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चतुर्थ अध्या्

महयाकयाव््

लौकिि ससं िकृ त भाषा में िाव्य-रचना िा आरम्भ वालममीकि से हुआ। वालममीकि िो मधरु
उकति्यों िा मार्गदर्शी महकष्ग िहा र्या है। कवष्य िा अलंिकृत वर्गन, सरल एवं मनोरम
पदों से आिष्गि अर्थों िी अकभव्यकति िी रमीकत वालममीकि ने हमी कदखाई। उनहोंने राम िो
ना्यि बनािर आकदिाव्य प्रसततु कि्या। वालममीकि द्ारा अपनाई रई िाव्य पद्धकत िुछ
िाल ति सर्गबनध रचना नाम से प्रचकलत रहमी, बाद में इसे महािाव्य िहा र्या। ससं िकृ त
भाषा में िई महािाव्यों िी रचना िे बाद उनिे लक्षरों िा कनरूपर िाव्यर्ाक्रि्यों ने
कि्या। भामह, दण्मी आकद आचा्यथों िे अनसु ार महािाव्य िा जो लक्षर कनकचित कि्या
है, वह इस प्रिार है—
महािाव्य सरथों में बँधा होता है। इसिा ना्यि िोई देवता ्या उदात्त ररु ों से ्यति ु
उचच िुल में उतपनन क्षकरि्य राजा होता है। िभमी-िभमी एि हमी वंर् में उतपनन अनेि राजा
भमी इसिे ना्यि हो सिते हैं, जैसा कि िाकलदास िे रघवु ंर् में है। महािाव्य में �कृ�ार,
वमीर और र्ानत इन तमीन रसों में से िोई एि प्रधान रस होता है। अन्य रस भमी सहा्यि
िे रूप में आते हैं। नाटिों में सवमीिकृ त िर्ावसतु िी सकनध्यों िे समान महािाव्य में भमी
िर्ावसतु िे सवाभाकवि कविास हेतु मख ु , प्रकतमख
ु आकद सकनध्यों िा प्र्योर होता है।।
धम्ग, अर््ग, िाम और मोक्ष में से िोई एि परुु षार््ग महािाव्य िे उद्ेश्य िे रूप में होता है।
इसिे आरम्भ में नमसिार, आर्मीव्गचन अर्वा मखु ्य िर्ा िा सचू ि मरं लाचरर होता
है। इसमें िहीं दष्ु ों िी कननदा और िहीं सजजनों िी प्रर्सं ा होतमी है।
महािाव्य में सरथों िी संख्या आठ से अकधि होतमी है। एि सर्ग में प्रा्य: एि हमी छनद
िा प्र्योर होता है। उसिे अनत में छनद िा पररवत्गन कि्या जाता है। सर्ग िे अतं में भावमी
िर्ा िी सचू ना दमी जातमी है। महािाव्य में सन्ध्या, स्यू ्ग, चनद्र, राकरि, प्रभात, आखेट, ऋत,ु
पव्गत, वन, समद्रु , स्यं ोर, कव्योर, मकु न, राजा, ्यज्ञ, ्यद्ध
ु , ्यारिा, कववाह, मनरिरा आकद

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िा अवसर िे अनि ु ू ल वर्गन होता है। महािाव्य िा नामिरर िकव, िर्ानि, ना्यि
आकद िे आधार पर होता है।
संसिकृ त महािाव्यों िे कविास-क्रम में क्रमर्: िाकलदास, अश्वघोष, भारकव, भकट्ट,
माघ, िुमारदास तर्ा श्मीहष्ग िे नाम मखु ्य रूप से कलए जाते हैं। इनिी रचनाएँ महािाव्य-
साकहत्य में अमर हैं। इनिा कववरर कनम्नकलकखत है—
कयालिदयास
संसिकृ त िकव्यों में िाकलदास श्ेष्ठ हैं। इनहें परवतशी िकव्यों ने िकविुल-ररुु िी उपाकध
दमी है। उनहोंने दो महािाव्य (कुमारसम्भव तथा रघवु श ं ), दो खण्िाव्य (ऋतसु हं ार तथा
मेघदतू ) और तमीन नाटि (ववक्रमोव्वशीय, मालववकाव्निवमत्र तर्ा अव्भज्ानिशाकुनतल)
कलखे हैं।
दभु ा्गग्यवर् िाकलदास िा िाल कनकचित नहीं है। िुछ लोर इनिा िाल प्रर्म
र्ताबदमी ई. प.ू में मानते हैं, तो दसू रे लोर इनहें रप्तु वर्
ं िे चनद्ररप्तु कद्तमी्य िा समिाकलि
कसद्ध िरते हैं। िाकलदास ने अपने िाव्यों में वालममीकि िी र्ैलमी िो सवमीिार कि्या है।
इस महािाव्य िे कद्तमी्य सर्ग में कदलमीप िी रो-सेवा, चतर्ु ्ग सर्ग में रघु िी कदकगवज्य ्यारिा,
षष्ठ सर्ग में इनदमु तमी िा सव्यंवर एवं रि्योदर् सर्ग में राम िा अ्यो्ध्या लौटना वकर्गत है।
्ये रघवु शं िे उत्तम सर्ल हैं। रघवु श ं िे अकनतम (उननमीसवें) सर्ग में राजा अकगनवर्ग िे
कवलासम्य जमीवन िा कचरि खींचा र्या है और रघि ु ु ल िा पतन कदखा्या र्या है। रघवु ंश
रकृहसर् जमीवन िा समर््गन िरता है और रघवु र् ं मी राजाओ ं िे उचच आदर्थों िा प्रकतपादि
है।
इन दोनों महािाव्यों में िाकलदास ने वैदभशी रमीकत िा प्र्योर कि्या है और उनमें सभमी
रसों िो प्रिाकर्त िरने िी क्षमता वाला प्रसाद ररु कवद्यमान है।
अश्वघोष
अश्वघोष िे दो महािाव्य हैं बद्ध ु चररत और सौनदरनिनद। इनिा सम्य प्रर्म र्ताबदमी ई.
है। ्ये िुषारवंर् िे राजा िकनषि िे समिाकलि र्े। अश्वघोष मल ू त: अ्यो्ध्या िे रहने
वाले ब्ाह्मर र्े, जो बाद में बौद्ध बन रए र्े। ्ये बहुत बडे आचा्य्ग और वतिा र्े। इनहोंने
इन दो महािाव्यों िे अकतररति एि नाटि (शाररपत्रु -प्रकरण) भमी कलखा र्ा, जो खकण्त
रूप में म्ध्य एकर््या से प्राप्त हुआ है।

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• बुद्धचरित — यह भगवान् बद्ध ु के जीवन और उपदेशों का वर्णन करता है। इसमें
मल ू त: 28 सग्ण थे, ककनतु आज इसके प्रथम चौदह सग्ण ही उपलब्ध हैं। वैसे परू े
महाकावय के कतबबती और चीनी भाषा में अनवु ाद भी हो चक ु े थे, जो उपलब्ध
हैं। बद्ध
ु चरित पर िामायण का बहुत अक्धक प्रभाव है। इसके कई दृशय िामायण से
समता रखते हैं। घटनाओ ं का चयन तथा आयोजन करने में अश्वघोष अक्धक प्रभाव
डालते हैं। बौद्ध होते हुए भी प्राचीन वैकदक परमपराओ ं के प्रकत उनमें गहन कनष्ा है।
बद्धु चरित के पवू ा्णद्ध्ण में बद्ध
ु के कनवा्णर तक का वर्णन है। शेष भाग में उनके उपदेशों
तथा उत्तरकाकलक जीवन का कचत्रर है।
• सौन्दिनन्द — यह अश्वघोष का दसू रा महाकावय है, कजसमें 18 सग्ण हैं। इसमें बद्ध ु
के सौतेले भाई ननद की ्धम्णदीक्ा का वर्णन है। इस महाकावय के आरकमभक भाग में
ककव ने ननद और उसकी पतनी सनु दरी के परसपर अनरु ाग को �ृंगार रस के माध्यम
से प्रसततु ककया है।
ननद के बद्ध ु के कवहार में चले जाने पर दोनों की कवरह-वयथा का पृथक्-पृथक् वर्णन
ककया गया है। ननद के मानकसक संघष्ण का कचत्रर करने में ककव ने परू ्ण सफलता पाई है।
बौद्ध ्धम्ण के उपदेशों का अतयनत रोचक उपमाओ ं के द्ारा इसमें प्रकतपादन ककया गया है।
जो ननद काम में आसक्त था, वही ्धममोपदेशक बन जाता है। अश्वघोष के दोनों महाकावय
वैदभभी रीकत में कलखे गए हैं। उनमें अलंकारों का प्रयोग सवाभाकवक रूप से है। अश्वघोष ने
बौद्ध्धम्ण के उपदेशों को कावय का रूप देकर प्रसततु ककया है, कजससे लोग सनं यास-्धम्ण
के प्रकत प्रवृत्त हों। भोग के प्रकत अनासकक्त और संसार की असारता कदखाने में ककव को
परू ी सफलता कमली है।
भािवि
भारकव ने संसकृ त महाकावय को एक नई कदशा दी। इनके पहले के ककव कथावसतु के
कवकास पर अक्धक ध्यान देते थे, वर्णनों पर कम। भारकव ने कथानक से अक्धक समबद्ध
वसतु के वर्णन-वैकचत्य को महत्व कदया। महाकावय की इस पद्धकत को अलंकृत पद्धकत या
कवकचत्र माग्ण कहा गया है।
भारकव का काल 500 ई. से 600 ई. के बीच माना गया है। ऐहोल अकभलेख
(634 ई.) में भारकव का नाम काकलदास के साथ कलया गया है। उस समय तक ये प्रकसद्ध
ककव हो गए थे।

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• लकियातयार्थुनी् — ्यह भारकव िी एिमारि रचना है। इसमें 18 सर्ग हैं। इनद्रिील
पव्गत पर कदव्य अ्रि प्राप्त िरने वाले अज्गनु और किरातवेर्धारमी भरवान् र्ि ं र िा
्यद्ध
ु इस िाव्य में मखु ्य रूप से वकर्गत है। भरवान् र्ि ं र ने प्रसनन होिर अज्गनु िो
कदव्य अ्रि प्रदान कि्या। इसिा िर्ानि बहुत छोटा है, किनतु भारकव िी वर्गन
पद्धकत से इस महािाव्य िो कवसतार कमला है। चतर्ु ्ग से एिादर् सर्ग ति िकव ने
ऋत,ु पव्गत, अप्सराओ ं िी क्रीडा, स्यू मोद्य, स्यू ा्गसत आकद िा कवसतकृत वर्गन कि्या
है, कजसमें अलंिरर और िलपना िा आकधक्य है तर्ा सवाभाकविता िा अभाव
है। भारकव िा अर््ग-रौरव प्रकसद्ध है। इनिे श्ोिों में बहुत से ऐसे अंर् हैं, जो नमीकत-
वाक्य ्या लोिोकति िे रूप में प्रचकलत हैं, जैसे— लहतं मनोहयारि च दुि्थभं िच:
(ऐसमी बातें दल ु ्गभ होतमी हैं, जो कहतिर भमी हों और मनोहर भमी), सहसया लिदधीत
न लरि्याम् (िोई िा्य्ग सहसा नहीं िरना चाकहए) इत्याकद। भारकव ने कचरि िाव्य
िा प्या्गप्त प्र्योर कि्या है। िहीं एि हमी व्यञजन से बना श्ोि है, तो िहीं दो
व्यञजनों से। इस रचना में भारकव ने पाकण्त्य िा प्रदर््गन कि्या है। इसकलए भारकव
िी िकवता िो नारर्यल िे फल िे समान िहा र्या है, जो ऊपर से रूक्ष है, किनतु
भमीतर से सरस है।
भरटि
अपने िाव्य में व्यािरर िे कन्यमों िा प्र्योर िर भरटि ने संसिकृ त र्ासरििाव्य-परम्परा
िा आरम्भ कि्या। वे िाव्य िे द्ारा सरलता से व्यािरर कसखाते हैं। उनहोंने अपना ्यह
िाव्य वलभमी नररमी (रजु रात) में श्मीधरसेन नामि राजा िे सरं क्षर में कलखा है। श्मीधरसेन
नाम िे चार राजा 500 ई. से 650 ई. िे बमीच हुए। अत: भरटि िा सम्य अकधि से अकधि
650 ई. ति हो सिता है। सामान्यत: कवद्ानों ने इनिा सम्य छठमी र्ताबदमी िे उत्तराद्ध्ग
एवं सातवीं र्ताबदमी िे आरंभ में माना है।
• ियािणिध ्या भरटिकयाव्् — इनिा रावणवध ्या ्भरटिकावय 22 सरथों में कनबद्ध
है। इसमें रामायण िी िर्ा सरल तर्ा सकं क्षप्त रूप से वकर्गत है। मनोरञजन िे सार्
संसिकृ त व्यािरर िा परू ्ग ज्ञान देना इस महािाव्य िा उद्ेश्य है। भरटि ने िहा है कि
व्यािरर िी आँख रखने वालों िे कलए ्यह िाव्य दमीपि िे समान है। व्यािरर िे
अकतररति अलंिारर्ा्रि िे ज्ञान िा भमी प्रदर््गन भरटि ने इस महािाव्य में कि्या है।

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कुमयािदयास
िुमारदास िा सम्य छठमी र्ताबदमी माना जाता है। िुछ लोर इनहें आठवीं र्ताबदमी िा भमी
मानते हैं। इनिा जनमसर्ान कसंहल द्मीप (श्मीलंिा) है।
• रयानकीहिण — जानिकीहरण िुमारदास द्ारा 20 सरथों में रकचत राम िी िर्ा पर
आकश्त महािाव्य है। िाकलदास िे रघवु ंर् िा अनि ु रर इनहोंने अपने महािाव्य
में कि्या है। राजर्ेखर ने इनिी प्रर्सं ा में िहा है—
जानिीहररं ितुंु रघवु ंर्े कसर्ते सकत।
िकव: िुमारदासचि रावरचि ्यकद क्षम:।।
रघवु ंर् (इस नाम िा महािाव्य, रघवु ंर्मी राजा) िे रहते हुए जानिीहरर (इस नाम
िा महािाव्य, समीताहरर) िरने िी क्षमता ्यकद किसमी में है, तो वह िुमारदास में है ्या
रावर में।
जानिकीहरण महािाव्य अपने र्मीष्गि से िे वल समीताहरर से सम्बद्ध प्रतमीत होता है,
किनतु इसमें राम िे जनम से लेिर अकभषेि ति िी परू मी िर्ा है।
मयाघ
माघ राजसर्ान िे भमीनमाल ्या श्मीमाल नरर िे कनवासमी र्े। इनिे कपतामह वहाँ िे
राजा िे प्रधानमरिं मी र्े। इनिा सम्य 700 ई. माना जाता है। माघ िी एिमारि रचना
वशशपु ालवध महािाव्य है। माघ इस िाव्य िी रचना में भारकव और भरटि से बहुत
प्रभाकवत हैं। भारकव से प्रकतसपधा्ग तो उनिे महािाव्य में प्रारम्भ से अनत ति कदखाई पडतमी
है। भारकव कर्व िा ्यर्ोरान िरते हैं, तो माघ कवषरु िा। माघ अलङ्िकृ त िाव्य रचना में
भारकव से आरे बढ़ रए हैं।
• लििपु याििध — वशशपु ालवध 20 सरथों िा उतिकृ ष् महािाव्य है, कजसमें िकृ षर
द्ारा कर्र्पु ाल िे वध िी िर्ा वकर्गत है। छोटे िर्ानि िो माघ ने महािाव्य में
कवसतकृत वर्गनों से बहुत बडा बना कद्या है। व्यािरर, राजनमीकत, वेद, दर््गन, सरं मीत
आकद कवकवध र्ा्रिों िे अपने ज्ञान िो माघ ने इसमें प्रदकर््गत कि्या है। इस महािाव्य
िो कलखने में माघ िा ऐसा उद्ेश्य प्रतमीत होता है कि महािाव्य िे छोटे से छोटे
लक्षर िो समाकवष् िरिे इसे आदर््ग महािाव्य िा रूप कद्या जा सिे । भाषा और
छनद दोनों पर माघ िा अद्ुत अकधिार है। भारकव िे समान इनहोंने कचरििाव्य िा

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भमी प्र्योर कि्या है। इस महािाव्य िो पकण्तों िे समाज में बहुत प्रर्सं ा कमलमी है
कजसिा प्रमार ्यह सभु ाकषत है— मेघे माघे रतं व्य:।
श्ीहष्थ
्यद्यकप माघ िे बाद अन्य अनेि िकव हुए, किनतु श्मीहष्ग िो जो ख्याकत कमलमी, वह
अन्य किसमी िो नहीं कमलमी। श्मीहष्ग कवकर्ष् पकण्त-परम्परा में उतपनन हुए र्े। इनहोंने
निैषधीयचररत महािाव्य िे अकतररति वेदानत िा एि ककलष् ग्रनर् खण्डनिखण्डखाद्य
भमी कलखा र्ा। इनिी र्ैलमी पाकण्त्य से भरमी हुई है। माघ िे समान श्मीहष्ग भमी पाकण्त्य-
प्रदर््गन िरते हैं, किनतु पदों िा लाकलत्य भमी सव्गरि बनाए रखते हैं।
श्मीहष्ग िा सम्य बारहवीं र्ताबदमी है। ्ये िान्यिुबजनरे र् ज्यचनद्र िी सभा में रहते
र्े। श्मीहष्ग ने अनेि ग्रनर् कलखे कजनिी सचू ना उनहोंने निैषधीयचररत िे सरथों िे अनत में
दमी है।
• नैषधी्चरित — निैषधीयचररत में कनषध देर् िे राजा नल िे जमीवन िा वर्गन है।
नल और दम्यनतमी िे परसपर प्रेम तर्ा कववाह िी संकक्षप्त िर्ा िो िलपनार्कति िे
सहारे श्मीहष्ग ने 22 सरथों में फै ला्या है। उनिे प्रेम में हसं तर्ा देवता बहुत महत्वपरू ्ग
्योरदान िरते हैं। निैषधीयचररत में श्मीहष्ग ने अपने प्रौढ़ पाकण्त्य िा इतना अकधि
प्रदर््गन कि्या है कि ्यह र्ा्रि-िाव्य बन र्या है। साधारर ससं िकृ तज्ञ इसिे सार्
कखलवाड नहीं िर सिते। कवद्ानों िे रव्गरूपमी रोर िो दरू िरने िे कलए ्यह औषध
माना र्या है (निैषधं ववद्वदद् ौषधम)् । इस महािाव्य िो भारकव और माघ िे िाव्यों
से भमी उतिकृ ष् िहा र्या है—
तावद् भा भारवेभा्गकत ्यावनमाघस्य नोद्य:।
उकदते नैषधे िाव्ये कव माघ: कव च भारकव:।।
अर्ा्गत् भारकव िी र्ोभा तब ति है, जब ति माघ िा उद्य नहीं हुआ और जब
नैषध िाव्य िा उद्य हो र्या, तो िहाँ माघ और िहाँ भारकव?
भारकव, माघ और श्मीहष्ग इन तमीनों िे महािाव्यों (वकराताज्वनिु ीय, वशशपु ालवध,
और निैषधीयचररत) िो संसिकृ त कवद्ान् बृहत्त्रयी िहते हैं। इन तमीनों ने अलंिकृत पद्धकत िा
अनसु रर कि्या है। िाकलदास िे तमीन िाव्यों (रघवु ंश, कुमारसम्भव और मेघदतू ) िो
सरल र्ैलमी िा आश््य लेने िे िारर लघत्रु यी िहा जाता है। इन छ: िाव्यों िा संसिकृ त
परम्परा में कवर्ेष रूप से प्रचार है।
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अन्य महाकाव्य
संस्कृ त भाषा में महा्ाव्य-रचना बहुत लो्प्रि्य रही है। उप्ययुक्त् महा्ाव्यों ्े अप्तररक्त
रिाचीन ्ाल में भी अने् महा्ाव्य प्लखे गए थे और ्यह परमपरा आज त् चली आ
रही है। ्यहाँ ््छ महा्ाव्यों ्े नाम प्िए जाते हैं। हरविजय नाम् महा्ाव्य ्शमीरी ्प्ि
रतना्र द्ारा प्लखा ग्या, प्जस्ा सम्य 850 ई. माना जाता है। इस महा्ाव्य में भगिान्
प्िि ्ी अन्ध्ासर् पर प्िज्य ्ा प्िसतार से िरयुन है। इसमें 50 सगयु हैं। महा्ाव्य ्ी
प्ििालता ्े ्ारर रतना्र ्ी ्ीप्तयु बहुत फै ल गइइं। रतना्र ्े सम्ालीन प्ििसिामी
ने बौद्धग्रनथ अििानित् ्ी ए् ्था पर आप्रित कप्फणाभयदयु य नाम् महा्ाव्य
प्लखा। ्यह 20 सगगों ्ा बौद्ध महा्ाव्य है। ्शमीर ्े ही प्निासी क्ेमने द्र ने तीन रिप्सद्ध
महा्ाव्यों ्ा रिर्यन प्््या। ्ये हैं— रामायणमञजरी, भारतमञजरी और बृहतकथामञजरी।
्ये तीनों रिप्सद्ध ्थाओ ं पर आप्रित हैं। क्ेमने द्र ने 1067 ई. में अपना अप्नतम महा्ाव्य
दशाितारचररत प्लखा। क्ेमने द्र ्ा जीिन्ाल 995 ई. से 1070 ई. त् है।
ए् अन्य ्शमीरी ्प्ि (मख ं ) ने श्ीकण्ठचररत नाम् महा्ाव्य 25 सगगों में
प्लखा, प्जसमें प्िि द्ारा प्रिपर् ्े पराज्य ्ा िरयुन है। इन्ा सम्य बारहिीं िताबिी
ई. है। अन्य रििेिों ्े ्प्ि्यों ने भी सम्य-सम्य पर महा्ाव्यों ्ी रचना ्ी। नील्ण्ठ
िीप्क्त ने सरिहिीं िताबिी में वशिलीलाण्णि महा्ाव्य 12 सगगों में प्लखा। रामभद्र
िीप्क्त ्ा पतञजवलचररत (आ्ठ सगयु), िें्टनाथ ्ा यादिाभयदयु य, ्धनेश्वर सरू र ्ा
शत्ञयु जय महा्ाव्य, िागभट ्ा नेवमवनमा्णणकावय, िीरननिी ्ा चन्द्रप्रभचररत, हररश्चनद्र
्ा धम्णशमा्णभयदयु य इत्याप्ि महा्ाव्य भी रिप्सद्ध हैं। ््छ महा्ाव्य प्िप्भनन िेिताओ ं
तथा िास्ती्य प्िष्यिसत् ्े प्नरूपर ्े प्लए भी प्लखे गए हैं। हेमचनद्र (1088-1172
ई.) ्ा कयुमारपालचररत 28 सगगों ्ा महा्ाव्य है, प्जस्े रिथम 20 सगगों में व्या्रर ्े
प्न्यमों ्े अनस् ार संस्कृ त भाषा ्े रूपों ्ा रि्योग प्िखा्या ग्या है और अप्नतम 8 सगगों
में रिा्कृ त तथा अपभ्ि ं भाषा ्े व्या्रर-समबद्ध रूपों ्ा रि्योग है। इसे दव् याश्यकावय
भी ्हते हैं।
आ्धप्् न् ्यग् में भी ससं ्कृ त महा्ाव्यों ्ी रचना हो रही है। ितयुमान महापरु् षों तथा
घटनाओ ं ्ो प्िष्य बना्र अने् महा्ाव्य प्लखे गए हैं। महापरु् षों में गरु् गोप्िनि प्संह,
प्ििाजी, सिामी ि्याननि, राम्कृ षर परमहसं , प्ििे्ाननि, महातमा गां्धी, सभ् ाषचनद्रबोस,
जिाहरलाल नेहरु आप्ि पर अने् संस्कृ त महा्ाव्य प्लखे गए हैं। आ्धप्् न् ्ाल में

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प्राचमीन कवष्यों पर भमी अनेि महािाव्य कलखे रए हैं। ्यहमी नहीं, कवदेर्मी महापरुु ष भमी
ससं िकृ त महािाव्य िे कवष्य बने हैं। नाटि िे समान महािाव्य भमी आधकु नि ससं िकृ त
िकव्यों िी अत्यकधि लोिकप्र्य कवधा है।
ध्यातव्् लबनदु
♦ महािाव्य — सर्गबनध रचना
♦ महािाव्य िा नामिरर — िकव, िर्ानि अर्वा ना्यि िे नाम पर आधाररत।
♦ िाकलदास िे दो प्रकसद्ध महािाव्य–
(i) िुमारसम्भव — सर्ग-आठ, रमीकत-वैदभशी।
कवष्य : कर्व-पाव्गतमी िे कववाह तर्ा िुमार िाकत्गिे्य िे जनम िी िर्ा।
♦ िाकलदास िे �कृंरार रस िे प्रकत कवकर्ष् आिष्गर िा द्योति।
(ii) िघुिंि- सर्ग- 19, रमीकत-वैदभशी।
कवष्य — इक्वािुवंर् िे कवकभनन राजाओ ं िा कवसतकृत वर्गन,
रकृहसर् जमीवन िी श्ेष्ठता िा प्रकतपादन।
रघवु र्
ं मी राजाओ ं िे उचच आदर्थों िा द्योतन।
सभमी रसों िे प्रिार्ि प्रसाद ररु से पररपरू ।्ग
अश्वघोष िे दो महािाव्य–
(i) बद्धु चररत— सर्ग-28, उपलबध सर्ग-14।
कवष्य — भरवान् बद्ध ु िे जमीवन और उपदेर्ों िा वर्गन।
(ii) सौनदरननद— सर्ग-18, रमीकत- वैदभशी।
कवष्य — ननद और सनु दरमी िे परसपर अनरु ार िा �कृं�ारपरू ्ग वर्गन।
बद्ध
ु िे सौतेले भाई ननद िी धम्गदमीक्षा िा वर्गन।
बौद्धधम्ग िे उपदेर्ों िी रोचि एवं िाव्यम्य प्रसतकु त।
♦ किराताज्गनु मी्य
सर्ग—18
कवष्य— इनद्रिील पव्गत पर कदव्य अ्रि प्राप्त िरने वाले अज्गनु और किरातवेर्धारमी
भरवान् र्ि ं र िे ्यद्ध
ु िा वर्गन।

44 संस्‍कृ त साहित्य—परिच्य

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इस महािाव्य िे प्रकसद्ध नमीकतवाक्य—
कहतं मनोहारर च दल
ु ्गभं वच:।
सहसा कवदधमीत न कक्र्याम।् ।
समय- छठी शताब्दी।
♦ रावरवध (भरटििाव्य)
लेखि— भरटि।
सम्य— छठमी र्ताबदमी िा उत्तराद्ध्ग एवं सातवीं र्ताबदमी िा आरम्भ।
कवष्य— रामा्यर िी िर्ा िा सरल एवं संकक्षप्त रूप में वर्गन।
♦ जानिीहरर
लेखि— िुमारदास।
कवष्य— राम िी िर्ा पर आधाररत।
सम्य— छठमी र्ताबदमी।
♦ कर्र्पु ालवध
लेखि— माघ।
सम्य— 700 ई.।
कवष्य— िकृ षर द्ारा कर्र्पु ाल िे वध िी िर्ा िा वर्गन।
♦ नैषधमी्यचररत
लेखि— श्मीहष्ग।
सम्य— बारहवीं र्ताबदमी।
कवष्य— कनषध देर् िे राजा नल एवं दम्यनतमी िे प्रर्य िा वर्गन।
♦ बकृहतरि्यमी
वकराताज्वनिु ीय (भारकविकृ त), वशशपु ालवध (माघिकृ त) एवं निैषधीयचररत (श्मीहष्गिकृत)
बकृहतरि्यमी िहलाते हैं।
♦ हरकवज्य
लेखि— रतनािर (िशममीरमी िकव)।
सम्य— 850 ई.।
कवष्य— भरवान् कर्व िी अनधिासरु पर कवज्य िा कवसतकृत वर्गन।

महाकाव्‍य 45

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♦ कप्फणाभ्दयु ्
लेखक— शिवसवामी।
शवष्—बौद्धग्रन्थ अवदानितक की क्था पर आशरित।
♦ रामा्णमञ्जरी, भारतमञ्जरी और बृहतक्थामञ्जरी
लेखक— क्ेमने द्र।
शवष्— प्रशिद्ध क्थाओ ं पर आशरित।
♦ दिावतारचररत
लेखक—क्ेमने द्र।
िम्— 995 ई. िे 1070 ई.।
♦ रिीकण्ठचररत
लेखक— मख ं (कशमीरी कशव)।
िम्—बारहवीं िताबदी।
शवष्— शिव द्ारा शरिपरयु की परा्ज् का वण्णन।
िर्ण— 25 िर्ण।
♦ शिवलीलाण्णव
लेखक— नीलकण्ठ दीशक्त।
िम्— िरिहवीं िताबदी।
िर्ण— बारह िर्ण।
♦ पतञ्जशलचररत
लेखक— रामभद्र दीशक्त।
िर्ण— आ्ठ।
♦ ्ादवाभ्दयु ्
लेखक— वेंकटना्थ।
♦ िरिञयु ्ज्
लेखक— धनेश्वर िरू र।
♦ नेशमशनमा्णणकाव्
लेखक— वागभट।

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♦ चन्द्रप्रभाचरित
लेखक— वीिनन््ी।
♦ धर्मशरा्मभ्‍्यु ्‍
लेखक— हरिश्चन्द्र।
♦ कयुरािपालचरित (्व् ्‍ाश्र्‍काव्‍)
लेखक— हेरचन्द्र।
सर्म—28।
♦ ्व् ्‍ाश्र्‍काव्‍
ऐसा काव्‍ जो ्ो कथानकों पि आधारित हो।
♦ वत्मरान संसककृ त रहाकाव्‍
अनेक रहापरुयु षों ्‍था ररुयु रोववन्् वसहं , वशवाजी, सवारी ््‍ानन््, िारककृ ष्ण पिरहसं ,
वववेकानन््, सभयु ाषचन्द्र बोस आव् पि वलखे रए।

अभ्यास-प्रश्‍न
प्र. 1. सर्मबन्ध िचना वकसे कहते हैं?
प्र. 2. रहाकाव्‍ रें वकन र्णयु ों वाला व्‍वति ना्‍क होता है?
प्र. 3. रहाकाव्‍ रें कौन-कौन से िस प्रधान होते हैं?
प्र. 4. रहाकाव्‍ के ररं लाचि्ण रें वकन बातों का सरावेश होता है?
प्र. 5. रहाकाव्‍ के नारकि्ण का आधाि क्‍ा होता है?
प्र. 6. संसककृ त रहाकाव्‍ों के ववकासक्रर रें कौन-से कवव्‍ों के नार रखयु ्‍ रूप से वलए जाते हैं?
प्र. 7. संसककृ त कवव्‍ों रें कववकयुलररुयु कौन राना जाता है?
प्र. 8. कावल्ास द्ािा वलखे हुए रहाकाव्‍ों के नार वलवखए।
प्र. 9. वशव-पाव्मती के वववाह तथा कावत्मके्‍ के जन्र की कथा वकस रहाकाव्‍ रें आती है?
प्र. 10. अश्वघोष के ्ो रहाकाव्‍ों के नार वलवखए।
प्र. 11. अश्वघोष वकस शताब्ी रें हुए थे?
प्र. 12. सौन््िनन्् रहाकाव्‍ का वर्‍्म-ववष्‍ क्‍ा है?
प्र. 13. अश्वघोष के ्ोनों रहाकाव्‍ वकस िीवत रें वलखे रए हैं?
प्र. 14. भािवव का सर्‍ क्‍ा राना जाता है?
प्र. 15. भािवव की िचना की कौन-सी ववशेषता प्रवसद्ध है?

महाकाव्‍य 47

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प्र. 16. भारकव िी रचना िी किसमी एि लोिोकति िा उललेख िीकजए।
प्र. 17. वकराताज्वनिु ीय िाव्य िा िर्ानि संक्षेप में कलकखए।
प्र. 18. भरटििाव्य किसिी रचना है?
प्र. 19. भरटििाव्य िा दसू रा नाम क्या है?
प्र. 20. जानिकीहरण िी िर्ा किस ग्रनर् पर आधाररत है?
प्र. 21. माघ िा जनमसर्ान िहाँ माना जाता है?
प्र. 22. माघ ने वशशपु ालवध िाव्य में किन र्ा्रिों िे कवष्य में अपना ज्ञान प्रिाकर्त कि्या है?
प्र. 23. माघ िे बाद किस महािकव िो सवा्गकधि ख्याकत कमलमी?
प्र. 24. नल और दम्यनतमी िी िर्ा किस महािाव्य में आतमी है?
प्र. 25. ‘िान्यिुबजनरे र्’ ्यह कवर्ेषर किसिे कलए प्र्यति ु हुआ है?
प्र. 26. ‘नैषधं कवद्दौषधम’् इस सकू ति िा क्या तातप्य्ग हैं?
प्र. 27. बकृहतरि्यमी में किन िकव्यों िी रचनाएँ आतमी है?
प्र. 28. लघरिु ्यमी में िौन-िौन से िाव्य आते हैं?
प्र. 29. हरववजय महािाव्य किस िकव िी िकृ कत है?
प्र. 30. ररति सर्ानों िी पकू त्ग िीकजए—
(ि) लौकिि संसिकृ त भाषा में िाव्य रचना िा आरम्भ महकष्ग ......... से हुआ।
(ख) ............................................... िो ना्यि बनािर वालममीकि ने आकदिाव्य
प्रसततु कि्या।
(र) महािाव्य िे उद्ेश्य िे रूप में धम्ग ............................................... िाम और
............................................... में से िोई एि फल होता है।
(घ) महािाव्य में सरथों िी संख्या ..................................... से अकधि होनमी चाकहए।
(ङ) बद्ध ु िे जमीवन और उपदेर्ों िा वर्गन......................................... महािाव्य में
कमलता है।
(च) बद्ध ु चररत िे वर्गन .................................. से समता रखते हैं।
(छ) .................................. भारकव िी एिमारि रचना है।
(ज) भारकव ने िर्ानि से अकधि .................................. िो महत्व कद्या।
(झ) िुमारदास िा सम्य .................................. र्ताबदमी माना जाता है।
(ट) महािकव श्मीहष्ग िा सम्य .................................. र्ताबदमी है।

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