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महाभैरवीयोनगनीडानकनीनभः,करालानभरापादलम्बत्कचानभः ।
भ्रमततीनभरापीय मद्यानमषास्रातयजस्रं, समं सञ्चरततीं हसततीम् ॥४॥
*महा-भैरवी-योनगनी-डानकनीनभः,करालानभरा-पाद-लम्बत्-कचानभः ।
भ्रमतती-नभरापीय मद्य-आनमषास्रा-अतय-जस्रं समं सञ्चरततीं हसततीम् ॥४॥
भयक ं र आकृ हत , पैर तक लटकते हुए लंबे बालों वाली, मद्य, मांस, रक्त का पान कर
हनरंतर नृत्य करने वाली महाभैरहवयों , योहिहनयों एवं डाहकहनयों के साथ संिरण करने वाली,
सदा हसं ती हुई, (कामकला काली का) सदा स्मरण करता हूँ ।४।
महाकल्पकालाततकादनम्बनी-नत्वट्पररस्पनधादेहद्यनु तं घोरनादाम् ।
स्फुरदद्व् ादशानदत्यकालानभनरुद्र-ज्वलनद्वद्यदु ोघप्रभादनु नारीक्ष्याम् ॥५॥
* महा-कल्प-कालातत-कादनम्बनी-नत्वट्-परर-स्पनधा-देहद-य ् ुनतं घोर-नादाम् ।
स्फुरद-द्वादश-आनदत्य-कालानभन-रुद्र-ज्वलद
् -नवद्य
् दु ोघ-प्रभा-दनु नारीक्ष्याम् ॥५॥
महाप्रलय के समय , कालान्त्तक, मेघमाला की काहं त की प्रहतस्पर्धी, देहद्यहु त वाली, घोर नाद
करने वाली, िमकते हुए द्वादश आहदत्य (=१२ सूयत) तथा कालाहनन-रुद्र की जलती हुई हवद्युत्प्रभा
के समान, दहु नतरीक्ष्य, (कामकला काली का) सदा स्मरण करता हूँ ।५।
लसतनीलपाषाणननमााणवेनद-प्रभश्रोनणनबम्बां चलत्पीवरोरुम् ।
समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां,कनटग्रनतथतद्वीनपकृ त्त्युत्तरीयाम् ॥६॥
* लसन्-नील-पाषाण-ननमााण-वेनद-प्रभश्रोनण-नबम्बां चलत्-पीवरोरुम् ।
समतु ्-तङु ् ग-पीनायत-उरोज-कुम्भां, कनट-ग्रनतथ-तद्वीनप-कृ त्त्य-उत्तरीयाम
् ् ॥६॥
िमकते हुए नीलमहण पत्थर से हनहमतत वेदी के सदृश हनतम्ब, हबम्ब वाली,
ििं ल पीवर, जघन वाली, उंिे, िौड़े, हवशाल स्तनों वाली तथा कहट(=कमर)-
प्रदेश में िैंडा का िमड़ा बार्धं ी हुई, कामकला काली का सदा स्मरण करता हूँ ।६।
स्रवद्रक्तवल्गतनृमुण्डावनधा-सृगाबधनक्षत्रमालैकहाराम् ।
मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभषू ां,महाट्टाट्टहासैजगा त् त्रासयततीम् ॥७॥
*स्रवद-रक्त-वल्गन
् -नृ
् मण्ु ड-अव-नधा-असृग-आबध-नक्षत्र-मालैक-हाराम् ।
मृत-ब्रह्म-कुल्योप-क्लृप्ताङ्ग-भषू ां, महा-अट्टाट्टहासै-जागत् त्रासयततीम् ॥७॥
Kamakala-kali-Bhujang (Meaning)- e2Learn By VRakesh
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हिरते हुए रक्त वाले नरमुण्ड से बंर्धे, रक्तोपहलप्त मोहतयों का हार पहनी हुई, मरे हुए ब्राह्मण की
हड्डी से बने आभूषण को र्धारण करने वाली, एवं महा अट्टहास(जोड़-जोड़ से हूँसना) से संसार
को भयभीत करने वाली, (कामकला काली का) सदा स्मरण करता हूँ ।७।
चलत्पादपद्मद्वयालनम्बमक्त
ु -प्रकम्पानलसुनस्नभधसम्भभु नके शाम् ।
पदतयाससम्भारभीतानहराजा-ननोद्गच्छदात्मस्तनु तवयस्तकणााम् ॥९॥
* चलत्-पाद-पद्म-द्वया-लनम्बमुक्त- प्रकम्पानल-सुनस्नभध-सम्भभु न-के शाम् ।
पद-तयास-सम्भार-भीता-अनहराजा-ननोद-गच्छद ् -आत्म-स्त
् ुनत-वयस्त-कणााम् ॥९॥
िलते हुए, दोनो िरण कमलों तक लटकने वाले, खुले हुए, भ्रमर के समान, िमकीले, हिकने
घुंघराले बालों वाली, पैरों को रखने के भार से भीत?, शेषनाि के मुख से , हनकलने वाली
आत्मस्तहु त, को सनु ने में व्यस्त कानों वाली,(कामकला काली का) सदा स्मरण करता हूँ ।९।
महाभीषणां घोरनवंशाधावक्त्रै-स्तथासप्तनवंशानतवतैलोचनैश्च ।
परु ोदक्षवामे नद्वनेत्रोज्ज्वलाभयां, तथातयानने नत्रनत्रनेत्रानभरामाम् ॥१०॥
* महा-भीषणां घोर-नवंशाधा-वक्त्रै- स्तथा-सप्त-नवंशानतवतै-लोचनैश्-च ।
परु ो-दक्ष-वामे नद्वनेत्रा-उज्ज्वलाभयां, तथातय-आनने नत्र-नत्रनेत्रा-अनभरामाम् ॥१०॥
महाभय-काररणी, घोर, दशमुखों तथा २७-लोिनों (२७-आूँख) से अहन्त्वत(=युक्त) इनमें से,
सामने,दायें, बायें दो नेरो से उज्जज्जवल तथा अन्त्य सात मुखों में, तीन-तीन नेरों, इस प्रकार २७-नेरों
से सुन्त्दर ,(कामकला काली का) सदा स्मरण करता हूँ ।१०।
लसद्वीनपहर्य्यक्ष
ा फे रुप्लवङ्ग-क्रमेलक्षाताक्षानद्वपग्राहवाहैः ।
मुखैरीदृशाकाररतैभ्रााजमानां ,महानपङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥११॥
*लसद्वीनप-हर्य्याक्ष-फे रुप्लवङ्ग-क्रमेलक्षा-ताक्षा-नद्वप-ग्राहवाहैः ।
मख
ु ैरी-दृशाकाररतै-भ्रााजमाना,ं महा-नपङ्गल-उद-यज ् -जटा-ज
् टू -भाराम् ॥११॥
नपङ्गल = लाल भरू ा रंग, उद-यज ् ् = नहलना / Causing Tremble)
िैंडा, हसंह, सांप, हसयार, बन्त्दर,ऊूँ ट, भालू, िरूड, हाथी और मिर के मुखों जैसे मुखों से
शोभायमान, महाहपिं ल, उठी हुई जटा जटू वाली,(कामकला काली का) सदा स्मरण करता हूँ
।११।
दायीं ओर महारत्न माला, कैं िी, खड्ि , कामकला काली का सदा स्मरण करता हूँ ।१४।
ततो वज्रमनु ष्टं कुणप्पं सघु ोरं, तथा लालनं धारयततीं भजु ैस्तैः ।
जवापुष्ट्परोनचष्ट्फणीतद्रोपक्लृप्त-क्वणतनूपुरद्वतद्वसक्ताङ्निपद्माम् ॥१७॥
* ततो वज्र-मुनष्टं कुणप्पं सुघोरं, तथा लालनं धारयततीं भजु ैस्तैः ।
जवा-पष्ट्ु प-रोनचष्-फणीतद्रोप-क्लृप्त-क्वणन-न ् पू रु -द्वतद्व-सक्ताङ्नि-पद्माम् ॥१७॥
हफर वज्रमहु ि, घोर शव तथा , अपनी भजु ाओ ं मे लालन र्धारण की हुई, एवं जवापष्ु प
(िुड़हल फूल) की काहन्त्त वाले (सुखत लाल रंि वाले) सपत से उप्कलृप्त दो नुपुरों
(नुपुर=पायल ) से युक्त पादपद्म वाली , कामकला काली का सदा स्मरण करता हूँ ।१७।
महापीतकुम्भीनसावधनध ,स्फुरत्सवाहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।
महापाटलद्योनतदवीकरे तद्रा-वसक्ताङ्गदवयूहसंशोभमानाम् ॥१८॥
* महापीत-कुम्भी-नस-आवध-नध, स्फुरत-सवा ् -हस्तोज्ज्वलत्-कङ्कणां च ।
महापाट-लद-योनत-दवीकरे
् तद्रा- वसक्ताङ्गद-वयहू -सश
ं ोभ-मानाम् ॥१८॥
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अत्यन्त्त पीत, कुम्भीनस से आबद्ध, कङ्कण को समस्त हाथों मे पहनी हुई, महापाटल
के समान िमकने वाले दवीकरे न्त्द्र के द्वारा रिे िये अङ्िदों से शोभमान,
कामकला काली का सदा स्मरण करता हूँ ।१८।
नपषङ्गोरगेतद्रावनधावशोभा-महामोहबीजाङ्गसंशोनभदेहाम् ।
महानचनत्रताशीनवषेतद्रोपक्लृप्त-स्फुरच्चारुताटङ्कनवद्योनतकणााम् ॥२०॥
* नपषङ्ग-उरगेतद्रा-अवनध-अवशोभा-महा-मोह-बीजाङ्ग-संशोनभ-देहाम् ।
महा-नचनत्रताशी-नवषेतद्रोप-क्लृप्त- स्फुरच-चारु-ताटङ
् ् क-नवद्योनत-कणााम् ॥२०॥
हपषङ्ि वणत के उरिेन्त्द्र से अवनद्ध, अवशोभा वाले महामोह बीजाङ्ि से संशोहभत
देह वाली, महाहिहरत सपतराज से रहित, िमकते हुए ताटक से हवद्योहदत कान वाली,
कामकला काली का सदा स्मरण करता हूँ ।२०।
वलक्षानहराजावनधो्वाभानस-स्फुरनत्पङ्गलोद्यज्जटाजटू भाराम् ।
महाशोणभोगीतद्रननस्यतू मण्ू डो-ल्लसनत्कङ्कणीजालसश
ं ोनभम्याम् ॥२१॥
(वलक्षा-अनह-राजा-अवनध-उ्वा-भानस-स्फुरत्-नपङ्गल-(उद-यज ् ्)-जटाजूट-भाराम् ।
महाशोण-भोगीतद्र-ननस्यूत-मूण्डो- ल्लसत-नकङ
् ् कणी-जाल-संशोनभ-म्याम् ॥२१॥
वलक्ष अहहराज से अवनद्ध, उर्धवतभासी स्फुरहतत होती हुई हपङ्िल एवं उठी हुई
जटजूट के भार वाली, महारक्तवणत के भोहिन्त्द्र से हसले िये मुण्ड से उल्लहसत, हकङ्हकणी
जाल से शोहभत मर्धय भाि वाली, कामकला काली का सदा स्मरण करता हूँ ।२१।