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ङीष् प्रत्यय- इसका प्रयोग द्धषत् तर्ा गौर शब्दों के सार् होता है । इसके
अन्त ई शेष रहता है । जैस
नतथक-ङीष् नतथकी, गौर-ङीष् गौरी, मंगल-ङीष् मंगली
ङीन् प्रत्यय- इसका प्रयोग नृ तर्ा नर शब्दों के सार् होता है । इसमें मात्र
ई शेष रहता है । जैस
न-ृ ङीन् नारी, नर-ङीन् नारी
द्धत प्रत्यय- युवन् शब्द के स्त्रीद्धलंग में द्धत प्रत्यय होता है । और द्धत लगने
पर न् का लोप हो जाता है । जैस
युवन् - द्धत युवद्धतः (युवती)
द्धनमाथणम-् प्रो. मदनमोहनझा, राद्धष्ियसंस्कृतसस्ं र्ानम,् श्रीरणवीरपररसरः, जम्मू
8 स्त्रीप्रत्यय
आनी प्रत्यय- इन्र, वरुण, भव, शवथ, रूर, मडृ , द्धहम,
अरण्य, यव, यवन, मातुल, तर्ा आचायथ शब्दों में ङीष्
प्रत्यय होता है तर्ा मध्य में आनुक् का आगम होता है ।
आनुक् में उक् का लोप हो जाता है । ङीष् का भी मात्र ई
शेष रहता है । जैसे-
इन्र आनुक् ङीष् इन्राणी
द्धहम आनुक् ङीष् द्धहमानी
यव आनुक् ङीष् यवानी
यवन आनुक् ङीष् यवनी
मातुल आनुक् ङीष् मातुलानी
आचायथ आनुक् ङीष् आचायाथणी
क्षद्धत्रय आनुक् ङीष् क्षद्धत्रयाणी
रूर आनुक् ङीष् रुराणी
भव आनुक् ङीष् भवानी
द्धनमाथणम-् प्रो. मदनमोहनझा, राद्धष्ियसंस्कृतसस्ं र्ानम,् श्रीरणवीरपररसरः, जम्मू