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वधयान

- बौ धम के अनुसार वधयान का
ववेचन क जये

उ र : तावना - समय-समय पर इस भारत


भू म पर अनेक आचाय मनी षय एवं दाश नक
का ज म आ है ज ह ने अपनी वचारधारा के
ारा मानव जीवन को अ य धक भा वत कया है
उ ह दाश नक म से एक थे स ाथ गौतम जो
आगे चलकर गौतम बु कहलाए और उनके
अनुया यय को बौ नामक सं ा द गई। भगवान
बु ने जो उपदे श दए थे उनका ान ान पर
चार आ जससे भगवान बु के अनुया यय
क सं या बढ़ती गई और बौ संघ एक सं दाय
म प रव तत हो गया कालांतर म यह सं दाय
अनेक उप वभाग म वभा जत आ जनम से दो
मु य वभाग थे हीनयान और महायान। दोन ही
भगवान बु के उपदे श को साथ लेकर चलते थे
कतु थोड़े थोड़े अंतर के साथ जैसे क हीनयान
म के वल अपनी मु के वषय म सोचा गया है
कतु महायान ाणी मा क मु चाहता है अतः
महायान म नवाण का सै ां तक प अ यंत
व तृत है। हीनयान के अंतगत नवाण ा त
करने के दो यान का नदश कया गया है जनम
से पहला है ावकयान और सरा है
येकबु यान। इसके वपरीत महायान के अंतगत
के वल एक ही माग के आवलंबन से मु हो
जाती है जसका नाम है बो धस वयान।इस बौ
धम के अंतगत कु ल मलाकर नवाण ा त हेतु
तीन यान पर बल दया गया है। जनका सामु य
कहलाता है वधयान अथवा यान। इन तीन
यान म बो ध क क पना भ भ कार से है।
ावकयान म गु के पास जाकर उसके
वचन का अनुसरण करता है जससे उसे नवाण
ा त होता है। गु के ारा उपदे श सुनकर नवाण
ा त करने से ही इस यान का नाम ावकयान
पड़ा है।

येकबु यान इससे थोड़ा अलग है। वहां साधक


को गु क आव यकता नह पड़ती य क वहां
साधक अ प द पो भवः के स ांत का पालन
करते ए वयं ही ान ा त करता है।
बो धस वयान इन दोन से ही भ है।

बो धस वयान के अंतगत कोई भी


पार मताओं का पालन कए बना बु व क
ा त कर ही नह सकता। इस कार महायान म
नवाण क या को समझने के लए इन तीन
जन को जानना अ यंत आव यक हो जाता है
अतः यहां इन तीन ही यान का व तार से वणन
कया जा रहा है -

1. ावकयान - बौ धम के अंतगत ा णय क
दो े णयां बताई गई है। पृथक जन और आय
इनम से पृथकजन वे कहलाते ह जो अपनी
अ ानता के कारण संसार के पंच म फं से रहते
ह और उसी परमहंस म अपना जीवन यापन करते
ह कतु उ ह म से कोई जब गु के
समीप जाकर अ ानता को र कर के नवाण के
माग पर चल पड़ता है तो वह पृथकजन से आय
हो जाता है जसका धान ल य अहत् क ा त
है परंतु अहत् क ा त इतनी सहज नह होती।
उसके लए चार भू मय को पार करना होता है
जो क इस कार ह -

1. ोताप - ोताप का अथ है धारा म


पड़ना। जब साधक का च पंचो से हटकर
नवाण के माग पर आ ढ़ हो जाता है तब उसे
ोताप कहा जाता है। इस अव ा म साधक
क एका ता बढ़ती रहती है जससे उसके सारे
भय समा त हो जाते ह और वो क याण माग का
प थक बन जाता है। ोताप क अव ा को
ा त करने के लए तीन ब न को तोड़ना
अ नवाय है। ये तीन बंधन न न ह -

स काय - आ मा और शरीर को भ भ
जानना ही स काय है।

व च क सा - व च क सा का अथ है संदेह। मु
के लए इस संदेह का नाश परम आव यक है
य क जहाँ संदेह होता है वहां व ास नह होता
और जहां व ास नह होता वहां कोई काय स
नह हो पाता।
शील त परामश - शील त परामश का ता पय है
त उपवास म आस । य द साधक त उपवास
के च म ही पड़ा रहेगा तो उसक दनचया और
साधना के व न पड़ेगा जससे मु क
संभावनाएं समा त होती जायग ।

2. सकृ दागामी - सकृ दागामी का अथ एक बार


आने वाला। इस भू म का धान काय है लेश
का नाश करना। य क सकृ दागामी के अनुसार
भ ु संसार म एक ही बार आता है इस लए
उसका कत है क वह ोतापन क सीढ़ को
पार करने के प ात काम राग तथा तघ नामक
दो ब न को बल बनाकर मु के माग म
आगे बढ़े ।

3. अनागामी - अनागामी का अथ है फर से न
ज म लेने वाला। राग तथा तघ नामक दोन
ब न को काट दे ने पर भ ु अनागामी बनता है।
वह न तो संसार म ही ज म लेता है और न ही
कसी द लोक म।
4. अहत्- गत नवाण पदक ा त अहत्
का धान येय है।इस अव ा को ा त करने के
लये भ ु को बाक बचे ये पाँच ब न का
तोड़ना अ य त आव यक होता है जो इस कार
ह -
( १ ) पराग,
(२) अ पराग
(३) मान
(४) औ य
(५) अ व ा ।

इन पांच ब न के छे दन करते ही सब लेश


समा त हो जाते ह। उसके सम त ख का अ त
हो जाता है। वह चरम शा त का अनुभव करता
है। संसार म साधक को नवाण क ा त हो
जाती है। साधक इस जगत् म रहता आ भी
कमल-प के समान संसार से अ ल त रहता है।
नवाण क इसी अव ा को अहत् के नाम से
जाना जाता है। इसी अहत् पद क उपल
ावक यान का चरम ल य है।
2. येक बु यान - ावक और येकबु के
ल य म भेद नह होता। येक बु भी वमु
के ही अ भलाषी होते ह। ावक और येकबु
के ान म और पु य संचय म थोड़ा फ़क़ अव य
होता है। येकबु के वल शू यता का बोध
होता है, ाहकशू यता का नह । पु य भी ावक
क अपे ा उनम अ धक होता है। येकबु उस
काल म उ प होते ह, जस समय बु का नाम
भी लोक म च लत नह होता। वे बना आचाय
या गु के ही, पूवज म क मृ त के आधार पर
अपनी साधना ार करते ह और अह व और
नवाण पद ा त करते ह। इनक यह भी वशेषता
है क ये वाणी के ारा धम पदे श नह करते तथा
संघ बनाकर नह रहते अथात एकाक वचरण
करते ह।

बो धस वयान - बो धस वयान ही व तुतः महायान


है। बो धस व का ता पय उस से है जो ान
ा त करने का इ ु क है। इसके अ त र
बो धस व जनक याण क भावना से ओत ोत है
और इस क यही वशेषता इसे हीनयान से भ
एवं े बनाती है ाय दे खा जाता है क जो
व ान होता है उसे अपने व ा का दप भी
होता है अतः यह कहा नह जा सकता क जो
व ान होगा उसम क णा भी होगी कतु बो धस व
क सव थम शत ही ये है क बु वही बन
सकता है जसम ा के साथ-साथ क णा का
भी भाव हो। इस वषय म आचाय शा तदे व का
कथन नतांत साथक है -

यदा मम परेषां च भयं ःखं च न यम्।


तदा मनः को वशेषो य ं र ा म नेतरम्॥

बो धस व के अंतगत बु पद के ा त करने हेतु


कु छ नयम एवं स ांत का पालन करना होता है
जनम से एक है बो धचया और सरी है
प र मताएं।

बो धचया - बो धचया का ार बो ध च - हण
से होता है।बु ो भवेयं जगतो हताय' अथात सभी
ा णय को :ख से मु करने के लए म
बु व ा त क ँ गा-ऐसी अकृ म अ भलाषा
'बो ध च ' कहलाती है और सम जीव के
समु रणाथ बु व क ा त के लए स यक्
संबो ध म च को त त करना ही बो धस व
हण कहलाता है।बो ध च सव अथ साधन क
यो यता रखता है। भवजाल से मु पाने वाले
जीव के लए बो ध च का आ य नतांत
आव यक है य क यह महायानी साधना का
थम सोपान है। इसके अभाव म साधना का
ारंभ हो ही नह सकता। महायान म
बो ध च दो कार का बताया गया है -

1. बो ध ाणच
2 . बो ध ान च

बो ध च के अंतगत ही अनु र पूजा का भी


समावेश हो जाता है। बो ध च के उ पाद के
अनु र पूजा का वधान बताया गया है। यह पूजा
मान सक होती है।
इसके सात अंग होते ह जस कारण इसे
स त व ध अनु र पूजा कहा जाता है। ये सात
अंग ह -

ब दन
पूजन
पापदे शना
पु य अनुमोदन
बु ा येषण
बु याचना
बो धप रणामना

पार मता - बो धस व के प ात म आता है


पार मता का। पार मता का अथ होता है
पूणता।पार मता का अपना एक व तृत े है।
पार मता के पालन करने से पूण व क ा त
होती ह। कु ल मलाकर प र मताएं दस ह जनम
से छह प र मताएँ महायान के अंतगत आती ह जो
इस कार ह -

दान पार मता - सब व तु का अब जीव के


लए दान और दानफल का भी प र याग
दान-पार मता है।

शील प र मता - शील का अथ है- ाण तपात आ द


सम ग हत कम से च क वर त।इसके
अ यास से बो धस व क श ा म आदर भाव बढ़
जाता है।
ां त पार मता - ा त पार मता का अथ है- सर
के ारा अपकार होते ए भी च क
अकोपनता। सरे श द म त प च ं ाने वाले पर
ोध न करना ा त पार मता कहलाती है।

वीय पार मता - वीय का अथ है उ साह। जो मी


है वह वीय लाभ कर सकता है। वीय म बो ध
त त है।

ा पार मता - संसार के खमय पंच का मूल


अ व ा है और इस अ व ा को र करने का जो
उपाय है वो है ा। ा से च क एका ता
का ा भाव होता है।

यान पार मता - यान श द ' या' धातु से न प


है जसका अथ है- च तन, वचारणा,
समा ध।बो धस व भू म म च क एका ता एवं
च त को यान कहा है। महायान सू ोलंकार
के अनुसार जो मन को धारण करे उसे यान
कहते ह।
इस कार बो धचया के पालन तथा पार मता
क श ा से बो धस व क साधना सफल हो
जाती है। साधक बु व क ा त कर सब स व
के उ ार के लए सं लन हो जाता है।

न कष - इस कार हम दे खते ह क बौ धम
के तीन यान क याण क भावना से ओत ोत ह
कतु उन तीन म से बो धस वयान सवा धक उदार
एवं ापक है क तु इसका अथ ये नह है
ावकयान तथा येकबु यान कम मह वपूण ह।
इन दोन क अपनी अलग वशेषताएं ह जो
बो धस वयान म नह पाई जाती। ावकयान म
गृह होते ए भी नवाण का अ धकारी
बन सकता है। येकबु यान उनके लए है जो
संसार के पंच म नह फं सना चाहते। सरे श द
म वधयान नवाण ा त के वे तीन सोपान ह
जो येक वग के साधक के अनुसार ह। जो
जस माग से चाहे उस माग से नवाण ा त कर
सकता है। येक साधक क मता के अनुसार ये
तीन यान सरल से लेकर क ठन तक भी होते ह
जससे येक साधक इनसे लाभा वत होकर
नवाण पद ा त कर सके ।

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