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॥ ॐ श्री भवु नेश्वर्यै नमः ॥


॥ श्री भवु नेश्वरी-मन्त्रगभभ-नाम-सहस्रकम ( श्री-भवु नेश्वरी-रहस्र्य से ) ॥

र्यह माता का एक बहुत ही शक्तिशाली नाम-स्तोर है । इसका पाठ करने से मााँ की कृपा प्राप्त
होती है । साधक के सभी कार्यभ क्तसद्ध होते हैं । इसमे बीज मन्त्रों का बहुत प्रर्योग क्तकर्या गर्या है,
इससे र्यह बहुत ही प्रभावशाली और उग्र है.

माता के मन्त्र-जप आक्ति से, माता का १०८-नाम स्तोर, १००८-नाम स्तोर, कवच पाठ, ज्र्यािा
सरु क्तित रहता है, इसमे क्तकसी तरह का खतरा नहीं होता है । मााँ का भवु नेश्वरी रूप, एक बहुत ही
सौम्र्य रूप है, क्तिर भी सहस्त्रनाम के साथ माता का, एक शक्तिशाली कवच का भी-पाठ कर
लेना चाक्तहर्ये । इससे क्तकसी भी तरह के अक्तनष्ट से अपनी रिा होती है ।
क्तकसी भी पजू ा मे पहले, गणेश, गरुु , क्तशव जी की पजू ा जरूर कर लेनी चाक्तहर्ये। अपने कुलिेवता
को भी स्मरण कर लेना चाक्तहर्ये ।

सस्ं कृत में तंर - मंर - कथा - स्तोर - कवच - सहस्त्रनाम आक्ति की रचना करते समर्य जान-बझू
कर वणो और शब्िों को जोड़-जोड़ कर बड़ा रखा गर्या है , ताक्तक इसका सही अथभ र्योग्र्य लोगों
को ही गरुु -और- क्तवद्वान लोगों के द्वारा सही लोगों को ही क्तमले । जो भी रचनार्यें की गर्यी है , वह
जन-कल्र्याण के क्तलर्ये ही की गर्यी है । परन्त्तु िष्टु ों और इसका िरुू पर्योग करने वालों से ही गप्तु
रखने ( क्तकसी भी कीमत पर) को कहा गर्या है । सभी से गप्तु रखने को नहीं ।
लंबे-लंबे शब्िों को बीच से जैसे-तैसे तोड़ने से उसका अथभ का अनथभ हो जाता है। गलत शब्िों
के बार-बार-उच्चारण से िार्यिा के जगह पाठक को नक ु सान होता है । क्तजससे पाठक का भरोसा
िेवी-िेवता / पजू ा-पाठ से उठ जाता है ।
इसक्तलर्ये इस िेवी-सहरनाम को सरल - सल ु भ करने के साथ-साथ सही अथभ क्तनकले इसका ध्र्यान
रखा गर्या है । शब्ि सरल हो जाने से बहुत से अथभ भी समझने मे आसानी हो जाती है, जैसे -
मिोद्धता =मिोि-धता, कल्पान्त्त = कल्प-अन्त्त,

मैने र्यहां कक्तठन लगने वाले शब्िों को -


"-" लगाकर छोटा और सरल करने का प्रर्यास क्तकर्या है, क्तजससे नर्ये साधक लोग ज्र्यािा-से-
ज्र्यािा पढ़ सकें । जैसे -
सत्र्याक्तत्मका = सत्र्य-आक्तत्मका, इन्त्रसमानाभा = इन्त्र-समान-आभा

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कुछ कक्तठन शब्ि * क्तचक्तन्त्हत कर उसी लाईन के बाि, सरल करने का प्रर्यास क्तकर्या है, साधक
लोग िोनो शब्िों को एक ही जगह पर िेख कर, ठीक से पढ़ सकें , तल ु ना करें , समझें और गलत
लगे तो ठीक कर लें , जैसे -
सर्यू ेन्त्िनु र्यना = सर्यू भ-इन्त्ि-ु नर्यना, सपाभसनक्तप्रर्या = सपभ-आसन-क्तप्रर्या

इसमे कुछ ही शब्िों का संक्तध-क्तवच्छे ि क्तकर्या गर्या है, उसका अथभ साि-२ क्तिखे, ऐसा प्रर्यास
क्तकर्या है, ताक्तक साधक गण िेख,ें शब्ि कै से छुपे हुए है ।

गणु ाक्तश्रता = गणु -आक्तश्रता,

कहीं कोई रक्तु ट न हो, इसका ध्र्यान रखने का पणू भ प्रर्यास क्तकर्या गर्या है । क्तिर भी कुछ गलती हो
तो, रक्तु ट हो, तो उसे अपने स्तर से थोड़ा उक्तचत तरीके से सधु ार कर लें ।
र्यह क्तसिभ िेखने, पढ़ने, समझने और प्रैक्तटटस करने के क्तलर्ये है । माता का नाम ज्र्यािा-से-ज्र्यािा
पढ़ने से, कोई हाक्तन नहीं होती, पर िेखने सनु ने के बाि आप अपना मल ू पाठ ही पजू ा में उपर्योग
करें ॥ कोई भी पाठ गलत नहीं है, पर अलग-अलग पस्ु तकों में नाम में कुछ न कुछ क्तवक्तभन्त्नता
क्तमलती ही है । सब माता का ही नाम है । आपकी श्रद्धा और आपका क्तवश्वास बड़ी बात है ।
" जै माता िी "

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This article is prepared / Formatted by : V K Rakesh

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ु श्वरी-मन्त्रगभभ-नाम-सहस्रकम ( भवने
॥ श्री भवने ु श्वरी-रहस्य से ) ॥
(Easy To Learn)
श्री भ ैरव उवाचः ।
देवव ! तष्टु ोऽवि सेवावभस्तवद्रूपेण* च भाषया । *सेवावभस्तवद्रूपेण = सेवावभ-स्तवद-रूपेण
ु ॥१॥ * मनो-अवभलवषतं
मनोऽवभलवषतं* वकविद वरं वरय सव्रते

श्री देव्यवाचः।
तष्टु ोऽवस यवद मे देव ! वरयोग्याऽस्म्यहं यवद ।
ु श्वयाभः मन्त्रं नाम-सहस्रकम ॥२॥
वद मे भवने
श्री भ ैरव उवाचः ।
तव भक्त्या ब्रवीम्यद-य देव्या नाम-सहस्रकम ।
मन्त्र-गभभ चतवु ग
भ -भ फलदं मवन्त्रणां कलौ ॥३॥

गोपनीयं सदा भक्त्या साधकै श-च सवसद्धये ।
सवभ-रोग-प्रशमनं सवभ-शत्र-ु भयावहम ॥४॥
सवोत्पात-प्रशमनं सवभ-दावरद्रय-नाशनम । *सवोत्पात = सवभ-उत्पात
यशस्करं ु
श्री-करं च पत्र-पौत्र-वववद्धभ
नम ।
देववे श ! वेवि त्वद भक्त्या गोपनीयं प्रयत्नतः॥५॥
अस्य नाम्ां सहस्रस्य ऋवषः भ ैरव उच्यते ।
ु श्वरी ॥६॥
पवतिश-छन्दः समाख्याता देवता भवने
ह्रीं बीजं श्रीं च शविः स्यात क्लीं कीलकमदु ाहृतम* । *कीलकम-उदाहृतम
मनोऽवभलाष-वसद्धयर्थं वववनयोगः प्रकीर्तततः॥७॥ *मनो-अवभलाष

॥ ऋष्यावदन्यासः॥
श्री भ ैरव-ऋषये नमः वशरवस । ु े।
पवतिश-छन्दसे नमः मख
ु ।
ु श्वरी-देवताय ै नमः हृवद । ह्रीं बीजाय नमः गह्ये
श्री-भवने
श्रीं शक्त्ये नमः नाभौ । क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।
मनोऽवभलाषय-वसद्धयर्थे पाठे वववनयोगाय नमः सवाभङ्गे ॥

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॥ मूल पाठ ॥
ॐ ह्रीं श्रीं जगदीशानी ह्रीं श्रीं बीजा जगविया*। *जगत-वप्रया
ॐ श्रीं जयप्रदा ॐ ह्रीं जया ह्रीं जय-वर्तद्धनी ॥८॥
ॐ ह्रीं श्रीं वां जगन्माता श्रीं क्लीं जगद्वरप्रदा* । *जगद-वरप्रदा
ॐ ह्रीं श्रीं जूं जविनी ह्रीं क्लीं जयदा श्रीं जगन्धरा ॥९॥
ॐ क्लीं ज्योवतष्मती ॐ जूं जननी श्रीं जरातरु ा।
ॐ स्त्रीं जूं जगती ह्रीं श्रीं जप्या ॐ जगदाश्रया ॥१०॥
ॐ श्रीं जूं सः जगन्माता ॐ जूं जगत क्षयंङ्करी ।
ॐ श्रीं क्लीं जानकी स्वाहा श्रीं क्लीं ह्रीं जात-रूवपणी ॥११॥
ॐ श्रीं क्लीं जाप्य-फलदा ॐ जूं सः जन-वल्ल्भा ।
ॐ श्रीं क्लीं जननीवतज्ञा ॐ श्रीं जनत्रयेष्टदा* ॥१२॥ *जन-त्रय-ईष्टदा
ॐ क्लीं कमल-पत्राक्षी ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं च कावमनी ।
ॐ गूं घोर-रवा ॐ श्रीं घोर-रूपा हसौः गवतः॥१३॥
ॐ गं गणेश्वरी ॐ श्रीं वशव-वामाङ्ग-वावसनी ।
ॐ श्रीं वशवेष्टदा स्वाहा ॐ श्रीं शीतात-वप्रया ॥१४॥

ॐ श्रीं गूं गणमाता च ॐ श्रीं क्लीं गण-रावगणी ॥
ॐ श्रीं गणेश-माता च ॐ श्रीं शङ्कर-वल्लभा ॥१५॥
ॐ श्रीं क्लीं शीतलाङ्गी श्रीं शीतला, श्रीं वशवेश्वरी ।
ॐ श्रीं क्लीं ग्लौं गजराज-स्था ॐ श्रीं गीं गौतमी तर्था ॥१६॥
ु र-नादा
ॐ घां घर-घ ु च ॐ गीं गीतवप्रया हसौः।
ॐ घां घवरणी घिान्तःस्था ॐ गीं गन्धवभ-सेववता ॥१७॥
ॐ गौं श्रीं गोपवत स्वाहा ॐ गीं गौं गणवप्रया ।

ॐ गीं गोष्ठी हसौः गोप्या ॐ गीं धमाभतसलोचना* ु
॥१८॥ *धमाभञ-सलोचना
ॐ श्रीं गन्त्रीं हसौः घण्िा ॐ घं घण्िा-रवा-कुला ।
ॐ घ्रीं श्रीं घोररूपा च ॐ गीं श्रीं गरुडी हसौः॥१९॥

ॐ गीं गणया हसौः गवी ॐ श्रीं घोरद्यवु तस्तर्था* । *घोरद्यवु तस्तर्था= घोरद-यवु तस्तर्था
ॐ श्रीं गीं गण-गन्धवभ-सेवताङ्गी गरीयसी ॥२०॥

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ॐ श्रीं गार्थ हसौः गोप्त्री ॐ गीं गण-सेववता ॥



ॐ श्रीं गणमवत स्वाहा श्रीं क्लीं गौरी हसौः गदा ॥२१॥
ॐ श्रीं गीं गौररूपा च ॐ गीं गौर-स्वरा तर्था।
ॐ श्रीं गीं क्लीं गदा-हस्ता ॐ गीं गोन्दा हसौः पयः॥२२॥
ॐ श्रीं गीं क्लीं गम्य-रूपा च ॐ अगम्या हसौः वनम ॥
ॐ श्रीं घोरवदना घोराकारा* हसौः पयः॥२३॥ *घोर-आकारा
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कोमलाङ्गी च ॐ क्रीं काल-भयङ्करी ।
ऊ क्रीं कपतभ -हस्ता च क्रीं ह्रं कादम्बरी हसौः॥२४॥
क्रीं श्रीं कनक-वणाभ च ॐ क्रीं कनक-भूषणा ।
ॐ क्रीं काली हसौः कान्ता क्रीं ह्रं कारुण्य-रूवपणी ॥२५॥

ॐ क्रीं श्रीं कू िवप्रया क्रीं ह्रं वत्रकुता क्रीं कुलेश्वरी ।


ॐ क्रीं कम्बल-वस्त्रा च क्रीं पीताम्बर-सेववता ॥२६॥
क्रीं श्रीं कुल्या हसौः कीर्ततः क्रीं श्रीं क्लीं क्लेश-हावरणी ।
ॐ क्रीं कू िालया क्रीं ह्रीं कू िकत्री हसौः कुिीः॥२७॥
ॐ श्रीं क्लीं काम-कमला क्लीं शीं कमला क्रीं च कौरवी ।
ॐ क्लीं श्रीं कुरुरवा ह्रीं श्रीं हािके श्वर-पूवजता ॥२८॥
ॐ ह्रां रां रम्यरूपा च ॐ श्रीं क्लीं कािनाङ्गदा* । *? कािन-अङ्गदा
ॐ क्रीईं श्रीं कुण्डली क्रीं हूँ कारा-बन्धन-मोक्षदा ॥२९॥
ॐ क्रीं कुर हसौः क्लऊ ब्लू ॐ क्रीं कौरव-मर्तदनी ।
ॐ श्रीं किु हसौः कुण्िी ॐ श्रीं कुष्ठ-क्षयङ्करी ॥३०॥
ॐ श्रीं चकोरकी कान्ता क्रीं श्रीं कापावलनी परा ।
ॐ श्रीं क्लीं कावलका कामा ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कलवङ्कता ॥३१॥
क्रीं श्रीं क्लीं क्रीं कठोराङ्गी ॐ श्रीं कपि-रूवपणी ।
ॐ क्रीं कामवती क्रीं श्रीं कन्या क्रीं कावलका हसौः॥३२॥
ॐ श्मशान-कावलका श्रीं क्लीं ॐ क्रीं श्रीं कुविलालका ।
ॐ क्रीं श्रीं कुविल-भ्रूश-च क्रीं ह्रं कुविल-रूवपणी ॥३३॥

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ॐ क्रीं कमल-हस्ता च क्रीं कुण्िी ॐ क्रीं कौवलनी ।


ॐ श्रीं क्लीं कण्ठ-मध्यस्था क्लीं कावन्त-स्वरुवपणी ॥३४॥
ॐ क्रीं कातभ-स्वरूपा च ॐ क्रीं कात्यायनी हसौः।
ॐ क्रीं कलावती हसौः काम्या क्रीं कलावनधीशेश्वरी*॥३५॥ *कला-वनधीश-ईश्वरी
ॐ क्रीं श्रीं सवभ-मध्यस्था ॐ क्रीं सवेश्वरी पयः।
ॐ क्रीं ह्रं चक्र-मध्यस्था ॐ क्रीं श्रीं चक्र-रूवपणी ॥३६॥
ॐ क्रीं हूँ चं चकोराक्षी ॐ चं चन्दन-शीतला ।
ॐ चं चमाभम्बरा ह्रं क्रीं चारुहासा हसौः च्यतु ा ॥३७॥
ॐ श्रीं चौरवप्रया हूँ च चावभङ्गी श्रीं चलाऽचला* । *चला-अचला
ॐ श्रीं हूँ कामराज्येष्टा कुवलनी क्रीं हसौः कुह ॥३८॥
ॐ क्रीं वक्रया कुलाचारा क्रीं क्रीं कमल-वावसनी ।
ॐ क्रीं हेलाः हसौः लीलाः ॐ क्रीं काल-वावसनी ॥३९॥
ॐ क्रीं कालवप्रया ह्रं क्रीं कालरावत्र हसौः बला ।
ॐ क्रीं श्रीं शवश-मध्यस्था क्रीं श्रीं कन्दप-भ लोचना ॥४०॥
ॐ क्रीं शीताञ्श-ु मक
ु ु िा क्रीं श्रीं सवभ-वरप्रदा ।
ॐ श्रीं श्याम्बरा स्वाहा ॐ श्रीं श्यामल-रूवपणी ॥४१॥
ॐ श्रीं क्रीं श्रीं सती स्वाहा ॐ क्रीं श्रीधर-सेववता ।
ॐ श्रीं रूक्षा हसौः रम्भा ॐ क्रीं रसवर्तत-पर्था ॥४२॥
ॐ कुण्ड-गोल-वप्रयकरी ह्रीं श्रीं ॐ क्लीं कुरूवपणी ।
ॐ श्रीं सवाभ हसौः तॄवतः ॐ श्रीं तारा हसौः त्रपा ॥४३॥
ॐ श्रीं तारुण्य-रूपा च ॐ क्रीं वत्र-नयना पयः।
ॐ श्रीं ताम्बूल-रिास्या ॐ क्रीं उग्रप्रभा तर्था ॥४४॥
ॐ श्रीं उग्रेश्वरी स्वाहा ॐ श्रीं उग्र-रवाकुला ।
ॐ क्रीं च सवभभषू ाढ्या ॐ श्रीं चम्पक-मावलनी ॥४५॥
ॐ श्रीं चम्पक-वल्ली च ॐ श्रीं च च्यतु ालया ।
ॐ श्रीं द्यवु त-मवत स्वाहा ॐ श्रीं देवप्रसूः पयः ॥४६॥
ॐ श्रीं दैत्यावरपूजा* च ॐ क्रीं दैत्य-ववमर्तदनी । *दैत्य-अवर-पूजा

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ॐ श्रीं द्य-ु मवण-नेत्रा च ॐ श्रीं दम्भ-वववर्तजता ॥४७॥


ॐ श्रीं दावरद्रय-रावशध्नी ॐ श्रीं दामोदर-वप्रया ।
ॐ क्लीं दपाभपहा स्वाहा ॐ क्रीं कन्दप भ-लालसा ॥४८॥
ॐ क्रीं करीर-वॄक्षस्था ॐ क्रीं हूँङ्कावर-गावमनी ।
ु ाविका स्वाहा ॐ क्रीं शक
ॐ क्रीं शक ु करा तर्था ॥४९॥
ु -श्रवु तः श्रीं क्लीं श्रीं ह्रीं शक
ॐ श्रीं शक ु -कववत्वदा ।
ु -प्रसू स्वाहा ॐ श्रीं क्रीं शवगावमनी ॥५०॥
ॐ क्रीं शक

ॐ रिाम्बरा स्वाहा ॐ क्रीं पीताम्बरार्तचता* । *पीताम्बर-अर्तचता


ु ा ॐ श्रीं सौः िरा परा
ॐ श्रीं क्रीं वित-संयि ु ॥५१॥
ॐ श्रीं क्रीं हूँ च िेरास्या ॐ श्रीं िर-वववर्तद्धनी ।
ॐ श्री सपाभकुला स्वाहा ॐ श्रीं सवोप-वेवशनी ॥५२॥
ॐ क्रीं सौः सप भ-कन्या च ॐ क्रीं सपाभसनवप्रया* । *सप-भ आसन-वप्रया
सौः सौः क्लीं सवभ-कुविला ॐ श्रीं सरस
ु रार्त
ु चता*॥५३॥
ु रार्त
*सरस ु चता = सरस
ु रा-अर्त
ु चता? = सरु -असर-अर्त
ु चता?

ॐ श्रीं सरावर-मवर्थनी* ु
ॐ श्रीं सवरजन-वप्रया ु =सर-अवर
। *सरावर ु (देवता का शत्र)ु
ऐ ं सौः सूयन्दु
े नयना* ऐ ं क्लीं सूयाभयतु प्रभा*॥५४॥ *सूय-भ इन्दु-नयना, सूय-भ आयतु -प्रभा
ऐ ं श्रीं क्लीं सरदे
ु व्या च ॐ श्रीं सवेश्वरी तर्था ।
ॐ श्रीं क्षेमकरी स्वाहा ॐ क्रीं हूँ भद्रकावलका ॥५५॥
ॐ श्रीं श्यामा हसौः स्वाहा ॐ श्रीं ह्रीं शवभरी-स्वाहा ।
ॐ श्रीं क्लीं शवभरी तर्था ॐ श्रीं क्लीं शाअन्तरूवपणी ॥५६॥
ॐ क्रीं श्रीं श्रीधरेशानी* ॐ श्रीं क्लीं शावसनी तर्था । *श्रीधरेशानी = श्रीधर-ईशानी
ॐ क्लीं वशवत-हभसौः शौरी ॐ श्रीं क्लीं शारदा तर्था ॥५७॥
ॐ श्रीं ह्रीं शावरका स्वाहा ॐ श्रीं शाकम्भरी तर्था ।
ॐ श्रीं क्लीं वशवरूपा च ॐ श्रीं क्लीं कामचावरणी ॥५८॥
ॐ यं यज्ञेश्वरी स्वाहा ॐ श्रीं यज्ञवप्रया सदा ।
ॐ ऐ ं क्लीं यं यज्ञरूपा च ॐ श्रीं यं यज्ञ-दवक्षणा ॥५९॥

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ॐ श्रीं यज्ञार्तचता स्वाहा ॐ यं यावज्ञक-पूवजता ।


श्रीं ह्रीं यं यजमान-स्त्री ॐ यज्वा हसौः वधूः ॥६०॥
श्रीं वां बिुक-पूवजता ॐ श्रीं वरूवर्थनी स्वाहा ॥
ॐ क्रीं वाताभ हसौः ॐ श्रीं वरदावयनी स्वाहा ॥६१॥
ॐ श्रीं क्लीं ऐ ं च वाराही ॐ श्रीं क्लीं वरवर्तणनी ।
ॐ ऐ ं सौः वातभदा स्वाहा ॐ श्रीं वाराङ्गना तर्था ॥६२॥
ॐ श्रीं वैकुण्ठ-पूजा च वां श्रीं ऐ ं क्लीं च वैष्णवी ।
ॐ श्रीं ब्रां ब्राह्मणी स्वाहा ॐ क्रीं ब्राह्मण-पूवजता ॥६३॥
ॐ श्रीं ऐ ं क्लीं च इन्द्राणी ॐ क्लीं इन्द्र-पूवजता ।
ॐ श्रीं क्लीं ऐवन्द्र ऐ ं स्वाहा ॐ श्रीं क्लीं इन्दुशेखरा ॥६४॥
ॐ ऐ ं इन्द्रसमानाभा* ॐ ऐ ं क्लीं इन्द्र-वल्लभा । *इन्द्र-समान-आभा
ॐ श्रीं इडा हसौः नावभः ॐ श्रीं ईश्वरपूवजता ॥६५॥
ॐ ब्रां ब्राह्मी क्लीं रुं रुद्राणी ॐ ऐ ं द्रीं श्रीं रमा तर्था ।
ॐ ऐ ं क्लीं स्थाण-ु वप्रया स्वाहा ॐ गीं पद-क्षयकरी ॥६६॥

ॐ गीं गीं श्रीं गरस्था ु
च ऐ ं क्लीं गद-वववर्त द्धनी ।
ॐ श्रीं क्रीं क्रूं कुलीर-स्था ॐ क्रीं श्रीं कू मभ-पृष्ठगा ॥६७॥
ु चता* ।
ॐ श्रीं धूं तोतला स्वाहा ॐ त्रौं वत्रभवनार्त ु
*वत्रभवन-अर्त चता
ॐ प्रीं प्रीवतहभसौः प्रीतां प्रीं प्रभा प्रीं परेु श्वरी ॥६८॥

ॐ प्रीं पवभत-पत्री च ॐ प्रीं पवभत-वावसनी ।

ॐ श्रीं प्रीवतप्रदा स्वाहा ॐ ऐ ं सत्त्व-गणावश्रता* ु
॥६९॥ *गणावश्रता ु
= गण-आवश्रता
ॐ क्लीं सत्य-वप्रया स्वाहा ऐ ं सौं क्लीं सत्य-सङ्गरा ।
ॐ श्रीं सनातनी स्वाहा ॐ श्रीं सागर-शावयनी ॥७०॥
ॐ क्लीं चं चवन्द्रका ऐ ं सौं चन्द्र-मण्डल-मध्यगा ।
ॐ श्रीं चारु-प्रभा स्वाहा ॐ क्रीं प्रें प्रेत-शावयनी ॥७१॥
ु ऐ ं क्रीं काशी श्रीं श्रीं मनोरमा ।
ॐ श्रीं श्रीं मर्थरा
ॐ श्रीं मन्त्र-मयी स्वाहा ॐ चं चन्द्रक-शीतला ॥७२॥
ॐ श्रीं शाङ्करी स्वाहा ॐ श्रीं सवाभङ्ग-वावसनी ।

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ॐ श्रीं सवभवप्रया स्वाहा ॐ श्रीं क्लीं सत्य-भावमनी ॥७३॥


ॐ क्लीं सत्याविका* स्वाहा ॐ क्लीं ऐ ं सौः च सावत्त्वकी । *सत्याविका = सत्य-आविका
ॐ श्रीं रां राजसी स्वाहा ॐ क्रीं रम्भोपमा* तर्था ॥७४॥ *रम्भोपमा = रम्भा-उपमा
ॐ श्रीं राघव-सेव्या च ॐ श्रीं रावण-घावतनी ।
ु ो-हन्त्री ह्रीं श्रीं क्लीं ॐ क्रीं शम्भ
ॐ वनशम्भ ु -मदापहा ॥७५॥

ॐ श्रीं रिवप्रया हरा ॐ श्रीं क्रीं रिबीज-क्षयङ्करी ।


ॐ श्रीं मावहष-पृष्टस्था ॐ श्रीं मवहष-घावतनी ॥७६॥
ॐ श्रीं मावहषे स्वाहा ॐ श्रीं श्रीं मानवेष्टदा ।

ॐ श्रीं मवतप्रदा स्वाहा ॐ श्रीं मनमयी तर्था ॥७७॥
ॐ श्रीं मनोहराङ्गी* च ॐ श्रीं माधव-सेववता । *मनोहराङ्गी = मनोहरा-अङ्गी
ु ा च ॐ श्रीं वन्दी-स्ततु ा सदा ॥७८॥
ॐ श्रीं माधव-स्तत्य
ॐ श्रीं मानप्रदा स्वाहा ॐ श्रीं मान्या हसौः मवतः।
ॐ श्रीं श्रीं भावमनी स्वाहा ॐ श्रीं मान-क्षयङ्करी ॥७९॥
ॐ श्रीं माजाभर-गम्या च ॐ श्रीं श्रीं मृग-लोचना ।
ु ु रा प्रीं च पूतना ॥८०॥
ॐ श्रीं मराल-मवतः ॐ श्रीं मक
ु वा* । *समदु -भवा
ॐ श्रीं परापरा( परा-अपरा) च ॐ श्रीं पवरवार-समद्भ
ॐ श्रीं पद्मवरा ऐ ं सौः *पद्मोद्भव-क्षयङ्करी ॥८१॥ *पद्मोद-भव
ु ै ॐ प्रीं पराङ्गना
ॐ प्रीं पद्मा हसौः पण्य ु तर्था ।
ॐ प्रीं पयोदृश-दृशी ॐ प्रीं परावतेश्वरी ॥८२॥
ॐ पयोधर-नम्रङ्गी ॐ ध्रीं धाराधर-वप्रया ।
ॐ धृवत ऐ ं दया स्वाहा ॐ ॐ श्रीं क्रीं श्रीं दयावती ॥८३॥
ॐ श्रीं द्रुतगवतः स्वाहा ॐ द्रीं द्रं वनघावतनी ।
ॐ चं चमाभम्बरेशानी ॐ चं चण्डाल-रूवपणी ॥८४॥
ॐ चामण्ु डा, हसौः चण्डी ॐ चं क्रीं चवण्डका-पयः।
ॐ क्रीं चण्ड-प्रभा स्वाहा ॐ चं क्रीं चारु-हावसनी ॥८५॥
ॐ क्रीं श्रीं अच्यतु ष्टे ा ह्रीं चण्ड-मण्ु ड-क्षयकरी ।

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ॐ त्रीं श्रीं वत्रतये स्वाहा ु ैरवी ॥८६॥


ॐ श्रीं वत्रपर-भ
ॐ ऐ ं सौः वत्रपरानन्दा
ु ॐ ऐ ं वत्रपर-सू
ु वदना ।
ॐ ऐ ं क्लीं सौः वत्रपरध्यक्षा*
ु ऐ ं त्रौं श्रीं वत्रपराऽऽश्रया
ु ॥८७॥ *वत्रपरु -अध्यक्षा
ॐ श्रीं वत्र-नयने स्वाहा ॐ श्रीं तारा वरकुला ।
ु रुु -हस्ता
ॐ श्रीं तम्ब च ॐ श्रीं मन्द-भावषणी ॥८८॥
ॐ श्रीं महेश्वरी स्वाहा ॐ श्रीं मोदक-भवक्षणी ।
ॐ श्रीं मन्दोदरी स्वाहा ॐ श्रीं मधरु -भावषणी ॥८९॥
ॐ म्रीं श्रीं मधरु लापा ॐ श्रीं मोवहत-भावषणी ।
ॐ श्रीं मातामही स्वाहा ॐ मान्या म्रीं मदालसा ॥९०॥
ॐ म्रीं मदोद्धता* स्वाहा ॐ म्रीं मवन्दर-वावसनी । *मदोद्धता =मदोद-धता
ॐ श्रीं क्लीं षोडशार-स्था ॐ म्रीं द्वादश-रूवपणी ॥९१॥
ॐ श्रीं द्वादश-पत्र-स्था ॐ श्रीं अं अष्ट-कोणगा ।
ॐ म्रीं मातङ्गी हसौः श्रीं क्लीं मत्त-मातङ्ग-गावमनी ॥९२॥
ु ।
ॐ म्रीं मालापहा स्वाहा ॐ म्रीं माता हसौः सधा

ॐ श्रीं सधाकला स्वाहा ॐ श्रीं म्रीं मांवसनी स्वाहा ॥९३॥
ॐ म्रीं माला करी तर्था ॐ म्रीं माला-भूवषता ।
ॐ म्रीं माध्वी रसापूणाभ ॐ श्रीं सूयाभ हसौः सती ॥९४॥
ॐ ऐ ं सौः क्लीं सत्य-रूपा ॐ श्रीं दीक्षा, हसौः दरी ।
ॐ द्रीं दातॄवप्रया ह्रीं श्रीं दक्षयज्ञ-ववनावशनी ॥९५॥
ॐ दातृप्रसू स्वाहा ॐ श्रीं दाता हसौः पयः।
ॐ श्रीं ऐ ं सौः च समु ख
ु ी ॐ ऐ ं सौः सत्य-वारुणी ॥९६॥
ॐ श्रीं साडम्बरा स्वाहा ॐ श्रीं ऐ ं सौः सदागवतः।
ॐ श्रीं सीता हसौः सत्या ॐ ऐ ं सन्तान-शावयनी ॥९७॥
ॐ ऐ ं सौः सवभ-दृवष्टश-च ॐ क्रीं *कल्पान्त-कावरणी । *कल्पान्त = कल्प-अन्त
ॐ श्रीं चन्द्र-कल्ल-धरा ॐ ऐ ं श्रीं पश-ु पावलनी ॥९८॥
ॐ श्रीं वशश-ु वप्रया ऐ ं सौः *वशशूिङ्ग-वनवेवशता । *वशशूिङ्ग = वशशूत-सङ्ग
ॐ ऐ ं सौः तावरणी स्वाहा ॐ ऐ ं क्लीं तामसी तर्था ॥९९॥

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ॐ म्रीं मोहान्धकारघ्नी* ॐ म्रीं मत्त-मनास्तर्था । *मोहान्धकारघ्नी = मोह-अन्ध-कारघ्नी


ॐ म्रीं श्रीं माननीया च ॐ प्रीं पूजा-फलदा ॥१००॥

ॐ श्रीं श्रीं श्रीफला स्वाहा ॐ श्रीं क्लीं सत्य-रूवपणी ।


ॐ श्रीं नारायणी स्वाहा ु
ॐ श्रीं नूपरा-वकला ॥१०१॥
ॐ म्रीं श्रीं नारससही च ॐ म्रीं नारायण-वप्रया ।
ॐ म्रीं हंसगवतः स्वाहा ॐ श्रीं हंसौ हसौः पयः।१०२॥
ॐ श्रीं क्रीं करवालेष्टा ॐ क्रीं कोिर-वावसनी ॥
ॐ क्रीं कािन-भूषाढ्या ॐ क्रीं श्रीं कुरीपयः॥१०३॥
ॐ क्रीं शवश-रूपा च श्रीं सः सूय-भ रूवपणी ।
ॐ श्रीं वामवप्रया स्वाहा ॐ वीं वरुण-पूवजता ॥१०४॥
ॐ वीं विे श्वरी स्वाहा, ॐ वीं वामन-रूवपणी ।
ॐ रं व्रीं श्रीं खेचरी स्वाहा ॐ रं व्रीं श्रीं सार-रूवपणी ॥१०५॥
ॐ रं ब्रीं खड्ग-धावरणी स्वाहा ॐ रं ब्रीं खप्पर-धावरणी ।
ॐ रं ब्रीं खप भर-यात्रा च ॐ प्रीं प्रेतालया तर्था ॥१०६॥
ॐ श्रीं क्लीं प्रीं च दूतािा ु
ॐ प्रीं पष्प-वर्त द्धनी ।
ॐ श्रीं श्रीं सावन्तदा स्वाहा ॐ प्रीं पाताल-चावरणी ॥१०७॥
ॐ म्रीं मूकेश्वरी स्वाहा ॐ श्रीं श्रीं मन्त्र-सागरा ।
ॐ श्रीं क्रीं क्रयदा स्वाहा ॐ क्रीं ववक्रय-कावरणी ॥१०८॥
ॐ क्रीं क्रयाविका स्वाहा ॐ क्रीं श्रीं क्लीं कृ पावती ।
ॐ क्रीं श्रीं ब्रां वववचत्राङ्गी ॐ श्रीं क्लीं वीं ववभावरी ॥१०९॥
ु त्रा ॐ वीं श्रीं वामके श्वरी ।
ॐ वीं श्रीं ववभा-वस-ने
ु स्वाहा
ॐ श्रीं वसप्रदा ॐ श्रीं वैश्रवणार्तचता* ॥११०॥
*वैश्रवणार्तचता = वैश्रवण-अर्तचता(कुबेर-अर्तचता)
ॐ भैं श्रीं भाग्यदा स्वाहा ॐ भैं भैं भगमावलनी ।
ॐ भैं श्रीं भगोदरा स्वाहा ॐ भैं क्लीं वैन्दवेश्वरी ॥१११॥
ॐ भैं श्रीं भव-मध्यस्था ऐ ं क्लीं वत्रपर-स
ु न्दरी
ु ।

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ॐ श्रीं क्रीं भीवत-हत्री च ॐ भैं भूत-भयङ्करी ॥११२॥


ॐ भैं भयप्रदा भैं श्रीं भवगनी भैं भयापहा ।
ु श्वरी ॥११३॥
ॐ ह्रीं श्रीं भोगदा स्वाहा श्रीं क्लीं ह्रीं भवने
॥ फलश्रवु त ॥
इवत श्री-देव-देववे श ! नाम्ा साहस्रकोत्तमः*। *साहस्रक-उत्तमः
मन्त्र-गभं परं रम्यं गोप्यं श्री-दं वशवािकम* ॥११४॥ *वशवा-आिकम, वशवा=पावभती
माङ्गल्यं भद्रद सेव्य ं सवभरोग-क्षयङ-करम ।
सवभ-दावरद्रय-रावशघ्नं सवाभमर-प्रपूवजतम ॥११५॥
रहस्यं सवभ-देवानां रहस्यं सवभ-देवहनाम ।
ु तभु म ॥११६॥ *स्तोत्रवमदं = स्तोत्रम-इदं
वदव्यं स्तोत्रवमदं* नाम्ां सहस्र-मनवभय

परापरं मनमयं परापर-रहस्यकम । *परापर = परा-अपर
इदं नाम्ां सहस्राख्यं स्तवं मन्त्र-मयं परम ॥११७॥
ु र्थे ।
पठनीयं सदा देवव ! शून्यागारे* चतष्प ु
*शून्य-आगारे:सनसान घर
वनशीर्थे च ैव मध्याह्ने वलखेद यत्नेन देवशकः॥११८॥ *यत्नेन = यत्न-एन
गन्ध ैश-च कुसमै
ु श-च ैव कपूरभ ण
े च वावसतःै ।
कस्तूरी-चन्दन ै-देवव ! दूवभया च महेश्वरी ! ॥११९॥
रजस्वलाया* रिे न वलखेन-नाम्ां सहस्रकम । *( रजस्वलाया रिे न ? = Menstrual Blood )

वलवखत्वा धारयेन-मूर्तध्न साधकः शभु -वाञ्छकः ॥१२०॥


यं यं कामयते कामं, तं तं प्राप्नोवत लीलया ।
ु लभते पत्रान
अपत्रो ु धनार्थी लभते धनम ॥१२१॥
कन्यार्थी लभते कन्यां ववद्यार्थी शास्त्र-पारगः।
ु तु ा देवव ! मृत-विा तर्थ ैव च ॥१२२॥
वन्ध्या पत्र-य

परुषो दवक्षणे बाहौ योवषद वामकरे तर्था ।
धृत्वा नाम्ां सहस्रं त ु सवभ-वसवद्ध-भभवदे ध्रवु म ॥१२३॥
नात्र वसद्धाद्यपेक्षाऽवस्त न वा वमत्रावरदूषणम ।
(* नात्र वसद्धाद-य-अपेक्षा-अवस्त न वा वमत्र-अवर-दूषणम । )
सवभ-वसवद्ध-कृ तं च ैतत* सवाभ-अभीष्ट-फलप्रदम ॥१२४॥ *च ैतत = च-ऐतत

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मोहान्धकाराप-हरं महा-मन्त्र-मयं परं ।


इदं नाम्ां सहस्रं त ु पवठत्वा वत्रववधं वदनम ॥१२५॥
रात्रौ वार-त्रयं च ैव तर्था मास-त्रयं वशवे ! ।
बसल दद्याद* यर्था-शक्त्या साधकः वसवद्ध-वाञ्छकः॥१२६॥ *दद्याद = दद-याद
सवभ-वसवद्ध-यतु ो भूत्वा ववचरेद भ ैरवो यर्था।
पिम्यां च नवम्यां च चतदु श्भ यां ववशेषतः॥१२७॥ *(ववशेष वदन = ५/९/१४ )
पवठत्वा साधको दद्याद बसल मन्त्र-ववधान-ववत ।
कमभणा मनसा वाचा साधको भरै वो भवेत ॥१२८॥
अस्य नाम्ां सहस्रस्य* मवहमानं सरेु श्ववर !। * सहस्रस्य = सहस्र-स्य
विं ु न शक्यते देवव ! कल्प-कोवि-शत ैरवप ॥१२९॥
मारी-भये चौर-भये रणे राज-भये तर्था ।
ु े च ैव तर्था काल-भये वशवे ! ॥१३०॥
अविजे वायज
ु र्थे। (* वने-अरण्ये श्मशाने च महा-उत्पाते चतषु -पर्थे ।)
वनेऽरण्ये श्मशाने च महोत्पाते चतष्प
दुर्तभक्षे ग्रह-पीडायां पठे न-नाम्ां सहस्रकम ॥१३१॥
तत सद्यः प्रशमं यावत वहमवद-भास्करोदये ।
एकवारं पठे त पात्रः तस्य शत्रनु भ* जायते ॥१३२॥ *शत्रनु भ = शत्ररु -न
ु द यस्त ु स त ु पूजाफलं लभेत ।
वत्र-वारं सपठे
दशावतं* पठे त यस्त ु देवी-दशभनम-आप्नयात
ु १३३॥ *दशावतं = दश-आवतं (१०-बार)
शतावतं* पठे द यस्त ु स सद्यो भ ैरवोपमः। *शतावतं =१००-बार
इदं रहस्यं परमं तव प्रीत्या मया िॄतम ॥१३४॥
गोपनीयं प्रयत्नेन चेत्याज्ञा* परमेश्ववर ! । *चेत्याज्ञा = च-इत्य-आज्ञा
नाभिे भ्यस्त*ु दातव्यो, गोपनीयं महेश्ववर ॥१३५॥ *नाभिे भ्यस्त ु = न-अभिे भ्य-अस्त ु

ु श्वरी-रहस्ये श्री-भवने
॥इवत श्री-भवने ु श्वरी-मन्त्रगभभ-सहस्रनामकं सम्पूणम
भ ॥

ु श्वरी-मन्त्र-गभभ-सहस्रनाम, श्री-भवने
( यह श्री-भवने ु श्वरी-रहस्य तन्त्र से वलया गया है )
॥ ॐ तित ॥

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(Basic - Information About This Sahastranama )


क्तकसी भी सहस्त्रनाम, कवच र्या स्तोर में मख्ु र्यतः ३-भाग होतें हैं ।
१. पवू भ पीक्तठका
२. मख्ु र्य भाग - ( क्तवक्तनर्योग, ध्र्यान, न्त्र्यास के साथ, मख्ु र्य स्तोर का भाग)
३. िलश्रतु ी

॥ पवू भ पीक्तठका - में कवच, सहस्रनाम को पहली बार कब, कहां क्तकस िेवी-िेवता-र्या ऋक्ति-मनु ी
ने, क्तकस िेवी-िेवता-र्या ऋक्ति-मनु ी से पछ
ु ा, क्तकसने क्तकसको कब बतार्या- र्ये सब बतार्या जाता
है, इसकी जानकारी िी हुई होती है॥ पाठ क्तक क्तवक्तध, कोई क्तवशेि बात, जैसे पाठ का टर्या -टर्या
िल है, इस सहस्त्रनाम, र्या कवच को टर्यों पढ़ना चाक्तहर्ये इत्र्याक्ति-२ ।

जैसे इस श्री-भवु नेश्वरी-मन्त्रगभभ-सहस्रनाम के पूवभ भाग से पता चलता है की, माता (िेवी) के
पछू ने पर भैरव- जी ने उनसे कहा था । इस सहस्त्रनाम के पाठ के क्तलर्ये कुछ ज्र्यािा सोच-क्तवचार
की जरूरत नहीं है । र्यह बहुत ही गप्तु क्तवद्या है , और इसका पाठ ही कािी है । ( श्लोक १२४-
िेख)ें
* नार क्तसद्धाि-र्यपेिा-अक्तस्त न वा क्तमर-अरर-ििू णम ।
सवभ-क्तसक्तद्ध-कृतं चैतत सवाभ-अभीष्ट-िलप्रिम ॥१२४॥

क्तवक्तनर्योगः- में र्यह क्तकस िेवी र्या िेवता का स्तोर, कवच र्या सहस्रनाम है, इसके ऋक्तिः कौन हैं ।
इसका छन्त्ि टर्या है (बोलने का तरीका, सरु , लर्य और ताल), बीज-टर्या है, शक्ति -टर्या है, कौन
सी है । कीलक - टर्या है। और आप क्तकस क्तलर्ये पाठ कर रहें हैं । र्यह सारी जानकारी पाठ करने
वाले को अच्छी तरह से होनी चाक्तहर्ये, क्तक वो क्तकस िेवी र्या िेवता का पाठ कर रहा है, और टर्यों
कर रहा है, इत्र्याक्ति ।
र्यहां इस क्तवक्तनर्योग- में बतार्या गर्या है की,
इस सहस्रनाम के ऋक्तिः-भैरव हैं,
सहस्रनाम का छन्त्िः पक्ततिश है ।
इस स्तोर की िेवी-श्री-भवु नेश्वरी-माता है,
और साधक धमभ-अथभ-काम-मोि-प्राप्त कृपा प्राप्त करने के क्तलर्ये इसका पाठ कर रहा है ।

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र्या जैसी इच्छा हो, साधक वैसे ही शब्िों का चर्यन करें और बोले, इससे आपकी साधना का
िल प्राप्त करने में सहार्यता क्तमलती है ॥ क्तवक्तनर्योग - एक बार की पजू ा मे, एक बार शरुु में पढ़ते
हैं ।
िलश्रतु ी - में इसका पाठ पढ़ने का टर्या-२ िल प्राप्त होता है ।
पाठ कै से करना है । क्तकस क्तिन-पाठ करने का टर्या िल क्तमलता है । क्तकतने-२ पाठ का टर्या-२
िल है ।
इस स्तोर के पाठ का कोई क्तवशेि क्तिन है तो वह भी, इसमें क्तिर्या हुआ होता है ।
िेव-र्या िेवी को भोग में टर्या-टर्या िेना चाक्तहर्ये, उन्त्हे टर्या-पसंि है, इत्र्याक्ति-२ जानकारी होती है,
आप बार-बार िलश्रतु ी को ध्र्यान से िेखगें े तो उस स्तोर, कवच र्या सहस्रनाम की बहुत सी गप्तु
जानकारी आपको क्तमलेगी । इस ज्ञान से भक्ति और क्तवश्वास मजबतू होती है ।

हमें जब एक बार से ज्र्यािा पाठ करना है तो स्तोर, सहस्रनाम, र्या कवच का एक बार परू ा पाठ
करते हैं, और अतं में एक बार क्तिर परू ा पाठ करते हैं । बीच में बार -बार मख्ु र्य स्तोर, सहस्रनाम,
र्या कवच का पाठ करतें है

उिाहरण के क्तलर्ये - अगर हमने ७ र्या ११ र्या २१-पाठ प्रक्ततक्तिन पढ़ने का संकल्प क्तलर्या है तो,
प्रथम बार परू ा सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे,
क्तिर बीच में ५ र्या ९-र्या-१९-बार के वल मख्ु र्य सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे,
अंत में क्तिर एक बार परू ा सहस्रनाम, कवच पाठ करें गे ।
तो कुल ७ -र्या-११ र्या २१- पाठ हो जार्येगा । ऐसा ही आप अपनी संकक्तल्पत संख्र्या में करें और
समझें ।
बहुत बार पवू भ भाग र्या िलश्रतु ी उप्लब्ध नहीं होता है , तो कोई बात नहीं ।
र्या अगर र्यह िोनो भाग बहुत लंबा-चौरा है तो लोग समर्य की कमी से इसे छोड़ िेते हैं । पर जब
भी समर्य हो, क्तवशेि क्तिनों मे, कभी-२ जरूर पढ़ए,ं ।

। नोट: र्यह एक साधारण सा क्तनर्यम और ज्ञान है, र्यह एक िामभल ू े की तरह, हर स्तोर, कवच र्या
सहस्रनाम पर, उसके अपने पवू भ पीक्तठका, क्तवक्तनर्योग, ध्र्यान, िेवता, पाठ और िलश्रतु ी के साथ,
इसी तरह से लागू लागू होगा ।

आप गरुु , गणेश, क्तशव जी का सक्तं िप्त पजू ा क्तकसी भी पजू ा के पहले कर सकते हैं।

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