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ससं ्कृ त गद्य ्ा आरम्भ ब्ाह्मण-ग्रन्थों और उपनिषदों ्े गद्य में देखा जा स्ता है। बहुत
नदिों त् सरल स्ा्भान्् शैली में गद्य नलखिे ्ी परमपरा चलती रही। प्ाचीि नशलालेखों
में गद्य ्ा ्ाव्यमय रूप प्ाप्त होता है। इस दृनटि से रुद्रदामि् ्ा नगररिार नशलालेख (150 ई.)
त्था हररषेण रनचत समद्रु गप्तु -प्शनसत (360 ई.) महत््पणू ्ण हैं। ये दोिों सानहन्य् गद्य ्े श्ेष्ठ
उदाहरण हैं। गद्य्ाव्य ्ो समरण रखिे ्ा श्म, आलोच्ों ्ी उपेक्ा और गद्य्ाव्य ्ा
ऊँचा मािदण्ड—इि तीिों ्ारणों से गद्य्ाव्य ्ी रचिा ्म हुई। पद्यन्धा ्ी स् ु ु मारता,
लया्म्ता, सगं ीता्म्ता, रचिा्म् सनु ्धानद गणु ों ्े ्ारण पद्य रचिा द्ारा लो्यश
ए्ं प्शसं ा प्ाप्त ्रिा ्न्यों ्े नलए सरल ्ाय्ण ्था। परनतु गद्य रचिा में इि गणु ों ्ो
उ्पनि ्रिा ्थोडा ्निि ्था। इसीनलए अनध्ाश ं ्न्यों ्ी सहज प््कृनति पद्य रचिा ्ी
ही ओर अनध् रही। गद्य रचिा ्े सनद्भ्ण में यह उनति ्भी प्नसद्ध है—गद्यं कवीनयां ननकषं
वदन्त। गद्य ्ाव्य ्े मख्ु यत: दो ्भेद हैं— ््था और आख्यानय्ा। प्ाय: छिी-सात्ीं
शताबदी ई. में ्ुछ महत््पणू ्ण गद्य ्न् हुए, जैस— े दण्डी, सबु न्ु और बाणभट्ट।
दण्ी
दण्डी िे दशकुमारचररत ्े रूप में ए् अद्ुत ््था-्ाव्य नदया है। दण्डी ्ा समय
न््ादासपद है, न्नतु अनध्ांश न्द्ाि् इि्ा ्ाल छिीं शताबदी मािते हैं। परमपरा
से दण्डी ्े तीि ग्रन्थ प्ामानण् मािे जाते हैं। इिमें दसू रा ग्रन्थ काव्ादश्श और
तीसरा अवननतसनु दरडीकथा है। इस तीसरे ग्रन्थ ्े रचनयता ्े न्षय में ्ुछ न््ाद है।
दशकुमारचररत अव्य्नस्थत रूप में नमलता है। इस्े तीि ्भाग प्ाप्त हैं— प्ू ्णपीनि्ा
(पाँच उच्�ास), मलू ्भाग (आि उच्�ास) त्था उतिरपीनि्ा (ए् उच्�ास)। मल ू ्भाग में
आि ्ुमारों ्ी ््था ्ा ्ण्णि है। प्ू ्णपीनि्ा ्ो नमला्र दस ्ुमारों ्ी ््था परू ी हो
जाती है। तीिों ्भागों ्ी शैली में ्थोडा ्भेद नदखाई पडता है।
दशकुमारचररत ्ा ््थाि् घटिा प्धाि है, नजसमें अिे् रोमाचं ् घटिाएँ पाि्ों
्ो न्समय और न्षाद ्े बीच ले जाती हैं। ्हीं ्भय् ं र जगं ल में घटिाक्रम पहुचँ ाता है,
2022-23
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प्र. 1. ससं ्कृ त भाषा में गद्य्ाव्य ्ी रचनाएँ ्म होने ्े क्या ्ारण हैं?
प्र. 2. छठी शताब्ी ्े ्ुछ महत्त्वपणू ्ण गद्य ्वत्व्यों ्े नाम विविए।
प्र. 3. ्ण्ी ्े ्ाव्य ्ी ्ौन-सी वत्वशेषताएँ प्रवसद्ध हैं?
प्र. 4. दशकुमारचररत ्ा िेि् ्ौन है?
प्र. 5. ्ण्ी ने अपने ्ाव्य में व्न-व्न सामान्य चररत्ों ्े आधार पर समाज ्ा वचत् िींचा है?
प्र. 6. वासवदत्ा व्स्ी रचना है?
प्र. 7. वासवदत्ा ्ा ्थान् पचास शब्ों में विविए।
प्र. 8. बाणभट्ट व्स राजा ्ी राजसभा में रहते थे?
प्र. 9. हर्षचररत तथा कादम्बरी व्स िेि् ्ी रचनाएँ हैं?
प्र. 10.आख्याव्य्ा ्ी वत्वशेषताएँ बताइए।
प्र. 11.हर्षचररत ्े नाम्रण ्ी साथ्ण्ता बताइए।
प्र. 12.बाण ्ी गद्य-शैिी ्ी क्या वत्वशेषता है?
प्र. 13.कादम्बरी ्ा ना्य् ्ौन है?
प्र. 14.कादम्बरी ्ा ्थान् पचास शब्ों में विविए।
प्र. 15.“बाणोव्छष्ं जगतसत्व्णम"् इस्ा आश्य क्या है?
प्र. 16.वशत्वाजी ्े जीत्वन ्ी प्रमि ु घटनाओ ं पर विवित ससं ्कृ त में ्ौन-सा गद्य्ाव्य है?
प्र. 17.ररक्त सथानों ्ी पवू त्ण ्ीवजए—
(्) संस्कृ त गद्य ्ा आरमभ.................................................... ग्रनथों और ..........
.................................................... से माना जाता है।
(ि) ससं ्कृ त गद्य सावहत्य में सत्वा्णवध् प्रवतवठित और प्रवतभाशािी गद्य्ार ..................
................................ ही हैं।
(ग) बाणभट्ट ्े वपता ्ा नाम ............................. था।
(घ) सबु नधु अपने ्ाव्य में .......................... अिं्ार ्े प्र्योग पर बहुत गत्व्ण ्रते थे।
(ङ) शशवराजशवजय में ्यत्-तत् ............................ ्े शब्ों ्ा प्र्योग व््या ग्या है।
प्र.18. गद्य ्ाव्यों और ्वत्व्यों ्ो वमिाइए—
गद्यकयाव् कवि
्श्ुमारचररतम् पवण्ता क्षमारात्व
वति्मञजरी महा्वत्व ्ण्ी
्थामकु तात्विी धनपाि
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संस्कृ त सानह्य में गद्य्ाव्य त्था पद्य्ाव्य ्े अनतररकत दोिों ्े नमश्ण ्े रूप में
चमप् ू ाव्य ्ा ्भी उदय हुआ। यद्यनप यह स्रूपत: िीनत-््थाओ ं ्े समाि गद्य और पद्य
से समनन्त होता है, न्नतु िीनत-््थाओ ं और चमपू में मौनल् अनतर है। चमपू मल ू त:
ए् ्ाव्य है, नजसमें ्न् अलङ््रण ्े स्भी साधिों ्ा उपयोग ्रता है। ए् ओर
इसमें गद्य्ाव्य ्ा सौनदय्ण होता है, तो दसू री ओर महा्ाव्य में पाए जािे ्ाले शलो्ों
्े समाि अलङ््कृ त पद्य ्भी रहते हैं। बाह्य सौनदय्ण इसमें मख्ु य होता है और ्न् ्ी ्ला
्ा चम््ार रहता है। न्षय्सतु ्ी प्धािता िहीं रहती। इस्ा उद्ेशय ्ाव्यगत आिनद
देिा है। िीनत-््थाओ ं और लो्-््थाओ ं ्े समाि चमप् ू ाव्य सरल शैली में िहीं
नलखे जाते। गद्य और पद्य दोिों ्ा उ््ष्ण इसमें ्त्णमाि रहता है— गद्य्द्यम्ं कयाव््ं
चम्पूरित््नभ्ी्ते। चमप् ू ाव्य ्ो गद्य्ाव्य ्े समाि ही उच्छ््ासों में न््भकत न्या
जाता है। संस्कृ त में समय-समय पर नलखे गए ्ुछ प्मख ु चमप् ू ाव्यों ्ा न््रण इस
प््ार है—
1. नलचम्पू औि मदयालसयाचम्पू
ये दोिों नत्रन्क्रम्भट्ट द्ारा नलखे गए चमप् ू ाव्य हैं। इि्ा ्ाल दस्ीं शताबदी ई. ्ा
प्ू ा्णध्ण मािा जाता है। नत्रन्क्रम्भट्ट राषट्र्ूट िरे श इनद्रराज ्े संरक्ण में रहते ्थे। नलचमपपू
्ो दम्नतडीकथा ्भी ्हते हैं। इसमें िल और दमयनती ्ी प्णय ््था ्नण्णत है। इसमें
सात उच्छ््ास हैं। रचिा अपणू ्ण प्तीत होती है, कयोंन् िल द्ारा दमयनती ्े नि्ट
सनदेश ले जािे त् ्ी ही ््था इसमें ्नण्णत है। नलचमपपू सरस त्था प्सादपणू ्ण रचिा है।
इसमें शलेष ्ी अनध्ता है। नत्रन्क्रम्भट्ट ्े शलेष बहुत सरल और आ्ष्ण् हैं। इनहोंिे
न्रोध और पररसख्ं या अलं्ारों ्ा ्भी प्चरु प्योग न्या है।
इि्ी दसू री रचिा मदालसाचमपपू है, जो प्णय-््था है। इसमें ्ु्लयाश् से मदालसा
्ा प्ेम ्नण्णत है। ्ु्लयाश् से मदालसा ्ा न््ाह होता है, न्नतु तरु नत न्योग ्भी हो
जाता है। अनत में उसे मदालसा ्ी प्ानप्त होती है। ्ला ्ी दृनटि से उ््कृ षटता होिे पर ्भी
््था ्े न््ास और रोच्ता ्ी दृनटि से यह ्कृ नत लो्नप्य रही है।
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