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Dated : 22 -03-2020.

॥ श्री-महाकाली-अष्टोत्तर-शतनाम-(ककारादि) स्तोत्रम्‌(१०८-नाम) ॥
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॥ श्री महाकाली अष्टोत्तर शतनाम (ककारादि) स्तोत्रम ॥ (PRINT)

॥ एक आवश्यक सचू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मख्ु य उद्देश्य ससर्फ उनलोगों तक
देवी-देवताओ ं के स्तोत्र , कवच आसद का ज्ञान सरल शब्दों में देना-
पहचुँ ाना है, जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक है ।
यह ससर्फ देखने-सनु ने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी है ।
वेद - शास्त्र, ग्रथं ों और अन्य पस्ु तकों मे सदया हआ बहमल्ू य ज्ञान देखने-
पढ़ने-सनु ने-समझने-जानने और सजं ो कर सरु सित रखने योग्य है ।
पर इस जानकारी का गलत तरीके से उपयोग, या प्रयोग आपका
नकु सान कर सकता है ।
अतः सावधान रहें ।
इससे होने वाले सकसी भी तरह की लाभ-हासन के सलये हम सजम्मेवार नही
होंगे ।
(धन्यवाद )
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Kali-108-Mahakali-Stotra- e2Learn By VRakesh


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|| Shri Mahakali Ashtotara shatanama Stotram ||


॥ श्री-महाकाली-अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम्‌(१०८-नाम) ॥
॥ श्री-काली-शतनाम-स्तोत्रम्‌॥ (All Names “Ka”-kara )

ॐ श्री गणेशाय नमः। ॐ श्रीगरुभ्यो नमः। ॥ ॐ क्रीं काल्य ै नमः॥
श्री भ ैरव उवाच -
शतनाम प्रवक्ष्यादम कादलकाया वरानने ।
यस्य प्रपठनाि-वाग्मी
्‌ सववत्र दवजयी भवेत्‌॥१॥
॥ मूल पाठ ॥

काली कपादलनी कान्ता कामिा काम-सन्दरी ।
कालरादत्रः कादलका च काल-भ ैरव-पूदजता ॥२॥
कुरु-कुल्ला कादमनी च कमनीय-स्वभादवनी ।
कुलीना कुलकत्री च कुलवर्त्व-प्रकादशनी ॥३॥
कस्तूरी-रस-नीला च काम्या काम-स्वरूदपणी ।
ककार-वणव-दनलया कामधेनःु करादलका ॥४॥
कुलकान्ता करालास्या कामाताव च कलावती ।
कृ शोिरी* च कामाख्या कौमारी कुलपादलनी ॥५॥ *कृ श-उिरी
कुलजा कुल-कन्या च कुलहा कुल-पूदजता ।
कामेश्वरी काम-कान्ता कुञ्जरेश्वर-गादमनी ॥६॥
कामिात्री कामहत्री कृ ष्णा च ैव कपर्दिनी ।
कुमिु ा कृ ष्णिेहा च कादलन्दी कुलपूदजता ॥७॥
काश्यपी कृ ष्णमाता च कुदलशाङ्गी कला तथा ।
क्रींरूपा* कुलगम्या च कमला कृ ष्ण-पूदजता ॥८॥ *क्रीं-रूपा “M”-Kara.
कृ शाङ्गी दकन्नरी कत्री कल-कण्ठी च कार्दतकी ।
कम्ब-ु कण्ठी कौदलनी च कुमिु ा कामजीदवनी ॥९॥
कुलस्त्री कीर्दत्तका कृ त्या कीर्दतश्‌-च कुलपादलका ।
कामिेव-कला कल्प-लता कामाङ्ग-वर्दधनी ॥१०॥
कुन्ता च कुमिु -प्रीता किम्ब-कुसमोत्स
ु ु ा* ।
क *कुसम-उत्स
ु ु ा

कािदम्बनी कमदलनी कृ ष्णानन्दप्रिादयनी* ॥११॥ *कृ ष्ण-आनन्द-प्रिादयनी
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कुमारी-पूजन-रता कुमारी-गण-शोदभता ।
कुमारी-रञ्जन-रता कुमारी-व्रत-धादरणी ॥१२॥
कङ्काली कमनीया च काम-शास्त्र-दवशारिा ।
कपाल-खट्वाङ्ग-धरा काल-भ ैरव-रूदपणी ॥१३॥
कोटरी कोटराक्षी च काशी कै लास-वादसनी ।
कात्यायनी कायवकरी काव्य-शास्त्र-प्रमोदिनी ॥१४॥
कामाकर्वण-रूपा च कामपीठ-दनवादसनी ।
कदङ्कनी कादकनी क्रीडा कुदत्सता कलह-दप्रया ॥१५॥
कुण्डगोलोद्भवप्राणा* कौदशकी कीर्दत-वर्दधनी । *कुण्ड-गोलोद्भव-प्राणा
कुम्भ-स्तनी कटाक्षा च काव्या कोकनि-दप्रया ॥१६॥
कान्तार-वादसनी कादन्तः कदठना कृ ष्ण-वल्लभा ।
॥ फलश्रतु ी ॥
ु ह्यतरं
इदत ते कदथतं िेदव गह्याद्ग ु * परम्‌॥१७॥ *गहु ्‌-याि्‌-गहु ्‌-य-तरं
प्रपठे ि-य
्‌ इिं दनत्यं काली-नाम-शताष्टकम्‌।
दत्रर् ु लोके र् ु िेवदे श, तस्यासाध्यं* न दवद्यते ॥१८॥ *तस्य-असाध्यं
प्रातःकाले च मध्याह्ने, सायाह्ने च सिा दनदश ।
यः पठे त्परया भक्त्या कालीनाम-शताष्टकम्‌* ॥१९॥ *शत-अष्टकम्‌=१०८
कादलका तस्य गेहे च संस्थानं कुरुते सिा ।
शून्यागारे* श्मशाने वा प्रान्तरे जल-मध्यतः॥२०॥ *शून्य-आगारे
वदह्न-मध्ये च सङ्ग्रामे तथा प्राणस्य संशये ।
ु मम्‌* ॥२१॥ *क्षेमम्‌-उत्तमम्‌
शताष्टकं जपेन्मन्त्री लभते क्षेममत्त
ु ा नामशताष्टकै ः* । *नाम-शत-अष्टकै ः
कालीं संस्थाप्य दवदधवत्‌ स्तत्व
साधकदिदिमाप्नोदत* कादलकायाः प्रसाितः॥२२॥
*साधकस(=साधकः)-दसदिम
्‌ ्‌-आप्नोदत कादलकायाः प्रसाितः॥२२॥
॥ श्री-महाकाली-अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम्‌सम्पूणमव ्‌(१०८-नाम) ॥
व ्‌॥
॥ इदत श्री-काली शतनाम-स्तोत्रं सम्पूणम
ॐ श्री काल्य ै नमः। ॐ नमः दशवाय ।

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Mahakali Ashtottara Shatanama Stotram


|| shrI kAlI-shatanAma-stotram || (Print-Copy)
॥श्रीकालीशतनामस्तोत्रम्‌॥
||श्री महाकाली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम ||

ॐ श्री गणेशाय नमः। ॐ श्रीगरुभ्यो नमः। ॥ ॐ क्रीं काल्य ै नमः॥
भ ैरव उवाच -
शतनाम प्रवक्ष्यादम कादलकाया वरानने ।
यस्य प्रपठनाद्वाग्मी सववत्र दवजयी भवेत्‌॥१॥
॥ मूल पाठ ॥

काली कपादलनी कान्ता कामिा कामसन्दरी ।
कालरादत्रः कादलका च कालभ ैरवपूदजता ॥२॥
कुरुकुल्ला कादमनी च कमनीयस्वभादवनी ।
कुलीना कुलकत्री च कुलवर्त्वप्रकादशनी ॥३॥
कस्तूरीरसनीला च काम्या कामस्वरूदपणी ।
ककारवणवदनलया कामधेनःु करादलका ॥४॥
कुलकान्ता करालास्या कामाताव च कलावती ।
कृ शोिरी च कामाख्या कौमारी कुलपादलनी ॥५॥
कुलजा कुलकन्या च कुलहा कुलपूदजता ।
कामेश्वरी कामकान्ता कुञ्जरेश्वरगादमनी ॥६॥
कामिात्री कामहत्री कृ ष्णा च ैव कपर्दिनी ।
कुमिु ा कृ ष्णिेहा च कादलन्दी कुलपूदजता ॥७॥
काश्यपी कृ ष्णमाता च कुदलशाङ्गी कला तथा ।
क्रींरूपा कुलगम्या च कमला कृ ष्णपूदजता ॥८॥
कृ शाङ्गी दकन्नरी कत्री कलकण्ठी च कार्दतकी ।
ु ण्ठी कौदलनी च कुमिु ा कामजीदवनी ॥९॥
कम्बक
कुलस्त्री कीर्दत्तका कृ त्या कीर्दतश्च कुलपादलका ।
कामिेवकला कल्पलता कामाङ्गवर्दधनी ॥१०॥
कुन्ता च कुमिु प्रीता किम्बकुसमोत्स
ु ु ा।

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कािदम्बनी कमदलनी कृ ष्णानन्दप्रिादयनी ॥११॥


कुमारीपूजनरता कुमारीगणशोदभता ।
कुमारीरञ्जनरता कुमारीव्रतधादरणी ॥१२॥
कङ्काली कमनीया च कामशास्त्रदवशारिा ।
कपालखट्वाङ्गधरा कालभ ैरवरूदपणी ॥१३॥
कोटरी कोटराक्षी च काशी कै लासवादसनी ।
कात्यायनी कायवकरी काव्यशास्त्रप्रमोदिनी ॥१४॥
कामाकर्वणरूपा च कामपीठदनवादसनी ।
कदङ्कनी कादकनी क्रीडा कुदत्सता कलहदप्रया ॥१५॥
कुण्डगोलोद्भवप्राणा कौदशकी कीर्दतवर्दधनी ।
कुम्भस्तनी कटाक्षा च काव्या कोकनिदप्रया ॥१६॥
कान्तारवादसनी कादन्तः कदठना कृ ष्णवल्लभा ।
॥ फलश्रतु ी ॥
ु ह्यतरं
इदत ते कदथतं िेदव गह्याद्ग ु परम्‌॥१७॥
प्रपठे द्य इिं दनत्यं कालीनामशताष्टकम्‌।
दत्रर् ु लोके र् ु िेवदे श, तस्यासाध्यं न दवद्यते ॥१८॥
प्रातःकाले च मध्याह्ने, सायाह्ने च सिा दनदश ।
यः पठे त्परया भक्त्या कालीनामशताष्टकम्‌॥१९॥
कादलका तस्य गेहे च संस्थानं कुरुते सिा ।
शून्यागारे श्मशाने वा प्रान्तरे जलमध्यतः॥२०॥
वदह्नमध्ये च सङ्ग्रामे तथा प्राणस्य संशये ।
ु मम्‌॥२१॥
शताष्टकं जपन्मन्त्री लभते क्षेममत्त
ु ा नामशताष्टकै ः ।
कालीं संस्थाप्य दवदधवत्‌ स्तत्व
साधकदिदिमाप्नोदत कादलकायाः प्रसाितः॥२२॥
॥ श्री-महाकाली-अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम्‌सम्पूणमव ्‌(१०८-नाम) ॥
इदत श्री-काली शतनामस्तोत्रं सम्पूणमव ्‌॥
ॐ श्री काल्य ै नमः। ॐ नमः दशवाय ।

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|| General Information ||

विशेष –
To repeat Stotra 3/11/21/51/101 - Repeat only Main Part .

विशेष - माता काली सौम्य और उग्र (दोनो) विद्या हैं,


अतः उनके वकसी भी पजू ा, पाठ मन्त्र-जप इत्यावद में,
किच पाठ अिश्य करना चावहये ।

इनसे संबवन्त्ित प्रयोग, बहुत सोच-विचार के करना चावहये ।


किच का पाठ सरु वित होता है,
तथा किच से भी बहुत से कायय (सारे ) वसद्ध हो जाते है ।

विशेष -तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, जानने-देखने-सनु ने-और पढ़ने में कोई हजय नहीं ।


पर ठीक से जाने - समझे वबना कभी प्रयोग ना करें ।

नोट-
कुछ कवठन शब्द * को वचवन्त्हत करके , उसे "-" से सरल वकया है,
और मलू शब्द के साथ नजदीक ही रखा गया है,
सािक लोग दोनो शब्दों को एक ही जगह पर देख कर तल ु नात्मक पाठ कर सकें ।
कुछ ही शब्दों का सही तरह से संवि-विच्छे द, करने का का प्रयास वकया गया है ।
अगर कुछ गलती/रवु ट हो तो, िमा प्राथी हूँ ।

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