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सप्‍तम अध्या्

गद्यकयाव्् एवं चम्‍पूकयाव््

ससं ्कृ त गद्य ्ा आरम्भ ब्ाह्मण-ग्रन्थों और उपनिषदों ्े गद्य में देखा जा स्ता है। बहुत
नदिों त् सरल स्ा्भान्् शैली में गद्य नलखिे ्ी परमपरा चलती रही। प्ाचीि नशलालेखों
में गद्य ्ा ्ाव्‍यम‍य रूप प्ाप्त होता है। इस दृनटि से रुद्रदामि् ्ा नगररिार नशलालेख (150 ई.)
त्था हररषेण रनचत समद्रु गप्तु -प्शनसत (360 ई.) महत््पणू ्ण हैं। ‍ये दोिों सानहन्‍य् गद्य ्े श्ेष्ठ
उदाहरण हैं। गद्य्ाव्‍य ्ो समरण रखिे ्ा श्म, आलोच्ों ्ी उपेक्ा और गद्य्ाव्‍य ्ा
ऊँचा मािदण्ड—इि तीिों ्ारणों से गद्य्ाव्‍य ्ी रचिा ्म हुई। पद्यन्धा ्ी स् ु ु मारता,
ल‍या्म्ता, सगं ीता्म्ता, रचिा्म् सनु ्धानद गणु ों ्े ्ारण पद्य रचिा द्ारा लो्‍यश
ए्ं प्शसं ा प्ाप्त ्रिा ्न्‍यों ्े नलए सरल ्ा‍य्ण ्था। परनतु गद्य रचिा में इि गणु ों ्ो
उ्पनि ्रिा ्थोडा ्निि ्था। इसीनलए अनध्ाश ं ्न्‍यों ्ी सहज प््कृनति पद्य रचिा ्ी
ही ओर अनध् रही। गद्य रचिा ्े सनद्भ्ण में ‍यह उनति ्भी प्नसद्ध है—गद्यं कवीनयां ननकषं
वदन्‍त। गद्य ्ाव्‍य ्े मख्ु ‍यत: दो ्भेद हैं— ््था और आख्‍यान‍य्ा। प्ा‍य: छिी-सात्ीं
शताबदी ई. में ्ुछ महत््पणू ्ण गद्य ्न् हुए, जैस— े दण्डी, सबु न्ु और बाणभट्ट।
दण्ी
दण्डी िे दशकुमारचररत ्े रूप में ए् अद्ुत ््था-्ाव्‍य नद‍या है। दण्डी ्ा सम‍य
न््ादासपद है, न्नतु अनध्ांश न्द्ाि् इि्ा ्ाल छिीं शताबदी मािते हैं। परमपरा
से दण्डी ्े तीि ग्रन्थ प्ामानण् मािे जाते हैं। इिमें दसू रा ग्रन्थ काव्ादश्श और
तीसरा अवननतसनु दरडीकथा है। इस तीसरे ग्रन्थ ्े रचन‍यता ्े न्ष‍य में ्ुछ न््ाद है।
दशकुमारचररत अव्‍य्नस्थत रूप में नमलता है। इस्े तीि ्भाग प्ाप्त हैं— प्ू ्णपीनि्ा
(पाँच उच्‍�ास), मलू ्भाग (आि उच्‍�ास) त्था उतिरपीनि्ा (ए् उच्‍�ास)। मल ू ्भाग में
आि ्ुमारों ्ी ््था ्ा ्ण्णि है। प्ू ्णपीनि्ा ्ो नमला्र दस ्ुमारों ्ी ््था परू ी हो
जाती है। तीिों ्भागों ्ी शैली में ्थोडा ्भेद नदखाई पडता है।
दशकुमारचररत ्ा ््थाि् घटिा प्धाि है, नजसमें अिे् रोमाचं ् घटिाएँ पाि्ों
्ो न्सम‍य और न्षाद ्े बीच ले जाती हैं। ्हीं ्भ‍य् ं र जगं ल में घटिाक्रम पहुचँ ाता है,

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तो ्हीं समद्रु में जहाज टूटिे पर ्ोई तैरता हुआ नमलता है। घटिाएँ और न्ष‍य-्ण्णि दोिों
ही समाि रूप से दण्डी ्े नलए महत्् रखते हैं। ््था्सतु ्हीं ्भी ्ण्णिों ्े क्रम में अ्रूद्ध
िहीं होती। दण्डी ्े नचत्रण में सामान‍य समाज ्ी प्धािता है। नजसमें निमि ्ोनट ्ा जी्ि
नबतािे ्ाले धतू ,्ण जादगू र, चाला्, चोर, तपस्ी, नसहं ासिच्‍‍यतु राजा, पनत्ञच् िारी,
िगिे ्ाली ्ेश‍याएँ, ब्ाह्मण, व्‍यापारी और साध।ु दण्डी ्ा हास‍य और व्‍यग्ं ‍य ्भी उच्‍च ्ोनट
्ा है। दण्डी अपिे ्ण्णिों में ्हीं सहज और ्हीं गम्भीर प्तीत होते हैं।
दण्डी ्ी सबसे बडी न्शेषता सरल और व्‍या्हारर् न्नतु लनलत पदों से ‍यति ु
गद्य नलखिे में है। ्े लमबे समासों, ्िोर ध्नि‍यों और शबदा्डमबर से दरू रहते हैं। ्भाषा
्े प्‍योग में ऐसी स्ा्भान््ता न्सी अन‍य गद्य ्न् में िहीं नमलती। दण्डी ्ा पद-
लानलत्‍य संस्कृ त आलोच्ों में न्ख्‍यात है— दनण्न: ्‍दलयानलत््म।् दशकुमारचररत
्ी न्ष‍य्सतु ्भी न्सी आधनु ि् रोमांच्ारी उपन‍यास से ्म रोच् िहीं है।
सबु ््ु
बाण्भट्ट िे हर्शचररत ्ी प्सता्िा में वासवदत्ा ्ो ्न्‍यों ्ा दप्ण्भगं ्रिे ्ाली
रचिा ्हा है। इसी प््ार कादमबरडी ्ो उनहोंिे दो ््थाओ ं (वासवदत्ा त्था बृहत्कथा)
से उ््कृ टि ्हा है। इससे ज्ात होता है न् सबु नधु बाण से पहले हो च् ु े ्थे। वासवदत्ा
सबु नधु ्ी उ््कृ टि गद्य रचिा है, इसमें ््थाि् बहुत सनं क्प्त है। राज्ुमार ्नदप्ण्ेतु
स्पि में अपिी ्भा्ी नप्‍यतमा ्ो देखता है और अपिे नमत्र ्े सा्थ उस्ी खोज में
नि्ल जाता है। ्ह न्नध‍या्टी में ए् मैिा ्े मख ु से ्ास्दतिा ्ा ्कृतिानत सिु ता है।
उधर ्ास्दतिा ्भी स्पि में ्नदप्ण्ेतु ्ो देख्र उस्े प्नत प्ेमासति हो जाती है। दोिों
पाटनलपत्रु में नमलते हैं। प्ेमी-‍यगु ल जादू ्े घोडे पर चढ़्र ्भाग जाते हैं और न्धं ‍याचल
में पहुचँ ्र सो जाते हैं। राज्ुमार जब जागता है, तब ्ास्दतिा ्ो िहीं पाता। बहुत
ढूँढ़िे ्े बाद ्ह ए् प्नतमा ्ो देखता है। सपश्ण ्रते ही प्नतमा ्ास्दतिा बि जाती
है। बाद में दोिों ्ा न््ाह हो जाता है।
इस सनं क्प्त ््थाि् ्ो न्सतकृत ्ण्णि और ्लपिाशनति से सबु नधु बहुत फै लाते
हैं। उि्ा लक्‍य रोच् और सरस ््था ्ा आख्‍याि िहीं है, अनपतु ्े ्ण्णि-्ौशल
से चम््ार उ्पनि ्र गौर् अनज्णत ्रिा चाहते हैं। िा‍य्-िान‍य्ा ्े रूप ्ा ्ण्णि
्रिे में, उि्े गणु -गाि में, उि्ी तीव्र न्रह-्ेदिा, नमलि ्ी आ्ाक् ं ा और स‍यं ोग-दशा
्े नचत्रण में सबु नधु िे प‍या्णप्त शनति लगाई है। इस ्ा‍य्ण में सबु नधु ्े व्‍याप् अि्भु ् त्था
पानण्ड्‍य िे बडी सहा‍यता ्ी है।

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सबु न्ु अपने श्‍ेष के प्रयोग पर बहुत गर्व करते हैं। रे इस कथा के अक्षर-अक्षर में
श्‍ेष भरने का दारा करते हैं। अनय अ्‍क ं ारों का भी उनहोंने प्रचरु प्रयोग ककया है। यत्र-तत्र
पद्ों का प्रयोग करके अपनी शै्‍ी को उनहोंने बहुत रोचक बनाया है। वासवदत्ा रासतर में
सबु न्ु की शै्‍ी का चमतकार कदखाने का सनु दर अरसर देती है। ्‍मबे समासों का प्रयोग
तथा अनप्रु ासों का अतयक्क उपयोग सबु न्ु के शै्‍ी की करशेषता है। समासों में सररमा्यु ्व
है और अनप्रु ासों में सगं ीत है। अपने यगु के अनरू ु प उनहोंने चमतकार-प्रदश्वन ककया है।
बाणभट्ट
संसककृ त गद् साकहतय में सरा्वक्क प्रकतभाशा्‍ी गद्कार बाण ही हैं। इनके करषय में अनय
ससं ककृ त-ककरयों की अपेक्षा अक्क जानकारी प्राप्त होती है। हर्षचरित के आरमभ में इनहोंने
अपना और अपने रश ं का परू ा करररण कदया है। ये रातसयायन-गोत्रीय ब्ाह्मण थे। इनके
कपता का नाम कचत्रभानु था। अलपारसथा में ही ये अनाथ हो गए थे। ककंतु करद्ानों के
परररार में जनम ्‍ेने के कारण इनहोंने सभी करद्ाओ ं का अभयास ककया था। यरु ारसथा
में अनेक क्‍ाओ ं और करद्ाओ ं के जानकार कमत्रों की मण्ड्‍ी बनाकर इनहोंने पया्वप्त
देशाटन ककया था। जब अनेक अनभु रों से समपनन होकर बाण अपने ग्ाम प्रीकतकूट (शोण
के तट पर) ्‍ौटे, तो हष्वर््वन ने अपने अनजु ककृ षण के द्ारा इनहें अपनी राजसभा में
ब्‍ु ाया। बाण राजककृ पा से हष्व की सभा में रहने ्‍गे। हष्वरर््वन का समय 607 ई. से 648
ई. है। इसक्‍ए बाण का भी यही समय होना चाकहए।
बाण ने दो गद्कावय क्‍खे— हर्षचरित तथा कादम्बिी। परमपरा बाणभट्ट को
चण्ीशतक का भी ्‍ेखक मानती है।
• हर्षचरित—हर्षचरित एक आखयाकयका-कावय है। गद्कावय के उस भेद को
आखयाकयका कहते हैं, कजसमें ककसी ऐकतहाकसक परुु ष या घटनाओ ं का रण्वन ककया
जाता है। हर्षचरित आठ उच्छ्रासों में करभक्त है। आरकमभक ढाई उच्छ्रासों में बाण ने
अपने रश ं का तथा अपना रकृत्ानत कदया है। राजा हष्वरर््वन की पैतक कृ राज्ानी सथाणरीश्वर
का रण्वन कर रे हष्वरर््वन के परू ज्व ों का रण्वन करते हैं। इसके बाद राजा प्रभाकररर््वन के
परू े जीरन का करररण देकर रे राजयरर््वन, हष्वरर््वन तथा राजयश्ी इन तीनों भाई-बहन के
जनम का भी रोचक रकृत्ानत देते हैं। पञचम उच्छ्रास से इस परररार के सक ं टों का आरमभ
होता है। प्रभाकररर््वन की मकृतय,ु राजयश्ी का कर्रा होना, राजयरर््वन की हतया, राजयश्ी
का करन्धयाटरी में प्‍ायन, हष्वरर््वन द्ारा उसकी रक्षा— ये सभी घटनाएँ क्रमश: रकण्वत
हैं। कदराकरकमत्र नामक बौर् सनं यासी के आश्म में हष्वरर््वन व्रत ्‍ेता है कक कदक्रजय
के बाद रह बौर् हो जाएगा। यहीं हर्षचरित का कथानक समाप्त हो जाता है।
गद्यकाव्‍य एवं चम्‍काव्‍य
चम्‍क
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बाण ने हर्ष की प्ारंभिक जीवनी ही भिखी, उसके राज्य संचािन की घटनाओ ं का
उलिेख नहीं भक्या है। बाण की िेंट हर्ष से तब हुई थी, जब हर्ष समसत उत्तर-िारत का
सम्ाट् था, इसभिए ्यह समस्या बनी हुई है भक बाण ने हर्ष का परू ा जीवनचररत क्यों
नहीं भिखा? उनहोंने हर्षवर््षन की भवशेरताएँ तो बतिाई हैं, उसके साहभसक का्ययों का
अभतश्योभतिपणू ्ष वण्षन िी प्ारमि में ही भक्या है, भकनततु उसके राज्यकाि की प्मख तु
घटनाओ ं का क्रमबर् रूप से वण्षन नहीं भक्या। इभतहास का संभषिप्त रूप ्यहाँ काव्य के
भवशाि आवरण से ढक ग्या है।
हर्षचरित में बाणिट्ट का पाभ्डित्य और व्यापक अनितु व प्कट हुआ है। भवसततृत वण्षन,
सजीव संवाद, सनतु दर उपमाएँ, झक ं ार करती शबदाविी तथा रसों की सपष्ट अभिव्यभति—
्ये सिी गणतु बाण की गद्य-शैिी में प्चरतु रूप में प्ाप्त होते हैं। राज्यश्ी के भववाह-वण्षन में
जहाँ आननद और उलिास का सजीव भववरण भमिता है, वहीं प्िाकरवर््षन की मतृत्यतु
माभम्षक रूप से वभण्षत है।
• कादम्बरी— ्यह कभव-कभलपत कथानक पर आभश्त होने के कारण कथा नामक
गद्यकाव्य है। उच्‍्वास, अध्या्य आभद में इसका भविाजन नहीं भक्या ग्या है। परू ी
कथा का दो-भतहाई िाग ही बाण ने भिखा। इसका एक-भतहाई िाग उनके पत्रतु ने
भिखकर जोडा, जो अपने भपता के अपणू ्ष ग्रनथ से द:तु खी था। कादम्बिी की कथा
एक जनम से समबर् न होकर चनद्ापीडि (ना्यक) तथा प्तु डिरीक (उसका भमत्र) के
तीन जनमों से समबन्ध रखती है। आरमि में भवभदशा के राजा शद्ू क का वण्षन है।
उसकी राजसिा में चा्डिाि कन्या वैशमपा्यन नामक एक मे्धावी तोते को िेकर
आती है। ्यह तोता राजा को अपने जनम और जाबाभि के आश्म में अपने पहुचँ ने
का वण्षन सनतु ाता है। जाबाभि ने तोते को उसके पवू ्ष जनम की कथा सनतु ाई थी।
तदनसतु ार राजा चनद्ापीडि और उसके भमत्र वैशमपा्यन की कथा आती है। चनद्ापीडि
भदभ्वज्य के प्सगं में भहमाि्य में जाता है, जहाँ अच्‍ोद सरोवर के भनकट महाश्ेता
के अिौभकक संगीत से आकतृ ष्ट होता है। वहाँ कादमबरी से उसकी िेंट होती है और
वह उसके प्भत आसति हो जाता है। महाश्ेता एक तपसवी कतुमार प्तु डिरीक के साथ
अपने अ्धरू े प्ेम की कहानी सनतु ाती है। उसी सम्य चनद्ापीडि अपने भपता तारापीडि
के द्ारा उजजैन बि तु ा भि्या जाता है, भकनततु वह भव्योगजन्य व्यथा से पीभडत रहता
है। पत्रिेखा से कादमबरी का समाचार सनतु कर वह प्सनन होता है। ्यहीं बाण की
कादमबरी समाप्त हो जाती है। महाश्ेता वैशमपा्यन को तोता बनने का शाप देती है।
्यह वैशमपा्यन चनद्ापीडि का भमत्र है, शाप के बाद वह मर जाता है। इससे चनद्ापीडि
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भी द:ु खी होकर मर जाता है। महाश्वेता तथा कादम्बरी, राजकुमार कवे शरीर की रक्ा
करती हैं। अन्त में सभी को जीवन प्ाप्त होता है।
कादम्बरी में कथा को ही नहीं, वर्णनों को भी ्बार नवे अपनी कलपनाशक्ति सवे फै लाया
है। इसमें सभी सथल ्बार की लोकोत्तर शक्ति तथा वर्णन-क्मता का पररचय दवेतवे हैं।
कावयशास्त्र कवे सभी उपादानों (रस, अलंकार, गरु एवं रीक्त) का औक्चतयपरू ्ण प्योग
करनवे कवे कारर कादम्बरी ्बार की उतककृ ष्ट गद्य रचना है। इसमें क्वषय की आवशयकता कवे
अनसु ार वर्णन शैली अपनाई गई है। इसक्लए उनकी शैली को पाञ्ाली कहा जाता है,
क्जसमें शबद और अथ्ण का समान गमु फन होता है। ्बार नवे पात्ों का सजीव क्नरूपर क्कया
है, रस का समक्ु चत पररपाक क्दखाया है और मानव-जीवन कवे सभी पक्ों पर दृक्ष्ट रखी है।
इसक्लए आलोचकों नवे एक सवर सवे कहा है क्क बाणोच्छिष्टं जगत्सर्वम।् अथा्णत् उनकवे
वर्णन सवे कुछ भी नहीं ्बचा है। कादम्बरी में मन्त्ी शक
ु नास नवे राजकुमार चन्द्ापीड को जो
क्वसतकृत उपदवेश क्दया है, वह आज भी तरुरों कवे क्लए माग्णदश्णक है।
अच्बकादत्त व्ा्स
• चिरराजचरज्— एक आधक्ु नक गद्यकावय है, जो महान् दवेशभति क्शवाजी कवे
जीवन की प्मख ु घटनाओ ं पर आधाररत आधक्ु नक उपन्यास की शैली में क्लखा
गया है। इसकवे लवेखक प.ं अक्म्बकादत्त वयास (1858-1900 ई.) हैं। वयास जी मल ू त:
जयपरु (राजसथान) कवे क्नवासी थवे, क्कन्तु उनका काय्णक्वेत् क््बहार था। शिवराजशवजय
का कथानक ऐक्तहाक्सक है, क्जसमें कक्व नवे कलपना का भी प्चरु प्योग क्कया है।
इससवे घटनाएँ गक्तशील और प्भावशाली हो गई हैं। वयास जी की भाषा-शैली में
प्सादगरु , कथा-प्वाह और कलपना की क्वशदता क्मलती है। क्वषयवसतु की दृक्ष्ट
सवे यह गद्यकावय क्शवाजी और औरंगजवे्ब कवे सङ्घष्ण की घटनाओ ं पर आक्रित है।
यशवन्त क्संह, अफजल खाँ आक्द कई ऐक्तहाक्सक पात्ों को इसमें क्चक्त्त क्कया
गया है। क्शवाजी भारतीय आदश्ण, संसककृ क्त तथा राष्ट्रशक्ति कवे रक्क कवे रूप में
क्दखाए गए हैं। उनका ऐक्तहाक्सक वयक्तितव इस गद्यकावय में परू त्ण : क्चक्त्त है। इसमें
जहाँ-तहाँ फारसी कवे शबदों का भी प्योग क्कया गया है। परू ी रचना 12 क्न:श्ासों में
क्वभति है। यह आधक्ु नक गद्य साक्हतय का गौरव ग्रन्थ है।
अन् गद्यकाव्
ससं ककृ त भाषा में गद्य रचना कम हुई है, क्फर भी क्वक्भन्न कालों में कक्वयों नवे अपना कौशल
गद्यकावय की रचना में क्दखाया है। इन सभी में प्ाय: ्बार कवे अनक ु रर की प्वकृक्त्त है।

गद्यकाव्‍य एवं चम्‍काव्‍य


चम्‍क
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धारा नगरी के जैन कवि धनपाल (दसिीं शताबदी ई.) ने तिलकमञ्जरी वलखकर बाण की
शैली का अनक ु रण वकया। िे बाण के प्रवत अपनी कृ तज्ञता प्रदवशशित करते हैं। आधवु नक
काल में पव्डिता क्षमाराि (1890—1954 ई.) का नाम गद्य लेखकों में अग्रणी है। उनहोंने
कथामक्ु ावली, तवतित्रपररषद्ात्रा इतयावद कई गद्यकावय वलखे हैं।
ध्यातव् बिन्दु
♦ ससं कृ त में गद्य का आरम्भ ब्ाह्मण तथा उपवनषद् ग्रनथों से हुआ।
गद्यकावय के महत्िपणू शि कवि—
द्डिी
सबु नधु
बाण्भट्ट
♦ द्डिी द्ारा विरवित दशकुमारिररि कथा-कावय है। वजसमें दशकुमारों की कथा
िवणशित है।
द्डिी की अनय रिनाएँ—
काव्ादश्श
अवत्िस्ु दरीकथा
♦ सिदु न्दु— सबु नधु द्ारा रवित वासवदत्ा गद्यकावय है। इसमें राजकुमार कनदपशिकेतु
और राजकुमारी िासिदत्ा का प्रणय विवरित है।
♦ ियाणभट्ट— गद्य सावहतय में सिाशिवधक महत्िपणू शि कवि हैं। इनके दो प्रवसद्ध गद्यकावय
हैं। हष्शिररि और कादम्बरी।
कादमबरी बाण्भट्ट की उतकृ ष्ट गद्य रिना है।
♦ बिवरयाजबवज्— श्ी अवमबकादत् वयास द्ारा रवित तशवरा्जतव्ज् आधवु नक
गद्यकावय है।
♦ इनके अवतररक्त संसकृ त में अनेक गद्यकावय हैं—
धनपाल द्ारा रवित— वतलकमञजरी
क्षमाराि द्ारा रवित— कथामक्त ु ािली
सोडि्ढल द्ारा रवित— उदयसनु दरीकथा।

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अभ्यास-प्रश्‍न

प्र. 1. ससं ्कृ त भाषा में गद्य्ाव्य ्ी रचनाएँ ्म होने ्े क्या ्ारण हैं?
प्र. 2. छठी शताब्ी ्े ्ुछ महत्त्वपणू ्ण गद्य ्वत्व्यों ्े नाम विविए।
प्र. 3. ्ण्ी ्े ्ाव्य ्ी ्ौन-सी वत्वशेषताएँ प्रवसद्ध हैं?
प्र. 4. दशकुमारचररत ्ा िेि् ्ौन है?
प्र. 5. ्ण्ी ने अपने ्ाव्य में व्न-व्न सामान्य चररत्ों ्े आधार पर समाज ्ा वचत् िींचा है?
प्र. 6. वासवदत्ा व्स्ी रचना है?
प्र. 7. वासवदत्ा ्ा ्थान् पचास शब्ों में विविए।
प्र. 8. बाणभट्ट व्स राजा ्ी राजसभा में रहते थे?
प्र. 9. हर्षचररत तथा कादम्बरी व्स िेि् ्ी रचनाएँ हैं?
प्र. 10.आख्याव्य्ा ्ी वत्वशेषताएँ बताइए।
प्र. 11.हर्षचररत ्े नाम्रण ्ी साथ्ण्ता बताइए।
प्र. 12.बाण ्ी गद्य-शैिी ्ी क्या वत्वशेषता है?
प्र. 13.कादम्बरी ्ा ना्य् ्ौन है?
प्र. 14.कादम्बरी ्ा ्थान् पचास शब्ों में विविए।
प्र. 15.“बाणोव्छष्ं जगतसत्व्णम"् इस्ा आश्य क्या है?
प्र. 16.वशत्वाजी ्े जीत्वन ्ी प्रमि ु घटनाओ ं पर विवित ससं ्कृ त में ्ौन-सा गद्य्ाव्य है?
प्र. 17.ररक्त सथानों ्ी पवू त्ण ्ीवजए—
(्) संस्कृ त गद्य ्ा आरमभ.................................................... ग्रनथों और ..........
.................................................... से माना जाता है।
(ि) ससं ्कृ त गद्य सावहत्य में सत्वा्णवध् प्रवतवठित और प्रवतभाशािी गद्य्ार ..................
................................ ही हैं।
(ग) बाणभट्ट ्े वपता ्ा नाम ............................. था।
(घ) सबु नधु अपने ्ाव्य में .......................... अिं्ार ्े प्र्योग पर बहुत गत्व्ण ्रते थे।
(ङ) शशवराजशवजय में ्यत्-तत् ............................ ्े शब्ों ्ा प्र्योग व््या ग्या है।
प्र.18. गद्य ्ाव्यों और ्वत्व्यों ्ो वमिाइए—
गद्यकयाव् कवि
्श्ुमारचररतम् पवण्ता क्षमारात्व
वति्मञजरी महा्वत्व ्ण्ी
्थामकु तात्विी धनपाि

गद्यकाव्‍य एवं चम्‍काव्‍य


चम्‍क
पू ाव्‍य 71

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चम्‍पूकयाव््

संस्कृ त सानह्‍य में गद्य्ाव्‍य त्था पद्य्ाव्‍य ्े अनतररकत दोिों ्े नमश्ण ्े रूप में
चमप् ू ाव्‍य ्ा ्भी उद‍य हुआ। ‍यद्यनप ‍यह स्रूपत: िीनत-््थाओ ं ्े समाि गद्य और पद्य
से समनन्त होता है, न्नतु िीनत-््थाओ ं और चमपू में मौनल् अनतर है। चमपू मल ू त:
ए् ्ाव्‍य है, नजसमें ्न् अलङ््रण ्े स्भी साधिों ्ा उप‍योग ्रता है। ए् ओर
इसमें गद्य्ाव्‍य ्ा सौनद‍य्ण होता है, तो दसू री ओर महा्ाव्‍य में पाए जािे ्ाले शलो्ों
्े समाि अलङ््कृ त पद्य ्भी रहते हैं। बाह्य सौनद‍य्ण इसमें मख्ु ‍य होता है और ्न् ्ी ्ला
्ा चम््ार रहता है। न्ष‍य्सतु ्ी प्धािता िहीं रहती। इस्ा उद्ेश‍य ्ाव्‍यगत आिनद
देिा है। िीनत-््थाओ ं और लो्-््थाओ ं ्े समाि चमप् ू ाव्‍य सरल शैली में िहीं
नलखे जाते। गद्य और पद्य दोिों ्ा उ््ष्ण इसमें ्त्णमाि रहता है— गद्य्‍द्यम्ं कयाव््ं
चम्‍पूरित््नभ्ी्‍ते। चमप् ू ाव्‍य ्ो गद्य्ाव्‍य ्े समाि ही उच्‍छ््ासों में न््भकत न्‍या
जाता है। संस्कृ त में सम‍य-सम‍य पर नलखे गए ्ुछ प्मख ु चमप् ू ाव्‍यों ्ा न््रण इस
प््ार है—
1. नलचम्‍पू औि मदयालसयाचम्‍पू
‍ये दोिों नत्रन्क्रम्भट्ट द्ारा नलखे गए चमप् ू ाव्‍य हैं। इि्ा ्ाल दस्ीं शताबदी ई. ्ा
प्ू ा्णध्ण मािा जाता है। नत्रन्क्रम्भट्ट राषट्र्ूट िरे श इनद्रराज ्े संरक्ण में रहते ्थे। नलचमपपू
्ो दम्नतडीकथा ्भी ्हते हैं। इसमें िल और दम‍यनती ्ी प्ण‍य ््था ्नण्णत है। इसमें
सात उच्‍छ््ास हैं। रचिा अपणू ्ण प्तीत होती है, क‍योंन् िल द्ारा दम‍यनती ्े नि्ट
सनदेश ले जािे त् ्ी ही ््था इसमें ्नण्णत है। नलचमपपू सरस त्था प्सादपणू ्ण रचिा है।
इसमें शलेष ्ी अनध्ता है। नत्रन्क्रम्भट्ट ्े शलेष बहुत सरल और आ्ष्ण् हैं। इनहोंिे
न्रोध और पररसख्ं ‍या अलं्ारों ्ा ्भी प्चरु प्‍योग न्‍या है।
इि्ी दसू री रचिा मदालसाचमपपू है, जो प्ण‍य-््था है। इसमें ्ु्ल‍याश् से मदालसा
्ा प्ेम ्नण्णत है। ्ु्ल‍याश् से मदालसा ्ा न््ाह होता है, न्नतु तरु नत न्‍योग ्भी हो
जाता है। अनत में उसे मदालसा ्ी प्ानप्त होती है। ्ला ्ी दृनटि से उ््कृ षटता होिे पर ्भी
््था ्े न््ास और रोच्ता ्ी दृनटि से ‍यह ्कृ नत लो्नप्‍य रही है।

72 संस्‍कृ त साहित्य — परिच्य

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2. ्िन्‍तलकचम्‍पू
‍यह जैि ्न् सोमप््भसरू र ्ी रचिा है। लेख् ्ा ्ाल दस्ीं शताबदी ई. ्ा उतिराद्ध्ण
है। ‍यह ग्रन्थ अ्‍यनत न्सतकृत है। इसमें आि उच्‍छ््ास हैं। जैि नसद्धानतों ्ो इसमें ्ाव्‍य-
रूप में प्सततु न्‍या ग‍या है। इस चमप् ू ाव्‍य ्ा िा‍य् राजा ‍यशोधर है। प्िी ्ी धतू ्णता
से राजा ्ी मकृ्‍यु होती है। िािा ‍योनि‍यों में जनम ले्र अनतत: ्ह जैि धम्ण में दीनक्त होता
है। ‍यह ््था गणु ्भद्र ्े उतिरपरु ाण पर आनश्त है। इसी ््था पर पषु पदनत िे जसहरचररउ
िाम् अपभ्श ं ्ाव्‍य त्था ्ानदराजसरू र िे संस्कृ त ्ाव्‍य ्शो्रचररत नलखा ्था। इस
्कृ नत द्ारा सोमप््भसरू र ्े गहि अध‍य‍यि, प्गाढ़ पानण्ड्‍य, ्भाषा पर स्च्‍छनद प््भ्ु ्
त्था ्ाव्‍य ्े क्ेत्र में अन्भि् प्‍योगों ्ी रुनच ्ा पता लगता है। इस्े आरनम्भ्
शलो्ों में ्न् िे अिे् प्ू ्ण्तती ्न्‍यों ्ा उललेख न्‍या है।
ए् अन‍य जैि ्न् हररचनद्र िे राज्ुमार जी्नधर ्ो चररतिा‍य् बिा्र
जडीवन्रचमपपू नलखा। इि्ा ्ाल ्भी दस्ीं शताबदी ई. है। ‍यह चमपू 11 लमब्ों में
न््भकत है। जैि धम्ण ्े नसद्धानतों ्ो इसमें सरल ्भाषा में प्नतपानदत न्‍या ग‍या है।
3. उद्स्ु दिीकथया
‍यह छ: उच्‍छ््ासों में िागराज्ुमारी उद‍यसनु दरी त्था प्नतषिाि ्े राजा मल‍य्ाहि ्े
न््ाह ्ा ्ण्णि ्रिे ्ाला चमप् ू ाव्‍य है। इस्े रचन‍यता ्ा िाम सो्ड्ढल है। लेख्
्ा सम‍य 1040 ई. ्े आसपास है। उद्सनु दरडीकथा पर बाण्भट्ट ्ी शैली ्ा बहुत
प््भा् है। सो्ड्ढल िे इस्ी रचिा हर्शचररत ्े आदश्ण पर ्ी है।
4. ियामया्णचम्‍पू
इसे चमपरपू ामा्ण ्भी ्हते हैं। इसे मल ू त: राजा ्भोज िे नलखा, न्नतु उनहोंिे ्े ्ल
सनु दर्ाण्ड त् ही इस्ी रचिा ्ी। ‍यद्ध ु ्ाण्ड ्ी रचिा लक्मण्भट्ट िे ्ी त्था
उतिर्ाण्ड ्ी ्ें्टराज िे। ्भोज ्ा ्ाल ग्‍यारह्ीं शताबदी ई. प्ू ा्णद्ध्ण है। इस्ा आधार
्ालमी्ी‍य रामा‍यण है। ््थाि्, ्भा्, ्भाषा, गणु -दोष इ्‍यानद स्भी पर ्ालमीन् ्ा
प््भा् लनक्त होता है। इसमें ्भोज िे ्ई प््ार ्ी शैनल‍याँ अपिा‍यी हैं। ्हीं ्े माघ ्ी
शैली में नलखते हैं, ्हीं ्ानलदास ्ी शैली में। ्भोज शबदों ्े स‍यं ोजि में पणू ्ण निपणु हैं।
इस चमपू में ्लापक् ्े सा्थ मानम्ण् स्थलों ्े ्भा्-सौंद‍य्ण ्ो ्भी प््ट न्‍या ग‍या है।
इसमें गद्य ्भाग ्म है, पद्यों ्ी न्पल
ु ता है।

गद्यकाव्‍य एवं चम्‍काव्‍य


चम्‍क
पू ाव्‍य 73

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5. भयाि‍तचम्‍पू
इस्े लेख् सोलह्ीं शताबदी ई. ्े ्न् अिनत्भट्ट हैं। इसमें महाभारत ्ी ््था ्ा
12 सतब्ों में ्ण्णि न्‍या ग‍या है। ्ण्णि अ्‍यनत प्ांजल है, न्नतु ्हीं-्हीं नकलषटता
्भी है। ्लपिा ्ी ि्ीिता और ्ैद्भती शैली ्ा प्‍योग इस्ा ्ैनशषट्‍य है। ‍यह चमपू
संस्कृ त जगत् में बहुत प्नसद्ध है।
6. अ्् चम्‍पूकयाव््
ससं ्कृ त में प्ा‍य: 250 चमप् ू ाव्‍य नलखे गए हैं। इि्े ््थाि् रामा्ण,
महाभारत, भागवतपरु ाण, नशवपरु ाण त्था जैि सानह्‍य से नलए गए हैं। नृनसंहचमपपू
िाम से पकृ्थ््-पकृ्थ्् ्ई ्न्‍यों िे ग्रन्थ नलखे। ्े श््भट्ट िे छ: सतब्ों में,
दै्ज्सरू र िे पाँच उच्‍छ््ासों में त्था सं्ष्णण िे चार उललासों में नृनसंहचमपपू
्ी रचिा ्ी। शेषश्ी्कृ षण-रनचत पाररजातहरणचमपपू ्कृ षणलीला से समबद्ध है।
िील्णिदीनक्त ्कृ त नडीलकण‍ठनवज्चमप,पू ्ें्टाध्रर ्कृ त नवश्वगणु ादश्शचमप,पू
्न््ण्णपरू -रनचत आननदवृनदावनचमपपू त्था जी्गोस्ामी ्कृ त गोपालचमपपू ्ुछ प्नसद्ध
चमप् ू ाव्‍य हैं।
बीस्ीं शताबदी ई. ्े प्ू ा्णद्ध्ण में प्नसद्ध ससं ्कृ त न्द्ाि् म. म. हररहर्कृ पालु नद््ेदी
्े जी्ि ्ो आधार बिा्र रघिु नदि नत्रपािी िे हररहरचररतचमपपू त्था उतिराध्ण में
पनण्डत ज‍य्कृ षण नमश् िे ्भारत ्ी स्तनत्रता पर आधाररत ससं ्कृ त ्ा बकृहतिम चमपू
मातृमनु क्मकु तावलडी ्ी रचिा ्ी।

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ध्या‍तव्् नब्दु
♦ चमप् ू ाव्‍य गद्य और पद्य ्ा नमश्ण है।
♦ दो प्मख ु चमप् ू ाव्‍य— नलचमपपू ए्ं मदालसाचमपपू ्े रचन‍यता नत्रन्क्रम्भट्ट हैं।
♦ जैि ्न् सोमप््भसरू र द्ारा रनचत ्शन्तलकचमपपू जैि नसद्धानतों ्ो ्ाव्‍यरूप में
प्सततु ्रता है।
♦ अन‍य जैि ्न् हररचनद्र िे राज्ुमार जी्नधर ्ो िा‍य् बिा्र जडीवन्रचमपपू
नलखा।
♦ सो्ड्ढल रनचत उद्सनु दरडीकथा में िागराज्ुमारी उद‍यसनु दरी त्था प्नतषिाि ्े
राजा मल‍य्ाहि ्े न््ाह ्ा ्ण्णि है।
♦ रामा्णचमपपू ्ो चमपरपू ामा्ण ्भी ्हते हैं नजस्े सनु दर्ाण्ड त् ्ी रचिा राजा
्भोज िे ‍यद्धु ्ाण्ड ्ी रचिा लक्मण्भट्ट िे त्था उतिर्ाण्ड ्ी रचिा ्ें्टराज
िे ्ी।
♦ अिनत्भट्ट िे महाभारत ्ी ््था ्े आधार पर भारतचमपपू ्ी रचिा ्ी है।

गद्यकाव्‍य एवं चम्‍काव्‍य


चम्‍क
पू ाव्‍य 75

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अभ्यास-प्रश्‍न

प्र. 1. चम्‍क पू ाव्‍य ककसे कहते हैं?


प्र. 2. नीकतकथा और चम्‍पू में क‍या अन्तर है?
प्र. 3. चम्‍क पू ाव्‍यों का क‍या उद्ेश्‍य है?
प्र. 4. करिकिक्रमभट्ट के द्ारा किखे गए दो चम्‍क पू ाव्‍यों के नाम किकखए।
प्र. 5. ककि करिकिक्रमभट्ट ककस नरे श के संरक्षण में रहते थे?
प्र. 6. दम‍यन्तीकथा का दसपू रा नाम क‍या है?
प्र. 7. नलचम्‍क पू ाव्‍य की किशेषताएँ किकखए।
प्र. 8. मदालसाचम्‍पू में ककसके प्रेम का िण्णन है?
प्र. 9. ‍यशस्तिलकचम्‍पू का िेखक कौन है?
प्र. 10. जीवन्‍धरचम्‍पू के िेखक कौन थे? िे ककस शताबदी में हुए?
प्र. 11. सोड्ढि की रचना ्‍र ककस ककि की शैिी का प्रभाि ्‍डा है?
प्र. 12. भोज ने अ्‍ने चम्‍पू में ककन-ककन ककि‍यों की शैिी अ्‍नाई है?
प्र. 13. महाभारति की कथा के आधार ्‍र किकखत प्रकसद्ध चम्‍पू का नाम किकखए।
प्र. 14. ररकत सथानों की ्‍कपू त्ण कीकजए—
(क) ‍यशस्तिलकचम्‍पू में ..................................... धम्ण के कसद्धान्तों का िण्णन है।
(ख) ‍यशस्तिलकचम्‍पू का ना‍यक .................................... है।
(ग) सोड्ढि की रचना का नाम ............................................. है।
(घ) राजा भोज ने ...................................................... चम्‍ पू की रचना की।
(ङ) भारतिचम्‍पू के िेखक ............................................. हैं।
प्र. 15. चम्‍पू और िेखक के नामों को कमिाइए—
क ख
्‍ाररजातहरणचम्‍पू जीिगोसिामी
आनन्दिृन्दािनचम्‍पू ककिकण्ण्‍रपू
गो्‍ािचम्‍पू दैिज्ञसरपू र
किश्िगणु ादश्णचम्‍पू शेषश्ीकृ ष्ण
नृकसंहचम्‍पू िेंकटाध्िरर

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