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महयाकयाव््
लौकिि ससं िकृ त भाषा में िाव्य-रचना िा आरम्भ वालममीकि से हुआ। वालममीकि िो मधरु
उकति्यों िा मार्गदर्शी महकष्ग िहा र्या है। कवष्य िा अलंिकृत वर्गन, सरल एवं मनोरम
पदों से आिष्गि अर्थों िी अकभव्यकति िी रमीकत वालममीकि ने हमी कदखाई। उनहोंने राम िो
ना्यि बनािर आकदिाव्य प्रसततु कि्या। वालममीकि द्ारा अपनाई रई िाव्य पद्धकत िुछ
िाल ति सर्गबनध रचना नाम से प्रचकलत रहमी, बाद में इसे महािाव्य िहा र्या। ससं िकृ त
भाषा में िई महािाव्यों िी रचना िे बाद उनिे लक्षरों िा कनरूपर िाव्यर्ाक्रि्यों ने
कि्या। भामह, दण्मी आकद आचा्यथों िे अनसु ार महािाव्य िा जो लक्षर कनकचित कि्या
है, वह इस प्रिार है—
महािाव्य सरथों में बँधा होता है। इसिा ना्यि िोई देवता ्या उदात्त ररु ों से ्यति ु
उचच िुल में उतपनन क्षकरि्य राजा होता है। िभमी-िभमी एि हमी वंर् में उतपनन अनेि राजा
भमी इसिे ना्यि हो सिते हैं, जैसा कि िाकलदास िे रघवु ंर् में है। महािाव्य में �कृ�ार,
वमीर और र्ानत इन तमीन रसों में से िोई एि प्रधान रस होता है। अन्य रस भमी सहा्यि
िे रूप में आते हैं। नाटिों में सवमीिकृ त िर्ावसतु िी सकनध्यों िे समान महािाव्य में भमी
िर्ावसतु िे सवाभाकवि कविास हेतु मख ु , प्रकतमख
ु आकद सकनध्यों िा प्र्योर होता है।।
धम्ग, अर््ग, िाम और मोक्ष में से िोई एि परुु षार््ग महािाव्य िे उद्ेश्य िे रूप में होता है।
इसिे आरम्भ में नमसिार, आर्मीव्गचन अर्वा मखु ्य िर्ा िा सचू ि मरं लाचरर होता
है। इसमें िहीं दष्ु ों िी कननदा और िहीं सजजनों िी प्रर्सं ा होतमी है।
महािाव्य में सरथों िी संख्या आठ से अकधि होतमी है। एि सर्ग में प्रा्य: एि हमी छनद
िा प्र्योर होता है। उसिे अनत में छनद िा पररवत्गन कि्या जाता है। सर्ग िे अतं में भावमी
िर्ा िी सचू ना दमी जातमी है। महािाव्य में सन्ध्या, स्यू ्ग, चनद्र, राकरि, प्रभात, आखेट, ऋत,ु
पव्गत, वन, समद्रु , स्यं ोर, कव्योर, मकु न, राजा, ्यज्ञ, ्यद्ध
ु , ्यारिा, कववाह, मनरिरा आकद
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38 संस्कृ त साहित्य—परिच्य
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महाकाव्य 39
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40 संस्कृ त साहित्य—परिच्य
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महाकाव्य 41
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महाकाव्य 43
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44 संस्कृ त साहित्य—परिच्य
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महाकाव्य 45
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46 संस्कृ त साहित्य—परिच्य
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अभ्यास-प्रश्न
प्र. 1. सर्मबन्ध िचना वकसे कहते हैं?
प्र. 2. रहाकाव् रें वकन र्णयु ों वाला व्वति ना्क होता है?
प्र. 3. रहाकाव् रें कौन-कौन से िस प्रधान होते हैं?
प्र. 4. रहाकाव् के ररं लाचि्ण रें वकन बातों का सरावेश होता है?
प्र. 5. रहाकाव् के नारकि्ण का आधाि क्ा होता है?
प्र. 6. संसककृ त रहाकाव्ों के ववकासक्रर रें कौन-से कवव्ों के नार रखयु ् रूप से वलए जाते हैं?
प्र. 7. संसककृ त कवव्ों रें कववकयुलररुयु कौन राना जाता है?
प्र. 8. कावल्ास द्ािा वलखे हुए रहाकाव्ों के नार वलवखए।
प्र. 9. वशव-पाव्मती के वववाह तथा कावत्मके् के जन्र की कथा वकस रहाकाव् रें आती है?
प्र. 10. अश्वघोष के ्ो रहाकाव्ों के नार वलवखए।
प्र. 11. अश्वघोष वकस शताब्ी रें हुए थे?
प्र. 12. सौन््िनन्् रहाकाव् का वर््म-ववष् क्ा है?
प्र. 13. अश्वघोष के ्ोनों रहाकाव् वकस िीवत रें वलखे रए हैं?
प्र. 14. भािवव का सर् क्ा राना जाता है?
प्र. 15. भािवव की िचना की कौन-सी ववशेषता प्रवसद्ध है?
महाकाव्य 47
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48 संस्कृ त साहित्य—परिच्य
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