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आचाय शंकर ने अपने द वजय के म म आकाश माग से उतर कर जब
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उस नगरी अथात म ह म त नगरी क शोभा को दे खा । तो अ त व मत ए
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। उस नगरी क बड़ी बड़ी अ ा लकाएँ व वध र न से सुस त होकर
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चमक रही थ । और दशक क आँख को बबस चकाच ध कर रही थ ।
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आचाय शंकर आकाश से उतरते ऐसे तीत ए थे । मानो भगवान व णु के
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अवतार परशुराम कातवीय को परा जत करने के लये उतरे ह । नमदा का
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शीतल जल तथा सुग त कमल के सौरभ से प रपूण वायु आचाय शंकर
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क थकावट र करने लगी । आचाय ने वहाँ नद तट पर शव म दर म
थोड़ा व ाम कर न य कृ य समा त कया । तद तर म या के समय म डन
म के घर क ओर चल पड़े । माग म म डन म क दा सयाँ, जो पर र
सं कृ त म वातालाप करती ई नद से जल लेने जा रही थ । उनसे आचाय
शंकर ने पूछा - म डन म का घर कहाँ है ?
आचाय शंकर का दशन कर दा सयाँ भी वभोर हो ग और स वनय उ र
दया -
वतः माण परतः माण क रा ना य गरं गर त ।
ार नीडा तरस री ा जानी ह त म डनप डतौकः ।
फल दं कम फल दोऽजः क रा ना य गरं गर त ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
ार नीडा तरस री ा जानी ह त म डनप डतौकः ।
जगद् ुवं या गद ुवं यात् क रा ना य गरं गर त ।
ार नीडा तरस ा जानी ह त म डनप डतौकः ।
अथात - जस ार पर टं गे पजर के भीतर बैठ मैनाएँ वेद अथात ु त वतः
माण है । अथवा परतः माण । कम का शुभाशुभ फल कम दे ता है ।
अथवा ई र । जगत ुव है । अथवा अ ुव ? इस बात पर वचार कर रही हो
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। उसे आप म डन म प डत का घर जा नये ।
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दा सय से इस कार वचन सुन आचाय शंकर म डन के घर गये । पर तु उस
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समय घर का ार ब द था । माग म दशक लोग उस अ प वय क य तवर का
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दशन कर मु ध होने लगे । तथा उनके मुख म डल से कसी वशेष अवतारी
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य तtपादप ा यवनेजय तम ।
पु ष क अलौ ककता का अनुभव करने लगे ।
यथा व ध ा वधौ नम s
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तपोम ह नैवतपो नधानं स जै म न स यवतीतनू जम।
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aउस समय म डन म ा कर रहे थे । तथा अपने तपोवल से मह ष ास,
जै म न दोन मु नय को इस ा व ध म आम त कर उनके पाद प
का अचन आ द कर रहे थे ।
त ा त र ादवतीय यो गवयः समाग य यथाहमेषः ।
ै पायनं जै म नम युभा यां ता यां सहष तन दतोऽभूत ।
यो गराज आचाय शंकर ने आकाश माग से आँगन म उतर कर दोन मु नय
का अ भन दन कया । उन दोन मु न े ने भी उनका सहष अ भन दन
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
कया । म डन म वयं कमका ड के बड़े र सक थे । उस समय आकाश
माग से उतरे ए तथा दोन मु नय के साथ शखा सू र हत जब स यासी
को दे खा । तो उनके ोध का ठकाना न रहा । य क कु छ व ान लोग
ा के अवसर पर सं यासी का आना न ष मानते ह । जब क यह शा
व है । आचाय सव शंकर उनक यह अव ा दे ख व मत हो गये ।
म डन म ने ोध भरी से य त शंकर क ओर दे खते ए कहा -
कु तोमु ड ागला मु डी प ा ते पृ ते मया ।
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कमाह प ा व माता मु डे याह तथैव ह ।
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- कु तो मु डी ? ( हे मु डी ! कहाँ से आये ? ) यहाँ मु डी श द सं यासी के
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त अनादर सूचक स बोधन है ।
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इस वा य सरा अथ यह भी हो सकता है क कहाँ से मु डत हो ? आचाय
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शंकर ने सरे अथ को मन म रखकर कहा - आगलात मु डी अथात गले तक
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मु डन है ।
aप sा ते पृ यते मया
अरे ! म मु डन के वषय म नह पूछता । क तु -
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म डन म आचाय से कहते ह - म आपके माग के वषय म पूछता ँ क
आप आये कहाँ से ?
तब आचाय शंकर ने मु कु राते ए कहा - कमाह प ाः ? माग से पूछे जाने
पर उसने या उ र दया ?
म डन म ने चढ़कर व माता मु डा (माग ने मुझे उ र दया क तु हारी
माता मु डा है ।)
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
आचाय शंकर वामी कहते ह - ब त ठ क, इ याह तथैव ह (तुमने ही माग
से पूछा है । इस लए वह उ र भी तु हारे लए ही होगा । अथात तु हारी माता
मु डा सं यासनी है । हमारी माता नह ।)
आचाय के वचन को सुनकर म डन म ने कहा -
अहो पीता कमु सुरा नैव ेता यतः मर ।
क वं जाना स त णमहंवण भवान रसम् ।
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या तुमने सुरा अथात म दरा पी है ? म दरा पीने वाला ही इस कार क बात
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करते ह । पीता श द का सरा अथ पीला रंग भी होता है । उसको मन म
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म डन म कहते है - वाह ! तुम तो उसके रंग को भी जानते हो !
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को जानताvँ ।sa
- ही जानता ँ । ले कन आप
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तो उसके रस को भी जानते ह । अतः रां न पवेत सुरा म दरा मत पयो
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aआचाय पर चढ़ते ए ोध म आकर म डन म कहते ह
इस न ष वा य से आप पाप के भागी ह । म नह । य क म के वल रंग
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क ां वह स बु े गदभेना प वहाम ।
शखाय ोपवीता यां क ते भारो भ व य त ।
हे बु े ! जब तुम गदहे ारा भी न ढोने यो य क ा ढो रहे हो । तो शखा
और य ोपवीत जनेऊ म कतना भार है । जो तुमने उनको याग दया है ।
आचाय शंकर कहते ह -
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
क ां वहा म बु े तव प ा प भराम ।
शखाय ोपवीता यामं ुतेभारो भ व य त ।
शखां य ोपवीतं चे येत सव भूः वाहे य सु प र य या मानम व त ।
ाणसंघारणाथ यथो काले वमु ो भै माचर मुदरपा ण े । जाबाल 6
हे बु े ! तु हारे पता तो गृह थे । अतः उनके ारा भी ढोने के अयो य
क ा को तो म अव य ढो रहा ँ । पर तु शखा और य ोपवीत तो ु त के
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लए महान भार होगा । य क यह ु त सं यासी होने पर शखा और सू के
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याग का वधान करती है ।
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क च - परी य लोका कम च ा ा णो नवदमायात ( कम से स ा दत
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लोक - फल का परी ण कर अथात अ न य अनुभव कर ा ण वैरा य को
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ा त हो )
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यदहरेव वरजेतदहरेव जेत । जाबाल ख ड 4 ( जस दन वैरा य हो ।
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उस दन सं यास हण करे )
चाया ा गृहा ा वना ा ( चया म से गृह ा म से अथवा
वान ा म से सं यास हण करे )
न कमणा न जया धनेन यागैनैके अमृत वमानशुः । महा नारायण
उप नषद 10/5 ( 1 शाखा वाले ऐसा कहते ह - न कम से । न जा से । न
धन से अमृत व ा त होता है । क तु याग से ही ा त होता है )
अथ प र ाड् ववणवासा मु डोऽप र हः । जाबाल 5 आ द ु त वा य म
ान के लए सं यास हण करने का नदश है । य द शखा सू
का व धवत प र याग कर सं यास हण न कया जायगा । तो उ ु त का
नवाह नह हो सके गा । अतः शखा सू ु त के लए भारभूत है । ु त को
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
भार से मु करने के लए सं यास हण करना बु मता है । बु तो तुम
हो । जो ऐसा नह कया है ।
शंकर के वचन को सुन म डन म कहते ह - तुमने य न से गाहप य,
आहवनीय, द णा न इन तीन ौत अ नय को अपने घर से हटा दया है ।
सं यास हण के कारण । अतः तुमको इ ह या पाप लगेगा । वीरहा वा एष
दे वानां योऽ नीनु ासय त, अ नय को र हटा दे ने वाला इ आद
दे व क ह या करने वाला होता है ।
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आचाय शंकर म डन को ललकारते ए कहते ह - त व को न जानने
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वाला आ मह या को ा त होता है । अस ेव स भव यसद् े त चे े द,
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असत है । नह है । य द ऐसा जानता है । तो वह असत ही हो जाता है ।
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असूया नाम ते लोका अ ने तमसाऽवृताः ।
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म डन कोvs
ताँ ते े या भग त ये के चाऽ महनो जनाः । ईशावा योप नषद
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योs कv
aह । जो घोरआ मअह ानयारेअंलोगधकारह से। अथात
ु त माण दे ते ए कहते ह वे लोक असूय कहे जाते ह ।
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आवृ ह । उन लोक को मरकर वे ही ा त
अपने आ म व प को नह जानते ।
मृ तय म भी इसी अथ को कहा गया है -
अ यथा स तमा मानं योऽ यथा तप ते ।
क ते न कृ तं पापं चौरेणाऽ मापहा रणा ।
अथात - सत् चत् आन द व प आ मा को जो असत जड़ ःख प
समझता है । उस आ म अपहरण करने वाले चोर ने कौन सा पाप नह कया
।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
म डन ने आचाय पर ोध करते ए कहा - हमारे घर के ारपाल को वं चत
कर चोर क तरह तुम कै से घुस आये ?
म डन को आचाय ने कहा - अरे ! भ ु को बना दये चोर क तरह तुम
अ कै से खा रहे हो ?
इ ा भोगा ह वो दे वा दा य ते य भा वताः ।
तैद ान दायै यो यो भुङ्कते तेन एव सः । भगवदगीता 3/11
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यत चारी च प वा वा म भौ ।
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चा ायण त करे ।
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aयहsक लयुग । वाद अ भोजन क इ ा से तुमने यह यो गय का वेष
वा भ कामेण वेदोऽयं यो गनां धृतः ।
म डन कहते है कहाँ वह
- । कहाँ वह बु । कहाँ वह सं यास । कहाँ
धारण कया है ।
शंकर कहते ह -
व वगः व राचारः वा नहो ं व वा क लः ।
म ये मैथनु कामेन वेषोऽयं क मणां घृतः ।
कहाँ वग । और कहाँ राचार । कहाँ अ नहो । और कहाँ क लयुग । मैथनु
क इ ा से ही तुमने यह क मय का वेष धारण कया है ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
म डन कहते ह -
अ ाल बं गवाल बं सं यासं पलपैतक
ृ म।
दे वरा सुतो प प च कलौ वजयेत ।
अथात - अ ाल ब, गवाल ब, सं यास, ा म पतर को मांस प ड, दे वर
से पु क उ प । ये क लयुग म व जत ह ।
आचाय शंकर ने पराशर मृ त का माण दे ते ए कहा - जब तक वण वभाग
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है । जब तक वेदो का चार है । तब तक क लयुग म सं यास और अ नहो
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का वधान है ।
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याव ण वभागोऽ त याव े दः वतते ।
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aक षकोऽ स पापेन षतो जायते नरः ।
चदा भ न ।
कमभा योऽ य यचार सतोऽभा यउ यते ।
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अ यागतोऽसौ वयमेव व णु र येव म वाऽशु न म य वम ।
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। इस कार े बु मान म अ णीय आचाय ासgने व ध को जानने
इ या वं ा व ध तीतं सु य णीः सा व शष मु न तम ।
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यह अ त थ वयं व णु भगवान ह । ऐसा जानकर तुम इ ह शी नम ण दो
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का आचमन आsदa
वाले उन स प डत म डन म को श ा द ।
महsषv शंकv
aआचाय शंकर बोले हे सौ य मुझे साधारण अ क भ ा म कोई आदर
ास मु न क श ा के अन तर प डत म डन भी शा त मना होकर जल
करके ास मु न क आ ा अनुसार शा वत् म डन ने
र क पूजा कर भ ा के लये नम ण दया ।
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नह है । म ववाद प भ ा लेने क इ ा से आपके पास आया ँ । पर तु
शत यह है क पर र श य प से भ ा दे नी वीकार करनी चा हए ।
अथात जो परा जत होगा । वह सरे का श य बन जायेगा ।
शंकर भगव पाद कहते है -
मम न क चद प ुवमी सतं ु त शरः पथ व तू तम तरा ।
अव हतेन मखे ववधी रतः स भवता भवताप हम ु तः ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
वेदा त माग के व तार के बना मुझे कोई भी न त इ नह है । संसार
पी ताप को शा त करने के लये च मा के समान है । वेदा त क म हमा
अलौ कक है । पर तु मुझे इस बात का खेद है क य आ द म नरत होकर
आपने इसक अवहेलना क है । अब म सभी वा दय को जीतकर इस
वेदा त माग का व तार क ँ गा । अतः तुम भी मेरे इस उ म मत को वीकार
कर लो । अथवा मुझसे ववाद करो । या कहो क म तुमसे परा जत आ ँ ।
य तराज शंकर का यह सारग भत वचन सुनकर इस नवीन पराभव से
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व मत हो महा यश वी म डन म अपने गौरव म त होकर बोले -
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अ प सह मुखे फ णनामके न व जत व त जातु फण ययम ।
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जाय । तो भी म यह
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ु त स मत कम का ड को
उपsv
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छोड़कर क पत ास मत अथवा ? तु हारा मत कभी मान सकता ँ मेरे
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नयम है क वाद और तवाद एक सरे के व प का हण करते ह ।
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और एक सरे पर वजय ा त करने का य न करते ह । अतः आप बतलाइये
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क हम दोन क त ाय या ह गी ? कौन सा माण आपको वीकृ त है ।
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इस वषय म आपका या अ भ ाय है ? हम दोन का म य भी न णत
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होना चा हये । और यह ववाद कल से आर हो । य क आज म या
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कृ य पूण करने ह ।
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aवधायs भाया व ष सद यां व धयतां वादकथा सु ध
इस पर शंकर वामी ने मु कु राते ए ववाद क वीकृ त दे द और ास
और जै म न को म य होने क ाथना क ।
।
इ ं सर व यवतारता ौ त मप या तमभा षषाताम ।
तब दोन मु नय ास और जै म न ने कहा - हे व त शरोम ण ! म डन क
व षी भाया उभय भारती को म य वीकार कर आप लोग शा ाथ कर ।
वह सा ात सर वती का अवतार है । वह शा ाथ का नणय उ चत री त से
करेगी । म डन म ने इस बात का अनुमोदन कया और कृ त काय म लग
गये ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
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ातःकालीन कृ य से नवृ होकर शंकर वामी श य के साथ म डन म
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के घर सभा म डप म पधारे । शंकर और म डन दोन ही महा प डत थे ।
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सम दे श म दोन क या त ा त थी । दोन के शा वषयक चचा सुनकर
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ब त प डत तथा व गण अ धक सं या म आकर उप त ए ।
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प डतवर म डन म के वशाल भवन म शा ाथ का आयोजन कया गया
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। ब त से व ान तथा प डत लोग उ साह के साथ शा ाथ सभा म डप म
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प या v
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ोता के प म उप त ए । आचाय शंकर और म डन म के आ ह से
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
आचाय शंकर क त ा
ै ैकं परमाथस दमलं व प चा मना
शु यपरा मनेव बहला ानावृतं भासते ।
त ाना खल प च नलया वा म व ापर
नवाणं ज नमु म युपगतं मानं ुतमे तकम ।
शंकर ने त ा कया - सत् चत् नमल तथा परमाथ है । जैसे म या
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ान से सीप रजत प म भासती है । वैसे ही सत, चद आन द व प
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म या अना द अ ान से इस यमान प च प से भा सत होता है । जब
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इसे त वम स, अहं ा म आ द उप नषद वा य ारा जीव ै य ान
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उ प होता है । तब अना द कारण म या ान स हत यह सम त प च
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नवृ हो जाता है । और यह अपने असली च मय व प म त त हो
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ज म मरण से र हत होकर मु हो जाता है । यही हमारा स ांत है । इसम
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उप नषद माण है । म फर अपने इस कथन को हराता ँ । जीव ै य
{ जीव 1 है } मेरा वषय है । उसम उप नषद वा य माण ह ।
एकमेवा तीयं { छा दो य 6/2/1 } स यं ानमन तं { तैतरेय
2/1/1 } सव ख वदं { छा दो य 3/14/1 } व ानमान दं
{ बृहदार यक 3/9/28 } वद् ैव भव त । वदा ो त परम ।
वाचार णं वकारो नामधेयं मृ तके येव स यम । त को मोहः कः शोकः
एका मनुप यतः इ या द ु तयाँ माण ह ।
आचाय आगे कहते ह -
बाढं जये य द पराजयभागहं यां
सं यासम प र य कषायचैलम ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
शु लं वसीय वसनं यभारतीयं
वादे जयाजयफल तद पका तु ।
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। य त े शंकर के ारा इस कार अपनी उदार { जीव ै य } त ा
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कये जाने पर गृह े व प म डन म ने भी अपने मत क
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त ापक त ा क ।
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म डन म क त ा-
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पूव भागः माणं पदचयग मते कायव तु यशेषे ।
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कु व ेवेह कमा ण ज ज वषे त समाः { ईश }
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कम करते ए 100 वष जीने क इ ा करे । इस कार ु त आ द माण
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के आधार पर यह स होता है क वेद म का कम म ता पय है । म
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नह । म डन कहते ह -
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जाना त चे सा भ वता बधूम ।
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अथात् जसके भी क ठ क माला जब म लन हो जायेगी । तब उसी का
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न त पराजय समझा जायगा । गृह काय म संल न उभय भारती ने ऐसा
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कहकर घर चली गई । य क अपने प त के लए भोजन और सं यासी के
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लए भ ा तैयार करनी थी ।
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एक सरे पर वजया मक फल म आदर रखने वाले दोन ने ववाद के नणय
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के लए वाद का व तार कया । अथात दोन ववाद म लगे रहे । इस
शा ाथ क इतनी स हो गई क ा आ द े दे वता लोग भी अपने
अपने वाहन पर बैठकर सुनने के लए उसी सदन के ऊपर त ए । ा
आ द दे वता क उप त के अन तर दोन म महान शा ाथ आर आ
। बीच बीच म स य लोग उ ह साधुवाद दे कर उ साह बढ़ाने लगे । अपने प
के लए दोन ने सम त वेद क सा ी माण माना । दोन पर र स होते
रहे । दन त दन शा ाथ उ कृ तथा गंभीर होने लगा । इसके सुनने के
लए र र क प डत म डली जुटने लगी । एक सरे को परा जत करने के
लए पूरा य न कर रहे थे । ले कन इस शा ाथ म ाधनीय बात यह थी
क दोन वाद तवाद बड़े ेम भाव से साधु श द का योग कर रहे थे ।
कभी ला त मन नह होते । न उनक वाणी तथा वरा द म श थलता तीत
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
होती । धारावा हक ो र क झड़ी चल रही थी । म य उभय भारती
त दन म या काल म आकर अपने प त को कहती क भोजन का समय
हो गया है । और य त शंकर को कहती - भ ा का समय हो गया है । इसी
कार 5-6 दन बीत गये । शा ाथ म दोन के मुख म डल वक सत थे ।
तथा होठ पर मधुर म द म द मु कान थी । न शरीर म पसीना होता । न क
होता । न वे आकाश क ओर दे खते । अ पतु सावधान मन एक सरे के
का उ र बड़ी ग भता से दे ते । न वे न र होने पर ोध से बा छल का
योग करते थे । अन तर य तराज ने वल ण म डन म के शा कौशल
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को दे खकर उनके सब प का ख डन कर दया और व ान के सम उ ह
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तभाहीन बना डाला । अथात् शंकर ने म डन म को इस बात पर
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न र कर दया क वेदा त वा य भी कम तपादक वा य के समान याग
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आ द या को कहते ह । को नह ।
आचाय ने ु त माण से यह t सh
म नह । इस कार स nय मs े म डन म जब अपने स ा त के समथन
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कर दया वेदा त म माण है कम
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a हो गये । तब वेदा त वा य से स अ ैत स ा त के ख डन
करने म असमथ हो गये । तब वेदा त वा य से स अ ै त अ स करने
म असमथ
करने क इ ा से म डन म बोले -
भो भो य त मा धपते भव ज वेशयोवा तवमैक यम ।
वशु म यते ह त माणमेव न वयं तीमः ।
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येक ाणी चाहता है । वही पु षाथ है । सुख के साधन भूत याग आ द
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उपादे य ह । और ःख के साधन भूत हसा सुरापान आ द हेय ह । इसी म
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ु त का ता पय है । पर तु हेयोपादे य र हत के तपादन म पु षाथ का
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अभाव होने से उप नषद का माण न फल है ।
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{ 6/8/7 }
हे ेतके तु ! त वम स तू अथात तेरा आ मा त व है । तेरा शरीर त व व तु
नह । जैसे जल म डाला गया लवण अथात नमक घुल जाने से गोचर
नह होता । वैसे ही सव ा त होने पर भी गोचर नह होता । न
च षु ा गृ ते प र हत होने से वह च ु से गृहीत नह होता । या व य
कहते ह - अभयं वै जनक ा तोऽ स तदाऽऽ मानमेवावेदहं ा म
त मात सवमभवत ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
हे जनक ! न य है । तू अभय पद को ा त आ है । म ँ । ऐसा अपने
को जान । ऐसा जानने से वह सब आ। वद ैव भव त
वे ा ही होता है । त को मोहः कः शोक एक वमनुप यतः एक व दे खने
वाले को मोह कहाँ । और शोक कहाँ ? इ या द ु त माण, यु और
उदाहरण से जीव क एकता स होती है । ा मभाव स व तु
होने पर भी त वम स अहं ा म इ या द ु त अ त र माण से
अनवगत होने के कारण घटा द के समान य ा द माण का वषय नह है
।
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यथा न च षु ा गृ ते { मु डक 3/1/8 } वह आँख से नह दे खा जा सकता ।
g m
यतो वाचो नवत तेऽ ा य मनसा सह { तै रीय 3/4/1 } अतः य ा द
n @
माण के अ वषय अन धगत अथ को अवगत कराने वाले वेदा त यग
h
ा म भावtअवगतa
भ म ही माण है ।
नवृ और परमान द n क s
s a
हेयोपादे य र हत होने से ा म भाव अपु षाथ भी नह है । य क
v v
aसमानs जानना । जैसे क ठ भूषण एवं हेय भी कार का है थम
हेयोपादे य र हत होने से ही सब ःख क अ य त
ा त प पु षाथ स ही है । उपादे य कार
2
का है यथा
- ा त ाम आ द । सरा ा त होने पर भी मवश अ ा त के
2 -
यथा अहीन ावहा रक सपा द । सरा हीन । जैसे पैर के नुपुर आ द भूषण
म सप का म । ा म भाव म थम कार का हेयोपादे य तो य प नह है
। तो भी अ व ा से समारो पत शोक आ द त वम स आ द वेदा त वा य से
उ प त व ान से आ म सा ा कार होने पर नवृ हो जाते ह । और ा त
भी आन द अ ा त इव ा त होता है । य शोका द अ य के समान य
होते ह । अथात न य नवृ शोक आ द क नवृ । और न य ा त
परमान द क ा त पु षाथ है । व प म डन म कहते ह -
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
वेदावसानेषु ह त वमा दवचां स जसा यघमषणा न ।
फ
ं मुखानीव वचां स यो ग ैषां वव ाऽ त कु ह वदथ ।
अथात जैसे वेद म ,ँ फट् आ द मु य वा य जप पाठ करने से पाप नाशक
होते ह । वैसे ही वेदा त म त वम स आ द वा य जप करने से पाप नवतक
होते ह । अतः हे यो गन् ! इन त वम स आ द वा य क जप आ द से
अ त र कसी अथ म वव ा नह है ।
. c
भा यकार सव शंकरदे शक कहते ह - कसी अथ के तीत न होने पर
a i l
व ान ने ,ँ फट आ द को जपोपयोगी कहा है । पर तु हे ा ! यहाँ
gm
त वम स के वषय म तो अथ तीत होता है । तो वह जपाथक कै से
n @
होगा ?
s t ha
म डन म कहते ह - हे य तवर ! कसी अंश म आपका यह कथन ा है ।
sa n
पर तु त वम स वा य से जीव ई र का अभेद आपतपः { वना वचार कये }
as vv
तीत होता है । व तुतः वह य ा द कम के कता क शंसा के ारा व ध
का अंग ही है । अभेद बोध से तो के वल जीवा मा क न यता कट करता है
। य क आ मा को न य समझने पर पु ष य ा द कम से वू होता है ।
अ यथा नह । अतः वेद का ान का ड कम का ड के स व तु के
लए नह ।
a i l . c
का उपदे श दे ते ह । अथात् इनक प से उपासना करनी चा हए । इस
m
कार उपासना यु कम का फल अ धक होता है । जैसे ये उपासना के
v
नहvहै । क तु अ स यावाचक पद वतमान काल का बोध कराता है ।
उनम उपासीत उपासना करे इस
{ }
भीs
aइस लये उपासना को नह कहता । जससे व ध का अंग हो ।
क पद ह । जससे इन वा य को व ध का
। पर तु त वम स वा य म ल आ द सूचक कोई पद
. c
उसके व प को बतलाते ए उपयु होते ह । और क उपासना से
a i l
शा से ात और लोक से अ ात मो प फल होगा ।
gm
य द कत व ध म अनु वेश कये वना व तु मा का कथन हो और
a n @
हानोपदान र हत हो । तो इससे स त पा वसुम त राजऽसौ ग त { पृ वी
s t h
7 प वाली है । यह राजा जाता है } इ या द वा य के समान वेदा त वा य
a n
भी अनथक ही ह गे । क च वेदा त वा य वृ नवृ के बोधक न होने
v v s
के कारण शा भी नह हो सकते । य क वृ नवृ परक ही शा
l . c
अ न य हो जायेगी । य क य यं तद न यं { जो भाव पदाथ उ प होता
a i
है । वह अव य न होता है } यह नयम है । उपासना भी मान सक या है ।
gm
इसका करना । न करना । व अ यथा करना । के अधीन है । सम त
n @
कम क यही दशा है । पर तु ानं व तुत ं न पु ष त म ान के
t ha
अधीन नह है । युत व तु के अधीन है । उसम जानना । न जानना ।
a n s
अ यथा जानना । मनु य के अधीन नह है । जैसी व तु होगी । वैसा ही ान
आ मा वा v s
होगा । अ यथा नह । यथा अ न उ ण है । उसको शीतल नह कहा जाता ।
v
aसे sकु ठत हो जाते ह । और ये व धयाँ नह ह । क तु व ध के स श ह ।
इ या द उदाहण ह । इस लए ान कम के अ तगत नह है ।
अरे ः इ या द ूयमाण ल आ द अ नयो य वषयक होने
. c
उपासना परक नह है । तो न सही । पर तु हे व न ! ये वा य एकता परक
g m
स श है ।
होता है । ऐसी ु त भी है । जब भ a वn
@
{ 3/1/3 }
तो उसका यह अ भ ाय s होताth
n
ानाव ा म वह व ान पु य पाप र हत हो नर न परम सा य को ा त
s a
यहvपु ष सह के समान परा मी तथा नभय है । आ द यो यूपः
तु का अभेद बताया जाता है ।
य कv
aअथातs आ द य के स श यूप य त है ।
है क यह उसके स श है । जैसे सहो
माणवकः यह माणवक नाम वाला सह है । अथात सह के स श है ।
a i l . c
gm
म डन कहते ह - हे मु नवर ! जीव भी परमा मा के समान न य है । तथा
a n @
आन द आ द गुण का नधान है । ये गुण आ मा म सदा रहते ह । पर तु
क जीव म परमाaमा n
क समानता कह । तो इसम कोई दोष नह है ।
अव v ा के v
s
s मानने से आपको आ ह य है आपने यह वयं वीकार कया है
a। इसके
- ! !
के स श गुण ह । पर तु वे अ व ा से आवृ ह ।
नवृ ए । वे तीत होने लगते ह । तो फर जीव व तुतः है
?
क जीव अ व ा से आवृ होने के कारण अपने को नह समझता । जब
अ व ा क नवृ हो जाती है । तब वह अपने को सचमुच समझने
लगता है ।
व प म डन कहते ह - अ ा तो इसका यह अ भ ाय आ क चेतन
होने से जीव के तु य है । इस कथन से यह स होगा क यह संसार
चैत य से उ प आ है । ऐसा मानने से अचेतन परमाणु अथवा कृ त से
जगत क उ प मानने वाले वैशे षक तथा सां य का ख डन वतः स
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
हो जाता है ।
आचाय भगव पाद कहते ह - वाह ! वाह ! आपने खूब कही । ऐसी दशा म तो
त वम स के ान पर त वम त वा य होना चा हये । तत { जगत का कारण
- ई र } वम् { जीव } अ त { है } वह तू है । ऐसा योग होगा । तब तो
त वम स म अ स का योग आपके मत से ठ क नह है । आप इस तत पद से
इस जगत के मूल कारण जड़ न होने क स करते ह । वह तो तदै त
{ उसने ई ण कया } इ या द उप नषद वा य से थम ही स है । और
l . c
जड़ व क शंका नवृ हो जाती है । तो पुनः धान नरास वषयक शंका
a i
नह करना चा हये ।
gm
@
{ नोट - तदै त यह वचारणीय है क जगत का मूल त व जड़ है । अथवा
a n
चेतन ? नैया यक और वैशे षक जड़ परमाणु से जगत क उ प मानते ह
h
तदै त ब या जायते sछाtदो य
। सां य मत म जड़ धान सृ का कृ कारण है । पर तु वेदा त चेतन
कया क म बsतa
n
को जगत का मूल कारण मानता है । यथा -
s v v
a आ द माण से अभेद का वरोध
{ { उसने ई ण अथात संक प
6/2/3 }
- होऊँ }
य -
म डन म कहते ह - जीव क एकता कथम प स नह हो सकती ।
य क यह एकता य अनुमान तथा ु त इन 3 माण से वा धत है ।
इनम से थम प येक का यह स अनुभव है क म ई र नह
ँ । क तु म अ प जीव उसका दास ँ । यह य माण जीव क
एकता का वरोधी है । इस लये वा यायऽ येत ः इस व ध वा य से
आ त त वम स आ द वचन के वल जपोपयोगी है । ऐसा वीकार करना
चा हए ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
वेदा त भा यकार आचाय शंकर कहते है - य द इ य ारा जीव और
का भेद ात होता । तो अभेद तपादक त वम स आ द वेद वा य का
वरोध न त होता । पर तु य म जीव का भेद ही अगृहीत है । भेद
का व प है । जैसे सूय च मा नह है । मनु य पशु नह है इ या द । भेद
तो अभाव प है । उसके साथ इ य का स ब अयु है । य क
इ याँ अपने अपने गुण तथा गुण यु भाव व तु को हण करती है ।
इस लए भेद प अभाव इ य ारा गृ हत न होने से ई र तथा जीव का
भेद य माण से गृहीत है । यह कथन अयु है । और भेद के य म
i l . c
अनुपयोगी तथा तयोगी दोन का ान अपे त है ।
m a
अश दम शम पम यम प आ द र हत होने से ई र के साथ इ य
के भेद का य ान हो सकताa है ।n
तपादक ु तय के साथ कोई भी वरोध नह है ।
n s h
भेtद का वशेषण है । और ई र वशे य । यहाँ
भाव स ब को लेकर जीव
काa
- !
य पइ यs
v
यथा अहमी रा ः म ई र
- {
s v
aबाध हो सकता है । इ य और वषय के स ब को स कष कहते ह ।
से भ ँ यह पूव जीव
}
संयोग स ब नह है । फर भी संयु वशेषण वशे य
भाव का स ब है ही । इस कार हे व न भेद गृहीत होने से अभेद का
!
i l . c
आ मा तो अवयवी नह है । य क वभु या अणु दोन अवयव से र हत होते
m a
ह । याय मत म मन भी अणु होने से अवयव र हत है । अतः इनका संयोग
@ g
कै से हो सकता है ? मन इ य है । इस स ा त को वीकार कर आपने मन
a n
का भेद के साथ संयोग कहा है । पर तु वेदा त स ा त म मन इ य नह है
s a n
ारा प ान म सहायक मा है ।
इ य कvअपे
s v
aइ या द षु तःानीमृ तया णमाणभगवसे यहतास होता हैमनकके मनसाथइ यइ नहयाँ हैह ।
परं मनः कठ ु त
{ 3/10 }
{ ा सू म होने से उनके वषय े ह । वषय से मन उ कृ
है मनः
} { 15/7 } { 6 }
l . c
यग भ है । 1 आ य होने से वरोध होता है । पर तु भ ा य होने से
a i
दोन म वरोध मान । तो भी कोई वरोध नह । य क पूव वृ माण
gm
बल है । और उ र वृ ु त माण वल है । अतः वल से बल बा धत
n @
होता है । यथा य से तो सूय आ द अ प प रमाण वाले तीत होते ह ।
t ha
क तु उ र शा माण से उसका बाध होता है । अथवा जैसे सीपी म पूव
a n s
रजत ान उ र शू ान से बा धत है । वैसे ही भेद साधक य माण
vv s
अभेद साधक ु त से बा धत है । अप े द याय { यह मीमांसा शा से
aतीयs प
स ब त है } से भी ु त य क का बाधक ही है । अतएव अभेद
स ा त स य है । स य है ।
अभेद का अनुमान से वरोध
न वेवम य यनुमानबाधोऽभेद ुतेः संय मच व तन ।
घटा दवद न पतेन भेदेन यु ोऽयमसव व वात ।
i l . c
भेद को स कया जाता है । या वह पारमा थक { स य } है । या
m a
का प नक { क पत } ? य द पारमा थक है । तो आपका ा त ठ क नह
@ g
है । य क आपके मत म पृ वी आ द पदाथ ई र से भ नह ह । तो
a n
ा त कै से हो सकता है । जब क ा त, प और सा य से भ होता है ।
s t h
य द का प नक है । तो हम वेदा ती लोग जगत क का प नक स ा मानते ही
sa n
ह । तो उसके स करने म माण क या आव यकता है ? इस
vv
aम sडन कहते ह
का प नक भेद को लेकर व वा मभाव नय य नयामकभाव आ द जगत
क सब व ा सुचा प से चल सकती है ।
c
व प म डन कहते ह - हे य त ! 2 सखा { समान नाम वाले } सु दर
a i l .
ग त वाले प ी शरीर पी 1 ही वृ को आ त कये रहते ह । सदा इक ा
gm
रहने वाले उनम 1 तो उसके वा द फल { कम फल को } भोगता है । और
n @
सरा उन फल को न भोगता आ दे खता रहता है । इस म म जीव को
ha
कमफल भो ा और परमे र को येक कम का ा अथात कमफल के
n s t
साथ त नक भी स ब न रखने वाला बताया गया है । यह भेद बोधक ु त
sa
vv
अभेद तपादक त वम स आ द ु तय क बा धका है । अथात इससे
as
स होता है क जीव और परमे र 1 नह । क तु अलग अलग ह ।
आचायपाद कहते ह - हे व प म डन ! यह म जीवा मा और परमा मा
म य माण स भेद का के वल अनुवाद मा है । क तु अ य ु त से
इस भेद ान क न दा कही गई है - यदा ेवैष एत म ुदरम तरं कु तेऽथ
त य भयं भव त { तै 3/7 } मृ योः स मृ युमा ो त य इह नानेव प य त
{ कठ 2/10 } { जब यह इस यग भ म थोड़ा सा भेद करता है ।
उसे ज म मरण प भय ा त होती है । वह मृ यु से मृ यु को ा त होता है ।
जो इस म भेद सा दे खता है } इस लये ा सुपणा इस ु त वा य का
मु य ता पय भेद कथन म नह है । हे व न ! य द ऐसा न हो । तो वाथ म
ता पय न रखने वाले सब अथवाद वा य माण माने जायगे ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
i l . c
बोधक ा सुपणा वा य य मूलक होने से माण मानना होगा ।
m a
g
आचाय शंकर दे शके कहते ह - य द वेद के ारा ु त मूलक मृ त अथ
n @
म ु त माण नह होती । तो वेदाथ { जीव को न जानने वाले पामर
t ha
लोग ारा नाहमी रः { म ई र नह ँ } इस जीव ई र का भेद ात होने
n s
पर भी य मूलक ा सुपणा यह ु त जीव और ई र के भेद म माण
sa
vv
भूत कै से हो सकती है ? यह म जीव और ई र को कहता है । यह वीकार
as
कर मने पहले ऐसा कहा है । व तुतः ा सुपणा इस म का यह अथ नह है
। क तु अ तःकरण { बु } है । और जीवा मा है । अथात कमफल भो ा
अ तःकरण { बु } है । और पु ष उससे नता त भ है । स ूण संसार से
र हत है । ऐसा ु त भगवती कहती है । वह के वल सा ी है । इस कार ा
सुपणा यह म बु और जीवा मा के भेद का तपादक है । जीव तथा
ई र के भेद का तपादक नह है ।
व प कहते ह - हे पू य ! य द ु त जीव और ई र को छोड़कर जीव और
बु का तपादन करती है । तो इससे जड़ बु म भो ृ व तपादक यह
म माण प कै से हो सकता ?
आचायपाद कहते ह - हे व न ! आपका यह आ पे यु यु नह है ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
य क पैङ् यरह य ा ण म यह अथ लखा है -
तयोर य प पलं व इ त स वमन योअ भचा ।
कशी यन योऽ भप य त तावेतौ स व े ा व त ।
स व { बु } कम फल का भो ा है । और ा े { आ मा } है । यह
ु यथ वेदा त प को ही पु करता है । अतः हमारा अथ ु त तपा दत
और समीचीन है ।
i l . c
व प कहते ह - इस उ ा ण वा य म भी स व श द का अथ
g
जीवा मा और परमा मा का हण है । बु और जीवा मा का नह ।
s मtरहता
मnम स व श द बु और े
है क तदे त स वं येन व ं प य यथ योऽयं शारीर
- उप ा स े ः
v s a
, जसके ारा व दे खा जाता है ।
aहै ।s v
और े वह है । जो शरीर आ सा ी है । दोन स व और े
ह । इस कार इस ा जीवा मा को
कहा गया है । क तु जीव और ई र नह । अतः आपका कथन अयु
i l . c
आचाय शंकर दे शक कहते है - सव ापक होने से जब ई र शरीर से बाहर
m a
भी है । तो वह के वल शारीर कै से हो सकता है । जस कार आकाश सव
ई र को न कहकर बु और जीवा a n
कोई नह कहता ?
बु कम फल को भोगती s है ।t
h
। यn
ा सुपणा यह म जीव और
नहa
-
होता है । जड़ s
v
मा का तपादक है । पर तु अचेतन
s v
aआचायपाद कहते ह य प लोहा वयं दाहक नह । फर भी अ न के
यह कथन अयु है । य क भो ा तो चेतन
द यह ा सुपणा म जड़ भो ा को कहे । तो वह
माण कै से हो सकता है?
-
स ब से उसम दाहक श आ जाती है । अथात उसम दाहक व योग
होता है । उसी कार उसम चेतन के वेश करने से अथात चेतन के
आ या सक तादा य स ब से अथवा चेतन त ब बत होने से बु म भी
चेतन के समान भो ृ व श उ प हो जाती है ।
नोट - ा सुपणा इस म पर म डन म का शा ाथ समा त हो गया । अब
वह कठ ु त के आधार पर पुनः शा ाथ आर करते ह -
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
ऋतं पव तौ सुकृत य लोके गुहां व ौ परमे पराध ।
छायातपौ वदो वद त प चा नयो ये च णा चके ताः । कठ ु त 1/3/1
वे ा लोग कहते है - शरीर म बु प गुहा के भीतर कृ ान म
व ए ऋतं कम फल को भोगने वाले छाया और घाम के समान पर र
वल ण 2 त व ह । ज ह ने 3 वार ना चके ता अ न का चयन कया है । वे
प चा न के उपासक लोग भी यही वात कहते ह ।
. c
म डन कहते ह - यह कठ ु त कहती है क जस कार धूप और छाया
a i l
पर र भ ह । उसी कार जीव और ई र भी सवथा भ भ है । इस
gm
कार ऋतं पब तौ यह कठ ु त क बा धका है ।
a n @
n s t h
आचाय शंकर दे शक कहते ह - वहार स भेद का तपादन करती ई
sa
vv
यह ु त अभेद तपादक पर ु त का बाध नह करती । सच तो यह है क
as
त वम स यह अभेद ु त अपूव अथ { जीव क एकता जो लोक म
स है } का बोध कराती है । इस लये वह अ धक बलवती है । इस एक व
तपादक बलवती ु त से भेद ु त बा धत है । ऋतं पब तौ इस ु त का
भेद वणन करने म ता पय नह है । य क भेद तो वना ु त क सहायता के
भी लोक म स है । ु त का ता पय तो अपूव अथ के तपादन म है ।
इस लये आपके ारा उ धृत ऋतं पब तौ यह ु त भेद बोधक नह है ।
क तु लोक स भेद का के वल अनुवाद मा है ।
म डन कहते ह - हे य तवय ! हमारी बु म अभेद ु त से भेद बोधक ु त
अ धक बलवती है । य क { म ई र नह ँ } इस कार य आ द
माण भी उसक पु करते ह । इस लए भेद ु त य ा द माण से
बा धत अथ को कहने वाली अभेद ु त क बा धका है ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
शंकर वामी कहते ह - हे प डतवय ! ु तय म बलव ा कसी अ य माण
से संपा दत नह है । अ यथा उन माण से गताथ हो जाने के कारण ु तय
म बलता ही संपा दत होगी । अथात अपनी माणता या बलव ा म अ य
माण क सहायता लेने का अथ तो यह है क ु त को बल बनाना । या
परतः माण मानना । जब क वेद वतः माण माने गये ह । वेद का ता पय
लोक स अथ { भेद } के तपादन करने म नह है । य क वह तो लोक
स है । युत अ ात अथ { जीव क एकता } के तपादन करने म
c
ता पय है । जो लोक स नह है । इस कार भेद ु त से अभेद ु त
a i l .
बल है । अतः जीव क एकता मानना ही ठ क है ।
म डन म कहतेa
अथातvदय v s
s को भोगता है । इस ु त से यह स होता है क मु म
2/1
aकामना
- जो सत चद आन द व प को परम आकाश
के अ दर गुफा म त जानता है । वह सव ा के साथ सब
i l . c
य क ु तय का सही ता पय अभेद अथात एक व म है । इस लए यहाँ भी
m a
लोक स भेद का अनुवाद मा है ।
@ g
n
अथाप माण को लेकर शा ाथ ।
s t ha
व पाचाय म डन कहते ह - हे यो गन ! य द जीव क के साथ
a n
एकता हो । तो सबको तीत होनी चा हए - जीव है । पर तु एक व ान
vv s
नह होता है । इस लये दोन म अभेद नह । क तु भेद ही है ।
as
शंकर वामी कहते ह - अ रे े म घट घड़ा ात नह होता । तो इससे यह नह
समझा जाता क अ रे े म घड़ा नह है ? य क काश से अ कार के
नवृ होने पर वह तीत होता है । इसी कार अ व ा के कारण य प
अभेद ान नह होता । फर भी ऐसा नह कहा जा सकता क अभेद नह है
। य क व ा से अ व ा के नवृ हो जाने पर अभेद ात होता है ।
{इस कार ब त दन तक यह शा ाथ होता रहा । दोन वा दय ने अपने
अपने प क स म ब त से तक दये । माण उप त कये । पर तु
अ त म य तवर भगव पाद ने म डन म को सब कार से न र कर
शा ाथ म परा त कर दया । आचाय क इन अकाटय व ढ़ यु य का
सर वती ने अनुमोदन कया । उसने म डन म के हष को खेद मे प रव तत
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
कर दया । प त के भावी सं यास हण करने के कारण ख होकर सर वती
ने अपने सा ी होने का माण भी दे दया । जससे स होकर दे वता ने
आकाश से सुग त पु प क वृ क । }
इ ंयत तपतेरनुमो यु मालां च म डनगले म लनामवे य ।
भ ाथमु लतम युवा म तमावाच तं पुन वाच य त दम बा ।
य तराज क यु य का अनुमोदन कर और म डन के गले क माला को
c
मलीन दे ख उभय भारती ने कहा - आप दोन भ ा के लए च लये । और
a i l .
शंकर से वह वशेष प से फर बोली - ाचीन काल म अ त ोध वश
gm
वासा ने मुझे शाप दया था । उस शाप क अव ध आपका यह वजय है ।
n @
अब मेरा यह शाप समा त हो गया । इस लये हे य त ! म अपने धाम को
t ha
जा रही ँ । इतना कहकर जब उभय भारती शी ता पूवक जाने लगी । तब
n s
आचाय शंकर ने नव गा म ारा उ ह बाँध रखा । य क वे उनको भी
v s a
परा त करना चाहते थे । शंकर वामी का सर वती के ऊपर वजय पाना
s v
aआचाय
अपनी सव ता दखला कर त ा ा त करने के लये नह था । क तु
अपने अ ै त स ा त क स के लये था ।
शंकर सर वती से बोले म आपको भली भाँ त जानता ँ । आप
-
शव क सहोदर बहन है । तथा ा क धम प नी ह । इस संसार के
क याणाथ आपने अवतार धारण कया है । इस लये जब तक आपके जाने
म हमारी इ ा न हो । तब तक आप यहाँ वराजमान ह । आचाय के
सारग भत वचन को सुनकर सर वती ने शंकर वामी के अनुकूल होने क
अनुम त दे द । तब मु न आन द से गदगद हो गये । और म डन म के
दयगत भाव को जानने के लए उ सुक ए ।
य त े आचाय शंकर भगव पाद के वेदाथ नणय करने वाले, याय से यु
वचन से म डन म ने जब अपने को शा ाथ म परा त होने का अनुभव
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
कया । तब उनका ै ता ह य प शा त हो गया । तो भी उ ह ने स दे ह कर
सभा म यह कहा - हे य त ! मुझे इस समय अपने अ भनव पराजय से
त नक भी ःख नह है । क तु इस बात का खेद अव य है क काल
जै म न मु न के वचन का आपने ख डन कया है । वे तपो न ध वेद के
चार और जगत के हत म रत थे । भला इ ह ने गलत सू क रचना य
क ?
सव शंकर दे शक कहते ह - जै म न के स ांत म कह पर भी अ यास
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संशय तथा वपय नह है । यह के वल हमारी अन भ ता है क जससे उनके
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अ भ ाय को नह समझ सकते । जै म न का अ भ ाय परमान द व प
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पर के तपादन म ही है । पर तु वषय वाह म बहने वाले जन साधारण
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को उसक ओर ले जाने के लए पु य कम को करने क व ा क ।
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य क न काम पु य कम से अतःकरण क शु होती है । जो ान
तमेतं वेदानुवचनेन ा n s
क ा त म सहायक है । इससे शु अतःकरण वाले को
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ज ासा हो सकती है । इस अ भ ाय को ु त भी करती है -
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aजानने क इ ा कर ।
णा व व दष त । य ेन दानेन तपसाऽनाशके न ।
ज ासु वेद के अ ययन य दान तथा अनाशक तप से उन
, , को
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
सव शंकर दे शके कहते ह - ु त का ता पय तो अ ै त के तपादन
म ही है । पर तु पर रा से आ म ान उ प करने वाले कम म भी ु त का
यान है । इस कार यह सू कम के करण म है । अतः उसका अथ कम
परक मानना चा हए । पर तु व ा का करण तथा वषय इससे भ है
। इस लए इस सू के अ भ ाय वेदा त वा य नरथक नह हो सकते ।
म डन कहते ह -
ननु स दा मपरताऽ भमता य द कृ नवेद नचय य मुनेः ।
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फलदातृतामपु ष य वद त कथं नराह परमे रम प ।
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जब सम त वेद का स दान द के तपादन म ता पय है । तब
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परमे र से भ कम ही फलदाता है । इस स ा त का तपादन मु न ने
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ई र का नराकरण कर कै से कया ?
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आचाय शंकर भगव पाद कहते ह - हे व प ! येक कम कसी कता
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ारा होता है । जग काय ई रकृ तृ कं काय वात, यथा मकान कसी कारीगर
से बनाया जाता है । तथा जगद प काय भी कसी वशेष कता ारा होना
चा हये । वह कता सव ई र है । यह अनुमान आगम वचन के वना ई र
को स करता है । ु तयाँ के वल अनुमान का अनुवाद मा करती है । यह
वैशे षक का मत है । पर तु यह शु क अनुमान ई र स म पया त नह
है । { वेद को न जानने वाला उस बृहद औप नषद को नह जान
सकता } यह ु त वचन ई र को वेद के न जानने वाल के लए अगोचर
सू चत करता है । ऐसी दशा म अनुमान ई र को कै से स कर सकता है ?
इसी भाव को अपने मन म रखकर मु न जै म न ने ई र परक अनुमान का
तथा ई र से जगत के उदय उ त आ द होते ह । इन सब वैशे षक स ा त
का सैकड़ अकाटय यु य से ख डन कया है । आशय यह है क जै म न
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
मु न ु त स ई ष का अलाप ख डन नह करते । क तु ता कक स मत
ु त हीन अनुमान का ही ख डन करते ह । इसी तरह मेरी समझ म
उप नषद रह य से जै म न का स ा त लेशमा भी व नह है । जै म न
के इस गूढा भ ाय को न जानकर व ान लोग उ ह अनी रवाद बतलाते ह ।
व पाचाय म डन कहते ह - या इतने से ही त व वे ा म े मु न
नरी रवाद स हो सकते ह ? या कह पर भी उ लू से क पत
अ कार दन म सूय के काश को म लन कर सकता है ? कभी नह ।
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इसी कार अ व ान से क पत म या दोष जै म न मु न को अनी रवाद
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नह बना सकता । इस कार जै म न मु न के अ भ ाय को य तवर शंकर
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वामी ारा तपा दत कये जाने पर शारदा म डन म तथा सब
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सभासद अ त स ए । पर तु शंकर के कथन से मीमांसा के आशय को
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समझ लेने पर भी म डन के मन म फर भी कु छ संदेह बना रहा । य क
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उनक लगभग स ूण आयु इसी काय म तीत ई थी । सहसा वे सं कार
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कै से र होते ? न र होने पर भी पूण व ास नह हो रहा था । इस लये
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मान सक शंका को नवृ करने के लए मु न के वचन ही उनके अ भ ाय
को जानने के लए म डन म ने मु न जै म न का मरण कया । जससे
मु न शी म डन म के समीप कट ए ।
मु न जै म न म डन म को स बो धत करते ए कहते ह -
हे यश वी ! मेरे वचन से संदेह याग दो । इस रह य को सुनो । संसार म
नम न पु ष के उ ाराथ शरीर धारण करने वाले आचाय शंकर को तुम
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शव समझ ।
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आ े स वमु नः सतां वतर त ानं तीय युगे
ः ।।@
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द ौ ापुरनामके तु सुम त ासः कलौ शङ् करः ।
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बौ के लाप पी अ कू प म गरकर न जाने कब का लय पा चुका
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होता ।
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बु ोऽहं व ा द त कृ तम तः व मपरं
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यथा मूढ़ं व े कलय त तथा मोहवशगाः ।
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वमु म ये ते क त च दहलोका तरग त
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हस येता दा सा तव ग लतमायाः परगुरोः ।।
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तो आ मा म व ास रखने वाले व ान लोग कै से वहार कर सकते ह ?
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कम पी य पर चढ़कर म तप, शा , घर, ी, पु , भृ य तथा धन आ द
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म अ भमान रखकर संसार प कू प म गरा आ था । उससे आपने मेरा
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उ ार कर लया । पूव ज मा जत अन त पु य के भाव से मने आपके
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दशन का सौभा य ा त कया । तथा शा ाथ कया । अ यथा यह सब कै से
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हो सकता था ? इस लए म अपने पु , ी, घर, धन, गृह ा म, कत कम
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इन सबको छोड़कर आपके चरण क शरण आता ँ । कृ पया त व का उपदे श
क जये । म आपका ककर ँ । इस कार बु मान म डन म ने वनीत
तथा मधुर श द से आचाय शंकर का वणन कया । जते य शंकर ने
म डन पर दया करते उनक ी क ओर दे खा । आचाय के आशय को
समझकर वह बोली ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
माता ने उनका आ त य कर लेने पर उनसे पूछा - हे काल महा मन ! म
इस पु ी के भा य के वषय म कु छ पूछना चाहती ँ । इसक आयु य कतनी
होगी ? कतने पु तथा कै से प त को यह ा त करेगी ? धन धा य स
होकर यह कतने य करेगी ?
ण भर आँखे मूंदकर उन तप वी ने कहा - हे दे वी ! भूतल पर वै दक माग के
उ हो जाने पर वयं दे व { ा } वेद माग के उ ार के लए म डन
प डत के प म अवत रत ह गे । जस कार पावती ने शंकर क , ल मी ने
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व णु को ा त कया । उसी कार तु हारी क या भी अपने अनु प म डन
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को प त प म पाकर सम त य को करेगी । और पु के साथ ब त दन
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तक स रहेगी । अन तर इस लोक म मत ारा न ए उप नषद्
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स ांत को र करने के लए वयं आ द दे व महादे व नर प लेकर अपने
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चरण से इस भूतल को अलंकृत करगे । उस य त वेषधारी शंकर के साथ
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तु हारी क या के प त का शा ाथ होगा । जसम इसका प त परा त होकर
इतना v v s
गृह ा म का याग कर संसार को शरण दे ने वाले उन य त क शरण म
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इस लए यु यु उभय भारती के वचन को सुनकर ु त पी न दय से
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पूण समु के समान आचाय सव शंकर दे शक ने सर वती उभय भारती
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के साथ शा ाथ करना वीकार कया ।
दोन के वv
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च sपद व यास और यु य से भरे कथन को सुनकर लोग ने
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सुक शंकर और सर वती म वह शा ाथ
aको । संषसनागार मकोसरही कुकछतोगनाबात। हीन सूययाकोहै ।। सन बृयाह व तदनकोआ। दन मशु नाचायत
ार आ । जसम बु क चतुरता से श द क झड़ी लग रही थी । इन
न तो शे
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तो मेरा य त धम का नाश होता है ।
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कामशा को भली भाँ त जानते भी सव शंकर दे शके सं या सय के
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नयम र ाथ कामशा अन भ क तरह उभय भारती { शारदा } से बोले -
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आप मुझे इस वषय म एक मास क अव ध द जए ( कह कह 6 मास क
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अव ध लखी पाई जाती है ) वाद लोग अव ध दे ने क था को मानते ह । हे
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सु दरी ! उसके प ात तुम कामशा म अपनी नपुणता छोड़ दे गी ।
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aसे sआकाश म मण करने लगे । उ ह ने कसी ान पर वग से गरे
एवम तु ! इस कार उभय भारती ने वीकार कर लया ।
तब योगीराज आचाय शंकर दे शके अपने व ान श य के साथ योगबल
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वचन अ य त शंसनीय ह । तो भी हे सो य ! म परमाथ वचन कहता ँ ।
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उसे सावधान होकर सुनो -
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संक प एवा खलकाममूलं स एव मे ना त सम य व णोः ।
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त मूलहानौ भवपाशनाशः कतुः सदा या वदोष ेः ।
तमबु त वम धकृ य n
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अ वचाय य तु वपुर ह म य भम यते जडम तः सु ढम ।
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aसंकतासsारभीके होपदाथ। तोमभीसदैउसेव दोषकाम के रखने
व ध तषेधश म खलं सफलम ।
- प ही सब इ ा का मूल है । वह कृ ण के समान मुझम नह है ।
वाला पु ष य द कसी काय का
मूल संक प के नवृ होने पर संसार
ब न नह होता । जो जड़ बु पु ष वना वचार के आ म शरीर आ द म
ढ़ अहं अ भमान करता है । त व को न जानने वाले उस पु ष को अ धकृ त
कर सम त व ध नषेध शा साथक होता है ।
अथात - सवकामो यजेत, न सुरां पवेत इ या द व ध नषेध शा अ व ान
को ही आ त कर वृ होता है । त माद व ाव षया णेव य ाद न
माणा न शा ा ण च { सू शाङ् कर भा यम 1 सू } म भी वणन है ।
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
वेदा त महा वा य से उ प बु वाला पु ष चाया द आ महीन,
ा णा द वण र हत, मनु य वा द जा तहीन ान मा , अज एक रस आ मा
को अपना ही व प जानकर वेद के अ यु म उपदे श अथात वेदा त
उपदे श म रमण करने वाला वह व ान व ध नषेध का दास नह बनता ।
त को व धः को नषेधः । ऐसी ु त भी है ।
घट आ द मृ का से उ प ए ह । जैसे ये मृ का से भ नह ह । अथात
इनक मृ का से भ स ा नह ह । वैसे ही परमा मा से उ प आ यह
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जगत भी परमा मा के वना काल म नह है । अथात् इसक पृथक स ा
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नह है । म या है ।
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वाचाऽर णं वकारो नामधेयं मृ के येव स यम् { घट आ द काय वाणी
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कथन मा है । स य तो के वल मृ का ही है । } यह ु त क उदघोषणा है ।
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क पत क अ ध ान से पृथक स ा नह होती । इस वषय म
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तदन य वमार णश दा द यः { सू म 2/1/14 } इस सू का शांकर
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भा यम् भी दे खा जाये ।
यह स ूण जगत म या है । इस कार दय म अनुसंधान करने वाला पु ष
कम फल से कसी कार भी ल त नह होता । जस कार व काल म
कये गये पु य पाप जागने पर म या बु से न होने के कारण कदा चद प
शुभाशुभ फल के लए नह होते । चाहे वह सौ अ मेध य करे । अथवा
चाहे अग णत ा ण क ह या करे । तो भी परमाथ त व को जानने वाला
पु ष सुकृत और कृ त से ल त नह होता । यह का ववचन है ।
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करने के लए म सरे के शरीर को ा त कर य न क ँ गा ।
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य तराज शंकर ऐसा कहकर गम पवत शखर पर चढ़कर फर बोले - हे
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श यो ! यह दे खो ! यह सु दर गुफा दखाई दे रही है । जसके आगे एक
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समतल शला पड़ी है । उसके नकट ही व जल वाली, फल वाले वृ से
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शो भत यह तलाई शोभा दे रही है । आप लोग यह पर रहकर मेरे इस शरीर
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क सावधानी से र ा कर । जब तक इस अम क राजा के शरीर म व
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होकर कामकला का अनुभव क ँ ।
इस कार श य वग को समझा कर आचायपाद ने उस गुफा म अपने शरीर
को छोड़कर के वल ल शरीर से यु हो बल योग साम य से राजा
अम क के शरीर म वेश कया ।
{ आ तवा हक ल शरीर, जो एक शरीर को छोड़कर सरे शरीर म वेश
करता है - 5 ाने य, 5 कम य, 5 ाण, मन तथा बु इस कार 17
त व का होता है । }
उन एका बु यो गराज शंकर ने अपने शरीर के अंगु से आर कर
दशम ार तक अपने ाण वायु को ले जाकर र से बाहर आकर
अम क राजा के मृत शरीर म अंगु पय त र से धीरे धीरे वेश कया
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
। इस आशय का ीकरण योग सू म इस कार है -
ब कारणशै थ या चारसंवेना च य परशरीरावेशः । योगसू 3/38
शरीर ब न प है । इसका कारण धमाधम है । इनक श थलता समा ध
बल से होती है । और च के गमनागमन क नाड़ी के ान से योगी लोग
च को अपनी इ ा से सरे शरीर म वृ कर सकते ह ।
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मृत राजा अम क का दय दे श हलने लगा । उसने धीरे धीरे आँख खोल
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द । और पूव क तरह उठ खड़ा आ । पर तु इस बीच के मम को कोई भी
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नह जान सका । इस कार राजा को जी वत दे ख राज रा नयाँ, म ी आ द
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तद तर राजा अम क म ी और पुरो हत के साथ शा व हत मांग लक
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कृ य समा त कर भ गज पर बैठ राजधानी को गया । नगर म जाकर राजा
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अम क ने अपने यजन को सा वना द । अ य राजा लोग भी उसका
शासन आदर से मानने लगे । उसने अपने अनुकूल म य के साथ पृ वी का
इस कार पालन कया । जस कार दे वराज इ वग का पालन करते ह ।
राजा ने म य तथा राजक य कमचा रय के साथ रा य का भलीभाँ त
नरी ण कर जा को संतु कया ।
सीमावत राजा लोग भी सहष अनुकूल वहार करने लगे । इस कार राजा
क काय कु शलता दे ख म ीगण को यह संदेह उ प आ क राजा मृ यु को
ा त हो जा के भा य से फर जी वत आ । ले कन यह राजा पहले क
तरह तीत नह होता । युत अनेक द गुण स होने से अपूव तीत
हो रहा है । यया त के समान याचक को यह धन दे ता है । अथ को जानने
वाला यह राजा दे व गु बृह त के समान बोलता है । अजुन के समान श ु
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भगव पाद आचाय शंकर और म डन म के बीच शा ाथ
राजा को जीतता है । और शंकर के समान सभी को जानता है ।
सवन के { य म सोम रस को नकालना } अन तर राजा चार ओर फै लने
वाले दान पौ ष शौय धैय आ द अ य लभ आदश गुण के ारा यह राजा
सा ात परम पु ष परमा मा के समान तीत होता है । उनके भाव से वृ
अपनी अनुकूल ऋतु के बना ही फू ल के भार से लद गये है । गाय अ धक
ध दे ती है । पृ वी पर अभी वृ होने से अ क वृ होती है । सारी जा
अपने व हत काय म रत है । और कहाँ तक वणन कया जाये ? आज इस
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रा य के भाव से सब दोष से यु यह क लकाल भी ते ा युग को
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अ त मण कर वतमान है । अथात इस क ल म ते ा से भी अ धक धम का
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आचरण हो रहा । इससे ात होता है क कोई ऐ यवान पु ष राजा के
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शरीर म वेश कर पृ वी का पालन कर रहा है । यह पु ष गुण का समु है ।
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हम ऐसा उपाय करना चा हए । जससे यह अपने पूव य शरीर को फर
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ा त न कर । ऐसा न य कर उ ह ने अपने सेवक को यह आ ा द क
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पसे नयvणsकर रा य पूण शा त ा पत क । राजा के लए यह उ चत
जहाँ भी मृतक शरीर ा त हो । उसे अ त शी जला दया जाय ।
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aव त जाम कय कोस राता यके भारलएसउपकर
राजा ने अपने बु कौशल से आ त रक तथा बा प र तय पर पूण
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
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