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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
- ःखम्, ावय त इ त ः। त्- ानम्, इ रा त-ददा त इ त ः। रोदय त
पा पनः इ त वा ः। । त व ने इस कार श दक ा या क है
अथात् भगवान् ःखनाशक, पापनाशक एवं ानदाता ह। सू म
भगवान् के व वध व प व णत ह,यथा- गरीश, अ धव ा, सुम ल,
नील ीव, सह ा , कपद , मीढु म, हर यबा , सेनानी, ह रके श, अ प त,
जग प त, े प त, वनप त, वृ प त, औषधीप त, स वप त, तेनप त,
ग रचर, सभाप त, प त, गणप त, ातप त, व प, व प, भव, शव,
श तक ठ, शतध वा, व, वामन, बृहत्, वृ , ये , क न , ो य,
आशुषेण, आशुरथ, कवची, ुतसेन, सुध वा, सोम, उ , भीम, श ु, शंकर,
शव, ती य, य, नीललो हत, पनाकधारी, सह बा तथा ईशान इ या द।
इन व वध व प ारा भगवान् क अनेक वधता एवं अनेक लीला का
दशन होता है। दे वताको ावर-जंगम सवपदाथ प, सववण, सवजा त,
मनु य-दे व-पशु-वन त प मान करके सवा मभाव- सवा तया म वभाव
स कया गया है। इस भावसे ात होकर साधक अ ै त न जीव मु
बनता है।
ष ा यायको 'मह र' के पम जाना जाता है। थम म म सोमदे वताका
वणन है। सु स महामृ यु यम इसी अ यायम सं न व है-
ॐ य बकं यजामहे सुग पु वधनम्।
उवा क मव ब ना मृ योमु ीय मामृतात्।
य बकं यजामहे सुग प तवेदनम्।
उवा क मव ब ना दतो मु ीय मामुतः॥
तुत म म भगवान् य बक शवजीसे ाथना है क जस कार ककड़ीका
प रप व फल वृ तसे मु हो जाता है, उसी कार हम आप ज म-मरणके
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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ब नसे मु कर, हम आपका यजन करते ह।
स तमा यायको 'जटा' कहा जाता है। 'उ भीम 'म म म त् दे वताका
वणन है। इस अ यायके 'लोम यः वाहा' से 'यमाय वाहा' तकके म कई
व ान् अ भषेकम हण करते ह और कई व ान् इनको अ वीकार करते ह,
य क अ ये -सं कारम चताहोमम इन म से आ तयाँ द जाती ह।
अ मा यायको 'चमका याय' कहा जाता है, इसम कु ल २९ म ह। येक
म म 'च' कार एवं 'मे' का बा य होनेसे कदा चत् चमका याय अ भधान
रखा गया है। चमका यायके ऋ ष 'दे व' वयं ह। दे वता अ न ह, अतः यह
अ याय अ नदै व य या य दै व य मानाजाता है। येक म के अ तम 'य ने
क प ताम्' यह पद आता है।
य एवं य के साधन प जन- जन व तु क आव यकता हो, वे सभी
य के फलसे ा त होती ह। ये व तुएँ य ाथ, जनसेवाथ एवं परोपकाराथ
उपयु ह , ऐसी शुभभावना यहाँ न हत है।
ा ा यायीके उपसंहारम 'ऋचं वाचं प 'े इ या द चतु वश त म
शा या यायके पम एवं ' व त न इ ो' इ या द ादश म व त-
ाथनाके पम यात ह। शा या यायम व वध दे व से अनेकशः शा तक
ाथना क गयी है। म ताभरी से दे खनेक बात।बड़ी उदा एवं भ है-
ॐ ते ह मा म य मा च षु ा सवा ण भूता न समी ताम्।
म याहं च ुषा सवा ण भूता न समी ।े म य च षु ा समी ामहे॥
साधक भु ी यथ एवं सेवाथ अपनेको व बनाना चाहता है। वक य
द घजीवन आन द एवं शा तपूण तीत हो, ऐसी आकाङ् ा रखता है—
‘प येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतः शृणुयाम शरदः शतं वाम शरदः
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शतम्।
व त- ाथनाके न न म म दे व का साम य सुचा पम व णत है। 'एकं
सद् व ा ब धा वद त', यह उप नषद्-वा य यहाँ च रताथ होता है-
ॐ अ नदवता वातो दे वता सूय दे वता च मा
दे वता वसवो दे वता ा दे वता ऽऽ द या दे वता म तो दे वता
व े दे वा दे वता बृह तदवते ो दे वता व णो दे वता॥
इस कार शु लयजुवद य ा ा यायीम भगवान् का माहा य व वधता-
वशदतासे स ण
ू तया आ ा दत है
सशेष..........
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