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sanskritbhasi.blogspot.com/2014/03/part-2.html
आचायािद वरण
नवरा ी दुगामहापूजा म बा ण के वरण हे तु सं क प - 'अ ामु कगो ो शमाहं (वमाहम् गु ताहं वा)
चतु िवधपु षाथिस थं सं व सरसु ख ाि तकामो दुगा ीितकामो वा अ भृ ित महानवमीपय तं यहं
वािषकशर कालीन (वा वास तीयकालीन) दुगामहापूजापूवकं नवाणम जपसिहतं
च डीस तशतीपाठकरणाथं एिभग ध - पु प, ता बूल, कम डलु ,
मु िदकासनमालावासोिभरमु कगो ममु कशमाणं बा णं भव तं वृ णे' यह सं क प करे ।
िदग् र ण
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बाय हाथ म वे त सरस अथवा अ त ले कर िदग ण करे ।
िफर बाय हाथ म वे त सरस ले कर 'ॐ अपसप तु ये भूताः' इ यािद लोक कहकर सब िदशाओं म सरस
िबखे र कर
अथवा
ऊ वं गोव नो र े दध ता ु ि िव मः।
भूतो सारण
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सवषामिवरोधे न शाि तकम समारभे त।् ।
उपयु त लोक पढ़कर बाय हाथ, पाँव को तीन बार भूिम पर पटक।
र ाब धन
यजमान तीन धागा वाला लाल सू ा एवं थोड़ा द य बाय हाथ म ले कर एवं दािहने हाथ से ढककर ‘ॐ हुं फट् ’
यह मं तीन बार करके उस सू ा को गणपित के चरण म िनवे िदत कर। पु नः ग ध पु प से उसकी पूजा कर।
िफर यह सू ा गणपित के अनु गह से ा त हआ
ु ऐसा समझते हए ु अ य दे व को भी िनवे िदत कर। पु नः आचाय
सिहत अ य िव के सीधे दािहने हाथ म िन न मं से बां धे -
उसके बाद आचाय भी यजमान के दािहने हाथ म और यजमान प नी के बां य हाथ म िन न मं पढ़ते हुए
अिभम ाित र ा सू बां ध।
व ण कलश थापन
कलश थािपत िकये जाने वाली भूिम पर रोली से अ टदल कमल बनाकर उ ान हाथ से भूिम का पश कर-
ॐ मही ौः पृ िथवी चन इमं य ं िमिम ताम्। िपपृ ता नो भरीमिभः।।
कलश म वि तक का िच बनाकर तीन धागे वाली मौली को उसम लपटे । पु नः धातु या िमट् टी के कलश को
जौ के ऊपर ‘आ िजघ ’ इस मं को पढ़कर थािपत कर।-
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कलश म ग ध (रोरी) डाल -ॐ ग ध ारां दुराधषां िन यपु टां करीिषणीम्। ई वरीं सवभूतानां तािमहोप ये
ि यम्।
च दन ले पकर सवौषिध डाल। ॐ या ओषधीः पूवा जाता दे वे य ाियु गं पु रा। मनै नु बभूणामहं शतं धामािन
स त च।।
ू ा डाल- ॐ का डा का डा
दव रोह ती प षः प ष पिर। एवानो दवू तनु सह े ण शते न च।।
पूगीफल डाल- ॐ याः फिलनीया अफला अपु पाया च पु ि पणीः। बृ ह पित सूता ता नो मु च व Ủ
हसः।।
दि णा डाल-ॐ िहर यगभः समवततागे भूत य जातः पितरे क आसीत्। सदाधार पृ िथवीं ामु तेमां क मै
दे वाय हिवषा िवधे म।।
यानम्-व णः पाशभू सौ यः ती यां मकरा यः। पाशह ता मको दे वो जलरा यिधपो महान्।।
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गङ्गा आिद निदय का आवाहन-ॐ सव समु दाः सिरत तीथािन जलदा नदाः।
पु नः कलश पर अ त छींट।-ॐ ऋ वे दाय नमः। ॐ यजु वदाय नमः। ॐ सामवे दाय नमः। ॐ
अथववे दाय नमः। ॐ कलशाय नमः। ॐ दाय नमः। ॐ समु दाय नमः। ॐ गङ्गायै नमः। ॐ यमु नायै
नमः। ॐ सर व यै नमः। ॐ कलशकु भाय नमः।
साि न यं कु मे दे व स नो भव सवदा।।
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जल ले कर-ॐ अनया पूजया कलशे व णा ावािहतदे वताः ीय ताम् यह पढ़कर जल छोड़ द। इित
कलशपूजािविध।
नोट- आगे की िविध के िलए पु याहवाचन पर ि लक कर
जगदान द झा
लखनऊ म शासिनक अिधकारी के पदभार गहण से पूव सामियक िवषय पर किवता,िनब ध ले खन करता
रहा। सं कृत के सामािजक सरोकार से जु डा रहा। सं कृत िव ा म महती अिभ िच के कारण अबतक चार
ग थ का स पादन। सं कृत को अ तजाल के मा यम से ये क लाभाथी तक पहुँचाने की िजद। सं कृत के
सार एवं िवकास के िलए लॉग तक चला आया। मेरे अपने ि य शतािधक वै चािरक िनब ध, िह दी
किवताएँ , 21 हजार से अिधक सं कृत पु तक, 100 से अिधक सं कृत िव ान की जीवनी, याकरण आिद
शा ीय िवषय की पिरचचा, िश ण- िश ण और भी बहुत कुछ मु झे एक दस ू री ही दुिनया म खींच ले जाते
है । सं कृत की वतमान सम या एवं वृह म सािह य को अपने अ दर महसूस कर अपने आप को अिभ य त
करने की इ छा बलवती हो जाती है। मु झे इस े म काय करने एवं सं कृत िव ा अ ययन को उ सु क
समु दाय को ने तृ व दान करने म अ य त सु खद आन द का अनु भव होता है । दरू भाष - 73 8888 33 06
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