Professional Documents
Culture Documents
महाभारत
(अनुशासनपवर् – आ�मे�धकपवर्)
(अनुगीतापव)
षोडशोऽ यायः
अजुनका ीकृ णसे गीताका वषय पूछना और
ीकृ णका अजुनसे स , मह ष एवं का यपका संवाद
सुनाना
जनमेजय उवाच
सभायां वसतो त नह यारीन् महा मनोः ।
केशवाजुनयोः का नु कथा समभवद् ज ।। १ ।।
जनमेजयने पूछा— न्! श ु का नाश करके जब महा मा ीकृ ण और अजुन
सभाभवनम रहने लगे, उन दन उन दोन म या- या बातचीत ई? ।। १ ।।
वैश पायन उवाच
कृ णेन स हतः पाथः वं रा यं ा य केवलम् ।
त यां सभायां द ायां वजहार मुदा युतः ।। २ ।।
वैश पायनजीने कहा—राजन्! ीकृ णके स हत अजुनने जब केवल अपने रा यपर
पूरा अ धकार ा त कर लया, तब वे उस द सभाभवनम आन दपूवक रहने
लगे ।। २ ।।
त कं चत् सभो े शं वग े शसमं नृप ।
य छया तौ मु दतौ ज मतुः वजनावृतौ ।। ३ ।।
नरे र! एक दन वहाँ वजन से घरे ए वे दोन म वे छासे घूमते-घामते
सभाम डपके एक ऐसे भागम प ँचे, जो वगके समान सु दर था ।। ३ ।।
ततः तीतः कृ णेन स हतः पा डवोऽजुनः ।
नरी य तां सभां र या मदं वचनम वीत् ।। ४ ।।
पा डु न दन अजुन भगवान् ीकृ णके साथ रहकर ब त स थे। उ ह ने एक बार
उस रमणीय सभाक ओर डालकर भगवान् ीकृ णसे कहा— ।। ४ ।।
व दतं मे महाबाहो सं ामे समुप थते ।
माहा यं दे वक मात त च ते पमै रम् ।। ५ ।।
‘महाबाहो! दे वक न दन! जब सं ामका समय उप थत था, उस समय मुझे आपके
माहा यका ान और ई रीय व पका दशन आ था ।। ५ ।।
यत् तद् भगवता ो ं पुरा केशव सौ दात् ।
तत् सव पु ष ा न ं मे चेतसः ।। ६ ।।
‘ कतु केशव! आपने सौहादवश पहले मुझे जो ानका उपदे श दया था, मेरा वह सब
ान इस समय वच लत- च हो जानेके कारण न हो गया (भूल गया) है ।। ६ ।।
मम कौतूहलं व त ते वथषु पुनः पुनः ।
भवां तु ारकां ग ता न चरा दव माधव ।। ७ ।।
‘माधव! उन वषय को सुननेके लये मेरे मनम बारंबार उ क ठा होती है। इधर आप
ज द ही ारका जानेवाले ह; अतः पुनः वह सब वषय मुझे सुना द जये’ ।। ७ ।।
वैश पायन उवाच
एवमु तु तं कृ णः फा गुनं यभाषत ।
प र व य महातेजा वचनं वदतां वरः ।। ८ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! अजुनके ऐसा कहनेपर व ा म े महातेज वी
भगवान् ीकृ णने उ ह गलेसे लगाकर इस कार उ र दया ।। ८ ।।
वासुदेव उवाच
ा वत वं मया गु ं ा पत सनातनम् ।
धम व पणं पाथ सवलोकां शा तान् ।। ९ ।।
अबु या ना हीय वं त मे सुमहद यम् ।
न च सा पुनभूयः मृ तम स भ व य त ।। १० ।।
ीकृ ण बोले—अजुन! उस समय मने तु ह अ य त गोपनीय ानका वण कराया
था, अपने व पभूत धम-सनातन पु षो मत वका प रचय दया था और (शु ल-कृ ण
ग तका न पण करते ए) स पूण न य लोक का भी वणन कया था; कतु तुमने जो
अपनी नासमझीके कारण उस उपदे शको याद नह रखा, यह मुझे ब त अ य है। उन
बात का अब पूरा-पूरा मरण होना स भव नह जान पड़ता ।। ९-१० ।।
नूनम धानोऽ स मधा स पा डव ।
न च श यं पुनव ु मशेषेण धनंजय ।। ११ ।।
पा डु न दन! न य ही तुम बड़े ाहीन हो, तु हारी बु ब त म द जान पड़ती है।
धनंजय! अब म उस उपदे शको य -का- य नह कह सकता ।। ११ ।।
स ह धमः सुपया तो णः पदवेदने ।
न श यं त मया भूय तथा व ु मशेषतः ।। १२ ।।
य क वह धम पदक ा त करानेके लये पया त था, वह सारा-का-सारा धम
उसी पम फर हरा दे ना अब मेरे वशक बात भी नह है ।। १२ ।।
परं ह क थतं योगयु े न त मया ।
इ तहासं तु व या म त म थ पुरातनम् ।। १३ ।।
उस समय योगयु होकर मने परमा मत वका वणन कया था। अब उस वषयका
ान करानेके लये म एक ाचीन इ तहासका वणन करता ँ ।। १३ ।।
यथा तां बु मा थाय ग तम यां ग म य स ।
शृणु धमभृतां े ग दतं सवमेव मे ।। १४ ।।
जससे तुम उस सम वबु का आ य लेकर उ म ग त ा त कर लोगे। धमा मा म
े अजुन! अब तुम मेरी सारी बात यान दे कर सुनो ।। १४ ।।
आग छद् ा णः क त् वगलोकाद रदम ।
लोका च धषः सोऽ मा भः पू जतोऽभवत् ।। १५ ।।
अ मा भः प रपृ यदाह भरतषभ ।
द ेन व धना पाथ त छृ णु वा वचारयन् ।। १६ ।।
श ुदमन! एक दनक बात है, एक धष ा ण लोकसे उतरकर वगलोकम
होते ए मेरे यहाँ आये। मने उनक व धवत् पूजा क और मो धमके वषयम कया।
भरत े ! मेरे का उ ह ने सु दर व धसे उ र दया। पाथ! वही म तु ह बतला रहा ँ।
कोई अ यथा वचार न करके इसे यान दे कर सुनो ।। १५-१६ ।।
ा ण उवाच
मो धम समा य कृ ण य मामपृ छथाः ।
भूतानामनुक पाथ य मोह छे दनं वभो ।। १७ ।।
तत् तेऽहं स व या म यथाव मधुसूदन ।
शृणु वाव हतो भू वा गदतो मम माधव ।। १८ ।।
ा णने कहा— ीकृ ण! मधुसूदन! तुमने सब ा णय पर कृपा करके उनके
मोहका नाश करनेके लये जो यह मो -धमसे स ब ध रखनेवाला कया है, उसका म
यथावत् उ र दे रहा ँ। भो! माधव! सावधान होकर मेरी बात वण करो ।। १७-१८ ।।
क द् व तपोयु ः का यपो धम व मः ।
आससाद जं कं चद् धमाणामागतागमम् ।। १९ ।।
गतागते सुब शो ान व ानपारगम् ।
लोकत वाथकुशलं ाताथ सुख ःखयोः ।। २० ।।
जातीमरणत व ं को वदं पापपु ययोः ।
ारमु चनीचानां कम भद हनां ग तम् ।। २१ ।।
ाचीन समयम का यप नामके एक धम और तप वी ा ण कसी स मह षके
पास गये; जो धमके वषयम शा के स पूण रह य को जाननेवाले, भूत और भ व यके
ान- व ानम वीण, लोक-त वके ानम कुशल, सुख- ःखके रह यको समझनेवाले,
ज म-मृ युके त व , पाप-पु यके ाता और ऊँच-नीच ा णय को कमानुसार ा त
होनेवाली ग तके य ा थे ।। १९—२१ ।।
चर तं मु व स ं शा तं संयते यम् ।
द यमानं या ा या ममाणं च सवशः ।। २२ ।।
अ तधानग त ं च ु वा त वेन का यपः ।
तथैवा त हतैः स ै या तं च धरैः सह ।। २३ ।।
स भाषमाणमेका ते समासीनं च तैः सह ।
य छया च ग छ तमस ं पवनं यथा ।। २४ ।।
वे मु क भाँ त वचरनेवाले, स , शा त च , जते य, तेजसे दे द यमान,
सव घूमनेवाले और अ तधान व ाके ाता थे। अ य रहनेवाले च धारी स के साथ
वे वचरते, बातचीत करते और उ ह के साथ एका तम बैठते थे। जैसे वायु कह आस न
होकर सव वा हत होती है, उसी तरह वे सव अनास भावसे व छ दतापूवक वचरा
करते थे। मह ष का यप उनक उपयु म हमा सुनकर ही उनके पास गये थे ।। २२—
२४ ।।
तं समासा मेधावी स तदा जस मः ।
चरणौ धमकामोऽ य तप वी सुसमा हतः ।
तपेदे यथा यायं ् वा त महद तम् ।। २५ ।।
व मत ा तं ् वा का यप तद् जो मम् ।
प रचारेण महता गु ं तं पयतोषयत् ।। २६ ।।
उपप ं च त सव ुतचा र संयुतम् ।
भावेनातोषय चैनं गु वृ या परंतपः ।। २७ ।।
नकट जाकर उन मेधावी, तप वी, धमा भलाषी और एका च मह षने यायानुसार
उन स महा माके चरण म णाम कया। वे ा ण म े और बड़े अद्भुत संत थे।
उनम सब कारक यो यता थी। वे शा के ाता और स च र थे। उनका दशन करके
का यपको बड़ा व मय आ। वे उ ह गु मानकर उनक सेवाम लग गये और अपनी
शु ूषा, गु भ तथा ाभावके ारा उ ह ने उन स महा माको संतु कर
लया ।। २५—२७ ।।
त मै तु ः स श याय स ो वा यम वीत् ।
स पराम भ े य शृणु म ो जनादन ।। २८ ।।
जनादन! अपने श य का यपके ऊपर स होकर उन स मह षने परा स के
स ब धम वचार करके जो उपदे श कया, उसे बताता ँ, सुनो ।। २८ ।।
स उवाच
व वधैः कम भ तात पु ययोगै केवलैः ।
ग छ तीह ग त म या दे वलोके च सं थ तम् ।। २९ ।।
स ने कहा—तात का यप! मनु य नाना कारके शुभ कम का अनु ान करके
केवल पु यके संयोगसे इस लोकम उ म फल और दे वलोकम थान ा त करते
ह ।। २९ ।।
न व चत् सुखम य तं न व च छा ती थ तः ।
थाना च महतो ंशो ःखल धात् पुनः पुनः ।। ३० ।।
जीवको कह भी अ य त सुख नह मलता। कसी भी लोकम वह सदा नह रहने
पाता। तप या आ दके ारा कतने ही क सहकर बड़े-से-बड़े थानको य न ा त
कया जाय, वहाँसे भी बार-बार नीचे आना ही पड़ता है ।। ३० ।।
अशुभा गतयः ा ताः क ा मे पापसेवनात् ।
कामम युपरीतेन तृ णया मो हतेन च ।। ३१ ।।
मने काम- ोधसे यु और तृ णासे मो हत होकर अनेक बार पाप कये ह और उनके
सेवनके फल व प घोर क दे नेवाली अशुभ ग तय को भोगा है ।। ३१ ।।
पुनः पुन मरणं ज म चैव पुनः पुनः ।
आहारा व वधा भु ाः पीता नाना वधाः तनाः ।। ३२ ।।
बार-बार ज म और बार-बार मृ युका लेश उठाया है। तरह-तरहके आहार हण
कये और अनेक तन का ध पीया है ।। ३२ ।।
मातरो व वधा ाः पतर पृथ वधाः ।
सुखा न च व च ा ण ःखा न च मयानघ ।। ३३ ।।
अनघ! ब त-से पता और भाँ त-भाँ तक माताएँ दे खी ह। व च - व च सुख-
ःख का अनुभव कया है ।।
यै ववासो ब शः संवास ा यैः सह ।
धननाश स ा तो ल वा ःखेन तद् धनम् ।। ३४ ।।
कतनी ही बार मुझसे यजन का वयोग और अ य जन का संयोग आ है। जस
धनको मने ब त क सहकर कमाया था, वह मेरे दे खते-दे खते न हो गया है ।। ३४ ।।
अवमानाः सुक ा राजतः वजनात् तथा ।
शारीरा मानसा वा प वेदना भृशदा णाः ।। ३५ ।।
राजा और वजन क ओरसे मुझे कई बार बड़े-बड़े क और अपमान उठाने पड़े ह।
तन और मनक अ य त भयंकर वेदनाएँ सहनी पड़ी ह ।। ३५ ।।
ा ता वमानना ो ा वधब धा दा णाः ।
पतनं नरये चैव यातना यम ये ।। ३६ ।।
मने अनेक बार घोर अपमान, ाणद ड और कड़ी कैदक सजाएँ भोगी ह। मुझे
नरकम गरना और यमलोकम मलनेवाली यातना को सहना पड़ा है ।। ३६ ।।
जरा रोगा सततं सना न च भू रशः ।
लोकेऽ म नुभूता न जा न भृशं मया ।। ३७ ।।
इस लोकम ज म लेकर मने बारंबार बुढ़ापा, रोग, सन और राग- े षा द के
चुर ःख सदा ही भोगे ह ।। ३७ ।।
ततः कदा च वदा राकारा तेन च ।
लोकत ं प र य ं ःखातन भृशं मया ।। ३८ ।।
इस कार बारंबार लेश उठानेसे एक दन मेरे मनम बड़ा खेद आ और म ख से
घबराकर नराकार परमा माक शरण ली तथा सम त लोक वहारका प र याग कर
दया ।। ३८ ।।
लोकेऽ म नुभूयाह ममं मागमनु तः ।
ततः स रयं ा ता सादादा मनो मया ।। ३९ ।।
इस लोकम अनुभवके प ात् मने इस मागका अवल बन कया है और अब
परमा माक कृपासे मुझे यह उ म स ा त ई है ।। ३९ ।।
नाहं पुन रहाग ता लोकानालोकया यहम् ।
आ स े रा जासगादा मनोऽ प गताः शुभाः ।। ४० ।।
अब म पुनः इस संसारम नह आऊँगा। जबतक यह सृ कायम रहेगी और जबतक
मेरी मु नह हो जायगी, तबतक म अपनी और सरे ा णय क शुभग तका अवलोकन
क ँ गा ।। ४० ।।
उपल धा ज े तथेयं स मा ।
इतः परं ग म या म ततः परतरं पुनः ।। ४१ ।।
णः पदम ं मा तेऽभूद संशयः ।
नाहं पुन रहाग ता म यलोकं परंतप ।। ४२ ।।
ज े ! इस कार मुझे यह उ म स मली है। इसके बाद म उ म लोकम
जाऊँगा। फर उससे भी परम उ कृ स यलोकम जा प ँचूँगा और मशः अ पद
(मो )-को ा त कर लूँगा। इसम तु ह संशय नह करना चा हये। काम- ोध आ द
श ु को संताप दे नेवाले का यप! अब म पुनः इस म यलोकम नह आऊँगा ।। ४१-४२ ।।
ीतोऽ म ते महा ा ू ह क करवा ण ते ।
यद सु पप वं त य कालोऽयमागतः ।। ४३ ।।
महा ा ! म तु हारे ऊपर ब त स ँ। बोलो, तु हारा कौन-सा य काय क ँ ?
तुम जस व तुको पानेक इ छासे मेरे पास आये हो, उसके ा त होनेका यह समय आ
गया है ।। ४३ ।।
अ भजाने च तदहं यदथ मामुपागतः ।
अ चरात् तु ग म या म तेनाहं वामचूचुदम् ।। ४४ ।।
तु हारे आनेका उ े य या है, इसे म जानता ँ और शी ही यहाँसे चला जाऊँगा।
इसी लये मने वयं तु ह करनेके लये े रत कया है ।। ४४ ।।
भृशं ीतोऽ म भवत ा र ेण वच ण ।
प रपृ छ व कुशलं भाषेयं यत् तवे सतम् ।। ४५ ।।
व न्! तु हारे उ म आचरणसे मुझे बड़ा संतोष है। तुम अपने क याणक बात पूछो।
म तु हारे अभी का उ र ँ गा ।। ४५ ।।
ब म ये च ते बु भृशं स पूजया म च ।
येनाहं भवता बु ो मेधावी स का यप ।। ४६ ।।
का यप! म तु हारी बु क सराहना करता और उसे ब त आदर दे ता ँ। तुमने मुझे
पहचान लया है, इसीसे कहता ँ क बड़े बु मान् हो ।। ४६ ।।
इ त ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण षोडशोऽ यायः ।। १६ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम सोलहवाँ अ याय पूरा
आ ।। १६ ।।
स तदशोऽ यायः
का यपके के उ रम स महा मा ारा जीवक
व वध ग तय का वणन
वासुदेव उवाच
तत त योपसंगृ पादौ ान् सु वचान् ।
प छ तां धमान् स ाह धमभृतां वरः ।। १ ।।
भगवान् ीकृ णने कहा—तदन तर धमा मा म े का यपने उन स
महा माके दोन पैर पकड़कर जनका उ र क ठनाईसे दया जा सके, ऐसे ब त-से
धमयु पूछे ।। १ ।।
का यप उवाच
कथं शरीरं यवते कथं चैवोपप ते ।
कथं क ा च संसारात् संसरन् प रमु यते ।। २ ।।
का यपने पूछा—महा मन्! यह शरीर कस कार गर जाता है? फर सरा शरीर
कैसे ा त होता है? संसारी जीव कस तरह इस ःखमय संसारसे मु होता है? ।। २ ।।
आ मा च कृ त मु वा त छरीरं वमु च त ।
शरीरत नमु ः कथम यत् प ते ।। ३ ।।
जीवा मा कृ त (मूल व ा) और उससे उ प होनेवाले शरीरका कैसे याग करता
है? और शरीरसे छू टकर सरेम वह कस कार वेश करता है? ।। ३ ।।
कथं शुभाशुभे चायं कमणी वकृते नरः ।
उपभुङ् े व वा कम वदे ह याव त ते ।। ४ ।।
मनु य अपने कये ए शुभाशुभ कम का फल कैसे भोगता है और शरीर न रहनेपर
उसके कम कहाँ रहते ह? ।। ४ ।।
ा ण उवाच
एवं संचो दतः स ः ां तान् यभाषत ।
आनुपू ण वा णय त मे नगदतः शृणु ।। ५ ।।
ा ण कहते ह—वृ णन दन ीकृ ण! का यपके इस कार पूछनेपर स
महा माने उनके का मशः उ र दे ना आर भ कया। वह म बता रहा ँ,
सु नये ।। ५ ।।
स उवाच
आयुःक तकराणीह या न कृ या न सेवते ।
शरीर हणे य मं तेषु ीणेषु सवशः ।। ६ ।।
आयुः यपरीता मा वपरीता न सेवते ।
बु ावतते चा य वनाशे युप थते ।। ७ ।।
स ने कहा—का यप! मनु य इस लोकम आयु और क तको बढ़ानेवाले जन
कम का सेवन करता है, वे शरीर- ा तम कारण होते ह। शरीर- हणके अन तर जब वे
सभी कम अपना फल दे कर ीण हो जाते ह, उस समय जीवक आयुका भी य हो जाता
है। उस अव थाम वह वपरीत कम का सेवन करने लगता है और वनाशकाल नकट
आनेपर उसक बु उलट हो जाती है ।। ६-७ ।।
स वं बलं च कालं च व द वा चा मन तथा ।
अ तवेलमुपा ा त व व ा यना मवान् ।। ८ ।।
वह अपने स व (धैय), बल और अनुकूल समयको जानकर भी मनपर अ धकार न
होनेके कारण असमयम तथा अपनी कृ तके व भोजन करता है ।। ८ ।।
यदायम तक ा न सवा युप नषेवते ।
अ यथम प वा भुङ् े न वा भुङ् े कदाचन ।। ९ ।।
अ य त हा न प ँचानेवाली जतनी व तुएँ ह, उन सबका वह सेवन करता है। कभी तो
ब त अ धक खा लेता है, कभी बलकुल ही भोजन नह करता है ।। ९ ।।
ा ा मषपानं च यद यो य वरो ध च ।
गु चा य मतं भुङ् े ना तजीणऽ प वा पुनः ।। १० ।।
कभी षत खा अ -पानको भी हण कर लेता है, कभी एक- सरेसे व
गुणवाले पदाथ को एक साथ खा लेता है। कसी दन ग र अ और वह भी ब त अ धक
मा ाम खा जाता है। कभी-कभी एक बारका खाया आ अ पचने भी नह पाता क
बारा भोजन कर लेता है ।। १० ।।
ायामम तमा ं च वायं चोपसेवते ।
सततं कमलोभाद् वा ा तं वेगं वधारयेत् ।। ११ ।।
अ धक मा ाम ायाम और ी-स भोग करता है। सदा काम करनेके लोभसे मल-
मू के वेगको रोके रहता है ।। ११ ।।
रसा भयु म ं वा दवा व ं च सेवते ।
अप वानागते काले वयं दोषान् कोपयेत् ।। १२ ।।
रसीला अ खाता और दनम सोता है तथा कभी-कभी खाये ए अ के पचनेके
पहले असमयम भोजन करके वयं ही अपने शरीरम थत वात- प आ द दोष को
कु पत कर दे ता है ।। १२ ।।
वदोषकोपनाद् रोगं लभते मरणा तकम् ।
अ प वो धनाद न परीता न व य त ।। १३ ।।
उन दोष के कु पत होनेसे वह अपने लये ाणनाशक रोग को बुला लेता है। अथवा
फाँसी लगाने या जलम डू बने आ द शा व उपाय का आ य लेता है ।। १३ ।।
त य तैः कारणैज तोः शरीरं यवते तदा ।
जी वतं ो यमानं तद् यथाव पधारय ।। १४ ।।
इ ह सब कारण से जीवका शरीर न हो जाता है। इस कार जो जीवका जीवन
बताया जाता है, उसे अ छ तरह समझ लो ।। १४ ।।
ऊ मा कु पतः काये ती वायुसमी रतः ।
शरीरमनुपय य सवान् ाणान् ण वै ।। १५ ।।
शरीरम ती वायुसे े रत हो प का कोप बढ़ जाता है और वह शरीरम फैलकर
सम त ाण क ग तको रोक दे ता है ।। १५ ।।
अ यथ बलवानू मा शरीरे प रको पतः ।
भन जीव थाना न ममा ण व त वतः ।। १६ ।।
इस शरीरम कु पत होकर अ य त बल आ प जीवके मम थान को वद ण कर
दे ता है। इस बातको ठ क समझो ।। १६ ।।
ततः सवेदनः स ो जीवः यवते रात् ।
शरीरं यजते ज तु छ मानेषु ममसु ।। १७ ।।
जब मम थान छ - भ होने लगते ह, तब वेदनासे थत आ जीव त काल इस
जड शरीरसे नकल जाता है। उस शरीरको सदाके लये याग दे ता है ।। १७ ।।
वेदना भः परीता मा तद् व जस म ।
जातीमरणसं व नाः सततं सवज तवः ।। १८ ।।
ज े ! मृ युकालम जीवका तन-मन वेदनासे थत होता है, इस बातको
भलीभाँ त जान लो। इस तरह संसारके सभी ाणी सदा ज म और मरणसे उ न रहते
ह ।। १८ ।।
य ते सं यज त शरीरा ण जषभ ।
गभसं मणे चा प ममणाम तसपणे ।। १९ ।।
ता शीमेव लभते वेदनां मानवः पुनः ।
भ सं धरथ लेदम ः स लभते नरः ।। २० ।।
व वर! सभी जीव अपने शरीर का याग करते दे खे जाते ह। गभम मनु य वेश
करते समय तथा गभसे नीचे गरते समय भी वैसी ही वेदनाका अनुभव करता है। मृ यु-
कालम जीव के शरीरक स धयाँ टू टने लगती ह और ज मके समय वह गभ थ जलसे
भीगकर अ य त ाकुल हो उठता है ।। १९-२० ।।
यथा प चसु भूतेषु स भूत वं नय छ त ।
शै यात् कु पतः काये ती वायुसमी रतः ।। २१ ।।
यः स प चसु भूतेषु ाणापाने व थतः ।
स ग छ यू वगो वायुः कृ ा मु वा शरी रणः ।। २२ ।।
अ य कारक ती वायुसे े रत हो शरीरम सद से कु पत ई जो वायु पाँच भूत म
ाण और अपानके थानम थत है, वही प चभूत के संघातका नाश करती है तथा वह
दे हधा रय को बड़े क से यागकर ऊ वलोकको चली जाती है ।। २१-२२ ।।
शरीरं च जहा येवं न छ् वास यते ।
स न मा न छ् वासो नः ीको हतचेतनः ।। २३ ।।
णा स प र य ो मृत इ यु यते नरैः ।
इस कार जब जीव शरीरका याग करता है, तब ा णय का शरीर उ छ् वासहीन
दखायी दे ता है। उसम गम , उ छ् वास, शोभा और चेतना कुछ भी नह रह जाती। इस
तरह जीवा मासे प र य उस शरीरको लोग मृत (मरा आ) कहते ह ।। २३ ।।
ोतो भय वजाना त इ याथान् शरीरभृत् ।। २४ ।।
तैरेव न वजाना त ाणानाहारस भवान् ।
त ैव कु ते काये यः स जीवः सनातनः ।। २५ ।।
दे हधारी जीव जन इ य के ारा प, रस आ द वषय का अनुभव करता है, उनके
ारा वह भोजनसे प रपु होनेवाले ाण को नह जान पाता। इस शरीरके भीतर रहकर
जो काय करता है, वह सनातन जीव है ।। २४-२५ ।।
तथा य द् भवेद ् यु ं सं नपाते व चत् व चत् ।
त मम वजानी ह शा ं ह तत् तथा ।। २६ ।।
कह -कह सं ध थान म जो-जो अंग संयु होता है, उस-उसको तुम मम समझो;
य क शा म मम थानका ऐसा ही ल ण दे खा गया है ।। २६ ।।
तेषु ममसु भ ेषु ततः स समुद रयन् ।
आ व य दयं ज तोः स वं चाशु ण वै ।। २७ ।।
उन मम थान (सं धय )-के वलग होनेपर वायु ऊपरको उठती ई ाणीके दयम
व हो शी ही उसक बु को अव कर लेती है ।। २७ ।।
ततः सचेतनो ज तुना भजाना त कचन ।
तमसा संवृत ानः संवृते वेव ममसु ।
स जीवो नर ध ान ा यते मात र ना ।। २८ ।।
तब अ तकाल उप थत होनेपर ाणी सचेतन होनेपर भी कुछ समझ नह पाता;
य क तम (अ व ा)-के ारा उसक ानश आवृ हो जाती है। मम थान भी अव
हो जाते ह। उस समय जीवके लये कोई आधार नह रह जाता और वायु उसे अपने
थानसे वच लत कर दे ती है ।। २८ ।।
ततः स तं महो छ् वासं भृशमु छ् व य दा णम् ।
न ामन् क पय याशु त छरीरमचेतनम् ।। २९ ।।
तब वह जीवा मा बारंबार भयंकर एवं लंबी साँस छोड़कर बाहर नकलने लगता है।
उस समय सहसा इस जड शरीरको क पत कर दे ता है ।। २९ ।।
स जीवः युतः कायात् कम भः वैः समावृतः ।
अ भतः वैः शुभैः पु यैः पापैवा युपप ते ।। ३० ।।
शरीरसे अलग होनेपर वह जीव अपने कये ए शुभकाय पु य अथवा अशुभ काय
पापकम ारा सब ओरसे घरा रहता है ।। ३० ।।
ा णा ानस प ा यथाव छत न याः ।
इतरं कृतपु यं वा तं वजान त ल णैः ।। ३१ ।।
ज ह ने वेद-शा के स ा त का यथावत् अ ययन कया है, वे ानस प ा ण
ल ण के ारा यह जान लेते ह क अमुक जीव पु या मा रहा है और अमुक जीव
पापी ।। ३१ ।।
यथा धकारे ख ोतं लीयमानं तत ततः ।
च ु म तः प य त तथा च ानच ुषः ।। ३२ ।।
प य येवं वधं स ा जीवं द ेन च ुषा ।
यव तं जायमानं च यो न चानु वे शतम् ।। ३३ ।।
जस तरह आँखवाले मनु य अँधेरेम इधर-उधर उगते-बुझते ए ख ोतको दे खते ह,
उसी कार ान-ने वाले स पु ष अपनी द से ज मते, मरते तथा गभम वेश
करते ए जीवको सदा दे खते रहते ह ।। ३२-३३ ।।
त य थाना न ा न वधानीह शा तः ।
कमभू म रयं भू मय त त ज तवः ।। ३४ ।।
शा के अनुसार जीवके तीन कारके थान दे खे गये ह (मृ युलोक, वगलोक और
नरक)। यह म यलोकक भू म जहाँ ब त-से ाणी रहते ह, कमभू म कहलाती है ।। ३४ ।।
ततः शुभाशुभं कृ वा लभ ते सवदे हनः ।
इहैवो चावचान् भोगान् ा ुव त वकम भः ।। ३५ ।।
अतः यहाँ शुभ और अशुभ कम करके सब मनु य उसके फल व प अपने कम के
अनुसार अ छे -बुरे भोग ा त करते ह ।। ३५ ।।
इहैवाशुभकमाणः कम भ नरयं गताः ।
अवा ग त रयं क ा य प य त मानवाः ।
त मात् सु लभो मो ो र य ा मा ततो भृशम् ।। ३६ ।।
यह पाप करनेवाले मानव अपने कम के अनुसार नरकम पड़ते ह। यह जीवक
अधोग त है जो घोर क दे नेवाली है। इसम पड़कर पापी मनु य नरका नम पकाये जाते
ह। उससे छु टकारा मलना ब त क ठन है। अतः (पापकमसे र रहकर) अपनेको नरकसे
बचाये रखनेका वशेष य न करना चा हये ।। ३६ ।।
ऊ व तु ज तवो ग वा येषु थाने वव थताः ।
क यमाना न तानीह त वतः सं नबोध मे ।। ३७ ।।
वग आ द ऊ वलोक म जाकर ाणी जन थान म नवास करते ह, उनका यहाँ
वणन कया जाता है, इस वषयको यथाथ पसे मुझसे सुनो ।। ३७ ।।
न छ वा नै क बु बु येथाः कम न यम् ।
तारा पा ण सवा ण य ैत च म डलम् ।। ३८ ।।
य व ाजते लोके वभासा सूयम डलम् ।
थाना येता न जानी ह जनानां पु यकमणाम् ।। ३९ ।।
इसको सुननेसे तु ह कम क ग तका न य हो जायगा और नै क बु ा त होगी।
जहाँ ये सम त तारे ह, जहाँ वह च म डल का शत होता है और जहाँ सूयम डल
जगत्म अपनी भासे उ ा सत हो रहा है, ये सब-के-सब पु यकमा पु ष के थान ह,
ऐसा जानो [पु या मा मुन य उ ह लोक म जाकर अपने पु य का फल भोगते
ह] ।। ३८-३९ ।।
कम या च ते सव यव ते वै पुनः पुनः ।
त ा प च वशेषोऽ त द व नीचो चम यमः ।। ४० ।।
जब जीव के पु यकम का भोग समा त हो जाता है, तब वे वहाँसे नीचे गरते ह। इस
कार बारंबार उनका आवागमन होता रहता है। वगम भी उ म, म यम और अधमका
भेद रहता है ।। ४० ।।
न च त ा प संतोषो ् वा द ततरां यम् ।
इ येता गतयः सवाः पृथ े समुद रताः ।। ४१ ।।
वहाँ भी सर का अपनेसे ब त अ धक द तमान् तेज एवं ऐ य दे खकर मनम संतोष
नह होता है। इस कार जीवक इन सभी ग तय का मने तु हारे सम पृथक्-पृथक् वणन
कया है ।। ४१ ।।
उपप तु व या म गभ याहमतः परम् ।
तथा त मे नगदतः शृणु वाव हतो ज ।। ४२ ।।
अब म यह बतलाऊँगा क जीव कस कार गभम आकर ज म धारण करता है।
न्! तुम एका च होकर मेरे मुखसे इस वषयका वणन सुनो ।। ४२ ।।
इ त ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण स तदशोऽ यायः ।। १७ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम स हवाँ अ याय पूरा
आ ।। १७ ।।
अ ादशोऽ यायः
जीवके गभ- वेश, आचार-धम, कम-फलक अ नवायता
तथा संसारसे तरनेके उपायका वणन
ा ण उवाच
शुभानामशुभानां च नेह नाशोऽ त कमणाम् ।
ा य ा यानुप य ते े ं े ं तथा तथा ।। १ ।।
स ा ण बोले—का यप! इस लोकम कये ए शुभ और अशुभ कम का फल
भोगे बना नाश नह होता। वे कम वैसा-वैसा कमानुसार एकके बाद एक शरीर धारण
कराकर अपना फल दे ते रहते ह ।। १ ।।
यथा सूयमान तु फली द ात् फलं ब ।
तथा याद् वपुलं पु यं शु े न मनसा कृतम् ।। २ ।।
जैसे फल दे नेवाला वृ फलनेका समय आनेपर ब त-से फल दान करता है, उसी
कार शु दयसे कये ए पु यका फल अ धक होता है ।। २ ।।
पापं चा प तथैव यात् पापेन मनसा कृतम् ।
पुरोधाय मनो हीदं कम या मा वतते ।। ३ ।।
इसी तरह कलु षत च से कये ए पापके फलम भी वृ होती है; य क जीवा मा
मनको आगे करके ही येक कायम वृ होता है ।। ३ ।।
यथा कमसमा व ः कामम युसमावृतः ।
नरो गभ वश त त चा प शृणु चो रम् ।। ४ ।।
काम- ोधसे घरा आ मनु य जस कार कमजालम आब होकर गभम वेश
करता है, उसका भी उ र सुनो ।। ४ ।।
शु ं शो णतसंसृ ं या गभाशयं गतम् ।
े ं कमजमा ो त शुभं वा य द वाशुभम् ।। ५ ।।
जीव पहले पु षके वीयम व होता है, फर ीके गभाशयम जाकर उसके रजम
मल जाता है। त प ात् उसे कमानुसार शुभ या अशुभ शरीरक ा त होती है ।। ५ ।।
सौ याद भावा च न च वचन स ज त ।
स ा य ा णः कामं त मात् तद् शा तम् ।। ६ ।।
जीव अपनी इ छाके अनुसार उस शरीरम वेश करके सू म और अ होनेके
कारण कह आस नह होता है; य क वा तवम वह सनातन पर - व प है ।। ६ ।।
तद् बीजं सवभूतानां तेन जीव त ज तवः ।
स जीवः सवगा ा ण गभ या व य भागशः ।। ७ ।।
दधा त चेतसा स ः ाण थाने वव थतः ।
ततः प दयतेऽ ा न स गभ ेतना वतः ।। ८ ।।
वह जीवा मा स पूण भूत क थ तका हेतु है, य क उसीके ारा सब ाणी जी वत
रहते ह। वह जीव गभके सम त अंगम व हो उसके येक अंशम त काल चेतनता ला
दे ता है और वही ाण के थान—व ः थलम थत हो सम त अंग का संचालन करता है।
तभी वह गभ चेतनासे स प होता है ।। ७-८ ।।
यथा लोह य नः य दो न ष ो ब ब व हम् ।
उपै त तद् वजानी ह गभ जीव वेशनम् ।। ९ ।।
जैसे तपाये ए लोहेका व जैसे साँचेम ढाला जाता है उसीका प धारण कर लेता
है, उसी कार गभम जीवका वेश होता है, ऐसा समझो (अथात् जीव जस कारक
यो नम व होता है, उसी पम उसका शरीर बन जाता है) ।। ९ ।।
लोह प डं यथा व ः व य ततापयेत् ।
तथा वम प जानी ह गभ जीवोपपादनम् ।। १० ।।
जैसे आग लोह प डम व होकर उसे ब त तपा दे ती है, उसी कार गभम जीवका
वेश होता है और वह उसम चेतनता ला दे ता है। इस बातको तुम अ छ तरह समझ
लो ।। १० ।।
यथा च द पः शरणे द यमानः काशते ।
एवमेव शरीरा ण काशय त चेतना ।। ११ ।।
जस कार जलता आ द पक समूचे घरम काश फैलाता है, उसी कार जीवक
चैत य श शरीरके सब अवयव को का शत करती है ।। ११ ।।
यद् य च कु ते कम शुभं वा य द वाशुभम् ।
पूवदे हकृतं सवमव यमुपभु यते ।। १२ ।।
मनु य शुभ अथवा अशुभ जो-जो कम करता है, पूव-ज मके शरीरसे कये गये उन
सब कम का फल उसे अव य भोगना पड़ता है ।। १२ ।।
तत तु ीयते चैव पुन ा यत् चीयते ।
यावत् त मो योग थं धम नैवावबु यते ।। १३ ।।
उपभोगसे ाचीन कमका तो य होता है और फर सरे नये-नये कम का संचय बढ़
जाता है। जबतक मो क ा तम सहायक धमका उसे ान नह होता, तबतक यह
कम क पर परा नह टू टती है ।। १३ ।।
त कम व या म सुखी भव त येन वै ।
आवतमानो जातीषु यथा यो यासु स म ।। १४ ।।
साधु शरोमणे! इस कार भ - भ यो नय म मण करनेवाला जीव जनके
अनु ानसे सुखी होता है, उन कम का वणन सुनो ।। १४ ।।
दानं तं चय यथो ं धारणम् ।
दमः शा तता चैव भूतानां चानुक पनम् ।। १५ ।।
संयमा ानृशं यं च पर वादानवजनम्
लीकानामकरणं भूतानां मनसा भु व ।। १६ ।।
माता प ो शु ूषा दे वता त थपूजनम् ।
गु पूजा घृणा शौचं न य म यसंयमः ।। १७ ।।
वतनं शुभानां च तत् सतां वृ मु यते ।
ततो धमः भव त यः जाः पा त शा तीः ।। १८ ।।
दान, त, चय, शा ो री तसे वेदा ययन, इ य न ह, शा त, सम त
ा णय पर दया, च का संयम, कोमलता, सर के धन लेनेक इ छाका याग, संसारके
ा णय का मनसे भी अ हत न करना, माता- पताक सेवा, दे वता, अ त थ और गु क
पूजा, दया, प व ता, इ य को सदा काबूम रखना तथा शुभ कम का चार करना—यह
सब े पु ष का बताव कहलाता है। इनके अनु ानसे धम होता है, जो सदा जावगक
र ा करता है ।। १५—१८ ।।
एवं स सु सदा प येत् त ा येषा ुवा थ तः ।
आचारो धममाच े य मन् शा ता व थताः ।। १९ ।।
स पु ष म सदा ही इस कारका धा मक आचरण दे खा जाता है। उ ह म धमक
अटल थ त होती है। सदाचार ही धमका प रचय दे ता है। शा त च महा मा पु ष
सदाचारम ही थत रहते ह ।। १९ ।।
तेषु तत् कम न तं यः स धमः सनातनः ।
य तं सम भप ेत न स ग तमा ुयात् ।। २० ।।
उ ह म पूव दान आ द कम क थ त है। वे ही कम सनातन धमके नामसे स
ह। जो उस सनातन धमका आ य लेता है, उसे कभी ग त नह भोगनी पड़ती
है ।। २० ।।
अतो नय यते लोकः यवन् धमव मसु ।
य योगी च मु स एते यो व श यते ।। २१ ।।
इसी लये धममागसे होनेवाले लोग का नय ण कया जाता है। जो योगी और
मु है, वह अ य धमा मा क अपे ा े होता है ।। २१ ।।
वतमान य धमण शुभं य यथा तथा ।
संसारतारणं य कालेन महता भवेत् ।। २२ ।।
जो धमके अनुसार बताव करता है, वह जहाँ जस अव थाम हो, वहाँ उसी थ तम
उसको अपने कमानुसार उ म फलक ा त होती है और वह धीरे-धीरे अ धक काल
बीतनेपर संसार-सागरसे तर जाता है ।।
एवं पूवकृतं कम न यं ज तुः प ते ।
सव त कारणं येन वकृतोऽय महागतः ।। २३ ।।
इस कार जीव सदा अपने पूवज म म कये ए कम का फल भोगता है। यह आ मा
न वकार होनेपर भी वकृत होकर इस जगत्म जो ज म धारण करता है, उसम कम
ही कारण है ।। २३ ।।
शरीर हणं चा य केन पूव क पतम् ।
इ येवं संशयो लोके त च व या यतः परम् ।। २४ ।।
आ माके शरीर धारण करनेक था सबसे पहले कसने चलायी है, इस कारका
संदेह ायः लोग के मनम उठा करता है, अतः उसीका उ र दे रहा ँ ।। २४ ।।
शरीरमा मनः कृ वा सवलोक पतामहः ।
ैलो यमसृजद् ा कृ नं थावरज मम् ।। २५ ।।
स पूण जगत्के पतामह ाजीने सबसे पहले वयं ही शरीर धारण करके थावर-
जंगम प सम त लोक क (कमानुसार) रचना क ।। २५ ।।
ततः धानमसृजत् कृ त स शरी रणाम् ।
यया सव मदं ा तं यां लोके परमां व ः ।। २६ ।।
उ ह ने धान नामक त वक उ प क , जो दे हधारी जीव क कृ त कहलाती है।
जसने इस स पूण जगत्को ा त कर रखा है तथा लोकम जसे मूल कृ तके नामसे
जानते ह ।। २६ ।।
इदं त र म यु ं परं वमृतम रम् ।
याणां मथुनं सवमेकैक य पृथक् पृथक् ।। २७ ।।
यह ाकृत जगत् र कहलाता है, इससे भ अ वनाशी जीवा माको अ र कहते ह।
(इनसे वल ण शु पर ह)—इन तीन मसे जो दो त व— र और अ र ह, वे सब
येक जीवके लये पृथक्-पृथक् होते ह ।।
असृजत् सवभूता न पूव ः जाप तः ।
थावरा ण च भूता न इ येषा पौ वक ु तः ।। २८ ।।
ु तम जो सृ के आर भम सत् पसे न द ए ह, उन जाप तने सम त थावर
भूत और जंगम ा णय क सृ क है, यह पुरातन ु त है ।। २८ ।।
त य कालपरीमाणमकरोत् स पतामहः ।
भूतेषु प रवृ च पुनरावृ मेव च ।। २९ ।।
पतामहने जीवके लये नयत समयतक शरीर धारण कये रहनेक , भ - भ
यो नय म मण करनेक और परलोकसे लौटकर फर इस लोकम ज म लेने आ दक भी
व था क है ।। २९ ।।
यथा क मेधावी ा मा पूवज म न ।
यत् व या म तत् सव यथाव पप ते ।। ३० ।।
जसने पूवज मम अपने आ माका सा ा कार कर लया हो, ऐसा कोई मेधावी
अ धकारी पु ष संसारक अ न यताके वषयम जैसी बात कह सकता है, वैसी ही म भी
क ँगा। मेरी कही ई सारी बात यथाथ और संगत ह गी ।। ३० ।।
सुख ःखे यथा स यग न ये यः प य त ।
कायं चामे यसंघातं वनाशं कमसं हतम् ।। ३१ ।।
य च क च सुखं त च ःखं सव म त मरन् ।
संसारसागरं घोरं त र य त सु तरम् ।। ३२ ।।
जो मनु य सुख और ःख दोन को अ न य समझता है, शरीरको अप व व तु का
समूह समझता है और मृ युको कमका फल समझता है तथा सुखके पम तीत होनेवाला
जो कुछ भी है वह सब ःख-ही- ःख है, ऐसा मानता है, वह घोर एवं तर संसार-सागरसे
पार हो जायगा ।। ३१-३२ ।।
जातीमरणरोगै समा व ः धान वत् ।
चेतनाव सु चैत यं समं भूतेषु प य त ।। ३३ ।।
न व ते ततः कृ नं मागमाणः परं पदम् ।
त योपदे शं व या म याथात येन स म ।। ३४ ।।
ज म, मृ यु एवं रोग से घरा आ जो पु ष धान त व ( कृ त)-को जानता है और
सम त चेतन ा णय म चैत यको समान पसे ा त दे खता है, वह पूण परमपदके
अनुसंधानम संल न हो जगत्के भोग से वर हो जाता है। साधु शरोमणे! उस वैरा यवान्
पु षके लये जो हतकर उपदे श है, उसका म यथाथ पसे वणन क ँ गा ।।
शा त या य याथ यद य ानमु मम् ।
ो यमानं मया व नबोधेदमशेषतः ।। ३५ ।।
उसके लये जो सनातन अ वनाशी परमा माका उ म ान अभी है, उसका म वणन
करता ँ। व वर! तुम सारी बात को यान दे कर सुनो ।। ३५ ।।
इ त ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण अ ादशोऽ यायः ।। १८ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम अ ारहवाँ अ याय पूरा
आ ।। १८ ।।
एकोन वशोऽ यायः
गु - श यके संवादम मो ा तके उपायका वणन
ा ण उवाच
यः यादे कायने लीन तू ण क चद च तयन् ।
पूव पूव प र य य स तीण ब धनाद् भवेत् ।। १ ।।
स ा णने कहा—का यप! जो मनु य ( थूल, सू म और कारण शरीर मसे
मशः) पूव-पूवका अ भमान यागकर कुछ भी च तन नह करता और मौनभावसे रहकर
सबके एकमा अ ध ान—पर परमा माम लीन रहता है, वही संसार-व धनसे मु
होता है ।। १ ।।
सव म ः सवसहः शमे र ो जते यः ।
पेतभयम यु आ मवान् मु यते नरः ।। २ ।।
जो सबका म , सब कुछ सहनेवाला, मनो न हम त पर, जते य, भय और ोधसे
र हत तथा आ मवान् है, वह मनु य ब धनसे मु हो जाता है ।। २ ।।
आ मवत् सवभूतेषु य रे यतः शु चः ।
अमानी नरभीमानः सवतो मु एव सः ।। ३ ।।
जो नयमपरायण और प व रहकर सब ा णय के त अपने-जैसा बताव करता है,
जसके भीतर स मान पानेक इ छा नह है तथा जो अ भमानसे र रहता है, वह सवथा
मु ही है ।। ३ ।।
जी वतं मरणं चोभे सुख ःखे तथैव च ।
लाभालाभे य े ये यः समः स च मु यते ।। ४ ।।
जो जीवन-मरण, सुख- ःख, लाभ-हा न तथा य-अ य आ द को समभावसे
दे खता है, वह मु हो जाता है ।। ४ ।।
न क य चत् पृहयते नावजाना त कचन ।
न ो वीतरागा मा सवथा मु एव सः ।। ५ ।।
जो कसीके का लोभ नह रखता, कसीक अवहेलना नह करता, जसके मनपर
का भाव नह पड़ता और जसके च क आस र हो गयी है, वह सवथा मु
ही है ।। ५ ।।
अन म नब धुरनप य यः व चत् ।
य धमाथकाम नराकाङ् ी च मु यते ।। ६ ।।
जो कसीको अपना म , ब धु या संतान नह मानता, जसने सकाम धम, अथ और
कामका याग कर दया है तथा जो सब कारक आकां ा से र हत है, वह मु हो
जाता है ।। ६ ।।
नैव धम न चाधम पूव प चतहायकः ।
धातु य शा ता मा न ः स वमु यते ।। ७ ।।
जसक न धमम आस है न अधमम, जो पूवसं चत कम को याग चुका है,
वासना का य हो जानेसे जसका च शा त हो गया है तथा जो सब कारके से
र हत है, वह मु हो जाता है ।। ७ ।।
अकमवान् वकाङ् प ये जगदशा तम् ।
अ थस शं न यं ज ममृ युजरायुतम् ।। ८ ।।
वैरा यबु ः सततमा मदोष पे कः ।
आ मब ध व नम ं स करो य चरा दव ।। ९ ।।
जो कसी भी कमका कता नह बनता, जसके मनम कोई कामना नह है, जो इस
जगत्को अ थके समान अ न य—कलतक न टक सकनेवाला समझता है तथा जो सदा
इसे ज म, मृ यु और जरासे यु जानता है, जसक बु वैरा यम लगी रहती है और जो
नर तर अपने दोष पर रखता है, वह शी ही अपने ब धनका नाश कर दे ता
है ।। ८-९ ।।
अग धमरस पशमश दमप र हम् ।
अ पमन भ ेयं ् वाऽऽ मानं वमु यते ।। १० ।।
जो आ माको ग ध, रस, पश, श द, प र ह, पसे र हत तथा अ ेय मानता है, वह
मु हो जाता है ।। १० ।।
प चभूतगुणैह नममू तमदहेतुकम् ।
अगुणं गुणभो ारं यः प य त स मु यते ।। ११ ।।
जसक म आ मा पा चभौ तक गुण से हीन, नराकार, कारणर हत तथा नगुण
होते ए भी (मायाके स ब धसे) गुण का भो ा है, वह मु हो जाता है ।। ११ ।।
वहाय सवसंक पान् बुद ् या शारीरमानसान् ।
शनै नवाणमा ो त न र धन इवानलः ।। १२ ।।
जो बु से वचार करके शारी रक और मान सक सब संक प का याग कर दे ता है,
वह बना धनक आगके समान धीरे-धीरे शा तको ा त हो जाता है ।। १२ ।।
सवसं कार नमु ो न ो न प र हः ।
तपसा इ य ामं य रे मु एव सः ।। १३ ।।
जो सब कारके सं कार से र हत, और प र हसे र हत हो गया है तथा जो
तप याके ारा इ य-समूहको अपने वशम करके (अनास ) भावसे वचरता है, वह मु
ही है ।। १३ ।।
वमु ः सवसं कारै ततो सनातनम् ।
परमा ो त संशा तमचलं न यम रम् ।। १४ ।।
जो सब कारके सं कार से मु होता है, वह मनु य शा त, अचल, न य, अ वनाशी
एवं सनातन पर परमा माको ा त कर लेता है ।। १४ ।।
अतः परं व या म योगशा मनु मम् ।
यु तः स मा मानं यथा प य त यो गनः ।। १५ ।।
अब म उस परम उ म योगशा का वणन क ँ गा, जसके अनुसार योग-साधन
करनेवाले योगी पु ष अपने आ माका सा ा कार कर लेते ह ।। १५ ।।
त योपदे शं व या म यथावत् त बोध मे ।
यै ारै ारय यं प य या मानमा म न ।। १६ ।।
म उसका यथावत् उपदे श करता ँ। मनो न हके जन उपाय ारा च को इस
शरीरके भीतर ही वशीभूत एवं अ तमुख करके योगी अपने न य आ माका दशन करता
है, उ ह मुझसे वण करो ।। १६ ।।
इ या ण तु सं य मन आ म न धारयेत् ।
ती ं त वा तपः पूव मो योगं समाचरेत् ।। १७ ।।
इ य को वषय क ओरसे हटाकर मनम और मनको आ माम था पत करे। इस
कार पहले ती तप या करके फर मो ोपयोगी उपायका अवल बन करना
चा हये ।। १७ ।।
तप वी सततं यु ो योगशा मथाचरेत् ।
मनीषी मनसा व ः प य ा मानमा म न ।। १८ ।।
मनीषी ा णको चा हये क वह सदा तप याम वृ एवं य नशील होकर
योगशा ो उपायका अनु ान करे। इससे वह मनके ारा अ तःकरणम आ माका
सा ा कार करता है ।। १८ ।।
स चे छ नो ययं साधुय ु मा मानमा म न ।
तत एका तशीलः स प य या मानमा म न ।। १९ ।।
एका तम रहनेवाला साधक पु ष य द अपने मनको आ माम लगाये रखनेम सफल हो
जाता है तो वह अव य ही अपनेम आ माका दशन करता है ।। १९ ।।
संयतः सततं यु आ मवान् व जते यः ।
तथा य आ मनाऽऽ मानं स यु ः प य त ।। २० ।।
जो साधक सदा संयमपरायण, योगयु , मनको वशम करनेवाला और जते य है,
वही आ मासे े रत होकर बु के ारा उसका सा ा कार कर सकता है ।।
यथा ह पु षः व े ् वा प य यसा व त ।
तथा प मवा मानं साधुयु ः प य त ।। २१ ।।
जैसे मनु य सपनेम कसी अप र चत पु षको दे खकर जब पुनः उसे जा त् अव थाम
दे खता है, तब तुरंत पहचान लेता है क ‘यह वही है।’ उसी कार साधन-परायण योगी
समा ध-अव थाम आ माको जस पम दे खता है, उसी पम उसके बाद भी दे खता
रहता है ।।
इषीकां च यथा मु ात् क कृ य दशयेत् ।
योगी न कृ य चा मानं तथा प य त दे हतः ।। २२ ।।
जैसे कोई मनु य मूँजसे स कको अलग करके दखा दे , वैसे ही योगी पु ष आ माको
इस दे हसे पृथक् करके दे खता है ।। २२ ।।
मु ं शरीर म या रषीकामा म न ताम् ।
एत दशनं ो ं योग व रनु मम् ।। २३ ।।
यहाँ शरीरको मूँज कहा गया है और आ माको स क। योगवे ा ने दे ह और आ माके
पाथ यको समझनेके लये यह ब त उ म ा त दया है ।। २३ ।।
यदा ह यु मा मानं स यक् प य त दे हभृत् ।
न त येहे रः क त् ैलो य या प यः भुः ।। २४ ।।
दे हधारी जीव जब योगके ारा आ माका यथाथ- पसे दशन कर लेता है, उस समय
उसके ऊपर भुवनके अधी रका भी आ धप य नह रहता ।। २४ ।।
अ या या ैव तनवो यथे ं तप ते ।
व नवृ य जरां मृ युं न शोच त न य त ।। २५ ।।
वह योगी अपनी इ छाके अनुसार व भ कारके शरीर धारण कर सकता है, बुढ़ापा
और मृ युको भी भगा दे ता है, वह न कभी शोक करता है न हष ।। २५ ।।
दे वानाम प दे व वं यु ः कारयते वशी ।
चा यमा ो त ह वा दे हमशा तम् ।। २६ ।।
अपनी इ य को वशम रखनेवाला योगी पु ष दे वता का भी दे वता हो सकता है।
वह इस अ न य शरीरका याग करके अ वनाशी को ा त होता है ।। २६ ।।
वन य सु च भूतेषु न भयं त य जायते ।
ल यमानेषु भूतेषु न स ल य त केन चत् ।। २७ ।।
स पूण ा णय का वनाश होनेपर भी उसे भय नह होता। सबके लेश उठानेपर भी
उसको कसीसे लेश नह प ँचता ।। २७ ।।
ःखशोकमयैघ रैः स नेहसमु वैः ।
न वचा य त यु ा मा नः पृहः शा तमानसः ।। २८ ।।
शा ता च एवं नः पृह योगी आस और नेहसे ा त होनेवाले भयंकर ःख-शोक
तथा भयसे वच लत नह होता ।। २८ ।।
नैनं श ा ण व य ते न मृ यु ा य व ते ।
नातः सुखतरं क च लोके वचन यते ।। २९ ।।
उसे श नह ब ध सकते, मृ यु उसके पास नह प ँच पाती, संसारम उससे बढ़कर
सुखी कह कोई नह दखायी दे ता ।। २९ ।।
स य यु वा स आ मानमा म येव त ते ।
व नवृ जरा ःखः सुखं व प त चा प सः ।। ३० ।।
वह मनको आ माम लीन करके उसीम थत हो जाता है तथा बुढ़ापाके ःख से
छु टकारा पाकर सुखसे सोता—अ य आन दका अनुभव करता है ।। ३० ।।
दे हा यथे म ये त ह वेमां मानुष तनुम् ।
नवद तु न कत ो भु ानेन कथंचन ।। ३१ ।।
वह इस मानव-शरीरका याग करके इ छानुसार सरे ब त-से शरीर धारण करता है।
योगज नत ऐ यका उपभोग करनेवाले योगीको योगसे कसी तरह वर नह होना
चा हये ।। ३१ ।।
स य यु ो यदाऽऽ मानमा म येव प य त ।
तदै व न पृहयते सा ाद प शत तोः ।। ३२ ।।
अ छ तरह योगका अ यास करके जब योगी अपनेम ही आ माका सा ा कार करने
लगता है, उस समय वह सा ात् इ के पदको भी पानेक इ छा नह करता है ।। ३२ ।।
योगमेका तशील तु यथा व द त त छृ णु ।
पूवा दशं च य य मन् सं नवसेत् पुरे ।। ३३ ।।
पुर या य तरे त य मनः था यं न बा तः।
एका तम यान करनेवाले पु षको जस कार योगक ा त होती है, वह सुनो—जो
उपदे श पहले ु तम दे खा गया है, उसका च तन करके जस भागम जीवका नवास माना
गया है, उसीम मनको भी था पत करे। उसके बाहर कदा प न जाने दे ।। ३३ ।।
पुर या य तरे त न् य म ावसथे वसेत् ।
त म ावसथे धाय सबा ा य तरं मनः ।। ३४ ।।
शरीरके भीतर रहते ए वह आ मा जस आ यम थत होता है, उसीम बा और
आ य तर वषय स हत मनको धारण करे ।। ३४ ।।
च यावसथे कृ नं य मन् काले स प य त ।
त मन् काले मन ा य न च कचन बा तः ।। ३५ ।।
मूलाधार आ द कसी आ यम च तन करके जब वह सव व प परमा माका
सा ा कार करता है, उस समय उसका मन यक् व प आ मासे भ कोई ‘बा ’ व तु
नह रह जाता ।। ३५ ।।
सं नय ये य ामं नघ षं नजने वने ।
कायम य तरं कृ नमेका ः प र च तयेत् ।। ३६ ।।
नजन वनम इ य-समुदायको वशम करके एका च हो श दशू य अपने शरीरके
बाहर और भीतर येक अंगम प रपूण पर परमा माका च तन करे ।। ३६ ।।
द तां तालु च ज ां च गलं ीवां तथैव च ।
दयं च तये चा प तथा दयब धनम् ।। ३७ ।।
द त, तालु, ज ा, गला, ीवा, दय तथा दय-ब धन (नाड़ीमाग)-को भी
परमा म पसे च तन करे ।। ३७ ।।
इ यु ः स मया श यो मेधावी मधुसूदन ।
प छ पुनरेवेमं मो धम सु वचम् ।। ३८ ।।
मधुसूदन! मेरे ऐसा कहनेपर उस मेधावी श यने पुनः जसका न पण करना
अ य त क ठन है, उस मो धमके वषयम पूछा— ।। ३८ ।।
भु ं भु मदं को े कथम ं वप यते ।
कथं रस वं ज त शो णत वं कथं पुनः ।। ३९ ।।
‘यह बारंबार खाया आ अ उदरम प ँचकर कैसे पचता है? कस तरह उसका रस
बनता है और कस कार वह र के पम प रणत हो जाता है? ।। ३९ ।।
तथा मांसं च मेद ना व थी न च यो ष त ।
कथमेता न सवा ण शरीरा ण शरी रणाम् ।। ४० ।।
वधते वधमान य वधते च कथं बलम् ।
नरोधानां नगमनं मलानां च पृथक् पृथक् ।। ४१ ।।
‘ ी-शरीरम मांस, मेदा, नायु और ह याँ कैसे होती ह? दे हधा रय के ये सम त
शरीर कैसे बढ़ते ह? बढ़ते ए शरीरका बल कैसे बढ़ता है? जनका सब ओरसे अवरोध है,
उन मल का पृथक्-पृथक् नःसारण कैसे होता है? ।। ४०-४१ ।।
कुतो वायं स त उ छ् व स य प वा पुनः ।
कं च दे शम ध ाय त या मायमा म न ।। ४२ ।।
‘यह जीव कैसे साँस लेता, कैसे उ छ् वास ख चता और कस थानम रहकर इस
शरीरम सदा व मान रहता है? ।। ४२ ।।
जीवः कथं वह त च चे मानः कलेवरम् ।
क वण क शं चैव नवेशय त वै पुनः ।। ४३ ।।
याथात येन भगवन् व ु मह स मेऽनघ ।
‘चे ाशील जीवा मा इस शरीरका भार कैसे वहन करता है? फर कैसे और कस
रंगके शरीरको धारण करता है। न पाप भगवन्! यह सब मुझे यथाथ पसे
बताइये’ ।। ४३ ।।
इ त स प रपृ ोऽहं तेन व ेण माधव ।। ४४ ।।
य ुवं महाबाहो यथा ुतम रदम ।
श ुदमन महाबा माधव! उस ा णके इस कार पूछनेपर मने जैसा सुना था वैसा
ही उसे बताया ।। ४४ ।।
यथा वको े य भा डं भा डमना भवेत् ।। ४५ ।।
तथा वकाये य मनो ारैर न लैः ।
आ मानं त मागत मादं प रवजयेत् ।। ४६ ।।
जैसे घरका सामान अपने कोटे म डालकर भी मनु य उ ह के च तनम मन लगाये
रहता है, उसी कार इ य पी चंचल ार से वचरनेवाले मनको अपनी कायाम ही
था पत करके वह आ माका अनुसंधान करे और मादको याग दे ।। ४५-४६ ।।
एवं सततमु ु ः ीता मा न चरा दव ।
आसादय त तद् यद् ् वा यात् धान वत् ।। ४७ ।।
इस कार सदा यानके लये य न करनेवाले पु षका च शी ही स हो जाता
है और वह उस पर परमा माको ा त कर लेता है, जसका सा ा कार करके मनु य
कृ त एवं उसके वकार को वतः जान लेता है ।। ४७ ।।
न वसौ च ुषा ा ो न च सवरपी यैः ।
मनसैव द पेन महाना मा यते ।। ४८ ।।
उस परमा माका इन चम-च ु से दशन नह हो सकता, स पूण इ य से भी उसको
हण नह कया जा सकता; केवल बु पी द पकक सहायतासे ही उस महान्
आ माका दशन होता है ।। ४८ ।।
सवतःपा णपादा तः सवतोऽ शरोमुखः ।
सवतः ु तमाँ लोके सवमावृ य त त ।। ४९ ।।
वह सब ओर हाथ-पैरवाला, सब ओर ने , सर और मुखवाला तथा सब ओर
कानवाला है; य क वह संसारम सबको ा त करके थत है ।। ४९ ।।
जीवो न ा तमा मानं शरीरात् स प य त ।
स तमु सृ य दे हे वं धारयन् केवलम् ।। ५० ।।
आ मानमालोकय त मनसा हस व ।
तदे वमा यं कृ वा मो ं या त ततो म य ।। ५१ ।।
त व जीव अपने-आपको शरीरसे पृथक् दे खता है। वह शरीरके भीतर रहकर भी
उसका याग करे—उसक पृथक्ताका अनुभव करके अपने व पभूत केवल पर
परमा माका च तन करता आ बु के सहयोगसे आ माका सा ा कार करता है। उस
समय वह यह सोचकर हँसता-सा रहता है क अहो! मृगतृ णाम तीत होनेवाले जलक
भाँ त मुझम ही तीत होनेवाले इस संसारने मुझे अबतक थ ही मम डाल रखा था। जो
इस कार परमा माका दशन करता है, वह उसीका आ य लेकर अ तम मुझम ही मु हो
जाता है (अथात् अपने-आपम ही परमा माका अनुभव करने लगता है) ।। ५०-५१ ।।
इदं सवरह यं ते मया ो ं जो म ।
आपृ छे साध य या म ग छ व यथासुखम् ।। ५२ ।।
ज े ! यह सारा रह य मने तु ह बता दया। अब म जानेक अनुम त चाहता ँ।
व वर! तुम भी सुखपूवक अपने थानको लौट जाओ ।। ५२ ।।
इ यु ः स तदा कृ ण मया श यो महातपाः ।
अग छत यथाकामं ा णः सं शत तः ।। ५३ ।।
ीकृ ण! मेरे इस कार कहनेपर वह कठोर तका पालन करनेवाला मेरा महातप वी
श य ा ण का यप इ छानुसार अपने अभी थानको चला गया ।। ५३ ।।
वासुदेव उवाच
इ यु वा स तदा वा यं मां पाथ जस मः ।
मो धमा तः स यक् त ैवा तरधीयत ।। ५४ ।।
भगवान् ीकृ ण कहते ह—अजुन! मो धमका आ य लेनेवाले वे स महा मा
े ा ण मुझसे यह संग सुनाकर वह अ तधान हो गये ।। ५४ ।।
क चदे तत् वया पाथ ुतमेका चेतसा ।
तदा प ह रथ थ वं ुतवानेतदे व ह ।। ५५ ।।
पाथ! या तुमने मेरे बताये ए इस उपदे शको एका च होकर सुना है? उस यु के
समय भी तुमने रथपर बैठे-बैठे इसी त वको सुना था ।। ५५ ।।
नैतत् पाथ सु व ेयं ा म ेणे त मे म तः ।
नरेणाकृतसं ेन वशु े ना तरा मना ।। ५६ ।।
कु तीन दन! मेरा तो ऐसा व ास है क जसका च है, जसे ानका उपदे श
नह ा त है, वह मनु य इस वषयको सुगमतापूवक नह समझ सकता। जसका
अ तःकरण शु है, वही इसे जान सकता है ।। ५६ ।।
सुरह य मदं ो ं दे वानां भरतषभ ।
क च ेदं ुतं पाथ मनु येणेह क ह चत् ।। ५७ ।।
भरत े ! यह मने दे वता का परम गोपनीय रह य बताया है। पाथ! इस जगत्म
कभी कसी भी मनु यने इस रह यका वण नह कया है ।। ५७ ।।
न ेत ोतुमह ऽ यो मनु य वामृतेऽनघ ।
नैतद सु व ेयं ा म ेणा तरा मना ।। ५८ ।।
अनघ! तु हारे सवा सरा कोई मनु य इसे सुननेका अ धकारी भी नह है। जसका
च वधेम पड़ा आ है, वह इस समय इसे अ छ तरह नह समझ सकता ।। ५८ ।।
याव ह कौ तेय दे वलोकः समावृतः ।
न चैत द ं दे वानां म य प नवतनम् ।। ५९ ।।
कु तीकुमार! यावान् पु ष से दे वलोक भरा पड़ा है। दे वता को यह अभी नह है
क मनु यके म य पक नवृ हो ।। ५९ ।।
परा ह सा ग तः पाथ यत् तद् सनातनम् ।
य ामृत वं ा ो त य वा दे हं सदा सुखी ।। ६० ।।
पाथ! जो सनातन है, वही जीवक परम-ग त है। ानी मनु य दे हको यागकर
उस म ही अमृत वको ा त होता है और सदाके लये सुखी हो जाता है ।। ६० ।।
इमं धम समा थाय येऽ प युः पापयोनयः ।
यो वै या तथा शू ा तेऽ प या त परां ग तम् ।। ६१ ।।
इस आ मदशन प धमका आ य लेकर ी, वै य और शू तथा जो पापयो नके
मनु य ह, वे भी परमग तको ा त हो जाते ह ।। ६१ ।।
क पुन ा णाः पाथ या वा ब ुताः ।
वधमरतयो न यं लोकपरायणाः ।। ६२ ।।
पाथ! फर जो अपने धमम ेम रखते और सदा लोकक ा तके साधनम लगे
रहते ह, उन ब ुत ा ण और य क तो बात ही या है ।। ६२ ।।
हेतुम चैत मुपाया ा य साधने ।
स फलं च मो ःख य च व नणयः ।। ६३ ।।
इस कार मने तु ह मो धमका यु यु उपदे श कया है। उसके साधनके उपाय भी
बतलाये ह और स , फल, मो तथा ःखके व पका भी नणय कया है ।। ६३ ।।
नातः परं सुखं व यत् क चत् याद् भरतषभ ।
बु मान् धान परा ा त पा डव ।। ६४ ।।
यः प र य यते म य लोकसारमसारवत् ।
एतै पायैः स ं परां ग तमवा ुते ।। ६५ ।।
भरत े ! इससे बढ़कर सरा कोई सुखदायक धम नह है। पा डु न दन! जो कोई
बु मान्, ालु और परा मी मनु य लौ कक सुखको सारहीन समझकर उसे याग दे ता
है, वह उपयु इन उपाय के ारा ब त शी परम ग तको ा त कर लेता है ।। ६४-६५ ।।
एतावदे व व ं नातो भूयोऽ त कचन ।
ष मासान् न ययु य योगः पाथ वतते ।। ६६ ।।
पाथ! इतना ही कहनेयो य वषय है। इससे बढ़कर कुछ भी नह है। जो छः महीनेतक
नर तर योगका अ यास करता है, उसका योग अव य स हो जाता है ।। ६६ ।।
इ त ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण एकोन वशोऽ यायः ।। १९ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ीसवाँ अ याय पूरा
आ ।। १९ ।।
वशोऽ यायः
ा णगीता—एक ा णका अपनी प नीसे ानय का
उपदे श करना
वासुदेव उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
द प योः पाथ संवादो योऽभवद् भरतषभ ।। १ ।।
ीकृ ण कहते ह—भरत े ! अजुन! इसी वषयम प त-प नीके संवाद प एक
ाचीन इ तहासका उदाहरण दया जाता है ।। १ ।।
ा णी ा णं कं च ान व ानपारगम् ।
् वा व व आसीनं भाया भतारम वीत् ।। २ ।।
कं नु लोकं ग म या म वामहं प तमा ता ।
य तकमाणमासीनं क नाशम वच णम् ।। ३ ।।
भायाः प तकृताँ लोकाना ुव ती त नः ुतम् ।
वामहं प तमासा कां ग म या म वै ग तम् ।। ४ ।।
एक ा ण, जो ान- व ानके पारगामी व ान् थे, एका त थानम बैठे ए थे, यह
दे खकर उनक प नी ा णी अपने उन प तदे वके पास जाकर बोली—‘ ाणनाथ! मने
सुना है क याँ प तके कमानुसार ा त ए लोक को जाती ह; कतु आप तो कम
छोड़कर बैठे ह और मेरे त कठोरताका बताव करते ह। आपको इस बातका पता नह है
क म अन यभावसे आपके ही आ त ँ। ऐसी दशाम आप-जैसे प तका आ य लेकर म
कस लोकम जाऊँगी? आपको प त पम पाकर मेरी या ग त होगी’ ।। २—४ ।।
एवमु ः स शा ता मा तामुवाच हस व ।
सुभगे ना यसूया म वा य या य तवानघे ।। ५ ।।
प नीके ऐसा कहनेपर वे शा त च वाले ा ण दे वता हँसते ए-से बोले
—‘सौभा यशा ल न! तुम पापसे सदा र रहती हो; अतः तु हारे इस कथनके लये म बुरा
नह मानता ।। ५ ।।
ा ं यं च स यं वा य ददं कम व ते ।
एतदे व व य त कम कम त क मणः ।। ६ ।।
‘संसारम जो हण करनेयो य द ा और त आ द ह तथा इन आँख से दखायी
दे नेवाले जो थूल कम ह, उ ह को व तुतः कम माना जाता है। कमठ लोग ऐसे ही कमको
कमके नामसे पुकारते ह ।। ६ ।।
मोहमेव नय छ त कमणा ानव जताः ।
नै क य न च लोकेऽ मन् मु तम प ल यते ।। ७ ।।
‘ कतु ज ह ानक ा त नह ई है, वे लोग कमके ारा मोहका ही सं ह करते ह।
इस लोकम कोई दो घड़ी भी बना कम कये रह सके, ऐसा स भाव नह है ।। ७ ।।
कमणा मनसा वाचा शुभं वा य द वाशुभम् ।
ज मा दमू तभेदा तं कम भूतेषु वतते ।। ८ ।।
मनसे, वाणीसे तथा या ारा जो भी शुभ या अशुभ काय होता है, वह तथा ज म,
थ त, वनाश एवं शरीरभेद आ द कम ा णय म व मान ह ।। ८ ।।
र ो भव यमानेषु य ेषु व मसु ।
आ म थमा मना ते यो मायतनं मया ।। ९ ।।
‘जब रा स — जन ने जहाँ सोम और घृत आ द य का उपयोग होता है, उन
कम-माग का वनाश आर भ कर दया, तब मने उनसे वर होकर वयं ही अपने भीतर
थत ए आ माके थानको दे खा ।। ९ ।।
य तद् न ं य सोमः सहा नना ।
वायं कु ते न यं धीरो भूता न धारयन् ।। १० ।।
‘जहाँ से र हत वह पर परमा मा वराजमान है, जहाँ सोम अ नके साथ
न य समागम करता है तथा जहाँ सब भूत को धारण करनेवाला धीर समीर नर तर चलता
रहता है ।। १० ।।
य ादयो यु ा तद रमुपासते ।
व ांसः सु ता य शा ता मानो जते याः ।। ११ ।।
‘जहाँ ा आ द दे वता तथा उ म तका पालन करनेवाले शा त च जते य
व ान् योगयु होकर उस अ वनाशी क उपासना करते ह ।। ११ ।।
ाणेन न तदा ेयं ना वा ं चैव ज या ।
पशनेन तद पृ यं मनसा ववग यते ।। १२ ।।
‘वह अ वनाशी ाणे यसे सूँघने और ज ा ारा आ वादन करनेयो य नह है।
पश य— वचा ारा उसका पश भी नह कया जा सकता; केवल बु के ारा उसका
अनुभव कया जा सकता है ।। १२ ।।
च ुषाम वष ं च यत् क च वणात् परम् ।
अग धमरस पशम पाश दल णम् ।। १३ ।।
‘वह ने का वषय नह हो सकता। वह अ नवचनीय पर वणे यक प ँचसे
सवथा परे है। ग ध, रस, पश, प और श द आ द कोई भी ल ण उसम उपल ध नह
है ।। १३ ।।
यतः वतते त ं य च त त त ।
ाणोऽपानः समान ान ोदान एव च ।। १४ ।।
तत एव वत ते तदे व वश त च ।
‘उसीसे सृ आ दका व तार होता है और उसीम उसक थ त है। ाण, अपान,
समान, ान और उदान—से उसीसे कट होते और फर उसीम व हो जाते ह ।। १४
।।
समान ानयोम ये ाणापानौ वचेरतुः ।। १५ ।।
त मं लीने लीयेत समानो ान एव च ।
अपान ाणयोम ये उदानो ा य त त ।
त मा छयानं पु षं ाणापानौ न मु चतः ।। १६ ।।
‘समान और ान—इन दोन के बीचम ाण और अपान वचरते ह। उस अपानस हत
ाणके लीन होनेपर समान और ानका भी लय हो जाता है। अपान और ाणके बीचम
उदान सबको ा त करके थत होता है। इसी लये सोये ए पु षको ाण और अपान
नह छोड़ते ह ।। १५-१६ ।।
ाणानामायत वेन तमुदानं च ते ।
त मात् तपो व य त मद्गतं वा दनः ।। १७ ।।
‘ ाण का आयतन (आधार) होनेके कारण उसे व ान् पु ष उदान कहते ह। इस लये
वेदवाद मुझम थत तपका न य करते ह ।। १७ ।।
तेषाम यो यभ ाणां सवषां दे हचा रणाम् ।
अ नव ानरो म ये स तधा द तेऽ तरा ।। १८ ।।
‘एक सरेके सहारे रहनेवाले तथा सबके शरीर म संचार करनेवाले उन पाँच
ाणवायु के म यभागम जो समान वायुका थान ना भम डल है, उसके बीचम थत
आ वै ानर अ न सात प म काशमान है ।। १८ ।।
ाणं ज ा च च ु वक् च ो ं च प चमम् ।
मनो बु स तैता ज ा वै ानरा चषः ।। १९ ।।
ेयं यं च पेयं च पृ यं ं तथैव च ।
म त मथ बो ं ताः स त स मधो मम ।। २० ।।
‘ ाण (ना सका), ज ा, ने , वचा और पाँचवाँ कान एवं मन तथा बु —ये उस
वै ानर अ नक सात ज ाएँ ह। सूँघनेयो य ग ध, दशनीय प, पीनेयो य रस, पश
करनेयो य व तु, सुननेयो य श द, मनके ारा मनन करने और बु के ारा समझने यो य
वषय—ये सात मुझ वै ानरक स मधाएँ ह ।। १९-२० ।।
ाता भ यता ा ा ोता च प चमः ।
म ता बो ा च स तैते भव त परम वजः ।। २१ ।।
‘सूँघनेवाला, खानेवाला, दे खनेवाला, पश करने-वाला, पाँचवाँ वण करनेवाला एवं
मनन करनेवाला और समझनेवाला—ये सात े ऋ वज् ह ।। २१ ।।
ेये पेये च ये च पृ ये े तथैव च ।
म त ेऽ यथ बो े सुभगे प य सवदा ।। २२ ।।
‘सुभगे! सूँघनेयो य, पीनेयो य, दे खनेयो य, पश करनेयो य, सुनने, मनन करने तथा
समझनेयो य वषय—इन सबके ऊपर तुम सदा पात करो (इनम ह व य-बु
करो) ।। २२ ।।
हव य नषु होतारः स तधा स त स तसु ।
स यक् य व ांसो जनय त वयो नषु ।। २३ ।।
‘पूव सात होता उ सात ह व य का सात प म वभ ए वै ानरम भलीभाँ त
हवन करके (अथात् वषय क ओरसे आस हटाकर) व ान् पु ष अपने त मा ा आ द
यो नय म श दा द वषय को उ प करते ह ।। २३ ।।
पृ थवी वायुराकाशमापो यो त प चमम् ।
मनो बु स तैता यो न र येव श दताः ।। २४ ।।
‘पृ वी, वायु, आकाश, जल, तेज, मन और बु —ये सात यो न कहलाते ह ।। २४ ।।
ह वभूता गुणाः सव वश य नजं गुणम् ।
अ तवासमु ष वा च जाय ते वासु यो नषु ।। २५ ।।
‘इनके जो सम त गुण ह, वे ह व य प ह। जो अ नज नत गुण (बु वृ )-म वेश
करते ह। वे अ तःकरणम सं कार पसे रहकर अपनी यो नय म ज म लेते ह ।। २५ ।।
त ैव च न य ते लये भूतभावने ।
ततः संजायते ग ध ततः संजायते रसः ।। २६ ।।
‘वे लयकालम अ तःकरणम ही अव रहते और भूत क सृ के समय वह से
कट होते ह। वह से ग ध और वह से रसक उ प होती है ।। २६ ।।
ततः संजायते पं ततः पश ऽ भजायते ।
ततः संजायते श दः संशय त जायते ।
ततः संजायते न ा ज मैतत् स तधा व ः ।। २७ ।।
‘वह से प, पश और श दका ाकट् य होता है। संशयका ज म भी वह होता है
और न या मका बु भी वह पैदा होती है। यह सात कारका ज म माना गया
है ।। २७ ।।
अनेनैव कारेण गृहीतं पुरातनैः ।
पूणा त भरापूणा भः पूय त तेजसा ।। २८ ।।
‘इसी कारसे पुरातन ऋ षय ने ु तके अनुसार ाण आ दका प हण कया है।
ाता, ान, ेय—इन तीन आ तय से सम त लोक प रपूण ह। वे सभी लोक
आ म यो तसे प रपूण होते ह’ ।। २८ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण गीतासु वशोऽ यायः ।।
२० ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीता वषयक
बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २० ।।
एक वशोऽ यायः
दस होता से स प होनेवाले य का वणन तथा मन और
वाणीक े ताका तपादन
ा ण उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
नबोध दशहोतॄणां वधानमथ या शम् ।। १ ।।
ा ण कहते ह— ये! इस वषयम व ान् पु ष इस ाचीन इ तहासका उदाहरण
दया करते ह। दस होता मलकर जस कार य का अनु ान करते ह, वह सुनो ।। १ ।।
ो ं वक् च ुषी ज ा ना सका चरणौ करौ ।
उप थं वायु र त वा होतॄ ण दश भा म न ।। २ ।।
भा म न! कान, वचा, ने , ज ा (वाक् और रसना), ना सका, हाथ, पैर, उप थ और
गुदा—से दस होता ह ।। २ ।।
श द पश परसौ ग धो वा यं या ग तः ।
रेतोमू पुरीषाणां यागो दश हव ष च ।। ३ ।।
श द, पश, प, रस, ग ध, वाणी, या, ग त, वीय, मू का याग और मल- याग—
ये दस वषय ही दस ह व य ह ।। ३ ।।
दशो वायू र व ः पृ नी व णुरेव च ।
इ ः जाप त म म नयो दश भा म न ।। ४ ।।
भा म न! दशा, वायु, सूय, च मा, पृ वी, अ न, व णु, इ , जाप त और म —ये
दस दे वता अ न ह ।। ४ ।।
दशे या ण होतॄ ण हव ष दश भा व न ।
वषया नाम स मधो य ते तु दशा नषु ।। ५ ।।
भा व न! दस इ य पी होता दस दे वता पी अ नम दस वषय पी ह व य एवं
स मधा का हवन करते ह (इस कार मेरे अ तरम नर तर य हो रहा है; फर म
अकम य कैसे ँ?) ।। ५ ।।
च ं ुव व ं च प व ं ानमु मम् ।
सु वभ मदं सव जगदासी द त ुतम् ।। ६ ।।
इस य म च ही ुवा तथा प व एवं उ म ान ही धन है। यह स पूण जगत् पहले
भलीभाँ त वभ था—ऐसा सुना गया है ।। ६ ।।
सवमेवाथ व ेयं च ं ानमवे ते ।
रेतःशरीरभृ काये व ाता तु शरीरभृत् ।। ७ ।।
जाननेम आनेवाला यह सारा जगत् च प ही है, वह ानक अथात् काशकक
अपे ा रखता है तथा वीयज नत शरीर-समुदायम रहनेवाला शरीरधारी जीव उसको
जाननेवाला है ।। ७ ।।
शरीरभृद ् गाहप य त माद यः णीयते ।
मन ाहवनीय तु त मन् यते ह वः ।। ८ ।।
वह शरीरका अ भमानी जीव गाहप य अ न है। उससे जो सरा पावक कट होता
है, वह मन है। मन आहवनीय अ न है। उसीम पूव ह व यक आ त द जाती
है ।। ८ ।।
ततो वाच प तज े तं मनः पयवे ते ।
पं भव त वैवण समनु वते मनः ।। ९ ।।
उससे वाच प त (वेदवाणी)-का ाकट् य होता है। उसे मन दे खता है। मनके अन तर
पका ा भाव होता है, जो नील-पीत आ द वण से र हत होता है। वह प मनक ओर
दौड़ता है ।। ९ ।।
ा युवाच
क माद् वागभवत् पूव क मात् प ा मनोऽभवत् ।
मनसा च ततं वा यं यदा सम भप ते ।। १० ।।
ा णी बोली— यतम! कस कारणसे वाक्क उ प पहले ई और य मन
पीछे आ? जब क मनसे सोचे- वचारे वचनको ही वहारम लाया जाता है ।। १० ।।
केन व ानयोगेन म त ं समा थता ।
समु ीता ना यग छत् को वै तां तबाधते ।। ११ ।।
कस व ानके भावसे म त च के आ त होती है? वह ऊँचे उठायी जानेपर
वषय क ओर य नह जाती? कौन उसके मागम बाधा डालता है? ।। ११ ।।
ा ण उवाच
तामपानः प तभू वा त मात् ेष यपानताम् ।
तां ग त मनसः ा मन त मादपे ते ।। १२ ।।
ा णने कहा— ये! अपान प त प होकर उस म तको अपानभावक ओर ले
जाता है। वह अपानभावक ा त मनक ग त बतायी गयी है, इस लये मन उसक अपे ा
रखता है ।। १२ ।।
ं तु वाङ् मनसोमा य मात् वमनुपृ छ स ।
त मात् ते वत य या म तयोरेव समा यम् ।। १३ ।।
परंतु तुम मुझसे वाणी और मनके वषयम ही करती हो, इस लये म तु ह उ ह
दोन का संवाद बताऊँगा ।। १३ ।।
उभे वाङ् मनसी ग वा भूता मानमपृ छताम् ।
आवयोः े माच छ ध नौ संशयं वभो ।। १४ ।।
मन और वाणी दोन ने जीवा माके पास जाकर पूछा—‘ भो! हम दोन म कौन े
है? यह बताओ और हमारे संदेहका नवारण करो’ ।। १४ ।।
मन इ येव भगवां तदा ाह सर वती ।
अहं वै कामधुक् तु य म त तं ाह वागथ ।। १५ ।।
तब भगवान् आ मदे वने कहा—‘मन ही े है।’ यह सुनकर सर वती बोल —‘म ही
तु हारे लये कामधेनु बनकर सब कुछ दे ती ँ।’ इस कार वाणीने वयं ही अपनी े ता
बतायी ।। १५ ।।
ा ण उवाच
थावरं ज मं चैव व युभे मनसी मम ।
थावरं म सकाशे वै ज मं वषये तव ।। १६ ।।
ा ण दे वता कहते ह— ये! थावर और जंगम ये दोन मेरे मन ह। थावर अथात्
बा इ य से गृहीत होनेवाला जो यह जगत् है, वह मेरे समीप है और जंगम अथात्
इ यातीत जो वग आ द है, वह तु हारे अ धकारम है ।। १६ ।।
य तु तं वषयं ग छे म ो वणः वरोऽ प वा ।
त मनो ज मो नाम त माद स गरीयसी ।। १७ ।।
जो म , वण अथवा वर उस अलौ कक वषयको का शत करता है, उसका
अनुसरण करनेवाला मन भी य प जंगम नाम धारण करता है तथा प वाणी व पा तु हारे
ारा ही मनका उस अती य जगत्म वेश होता है। इस लये तुम मनसे भी े एवं
गौरवशा लनी हो ।। १७ ।।
य माद प समा ध ते वयम ये त शोभने ।
त मा छ् वासमासा व या म सर व त ।। १८ ।।
य क शोभामयी सर व त! तुमने वयं ही पास आकर समाधान अथात् अपने
प क पु क है। इससे म उ छ् वास लेकर कुछ क ँगा ।। १८ ।।
ाणापाना तरे दे वी वाग् वै न यं म त त ।
ेयमाणा महाभागे वना ाणमपानती ।
जाप तमुपाधावत् सीद भगव त ।। १९ ।।
महाभागे! ाण और अपानके बीचम दे वी सर वती सदा व मान रहती ह। वह
ाणक सहायताके बना जब न नतम दशाको ा त होने लगी, तब दौड़ी ई जाप तके
पास गयी और बोली—‘भगवन्! स होइये’ ।। १९ ।।
ततः ाणः ा रभूद ् वाचमा याययन् पुनः ।
त मा छ् वासमासा न वाग् वद त क ह चत् ।। २० ।।
तब वाणीको पु -सा करता आ पुनः ाण कट आ। इसी लये उ छ् वास लेते समय
वाणी कभी कोई श द नह बोलती है ।। २० ।।
घो षणी जात नघ षा न यमेव वतते ।
तयोर प च घो ष या नघ षैव गरीयसी ।। २१ ।।
वाणी दो कारक होती है—एक घोषयु ( प सुनायी दे नेवाली) और सरी
घोषर हत, जो सदा सभी अव था म व मान रहती है। इन दोन म घोषयु वाणीक
अपे ा घोषर हत ही े तम है ( य क घोषयु वाणीको ाणश क अपे ा रहती है
और घोषर हत उसक अपे ाके बना भी वभावतः उ च रत होती रहती है) ।। २१ ।।
गौ रव सव यथान् रसमु मशा लनी ।
सततं य दते ेषा शा तं वा दनी ।। २२ ।।
द ाद भावेण भारती गौः शु च मते ।
एतयोर तरं प य सू मयोः य दमानयोः ।। २३ ।।
शु च मते! घोषयु (वै दक) वाणी भी उ म गुण से सुशो भत होती है। वह ध
दे नेवाली गायक भाँ त मनु य के लये सदा उ म रस झरती एवं मनोवां छत पदाथ उ प
करती है और का तपादन करनेवाली उप नषद्वाणी (शा त )-का बोध
करानेवाली है। इस कार वाणी पी गौ द और अ द भावसे यु है। दोन ही सू म
ह और अभी पदाथका व करने-वाली ह। इन दोन म या अ तर है, इसको वयं
दे खो ।। २२-२३ ।।
ा युवाच
अनु प ेषु वा येषु चो माना वव या ।
क ु पूव तदा दे वी ाजहार सर वती ।। २४ ।।
ा णीने पूछा—नाथ! जब वा य उ प नह ए थे, उस समय कुछ कहनेक
इ छासे े रत क ई सर वती दे वीने पहले या कहा था? ।। २४ ।।
ा ण उवाच
ाणेन या स भवते शरीरे
ाणादपानं तप ते च ।
उदानभूता च वसृ य दे हं
ानेन सव दवमावृणो त ।। २५ ।।
ततः समाने त त तीह
इ येव पूव जज प वाणी ।
त मा मनः थावर वाद् व श ं
तथा दे वी ज म वाद् व श ा ।। २६ ।।
ा णने कहा— ये! वह वाक् ाणके ारा शरीरम कट होती है, फर ाणसे
अपानभावको ा त होती है। त प ात् उदान व प होकर शरीरको छोड़कर ान पसे
स पूण आकाशको ा त कर लेती है। तदन तर समान वायुम त त होती है। इस
कार वाणीने पहले अपनी उ प का कार बताया था।* इस लये थावर होनेके कारण
मन े है और जंगम होनेके कारण वा दे वी े ह ।। २५-२६ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
एक वशोऽ यायः ।। २१ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा ण-गीता वषयक
इ क सवाँ अ याय पूरा आ ।। २१ ।।
ा वशोऽ यायः
मन-बु और इ य प स त होता का, य तथा मन-
इ य-संवादका वणन
ा ण उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
सुभगे स तहोतॄणां वधान मह या शम् ।। १ ।।
ा णने कहा—सुभगे! इसी वषयम इस पुरातन इ तहासका भी उदाहरण दया
जाता है। सात होता के य का जैसा वधान है, उसे सुनो ।। १ ।।
ाण ु ज ा च वक् ो ं चैव प चमम् ।
मनो बु स तैते होतारः पृथगा ताः ।। २ ।।
सू मेऽवकाशे त तो न प य तीतरेतरम् ।
एतान् वै स तहोतॄं वं वभावाद् व शोभने ।। ३ ।।
ना सका, ने , ज ा, वचा और पाँचवाँ कान, मन और बु —ये सात होता अलग-
अलग रहते ह। य प ये सभी सू म शरीरम ही नवास करते ह तो भी एक- सरेको नह
दे खते ह। शोभने! इन सात होता को तुम वभावसे ही पहचानो ।। २-३ ।।
ा युवाच
सू मेऽवकाशे स त ते कथं ना यो यद शनः ।
कथं वभावा भगव ेतदाच व मे भो ।। ४ ।।
ा णीने पूछा—भगवन्! जब सभी सू म शरीरम ही रहते ह, तब एक- सरेको दे ख
य नह पाते? भो! उनके वभाव कैसे ह? यह बतानेक कृपा कर ।। ४ ।।
ा ण उवाच
गुणा ानम व ानं गुण ानम भ ता ।
पर परं गुणानेते ना भजान त क ह चत् ।। ५ ।।
ा णने कहा— ये! (यहाँ दे खनेका अथ है, जानना) गुण को न जानना ही
गुणवान्को न जानना कहलाता है और गुण को जानना ही गुणवान्को जानना है। ये
ना सका आ द सात होता एक- सरेके गुण को कभी नह जान पाते ह (इसी लये कहा गया
है क ये एक- सरेको नह दे खते ह) ।। ५ ।।
ज ा च ु तथा ो ं वाङ् मनो बु रेव च ।
न ग धान धग छ त ाण तान धग छ त ।। ६ ।।
जीभ, आँख, कान, वचा, मन और बु —ये ग ध को नह समझ पाते, कतु
ना सका उसका अनुभव करती है ।। ६ ।।
ाणं च ु तथा ो ं वाङ् मनो बु रेव च ।
न रसान धग छ त ज ा तान धग छ त ।। ७ ।।
ना सका, कान, ने , वचा, मन और बु —ये रस का आ वादन नह कर सकते।
केवल ज ा उसका वाद ले सकती है ।। ७ ।।
ाणं ज ा तथा ो ं वाङ् मनो बु रेव च ।
न पा य धग छ त च ु ता य धग छ त ।। ८ ।।
ना सका, जीभ, कान, वचा, मन और बु —ये पका ान नह ा त कर सकते;
कतु ने इनका अनुभव करते ह ।। ८ ।।
ाणं ज ा तत ुः ो ं बु मन तथा ।
न पशान धग छ त वक् च तान धग छ त ।। ९ ।।
ना सका, जीभ, आँख, कान, बु और मन—ये पशका अनुभव नह कर सकते;
कतु वचाको उसका ान होता है ।। ९ ।।
ाणं ज ा च च ु वाङ् मनो बु रेव च ।
न श दान धग छ त ो ं तान धग छ त ।। १० ।।
ना सका, जीभ, आँख, वचा, मन और बु —इ ह श दका ान नह होता; कतु
कानको होता है ।। १० ।।
ाणं ज ा च च ु वक् ो ं बु रेव च ।
संशयं ना धग छ त मन तम धग छ त ।। ११ ।।
ना सका, जीभ, आँख, वचा, कान और बु —ये संशय (संक प- वक प) नह कर
सकते। यह काम मनका है ।। ११ ।।
ाणं ज ा च च ु वक् ो ं मन एव च ।
न न ाम धग छ त बु ताम धग छ त ।। १२ ।।
इसी कार ना सका, जीभ, आँख, वचा, कान, और मन—वे कसी बातका न य
नह कर सकते। न या मक ान तो केवल बु को होता है ।। १२ ।।
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
इ याणां च संवादं मनस ैव भा म न ।। १३ ।।
भा म न! इस वषयम इ य और मनके संवाद प एक ाचीन इ तहासका उदाहरण
दया जाता है ।। १३ ।।
मन उवाच
ना ा त मामृते ाणं रसं ज ा न वे च।
पं च ुन गृ ा त वक् पश नावबु यते ।। १४ ।।
न ो ं बु यते श दं मया हीनं कथंचन ।
वरं सवभूतानामहम म सनातनम् ।। १५ ।।
एक बार मनने इ य से कहा—मेरी सहायताके बना ना सका सूँघ नह सकती,
जीभ रसका वाद नह ले सकती, आँख प नह दे ख सकती, वचा पशका अनुभव नह
कर सकती और कान को श द नह सुनायी दे सकता। इस लये म सब भूत म े और
सनातन ँ ।। १४-१५ ।।
अगाराणीव शू या न शा ता चष इवा नयः ।
इ या ण न भास ते मया हीना न न यशः ।। १६ ।।
‘मेरे बना सम त इ याँ बुझी लपट वाली आग और सूने घरक भाँ त सदा ीहीन
जान पड़ती ह ।। १६ ।।
का ानीवा शु का ण यतमानैरपी यैः ।
गुणाथान् ना धग छ त मामृते सवज तवः ।। १७ ।।
संसारके सभी जीव इ य के य न करते रहनेपर भी मेरे बना उसी कार वषय का
अनुभव नह कर सकते, जस कार क सूखे-गीले का कोई अनुभव नह कर
सकते ।। १७ ।।
इ या यूचुः
एवमेतद् भवेत् स यं यथैत म यते भवान् ।
ऋतेऽ मान मदथा वं भोगान् भुङ् े भवान् य द ।। १८ ।।
यह सुनकर इ य ने कहा—महोदय! य द आप भी हमारी सहायता लये बना ही
वषय का अनुभव कर सकते तो हम आपक इस बातको सच मान लेत ।। १८ ।।
य मासु लीनेषु तपणं ाणधारणम् ।
भोगान् भुङ् े भवान् स यं यथैत म यते तथा ।। १९ ।।
हमारा लय हो जानेपर भी आप तृ त रह सक, जीवन धारण कर सक और सब
कारके भोग भोग सक तो आप जैसा कहते और मानते ह, वह सब स य हो सकता
है ।। १९ ।।
अथवा मासु लीनेषु त सु वषयेषु च ।
य द संक पमा ेण भुङ् े भोगान् यथाथवत् ।। २० ।।
अथ चे म यसे स म मदथषु न यदा ।
ाणेन पमाद व रसमाद व च ुषा ।। २१ ।।
ो ेण ग धानाद व पशानाद व ज या ।
वचा च श दमाद व बु या पशमथा प च ।। २२ ।।
अथवा हम सब इ याँ लीन हो जायँ या वषय म थत रह, य द आप अपने
संक पमा से वषय का यथाथ अनुभव करनेक श रखते ह और आपको ऐसा करनेम
सदा ही सफलता ा त होती है तो जरा नाकके ारा पका तो अनुभव क जये, आँखसे
रसका तो वाद ली जये और कानके ारा ग ध को तो हण क जये। इसी कार अपनी
श से ज ाके ारा पशका, वचाके ारा श दका और बु के ारा पशका तो
अनुभव क जये ।। २०—२२ ।।
बलव तो नयमा नयमा बलीयसाम् ।
भोगानपूवानाद व नो छ ं भो ु मह त ।। २३ ।।
आप-जैसे बलवान् लोग नयम के ब धनम नह रहते, नयम तो बल के लये होते ह।
आप नये ढं गसे नवीन भोग का अनुभव क जये। हमलोग क जूठन खाना आपको शोभा
नह दे ता ।। २३ ।।
यथा ह श यः शा तारं ु यथम भधाव त ।
ततः ुतमुपादाय ु यथमुप त त ।। २४ ।।
वषयानेवम मा भद शतान भम यसे ।
अनागतानतीतां व े जागरणे तथा ।। २५ ।।
जैसे श य ु तके अथको जाननेके लये उपदे श करनेवाले गु के पास जाता है और
उनसे ु तके अथका ान ा त करके फर वयं उसका वचार और अनुसरण करता है,
वैसे ही आप सोते और जागते समय हमारे ही दखाये ए भूत और भ व य- वषय का
उपभोग करते ह ।। २४-२५ ।।
वैमन यं गतानां च ज तूनाम पचेतसाम् ।
अ मदथ कृते काय यते ाणधारणम् ।। २६ ।।
जो मनर हत ए म दबु ाणी ह, उनम भी हमारे लये ही काय कये जानेपर ाण-
धारण दे खा जाता है ।। २६ ।।
ब न प ह संक पान् म वा व ानुपा य च ।
बुभु या पी मानो वषयानेव धाव त ।। २७ ।।
ब त-से संक प का मनन और व का आ य लेकर भोग भोगनेक इ छासे पी ड़त
आ ाणी वषय क ओर ही दौड़ता है ।। २७ ।।
अगारम ार मव व य
संक पभोगान् वषये नब ान् ।
ाण ये शा तमुपै त न यं
दा येऽ न व लतो यथैव ।। २८ ।।
वषय-वासनासे अनु व संक पज नत भोग का उपभोग करके ाणश के ीण
होनेपर मनु य बना दरवाजेके घरम घुसे ए मनु यक भाँ त उसी तरह शा त हो जाता है,
जैसे स मधा के जल जानेपर व लत अ न वयं ही बुझ जाती है ।। २८ ।।
कामं तु नः वेषु गुणेषु स ः
कामं च ना यो यगुणोपल धः ।
अ मान् वना ना त तवोपल ध-
ताव ते वां न भजेत् हषः ।। २९ ।।
भले ही हमलोग क अपने-अपने गुण के त आस हो और भले ही हम पर पर
एक- सरेके गुण को न जान सक; कतु यह बात स य है क आप हमारी सहायताके बना
कसी भी वषयका अनुभव नह कर सकते। आपके बना तो हम केवल हषसे ही वं चत
होना पड़ता है ।। २९ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
ा वशोऽ यायः ।। २२ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीता वषयक
बाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २२ ।।
*
इस ोकका सारांश इस कार समझना चा हये—पहले आ मा मनको उ चारण करनेके लये े रत करता है, तब
मन जठरा नको व लत करता है। जठरा नके व लत होनेपर उसके भावसे ाणवायु अपानवायुसे जा मलता है।
उसके बाद वह वायु उदानवायुके भावसे ऊपर चढ़कर म तकम टकराता है और फर ानवायुके भावसे क ठ-तालु
आ द थान म होकर वेगसे वण उ प कराता आ वैखरी पसे मनु य के कानम व होता है। जब ाणवायुका वेग
नवृ हो जाता है, तब वह फर समानभावसे चलने लगता है।
यो वशोऽ यायः
ाण, अपान आ दका संवाद और ाजीका सबक
े ता बतलाना
ा ण उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
सुभगे प चहोतॄणां वधान मह या शम् ।। १ ।।
ा णने कहा— ये! अब प चहोता के य का जैसा वधान है, उसके वषयम
एक ाचीन ा त बतलाया जाता है ।। १ ।।
ाणापानावुदान समानो ान एव च ।
प चहोतॄं तथैतान् वै परं भावं व बुधाः ।। २ ।।
ाण, अपान, उदान, समान और ान—ये पाँच ाण पाँच होता ह। व ान् पु ष
इ ह सबसे े मानते ह ।।
ा युवाच
वभावात् स तहोतार इ त मे पू वका म तः ।
यथा वै प चहोतारः परो भाव त यताम् ।। ३ ।।
ा णी बोली—नाथ! पहले तो म समझती थी क वभावतः सात होता ह; कतु
अब आपके मुँहसे पाँच होता क बात मालूम ई। अतः ये पाँच होता कस कार ह?
आप इनक े ताका वणन क जये ।। ३ ।।
ा ण उवाच
ाणेन स भृतो वायुरपानो जायते ततः ।
अपाने स भृतो वायु ततो ानः वतते ।। ४ ।।
ानेन स भृतो वायु ततोदानः वतते ।
उदाने स भृतो वायुः समानो नाम जायते ।। ५ ।।
तेऽपृ छ त पुरा स तः पूवजातं पतामहम् ।
यो नः े तमाच व स नः े ो भ व य त ।। ६ ।।
ा णने कहा— ये! वायु ाणके ारा पु होकर अपान प, अपानके ारा पु
होकर ान प, ानसे पु होकर उदान प, उदानसे प रपु होकर समान प होता है।
एक बार इन पाँच वायु ने सबके पूवज पतामह ाजीसे कया—‘भगवन्! हमम
जो े हो उसका नाम बता द जये, वही हमलोग म धान होगा’ ।। ४—६ ।।
ोवाच
य मन् लीने लयं ज त
सव ाणाः ाणभृतां शरीरे ।
य मन् चीण च पुन र त
स वै े ो ग छत य कामः ।। ७ ।।
ाजीने कहा— ाणधा रय के शरीरम थत ए तुमलोग मसे जसका लय हो
जानेपर सभी ाण लीन हो जायँ और जसके संच रत होनेपर सब-के-सब संचार करने
लग, वही े है। अब तु हारी जहाँ इ छा हो, जाओ ।। ७ ।।
ाण उवाच
म य लीने लयं ज त
सव ाणाः ाणभृतां शरीरे ।
म य चीण च पुन र त
े ो हं प यत मां लीनम् ।। ८ ।।
यह सुनकर ाणवायुने अपान आ दसे कहा—मेरे लीन होनेपर ा णय के शरीरम
थत सभी ाण लीन हो जाते ह तथा मेरे संच रत होनेपर सब-के-सब संचार करने लगते
ह, इस लये म ही सबसे े ँ। दे खो, अब म लीन हो रहा ँ ( फर तु हारा भी लय हो
जायगा) ।। ८ ।।
ा ण उवाच
ाणः ालीयत ततः पुन चचार ह ।
समान ा युदान वचोऽ ूतां पुनः शुभे ।। ९ ।।
ा ण कहते ह—शुभे! य कहकर ाणवायु थोड़ी दे रके लये छप गया और उसके
बाद फर चलने लगा। तब समान और उदानवायु उससे पुनः बोले— ।। ९ ।।
न वं सव मदं ा य त सीह यथा वयम् ।
न वं े ो ह नः ाण अपानो ह वशे तव ।
चचार पुनः ाण तमपानोऽ यभाषत ।। १० ।।
‘ ाण! जैसे हमलोग इस शरीरम ा त ह, उस तरह तुम इस शरीरम ा त होकर
नह रहते। इस लये तुम हमलोग से े नह हो। केवल अपान तु हारे वशम है [अतः
तु हारे लय होनेसे हमारी कोई हा न नह हो सकती]।’ तब ाण पुनः पूववत् चलने लगा।
तदन तर अपान बोला ।। १० ।।
अपान उवाच
म य लीने लयं ज त
सव ाणाः ाणभृतां शरीरे ।
म य चीण च पुन र त
े ो हं प यत मां लीनम् ।। ११ ।।
अपानने कहा—मेरे लीन होनेपर ा णय के शरीरम थत सभी ाण लीन हो जाते ह
तथा मेरे संच रत होनेपर सब-के-सब संचार करने लगते ह। इस लये म ही सबसे े ँ।
दे खो, अब म लीन हो रहा ँ ( फर तु हारा भी लय हो जायगा) ।। ११ ।।
ा ण उवाच
ान तमुदान भाषमाणमथोचतुः ।
अपान न वं े ोऽ स ाणो ह वशग तव ।। १२ ।।
ा ण कहते ह—तब ान और उदानने पूव बात कहनेवाले अपानसे कहा
—‘अपान! केवल ाण तु हारे अधीन है, इस लये तुम हमसे े नह हो सकते’ ।। १२ ।।
अपानः चचाराथ ान तं पुनर वीत् ।
े ोऽहम म सवषां ूयतां येन हेतुना ।। १३ ।।
यह सुनकर अपान भी पूववत् चलने लगा। तब ानने उससे फर कहा—‘म ही
सबसे े ँ। मेरी े ताका कारण या है। वह सुनो ।। १३ ।।
म य लीने लयं ज त
सव ाणाः ाणभृतां शरीरे ।
म य चीण च पुन र त
े ो हं प यत मां लीनम् ।। १४ ।।
‘मेरे लीन होनेपर ा णय के शरीरम थत सभी ाण लीन हो जाते ह तथा मेरे
संच रत होनेपर सब-के-सब संचार करने लगते ह। इस लये म ही सबसे े ँ। दे खो, अब
म लीन हो रहा ँ ( फर तु हारा भी लय हो जायगा)’ ।। १४ ।।
ा ण उवाच
ालीयत ततो ानः पुन चचार ह ।
ाणापानावुदान समान तम ुवन् ।
न वं े ोऽ स नो ान समान तु वशे तव ।। १५ ।।
ा ण कहते ह—तब ान कुछ दे रके लये लीन हो गया, फर चलने लगा। उस
समय ाण, अपान, उदान और समानने उससे कहा—‘ ान! तुम हमसे े नह हो,
केवल समान वायु तु हारे वशम है’ ।। १५ ।।
चचार पुन ानः समानः पुनर वीत् ।
े ोऽहम म सवषां ूयतां येन हेतुना ।। १६ ।।
यह सुनकर ान पूववत् चलने लगा। तब समानने पुनः कहा—‘म जस कारणसे
सबम े ँ, वह बताता ँ सुनो ।। १६ ।।
म य लीने लयं ज त
सव ाणाः ाणभृतां शरीरे ।
म य चीण च पुन र त
े ो हं प यत मां लीनम् ।। १७ ।।
‘मेरे लीन होनेपर ा णय के शरीरम थत सभी ाण लीन हो जाते ह तथा मेरे
संच रत होनेपर सब-के-सब संचार करने लगते ह। इस लये म ही सबसे े ँ। दे खो, अब
म लीन हो रहा ँ ( फर तु हारा भी लय हो जायगा)’ ।। १७ ।।
( ा ण उवाच
ततः समानः ा ल ये पुन चचार ह ।
ाणापानाबुदान ान ैव तम ुवन् ।।
न वं समान े ोऽ स ान एव वशे तव ।)
ा ण कहते ह—यह कहकर समान कुछ दे रके लये लीन हो गया और पुनः पूववत्
चलने लगा। उस समस ाण, अपान, ान और उदानने उससे कहा—‘समान! तुम
हमलोग से े नह हो, केवल ान ही तु हारे वशम है’ ।।
समानः चचाराथ उदान तमुवाच ह ।
े ोऽहम म सवषां ूयतां येन हेतुना ।। १८ ।।
यह सुनकर समान पूववत् चलने लगा। तब उदानने उससे कहा—‘म ही सबसे े ँ,
इसका या कारण है? यह सुनो ।। १८ ।।
म य लीने लयं ज त
सव ाणाः ाणभृतां शरीरे ।
म य चीण च पुन र त
े ो हं प यत मां लीनम् ।। १९ ।।
‘मेरे लीन होनेपर ा णय के शरीरम थत सभी ाण लीन हो जाते ह तथा मेरे
संच रत होनेपर सब-के-सब संचार करने लगते ह। इस लये म ही सबसे े ँ। दे खो, अब
म लीन हो रहा ँ ( फर तु हारा भी लय हो जायगा)’ ।। १९ ।।
ततः ालीयतोदानः पुन चचार ह ।
ाणापानौ समान ान ैव तम ुवन् ।
उदान न वं े ोऽ स ान एव वशे तव ।। २० ।।
यह सुनकर उदान कुछ दे रके लये लीन हो गया और पुनः चलने लगा। तब ाण,
अपान, समान और ानने उससे कहा—‘उदान! तुम हमलोग से े नह हो। केवल
ान ही तु हारे वशम है’ ।। २० ।।
ा ण उवाच
तत तान वीद् ा समवेतान् जाप तः ।
सव े ा न वा े ाः सव चा यो यध मणः ।। २१ ।।
ा ण कहते ह—तदन तर वे सभी ाण ाजीके पास एक ए। उस समय उन
सबसे जाप त ाने कहा—‘वायुगण! तुम सभी े हो। अथवा तुममसे कोई भी े
नह है। तुम सबका धारण प धम एक- सरेपर अवल बत है ।। २१ ।।
सव व वषये े ाः सव चा यो यध मणः ।
इ त तान वीत् सवान् समवेतान् जाप तः ।। २२ ।।
‘सभी अपने-अपने थानपर े हो और सबका धम एक- सरेपर अवल बत है।’
इस कार वहाँ एक ए सब ाण से जाप तने फर कहा— ।। २२ ।।
एकः थर ा थर वशेषात् प च वायवः ।
एक एव ममैवा मा ब धा युपचीयते ।। २३ ।।
‘एक ही वायु थर और अ थर पसे वराजमान है। उसीके वशेष भेदसे पाँच वायु
होते ह। इस तरह एक ही मेरा आ मा अनेक प म वृ को ा त होता है ।। २३ ।।
पर पर य सु दो भावय तः पर परम् ।
व त जत भ ं वो धारय वं पर परम् ।। २४ ।।
‘तु हारा क याण हो। तुम कुशलपूवक जाओ और एक- सरेके हतैषी रहकर
पर परक उ तम सहायता प ँचाते ए एक- सरेको धारण कये रहो’ ।। २४ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
यो वशोऽ यायः ।। २३ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा ण-गीता वषयक
तेईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २३ ।।
(दा णा य अ धक पाठके १ ोक मलाकर कुल २५ ोक ह)
चतु वशोऽ यायः
दे व ष नारद और दे वमतका संवाद एवं उदानके उ कृ
पका वणन
ा ण उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
नारद य च संवादमृषेदवमत य च ।। १ ।।
ा णने कहा— ये! इस वषयम दे व ष नारद और दे वमतके संवाद प ाचीन
इ तहासका उदाहरण दया करते ह ।। १ ।।
दे वमत उवाच
ज तोः संजायमान य क नु पूव वतते ।
ाणोऽपानः समानो वा ानो वोदान एव च ।। २ ।।
दे वमतने पूछा—दे वष! जब जीव ज म लेता है, उस समय सबसे पहले उसके शरीरम
कसक वृ होती है? ाण, अपान, समान, ान अथवा उदानक ? ।। २ ।।
नारद उवाच
येनायं सृ यते ज तु ततोऽ यः पूवमे त तम् ।
ाण ं ह व ेयं तयगू वमध यत् ।। ३ ।।
नारदजीने कहा—मुने! जस न म कारणसे इस जीवक उ प होती है, उससे
भ सरा पदाथ भी पहले कारण- पसे उप थत होता है। वह है ाण का । जो
ऊपर (दे वलोक), तयक् (मनु यलोक) और अधोलोक (पशु आ द)-म ा त है, ऐसा
समझना चा हये ।। ३ ।।
दे वमत उवाच
केनायं सृ यते ज तुः क ा यः पूवमे त तम् ।
ाण ं च मे ू ह तयगू वमध यत् ।। ४ ।।
दे वमतने पूछा—नारदजी! कस न म कारणसे इस जीवक सृ होती है? सरा
कौन पदाथ पहले कारण पसे उप थत होता है तथा ाण का या है, जो ऊपर,
म यम और नीचे ा त है? ।। ४ ।।
नारद उवाच
संक पा जायते हषः श दाद प च जायते ।
रसात् संजायते चा प पाद प च जायते ।। ५ ।।
नारदजीने कहा—मुने! संक पसे हष उ प होता है, मनोनुकूल श दसे, रससे और
पसे भी हषक उ प होती है ।। ५ ।।
शु ा छो णतसंसृ ात् पूव ाणः वतते ।
ाणेन वकृते शु े ततोऽपानः वतते ।। ६ ।।
रजम मले ए वीयसे पहले ाण आकर उसम काय आर भ करता है। उस ाणसे
वीयम वकार उ प होनेपर फर अपानक वृ होती है ।। ६ ।।
शु ात् संजायते चा प रसाद प च जायते ।
एतद् पमुदान य हष मथुनम तरा ।। ७ ।।
शु से और रससे भी हषक उ प होती है, यह हष ही उदानका प है। उ कारण
और काय प जो मथुन है, उन दोन के बीचम हष ा त होकर थत है ।। ७ ।।
कामात् संजायते शु ं शु ात् संजायते रजः ।
समान ानज नते सामा ये शु शो णते ।। ८ ।।
वृ के मूलभूत कामसे वीय उ प होता है। उससे रजक उ प होती है। ये दोन
वीय और रज समान और ानसे उ प होते ह। इस लये सामा य कहलाते ह ।। ८ ।।
ाणापाना वदं मवाक् चो व च ग छतः ।
ानः समान ैवोभौ तयग् वमु यते ।। ९ ।।
ाण और अपान—ये दोन भी ह। ये नीचे और ऊपरको जाते ह। ान और
समान—ये दोन म यगामी कहे जाते ह ।। ९ ।।
अ नव दे वताः सवा इ त दे व य शासनम् ।
संजायते ा ण य ानं बु सम वतम् ।। १० ।।
अ न अथात् परमा मा ही स पूण दे वता ह। यह वेद उन परमे रक आ ा प है। उस
वेदसे ही ा णम बु यु ान उ प होता है ।। १० ।।
त य धूम तमो पं रजो भ मसु तेजसः ।
सव संजायते त य य यते ह वः ।। ११ ।।
उस अ नका धुआँ तमोमय और भ म रजोमय है। जसके न म ह व यक आ त
द जाती है, उस अ नसे ( काश व प परमे रसे) यह सारा जगत् उ प होता
है ।। ११ ।।
स वात् समानो ान इ त य वदो व ः ।
ाणापानावा यभागौ तयोम ये ताशनः ।। १२ ।।
एतद् पमुदान य परमं ा णा व ः ।
न म त यत् वेतत् त मे नगदतः शृणु ।। १३ ।।
य वे ा पु ष यह जानते ह क स वगुणसे समान और ानक उ प होती है।
ाण और अपान आ यभाग नामक दो आ तय के समान ह। उनके म यभागम अ नक
थ त है। यही उदानका उ कृ प है, जसे ा णलोग जानते ह। जो न कहा गया
है, उसे भी बताता ँ, तुम मेरे मुखसे सुनो ।। १२-१३ ।।
अहोरा मदं ं तयोम ये ताशनः ।
एतद् पमुदान य परमं ा णा व ः ।। १४ ।।
ये दन और रात ह, इनके म यभागम अ न ह। ा णलोग इसीको उदानका
उ कृ प मानते ह ।। १४ ।।
स चास चैव तद् ं तयोम ये ताशनः ।
एतद् पमुदान य परमं ा णा व ः ।। १५ ।।
सत् और असत्—ये दोन ह तथा इनके म यभागम अ न ह। ा णलोग इसे
उदानका परम उ कृ प मानते ह ।। १५ ।।
ऊ व समानो ान यते कम तेन तत् ।
तृतीयं तु समानेन पुनरेव व यते ।। १६ ।।
ऊ व अथात् जस संक प नामक हेतुसे समान और ान प होता है, उसीसे
कमका व तार होता है। अतः संक पको रोकना चा हये। जा त् और व के अ त र जो
तीसरी अव था है, उससे उपल त का समानके ारा ही न य होता है ।। १६ ।।
शा यथ ानमेकं च शा त सनातनम् ।
एतद् पमुदान य परमं ा णा व ः ।। १७ ।।
एकमा ान शा तके लये है। शा त सनातन है। ा णलोग इसीको उदानका
परम उ कृ प मानते ह ।। १७ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
चतु वशोऽ यायः ।। २४ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा ण-गीता वषयक
चौबीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २४ ।।
प च वशोऽ यायः
चातुह म य का वणन
ा ण उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
चातुह वधान य वधान मह या शम् ।। १ ।।
ा णने कहा— ये! इसी वषयम चार होता से यु य का जैसा वधान है,
उसको बतानेवाले इस ाचीन इ तहासका उदाहरण दया करते ह ।। १ ।।
त य सव य व धवद् वधानमुप द यते ।
शृणु मे गदतो भ े रह य मदम तम् ।। २ ।।
भ े ! उस सबके व ध- वधानका उपदे श कया जाता है। तुम मेरे मुखसे इस अद्भुत
रह यको सुनो ।। २ ।।
करणं कम कता च मो इ येव भा व न ।
च वार एते होतारो यै रदं जगदावृतम् ।। ३ ।।
भा व न! करण, कम, कता और मो —ये चार होता ह, जनके ारा यह स पूण
जगत् आवृत है ।। ३ ।।
हेतूनां साधनं चैव शृणु सवमशेषतः ।
ाणं ज ा च च ु वक् च ो ं च प चमम् ।
मनो बु स तैते व ेया गुणहेतवः ।। ४ ।।
इनके जो हेतु ह, उ ह यु य ारा स कया जाता है। वह सब पूण पसे सुनो।
ाण (ना सका), ज ा, ने , वचा, पाँचवाँ कान तथा मन और बु —ये सात कारण प
हेतु गुणमय जानने चा हये ।। ४ ।।
ग धो रस पं च श दः पश प चमः ।
म त मथ बो ं स तैते कमहेतवः ।। ५ ।।
ग ध, रस, प, श द, पाँचवाँ पश तथा म त और बो —ये सात वषय
कम प हेतु ह ।। ५ ।।
ाता भ यता ा व ा ोता च प चमः ।
म ता बो ा च स तैते व ेयाः कतृहेतवः ।। ६ ।।
सूँघनेवाला, खानेवाला, दे खनेवाला, बोलनेवाला, पाँचवाँ सुननेवाला तथा मनन
करनेवाला और न या मक बोध ा त करनेवाला—ये सात कता प हेतु ह ।। ६ ।।
वगुणं भ य येते गुणव तः शुभाशुभम् ।
अहं च नगुणोऽन तः स तैते मो हेतवः ।। ७ ।।
ये ाण आ द इ याँ गुणवान् ह, अतः अपने शुभाशुभ वषय प गुण का उपभोग
करती ह। म नगुण और अन त ँ, (इनसे मेरा कोई स ब ध नह है, यह समझ लेनेपर) ये
सात — ाण आ द मो के हेतु होते ह ।। ७ ।।
व षां बु यमानानां वं वं थानं यथा व ध ।
गुणा ते दे वताभूताः सततं भु ते ह वः ।। ८ ।।
व भ वषय का अनुभव करनेवाले व ान के ाण आ द अपने-अपने थानको
व धपूवक जानते ह और दे वता- प होकर सदा ह व यका भोग करते ह ।। ८ ।।
अद ा यथोऽ व ान् मम वेनोपप ते ।
आ माथ पाचय ं मम वेनोपह यते ।। ९ ।।
अ ानी पु ष अ भोजन करते समय उसके त मम वसे यु हो जाता है। इसी
कार जो अपने लये भोजन पकाता है, वह भी मम व दोषसे मारा जाता है ।। ९ ।।
अभ यभ णं चैव म पानं च ह त तम् ।
स चा ं ह त तं चा ं स ह वा ह यते पुनः ।। १० ।।
वह अभ य-भ ण और म पान-जैसे सन को भी अपना लेता है, जो उसके लये
घातक होते ह। वह भ णके ारा उस अ क ह या करता है और उसक ह या करके वह
वयं भी उसके ारा मारा जाता है ।। १० ।।
ह ता मदं व ान् पुनजनयती रः ।
न चा ा जायते त मन् सू मो नाम त मः ।। ११ ।।
जो व ान् इस अ को खाता है, अथात् अ से उपल त सम त पंचको अपने-
आपम लीन कर दे ता है, वह ई र—सवसमथ होकर पुनः अ आ दका जनक होता है।
उस अ से उस व ान् पु षम कोई सू म-से-सू म दोष भी नह उ प होता ।। ११ ।।
मनसा ग यते य च य च वाचा नग ते ।
ो ेण ूयते य च च ुषा य च यते ।। १२ ।।
पशन पृ यते य च ाणेन ायते च यत् ।
मनःष ा न संय य हव येता न सवशः ।। १३ ।।
गुणव पावको म ं द तेऽ तःशरीरगः ।
जो मनसे अवगत होता है, वाणी ारा जसका कथन होता है, जसे कानसे सुना और
आँखसे दे खा जाता है, जसको वचासे छू आ और ना सकासे सूँघा जाता है। इन म त
आ द छह वषय पी ह व य का मन आ द छह इ य के संयमपूवक अपने-आपम होम
करना चा हये। उस होमके अ ध ानभूत गुणवान् पावक प परमा मा मेरे तन-मनके भीतर
का शत हो रहे ह ।। १२-१३ ।।
योगय ः वृ ो मे ानव दो वः ।
ाण तो ोऽपानश ः सव यागसुद णः ।। १४ ।।
मने योग पी य का अनु ान आर भ कर दया है। इस य का उ व ान पी
अ नको का शत करनेवाला है। इसम ाण ही तो है, अपान श है और सव वका
याग ही उ म द णा है ।। १४ ।।
कतानुम ता ा मा होता वयुः कृत तु तः ।
ऋतं शा ता त छ मपवग ऽ य द णा ।। १५ ।।
कता (अहंकार), अनुम ता (मन) और आ मा (बु )—ये तीन प होकर
मशः होता, अ वयु और उद्गाता ह। स यभाषण ही शा ताका श है और अपवग
(मो ) ही उस य क द णा है ।। १५ ।।
ऋच ा य शंस त नारायण वदो जनाः ।
नारायणाय दे वाय यद व दन् पशून् पुरा ।। १६ ।।
नारायणको जाननेवाले पु ष इस योगय के माणम ऋचा का भी उ लेख करते ह।
पूवकालम भगवान् नारायणदे वक ा तके लये भ पु ष ने इ य पी पशु को
अपने अधीन कया था ।। १६ ।।
त सामा न गाय त त चा नदशनम् ।
दे वं नारायणं भी सवा मानं नबोध तम् ।। १७ ।।
भगव ा त हो जानेपर परमान दसे प रपूण ए स पु ष जो सामगान करते ह,
उसका ा त तै रीय-उप नषद्के व ान् ‘एतत् सामगाय ा ते’ इ या द म के पम
उप थत करते ह। भी ! तुम उस सवा मा भगवान् नारायणदे वका ान ा त
करो ।। १७ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
प च वशोऽ यायः ।। २५ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीता वषयक
पचीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २५ ।।
षड् वशोऽ यायः
अ तयामीक धानता
ा ण उवाच
एकः शा ता न तीयोऽ त शा ता
यो छय तमहमनु वी म ।
तेनैव यु ः वणा दवोदकं
यथा नयु ोऽ म तथा वहा म ।। १ ।।
ा णने कहा— ये! जगत्का शासक एक ही है, सरा नह । जो दयके भीतर
वराजमान है, उस परमा माको ही म सबका शासक बतला रहा ँ। जैसे पानी ढालू
थानसे नीचेक ओर वा हत होता है, वैसे ही उस—परमा माक ेरणासे म जस तरहके
कायम नयु होता ँ, उसीका पालन करता रहता ँ ।। १ ।।
एको गु ना त ततो तीयो
यो छय तमहमनु वी म ।
तेनानु श ा गु णा सदै व
पराभूता दानवाः सव एव ।। २ ।।
एक ही गु है सरा नह । जो दयम थत है, उस परमा माको ही म गु बतला रहा
ँ। उसी गु के अनुशासनसे सम त दानव हार गये ह ।। २ ।।
एको ब धुना त ततो तीयो
यो छय तमहमनु वी म ।
तेनानु श ा बा धवा ब धुम तः
स तषय ैव द व भा त ।। ३ ।।
एक ही ब धु है, उससे भ सरा कोई ब धु नह है। जो दयम थत है, उस
परमा माको ही म ब धु कहता ँ। उसीके उपदे शसे बा धवगण ब धुमान् होते ह और
स त ष लोग आकाशम का शत होते ह ।। ३ ।।
एकः ोता ना त ततो तीयो
यो छय तमहमनु वी म ।
त मन् गुरौ गु वासं न य
श ो गतः सवलोकामर वम् ।। ४ ।।
एक ही ोता है, सरा नह । जो दयम थत परमा मा है, उसीको म ोता कहता
ँ। इ ने उसीको गु मानकर गु कुलवासका नयम पूरा कया अथात् श यभावसे वे उस
अ तयामीक ही शरणम गये। इससे उ ह स पूण लोक का सा ा य और अमर व ा त
आ ।। ४ ।।
एको े ा ना त ततो तीयो
यो छय तमहमनु वी म ।
तेनानु श ा गु णा सदै व
लोके ाः प गाः सव एव ।। ५ ।।
एक ही श ु है सरा नह । जो दयम थत है, उस परमा माको ही म गु बतला रहा
ँ। उसी गु क ेरणासे जगत्के सारे साँप सदा े षभावसे यु रहते ह ।। ५ ।।
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
जापतौ प गानां दे वष णां च सं वदम् ।। ६ ।।
पूवकालम सप , दे वता और ऋ षय क जाप तके साथ जो बातचीत ई थी, उस
ाचीन इ तहासके जानकार लोग उस वषयम उदाहरण दया करते ह ।। ६ ।।
दे वषय नागा ा यसुरा जाप तम् ।
पयपृ छ ुपासीनाः ेयो नः ो यता म त ।। ७ ।।
एक बार दे वता, ऋ ष, नाग और असुर ने जाप तके पास बैठकर पूछा—‘भगवन्!
हमारे क याणका या उपाय है? यह बताइये’ ।। ७ ।।
तेषां ोवाच भगवान् ेयः समनुपृ छताम् ।
ओ म येका रं ते ु वा ा वन् दशः ।। ८ ।।
क याणक बात पूछनेवाले उन महानुभाव का सुनकर भगवान् जाप त
ाजीने एका र —ॐकारका उ चारण कया। उनका णवनाद सुनकर सब लोग
अपनी-अपनी दशा (अपने-अपने थान)-क ओर भाग चले ।। ८ ।।
तेषां वमाणानामुपदे शाथमा मनः ।
सपाणां दं शने भावः वृ ः पूवमेव तु ।। ९ ।।
असुराणां वृ तु द भभावः वभावजः ।
दानं दे वा व सता दममेव महषयः ।। १० ।।
फर उ ह ने उस उपदे शके अथपर जब वचार कया, तब सबसे पहले सप के मनम
सर के डँसनेका भाव पैदा आ, असुर म वाभा वक द भका आ वभाव आ तथा
दे वता ने दानको और मह षय ने दमको ही अपनानेका न य कया ।। ९-१० ।।
एकं शा तारमासा श दे नैकेन सं कृताः ।
नाना व सताः सव सपदे व षदानवाः ।। ११ ।।
इस कार सप, दे वता, ऋ ष और दानव—ये सब एक ही उपदे शक गु के पास गये थे
और एक ही श दके उपदे शसे उनक बु का सं कार आ तो भी उनके मनम भ - भ
कारके भाव उ प हो गये ।। ११ ।।
शृणो ययं ो यमानं गृ ा त च यथातथम् ।
पृ छात तदतो भूयो गु र यो न व ते ।। १२ ।।
ोता गु के कहे ए उपदे शको सुनता है और उसको जैसे-तैसे ( भ - भ पम)
हण करता है। अतः पूछनेवाले श यके लये अपने अ तयामीसे बढ़कर सरा कोई
गु नह है ।। १२ ।।
त य चानुमते कम ततः प ात् वतते ।
गु ब ा च ोता च े ा च द नःसृतः ।। १३ ।।
पहले वह कमका अनुमोदन करता है, उसके बाद जीवक उस कमम वृ होती है।
इस कार दयम कट होनेवाला परमा मा ही गु , ानी, ोता और े ा है ।। १३ ।।
पापेन वचर ल के पापचारी भव ययम् ।
शुभेन वचर ल के शुभचारी भव युत ।। १४ ।।
संसारम जो पाप करते ए वचरता है, वह पापाचारी और जो शुभ कम का आचरण
करता है, वह शुभाचारी कहलाता है ।। १४ ।।
कामचारी तु कामेन य इ यसुखे रतः ।
चारी सदै वैष य इ यजये रतः ।। १५ ।।
इसी तरह कामना के ारा इ यसुखम परायण मनु य कामचारी और
इ यसंयमम वृ रहनेवाला पु ष सदा ही चारी है ।। १५ ।।
अपेत तकमा तु केवलं ण थतः ।
भूत र ल के चारी भव ययम् ।। १६ ।।
जो त और कम का याग करके केवल म थत है, वह व प होकर
संसारम वचरता रहता है, वही मु य चारी है ।। १६ ।।
ैव स मध त य ा न स भवः ।
आपो गु स ण समा हतः ।। १७ ।।
ही उसक स मधा है, ही अ न है, से ही वह उ प आ है, ही
उसका जल और ही गु है। उसक च वृ याँ सदा म ही लीन रहती ह ।। १७ ।।
एतदे वे शं सू मं चय व बुधाः ।
व द वा चा वप त े ेनानुद शताः ।। १८ ।।
व ान ने इसीको सू म चय बतलाया है। त वदश का उपदे श पाकर बु ए
आ म ानी पु ष इस चयके व पको जानकर सदा उसका पालन करते रहते
ह ।। १८ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
षड् वशोऽ यायः ।। २६ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीता वषयक
छ बीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २६ ।।
स त वशोऽ यायः
अ या म वषयक महान् वनका वणन
ा ण उवाच
संक पदं शमशकं शोकहष हमातपम् ।
मोहा धकार त मरं लोभ ा धसरीसृपम् ।। १ ।।
वषयैका यया वानं काम ोध वरोधकम् ।
तदती य महा ग व ोऽ म महद् वनम् ।। २ ।।
ा णने कहा— ये! जहाँ संक प पी डाँस और म छर क अ धकता होती है।
शोक और हष पी गम , सद का क रहता है, मोह पी अ धकार फैला आ है, लोभ
तथा ा ध पी सप वचरा करते ह। जहाँ वषय का ही माग है, जसे अकेले ही तै करना
पड़ता है तथा जहाँ काम और ोध पी श ु डेरा डाले रहते ह, उस संसार पी गम
पथका उ लंघन करके अब म पी महान् वनम वेश कर चुका ँ ।। १-२ ।।
ा युवाच
व तद् वनं महा ा के वृ ाः स रत काः ।
गरयः पवता ैव कय य व न तद् वनम् ।। ३ ।।
ा णीने पूछा—महा ा ! वह वन कहाँ है? उसम कौन-कौनसे वृ , ग र, पवत
और न दयाँ ह तथा वह कतनी रीपर है ।। ३ ।।
ा ण उवाच
नैतद त पृथ भावः क चद यत् ततः सुखम् ।
नैतद यपृथ भावः क चद् ःखतरं ततः ।। ४ ।।
ा णने कहा— ये! उस वनम न भेद है न अभेद, वह इन दोन से अतीत है। वहाँ
लौ कक सुख और ःख दोन का अभाव है ।। ४ ।।
त माद् वतरं ना त न ततोऽ त मह रम् ।
ना त त मात् सू मतरं ना य यत् त समं सुखम् ।। ५ ।।
उससे अ धक छोट , उससे अ धक बड़ी और उससे अ धक सू म भी सरी कोई व तु
नह है। उसके समान सुख प भी कोई नह है ।। ५ ।।
न त ा व य शोच त न य त च जाः ।
न च ब य त केषां चत् ते यो ब य त केचन ।। ६ ।।
उस वनम व हो जानेपर जा तय को न हष होता है, न शोक। न तो वे वयं
क ह ा णय से डरते ह और न उ ह से सरे कोई ाणी भय मानते ह ।। ६ ।।
त मन् वने स त महा मा
फला न स ता तथय स त ।
स ता माः स त समाधय
द ा स तैतदर य पम् ।। ७ ।।
वहाँ सात बड़े-बड़े वृ ह, सात उन वृ के फल ह तथा सात ही उन फल के भो ा
अ त थ ह। सात आ म ह। वहाँ सात कारक समा ध और सात कारक द ाएँ ह।
यही उस वनका व प है ।। ७ ।।
प चवणा न द ा न पु पा ण च फला न च ।
सृज तः पादपा त ा य त त तद् वनम् ।। ८ ।।
वहाँके वृ पाँच कारके रंग के द पु प और फल क सृ करते ए सब ओरसे
वनको ा त करके थत ह ।। ८ ।।
सुवणा न वणा न पु पा ण च फला न च ।
सृज तः पादपा त ा य त त तद् वनम् ।। ९ ।।
वहाँ सरे वृ ने सु दर दो रंगवाले पु प और फल उ प करते ए उस वनको सब
ओरसे ा त कर रखा है ।। ९ ।।
सुरभी ण वणा न पु पा ण च फला न च ।
सृज तः पादपा त ा य त त तद् वनम् ।। १० ।।
तीसरे वृ वहाँ सुग धयु दो रंगवाले पु प और फल दान करते ए उस वनको
ा त करके थत ह ।। १० ।।
सुरभी येकवणा न पु पा ण च फला न च ।
सृज तः पादपा त ा य त त तद् वनम् ।। ११ ।।
चौथे वृ सुग धयु केवल एक रंगवाले पु प और फल क सृ करते ए उस वनके
सब ओर फैले ह ।। ११ ।।
ब य वणा न पु पा ण च फला न च ।
वसृज तौ महावृ ौ तद् वनं ा य त तः ।। १२ ।।
वहाँ दो महावृ ब त-से अ रंगवाले पु प और फल क रचना करते ए उस
वनको ा त करके थत ह ।। १२ ।।
एको व ः सुमना ा णोऽ
प चे या ण स मध ा स त ।
ते यो मो ाः स त फल त द ा
गुणाः फला य तथयः फलाशाः ।। १३ ।।
उस वनम एक ही अ न है, जीव शु चेता ा ण है, पाँच इ याँ स मधाएँ ह। उनसे
जो मो ा त होता है, वह सात कारका है। इस य क द ाका फल अव य होता है।
गुण ही फल है। सात अ त थ ही फल के भो ा ह ।। १३ ।।
आ त यं तगृ त त त महषयः ।
अ चतेषु लीनेषु ते व यद् रोचते वनम् ।। १४ ।।
वे मह षगण इस य म आ त य हण करते ह और पूजा वीकार करते ही उनका लय
हो जाता है। त प ात् वह प वन वल ण पसे का शत होता है ।। १४ ।।
ावृ ं मो फलं शा त छायासम वतम् ।
ाना यं तृ ततोयम तः े भा करम् ।। १५ ।।
उसम ा पी वृ शोभा पाते ह, मो पी फल लगते ह और शा तमयी छाया
फैली रहती है। ान वहाँका आ य थान और तृ त जल है। उस वनके भीतर आ मा पी
सूयका काश छाया रहता है ।। १५ ।।
येऽ धग छ त तं स त तेषां ना त भयं पुनः ।
ऊ व चाध तयक् च त य ना तोऽ धग यते ।। १६ ।।
जो े पु ष उस वनका आ य लेते ह, उ ह फर कभी भय नह होता। वह वन
ऊपर-नीचे तथा इधर-उधर सब ओर ा त है। उसका कह भी अ त नह है ।। १६ ।।
सत य त वस त स -
ववाङ् मुखा भानुम यो ज न यः ।
ऊ व रसानाददते जा यः
सवान् यथा स यम न यता च ।। १७ ।।
वहाँ सात याँ नवास करती ह, जो ल जाके मारे अपना मुँह नीचेक ओर कये
रहती ह। वे च मय यो तसे का शत होती ह। वे सबक जननी ह और वे उस वनम
रहनेवाली जासे सब कारके उ म रस उसी कार हण करती ह, जैसे अ न यता
स यको हण करती है ।। १७ ।।
त ैव त त त पुन त ोपय त च ।
स त स तषयः स ा व स मुखैः सह ।। १८ ।।
सात स स त ष व स आ दके साथ उसी वनम लीन होते और उसीसे उ प होते
ह ।। १८ ।।
यशो वच भग ैव वजयः स तेजसः ।
एवमेवानुवत ते स त योत ष भा करम् ।। १९ ।।
यश, भा, भग (ऐ य), वजय, स (ओज) और तेज—ये सात यो तयाँ उपयु
आ मा पी सूयका ही अनुसरण करती ह ।। १९ ।।
गरयः पवता ैव स त त समासतः ।
न स रतो वा र वह यो स भवम् ।। २० ।।
उस त वम ही ग र, पवत, झरन, नद और स रताएँ थत ह, जो ज नत जल
बहाया करती ह ।। २० ।।
नद नां स म ैव वैताने समुप रे ।
वा मतृ ता यतो या त सा ादे व पतामहम् ।। २१ ।।
न दय का संगम भी उसीके अ य त गूढ़ दयाकाशम सं ेपसे होता है। जहाँ योग पी
य का व तार होता रहता है। वही सा ात् पतामहका व प है। आ म ानसे तृ त पु ष
उसीको ा त होते ह ।। २१ ।।
कृशाशाः सु ताशा तपसा द ध क बषाः ।
आ म या मानमा व य ाणं समुपासते ।। २२ ।।
जनक आशा ीण हो गयी है, जो उ म तके पालनक इ छा रखते ह। तप यासे
जनके सारे पाप द ध हो गये ह। वे ही पु ष अपनी बु को आ म न करके पर क
उपासना करते ह ।। २२ ।।
शमम य शंस त व ार य वदो जनाः ।
तदार यम भ े य यथाधीर भजायत ।। २३ ।।
व ा ( ान)-के ही भावसे पी वनका व प समझम आता है। इस बातको
जाननेवाले मनु य इस वनम वेश करनेके उ े यसे शम (मनो न ह)-क ही शंसा करते
ह, जससे बु थर होती है ।। २३ ।।
एतदे वे शं पु यमर यं ा णा व ः ।
व द वा चानु त त े ेनानुद शता ।। २४ ।।
ा ण ऐसे गुणवाले इस प व वनको जानते ह और त वदश के उपदे शसे बु ए
आ म ानी पु ष उस वनको शा तः जानकर शम आ द साधन के अनु ानम लग
जाते ह ।। २४ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
स त वशोऽ यायः ।। २७ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीतास ब धी
स ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २७ ।।
अ ा वशोऽ यायः
ानी पु षक थ त तथा अ वयु और य तका संवाद*
ा ण उवाच
ग धान् न ज ा म रसान् न वे
पं न प या म न च पृशा म ।
न चा प श दान् व वधान् शृणो म
न चा प संक पमुपै म कं चत् ।। १ ।।
ा ण कहते ह—म न तो ग ध को सूँघता ँ, न रस का आ वादन करता ँ, न
पको दे खता ँ, न कसी व तुका पश करता ँ, न नाना कारके श द को सुनता ँ और
न कोई संक प ही करता ँ ।। १ ।।
अथा न ान् कामयते वभावः
सवान् े यान् षते वभावः ।
काम े षायु वतः वभावात्
ाणापानौ ज तुदेहा वे य ।। २ ।।
वभाव ही अभी पदाथ क कामना रखता है, वभाव ही स पूण े य व तु के
त े ष करता है। जैसे ाण और अपान वभावसे ही ा णय के शरीर म व होकर
अ -पाचन आ दका काय करते रहते ह, उसी कार वभावसे ही राग और े षक उ प
होती है। ता पय यह क बु आ द इ याँ वभावसे ही पदाथ म बत रही ह ।। २ ।।
ते य ा यां तेषु न यां भावान्
भूता मानं ल येरन् शरीरे ।
त मं त ा म स ः कथं चत्
काम ोधा यां जरया मृ युना च ।। ३ ।।
इन बा इ य और वषय से भ जो व और सुषु तके वासनामय वषय एवं
इ याँ ह तथा उनम भी जो न यभाव ह, उनसे भी वल ण जो भूता मा है, उसको
शरीरके भीतर योगीजन दे ख पाते ह। उसी भूता माम थत आ म कह कसी तरह भी
काम, ोध, जरा और मृ युसे त नह होता ।। ३ ।।
अकामयान य च सवकामा-
न व षाण य च सवदोषान् ।
न मे वभावेषु भव त लेपा-
तोय य ब दो रव पु करेषु ।। ४ ।।
म स पूण कामना मसे कसीक कामना नह करता। सम त दोष से भी कभी े ष
नह करता। जैसे कमलके प पर जल- ब का लेप नह होता, उसी कार मेरे वभावम
राग और े षका पश नह है ।। ४ ।।
न य य चैत य भव य न या
नरी यमाण य ब वभावान् ।
न स जते कमसु भोगजालं
दवीव सूय य मयूखजालम् ।। ५ ।।
जनका वभाव ब त कारका है, उन इ य आ दको दे खनेवाले इस न य व प
आ माके लये सब भोग अ न य हो जाते ह। अतः वे भोगसमुदाय उस व ान्को उसी
कार कम म ल त नह कर सकते, जैसे आकाशम सूयक करण का समुदाय सूयको
ल त नह कर सकता ।। ५ ।।
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
अ वयुय तसंवादं तं नबोध यश व न ।। ६ ।।
यश व न! इस वषयम अ वयु और य तके संवाद प ाचीन इ तहासका उदाहरण
दया जाता है, तुम उसे सुनो ।। ६ ।।
ो यमाणं पशुं ् वा य कम यथा वीत् ।
य तर वयुमासीनो हसेय म त कु सयन् ।। ७ ।।
कसी य -कमम पशुका ो ण होता दे ख वह बैठे ए एक य तने अ वयुसे उसक
न दा करते ए कहा—‘यह हसा है (अतः इससे पाप होगा)’ ।। ७ ।।
तम वयुः युवाच नायं छागो वन य त ।
ेयसा यो यते ज तुय द ु त रयं तथा ।। ८ ।।
अ वयुने य तको इस कार उ र दया—‘यह बकरा न नह होगा। य द ‘पशुव
नीयमानः’ इ या द ु त स य है तो यह जीव क याणका ही भागी होगा ।। ८ ।।
यो य पा थवो भागः पृ थव स ग म य त ।
यद य वा रजं क चदप तत् स वे य त ।। ९ ।।
‘इसके शरीरका जो पा थव भाग है, वह पृ वीम वलीन हो जायगा। इसका जो कुछ
भी जलीय भाग है, वह जलम व हो जायगा ।। ९ ।।
सूय च ु दशः ी ं ाणोऽ य दवमेव च ।
आगमे वतमान य न मे दोषोऽ त क न ।। १० ।।
‘ने सूयम, कान दशा म और ाण आकाशम ही लयको ा त होगा। शा क
आ ाके अनुसार बताव करनेवाले मुझको कोई दोष नह लगेगा’ ।। १० ।।
य त वाच
ाणै वयोगे छाग य य द ेयः प य स ।
छागाथ वतते य ो भवतः क योजनम् ।। ११ ।।
य तने कहा—य द तुम बकरेके ाण का वयोग हो जानेपर भी उसका क याण ही
दे खते हो, तब तो यह य उस बकरेके लये ही हो रहा है। तु हारा इस य से या योजन
है? ।। ११ ।।
अ वां म यतां ाता पता माता सखे त च ।
म य वैनमु ीय परव तं वशेषतः ।। १२ ।।
ु त कहती है ‘पशो! इस वषयम तुझे तेरे भाई, पता, माता और सखाक अनुम त
ा त होनी चा हये।’ इस ु तके अनुसार वशेषतः पराधीन ए इस पशुको ले जाकर
इसके पता माता आ दसे अनुम त लो (अ यथा तुझे हसाका दोष अव य ा त
होगा) ।। १२ ।।
एवमेवानुम येरं तान् भवान् ु मह त ।
तेषामनुमतं ु वा श या कतु वचारणा ।। १३ ।।
पहले तु ह इस पशुके उन स ब धय से मलना चा हये। य द वे भी ऐसा ही करनेक
अनुम त दे द, तब उनका अनुमोदन सुनकर तदनुसार वचार कर सकते हो ।। १३ ।।
ाणा अ य य छाग य ा पता ते वयो नषु ।
शरीरं केवलं श ं न े म त मे म तः ।। १४ ।।
तुमने इस छागक इ य को उनके कारण म वलीन कर दया है। मेरे वचारसे अब
तो केवल इसका न े शरीर ही अव श रह गया है ।। १४ ।।
इ धन य तु तु येन शरीरेण वचेतसा ।
हसा नव ु कामाना म धनं पशुसं तम् ।। १५ ।।
यह चेतनाशू य जड शरीर धनके ही समान है, उससे हसाके ाय क इ छासे
य करनेवाल के लये धन ही पशु है (अतः जो काम धनसे होता है, उसके लये पशु-
हसा य क जाय?) ।। १५ ।।
अ हसा सवधमाणा म त वृ ानुशासनम् ।
य द ह ं भवेत् कम तत् काय म त व हे ।। १६ ।।
वृ पु ष का यह उपदे श है क अ हसा सब धम म े है, जो काय हसासे र हत हो
वही करने यो य है, यही हमारा मत है ।। १६ ।।
अ हसे त त ेयं य द व या यतः परम् ।
श यं ब वधं कतु भवता काय षणम् ।। १७ ।।
इसके बाद भी य द म कुछ क ँ तो यही कह सकता ँ क सबको यह त ा कर
लेनी चा हये क ‘म अ हसा-धमका पालन क ँ गा।’ अ यथा आपके ारा नाना कारके
काय-दोष स पा दत हो सकते ह ।। १७ ।।
अ हसा सवभूतानां न यम मासु रोचते ।
य तः साधयामो न परो मुपा महे ।। १८ ।।
कसी भी ाणीक हसा न करना ही हम सदा अ छा लगता है। हम य फलके
साधक ह, परो क उपासना नह करते ह ।। १८ ।।
अ वयु वाच
भूमेग धगुणान् भुङ् े पब यापोमयान् रसान् ।
यो तषां प यसे पं पृश य नलजान् गुणान् ।। १९ ।।
शृणो याकाशजान् श दान् मनसा म यसे म तम् ।
सवा येता न भूता न ाणा इ त च म यसे ।। २० ।।
अ वयुने कहा—यते! यह तो तुम मानते ही हो क सभी भूत म ाण है, तो भी तुम
पृ वीके ग ध गुण का उपभोग करते हो, जलमय रस को पीते हो, तेजके गुण? पका
दशन करते हो और वायुके गुण पशको छू ते हो, आकाशज नत श द को सुनते हो और
मनसे म तका मनन करते हो ।। १९-२० ।।
ाणादाने नवृ ोऽ स हसायां वतते भवान् ।
ना त चे ा वना हसां क वा वं म यसे ज ।। २१ ।।
एक ओर तो तुम कसी ाणीके ाण लेनेके कायसे नवृ हो और सरी ओर हसाम
लगे ए हो। जवर! कोई भी चे ा हसाके बना नह होती। फर तुम कैसे समझते हो क
तु हारे ारा अ हसाका ही पालन हो रहा है? ।। २१ ।।
य त वाच
अ रं च रं चैव ै धीभावोऽयमा मनः ।
अ रं त स ावः वभावः र उ यते ।। २२ ।।
य तने कहा—आ माके दो प ह—एक अ र और सरा र। जसक स ा तीन
काल म कभी नह मटती वह स व प अ र (अ वनाशी) कहा गया है तथा जसका
सवथा और सभी काल म अभाव है, वह र कहलाता है ।। २२ ।।
ाणो ज ा मनः स वं स ावो रजसा सह ।
भावैरेतै वमु य न य नरा शषः ।। २३ ।।
सम य सवभूतेषु नमम य जता मनः ।
सम तात् प रमु य न भयं व ते व चत् ।। २४ ।।
ाण, ज ा, मन और रजोगुणस हत स वगुण—ये रज अथात् मायास हत स ाव ह।
इन भाव से मु न , न काम, सम त ा णय के त समभाव रखनेवाले, ममतार हत,
जता मा तथा सब ओरसे ब धनशू य पु षको कभी और कह भी भय नह
होता ।। २३-२४ ।।
अ वयु वाच
स रेवेह संवासः काय म तमतां वर ।
भवतो ह मतं ु वा तभा त म तमम ।। २५ ।।
भगवन् भगवद्बु या तप ो वी यहम् ।
तं म कृतं कतुनापराधोऽ त मे ज ।। २६ ।।
अ वयुने कहा—बु मान म े यते! इस जगत्म आप-जैसे साधुपु ष के साथ ही
नवास करना उ चत है। आपका यह मत सुनकर मेरी बु म भी ऐसी ही ती त हो रही है।
भगवन्! व वर! म आपक बु से ानस प होकर यह बात कह रहा ँ क
वेदम ारा न त कये ए तका ही म पालन कर रहा ँ। अतः इसम मेरा कोई
अपराध नह है ।। २५-२६ ।।
ा ण उवाच
उपप या य त तू ण वतमान ततः परम् ।
अ वयुर प नम हः चचार महामखे ।। २७ ।।
ा ण कहते ह— ये! अ वयुक द ई यु से वह य त चुप हो गया और फर
कुछ नह बोला। फर अ वयु भी मोहर हत होकर उस महाय म अ सर आ ।। २७ ।।
एवमेता शं मो ं सुसू मं ा णा व ः ।
व द वा चानु त त े ेनाथद शना ।। २८ ।।
इस कार ा ण मो का ऐसा ही अ य त सू म व प बताते ह और त वदश
पु षके उपदे शके अनुसार उस मो -धमको जानकर उसका अनु ान करते ह ।। २८ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
अ ा वशोऽ यायः ।। २८ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीता वषयक
अ ाईसवाँ अ याय पूरा आ ।। २८ ।।
*
यह अ याय ेपक हो तो कोई आ य नह ; य क इसम यह बात कही गयी है क बु और इ य म राग- े षके
रहते ए भी व ान् कम म ल त नह होता और य म पशु- हसाका दोष नह लगता। कतु यह कथन यु व है।
एकोन शोऽ यायः
परशुरामजीके ारा य-कुलका संहार
ा ण उवाच
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
कातवीय य संवादं समु य च भा व न ।। १ ।।
ा णने कहा—भा म न! इस वषयम भी कातवीय और समु के संवाद प एक
ाचीन इ तहासका उदाहरण दया जाता है ।। १ ।।
कातवीयाजुनो नाम राजा बा सह वान् ।
येन सागरपय ता धनुषा न जता मही ।। २ ।।
पूवकालम कातवीय अजुनके नामसे स एक राजा था, जसक एक हजार भुजाएँ
थ । उसने केवल धनुष-बाणक सहायतासे समु पय त पृ वीको अपने अ धकारम कर
लया था ।। २ ।।
स कदा चत् समु ा ते वचरन् बलद पतः ।
अवा करन् शरशतैः समु म त नः ुतम् ।। ३ ।।
सुना जाता है, एक दन राजा कातवीय समु के कनारे वचर रहा था। वहाँ उसने
अपने बलके घम डम आकर सैकड़ बाण क वषासे समु को आ छा दत कर
दया ।। ३ ।।
तं समु ो नम कृ य कृता ल वाच ह ।
मा मु च वीर नाराचान् ू ह क करवा ण ते ।। ४ ।।
मदा या ण भूता न व सृ ैमहेषु भः ।
व य ते राजशा ल ते यो दे भयं वभो ।। ५ ।।
तब समु ने कट होकर उसके आगे म तक झुकाया और हाथ जोड़कर कहा
—‘वीरवर! राज सह! मुझपर बाण क वषा न करो। बोलो, तु हारी कस आ ाका पालन
क ँ ? श शाली नरे र! तु हारे छोड़े ए इन महान् बाण से मेरे अ दर रहनेवाले
ा णय क ह या हो रही है। उ ह अभय दान करो’ ।। ४-५ ।।
अजुन उवाच
म समो य द सं ामे शरासनधरः व चत् ।
व ते तं समाच व यः समासीत मां मृधे ।। ६ ।।
कातवीय अजुन बोला—समु ! य द कह मेरे समान धनुधर वीर मौजूद हो, जो
यु म मेरा मुकाबला कर सके तो उसका पता बता दो। फर म तु ह छोड़कर चला
जाऊँगा ।। ६ ।।
समु उवाच
मह षजमद न ते य द राजन् प र ुतः ।
त य पु तवा त यं यथावत् कतुमह त ।। ७ ।।
समु ने कहा—राजन्! य द तुमने मह ष जमद नका नाम सुना हो तो उ ह के
आ मपर चले जाओ। उनके पु परशुरामजी तु हारा अ छ तरह स कार कर सकते
ह ।। ७ ।।
ततः स राजा ययौ ोधेन महता वृतः ।
स तमा ममाग य राममेवा वप त ।। ८ ।।
स राम तकूला न चकार सह ब धु भः ।
आयासं जनयामास राम य च महा मनः ।। ९ ।।
तत तेजः ज वाल राम या मततेजसः ।
दहन् रपुसै या न तदा कमललोचने ।। १० ।।
ततः परशुमादाय स तं बा सह णम् ।
च छे द सहसा रामो ब शाख मव मम् ।। ११ ।।
( ा णने कहा—) कमलके समान ने वाली दे व! तदन तर राजा कातवीय बड़े
ोधम भरकर मह ष जमद नके आ मपर परशुरामजीके पास जा प ँचा और अपने
भाई-ब धु के साथ उनके तकूल बताव करने लगा। उसने अपने अपराध से महा मा
परशुरामजीको उ न कर दया। फर तो श ु-सेनाको भ म करनेवाला अ मत तेज वी
परशुरामजीका तेज व लत हो उठा। उ ह ने अपना फरसा उठाया और हजार
भुजा वाले उस राजाको अनेक शाखा से यु वृ क भाँ त सहसा काट डाला ।। ८—
११ ।।
तं हतं प ततं ् वा समेताः सवबा धवाः ।
असीनादाय श भागवं पयधावयन् ।। १२ ।।
उसे मरकर जमीनपर पड़ा दे ख उसके सभी ब धु-बा धव एक हो गये तथा हाथ म
तलवार और श याँ लेकर परशुरामजीपर चार ओरसे टू ट पड़े ।। १२ ।।
रामोऽ प धनुरादाय रथमा स वरः ।
वसृजन् शरवषा ण धमत् पा थवं बलम् ।। १३ ।।
इधर परशुरामजी भी धनुष लेकर तुरंत रथपर सवार हो गये और बाण क वषा करते
ए राजाक सेनाका संहार करने लगे ।। १३ ।।
तत तु याः के च जामद यभया दताः ।
व वशु ग र गा ण मृगाः सहा दता इव ।। १४ ।।
उस समय ब त-से य परशुरामजीके भयसे पी ड़त हो सहके सताये ए मृग क
भाँ त पवत क गुफा म घुस गये ।। १४ ।।
तेषां व व हतं कम त या ानु त ताम् ।
जा वृषलतां ा ता ा णानामदशनात् ।। १५ ।।
उ ह ने उनके डरसे अपने यो चत कम का भी याग कर दया। ब त दन तक
ा ण का दशन न कर सकनेके कारण वे धीरे-धीरे अपने कम भूलकर शू हो
गये ।। १५ ।।
एवं ते वडाऽऽभीराः पु ा शबरैः सह ।
वृषल वं प रगता ु थानात् ध मणः ।। १६ ।।
इस कार वड, आभीर, पु और शबर के सहवासम रहकर वे य होते ए भी
धम- यागके कारण शू क अव थाम प ँच गये ।। १६ ।।
तत हतवीरासु यासु पुनः पुनः ।
जै पा दतं ं जामद यो यकृ तत ।। १७ ।।
त प ात् यवीर के मारे जानेपर ा ण ने उनक य से नयोगक व धके
अनुसार पु उ प कये, कतु उ ह भी बड़े होनेपर परशुरामजीने फरसेसे काट
डाला ।। १७ ।।
एक वश तमेधा ते रामं वागशरी रणी ।
द ा ोवाच मधुरा सवलोकप र ुता ।। १८ ।।
इस कार एक-एक करके जब इ क स बार य का संहार हो गया, तब
परशुरामजीको द आकाशवाणीने मधुर वरम सब लोग के सुनते ए यह कहा
— ।। १८ ।।
राम राम नवत व कं गुणं तात प य स ।
ब धू नमान् ाणै व यो य पुनः पुनः ।। १९ ।।
‘बेटा! परशुराम! इस ह याके कामसे नवृ हो जाओ। परशुराम! भला बारंबार इन
बेचारे य के ाण लेनेम तु ह कौन-सा लाभ दखायी दे ता है?’ ।। १९ ।।
तथैव तं महा मानमृचीक मुखा तदा ।
पतामहा महाभाग नवत वे यथा ुवन् ।। २० ।।
उस समय महा मा परशुरामजीको उनके पतामह ऋचीक आ दने भी इसी कार
समझाते ए कहा—‘महाभाग! यह काम छोड़ दो, य को न मारो’ ।। २० ।।
पतुवधममृ यं तु रामः ोवाच तानृषीन् ।
नाह तीह भव तो मां नवार यतु म युत ।। २१ ।।
पताके वधको सहन न करते ए परशुरामजीने उन ऋ षय से इस कार कहा
—‘आपलोग को मुझे इस कामसे नवारण नह करना चा हये’ ।। २१ ।।
पतर ऊचुः
नाहसे ब धूं वं नह तुं जयतां वर ।
नेह यु ं वया ह तुं ा णेन सता नृपान् ।। २२ ।।
पतर बोले— वजय पानेवाल म े परशुराम! बेचारे य को मारना तु हारे यो य
नह है; य क तुम ा ण हो, अतः तु हारे हाथसे राजा का वध होना उ चत नह
है ।। २२ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ा णगीतासु
एकोन शोऽ यायः ।। २९ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ा णगीता वषयक
उनतीसवाँ अ याय पूरा आ ।। २९ ।।
शोऽ यायः
अलकके यानयोगका उदाहरण दे कर पतामह का
परशुरामजीको समझाना और परशुरामजीका तप याके
ारा स ा त करना
पतर ऊचुः
अ ा युदाहर तीम म तहासं पुरातनम् ।
ु वा च तत् तथा काय भवता जस म ।। १ ।।
पतर ने कहा— ा ण े ! इसी वषयम एक ाचीन इ तहासका उदाहरण दया
जाता है, उसे सुनकर तु ह वैसा ही आचरण करना चा हये ।। १ ।।
ाजीका ऋ षय को उपदे श
इस कार स वगुण तो है और पु ष अ माना गया है। षयो! इस
त वको समझो। अब म तुमलोग से आगेक बात बताता ँ ।। १६ ।।
सह ेणा प मधा न बु म धग छ त ।
चतुथना यथांशेन बु मान् सुखमेधते ।। १७ ।।
जसक बु अ छ नह है, उसे हजार उपाय करनेपर भी ान नह होता और जो
बु मान् है वह चौथाई य नसे भी ान पाकर सुखका अनुभव करता है ।। १७ ।।
एवं धम य व ेयं संसाधनमुपायतः ।
उपाय ो ह मेधावी सुखम य तम ुते ।। १८ ।।
ऐसा वचारकर कसी उपायसे धमके साधनका ान ा त करना चा हये; य क
उपायको जाननेवाला मेधावी पु ष अ य त सुखका भागी होता है ।। १८ ।।
यथा वानमपाथेयः प ो मनुजः व चत् ।
लेशेन या त महता वन येद तरा प च ।। १९ ।।
जैसे कोई मनु य य द राह-खचका ब ध कये बना ही या ा करता है तो उसे मागम
ब त लेश उठाना पड़ता है अथवा वह बीचहीम मर भी सकता है ।। १९ ।।
तथा कमसु व ेयं फलं भव त वा न वा ।
पु ष या म नः ेयः शुभाशुभ नदशनम् ।। २० ।।
ऐसे ही (पूवज म के पु य से हीन पु ष) योगमागके साधनम लगनेपर योग स प
फल क ठनतासे पाता है अथवा नह भी पाता। पु षका अपना क याण-साधन ही उसके
पूवज मके शुभाशुभ-सं कार को बतानेवाला है ।। २० ।।
यथा च द घम वानं पद् यामेव प ते ।
अ पूव सहसा त वदशनव जतः ।। २१ ।।
जैसे पहले न दे खे ए रके रा तेपर जब मनु य सहसा पैदल ही चल पड़ता है (तो वह
अपने ग त थानपर नह प ँच पाता), यही दशा त व ानसे र हत अ ानी पु षक
होती है ।। २१ ।।
तमेव च यथा यानं रथेनेहाशुगा मना ।
ग छ य यु े न तथा बु मतां ग तः ।। २२ ।।
ऊ व पवतमा ना ववे ेत भूतलम् ।
कतु उसी मागपर घोड़े जुते ए शी गामी रथके ारा या ा करनेवाला पु ष जस
कार शी ही अपने ल य थानपर प ँच जाता है तथा वह ऊँचे पवतपर चढ़कर नीचे
पृ वीक ओर नह दे खता, उसी कार ानी पु ष क ग त होती है ।। २२ ।।
रथेन र थनं प य ल यमानमचेतनम् ।। २३ ।।
यावद् रथपथ तावद् रथेन स तु ग छ त ।
ीणे रथपदे व ान् रथमु सृ य ग छ त ।। २४ ।।
दे खो, रथके ारा जानेवाला भी मूख मनु य ऊँचे पवतके पास प ँचकर क पाता
रहता है, कतु बु मान् मनु य जहाँतक रथ जानेका माग है वहाँतक रथसे जाता है और
जब रथका रा ता समा त हो जाता है तब वह उसे छोड़कर पैदल या ा करता
है ।। २३-२४ ।।
एवं ग छ त मेधावी त वयोग वधान वत् ।
प र ाय गुण उ रा रो रम् ।। २५ ।।
इसी कार त व और योग व धको जाननेवाला बु मान् एवं गुण पु ष अ छ तरह
समझ-बूझकर उ रो र आगे बढ़ता जाता है ।। २५ ।।
यथाणवं महाघोरम लवः स गाहते ।
बा यामेव स मोहाद् वधं वा छ यसंशयम् ।। २६ ।।
जैसे कोई पु ष मोहवश बना नावके ही भयंकर समु म वेश करता है और दोन
भुजा से ही तैरकर उसके पार होनेका भरोसा रखता है तो न य ही वह अपनी मौत
बुलाना चाहता है (उसी कार ान-नौकाका सहारा लये बना मनु य भवसागरसे पार नह
हो सकता) ।। २६ ।।
नावा चा प यथा ा ो वभाग ः व र या ।
अ ा तः स लले ग छे छ ं संतरते दम् ।। २७ ।।
तीण ग छे त् परं पारं नावमु सृ य नममः ।
ा यातं पूवक पेन यथा रथपदा तनोः ।। २८ ।।
जस तरह जलमागके वभागको जाननेवाला बु मान् पु ष सु दर डाँडवाली नावके
ारा अनायास ही जलपर या ा करके शी समु से तर जाता है एवं पार प ँच जानेपर
नावक ममता छोड़कर चल दे ता है; (उसी कार संसार-सागरसे पार हो जानेपर बु मान्
पु ष पहलेके साधन-साम ीक ममता छोड़ दे ता है।) यह बात रथपर चलनेवाले और पैदल
चलनेवालेके ा तसे पहले भी कही जा चुक है ।। २७-२८ ।।
नेहात् स मोहमाप ो ना व दाशो यथा तथा ।
मम वेना भभूतः सं त ैव प रवतते ।। २९ ।।
परंतु नेहवश मोहको ा त आ मनु य ममतासे आब होकर नावपर सदा बैठे
रहनेवाले म लाहक भाँ त वह च कर काटता रहता है ।। २९ ।।
नावं न श यमा थले वप रव ततुम् ।
तथैव रथमा ना सु चया वधीयते ।। ३० ।।
एवं कम कृतं च ं वषय थं पृथक् पृथक् ।
यथा कम कृतं लोके तथैतानुपप ते ।। ३१ ।।
नौकापर चढ़कर जस कार थलपर वचरण करना स भव नह है तथा रथपर
चढ़कर जलम वचरण करना स भव नह बताया गया है, इसी कार कये ए व च कम
अलग-अलग थानपर प ँचानेवाले ह। संसारम जनके ारा जैसा कम कया गया है, उ ह
वैसा ही फल ा त होता है ।। ३०-३१ ।।
य ैव ग धनो र यं न प पशश दवत् ।
म य ते मुनयो बु या तत् धानं च ते ।। ३२ ।।
जो ग ध, रस, प, पश और श दसे यु नह है तथा मु नलोग बु के ारा
जसका मनन करते ह, वह ‘ धान’ कहलाता है ।। ३२ ।।
त धानम म य गुणो महान् ।
मह धानभूत य गुणोऽहंकार एव च ।। ३३ ।।
धानका सरा नाम अ है। अ का काय मह व है और कृ तसे उ प
मह वका काय अहंकार है ।। ३३ ।।
अहंकारात् तु स भूतो महाभूतकृतो गुणः ।
पृथ वेन ह भूतानां वषया वै गुणाः मृताः ।। ३४ ।।
अहंकारसे प च महाभूत को कट करनेवाले गुणक उ प ई है। प च महाभूत के
काय ह प, रस आ द वषय। वे पृथक्-पृथक् गुण के नामसे स ह ।। ३४ ।।
बीजधम तथा ं सवा मकमेव च ।
बीजधमा महाना मा सव े त नः ुतम् ।। ३५ ।।
अ कृ त कारण पा भी है और काय पा भी। इसी कार मह वके भी
कारण और काय दोन ही व प सुने गये ह ।। ३५ ।।
बीजधम वहंकारः सव पुनः पुनः ।
बीज सवधमा ण महाभूता न प च वै ।। ३६ ।।
अहंकार भी कारण प तो है ही, काय पम भी बार बार प रणत होता रहता है। प च
महाभूत (प चत मा ा )-म भी कारण व और काय व दोन धम ह। वे श दा द
वषय को उ प करते ह, इस लये ऐसा कहा जाता है क वे बीजधम ह ।। ३६ ।।
बीजध मण इ या ः सवं च कुवते ।
वशेषाः प चभूतानां तेषां च ं वशेषणम् ।। ३७ ।।
उन पाँचो भूत के वशेष काय श द आ द वषय ह। उन वषय का वतक च
है ।। ३७ ।।
त ैकगुणमाकाशं गुणो वायु यते ।
गुणं यो त र या राप ा प चतुगुणाः ।। ३८ ।।
प चमहाभूत मसे आकाशम एक ही गुण माना गया है। वायुके दो गुण बतलाये जाते
ह। तेज तीन गुण से यु कहा गया है। जलके चार गुण ह ।। ३८ ।।
पृ वी प चगुणा ेया चर थावरसंकुला ।
सवभूतकरी दे वी शुभाशुभ नद शनी ।। ३९ ।।
पृ वीके पाँच गुण समझने चा हये। यह दे वी थावर-जंगम ा णय से भरी ई, सम त
जीव को ज म दे नेवाली तथा शुभ और अशुभका नदश करनेवाली है ।। ३९ ।।
श दः पश तथा पं रसो ग ध प चमः ।
एते प च गुणा भूमे व ेया जस माः ।। ४० ।।
व वरो! श द, पश, प, रस और पाँचवाँ ग ध—ये ही पृ वीके पाँच गुण जानने
चा हये ।। ४० ।।
पा थव सदा ग धो ग ध ब धा मृतः ।
त य ग ध य व या म व तरेण ब न् गुणान् ।। ४१ ।।
इनम भी ग ध उसका खास गुण है। ग ध अनेक कारक मानी गयी है। म उस
ग धके गुण का व तारके साथ वणन क ँ गा ।। ४१ ।।
इ ा न ग ध मधुरोऽ लः कटु तथा ।
नहारी संहतः न धो ो वशद एव च ।। ४२ ।।
एवं दश वधो ेयः पा थवो ग ध इ युत ।
इ (सुग ध), अ न ( ग ध), मधुर, अ ल, कटु , नहारी ( रतक फैलनेवाली),
म त, न ध, और वशद—ये पा थव ग धके दस भेद समझने चा हये ।। ४२ ।।
श दः पश तथा पं व ाणां गुणाः मृताः ।। ४३ ।।
रस ानं तु व या म रस तु ब धा मृतः ।
श द, पश, प, रस—ये जलके चार गुण माने गये ह (इनम रस ही जलका मु य
गुण है)। अब म रस- व ानका वणन करता ँ। रसके ब त-से भेद बताये गये ह ।। ४३
।।
मधुरोऽ लः कटु त ः कषायो लवण तथा ।। ४४ ।।
एवं षड् वध व तारो रसो वा रमयः मृतः ।
मीठा, ख ा, कडआ, तीता, कसैला और नमक न—इस कार छः भेद म जलमय
रसका व तार बताया गया है ।। ४४ ।।
श दः पश तथा पं गुणं यो त यते ।। ४५ ।।
यो तष गुणो पं पं च ब धा मृतम् ।
श द, पश और प—ये तेजके तीन गुण कहे गये ह। इनम प ही तेजका मु य
गुण है। पके भी कई भेद माने गये ह ।। ४५ ।।
शु लं कृ णं तथा र ं नीलं पीता णं तथा ।। ४६ ।।
वं द घ कृशं थूलं चतुर ं तु वृ वत् ।
एवं ादश व तारं तेजसो पमु यते ।। ४७ ।।
व ेयं ा णैवृ ै धम ैः स यवा द भः ।
शु ल, कृ ण, र , नील, पीत, अ ण, छोटा, बड़ा, मोटा, बला, चौकोना और गोल
—इस कार तैजस् पका बारह कारसे व तार स यवाद धम वृ ा ण के ारा
जानने यो य कहा जाता है ।। ४६-४७ ।।
श द पश च व ेयौ गुणो वायु यते ।। ४८ ।।
वायो ा प गुणः पशः पश ब धा मृतः ।
श द और पश—ये वायुके दो गुण जानने यो य कहे जाते ह। इनम भी पश ही
वायुका धान गुण है। पश भी कई कारका माना गया है ।। ४८ ।।
ः शीत तथैवो णः न धो वशद एव च ।। ४९ ।।
क ठन कणः णः प छलो दा णो मृ ः ।
एवं ादश व तारो वाय ो गुण उ यते ।। ५० ।।
व धवद् ा णैः स ै धम ै त वद श भः ।। ५१ ।।
खा, ठं डा, गरम, न ध, वशद, क ठन, चकना, ण (हलका), प छल, कठोर
और कोमल—इन बारह कार से वायुके गुण पशका व तार त वदश धम स
ा ण ारा व धवत् बतलाया गया है ।। ४९—५१ ।।
त ैकगुणमाकाशं श द इ येव च मृतः ।
आकाशका श दमा एक ही गुण माना गया है। उस श दके ब त-से गुण ह। उनका
व तारके साथ वणन करता ँ ।। ५१ ।।
त य श द य व या म व तरेण ब न् गुणान् ।। ५२ ।।
षडजषभः स गा धारो म यमः प चम तथा ।
अतः परं तु व ेयो नषादो धैवत तथा ।
इ ा न श द संहतः वभागवान् ।। ५३ ।।
एवं दश वधो ेयः श द आकाशस भवः ।
षड् ज, ऋषभ, गा धार, म यम, प चम, नषाद, धैवत, इ ( य), अ न (अ य)
और संहत ( )—इस कार वभागवाले आकाशज नत श दके दस भेद ह ।।
आकाशमु मं भूतमहंकार ततः परः ।। ५४ ।।
अहंकारात् परा बु बु े रा मा ततः परः ।
त मात् तु परम म ात् पु षः परः ।। ५५ ।।
आकाश सब भूत म े है। उससे े अहंकार, अहंकारसे े बु , उस बु से
े आ मा, उससे े अ कृ त और कृ तसे े पु ष है ।। ५४-५५ ।।
परापर ो भूतानां व ध ः सवकमणाम् ।
सवभूता मभूता मा ग छ या मानम यम् ।। ५६ ।।
जो मनु य स पूण भूत क े ता और यूनताका ाता, सम त कम क व धका
जानकार और सब ा णय को आ मभावसे दे खनेवाला है, वह अ वनाशी परमा माको
ा त होता है ।। ५६ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण गु श यसंवादे
प चाश मोऽ यायः ।। ५० ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम गु - श यसंवाद वषयक
पचासवाँ अ याय पूरा आ ।। ५० ।।
एकप चाश मोऽ यायः
तप याका भाव, आ माका व प और उसके ानक
म हमा तथा अनुगीताका उपसंहार
ोवाच
भूतानामथ प चानां यथैषामी रं मनः ।
नयमे च वसग च भूता मा मन एव च ।। १ ।।
ाजीने कहा—मह षयो! जस कार इन पाँच महाभूत क उ प और नयमन
करनेम मन समथ है, उसी कार थ तकालम भी मन ही भूत का आ मा है ।। १ ।।
अ ध ाता मनो न यं भूतानां महतां तथा ।
बु रै यमाच े े स उ यते ।। २ ।।
उन प चमहाभूत का न य आधार भी मन ही है। बु जसके ऐ यको का शत
करती है, वह े कहा जाता है ।। २ ।।
इ या ण मनो युङ् े सद ा नव सार थः ।
इ या ण मनो बु ः े े यु यते सदा ।। ३ ।।
जैसे सार थ अ छे घोड़ को अपने काबूम रखता है, उसी कार मन स पूण इ य पर
शासन करता है। इ य, मन और बु —ये सदा े के साथ संयु रहते ह ।। ३ ।।
महद समायु ं बु संयमनं रथम् ।
समा स भूता मा सम तात् प रधाव त ।। ४ ।।
जसम इ य पी घोड़े जुते ए ह, जसका बु पी सार थके ारा नय ण हो
रहा है, उस दे ह पी रथपर सवार होकर वह भूता मा ( े ) चार ओर दौड़ लगाता रहता
है ।। ४ ।।
इ य ामसंयु ो मनःसार थरेव च ।
बु संयमनो न यं महान् मयो रथः ।। ५ ।।
मय रथ सदा रहनेवाला और महान् है, इ याँ उसके घोड़े, मन सार थ और बु
चाबुक है ।। ५ ।।
एवं यो वे व ान् वै सदा मयं रथम् ।
स धीरः सवभूतेषु न मोहम धग छ त ।। ६ ।।
इस कार जो व ान् इस मय रथक सदा जानकारी रखता है, वह सम त
ा णय म धीर है और कभी मोहम नह पड़ता ।। ६ ।।
अ ा द वशेषा तं सह थावरज मम् ।
सूयच भालोकं हन म डतम् ।। ७ ।।
नद पवतजालै सवतः प रभू षतम् ।
व वधा भ तथा चा ः सततं समलंकृतम् ।। ८ ।।
आजीवं सवभूतानां सव ाणभृतां ग तः ।
एतद् वनं न यं त मं र त े वत् ।। ९ ।।
यह जगत् एक वन है। अ कृ त इसका आ द है। पाँच महाभूत, दस इ याँ
और एक मन—इन सोलह वशेष तक इसका व तार है। यह चराचर ा णय से भरा आ
है। सूय और च मा आ दके काशसे का शत है। ह और न से सुशो भत है। न दय
और पवत के समूहसे सब ओर वभू षत है। नाना कारके जलसे सदा ही अलंकृत है।
यही स पूण भूत का जीवन और स पूण ा णय क ग त है। इस वनम े वचरण
करता है ।। ७—९ ।।
लोकेऽ मन् या न स वा न सा न थावरा ण च ।
ता येवा े लीय ते प ाद् भूतकृता गुणाः ।
गुणे यः प चभूता न एष भूतसमु यः ।। १० ।।
इस लोकम जो थावर-जंगम ाणी ह, वे ही पहले कृ तम वलीन होते ह, उसके बाद
पाँच भूत के काय लीन होते ह और काय प गुण के बाद पाँच भूत लीन होते ह। इस
कार यह भूतसमुदाय कृ तम लीन होता है ।। १० ।।
दे वा मनु या ग धवाः पशाचासुररा साः ।
सव वभावतः सृ ा न या यो न कारणात् ।। ११ ।।
दे वता, मनु य, ग धव, पशाच, असुर, रा स सभी वभावसे रचे गये ह; कसी
यासे या कारणसे इनक रचना नह ई है ।। ११ ।।
एते व सृजो व ा जाय तीह पुनः पुनः ।
ते यः सूता ते वेव महाभूतेषु प चसु ।
लीय ते यथाकालमूमयः सागरे यथा ।। १२ ।।
व क सृ करनेवाले ये मरी च आ द ा ण समु क लहर के समान बारंबार
प चमहाभूत से उ प होते ह। और उ प ए वे फर समयानुसार उ ह म लीन हो जाते
ह ।। १२ ।।
व सृ य तु भूते यो महाभूता तु सवशः ।
भूते य ा प प च यो मु ो ग छे त् परां ग तम् ।। १३ ।।
इस व क रचना करनेवाले ा णय से प च महाभूत सब कार पर है। जो इन प च
महाभूत से छू ट जाता है, वह परम ग तको ा त होता है ।। १३ ।।
जाप त रदं सव मनसैवासृजत् भुः ।
तथैव दे वानृषय तपसा तपे दरे ।। १४ ।।
श सप जाप तने अपने मनके ही ारा स पूण जगत्क सृ क है तथा ऋ ष
भी तप यासे ही दे व वको ा त ए ह ।। १४ ।।
तपस ानुपू ण फलमूला शन तथा ।
ैलो यं तपसा स ाः प य तीह समा हताः ।। १५ ।।
फल-मूलका भोजन करनेवाले स महा मा यहाँ तप याके भावसे ही च को
एका करके तीन लोक क बात को मशः य अनुभव करते ह ।। १५ ।।
औषधा यगदाद न नाना व ा सवशः ।
तपसैव स य त तपोमूलं ह साधनम् ।। १६ ।।
आरो यक साधनभूत ओष धयाँ और नाना कारक व ाएँ तपसे ही स होती ह।
सारे साधन क जड़ तप या ही है ।। १६ ।।
यद् रापं रा नायं राधष र वयम् ।
तत् सव तपसा सा यं तपो ह र त मम् ।। १७ ।।
जसको पाना, जसका अ यास करना, जसे दबाना और जसक संग त लगाना
नता त क ठन है, वह तप याके ारा सा य हो जाता है; य क तपका भाव लङ् य
है ।। १७ ।।
सुरापो हा तेयी ूणहा गु त पगः ।
तपसैव सुत तेन मु यते क बषात् ततः ।। १८ ।।
शराबी, ह यारा, चोर, गभ न करनेवाला और गु प नीक श यापर सोनेवाला
महापापी भी भलीभाँ त तप या करके ही उस महान् पापसे छु टकारा पा सकता
है ।। १८ ।।
मनु याः पतरो दे वाः पशवो मृगप णः ।
या न चा या न भूता न सा न थावरा ण च ।। १९ ।।
तपःपरायणा न यं स य ते तपसा सदा ।
तथैव तपसा दे वा महामाया दवं गताः ।। २० ।।
मनु य, पतर, दे वता, पशु, मृग, प ी तथा अ य जतने चराचर ाणी ह, वे सब न य
तप याम संल न होकर ही सदा स ा त करते ह। तप याके बलसे ही महामायावी
दे वता वगम नवास करते ह ।।
आशीयु ा न कमा ण कुवते ये वत ताः ।
अहंकारसमायु ा ते सकाशे जापतेः ।। २१ ।।
जो लोग आल य यागकर अहंकारसे यु हो सकाम कमका अनु ान करते ह, वे
जाप तके लोकम जाते ह ।। २१ ।।
यानयोगेन शु े न नममा नरहंकृताः ।
आ ुव त महा मानो महा तं लोकमु मम् ।। २२ ।।
जो अहंता-ममतासे र हत ह, वे महा मा वशु यानयोगके ारा महान् उ म
लोकको ा त करते ह ।। २२ ।।
यानयोगमुपाग य स मतयः सदा ।
सुखोपचयम ं वश या म व माः ।। २३ ।।
जो यानयोगका आ य लेकर सदा स च रहते ह, वे आ मवे ा म े पु ष
सुखक रा शभूत अ परमा माम वेश करते ह ।। २३ ।।
यानयोगमा पाग य नममा नरहंकृताः ।
अ ं वश तीह महतां लोकमु मम् ।। २४ ।।
कतु जो यानयोगसे पीछे लौटकर अथात् यानम असफल होकर ममता और
अहंकारसे र हत जीवन तीत करता है, वह न काम पु ष भी महापु ष के उ म अ
लोकम लीन होता है ।। २४ ।।
अ ादे व स भूतः समसं ां गतः पुनः ।
तमोरजो यां नमु ः स वमा थाय केवलम् ।। २५ ।।
फर वयं भी उसक समताको ा त होकर अ से ही कट होता है और केवल
स वका आ य लेकर तमोगुण एवं रजोगुणके ब धनसे छु टकारा पा जाता है ।। २५ ।।
नमु ः सवपापे यः सव सृज त न कलम् ।
े इ त तं व ाद् य तं वेद स वेद वत् ।। २६ ।।
जो सब पाप से मु रहकर सबक सृ करता है, उस अख ड आ माको े
समझना चा हये। जो मनु य उसका ान ा त कर लेता है, वही वेदवे ा है ।।
च ं च ा पाग य मु नरासीत संयतः ।
य च ं त मयो व यं गु मेतत् सनातनम् ।। २७ ।।
मु नको उ चत है क च तनके ारा चेतना (स य ान) पाकर मन और इ य को
एका करके परमा माके यानम थत हो जाय; य क जसका च जसम लगा होता
है, वह न य ही उसका व प हो जाता है—यह सनातन गोपनीय रह य है ।। २७ ।।
अ ा द वशेषा तम व ाल णं मृतम् ।
नबोधत तथा हीदं गुणैल ण म युत ।। २८ ।।
अ से लेकर सोलह वशेष तक सभी अ व ाके ल ण बताये गये ह। ऐसा
समझना चा हये क यह गुण का ही व तार है ।। २८ ।।
य र तु भवे मृ यु य रं शा तम् ।
ममे त च भवे मृ युन ममे त च शा तम् ।। २९ ।।
दो अ रका पद ‘मम’ (यह मेरा है—ऐसा भाव) मृ यु प है और तीन अ रका पद
‘न मम’ (यह मेरा नह है—ऐसा भाव) सनातन क ा त करानेवाला है ।। २९ ।।
कम के चत् शंस त म दबु रता नराः ।
ये तु वृ ा महा मानो न शंस त कम ते ।। ३० ।।
कुछ म द-बु यु पु ष ( वगा द फल दान करनेवाले) का य-कम क शंसा
करते ह, कतु वृ महा माजन उन कम को उ म नह बतलाते ।। ३० ।।
कमणा जायते ज तुमू तमान् षोडशा मकः ।
पु षं सतेऽ व ा तद् ा ममृता शनाम् ।। ३१ ।।
य क सकाम कमके अनु ानसे जीवको सोलह वकार से न मत थूल शरीर धारण
करके ज म लेना पड़ता है और वह सदा अ व ाका ास बना रहता है। इतना ही नह ,
कमठ पु ष दे वता के भी उपभोगका वषय होता है ।। ३१ ।।
त मात् कमसु नः नेहा ये के चत् पारद शनः ।
व ामयोऽयं पु षो न तु कममयः मृतः ।। ३२ ।।
इस लये जो कोई पारदश व ान् होते ह, वे कम म आस नह होते; य क यह
पु ष (आ मा) ानमय है, कममय नह ।। ३२ ।।
य एवममृतं न यम ा ं श द रम् ।
व या मानमसं ं यो वेद न मृतो भवेत् ।। ३३ ।।
जो इस कार चेतन आ माको अमृत व प, न य, इ यातीत, सनातन, अ र,
जता मा एवं असंग समझता है, वह कभी मृ युके ब धनम नह पड़ता ।। ३३ ।।
अपूवमकृतं न यं य एनम वचा रणम् ।
य एवं व दे दा मानम ा ममृताशनम् ।
अ ा ोऽमृतो भव त स ए भः कारणै ुवः ।। ३४ ।।
जसक म आ मा अपूव (अना द), अकृत (अज मा), न य, अचल, अ ा और
अमृताशी है, वह इन गुण का च तन करनेसे वयं भी अ ा (इ यातीत), न ल एवं
अमृत व प हो जाता है ।। ३४ ।।
आयो य सवसं कारान् संय या मानमा म न ।
स तद् शुभं वे य माद् भूयो न व ते ।। ३५ ।।
जो च को शु करनेवाले स पूण सं कार का स पादन करके मनको आ माके
यानम लगा दे ता है, वही उस क याणमय को ा त करता है, जससे बड़ा कोई नह
है ।। ३५ ।।
सादे चैव स व य सादं समवा ुयात् ।
ल णं ह साद य यथा यात् व दशनम् ।। ३६ ।।
स पूण अ तःकरणके व छ हो जानेपर साधकको शु स ता ा त होती है। जैसे
व से जगे ए मनु यके लये व शा त हो जाता है, उसी कार च शु का ल ण
है ।। ३६ ।।
ग तरेषा तु मु ानां ये ानप र न ताः ।
वृ य याः सवाः प य त प रणामजाः ।। ३७ ।।
ान न जीव मु महा मा क यही परम ग त है; य क वे उन सम त
वृ य को शुभाशुभ फल दे नेवाली समझते ह ।। ३७ ।।
एषा ग त वर ानामेष धमः सनातनः ।
एषा ानवतां ा तरेतद् वृ म न दतम् ।। ३८ ।।
यही वर पु ष क ग त है, यही सनातन धम है, यही ा नय का ा त थान है
और यही अ न दत सदाचार है ।। ३८ ।।
समेन सवभूतेषु नः पृहेण नरा शषा ।
श या ग त रयं ग तुं सव समद शना ।। ३९ ।।
जो स पूण भूत म समानभाव रखता है, लोभ और कामनासे र हत है तथा जसक
सव समान रहती है, वह ानी पु ष ही इस परम ग तको ा त कर सकता
है ।। ३९ ।।
एतद् वः सवमा यातं मया व षस माः ।
एवमाचरत ं ततः स मवा यथ ।। ४० ।।
षयो! यह सब वषय मने व तारके साथ तुम लोग को बता दया। इसीके
अनुसार आचरण करो, इससे तु ह शी ही परम स ा त होगी ।। ४० ।।
गु वाच
इ यु ा ते तु मुनयो गु णा णा तथा ।
कृतव तो महा मान ततो लोकमवा ुवन् ।। ४१ ।।
गु ने कहा—बेटा! ाजीके इस कार उपदे श दे नेपर उन महा मा मु नय ने इसीके
अनुसार आचरण कया। इससे उ ह उ म लोकक ा त ई ।। ४१ ।।
वम येत महाभाग मयो ं णो वचः ।
स यगाचर शु ा मं ततः स मवा य स ।। ४२ ।।
महाभाग! तु हारा च शु है, इस लये तुम भी मेरे बताये ए ाजीके उ म
उपदे शका भलीभाँ त पालन करो। इससे तु ह भी स ा त होगी ।। ४२ ।।
वासुदेव उवाच
इ यु ः स तदा श यो गु णा धममु मम् ।
चकार सव कौ तेय ततो मो मवा तवान् ।। ४३ ।।
ीकृ णने कहा—अजुन! गु दे वके ऐसा कहनेपर उस श यने सम त उ म धम का
पालन कया। इससे वह संसार-ब धनसे मु हो गया ।। ४३ ।।
कृतकृ य स तदा श यः कु कुलो ह ।
तत् पदं समनु ा तो य ग वा न शोच त ।। ४४ ।।
कु कुलन दन! उस समय कृताथ होकर उस श यने वह पद ा त कया, जहाँ
जाकर शोक नह करना पड़ता ।। ४४ ।।
अजुन उवाच
को वसौ ा णः कृ ण क श यो जनादन ।
ोत ं चे मयैतद् वै त वमाच व मे वभो ।। ४५ ।।
अजुनने पूछा—जनादन ीकृ ण! वे न गु कौन थे और श य कौन थे?
भो! य द मेरे सुननेयो य हो तो ठ क-ठ क बतानेक कृपा क जये ।। ४५ ।।
वासुदेव उवाच
अहं गु महाबाहो मनः श यं च व मे ।
व ी या गु मेत च क थतं ते धनंजय ।। ४६ ।।
ीकृ णने कहा—महाबाहो! म ही गु ँ और मेरे मनको ही श य समझो। धनंजय!
तु हारे नेहवश मने इस गोपनीय रह यका वणन कया है ।। ४६ ।।
म य चेद त ते ी त न यं कु कुलो ह ।
अ या ममेत छ वा वं स यगाचर सु त ।। ४७ ।।
उ म तका पालन करनेवाले कु कुलन दन! य द मुझपर तु हारा ेम हो तो इस
अ या म ानको सुनकर तुम न य इसका यथावत् पालन करो ।। ४७ ।।
तत वं स यगाचीण धमऽ म रकषण ।
सवपाप व नमु ो मो ं ा य स केवलम् ।। ४८ ।।
श ुदमन! इस धमका पूणतया आचरण करनेपर तुम सम त पाप से छू टकर वशु
मो को ा त कर लोगे ।। ४८ ।।
पूवम येतदे वो ं यु काल उप थते ।
मया तव महाबाहो त माद मनः कु ।। ४९ ।।
महाबाहो! पहले भी मने यु काल उप थत होनेपर यही उपदे श तुमको सुनाया था।
इस लये तुम इसम मन लगाओ ।। ४९ ।।
मया तु भरत े चर ः पता भुः ।
तमहं ु म छा म स मते तव फा गुन ।। ५० ।।
भरत े अजुन! अब म पताजीका दशन करना चाहता ँ। उ ह दे खे ब त दन हो
गये। य द तु हारी राय हो तो म उनके दशनके लये ारका जाऊँ ।। ५० ।।
वैश पायन उवाच
इ यु वचनं कृ णं युवाच धनंजयः ।
ग छावो नगरं कृ ण गजसा यम वै ।। ५१ ।।
समे य त राजानं धमा मानं यु ध रम् ।
समनु ा य राजानं वां पुर यातुमह स ।। ५२ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! भगवान् ीकृ णक बात सुनकर अजुनने कहा
—‘ ीकृ ण! अब हमलोग यहाँसे ह तनापुरको चल। वहाँ धमा मा राजा यु ध रसे
मलकर और उनक आ ा लेकर आप अपनी पुरीको पधार’ ।। ५१-५२ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण गु श यसंवादे
एकप चाश मोऽ यायः ।। ५१ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम गु श यसंवाद वषयक
इ यावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५१ ।।
प चाश मोऽ यायः
ीकृ णका अजुनके साथ ह तनापुर जाना और वहाँ
सबसे मलकर यु ध रक आ ा ले सुभ ाके साथ
ारकाको थान करना
वैश पायन उवाच
ततोऽ यनोदयत् कृ णो यु यता म त दा कम् ।
मु ता दव चाच यु म येव दा कः ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तदन तर भगवान् ीकृ णने दा कको आ ा द
क ‘रथ जोतकर तैयार करो।’ दा कने दो ही घड़ीम लौटकर सूचना द क ‘रथ जुत
गया’ ।। १ ।।
तथैव चानुया ा द चोदयामास पा डवः ।
स जय वं या यामो नगरं गजसा यम् ।। २ ।।
इसी कार अजुनने भी अपने सेवक को आदे श दया क ‘सब लोग रथको सुस जत
करो। अब हम ह तनापुरक या ा करनी है’ ।। २ ।।
इ यु ाः सै नका ते तु स जीभूता वशा पते ।
आच युः स ज म येवं पाथाया मततेजसे ।। ३ ।।
जानाथ! आ ा पाते ही स पूण सै नक तैयार हो गये और महान् तेज वी अजुनके
पास जाकर बोले—‘रथ सुस जत है और या ाक सारी तैयारी हो गयी’ ।।
तत तौ रथमा थाय यातौ कृ णपा डवौ ।
वकुवाणौ कथा ाः ीयमाणौ वशा पते ।। ४ ।।
राजन्! तदन तर भगवान् ीकृ ण और अजुन रथपर बैठकर आपसम तरह-तरहक
व च बात करते ए स तापूवक वहाँसे चल दये ।। ४ ।।
रथ थं तु महातेजा वासुदेवं धनंजयः ।
पुनरेवा वीद् वा य मदं भरतस म ।। ५ ।।
भरतभूषण! रथपर बैठे ए भगवान् ीकृ णसे पुनः इस कार महातेज वी अजुन
बोले— ।। ५ ।।
व सादा जयः ा तो रा ा वृ णकुलो ह ।
नयताः श व ा प ा तं रा यमक टकम् ।। ६ ।।
‘वृ णकुलधुर धर ीकृ ण! आपक कृपासे ही राजा यु ध रको वजय ा त ई है।
उनके श ु का दमन हो गया और उ ह न क टक रा य मला ।। ६ ।।
नाथव त भवता पा डवा मधुसूदन ।
भव तं लवमासा तीणाः म कु सागरम् ।। ७ ।।
‘मधुसूदन! हम सभी पा डव आपसे सनाथ ह, आपको ही नौका प पाकर हमलोग
कौरवसेना पी समु से पार ए ह ।। ७ ।।
व कमन् नम तेऽ तु व ा मन् व स म ।
तथा वाम भजाना म यथा चाहं भव मतः ।। ८ ।।
व कमन्! आपको नम कार है। व ा मन्! आप स पूण व म सबसे े ह। म
आपको उसी तरह जानता ँ, जस तरह आप मुझे समझते ह ।। ८ ।।
व ेजः स भवो न यं भूता मा मधुसूदन ।
र तः डामयी तु यं माया ते रोदसी वभो ।। ९ ।।
‘मधुसूदन! आपके ही तेजसे सदा स पूण भूत क उ प होती है। आप ही सब
ा णय के आ मा ह। भो! नाना कारक लीलाएँ आपक र त (मनोरंजन) ह। आकाश
और पृ थवी आपक माया है ।। ९ ।।
व य सव मदं व ं य ददं थाणु ज मम् ।
वं ह सव वकु षे भूत ामं चतु वधम् ।। १० ।।
‘यह जो थावर-जंगम प जगत् है, सब आपहीम त त है। आप ही चार कारके
सम त ा णसमुदायक सृ करते ह ।। १० ।।
पृ थव चा त र ं च ां चैव मधुसूदन ।
ह सतं तेऽमला यो ना ऋतव े या ण ते ।। ११ ।।
‘मधुसूदन! पृ वी, अ त र और आकाशक सृ भी आपने ही क है। नमल चाँदनी
आपका हा य है और ऋतुएँ आपक इ याँ ह ।। ११ ।।
ाणो वायुः सततगः ोधो मृ युः सनातनः ।
सादे चा प प ा ी न यं व य महामते ।। १२ ।।
‘सदा चलनेवाली वायु ाण है, ोध सनातन मृ यु है। महामते! आपके सादम ल मी
वराजमान ह। आपके व ः थलम सदा ही ीजीका नवास है ।। १२ ।।
र त तु धृ तः ा तम तः का त राचरम् ।
वमेवेह युगा तेषु नधनं ो यसेऽनघ ।। १३ ।।
‘अनघ! आपम ही र त, तु , धृ त, ा त, म त, का त और चराचर जगत् है। आप
ही युगा तकालम लय कहे जाते ह ।। १३ ।।
सुद घणा प कालेन न ते श या गुणा मया ।
आ मा च परमा मा च नम ते न लने ण ।। १४ ।।
‘द घकालतक गणना करनेपर भी आपके गुण का पार पाना अस भव है। आप ही
आ मा और परमा मा ह। कमलनयन! आपको नम कार है ।। १४ ।।
व दतो मे सु धष नारदाद् दे वलात् तथा ।
कृ ण ै पायना चैव तथा कु पतामहात् ।। १५ ।।
‘ धष परमे र! मने दे व ष नारद, दे वल, ीकृ ण ै पायन तथा पतामह भी मके
मुखसे आपके माहा यका ान ा त कया है ।। १५ ।।
व य सव समास ं वमेवैको जने रः ।
य चानु हसंयु मेत ं वयानघ ।। १६ ।।
एतत् सवमहं स यगाच र ये जनादन ।
‘सारा जगत् आपम ही ओत- ोत है। एकमा आप ही मनु य के अधी र ह। न पाप
जनादन! आपने मुझपर कृपा करके जो यह उपदे श दया है, उसका म यथावत् पालन
क ँ गा ।। १६ ।।
इदं चाद्भुतम य तं कृतम म ये सया ।। १७ ।।
य पापो नहतः सं ये कौर ो धृतरा जः ।
‘हमलोग का य करनेक इ छासे आपने यह अ य त अद्भुत काय कया क
धृतरा के पु कु कुलकलंक पापी य धनको (भैया भीमके ारा) यु म मरवा
डाला ।। १७ ।।
वया द धं ह त सै यं मया व जतमाहवे ।। १८ ।।
भवता त कृतं कम येनावा तो जयो मया ।
‘श ुक सेनाको आपने ही अपने तेजसे द ध कर दया था। तभी मने यु म उसपर
वजय पायी है। आपने ही ऐसे-ऐसे उपाय कये ह, जनसे मुझे वजय सुलभ ई है ।। १८
।।
य धन य सं ामे तव बु परा मैः ।। १९ ।।
कण य च वधोपायो यथावत् स द शतः ।
सै धव य च पाप य भू र वस एव च ।। २० ।।
‘सं ामम आपक ही बु और परा मसे य धन, कण, पापी स धुराज जय थ
तथा भू र वाके वधका उपाय मुझे यथावत् पसे गोचर आ ।। १९-२० ।।
अहं च ीयमाणेन वया दे व कन दन ।
य तत् क र या म न ह मेऽ वचारणा ।। २१ ।।
‘दे वक न दन! आपने ेमपूवक स ताके साथ मुझे जो काय करनेके लये कहा है,
उसे अव य क ँ गा; इसम मुझे कुछ भी वचार नह करना है ।। २१ ।।
राजानं च समासा धमा मानं यु ध रम् ।
चोद य या म धम गमनाथ तवानघ ।। २२ ।।
चतं ह ममैत े ारकागमनं भो ।
अ चरादे व ा वं मातुलं मे जनादन ।। २३ ।।
बलदे वं च धष तथा यान् वृ णपु वान् ।
‘धम एवं न पाप भगवान् जनादन! म धमा मा राजा यु ध रके पास चलकर उनसे
आपके जानेके लये आ ा दान करनेका अनुरोध क ँ गा। इस समय आपका ारका
जाना आव यक है, इसम मेरी भी स म त है। अब आप शी ही मामाजीका दशन करगे
और जय वीर बलदे वजी तथा अ या य वृ णवंशी वीर से मल सकगे’ ।। २२-२३ ।।
एवं स भाषमाणौ तौ ा तौ वारणसा यम् ।। २४ ।।
तथा व वशतु ोभौ स नराकुलम् ।
इस कार बातचीत करते ए वे दोन म ह तनापुरम जा प ँचे। उन दोन ने -पु
मनु य से भरे ए नगरम वेश कया ।। २४ ।।
तौ ग वा धृतरा य गृहं श गृहोपमम् ।। २५ ।।
द शाते महाराज धृतरा ं जने रम् ।
व रं च महाबु राजानं च यु ध रम् ।। २६ ।।
महाराज! इ भवनके समान शोभा पानेवाले धृतरा के महलम उन दोन ने राजा
धृतरा , महाबु मान् व र और राजा यु ध रका दशन कया ।। २५-२६ ।।
भीमसेनं च धष मा पु ौ च पा डवौ ।
धृतरा मुपासीनं युयु सुं चापरा जतम् ।। २७ ।।
गा धार च महा ां पृथां कृ णां च भा मनीम् ।
सुभ ा ा ताः सवा भरतानां य तथा ।। २८ ।।
द शाते यः सवा गा धारीप रचा रकाः ।
फर मशः जय वीर भीमसेन, मा न दन पा डु पु नकुल-सहदे व, धृतरा क
सेवाम लगे रहनेवाले अपरा जत वीर युयु सु, परम बु मती गा धारी, कु ती, भाया ौपद
तथा सुभ ा आ द भरतवंशक सभी य से मले। गा धारीक सेवाम रहनेवाली उन सभी
य का उन दोन ने दशन कया ।। २७-२८ ।।
ततः समे य राजानं धृतरा म रदमौ ।। २९ ।।
नवे नामधेये वे त य पादावगृ ताम् ।
गा धाया पृथाया धमराज य चैव ह ।। ३० ।।
भीम य च महा मानौ तथा पादावगृ ताम् ।
सबसे पहले उन श ुदमन वीर ने राजा धृतरा के पास जाकर अपने नाम बताते ए
उनके दोन चरण का पश कया। उसके बाद उन महा मा ने गा धारी, कु ती, धमराज
यु ध र और भीमसेनके पैर छू ये ।। २९-३० ।।
ारं चा प संगृ पृ ् वा कुशलम यम् ।। ३१ ।।
(प र व य महा मानं वै यापु ं महारथम् ।)
तैः साध नृप त वृ ं तत तौ पयुपासताम् ।
फर व रजीसे मलकर उनका कुशल-मंगल पूछा। इसके बाद वै यापु महारथी
महामना युयु सुको भी दयसे लगाया। त प ात् उन सबके साथ वे दोन बूढ़े राजा
धृतरा के पास जा बैठे ।। ३१ ।।
ततो न श महाराजो धृतरा ः कु हान् ।। ३२ ।।
जनादनं च मेधावी सजयत वै गृहान् ।
तेऽनु ाता नृप तना ययुः वं वं नवेशनम् ।। ३३ ।।
रात हो जानेपर मेधावी महाराज धृतरा ने उन कु े वीर तथा भगवान् ीकृ णको
अपने-अपने घरम जानेके लये वदा कया। राजाक आ ा पाकर वे सब लोग अपने-अपने
घरको गये ।। ३२-३३ ।।
धनंजयगृहानेव ययौ कृ ण तु वीयवान् ।
त ा चतो यथा यायं सवकामै प थतः ।। ३४ ।।
परा मी भगवान् ीकृ ण अजुनके ही घरम गये। वहाँ उनक यथो चत पूजा ई और
स पूण अभी पदाथ उनक सेवाम उप थत कये गये ।। ३४ ।।
कृ णः सु वाप मेधावी धनंजयसहायवान् ।
भातायां तु शवया कृ वा पौवा क याम् ।। ३५ ।।
धमराज य भवनं ज मतुः परमा चतौ ।
य ा ते स सहामा यो धमराजो महाबलः ।। ३६ ।।
भोजनके प ात् मेधावी ीकृ ण अजुनके साथ सोये। जब रात बीती और ातःकाल
आ, तब पूवा कालक या—सं या-व दन आ द करके वे दोन परम पू जत म
धमराज यु ध रके महलम गये। जहाँ महाबली धमराज अपने म य के साथ रहते
थे ।। ३५-३६ ।।
तौ व य महा मानौ तद् गृहं परमा चतम् ।
धमराजं द शतुदवराज मवा नौ ।। ३७ ।।
उस परम सु दर एवं सुस जत भवनम वेश करके उन महा मा ने धमराज
यु ध रका दशन कया। मानो दोन अ नीकुमार दे वराज इ से आकर मले ह ।। ३७ ।।
समासा तु राजानं वा णयकु पु वौ ।
नषीदतुरनु ातौ ीयमाणेन तेन तौ ।। ३८ ।।
ीकृ ण और अजुन जब राजाके पास प ँचे, तब उ ह दे ख उनको बड़ी स ता ई।
फर उनके आ ा दे नेपर वे दोन म आसनपर वराजमान ए ।। ३८ ।।
ततः स राजा मेधावी वव ू े य तावुभौ ।
ोवाच वदतां े ो वचनं राजस मः ।। ३९ ।।
त प ात् व ा म े भूपाल शरोम ण मेधावी यु ध रने उ ह कुछ कहनेके लये
इ छु क दे ख उनसे इस कार कहा— ।। ३९ ।।
यु ध र उवाच
वव ू ह युवां म ये वीरौ य कु हौ ।
ूतं कता म सव वां न चरा मा वचायताम् ।। ४० ।।
यु ध र बोले—य कुल और कु कुलको अलंकृत करनेवाले वीरो! मालूम होता है,
तुमलोग मुझसे कुछ कहना चाहते हो। जो भी कहना हो, कहो; म तु हारी सारी इ छा को
शी ही पूण क ँ गा। तुम मनम कुछ अ यथा वचार न करो ।। ४० ।।
इ यु ः फा गुन त धमराजानम वीत् ।
वनीतव पाग य वा यं वा य वशारदः ।। ४१ ।।
उनके इस कार कहनेपर बातचीत करनेम कुशल अजुनने धमराजके पास जाकर बड़े
वनीत भावसे कहा— ।। ४१ ।।
अयं चरो षतो राजन् वासुदेवः तापवान् ।
भव तं समनु ा य पतरं ु म छ त ।। ४२ ।।
स ग छे द यनु ातो भवता य द म यसे ।
आनतनगर वीर तदनु ातुमह स ।। ४३ ।।
‘राजन्! परम तापी वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णको यहाँ रहते ब त दन हो गया।
अब ये आपक आ ा लेकर अपने पताजीका दशन करना चाहते ह। य द आप वीकार
कर और हषपूवक आ ा दे द तभी ये वीरवर ीकृ ण आनतनगरी ारकाको जायँगे। अतः
आप इ ह जानेक आ ा दे द’ ।। ४२-४३ ।।
यु ध र उवाच
पु डरीका भ ं ते ग छ वं मधुसूदन ।
पुर ारवतीम ु ं शूरसुतं भो ।। ४४ ।।
यु ध रने कहा—कमलनयन मधुसूदन! आपका क याण हो। भो! आप शूरन दन
वसुदेवजीका दशन करनेके लये आज ही ारकाको थान क जये ।। ४४ ।।
रोचते मे महाबाहो गमनं तव केशव ।
मातुल र ो मे वया दे वी च दे वक ।। ४५ ।।
महाबा केशव! मुझे आपका जाना इस लये ठ क लगता है क आपने मेरे मामाजी
और मामी दे वक दे वीको ब त दन से नह दे खा है ।। ४५ ।।
समे य मातुलं ग वा बलदे वं च मानद ।
पूजयेथा महा ा म ा येन यथाहतः ।। ४६ ।।
मानद! महा ा ! आप मामाजी तथा भैया बलदे वजीके पास जाकर उनसे म लये
और मेरी ओरसे उनका यथायो य स कार क जये ।। ४६ ।।
मरेथा ा प मां न यं भीमं च ब लनां वरम् ।
फा गुनं सहदे वं च नकुलं चैव मानद ।। ४७ ।।
भ को मान दे नेवाले ीकृ ण! ारकाम प ँचकर आप मुझको, बलवान म े
भीमसेनको, अजुन, सहदे व और नकुलको भी सदा याद र खयेगा ।। ४७ ।।
आनतानवलो य वं पतरं च महाभुज ।
वृ ण पुनराग छे हयमेधे ममानघ ।। ४८ ।।
महाबा न पाप ीकृ ण! आनत दे शक जा, अपने माता- पता तथा वृ णवंशी
ब धु-बा धव से मलकर पुनः मेरे अ मेध य म पधा रयेगा ।। ४८ ।।
स ग छ र ना यादाय व वधा न वसू न च ।
य चा य य मनो ं ते तद याद व सा वत ।। ४९ ।।
इयं च वसुधा कृ ना सादात् तव केशव ।
अ मानुपगता वीर नहता ा प श वः ।। ५० ।।
य न दन केशव! ये तरह-तरहके र न और धन तुत ह। इ ह तथा सरी- सरी
व तुएँ जो आपको पसंद ह लेकर या ा क जये। वीरवर! आपके सादसे ही इस स पूण
भूम डलका रा य हमारे हाथम आया है और हमारे श ु भी मारे गये ।। ४९-५० ।।
एवं ुव त कौर े धमराजे यु ध रे ।
वासुदेवो वरः पुंसा मदं वचनम वीत् ।। ५१ ।।
कु न दन धमराज यु ध र जब इस कार कह रहे थे, उसी समय पु षो म
वसुदेवन दन भगवान् ीकृ णने उनसे यह बात कही— ।। ५१ ।।
तवैव र ना न धनं च केवलं
धरा तु कृ ना तु महाभुजा वै ।
यद त चा यद् वणं गृहे मम
वमेव त ये र न यमी रः ।। ५२ ।।
‘महाबाहो! ये र न, धन और समूची पृ वी अब केवल आपक ही है। इतना ही नह ,
मेरे घरम भी जो कुछ धन-वैभव है, उसको भी आप अपना ही सम झये। नरे र! आप ही
सदा उसके भी वामी ह’ ।। ५२ ।।
तथे यथो ः तपू जत तदा
गदा जो धमसुतेन वीयवान् ।
पतृ वसारं ववदद् यथा व ध
स पू जत ा यगमत् द णम् ।। ५३ ।।
उनके ऐसा कहनेपर धमपु यु ध रने जो आ ा कहकर उनके वचन का आदर
कया। उनसे स मा नत हो परा मी ीकृ णने अपनी बुआ कु तीके पास जाकर बातचीत
क और उनसे यथो चत स कार पाकर उनक द णा क ।। ५३ ।।
तया स स यक् तन दत तत-
तथैव सव व रा द भ तथा ।
व नययौ नागपुराद् गदा जो
रथेन द ेन चतुभुजः वयम् ।। ५४ ।।
कु तीसे भलीभाँ त अ भन दत हो व र आ द सब लोग से स कारपूवक वदा ले चार
भुजाधारी भगवान् ीकृ ण अपने द रथ ारा ह तनापुरसे बाहर नकले ।। ५४ ।।
रथे सुभ ाम धरो य भा वन
यु ध र यानुमते जनादनः ।
पतृ वसु ा प तथा महाभुजो
व नययौ पौरजना भसंवृतः ।। ५५ ।।
बुआ कु ती तथा राजा यु ध रक आ ासे भा वनी सुभ ाको भी रथपर बठाकर
महाबा जनादन पुरवा सय से घरे ए नगरसे बाहर नकले ।। ५५ ।।
तम वयाद् वानरवयकेतनः
ससा य कमा वतीसुताव प ।
अगाधबु व र माधवं
वयं च भीमो गजराज व मः ।। ५६ ।।
उस समय उन माधवके पीछे क प वज अजुन, सा य क, नकुल-सहदे व, अगाधबु
व र और गजराजके समान परा मी वयं भीमसेन भी कुछ रतक प ँचानेके लये
गये ।। ५६ ।।
नवत य वा कु रा वधनां-
ततः स सवान् व रं च वीयवान् ।
जनादनो दा कमाह स वरः
चोदया ा न त सा य क तथा ।। ५७ ।।
तदन तर परा मी ीकृ णने कौरवरा यक वृ करनेवाले उन सम त पा डव तथा
व रजीको लौटाकर दा क तथा सा य कसे कहा—‘अब घोड़ को जोरसे हाँको’ ।। ५७ ।।
ततो ययौ श ुगण मदनः
श न वीरानुगतो जनादनः ।
यथा नह या रगणं शत तु-
दवं तथाऽऽनतपुर तापवान् ।। ५८ ।।
त प ात् श नवीर सा य कको साथ लये श ुदलमदन तापी ीकृ ण आनतपुरी
ारकाक ओर उसी कार चल दये, जैसे तापी इ अपने श ुसमुदायका संहार करके
वगम जा रहे ह ।। ५८ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण कृ ण याणे
प चाश मोऽ यायः ।। ५२ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ीकृ णका ारकाको
थान वषयक बावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५२ ।।
(दा णा य अ धक पाठका ोक मलाकर कुल ५८ ोक ह)
प चाश मोऽ यायः
मागम ीकृ णसे कौरव के वनाशक बात सुनकर उ
मु नका कु पत होना और ीकृ णका उ ह शा त करना
वैश पायन उवाच
तथा या तं वा णयं ारकां भरतषभाः ।
प र व य यवत त सानुया ाः परंतपाः ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इस कार ारका जाते ए भगवान् ीकृ णको
दयसे लगाकर भरतवंशके े वीर श ुसंतापी पा डव अपने सेवक -स हत पीछे
लौटे ।। १ ।।
पुनः पुन वा णयं पय वजत फा गुनः ।
आ च ु वषया चैनं स ददश पुनः पुनः ।। २ ।।
अजुनने वृ णवंशी यारे सखा ीकृ णको बारंबार छातीसे लगाया और जबतक वे
आँख से ओझल नह ए, तबतक उ ह क ओर वे बारंबार दे खते रहे ।। २ ।।
कृ े णैव तु तां पाथ गो व दे व नवे शताम् ।
संजहार ततो कृ ण ा यपरा जतः ।। ३ ।।
जब रथ र चला गया, तब पाथने बड़े क से ीकृ णक ओर लगी ई अपनी को
पीछे लौटाया। कसीसे परा जत न होनेवाले ीकृ णक भी यही दशा थी ।। ३ ।।
त य याणे या यासन् न म ा न महा मनः ।
ब यद्भुत पा ण ता न मे गदतः शृणु ।। ४ ।।
महामना भगवान्क या ाके समय जो ब त-से अद्भुत शकुन कट ए, उ ह बताता
ँ, सुनो ।। ४ ।।
वायुवगेन महता रथ य पुरतो ववौ ।
कुव ःशकरं माग वरज कमक टकम् ।। ५ ।।
उनके रथके आगे बड़े वेगसे हवा आती और रा तेक धूल, कंकण तथा काँट को
उड़ाकर अलग कर दे ती थी ।। ५ ।।
ववष वासव ैव तोयं शु च सुग ध च ।
द ा न चैव पु पा ण पुरतः शा ध वनः ।। ६ ।।
इ ीकृ णके सामने प व एवं सुग धत जल तथा द पु प क वषा करते
थे ।। ६ ।।
स यातो महाबा ः समेषु म ध वसु ।
ददशाथ मु न े मु ङ् कम मतौजसम् ।। ७ ।।
इस कार म भू मके समतल दे शम प ँचकर महाबा ीकृ णने अ मततेज वी
मु न े उ ंकका दशन कया ।। ७ ।।
स तं स पू य तेज वी मु न पृथुललोचनः ।
पू जत तेन च तदा पयपृ छदनामयम् ।। ८ ।।
वशाल ने वाले तेज वी ीकृ ण उ ंक मु नक पूजा करके वयं भी उनके ारा
पू जत ए। त प ात् उ ह ने मु नका कुशल-समाचार पूछा ।। ८ ।।
स पृ ः कुशलं तेन स पू य मधुसूदनम् ।
उ ङ् को ा ण े ततः प छ माधवम् ।। ९ ।।
उनके कुशल-मंगल पूछनेपर व वर उ ंकने भी मधुसूदन माधवक पूजा करके उनसे
इस कार कया— ।। ९ ।।
क च छौरे वया ग वा कु पा डवस तत् ।
कृतं सौ ा मचलं त मे ा यातुमह स ।। १० ।।
‘शूरन दन! या तुम कौरव और पा डव के घर जाकर उनम अ वचल ातृभाव
था पत कर आये? यह बात मुझे व तारके साथ बताओ ।। १० ।।
अ प संधाय तान् वीरानुपावृ ोऽ स केशव ।
स ब धनः वद यतान् सततं वृ णपु व ।। ११ ।।
केशव! या तुम उन वीर म सं ध कराकर ही लौट रहे हो? वृ णपुंगव! वे कौरव,
पा डव तु हारे स ब धी तथा तु ह सदा ही परम य रहे ह ।। ११ ।।
क चत् पा डु सुताः प च धृतरा य चा मजाः ।
लोकेषु वह र य त वया सह परंतप ।। १२ ।।
‘परंतप! या पा डु के पाँच पु और धृतरा के भी सभी आ मज संसारम तु हारे
साथ सुखपूवक वचर सकगे? ।।
वरा े ते च राजानः क चत् ा य त वै सुखम् ।
कौरवेषु शा तेषु वया नाथेन केशव ।। १३ ।।
‘केशव! तुम-जैसे र क एवं वामीके ारा कौरव के शा त कर दये जानेपर अब
पा डवनरेश को अपने रा यम सुख तो मलेगा न? ।। १३ ।।
या मे स भावना तात व य न यमवतत ।
अ प सा सफला तात कृता ते भरतान् त ।। १४ ।।
‘तात! म सदा तुमसे इस बातक स भावना करता था क तु हारे य नसे कौरव-
पा डव म मेल हो जायगा। मेरी जो वह स भावना थी, भरतवं शय के स ब धम तुमने वह
सफल तो कया है न?’ ।। १४ ।।
ीभगवानुवाच
कृतो य नो मया पूव सौशा ये कौरवान् त ।
नाश य त यदा सा ये ते थाप यतुम सा ।। १५ ।।
तत ते नधनं ा ताः सव ससुतबा धवाः ।
ीभगवान्ने कहा—महष! मने पहले कौरव के पास जाकर उ ह शा त करनेके लये
बड़ा य न कया, परंतु वे कसी तरह सं धके लये तैयार न कये जा सके। जब उ ह
समतापूण मागम था पत करना अस भव हो गया, तब वे सब-के-सब अपने पु और
ब धु-बा धव स हत यु म मारे गये ।। १५ ।।
न द म य त ा तुं श यं बु या बलेन वा ।। १६ ।।
महष व दतं भूयः सवमेतत् तवानघ ।
तेऽ य ामन् म त म ं भी म य व र य च ।। १७ ।।
महष! ार धके वधानको कोई बु अथवा बलसे नह मटा सकता। अनघ!
आपको तो ये सब बात मालूम ही ह गी क कौरव ने मेरी, भी मजीक तथा व रजीक
स म तको भी ठु करा दया ।। १६-१७ ।।
ततो यम यं ज मुः समासा ेतरेतरम् ।
प चैव पा डवाः श ा हता म ा हता मजाः ।
धातरा ा नहताः सव ससुतबा धवाः ।। १८ ।।
इसी लये वे आपसम लड़- भड़कर यमलोक जा प ँचे। इस यु म केवल पाँच पा डव
ही अपने श ु को मारकर जी वत बच गये ह। उनके पु भी मार डाले गये ह। धृतरा के
सभी पु , जो गा धारीके पेटसे पैदा ए थे, अपने पु और बा धव स हत न हो
गये ।। १८ ।।
इ यु वचने कृ णे भृशं ोधसम वतः ।
उ ङ् क इ युवाचैनं रोषा फु ललोचनः ।। १९ ।।
भगवान् ीकृ णके इतना कहते ही उ ंक मु न अ य त ोधसे जल उठे और रोषसे
आँख फाड़-फाड़कर दे खने लगे। उ ह ने ीकृ णसे इस कार कहा ।। १९ ।।
उ ङ् क उवाच
य मा छ े न ते कृ ण न ाताः कु पु वाः ।
स ब धनः या त मा छ येऽहं वामसंशयम् ।। २० ।।
उ ंक बोले— ीकृ ण! कौरव तु हारे य स ब धी थे, तथा प श रखते ए भी
तुमने उनक र ा न क । इस लये म तु ह अव य शाप ँ गा ।। २० ।।
न च ते सभं य मात् ते नगृ नवा रताः ।
त मा म युपरीत वां श या म मधुसूदन ।। २१ ।।
मधुसूदन! तुम उ ह जबद ती पकड़कर रोक सकते थे, पर ऐसा नह कया। इस लये
म ोधम भरकर तु ह शाप ँ गा ।। २१ ।।
वया श े न ह सता म याचारेण माधव ।
ते परीताः कु े ा न य तः म पे ताः ।। २२ ।।
माधव! कतने खेदक बात है, तुमने समथ होते ए भी म याचारका आ य लया।
यु म सब ओरसे आये ए वे े कु वंशी न हो गये और तुमने उनक उपे ा कर
द ।। २२ ।।
वासुदेव उवाच
शृणु मे व तरेणेदं यद् व ये भृगुन दन ।
गृहाणानुनयं चा प तप वी स भागव ।। २३ ।।
ीकृ णने कहा—भृगन ु दन! म जो कुछ कहता ँ, उसे व तारपूवक सु नये।
भागव! आप तप वी ह, इस लये मेरी अनुनय- वनय वीकार क जये ।। २३ ।।
ु वा च मे तद या मं मु चेथाः शापम वै ।
न च मां तपसा पेन श ोऽ भभ वतुं पुमान् ।। २४ ।।
न च ते तपसो नाश म छा म तपतां वर ।
म आपको अ या मत व सुना रहा ँ। उसे सुननेके प ात् य द आपक इ छा हो तो
आज मुझे शाप द जयेगा। तप वी पु ष म े महष! आप यह याद र खये क कोई भी
पु ष थोड़ी-सी तप याके बलपर मेरा तर कार नह कर सकता। म नह चाहता क
आपक तप या न हो जाय ।। २४ ।।
तप ते सुमह तं गुरव ा प तो षताः ।। २५ ।।
कौमारं चय ते जाना म जस म ।
ःखा जत य तपस त मा े छा म ते यम् ।। २६ ।।
आपका तप और तेज ब त बढ़ा आ है। आपने गु जन को भी सेवासे संतु कया
है। ज े ! आपने बा याव थासे ही चयका पालन कया है। ये सारी बात मुझे
अ छ तरह ात ह। इस लये अ य त क सहकर सं चत कये ए आपके तपका म नाश
कराना नह चाहता ँ ।। २५-२६ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ ङ् कोपा याने
कृ णो ङ् कसमागमे प चाश मोऽ यायः ।। ५३ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ङ् कके उपा यानम
ीकृ ण और उ ङ् कका समागम वषयक तरपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५३ ।।
चतु प चाश मोऽ यायः
भगवान् ीकृ णका उ ंकसे अ या मत वका वणन करना
तथा य धनके अपराधको कौरव के वनाशका कारण
बतलाना
उ ङ् क उवाच
ू ह केशव त वेन वम या मम न दतम् ।
ु वा ेयोऽ भधा या म शापं वा ते जनादन ।। १ ।।
उ ंकने कहा—केशव! जनादन! तुम यथाथ पसे उ म अ या मत वका वणन
करो। उसे सुनकर म तु हारे क याणके लये आशीवाद ँ गा अथवा शाप दान क ँ गा ।।
वासुदेव उवाच
तमो रज स वं च व भावान् मदा यान् ।
तथा ान् वसून् वा प व म भवान् ज ।। २ ।।
ीकृ णने कहा— ष! आपको यह व दत होना चा हये क तमोगुण, रजोगुण
और स वगुण—ये सभी भाव मेरे ही आ त ह। और वसु को भी आप मुझसे ही
उ प जा नये ।। २ ।।
म य सवा ण भूता न सवभूतेषु चा यहम् ।
थत इ य भजानी ह मा तेऽभूद संशयः ।। ३ ।।
स पूण भूत मुझम ह और स पूण भूत म म थत ँ। इस बातको आप अ छ तरह
समझ ल। इसम आपको संशय नह होना चा हये ।। ३ ।।
तथा दै यगणान् सवान् य ग धवरा सान् ।
नागान सरस ैव व म भवान् ज ।। ४ ।।
व वर! स पूण दै यगण, य , ग धव, रा स, नाग और अ सरा को मुझसे ही
उ प जा नये ।। ४ ।।
सदस चैव यत् ा र ं मेव च ।
अ रं च रं चैव सवमेत मदा मकम् ।। ५ ।।
व ान् लोग जसे सत्-असत्, -अ और र-अ र कहते ह, यह सब मेरा ही
व प है ।। ५ ।।
ये चा मेषु वै धमा तुधा व दता मुने ।
वै दका न च सवा ण व सव मदा मकम् ।। ६ ।।
मुने! चार आ म म जो चार कारके धम स ह तथा जो स पूण वेदो कम ह,
उन सबको मेरा व प ही सम झये ।। ६ ।।
अस च सदस चैव यद् व ं सदसत् परम् ।
म ः परतरं ना त दे वदे वात् सनातनात् ।। ७ ।।
असत्, सदसत् तथा उससे भी परे जो अ जगत् है, वह भी मुझ सनातन
दे वा धदे वसे पृथक् नह है ।। ७ ।।
ओङ् कार मुखान् वेदान् व मां वं भृगू ह ।
यूपं सोमं च ं होमं दशा यायनं मखे ।। ८ ।।
होतारम प ह ं च व मां भृगुन दन ।
अ वयुः क पक ा प ह वः परमसं कृतम् ।। ९ ।।
भृगु े ! ॐकारसे आर भ होनेवाले चार वेद मुझे ही सम झये। य म यूप, सोम, च ,
दे वता को तृ त करनेवाला होम, होता और हवन-साम ी भी मुझे ही जा नये। भृगन ु दन!
अ वयु, क पक और अ छ कार सं कार कया आ ह व य—ये सब मेरे ही व प
ह ।।
उद्गाता चा प मां तौ त गीताघोषैमहा वरे ।
ाय ेषु मां न् शा तम लवाचकाः ।। १० ।।
तुव त व कमाणं सततं जस म ।
मम व सुतं धमम जं जस म ।। ११ ।।
मानसं द यतं व सवभूतदया मकम् ।
बड़े-बड़े य म उद्गाता उ च वरसे सामगान करके मेरी ही तु त करते ह। न्!
ाय -कमम शा तपाठ तथा मंगलपाठ करनेवाले ा ण सदा मुझ व कमाका ही
तवन करते ह। ज े ! तु ह मालूम होना चा हये क स पूण ा णय पर दया करना- प
जो धम है, वह मेरा परम य ये पु है। मेरे मनसे उसका ा भाव आ है ।। १०-११
।।
त ाहं वतमानै नवृ ै ैव मानवैः ।। १२ ।।
ब ः संसरमाणो वै योनीवता म स म ।
धमसंर णाथाय धमसं थापनाय च ।। १३ ।।
तै तैवषै पै षु लोकेषु भागव ।
भागव! उस धमम वृ होकर जो पाप-कम से नवृ हो गये ह ऐसे मनु य के साथ
म सदा नवास करता ँ। साधु शरोमणे! म धमक र ा और थापनाके लये तीन लोक म
ब त-सी यो नय म अवतार धारण करके उन-उन प और वेष ारा तदनु प बताव
करता ँ ।। १२-१३ ।।
अहं व णुरहं ा श ोऽथ भवा ययः ।। १४ ।।
भूत ाम य सव य ा संहार एव च।
म ही व णु, म ही ा और म ही इ ँ। स पूण भूत क उ प और लयका
कारण भी म ही ँ। सम त ा णसमुदायक सृ और संहार भी मेरे ही ारा होते ह ।। १४
।।
अधम वतमानानां सवषामहम युतः ।। १५ ।।
धम य सेतुं ब ना म च लते च लते युगे ।
ता ता योनीः व याहं जानां हतका यया ।। १६ ।।
अधमम लगे ए सभी मनु य को द ड दे नेवाला और अपनी मयादासे कभी युत न
होनेवाला ई र म ही ँ। जब-जब युगका प रवतन होता है, तब-तब म जाक भलाईके
लये भ - भ यो नय म व होकर धममयादाक थापना करता ँ ।। १५-१६ ।।
यदा वहं दे वयोनौ वता म भृगुन दन ।
तदाहं दे ववत् सवमाचरा म न संशयः ।। १७ ।।
भृगनु दन! जब म दे वयो नम अवतार लेता ँ, तब दे वता क ही भाँ त सारे आचार-
वचारका पालन करता ँ, इसम संशय नह है ।। १७ ।।
यदा ग धवयोनौ वा वता म भृगुन दन ।
तदा ग धववत् सवमाचरा म न संशयः ।। १८ ।।
भृगक ु ु लको आन द दान करनेवाले महष! जब म ग धव-यो नम कट होता ँ, तब
मेरे सारे आचार- वचार ग धव के ही समान होते ह, इसम संदेह नह है ।।
नागयोनौ यदा चैव तदा वता म नागवत् ।
य रा सयो यो तु यथावद् वचरा यहम् ।। १९ ।।
जब म नागयो नम ज म हण करता ँ, तब नाग क तरह बताव करता ँ। य और
रा स क यो नय म कट होनेपर उ ह के आचार- वचारका यथावत् पसे पालन करता
ँ ।। १९ ।।
मानु ये वतमाने तु कृपणं या चता मया ।
न च ते जातस मोहा वचोऽगृ त मे हतम् ।। २० ।।
इस समय म मनु ययो नम अवतीण आ ँ, इस लये कौरव पर अपनी ई रीय
श का योग न करके पहले मने द नतापूवक ही सं धके लये ाथना क थी; परंतु
उ ह ने मोह त होनेके कारण मेरी हतकर बात नह मानी ।। २० ।।
उ ङ् कमु नक ीकृ णसे व प दखानेके लये ाथना
भयं च मह य ा सताः कुरवो मया ।
ु े न भू वा तु पुनयथावदनुद शताः ।। २१ ।।
तेऽधमणेह संयु ाः परीताः कालधमणा ।
धमण नहता यु े गताः वग न संशयः ।। २२ ।।
इसके बाद ोधम भरकर मने कौरव को बड़े-बड़े भय दखाये और उ ह ब त डराया-
धमकाया तथा यथाथ पसे यु का भावी प रणाम भी उ ह दखाया; परंतु वे तो अधमसे
यु एवं कालसे त थे। अतः मेरी बात माननेको राजी न ए। फर य-धमके
अनुसार यु म मारे गये। इसम संदेह नह क वे सब-के-सब वगलोकम गये
ह ।। २१-२२ ।।
लोकेषु पा डवा ैव गताः या त जो म ।
एतत् ते सवमा यातं य मां वं प रपृ छ स ।। २३ ।।
ज े ! पा डव अपने धमाचरणके कारण सम त लोक म व यात ए ह। आपने
जो कुछ पूछा था, उसके अनुसार मने यह सारा स कह सुनाया ।। २३ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ ङ् कोपा याने कृ णवा ये
चतु प चाश मोऽ यायः ।। ५४ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ंकके उपा यानम
ीकृ णका वचन वषयक चौवनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५४ ।।
प चप चाश मोऽ यायः
ीकृ णका उ ंक मु नको व पका दशन कराना और
म दे शम जल ा त होनेका वरदान दे ना
उ ङ् क उवाच
अ भजाना म जगतः कतारं वां जनादन ।
नूनं भव सादोऽय म त मे ना त संशयः ।। १ ।।
उ ंकने कहा—जनादन! म यह जानता ँ क आप स पूण जगत्के कता ह। न य
ही यह आपक कृपा है (जो आपने मुझे अ या मत वका उपदे श दया), इसम संशय नह
है ।। १ ।।
च ं च सु स ं मे व ावगतम युत ।
व नवृ ं च मे शापा द त व परंतप ।। २ ।।
श ु को संताप दे नेवाले अ युत! अब मेरा च अ य त स और आपके त
भ भावसे प रपूण हो गया है; अतः इसे शाप दे नेके वचारसे नवृ आ समझ ।। २ ।।
य द वनु हं कं चत् व ोऽहा म जनादन ।
ु म छा म ते पमै रं त दशय ।। ३ ।।
जनादन! य द म आपसे कुछ भी कृपा ा त करनेका अ धकारी होऊँ तो आप मुझे
अपना ई रीय प दखा द जये। आपके उस पको दे खनेक बड़ी इ छा है ।। ३ ।।
वैश पायन उवाच
ततः स त मै ीता मा दशयामास तद् वपुः ।
शा तं वै णवं धीमान् द शे यद् धनंजयः ।। ४ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! तब परम बु मान् भगवान् ीकृ णने स च
होकर उ ह अपने उसी सनातन वै णव व पका दशन कराया, जसे यु के ार भम
अजुनने दे खा था ।। ४ ।।
स ददश महा मानं व पं महाभुजम् ।
सह सूय तमं द तमत् पावकोपमम् ।। ५ ।।
उ ंक मु नने उस व पका दशन कया, जसका व प महान् था। जो सह
सूय के समान काशमान तथा बड़ी-बड़ी भुजा से सुशो भत था। उससे व लत
अ नके समान लपट नकल रही थ ।। ५ ।।
सवमाकाशमावृ य त तं सवतोमुखम् ।
तद् ् वा परमं पं व णोव णवमद्भुतम् ।
व मयं च ययौ व तं ् वा परमे रम् ।। ६ ।।
उसके सब ओर मुख था और वह स पूण आकाशको घेरकर खड़ा था। भगवान्
व णुके उस अद्भुत एवं उ कृ वै णव पको दे खकर उन परमे रक ओर पात
करके ष उ ंकको बड़ा व मय आ ।। ६ ।।
उ ङ् क उवाच
(नमो नम ते सवा मन् नारायण परा पर ।
परमा मन् प नाभ पु डरीका माधव ।।
उ ंक बोले—सवा मन्! परा पर नारायण! आपको बारंबार नम कार है। परमा मन्!
प नाभ! पु डरीका ! माधव! आपको नम कार है ।।
हर यगभ पाय संसारो ारणाय च ।
पु षाय पुराणाय चा तयामाय ते नमः ।।
हर यगभ ा आपके ही व प ह। आप संसार-सागरसे पार उतारनेवाले ह। आप
ही अ तयामी पुराण-पु ष ह। आपको नम कार है ।।
अ व ा त मरा द यं भव ा धमहौष धम् ।
संसाराणवपारं वां णमा म ग तभव ।।
आप अ व ा पी अ धकारको मटानेवाले सूय, संसार पी रोगके महान् औषध तथा
भवसागरसे पार करनेवाले ह। आपको णाम करता ँ। आप मेरे आ य-दाता ह ।।
सववेदैकवे ाय सवदे वमयाय च ।
वासुदेवाय न याय नमो भ याय ते ।।
आप स पूण वेद के एकमा वे त व ह। स पूण दे वता आपके ही व प ह तथा
आप भ जन को अ य त य ह। आप न य व प भगवान् वासुदेवको नम कार है ।।
दयया ःखमोहा मां समु तु महाह स ।
कम भब भः पापैब ं पा ह जनादन ।।)
जनादन! आप वयं ही दया करके ःखज नत मोहसे मेरा उ ार कर। म ब त-से
पाप-कम ारा बँधा आ ँ। आप मेरी र ा कर ।।
व कमन् नम तेऽ तु व ा मन् व स भव ।
पद् यां ते पृ थवी ा ता शरसा चावृतं नभः ।। ७ ।।
व कमन्! आपको नम कार है। स पूण व क उ प के थानभूत व ा मन्!
आपके दोन पैर से पृ वी और सरसे आकाश ा त है ।। ७ ।।
ावापृ थ ोय म यं जठरेण तवावृतम् ।
भुजा यामावृता ाशा व मदं सवम युत ।। ८ ।।
आकाश और पृ वीके बीचका जो भाग है, वह आपके उदरसे ा त हो रहा है।
आपक भुजा ने स पूण दशा को घेर लया है। अ युत! यह सारा य- पंच आप ही
ह ।। ८ ।।
संहर व पुनदव पम यमु मम् ।
पुन वां वेन पेण ु म छा म शा तम् ।। ९ ।।
दे व! अब अपने इस उ म एवं अ वनाशी व पको फर समेट ली जये। म आप
सनातन पु षको पुनः अपने पूव पम ही दे खना चाहता ँ ।। ९ ।।
वैश पायन उवाच
तमुवाच स ा मा गो व दो जनमेजय ।
वरं वृणी वे त तदा तमु ङ् कोऽ वी ददम् ।। १० ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! मु नक बात सुनकर सदा स च रहनेवाले
भगवान् ीकृ णने कहा—‘महष! आप मुझसे कोई वर माँ गये।’ तब उ ंकने कहा
— ।। १० ।।
पया त एष एवा वर व ो महा ुते ।
यत् ते प मदं कृ ण प या म पु षो म ।। ११ ।।
‘महातेज वी पु षो म ीकृ ण! आपके इस व पका जो म दशन कर रहा ँ, यही
मेरे लये आज आपक ओरसे ब त बड़ा वरदान ा त हो गया’ ।। ११ ।।
तम वीत् पुनः कृ णो मा वम वचारय ।
अव यमेतत् कत ममोघं दशनं मम ।। १२ ।।
यह सुनकर ीकृ णने फर कहा—‘मुने! आप इसम कोई अ यथा वचार न कर।
आपको अव य ही मुझसे वर माँगना चा हये; य क मेरा दशन अमोघ है’ ।। १२ ।।
उ ङ् क उवाच
अव यं करणीयं च य ेत म यसे वभो ।
तोय म छा म य े ं म वेत लभम् ।। १३ ।।
उ ंक बोले— भो! य द वर माँगना आप मेरे लये आव यक कत मानते ह तो म
यही चाहता ँ क मुझे यहाँ यथे जल ा त हो; य क इस म भू मम जल बड़ा ही लभ
है ।। १३ ।।
ततः सं य तत् तेजः ोवाचो ङ् कमी रः ।
ए े स त च योऽह म यु वा ारकां ययौ ।। १४ ।।
तब भगवान्ने अपने उस तेजोमय व पको समेटकर उ ंक मु नसे कहा—‘मुने! जब
आपको जलक इ छा हो, तब आप मेरा मरण क जयेगा।’ ऐसा कहकर वे ारका चले
गये ।। १४ ।।
ततः कदा चद् भगवानु ङ् क तोयकाङ् या ।
तृ षतः प रच ाम मरौ स मार चा युतम् ।। १५ ।।
त प ात् एक दन उ ंक मु नको बड़ी यास लगी। वे पानीक इ छासे उस म भू मम
चार ओर घूमने लगे। घूमते-घूमते उ ह ने भगवान् ीकृ णका मरण कया ।। १५ ।।
ततो द वाससं धीमान् मात ं मलपङ् कनम् ।
अप यत मरौ त मन् यूथप रवा रतम् ।। १६ ।।
इतनेहीम उन बु मान् मु नको उस म दे शम कु के झुंडसे घरा आ एक नंग-
धड़ंग चा डाल दखायी पड़ा, जसके शरीरम मैल और क चड़ जमी ई थी ।। १६ ।।
भीषणं ब न ंशं बाणकामुकधा रणम् ।
त याधः ोतसोऽप यद् वा र भू र जो मः ।। १७ ।।
वह दे खनेम बड़ा भयंकर था। उसने कमरम तलवार बाँध रखी थी और हाथ म धनुष-
बाण धारण कये थे। ज े उ ंकने दे खा—उसके नीचे पैर के समीप एक छ से चुर
जलक धारा गर रही है ।। १७ ।।
मर ेव च तं ाह मात ः हस व ।
ए ङ् क ती छ व म ो वा र भृगू ह ।। १८ ।।
कृपा ह मे सुमहती वां ् वा तृट् समा तम् ।
इ यु तेन स मु न तत् तोयं ना यन दत ।। १९ ।।
मु नको पहचानते ही वह जोर-जोरसे हँसता आ-सा बोला—‘भृगकुल तलक उ ंक!
आओ, मुझसे जल हण करो। तु ह याससे पी ड़त दे खकर मुझे तुमपर बड़ी दया आ रही
है।’ चा डालके ऐसा कहनेपर भी मु नने उसके जलका अ भन दन नह कया—उसे लेनेसे
इनकार कर दया ।। १८-१९ ।।
च ेप च स तं धीमान् वा भ ा भर युतम् ।
पुनः पुन मात ः पब वे त तम वीत् ।। २० ।।
उस समय बु मान् उ ंकने अपने कठोर वचन - ारा भगवान् ीकृ णपर भी आ ेप
कया। उधर चा डाल बारंबार आ ह करने लगा—‘महष! जल पी ली जये’ ।। २० ।।
न चा पबत् स स ोधः ु भतेना तरा मना ।
स तथा न यात् तेन या यातो महा मना ।। २१ ।।
उ ंकने उस जलको नह पीया। वे अ य त कु पत हो उठे थे। उनके अ तःकरणम बड़ा
ोभ था। उन महा माने अपने न यपर अटल रहकर चा डालको जवाब दे
दया ।। २१ ।।
भः सह महाराज त ैवा तरधीयत ।
उ ङ् क तं तथा ् वा ततो ी डतमानसः ।। २२ ।।
मेने ल धमा मानं कृ णेना म घा तना ।
महाराज! मु नके इनकार करते ही कु स हत वह चा डाल वह अ तधान हो गया।
यह दे ख उ ंक मन-ही-मन ब त ल जत ए और सोचने लगे क ‘श ुघाती ीकृ णने
मुझे ठग लया’ ।। २२ ।।
अथ तेनैव मागण शङ् खच गदाधरः ।। २३ ।।
आजगाम महाबु ङ् क ेनम वीत् ।
न यु ं ता शं दातुं वया पु षस म ।। २४ ।।
स ललं व मु ये यो मात ोतसा वभो ।
तदन तर शंख, च और गदा धारण करनेवाले भगवान् ीकृ ण उसी मागसे कट
होकर आये। उ ह दे खकर महाम त उ ंकने कहा—‘पु षो म! भो! आपको े
ा ण के लये चा डालसे पश कया आ वैसा अप व जल दे ना उ चत नह
है’ ।। २३-२४ ।।
इ यु वचनं तं तु महाबु जनादनः ।। २५ ।।
उ ङ् कं णया वाचा सा वय दम वीत् ।
उ ंकके ऐसा कहनेपर महाबु मान् जनादनने उ ह मधुर वाणी ारा सा वना दे ते ए
कहा— ।। २५ ।।
या शेनेह पेण यो यं दातुं धृतेन वै ।। २६ ।।
ता शं खलु ते द ं य च वं नावबु यथाः ।
‘महष! वहाँ जैसा प धारण करके वह जल आपके लये दे ना उ चत था, उसी पसे
दया गया; कतु आप उसे समझ न सके ।। २६ ।।
मया वदथमु ो वै व पा णः पुरंदरः ।। २७ ।।
उ ङ् कायामृतं दे ह तोय प म त भुः ।
स मामुवाच दे वे ो न म य ऽम यतां जेत् ।। २८ ।।
अ यम मै वरं दे ही यसकृद् भृगुन दन ।
अमृतं दे य म येव मयो ः स शचीप तः ।। २९ ।।
‘भृगन
ु दन! मने आपके लये व धारी इ से जाकर कहा था क तुम उ ंक मु नको
जलके पम अमृत दान करो। मेरी बात सुनकर भावशाली दे वे ने बार बार मुझसे
कहा क ‘मनु य अमर नह हो सकता। इस लये आप उ ह अमृत न दे कर और कोई वर
द जये।’ परंतु मने शचीप त इ से जोर दे कर कहा क उ ङ् कको तो अमृत ही दे ना
है ।। २७—२९ ।।
स मां सा दे वे ः पुनरेवेदम वीत् ।
य द दे यमव यं वै मात ोऽहं महामते ।। ३० ।।
भू वामृतं दा या म भागवाय महा मने ।
य ेवं तगृ ा त भागवोऽमृतम वै ।। ३१ ।।
दातुमेष ग छा म भागव यामृतं वभो ।
या यात वहं तेन दा या म न कथंचन ।। ३२ ।।
‘तब दे वराज इ मुझे स करके बोले—‘सव ापी महामते! य द भृगन ु दन
महा मा उ ंकको अमृत अव य दे ना है तो म चा डालका प धारण करके उ ह अमृत
दान क ँ गा। य द इस कार आज भृगव ु ंशी उ ंक अमृत लेना वीकार करगे तो म उ ह
वर दे नेके लये अभी जा रहा ँ और य द वे अ वीकार कर दगे तो म कसी तरह उ ह
अमृत नह ँ गा’ ।। ३०—३२ ।।
स तथा समयं कृ वा तेन पेण वासवः ।
उप थत वया चा प या यातोऽमृतं ददत् ।। ३३ ।।
‘इस तरहक शत करके सा ात् इ चा डालके पम यहाँ उप थत ए थे और
आपको अमृत दे रहे थे; परंतु आपने उ ह ठु करा दया ।। ३३ ।।
चा डाल पी भगवान् सुमहां ते त मः ।
यत् तु श यं मया कतु भूय एव तवे सतम् ।। ३४ ।।
‘आपने चा डाल पधारी भगवान् इ को ठु कराया है, यह आपका महान् अपराध है।
अ छा, आपक इ छा पूण करनेके लये म पुनः जो कुछ कर सकता ँ, क ँ गा ।। ३४ ।।
तोये सां तव धषा क र ये सफलामहम् ।
ये वहःसु च ते न् स लले सा भ व य त ।। ३५ ।।
तदा मरौ भ व य त जलपूणाः पयोधराः ।
रसव च दा य त तोयं ते भृगुन दन ।। ३६ ।।
उ ङ् कमेघा इ यु ाः या त या य त चा प ते ।
‘ न्! आपक ती पपासाको म अव य सफल क ँ गा। जन दन आपको जल
पीनेक इ छा होगी, उ ह दन म दे शम जलसे भरे ए मेघ कट ह गे। भृगन ु दन! वे
आपको सरस जल दान करगे और इस पृ वीपर उ ंक मेघके नामसे व यात ह गे’ ।।
इ यु ः ी तमान् व ः कृ णेन स बभूव ह ।
अ ा यु ङ् कमेघा मरौ वष त भारत ।। ३७ ।।
भारत! भगवान् ीकृ णके ऐसा कहनेपर व वर उ ंक मु न बड़े स ए। इस
समय भी म भू मम उ ंक मेघ कट होकर जलक वषा करते ह ।। ३७ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ ङ् कोपा याने
प चप चाश मोऽ यायः ।। ५५ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ङ् कोपा यानम
कृ णवा य वषयक पचपनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५५ ।।
(दा णा य अ धक पाठके ५ ोक मलाकर कुल ४२ ोक ह)
षट् प चाश मोऽ यायः
उ ंकक गु भ का वणन, गु पु ीके साथ उ ंकका
ववाह, गु प नीक आ ासे द कु डल लानेके लये
उ ंकका राजा सौदासके पास जाना
जनमेजय उवाच
उ ङ् कः केन तपसा संयु ो वै महामनाः ।
यः शापं दातुकामोऽभूद ् व णवे भ व णवे ।। १ ।।
जनमेजयने पूछा— न्! महा मा उ ंक मु नने ऐसी कौन-सी तप या क थी,
जससे वे सबक उ प के हेतुभूत भगवान् व णुको भी शाप दे नके ा संक प कर
बैठे? ।। १ ।।
वैश पायन उवाच
उ ङ् को महता यु तपसा जनमेजय ।
गु भ ः स तेज वी ना यत् क चदपूजयत् ।। २ ।।
वैश पायनजीने कहा—जनमेजय! उ ंक मु न बड़े भारी तप वी, तेज वी और
गु भ थे। उ ह ने जीवनम गु के सवा सरे कसी दे वताक आराधना नह क
थी ।। २ ।।
सवषामृ षपु ाणामेष आसी मनोरथः ।
औ ङ् क गु वृ वै ा ुयामे त भारत ।। ३ ।।
भरतन दन! जब वे गु कुलम रहते थे, उन दन सभी ऋ षकुमार के मनम यह
अ भलाषा होती थी क हम भी उ ंकके समान गु भ ा त हो ।। ३ ।।
गौतम य तु श याणां ब नां जनमेजय ।
उ ङ् केऽ य धका ी तः नेह ैवाभवत् तदा ।। ४ ।।
जनमेजय! गौतमके ब त-से श य थे, परंतु उनका ेम और नेह सबसे अ धक
उ ंकम ही था ।।
स त य दमशौचा यां व ा तेन च कमणा ।
स यक् चैवोपचारेण गौतमः ी तमानभूत् ।। ५ ।।
उ ंकके इ यसंयम, बाहर-भीतरक प व ता, पु षाथ, कम और उ मो म सेवासे
गौतम ब त स रहते थे ।। ५ ।।
अथ श यसह ा ण समनु ातवानृ षः ।
उ ङ् कं परया ी या ना यनु ातुमै छत ।
तं मेण जरा तात तपेदे महामु नम् ।। ६ ।।
उन मह षने अपने सह श य को पढ़ाकर घर जानेक आ ा दे द ; परंतु उ ङ् कपर
अ धक ेम होनेके कारण वे उ ह घर जानेक आ ा नह दे ना चाहते थे। तात! मशः उन
महामु न उ ंकको वृ ाव था ा त ई ।। ६ ।।
न चा वबु यत तदा स मु नगु व सलः ।
ततः कदा चद् राजे का ा यान यतुं ययौ ।। ७ ।।
उ ङ् कः का भारं च महा तं समुपानयत् ।
कतु वे गु व सल मह ष यह नह जान सके क मेरा बुढ़ापा आ गया। राजे ! एक
दन उ ंक मु न लक ड़याँ लानेके लये वनम गये और वहाँसे काठका ब त बड़ा बोझ उठा
लाये ।। ७ ।।
स त ारा भभूता मा का भारम रदम ।। ८ ।।
न च ेप तौ राजन् प र ा तो बुभु तः ।
त य का े वल नाभू जटा यसम भा ।। ९ ।।
ततः का ैः सह तदा पपात धरणीतले ।
श ुदमन नरेश! बोझ भारी होनेके कारण वे ब त थक गये। उनका शरीर लक ड़य के
भारसे दब गया था। वे भूखसे पी ड़त हो रहे थे। जब आ मपर आकर उस बोझको वे
जमीनपर गराने लगे, उस समय चाँद के तारक भाँ त सफेद रंगक उनक जटा लकड़ीम
चपक गयी थी, जो उन लक ड़य के साथ ही जमीनपर गर पड़ी ।। ८-९ ।।
ततः स भार न प ः ुधा व भारत ।। १० ।।
् वा तां वयसोऽव थां रोदात वर तदा ।
भारत! भारसे तो वे पस ही गये थे, भूखने भी उ ह ाकुल कर दया था। अतः
अपनी उस अव थाको दे खकर वे उस समय आत वरसे रोने लगे ।। १० ।।
ततो गु सुता त य प प नभानना ।। ११ ।।
ज ाहा ू ण सु ोणी करेण पृथुलोचना ।
पतु नयोगाद् धम ा शरसावनता तदा ।। १२ ।।
तब कमलदलके समान फु ल मुखवाली वशाललोचना परम सु दरी धम गु पु ीने
पताक आ ा पाकर वनीत भावसे सर झुकाये वहाँ आयी और अपने हाथ म उसने
मु नके आँसू हण कर लये ।।
त या नपेततुद धौ करौ तैर ु ब भः ।
न ह तान ुपातां तु श ा धार यतुं मही ।। १३ ।।
उन अ ु ब से उसके दोन हाथ जल गये और आँसु स हत पृ वीसे जा लगे।
परंतु पृ वी भी उन गरते ए अ ु ब के धारण करनेम असमथ हो गयी ।। १३ ।।
गौतम व वीद् व मु ङ् कं ीतमानसः ।
क मात् तात तवा ेह शोको र मदं मनः ।
स वैरं ू ह व ष ोतु म छा म त वतः ।। १४ ।।
फर गौतमने स च होकर व वर उ ंकसे पूछा—‘बेटा! आज तु हारा मन
शोकसे ाकुल य हो रहा है? म इसका यथाथ कारण सुनना चाहता ँ। ष! तुम
नःसंकोच होकर सारी बात बताओ’ ।। १४ ।।
उ ङ् क उवाच
भवद्गतेन मनसा भव य चक षया ।
भव गतेनेह भव ावानुगेन च ।। १५ ।।
जरेयं नावबु ा मे ना भ ातं सुखं च मे ।
शतवष षतं मां ह न वम यनुजा नथाः ।। १६ ।।
उ ंकने कहा—गु दे व! मेरा मन सदा आपम लगा रहा। आपहीका य करनेक
इ छासे म नर तर आपक सेवाम संल न रहा, मेरा स पूण अनुराग आपहीम रहा है और
आपहीक भ म त पर रहकर मने न तो लौ कक सुखको जाना और न मुझे आये ए इस
बुढ़ापाका ही पता चला। मुझे यहाँ रहते ए सौ वष बीत गये तो भी आपने मुझे घर
जानेक आ ा नह द ।। १५-१६ ।।
भवता व यनु ाताः श याः यवरा मम ।
उपप ा ज े शतशोऽथ सह शः ।। १७ ।।
ज े ! मेरे बाद सैकड़ और हजार श य आपक सेवाम आये और अ ययन पूरा
करके आपक आ ा लेकर चले गये (केवल म ही यहाँ पड़ा आ ँ) ।। १७ ।।
गौतम उवाच
व ी तयु े न मया गु शु ूषया तव ।
त ाम महाकालो नावबु ो जषभ ।। १८ ।।
गौतमने कहा— व वर! तु हारी गु शु ूषासे तु हारे ऊपर मेरा बड़ा ेम हो गया था।
इसी लये इतना अ धक समय बीत गया तो भी मेरे यानम यह बात नह आयी ।। १८ ।।
क व य द ते ा गमनं त भागव ।
अनु ां तगृ वं वगृहान् ग छ मा चरम् ।। १९ ।।
भृगन
ु दन! य द आज तु हारे मनम यहाँसे जानेक इ छा ई है तो मेरी आ ा वीकार
करो और शी ही यहाँसे अपने घरको चले जाओ ।। १९ ।।
उ ङ् क उवाच
गुवथ कं य छा म ू ह वं जस म ।
तमुपा य ग छे यमनु ात वया वभो ।। २० ।।
उ ंकने पूछा— ज े ! भो! म आपको गु द णाम या ँ ? यह बताइये। उसे
आपको अ पत करके आ ा लेकर घरको जाऊँ ।। २० ।।
गौतम उवाच
द णा प रतोषो वै गु णां स यते ।
तव ाचरतो ं तु ोऽहं वै न संशयः ।। २१ ।।
गौतमने कहा— न्! स पु ष कहते ह क गु जन को संतु करना ही उनके लये
सबसे उ म द णा है। तुमने जो सेवा क है, उससे म ब त संतु ँ, इसम संशय नह
है ।। २१ ।।
इ थं च प रतु ं मां वजानी ह भृगू ह ।
युवा षोडशवष ह य भ वता भवान् ।। २२ ।।
ददा न प न क यां च वां ते हतरं ज ।
एतामृतेऽ ना ना या व ेजोऽह त से वतुम् ।। २३ ।।
भृगकु ु लभूषण! इस तरह तुम मुझे पूण संतु जानो। य द आज तुम सोलह वषके
त ण हो जाओ तो म तु ह प नी पसे अपनी कुमारी क या अ पत कर ँ गा; य क इसके
सवा सरी कोई ी तु हारे तेजको नह सह सकती ।। २२-२३ ।।
तत तां तज ाह युवा भू वा यश वनीम् ।
गु णा चा यनु ातो गु प नीमथा वीत् ।। २४ ।।
तब उ ंकने तपोबलसे त ण होकर उस यश वनी गु पु ीका पा ण हण कया।
त प ात् गु क आ ा पाकर वे गु प नीसे बोले— ।। २४ ।।
कं भव यै य छा म गुवथ व नयुङ् व माम् ।
यं हतं च काङ् ा म ाणैर प धनैर प ।। २५ ।।
‘माताजी! मुझे आ ा द जये, म गु द णाम आपको या ँ ? अपना धन और ाण
दे कर भी म आपका य एवं हत करना चाहता ँ ।। २५ ।।
यद् लभं ह लोकेऽ मन् र नम यद्भुतं महत् ।
तदानयेयं तपसा न ह मेऽ ा त संशयः ।। २६ ।।
‘इस लोकम जो अ य त लभ, अद्भुत एवं महान् र न हो, उसे भी म तप याके बलसे
ला सकता ँ; इसम संशय नह है’ ।। २६ ।।
अह योवाच
प रतु ा म ते व न यं भ या तवानघ ।
पया तमेतद् भ ं ते ग छ तात यथे सतम् ।। २७ ।।
अह या बोली— न पाप ा ण! म तु हारे भ -भावसे सदा संतु ँ। बेटा! मेरे
लये इतना ही ब त है। तु हारा क याण हो। अब तु हारी जहाँ इ छा हो, जाओ ।। २७ ।।
वैश पायन उवाच
उ ङ् क तु महाराज पुनरेवा वीद् वचः ।
आ ापय व मां मातः कत ं च तव यम् ।। २८ ।।
वैश पायनजी कहते ह—महाराज! गु प नीक बात सुनकर उ ंकने फर कहा
—‘माताजी! मुझे आ ा द जये—म या क ँ ? मुझे आपका य काय अव य करना
है’ ।। २८ ।।
अह योवाच
सौदासप या वधृते द े ये म णकु डले ।
ते समानय भ ं ते गुवथः सुकृतो भवेत् ।। २९ ।।
अह या बोली—बेटा! राजा सौदासक रानीने जो दो द म णमय कु डल धारण
कर रखे ह, उ ह ले आओ। तु हारा क याण हो। उनके ला दे नेसे तु हारी गु -द णा पूरी
हो जायगी ।। २९ ।।
स तथे त त ु य जगाम जनमेजय ।
गु प नी याथ वै ते समान यतुं तदा ।। ३० ।।
जनमेजय! तब ‘ब त अ छा’ कहकर उ ंकने गु प नीक आ ा वीकार कर ली
और उनका य करनेक इ छासे उन कु डल को लानेके लये चल दये ।। ३० ।।
स जगाम ततः शी मु ङ् को ा णषभः ।
सौदासं पु षादं वै भ तुं म णकु डले ।। ३१ ।।
ा ण शरोम ण उ ंक नरभ ी रा सभावको ा त ए राजा सौदाससे उन म णमय
कु डल क याचना करनेके लये वहाँसे शी तापूवक थत ए ।। ३१ ।।
गौतम व वीत् प नीमु ङ् को ना यते ।
इ त पृ ा तमाच कु डलाथ गतं च सा ।। ३२ ।।
उनके चले जानेपर गौतमने प नीसे पूछा—‘आज उ ंक य नह दखायी दे ता है?’
प तके इस कार पूछनेपर अह याने कहा—‘वह सौदासक महारानीके कु डल ले आनेके
लये गया’ ।। ३२ ।।
ततः ोवाच प न स न ते स य गदं कृतम् ।
श तः स पा थवो नूनं ा णं तं व ध य त ।। ३३ ।।
यह सुनकर गौतमने प नीसे कहा—‘दे व! यह तुमने अ छा नह कया। राजा सौदास
शापवश रा स हो गये ह। अतः वे उस ा णको अव य मार डालगे’ ।। ३३ ।।
अह योवाच
अजान या नयु ः स भगवन् ा णो मया ।
भव सादा भयं क चत् त य भ व य त ।। ३४ ।।
अह या बोली—भगवन्! म इस बातको नह जानती थी, इसी लये उस ा णको
ऐसा काम स प दया। मुझे व ास है क आपक कृपासे उसे वहाँ कोई भय नह ा त
होगा ।। ३४ ।।
इ यु ः ाह तां प नीमेवम व त गौतमः ।
उ ङ् कोऽ प वने शू ये राजानं तं ददश ह ।। ३५ ।।
यह सुनकर गौतमने प नीसे कहा—‘अ छा, ऐसा ही हो।’ उधर उ ंक नजन वनम
जाकर राजा सौदाससे मले ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ ङ् कोपा याने
कु डलाहरणे षट् प चाश मोऽ यायः ।। ५६ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ंकके उपा यानम
कु डलाहरण वषयक छ पनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५६ ।।
स तप चाश मोऽ यायः
उ ंकका सौदाससे उनक रानीके कु डल माँगना और
सौदासके कहनेसे रानी मदय तीके पास जाना
वैश पायन उवाच
स तं ् वा तथाभूतं राजानं घोरदशनम् ।
द घ म ुधरं नॄणां शो णतेन समु तम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! राजा सौदास रा स होकर बड़े भयानक
दखायी दे ते थे। उनक मूँछ और दाढ़ ब त बड़ी थी। वे मनु य के र से रँगे ए
थे ।। १ ।।
चकार न थां व ो राजा वेनमथा वीत् ।
यु थाय महातेजा भयकता यमोपमः ।। २ ।।
उ ह दे खकर व वर उ ंकको त नक भी घबराहट नह ई। उ ह दे खते ही
महातेज वी राजा सौदास, जो यमराजके समान भयंकर थे, उठकर खड़े हो गये और उनके
पास जाकर बोले— ।। २ ।।
द ् या वम स क याण ष े काले ममा तकम् ।
भ यं मृगयमाण य स ा तो जस म ।। ३ ।।
‘क याण व प ज े ! बड़े सौभा यक बात है क दनके छठे भागम आप वयं
ही मेरे पास चले आये। म इस समय आहार ही ढूँ ढ़ रहा था’ ।। ३ ।।
उ ङ् क उवाच
राजन् गुव थनं व चर तं मा महागतम् ।
न च गुवथमु ु ं ह यमा मनी षणः ।। ४ ।।
उ ंक बोले—राजन्! आपको मालूम होना चा हये क म गु द णाके लये घूमता-
फरता यहाँ आया ँ। जो गु द णा जुटानेके लये उ ोगशील हो, उसक हसा नह
करनी चा हये, ऐसा मनीषी पु ष का कथन है ।। ४ ।।
राजोवाच
ष े काले ममाहारो व हतो जस म ।
न श य वं समु ु ं ु धतेन मया वै ।। ५ ।।
राजाने कहा— ज े ! दनके छठे भागम मेरे लये आहारका वधान कया गया
है। यह वही समय है। म भूखसे पी ड़त हो रहा ँ। इस लये मेरे हाथ से तुम छू ट नह
सकते ।। ५ ।।
उ ङ् क उवाच
एवम तु महाराज समयः यतां तु मे ।
गुवथम भ नव य पुनरे या म ते वशम् ।। ६ ।।
उ ंकने कहा—महाराज! ऐसा ही सही, कतु मेरे साथ एक शत कर ली जये। म
गु द णा चुकाकर फर आपके वशम आ जाऊँगा ।। ६ ।।
सं ुत मया योऽथ गुरवे राजस म ।
वदधीनः स राजे तं वां भ े नरे र ।। ७ ।।
राजे ! नृप े ! मने गु को जो व तु दे नेक त ा क है, वह आपके ही अधीन है;
अतः नरे र! म आपसे उसक भीख माँगता ँ ।। ७ ।।
ददा स व मु ये य वं ह र ना न न यदा ।
दाता च वं नर ा पा भूतः ता वह ।
पा ं त हे चा प व मां नृपस म ।। ८ ।।
पु ष सह! आप त दन ब त-से े ा ण को र न दान करते ह। इस पृ वीपर
आप एक े दानीके पम स ह और म भी दान लेनेका पा ँ। नृप े ! आप मुझे
त हका अ धकारी समझ ।। ८ ।।
उपा य गुरोरथ वदाय म रदम ।
समयेनेह राजे पुनरे या म ते वशम् ।। ९ ।।
श ुदमन राजे ! गु का धन जो आपके ही अधीन है, उ ह अ पत करके म अपनी क
ई त ाके अनुसार फर आपके अधीन हो जाऊँगा ।। ९ ।।
स यं ते तजाना म ना म या कथंचन ।
अनृतं नो पूव मे वैरे व प कुतोऽ यथा ।। १० ।।
म आपसे स ची त ा करता ँ, इसम कसी तरह म याके लये थान नह है। म
पहले कभी प रहासम भी झूठ नह बोला ँ, फर अ य अवसर पर तो बोल ही कैसे सकता
ँ ।। १० ।।
सौदास उवाच
य द म तवाय ो गुवथः कृत एव सः ।
य द चा म त ा ः सा तं तद् वद व मे ।। ११ ।।
सौदासने कहा— न्! य द आपक गु द णा मेरे अधीन है तो उसे मली ई ही
सम झये। य द आप मेरी कोई व तु लेनेके यो य मानते ह तो बताइये, इस समय म आपको
या ँ ? ।। ११ ।।
उ ङ् क उवाच
त ा ो मतो मे वं सदै व पु षषभ ।
सोऽहं वामनुस ा तो भ तुं म णकु डले ।। १२ ।।
उ ंकने कहा—पु ष वर! आपका दया आ दान म सदा ही हण करनेके यो य
मानता ँ। इस समय म आपक रानीके दोन म णमय कु डल माँगनेके लये यहाँ आया
ँ ।। १२ ।।
सौदास उवाच
प या ते मम व ष उ चते म णकु डले ।
वरयाथ वम यं वै तं ते दा या म सु त ।। १३ ।।
सौदासने कहा— ष! वे म णमय कु डल तो मेरी रानीके ही यो य ह। सु त! आप
और कोई व तु माँ गये, उसे म आपको अव य दे ँ गा ।। १३ ।।
उ ङ् क उवाच
अलं ते पदे शेन माणा य द ते वयम् ।
य छ कु डले म ं स यवाग् भव पा थव ।। १४ ।।
उ ंकने कहा—पृ वीनाथ! अब बहाना करना थ है। य द आप मुझपर व ास
करते ह तो वे दोन म णमय कु डल आप मुझे दे द और स यवाद बन ।। १४ ।।
वैश पायन उवाच
इ यु व वीद् राजा तमु ङ् कं पुनवचः ।
ग छ म चनाद् दे व ू ह दे ही त स म ।। १५ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! उनके ऐसा कहनेपर राजा फर उ ंकसे बोले
—‘साधु शरोमणे! आप रानीके पास जाइये और मेरी आ ा सुनाकर क हये। आप मुझे
कु डल दे द ।। १५ ।।
सैवमु ा वया नूनं म ा येन शु च ता ।
दा य त ज े कु डले ते न संशयः ।। १६ ।।
‘ ज े ! रानी उ म तका पालन करनेवाली ह। जब आप उनसे इस कार कहगे,
तब वे मेरी आ ा मानकर दोन कु डल आपको दे दगी, इसम संशय नह है’ ।।
उ ङ् क उवाच
व प नी भवतः श या मया ु ं नरे र ।
वयं वा प भवान् प न कमथ नोपसप त ।। १७ ।।
उ ंक बोले—नरे र! म कहाँ आपक प नीको ढूँ ढ़ता फ ँ गा? मुझे य कर उनका
दशन हो सकेगा? आप वयं ही अपनी प नीके पास य नह चलते? ।।
सौदास उवाच
तां य त भवान क मं द् वन नझरे ।
ष े काले न ह मया सा श या ु म वै ।। १८ ।।
सौदासने कहा— न्! उ ह आज आप वनम कसी झरनेके पास दे खगे। यह
दनका छठा भाग है (म आहारक खोजम ँ), अतः इस समय म उनसे नह मल
सकता ।। १८ ।।
वैश पायन उवाच
उ ङ् क तु तथो ः स जगाम भरतषभ ।
मदय त च ् वा स ापयत् व योजनम् ।। १९ ।।
वैश पायनजी कहते ह—भरतभूषण! राजाके ऐसा कहनेपर उ ंक मु न महारानी
मदय तीके पास गये और उनसे अपने आनेका योजन बतलाया ।। १९ ।।
सौदासवचनं ु वा ततः सा पृथुलोचना ।
युवाच महाबु मु ङ् कं जनमेजय ।। २० ।।
जनमेजय! राजा सौदासका संदेश सुनकर वशाललोचना रानीने महाबु मान् उ ंक
मु नको इस कार उ र दया— ।। २० ।।
एवमेतद् वद न् नानृतं वदसेऽनघ ।
अ भ ानं तु क चत् वं समान यतुमह स ।। २१ ।।
‘ न्! आप जो कहते ह, वह ठ क है। अनघ! य प आप अस य नह बोलते ह,
तथा प आप महाराजके ही पाससे उ ह का संदेश लेकर आये ह, इस बातका कोई माण
आपको लाना चा हये ।। २१ ।।
इमे ह द े म णकु डले मे
दे वा य ा महषय ।
तै तै पायैरपहतुकामा-
छ े षु न यं प रतकय त ।। २२ ।।
‘मेरे ये दोन म णमय कु डल द ह। दे वता, य और मह ष लोग नाना कारके
उपाय ारा इसे चुरा ले जानेक इ छा रखते ह और इसके लये सदा छ ढूँ ढ़ते रहते
ह ।। २२ ।।
न तमेतद् भु व प गा तु
र नं समासा परामृशेयुः ।
य ा तथो छ धृतं सुरा
न ावशाद् वा प रधषयेयुः ।। २३ ।।
‘य द इन कु डल को पृ वीपर रख दया जाय तो नाग लोग इसे हड़प लगे। अप व
अव थाम इ ह धारण करनेपर य उड़ा ले जायँगे और य द इ ह पहनकर न द लेने लग
जाय तो दे वतालोग बलात् छ न ले जायँगे ।। २३ ।।
छ े वेते वमे न यं येते जस म ।
दे वरा सनागानाम म ेन धायते ।। २४ ।।
‘ ज े ! इन छ म इन दोन कु डल के खो जानेका भय सदा बना रहता है। जो
दे वता, रा स और नाग क ओरसे सावधान होता है, वही इ ह धारण कर सकता
है ।। २४ ।।
य दे ते ह दवा मं रा ौ च जस म ।
न ं न ताराणां भामा य वततः ।। २५ ।।
‘ ज े ! ये दोन कु डल रात- दन सोना टपकाते रहते ह। इतना ही नह , रातम ये
न और तार क भाको भी छ न लेते ह ।। २५ ।।
एते ामु य भगवन् ु पपासाभयं कुतः ।
वषा न ापदे य भयं जातु न व ते ।। २६ ।।
‘भगवन्! इ ह धारण कर लेनेपर भूख- यासका भय कहाँ रह जाता है? वष, अ न
और हसक ज तु से भी कभी भय नह होता है ।। २६ ।।
वेन चैते आमु े भवतो वके तदा ।
अनु पेण चामु े जायेते त माणके ।। २७ ।।
‘छोटे कदका मनु य इन कु डल को पहने तो छोटे हो जाते ह और बड़ी डील-
डौलवाले मनु यके पहननेपर उसीके अनु प बड़े हो जाते ह ।। २७ ।।
एवं वधे ममैते वै कु डले परमा चते ।
षु लोकेषु व ाते तद भ ानमानय ।। २८ ।।
‘ऐसे गुण से यु होनेके कारण मेरे ये दोन कु डल तीन लोक म परम शं सत एवं
स ह। अतः आप महाराजक आ ासे इ ह लेने आये ह, इसका कोई पहचान या
माण लाइये’ ।। २८ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ ङ् कोपा याने
स तप चाश मोऽ यायः ।। ५७ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ंक मु नका
उपा यान वषयक स ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५७ ।।
अ प चाश मोऽ यायः
कु डल लेकर उ ंकका लौटना, मागम उन कु डल का
अपहरण होना तथा इ और अ नदे वक कृपासे फर
उ ह पाकर गु प नीको दे ना
वैश पायन उवाच
स म सहमासा अ भ ानमयाचत ।
त मै ददाव भ ानं स चे वाकुवर तदा ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! रानी मदय तीक बात सुनकर उ ंकने महाराज
म सह (सौदास)-के पास जाकर उनसे कोई पहचान माँगी। तब इ वाकुवं शय म े उन
नरेशने पहचानके पम रानीको सुनानेके लये न नां कत स दे श दया ।। १ ।।
सौदास उवाच
न चैवैषा ग तः े या न चा या व ते ग तः ।
एत मे मतमा ाय य छ म णकु डले ।। २ ।।
सौदास बोले— ये! म जस ग तम पड़ा ँ, यह मेरे लये क याण करनेवाली नह
है तथा इसके सवा अब सरी कोई भी ग त नह है। मेरे इस वचारको जानकर तुम अपने
दोन म णमय कु डल इन ा णदे वताको दे डालो ।। २ ।।
इ यु तामु ङ् क तु भतुवा यमथा वीत् ।
ु वा च सा तदा ादात् तत ते म णकु डले ।। ३ ।।
राजाके ऐसा कहनेपर उ ंकने रानीके पास जाकर प तक कही ई बात य -क - य
हरा द । महारानी मदय तीने वामीका वचन सुनकर उसी समय अपने म णमय कु डल
उ ंक मु नको दे दये ।। ३ ।।
अवा य कु डले ते तु राजानं पुनर वीत् ।
कमेतद् गु वचनं ोतु म छा म पा थव ।। ४ ।।
उन कु डल को पाकर उ ंक मु न पुनः राजाके पास आये और इस कार बोले
—‘पृ वीनाथ! आपके गूढ़ वचनका या अ भ ाय था, यह म सुनना चाहता ँ’ ।। ४ ।।
सौदास उवाच
जा नसगाद् व ान् वै याः पूजय त ह ।
व े य ा प बहवो दोषाः ा भव त वै ।। ५ ।।
सौदास बोले— न्! यलोग सृ के ार भकालसे ा ण क पूजा करते आ
रहे ह तथा प ा ण क ओरसे भी य के लये ब त-से दोष कट हो जाते ह ।। ५ ।।
सोऽहं जे यः णतो व ाद् दोषमवा तवान् ।
ग तम यां न प या म मदय तीसहायवान् ।। ६ ।।
म सदा ही ा ण को णाम कया करता था, कतु एक ा णके ही शापसे मुझे यह
दोष—यह ग त ा त ई है। म मदय तीके साथ यहाँ रहता ँ, मुझे इस ग तसे छु टकारा
पानेका कोई उपाय नह दखायी दे ता ।। ६ ।।
न चा याम प प या म ग त ग तमतां वर ।
वग ार य गमने थाने चेह जो म ।। ७ ।।
जंगम ा णय म े व वर! अब इस लोकम रहकर सुख पाना और परलोकम
वग य सुख भोगनेके लये मुझे सरी कोई ग त नह द ख पड़ती ।। ७ ।।
न ह रा ा वशेषेण व े न जा त भः ।
श यं ह लोके थातुं वै े य वा सुखमे धतुम् ।। ८ ।।
कोई भी राजा वशेष पसे ा ण के साथ वरोध करके न तो इसी लोकम चैनसे रह
सकता है और न परलोकम ही सुख पा सकता है। यही मेरे गूढ़ संदेशका ता पय है ।। ८ ।।
त द े ते मया द े एते वे म णकु डले ।
यः कृत तेऽ समयः सफलं तं कु व मे ।। ९ ।।
अ छा अब आपक इ छाके अनुसार ये अपने म णमय कु डल मने आपको दे दये।
अब आपने जो त ा क है, वह सफल क जये ।। ९ ।।
उ ङ् क उवाच
राजं तथेह कता म पुनरे या म ते वशम् ।
ं च कं चत् ु ं वां नवृ ोऽ म परंतप ।। १० ।।
उ ंकने कहा—राजन्! श ुसंतापी नरेश! म अपनी त ाका पालन क ँ गा, पुनः
आपके अधीन हो जाऊँगा; कतु इस समय एक पूछनेके लये आपके पास लौटकर
आया ँ ।। १० ।।
सौदास उवाच
ू ह व यथाकामं तव ा म ते वचः ।
छे ा म संशयं तेऽ न मेऽ ा त वचारणा ।। ११ ।।
सौदासने कहा— व वर! आप इ छानुसार क जये। म आपक बातका उ र
ँ गा। आपके मनम जो भी संदेह होगा अभी उसका नवारण क ँ गा। इसम मुझे कुछ भी
वचार करनेक आव यकता नह पड़ेगी ।। ११ ।।
उ ङ् क उवाच
ा वाक्संयतं व ं धमनैपुणद शनः ।
म ेषु य वषमः तेन इ येव तं व ः ।। १२ ।।
उ ंकने कहा—राजन्! धम नपुण व ान ने उसीको ा ण कहा है, जो अपनी
वाणीका संयम करता हो—स यवाद हो। जो म के साथ वषमताका वहार करता है,
उसे चोर माना गया है ।। १२ ।।
स भवान् म ताम स ा तो मम पा थव ।
स मे बु य छ व स मतां पु षषभ ।। १३ ।।
पृ वीनाथ! पु ष वर! आज आपके साथ मेरी म ता हो गयी है, इस लये आप मुझे
अ छ सलाह द जये ।। १३ ।।
अवा ताथ ऽहम ेह भवां पु षादकः ।
भव सकाशमाग तुं मं मम न वे त वै ।। १४ ।।
आज यहाँ मेरा मनोरथ सफल हो गया है और आप नरभ ी रा स हो गये ह। ऐसी
दशाम आपके पास मेरा फर लौटकर आना उ चत है या नह ।। १४ ।।
सौदास उवाच
मं चे दह व ं तव जवरो म ।
म समीपं ज े नाग त ं कथंचन ।। १५ ।।
सौदासने कहा— ज े ! य द यहाँ मुझे उ चत बात कहनी है, तब तो म यही
क ँगा क ा णो म! आपको मेरे पास कसी तरह नह आना चा हये ।। १५ ।।
एवं तव प या म ेयो भृगुकुलो ह ।
आग छतो ह ते व भवे मृ युन संशयः ।। १६ ।।
भृगक
ु ु लभूषण व ! ऐसा करनेम ही म आपक भलाई दे खता ँ। य द आयगे तो
आपक मृ यु हो जायगी। इसम संशय नह है ।। १६ ।।
वैश पायन उवाच
इ यु ः स तदा रा ा मं बु मता हतम् ।
अनु ा य स राजानमह यां तज मवान् ।। १७ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इस कार बु मान् राजा सौदासके मुखसे
उ चत और हतक बात सुनकर उनक आ ा ले उ ंक मु न अह याके पास चल
दये ।। १७ ।।
गृही वा कु डले द े गु प याः यंकरः ।
जवेन महता ायाद् गौतम या मं त ।। १८ ।।
गु प नीका य करनेवाले उ ंक दोन द कु डल लेकर बड़े वेगसे गौतमके
आ मक ओर बढ़े ।। १८ ।।
यथा तयो र णं च मदय या भभा षतम् ।
तथा ते कु डले बद् वा तदा कृ णा जनेऽनयत् ।। १९ ।।
रानी मदय तीने उन कु डल क र ाके लये जैसी व ध बतायी थी, उसी कार उ ह
काले मृगचमम बाँधकर वे ले जा रहे थे ।। १९ ।।
स क मं त् ुधा व ः फलभारसम वतम् ।
ब वं ददश व षरा रोह च तं ततः ।। २० ।।
शाखामास य त यैव कृ णा जनम रदम ।
पातयामास ब वा न तदा स जपु वः ।। २१ ।।
श ुदमन! रा तेम एक थानम उ ह बड़े जोरक भूख लगी। वहाँ पास ही फल के
भारसे झुका आ एक बेलका वृ दखायी दया। ष उ ंक उस वृ पर चढ़ गये और
उस काले मृगचमको उ ह ने उसक एक शाखाम बाँध दया। फर वे ा णपुंगव उस
समय वहाँ बेल तोड़-तोड़कर गराने लगे ।। २०-२१ ।।
अथ पातयमान य ब वाप तच ुषः ।
यपतं ता न ब वा न त म ेवा जने वभो ।। २२ ।।
य मं ते कु डले ब े तदा जवरेण वै ।
उस समय उनक बेल पर ही लगी ई थी (वे कहाँ गरते ह, इसक ओर उनका
यान नह था)। भो! उनके तोड़े ए ायः सभी बेल उस मृगछालापर ही, जसम उन
व वरने वे दोन कु डल बाँध रखे थे, गरे ।। २२ ।।
ब व हारै त याथ शीयद् ब धनं ततः ।। २३ ।।
सकु डलं तद जनं पपात सहसा तरोः ।
उन बेल क चोटसे ब धन टू ट गया और कु डलस हत वह मृगचम सहसा वृ से नीचे
जा गरा ।। २३ ।।
वशीणब धने त मन् गते कृ णा जने महीम् ।। २४ ।।
अप यद् भुजगः क त् ते त म णकु डले ।
ऐरावतकुलो तः शी ो भू वा तदा ह सः ।। २५ ।।
वद या येन व मीकं ववेशाथ स कु डले ।
ब धन टू ट जानेपर उस काले मृगछालेके पृ वीपर गरते ही कसी सपक उसपर
पड़ी। वह ऐरावतके कुलम उ प आ त क था। उसने मृगछालाके भीतर रखे ए उस
म णमय कु डल को दे खा। फर तो बड़ी शी ता करके वह उन कु डल को दाँत म दबाकर
एक बाँबीम घुस गया ।। २४-२५ ।।
यमाणे तु ् वा स कु डले भुजगेन ह ।। २६ ।।
पपात वृ ात् सो े गो ःखात् परमकोपनः ।
स द डका मादाय व मीकमखनत् तदा ।। २७ ।।
सपके ारा कु डल का अपहरण होता दे ख उ ंक मु न उ न हो उठे और अ य त
ोधम भरकर वृ से कूद पड़े। आकर एक काठका डंडा हाथम ले उसीसे उस बाँबीको
खोदने लगे ।। २६-२७ ।।
अहा न शद ः प च चा या न भारत ।
ोधामषा भसंत त तदा ा णस मः ।। २८ ।।
भरतन दन! ा ण शरोम ण उ ंक ोध और अमषसे संत त हो लगातार पतीस
दन तक बना कसी घबराहटके बल खोदनेके कायम जुटे रहे ।। २८ ।।
त य वेगमस ं तमसह ती वसु धरा ।
द डका ा भनु ा चचाल भृशमाकुला ।। २९ ।।
उनके उस अस वेगको पृ वी भी नह सह सक । वह डंडेक चोटसे घायल एवं
अ य त ाकुल होकर डगमगाने लगी ।। २९ ।।
ततः खनत एवाथ व षधरणीतलम् ।
नागलोक य प थानं कतुकाम य न यात् ।। ३० ।।
रथेन ह रयु े न तं दे शमुपज मवान् ।
व पा णमहातेजा तं ददश जो मम् ।। ३१ ।।
उ ंक नागलोकम जानेका माग बनानेके लये न य करके धरती खोदते ही जा रहे थे
क महातेज वी व धारी इ घोड़े जुते ए रथपर बैठकर उस थानपर आ प ँचे और
व वर उ ंकसे मले ।। ३०-३१ ।।
वैश पायन उवाच
स तु तं ा णो भू वा त य ःखेन ः खतः ।
उ ङ् कम वीत् वा यं नैत छ यं वये त वै ।। ३२ ।।
इतो ह नागलोको वै योजना न सह शः ।
न द डका सा यं च म ये काय मदं तव ।। ३३ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इ उ ंकके ःखसे ःखी थे। अतः ा णका वेष
बनाकर उनसे बोले—‘ न्! यह काम तु हारे वशका नह है। नागलोक यहाँसे हजार
योजन र है। इस काठके डंडेसे वहाँका रा ता बने, यह काय सधनेवाला नह जान
पड़ता’ ।। ३२-३३ ।।
उ ङ् क उवाच
नागलोके य द न् न श ये कु डले मया ।
ा तुं ाणान् वमो या म प यत तु जो म ।। ३४ ।।
उ ंकने कहा— न्! ज े ! य द नागलोकम जाकर उन कु डल को ा त
करना मेरे लये अस भव है तो म आपके सामने ही अपने ाण का प र याग कर
ँ गा ।। ३४ ।।
वैश पायन उवाच
यदा स नाशकत् त य न यं कतुम यथा ।
व पा ण तदा द डं व ा ेण युयोज ह ।। ३५ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! व धारी इ जब कसी तरह उ ंकको अपने
न यसे न हटा सके, तब उ ह ने उनके डंडेके अ भागम अपने व ा का संयोग कर
दया ।। ३५ ।।
ततो व हारै तैदायमाणा वसु धरा ।
नागलोक य प थानमकरो जनमेजय ।। ३६ ।।
जनमेजय! उस व के हारसे वद ण होकर पृ वीने नागलोकका रा ता कट कर
दया ।। ३६ ।।
स तेन मागण तदा नागलोकं ववेश ह ।
ददश नागलोकं च योजना न सह शः ।। ३७ ।।
उसी मागसे उ ह ने नागलोकम वेश कया और दे खा क नाग का लोक सह
योजन व तृत है ।। ३७ ।।
ाकार नचयै द ैम णमु ा वलंकृतैः ।
उपप ं महाभाग शातकु भमयै तथा ।। ३८ ।।
महाभाग! उसके चार ओर द परकोटे बने ए ह; जो सोनेक ट से बने ए ह
और म ण-मु ा से अलंकृत ह ।। ३८ ।।
वापीः फ टकसोपाना नद वमलोदकाः ।
ददश वृ ां ब न् नाना जगणायुतान् ।। ३९ ।।
वहाँ फ टक म णक बनी ई सी ढ़य से सुशो भत ब त-सी बाव ड़य , नमल
जलवाली अनेकानेक न दय और वहगवृ दसे वभू षत ब त-से मनोहर वृ को भी
उ ह ने दे खा ।। ३९ ।।
त य लोक य च ारं स ददश भृगू हः ।
प चयोजन व तारमायतं शतयोजनम् ।। ४० ।।
भृगक
ु ु ल तलक उ ंकने नागलोकका बाहरी दरवाजा दे खा, जो सौ योजन लंबा और
पाँच योजन चौड़ा था ।। ४० ।।
नागलोकमु ङ् क तु े य द नोऽभवत् तदा ।
नराश ाभवत् त कु डलाहरणे पुनः ।। ४१ ।।
नागलोकक वह वशालता दे खकर उ ंक मु न उस समय द न—हतो साह हो गये।
अब उ ह फर कु डल पानेक आशा नह रही ।। ४१ ।।
त ोवाच तुरग तं कृ ण ेतवाल धः ।
ता ा यने ः कौर वल व तेजसा ।। ४२ ।।
इसी समय उनके पास एक घोड़ा आया, जसक पूँछके बाल काले और सफेद थे।
उसके ने और मुँह लाल रंगके थे। कु न दन! वह अपने तेजसे व लत-सा हो रहा
था ।। ४२ ।।
धम वापानमेत मे तत वं व ल यसे ।
ऐरावतसुतेनेह तवानीते ह कु डले ।। ४३ ।।
उसने उ ंकसे कहा— व वर! तुम मेरे इस अपान मागम फूँक मारो। ऐसा करनेसे
ऐरावतके पु ने जो तु हारे दोन कु डल लाये ह, वे तु ह मल जायँगे ।। ४३ ।।
मा जुगु सां कृथाः पु वम ाथ कथंचन ।
वयैत समाचीण गौतम या मे तदा ।। ४४ ।।
‘बेटा! इस कायम तुम कसी तरह घृणा न करो; य क गौतमके आ मम रहते समय
तुमने अनेक बार ऐसा कया है’ ।। ४४ ।।
उ ङ् क उवाच
कथं भव तं जानीयामुपा याया मं त ।
य मया चीणपूव ह ोतु म छा म तद् यहम् ।। ४५ ।।
उ ंकने पूछा—गु दे वके आ मपर मने कभी आपका दशन कया है, इसका ान
मुझे कैसे हो? और आपके कथनानुसार वहाँ रहते समय पहले जो काय म अनेक बार कर
चुका ँ, वह या है? यह म सुनना चाहता ँ ।। ४५ ।।
अ उवाच
गुरोगु ं मां जानी ह वलनं जातवेदसम् ।
वया हं सदा व गुरोरथऽ भपू जतः ।। ४६ ।।
व धवत् सततं व शु चना भृगुन दन ।
त मा े यो वधा या म तवैवं कु मा चरम् ।। ४७ ।।
घोड़ेने कहा— न्! म तु हारे गु का भी गु जातवेदा अ न ँ, यह तुम अ छ
तरह जान लो। भृगन ु दन! तुमने अपने गु के लये सदा प व रहकर व धपूवक मेरी पूजा
क है। इस लये म तु हारा क याण क ँ गा। अब तुम मेरे बताये अनुसार काय करो, वल ब
न करो ।। ४६-४७ ।।
इ यु तु तथाकाष ङ् क भानुना ।
घृता चः ी तमां ा प ज वाल दध या ।। ४८ ।।
अ नदे वके ऐसा कहनेपर उ ंकने उनक आ ाका पालन कया। तब घृतमयी
अ चवाले अ नदे व स होकर नागलोकको जला डालनेक इ छासे व लत हो
उठे ।। ४८ ।।
ततोऽ य रोमकूपे यो ध यत त भारत ।
घनः ा रभूद ् धूमो नागलोकभयावहः ।। ४९ ।।
भारत! जस समय उ ंकने फूँक मारना आर भ कया, उसी समय उस अ पधारी
अ नके रोम-रोमसे घनीभूत धूम उठने लगा; जो नागलोकको भयभीत करनेवाला
था ।। ४९ ।।
तेन धूमेन महता वधमानेन भारत ।
नागलोके महाराज न ा ायत कचन ।। ५० ।।
महाराज भरतन दन! बढ़ते ए उस महान् धूमसे आ छ ए नागलोकम कुछ भी
सूझ नह पड़ता था ।। ५० ।।
हाहाकृतमभूत् सवमैरावत नवेशनम् ।
वासु क मुखानां च नागानां जनमेजय ।। ५१ ।।
न ाकाश त वे मा न धूम ा न भारत ।
नीहारसंवृतानीव वना न गरय तथा ।। ५२ ।।
जनमेजय! ऐरावतके सारे घरम हाहाकार मच गया। भारत! वासु क आ द नाग के घर
धूमसे आ छा दत हो गये। उनम अँधेरा छा गया। वे ऐसे जान पड़ते थे, मानो कुहासासे ढके
ए वन और पवत ह ।। ५१-५२ ।।
ते धूमर नयना व तेजोऽ भता पताः ।
आज मु न यं ातुं भागव य महा मनः ।। ५३ ।।
धुआँ लगनेसे नाग क आँख लाल हो गयी थ । वे आगक आँचसे तप रहे थे। महा मा
भागव (उ ंक)-का या न य है, यह जाननेके लये सभी एक होकर उनके पास
आये ।। ५३ ।।
ु वा च न यं त य महषर ततेजसः ।
स ा तनयनाः सव पूजां च ु यथा व ध ।। ५४ ।।
उस समय उन अ य त तेज वी मह षका न य सुनकर सबक आँख भयसे कातर हो
गय तथा सबने उनका व धवत् पूजन कया ।। ५४ ।।
सव ा लयो नागा वृ बालपुरोगमाः ।
शरो भः णप योचुः सीद भगव त ।। ५५ ।।
अ तम सभी नाग बूढ़े और बालक को आगे करके हाथ जोड़, म तक झुका णाम
करके बोले—‘भगवन्! हमपर स हो जाइये’ ।। ५५ ।।
सा ा णं ते तु पा म य नवे च ।
ाय छन् कु डले द े प गाः परमा चते ।। ५६ ।।
इस कार ा ण दे वताको स करके नाग ने उ ह पा और अ य नवेदन कया
और वे दोन परम पू जत द कु डल भी वापस कर दये ।। ५६ ।।
महारानी मदय तीका उ ङ् कको कु डल-दान
उ ङ् कका गु प नीको कु डल-अपण
ततः स पू जतो नागै तदो ङ् कः तापवान् ।
अ नं द णं कृ वा जगाम गु स तत् ।। ५७ ।।
तदन तर नाग से स मा नत होकर तापी उ ंक मु न अ नदे वक द णा करके
गु के आ मक ओर चल दये ।। ५७ ।।
स ग वा व रतो राजन् गौतम य नवेशनम् ।
ाय छत् कु डले द े गु प या तदानघ ।। ५८ ।।
न पाप नरेश! वहाँ गौतमके घरम शी तापूवक प ँचकर उ ह ने गु प नीको वे दोन
द कु डल दे दये ।। ५८ ।।
वासु क मुखानां च नागानां जनमेजय ।
सव शशंस गुरवे यथावद् जस मः ।। ५९ ।।
जनमेजय! वासु क आ द नाग के यहाँ जो घटना घट थी, उसका सारा समाचार
ज े उ ंकने अपने गु मह ष गौतमसे ठ क-ठ क कह सुनाया ।। ५९ ।।
एवं महा मना तेन ी ल कान् जनमेजय ।
प र या ते द े तत ते म णकु डले ।। ६० ।।
जनमेजय! इस कार महा मा उ ंकने तीन लोक म घूमकर वे म णमय द कु डल
ा त कये थे ।। ६० ।।
एवं भावः स मु न ङ् को भरतषभ ।
परेण तपसा यु ो य मां वं प रपृ छ स ।। ६१ ।।
भरत े ! उ ंक मु न, जनके वषयम तुम मुझसे पूछ रहे थे, ऐसे ही भावशाली
और महान् तप वी थे ।। ६१ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ ङ् कोपा याने
अ प चाश मोऽ यायः ।। ५८ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ ंकका
उपा यान वषयक अ ावनवाँ अ याय पूरा आ ।। ५८ ।।
एकोनष तमोऽ यायः
भगवान् ीकृ णका ारकाम जाकर रैवतक पवतपर
महो सवम स म लत होना और सबसे मलना
जनमेजय उवाच
उ ङ् क य वरं द वा गो व दो जस म ।
अत ऊ व महाबा ः क चकार महायशाः ।। १ ।।
जनमेजयने पूछा— ज े ! महायश वी महाबा भगवान् ीकृ णने उ ंकको
वरदान दे नेके प ात् या कया? ।। १ ।।
वैश पायन उवाच
उ ङ् काय वरं द वा ायात् सा य कना सह ।
ारकामेव गो व दः शी वेगैमहाहयैः ।। २ ।।
वैश पायनजीने कहा—उ ंकको वर दे कर भगवान् ीकृ ण महान् वेगशाली
शी गामी घोड़ ारा सा य क (और सुभ ा)-के साथ पुनः ारकाक ओर ही चल
दये ।। २ ।।
सरां स स रत ैव वना न च गर तथा ।
अ त याससादाथ र यां ारवत पुरीम् ।। ३ ।।
वतमाने महाराज महे रैवतक य च ।
उपायात् पु डरीका ो युयुधानानुग तदा ।। ४ ।।
मागम अनेकानेक सरोवर , स रता , वन और पवत को लाँघकर वे परम रमणीय
ारका नगरीम जा प ँचे। महाराज! उस समय वहाँ रैवतक पवतपर कोई बड़ा भारी उ सव
मनाया जा रहा था। सा य कको साथ लये कमलनयन भगवान् ीकृ ण भी उस समय उस
महो सवम पधारे ।। ३-४ ।।
अलंकृत तु स ग रनाना पै व च तैः ।
बभौ र नमयैः कोशैः संवृतः पु षषभ ।। ५ ।।
पु ष वर! वह पवत नाना कारके व च र नमय ढे र ारा सजाया गया था, उस
समय उसक अद्भुत शोभा हो रही थी ।। ५ ।।
का चन भर या भः सुमनो भ तथैव च ।
वासो भ महाशैलः क पवृ ै तथैव च ।। ६ ।।
सोनेक सु दर माला , भाँ त-भाँ तके पु प , व और क पवृ से घरे ए उस
महान् शैलक अपूव शोभा हो रही थी ।। ६ ।।
द पवृ ै सौवणरभी णमुपशो भतः ।
गुहा नझरदे शेषु दवाभूतो बभूव ह ।। ७ ।।
वृ के आकारम सजाये ए सोनेके द प उस थानक शोभाको और भी उ त कर
रहे थे। वहाँक गुफा और झरन के थान म दनके समान काश हो रहा था ।। ७ ।।
पताका भ व च ा भः सघ टा भः सम ततः ।
पु भः ी भ संघु ः गीत इव चाभवत् ।। ८ ।।
चार ओर व च पताकाएँ फहरा रही थ , उनम बँधी ई घ टयाँ बज रही थ और
य तथा पु ष के सुमधुर श द वहाँ ा त हो रहे थे। इससे वह पवत संगीतमय-सा
तीत हो रहा था ।। ८ ।।
अतीव े णीयोऽभू मे मु नगणै रव ।
म ानां पाणां ीणां पुंसां च भारत ।। ९ ।।
गायतां पवते य दव पृ गव नः वनः ।
जैसे मु नगण से मे क शोभा होती है, उसी कार ारकावा सय के समागमसे वह
पवत अ य त दशनीय हो गया था। भरतन दन! उस पवतराजके शखरपर हष म होकर
गाते ए ी-पु ष का सुमधुर श द मानो वगलोकतक ा त हो रहा था ।। ९ ।।
म म स म वे डतो ु संकुलः ।। १० ।।
तथा कल कलाश दै भूधरोऽभू मनोहरः ।
कुछ लोग डा आ दम आस होकर सरे काय क ओर यान नह दे ते थे, कतने
ही हषसे मतवाले हो रहे थे, कुछ लोग कूदते-फाँदते, उ च वरसे कोलाहल करते और
कलका रयाँ भरते थे। इन सभी श द से गूँजता आ पवत परम मनोहर जान पड़ता
था ।। १० ।।
वपणापणवान् र यो भ यभो य वहारवान् ।। ११ ।।
व मा यो करयुतो वीणावेणुमृद वान् ।
सुरामैरेय म ेण भ यभो येन चैव ह ।। १२ ।।
द ना धकृपणा द यो द यमानेन चा नशम् ।
बभौ परमक याणो मह त य महा गरेः ।। १३ ।।
उस महान् पवतपर होनेवाला वह महो सव परम मंगलमय तीत होता था। वहाँ
कान और बाजार लगी थ । भ य-भो य पदाथ यथे पसे ा त होते थे। सब ओर
घूमने- फरनेक सु वधा थी। व और माला के ढे र लगे थे। वीणा, वेणु और मृदंग बज
रहे थे। इन सबके कारण वहाँक रमणीयता ब त बढ़ गयी थी। वहाँ द न , अ ध और
अनाथ के लये नर तर सुरा-मैरेय म त भ य-भो य पदाथ दये जाते थे ।। ११—१३ ।।
पु यावसथवान् वीर पु यकृ नषे वतः ।
वहारो वृ णवीराणां महे रैवतक य ह ।। १४ ।।
स नगो वे मसंक ण दे वलोक इवाबभौ ।
वीरवर! उस पवतपर यानु ानके लये ब त-से गृह और आ म बने थे, जनम
पु या मा पु ष नवास करते थे। रैवतक पवतके उस महो सवम वृ णवंशी वीर का वहार-
थल बना आ था। वह ग र दे श ब सं यक गृह से ा त होनेके कारण दे वलोकके
समान शोभा पाता था ।। १४ ।।
तदा च कृ णसां न यमासा भरतषभ ।। १५ ।।
( तुव य त हता दे वा ग धवा सह ष भः ।
भरत े ! उस समय दे वता, ग धव और ऋ ष अ य पसे ीकृ णके नकट आकर
उनक तु त करने लगे ।। १५ ।।
दे वग धवा ऊचुः
साधकः सवधमाणामसुराणां वनाशकः ।
वं ा सृ यमाधारं कारणं धमवेद वत् ।।
वया यत् यते दे व न जानीमोऽ मायया ।
केवलं वा भजानीमः शरणं परमे रम् ।।
ाद नां च गो व द सां न यं शरणं नमः ।।
दे वता और ग धव बोले—भगवन्! आप सम त धम के साधक और असुर के
वनाशक ह। आप ही ा, आप ही सृ य जगत् और आप ही उसके आधार ह। आप ही
सबके कारण तथा धम और वेदके ाता ह। दे व! आप अपनी मायासे जो कुछ करते ह,
हमलोग उसे नह जान पाते ह। हम केवल आपको जानते ह। आप ही सबके शरणदाता
और परमे र ह। गो व द! आप ा आ दको भी सामी य और शरण दान करनेवाले ह।
आपको नम कार है ।।
वैश पायन उवाच
इ त तुतेऽमानुषै पू जते दे वक सुते ।)
श स तीकाशो बभूव स ह शैलराट् ।
वैश पायनजी कहते ह—इस कार मानवेतर ा णय —दे वता और ग धव ारा
जब दे वक न दन ीकृ णक तु त और पूजा क जा रही थी, उस समय वह पवतराज
रैवतक इ भवनके समान जान पड़ता था ।। १५ ।।
ततः स पू यमानः स ववेश भवनं शुभम् ।। १६ ।।
गो व दः सा य क ैव जगाम भवनं वकम् ।
तदन तर सबसे स मा नत हो भगवान् ीकृ णने अपने सु दर भवनम वेश कया
और सा य क भी अपने घरम गये ।। १६ ।।
ववेश च ा मा चरकाल वासतः ।। १७ ।।
कृ वा नसुकरं कम दानवे वव वासवः ।
जैसे इ दानव पर महान् परा म कट करके आये ह , उसी कार कर कम
करके द घकालके वाससे स च होकर लौटे ए भगवान् ीकृ णने अपने भवनम
वेश कया ।। १७ ।।
*
यो तष शा के अनुसार तीन उ रा तथा रो हणी—ये ुवसं क न ह। दन म र ववारको ुव बताया गया है।
उ रा और र ववारका संयोग होनेपर अमृत स नामक योग होता है; अतः इसी योगम पा डव के थान करनेका
अनुमान कया जा सकता है।
प चष तमोऽ यायः
ा ण क आ ासे भगवान् शव और उनके पाषद
आ दक पूजा करके यु ध रका उस धनरा शको
खुदवाकर अपने साथ ले जाना
ा णा ऊचुः
यतामुपहारोऽ य बक य महा मनः ।
द वोपहारं नृपते ततः वाथ यतामहे ।। १ ।।
ा ण बोले—नरे र! अब आप परमा मा भगवान् शंकरको पूजा चढ़ाइये। पूजा
चढ़ानेके बाद हम अपने अभी कायक स के लये य न करना चा हये ।। १ ।।
ु वा तु वचनं तेषां ा णानां यु ध रः ।
गरीश य यथा यायमुपहारमुपाहरत् ।। २ ।।
उन ा ण क बात सुनकर राजा यु ध रने भगवान् शंकरको व धपूवक नैवे
अपण कया ।। २ ।।
आ येन तप य वा नं व धवत् सं कृतेन च ।
म स ं च ं कृ वा पुरोधाः स ययौ तदा ।। ३ ।।
त प ात् उनके पुरो हतने व धपूवक सं कार कये ए घृतके ारा अ नदे वको तृ त
करके म स च तैयार कया और भट अ पत करनेके लये वे दे वताके समीप
गये ।। ३ ।।
स गृही वा सुमनसो म पूता जना धप ।
मोदकैः पायसेनाथ मांसै ोपाहरद् ब लम् ।। ४ ।।
सुमनो भ च ा भलाजै चावचैर प ।
जने र! उ ह ने म पूत पु प लेकर मठाई, खीर, फलके गूदे, व च पु प, लावा
(खील) तथा अ य नाना कारक व तु ारा उपहार सम पत कया ।। ४ ।।
सव व तमं कृ वा व धवद् वेदपारगः ।। ५ ।।
ककराणां ततः प ा चकार ब लमु मम् ।
वेद के पारंगत व ान् पुरो हतने व धपूवक दे वताको अ य त य लगनेवाले सम त
कम करके फर भगवान् शवके पाषद को उ म ब ल (भट-पूजा) चढ़ायी ।। ५ ।।
य े ाय कुबेराय म णभ ाय चैव ह ।। ६ ।।
तथा येषां च य ाणां भूतानां पतय ये ।
कृसरेण च मांसेन नवापै तलसंयुतैः ।। ७ ।।
इसके बाद य राज कुबेरको, म णभ को, अ या य य को और भूत के
अ धप तय को खचड़ी, फलके गूदे तथा तल म त जलक अंज लयाँ नवेदन करके
उनक पूजा स प क ।। ६-७ ।।
ओदनं कु भशः कृ वा पुरोधाः समुपाहरत् ।
ा णे यः सह ा ण गवां द वा तु भू मपः ।। ८ ।।
न ं चराणां भूतानां ा ददे श ब ल तदा ।
तदन तर पुरो हतने घड़ म भात भरकर ब ल अ पत क । इसके बाद भूपालने
ा ण को सह गौएँ दे कर नशाचारी भूत को भी ब ल भट क ।। ८ ।।
धूपग ध न ं तत् सुमनो भ संवृतम् ।। ९ ।।
शुशुभे थानम यथ दे वदे व य पा थव ।
पृ वीनाथ! दे वा धदे व महादे वजीका वह थान धूप क सुग धसे ा त और फूल से
अलंकृत होनेके कारण बड़ी शोभा पा रहा था ।। ९ ।।
कृ वा पूजां तु य गणानां चैव सवशः ।। १० ।।
ययौ ासं पुर कृ य नृपो र न न ध त ।
भगवान् शव और उनके पाषद क सब कारसे पूजा करके मह ष ासको आगे
कये राजा यु ध र उस थानको गये, जहाँ वह र न एवं सुवणक रा श सं चत थी ।। १०
।।
पूज य वा धना य ं णप या भवा च ।। ११ ।।
सुमनो भ व च ा भरपूपैः कृसरेण च ।
शङ् खाद नधीन् सवान् न धपालां सवशः ।। १२ ।।
अच य वा जा यान् स व त वा य च वीयवान् ।
तेषां पु याहघोषेण तेजसा समव थतः ।। १३ ।।
ी तमान् स कु े ः खानयामास तद् धनम् ।
वहाँ उ ह ने नाना कारके व च फूल, मालपूआ तथा खचड़ी आ दके ारा धनप त
कुबेरक पूजा करके उ ह णाम—अ भवादन कया। त प ात् उ ह साम य से शंख
आ द न धय तथा सम त न धपाल का पूजन करके े ा ण क पूजा क । फर उनसे
व तवाचन कराकर उन ा ण के पु याहघोषसे तेज वी ए श शाली कु े राजा
यु ध र बड़ी स ताके साथ उस धनको खुदवाने लगे ।। ११—१३ ।।
ततः पा ीः सकरका ब पा मनोरमाः ।। १४ ।।
भृ ारा ण कटाहा न कलशान् वधमानकान् ।
ब न च व च ा ण भाजना न सह शः ।। १५ ।।
कुछ ही दे रम अनेक कारके व च , मनोरम एवं ब सं यक सह सुवणमय पा
नकल आये। कठौते, सुराही, गडु आ, कड़ाह, कलश तथा कटोरे—सभी तरहके बतन
उपल ध ए ।। १४-१५ ।।
उ ारयामास तदा धमराजो यु ध रः ।
तेषां र णम यासी महान् करपुट तथा ।। १६ ।।
धमराज यु ध रने उस समय उन सब बतन को भू म खोदकर नकलवाया। उ ह
रखनेके लये बड़ी-बड़ी सं क लायी गयी थ ।। १६ ।।
न ं च भाजनं राजं तुलाधमभव ृप ।
वाहनं पा डु पु य त ासीत् तु वशा पते ।। १७ ।।
राजन्! एक-एक सं कम बंद कये ए बतन का बोझ आधा-आधा भार होता था।
जानाथ! उन सबको ढोनेके लये पा डु पु यु ध रके वाहन भी वहाँ उप थत
थे ।। १७ ।।
ष सह ा ण शता न गुणा हयाः ।
वारणा महाराज सह शतस मताः ।। १८ ।।
शकटा न रथा ैव तावदे व करेणवः ।
खराणां पु षाणां च प रसं या न व ते ।। १९ ।।
महाराज! साठ हजार ऊँट, एक करोड़ बीस लाख घोड़े, एक लाख हाथी, एक लाख
रथ, एक लाख छकड़े और उतनी ही ह थ नयाँ थ । गध और मनु य क तो गनती ही नह
थी ।। १८-१९ ।।
एतद् व ं तदभवद् य े यु ध रः ।
षोडशा ौ चतु वश सह ं भारल णम् ।। २० ।।
एते वादाय तद् ं पुनर य य पा डवः ।
महादे वं त ययौ पुरं नागा यं त ।। २१ ।।
ै पायना यनु ातः पुर कृ य पुरो हतम् ।
यु ध रने वहाँ जतना धन खुदवाया था, वह सोलह करोड़ आठ लाख और चौबीस
हजार भार सुवण था। उ ह ने उपयु सब वाहन पर धन लदवाकर पा डु न दन यु ध रने
पुनः महादे वजीका पूजन कया और ासजीक आ ा लेकर पुरो हत धौ य मु नको आगे
करके ह तनापुरको थान कया ।। २०-२१ ।।
गोयुते गोयुते चैव यवसत् पु षषभः ।। २२ ।।
सा पुरा भमुखा राज ुवाह महती चमूः ।
कृ ाद् वणभाराता हषय ती कु हान् ।। २३ ।।
राजन्! वे वाहन पर बोझ अ धक होनेके कारण दो-दो कोसपर मुकाम दे ते जाते थे।
के भारसे क पाती ई वह वशाल सेना उन कु े वीर का हष बढ़ाती ई बड़ी
क ठनाईसे नगरक ओर उस धनको ले जा रही थी ।। २२-२३ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण ानयने
प चष तमोऽ यायः ।। ६५ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम का आनयन वषयक
पसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६५ ।।
षट् ष तमोऽ यायः
ीकृ णका ह तनापुरम आगमन और उ राके मृत
बालकको जलानेके लये कु तीक उनसे ाथना
वैश पायन उवाच
एत म ेव काले तु वासुदेवोऽ प वीयवान् ।
उपायाद् वृ ण भः साध पुरं वारणसा यम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! इसी बीचम परम परा मी भगवान् ीकृ ण भी
वृ णवं शय को साथ लेकर ह तनापुर आ गये ।। १ ।।
समयं वा जमेध य व द वा पु षषभः ।
यथो ो धमपु ेण जन् वपुर त ।। २ ।।
उनके ारका जाते समय धमपु यु ध रने जैसी बात कही थी, उसके अनुसार
अ मेध य का समय नकट जानकर पु षो म ीकृ ण पहले ही उप थत हो
गये ।। २ ।।
रौ मणेयेन स हतो युयुधानेन चैव ह ।
चा दे णेन सा बेन गदे न कृतवमणा ।। ३ ।।
सारणेन च वीरेण नशठे नो मुकेन च ।
उनके साथ मणीन दन ु न, सा य क, चा दे ण, सा ब, गद, कृतवमा, सारण,
वीर नशठ और उ मुक भी थे ।। ३ ।।
बलदे वं पुर कृ य सुभ ास हत तदा ।। ४ ।।
ौपद मु रां चैव पृथां चा यवलोककः ।
समा ास यतुं चा प या नहते राः ।। ५ ।।
वे बलदे वजीको आगे करके सुभ ाके साथ पधारे थे। उनके शुभागमनका उ े य था
ौपद , उ रा और कु तीसे मलना तथा जनके प त मारे गये थे, उन सभी ा णय को
आ ासन दे ना—धीरज बँधाना ।। ४-५ ।।
तानागतान् समी यैव धृतरा ो महीप तः ।
यगृ ाद् यथा यायं व र महामनाः ।। ६ ।।
उनके आगमनका समाचार सुनते ही राजा धृतरा और महामना व रजी खड़े हो गये
और आगे बढ़कर उ ह ने उन सबका व धवत् वागत-स कार कया ।। ६ ।।
त ैव यवसत् कृ णः व चतः पु षो मः ।
व रेण महातेजा तथैव च युयु सुना ।। ७ ।।
व र और युयु सुसे भलीभाँ त पू जत हो महातेज वी पु षो म भगवान् ीकृ ण वह
रहने लगे ।। ७ ।।
वस सु वृ णवीरेषु त ाथ जनमेजय ।
ज े तव पता राजन् प र त् परवीरहा ।। ८ ।।
जनमेजय! उन वृ णवीर के वहाँ नवास करते समय ही तु हारे पता श ुवीरह ता
परी त्का ज म आ था ।। ८ ।।
स तु राजा महाराज ा ेणावपी डतः ।
शवो बभूव न े ो हषशोक ववधनः ।। ९ ।।
महाराज! वे राजा परी त् ा से पी ड़त होनेके कारण चे ाहीन मुदके पम
उप ए, अतः वजन का हष और शोक बढ़ानेवाले हो गये थे* ।। ९ ।।
ानां सहनादे न जनानां त नः वनः ।
व य दशः सवाः पुनरेव ुपारमत् ।। १० ।।
पहले पु -ज मका समाचार सुनकर हषम भरे ए लोग के सहनादसे एक महान्
कोलाहल सुनायी पड़ा, जो स पूण दशा म व हो पुनः शा त हो गया ।। १० ।।
ततः सोऽ त वरः कृ णो ववेशा तःपुरं तदा ।
युयुधान तीयो वै थते यमानसः ।। ११ ।।
इससे भगवान् ीकृ णके मन और इ य म था-सी उ प हो गयी। वे सा य कको
साथ ले बड़ी उतावलीसे अ तःपुरम जा प ँचे ।। ११ ।।
तत व रतमाया त ददश वां पतृ वसाम् ।
ोश तीम भधावे त वासुदेवं पुनः पुनः ।। १२ ।।
वहाँ उ ह ने अपनी बुआ कु तीको बड़े वेगसे आती दे खा, जो बारंबार उ ह का नाम
लेकर ‘वासुदेव! दौड़ो-दौड़ो’ क पुकार मचा रही थी ।। १२ ।।
पृ तो ौपद चैव सुभ ां च यश वनीम् ।
स व ोशं सक णं बा धवानां यो नृप ।। १३ ।।
राजन्! उनके पीछे ौपद , यश वनी सुभ ा तथा अ य ब धु-बा धव क याँ भी
थ , जो बड़े क ण वरसे बलख- बलखकर रो रही थ ।। १३ ।।
ततः कृ णं समासा कु तभोजसुता तदा ।
ोवाच राजशा ल बा पगद्गदया गरा ।। १४ ।।
नृप े ! उस समय ीकृ णके नकट प ँचकर कु तभोजकुमारी कु ती ने से आँसू
बहाती ई गद्गद वाणीम बोली— ।। १४ ।।
वासुदेव महाबाहो सु जा दे वक वया ।
वं नो ग तः त ा च वदाय मदं कुलम् ।। १५ ।।
‘महाबा वसुदेव-न दन! तु ह पाकर ही तु हारी माता दे वक उ म पु वाली मानी
जाती ह। तु ह हमारे अवल ब और तु ह हमलोग के आधार हो। इस कुलक र ा तु हारे
ही अधीन है ।। १५ ।।
य वीर योऽयं ते व ीय या मजः भो ।
अ था ना हतो जात तमु जीवय केशव ।। १६ ।।
‘य वीर! भो! यह जो तु हारे भानजे अ भम युका बालक है, अ थामाके अ से
मरा आ ही उ प आ है। केशव! इसे जीवन-दान दो ।। १६ ।।
वया ेतत् त ातमैषीके य न दन ।
अहं संजीव य या म मृतं जात म त भो ।। १७ ।।
‘य न दन! भो! अ थामाने जब स कके बाणका योग कया था, उस समय तुमने
यह त ा क थी क म उ राके मरे ए बालकको भी जी वत कर ँ गा ।। १७ ।।
सोऽयं जातो मृत तात प यैनं पु षषभ ।
उ रां च सुभ ां च ौपद मां च माधव ।। १८ ।।
‘तात! वही यह बालक है, जो मरा आ ही पैदा आ है। पु षो म! इसपर अपनी
कृपा डालो। माधव! इसे जी वत करके ही उ रा, सुभ ा और ौपद स हत मेरी र ा
करो ।। १८ ।।
धमपु ं च भीमं च फा गुनं नकुलं तथा ।
सहदे वं च धष सवान् न ातुमह स ।। १९ ।।
‘ धष वीर! धमपु यु ध र, भीमसेन, अजुन, नकुल और सहदे वक भी र ा करो।
तुम हम सब लोग का इस संकटसे उ ार करनेयो य हो ।। १९ ।।
अ मन् ाणाःसमाय ाः पा डवानां ममैव च ।
पा डो प डो दाशाह तथैव शुर य मे ।। २० ।।
‘मेरे और पा डव के ाण इस बालकके ही अधीन ह। दशाहकुलन दन! मेरे प त
पा डु तथा शुर व च वीयके प डका भी यही सहारा है ।। २० ।।
अ भम यो भ ं ते य य स श य च ।
यमु पादया वं ेत या प जनादन ।। २१ ।।
‘जनादन! तु हारा क याण हो। जो तु ह अ य त य और तु हारे ही समान परम
सु दर था, उस परलोकवासी अ भम युका भी य करो—उसके इस बालकको जला
दो ।। २१ ।।
उ रा ह पुरो ं वै कथय य रसूदन ।
अ भम योवचः कृ ण य वात् त संशयः ।। २२ ।।
‘श ुसूदन ीकृ ण! मेरी ब रानी उ रा अ भम युक पहलेक कही ई एक बात
अ य त य होनेके कारण बार-बार हराया करती है। उस बातक यथाथताम त नक भी
संदेह नह है ।। २२ ।।
अ वीत् कल दाशाह वैराट माजु न तदा ।
मातुल य कुलं भ े तव पु ो ग म य त ।। २३ ।।
ग वा वृ य धककुलं धनुवदं ही य त ।
अ ा ण च व च ा ण नी तशा ं च केवलम् ।। २४ ।।
‘दाशाह! अ भम युने उ रासे कभी नेहवश कहा था—“क याणी! तु हारा पु मेरे
मामाके यहाँ जायगा-वृ ण एवं अ धक के कुलम जाकर धनुवद, नाना कारके व च
अ -श तथा वशु नी तशा क श ा ा त करेगा” ।। २३-२४ ।।
इ येतत् णयात् तात सौभ ः परवीरहा ।
कथयामास धष तथा चैत संशयः ।। २५ ।।
‘तात! श ुवीर का संहार करनेवाले धष वीर सुभ ाकुमारने जो ेमपूवक यह बात
कही थी, यह न संदेह स य होनी चा हये ।। २५ ।।
ता वां वयं ण येह याचामो मधुसूदन ।
कुल या य हताथ तं कु क याणमु मम् ।। २६ ।।
‘मधुसूदन! इस कुलक भलाईके लये हम सब लोग तु हारे पैर पड़कर भीख माँगती
ह, इस बालकको जलाकर तुम कु कुलका सव म क याण करो’ ।। २६ ।।
एवमु वा तु वा णयं पृथा पृथुललोचना ।
उ य बा ःखाता ता ा याः ापतन् भु व ।। २७ ।।
ीकृ णसे ऐसा कहकर वशाललोचना कु ती दोन बाँह ऊपर उठाकर ःखसे आत हो
पृ वीपर गर पड़ी। सरी य क भी यही दशा ई ।। २७ ।।
अ ुवं महाराज सवाः सा ा वले णाः ।
व ीयो वासुदेव य मृतो जात इ त भो ।। २८ ।।
समथ महाराज! उन सबक आँख से आँसु क धारा बह रही थी और वे सभी रो-
रोकर कह रही थ क ‘हाय! ीकृ णके भानजेका बालक मरा आ पैदा आ’ ।। २८ ।।
एवमु े ततः कु त पयगृ ा जनादनः ।
भूमौ नप ततां चैनां सा वयामास भारत ।। २९ ।।
भरतन दन! उन सबके ऐसा कहनेपर जनादन ीकृ णने कु तीदे वीको सहारा दे कर
बैठाया और पृ वीपर पड़ी ई अपनी बुआको वे सा वना दे ने लगे ।। २९ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण परी ज मकथने
षट् ष तमोऽ यायः ।। ६६ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम परी त्के ज मका
वणन वषयक छाछठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६६ ।।
*
पहले तो पु -ज मके समाचारसे सबको अपार हष आ; कतु उनम जीवनका कोई च न दे खकर त काल
शोकका समु उमड़ पड़ा।
स तष तमोऽ यायः
परी त्को जलानेके लये सुभ ाक ीकृ णसे ाथना
वैश पायन उवाच
उ थतायां पृथायां तु सुभ ा ातरं तदा ।
् वा चु ोश ःखाता वचनं चेदम वीत् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! कु तीदे वीके बैठ जानेपर सुभ ा अपने भाई
ीकृ णक ओर दे खकर फूट-फूटकर रोने लगी और ःखसे आत होकर य बोली
— ।। १ ।।
पु डरीका प य वं पौ ं पाथ य धीमतः ।
प र ीणेषु कु षु प र ीणं गतायुषम् ।। २ ।।
‘भैया कमलनयन! तुम अपने सखा बु मान् पाथके इस पौ क दशा तो दे खो।
कौरव के न हो जानेपर इसका ज म आ; परंतु यह भी गतायु होकर न हो
गया ।। २ ।।
इषीका ोणपु ेण भीमसेनाथमु ता ।
सो रायां नप तता वजये म य चैव ह ।। ३ ।।
‘ ोणपु अ थामाने भीमसेनको मारनेके लये जो स कका बाण उठाया था, वह
उ रापर, तु हारे सखा वजयपर और मुझपर गरा है ।। ३ ।।
सेयं वद ण दये म य त त केशव ।
य प या म धष सहपु ं तु तं भो ।। ४ ।।
‘ धष वीर केशव! भो! वह स क मेरे इस वद ण ए दयम आज भी कसक रही
है; य क इस समय म पु स हत अ भम युको नह दे ख पाती ँ ।। ४ ।।
क नु व य त धमा मा धमराजो यु ध रः ।
भीमसेनाजुनौ चा प मा व याः सुतौ च तौ ।। ५ ।।
ु वा भम यो तनयं जातं च मृतमेव च ।
मु षता इव वा णय ोणपु ेण पा डवाः ।। ६ ।।
‘अ भम युका बेटा ज म लेनेके साथ ही मर गया—इस बातको सुनकर धमा मा राजा
यु ध र या कहगे? भीमसेन, अजुन तथा मा कुमार नकुल-सहदे व भी या सोचगे?
ीकृ ण! आज ोणपु ने पा डव का सव व लूट लया ।। ५-६ ।।
अ भम युः यः कृ ण ातॄणां ना संशयः ।
ते ु वा क नु व य त ोणपु ा न जताः ।। ७ ।।
‘ ीकृ ण! अ भम यु पाँच भाइय को अ य त य था—इसम संशय नह है। उसके
पु क यह दशा सुनकर अ थामाके अ से परा जत ए पा डव या कहगे? ।। ७ ।।
भ वतातः परं ःखं क तद य जनादन ।
अ भम योः सुतात् कृ ण मृता जाताद रदम ।। ८ ।।
‘श ुसूदन! जनादन! ीकृ ण! अ भम यु-जैसे वीरका पु मरा आ पैदा हो, इससे
बढ़कर ःखक बात और या हो सकती है? ।। ८ ।।
साहं सादये कृ ण वाम शरसा नता ।
पृथेयं ौपद चैव ताः प य पु षो म ।। ९ ।।
‘पु षो म! ीकृ ण! आज म तु हारे चरण पर म तक रखकर तु ह स करना
चाहती ँ। बूआ कु ती और ब हन ौपद भी तु हारे पैर पर पड़ी ई ह। इन सबक ओर
दे खो ।। ९ ।।
यदा ोणसुतो गभान् पा डू नां ह त माधव ।
तदा कल वया ौ णः ु े नो ोऽ रमदन ।। १० ।।
‘श ुमदन माधव! जब ोणपु अ थामा पा डव के गभक भी ह या करनेका
य न कर रहा था, उस समय तुमने कु पत होकर उससे कहा था ।। १० ।।
अकामं वां क र या म ब धो नराधम ।
अहं संजीव य या म करी टतनया मजम् ।। ११ ।।
‘ ब धो! नराधम! म तेरी इ छा पूण नह होने ँ गा। अजुनके पौ को अपने
भावसे जी वत कर ँ गा ।। ११ ।।
इ येतद् वचनं ु वा जानानाहं बलं तव ।
सादये वां धष जीवताम भम युजः ।। १२ ।।
‘भैया! तुम धष वीर हो। म तु हारी उस बातको सुनकर तु हारे बलको अ छ तरह
जानती ँ। इसी लये तु ह स करना चाहती ँ। तु हारे कृपा- सादसे अ भम युका यह
पु जी वत हो जाय ।। १२ ।।
य ेतत् वं त ु य न करो ष वचः शुभम् ।
सकलं वृ णशा ल मृतां मामवधारय ।। १३ ।।
‘वृ णवंशके सह! य द तुम ऐसी त ा करके अपने मंगलमय वचनका पूणतः
पालन नह करोगे तो यह समझ लो, सुभ ा जी वत नह रहेगी—म अपने ाण दे
ँ गी ।। १३ ।।
अ भम योः सुतो वीर न संजीव त य यम् ।
जीव त व य धष क क र या यहं वया ।। १४ ।।
‘ धष वीर! य द तु हारे जीते-जी अ भम युके इस बालकको जीवनदान न मला तो
तुम मेरे कस काम आओगे ।। १४ ।।
संजीवयैनं धष मृतं वम भम युजम् ।
स शा सुतं वीर स यं वष वा बुदः ।। १५ ।।
‘अजेय वीर! जैसे बादल पानी बरसाकर सूखी खेतीको भी हरी-भरी कर दे ता है, उसी
कार तुम अपने ही समान ने वाले अ भम युके इस मरे ए पु को जी वत कर
दो ।। १५ ।।
वं ह केशव धमा मा स यवान् स य व मः ।
स तां वाचमृतां कतुमह स वम रदम ।। १६ ।।
‘श ुदमन केशव! तुम धमा मा, स यवाद और स यपरा मी हो; अतः तु ह अपनी
कही ई बातको स य कर दखाना चा हये ।। १६ ।।
इ छ प ह लोकां ीन् जीवयेथा मृता नमान् ।
क पुनद यतं जातं व ीय या मजं मृतम् ।। १७ ।।
‘तुम चाहो तो मृ युके मुखम पड़े ए तीन लोक को जला सकते हो, फर अपने
भानजेके इस यारे पु को, जो मर चुका है, जी वत करना तु हारे लये कौन बड़ी बात
है ।। १७ ।।
भाव ा म ते कृ ण त मात् वां याचया यहम् ।
कु व पा डु पु ाणा ममं परमनु हम् ।। १८ ।।
‘ ीकृ ण! म तु हारे भावको जानती ँ। इसी लये तुमसे याचना करती ँ। इस
बालकको जीवनदान दे कर तुम पा डव पर यह महान् अनु ह करो ।। १८ ।।
वसे त वा महाबाहो हतपु े त वा पुनः ।
प ा मा मयं चे त दयां कतु महाह स ।। १९ ।।
‘महाबाहो! तुम यह समझकर क यह मेरी ब हन है अथवा जसका बेटा मारा गया है,
वह खया है अथवा शरणम आयी ई एक दयनीय अबला है, मुझपर दया करने यो य
हो’ ।। १९ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण सुभ ावा ये
स तष तमोऽ यायः ।। ६७ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम सुभ ाका वचन वषयक
सरसठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६७ ।।
अ ष तमोऽ यायः
ीकृ णका सू तकागृहम वेश, उ राका वलाप और
अपने पु को जी वत करनेके लये ाथना
वैश पायन उवाच
एवमु तु राजे के शहा ःखमू छतः ।
तथे त ाजहारो चै ादय व तं जनम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजे ! सुभ ाके ऐसा कहनेपर के शह ता केशव ःखसे
ाकुल हो उसे स करते ए-से उ च वरम बोले—‘ब हन! ऐसा ही होगा’ ।। १ ।।
वा येनैतेन ह तदा तं जनं पु षषभः ।
ादयामास स वभुघमात स ललै रव ।। २ ।।
जैसे धूपसे तपे ए मनु यको जलसे नहला दे नेपर बड़ी शा त मल जाती है, उसी
कार पु षो म भगवान् ीकृ णने इस अमृतमय वचनके ारा सुभ ा तथा अ तःपुरक
सरी य को महान् आ ाद दान कया ।। २ ।।
ततः स ा वशत् तूण ज मवे म पतु तव ।
अ चतं पु ष ा सतैमा यैयथा व ध ।। ३ ।।
पु ष सह! तदन तर भगवान् ीकृ ण तुरंत ही तु हारे पताके ज म थान—
सू तकागारम गये; जो सफेद फूल क माला से व धपूवक सजाया गया था ।। ३ ।।
अपां कु भैः सुपूण व य तैः सवतो दशम् ।
घृतेन त कालातैः सषपै महाभुज ।। ४ ।।
महाबाहो! उसके चार ओर जलसे भरे ए कलश रखे गये थे। घीसे तर कये ए
ते क नामक का के कई टु कड़े जल रहे थे तथा य -त सरस बखेरी गयी थी ।। ४ ।।
अ ै वमलै य तैः पावकै सम ततः ।
वृ ा भ ा प रामा भः प रचाराथमावृतम् ।। ५ ।।
द ै प रतो धीर भष भः कुशलै तथा ।
धैयशाली राजन्! उस घरके चार ओर चमकते ए तेज ह थयार रखे गये थे और सब
ओर आग व लत क गयी थी। सेवाके लये उप थत ई बूढ़ य ने उस थानको घेर
रखा था तथा अपने-अपने कायम कुशल चतुर च क सक भी चार ओर मौजूद थे ।। ५
।।
ददश च स तेज वी र ो ना य प सवशः ।। ६ ।।
ा ण था पता न म व धवत् कुशलैजनैः ।
तेज वी ीकृ णने दे खा क व थाकुशल मनु य ारा वहाँ सब ओर रा स का
नवारण करनेवाली नाना कारक व तुएँ व धपूवक रखी गयी थ ।। ६ ।।
तथायु ं च तद् ् वा ज मवे म पतु तव ।। ७ ।।
ोऽभवद् षीकेशः साधु सा व त चा वीत् ।
तु हारे पताके ज म थानको इस कार आव यक व तु से सुस जत दे ख भगवान्
ीकृ ण ब त स ए और ‘ब त अ छा’ कहकर उस ब धक शंसा करने लगे ।। ७
।।
तथा ुव त वा णये वदने तदा ।। ८ ।।
ौपद व रता ग वा वैराट वा यम वीत् ।
जब भगवान् ीकृ ण स मुख होकर उसक सराहना कर रहे थे, उसी समय ौपद
बड़ी तेजीके साथ उ राके पास गयी और बोली— ।। ८ ।।
अयमाया त ते भ े शुरो मधुसूदनः ।। ९ ।।
पुराण षर च या मा समीपमपरा जतः ।
‘क या ण! यह दे खो, तु हारे शुरतु य, अ च य- व प, कसीसे परा जत न
होनेवाले, पुरातन ऋ ष भगवान् मधुसूदन तु हारे पास आ रहे ह’ ।। ९ ।।
सा प बा पकलां वाचं नगृ ा ू ण चैव ह ।। १० ।।
सुसंवीताभवद् दे वी दे ववत् कृ णमीयुषी ।
सा तथा यमानेन दयेन तप वनी ।। ११ ।।
् वा गो व दमाया तं कृपणं पयदे वयत् ।
यह सुनकर उ राने अपने आँसु को रोककर रोना बंद कर दया और अपने सारे
शरीरको व से ढक लया। ीकृ णके त उसक भगवद्बु थी; इस लये उ ह आते
दे ख वह तप वनी बाला थत दयसे क ण वलाप करती ई गद्गद-क ठसे इस कार
बोली— ।। १०-११ ।।
पु डरीका प यावां बालेन ह वनाकृतौ ।
अ भम युं च मां चैव हतौ तु यं जनादन ।। १२ ।।
‘कमलनयन! जनादन! दे खये, आज म और मेरे प त दोन ही संतानहीन हो गये।
आयपु तो यु म वीरग तको ा त ए ह; परंतु म पु शोकसे मारी गयी। इस कार हम
दोन समान पसे ही कालके ास बन गये ।। १२ ।।
वा णय मधुहन् वीर शरसा वां सादये ।
ोणपु ा नद धं जीवयैनं ममा मजम् ।। १३ ।।
‘वृ णन दन! वीर मधुसूदन! म आपके चरण म म तक रखकर आपका कृपा साद
ा त करना चाहती ँ। ोणपु अ थामाके अ से द ध ए मेरे इस पु को जी वत कर
द जये ।। १३ ।।
य द म धमरा ा वा भीमसेनेन वा पुनः ।
वया वा पु डरीका वा यमु मदं भवेत् ।। १४ ।।
अजानती मषीकेयं ज न ह व त भो ।
अहमेव वन ा यां नैतदे वंगते भवेत् ।। १५ ।।
‘ भो! पु डरीका ! य द धमराज अथवा आय भीमसेन या आपने ही ऐसा कह दया
होता क यह स क इस बालकको न मारकर इसक अनजान माताको ही मार डाले, तब
केवल म ही न ई होती। उस दशाम यह अनथ नह होता ।। १४-१५ ।।
गभ थ या य बाल य ा ेण नपातनम् ।
कृ वा नृशंसं बु णः क फलम ुते ।। १६ ।।
‘हाय! इस गभके बालकको ा से मार डालनेका ू रतापूण कम करके बु
ोणपु अ थामा कौन-सा फल पा रहा है ।। १६ ।।
सा वां सा शरसा याचे श ु नबहणम् ।
ाणां य या म गो व द नायं संजीवते य द ।। १७ ।।
‘गो व द! आप श ु का संहार करनेवाले ह। म आपके चरण म म तक रखकर
आपको स करके आपसे इस बालकके ाण क भीख माँगती ँ। य द यह जी वत नह
आ तो म भी अपने ाण याग ँ गी ।। १७ ।।
अ मन् ह बहवः साधो ये ममासन् मनोरथाः ।
ते ोणपु ेण हताः क नु जीवा म केशव ।। १८ ।।
‘साधुपु ष केशव! इस बालकपर मने जो बड़ी-बड़ी आशाएँ बाँध रखी थ , ोणपु
अ थामाने उन सबको न कर दया। अब म कस लये जी वत र ँ? ।। १८ ।।
आसी मम म तः कृ ण पु ो स ा जनादन ।
अ भवाद य ये े त त ददं वतथीकृतम् ।। १९ ।।
‘ ीकृ ण! जनादन! मेरी बड़ी आशा थी क अपने इस ब चेको गोदम लेकर म
स तापूवक आपके चरण म अ भवादन क ँ गी; कतु अब वह थ हो गयी ।। १९ ।।
चपला य दायादे मृतेऽ मन् पु षषभ ।
वफला मे कृताः कृ ण द सव मनोरथाः ।। २० ।।
‘पु षो म ीकृ ण! चंचल ने वाले प तदे वके इस पु क मृ यु हो जानेसे मेरे दयके
सारे मनोरथ न फल हो गये ।। २० ।।
चपला ः कलातीव य ते मधुसूदन ।
सुतं प य वम यैनं ा ेण नपा ततम् ।। २१ ।।
‘मधुसूदन! सुनती ँ क चंचल ने वाले अ भम यु आपको ब त ही य थे। उ ह का
बेटा आज ा क मारसे मरा पड़ा है। आप इसे आँख भरकर दे ख ली जये ।। २१ ।।
कृत नोऽयं नृशंसोऽयं यथा य जनक तथा ।
यः पा डव यं व वा गतोऽ यमसादनम् ।। २२ ।।
‘यह बालक भी अपने पताके ही समान कृत न और नृशंस है, जो पा डव क
राजल मीको छोड़कर आज अकेला ही यमलोक चला गया ।। २२ ।।
मया चैतत् त ातं रणमूध न केशव ।
अ भम यौ हते वीर वामे या य चरा द त ।। २३ ।।
‘केशव! मने यु के मुहानेपर यह त ा क थी क ‘मेरे वीर प तदे व! य द आप मारे
गये तो म शी ही परलोकम आपसे आ मलूँगी ।। २३ ।।
त च नाकरवं कृ ण नृशंसा जी वत या ।
इदान मां गतां त क नु व य त फा गु नः ।। २४ ।।
‘परंतु ीकृ ण! मने उस त ाका पालन नह कया। म बड़ी कठोर दया ँ। मुझे
प तदे व नह , ये ाण ही यारे ह। य द इस समय म परलोकम जाऊँ तो वहाँ अजुनकुमार
मुझसे या कहगे?’ ।। २४ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण उ रावा ये
अ ष तमोऽ यायः ।। ६८ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम उ राका वा य वषयक
अड़सठवाँ अ याय पूरा आ ।। ६८ ।।
एकोनस त ततमोऽ यायः
उ राका वलाप और भगवान् ीकृ णका उसके मृत
बालकको जीवन-दान दे ना
वैश पायन उवाच
सैवं वल य क णं सो मादे व तप वनी ।
उ रा यपतद् भूमौ कृपणा पु गृ नी ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पु का जीवन चाहनेवाली तप वनी उ रा
उ मा दनी-सी होकर इस कार द नभावसे क ण वलाप करके पृ वीपर गर पड़ी ।। १ ।।
तां तु ् वा नप ततां हतपु प र छदाम् ।
चु ोश कु ती ःखाता सवा भरत यः ।। २ ।।
जसका पु पी प रवार न हो गया था, उस उ राको पृ वीपर पड़ी ई दे ख ःखसे
आतुर ई कु तीदे वी तथा भरतवंशक सारी याँ फूट-फूटकर रोने लग ।। २ ।।
मु त मव राजे पा डवानां नवेशनम् ।
अ े णीयमभवदात वन वना दतम् ।। ३ ।।
राजे ! दो घड़ीतक पा डव का वह भवन आतनादसे गूँजता रहा। उस समय उसक
ओर दे खते नह बनता था ।। ३ ।।
सा मु त च राजे पु शोका भपी डता ।
क मला भहता वीर वैराट वभवत् तदा ।। ४ ।।
वीर राजे ! पु शोकसे पी ड़त वह वराटकुमारी उ रा उस समय दो घड़ीतक
मू छाम पड़ी रही ।। ४ ।।
तल य तु सा सं ामु रा भरतषभ ।
अङ् कमारो य तं पु मदं वचनम वीत् ।। ५ ।।
भरत े ! थोड़ी दे र बाद उ रा जब होशम आयी, तब उस मरे ए पु को गोदम लेकर
य कहने लगी— ।। ५ ।।
धम य सुतः स वमधम नावबु यसे ।
य वं वृ ण वीर य कु षे ना भवादनम् ।। ६ ।।
‘बेटा! तू तो धम पताका पु है। फर तेरे ारा जो अधम हो रहा है, उसे तू य नह
समझता? वृ णवंशके े वीर भगवान् ीकृ ण सामने खड़े ह तो भी तू इ ह णाम य
नह करता? ।। ६ ।।
पु ग वा मम वचो ूया वं पतरं वदम् ।
मरं ा णनां वीर कालेऽ ा ते कथंचन ।। ७ ।।
याहं वया वना ेह प या पु ेण चैव ह ।
मत े स त जीवा म हत व तर कचना ।। ८ ।।
‘व स! परलोकम जाकर तू अपने पतासे मेरी यह बात कहना—‘वीर! अ तकाल
आये बना ा णय के लये कसी तरह भी मरना बड़ा क ठन होता है। तभी तो म यहाँ
आप-जैसे प त तथा इस पु से बछु ड़कर भी जब क मुझे मर जाना चा हये, अबतक जी
रही ँ; मेरा सारा मंगल न हो गया है। म अ कचन हो गयी ँ’ ।।
अथवा धमरा ाहमनु ाता महाभुज ।
भ य ये वषं घोरं वे ये वा ताशनम् ।। ९ ।।
‘महाबाहो! अब म धमराजक आ ा लेकर भयानक वष खा लूँगी अथवा व लत
अ नम समा जाऊँगी ।। ९ ।।
अथवा मरं तात य ददं मे सह धा ।
प तपु वहीनाया दयं न वद यते ।। १० ।।
‘तात! जान पड़ता है, मनु यके लये मरना अ य त क ठन है, य क प त और पु से
हीन होनेपर भी मेरे इस दयके हजार टु कड़े नह हो रहे ह ।। १० ।।
उ पु प येमं ः खतां पतामहीम् ।
आतामुप लुतां द नां नम नां शोकसागरे ।। ११ ।।
‘बेटा! उठकर खड़ा हो जा। दे ख! ये तेरी परदाद (कु ती) कतनी खी ह। ये तेरे लये
आत, थत एवं द न होकर शोकके समु म डू ब गयी ह ।। ११ ।।
आया च प य पा चाल सा वत च तप वनीम् ।
मां च प य सु ःखाता ाध व ां मृगी मव ।। १२ ।।
‘आया पांचाली ( ौपद )-क ओर दे ख, अपनी दाद तप वनी सुभ ाक ओर पात
कर और ाधके बाण से बधी ई ह रणीक भाँ त अ य त ःखसे आत ई मुझ अपनी
माँको भी दे ख ले ।। १२ ।।
उ प य वदनं लोकनाथ य धीमतः ।
पु डरीकपलाशा ं पुरेव चपले णम् ।। १३ ।।
‘बेटा! उठकर खड़ा हो जा और बु मान् जगद र ीकृ णके कमलदलके समान
ने वाले मुखार व दक शोभा नहार, ठ क उसी तरह जैसे पहले म चंचल ने वाले तेरे
पताका मुँह नहारा करती थी’ ।। १३ ।।
एवं व लप त तु ् वा नप ततां पुनः ।
उ रां तां यं सवाः पुन थापयं ततः ।। १४ ।।
इस कार वलाप करती ई उ राको पुनः पृ वीपर पड़ी दे ख सब य ने उसे फर
उठाकर बठाया ।। १४ ।।
उ थाय च पुनधयात् तदा म यपतेः सुता ।
ा लः पु डरीका ं भूमावेवा यवादयत् ।। १५ ।।
पुनः उठकर धैय धारण करके म यराजकुमारीने पृ वीपर ही हाथ जोड़कर
कमलनयन भगवान् ीकृ णको णाम कया ।। १५ ।।
ु वा स त या वपुलं वलापं पु षषभः ।
उप पृ य ततः कृ णो ा ं यसंहरत् ।। १६ ।।
उसका महान् वलाप सुनकर पु षो म ीकृ णने आचमन करके अ थामाके
चलाये ए ा को शा त कर दया ।। १६ ।।
तज े च दाशाह त य जी वतम युतः ।
अ वी च वशु ा मा सव व ावयन् जगत् ।। १७ ।।
त प ात् वशु दयवाले और कभी अपनी म हमासे वच लत न होनेवाले भगवान्
ीकृ णने उस बालकको जी वत करनेक त ा क और स पूण जगत्को सुनाते ए इस
कार कहा— ।। १७ ।।
न वी यु रे म या स यमेतद् भ व य त ।
एष संजीवया येनं प यतां सवदे हनाम् ।। १८ ।।
‘बेट उ रा! म झूठ नह बोलता। मने जो त ा क है, वह स य होकर ही रहेगी।
दे खो, म सम त दे हधा रय के दे खते-दे खते अभी इस बालकको जलाये दे ता ँ ।। १८ ।।
नो पूव मया म या वैरे व प कदाचन ।
न च यु ात् परावृ तथा संजीवतामयम् ।। १९ ।।
‘मने खेल-कूदम भी कभी म या भाषण नह कया है और यु म पीठ नह दखायी
है। इस श के भावसे अ भम युका यह बालक जी वत हो जाय ।। १९ ।।
यथा मे द यतो धम ा ण वशेषतः ।
अ भम योः सुतो जातो मृतो जीव वयं तथा ।। २० ।।
‘य द धम और ा ण मुझे वशेष य ह तो अ भम युका यह पु , जो पैदा होते ही
मर गया था, फर जी वत हो जाय ।। २० ।।
यथाहं ना भजाना म वजये तु कदाचन ।
वरोधं तेन स येन मृतो जीव वयं शशुः ।। २१ ।।
‘मने कभी अजुनसे वरोध कया हो, इसका मरण नह है; इस स यके भावसे यह
मरा आ बालक अभी जी वत हो जाय ।। २१ ।।
यथा स यं च धम म य न यं त तौ ।
तथा मृतः शशुरयं जीवताद भम युजः ।। २२ ।।
‘य द मुझम स य और धमक नर तर थ त बनी रहती हो तो अ भम युका यह मरा
आ बालक जी उठे ।। २२ ।।
यथा कंस केशी च धमण नहतौ मया ।
तेन स येन बालोऽयं पुनः संजीवतामयम् ।। २३ ।।
‘मने कंस और केशीका धमके अनुसार वध कया है, इस स यके भावसे यह बालक
फर जी वत हो जाय’ ।। २३ ।।
इ यु ो वासुदेवेन स बालो भरतषभ ।
शनैः शनैमहाराज ा प दत सचेतनः ।। २४ ।।
भरत े ! महाराज! भगवान् ीकृ णके ऐसा कहनेपर उस बालकम चेतना आ गयी।
वह धीरे-धीरे अंग-संचालन करने लगा ।। २४ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण प र संजीवने
एकोनस त ततमोऽ यायः ।। ६९ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम प र त्को
जीवनदान वषयक उनह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ६९ ।।
स त ततमोऽ यायः
ीकृ ण ारा राजा प र त्का नामकरण तथा पा डव का
ह तनापुरके समीप आगमन
वैश पायन उवाच
ा ं तु यदा राजन् कृ णेन तसं तम् ।
तदा तद् वे म व प ा तेजसा भ वद पतम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! भगवान् ीकृ णने जब ा को शा त कर
दया, उस समय वह सू तकागृह तु हारे पताके तेजसे दे द यमान होने लगा ।। १ ।।
ततो र ां स सवा ण नेशु य वा गृहं तु तत् ।
अ त र े च वागासीत् साधु केशव सा व त ।। २ ।।
फर तो बालक का वनाश करनेवाले सम त रा स उस घरको छोड़कर भाग गये।
इसी समय आकाशवाणी ई—‘केशव! तु ह साधुवाद! तुमने ब त अ छा काय
कया’ ।। २ ।।
तद ं व लतं चा प पतामहमगात् तदा ।
ततः ाणान् पुनलभे पता तव नरे र ।। ३ ।।
साथ ही वह व लत ा लोकको चला गया। नरे र! इस तरह तु हारे
पताको पुनज वन ा त आ ।। ३ ।।
चे त च बालोऽसौ यथो साहं यथाबलम् ।
बभूवुमु दता राजं तत ता भरत यः ।। ४ ।।
राजन्! उ राका वह बालक अपने उ साह और बलके अनुसार हाथ-पैर हलाने लगा,
यह दे ख भरतवंशक उन सभी य को बड़ी स ता ई ।। ४ ।।
ा णान् वाचयामासुग व द यैव शासनात् ।
तत ता मु दताः सवाः शशंसुजनादनम् ।। ५ ।।
उ ह ने भगवान् ीकृ णक आ ासे ा ण ारा व तवाचन कराया। फर वे सब
आन दम न होकर ीकृ णके गुण गाने लग ।। ५ ।।
यो भरत सहानां नावं ल वेव पारगाः ।
कु ती पदपु ी च सुभ ा चो रा तथा ।। ६ ।।
य ा या नृ सहानां बभूवु मानसाः ।
जैसे नद के पार जानेवाले मनु य को नाव पाकर बड़ी खुशी होती है, उसी कार
भरतवंशी वीर क वे याँ—कु ती, ौपद , सुभ ा, उ रा एवं नरवीर क याँ उस
बालकके जी वत होनेसे मन-ही-मन ब त स ।। ६१ ।।
त म ला नटा ैव थकाः सौ यशा यकाः ।। ७ ।।
सूतमागधसंघा ा य तुवं तं जनादनम् ।
कु वंश तवा या भराशी भभरतषभ ।। ८ ।।
भरत े ! तदन तर म ल, नट, यौ तषी, सुखका समाचार पूछनेवाले सेवक तथा
सूत और मागध के समुदाय कु वंशक तु त और आशीवादके साथ भगवान् ीकृ णका
गुणगान करने लगे ।। ७-८ ।।
उ थाय तु यथाकालमु रा य न दनम् ।
अ यवादयत ीता सह पु ेण भारत ।। ९ ।।
भरतन दन! फर स ई उ रा यथासमय उठकर पु को गोदम लये ए य न दन
ीकृ णके समीप आयी और उ ह णाम कया ।। ९ ।।
त य कृ णो ददौ ो ब र नं वशेषतः ।
तथा ये वृ णशा ला नाम चा याकरोत् भुः ।। १० ।।
पतु तव महाराज स यसंधो जनादनः ।
भगवान् ीकृ णने भी स होकर उस बालकको ब त-से र न उपहारम दये। फर
अ य य वं शय ने भी नाना कारक व तुएँ भट क । महाराज! इसके बाद स य त
भगवान् ीकृ णने तु हारे पताका इस कार नामकरण कया ।। १० ।।
प र ीणे कुले य मा जातोऽयम भम युजः ।। ११ ।।
प र द त नामा य भव व य वीत् तदा ।
‘कु कुलके प र ीण हो जानेपर यह अ भम युका बालक उ प आ है। इस लये
इसका नाम प र त् होना चा हये।’ ऐसा भगवान्ने कहा ।। ११ ।।
सोऽवधत यथाकालं पता तव जना धप ।। १२ ।।
मनः ादन ासीत् सवलोक य भारत ।
नरे र! इस कार नामकरण हो जानेके बाद तु हारे पता प र त् काल मसे बड़े
होने लगे। भारत! वे सब लोग के मनको आन दम न कये रहते थे ।। १२ ।।
मासजात तु ते वीर पता भव त भारत ।। १३ ।।
अथाज मुः सुब लं र नमादाय पा डवाः ।
वीर भरतन दन! जब तु हारे पताक अव था एक महीनेक हो गयी, उस समय
पा डवलोग ब त-सी र नरा श लेकर ह तनापुरको लौटे ।। १३ ।।
तान् समीपगतान् ु वा नययुवृ णपु वाः ।। १४ ।।
वृ णवंशके मुख वीर ने जब सुना क पा डव लोग नगरके समीप आ गये ह, तब वे
उनक अगवानीके लये बाहर नकले ।। १४ ।।
अलंच ु मा यौघैः पु षा नागसा यम् ।
पताका भ व च ा भ वजै व वधैर प ।। १५ ।।
पुरवासी मनु य ने फूल क माला , व दनवार , भाँ त-भाँ तक वजा तथा
व च - व च पताका से ह तनापुरको सजाया था ।। १५ ।।
वे मा न समलंच ु ः पौरा ा प जने र ।
दे वतायतनानां च पूजाः सु व वधा तथा ।। १६ ।।
सं ददे शाथ व रः पा डु पु ये सया ।
राजमागा त ासन् सुमनो भरलंकृताः ।। १७ ।।
नरे र! नाग रक ने अपने-अपने घर क भी सजावट क थी। व रजीने पा डव का
य करनेक इ छासे दे वम दर म व वध कारसे पूजा करनेक आ ा द । ह तनापुरके
सभी राजमाग फूल से अलंकृत कये गये थे ।। १६-१७ ।।
शुशुभे त पुरं चा प समु ौघ नभ वनम् ।
नतकै ा प नृ य गायकानां च नः वनैः ।। १८ ।।
नाचते ए नतक और गानेवाले गायक के श द से उस नगरक बड़ी शोभा हो रही
थी। वहाँ समु क जलरा शक गजनाके समान कोलाहल हो रहा था ।। १८ ।।
आसीद् वै वण येव नवास त पुरं तदा ।
व द भ नरै राजन् ीसहायै सवशः ।। १९ ।।
त त व व े षु सम ता पशो भतम् ।
पताका धूयमाना सम ता मात र ना ।। २० ।।
अदशय व तदा कु न् वै द णो रान् ।
राजन्! उस समय वह नगर कुबेरक अलकापुरीके समान तीत होता था। वहाँ सब
ओर एका त थान म य स हत बंद जन खड़े थे, जनसे उस पुरीक शोभा बढ़ गयी थी।
उस समय हवाके झ केसे नगरम सब ओर पताकाएँ फहरा रही थ , जो द ण और उ र
कु नामक दे श क शोभा दखाती थ ।। १९-२० ।।
अघोषयं तदा चा प पु षा राजधूगताः ।
सवरा वहारोऽ र नाभरणल णः ।। २१ ।।
राज-काज सँभालनेवाले पु ष ने सब ओर यह घोषणा करा द क आज समूचे रा म
उ सव मनाया जाय और सब लोग र न के आभूषण या उ मो म गहने-कपड़े पहनकर
इस उ सवम स म लत ह ।। २१ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण पा डवागमने
स त ततमोऽ यायः ।। ७० ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम पा डव का
आगमन वषयक स रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७० ।।
एकस त ततमोऽ यायः
भगवान् ीकृ ण और उनके सा थय ारा पा डव का
वागत, पा डव का नगरम आकर सबसे मलना और
ासजी तथा ीकृ णका यु ध रको य के लये आ ा
दे ना
वैश पायन उवाच
तान् समीपगतान् ु वा पा डवान् श ुकशनः ।
वासुदेवः सहामा यः ययौ ससु द्गणः ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! पा डव के समीप आनेका समाचार सुनकर
श ुसूदन भगवान् ीकृ ण अपने म और म य के साथ उनसे मलनेके लये
चले ।। १ ।।
ते समे य यथा यायं यु ाता द या ।
ते समे य यथाधम पा डवा वृ ण भः सह ।। २ ।।
व वशुः स हता राजन् पुरं वारणसा यम् ।
उन सब लोग ने पा डव से मलनेके लये आगे बढ़कर उनक अगवानी क और सब
यथायो य एक- सरेसे मले। राजन्! धमानुसार पा डव वृ णय से मलकर सब एक साथ
हो ह तनापुरम व ए ।। २ ।।
महत त य सै य य खुरने म वनेन ह ।। ३ ।।
ावापृ थ ोः खं चैव सवमासीत् समावृतम् ।
उस वशाल सेनाके घोड़ क टाप और रथके प हय क घरघराहटके तुमुल घोषसे
पृ वी और वगके बीचका सारा आकाश ा त हो गया था ।। ३ ।।
ते कोशान तः कृ वा व वशुः वपुरं तदा ।। ४ ।।
पा डवाः ीतमनसः सामा याः ससु द्गणाः ।
वे खजानेको आगे करके अपनी राजधानीम घुसे। उस समय म य एवं सु द स हत
सम त पा डव का मन स था ।। ४ ।।
ते समे य यथा यायं धृतरा ं जना धपम् ।। ५ ।।
क तय तः वनामा न त य पादौ वव दरे ।
वे यथायो य सबसे मलकर राजा धृतरा के पास गये। अपना-अपना नाम बताते ए
उनके चरण म णाम करने लगे ।। ५ ।।
धृतरा ादनु च ते गा धार सुबला मजाम् ।। ६ ।।
कु त च राजशा ल तदा भरतस म ।
नृप े ! भरतभूषण! धृतरा से मलनेके बाद वे सुबलपु ी गा धारी और कु तीसे
मले ।। ६ ।।
व रं पूज य वा च वै यापु ं समे य च ।। ७ ।।
पू यमानाः म ते वीरा रोच त वशा पते ।
जानाथ! फर व रका स मान करके वै यापु युयु सुसे मलकर उन सबके ारा
स मा नत होते ए वीर पा डव बड़ी शोभा पा रहे थे ।। ७ ।।
तत तत् परमा य व च ं महद तम् ।। ८ ।।
शु ुवु ते तदा वीराः पतु ते ज म भारत ।
भरतन दन! त प ात् उन वीर ने तु हारे पताके ज मका वह आ यपूण व च ,
महान् एवं अद्भुत वृ ा त सुना ।। ८ ।।
त प ु य तत् कम वासुदेव य धीमतः ।। ९ ।।
पूजाह पूजयामासुः कृ णं दे व कन दनम् ।
परम बु मान् भगवान् ीकृ णका वह अलौ कक कम सुनकर पा डव ने उन
पूजनीय दे वक न दन ीकृ णका पूजन कया अथात् उनक भू र-भू र शंसा क ।। ९
।।
ततः क तपयाह य ासः स यवतीसुतः ।। १० ।।
आजगाम महातेजा नगरं नागसा यम् ।
त य सव यथा यायं पूजांच ु ः कु हाः ।। ११ ।।
इसके थोड़े दन बाद महातेज वी स यवतीन दन ासजी ह तनापुरम पधारे।
कु कुल तलक सम त पा डव ने उनका यथो चत पूजन कया ।। १०-११ ।।
सह वृ य धक ा ै पासांच रे तदा ।
त नाना वधाकाराः कथाः सम भक य वै ।। १२ ।।
यु ध रो धमसुतो ासं वचनम वीत् ।
फर वृ ण एवं अ धकवंशी वीर के साथ वे उनक सेवाम बैठ गये। वहाँ नाना
कारक बात करके धमपु यु ध रने ासजीसे इस कार कहा— ।। १२ ।।
भव सादाद् भगवन् य ददं र नमा तम् ।। १३ ।।
उपयो ुं त द छा म वा जमेधे महा तौ ।
‘भगवन्! आपक कृपासे जो वह र न लाया गया है, उसका अ मेध नामक महाय म
म उपयोग करना चाहता ँ ।। १३ ।।
तमनु ातु म छा म भवता मु नस म ।
वदधीना वयं सव कृ ण य च महा मनः ।। १४ ।।
‘मु न े ! म चाहता ँ क इसके लये आपक आ ा ा त हो जाय, य क हम सब
लोग आप और महा मा ीकृ णके अधीन ह’ ।। १४ ।।
ास उवाच
अनुजाना म राजं वां यतां यदन तरम् ।
यज व वा जमेधेन व धवत् द णावता ।। १५ ।।
ासजीने कहा—राजन्! म तु ह य के लये आ ा दे ता ँ। अब इसके बाद जो भी
आव यक काय हो, उसे आर भ करो। व धपूवक द णा दे ते ए अ मेध य का अनु ान
करो ।। १५ ।।
अ मेधो ह राजे पावनः सवपा मनाम् ।
तेने ् वा वं वपा मा वै भ वता ना संशयः ।। १६ ।।
राजे ! अ मेधय सम त पाप का नाश करके यजमानको प व बनानेवाला है।
उसका अनु ान करके तुम पापसे मु हो जाओगे, इसम संशय नह है ।। १६ ।।
वैश पायन उवाच
इ यु ः स तु धमा मा कु राजो यु ध रः ।
अ मेध य कौर चकाराहरणे म तम् ।। १७ ।।
वैश पायनजी कहते ह—कु न दन! ासजीके ऐसा कहनेपर धमा मा कु राज
यु ध रने अ मेधय आर भ करनेका वचार कया ।। १७ ।।
समनु ा य तत् सव कृ ण ै पायनं नृपः ।
वासुदेवमथा ये य वा मी वचनम वीत् ।। १८ ।।
ीकृ ण ै पायन ाससे सब बात के लये आ ा ले वचनकुशल राजा यु ध र
भगवान् ीकृ णके पास जाकर इस कार बोले— ।। १८ ।।
दे वक सु जा दे वी वया पु षस म ।
यद् ूयां वां महाबाहो तत् कृथा व महा युत ।। १९ ।।
‘पु षो म! महाबा अ युत! आपको ही पाकर दे वक दे वी उ म संतानवाली मानी
गयी ह। म आपसे जो कुछ क ँ, उसे आप यहाँ स प कर ।। १९ ।।
व भावा जतान् भोगान ीम य न दन ।
परा मेण बुद ् या च वयेयं न जता मही ।। २० ।।
‘य न दन! हम आपके ही भावसे ा त ई इस पृ वीका उपभोग कर रहे ह। आपने
ही अपने परा म और बु बलसे इस स पूण पृ वीको जीता है ।। २० ।।
द य व वमा मानं वं ह नः परमो गु ः ।
वयी व त दाशाह वपा मा भ वता हम् ।। २१ ।।
‘दशाहन दन! आप ही इस य क द ा हण कर; य क आप हमारे परम गु ह।
आपके य ानु ान पूण कर लेनेपर न य ही हमारे सब पाप न हो जायँगे ।। २१ ।।
वं ह य ोऽ रः सव वं धम वं जाप तः ।
वं ग तः सवभूताना म त मे न ता म तः ।। २२ ।।
‘आप ही य , अ र, सव व प, धम, जाप त एवं स पूण भूत क ग त ह—यह मेरी
न त धारणा है’ ।। २२ ।।
वासुदेव उवाच
वमेवैत महाबाहो व ु मह य रदम ।
वं ग तः सवभूताना म त मे न ता म तः ।। २३ ।।
भगवान् ीकृ णने कहा—महाबाहो! श ुदमन नरेश! आप ही ऐसी बात कह सकते
ह। मेरा तो यह ढ़ व ास है क आप ही स पूण भूत के अवल ब ह ।। २३ ।।
वं चा कु वीराणां धमण ह वराजसे ।
गुणीभूताः म ते राजं वं नो राजा गु मतः ।। २४ ।।
राजन्! सम त कौरववीर म एकमा आप ही धमसे सुशो भत होते ह। हमलोग आपके
अनुयायी ह और आपको अपना राजा एवं गु मानते ह ।। २४ ।।
यज व मदनु ातः ा य एष तु वया ।
युन ु नो भवान् काय य वा छ स भारत ।। २५ ।।
इस लये भारत! आप हमारी अनुम तसे वयं ही इस य का अनु ान क जये तथा
हमलोग मसे जसको जस कामपर लगाना चाहते ह , उसे उस कामपर लगनेक आ ा
द जये ।। २५ ।।
स यं ते तजाना म सव कता म तेऽनघ ।
भीमसेनाजुनौ चैव तथा मा वतीसुतौ ।
इ व तो भ व य त वयी व त पा थवे ।। २६ ।।
न पाप नरेश! म आपके सामने स ची त ा करता ँ क आप जो कुछ कहगे, वह
सब क ँ गा। आप राजा ह, आपके ारा य होनेपर भीमसेन, अजुन, नकुल और
सहदे वको भी य ानु ानका फल मल जायगा ।। २६ ।।
इ त ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण
कृ ण ासानु ायामेकस त ततमोऽ यायः ।। ७१ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम ीकृ ण और ासक
यु ध रको य करनेके लये आ ा वषयक इकह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७१ ।।
स त ततमोऽ यायः
ासजीक आ ासे अ क र ाके लये अजुनक , रा य
और नगरक र ाके लये भीमसेन और नकुलक तथा
कुटु ब-पालनके लये सहदे वक नयु
वैश पायन उवाच
एवमु तु कृ णेन धमपु ो यु ध रः ।
ासमाम य मेधावी ततो वचनम वीत् ।। १ ।।
यदा कालं भवान् वे हयमेध य त वतः ।
द य व तदा मां वं व याय ो ह मे तुः ।। २ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! भगवान् ीकृ णके ऐसा कहनेपर मेधावी
धमपु यु ध रने ासजीको स बो धत करके कहा—‘भगवन्! जब आपको अ मेध य
आर भ करनेका ठ क समय जान पड़े तभी आकर मुझे उसक द ा द; य क मेरा य
आपके ही अधीन है’ ।। १-२ ।।
ास उवाच
अहं पैलोऽथ कौ तेय या व य तथैव च ।
वधानं यद् यथाकालं तत् कतारो न संशयः ।। ३ ।।
ासजीने कहा—कु तीन दन! जब य का समय आयेगा, उस समय म, पैल और
या व य—ये सब आकर तु हारे य का सारा व ध- वधान स प करगे; इसम संशय
नह है ।। ३ ।।
चै यां ह पौणमा यां तु तव द ा भ व य त ।
स भाराः स य तां च य ाथ पु षषभ ।। ४ ।।
पु ष वर! आगामी चै क पू णमाको तु ह य क द ा द जायगी, तबतक तुम
उसके लये साम ी सं चत करो ।। ४ ।।
अ व ा वद ैव सूता व ा त दः ।
मे यम ं परी तां तव य ाथ स ये ।। ५ ।।
अ व ाके ाता सूत और ा ण य ाथक स के लये प व अ क परी ा
कर ।। ५ ।।
तमु सृज यथाशा ं पृ थव सागरा बराम् ।
स पयतु यशो द तं तव पा थव दशयन् ।। ६ ।।
पृ वीनाथ! जो अ चुना जाय, उसे शा ीय व धके अनुसार छोड़ो और वह तु हारे
द तमान् यशका व तार करता आ समु पय त सम त पृ वीपर मण करे ।। ६ ।।
वैश पायन उवाच
इ यु ः स तथे यु वा पा डवः पृ थवीप तः ।
चकार सव राजे यथो ं वा दना ।। ७ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजे ! यह सुनकर पा डु पु राजा यु ध रने ‘ब त
अ छा’ कहकर वाद ासजीके कथनानुसार सारा काय स प कया ।। ७ ।।
स भारा ैव राजे सव संक पताऽभवन् ।
स स भारान् समा य नृपो धमसुत तदा ।। ८ ।।
यवेदयदमेया मा कृ ण ै पायनाय वै ।
राजे ! उ ह ने मनम जन- जन सामान को एक करनेका संक प कया था, उन
सबको जुटाकर धमपु अमेया मा राजा यु ध रने ीकृ ण ै पायन ासजीको सूचना
द ।। ८ ।।
ततोऽ वी महातेजा ासो धमा मजं नृपम् ।। ९ ।।
यथाकालं यथायोगं स जाः म तव द णे ।
तब महातेज वी ासने धमपु राजा यु ध रसे कहा—‘राजन्! हमलोग यथासमय
उ म योग आनेपर तु ह द ा दे नेको तैयार ह ।। ९ ।।
य कूच सौवण य चा यद प कौरव ।। १० ।।
त यो यं भवेत् क चद् रौ मं तत् यता म त ।
‘कु न दन! इस बीचम तुम सोनेके ‘ य’ और ‘कूच’ बनवा लो तथा और भी जो
सुवणमय सामान आव यक ह , उ ह तैयार करा डालो ।। १० ।।
अ ो सॄ यताम पृ ामथ यथा मम् ।
सुगु तं चरतां चा प यथाशा ं यथा व ध ।। ११ ।।
‘आज शा ीय व धके अनुसार य -स ब धी अ को मशः सारी पृ वीपर घूमनेके
लये छोड़ना चा हये तथा ऐसी व था करनी चा हये, जससे वह सुर त पसे सब ओर
वचर सके’ ।। ११ ।।
यु ध र उवाच
अयम ो यथा ु सृ ः पृ थवी ममाम् ।
च र य त यथाकामं त वै सं वधीयताम् ।। १२ ।।
पृ थव पयट तं ह तुरगं कामचा रणम् ।
कः पालये द त मुने तद् भवान् व ु मह त ।। १३ ।।
यु ध रने कहा— न्! यह घोड़ा उप थत है। इसे कस कार छोड़ा जाय,
जससे यह समूची पृ वीपर इ छानुसार घूम आवे। इसक व था आप ही क जये तथा
मुने! यह भी बताइये क भूम डलम इ छानुसार घूमनेवाले इस घोड़ेक र ा कौन
करे? ।। १२-१३ ।।
वैश पायन उवाच
इ यु ः स तु राजे कृ ण ै पायनोऽ वीत् ।
भीमसेनादवरजः े ः सवधनु मताम् ।। १४ ।।
ज णुः स ह णुधृ णु स एनं पाल य य त ।
श ः स ह मह जेतुं नवातकवचा तकः ।। १५ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजे ! यु ध रके इस तरह पूछनेपर ीकृ ण ै पायन
ासने कहा—‘राजन्! अजुन सब धनुधा रय म े ह। वे वजयम उ साह रखनेवाले,
सहनशील और धैयवान् ह; अतः वे ही इस घोड़ेक र ा करगे। उ ह ने नवातकवच का
नाश कया था। वे स पूण भूम डलको जीतनेक श रखते ह ।। १४-१५ ।।
त मन् ा ण द ा न द ं संहननं तथा ।
द ं धनु ेषुधी च स एनमनुया य त ।। १६ ।।
‘उनके पास द अ , द कवच, द धनुष और द तरकस ह; अतः वे ही
इस घोड़ेके पीछे -पीछे जायँगे ।। १६ ।।
स ह धमाथकुशलः सव व ा वशारदः ।
यथाशा ं नृप े चार य य त ते हयम् ।। १७ ।।
‘नृप े ! वे धम और अथम कुशल तथा स पूण व ा म वीण ह, इस लये आपके
य -स ब धी अ का शा ीय व धके अनुसार संचालन करगे ।। १७ ।।
राजपु ो महाबा ः यामो राजीवलोचनः ।
अ भम योः पता वीरः स एनं पाल य य त ।। १८ ।।
‘ जनक बड़ी-बड़ी भुजाएँ ह, याम वण है, कमल-जैसे ने ह, वे अ भम युके वीर
पता राजपु अजुन इस घोड़ेक र ा करगे ।। १८ ।।
भीमसेनोऽ प तेज वी कौ तेयोऽ मत व मः ।
समथ र तुं रा ं नकुल वशा पते ।। १९ ।।
‘ जानाथ! कु तीकुमार भीमसेन भी अ य त तेज वी और अ मतपरा मी ह। नकुलम
भी वे ही गुण ह। ये दोन ही रा यक र ा करनेम पूण समथ ह (अतः वे ही रा यके काय
दे ख) ।। १९ ।।
सहदे व तु कौर समाधा य त बु मान् ।
कुटु बत ं व धवत् सवमेव महायशाः ।। २० ।।
‘कु न दन! महायश वी बु मान् सहदे व कुटु ब-पालनस ब धी सम त काय क
दे खभाल करगे’ ।। २० ।।
तत् तु सव यथा यायमु ः कु कुलो हः ।
चकार फा गुनं चा प सं ददे श हयं त ।। २१ ।।
ासजीके इस कार बतलानेपर कु कुल तलक यु ध रने सारा काय उसी कार
यथो चत री तसे स प कया और अजुनको बुलाकर घोड़ेक र ाके लये इस कार
आदे श दया ।। २१ ।।
यु ध र उवाच
ए जुन वया वीर हयोऽयं प रपा यताम् ।
वमह र तुं ेनं ना यः क न मानवः ।। २२ ।।
यु ध र बोले—वीर अजुन! यहाँ आओ, तुम इस घोड़ेक र ा करो; य क तु ह
इसक र ा करनेके यो य हो। सरा कोई मनु य इसके यो य नह है ।। २२ ।।
ये चा प वां महाबाहो यु ा त नरा धपाः ।
तै व हो यथा न यात् तथा काय वयानघ ।। २३ ।।
महाबाहो! न पाप अजुन! अ क र ाके समय जो राजा तु हारे सामने आव, उनके
साथ भरसक यु न करना पड़े, ऐसी चे ा तु ह करनी चा हये ।। २३ ।।
आ यात भवता य ोऽयं मम सवशः ।
पा थवे यो महाबाहो समये ग यता म त ।। २४ ।।
महाबाहो! मेरे इस य का समाचार तु ह सम त राजा को बताना चा हये और उनसे
यह कहना चा हये क आपलोग यथासमय य म पधार ।। २४ ।।
वैश पायन उवाच
एवमु वा स धमा मा ातरं स सा चनम् ।
भीमं च नकुलं चैव पुरगु तौ समादधत् ।। २५ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! अपने भाई स साची अजुनसे ऐसा कहकर
धमा मा राजा यु ध रने भीमसेन और नकुलको नगरक र ाका भार स प दया ।। २५ ।।
कुटु बत े च तदा सहदे वं युधां प तम् ।
अनुमा य महीपालं धृतरा ं यु ध रः ।। २६ ।।
फर महाराज धृतरा क स म त लेकर यु ध रने यो ा के वामी सहदे वको
कुटु ब-पालन-स ब धी कायम नयु कर दया ।। २६ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण य साम ीस पादने
स त ततमोऽ यायः ।। ७२ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम य साम ीका
स पादन वषयक बह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७२ ।।
स त ततमोऽ यायः
सेनास हत अजुनके ारा अ का अनुसरण
वैश पायन उवाच
द ाकाले तु स ा ते तत ते सुमह वजः ।
व धवद् द यामासुर मेधाय पा थवम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! जब द ाका समय आया, तब उन ास आ द
महान् ऋ वज ने राजा यु ध रको व धपूवक अ मेधय क द ा द ।। १ ।।
कृ वा स पशुब धां द तः पा डु न दनः ।
धमराजो महातेजाः सह व भ रोचत ।। २ ।।
पशुब ध-कम करके य क द ा लये ए महातेज वी पा डु न दन धमराज यु ध र
ऋ वज के साथ बड़ी शोभा पाने लगे ।। २ ।।
अ मेधय के लये छोड़े ए घोड़ेका अजुनके ारा अनुगमन
हय हयमेधाथ वयं स वा दना ।
उ सृ ः शा व धना ासेना मततेजसा ।। ३ ।।
अ मततेज वी वाद ासजीने अ मेधय के लये चुने गये अ को वयं ही
शा ीय व धके अनुसार छोड़ा ।। ३ ।।
स राजा धमराड् राजन् द तो वबभौ तदा ।
हेममाली मक ठः द त इव पावकः ।। ४ ।।
राजन्! य म द त ए धमराज राजा यु ध र सोनेक माला और क ठम सोनेक
क ठ धारण कये व लत अ नके समान का शत हो रहे थे ।। ४ ।।
कृ णा जनी द डपा णः ौमवासाः स धमजः ।
वबभौ ु तमान् भूयः जाप त रवा वरे ।। ५ ।।
काला मृगचम, हाथम द ड और रेशमी व धारण कये धमपु राजा यु ध र
अ धक का तमान् हो य म डपम जाप तक भाँ त शोभा पा रहे थे ।। ५ ।।
तथैवा य वजः सव तु यवेषा वशा पते ।
बभूवुरजुन ा प द त इव पावकः ।। ६ ।।
जानाथ! उनके सम त ऋ वज् भी उ ह के समान वेश-भूषा धारण कये सुशो भत
होते थे। अजुन भी व लत अ नके समान द तमान् हो रहे थे ।। ६ ।।
ेता ः कृ णसारं तं ससारा ं धनंजयः ।
व धवत् पृ थवीपाल धमराज य शासनात् ।। ७ ।।
भूपाल जनमेजय! ेत घोड़ेवाले अजुनने धमराजक आ ासे उस य स ब धी
अ का व धपूवक अनुसरण कया ।। ७ ।।
व पन् गा डवं राजन् ब गोधाङ् गु ल वान् ।
तम ं पृ थवीपाल मुदा यु ः ससार च ।। ८ ।।
पृ थवीपाल! राजन्! अजुनने अपने हाथ म गोधाके चमड़ेके बने द ताने पहन रखे थे।
वे गा डीव धनुषक टं कार करते ए बड़ी स ताके साथ अ के पीछे -पीछे जा रहे
थे ।। ८ ।।
आकुमारं तदा राज ागमत् त पुरं वभो ।
ु कामं कु े ं या य तं धनंजयम् ।। ९ ।।
जनमेजय! भो! उस समय या ा करते ए कु े अजुनको दे खनेके लये ब च से
लेकर बूढ़ तक सारा ह तनापुर वहाँ उमड़ आया था ।। ९ ।।
तेषाम यो यस मदा मेव समजायत ।
द ूणां हयं तं च तं चैव हयसा रणम् ।। १० ।।
य के घोड़े और उसके पीछे जानेवाले अजुनको दे खनेक इ छासे लोग क इतनी
भीड़ इक हो गयी थी क आपसक ध का-मु क से सबके बदनम पसीने नकल
आये ।। १० ।।
ततः श दो महाराज दशः खं त पूरयन् ।
बभूव े तां नॄणां कु तीपु ं धनंजयम् ।। ११ ।।
महाराज! उस समय कु तीपु धनंजयका दशन करनेवाले लोग के मुखसे जो श द
नकलता था, वह स पूण दशा और आकाशम गूँज रहा था ।। ११ ।।
एष ग छ त कौ तेय तुरग ैव द तमान् ।
यम वे त महाबा ः सं पृशन् धनु मम् ।। १२ ।।
(लोग कहते थे—) ‘ये कु तीकुमार अजुन जा रहे ह और वह द तमान् अ जा रहा
है, जसके पीछे महाबा अजुन उ म धनुष धारण कये जा रहे ह’ ।। १२ ।।
एवं शु ाव वदतां गरो ज णु दारधीः ।
व त तेऽ तु जा र ं पुन ैही त भारत ।। १३ ।।
उदारबु अजुनने पर पर वातालाप करते ए लोग क बात इस कार सुन
—‘भारत! तु हारा क याण हो। तुम सुखसे जाओ और पुनः कुशलपूवक लौट
आओ’ ।। १३ ।।
अथापरे मनु ये पु षा वा यम ुवन् ।
नैनं प याम स मद धनुरेतत् यते ।। १४ ।।
एत भीम न ादं व ुतं गा डवं धनुः ।
व त ग छ व र ो वै प थानमकुतोभयम् ।। १५ ।।
नवृ मेनं यामः पुनरे य त च ुवम् ।
नरे ! सरे लोग ये बात कहते थे—‘इस भीड़म हम अजुनको तो नह दे खते ह; कतु
उनका यह धनुष दखायी दे ता है। यही वह भयंकर टं कार करनेवाला व यात गा डीव
धनुष है। अजुनक या ा सकुशल हो। उ ह मागम कोई क न हो। ये नभय मागपर आगे
बढ़ते रह। ये न य ही कुशलपूवक लौटगे और उस समय हम फर इनका दशन
करगे’ ।। १४-१५ ।।
एवमा ा मनु याणां ीणां च भरतषभ ।। १६ ।।
शु ाव मधुरा वाचः पुनः पुन दारधीः ।
भरत े ! इस कार उदारबु अजुन य और पु ष क कही ई मीठ -मीठ
बात बारंबार सुनते थे ।। १६ ।।
या व य य श य कुशलो य कम ण ।। १७ ।।
ायात् पाथन स हतः शा यथ वेदपारगः ।
या व य मु नके एक व ान् श य, जो य कमम कुशल तथा वेद म पारंगत थे,
व नक शा तके लये अजुनके साथ गये ।। १७ ।।
ा णा महीपाल बहवो वेदपारगाः ।। १८ ।।
अनुज मुमहा मानं या वशा पते ।
व धवत् पृ थवीपाल धमराज य शासनात् ।। १९ ।।
महाराज! जानाथ! उनके सवा और भी ब त-से वेद म पारंगत ा ण और
य ने धमराजक आ ासे व धपूवक महा मा अजुनका अनुसरण कया ।। १८-१९ ।।
पा डवैः पृ थवीम ो न जताम तेजसा ।
चचार स महाराज यथादे शं च स म ।। २० ।।
महाराज! साधु शरोमणे! पा डव ने अपने अ के तापसे जस पृ वीको जीता था,
उसके सभी दे श म वह अ मशः वचरण करने लगा ।। २० ।।
त यु ा न वृ ा न या यासन् पा डव य ह ।
ता न व या म ते वीर व च ा ण महा त च ।। २१ ।।
वीर! उन दे श म अजुनको जो बड़े-बड़े अद्भुत यु करने पड़े, उनक कथा तु ह सुना
रहा ँ ।। २१ ।।
स हयः पृ थव राजन् द णमवतत ।
ससारो रतः पूव त बोध महीपते ।। २२ ।।
अवमृदन ् न् स रा ा ण पा थवानां हयो मः ।
शनै तदा प रययौ ेता महारथः ।। २३ ।।
पृ वीनाथ! वह घोड़ा पृ वीक द णा करने लगा। सबसे पहले वह उ र दशाक
ओर गया। फर राजा के अनेक रा य को र दता आ वह उ म अ पूवक ओर मुड़
गया। उस समय ेतवाहन महारथी अजुन धीरे-धीरे उसके पीछे -पीछे जा रहे थे ।।
त संगणना ना त रा ामयुतश तदा ।
येऽयु य त महाराज या हतबा धवाः ।। २४ ।।
महाराज! महाभारत-यु म जनके भाई-ब धु मारे गये थे, ऐसे जन- जन य ने
उस समय अजुनके साथ यु कया था, उन हजार नरेश क कोई गनती नह है ।। २४ ।।
कराता यवना राजन् बहवोऽ सधनुधराः ।
ले छा ा ये ब वधाः पूव ये नकृता रणे ।। २५ ।।
राजन्! तलवार और धनुष धारण करनेवाले ब त-से करात, यवन और ले छ, जो
पहले महाभारत-यु म पा डव ारा परा त कये गये थे, अजुनका सामना करनेके लये
आये ।। २५ ।।
आया पृ थवीपालाः नरवाहनाः ।
समीयुः पा डु पु ेण बहवो यु मदाः ।। २६ ।।
-पु मनु य और वाहन से यु ब त-से रण मद आय नरेश भी पा डु पु
अजुनसे भड़े थे ।।
एवं वृ ा न यु ा न त त महीपते ।
अजुन य महीपालैनानादे शसमागतैः ।। २७ ।।
पृ वीनाथ! इस कार भ - भ थान म नाना दे श से आये ए राजा के साथ
अजुनको अनेक बार यु करने पड़े ।। २७ ।।
या न तूभयतो राजन् त ता न महा त च ।
ता न यु ा न व या म कौ तेय य तवानघ ।। २८ ।।
न पाप नरेश! जो यु दोन प के यो ा के लये अ धक क दायक और महान्
थे, अजुनके उ ह यु का म यहाँ तुमसे वणन क ँ गा ।। २८ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण अ ानुसरणे
स त ततमोऽ यायः ।। ७३ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम अजुनके ारा अ का
अनुसरण वषयक तह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७३ ।।
चतुःस त ततमोऽ यायः
अजुनके ारा गत क पराजय
वैश पायन उवाच
गतरभवद् यु ं कुतवैरैः करी टनः ।
महारथसमा ातैहतानां पु न तृ भः ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! कु े के यु म जो गत वीर मारे गये थे, उनके
महारथी पु और पौ ने करीटधारी अजुनके साथ वैर बाँध लया था। गतदे शम
जानेपर अजुनका उन गत के साथ घोर यु आ था ।। १ ।।
ते समा ाय स ा तं य यं तुरगो मम् ।
वषया तं ततो वीरा दं शताः पयवारयन् ।। २ ।।
र थनो ब तूणीराः सद ैः समलंकृतैः ।
प रवाय हयं राजन् हीतुं स च मुः ।। ३ ।।
‘पा डव का य स ब धी उ म अ हमारे रा यक सीमाम आ प ँचा है’ यह जानकर
गतवीर कवच आ दसे सुस जत हो पीठपर तरकस बाँधे सजे-सजाये अ छे घोड़ से
जुते ए रथपर बैठकर नकले और उस अ को उ ह ने चार ओरसे घेर लया। राजन्!
घोड़ेको घेरकर वे उसे पकड़नेका उ ोग करने लगे ।। २-३ ।।
ततः करीट सं च य तेषां त चक षतम् ।
वारयामास तान् वीरान् सा वपूवम रदमः ।। ४ ।।
श ु का दमन करनेवाले अजुन यह जान गये क वे या करना चाहते ह। उनके
मनोभावका वचार करके वे उ ह शा तपूवक समझाते ए यु से रोकने लगे ।। ४ ।।
तदना य ते सव शरैर यहनं तदा ।
तमोरजो यां संछ ां तान् करीट यवारयत् ।। ५ ।।
कतु वे सब उनक बातक अवहेलना करके उ ह बाण ारा चोट प ँचाने लगे।
तमोगुण और रजोगुणके वशीभूत ए उन गत को करीट ने यु से रोकनेक पूरी चे ा
क ।। ५ ।।
तान वीत् ततो ज णुः हस व भारत ।
नवत वमधम ाः ेयो जी वतमेव च ।। ६ ।।
भारत! तदन तर वजयशील अजुन हँसते ए-से बोले—‘धमको न जाननेवाले
पापा माओ! लौट जाओ। जीवनक र ाम ही तु हारा क याण है’ ।। ६ ।।
स ह वीरः या यन् वै धमराजेन वा रतः ।
हतबा धवा न ते पाथ ह त ाः पा थवा इ त ।। ७ ।।
वीर अजुनने ऐसा इस लये कहा क चलते समय धमराज यु ध रने यह कहकर मना
कर दया था क ‘कु तीन दन! जन राजा के भाई-ब धु कु े के यु म मारे गये ह,
उनका तु ह वध नह करना चा हये’ ।। ७ ।।
स तदा तद् वचः ु वा धमराज य धीमतः ।
तान् नवत व म याह न यवत त चा प ते ।। ८ ।।
बु मान् धमराजके इस आदे शको सुनकर उसका पालन करते ए ही अजुनने
गत को लौट जानेक आ ा द तथा प वे नह लौटे ।। ८ ।।
तत गतराजानं सूयवमाणमाहवे ।
व च य शरजालेन जहास धनंजयः ।। ९ ।।
तब उस यु थलम गतराज सूयवमाके सारे अंग म बाण धँसाकर अजुन हँसने
लगे ।। ९ ।।
तत ते रथघोषेण रथने म वनेन च ।
पूरय तो दशः सवा धनंजयमुपा वन् ।। १० ।।
यह दे ख गतदे शीय वीर रथक घरघराहट और प हय क आवाजसे सारी दशा को
गुँजाते ए वहाँ अजुनपर टू ट पड़े ।। १० ।।
सूयवमा ततः पाथ शराणां नतपवणाम् ।
शता यमु चद् राजे ल व म भदशयन् ।। ११ ।।
राजे ! तदन तर सूयवमाने अपने हाथ क फुत दखाते ए अजुनपर झुक ई
गाँठवाले एक सौ बाण का हार कया ।। ११ ।।
तथैवा ये महे वासा ये च त यानुया यनः ।
मुमुचुः शरवषा ण धनंजयवधै षणः ।। १२ ।।
इसी कार उसके अनुयायी वीर म भी जो सरे- सरे महान् धनुधर थे, वे भी
अजुनको मार डालनेक इ छासे उनपर बाण क वषा करने लगे ।। १२ ।।
स तान् यामुख नमु ै ब भः सुब न् शरान् ।
च छे द पा डवो राजं ते भूमौ यपतं तदा ।। १३ ।।
राजन्! पा डु पु अजुनने अपने धनुषक यंचासे छू टे ए ब सं यक बाण ारा
श ु के ब त-से बाण को काट डाला। वे कटे ए बाण टु कड़े-टु कड़े होकर पृ वीपर गर
पड़े ।। १३ ।।
केतुवमा तु तेज वी त यैवावरजो युवा ।
युयुधे ातुरथाय पा डवेन यश वना ।। १४ ।।
(सूयवमाके परा त होनेपर) उसका छोटा भाई केतुवमा जो एक तेज वी नवयुवक था,
अपने भाईका बदला लेनेके लये यश वी वीर पा डु पु अजुनके साथ यु करने
लगा ।। १४ ।।
तमापत तं स े य केतुवमाणमाहवे ।
अ य न शतैबाणैब भ सुः परवीरहा ।। १५ ।।
केतुवमाको यु थलम धावा करते दे ख श ुवीर का संहार करनेवाले अजुनने अपने
तीखे बाण से उसे मार डाला ।। १५ ।।
केतुवम य भहते धृतवमा महारथः ।
रथेनाशु समु प य शरै ज णुमवा करत् ।। १६ ।।
केतुवमाके मारे जानेपर महारथी धृतवमा रथके ारा शी ही वहाँ आ धमका और
अजुनपर बाण क वषा करने लगा ।। १६ ।।
त य तां शी तामी य तुतोषातीव वीयवान् ।
गुडाकेशो महातेजा बाल य धृतवमणः ।। १७ ।।
धृतवमा अभी बालक था तो भी उसक उस फुत को दे खकर महातेज वी परा मी
अजुन बड़े स ए ।।
न संदधानं द शे नाददानं च तं तदा ।
कर तमेव स शरान् द शे पाकशास नः ।। १८ ।।
वह कब बाण हाथम लेता है और कब उसे धनुषपर चढ़ाता है, उसको इ कुमार
अजुन भी नह दे ख पाते थे। उ ह केवल इतना ही दखायी दे ता था क वह बाण क वषा
कर रहा है ।। १८ ।।
स तु तं पूजयामास धृतवमाणमाहवे ।
मनसा तु मु त वै रणे सम भहषयन् ।। १९ ।।
उ ह ने रणभू मम थोड़ी दे रतक मन-ही-मन धृतवमाक शंसा क और यु म उसका
हष एवं उ साह बढ़ाते रहे ।। १९ ।।
तं प ग मव ु ं कु वीरः मय व ।
ी तपूव महाबा ः ाणैन परोपयत् ।। २० ।।
य प धृतवमा सपके समान ोधम भरा आ था तो भी कु वीर महाबा अजुन
ेमपूवक मुसकराते ए यु करते थे। उ ह ने उसके ाण नह लये ।। २० ।।
स तथा र यमाणो वै पाथना मततेजसा ।
धृतवमा शरं द तं मुमोच वजये तदा ।। २१ ।।
इस कार अ मत तेज वी अजुनके ारा जानबूझकर छोड़ दये जानेपर धृतवमाने
उनके ऊपर एक अ य त व लत बाण चलाया ।। २१ ।।
स तेन वजय तूणमासीद् व ाः करे भृशम् ।
मुमोच गा डवं मोहात् तत् पपाताथ भूतले ।। २२ ।।
उस बाणने तुर त आकर अजुनके हाथम गहरी चोट प ँचायी। उ ह मू छा आ गयी
और उनका गा डीव धनुष हाथसे छू टकर पृ वीपर जा पड़ा ।। २२ ।।
धनुषः पतत त य स सा चकराद् वभो ।
बभूव स शं पं श चाप य भारत ।। २३ ।।
भो! भरतन दन! अजुनके हाथसे गरते ए उस धनुषका प इ धनुषके समान
तीत होता था ।। २३ ।।
त मन् नप तते द े महाधनु ष पा थवः ।
जहास स वनं हासं धृतवमा महाहवे ।। २४ ।।
उस द महाधनुषके गर जानेपर महासमरम खड़ा आ धृतवमा ठहाका मारकर
जोर-जोरसे हँसने लगा ।। २४ ।।
ततो रोषा दतो ज णुः मृ य धरं करात् ।
धनुराद तद् द ं शरवषववष च ।। २५ ।।
इससे अजुनका रोष बढ़ गया। उ ह ने हाथसे र प छकर उस द धनुषको पुनः
उठा लया और धृतवमापर बाण क वषा आर भ कर द ।। २५ ।।
ततो हलहलाश दो दव पृगभवत् तदा ।
नाना वधानां भूतानां त कमा ण शंसताम् ।। २६ ।।
फर तो अजुनके उस परा मक शंसा करते ए नाना कारके ा णय का
कोलाहल समूचे आकाशम ा त हो गया ।। २६ ।।
ततः स े य सं ु ं काला तकयमोपमम् ।
ज णुं ैगतका योधाः परीताः पयवारयन् ।। २७ ।।
अजुनको काल, अ तक और यमराजके समान कु पत आ दे ख गतदे शीय
यो ा ने चार ओरसे आकर उ ह घेर लया ।। २७ ।।
अ भसृ य परी साथ तत ते धृतवमणः ।
प रव ुगुडाकेशं त ा ु द् धनंजयः ।। २८ ।।
धृतवमाक र ाके लये सहसा आ मण करके गत ने गुडाकेश अजुनको जब सब
ओरसे घेर लया, तब उ ह बड़ा ोध आ ।। २८ ।।
ततो योधान् जघानाशु तेषां स दश चा च ।
महे व तमैरायसैब भः शरैः ।। २९ ।।
फर तो उ ह ने इ के व क भाँ त सह लौह न मत ब सं यक बाण ारा बात-
क -बातम उनके अठारह मुख यो ा को यमलोक प ँचा दया ।। २९ ।।
तान् स भ नान् स े य वरमाणो धनंजयः ।
शरैराशी वषाकारैजघान वनव सन् ।। ३० ।।
तब तो गत म भगदड़ मच गयी। उ ह भागते दे ख अजुनने जोर-जोरसे हँसते ए
बड़ी उतावलीके साथ सपाकार बाण ारा उन सबको मारना आर भ कया ।। ३० ।।
ते भ नमनसः सव ैगतकमहारथाः ।
दशोऽ भ वू राजन् धनंजयशरा दताः ।। ३१ ।।
राजन्! धनंजयके बाण से पी ड़त ए सम त गतदे शीय महार थय का यु वषयक
उ साह न हो गया; अतः वे चार दशा म भाग चले ।। ३१ ।।
तमूचुः पु ष ा ं संश तक नषूदनम् ।
तवा म ककराः सव सव वै वशगा तव ।। ३२ ।।
उनमसे कतने ही संश तकसूदन पु ष सह अजुनसे इस कार कहने लगे
—‘कु तीन दन! हम सब आपके आ ाकारी सेवक ह और सभी सदा आपके अधीन
रहगे ।। ३२ ।।
आ ापय व नः पाथ ान् े यानव थतान् ।
क र यामः यं सव तव कौरवन दन ।। ३३ ।।
‘पाथ! हम सभी सेवक वनीत भावसे आपके सामने खड़े ह। आप हम आ ा द।
कौरवन दन! हम सब लोग आपके सम त य काय सदा करते रहगे’ ।। ३३ ।।
एतदा ाय वचनं सवा तान वीत् तदा ।
जी वतं र त नृपाः शासनं तगृ ताम् ।। ३४ ।।
उनक ये बात सुनकर अजुनने उनसे कहा—‘राजाओ! अपने ाण क र ा करो।
इसका एक ही उपाय है, हमारा शासन वीकार कर लो’ ।। ३४ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण गतपराभवे
चतुःस त ततमोऽ यायः ।। ७४ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम गत क
पराजय वषयक चौह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७४ ।।
प चस त ततमोऽ यायः
अजुनका ा यो तषपुरके राजा व द के साथ यु
वैश पायन उवाच
ा यो तषमथा ये य चरत् स हयो मः ।
भगद ा मज त नययौ रणककशः ।। १ ।।
स हयं पा डु पु य वषया तमुपागतम् ।
युयुधे भरत े व द ो महीप तः ।। २ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर वह उ म अ ा यो तषपुरके पास
प ँचकर वचरने लगा। वहाँ भगद का पु व द रा य करता था, जो यु म बड़ा ही
कठोर था। भरत े ! जब उसे पता लगा क पा डु पु यु ध रका अ मेरे रा यक
सीमाम आ गया है, तब राजा व द नगरसे बाहर नकला और यु के लये तैयार हो
गया ।। १-२ ।।
सोऽ भ नयाय नगराद् भगद सुतो नृपः ।
अ माया तमु म य नगरा भमुखो ययौ ।। ३ ।।
नगरसे नकलकर भगद कुमार राजा व द ने अपनी ओर आते ए घोड़ेको
बलपूवक पकड़ लया और उसे साथ लेकर वह नगरक ओर चला ।। ३ ।।
तमाल य महाबा ः कु णामृषभ तदा ।
गा डीवं व पं तूण सहसा समुपा वत् ।। ४ ।।
उसको ऐसा करते दे ख कु े महाबा अजुनने गा डीव धनुषपर टं कार दे ते ए
सहसा वेगपूवक उसपर धावा कया ।। ४ ।।
ततो गा डीव नमु ै रषु भम हतो नृपः ।
हयमु सृ य तं वीर ततः पाथमुपा वत् ।। ५ ।।
पुनः व य नगरं दं शतः स नृपो मः।
आ नाग वरं नययौ रणककशः ।। ६ ।।
गा डीव धनुषसे छू टे ए बाण के हारसे ाकुल हो वीर राजा व द ने उस घोड़ेको
तो छोड़ दया और वयं पुनः नगरम वेश करके कवच आ दसे सुस जत हो एक े
गजराजपर चढ़कर वह रणककश नरेश यु के लये बाहर नकला। आते ही उसने पाथपर
धावा बोल दया ।। ५-६ ।।
पा डु रेणातप ेण यमाणेन मूध न ।
दोधूयता चामरेण ेतेन च महारथः ।। ७ ।।
ततः पाथ समासा पा डवानां महारथम् ।
आ यामास बीभ सुं बा या मोहा च संयुगे ।। ८ ।।
उसने म तकपर ेत छ धारण कर रखा था। सेवक ेत चवँर खुला रहे थे। पा डव
महारथी पाथके पास प ँचकर उस महारथी नरेशने बालचाप य और मूखताके कारण उ ह
यु के लये ललकारा ।। ७-८ ।।
स वारणं नग यं भ करटामुखम् ।
ेषयामास सं ु ः ेता ं त पा थवः ।। ९ ।।
ोधम भरे ए राजा व द ने ेतवाहन अजुनक ओर अपने पवताकार वशालकाय
गजराजको, जसके ग ड थलसे मदक धारा बह रही थी, बढ़ाया ।। ९ ।।
व र तं महामेघं परवारणवारणम् ।
शा वत् क पतं सं ये ववशं यु मदम् ।। १० ।।
वह महान् मेघके समान मदक वषा करता था। श ुप के हा थय को रोकनेम समथ
था। उसे शा ीय व धके अनुसार यु के लये तैयार कया गया था। वह वामीके अधीन
रहनेवाला और यु म धष था ।। १० ।।
चो मानः स गज तेन रा ा महाबलः ।
तदाङ् कुशेन वबभावु प त य वा बरम् ।। ११ ।।
राजा व द ने जब अंकुशसे मारकर उस महाबली हाथीको आगे बढ़नेके लये े रत
कया, तब वह इस तरह आगेक ओर झपटा, मानो वह आकाशम उड़ जायगा ।। ११ ।।
तमापत तं स े य ु ो राजन् धनंजयः ।
भू म ो वारणगतं योधयामास भारत ।। १२ ।।
राजन्! भरतन दन! उसे इस कार आ मण करते दे ख अजुन कु पत हो उठे । वे
पृ वीपर थत होते ए भी हाथीपर चढ़े ए व द के साथ यु करने लगे ।। १२ ।।
व द ततः ु ो मुमोचाशु धनंजये ।
तोमरान नसंकाशान् शलभा नव वे गतान् ।। १३ ।।
उस समय व द ने कु पत होकर तुरंत ही अजुनपर अ नके समान व लत तोमर
चलाये, जो वेगसे उड़नेवाले पतंग के समान जान पड़ते थे ।। १३ ।।
अजुन तानस ा तान् गा डीव भवैः शरैः ।
धा धा च च छे द ख एव खगमै तदा ।। १४ ।।
वे तोमर अभी पास भी नह आने पाये थे क अजुनने गा डीव धनुष ारा छोड़े गये
आकाशचारी बाण ारा आकाशम ही एक-एक तोमरके दो-दो, तीन-तीन टु कड़े कर
डाले ।। १४ ।।
स तान् ् वा तथा छ ां तोमरान् भगद जः ।
इषूनस ां व रतः ा हणोत् पा डवं त ।। १५ ।।
इस कार उन तोमर के टु कड़े-टु कड़े ए दे ख भगद के पु ने पा डु न दन अजुनपर
शी तापूवक लगातार बाण क वषा आर भ कर द ।। १५ ।।
ततोऽजुन तूणतरं मपुङ्खान ज गान् ।
ेषयामास सं ु ो भगद ा मजं त ।। १६ ।।
स तै व ो महातेजा व द ो महामृधे ।
भृशाहतः पपातो ा न वेनमजहात् मृ तः ।। १७ ।।
तब कु पत ए अजुनने तुरंत ही सोनेके पंख से यु सीधे जानेवाले बाण व द पर
चलाये। उन बाण से अ य त आहत और घायल होकर उस महासमरम महातेज वी व द
हाथीक पीठसे पृ वीपर गर पड़ा; परंतु इतनेपर भी वह बेहोश नह आ ।। १६-१७ ।।
ततः स पुनरा वारण वरं रणे ।
अ ः ेषयामास जयाथ वजयं त ।। १८ ।।
तदन तर व द न पुनः उस े गजराजपर आ ढ़ हो रणभू मम बना कसी
घबराहटके वजयक अ भलाषा रखकर अजुनक ओर उस हाथीको बढ़ाया ।। १८ ।।
त मै बाणां ततो ज णु नमु ाशी वषोपमान् ।
ेषयामास सं ु ो व लत वलनोपमान् ।। १९ ।।
यह दे ख अजुनको बड़ा ोध आ। उ ह ने उस हाथीके ऊपर कचुलसे नकले ए
सप के समान भयंकर तथा व लत अ नके तु य तेज वी बाण का हार
कया ।। २९ ।।
स तै व ो महानागो व वन् धरं वभौ ।
गै रका मवा भोऽ ब वणं तदा ।। २० ।।
उन बाण से घायल होकर वह महानाग खूनक धारा बहाने लगा। उस समय वह
गे म त जलक धारा बहानेवाले अनेक झरन से यु पवतके समान जान पड़ता
था ।। २० ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण व द यु े
प चस त तमोऽ यायः ।। ७५ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम अजुनका व द के
साथ यु वषयक पचह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७५ ।।
षट् स त ततमोऽ यायः
अजुनके ारा व द क पराजय
वैश पायन उवाच
एवं रा मभवत् तद् यु ं भरतषभ ।
अजुन य नरे े ण वृ ेणेव शत तोः ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—भरत े ! जैसे इ का वृ ासुरके साथ यु आ था, उसी
कार अजुनका राजा वझद के साथ तीन दन तीन रात यु होता रहा ।। १ ।।
तत तुथ दवसे व द ो महाबलः ।
जहास स वनं हासं वा यं चेदमथा वीत् ।। २ ।।
तदन तर चौथे दन महाबली व द ठहाका मारकर हँसने लगा और इस कार बोला
— ।। २ ।।
अजुनाजुन त व न मे जीवन् वमो यसे ।
वां नह य क र या म पतु तोयं यथा व ध ।। ३ ।।
‘अजुन! अजुन! खड़े रहो। आज म तु ह जी वत नह छोडँगा। तु ह मारकर पताका
व धपूवक तपण क ँ गा ।। ३ ।।
वया वृ ो मम पता भगद ः पतुः सखा ।
हतो वृ ो मम पता शशुं माम योधय ।। ४ ।।
‘मेरे वृ पता भगद तु हारे बापके म थे, तो भी तुमने उनक ह या क । मेरे पता
बूढ़े थे, इस लये तु हारे हाथसे मारे गये। आज उनका बालक म तु हारे सामने उप थत ँ;
मेरे साथ यु करो’ ।। ४ ।।
इ येवमु वा सं ु ो व द ो नरा धपः ।
ेषयामास कौर वारणं पा डवं त ।। ५ ।।
कु न दन! ऐसा कहकर ोधम भरे ए राजा व द ने पुनः पा डु पु अजुनक ओर
अपने हाथीको हाँक दया ।। ५ ।।
स े यमाणो नागे ो व द ेन धीमता ।
उ प त य वाकाशम भ ाव पा डवम् ।। ६ ।।
बु मान् व द के ारा हाँके जानेपर वह गजराज पा डु पु अजुनक ओर इस
कार दौड़ा, मानो आकाशम उड़ जाना चाहता हो ।। ६ ।।
अ ह तसुमु े न शीकरेण स नागराट् ।
समौ त गुडाकेशं शैलं नील मवा बुदः ।। ७ ।।
उस गजराजने अपनी सूँडसे छोड़े गये जलकण ारा गुडाकेश अजुनको भगो दया।
मानो मेघने नील पवतपर जलके फुहारे डाल दये ह ।। ७ ।।
स तेन े षतो रा ा मेघवद् वनदन् मु ः ।
मुखाड बरसं ादै र य वत फा गुनम् ।। ८ ।।
राजासे े रत होकर बारंबार मेघके समान ग भीर गजना करता आ वह हाथी अपने
मुखके ची कारपूण कोलाहलके साथ अजुनपर टू ट पड़ा ।। ८ ।।
स नृ य व नागे ो व द चो दतः ।
आससाद तं राजन् कौरवाणां महारथम् ।। ९ ।।
राजन्! व द का हाँका आ वह गजराज नृ य-सा करता आ तुरंत कौरव महारथी
अजुनके पास जा प ँचा ।। ९ ।।
तमाया तमथाल य व द य वारणम् ।
गा डीवमा य बली न क पत श ुहा ।। १० ।।
व द के उस हाथीको आते दे ख श ु का संहार करनेवाले बलवान् अजुन
गा डीवका सहारा लेकर त नक भी वच लत नह ए ।। १० ।।
चु ोध बलव चा प पा डव त य भूपतेः ।
काय व नमनु मृ य पूववैरं च भारत ।। ११ ।।
भरतन दन! व द के कारण जो कायम व न पड़ रहा था, उसको तथा पहलेके
वैरको याद करके पा डु पु अजुन उस राजापर अ य त कु पत हो उठे ।। ११ ।।
तत तं वारणं ु ः शरजालेन पा डवः ।
नवारयामास तदा वेलेव मकरालयम् ।। १२ ।।
ोधम भरे ए पा डु कुमार अजुनने अपने बाणसमूह ारा उस हाथीको उसी तरह
रोक दया, जैसे तटक भू म उमड़ते ए समु को रोक दे ती है ।। १२ ।।
स नाग वरः ीमानजुनेन नवा रतः ।
त थौ शरै वनु ा ः ा व छल लतो यथा ।। १३ ।।
उसके सारे अंग म बाण धँसे ए थे। अजुनके ारा रोका गया वह शोभाशाली गजराज
काँट वाली साहीके समान खड़ा हो गया ।। १३ ।।
नवा रतं गजं ् वा भगद सुतो नृपः ।
उ ससज शतान् बाणानजुनं ोधमू छतः ।। १४ ।।
अपने हाथीको रोका गया दे ख भगद कुमार राजा व द ोधसे ाकुल हो उठा
और अजुनपर तीखे बाण क वषा करने लगा ।। १४ ।।
अजुन तु महाबा ः शरैर र नघा त भः ।
वारयामास तान् बाणां तदद्भुत मवाभवत् ।। १५ ।।
परंतु महाबा अजुनने अपने श ुघाती सायक ारा उन सारे बाण को पीछे लौटा
दया। वह एक अद्भुत-सी घटना ई ।। १५ ।।
ततः पुनर भ ु ो राजा ा यो तषा धपः ।
ेषयामास नागे ं बलवत् पवतोपमम् ।। १६ ।।
तब ा यो तषपुरके वामी राजा व द ने अ य त कु पत हो अपने पवताकार
गजराजको पुनः बलपूवक आगे बढ़ाया ।। १६ ।।
तमापत तं स े य बलवत् पाकशास नः ।
नाराचम नसंकाशं ा हणोद् वारणं त ।। १७ ।।
उसे बलपूवक आ मण करते दे ख इ कुमार अजुनने उस हाथीके ऊपर एक अ नके
समान तेज वी नाराच चलाया ।। १७ ।।
स तेन वारणो राजन् मम व भहतो भृशम् ।
पपात सहसा भूमौ व ण इवाचलः ।। १८ ।।
राजन्! उस नाराचने हाथीके मम थान म गहरी चोट प ँचायी। वह व के मारे ए
पवतक भाँ त सहसा पृ वीपर ढह पड़ा ।। १८ ।।
स पतन् शुशुभे नागो धनंजयशराहतः ।
वश व महाशैलो मह व पी डतः ।। १९ ।।
अजुनके बाण से घायल होकर गरता आ वह हाथी ऐसी शोभा पाने लगा, मानो
व के आघातसे अ य त पी ड़त आ महान् पवत पृ वीम समा जाना चाहता हो ।। १९ ।।
त मन् नप तते नागे व द य पा डवः ।
तं न भेत म याह ततो भू मगतं नृपम् ।। २० ।।
व द के उस हाथीके धराशायी होते ही राजा व द वयं भी पृ वीपर जा पड़ा।
उस समय पा डु पु अजुनने उससे कहा—‘राजन्! तु ह डरना नह चा हये’ ।। २० ।।
अ वी महातेजाः थतं मां यु ध रः ।
राजान ते न ह त ा धनंजय कथंचन ।। २१ ।।
जब म घरसे थत आ, उस समय महातेज वी राजा यु ध रने मुझसे कहा
—‘धनंजय! तु ह कसी तरह भी राजा का वध नह करना चा हये’ ।। २१ ।।
सवमेत र ा भव येतावता कृतम् ।
योधा ा प न ह त ा धनंजय रणे वया ।। २२ ।।
“पु ष सह! इतना करनेसे सब कुछ हो जायगा। अजुन! तु ह यु ठानकर
यो ा का वध कदा प नह करना चा हये ।। २२ ।।
व ा ा प राजानः सव सहसु जनैः ।
यु ध र या मेधो भव रनुभूयताम् ।। २३ ।।
‘तुम सभी राजा से कह दे ना क आप सब लोग अपने सु द के साथ पधार और
यु ध रके अ मेधय -स ब धी उ सवका आन द ल’ ।। २३ ।।
इ त ातृवचः ु वा न ह म वां नरा धप ।
उ न भयं तेऽ त व तमान् ग छ पा थव ।। २४ ।।
‘नरे र! भाईके इस वचनको सुनकर इसे शरोधाय करके म तु ह मार नह रहा ँ।
भूपाल! उठो, तु ह कोई भय नह है। तुम सकुशल अपने घरको लौट जाओ ।। २४ ।।
आग छे था महाराज परां चै ीमुप थताम् ।
यदा मेधो भ वता धमराज य धीमतः ।। २५ ।।
‘महाराज! आगामी चै मासक उ म पू णमा त थ उप थत होनेपर तुम ह तनापुरम
आना। उस समय बु मान् धमराजका वह उ म य होगा’ ।। २५ ।।
एवमु ः स राजा तु भगद ा मज तदा ।
तथे येवा वीद् वा यं पा डवेना भ न जतः ।। २६ ।।
अजुनके ऐसा कहनेपर उनसे परा त ए भगद कुमार राजा व द ने कहा—‘ब त
अ छा, ऐसा ही होगा’ ।। २६ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण व द पराजये
षट् स त ततमोऽ यायः ।। ७६ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम व द क
पराजय वषयक छह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७६ ।।
स तस त ततमोऽ यायः
अजुनका सै धव के साथ यु
वैश पायन उवाच
( ज वा सा राजानं भगद सुतं तदा ।
वसृ य याते तुरगे सै धवान् त भारत ।।)
सै धवैरभवद् यु ं तत त य करी टनः ।
हतशेषैमहाराज हतानां च सुतैर प ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—भरतन दन! महाराज भगद के पु राजा व द को
परा जत और स करनेके प ात् उसे वदा करके जब अजुनका घोड़ा सधुदेशम गया,
तब महाभारत-यु म मरनेसे बचे ए सधुदेशीय यो ा तथा मारे गये राजा के पु के
साथ करीटधारी अजुनका घोर सं ाम आ ।। १ ।।
तेऽवतीणमुप ु य वषयं ेतवाहनम् ।
यु युरमृ य तो राजानः पा डवषभम् ।। २ ।।
य के घोड़ेको और ेतवाहन अजुनको अपने रा यके भीतर आया आ सुनकर वे
सधुदेशीय य अमषम भरकर उन पा डव वर अजुनका सामना करनेके लये आगे
बढ़े ।। २ ।।
अ ं च तं परामृ य वषया ते वषोपमाः ।
न भयं च रे पाथाद् भीमसेनादन तरात् ।। ३ ।।
वे वषके समान भयंकर य अपने रा यके भीतर आये ए उस घोड़ेको पकड़कर
भीमसेनके छोटे भाई अजुनसे त नक भी भयभीत नह ए ।। ३ ।।
तेऽ व राद् धनु पा ण य य य हय य च ।
बीभ सुं यप त पदा तनमव थतम् ।। ४ ।।
य स ब धी घोड़ेसे थोड़ी ही रपर अजुन हाथम धनुष लये पैदल ही खड़े थे। वे सभी
य उनके पास जा प ँचे ।। ४ ।।
तत ते तं महावीया राजानः पयवारयन् ।
जगीष तो नर ा ं पूव व नकृता यु ध ।। ५ ।।
वे महापरा मी य पहले यु म अजुनसे परा त हो चुके थे और अब उन पु ष सह
पाथको जीतना चाहते थे। अतः उन सबने उ ह घेर लया ।। ५ ।।
ते नामा य प गो ा ण कमा ण व वधा न च ।
क तय त तदा पाथ शरवषरवा करन् ।। ६ ।।
वे अजुनसे अपने नाम, गो और नाना कारके कम बताते ए उनपर बाण क
बौछार करने लगे ।। ६ ।।
ते कर तः शर ातान् वारण तवारणान् ।
रणे जयमभी स तः कौ तेयं पयवारयन् ।। ७ ।।
वे ऐसे बाणसमूह क वषा करते थे, जो हा थय को भी आगे बढ़नेसे रोक दे नेवाले थे।
उ ह ने रणभू मम वजयक अ भलाषा रखकर कु तीकुमारको घेर लया ।। ७ ।।
ते समी य च तं कृ णमु कमाणमाहवे ।
सव युयु धरे वीरा रथ था तं पदा तनम् ।। ८ ।।
यु म भयानक कम करनेवाले अजुनको पैदल दे खकर वे सभी वीर रथपर आ ढ़ हो
उनके साथ यु करने लगे ।। ८ ।।
ते तमाज नरे वीरं नवातकवचा तकम् ।
संश तक नह तारं ह तारं सै धव य च ।। ९ ।।
नवातकवच का वनाश, संश तक का संहार और जय थका वध करनेवाले वीर
अजुनपर वै धव ने सब ओरसे हार आर भ कर दया ।। ९ ।।
ततो रथसह ेण हयानामयुतेन च ।
को क कृ य बीभ सुं मनसोऽभवन् ।। १० ।।
एक हजार रथ और दस हजार घोड़ से अजुनको घेरकर उ ह को ब -सा करके वे
मन-ही-मन बड़े स हो रहे थे ।। १० ।।
तं मर तो वधं वीराः स धुराज य चाहवे ।
जय थ य कौर समरे स सा चना ।। ११ ।।
कु न दन! कु े के समरा णम स साची अजुनके ारा जो सधुराज जय थका
वध आ था, उसक याद उन वीर को कभी भूलती नह थी ।। ११ ।।
ततः पज यवत् सव शरवृ ीरवासृजन् ।
तैः क णः शुशुभे पाथ र वमघा तरे यथा ।। १२ ।।
वे सब यो ा मेघके समान अजुनपर बाण क वषा करने लगे। उन बाण से आ छा दत
होकर कु ती-न दन अजुन बादल म छपे ए सूयक भाँ त शोभा पा रहे थे ।। १२ ।।
स शरैः समव छ काशे पा डवषभः ।
प चरा तरसंचारी शकु त इव भारत ।। १३ ।।
भरतन दन! बाण से आ छा दत ए पा डव वर अजुन प जड़ेके भीतर फुदकनेवाले
प ीक भाँ त जान पड़ते थे ।। १३ ।।
ततो हाहाकृतं सव कौ तेये शरपी डते ।
ैलो यमभवद् राजन् र वरासी च न भः ।। १४ ।।
राजन्! कु तीकुमार अजुन जब इस कार बाण से पी ड़त हो गये, तब उनक ऐसी
अव था दे ख लोक हाहाकार कर उठ और सूयदे वक भा फ क पड़ गयी ।। १४ ।।
ततो ववौ महाराज मा तो लोमहषणः ।
रा र सदा द यं युगपत् सोममेव च ।। १५ ।।
महाराज! उस समय र गटे खड़े कर दे नेवाली च ड वायु चलने लगी। रा ने एक ही
समय सूय और च मा दोन को स लये ।। १५ ।।
उ का ज नरे सूय वक य यः सम ततः ।
वेपथु ाभवद् राजन् कैलास य महा गरेः ।। १६ ।।
चार ओर बखरकर गरती ई उ काएँ सूयसे टकराने लग । राजन्! उस समय
महापवत कैलास भी काँपने लगा ।। १६ ।।
मुमुचुः ासम यु णं ःखशोकसम वताः ।
स तषयो जातभया तथा दे वषयोऽ प च ।। १७ ।।
स त षय और दे व षय को भी भय होने लगा। वे ःख और शोकसे संत त हो अ य त
गरम-गरम साँस छोड़ने लगे ।। १७ ।।
शशं चाशु व न भ म डलं श शनोऽपतत् ।
वपरीता दश ा प सवा धूमाकुला तथा ।। १८ ।।
पूव उ काएँ च माम थत ए शश- च का भेदन करके च म डलके चार ओर
गरने लग । स पूण दशाएँ धूमा छ होकर वपरीत तीत होने लग ।। १८ ।।
रासभा णसंकाशा धनु म तः स व ुतः ।
आवृ य गगनं मेघा मुमुचुमासशो णतम् ।। १९ ।।
गधेके समान रंग और लाल रंगके स म णसे जो रंग हो सकता है, वैसे वणवाले मेघ
आकाशको घेरकर र और मांसक वषा करने लगे। उनम इ धनुषका भी दशन होता था
और बज लयाँ भी क धती थ ।। १९ ।।
एवमासीत् तदा वीरे शरवषण संवृते ।
फा गुने भरत े तदद्भुत मवाभवत् ।। २० ।।
भरत े ! वीर अजुनके उस समय श ु क बाण-वषासे आ छा दत हो जानेपर
ऐसे-ऐसे उ पात कट होने लगे। वह अद्भुत-सी बात ई ।। २० ।।
त य तेनावक ण य शरजालेन सवतः ।
मोहात् पपात गा डीवमावाप कराद प ।। २१ ।।
उस बाणसमूहके ारा सब ओरसे आ छा दत ए अजुनपर मोह छा गया। उस समय
उनके हाथसे गा डीव धनुष और द ताने गर पड़े ।। २१ ।।
त मन् मोहमनु ा ते शरजालं महत् तदा ।
सै धवा मुमुचु तूण गतस वे महारथे ।। २२ ।।
महारथी अजुन जब मोह त एवं अचेत हो गये, उस समय भी सधुदेशीय यो ा
उनपर वेगपूवक महान् बाणसमूहक वषा करते रहे ।। २२ ।।
ततो मोहसमाप ं ा वा पाथ दवौकसः ।
सव व तमनस त य शा तकृतोऽभवन् ।। २३ ।।
अजुनको मोहके वशीभूत आ जान स पूण दे वता मन-ही-मन सं त हो गये और
उनके लये शा तका उपाय करने लगे ।। २३ ।।
ततो दे वषयः सव तथा स तषयोऽ प च ।
षय वजयं जेपुः पाथ य धीमतः ।। २४ ।।
फर तो सम त दे व ष, स त ष और ष मलकर बु मान् अजुनक वजयके लये
म -जप करने लगे ।। २४ ।।
ततः द पते दे वैः पाथतेज स पा थव ।
त थावचलवद् धीमान् सं ामे परमा वत् ।। २५ ।।
पृ वीनाथ! तदन तर दे वता के य नसे अजुनका तेज पुनः उ त हो उठा और
उ म अ - व ाके ाता परम बु मान् धनंजय सं ामभू मम पवतके समान अ वचल
भावसे खड़े हो गये ।। २५ ।।
वचकष धनु द ं ततः कौरवन दनः ।
य येवेह श दोऽभू महां त य पुनः पुनः ।। २६ ।।
फर तो कौरवन दन अजुनने अपने द धनुषक यंचा ख ची। उस समय उससे
बार-बार मशीनक तरह बड़े जोर-जोरसे टं कार- व न होने लगी ।। २६ ।।
ततः स शरवषा ण य म ान् त भुः ।
ववष धनुषा पाथ वषाणीव पुरंदरः ।। २७ ।।
इसके बाद जैसे इ पानीक वषा करते ह, उसी तरह भावशाली पाथने अपने
धनुष ारा श ु पर बाण क झड़ी लगा द ।। २७ ।।
तत ते सै धवा योधाः सव एव सराजकाः ।
ना य त शरैः क णाः शलभै रव पादपाः ।। २८ ।।
फर तो पाथके बाण से आ छा दत हो सम त सै धव यो ा ट य से ढँ के ए
वृ क भाँ त अपने राजास हत अ य हो गये ।। २८ ।।
त य श दे न व ेसुभयाता व वुः ।
मुमुचु ा ु शोकाताः शुशुचु ा प सै धवाः ।। २९ ।।
कतने ही गा डीवक टं कार- व नसे ही थरा उठे । ब तेरे भयसे ाकुल होकर भाग
गये और अनेक सै धव यो ा शोकसे आतुर होकर आँसू बहाने एवं शोक करने
लगे ।। २९ ।।
तां तु सवान् नर ा ःसै धवान् चरद् बली ।
अलातच वद् राजन् शरजालैः समापयत् ।। ३० ।।
राजन्! उस समय महाबली पु ष सह अजुन अलातच क भाँ त घूम-घूमकर सारे
सै धव पर बाण-समूह क वषा करने लगे ।। ३० ।।
त द जाल तमं बाणजालम म हा ।
वसृ य द ु सवासु महे इव व भृत् ।। ३१ ।।
श ुसूदन अजुनने व धारी महे क भाँ त स पूण दशा से इ जालके समान
बाण का जाल-सा फैला दया ।। ३१ ।।
मेघजाल नभं सै यं वदाय शरवृ भः ।
वबभौ कौरव े ः शरद व दवाकरः ।। ३२ ।।
जैसे शर कालके सूय मेघ क घटाको छ - भ करके का शत होते ह, उसी कार
कौरव े अजुन अपने बाण क वृ से श ुसेनाको वद ण करके अ य त शोभा पाने
लगे ।। ३२ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण सै धवयु े
स तस त ततमोऽ यायः ।। ७७ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम सै धव के साथ
अजुनका यु वषयक सतह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७७ ।।
(दा णा य अ धक पाठका १ ोक मलाकर कुल ३३ ोक ह)
अ स त ततमोऽ यायः
अजुनका सै धव के साथ यु और ःशलाके अनुरोधसे
उसक समा त
वैश पायन उवाच
ततो गा डीवभृ छू रो यु ाय समुप थतः ।
वबभौ यु ध धष हमवानचलो यथा ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर गा डीवधारी शूरवीर अजुन यु के
लये उ त हो गये। वे श ु के लये जय थे और यु भू मम हमवान् पवतके समान
अचल भावसे डटे रहकर बड़ी शोभा पाने लगे ।। १ ।।
तत ते सै धवा योधाः पुनरेव व थताः ।
मु च त सुसंर धा शरवषा ण भारत ।। २ ।।
भरतन दन! तदन तर स धुदेशीय यो ा फरसे संग ठत होकर खड़े हो गये और
अ य त ोधम भरकर बाण क वषा करने लगे ।। २ ।।
तान् ह य महाबा ः पुनरेव व थतान् ।
ततः ोवाच कौ तेयो मुमूषून् णया गरा ।
यु य वं परया श या यत वं वजये मम ।। ३ ।।
उस समय महाबा कु तीकुमार अजुन पुनः मरनेक इ छासे खड़े ए सै धव को
स बो धत करके हँसते ए मधुर वाणीम बोले—‘वीरो! तुम पूरी श लगाकर यु करो
और मुझपर वजय पानेका य न करते रहो ।। ३ ।।
कु वं सवकाया ण महद् वो भयमागतम् ।
एष यो या म सवा तु नवाय शरवागुराम् ।। ४ ।।
‘तुम अपने सारे काय पूरे कर लो। तुमलोग पर महान् भय आ प ँचा है। यह दे खो—म
तु हारे बाण का जाल छ - भ करके तुम सब लोग के साथ यु करनेको उ त
ँ ।। ४ ।।
त वं यु मनसो दप शम यता म वः ।
एताव वा कौर ो रोषाद् गा डीवभृत् तदा ।। ५ ।।
ततोऽथ वचनं मृ वा ातु य य भारत ।
न ह त ा रणे तात या व जगीषवः ।। ६ ।।
जेत ा े त यत् ो ं धमरा ा महा मना ।
च तयामास स तदा फा गुनः पु षषभः ।। ७ ।।
‘मनम यु का हौसला लेकर खड़े रहो। म तु हारा घम ड चूर कये दे ता ँ।’ भारत!
गा डीवधारी कु न दन अजुन श ु से ऐसा वचन कहकर अपने बड़े भाईक कही ई
बात याद करने लगे। महा मा धमराजने कहा था क ‘तात! रणभू मम वजयक इ छा
रखनेवाले य का वध न करना। साथ ही उ ह परा जत भी करना।’ इस बातको याद
करके पु ष वर अजुन इस कार च ता करने लगे ।। ५—७ ।।
इ यु ोऽहं नरे े ण न ह त ा नृपा इ त ।
कथं त मृषेदं याद् धमराजवचः शुभम् ।। ८ ।।
न ह येरं राजानो रा ा ा कृता भवेत् ।
इ त सं च य स तदा फा गुनः पु षषभः ।। ९ ।।
ोवाच वा यं धम ः सै धवान् यु मदान् ।
‘अहो! महाराजने कहा था क य का वध न करना। धमराजका वह मंगलमय
वचन कैसे म या न हो। राजालोग मारे न जायँ और राजा यु ध रक आ ाका पालन हो
जाय, इसके लये या करना चा हये।’ ऐसा सोचकर धमके ाता पु ष वर अजुनने
रणो म सै धव से इस कार कहा— ।। ८-९ ।।
ेयो वदा म यु माकं न हसेयमव थतान् ।। १० ।।
य व य त सं ामे तवा मी त परा जतः ।
एत छ वा वचो म ं कु वं हतमा मनः ।। ११ ।।
‘यो ाओ! म तु हारे क याणक बात बता रहा ँ। तुममसे जो कोई अपनी पराजय
वीकार करते ए रणभू मम यह कहेगा क म आपका ँ, आपने मुझे यु म जीत लया है,
वह सामने खड़ा रहे तो भी म उसका वध नह क ँ गा। मेरी यह बात सुनकर तु ह जसम
अपना हत दखायी पड़े, वह करो ।। १०-११ ।।
ततोऽ यथा कृ गता भ व यथ मया दताः ।
एवमु वा तु तान् वीरान् युयुधे कु पु वः ।। १२ ।।
अजुनोऽतीव सं ु ः सं ु ै व जगीषु भः ।
‘य द मेरे कथनके वपरीत तुमलोग यु के लये उ त ए तो मुझसे पी ड़त होकर
भारी संकटम पड़ जाओगे।’ उन वीर से ऐसा कहकर कु कुल तलक अजुन अ य त कु पत
हो ोधम भरे ए वजया भलाषी सै धव के साथ यु करने लगे ।। १२ ।।
शतं शतसह ा ण शराणां नतपवणाम् ।। १३ ।।
मुमुचुः सै धवा राजं तदा गा डीवध व न ।
राजन्! उस समय सै धव ने गा डीवधारी अजुनपर झुक ई गाँठवाले एक करोड़
बाण का हार कया ।। १३ ।।
शरानापततः ू रानाशी वष वषोपमान् ।। १४ ।।
च छे द न शतैबाणैर तरा स धनंजयः ।
वषधर सप के समान उन कठोर बाण को अपनी ओर आते दे ख अजुनने तीखे
सायक ारा उन सबको बीचसे काट डाला ।। १४ ।।
छ वा तु तानाशु चैव कङ् कप ान् शला शतान् ।। १५ ।।
एकैकमेषां समरे बभेद न शतैः शरैः ।
सानपर चढ़ाकर तेज कये गये उन कंकप यु बाण के तुर त ही टु कड़े-टु कड़े करके
समरांगणम अजुनने सै धव वीर मसे येकको पैने बाण मारकर घायल कर दया ।। १५
।।
ततः ासां श पुनरेव धनंजयम् ।। १६ ।।
जय थं हतं मृ वा च पुः सै धवा नृपाः ।
तदन तर जय थ-वधका मरण करके सै धव ने अजुनपर पुनः ब त-से ास और
श य का हार कया ।। १६ ।।
तेषां करीट संक पं मोघं च े महाबलः ।। १७ ।।
सवा तान तरा छ वा तदा चु ोश पा डवः ।
परंतु महाबली करीटधारी पा डु कुमार अजुनने उनका सारा मनसूबा थ कर दया।
उ ह ने उन सभी ास और श य को बीचसे ही काटकर बड़े जोरसे गजना क ।। १७
।।
तथैवापततां तेषां योधानां जयगृ नाम् ।। १८ ।।
शरां स पातयामास भ लैः संनतपव भः ।
साथ ही वजयक अ भलाषा लेकर आ मण करनेवाले उन सै धव यो ा के
म तक को वे झुक ई गाँठवाले भ ल ारा काट-काटकर गराने लगे ।। १८ ।।
तेषां वतां चा प पुनरेवा भधावताम् ।। १९ ।।
नवततां च श दोऽभूत् पूण येव महोदधेः ।
उनमसे कुछ लोग भागने लगे, कुछ लोग फरसे धावा करने लगे और कुछ लोग यु से
नवृ होने लगे। उन सबका कोलाहल जलसे भरे ए महासागरक ग भीर गजनाके समान
हो रहा था ।। १९ ।।
ते व यमाना तु तदा पाथना मततेजसा ।। २० ।।
यथा ाणं यथो साहं योधयामासुरजुनम् ।
अ मत तेज वी अजुनके ारा मारे जानेपर भी सै धव यो ा बल और उ साहपूवक
उनके साथ जूझते ही रहे ।। २० ।।
तत ते फा गुनेनाजौ शरैः संनतपव भः ।। २१ ।।
कृता वसं ा भू य ाः ला तवाहनसै नकाः ।
थोड़ी ही दे रम अजुनने यु थलम झुक ई गाँठवाले बाण ारा अ धकांश सै धव
वीर को सं ाशू य कर दया। उनके वाहन और सै नक भी थकावटसे ख हो रहे थे ।। २१
।।
तां तु सवान् प र लानान् व द वा धृतरा जा ।। २२ ।।
ःशला बालमादाय न तारं ययौ तदा ।
सुरथ य सुतं वीरं रथेनाथागमत् तदा ।। २३ ।।
शा यथ सवयोधानाम यग छत पा डवम् ।
सम त सै धव वीर को क पाते जान धृतरा क पु ी ःशला अपने बेटे सुरथके वीर
बालकको जो उसका पौ था, साथ ले रथपर सवार हो रणभू मम पा डु कुमार अजुनके
पास आयी। उसके आनेका उ े य यह था क सब यो ा यु छोड़कर शा त हो
जायँ ।। २२-२३ ।।
सा धनंजयमासा रोदात वरं तदा ।। २४ ।।
धनंजयोऽ प तां ् वा धनु वससृजे भुः ।
वह अजुनके पास आकर आत वरसे फूट-फूटकर रोने लगी। श शाली अजुनने भी
उसे सामने दे ख अपना धनुष नीचे डाल दया ।। २४ ।।
समु सृ य धनुः पाथ व धवद् भ गन तदा ।। २५ ।।
ाह क करवाणी त सा च तं युवाच ह ।
धनुष यागकर कु तीकुमारने व धपूवक ब हनका स कार कया और पूछा—‘ब हन!
बताओ, म तु हारा कौन-सा काय क ँ ?’ तब ःशलाने उ र दया— ।।
एष ते भरत े व ीय या मजः शशुः ।। २६ ।।
अ भवादयते पाथ तं प य पु षषभ ।
‘भैया! भरत े ! यह तु हारे भानजे सुरथका औरस पु है। पु ष वर पाथ! इसक
ओर दे खो, यह तु ह णाम करता है’ ।। २६ ।।
इ यु त य पतरं स प छाजुन तथा ।। २७ ।।
वासा व त ततो राजन् ःशला वा यम वीत् ।
राजन्! ःशलाके ऐसा कहनेपर अजुनने उस बालकके पताके वषयम ज ासा
कट करते ए पूछा—‘ब हन! सुरथ कहाँ है?’ तब ःशला बोली— ।। २७ ।।
पतृशोका भसंत तो वषादात ऽ य वै पता ।। २८ ।।
प च वमगमद् वीरो यथा त मे नशामय ।
‘भैया! इस बालकका पता वीर सुरथ पतृशोकसे संत त और वषादसे पी ड़त हो
जस कार मृ युको ा त आ है, वह मुझसे सुनो ।। २८ ।।
स पूव पतरं ु वा हतं यु े वयानघ ।। २९ ।।
वामागतं च सं ु य यु ाय हयसा रणम् ।
पतु मृ यु ःखात ऽजहात् ाणान् धनंजय ।। ३० ।।
‘ न पाप अजुन! मेरे पु सुरथने पहलेसे सुन रखा था क अजुनके हाथसे ही मेरे
पताक मृ यु ई है। इसके बाद जब उसके कान म यह समाचार पड़ा है क तुम घोड़ेके
पीछे -पीछे यु के लये यहाँतक आ प ँचे हो तो वह पताक मृ युके ःखसे आतुर हो
अपने ाण का प र याग कर बैठा है ।। २९-३० ।।
ा तो बीभ सु र येव नाम ु वैव तेऽनघ ।
वषादातः पपातो ा ममार च ममा मजः ।। ३१ ।।
‘अनघ! ‘अजुन आये’ इन श द के साथ तु हारा नाममा सुनकर ही मेरा बेटा
वषादसे पी ड़त हो पृ वीपर गरा और मर गया ।। ३१ ।।
तं ् वा प ततं त तत त या मजं भो ।
गृही वा समनु ा ता वाम शरणै षणी ।। ३२ ।।
‘ भो! उसको ऐसी अव थाम पड़ा आ दे ख उसके पु को साथ ले म शरण खोजती
ई आज तु हारे पास आयी ँ’ ।। ३२ ।।
इ यु वाऽऽत वरं सा तु मुमोच धृतरा जा ।
द ना द नं थतं पाथम वी चा यधोमुखम् ।। ३३ ।।
ऐसा कहकर धृतरा -पु ी ःशला द न होकर आत वरसे वलाप करने लगी। उसक
द नदशा दे ख अजुन भी द न भावसे अपना मुँह नीचे कये खड़े रहे। उस समय ःशला
उनसे फर बोली— ।। ३३ ।।
वसारं समवे व व ीया मजमेव च ।
कतुमह स धम दयां कु कुलो ह ।। ३४ ।।
‘भैया! तुम कु कुलम े और धमको जाननेवाले हो, अतः दया करो। अपनी इस
खया ब हनक ओर दे खो और भानजेके बेटेपर भी कृपा करो ।। ३४ ।।
व मृ य कु राजानं तं च म दं जय थम् ।
अ भम योयथा जातः प र त् परवीरहा ।। ३५ ।।
तथायं सुरथा जातो मम पौ ो महाभुजः ।
‘म दबु य धन और जय थको भूलकर हम अपनाओ। जैसे अ भम युसे
श ुवीर का संहार करनेवाले परी त्का ज म आ है, उसी कार सुरथसे यह मेरा
महाबा पौ उ प आ है ।। ३५ ।।
तमादाय नर ा स ा ता म तवा तकम् ।। ३६ ।।
शमाथ सवयोधानां शृणु चेदं वचो मम ।
‘पु ष सह! म इसीको लेकर सम त यो ा को शा त करनेके लये आज तु हारे
पास आयी ँ। तुम मेरी यह बात सुनो ।। ३६ ।।
आगतोऽयं महाबाहो त य म द य पु कः ।। ३७ ।।
सादम य बाल य त मात् वं कतुमह स ।
‘महाबाहो! यह उस म दबु जय थका पौ तु हारी शरणम आया है। अतः इस
बालकपर तु ह कृपा करनी चा हये ।। ३७ ।।
एष सा शरसा शमाथम रदम ।। ३८ ।।
याचते वां महाबाहो शमं ग छ धनंजय ।
‘श ुदमन महाबा धनंजय! यह तु हारे चरण म सर रखकर तु ह स करके तुमसे
शा तके लये याचना करता है। अब तुम शा त हो जाओ ।। ३८ ।।
बाल य हतब धो पाथ क चदजानतः ।। ३९ ।।
सादं कु धम मा म युवशम वगाः ।
‘यह अबोध बालक है, कुछ नह जानता है। इसके भाई-ब धु न हो चुके ह। अतः
धम अजुन! तुम इसके ऊपर कृपा करो। ोधके वशीभूत न होओ ।। ३९ ।।
तमनाय नृशंसं च व मृ या य पतामहम् ।। ४० ।।
आग का रणम यथ सादं कतुमह स ।
‘इस बालकका पतामह (जय थ) अनाय, नृशंस और तु हारा अपराधी था। उसको
भूल जाओ और इस बालकपर कृपा करो’ ।। ४० ।।
एवं ुव यां क णं ःशलायां धनंजयः ।। ४१ ।।
सं मृ य दे व गा धार धृतरा ं च पा थवम् ।
उवाच ःखशोकातः धम गहयत् ।। ४२ ।।
जब ःशला इस कार क णायु वचन कहने लगी, तब अजुन राजा धृतरा और
गा धारी दे वीको याद करके ःख और शोकसे पी ड़त हो य-धमक न दा करने लगे
— ।। ४१-४२ ।।
य कृते बा धवाः सव मया नीता यम यम् ।
इ यु वा ब सा वा द सादमकरो जयः ।। ४३ ।।
प र व य च तां ीतो वससज गृहान् त ।। ४४ ।।
‘उस ा -धमको ध कार है, जसके लये मने अपने सारे बा धवजन को यमलोक
प ँचा दया।’ ऐसा कहकर अजुनने ःशलाको ब त सा वाना द और उसके त अपने
कृपा सादका प रचय दया। फर स तापूवक उससे गले मलकर उसे घरक ओर वदा
कया ।। ४३-४४ ।।
ःशला चा प तान् योधान् नवाय महतो रणात् ।
स पू य पाथ ययौ गृहानेव शुभानना ।। ४५ ।।
तदन तर सुमुखी ःशलाने उस महान् समरसे अपने सम त यो ा को पीछे लौटाया
और अजुनक शंसा करती ई वह अपने घरको लौट गयी ।। ४५ ।।
एवं न ज य तान् वीरान् सै धवान् स धनंजयः ।
अ वधावत धाव तं हयं काम वचा रणम् ।। ४६ ।।
इस कार सै धव वीर को परा त करके अजुन इ छानुसार वचरने और दौड़नेवाले
उस घोड़ेके पीछे -पीछे वयं भी दौड़ने लगे ।। ४६ ।।
ततो मृग मवाकाशे यथा दे वः पनाकधृक् ।
ससार तं तथा वीरो व धवद् य यं हयम् ।। ४७ ।।
जैसे पनाकधारी महादे वजी आकाशम मृगके पीछे दौड़े थे, उसी कार वीर अजुनने
उस य स ब धी घोड़ेका व धपूवक अनुसरण कया ।। ४७ ।।
स च वाजी यथे ेन तां तान् दे शान् यथा मम् ।
वचचार यथाकामं कम पाथ य वधयन् ।। ४८ ।।
वह अ यथे ग तसे मशः सभी दे श म घूमता और अजुनके परा मका व तार
करता आ इ छानुसार वचरने लगा ।। ४८ ।।
मेण स हय वेवं वचरन् पु षषभ ।
म णपूरपतेदशमुपायात् सहपा डवः ।। ४९ ।।
पु ष वर जनमेजय! इस कार मशः वचरण करता आ वह अ अजुनस हत
म णपुर-नरेशके रा यम जा प ँचा ।। ४९ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण सै धवपराजये
अ स त ततमोऽ यायः ।। ७८ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम सै धव क
पराजय वषयक अठह रवाँ अ याय पूरा आ ।। ७८ ।।
एकोनाशी ततमोऽ यायः
अजुन और ब ुवाहनका यु एवं अजुनक मृ यु
वैश पायन उवाच
ु वा तु नृप तः ा तं पतरं ब ुवाहनः ।
नययौ वनयेनाथ ा णाथपुरःसरः ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! म णपुरनरेश ब ुवाहनने जब सुना क मेरे पता
आये ह, तब वह ा ण को आगे करके ब त-सा धन साथम लेकर बड़ी वनयके साथ
उनके दशनके लये नगरसे बाहर नकला ।। १ ।।
म णपूरे रं वेवमुपयातं धनंजयः ।
ना यन दत् स मेधावी धममनु मरन् ।। २ ।।
म णपुर-नरेशको इस कार आया दे ख परम बु मान् धनंजयने य-धमका आ य
लेकर उसका आदर नह कया ।। २ ।।
उवाच च स धमा मा सम युः फा गुन तदा ।
येयं न ते यु ा ब ह वं धमतः ।। ३ ।।
उस समय धमा मा अजुन कुछ कु पत होकर बोले—‘बेटा! तेरा यह ढं ग ठ क नह है।
जान पड़ता है, तू य-धमसे ब ह कृत हो गया है ।। ३ ।।
संर यमाणं तुरगं यौ ध रमुपागतम् ।
य यं वषया ते मां नायौ सीः क नु पु क ।। ४ ।।
‘पु ! म महाराज यु ध रके य -स ब धी अ क र ा करता आ तेरे रा यके भीतर
आया ँ। फर भी तू मुझसे यु य नह करता? ।। ४ ।।
धक् वाम तु सु बु धमब ह कृतम् ।
यो मां यु ाय स ा तं सा नैव यगृ थाः ।। ५ ।।
‘तुझ बु को ध कार है, तू न य ही यधमसे हो गया है, य क यु के
लये आये ए मेरा वागत-स कार तू सामनी तसे कर रहा है ।।
न वया पु षाथ ह क द तीह जीवता ।
य वं ीवद् यथा ा तं मां सा ना यगृ थाः ।। ६ ।।
‘तूने संसारम जी वत रहकर भी कोई पु षाथ नह कया। तभी तो एक ीक भाँ त
तू यहाँ यु के लये आये ए मुझे शा तपूवक साथ लेनेके लये चे ा कर रहा है ।। ६ ।।
य हं य तश वामाग छे यं सु मते ।
येयं भवेद ् यु ा तावत् तव नराधम ।। ७ ।।
‘ बु े ! नराधम! य द म ह थयार रखकर खाली हाथ तेरे पास आता तो इस ढं गसे
मलना ठ क हो सकता था’ ।। ७ ।।
तमेवमु ं भ ा तु व द वा प गा मजा ।
अमृ यमाणा भ वोव मुलूपी समुपागमत् ।। ८ ।।
प तदे व अजुन जब अपने पु ब ुवाहनसे ऐसी बात कह रहे थे, उस समय नागक या
उलूपी उस बातको सुनकर उनके अ भ ायको जान गयी और उनके ारा कये गये पु के
तर कारको सहन न कर सकनेके कारण वह धरती छे दकर वहाँ चली आयी ।। ८ ।।
सा ददश ततः पु ं वमृश तमधोमुखम् ।
संत यमानमसकृत् प ा यु ा थना भो ।। ९ ।।
ततः सा चा सवा समुपे योरगा मजा ।
उलूपी ाह वचनं ध य धम वशारदम् ।। १० ।।
भो! उसने दे खा क पु ब ुवाहन नीचे मुँह कये कसी सोच- वचारम पड़ा आ है
और यु ाथ पता उसे बारंबार डाँट-फटकार रहे ह। तब मनोहर अंग वाली नागक या
उलूपी धम- नपुण ब ुवाहनके पास आकर यह धमस मत बात बोली— ।। ९-१० ।।
उलूप मां नबोध वं मातरं प गा मजाम् ।
कु व वचनं पु धम ते भ वता परः ।। ११ ।।
‘बेटा! तु ह व दत होना चा हये क म तु हारी वमाता नागक या उलूपी ँ। तुम मेरी
आ ाका पालन करो। इससे तु ह महान् धमक ा त होगी’ ।। ११ ।।
यु य वैनं कु े ं पतरं यु मदम् ।
एवमेष ह ते ीतो भ व य त न संशयः ।। १२ ।।
‘तु हारे पता कु कुलके े वीर और यु के मदसे उ म रहनेवाले ह। अतः इनके
साथ अव य यु करो। ऐसा करनेसे ये तुमपर स ह गे। इसम संशय नह है’ ।। १२ ।।
एवं म षतो राजा स मा ा ब ुवाहनः ।
मन े महातेजा यु ाय भरतषभ ।। १३ ।।
भरत े ! माताके ारा इस कार अमष दलाये जानेपर महातेज वी राजा
ब ुवाहनने मन-ही-मन यु करनेका न य कया ।। १३ ।।
संन का चनं वम शर ाणं च भानुमत् ।
तूणीरशतस बाधमा रोह रथो मम् ।। १४ ।।
सुवणमय कवच पहनकर तेज वी शर ाण (टोप) धारण करके वह सैकड़
तरकस से भरे ए उ म रथपर आ ढ़ आ ।। १४ ।।
सव पकरणोपेतं यु म ैमनोजवैः ।
सच ोप करं ीमान् हेमभा डप र कृतम् ।। १५ ।।
परमा चतमु य वजं सहं हर मयम् ।
ययौ पाथमु य स राजा ब ुवाहनः ।। १६ ।।
उस रथम सब कारक यु -साम ी सजाकर रखी गयी थी। मनके समान वेगशाली
घोड़े जुते ए थे। च और अ य आव यक सामान भी तुत थे। सोनेके भा ड उसक
शोभा बढ़ाते थे। सुवणसे ही उस रथका नमाण आ था। उसपर सहके च वाली ऊँची
वजा फहरा रही थी। उस परम पू जत उ म रथपर सवार हो ीमान् राजा ब ुवाहन
अजुनका सामना करनेके लये आगे बढ़ा ।। १५-१६ ।।
ततोऽ ये य हयं वीरो य यं पाथर तम् ।
ाहयामास पु षैहय श ा वशारदै ः ।। १७ ।।
पाथ ारा सुर त उस य स ब धी अ के पास जाकर उस वीरने अ श ा वशारद
पु ष ारा उसे पकड़वा लया ।। १७ ।।
गृहीतं वा जनं ् वा ीता मा स धनंजयः ।
पु ं रथ थं भू म ः सं यवारयदाहवे ।। १८ ।।
घोड़ेको पकड़ा गया दे ख अजुन मन-ही-मन ब त स ए। य प वे भू मपर खड़े
थे तो भी रथपर बैठे ए अपने पु को यु के मैदानम आगे बढ़नेसे रोकने लगे ।। १८ ।।
स त राजा तं वीरं शरसंघैरनेकशः ।
अदयामास न शतैराशी वष वषोपमैः ।। १९ ।।
राजा ब ुवाहनने वहाँ अपने वीर पताको वषैले साँप के समान जहरीले और तेज
कये ए सैकड़ बाण-समूह ारा ब धकर अनेक बार पी ड़त कया ।। १९ ।।
तयोः समभवद् यु ं पतुः पु य चातुलम् ।
दे वासुररण यमुभयोः ीयमाणयोः ।। २० ।।
वे पता और पु दोन स होकर लड़ रहे थे। उन दोन का वह यु दे वासुर-सं ामके
समान भयंकर जान पड़ता था। उसक इस जगत्म कह भी तुलना नह थी ।। २० ।।
करी टनं व ाध शरेणानतपवणा ।
ज ुदेशे नर ा ं हसन् ब ुवाहनः ।। २१ ।।
ब ुवाहनने हँसते-हँसते पु ष सह अजुनके गलेक हँसलीम झुक ई गाँठवाले एक
बाण ारा गहरी चोट प ँचायी ।। २१ ।।
सोऽ यगात् सह पुङ्खेन व मीक मव प गः ।
व न भ च कौ तेयं ववेश महीतलम् ।। २२ ।।
जैसे साँप बाँबीम घुस जाता है, उसी कार वह बाण अजुनके शरीरम पंखस हत घुस
गया और उसे छे दकर पृ वीम समा गया ।। २२ ।।
स गाढवेदनो धीमानाल य धनु मम् ।
द ं तेजः समा व य मीत इव सोऽभवत् ।। २३ ।।
इससे अजुनको बड़ी वेदना ई। बु मान् अजुन अपने उ म धनुषका सहारा लेकर
द तेजम थत हो मुदके समान हो गये ।। २३ ।।
स सं ामुपल याथ श य पु षषभः ।
पु ं श ा मजो वा य मदमाह महा ु तः ।। २४ ।।
थोड़ी दे र बाद होशम आनेपर महातेज वी पु ष वर इ कुमार अजुनने अपने पु क
शंसा करते ए इस कार कहा— ।। २४ ।।
साधु साधु महाबाहो व स च ा दा मज ।
स शं कम ते ् वा ी तमान म पु क ।। २५ ।।
‘महाबा च ांगदाकुमार! तु ह साधुवाद। व स! तुम ध य हो। पु ! तु हारे यो य
परा म दे खकर म तुमपर ब त स ँ ।। २५ ।।
वमु चा येष ते बाणान् पु यु े थरो भव ।
इ येवमु वा नाराचैर यवषद म हा ।। २६ ।।
‘अ छा बेटा! अब म तुमपर बाण छोड़ता ँ। तुम सावधान एवं थर हो जाओ।’ ऐसा
कहकर श ुसूदन अजुनने ब ुवाहनपर नाराच क वषा आर भ कर द ।। २६ ।।
तान् स गा डीव नमु ान् व ाश नसम भान् ।
नाराचान छनद् राजा भ लैःसवा धा धा ।। २७ ।।
परंतु राजा ब ुवाहनने गा डीव धनुषसे छू टे ए व और बजलीके समान तेज वी
उन सम त नाराच को अपने भ ल ारा मारकर येकके दो-दो, तीन-तीन टु कड़े कर
दये ।। २७ ।।
त य पाथः शरै द ै वजं हेमप र कृतम् ।
सुवणताल तमं ुरेणापाहरद् रथात् ।। २८ ।।
हयां ा य महाकायान् महावेगान रदम ।
चकार राजन् नज वान् हस व पा डवः ।। २९ ।।
राजन्! तब पा डु पु अजुनने हँसते ए-से अपने ुर नामक द बाण ारा
ब ुवाहनके रथसे सुनहरे तालवृ के समान ऊँची सुवणभू षत वजा काट गरायी।
श ुदमन नरेश! साथ ही उ ह ने उसके महान् वेगशाली वशालकाय घोड़ के भी ाण ले
लये ।। २८-२९ ।।
स रथादवतीयाथ राजा परमकोपनः ।
पदा तः पतरं ु ो योधयामास पा डवम् ।। ३० ।।
तब रथसे उतरकर परम ोधी राजा ब ुवाहन कु पत हो पैदल ही अपने पता
पा डु पु अजुनके साथ यु करने लगा ।। ३० ।।
स ीयमाणः पाथानामृषभः पु व मात् ।
ना यथ पीडयामास पु ं व धरा मजः ।। ३१ ।।
कु तीपु म े इ कुमार अजुन अपने बेटेके परा मसे ब त स ए थे। इस लये
वे उसे अ धक पीड़ा नह दे ते थे ।। ३१ ।।
स म यमानो वमुखं पतरं ब ुवाहनः ।
शरैराशी वषाकारैः पुनरेवादयद् बली ।। ३२ ।।
बलवान् ब ुवाहन पताको यु से वरत मानकर वषधर सप के समान वषैले
बाण ारा उ ह पुनः पीड़ा दे ने लगा ।। ३२ ।।
ततः स बा यात् पतरं व ाध द प णा ।
न शतेन सुपुङ्खेन बलवद् ब ुवाहनः ।। ३३ ।।
उसने बालो चत अ ववेकके कारण प रणामपर वचार कये बना ही सु दर पाँखवाले
एक तीखे बाण ारा पताक छातीम एक गहरा आघात कया ।। ३३ ।।
ववेश पा डवं राजन् मम भ वा त ःखकृत् ।
स तेना तभृशं व ः पु ेण कु न दनः ।। ३४ ।।
मह जगाम मोहात ततो राजन् धनंजयः ।
राजन्! वह अ य त ःखदायी बाण पा डु पु अजुनके मम- थलको वद ण करके
भीतर घुस गया। महाराज! पु के चलाये ए उस बाणसे अ य त घायल होकर कु न दन
अजुन मू छत हो पृ वीपर गर पड़े ।।
त मन् नप तते वीरे कौरवाणां धुरंधरे ।। ३५ ।।
सोऽ प मोहं जगामाथ तत ा दासुतः ।
कौरव-धुरंधर वीर अजुनके धराशायी होनेपर च ांगदाकुमार ब ुवाहन भी मू छत हो
गया ।। ३५ ।।
ाय य संयुगे राजा ् वा च पतरं हतम् ।। ३६ ।।
पूवमेव स बाणौघैगाढ व ोऽजुनेन ह ।
पपात सोऽ प धरणीमा लङ् य रणमूध न ।। ३७ ।।
राजा ब ुवाहन यु थलम बड़ा प र म करके लड़ा था। वह भी अजुनके
बाणसमूह ारा पहलेसे ही ब त घायल हो चुका था। अतः पताको मारा गया दे ख वह भी
यु के मुहानेपर अचेत होकर गर पड़ा और पृ वीका आ लगन करने लगा ।। ३६-३७ ।।
भतारं नहतं ् वा पु ं च प ततं भु व ।
च ा दा प र ता ववेश रणा जरे ।। ३८ ।।
प तदे व मारे गये और पु भी सं ाशू य होकर पृ वीपर पड़ा है। यह दे ख च ांगदाने
संत त दयसे समरांगणम वेश कया ।। ३८ ।।
शोकसंत त दया दती वेपती भृशम् ।
म णपूरपतेमाता ददश नहतं प तम् ।। ३९ ।।
म णपुर-नरेशक माताका दय शोकसे संत त हो उठा था! रोती और काँपती ई
च ांगदाने दे खा क प तदे व मारे गये ।। ३९ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण अजुनब ुवाहनयु े
एकोनाशी ततमोऽ यायः ।। ७९ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम अजुन और ब ुवाहनका
यु वषयक उनासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ७९ ।।
अशी ततमोऽ यायः
च ांगदाका वलाप, मू छासे जगनेपर ब ुवाहनका
शोकोद्गार और उलूपीके य नसे संजीवनीम णके ारा
अजुनका पुनः जी वत होना
वैश पायन उवाच
ततो ब तरं भी वल य कमले णा ।
मुमोह ःखसंत ता पपात च महीतले ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर भी वभाववाली कमलनयनी
च ांगदा प त वयोग- ःखसे संत त होकर ब त वलाप करती ई मू छत हो गयी और
पृ वीपर गर पड़ी ।। १ ।।
तल य च सा सं ां दे वी द वपुधरा ।
उलूप प गसुतां ् वेदं वा यम वीत् ।। २ ।।
कुछ दे र बाद होशम आनेपर द पधा रणी दे वी च ांगदाने नागक या उलूपीको
सामने खड़ी दे ख इस कार कहा— ।। २ ।।
उलू प प य भतारं शयानं नहतं रणे ।
व कृते मम पु ेण बाणेन स म तजयम् ।। ३ ।।
‘उलूपी! दे खो, हम दोन के वामी मारे जाकर रणभू मम सो रहे ह। तु हारी ेरणासे ही
मेरे बेटेने समर वजयी अजुनका वध कया है ।। ३ ।।
ननु वमायधम ा ननु चा स प त ता ।
य व कृतेऽयं प ततः प त ते नहतो रणे ।। ४ ।।
‘ब हन! तुम तो आयधमको जाननेवाली और प त ता हो। तथा प तु हारी ही
करतूतसे ये तु हारे प त इस समय रणभू मम मरे पड़े ह ।। ४ ।।
कतु सवापराधोऽयं य द तेऽ धनंजयः ।
म व या यमाना वै जीवय व धनंजयम् ।। ५ ।।
‘ कतु य द ये अजुन सवथा तु हारे अपराधी ह तो भी आज मा कर दो। म तुमसे
इनके ाण क भीख माँगती ँ। तुम धनंजयको जी वत कर दो ।। ५ ।।
ननु वमाय धम ा ैलो य व दता शुभे ।
यद् घात य वा पु ेण भतारं नानुशोच स ।। ६ ।।
‘आय! शुभे! तुम धमको जाननेवाली और तीन लोक म व यात हो। तो भी आज
पु से प तक ह या कराकर तु ह शोक या प ा ाप नह हो रहा है, इसका या कारण
है? ।। ६ ।।
नाहं शोचा म तनयं हतं प गन द न ।
प तमेव तु शोचा म य या त य मदं कृतम् ।। ७ ।।
‘नागकुमारी! मेरा पु भी मरा पड़ा है, तो भी म उसके लये शोक नह करती। मुझे
केवल प तके लये शोक हो रहा है, जनका मेरे यहाँ इस तरह आ त य-स कार कया
गया’ ।। ७ ।।
इ यु वा सा तदा दे वीमुलूप प गा मजाम् ।
भतारम भग येद म युवाच यश वनी ।। ८ ।।
नागक या उलूपीदे वीसे ऐसा कहकर यश वनी च ा दा उस समय प तके नकट
गयी और उ ह स बो धत करके इस कार वलाप करने लगी— ।। ८ ।।
उ कु मु य य यमु य मम य ।
अयम ो महाबाहो मया ते प रमो तः ।। ९ ।।
‘कु राजके यतम और मेरे ाणाधार! उठो। महाबाहो! मने तु हारा यह घोड़ा छु ड़वा
दया है ।। ९ ।।
ननु वया नाम वभो धमराज य य यः ।
अयम ोऽनुसत ः स शेषे क महीतले ।। १० ।।
‘ भो! तु ह तो महाराज यु ध रके य -स ब धी अ के पीछे -पीछे जाना है; फर
यहाँ पृ वीपर कैसे सो रहे हो? ।। १० ।।
व य ाणा ममाय ाः कु णां कु न दन ।
स क मात् ाणदोऽ येषां ाणात् सं य वान स ।। ११ ।।
‘कु न दन! मेरे और कौरव के ाण तु हारे ही अधीन ह। तुम तो सर के ाणदाता
हो, तुमने वयं कैसे ाण याग दये?’ ।। ११ ।।
उलू प साधु प येमं प त नप ततं भु व ।
पु ं चेमं समु सा घात य वा न शोच स ।। १२ ।।
(इतना कहकर वह फर उलूपीसे बोली—) ‘उलूपी! ये प तदे व भूतलपर पड़े ह। तुम
इ ह अ छ तरह दे ख लो। तुमने इस बेटेको उकसाकर वामीक ह या करायी है। या
इसके लये तु ह शोक नह होता? ।। १२ ।।
कामं व पतु बालोऽयं भूमौ मृ युवशं गतः ।
लो हता ो गुडाकेशो वजयः साधु जीवतु ।। १३ ।।
‘मृ युके वशम पड़ा आ मेरा यह बालक चाहे सदाके लये भू मपर सोता रह जाय,
कतु न ाके वामी, वजय पानेवाले अ णनयन अजुन अव य जी वत ह —यही उ म
है ।। १३ ।।
नापराधोऽ त सुभगे नराणां ब भायता ।
मदानां भव येष मा तेऽभूद ् बु री शी ।। १४ ।।
‘सुभगे! कोई पु ष ब त-सी य को प नी बनाकर रखे, तो उनके लये यह अपराध
या दोषक बात नह होती। याँ य द ऐसा कर (अनेक पु ष से स ब ध रख) तो यह
उनके लये अव य दोष या पापक बात होती है। अतः तु हारी बु ऐसी ू र नह होनी
चा हये ।। १४ ।।
स यं चैतत् कृतं धा ा श द यमेव तु ।
स यं सम भजानी ह स यं स तम तु ते ।। १५ ।।
‘ वधाताने प त और प नीक म ता सदा रहनेवाली और अटू ट बनायी है। (तु हारा
भी इनके साथ वही स ब ध है।) इस स यभावके मह वको समझो और ऐसा उपाय करो
जससे तु हारी इनके साथ क ई मै ी स य एवं साथक हो ।। १५ ।।
पु ेण घात य वैनं प त य द न मेऽ वै ।
जीव तं दशय य प र य या म जी वतम् ।। १६ ।।
‘तु ह ने बेटेको लड़ाकर उसके ारा इन प तदे वक ह या करवायी है। यह सब करके
य द आज तुम पुनः इ ह जी वत करके न दखा दोगी तो म भी ाण याग ँ गी ।। १६ ।।
साहं ःखा वता दे व प तपु वनाकृता ।
इहैव ायमा श ये े या ते न संशयः ।। १७ ।।
‘दे व! म प त और पु दोन से व चत होकर ःखम डू ब गयी ँ। अतः अब यह
तु हारे दे खते-दे खते म आमरण उपवास क ँ गी, इसम संशय नह है’ ।। १७ ।।
इ यु वा प गसुतां सप नी चै वाहनी ।
ततः ायमुपासीना तू णीमासी जना धप ।। १८ ।।
नरे र! नागक यासे ऐसा कहकर उसक सौत च वाहनकुमारी च ांगदा आमरण
उपवासका संक प लेकर चुपचाप बैठ गयी ।। १८ ।।
वैश पायन उवाच
ततो वल य वरता भतुः पादौ गृ सा ।
उप व ाभवद् द ना सो छ् वासं पु मी ती ।। १९ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर वलाप करके उससे वरत हो
च ांगदा अपने प तके दोन चरण पकड़कर द नभावसे बैठ गयी और लंबी साँस ख च-
ख चकर अपने पु क ओर भी दे खने लगी ।। १९ ।।
ततः सं ां पुनल वा स राजा ब ुवाहनः ।
मातरं तामथालो य रणभूमावथा वीत् ।। २० ।।
थोड़ी ही दे रम राजा ब ुवाहनको पुनः चेत आ। वह अपनी माताको रणभू मम बैठ
दे ख इस कार वलाप करने लगा— ।। २० ।।
इतो ःखतरं क नु य मे माता सुखै धता ।
भूमौ नप ततं वीरमनुशेते मृतं प तम् ।। २१ ।।
‘हाय! जो अबतक सुख म पली थी, वही मेरी माता च ांगदा आज मृ युके अधीन
होकर पृ वीपर पड़े ए अपने वीर प तके साथ मरनेका न य करके बैठ ई है। इससे
बढ़कर ःखक बात और या हो सकती है? ।। २१ ।।
नह तारं रणेऽरीणां सवश भृतां वरम् ।
मया व नहतं सं ये े ते मरं बत ।। २२ ।।
‘सं ामम जनका वध करना सरेके लये नता त क ठन है, जो यु म श ु का
संहार करनेवाले तथा स पूण श धा रय म े ह, उ ह मेरे पता अजुनको आज यह मेरे
ही हाथ मरकर पड़ा दे ख रही है ।। २२ ।।
अहोऽ या दयं दे ा ढं य वद यते ।
ूढोर कं महाबा ं े या नहतं प तम् । २३ ।।
मरं पु षेणेह म ये व यनागते ।
‘चौड़ी छाती और वशाल भुजावाले अपने प तको मारा गया दे खकर भी जो मेरी
माता च ांगदा दे वीका ढ़ दय वद ण नह हो जाता है। इससे म यह मानता ँ क
अ तकाल आये बना मनु यका मरना ब त क ठन है ।। २३ ।।
य नाहं न मे माता व यु येत जी वतात् ।। २४ ।।
हा हा धक् कु वीर य संनाहं का चनं भु व ।
अप व ं हत येह मया पु ेण प यत ।। २५ ।।
‘तभी तो इस संकटके समय भी मेरे और मेरी माताके ाण नह नकलते। हाय! हाय!
मुझे ध कार है, लोग ! दे ख लो! मुझ पु के ारा मारे गये कु वीर अजुनका सुनहरा
कवच यहाँ पृ वीपर फका पड़ा है’ ।। २४-२५ ।।
भो भो प यत मे वीरं पतरं ा णा भु व ।
शयानं वीरशयने मया पु ेण पा ततम् ।। २६ ।।
‘हे ा णो! दे खो, मुझ पु के ारा मार गराये गये मेरे वीर पता अजुन वीरश यापर
सो रहे ह ।। २६ ।।
ा णाः कु मु य य ये मु ा हयसा रणः ।
कुव त शा तं काम य रणे योऽयं मया हतः ।। २७ ।।
‘कु े यु ध रके घोड़ेके पीछे -पीछे चलनेवाले जो ा णलोग शा तकम करनेके
लये नयु ए ह, वे इनके लये कौन-सी शा त करते थे, जो ये रणभू मम मेरे ारा मार
डाले गये! ।। २७ ।।
ा दश तु च क व ाः ाय महा मे ।
सुनृशंस य पाप य पतृह तू रणा जरे ।। २८ ।।
‘ ा णो! म अ य त ू र, पापी और समरांगणम पताक ह या करनेवाला ँ।
बताइये, मेरे लये अब यहाँ कौन-सा ाय है? ।। २८ ।।
रा ादशसमा ह वा पतरम वै ।
ममेह सुनृशंस य संवीत या य चमणा ।। २९ ।।
शरःकपाले चा यैव यु तः पतुर मे ।
ाय ं ह ना य य वा पतरं मम ।। ३० ।।
‘आज पताक ह या करके मेरे लये बारह वष तक कठोर तका पालन करना
अ य त क ठन है। मुझ ू र पतृघातीके लये यहाँ यही ाय है क म इ ह के चमड़ेसे
अपने शरीरको आ छा दत करके र ँ और अपने पताके म तक एवं कपालको धारण कये
बारह वष तक वचरता र ँ। पताका वध करके अब मेरे लये सरा कोई ाय नह
है ।। २९-३० ।।
प य नागो मसुते भतारं नहतं मया ।
कृतं यं मया तेऽ नह य समरेऽजुनम् ।। ३१ ।।
‘नागराजकुमारी! दे खो, यु म मने तु हारे वामीका वध कया है। स भव है आज
समरांगणम इस तरह अजुनक ह या करके मने तु हारा य काय कया हो ।। ३१ ।।
सोऽहम ग म या म ग त पतृ नषे वताम् ।
न श नो या मनाऽऽ मानमहं धार यतुं शुभे ।। ३२ ।।
‘परंतु शुभे! अब म इस शरीरको धारण नह कर सकता। आज म भी उस मागपर
जाऊँगा, जहाँ मेरे पताजी गये ह ।। ३२ ।।
सा वं म य मृते मात तथा गा डीवध व न ।
भव ी तमती दे व स येना मानमालभे ।। ३३ ।।
‘मातः! दे व! मेरे तथा गा डीवधारी अजुनके मर जानेपर तुम भलीभाँ त स होना।
म स यक शपथ खाकर कहता ँ क पताजीके बना मेरा जीवन अस भव है’ ।। ३३ ।।
इ यु वा स ततो राजा ःखशोकसमाहतः ।
उप पृ य महाराज ःखाद् वचनम वीत् ।। ३४ ।।
महाराज! ऐसा कहकर ःख और शोकसे पी ड़त ए राजा ब ुवाहनने आचमन कया
और बड़े ःखसे इस कार कहा— ।। ३४ ।।
शृ व तु सवभूता न थावरा ण चरा ण च ।
वं च मातयथा स यं वी म भुजगो मे ।। ३५ ।।
‘संसारके सम त चराचर ा णयो! आप मेरी बात सुन। नागराजकुमारी माता उलूपी!
तुम भी सुन लो। म स ची बात बता रहा ँ ।। ३५ ।।
य द नो त जयः पता मे नरस मः ।
अ म ेव रणो े शे शोष य ये कलेवरम् ।। ३६ ।।
‘य द मेरे पता नर े अजुन आज जी वत हो पुनः उठकर खड़े नह हो जाते तो म
इस रणभू मम ही उपवास करके अपने शरीरको सुखा डालूँगा ।। ३६ ।।
न ह मे पतरं ह वा न कृ त व ते व चत् ।
नरकं तप या म ुवं गु वधा दतः ।। ३७ ।।
‘ पताक ह या करके मेरे लये कह कोई उ ारका उपाय नह है। गु जन ( पता)-के
वध पी पापसे पी ड़त हो म न य ही नरकम पडँगा’ ।। ३७ ।।
वीरं ह यं ह वा गोशतेन मु यते ।
पतरं तु नह यैवं लभा न कृ तमम ।। ३८ ।।
‘ कसी एक वीर यका वध करके वजेता वीर सौ गोदान करनेसे उस पापसे
छु टकारा पाता है; परंतु पताक ह या करके इस कार उस पापसे छु टकारा मल जाय,
यह मेरे लये सवथा लभ है ।। ३८ ।।
एष एको महातेजाः पा डु पु ो धनंजयः ।
पता च मम धमा मा त य मे न कृ तः कुतः ।। ३९ ।।
‘ये पा डु पु धनंजय अ तीय वीर, महान् तेज वी, धमा मा तथा मेरे पता थे। इनका
वध करके मने महान् पाप कया है। अब मेरा उ ार कैसे हो सकता है?’ ।। ३९ ।।
इ येवमु वा नृपते धनंजयसुतो नृपः ।
उप पृ याभवत् तू ण ायोपेतो महाम तः ।। ४० ।।
नरे र! ऐसा कहकर धनंजयकुमार परम बु मान् राजा ब ुवाहन पुनः आचमन
करके आमरण उपवासका त लेकर चुपचाप बैठ गया ।। ४० ।।
वैश पायन उवाच
ायोप व े नृपतौ म णपूरे रे तदा ।
पतृशोकसमा व े सह मा ा परंतप ।। ४१ ।।
उलूपी च तयामास तदा संजीवनं म णम् ।
स चोपा त त तदा प गानां परायणम् ।। ४२ ।।
वैश पायनजी कहते ह—श ु को संताप दे नेवाले जनमेजय! पताके शोकसे
संत त आ म णपुरनरेश ब ुवाहन जब माताके साथ आमरण उपवासका त लेकर बैठ
गया, तब उलूपीने संजीवनम णका मरण कया। नाग के जीवनक आधारभूत वह म ण
उसके मरण करते ही वहाँ आ गयी ।। ४१-४२ ।।
तं गृही वा तु कौर नागराजपतेः सुता ।
मनः ादन वाचं सै नकानामथा वीत् ।। ४३ ।।
कु न दन! उस म णको लेकर नागराजकुमारी उलूपी सै नक के मनको आ ाद दान
करनेवाली बात बोली— ।। ४३ ।।
उ मा शुचः पु नैव व णु वया जतः ।
अजेयः पु षैरेष तथा दे वैः सवासवैः ।। ४४ ।।
‘बेटा ब ुवाहन! उठो, शोक न करो! ये अजुन तु हारे ारा परा त नह ए ह। ये तो
सभी मनु य और इ स हत स पूण दे वता के लये भी अजेय ह ।। ४४ ।।
मया तु मोहनी नाम मायैषा स द शता ।
याथ पु षे य पतु तेऽ यश वनः ।। ४५ ।।
‘यह तो मने आज तु हारे यश वी पता पु ष वर धनंजयका य करनेके लये मोहनी
माया दखलायी है ।। ४५ ।।
ज ासु ष पु य बल य तव कौरवः ।
सं ामे यु तो राज ागतः परवीरहा ।। ४६ ।।
त माद स मया पु यु ाय प रचो दतः ।
मा पापमा मनः पु शङ् केथा व प भो ।। ४७ ।।
‘राजन्! तुम इनके पु हो। ये श ुवीर का संहार करनेवाले कु कुल तलक अजुन
सं ामम जूझते ए तुम-जैसे बेटेका बल-परा म जानना चाहते थे। व स! इसी लये मने
तु ह यु के लये े रत कया है। साम यशाली पु ! तुम अपनेम अणुमा पापक भी
आशंका न करो ।। ४६-४७ ।।
ऋ षरेष महाना मा पुराणः शा तोऽ रः ।
नैनं श ो ह सं ामे जेतुं श ोऽ प पु क ।। ४८ ।।
‘ये महा मा नर पुरातन ऋ ष, सनातन एवं अ वनाशी ह। बेटा! यु म इ ह इ भी
नह जीत सकते ।। ४८ ।।
अयं तु मे म ण द ः समानीतो वशा पते ।
मृतान् मृतान् प गे ान् यो जीवय त न यदा ।। ४९ ।।
एनम योर स वं च थापय व पतुः भो ।
संजी वतं तदा पाथ स वं ा स पा डवम् ।। ५० ।।
‘ जानाथ! म यह द म ण ले आयी ँ। यह सदा यु म मरे ए नागराज को जी वत
कया करती है। भो! तुम इसे लेकर अपने पताक छातीपर रख दो। फर तुम पा डु पु
कु तीकुमार अजुनको जी वत आ दे खोगे’ ।। ४९-५० ।।
इ यु ः थापयामास त योर स म ण तदा ।
पाथ या मततेजाः स पतुः नेहादपापकृत् ।। ५१ ।।
उलूपीके ऐसा कहनेपर न पाप कम करनेवाले अ मत तेज वी ब ुवाहनने अपने पता
पाथक छातीपर नेहपूवक वह म ण रख द ।। ५१ ।।
त मन् य ते मणौ वीरो ज णु जी वतः भुः ।
चरसु त इवो थौ मृ लो हतलोचनः ।। ५२ ।।
उस म णके रखते ही श शाली वीर अजुन दे रतक सोकर जगे ए मनु यक भाँ त
अपनी लाल आँख मलते ए पुनः जी वत हो उठे ।। ५२ ।।
तमु थतं महा मानं ल धसं ं मन वनम् ।
समी य पतरं व थं वव दे ब ुवाहनः ।। ५३ ।।
अपने मन वी पता महा मा अजुनको सचेत एवं व थ होकर उठा आ दे ख
ब ुवाहनने उनके चरण म णाम कया ।। ५३ ।।
उ थते पु ष ा े पुनल मीव त भो ।
द ाः सुमनसः पु या ववृषे पाकशासनः ।। ५४ ।।
भो! पु ष सह ीमान् अजुनके पुनः उठ जानेपर पाकशासन इ ने उनके ऊपर
द एवं प व फूल क वषा क ।। ५४ ।।
अनाहता भयो वने मघ नः वनाः ।
साधु सा व त चाकाशे बभूव सुमहान् वनः ।। ५५ ।।
मेघके समान ग भीर व न करनेवाली दे व- भयाँ बना बजाये ही बज उठ और
आकाशम साधुवादक महान् व न गूँजने लगी ।। ५५ ।।
उ थाय च महाबा ः पया तो धनंजयः ।
ब ुवाहनमा लङ् य समा ज त मूध न ।। ५६ ।।
महाबा अजुन भलीभाँ त व थ होकर उठे और ब ुवाहनको दयसे लगाकर उसका
म तक सूँघने लगे ।। ५६ ।।
ददश चा प रेऽ य मातरं शोकक शताम् ।
उलू या सह त त ततोऽपृ छद् धनंजयः ।। ५७ ।।
उससे थोड़ी ही रपर ब ुवाहनक शोकाकुल माता च ांगदा उलूपीके साथ खड़ी
थी। अजुनने जब उसे दे खा, तब ब ुवाहनसे पूछा— ।। ५७ ।।
क मदं ल यते सव शोक व मयहषवत् ।
रणा जरम म न य द जाना स शंस मे ।। ५८ ।।
‘श ु का संहार करनेवाले वीर पु ! यह सारा समरांगण शोक, व मय और हषसे
यु य दखायी दे ता है? य द जानते हो तो मुझे बताओ ।। ५८ ।।
जननी च कमथ ते रणभू ममुपागता ।
नागे हता चेयमुलूपी क महागता ।। ५९ ।।
‘तु हारी माता कस लये रणभू मम आयी है? तथा इस नागराजक या उलूपीका
आगमन भी यहाँ कस लये आ है? ।। ५९ ।।
जाना यह मदं यु ं वया मद्वचनात् कृतम् ।
ीणामागमने हेतुमह म छा म वे दतुम् ।। ६० ।।
‘म तो इतना ही जानता ँ क तुमने मेरे कहनेसे यह यु कया है; परंतु यहाँ य के
आनेका या कारण है? यह म जानना चाहता ँ’ ।। ६० ।।
तमुवाच तथा पृ ो म णपूरप त तदा ।
सा शरसा व ानुलूपी पृ ता मयम् ।। ६१ ।।
पताके इस कार पूछनेपर व ान् म णपुरनरेशने पताके चरण म सर रखकर उ ह
स कया और कहा—‘ पताजी! यह वृ ा त आप माता उलूपीसे पू छये’ ।। ६१ ।।
इतीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण अ ानुसरणे
अजुन यु जीवने अशी ततमोऽ यायः ।। ८० ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम अ ानुसरणके संगम
अजुनका पुनज वन वषयक अ सीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८० ।।
एकाशी ततमोऽ यायः
उलूपीका अजुनके पूछनेपर अपने आगमनका कारण एवं
अजुनक पराजयका रह य बताना, पु और प नीसे वदा
लेकर पाथका पुनः अ के पीछे जाना
अजुन उवाच
कमागमनकृ यं ते कौर कुलन द न ।
म णपूरपतेमातु तथैव च रणा जरे ।। १ ।।
अजुन बोले—कौर नामके कुलको आन दत करनेवाली उलूपी! इस रणभू मम
तु हारे और म णपुरनरेश ब ुवाहनक माता च ांगदाके आनेका या कारण है? ।। १ ।।
क चत् कुशलकामा स रा ोऽ य भुजगा मजे ।
मम वा चपलापा क चत् वं शुभ म छ स ।। २ ।।
नागकुमारी! तुम इस राजा ब ुवाहनका कुशल-मंगल तो चाहती हो न? चंचल
कटा वाली सु दरी! तुम मेरे क याणक भी इ छा रखती हो न? ।। २ ।।
क चत् ते पृथुल ो ण ना यं यदशने ।
अकाषमहम ानादयं वा ब ुवाहनः ।। ३ ।।
थूल नत बवाली यदशने! मने या इस ब ुवाहनने अनजानम तु हारा कोई अ य
तो नह कया है? ।। ३ ।।
क च ु राजपु ी ते सप नी चै वाहनी ।
च ा दा वरारोहा नापरा य त कचन ।। ४ ।।
तु हारी सौत च वाहनकुमारी वरारोहा राजपु ी च ांगदाने तो तु हारा कोई अपराध
नह कया है? ।। ४ ।।
तमुवाचोरगपते हता हस व ।
न मे वमपरा ोऽ स न ह मे ब ुवाहनः ।। ५ ।।
न ज न ी तथा येयं मम या े यवत् थता ।
ूयतां यद् यथा चेदं मया सव वचे तम् ।। ६ ।।
अजुनका यह सुनकर नागराजक या उलूपी हँसती ई-सी बोली—‘ ाणव लभ!
आपने या ब ुवाहनने मेरा कोई अपराध नह कया है। ब ुवाहनक माताने भी मेरा कुछ
नह बगाड़ा है। यह तो सदा दासीक भाँ त मेरी आ ाके अधीन रहती है। यहाँ आकर मने
जो-जो जस कार काम कया है, वह बतलाती ँ; सु नये ।। ५-६ ।।
न मे कोप वया कायः शरसा वां सादये ।
व याथ ह कौर कृतमेत मया वभो ।। ७ ।।
‘ भो! कु न दन! पहले तो म आपके चरण म सर रखकर आपको स करना
चाहती ँ। य द मुझसे कोई दोष बन गया हो तो भी उसके लये आप मुझपर ोध न कर;
य क मने जो कुछ कया है, वह आपक स ताके लये ही कया है ।। ७ ।।
य छृ णु महाबाहो न खलेन धनंजय ।
महाभारतयु े यत् वया शा तनवो नृपः ।। ८ ।।
अधमण हतः पाथ त यैषा न कृ तः कृता ।
‘महाबा धनंजय! आप मेरी कही ई सारी बात यान दे कर सु नये। पाथ! महाभारत-
यु म आपने जो शा तनुकुमार महाराज भी मको अधमपूवक मारा है, उस पापका यह
ाय कर दया गया ।। ८ ।।
न ह भी म वया वीर यु मानो ह पा ततः ।। ९ ।।
शख डना तु संयु तमा य हत वया ।
‘वीर! आपने अपने साथ जूझते ए भी मजीको नह मारा है, वे शख डीके साथ
उलझे ए थे। उस दशाम शख डीक आड़ लेकर आपने उनका वध कया था ।। ९ ।।
त य शा तमकृ वा वं यजेथा य द जी वतम् ।। १० ।।
कमणा तेन पापेन पतेथा नरये ुवम् ।
‘उसक शा त कये बना ही य द आप ाण का प र याग करते तो उस पापकमके
भावसे न य ही नरकम पड़ते ।। १० ।।
एषा तु व हता शा तः पु ाद् यां ा तवान स ।
वसु भवसुधापाल ग या च महामते ।। ११ ।।
‘महामते! पृ वीपाल! पूवकालम वसु तथा गंगाजीने इसी पम उस पापक शा त
न त क थी; जसे आपने अपने पु से पराजयके पम ा त कया है ।। ११ ।।
पुरा ह ुतमेतत् ते वसु भः क थतं मया ।
ग ाया तीरमा य हते शा तनवे नृप ।। १२ ।।
‘पहलेक बात है, एक दन म गंगाजीके तटपर गयी थी। नरे र! वहाँ शा तनुन दन
भी मजीके मारे जानेके बाद वसु ने गंगातटपर आकर आपके स ब धम जो यह बात
कही थी, उसे मने अपने कान सुना था ।। १२ ।।
आ लु य दे वा वसवः समे य च महानद म् ।
इदमूचुवचो घोरं भागीर या मते तदा ।। १३ ।।
‘वसु नामक दे वता महानद गंगाके तटपर एक हो नान करके भागीरथीक
स म तसे यह भयानक वचन बोले— ।। १३ ।।
एष शा तनवो भी मो नहतः स सा चना ।
अयु यमानः सं ामे संस ोऽ येन भा व न ।
तदनेनानुषङ् गेण वयम धनंजयम् ।। १४ ।।
शापेन योजयामे त तथा व त च सा वीत् ।
“भा व न! ये शा तनुन दन भी म सं ामम सरेके साथ उलझे ए थे। अजुनके साथ
यु नह कर रहे थे तो भी स साची अजुनने इनका वध कया है। इस अपराधके कारण
हमलोग आज अजुनको शाप दे ना चाहते ह।” यह सुनकर गंगाजीने कहा—‘हाँ, ऐसा ही
होना चा हये’ ।।
तदहं पतुरावे व य थते या ।। १५ ।।
अभवं स च त छ वा वषादमगमत् परम् ।
अजुन अपने पु ब ुवाहनको छातीसे लगा रहे ह
‘उनक बात सुनकर मेरी सारी इ याँ थत हो उठ और पातालम वेश करके मने
अपने पतासे यह सारा समाचार कह सुनाया। यह सुनकर पताजीको भी बड़ा खेद
आ ।। १५ ।।
पता तु मे वसून् ग वा वदथ समयाचत ।। १६ ।।
पुनः पुनः सा ैतां त एन मदम ुवन् ।
‘वे त काल वसु के पास जाकर उ ह बारंबार स करके आपके लये उनसे
बारंबार मा-याचना करने लगे। तब वसुगण उनसे इस कार बोले— ।। १६ ।।
पु त य महाभाग म णपूरे रो युवा ।। १७ ।।
स एनं रणम य थः शरैः पात यता भु व ।
एवं कृते स नागे मु शापो भ व य त ।। १८ ।।
“महाभाग नागराज! म णपुरका नवयुवक राजा ब ुवाहन अजुनका पु है। वह यु -
भू मम खड़ा होकर अपने बाण ारा जब उ ह पृ वीपर गरा दे गा, तब अजुन हमारे शापसे
मु हो जायँगे ।। १७-१८ ।।
ग छे त वसु भ ो ो मम चेदं शशंस सः ।
त छ वा वं मया त मा छापाद स वमो तः ।। १९ ।।
‘‘अ छा अब जाओ’ वसु के ऐसा कहनेपर मेरे पताने आकर मुझसे यह बात
बतायी। इसे सुनकर मने इसीके अनुसार चे ा क है और आपको उस शापसे छु टकारा
दलाया है ।। १९ ।।
न ह वां दे वराजोऽ प समरेषु पराजयेत् ।
आ मा पु ः मृत त मात् तेनेहा स परा जतः ।। २० ।।
‘ ाणनाथ! दे वराज इ भी आपको यु म परा त नह कर सकते, पु तो अपना
आ मा ही है, इसी लये इसके हाथसे यहाँ आपक पराजय ई है ।। २० ।।
न ह दोषो मम मतः कथं वा म यसे वभो ।
इ येवमु ो वजयः स ा मा वी ददम् ।। २१ ।।
‘ भो! म समझती ँ क इसम मेरा कोई दोष नह है। अथवा आपक या धारणा है?
या यह यु कराकर मने कोई अपराध कया है?’
उलूपीके ऐसा कहनेपर अजुनका च स हो गया। उ ह ने कहा— ।। २१ ।।
सव मे सु यं दे व यदे तत् कृतव य स ।
इ यु वा सोऽ वीत् पु ं म णपूरप त जयः ।। २२ ।।
च ा दायाः शृ व याः कौर हतु तदा ।
‘दे व! तुमने जो यह काय कया है, यह सब मुझे अ य त य है।’ य कहकर अजुनने
च ांगदा तथा उलूपीके सुनते ए अपने पु म णपुरनरेश ब ुवाहनसे कहा— ।। २२ ।।
यु ध र या मेधः प रचै भ व य त ।। २३ ।।
त ाग छे ः सहामा यो मातृ यां स हतो नृप ।। २४ ।।
‘नरे र! आगामी चै मासक पू णमाको महाराज यु ध रके य का आर भ होगा।
उसम तुम अपनी इन दोन माता और म य के साथ अव य आना’ ।।
इ येवमु ः पाथन स राजा ब ुवाहनः ।
उवाच पतरं धीमा नदम ा वले णः ।। २५ ।।
अजुनके ऐसा कहनेपर बु मान् राजा ब ुवाहनने ने म आँसू भरकर पतासे इस
कार कहा— ।। २५ ।।
उपया या म धम भवतः शासनादहम् ।
अ मेधे महाय े जा तप रवेषकः ।। २६ ।।
‘धम ! आपक आ ासे म अ मेध महाय म अव य उप थत होऊँगा और
ा ण को भोजन परोसनेका काम क ँ गा ।। २६ ।।
मम वनु हाथाय वश व पुरं वकम् ।
भाया यां सह धम मा भूत् तेऽ वचारणा ।। २७ ।।
‘इस समय आपसे एक ाथना है—धम ! आज मुझपर कृपा करनेके लये अपनी इन
दोन धमप नय के साथ इस नगरम वेश क जये। इस वषयम आपको कोई अ यथा
वचार नह करना चा हये ।। २७ ।।
उ ष वेह नशामेकां सुखं वभवने भो ।
पुनर ानुगमनं कता स जयतां वर ।। २८ ।।
‘ भो! वजयी वीर म े ! यहाँ भी आपका ही घर है। अपने उस घरम एक रात
सुखपूवक नवास करके कल सबेरे फर घोड़ेके पीछे -पीछे जाइयेगा’ ।। २८ ।।
इ यु ः स तु पु ेण तदा वानरकेतनः ।
मयन् ोवाच कौ तेय तदा च ा दासुतम् ।। २९ ।।
पु के ऐसा कहनेपर कु तीन दन क प वज अजुनने मुसकराते ए च ा दाकुमारसे
कहा— ।। २९ ।।
व दतं ते महाबाहो यथा द ां चरा यहम् ।
न स तावत् वे या म पुरं ते पृथुलोचन ।। ३० ।।
‘महाबाहो! यह तो तुम जानते ही हो क म द ा हण करके वशेष नयम के
पालनपूवक वचर रहा ँ। अतः वशाललोचन! जबतक यह द ा पूण नह हो जाती
तबतक म तु हारे नगरम वेश नह क ँ गा ।। ३० ।।
यथाकामं ज येष य या ो नरषभ ।
व त तेऽ तु ग म या म न थानं व ते मम ।। ३१ ।।
‘नर े ! यह य का घोड़ा अपनी इ छाके अनुसार चलता है (इसे कह भी रोकनेका
नयम नह है); अतः तु हारा क याण हो। म अब जाऊँगा। इस समय मेरे ठहरनेके लये
कोई थान नह है’ ।। ३१ ।।
स त व धवत् तेन पू जतः पाकशास नः ।
भाया याम यनु ातः ायाद् भरतस मः ।। ३२ ।।
तदन तर वहाँ ब ुवाहनने भरतवंशके े पु ष इ कुमार अजुनक व धवत् पूजा
क और वे अपनी दोन भाया क अनुम त लेकर वहाँसे चल दये ।। ३२ ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण अ ानुसरणे
एकाशी ततमोऽ यायः ।। ८१ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम अ का
अनुसरण वषयक इ यासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८१ ।।
यशी ततमोऽ यायः
मगधराज मेघस धक पराजय
वैश पायन उवाच
स तु वाजी समु ा तां पय य वसुधा ममाम् ।
नवृ ोऽ भमुखो राजन् येन वारणसा यम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! इसके बाद वह घोड़ा समु पय त सारी पृ वीक
प र मा करके उस दशाक ओर मुँह करके लौटा, जस ओर ह तनापुर था ।। १ ।।
अनुग छं तुरगं नवृ ोऽथ करीटभृत् ।
य छया समापेदे पुरं राजगृहं तदा ।। २ ।।
करीटधारी अजुन भी घोड़ेका अनुसरण करते ए लौट पड़े और दै वे छासे राजगृह
नामक नगरम आ प ँचे ।। २ ।।
तम याशगतं ् वा सहदे वा मजः भो ।
धम थतो वीरः समरायाजुहाव ह ।। ३ ।।
भो! अजुनको अपने नगरके नकट आया दे ख य-धमम थत ए वीर
सहदे वकुमार राजा मेघस धने उ ह यु के लये आम त कया ।। ३ ।।
ततः पुरात् स न य रथी ध वी शरी तली ।
मेघस धः पदा त तं धनंजयमुपा वत् ।। ४ ।।
त प ात् वयं भी धनुष-बाण और द तानेसे सुस जत हो रथपर बैठकर नगरसे
बाहर नकला। मेघस धने पैदल आते ए धनंजयपर धावा कया ।। ४ ।।
आसा च महातेजा मेघस धधनंजयम् ।
बालभावा महाराज ोवाचेदं न कौशलात् ।। ५ ।।
महाराज! धनंजयके पास प ँचकर महातेज वी मेघस धने बु मानीके कारण नह ,
मूखतावश न नां कत बात कही— ।। ५ ।।
कमयं चायते वाजी ीम य इव भारत ।
हयमेनं ह र या म यत व वमो णे ।। ६ ।।
‘भरतन दन! इस घोड़ेके पीछे य फर रहे हो! यह तो ऐसा जान पड़ता है, मानो
य के बीच चल रहा हो। म इसका अपहरण कर रहा ँ। तुम इसे छु ड़ानेका य न
करो ।। ६ ।।
अद ानुनयो यु े य द वं पतृ भमम ।
क र या म तवा त यं हर हरा म च ।। ७ ।।
‘य द यु म मेरे पता आ द पूवज ने कभी तु हारा वागत-स कार नह कया है तो
आज म इस कमीको पूण क ँ गा। यु के मैदानम तु हारा यथो चत आ त य-स कार
क ँ गा। पहले मुझपर हार करो, फर म तुमपर हार क ँ गा’ ।। ७ ।।
इ यु ः युवाचैनं हस व पा डवः ।
व नकता मया वाय इ त मे तमा हतम् ।। ८ ।।
ा ा ये ेन नृपते तवा प व दतं ुवम् ।
हर व यथाश न म यु व ते मम ।। ९ ।।
उसके ऐसा कहनेपर पा डु पु अजुनने उसे हँसते ए-से इस कार उ र दया
—‘नरे र! मेरे बड़े भाईने मेरे लये इस तक द ा दलायी है क जो मेरे मागम व न
डालनेको उ त हो, उसे रोको। न य ही यह बात तु ह भी व दत है। अतः तुम अपनी
श के अनुसार मुझपर हार करो। मेरे मनम तुमपर कोई रोष नह है’ ।। ८-९ ।।
इ यु ः ाहरत् पूव पा डवं मगधे रः ।
करन् शरसह ा ण वषाणीव सह क् ।। १० ।।
अजुनके ऐसा कहनेपर मगधनरेशने पहले उनपर हार कया। जैसे सह ने धारी इ
जलक वषा करते ह, उसी कार मेघस ध अजुनपर सह बाण क झड़ी लगाने
लगा ।। १० ।।
ततो गा डीवभृ छू रो गा डीव हतैः शरैः ।
चकार मोघां तान् बाणान् सय नान् भरतषभ ।। ११ ।।
भरत े ! तब गा डीवधारी शूरवीर अजुनने गा डीव धनुषसे छोड़े गये बाण ारा
मेघस धके य नपूवक चलाये गये उन सभी बाण को थ कर दया ।। ११ ।।
स मोघं त य बाणौघं कृ वा वानरकेतनः ।
शरान् मुमोच व लतान् द ता या नव प गान् ।। १२ ।।
श ुके बाणसमूहको न फल करके क प वज अजुनने व लत बाणका हार कया।
वे बाण मुखसे आग उगलनेवाले सप के समान जान पड़ते थे ।। १२ ।।
वजे पताकाद डेषु रथे य े हयेषु च ।
अ येषु च रथा े षु न शरीरे न सारथौ ।। १३ ।।
उ ह ने मेघस धक वजा, पताका, द ड, रथ, य , अ तथा अ य रथांग पर बाण
मारे; परंतु उसके शरीर और सार थपर हार नह कया ।। १३ ।।
संर यमाणः पाथन शरीरे स सा चना ।
म यमानः ववीय त मागधः ा हणो छरान् ।। १४ ।।
य प स साची अजुनने जान-बूझकर उसके शरीरक र ा क तथा प वह मगधराज
इसे अपना परा म समझने लगा और अजुनपर लगातार बाण का हार करता
रहा ।। १४ ।।
ततो गा डीवध वा तु मागधेन भृशाहतः ।
बभौ वस तसमये पलाशः पु पतो यथा ।। १५ ।।
मगधराजके बाण से अ य त घायल होकर गा डीवधारी अजुन र से नहा उठे । उस
समय वे वस त-ऋतुम फूले ए पलाश-वृ क भाँ त सुशो भत हो रहे थे ।। १५ ।।
अव यमानः सोऽ य न मागधः पा डवषभम् ।
तेन त थौ स कौर लोकवीर य दशने ।। १६ ।।
कु न दन! अजुन तो उसे मार नह रहे थे, परंतु वह उन पा डव शरोम णपर बारंबार
चोट कर रहा था। इसी लये व व यात वीर अजुनक म वह तबतक ठहर
सका ।। १६ ।।
स साची तु सं ु ो वकृ य बलवद् धनुः ।
हयां कार नज वान् सारथे शरोऽहरत् ।। १७ ।।
अब स साची अजुनका ोध बढ़ गया। उ ह ने अपने धनुषको जोरसे ख चा और
मेघस धके घोड़ को ाणहीन करके उसके सार थका भी सर उड़ा दया ।। १७ ।।
धनु ा य मह च ं ुरेण चकत ह ।
ह तावापं पताकां च वजं चा य यपातयत् ।। १८ ।।
फर उसके वशाल एवं व च धनुषको ुरसे काट डाला और उसके द ताने, पताका
तथा वजाको भी धरतीपर काट गराया ।। १८ ।।
स राजा थतो ो वधनुहतसार थः ।
गदामादाय कौ तेयम भ ाव वेगवान् ।। १९ ।।
घोड़े, धनुष और सार थके न हो जानेपर मेघस धको बड़ा ःख आ। वह गदा
हाथम लेकर कु तीन दन अजुनक ओर बड़े वेगसे दौड़ा ।। १९ ।।
त यापतत एवाशु गदां हेमप र कृताम् ।
शरै कत ब धा ब भगृ वा जतैः ।। २० ।।
उसके आते ही अजुनने गृ पंखयु ब सं यक बाण ारा उसक सुवणभू षत गदाके
शी ही अनेक टु कड़े कर डाले ।। २० ।।
सा गदा शकलीभूता वशीणम णब धना ।
ाली वमु यामानेव पपात धरणीतले ।। २१ ।।
उस गदाक मूँठ टू ट गयी और उसके टु कड़े-टु कड़े हो गये। उस दशाम वह हाथसे छू ट
ई स पणीके समान पृ वीपर गर पड़ी ।। २१ ।।
वरथं वधनु कं च गदया प रव जतम् ।
सा वपूव मदं वा यम वीत् क पकेतनः ।। २२ ।।
जब मेघस ध रथ, धनुष और गदासे भी वं चत हो गया, तब क प वज अजुनने उसे
सा वना दे ते ए इस कार कहा— ।। २२ ।।
पया तः धम ऽयं द शतः पु ग यताम् ।
ब े तत् समरे कम तव बाल य पा थव ।। २३ ।।
‘बेटा! तुमने यधमका पूरा-पूरा दशन कर लया। अब अपने घर जाओ। भूपाल!
तुम अभी बालक हो। इस समरांगणम तुमने जो परा म कया है, यही तु हारे लये ब त
है ।। २३ ।।
यु ध र य संदेशो न ह त ा नृपा इ त ।
तेन जीव स राजं वमपरा ोऽ प मे रणे ।। २४ ।।
‘राजन्! महाराज यु ध रका यह आदे श है क ‘तुम यु म राजा का वध न करना।’
इसी लये तुम मेरा अपराध करनेपर भी अबतक जी वत हो’ ।। २४ ।।
इ त म वा तदा मानं या द ं म मागधः ।
त य म य भग यैनं ा लः यपूजयत् ।। २५ ।।
अजुनक यह बात सुनकर मेघस धको यह व ास हो गया क अब इ ह ने मेरी जान
छोड़ द है। तब वह अजुनके पास गया और हाथ जोड़ उनका समादर करते ए कहने
लगा— ।। २५ ।।
परा जतोऽ म भ ं ते नाहं योद्धु महो सहे ।
यद् यत् कृ यं मया तेऽ तद् ू ह कृतमेव तु ।। २६ ।।
‘वीरवर! आपका क याण हो। म आपसे परा त हो गया। अब म यु करनेका उ साह
नह रखता। अब आपको मुझसे जो-जो सेवा लेनी हो, वह बताइये और उसे पूण क ई
ही सम झये’ ।। २६ ।।
तमजुनः समा ा य पुनरेवेदम वीत् ।
आग त ं परां चै ीम मेधे नृप य नः ।। २७ ।।
तब अजुनने उसे धैय दे ते ए पुनः इस कार कहा—‘राजन्! तुम आगामी चै मासक
पू णमाको हमारे महाराजके अ मेधय म अव य आना’ ।। २७ ।।
इ यु ः स तथे यु वा पूजयामास तं इयम् ।
फा गुनं च यु ध े ं व धवत् सहदे वजः ।। २८ ।।
उनके ऐसा कहनेपर सहदे वपु ने ‘ब त अ छा’ कहकर उनक आ ा शरोधाय क
और उस घोड़े तथा यु थलके े वीर अजुनका व धपूवक पूजन कया ।। २८ ।।
ततो यथे मगमत् पुनरेव स केसरी ।
ततः समु तीरेण व ान् पु ान् सकोसलान् ।। २९ ।।
तदन तर वह घोड़ा पुनः अपनी इ छाके अनुसार आगे चला। वह समु के कनारे-
कनारे होता आ व , पु और कोसल आ द दे श म गया ।। २९ ।।
त त च भूरी ण ले छसै या यनेकशः ।
व ज ये धनुषा राजन् गा डीवेन धनंजयः ।। ३० ।।
राजन्! उन दे श म अजुनने केवल गा डीव धनुषक सहायतासे ले छ क अनेक
सेना को परा त कया ।। ३० ।।
इत ीमहाभारते आ मे धके पव ण अनुगीतापव ण अ ानुसरणे मागधपराजये
यशी ततमोऽ यायः ।। ८२ ।।
इस कार ीमहाभारत आ मे धकपवके अ तगत अनुगीतापवम मगधराजक
पराजय वषयक बयासीवाँ अ याय पूरा आ ।। ८२ ।।
यशी ततमोऽ यायः
द ण और प म समु के तटवत दे श म होते ए अ का
ारका, प चनद एवं गा धार दे शम वेश
वैश पायन उवाच
मागधेना चतो राजन् पा डवः ेतवाहनः ।
द णां दशमा थाय चारयामास तं हयम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! मगधराजसे पू जत हो पा डु पु ेतवाहन
अजुनने द ण दशाका आ य ले उस घोड़ेको घुमाना आर भ कया ।। १ ।।
ततः स पुनराव य हयः कामचरो बली ।
आससाद पुर र यां चेद नां शु सा याम् ।। २ ।।
वह इ छानुसार वचरनेवाला अ पुनः उधरसे लौटकर चे दय क रमणीय राजधानीम
जो शु पुरी (या मा ह मतीपुरी)-के नामसे व यात थी, आया ।। २ ।।
शरभेणा चत त शशुपालसुतेन सः ।
यु पूव तदा तेन पूजया च महाबलः ।। ३ ।।
वहाँ शशुपालके पु शरभने पहले तो यु कया और फर वागत-स कारके ारा
उस महाबली अ का पूजन कया ।। ३ ।।
ततोऽ चतो ययौ राजं तदा स तुरगो मः ।
काशीनगान् कोसलां करातानथ त णान् ।। ४ ।।
राजन्! शरभसे पू जत हो वह उ म अ काशी, कोसल, करात और त ण आ द
जनपद म गया ।। ४ ।।
पूजां त यथा यायं तगृ धनंजयः ।
पुनरावृ य कौ तेयो दशाणानगमत् तदा ।। ५ ।।
उन सभी रा य म यथो चत पूजा हण करके कु तीन दन अजुन पुनः लौटकर दशाण
दे शम आये ।। ५ ।।
त च ा द नाम बलवान रमदनः ।
तेन यु मभूत् त य वजय या तभैरवम् ।। ६ ।।
वहाँ उस समय महाबली श ुमदन च ांगद नामक नरेश रा य करते थे। उनके साथ
अजुनका बड़ा भयंकर यु आ ।। ६ ।।
तं चा प वशमानीय करीट पु षषभः ।
नषादरा ो वषयमेकल य ज मवान् ।। ७ ।।
पु ष वर करीटधारी अजुन दशाणराज च ांगदको भी वशम करके नषादराज
एकल के रा यम गये ।। ७ ।।
एकल सुत ैनं यु े न जगृहे तदा ।
त च े नषादै ः स सं ामं लोमहषणम् ।। ८ ।।
वहाँ एकल के पु ने यु के ारा उनका वागत कया। अजुनने नषाद के साथ
रोमांचकारी सं ाम कया ।। ८ ।।
तत तम प कौ तेयः समरे वपरा जतः ।
जगाय यु ध धष य व नाथमागतम् ।। ९ ।।
यु म कसीसे परा त न होनेवाले धष वीर पाथने य म व न डालनेके लये आये
ए एकल -कुमारको भी परा त कर दया ।। ९ ।।
स तं ज वा महाराज नैषा द पाकशास नः ।
अ चतः ययौ भूयो द णं स ललाणवम् ।। १० ।।
महाराज! एकल के पु को परा जत करके उसके ारा पू जत ए इ कुमार अजुन
फर द ण समु के तटपर गये ।। १० ।।
त ा प वडैरा ै रौ ै मा हषकैर प ।
तथा को ल गरेयै यु मासीत् करी टनः ।। ११ ।।
वहाँ भी वड, आ , रौ , मा हषक और कोलाचलके ा त म रहनेवाले वीर के साथ
करीटधारी अजुनका खूब यु आ ।। ११ ।।
तां ा प वजयो ज वा ना तती ेण कमणा ।
तुर मवशेनाथ सुरा ान भतो ययौ ।। १२ ।।
गोकणमथ चासा भासम प ज मवान् ।
उन सबको मृ ल परा मसे ही जीतकर वे घोड़ेक इ छानुसार उसके पीछे चलनेम
ववश ए सौरा , गोकण और भास े म गये ।। १२ ।।
ततो ारवत र यां वृ णवीरा भपा लताम् ।। १३ ।।
आससाद हयः ीमान् कु राज य य यः ।
त प ात् कु राज यु ध रका वह य स ब धी का तमान् अ वृ णवीर ारा
सुर त ारकापुरीम जा प ँचा ।। १३ ।।
तमु म य हय े ं यादवानां कुमारकाः ।। १४ ।।
ययु तां तदा राज ु सेनो यवारयत् ।
राजन्! वहाँ य वंशी वीर के बालक ने उस उ म अ को बलपूवक पकड़कर यु के
लये उ ोग कया; परंतु महाराज उ सेनने उ ह रोक दया ।। १४ ।।
ततः पुराद् व न य वृ य धकप त तदा ।। १५ ।।
स हतो वसुदेवेन मातुलेन करी टनः ।
तौ समे य कु े ं व धवत् ी तपूवकम् ।। १६ ।।
परया भारत े ं पूजया समव थतौ ।
तत ता यामनु ातो ययौ येन हयो गतः ।। १७ ।।
तदन तर अजुनके मामा वसुदेवको साथ ले वृ ण और अ धककुलके राजा उ सेन
नगरसे बाहर नकले। वे दोन बड़ी स ताके साथ कु े अजुनसे व धपूवक मले।
उ ह ने भरतकुलके उस े वीरका बड़ा आदर-स कार कया। फर उन दोन क आ ा ले
अजुन उसी ओर चल दये, जधर वह अ गया था ।।
१. खा पदाथको प थरपर फोड़कर खानेवाले। २. सूयक करण का पान करनेवाले। ३. पूछकर दये ए अ को ही
लेनेवाले। ४. य श अ को ही भोजन करनेवाले। ५. त वका वचार करनेवाले।
*
सं चत अ का य कये बना ही उसके पशमा से दे वता को तृ त करनेक जो भावना है, उसका नाम पशय
है।