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स्वजनः श्वजनो मा भत
ू ् सकलं शकलं सकृत ् शकृत ् ll
क्रादिनियम उस नियम को कहते हैं जब कृ, स,ृ भ,ृ व,ृ स्त,ु द्र,ु
स्त्र,ु श्रु इन आठ धातुओं द्वारा लिट् लकार में सेट/अनिट् की
प्रक्रिया को समझा जाता है । इस नियम में कृ सभी धातओ
ु ं के
आदि में पढ़ा गया है अतः इस नियम का क्रादिनियम के नाम से
व्यवहार किया जाता है ।
2. अब क्रमशः इन सत्र
ू ों की व्याख्या की जाती है -
वत्ति
ृ : - वलोदे रार्धधातुकस्य 'इट्' आगमः स्यात ्।
ऊदन्तैौति-रु-क्ष्णु-शीङ्-स्नु-नु-क्षु-श्वि-डीङ-श्रिभिः ।
वङ्
ृ -वभ्
ृ यां च विनैकाचोऽजन्तेषु निहताः स्मत
ृ ाः ।।
( 3) कृसृभृवृस्तु दरु
् स्रुश्रुवो लिटि।
वत्ति
ृ : क्रादिभ्य एव लिट इण्न स्याद् अन्यस्मादनिटोऽपि
स्यात ् ।।
विशेष : - इस सूत्र को क्रादिनियम के नाम से भी जाना जाता है ।
व्याख्या : कृ, स,ृ भ,ृ व,ृ स्त,ु द्र,ु स्त्र,ु श्र-ु इन आठ धातओ
ु ं से परे
लिट् को इट् का आगम न हो, किंतु अन्य अनिट् धातुओं से परे
लिट् को इट का आगम हो जाये।
उपरोक्त आठ धातओ
ु ं से लिट् में इट् का आगम न हो
वत्ति
ृ : उपदे शऽे जन्तो यो धातुस्तासौ नित्याऽनिट्, ततः परस्य
थल ् इट् (ण) न।
एकवचन ् वचन
दवि बहुवचन
मध्यम प०
ु सिप ् (थल ् ) थस ् (अथस
ु ्) थ (अ)
जैसे - क्षि धातु उपदे श में अजन्त है और तास ् में एकाच ्० होने से
अनिट् है ( क्रादि धातओ
ु ं में भी नहीं पढ़ी गई है ) अतः
ु ार यहां थल ् में इट् प्राप्त था किंतु प्रकृत सत्र
क्रादिनियम के अनस ू
से यहां इट् का निषेध हो गया और इस प्रकार 'अचस्तास्वत ् ० '
क्रादिनियम का आंशिक अपवाद बन गया ।
इस प्रकार ' वलादि आर्धधातुक०' का बाध 'एकाच ् उपदे शे ० ' से
हुआ , ' एकाच ् उपदे श०
े ' का आंशिक बाध 'क्रादिनियम' से हुआ
और क्रादिनियम का आंशिक बाध ' अचस्तास्वत ् ० '
से हुआ।
वत्ति
ृ : उपदे शऽे कारवतस्तासौ नित्यानिटः परस्य थल इट् न
स्यात ्।
वत्ति
ृ : तासौ नित्यानिट ऋदन्तादे व थलो नेट् भारद्वाजस्य
मते। तेन अन्यस्य स्यादे व।
पन
ु ः अभ्यास आदि और हलन्त्यम ् 'थल ्' के लकार का अनब
ु न्ध
लोप करने पर स्थिति हुई -
अ + अद् + थ ्
वत्ति
ृ : अद्, ऋ, व्येञ ् -एभ्यस्थलो नित्यमिट् स्यात ्।
व्याख्या : (खाना)
ऋ (जाना)
हु + हु + थल्
ह् + हु + थ