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1.॥ तारासहस्रनाम-स्तोत्रम ् बृहन्नीलतन्त्रार् गतम ॥
् -ORIGINAL
2.॥ तारासहस्रनाम-स्तोत्रम ् बृहन्नीलतन्त्रार् गतम ॥्
-SIMPLE TO LEARN
3.॥ तारा-कवचम ् ॥ (from -Rudryamala)
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सस्ं कृ त में तंत्र - मंत्र - कथा - स्तोत्र - कवच - सहस्त्रनाम आदि की रचना करते समय जान-बझू कर वर्णो
और शब्िों को जोड़-जोड़ कर बड़ा रखा गया है , तादक इसका सही अथथ योग्य लोगों को ही, गरुु -और-
दवद्वान लोगों के द्वारा, सही लोगों को ही दमले । जो भी रचनायें की गयी है , वह जन-कल्यार्ण के दलये ही
की गयी है । परन्तु िष्टु ों और इसका िरुू पयोग करने वालों से ही गप्तु रखने ( दकसी भी कीमत पर) को कहा
गया है । सभी से गप्तु रखने को नहीं ।
बड़े-बड़े शब्िों को बीच से जैसे-तैसे तोड़ने से उसका अथथ का अनथथ हो जाता है. गलत शब्िों के बार-
बार-उच्चारर्ण से फायिा के जगह पाठक को नक ु सान होता है । उिाहरर्ण के दलये कुछ शब्ि स्वयं िेखें -
रक्षेिमु ा = "रक्षे+िमु ा" या "रक्षेि+उमा" : िमु ा = ि + उ +मा ।
चापरादजता = "चा + परादजता" या "च+अपरादजता" ।
स्तोत्रमत्तु मम = "स्तोत्र-मत्तु मम" या "स्तोत्रम-उत्तमम"

अतः गलत शब्िों के उच्चारर्ण से मन्त्र का अथथ बिल सकता है या अथथ दवपरीत हो सकता है ।
दजससे पाठक का भरोसा िेवी-िेवता / पजू ा-पाठ से उठ जाता है । इसदलये इस को सलु भ करने के साथ-
साथ सही अथथ दनकले इसका ध्यान रखा गया है । संदि-दवच्छे ि का ध्यान सही तरह से रखने का प्रयास
दकया गया है । दफर भी कुछ गलती हो तो, पाठक, उसे अपने स्तर से थोड़ा उदचत तरीके से सिु ार कर
लें । (िन्यवाि) |

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“sandhi-vichchheda”. It will help beginners to learn with more accuracy. See how
some words are combined-joined-twisted and has been written in lengthy words,
that it looks so hard to understand it correctly.
Some complex words have been split and placed around, either in right side or
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॥ पटल - १८ ॥ ORIGINAL-TO-PRINT

॥ तारासहस्रनाम-स्तोत्रम ् बृहन्नीलतन्त्रार् गतम ॥



श्री देव्यवु ाचः ।
देव देव महादेव सृष्टि-ष्टित्यन्त-कारक ।
प्रसङ्गेन महादेव्या ष्टवस्तरं कष्टितं मष्टि ॥१॥
देव्या नीलसरस्वत्याः सहस्रं परमेश्वर ।
नाम्ां श्रोत ं ु महेशान प्रसादः ष्टिितां मष्टि ।
कििस्व महादेव िद्यहं तव वल्लभा ॥२॥
श्री भ ैरव उवाचः ।
साध ु पृि ं महादेष्टव सवगतन्त्रेष ु र्ोष्टपतम ।्
नाम्ां सहस्रं तारािाः कष्टित ं ु न ैव शक्यते ॥३॥
प्रकाशात ष्ट् सष्टिहाष्टनः स्यात ष्ट् श्रिा च पष्टरहीिते ।

प्रकाशिष्टत िो मोहात षण्मासाद ु िात
् मृत्यमाप्न ्
ु ॥४॥
ु र।
अकथ्यं परमेशाष्टन अकथ्यं च ैव सन्दष्ट
क्षमस्व वरदे देष्टव िष्टद स्नेहोऽष्टस्त मां प्रष्टत ॥५॥
सवगस्वं शृण ु हे देष्टव सवागर्मष्टवदां वरे ।
धनसारं महादेष्टव र्ोप्तव्यं परमेश्वष्टर ॥६॥
आिर् ् त ।्
ु ोप्यं र्ृहष्टिद्रं र्ोप्यं न पापभार् भवे

सर्ोप्यं परमेशाष्टन र्ोपनात ् ष्टसष्टिमश्नतेु ॥७॥
प्रकाशात ् कािग-हाष्टनश्च प्रकाशात ् प्रलिं भवेत ।्
तस्माद ् भद्रे महेशाष्टन न प्रकाश्िं कदाचन ॥८॥
ु ा
इष्टत देववचः श्रत्व ु
देवी परमसन्दरी ।
ष्टवष्टस्मता परमेशानी ष्टवषणा तत्र जािते ॥९॥
शृण ु हे परमेशान कृ पा-सार्र-पारर् ।

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तव स्नेहो महादेव मष्टि नास्त्यत्र ष्टनष्टश्चतम ॥१०॥
भद्रं भद्रं महादेव इष्टत कृ त्वा महेश्वरी ।
ु ीभूि देवश
ष्टवमख े ी तत्रास्ते शैलजा शभु ा ॥११॥
ु ीं देवीं महादेवो महेश्वरः ।
ष्टवलोक्य ष्टवमख

प्रहस्य परमेशानीं पष्टरष्वज्य ष्टप्रिां किाम ॥१२॥
कििामास तत्रैव महादेव्य ै महेश्वष्टर ।
मम सवगस्वरूपा त्वं जानीष्टह नर्नष्टन्दष्टन ॥१३॥
त्वां ष्टवनाहं महादेष्टव पूवोक्त-शवरूपवान ।्
क्षमस्व परमानन्दे क्षमस्व नर्नष्टन्दष्टन ॥१४॥
ु र।
ििा प्राणो महेशाष्टन देहे ष्टतष्ठष्टत सन्दष्ट
तिा त्वं जर्तामाद्ये चरणे पष्टततोऽस्म्यहम ॥१५॥्
इष्टत मत्वा महादेष्टव रक्ष मां तव ष्टकङ्करम ।्
ततो देवी महेशानी त्रैलोक्यमोष्टहनी ष्टशवा ॥१६॥
महादेवं पष्टरष्वज्य प्राह र्द्गदिा ष्टर्रा ।
सदा देहस्वरूपाहं देही त्वं परमेश्वर ॥१७॥
तिाष्टप वञ्चनां कतुं ु माष्टमत्थं वदष्टस ष्टप्रिम ।्

महादेवः पनः प्राह भ ैरष्टव प्राणवल्लभे ॥१८॥
नाम्ां सहस्रं तारािाः श्रोतष्टु मिस्य-शेषतः ।
श्रीदेव्यवु ाच ।
न श्रतु ं परमेशान तारा-नाम-सहस्रकम ।्

कििस्व महाभार् सत्यं परम-सन्दरम ्
॥१९॥

श्री पावगत्यवाच ।
ु माम ।्
किमीशान सवगज्ञ लभन्ते ष्टसष्टिमत्त
ु ॥२०॥
साधकाः सवगदा िेन तन्मे किि सन्दर

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िस्मात परतरं नाष्टस्त स्तोत्रं तन्त्रेष ु ष्टनष्टश्चतम ।्
सवगपापहरं ष्टदव्यं सवागपष्टिष्टनवारकम ॥२१॥ ्
सवगज्ञानकरं ु
पण्िं सवगमङ्गल-संितु म ् ।

परश्चिाग-शतैस्तल्यं ्
ु स्तोत्रं सवगष्टप्रिङ्करम ॥२२॥
वश्िप्रदं मारणदमच्च ु ाटन-प्रदं महत ् ।
नाम्ां सहस्रं तारािाः कििस्व सरेु श्वर ॥२३॥
श्री महादेव उवाचः ।
नाम्ां सहस्रं तारािाः स्तोत्र-पाठाद ् भष्टवष्यष्टत ।
नाम्ां सहस्रं तारािाः किष्टिष्याम्य-शेषतः ॥२४॥
शृण ु देष्टव सदा भक्त्या भक्तानां परमं ष्टहतम ।्

ष्टवना पूजोपहारेण ष्टवना जाप्येन ित फलम ्
॥२५॥

तत फलं सकलं देष्टव किष्टिष्याष्टम तच्छृण ु ।
ष्टवष्टनिोर्ः
ॐ अस्य श्री-तारा-सहस्रनाम-स्तोत्रमहामन्त्रस्य,
अक्षोभ्य ऋष्टषः, बृहती-उष्टिक ् छन्दः,
श्री उग्रतारा श्रीमदेकजटा श्री नीलसरस्वती // (श्रीमद ्-एकजटा)

देवता, परुषाि ग-चतिु ि-ष्टसिििे / प्रीतििे ष्टवष्टनिोर्ः॥

साधक को देवी तारा का ध्यान करना है.


ु ् शेखरां
ध्यािेत कोष्टट ष्टदवाकरद्यष्टु त ष्टनभां बालेन्दु िक
ु वसनांपण
रक्ताङ्गी रसनां सरक्त े ष्टबम्बाननाम ्
ू न्दु
पाशं कर्त्रत्र महाकुशाष्टद दधतीं दोर्त्रभश्चतर्त्रु भितुग ां
नाना भूषण भूष्टषतां भर्वतीं तारां जर्त ताष्टरणीं

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सहस्रनाम (Main Part)


तारा राष्टत्र-मगहाराष्टत्र-कागलराष्टत्र-मगहामष्टतः ।
काष्टलका कामदा मािा महामािा महास्मृष्टतः॥२६॥
महादानरता िज्ञा िज्ञोत्सव-ष्टवभूष्टषता ।

चन्द्रव्वज्रा चकोराक्षी चारुनत्रे ा सलोचना ॥२७॥
ष्टत्रनत्रे ा महती देवी कुरङ्गाक्षी मनोरमा ।
ु ध गजा ॥२८॥
ब्राह्मी नारािणी ज्योत्स्ना चारुके शी समू
वाराही वारुणी ष्टवद्या महाष्टवद्या महेश्वरी ।
ष्टसिा कुष्टञ्चतके शा च महािज्ञ-स्वरूष्टपणी ॥२९॥
र्ौरी चम्पकवणाग च कृ शाङ्गी ष्टशवमोष्टहनी ।
सवागनन्द-स्वरूपा च सवग-शङ्कै क-ताष्टरणी ॥३०॥
ष्टवद्यानन्दमिी नन्दा भद्रकाली स्वरूष्टपणी ।
ु रत्रा च कौलव्रत-परािणा ॥३१॥
र्ाित्री सचष्ट

ष्टहरण्िर्भाग भूर्भाग महार्भाग सलोचनी ।
ष्टहमवत्तनिा ष्टदव्या महामेघ-स्वरूष्टपणी ॥३२॥
जर्न्माता जर्िात्री जर्तामपु काष्टरणी ।
ऐन्द्री सौम्या तिा घोरा वारुणी माधवी तिा ॥३३॥
आग्नेिी न ैरृती च ैव ऐशानी चष्टण्िकाष्टिका ।
ु रुतनिा
समे ष्टनत्या सवेषामपु काष्टरणी ॥३४॥
ललष्टिह्वा सरोजाक्षी मण्ु िस्रक्पष्टरभूष्टषता ।
सवागनन्दमिी सवाग सवागनन्द-स्वरूष्टपणी ॥३५॥
धृष्टतमेधा तिा लक्ष्ीः श्रिा पन्नर्-र्ाष्टमनी ।
रुष्टिणी जानकी दुर्ागष्टम्बका सत्यवती रष्टतः॥३६॥
कामाख्या कामदा नन्दा नारससही सरस्वती ।

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महादेवरता चण्िी चण्िदोदगण्ि-खष्टण्िनी ॥३७॥


दीघ गके शी सकेु शी च ष्टपङ्गके शी महाकचा ।
भवानी भवपत्नी च भवभीष्टतहरा सती ॥३८॥
पौरन्दरी तिा ष्टविोजागिा माहेश्वरी तिा ।
सवेषां जननी ष्टवद्या चावगङ्गी दैत्यनाष्टशनी ॥३९॥
सवगरूपा महेशाष्टन काष्टमनी वरवर्त्रणनी ।
महाष्टवद्या महामािा महामेधा महोत्सवा ॥४०॥
ष्टवरूपा ष्टवश्वरूपा च मृिानी मृिवल्लभा ।
कोष्टटचन्द्र-प्रतीकाशा शतसूि-ग प्रकाष्टशनी ॥४१॥
जह्नुकन्या महोग्रा च पावगती ष्टवश्वमोष्टहनी ।
कामरूपा महेशानी ष्टनत्योत्साहा मनष्टस्वनी ॥४२॥
वैकुण्ठनाि-पत्नी च तिा शङ्करमोष्टहनी ।
काश्िपी कमला कृ िा कृ िरूपा च काष्टलनी ॥४३॥
माहेश्वरी वृषारूढा सवगष्टवस्मि-काष्टरणी ।
ु ा कन्या ष्टहमष्टर्रेस्तिा ॥४४॥
मान्या मानवती शि
अपणाग पद्मपत्राक्षी नार्िज्ञोपवीष्टतनी ।
महाशङ्खधरा कान्ता कमनीिा नर्ािजा ॥४५॥
ब्रह्माणी वैिवी शम्भोजागिा र्ङ्गा जलेश्वरी ।
भार्ीरिी मनोबष्टु ि-र्त्रनत्या ष्टवद्यामिी तिा ॥४६॥
हरष्टप्रिा ु
ष्टर्ष्टरसता हरपत्नी तपष्टस्वनी ।
महाव्याष्टधहरा देवी महाघोर-स्वरूष्टपणी ॥४७॥

महापण्ि-प्रभा भीमा मधकैु टभ-नाष्टशनी ।

शष्टङ्खनी वष्टज्रणी धात्री तिा पस्तकधाष्टरणी ॥४८॥
चामण्ु िा चपला तङ्गु ा शम्ब
ु दैत्य-ष्टनकृ न्तनी ।

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ु ा ॥४९॥
शाष्टन्तर्त्रनद्रा महाष्टनद्रा पूणष्टग नद्रा च रेणक
कौमारी कुलजा कान्ती कौलव्रत-परािणा ।
वनदुर्ाग सदाचारा द्रौपदी द्रुपदािजा ॥५०॥
िशष्टस्वनी िशस्या च िशोधात्री िशःप्रदा ।
ु -प्राणनाष्टशनी ॥५१॥
सृष्टिरूपा महार्ौरी ष्टनशम्ब
ु पृथ्वी रोष्टहणी ष्टवन्ध्यवाष्टसनी ।
पष्टद्मनी वसधा
ष्टशवशष्टक्त-मगहाशष्टक्तः शष्टङ्खनी शष्टक्तष्टनर्तग ा ॥५२॥
दैत्यप्राणहरा देवी सवगरक्षण-काष्टरणी ।
क्षाष्टन्तः क्षेमङ्करी च ैव बष्टु िरूपा महाधना ॥५३॥
श्रीष्टवद्या भ ैरष्टव भव्या भवानी भवनाष्टशनी ।
ताष्टपनी भाष्टवनी सीता तीक्ष्णतेजःस्वरूष्टपणी ॥५४॥
दात्री दानपरा काली दुर्ाग दैत्यष्टवभूषणा ।

महापण्िप्रदा भीमा मधकैु टभ-नाष्टशनी ॥५५॥
पद्मा पद्मावती कृ िा तिु ा पिा
ु तिोवगशी ।
वष्टज्रणी वज्रहस्ता च तिा नारािणी ष्टशवा ॥५६॥
खष्टिनी खिहस्ता च खि-खप गर-धाष्टरणी ।

देवाङ्गना देवकन्या देवमाता पलोमजा ॥५७॥
सष्टु खनी स्वर्दग ात्री च सवगसौख्य-ष्टववर्त्रधनी ।
शीला शीलावती सूक्ष्ा सूक्ष्ाकारा वरप्रदा ॥५८॥
वरेण्िा वरदा वाणी ज्ञाष्टननी ज्ञानदा सदा ।
उग्रकाली महाकाली भद्रकाली च दष्टक्षणा ॥५९॥
भृर्वु श ु ू ता
ं -समद्भ भार्वग ी ु
भृर्वल्लभा ।
शूष्टलनी शूलहस्ता च कत्रीखप गर-धाष्टरणी ॥६०॥
ु ू ता
महावंश-समद्भ मिूर-वर-वाहना ।

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महाशङ्ख-रता रक्ता रक्त-खप गर-धाष्टरणी ॥६१॥


ु िका ।
रक्ताम्बर-धरा रामा रमणी सरनाष्ट
मोक्षदा ष्टशवदा श्िामा मदष्टवभ्रम-मन्थरा ॥६२॥
परमानन्ददा ज्येष्ठा िोष्टर्नी र्णसेष्टवता ।
सारा जाम्बवती च ैव सत्यभामा नर्ािजा ॥६३॥
रौद्रा रौद्रबला घोरा रुद्र-सारारुणाष्टिका ।
रुद्ररूपा महारौद्री रौद्रदैत्य-ष्टवनाष्टशनी ॥६४॥
कौमारी कौष्टशकी चण्िा कालदैत्य-ष्टवनाष्टशनी ।
ु ािा महोदरी ॥६५॥
शम्भपु त्नी शम्भरु ता शम्बज
ष्टशवपत्नी ष्टशवरता ष्टशवजािा ष्टशवष्टप्रिा ।
हरपत्नी हररता हरजािा हरष्टप्रिा ॥६६॥
मदनान्तक-कान्ता च मदनान्तक-वल्लभा ।
ष्टर्ष्टरजा ष्टर्ष्टरकन्या च ष्टर्रीशस्य च वल्लभा ॥६७॥
भूता भव्या भवा स्पिा पावनी परपाष्टलनी ।
अदृश्िा च व्यक्तरूपा इिाष्टनि-प्रवर्त्रिनी ॥६८॥
अच्यतु ा प्रच्यतु -प्राणा प्रमदा वासवेश्वरी ।
ु ू ता धाष्टरणी च प्रष्टतष्टष्ठता ॥६९॥
अपांष्टनष्टध-समद्भ
उद्भवा क्षोभणा क्षेमा श्रीर्भाग परमेश्वरी ।
ु हा च काष्टमनी कञ्जलोचना ॥७०॥
कमला पष्पदे
शरण्िा कमला प्रीष्टत-र्त्रवमलानन्द-वर्त्रधनी ।
कपर्त्रदनी कराला च ष्टनमगला देवरूष्टपणी ॥७१॥
उदीणगभषू णा ु ना महोदरी ।
भव्या सरसे
श्रीमती ष्टशष्टशरा नव्या ष्टशष्टशराचल-कन्यका ॥७२॥

सरमान्या ु ष्ठा ज्येष्ठा प्राणेश्वरी ष्टिरा ।
सरश्रे

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तमोघ्नी ध्वान्त-संहन्त्री प्रितािा पष्टतव्रता ॥७३॥


प्रद्योष्टतनी रिारूढा सवगलोक-प्रकाष्टशनी ।
मेधाष्टवनी महावीिाग हंसी संसारताष्टरणी ॥७४॥
प्रणतप्राष्टण-नामार्त्रतहाष्टरणी दैत्यनाष्टशनी ।
िाष्टकनी शाष्टकनीदेवी वरखट्वाङ्ग-धाष्टरणी ॥७५॥
कौमदु ी कुमदु ा कुन्दा कौष्टलका कुलजामरा ।
ु सम्पन्ना नर्जा खर्वाष्टहनी ॥७६॥
र्र्त्रवता र्ण
चन्द्रानना महोग्रा च चारुमूध गज-शोभना ।

ु ॥७७॥
मनोज्ञा माधवी मान्या माननीिा सतां सहृत
ु धष्टनष्ठा पूवफ
ज्येष्ठा श्रेष्ठा मघा पष्या ु ।
ग ाल्गनी
रक्तबीज-ष्टनहन्त्री च रक्तबीज-ष्टवनाष्टशनी ॥७८॥
चण्िमण्ु ि-ष्टनहन्त्री च चण्िमण्ु ि-ष्टवनाष्टशनी ।

कत्री हत्री सकत्री च ष्टवमलामल-वाष्टहनी ॥७९॥

ष्टवमला भास्करी वीणा मष्टहषासर-घाष्ट तनी ।
काष्टलन्दी िमनु ा वृिा सरष्ट
ु भः बाष्टलका सती ॥८०॥
कौशल्या कौमदु ी मैत्रीरूष्टपणी चाप्यरुन्धती ।
ु र-र्ृष्टहणी पूणाग पूणागनन्द-स्वरूष्टपणी ॥८१॥
पराष्ट

पण्िरीकाक्ष-पत्नी च ु
पण्िरीकाक्ष-वल्लभा ।
सम्पूण-ग चन्द्रवदना बालचन्द्र-समप्रभा ॥८२॥
रेवती रमणी ष्टचत्रा ष्टचत्राम्बर-ष्टवभूषणां ।
सीता वीणावती च ैव िशोदा ष्टवजिा ष्टप्रिा ॥८३॥

नवपष्प-सम ु ूता
द्भ ु
नवपष्पोत्सवोत्सवा ।

नव-पष्पस्रजा-माला माल्यभूषण-भूष्टषता ॥८४॥

नवपष्प-समप्राणा ु
नवपष्पोत्सव-ष्ट प्रिा ।

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प्रेतमण्िल-मध्यस्ता सवागङ्ग-सन्दरी ष्टशवा ॥८५॥
ु िका षष्ठी पष्प-स्तव-कमण्िला
नवपष्पाष्ट ु ।

नवपष्प-र् ु ोपेता
ण श्मशान-भ ैरवष्टप्रिा ॥८६॥
कुलशास्त्र-प्रदीपा च कुलमार्-ग प्रवर्त्रिनी ।
श्मशानभ ैरवी काली भ ैरवी भ ैरवष्टप्रिा ॥८७॥
आनन्दभ ैरवी ध्येिा भ ैरवी कुरुभ ैरवी ।
महाभ ैरव-सम्प्रीता भ ैरवीकुल-मोष्टहनी ॥८८॥
श्रीष्टवद्याभ ैरवी ु ैरवी ।
नीष्टतभ ैरवी र्णभ
सम्मोहभ ैरवी पष्टु िभ ैरवी तष्टु िभ ैरवी ॥८९॥
संहारभ ैरवी सृष्टिभ ैरवी ष्टिष्टतभ ैरवी ।

आनन्दभ ैरवी वीरा सन्दरी ु
ष्टिष्टत-सन्दरी ॥९०॥
ु ानन्द-स्वरूपा च सन्दरी
र्ण ु कालरूष्टपणी ।

श्रीमािा-सन्दरी ु
सौम्यसन्दरी ु
लोकसन्दरी ॥९१॥
श्रीष्टवद्या-मोष्टहनी बष्टु िमगहाबष्टु ि-स्वरूष्टपणी ।

मष्टल्लका हार-रष्टसका हारालम्बन-सन्दरी ॥९२॥
नीलपङ्कज-वणाग च नार्के सर-भूष्टषता ।
जपाकुसम-सङ्काशा
ु जपाकुसम-शोष्ट
ु भता ॥९३॥
ष्टप्रिा ष्टप्रिङ्करी ष्टविोदागनवेन्द्र-ष्टवनाष्टशनी ।
े री ज्ञानदात्री ज्ञानानन्द-प्रदाष्टिनी ॥९४॥
ज्ञानश्व
ु र्ौरव-सम्पन्ना
र्ण ु शील-समष्टिता ।
र्ण
रूपिौवन-सम्पन्ना रूपिौवन-शोष्टभता ॥९५॥
ु ाश्रिा
र्ण ु रता
र्ण ु र्ौरव-सन्दरी
र्ण ु ।
मष्टदरामोद-मत्ता च ताटङ्क-िि-शोष्टभता ॥९६॥
वृक्षमूल-ष्टिता देवी वृक्षशाखो-पष्टरष्टिता ।

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ताल-मध्याग्र-ष्टनलिा वृक्षमध्य-ष्टनवाष्टसनी ॥९७॥


ु काशा स्विम्भू-पष्पधाष्ट
स्विम्भू-पष्पसं ु रणी ।
स्विम्भू-कुसमप्रीता
ु ु
स्विम्भू-पष्पशोष्टभनी ॥९८॥
ु ।
ु सका नग्ना ध्यानवती सधा
स्विम्भू-पष्परष्ट
ु ष्टप्रिा
शि ु रता
शि ु मिन-तत्परा ॥९९॥
शि

पूणपग णाग सपणाग च ष्टनष्पणाग पापनाष्टशनी ।
मष्टदरामोद-सम्पन्ना मष्टदरामोद-धाष्टरणी ॥१००॥
सवागश्रिा ु ा नन्द-नन्दन-धाष्टरणी ।
सवगर्ण

नारीपष्प-सम ु ूता
द्भ ु
नारीपष्पोत्सवोत्सवा ॥१०१॥

नारीपष्प-समप्राणा ु
नारीपष्प-रता मृर्ी ।
सवगकालोद्भवप्रीता सवगकालोद्भवोत्सवा ॥१०२॥
चतभु ज
गु ा दशभजा
ु ु
अिादशभजा तिा ।
ु षड्भ ुजा प्रीता रक्तपङ्कज-शोष्टभता ॥१०३॥
ष्टिभजा
कौबेरी कौरवी कौिाग कुरुकुल्ला कपाष्टलनी ।
ु ग-कदली-जङ्घा रम्भोरू रामवल्लभा ॥१०४॥
सदीघ
ष्टनशाचरी ष्टनशामूर्त्रत-र्त्रनशाचन्द्र-समप्रभा ।
चान्द्री चान्द्रकला चन्द्रा चारुचन्द्र-ष्टनभानना ॥१०५॥
स्रोतस्वती स्रष्टु तमती सवग-दुर् गष्टतनाष्टशनी ।
सवागधारा सवगमिी सवागनन्द-स्वरूष्टपणी ॥१०६॥
सवगचिे श्वरी सवाग सवगमन्त्रमिी शभु ा ।
सहस्र-निन-प्राणा सहस्र-निन-ष्टप्रिा ॥१०७॥

सहस्रशीषाग सषमा सदम्भा सवगभष्टक्षका ।
िष्टिका िष्टिचििा षिर्-ग फलदाष्टिनी ॥१०८॥
षसिंशपद्म-मध्यिा षसिंशकुल-मध्यर्ा ।

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हूँकारवणग-ष्टनलिा हूँकाराक्षर-भूषणा ॥१०९॥


हकारवणग-ष्टनलिा हकाराक्षर-भूषणा ।
हाष्टरणी हारवष्टलता हारहीरक-भूषणा ॥११०॥
ह्रींकारबीज-सष्टहता ह्रींकारैरुप-शोष्टभता ।
कन्दप गस्य कला कुन्दा कौष्टलनी कुलदर्त्रपता ॥१११॥
के तकी-कुसमप्राणा
ु के तकी-कृ तभूषणा ।
के तकी-कुसमासक्ता
ु के तकी-पष्टरभूष्टषता ॥११२॥
ग णवग दना
कपूर-पू महामािा महेश्वरी ।
कला के ष्टलः ष्टििा कीणाग कदम्ब-कुसमोत्स
ु ु ा ॥११३॥

कादष्टम्बनी कष्टरशण्ु िा कुञ्जरेश्वर-र्ाष्टमनी ।

खवाग सखञ्ज-निना खञ्जन-िन्द्व-भूषणा ॥११४॥
खद्योत इव दुलगक्षा खद्योत इव चञ्चला ।
महामािा ज्र्िात्री र्ीतवाद्य-ष्टप्रिा रष्टतः॥११५॥
ु ज्या र्णप्रदा
र्णेश्वरी र्णेज्या च र्णपू ु ।
ु ाढ्या र्णसम्पन्ना
र्ण ु ु
र्णदात्री ु िका ॥११६॥
र्णाष्ट
र्वु ी र्रुु तरा र्ौरी र्ाणपत्य-फलप्रदा ।
महाष्टवद्या महामेधा तष्टु लनी र्णमोष्टहनी ॥११७॥
भव्या भवष्टप्रिा भाव्या भावनीिा भवाष्टिका ।
घघरग ा घोरवदना घोरदैत्य-ष्टवनाष्टशनी ॥११८॥
ु घनाचला ।
घोरा घोरवती घोषा घोरपत्री
ुग ॥११९॥
चचरग ी चारुनिना चारुवक्त्रा चतर्ु णा
चतवु दे मिी चण्िी चन्द्रास्या चतरु ानना ।
चलच्चकोर-निना चलत्खञ्जन-लोचना ॥१२०॥
चलदम्भोज-ष्टनलिा चलदम्भोज-लोचना ।

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छत्री छत्रष्टप्रिा छत्रा छत्रचामर-शोष्टभता ॥१२१॥


ष्टछन्नछदा ष्टछन्नष्टशराष्टश्छन्ननासा छलाष्टिका ।
छलाढ्या छलसंत्रस्ता छलरूपा छलष्टिरा ॥१२२॥
छकारवणग-ष्टनलिा छकाराढ्या छलष्टप्रिा ।
छष्टद्मनी छद्मष्टनरता छद्मिद्म-ष्टनवाष्टसनी ॥१२३॥
जर्न्नािष्टप्रिा जीवा जर्न्मष्टु क्तकरी मता ।
जीणाग जीमूतवष्टनता जीमूत ैरुप-शोष्टभता ॥१२४॥
जामातृवरदा गु
जम्भा जमलाजन-भष्ट ञ्जनी ।
झझगरी झाकृ ष्टत-झगल्ली झरी झझगष्टरका तिा ॥१२५॥
टङ्कार-काष्टरणी टीका सवगटङ्कार-काष्टरणी ।
ठं कराङ्गी िमरुका िाकारा िमरुष्टप्रिा ॥१२६॥
ढक्कारावरता ष्टनत्या ु सी मष्टणभूष्टषता ।
तल
ु ा च तोष्टलका तीणाग तारा तारष्टणका तिा ॥१२७॥
तल
तन्त्रष्टवज्ञा तन्त्ररता तन्त्रष्टवद्या च तन्त्रदा ।
ताष्टन्त्रकी तन्त्रिोग्िा च तन्त्रसारा च तष्टन्त्रका ॥१२८॥
तन्त्रधारी तन्त्रकरी सवगतन्त्र-स्वरूष्टपणी ।
तष्टु हनांश-ु समानास्या तष्टु हनांश-ु समप्रभा ॥१२९॥
तषु ाराकर-तल्य
ु ाङ्गी तषु ाराधार-सन्दरी
ु ।
तन्त्रसारा तन्त्रकरो तन्त्रसार-स्वरूष्टपणी ॥१३०॥
तषु ारधाम-तल्य
ु ास्या तषु ारांश-ु समप्रभा ।
तषु ाराष्टद्रसता
ु तार्क्ष्ाग ताराङ्गी तालसन्दरी
ु ॥१३१॥
तार-स्वरेण सष्टहता तारस्वर-ष्टवभूष्टषता ।
िकारकू ट-ष्टनलिा िकाराक्षर-माष्टलनी ॥१३२॥
दिावती दीनरता दुःख-दाष्टरद्रि-नाष्टशनी ।

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दौभागग्ि-दुःख-दष्टलनी दौभागग्ि-पद-नाष्टशनी ॥१३३॥


दुष्टहता ु
दीनबन्धश्च दानवेन्द्र-ष्टवनाष्टशनी ।
दानपात्री दानरता दान-सम्मान-तोष्टषता ॥१३४॥
दान्त्याष्टद-सेष्टवता दान्ता दिा दामोदरष्टप्रिा ।
दधीष्टचवरदा तिु ा दानवेन्द्र-ष्टवमर्त्रदनी ॥१३५॥
दीघ गनत्रे ा दीघ गकचा दीघ गनासा च दीर्त्रघका ।
दाष्टरद्रि-दुःखसंनाशा दाष्टरद्रि-दुःख-नाष्टशनी ॥१३६॥
ु दम्भा दम्भासर-वरप्रदा
दाष्टम्भका दन्तरा ु ।
धनधान्य-प्रदा धन्या े र-धनप्रदा ॥१३७॥
धनश्व
धमगपत्नी धमगरता धमागधमग-ष्टवष्टववर्त्रिनी ।
धर्त्रमणी धर्त्रमका धम्याग धमागधमग-ष्टववर्त्रिनी ॥१३८॥
े री
धनश्व धमगरता धमागनन्द-प्रवर्त्रिनी ।
धनाध्यक्षा धनप्रीता धनाढ्या धनतोष्टषता ॥१३९॥
धीरा ध ैिगवती ष्टधष्ण्या धवलाम्भोज-संष्टनभा ।
धष्टरणी धाष्टरणी धात्री धूरणी धरणी धरा ॥१४०॥
धार्त्रमका धमगसष्टहता धमगष्टनन्दक-वर्त्रजता ।
नवीना नर्जा ष्टनम्ा ष्टनम्नाष्टभ-न गर्ेश्वरी ॥१४१॥
नूतनाम्भोज-निना ु
नवीनाम्भोज-सन्दरी ।
ु नर्ा ॥१४२॥
नार्री नर्रज्येष्ठा नर्राजसता
नार्राज-कृ ततोषा नार्राज-ष्टवभूष्टषता ।
नार्ेश्वरी नार्रूढा नार्राज-कुलेश्वरी ॥१४३॥
े कला नान्दी नष्टन्दके श्वर-वल्लभा ।
नवीनन्दु
नीरजा नीरजाक्षी च नीरज-िन्द्व-लोचना ॥१४४॥
नीरा नीरभवा वाणी नीर-ष्टनमगल-देष्टहनी ।

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नार्-िज्ञोपवीताढ्या नार्-िज्ञोपवीष्टतका ॥१४५॥


नार्के सर-संतिु ा नार्के सर-माष्टलनी ।
नवीन-के तकीकुन्द ? मष्टल्लकाम्भोज-भूष्टषता ॥१४६॥
नाष्टिका नािकप्रीता नािक-प्रेमभूष्टषता ।
नािक-प्रेमसष्टहता नािक-प्रेमभाष्टवता ॥१४७॥
नािकानन्द-ष्टनलिा नािकानन्द-काष्टरणी ।
नमगकमगरता ष्टनत्यं नमगकमग-फलप्रदा ॥१४८॥
नमगकमगष्टप्रिा नमाग नमगकमग-कृ तालिा ।
नमगप्रीता नमगरता नमगध्यान-परािणा ॥१४९॥

पौिष्टप्रिा च पौष्पेज्या पष्पदाम-ष्टवभूष्टषता ।

पण्िदा ु
पूर्त्रणमा पूणाग कोष्टटपण्ि-फलप्रदा ॥१५०॥

पराणार्म-र्ोप्या ु
च पराणार्म-र्ोष्टपता ।

पराणर्ोचरा पूणाग पूवाग प्रौढा ष्टवलाष्टसनी ॥१५१॥
प्रह्लाद-हृदिाह्लाद-र्ेष्टहनी ु
पण्िचाष्टरणी ।
ु फाल्गनप्रीता
फाल्गनी ु ु धाष्टरणी ॥१५२॥
फाल्गनप्रे
ु मदा च ैव फष्टणराज-ष्टवभूष्टषता ।
फाल्गन-प्रे
फष्टणकाञ्ची फष्टणप्रीता फष्टणहार-ष्टवभूष्टषता ॥१५३॥
फणीश-कृ त-सवागङ्ग-भूषणा फष्टणहाष्टरणी ।
फष्टणप्रीता फष्टणरता फष्टण-कङ्कण-धाष्टरणी ॥१५४॥
फलदा ष्टत्रफला शक्ता फलाभरण-भूष्टषता ।
फकारकू ट-सवागङ्गी ु
फाल्गनानन्द-वर्त्र िनी ॥१५५॥
वासदेु वरता ष्टवज्ञा ष्टवज्ञ-ष्टवज्ञान-काष्टरणी ।
वीणावती बलाकीणाग बालपीिूष-रोष्टचका ॥१५६॥

बाला-वसमती ष्टवद्या ष्टवद्याहार-ष्टवभूष्टषता ।

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ष्टवद्यावती वैद्यपदप्रीता वैवस्वती बष्टलः॥१५७॥


बष्टल-ष्टवध्वंष्टसनी च ैव वराङ्गिा वरानना ।
ष्टविोवगक्षःिलिा च वाग्वती ष्टवन्ध्यवाष्टसनी ॥१५८॥
भीष्टतदा भिदा ु ाल-समप्रभा ।
भानोरंशज
भार्वग ज्य
े ा भृर्ोः पूज्या भरिार-नमस्कृ ता ॥१५९॥

भीष्टतदा भिसंहन्त्री भीमाकारा च सन्दरी ।
मािावती मानरता मान-सम्मान-तत्परा ॥१६०॥
माधवानन्ददा माध्वी मष्टदरा-मष्टु दतेक्षणा ।
ु ोपेता महती च
महोत्सव-र्ण महद्गणा
ु ॥१६१॥
मष्टदरा-मोदष्टनरता मष्टदरामिन े रता ।
िशोधरी िशोष्टवद्या िशोदानन्द-वर्त्रिनी ॥१६२॥

िशःकपूरधवला िशोदाम-ष्टवभूष्टषता ।
िमराजष्टप्रिा िोर्मार्ागनन्द-प्रवर्त्रिनी ॥१६३॥
िमस्वसा च िमनु ा िोर्मार्-ग प्रवर्त्रिनी ।
िादवानन्द-कत्री च िादवानन्द-वर्त्रिनी ॥१६४॥
िज्ञप्रीता िज्ञमिी िज्ञकमग-ष्टवभूष्टषता ।
रामप्रीता रामरता रामतोषण-तत्परा ॥१६५॥
राज्ञी राजकुलेज्या च राजराजेश्वरी रमा ।
रमणी रामणी रम्या रामानन्द-प्रदाष्टिनी ॥१६६॥
रजनीकर-पूणागस्या रक्तोत्पल-ष्टवलोचना ।
लाङ्गष्टल-प्रेमसंतिु ा लाङ्गष्टल-प्रणिष्टप्रिा ॥१६७॥
लाक्षारुणा च ललना लीला लीलावती लिा ।
ु प्रीता
लङ्के श्वर-र्ण लङ्के श-वरदाष्टिनी ॥१६८॥
लवङ्गी-कुसमप्रीता
ु लवङ्ग-कुसमस्रजा
ु ।

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धाता ष्टववस्वद्गष्टृ हणी ष्टववस्वत्प्रेमधाष्टरणी ॥१६९॥


शवोपष्टरसमासीना शववक्षःिल-ष्टिता ।
शरणार्त-रष्टक्षत्री शरण्िा श्रीः शरद्गणा
ु ॥१७०॥
षट्कोणचि-मध्यिा सम्पदाि ग-ष्टनषेष्टवता ।
हंकारा-काष्टरणी देवी हंकाररूप-शोष्टभता ॥१७१॥
क्षेमङ्करी तिा क्षेमा क्षेमधाम-ष्टववर्त्रिनी ।
क्षेमाम्ािा तिाज्ञा च इिा इश्वरवल्लभा ॥१७२॥
उग्रदक्षा तिा चोग्रा अकाराष्टद-स्वरोद्भवा ।
ऋकार-वणगकूटिा ॠकार-स्वरभूष्टषता ॥१७३॥
एकारा च तिा च ैका एकाराक्षर-वाष्टसता ।
ऐिा च ैषा तिा चौषा औकाराक्षर-धाष्टरणी ॥१७४॥
अं अःकार-स्वरूपा च सवागर्म-सर्ोष्ट ु पता ।
इत्येतत ् कष्टितं देष्टव तारानाम-सहस्रकम ॥१७५॥

फलश्रष्टु त
ि इदं पठष्टत स्तोत्रं प्रत्यहं भष्टक्तभावतः।
ष्टदवा वा िष्टद वा रात्रौ सन्ध्यिोरु-भिोरष्टप ॥१७६॥
स्तव-राजस्य पाठे न राजा भवष्टत ष्टकङ्करः।
सवागर्मेष ु पूज्यः स्यात ् सवगतन्त्रे स्विं हरः॥१७७॥
ु िे ।
ष्टशविान े श्मशान े च शून्यार्ारे चतष्प
ि पठे च्छृणिु ाद ् वाष्टप स िोर्ी नात्र संशिः॥१७८॥

िाष्टन नामाष्टन सन्त्यष्टस्मन प्रसङ्गाद ् मरु वैष्टरणः।
ग्राह्याष्टण ताष्टन कल्याष्टण नान्यान्यष्टप कदाचन ॥१७९॥
हरेनागम न र्ृह्णीिाद ् न स्पृशते ् तल ु सीदलम ।्
नान्यष्टचन्ता प्रकतगव्या नान्यष्टनन्दा कदाचन ॥१८०॥

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ष्टसन्दूर-करवीराद्य ैः ु -लोष्टहतकै स्तिा ।


पष्पै
िोऽचिग दे ् भष्टक्तभावेन तस्यासाध्यं न ष्टकञ्चन ॥१८१॥
वातस्तम्भं जलस्तम्भं र्ष्टतस्तम्भं ष्टववस्वतः।

वह्नेः स्तम्भं करोत्येव स्तवस्यास्य प्रकीतगनात ॥१८२॥
ष्टश्रिमाकष गिेत ् तूणमग ानृण्िं जािते हठात ् ।
् िते क्षणात
ििा तृण ं दहेद ् वष्टह्नस्तिारीन मदग ् ्
॥१८३॥
मोहिेद ् राजपत्नीश्च देवानष्टप वशं निेत ।्
िः पठे त ् शृणिु ाद ् वाष्टप एकष्टचत्तेन सवगदा ॥१८४॥
ु सखी
दीघागिश्च ु वाग्मी वाणी तस्य वशङ्करी ।
सवग-तीिागष्टभषेकेण र्िा-श्रािेन ित ् फलम ॥१८५॥

तत्फलं े ष्टचत्ततः।
लभते सत्यं िः पठे दक
िेषामाराधन े श्रिा िे त ु साष्टधतमु द्य
ु ताः॥१८६॥
तेषां कृ ष्टतत्वं सवुं स्याद ् र्ष्टतदेष्टव परा च सा ।
ु -लतार्ारे ष्टित्वा दण्िेन ताििेत ॥१८७॥
ऋतिु क्त ्
ु ा च भक्त्या च र्िेद ् वै ताष्टरणीपदम ।्
जप्त्वा स्तत्व
अिम्यां च चतदु श्ग िां नवम्यां शष्टनवासरे ॥१८८॥
संिान्त्यां मण्िले रात्रौ अमावास्यां च िोऽच गिेत ।्
वषुं व्याप्य च देवष्टे श तस्याधीनाश्च ष्टसििः॥१८९॥

सतहीना च िा नारी दौभागग्िामि-पीष्टिता ।
वन्ध्या वा काकवन्ध्या वा मृतर्भाग च िाङ्गना ॥१९०॥
धनधान्य-ष्टवहीना च रोर्शोकाकुला च िा ।
साष्टप च ैतद ् महादेष्टव भूजपग त्रे ष्टलखेत्ततः॥१९१॥
ु च बध्नीिात ् सवगसौख्यवती भवेत ।्
सव्ये भजे
ु प प्रािो दुःखेन पष्टरपीष्टितः॥१९२॥
एवं पमानष्ट

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ु क
सभािां व्यसन े घोरे ष्टववादे शत्रस ं टे ।
ु े सवगत्राष्टरप्रपीष्टिते ॥१९३॥
चतरु ङ्गे च तिा िि
स्मरणादेव कल्याष्टण संक्षिं िाष्टन्त दूरतः।
पूजनीिं प्रित्नेन शून्यार्ारे ष्टशवालिे ॥१९४॥
ष्टबल्वमूले श्मशान े च तटे वा कुलमण्िले ।
ु ै -भ गक्तै -दुगग्ध ैः
शकग रा-सवसंिक्त सपािस ैः॥१९५॥
ु ै -नैवद्य
अपूपाष्टपि-संिक्त े श्च
ै ििोष्टचतैः।
ष्टनवेष्टदतं च िद्द्रव्य ं भोक्तव्यं च ष्टवधानतः॥१९६॥

तन्न चेद ् भज्यते मोहाद ् भोक्तं ु न ेिष्टन्त देवताः।
अनने ैव ष्टवधानने िोऽच गिेत ् परमेश्वरीम ॥१९७॥ ्
स भूष्टमवलिे देष्टव साक्षादीशो न संशिः।

महाशङ्खेन देवष्टे श सवुं कािुं जपाष्टदकम ॥१९८॥
कुलसवगस्व-कस्य ैवं प्रभावो वर्त्रणतो मिा ।
न शक्यते समाख्यात ं ु वषग-कोष्टटशतैरष्टप ॥१९९॥
् ितं परमेश्वष्टर ।
ष्टकष्टञ्चद ् मिा च चापल्यात कष्ट
जन्मान्तर-सहस्रेण वर्त्रणत ं ु न ैव शक्यते॥२००॥
कुलीनाि प्रदातव्यं तारा-भष्टक्तपराि च ।
अन्य-भक्ताि नो देि ं वैिवाि ष्टवशेषतः॥२०१॥
कुलीनाि महेिाि भष्टक्त-श्रिा-पराि च ।

महािन े सदा देि ं परीष्टक्षत-र्णाि च ॥२०२॥
नाभक्ताि प्रदातव्यं पथ्यन्तर-पराि च ।
न देि ं देवदेवष्टे श र्ोप्यं सवागर्मेष ु च ॥२०३॥
ु नन्दकाि च ।
पूजा-जप-ष्टवहीनाि स्त्रीसरा-ष्ट
् प सन्दश्िग ष्टशवहा भवेत ॥२०४॥
न स्तवं दशगिते क्वाष्ट ्

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पठनीिं सदा देष्टव सवागविास ु सवगदा । *** NOTE ***


िः स्तोत्रं कुलनाष्टिके प्रष्टतष्टदनं भक्त्या पठे द ् मानवः।
स स्याष्टित्तचिधै गनश्व
े रसमो ष्टवद्यामदैवागक्पष्टतः।
् सजः कीत्याग च नारािणः
सौन्दिेण च मूर्त्रतमान मनष्ट
ू ग ः पष्टतनागन्यिा ॥२०५॥
शक्त्या शङ्कर एव सौख्य-ष्टवभवैभमे

इष्टत ते कष्टितं र्ह्यं तारा-नाम-सहस्रकम ।्
अस्मात ् परतरं स्तोत्रं नाष्टस्त तन्त्रेष ु ष्टनश्चिः॥२०६॥
इष्टत श्रीबृहन्नीलतन्त्रे भ ैरव-भ ैरवी-संवादे
तारासहस्रनामष्टनरूपणं अिादशः पटलः॥१८॥
॥ पटल - १८ ॥
*******************-*******************

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॥ पटल - १८ से ॥ SIMPLIFIED-FOR LEARNER


॥ तारा-सहस्रनाम-स्तोत्रम बृ् हन्नील-तन्त्रार्गतम ॥


श्री देव्यवाचः ।
देव देव महादेव, सृष्टि-ष्टित्यन्त-कारक ।
प्रसङ्गे न महादेव्या ष्टवस्तरं कष्टितं मष्टि ॥१॥
देव्या नील-सरस्वत्याः सहस्रं परमेश्वर ।
नाम्ां श्रोत ं ु महेशान प्रसादः ष्टिितां मष्टि ।

कििस्व महादेव िद-िहं तव वल्लभा ॥२॥
श्री भ ैरव उवाचः।
साध ु पृि ं महादेष्टव सवगतन्त्रेष ु र्ोष्टपतम ।्
नाम्ां सहस्रं तारािाः कष्टित ं ु न ैव शक्यते ॥३॥
प्रकाशात ष्ट् सष्टिहाष्टनः स्यात ष्ट् श्रिा च पष्टरहीिते ।

प्रकाशिष्टत िो मोहात षण्मासाद ु *् ॥४॥ (*मृत्यमु -आप्न
् मृत्यमु ाप्निात ् िातु )्
ु र।
अकथ्यं परमेशाष्टन अकथ्यं च ैव सन्दष्ट
क्षमस्व वरदे देष्टव, िष्टद स्नेहोऽष्टस्त मां प्रष्टत ॥५॥
सवगस्व ं शृण ु हे देष्टव सवागर्मष्टवदां वरे ।
धनसारं महादेष्टव र्ोप्तव्यं परमेश्वष्टर ॥६॥
् त ।्
आिर्ु ोप्यं र्ृहष्टिद्रं र्ोप्यं न पापभार् भवे

सर्ोप्यं परमेशाष्टन र्ोपनात ष्ट् सष्टिमश्नतेु ॥७॥
् -हाष्टनश्च प्रकाशात प्रलिं
प्रकाशात कािग ् भवेत ।्
तस्माद ् भद्रे महेशाष्टन न प्रकाश्िं कदाचन ॥८॥
ु ा देवी परमसन्दरी
इष्टत देववचः श्रत्व ु ।
ष्टवष्टस्मता परमेशानी ष्टवषणा तत्र जािते ॥९॥
शृण ु हे परमेशान कृ पा-सार्र-पारर् ।

तव स्नेहो महादेव मष्टि नास्त्यत्र ष्टनष्टश्चतम ॥१०॥
भद्रं भद्रं महादेव इष्टत कृ त्वा महेश्वरी ।
ु ी-भूि देवश
ष्टवमख े ी तत्रास्ते शैलजा शभु ा ॥११॥

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ु ीं देवीं महादेवो महेश्वरः।


ष्टवलोक्य ष्टवमख

प्रहस्य परमेशानीं पष्टरष्वज्य ष्टप्रिां किाम ॥१२॥
कििामास तत्रैव महादेव्य ै महेश्वष्टर ।
मम सवगस्वरूपा त्वं जानीष्टह नर्नष्टन्दष्टन ॥१३॥
त्वां ष्टवनाहं* महादेष्टव पूवोक्त-शवरूपवान ।् (* ष्टवनाहं=ष्टवन-अहं)
क्षमस्व परमानन्दे क्षमस्व नर्नष्टन्दष्टन ॥१४॥
ु र।
ििा प्राणो महेशाष्टन देहे ष्टतष्ठष्टत सन्दष्ट
तिा त्वं जर्तामाद्ये* चरणे पष्टततोऽस्म्यहम ॥१५॥् ्
*जर्ताम-आद्ये
इष्टत मत्वा महादेष्टव रक्ष मां तव ष्टकङ्करम ।्
ततो देवी महेशानी त्रैलोक्य-मोष्टहनी ष्टशवा ॥१६॥
महादेव ं पष्टरष्वज्य प्राह र्द्गदिा ष्टर्रा ।
सदा देहस्वरूपाहं* देही त्वं परमेश्वर ॥१७॥ (देहस्वरूपाहं= देहस्वरूप-अहं )
तिाष्टप वञ्चनां कतुं ु माष्टमत्थं* वदष्टस ष्टप्रिम ।् ्
*माष्टमत्थं= माम-इत्थं
महादेवः पनःु प्राह भरै ष्टव प्राण-वल्लभे ॥१८॥

नाम्ां सहस्रं तारािाः श्रोतमु -इिस्य-शे षतः ।

श्रीदेव्यवाच ।
न श्रतु ं परमेशान तारा-नाम-सहस्रकम ।्

कििस्व महाभार् सत्यं परम-सन्दरम ्
॥१९॥

श्री पावगत्यवाच ।
ु माम*् ।
किमीशान सवगज्ञ लभन्ते ष्टसष्टिमत्त ु माम=् ष्टसष्टिम-उत्तमाम
ष्टसष्टिमत्त ् ्
साधकाः सवगदा िेन तन्मे किि सन्दर ु ॥२०॥

िस्मात परतरं नाष्टस्त स्तोत्रं तन्त्रेष ु ष्टनष्टश्चतम ।्
सवगपापहरं ष्टदव्यं सवागपष्टिष्टनवारकम*् ॥२१॥ सवागपष्टि-ष्टनवारकम ्
ु सवगमङ्गल-संितु म ।्
सवगज्ञानकरं पण्िं

परश्चिाग ् ल्य
-शत ैस-त ्
ु ं स्तोत्रं सवगष्टप्रिङ्करम ॥२२॥

वश्िप्रदं मारणदम-उच्चाटन-प्रदं महत ।्
नाम्ां सहस्रं तारािाः कििस्व सरेु श्वर ॥२३॥

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श्री महादेव उवाचः ।


नाम्ां सहस्रं तारािाः स्तोत्र-पाठाद ् भष्टवष्यष्टत ।
नाम्ां सहस्रं तारािाः किष्टिष्याम्य-शेषतः ॥२४॥
शृण ु देष्टव सदा भक्त्या भक्तानां परमं ष्टहतम ।्
ष्टवना पूजोपहारेण* ष्टवना जाप्येन ित फलम् ्
॥२५॥ *पूजा-उपहारेण

तत फलं सकलं देष्टव किष्टिष्याष्टम तच्छृण ु ।

ष्टवष्टनिोर्ः- ॐ अस्य श्री-तारा-सहस्रनाम-स्तोत्र-महा-मन्त्रस्य, अक्षोभ्य ऋष्टषः,


बृहती-उष्टिक ् छन्दः, श्री उग्रतारा, श्रीमदेकजटा (श्रीमद-एकजटा)
् ,

श्री नीलसरस्वती देवता (प्रीतििे ) / (परुषाि -ग चतिु ि-ष्टसिििे) - ष्टवष्टनिोर्ः॥

सािक को िेवी तारा का ध्यान करना है.

ध्यायेत कोदि दिवाकरद्यदु त दनभां बालेन्िु यक ु शेखरां


रक्ताङगी रसनां सरु क्त वसनांपर्णू ेन्िु दबम्बाननाम
पाशं कदत्रथ महाकुशादि िितीं िोदभथश-चतदु भथयथतु ां
नाना भषू र्ण भदू षतां भगवतीं तारां जगत ताररर्णीं ॥
॥ सहस्रनाम - मूल पाठ ॥
तारा राष्टत्र-मगहाराष्टत्र-कागलराष्टत्र-मगहामष्टतः।

( तारा राष्टत्रर-महाराष्ट ्
त्रर-कालराष्ट ्
त्रर-महामष्ट तः। )
काष्टलका कामदा मािा महामािा महास्मृष्टतः॥२६॥
महादानरता िज्ञा िज्ञोत्सव-ष्टवभूष्टषता ।

चन्द्रव्वज्रा चकोराक्षी चारुनेत्रा सलोचना ॥२७॥
ष्टत्रनेत्रा महती देवी कुरङ्गाक्षी मनोरमा ।
ु धज
ब्राह्मी नारािणी ज्योत्स्ना चारुके शी समू ग ा ॥२८॥
वाराही वारुणी ष्टवद्या महाष्टवद्या महेश्वरी ।
ष्टसिा कुष्टञ्चत-के शा च महािज्ञ-स्वरूष्टपणी ॥२९॥
र्ौरी चम्पक-वणाग च कृ शाङ्गी ष्टशवमोष्टहनी ।

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सवागनन्द-स्वरूपा च सवग-शङ्कै क-ताष्टरणी ॥३०॥


ष्टवद्यानन्द-मिी नन्दा भद्रकाली स्वरूष्टपणी ।
ु रत्रा च कौलव्रत-परािणा ॥३१॥
र्ाित्री सचष्ट

ष्टहरण्िर्भाग भूर्भाग महार्भाग सलोचनी ।

ष्टहमवत्तनिा* ष्टदव्या महामेघ-स्वरूष्टपणी ॥३२॥ *ष्टहमवत-तनिा.

जर्न्माता जर्िात्री जर्तामपु काष्टरणी* । जर्ताम-उपकाष्ट रणी*.
ऐन्द्री सौम्या तिा घोरा वारुणी माधवी तिा ॥३३॥
् िका/चष्टण्िका-ष्टिका.
आग्नेिी न ैऋती च ैव ऐशानी चष्टण्िकाष्टिका* । * चष्टण्िक-आष्ट
समे ्
ु रु-तनिा ष्टनत्या सवेषामपु काष्टरणी* ॥३४॥ * सवेषाम-उपकाष्ट रणी .
ललज-ष्ट् जह्वा सरोजाक्षी मण्ु िस्रक्पष्टरभूष्टषता* । ् रभूष्टषता
* मण्ु ि-स्रक-पष्ट
सवागनन्दमिी सवाग सवागनन्द-स्वरूष्टपणी ॥३५॥
धृष्टतमेधा तिा लक्ष्ीः श्रिा पन्नर्-र्ाष्टमनी ।
रुष्टिणी जानकी दुर्ागष्टम्बका* सत्यवती रष्टतः॥३६॥ *दुर्ाग-अष्टम्बका .
कामाख्या कामदा नन्दा नारससही सरस्वती ।
महादेवरता चण्िी चण्ि-दोदगण्ि-खष्टण्िनी ॥३७॥
दीघगकेशी सकेु शी च ष्टपङ्ग-के शी महाकचा ।
भवानी भवपत्नी च भवभीष्टतहरा सती ॥३८॥
पौरन्दरी तिा ष्टविोजागिा माहेश्वरी तिा ।
सवेषां जननी ष्टवद्या चावगङ्गी दैत्य-नाष्टशनी ॥३९॥
सवगरूपा महेशाष्टन काष्टमनी वरवर्त्रणनी ।
महाष्टवद्या महामािा महामेधा महोत्सवा ॥४०॥
ष्टवरूपा ष्टवश्वरूपा च मृिानी मृिवल्लभा ।
कोष्टट-चन्द्र-प्रतीकाशा, शत-सूि-ग प्रकाष्टशनी ॥४१॥
जह्नुकन्या महोग्रा* च पावगती ष्टवश्व-मोष्टहनी । ?*महोग्रा=महा-उग्रा
कामरूपा महेशानी ष्टनत्योत्साहा मनष्टस्वनी ॥४२॥
वैकुण्ठनाि-पत्नी च तिा शङ्कर-मोष्टहनी ।
काश्िपी कमला कृ िा कृ िरूपा च काष्टलनी ॥४३॥

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माहेश्वरी वृषारूढा सवग-ष्टवस्मि-काष्टरणी ।


मान्या मानवती शिु ा कन्या ष्टहमष्टर्रेस्तिा ॥४४॥
अपणाग पद्म-पत्राक्षी, नार्-िज्ञोपवीष्टतनी ।
महा-शङ्ख-धरा कान्ता कमनीिा नर्ािजा ॥४५॥
ब्रह्माणी वैिवी शम्भोजागिा र्ङ्गा जलेश्वरी ।
भार्ीरिी मनोबष्टु ि-र्त्रनत्या ष्टवद्यामिी तिा ॥४६॥
ु हरपत्नी तपष्टस्वनी ।
हरष्टप्रिा ष्टर्ष्टरसता
महाव्याष्टधहरा देवी महाघोर-स्वरूष्टपणी ॥४७॥

महापण्ि-प्रभा ु ै टभ-नाष्टशनी ।
भीमा मधक

शष्टङ्खनी वष्टज्रणी धात्री तिा पस्तक-धाष्टरणी ॥४८॥
चामण्ु िा चपला तङ्गु ा शम्ब
ु दैत्य-ष्टनकृ न्तनी ।
ु ा ॥४९॥
शाष्टन्तर्त्रनद्रा महाष्टनद्रा पूणष्टग नद्रा च रेणक
कौमारी कुलजा कान्ती कौलव्रत-परािणा ।

वनदुर्ाग सदाचारा द्रौपदी द्रुपदािजा* ॥५०॥ ? द्रुपदािजा= द्रुपद-आिजा.
िशष्टस्वनी िशस्या च िशोधात्री िशःप्रदा ।
ु -प्राणनाष्टशनी ॥५१॥
सृष्टिरूपा महार्ौरी ष्टनशम्ब
ु पृथ्वी रोष्टहणी ष्टवन्ध्यवाष्टसनी ।
पष्टद्मनी वसधा
ष्टशवशष्टक्त-मगहाशष्टक्तः शष्टङ्खनी शष्टक्तष्टनर्गता ॥५२॥
दैत्य-प्राण-हरा देवी सवगरक्षण-काष्टरणी ।
क्षाष्टन्तः क्षेमङ्करी च ैव बष्टु िरूपा महाधना ॥५३॥
श्रीष्टवद्या भरै ष्टव भव्या भवानी भवनाष्टशनी ।
ताष्टपनी भाष्टवनी सीता तीक्ष्ण-तेजःस्वरूष्टपणी ॥५४॥
दात्री दानपरा काली दुर्ाग दैत्य-ष्टवभूषणा ।

महापण्ि-प्रदा ु ै टभ-नाष्टशनी ॥५५॥
भीमा मधक
पद्मा पद्मावती कृ िा तिु ा पिा
ु तिोवगशी* । ?तिोवगशी=तिा-उवगशी=अप्सरा.
वष्टज्रणी वज्रहस्ता च, तिा नारािणी ष्टशवा ॥५६॥
खष्टिनी खि-हस्ता च खि-खपरग -धाष्टरणी ।

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देवाङ्गना देवकन्या देवमाता पलोमजा ॥५७॥
सष्टु खनी स्वर्गदात्री च सवग-सौख्य-ष्टववर्त्रधनी ।

शीला शीलावती सूक्ष्ा सूक्ष्ाकारा* वरप्रदा ॥५८॥ *?सूक्ष्-आकारा.
वरेण्िा वरदा वाणी ज्ञाष्टननी ज्ञानदा सदा ।
उग्रकाली महाकाली भद्रकाली च दष्टक्षणा ॥५९॥
भृर्वंु श-समद्भ ु
ु ू ता* भार्गवी भृर्-वल्लभा । ु ू ता=समदु -भू
*समद्भ ् ता
शूष्टलनी शूलहस्ता च कत्री-खप गर-धाष्टरणी ॥६०॥
ु ू ता* मिूर-वर-वाहना ।
महावंश-समद्भ ु ू ता=समदु -भू
*समद्भ ् ता.
महाशङ्ख-रता रक्ता रक्त-खपरग -धाष्टरणी ॥६१॥
ु िका । *रक्ताम्बर=रक्त-अम्बर.
रक्ताम्बर*-धरा रामा रमणी सरनाष्ट
मोक्षदा ष्टशवदा श्िामा मद-ष्टवभ्रम-मन्थरा ॥६२॥

परमानन्ददा* ज्येष्ठा िोष्टर्नी र्णसेष्टवता । *परमानन्ददा=परम-आनन्द-दा.
सारा जाम्बवती च ैव सत्यभामा नर्ािजा ॥६३॥
् िका
रौद्रा रौद्रबला घोरा रुद्र-सारारुणाष्टिका* । *सारारुण-आष्ट
रुद्ररूपा महा-रौद्री, रौद्रदैत्य-ष्टवनाष्टशनी ॥६४॥
कौमारी कौष्टशकी चण्िा कालदैत्य-ष्टवनाष्टशनी ।

शम्भ-पत्नी ु
शम्भरता, ु
शम्बजािा महोदरी ॥६५॥
ष्टशवपत्नी ष्टशवरता ष्टशवजािा ष्टशवष्टप्रिा ।
हरपत्नी हररता हरजािा हरष्टप्रिा ॥६६॥
मदनान्तक-कान्ता च मदनान्तक-वल्लभा ।
ष्टर्ष्टरजा ष्टर्ष्टरकन्या च ष्टर्रीशस्य च वल्लभा ॥६७॥
भूता भव्या भवा स्पिा पावनी परपाष्टलनी ।
अदृश्िा च व्यक्त-रूपा इिाष्टनि-प्रवर्त्रिनी ॥६८॥ ?इिाष्टनि=इिा-ष्टनष्ठ.
( इिाष्टनि-प्रवर्त्रिनी = इि के प्रष्टत ष्टनष्ठा बढ़ने वाली)
अच्यतु ा प्रच्यतु -प्राणा प्रमदा वासवेश्वरी ।
ु ू ता धाष्टरणी च प्रष्टतष्टष्ठता ॥६९॥
अपांष्टनष्टध-समद्भ
उद्भवा क्षोभणा क्षेमा श्रीर्भाग परमेश्वरी ।

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ु हा च काष्टमनी कञ्ज-लोचना ॥७०॥


कमला पष्पदे
शरण्िा कमला प्रीष्टत-र्त्रवमलानन्द-वर्त्रधनी ।
कपर्त्रदनी कराला च ष्टनमगला देवरूष्टपणी ॥७१॥
ु ना महोदरी ।
उदीणग-भूषणा भव्या सरसे
श्रीमती ष्टशष्टशरा नव्या ष्टशष्टशराचल-कन्यका ॥७२॥

सर-मान्या ु ष्ठा ज्येष्ठा प्राणेश्वरी ष्टिरा ।
सर-श्रे

तमोघ्नी ध्वान्त-संहन्त्री प्रितािा* पष्टतव्रता ॥७३॥ (प्रितािा=प्रित-आिा).
प्रद्योष्टतनी रिारूढा सवगलोक-प्रकाष्टशनी ।
मेधाष्टवनी महावीिाग हंसी संसार-ताष्टरणी ॥७४॥
प्रणत-प्राष्टण-नामार्त्रत-हाष्टरणी दैत्यनाष्टशनी ।
िाष्टकनी शाष्टकनीदेवी वर-खट्वाङ्ग-धाष्टरणी ॥७५॥
कौमदु ी कुमदु ा कुन्दा कौष्टलका कुलजामरा ।

र्र्त्रवता र्ण-सम्पन्ना नर्जा खर्वाष्टहनी ॥७६॥
ग -शोभना । ?महोग्रा=महा-उग्रा.
चन्द्रानना महोग्रा* च चारु-मूधज

ु ॥७७॥
मनोज्ञा माधवी मान्या माननीिा सतां सहृत
ु धष्टनष्ठा पूवफ
ज्येष्ठा श्रेष्ठा मघा पष्या ु ।
ग ाल्गनी
रक्तबीज-ष्टनहन्त्री च रक्तबीज-ष्टवनाष्टशनी ॥७८॥
चण्िमण्ु ि-ष्टनहन्त्री च चण्िमण्ु ि-ष्टवनाष्टशनी ।

कत्री हत्री सकत्री च ष्टवमलामल-वाष्टहनी ॥७९॥

ष्टवमला भास्करी वीणा मष्टहषासर-घाष्टतनी ।
काष्टलन्दी िमनु ा वृिा सरष्ट
ु भः बाष्टलका सती ॥८०॥

कौशल्या कौमदु ी मैत्री-रूष्टपणी चाप्यरुन्धती* । *?चाप्यरुन्धती=च-आप्य ्
-अरुन्धती.
ु र-र्ृष्टहणी पूणाग पूणागनन्द-स्वरूष्टपणी ॥८१॥
पराष्ट

पण्िरीकाक्ष-पत्नी ु
च पण्िरीकाक्ष-वल्लभा ।
सम्पूण-ग चन्द्र-वदना, बाल-चन्द्र-समप्रभा ॥८२॥
रेवती रमणी ष्टचत्रा ष्टचत्राम्बर*-ष्टवभूषणां । िा ? ष्टवष्टचत्राम्बर
सीता वीणावती च ैव िशोदा ष्टवजिा ष्टप्रिा ॥८३॥

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नव-पष्प-समदु -भू ्
ु -सवोत्सवा
् ता नवपष्पोत ।

नव-पष्पस्रजा-माला माल्य-भूषण-भूष्टषता ॥८४॥

नव-पष्प-समप्राणा ु
नवपष्पोत्सव-ष्टप्रिा ।

प्रेत-मण्िल-मध्यस्ता सवागङ्ग-सन्दरी ष्टशवा ॥८५॥
ु िका* षष्ठी पष्प-स्तव-कमण्िला
नवपष्पाष्ट ु ु िका=नवपष्प
। *नवपष्पाष्ट ् िका
ु -आष्ट

नवपष्प-र् ु ता श्मशान-भ ैरवष्टप्रिा ॥८६॥
णोपे
कुलशास्त्र-प्रदीपा च कुलमार्ग-प्रवर्त्रिनी ।
श्मशान-भ ैरवी काली भरै वी भ ैरवष्टप्रिा ॥८७॥
आनन्द-भ ैरवी ध्येिा भरै वी कुरुभ ैरवी ।
महा-भरै व-सम्प्रीता भ ैरवीकुल-मोष्टहनी ॥८८॥
ु ैरवी ।
श्री-ष्टवद्या-भ ैरवी, नीष्टतभरै वी र्णभ
सम्मोह-भ ैरवी पष्टु ि-भ ैरवी तष्टु ि-भरै वी ॥८९॥
संहार-भरै वी सृष्टि-भरै वी ष्टिष्टत-भ ैरवी ।

आनन्द-भ ैरवी वीरा सन्दरी ु
ष्टिष्टत-सन्दरी ॥९०॥

र्णानन्द-स्वरूपा ु
च सन्दरी कालरूष्टपणी ।

श्रीमािा-सन्दरी ु
सौम्य-सन्दरी ु
लोकसन्दरी ॥९१॥
श्रीष्टवद्या-मोष्टहनी बष्टु िर-महाब
् ष्टु ि-स्वरूष्टपणी ।

मष्टल्लका हार-रष्टसका हारालम्बन-सन्दरी ॥९२॥
नील-पङ्कज-वणाग च नार्के सर-भूष्टषता ।
जपा-कुसम-सङ्काशा
ु जपा-कुसम-शोष्ट
ु भता ॥९३॥
ष्टप्रिा ष्टप्रिङ्करी ष्टविोदागनवेन्द्र-ष्टवनाष्टशनी ।
ज्ञानेश्वरी ज्ञानदात्री ज्ञानानन्द-प्रदाष्टिनी ॥९४॥

र्ण-र्ौरव-सम्पन्ना ु
र्ण-शील-समष्टिता ।
रूप-िौवन-सम्पन्ना रूप-िौवन-शोष्टभता ॥९५॥

र्णाश्रिा ु
र्णरता ु
र्णर्ौरव-स ु
न्दरी ।
मष्टदरामोद-मत्ता च ताटङ्क-िि-शोष्टभता ॥९६॥
वृक्षमूल-ष्टिता देवी वृक्षशाखो-पष्टरष्टिता । ?वृक्ष-शाखो-उपष्टर-ष्टिता

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ताल-मध्याग्र-ष्टनलिा, वृक्ष-मध्य-ष्टनवाष्टसनी ॥९७॥



स्विम्भू-पष्प-सं ु
काशा स्विम्भू-पष्प-धाष्टरणी ।
स्विम्भू-कुसम-प्रीता
ु ु
स्विम्भू-पष्प-शोष्टभनी ॥९८॥

स्विम्भू-पष्प-रष्ट ु ।
सका नग्ना ध्यानवती सधा
ु -ष्टप्रिा शि
शि ु -रता शि
ु -मिन-तत्परा ॥९९॥

पूणपग णाग* सपणाग च ष्टनष्पणाग पापनाष्टशनी । ?पूणग-् अपणाग
मष्टदरामोद-सम्पन्ना मष्टदरामोद-धाष्टरणी ॥१००॥
सवागश्रिा* सवगर्णाु नन्द-नन्दन-धाष्टरणी । ? सवागश्रिा=सवग-् आश्रिा

नारी-पष्प-सम ु ू ता नारीपष्पोत
द्भ ्
ु -सवोत्सवा ॥१०१॥

नारीपष्प-समप्राणा ु
नारीपष्प-रता मृर्ी ।

सवगकालोद-भवप्रीता ्
सवगकालोद-भवोत्सवा ॥१०२॥
चतभु ज
गु ा दशभज
ु ा अिा-दशभजा
ु तिा । ु
(४/१०/१८-हाि-भजा)
ु षड्भ ुजा प्रीता रक्त-पङ्कज-शोष्टभता ॥१०३॥
ष्टिभजा
कौबेरी कौरवी कौिाग कुरुकुल्ला कपाष्टलनी ।
ु -कदली-जङ्घा, रम्भोरू राम-वल्लभा ॥१०४॥
सदीघग
ष्टनशाचरी ष्टनशामूर्त्रत-र्त्रनशा-चन्द्र-समप्रभा ।

चान्द्री* चान्द्रकला चन्द्रा चारुचन्द्र-ष्टनभानना ॥१०५॥ *? चान्द्री=च-ऐन्द्री
स्रोत-स्वती स्रष्टु त-मती सवग-दुर्गष्टत-नाष्टशनी ।
सवागधारा सवगमिी सवागनन्द-स्वरूष्टपणी ॥१०६॥
सवग-चिे श्वरी* सवाग सवग-मन्त्र-मिी शभु ा । ?सवग-चिे श्वरी*:कुण्िष्टलनी चि.
सहस्र-निन-प्राणा, सहस्र-निन-ष्टप्रिा ॥१०७॥
ु सदम्भा सवग-भष्टक्षका ।
सहस्र-शीषाग सषमा
् -फलदाष्टिनी ॥१०८॥
िष्टिका िष्टि-चििा षद-वर्ग
षसिंश-पद्म-मध्यिा षसिंशकुल-मध्यर्ा ।
हूँकारवणग-ष्टनलिा हूँकाराक्षर-भूषणा ॥१०९॥ हूँकाराक्षर="हूँकार"-अक्षर-बीज.
"ह"कारवणग-ष्टनलिा हकाराक्षर-भूषणा ।
हाष्टरणी हार-वष्टलता हार-हीरक-भूषणा ॥११०॥

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"ह्रीं"कारबीज-सष्टहता ह्रींकारैरुप-शोष्टभता ।
ग कला कुन्दा कौष्टलनी कुल-दर्त्रपता ॥१११॥
कन्दपस्य
के तकी-कुसम-प्राणा
ु के तकी-कृ त-भूषणा ।
के तकी-कुसमासक्ता*
ु के तकी-पष्टरभूष्टषता ॥११२॥ *कुसमासक्ता=क
ु ्
ु समु -आसक्ता.
ग ण-ग वदना महामािा महेश्वरी ।
कपूर-पू
कला के ष्टलः ष्टििा कीणाग कदम्ब-कुसमोत्स
ु ु ा* ॥११३॥ * कुसमोत्स
क ु क ्
ु ा=कुसमु -उत्स ु ा.

कादष्टम्बनी कष्टर-शण्ु िा कुञ्जरेश्वर-र्ाष्टमनी ।

खवाग सखञ्ज-निना खञ्जन-िन्द्व-भूषणा ॥११४॥
खद्योत इव दुलगक्षा खद्योत इव चञ्चला ।
महामािा ज्र्िात्री र्ीतवाद्य-ष्टप्रिा रष्टतः॥११५॥
ु ज्या र्णप्रदा
र्णेश्वरी र्णेज्या च र्णपू ु ।

र्णाढ्या ु
र्ण-सम्पन्ना ु
र्णदात्री ु िका ॥११६॥
र्णाष्ट
ु र्रुतरा
र्वी ु र्ौरी र्ाणपत्य-फलप्रदा ।
महाष्टवद्या महामेधा तष्टु लनी र्णमोष्टहनी ॥११७॥
भव्या भवष्टप्रिा भाव्या भावनीिा भवाष्टिका ।
घघगरा घोरवदना घोरदैत्य-ष्टवनाष्टशनी ॥११८॥
ु घनाचला ।
घोरा घोरवती घोषा घोरपत्री
गु ा ॥११९॥
चचगरी चारुनिना चारुवक्त्रा चतर्ु ण
चतवु दे -मिी चण्िी चन्द्रास्या चतरु ानना ।

चलच-चकोर-निना ्
चलत-खञ्जन-लोचना ॥१२०॥
चलदम्भोज-ष्टनलिा चलदम्भोज-लोचना ।
छत्री छत्रष्टप्रिा छत्रा छत्रचामर-शोष्टभता ॥१२१॥
ष्टछन्नछदा ष्टछन्नष्टशराश-ष्ट् छन्ननासा छलाष्टिका ।
छलाढ्या छल-संत्रस्ता छलरूपा छलष्टिरा ॥१२२॥
छकारवणग-ष्टनलिा छकाराढ्या छलष्टप्रिा ।

छष्टद्मनी छद्मष्टनरता छद्म-च-छद्म-ष्टनवाष्टसनी ॥१२३॥
जर्न्नाि-ष्टप्रिा जीवा जर्न्मष्टु क्तकरी मता ।

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जीणाग जीमूत-वष्टनता जीमूत ैरुप-शोष्टभता ॥१२४॥


जामातृ-वरदा जम्भा जमलाजनगु -भष्टञ्जनी ।
झझगरी झाकृ ष्टत-झगल्ली झरी झझगष्टरका तिा ॥१२५॥
टङ्कार-काष्टरणी टीका सवग-टङ्कार-काष्टरणी ।
ठं कराङ्गी िमरुका िाकारा िमरुष्टप्रिा ॥१२६॥
ु सी मष्टणभूष्टषता ।
ढक्काराव-रता ष्टनत्या तल
ु ा च तोष्टलका तीणाग तारा तारष्टणका तिा ॥१२७॥
तल
तन्त्र-ष्टवज्ञा तन्त्ररता तन्त्र-ष्टवद्या च तन्त्रदा ।
ताष्टन्त्रकी तन्त्र-िोग्िा च तन्त्रसारा च तष्टन्त्रका ॥१२८॥
तन्त्र-धारी तन्त्रकरी सवगतन्त्र-स्वरूष्टपणी ।
तष्टु हनांश-ु समानास्या तष्टु हनांश-ु समप्रभा ॥१२९॥
तषु ाराकर-तल्य
ु ाङ्गी तषु ाराधार-सन्दरी
ु ।
तन्त्रसारा तन्त्रकरो तन्त्रसार-स्वरूष्टपणी ॥१३०॥
तषु ारधाम-तल्य
ु ास्या तषु ारांश-ु समप्रभा ।
तषु ाराष्टद्रसता
ु तार्क्ष्ाग ताराङ्गी तालसन्दरी
ु ॥१३१॥
तार-स्वरेण सष्टहता तार-स्वर-ष्टवभूष्टषता । ? तार = ॐ - से ष्टवभूष्टषत.
िकारकू ट-ष्टनलिा िकाराक्षर-माष्टलनी ॥१३२॥
दिावती दीनरता दुःख-दाष्टरद्रि-नाष्टशनी ।
दौभागग्ि-दुःख-दष्टलनी दौभागग्ि-पद-नाष्टशनी ॥१३३॥
ु च
दुष्टहता दीनबन्धश ् दानवेन्द्र-ष्टवनाष्टशनी ।
दानपात्री दानरता दान-सम्मान-तोष्टषता ॥१३४॥
दान्त्याष्टद-सेष्टवता दान्ता दिा दामोदर-ष्टप्रिा ।
दधीष्टच-वरदा तिु ा दानवेन्द्र-ष्टवमर्त्रदनी ॥१३५॥
(? दधीष्टच-वरदा=दधीष्टच ऋष्टष को वर देन े वाली)
दीघग-नेत्रा दीघग-कचा दीघग-नासा च दीर्त्रघका ।
दाष्टरद्रि-दुःख-संनाशा दाष्टरद्रि-दुःख-नाष्टशनी ॥१३६॥
ु दम्भा दम्भासर-वरप्रदा
दाष्टम्भका दन्तरा ु ।

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धन-धान्य-प्रदा धन्या धनेश्वर-धनप्रदा ॥१३७॥


धमगपत्नी धमगरता धमाग-धमग-ष्टववर्त्रिनी ।
धर्त्रमणी धर्त्रमका धम्याग धमाग-धमग-ष्टववर्त्रिनी ॥१३८॥
धनेश्वरी धमगरता धमागनन्द-प्रवर्त्रिनी ।
धनाध्यक्षा धनप्रीता धनाढ्या धनतोष्टषता ॥१३९॥
धीरा ध ैिगवती ष्टधष्ण्या धवलाम्भोज-संष्टनभा ।
धष्टरणी धाष्टरणी धात्री धूरणी धरणी धरा ॥१४०॥
धार्त्रमका धमगसष्टहता धमग-ष्टनन्दक-वर्त्रजता ।
नवीना नर्जा ष्टनम्ा ष्टनम्-नाष्टभ-न गर्ेश्वरी ॥१४१॥

नूतनाम्भोज-निना नवीनाम्भोज-सन्दरी ।
ु नर्ा ॥१४२॥
नार्री नर्र-ज्येष्ठा, नर्राज-सता
नार्राज-कृ ततोषा नार्राज-ष्टवभूष्टषता ।
नार्ेश्वरी नार्रूढा नार्राज-कुलेश्वरी ॥१४३॥
नवीनेन्दुकला* नान्दी नष्टन्दके श्वर-वल्लभा । ्
?नवीनेन्दुकला=नवीन-इन्दुकला
नीरजा नीरजाक्षी च नीरज-िन्द्व-लोचना ॥१४४॥
नीरा नीरभवा वाणी नीर-ष्टनमगल-देष्टहनी ।
नार्-िज्ञोपवीताढ्या नार्-िज्ञोपवीष्टतका ॥१४५॥
नार्के सर-संतिु ा नार्के सर-माष्टलनी । ?नार्के सर=Looks Herb.
नवीन-के तकीकुन्द ? मष्टल्लकाम्भोज-भूष्टषता ॥१४६॥
नाष्टिका नािक-प्रीता नािक-प्रेमभूष्टषता ।
नािक-प्रेमसष्टहता नािक-प्रेमभाष्टवता ॥१४७॥
नािकानन्द-ष्टनलिा नािकानन्द-काष्टरणी ।
नमग-कमग-रता ष्टनत्यं नमगकमग-फलप्रदा ॥१४८॥
नमग-कमग-ष्टप्रिा नमाग नमगकमग-कृ तालिा ।
नमगप्रीता नमगरता नमगध्यान-परािणा ॥१४९॥

पौिष्टप्रिा च पौष्पेज्या पष्पदाम-ष्टवभूष्टषता ।

पण्िदा ु
पूर्त्रणमा पूणाग कोष्टट-पण्ि-फलप्रदा ॥१५०॥

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पराणार्म-र्ोप्या ु
च पराणार्म-र्ोष्ट ु
पता । *?पराणार्म=प ु
राण+आर्म

पराण-र्ोचरा पूणाग पूवाग प्रौढा ष्टवलाष्टसनी ॥१५१॥

प्रह्लाद-हृदि-आह्लाद-र्े ु
ष्टहनी पण्िचाष्ट रणी ।
ु फाल्गन-प्रीता
फाल्गनी ु ु धाष्टरणी ॥१५२॥
फाल्गन-प्रे
ु मदा च ैव फष्टणराज-ष्टवभूष्टषता ।
फाल्गन-प्रे
फष्टणकाञ्ची फष्टणप्रीता फष्टणहार-ष्टवभूष्टषता ॥१५३॥
फणीश-कृ त-सवागङ्ग-भूषणा फष्टणहाष्टरणी ।
फष्टणप्रीता फष्टणरता फष्टण-कङ्कण-धाष्टरणी ॥१५४॥
फलदा ष्टत्रफला शक्ता फलाभरण-भूष्टषता ।

फकारकू ट-सवागङ्गी फाल्गनानन्द-वर्त्रिनी ॥१५५॥
वासदेु वरता ष्टवज्ञा ष्टवज्ञ-ष्टवज्ञान-काष्टरणी ।
वीणावती बलाकीणाग बालपीिूष-रोष्टचका ॥१५६॥

बाला-वसमती ष्टवद्या ष्टवद्याहार-ष्टवभूष्टषता ।
ष्टवद्यावती वैद्यपदप्रीता वैवस्वती बष्टलः॥१५७॥
बष्टल-ष्टवध्वंष्टसनी च ैव वराङ्गिा वरानना ।

ष्टविोर-वक्षःिल-िा च वाग्वती ष्टवन्ध्यवाष्टसनी ॥१५८॥
भीष्टतदा भिदा भानोरं श-ु जाल-समप्रभा ।
े ा भृर्ोः पूज्या भरिार-नमस्कृ ता ॥१५९॥
भार्गवज्य

भीष्टतदा भि-संहन्त्री भीमाकारा च सन्दरी ।
मािावती मानरता मान-सम्मान-तत्परा ॥१६०॥
माधवानन्ददा माध्वी मष्टदरा-मष्टु दतेक्षणा । ्
?माधवानन्ददा= माधव-आनन्द-दा
ु ता महती च महद्गणा*
महोत्सव-र्णोपे ु ॥१६१॥ *महद्गणा=महद
ु ् ण
-र् ु ा
मष्टदरा-मोदष्टनरता मष्टदरा-मिने रता ।
िशोधरी िशोष्टवद्या िशोदानन्द-वर्त्रिनी ॥१६२॥
िशोदानन्द-वर्त्रिनी = कृ ि-वर्त्रिनी ?
िशोदा-आनन्द-वर्त्रिनी = कृ ि की माता -की आनन्द वर्त्रिनी ?

िशः-कपूर-धवला िशोदाम-ष्टवभूष्टषता ।

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िमराज-ष्टप्रिा िोर्मार्ागनन्द-प्रवर्त्रिनी ॥१६३॥


िमस्वसा च िमनु ा िोर्मार्ग-प्रवर्त्रिनी ।

िादवानन्द-कत्री च िादवानन्द-वर्त्रिनी ॥१६४॥ *िादव-आनन्द
िज्ञप्रीता िज्ञमिी िज्ञकमग-ष्टवभूष्टषता ।
रामप्रीता रामरता राम-तोषण-तत्परा ॥१६५॥

राज्ञी राज-कुलेज्या च राज-राजेश्वरी रमा ।


रमणी रामणी रम्या रामानन्द-प्रदाष्टिनी ॥१६६॥
रजनी-कर-पूणागस्या रक्तोत्पल-ष्टवलोचना ।
लाङ्गष्टल-प्रेम-संतिु ा लाङ्गष्टल-प्रणि-ष्टप्रिा ॥१६७॥
लाक्षारुणा च ललना लीला लीलावती लिा ।

लङ्के श्वर-र्णप्रीता लङ्के श-वरदाष्टिनी ॥१६८॥
लवङ्गी-कुसम-प्रीता
ु लवङ्ग-कुसमस्रजा
ु ।
् मधाष्टरणी ॥१६९॥
् ष्टहणी ष्टववस्वत-प्रे
धाता ष्टववस्वद-र्ृ
शवोपष्टरसमासीना* शववक्षःिल-ष्टिता । ्
*शव-उपष्टर-सम-आसीना.
शरणार्त-रष्टक्षत्री शरण्िा श्रीः शरद्गणा
ु ॥१७०॥
षट्कोण-चि-मध्यिा सम्पदाि-ग ष्टनषेष्टवता ।
"हं"कार-अकाष्टरणी देवी "हं "काररूप-शोष्टभता ॥१७१॥
क्षेमङ्करी तिा क्षेमा क्षेमधाम-ष्टववर्त्रिनी ।
क्षेमाम्ािा तिाज्ञा च इिा इश्वर-वल्लभा ॥१७२॥
उग्रदक्षा तिा चोग्रा अकाराष्टद-स्वरोद्भवा* । ् द-स्वरोद-भवा
अकार-आष्ट ्
ऋकार-वणग-कू टिा ॠकार-स्वर-भूष्टषता ॥१७३॥ (?As: ॠकार -बीज)
एकारा च तिा च ैका एकाराक्षर*-वाष्टसता । *?एकाराक्षर=एकार-अक्षर
ऐिा च ैषा तिा चौषा औकाराक्षर-धाष्टरणी ॥१७४॥ ?औकाराक्षर="औकार"अक्षर
ु पता* ।
अं अःकार-स्वरूपा च सवागर्म-सर्ोष्ट *सवग-् आर्म-स-र्ोष्ट
ु पता
् ितं देष्टव तारा-नाम-सहस्रकम ॥१७५॥
इत्येतत कष्ट ्

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॥ फलश्रष्टु त ॥ (इस पाठ का क्या फल ष्टमलता है).


ि इदं पठष्टत स्तोत्रं, प्रत्यहं भष्टक्त-भाव-तः।
् प ॥१७६॥
ष्टदवा वा, िष्टद वा रात्रौ, सन्ध्यिोरु-भिोर-अष्ट
स्तव-राजस्य पाठे न, राजा भवष्टत ष्टकङ्करः।
सवागर्मेष ु पूज्यः स्यात ,् सवगतन्त्रे स्विं हरः॥१७७॥
ष्टशव-िाने, श्मशाने च शून्यार्ारे, चतष्प ्
ु िे । *?शून्य-आर्ारे
=ष्टनजगन िान.
् िु ाद ् वाष्टप स िोर्ी नात्र संशिः॥१७८॥
ि पठे च-छृण

िाष्टन नामाष्टन सन्त्यष्टस्मन प्रसङ्गाद ् मरु वैष्टरणः।
ग्राह्याष्टण ताष्टन कल्याष्टण नान्यान्यष्टप कदाचन ॥१७९॥
हरेनागम न र्ृह्णीिाद,् न स्पृशते त् ल ु सी-दलम ।् (??No HarI nAma, Dont touch tulasi.
नान्यष्टचन्ता* प्रकतगव्या नान्यष्टनन्दा कदाचन ॥१८०॥
(नान्यष्टचन्ता= न-अन्य-ष्टचन्ता , नान्यष्टनन्दा =न-अन्य-ष्टनन्दा )
ु ै-लोष्टहतकै स्तिा ।
ष्टसन्दूर-करवीर-आद्य ैः पष्प
िोऽचगिदे ् भष्टक्तभावेन तस्यासाध्यं न ष्टकञ्चन ॥१८१॥

( िो-अचगिदे ् भष्टक्त-भावेन तस्य-आसाध्यं न ष्टकञ्चन )
वात-स्तम्भं जल-स्तम्भं र्ष्टत-स्तम्भं ष्टववस्वतः*। ष्टवव-स्वतः

वह्नेः* स्तम्भं करोत्येव स्तवस्यास्य प्रकीतगनात ॥१८२॥ *? वह्नेः िानी अग्नी.
ष्टश्रिमाकषिग ते *् तूणम ग ानृण्िं जािते हठात ।् ् श्रिम-आकष
*ष्टश्रिमाकषिग ते =ष्ट ् िग ते . ्
ििा तृण ं दहेद ् वष्टह्नस्तिारीन मदग् िते क्षणात
् ्
॥१८३॥
( यथा तृर्णं िहेि वदि-स-तथ-अरीन मिथयेत क्षर्णात, जैसे अदग्न घास को जलाती है , वैसे दह अरर /शत्रु
का मिथन होता है)
मोहिेद ् राजपत्नीश्च देवानष्टप वशं निेत ।्
(मोहिे-द ् राज-पत्नीश-च ् देवान-अष्ट
् प वशं निेत )्
् िु ाद ् वाष्टप एक-ष्टचत्तेन सवगदा ॥१८४॥
िः पठे त शृण
दीघागिश ् सखी
ु -च ु वाग्मी, वाणी तस्य वशङ्करी ।

सवग-तीिागष्टभषेकेण र्िा-श्रािेन ित फलम ्
॥१८५॥
(सवग-तीि ग-अष्टभषेकेण, र्िा-श्राि-ऐन ्
् ित फलम)्

तत-फलं लभते सत्यं िः पठे दक ्
े ष्टचत्ततः*। (पठे द-एक-ष्टचत्त-तः=)

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िेषामाराधने श्रिा िे त ु साष्टधतमु द्य


ु ताः॥१८६॥

(िेषाम-आराधने ्
श्रिा िे, त ु साष्टधतमु -उद्यताः)
तेषां कृ ष्टतत्वं सवुं, स्याद ् र्ष्टतदेष्टव परा च सा ।
ु -लतार्ारे ष्टित्वा दण्िेन ताििेत ॥१८७॥
ऋतिु क्त ्
ु -लता-अर्ारे, ष्टित्वा दण्िेन(?सलर्) ताििेत)्
( ऋत-ु िक्त
ु ा च भक्त्या च, र्िेद ् वै ताष्टरणी-पदम ।्
जप्त्वा स्तत्व
अिम्यां च चतदु श्ग िां नवम्यां शष्टनवासरे ॥१८८॥ (अिमी, चतदु श
ग ी, नवमी, शष्टनवार)
संिान्त्यां, मण्िले रात्रौ अमावास्यां च िोऽचगिते ।्
(संिान्ती, रात्रौ अमावास्यां िो-अचगिते )्

वषुं व्याप्य च देवष्टे श, तस्याधीनाश्च* ष्टसििः॥१८९॥ *? तस्य-अधीनाश-च.

सत-हीना च िा नारी दौभागग्िा-मि-पीष्टिता ।
वन्ध्या, वा काक-वन्ध्या वा, मृतर्भाग च िाङ्गना ॥१९०॥
धन-धान्य-ष्टवहीना च रोर्-शोकाकुला च िा ।
् प) च ैतद ् महादेष्टव भूजपग त्रे ष्टलखेत्ततः*॥१९१॥ (*ष्टलखेत्ततः=ष्टलखेत-ततः)
साष्टप(स-अष्ट ्
ु च बध्नीिात, ् सवग-सौख्यवती भवेत ।्
सव्ये भजे
ु प प्रािो दुःखेन पष्टरपीष्टितः॥१९२॥
एवं पमानष्ट
ु क
सभािां व्यसने घोरे ष्टववादे शत्रस ं टे ।
चतरु ङ्गे च तिा ििु े सवगत्राष्टरप्रपीष्टिते* ॥१९३॥
( सवगत्राष्टरप्रपीष्टिते=सवगत्र-अष्टर (शत्र)ु -प्रपीष्टिते)
स्मरणादेव कल्याष्टण संक्षिं िाष्टन्त दूरतः।
पूजनीिं प्रित्नेन, शून्यार्ारे, ष्टशवालिे ॥१९४॥
ष्टबल्वमूले, श्मशाने च तटे वा कुलमण्िले ।
ु ै -भगक्तै-दुगग्ध ैः स-पािस ैः॥१९५॥ शकग रा-सव िा शकग र-आसव(?द्रव)
शकग रा-सव-संिक्त ्
ु ै -नैवद्य
अपूपा-ष्टपि-संिक्त े ैश-च ् ििोष्टचतःै ।

ष्टनवेष्टदतं च िद-द्रव्यं भोक्तव्यं च ष्टवधानतः॥१९६॥
ु ते मोहाद ् भोक्तं ु नेिष्टन्त देवताः।
तन्न चेद ् भज्य
अनेन ैव ष्टवधानेन, िोऽचगिते परमे ् श्वरीम ॥१९७॥

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स भूष्टमवलिे देष्टव, साक्षादीशो* न संशिः।



(?साक्षादीशो=साक्षाद-ईशो(Like shiva/ishana)
् दकम ॥१९८॥
महाशङ्खेन देवष्टे श, सवुं कािुं जप-आष्ट ्
कुल-सवगस्वक-स्य ैवं प्रभावो वर्त्रणतो मिा ।
न शक्यते समाख्यात ं ु वष ग-कोष्टट-शत ैरष्टप ॥१९९॥
् ितं परमेश्वष्टर ।
ष्टकष्टञ्चद ् मिा च चापल्यात कष्ट
जन्मान्तर-सहस्रेण वर्त्रणत ं ु न ैव शक्यते॥२००॥
कुलीनाि प्रदातव्यं तारा-भष्टक्तपराि च ।
अन्य-भक्ताि नो देि,ं वैिवाि ष्टवशेषतः॥२०१॥
(Give this sahastranaama to kulina + tara bhakti person, dont give abhakta
(dhuShTa), specially don't to VaishNava??)

कुलीनाि, महेिाि, भष्टक्त-श्रिा-पराि च ।



महािने सदा देि,ं परीष्टक्षत-र्णाि च ॥२०२॥
(? कुलीन, महेश भक्त, भदक्त-श्रद्धा-से पर्णू थ, महात्मा को सिा, गर्णु की परीक्षा-लेकर, यह िेना चादहये)
नाभक्ताि* प्रदातव्यं पथ्यन्तर-पराि च । (*?नाभक्ताि = न-अभक्ताि)
न देि ं देवदेवष्टे श र्ोप्यं सवागर्मेष*ु च ॥२०३॥ *सवागर्मेष=ु सवग-् आर्म-एष
् )ु
(हे िेवी, अभक्त, िसू रे पथ वाले को, सवथ आगम मे यह गप्तु दवद्या, कभी नहीं िेना चादहये)
ु नन्दकाि च ।
पूजा-जप-ष्टवहीनाि, स्त्री-सरा-ष्ट
् प सन्दश्िग ष्टशवहा भवेत ॥२०४॥
न स्तवं दशगिते क्वाष्ट ्
( पजू ा, जप, दवहीन, स्त्री और सरु ा के दनन्िक व्यदक्त को, यह स्तवं, नहीं िशथन करने िेना
चादहये... ॥२०४॥)
पठनीिं सदा देष्टव सवागविास ु सवगदा ।
(*** NOTE ***सवाथवस्थास=ु सवथ-अवस्था-सु ... में पाठ कर सकते हैं)
िः स्तोत्रं कुलनाष्टिके प्रष्टतष्टदनं भक्त्या पठे द ् मानवः।
े रसमो ष्टवद्यामदैवागक्पष्टतः।
स स्याष्टित्तचि ैधगनश्व

(स स्याद-ष्ट् वत-तचि ् श्वर-समो ष्टवद्यामदैर-वाक्पष्ट
रै -धने ् तः।)
् सजः कीत्याग च नारािणः
सौन्दिेण च मूर्त्रतमान मनष्ट
् मःे पष्टतर-नान्यिा
शक्त्या शङ्कर एव सौख्य-ष्टवभवैर-भू ् ॥२०५॥

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ु तारा-नाम-सहस्रकम ।्
इष्टत ते कष्टितं र्ह्यं

अस्मात परतरं स्तोत्रं नाष्टस्त(? न-अष्टस्त) तन्त्रेष ु ष्टनश्चिः॥२०६॥
इष्टत श्री-बृहन्नील-तन्त्रे भरै व-भ ैरवी-संवादे तारा-सहस्रनाम-ष्टनरूपणं अिादशः
पटलः॥१८॥
****************** ॥ पटल - १८ ॥*******************
Basic Information:-
दकसी भी सहस्त्रनाम / कवच या स्तोत्र में मख्ु यतः ३-भाग होतें हैं ।
१. पवू थ पीदठका २. मलू पाठ ( दवदनयोग,ध्यान के साथ) ३. फलश्रतु ी

॥ पवू थ पीदठका - में इस कवच/सहस्रनाम को पहली बार कब, कहां दकस िेवी-िेवता-या ऋदष-
मनु ी ने, दकस िेवी-िेवता-या ऋदष-मनु ी से पछ
ु ा, दकसने दकसको कब बताया- ये बताया जाता
है, इसकी जानकारी िी हुई होती है॥
जैसे यहां पता चलता है दक, इस सहस्त्रनाम को भैरव जी ने बताया है...इत्यादि...

दवदनयोगः- में यह दकस िेवी या िेवता का स्तोत्र/कवच या सहस्रनाम है, इसके ऋदषः कौन हैं
। इसका छन्ि क्या है (बोलने का तरीका, सरु , लय और ताल), बीज-क्या है, शदक्त -क्या है,
कौन सी है । कीलक - क्या है। और आप दकस दलये पाठ कर रहें हैं ।
यह सारी जानकारी पाठ करने वाले को अच्छी तरह से होनी चादहये, दक वो दकस िेवी या
िेवता का पाठ कर रहा है, और क्यों कर रहा है, इत्यादि ।

यहां इस दवदनयोग- में बताया गया है की इस सहस्रनाम के ऋदषः-अक्षोभ्य हैं, और इस


सहस्रनाम का छन्िः बहृ ती और उदणर्णक है, इस स्तोत्र की िेवी-उग्रतारा-एकजिा, नील सरस्वती
-माता है, और सािक अपना सवथ अभीष्ट दसिध्य करने के दलये इसका पाठ कर रहा है ।
Sadhaka is reciting this to full-fill his all desire या माता से प्रीदत के दलये कर रहा
है । जैसा सािक शब्िों का चयन करें ।

फलश्रतु ी - में पाठ पढ़ने का क्या-२ फल प्राप्त होता है । पाठ कै से करना है । दकस दिन-पाठ
करने का क्या फल दमलता है । दकतने-२ पाठ का क्या-२ फल है । िेव-या िेवी को भोग में
क्या-क्या िेना चादहये, उन्हे क्या-पसंि है, इत्यादि-२ जानकारी होती है, आप बार-बार

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फलश्रदु त को ध्यान से िेखगें े तो उस स्तोत्र/कवच या सहस्रनाम की बहुत सी गप्तु जानकारी


आपको दमलेगी ।

हमे जब एक बार से ज्यािा पाठ करना है तो परू ा स्तोत्र/सहस्रनाम/या कवच एक बार पढ़ते है,
और अंत में एक बार परू ा पाठ करते हैं । बीच में बार -बार मख्ु य स्तोत्र/सहस्रनाम/या कवच
ज्यािा पढ़तें है।

उिाहरर्ण के दलये - अगर हमने ७ या ११ या २१-पाठ प्रदतदिन पढ़ने का संकल्प दलया है तो,
प्रथम बार परू ा सहस्रनाम/कवच पाठ करें गे,
दफर बीच में ५ या ९-या-१९-बार के वल मख्ु य सहस्रनाम/कवच पाठ करें गे,
अतं में दफर एक बार परू ा सहस्रनाम/कवच पाठ करें गे ।
तो कुल ७ -या-११ या २१- पाठ हो जायेगा । ऐसा ही आप अपनी सक ं दल्पत सख्ं या में करें
और समझें ।
। नोि: यह एक सािारर्ण सा दनयम और ज्ञान है, यह एक फोमथल ू े की तरह, हर स्तोत्र, कवच या
सहस्रनाम पर, उसके अपने पवू थ पीदठका, दवदनयोग, ध्यान, िेवता, पाठ और फलश्रदु त के साथ,
इसी तरह से लागू लागू होगा ।
आप गरुु , गणेश, शशव जी का सशं िप्त पजू ा शकसी भी पजू ा के पहले कर
सकते हैं।

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॥ तारा-कवचम ् ॥
ॐ श्री र्णेशाि नमः ।
ईश्वर उवाच ।
कोष्टटतन्त्रेष ु र्ोप्या ष्टह ष्टवद्या-अष्टत-भिमोष्टचनी ।
ष्टदव्यं ष्टह कवचं तस्याः श्रृणष्व ु सवगकामदम ॥१॥ ्

ष्टवष्टनिोर्ः-अस्य तारा कवचस्य अक्षोभ्य ऋष्टषः, ष्टत्रिपु ्


छन्दः, भर्वती तारा देवता, सवग-मन्त्र-ष्टसष्टि-समृििे जपे ष्टवष्टनिोर्ः।
॥ तारा-कवचम ् मूल पाठ ॥
प्रणवो मे ष्टशरः पात ु ब्रह्मरूपा महेश्वरी ।
ललाटे पात ु ह्रींकारो बीजरूपा महेश्वरी ॥२॥
स्त्रींकारो वदने ष्टनत्यं लिारूपा महेश्वरी ।
हूँकारः पात ु हृदिे भवानी-रूप-शष्टक्तधृक ् ॥३॥
फट्कारः पात ु सवागङ्गे सवगष्टसष्टि-फलप्रदा ।
े ी र्ण्ििग्ु मे भिापहा ॥४॥
खवाग मां पात ु देवश
ष्टनम्ोदरी सदा स्कन्ध-िग्ु मे पात ु महेश्वरी ।
ृ ा कट्ां पात ु देवी ष्टशवष्टप्रिा ॥५॥
व्याघ्र-चमागवत
पीनोन्नत-स्तनी पात ु पाश्वगिग्ु मे महेश्वरी ।
गु -नेत्रा च
रक्त-वतल कष्टटदेश े सदाऽवत ु ॥६॥
ललष्टजह्वा सदा पात ु नाभौ मां भवने
ु श्वरी ।
करालास्या सदा पात ु ष्टलङ्गे देवी हरष्टप्रिा ॥७॥
ष्टपङ्गोग्र ैक-जटा पात ु जङ्घािां ष्टवघ्ननाष्टशनी ।
प्रेत-खप गर-भृद्दवे ी ु
जानचिे महेश्वरी ॥८॥
नीलवणाग सदा पात ु जाननी
ु सवगदा मम ।
नार्-कुण्िल-धत्री च पात ु पादिर्ु े ततः ॥९॥
नार्हार-धरा देवी सवागङ्गं पात ु सवगदा ।

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नार्-कङ्कधरा देवी पात ु प्रान्तर-देशतः ॥१०॥


चतभु ज
गु ा सदा पात ु र्मने शत्रनु ाष्टशनी ।
खिहस्ता महादेवी श्रवणे पात ु सवगदा ॥११॥
नीलाम्बर-धरा देवी पात ु मां ष्टवघ्ननाष्टशनी ।
कर्त्रत्रहस्ता सदा पात ु ष्टववादे शत्रमु ध्यतः॥१२॥
ब्रह्मरूप-धरा देवी सङ्ग्रामे पात ु सवगदा ।
नार्कङ्कण-धत्री च भोजने पात ु सवगदा ॥१३॥
शव-कणाग महादेवी शिने पात ु सवगदा ।
*वीरासन-धरा देवी ष्टनद्रािां पात ु सवगदा ॥१४॥ ्
*वीर-आसन
ु ण-धरा देवी पात ु मां ष्टवघ्नसङ्कुले ।
धनबाग
नार्ाष्टञ्चत-कटी पात ु देवी मां सवगकमगस ु ॥१५॥
ष्टछन्न-मण्ु ि-धरा देवी कानने पात ु सवगदा ।
ष्टचता-मध्य-ष्टिता देवी, मारणे पात ु सवगदा ॥१६॥
िीष्टप-चमग-धरा देवी ु
पत्रदार-धनाष्टदष ु ।
अलङ्काराष्टिता देवी पात ु मां हरवल्लभा ॥१७॥
रक्ष रक्ष नदीकुञ्जे हं हं फट ् ससमष्ट
ु िते ।
बीजरूपा महादेवी पवगत े पात ु सवगदा ॥१८॥
् ज्रणी देवी महाप्रष्टतसरे तिा ।
मष्टणभृद-वष्ट
रक्ष रक्ष सदा हं हं ॐ ह्रीं स्वाहा महेश्वरी ॥१९॥
*मंत्र=रक्ष रक्ष सदा हं हं ॐ ह्रीं स्वाहा ।

पष्प-के तरु जाहे ष्टत कानने पात ु सवगदा ।
ु हं फट"् प्रान्तरे सवगकामदा ॥२०॥
"ॐ ह्रीं वज्रपष्पं
ु पष्पे
"ॐ पष्पे ु महापष्पे ु " पात ु पत्रान्महे
ु श्वरी ।
ु ा दारान ् रक्षत ु सवगदा ॥२१॥
हं स्वाहा शष्टक्तसंिक्त
ॐ आं हं स्वाहा महेशानी, पात ु द्यूत े हरष्टप्रिा ।
ॐ ह्रीं सवग-ष्टवघ्नोत्साष्टरणी देवी ष्टवघ्नान्मां सदाऽवत ु ॥२२॥
"ॐ पष्टवत्र-वज्र-भूम े हं फट ् स्वाहा" समष्टिता ।

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पूष्टरका पात ु मां देवी सवगष्टवघ्न-ष्टवनाष्टशनी ॥२३॥


"ॐ आः सरेु ख े वज्ररेख े हं फट ् स्वाहा" समष्टिता ।
पाताले पात ु सा देवी लाष्टकनी नामसंष्टज्ञका ॥२४॥
ह्रींकारी पात ु मां पूवे शष्टक्तरूपा महेश्वरी । "ह्रीं"
स्त्रींकारी पात ु देवश
े ी वधूरूपा महेश्वरी ॥२५॥ "स्त्रीं"
हं-स्वरूपा महादेवी पात ु मां िोधरूष्टपणी । "हं "
फट-स्वरूपा
् महामािा उत्तरे पात ु सवगदा ॥२६॥ "फट"्
पष्टश्चमे पात ु मां, देवी फट-स्वरूपा
् हरष्टप्रिा । "फट"्
मध्ये मां पात ु देवश
े ी हं स्वरूपा नर्ािजा ॥२७॥ "हं"
नीलवणाग सदा पात ु सवगतो वाग्भवा सदा ।
भवानी पात ु भवने सवैश्विग-प्रदाष्टिनी ॥२८॥ *सवैश्विग=सवग-् ऐश्विग.
ष्टवद्यादानरता देवी वक्त्रे नील-सरस्वती ।
शास्त्रे वादे च सङ्ग्रामे जले च ष्टवषमे ष्टर्रौ ॥२९॥
भीमरूपा सदा पात ु श्मशाने भिनाष्टशनी ।
भूत-प्रेतालिे घोरे दुर्गमा श्रीघनाऽवत ु ॥३०॥
पात ु ष्टनत्यं महेशानी सवगत्र ष्टशवदूष्टतका ।
ग त ैरष्टप ॥३१॥
कवचस्य माहात्म्यं नाहं (?न-अहं) वषश
******* फलश्रतु ी ********
शक्नोष्टम र्ष्टदत ं ु देष्टव भवेत्तस्य फलं च ित ।्
ु ष ु बन्धन
पत्रदारे ू ां सवगदश
े े च सवगदा ॥३२॥
न ष्टवद्यते भिं तस्य नृपपूज्यो भवेच्च सः ।
ग ाऽशष्टु चवागष्टप* कवचं सवगकामदम ् ॥३३॥
शष्टु चभूत्व
(*शष्टु चभूत्व
ग ाऽशष्टु चवागष्टप=शष्टु चर-भू
् त्वा-अशष्टु चर-व-अष्ट
् प)
् स्मरन्मत्यो दुःख-शोक-ष्टववर्त्रजतः।
प्रपठन वा
सवगशास्त्रे महेशाष्टन कष्टवराि ् भवष्टत ध्रवु म ् ॥३४॥
सवग-वार्ीश्वरो मत्यो लोकवश्िो धनेश्वरः।

रणे द्यूत े ष्टववादे च जिस-तत्र भवेद ् ध्रवु म ् ॥३५॥

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पत्र-पौताष्टितो मत्यो ष्टवलासी सवगिोष्टषताम ।्
शत्रवो दासतां िाष्टन्त सवेषां वल्लभः सदा ॥३६॥
र्वी खवी भवत्येव*, वादी स्खलष्टत दशगनात ।् *भवत्येव=भवत्य-एव

मृत्यश ् वश्ितां िाष्टत दासास्तस्यावनी-भजः
ु -च ु ॥३७॥
् ितं सवुं कवचं सवगकामदम ।्
प्रसङ्गात-कष्ट

प्रपठिा स्मरन्मत्यगः शापानग्रहणे ु
* क्षमः ॥३८॥ *?शापानग्रहणे ु
=शाप-अनग्रहणे
ू ामष्टधपः कष्टवराि ् भवेत ।्
आनन्द-वृन्द-ष्टसन्धन
सवग-वाष्टर्श्वरो मत्यो लोकवश्िः सदा सखी ु ॥३९॥
ु पताम ।्
ु प्रसादमासाद्य ष्टवद्यां प्राप्य सर्ोष्ट
र्रोः
तत्राष्टप कवचं देष्टव ु
दुलगभ ं भवनत्रिे ॥४०॥
ु वो हरः साक्षात्तत्पत्नी* त ु हरष्टप्रिा ।
र्रुदे ् -पत्नी
*साक्षात्तत्पत्नी=साक्षात-तत ्

अभेदने भजेद-िस्त ु तस्य ष्टसष्टि-दूरतः ॥४१॥
मन्त्राचारा* महेशाष्टन कष्टिताः पूववग ष्टत्प्रिे । *मन्त्राचारा=मन्त्र-अचारा
नाभौ ज्योष्टतस्तिा रक्तं हृदिोपष्टर ष्टचन्तिेत ् ॥४२॥
( नाभौ ज्योष्टतस-तिा ् रक्तं हृदिो-उपष्टर ष्टचन्तिेत )्
ु वत्वं च महा-वाष्टर्श्वरो नृपः।
ऐश्विुं स-कष्ट
ष्टनत्यं तस्य महेशाष्टन मष्टहला-सङ्गमं चरेत ् ॥४३॥
पञ्चाचार-रतो मत्यगः ष्टसिो भवष्टत नान्यिा ।
ु ो भवेन्मत्यगः ष्टसिो भवष्टत नान्यिा* ॥४४॥ *नान्यिा=न-अन्यिा
शष्टक्तिक्त
ु रुद्रश्च िे देवासर-मान
ब्रह्मा ष्टविश्च ु ु ।
षाः
( ब्रह्मा ष्टविश ् रुद्रश-च
ु -च ् िे देव-असर-मान
ु ु
षाः)
ु ा भवष्टन्त ते ॥४५॥
तं दृष्ट्वा साधकं देष्टव, लिािक्त
स्वर्े मत्ये च पाताले, िे देवाः ष्टसष्टिदािकाः ।
प्रशंसष्टन्त सदा देष्टव, तं दृष्ट्वा साधकोत्तमम ् ॥४६॥
ष्टवघ्नािकाश्च िे देवाः स्वर्े मत्ये रसातले ।
प्रशंसष्टन्त सदा सवे तं दृष्ट्वा साधकोत्तमम*् ॥४७॥ *साधकोत्तमम=् साधक-उत्तमम
् ्

इष्टत ते कष्टितं देष्टव मिा सम्यक-प्रकीर्त्रततम ।्

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् क्ष-स्वरूपकम ् ॥४८॥
भष्टु क्त-मष्टु क्त-करं साक्षात-कल्पवृ

आसाद्याद्यर्रुु ं * प्रसाद्य ि इदं कल्पद्रुमालम्बनं । *आसाद्याद्यर्रुु ं = आसाद्य-आद्य-र् रुु ं
् प
ु ते । मोहेनाष्टप= मोहेन-अष्ट
मोहेनाष्टप* मदेन चाष्टप रष्टहतो, जाड्येन वा िज्य
ष्टसिोऽसौ भष्टु व सवग-दुःख-ष्टवपदां पारं प्रिात्यन्तके |
् देष्टव ष्टवपदो नश्िष्टन्त तस्याश ु च ॥४९॥
ष्टमत्रं तस्य नृपाश-च
तद्गात्रं* प्राप्य शस्त्राष्टण ब्रह्मास्त्रादीष्टन वै भष्टु व । ्
*तद्गात्रं=तद-र्ात्रं
तस्य र्ेहे ष्टिरा लक्ष्ीर-वाणी ् ्
वक्त्रे वसेद ् ध्रवु म ॥५०॥

इदं कवचम-अ-ज्ञात्वा तारां िो भजते नरः ।
अल्पाि-ु र्त्रनिगनो मूखो भवत्येव न संशिः ॥५१॥
(दबना कवच के जो तारा को भजता है, वह अल्पाय,ु दनिथन और मख
ू थ होता है, इसमे संशय नहीं है)
ष्टलष्टखत्वा धारिेद्यस्त*ु कण्ठे वा मस्तके भज ु धारिेद-िस्त
ु े । *धारिेद्यस्त= ् ु
तस्य सवागि-ग ष्टसष्टिः स्याद्यद्यन्मनष्टस वतगत े ॥५२॥
र्ोरोचना-कुङ्कुमने रक्त-चन्दन-के न वा ।
िावकै वाग महेशाष्टन ष्टलखेन्मन्त्रं समाष्टहतः॥५३॥
अिम्यां मङ्गलष्टदने चतद्दु श्ग िामिाष्टप वा । ( ? अिमी, मङ्गल-ष्टदन, चतदु श
ग ी)

सन्ध्यािां देव-देवष्टे श ष्टलखेद्यन्त्रं* समाष्टहतः ॥५४॥ *ष्टलखेद्यन्त्रं=ष्टलखेद-िन्त्रं
मघािां श्रवणे वाष्टप रेवत्यां वा ष्टवशेषतः ।
ससहराशौ र्ते चन्द्रे, ककग टिे ष्टदवाकरे ॥५५॥
ु िाते, वृष्टश्चकिे शन ैश्चरे ।
मीनराशौ र्रौ
ष्टलष्टखत्वा धारिेद्यस्त,ु उत्तराष्टभमख ु ो भवेत ् ॥५६॥
( दवशेष??: मघा/श्रवर्ण नक्षत्र में, या दवशेषतः रे वती नक्षत्र में, जब दसंह रादश में चन्रमा हो, ककथ राशी मे सयू थ हो, मीन
रादश मे गरुु , या वृदिक में शनी हो, तब उत्तर के तरफ महंु करके , यह कवच दलखकर िारर्ण करना चादहये ॥५५-५६॥)
श्मशाने प्रान्तरे वाष्टप शून्यार्ारे ष्टवशेषतः ।
ष्टनशािां वा ष्टलखेन्मन्त्रं तस्य ष्टसष्टिर-चञ्चला ॥५७॥

भूजपग त्रे ष्टलखेन्मन्त्रं र्रुणा च महेश्वष्टर ।
ध्यान-धारण-िोर्ेन धारिेद्यस्त ु भष्टक्ततः ॥५८॥
अष्टचरात्तस्य ष्टसष्टिः स्यान्नात्र कािाग ष्टवचारणा ॥५९॥
॥इष्टत श्री रुद्रिामले तन्त्रे उग्रतारा-कवचं सम्पूणम ्
ग ॥

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