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ाि-ान
मान मिर, बरसाना
फोन – ९९२७३३८६६६
एवं
े वाल ालय
ीराधा खंडल
फोन – ९९९७९७७५५१
ी मा नम ि र सेवा सं ान
गरवन, बरसाना, मथरु ा (उ..)
फोन – ९९२७३३८६६६
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�ी रमे श बाबा जी महाराज
दो
"अल्पकाल िव�ा बह� पायी"
गु�जन� को गु� बनने का �ेय ही देना था अपने अध्ययन से ।
सवर्क्षे�-कु शल इस �ितभा ने अपने गायन-वादन आिद लिलत
कलाओं से िवस्मयािन्वत कर िदया बड़े-बड़े संगीत-मातर्ण्ड� को ।
�यागराज को भी स्वल्पकाल ही यह सािनध्य सुलभ हो सका "तीथ�
कु वर्िन्त तीथार्िन" ऐसे अिचन्त्य शि� सम्प� असामान्य पु�ष का ।
अवतरणो�ेश्य क� पूितर् हेतु दो बार भागे जन्मभूिम छोड़कर �जदेश क�
ओर िकन्तु माँ क� पकड़ अिधक मजबूत होने से सफल न हो सके । अब
यह तृतीय �यास था, इिन्�यातीत स्तर पर एक ऐसी �ि�या सि�य ह�ई
िक तृणतोड़नवत् एक झटके में सवर्त्याग कर पुनः गित अिवराम हो गई
�ज क� ओर ।
िच�कू ट के िनजर्न अरण्य� में �ाण-परवाह का प�रत्याग कर
प�र�मण िकया; सूयर्वंशमिण �भु �ीराम का यह वनवास-स्थल
'पूज्यपाद' का भी वनवास-स्थान रहा । “स रिक्षता रक्षित यो िह गभ�”
इस भावना से िनभ�क घूमे उन िहंसक जीव� के आतंक संभािवत
भयानक वन� में ।
आराध्य के दशर्न को तृषािन्वत नयन, उपास्य को पाने के िलए
लालसािन्वत �दय अब बार-बार 'पाद-प��' को �ीधाम बरसाने के
िलए ढके लने लगा, बस पह�चँ गए बरसाना । मागर् में अन्तस् को झकझोर
देने वाली अनेकानेक िवलक्षण िस्थितय� का सामना िकया । मागर् का
असाधारण घटना संघिटत वृ� य�िप अत्यिधक रोचक, �ेरक व पुष्कल
है तथािप इस िदव्य जीवन क� चचार् स्वतन्� �प से िभ� �न्थ के िनमार्ण
में ही सम्भव है, अतः यहाँ तो संिक्ष� चचार् ही है । बरसाने में आकर
तन-मन-नयन आध्याित्मक मागर्दशर्क के अन्वेषण में तत्पर हो गए ।
�ीजी ने सहयोग िकया एवं िनरन्तर राधारससुधा िसन्धु में अविस्थत,
राधा के प�रधान में सुरिक्षत, गौरवणार् क� शु�ो�वल कािन्त से
आलोिकत-अलङ्कृ त युगल सौख्य में आलोिडत, नाना
पुराणिनगमागम के ज्ञाता, महावाणी जैसे िनगूढ़ात्मक �न्थ के
तीन
�ाक�कतार् “अनन्त �ी सम्प� �ी �ी ि�याशरण जी महाराज” से
िशष्यत्व स्वीकार िकया ।
�ज में भािमनी का जन्म स्थान 'बरसाना', बरसाने में भािमनी क�
िनज कर िनिमर्त 'ग�र-वािटका' "बीस कोस वृन्दािविपन पुर वृषभानु
उदार, तामें गहवर वािटका जामें िनत्य िवहार" और उस ग�रवन में भी
महासदाशया मािननी का मनभावन मान-स्थान '�ीमानमिन्दर' ही
मानद (बाबा�ी) को मनोनुकूल लगा । 'मानगढ़' ��ाचलपवर्त क� चार
िशखर� में से एक महान िशखर है । उस समय तो यह 'बीहड़ स्थान'
िदन में भी अपनी िवकरालता के कारण िकसी को मिन्दर-�ा�ण में न
आने देता । मिन्दर का आन्त�रक मूल-स्थान चोर� को चोरी का माल
िछपाने के िलए था । चौरा�गण्य क� उपासना में इन िवभूित को भला
चोर� से क्या भय?
भय को भगाकर भावना क� – "तस्कराणां पतये नमः" – चोर� के
सरदार को �णाम है, पाप-प� के चोर को भी एवं रकम-बैंक के चोर
को भी । '�जवासी चोर भी पूज्य हैं हमारे' इस भावना से भािवत हो
�ोहाहर्ण� (�ोह के योग्य) को भी कभी �ोह-�ि� से न देखा, अ�े�ा के
जीवन्त स्व�प जो ठहरे । िफर तो शनैः-शनैः िवभूित क� िव�म�ा ने
स्थल को जा�त कर िदया, अध्यात्म क� िदव्य सुवास से प�रव्या� कर
िदया ।
जग-िहत-िनरत इस िदव्य जीवन ने असंख्य� को आत्मो�ित के
पथ पर आ�ढ़ कर िदया एवं कर रहे हैं । �ीम�ैतन्यदेव के प�ात्
किलमलदलनाथर् नामामृत क� निदयाँ बहाने वाली एकमा� िवभूित के
सतत् �यास से आज ३२ हजार से अिधक गाँव� में �भातफे री के
माध्यम से नाम िननािदत हो रहा है । �ज के कृ ष्णलीला सम्बिन्धत िदव्य
वन, सरोवर, पवर्त� को सुरिक्षत करने के साथ-साथ सह�� वृक्ष
लगाकर सुसि�त भी िकया । अिधक पुरानी बात नह� है, आपको स्मरण
करा दें - सन् २००९ में “�ीराधारानी �जया�ा” के दौरान �जयाि�य�
को साथ लेकर स्वयं ही बैठ गये आमरण अनशन पर इस संकल्प के
साथ िक जब तक �ज-पवर्त� पर हो रहे खनन �ारा आघात को सरकार
चार
रोक नह� देगी, मुख में जल भी नह� जायेगा । समस्त �जया�ी भी
िन�ापूवर्क अनशन िलए ह�ए ह�रनाम-संक�तर्न करने लगे और उस समय
जो उ�ाम गित से नृत्य-गान ह�आ; नाम के �ित इस अटू ट आस्था का
ही प�रणाम था िक १२ घंटे बाद ही िवजयप� आ गया । िदव्य िवभूित
के अपूवर् तेज से सा�ाज्य-स�ा भी नत हो गयी । गौवंश के रक्षाथर् गत
१५ वषर् पूवर् माताजी गौशाला का बीजारोपण िकया था, देखते ही देखते
आज उस वट बीज ने िवशाल त� का �प ले िलया, िजसके आतप�
(छाया) में आज ५५,००० से अिधक गाय� का मातृवत् पालन हो रहा
है । सं�ह-प�र�ह से सवर्था परे रहने वाले इन महापु�ष क� 'भगव�ाम'
ही एकमा� सरस सम्पि� है ।
परम िवर� होते ह�ए भी बड़े-बड़े कायर् सम्पािदत िकये इन �ज-
संस्कृ ित के एकमा� संरक्षक, �व�र्क व उ�ारक ने । गत ७० वष� से
�ज में क्षे�सन्यास (�ज के बाहर न जाने का �ण) िलया एवं इस सु�ढ़
भावना से िवराज रहे हैं । �ज, �जेश व �जवासी ही आपका सवर्स्व
हैं । असंख्य जन आपके साि�ध्य-सौभाग्य से सुरिभत ह�ये, आपके
िवषय में िजनके िवशेष अनुभव हैं, िवलक्षण अनुभिू तयाँ हैं, िविवध िवचार
हैं, िवपुल भाव-सा�ाज्य है, िवशद अनुशीलन हैं; इस लोको�र
व्यि�त्व ने िवमुग्ध कर िदया है िववेिकय� का �दय । वस्तुतः
कृ ष्णकृ पालब्ध पुमान् को ही गम्य हो सकता है यह व्यि�त्व । रसोदिध
के िजस अतल-तल में आपका सहज �वेश है, यह अितशयोि� नह�
िक रस-ज्ञाताओं का �दय भी उस तल से अस्पृ� ही रह गया ।
'आपक� आन्त�रक िस्थित क्या है' यह बाहर क� सहजता, सरलता
को देखते ह�ए सवर्था अगम्य है । आपका अन्तरंग लीलानन्द, सुग�ु
भावोत्थान, युगल-िमलन का सौख्य इन गहन भाव-दशाओं का
अनुमान आपके सृिजत सािहत्य के पठन से ही सम्भवहै । आपक�
अनुपम कृ ितयाँ – �ी रिसया रसे�री, स्वर वंशी के शब्द नूपरु के ,
�जभावमािलका, भ��य च�र� इत्यािद �दय�ावी भाव� से भािवत
िवलक्षण रचनाएँ हैं ।
पाँच
आपका �ैकािलक सत्संग अनवरत चलता ही रहता है । साधक-
साधु-िस� सबके िलए सम्बल हैं आपके �ैकािलक रसा�र्वचन । दैन्य
क� सुरिभ से सुवािसत अ�ुत असमोध्वर् रस का �ो�वल पु� है यह िदव्य
रहनी, जो अनेकानेक पावन आध्यात्मास्वाद के लोभी मधुप� का
आकषर्ण के न्� बन गयी, सैकड़� ने छोड़ िदए घर-�ार और अ�ाविध
शरणागत हैं; ऐसा मिहमािन्वत-सौरभािन्वत वृ� िवस्मयािन्वत कर देने
वाला स्वाभािवक है ।
रस-िस�-सन्त� क� परम्परा इस �जभूिम पर कभी िविच्छ� नह�
हो पाई । �ीजी क� यह 'ग�र-वािटका' जो कभी पुष्पिवहीन नह� होती,
शीत हो या �ीष्म, पतझड़ हो या पावस, एक न एक पुष्प तो आराध्य
के आराधन हेतु �स्फु िटत ही रहता है । आज भी इस अजरामर,
सुन्दरतम, शुिचतम, मह�म, पुष्प (बाबा�ी) का जग 'स्विस्तवाचन'
कर रहा है । आपके अप�रसीम उपकार� के िलए हमारा अनवरत वन्दन
अनुक्षण �णित भी न्यून है ।
छः
ीराधारस
मांक ु
पदानमिणका पृांक
१. दोहे ........................................................ १ - १४
२. सवैय े ..................................................१५ - २९
३. कीरत महारानी, वृषभान ु आिद गोप-गोपी................३०
४. पायौ बड़े भािगिन स आसरौ िकशोरीजू कौ.............३०
ु
५. मेरे ग-माता-िपता लाड़ली िकशोरी एक................३०
ु परयौ नवल िकशोरी जू कौ.................३१
६. सहज सभाव
७. ाम तन ाम मन ाम ही हमारो धन...............३१
ु
८. टे ढ़े ँ सर ु कहे बैन...................३२
न ैन, टे ढ़े मख
ु ु ट देख, चिका की चटक देख...............३२
९. माथे प ै मक
१०. टे ढ़ी चिका है याकी कुटी िचतवन है टे ढ़ी.............३२
११. छैल है छबीला महाबली महीपित है...................३३
१२. ा के ान म न आवै कभू एक िछन..................३३
ु -चंद प ै बािर डार..................३४
१३. न ैन-चकोर मख
१४. पहले ही जाय िमले गनु म वन, फे री....................३४
१५. कौन प, कौन रंग, कौन सोभा, कौन अ................३४
ु ा प ै िचंतामिण वािर डार..................३५
१६. एक रज-रेणक
१७. िगिर कीज ै गोधन मयूर नव कुन को..................३५
१८. वृाबन धाम नीको ज को िवाम नीको................३५
एक
ीराधारस
पाँच
ीराधारस
ीराधारसाित दोहे
मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागिर सोय ।
जा तन की झा परत, ाम हिरत ित होय ॥
१
ीराधारस
किबरा धारा अगम की, सदग् ु दई बताय ।
उलट तािह पिढ़ए सदा, ामी संग लगाय ॥
२
ीराधारस
सब ारन क छाँिड़ क , आयौ तेरे ार ।
अहो भान ु की लािड़ली, मेरी ओर िनहार ॥
ु
गोरी मन मोरी अहो, ीराधे सखरास ।
ु
चरन कमल वंदन कर, पजवौ जनकी आस ॥
३
ीराधारस
ीराधा राधा रट, ाग जगत की आस ।
ज वीिथन िबचरत रह, किर वृावन वास ॥
ु
जयित-जयित ीरािधका, चरण जगल किर नेम ।
जाकी छटा कास त, पावत पामर ेम ॥
कर लकुटी मरली
ु गह , घूघ
ँ र वारे के स ।
यह बािनक मो िहय बसौ, ाम मनोहर वेस ॥
४
ीराधारस
मोहन मूरित ाम की, मो मन रही समाय ।
महदी के पात म, लाली लखी न जाय ॥
ु
या अनरागी िच की, गित समझु ै निहं कोय ।
- बूढ़ ै ाम रंग, - उल होय ॥
ु
जाके मन म बस रही, मोहन की मसान ।
नारायन ताके िहये, और न लागत यान ॥
५
ीराधारस
नह माया नह, नह जीव निहं काल ।
ु ना रही, रौ एक नंदलाल ॥
अपनी सिध
ु
दोऊ हाथ उठाइ कै , कहत पकािर-प ु
कािर ।
ु भलौ, तौ भिज ले मरु ािर ॥
जो चाहौ अपनौ
६
ीराधारस
ु
भरित नेह नव नीर िनत, बरसत सरस अथोर ।
जयित अपूरव धन कोऊ, लिख नाचत मनमोर ॥
ीेम-रस
ु
तन पलिकत रोमांच किर, न ैनिन नीर बहाव ।
ेम मगन उ ै, राधा राधा गाव ॥
७
ीराधारस
जब म था तब हिर नह, अब हिर ह म नाँिह ।
ेम गली अित साँकरी, ताम दो न समाँिह ॥
८
ीराधारस
हँस-हँस क न पाइया, िजन पाया ितन रोय ।
हँिस खेल िपय िमलै तौ, कौन हािगिन होय ॥
९
ीराधारस
धन वृावन धाम है, धन वृावन नाम ।
ु
धन वृावन रिसक जे, सिमर ामा ाम ॥
ु
वृा िविपन भाव सिन, ु ही गनु देत ।
अपनौ
ज ैसे बालक मिलन क, मात गोद भिर लेत ॥
१०
ीराधारस
बिस कै वृािविपन म, ऐसी मन म राख ।
ान तज वन ना तज, कहौ बात कोउ लाख ॥
ु
चलत िफरत सिनयत यहै, (ी) राधावभलाल ।
ऐसे वृािविपन म, बसत रहौ सब काल ॥
ु
जीरन पट अित दीन लट, िहये सरस अनराग ।
ु
िवबस सघन बन म िफरै, गावत जगल ु
सहाग ॥
११
ीराधारस
ु
समन वािटका िविपन म, ै ह कब ह फू ल ।
कोमल कर दोउ भाँवते, धिर है बीन कू ल ॥
१२
ीराधारस
ु
ज ै-ज ै ीवृािविपन, ज ै-ज ै ी सख रास ।
ज ै-ज ै रिसकन ान-धन, मम उर कर िनवास ॥
ु
तीन लोक ते सरस है, ीवृावन सखक ।
जहँ िनिसिदन िबहरत रहै, ीराधा गोिव ॥
ु देह के , और जगत के फ ।
तज गेह सख
ु
जगल चरन स ीत कर, बस वृावनच ॥
ु
वृावन बािनक बौ, मर करत गार ।
लहिन ारी रािधका, लह न कुमार ॥
ु
नारायन जभूिम क, सरपित नावै माथ ।
जहाँ आय गोपी भये, ीगोपीर नाथ ॥
१३
ीराधारस
१४
ीराधारस
ीरािधकाेम की अनता
ु
आँख िमली मनमोहन स, वृषभानलली ु
मन म मसकानी ।
भह मरर क सर ओर, क वह घूघ ँ ट म शरमानी ॥
देिख िनहाल भई सजनी, वह सूरित या मनमाँिह समानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥
१५
ीराधारस
जमडल के रिसया हम ह , िनत ीत कर हिर स मनमानी ।
डोलत कु िनकुन म, गनु गान कर रस ेम कहानी ।
जो मनमोहन संग रहै, वह भानलली ु हमन पिहचानी ।
औरन की परवाह नह, अपनी ठकुराइन रािधकारानी ॥
१६
ीराधारस
च सौ आनन कं चन सौ तन, हौ लिखके िबन मोल िबकानी ।
औ अरिव-सी आँिखन क ‘हठी’ देखत मेरी ये आँख िसरानी ॥
राजत है मनमोहन के सँग, बार म कोिट रमा रित बानी ।
जीवन मूिर सबै ज की, ठकुरानी हमारी ीरािधकारानी ॥
ु
नवनीत गलाब ु
से कोमल ह , ‘हठी’ क की मंजलता इनम ।
ु
गललाला ु
गलाल वाल जपा, छिव ऐसी न देखी ललाइनम ।
मिु न मानसमिर म बस ै, बस होत है सूध े सभायनु म ।
ु
ररे मन तू िचत चाहन स, वृषभानिकसोरी के पायन म ॥
ु
म ढूँढयौ परानन कानन, वेद िरचा सनी ु चौगनेु चायन ।
देौ सौ ु कब न िकतै, वह कै स े सप औ कै स े सभायन
ु ॥
् ‘रसखान’ बतायौ न लोग गाइन ।
टे रत हेरत हािर िफरयौ
देौ रयौ वह कं ु जकुटीर म, बैठ ्यौ पलोटत रािधका पायन ॥
१७
ीराधारस
अपनी ओर की चाह िलखी, िलिख जात कथा उत मोहन ओर की ।
ारी दयाकिर बेिग िमलौ, सिहजात था निहं मैन मरोर की॥
आपिहु बाँचत अंग लगावित, है िकन आिन िचठी िचतचोर की ।
रािधका मौन रही धर ान स, है गई मूरित नंद िकशोर की ॥
ीवृषभानस ु ता
ु पदपंकज, मेरी सदा यह जीवन मूर है ।
याही के नाम स ान रहै, िनत जाके रहे जग कं टक र है ॥
ीवनराज िनवास िदयौ, िजन और िदयौ सख ु भरपूर है ।
ु धूर है ॥
याक िबसार जो और भजौ, ‘बलबीर’ जू जािनये तौ मख
ीवृषभानसु ता
ु पदपंकज, म िनिसवासर ान लगायौ ।
मेरी तौ जीवन मूर यही, कलप ु सोई मखु गाय सनायौ
ु ॥
जाकौ अहो ‘बलवीर’ िलोक के , नायक िनत सीस नवायौ ।
ु व दया किर रािधका, मं िसरोमिन नाम बतायौ ॥
ीगदे
१८
ीराधारस
ीकृ रस
जामा बौ जिरतािरकौ सर,ु लाल है ब अ जद िकनारी ।
झालरदार बौ पटुका अ, मोितन की छिब लागत ारी ॥
ज ैसी ये चाल चल जराज, अहो बिलहारी है मौज िबहारी ।
ु झाँकी झरोखे म बाँकेिबहारी ॥
देखत न ैनन तािक रहे झिक,
१९
ीराधारस
ितरछा है िकरीट कसा उर म, ितरछा बनमाल पड़ा रहता है ।
ु
ितरछी किट-काछनी है िजसम, सखिस ु सदा उमड़ा रहता है ॥
ितरछे पदक कद तेर,े ितरछे ग तान खड़ा रहता है ।
िकस भाँित िनकाल कहो िदलसे, ितरछा घनयाम अड़ा रहता है ॥
ु
मसकान से काम तमाम आ, ितरछे ग अब तानता है ।
अित सरु गोल कपोल तेर,े भृकुटी-लकुटी पिहचानता है ॥
पिरणाम म ःखको जानता है, पर हाय नह हठ ठानता है ।
बतेरा कहा पर तेरे िबना, मन मेरा न मोहन ! मानता है ॥
२०
ीराधारस
ु
मखच मनोहर देख े िबना, अब तो सखु मोहन होता नह ।
तमु माया के वेशधरो िकतने, पर म अब खाऊँ गा गोता नह ।
सच मान िवयोग म आपके म, िदन म जगता िनिश सोता नह ।
ु नह तमु तो, इतना कभी भूल के रोता नह ॥
यिद िच चराते
ु ।
भाय तौ छोटो िदयौ िविध न, सोऊ हाथ िवलाँिदन आंगरको
नह देौ सोु ो काननत, बैकुठ बड़ौ परमेसरु को ॥
बौरे सबै जवासी लौ कब, ान कृ पा किर सरको ु ।
ये ही उतािर है पार हम, है भरोसो या बावरे ठाकुरको ॥
२१
ीराधारस
िज भ अजािमल पापी िकयो, िशव शीष चढाय िदयौ गनरीलाु ।
मांगत छाछ िफरयौ ज म, भरे भ धनाघर धानकुठीला ॥
ािरका की पटरानी तज, जाइ रीछ की छोरी प ै रीयौ रंगीला ।
शंका करै िशर पाप कमावै को, बावरे ठाकुर की बावरी लीला ॥
ु
खेलत फाग म लािड़लीलाल कौ, लै मसाइ गई एक गोरी ।
ु धार दई बरओरी ॥
सीस प ै सारी सजा तरतार की, कं चकी
ु
लै बलबीर िदयौ ग अंजन, दीनौ बनाय गपाल क गोरी ।
अंग लगाइ, कही मस ु काइ, लला िफर खेलन आइयो होरी ॥
२२
ीराधारस
जवासी िवयोिगन के घर म, जग छांिड़ क जनमाई हम ।
िमिलतौ बड़ी र रौ ‘हिरचंद’, दई इकनाम धराई हम ॥
जग के िसगरे सखु स ठिग क , सिहने क यह है िजवाई हम ।
के िह बरस हाय दई िविधना, ख देिखने ही क बनाई हम ॥
२३
ीराधारस
मनमोहन त िबरी जब स, तन आंसनु स सदा धोती ह ।
‘हिरचंद’ जू ेमके फं द पर, कुल की कुल लाजिन खोवती ह ॥
ख के िदन क कोऊ भांित िवतै, िवरहागम रैन संजोवित ह ।
हम ह अपनी सदाँ जान सखी, िनिस सोवत ह िकध रोवती ह ॥
२४
ीराधारस
उठती अिभलाषा यही उर म, उनके वनमाल का फू ल बनूँ ।
किट काछनी हो िलपटूँ किट म, अथवा पटपीत कू ल बनूँ ।
ु
‘हरेकृ’ िपऊँ अधरामृत को, यिद म मरली रसमूल बनूँ ।
ु
पद पीिडताहो सखपाऊँ महा, कही भाय से जो ज धूल बनूँ ॥
ु को िछपाये रं ।
ग की इस ाम कनीिनका म, घनयाम त
पल मा को जाने न बाहर ँ, परदा पलक का िगराये रं ।
बस चाह यही मनमोहन ! है, चरण प ै सदा िचतलाये रं ।
ु ारा रं म बना, तमु को अपना ही बनाये रं ॥
सब भांित त
२५
ीराधारस
ु वह सर
निहं िच िलखा न चिर सना, ु ाम को मान े ही ा ?
मन म न बसा मनमोहन तो, वह ठान िकसी पर ठाने ही ा ?
िजस बर ने इमली ही चखी, वह ाद सधा ु पिहचाने ही ा ?
िजसने कभी ेम िकया ही नह, वह ेम की आह को जाने ही ा ?
ु कल और को चाह ।
ऐसे नह हम चाहनहार जो, आज त
फिक द आँिख िनकािस दोऊ, जोप ै और की ओर लख, औ लखाव ॥
लाख िमलौ तमु स बिढकै , तमु ही क चह तमु ही को सराह ।
ान रह जब ल उर म, तब ल हम नेह कौ नातौ िनबाह ॥
२६
ीराधारस
ीज-मिहमाित पद
वृावन धाम को बास भलौ, जहँ पास बह जमना ु पटरानी ।
जो नर ाइ के ान धर , ितनक बैकुठ िमले रजधानी ।
चार वेद बखान कर , अ स गनीन ु मनु ी मनमानी ।
जमनु ा जम तन टारत है, भव तारत ह ीरािधकारानी ॥
२७
ीराधारस
कह मानिता िमले न िमले, अपमान गले म बंधाना पड़े ।
जल भोजन की परवाह नह, करके त ज िबताना पड़े ॥
अिभलाषा नह सखु की कुछ भी, ख िन नवीन उठाना पड़े ।
जभूिम के बाहर िकं त ु भो, हमको कभी भूल न जाना पड़े ॥
ु
न बौ कोई वेदपराण पढ़े, न बौ कोई सीस रखाये जटा ।
न बौ कोई जंगलवास िकये, न बौ कोई ऊँ ची िचनाये अटा ।
ारथ कौ पिरवार बौ, ये चार िदना के ह ठाठ ठटा ।
भज ले हिरकृ अरी रसने, तोिह घेरत आवत काल घटा ॥
ु बड़ी चतराई
बि ु बड़ी, मनम ममता अितसय िलपटी है ।
ान बड़ौ धन धाम बड़ौ, करतूत बड़ी जग म गटी है ॥
गज बािज ार मनु हजार, तो इ समान म कौन घटी है ।
ु नािर की नाक कटी है ॥
सो सब कृ की भि िबना, मान सर
२८
ीराधारस
जाकी कृ पा शकु ानी भये, अित दानी औ ानी भए िपरारी
ु ।
ु
जाकी कृ पा िविध ( वेद ) रचे, भए ास परानन के अिधकारी ।
जाकी कृ पा ते िलोकी धनी, स ु कहावत ीजच िबहारी ।
लोक घटी ते ‘हठी’ क बचाउ, कृ पा किर ीवृषभान ु लारी ॥
२९
ीराधारस
किव
रिसकारा राधा
कीरत महारानी, वृषभान ु आिद गोप-गोपी,
कै स ै या किल के मािह ध कहलावते ।
कौन तप करतो या ज मािह बिसवे को,
कौन सो बैकं ु ठ के सख
ु िबसरावते ॥
नागिरया जौ प ै राधे गट होती नािहं,
याम पर कामँ के िवपती कहावते ।
छाय जाती जड़ता, िबलाय जाते किव सब,
जर जातो रस तो रिसक कहा गावते ॥
मेरे ु
ग-माता-िपता लाड़ली िकशोरी एक,
इनह को बल राख िनस-िदन मन म ।
इनह ु
की दासी, सखरासी ु चां सदा,
सख
ारी छिब देख कभी जमनु ा-पिलन
ु म ॥
३०
ीराधारस
िनत उठ चाव स िनहाँ बाट ारी जू की,
छिब देख-देख जीऊँ न ैनन की स ैनन म ।
लाड़ली जू एक बार हार बार-चार-चार,
चूड़ी पिहराऊ िनत ारी सखी जन म ॥
ीकृ ाराधना
ाम तन ाम मन ाम ही हमारो धन,
आठ याम ऊधो हम ाम ही स काम है ।
ाम हीये, ाम जीये, ाम िबन ु नािहं तीये,
आंध े की-सी लाकरी अधार नाम ाम है ।
ाम गित, ाम मित, ाम ही ह ानपित,
ाम ु
सखदाई स भलाई सोभा धाम है ।
ऊधौ तमु भये बौरे पाती लैके आये दौरे,
योग कहाँ राख ै यहाँ रोम-रोम ाम है ॥
३१
ीराधारस
टे ढ़े सर ु ु
न ैन, टे ढ़े मख कहे ब ैन,
टे ढ़ो मक ु ु ट, बात टे ढ़ी क कहै गयो ।
टे ढ़े घघं ु राले बाल, टे ढ़ी गल फू ल माल,
टे ढ़ो बल ु ाक मेरे िच म बस ै गयो ॥
टे ढ़े पग ऊपर नपु रु झनकार कर ,
बाँसरीु बजाय मेरे िच को चरैु गयो ।
ऐसी तेरी टे ढ़ीन को ान धर मयाराम,
लटपटी पाग से लपेट मन लै गयो ॥
३२
ीराधारस
ु
टे ढ़-े टे ढ़े अर कढ़त मख ारे के ।
हम स टे ढ़ाई भूल मत किरयो कोऊ,
हम ह उपासी एक टे ढ़ी टांग बारे के ॥
३३
ीराधारस
ु
न ैन-चकोर मख-चंद प ै बािर डार,
बािर डारौ िचिह मनमोहन िचतचोर प ै ।
ान क वािर डारौ हँसन दसन लाल,
हेरन कुिटलता और लोचन की कोर प ै ॥
ु ग-अंग ामा-ाम,
वािर डार मनिह सअं
महल िमलाप रस-रास की झकोर प ै ।
अितिह सघर ु बर सोहत िभंगी लाल,
सरबस वार वा ीवा की मरोर प ै ॥
३४
ीराधारस
ीजरस
एक रज-रेणक ु ा प ै िचंतामिण वािर डार,
बािर डार िव सेवाकु के िबहार प ै ।
लतन की पन प ै कोिट क वािर डार,
रंभा को वािर डार गोिपन के ार प ै ॥
ज की पिनहािरन प ै शची-रित वािर डार,
बैकुठ ं वािर डार कािलं दी की धार प ै ।
कह अभैराम एक राधाजू को जानत ह,
देवन को वािर डार न के कुमार प ै ॥
३५
ीराधारस
ु ा को खान नीको, ाद नीको क को ॥
रेणक
राधा-कृ कुड नीको, सन को संग नीको,
गौर याम रंग नीको, अ यग ु च को ।
नील-पीतपट नीको, बंसीवट तट नीको,
लिलत िकसोरी नीकी, नट नीको न को ॥
३६
ीराधारस
कीरत सता ु के पग-पग प ै याग जहाँ,
के शव की के िल कु कोिट-कोिट काशी ह ।
जमनु ा म जगाथ रेणक ु ा म रामेर,
त-त प ै परे जहाँ अयोा िनवासी ह ॥
गोिपन के ािर-ािर प ै हिरार जहाँ,
बी के दार तहाँ िफरत दास दासी ह ।
ग अपवग सख ु लेके करंग े कहा,
जानते नह हो हम वृावन वासी ह ॥
रिसकजन की िशा
गायो न गोपाल मन लाय के िनवािर लाज,
पायो न साद साध-ु मंडली म जाय के ।
छायो न धमक वृािविपन की कुन म,
रौ न शरन जाय िबलेस राय के ॥
नाथ जू न देख छो िछन है छबीली छिब,
िसंह पौिर परयो निहं शीश ँ नवाय के ।
कहै हिरदास तोिह लाज न आवै नेक,
जनम गँवायो, ना कमायो क आय के ॥
३७
ीराधारस
आली अार पर सीतल जल पीवे प ै ॥
िबचरे न वृावन कं ु ज लतान तरे,
गाज िगरै अ फुलबारी-सख ु लीवे प ै ।
‘लिलत िकशोरी’ बीते बरस अनेक ग,
देख े न ान ारे, छार ऐसे जीवे प ै ॥
३८
ीराधारस
ठे न राजा बाते क नह काजा,
एक तू ही महाराजा और कौन को सरािहये ।
ठे न भाई, वाते क न बसाई,
एक तूही है सहाय और कौन पास जाइये ॥
ठे श-ु िम-उदासीन आठ जाम,
एक रावरे चरनन के नेह को िनबािहये ।
लोक सब झ ूठा एक तू ही है अनूठा,
सब चूमग े अँगठू ा, भ ु तू न ठा चािहये ॥
ु
ीयगलरसाराधना
ु
गनीजन सेवक अ चाकर चतरु के ह ,
किवन के मीत िच िहत गनु गानी के ।
सीधेन स सीधे महाबाँके हम बाँकन स,
हरीच नकद दमाद अिभमानी के ।
चाहवे की चाह, का की न परवाह क,
नेही नेह के िदबाने, सूरत िनवानी के ।
सवस रिसकन के सदास ु दास ेिमन के ,
सखा ारे कृ के गलाम ु राधारानी के ॥
३९
ीराधारस
जो नवीन तौ ितहारे, ाचीन तौ ितहारे ह ।
कू र तौ ितहारे, गण ु पूर तौ ितहारे,
राँच े नूर तौ ितहारे, सांच े सूर तौ ितहारे ह ।
भायक ितहारे, यश गायक ितहारे,
हो सहायक हमारे हम पायक ितहारे ह ॥
४०
ीराधारस
काले परे कोस चिल चिल थक गये पाँय,
सखु के कसाले परे ताले परे नस के ।
रोय रोय न ैनन म हाले परे जाले परे,
मदन के पाले परे ान परवस के ।
‘हरीचंद’ अ हवाले परे रोगन के ,
सोगन के भाले परे तन बल खस के ।
पगन म छाले परे नांिघबे क नाले परे,
तऊ लाल लाले परे रावरे दरस के ॥
४१
ीराधारस
ु
गजन बरज रहे री ब भांित मोिह,
संक ितनं की छांिड़ ेम रंग रांची म ।
ही बदनामी लई कुलटा कहाई ह,
कलंिकिन बनी ऐसी ेम लीक खाँची म ।
कहै हिरच सबै छोड़ो ान ारे काज,
याते जग झ ूठौ रौ एक भई साँची म ।
नेह के बजाइ बाज छोिड़ सब लाज आज,
ँ ट उघािर जराज हेत ु नाँची म ॥
घूघ
संकीतनाराधन
४२
ीराधारस
मन भूल मत जइयो राधा रानी के चरण ।
राधारानी के चरण यामा ारी के चरण ।
बाँके ठाकुर की बाँकी ठकुरानी के चरण ॥टे क॥
वृषभान ु की िकशोरी सनीु ग ैया ं ते भोरी ।
ीित जािनके ं थोरी, तोिहं राखगी शरण ॥१॥
जाकूँ याम उर हेर, राधे राधे राधे टे र ।
ु म बेर बेर, कर नाम से रमण ॥२॥
बाँसरी
भ ेिमन बखानी, जाकी मिहमा रसखानी ।
िमले भीख मन मानी, कर ार से वरण ॥३॥
एरे मन मतवारे, छोिड़ िनया के ारे ।
राधा नाम के सहारे, सप जीवन मरण ॥४॥
४३
ीराधारस
ु तीर ।
अके ली मत जइये राधे यमना
वंशी वट म ठग लागत है सर ु याम शरीर ॥
ु
िबन फाँसी िबन भजबल मारत िबन गाँसी िबन तीर ।
बाके प जाल म फँ िसके को बिचहै ऐसो बीर ॥
घर बैठो भर देऊँ गगिरया मन म राखो धीर ।
बीर न पान करन हम ागो कािली कौ नीर ॥
धन सतु धाम गये निहं िचा ाण गये निहं पीर ।
सूरदास कुलकान गई ते धृग-धृग ज शरीर ॥
४४
ीराधारस
आज ठाड़ौ री िबहारी यमना ु तट प ै ।
मित ज ैयो री अके ली कोई पनघट प ै ॥
मकु ुट लटक भृकुटी की मटक ।
मन गयो री अटक याकी पीरी पट प ै ॥ आज०
नजू को छौना देिख धीरज रो ना ।
बीर ऐसो क टोना नटवर नट प ै ॥ आज०
ु
गजन ास, कै स े बस ज बास ।
मन बन गयौ दास, घघ ँ ु रारी लट प ै ॥ आज०
टी कुल लाज, गोपी आ भाज-भाज ।
याम रिसया को राज आज बंशीवट प ै ॥ आज०
४५
ीराधारस
झ ूला झ ूलत िबहारी वृावन म ।
कै सी छाई हिरयाली आली कुन म ॥ टे क ॥
न कौ िबहारी, इत भान ु की लारी,
जोरी लग ै अित ारी, बसी नयनन म ॥१॥
जमनु ा के कू ल, पिहर सरंु ग कू ल,
तैस े फू ल रहे फू ल, इन कदमन म ॥२॥
गौर याम रंग, घन दािमन के संग,
भई अँिखया अपंग, छिब भिर मन म ॥३॥
राधा मख ु ओर, न ैन ‘याम’ के चकोर,
सिखयन ेम डोर लगी चरनन म ॥४॥
४६
ीराधारस
बल ेम के पाले पड़कर, भ ु को िनयम बदलते देखा ।
उनका मान भले टल जावे, जन का मान न टलते देखा ॥
िजनकी के वल कृ पा ि से, सकल सृि को पलते देखा ।
उनको गोकुल के गोरस पर, सौ-सौ बार मचलते देखा ॥
िजनके चरण-कमल, कमला के करतल से, न िनकलते देखा ।
उनको बृज करील कु म, कं टक पथ पर चलते देखा ॥
िजनका ान िवरि शंभ,ु सनकािदक से न सँभलते देखा ।
उनको वाल सखा-मंडल म, लेकर गद उछलते देखा ॥
िजनकी ब भृकुिट के भय से, सागर स उछलते देखा ।
उनको माँ यशोदा के भय से, अ ु िब ग ढलते देखा ॥१॥
सप िदए मन-ाण त ु को, सप िदया ममता अिभमान ।
जब ज ैसे मन चाहे बरतो, अपनी व ु सवथा जान ॥
मत सकुचाओ मन की करते, सोचो नह सरी बात ।
मेरा कुछ भी रहा न अब तो, तमु को सब कुछ पूरा ात ॥
मान अमान ःख-सख ु से अब, मेरा रहा न कुछ स ।
तु एक कै व मो हो, तमु ही के वल मेरे ब ॥
रं कह, कै स े भी रहती, बसी त ु ारे अर िन ।
टे सभी अ आय अब, िमटे सभी स अिन ॥
एक त ु ारे चरण-कमल म, आ िवसिजत सब संसार ।
रहे एक ामी बस तमु ही, करो सदा िवहार ॥२॥
४७
ीराधारस
मांझ
कजरारी तेरी आँख म ा, भरा आ कुछ टोना है ।
तेरा तो हँसन और का मरन, अब जान हाथ से धोना है ।
ा खूबी बयान कँ, यह सर ु ाम सलौना है ।
याम सखी ाण धन जीवन, ज का एक िखलौना है ॥
४८
ीराधारस
ीवृाबन रज दरसावे सोई िहतू हमारा है ।
राधामोहन छबी छकावे सोई ीतम ारा है ।
कािलं दी जल पान करावे सो उपकारी सारा है ।
ु
लिलतिकशोरी जगल िमलावे सो अँिखय का तारा है ॥
॥ीभािभलाषा॥
इतना तो करना ामी, जब ाण तन से िनकले ।
गोिव नाम कहकर, मेरा ाण तन से िनकले ॥टे क॥
ीगंगा जी का तट हो, या जमनु ाजी का बट हो ।
मेरा साँवरा िनकट हो, िफर ाण तन से िनकले ॥
ीवृावन का थल हो, मेरे मख ु म तलु सी दल हो ।
िव ु चरण का जल हो, िफर ाण तन से िनकले ॥
मेरा साँवरा खड़ा हो, वंशी का र भरा हो ।
ितरछा चरण धरा हो, जब ाण तन से िनकले ॥
िसर सोहना मक ु ु ट हो, मख
ु ड़े प ै काली लट हो ।
यही ान मेरे घट हो, जब ाण तन से िनकले ॥
कान जड़ाऊँ बाली, लट की लट ह काली ।
देखूँ अदा िनराली, जब ाण तन से िनकले ॥
के शर ितलक हो आला, मख ु च सा हो उजाला ।
डाँ गले म माला, जब ाण तन से िनकले ॥
पचरंग काछनी हो, पट पीत म तनी हो ।
मेरी बात सब बनी हो, जब ाण तन से िनकले ॥
पीतारी कसी हो, होठ म कुछ हँसी हो ।
४९
ीराधारस
छिब ये ही िदल बसी हो, जब ाण तन से िनकले ॥
सधु मझ ु को ना हो तन की, तैयारी हो गमन की ।
बृज बन की होव लकड़ी, जब ाण तन से िनकले ॥
उस व जी आना, मझ ु को न भूल जाना ।
नपु रु की धनु सनाना,
ु जब ाण तन से िनकले ॥
जब कठ ाण आवे, कोई रोग ना सतावे ।
यम दश ना िदखावे, िफर ाण तन से िनकले ॥
मेरे िनकले ाण सख ु से, तेरा नाम िनकले मख
ु से ।
बच जाऊँ घोर ख से, िफर ाण तन से िनकले ॥
ये नेक सी अरज है मानो तो ा हरज है ।
ये ही दास की गरज है िफर ाण तन से िनकले ॥
इतना तो करना ामी जब ाण तन से िनकले ॥
५०
ीराधारस
॥ ज के रिसया ॥
ए री अलबेलो छैल छबीलो ज म बाँकेिबहारी लाल ।
बाँकेिबहारी लाल ज म कु िबहारी लाल ॥
एरी अलबेलो०
मोर मक ु ु ट मकराकृ त कुडल गल बैजी माल ।
ठोड़ी पर तो हीरा सोहै न ैना बने िवशाल ॥
एरी अलबेलो०
पीतार को जामा सोहै पटका लाल गलाल ु ।
कमर कधनी हिर के सोहै नूपरु की झनकार ॥
एरी अलबेलो०
ध भात को भोग लगत है राज भोग ृग ं ार ।
स ैन भोग तो खूब लगत है बट जावै परसाद ॥
एरी अलबेलो०
िनिधवन म हिर रास रचावै यामा ारी साथ ।
िनिधवन तो ीिबहारीजी को सेवक है हिरदास ॥
एरी अलबेलो०
५१
ीराधारस
कमल से कोमल ह बाँके चरन
हे याम सूरत मनोहर बरन
भ की ीत ज ैसे चंदा चकोर िचत लीा है चोर ॥३॥
बाँकी है झाँकी और बाँकी अदा
भ के कारज सधारे ु सदा
ु
ऐसे ही दीन की सिनए िनहोर िचत लीा है चोर ॥४॥
५२
ीराधारस
नेकु नािच दै िबहारी मेरे अँगना म आय ।
हँिस मरु ली बजाय दे माखन खवाय ॥टे क॥
छोटो सौ गपाल ु तारी दैिह ज बाल ।
नाचौ नजू के लाल दैह सगाई कराय ॥१॥
झठँ ू कहै मैया कब लावैगी ैया ।
तेरी चाँगो न ग ैया, कं नजू स जाय ॥२॥
छोटी एक ग ैया, मँगवाऊँ गी कैया ।
ध पीयौ दोऊ भैया, तेरी चोटी बिढ़ जाय ॥३॥
गायबे बधाई कब आवैगी गाई ।
झ किरदै सगाई, दीजौ लहा बनाय ॥४॥
बरना बनाऊं गात उबिट वाऊँ ।
संग दाऊ कौ पठाऊँ , ाह लावैगो कराय ॥५॥
बिल को पठावै, िन मोही को िखजावै ।
‘याम’ तािह न पावै, देगौ हाऊ ते डराय ॥६॥
५४
ीराधारस
ु ।
भन कौ िहतकारी म कृ मरारी
भाव अधीन रं भन के िगनू न नृपित िभखारी ॥टे क॥
तोता कूँ पढ़ाबे स गिणका कूँ तार िदयो,
कं ु जर कूँ तार िदयौ ेम की पकार
ु म ।
वु छ शीश िदयो ाद उबार िलयो,
ोपदी ने बाँध िलयो के चार तार म ।
बन-बन गाय चरावत डोँ ओिढ़ कमिरया कारी ॥
भन को० ॥१॥
झठँ ू े बेर खाय जाऊँ चावल मु ी कहाँ पाऊँ ,
च की चले तहाँ रथ कूँ चलाऊँ म ।
ु
डी ं चकाऊँ हाथ िगिर ले उठाऊँ ,
ु ेम की पकार
नंग े पाँव उठ धाऊँ सिन ु ।
तोँ धनषु यंवर रोपूँ नर ते बन जाऊँ नारी ॥
भन को० ॥२॥
चरण कमल तिज कमला न जाय कँ,
ज के करील काँटे मेरे मन भाये ह ।
भान ु की लारी जब मान करे ारी,
ु
बन ेम को पजारी लै चरन मनाऊँ म ।
जगत को नाथ जगोिपन अनाथ िकयो ेिमन की बिलहारी ॥
भन को० ॥३॥
५५
ीराधारस
कै सौ माँग े दान दही कौ, रोकै मारग िगरधारी ।
िनत ित िनकस गई चोरी ते, गोरी बरसाने वारी ॥
रोकै मत ग ैिल नयौ दानी भयौ छैल,
सनु न के ठग ैल तेरे लाज न रही ।
रही कुल की जो रीित और आपस की ीित,
ऐसी करै अन रीित नीित तोर दई ॥
दई उलटी चाल चलाय जाय न ैक पूछौ मँहतारी ॥१॥
पूँ कहा माय दान ल ग ु
ँ ो चकाय,
नािहं सूधी बतराय इठलाय घनी ।
घनी देखी नई नार बन बड़े की कुमािर,
मोते कहै ठगवार लग ै आप ठगनी ॥
ठग न ैना तेरे चपल गजिरया ु िहरदे की कारी ॥२॥
कारी जायौ राित याते कारौ भयौ गात,
दही चोर-चोर खात बात ऐठं की करौ ।
करौ कं स को न डर रोिक राखी है डगर,
दऊँ गलचाु ै धर घर रोमते िफरौ ॥
िफरौ घर-घर माँगत छाछ छैल तमु कबके बलधारी ॥३॥
बल देख ै कं स मेरौ वािह मांगो सवेरो,
नािहं फू फा लग ै तेरौ रट वाही की लई ।
लई खूब समझाय रही बातन बनाय,
तोिह दैग ँ ो नचाय ज ैसे दही म रई ॥
रईयत बाबा की बस तेरी सी सौ गोबरहारी ॥४॥
रईयत हमारी लाल अब बने भूिमपाल,
५६
ीराधारस
जोिर दस वाल-बाल बाँकुरे भये ।
भये मथरु ा म आप बंिद काट माई-बाप,
भानपु रु के ताप गाय चराइ ाँ रहे ।
रहे उलटी आँख िदखाय कमिरया ओढ़ लई कारी ॥५॥
कमरी हमारी तीन लोक तेऊ ारी,
तू तो जान ै का गँवारी पाव देव न पार ।
पार पायौ नािहं शेष इ अज महेस,
मेरौ वािरया कौ भेष देस ेम कौ चार ॥
चट दऊँ गो कं स पछार ाम कामिर म गनु भारी ॥६॥
५७
ीराधारस
अपनो गाँव रखो नरानी ! हम कह और बसगी जाय ॥टे क
तेरे लाला का गणु सनु री, कं तोय समझाय ।
देखन म लागे छोटो सो, हाल बड़ो हो जाय ॥१॥
सूनी बाखर खोल के साँकर, वह भीतर घस ु जाय ।
छका म ते माखन खावे, ध दही ढरकाय ॥२॥
म जल-जमनु ा नहाने चाली, चीर चोर ले जाय ।
लेके चीर कदम पर बैो गूठँ ो रौ िदखाय ॥३॥
एक िदना मोहन को पकड़यो, बक िछपक कर जाय ।
अपनो हाथ ड़ाय गयो, देवर को कर पकड़ाय ॥४॥
च सखी भज बालकृ छिब लाला को लेओ समझाय ।
वृावन की कु गिलन म ट ट दिध खाय ॥५॥
५८
ीराधारस
िगिर गोवधन की बिलहारी, जाते नाम परयौ िगरधारी,
राधा कृ कुड छिब ारी ।
बरसानौ लिख िया कौ है अनपम ु ान ।
पीरी पोखर सांकरी खोर और गढ़ मान ॥
मोरकुटी गहवर बन बिसक भज लै राधा-नाम ॥३॥
शोभा देख आिद बी की, झाँकी कर चमाजी की,
चरण पहाड़ी है अित नीकी ।
मधबु न ताल कुमोद बन दिमल बला जान ।
ादस बन उपबन िनरिख ीगोपेर भगवान ॥
बट संकेत देख ता आग है मेरौ न गाम ॥४॥
शु ेम मूरित बृज नारी, मीठी दय ेम की गारी,
वाल नचाम दै-दै तारी ।
और धाम ऐय मय तहाँ िु त गनु गान ।
यहाँ घर-घर चोरी कर पर भगवान ॥
ओिढ़ कमिरया गाय चराऊँ डों नंग े पाम ॥५॥
६०
ीराधारस
॥ पद ॥
६१
ीराधारस
लटकत आवत कु भवन ते ।
ढरु -ढरु परत रािधका ऊपर जात िशिथल गवन ते ॥
चक परत कबँ मारग िबच चलत सगं ु ध पवन ते ।
भर उसास राधा िवयोग भय सकुचे िदवस रवन ते ॥
आलस िमस ारे न होत ह नेकँ ारी तन ते ।
रिसक टरो िजन दशा याम की कब मेरे मन ते ॥
ु मोरी ।
ीराधे दे डारो ना बाँसरी
जा वंशी म मेरे ाण बसत ह सो वंशी गई चोरी ॥
सोने की नाह काा पे की नाह हरे-हरे बाँस की पोरी ।
काहे से गाऊँ राधे काहे से बजाऊँ काहे से लाऊँ गउआँ घेरी ॥
ु से गाओ ारे ताल से बजाओ लकुटी से लाओ ग ैयाँ घेरी ।
मख
चसखी भज बालकृ छिब हिर चरणन की चेरी ॥
॥ीगोिवाराधन॥
६३
ीराधारस
आये यहाँ ! कर ा रहे हो ?
सोचो िबचारो हिर को पकारो, ु
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥८॥
से सखा ह हिर ही हमारे,
ु ु ारे ।
माता-िपता-ामी-सब
भूलो न भाई िदन-रात गावो,
गोिव ! दामोदर ! माधवेित ॥९॥
गोिव दामोदर माधवेित,
हे कृ हे यादव हे सखेित ।
ीकृ गोिब हरे मरु ारे,
हे नाथ नारायण वासदेु व ॥१०॥
६४
ीराधारस
६५
ीराधारस
६६
ीराधारस
६७
ीराधारस
६८
ीराधारस
ु पाय क ।
आँगन म डोलै ढ़कतो मन म बत सख
जो चूक भ ु मोस भई दीजौ सभी िबसराय क ॥
अित िविच मैया व मँगाये,
पाँड़ े को भोजन करवाये,
दई दिणा िवदा कराये,
ु ते भरे रह भडार ॥ पाँड़ े पूछ रौ ...
आशीवाद दय िज मख
६९
ीराधारस
ु जल करवे को भ ु ने नाो कालीनाग ।
िनमल जमना
ु ाये,
वालबाल सब सखा बल
नाना भाँितन खेल मचाये,
् टोल घमाय,
गद म मारयौ ु
उछट जमनु ा म पँची जाय,
सखा ीदामा गयो िरसाय,
मेरी तो वही गद दै लाय,
दोहा - ीदामा ने फ ट गह कही कृ समझाय ।
जमनु ा म ते जाय क वही गद दै लाय ॥
य मत जाने िबना गद िलए घर कूँ जाऊँ गो भाग ।
छोड़ फट ीदामा मेरी,
घर चल गद िदवाय दऊँ तेरी,
ु
कही य ीदामा झझलाय,
मेरी तो वही गद दै लाय,
खड़ो बात रो बनाय,
मेरी तो वही गद दै लाय,
ु
दोहा - इतन सनक कृ ने नटवर भेष बनाय ।
लै भैया म जात ँ घर मत किहय जाय ॥
ठाड़े रिहय जमनु ा तट प ै मत जइय मोय ाग ।
दह म कू दे कृ मरु ारी,
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ु
ाण बनक कृ मरार पधारे बिल राजा के ार ।
ु
बने वामन अंगल भगवान,
प कूँ देख िछपे ह भान,
लयौ माला ते िजनको ान,
दोहा - चरण खडाऊँ पहिर के लकुटी लै लई हाथ ।
गीता ु
पक बगल म ्
परयौ जनेऊ गात ॥
दरबानी ते कही खबर तमु करो भूप दरबार ।
कचहरी जाय पँौ दरबान,
अरज कर कीनौ सकल िबयान,
िव एक आयौ चतरु सजान,
ु
दोहा - चले छोड़ दरबार को भूप िहये हरषाय ।
दशन करके िव के परे चरण म जाय ॥
ु ते करो उचार ।
जो माँगो सो दऊँ नाथ क मख
र ते सनु क आयो तोय,
भूिम एक तीन प ैड़ दै मोय,
लऊँ ठाकुर की रसोई पोय,
दोहा - तीन प ैड़ की कहा चले भ ु लीज ै साढ़े तीन ।
ु ा गु जी लीन ॥
गंगा जल झाड़ी मँगा बल
ु राचाय ।
देख िव की ओर भूप ते बोले शक
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् अब क छिलया के फं द,
परयौ
छौ जाने राजा हिरचंद,
िबके रानी राजा फरज,
दोहा - दान जमी कौ मत करै राजन मेरी मान ।
बिल राजा कहने लगे गु वचन न लौटे जायँ ॥
ु
गये झाड़ी म बैठ गजी ने रोक लई जलधार ।
राजा याहै मत दे दान जमी को,
याही ने हिरनाकुश मारयो
् बन गयौ िसंह वनी कौ,
याही ने वृा छल लीनी धर के प पती कौ,
याही ने हिर छौ है भरो नीर भंगी को,
भ ु ने जान िलयौ वह चोर कुशा से िदयौ ने एक फोर ।
भूप संक िकयौ कर जोर,
दोहा- तीन प ैड़ म सब िलयो आधौ देओ दयाल ।
आधे म ओधे नपे बिल भेज िदए पाताल ॥
िज घासी कथ कहै बने भ ु आप ही पहरेदार ।
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ु
कृ िपया मोरी रंग दे चनिरया ।
ु
नलाल मोरी रंग दे चनिरया ।
ु ी है बजिरया ॥
आप रँगो चाहे मोय रँगा दो, ेम नगर की खल
ऐसौ ‘रंग’ रँग जो, धोबी धोये चाहे सारी उमिरया ।
गई रे महीना, वार ते वारे आधी उड़रयो चाहे सारी उमिरया ॥
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ु लरसमय-संकीतन
ीयग
जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय ी राधे ।
जय कृ जय कृ कृ जय कृ जय ी कृ ॥
यामा गोरी िन िकशोरी ीतम जोरी ी राधे ।
ु
रिसक रसीलो छैल छवीलो गणगरवीलो ीकृ ॥
रासिवहािरिण रसिवािरिण िपय उरधािरिण ीराधे ।
नव नव री नवलिभी यामसअी ु ीकृ ॥
ाणिपयारी पउजारी अित सक ु ु मारी ीराधे ।
मैनमनोहर महामोदकर सर ु वरतर ीकृ ॥
शोभाेणी मोहामैनी कोिकलवैनी ीराधे ।
कीरितवा कािमिनका ीभगवा ीकृ ॥
चावदनी कुारदनी शोभासदनी ीराधे ।
परम-उदारा भा-अपारा अितसक ु ु मारा ीकृ ॥
हंसागमनी राजतरमनी ीड़ाकमनी ीराधे ।
परसाला न ैनिवशाला परम कृ पाला ीकृ ॥
कन वेिल रित रस रेिल अित अलवेिल ीराधे ।
ु
सब सखसागर ु
सब गणआगर पउजागर ीकृ ॥
रमणीरा ततरता गण-अगा ु ीराधे ।
धामिनवासी भाकासी सहज सहासी ु ीकृ ॥
शाािदिन अितियवािदिन उरउािदिन ीराधे ।
अ अ टोना सरस सलोना सभग ु सठोना ु ीकृ ॥
ु अिभरािमिन ीहिरिया ािमिन ीराधे ।
राधा नािमिन गण
हरे हरे हिर हरे हरे हिर हरे हरे हिर ीकृ ॥
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अशेष हावभाव धीरहीरहारभू िषते
भू त शातकु कु कु ि कु स ु िन ।
शम हाचू ण पू ण सौसागरे
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥६॥
मृ णालबालवरी तररदोल त े
लतालालोलनीललोचनावलोकने ।
ललु ल िलनो म ु धमोहनाये
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥७॥
स वु णमािलकािते िरे ख क क ु ठगे
िसू मलीग णु िरदीिदीिधते ।
सलोलनीलकु ले सू न ग ु ग िु ते
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥८॥
िनतिबलमान प ु मेख लाग ण ु े
शरिकिणी कलापमम ल ु े ।
करीश ु डदिडकावरोहसौभगोके
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥९॥
अनेक मनाद ु ू प रु ारवलत ्
म न
समाजराजहं स वं श िनणाितगौरवे ।
िवलोलहे म वरी िवडिचाचमे
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥१०॥
८९
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अनकोिटिव ल ु ोक नपजािचत े
ु ोमजा
िहमािजा प ल िविरजा वरदे ।
अपारिसिवृ ििदध सदा ुलीनखे
कदा किरसीह मां कृ पाकटाभाजनम ् ॥११॥
मखे िर िये िर धे िर स रु े िर
िवेद भारतीिर माणशासने िर ।
रमे िर मे िर मोद कानने िर
जे िर जािधपे ीरािधके नमोऽ ु ते ॥१२॥
इतीद ् म ु त वं िनश ु िनी
भान न
करोत ु सतं जनं कृ पाकटाभाजनम ् ।
भवे दैव सितिपकमनाशनं
लभे दा जे सू न म ु डलवेश नम ् ॥१३॥
॥ इ ित ी म ााये ी रािध कायाः कृ पाकटाों सू ण म ॥
९०
ीराधारस
ु
ीाडपराणो ीराधा ो
गृहे राधा वने राधा पृ े राधा परःिताु ।
य य िता राधा राधैवाराते मया ॥
िजा राधा तु ौ राधा ने े राधा िदिताः ।
सवाेािपनी राधा राधैवाराते मया ॥
पूजा राधा जपे राधा रािधका चािभवने ।
तु ौ राधा िशरोराधा राधैवाराते मया ॥
गाने राधा गणे ु राधा रािधका भोजने गतौ ।
राौ राधा िदवा राधा राधैवाराते मया ॥
माधयु मधु रु ाराधा महे रािधका गः ु ।
सौय सरी ु राधा राधैवाराते मया ॥
राधा पानना पा पोवसमु वा ।
पाे िववेिचता राधा राधैवाराते मया ॥
राधाकृ ािका िनं कृ ोराधाकोवु म ् ।
वृावनेरी राधा राधैवाराते मया ॥
िजाे रािधका नाम नेाे रािधका तनःु ।
कृ हापरा राधा राधैवाराते मया ॥
कणा े रािधकाकीित मनोऽे रािधका तनःु ।
कृ ेममयी राधा राधैवाराते मया ॥
९१
ीराधारस
ीमधरु ाकम ्
अधरं मधरु ं वदनं मधरु ं नयनं मधरु ं हिसतं मधरु म ् ।
्
दयं मधरु ं गमनं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ॥१॥
वचनं मधरु ं चिरतं मधरु ं वसनं मधरु ं विलतं मधरु म ् ।
चिलतं मधरु ं िमतं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥ २॥
ु ध रु ो रेणम
वेणम ु ध रु ः पािणमधरु ः पादौ मधरु ौ ।
रिखलं मधरु म ् ॥३॥
नृ ं मधरु ं सं मधरु ं मधरािधपते
ु
ु मधरु ं संु मधरु म ् ।
गीतं मधरु ं पीतं मधरु ं भं
पं मधरु ं ितलकं मधरंु मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥४॥
करणं मधरु ं तरणं मधरु ं हरणं मधरंु रणं मधरु म ् ।
विमतं मधरु ं शिमतं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥ ५॥
ु मधरु ा माला मधरु ा यमनु ा मधरु ा वीची मधरु ा ।
गा
सिललं मधरु ं कमलं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥ ६॥
गोपी मधरु ा लीला मधरु ा य ु मधरु म ् ।
ु ं मधरु ं भं
रिखलं मधरु म ् ॥७॥
ं मधरु ं िशं मधरंु मधरािधपते
ु
गोपा मधरु ा गावो मधरु ा यिमधरु ा सृिमधरा
ु ।
दिलतं मधरु ं फिलतं मधरु ं मधरु ािधपतेरिखलं मधरु म ् ॥८॥
( ी व भा चा यजी म हा राज ारा िव र िचत )
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ीराधारस
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