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* कृण लीला कथा सभी रोचक कहानी

भारत क सात ाचीन और प व नग रय म से


एक है
मथु
रा। मथु
रा म भगवान कृण
का ज म आ था।
कसी नेकृण केमामा कंस को बताया क वसु दे
व और देवक क संतान ही उसक
मृ
युका कारण होगी अत: उसनेवसुदे
व और दे वक दोन को जे
ल म बं
द कर दया।
कं
स उ दोन क सं तान केउ प होते ही मार डालता था।
भ व यवाणी के अनुसार व णुको दे
वक के गभ से कृण के प म ज म ले ना था, तो
उ ह नेअपने 8व अवतार के प म 8व मनु वैव वत केम वं
तर के28व ापर म
भा पद के कृण प क रा के 7 मुत नकल गए और 8वां उप थत आ तभी
आधी रात के समय सबसे शुभ ल न उप थत आ। उस ल न पर के वल शुभ ह क
थी। रो हणी न तथा अ मी त थ के संयोग सेजयं
ती नामक योग म लगभग
3112 ईसा पू व (अथात आज से 5126 वष पू व) को आ आ। यो त षय के
अनुसार रात 12 बजे उस व शू य काल था।
1. यमु
ना के
पार गोकु
ल:
जब कृण का ज म आ तो जे ल के सभी संतरी माया ारा गहरी न द म सो
गए। जे
ल केदरवाजेवत: ही खु ल गए। उस व भारी बा रश हो रही थी।
यमु
ना म उफान था। उस बा रश म ही वसुदे
व नेन हेकृण को एक टोकरी म
रखा और उस टोकरी को लेकर वे जेल सेबाहर नकल आए। कु छ री पर ही
यमु
ना नद थी। उ ह उस पार जाना था लेकन कै से
? तभी चम कार आ।
यमु
ना केजल ने भगवान के चरण छु ए और फर उसका जल दो ह स म बं ट
गया और इस पार सेउस पार रा ता बन गया।
कहते ह क वसु दे
व कृण को यमु ना केउस पार गोकु
ल म अपनेम नं दगोप
केयहांले गए। वहां
पर नंद क प नी यशोदा को भी एक क या उ प ई
थी। वसु
देव ीकृण को यशोदा के पास सु
लाकर उस क या को लेगए।
गोकुल मांयशोदा का मायका था और नंदगां
व म उनका ससुराल। ीकृण
का लालन-पालन यशोदा व नं द नेकया।
गोकुल यमुना केतट पर बसा एक गांव है
, जहांसभी नंद क गाय का
नवास थान था। नंद मथुरा केआसपास गोकु ल और नं दगां
व म रहने
वाले
आभीर गोप के मुखया थे । यह पर वसुदेव क सरी प नी रो हणी ने
बलराम को ज म दया था। बलराम दे वक के 7व गभ म थेज ह योगमाया
नेआक षत करके रो हणी के गभ म डाल दया था। यह थान गोप लोग का
था। मथु
रा सेगोकुल क री महज 12 कलोमीटर है ।
2. पू
तना का वध :
जब कं
स को पता चला क छलपू वक वसुदे
व और देवक ने अपने पुको
कह ओर भेज दया है तो उसने
चार दशा म अपने अनुचर को भे ज
दया और कह दया क अमु क-अमु
क समय पर जतने भी बालक का ज म
आ हो उनका वध कर दया जाए। पहली बार म ही कंस के अनु
चर को पता
चल गया क हो न हो वह बालक यमु
ना केउस पार ही छोड़ा गया है

बा यकाल म ही ीकृण ने अपने मामा के ारा भे
जेगए अनेक रा स को
मार डाला और उसके सभी कुयास को वफल कर दया। सबसे पहले
उ ह ने पू
तना को मारा। पू
तना को उ ह नेनं
दबाबा केघर सेकु
छ री पर ही
मारा। नं
दगां
व म कंस का आतं क बढ़ने लगा तो नं
दबाबा ने
वहां
से पलायन
कर दया। पलायन करने केऔर भी कई कारण रहे ह गे

3 वृ

दावन आगमन :
नं
दगां
व म कंस केखतरेकेचलते ही नं
दबाबा दोन भाइय को वहां
सेसरे
गां
व वृ

दावन लेकर चले
गए। वृ

दावन कृण क लीला का मु ख थान है

वृ

दावन मथुरा से
14 कलोमीटर र है ।
ीम ागवत और व णु पु
राण केअनुसार कं
स केअ याचार से
बचनेके
लए नं
दजी कुटु

बय और सजा तय के साथ नं
दगां
व सेवृ

दावन म आकर
बस गए थे
। व णु
पुराण म वृ

दावन म कृण क लीला का वणन भी है।
यहांीकृण नेका लया का दमन कया था।
4. का लया और धनु
क का वध :
फर कु
छ बड़ा होकर उ ह ने कदंब वन म बलराम केसाथ मलकर का लया
नाग का वध कया। फर इसी कार वह ताल वन म दै य जा त का धनु

नाम का अ याचारी रहता था जसका बलदे व ने
वध कर डाला। उ
दोन घटना से कृण और बलदे व क या त र- र तक फै ल गई थी।
इसके अलावा यहां पर उ ह नेयमलाजुन, शकटासुर वध, लं
ब वध और
अ र वध कया।

5. रासलीला :
मा यता हैक यह पर ीकृण और राधा एक घाट पर यु गल नान करते थे

इससे पहले कृण क राधा सेमु
लाकात गोकु ल के पास संकेत तीथ पर ई
थी। वृ

दावन म ही ीकृण और गो पयां आंख- मचौनी का खे ल खेलते थे

यह पर ीकृण और उनके सभी सखा और स खयांमलकर रासलीला
अथात तीज- योहार पर नृय-उ सव का आयोजन करते थे। कृण क
शरारत के कारण उ ह बां
केबहारी कहा जाता है
। यहांबां
के बहारीजी का
मंदर है
। यहां
पर यमु
ना घाट के येक घाट से भगवान कृण क कथा जु ड़ी
ई है

6. गोवधन पवत :
वृ

दावन केपास ही गोवधन पवत है। यह पर कृण ने
लोग को इंके कोप
सेबचाया था। उस काल म लोग इंसे डरकर उसक पूजा करतेथे
। कृण ने
उनकेइस डर को बाहर नकाला और सफ परमेर के त ही ाथना करने
क श ा द । नं द इ क पूजा का उ सव मनाया करतेथे
। ीकृण नेइसे
बं
द करके का तक मास म अ कू ट का उ सव आंरभ कराया।
7. कं
स का वध :
वृ

दावन म का लया और धनु क का सामना करनेकेकारण दोन भाइय क
या त केचलतेकं स समझ गया था क यो तष भ व यवाणी अनु सार इतने
बलशाली कशोर तो वसु दे
व और देवक के पुही हो सकतेह। तब कंस ने
दोन भाइय को पहलवानी केलए नमंण दया, य क कं स चाहता था
क इ ह पहलवान के हाथ मरवा दया जाए, लेकन दोन भाइय ने
पहलवान केशरोम ण चाणू र और मुक को मारकर कं स को पकड़ लया
और सबके दे
खते-दे
खते ही उसको भी मार दया।
कंस का वध करने केप ात कृण और बलदे व ने
कंस केपता उ सेन को
पुन: राजा बना दया। उ से न के9 पुथे , उनम कं
स येथा। उनके नाम ह-
य ोध, सु नामा, कं
क, शं कुअजभू , रा पाल, युमु और सु मुद। उनके
कंसा, कंसवती, सत तू , रा पाली और कं का नाम क 5 बहन थ । अपनी
संतान स हत उ से नकु कुर-वं
श म उ प ए कहे जातेह और उ ह ने
जनाभ के शासन सं भालने केपूव तक राज कया।
कृण बचपन म ही कई आक मक घटना का सामना करने तथा
कशोराव था म कं
स के ष ं को वफल करने के कारण ब त लोक य
हो गए थे
। कं
स केवध के बाद उनका अ ातवास भी समा त आ और उनके
स हत रा य का भय भी। तब उनकेपता और पालक ने दोन भाइय क
श ा और द ा का इंतजाम कया।
8. गुका आ म :
दोन भाइय को अ , श और शा ी क श ा केलए सां द प न के
आ म भे जा गया, जहां
प च
ंकर कृण-बलराम नेव धवत द ा ली और
अ य शा के साथ धनु व ा म वशे
ष द ता ा त क । वह उनक सु दामा
ा ण सेभट ई, जो उनका गु-भाई आ।
इस आ म म कृण ने अपनेजीवन के कुछ वष बताकर कई सारी घटना
सेसामना कया और यहांभी उनको स मली। श ा और द ा हा सल
करनेके बाद कृण और बलराम पु
न: मथुरा लौट आए और फर वे मथुरा के
से
ना और शासन का काय दे
खने लगे। उ से न जो मथु
रा के
राजा थे
, वे
कृण
केनाना थे
। कंस के
मारे
जानेकेबाद उसका सु र और मगध का स ाट
जरासं
ध ु हो चला था।

9. जरासं
ध का आ मण :
जब कं स का वध हो गया तो मगध का सबसे श शाली स ाट जरासं ध
ो धत हो उठा, य क कं स उसका दामाद था। जरासं घ कंस का सुर था।
कंस क प नी मगध नरे श जरासं घ को बार-बार इस बात केलए उकसाती
थी क कं स का बदला लेना है
। इस कारण जरासं घ ने
मथुरा के
रा य को
हड़पने केलए 17 बार आ मण कए। हर बार उसके आ मण को
असफल कर दया जाता था। फर एक दन उसने कालयवन के साथ
मलकर भयं कर आ मण क योजना बनाई।
कालयवन क सेना ने
मथुरा को घे
र लया। उसने
मथु
रा नरे
श केनाम सं
दे

भे
जा और कालयवन को यु केलए एक दन का समय दया। ीकृण ने
उ र म भे
जा क यु केवल कृण और कालयवन म हो, सेना को थ यू ं
लड़ाएं
? कालयवन नेवीकार कर लया।
कृण और कालयवन का यु आ और कृण रणभू म छोड़कर भागने
लगे,
तो कालयवन भी उनकेपीछेभागा। भागते-भागते
कृण एक गु
फा म चले
गए। कालयवन भी वह घुस गया। गु
फा म कालयवन नेएक सरे मनुय को
सोतेए देखा। कालयवन नेउसेकृण समझकर कसकर लात मार द और
वह मनुय उठ पड़ा।
उसने जैसेही आंख खोल और इधर-उधर दे खने लगा, तब सामने
उसे
कालयवन दखाई दया। कालयवन उसके दे
खने सेत काल ही जलकर भ म
हो गया। कालयवन को जो पुष गुफा म सोए मले। वेइ वाकुवं
शी
महाराजा मां
धाता केपुराजा मु
चु
कु द थे
, जो तप वी और तापी थे। उनके
दे
खते ही कालयवन भ म हो गया। मु
चुकुद को वरदान था क जो भी उ ह
उठाएगा वह उनके दे
खते
ही भ म हो जाएगा।
10. महा भ न मण :
कालयवन के मारेजाने के बाद हड़कंप मच गया था। अब वदेशी भी
ीकृण के श ुहो चले थे। तब अंतत: कृण ने
अपने 18 कु
ल के सजा तय
को मथु
रा छोड़ दे
नेपर राजी कर लया। वे सब मथुरा छोड़कर रै
वत पवत के
समीप कुश थली पुरी ( ा रका) म जाकर बस गए। -(महाभारत मौसल-
14.43-50)
यह इ तहास का सबसे बड़ा माइ ेशन था। उ सेन, अ ूर, बलराम स हत
लाख क तादाद म कृण के कु
ल के यादव अपने पूव थान ारका लौट
गए। रह गए तो सफ वे जो कृण कु ल सेनह थे। लाख क संया म मथु रा
मं
डल के लोग ने उनको रोकने का यास कया जनम सरे य वंशी भी थे

सभी क आं ख म आं सूथे, लेकन कृण को तो जाना ही था। सौरा म पहले
सेही य वंशी लोग रहते थे। यह उनकेाचीन पू वज क भू म थी। इस
न मण के उपरांत मथुरा क आबाद ब त कम रह गई होगी। कृण के
जानेके बाद मथुरा पर जरासं ध का शासन हो गया।
11. ा रका :
ा रका म रहकर कृण ने सुखपू
वक जीवन बताया। यह रहकर उ ह ने
ह तनापु र क राजनी त म अपनी ग त व धयां
बढ़ा और 8 य सेववाह
कर एक नए कु ल और सा ा य क थापना क । ा रका वै कुं
ठ केसमान
थी। कृण क 8 प नयां थ :- मणी, स यभामा, जा बवती, म व दा,
स या, ल मणा, भ ा और का लद । इनसे उनका कई पुऔर पुय क
ा त ई।
इसके बाद कृण ने भौमासुर (नरकासुर) ारा बं
धक बनाई गई लगभग 16
हजार य को मु कराकर उ ह ा रका म शरण द । नरकासु र
ाग यो तषपु र का दैयराज था जसने इंको हराकर उनको उनक नगरी से
बाहर नकाल दया था। नरकासु र केअ याचार सेदेवतागण ा ह- ा ह कर
रहेथे
। वह व ण का छ , अ द त के कुडल और दे वता क म ण छ नकर
लोक वजयी हो गया था। वह पृ वी क हजार सु दर क या का
अपहरण कर उनको बं द बनाकर उनका शोषण करता था। मु कराई गई ये
सभी यां कृण क प नयां या रखैल नह थ ब क उनक स खयां और
श या थ , जो उनके रा य म सुखपूवक वतंतापू वक अपना अपना जीवन-
यापन अपने तरीके सेकर रही थ ।
पां
डव से
कृण क मु
लाकात : -
एक दन पं चाल केराजा पद ारा ौपद - वयंवर का आयोजन कया गया।
उस काल म पांडव के वनवास के2 साल म सेअ ातवास का एक साल बीत
चु
का था। कृण भी उस वयं वर म गए। वहां
उनक बुआ (कु
ंती) के
लड़के
पां
डव भी मौजूद थे
। यह सेपां
डव के साथ कृण क घ न ता का आरंभ
आ।
पां
डव अजु न नेम य भे दकर ौपद को ा त कर लया और इस कार
अपनी धनु व ा का कौशल अने क देश केराजा के सम कट कर दया।
अजु न क इस कौशलता सेीकृण ब त स ए। वह उ ह ने पां
डव से
म ता बढ़ाई और वनवास क समा त के बाद वे
पांडव केसाथ ह तनापु र
प चंे
। कुराज धृतरा ने पां
डव को इं थ के आस-पास का दे श दे रखा
था। पां
डव ने कृण के ारका नमाण सं बंधी अनुभव का लाभ उठाया।
उनक सहायता से उ ह नेभी जंगल के एक भाग को साफ कराकर इं थ
नगर को अ छे और सुं
दर ढं
ग सेबसाया। इसके बाद कृण ारका लौट गए।
फर एक दन अजु न तीथाटन के दौरान ा रका प चंगए। वहांकृण क
बहन सुभ ा को दे
खकर वे मो हत हो गए। कृण ने दोन का ववाह करा
दया और इस तरह कृण क अजु न सेगाढ़ म ता हो गई।
जरासं
ध का वध :
इं थ केनमाण के बाद युध र ने
राजसू य य का आयोजन कया और
आव यक परामश केलए कृण को बु लाया। कृण इं थ आए और उ ह ने
राजसू
य य के आयोजन का समथन कया। ले कन उ ह नेयु
ध र सेकहा
क पहलेअ याचारी राजा और उनक स ा को न कया जाए तभी
राजसू
य य का मह व रहे गा और दे
श- वदे
श म स होगी। यु ध र ने
कृण केइस सुझाव को वीकार कर लया, तब कृण ने युध र को सबसे
पहलेजरासं
ध पर चढ़ाई करने क सलाह द ।
इसके बाद भीम और अजु न केसाथ कृण मगध रवाना ए और कु छ समय
बाद मगध क राजधानी ग र ज प च ंगए। कृण क नी त सफल ई और
उ ह ने भीम ारा म लयु म जरासं ध का वध करवा डाला। जरासंधक
मृ यु
के बाद कृण ने उसके पुसहदे व को मगध का राजा बनाया। फर
उ ह नेग र ज के बं
द गृह म बं
द सभी राजा को मु कया और इस
कार कृण ने जरासंध जैसेू र शासक का अंत कर बंद राजा को उनका
रा य पुन: लौटाकर खूब यश पाया। जरासंध केवध के बाद अ य सभी ूर
शासक भयभीत हो चले थे
। पां
डव ने सभी को झु
कने पर ववश कर दया
और इस तरह इं थ का रा य व तार आ।
इसके बाद युध र ने राजसू
य य का आयोजन कया। य म यु ध र ने
भगवान वे द ास, भार ाज, सुन ु, गौतम, अ सत, व श , यवन, क डव,
मैय
े, कवष, जत, व ा म , वामदे व, सु
म त, जैमन, तु, पै
ल, पाराशर, गग,
वै
श पायन, अथवा, क यप, धौ य, परशु राम, शुाचाय, आसु र, वीतहो ,
मधुंदा, वीरसे
न, अकृत ण आ द सभी को आमंत कया। इसके अलावा
सभी दे
श के राजा धराज को भी बु
लाया गया।
इसी य म कृण का श ु और जरासं ध का म शशुपाल भी आया आ था,
जो कृण क प नी मणी केभाई का म था और जो मणी सेववाह
करना चाहता था। यह कृण क सरी बु आ का पुथा इस नाते
यह कृण
का भाई भी था। अपनी बु
आ को ीकृण ने उसके100 अपराध को मा
करने का वचन दया था। इसी य म कृण का उसने100व बार अपमान
कया जसके चलते भरी य सभा म कृण ने उसका वध कर दया।
महाभारत :
ा रका म रहकर कृण ने धम, राजनी त, नी त आ द के कई पाठ पढ़ाए और
धम-कम का चार कया, ले कन वे कौरव और पां डव के बीच यु को नह
रोक पाए और अं तत: महाभारत म वेअजु न के सारथी बने। उनके जीवन क
ये सबसे बड़ी घटना थी। कृण क महाभारत म भी ब त बड़ी भू मका थी।
कृण क बहन सु भ ा अजु
न क प नी थ । ीकृण ने ही यु से पहले
अजु न को गीता का उपदे
श दया था।
महाभारत यु को पांडव के प म करने
केलए कृण को यु के पू
व कई
तरह केछल, बल और नी त का उपयोग करना पड़ा। अं
तत: उनक नी त के
चलते ही पां
डव नेयु जीत लया। इस यु म भारी संया म लोग मारे
गए। सभी कौरव क लाश पर वलाप करतेए गां धारी ने
शाप दया क- 'हे
कृण, तु हारे
कुल का नाश हो जाए।'

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