कू र तौ ितहारे, गण ु पूर तौ ितहारे,
राँच े नूर तौ ितहारे, सांच े सूर तौ ितहारे ह ।
भायक ितहारे, यश गायक ितहारे,
हो सहायक हमारे हम पायक ितहारे ह ॥

अर उदेह दाह, आँिखन वाह आँस,ू


देखी अटपटी चाह भीजिन दहिन है ।
सोइवो न जािगवौ , हँिसवो न रोइबो,
खोय खोय आप ही म चेटक लहिन है ।
जान ारे ानिन बसत प ै अनंदघन,
िवरह िवषम दसा मूक ल कहिन है ।
जीवन मरन बीच िबना बौ आय,
हाय कौन िविध रची नेही की रहिन है ॥

तेरी बाट हेरत िहराने औ िपराने पत,


थाके ये िवकल न ैना तािह जिप जिप रे ।
िहए म उदेग आग लािग रही रात ौस,
तोिह क अराध साध तिप तिप रे ।
जान घन आनंद य सह हेली दसा,
बीच पिर पिर ान िपसे चिप चिप रे ।
जीव ते भई उदास तऊ िमलन आस,
जीविहं िजवाऊँ नाम तेरौ जिप जिप रे ॥

४०
ीराधारस
काले परे कोस चिल चिल थक गये पाँय,
सखु के कसाले परे ताले परे नस के ।
रोय रोय न ैनन म हाले परे जाले परे,
मदन के पाले परे ान परवस के ।
‘हरीचंद’ अ हवाले परे रोगन के ,
सोगन के भाले परे तन बल खस के ।
पगन म छाले परे नांिघबे क नाले परे,
तऊ लाल लाले परे रावरे दरस के ॥

इन िखयांन कूँ न च ैन सपने  िमौ,


तास सदा ाकुल िवकल अकुलायँगी ।
ारे हिरचंदजू की बीती जािन औध ान,
चाहत चले प ै ये तो संग ना समायँगी ॥
देौ एक बार  न न ैन भिर तोिह यात,
जौन जौन लोक ज ैह तहाँ पछतायँगी ।
िबना ान ारे भये दरस त ु ारे हाय,
ु ही रिह जाँयगी ॥
मरे  प ै आँख ये खली

हम तौ ितहारे सब भांित स कहाव सदा,


हम स राव कौन सौ है सो सनाइ ु दै ।
ार प ै खड़े ह , बड़ी देर स अड़े ह यह,
आशा है हमारी तािह नकु तौ पराइ ु दै ।
‘हरीचंद’ जोिर कर िबनती बखान यही,
देिख मेरी ओर नकु मंद मस ु काइ दै ।
एरी ान ारी बार बार बिलहारी नक,
घूघँ ट उघािर मोिह बदन िदखाइ दै ॥

४१
ीराधारस

गजन बरज रहे री ब भांित मोिह,
संक ितनं की छांिड़ ेम रंग रांची म ।
 ही बदनामी लई कुलटा कहाई ह,
कलंिकिन बनी ऐसी ेम लीक खाँची म ।
कहै हिरच सबै छोड़ो ान ारे काज,
याते जग झ ूठौ रौ एक भई साँची म ।
नेह के बजाइ बाज छोिड़ सब लाज आज,
ँ ट उघािर जराज हेत ु नाँची म ॥
घूघ

संकीतनाराधन

मन े रटना लगाई रे, राधा नाम की ।


मन े रटना लगाई रे, राधा नाम की ॥ टे क ॥
मेरी पलक म राधा, मेरी अलक म राधा ।
मन े माँग भराई रे, राधा नाम की ॥ मन०े ॥
मेरे न ैन म राधा, मेरे बैन म राधा ।
मन े बैनी गथु ाई रे, राधा नाम की ॥ मन०े ॥
मेरी लरी म राधा, मेरी चनरी ु म राधा ।
मन े नथनी सजाई रे, राधा नाम की ॥मन०े ॥
मेरे चलने म राधा, मेरे हलने म राधा ।
किट िकं कनी बजाई रे, राधा नाम की ॥मन०े ॥
मेरे दाँय े बाँय े राधा, मेरे आगे पीछे राधा ।
रोम रोम रस छाई रे, राधा नाम की ॥मन०े ॥
मेरे अंग अंग राधा, मेरे संग संग राधा ।
‘गोपाल’ बंशी बजाई रे, राधा नाम की ॥मन०े ॥

४२
ीराधारस
मन भूल मत जइयो राधा रानी के चरण ।
राधारानी के चरण यामा ारी के चरण ।
बाँके ठाकुर की बाँकी ठकुरानी के चरण ॥टे क॥
वृषभान ु की िकशोरी सनीु ग ैया ं ते भोरी ।
ीित जािनके ं थोरी, तोिहं राखगी शरण ॥१॥
जाकूँ याम उर हेर, राधे राधे राधे टे र ।
ु म बेर बेर, कर नाम से रमण ॥२॥
बाँसरी
भ ेिमन बखानी, जाकी मिहमा रसखानी ।
िमले भीख मन मानी, कर ार से वरण ॥३॥
एरे मन मतवारे, छोिड़ िनया के ारे ।
राधा नाम के सहारे, सप जीवन मरण ॥४॥

वृषभान ु की लली या सामिलया स नेहरा लगायकै चली ॥


अइयो रे अहीर के तू हमरी गली,
चंदन िछरकूँ गी लाला तेरी पगड़ी ॥१॥
कोरी कोरी मटुकी दही ध ते भरी,
रमहल म ी राधे जू खड़ी ।
हाथन म गजरे ु
गलाब की छड़ी,
नक ठाढ़े रिहयो लालजी म कबकी खड़ी ॥२॥
न ैनन म कजरा ु
मख भरयौ पान,
वारी सी उमिरया राधे बड़ौ ही गमान ु ।
वृावन की कु गिलन म रौ है रास,
यह धिु न गाँव ामी कार दास ॥३॥

४३
ीराधारस
ु तीर ।
अके ली मत जइये राधे यमना
वंशी वट म ठग लागत है सर ु याम शरीर ॥

िबन फाँसी िबन भजबल मारत िबन गाँसी िबन तीर ।
बाके प जाल म फँ िसके को बिचहै ऐसो बीर ॥
घर बैठो भर देऊँ गगिरया मन म राखो धीर ।
बीर न पान करन हम ागो कािली कौ नीर ॥
धन सतु धाम गये निहं िचा ाण गये निहं पीर ।
सूरदास कुलकान गई ते धृग-धृग ज शरीर ॥

आज मेरे अँगना म आओ नलाल, आवो गोपाल ।


दरशन की ासी गजिरया ु याम ॥
अना म आवो मेरे माखन कूँ खावो ।

मीठी-मीठी बितयाँ सनावो नलाल ॥
अ प ै झंगिलयाु शीश प ै लटुिरया ।
ध की दंतिु लया िदखावो नलाल ॥
रैन निहं सोवे उिठ भोर ही िवलोवे दिध ।
गाव और ाव तोही कूँ नलाल ॥
कोरी-कोरी मटकी म धौरी-धौरी गईयन कौ ।
ारौ ही जमाय दही राौ नलाल ।
खावो जरानी को माखन िन-ित ।
आज ेम ते गरीबनी कौ खावो नलाल ॥

४४
ीराधारस
आज ठाड़ौ री िबहारी यमना ु तट प ै ।
मित ज ैयो री अके ली कोई पनघट प ै ॥
मकु ुट लटक भृकुटी की मटक ।
मन गयो री अटक याकी पीरी पट प ै ॥ आज०
नजू को छौना देिख धीरज रो ना ।
बीर ऐसो क टोना नटवर नट प ै ॥ आज०

गजन ास, कै स े बस ज बास ।
मन बन गयौ दास, घघ ँ ु रारी लट प ै ॥ आज०
टी कुल लाज, गोपी आ भाज-भाज ।
याम रिसया को राज आज बंशीवट प ै ॥ आज०

झाँकी बनी िवशाल बाँके िगरधर की ॥


सोहत मोर मक ु ु ट अित नीको । च िछपे रिव लागत फीको ।
गल बैजीमाल ॥ बाँके िगरधर की ॥
बागौ लाल के शिरया पटका । ताम रिसकन का मन अटका ।
ा मदन गोपाल ॥ बाँके िगरधर की ॥
कनक कड़े िकं िकणी नग वारी । बाँको छैल बो िगरधारी ।
देखत भई िनहाल ॥ बाँके िगरधर की ॥

कं ु िचत के श गलाबी चीरा । नासा मणी िचबक ु म हीरा ।
रिसया न को लाल ॥ बांके िगरधर की ॥
याम संग राधा नव गोरी ! देव समन ु बरष ै भिर झोरी ।
मिु दत भई ज बाल ॥ बाँके िगरधर की ॥

४५
ीराधारस
झ ूला झ ूलत िबहारी वृावन म ।
कै सी छाई हिरयाली आली कुन म ॥ टे क ॥
न कौ िबहारी, इत भान ु की लारी,
जोरी लग ै अित ारी, बसी नयनन म ॥१॥
जमनु ा के कू ल, पिहर सरंु ग कू ल,
तैस े फू ल रहे फू ल, इन कदमन म ॥२॥
गौर याम रंग, घन दािमन के संग,
भई अँिखया अपंग, छिब भिर मन म ॥३॥
राधा मख ु ओर, न ैन ‘याम’ के चकोर,
सिखयन ेम डोर लगी चरनन म ॥४॥

वृावन धाम अपार भजे जा राधे राधे ।


आई सामन की बहार बृज म छाई है हिरयाली ॥
घनघोर घटा नभ छाई, पिपहा न धूम मचाई ।
मी मी पर फुहार । भजे जा राधे २ ॥१॥
फू ल लता बेिल ीबन म, नाच मोर सघन कुन म ।
कोयल चढ़ी आम की डार । भज ै जा राधे २ ॥२॥
बादर म दािमन दमकै , मोहन कौ पटुका चमकै ।
शीतल सर ु चलै बयार । भज जा राधे २ ॥३॥
झ ूला परयौ कदम की डारी, झ ूल ीराधा िगरधारी ।
झोटा दै रह सब बृजनार । भज जा राधे २ ॥४॥
लै रही िहलोरे जमना, जहाँ शोर कर शक ु मना ।
फू लन मर रहे गारु । भज जा राधे २ ॥५॥
तन हरे रंग की सारी, पिहर वृषभान ु लारी ।
(िकशोरी) गाम मधरु मार । भज जा राधे २ ॥६॥

४६
ीराधारस
बल ेम के पाले पड़कर, भ ु को िनयम बदलते देखा ।
उनका मान भले टल जावे, जन का मान न टलते देखा ॥
िजनकी के वल कृ पा ि से, सकल सृि को पलते देखा ।
उनको गोकुल के गोरस पर, सौ-सौ बार मचलते देखा ॥
िजनके चरण-कमल, कमला के करतल से, न िनकलते देखा ।
उनको बृज करील कु म, कं टक पथ पर चलते देखा ॥
िजनका ान िवरि शंभ,ु सनकािदक से न सँभलते देखा ।
उनको वाल सखा-मंडल म, लेकर गद उछलते देखा ॥
िजनकी ब भृकुिट के भय से, सागर स उछलते देखा ।
उनको माँ यशोदा के भय से, अ ु िब ग ढलते देखा ॥१॥
सप िदए मन-ाण त ु  को, सप िदया ममता अिभमान ।
जब ज ैसे मन चाहे बरतो, अपनी व ु सवथा जान ॥
मत सकुचाओ मन की करते, सोचो नह सरी बात ।
मेरा कुछ भी रहा न अब तो, तमु को सब कुछ पूरा ात ॥
मान अमान ःख-सख ु से अब, मेरा रहा न कुछ स ।
तु  एक कै व मो हो, तमु ही के वल मेरे ब ॥
रं कह, कै स े भी रहती, बसी त ु ारे अर िन ।
टे सभी अ आय अब, िमटे सभी स अिन ॥
एक त ु ारे चरण-कमल म, आ िवसिजत सब संसार ।
रहे एक ामी बस तमु ही, करो सदा  िवहार ॥२॥

४७
ीराधारस
मांझ
कजरारी तेरी आँख म ा, भरा आ कुछ टोना है ।
तेरा तो हँसन और का मरन, अब जान हाथ से धोना है ।
ा खूबी  बयान कँ, यह सर ु ाम सलौना है ।
याम सखी ाण धन जीवन, ज का एक िखलौना है ॥

ा चाल शान अलबेली है, गजराज चले मे-मे ।


जो तेरी तरफ सहज देखा, अनमोल िबके से-से ।
ा प माधरु ी बरसत है सिख ! चले जात रे-रे ।
एरी सखी मनमोहन ने, मन छीन िलया हँसते-हँसते ॥

गौर-ाम बदनारिबंद पर, िजसको वीर मचलते देखा ।


ु ान संग फँ स, िफर निहं नेक सँभलते देखा ।
न ैन बान मस
लिलतिकशोरी जगल ु इक म, बत का घर जलते देखा ।
डूबा ेमिस ु का कोई, हमने नह उछलते देखा ॥

देखो री यह न का छोरा, बरछी मारे जाता है ।


बरछी सी ितरछी िचतवन की, प ैनी री चलाता है ।
हमको घायल देख बेदरदी, म-म मस ु काता है ।
लिलतिकशोरी जखम िजगर पर, नौनपरी ु बरु काता है ॥

४८
ीराधारस
ीवृाबन रज दरसावे सोई िहतू हमारा है ।
राधामोहन छबी छकावे सोई ीतम ारा है ।
कािलं दी जल पान करावे सो उपकारी सारा है ।

लिलतिकशोरी जगल िमलावे सो अँिखय का तारा है ॥

॥ीभािभलाषा॥
इतना तो करना ामी, जब ाण तन से िनकले ।
गोिव नाम कहकर, मेरा ाण तन से िनकले ॥टे क॥
ीगंगा जी का तट हो, या जमनु ाजी का बट हो ।
मेरा साँवरा िनकट हो, िफर ाण तन से िनकले ॥
ीवृावन का थल हो, मेरे मख ु म तलु सी दल हो ।
िव ु चरण का जल हो, िफर ाण तन से िनकले ॥
मेरा साँवरा खड़ा हो, वंशी का र भरा हो ।
ितरछा चरण धरा हो, जब ाण तन से िनकले ॥
िसर सोहना मक ु ु ट हो, मख
ु ड़े प ै काली लट हो ।
यही ान मेरे घट हो, जब ाण तन से िनकले ॥
कान जड़ाऊँ बाली, लट की लट ह काली ।
देखूँ अदा िनराली, जब ाण तन से िनकले ॥
के शर ितलक हो आला, मख ु च सा हो उजाला ।
डाँ गले म माला, जब ाण तन से िनकले ॥
पचरंग काछनी हो, पट पीत म तनी हो ।
मेरी बात सब बनी हो, जब ाण तन से िनकले ॥
पीतारी कसी हो, होठ म कुछ हँसी हो ।

४९
ीराधारस
छिब ये ही िदल बसी हो, जब ाण तन से िनकले ॥
सधु मझ ु को ना हो तन की, तैयारी हो गमन की ।
बृज बन की होव लकड़ी, जब ाण तन से िनकले ॥
उस व जी आना, मझ ु को न भूल जाना ।
नपु रु की धनु सनाना,
ु जब ाण तन से िनकले ॥
जब कठ ाण आवे, कोई रोग ना सतावे ।
यम दश ना िदखावे, िफर ाण तन से िनकले ॥
मेरे िनकले ाण सख ु से, तेरा नाम िनकले मख
ु से ।
बच जाऊँ घोर ख से, िफर ाण तन से िनकले ॥
ये नेक सी अरज है मानो तो ा हरज है ।
ये ही दास की गरज है िफर ाण तन से िनकले ॥
इतना तो करना ामी जब ाण तन से िनकले ॥

५०
ीराधारस

॥ ज के रिसया ॥
ए री अलबेलो छैल छबीलो ज म बाँकेिबहारी लाल ।
बाँकेिबहारी लाल ज म कु िबहारी लाल ॥
एरी अलबेलो०
मोर मक ु ु ट मकराकृ त कुडल गल बैजी माल ।
ठोड़ी पर तो हीरा सोहै न ैना बने िवशाल ॥
एरी अलबेलो०
पीतार को जामा सोहै पटका लाल गलाल ु ।
कमर कधनी हिर के सोहै नूपरु की झनकार ॥
एरी अलबेलो०
ध भात को भोग लगत है राज भोग ृग ं ार ।
स ैन भोग तो खूब लगत है बट जावै परसाद ॥
एरी अलबेलो०
िनिधवन म हिर रास रचावै यामा ारी साथ ।
िनिधवन तो ीिबहारीजी को सेवक है हिरदास ॥
एरी अलबेलो०

बाँकेिबहारी की बाँकी मरोर, िचत लीा है चोर ।


बाँके मकु ु ट बाँके कुडल िवशाल
गल हार हीरा के मोितयन की माल
बाँके ही पटका के लटका की छोर िचत लीा है चोर ॥१॥
झंगलीु जड़ाऊ जवाहरात की
बाँकी लकुिटया सजी हाथ की
बाँके पीतार की झलके िकनोर िचत लीा है चोर ॥२॥

५१
ीराधारस
कमल से कोमल ह बाँके चरन
हे याम सूरत मनोहर बरन
भ की ीत ज ैसे चंदा चकोर िचत लीा है चोर ॥३॥
बाँकी है झाँकी और बाँकी अदा
भ के कारज सधारे ु सदा

ऐसे ही दीन की सिनए िनहोर िचत लीा है चोर ॥४॥

तेरी भोरी सी सूरितया मेरे मन गई है समाय ।


रे साँविलया निकशोर ॥
मोर मक ु ु ट किट काछिन सोहे गल वैजी माल,
कानन कुडल नासा मोती और घघ ँ ु राले बाल ।
तेरे न ैना बड़े रसीले मेरे मन के िचत चोर ॥१॥
एक िदन िमल गयो मोय डगर म, बरबस लई बल ु ाय,
कर बरजोरी मेरी बिहयाँ मरोरी म म मस ु काय ।
माखन की मटकी फ़ोर के िफर हँसन लयो मख ु मोर ॥२॥
ट ट दिध माखन खावे वालन लेय बल ु ाय,
धािकट-धमु िकट, धमु िकट-धािकट नाचे मोय नचाय ।
तेरी बंशी नेक बजाय जा म िवनय कँ कर जोर ॥३॥
ीराधावभ देख े िबना परे न मोकूँ च ैन,
यग ु ल छिब की झाँकी पाऊँ सफल ु होय मेरे न ैन ।
म वारी कुिबहारी तेरे चरन-कमल िचत डोर ॥४॥

५२
ीराधारस
नेकु नािच दै िबहारी मेरे अँगना म आय ।
हँिस मरु ली बजाय दे माखन खवाय ॥टे क॥
छोटो सौ गपाल ु तारी दैिह ज बाल ।
नाचौ नजू के लाल दैह सगाई कराय ॥१॥
झठँ ू कहै मैया कब लावैगी ैया ।
तेरी चाँगो न ग ैया, कं नजू स जाय ॥२॥
छोटी एक ग ैया, मँगवाऊँ गी कैया ।
ध पीयौ दोऊ भैया, तेरी चोटी बिढ़ जाय ॥३॥
गायबे बधाई कब आवैगी गाई ।
झ किरदै सगाई, दीजौ लहा बनाय ॥४॥
बरना बनाऊं गात उबिट वाऊँ ।
संग दाऊ कौ पठाऊँ , ाह लावैगो कराय ॥५॥
बिल को पठावै, िन मोही को िखजावै ।
‘याम’ तािह न पावै, देगौ हाऊ ते डराय ॥६॥

नाना भाँित नचायौ, भन न ै मोय ।


लोक लाज तिज इनिह काज मन े ब ैकुठ िबसरायौ ॥टे क॥

गज ने पकारयौ, तब गड़ िबसारयौ,
ु ेम की पकार
जाय ाह कूँ संहारयौ, सिन ु ।
जब ौपदी िबचारी, बोली आओ िगरधारी,
मोिह आस है ितहारी, जाऊँ और काके ार ॥
ु टे र नह करी देर मन,े तरु तिह चीर बढ़ायो ॥१॥
सनी
नरसी भगत काज सामिलया सेठ बौ,
५३
ीराधारस
भात पहरायौ लाज राखी जन की ।

ाद ने पकारयौ नरिसंह प धारयौ,
िहरनकयप िवदारयौ, सिध ु भूौ तन की ॥
छोड़ िमठाई यधन की साग िबर घर खायौ ॥२॥
भई वु कूँ गलानी, तिज दीनी रजधानी,
मेरी माया पहचानी, मोते िमौ है िबहँिस ।
नामदेव ने बल ु ायौ, वाकौ छर बायौ,
भेष मोिहनी बनायौ, िलयौ अमृत कलस ॥
देवन सधाु िपवाय ेम स, दैन सग िदखायौ ॥३॥
कं श म उठाऊँ रण छोड़ भाग जाऊँ ,

परिता ं भलाऊँ कं भीख मागूँ जाय ।
प बामन कौ धार, जाय पँो बिल ार,
तीन पड़ म ही तीन लोक नाप िलए धाय ॥
महाभारत म अजनु के संग म सारथी कहायौ ॥४॥
म मीरा कौ गपाल ु िगरधारी नलाल,
और कं स ं कौ काल दास तल ु सी कौ राम ।
ली कौ भरतार सब वेदन कौ सार,
बौ न कौ कुमार, सूरदासजी कौ याम ॥
सोई वृषभान ु िकशोरी न ै चरनन कौ दास बनायौ ॥५॥

५४
ीराधारस
ु ।
भन कौ िहतकारी म कृ मरारी
भाव अधीन रं भन के िगनू न नृपित िभखारी ॥टे क॥
तोता कूँ पढ़ाबे स गिणका कूँ तार िदयो,
कं ु जर कूँ तार िदयौ ेम की पकार
ु म ।
वु छ शीश िदयो ाद उबार िलयो,
ोपदी ने बाँध िलयो के चार तार म ।
बन-बन गाय चरावत डोँ ओिढ़ कमिरया कारी ॥
भन को० ॥१॥
झठँ ू े बेर खाय जाऊँ चावल मु ी कहाँ पाऊँ ,
च की चले तहाँ रथ कूँ चलाऊँ म ।

डी ं चकाऊँ हाथ िगिर ले उठाऊँ ,
ु ेम की पकार
नंग े पाँव उठ धाऊँ सिन ु ।
तोँ धनषु यंवर रोपूँ नर ते बन जाऊँ नारी ॥
भन को० ॥२॥
चरण कमल तिज कमला न जाय कँ,
ज के करील काँटे मेरे मन भाये ह ।
भान ु की लारी जब मान करे ारी,

बन ेम को पजारी लै चरन मनाऊँ म ।
जगत को नाथ जगोिपन अनाथ िकयो ेिमन की बिलहारी ॥
भन को० ॥३॥

५५
ीराधारस
कै सौ माँग े दान दही कौ, रोकै मारग िगरधारी ।
िनत ित िनकस गई चोरी ते, गोरी बरसाने वारी ॥
रोकै मत ग ैिल नयौ दानी भयौ छैल,
सनु न के ठग ैल तेरे लाज न रही ।
रही कुल की जो रीित और आपस की ीित,
ऐसी करै अन रीित नीित तोर  दई ॥
दई उलटी चाल चलाय जाय न ैक पूछौ मँहतारी ॥१॥
पूँ कहा माय दान ल ग ु
ँ ो चकाय,
नािहं सूधी बतराय इठलाय  घनी ।
घनी देखी नई नार बन बड़े की कुमािर,
मोते कहै ठगवार लग ै आप ठगनी ॥
ठग न ैना तेरे चपल गजिरया ु िहरदे की कारी ॥२॥
कारी जायौ राित याते कारौ भयौ गात,
दही चोर-चोर खात बात ऐठं की करौ ।
करौ कं स को न डर रोिक राखी है डगर,
दऊँ गलचाु ै धर घर रोमते िफरौ ॥
िफरौ घर-घर माँगत छाछ छैल तमु कबके बलधारी ॥३॥
बल देख ै कं स मेरौ वािह मांगो सवेरो,
नािहं फू फा लग ै तेरौ रट वाही की लई ।
लई खूब समझाय रही बातन बनाय,
तोिह दैग ँ ो नचाय ज ैसे दही म रई ॥
रईयत बाबा की बस तेरी सी सौ गोबरहारी ॥४॥
रईयत हमारी लाल अब बने भूिमपाल,

५६
ीराधारस
जोिर दस वाल-बाल बाँकुरे भये ।
भये मथरु ा म आप बंिद काट माई-बाप,
भानपु रु के ताप गाय चराइ ाँ रहे ।
रहे उलटी आँख िदखाय कमिरया ओढ़ लई कारी ॥५॥
कमरी हमारी तीन लोक तेऊ ारी,
तू तो जान ै का गँवारी पाव देव न पार ।
पार पायौ नािहं शेष इ अज  महेस,
मेरौ वािरया कौ भेष देस ेम कौ चार ॥
चट दऊँ गो कं स पछार ाम कामिर म गनु भारी ॥६॥

वािलन किरदै मोल दही कौ, मोकूँ माखन तिनक चखाय ॥


सनु गोरी बरसाने वारी, नेक चखाय दै माखन ारी,
आज मान लै बात हमारी ।
मटुकी के दशन करवाय दै,  राखी बकाय ॥१॥
नाँय तौ आज समझ ले मन म, काऊ िदन हाथ परैगी बन म,
सबरी कसक िनकाँ िछन म ।
लकुटी मािर फोिर दऊँ मटकी, लऊँ गो दान चकाय
ु ॥२॥
साँच समझ लै नाह धोखौ, जा िदन मेरो लग जाय मौकौ,
दही तेरौ िबकवाय दऊँ चोखौ ।
चोरी कर आज तेरे घर म पहले दऊँ जताय ॥३॥
पनघट प ै भरवे जाय पानी, मोय तेरी गागर ढ़कानी,
यही हमारी रीित परानीु ।
अबं समिझ ‘याम’ समझावै, िफर पीछे पछताय ॥४॥

५७
ीराधारस
अपनो गाँव रखो नरानी ! हम कह और बसगी जाय ॥टे क
तेरे लाला का गणु सनु री, कं तोय समझाय ।
देखन म लागे छोटो सो, हाल बड़ो हो जाय ॥१॥
सूनी बाखर खोल के साँकर, वह भीतर घस ु जाय ।
छका म ते माखन खावे, ध दही ढरकाय ॥२॥
म जल-जमनु ा नहाने चाली, चीर चोर ले जाय ।
लेके चीर कदम पर बैो गूठँ ो रौ िदखाय ॥३॥
एक िदना मोहन को पकड़यो, बक िछपक कर जाय ।
अपनो हाथ ड़ाय गयो, देवर को कर पकड़ाय ॥४॥
च सखी भज बालकृ  छिब लाला को लेओ समझाय ।
वृावन की कु गिलन म ट ट दिध खाय ॥५॥

ऐसौ ारौ लग ै न कोई ज ैसौ ारौ मोय बृज धाम ।


लता-पता िय वृावन की, अित अत ु शोभा कं ु जन की,
छाछ लग ै िय बृजगोिपन की ।
वृ कदन के झकेु ीयमनु ा के तीर ।

नाच ै मोर सहामने बोल कोिकल कीर ॥
िनमल नीर सरोवर सर ु भरे रह िनिशयाम ॥१॥
जभूिम मधपु रीु हमारी, गोकुल मांिह पूतना मारी,
दाऊजी हल मूसर धारी ।
मानसरोवर बेलबन माँट और भाडीर ।
चीरघाट आग लखौ जहाँ हरे सिखन के चीर ॥
बंसीवट प ै महारास ल अित ही अिभराम ॥२॥

५८
ीराधारस
िगिर गोवधन की बिलहारी, जाते नाम परयौ िगरधारी,
राधा कृ  कुड छिब ारी ।
बरसानौ लिख िया कौ है अनपम ु ान ।
पीरी पोखर सांकरी खोर और गढ़ मान ॥
मोरकुटी गहवर बन बिसक भज लै राधा-नाम ॥३॥
शोभा देख आिद बी की, झाँकी कर चमाजी की,
चरण पहाड़ी है अित नीकी ।
मधबु न ताल कुमोद बन दिमल बला जान ।
ादस बन उपबन िनरिख ीगोपेर भगवान ॥
बट संकेत देख ता आग है मेरौ न गाम ॥४॥
शु ेम मूरित बृज नारी, मीठी दय ेम की गारी,
वाल नचाम दै-दै तारी ।
और धाम ऐय मय तहाँ िु त गनु गान ।
यहाँ घर-घर चोरी कर पर भगवान ॥
ओिढ़ कमिरया गाय चराऊँ डों नंग े पाम ॥५॥

पकरौ री जनािर कैया होरी खेलन आयौ है ।



संग म अित उाती वाल, हाथ िपचकारी फट गलाल,
नाच रहे ढप बजाय दै ताल ।
कमोरी रंगन की भिर लायौ है ॥१॥ पकरौ री बृजनार ०
लेऔ िपचकारी सबिह िछनाय, यामकूँ गोपी देऔ बनाय,

कं चकी किट लहँगा पहराय ।
करौ सबही अपने मनभायौ है ॥२॥ पकरौ री बृजनार०
५९
ीराधारस

ु ऊपर गोबर आज,


एक वाल जाय निहं भाज, मलौ मख
लाज कौ होरी म निहं काज ।
बड़े भािगन ते फागनु आयौ है ॥३॥ पकरौ री बृजनार०
ु ु मार, है ग सावधान बृजनार,
दई आा वृषभानक
आय गये तबही कृ मरु ार ।

हो हो होरी श सनायौ है ॥४॥ पकरौ री बृजनार०

फट ते िलयौ गलाल िनकार, िदयौ राधे के ऊपर डार,
सखीन के मौहड़े िदए िबगार ।
सखन न ै हा खूब मचायौ है ॥५॥ पकरौ री बृजनार०

उड़ायौ भर-भर मु ी गलाल, है गये धरती बादर लाल,
कू द रहे हो हो करक वाल ।
दाव बृजगोिपन न ै तब पायौ है ॥६॥ पकरौ री बृजनार०

भाजक मोहन पकरे जाय, गाल प ै गलचा िदए जमाय,
लई िपचकारी तरु त िछनाय ।
कैया ज गोिपका बनायौ है ॥७॥ पकरौ री बृजनार०
चतरु ता सबरी दई भलाय,
ु सामरौ न ैनन हा-हा खाय,
ु ाय ।
‘िकशोरी’ रह म मस
न कौ घूघ
ँ ट मार नचायौ है ॥८॥ पकरौ री बृजनार०

६०
ीराधारस
॥ पद ॥

धिन धिन रािधका के चरन ।



सभग सीतल अित सकोमल ु कमल के से वरन ॥
रिसकलाल मन मोदकारी िबरह सागर तरन ।
दास परमान िछन-िछन ाम िजनकी सरन ॥

चाँपत चरन मोहनलाल ।


कँ ु विर राधे पलं ग पौढ़, सरी
ु नव बाल ॥
कबँ कर गिह न ैन लावत, कबँ वावत भाल ।
नदास भ ु छिब िबलोकत ीित के ितपाल ॥

लगन नह टै एरी बीर ।


ताने दे भले नाम धरो चाहे कोिट करो तदबीर ॥
िछन म करत चतरु को बौरा नृप को करत फ़क़ीर ।
नारायण अब किठन है बचबो िवंध िहये ग तीर ॥

बस मेरे नयनन म नलाल ।


साँवरी सूरत माधरु ी मूरत रािजव नयन िवशाल ॥
मोरमक ु ु ट मकराकृ त कुडल अण ितलक िदए भाल ।
अधरन बंशी कर म लकुटी कौभु मिण बनमाल ॥
बाजूब आभूषण सर ु नूपरु श रसाल ।
दास गोपाल मदनमोहन िय भन के ितपाल ॥

६१
ीराधारस
लटकत आवत कु भवन ते ।
ढरु -ढरु परत रािधका ऊपर जात िशिथल गवन ते ॥
चक परत कबँ मारग िबच चलत सगं ु ध पवन ते ।
भर उसास राधा िवयोग भय सकुचे िदवस रवन ते ॥
आलस िमस ारे न होत ह नेकँ ारी तन ते ।
रिसक टरो िजन दशा याम की कब मेरे मन ते ॥

ु ु ट पर वारी जाऊँ नागर ना ।


मक
सब देवन म कृ  बड़े ह  तार म चा ॥
सब सिखयन म राधेजी बड़ी ह  निदय म गंगा ।
चसिख भज बालकृ  छिब काटो यम के फा ॥

ु मोरी ।
ीराधे दे डारो ना बाँसरी
जा वंशी म मेरे ाण बसत ह सो वंशी गई चोरी ॥
सोने की नाह काा पे की नाह हरे-हरे बाँस की पोरी ।
काहे से गाऊँ राधे काहे से बजाऊँ काहे से लाऊँ गउआँ घेरी ॥
ु से गाओ ारे ताल से बजाओ लकुटी से लाओ ग ैयाँ घेरी ।
मख
चसखी भज बालकृ  छिब हिर चरणन की चेरी ॥

॥ीगोिवाराधन॥

ु , हे नाथ नारायण वासदेु व ।


ीकृ  गोिव हरे मरारे
गोिव मेरी यह ाथना है,
भूं न म नाम कभी त ु ारा ।
िनाम होके िदन-रात गाऊँ ,
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥१॥
६२
ीराधारस
देहाकाले तमु सामने हो,
वंशी बजाते मन को भाते ।
गाता यही म तन नाथ ागू,ँ
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥२॥
धा सभी ह जगोिपकाएं,
गाती सदा जो हिरनाम ारा ।
गो दोहते भी यह गीत गाती,
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥३॥
गोपी दही छाछ िबलो रही है,
मीठा करे श बड़ा मथानी ।
गाती मथानी संग नारी सारी,
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥४॥
डाली मथानी दिध म िकसी ने,
है ान आया दिध चोर का ही ।

गद ्-गद ् आ कठ पकारती है,
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥५॥
ारे ! जरा तो मन म िवचारो,
ा साथ लाये अ ले चलोगे ।
जावे यही साथ सदा पकारो, ु
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥६॥
नारी धरा-धाम सपु ु ारे,
सि सद ् बाव  सारे ।
कोई न साथी हिर को पकारो, ु
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥७॥
नाता भला ा जग से हमारा,

६३
ीराधारस
आये यहाँ  ! कर ा रहे हो ?
सोचो िबचारो हिर को पकारो, ु
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥८॥
से सखा ह हिर ही हमारे,
ु ु ारे ।
माता-िपता-ामी-सब
भूलो न भाई िदन-रात गावो,
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥९॥
गोिव दामोदर माधवेित,
हे कृ  हे यादव हे सखेित ।
ीकृ  गोिब हरे मरु ारे,
हे नाथ नारायण वासदेु व ॥१०॥

संकट हरैगी करेगी भली वृषभान की लली ।


तेरे भ को भारी भरोसा रहे, जो आवै शरण वाकी बया गहै,
 के दल म करै खलबली ॥ वृषभान की लली ...
राधा ीराधा ीराधा रट , राधा रट कोिट ाधा िमट ,
ारी जो लागे रंगीली गली ॥ वृषभान की लली ...
ु पती अपने बस म िकये, जहाँ पग धरे याम न ैना धरे,
िभवन
छिलया ने ब प धर-धर छली ॥ वृषभान की लली ...
बरसाने वारी तू मेरी सहाय, दीनन दया नेक दरश तो िदखाय,
राधा तपा करी जो फली ॥ वृषभान की लली ...

६४
ीराधारस

ामी कृ च भगवान कुमर रानी यशधा


ु के ह ।
िलयौ भ ु मथरु ा म अवतार,

खल गये तारे ब िकवार,
चले वसदेु व शोध प ै धार,
जमनु ा हट गयी चरण पखार,
ज म है रहे ज ै ज ैकार,
है रहे ज ै ज ैकार पु भये न बाबा के ह ।
ज सनु गयौ कं स घबड़ाय,
पूतना लीनी तरु त ु ाय,
बल
ु ाय,
कही वाय खूब तरह समझ
कुचन ते जइयौ जहर लगाय,
दोहा - गोकुल पँची जाय कै नंदरानी के ार ।
पलना म ते कृ  कूँ लीनौ गोद उठाय ॥
जहर भरे दोऊ कुचन याम ने िकये सधा
ु के ह ।
जतन कर गयौ कं स मन हार,
न बस म आये कृ  मरु ार,
वृज म िनत नये करत िवहार,
दोहा - िनत नये करत िवहार ज भ ु चढ़ै कदम की डार ।
आम रास कपट धर ण म डार मार ॥

६५
ीराधारस

अका बका वासरु मारे पइया सकटा के ह ।


बस मथरु ा म के शवच,
कर दशन होवे आन,
काट द जनम-ज के फ ।

दोहा – के शवच गपाल के िनत उठ दशन जाँय ।
मिहमा याके जनम की क किव करे बखान ॥
कहते घासीराम कृ  मरवैया कं स के ह ॥

पाँड़ े पूछ रौ वालन ते भ ैया कहाँ नंद कौ ार ।



सनत ु
मनसखा आगे आये,
कह बाबा तू कहाँ ते आयौ,
गाँव नाम िज ने बतलाये,
जशधु ा जी से िमलवे आये,
ु टे र नंदरानीजी ने िनकस के आय बाहर ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
सनी
हाथ जोर चरनन िसर नाई,
आसन चौकी िदयौ िबछाई,
पीहर की पूछी कुसलाई,
राजी ु ी
ख़श भावी भौजाई,
ु सब तेरे सकल कुटुम पिरवार ॥ पाँड़ े पूछ रौ .
िज ने कही सखी

६६
ीराधारस

भोजन कूँ सामान मँगाऊँ ,


खीर पकाओ तो ध कढाऊँ ,
जो िच होय सोई बनवाऊँ ,
जब तक तमु ान करोगे तब तक सब तैयार ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
ु ा
बल ु
मंसखा संग म कीनौ,
नहावे कूँ पाँड़ े चल दीनौ,
जमनु ा म धिस गोता लीनौ,
पहरे व रिव है जल दीनौ,
संा तप ण पूजा करवै म है गई अवार ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
खच लकीर चौका की आड़ी,
ध पाक की धर दई हाँड़ी,
ँु
धआ लयौ आसन म भारी,
ढोक दत म जर गई दाड़ी,
बर की रखवारी किरयौ है क खूब िशयार ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
भई रसोई थार सजायो,
आरोगो  िवलम लगायो,
मारन लगे सपा भ ु जी, िगरधर नकुमार । पाँड़ े पूछ रौ ...
िज देख े न ैन उघारी,
भोजन कर रहे कृ मरु ारी,

६७
ीराधारस

देख रही यशधु ा मिहतारी,


भाँग खाय िज भयौ बावरो कर रही सोच िवचार । पाँड़ े पूछ रौ
जब पाँड़ े कूँ ु
गा आयौ,
नदरानी से बचन ु
सनायौ,
चौका म ु
घस लाला आयौ,
झठँ ू ौ िकयौ पेट भर खायौ,
िदन भर पौ रसोई कीनी सो सब दई िबगार ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
छ – जशधु ा ने पकरे कुमर जू मन म बत ःख पायक ।
लैक लकुट किहवे लगी नलाल कूँ समझ
ु ाय क ॥
माखन व िमसरी खायक खेलवे कूँ तू गयौ ।
झठँ ू ौ िकयौ चौका िबगारो िव के संग छल भयौ ॥
भूके रहे िज देवता यह बड़ौ भारी पाप है ।
आफत म आफत आ पड़ी है देन कही वह ाप है ॥
यह सनु वचन नलाल कहै मैया  होत उदास है ।
तेरौ कैया लािढ़लौ भ कौ िनत दास है ॥
भ मेरौ नाम ल मोकूँ रटै ह िनस िदना ।
मोय कल पड़े ना वा भ के देख े िबना ॥
यह सनु वचन नंदलाल के ान पाँड़ े कूँ भयौ ।
ध है भ ु ध है और लौट आँगन म गयौ ॥

६८
ीराधारस

ु पाय क ।
आँगन म डोलै ढ़कतो मन म बत सख
जो चूक भ ु मोस भई दीजौ सभी िबसराय क ॥
अित िविच मैया व मँगाये,
पाँड़ े को भोजन करवाये,
दई दिणा िवदा कराये,
ु ते भरे रह भडार ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
आशीवाद दय िज मख

ऐसी कृ पा करौ नंदलाल सदाँ हम बृज म कर िनवास ।


भूख लगे िभा कर लाऊँ ,
बृजवािसन के टुकड़ा पाऊँ ,
गलोक वैकं ु ठ न जाऊँ नाय बसूँ कै लास ।
पावन सरोवर िनत ित नहाऊँ ,
न बबा के दशन पाऊँ ,
बैठ लतान म ान लगाऊँ कँ नाम िवास ।
मधमु ग
ं ल बोलै छिकहारी,
तहाँ आव सब गोपकुमारी,
टे र कदम म गाय चराव कृ  हमारे साथ ।
ु सी माला म धराऊँ ,
तल
रिच पिच क ृग
ं ार बनाऊँ ,

िबनती कँ यही वर माँग ूं जगल चरण की आस ।

६९
ीराधारस
ु जल करवे को भ ु ने नाो कालीनाग ।
िनमल जमना
ु ाये,
वालबाल सब सखा बल
नाना भाँितन खेल मचाये,
् टोल घमाय,
गद म मारयौ ु
उछट जमनु ा म पँची जाय,
सखा ीदामा गयो िरसाय,
मेरी तो वही गद दै लाय,
दोहा - ीदामा ने फ ट गह कही कृ  समझाय ।
जमनु ा म ते जाय क वही गद दै लाय ॥
य मत जाने िबना गद िलए घर कूँ जाऊँ गो भाग ।
छोड़ फट ीदामा मेरी,
घर चल गद िदवाय दऊँ तेरी,

कही य ीदामा झझलाय,
मेरी तो वही गद दै लाय,
खड़ो  बात रो बनाय,
मेरी तो वही गद दै लाय,

दोहा - इतन सनक कृ  ने नटवर भेष बनाय ।
लै भैया म जात ँ घर मत किहय जाय ॥
ठाड़े रिहय जमनु ा तट प ै मत जइय मोय ाग ।
दह म कू दे कृ  मरु ारी,

७०
ीराधारस

सोवै नाग सह फन धारी


कही य नािगन ने समझाय,
गयो तू बालक कहाँ से आय,
खबर मेरे पित कूँ पर जाय,
छ - आयौ कहाँ ते जाय कहाँ यह भेद मोय बताइयाँ ।
कहा नाम है कहा गाँम है िकन मात तोकूँ जाइयाँ ॥
बोले ह बोल कुबोल तोते कै घर नार िरसाइयाँ ।
डस जाइगो जागत नाग जातै जा बगद घर जाइयाँ ॥
दोहा - जारे बालक बगद क म समझाऊँ तोय ।
सूरत तेरी देख क दया लगत है मोय ॥
जो डस जाइगो नाग तेरे कुल को बझ
ु जाय िचराग ।
कृ  च कह नािगन ारी,
जगा नाग अपनौ बलधारी,
नाग कूँ  न देय जगाय,
रही याके ऊपर गरमाय,
खड़ी  बात रह बनाय,
कहा धमकी-सी रही िदखाय,
छ- देश पूरब गाँव गोकुल नाम मम नंदलाल है ।
ु े तेरे नाग कौ अित काल है ॥
बालक मती जाने मझ
बोले न बोल कुबोल मोते न लड़ी घर बाल है ।

७१
ीराधारस

झ ूल िहडोले रािधका तेरे नाग डोरी डार है ॥


दोहा - डोरी डाँ नाग की वृावन के मािहं ।
झ ूलै रानी रािधका अब भजवै को नािहं ॥
अब भजवै को नाँय भजूँ तो कुल कूँ लग जाय दाग ।
नािगन ने जब नाग जगायो,
मारी फं ु कार ोध कर धायौ,
लपेटा तन म दै लीनौ,
कृ  कूँ उछरन नािहं दीनो,
सोच उत वालबाल कीनो,
दोहा - वालबाल दौड़े गये नबबा के ार ।
तेरो बालक साँवरो दह म ्
कू दयौ जाय ॥
ु नद रे बाबा जाग जाग रे जाग ।
कहा सोवे सख
न यशोदा रोमन लागे,
गोकुल तज जमनु ाजी को भागे,
सकल बृज छाय रो जमनु ा तीर,
सबन के बहैत गन स नीर,
कृ  िबन बँध े न िदल कूँ धीर,
ु ाय ।
दोहा - न बबा कू दै पर वाल रहे समझ
इतम अपनी कृ  ने दीनी देह बढ़ाय ॥
ु न लपेटा लगे वदन के उठन लगे जल झाग ।
खल

७२
ीराधारस

नाग नाथ जल ऊपर आये,



कमल प कं सा कूँ लाये,
दरस जवासीन कूँ दीनो,
िनरत फन-फन ऊपर कीनो,
देख नािगन लभ जीनो,
दोहा - रलभ जीन देख क
अिु त करी बनाय ।
ाणदान यािह दीिजये, छमा करो अपराध ॥

मा करौ अपराध पती कौ बकसौ मेरो सहाग ।
कृ च नािगन ु ाई,
समझ
ज तज अंत बस कँ जाई,
ु गरीबन िनवाज,
नाग कहै सनौ
ज तज कहाँ कूँ जाऊँ भाज,
् महाराज,
गड़ ते बैर परयौ
दोहा – गड़ वैर तोते तो िनरभय जाओ देश ।
चरण िच मेरौ बौ िमट गये सकल कलेश ॥
राधेयाम देवतन के मन बढ़यौ ु
् अिधक अनराग ।

७३
ीराधारस


ाण बनक कृ मरार पधारे बिल राजा के ार ।

बने वामन अंगल भगवान,
प कूँ देख िछपे ह भान,
लयौ माला ते िजनको ान,
दोहा - चरण खडाऊँ पहिर के लकुटी लै लई हाथ ।
गीता ु
पक बगल म ्
परयौ जनेऊ गात ॥
दरबानी ते कही खबर तमु करो भूप दरबार ।
कचहरी जाय पँौ दरबान,
अरज कर कीनौ सकल िबयान,
िव एक आयौ चतरु सजान,

दोहा - चले छोड़ दरबार को भूप िहये हरषाय ।
दशन करके िव के परे चरण म जाय ॥
ु ते करो उचार ।
जो माँगो सो दऊँ नाथ क मख
र ते सनु क आयो तोय,
भूिम एक तीन प ैड़ दै मोय,
लऊँ ठाकुर की रसोई पोय,
दोहा - तीन प ैड़ की कहा चले भ ु लीज ै साढ़े तीन ।
ु ा गु जी लीन ॥
गंगा जल झाड़ी मँगा बल
ु राचाय ।
देख िव की ओर भूप ते बोले शक

७४
ीराधारस

् अब क छिलया के फं द,
परयौ
छौ जाने राजा हिरचंद,
िबके रानी राजा फरज,
दोहा - दान जमी कौ मत करै राजन मेरी मान ।
बिल राजा कहने लगे गु वचन न लौटे जायँ ॥

गये झाड़ी म बैठ गजी ने रोक लई जलधार ।
राजा याहै मत दे दान जमी को,
याही ने हिरनाकुश मारयो
् बन गयौ िसंह वनी कौ,
याही ने वृा छल लीनी धर के प पती कौ,
याही ने हिर छौ है भरो नीर भंगी को,
भ ु ने जान िलयौ वह चोर कुशा से िदयौ ने एक फोर ।
भूप संक िकयौ कर जोर,
दोहा- तीन प ैड़ म सब िलयो आधौ देओ दयाल ।
आधे म ओधे नपे बिल भेज िदए पाताल ॥
िज घासी कथ कहै बने भ ु आप ही पहरेदार ।

७५
ीराधारस

मेरौ िनज वृावन धाम लगे मोय जग ते ारौ है ।


जग पूज ै मोय शीश नवावै,
यहाँ गोपी मोय नाच नचाव,
योगीन ते लभ गित पाव,
दोहा - यहाँ यशोदा माय प ै यं बँधाऊँ हाथ ।
वहाँ जग कौ पालन कँ यहाँ चोरी कर दिध खात ॥
ु न छाँड़ बन गयौ वंशी वारौ है ॥
च सदश
वृत कर गोपी जमनु ा नहाव,
रिव िगरजा कूँ रोज वनाम,
िमल कृ पित यह वर पाव,
ु ता
दोहा - िसस ु जो ली ताकौ म भरतार ।
वाही कूँ माँग जगत भगत भये बिलहार ॥
बृजजन साकार िभकारी जगत िवचारौ है ।
ु ,
जािह नेत किह वेद पकार
ानी ानी खोजत हारे,
सो यशधु ा के खेलत ारे,
दोहा - िशव ा नह कर सके बृज से जग की तोल ।
जग माँग े धन ली बृज दे ेम अमोल ॥
याही ते बृज जगत भगत म अर भारौ है ॥

७६
ीराधारस

इनके ंजन मोय न भाव,


नार बेच क हआ खाव,
यहाँ ट टीन को भोग लगाव,
दोहा - बेझर की रोटी िमले ेम भरी फटकार ।

देह धरे को फल िमौ सफल भयौ अवतार ॥
साल शाला छोड़ याम ौ कल कारौ है ।

जीवन मूर अनूठी मत जान ै झठँ ू ी, अमर अनूठी रिसकन ।


घूटँ ी नाम याम रस बूटँ ी ।
बूटँ ी धर लाय, ा िशल प ै धराय,
लोढ़ी लगन बनाय, यिु  जल म छनाय,
नाय गु कृ पा पाय, बढ़ै चौगनौ
ु आन,
मन पीक ै , ऐसी दऊँ गी िपवाय,
ु सनकािदक अलख भये िफर जग पलकन खूटी ॥१॥
पी िशव शक
शेष शारदािद वु भ औ ाद,
जा नारद ने ाद बने बावरे िवहँस,
हँस पीगौ अरीस ास आिद जो मनु ीश,
गज गीध भा कीश िलयौ सबरी ने रस,
रस पावन भई बिस वृावन पी गई गोप वधूटी ॥२॥
वधू पिरवार झठँ ू ौ माया कौ जंजार,

७७
ीराधारस

याम फँ से जो गँवार जाकी बिु  है न िथर ।


िथर धन ं तौ नाँय, ण आवै और जाय,
रही माया ही नचाय, जीव ल रौ िफर ।
िफर-िफर िगरै मरै नाँच ै पर माया डोर न टी ॥३॥
छोटी-सी उमर, नदी तीर कौ सौ त
बढ़ै िदये की सी झर तेल आय ु रौ निसं,
नच ै वाही प ै पतंग, जारै डारै िनज अंग
मूढ़ बर कौ ढंग लोभ बस गयौ फँ स ।
फौ दोऊ कर िनकसत नाह माया मूठं ी न खूटी ॥४॥
खोटी ितकड़म कीित कामनी कं चन
ती नाश के साधन देय ग ते  डार ।
डारे गालव शंकु यही चंद कौ कलंक,
् रावण िनशंक, लंक दीनी है पजार,
मारयौ
पजरी लंक बंक ै सीता बिन गई आग अटूटी ॥५॥
टूटी काहे आस, मन होय  उदास
चल रिसकन पास, सब होय नां छदाम,
दाम िबन देय ाय जाते म है जाय,
ु कूँ िबसराय क भरैगो रंग याम,
जग सिध
यामभि बूटँ ी के आगे और सब लाग ै झठँ ू ी ॥६॥

७८
ीराधारस

चंचल चपल चतरु चाविल चालै चटक मटक की चाल ।


चाविल दिध बेचन चाली,
घेरी ग ैल छैल बनवारी,
दान दिध जोवन देओ ु
चकाय,
दहेड़ी को न ैक दही चखाय,
कहै यह चाविल ु काय,
मस

दोहा - जो काा पाल पड़े लाओ पआ तोर ।
छोड़ ु
मंसखा को गये मोहन माखन चोर ॥
चाविल गई सटक मार मनसख ु
ु के गलचा गाल ।
पा तोर याम जब आये,

मनसखलाल सोमते पाये,
न देखी चाविल बृजनािर,
करन लागे मन सोच िबचार,
िखरक म जाय सोये मन मार,

दोहा – ढूँढ़त-ढूँढ़त डोलती घर-घर जसमित माय ।
मेरौ वारौ का िकत गयौ सो कोऊ देउ बताय ॥

कहै मनसखालाल िखरक म सोय रहे नलाल ।
टे रत मात याम नाँय बोले,
 लाला टूटे ्
परयौ झटौले,
िक तोकूँ कौन दीनी गार,

७९
ीराधारस

िक तोकूँ आवत ताव ु ार,


बख
बताय दे मेरे ाण अधार,
दोहा - ना काऊ गारी दई ताव न आवत मोय ।
छल किर गई चाविल कहा बताऊँ तोय ॥

अपने लाल क चार िवहाय दऊँ घर चल मदन गपाल ।
समु बहाऊँ मैया चार बहोिरयाँ,

मेरे मन बसी चाविल गजिरया,
कहै माता िनक मो िढंग आओ,
तोय छल गई तू वाय छल लाओ,
चौ तू रीठौरे कूँ जाओ,

दोहा- इतनी सनक याम ने सखी भेस िलयौ धार ।
लँ िहगा फिरया पहरक कर सोलह सृग
ं ार ॥
चलत कमर बलखाय बन गये नई नौरंगी बाल ।
तरु त याम बन गये जनाने,
जशधु ा ने भ ु नािहं पिहचाने
उराहनौ दैन गयौ घनयाम,
साँमरी सखी बतायौ नाम,
ु ारो
त छोड़ जायगी गाँव,
दोहा - जशधु ा ने पिहचान क लीने कं ठ लगाय ।
माता आा पाय के रीठौरे गये आय ॥

८०
ीराधारस

चाविल कौ घर पूछत सिखयन ते दीनदयाल ॥५॥


चाविल के घर यही तो डगिरया,
ऊँ ची-सी अटिरया याकी लाल िकविरया,
पँच गये चाविल के ार,
खोल बिहना नक झँझन िकवार,

ार प ै कब की रही ँ पकार,
ु सखी सकमार
दोहा - चाविल किहबे लगी सनौ ु ।

कहाँ ते आई नाम कहा सो मख ते उार ॥
कहा लग ै नाते म आली कह दै साच हाल ।
चाविल सनु साँच ै बैना,
पीहर ते आई ँ लगूँ तेरी बिहना,
कहै य चाविल ु ाय,
समझ
िखलाई गोद न जी माय,
कहाँ ते बिहन गई तू आय,
दोहा - चाविल ते साँमरी सखी लगी य कहैन ।
मामा फू फी की दोऊ हम तमु लोग बहैन ॥
ाह तेरे म मोय सासरे भेज दई ताल ।
िमलत बिहन दोऊ ु
भजा पसारी,
चाविल ने िगरा उचारी,
कहत म लाग ै लाज बानी,

८१
ीराधारस

लाग ै तेरी छाती मरदानी,


साँमरी सखी कहै ानी,
दोहा - तेरौ बिहना िनश िदना करती रहती सोच ।
सोच करत म है गई छाती मेरी पोच ॥
तेरे देख े िबना बिहन मन े पाये ःख कराल ।
चल री बिहन दोऊ पानी भर लाव,
दोनूँ बिहन पानी कूँ जाव,
अचंभौ भयौ सखी मोय आज,
कहत म आवै मोकूँ लाज,
मरदई चाल चलै तू भाज,
दोहा - बालापन म बछआ घेर चराई गाय ।
वही टे व मोय पर रही सनु बिहना िचत लाय ॥
चाल मेरी मरदानी प ै तू मत किरयौ क ाल ।
चल री बिहन तोय उबट वाऊँ ,
िविवध ु
सगित इ लगाऊँ ,
साँवरी सखी जोर किह हाथ,
मेरे घर सेड शीतला मात,

सनी बिु ड़या ु
परान म बात,
दोहा - जो बिहना ाओ नह भोजन करौ अघाय ।
सखी साँवरी ेम ते बड़े-बड़े ासन खाय ॥

८२
ीराधारस

खीर खाँड़ पकवान िमठाई छकै अनेकन माल ।



कहत-सनत मोय सरम लगत है,
मरदाने तू कौर भरत है,
साँमरी सखी करै अरदास,
मेरे घर म लड़हारी सास,
देर जो कर देय ःख ास,
दोहा - भोजन कर बीड़ी दई अब है आई रैन ।
ु च ैन ॥
पचरँग पलँ ग िबछाय कै करौ सेज सख
चरन पलोटत म िपडुरीन की लग ै खरदरी खाल ।
तेरे री बृज कौ लोग ठठौरा,
कहा बूढ़ौ कहा ान छछोरा ।
बताय दई ऊबट मोकूँ बाट,
जहाँ काँटे करील के ठाट,
िछली िपडुरी पाँव गयो फाट,
दोहा - साल ृग
ं ार उतार के , पीतार लीयौ धार ।
चाविल चिकत भई, करन लगी बिलहार ॥
् लखाइ जाल ।
म तो लाला जबही जान गई परयौ
कौ तेरी बिहन कौन तेरौ बीरा,
तू गूजर हम जाित अहीरा
तनक दिध कूँ छिल आई मोय,

८३
ीराधारस

छली जा कारन मन े तोय,


परर बदलौ जग म होय,
दोहा - चाविल लीला करी ेम भरी घनयाम ।
गोवरधन दस िवसे म, छीतर घासीराम ॥

छीतर ‘घासीराम’ जगल छिब िनरखत भये िनहाल ।

कै स े आव हो कैया तेरी बृजनगरी, गोकुल नगरी ।


इत मथरु ा उत गोकुल नगरी, बीच बहै जमनु ा गहरी ॥
पाँव धर मेरी पायल भीज ै, कू िद पर बह जाऊँ सगरी ।
म दिध बेचन जात वृावन, मारग म मोहन झगरी ॥
बरजो जसोदा अपने लाल क, छीन लई है मेरी नथ री ।
र र वािलन झठँ ू न बोलो, का अके लो तमु सगरी ॥
हमरौ कैया पाँच बरस कौ, तमु वािलन अलम भई ।

जाय पकार कं स राजा से, ाव नह मथरु ा नगरी ॥
वृावन की कु गलीन म, बाँह पकिर राधे झगरी ।
‘मीरा’ के भ ु िगरधर नागर, साध ु संग किर हम सधरी
ु ॥

कोई किहयो रे हिर आवन की, आवन की मन भावन की ।


आप न आवै िलख नह भेज ै, बान पड़ी है ललचावन की ।
ए दोऊ न ैन कौ नह मान, निदया बहै ज ैसे सावन की ।
कहा कँ क बस नह मेरौ, पाँख नह उड़ जावन की ।
‘मीरा’ किह भ ु कब रे िमलोगे, चेरी भई ँ तेरे दामन की ॥

८४
ीराधारस

िमलता जाो हो गु ानी, थारी सूरत देख भानी ।


मेरौ नाम बूिझ तमु लीौ, म ँ िवरह िदवानी ।
रात िदवस कल नािहं परत है, ज ैसे मीन िबन पानी ।
ु , तलफ-तलफ मर जानी ।
दरस िबना मोय क न सहावै
‘मीरा’ तौ चरणन की चेरी, सनु लीज ै सख
ु दानी ॥

ु ु ट पर वारी जाऊँ , नागर नंदा ।


मक
ु सी बड़ी ह , निदयन म बड़ी गंगा ।
वनितन म तल
सब देवन म िशवजी बड़े ह , तारन म बड़ा चा ॥
सब भगतन म भरतजी बड़े ह , शरण राखो गोिवा ।
‘मीरा’ के भ ु िगरधर नागर, चरणकमल िचत फं दा ॥


कृ िपया मोरी रंग दे चनिरया ।

नलाल मोरी रंग दे चनिरया ।
ु ी है बजिरया ॥
आप रँगो चाहे मोय रँगा दो, ेम नगर की खल
ऐसौ ‘रंग’ रँग जो, धोबी धोये चाहे सारी उमिरया ।
गई रे महीना, वार ते वारे आधी उड़रयो चाहे सारी उमिरया ॥

८५
ीराधारस

मनमोहन ान ारे, टुक गली हमारी ओर ।


तेरी खूबी के देखन को, िदल तरसता महारे ॥
ु , मन की कुलफ , मसकान
तेरी जलफ ु म अदा रे ।

सर ु पर,
सलौने मख कोिट काम वािर डारे ॥
ाँित बूदँ  रटै पपीहा, िनस िदन यहै गित मेरी ।
ु े आस लागी तेरी ॥
िछन पल, परै नह कल, मझ
सब िदल की तू ही जान ै, किहए सो अब कहा रे ।
िजसकी लगन है िजसस, उस िबन रहा न जा रे ॥
घायल िबना दरद की, ा जाने सार कोई ।
लागी ेम चोट िजसके , पीर जाने यार सोई ॥
जल ठौर जक होवै, मीन जीवै  िबचारे ।
दया कीज ै, दरस दीज ै, िहत चंद नंद लारे ॥

८६
ीराधारस

ु लरसमय-संकीतन
ीयग
जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय ी राधे ।
जय कृ  जय कृ  कृ  जय कृ  जय ी कृ  ॥
यामा गोरी िन िकशोरी ीतम जोरी ी राधे ।

रिसक रसीलो छैल छवीलो गणगरवीलो ीकृ  ॥
रासिवहािरिण रसिवािरिण िपय उरधािरिण ीराधे ।
नव नव री नवलिभी यामसअी ु ीकृ  ॥
ाणिपयारी पउजारी अित सक ु ु मारी ीराधे ।
मैनमनोहर महामोदकर सर ु वरतर ीकृ  ॥
शोभाेणी मोहामैनी कोिकलवैनी ीराधे ।
कीरितवा कािमिनका ीभगवा ीकृ  ॥
चावदनी कुारदनी शोभासदनी ीराधे ।
परम-उदारा भा-अपारा अितसक ु ु मारा ीकृ  ॥
हंसागमनी राजतरमनी ीड़ाकमनी ीराधे ।
परसाला न ैनिवशाला परम कृ पाला ीकृ  ॥
कन वेिल रित रस रेिल अित अलवेिल ीराधे ।

सब सखसागर ु
सब गणआगर पउजागर ीकृ  ॥
रमणीरा ततरता गण-अगा ु ीराधे ।
धामिनवासी भाकासी सहज सहासी ु ीकृ  ॥
शाािदिन अितियवािदिन उरउािदिन ीराधे ।
अ अ टोना सरस सलोना सभग ु सठोना ु ीकृ  ॥
ु अिभरािमिन ीहिरिया ािमिन ीराधे ।
राधा नािमिन गण
हरे हरे हिर हरे हरे हिर हरे हरे हिर ीकृ  ॥

८७
ीराधारस
अशेष हावभाव धीरहीरहारभू िषते
भू त शातकु  कु कु ि कु स  ु िन ।
शम हाचू ण  पू ण सौसागरे
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥६॥
मृ णालबालवरी तररदोल त े
लतालालोलनीललोचनावलोकने ।
ललु ल िलनो म ु धमोहनाये
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥७॥
स वु णमािलकािते िरे ख क क ु ठगे
िसू  मलीग णु िरदीिदीिधते ।
सलोलनीलकु ले सू न ग  ु ग िु ते
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥८॥
िनतिबलमान प ु मेख लाग ण ु े
शरिकिणी कलापमम ल ु े ।
करीश ु डदिडकावरोहसौभगोके
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥९॥
अनेक मनाद ु ू प रु ारवलत ्
म न
समाजराजहं स वं श िनणाितगौरवे ।
िवलोलहे म वरी िवडिचाचमे
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥१०॥

८९
ीराधारस
अनकोिटिव ल ु ोक नपजािचत े
ु ोमजा
िहमािजा प ल िविरजा वरदे ।
अपारिसिवृ ििदध सदा ुलीनखे
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥११॥
मखे िर िये िर धे िर स रु े  िर
िवेद भारतीिर माणशासने िर ।
रमे िर मे िर मोद कानने िर
जे िर जािधपे ीरािधके नमोऽ ु ते ॥१२॥
इतीद ् म ु त वं िनश ु िनी
भान न
करोत ु सतं जनं कृ पाकटाभाजनम ् ।
भवे दैव सितिपकमनाशनं
लभे दा जे सू न म ु डलवेश नम ् ॥१३॥
॥ इ ित ी म ााये ी रािध कायाः कृ पाकटाों सू ण म ॥

९०
ीराधारस


ीाडपराणो ीराधा ो
गृहे राधा वने राधा पृ े राधा परःिताु ।
य य िता राधा राधैवाराते मया ॥
िजा राधा तु ौ राधा ने े राधा िदिताः ।
सवाेािपनी राधा राधैवाराते मया ॥
पूजा राधा जपे राधा रािधका चािभवने ।
तु ौ राधा िशरोराधा राधैवाराते मया ॥
गाने राधा गणे ु राधा रािधका भोजने गतौ ।
राौ राधा िदवा राधा राधैवाराते मया ॥
माधयु  मधु रु ाराधा महे रािधका गः ु ।
सौय सरी ु राधा राधैवाराते मया ॥
राधा पानना पा पोवसमु वा ।
पाे िववेिचता राधा राधैवाराते मया ॥
राधाकृ ािका िनं कृ ोराधाकोवु म ् ।
वृावनेरी राधा राधैवाराते मया ॥
िजाे रािधका नाम नेाे रािधका तनःु ।
कृ हापरा राधा राधैवाराते मया ॥
कणा े रािधकाकीित मनोऽे रािधका तनःु ।
कृ ेममयी राधा राधैवाराते मया ॥

९१
ीराधारस

ीमधरु ाकम ्
अधरं मधरु ं वदनं मधरु ं नयनं मधरु ं हिसतं मधरु म ् ।

दयं मधरु ं गमनं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ॥१॥
वचनं मधरु ं चिरतं मधरु ं वसनं मधरु ं विलतं मधरु म ् ।
चिलतं मधरु ं िमतं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥ २॥
ु ध रु ो रेणम
वेणम ु ध रु ः पािणमधरु ः पादौ मधरु ौ ।
रिखलं मधरु म ् ॥३॥
नृ ं मधरु ं सं मधरु ं मधरािधपते

ु मधरु ं संु मधरु म ् ।
गीतं मधरु ं पीतं मधरु ं भं
पं मधरु ं ितलकं मधरंु मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥४॥
करणं मधरु ं तरणं मधरु ं हरणं मधरंु रणं मधरु म ् ।
विमतं मधरु ं शिमतं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥ ५॥
ु मधरु ा माला मधरु ा यमनु ा मधरु ा वीची मधरु ा ।
गा
सिललं मधरु ं कमलं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥ ६॥
गोपी मधरु ा लीला मधरु ा य ु मधरु म ् ।
ु ं मधरु ं भं
रिखलं मधरु म ् ॥७॥
ं मधरु ं िशं मधरंु मधरािधपते

गोपा मधरु ा गावो मधरु ा यिमधरु ा सृिमधरा
ु ।
दिलतं मधरु ं फिलतं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥८॥
( ी व भा चा यजी म हा राज ारा िव र िचत )

९२
ीराधारस

राधे िकशोरी दया करो ।


हम से दीन न कोई जग म, बान दया की तनक ढरो ।
सदा ढरी दीनन प ै यामा, यह िवास जो मनिह खरो ।
िवषम िवषय िवष ाल माल म, िविवध ताप तापिन ज ु जरो ।
दीनन िहत अवतरी जगत म, दीनपािलनी िहय िवचरो ।
ु ारो आस और (िवषय) की, हरो िवमख
दास त ु गित को झगरो ।
कबँ तो कणा करोगी यामा, ् ।
यही आस ते ार परयो

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