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के परम हतसाधन को कृ पा करके बतलाइये, जो सभी
ail
पाप का वनाशक, सभी अ र का नवारक,
सवव यकर और क लयुग म सव स दायक है-
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नारद उवाच
धमाथकाममो ाणां साधनं परमं हतम् ।
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त सव कथय व वमनु ा ोऽ म ते वभो ॥१॥
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सवपाप यकरं सवा र नवारणम् ।
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अख ड प से उसक पूजा करे। म से म लावे। उस
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म से आकृ त बनावे, उसे त त करे, उसम दे वता का
आवाहन करके उसे नान कराकर उसका पूजन कर
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उससे मा माँग कर वसजन करे।
हर, महादे व, महे र, शूलपा ण, पनाकधृक, पशुप त, शव,
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महादे व- इन नाम से म से पूजन एवं वसजन करे।
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पा थव ल को दो ख ड म बनाकर पूजा करने से वह
पूजा न फल होती है। पके जामुन के फल के बराबर ल
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
ई र उवाच
शृणु नारद व या म शवपूजा वधानकम् ।
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य यानु ानमा णे कृ तकृ यो भवे र: ॥३॥
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अकृ वा पा थवं ल ं यो यदे वं पूजयेत् ।
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वृथा भव त सा पूजा नानदाना दकं वृथ्◌ा ॥४।॥
शु ां मृदं समानीय पुनः शो य वशेषतः ।
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ल ाकारं ततः कु या थो व धना पुमान् ॥५॥
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पूजयेत् स वधानेन पा थवं ल मु मम् ।
अख डं कारये नाव यमाणै नाम भ: ।॥६ ॥
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मृदाहरणसंघ त ा ानमेव च।
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चतुदश वरोपेतो हकारो ब संयुतः ।
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शव सादजनकः शव णवसं क: ॥११।॥
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शव भव ो ौ भीम ईशानसं क: ।
महादे वः पशुप तमू त भ ैव पूजयेत् ॥१ २।॥
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तरापोऽनलो वायुराकाशः सोमसूयकौ ।
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यजमान इ त ौ मूतयः प रक तताः ॥१३॥
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नारद उवाच
दे व के न वधानेन कत ं सवकामदम् ।
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
ई र ने कहा – हे मुने! मनु य को कामना के उ े य से
न य उ म पा थव ल बनाना चा हये। पा थव ल
अख ड बनता है एवं ावर ल दो ख ड म बनता है।
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पूव वधान से पा थव ल का पूजन करना चा हये।
ail
कामना के अनुसार पूजन म ल क सं या होती है।
व ाथ एक हजार ल बनावे धनाथ पाँच सौ ल
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बनावे पु ाथ प ह सौ ल बनावे। मो ाथ एक करोड़
ल बनावे। भू म क कामना से एक हजार ल बनाना
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चा हये। पाथ तीन हजार, तीथाथ दो हजार, सु कामी
तीन हजार, व ाथ एक सौ आठ, मारणाथ सात सौ.
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मोहनाथ आठ सौ एवं उ ाटन के लये एक हजार ल
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कही गई है-
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
ई र उवाच
मुने सव य नेनन पा थवं ल मु म् ।
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कत ं ह नृ भ न यं कामु य य नतः ॥१५॥
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अख डं पाथवं ल ं ख डं ावरं मतम् ।
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पूव े न वधानेन पू यं ल तु पा थवम् ॥१६॥
सं या पा थ व ल ानां यथाकामं नग ते ।
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व ाथ ल साह ं धनाथ शतप चकम् ॥१७॥
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पु ाथ साधसाह ं का ताथ शतप ञकम्।
मो ाथ को टगु णतं भूकाम तु सह कम् ॥१८॥
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दा र य् े प चसाह मयुतं सवकामदम् ।
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एकं पापहरं ो ं लङ् चाथ स दम् ॥२३॥
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लङ् ं सवकामानां कारणं परमी रतम् ।
उ रो रमेव यात् पूव गणनाव ध ॥२४॥
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ा तर म कहा गया है क दश हजार ल बनाने
महाराजभय का हरण होता है। डेढ़ हजार ल से ब न
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डा क या दभये स तसह ं कारये तः ॥२ ॥
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सह ं प चप चाशदपु ो ह कारयेत।्
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ल ानामयुतेनैव क यकां सततं लभेत् ॥ ३ ॥
एवं ल ानेनैवमतुलां यमा ुयात्।
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ल मेकं तु ल ानां यः करो त नरो भु व ॥४ ॥
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शव एव भवे सोऽ प ना काया वचारणा।
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से न मत ल अ्र दान करने वाला होता है। गुड़ से
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बना लग ौ त बढ़ाने वाला होता है। ग न मत लग से
भोग ा त होता है। श कर से न मत ल से सुख ा त
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होता है। यव प से न मत ल वंशवृ करता है।
चावल के आँटे से न मत लग ब त पु दे ने वाला होता
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है। सम त रोग के नाश के लये गोबर से न मत लग क
पूजा करनी चा हये। के श एवं अ से न मत लग सम त
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श ु का वनाशक होता है। आसुरी लवण से न मत
लग सम त लोक को वश म करने वाला होता है। ह द -
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धा य न मत लग धा य दे ने वाला एवं फल न मत लग
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स ता दे ने वाला होता है। टक से न मत लग
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असं य लोग का वा म व दान करता है। रजत- न मत
लग के पूजन से पतर क मु होती है। वगलोक क
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ा त के लये सुवण न मत ल क पूजा करनी चा हये।
ता - न मत लग से पु ा त होती है। पीतल- न मत
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लग का पूजन कृ ष काय हेतु कया जाता है। क त
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चाहने वाले को क से से नर मत लग क पूजा करनी
चा हये एवं श मृ यू क कामना वाले को सदा लौह न मत
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क पूजा करनी चा हये। मूंग के चूण से बने ल के पूजन
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से मु मलती है। उड़दचूण ल से न य इ अथ क
स होती है। चने के वेसन से न मत ल के पूजन से
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बु बढ़ती है। धा य न मत ल क पूजा से धा य ा त
होते ह। यव धा य म त ल से सभी अ र का
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नवारण होता है। ेत तल से न मत ल के पूजन से
ेत प म वास ा त होता है। जो मनु य काले तल से
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स यक् प से ल बनाकर पूजन करता है, वह कामदे व
के समान य का य होता है-
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अचा पा थव ल ानां को टय फल दा ॥५ ॥
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भु दा मु दा न यं त कामाथदा नृणाम्।
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यव प ो वं ल ं वंशकामोऽचये पुमान् ॥ ९ ॥
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त डु लानां च प ने पु बा यमा ुयात्।
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सवरोग वनाशाय गोमयो ं पूजयेत् ॥ १० ॥
के शा स वं ल ं सवश ु वनाशनम्।
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आसुरं लवणो ं च सवलोकवशङ् करम् ॥११ ॥
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त ने रजनी प स वं ल मु मम्
त डु लो व प ानां ल ं व ा दं मृतम् ॥ १२ ॥
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द ध धो वं ल ं क तल मीसुख दम्।
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पतॄणां मु ये पू यं ल ं रजतस वम्।
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हेमजं स यलोक य ा तये पूजये पुमान् ॥१७ ॥
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पूजये ा जं ल ं पु कामो ह मानवः।
कृ षकाम तु सततं ल ं प लस वम् ॥ १८ ॥
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क तकामोऽधये ल ं सदा कां यसमु वम्।
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श मु ारणकाम तु ल ं लोहमयं सदा ॥ १ ९ ॥
वरशा यै च दनजमचये धवत् सदा।
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मु प मयं ल ं पूजय मु मा ुयात् ॥ २४ ॥
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माष प मयं ल ं न य म ाथ स दम्।
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चणको व पटे न ल ं बु ववधनम् ॥ २५ ॥
ल ं ी हमयं पू यं धा यकामेन न यशः।
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यवधा यमयं ल ं सवा र नवारणम् ॥ २६ ॥
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यः करो त तलैः ेतै त व् ीपे च महीयते।
यः कृ णै तलैः स य ल ं कृ वाचये रः ॥ २७ ॥
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पूजा भ पूवक करने से लभ स ा त होती ह।
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हेम त ऋतु म फू लने वाले मनोरम पु प से न मत ल
क पूजा से शव सा न य ा त होता है। श शर म होने
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वाले पु प से न मत ल का पूजन करने से मनु य सभी
पाप से मु होकर लोक म जाता है जस कसी भी
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कार से कसी भी व तु से ल बनाकर पूजन करने से
ाजाप य क स होती है। जस रा माका समय बना
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ल पूजन के तीत होता है, उसक सव महाहा न
होती है सभी दान, त, तीथ नयम, य के फल
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नीलो पलमयं ल ं कृ वा शर द मानवः ॥३० ॥
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पूजये परमां स भ या ा ो त न यशः ।
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हैम तीयै कु सुमै ल ं कृ वा मनोरमम् ।॥३१॥
भ या चा य म तमान् शवेन सह मोदते ।
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श शरे सबवपु पो यं ल म य य मानवः ॥३२॥
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सवपापं वहायाशु णा सह मोदते ।
येन के न कारेण य य क या प व तुनः ॥३३ ।॥
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कृ वा ल ं सम य य ाजाप यमवापुयात् ।
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पूज य वा नरो न यं शवसायु यमा ुयात्।
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व वध लग क े ता
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सभी ल म पा थव ल उ म होता है । इस ल क
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व धवत् पूजा से मनु य सभी कामना को ा त करता
है प र से बने ल के पूजन से इहलोक म परम
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गा मत से े मा ण य ल होता है। मा ण य से े
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
मूंगा का ल होता है। मूंगे से े मोती का ल होता है
मोती के ल के े चाँद का ल और चाँद से े
सोने का ल होता है। वण ल से े हीरे का ल
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और हीरे से े पारे का ल होता है। पारद ल से े
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बाण ल होता है। इससे े कोई ल नह होता। नमदा
जल के म य म त ल को बाण ल कहते ह सभी
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तीथ, य , सांग दान त, काल स या योग स का
बाण ल म वास रहता है। बाणासुर ारा अ चत ल
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को बाण ल कहते ह। इसका व धवत् अचन भ पूवक
करने पर शवलोक का वास मलता है। बाण ल के
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नमा य म च डे र का अ धकार नह है शव वयं
बाण ल होकर च का त के दय म रहते ह। इस पर
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ल ानाम प सवषां पा थवं ल मु मम् ॥ ३८ ॥
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कृ वा स ू य व धव सवा कामानवा ुयात्।
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पाषाणस वं ल ं संपू य परया मुदा ।।३९ ।।
इह कामानवा ो त सदा चानु मं सुखम्।
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पाषाणा ा टकं े ं ा टका प रागजम् ॥४० ॥
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प रागा का मीरं का मीरा पु परागजम्।
पु परागा द नील म नीला गोमदम् ॥४१ ॥
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मा ण या मं े ं व मा मौ कं परम् ॥ ४२ ॥
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बाणासुरा चत ल ं बाण ल ं त यते।
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अ य य व धव या शवलोके महीयते ॥४६ ॥
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बाण ल े न च डेशे न च नमा यक पना ।
सव बाणा पतं ा ं श या भ या नचा यथा ॥४७ ॥
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बाण ल े वयंभतू े च का ते द ते।
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चा ायणशतं ये ं श ुनैवे भ णम् ॥४८ ॥
ा ा ा वभागोऽयं बाण ल े वधीयते।
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
लग का वध उ मा द व प
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उ मं म यमं नीचं वधं ल मी रतम् ॥५२ ॥
ail
चतुर गुलमु ायं र यं वे दकया शवम् |
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उ मं ल मा यातं मु न भ त को वदै ः ॥५३ ॥
तदध म यमं ो ं त याध वाधमं मृतम्।
एवं ल ं समासा @ ाभ सम वतः ॥५४ ॥
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पूज य वा लभे कामा मनसा चा भला षतान्।
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एवं एक अंगल
ु उ ल अधम होता है। इस कार
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यागकर व ान् परम भ से शव ल का पूजन करे।
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भवसागर म डू बते सभी ावर जंगम को तरने का साधन
ल ाचन ही है। इससे े कोई सरा साधन नह है
gm
अ ान त मर से अ एवं वषयास चेतना वाल के
लये संसार म ल ाचन के अ त र सरा कोई सहारा
से
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नह है। इस सवाथ स दायक ल क पूजा महाभ
ा द सभी दे वता, सभी मु न, य - रा स- ग व
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चारण- स -दै यदानव करते ह। वे सभी थोड़े ही दन म
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पु षाथ दं त वं न तं ल पूजनम्।
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अ ान त मरा ानां वषयास चेतसाम् ॥५८ ॥
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लवो ना योऽ त जगतो ल ाराधनम तरा।
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ादयः सुराः सव मुनयो य रा साः ॥ ५ ९ ॥
ग वा ारणाः स ा दै तये ा दानवा तथा।
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पूज य वा महाभ या ल ं सवाथ स दम् ॥६० ॥
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अ चरा ले भरे नूनं सवान् कामान् समी हतान्।
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ा ण य वै य, शू या अनुलोमज सभी को
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स ब च वाले सरे माग पर नह जाते ह, के वल
ail
वै दक माग से ही पूजा करते ह। जो वै दक माग का
अनादर करके एवं मात माग को भी छोड़कर अ य माग
gm
से आराधना करते ह, उ ह कमफल नह मलता। इनम भी
पा थव ल शी स दायक है। पा थव ल से ब त
स याँ मलती ह- @
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ा णः यो वै यो शू ो वा यनुलोमजः ॥६१ ॥
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न जायतेऽ यव मा प शमावै दकव मना।
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यो वै दकमना य कम मातमथा प वा ॥६६ ॥
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अ य समाचर मय न स कमफलं लभेत्।
त ा प पा थवं ल ं स दं भवेत् ॥ ६७ ॥
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पा थवेन तु ल े न ब स मवा ुयात्।
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युगानुसार लग े ता तथा पा थवाचन शंसा
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ही पा थव ल े आरा य और पू य है। पा थव ल
आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
का आराधन पु य, आयु एवं धन का वव क होता है।
यह स ता, तु , ल मी एवं कायसाधन म स द है।
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यथोपल सभी उपचार से भ ा से पा थक ल
का पूजन शा ो व ध से करना चा हये। पा थव ल
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म प चसू वभाग का वचार नह होता। आकारमा
बनाने से ही सभी स याँ मलती है। इसका नमाण
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ख ड म नह करना चा हये। करने से पूजा फल नह
मलता। र नज, वणज, ा टक, पारद, पा थव प ज,
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पौ प और माषज ल अख ड बनाना चा हये-
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कृ ते र नमयं ल ं ते ायां हेमस वम् ॥६८ ॥
ापरे पारदं े ं पा थवं तु कलौ युग।े
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यथासव पचारै भ ासम वतः ॥७३ ॥
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पूजये पा थवं ल ं शा ो व धना नरः।
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प चसू वभागं च पा थवं न वचारयेत् ।।७४ ।।
आकारमा ं रचये सव स दायकम्।
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ख डम कु वाणो नैव पूजाफलं लभेत् ॥७५ ॥
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र नजं हेमजं ल ं पारदं ा टकं तथा।
पा थवं प जं पौ यं माषजं तु कारयेत् ॥७६ ॥
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चर ल को जो दो ख ड म बनाते ह उन मूढ़ को
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पूजाफल नह मलता। इस लये शा ो व ध से
ख ड चर ल और अख ड ावर ल बनावे।
gm
अख ड चर ल का पूजन स ूण फलदायक होता है।
ख ड ावर ल पूजा से भी स ूण फल मलता है।
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ख ड चर ल क पूजा से महाहा न होती है। अख ड
ावर ल म पूजा से फल नह मलता।
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ख डं तु चरं ल ं कु व ानमो हतः।
ail
नैव स ा तवे ारो मुनयः शा पारगाः ।।८१ ।।
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अख डं ावरं ल ं ख डं चरमेव च।
ये कु व त नरा मूढा न पूजाफलमा ुयुः ॥८२ ॥
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त मा ा ो व धना ख डं चरसं तम्।
an
वख डं ावरं ल ं कत ं परया मुदा ॥८३ ॥
अख डे तु चरे पूजा स ूणफलदा मृता।
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आ द शंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661