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( स संउकृत ररामच
नाटक का हरत
द पा तर)
महाक व भवभू त
अनुवादक
ो. इ
इ तहासकार ारा यशोवमा का काल स तम शती का उ राध माना जाता है। अतः
भवभू त क व का काल भी यही वीकार कया जाना उ चत है।
ऐसा तीत होता है क भवभू त को अपने जीवन-काल म क त-लाभ नह हो सका।
का लदास, बाणभ आ द ने जो या त जी वत अव था म ा त कर ली, वह भवभू त के
भा य म न आ सक । अतएव नराशा से ु ध होकर उसने मालतीमाधव नाटक म लख
दया ( न न ल खत ोक भ उ बेक-कृत ‘ ोकवा तक’ क ता पय ट का म भी मलता है
—जो भवभू त तथा भ उ बेक के तादा य को मा णत करता है)—
ये नाम के च दह न थय यव ां
जान त ते कम प तान् त नैष य नः ।
उ प यते तु मम कोऽ प समानधमा
कालो यं नरव धः वपुला च पृ वी ।।
जग पते रामभ ।
नयोजय यथाधम, यां वं धमचा रणीम् ।
हर म याः तकृतेः पु यां कृ तम वरे ।।
—इ
पा
पु ष-पा
सू धार धान नट
नट सू धार-सहकारी
रामच (नायक) अयो याप त सूयवंशी राजा
ल मण सु म ा-पु , राम का अनुज
श ुन सु म ा का छोटा पु , ल मण का
अनुज
जनक म थलाधीश, राम- सुर
अ ाव मु न- वशेष
वा मी क रामायण- णेता मह ष
सौधात क दा डायन वा मी क- श य
कुश-लव राम के पु
च केतु ल मण-पु
सुम सार थ
व ाधर दे वयो न- वशेष
कंचुक (गृ ) अ तःपुर-चर, वृ ा ण
मुख गु तचर
श बूक शू -तापस
मु न कुमार, सै नक आ द।
ी-पा
सीतादे वी (ना यका) जनक-तनया—राम-प नी
वास ती वन-दे वी, सीता क सखी
आ ेयी चा रणी
तमसा मुरला नद -अ ध ा ी दे वी
भागीरथी गंगा दे वी
कौश या राम-जननी
पृ वी सीता-जननी
अ धती व स -प नी
व ाधरी व ाधर-प नी
तहारी अ तःपुर- ार क र का
उ ररामच रत
[ वेश करके]
मुख : ( दल म) हाय, कैसे म दे वी के स ब ध म ऐसे अ च तनीय लोकापवाद का दे व
के स मुख कथन क ँ गां अथवा मुझ अभागे का यह कत ही है।
सीता : (सपने म बड़बड़ाती है।) आयपु कहाँ हो?
राम : च -दशन के कारण उ प ई वरह-भावना ही इस अ तवदना तथा व म
बड़बड़ाने का कारण बनी है। ( नेह से सीता के अंग को पश करते ए) यह
दा प य- ेम भी या अद्भुत अनुभू त है, जो जागते-सोते सभी अव था म,
दो अ भ आ मा म सुख- ःख का साथ दे ती है, जसम दय को व ाम
ा त होता है। बुढ़ापा भी जसक सरसता का अपहरण नह कर सकता और
समय के बीतने के साथ तब ध र हत हो कर जो अ वरल ेम- वाह म
प रणत हो जाती है। सभी संसारवासी इस अ नवचनीय ान द-सहोदर
दा प य- नेह क कामना करते ह।
मुख : (समीप जाकर) जय हो महाराज क !
राम : बतलाओ, जो कुछ दे खा व सुना है।
मुख : ाम तथा नगर- नवासी, सब आपक तु त करते ह और कहते ह क आपके
गुण के कारण, हम महाराज दशरथ को भी भूल गए ह।
राम : यह तो नरथक शंसा ई। वे लोग मेरे म कसी दोष का भी नदश करते ह
जसका तकार कया जाए?
मुख : (आँसु के साथ) सु नए महाराज, (कान म) इस तरह से।
राम : आह, यह तो अ त ती व - हार है! (मू छत हो जाता है।)
मुख : महाराज आ ासन क जए।
राम : (आ त होकर) हाय, ध कार है! वैदेही का परगृह- नवास का जो कलंक उन
अद्भूत उपाय से शा त कया गया था, वह आज फर दै व वपाक से कु े के
वष के समान चार तरफ फैल गया है। तो, अब म अभागा या क ँ । (सोच
कर—क णा के साथ) अथवा यह या है! े राजा का धम तो सब तरह
जारंजन करना है। पू य पता जी ने, मुझे और अपने ाण का प र याग करते
ए, इसी धम का पालन कया। भगवान् व स जी ने भी तो ऐसा ही स दे श
अभी भेजा था।
हाय! लोक- े सूयवंशी राजा ने जस न कलंक शु राजच र को आज तक
द त रखा, उसी च र के स ब ध म, मेरे कारण, य द लोग म ऐसी षत
भावनाएँ जागृत हो गई ह , तो मुझ भा यहीन को ध कार है!
हा दे व य -पु ! हा अपने ज म से पृ वी को प व करने वाली! हा जनक-
न दनी! हा, अ न, व स , अ धती ारा श त च र वाली! हा राम क ाण!
मेरे अर यवास क य स ख! तात- ये! अ पभाषी! कैसे तु हारा, इस कार का
भीषण प रणाम होना था! तेरे कारण यह सम त व पु यमय है और तेरे स ब ध
म लोग क ऐसी अपु य उ याँ? तेरे कारण तीन लोक सनाथ ह और तू वयं
अनाथ हो कर न हो जाएगी? ( मुख के त) जाओ, ल मण को कहो—यह
नया राजा राम इस तरह आ ा दे ता है (कान म) इस तरह।
मुख हाय, अ न से प रशु दे वी के बारे म महाराज ने एक जन के वचनमा से ऐसा
: घोर न य कया है! भगवती के गभ म तो रघुकुल क प व स त त का आधान
आ है।
राम : पाप शा त हो! पाप शा त हो! जा के लोग अ य त जन ह। वह इ वाकु-वंश जो
संसार म आज तक परम वशु माना जाता था, अब भा य से न दा का पा बन
रहा है। वह जो अ न-शु का अद्भुत काय दे वी के लए कया गया, उस पर
कौन व ास करे, जब क वह सु र थान पर आ।
तो जाओ।
मुखे हा दे व! ( नकल जाता है।)
:
राम : ध कार है मुझे! म कैसा नृशंस तथा बीभ सकमा हो गया ँ। मने जस या को
शैशव से पाला-पोसा था। और जसे नेहवश अपने से कभी पृथक् नह कया था
उसे ही आज म कपट से मृ यु के मुख म डाल रहा ँ, जैसे कोई ब धक घर क मैना
को सूना गृह म भेज रहा हो।
तो या म पापी, अ पृ य अपने पश से इस दे वी को षत कर रहा ँ? (सीता का
सर उठा कर अपनी बा ख च लेता है।) अ य मु धे! मुझ जघ य कम करने वाले,
चा डाल को छोड़ो। तुम च दन क ा त से ज़हरीले फल वाले वषवृ का
आ य कर रही हो। (उठ कर) हाय! मेरे लए आज संसार नरक बन गया है, आज
राम के जीवन का योजन समा त हो गया है। अब यह लोक मेरे लए नजन वन
के समान हो गया है। संसार असार है। यह मेरा शरीर का ाय हो रहा है। म
शरणहीन ँ। या क ँ अब, या ग त है?
ःख क अनुभू त करने के लए ही, राम म चेतनता लौट आई है। मेरे ाण,
ममभेद व क ल के समान दय म गड़ गए ह और नकलते भी नह ।
हाँ माता अ ध त! भगवान व स ! राज ष व ा म ! जग पावक पावक! हे दे व
वसु धरा! हा पता जनक! हा माता कौश या! हा ये म महाराज सु ीव! सौ य
हनुमान! महोपकारी लंका धप त वभीषण! हा स ख जटा! तुम सब मुझ पातक
राम ारा ठगे गए हो, धोखा दए गए हो! मुझ रा मा कृत न ारा नाम हण कए
जाने पर भी, आप महा मा लोग पाप से षत हो जाते हो। म वह पातक ,ँ जो
अपनी छाती पर गर कर नःशंक सोई ई गृहल मीभूत य प नी को हसक
ा णय के मुख म ब ल बना कर दे ने लगा ँ; उस अपनी य प नी को जो पूण
गभ के कारण, इस समय, ःसह वेदना क अव था म है। (सीता के दोन पैर को
अपने म तक से लगा कर) यह तु हारा राम के सर पर अ तम चरण- पश है।
(रोता है।)
[नेप य म]
ा ण पर घोर अ याचार! ा ण पर घोर अ याचार!
राम : दे खो, यह या बात है?
[ फर नेप य म]
यमुना-तीर पर नवास करने वाले, उ तप या म रत ऋ षय का समुदाय-लवण
रा स से पी ड़त आ—र ा के लए आपके पास उप थत आ है।
राम : या आज भी रा स से भय बाक है? तो अभी मधुरा के इस रा मा, कु भीनसी
के पु , रा स को समूल न करने के लए श ु न को भेजता ।ँ (घूमकर और
फर लौट कर) हा दे व! या तुम इसी ग भणी अव था म चली जाओगी? भगव त
वसु धरा! अपनी नद ष पु ी जानक को दे खो। यह जनक और रघु के कुल
क समूची मंगल- वभू त है—इस पु यमयी वभू त को, हे परमपावन, दे वव दत
जन न! तुमने वयं ज म दया।
[इस तरह रोता आ चला जाता है।]
सीता हा सौ य आयपु , कहाँ हो! (एकदम उठ कर) हाय ध कार, म ः व क
: तारणा म पड़ी रही। आयपु मेरे पास नह ह। हाय ध कार, अकेली यहाँ सोई
इ छोड़ कर नाथ कह चले गए ह? अ छा उन पर ोध क ँ गी, य द उ ह दे ख
कर ोध कर सक । है कोई यहाँ?
[ वेश करके]
मुख कुमार ल मण कहते ह क “रथ तैयार है, आप आ कर उस पर बै ठए।”
:
सीता अभी आती ँ (उठ कर और घूम कर) मेरा गभ-भार हल रहा है। धीरे से चलती ँ।
:
मुख इधर से आइए आप।
:
सीता रघुकुल दे वता को नम कार हो।
:
[सब चले जाते ह।]
[ थम अंक समा त]
तीय अंक
[नेप य म]
तप वनी का वागत हो!
[तब या ी के वेष म तप वनी वेश करती है।]
तप वनी : अरे, यह तो सा ात् वनदे वी चली आ रही है? प -पु प-फल के अ य
के साथ मेरे पास ही उप थत हो रही है?
[ वेश करके]
वनदे वी : (अ य तुत करके) अ त थ का वागत हो। मेरे वन क सम त
साम ी आपके यथे छ भोगने के लए तुत है। मेरे अहोभा य ह। इस
शुभ दन, मेरे पु य के कारण आपका यहाँ समागम आ है। यह वृ
क छाया है, यह जल है, यह तप वीयो य क द-मूल-फल का भोजन
है। वे छापूवक आप सेवन कर सकती ह।
तप वनी : इस स ब ध म या कहा जाए। मेरा भी सौभा य है क आप स श
सा वी से सा ा कार आ है। साधु के न कलंक एवं वशु च र
का समु कष वणनातीत है। उनक मधुर कृ त, वनयपूण वाणी का
संयम, सहज क याणी बु , अ न दत प रचय, य और परो म
एक रस नेह—ये सभी गुण दय जीतने वाले होते ह।
[दोन बैठ जाती ह।]
वनदे वी : या म अ त थ का नाम जान सकती ँ?
तप वनी : मेरा नाम आ ेयी है।
वनदे वी : आय आ े य! आपका इधर कैसे आना आ? कस योजन से आप
द डकार य म पधारी ह।
आ ेयी : इस दे श म अग य आ द अनेक वेदा त-वे ा षगण नवास
करते ह। उ ह से वेदा त- व ा हण करने के लए म वा मी क ऋ ष
के आ म से यहाँ प ँची ।ँ
वनदे वी : जब अ य सब मु न लोग वेद-परायण के लए उसी वे ा, पुराणगु
ाचेतस ऋ ष के पास जाते ह, तो आपका उ ह छोड़ कर इधर आने
का या कारण है?
आ ेयी : वहाँ व ा ययन म महान् व न उप थत हो गया है, इस लए उस
आ म को छोड़ कर इधर आना पड़ा है।
वनदे वी व न कैसा?
:
आ ेयी उस भगवान् वा मी क को कसी दे वता ारा दो ब चे ा त ए थे, जो धमुँही
: अव था म थे और सब कार से अद्भुत थे। वे दोन ब चे न केवल उस मह ष
के, अ पतु पशु-प य के दय को भी अपने नेहपाश म बाँध लेते थे।
वनदे वी उनका नामकरण आ या नह ?
:
आ ेयी उसी दे वता ने उन दोन का नाम कुश-लव रखा और उनके अद्भुत भाव को भी
: घो षत कया।
वनदे वी वह कैसा भाव था?
:
आ ेयी उन दोन को रह यपूण जृ भका ज म स - प म ा त ए।
:
वनदे वी यह तो सचमुच आ य क बात है।
:
आ ेयी उन दोन ब च का वा मी क मु न ने माता के स श पालन-पोषण कया।
: चौलकम के उपरा त उन दोन बालक को वेद के अ त र अ य तीन
आ वी क -वाता-द डनी त- व ा का अ यास कराया गया। तदन तर गभ से
यारह वष के बाद यो चत व ध के अनुसार गु ने उनका उपनयन-सं कार
कया और उ ह वेद का अ ययन भी करा दया। इन अ त तेज वी एवं कुशा
बु छा के साथ हम जैसी म दम तय का पढ़ना अब नह हो सकता। य क,
गु समान प से ा तथा जड़ म व ा का वतरण करता है। वह उन दोन क
ान-श को न बढ़ाता है, न घटाता है। फर भी प रणाम म बड़ा अ तर पड़
जाता है। व छ म ण जस कार त ब ब के हण म समथ होती है वैसी म
आ द नह ।
वनदे वी तो यह है आपके अ ययन म व न!
:
आ ेयी और भी है।
:
वनदे वी सरा कौन-सा व न है?
:
आ ेयी एक दन एक ष म या म नान करने के लए तमसा नद पर गए। वहाँ
: उ ह ने मलकर वहार करते ए क च के जोड़े म से एक को शकारी ारा मारा
जाता आ दे खा। उस समय सहसा उनके मुख से अनु ु भ् छ द म सर वती का
इस तरह आ वभाव आ—
नह नषाद त ा को
जाओ समय शा त ।
च मथुन म एक जो
मारा काम मो हत ।।
वनदे वी व च ही यह शा से अ य छ द का नवीन अवतार आ है।
:
आ ेयी उसी समय भूतभावन भगवान् का आ वभाव आ और वे श द के
: सा ा कता ाचेतस के समीप जा कर बोले—“मह षवर! तु ह वा का
ा भाव आ है। तुम रामच रत का ा यान करो। तु ह अ ाहत यो त, आष
च ु ा त ई है। तुम आ द क व हो।” इतना कहकर भगवान् अ त हत हो गए।
तब मह ष ाचेतस ने मनु य म सव थम श द के अवतारभूत रामायण का
णयन कया।
वनदे वी इस अनुपम कृ त से संसार महाम हमामय हो गया।
:
आ ेयी इसी लए कहती ँ क वहाँ व ा ययन म महान व न उप थत हो गया है।
:
वनदे वी ठ क है।
:
आ ेयी अब म व ाम कर चुक ँ। ब हन, मुझे अग य मु न के आ म का माग तो
: बतलाओ।
वनदे वी इधर पंचवट म वेश करके इस गोदावरी के तट से चली जाओ।
:
आ ेयी (आँसू बहाते ए) यह तपोवन है? या यह पंचवट है? यह गोदावरी नद है?
: यह वण पवत है? या तुम पंचवट क वनदे वी वास ती हो?
वनदे वी हाँ, यह सब ऐसा ही है।
:
आ ेयी हा ये जानक ! यही तु हारे हाथ से बढ़ाए ए यारे वृ ह, जनका संगवश
: तुम कथन कया करती थ । आज तु हारी मृ तमा अव श रह जाने पर, ये
दखाई दे ते ए वृ तु हारा य दशन करा रहे ह।
वास ती (भय के साथ दल म) ‘ मृ त अव श ’ इसका या अ भ ाय? ( कट प म)
: आय! सीता दे वी का या अमंगल आ है?
आ ेयी केवल अमंगल ही नह , लोकापवाद भी (कान म) इस तरह।
:
वास ती हाय, यह तो भा य का दा ण हार है! (मू छत हो जाती है।)
:
आ ेयी ब हन, आ ासन करो, आ ासन करो।
:
वास ती हाय य स ख! तु हारे जीवन का यही प रणाम होना था! हाय राम, पर तु अब
: तु हारे स बोधन से या! आय आ ेयी! उस जगंल म छोड़ जाने के बाद ल मण
के लौट जाने पर, सीता का या आ—है कोई, इस स ब ध म समाचार?
आ ेयी नह , नह
:
वास ती हाय क ! आया अ धती, भगवान् व स एवं वृ ा रा नय के जीते ए रघुकुल
: म ऐसा नृशंस वृ कस तरह घ टत आ।
आ ेयी तब सब गु जन ऋ यशृंग के य म गए ए थे। ा श वष य य अब समा त
: आ है। ऋृ यशृंग ने स कार स हत गु जन को वदा कया। तब भगवती
अ धती ने कहा—“म ब से र हत अयो या म नह जाऊँगी।” राम क
माता ने इसका अनुमोदन कया। उनके अनुरोध से मह ष व स जी ने न य
कया क सब वा मी क जी के आ म म जा कर नवास कर।
वास ती अब रामभ का कैसा हाल है?
:
आ ेयी उस राजा ने राज तु अ मेध का आर भ कया है।
:
वास ती : अहह, ध कार! या उसने पुन ववाह भी कर लया है?
आ ेयी : पाप शा त! ऐसा नह ।
वा ती : तो फर य म उसक सहधमचा रणी कौन बनी?
आ ेयी : ी राम ने सीता क सुवण तमा को धम प नी बनाया।
वास ती : लोको र पु ष के च र अद्भुत होते ह। उनके च को कौन जान सकता
है, जो कभी तो व के समान कठोर होते ह और कभी फूल से भी कोमल हो
जाते ह।
आ ेयी : महाराज ने वामदे व मु न ारा द त य य अ भी छोड़ दया है। शा -
व ध अनुसार उसके र क साथ भेज दए गए ह। उन र क के अ ध ाता-
प म ल मण के पु च केतु को भी चतुरं गणी सेना स हत तथा द ा
स हत भेज दया गया है।
वास ती : (हष तथा कौतुक के आँसु के साथ) कुमार ल मण का भी पु है—यह सुन
कर म अ त आन दत अनुभव करती ँ।
आ ेयी : इसी बीच म एक ा ण अपने पु को ले कर राज ार पर प ँचा और छाती
पीट कर “ ा ण पर अ याचार हो गया!”—इस तरह च लाने लगा। उस
समय जब दयालु रामभ वचार कर रहे थे क “राजा के दोष के बना
जा क अकाल मृ यु नह हो सकती” तब अक मात् अशरी रणी वाणी
उ प ई और बोली—“श बूक नाम का शू पृ थवी पर तप या कर रहा है।
हे राम, तु ह उसका सर काट कर, इस ा ण-पु को जी वत करना होगा।”
यह सुन कर जग प त राम हाथ म तलवार ले कर, पु पक वमान पर चढ़ कर
सब दशा- व दशा म उस शू तप वी को ढूँ ढ़ने के लए नकल पड़े।
वास ती : वह धू पान करने वाला श बूक शू तो मुँह नीचा कए ए, इसी पंचवट म
तप या कर रहा है। रामभ शायद फर हमारे इस वन को अलंकृत कर।
आ य े ी: ब हन, अब म चलती ँ।
वास ती : अ छा जाओ आ ेयी! दन भी ब त चढ़ गया है। यह दे खो वृ गम के
कारण श थल ब धन वाले पु प ारा गोदावरी क अचना कर रहे ह। खुजली
करते ए हा थय के ग ड थल से रगड़े जाते ए ये वृ कस तरह काँप रहे
ह! यह दे खो, छाया म बैठे ए कौवे अपनी च च से क ड़ क वचा को
काट कर कस तरह खा रहे ह! नद -तीर पर वृ के घ सल म ये नदाघ-
पी ड़त कबूतर, मुग आ द प ी कस कार कोलाहल कर रहे ह!
[घूमकर दोन चली जाती ह।]
[दयापूवक तलवार हाथ म लए ए ीराम का वेश]
राम : हे मेरे दा हने हाथ! मृत ा ण- शशु को जी वत करने के लए इस शू
तप वी पर तलवार चलाओ। तुम उसी राम क बा हो, जसने पूण गभ से
पी ड़त सीता का नजन वन म नवासन कर दया। तु ह दया कहाँ?
( कसी तरह हार करके) तुमने राम-स श काम कर ही दया, शायद वह
ा ण-पु जी वत हो जाए।
[ वेश करके]
द पु ष जय हो महाराज क ! यमराज से भी अभयदान दे ने वाले, आपके द ड धारण
: करने पर वह ा ण- शशु पुनः जी वत हो गया है और मुझे यह ऋ ात
हो गई है। यह म श बूक आपके चरण म नम कार करता ँ। स संग त से
उ प होने वाली मृ यु भी भवसागर से पार करने वाली होती है।
राम : हम दोन ही य ह। तो तुम अपने उ तप का फल अनुभव करो। जहाँ
आन द और मोद ह और पु य वभू तयाँ सदा व मान ह—वे यो तमय,
क याणकारी वैराज नाम के वग-लोक तु ह ा त ह ।
श बूक : वा मन्! आपक कृपा क ही यह म हमा है। इसम तप या का या फल?
अथवा तप या का ही यह महान् उपकार है। जो तुम सवभूता धप त यो गय
के लए अ वेषण का वषय हो और संसार क एकमा शरण हो, वही तुम
मुझ शु का अ वेषण करते ए, सैकड़ योजन पार करके, यहां प ँचे हो—
यह मेरे तप का ही साद है, अ यथा अयो यापुरी से कहाँ तु हारा इस सु र
द डकार य म आगमन होना था।
राम : या यह द डकार य है? (सब तरफ दे ख कर) हाय, सचमुच ये द डकार य
के ही प र चत भू म-भाग दखाई दे रहे ह। हाँ, वही पहले क तरह कह पर ये
न ध और याम ह और कह खे और भीषण ह। पूववत्, ोत क झंकार
से यहाँ दशाएँ थान- थान पर मुख रत हो रही ह। इन भू म-भाग म ये तीथ,
आ म, पवत, न दयाँ उप यका और वन पहले क तरह वराजमान ह।
श बूक यह द डक वन ही है। यहाँ पहले नवास करते ए आपने यु म षण, खर तथा
: मूधा नाम के रा सराज को और उनक चौदह हज़ार क सेना को मृ यु का
ास बनाया था। जसके कारण इस स द पु य े म मुझ जैसे
जनपदवा सय को नभय हो कर तप या करने का अवसर ा त आ।
राम : यह केवल द डकार य ही नह —पंचवट भी समीप थ है।
श बूक हाँ, यह द ण दशा क तरफ, जन थान के भी व तृत अर य-भाग ह, जनके
: वकट ग र-ग र म ह पशु व ाम करते ह और जाने वाले प थक म रोमांच
पैदा करते ह। ये दे खए, इन अर य के सीमा ा त—जो कह तो सवथा न त ध
और शा त ह और कह च ड पशु क गजना से आपू रत ह; कह
वे छापूवक सोए ए, वशाल फण वाले साँप अपने फु कार से वषैली आग
उ प कर रहे ह और कह पानी सूख जाने के कारण, गुफा म बैठे ए प ी
अजगर साँप के वेद व को ही पी रहे ह।
राम : म इस जन थान को दे ख रहा ँ, जो पहले कभी खर रा सराज का नवास थान
था। म उन बीते ए वृ ा त का य प म अनुभव कर रहा ।ँ (सब तरफ
दे खकर) सीता को ये वन- दे श ब त य थे। पर तु आज यह कतने भयानक
दखाई दे रहे ह? (आँसु के साथ) यह यारी ने कहा था क “म तु हारे साथ
उन मधुर सुग ध वाले वन म र ँगी।” उसका वह अलौ कक नेह आज भी मुझे
पाशब कर रहा है।
णयी कुछ न भी करता आ सुख से ःख को तरो हत कर दे ता है।
जसका जो ेमी जन है, वह उसका कोई अनुपम धन है।
श बूक इन ःसह मृ तय को छो ड़ए। अब आप इन शा त एवं ग भीर महार य क
: तरफ डा लए जनके पय त भाग नृ यो म मयूर के क ठ के स श कोमल
छ व वाले ह, जो घनी नीली छाया से यु त रा जय से म डत ह और जहाँ
ह पशु व ाम कर रहे ह। दे खए, ये मृगयूथ उ ह दे ख कर भी अस ा त भाव
से वचरण कर रहे ह।
यहाँ दे खए, कैसी सु दर न दयाँ बह रही ह, जनके शीतल- व छ जल म त
प य से क पत वानीर वृ के फूल से सुग धत हो रहे ह और जनके ोत
ज बू- नकुंज से गरते ए जामुन फल के कारण श दायमान हो रहे ह।
यहाँ पर गुफा म बैठे ए भालु क थूकने क आवाज त व न के कारण
गु णत हो रही है। यहाँ हा थय से लताड़ी ई स लक लता का श शर एवं
कटु ग ध फैलता आ अनुभूत होता है।
राम : (आँ को रोकते ए) य भाई! तु हारे लए दे वता के माग क याणकारी
ह । तुम पु यलोक म जा कर लीन हो जाओ।
श बूक म पुराण- ष अग य जी का अ भवादन करके उस शा त पद म वेश करता
: ँ। (चला जाता है।)
राम : आज इस वन का कैसा पुनदशन आ, जसम पहले वस त चरकाल तक ठहरा
रहता था। यहाँ अर यवासी एवं गृही लोग अपने-अपने धम का आचरण करते ए
रहते थे। हम भी यहाँ साँसा रक सुख का रस हण करते ए आन द से समय
बताते थे।
ये वही पवत ह जहाँ मोर केकारव से उ म हो कर नृ य करते थे। ये वही
वन थल ह जहाँ ह रण नभय हो कर वहार करते थे। ये वही नद -तीर ह जहाँ
घने-घने नीप और नबुल के वृ वराजमान थे और जहाँ मंजुल वृ पर प ी
चहचहाते थे।
यह जो समीप हो मेघमाला के समान दखाई दे रहा है, वह वण नाम का पवत
है जहाँ गोदावरी नद बहती है।
इसी वण पवत के शखर पर गृ राज जटायु का नवास था। इसक तलहट
म हम पणकुट बना कर रहते थे। इसके रमणीय वन म वहग-वृ द कलरव कया
करते थे। यहाँ गोदावरी के जल म पड़ती ई वशाल वृ क यामल छाया
आँख को कैसी यारी लगती थी!
यह पर वह पंचवट थी, जहाँ हमने चरकाल तक नवास कया था और जहाँ
हमारे व वध नेह- संग के सा ी थे ये दे श और या क वह य सखी, वन
क दे वी वास ती। आज राम को या हो रहा है? अब तो मानो कोई ती वषरस
चरकाल के बाद फर उठ कर मेरे सारे शरीर म वेग से ा त हो रहा है। कोई
क ल का टु कड़ा कह से फका आ मानो मेरे मम- थल को काट रहा है। मानो,
मेरे दय म कोई ण पक कर फट गया है। पहले अनुभव कया आ शोक आज
नूतन बन कर मुझे अ य त ाकुल कर रहा है।
आज पूव प र चत म के समान इन भू म-भाग को दे ख रहा ँ। (दे ख कर)
अहो, पदाथ क थ त म कतना प रवतन हो गया है? पहले जहाँ नद का ोत
बहता था वहाँ अब थल दखाई दे रहा है। वृ का घन- वरल भाव भी वपरीत
हो गया है। ब त समय के बाद दे खने से यह वन कोई सरा ही वन तीत होता
है। केवल पवत क पूववत थ त ही यह व ास दलाती है क यह वही थान
है।
हाय, न चाहते ए भी पंचवट बलपूवक अपने नेहपाश म आक षत कर रही है।
(क णा के साथ)
जस पंचवट म मने उसके साथ वे दन तीत कए, जैसे अपने घर म; और
जहाँ पंचवट क रमणीयता क ल बी चचा करते ए हम दोन बैठे रहते थे,
अपनी यतमा का नाश करके पापी राम अकेला आज उसी पंचवट म कैसे
वेश कर सकता है अथवा उसका स कार कए बना भी कैसे चला जा सकता
है?
[ वेश करके]
श बूक जय हो महाराज क ! दे व, मेरे से आपके यहाँ समीप होने को सुनकर, भगवान्
: अग य ने आपसे कहा है—“मेरी प नी लोपामु ा नीराजना- व ध समा त करके
तथा अ य सब मह ष लोग व स क ती ा कर रहे ह। तो ज द आओ और
अपने दशन दे कर हम स मा नत करो। फर ती ग त वाले पु पक वमान से
वदे श लौट कर अ मेध य क तैयारी करो।”
राम : जैसी भगवान् आ ा दे ते ह।
श बूक इधर आइए, इधर आइए, महाराज।
:
राम : (राम पु पक को घुमाते ए) भगवती पंचवट । गु जन क आ ा के अनुरोध से
णभर के लए जा रहा ।ँ राम का यह अ त म मा करना।
श बूक महाराज, दे खए, वह क च नाम का पवत है। इसके गूँजते ए कुंज के कुट र पर
: बैठे ए उन उलूक-पं य को दे खए, जनके घु कार को सुन कर भयभीत ए
कौवे बाँस वृ पर मौन हो कर बैठे ह। इस पवत पर नृ य करते ए उन मयूर
को भी दे खए जनके केकारव को सुन कर च दन वृ पर लपटे ए साँप
उ नता से क पत हो रहे ह।
इधर दे खए, द ण दशा के पवत को भी, जनक गुफा म से गोदावरी नद
के जल गद्गद करते ए बह रहे ह। पवत के वे शखर मँडराते ए बादल क
नी लमा से कैसे सु दर दखाई दे रहे ह। न दय के उस रमणीय संगम पर भी
पात क जए, जहाँ ग भीर एवं प व जल, पर पर टकराती ई लहर के
कारण कोलाहल करते ए, ऊपर उछल रहे ह।।
[सब चले जाते ह।]
[ तीय अंक समा त]
तृतीय अंक
[दो न दय का वेश]
एक : स ख मुरले! सं ा त-सी य दखाई दे ती हो?
मुरला : स ख तमसे! भगवान् अग य क प नी लोपामु ा ने मुझे गोदावरी दे वी
के पास यह स दे श दे ने के लए भेजा है क “तुम जानती ही हो क
जब से ीराम ने सीता का प र याग कया है तब से उनके दय म
पुटपाक के स श था का ऐसा पुंज एक त हो गया है क वह बाहर
अभ न होने के कारण अ दर-ही-अ दर उ ह घुन क तरह खाए
जा रहा है। वैसी अपनी यारी सीता के ःख से उ प ए शोका तशय
से अब ीराम इतने ीण तथा बल हो गए ह क उ ह दे ख कर मेरा
कोमल दय क पत हो गया है। अब रामभ लौटते ए पंचवट
आएँगे और वह अपनी या के नेह के सा ीभूत दे श का अव य
दशन करगे। य प राम वभाव से धीर ह तथा प अपनी वतमान
अव था म अ य त व ु ध होने के कारण स भव है कसी घटना से
त हो जाएँ अतः भगवती गोदावरी! आपको उनके स ब ध म
सावधान हो कर रहना चा हए। य द कसी समय ीराम शोकवश
न ेतन हो जाएँ तो आप उ ह अपनी तरंग के शीकर से शीतल और
प केसर के सुग ध से सुग धत पवन ारा पुनः सचेतन कर दे ना।”
तमसा : यह नेह के सवथा अनुकूल ही है। पर तु रामभ के संजीवन का
उपाय तो मूल प म ही समीप थत है।
मुरला : वह कैसे?
तमसा : तो सुनो सब। जब ल मण वा मी क मु न के तपोवन के पास सीता का
प र याग करके लौट गए तब सीता दे वी ने सव-वेदना क पीड़ा को
सहन न कर सकने के कारण, ःखा भभूत हो कर अपने को गंगा के
वाह म फक दया। उसी समय दो ब च क उ प ई। त काल
भगवती भागीरथी और पृ वी माता ने उन दोन ब च को और सीता
को अपनी गोद म हण कर लया और उ ह पाताल-दे श म प ँचा
दया। जब दोन ब च ने त य पान छोड़ा, उ ह ले कर गंगा दे वी ने
वयं मह ष वा मी क को अ पत कर दया।
मुरला : (आ य के साथ) ऐसी आलौ कक वभू तय का वपाक भी परम
अद्भुत होता है, जहाँ इस कार क द श य को भी उपकरण
बनने के लए वयं उप थत होना पड़ता है।
तमसा : अब सरयू के मुख से यह सुन करके क ीराम श बूक का उ ार
करके पंचवट प ँचे ह, भगवती भागीरथी नेहवश वही शंका करती
ई जसे लोपामु ा ने कया है, वयं सीता को ले कर गोदावरी के
समीप आ गई ह।
मुरला : भगवती भागीरथी ने अ छा ही वचार कया है। रा य- सहासन पर
बैठे ए तो लोक-क याण-काय म त रहने के कारण ीराम को
च - व ेप का कम ही अवकाश ा त होता है। पर तु यहाँ सवथा
अ होने के कारण केवल शोक के साथ होने से उनका पंचवट म
वेश करना महान् अनथ का हेतु होगा। तो दे वी सीता रामभ का
आ ासन कैसे कर सकेगी?
तमसा : भगवती भागीरथी ने इस तरह कहा है—“व से य -पु ी सीता! आज
आयु मान् कुश-लव के ज म क बारहव वषगाँठ है। तो तुम अपने
पुराण सुरभूत, सूयवंश के सं थापक, पाप यकारी भगवान् आ द य
क अपने हाथ से चुने ए पु पोपहार ारा पूजा करो। पृ वी पर
वचरण करती ई तु ह हमारे भाव से वनदे वता भी नह दे ख सकगे,
मनु य का तो या कहना।” मुझे भी भगवती भागीरथी ने आ ा द है
क “तमसे! वधू जानक का तुमसे अ य त नेह है अतः तुम ही इसके
अ त समीप हो कर रहो।” तो म अब जैसी आ ा ई है तदनुसार
आचरण करती ँ।
मुरला : म भी इस वृ ा त को लोपामु ा से जा कर कहती ।ँ म समझती ँ क
रामभ भी इस वन म अब प ँच चुके ह।
तमसा : यह दे खो, सीता भी गोदावरी के जलाशय से नकल कर इसी वन क
तरफ चली आ रही है। दे वी सा ात् क णा क मू त एवं वरह- था
क तमा दखाई दे रही है। हाय, इसका मुख कतना बल और
पीला हो रहा है, य प कपोल पर लाव य पूववत् व मान है। खुले
ए केश इसके मुख क आभा को और भी अ धक क णाजनक बना
रहे ह।
मुरला : यह है वह। इसके कृश एवं पा डु र शरीर को, जो ब धन से टू टे
कसलय से भी अ धक कोमल है, दय-कुसुम को सुखा दे ने वाला
दा ण शोक इस तरह का तहीन कर रहा है, जैसे शरद्ऋतु का ताप
केतक के प को झुलसा दे ता है।
[घूम कर दोन चली जाती ह।]
[नेप य म]
अनथ हो गया, अनथ हो गया!
[तब फूल के चुनने म क णा और उ सुकता से श द को सुनती ई
सीता व होती है।]
सीता ओ हो! समझी, य सखी वास ती बोल रही है।
:
[ फर नेप य म]
जो हाथी का ब चा सीता दे वी से वयं हाथ ारा स लक -प खला कर पहले
बड़ा कया गया था...
सीता उसका या आ?
:
[ फर नेप य म]
वह अपनी ब के साथ, पानी म वहार करता आ कसी अ य दप म हाथी
ारा हमला करके घेर लया गया है।
सीता ( ाकुलता से कुछ कदम चल कर) हे आयपु ! र ा करो, र ा करो मेरे उस पु
: क । हाय ध कार, पंचवट के दशन से वही चरप र चत अ र मुझ म दभा गनी
के मुख पर आ रहे ह। हा आयपु !
[ वेश करके]
तमसा आ ासन करो।
:
[नेप य म]
वमानराज, यह ठहर जाओ।
सीता (आ त हो कर भय और उ लास के साथ) अरे, यह जल से भरे बादल क
: गजना क तरह ग भीर श द कहाँ से आ रहा है, जो मुझ म दभा गनी के मृत ाय
कान को भी उ सुक कर रहा है?
तमसा (मु कुराहट तथा ःख के साथ) अ य व से! कह से आते ए अ प व न वाले
: श द को सुन कर तुम ऐसी च कत और उ क ठत हो कर खड़ी हो गई हो, जैसे
मोरनी गजते बादल को सुन कर त भत हो जाती है।
सीता भगवती! या कहती हो, ‘अ प श द’? वर-संयोग से म तो जानती ँ क यह
: न य से आयपु क ही वाणी है।
तमसा सुना है तप या करने वाले शू को द ड दे ने के लए इ वाकुराज इधर द डकार य
: म आए ए ह।
सीता सौभा य से महाराज धम-पालन म सतत ह।
:
[नेप य म]
ये गोदावरी के तट पर पवत क उप यकाएँ ह जहाँ वृ और ह रण मेरे ब धु के
समान थे, और जहाँ म यारी के साथ चरकाल तक रहा था। इन उप यका के
बहते ए नझर और क दराएँ कैसी सु दर दखाई दे रही ह?
सीता (दे ख कर) यह या, आयपु का चेहरा भातकालीन च मा के समान कैसा
: पीला, ीण एवं बल दखाई दे रहा है। इ ह पहचानना तक क ठन हो रहा है।
इनक सौ य आकृ त अपने ग भीर अनुभवमा से ल त हो रही है। भगवती
तमसे! मुझे धारण करो।
तमसा व से! आ ासन करो, आ ासन करो।
:
[नेप य म]
इस पंचवट के दशन से मेरे अ ततम म लीन स तापा न आज च ड प म
व लत हो रही है और धूमपुंज के समान मोह तो पहले ही मुझे सब तरफ से
आवृत कर रहा है। हा ये जान क!
तमसा ( दल मे) गु जन ने इसक आशंका क थी।
:
सीता (आ त हो कर) हाय, यह या?
:
[ फर नेप य म]
हा दे व! द डकार य म नवास क य स ख! वदे ह-पु ी!
[मू छत हो जाता है।]
सीता हाय ध कार! मुझ म दभा गनी को स बो धत करके आयपु अपने नील कमल-
: स श ने को ब द करके मू छत हो गए। हा! पृ वी पर ासहीन हो कर गर
गए! भगवती तमसे, र ा करो। आयपु को जी वत करो।
तमसा हे क याणी! तुम वयं ही जग प त को संजी वत करो। तु हारे हाथ का पश उसे
: परम य है। उसी म यह ेमी नरत है।
सीता अ छा ऐसा ही हो; जैसी भगवती क आ ा।
:
[शी ता से जाती है।]
[राम पृ वी पर पड़े ए ह, सीता आँसू बहाती ई उ ह पश करती है और
राम ास लेना आर भ करते ह।]
सीता (कुछ हष के साथ) जानती ँ लोक का जीवन पुनः लौट आया है।
:
राम : यह या? मुझे अपने शरीर म ह रच दन के प लव का-सा रस बहता आ
अनुभव हो रहा है, च करण का शीतल सचन अंग-अंग म होता आ तीत
होता है और दय म संजीवनी औष ध का लेप-सा होता आ दखाई दे ता है,
जससे मेरी आ मा प रतृ त हो रही है! न य से यह वही पुराना प र चत पश है
जो मुझे पुनः जीवन दान कर रहा है और मन म परम स तोष उ प कर रहा है।
यह पश स तापज य मेरी मू छा को शी र करके आह्लाद ारा अ नवचनीय
ाशू यता को मेरे म उ प कर रहा है।
सीता (भय तथा क णा के साथ, पास जा कर) इतना ही मेरे लए ब त है।
:
राम : (उठकर बैठ जाता है।) कह यारी सीता तो मेरे पास नह आ गई।
सीता हाय ध कार! या आयपु मेरी न दा करगे।
:
राम : अ छा, दे खता ।ँ
सीता भगवती तमसे! चलो, हट जाएँ यहाँ से। मुझे दे ख कर, बना आ ा उनके पास मेरे
: आने पर, राजा ोध करगे।
तमसा यारी, च ता मत करो; भगवती भागीरथी क कृपा से तुम वनदे वता के लए
: भी अ य हो गई हो।
सीता या ऐसा है?
:
राम : हाँ य जानक !
सीता (भय से गद्गद होते ए) आयपु , प र याग करने के बाद तु हारा मुझे ‘ य’
: स बो धत करना उ चत नह है। (आँसु के साथ) पर तु भगवती! या म
ाणनाथ के त व मय बन जाऊँ? म उनके त नदय नह हो सकती।
ज मातर म भी इनका दशन मुझे लभ होगा। जस तरह आज आयपु मुझ
म दभा गनी के लए ेम- व ल हो कर वलाप कर रहे ह—मुझे भी मु क ठ से
क दन करना चा हए। म ही इनके दय को जानती ँ और वे मेरे दय को जानते
ह।
राम : (सब तरफ दे ख कर, नवद के साथ) हाय, यहाँ तो कुछ नह ।
सीता भगवती! न कारण भी प र याग करने वाले आयपु के दशन से मेरी कैसी
: अव था हो रही है?
तमसा यारी, म सब जानती ँ। तु हारा दय इस समय नराशा के कारण तट थ, घोर
: अपमान के कारण उ े जत, इस द घ वयोग म ाण य के आक मक
स मलन के कारण त भत, अपने वभाव-सुलभ सौज य के कारण कृ त थ,
राम क क याणपूण अव था के कारण क णा एवं ेम के कारण वीभूत हो
रहा है।
राम : दे वी, तु हारा नेह-सा , शीतल- पश मू तमान् अनु ह बन कर आज मुझे
आन दत कर रहा है। पर तु यारी, तुम कहाँ हो?
सीता आयपु का यह वलाप कैसा अमृतमय है? कस कार अगाध मान सक नेह का
: दशन करने वाला है और केसी आन द-धारा को वा हत कर रहा है! न कारण
प र याग से छलनी आ- आ भी मेरा दय इस वलाप को सुन कर परम स तोष
का अनुभव कर रहा है।
राम : अथवा यतमा कहाँ? उसका पश केवल म है, तारणा है—संक प का
उ माद मा है।
[नेप य म]
अहो बड़ा अनथ हो गया, अनथ हो गया!
जो हाथी का ब चा सीता दे वी से वयं हाथ ारा पहले स लक -प खला कर
बड़ा कया गया था...
राम : (क णा और उ सुकता के साथ) उसका या आ?
[ फर नेप य म]
वह अपनी ब के साथ पानी म वहार करता आ कसी अ य दप म हाथी
ारा हमला करके घेर लया गया है।
सीता अब कौन उसक र ा करेगा?
:
राम : कहाँ है वहहाथी, जो यारी के पु पर हमला कर रहा है?
[ वेश करके]
वास ती (स ा त ई-सी) महाराज ज द चलो।
:
सीता : हाय, यह तो मेरी य सखी वास ती है!
राम : दे वी क य सखी वास ती यहाँ कैसे?
वास ती दे व, ज द चलो, ज द चलो। इधर, जटायु- शखर क द ण तरफ सीता तीथ
: ारा गोदावरी म उतर कर आप दे वी के पु क र ा क जए।
सीता : हा तात जटायु! यह पंचवट वन तु हारे बना सूना दखाई दे ता है।
राम : हाय, ये पुरातन मृ तयाँ दय के मम थल को छे दने वाली ह।
वास ती महाराज, इधर आइए।
:
सीता : सचमुच, वनदे वी भी मुझे नह दे ख रही।
तमसा : यारी, भगवती भागीरथी का ऐ य कृ तम है, तो य शंका करती हो?
सीता : चलो, हम इनका अनुसरण कर।
राम : भगवती गोदावरी! आपको मेरा नम कार है।
वास ती (दे ख कर) महाराज, बधाई हो। दे वी का यह पु वजयी हो गया है।
:
राम : यह आयु मान् सदा वजयी रहे।
सीता : अहो, मेरा पु इतना बड़ा हो गया है?
राम : दे व, बधाई हो। जो तु हारा पु बचपन म अपने कोमल-कोमल नए द तांकुर
ारा तु हारे कणाभूषण से लवली-प लव को ख च लया करता था, आज वही
म दोम हा थय का वजेता बन गया है और त णाव था के क याण का पा
हो गया है।
सीता : चरंजीव, अब इस सौ य दशन वाली अपनी वधू से सदा अ वयु रहो।
राम : स ख वास ती! दे खो-दे खो, इस ब चे ने का ता को स करने क चतुरता को
भी सीख लया है। दे खो। यह कमल-प को खेल-खेल म उखाड़ कर, उनम
सूँड ारा पु प से सुग धत जल को प नी के लए भर रहा है। फर उस जल से
यु सूँड से उसे नान करा रहा है। तद तर ेमवश कमल-प के आतप को
बनाकर उस पर छाया कर रहा है।
सीता : भगवती तमसा! यह तो इतना बड़ा हो गया है। वे दोन कुश-लव, म नह जानती,
इस समय तक कतने बड़े हो गए ह गे।
तमसा : जतना बड़ा यह है, उतने वे दोन हो गए ह गे।
सीता : म ऐसी म दभा गनी ँ, जसे न केवल आयपु का वरह है, अ पतु पु का भी
वरह है।
तमसा : भ वत ता है।
सीता : उन पु को मेरे ज म दे ने का या लाभ आ, जनके मृ ल दशन-कुड् मल वाले
मधुर-अ फुट प से तुतलाते ए न य उ वल-मुख-कमल को, आयपु ने
नह चूमा।
तमसा : दे वता के साद से ऐसा हो गया।
सीता : भगवती तमसा, इस अप य सं मरण से अब मेरे तन से ध बहने लगा है और
ब च के पता के समीप होने पर म पुनः संसार म आई ई अपने को अनुभव
कर रही ँ।
तमसा : इस स ब ध म या कहा जाए? स तान नेह क पराका ा है। यह माता- पता
को पर पर सं करने वाली अ व छे थ है। अप य वह आन द- थ है,
जो द प त के अ तःकरण-त व को नेह-ब धन म बाँध दे ती है।
वास ती इधर भी आप दे खए। यह मोर अपनी वधू के साथ मुकुट क तरह शखा ऊँची
: करके, कद ब वृ पर नृ य कर रहा है, जसे य सखी सीता ने वयं त दन
बढ़ाया था। इसके पँख तब नए-नए ही नकले थे।
सीता : (कौतुक तथा नेहा ु के साथ) यह है वह।
राम : सान द रहो व स! आज हमारी वृ ई।
सीता : व तुतः ऐसा ही है।
राम : पु ! म तु ह अ छ तरह मरण करता ँ; जब तु ह यारी सीता, घूमती ई,
अपनी आँख को म डलाकार बना कर, चंचल ू-लता के इशार से, और
हाथ से ताली बजाती ई नृ य कराया करती थी। हाय, ये प ी भी नेह-स ब ध
क कस तरह र ा करते ह। इस कद ब वृ क , कुछ फूल के अंकुर फूटने के
बाद से, यतमा सीता ने पालना क थी...
सीता : (आँसु के साथ) आयपु ने ठ क पहचाना है।
राम : यह पवत का मोर इस वृ को दे वी के वजन- प म मरण करता आ, इस पर
मोद कर रहा है।
वास ती दे व यहाँ पर आसन हण कर।
:
[राम बैठ जाता है।]
वास ती यह वह शला-तल है, जस पर आप या के साथ बैठा करते थे। इस घने
: कदली-वन के म य म यह पूववत् व मान है। इसी पर बैठ कर सीता व य मृग
को घास खलाया करती थी और वे मृग नेहवश उसका साथ नह छोड़ते थे।
राम : इसे दे खना अस है। ( सरी तरफ मुँह करके रोता है)
सीता : स ख वास ती! यह तुमने या कया, आयपु को और मुझे तुमने य इस थान
का दशन कराया? हाय ध कार है। यह वही पंचवट वन है। वही य सखी
वास ती है। ये वही गोदावरी-तट के वन- दे श ह, ज ह ने हमारी णय-लीला
का सा य कया था। ये वही पूवप र चत हरण, प ी और वृ ह। पर तु ये सब
दखाई दे ते ए भी मुझ म दभा गनी के लए न होने के समान ह। मेरे लए सारा
संसार ही अभावमय हो गया है।
वास ती स ख सीते! रामभ क इस अव था को य नह दे खती? जो राम अपने
: कमल-स श कोमल अंग से हमारे नयनो सव को कया करता था और जो
नर तर दे खे जाने पर भी सदा नूतन ही तीत होता था, वह आज शोक के
कारण बल और पा डु छाया वाला आ- आ, शू य च ु स हत,
अनुमानमा से पहचाना जा रहा है। इस कृश- ीण अव था म भी यह कैसा
यारा लग रहा है?
सीता : स ख! म दे ख रही ँ।
तमसा : दे खो-दे खो। य को बार बार दे खो।
सीता : हा दै व! यह कसने स भावना क थी क यह मेरे बना और म इनके बना कभी
रह सकूँगी। तो णभर म वा प- वाह के बीच म ज म-ज मा तर म लभ दशन
वाले आयपु को आँख भर कर दे ख लेती ँ।
तमसा : (आ लगन करके, आँसु के साथ) स ख! यह तु हारी, आन द और शोक के
अ ु बहाती ई नेह- न प दनी ध-कु या के समान धवलता और
मधुरता से दयेश को न पत कर रही है। यह प मल और उ ान होती ई
कतने मु ध भाव से यतम को दे ख रही है।
वास ती आज ीराम वयं फर इस वन म आए ह। वृ ो! तुम पु प -फल और मधु ारा
: उ ह अ य दान करो। वन-पवन ! वक सत कमल का आमोद ले कर तुम
उनका वागत करो। प यो! तुम अनुरागमय क ठ ारा अ वरल मधुर गान
करो।
राम : आओ, स ख वास ती! इधर बैठ।
वास ती (बैठ कर, आँसु के साथ) कुमार ल मण तो कुशलपूवक ह?
:
राम : (अनसुनी करते ए) जन वृ , प य और ह रण का मै थली ने अपने हाथ
ारा जल, नीवार और श प दे कर पोषण कया था, उ ह दे ख कर मेरे च म
ऐसा कोई वकार उ प हो रहा है क मानो दय ही व बन कर बाहर नकल
रहा हो।
वास ती महाराज, म पूछती ँ क कुमार ल मण तो कुशलपूवक ह?
:
राम : ( दल म) ‘महाराज’! यह तो ेमशू य स बोधन है। केवल सौ म का ही कुशल
पूछा है और फर आँसु से इसक आँख भर गई ह। ऐसा तीत होता है क
इसे सीता का वृ ा त व दत हो चुका है। ( कट प म) हाँ, कुमार ल मण
कुशलपूवक ह।
वास ती (रोती है।) दे व, तुम अ त न ु र हो।
:
सीता : स ख वास ती! या तुम भी ऐसा ही मानती हो, आयपु तो सबके लए पूजाह
ह, वशेषतः तु हारे लए।
वास ती “तुम मेरा जीवन हो, तुम मेरा सरा दय हो, तुम मेरी आँख क चाँदनी हो, तुम
: मेरे अंग म अमृत हो” इ या द सैकड़ यारी बात से उस भोली सीता को बहका
करके फर तुमने उस भोलीभाली के साथ या कया? बस इस स ब ध म शा त
रहना ही उ चत है, अ धक कहने से या!
[मू छत हो जाती है।]
तमसा : वास ती क थान पर वा य- नवृ तथा मू छा ई है।
राम : स ख, आ ासन करो, आ ासन करो।
वास ती (आ त हो कर) आपने ऐसा अकाय य कया?
:
सीता : स ख वास ती, क जाओ।
राम : लोग नह सहन करते।
वास ती कस कारण?
:
राम : वही जानते ह क या कारण है?
तमसा : दे र के बाद यह उपाल भ दया गया है।
:
वास ती न ु र राम! य द तु ह यश ही यारा था, तो इससे बढ़ कर और या घोर अपयश
: हो सकता है? नाथ, कहो, उस मृगनयनी का जंगल म या आ होगा? तु हारा
या अनुमान है?
सीता : स ख वास ती! तुम कतनी दा ण और कठोर हो जो वलाप करते ए आयपु
को इस तरह अ धक ला रही हो।
तमसा : णय एवं शोक ही उससे ऐसा करा रहा है।
राम : स ख, मेरा या अनुमान है? म समझता ँ, मृगशावक के स श उ वल आँख
वाली, गभ-भार से थक कर गरी ई बचारी सीता का यो नामय, मृ मृणाल-
क प शरीर हसक जीव ने जंगल म अव य समा त कर दया होगा।
सीता : आयपु ! नह -नह , म अभी जी वत ँ। यह अभा गन अभी ाण धारण कए
ए है।
राम : हा य जानक , कहाँ हो!
सीता : हाय ध कार! आयपु तो सामा य जन के समान मु क ठ से वलाप कर रहे
ह!
तमसा : व से! यह उ चत ही है। ः खत य को ःख नवारण इसी तरह करना
होता है। जलाशय म अ धक जल भर जाने पर, उसका वाह कर दे ना ही
तकार होता है एवं शोक से दय के अ त ु ध होने पर, आँसू बहा कर ही उसे
शा त कया जा सकता है। वशेषतया रामभ के लए यह संसार अ त क दायी
है। उसे नी त के अनुसार धमत पर हो कर इस व क पालना करनी है। उस
पर यारी का शोक उसके कोमल च को इस तरह झुलसा रहा है, जैसे घाम
फूल को झुलसा दे ता है। या का प र याग उसने वयं कया इस लए वलाप
करना भी उसके लए क ठन है। आज रामभ को रोने का इस वन म अवसर
ा त होना लाभकारी ही है, इस कारण ाण धारण करना तो स भव होगा।
राम : हाय कतना क है। शोको े ग से मेरा दय फटा जा रहा है, पर तु दो टु कड़े नह
होता। मेरा शरीर मोह के कारण अ य त वकल हो रहा है, पर तु चेतनता-शू य
नह होता। अ दर-अ दर जलती ई आग मेरे अंग को द ध कर रही है, पर तु
पूणतया भ मसात् नह करती। दव मेरे मम थल पर हार कर रहा है। पर तु
जीवन-त तु को काट नह दे ता।
हे नगर- नवा सयो! य द सीता दे वी का घर म रहना तु ह अभी नह था, जब
मने उसे तृण-समान नजन वन म छोड़ दया तो तुमने उसके लए एक आँसू तक
नह बहाया; आज यारी के ये चरप र चत थान मेरे दय को वत कर रहे ह;
म अशरण हो कर वलाप कर रहा ँ—तुम स रहो।
वास ती ( दल म) शोक का यह अ त ग भीर उद्गार है। ( कट प म) दे व! वगत पर
: शोक करना वृथा है, धैय का अवल बन क जए।
राम : या कहती हो, धैय? आज संसार को दे वी से शू य ए- ए, बारह वष तीत हो
गए। उस बेचारी का नाम भी लु त हो गया, पर तु ऐसा नह क राम जी वत नह
है।
सीता : आयपु के इन य वचन से म म मु ध एवं खोई ई-सी अनुभव करती ँ।
तमसा : ऐसा ही है, व से, ये य वचन व तुतः नेहा पर तु अ त न ु र ह। ये वे मधु
धाराएँ बह रही ह, जो वष से भरी ई ह।
राम : स ख वास ती! जैसे लोहे का क ल तरछा छाती म खुब गया हो अथवा वषैला
दाँत अ दर गड़ गया हो, वैसे ही दय को छे दता आ और मम थल को काटता
आ ती शोक-शंकु या मने सहन नह कया?
सीता : म अब भी कतनी म दभा गनी ँ, जो आयपु के इस अस शोक का कारण
बन रही ँ।
राम : म अपने अ तःकरण के व ोभ का कतना भी संवरण कर रहा ,ँ पर तु आज
इन पूवप र चत व तु के पुनदशन से मुझे यह आवेग अ नवाय हो रहा है।
मयादा को तोड़ कर उमड़ते ए क णा- वाह के इस आवेग को रोकने के लए
जतना भी म य न करता ँ, उतना ही कोई चेतो वकार मेरे अ ततम को चीर
कर बाहर नकल आता है, जैसे जल का वाह रेतीले बा ध को चीर कर बाहर
नकल जाता है।
सीता : आयपु के इस दा ण ःख को दे ख कर मेरा अपना ःख न हो गया है और
मेरा दय न ेतन हो कर फटा जा रहा है।
वास ती ( दल म) हाय, ीराम अ य त शोकम न हो गए ह। ( कट प म) आप अब
: इधर अपनी चरप र चत पंचवट क इन व तृत भू मय को भी दे खए।
राम : हाँ, दे खता ँ। उठ कर घूमता है।
सीता : वास ती का यह दल बहलाने का उपाय, म समझती ,ँ ःख को अ धक
भड़काने वाला होगा।
वास ती हे दे व! यहाँ इस लता-गृह म तुम सीता क राह दे खते ए बैठे होते थे; जब वह
: गोदावरी-तीर पर हँस के साथ खेलती ई आने म दे र कर दे ती थी। आने पर वह
सीता, तु हारे मुख पर रोष क रेखा को दे खने के साथ ही, कातरतावश अपने
भोले कमल-कुड् मल-स श कर-युगल जोड़ दे ती थी और मा माँगती थी।
सीता : वास ती! तुम अ त न ु र हो जो इस कार ममभेद दय ावक वचन ारा मुझ
म दभा गनी का मरण आयपु को करा रही हो।
राम : अ य च ड जानक ! इधर-उधर दखाई दे रही हो, पर तु मेरे पर अनुक पा य
नही करती? हाय दे वी, मेरा दय फट रहा है, शरीर व त हो रहा है। मुझे सारा
जगत् सूना दखाई दे रहा है। म अ दर-ही-अ दर अ वरल वाला से जला जा
रहा ।ँ मेरी व ल आ मा घोर अ धकार म डू बी जा रही है। मू छा मुझे चार
तरफ से घेर रही है, हाय म अभागा या क ँ ?
[मू छत हो जाता है।]
सीता : हाय ध कार! फर आयपु मू छत हो गए।
वास ती दे व आ ासन क जए, आ ासन क जए।
:
सीता : आयपु ! मुझ म दभा गनी के कारण आपका जीवन, जो सम त व के
क याण के लए ा भूत आ है, इस तरह से संशय म पड़ गया है। हाय म मारी
गई। (मू छत हो जाती है)
तमसा : व से! आ ासन करो, आ ासन करो। फर तु हारा पा ण पश ही रामभ के
जीवन का एकमा उपाय है।
वास ती या अभी तक होश म नह आए। य स ख सीते! कहाँ हो, अपने ाणे र को
: पुनज वत करो।
[सीता ज द से समीप जाकर दय और म तक पर पश करती है।]
वास ती सौभा य से रामभ फर होश म आ गए ह।
:
राम : अहा, यह कैसा पश है जो मुझे अक मात् पुनज वत कर रहा है और अमृतमय
लेप ारा मेरे सम त शरीर को अ दर तथा बाहर ल त कर रहा है! यह पश तो
आन दा तरेक से मुझे फर मू छत कर रहा है। (आन द के साथ आँख खोल
कर) स ख वास ती, बधाई हो।
वास ती दे व, कैसी बधाई?
:
राम : स ख! और या? फर जानक मल गई।
वास ती दे व रामभ , वह कहाँ?
:
राम : ( पश-सुख का अ भनय करते ए) दे खो, यह सामने ही तो है।
वास ती दे व रामभ ! य मम छे द , दा ण लाप ारा य सखी क वप के ःख
: से जली ई मुझ म दभा गनी को तुम फर जलाते हो।
सीता : म हटना चाहती ँ। पर तु यह या, मेरा हाथ आयपु के पश से पकड़ा-सा
गया है और अपने थान से वच लत नह होता। यह पश चर नेह-स भार से
कतना शीतल है और मेरे द घ एवं दा ण स ताप को झट से हलका कर रहा है।
हाय, मेरा हाथ व से ता ड़त आ न े हो रहा है।
राम : स ख! यह लाप कैसा? जो हाथ, कंकण को धारण कया आ, मने ववाह-
सं कार के समय हण कया था और जो च मा क अमृत- श शर करण के
समान शीतल था...
सीता : आयपु अभी तो तुम वही हो।
राम : वही, ब कुल वही! लवली-लता के स श कोमल हाथ, मुझे अभी ा त आ है।
(पकड़ता है।)
सीता : हाय ध कार! आयपु के पश-मो हत हो जाने पर मेरे से ऐसा माद हो गया?
राम : स ख वास ती! म अब य- पश से आन द- वभोर हो रहा ँ। तुम भी मुझे
थोड़ा सहारा दो।
वास ती हाय, राम को कैसा च - व म हो रहा है।
:
[सीता झटके से हाथ छु ड़ा कर र हट जाती है।]
राम : हाय ध कार! कतनी असावधानी ई? मेरे काँपते ए, जड़ एवं वेदयु
हाथ से यारी का काँपता आ, जड़ एवं वेदयु हाथ छू ट गया।
सीता : हाय ध कार! अभी तक अ तवदना से पी ड़त दय को म थाम नह पा रही।
तमसा : ( नेह, उ सुकता तथा मत के साथ सीता को दे खती ई) यारी सीता का शरीर
यतम के सुख- पश से कस तरह रोमां चत तथा क पत हो रहा है। यह बेचारी
इस तरह वेद से सची जा रही है, जैसे कद ब वृ क शाखा वायु से े रत
तुषार-रा श ारा स चत हो जाती है।
सीता : ( दल म) म भगवती तमसा के स मुख परवश ई- ई, ल जा का पा बन रही
ँ। यह या वचार करती होगी क एक तरफ प र याग है और सरी तरफ इस
तरह पर पर आस है।
राम : (सब तरफ दे ख कर) हाय, सीता तो कह नह । न क ण वैदेही! तुम कहाँ हो?
सीता : सचमुच म न क ण ँ, जो ऐसी अव था म भी तु ह दे ख कर अभी तक जी वत
ँ।
राम : ये कहाँ हो? दे व कृपा करो। मुझे इस द न अव था म छोड़ना तु हारे लए
उ चत नह ।
सीता : आयपु ! तुम उ ट बात कह रहे हो। प र याग तो तुमने कया है।
वास ती दे व, अपने लोको र धैय से ही सीमा का उ लंघन कर शोक म म न ई आ मा
: को थामो। वह य स ख अब संसार म कहाँ।
राम : सचमुच अब नह है। नह तो वास ती उसे य न दे खती अथवा यह व ही हो।
पर तु म सोया आ तो नह ँ। राम को न द कहाँ? वही अनेक बार क पना को
कलु षत करने वाला म मुझे बार बार सता रहा है।
सीता : मने ही न ु र बन कर आयपु को ा त का शकार बनाया है।
वास ती दे व! दे खो-दे खो। जटायु ारा तोड़ा आ रावण का यह लोहे का रथ पड़ा है। ये
: सामने रथ के गदह के अ थमय कंकाल पड़े ह, जनके मुख पशाच के ह।
रावण यह पर अपनी तलवार से जटायु के पँख को काट कर सीता को उठा कर
इस तरह आकाश म चढ़ गया था, जैसे बादल अ दर बजली को धारण करके
ऊपर चढ़ जाता है।
सीता : (भय के साथ) आयपु बचाओ, बचाओ। तात जटायु मारा जा रहा है। मुझे भी
रावण हर कर ले जा रहा है।
राम : (वेग के साथ उठ कर) अरे पापी रावण, पता के ाण को हरने वाले और सीता
का अपहरण करने वाले, कहाँ जाओगे?
वास ती दे व, रा स-कुल का तो तुम वंस कर चुके हो। आज कौन तु हारे ोध का
: वषय अव श है?
सीता : ओहो म भी ा त म पड़ गई।
राम : अब का सीता- वयोग सवथा ही वल ण है। पहले तो मु धा ी का वयोग श ु
के न कर दे ने तक था। जगत् म उस अद्भुत रस वाले वीर के पर पर संघष के
बाद, वह वयोग तो समा त हो गया। तब उपाय के होने के कारण च को
सा वना ा त होती रही। वह वयोग कटु होते ए भी चुपचाप सहन करने यो य
था। पर तु अब का वयोग अव ध से र हत है, जो कभी समा त न होगा।
सीता : पूव वरह के बाद मेरा ब त स मान आ। पर तु वतमान वरह नरव ध है, यह
जान कर मेरा दय वद ण होता है।
राम : हाय ये! तुम उस थान पर प ँच गई हो, जहाँ सु ीव क म ता थ है।
वानर का परा म न योजन है। जा बवान् क कुशलता नरथक है। जहाँ
पवनपु क भी ग त नह । जहाँ व कमा का पु नल भी माग नह बना सकता
और जहाँ ल मण के बाण नह प ँच सकते।
सीता : पूव वरह म मेरा ब त आदर आ।
राम : स ख वास ती! अब म के लए राम का दशन ःख का ही हेतु है। म तु ह कब
तक लाता र ँगा। तो अब मुझे जाने क अनुम त दान करो।
सीता : (उ े ग तथा मोह के साथ तमसा को आ लगन करके) अब आयपु जाने लगे ह,
म या क ँ !
तमसा : व से जानक ! आ ासन करो, आ ासन करो। व ध तु हारे अनुकूल होगी।
चलो, हम दोन भी कुश-लव के वा षक मंगल-काय को स प करने के लए
भागीरथी नद पर जाएँ।
सीता : भगवती! थोड़ा ठहरो, म यतम को एक बार फर दे ख लूँ, उसका दशन फर
लभ हो जाएगा।
राम : मुझे अ मेध य के अनु ान के लए भी अब शी वा पस प ँचना है। उस य
म मेरी सहधमचा रणी भी होगी।
सीता : (कटा के साथ) आयपु , वह कौन है?
वास ती या, आपने पुन ववाह कर लया है?
:
राम : नह -नह । सीता क सुवण- तमा ही मेरी सहधमचा रणी होगी।
सीता : (द घ ास लेते ए, आँसु के साथ) आयपु , अब तुम अपने वा त वक
व प म हो। तुमने यह कह कर मेरे दय का काँटा नकाल दया।
राम : उस वण- तमा म ही, जा कर, अपनी आँख को तृ त करता ँ।
सीता : ध य है वह, जो इस तरह आयपु ारा ब त स मा नत क जा रही है। ध य है
वह, जो आयपु को इस तरह धारण करती ई जीव-लोक क आशा का आधार
बन गई है।
तमसा : (मु कराते ए, नेह स हत आ लगन करके) इस तरह अपनी ही तु त कर रही
हो।
सीता : (ल जा स हत) तुमने मेरा उपहास कया।
वास ती आपका यही समागम हमारी स ता का हेतु बना है। जाने के स ब ध म, जैसे
: भी काय क हा न न हो, वैसे ही आप क जए।
राम : ऐसा ही उ चत है।
सीता : वास ती ही मेरे तकूल हो गई। तमसा : व से, चलो चल। सीता : ऐसा ही कर।
तमसा : तुमसे इस जगह को छोड़ कर जाना कैसे हो सकेगा। तु हारी आँख तो यतम म
गड़ी ई ह। वे सतृ ण भाव से एकटक उसे दे ख रही ह। उनका स कष अ त कठोर य न
से ही रोका जा सकता है। सीता : पु या मा लोग से दशनीय आयपु के चरण-कमल म
मेरा नम कार है। (मू छत हो जाती है) तमसा : व से आ ासन करो। सीता : (आ त हो
कर) कब तक बादल के ढकने से पूण च मा का दशन रोका जा सकता है? तमसा :
आ य का वषय है क एक क ण रस ही न म भेद से भ हो कर पृथक्-पृथक् शृंगार
आ द रस का प धारण कर लेता है, जैसे जल-त व एक होता आ भी तरंग, बुदबु ् द और
आवत के प को धारण करता है। राम : वमानराज, इधर आइए। [सब उठते ह।]
तमसा और
वास ती : ( मशः सीता तथा राम के त) माता पृ वी, हमारे साथ गंगादे वी, वह कुलप त
मह ष वा मी क जो सव थम छ द का योग करने वाले ह और अ धती स हत गु व स ,
ये सब तु ह चुर मंगल दान कर। [सब बाहर चले जाते ह।] [तृतीय अंक समा त।]
चतुथ अंक
[नेप य म]
हे-हे सै नक , हमारा सहारा हो गया।
यह दे खो, हमारे यु का समाचार सुन कर, सुम ारा हाँके गए
वेगवान् घोड़ के रथ से, न नो त थान पर वच लत ई वजय-
पताका के साथ कुमार च केतु हमारी र ा के लए चले आ रहे ह।
[तब सुम सार थ स हत रथ ारा हाथ म धनुष पकड़े ए हष
तथा व मय के साथ च केतु वेश करते ह।]
च केतु : आय सुम , दे खो-दे खो!
यह कोई वीर कुमार यु म हमारी सेना पर तीर क अ वरल वषा
कर रहा है। इसका मुख ोध से कैसा लाल हो रहा है? दे खो, नर तर
धनुष क डोरी चढ़ाने से इसके सर पर हलता आ जूड़ा कैसा
शोभायमान हो रहा है।
दे खो-दे खो, कतना आ य है क अकेला ही यह मु नकुमार सह
हा थय के कपोल को अपने तीर से छे दता आ, ोध से धनुष क
घोर टं कार करता आ हमारी सेना म ऐसा भीषण अ नका ड
उप थत कर रहा है। यह तो मानो, हमारे इ वाकु-वंश के नाम को ही
म म मलाने चला है।
सुम : आयु मान्, इस ब चे के अ तमानव प को दे ख कर मुझे व ा म के
य म सुबा आ द रा स को मारने के लए, धनुष धारण कए ए
बाल रघुन दन का मरण आ रहा है।
च केतु : मुझे तो यह दे ख कर ल जा आ रही है क हमारे सह सौ नक
अकेले मु नकुमार का मुकाबला कर रहे ह।
दे खो न, हमारी सेनाएँ कस तरह हाथ म ज टल श को धारण कए
ई, झन-झन करते रथ पर भागती ई तथा हा थय क घटा को आगे
बढ़ाती ई, अकेले मु नकुमार को घेर कर खड़ी है।
सुम : व स, ये सब मल कर भी इस बालक के लए पया त नह ह। अलग-
अलग का तो या कहना।
च केतु : आय, ज द चलो, ज द चलो। इसने तो हमारी सेना का बड़ा संहार
आर भ कर दया है। यह दे खो, यह वीर तो गजते ए हा थय के कान
म, अपनी यंचा के तुमुल घोष से शूल उ प करता आ, भ-
नाद के बीच म, सारी यु -भू म को कटे ए शरःकपाल से आ तीण
कर रहा है और उ ह महाकराल काल के मुख म ास प म उप थत
कर रहा है।
सुम : ( दल म) म इस यदशन बालक के साथ यु करने के लए
च केतु को कैसे अनुम त ँ ? (सोच कर) अथवा, हम इ वाकु-कुल के
वृ पु ष ह। सर पर यु आ जाने पर, अब चारा भी या है?
च केतु : ( व मय, ल जा तथा ाकुलता के साथ) हाय, ध कार! मेरी सेनाएँ
मुँह फेर कर सब तरफ भागी जा रही ह!
सुम : (रथ को अ धक वेग से चला कर के) आयु मान्, यह ली जए, यह वीर
अब आपक वाणी का वषय बन गया है।
च केतु : (कुछ भूलते ए) आय, उस वीर का या नाम पुकारा गया है?
सुम : ‘लव’—यह नाम।
च केतु : हे-हे महाबालु लव, इन सै नक से तु ह या? यह म आ गया ।ँ मेरे
सामने आओ। तु हारा तेज मेरे पर ही शा त हो।
सुम : कुमार! दे खो-दे खो...
तुमसे बुलाया आ यह यकुमार, सेना के संहार से क गया है, जैसे ग वत
सह-शावक बादल क गजना सुन कर हा थय के संहार से क जाता है।
[तब धीरो त भाव से परा म द शत करता आ, लव वेश करता है।]
लव : राजपु ! तु हारा अ भन दन करता ँ। तुम इ वाकु-कुल- द प हो। इसी लए
शी ही तु हारे बुलाने पर उप थत हो गया ँ।
[नेप य म बड़ा शोर होता है।]
लव : (गव से घूम कर) अरे, हार कर भागे ए सै नक फर वा पस आकर मुझे घेरना
चाहते ह। ध कार है तुम कायर को! यह तु हारा उमड़ता आ सेना-समूह
ु ध समु के वड़वानल के समान च ड मेरे ोध क अ न का ास बने। यह
तु हारा चार तरफ उठता आ तुमुल कोलाहल लय-कालीन समु - वाह के
समान मेरे कोपानल म लीन हो जाए।
[वेग के साथ घूमता है।]
च केतु हे-हे कुमार! तुम इस अ यद्भुत गुणा तशय से मेरे य हो। तुम मेरे सखा हो।
: जो कुछ मेरा है, तु हारा है, तो य तुम अपने ही ब धु पर अ न-वषा कर रहे
हो। तु हारे वा भमान क परी ा क कसौट —म वयं च केतु तु हारे स मुख
उप थत ँ।
लव : (हष तथा शी ता से घूम कर) अरे, इस सूयवंशी तेज वी राजकुमार क वाणी
कतनी वीरता-भरी, ककश पर तु मधुर है। तो इन छोटे यो ा से या, इसी
एक शूरवीर से लोहा लेता ँ!
[नेप य म फर कोलाहल होता है।]
लव : ( ोध तथा वर के साथ) अरे, इन यो ा ने अब तक इस शूरवीर के
साथ ट कर लेने म व न ही डाला। (च केतु क तरफ बढ़ना आर भ करता
है।)
च केतु आय, इस मनोरम य को दे खए, यह राजकुमार कस कार गव से मेरे पर
: पात कर रहा है। पीछे -पीछे इसके सेना चली आ रही है। मेरे तथा सेना के
बीच म धनुष उठा कर खड़ा आ यह वीर इस तरह शोभा दे रहा है, जैसे
वषाकाल का बादल वायु से चंचल बनाया आ इ धनुष के साथ शोभा दे ता है।
सुम : आप ही ह, जो इस तेज वी कुमार को दे ख सकते ह। म तो सवथा आ य से
च कत ही हो रहा ँ।
च केतु रे-रे राजाओ! तुम असं य लोग ने हाथी, घोड़े और रथ पर बैठ कर, इस अकेले
: पैदल राजकुमार पर आ मण कया— ध कार है तु ह। तुम सब लोग ने लोहे
के कवच से अपने शरीर क र ा क ई है, इसने केवल मृगमच ओढ़ा आ
है। तुम सब आयु म इससे कतने बड़े हो। इस बुढ़ापे म तु ह वजय- या त क
कामना ई है जो ऐसा वषम यु तुमने इस कशोराव था के कुमार से छे ड़
रखा है! बार बार ध कार है तु ह। तु हारे इस न दनीय काय से वयं हम भी
ध कार है!
लव : ( हसा-भाव कट करते ह।) अरे मुझे बल समझ कर या यह मेरे पर
अनुक पा दखा रहा है! (वेग से वचार करके) सेनाएँ अभी पीछे चली आ रही
ह, तो समय बचाने के लए, म जृ भका चला कर इन सेना को यह खड़ा
कर दे ता ँ। ( यान का अ भनय करता है।)
सुम : यह या? सेना का कोलाहल एकदम ब द य हो गया?
लव : अ छा, तो अब इस राजकुमार से नपटता ।ँ
सुम : ( ाकुलता से) व स, ऐसा तीत होता है क इस कुमार ने जृ भका का
आ ान कया है।
च केतु इसम या स दे ह है? दे खो न कैसे अ धकार तथा काश का भयंकर म ण है?
: आँख को कैसा यह चकाच ध एवं हत बना रहा है। अरे, हमारी सेना केसी
न प द तथा च ल खत-सी खड़ी हो गई है। अव य ही जृ भका का अस
भाव सब दशा म फैल रहा है।
दे खो, आकाश म जृ भका कस तरह छाए जा रहे ह। कभी वे पाताल क
गुफा म पुंजीभूत घोर अ धकार के समान काले भीषण प म कट हो रहे ह
और कभी तपे ए ता बे के स श उ वल यो त से दे द यमान हो रहे ह।
दे खो, ये जृ भका लयकालीन बल वायु से मानो खदे ड़े ए आकाश म इस
तरह फैले जा रहे ह, जैसे व याचल के स मुख थत उतुंग शृंग अपने म लीन
बादल क कड़कती ई बज लय से इस व तृत आकाश म गूँजते ए दखाई
दे ते ह।
सुम : इन ब च को जृ भका कहाँ से ा त ए ह गे?
च केतु म समझता ँ, ये भगवान् वा मी क से ा त ए ह।
:
सुम : नह , जृ भका के स ब ध म ऐसा नह हो सकता। इनका ज म भृशा मु न
से आ। उनसे ये व ा म को ा त ए। व ा म ने इ ह ीराम म त त
कया।
च केतु पर तु इ ह अ य तपो न म ा मु न भी अपने तेज ारा उपा जत कर
: सकते ह।
सुम : व स! सावधान हो जाओ। यह कुमार यु के लए तु हारे स मुख उप थत हो
गया है।
दोन (एक- सरे के त) अहो, यह राजकुमार कतने यदशन वाला है? ( नेह तथा
कुमार : अनुराग से दे ख कर) हम दोन का यह दै वयोग से पर पर मलाप आ है, पर तु
ऐसा तीत होता है क हम दोन का कोई पूवज म का पुराना प रचय है अथवा
आ मीयता का कोई अ ात स ब ध है। इस कुमार के गुणा तशय को दे ख कर
मेरा दय परवश आ- आ खचा चला जा रहा है।
सुम : ायः ा णय म अकारण ही कसी क कसी म ी त हो जाती है। लोक-
वहार यही है क केवल आँख मलने से ही अनुराग उ प हो जाता है। ी त
व तुतः एक अ नवचनीय अनुभू त है। यह अहेतुक प पात है, जसका तकार
अस भव होता है। यह वह नेहा मक त तु है, जो ा णय के दय को एक सू
म सी दे ता है।
दोन (एक- सरे के त) इस कोमल एवं राजक य व से सुशो मत शरीर पर तीर
कुमार : कैसे फके जा सकते ह। मेरे अंग तो इससे आ लगन करने क अ भलाषा से
रोमां चत हो रहे ह।
पर तु, य-धम का पालन करने वाले क श - योग के सवाय और या
ग त है? वह श भी कैसा, जसे ऐसे वीर का सामना करना न मले? एक-
सरे पर अ उठा लेने के बाद म य द यु - वमुख होता ँ तो यह या कहेगा?
वीर का धम अ त कठोर है, वह नेह का पालन भी नह कर सकता।
सुम : (लव को दे खकर, आँसू बहाते ए, दल म) दय, य चंचल होते हो? और
अस भव क पना म य खोए जाते हो? यह सु दर कुमार राम का कैसे हो
सकता है? वधाता ने मनोरथ के बीज को पहले ही हर लया था। जब बेल ही
कट गई तो उस पर फूल क कैसी स भावना?
च केतु आय सुम ! म रथ से उतरता ँ।
:
सुम : कस लए?
च केतु एक तो ऐसा करने से इस वीर राजकुमार के त मेरा आदर का शत होगा और
: सरे, य-धम का पालन भी हो जाएगा। शा के अनुसार रथारोही को
पैदल पर आ मण नह करना चा हए।
सुम : ( दल म) यह तो अ त दा ण थ त है। म इस य चत मयादा का कैसे
तषेध कर सकता ँ और इस ःसाहस क अनुम त भी कैसे दे सकता ँ।
च केतु आय! आप या वचार कर रहे ह? संशय होने पर पता जी आपसे परामश
: करते ह, तो आप मुझे उ चत म णा य नह दे ते?
सुम : व स! तुमने धम-मयादा के अनुकूल ही कथन कया है। यही सं ाम
यायानुमो दत सनातन धम है। यही रघुवंशी वीर यो ा का स च र है।
च केतु आपका यह वचन सवथा उपयु है। आप धम, इ तहास तथा पुराण के
: त ववे ा ह। आप रघुकुल-मयादा के भी वशेष ाता ह।
सुम : व स! इ जत को जीतने वाले, तु हारे पता के उ प ए अभी कतने दन ए
ह? मुझे यह दे खकर अपार हष होता है क उसक स तान भी आज य-धम
का पालन कर रही है। दशरथ के कुल को इस कार त त आ दे ख कर
मेरा दय फूला नह समाता।
च केतु ( ःख के साथ) ये पता के अभी तक अ त त रहने पर हमारे कुल क
: कैसी त ा? बाक तीन पता यही च ता करके सदा स त त रहते ह।
सुम : व स! ये तु हारे वचन सचमुच दय को वद ण करने वाले ह।
लव : ेम तथा वीर रस का यह कोई अद्भुत म ण हो रहा है। एक तरफ मेरी
इस कुमार को दे ख कर इस तरह आन द- वभोर हो रही है, जैसे कम लनी
च मा को दे ख कर होती है, सरी तरफ मेरी भुजा धनुष के या- च ह से
अं कत ई- ई, टं कार म ी त रखती ई, इससे यु करने को लाला यत हो
रही है।
च केतु (रथ से उतरते ए) आय! यह म इ वाकु-वंशीय च केतु आपका अ भवादन
: करता ँ।
सुम : श ु के पराभव के लए, तुम महा वराहावतार क मता धारण करो। तु हारे
वंश का गु सूय भगवान् यु म तु ह वजय दान करे। म -व ण दे वता
का तु ह आशीवाद ा त हो। इ , व णु, अ न, वायु एवं सुपण (ग ड़) का
ओज तु ह बलवान् बनाए। राम-ल मण के धनुष का या-घोष तु ह वजयी
करे।
लव : आप रथ पर बैठे ए ब त शोभा दे ते ह। अ यादर दखाने क आव यकता नह ।
च केतु तो आप भी कसी रथ पर आ ढ़ हो जाएँ।
:
लव : आय! आप राजकुमार को रथ पर अ ध त कर द जए।
सुम : आप ही च केतु के अनुरोध को वीकार कर ली जए।
लव : अपने रथ के योग म या आप हो सकती है। पर तु हम वनवा सय को रथ
पर बैठ कर यु करने का अ यास नह ।
सुम : व स! तुम वा भमान एवं सौज य के सदाचरण को अ छ तरह जानते हो। य द
इ वाकु-राजा ीराम तु ह इस अव था म दे ख ल, तो उनका दय वत हो
जाए।
लव : हाँ, सुना है क वह राजा अ य त स दय है। (ल जा के साथ) य द हम व तुतः
उस महापु ष के इस तरह ेमभाजन ह, और य द वे अपने गुण ारा सब
जाजन के इस तरह य ह, तो मेरा महाराज क स ा का वरोध करना
सवथा अनु चत है। पर तु अ र क का इस तरह सम त य को नरादर से
ललकारना मेरे ोध को च ड करने का कारण बना। इसी लए मने वरोध
करना आर भ कया।
च केतु या आपको हमारे पू य पता के तापो कष पर भी ोध आता है?
:
लव : व तुतः मेरा ोध अनु चत है। पर तु एक बात पूछता ँ। हमने सुना है क
रघुराज सवथा अनहंकार ह। न वे वयं अहंकार करते ह, न उनक जा अहंकार
करती है। तो उनके ये लोग य रा सी वाणी बोल रहे थे?
ऋ षय का कथन है क रा सी वाणी का योग उ म लोग करते ह अथवा
त लोग। यह रा सी वाणी सब वैर-भावना क मूल होती है। इससे लोग म
तशोध क वाला द त होती है। सब लोग इस वाणी क न दा करते ह और
सरी वाणी क शंसा करते ह।
यह सरी सूनृता वाणी कामधेनु के समान सब कामना को हती है, अल मी
को र करती है, क त का सार करती है और दय वाल क ता का
नाश करती है। यह सुनृता वाणी शु , शा त एवं सब मंगल क जननी होती है।
सुम : वा मी क मु न का यह श य कुमार लव अपने सहज सं कार-वश, अपमान
अनुभव करते ए, ऐसा ोध कर रहा है।
लव : भाई च केतु! तुमने या कहा क मुझे तु हारे पू य पता के तापो कष पर
य ोध आता है? म पूछता ँ क या य व केवल उ ह म ही सी मत हो
चुका है?
च केतु तुम इ वाकु-कुल- शरोम ण ीराम को नह जानते, तभी ऐसी बात करते हो।
: अब अ धक ववाद क आव यकता नह । तुमने हमारे सै नक का मुकाबला
करके सचमुच ओज वता का दशन कया है, पर तु परशुराम के भी वजेता
ीराम के स ब ध म ऐसा नरथक लाप मत करो।
लव : (हँसते ए) वह महाराज परशुराम के भी वजेता ह, इसम ड ग मारने क या
बात है? ा ण का बल तो केवल वाणी म होता है। बा बल तो य म
माना जाता है। य द ा ण परशुराम ने श हण कर लया और उसे तु हारे
महाराज ने परा जत कर दया, तो इसम तु त क या बात है?
च केतु ( ोध के साथ) आय सुम ! इस उ र- यु र से बस! यह कोई नया ही अब
: पु षावतार उ प आ है, जसके लए भृगुन दन परशुराम भी वीर नह ह। यह
तो पू य पता जी के पावन च र को भी तु छ मानता है, जससे सात भुवन
को अभय-दान ा त आ है।
लव : कौन रघुप त के च र व म हमा को नह जानता, तुमने कुछ और बतलाना है?
वृ के च र पर वचार नह करना ही अ छा है, हाँ, सब कोई जानता है क
ताड़का के मारने म ीराम ने कतनी वीरता दखाई थी और संसार म कतना
यश कमाया था? खर- षण से यु करते ए, कतनी कुशलता से उ ह ने अपने
पग पीछे हटा लए थे? बा ल का वध करते समय भी उ ह ने जो नपुणता
दखाई थी उससे भी सब लोग प र चत ह।
च केतु अरे, पता क न दा करने वाले! तुम तो मयादा का उ लंघन करने लग गए हो,
: तुम छोटे मुँह बड़ी बात कर रहे हो!
लव : अरे, मेरी और भृकुट तान कर य दे खते हो?
सुम : दोन का ोध द त हो गया है। ोध के कारण दोन के केश चंचल हो रहे ह
और सम त शरीर काँप रहा है। आँख र कमल-प के समान लाल हो रही ह।
भृकु टय के तन जाने से दोन के मुख लांछन स हत च मा तथा मर-चु बत
कमल क का त को धारण कर रहे ह।
लव : कुमार, कुमार! आओ-आओ! यु -भू म म उतर कर नणय करते ह।
[सब चले जाते ह।]
[पंचम अंक समा त]
ष अंक