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20 00:37]
#ॐ_उच्चारण_प्रतिदिन_क्यों_करें ?
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(सष्टि
ृ के प्रारं भ में ॐ की ध्वनि ही गँूजी थी। साढ़े तीन अक्षरों से बना यह परमात्मा का नाम, मंत्रों का अधिपति है ।
यही वह स्वरूप है जिसका सष्टि
ृ के प्रारम्भ के लिए उद्भव हुआ। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ॐ की
ध्वनि निसत
ृ होती रहती है । हमारी और आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है । यही हमारे -आपके श्वास
की गति को नियंत्रित करतती है ।
यह ॐ शब्द 'अ' 'उ' 'म' से मिलकर बना है जो त्रिदे व ब्रह्मा, विष्णु और महे श तथा त्रिलोक भर्भु
ू व: स्व: भल
ू ोक भव
ु :
लोक तथा स्वर्ग लोक का प्रतीक है । ॐ सिर्फ एक पवित्र ध्वनि ही नहीं, बल्कि अनन्त शक्ति का प्रतीक है । अ का
मतलब होता है उत्पन्न होना, उ का मतलब होता है उठना यानी विकास और म का मतलब होता है मौन हो जाना
यानी कि ब्रह्मलीन हो जाना। जो भी इस ॐ ध्वनि को सन
ु ने लगता है वह परमात्मा से सीधा जड़
ु ने लगता है ।
परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना। पद्माशन में बैठ कर इसका जप करने से मन
को शांति तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है ,। वैज्ञानिकों तथा ज्योतिषियों को कहना है कि ॐ तथा एकाक्षरी मंत्र का
पाठ करने में दाँत, नाक, जीभ सब का उपयोग होता है जिससे हार्मोनल स्राव कम होता है तथा ग्रंथि स्राव को कम
करके यह शब्द कई बीमारियों से रक्षा तथा शरीर के सात चक्र (कंु डलिनी) को जागत
ृ करता है । अगर इस शब्द का
सही प्रयोग किया जाय तो जीवन की हर समस्या को दरू किया जा सकता है । इस शब्द का सही उच्चारण करने से
ईश्वर की उपलब्धि तक की जा सकती है । ज्ञात हो कि अमेरिका के एक एफ एम रे डियो पर सुबह की शुरुआत ॐ
शब्द के उच्चारण से ही होती है ।)
ॐ है एक मात्र मंत्र, यही है आत्मा का संगीत
१) ॐ ही जग का सार है ।
२) ॐ ही जीवन है ।
३) ॐ ही जीवन आधार है ।
* ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव संबंध नित्य है , सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक संबंध को
प्रकट करता है ।
* सष्टि
ृ के आदि में सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणव का ही स्फुरण होता है । तदनंतर सात करोड़ मंत्रों का आविर्भाव होता
है ।
* इन मंत्रों के वाच्य आत्मा के दे वता रूप में प्रसिद्ध हैं। ये दे वता माया के ऊपर विद्यमान रह कर मायिक सष्टि
ृ का
नियंत्रण करते हैं। इन में से आधे शुद्ध मायाजगत ् में कार्य करते हैं और शेष आधे अशुद्ध या मलिन मायिक जगत ् में ।
* इस एक शब्द को ब्रह्मांड का सार माना जाता है , सोलह श्लोकों में इसकी महिमा वर्णित है ।
*इस शक्तिशाली मन्त्र का जाप करने से तनाव के दौरान सक्रिय एड्रेनलीन हाॅर्मोन नियंत्रित होता है और मस्तिष्क
में अल्फा तरं गों में वद्धि
ृ होती है , जो मस्तिष्क की शान्त अवस्था का परिचायक है ।
प्रकर्षेणनय
ू ते स्तूयते अनेन इति, नौति स्तौति इति वा प्रणव:।
* ओंकार के अवयवों का नाम है –अ, उ, म, बिन्द,ु अर्धचंद्र रोधिनी, नाद, नादांत, शक्ति, व्यापिनी या महाशून्य,
समना तथा उन्मना।
-प्रकारांतर से ये जाग्रत ्, स्वप्न और सुषुप्ति तथा स्थूल, सूक्ष्म और कारण अवस्थाओं के भी वाचक हैं।
-बिन्द ु तुरीय दशा का द्योतक है । प्लुत तथा दीर्घ मात्राओं का स्थितिकाल क्रमश: संक्षिप्त होकर अंत में एक मात्रा में
पर्यवसित हो जाता है । यह ह्रस्व स्वर का उच्चारण काल माना जाता है । इसी एक मात्रा पर समग्र विश्व प्रतिष्ठित है ।
विक्षिप्त भूमि से एकाग्र भूमि में पहुँचने पर प्रणव की इसी एक मात्रा में स्थिति होती है ।
*एकाग्र से निरोध अवस्था में जाने के लिए इस एम मात्रा का भी भेद कर अर्धमात्रा में प्रविष्ट हुआ जाता है । तदप
ु रांत
क्रमश: सूक्ष्म और सूक्ष्मतर मात्राओं का भेद करना पड़ता है । बिन्द ु अर्धमात्रा है । उसके अनंतर प्रत्येक स्तर में
मात्राओं का विभाग है ।
*समना भूमि में जाने के बाद मात्राएँ इतनी सूक्ष्म हो जाती हैं कि किसी योगी अथवा योगीश्वरों के लिए उसके आगे
बढ़वा संभव नहीं होता, अर्थात ् वहाँ की मात्रा वास्तव में अविभाज्य हो जाती है ।
*आचार्यो का उपदे श है कि इसी स्थान में मात्राओं को समर्पित कर अमात्र भूमि में प्रवेश करना चाहिए। इसका थोड़ा
सा आभास मांडूक्य उपनिषद् में मिलता है ।
*अमात्र भमि
ू में मन, काल, कलना, दे वता और प्रपंच, ये कुछ भी नहीं रहते। इसी को उन्मनी स्थिति कहते हैं। वहाँ
स्वयंप्रकाश ब्रह्म निरं तर प्रकाशमान रहता है ।
* स्पष्ट है कि ओउम ् जप से जहाँ आध्यात्मिक विभूतियाँ जीवन में प्रकट होती है , वहीं सामान्य जन अपनी चिंता,
अवसाद और कंु ठा में इसका अतिशय लाभ उठा सकते हैं ।
#ब
#कठोपनिषद में यह भी लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथन रूप
अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है । उसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्व का साक्षात्कार
होता है ।
#आत्मा अक्षर की दृष्टि से ओंकार है और मात्रा की दृष्टि से अ, उ और म रूप है । चतुर्थ पाद में मात्रा नहीं है एवं वह
व्यवहार से अतीत तथा प्रपंचशून्य अद्वैत है । इसका अभिप्राय यह है कि ओंकारात्मक शब्द ब्रह्म और उससे अतीत
परब्रह्म दोनों ही अभिन्न तत्व हैं।
#वैदिक वाङमय के सदृश धर्मशास्त्र, परु ाण तथा आगम साहित्य में भी ओंकार की महिमा सर्वत्र पाई जाती है । इसी
प्रकार बौद्ध तथा जैन संप्रदाय में भी सर्वत्र ओंकार के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति दे खी जाती है ।
#योगी संप्रदाय में स्वच्छं द तंत्र के अनुसार ओंकारसाधना का एक क्रम प्रचलित है । उसके अनुसार
- "अ" समग्र स्थूल जगत ् का द्योतक है और उसके ऊपर स्थित कारणजगत ् का वाचक है मकार।
#तंत्र शास्त्र में इस प्रकार का मात्राविभाग नौ नादों की सूक्ष्म योगभूमियां के नाम से प्रसिद्ध है । इस प्रसंग में यह
स्मरणीय है कि बिंद ु अशेष वेद्यों के अभेद ज्ञान का ही नाम है और नाद अशेष वाचकों के विमर्शन का नाम है ।
- इसका तात्पर्य यह है कि अ, उ और म प्रणव के इन तीन अवयवों का अतिक्रमण करने पर अर्थतत्व का अवश्य ही
भेद हो जाता है ।
- उसका कारण यह है कि यहाँ योगी को सब पदार्थो के ज्ञान के लिए सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जाता है एवं उसके बाद
बिंदभ
ु ेद करने पर वह उस ज्ञान का भी अतिक्रमण कर लेता है ।
- अर्थ और ज्ञान इन दोनों के ऊपर केवल नाद ही अवशिष्ट रहता है एवं नाद की नादांत तक की गति में नाद का भी
भेद हो जाता है ।
- उस समय केवल कला या शक्ति ही विद्यमान रहती है । जहाँ शक्ति या चित ् शक्ति प्राप्त हो गई वहाँ ब्रह्म का
प्रकाशमान होना स्वत: ही सिद्ध है ।
- "अ" ब्रह्मा का वाचक है ; उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है ।
- "उ" विष्णु का वाचक हैं; उसका त्याग कंठ में होता है तथा
* तदनंतर बिंद ु है , जो स्वयं ईश्वर रूप है अर्थात ् बिंद ु से क्रमश: ऊपर की ओर वाच्यवाचक का भेद नहीं रहता।
* नाद सदाशिवरूपी है । ललाट से मूर्धा तक के स्थान में उसका त्याग करना पड़ता है । यहाँ तक का अनुभव स्थूल है ।
* इसके आगे शक्ति का व्यापिनी तथा समना भूमियों में सूक्ष्म अनुभव होने लगता है । इस भूमि के वाच्य शिव हैं,
जो सदाशिव से ऊपर तथा परमशिव से नीचे रहते हैं।
* मूर्धा के ऊपर स्पर्शनुभूति के अनंतर शक्ति का भी त्याग हो जाता है एवं उसके ऊपर व्यापिनी का भी त्याग हो
जाता है । उस समय केवल मनन मात्र रूप का अनुभव होता है । यह समना भूमि का परिचय है ।
* इसके बाद ही मनन का त्याग हो जाता है । इसके उपरांत कुछ समय तक मन के अतीत विशुद्ध आत्मस्वरूप की
झलक दीख पड़ती है । इसके अनंतर ही परमानग्र
ु हप्राप्त योगी का उन्मना शक्ति में प्रवेश होता है ।
* इसी को परमपद या परमशिव की प्राप्ति समझना चाहिए और इसी को एक प्रकार से उन्मना का त्याग भी माना
जा सकता है । इस प्रकार ब्रह्मा से शिवपर्यन्त छह कारणों का उल्लंघन हो जाने पर अखंड परिपूर्ण सत्ता में स्थिति
हो जाती है ।
गुरु नानक जी का शब्द एक ओंकार सतनाम बहुत प्रचलित तथा शत्प्रतिशत सत्य है । एक ओंकार ही सत्य नाम है ।
राम, कृष्ण सब फलदायी नाम ओंकार पर निहित हैं तथा ओंकार के कारण ही इनका महत्व है । बाकी नामों को तो
हमने बनाया है परं तु ओंकार ही है जो स्वयंभू है तथा हर शब्द इससे ही बन
अक्षरका अर्थ जिसका कभी क्षरण न हो। ऐसे तीन अक्षरों— अ उ और म से मिलकर बना है ॐ।
-त्रिदे व और त्रेलोक्य का प्रतीक - ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है - अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ
उपनिषद में भी आता है ।
-यह ब्रह्मा, विष्णु और महे श का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है ।
-ओ, उ और म - उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अपरम्पार है । यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता
है ।
-ओ३म ्शब्द तीन अक्षरों एवं दो मात्राओं से मिलकर बना है जो वर्णमाला के समस्त अक्षरों में व्याप्त है ।
-दस
ू रा है ‘उ’ जो हृदय को प्रभावित करता है ।
*इस सर्वव्यापक पवित्र ध्वनि के गुंजन का हमारे शरीर की नस नाडिय़ों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है विशेषकर
मस्तिष्क, हृदय व नाभि केंद्र में कम्पन होने से उनमें से ज़हरीली वायु तथा व्याप्त अवरोध दरू हो जाते हैं, जिससे
हमारी समस्त नाड़ियाँ शद्ध
ु हो जाती हैं। जिससे हमारा आभामण्डल शद्ध
ु हो जाता है और हमारे अन्दर छिपी हुई
सूक्ष्म शक्तियाँ जागत
ृ होती व आत्म अनुभूति होती है ।
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है ।
-इनका उच्चारण एक के बाद एक होता है । ओ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है , जिसके
अनुसार साधक या योगी इसका उच्चारण ध्यान करने के पहले व बाद में करता है ।
-ॐ 'ओ' से प्रारं भ होता है , जो चेतना के पहले स्तर को दिखाता है । चेतना के इस स्तर में इंद्रियाँ बहिर्मुख होती हैं।
इससे ध्यान बाहरी विश्व की ओर जाता है । चेतना के इस अभ्यास व सही उच्चारण से मनुष्य को शारीरिक व
मानसिक लाभ मिलता है ।
- इसके द्वारा साक्षात्कार के मार्ग में भी जा सकते हैं। इससे साधक के शरीर, मन, मस्तिष्क के अंदर आश्चर्यजनक
परिवर्तन आता है । शरीर, मन, मस्तिष्क, शांत होकर तनावरहित हो जाता है ।
ॐ का दस
ू रा नाम प्रणव (परमेश्वर) है । "तस्य वाचकः प्रणवः" अर्थात ् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है । इस तरह
प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्म में कोई भेद नहीं है । ॐ अक्षर है इसका क्षरण अथवा विनाश नहीं होता।
ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है । मात्र ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की
प्राप्ति कर ली। कोशीतकी ऋषि निस्संतान थे, संतान प्राप्तिके लिए उन्होंने सूर्यका ध्यान कर ॐ का जाप किया तो
उन्हे पत्र
ु प्राप्ति हो गई।
"ध्यान बिन्दप
ु निषद्" के अनुसार ॐ मन्त्र की विशेषता यह है कि पवित्र या अपवित्र सभी स्थितियों में जो इसका
जप करता है , उसे लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है । जिस तरह कमल-पत्र पर जल नहीं ठहरता है , ठीक उसी तरह
जप-कर्ता पर कोई कलुष नहीं लगता।
तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली अष ्
अर्थातः- ॐ ही ब्रह्म है । ॐ ही यह प्रत्यक्ष जगत ् है । ॐ ही इसकी (जगत की) अनुकृति है । हे आचार्य! ॐ के विषय में
और भी सुनाएँ। आचार्य सुनाते हैं। ॐ से प्रारम्भ करके साम गायक सामगान करते हैं। ॐ-ॐ कहते हुए ही शस्त्र रूप
मन्त्र पढ़े जाते हैं। ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण करता है । ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया
जाता है । अध्ययन के समय ब्राह्मण ॐ कहकर ही ब्रह्म को प्राप्त करने की बात करता है । ॐ के द्वारा ही वह ब्रह्म
को प्राप्त करता है ।
कठोपनिषद के अनुसार-
अर्थातः- सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, समस्त तपों को जिसकी प्राप्ति के साधक कहते हैं, जिसकी इक्षा से
(मुमुक्षुजन) ब्रह्मचर्य का पालन करते है , उस पद को मैं तुमसे संक्षेप में कहता हूँ। ॐ यही वह पद है ।
प्रश्नोपनिषद में उल्लेख है -
ऋग्भिरे तं यजर्भि
ु रन्तरिक्षंसामभिर्यत्तत्कवयो वेदयन्ते।
अर्थातः- साधक ऋग्वेद द्वारा इस लोक को, यजुर्वेद द्वारा आन्तरिक्ष को और सामवेद द्वारा उस लोक को प्राप्त
होता है जिसे विद्वजन जानते हैं। तथा उस ओंंकाररूप आलम्बन के द्वारा ही विद्वान ् उस लोक को प्राप्त होता है
जो शान्त, अजर, अमर, अभय एवं सबसे पर (श्रेष्ठ) है ।
मण्
ु डकोपनिषद के अनस
ु ार-
अर्थातः-ॐ यह अक्षर ही सब कुछ है । यह जो कुछ भूत, भविष्यत ् और वर्तमान है उसी की व्याख्या है ; इसलिये यह
सब ओंकार ही है । इसके सिवा जो अन्य त्रिकालातीत वस्तु है वह भी ओंकार ही है ।
अर्थात वह यह आत्मा ही अक्षर दृष्टि से ओंंकार है ; वह मात्राओं का विषय करके स्थित है । पाद ही मात्रा है और मात्रा
ही पाद है ; वे मात्रा अकार, उकार और मकार हैं।
-ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि 'ॐ' को दनि
ु या के सभी मंत्रों का सार कहा गया है ।
यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है ।
-भारतीय सभ्यता के प्रारं भ से ही ओंकार ध्वनि के महत्त्व से सभी परिचित रहे हैं। शास्त्रों में ओंकार ध्वनि के 100 से
भी अधिक अर्थ दिए गए हैं।
-यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है । कई बार मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है
जिसका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन उससे निकली ध्वनि शरीर पर अपना प्रभाव छोड़ती है ।
*ओ३म ् (ॐ) नाम में हिन्द,ू मुस्लिम या ईसाई जैसी कोई बात नहीं है । यह सोचना कि ओ३म ् किसी एक धर्म की
निशानी है , ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग सम्प्रदाय ही नहीं बना था।
*ओ३म ् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है । यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति
और आदर का प्रतीक है ।
*हिन्द ू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इस ॐ को शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द
आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं।
मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं।
*सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है । अंग्रेज़ी का शब्द ओमनी, जिसके अर्थ अनंत और
कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे ओमनिप्रेसेंट, ओमनीपोटें ट) भी वास्तव में इस ओ३म ् शब्द से
ही बना है ।
*यह सिद्ध है कि ओ३म ् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर परू ी इंसानियत का है । ठीक उसी तरह जैसे कि
हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब परू ी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।
*अंग्रेज़ी में भी ईश्र्वर के लिए सर्वव्यापक शब्द का प्रयोग होता है , यही सष्टि
ृ का आधार है । यह सिर्फ़ आस्था नहीं,
इसका वैज्ञानिक आधार भी है ।
* प्रतिदिन ॐ का उच्चारण न सिर्फ़ ऊर्जा शक्ति का संचार करता है , शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर कई
असाध्य बीमारियों से दरू रखने में मदद करता है ।
* आध्यात्म में ॐ का विशेष महत्त्व है , वेद शास्त्रों में भी ॐ के कई चमत्कारिक प्रभावों का उल्लेख मिलता है ।
* पाश्चात्य दे शों में भारतीय वेद परु ाण और हज़ारों वर्ष परु ानी भारतीय संस्कृति और परम्परा काफ़ी चर्चाओं और
विचार विमर्श का केन्द्र रहे हैं दस
ू री ओर वर्तमान की वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रेरणा स्रोत भारतीय शास्त्र और वेद
ही रहे हैं, हलाकि स्पष्ट रूप से इसे स्वीकार करने से भी वैज्ञानिक बचते रहे हैं।
* योगियों में यह विश्वास है कि इसके अंदर मनुष्य की सामान्य चेतना को परिवर्तित करने की शक्ति है ।
-ॐ के उच्चारण से फेफड़ों में , हृदय में स्वस्थता आती है । शरीर, मन और मस्तिष्क स्वस्थ और तनावरहित हो
जाता है ।
सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है । बौद्ध-दर्शन में "मणिपद्मेहुम" का
प्रयोग जप एवं उपासना के लिए प्रचुरता से होता है । इस मंत्र के अनुसार ॐ को "मणिपुर" चक्र में अवस्थित माना
जाता है । यह चक्र दस दल वाले कमल के समान है ।
महात्मा कबीर र्निगुण सन्त एवं कवि थे। उन्होंने भी ॐ के महत्व को स्वीकारा और इस पर "साखियाँ" भी लिखीं —
-इसी ध्वनि को हमारे तपस्वी और ऋषि - महर्षियों ने अपनी ध्यानावस्था में सुना। जो लगातार सुनाई दे ती रहती है
शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरं तर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती
महसस
ू करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ब्रह्मानाद अथवा ॐ कहा ।
-अंतरिक्ष में होने वाला मधरु गीत ‘ॐ’ ही अनादिकाल से अनन्त काल तक ब्रह्माण्ड में व्याप्त है ।
-ॐ की ध्वनि या नाद ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक ऊर्जा के रूप में फैला हुआ है जब हम अपने मख
ु से एक ही सांस में
ओ३म ्का उच्चारण मस्तिष्क ध्वनि अनुनाद तकनीक से करते हैं तों मानव शरीर को अनेक लाभ होते हैं और वह
असीम सुख, शांति व आनन्द की अनुभूति करता है ।
महावीर ने वेदों को पढ़कर नहीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर दे खा तब कहा।
ॐ को ओम कहा जाता है । उसमें भी बोलते वक्त 'ओ' पर ज्यादा जोर होता है । इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं।
इस मंत्र का प्रारं भ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है । अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो
चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है ।
तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई दे ती
रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरं तर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और
आत्मा शांती महसस
ू करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।
कहा जाता है कि ॐ से रहित कोई मंत्र फलदायी नहीं होता, चाहे उसका कितना भी जाप हो। मंत्र के रूप में मात्र ॐ
भी पर्याप्त है । माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हज़ार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है ।
*उच्चारण की विधि
प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें । ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन,
वज्रासन में सकते हैं। इसका उच्चारण ५, ७, ११, २१, ५१, या १०८ बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से
बोल सकते हैं, धीरे -धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।
* लाभ :
- दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दरू होती हैं।
- उसको दाहिने हाथ में लेकर "ॐ" शब्द का 108 बार उच्चारण करें ।
- पत्ते को पीने के पानी में डाल दें . पीने के लिए इसी पानी का प्रयोग करें ।
- जो लोग भी इस जल का सेवन करें , तामसिक आहार ग्रहण न करें ।
४) धन प्राप्ति के लिए-
तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है । दे वनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का
स्वरूप दिया गया है । उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों
में गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित
प्रभाव से संभव होता है । इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से
ं ों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दरू भगाया जा सकता है ।
टकराती है । इन ग्रंथिय
-अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल
की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं।
- इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमत
ृ की तरह आल्हादकारी रसायन
की वर्षा करती है ।
ॐ के अभ्यास से अनेक प्रकार के रोगों से भी मुक्ति मिलती है । यहाँ तक कि यदि आपको अर्थ भी मालूम नहीं तो भी
इसके उच्चारण से शारीरिक लाभ तो होगा।
-बहुत मानसिक तनाव और अवसाद से ग्रसित लोगों पर कुछ ही दिनों में इसका जाद ू सा प्रभाव होता है । यही कारण
है कि आजकल डॉक्टर आदि भी अपने मरीज़ों को आसन प्राणायाम की शिक्षा दे ते हैं।
अ) शारीरिक लाभ -
-अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म ् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
-यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दरू करता है , अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है ।
-नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दरू हो जाती है । रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको
करने से निश्चित नींद आएगी।
-कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है । इत्यादि इत्यादि।
ब) मानसिक लाभ -
-जीवन जीने
-प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियंत्रण होता है । परिस्थितियों को पहले ही भांपने की शक्ति उत्पन्न होती है ।
-इसे करने वाला व्यक्ति जोश के साथ जीवन बिताता है और मत्ृ यु को भी ईश्वर की व्यवस्था समझ कर हँस कर
स्वीकार करता है ।
-आत्महत्या जैसे कायरता के विचार आस पास भी नहीं फटकते। बल्कि जो आत्महत्या करना चाहते हैं, वे एक बार
ॐ के उच्चारण का अभ्यास चार दिन तक कर लें। उसके बाद खुद निर्णय कर लें कि जीवन जीने के लिए है कि
छोड़ने के लिए।
स) आध्यात्मिक लाभ -
-ॐ का अभ्यास करने से यीशु/ ईश्वर / अल्लाह / यहोवा से सम्बन्ध जुड़ता है और लम्बे समय तक अभ्यास करने
से सर्वशक्तिमान को अनुभव (महसूस) करने की ताकत पैदा होती है ।
-इससे जीवन के उद्देश्य स्पष्ट होते हैं और यह पता चलता है कि कैसे ईश्वर सदा हमारे साथ बैठा हमें प्रेरित कर रहा
है ।
-इस दनि
ु या की अंधी दौड़ में खो चक
ु े खद
ु को फिर से पहचान मिलती है । इसे जानने के बाद आदमी दनि
ु या में दौड़ने
के लिए नहीं दौड़ता किन्तु अपने लक्ष्य के पाने के लिए दौड़ता है ।
-महायोगी श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध के वातावरण में भी नियमपूर्वक ईश्वर का ध्यान किया करते थे। यह बल व
निडरता ईश्वर से उनकी निकटता का ही प्रमाण है ।
-इसके अभ्यास से वह कर्म फल व्यवस्था स्पष्ट हो जाती है कि जिसको ईश्वर ने हमारे भले के लिए ही धारण कर
रखा है ।
-जब पवित्र ॐ के उच्चारण से हृदय निर्मल होता है तब यह पता चलता है कि हमें मिलने वाला सख
ु अगर हमारे लिए
भोजन के समान सुखदायी है तो दःु ख कड़वा होते हुए भी औषधि के समान सुखदायी है जो आत्मा के रोगों को नष्ट
कर दोबारा इसे स्वस्थ कर दे ता है ।
-ईश्वर के दं ड में भी उसकी दया का जब बोध जब होता है तो उस परम दयालु जगत माता को दे खने और पाने की
इच्छा प्रबल हो जाती है और फिर आदमी उसे पाए बिना चैन से नहीं बैठ सकता।
- ॐ शब्द का उच्चारण करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त या साध्य काल का चुनाव करें ।
- उच्चारण करने के पूर्व इसकी तकनीक सीख लें अन्यथा पूर्ण लाभ नहीं हो पाएगा।
- ॐ शब्द इस दनि
ु या में किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है ।
- ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रन्थि पर सकारात्मक प्रभाव डालती है ।
- नींद ना आने की समस्या यानि इनसोम्निया इससे कुछ समय में ही दरू हो जाती है । इसलिए बेड पर जाते ही ॐ
का उच्चारण करना चाहिए।
- जिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता उनके लिए भी यह बेहद फायदे मंद हैं, क्योंकि यह स्मरन-शक्ति बढ़ाता है ,
और मन को एक जगह फोकस करने में मदद करता है ।
-इस दौरान उन्होंने मस्तिष्क और हृदय की विभिन्न बीमारियों से पीडि़त २५०० पुरुषो और २०० महिलाओं का
परीक्षण किया। इनमें उन लोगों को भी शामिल किया गया जो अपनी बीमारी के अन्तिम चरण में पहुँच चुके थे। इन
सारे मरीज़ों को केवल वे ही दवाईयां दी गई जो उनका जीवन बचाने के लिए आवश्यक थीं। शेष सब बंद कर दी गई।
-सुबह ६-७ बजे तक यानी कि एक घंटा इन लोगों को साफ, स्वच्छ, खुले वातावरण में योग्य शिक्षकों द्वारा ‘ॐ’ का
जप कराया गया। इन दिनों उन्हें विभिन्न ध्वनियों और आवति
ृ यो में ‘ॐ’ का जप कराया गया।
-हर तीन माह में हृदय, मस्तिष्क के अलावा परू े शरीर का ‘स्कैन’ कराया गया।
-चार साल तक ऐसा करने के बाद जो रिपोर्ट सामने आई वह आश्चर्यजनक थी। प्रतिशत परु
ु ष और 85 प्रतिशत
महिलाओं से ‘ओ३म’् का जप शुरू करने के पहले बीमारियों की जो स्थिति थी उसमें ९० प्रतिशत कमी दर्ज की गई।
-कुछ लोगों पर मात्र २० प्रतिशत ही असर हुआ। इसका कारण प्रोफ़ेसर मार्गन ने बताया कि उनकी बीमारी अंतिम
अवस्था में पहुंच चुकी थी।
-इस प्रयास से यह परिणाम भी प्राप्त हुआ कि नशे से मुक्ति भी ‘ॐ’ के जप से प्राप्त की जा सकती है । इसका लाभ
उठाकर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है ।
-ॐ को लेकर प्रोफ़ेसर मार्गन कहते हैं कि शोध में यह तथ्य पाया कि ॐ का जाप अलग अलग आवत्ति
ृ यों और
ध्वनियों में दिल और दिमाग के रोगियों के लिए बेहद असर कारक है ।
-जब कोई मनष्ु य ॐ का जाप करता है तो यह ध्वनि जुबां से न निकलकर पेट से निकलती है यही नहीं ॐ का
उच्चारण पेट, सीने और मस्तिष्क में कम्पन पैदा करता है विभिन्न आवति
ृ यो (तरं गों) और ‘ॐ’ ध्वनि के उतार
चढ़ाव से पैदा होने वाली कम्पन क्रिया से मत
ृ कोशिकाओं को पन
ु र्जीवित कर दे ता है तथा नई कोशिकाओं का निर्माण
करता है रक्त विकार होने ही नहीं पाता।
-मस्तिष्क से लेकर नाक, गला, हृदय, पेट और पैर तक तीव्र तरं गों का संचार होता है । रक्त विकार दरू होता है और
स्फुर्ती बनी रहती है । यही नहीं आयर्वे
ु द में भी ॐ के जाप के चमत्कारिक प्रभावों का वर्णन है । इस तरह के कई
प्रयोगों के बाद भारतीय आध्यात्मिक प्रतीक चिह्नों को के प्रति पश्चिम दे शों के लोगों में भी खुलापन दे खा गया।
२) अभी हाल ही में हारवर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हारबर्ट बेन्सन ने अपने लबे समय के शोध कार्य के बाद ‘ॐ’
के वैज्ञानिक आधार पर प्रकाश डाला है ।
-थोड़ी प्रार्थना और ॐ शब्द के उच्चारण से जानलेवा बीमारी एड्स के लक्षणों से राहत मिलती है तथा बांझपन के
उपचार में दवा का काम करता है ।
-आप स्वयं ‘ॐ’ जप करके ॐ ध्वनि के परिणाम दे ख सकते हैं। इसके जप से सभी रोगों में लाभ व दष्ु कर्मों के
संस्कारों को शमन होता है ।
-अतः ॐ की चमत्कारिक ध्वनि का उच्चारण (जाप) यदि मनुष्य अटूट श्रद्धा व पूर्ण विश्वास के साथ करे तो अपने
लक्ष्य को प्राप्त कर जीवन को सार्थक कर सकता है ।
- सख
ु ासन, पद्मासन, या किसी और आसान में बैठें।
- ॐ का उच्चारण रोज़ ४० मिनट किया जाए तो कुछ ही दिनों में आपको बदलाव महसस
ू होगा।
प्रभाव
- उच्चारण सर्यो
ू दय के समय और संध्या काल में ॐ का उच्चारण बहुत लाभदायक होता है ।
- इससे मस्तिष्क में मौन उतर जायेगा परू ा शरीर तनाव रहित और शांत होने लगेगा।
क्या करें ?
ॐ - प्रातः उठकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें । इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की
धड़कन और रक्त संचार व्यवस्थित होगा।
ॐ नमो - ओम के साथ नमो शब्द के जुड़ने से मन और मस्तिष्क में नम्रता के भाव पैदा होते हैं। इससे सकारात्मक
ऊर्जा तेजी से प्रवाहित होती है ।
ॐ नमो गणेश - गणेश आदि दे वता हैं जो नई शुरुआत और सफलता का प्रतीक हैं।
ॐ गं गणपतये नम: का उच्चारण विशेष रूप से शरीर और मन पर नियंत्रण रखने में सहायक होता है ।
-किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णतया शुद्ध और शक्ति-सम्पन्न हो जाता है ।
-किसी दे वी-दे वता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है ।
#आर्यवर्त