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संध्योपासना विधी

एिं
शालिग्राम ननत्यार्चन
मानलसक गरु
ु पज
ू ा पद्धति

भूत शुद्धि
इस पजू न को प्रारम्भ करने से पर्ू व शरीर और मन को शद्ध
ु करने के लिए पहिे भतू शलु द्ध करें
“ॐ ह्रौं ”
इस मत्रं का एक सौ आठ (१०८) बार जप करने से भतू शलु द्ध हो जाती है ।

चौर न्यास
भतू शलु द्ध के बाद चौर मत्रं से न्यास करें । शरीर के दस द्वारों पर क्रमशः ध्यान एकाग्र करते
हुए लनम्न लनलदवष्ट बीज मंत्र का यथा संख्यानसु ार जप करें —

• हृदय क्रों १० बार


• दोनों नेत्र ह्राां ह्राां २० बार (१०+१०)
• दोनों कान ह्रीं ह्रीं २० बार (१०+१०)
• दोनों नाक हां हां २० बार (१०+१०)
• मख ु स्त्रीं स्त्रीं १० बार
• नाभि क्लीं १० बार
• भ िंग मू ह्रसौौः १० बार
• गह्य
ु (गदु ा) बलूां १० बार
• भ्रमू ध्य हां १० बार
• भिर ह्रीं स्त्रीं क्लीं १० बार

ध्यान
इस चौर न्यास के बाद गरुु देर् का ध्यान करें —

स्वनाभौ दद्धिणे हस्ते वामहस्तां द्धनधाय च ।


भावयेत् तु सहस्रारे श्री गुरां शद्धिसयां ुतम् ।।
अपनी नालभ पर दालहने हाथ को स्थालपत करें , लिर दालहने हाथ के ऊपर बायें हाथ को रखकर
ध्यान करें —
वराभय करां शान्तां शुक्लवणण सशद्धिकां ।
ज्ञानानन्द मयां सािात् सवण ब्रह्म स्वरूपकम् ।।
“गौर र्र्व यक्तु गरुु देर् साक्षात् ब्रह्म स्र्रूप और ज्ञानमलू तव हैं, र्े अपनी शलक्त के साथ साधक
के सहस्रार में लस्थत होकर साधक को एक हाथ से र्र तथा दसू रे हाथ से अभय प्रदान कर रहे
हैं ।”
ध्यायेद्धछिरद्धस शुक्लाबजे द्धिनेत्रां द्धिभुजां गुरां,
श्वेताम्बर पररधानां श्वेत माल्यानुलेपनां ।
वराभयकरां शान्तां करणामय द्धवग्रह,ां
वामेनोत्पल धाररण्या शक्त्याद्धलांद्धगत द्धवग्रहां ।
स्मेराननां सुप्रसन्नां साधकाभीष्टदायकम् ।।
“सहस्रार लस्थत श्वेत कमि पर दो नेत्र र् दो भजु ा र्ािे श्वेत र्स्त्र धारर् लकये हुए, श्वेत पष्ु प
हार पहने हुए, र्र एर्ं अभय प्रदान करते हुए, शान्तमलू तव, करुर्ा से पररपर्ू व, अलत प्रसन्न एर्ं
साधकों को अभीष्ट प्रदान करने र्ािे; लजनके बायें भाग में शलक्तमयी भगर्ती लर्राजमान हैं,
उनका मैं श्रद्धामय होकर ध्यान करता ह।ं ”

कर न्यास
• श्रीं अांगुष्ठाभयाां नमौः ।
• गुां तजण नीभयाां स्वाहा ।

• रां मध्यमाभयाां वषट् ।

• वें अनाद्धमकाभयाां हम् ।

• नां कद्धनद्धष्ठकाभयाां वौषट् ।

• मौः अस्त्राय फट् ।


अांग न्यास
• श्रीं हृदयाय नमौः । (दायें हाथ की उंगलियों से हृदय को स्पशव करें )

• गुां द्धशरसे स्वाहा । (लसर को स्पशव करें )


• रां द्धशखायै वषट् । (लशखा को स्पशव करें )
• वें कवचाय हुम् । (दोनो भजु ाओ ं को स्पशव करें (मानलसक))
• नां नेत्रत्रयाय वौषट् । (दोनो नेत्रों को स्पशव करें )
• मौः करतलकर पृष्ठाभयाां फट्

इसी प्रकार गरुु शब्द के गकार से भी दोनों न्यास करें —


कर न्यास
• गाां अांगुष्ठाभयाां नमौः ।
• गीं तजण नीभयाां स्वाहा ।

• गुां मध्यमाभयाां वषट् ।

• गैं अनाद्धमकाभयाां हम् ।

• गौं कद्धनद्धष्ठकाभयाां वौषट् ।

• गौः अस्त्राय फट् ।


अांग न्यास
• गाां हृदयाय नमौः ।

• गीं द्धशरसे स्वाहा ।


• गुां द्धशखायै वषट् ।

• गैं कवचाय हम् ।

• गौं ने त्रत्रयाय वौषट् ।

• गौः करतलकर पृष्ठाभयाां फट्

इन दोनों न्यासों से साधक में साधना सम्बन्धी शीघ्र िाभ का सम्भार्ना स्र्तः बिर्ती होने
िगती है ।

पूजा द्धवद्धध
ॐ ऐ ां कद्धनद्धष्ठकाभयाां “लां” पद्धृ िव्यात्मकां गन्धां सशद्धिकां श्री गुरवे समपणयाद्धम नमौः ।
गन्ध समलपवत करें ।
ऐ ां अांगुष्ठाभयाां “ह”ां आकाशात्मकां पुष्पां सशद्धिकां श्री गुरवे समपणयाद्धम नमौः ।
पष्ु प समलपवत करें ।
ऐ िं तर्जनीभयािं “यिं” वागात्मकिं धपू िं िशभिकिं श्री गरु वे िमपजयाभम नमः । धपू समलपवत करें ।
ऐ ां अनाद्धमकाभयाां “वां” अमृतात्मकां नैवेद्यां सशद्धिकां श्री गुरवे समपणयाद्धम नमौः ।
नैर्ेद्य समलपवत करें ।
ऐ ां मध्यमाभयाां “रां” हृदयात्मकां दीपां सशद्धिकां श्री गुरवे समपणयाद्धम नमौः ।
दीप समलपवत करें ।
ऐ ां करतलकर पृष्ठाभयाां सवाणत्मकां ताम्बुलां सशद्धिकां श्री गुरवे समपणयाद्धम नमौः ।
ताम्बि ु समलपवत करें ।
मूल मांत्र
।। ॐ क्लीं नृद्धसांह क्लीं फ़ट् ।।
इसके बाद स्िलिक मािा या उंगलियों से गर्ना करते हुए एक सौ आठ बार गरुु मत्रं का
उच्चारर् करें ।

नमस्कार
लिर हाथ जोड़ कर गरुु पंलक्त को नमस्कार करें ।
ॐ गुरभयो नमौः । ॐ परम गुरभयो नम ःौः
ॐ परात्पर गुरभयो नमौः ॐ पारमेद्धष्ठ गुरभयो नमौः

‘ऐ’ां बीज मांत्र जप


इसके बाद ‘ऐ’ां इस बीज मंत्र को एक सौ आठ बार जप करें ।
जप समपणण
ॐ गुह्याद्धत गुह्यगोप्ता त्वां गहृ ाणाऽस्मत कृतां जपां ।
द्धसद्धि भणवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ।।
प्राणायाम
इसके बाद ‘ऐ’ां बीज से तीन बार प्रार्ायाम करके गरुु देर् को नमस्कार करें ।
पूणण मांत्र
ॐ पूणणमदौः पूणणद्धमदां पूणाणत् पूणणमुदछयते ।
पूणणस्य पूणणमादाय पूणण मेवावद्धशष्यते ।। ॐ शाद्धन्तौः । शाद्धन्तौः ।। शाद्धन्तौः ।।।
Mudra Dharan
For wearing Gopichandana and Mudras, the sankalpa should conclude thus –
shrI bhAratIramaNa mukhyaprANantargata shrI viShNu preraNayA shrI
viShNuprItyartham gopIchandana tilakAyudha tulasIkAShTamAlAdi
dhAraNaM kariShye.

Prayer to Gopichandana

Now say this prayer to the auspicious Gopichandana to remove all sins and lead
you to liberation

gopIchandana pApaghna viShNudeha samudbhava .

chakrAnkita namastubhyaM dhAraNAnmuktido bhava ..

O gopichandana, born from the body of Vishnu, the remover of sins, O


chakrAnkita, I salute you. I smear you on my body, do lead me to salvation.

Now, put some water on your left palm and rub the block of Gopichandana in
clock-wise direction to create a soft paste.

Say the following prayers

Sl.No When What to say…?


imaM me gange yamune sarasvati
shutudri stomam sachatA
paruShNyA.asiknyA
1 Fetching water
marudvR^idhe vitastayA.a.arjIkIye
shR^iNuhyA sushomayA ..(R^ig
10.75.5)
Placing
gandhadvArAM durAdharshAM
gopichandana
nityapuShTAm karIShiNIm
2 on the left
.IshvarIM sarvabhUtAnAM
palm to
tAmihopahvaye shriyam ..
extract paste
viShNornukaM vIryAni pravocam
While
yaH pArthivAni vimame rajAMsi
3 extracting
.yo askabhAyaduttaraM sadasthaM
paste
vichakramANastredhorugAyaH ..
On the
4 write Nrisimha Bijakshara
extracted paste
ato deva avantu no yato
viShNurvicakrame . prithivyA
close your left
saptadhAmabhiH . idaM
5. palm with
viShnurvicakrame tredhA
right palm
nidhAdhe padaM . samUlhamasya
pAMsure ..
om shrIviShNave namaha (three
..do..
times)
Apply the
gopichandana
(see table
below)

Procedure for nama mudra dharana as enshrined in Shri Vishnupurana.

Saying … Saying …
Sl.No Place on body Shape (during Shukla (during Krishna
Paksha) Paksha)
Dandakara
(apply
vertically up
with index
finger and
Lalata – Keshavaya Sankarshanaya
1 then wipe the
Forhead Namaha Namaha
central part
with a fine
cloth splitting
it into two
parellel lines)
Udara Madhya Deepakriti (in
Narayanaya Vasudevaya
2 – Middle of the shape of a
Namaha Namaha
Stomach lamp)
Vakshasthalam Kamala (like
– Middle the bud of Madhavaya Pradyumnaya
3
portion of Kamala Namaha Namaha
Chest flower)
Kantha
Deepakriti (in
Madhya – Govindaya Aniruddhaya
4 the shape of a
Front Middle Namaha Namaha
lamp)
portion of neck
Udara
Deepakriti (in
Dakshina – Vishnave Purushottamaya
5 the shape of a
Right Side of Namaha Namaha
lamp)
Stomach
Venupatrakriti
Dakshina
(in the shape Madhusudanaya Adhokshajaya
6 Bhuja – Right
of the leaf of a Namaha Namaha
shoulder
Bamboo tree)
Kantha
Deepakriti (in
Dakshina – Trivikramaya Narasimhaya
7 the shape of a
Right Side of Namaha Namaha
lamp)
the Neck
Udara Vama – Deepakriti (in
Vamanaya Achyutaya
8 Left Side of the shape of a
Namaha Namaha
Stomach lamp)
Venupatrakriti
Vama Bhuja – (in the shape Shridharaya Janardanaya
9
Left Shoulder of the leaf of a Namaha Namaha
Bamboo tree)
Kantha Vama Deepakriti (in
Hrushikeshaya Upendraya
10 – Left Side of the shape of a
Namaha Namaha
the Neck lamp)
Prishta
Adhobhaga – Deepakriti (in
Padmanabhaya Haraye
11 Back side on the shape of a
Namaha Namaha
the lower lamp)
spinal chord
Katha Prishta
Deepakriti (in
Bhaga – Back Damodaraya Sri Krishaya
12 the shape of a
side of the Namaha Namaha
lamp)
Neck
Chakra mudra dharane vidhaana

It is applied in the chintanye of


Ambarisavarada for rakshane and to get sat-
buddhi to follow Dharma.

Chant the following mantra while applying chakra mudra:

sudarshana mahajwala kotisoorya samaprabha |


agnandhasyame nithyam vishnOrmaargam pradarshaya ||

one on right side of eye, five on centre of abdomen, three on heart, two on right
of abdomen, three on right of chest, two on right shoulder both sides of naama,
two on right of neck, one on front of neck, one on left shoulder below the naama.

Shanka mudra dhaarane vidhana

It is applied in the chintanye of dhruva


varada for jnana prapthi and to get the
blessings of goddess Lakshmi.

Chant the following mantra while applying chakra mudra:

paanchajanya nijadhwana dvamstapaathaka namchaya |


traahimaam paapinam GorasamsaaraarNava paatyinam ||

one on left side of eye, one on left of abdomen, two on left of chest, two on left
shoulder both sides of naama, two on left of neck, one on right shoulder below
the naama.
Gada mudra dhaarane vidaana

It is applied in the chintanye of vayu varada


for vairagyaprapthi and to get control over
desires.

Chant the following mantra while applying gada mudra:

brahmaanda bhuvanaaramba mUlastambO gadaadhara |


kaumOdakI karEyusya tham namaami gadaadharam ||

one on forehead, one on left of abdomen, one on left of chest, two on left
shoulder both sides of naama below shankha mudra.

Padma mudra dharana vidhaana

It is applied in the chintanye of lakshmee


varada for aishvarya prapthi and to get
peace and tranquility.

Chant the following mantra while applying padma mudra:

samsaara bhayabEEtaanam yOginaamabhayapradha |


padmahastEna yO dEvO yOgIsham tham namaamyaham ||

Two on chest, two on right abdomen, two on right shoulder both sides of naama
below chakra mudra.
Narayana Mudra dhaarane vidhaana

naarayana mudre hachidavanannu


bhakthiyinda nodidavana uddara

Chant the following mantra while applying narayana mudra:

naarayana namastEstu naamamudraamkitam naram |


druStyava labhatE mukthim chamdaalO brahmagaathaka ||

One each overlapping on all mudras, and naama.

The mudrA dhAraNa vidhi according to prakAsha saMhita is as follows

chakra mudrA

2 beside right eye

4 on stomach

2 on chest

2 on right hand

between two gadA mudrAs on left hand

2 on right side of neck

1 on the beginning portion of neck

1 on upper portion of spinal chord

1 on lower portion of spinal chord


Sha~Nka mudrA

2 beside left eye

2 on left chest

between two padma mudrAs on right hand

2 on left hand

2 on left side of neck

1 on chest

1 on back of neck

1 on upper portion of spinal chord

gadA mudrA

1 on forehead

2 on left hand (below two sha~Nka mudrA)

padma mudrA

1 on central portion of chest

2 on right hand (below two chakra mudrAs)

1 on right portion of chest

nArAyaNa mudrA

on all mudrAson top of the head (one should wear all the five mudrAs on top of
head)
दिग्बन्धन या भूिोत्सारन विधध

आत्म रक्षार्थ तर्ा यज्ञ रक्षार्थ निम्ि मन्त्र से जल, सरसों या


पीले चावलों को(अपिे चारों ओर) छोड़ें –
मंत्र :
ॐ पूवे रक्षतु वाराहः आग्िेयाां गरुड़ध्वजः ।
दक्षक्षणे पदमिाभस्तु िैऋत्याां मधुसद
ू िः ॥
पश्चचमे चैव गोववन्त्दो वायवयाां तु जिादथ िः ।
उत्तरे श्री पनत रक्षे दे शान्त्याां हह महे चवरः ॥
ऊध्वथ रक्षतु धातावो ह्यधोऽिन्त्तचच रक्षतु ।
अिुक्तमवप यम ् स्र्ािां रक्षतु ॥
अिक्
ु तमवपयत ् स्र्ािां रक्षत्वीशो ममाहिधक
ृ ् ।
अपसपथन्त्तु ये भूताः ये भत
ू ाः भुवव सांश्स्र्ताः ॥
ये भत
ू ाः ववघ्िकताथरस्ते गच्छन्त्तु शशवाज्ञया ।

अपक्रमांतु भूतानि वपशाचाः सवथतोहदशम ् ।


सवेषाम ् ववरोधेि यज्ञकमथ समारम्भे ॥
भगिान श्री विष्णु जी का संक्षिप्त पज ू न
------------------------------------

सिच प्रथम हाथ जोडकर िंदन करे

ॐ गुुं गुरुभ्यो नमः


ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री विष्णिे नम:

फिर आर्मनी या र्मर् से ३ बार बाए हाथ से दाहहने हाथ पर पानी िेकर वपए
(अगर जल नह ुं है तो मानसिक ग्रहण करे )
ॐ केशिाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ माधिाय नम:
अब नीचे का मुंत्र बोलकर एक आचमनी जल पात्र मे छोडे
ॐ गोविुंदाय नम:

उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अित अपचण करे


(अगर पूजन िामग्री नह ुं है तो मानसिक करे )
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गरु
ु भ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः

उसके बाद अपने आसन का स्पशच करे और पष्ु प


अक्षत अपपण करे

ॐ पथ्
ृ िीव्यै नमः

अब तीन बार िर िे पााँि तक हाथ फेरे


ॐ श्री विष्णिे नमः आत्मानुं रक्ष रक्ष
अब जि के पात्र को गंध िगाकर अित पष्ु प अपचण करे

ॐ कलश मण्डलाय नमः

अब दाहहने हाथ में जि पुष्प अित िेकर संकल्प करे


मन में यह बोले की मैं (अपना नाम और गोत्र ) अधधक माि के पिप काल मे
भगिान श्री विष्णु की कृपा प्राप्त होने हे तु तथा अपनी िमस्या ननिारण हे तु
या अपनी मनोकामना पनू तप हे तु
यथा शक्तत िाधना कर रहा हूाँ
और जल छोड़े

अब गणेशजी का ध्यान करे


िक्रतुुंड महाकाय िूयप कोटि िमप्रभ
ननविपघ्नुं कुरु में दे ि ििप कायेषु ििपदा

ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे

फिर भगिान विष्णु का ध्यान करे

शाुंताकारुं भज
ु ुंगशयनुं पद्मनाभुं िुरेशुं
विश्िाधारुं गगनिदृशुं मेघिणं शुभाुंगुं
लक्ष्मीकाुंतुं कमलनयनुं योधगभीर्धयापनगम्युं
िुंदे विष्णु भिभयहरुं ििपलोकैकनाथुं

ॐ श्री विष्णिे नम:


श्री विष्णु र्धयायासम आिाहयासम स्थापयासम पूजयासम नम:

ॐ श्री विष्णिे नम: गुंधुं िमपपयासम


ॐ श्री विष्णिे नम: पुष्पुं िमपपयासम
ॐ श्री विष्णिे नम: धप
ू ुं िमपपयासम
ॐ श्री विष्णिे नम: द पुं िमपपयासम
ॐ श्री विष्णिे नम: नैिेद्युं िमपपयासम

अब नीर्े हदये हुये नामो से पुष्प या तुिसी पत्र अपचण करते जाये

१) ॐ श्री केशिाय नम:


२) ॐ श्री नारायणाय नम:
३) ॐ श्री माधिाय नम:
४) ॐ श्री गोविुंदाय नम:
५) ॐ श्री विष्णिे नम:
६) ॐ श्री मधुिूदनाय नम:
७) ॐ श्री त्रत्रविक्रमाय नम:
८) ॐ श्री िामनाय नम:
९) ॐ श्री श्रीधराय नम:
१०) ॐ श्री हृषीकेशाय नम:
११) ॐ श्री पद्मनाभाय नम:
१२) ॐ श्री दामोदराय नम:
१३) ॐ श्री िुंकषपणाय नम:
१४) ॐ श्री िािद
ु े िाय नम:
१५) ॐ श्री प्रद्यम्
ु नाय नम:
१६) ॐ श्री अननरुद्धाय नम:
१७) ॐ श्री पुरुषोत्तमाय नम:
१८) ॐ श्री अधोक्षजाय नम:
१९) ॐ श्री नारसिुंहाय नम:
२०) ॐ श्री अच्युताय नम:
२१) ॐ श्री जनादप नाय नम:
२२) ॐ श्री उपें द्राय नम:
२३) ॐ श्री हरये नम:
२४) ॐ श्रीकृष्णाय नम:
अब दश अितारो के लिये पज
ू न हे तु पष्ु प या ति
ु सी अपचण करे
१) ॐ मत्स्याय नम:
२) ॐ कूमापय नम:
३) ॐ िराहाय नम:
४) ॐ नारसिुंहाय नम:
५) ॐ िामनाय नम:
६) ॐ भागपिाय नम:
७) ॐ रामाय नम:
८) ॐ कृष्णाय नम:
९) ॐ बौद्धाय नम:
१०) ॐ कक्ककने नम:

अब विष्णु गायत्री से अर्घयच प्रदान करे

ॐ नारायणाय विद्महे िािद


ु े िाय धीमटह तन्नो विष्ण:ु प्रचोदयात ्

अब हाथो मे पुष्प या तुिसी िेकर नीर्े हदये हुये मािा मंत्र से अपचण करे

ॐ नमो नारायणाय ! ॐ नमो भगिते िािुदेिाय , नमोsस्त्िनुंताय , िहस्त्रसशषापय


, क्षक्षरोदाणपिशानयने,शेषभोगपयंकाय , गरुडिाहनाय , अमोघाय ,अजाय ,अक्जताय ,
पीतिाििे , ॐ िािद
ु े ि, िुंकषपण ,प्रद्युम्न ,अननरुद्ध, हयग्रीि ,मत्स्य, कूमप ,िराह
,नसृ िुंह ,अच्युत, िामन, त्रत्रविक्रम ,श्रीधर ,राम राम राम ,िरद िरद, िरदो भि !
नमोस्तुते नमोस्तुते नमोस्तुते स्िाहा !
ॐ अिुर-दै त्य-दानि-यक्ष-राक्षि-भूत-प्रेत वपशाच-कुष्माुंड-सिद्ध-योधगनन-डाककनन
शाककनी-स्कुंदग्रहान उपग्रहान नक्षत्र ग्रहाुंश्चs न्यान हन हन ,पच पच ,मथ मथ,
विर्धिुंिय विर्धिुंिय ,विद्रािय विद्रािय, चूणय
प चूणय
प , शुंखेन चक्रेण िज्रेण शूलेन
गदया मुिलेन हलेन भस्मी कुरु कुरु स्िाहा !!
ॐ िहस्त्रबाहो, िहस्त्रप्रहरणायध
ु ,जय जय ,विजय विजय ,अक्जत ,असमत,
अपराक्जत ,अप्रनतहत, िहस्त्रनेत्र ,ज्िल ज्िल ,प्रज्िल प्रज्िल ,विश्िरुप
बहुरुप ,मधि
ु ुदन ,महािराह ,महापरू
ु ष, िैकुंु ठ ,नारायण ,पद्मनाभ ,गोविुंद ,दामोदर
हृषीकेश ,केशि ,ििापिरु ोत्िादन ििपभूतिशुंकर ििपद:ु खस्िप्नप्रभेदन ििपयुंत्र प्रभुंजन
ििपनाग विमदप न ििपदेिमहे श्िर ििपबुंध विमोक्षण ििपटहत प्रमदप न
ििपज्िरप्रणाशन ििपग्रहननिारण ििपपाप प्रशमन जनादप न नमोस्तुते स्िाहा !

अब हाथ जोडकर भगिान विष्णु की प्राथचना करे

ॐ नमो िािद
ु े िाय नम: िुंकषपणाय च !
प्रद्युम्नायाटददे िाय अननरुद्धाय नमो नम: !!
नमो नारायणायैि नराणाुं पतये नम: !
नरपज्
ू याय कीत्यापय स्तुत्याय िरदाय च !!
अनाटदननधनायैि पुराणाय नमो नम: !
िक्ृ ष्ििुंहारकत्रै च ब्रह्मण: पतये नम:!!
नमो िै िेदिेद्याय शुंखचक्रधराय च !
कसलककमषहत्रे च िरु े शाय नमो नम: !!
िुंिारिक्ष
ृ च्छे त्रे च मायाभेत्रे नमो नम: !
बहुरुपाय तीथापय त्रत्रगुणागुणाय च !!
ब्रह्मविष्ण्िीशरुपाय मोक्षदाय नमो नम: !
मोक्षद्िाराय धमापय ननिापणाय नमो नम: !!
ििपकामप्रदायैि परब्रह्मस्िरुवपणे !
िुंिारिागरे घोरे ननमग्नुं माुं िमुद्धर !
त्िदन्यो नाक्स्त दे िेश नाक्स्त त्राता जगत्प्रभो !!
त्िामेि ििपगुं विष्णुुं गतोsहुं शरणुं तत: !
ज्ञानद पप्रदानेन तमोमुततुं प्रकाशय !!

अब एक आर्मनी जि अपचण करे

अनेन पज
ू नेन भगिान श्री विष्णु प्रीयतां न मम ...

|| ॐ श्री विष्णिे नम: ॐ श्री विष्णिे नम: ॐ श्री विष्णिे नम: ||


यह "तीथच " क्या होता हैं ?

उत्तर ---

श्रीनारदपाञ्चरात्र के ज्ञानामत
ृ िार , चतुथरप ात्र में द्िादशशुवद्ध , ग्याहरिााँ अर्धयाय
अन्तगपत -

" सशलाताम्रतथातोयुं शङ्ख:पुरुषिूततकम ् । गन्धुंघण्िा च तुलिीत्याष्िाङ्ग


तीथपमुच्यते । "

अथापत -

1- श्री शासलग्राम सशला


2- पवित्रजल *
3 - शङ्ख *
4 - श्री पुरुषिूतत का पाठ *
5 - मलयाधगरर चन्दन *
6 - घण्िानाद
7- ताम्र धातु का पात्र
8 - श्री तल
ु िीदल

इन आठ घिकों के िक्म्मश्रण िे िुंयुतत जल को ह " तीथप " कहतें हैँ ....

एक ताम्र पात्र में पवित्र जल भरे ... उिमें चन्दन को नघिकर समलाये .. थोड़ी
िी तुलिीदल डाले जल में ....

कफर एक ताम्र पात्र में शासलग्राम रखें ... पुरुषिूतत का पाठ शुरू करें ... िाथ ह
जलपात्र का जल शङ्ख में भरे ..
कफर घण्ि बजाते हुए शासलग्राम का असभषेक करें ...

असभषेक के बाद शासलग्राम को ननकाल ल क्जए और यथा स्थान रख द क्जए ...


इि असभसिुंधचत जल को िुरक्षक्षत रख ल क्जए ...

यह जल ह अब " तीथप " बन चक


ु ा हैं ....

कफर शासलग्राम का यथा िामथ्यप पूजन अचपन कर अुंत में तीथप ग्रहण कीक्जये
बैठकर ... पान पश्चात मस्तक पर धारण करना होता हैं ...

तीथच ग्रहण संिेप मन्त्त्र --

।। अकािमत्ृ युहरणं सिचव्याधधविनाशनम


विष्णो: पादोदकं पुण्यं लशरसा धारयाम्यहम ।।

* गङ्गाजल हो तो उत्तम
* दक्षक्षणािती शङ्ख हो तो उत्तम
* मैिूर का चन्दन हो तो उत्तम
*क्जन्हें परु
ु ष ित
ू त न आता हो िेह " अष्िाक्षर महामन्त्र ' ॐ नमो नारायणाय '
का पाठ भी कर िकतें हैं " ...

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