Professional Documents
Culture Documents
र्यह माता का एक बहुत ही शक्तिशाली नाम-स्तोर है । इसका पाठ करने से मााँ की कृपा प्राप्त
होती है । साधक के सभी कार्यभ क्तसद्ध होते हैं । इसमे बीज मन्त्रों का बहुत प्रर्योग क्तकर्या गर्या है,
इससे र्यह बहुत ही प्रभावशाली और उग्र है.
माता के मन्त्र-जप आक्ति से, माता का १०८-नाम स्तोर, १००८-नाम स्तोर, कवच पाठ, ज्र्यािा
सरु क्तित रहता है, इसमे क्तकसी तरह का खतरा नहीं होता है । मााँ का भवु नेश्वरी रूप, एक बहुत ही
सौम्र्य रूप है, क्तिर भी सहस्त्रनाम के साथ माता का, एक शक्तिशाली कवच का भी-पाठ कर
लेना चाक्तहर्ये । इससे क्तकसी भी तरह के अक्तनष्ट से अपनी रिा होती है ।
क्तकसी भी पजू ा मे पहले, गणेश, गरुु , क्तशव जी की पजू ा जरूर कर लेनी चाक्तहर्ये। अपने कुलिेवता
को भी स्मरण कर लेना चाक्तहर्ये ।
सस्ं कृत में तंर - मंर - कथा - स्तोर - कवच - सहस्त्रनाम आक्ति की रचना करते समर्य जान-बझू
कर वणो और शब्िों को जोड़-जोड़ कर बड़ा रखा गर्या है , ताक्तक इसका सही अथभ र्योग्र्य लोगों
को ही गरुु -और- क्तवद्वान लोगों के द्वारा सही लोगों को ही क्तमले । जो भी रचनार्यें की गर्यी है , वह
जन-कल्र्याण के क्तलर्ये ही की गर्यी है । परन्त्तु िष्टु ों और इसका िरुू पर्योग करने वालों से ही गप्तु
रखने ( क्तकसी भी कीमत पर) को कहा गर्या है । सभी से गप्तु रखने को नहीं ।
लंबे-लंबे शब्िों को बीच से जैसे-तैसे तोड़ने से उसका अथभ का अनथभ हो जाता है। गलत शब्िों
के बार-बार-उच्चारण से िार्यिा के जगह पाठक को नक ु सान होता है । क्तजससे पाठक का भरोसा
िेवी-िेवता / पजू ा-पाठ से उठ जाता है ।
इसक्तलर्ये इस िेवी-सहरनाम को सरल - सल ु भ करने के साथ-साथ सही अथभ क्तनकले इसका ध्र्यान
रखा गर्या है । शब्ि सरल हो जाने से बहुत से अथभ भी समझने मे आसानी हो जाती है, जैसे -
मिोद्धता =मिोि-धता, कल्पान्त्त = कल्प-अन्त्त,
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 2 of 15 23/09/2019 9:24 PM
कुछ कक्तठन शब्ि * क्तचक्तन्त्हत कर उसी लाईन के बाि, सरल करने का प्रर्यास क्तकर्या है, साधक
लोग िोनो शब्िों को एक ही जगह पर िेख कर, ठीक से पढ़ सकें , तल ु ना करें , समझें और गलत
लगे तो ठीक कर लें , जैसे -
सर्यू ेन्त्िनु र्यना = सर्यू भ-इन्त्ि-ु नर्यना, सपाभसनक्तप्रर्या = सपभ-आसन-क्तप्रर्या
इसमे कुछ ही शब्िों का संक्तध-क्तवच्छे ि क्तकर्या गर्या है, उसका अथभ साि-२ क्तिखे, ऐसा प्रर्यास
क्तकर्या है, ताक्तक साधक गण िेख,ें शब्ि कै से छुपे हुए है ।
कहीं कोई रक्तु ट न हो, इसका ध्र्यान रखने का पणू भ प्रर्यास क्तकर्या गर्या है । क्तिर भी कुछ गलती हो
तो, रक्तु ट हो, तो उसे अपने स्तर से थोड़ा उक्तचत तरीके से सधु ार कर लें ।
र्यह क्तसिभ िेखने, पढ़ने, समझने और प्रैक्तटटस करने के क्तलर्ये है । माता का नाम ज्र्यािा-से-ज्र्यािा
पढ़ने से, कोई हाक्तन नहीं होती, पर िेखने सनु ने के बाि आप अपना मल ू पाठ ही पजू ा में उपर्योग
करें ॥ कोई भी पाठ गलत नहीं है, पर अलग-अलग पस्ु तकों में नाम में कुछ न कुछ क्तवक्तभन्त्नता
क्तमलती ही है । सब माता का ही नाम है । आपकी श्रद्धा और आपका क्तवश्वास बड़ी बात है ।
" जै माता िी "
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 3 of 15 23/09/2019 9:24 PM
ु श्वरी-मन्त्रगभभ-नाम-सहस्रकम ( भवने
॥ श्री भवने ु श्वरी-रहस्य से ) ॥
(Easy To Learn)
श्री भ ैरव उवाचः ।
देवव ! तष्टु ोऽवि सेवावभस्तवद्रूपेण* च भाषया । *सेवावभस्तवद्रूपेण = सेवावभ-स्तवद-रूपेण
ु ॥१॥ * मनो-अवभलवषतं
मनोऽवभलवषतं* वकविद वरं वरय सव्रते
ु
श्री देव्यवाचः।
तष्टु ोऽवस यवद मे देव ! वरयोग्याऽस्म्यहं यवद ।
ु श्वयाभः मन्त्रं नाम-सहस्रकम ॥२॥
वद मे भवने
श्री भ ैरव उवाचः ।
तव भक्त्या ब्रवीम्यद-य देव्या नाम-सहस्रकम ।
मन्त्र-गभभ चतवु ग
भ -भ फलदं मवन्त्रणां कलौ ॥३॥
ु
गोपनीयं सदा भक्त्या साधकै श-च सवसद्धये ।
सवभ-रोग-प्रशमनं सवभ-शत्र-ु भयावहम ॥४॥
सवोत्पात-प्रशमनं सवभ-दावरद्रय-नाशनम । *सवोत्पात = सवभ-उत्पात
यशस्करं ु
श्री-करं च पत्र-पौत्र-वववद्धभ
नम ।
देववे श ! वेवि त्वद भक्त्या गोपनीयं प्रयत्नतः॥५॥
अस्य नाम्ां सहस्रस्य ऋवषः भ ैरव उच्यते ।
ु श्वरी ॥६॥
पवतिश-छन्दः समाख्याता देवता भवने
ह्रीं बीजं श्रीं च शविः स्यात क्लीं कीलकमदु ाहृतम* । *कीलकम-उदाहृतम
मनोऽवभलाष-वसद्धयर्थं वववनयोगः प्रकीर्तततः॥७॥ *मनो-अवभलाष
॥ ऋष्यावदन्यासः॥
श्री भ ैरव-ऋषये नमः वशरवस । ु े।
पवतिश-छन्दसे नमः मख
ु ।
ु श्वरी-देवताय ै नमः हृवद । ह्रीं बीजाय नमः गह्ये
श्री-भवने
श्रीं शक्त्ये नमः नाभौ । क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।
मनोऽवभलाषय-वसद्धयर्थे पाठे वववनयोगाय नमः सवाभङ्गे ॥
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 4 of 15 23/09/2019 9:24 PM
॥ मूल पाठ ॥
ॐ ह्रीं श्रीं जगदीशानी ह्रीं श्रीं बीजा जगविया*। *जगत-वप्रया
ॐ श्रीं जयप्रदा ॐ ह्रीं जया ह्रीं जय-वर्तद्धनी ॥८॥
ॐ ह्रीं श्रीं वां जगन्माता श्रीं क्लीं जगद्वरप्रदा* । *जगद-वरप्रदा
ॐ ह्रीं श्रीं जूं जविनी ह्रीं क्लीं जयदा श्रीं जगन्धरा ॥९॥
ॐ क्लीं ज्योवतष्मती ॐ जूं जननी श्रीं जरातरु ा।
ॐ स्त्रीं जूं जगती ह्रीं श्रीं जप्या ॐ जगदाश्रया ॥१०॥
ॐ श्रीं जूं सः जगन्माता ॐ जूं जगत क्षयंङ्करी ।
ॐ श्रीं क्लीं जानकी स्वाहा श्रीं क्लीं ह्रीं जात-रूवपणी ॥११॥
ॐ श्रीं क्लीं जाप्य-फलदा ॐ जूं सः जन-वल्ल्भा ।
ॐ श्रीं क्लीं जननीवतज्ञा ॐ श्रीं जनत्रयेष्टदा* ॥१२॥ *जन-त्रय-ईष्टदा
ॐ क्लीं कमल-पत्राक्षी ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं च कावमनी ।
ॐ गूं घोर-रवा ॐ श्रीं घोर-रूपा हसौः गवतः॥१३॥
ॐ गं गणेश्वरी ॐ श्रीं वशव-वामाङ्ग-वावसनी ।
ॐ श्रीं वशवेष्टदा स्वाहा ॐ श्रीं शीतात-वप्रया ॥१४॥
ु
ॐ श्रीं गूं गणमाता च ॐ श्रीं क्लीं गण-रावगणी ॥
ॐ श्रीं गणेश-माता च ॐ श्रीं शङ्कर-वल्लभा ॥१५॥
ॐ श्रीं क्लीं शीतलाङ्गी श्रीं शीतला, श्रीं वशवेश्वरी ।
ॐ श्रीं क्लीं ग्लौं गजराज-स्था ॐ श्रीं गीं गौतमी तर्था ॥१६॥
ु र-नादा
ॐ घां घर-घ ु च ॐ गीं गीतवप्रया हसौः।
ॐ घां घवरणी घिान्तःस्था ॐ गीं गन्धवभ-सेववता ॥१७॥
ॐ गौं श्रीं गोपवत स्वाहा ॐ गीं गौं गणवप्रया ।
ु
ॐ गीं गोष्ठी हसौः गोप्या ॐ गीं धमाभतसलोचना* ु
॥१८॥ *धमाभञ-सलोचना
ॐ श्रीं गन्त्रीं हसौः घण्िा ॐ घं घण्िा-रवा-कुला ।
ॐ घ्रीं श्रीं घोररूपा च ॐ गीं श्रीं गरुडी हसौः॥१९॥
ु
ॐ गीं गणया हसौः गवी ॐ श्रीं घोरद्यवु तस्तर्था* । *घोरद्यवु तस्तर्था= घोरद-यवु तस्तर्था
ॐ श्रीं गीं गण-गन्धवभ-सेवताङ्गी गरीयसी ॥२०॥
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 5 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 6 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 7 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 8 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 9 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 10 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 11 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 12 of 15 23/09/2019 9:24 PM
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 13 of 15 23/09/2019 9:24 PM
ु श्वरी-रहस्ये श्री-भवने
॥इवत श्री-भवने ु श्वरी-मन्त्रगभभ-सहस्रनामकं सम्पूणम
भ ॥
ु श्वरी-मन्त्र-गभभ-सहस्रनाम, श्री-भवने
( यह श्री-भवने ु श्वरी-रहस्य तन्त्र से वलया गया है )
॥ ॐ तित ॥
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 14 of 15 23/09/2019 9:24 PM
॥ पवू भ पीक्तठका - में कवच, सहस्रनाम को पहली बार कब, कहां क्तकस िेवी-िेवता-र्या ऋक्ति-मनु ी
ने, क्तकस िेवी-िेवता-र्या ऋक्ति-मनु ी से पछ
ु ा, क्तकसने क्तकसको कब बतार्या- र्ये सब बतार्या जाता
है, इसकी जानकारी िी हुई होती है॥ पाठ क्तक क्तवक्तध, कोई क्तवशेि बात, जैसे पाठ का टर्या -टर्या
िल है, इस सहस्त्रनाम, र्या कवच को टर्यों पढ़ना चाक्तहर्ये इत्र्याक्ति-२ ।
जैसे इस श्री-भवु नेश्वरी-मन्त्रगभभ-सहस्रनाम के पूवभ भाग से पता चलता है की, माता (िेवी) के
पछू ने पर भैरव- जी ने उनसे कहा था । इस सहस्त्रनाम के पाठ के क्तलर्ये कुछ ज्र्यािा सोच-क्तवचार
की जरूरत नहीं है । र्यह बहुत ही गप्तु क्तवद्या है , और इसका पाठ ही कािी है । ( श्लोक १२४-
िेख)ें
* नार क्तसद्धाि-र्यपेिा-अक्तस्त न वा क्तमर-अरर-ििू णम ।
सवभ-क्तसक्तद्ध-कृतं चैतत सवाभ-अभीष्ट-िलप्रिम ॥१२४॥
क्तवक्तनर्योगः- में र्यह क्तकस िेवी र्या िेवता का स्तोर, कवच र्या सहस्रनाम है, इसके ऋक्तिः कौन हैं ।
इसका छन्त्ि टर्या है (बोलने का तरीका, सरु , लर्य और ताल), बीज-टर्या है, शक्ति -टर्या है, कौन
सी है । कीलक - टर्या है। और आप क्तकस क्तलर्ये पाठ कर रहें हैं । र्यह सारी जानकारी पाठ करने
वाले को अच्छी तरह से होनी चाक्तहर्ये, क्तक वो क्तकस िेवी र्या िेवता का पाठ कर रहा है, और टर्यों
कर रहा है, इत्र्याक्ति ।
र्यहां इस क्तवक्तनर्योग- में बतार्या गर्या है की,
इस सहस्रनाम के ऋक्तिः-भैरव हैं,
सहस्रनाम का छन्त्िः पक्ततिश है ।
इस स्तोर की िेवी-श्री-भवु नेश्वरी-माता है,
और साधक धमभ-अथभ-काम-मोि-प्राप्त कृपा प्राप्त करने के क्तलर्ये इसका पाठ कर रहा है ।
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-
Page 15 of 15 23/09/2019 9:24 PM
र्या जैसी इच्छा हो, साधक वैसे ही शब्िों का चर्यन करें और बोले, इससे आपकी साधना का
िल प्राप्त करने में सहार्यता क्तमलती है ॥ क्तवक्तनर्योग - एक बार की पजू ा मे, एक बार शरुु में पढ़ते
हैं ।
िलश्रतु ी - में इसका पाठ पढ़ने का टर्या-२ िल प्राप्त होता है ।
पाठ कै से करना है । क्तकस क्तिन-पाठ करने का टर्या िल क्तमलता है । क्तकतने-२ पाठ का टर्या-२
िल है ।
इस स्तोर के पाठ का कोई क्तवशेि क्तिन है तो वह भी, इसमें क्तिर्या हुआ होता है ।
िेव-र्या िेवी को भोग में टर्या-टर्या िेना चाक्तहर्ये, उन्त्हे टर्या-पसंि है, इत्र्याक्ति-२ जानकारी होती है,
आप बार-बार िलश्रतु ी को ध्र्यान से िेखगें े तो उस स्तोर, कवच र्या सहस्रनाम की बहुत सी गप्तु
जानकारी आपको क्तमलेगी । इस ज्ञान से भक्ति और क्तवश्वास मजबतू होती है ।
हमें जब एक बार से ज्र्यािा पाठ करना है तो स्तोर, सहस्रनाम, र्या कवच का एक बार परू ा पाठ
करते हैं, और अतं में एक बार क्तिर परू ा पाठ करते हैं । बीच में बार -बार मख्ु र्य स्तोर, सहस्रनाम,
र्या कवच का पाठ करतें है
उिाहरण के क्तलर्ये - अगर हमने ७ र्या ११ र्या २१-पाठ प्रक्ततक्तिन पढ़ने का संकल्प क्तलर्या है तो,
प्रथम बार परू ा सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे,
क्तिर बीच में ५ र्या ९-र्या-१९-बार के वल मख्ु र्य सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे,
अंत में क्तिर एक बार परू ा सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे ।
तो कुल ७ -र्या-११ र्या २१- पाठ हो जार्येगा । ऐसा ही आप अपनी संकक्तल्पत संख्र्या में करें और
समझें ।
बहुत बार पवू भ भाग र्या िलश्रतु ी उप्लब्ध नहीं होता है , तो कोई बात नहीं ।
र्या अगर र्यह िोनो भाग बहुत लंबा-चौरा है तो लोग समर्य की कमी से इसे छोड़ िेते हैं । पर जब
भी समर्य हो, क्तवशेि क्तिनों मे, कभी-२ जरूर पढ़ए,ं ।
। नोट: र्यह एक साधारण सा क्तनर्यम और ज्ञान है, र्यह एक िामभल ू े की तरह, हर स्तोर, कवच र्या
सहस्रनाम पर, उसके अपने पवू भ पीक्तठका, क्तवक्तनर्योग, ध्र्यान, िेवता, पाठ और िलश्रतु ी के साथ,
इसी तरह से लागू लागू होगा ।
आप गरुु , गणेश, क्तशव जी का सक्तं िप्त पजू ा क्तकसी भी पजू ा के पहले कर सकते हैं।
BhuvaneshvarI—1000-Stotra-Mantra-Garbha-v1-