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सू के िस भा कार
1. बाद र- सू म आचाय बाद र का चार बार उ े ख आया है । . सू 1.2.30, 3.1.11, 4.3.7, 4.4.
10) । साथ ही पूवमीमां सासू ों म भी इनकी चचा उपल होती है । हम अनु मान करते ह िक पूव और
उ र दोनों मीमां साओं पर इनकी रचना अव रही होगी, जो आज उपल नही ं है । इनके मत का सं ेप
िन िल खत है
का स है । ुित कािशका के कता सुदशनाचाय ने िलखा है िक परवत काल यादव काश ने भी इसे
स ु िकया है । मीमां सादशन 6.5.16 म भी इनका नामो े ख िमलता है ।
1. भतृ प -भतृ प अपने समय के एक मुख मीमां सक थे। इ ोंने दाशिनक पृ भू िम म अपने
' ै ता ै त' िस ा की थापना की है । श राचाय ने अपने बृहदार कभा म जगह-जगह पर इ
'औपिनष ' कह कर इनका प रहास िकया है । इ ोंने कठोपिनषद् और बृहदार क पर अपने
िविश भा की रचना की है । सुरे राचाय और आन िग र ने भी इनकी उपल कृित की चचा की
है । इनके िस ा को लोग ' ानकमसमु यवाद' के नाम से जानते ह।
2. भतृिम -ये एक िविश कमका - वतक थे। इनके मीमां सा ों िववेचन िकया जा चुका है । इनकी
अ कृितयों के स भ म ायम री और यामनाचा के िस यमउ े ख िमलता है । वे दा िवचारक
भतृ िम एक ात वेदा ी थे।
3. भतृह र-इ ाय: सभी िव ान् तो जानते ही ह। भारतीय जन-सामा म भी ये राजा भरथरी के नाम
से िव ात ह। इनकी मुख रचना 'वा पदीय' है , िजसम शल वाद का ितपादन िकया गया है ।
इनके अनुसार श ही है , जो अ ै त प है ।
आचाय गौडपाद
योगवािस
भोगाभवमहारोगा ृ ा मृगतृ काः (1.26.10) । मनु की िववशता है , उसका मोह। मुिन विस ने
हमारे सामने जो दशन का यथाथ आदश ु त िकया है , वह अिधकतर ानपरक न होकर िववेकबु परक
आ ै व आ नो ब ुरा ैव रपुरा नः ।
आ ा ना न चे ात दु पायोऽ नेतरः ।।
शा र अ ै त वे दा
1. भा ,
2. ो और
3. कीण समूह।
श र अितमानव (Super human) थे। अत: उनकी रचना को उ ेष म म बाँ धा नही ं जा सकता। काल
के मिवकास से यह बाहर है । यह केवल है । गीता की एक सू है -
यही कारण है िक किपल, कणाद और गौतम को ये वै िदक आ थास महिष तो मानते ह, पर इनकी
कृितयों मश:–सां , वैशेिषक और ायशा को वैिदक दशन नही ं मानते । इ ोंने श ों म
कहा है िक हो सकता है िक ार क अव था म सां ई रवादी हो, उपिनषद् पर आधा रत हो; पर
आगे चल कर इसके िच न का प कुछ और हो गया। इस प का ख न महिष बादरायण ने
अपने ' सू ' म तथा श र ने अपने भा म जम कर िकया। श र ने सां को वे दा का ‘ धानम '
अथात् मुख ित ी कहा है । यं म इ ोंने उसे ुित ितकूल िस िकया है । य िप वे दा ने सां
के ब त सारे त ों को या तो उसी प म या पा रत कर आ सात् कर िलया है ; िफर भी शं कर ने
उसका िवरोध कर अपने अ ै त वेदा का ित ापन िकया है ।