You are on page 1of 27

मं का अ धप त "ओउ्म्" का व प

ओ३म् (ॐ) या कार का नामा तर णव है। यह


ई र का वाचक है। ई र के साथ कार का वा य-
वाचक-भाव स ब न य है, सांके तक नह । संकेत
न य या वाभा वक संबंध को कट करता है। सृ के
आ द म सव थम कार पी णव का ही ु रण
होता है। तदनंतर सात करोड़ मं का आ वभाव होता
है। इन मं के वा य आ मा के दे वता प म स ह।
ये दे वता माया के ऊपर व मान रह कर मा यक सृ
का नयं ण करते ह। इन म से आधे शु मायाजगत् म
काय करते ह और शेष आधे अशु या म लन मा यक
जगत् म। इस एक श द को ांड का सार माना जाता
है, 16 ोक म इसक म हमा व णत है।[1]

दे वनागरी म ॐ
ॐ-आकार म गणेश का च

क ड म ओ३म

त मळ म ओम
मलयालम म ओ३म

ओम त बती म ओ३म

गु मुखी म 'एक कार'


बाली भाषा म कार

प रचय
ा त के लए न द व भ साधन म
णवोपासना मु य है। मु डकोप नषद् म लखा है:

णवो धनु:शरो ा मा त ल यमु यते।


अ म ेन वे ं शरव मयो भवेत् ॥
कठोप नषद म यह भी लखा है क आ मा को अधर
अर ण और कार को उ र अर ण बनाकर मंथन प
अ यास करने से द ान प यो त का आ वभाव
होता है। उसके आलोक से नगूढ़ आ मत व का
सा ा कार होता है। ीम गव ता म भी कार को
एका र कहा है। मांडू योप नषत् म भूत, भवत् या
वतमान और भ व य– काल– कारा मक ही कहा
गया है। यहाँ काल से अतीत त व भी कार ही कहा
गया है। आ मा अ र क से कार है और मा ा
क से अ, उ और म प है। चतुथ पाद म मा ा नह
है एवं वह वहार से अतीत तथा पंचशू य अ ै त है।
इसका अ भ ाय यह है क कारा मक श द और
उससे अतीत पर दोन ही अ भ त व ह।

वै दक वा य के स श धमशा , पुराण तथा आगम


सा ह य म भी कार क म हमा सव पाई जाती है।
इसी कार बौ तथा जैन स दाय म भी सव कार
के त ा क अ भ दे खी जाती है। णव श द
का अथ है– कषणनूयते तूयते अनेन इ त, नौ त
तौ त इ त वा णव:।

णव का बोध कराने के लए उसका व ेषण


आव यक है। यहाँ स आगम क या के
अनुसार व ेषण या का कु छ द दशन कराया जाता
है। कार के अवयव का नाम है–अ, उ, म, ब ,
अधचं रो धनी, नाद, नादांत, श , ा पनी या
महाशू य, समना तथा उ मना। इनम से अकार, उकार
और मकार ये तीन सृ , त और संहार के सपादक
ा, व णु तथा के वाचक ह। कारांतर से ये
जा त्, व और सुषु त तथा ूल, सू म और कारण
अव ा के भी वाचक ह। ब तुरीय दशा का ोतक
है। लुत तथा द घ मा ा का तकाल मश:
सं त होकर अंत म एक मा ा म पयव सत हो जाता
है। यह व वर का उ ारण काल माना जाता है। इसी
एक मा ा पर सम व त त है। व त भू म से
एका भू म म प ँचने पर णव क इसी एक मा ा म
त होती है। एका से नरोध अव ा म जाने के लए
इस एम मा ा का भी भेद कर अधमा ा म व आ
जाता है। त परांत मश: सू म और सू मतर मा ा
का भेद करना पड़ता है। ब अधमा ा है। उसके
अनंतर येक तर म मा ा का वभाग है। समना
भू म म जाने के बाद मा ाएँ इतनी सू म हो जाती ह क
कसी योगी अथवा योगी र के लए उसके आगे बढ़वा
संभव नह होता, अथात् वहाँ क मा ा वा तव म
अ वभा य हो जाती है। आचाय का उपदे श है क इसी
ान म मा ा को सम पत कर अमा भू म म वेश
करना चा हए। इसका थोड़ा सा आभास मांडू य
उप नषद् म मलता है।
ब मन का ही प है। मा ा वभाग के साथ-साथ मन
अ धका धक सू म होता जाता है। अमा भू म म मन,
काल, कलना, दे वता और पंच, ये कु छ भी नह रहते।
इसी को उ मनी त कहते ह। वहाँ वयं काश
नरंतर काशमान रहता है।

योगी सं दाय म व द तं के अनुसार कारसाधना


का एक म च लत है। उसके अनुसार "अ" सम
ूल जगत् का ोतक है और उसके ऊपर त
कारणजगत् का वाचक है मकार। कारण स लल म
वधृत, ूल आ द तीन जगत के तीक अ, उ और म
ह। ऊ व ग त के भाव से श दमा ा का मकार म
लय हो जाता है। तदनंतर मा ातीत क ओर ग त होती
है। म पयत ग त को अनु वार ग त कहते ह। अनु वार
क त ा अधमा ा म वसग प म होती है। इतना होने
पर मा ातीत म जाने के लए ार खुल जाता है। व तुत:
अमा क ग त ब से ही ारंभ हो जाती है।

तं शा म इस कार का मा ा वभाग नौ नाद क


सू म योगभू मयां के नाम से स है। इस संग म यह
मरणीय है क ब अशेष वे के अभेद ान का ही
नाम है और नाद अशेष वाचक के वमशन का नाम है।
इसका ता पय यह है क अ, उ और म णव के इन तीन
अवयव का अ त मण करने पर अथत व का अव य
ही भेद हो जाता है। उसका कारण यह है क यहाँ योगी
को सब पदाथ के ान के लए सव व ा त हो जाता
है एवं उसके बाद ब भेद करने पर वह उस ान का भी
अ त मण कर लेता है। अथ और ान इन दोन के
ऊपर के वल नाद ही अव श रहता है एवं नाद क
नादांत तक क ग त म नाद का भी भेद हो जाता है। उस
समय के वल कला या श ही व मान रहती है। जहाँ
श या चत् श ा त हो गई वहाँ का
काशमान होना वत: ही स है।

इस कार णव के सू म उ ारण ारा व का भेद


होने पर व ातीत तक स ा क ा त हो जाती है।
व ं द तं म यह दखाया गया है क ऊ व ग त म
कस कार कारण का प र याग होते होते अखंड
पूणत व म त हो जाती है। "अ" ा का वाचक है;
उ ारण ारा दय म उसका याग होता है। "उ" व णु
का वाचक ह; उसका याग कं ठ म होता है तथा "म"
का वाचक है ओर उसका याग तालुम य म होता है।
इसी णाली से ं थ, व णु ं थ तथा ं थ का
छे दन हो जाता है। तदनंतर ब है, जो वयं ई र प है
अथात् ब से मश: ऊपर क ओर वा यवाचक का
भेद नह रहता। ूम य म ब का याग होता है। नाद
सदा शव पी है। ललाट से मूधा तक के ान म उसका
याग करना पड़ता है। यहाँ तक का अनुभव ूल है।
इसके आगे श का ा पनी तथा समना भू मय म
सू म अनुभव होने लगता है। इस भू म के वा य शव ह,
जो सदा शव से ऊपर तथा परम शव से नीचे रहते ह।
मूधा के ऊपर शनुभू त के अनंतर श का भी याग
हो जाता है एवं उसके ऊपर ा पनी का भी याग हो
जाता है। उस समय के वल मनन मा प का अनुभव
होता है। यह समना भू म का प रचय है। इसके बाद ही
मनन का याग हो जाता है। इसके उपरांत कु छ समय
तक मन के अतीत वशु आ म व प क झलक द ख
पड़ती है। इसके अनंतर ही परमानु ह ा त योगी का
उ मना श म वेश होता है।

इसी को परमपद या परम शव क ा त समझना चा हए


और इसी को एक कार से उ मना का याग भी माना
जा सकता है। इस कार ा से शवपय त छह कारण
का उ लंघन हो जाने पर अखंड प रपूण स ा म त
हो जाती है।

ॐ तक, वजयवाडा कनका गा मं दर

कार
नानक य कहते ह …

गु नानक जी का श द एक कार सतनाम ब त


च लत तथा श तशत स य है। एक कार ही स य
नाम है। राम, कृ ण सब फलदायी नाम कार पर
न हत ह तथा कार के कारण ही इनका मह व है।
बाँक नाम को तो हमने बनाया है परंतु कार ही है जो
वयंभू है तथा हर श द इससे ही बना है। हर व न म
ओउ्म श द होता है।[2]

मह व तथा लाभ …

ओउ्म तीन श द 'अ' 'उ' 'म' से मलकर बना है जो दे व


ा, व णु और महेश तथा लोक भूभुव: व:
भूलोक भुव: लोक तथा वग लोक का तीक है।[3]

लाभ …

प ाशन म बैठ कर इसका जप करने से मन को शां त


तथा एका ता क ा त होती है, वै ा नक तथा
यो त षय को कहना है क ओउ्म तथा एका री
मं [4] का पाठ करने म दाँत, नाक, जीभ सब का उपयोग
होता है जससे हाम नल ाव कम होता है तथा ं थ
ाव को कम करके यह श द कई बीमा रय से र ा तथा
शरीर के सात च (कुं ड लनी) को जागृत करता है।[5]

ववेचना
त य वाचकः णवः
उस ई र का वाचक णव 'ॐ' है।
अ रका अथ जसका कभी रण न हो। ऐसे तीन
अ र — अ उ और म से मलकर बना है ॐ। माना
जाता है क स ूण ा डसे सदा ॐ क वनी नसृत
होती रहती है। हमारी और आपके हर ास से ॐ क ही
व न नकलती है। यही हमारे-आपके ास क ग त को
नयं त करता है। माना गया है क अ य त प व और
श शाली है ॐ। कसी भी मं से पहले य द ॐ जोड़
दया जाए तो वह पूणतया शु और श -स हो
जाता है। कसी दे वी-दे वता, ह या ई र के मं के
पहले ॐ लगाना आव यक होता है, जैसे, ीराम का मं
— ॐ रामाय नमः, व णु का मं — ॐ व णवे नमः,
शव का मं — ॐ नमः शवाय, स ह। कहा जाता
है क ॐ से र हत कोई मं फलदायी नह होता, चाहे
उसका कतना भी जाप हो। मं के प म मा ॐ भी
पया त है। माना जाता है क एक बार ॐ का जाप हज़ार
बार कसी मं के जाप से मह वपूण है। ॐ का सरा
नाम णव (परमे र) है। "त य वाचकः णवः" अथात्
उस परमे र का वाचक णव है। इस तरह णव अथवा
ॐ एवं म कोई भेद नह है। ॐ अ र है इसका
रण अथवा वनाश नह होता।

छा दो योप नषद् म ऋ षय ने गाया है -


ॐ इ येतत् अ रः (अथात् ॐ अ वनाशी, अ य एवं
रण र हत है।)
ॐ धम, अथ, काम, मो इन चार पु षाथ का दायक
है। मा ॐ का जप कर कई साधक ने अपने उ े य क
ा त कर ली। कोशीतक ऋ ष न संतान थे, संतान
ा तके लए उ ह ने सूयका यान कर ॐ का जाप
कया तो उ हे पु ा त हो गई।

गोपथ ा ण म उ लेख है क जो "कु श" के


आसन पर पूव क ओर मुख कर एक हज़ार बार ॐ
पी मं का जाप करता है, उसके सब काय स हो
जाते ह।

स य त अ य अथाः सवकमा ण च
ीम ागवत् म ॐ के मह व को कई बार रेखां कत
कया गया है। इसके आठव अ याय म उ लेख मलता
है क जो ॐ अ र पी का उ ारण करता आ
शरीर याग करता है, वह परम ग त ा त करता है।

ॐ अथात् ओउम् तीन अ र से बना है, जो सव व दत


है। अ उ म्। "अ" का अथ है आ वभाव या उ प होना,
"उ" का ता पय है उठना, उड़ना अथात् वकास, "म" का
मतलब है मौन हो जाना अथात् " लीन" हो जाना। ॐ
स ूण ा ड क उ प और पूरी सृ का ोतक है।
ॐ म यु "अ" तो सृ के ज म क ओर इं गत करता
है, वह "उ" उड़ने का अथ दे ता है, जसका मतलब है
"ऊजा" स होना। कसी ऊजावान मं दर या
तीथ ल जाने पर वहाँ क अगाध ऊजा हण करने के
बाद व म वयं को आकाश म उड़ता आ
दे खता है। मौन का मह व ा नय ने बताया ही है।
अं जी म एक उ है — "साइलस इज़ स वर ऍ ड
ऍ स यूट साइलस इज़ गो "। ी गीता जी म परमे र
ीकृ ण ने मौन के मह व को तपा दत करते ए वयं
को मौनका ही पयाय बताया है —

मौनं चैवा म गु ानां


"यान ब प नषद्" के अनुसार ॐ म क वशेषता
यह है क प व या अप व सभी तय म जो इसका
जप करता है, उसे ल य क ा त अव य होती है। जस
तरह कमल-प पर जल नह ठहरता है, ठ क उसी तरह
जप-कता पर कोई कलुष नह लगता।

तै रीयोप नषद श ाव ली अ मोऽनुवाकः म ॐ के


वषय म कहा गया हैः-

ओमत । ओ मतीदँ सवम् ।


ओ म येतदनुकृ तह म वा अ यो ावये या ावय त
। ओ म त सामा न गाय त ।
आशो म त श ा ण शँस त । ओ म य वयुः तगरं
तगृणा त । ओ म त ा सौ त ।
ओ म य नहो मनुजाना त ।
ओ म त ा णः व य ाह ोपा वानी त
ैवोपा ो त ॥ १ ॥
अथातः- ॐ ही है। ॐ ही यह य जगत् है। ॐ
ही इसक (जगत क ) अनुकृ त है। हे आचाय! ॐ के
वषय म और भी सुनाएँ। आचाय सुनाते ह। ॐ से
ार करके साम गायक सामगान करते ह। ॐ-ॐ
कहते ए ही श प म पढ़े जाते ह। ॐ से ही
अ वयु तगर म का उ ारण करता है। ॐ कहकर
ही अ नहो ार कया जाता है। अ ययन के समय
ा ण ॐ कहकर ही को ा त करने क बात
करता है। ॐ के ारा ही वह को ा त करता है।

सव वेदा य पदमामन त
तपाँ स सवा ण च य द त ।
य द तो चय चर त
त े पदँ सं हेण वी यो म येतत् ॥ १५ ॥ --
(कठोप नषद, अ याय १, व ली २),

अथातः- सारे वेद जस पद का वणन करते ह, सम त


तप को जसक ा त के साधक कहते ह, जसक इ ा
से (मुमु ुजन) चय का पालन करते है, उस पद को
म तुमसे सं ेप म कहता ँ। ॐ यही वह पद है।

ऋ भरेतं यजु भर त र ं
साम भय कवयो वेदय ते।
तम कारेणैवायतनेना वे त व ान्
य ा तमजरममृतमभयं परं चे त॥ ७॥ -- (
ोप नषद ५, ोक ७),
अथातः- साधक ऋ वेद ारा इस लोक को, यजुवद ारा
आ त र को और सामवेद ारा उस लोक को ा त
होता है जसे व जन जानते ह। तथा उस ंकार प
आल बन के ारा ही व ान् उस लोक को ा त होता है
जो शा त, अजर, अमर, अभय एवं सबसे पर ( े ) है।

णवो धनुः शरो ा मा त ल यमु यते।


अ म ेन वे ं शरव मयो भवेत॥ -- (
मु डकोप नषद्, मुन डक २, ख ड २, ोक-४)
अथातः- णव धनुषहै, (सोपा धक) आ मा बाण है और
उसका ल य कहा जाता है। उसका सावधानी पूवक
बेधन करना चा हए और बाण के समान त मय हो जाना
चा हए।। ४।।

ओ म येतद र मदं सव त योप ा यानं भूत,


भव द व य द त सवम ंकार एव।
य ा य कालातीतं तद य कार एव॥ १॥ --
(मा डू योप नषद, गौ० का० ोक १)

अथातः-ॐ यह अ र ही सब कु छ है। यह जो कु छ भूत,


भ व यत् और वतमान है उसी क ा या है; इस लये
यह सब कार ही है। इसके सवा जो अ य
कालातीत व तु है वह भी कार ही है।

सोऽयमा मा य रम कारोऽ धमा ं पादा मा ा मा ा


पादा अकार उकारो मकार इ त।। ८।। --
(मा डू योप नषद् आ० ० गौ०का० ोक ८)

वह यह आ मा ही अ र से ंकार है; वह मा ा
का वषय करके त है। पाद ही मा ा है और मा ा ही
पाद है; वे मा ा अकार, उकार और मकार ह।

सनातन धम ही नह , भारत के अ य धम-दशन म भी ॐ


को मह व ा त है। बौ -दशन म "म णप े म" का
योग जप एवं उपासना के लए चुरता से होता है। इस
मं के अनुसार ॐ को "म णपुर" च म अव त माना
जाता है। यह च दस दल वाले कमल के समान है। जैन
दशन म भी ॐ के मह व को दशाया गया है। महा मा
कबीर नगुण स त एवं क व थे। उ ह ने भी ॐ के मह व
को वीकारा और इस पर "सा खयाँ" भी लख —

ओ कार आ द म जाना।
ल ख औ मेट ता ह ना माना ॥
ओ कार लखे जो कोई।
सोई ल ख मेटणा न होई ॥
गु नानक ने ॐ के मह वको तपा दत करते ए
लखा है —

ओम सतनाम कता पु ष नभ नवर अकालमूत


यानी ॐ स यनाम जपनेवाला पु ष नभय, बैर-र हत
एवं "अकाल-पु ष के " स श हो जाता है।
"ॐ" ा ड का नाद है एवं मनु य के अ तर म त
ई र का तीक।

स दभ
1. 16 ोक म म हमा।
2. एक कार सतनाम
3. दे व तथा ैलो य का तीक।
4. ओउ्म, यं, रं, वं, सं, शं, षं, हं, फट् आ द
जसम अं
क मा ा का उपयोग हो वह मं एका री मं
होता है।
5. कार के लाभ
बाहरी क ड़याँ
ॐ : मानवता का सबसे बड़ा धन
धम म ॐ उ ारण का मह व
Aum in the Upanishads, Bhagavad Gita,
and Yoga Sutras Archived 18 दस बर
2007 at the वेबैक मशीन.
About.com on Aum in Hinduism
Improbable research: The repetitive
physics of Om

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=ॐ&oldid=5056822" से लया गया

Last edited 1 month ago by InternetArchiveBot

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

You might also like