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॥ ॐ श्री महात्रिपरु -सन्ु दर्यै नमः ॥


॥ श्री महात्रिपरु -सन्ु दरी-सहस्रनाम-स्तोिम ( वामके श्वर-तन्ि से ) ॥
र्यह महात्रिपरु -सन्ु दरी-सहस्रनाम-स्तोिम, वामके श्वर-तन्ि से त्रिर्या गर्या है ।
र्यह माता का एक बहुत ही शत्रिशािी नाम-स्तोि है । इसका पाठ करने से मााँ की कृपा प्राप्त
होती है । साधक के सभी कार्यय त्रसद्ध होते हैं ।

माता के मन्ि-जप आत्रद से, माता का १०८-नाम स्तोि, १००८-नाम स्तोि, कवच पाठ, ज्र्यादा
सरु त्रित रहता है, इसमे त्रकसी तरह का खतरा नहीं होता है । महात्रिपरु -सन्ु दरी रूप, मााँ का एक
बहुत ही सौम्र्य रूप है । त्रिर भी सहस्त्रनाम के साथ माता का, एक शत्रिशािी कवच का भी-
पाठ कर िेना चात्रहर्ये । इससे त्रकसी भी तरह के अत्रनष्ट से रिा होती है ।
त्रकसी भी पजू ा मे पहिे, गणेश, गरुु , त्रशव जी की पजू ा जरूर कर िेनी चात्रहर्ये।
अपने कुिदेवता को भी स्मरण कर िेना चात्रहर्ये ।

माता का र्यह स्तोि त्रबना तीथय, तप, दान आत्रद के त्रबना त्रसद्ध होता है ।
देखें पवू य-पीत्रठका / श्लोक संख्र्या (१०)
त्रवना तीथेन तपसा, त्रवना दानैर-त्रवना मखैः॥१०॥
त्रवना िर्येन ध्र्यानेन नरः त्रसत्रद्धम-वाप्नर्यु ात ।

सस्ं कृत में तंि - मंि - कथा - स्तोि - कवच - सहस्त्रनाम आत्रद की रचना करते समर्य जान-बझू
कर वणो और शब्दों को जोड़-जोड़ कर बड़ा रखा गर्या है , तात्रक इसका सही अथय र्योग्र्य िोगों
को ही गरुु -और- त्रवद्वान िोगों के द्वारा सही िोगों को ही त्रमिे । जो भी रचनार्यें की गर्यी है , वह
जन-कल्र्याण के त्रिर्ये ही की गर्यी है । परन्तु दष्टु ों और इसका दरुू पर्योग करने वािों से ही गप्तु
रखने ( त्रकसी भी कीमत पर) को कहा गर्या है । सभी से गप्तु रखने को नहीं । िंबे-िंबे शब्दों को
बीच से जैस-े तैसे तोड़ने से उसका अथय का अनथय हो जाता है। गित शब्दों के बार-बार-उच्चारण
से िार्यदा के जगह पाठक को नक ु सान होता है । त्रजससे पाठक का भरोसा देवी-देवता / पजू ा-
पाठ से उठ जाता है ।
इसत्रिर्ये इस देवी-सहिनाम को सि ु भ करने के साथ-साथ सही अथय त्रनकिे इसका ध्र्यान रखा
गर्या है । शब्द सरि हो जाने से बहुत से अथय भी समझने मे आसानी हो जाती है, जैस-े
शचीन्राणी = शची-इन्राणी, चोग्रा = च-उग्रा
त्रनमयिाकाश = त्रनमयि-आकाश धमयत्रसत्रद्धर =धमयत्रसत्रद्धः

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मैने र्यहां कत्रठन िगने वािे शब्दों को -


"-" िगाकर छोटा और सरि करने का प्रर्यास त्रकर्या है, त्रजससे नर्ये साधक िोग ज्र्यादा-से-
ज्र्यादा पढ़ सकें ।
सहं रे रुररूपेण जगदेतच्चराचरम ॥१८॥ = सहं रे द-रुर-रूपेण जगदेतच-चर-अचरम
त्रसद्धर्यज्ञत्रिर्यात्रसत्रद्धर्ययज्ञाङगी र्यज्ञरत्रिका ।१०।
= त्रसद्ध-र्यज्ञ-त्रिर्या-त्रसत्रद्धर-र्यज्ञाङगी र्यज्ञ-रत्रिका

कुछ कत्रठन शब्द * त्रचत्रन्हत कर उसी िाईन के बाद, सरि करने का प्रर्यास त्रकर्या है, साधक
िोग दोनो शब्दों को एक ही जगह पर देख कर, ठीक से पढ़ सकें , ति ु ना करें , समझें और गित
िगे तो ठीक कर िें , जैसे -
महात्रकत्रल्बषनात्रशनीइ = महा-त्रकत्रल्बष-नात्रशनी
त्रवशािनर्यनोज्ज्विा = त्रवशाि-नर्यनो-ज-ज्विा
मैने कुछ ही शब्दों का सत्रं ध-त्रवच्छे द त्रकर्या और करके , उसका मि ू अथय साि-२ त्रदखे, ऐसा
प्रर्यास त्रकर्या है, तात्रक साधक गण देख,ें शब्द कै से छुपे हुए है ।
सवेत्रन्रर्य = सवय-इत्रन्रर्य , चोग्रा = च-उग्रा

कहीं कोई ित्रु ट न हो, इसका ध्र्यान रखने का पणू य प्रर्यास त्रकर्या गर्या है । त्रिर भी कुछ गिती हो,
ित्रु ट हो, तो उसमें सधु ार कर िें ।

र्यह त्रसिय देखने, पढ़ने, समझने और प्रैत्रटटस करने के त्रिर्ये है । माता का नाम ज्र्यादा-से-ज्र्यादा
पढ़ने से, कोई हात्रन नहीं होती, पर देखने सनु ने के बाद आप अपना मि ू पाठ ही पजू ा में उपर्योग
करें ॥ कोई भी पाठ गित नहीं है, पर अिग-अिग पस्ु तकों में नाम में कुछ न कुछ त्रवत्रभन्नता
त्रमिती ही है । सब माता का ही नाम है । आपकी श्रद्धा और आपका त्रवश्वास बड़ी बात है ।
" जर्य माता दी "
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|| Shri Maha Tripura-Sundari Sahasranama Stotram ||


ु न्दरी-सहस्रनाम-स्तोिम
॥ श्री महा-त्रिपर-स ु ( वामके श्वर-तन्त्र से) ॥ (Easy To Learn)

ु न्दरी-सहस्रनाम-स्तोिम
अथ श्री-महा-त्रिपरस ु ।
॥ पूव व पीत्रिका ॥
कै लास-त्रिखरे रम्ये, नाना-रत्नोप-िोत्रिते ।

कल्प-पादप-मध्यस्थे, नाना-पष्पोप-िोत्रिते ॥१॥
मत्रि-मण्डप-मध्यस्थे, मत्रु न-गन्धवव-सेत्रवते ।
ु -आसीनम-िगवन्तं-जगद्गरुम
तङ्कत्रित-सखम ु ॥२॥ *तङ्कत्रित = तङ-कि-त्रित
कपाल-खट्वाङ्ग-धरं -िंद्रार्द्व-कृ त-िेखरम । *खट-वाङ्ग, *िंद्रार्द्व= िंद्र-अर्द्व
त्रििूल-डमरू-हस्त-महा-वृषि-वाहनम ॥३॥

जटा-जूट-धरं-देव-वासकी-कण्ि-िू
षिम ।
त्रविूत्रत-िूषिं-देव-ं नीलकण्िं -त्रिलोिनम ॥४॥
द्वीत्रप-िमव-परीधानं िर्द्ु -स्फत्रटक-सन-त्रनिम ।
सहस्र-आत्रदत्य-सङ्कािं-त्रगत्ररजा-अर्द्ावङ्ग-िूषिम ॥५॥ *अर्द्ावङ्ग= अर्द्ाव-अङ्ग
प्रिम्य त्रिरसा नाथं-कारि-त्रवश्व-रूत्रपिम ।
ु िूत्वा प्राहैन ं त्रित्रख-वाहनः॥६॥
कृ ताञ्जत्रल-पटो
कार्ततके य उवाि-
देवदेव जगन्नाथ, सृत्रि-त्रस्थत्रत-लयात्मक ।
त्वमेव परमात्मा ि त्वङ्गत्रतः सवव-देत्रहनाम ॥७॥ *त्वङ्गत्रतः = त्वङ-गत्रतः
त्वं गत्रतस-सवव-लोकानान-दीनानाञ्च त्वमेव त्रह ।
त्वमेव जगदाधारस-त्वमेष त्रवश्वकारिः॥८॥
त्वमेव पूज्यस-सवेषान-त्वदन्यो* नात्रस्त मे गत्रतः। *त्वदन्यो =त्वद-अन्यो
ु -परमं लोके त्रकमेकं सवव-त्रसत्रर्द्दम ॥९॥
कक-गह्यम
त्रकमेकम-परमं श्रेष्ठ-ं त्रक योगं स्वगव-मोक्षदम ।
त्रवना तीथेन तपसा, त्रवना दान ैर-त्रवना मख ैः॥१०॥
ु ।
त्रवना लयेन ध्यानेन नरः त्रसत्रर्द्म-वाप्नयात
कस्माद-उत्पद्यते* सृत्रिः ककस्मि-ि प्रलयो िवेत ॥११॥ *उत्पद्यते = उत्पद-यते
कस्माद-उत्तीयवत े देव संसारािवव-सङ्कटात । *संसारािवव=संसार-आिवव

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तद-अहं श्रोतमु -इच्छात्रम कथयस्व महेश्वर ॥१२॥

ईश्वर उवािः-
साध ु साध ु त्वया पृि-ं पाववती-त्रप्रय-नन्दन ।

अत्रस्त गह्यतमम -पिु कथत्रयष्याम्य-संियम ॥१३॥
सत्त्वं रजस-तमि-ि ैव ये िान्ये महद-आदयः।
ये िान्ये बहवो िूताः सवव-प्रकृ त्रत-सम्भवाः॥१४॥
ु न्दरी
स ैव देवी पराित्रि-मवहा-त्रिपर-स ु ।
स ैव प्रसूयते त्रवश्वत्रवश्वं* स ैव प्रयास्यत्रत ॥१५॥ *त्रवश्व-त्रवश्वं?=त्रवश्व-अत्रवश्वं
स ैव संहरते त्रवश्वञ्जगदेति-िरािरम* । *िरािरम =िर-अिरम
आधारस-सवव-िूतानां स ैव रोगार्तत-हात्ररिी ॥१६॥
इच्छा-ज्ञान-त्रिया-ित्रिर-बह्म-त्रवष्ण-ु त्रिवादयः।
त्रिधा ित्रि-स्वरूपेि सृत्रि-त्रस्थत्रत-त्रवनात्रिनी ॥१७॥
सृज्यते ब्रह्म-रूपेि त्रवष्ण-ु रूपेि पाल्यते ।
संहरेद्रुद्ररूपेि जगदेतच्चरािरम ॥१८॥ ( *संहरेद-रुद्र-रूपेि जगदेति-िर-अिरम ॥ )
यस्या योनौ जगत-सववमद्यात्रप पत्ररवतवत े ।

यस्यां-प्रलीयते िान्ते* यस्याञ्च जायते पनः॥१९॥ *िान्ते=ि-अन्ते
यां समाराध्य िैलोक्यं सम्प्राप्तं-पदम-उत्तमम ।
तस्या नाम सहस्रन्त ु कथयात्रम शृिष्व
ु तत ॥२०॥

॥ त्रवत्रनयोगः ॥
ु न्दरी-सहस्रनाम-स्तोि-मन्त्रस्य
ॐ अस्य श्री-महा-त्रिपर-स ु
श्री-िगवान-दत्रक्षिा-मूर्तत-ऋत्रषः जगतीि-छन्दः

समस्त-प्रकट-गप्त-सम्प्रदाय-कु लकौलोत्तीिव-त्रनगवि-व रहस्य-अत्रिन्त्य-प्रिावती देवता
"ओम":बीजम ॥ "माया"-ित्रिः "कामराज"-बीज-कीलकम जीवो बीजम
सषु म्ना
ु नाडी सरस्वती ित्रिर-धमावथ व-काम-मोक्षाथे जपे त्रवत्रनयोगः॥
(नोट : त्रवत्रनर्योग में ॠत्रषः, देवता, बीज, कीिक, शत्रि, साधक की मनोकामना, सब-कुछ है )

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॥ ध्यान ॥
आधारे तरुिाकव त्रबम्बरुत्रिरं हेमप्रिम्वाग्भवम-
बीजं मन्मथत्रमन्द्रगोपसदृिं हृत्पङ्कजे संत्रस्थतम ।१।
त्रवष्णब्रु ह्मपदस्थित्रिकत्रलतं सोमप्रिािासरु
ये ध्यायत्रन्त पदियन्तव त्रिवे ते यात्रन्त सौख्यम्पदम ।२।
॥ ध्यान (सरल िब्दों में ) ॥
आधारे तरुिाकव -त्रबम्ब-रुत्रिरं, हेमप्रिम-वाग्भवम-
बीजं मन्मथम-इन्द्र-गोप-सदृिं हृत-पङ्कजे संत्रस्थतम ।१।
त्रवष्ण-ु ब्रह्म-पदस्थ-ित्रि-कत्रलतं, सोम-प्रिा-िासर,

ये ध्यायत्रन्त पद-ियन-तव त्रिवे, ते यात्रन्त सौख्यं-पदम ।२।
( सहस्र-नाम मूल पाि )
कल्यािी कमला काली कराली कामरूत्रपिी ।
कामाख्या कामदा काम्या कामना कामिात्ररिी ।१।
कालरात्रिर-महारात्रिः कपाली कालरूत्रपिी ।
कौमारी करुिा-मत्रु िः कत्रल-कल्मष-नात्रिनी ।२।
कात्यायनी कराधारा कौमदु ी कमल-त्रप्रया ।
कीर्ततदा बत्रु र्द्दा मेधा नीत्रतज्ञा नीत्रत-वत्सला ।३।
माहेश्वरी महामाया महातेजा महेश्वरी ।
ु ा ।४।
महात्रजह्वा* महाघोरा महादंष्ट्रा महािज *महात्रजह्वा = महात्रजह्वा
महा-मोहान्धकारघ्नी, महा-मोक्ष-प्रदात्रयनी ।
महा-दात्ररद्र्य-नािा ि महा-िि-ु त्रवमर्तिनी ।५।
महामाया महावीयाव महापातक-नात्रिनी ।
महामखा मन्त्रमयी मत्रिपूरक-वात्रसनी ।६। *मत्रिपूर ? =कुण्डत्रलनी
मानसी मानदा मान्या मनि-िक्षू रिेिरा ।
गिमाता ि गायिी गि-गन्धवव-सेत्रवता ।७।
त्रगत्ररजा त्रगत्ररिा साध्वी त्रगत्ररस्था त्रगत्रर-वल्लिा ।
िण्डेश्वरी िण्डरूपा प्रिण्डा िण्ड-मात्रलनी ।८।
िर्तवका िर्तिकाकारा ित्रण्डका िारु-रूत्रपिी ।

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यज्ञेश्वरी यज्ञरूपा जपयज्ञ-परायिा ।९।


यज्ञमाता यज्ञ-िोक्त्री यज्ञेिी यज्ञ-सम्भवा ।
त्रसर्द्यज्ञत्रियात्रसत्रर्द्यवज्ञाङ्गी यज्ञरत्रक्षका ।१०।
( * त्रसर्द्-यज्ञ-त्रिया-त्रसत्रर्द्र-यज्ञाङ्गी यज्ञ-रत्रक्षका ।१०। )
यज्ञत्रिया यज्ञरूपा यज्ञाङ्गी यज्ञ-रत्रक्षका ।
यज्ञत्रिया ि यज्ञा ि यज्ञायज्ञ-त्रियालया ।११।
जालन्धरी जगन्माता जातवेदा जगत्रिया* । *जगत-त्रप्रया
त्रजतेत्रन्द्रया त्रजतिोधा जननी जन्म-दात्रयनी ।१२।
गङ्गा गोदावरी ि ैव गोमती ि ितद्रुका ।
घघवरा वेदगिाव ि रेत्रिका समवात्रसनी ।१३।
त्रसन्धमु न्द
व ात्रकनी* त्रक्षप्रा यमनु ा ि सरस्वती । *त्रसन्धरु -मन्दात्रकनी
िद्रा राग-त्रवपािा ि गण्डकी त्रवन्ध्यवात्रसनी ।१४।
नमवदा त्रसन्ध ु कावेरी वेिवत्या सकौत्र
ु िकी ।
महेन्द्र-तनया ि ैव अहल्या िमवकावती ।१५।
अयोध्या मथरु ा माया कािी काञ्ची अवत्रन्तका ।
ु द्वारावती तीथाव महात्रकत्रिषनात्रिनीइ* ।१६।
परी *महा-त्रकत्रिष-नात्रिनी
पत्रिनी पि-मध्यस्था पि-त्रकञ्जल्क-वात्रसनी ।
पि-वक्त्रा िकोराक्षी पिस्था पि-सम्भवा ।१७।
ह्रीङ्कारी* कुण्डली-धारी हृत्पिस्था सलोिना
ु । *ह्रीङ्कारी=ह्रीङ-कारी (Some Bija Mantras)
श्रीङ्कारी-िूषिा लक्ष्ीः क्लीङ्कारी क्लेि-नात्रिनी ।१८। *श्रीङ, क्लीङ
हत्ररवक्त्रोद्भवा िान्ता हत्ररवक्त्रकृ तालया । ( *हत्रर-वक्त्रोद-िवा िान्ता हत्रर-वक्त्र-कृ तालया । )
हत्ररवक्त्रोद्भवा िान्ता, हत्रर-वक्ष-स्थल-त्रस्थता ।१९।
ु पा ि, त्रवष्ण-ु मातृ-स्वरूत्रपिी ।
वैष्णवी त्रवष्णरू
त्रवष्णमु ाया त्रविालाक्षी त्रविालनयनोज्ज्वला* ।२०। *त्रविाल-नयनो-ज-ज्वला
त्रवश्वेश्वरी त्रिवाराध्या त्रिवनाथा त्रिवत्रप्रया ।२१।
त्रिवमाता त्रिवाख्या ि त्रिवदा त्रिवरूत्रपिी ।
िवेश्वरी िवाराध्या िवेिी िवनात्रयका ।२२।
िवमाता िवगम्या िव-कण्टक-नात्रिनी ।

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िवत्रप्रया िवानन्दा िवानी िवमोत्रहनी ।२३।


गायिी ि ैव सात्रविी ब्रह्मािी ब्रह्म-रूत्रपिी ।
ब्रह्मेिी ब्रह्मदा ब्रह्मा ब्रह्मािी ब्रह्म-वात्रदनी ।२४।
दुगवस्था दुगवरूपा ि दुगाव दुगावर्तत-नात्रिनी ।

सगमा दुगवमा दान्ता दया दोग्ध्री दुरापहा ।२५।
दुत्ररतघ्नी दुराध्यक्षा दुरा दुष्कृ त-नात्रिनी ।
पञ्चास्या पञ्चमी पूिाव पूि-व पीि-त्रनवात्रसनी ।२६।
सत्त्वस्था सत्त्वरूपा ि सत्त्वस्था सत्त्व-सम्भवा ।

रजस्स्स्था ि रजोरूपा रजोगि-सम ु वा ।२७।
द्भ ु
रज,तम,सत्व = त्रिगि
तमस्स्स्था ि तमोरूपा तामसी तामस-त्रप्रया ।

तमोगि-सम ु ू ता* सात्रत्त्वकी राजसी कला ।२८।
द्भ *समदु -िूता
काष्ठा महूु ताव त्रनत्रमषा अत्रनमेषा ततः परम ।
अर्द्वमासा ि मासा ि सँवत्सर-स्वरूत्रपिी ।२९।
योगस्था योगरूपा ि कल्पस्था कल्प-रूत्रपिी ।
नानारत्न-त्रवत्रििाङ्गी, नानािरि-मत्रण्डता ।३०। *? नानािरि=नाना-आिरि
त्रवश्वात्रत्मका* त्रवश्वमाता त्रवश्वपाि-त्रवनात्रिनी । *त्रवश्व-आत्रत्मका
त्रवश्वास-कात्ररिी त्रवश्वा त्रवश्व-ित्रि-त्रविारिा ।३१।
यवा-कुसम-सङ्कािा,
ु दात्रडमी-कुसमोपमा
ु ।
ितरु ङ्गी ितबु ावहुितरु ािारवात्रसनी ।३२। (*ितबु ावहुि-ितरु ािार-वात्रसनी )
सवेिी सववदा सवाव सववदा सववदात्रयनी ॥
माहेश्वरी ि सवावद्या िवाविी सवव-मङ्गला ।३३।
नत्रलनी नत्रन्दनी नन्दा आनन्दा नन्द-वर्तर्द्नी ।
व्यात्रपनी सवव-िूतषे ु िव-िार-त्रवनात्रिनी ।३४।
सवव-शृङ्गार-वेषाढ्या, पािाङ्कुि-करोद्यता । *पािाङ्कुि = पाि-अङ्कुि
सूय-व कोत्रट-सहस्रािा िन्द्र-कोत्रट-त्रनिानना ।३५।
गिेि-कोत्रट-लावण्या त्रवष्ण-ु कोट्यत्रर-मर्तदनी ।
दावात्रि-कोत्रट-नत्रलनी, रुद्र-कोट्य-उग्ररूत्रपिी ।३६।
समद्रु -कोत्रट-गम्भीरा, वाय-ु कोत्रट-महाबला ।

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आकाि-कोत्रट-त्रवस्तारा, यम-कोत्रट-ियङ्करी ।३७।


ु ाया, गिकोत्रट-समृत्रर्द्दा ।
मेरुकोत्रट-समच्छ्र
वु ा गिवर्त
त्रनष्क-स्तोका त्रनराधारा त्रनगि ु जता ।३८।
अिोका िोक-रत्रहता, ताप-िय-त्रववर्तजता ।
वत्रसष्ठा त्रवश्वजननी त्रवश्वाख्या त्रवश्व-वर्तर्द्नी ।३९।
त्रििा त्रवत्रिि-त्रििाङ्गी हेतगु िाव कुलेश्वरी ।
इच्छा-ित्रिर-ज्ञान-ित्रिः त्रियाित्रिः ित्रु ि-त्रस्मता ।४०।
ित्रु िः स्मृत्रतमयी सत्या श्रत्रु तरूपा श्रत्रु तत्रप्रया ।
महा-सत्त्व-मयी सत्त्वा पञ्चतत्त्वोपत्ररत्रस्थता ।४१। *पञ्च-तत्त्व-उपत्रर-त्रस्थता
ु पारस्था पार-रूत्रपिी ।
पाववती त्रहमवत्पिी* ु
*त्रहमवत-पिी
जयन्ती िद्रकाली ि अहल्या कुल-नात्रयका ।४२।
े ी िूतस्था िूतिावना ।
िूतधािी ि िूति
महा-कुण्डत्रलनी ित्रिर-महा-त्रविव-वर्तर्द्नी ।४३।
हंसाक्षी हंसरूपा ि हंसस्था हंस-रूत्रपिी ।
सोम-सूयावत्रि*-मध्यस्था, मत्रि-मण्डल-वात्रसनी ।४४। *सूयावत्रि = सूय-व अत्रि
द्वादिार-सरोजस्था, सूय-व मण्डल-वात्रसनी ।
अकलङ्का ििाङ्कािा* षोडिार-त्रनवात्रसनी ।४५। *ििाङ्कािा =ििाङ्क-आिा
डात्रकनी रात्रकनी ि ैव लात्रकनी कात्रकनी तथा । ( Note: Kundalini shakti's)
िात्रकनी हात्रकनी ि ैव षट-ििे ष ु त्रनवात्रसनी ।४६।
सृत्रि-त्रस्थत्रत-त्रवनािाय सृत्रि-त्रस्थत्य-अन्तकात्ररिी ।
श्री-कण्ि-त्रप्रय-हृत-कण्िा, नन्दाख्या त्रबन्दुमात्रलनी ।४७।
ितषु -षत्रि-कलाधारा, देह-दण्ड-समात्रश्रता ।
माया काली धृत्रतमेधा क्षधु ा तत्रु िर-महाद-यत्रु तः।४८।
ु ा मङ्गला सीता सषु म्ना-मध्य-गात्र
त्रहङ्गल ु मनी ।
परघोरा करालाक्षी त्रवजया जयदात्रयनी ।४९।
हृत-पि-त्रनलया, िीम-महा-िरै व-नात्रदनी ।

आकाि-त्रलङ्ग-सम्भूता, िवनोद्यान-वात्रसनी ।५०। ु -उद्यान-वात्रसनी
*िवन

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महत्सूक्ष्ा* ि कङ्काली िीमरूपा महाबला । *महत-सूक्ष्ा


मेनका-गिव-सम्भूता, तप्त-काञ्चन-सत्रन्निा ।५१।
अन्तरस्था कू टबीजा त्रिकू टािल-वात्रसनी ।
विावख्या विवरत्रहता पञ्चािद-विव-िेत्रदनी ।५२। (? पञ्चाि विव = ५०-विव)
त्रवद्याधरी लोकधािी अप्सरा अप्सरः त्रप्रया । अप्सरा ?
दीक्षा दाक्षायिी दक्षा दक्षयज्ञ-त्रवनात्रिनी ।५३।
यिः पूिाव यिोदा ि यिोदा-गिव-सम्भवा ।
देवकी देवमाता ि रात्रधका कृ ष्ण-वल्लिा ।५४।
अरुन्धती ििीन्द्रािी* गान्धारी गन्ध-मात्रलनी । *ििीन्द्रािी = ििी-इन्द्रािी
ध्यानातीता ध्यान-गम्या ध्यानज्ञा ध्यान-धात्ररिी ।५५।
लम्बोदरी ि लम्बोष्ठी जाम्बवन्ती जलोदरी ।
ु के िी, मि
महोदरी मि ु -कामाथ व-त्रसत्रर्द्दा ।५६।

तपत्रस्वनी तपोत्रनष्ठा सपिाव धमववात्रसनी ।
वाि-िाप-धरा धीरा पाञ्चाली पञ्चम-त्रप्रया ।५७। ( पञ्चम-त्रप्रया=? ५-"म"-कार)

गह्याङ्गी* ु
ि सिीमा ु
ि गह्य-तत्त्वा त्रनरञ्जना । ु
*गह्याङ्गी=ग हु -याङ्गी
अिरीरा िरीरस्था संसारािवव-तात्ररिी ।५८। * संसार-आिवव, आिवव =समद्रु
अमृता त्रनष्कला िद्रा सकला कृ ष्ण-त्रपङ्गला ।
िित्रप्रया ि ििाह्वा* पञ्च-िि-आत्रद-दात्ररिी*।५९। *ििाह-वा, दात्ररिी? या धात्ररिी?
पि-राग-प्रतीकािा, त्रनमवलाकाि-सत्रन्निा । *त्रनमवलाकाि=त्रनमवल-आकाि
अधःस्था ऊर्द्ध्व-रूपा ि ऊर्द्ध्व-पि-त्रनवात्रसनी ।६०।
व े िश्वद्रूपेष*ु संत्रस्थता ।
कायव-कारि कतृत्व * िश्वद-रूपेष ु
रसज्ञा रस-मध्यस्था गन्धस्था गन्ध-रूत्रपिी ।६१।
परब्रह्म-स्वरूपा ि परब्रह्म-त्रनवात्रसनी ।
िब्द-ब्रह्म-स्वरूपा ि िब्दस्था िब्द-वर्तजता ।६२।
त्रसत्रर्द्र-बत्रु र्द्ः पराबत्रु र्द्ः सन्दीत्रप्तर-मध्य-संत्रस्थता ।
ु िाम्भवी-ित्रिस-तत्त्वस्था तत्त्व-रूत्रपिी ।६३।
स्वगह्या* *स्वगहु -या
िाश्वती िूतमाता ि महा-िूतात्रधप-त्रप्रया । *महा-िूतात्रधप-त्रप्रया= महा-िूत-अत्रधप-त्रप्रया।
ित्रु िप्रेता धमवत्रसत्रर्द्र-धमववत्रृ र्द्ः परात्रजता ।६४। *धमवत्रसत्रर्द्र = धमवत्रसत्रर्द्ः

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काम-सन्दीत्रपिी कामा सदा कौतूहल-त्रप्रया ।


ु ा सूक्ष्ा ित्रि-त्रविूषिा ।६५।
जटा-जूट-धरा मि
द्वीत्रप-िमव-परीधाना िीर-वल्कल-धात्ररिी ।
त्रििूल-डमरु-धरा, नर-माला-त्रविूषिा ।६६।
ु पिी* िोग्रा कल्पान्त-दहनोपमा ।
अत्यग्ररूत्र *अत्य-उग्ररूत्रपिी, िोग्रा = ि-उग्रा
िैलोक्य-सात्रधनी साध्या त्रसत्रर्द्-साधक-वत्सला ।६७।

सवव-त्रवद्या-मयी सारा िासरािात्रवनात्रिनी* । ु
*ि-आसरािा-त्रवनात्रिनी
दमनी दामनी दान्ता दया दोग्ध्री दुरापहा ।६८।
अत्रि-त्रजह्वोपमा* घोरा घोर-घोर-तरानना । * त्रजह्वोपमा = त्रजह-वोपमा
नारायिी नारकसही नृकसह-हृदये-त्रस्थता ।६९।
योगेश्वरी योगरूपा योगमाता ि योत्रगनी ।
खेिरी खिरी खेला त्रनवावि-पद-संश्रया ।७०।
नात्रगनी नागकन्या ि सवेु िा नाग-नात्रयका ।
त्रवष-ज्वाला-वती दीप्ता कलाित-त्रविूषिा ।७१।
तीव्र-वक्त्रा महा-वक्त्रा नाग-कोत्रटत्व-धात्ररिी ।

महासत्त्वा ि धमवज्ञा धमावत्रत-सखदात्रयनी ।७२। *धमावत्रत= धमव-अत्रत
कृ ष्ण-मूर्द्ाव महा-मूर्द्ाव घोर-मूर्द्ाव वरानना । Read Fast as: मूर्द्ाव= मूर-द-धा
सवेत्रन्द्रय-मनोन्मत्ता सवेत्रन्द्रय-मनोमयी ।७३। *सवेत्रन्द्रय = सवव-इत्रन्द्रय
सवव-सङ्ग्राम-जयदा सवव-प्रहरिोद्यता ।
सवव-पीडोप-िमनी सवावत्ररि-त्रनवात्ररिी ।७४। *पीडा-उपिमनी, *सवव-अत्ररि
ु न्ना, सवव-ग्रह-त्रवनात्रिनी ।
सवव-ऐश्वयव-समत्प
मातङ्गी मत्त-मातङ्गी मातङ्गी-त्रप्रय-मण्डला ।७५।
अमृतो-दत्रध-मध्यस्था कत्रट-सूिरै -अलङ्कृता ।
ु ।७६।
अमृतोदत्रध-मध्यस्था प्रवाल-वसनाम्बजा
मत्रि-मण्डल-मध्यस्था ईषिहत्रसतानना* । *ईषत-प्रहत्रसतानना
कुमदु ा लत्रलता लोला लाक्षा लोत्रहत-लोिना ।७७।
त्रदग्ध्वासा देवदूती ि देव-देवात्रध-देवता ।
कसहोपत्रर*-समारूढा त्रहमािल-त्रनवात्रसनी ।७८। *कसहोपत्रर=कसह-उपत्रर

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अट्-आट्हात्रसनी घोरा घोर-दैत्य-त्रवनात्रिनी ।



अत्यग्र-रि-वस्त्रािा नाग-के यूर-मत्रण्डता ।७९।
ु ाहार-लतोपेता
मि तङ्गु -पीन-पयोधरा ।
रिोत्पल-दलाकारा मदा-घूर्तित-लोिना ।८०। *दलाकारा = दल-आकारा
ु र*-क्षयकात्ररिी ।
समस्त-देवता-मूर्ततः सरात्र ु र=सर-अत्र
*सरात्र ु र=देवता का िि ु
खत्रिनी िूलहस्ता ि ित्रििी ििमात्रलनी ।८१।
ित्रिनी िात्रपनी वािी वत्रििी वि-दत्रण्डनी ।
आनन्दोदत्रध-मध्यस्था कत्रटसूिरै लङ्कृता ।८२। *कत्रटसूिरै -अलङ्कृता
नानािरि-दीप्ताङ्गा नानामत्रि-त्रविूत्रषता । *नाना-आिरि-दीप्त-अङ्गा
ु िता ।८३।
जगदानन्द-सम्भूता त्रिन्तामत्रि-गिात्र
िैलोक्य-नत्रमता तयु ाव त्रिन्मयानन्द-रूत्रपिी ।

िैलोक्य-नत्रन्दनी देवी दुःख-सस्स्वप्न*-नात्र िनी ।८४। ु
सस्स्वप्न ? या दुस्स्वप्न ?
घोरात्रि-दाह-िमनी राज्यदेवाथ व-सात्रधनी । * घोरात्रि = घोर-अत्रि
महा-परा-धरा-त्रिघ्नी महािौर-ियापहा ।८५।
रागात्रद*-दोष-रत्रहता जरामरि-वर्तजता । *राग-आत्रद
िन्द्र-मण्डल-मध्यस्था पीयूषािवव-सम्भवा ।८६।
सववदवे ःै स्ततु ा देवी, सववत्रसर्द्ैन्न वमस्कृ ता* । *सववत्रसर्द्ैन-व नमस्कृ ता
अत्रिन्त्य-ित्रिरूपा ि मत्रि-मन्त्र-महौषधी ।८७। *महौषधी= महा-औषधी
अत्रस्त-स्वत्रस्त-मयी बाला मलयािल-वात्रसनी ।
धािी त्रवधािी संहारी रत्रतज्ञा रत्रतदात्रयनी ।८८।
रुद्रािी रुद्ररूपा ि रुद्र-रौद्रार्तत्त-नात्रिनी ।
सववज्ञा ि ैव धमवज्ञा रसज्ञा दीन-वत्सला ।८९।
अनाहता त्रिनयना त्रनिावरा त्रनवृत्रव तः परा ।

पराघोरा करालाक्षी समती श्रेष्ठ-दात्रयनी ।९०।
ु न्त्रिी ।
मन्त्रात्रलका मन्त्र-गम्या मन्त्रमाला समत्र
वु -आत्रत्मका ।९१।
श्रर्द्ानन्दा महािद्रा त्रनद्ववन्द्वा* त्रनगि *त्रनद्ववन्द्वा =त्रनर-द्वन-द्वा

धत्ररिी धात्ररिी पृथ्वी धरा धािी वसन्धरा ।
मेरुमन्दरमध्यस्थात्रस्थत्रतः* िङ्कर-वल्लिा ।९२। *मेरु-मन्दर-मध्यस्था-त्रस्थत्रतः

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श्रीमती श्रीमयी श्रेष्ठा श्रीकरी िाविात्रवनी ।


श्रीदा श्रीमा श्रीत्रनवासा श्रीमती श्रीमताङ-गत्रतः।९३।
उमा सारत्रङ्गिी कृ ष्णा कुत्रटला कुत्रटलालका ।

त्रिलोिना त्रिलोकात्मा पण्य-प ु
ण्या प्रकीर्ततता ।९४।
अमृता सत्य-सङ्कल्पा सासत्या* ग्रत्रि-िेत्रदनी । *सासत्या = ?स-असत्या
परेिी परमा साध्या परात्रवद्या परात्परा ।९५।

सन्दराङ्गी ु व-आिा सरास
सवि ु र-नमस्कृ
ु ता । ु रु = सर-अस
*सरास ु रु
प्रजा प्रजावती धन्या धन-धान्य-समृत्रर्द्दा ।९६।
ु िानी िवानी िवने
ईिानी िवने ु श्वरी ।
अनन्ता-नत-मत्रहता जगत-सारा जगद-िवा ।९७।
अत्रिन्त्यात्मा त्रिन्त्यित्रित्रिन्त्यात्रिन्त्यस्वरूत्रपिी ।
(* अत्रिन्त्य-आत्मा त्रिन्त्य-ित्रि-ि-त्रिन्त्य-अत्रिन्त्य-स्वरूत्रपिी । )
ज्ञान-गम्या ज्ञान-मूर्ततर-ज्ञात्रननी ज्ञान-िात्रलनी ।९८।

अत्रसता घोररूपा ि सधा-धारा ु
सधावहा ।
ु यनी* ।९९।
िास्करी िास्वती िीत्रतिावस्वदक्षानिात्र ु यनी
*िीत्रतर-िास्व-दक्ष-अनिात्र
अनसूया क्षमा लज्जा दुलविा िरिात्रत्मका ।
त्रवश्वघ्नी त्रवश्ववीरा ि त्रवश्वघ्नी त्रवश्व-संत्रस्थता ।१००। *त्रवश्वघ्नी = त्रवि-व-घ-नी

िीलस्था िीलरूपा ि िीला िील-प्रदात्रयनी ।


बोधनी बोधकुिला रोधनी बोधनी तथा ।१०१।
त्रवद्योत्रतनी त्रवत्रििात्मा ु टलसत्रन्निा* ।
त्रवद्यत्प *त्रवद्यतु -पटल-सत्रन्निा
त्रवश्वयोत्रनर-महायोत्रनः कमवयोत्रनः त्रप्रयात्रत्मका ।१०२।
रोत्रहिी रोगिमनी महारोग-ज्वरापहा ।
रसदा पत्रु िदा पत्रु िमावनदा मानवत्रप्रया ।१०३।
कृ ष्णाङ्ग-वात्रहनी कृ ष्णा कृ ष्णा-कृ ष्ण-सहोदरी ।

िाम्भवी िम्भरूपा ु िम्भ-सम्भवा
ि िम्भस्था ु ।१०४।
त्रवश्वोदरी* योगमाता योग-मद्रु ाध्न-योत्रगनी । *त्रवश्वोदरी = त्रवश्व-उदरी
वागीश्वरी योगत्रनद्रा योत्रगनी-कोत्रट-सेत्रवता ।१०५।

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कौत्रलका मन्द-कन्या ि शृङ्गार-पीिवात्रसनी ।


क्षेमङ्करी सववरूपा त्रदव्यरूपा त्रदगम्बरी ।१०६।
धूम्रवक्त्रा धूम्रनेिा धूम्रके िी ि धूसरा ।
त्रपनाकी रुद्रवेताली महावेताल-रूत्रपिी ।१०७।
तत्रपनी तात्रपनी दीक्षा त्रवष्ण-ु त्रवद्यात्मनाश्रीता ।
मिरा जिरा तीव्रा अत्रि-त्रजह्वा ियापहा ।१०८।
पिघ्नु ी पिरू
ु पा ि पिहु ा पिबु ात्रहनी ।
पीता माता ि धीरा ि पि-ु पाि-त्रवनात्रिनी ।१०९। *पि-ु पाि = ? अि पाि
िन्द्रप्रिा िन्द्ररेखा िन्द्र-कात्रन्त-त्रविूत्रषिी ।
कुङ्कुमात्रङ्कत-सवावङ्गी सधा-सद
ु ु
-गरु-लोिना ।११०।
( *कुङ्कुमात्रङ्कत-सवावङ्गी = कुङ्कम
ु -अत्रङ्कत-सवव-आङ्गी )
ु ाम्बर-धरा देवी वीिा-पस्तक-धात्र
िक्ल ु रिी ।
ऐरावत-पि-धारा श्वेत-पिासन-त्रस्थता ।१११।
रिाम्बर-धरा देवी रि-पि-त्रवलोिना ।
दुस्तरा तात्ररिी तारा तरुिी तार-रूत्रपिी ।११२।

सधाधारा ि धमवज्ञा धमवसङ्गोपदेत्रिनी* । *धमवसङ्गोपदेत्रिनी=धमवसङ्ग-उपदेत्रिनी
िगेश्वरी िगाराध्या ित्रगनी िगनात्रयका ।११३।
िगत्रबम्बा िगत्रक्लन्ना िगयोत्रनर-िगप्रदा ।
िगेश्वरी िगाराध्या ित्रगनी िगनायका ।११४।
ु िगावहा ।
िगेिी िगरूपा ि िगगह्या* ु
*िगगह्या=िगग हु -या
िगोदरी िगानन्दा िगस्था िगिात्रलनी ।११५।
सवव-सङ्क्षोत्रििी ित्रिस-सवव-त्रवद्रात्रविी तथा । *सङ्क्षोत्रििी = सङ-क्षोत्रििी
ु पा महोत्कटा ।११६।
मात्रलनी माधवी माध्वी मधरू
ु -तमोपहा ।
िरुण्ड-ित्रन्द्रका ज्योत्स्ना त्रवश्व-िक्षस

सप्रसन्ना महादूती यमदूती ियङ्करी ।११७।
ु िता* ।
उन्मात्रदनी महारूपा त्रदव्यरूपा सरार्त ु िता=सर-अर्त
*सरार्त ु िता
ि ैतन्य-रूत्रपिी त्रनत्या त्रक्लन्ना काम-मदोर्द्ता* ।११८। *मदोर्द्ता = मदोद-धता
मत्रदरानन्द-कै वल्या मत्रदराक्षी मदालसा ।

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त्रसर्द्ेश्वरी त्रसर्द्त्रवद्या त्रसर्द्ाद्या त्रसर्द्-सम्भवा ।११९।


त्रसर्द्र्तर्द्ः त्रसर्द्माता ि त्रसत्रर्द्स्सवावथत्रव सत्रर्द्दा* । *त्रसत्रर्द्स-सवावथ व-त्रसत्रर्द्दा

मनोमयी गिातीता परञ्ज्योत्रतःस्वरूत्रपिी ।१२०। परञ्ज्योत्रतः=परं ज्योत्रतः Same
परेिी परगा पारा परात्रसत्रर्द्ः परागत्रतः।
त्रवमला मोत्रहनी आद्या मधपु ान-परायिा ।१२१।
वेद-वेदाङ्ग-जननी सवव-िास्त्र-त्रविारदा ।
सवव-देवमयी त्रवद्या सवव-िास्त्र-मयी तथा ।१२२।
सवव-ज्ञान-मयी देवी सववधमवमयीश्वरी* । * सववधमवमयीश्वरी = सवव-धमवमय-ईश्वरी
सवव-यज्ञ-मयी यज्ञा सवव-मन्त्रात्रधकात्ररिी* ।१२३। *मन्त्रात्रधकात्ररिी = मन्त्र-अत्रधकात्ररिी
सवव-सम्पत-प्रत्रतष्ठािी सवव-त्रवद्रात्रविी परा ।
सवव-सङ्क्षोत्रििी देवी सवव-मङ्गल-कात्ररिी ।१२४।
िैलोक्य-आकर्तषिी देवी सवावह्लादन-कात्ररिी । *सवावह्लादन=सवव-आह्लादन
सवव-सम्मोत्रहनी देवी सवव-स्तम्भन-कात्ररिी ।१२५।
िैलोक्य-जृत्रम्भिी देवी तथा सवव-विङ्करी ।
िैलोक्य-रत्रञ्जनी देवी सवव-सम्पत्रत्त-दात्रयनी ।
सवव-मन्त्र-मयी देवी सवव-द्वन्द्व-क्षयङ्करी ।१२६।
सवव-त्रसत्रर्द्प्रदा देवी सवव-सम्पत-प्रदात्रयनी ।
सवव-त्रप्रय-करी देवी सवव-मङ्गल-कात्ररिी ।१२७।
सववकामप्रदा देवी सववदुःख-त्रवमोत्रिनी ।

सवव-मृत्य-प्रिमनी सवव-त्रवघ्न-त्रवनात्रिनी १२८।

सवावङ्गसन्दरी* माता सवव-सौिाग्ध्य-दात्रयनी । ु
*सवव-अङ्ग-सन्दरी
सववज्ञा सवव-ित्रिि-ि सवैश्वयव*-फलप्रदा ।१२९। *सवैश्वयव=सवव-ऐश्वयव
सववज्ञानमयी देवी सवव-व्यात्रध-त्रवनात्रिनी ।
सवावधार-स्वरूपा ि सवव-पाप-हरा तथा ।१३०। *सवावधार = सवव-आधार
सवावनन्दमयी देवी सवेक्षायाःस्वरूत्रपिी ।
सवव-लक्ष्ीमयी त्रवद्या सवेत्रप्सत*-फलप्रदा ।१३१। *सवेत्रप्सत =सवव-ईत्रप्सत
सवावत्ररि-प्रिमनी परमानन्द-दात्रयनी । *सवावत्ररि = सवव-अत्ररि
त्रिकोि-त्रनलया त्रिस्था त्रिमािा त्रि-तन-त्रु स्थता ।१३२।

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त्रिवेिी त्रिपथा त्रिस्था त्रिमूर्तत-स-त्रिपरेु श्वरी ।


ु सनी*।१३३। *त्रित्रवत्रिपरवात्र
त्रिधाम्नी त्रिदिाध्यक्षा त्रित्रवत्रिपरवात्र ु सनी = त्रि-त्रवत-त्रिपरवात्र
ु सनी

ियीत्रवद्या ि त्रित्रिरा िैलोक्या ि त्रि-पष्करा ।
ु त्रिपरात्र
त्रिकोटरस्था त्रित्रवधा त्रिपरा ु त्मका ।१३४।

त्रिपराश्री ु त्रिपर-स
त्रिजननी त्रिपरा ु न्दरी
ु ।
ु न्दयाव
इदत्रन्त्रपरस ु ु न्दयाव
ः* स्तोिं-नाम सहस्रकम ।१३५। *इदत्रन्त्रपरस ु ु न्दयाव
ः=इदं-त्रिपर-स ु ः
॥ फलश्रत्रु त ॥
ु ह्यतरम्प
गह्याद्ग ु ु तव प्रीत्य ै प्रकीर्तततम ।
ि* *गहु -याद-गह्य
ु तरं-पिु
गोपनीयम-प्रयत्नेन पिनीयम-प्रयत्नतः।१३६। गोपनीर्यम-प्रर्यत्नेन पठनीर्यम-प्रर्यत्नतः।१३६।

नातः परतरं-पण्य-न -नातः परतरं-तपः।
नातः परतरं स्तोिं-नातः परतरा गत्रतः।१३७।
स्तोिं सहस्रनामाख्यं* मम वक्त्राद-त्रवत्रनगवतम । *सहस्रनाम-आख्यं
यः पिे त-प्रयतो िक्त्या शृियु ाद्वा* समात्रहतः।१३८। *शृियु ाद्वा = शृियु ाद-वा
ु ।
मोक्षाथी लिते मोक्षं स्वगावथी स्वगवम-आप्नयात
ु -कामी, धनाथी ि लिेर्द्नम* ।१३९।
कामांि-ि प्राप्नयात *लिेद-धनम
त्रवद्याथी लिते त्रवद्या-यिोथी लिते यिः।

कन्याथी लिते कन्यां, सताथी ु ।१४०।
लिते सतम ु
*सताथी ु ि)
=सत(प ु की कामना
गर्तु विी जनयेत-पिङ
ु -कन्या त्रवन्दत्रत सत्पत्रतम । *सत्पत्रतम = सत-पत्रतम
मूखोऽत्रप लिते िास्त्रं हीनोऽत्रप लिते गत्रतम ॥१४१॥
सङ्क्रान्त्यावाकावमावस्यामिम्याञ्च त्रविेषतः। (* Special Puja Days)
पौिवमास्याञ्चतिु श्व यान्नवम्याम्भौमवासरे ।१४२।
(* सङ्क्रान्त्या-वाकव -अमावस्याम-अिम्यां-ि त्रविेषतः।
पौिवमास्यां-ितिु श्व यान-नवम्याम-िौमवासरे ।१४३। )
पिे द-वा पाियेद-व-अत्रप शृियु ाद-वा समात्रहतः।
ु स्सववपापेभ्यः कामेश्वर-समो िवेत ।१४४।
स मि
ु स्सववपापेभ्यः = मि
(*मि ु स-सववपापेभ्यः= मि
ु ःसववपापेभ्यःALL Same)
लक्ष्ीवान-धमववांि-ि ैव वल्लिस-सववयोत्रषताम* । या *वल्लिः-सववयोत्रषताम ।
तस्य वश्यम-िवेदाि ु िैलोक्यं सिरािरम* ।१४५। *सिरािरम = स-िर-अिरम

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रुद्रन-दृष्ट्वा यथा देवा, त्रवष्णनु -दृष्ट्वा ि दानवाः। *दृष्टवा = दृष्ट-वा


यथात्रहर-गरुडन-दृष्ट्वा कसहन-दृष्ट्वा यथा गजाः।१४६।
कीट-वत-प्र-पलायन्ते तस्य वक्त्रावलोकनात* । वक्त्रावलोकनात = वक्त्र-अवलोकनात
अत्रििौरियन्तस्य* कदात्रिन-न ैव सम्भवेत ।१४७। *अत्रि-िौर-िय-न-तस्य
पातका त्रवत्रवधाः िात्रन्तर-मेरुपववत-सत्रन्निाः।
यस्मात्तच्छृियु ात्रद्वघ्नांस्ति
ृ वत्रिहुतय्यथा ।१४८।
( यस्मात-तच्छृियु ाद-त्रवघ्नांस-तृि-वत्रि-हुतय-यथा ॥ )
एकदा पिनादेव* सववपापक्षयो िवेत । * पिनादेव = पिनाद-एव
दिधा पिनाद-एव, वािा त्रसत्रर्द्ः प्रजायते ।१४९।
ितधा पिनाद-वात्रप खेिरो जायते नरः।
सहस्र-दि-सङ्ख्या-तयः पिे द-ित्रि-मानसः।१५०। *सङ्ख्या = सङ-ख्या
मातास्य जगतांधािी प्रत्यक्षा िवत्रत रवु म ।
ु स्तोि-राजम-पिे त-सधीः।१५१।
लक्षपूि े यथा पि, ु
वु ो
िव-पाि-त्रवत्रनमि ु ो न संियः।
मम तल्य
सवव-तीथेष ु यत-पण्यं
ु सकृ ज-जप्त्वा लिेन-नरः।१५२।
सवव-वेदषे ु यत-प्रोिन-तत्फलम-पत्ररकीर्तततम ।
िूत्वा ि बलवान-पिु धनवान-सवव-सम्पदः।१५३।
देहान्ते परमं स्थान-यत-सरैु र-अत्रप दुलविम ।
स यास्यत्रत* न सन्देहः स्तव-राजस्य कीतवनात ।१५४। *यास्यत्रत = य-अस्यत्रत

इत्रत श्रीवामके श्वरतन्त्रे हरकुमारसँवादे महात्रिपरस


ु न्दयाव
ु ः षोडश्याः सहस्रनामस्तोिं समाप्तम

( इत्रत श्री-वामके श्वर-तन्िे हर-कुमार-साँवादे महा-त्रिपरु -सन्ु दर्यायः षोडशर्याः सहस्र-नाम-स्तोिं
समाप्तम ॥ )

( * र्यह महा-त्रिपरु -सन्ु दरी / षोडशी माता का सहस्र-नाम-स्तोि, श्री-वामके श्वर-तन्ि से है, र्यह
कात्रतयकेर्य और ईश्वर के बीच -साँवाद रूप में है )

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(Basic - Information About This Sahastranama )

त्रकसी भी सहस्त्रनाम, कवच र्या स्तोि में मख्ु र्यतः ३-भाग होतें हैं ।
१. पवू य पीत्रठका
२. मख्ु र्य भाग - ( त्रवत्रनर्योग, ध्र्यान, न्र्यास के साथ, मख्ु र्य स्तोि का भाग)
३. ििश्रतु ी
॥ पवू य पीत्रठका - में कवच, सहस्रनाम को पहिी बार कब, कहां त्रकस देवी-देवता-र्या ऋत्रष-मनु ी
ने, त्रकस देवी-देवता-र्या ऋत्रष-मनु ी से पछ ू ा, त्रकसने त्रकसको कब बतार्या- र्ये सब बतार्या जाता
है, इसकी जानकारी दी हुई होती है । पाठ की त्रवत्रध, कोई त्रवशेष बात, जैसे पाठ का टर्या -टर्या
िि है, इस सहस्त्रनाम, र्या कवच को टर्यों पढ़ना चात्रहर्ये इत्र्यात्रद-२ ।

जैसे इस महा-त्रिपरु -सन्ु दरी-सहस्रनाम के पवू य भाग से पता चिता है की, कात्रतयकेर्य जी के पछ
ू ने
पर त्रशव जी (ईश्वर रूप में) ने उनसे कहा था ।

त्रवत्रनर्योगः- में र्यह त्रकस देवी र्या देवता का स्तोि, कवच र्या सहस्रनाम है, इसके ऋत्रषः कौन हैं ।
इसका छन्द टर्या है (बोिने का तरीका, सरु , िर्य और ताि), बीज-टर्या है, शत्रि -टर्या है, कौन
सी है । कीिक - टर्या है। और आप त्रकस त्रिर्ये पाठ कर रहें हैं । र्यह सारी जानकारी पाठ करने
वािे को अच्छी तरह से होनी चात्रहर्ये, त्रक वो त्रकस देवी र्या देवता का पाठ कर रहा है, और टर्यों
कर रहा है, इत्र्यात्रद ।

र्यहां इस त्रवत्रनर्योग- में बतार्या गर्या है की, इस सहस्रनाम के


ऋत्रषः - दत्रिणामत्रू तय हैं,
सहस्रनाम का छन्दः - जगती है ।
इस स्तोि की देवी-समस्त-प्रकट-गप्तु -सम्प्रदार्य-कुिकौिोत्तीणय-त्रनगयभय-रहस्र्य-अत्रचन्त्र्य-
प्रभावती देवता - माता है,
और साधक शत्रि-धमय-अथय-काम-मोि-प्राप्त कृपा प्राप्त करने के त्रिर्ये इसका पाठ कर रहा है ।
र्या जैसी इच्छा हो, साधक वैसे ही शब्दों का चर्यन करें और बोिे, इससे आपकी साधना का
िि प्राप्त करने में सहार्यता त्रमिती है ॥
त्रवत्रनर्योग - एक बार की पजू ा मे, एक बार शरुु में पढ़ते हैं ।
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ििश्रतु ी -
में इसका पाठ पढ़ने का टर्या-२ िि प्राप्त होता है । पाठ कै से करना है ।
त्रकस त्रदन-पाठ करने का टर्या िि त्रमिता है । त्रकतने-२ पाठ का टर्या-२ िि है ।
इस स्तोि के पाठ का कोई त्रवशेष त्रदन है तो वह भी, इसमें त्रदर्या हुआ होता है ।
देव-र्या देवी को भोग में टर्या-टर्या देना चात्रहर्ये, उन्हे टर्या-पसंद है, इत्र्यात्रद-२ जानकारी होती है,
आप बार-बार ििश्रतु ी को ध्र्यान से देखगें े तो उस स्तोि, कवच र्या सहस्रनाम की बहुत सी गप्तु
जानकारी आपको त्रमिेगी । इस ज्ञान से आपकी भत्रि और त्रवश्वास को बि त्रमिता है ।

हमें जब एक बार से ज्र्यादा पाठ करना है तो स्तोि, सहस्रनाम, र्या कवच का एक बार परू ा पाठ
करते हैं, और अंत में एक बार त्रिर परू ा पाठ करते हैं । बीच में बार -बार मख्ु र्य स्तोि, सहस्रनाम,
र्या कवच का पाठ करतें है

उदाहरण के त्रिर्ये - अगर हमने ७ र्या ११ र्या २१-पाठ प्रत्रतत्रदन पढ़ने का संकल्प त्रिर्या है तो,
प्रथम बार परू ा सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे,
त्रिर बीच में ५ र्या ९-र्या-१९-बार के वि मख्ु र्य सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे,
अतं में त्रिर एक बार परू ा सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे ।
तो कुि ७ -र्या-११ र्या २१- पाठ हो जार्येगा । ऐसा ही आप अपनी संकत्रल्पत संख्र्या में करें और
समझें ।
बहुत बार पवू य भाग र्या ििश्रतु ी उप्िब्ध नहीं होता है, तो कोई बात नहीं ।
र्या अगर र्यह दोनो भाग बहुत िंबा-चौरा है तो िोग समर्य की कमी से इसे छोड़ देते हैं । पर जब
भी समर्य हो, त्रवशेष त्रदनों मे, कभी-२ जरूर पढ़ए,ं ।

। नोट: र्यह एक साधारण सा त्रनर्यम और ज्ञान है, र्यह एक िामयि ू े की तरह, हर स्तोि, कवच र्या
सहस्रनाम पर, उसके अपने पवू य पीत्रठका, त्रवत्रनर्योग, ध्र्यान, देवता, पाठ और ििश्रतु ी के साथ,
इसी तरह से िागू होगा ।
आप गरुु , गणेश, त्रशव जी का संत्रिप्त पजू ा त्रकसी भी पजू ा के पहिे कर सकते हैं।

MTS-1000-Stotra--2017--LEARN-V3-SANSKRIT-

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