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हनुमान
लीला

वनमाली

अनु वाद : आशुतोष गग


मंजुल प ल शग हाउस
कॉरपोरेट एवं संपादक य कायालय
तीय तल, उषा ीत कॉ ले स, 42 मालवीय नगर, भोपाल-462 003
व य एवं वपणन कायालय
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वतरण के
अहमदाबाद, बगलु , भोपाल, कोलकाता, चे ई, हैदराबाद, मु बई, नई द ली, पुणे

आयन बु स इंटरनैशनल के सहयोग से का शत

वनमाली ारा ल खत मूल अं ेजी पु तक


ी हनुमान लीला का ह द अनुवाद

कॉपीराइट © वनमाली गीता योगा म

यह ह द सं करण 2016 म पहली बार का शत

ISBN 978-81-8322-724-7
अनुवाद : आशुतोष गग

मु ण व ज दसाज़ी : थॉमसन ेस (इं डया) ल मटे ड

इस पु तक के लेखक होने क नै तक ज़ मेदारी वनमाली क है।


यह पु तक इस शत पर व य क जा रही है क काशक क ल खत पूवानुम त के बना इसे या इसके कसी भी ह से
को न तो पुनः का शत कया जा सकता है और न ही कसी भी अ य तरीक़े से, कसी भी प म इसका ावसा यक
उपयोग कया जा सकता है। य द कोई ऐसा करता है तो उसके व कानूनी कारवाई क जाएगी।

ी गणेशाय नमः
भगवान गणेश को नमन्
म ाथना करती ँ क ई वर
इस ले खका के माग क
सम त बाधा को र कर तथा
ी हनुमान क लीला
पर यह पु तक लखने म सहयोग द।
समपण

ॐ आंजनेय व हे,
वायुपु ाय धीम ह,
त नो हनुमत् चोदयात

म आंजनेय का चतन करती ँ


म वायु-पु का मनन करती ँ,
वे मुझे ान दान कर।

मेरी सबसे य म और
ी हनुमान के े भ म एक
न ली
को सम पत
ी बाबा नीब करौरी जी महाराज ारा द
एवं उनक मु य श या ी स माँ
ारा मंगलकामना

हनुमान सम न ह बड़ भागी
न ह कोऊ राम चरण अनुरागी,
पवन तनय बल पवन समाना
बु ववेक व ान नधाना
कवन सो काज क ठन जग मा ह
जो न ह छोड़ तथा तुम पा ह।

हनुमान जतना भा यशाली कोई नह है,


राम के चरण म कसी अ य का इतना ेम नह है,
पवन-पु , जो बल म उ ह (पवन) के समान ह,
जो बु , ववेक और व ान का भंडार ह,
हे भु! य द आप अपने नेह क वषा कर द
तो इस संसार का कोई काय क ठन नह है।
अनु म णका

आमुख
भू मका

1 . महावीर (हनुमान का ऐ तहा सक व प)


2 . आंजनेय (अंजना-पु )
3 . केसरी पु (केसरी के पु )
4 . वायु-पु (वायु के पु )
5 . मा त (सूय तक उड़ान)
6 . केसरी-नंदन (हनुमान क श ा)
7 . जत य (इं य पर वजय)
8 . सु ीव- म (सु ीव के म )
9 . रामदास ( स मुठभेड़)
10 . ाणदे व (बाली-वध)
11 . राम त (राम के त)
12 . सुंदर (सुंदर कांड)
13 . पवन-पु (सीता क खोज)
14 . संकट मोचन (क के वनाशक)
15 . बजरंगबली (लंका दहन)
16 . शूर ( न ावान सेवक)
17 . महा मा (रावण क यु -प रषद्)
18 . भ व सल (राम ने आ य दया)
19 . महातेज वी (लंका क घेराबंद )
20 . वा मज (यु जारी है)
21 . दै यकुलांतक (कुंभकण)
22 . ल मण ाणदाता (ल मण के र क)
23 . कप (इं जत-वध)
24 . महाबल (पाताल क या ा)
25 . -पु ( नणायक यु )
26 . व प (रावण-वध)
( ी )
27 . उ म (अ न परी ा)
28 . सह वदन (अयो या वापसी)
29 . शुभांग (धम क वजय)
30 . वीर (सीता का याग)
31 . राम य (रामायण)
32 . लोकबंधु (अ वमेध य )
33 . तप वी ( ापर युग)
34 . भीम (महाभारत)
35 . शुभम् (क लयुग)
36 . मंगल मू त (मंगल व प)

क वताएँ
हनुमान के नाम
अनुवादक क ओर से
आमुख
ी कृ ण दास

ी वनमाली असाधारण ाणी ह। वे भगवान राम के सभी प क भ ह, ज ह भगवान


क लीला को अं ेज़ी भाषी लोग तक प ँचाने क कृपालु अ भलाषा का आशीवाद ा त
है।
प चम म, ऐसे अनेक नए भ ह ज ह भारत के पू य व ाचीन ंथ को समझने क
ब त आव यकता है। ऐसे म ी वनमाली मनोहर व ठं डे झ के क भाँ त इन उ सुक भ
के दय तथा म त क को भगवान क आनंदमय लीला से भर दे ती ह। उ ह ने अपनी
अ य सभी पु तक क तरह, ी हनुमानजी पर लखी इस पु तक म भी हम अपने यतम
क लीला के गूढ़ संसार से प र चत करवाया है।
भगवान के सभी भ म ी हनुमान सबसे े ह। वे सही अथ म ानी ह। वे अपने
वा त वक प म भगवान ी राम के साथ एकाकार हो गए ह तथा येक व तु और
म अपने भगवान के दशन करते ह। उनका स याभास यह तक सी मत नह है।
जैसा क ी कृ ण कहते ह,

“और जब ाणी सब म मुझे तथा मुझ म


सब को दे खता है, तो म उसे और वह
मुझे कभी नह याग सकता।
और वह ाणी, जो ेम क इस एका मकता म,
येक व तु म, जसे वह दे खता है
मुझसे ेम करता है, वह ाणी कह भी रहे,
वह वा तव म मेरे भीतर रहता है…”

—भगवद् गीता , अ याय 6

ी हनुमान को समझने का यही तरीक़ा है। वे अपने भीतर स य को महसूस करने वाल क
सम त बाधा को र करके सभी जीव के प म ी राम क सेवा करते ह। वा तव म वे
यह मानते ह क राम के अ त र , कोई “अ य”, ाणी नह है। वयं को अलग समझने
वाले लोग के त क णा प म कट होने वाले इस स य-ज नत ेम से ेरणा लेकर वे
सतत उनके क को र करते रहते ह।
ी हनुमान का एक अ य रह य ी नीब करौरी बाबा ने अपने ब त पुराने भ दादा
मुखज के सम कट कया था। महाराज जी के साथ, भ क एक टोली च कूट म

ई ी े ी े े े ी
हनुमान धारा गई थी। उ ह ने पहाड़ी के ऊपर थत च ान म से नकलने वाली उस
जलधारा के नकट व ाम कया था।
महाराज जी ने दादा को बताया, “यही वह जगह है, जहाँ लंका दहन करने के बाद
हनुमान शांत होने के लए आए थे और उ ह ने वयं को ठं डा कया था।”
कुछ ण बाद उ ह ने धीरे से कहा मानो ख़ुद से बात कर रहे ह , “ न संदेह, हनुमान
सदै व शांत रहते थे।”
कोई भी काय करते, चाहे लंका जलाते ए, रा स का संहार करते ए, राम नाम क
धुन गाते ए अथवा भ क सेवा करते ए, हनुमान कभी ीराम से अलग नह होते थे।
भगवान सब पर कृपा कर।

ी कृ ण दास

ी कृ ण दास अपने दय पश भ मय गीत के कारण सभी संगीत े मय के बीच,


वशेष प से प चम म, व यात ह। हालाँ क वे कृ ण दास के नाम से जाने जाते ह, परंतु
उ ह सहज प से राम दास या हनुमान दास भी कहा जा सकता है य क वे दोन के भ
ह।

ॐ ी हनुमते नमः

ी रामचं ाय नमः

भू मका

य य रघुनाथ क तनं
त त कृतम तकांज ल
वा पवा र प रपूण लोचनं
मा त नम च रा सा तकं

“म, असुर के संहारक,


मा त को णाम करता ँ,
जो उन सब थान पर,
जहाँ राम क म हमा गाई जाती है,
हाथ जोड़े उप थत रहते ह तथा
न ा एवं हष के अ ु बहाते ह!”

—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

आधु नक व ान भले ही वकास के यां क स ांत को खोजने का दावा करे कतु भारत
के ाचीन ऋ षय ने तो सनातन धम कहलाने वाले शा वत मू य के आ या मक नयम
क खोज क , जो मानव-मन म दै वी प से बलात् अंत व है और जो उसे वकास क
अ धक ऊँचाइय तक प ँचाने म समथ बनाते ह। यह व व के लए भारत क महान दे न है
क उसने मनु य मा को अपने वभाव को झकझोरकर, उसम अंत व द ता को
उ ा टत करने क बल इ छा को अनु मा णत कया है। इसी को बोधन अथवा ान का
उदय होना कहा जाता है। भारत म पीढ़ दर पीढ़ ऐसे ज मे ह ज ह ने सनातन धम
को नरंतर नवीनता व सरसता दान क और संपूण मानव जा त को सुलभ कर दया।
हमारे मनी षय ने चाहा क हमारा दे श न केवल भौ तक उ न त करे, ब क यह उ न त
हमारी वरासत म स न हत समझदारी और ववेक ारा न द धमपरायणता के ांडीय
नयम के अ वरत आंत रक नवीनीकरण के मा यम से होनी चा हए।
इस दे श के महाका एवं पुराण ान के भंडार ह और इनके अ ययन ारा हमारा
आ या मक वकास ज द होगा। स य हमारे नजी यास ारा य अनुभू त क चीज़
है तथा प इसक ा त के लए ऋ षय ने ब त से तरीक़े बताए। इन संत का व

औ े ऐ े ो े ो े ी े े े
महान था और ये ऐसे अभ लोग से, जो अपने कुछ भी लखे ए से अपने नाम का
गुणगान चाहते ह, ब त ऊपर उठे ए थे। इस लए उनके नाम रह य बनकर रह गए ह। हम
उनके ारा बताई गई व धय को अपनाने का यास करके, उनके त केवल अपनी
कृत ता कट कर सकते ह।
हम ऐसे लोग के त, जो स दय ह, अपने अ याव यक अनुभव को बाँटने का वन
आ ह प रल त होता है। मानव-मन के लए उपल ध यह उ कृ अनुभव है जसे
ान कहा जाता है। व ा अथवा ान वयं म जीवन का उ े य नह ह, उसे तो एक
ऐसे सजीव मेल- मलाप का प लेना होगा जसम हम सभी ा णय म ही नह , ब क
समूचे व व म न हत जीवन क एकता को यथाथ म अनुभव करते ह। इससे समूची सृ
के त अथाह ेम का ज म होता है और इसी से हमारे सावज नक अनुभव के सजग संसार
म दमघ टू तबंध तथा ां तय से वयं को मु करने क बल इ छा भी होगी। इस
कार के पूण पेण न वाथ ेम म अपने चर पो षत ान को संपूण मानवता के साथ
बाँटने क उनक उ कृ अ भलाषा झलकती है। इस कार हम दे खते ह क ऋ षय ने
अपने साम य के अनु प हर संभव उपाय ारा हमारी त और अ ानी मानव जा त को
वह सब उपल ध करने यो य बनाया जो मानव जीवन का परमाथ था। हर मनु य ई वर का
ही त बब है। संसार क ां तय व मरी चका म फँसने मा के कारण हम अपने दै वी
व प क अनुभू त नह हो पाती।
उप नषद ने ान का माग दखाया जस पर चलना ब त के लए क ठन है। वे केवल
उ ह ही आक षत करते ह जो पहले से अ या म क ओर वृ ह। तथा प ऐसा कहा जाता
है असीम, कालातीत और नराकार ई वर व इस न वर जगत म, ई वर के प म अपने
कुछ रह यमय उ े य के लए अवत रत होता है। इसे ई वर क लीला कहा जाता है। जो
ऋ ष उप नषद काल के बाद आए, वे ऐसे लोग क आव यकता को पूरा करने के संक प
के साथ आए जनका आ या मकता क ओर क़तई झुकाव नह था। इस लए उप नषद
क यथाथता को बलात् उन औसत ान वाले लोग के मन म कहा नय के प म
पुन था पत कया। महाभारत के रच यता मह ष ास ऐसे कथावाचक म सबसे महान थे।
उनका कहना था क य द हम कसी कथा को यानपूवक सुन तो फर हम पहले जैसे नह
रहगे। वह कथा-कहानी वशेष प से य द आ या मक तल पर है तो वह मन म समा
जाएगी और हमारी व न मत बाधा को तोड़कर उ कृ ता दान करेगी! य द हम इन
कहा नय को मा मनोरंजन के लए पढ़ तो भी अंत म एक, दो हमारे मन म व हो
मानवीयता के न ु र आवरण म व फोट करके हमारे च क उ कृ ता को उ ा टत कर
दगी। ये कहा नयाँ असीम जीवन श से ओत- ोत ह ज ह सुनकर लोग थकते नह ह।
इ ह सुना या पढ़ा जा सकता है और इन पर मनन कया जा सकता है, इनम पाठक के अंदर
जीवन, मृ यु और ार ध वषयक गहरी सोच वक सत करने क मता है। येक कहानी
म परो प से नै तक मू य न हत ह जसक तुलना कसी सुंदर फूल क सुगंध से क जा
सकती है। ऋ षय ने हम सखाया क सम त प, कसी भाषा के व प-श द-श से

ो ी ी ो े ी ी
यु अ र ह, जो कसी भी प ारा अ तबं धत होते ए भी सभी प का सव म
ोत ह और हम अपनी आ या मकता क अनुभू त करवाने म सहायक हो सकते ह।
ई वर के त समपण अथवा भ के माग को पुराण अथवा महापुराण म आकषक
प म प कया गया है। इनम महान अवतार और ह सव दे व मं दर के सभी
ब सं यक दे व क कथाएँ व णत ह जो जीवन के स य से पूरी तरह मेल खाती ह। भारतीय
उपमहा प क सं कृ त इन महाका के प रवेश मे वक सत ई थी। येक ब चे को
इनम दए उ कृ उदाहरण का अनुकरण करना सखाया जाता था और इस कार उसके
जीवन को आदश प दान कया जाता था। ह मानस को कसी भी उ कृ क पशु
अथवा मनु य प म क पना करने म कोई क ठनाई नह होती। इस लए हम गणेश को
हाथी के सर के साथ मानव प म और हनुमान को च त दे खते ह जो क वानर थे।
ह के दे व-समूह म हनुमान सव य ह। वे वा तव म ह तो पशु, कतु मनु य क
तरह आचरण करते ह। वे भगवान व णु के सातव अवतार, सूयवंशी तथा अपने उ कृ
इ दे व ी राम के त न वाथ परम भ के तीक ह। हनुमान म सारी श राम नाम के
मूलमं के नरंतर जप से आई जो क क लयुग के लोग के लये महामं है। ऐसा कहा
जाता है क य द इस मं का भ भाव से जप कया जाए तो यह नाशहीन जीवन-च से
मु दान करता है।
राम के येक मं दर म, राम के चरण म नतम तक मु ा म हनुमान क मू त होती है।
जहाँ भी रामायण पढ़ या गाई जाती है, वहाँ एक आसन हनुमान के लए ख़ाली छोड़ा
जाता है य क ऐसा माना जाता है क जहाँ भी इनके परम य वामी राम क कथा का
पाठ होता है, ये वहाँ सदै व व मान रहते ह।
सं कृत श द ‘साधना’ का अथ है, ऐसी प त जसे अपनाकर कोई अ भलाषी या
साधक अपनी चेतना के साथ संपक था पत कर सकता है। साधना सबसे सरल प त,
जप अथवा मन म ई वर के उस नाम को बार बार बोलते रहना है जसक हम क पना करते
ह। हनुमान के नाम से हमारे मन म ऐसी वानर क छ व बनती है जसने अपने इ दे व केवल
राम नाम को जपकर पूण तरह आदश प ा त कर लया था तथा अपने इ दे व भु राम
के त पूरी तरह से आ म- याग कर दया। वनयशीलता और न वाथ भाव हमारे ान के
मापदं ड ह। हम जतना अ धक ान लेते ह, हम उतना ही अ धक यह आभास होता है क
हम कतने अ ानी ह और यह क कतना कम काय हम वयं कर सकते ह।
कवदं ती के अनुसार, हनुमान पवन-पु ह। वायु ही सम त ा णय को जी वत रखती
है। कोई भी जीव बना भोजन व जल के कई दन गुज़ार सकता है, कतु वायु के बना थोड़े
समय भी जी वत नह रह सकता। वायु जीवन है। इस लए हनुमान भी ाणदे व अथवा
वास जीवन के अ ध ाता कहलाते ह।
वै णव धम के अनुया यय का मानना है क व णु क सहायता के लए वायुदेव ने तीन
अवतार लए। पहले अवतार म, हनुमान के प म राम क सहायता क । सरे म, भीम के
प म कृ ण क सहायता क । तीसरे अवतार म, म वाचाय (1197-76 ) के प म ै त
कहे जाने वाले वै णव सं दाय क न व डाली।
ी े ो ै ो औ
ह तीकवाद के संदभ म वानर, मानव मन का ोतक है जो सदा चंचल और अशांत
रहता है। यह केवल बंदर के समान मन ही है, जसे मनु य पूरी तरह नयं त कर सकता
है। हम अपने इद- गद के समाज को नयं त नह कर सकते कतु कठोर अनुशासन ारा
अपने मन को सौ य बनाकर वश म कर सकते ह। हम जीवन का चयन तो नह कर सकते,
कतु उसम अपनी त या का चयन अव य कर सकते ह। न चय ही, हनुमान आदश
च के तीक ह तथा म त क क े ता को दशाते ह। वे सही प म भगव ता के
थत ह। उनका अपने मन पर पूरा नयं ण है। ‘हनुमान’ नाम उनके च र का संकेत
दे ता है। यह सं कृत के दो श द - ‘हनन’ और ‘मन’ से बना है, जसका अथ है, जसने
अपने अहंकार को जीत लया है। योग के अनुसार तन, मन का ही वकार है। इस तरह,
जनका अपने मन पर पूरा आ धप य है, उन हनुमान का शरीर भी सवा धक वक सत है। वे
बजरंग बली ह ( जनका शरीर व के समान और ग त व ुत के समान है)। वे इतने
बलशाली ह क पवत उठा सकते ह और इतने द ह क सागर पार जा सकते ह।
उनक श सव व दत है और वे का यक सं कृ त के संर क ह। उनक तमाएँ पूरे
भारत क ायाम शाला म था पत होती ह और पहलवान अपना ायाम आरंभ करने
से पहले उनक पूजा करते ह। सूय नम कार नामक योगासन, भ -यु सभी योगासन
का मला-जुला प है जसक रचना भी अपने गु सूय के स मान म वयं हनुमान ने क
थी। उनके दै वी पता वायु ने उ ह ाणायाम सखाया। इ ह ने इसे मनु य को सखाया।
धम ंथ म ऐसी ब त-सी घटना का उ लेख मलता है जहाँ हनुमान ने सूय और
श न स हत द न पर अपनी श द शत क । इस लए उ ह ने नव- ह अथवा नौ
न पर अपना अ धकार जमा लया। ये ह ह - सूय, चं , मंगल, बुध, बृ प त, शु ,
शरीर-र हत रा और सर-र हत केतु। माना जाता है क ज म-प ी म इनक दशा
उसके भा य का न चय करती है। हनुमान क ब त-सी तमा म उ ह चोट पकड़कर
उसे कुचलते ए दखाया गया है। यह ी ‘पनवती’ अथवा घातक यो तष भाव क मूत
प है।
तां क और ओझा लोग, आ मा का आ ान करने हेतु दै वी श य के नाम पर
छल-कपट करते ह। ऐसे लोग से, अपनी सुर ा के लए लोग हनुमान से ाथना करते ह।
जब रावण ने ऐसे दो तां क अ हरावण और म हरावण का आ ान कया था, तो हनुमान
ने उनके ऊपर पलटवार करते ए उनका दमन करने हेतु काली का आ ान कया था।
ब त-से तां क उनक पूजा करते ह य क उनके पास ब त-सी स याँ अथात् अपना
आकार बदलने, आकाश म उड़ने जैसी अलौ कक श याँ ह, ज ह उ ह ने कठोर चय
और तप या ारा ा त कया है।
इस कार, वे भ और श क हरी व श ताएँ कट करते ह। उनक मू तय म
इन दो म से कोई एक व श ता दखाई पड़ती है।
चूँ क उ ह ने हमालय से जा ई जड़ी-बूट लाकर ल मण क जान बचाने म अहम
भू मका नभाई थी अतः वे आयुव दक प त के संर क भी ह। बाद म उ ह ने उसी जड़ी-
बूट से श ु न क भी ाण र ा क थी।
ो े े ो ोई ै े े ो ो े े
यो ा के प म, हनुमान के जोड़ का कोई नह है। वे अपने श ु को दबोचने के लए
बल और छल दोन का योग करते ह। रावण के साथ, यु करते समय, उ ह ने कई बार
ऐसा द शत कया है। इ ह ने अपने श ु पर वजय ा त करने के लए बल और बु
दोन का उपयोग कया है।
हनुमान कुशल कूटनी त भी थे। वे जानते थे क कस तरह मृ वचन से, बना बल
योग कए, सर के सम अपना मत तुत कया जा सकता है। वे राम का उ े य
जानने के लए सु ीव के व ा बनकर गए थे। सु ीव ने उ ह एक बार फर अपनी चूक के
कारण ु ए ल मण को शांत करने के लए भेजा। राम ने उ ह दो बार अपना त
बनाकर सीता के पास भेजा, एक बार अपनी अँगूठ दे कर लंका म, और सरी बार यु के
बाद, सीता को लाने के लए। राम ने इ ह अयो या म वेश करने से पहले, भरत के पास भी
उनका इरादा जानने के लए भेजा था। जो भी इनके संपक म आए, वे सभी इनके
कूटनी तक ढं ग से बात करने और मु ध कर लेने क कला से अ यंत भा वत ए।
हनुमान ने भाषा पर अपने अ धकार, ाकरण ान और सही समय पर सही श द के
योग तथा सही संदभ म आदश भाषण-शैलीगत यो यता से राम और रावण दोन को
भा वत कया।
यह और भी आ चयजनक है क हनुमान महान संगीत भी थे। उ ह दे वी सर वती का
आशीवाद ा त था। वे वीणा बजाते थे और राम क शंसा म गीत गाते थे। सव थम,
इ ह ने ही भजन, आराधना-गीत, क तन कया और तु त-गीत गाए। इनका संगीत अपने
आरा य के त ेममय उ ार था और इसी लए, उसम पाषाण को भी वत कर दे ने क
श थी।
हनुमान एक आदश व ाथ थे। वे पूरी तरह एक च , उ मी, वन , ढ़संक प
और तभाशाली थे। उ ह ने सूय को अपना गु बनाने के लए ढ़ न चय करके सौर-
मंडल के लए उड़ान भरी। फर भी, उ ह ने अपनी तभा और व ता पर कभी घमंड नह
कया, ब क वन सेवक क तरह हमेशा राम के चरण म ही बैठे।
हनुमान को नाम और या त क कोई इ छा नह थी। उ ह पवत और गुफा म रहना
पसंद था। उ ह ने पूण चय का पालन कया। यह एक वानर के लए व च बात थी।
महल म रहते ए भी, वे साधु क तरह इं य-सुख से र रहे। इसी के मा यम से उ ह इतनी
आ या मक श ा त ई।
वे हठयोगी भी थे य क उ ह ने योगासन और ाणायाम का अ यास भी कया था।
वे लययोगी भी थे य क उ ह मं एवं यं क सहायता से भी मन को नयं त करना
आता था। इस कार उ ह ने कई स याँ और अलौ कक श याँ ा त कर ली थ ।
य द योग कसी के मन को नयं त करने क व ध है तो हनुमान एक आदश योगी थे
जनका अपनी इं य पर पूण नयं ण था जसे उ ह ने अनुशा सत जीवन-शैली और
कठोरता से चय पालन एवं न वाथ भ के ारा ा त कया था। उ ह ने ई वर म
आ था और पूण व वास के ारा अपने मन को नयं त कया। उनके जीवन क येक
घटना, भु से ा त उपहार थी जसे न कए बना, वीकार करना होता है। उनका जीवन
ऐ ै ेई ो ी ी े े ो े
ऐसा उ कृ उदाहरण है जसे ई वर को कसी भी प म मानने वाले भ को अपनाने क
ज रत है। वे हम समझाते ह क ई वर तक प ँचने के लए कसी भ अथवा भ न को
कैसा जीवन जीना चा हए। वे भ क पराका ा के तीक ह और ह उ ह अथवा
भगवान शव का यारहवां अवतार मानते ह। कहते ह, एक बार नारद ने ा से पूछा क वे
व णु का परम भ कसे मानते ह। नारद को आशा थी क ा उ ह का नाम लगे, कतु
ा ने उ ह असुर के राजा ाद के पास भेजा जसके कारण व णु ने नर सह प म
अवतार लया था। ाद ने नारद को हनुमान के पास भेजा ज ह वे राम नाम का नरंतर
जप करने के कारण व णु का परम भ मानते थे।
हनुमान आदश कमयोगी थे य क वे अनास रहकर अपने कम करते थे और येक
व तु अपने भु राम को सम पत कर दे ते थे। उनके मन म अपनी बड़ाई क कोई कामना
नह थी। पूरी रामायण म ऐसी कोई घटना नह है, जसम हनुमान ने अपने लए कुछ कया
हो। उ ह ने सभी साह सक काय सर के लए कए। जब उ ह ने अपनी माता को यु का
ववरण सुनाया तो माता ने रावण को वयं मारकर और सीता का वयं ही उ ार न करने के
लए, हनुमान क नदा क य क ऐसा करने से राम से अ धक हनुमान या त हो जाती।
हनुमान ने माता को उ र दया उ ह वह जीवन, या त अ जत करने के लए नह , अ पतु
राम क सेवा करने के लए मला है। उनक परम न वाथता मुखता से उस समय उभरती
है, जब यह दे खकर क वा मी क अपनी रचना से अ यंत न सा हत हो गए ह, हनुमान
अपनी अमर उ कृ कृ त को समु म फक दे ते ह।
हनुमान ने अपना संपूण जीवन सर क सेवा म तीत कर दया। उ ह ने पहले सु ीव
क और फर राम क सेवा क । वे अपने दा य भाव के मा यम से भ का आदश प
तुत करते ह। इस कार का समपण, अहंकार को न करने का उ कृ साधन है। उ ह ने
वन ता से अहंकार र हत होकर पूण समपण के साथ अपने कत का पालन कया।
उ ह ने अ ववा हत रहना और अपना प रवार न बनाना ही पसंद कया ता क वे वयं को पूण
प से सर क सेवा म लगा सक। उ ह ने समथ होने के बावजूद, अपने वामी क आ ा
का अ त मण नह कया। उदाहरण के लए, वे आसानी से रावण को मारकर, अपने बल
पर ही लंका को जीत सकते थे, जैसा क इनक माता ने कहा भी था, कतु इ ह ने ऐसा
करने से वयं को रोक लया य क वे अपने भु के स चे सेवक बनकर उनक आ ा का
पालन करना चाहते थे।
वे सात चरंजी वय (जो इस सृ के मौजूदा च के ख़ा मे तक जी वत रहगे) म से
एक ह। वे अपनी महान तभा के लए जाने जाते ह। कहते ह, इ ह नौ ाकरण (वेद क
ा या) का पूण ान है और इ ह ने वयं ही, सूयदे व से वेद का ान ा त कया था। ये
ववेकशील म परम ववेकशील, श शा लय म परम श शाली और वीर म महावीर
ह। वे जैसा चाहते, वैसा प धारण करने म समथ ह, अपने शरीर को पवताकार कर सकते
ह तो अँगूठे के नाख़ून जतना छोटा भी कर सकते ह। जो इनका मरण करेगा, वह
जीवन म साम य, श , गौरव, समृ और सफलता ा त करेगा।

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हनुमान ववेक, संयम, भ , साहस, सदाचार और श के ‘सार’ ह। राम को सीता से
मला दे ने म इनक अप रहाय भू मका क तुलना कुछ लोग, आ मा को परमा मा से मलाने
म सहायक गु से करते ह।
राम, हनुमान के वषय म वयं कहते ह, “वीरता, चतुराई, मनोबल, ढ़ता, रद शता,
समझदारी, परा म और बल ने हनुमान म आ य लया है!” मह ष अग य ने जब राम से
कहा, “हे राघव! बल, ग त और तभा म हनुमान जैसा कोई नह है,” तो उ ह ने भी राम
के वचार से अपनी सहम त कट क है।
हनुमान, ‘राम’ मं के जप ारा सुलभ ह। इसी को उलटकर यह भी समझा जाता है
क भु राम को पाने का सबसे सरल तरीक़ा, हनुमान क पूजा करना है। इनक पूजा ‘श न’
और ‘मंगल’ ह से जुड़ी होने के कारण श नवार और मंगलवार को क जाती है। ये दोन
ही ह, मृ यु एवं श ुता से संबं धत ह और अपने अशुभ भाव से के जीवन म तोड़-
फोड़ करते ह।
हनुमान को अ पत क जाने वाली व तुएँ अ यंत साद ह। उ र भारत म स र, तल
का तेल, छलके वाले काले चने तथा व श वृ (कैलो ो पस जाइज टका) क माला और
द ण भारत म पान के प क माला चढ़ाई जाती है। द ण म इनक मू तय पर म खन
मला जाता है और यह व च बात है क तेज़ गम म भी म खन पघलता नह है। इनक
मू त पर चावल और दाल के बड़ क माला भी चढ़ाई जाती है।
स र के लेप का कारण अगले अ याय म बताया जाएगा। तथा प गूढ़ अथ म दे ख तो
लाल रंग, बल और पौ ष का तीक है। तल का तेल पहलवान और ायाम करने वाल
ारा शरीर क मा लश के लए योग कया जाता है। म खन और दाल, ोट न तथा ऊजा
दे ते ह और सहनश एवं माँसपे शय के वकास के ोत माने जाते ह।
सभी हनुमान भ दो कार क धा मक साम ी पढ़ते ह - एक, रामायण का
‘सुंदरकांड’ जहाँ हनुमान ने लंका म सीता को खोजा, तथा सरा, तुलसीदास कृत चालीस
चौपाइय क ‘हनुमान चालीसा। ’ जहाँ भी रामायण का पाठ होता है वहाँ एक वशेष
आसन हनुमान के लए अव य रखा जाता है य क ऐसी धारणा है क रामायण-पाठ वाले
थान पर हनुमान अव य मौजूद रहते ह।
इनक शारी रक वशेषताएँ या ह? या ये काले मुँह के लंगूर ह या लाल मुँह के बंदर
ह? कभी-कभी, इ ह लाल मुँह वाला सुनहरा बंदर बाताया जाता है। कहते ह, लंका को
जलाने के बाद, इ ह ने अपनी पूँछ से जब अपना चेहरा प छा तो वह काला हो गया।
हनुमान क पूँछ ऊपर क ओर घुमावदार है जो बल, फुत और पौ ष क तीक है। ये
सोना, चाँद , ताँबा, लोहा और टन नामक पाँच धातु से बने कुंडल पहनते ह और इ ह
पहनकर ही ये इस संसार म आए थे। सामा य तौर पर, ये पहलवान एवं ाया मय क
भाँ त केवल लंगोट पहनते ह। इनक तमा म इ ह राम को नमन् करते या हरी क
मु ा म खड़े ए तथा अपने बल को द शत करते ए दशाया जाता है। इनके एक हाथ म
गदा और एक म पवत भी दखाया जाता है।

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हनुमान चालीसा म प तौर पर कहा गया है क ऐसा कोई आशीवाद नह है, जो ये
नह दे सकते! सीता ने इ ह आठ कार क स याँ (अ स ) तथा नौ कार के वैभव
(नव न ध) दे ने का वरदान दया था। एक े वरदान जो हनुमान से माँगा जा सकता है, वह
आ या मक गुण म वृ का वरदान है, य क वे वयं भी इसी के लए जाने जाते ह।

ीगु चरन सरोज रज नज मनु मुकु सुधा र।


बरनउँ रघुबर बमल जसु जो दायकु फल चा र।।
बु हीन तनु जा नकै, सु मर पवनकुमार।
बल बु ध ब ा दे मो ह हर कलेस बकार।।

म अपने भु (गु ) के चरण क धूल से


अपने दय पी दपण को व छ करके,
ी राम के नमल यश का वणन करता ँ
जो चार कामना को दे ने वाला है।
म वयं को बु हीन जानकर
पवनकुमार हनुमान का मरण करता ँ
क वे मुझे बल, बु और व ा दान कर
तथा मेरे शरीर के क और वकार को र कर।
(और मुझे यह पु तक लखने क अनुम त दान कर।)

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

महावीराय नमः

अ याय 1

महावीर
हनुमान का ऐ तहा सक व प

मोरे मन भु अस ब वासा।
राम ते अ धक राम कर दासा।।

हे भु, मेरे मन म यह पूण व वास है,


क राम के दास, राम से भी े ह।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

वानर दे व हनुमान से हमारी पहली भट वा मी क कृत महान ंथ रामायण म होती है। ह


सं कृ त म इसका व श थान है य क इसम राम को आदश पु ष तथा सीता को आदश
ी के प म दशाया गया है। सम त पुराण म, यही एक ंथ है जसने न केवल भारतीय
उपमहा प म लोग क क पना को आक षत कया है, अ पतु सु र पूव के अनेक दे श क
सं कृ तय पर भी इसके रगामी भाव ए ह। वा तव म, ह सा ह य के अनेक पुराण म
से एक रामायण ही शायद एकमा ऐसा ंथ है जससे येक ह प र चत है। भारत म
ऐसे अनेक संत ह ज ह ने सफ़ राम नाम जपने से आ म- ान ा त कया है। हनुमान
इसके उ कृ उदाहरण है। वे राम के े त, यो ा और दास थे। उनका जीवन केवल राम
क सेवा के लए सम पत था। वा तव म वे इस महाका के इतने अ भ न अंग ह क यह
कहावत, “जहाँ राम क कथा होती है, वहाँ हनुमान होते ह”, सामा य तौर पर दोहराई जाती
है।
हालाँ क, यह अनुमान का वषय है क यह शानदार ाणी वेद या पुराण म बना
कसी पूव ांत के वा मी क के महाका म अचानक कैसे कट हो गया। रामायण म
राम क सहायता हेतु आया, यह असाधारण ाणी पहली बार क कंधा कांड म कट आ
था, जो रामायण का ही भाग है। इ ह वहाँ पर वानर या बंदर कहा गया था। परंतु न चत

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ही वे साधारण वानर नह थे। इनम ज़बरद त ताक़त थी और इनके पास अलौ कक श याँ
तथा अपनी इ छा से अपना प बदलने क मता थी। य प वै दक सा ह य म, वा मी क
के रा स का पहले भी उ लेख है, ले कन उनके वानर नह । रावण ने यह वरदान माँगा था
क कोई दे वता अथवा कोई अ य अलौ कक ाणी उसे न मार सके परंतु उसने अपनी सूची
म मनु य और बंदर का उ लेख नह कया था य क वह उ ह अपनी अपे ा से अ धक
तु छ समझता था। इससे ऐसा तीत होता है क इसी वशेष आव यकता क पू त के लए
वानर क रचना क गई थी। राम क सहायता के लए उनके कई नेता का ज म दे वता
क मदद से वानर य ारा आ था।
इस कार हनुमान एक वानर थे। वे वकास क ऐसी अव था का त न ध व करते ह
जो चांडाल अथवा ब ह कृत जा त से न न ेणी क है। वे अपने च र क श और
एक न समपण के ारा दे वता के पद तक जा प ँचे।
इस कथा म हम दे खते ह क हनुमान, वानरी चपलता के साथ मानवीय बु म ा,
वा पटु ता, समपण और ऊजा का म ण ह तथा अंत म, वे इस महाका के सबसे पेचीदा
और आकषक पा म से एक बनकर उभरते ह। या वे वा मी क क तभावान रचना थे
अथवा क ह अ य पुराण या वेद म उनका उ लेख मलता है जो सदा से दै वक गाथा
के भंडार रहे ह?
कुछ लोग कह सकते ह क वे इस लए महान थे य क वे वायुदेव के पु थे। य द यह
स य है तो महाभारत म सभी पांडव को दे वता माना जाना चा हए था य क वे दे वता
के पु थे, परंतु उनम से कोई भी हनुमान जतना े नह बन पाया। हम पांडव को मनु य
ही मानते ह ले कन कोई भी , हनुमान को वानर अथवा मनु य नह मानता। उ ह
भगवान माना जाता है! वा तव म, वा मी क ने हनुमान के आरं भक जीवन का वह च
हमारे सामने तुत नह कया, जससे उ ह दे वता माना जा सकता था। उनके इस प क
क पना का अनुमान उनक आदश छ व से लगाया जाता है। आ या मक उ कृ ता ा त
करने का रह य हनुमान वयं समझाते ह।

न म ा दकृ त तता,
न च नैस गको ममा,
भवा ईशा सामा यो,
य य य यचुतो द ।

हनुमान बलकुल प तौर पर कहते ह क उनक महानता का कारण उनक


ज मजात साधारण वानर वृ नह ब क उनका नरंतर यासरत रहना है। ान
सभी के लए संभव है। मो या मु येक जीव का ज म स अ धकार है। अपने
मामले म, हनुमान यह कहते ह क उनका सम त आ या मक उ थान भगवान के त
एक न समपण के कारण हो पाया है। जो सतत प से परमा मा का चतन करता है, वह
वयं परमा मा हो जाता है। ई वर के त पूण समपण ही आ या मक उ कृ ता का रह य
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है। मं के उ चारण मा से या मं दर म चढ़ावा दे ने अथवा ऊपरी अनु ान से आ या मक
पांतरण नह हो सकता। इसे वंशानुगत तरीक़े से भी ा त नह कया जा सकता। कोई
शशु, चाहे वह दे वता से उ प न आ हो अथवा मनु य से, फर भी वह रहता तो जीव ही
है। वकास से केवल शारी रक वृ होती है। यास के बना आ या मक वकास असंभव
है। उ च ेणी के वकास के लए ान और अनुशासन आव यक है। ई वर का न म
बनाकर, कसी अपूण दे ह को भी पूण बनाया जा सकता है। ऐसा करने से हमारे दोष भी
लाभकारी बन जाते ह। जब सम व परमा मा म प रव तत होता है, तो उसक
ु टयाँ भी लाभकारी बन जाती ह। इससे हम पता चलता है क वे अपने वानर वभाव के
चलते ही समु पार कर पाए, लंका प ँच पाए, सीता को खोज पाए और लौटकर उनका
संदेश राम को सुना सके। उनके पास नजी मनोरंजन का कोई तरीक़ा नह था। उनके काय
के सुप रणाम सदै व सर को मलते थे। इस तरह, वा मी क ने हनुमान के प म एक
शानदार पा को च त कया है, जो मु क कामना रखने वाले लोग के लए आदश
प है।
स चे, ावहा रक तथा दे व वारोपण म स म पा क रचना करने क तकनीक म
वा मी क, मह ष ास से भी े ह। रामायण के पा ऐ तहा सक यथाथवाद एवं धा मक
तीकवाद का मंगलमय संयोग दशाते ह जो धा मक और धम नरपे दोन तरह के लोग
को पसंद आता है। अपवाद व प कृ ण को छोड़कर महाभारत म और कसी को अपनी
के लए ास तथा अनेक अवसर पर उ ह चम कार करने और अपने अलौ कक प को
द शत करने क अनुम त दे ते ह। हालाँ क, वा मी क ारा कया गया राम का च ण सादा
है तथा उसम कसी तरह अलंकरण नह है। उ ह ने अपने का को रह यवाद का दास नह
बनने दया। राम “मयादा पु ष” ह, आदश ह, जो लौ कक धम के त अपने आदश
अनुपालन के कारण भगवान बन गए तथा हनुमान एक साधारण वानर ह, परंतु वे भी राम
के त अपने अटू ट समपण और कत के त असाधारण सजगता के चलते भगवान का
पद पा गए।
ह मा यता के अनुसार ‘परलोक’ म कोई व तु न जगत नह है। संपूण संसार
हमारे अपने ारा बनाया गया परक य है। हम मनु य के पास अपने म त क को
श त करने क अनूठ मता है। सरे श द म, हमारे पास जीवन के त अपने
कोण को बदलने का साम य मौजूद है। हम जीवन के त अपने कोण को
बदलकर, अपने संसार को बदल सकते ह। जब हनुमान ने राम के जीवन म वेश कया तो
राम क नया बदल गई। उ ह ने संसार को रावण से मु दलाने के लए एक संकट को
(सीता का हरण) अवसर म बदल दया। उ ह ने एक पी ड़त को नायक बना दया।
हालाँ क हनुमान का वेद म कोई उ लेख नह है, कतु जन दो दे वता को, वे अपना
पता मानते ह - पवन के दे वता वायु और संहार के दे वता - उन दोन का उ लेख वेद म
मलता है। एक तथा अनेक दोन ह और वे कालांतर म आने वाले पौरा णक शव का
ा प ह। वायु के साथ हनुमान का संबंध उनक चपलता ारा दशाया जाता है। आयुवद
याने उपचार के वै दक व ान म, रोग को शरीर म तीन त व - वात, प और कफ़ - का
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असंतुलन माना जाता है। इन तीन म वात याने वायु शरीर क दे खभाल म मह वपूण
भू मका नभाता है। ग ठया, थ का, मरगी और लकवा (प ाघात) समेत अनेक रोग शरीर
म वायु त व क अ धकता के कारण होते ह। हनुमान का इस आव यक त व के साथ घ न
संबंध है और इसे बाद म उनक व श ता के च ांकन म दशाया गया है। वायु पु और
वा मज उनके कुछ मह वपूण नाम ह। शरीर के सभी काय पाँच कार क वायु ारा
नयं त होते ह - ाण, अपान, ान, समान और उड़ान। ये सभी शरीर के व भ न
वचा लत काय जैसे वसन, पाचन, न कासन आ द का ख़याल रखते ह जनके बारे म
हम अवगत नह होते। हनुमान का एक प है जसम उनके पाँच सर दखाए गए ह, जो
पाँच कार क वायु का त न ध व करते ह। इस लए ऐसा कहा जाता है क वे हमारे
अनै छक काय के लए उ रदायी ह तथा उनक भ से हम वा य ा त होता है।
इसके अ त र न चत प से, हनुमान का वतमान च , वा मी क कृत रामायण के
आने के बाद बना है, इस लए ह दे वता के समूह म उनका आगमन हाल ही म आ है।
वे दे वता क ‘ सरी पीढ़ ’ क ेणी म आते ह। हालाँ क उनके भ बताते ह क भारत
के अनेक रा य म हनुमान के वामी से अ धक हनुमान के अपने मं दर ह। वा तव म ा,
व णु और शव क मू त म से केवल शव ही ह, जनक संतान को भु व ा त आ है
और यहाँ तक क कुछ मामल म, अपने माता- पता का उ च पद उ ह ने वयं ा त कर
लया है। शव के तीन मुख पु गणेश, का तकेय और धमष अथवा अय पा ह। हनुमान
भी शव का पु होने का दावा करते ह। वा तव म, जैसा क पहले बताया गया है, उ ह
यारहवां माना जाता है। रावण भी शव का परमभ था और इस लए यह व च
लगता है क शव का पु , रावण का श ु बन गया। इस व श वधा से संबं धत कथा यह
है क रावण ने शव को अपने दस सर चढ़ाए थे कतु उसने यारहव को स न नह
कया य क उसके पास चढ़ाने के लए एक और सर नह था!
शव के सभी पु ने भारतीय मान सकता को काफ़ आक षत कया है। गणेश को
सावभौ मक प से मा यता ा त है तथा सभी ह समुदाय उनक पूजा करते ह। उ ह ने
समु पार क भी या ा कर ली है और आपको प चम म भी गणेश के अनेक भ मल
जाते ह। का तकेय भी कसी समय उ र म काफ़ च लत थे ले कन अब उनके मं दर
वश प से द ण म और ीलंका म पाए जाते ह। उ ह द ण म कंद, मु गन और
वामीनाथन भी कहा जाता है। अय पा का आगमन ब त बाद म आ है। उनका मुख
मं दर शाबरी पहाड़ नामक थान पर सफ़ केरल म था। वे क लयुग के दे वता ह य क
उ ह, शव और व णु दोन से उ प न माना जाता है और उनके पास दोन क श याँ ह।
द ण के अनेक रा य म उनक या त फैल रही है और अब उनके मं दर द ली म भी
मल जाते ह। सरी ओर, हनुमान उ र म अ धक च लत थे य क वे तुलसीदास क
रामच रतमानस के लगभग नायक ह, जो अ धकांश हद भाषी लोग ारा त दन पढ़
जाती है। परंतु अब हम दे खते ह क धीरे-धीरे द ण म भी हनुमान क पूजा होने लगी है।
कसी समय म, हनुमान के अलग से मं दर नह होते थे परंतु अब द ण म नम कल तथा
सु च म थान पर उनके कुछ सबसे बड़े मं दर पाए जाते ह। हनुमान म एक कार क
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तभा है, जो सरी पीढ़ के अ य दे वता से अ धक है। गणेश म अ य वशेषताएँ ह
ले कन वे, हनुमान क तरह, अनंत दया और आ म-ब लदान अथवा कठोर तप या क
तमू त नह ह।
हनुमान को शव और व णु दोन खेम का माना जाता है। उनके पता शव ह और वे
राम के प म व णु के अवतार के सबसे बड़े भ ह। इस लए वे शैव तथा वै णव दोन
समूह म अ यंत च लत ह। शव के अ य पु क तरह, उनके ज म क भी अनेक कथाएँ
ह। पहले बताया जा चुका है क गणेश को उ र और द ण भारत म सव पसंद कया
जाता है और शायद वे सबसे अ धक च लत ह। हालाँ क, लोक यता के मामले म
हनुमान उनके नकटतम त ं ह, तथा प गणेश का पलड़ा संभवतः थोड़ा भारी है
य क पुराण म ऐसा कहा गया है क कसी भी काय को करने से पूव गणेश क पूजा
करना आव यक है। न संदेह, हनुमान ‘ वशेष ’ ह और लोग उनके पास व श कार क
सेवा के लए जाते ह। वे सभी कार क अपशकुन और ख़राब ह दशा को र करने
म स म ह और इस लए धीरे-धीरे उनका भु व बढ़ रहा है। हम ऐसा दे खते ह क महारा
म, जो मु य प से गणेश क पूजा करने वाला रा य है, गणेश के मं दर क अपे ा
मा त के मं दर चार गुना अ धक मा ा म मौजूद ह।
अनेक व ान का मत है क हनुमान पूजा दरअसल य पूजा का ही प रणाम है। य
को पृ वी क संप का र क माना जाता है और वे अपनी ताक़त और फुत के लए जाने
जाते ह। उनक मू तयाँ ायः मं दर के बाहर ारपाल तथा गाँव के बाहर े पाल के प
म बनाई जाती ह। आजकल, मं दर और गाँव के बाहर य के थान पर हनुमान क
मू तयाँ दे खने को मलती ह। य राज कुबेर को सदा हाथ म गदा लए दशाया जाता है और
हनुमान के पास भी यही अ होता है। राम के धरती से चले जाने के बाद, हनुमान
हमालय म चले गए और वहाँ उ ह ने अपने रहने के लए, य के सरोवर के समीप का
थान चुना, जससे य के त उनके लगाव का पता लगता है। यह उनक भट उनके
सौतेले भाई - भीम से ई थी।
सधु स यता म ई खुदाई के दौरान ब त-सी वानर तमाएँ मली थ , जससे उस
काल म वानर दे वता क पूजा के संकेत मलते ह हालाँ क ये संकेत ब त थोड़े ह। ऋ वेद
क सं हता एवं शतपथ ा ण म हनुमान के अनेक संदभ दए गए ह। कुछ ऋचा म
रामायण क घटना का भी उ लेख है। ऋ वेद के एक प ांश म वृषक प नाम के पीले-
भूरे रंग के वृष-वानर का उ लेख मलता है। इं क प नी, यह शकायत करती है क वह
वानर वै दक आ त म से उसके प त का भाग छ न लेता था। ह रवंश पुराण म भी वृषक प
नाम आया है, जहाँ उसे का यारहवां अवतार बताया गया है। यह, महाभारत म व णु
सह नाम ( व णु के एक हज़ार नाम) के अंतगत, व णु का भी एक नाम है। ल खत
माण के अनुसार हनुमान क पूजा केवल एक हज़ार वष पहले आरंभ ई है और इस लए
भारतीय व ा के जानकार के अनुसार हनुमान अभी बालक ह। वा तव म, उनके प क
सबसे मह वपूण अ भ पछली कुछ शता दय म ही ई है।

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य प हनुमान पर सबसे अ धक साम ी पुराण म मलती है। अ न, व णु, कूम,
ग ड़, वैवत, नर सह, क क तथा भागवत पुराण म उनके नाम का उ लेख मलता है।
अ न पुराण म हनुमान क छ व बनाने संबंधी नदश दए गए ह जसम वे पैर व हाथ से
एक असुर को दबा रहे ह तथा उनके एक हाथ म व है। अ हरावण क व तृत कथा, जो
वा मी क के महाका म नह है, शव पुराण म मलती है। शव पुराण म हनुमान के ज म
से संबं धत एक अ य कथा है, जसम हनुमान क माँ को शव के अंश से गभवती होते
बताया है और इस नाते हनुमान, भगवान शव का अंश माने जाते ह। एक अ य प ांश म
उह का अवतार कहा गया है। कंद, प और नारद य पुराण म शव के साथ उनका
संबंध उ ल खत है। अं तम पुराण म हनुमान क पूजा का मं भी दया आ है तथा कसी
तीक क जगह यं का ववरण है। उसम यह भी लखा है क इस मं ारा ऊजा वत
जल म भूत- ेत को भगाने और वर एवं मरगी जैसे रोग को ठ क करने का साम य है।
इसी ंथ म हनुमान को शा ीय संगीत का सं थापक बताया गया है और संगीतकार को
यह राय द गई है क उ ह संगीत म वीण होने के लए हनुमान क पूजा करनी चा हए।
इस पुराण म हनुमान को शव एवं व णु क संयु श का अवतार कहा गया है।
हालाँ क, यह सही है क अ धकतर पुराण म हनुमान का उ लेख नह है और य द है, तो
भी, वह केवल रामायण क कथा को दोहराने के संदभ म मलता है।
एक अ य मह वपूण त य यह है क हनुमान का उ लेख अ धकांश प से शव से
संबं धत पुराण म मलता है। ाचीन काल से ही शैवपंथी, हनुमान पूजा के समथक रहे ह।
शव क भाँ त हनुमान म भी तप वी के गुण ह और उ ह क त व ऐ वय क चता नह है।
शैवपंथी ऐसा मानते ह क शव और व णु, राचारी रावण को मारने के लए, जसने शव
ारा द गई श य का पयोग कया, हनुमान व राम के प म धरती पर अवत रत ए
थे। हनुमान के बना राम असहाय थे। मा त ने ही सीता को खोजा, लंका तक पुल बनाया
और रावण को मारने म राम क सहायता क । परंतु हनुमान ने अपने लए कभी कसी
स मान क माँग नह क और वे सदा राम क परछा म रहे। यो गय को उनके गुण ब त
लुभाते ह। वे भौ तक प से अमर ह और अनेक जड़ी-बू टय से उनका गहरा संबंध है तथा
वे ऐसी अनेक स य के वामी ह, जनक यो गय को तलाश रहती है। उ ह कठोर
चारी भी माना जाता है। अपने असाधारण बल और फुत के चलते, पहलवान और
धावक भी उनक पूजा करते ह।
व णु के भ , हनुमान को, व णु के छठे अवतार राम के भ के प म वाभा वक
प से पूजते ह। दे वी माँ के भ याने शा भी हनुमान क पूजा करते ह य क ऐसा
माना जाता है क सीता को राम से मलवाने के कारण दे वी, हनुमान से ब त स न हो गई
थ । मायावी म हरावण को मारकर उसका र काली को अ पत करने के कारण काली माँ
भी उनसे ब त स न थ । वे य क शु चता के र क कहे जाते ह य क उ ह ने कभी
कसी ी को कामुक से नह दे खा।
तां क परंपरा म हनुमान को आदश तां क के प म दे खा जाता है, ज ह ने आठ
स याँ (अलौ कक श याँ) ा त कर ली थ । राम को मायावी म हरावण से छु ड़ाने के
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बाद से हनुमान को जा -टोने म भी नपुण माना जाता है और यह भी व वास है क
हनुमान लोग को काले जा से बचा सकते ह।
वेदांत म हनुमान को भ के साकार प म दे खा गया है। उ ह ने रावण (अहंकार) का
संहार करने के बाद सीता (जीवा मा) को राम (परमा मा) से मलाने म मह वपूण भू मका
नभाई है।
भारत के पूव तट से आने वाले ापा रय के जहाज के साथ हनुमान क कथाएँ
द ण पूव ए शया तक जा प ँच । ाचीन क बो डया, वयतनाम, थाईलड, यांमार, बाली
और मले शया क च कला म राम और हनुमान ब त लोक य ह।
बौ भ ु इस वानर-शूरवीर क कथा को चीन तक ले गए जहाँ हनुमान को सुनहरे
वानर के प म ब त लोक यता मली। हालाँ क इन दे श म इनका च र भारतीय मा त
से बलकुल अलग है। वहाँ उ ह वलासी जीवन म ल त दखाया गया है और वे दे वता
समेत लोग को डराते ह। अंत म वयं भगवान बु ने उ ह श ा द ।
हनुमान को राम कथा का वा त वक कथावाचक माना जाता है। वे न केवल उन
घटना के सा ी ह, जनका उ ह ने उ लेख कया है, ब क इस कथा को सुनाने का
उनका एकमा उ े य भगवान राम क तु त करना था। हालाँ क परंपरा यह कहती है क
यह कथा मनु य कथावाचक जैसे वा मी क, कंपन, तुलसीदास आ द क प रक पना से
छनकर टु कड़ म ही जी वत रह पाई है।

जय हनुमान ान गुण सागर।


जय कपीस त ँ लोक उजागर।।

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

आंजनेयाय नमः

अ याय 2

आंजनेय
अंजना-पु

हनुमान अंजना सूनुः वायु पु ो महाबलः


रामे ः फा गुन सखः पगा ो अ मत व मः
उद ध मण चेव सीताशोक वनाशकः
ल मण ाणदाता च दश ीव य दपहा
एवं ादश नामा न कपी य महा मनः
वापकाले पठे त न यम, या ाकाले वशेषत्
त य मृ यु भयं ना त सव वजयी भवेत्

अंजना-सुत हनु मान,


वायु के श शाली पु राम और
अजुन के म ु ने धारी,
असंभव काय को करने वाले,
सीता के खहता, ल मण के ाणदायक,
दशानन के श ु, ातःकाल तथा या ा के समय,
जो बारह नाम वाले इस प व वानर का मरण करता है,
उसे मृ यु का कभी भय नह रहेगा,
और वह सदा वजयी होगा।
—हनुमत यानम्

ाचीन ऋ षगण नाम के चयन को ब त मह व दे ते थे। श द और उसके अथ के बीच गूढ़


संबंध होता है और यही कसी दे वता के नाम का बार-बार उ चारण यानी जप कहे जाने
े ो ै ऐ ी ै ो ी ँ“ ”
वाले योग का आधार है। ऐसी मा यता है क हनुमान को अपनी सम त श याँ “राम”
श द के नरंतर जप से ा त ई ह। उनका सबसे च लत नाम हनुमान है और इसके दो
अथ ह। एक, वे व श अथवा व पत ठु ी (हनु) से यु (मान) ह। यह तब आ जब वे
बचपन म सूय को पकड़ने के लए उसक ओर लपके थे। सरा, वह जसके अहं या बु
(मन) का नाश (हन) हो गया हो। उनका सरा सबसे अ धक च लत नाम आंजनेय है,
जसका अथ अंज नपु अथवा अंजना का पु है। उ ह अपने पता वायुदेव से अनेक नाम
ा त ए ह। उ ह वायुपु , पवनपु , पावका मज तथा मा त नाम से भी जाना जाता है
और ये सभी नाम उ ह वेद म व णत वायु के पु के प म दशाते ह। उ ह केसरी का पु
होने के नाते केसरीसुत एवं केसरीनंदन तथा केसरी य भी कहा जाता है जसके ारा
उनका संबंध अपने वानर पता केसरी से पता लगता है। आ चय क बात है क उनका
से संबं धत एक भी नाम नह है। र क के प म मरण करते समय उ ह बजरंगबली कहते
ह, यह वा तव म सं कृत श द व और अंग का बगड़ा आ प है, जसका अथ है वह,
जसके अंग व के समान कठोर ह। उनका एक अ य नाम संकटमोचन है याने वह, जो
ख एवं संकट से हमारी र ा करता है। उ ह वीर और महावीर भी कहा जाता है जससे
उनक महान श य का पता लगता है। कभी-कभी उ ह पंचव ृ याने पाँच मुख वाला
और वानर का दे वता कपी वर भी कहा जाता है।
हनुमान के ज म के साथ अनेक कथाएँ जुड़ी ह। यह भी कहा जाता है क उनके दो दे व
पता तथा एक वानर पता ह, कतु उनक माता के वषय म कभी कोई ववाद नह आ।
जैसा क हमने दे खा, व भ न नाम से उनका कसी का “पु ” होने क पहचान होती है
परंतु उनका केवल एक ही नाम है जो उनक माता से जुड़ा है। अंजना को सदा उनक माता
के प म वीकार कया गया है।
य प उ ह सामा य प से पवनदे व का पु माना जाता है, एक कथा यह भी है क वे
वा तव म शव एवं पावती के पु थे और उनका ज म शव के अंश से आ था।
जस समय व णु ने असुर को परा त करने के लए मो हनी प धारण कया, उस
समय शव वहाँ उप थत नह थे। जब उ ह मो हनी के अ तम स दय के बारे म पता लगा
तो वे मो हनी को दे खने के लए लाला यत हो उठे । वे व णु के वैकुंठ धाम प ँचे और उनसे
वह प दखाने के लए कहा। जब शव ने मो हनी का वह मनोहर प दे खा तो कहते ह,
शव जैसे परम तप वी को भी मो हनी से ेम हो गया। उ ह ने उसका पीछा कया और
उसका आ लगन कर लया। उस ण, उनका अंश, जो उनक महान तप या ारा न मत
आ था, बाहर नकल गया। शव के वीय को, जो एक प ी पर गरकर चमक रहा था,
स त ऋ षय ने थाम लया। उ चत समय आने पर उ ह ने वह अंश, वायुदेव को दे दया जो
उसे लेकर वन म प ँच गए जहाँ अंजना तप कर रही थी। वह एक पहाड़ी पर बैठकर शव
क आराधना कर रही थी और उनसे पु का आशीवाद माँग रही थी। वायुदेव हवा के मंद
झ के के प म अंजना के पास प ँचे और शव का द अंश कान के रा ते उसके गभ म
डाल दया। समय आने पर, शव के इसी अंश से बाल-वानर का ज म आ जसे हनुमत
(सं कृत म) कहा गया।
ो ई ै ी
आनंद रामायण म हनुमान को राम का भाई माना गया है जसका ज म उसी प व रस
से आ, जससे दशरथ क प नयाँ गभवती ई थ । अंजना वल ण पु का वरदान पाने
क आशा म अनेक वष से शव क आराधना कर रही थी। शव ने अंजना को बताया क वे
उसक तप या से स न ह और वे यारहव के प म उसके गभ से ज म लगे। उ ह ने
कहा क वह अपने हाथ को कटोरी के आकार म मोड़कर ऊपर आकाश क ओर कर ले
और फर धैय से ती ा करे।
इसी बीच, अयो या के राजा दशरथ संतान ा त के लए पु कामे य कर रहे थे।
इसके फल व प, उ ह द खीर ा त ई जसे उनक तीन प नय को खाना था। वह
खीर खाने के बाद राम, ल मण, भरत और श ु न का ज म दया। दै वी संयोग से, वायुदेव ने
बाज के प म झप ा मारा और वे दशरथ क सबसे छोट प नी, सु म ा के हाथ म रखी
खीर का कुछ भाग च च म ले गए। वायुदेव ने खीर का अंश अंजना के खुले हाथ म गरा
दया, जस समय वह पहाड़ी पर बैठकर तप या कर रही थी। उसने वह मीठा ास खा
लया और उसके फल व प अंजना के गभ से हनुमान का ज म आ। इस कारण हनुमान
को राम का सौतेला भाई भी माना जाता है।
एक अ य कथा इस कार है क अंजना, गौतम ऋ ष और उनक प नी अ ह या क
पु ी थी। एक बार दे वराज इं ने गौतम का प धरकर धोखे से अ ह या को कामास कर
दया। जब गौतम वापस लौटे तो उ ह ने दोन को शाप दया। अ ह या का मानना था क
उसक पु ी ने यह बात गौतम को बताई थी। इस लए उसने अंजना को वानर बनने का शाप
दया था। अंजना ने शाप के भाव को र करने के लए तप या करने का नणय लया।
वह तप या म इतनी लीन हो गई क च टय ने उसके शरीर पर बाँबी बना ली। वायुदेव को
उस पर दया आ गई। वे उसे नय मत प से बाँबी के छ म से भोजन दे ते थे। उसी वन म
शव और पावती व भ न पशु का प धारण करके ड़ाएँ करने आते थे। एक बार जब
वे वानर प म ड़ा कर थे तो शव का वीय ख लत हो गया ले कन पावती उनके अंश
क ती ता को सहन नह कर सक । तब वायुदेव ने उसे लेकर अंजना को दे दया। तीन
महीने बाद, अंजना के मुख से शशु वानर के प म हनुमान कट ए। (एक अ य अ याय
म इस कथा को व तार से बताया जाएगा)।
वा मी क रामायण म हनुमान के ज म क अलग कथा मलती है। उसम पुं चक थला
नाम क अ सरा को एक ऋ ष ने शाप दया और उसे पृ वी पर वानर के प म ज म लेना
पड़ा ले कन उसके पास वे छा से मनु य प धारण करने क श थी। एक बार जब वह
सुंदर प धरकर पहाड़ी के नकट टहल रही थी तो हवा से उसके व ऊपर उठ गए।
उसके सुंदर अंग को दे खकर वायुदेव आक षत हो गए और उसके व को हटाकर उसके
भीतर वेश कर गए। अंजना ने इस उ लंघन को महसूस कया। वह उस अ य ेमी को
शाप दे ने ही वाली थी क वायुदेव उसके सम कट ए और अंजना को अ त यो न होने
का वचन दया तथा उसे यह वरदान भी दया क उसका होने वाला पु बल म वयं वायुदेव
के समान होगा।

ई े ो ी ै ी े े ो
शव पुराण म द गई कथा इससे थोड़ी भ न है। एक बार पावती ने अपने प त को
“राम” मं दोहराते सुना तो ऐसा करने का कारण पूछा। शव ने उ र दया क राम नाम का
मं ब त श शाली है य क यह परम स य को दशाता है और व णु ने ही राम बनकर
पृ वी पर राजकुमार के प म अवतार लया था।
“पावती! राम मुझे अ त य ह और म उनक सेवा के लए पृ वी पर अवतार लूँगा।”
पावती ने इसका वरोध कया तो शव ने कहा क वे अवतार प म केवल अपना एक अंश
पृ वी पर भेजगे। शव ने वानर प म ज म लेने का न चय कया य क वानर वन
जीव है और उसक जीवनशैली एवं आव यकताएँ अ यंत साधारण ह तथा उसे जा तगत व
जीवन क व भ न अव था से संबं धत नयम का पालन करने क ज रत नह होती।
ऐसा करने से, उ ह सेवा करने का भरपूर अवसर मलेगा। शु म पावती यह सुनकर च क
ग परंतु फर शव ने उ ह यह कहकर आ व त कर दया क माया के लोभन से बचने के
लए वानर प सबसे उपयु है। पावती ने उनके साथ चलने क इ छा क और
उनक पूँछ बन गई य क जस तरह प नी, पु ष का आभूषण होती है, वही थान वानर
के लए उसक पूँछ का होता है। शव इस बात पर सहमत हो गए और इसी लए हनुमान क
पूँछ इतनी सुंदर है य क उसम दे वी पावती क श व मान है।
एक अ य कथा यह है क रावण और कुंभकण, शव के दो सेवक के अवतार थे
इस लए शव उनक र ा करने के लए बा य थे। परंतु ा से ा त वरदान के कारण वे
दोन अहंकारी हो गए तथा दे वता को परेशान करने लगे। फर सभी दे वता सहायता के
लए शव के पास गए। जब रावण ने मृ यु के दे वता, महाकाल तथा श न ह को बंद बना
लया तो शव को ब त ोध आया। यह भी एक कारण था क उ ह ने हनुमान के प म
अवतार लेने का न चय कया।
मनु वयंभू के समय, शलाद नाम के एक ऋ ष ने शव को स न करने के लए तप
कया और शव के जैसा ही पु पाने क ाथना क । शव ने उसक ाथना मान ली और
उनके यारहव अवतार ने नंद नाम से उस ऋ ष के पु के प म ज म लया। बाद म उस
पु ने तप या क और बैल के प म शव भ बनने का वरदान माँगा। जस दौरान रावण
पृ वी पर चार ओर उप व मचा रहा था, उस समय वह कैलाश पर जाने का साहस कर
बैठा। जब नंद ने उसे वेश करने से रोका तो रावण ने उपहास कया और यह कहकर ताना
मारा क नंद का चेहरा वानर से मलता है! तब नंद ने रावण को शाप दया क एक वानर
के कारण ही उसका अंत होगा। बाद म, नंद ने शव से ाथना क क वे उसे पृ वी पर
वानर म “बैल” याने हनुमान के प म ज म लेने क अनुम त दान कर।
शव पुराण म आई एक अ य कथा के अनुसार वायुदेव ने जलंधर नामक असुर को
मारने म शव क सहायता क थी। शव ने वायुदेव को वरदान माँगने को कहा तो उ ह ने
शव को अपने पु के प म पाने क इ छा क और शव ने उनक बात मान ली।
रावण को मारने के लए व णु को शव क सहायता क आव यकता थी तो उ ह ने
शव क तप या क तथा उ ह हज़ार प य वाले लाल रंग के कमल पु प अ पत कए।

औ े े े ी ो े े े े
शव कट ए और उ ह ने कहा क वे पहले ही अंजना को वरदान दे चुके ह क वे उसके
पु के प म ज म लगे और राम के प म व णु अवतार क सहायता करगे।
चूं क हनुमान के ज म से संबं धत अनेक कथाएँ ह, इस लए यह वाभा वक है क
व भ न ंथ उनके ज म क त थ भी अलग-अलग बताते ह। वा तव म उनके ज म क
आठ भ न त थयाँ मलती ह जो नीचे द गई ह। ये सभी ज म त थयाँ ह चं कैलडर के
अनुसार ह :

1. चै पू णमा अथात् चै माह (माच-अ ैल) क पू णमा।


2. चै शु ल एकादशी अथात् चै माह के शु ल प का यारहवाँ दन।
3. का तक पू णमा अथात् का तक माह (अ ू बर-नवंबर) क पू णमा।
4. का तक अमाव या अथात् का तक माह क अमाव या।
5. ावण शु ल एकादशी अथात् ावण माह (जुलाई-अग त) के शु ल प का
यारहवाँ दन।
6. ावण पू णमा अथात् ावण माह क पू णमा।
7. मागशीष शु ल योदशी अथात् मागशीष माह (नवंबर- दसंबर) के शु ल प का
तेरहवां दन।
8. आ वन अमाव या अथात् आ वन माह ( सतंबर-अ ू बर) क अमाव या।

इनम से दो त थयाँ सबसे अ धक मह वपूण मानी जाती ह। सबसे अ धक लोक य वसंत


क सूचना दे ने वाली चै माह क पू णमा है। इस हसाब से हनुमान का ज म, राम के ज म
के पाँच दन बाद होता है जो चै नवमी अथात् चै माह का नौवाँ दन है। इस कारण
उनका ज म दन उ रायण काल म आता है जब सूय उ र दशा म दे वता के नवास
हमालय क ओर बढ़ता है।
राम क ज मभू म अयो या म, उनका ज म दन चाह महीने बाद का तक माह क
अमाव या को मनाया जाता है। इसे य अमाव या भी कहते ह। इससे एक बार फर य
के साथ उनके संबंध का संकेत मलता है, जैसा क पहले भी बताया जा चुका है।
यह त थ द णायण म पड़ती है जो दे वता का रा काल माना जाता है जब सूय
घटता आ मृतक-संसार याने द ण क ओर बढ़ता है। इसी लए, इसे यण कहा जाता है।
इन दो त थय के कारण, वष के दोन ह स म हनुमान क पैठ मानी जाती है। एक भाग
दे वता एवं स ण से संबं धत है तथा सरा भाग, म य जगत एवं ता वक गुण से संब
है।
ऐसा माना जाता है क हनुमान का ज म मंगलवार अथवा श नवार को आ था और
इस लए दोन दन उनक पूजा क जाती है। भारतीय यो तष के अनुसार ये दो दन सबसे
अशुभ समझे जाते ह य क इन दन पर मशः मंगल एवं श न नामक ह का नयं ण

ै े े ो ो े े े
रहता है। हनुमान क पूजा करने वाले लोग, इन दोन ह के भाव से वतः बच जाते
ह।

राम त अतु लत बल धामा।


अंज न पु पवन सुत नामा।।

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

केसरी सुताय नमः

अ याय 3

केसरी पु
केसरी के पु

सवा र ा नवारकं शुभकरम्,


पग मा पाहम्,
सीता वेषण तत् परम, कपीवरम्,
को द सूय भम्

सम त क को र करने म समथ,
लाल आभा यु ने ,
सीता को खोज नकालने के लए स , वानर म े ,
जो सैक ड़ हज़ार सूय क द त वाले ह।

—हनुमान तो

पुराण म अनेक लोक के सजीव च दखाए गए ह जहाँ व भ न कार के ाणी रहते ह।


अ सराएँ आकाशीय नत कयाँ थ और वे ायः इं के दरबार म रहती थ । इ ह अ सरा
म से एक का नाम पुं चक थला था। उसे बचपन म दे वता के गु बृह प त ने गोद लया
था और वे उसे अपने आ म ले आए तथा अपनी पु ी क तरह उसका पालन-पोषण
कया। वह ब त आ या मक वभाव क थी और सभी के साथ मधुर एवं दयापूण वहार
करती थी। अपने बा यकाल म भी वह पूजा के लए फूल एक करती थी जससे सामा य
तौर पर सभी को लाभ होता था। इस तरह, वह आ या मक पृ भू म म बड़ी ई और उसने
इस बीच कसी युवा पु ष को तथा कसी ऐसे को तो बलकुल नह दे खा जसका
अ या म के त झान नह था। वह आ म म खलने वाले पु प के समान ही सौ य एवं
शु थी। वह कभी आ म से बाहर नह गई और इस लए उसे युवा लोग के वहार के
बारे म बलकुल पता नह था। इस तरह वह मानव वभाव से सवथा अछू ती व अंजान थी।
े ो ई े ी
स ह वष क आयु म वह असाधारण प से सुंदर हो गई ले कन वह अपनी आकषक
सुंदरता से अन भ थी। एक दन, वह पु प लाने तथा अपने पता को स न करने के
उ े य से अक मात आ म क सीमा से बाहर नकल गई। तभी उसक कुछ गंधव पर
पड़ गई जो जल- ड़ा एवं पर पर झूठ लड़ाई कर रहे थे। उसने इससे पहले कभी
आकषक न न शरीर नह दे खे थे। उ ह दे खकर उसके तन म कामा न जल उठ । वह अपने
सं कार पूरी तरह भूल बैठ । उसने जो पु प एक कए थे, वे उसके हाथ से नीचे गर गए
तथा वह मु धाव था म वह बैठकर उन गंधव को ड़ा करते दे खती रही। उसके मन म
ऐसे ही कसी पु ष को अपना प त बनाने क इ छा जागृत हो गई।
सं या के समय जब बृह प त ने उसे अनुप थत पाया तो वे उसक तलाश म नकल
पड़े । वे उसे अपने सामने चल रहे कामुक य म म न खड़ा दे खकर व मत रह गए।
पुं चक थला उन य को दे खने म इतनी डू बी ई थी क उसे अपने पता के आने का पता
नह लगा।
“पुं चक थला!” वे च लाए। “तुम या दे ख रही हो? या तुम भूल गई हो क तुम
आ मवासी हो? तु ह इस तरह के य नह दे खने चा हए। वापस चलो पु ी और वचन दो
क इस थान पर फर कभी नह आओगी अ यथा मुझे तुमसे आ म छोड़ने के लए कहना
पड़े गा।”
पहली बार ऐसा आ क उसने चुपचाप अपने पता का कहना नह माना। उसने यहाँ
तक क अपने पता को उ र दे ने तक का साहस कर लया।
“मने ऐसा या कया क आप मुझे इतनी कठोरतापूवक डाँट रहे ह? म सफ़ इन लोग
को दे ख रही थी। ये दे खने म कतने आकषक ह। मने आज तक इनके जैसा कोई नह
दे खा!”
बृह प त उसक भावना को समझ गए तथा उदासी भरी से उसे दे खने लगे।
“पु ी!” वे बोले, “हम लोग आ म म रहते ह। हमारा एकमा उ े य आ मबोध ा त
करना है। हम सामा य व अहंकारी जीवन से र रहना होता है। परंतु म तु हारी बलता को
समझ रहा ँ। तुम युवा हो और शायद पा रवा रक जीवन के त अपनी भावना को वश
म नह रख पा रही हो। कोई बात नह ! म तु ह म यलोक म भेज ँ गा जहाँ तुम वानर के
प म ज म लोगी। वानर के अ पका लक जीवन म तुम अपनी कामे छा को शांत कर
पाओगी। उसके बाद, तु ह अपना सामा य प ा त हो जाएगा और तुम फर इस संसार म
लौट आओगी।”
पुं चक थला उनके चरण म गर पड़ी और उनसे अपना शाप लौटाने के लए वनती
करने लगी। बृह प त ने उसे नेहपूवक दे खकर कहा।
“संत का शाप भी वरदान क तरह होता है। वह हमेशा कसी गूढ़ और द उ े य क
पू त के लए होता है और मेरा यह शाप भी इसका अपवाद नह है। तुम एक ऐसे नर वानर
क माता बनोगी जो संसार म सव े भ के प म गौरव ा त करेगा। वह अपने साहस,
बु तथा धम के त अपनी न ा के लए स होगा। वह अयो या नरेश राम के प म
भगवान व णु के अवतार का सबसे बड़ा भ बनेगा। जस ण उसका ज म होगा तु ह
े ै े ो ौ
अपना पहले वाला प वापस मल जाएगा तथा तुम इन नैस गक े म दोबारा लौट
सकोगी।”
पुं चक थला का अनुनयपूण चेहरा दे खकर उ ह ने आगे कहा, “तु हारे लए यही
उपयु है क तुम अपनी इन हीन इ छा से वानर यो न म ही मु पा लो य क वहाँ
तु हारी ये इ छाएँ यूनतम समय म पूरी हो जाएँगी और फर तुम इस आ म म लौटकर
अपनी साधना को जारी रखते ए मो ा त कर सकोगी। तु हारा नाम अंजना होगा और
तुम अपनी पसंद के आकषक नर वानर के साथ संभोग क अपनी कामना को तृ त कर
सकोगी। नयत समय पर जब अपने प त के साथ तु हारा मलन होगा, तो वायुदेव ारा
भगवान शव का अंश तु हारे गभ म था पत कया जाएगा और फर तु ह ऐसे पु क
ा त होगी जसम भगवान शव के सभी गुण ह गे तथा वायुदेव क ग त व श होगी।”
सब कुछ वैसा ही आ जैसा मह ष ने भ व यवाणी क थी। पुं चक थला ने वानर जा त
के मु खया कुंजर क पु ी के प म ज म लया। उसका नाम अंजना रखा गया। उसे
अपना पूवज म अ छ तरह याद था और वह एक साधारण वानर के जीवन से ख़ुश नह
थी। समथ होते ही, उसने अपनी जा त छोड़ द और वन म ब त अंदर चली गई। वह बना
कुछ खाए भूखी- यासी भटकती रही। अंत म उसे रसीले फल से लदा एक वृ दखाई
दया। वह उस पेड़ पर चढ़ गई और य ही उसने फल तोड़ने के लए हाथ बढ़ाया, तभी
उसे एक अलौ कक वर सुनाई दया।
“अंजना! नान और पूजा करने तक तु ह कुछ नह खाना चा हए। तुम इस वन म
कसी उ े य से आई हो। उसे पूण करने के लए तु ह सा वी का जीवन जीना होगा। तुम
भगवान शव और दे वी पावती क तप या करो ता क वे तु ह एक अ त पु दान कर और
तु ह शाप से मु कर।”
द ोत से मले इस परामश से अंजना ब त स न थी। उस दन से उसने सा वी
जीवन का पूरी कड़ाई से पालन कया। वह सुबह ज द उठती, नान करती और शव-
पावती के द युगल क आराधना करने बैठ जाती। अपनी इस दनचया के बाद ही वह
वृ के फल व प े तोड़ती तथा अपना भूख मटाती थी।
एक दन एक भयानक आवाज़ ने बड़ी खाई ने उसक तप या भंग कर द । पूरा वन
मानो अशांत हो गया। प ी शोर मचाते ए भयभीत होकर इधर-उधर उड़ रहे थे और यहाँ
तक क पशु भी अपने ाण बचाते भाग रहे थे। अचानक उसने दे खा क एक भीमकाय
नरभ ी रा स उसके सामने खड़ा था। वह डर के उठ खड़ी ई और भागने लगी। परंतु उस
जीव ने उसका माग रोक लया।
“हे सुंदरी!” वह गरजा। “तुम मुझसे र य भाग रही हो? म तु ह हा न नह
प ँचाऊँगा। मेरा नाम शंबसादन है और म इस जंगल का राजा ँ। म तुमसे ववाह करने के
लए तैयार ँ और तु हारी येक इ छा पूण करना चाहता ँ। मेरे नकट आओ तो फर हम
दोन यार करगे। ऐसी नरथक तप या म जीवन बबाद करना बेकार है!”
इस घोषणा के साथ वह अंजना पर झपट पड़ा। अंजना उसक पकड़ से छू ट नकली
तथा अपने ाण बचाने के लए भागी। वानर प म होने के कारण वह एक डाल से सरी
ी ी े े ी ी ो े
डाल पर कूद सकती थी ले कन वह कु टल ेमी ज द पीछा छोड़ने वाला नह था। वह
इतना वशालकाय था क वह पेड़ और झा ड़य को र दता आ उसका पीछा करता रहा।
भय से अ -उ म अंजना इस नई मुसीबत से बचाने के लए अपने र क दे वता को
पुकारने लगी। उसे यह दे खकर ब त आ चय आ क य ही रा स ने उसे पकड़ने के
लए छलाँग लगाई, वह नीचे गर पड़ा। वह इस चम कारी बचाव से हैरान हो गई और दे खने
गई क या वह सचमुच मर गया था। उसने एक बड़े -से साँप को रगते ए दे खा।
तभी उसे चेतावनी सुनाई द क शंबसादन सफ़ बेहोश आ है और ज द ही उसे होश
आ जाएगा। अंजना ने नीचे झुककर उसके चेहरे को दे खा तो पाया क वह जी वत था।
उसने अ धक जाँच-पड़ताल करने म समय न नह कया और वन के भीतर भागती चली
गई। अंत म वह नराश और थक ई एक आ म म प ँच गई। उसने वयं को उन साधु
क दया पर छोड़ दया और ख़ुद को उस संकट से बचाने के लए उनसे ाथना करने लगी।
उसका क दे खकर, उन साधु ने उसे पीने के लए पानी दया और कहा क वह उस
आ म म शरण ले सकती है। जब अंजना ने शंबसादन का नाम लया तो वे सब भय से
काँपने लगे और उ ह ने बताया क वह बड़ा ू र रा स है जससे पूरा वन भयभीत रहता है।
उन लोग को सदा उस रा स से भय बना रहता था क वह सब कुछ न और बबाद कर
दे गा।
“केसरी नाम का एक साहसी वानर है और सफ़ वही उस रा स को परा जत कर
सकता है।” यह सुनकर अंजना ने अपने मनपसंद दे वता से केसरी को वहाँ भेजने क
ाथना क ता क वह उस रा स को मार सके य क उसने सभी आ मवा सय को
परेशान करके पूरे वन को अपना दास बना रखा था। अंजना पूरी रात ाथना करती रही।
कहते ह, एक बार केसरी ने एक अ यंत श शाली हाथी को मार दया था जो ऋ षय
और तप वय को परेशान करता था। इसी से उसका नाम “केसरी” पड़ गया जसका अथ
“हाथी” होता है। उसे “कुंजरसूदन” अथात् हाथी को मारने वाला कहते ह।
अगले दन सुबह, पूरा आ म सजीव हो उठा और उन सबके दय म नई आशा जाग
गई। वे अपने ातः कालीन अनु ान - य तथा याग क तैयारी म जुट गए। इन वै दक
अनु ान के दौरान, अ न म कुछ अपण कया जाता था तथा संसार के क याण एवं अपनी
नजी आ या मक ग त के उ े य से कुछ मं व गूढ़ श द का उ चारण कया जाता था।
वे लोग उन अनु ान को आरंभ करने के वषय म थोड़ा च तत थे य क शंबसादन ायः
उनके अनु ान को भंग कर दे ता था। वे लोग यह सोच ही रहे थे क काय आरंभ कर अथवा
नह , क तभी उनके बीच एक बलशाली वानर आ प ँचा। वह अ यंत आकषक और ऊँचे
क़द का था तथा कसी को भी परा जत करने म समथ जान पड़ता था। उसने ऋ षय से
कहा क वे य आरंभ कर तथा वह उनक र ा करेगा। वह कौतुहल से वहाँ आए
नवागंतुक को दे खने लगा और तब ऋ षय ने अंजना से उसका प रचय करवाया। यही वीर
वानर, केसरी था जसके बारे म उ ह ने अंजना को बताया था। वह तुरंत अंजना के मन को
भा गया और उसे लगा क वह सचमुच लोग को उस रा स के आतंक से बचाने म समथ
था। वह बना हलचल कए, एक पेड़ क शाखा पर चढ़ा और प के पीछे छप गया।
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तभी एक भयंकर आवाज़ सुनाई द जससे समूचा जंगल भयभीत हो गया। प ी
च लाने लगे और उड़कर ततर- बतर हो गए; अ य पशु भी अलग-अलग दशा म
दौड़ने लगे। उ ह पता नह लग रहा था क वे कधर भाग। अचानक वह वशालकाय और
भयंकर रा स वहाँ कट हो गया। उसक तुरंत डर से काँप रही अंजना पर पड़ी जो
उस जगह एक कोने म छपने क को शश कर रही थी।
उसने अपना वशाल और बाल से भरा हाथ आगे बढ़ाया तथा अंजना को पकड़ लया
और अपनी ओर ख च लया। वह अंजना से अ यंत अंतरंग वर म बोला मानो उसे लुभा
रहा हो। उसम से पुराने ख़ून और पसीने क गध आ रही थी और उसने घृणा से काँपती ई
अंजना को अपने नकट ख च लया।
“आह! य!” वह मोहक कतु छली वर म बोला। “तुम मुझसे र य भागती हो?
या तु ह पता नह क म तु हारे लए उ म हो रहा ँ? तुम मुझसे बचकर नह जा
सकत । म आव यकता पड़ने पर नया के अं तम छोर तक तु हारा पीछा क ँ गा। आओ!
हम भाग चल और फर हम आनंद एवं सुख से रहगे। इन कायर म तु ह बचाने का साम य
नह है परंतु म सदा तु हारी र ा क ँ गा।”
भयभीत अंजना च लाने और शोर मचाने लगी। “मुझे बचाओ! मुझे बचाओ! या
यहाँ कोई नह है जो इस रा स से मेरी र ा कर सके?”
“मेरे सामने तो भगवान वयं भी असहाय ह! फर तु ह कौन बचाएगा?”
तभी श शाली केसरी वृ से बाहर नकल आया तथा जोरदार गजना के साथ उस
रा स के सामने आ खड़ा आ।
“ओ शंबसादन!” वह च लाया। “य द तु ह अपना जीवन य है तो इस क या को
छोड़ दो!”
यह सुनकर शंबसादन ने अंजना को धरती पर उतारा और बोला, “ओह, तो तुम इसके
र क बनकर आए हो! म पहले तु हारा ही क मा बनाऊँगा और बाद म इसे दे खूँगा।”
अवसर पाकर अंजना आ म के अंदर भाग गई और उसने भीतर से ार बंद कर लया।
जब रा स ने दे खा क केसरी उसके सामने बाण चलाने के लए तैयार खड़ा है तो वह
ब त दे र तक ज़ोर-ज़ोर से हँसा।
“अरे मूख बंदर!” वह बोला। “ या तू इतना धृ है क तुझे लगता है क तू इस लड़क
और इन आ मवा सय को बचा लेगा? म तुझे और फर इस आ म को न क ँ गा और
फर इस लड़क को ले जाऊँगा।”
ऐसा कहकर रा स ने उस वन का एक बड़ा-सा पेड़ उखाड़ लया और उसे केसरी पर
दे मारा। इससे पहले क वह पेड़ कसी को हा न प ँचा पाता केसरी ने अपने बाण से उसे
बीच से चीर डाला और नीचे गरा दया। इससे वह रा स अ यंत ो धत हो गया और उसने
धरती से एक छोटा पहाड़ उखाड़ लया और उसे केसरी क ओर फका। एक बार फर
केसरी ने पहाड़ को बाण से तोड़ दया। रा स को अपनी आँख पर व वास नह आ। वह
वानर क तरफ़ दौड़ा मानो उसे अपने हाथ से कुचल दे गा। केसरी ने उसके ऊपर बाण क
वषा कर द ।
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रा स को समझ आ गया क उसका मुक़ाबला कसी बराबर वाले से आ था तो उसने
अपनी माया रची और उ म हाथी का प धर लया। उसने वहाँ से भाग रहे ए ऋ षय
को पकड़ा और यहाँ-वहाँ उछालने लगा और उसने आ म को व त कर के उनका य -
कुंड षत कर दया। अंजना एक वशाल वृ के खोखले भाग म छप गई।
इस बीच केसरी पागल हाथी पर लगातार बाण क वषा कर रहा था ले कन उसके तीर
हाथी को छू कर नीचे गर जाते थे। ग़ से से भरे हाथी ने अपना सारा ोध केसरी पर नकाल
दया और उसका बाण छ नकर उसे अपने पैर से तोड़ डाला। केसरी ने तुरंत एक छोटे से
वानर का प धरा और हवा म छलाँग लगाई। वह पूरे ज़ोर से हाथी के म तक पर कूद
गया। यह हाथी का सबसे कमज़ोर थान होता है। इसके बाद केसरी ज़ोरदार घूँस से
लगातार उस नाजक जगह पर वार करता रहा। हाथी ने पूरी को शश क ले कन वह बंदर
को अपने म तक से नह हटा पाया जो बलपूवक उसके नाजक थान पर चोट कर रहा था।
उसने तुरंत फर से अपना रा सी प धारण कर लया और वानर को ख चकर अलग कया
तथा ज़मीन पर पटक दया।
केसरी ने फर अपना असली आकार ले लया और रा स पर दोबारा बाण-वषा करने
लगा। हालाँ क उसके घाव से र बह रहा था, वह उससे बलकुल भा वत नह आ और
मज़ाक उड़ाने के ढं ग से हँसता रहा। अंजना ब त नराश हो गई और उसने मन ही मन
भगवान शव से केसरी क सहायता करने क याचना क । उसे त काल त या दे खने को
मली।
शव ने उसे बताया क रा स को केवल उसी के र से मारा जा सकता है। अंजना ने
पूछा क यह कैसे संभव होगा। शव ने उसे उ र दया क उसे वह यु वयं ही सोचनी
होगी।
उसने इस बात पर वचार कया। अचानक उसक एक बाण पर पड़ी जो वहाँ से
थोड़ा र गरा था जहाँ दोन भयानक यु म उलझे ए थे और उ ह पता था क वह उनका
नणायक यु स होगा। उसने दे खा क केसरी क श मंद होने लगी थी। यह दे खकर,
वह आगे बढ़ और उसने वह बाण उठा लया तथा रा स के र क नीचे टपक बूँद को
बाण क न क पर लगा दया। फर वह उस बाण को केसरी को दे ने के लए उ चत अवसर
क ती ा करने लगी।
रा स ने भीमकाय भसे का प धारण कर लया और अपने स ग नीचे झुकाकर,
केसरी के भीतर घुसाने के लए भागा। केसरी ने त काल अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और
भसे क आँख पर नशाना साध लया। तीर बलकुल सही जगह लगा था। भसा
लड़खड़ाकर नीचे गरा और दद से च लाने लगा।
अवसर पाकर अंजना, केसरी के पास भागी। उसने केसरी को शंबसादन का रह य बता
दया तथा उसके र से सना बाण दे कर केसरी से शी ही, अवसर दे खकर चलाने के लए
कहा। इस बीच रा स ने सोचा क उसके लए भसे का प याग दे ना ही अ छा होगा
ता क वह आँख पर ए घातक हार से बच सके। अंजना को वापस भागने का समय नह
मला जब शंबसादन अपश द बोलता आ केसरी क ओर लपका।
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उसने अपनी वशाल लौह गदा को ऊपर उठाया और ज़ोर से घुमाया।
“यह सदा के लए तु हारा अंत कर दे गी, तु छ वानर!” वह च लाया।
इससे पहले क वह उस घातक श का योग कर पाता, केसरी ने भगवान शव का
मरण कया और अंजना ारा दया बाण रा स पर छोड़ दया। रा स के ही र से बुझा
बाण, अपने ल य क ओर गया और उसने अचूक ढं ग से रा स का दय भेद दया।
शंबसादन ब त ज़ोर से च लाया और फर दद से कराहने लगा। अंत म वह भयानक
धमाके के साथ धरती पर गर गया, जससे पूरी पृ वी काँप उठ ।
ऋ षगण ने राहत क साँस ली और वे ख़ुशी से च लाते बाहर आ गए तथा केसरी क
शंसा करने लगे। उ ह ने केसरी को इस लगातार होने वाली परेशानी से मु दलवाने के
लए ध यवाद दया। रा स के भय से मु होकर वे लोग फर से अपने अनु ान कर सकते
थे। केसरी ने उनसे अंजना का ध यवाद करने को कहा य क उसी ने रा स क बलता
का रह य बताया था और य द वह रह य उसे न पता लगता तो वह उस रा स को कभी न
मार पाता। ऋ षय ने अंजना को भी ध यवाद दया।
“हम आप दोन का आभार कस तरह कर?” ऋ षगण बोले। उ ह ने इस मामले
पर पर पर चचा क और फर अंजना से पूछा, “पु ी! या तुम हमारी आ ा मानोगी? यह
तु हारे अपने भले के लए है।”
अंजना ने ऋ षय को वचन दया क वे जो भी कहगे, वह उसे वीकार करेगी।
ऋ षय ने फर मु कराते ए उससे पूछा, “ या तुम केसरी से ववाह करने को तैयार
हो?”
अंजना ने ल जा से अपना सर झुका लया उ ह ने इसे अंजना क मूक वीकृ त मान
लया। केसरी ने भी इस सुखी संबंध के त अपनी स म त कर द और फर स न
आ मवा सय ने सादगीपूवक, उनका ववाह करवा दया।

महाबीर ब म बजरंगी।
कुम त नवार सुम त के संगी।।

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

वायुपु ाय नमः

अ याय 4

वायु-पु
वायु के पु

लंका पा भयंकरं, सकलदलं,


सु ीवस मा नतम्
दे वे ा द सम त दे वा वनूतम्
कक त तं भजे।

म राम के त क पूजा करता ँ,


इं स हत सभी दे वता जनक वंदना करते ह,
ज ह ने लंक ा के भयानक प को
अपने वश म कर लया और
सु ीव को स न कया।

—हनुमान तो

कुछ वष म उन दोन के एक सरे के त अनुराग पूरी तरह शांत हो गया। केसरी एक पेड़
से सरे पर छलाँग लगाते ए अपनी यतमा के लए मीठे और रस-भरे फल तोड़कर
लाता था और इस तरह, उ ह ने अनेक वष ख़ुशी-ख़ुशी बताए। हालाँ क, उ ह अपने ेम
का कोई फल नह मला। यह भी अंजना के गु के वरदान व प आ था य क उ ह ने
कहा था क जस पल वह अपनी संतान को हाथ म लेगी, उसी पल वह अपने शाप से मु
होकर अपने धाम लौट जाएगी। वे चाहते थे क अंजना संतान उ प न करने से पूव अपनी
सम त शारी रक इ छा को पूणतः तृ त कर ले। एक समय आया जब अंजना को इस बात
से नराशा होने लगी क इतने वष प नी के प म रहने के बाद भी वह माँ नह बन पाई थी।
केसरी को उसक नराशा का कारण पता था, इस लए उसने अंजना से कहा क उ ह कसी
तरह ाय चत करना चा हए, जससे उ ह पु क ा त हो सके। अंजना ने केसरी बताया
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क इसका एकमा तरीक़ा यह था क वे शव और पावती क तप या कर य क वही,
उ ह सुपु दान करगे। इस तरह, उन दोन ने दै वी-युगल क तप या आरंभ कर द । वे दन
भर म सफ़ एक बार भोजन करते थे। उ ह ने एक- सरे के साथ सोना छोड़ दया। उनका
पूरा दन गहन पूजा व अचना म नकल जाता था। ी मऋतु के बाद फर वषाऋतु आई
तथा उसके बाद हेमंत और फर शरदऋतु आ गई। परंतु दोन ने बना घबराए अपनी तप या
जारी रखी।
अंत म शव और पावती ने तप या म लीन उन दोन को संतान का आशीवाद दे ने का
नणय लया। उ ह ने वानर का प धारण कया और सारा भोजन व सभी फल खा गए जो
ातः कालीन अनु ान के लए रखे गए थे। केसरी उन बंदर क शरारत दे खकर नाराज़ हो
गया। वह उ ह भगाने ही वाला था क अंजना ने उसे ऐसा करने से रोक दया।
“ भु! मुझे नह लगता क ये साधारण वानर ह। मुझे व वास है क ये दोन शव और
पावती ह जो हम आशीवाद दे ने आए ह। इस लए हम इनक पूजा करनी चा हए।” केसरी ने
उसक बात मान ली और वे दोन उन बंदर क शव एवं पावती के प म पूजा करने लगे।
वे दोन गहरे यान म लीन थे, तभी उ ह एक आवाज़ सुनाई द , “हे अंजना! हे केसरी! हम
तु हारी पूजा व तप या से स न ह और न चत ही तु हारी इ छा पूरी करगे। इस जंगल के
अंदर एक ब त बड़ा आम का वृ है। त दन वहाँ जाओ और उस वृ क प र मा करो
तथा शव से ाथना करो क वे तु हारी मनोकामना पूण कर। एक स ताह के भीतर तु ह
उस वृ पर एक चम कारी आम दखाई दे गा। अंजना को वह फल खाने के लए दे ना और
उसके बाद तु हारे यहाँ पु ज म लेगा जो श म वायुदेव के समान होगा।”
वह दोन यह बात सुनकर स न हो गए और उ ह ने शव-पावती को झुककर णाम
कया। वे तुरंत वन के भीतर उस चम कारी वृ को खोजने नकल पड़े । उ ह वह वृ एक
वा टका के बीच म दखाई दया। अगले दन सुबह वे न य-कम से नवृ होकर वृ क
पूजा करने के लए आगे बढ़ गए तथा उसक तीन बार प र मा करने के बाद पूजा आरंभ
कर द । यह सल सला सात दन तक चला। आठव दन सुबह जब वे वृ के पास प ँचे तो
एक द वर ने उ ह कहा क वे द फल को दे खने के तैयार रह। उसी ण वह पूरा
वृ , द काश से जगमगा उठा, जो फर धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा। वह काश वा तव
म एक शानदार आकाशीय ाणी था जो अपने हाथ म फल लेकर खड़ा था। वह अंजना
और केसरी के सामने आकर क गया। वे दोन अपने सामने उस य को दे खकर व मत
थे।
वह ाणी बोला, “केसरी! डरो मत! इस फल को वीकार करो। म यह तु हारे लए
लाया ँ। इसे अपनी प नी अंजना को दे दो। इसे खाने के बाद, वह न चत प से संतान
को ज म दे गी।”
केसरी ने काँपते ए वर म पूछा, “हम सचमुच आपके आभारी ह। हम आपसे ाथना
करते ह क आप कृपया अपना प रचय द।”
उस ाणी ने उ र दया, “म वायुदेव ँ और भगवान शव के कहने पर यहाँ आया ँ।
इस फल म उनका अंश और मेरी श याँ समा हत ह। तुम घबराओ मत! इसे अपने हाथ
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म लो तथा इसम अपनी वीरता का संचार करके इसे अंजना को दे दो। इससे तु ह एक ऐसे
पु क ा त होगी जो तीन लोक म सबसे वीर, साहसी और भ म सव े माना
जाएगा।” इस तरह, हनुमान को सव े दै वी एवं वानरी गुण ा त ए।
केसरी ने उस फल को वीकार कया, उसे अपने दय से लगाया तथा ाथना करके
अपनी सम त श याँ उस फल म समा हत कर द । उसने वह फल अपनी प नी को स प
दया जसने उसे अ यंत न ा के साथ वीकार कया। उसने आम को हाथ म लेकर
भगवान शव तथा वायुदेव का मरण कया। फर उसने अपने प त के चरण पश कए
और आशीवाद लया। उसके बाद उसने वह द फल खा लया। वह त काल गभवती हो
गई और वह ूण उसके गभ म तुरंत बड़ा होने लगा। उसके भीतर - द , लौ कक एवं पशु
संबंधी - तीन गुण थे। केसरी अ यंत ेम व यान से अंजना क दे खभाल करने लगा। ूण
के वक सत होने के साथ अंजना अलौ कक द त से भर उठ । अंत म उसे पता लग गया
क समय पूरा होने वाला है। वह मंगलवार का दन था और चै माह क पू णमा थी।
अंजना ने नद म नान कया और दे वता का मरण कया और फर कुंज के भीतर,
केसरी ारा ताजे प व फूल से सजाई श या पर लेट गई। ज द ही उसने एक अ त सुंदर
शशु वानर को ज म दया। ज म के साथ ही उसने भीषण गजना क । केसरी क के बाहर
उ सुकता से ती ा कर रहा था। वह गजना सुनते ही भीतर आया। उसने मनोहर य दे खा
क अंजना उसके पु को लार कर रही थी।
उस शशु के ज म से जुड़ी अनेक असाधारण वशेषताएँ थ । वह संसार म न न पैदा
नह आ था। उसका सुनहरा रोएँदार तन अलौ कक आभूषण से स जत था। उसने एक
कसा आ लाल लंगोट, मूँज का जनेऊ तथा अ यंत न क़ाशीदार कुंडल पहने ए थे।
साधारण मनु य सूती धागे का जनेऊ पहनते ह, ले कन अंजना-पु का जनेऊ व य, खुरदरी
मूँज का बना आ था जो जूट क र सी जैसा था। यह एक कार से उसके चारी रहने
तथा भावी तप वी जीवन का संकेत था। यह उसक पशु-उ प एवं वन ता का भी
तीक था।
कहते ह, उस शशु के कुंडल अ धकतर मनु य को दखाई नह दे ते थे। उसक माँ ने
उससे कहा था क केवल उसका वामी ही उसके कुंडल दे ख पाएगा। न संदेह, उसके
कुंडल केवल राम को दखाई दे ते थे। इन कुंडल क भी एक रोचक कथा है।
हनुमान के ज म के समय, बाली नाम का एक अ यंत वीर और बलशाली वानर था जो,
वानर-जगत का न ववाद नेता था। जब बाली को पता लगा क अंजना के गभ म ऐसा
बालक पल रहा है जो उसका मु य त ं बन सकता है, तो उस बालक को गभ म ही
समा त करने का न चय कर लया। उसने पाँच धातु - वण, चाँद , ता , लौह और टन -
को मलाकर एक बाण बनाया। एक दन जब अंजना सो रही थी, तो बाली ने वह बाण
अंजना के गभ पर छोड़ दया। कोई सामा य शशु होता तो उस घातक हमले से उसक
मृ यु हो जाती, ले कन भगवान शव के तेज वी अंश से उ प न बालक पर उस हमले का
कोई भाव नह आ। शशु के तन को पश करते ही वह बाण पघलकर दो सुंदर कुंडल

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म प रव तत हो गया। इस कार, हनुमान ने माँ के गभ के भीतर लड़े जीवन के थम यु
के वजय- च पहनकर इस संसार म वेश कया!
उसी ण शव और पावती भी वानर प धारण करके अंजना-पु को आशीवाद दे ने
आए थे। वायुदेव ने भी वहाँ आकर अपने पु को दे खा। इस तरह, जतने भी लोग उस शशु
के ज म क योजना म शा मल थे, उन सभी ने वहाँ आकर बालक को आशीवाद दया।
वायुदेव ने बालक के माता- पता से उसका नाम मा त रखने को कहा।
शव का अंश, आम के फल म कैसे आया, इसक अलग कथा है। शव, शा वत
तप वी ह ज ह ने काम को अपने वश म कर लया था। उ ह ने ेम के दे वता, कामदे व को
भ म कर दया था। परंतु अपनी प नी पावती को स न करने तथा उनक कामे छा को
तृ त करने के लए शव ने नर-वानर का और पावती ने मादा-वानर का प धारण कया।
इसके बाद वे जंगल म ड़ा करते, वृ क शाखा पर झूलते तथा सामा य बंदर क
भाँ त व छं द भाव से संभोग कया करते थे। उस समय पावती को यह जानकर आ चय
आ क वे गभवती हो गई थ । उनका पहला पु हाथी के सर वाला था, इस लए वह नह
चाहती थ क उनका सरा पु वानर प म हो। उ ह ने अपनी चता भगवान शव को
बताई। शव ने पावती को चढ़ाते ए कहा क सभी जीव उनका ही अंश ह तथा उनके अंश
से उ प न शशु, चाहे कसी भी प म ज म ले, हर से आदश होगा। परंतु पावती इस
बात से संतु नह । उ ह ने शव से उस अंश को उनके गभ से हटाकर कसी अ य
उपयु गभ म प ँचाने क वनती क । तब शव ने वायुदेव को बुलाया और उनसे कहा क
वे उनके अंश को ले जाएँ तथा कसी अ य उपयु गभ म था पत कर द। वायुदेव ने शव
का अंश आम के फल म था पत कर दया तथा उसे अपनी श भी दान क । इसके बाद
वह फल संतान क इ छा रखने वाले उस धा मक युगल को दे दया गया।

कंचन बरन बराज सुबेसा।


कानन कुंडल कुं चत केसा।।

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

मा ता मजाय नमः

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मा त
सूय तक उड़ान

यथा ी राम ता, पवनतनुभवा,


पगला याखावन,
सीता शोकप रह र, दशमुख वजयी,
ल मण ाणदाता।

आपको वायु पु तथा राम का त कहा जाता है,


आपके ने लाल ह,
आप सीता के क को र करने तथा
दशानन का संहार करने वाले ह,
और आप ल मण को जीवन दे ने वाले ह।

—हनुमान तो

भगवान शव और वायु जैसे सु स पता होने के नाते, न संदेह मा त साधारण बालक


नह था। वह वभाव से अशांत, चंचल, ऊजावान और ज ासु था। उसम अद य बल था
और उसके शानदार कारनाम क कथा से ंथ भरे पड़े ह। उससे संबं धत कथा म
उसके ारा सूय तक लगाई गई छलाँग सबसे शानदार कथा है। वा तव म, यही वह व मत
करने वाली कथा है जसके कारण उसे अपना सबसे लोक य नाम मला - हनुमान!
वह बालक ब त पेटू था। उसक भूख कभी पूरी तरह शांत नह होती थी। उसके माता-
पता बेचारे अपनी तरफ़ से उसे संतु करने का हर संभव यास करते थे कतु वह तृ त नह
होता था और सदा भोजन माँगता ही रहता था। एक वष का होने तक, वह आस-पास के
पड़ पर चढ़कर फल खाने लगा था। एक दन अंजना उसे अपने साथ नद पर ले गई और
उससे कहा क अंजना के नान करके लौटने तक, वह नद तट पर जतनी चाहे खेल कर
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सकता है। वृ के यथासंभव फल और कंद-मूल खाने के बाद भी उसे भूख लग रही थी।
अचानक उसक बड़े -से गोल नारंगी रंग के सूय पर पड़ी, जो उस समय उदय हो रहा
था। मा त को लगा क वह कोई ब त बड़ा फल है। उसने अपने माँ को बुलाकर उ ह उस
नए फल को दखाना चाहा। अंजना ने सोचा क मा त ने कसी वृ पर कोई नया फल
दे खा होगा, तो उसने मा त को वह फल खाने क अनुम त दे द । बालक मा त ने, बड़ी
त परता से शानदार छलाँग लगाई और सूय क ओर आकाश म चला गया। जब अंजना
नान करके नद से बाहर आई तो उसे अपना पु दखाई नह दया। वह च तत हो गई और
उसे खोजने लगी। अंत म उसने मा त को सूय क ओर उड़ते ए दे खा। उसने च लाकर
केसरी को बुलाया और दखाया क उनका पु या करने जा रहा था। केसरी ने भी बालक
को पकड़ने के लए छलाँग लगाई कतु वह वहाँ तक नह प ँच पाया और नीचे गर कर
नराश हो गया। माता- पता को समझ नह आ रहा था क वे अब या कर।
आकाश के जीव, मा त को आगे बढ़ता दे ख हैरान थे। “वायु-पु के जतनी फुत से न
वायुदेव, न ग ड़ और न ही म त क चल सकते ह। य द इसक बाल प म इतनी ग त है
तो बड़ा होने पर, इसक ग त कैसी होगी?”
वायुदेव, मा त के बलकुल पीछे चल रहे थे ता क सूय क गम से बालक को बचाया
जा सके। सूयदे व को लगा क वह कोई अबोध बालक है। उ ह यह भी पता था क राम के
प म भगवान व णु उस बालक के मा यम से कस महान उ े य को पूण करने वाले थे,
और इसी लए सूयदे व ने मा त को कोई त नह प ँचाई।
भा य से, उसी दन सूय हण था और रा नाम का ह सूय को नगलने वाला था।
अचानक मा त ने दे खा क रा (एक कु टल ह) सप के प म सूय को नगलने के लए
आगे बढ़ रहा था। वह ज ासु वानर रा को एक बड़ा-सा क ट समझकर उसके ऊपर
झपट पड़ा और उसक पूँछ पकड़ने क चे ा करने लगा। रा अपनी जान बचाकर वहाँ से
भागा और दे वराज इं क शरण म प ँच गया। उसने ो धत होकर इं से कहा, “आपने
कुछ व श दन पर मेरी भूख मटाने के लए सूय और चं मा को मुझे स पा है ले कन म
अब दे ख रहा ँ क मेरा ह सा कसी अ य ाणी को दे दया गया है। आज अमाव या क
रात है और मुझे सूय को सना है। अब दे खए या हो रहा है! यहाँ कोई अ य ाणी आकर
मुझे रोक रहा है।”
इं ने अपना घातक व उठाया और अपने सफ़ेद ऐरावत हाथी पर सवार होकर उस
उ ं ड वानर क ओर चल पड़े । इं के कोप क अ भ के फल व प, आकाश म चार
ओर बादल गरजने लगे और बजली चमकने लगी। परंतु वह न हा वानर उस भयानक य
अथवा हाथी पर सवार बलवान व धारी इं को दे खकर ज़रा-सा भी भयभीत नह आ।
इसके वपरीत, इस य से उसक उ ेजना और बढ़ गई। उसे लगा क उसे वाहन के प
म हाथी क आव यकता है। मा त ने ऐरावत को भी पकड़ने क को शश क । उसने हाथी
क सूँड़ पकड़ी और उसक पीठ पर कूद गया। शशु वानर को सहसा अपने पीछे बैठा
पाकर इं हैरान हो गए और उ ह ने उसे मारने के लए अपना व उठा लया। सही समय
पर वायुदेव प ँच गए और इं को रोकने का यास कया परंतु इं पीछे हटने वाले नह थे।
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“यह तो बालक है! आप कैसे दे वता ह, जो न हे-से बालक से यु करने के लए तैयार
हो गए ह?”
इं ने उ र दया, “यह बालक है कतु यह सूय को नगलने और रा को पकड़ने का
यास कर रहा था। म सफ़ इनक सहायता के लए आया ँ।”
वायुदेव ने इं को रोकने का भरसक यास कया परंतु इं ने अपने व से मा त क
ठु ी पर वार कया जससे मा त क ठु ी पर थायी प से नशान पड़ गया। इसी से
अंजना के पु का नाम हनुमान पड़ा। “ठु ी” को सं कृत म ‘हनु’ कहते ह। हालाँ क इं
का व भी मा त को मारने म वफल हो गया। परंतु उसके भाव से वह हाथी क पीठ से
नीचे गर गया। मा त बेहोश होकर गरने लगा तो उसके पता वायुदेव उसक र ा के लए
आ गए और उसे बीच म ही थाम लया।
अपने य पु को गोद म असहाय अव था म लेटा दे खकर वायुदेव को ोध आ गया।
उ ह ने एक गहरी वास ली और ांड क सारी वायु अपने भीतर ख च ली। वायुदेव ने
सोचा, “उन सबको, ज ह ने अंजना के पु को चोट प ँचाई है, दम घुटने से मर जाने दो।”
वायुदेव एकांत म चले गए और समूचा वायुमंडल भी अपने साथ ले गए। सभी ा णय का
दम घुटने लगा। ांड के सभी लोग घबरा गए। वायु के अभाव म, येक तर पर जीवन
संकट म पड़ गया। ांड म कोई व तु हल नह पा रही थी। ा ण ारा वेद का
उ चारण बंद हो गया तथा दे वता के उदर सकुड़ने लगे।
अंजना और केसरी अपने पु के लौटने क ती ा करते रहे ले कन वह नह आया।
जब उसका कुछ पता नह लगा तो वे रोने और ख से अपनी छाती पीटने लगे।
“हे शव! हे पावती! हमने पु ा त करने के लए इतने क उठाए और अब वह हमसे
इस तरह ू रतापूवक अलग हो गया है। हमने ऐसा या कया है जो हम यह भोगना पड़
रहा है?”
उ ह खी दे खकर वायुदेव उनके सम कट ए और उ ह सां वना द ।
“आपका पु मेरे पास सुर त है। म इं और अ य दे वता को सबक़ सखाने के लए
उसे कुछ समय अपने पास रखूँगा। चता न कर; म उसे आपके पास सुर त वापस ले
आऊँगा।”
इस आ वासन को सुनकर मा त के माता- पता शांत हो गए।
चूं क वायुदेव ने चलने से मना कर दया, तो पूरी पृ वी क झेलने लगी। साँस न आने
से सभी जीव दम घुटने के कारण मरने लगे। ऐसा लगने लगा मानो ब त ज द संसार
समा त हो जाएगा। इं को अपने अ ववेक कृ य के लए बुरा लग रहा था। वे जानते थे क
इस पूरे करण के लए वे वयं उ रदायी थे। उ ह रा के उकसाने पर भी व का योग
नह करना चा हए था। सभी दे वता दौड़कर वायुदेव को खोजने लगे। परंतु वायुदेव का कह
पता न लगा। इसके बाद वे सभी शव और व णु के पास गए और उनसे सहायता क
याचना करने लगे। उ ह सब कुछ पता था और वे यह भी जानते थे क वायुदेव उस न हे
बालक के साथ कहाँ छपे ए थे। वे ा के साथ पाताल लोक म प ँचे। उ ह दे खकर

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वायुदेव ब त स न ए और णाम कया। इसके बाद पूरी कथा सुनाई क इं और सूय ने
कस तरह उनके पु के साथ बुरा वहार कया है।
ा, व णु और शव ने वायुदेव को शांत कया और बालक हनुमान को ब त-से
आशीवाद दए। ा के पश करते ही मा त ठ क हो गया। अब सभी दे वता म उस
बालक को वरदान दे ने क होड़ लग गई।
इं ने कमल के पु प क अपनी माला उतारकर बालक के गले म डाल द और कहा,”
चूं क इस बालक क हनु मेरे व से टू ट है, इस लए इसे भ व य म हनुमान ( जसक ठु ी
वकृत हो) के नाम से जाना जाएगा, और अब इसके ऊपर मेरे व का भी कोई भाव नह
पड़े गा।”
सूयदे व ने कहा, “म इसे अपने तेज़ का सौवां अंश दान करता ँ। जब इसके
व ा ययन का समय आएगा, तो म वयं इसे सम त वेद व श का ान ँ गा। शा के
ान म कोई इससे अ धक े नह होगा।”
जल के दे वता व णदे व ने यह वरदान दया क मा त को पानी का भय नह रहेगा।
अ नदे व ने उसे कभी त न प ँचाने का वरदान दया।
मृ यु के दे वता, यमराज ने कहा मा त को कभी रोग नह सताएगा तथा वह कभी उसे
भा वत नह करेगी। उ ह ने यह भी कहा क मा त अपनी मृ यु का समय वयं नधा रत
कर सकेगा।
य राज कुबेर ने कहा क उनक गदा मा त को यु म मरने नह दे गी और कभी
लांत नह होगी।
शव ने मा त को चरंजीवी (अमर) रहने का सव े वरदान दया और कहा क उनके
कसी भी अ -श से मा त क मृ यु नह होगी।
दे वता के श पी, व वकमा ने वरदान दया क मा त पर उनके ारा बनाए कसी
भी श का भाव नह पड़े गा।
ा ने मा त को एक और वरदान दया क ा के नाम के अ याने ा से भी
मा त को त नह होगी तथा ांडीय युग क अव ध तक शारी रक अमर व दान
कया। उ ह ने वायुदेव से कहा, “आपका पु अजेय होगा। श ु सदा इससे भयभीत रहगे
और इसके म को कसी बात का भय नह रहेगा। यह वे छा से अपना प बदल सकेगा
तथा मन क ग त से कह भी जा सकेगा। यह जो काय करेगा, उससे इसका गौरव बढ़ता
जाएगा।”
इसके बाद व णु ने वायुदेव से कहा, “आपका यह पु व णु का महान भ बनेगा।
कोई भी इसे परा जत नह कर पाएगा। यह मेरे अवतार राम और उनक प नी ल मी
व पा सीता के लए भाई के समान होगा।”
सभी दे वता ने कहा क धरती और वग पर ऐसा कोई नह होगा जो बल और ग त म
मा त क बराबरी कर सके।
अंत म, ा ने हनुमान को वायु एवं ग ड़ से अ धक बल तथा सवश मान वायु से
भी तेज़ ग त का वरदान दया।
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इस तरह, सभी दे वता से आशीवाद ा त करने के बाद, वायुदेव पृ वी पर लौट आए
तथा सभी ा णय को दोबारा जीवन मल गया। सभी एक बार फर से सामा य ढं ग से साँस
लेने लगे। इसके बाद वायुदेव, हनुमान को लेकर उसके माता- पता के पास आए और उ ह
सारी कथा सुनाई। अपने पु को मले आ चयजनक वरदान के बारे म सुनकर उ ह ब त
स नता ई। वे उसके नए नाम को सुनकर भी ब त ख़ुश ए हालाँ क उसक ठु ी पर लगे
नशान को दे खकर उ ह ख भी आ। तथा प उ ह लगा क वह नशान भी मा त पर
अ छा लग रहा था।
वा मी क रामायण म इसी कथा का एक अ य प मलता है जसम यह बताया गया
है, कस तरह वायुदेव ने अंजना को क कंधा पहाड़ी पर दे खा और उ ह अंजना से ेम हो
गया। उ ह ने धीरे-से अंजना के व चुरा लए और उसका आ लगन कर लया। जब
अंजना ने अपने कौमाय क त होने पर हसा मक वरोध कया तो वायुदेव ने उसे
आ वासन दया क उसक यो न अ त रहेगी तथा अंजना को पु का वरदान भी दया जो
श और साम य म उनके समान होगा। इसके बाद अंजना को अपने भीतर शशु क
हलचल महसूस ई और वह एक गुफा के भीतर चली गई जहाँ उसने एक यारे शशु वानर
को ज म दया। उसके बाल सफ़ेद थे, लाल मुँह था तथा ने भूरे-पीले थे। अंजना से
अ न छापूवक उसे वह गुफा म छोड़ दया और अपने प त के पास लौट आई।
बालक को भूख लगी थी। वह उषाकाल क बेला थी, ले कन उसके लए कोई भोजन
लेकर नह आया। आकाश म काश बढ़ता जा रहा था और अंत म सूय को उदय होता
दे खकर, उसे लगा क वह कोई बड़ा-सा पका आ आम है। अपने वभाव के अनुसार, उसे
पता था क वानर मताहारी होते ह और यह फल भोजन के लए उपयु था। वह रगता
आ गुफा से बाहर आया और थोड़ा-सा झुककर उसने सूय क ओर छलाँग लगा द । उ र
दशा से बहती वायु ने मा त के ऊपर से बहते ए उसे ठं डक दान क ता क सूय क गम
से उसका तन न जल जाए। वह सूय हण का दन था और जस पल वह शशु वानर सूय
क ओर बढ़ रहा था, उसी समय, रा नामक असुर का कटा आ सर सूय को नगलने के
लए आ रहा था। रा अपना मुख खोलकर सूय के नकट प ँचा तो इस व च ाणी
(मा त) को दे खकर च कत हो गया। बाल हनुमान ने सोचा क रा भी कोई फल है तो वह
उसक ओर लपका। रा घबराकर सहायता के लए इं के पास प ँचा और फर वे दोन इं
के ऐरावत हाथी पर बैठकर वापस आए। उ ह दे खकर हनुमान ख़ुश हो गए और साथ ही
उ ह आकाश म वचरण करने वाले व च जीव क सं या पर भी आ चय आ! इं के
मना करने के बाद भी हनुमान हाथी क ओर लपके। हनुमान के साहस को दे खकर इं
को ोध आ गया और उ ह ने अपने व के समतल थान से हनुमान पर जोरदार हार
कया। हनुमान अचेत होकर धरती क ओर गरने लगे। शेष कथा ऊपर व णत कथा के
समान है।
इस घटना के बाद, दे वता से अनेक तरह के वरदान ा त करके हनुमान जोश से भर
गए और तरह-तरह क शरारत करने लगे। वे कभी वन म तप या कर रहे ऋ षय क नजी
साम ी छ नकर, पूजा के सामान को ततर- बतर करके उ ह तंग करते तो कभी, उनके य
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क कलछ व बतन को तोड़ दे ते। वे कभी तप वय क साधना भंग कर दे ते तो कभी उनके
व कल व फाड़ दे ते थे। हनुमान उनके पानी के घड़े और पा काएँ चुरा लेते थे और कभी
यान के दौरान उनक दाढ़ ख च लेते थे। वे उनके पावन प थर को भी तालाब म फक
दया करते थे। चूं क कसी म उ ह रोकने का साहस नह था, उनक ह मत बढ़ती गई। वे
ऋ षय के बतन फोड़ दे ते, ंथ फाड़ दे ते और उनके आ म पर शलाखंड फक दया करते
थे। केसरी और अंजना ने कई बार हनुमान को इस तरह क शरारत करने से रोका, कतु
वयं को ा ण के शाप से अभे मानते ए हनुमान ने उछलकूद करना जारी रखा।
ऋ षय को उन सभी वरदान का पता था जो हनुमान को मले ए थे और इस लए वे
उनक शरारत को, जब तक संभव आ, सहन करते रहे। अंत म जब हनुमान क शरारत
असहनीय हो ग तो उ ह ने हनुमान को शाप दे दया क हनुमान अपनी सम त श य को
भूल जाएँगे और वे अपनी उन श य को दोबारा तभी याद कर सकगे जब अ य लोग
हनुमान को उनक याद दलाएँगे। शाप के भाव से हनुमान त काल ही अपनी श य को
भूल बैठे और उनका वहार सामा य वानर जैसा हो गया।
कहते ह, एक बार तो हनुमान ने दे वता के पु को भी परेशान कर दया। दे वता ने
जब इं से गुहार लगाई तो इं ने उनको हनुमान से ही कु ती के दांव-पच सीखने को कहा
ता क समय आने पर दे वतागण हनुमान से लड़ सक। इस कथा म, हनुमान गु बन गए और
फर दे वता ने उ ह से कु ती के गूढ़ रह य सीखे य क हनुमान कु ती म पारंगत माने
जाते ह।
‘सुंदरकांड’ म, जांबवंत नामक वशाल रीछ ने हनुमान को उनक श य और
मता क याद दलाई और उ ह सीता को खोजने के लए े रत कया। इसी से, हनुमान
को अपनी असाधारण यो यता का यान आया और उ ह ने लंका तक आ चयजनक
छलाँग लगाई तथा उस असंभव काय को पूण कया। यु के दौरान उ ह ने अपनी वल ण
मता का प रचय दया, कतु जांबवंत को बार-बार उ ह याद दलाना और े रत करना
पड़ता था। इस कथा से यह भी पता लगता है क हनुमान ऐसे दे वता ह, जनक सु त
श य को ऋचा ारा जागृत कया जा सकता है। भूलने और याद करने का मूलभाव,
जीवा मा ारा आ म- ान क दशा म या ा का भी सूचक है।

जुग सह जोजन पर भानू।


ली यो ता ह मधुर फल जानू।।

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

त व ान दाय नमः

अ याय 6

केसरी-नंदन
हनुमान क श ा

अनेतो भेषज े,
लवांजल नधे लाघने द तो या,
वीर ीमन् हनुमान,
मम मनसी वसत, काय स तनोतु।

इतनी सरलता से समु को पार करने वाले,


हे बलशाली हनु मान!
आप सदा मेरे यान म र हए,
और मुझे कसी भी काय को पूण करने क
अनु म त द जए।
—हनुमान तो

हनुमान जब पाँच वष के हो गए तो केसरी ने सोचा क अब उनके पु को औपचा रक श ा


लेनी चा हए। अग य मु न ने हनुमान को श ा के लए सूयदे व के पास भेजने का सुझाव
दया।
“सूयदे व काश और ान के ोत ह और उ ह ने पहले ही हनुमान को आशीवाद दया
था। वे अव य हनुमान को अपने श य के प म वीकार कर लगे।”
अंजना अपने पु को इतनी र भेजे जाने से ख़ुश नह थी। हालाँ क केसरी ने ज़ोर
दया क उनके पु के लए यही उपयु होगा और इस तरह हनुमान को वेद तथा अ य
संबं धत वषय क द ा के लए सूयदे व के पास भेज दया गया। केसरी ने गु के प म
सूय को इस लए चुना था य क एकमा सूय ही मनु य के सम त कम के सा ी ह।
हनुमान को अपनी वल ण श य के बारे म याद नह था और इस लए उ ह ने
भोलेपन के साथ अपनी माँ से पूछा क वे सूय तक कैसे प ँच सकते ह। तब उनक माँ ने
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उ ह बताया क वे पवनपु ह और ऐसा कहते ही, हनुमान आकाश म उड़ गए।
हनुमान ब त आदरपूवक सूयदे व के सारथी के पास प ँचे। सारथी का नाम अ ण था
और उसने हनुमान को अपने वामी के पास जाने क अनुम त दे द ।
“आप ांड क येक व तु को दे ख सकते ह और इस लए वहाँ जो कुछ भी जानने
यो य है, वह सब आपको ात है। कृपया मुझे अपने श य के प म वीकार क जए।”
सूय को थोड़ा संकोच आ य क उ ह भली-भाँ त याद था क पछली बार जब
हनुमान उनके नकट आए थे, तब या आ था और इस लए हनुमान को वीकार करते ए
उ ह घबराहट हो रही थी।
“मेरे पास समय नह है,” सूयदे व ने कहा, “म इस रथ म बैठकर, सामने क ओर मुँह
करके, रात- दन आकाश म घूमता ँ, इस लए म अपनी ग त धीमी नह करता। म तु ह
श ा कस तरह ँ गा?”
हनुमान ने हँसते ए कहा क इसम कोई सम या नह है। “आप आकाश म घूमते ए
भी मुझे उपदे श दे सकते ह। म आपक ओर मुँह करके उलटा चलूँगा और आपक ग त के
साथ अपनी ग त मलाकर रखूँगा ता क मुझे सीधे आपके मुख से उपदे श ा त हो सक।”
सूयदे व ने अ न छा से हनुमान क बात मान ली य क वे हनुमान के द गुण तथा
उनक असाधारण मता से अ छ तरह प र चत थे। उ ह यह भी पता था क हनुमान
को ज म से ही संपूण ान ा त है तथा उ ह हनुमान क मृ त को केवल थोड़ा े रत
करना है।
सूयदे व क वीकृ त मलने से स न होकर हनुमान ने अपने शरीर को सूय क क ा म
था पत कर लया। उ ह ने अपने शरीर का आकार बढ़ाया और अपना एक पैर, पूव माला
म तथा सरा पैर, प चमी माला म रखा और सूय क ओर मुँह कर लया। हनुमान क
ढ़ता से स न होकर सूयदे व ने उ ह अपना सम त ान दे ना आरंभ कर दया। सूयदे व के
स मुख बने रहने के लए हनुमान लगातार उलट दशा म चलते रहे। अपने व ाथ के
उ साह और उसक लगन से भा वत होकर, सूय ने उ ह सारा ान दान कर दया। इस
तरह, हनुमान कसी ह क भाँ त सूयदे व क ज़बरद त आभा को सहन करते ए उनके
रथ के आगे घूमते रहे। उ ह ने यह म तब तक जारी रखा जब तक उ ह चार वेद, छह
दशन, च सठ कला और एक सौ आठ तां क रह य का पूण ान नह हो गया। हनुमान
ने यूनतम समय म, येक मं और ऋचा को दोषर हत ढं ग से याद कर लया। कहते ह,
हनुमान ान क सम त शाखा तथा सभी तरह क तप या के अ यास म दे वता के
गु बृह प त के त ं ह। वे जो कुछ सीखने आए थे, उसम वीण होने के बाद, श ा
का मू य चुकाने और गु -द णा दे ने का समय आ गया था। सूयदे व ने हचकते ए कहा
क व ाथ का इतना न ावान होना ही उनके लए पया त है परंतु जब हनुमान ने कृत ता
ापन हेतु सूयदे व को कुछ माँगने के लए कहा तो सूयदे व ने हनुमान से अपने पु एवं
वानर-राज बाली के सौतेले भाई, सु ीव क दे खभाल करने का आ ह कया। इस तरह,
सूयदे व ने अपने पु सु ीव को हनुमान के प म अ यंत मू यवान उपहार दया, अ यथा
हनुमान के बना सु ीव कोई काय नह कर पाता।
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इसी कथा का एक अ य प भी है। जब हनुमान सूयदे व के रथ के पास प ँचे तो
उ ह ने दे खा क वहाँ पहले से ही काफ़ व ाथ मौजूद थे। ये बाल ख य नामक बौने
ऋ षगण थे जनक सं या एक हज़ार थी। जब हनुमान ने सूयदे व से वन तापूवक उ ह
भी अपना श य बनाने के लए वनती क , तो इन शी कु पत होने वाले ऋ षय ने अपने
गु से कह दया क वे एक बंदर के साथ श ा हण नह करगे! सूयदे व को समझ नह
आया क वे या कर य क उ ह इन चड़ चड़े ऋ षय के शाप का भय था। ऐसी थ त
म हनुमान ने सूय के रथ के सामने उलटा चलने क तरक़ ब सोची ता क उ ह भी ऐसी
संक ण सोच वाले ऋ षय क संग त म श ा हण न करनी पड़े ! इतने लंबे समय तक
सूय के सामने रहने के कारण हनुमान का रंग भी काला हो गया।
एक अ य कथा कहती है क हनुमान इतने बु मान थे क उ ह ने मा पं ह दन म
वेद का सम त ान ा त कर लया। हालाँ क सूयदे व अपने इस असाधारण व ाथ को,
जो वयं भगवान शव का अंश था, छोड़ना नह चाहते थे। इस कारण वे जान-बूझकर
हनुमान को बार-बार पाठ भुला दया करते थे ता क उन उपदे श को अनेक महीन तक
जारी रखा जा सके। परंतु हनुमान ने सूय को अपनी वनयशीलता और न ा से इतना
स न कर दया सूयदे व ने हनुमान को यह वरदान दया क आज के बाद जो लोग हनुमान
का नाम लगे, वे कभी अपनी श ा नह भूलगे!
एक अ य कथा इस कार है क जब हनुमान के माता- पता ने हनुमान को कहा क
उ ह सूय को अपना गु बनाना चा हए तो वे चुपचाप यान लगाकर बैठ गए और नरंतर
गाय ी मं का जाप करने लगे, जो सूय म प रल त होने वाले परम ान के आ ान का
महान मं है। हनुमान, पूरे दन यान म बैठे रहे और सूय के प चम म अ त हो जाने तक
आकाश म उसक प र मा को दे खते रहे। दवस के अवसान होने तक, हनुमान को संपूण
ान ा त हो चुका था। दरअसल, ाचीन काल म ऋ षय के पास वे छा से ांड का
कोई भी ान ा त करने का साम य था। वेद का ान आकाश म व न-तरंग के प म
व मान रहता है। ये तरंग अ यंत सू म होती ह और सदा आकाश म मौजूद रहती ह।
इनक तुलना टे ली वज़न और रे डयो क तरंग के साथ क जा सकती है जनसे हम लोग
प र चत ह। ऋ षय को इन संकेत को पकड़ने के लए, हमारी तरह कसी बाहरी यं क
आव यकता नह पड़ती थी। हनुमान भी इसी तकनीक का योग करते थे।
हनुमान के माता- पता अब भी कसी लौ कक गु को खोजने के लए उ सुक थे कतु
उ ह यह नह पता था क इसके लए वे कसके पास जाएँ। एक दन जब हनुमान जंगल म
खेल रहे थे, तो उ ह ने एक खूंखार बाघ को अपनी ओर आते दे खा। बाघ एक ज़ोरदार दहाड़
के साथ हनुमान पर झपटा ले कन हनुमान घबराए नह । वे हवा म दस फ़ ट ऊपर उछलकर
बाघ क पीठ पर सवार हो गए और उसे नममता से जकड़ लया। बाघ का मुँह आ चय से
खुला था। हनुमान ने उसके खुले जबड़ को पकड़ा और चीर दया। इतनी दे र म बाघ बुरी
तरह थक चुका था ले कन हनुमान उसक पीठ पर आराम से सवारी कर रहे थे। वह बाघ
अ धक र नह जा सका और उसने बीच म ही दम तोड़ दया।

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तभी बाघ-चम पहने और गले म बाघ के नाख़ून क माला धारण कए एक शकारी
हनुमान के सम कट आ। उसके चौड़े कंध पर धनुष व तरकश लटका आ था। उस
शकारी को दे खकर हनुमान के दय म ेम उमड़ आया। वे बना पलक झपकाए उसे
शंसा-भरी से दे खते रहे।
शकारी हँसा और बोला, “ या तु ह मुझसे भय नह लग रहा? हो सकता है, म बंदर
पकड़ने वाला शकारी ँ और तु ह पकड़कर अपने साथ ले जाऊँ!”
हनुमान ने शकारी को नभ कता से दे खा और उ र दया, “मुझे कसी से भय नह
लगता ले कन म जानना चाहता ँ क आप कौन ह। मने आपके जैसा मनु य पहले नह
दे खा।”
शकारी ने उ र दया, “म एक शकारी ँ तथा यहाँ से ब त र बफ़ ले पहाड़ म
रहता ँ। य द तु ह मुझसे भय नह लग रहा तो म तु ह अनेक रोचक चीज़ सखा सकता
ँ।”
“मेरे माता- पता को मेरे लए गु क तलाश है,” हनुमान ने कहा। “आप मेरे साथ
आइए। म आपको उनके पास लेकर चलता ँ।”
अपने य पु को ऐसे अ श के साथ, हाथ म हाथ डालकर आता दे ख अंजना
और केसरी को ब त आ चय आ। उ ह उससे भी अ धक हैरानी तब ई जब हनुमान ने
उनसे कहा क वे कला को सीखने के लए अपने इस नए म के साथ जाना चाहते ह।
“ या तु हारी बु हो गई है? इसको दे खने से ही लगता है क यह अ श और
अ श त है। इस तरह का तु ह या सखाएगा?” केसरी ने पूछा।
“ पताजी, आप ज ह जानते नह उनके वषय म इस तरह क बात य कर रहे ह? म
इ ह ही अपना गु बनाना चाहता ँ।”
“ या श य को अपना गु चुनने का अ धकार नह है?” शकारी ने पूछा।
“उसे यह अ धकार है,” केसरी ने कहा, “ कतु वह अभी बालक है और म तु ह इसका
गु नह बनाना चाहता!”
“मुझे अ श और भावशू य कहने से पहले या आपको मेरे कौशल क जाँच नह
करनी चा हए?” शकारी ने ज़ोर दे ते ए कहा।
अंजना और केसरी, शकारी क बात सुनकर हैरान हो गए। उ ह ने एक- सरे क ओर
दे खा और फर केसरी ने कहा, “मुझे नह लगता क यह कोई साधारण शकारी है। मेरे
वचार से हम इसे कौशल स करने का एक अवसर दे ना चा हए।”
ऐसा कहकर केसरी ने शकारी को श के साथ ं क चुनौती द । शकारी तुरंत
तैयार हो गया ले कन उसने कहा क वजेता का नणय करने के लए कसी म य थ क
आव यकता होगी। केसरी ने अंजना के नाम का सुझाव दया। शकारी हँसा और बोला क
अंजना का म य थ होना सही नह होगा य क केसरी क प नी होने के नाते वह उसके
हार जाने के बाद भी उसे ही वजेता मानेगी। केसरी ने इससे सहम त जताई और अपने मन
म सहायता के लए वायुदेव का आ ान कया। हवा के झ के के प म वायुदेव त काल
कट हो गए और उ ह ने म य थता करना वीकार कर लया।
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केसरी ने कमर कसी और मुट्ठ भ चकर शकारी पर झपटा तथा उसक छाती पर
हार करके उसे र उछाल दया। अंजना अपने प त का साहस दे खकर ख़ुश ई और
उसक शंसा करने लगी। परंतु उसक वह ख़ुशी ज द ही ग़ायब हो गई। शकारी आराम से
उठा और केसरी के नकट आकर, उसे बड़ी सरलता से उठाकर हवा म उछाल दया। केसरी
धड़ाम से धरती पर गरा और लगभग अचेत हो गया। अंजना उसक सहायता के लए दौड़ी
और उसके शरीर क मा लश करने लगी। धीरे-धीरे केसरी को होश आ गया। उसे ब त
पीड़ा हो रही थी। वह कसी तरह उठा और फर लड़ने के लए तैयार हो गया। कतु अंजना
ने उसे शकारी से दोबारा लड़ने से मना कया। केसरी से अपनी पराजय वीकार नह ई।
उसने शकारी क ओर दे खा जो उसे दे खकर मु करा रहा था।
“आओ, अब हम श के साथ अपना कौशल परखते ह,” केसरी ने कहा।
शकारी तुरंत धनुष-बाण लेकर तैयार हो गया। केसरी ने भी अपने धनुष-बाण उठा
लए और एक के बाद एक बाण शकारी पर चलाए। कतु शकारी ने बड़ी सरलता से वयं
को बचा लया और फर अपने एक ही बाण से केसरी का धनुष काटकर उसे नह था कर
दया।
अंजना समझ गई क वह कोई सामा य शकारी नह था। उसने अपनी आँख मूँद और
अपने इ दे व का मरण कया। जब उसने आँख खोल तो वह जान गई क वह शकारी
कोई और नह ब क वयं भगवान शव थे। उसने तुरंत कुछ फूल तोड़े और उनके चरण म
अ पत कर दए। शकारी ने अपना हाथ बालक के सर पर रखा और उसे आशीवाद दया।
उ ह ने मुड़कर केसरी क ओर दे खा और हँसते ए कहा, “ या अब भी आपको मुझे अपने
पु का गु बनाने म कोई आप है?”
केसरी भगवान शव के चरण म गर पड़ा और उनसे मा माँगने लगा। “यह हमारा
सौभा य है क आप वयं आए ह और हमारे पु का गु बनना वीकार कया है। इसी
कारण हम आपके दशन करने का सौभा य ा त आ है। कृपया मेरे अपराध को मा कर
और हमारे पु को अपना श य बना ल।”
शव ने सहम त क और अपनी अँगूठ से बालक हनुमान क ज ा को पश
कया। दे खते-दे खते, वह बालक भगवान क तु त म जयगीत गाने लगा। इसके बाद शव ने
उसके दा हने कान म णव मं बोला जससे हनुमान संपूण ानी हो गए। फर शव ने
हनुमान को कहा क समय आने पर और जब हनुमान वयं चाहगे तो कला क दे वी
सर वती उ ह संगीत म पारंगत कर दगी। यह सुनकर हनुमान के माता- पता ब त ख़ुश ए
और उ ह ने भगवान शव को णाम कया।
इस तरह भगवान शव ने मा त को मं , यं तथा व भ न आ या मक रह य का
सम त गूढ़ ान दे दया। माना जाता है क व णु ने उ ह भ योग, सां य योग और हठ
योग क श ा द तथा व णु के छठे अवतार परशुराम ने हनुमान को कु ती के रह य
सखाए।
इसके बाद हनुमान के पता वायुदेव ने उनक श ा का उ रदा य व ले लया। सबसे
पहले उ ह ने हनुमान को ाणायाम याने वास पर नयं ण के गूढ़ रह य बताए। उसके बाद
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प य क भाँ त लंबी री तक छलाँग लगाना सखाया। एक दन उ ह ने हनुमान को ब त
सुंदर वीणा द और उसक सहायता से भगवान क तु त गाने के लए कहा। हनुमान स न
हो गए और उ ह ने सं याकाल भगवान क तु त गाते ए बताया। एक बार जब वे वन के
कसी तालाब म नान कर रहे थे, तो उ ह ने बुलबुल का मधुर वर सुना और सोचने लगे क
काश वे भी इतना ही मीठा गा पाते। उसी समय उ ह भगवान शव क बात याद आई,
ज ह ने यह कहा था क जब भी उनक ल लत कला म नपुण होने क इ छा हो तो वे
दे वी सर वती क अचना कर। यह वचार दमाग़ म आते ही, हनुमान तालाब म कूद पड़े
और कमर तक पानी म खड़े होकर दे वी सर वती क ाथना करने लगे।
हनुमान क उ कट पुकार सुनकर, दे वी कट और हनुमान को धीरे-से झकझोरा
ता क वे आँख खोल। फर दे वी ने उनसे वरदान माँगने को कहा।
हनुमान ने दे वी को णाम कया और उनसे सम त ल लत कला का ान तथा संगीत
म नपुणता का वरदान माँगा। मु कराते ए दे वी ने उ ह ये वरदान दे दए और कहा क वे
अपनी वीणा उठाकर गाना आरंभ कर। दे वी को णाम करने के बाद, हनुमान वीणा लेकर
एक पेड़ के नीचे बैठ गए और गाना आरंभ कर दया। उनक मधुर आवाज़ तथा वीणा के
ांजल वर सुनकर वन के जंगली जीव भी उ ह सुनने के लए उनके नकट आ गए।
आकाश म वचरण कर रहे गंधव भी उनका संगीत सुनने के लए वहाँ क गए।
उसी समय दे व ष नारद जो एक व यात गायक और भगवान व णु के महान भ थे,
वहाँ से गुज़रे। वे भी इस य को दे खकर भा वत हो गए। उ ह लगता था क सफ़ वे ही
अ छ वीणा बजाते और भगवान क तु त गाते ह, इस लए उ ह हनुमान को अपने व श
े म घुसपैठ करता दे ख अ छा नह लगा। वे यह जानने के लए धरती पर उतर आए क
हनुमान क मधुर आवाज़ म ऐसी या वशेषता थी जसने समूचे वन को परम आनं दत कर
दया है। नारद, युवा भ हनुमान के पास प ँचे और धीरे-से उनके कंधे पर थपक द ।
हनुमान ने आँख खोल तो दे व ष को अपने सामने हाथ म वीणा लए खड़े ए दे खा। नारद
ने उ ह अपने वषय म बताया। हनुमान ने उ ह वन तापूवक णाम कया। इसके बाद
नारद ने हनुमान को कोई अ य गीत गाने के लए कहा। हनुमान ने उनक बात मानते ए
गाना शु कर दया। हनुमान के संगीत के मीठे सुर सुनकर नारद पूरी तरह संगीत म डू ब
गए।
हनुमान ने जब गाना बंद कया तो नारद ने वनीत वर म कहा, “हे हनुमान! म आपके
कौशल क परी ा लेने आया था और अब म इस बात से पूरी तरह आ व त ँ क आप
संगीत म नपुण ह। दे वी सर वती ने सचमुच आपको स चा आशीवाद दया है। म उसम
अपना आशीवाद जोड़ना चाहता ँ।”
यह सुनकर हनुमान दे व ष के चरण म गर पड़े और बोले, “मु न े ! भ संगीत म
आपसे े कोई नह है। आपका यश तीन लोक म फैला है। म आपक तुलना म कुछ भी
नह ँ।”
हनुमान क वन ता और उनक मधुर आवाज़ से नारद अ यंत स न ए। हनुमान को
आशीवाद दे कर जब नारद उठकर वहाँ से जाने लगे तो उ ह यह दे खकर ब त नराशा ई
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क उ ह ने जस शलाखंड पर अपनी वीणा रखी थी, वह हनुमान के मधुर संगीत से पघल
गई थी और उनक वीणा उस शला के साथ चपक गई थी!
नारद ने हनुमान से दोबारा गाने क ाथना क ता क वह शलाखंड फर से पघल जाए
और उनक चपक ई वीणा छू ट जाए। हनुमान ने ऐसा ही कया और दे व ष क वीणा उ ह
फर से मल गई। कहते ह, ापर युग म जब भगवान कृ ण वृंदावन म बाँसुरी बजाते थे तो
वहाँ क सभी ठोस चीज़, जैसे प थर आ द उनके संगीत के मोहक सुर से पघल जाते थे।
यहाँ भी ऐसा ही आ था। हनुमान क े ता को दे खकर नारद ने उ ह फर से आशीवाद
दया और फर चले गए।
इसी तरह स नतापूवक अनेक वष बीत गए। हालाँ क वह ण तेज़ी से समीप आ रहा
था जब यह रमणीय समय समा त होने वाला था। एक दन जब अंजना यान म लीन थी,
उसे अपने भीतर एक आवाज़ सुनाई द , “पुं चक थला! पुं चक थला! तु हारे शाप के
समा त होने का समय आ गया है। अब तुम अपने द लोक म वापस जा सकती हो!”
यह सुनकर अंजना के मन म मृ तय का समु उमड़ पड़ा और उसे म त क म अपना
पूवज म प द खने लगा। “म अंजना नाम क मादा-वानर नह ँ। म दे वलोक क अ सरा
ँ और मेरा नाम पुं चक थला है। म दे वता के गु बृह प त क द क पु ी ँ। म शाप से
मु हो चुक ँ और अब म अपने पता के आ म म वापस जा सकती ँ।”
परंतु इस वचार से उसे ख़ुशी नह ई। उसक आँख से अ ु बहने लगे।
उसके प त केसरी ने उसके नकट आकर उसके रोने का कारण पूछा। बाल हनुमान
अपनी माता के नकट आकर गले से लग गए और वचन दया क वे फर कभी शरारत नह
करगे। इस पर अंजना ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी और हनुमान को गले से लगा लया।
“ य पु ! मेरा तु ह छोड़कर अपने घर वापस जाने का समय आ गया है। परंतु तु ह
छोड़कर लौटने का वचार मेरे लए असहनीय है।”
आंजनेय और केसरी दोन को अंजना क बात समझ नह आई।
“ये तुम या कह रही हो? मुझे कुछ समझ म नह आ रहा। तु ह कहाँ जाना है? यही
तो तु हारा घर है।”
“ भु!” अंजना ने कहा, “म वा तव म अंजना नह ँ, ब क पुं चक थला नाम क
अ सरा ँ। बृह प त का आ म ही मेरा घर है। म एक शाप के कारण वानर बन गई थी।
अब मुझे उस शाप से मु के साथ और अपने घर लौटने क अनुम त भी मल गई है, कतु
आपसे और अपने पु से वरह का वचार मुझे वत कर रहा है।”
“ओह अंजना! म तु हारे बना नह रह सकता। म तु ह कह नह जाने ँ गा,” केसरी ने
कहा।
“ यवर! नय त के वाह को कोई नह बदल सकता। आप मुझे नह रोक सकगे।
इस लए कृपया मुझे जाने द।”
बाल हनुमान ने ववेकपूण वचन कहे, “हे माँ! आप न चंत होकर जाइए। आप
बलकुल सही कहती ह क भा य के च को कोई नह रोक सकता।”

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तभी वायुदेव कट ए और अंजना को सां वना दे ते ए बोले, “अपने पु के लए ख
मत करो। उसक दे खभाल के लए हम सब लोग यहाँ मौजूद ह। य द तुम जाना चाहती हो
तो न चंत होकर जाओ।”
वीर केसरी इस वयोग को सहन नह कर सका। “म तु हारे बना नह रह सकता य!
तुम जहाँ भी जाओगी, म तु हारे पीछे आ जाऊँगा।”
अपने प त के वचन सुनकर अंजना ने कुछ ण के लए अपनी आँख मूँद ल और
अपने गु का यान करने लगी। उसने मन म गु से अपने प त के साथ हमालय म थत
कंचन पवत पर जाकर तप या करने क अनुम त माँगी। उसने बाल हनुमान को अपनी बाँह
म लया, उसका माथा चूमा और उसे वायुदेव को स प दया। फर उसने केसरी से कहा,
“ भु! म भी आपके वचार से सहमत ँ। य द आप मेरे साथ चलना चाहते ह तो मुझे
अपनी बाँह म ले ली जए।”
केसरी ने वैसा ही कया जैसा अंजना ने कहा। उसके बाद वे दोन आकाश म उड़ गए
और ऊपर जाकर काश- पड म बदल गए। हनुमान यह दे खकर अचं भत हो गए। मा त
के दे खते-दे खते उनके माता- पता उ र दशा म वलीन हो गए। बृह प त ने अंजना को
अनुम त द और फर वे दोन कंचन पवत पर नवास करने लगे।

शंकर सुवन केसरी नंदन।


तेज ताप महा जग बंदन।।

—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

मनोजवाय नमः

अ याय 7

जत य
इं य पर वजय

मनोजवं मा ततु यवेगं,


जते यं बु मतां व र म्।
वात मजं वानरयूथमु यं,
ीराम तं शरणं प े!

म राम त को णाम करता ँ,


जो वायुदेव के पु तथा वानर म े थे,
जनका अपनी इं य पर पूण नयं ण था
और जो अ यंत बु मान थे,
जो मन क ग त क के समान फुत ले थे
तथा पवन क ग त से चलते थे।

—हनुमान तो

अपने माता- पता के चले जाने के बाद, हनुमान पूरी तरह अपने धा ेय पता, वायुदेव क
दे खभाल म रहने लगे। कुछ वष वन म बताने के बाद हनुमान ने सोचा क वन म इस तरह
उछल-कूद करने और फल खाने से अ त र भी जीवन म कुछ करना चा हए। उ ह ने मन
म अपने पता वायुदेव का मरण करके उ ह सहायता के लए बुलाया और कहा क वे
संसार को दे खने के लए उ सुक ह तथा संत से मलना चाहते ह।
वायुदेव ने उनक ाथना वीकार कर ली और कहा, “तु हारा न चत ही, अब यहाँ से
थान करने का समय हो गया है। म चाहता ँ क यहाँ से जाने से पहले, तुम ववाह कर
लो। इसके बाद तुम वानर के दे श क कंधा म जा सकते हो। वहाँ का राजा बाली, महान

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और श शाली वानर है। उसका एक भाई भी है, जसे सु ीव के नाम से जाना जाता है।
तुम उससे म ता कर लो। ऐसा करने से अव य ही तु ह यश और वैभव क ा त होगी।”
हनुमान, अपने पता के सम नतम तक हो गए और ढ़तापूवक बोले, “ भु,
पा रवा रक जीवन म मेरी लेश मा भी च नह है। मने चय का त लया है और मुझे
व वास है क म सदा उसका पालन क ँ गा। परंतु मुझे आपके ारा द गई सरी सलाह
अ छ लगी। म बना दे र कए बाली के रा य के लए थान क ँ गा।”
हनुमान ने वन म अपने सा थय को नेहपूण वदाई द और क कंधा क ओर थान
कया। उ ह ने सामा य वानर क भाँ त पेड़ के बीच से या ा आरंभ कर द । कुछ दे र बाद
उ ह भूख और यास लगी। उ ह एक जलधारा दखाई तो वे पानी पीने के लए नीचे उतर
आए। उ ह ने अभी अंजु ल म पानी भरा ही था क उ ह भयानक आवाज़ सुनाई पड़ी, “मेरी
अनुम त के बना कोई यह जल नह पी सकता!” आवाज़ सुनकर हनुमान ने अंजु ल म भरा
पानी नीचे गरा दया और उस व ा को इधर-उधर खोजने लगे। कसी को वहाँ न दे खकर,
वे बोले, “तुम कौन हो? कायर क भाँ त झा ड़य के पीछे य छपे हो? सामने य नह
आते?”
ऐसा कहते ही वह समूचा वन एक ज़ोरदार गजना से गूँज उठा और एक भयंकर रा स
हनुमान के सामने आ खड़ा आ। हनुमान उसे दे खकर बलकुल नह घबराए और उसका
प रचय पूछा।
रा स ने उ र दया, “म तु ह अपना प रचय य ँ ? तुम मेरे े म अना धकृत तरीक़े
से घुस आए हो और अब म अव य ही तु ह अपना भोजन बनाऊँगा!”
ऐसा कहकर उसने अपना गुफा जैसा मुँह खोला और हनुमान को समूचा नगलने के
लए आगे बढ़ा। उसके मुँह से र क गध आ रही थी। इससे पहले क वह रा स हनुमान
को पकड़ पाता, हनुमान ने अपने पता वायु से ा त श य का योग कया तथा अपना
आकार इतना बढ़ा लया क वे अब उस रा स के आमने-सामने खड़े हो गए। रा स उस
छोटे -से वानर का यह करतब दे खकर थोड़ा अचं भत आ कतु वह भी कुछ तरक़ ब
जानता था। वह भी अपना आकार बढ़ाता चला गया और फर अचानक हनुमान पर झपटा
और बोला, “अब म भोजन क ँ गा!”
हनुमान ने भी तुरंत अपने तन का आकार बढ़ाकर उस रा स से गुना कर लया और
उसे जोरदार लात मारी जसके कारण रा स धरती पर गर पड़ा। परंतु रा स गुने जोश से
उठ खड़ा आ और वे दोन ब त लंबे समय तक लड़ते रहे कतु कसी क भी पराजय नह
ई। तब हनुमान को समझ आया क वह कोई साधारण रा स नह था और फर उ ह ने
भगवान शव को सहायता के लए बुलाया। हनुमान ने ुब नाम क घास का तनका लया
और उसके अंदर शव के महान अ , पशुपता का मं फूँक दया। फर उ ह ने पूरी
श से वह तनका, उस रा स के ऊपर फका। तनके के वार से वह कई गज़ र एक
चट् टान पर जा गरा और टु कड़े -टु कड़े होकर बखर गया। उन टु कड़ म से एक द ाणी
कट आ। वह हनुमान के पास गया और उ ह झुककर णाम कया।

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“ भु!” उसने कहा, “म पूवज म म एक गंधव था और शाप के कारण रा स बन गया।
म आपका आभारी ँ क आपने मुझे उस शाप से मु दलवाई!”
हनुमान जानना चाहते थे क उसे वह शाप कैसे मला। तब गंधव ने उ र दया।
“एक बार मने एक ऋ ष क क या का अपहरण करने का यास कया तो उ ह ने मुझे
शाप दे कर रा स बना दया। जब मने उनसे शाप से मु करने क ाथना क तो उ ह ने
मुझे कहा क मेरा अंत उसके हाथ होगा जो शव के अंश से उ प न आ हो। तभी मुझे
शाप से मु मलेगी। अब मुझे पता लगा क वे आप ही ह, जनका उस ऋ ष ने उ लेख
कया था।”
गंधव ने हनुमान को आशीवाद दया और चला गया। हनुमान ने भी अपनी या ा पर
आगे बढ़ने से पहले व छ जल से अपनी यास बुझाई और पेटभर के फल खाए।
इसके बाद मा त ने भारतवष के उपमहा प म अपनी या ा जारी रखी। माग म
उ ह ने अनेक महान ऋ षय से भट क और आशीवाद लया। उ ह ने कई भयंकर रा स
और प य का भी सामना कया तथा अ यंत सुंदर वृ और फूल भी दे खे। अंत म, वे
वदशन नामक एक ब त बड़े वन म प ँच गए जो इतना अंधकारपूण और भयानक था क
दन के उजाले म भी कोई वहाँ से गुज़रने का साहस नह करता था। वह जंगल रा स और
नशाचर से भरा पड़ा था तथा उसम कई जंगली ाणी भी रहते थे।
हनुमान ने भगवान शव का मरण कया और नभयता से वन म वेश कर गए। चलते
समय, उ ह काटने वाले म छर तथा वषैले क ड़ ने परेशान कया। व भ न लताएँ और
बेल उनके पैर से लपट ग और उ ह आगे जाने से रोकने लग । सं या होने पर, हनुमान को
अपने चार ओर जंगली पशु क गुराहट सुनाई पड़ने लगी। उ ह ने रात एक पेड़ पर
बताने का नणय कया कतु वह पूरी रात एक हाथी को पीड़ा से कराहते ए सुनते रहे।
सुबह होते ही वे तज़ी से उस थान क ओर गए जहाँ से ददभरी आवाज़ आ रही थ । वहाँ
प ँच कर उ ह ने दे खा क एक वशालकाय हाथी आधा नद के अंदर और आधा बाहर
फँसा आ था। उसके पछले पैर ढ़ता से पानी के अंदर थे और वह भरपूर यास करने पर
भी नद से बाहर नह नकल पा रहा था। उसे दे खकर हनुमान को ब त ख आ और वे
यह दे खने के लए नकट गए क या चीज़ है, जो उस वशाल हाथी को पानी से बाहर नह
आने दे रही थी। वह दे खकर हैरान रह गए क एक मगरम छ ने उस हाथी का एक पैर बड़ी
नममता से अपने मज़बूत जबड़ म दबा रखा था। वह वशाल मगरम छ धीरे-धीरे हाथी को
पानी के अंदर ख च रहा था। हाथी के पैर से र रसते ए नद म लाल रंग क धारा के
प म बह रहा था। हाथी अपनी सूँड़ उठाकर क ण ढं ग से चघाड़ा। हनुमान को उस पशु
के लए बड़ा ख आ और वायुदेव का वह नभय पु , पानी म कूद पड़ा।
हनुमान ने मगरम छ क पूँछ पकड़ी और उसे ख चने लगे। परंतु मगरम छ ने हाथी को
छोड़ने के बजाय उसके साथ हनुमान को भी पानी के अंदर ख च लया। हनुमान तुरंत
समझ गए क वे भूल कर रहे ह। उ ह ने मगरम छ क पूँछ छोड़ द और उसक पीठ पर
सवार हो गए तथा उसके जबड़े को पकड़ लया। हनुमान ने अपने ज़बरद त बल के योग
से मगरम छ का जबड़ा खोल दया और हाथी को पीड़ा से मु कर दया। दद से और
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शकार हाथ से नकल जाने के कारण, मगरम छ ोध से उ म हो उठा। वह ज़ोर-ज़ोर से
अपनी पूँछ पानी म मारने लगा और अपने ख़ूनी जबड़े को खोलकर नए शकार पर झपट
पड़ा। आंजनेय तैरकर तुरंत उसके पीछे प ँच गए और उसक पूँछ पकड़ ली तथा उसे नद -
तट पर बाहर ख च लाए। इससे पहले क मगर कुछ समझ पाता, हनुमान ने उसे फर से
पूँछ से पकड़ा और अपने सर के ऊपर उठाकर घुमाते ए सैकड़ गज़ र उछाल दया।
मगरम छ ज़मीन पर गरा और गरते ही उसके ाण नकल गए।
हनुमान को यह दे खकर आ चय आ क मगरम छ के शरीर से एक अ यंत सुंदर
क या नकली और उसने हनुमान के पास आकर णाम कया।
“आप कौन ह और आपने मगरम छ का प कैसे धारण कया आ था?” हनुमान ने
पूछा।
“हे आंजनेय!” वह बोली, “मेरा नाम अंबा लका है। म दे वराज इं के दरबार क एक
अ सरा ँ। एक बार, म हमालय के सरोवर म अपनी सहे लय के साथ नान कर रही थी।
हमने सरोवर के तट पर कुछ युवा तप वय को दे खा जो यान म लीन बैठे थे। हम उ ह
दे खकर मु ध हो गए और अपने संगीत व नृ य से उ ह रझाने का यास करने लगे। कुछ दे र
बाद उ ह ने आँख खोल और हम क ण से दे खते ए समझाया क य द हम उनके
शाप से बचना हो तो हम वहाँ से र चले जाना चा हए। मेरी सहे लयाँ तो वहाँ से चली ग ,
कतु म उनम से एक तप वी पर मो हत हो गई और वहाँ से नह गई। उसने मुझे बार-बार
समझाया क म उसके धैय क परी ा न लूँ, कतु म नह मानी। अंत म उसने मुझे शाप दे
दया क म वदषण वन के इस क चड़ वाले तालाब म नमम मगरम छ बन जाऊँगी। मने
उस तप वी से मा माँगी तब उसने मुझे कहा क शव के अंश से उ प न वायुदेव के पु के
हाथ ही मेरा उ ार होगा! अब मुझे पता लगा क वे आप ही ह, जनके बारे म मुझे उस
तप वी ने बताया था। आपने मुझे मु दलाई है इस लए म आपको वरदान दे ना चाहती ँ।
आज के बाद आपको कभी पानी म डू बने से भय नह रहेगा। पानी आपको कोई त नह
प ँचाएगा। कृपया मुझे जाने क अनुम त द!”
हनुमान उसक कथा सुनकर आ चयच कत हो गए। उ ह ने उसे जाने क अनुम त दे
द।
इस घटना के बाद हनुमान अपने माग पर आगे बढ़ गए। अनेक वन , पवत तथा न दय
को पार करते के बाद वे क कंधा रा य के बाहरी दे श तक प ँच गए। ब त र से ही,
उ ह व य पशु क दहाड़ और हा थय क चघाड़ सुनाई दे रही थी। वे एक पेड़ पर
चढ़कर दे खने लगे क वहाँ या हो रहा है। उ ह ने दे खा क एक सीधा-सा वानर जंगली
हा थय और अ य व य पशु से घरा आ था और परा जत होने को था। हनुमान अ यंत
त परता के साथ बीच म कूद पड़े और उ ह ने हा थय को वहाँ से खदे ड़ दया।
वानर ने उनसे पूछा, “तुम कौन हो, जसने सही समय पर यहाँ प ँचकर मेरे ाण बचा
लए?”
“म अंजना पु , आंजनेय ँ ले कन लोग मुझे हनुमान कहते ह। आप अपना प रचय
द जए। आप ब त थके ए लग रहे ह। आप इस संकट म कैसे फँस गए थे?”
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“मेरा नाम सु ीव है और म यहाँ के राजा, बाली का छोटा भाई ँ। इस जंगल म मायावी
नाम का एक भयंकर रा स रहता है। एक बार मने और मेरे भाई ने उस रा स से सदा के
लए छु टकारा पाने का मन बना लया। मेरे भाई ने मुझे और मेरे सा थय को इस माग से
आने को कहा तथा वह वयं कसी सरे माग से गया। हालाँ क हमने मायावी को खोज
लया, ले कन हम उसे मार नह सके। भीषण यु के बाद, उसने हमारे सभी म को मार
डाला। उसने मुझसे कहा, ‘म तु ह छोड़ रहा ँ य क तु हारे साथ मेरा कोई झगड़ा नह
है। मुझे तु हारे भाई बाली क तलाश है!’ म उससे जैसे ही बचकर नकला, मुझे इन व य
पशु ने घेर लया था ज ह तुमने अभी दे खा था। म ब त थक गया था और अपनी र ा
करने म असमथ था और य द तुम नह आते तो मेरी दशा हो जाती!”
हनुमान ने मु कराते ए कहा, “सु ीव! मेरी और आपक भट, म बनने के लए ही
ई है। हमारे सामने ब त लंबा इ तहास है!”
“म तु हारी बात का अथ नह समझा,” सु ीव ने कहा।
“मेरी बात का अथ समय बताएगा। मने आपके पता सूयदे व को वचन दया है क म
आपका म बनकर र ँगा। आप मुझे मायावी के वषय म बताइए। वह कौन है? या वह
सचमुच ब त भयंकर है?”
“यह या न है!” सु ीव ने कहा, “वह रा स सचमुच ब त साहसी है। उसे केवल
मेरा भाई मार सकता है।”
यह सुनकर हनुमान मु कराए और बोले, “य द म त क पर नयं ण हो तो इस संसार
म ऐसी कोई व तु या नह जसे परा जत नह कया जा सकता। हालाँ क इस वषय
म हम बाद म बात करगे। हम लोग का मलना पूव नधा रत था और यह हमारी म ता का
सफ़ आरंभ है। आपको व ाम करने क आव यकता है और उसके बाद हम लोग आगे
चलगे।”
सु ीव ने हनुमान को गले लगाकर उनसे हमेशा अपना म बने रहने क ाथना क
और फर सु ीव ने हनुमान को अपने रा य, क कंधा आने का नमं ण दया।
सु ीव चलने क थ त म नह था, इस लए हनुमान ने उसे अपनी पीठ पर उठा लया
और एक नद के कनारे आ प ँचे। वे लोग वहाँ नान करके तरोताज़ा हो गए। फर हनुमान
जंगल से कुछ फल ले आए ज ह खाने के बाद उ ह ने उस रात वह पेड़ पर व ाम कया।
रात म उ ह ने ब त-से वषय पर बात क । हनुमान ने सु ीव व उसके भाई बाली के
ज म क कथा सुनने क इ छा क।
एक बार शीलावती नाम क एक प त ता ी थी। उसके प त उ तापस को कु रोग हो
गया ले कन वह अपने प त क ब त नेहपूवक दे खभाल करती रही। एक बार उसके प त
ने वे या के साथ संभोग करने क इ छा क । यह सुनकर शीलावती वच लत नह ई
और उसने नणय कया क प त क इ छा, चाहे कतनी भी अनु चत हो, पूरी करना ही
प नी का क है। चूं क शीलावती के प त क हालत ब त ख़राब थी और वह चलने म
असमथ था, उसने अपने प त को एक टोकरी म बैठाया और उसे सर पर रखकर एक वे या
के घर के लए चल पड़ी। माग म, वह एक मैदान से गुज़र रही थी, जहाँ मांड नाम के
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एक महान ऋ ष को झूठे आरोप म राजा क आ ा से सूली पर लटकाया गया था। ऋ ष
को यह दे खकर ब त बुरा लगा क कैसे उस भली ी का प त शोषण कर रहा है।
मांड ऋ ष ने शाप दे दया क सूय दय से पूव उसके प त क मृ यु हो जाएगी! शीलावती
ने यह सुना तो उसने तुरंत पलटकर शाप दे दया क अगले दन सूय दय ही नह होगा!
उसके प त त धम म इतनी श थी क वही आ जो उसने कहा था।
अगले दन अपने नयत समय पर सूय दय नह आ। जब सूयदे व का सारथी अ ण
उ ह लेने प ँचा तो उसने दे खा क सूयदे व अचल अव था म बैठे ह। उसने सोचा क सूयदे व
के तैयार होने तक, वह इं लोक घूम आएगा। वह जब इं लोक प ँचा तो उसने दे खा क
वहाँ के ार पु ष के लए बंद थे। इं ने अंदर अपनी अ सरा के साथ दरबार लगा रखा
था और उनका नृ य ना -मंचन दे ख रहा था। इं ने आदे श दया था क सफ़ य को
भीतर वेश करने दया जाए। उसी समय अ ण वहाँ प ँचा और उसे ये सब सुनकर नराशा
ई। उसका मन भी अंदर चल रहे ना मंचन को दे खने का करने लगा। उसने भीतर वेश
करने क एक तरक़ ब सोची। उसने ी का प धारण कया और चुपके से भीतर घुसकर
नृ यांगना म शा मल हो गया। परंतु इं ने, जो स दय का ज़बरद त पारखी था, तुरंत उस
समूह म स म लत ई नई अ सरा को दे ख लया। उसने अ य सभी नत कय को भेजकर,
अ ण को ार पर ही रोक लया जब वह भी उन नत कय के साथ बाहर नकलने वाला
था।
इं जस ी को चाहता उसे अपना बना लेता था और उसने अ ण के साथ भी वही
करने क को शश क । बेचारे अ ण को समझ नह आया क वह या करे! अंत म अ ण
को अपना भेद खोलना पड़ा। उसक स चाई सुनकर इं को ब त ग़ सा आया और उसने
अ ण को कहा क अ ण को पूरे दरबार को धोखा दे ने का दं ड भोगना पड़े गा। अ ण को
इं क बात माननी पड़ी और इं उसे बलात् अपने साथ ले गया। इस संयोग से एक सुंदर
बालक का ज म आ। परंतु अ ण उसे अपने साथ नह ले जा सकता था, इस लए इं ने
वह बालक, लालन-पालन के लए गौतम ऋ ष क प नी अ ह या को दे दया।
इस बीच, शीलावती क महान तप या के कारण सूय दय नह हो पाया। संपूण संसार म
अंधकार फैला रहा। अंत म, दे वता को इस व च थ त का कारण पता लगा। वे सब
मलकर उ तापस के पता अ के पास गए और उनक प नी अनसूया से ाथना क क वे
शीलावती से उसका शाप वापस लेने के लए कह। तब अनसूया के कहने पर शीलावती ने
अपना शाप वापस लया और फर सूय दय हो सका।
इधर जब सूयदे व ने अपने सारथी अ ण को खोजा तो उसका कह पता नह लगा।
उसके दे र से आने पर सूयदे व ब त ो धत ए। अ ण जब लौटा तो उसने चुपचाप अपना
थान लेने का यास कया ले कन सूय ने उसे दे ख लया और रोककर दे र से आने का
कारण पूछा। अ ण को ववश होकर सारी बात बतानी पड़ी। सूयदे व ने अ ण को मा तो
कर दया कतु उ ह ने भी अ ण का वह मनमोहक प दे खने क इ छा क जसने
इं का मन लुभाया था। अ ण ने सूय को ऐसा करने से मना कया कतु अंत म उसे सूय क
इ छा माननी पड़ी। फर जो होना था वही आ। सूय भी अ ण के मनोहर प पर मु ध हो
औ े े ी े ो े
गए और उ ह ने अ ण के ी प के साथ संभोग कया। उसके फल व प एक सुंदर
बालक ने ज म लया और उसे भी दे खभाल के लए अ ह या को दे दया गया। एक दन
जब अ ह या दोन ब च के साथ खेल रही थी तो उन दोन ने अ ह या के पीछे चढ़ने का
हठ कया। इस बात से अ ह या को ग़ सा आ गया और उसने कहा, “बंदर ! तुम य मुझे
इस तरह परेशान करते हो?”
उसी समय अ ह या के प त वहाँ आ गए। वे अपनी प नी के वहार से हो गए
और बोले, “य द यही तु हारी इ छा है, तो फर ये दोन बंदर बन जाएँ!”
ऋ ष के वचन अस य नह हो सकते! इस तरह, वे दोन बालक बंदर बन गए। अ ह या
को अपने य बालक क नय त पर ब त ख आ। ऋ षय का ोध अ पका लक होता
है, इस लए उ ह ने यह भी कहा दोन ही भाई अ यंत बलशाली ह गे।
इं ने उन दोन बालक के वषय म सुना तो उ ह अपने दरबार म बुलाकर शरण द । इं
से उ प न बालक का नाम बाली रखा गया य क उसक पूँछ ब त लंबी और बलशाली
थी। सूय से उ प न बालक का नाम सु ीव रखा गया य क उसक ीवा (गदन) ब त सुंदर
थी।
बाली और सु ीव के ज म से जुड़ी एक अ य कथा भी च लत है। एक बार सृ के
रच यता ा पृ वी पर आए और मे पवत पर, जसे पृ वी क धुरी माना जाता है, व ाम
के लए क गए। उस समय उनक आँख से एक अ ु बहकर धरती पर गरा जससे पृ वी
पर थम वानर का ज म आ। ा ने उसका नाम र रखा और उ ह ने कुछ समय
उसके साथ बताया। वह न हा वानर पवत पर खेलता और मनपसंद फल खाता था। वह
त दन सं या के समय लौटकर ा के चरण म पु प अ पत करता था। एक दन जब
र सरोवर से पानी पीने के लए झुका तो उसने जल म अपना बब दे खा। उसे लगा क वह
कोई श ु है, जो उसे पकड़कर पानी म ख चना चाहता है। वह अपने श ु पर हमला करने
के उ े य से पानी म कूद पड़ा। उसे पता नह क था क वह जा ई सरोवर था और जब वह
बाहर आया तो उसने दे खा क वह मादा वानर बन चुका है। उसका प अ यंत सुंदर व
मनमोहक बन गया और जब वह मादा वानर मे पवत पर खड़ी थी, उसी समय इं और
सूय ने उसे दे खा और वे दोन उसके त आस हो गए। उसी दन, पहले इं और फर सूय
ने नीचे आकर उसके साथ संभोग कया।
दे वता क संतान का ज म ब त ज द हो जाता है। अब उस मादा वानर के पास
सुनहरे रंग के दो बालक थे। दोपहर के समय जब वह उ ह सरोवर म नहला-धुला रही थी,
तब दोन ब च ने उस मादा वानर पर पानी छटका। व छ होने पर उसने दे खा क उसका
फर से लग प रवतन हो चुका है और वह दोबारा र बन गई।
र दोन ब च को लेकर ा के पास प ँचा। उ ह ने इं के पु का नाम बाली और
सूय के पु का नाम सु ीव रखा।
ा ने क कंधा का रा य र को दे दया। क कंधा एक सघन वन था जसम चुर
मा ा म फल के पेड़ थे और उसम अनेक व य पशु रहते थे। ा ने कई अ य वानर क
रचना क तथा उ ह उड़ने व बोलने क श दान करके उनसे रीछ के साथ मै ी करने के
ो ई े े े े ो े े
लए कहा। दोन भाई सदा एक साथ रहते थे। वे जब बड़े ए तो उनके पता ने उ ह सब
कार क व ा दान क । र क मृ यु के बाद, उसके सहासन के ब त-से दावेदार आए
कतु बाली ने उन सब त ं य को मार डाला अथवा उ ह अपने वश म कर लया और
न ववाद प से संपूण वानर जा त का राजा बन गया। उसने वयं को क कंधा के सम त
वृ तथा मादा वानर का एकमा वामी घो षत कर दया। उसका भु व न ववाद था
और वानर के बीच सफलतापूवक अपना भु व अ जत करने के कारण, बाली कभी कसी
के साथ अपने अ धप य का फल नह बाँटता था। परंतु, अपनी दयालु वृ के कारण वह
अपने छोटे भाई सु ीव के साथ अपना सब कुछ बाँटता था। बदले म, सु ीव जो बाली का
सहायक भी था, पूरी न ा से अपने बड़े भाई क सेवा करता था। इं ने अपने पु बाली को
छोटे -छोटे सुनहरे रंग के कमल के पु प क वजय माला द थी जसे पहनने के बाद बाली
अजेय हो गया था।
एक बार बाली ने दे वता और असुर के बीच हो रहे समु -मंथन के बारे म सुना तो
वह उसे दे खने के लए वहाँ चला गया। उसके साथ सभी लोग समु -तट पर प ँच गए। जब
उसने दे खा क उसके पता इं एवं अ य दे वता कमज़ोर पड़ रहे ह, तो कहते ह, बाली ने
समु -मंथन वयं अपने हाथ म ले लया। बाली इतना श शाली था क जस काय को
दे वता और असुर मलकर नह कर सकते थे, बाली म अकेले ही उस काय को पूण कर दे ने
का साम य था। इं अपने पु का परा म दे खकर ब त स न आ। दे वता ने बाली को
उनक सहायता करने के बदले वरदान दया क जो भी बाली से लड़ने जाएगा उसका आधा
बल कम होकर, बाली को ा त हो जाएगा।
मंथन के दौरान, समु म से अनेक मू यवान व तुएँ नकल । उनम दो सुंदर अ सराएँ
भी थ । उनका नाम तारा और मी था। बाली ने तारा को अपनी पटरानी बना लया और
मी सु ीव क प नी बन गई। दोन भाई स नतापूवक अपने रा य लौट आए और उ ह ने
ब त समय तक शासन कया। इस बीच बाली का एक पु आ। उसका नाम अंगद था।
बाली भगवान शव का महान भ था और वह त दन आठ दशा म जाता और
सभी समु म नान करके शव क आराधना करता था। वह एक ही छलाँग म सात समु
लांघकर चा वल नामक पवत पर प ँच जाता था। वह तूफ़ान के वेग से चलता था। कोई
बाण उसक छाती को नह भेद सकता था। उसके छलाँग लगाने पर पवत डोलते थे और
धूल के बादल सम त दशा म छतरकर, भय से वषा नह करते थे। संपूण कृ त उससे
डरती थी। यहाँ तक क मृ यु के दे वता, यमराज भी उसके पास जाने से डरते थे। तूफ़ान
अपनी आवाज़ धीमी कर लेता था और उसक उप थ त म सह भी गरजने से हचकते थे।
कहते ह, एक बार बाली ने दशानन रावण को उठाकर अपनी पूँछ म बाँध लया था!

ब ावान गुनी अ त चातुर।


राम काज क रबे को आतुर।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा
ॐ ी े
ॐ ी हनुमते नमः

चा रणे नमः

अ याय 8

सु ीव- म
सु ीव के म

बु बलम् यशो धैयम्


नभय वम् अरोगताम्
अजा म् वाक् पटु वम् च
हनुमत् मरणात् भवेत्।

हनु मान का मरण करने वाला व यात हो जाएगा


और उसे बु , बल और साहस क ा त होगी,
वह भय और रोग से मु हो जाएगा
तथा वा पटु ता म पारंगत हो जाएगा।

—हनुमन तो

सु ीव, हनुमान को अपने साथ लेकर क कंधा प ँच गया। वहाँ उसने हनुमान को बाली से
मलवाया और बताया कस कार हनुमान ने व य पशु से उसक र ा क थी। उसने
बाली से हनुमान क महानता का उ लेख भी कया। पहले तो बाली को हनुमान पर संदेह
आ य क उसने हनुमान को बचपन म मारने का यास कया था जससे वह बड़ा होकर
बाली से उसका सहासन न छ न ले, परंतु जब बाली को पता लगा क हनुमान अ छे गायक
ह तो उसने हनुमान को गाने के लए कहा। हनुमान ने वीणा उठाई और गाना आरंभ कर
दया। उनका संगीत सुनकर सारा दरबार परम आनंद म खो गया। संगीत के सुर जब दरबार
से बाहर प ँचे तो सभी वानर अपना काम छोड़कर हनुमान क आवाज़ से मं मु ध होकर
वहाँ आ गए। बाली भी ब त स न आ और उसने हनुमान को हमेशा के लए वहाँ रहने
क अनुम त दे द ।

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सु ीव हनुमान को क कंधा दखाने ले गया। जब वे ऋ यमूक पवत पर प ँचे तो
हनुमान उस थान के शां तपूण वातावरण से त ध रह गए और उ ह ने सु ीव से कहा क
वह थान न चय ही ब त प व है। सु ीव ने सहम त जताई ले कन खी वर म यह भी
बताया क उसके भाई बाली के लए वहाँ जाना व जत है। हनुमान ारा इसका कारण पूछने
पर सु ीव ने उ ह पूरी कथा सुनाई।
एक बार ं भ नाम का दै य ा से ब त-से वरदान ा त करने म सफल हो गया।
उनम से एक वरदान यह था क वह कसी भी श से नह मारा जाएगा। अनेक वरदान
मलने के बाद वह दे वता को परा त करने तथा पृ वी के राजा व ऋ षय को परेशान
करने के लए नकल पड़ा। उसके हाथ हमेशा लड़ने के लए उतावले रहते थे और उसे
कभी कोई अपने बराबर का त ं नह मल पाता था। जब लड़ने क उसक उ कट
इ छा, उसके लए असहनीय हो गई तो वह पाताल लोक से बाहर नकलकर, समु को
चीरता आ तट पर आ गया। उसने अपने स ग रेत म गड़ा दए और सागर क लहर को
दे खकर च लाया, “मुझसे लड़ो!” परंतु लहर पहले क तरह सफ़ आती-जाती रह । उ ह
ं भ के वहाँ होने या न होने से कोई फक नह पड़ता था।
समु के लंबे गीले हाथ फुफकारते ए ं भ के पैर को घेर रहे थे, मानो उसे चेतावनी
दे रहे ह क वह लौट जाए अथवा डू ब जाएगा। इसके बाद एक बड़ी-सी उफनती झागदार
लहर धीरे-धीरे उसके नकट आ गई। दं भ ने सोचा क पीछे हट जाने म ही उसक भलाई
थी।
उसके बाद वह शव के समान वेत बफ़ ले हमालय पवत पर गया। वह बफ़ से ढँ क
पहा ड़य पर तेज़ी से ऊपर चढ़ता आ अपने स ग से पवत के कनारे तोड़ता गया।
पवतराज हमवान ने अपना कठोर चेहरा उसक ओर मोड़ा और ं भ को चमकदार आँख
वाले गु़ सैल भसे क तरह दौड़ते ए दे खा। हमवान ने बफ़ और बहते पानी से बने वेत
व धारण कए ए थे तथा बफ़ का कमरबंद बाँधा आ था। वह दहाड़ती ई आवाज़ म
बोला, “इस प व दे श पर लड़ाई मत करो। मेरे शां त य लोग को य त प ँचा रहे
हो? श शाली लोग ोध नह करते य क हम पता है क शां त ही हमारा कवच है। अब
यहाँ से जाओ और मुझे चैन से रहने दो।”
उसका इतना कहना था क तभी, धुंध और बफ़ के एक वशाल बादल ने उसे ढँ क लया
और वह अ य हो गया। हमवान के साथ मानो वह पवत भी ग़ायब हो रहा था। हम और
बफ़ ली वषा ने ं भ को काटना और मारना आरंभ कर दया। वह च लाता आ वहाँ से
भागा तथा क कंधा के गुफा- ग पर प ँचने के बाद ही का।
उसने ग के आस-पास के वन के सभी फलदार वृ को उजाड़ दया। फर उसने
अपने वशाल सर से नगर पर ट कर मारी और गुराया। बाली ने बुज म आकर ं भ से
कहा क अपने ाण गँवाने से पूव उसके पास समय है क वह लौट जाए। ं भ ने उसे यु
के लए ललकारा। बाली ने अपनी व णम माला पहनी और दौड़ता आ ार से बाहर आ
गया। फर उन दोन के बीच भीषण ं आ जसम कोई कसी को परा जत नह कर
सका। अंत म, जैसे ही ं भ उसक ओर स ग लेकर दौड़ता आ, बाली ने अपने
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अलौ कक बल से उसके स ग पकड़ लए। उसने ं भ को ऊपर उठाया और गोल घुमाकर,
उसे धरती पर पटक दया। दै य के मुँह से कुछ दे र र क उ ट होती रही और फर अंत म
उसक मृ यु हो गई। परंतु बाली का ग़ सा शांत नह आ। उसने दै य के मृत शरीर को
उठाया और ब त र उछाल दया। ं भ का शव जाकर एक पहाड़ पर गरा, जहाँ मतंग
मु न का आ म था। दै य का शरीर मु न के ऊपर से गुज़रा जसके कारण उसके तन से
बहता र मु न के ऊपर भी गर गया। यान भंग होने के कारण मु न को ोध आ गया। वे
आ म से बाहर आए तो दे खा क वृष पी दै य का वशाल एवं र रं जत शरीर सामने
पड़ा था।
उ ह ने चेतावनी भरे वर म घोषणा कर द , “ जसने भी यह घृ णत कृ य कया है, य द
उसने इस पावन थल से चार मील के भीतर वेश कया तो उसके सर के हज़ार टु कड़े हो
जाएँगे! जतने भी वानर इस थान पर रहते ह और उसक जा त के ह, वे सब भी तुरंत इस
थान को छोड़ द अ यथा वे प थर बन जाएँगे!”
सु ीव ने हनुमान से कहा, “यही कारण है क मेरा भाई इस मनोहर थान पर आने का
साहस नह करता।” हनुमान ने एक ण के लए सोचा और फर सु ीव को कहा क यही
पवत एक दन उसका घर बनेगा। सु ीव के ज़ोर दे ने के बाद भी, हनुमान ने इसके आगे कुछ
भी कहने से मना कर दया।
ं भ का एक म था। उसका नाम मायावी था और वह असुर के श पी मय दानव
का पु था। वह अपने म ं भ क मृ यु का समाचार सुनकर ो धत हो गया तथा उसने
उसक मृ यु का तशोध लेने का ण ले कया। एक दन उसने क कंधा आकर बाली को
यु के लए ललकारा। बाली ने उसे वहाँ से भगा दया। उस समय सु ीव भी बाली के साथ
था परंतु बाली ने सु ीव को वहाँ से चले जाने के लए कहा। इस तरह माग म, सु ीव क
भट हनुमान से ई थी।
बाली को व वास था क मायावी सदा के लए भाग गया था, ले कन वह दै य इतनी
सरलता से हार मानने वाला नह था। वह एक बार फर अ -रा के समय र जमा दे ने
वाली भयंकर ँकार करता आ क कंधा के ार पर आ गया। वानर ने उसे भगाने का
यास कया ले कन उसने, उ ह म खय क तरह वहाँ से भगा दया। फर वे वानर अपने
राजा के पास गए। बाली बाँह चढ़ाता आ ारा के बाहर आया ले कन दानव वहाँ नह था।
अपने पता क जा ई कला म पारंगत, वह दै य ओझल हो गया था। बाली ने च लाकर
कट होने के लए कहा। “तुम कायर हो! सामने आकर एक वीर क भाँ त मुझसे यु य
नह करते? छपकर रहने से या लाभ होगा?”
यह सुनकर मायावी सामने आ गया। उसने दे खा क बाली के साथ सु ीव और हनुमान
भी आए थे। वह हँसकर बोला, “तुम ऐसे कैसे वीर हो, जो मुझसे अकेले नह लड़ सकते
और तु ह इसके लए दो अ य लोग क सहायता चा हए?”
बाली ने हनुमान और सु ीव को लौट जाने के लए कहा और बोला क यह लड़ाई,
उसके और मायावी के बीच क है। हनुमान ने उसक बात मान ली ले कन सु ीव ने लौटने
से मना कर दया।
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बाली ने मायावी से कहा, “यह हम दोन के बीच नणायक यु होगा। म तु ह यहाँ से
जी वत नह लौटने ँ गा।”
यह सुनकर मायावी उपहास करता आ हँसा और बोला, “म तु ह पहले मार डालूँगा
और उसके बाद तु हारे भाई और पु को मारकर क कंधा का राजा बन जाऊँगा!”
बातचीत म समय न न करके, बाली ने पूरी श से मायावी के ऊपर छलाँग लगा द ।
इसके बाद दोन के बीच भीषण यु आ। अंत म मायावी को समझ म आ गया क उससे
एक बार फर अपने श ु के बल का आकलन करने म भूल ई थी। वह जंगल क ओर भाग
गया। बाली भी उसके पीछे चला गया। सु ीव को अपने भाई क चता थी, इस लए वह भी
उसके पीछे दौड़ा। बाली ने मायावी को पकड़ लया और वन के अंदर उनक एक और
ज़बद त मुठभेड़ ई। सु ीव को यह दे खकर ब त आ चय हो रहा था क दोन वीर बना
थके एक दन और एक रात तक लड़ते रहे। सुबह होते-होते, बाली ने दे खा क मायावी
थकने लगा था। उसने लड़ाई जारी रखी। वह कसी भी तरह मायावी को मार डालना
चाहता था। मायावी समझ गया क उसक पराजय होनी न चत है। वह भाग नकला तथा
एक गुफा म घुस गया। बाली भी उसके पीछे अंदर चला गया ले कन जाने से पूव उसने
सु ीव से कहा, “तुम मेरी यह ती ा करना। म उसे न चत प से मारकर लौटूँ गा। परंतु
य द कसी कारण से उसने मुझे मार दया तो फर तुम ती ा मत करना। तुम इस गुफा का
ार शला से बंद कर दे ना और अपने रा य लौट जाना अ यथा वह तु ह भी मार डालेगा।
याद रखना, य द वह मारा गया तो तु ह गुफा म से ध बाहर बहता दखेगा और य द म मारा
गया तो र बाहर बहेगा। इस लए, य द तु ह र बहता दखे तो गुफा का मुँह शला से बंद
करके अपनी र ा करना। तुम कसी भी तरह उसका मुक़ाबला नह कर पाओगे!”
सु ीव एक वष तक गुफा के ार पर खड़ा उ सुकता से अपने भाई के लौटने क ती ा
करता रहा। अंत म एक दन उसे गुफा के भीतर से एक भीषण गजना सुनाई पड़ी और
उसके तुरंत बाद, अंदर से र क धारा बहने लगी। सु ीव को व वास हो गया क वह
गजना उसके भाई बाली क अं तम पुकार थी और दै य ने अव य ही उसके भाई को मार
डाला है। र क धारा ने उसके संदेह क पु कर द । अपने भाई क मृ यु के ख म
सु ीव ब त रोया, फर उसने एक वशाल शलाखंड रखकर गुफा का ार बंद कर दया।
इसके बाद वह अपने रा य आ गया जहाँ सब लोग उनके वजयी होकर लौटने क ती ा
कर रहे थे। पूरी कथा सुनकर सभी वानर ब त रोए। सु ीव वषाद म ऐसा डू बा क वानर
को लगा क उनका रा य न हो जाएगा। मं य ने सु ीव से अनुरोध कया क वह राजा
बन जाए और अंत म सु ीव को उनक बात माननी पड़ी।
इस घटना का पूण स य यह था क बाली ने मायावी दै य को मार डाला था कतु उस
दै य ने मरते समय भी अपनी माया से अपने शरीर से नकली ध क धारा को र म
बदल दया, जससे दोन भाइय म फूट पड़ गई। जब बाली गुफा के मुख तक प ँचा तो उसे
गुफा का ार बंद दे खकर ब त आ चय आ। उसे व वास नह आ क उसके भाई ने
इतनी नममता से उसके साथ व वासघात कया। वह इस न कष पर प ँचा क सहासन
पाने के लालच म सु ीव ने यह ू र कृ य कया होगा। अपने अद य बल से वह शला को
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ध का दे कर, तूफ़ान क भाँ त गुफा से बाहर नकल आया। उसका मन अपने भाई के त
अ नयं त ोध से भरा आ था। वह क कंधा के ार पर प ँचा और ोध म भरकर ज़ोर
से गरजा। वहाँ के नाग रक उसक गजना को सुनकर काँप उठे । वे भागकर सु ीव के पास
गए और उसे बताया क रा य के ार पर बाली खड़ा था! सु ीव को अपने कान पर
व वास नह आ। उसने अव य ही गुफा से र को बहते दे खा था! या यह उस मायावी
दानव क कोई चाल थी? इससे पहले क वह ार तक प ँच पाता, बाली वयं दौड़ता आ
दरबार के भीतर आ गया। उसके मुँह से झाग नकल रहे था। उसने बना कुछ कहे,
सहासन पर बैठे सु ीव को तनके क तरह उठाया और सैकड़ गज़ र फक दया।
“कृत न! !” वह च लाया। “तूने सोचा क तू मुझे मारकर रा य वयं हड़प लेगा।
तू उस मायावी से भी सौ गुना अ धक है। य द अपने ाण बचाना चाहता है तो यहाँ से
चला जा। य द मने तुझे फर कभी आस-पास दे ख लया तो तेरा अंत न चत है!”
ऐसा कहकर वह सु ीव क ओर दौड़ा तथा इससे पहले क सु ीव अपने थान से खड़ा
हो पाता, बाली उसके ऊपर कूद गया तथा सभासद तथा अ धका रय के सामने उसे मारने
लगा। सु ीव ने उसे समझाना चाहा क वह नद ष है ले कन बाली ने उसे बोलने का अवसर
नह दया। बाली को इतना ो धत दे खकर, कसी ने उसे रोकने का साहस नह कया।
उसने सु ीव को गदन से दबोच लया और वह उसका सर प थर पर मारने वाला था क
सु ीव उसक पकड़ से छू ट नकला और वहाँ से भाग गया। बाली ने उसका पीछा कया।
अंत म, सु ीव ऋ यमूक पवत पर चला गया जो उसने कुछ समय पूव हनुमान को दखाया
था। बाली को अब इस बात पर ोध आ रहा था क वह उस पवत पर नह जा सकता था।
उसने ग़ से म पेड़ उखाड़ लए और उ ह अपने भाई पर फकने लगा। सु ीव ख और ग़ से
से बुरी तरह त था। वह एक गुफा म छप गया तथा अपने घाव भरने तक यह सोचता रहा
क उसे या करना चा हए।
बाली, लौटकर क कंधा आ गया और फर से शासन करने लगा। सु ीव को दं ड न दे
पाने के कारण हताश बाली ने सु ीव के ब च को मार डाला और सु ीव क प नी मी को
बलपूवक अपने पास रख लया। इस तरह सु ीव अपना रा य और अपनी प नी दोन गँवा
बैठा!
जस समय सु ीव, अपने भाई के पीछे उस गुफा तक गया था, उस समय हनुमान ने
क कंधा छोड़ने का नणय कया और वन म तप या करने चले गए। उ ह शी ही पता
लग गया क उनका म त क शांत और नयं त था। वे सचमुच कसी मु न जैसे दखने
लगे।
उस दौरान बाली, सु ीव का पीछा कर रहा था। परंतु सु ीव ने ऋ यमूक पवत पर शरण
ले ली, जहाँ बाली का वेश व जत था। बाली उसे पकड़ न पाने के कारण इतना ो धत हो
रहा था क उसने वहाँ के वृ उखाड़कर सु ीव पर फकने शु कर दए। उनम से एक वृ
हनुमान के सामने आकर गरा। उस समय हनुमान यान म लीन थे। पेड़ गरा तो हनुमान ने
आँख खोल ल । उ ह ने कुछ पल सोचा और फर उ ह लगा क जो कुछ हो रहा था, वह
सब उ ह ने पहले ही जान लया था! उनके म को क कंधा से बाहर नकाल दया गया
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था और उसने ऋ यमूक पवत पर शरण ली थी। वे बना समय गँवाए, तुरंत सु ीव से मलने
प ँचे और उसे दलासा द ।
“ चता मत करो सु ीव! स य क जीत होगी। अभी आपका समय ठ क नह है, ले कन
अ छा समय आने वाला है। ई वर का यान करो तथा अपने भाई के त मन म े ष क
भावना मत रखो। सब ठ क हो जाएगा।”
सु ीव ने हनुमान क बात मान ली और वे दोन अपना समय उसी पवत पर बताने
लगे। ज द ही, उनके कुछ अ य म भी वहाँ उनके पास रहने लगे।
बाली अपने भाई को मा नह कर सका तथा त दन वह ऋ यमूक के सामने वाले
पवत पर चढ़कर अपने भाई को अपश द कहता, उसे डराता-धमकाता और अपने बल का
दशन करता था। वह चीख़ता, च लाता, अपनी छाती पीटता, दाँत कट कटाता और
अपने भाई को कोसता रहता था। जैसा क पहले कहा गया है, बाली को संसार के सभी
समु म नान करने क आदत थी। वह छलाँग लगाकर ब त सहजता से एक समु से
सरे समु तक चला जाता था और नान करता था। अपनी छलाँग के दौरान वह जब भी
ऋ यमूक पवत के ऊपर से गुज़रता और य द सु ीव उसे नीचे खड़ा दखाई दे जाता तो वह
अव य ही उस बेचारे के सर पर ठोकर मारकर नकलता था। हनुमान ने बाली क इस गंद
आदत को हमेशा के लए रोकने का फैसला कया। एक दन जब बाली पवत के ऊपर से
गुज़रा तो हनुमान ने उछलकर बाली क पूँछ पकड़ ली और उसे नीचे ख चने लगे। उनक
मंशा बाली को पवत पर गराने क थी ता क मु न के शाप से बाली क मृ यु हो जाए। परंतु
बाली अ यंत बलशाली था और हनुमान के लए वह मुक़ाबला कड़ा था। हालाँ क हनुमान
के पास भी असी मत श याँ थ कतु उनके योग से पूव हनुमान को उन श य का
मरण करवाया जाना आव यक था। बाली समझ गया क उसक पूँछ पकड़ने वाला
अव य ही हनुमान है य क सु ीव म ऐसा करने का साहस नह है। उसने सोचा क
हनुमान को अपने साथ क कंधा ले जाकर वह मार डालना ठ क होगा। परंतु बाली और
हनुमान दोन ही बराबर के वीर थे और इस लए दोन म कसी क चाल सफल नह हो
सक । अंत म उन दोन ने समझौता कर लया। हनुमान ने बाली से कहा क वे उसक पूँछ
तभी छोड़गे जब बाली यह वचन दे क फर कभी सु ीव को परेशान नह करेगा। बाली ने
हनुमान क बात इस शत पर मानी क सु ीव भी फर कभी क कंधा नह आएगा और न
ही सहासन पर अपना दावा करेगा। इसके बाद हनुमान ने बाली को छोड़ दया। बाली भी
इस वचन से स न हो गया य क उसे यह भी भय था क कह हनुमान, क कंधा रा य
के दावेदार न बन जाएँ।
वा मी क कृत रामायण म हनुमान का वेश ‘ क कंधा कांड’ म होता है। ‘कांड’ के
आरंभ म, जहाँ राम के साथ उनक मह वपूण भट होती है, हनुमान क भू मका मह वपूण
नह है। सु ीव को पता ही नह था क हनुमान उसके भाई बाली से कह अ धक बलशाली
थे। य द सु ीव को यह पता होता तो वह सहायता के लए राम के पास न जाकर, हनुमान
को ही बाली से लड़ने के लए कह दे ता। परंतु दोन ही हनुमान क वल ण श य से
अन भ थे और इसी लए सु ीव को राम के पास जाना पड़ा। वा तव म, य द ऋ षय ने
ो ो ो ी ी ो ी
हनुमान को शाप न दया होता तो रामायण क पूरी कथा ही अलग होती, य क तब
मा त ने अकेले ही वह यु लड़ लया होता।

भु च र सु नबे को र सया।
राम लखन सीता मन ब सया।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

रामभ ाय नमः

अ याय 9

रामदास
स मुठभेड़

ॐ नमो हनुम ते,


ावताराय, व व पाय,
अ मत- व माय
कटपरा माय, महाबलाय,
सूयको ट सम भाय,
राम ताय नमो नमः।

राम त और के अवतार,
हनु मान को णाम,
जो समूच े ांड के आकार के हो सकते थे
जनके पास अ त श याँ थ ,
जो शानदार कारनामे कर सकते थे,
जनके पास अ व वसनीय बल था,
और जो हज़ार सूय के समान दे द यमान थे।
—हनुमान क तु त

इसी तरह कई माह बीत गए। सु ीव सदा अपने रा य व प रवार क त को लेकर खी


रहता था ले कन हनुमान हमेशा उसे अ छ सलाह दे ते थे। इस बीच, नय त अपने ज टल
धागे गूँथ रही थी तथा समय धीरे-धीरे, कतु न चत ग त से, सु ीव के अनुकूल होता जा
रहा था। एक बार जब हनुमान, सु ीव तथा कुछ अ य वानर एक शला पर बैठे ए थे तो

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उ ह ने पवत के ऊपर से एक रथ को द ण दशा म जाते दे खा। रथ म एक सुंदर ी और
एक वशालकाय पु ष सवार थे।
वह ी दयनीय ढं ग से रो रही थी। ी ने, जैसे ही इन लोग को नीचे बैठे दे खा, उसने
अपने ऊपरी व का एक टु कड़ा फाड़ा और अपने आभूषण उस व म लपेटकर नीचे
गरा दए। वानर ने वह व उठा लया और उसे सँभालकर अपनी गुफा म रख लया।
र अयो या म, जो वहाँ क राजधानी थी, व च घटनाएँ हो गई थ । उस रा य का
राजा दशरथ था और उसके चार पु थे - राम, ल मण, भरत और श ु न। राम, भगवान
व णु के अवतार थे और अ यंत वल ण पु ष थे। उनका ववाह वदे ह नरेश क पु ी
सीता से आ जो, अपने स दय तथा अ छे वहार के लए व यात थी। अपनी वृ ाव था
के कारण दशरथ ने राम को राजा बनाने का फैसला कया। य प, ऐसा होने से पूव, कुछ
ग़लतफ़ह मय के चलते, राजा दशरथ को अपनी मनपसंद रानी कैकेयी को दए वचन का
पालन करना पड़ा, जसके अंतगत राम को चौदह वष का वनवास तथा कैकेयी के पु भरत
को अयो या क राजग दे ना न चत आ। हालाँ क राजा ने रानी को दो वरदान ब त
पहले दए थे, परंतु उस रानी ने उन वरदान को माँगने का यही उ चत अवसर समझा। राजा
क इन माँग को पूरा करने म बलकुल च नह थी कतु जब कैकेयी ने आ मह या करने
क धमक द तो राजा को उसक बात माननी पड़ी। जब राम को इस बात का पता लगा तो
उ ह ने रा य को यागकर अपने पता का वचन नभाना सहष वीकार कर लया। उनक
प नी सीता और भाई ल मण ने भी उनके साथ वन म जाने का हठ कया और फर तीन
चुपचाप वन के लए थान कर गए। राजा दशरथ से वयोग का ख सहन नह आ और
उसक मृ यु हो गई।
जस समय यह सब आ, उस समय कैकेयी का पु भरत वहाँ मौजूद नह था। लौटने
के बाद जब उसे इस बात का पता लगा तो उसे अपनी माँ पर ब त ग़ सा आया और उसने
सहासन वीकार करने से मना कर दया। वह अपने भाई राम से ब त ेम करता था। वह
उनके पीछे वन म गया और उनसे वापस चलने का आ ह करने लगा। परंतु राम ने उसक
बात नह मानी और उसको कहा क अपने पता क आ ा का पालन करना उनका धम है।
भरत अ न छा से लौट आया ले कन उसने अपने भाई क राजग पर बैठना वीकार नह
कया। उसने राम क पा काएँ सहासन पर रख द और वयं नगर के बाहर अपने भाई क
तरह कु टया बनाकर तप वी का जीवन जीने लगा।
इस बीच राम, ल मण और सीता अपना समय वन के आस-पास घूमते और ऋ ष-
मु नय से मलते ए बताने लगे। भा य से, उनके वनवास के अं तम वष म लंका के
रा सराज, रावण क सीता पर पड़ गई और उसे सीता से ेम हो गया। वह सीता का
अपहरण करके उ ह अपने साथ लंका ले गया। ऋ यमूक पवत के ऊपर से गुज़रते समय
सीता ने ही अपने आभूषण क पोटली बनाकर नीचे फक थी, जहाँ हनुमान तथा सु ीव
बैठे ए थे।
इधर, राम परेशान हो गए और उ ह समझ नह आ रहा था क वे सीता को कहाँ खोज।
ल मण ने राम को दलासा द और वे दोन सीता को खोजते ए एक थान से सरे थान
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घूमते रहे। माग म उनक भट एक वृ ा तप वनी शबरी से ई, जसने उ ह सु ीव नाम के
वानर से मलने का सुझाव दया। इस बात को यान म रखते ए वे दोन भाई, सु ीव क
तलाश म ऋ यमूक पवत क ओर जा रहे थे।
वा मी क रामायण म उ ले खत, राम व हनुमान क सु स भट से पूव, हम एक
अ य ब त सुंदर कथा के बारे म जानगे, जसम बताया गया है क राम और हनुमान क भट
बचपन म ही हो गई थी।
यह जानते ए क भगवान व णु ने राम के प म पृ वी पर अवतार लया है, भगवान
शव के मन म राम के दशन करने और उनक बाल-लीला क इ छा जागृत ई। उ ह ने
महल के भीतर वेश करने के लए अनेक प धारण कए। उ ह ने राम को दे खने के लए
यो तषी, भ ु और भाट का प भी धारण कया, कतु उनके सभी यास असफल हो
गए। अंत म उ ह ने मदारी का प धारण करके अपने साथ एक बंदर ले जाने का फैसला
कया। इसके लए शव, अंजना क गुफा म गए और अंजना से उसके पु को अपने साथ
भेजने क ाथना क । अंजना ने अपने इ दे व को पहचान लया और उ ह णाम करके
हनुमान को उनके सम लाकर खड़ा कर दया। मा त को भी शव ब त प र चत-से लगे।
उनके म त क म एक वचार क धा, “ये और म एक ह!”
शव ने शशु वानर के गले म र सी बाँधी और ऐसा करने के लए उससे मा भी माँगी।
वे अयो या म जहाँ भी गए, उ ह दे खने के लए लोग क भीड़ उमड़ पड़ी। मा त ने अपने
चातुयपूण करतब से सबको मु ध कर दया। जब वे राजमहल के ार पर प ँचे तो ारपाल
ने उ ह कठोरता से लौट जाने को कहा। शव, मदारी का प धारण कए वह खड़े डम
बजाते रहे। महल के अंदर से राम ने, जो उस समय सफ़ केवल चार वष के थे, डम क
आवाज़ सुनी तो उसे दे खने का हठ करने लगे। ववश होकर दशरथ ने मदारी को महल के
भीतर बुलाने का आदे श दे दया। महल के ांगण म दोन ने मलकर राजकुमार को अपना
तमाशा दखाए। यह कोई साधारण तमाशा नह था, य क डम बजाने वाले, वयं नृ य
के दे वता नटराज थे, जो उस समय साधारण मदारी के प म नाच रहे थे। भगवान व णु,
जो सारे संसार को अपनी धुन पर नचाते ह, स नतापूवक ताली बजा रहे थे। बंदर के
करतब के अ त र , उनका कसी अ य बात पर यान नह था। वे अपनी बड़ी-बड़ी आँख
से मदारी और नाचते ए बंदर को दे ख रहे थे। दरबार म राजगु व स के अ त र कसी
को इस रह य का पता नह लगा। व स ने आदरपूवक शव को णाम कया।
नाच समा त होने के बाद, मदारी और बंदर को अनमोल उपहार दए गए कतु जब वे
जाने लगे तो राम रोने लगे और उ ह ने इस बात के लए हठ कया क उस बंदर को वह
रहने दया जाए। राम क माता को मदारी से यह कहते ए संकोच हो रहा था क वह
अपनी आजी वका के साधन को वह छोड़ जाए। तभी मदारी अ य हो गया और बंदर
उछलकर राम क गोद म आ गया। उसके बाद से हनुमान, राम के साथ रहने लगे। दन के
समय, वे राजकुमार क सेवा करते और उनके साथ खेलते थे। वे उनक गद लेकर आते,
पतंग क डोर सुलझाते तथा राजकुमार के चौसर खेलते समय, हनुमान उनको पंखा झलते
थे। वे नद पर उनक नाव चलाते और सरयू नद म नान करते समय राजकुमार क र ा
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करते थे। धनु व ा के अ यास के दौरान, हनुमान उनके बाण लेकर आते और पेड़ पर
चढ़कर उनके लए फल तोड़ते थे। इसके पुर कार व प, हनुमान को राम के साथ उनक
श या पर सोने, उनक थाली का बचा आ भोजन खाने तथा उनके कंधे पर बैठकर घूमने
क अनुम त थी। गु व वा म ारा अपने य क र ा हेतु राम को अपने साथ वन ले
जाने तक हनुमान राम के साथ उनके पालतू पशु बनकर रहे। वन को जाते समय, राम ने
हनुमान को धीरे-से कहा क वे क कंधा जाकर सु ीव क सेवा कर तथा राम के वहाँ आने
क ती ा कर।
वा मी क ारा लखी कथा म राम और ल मण क उपमहा प क या ा का वणन है
तथा उनक शबरी नामक भीलनी का भी उ लेख है, जसने राम को सु ीव के पास जाने का
सुझाव दया था। सु ीव, हनुमान तथा अपने अ य मं य के साथ एक वृ के नीचे बैठा था
जब उन लोग ने राम और ल मण को पवत के ऊपर आते दे खा। सदा क भाँ त,
ग़लतफ़ह मय से त सु ीव भयभीत हो गया। उसे लगा क अव य ही बाली ने उसे मारने
के लए उन दोन को वहाँ भेजा होगा। हनुमान ने पवत क चोट पर चढ़कर दे खा क वे
दोन ऊपर ही आ रहे ह। राम को दे खते ही हनुमान उ लास से भर उठे परंतु वे उसका
कारण नह बता सकते थे। हनुमान को लगा क उ ह ई वर के दशन हो गए। उ ह ने अपने
दोन हाथ सर के ऊपर रखकर राम को णाम कया। फर हनुमान ने सु ीव से कहा क
उ ह इस बात का व वास है क उन दोन को बाली ने नह भेजा है और वे कसी बुरी नीयत
से वहाँ नह आए ह। परंतु सु ीव को इस बात पर व वास नह आ। उसने हनुमान को वेश
बदलकर उन दोन के वहाँ आने का उ े य पता करने भेजा। हनुमान ने एक युवा ा ण का
प धारण कया और दोन भाइय से मलने प ँच गए। राम और हनुमान क इस भट के,
न केवल हनुमान के लए अ पतु आगामी युग म सम त भ के लए, रगामी प रणाम
होने वाले थे।
य ही हनुमान, राम व ल मण के पास प ँचे, उ ह इतनी स नता ई जसका वणन
नह कया जा सकता। हनुमान का मन साफ़ और शु था तथा उनके मन म कसी तरह
का संदेह उ प न नह आ। उस समय, पंछ सामा य क अपे ा अ धक मधुरता से चहक
रहे थे। द ण दशा से आने वाली मंद, शीतल एवं सुगं धत हवा बह रही थी, जो एक कार
से हनुमान के पता का आशीवाद था। वृ से लपट बेल मानो उनके चरण म पु प अ पत
कर रही थ । उ ह एक बार भी ऐसा महसूस नह आ क यही वह घटना है, जहाँ से उनके
जीवन म नया मोड़ आएगा और यह क उनक भट अपने वामी से होने वाली है जनक
सेवा म फर उ ह पूरा जीवन बताना है!
हनुमान, एक छलाँग म दोन भाइय के नकट आ गए और फर वेश बदलकर उनके
सामने प ँचकर उ ह णाम कया।
हनुमान के व के अनेक पहलु म से उनका सव े गुण उनक वा पटु ता थी,
जसके कारण वे अपने वामी राम को अ यंत य और आकषक लगते थे। हनुमान जब
पहली बार दोन भाइय के पास प ँचे तो उ ह ब त अ छा लगा तथा बु , ववेक, वचार
और वा पटु ता के उनके सभी गुण उभर आए। हनुमान ने उन दोन को णाम करके मृ व
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सुखद वाणी म उ ह संबो धत कया। वा मी क ने रामायण म इसका ब त सुंदर ववरण
दया है।
“अद य बल, अचल श , कठोर ण एवं वल ण प वाले आप दोन तप वी, इस
े म कस योजन से आए ह? आपको दे खने से लगता है क आप कोई राज ष अथवा
दे वगण ह। ऐसा लगता है मानो आप कुछ खोज रहे ह। आपके आने से इस झल मलाते
जल सरोवर का स दय और बढ़ गया है। आप दोन कमल जैसे ने वाले तथा
जटाजूटघाारी तीत हो रहे ह! आप दोन वीर वगलोक से आए ए लगते ह!”
इतना कहने पर भी दोन भाइय को शांत खड़ा दे खकर हनुमान ने उ ह अपना प रचय
दया। “म एक वानर ँ और मेरा नाम हनुमान है। मुझे सु ीव नामक स णी वानर ने आपके
पास भेजा है। वे आपसे म ता करना चाहते ह और उ ह ने मुझे आपसे बातचीत करने के
लए भेजा है।” वा तव म, यह अं तम प ांश ववेक हनुमान ने वयं ही जोड़ दया था
य क उ ह ऐसा लग रहा था क वे दोन भाई सु ीव क सहायता करने म समथ ह।
वा मी क ने हनुमान को आदश व ा के प म तुत कया है, ज ह ने अपने श द
के जा और कौशलपूण अ भ से अजनबी राम का दय जीत लया था।
ा ण के वहार से राम व मत हो गए और हनुमान क मधुर वाणी ने उ ह पूरी तरह
मु ध कर दया। राम ने ल मण से कहा क जसने वेद का अ यास कया हो, केवल वही
इस तरह क भाषा बोल सकता है। उ ह ने इस बात पर भी यान दया क हनुमान क
आकृ त, आँख , भँव उनके म तक व अंग म कसी कार का दोष नह था।
“हे ल मण! इ ह ने पूण, व श और वल ण भाषण दया है जो ाकरण क
से शु , धारा वाह और सुनने म मधुर था। कोई श ु, जसके हाथ म तलवार हो, वह भी
इस भाषण से भा वत ए बना नह रह सकता।”
राम व हनुमान के मन म एक सरे के त बनी थम छ व, पार प रक आकषण म
बदल गई जसने उन दोन को जीवनभर के लए न वाथ सेवा, याग एवं न ापूण गाथा म
बाँध दया। इसके बाद महाका म ई सभी घटनाएँ उ ह नकट ले आ जससे उनके बीच
ेम, शंसा और तालमेल गाढ़ होता गया।
इस ण के बाद से, हनुमान ने राम को अपना इ मान लया। वे केवल को राम को ही
परमे वर मानते थे। हनुमान का म त क और बु पूण प से राम के त सम पत थे।
अपने वामी के त न वाथ सेवा और एक न समपण भरे जीवन ने हनुमान के
आ या मक उ थान को व रत कर दया। संसार के भ मय सा ह य म राम के त
हनुमान क भ क , कसी से बराबरी नह क जा सकती। वह सदै व संसार के सबसे
प व और सव े भ माने जाएँगे। वा मी क कहते ह क अ यंत सामा य ढं ग से लया
गया राम का नाम भी, हनुमान क आँख म हष के आँसू लाने और उ ह अपने इ के सम
करब होने के लए पया त था।
ल मण ने हनुमान से कहा, “हम कोसलनरेश महाराज दशरथ के पु ह। ये महाराज
के ये पु तथा मेरे बड़े भाई राम ह और म इनका अनुज ल मण ँ। ठ क उसी समय,
जब इनका रा या भषेक होने वाला था, नय त क अ य चाल के कारण इ ह इनके
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रा या घकार से वं चत कर दया गया और फर ये अपनी प नी सीता और मुझे साथ लेकर
वन म रहने लगे। इनक प नी दे वी ल मी का वा त वक प ह तथा उनका सही थान
आभूषण एवं सुख-सु वधा से यु राजमहल म है। परंतु उ ह ने भी राम के साथ वन म
रहने का न चय कया। भा य से, एक रा स, जसके वषय म हम पता नह है, सीता का
हरण करके अपने साथ ले गया है। हम महान सा वी शबरी ने बताया क हम वानर के
मु खया सु ीव का सहयोग लेना चा हए य क वही हमारी इस काय म सहायता कर
सकगे।”
ल मण ने यह भी कहा क सु ीव का नाम उ ह कबंध नाम के दै य ने भी बताया था
जसे उ ह ने शाप से मु कया था।
“हम यह जानकर सचमुच ब त स नता ई क आप सु ीव के मं ी ह। ऐसे त के
अ भवचन ारा महाराज के सभी योजन पूण हो जाएँगे। मेरे य भाई, इस रा य के
शासक ह कतु नय त क ू रतावश इ ह भ ु क तरह जीवनयापन करना पड़ रहा है।
इनक प नी सीता को खोजने म, हम आपके वामी सु ीव क सहायता लेने म स नता
होगी।”
हनुमान ने कहा, “सु ीव भी उसी मुसीबत म ह, जसमे आपके भाई फँसे ह। सु ीव के
भाई ने उनका रा य और प नी दोन छ न लए ह। सु ीव को रा य से न का सत कर दया
है, जसके कारण उ ह ने इस पवत पर शरण ली ई है। वे अव य सीता को खोजने म
आपक सहायता करगे।”
ल मण ने राम से कहा, “भैया, लगता है हम लोग क भट सही समय पर सही
से ई है। हम इनके साथ चलकर सु ीव से मलना चा हए।”
राम ारा न वाथ भाव से रा या धकार के याग क कथा सुनकर हनुमान के मन म
उनके लए जो शंसा का भाव था, वह आदर और ेम म बदल गया। वे समझ गए क राम
कोई साधारण मनु य नह ह ब क महान एवं पूजनीय ह।
राम सहष सु ीव से मलने के लए तैयार हो गए कतु हनुमान जानते थे क वे दोन
भाई ऋ यमूक पवत क असंभव चढ़ाई नह चढ़ सकगे। उ ह ने फर से अपना वानर प
धारण कर लया और दोन भाइय को अपने एक-एक कंधे पर बैठाकर छलाँग लगाते ए
पवत शखर पर चढ़ गए जहाँ सु ीव अपने अ य मं य के साथ बैठा आ था।
राम और ल मण को सु ीव के सामने धरती पर उतारते ए हनुमान ने कहा, “ये
इ वाकु वंशज राम और इनके भाई ल मण ह। ये दोन महाराज दशरथ के पु ह। अपनी
प नी कैकेयी को दए वचन क र ा हेतु दशरथ ने राम को वनवास जाने को कह दया। ये
अपने भाई और प नी के साथ वन म चले आए। भा य से, कसी रा स ने इनक प नी का
हरण कर लया है और अब ये उ ह खोजने के उ े य से आपक सहायता हेतु यहाँ आए
ह।”
सु ीव, जो अब तक उ ह संदेहपूवक दे ख रहा था, आगे बढ़ा और और उसने राम के
हाथ को अपने हाथ म लेकर कहा, “यह मेरा सौभा य है क आप मेरी सहायता लेने यहाँ
आए ह। आइए, हम लोग म बन जाएँ तथा एक- सरे क सहायता करने का ण ल। य द
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आप मेरे भाई बाली को मारकर, मेरी प नी और मेरा रा य मुझे वापस दलाने का वचन दगे
तो म भी यह वचन दे ता ँ क आपक प नी को खोजने म आपक सहायता क ँ गा!”
राम ने सु ीव क पूरी कहानी सुनी, जो उनक अपनी कहानी से ब त मलती थी। फर
राम ने कहा, “धम ही स यता का नयम है। वह इ छा पर नह , अ पतु क पर आधा रत
होता है और वही सामा जक थरता को सु न चत करता है। जो धम क र ा करता है,
वही आय है और जो उसक र ा नह करता, वह रा स होता है। बाली पशु है, बबर जा त
का है तथा रावण से कसी भी तरह भ न नह है। वे दोन बल के योग को उ चत समझते
ह। दोन ज़बरद ती राजा बन बैठे ह और दोन ही ववाह क प व ता को नह मानते। य द
स यता को था पत करना है तो बाली और रावण जैसे लोग का संहार करना आव यक
है।”
हनुमान ने तुरंत अ न व लत क तथा राम व सु ीव को आमने-सामने खड़ा करके
अ न को सा ी बनाकर दोन के बीच मै ी सं ध था पत कर द । उ ह ने पु प अ पत करके
अ न क पूजा क तथा उसके तीन बार प र मा करके, एक- सरे क सहायता करने का
वचन दया। इसके बाद दोन ने एक- सरे को गले लगाकर पर पर शा वत मै ी का ण
लया।
सु ीव ने फूल से लद एक डाल तोड़ी और उसे धरती पर बछाकर राम के लए आसन
बना दया। हनुमान ने भी ल मण के लए ऐसा ही कया।
आराम से बैठने के बाद, सु ीव ने अपनी दयनीय कथा राम को सुनाई और राम से बाली
को मारने क ाथना क य क बाली ने सु ीव को अपमा नत कया था और उसके साथ
वहार कया था।
राम ने मु कराते ए कहा, “मेरे बाण सपदं त क तरह पैने ह और उनसे तु हारा भाई
त काल मारा जएगा। इस लए अब तुम मत घबराओ!”
सु ीव ने राम से कहा, “मुझे हनुमान ने बताया था, कस तरह वह रा स आपक य
प नी को उठाकर ले गया है। आप भरोसा कर क उसने आपक प नी को धरती या
आकाश म कह भी छपाया हो, म उ ह आपको वापस लाकर ँ गा। आप खी न ह ,
आपक य प नी अव य ही वापस मलेगी! मुझे लगता है क रावण ने ही उनका हरण
कया है। मेरे वचार से वह उ ह को अपने हवाई रथ म यहाँ से ले जा रहा था।”
राम को यह सुनकर आ चय आ। उ ह ने सु ीव को पूरी कथा सुनाने को कहा।
सु ीव ने कहा, “ जस समय म और हनुमान चार अ य लोग के साथ इस पवत पर बैठे
ए थे तो हमने ऊपर से एक रथ को जाते दे खा। मुझे लगता है क उसम रावण ही बैठा था।
उसने अपनी बाँह म एक अ यंत सुंदर ी को जकड़ रखा था। वह छटपटाते ए चला रही
थी, “राम! ल मण! मुझे बचाओ! मेरी र ा करो!”
“हम नीचे खड़ा दे खकर, उस ी ने ऊपरी व का एक टु कड़ा फाड़ा और उसम
अपने आभूषण बाँधकर, रावण क नज़र बचाकर नीचे फक दया। हमने वह पोटली
सँभालकर रखी है। म वह आपको दखाता ँ। आप उसे पहचा नए क या वे आभूषण
आपक प नी के ह।”
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यह सुनकर राम ब त उ सुक हो गए और उ ह ने सु ीव को तुरंत वह पोटली दखाने
को कहा। सु ीव, गुफा के भीतर गया और एक व का टु कड़ा लेकर आया तथा राम को दे
दया। राम ने उस व को खोला और उसम रखे अपनी य प नी के आभूषण दे खे।
उ ह ने उसे अपने दय से लगाया तो उनक आँख से आँसू बहने लगे। उनसे कुछ बोला
नह गया। अंत म उ ह ने वयं को सँभाला और ल मण को वे आभूषण दखाते ए बोले,
“ल मण या तुमने वदे हकुमारी के इन आभूषण को नह पहचाना?”
ल मण ने उ र दया, “म उनक पायल तो पहचानता ँ, ज ह म उनके चरण पश
करते समय सदा दे खा करता था, परंतु मने उ ह गदन से ऊपर कभी नह दे खा।”
“हे सु ीव!” राम ने कहा, “ या तुमने दे खा, वह रावण मेरी सीता को कहाँ ले गया
है? उसका अंत अब नकट है य क म अव य ही उसका पीछा क ँ गा और उसे मार
डालूँगा।”
सु ीव ने कहा, “य प म जानता ँ क वह लंका का राजा है, मुझे उसके नवास का
ठ क से पता नह है। परंतु म वचन दे ता ँ क मेरे वानर उसे खोज नकालगे और सीता को
वापस ले आएँगे। आपके जैसे े पु ष को इस तरह शोक करना शोभा नह दे ता।”
उसी समय, ब त र लंका म सीता क बा आँख फड़कने लगी और ऐसा ही क कंधा
म बाली को महसूस आ। इधर रावण के भी दस बाएँ ने फड़कने लगे। बाएँ अंग का
फड़कना, य के लए शुभ संकेत परंतु पु ष के लए अशुभ संकेत माना जाता है।
यह सुनकर राम ने शोक करना बंद कर दया और सु ीव के साथ उसके भाई के हाथ
ए अ याय क कथा सुनने लगे। फर उ ह ने सु ीव को भरोसा दलाया क वे बाली को
अव य मार दगे। हालाँ क सु ीव पूरी तरह आ व त नह आ य क वह अपने भाई क
वल ण श य से प र चत था और उसे डर था क बले-पतले राम उसके भाई का
मुक़ाबला नह कर सकगे।
वह झझकते ए बोला, “म जानता ँ क आप ब त बलशाली ह कतु नरंतर ए
उ पीड़न ने मुझे डरपोक बना दया है। म व वास से नह कह सकता क आप उस
श शाली बाली को लड़ाई म परा जत कर सकगे। दरअसल, वह इतना ताक़तवर है क
एक बार उसने रावण को भी अपने वश म कर लया था।” इसके बाद, वह राम को बाली के
बारे म बताने लगा।
“एक बार नशाचर रावण के मन म इं को परा त करके, वगलोक पर वजय ा त
करने क इ छा जागृत ई। उसने अपने ये पु मेघनाद को बुलाया और अपनी इ छा
बताई।”
मेघनाद बोला, “ पता ी! आप मुझसे यह कहने म इतना संकोच य कर रहे ह? आप
केवल आदे श क जए और आप जानते ह क म आपक आ ा का त काल पालन क ँ गा।
आइए, हम इं के वगलोक चलते ह और उसे बंद बना लेते ह।”
वे दोन इं के पास गए और उसे चुनौती दे डाली। इं उस यु के प रणाम के त
आ व त नह था इस लए वह यु के लए अ न छु क था। परंतु वह यु के लए मना भी
नह कर सकता था इस लए वह तैयार हो गया। यु आरंभ आ तो शी ही, प हो गया
ो े ी ै े े
क रावण क पराजय होने वाली है। यह दे खकर, उसका पु मेघनाद यु म उतर आया।
उसने आसानी से इं को परा त कर दया और उसे बंद बनाकर अपने पता के सामने डाल
दया। इसी वीरता के कारण मेघनाद को उसका नया नाम इं जत ( जसने इं को जीत
लया हो) मला। रावण ने इं को बंद बना लया और वह ांगण के बीच म तंभ से बाँध
दया ता क सब लोग उसे दे ख सक। इसके बाद उसने वगलोक को लूटा। उसे अपनी
महानता पर ब त गव हो रहा था। नारद ने इं क दयनीय थ त के वषय म ा को
बताया। ा ने रावण को ब त-से वरदान दए थे जनके कारण वह अजेय हो गया था।
ा को इस बात पर ला न महसूस ई तो वे लंका गए और रावण से कहकर इं को छु ड़ा
लाए। इं इस घटना पर ल जत हो रहा था और वह चुपचाप यह सोचकर वगलोक आ
गया क अ य दे वता को इस बात का पता नह लगा होगा। हालाँ क उसके तुरंत बाद,
नारद भी वहाँ आ गए और उ ह ने इं को रावण से बदला लेने का तरीक़ा बताया।
“एकमा आपका पु , बाली ही रावण के घमंड को चूर कर सकता है,” नारद बोले।
“आप यह सब मुझपर छोड़ द जए। म आपको याय दलवाऊँगा!” यह कहकर नारद
लंका चले गए जहाँ रावण ने उनका वागत कया। फर नारद ने रावण के अहंकार को हवा
दे ते ए कहा बाली नाम का एक वानर, जो इं का एक पु है, सबको कहता घूम रहा है क
जसने भी उसके पता का अपमान कया है, वह उससे तशोध लेगा! रावण को यह
सुनकर ब त ग़ सा आया और उसने उस धृ बाली वानर को सबक़ सखाने का न चय
कया। वह अपने सम त अ -श और सेना के साथ बाली के पास जाने के लए तैयार
हो गया। नारद ने उसक ये तैया रयाँ दे ख तो हँसते ए कहा, “वह केवल एक वानर है।
आपको उसे परा त करने के लए सेना और श ा द क आव यकता नह है। उसे बाँधने के
लए आपको केवल एक र सी चा हए। इससे पहले क उसे कसी बात का पता लगे, आप
उसे पीछे से बाँध ली जए!”
यह सुनकर रावण ने अपने अ -श और सेना को वह छोड़ दया और बाली क
तलाश म नकल पड़ा। नारद इस तमाशे से वं चत नह रहना चाहते थे, इस लए उ ह ने भी
रावण के साथ चलने पर ज़ोर दया। वे दोन द णी समु के पार प ँचे तो उ ह ने दे खा क
बाली समु -तट पर यान म लीन बैठा था। बाली को आदत थी क वह त दन सुबह
नाना द और यान के लए छलाँग लगाकर एक समु से सरे समु तक जाता था।
बाली क अ त वशाल काया दे खकर पहले तो रावण भयभीत हो गया, ले कन नारद ने
उसे उकसाया और कहा क वह पीछे से जाकर बाली क पूँछ पकड़ ले और फर उसे र सी
से बाँध ले। वानर क श उसक पूँछ म ही होती है और बाली क पूँछ तो अ यंत वशेष
थी। वा तव म उसक असाधारण प से लंबी और बलशाली पूँछ के कारण ही उसका नाम
बाली रखा गया था। पूँछ को सं कृत म ‘वाल’ कहते ह।
रावण चुपचाप पीछे से गया और उसने बाली क पूँछ पकड़ ली। परंतु बाली पूजा
करता रहा और उसने केवल रावण का हाथ, अपनी पूँछ म लपेट लया। रावण ने जब
अपना सरा हाथ आगे बढ़ाया तो बाली ने उसे भी पूँछ म लपेट लया। शी ही बाली ने

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रावण का पूरा शरीर अपनी पूँछ म लपेट लया। वह शां त से बैठा पूजा भी करता रहा!
नारद को लगा क अब वहाँ से भाग नकलने म भलाई है!
बाली ने अपनी पूँछ कसकर रावण के पूरे शरीर पर लपेट ली। रावण का केवल मुँह
दखाई दे रहा था। रावण को इसी तरह अपनी पूँछ म लपेटकर बाली एक समु से सरे
समु उछलता रहा और हर बार जब वह समु म डु बक लगाता तो रावण को भी सागर के
खारे पानी म डु बो दे ता था! ब त समय तक यही सल सला चलता रहा। अंत म, रावण के
पु इं जत को अपने पता क चता ई और वह बाली से लड़ने को तैयार हो गया। इस
अवसर पर, नारद ने इं जत को बाली से लड़ने के लए मना कया और कहा क बाली क
रावण से कोई श ुता नह है, ब क वह तो इं जत क ही ती ा कर रहा है, जसने उसके
पता इं को बंद बनाया था। नारद ने इं जत को यह भी कहा क य द वह बाली से लड़ने
गया तो बाली उसे अव य मार डालेगा। उ ह ने इं जत को धैय रखने का सुझाव दया और
कहा क एक दन बाली, रावण को वयं ही छोड़ दे गा।
जैसा क होना तय था, बाली रावण को अपनी पूँछ म लेकर घूमते-घूमते थक गया और
फर उसने रावण को मु कर दया। रावण बुरी तरह परा त हो गया था। उसने बाली से
मा माँगी। बाली ने रावण को इस शत पर मा कया क वह और उसका पु इं जत फर
कभी वगलोक जाकर उसके पता को परेशान नह करगे। इसके बदले, बाली ने भी रावण
को वचन दया क वह न तो कभी रावण के व यु करेगा और न ही रावण को
परा जत करने वाल का प लेगा।
राम को बाली क श का एहसास करवाने के लए सु ीव ने उ ह यह कथा सुनाई
थी। उसने राम को यह भी बताया क बाली को यह वरदान मला आ था क जो भी उससे
यु करेगा, उसक आधी श , बाली म समा जाएगी। यह भी कारण था क राम ने बाली
को पेड़ के पीछे से छपकर मारा था।

गम काज जगत के जेते।


सुगम अनु ह तु हरे तेते।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

शूराय नमः

अ याय 10

ाणदे व
बाली-वध

ॐ हनुम ते, ावताराय,


रामसेवकाय,
रामभ त पराय,
राम दयाय ल मण श नवारणाय,
ल मणर काय, न हणाय,
राम ताय नमो नमः।

म राम- त को णाम करता ँ


जो के अवतार म राम के सेवक थे,
जो सदा राम क भ म लीन रहते थे,
जनके दय म सदा राम का वास था,
ज ह ने ल मण को बचाया
और उनक श याँ उ ह लौटा
तथा जो का अंत करने वाले ह।

हनुमान ने ल मण को धीरे-से बताया क सु ीव ने यह कथा सफ़ इस लए सुनाई य क


उसे राम के साम य पर संदेह है और उसे लगता है क राम, बाली का वध नह कर सकगे।
उसम इतना साहस तो नह है क वह राम को श - दशन के लए कह सके, परंतु य द
राम अपनी श का दशन कर सक तो उसे ख़ुशी होगी। ल मण ने राम के सामने सु ीव
के भय को कट कर दया। राम हँसते ए ं भ के वशालकाय कंकाल के पास गए और
उसे अपने पैर के अँगूठे से उठाकर लगभग अ सी मील र उछाल दया! सु ीव को इससे
कुछ संतु ई कतु उसका संदेह अब भी बना आ था।
“ ी े े ँ औ
“ जस समय बाली ने इसे उठाकर यहाँ फका था, उस समय यह कंकाल र और
म जा से भरा आ था और अभी से दस गुना अ धक भारी था। अब तो यह मा कंकाल
रह गया है। म सोच रहा ँ क या आप अपने बल का एक बार फर दशन कर सकते ह
जससे म पूरी तरह संतु हो जाऊँ। बाली का बाण ब त सरलता से वशाल प र ध वाले
साल वृ को भेद दे ता था। यहाँ एक पं म साल के सात वृ ह। य द आप अपने बाण से
इनम से कसी एक वृ को दो ह स म चीर द, तो मेरा भय समा त हो जाएगा।”
राम मु कराए और बना कुछ कहे उ ह ने अपने वशाल कोदं ड धनुष पर एक बाण
चढ़ा लया। उस बाण पर वण क पत थी और वह एक अंगुल मोटा था। उसका फल उसके
शेष दं ड से आधी लंबाई का था। उसके ऊपर उनका नाम ख़ुदा आ था। वह सबसे तेज़
उड़ने वाले प य के पंख से स जत था और उसक न क लोहे क थी। साल के वृ के
तने बुज जतने मोटे थे। राम का चलाया आ बाण धनुष से छू टा और एक नह ब क सात
वृ को चीरता आ पृ वी के भीतर भू म म वेश कर गया और फर वापस तरकश म
लौट आया!
सु ीव को अपनी आँख पर व वास नह आ। वह राम के बल क इस तरह परी ा
लेने पर अ यंत ल जत महसूस कर रहा था। उसने राम के चरण म गरकर उनपर संदेह
करने के लए मा माँगी।
राम के सम हाथ जोड़कर खड़े सु ीव ने कहा, “म अब पूरी तरह आ व त ँ क य द
आप चाह तो दे वराज इं को भी मार सकते ह, तो फर उनके पु बाली को य नह ! अब
हम सीधे क कंधा चलते ह ता क आप बाली से मल सक।”
वे चंदन के वन और पवत को पार करते ए अ यंत सुंदर उपवन म प ँचे, जहाँ अ न
से आ त क सुगंध आ रही थी। राम ने सु ीव से पूछा क वह उपवन कसका है।
सु ीव ने कहा, “यह आ म स तजन नामक सात ऋ षय का है। उ ह ने यहाँ पर वष
तप या क है। वे पानी पर सोते थे और केवल वायु पर जी वत रहते थे। वे कभी इस उपवन
से बाहर नह गए। जब इस संसार से उनके जाने का समय आया तो उ ह भौ तक शरीर से
मु मल गई। परंतु यह उपवन अब भी प व है। यहाँ कोई वेश करने का साहस नह
करता। यहाँ भीतर से संगीत एवं अ य अलौ कक व नयाँ सुनाई पड़ती ह। जैसा क आप
दे ख सकते ह, य म यु प व का से उठती सुगंध यहाँ क वायु म छाई रहती है। हम
उन महान ऋ षय को यह से वंदन करना चा हए और आगे बढ़ने से पूव उनका आशीवाद
लेना चा हए।”
सभी ने उस पावन थल के सामने सर झुकाकर णाम कया और फर आगे बढ़ गए।
जब वे क कंधा क सीमा तक आ गए तो राम एवं अ य लोग क कंधा के आस-पास फैले
सघन वन के वृ के पीछे छप गए।
राम ने सु ीव से कहा क वह आगे जाकर बाली को यु के लए ललकारे। राम बोले,
“म यहाँ छपकर उ चत समय पर बाली पर बाण चला ँ गा।”
सु ीव ने राम को यह बात बता द थी क बाली अपने त ं क आधी श छ न
लेता है, इस लए राम ने छपकर उसे मारने का नणय कया। इस व च काय के पीछे एक
औ ो ी े ी ो ौ ी ो
और कारण था क राम को इस बात क शंका थी क य द उ ह ने बाली को चुनौती द , तो
बाली उनसे लड़ने से मना न कर दे , य क बाली क उनसे कोई श ुता नह थी। य द ऐसा
आ तो वह अपने म सु ीव को दया वचन पूरा नह कर सकगे। इस कारण राम ने सु ीव
को कहा क वह वयं जाए और बाली को चुनौती दे । इस बीच वे, ल मण के साथ उसके
पीछे चल पड़े । सु ीव ने ख़ुद को मान सक प से तैयार कया और ह मत करके क कंधा
के ार पर जा प ँचा। वहाँ से उसने ज़ोर से च लाकर बाली को यु के लए ललकारा।
अपने भाई क गजना सुनकर बाली को ब त ग़ सा आया और वह इतनी ज़ोर से उठा क
उसक गुफा का धरातल बैठ गया और उसक आँख से मानो अ न दहकने लगी। ग़ से से
दाँत कट कटाते ए, उसने अपनी जंघा पर हाथ मारा और इतनी ज़ोर से ताली बजाई क
उसक आवाज़ पूरी घाट म गूँज गई। वह इतने वेग से बाहर भागा क उसक गदन के
आभूषण चटक गए और उनके मोती सव बखरते गए। बाली अपनी गुफा से बाहर नकला
तो ऐसा लगा मानो तज म सूय दय आ हो। उसने बाहर नकलकर सु ीव को पकड़
लया। सु ीव का बाली से कोई मुक़ाबला ही नह था। उसने पीट-पीटकर सु ीव का कचूमर
नकाल दया। बड़ी मु कल से सु ीव ने ख़ुद को बाली क फ़ौलाद जकड़ से छु ड़ाया और
वहाँ से भागा। इससे पहले क बाली उसे पकड़ के मार डाले, सु ीव भागकर फर से
ऋ यमूक पवत पर जा चढ़ा।
इस बीच, राम ब त यान से उनक लड़ाई को दे ख रहे थे। उ ह अ यंत आ चय आ
य क दोन भाई दखने म इतने समान थे क राम उनके बीच अंतर ही नह कर पाए। इस
डर से क कह उनका बाण सु ीव को न लग जाए, उ ह ने तीर नह चलाया। वे भी सु ीव
के पीछे पवत पर चले गए, जहाँ वह बेचारा बुरी हालत म बैठा था।
सु ीव से बोला नह जा रहा था, फर भी उसने धीरे से कहा, “य द आप मेरे भाई को
मारना नह चाहते थे तो आपने मुझे इतनी बुरी तरह पटने य दया और मुझे यह बात
पहले य नह बताई? आपक बात पर पूण व वास करके ही मने उसे चुनौती द थी और
अब दे खए, या हो गया!”
राम ने सु ीव को शांत करने का यास कया। “ य म ,” वे बोले, “तुम ऐसा कैसे
सोच सकते हो क म तु हारे साथ व वासघात क ँ गा? तुम और तु हारे भाई क आकृ त,
व और आभूषण बलकुल एक समान ह। यहाँ तक क तुम दोन क गजना भी एक
जैसी है। तुम दोन एक- सरे को बाँह म जकड़े ए मारने का यास कर रहे थे। मुझे डर
था क कह भूल से मेरा बाण, उसक जगह तु ह न लग जाए! तुम कृपया फर से क कंधा
जाओ और बाली को फर ललकारो, ले कन इस बार तुम एक माला पहनकर जाओ ता क
म तु ह पहचान सकूँ।”
राम ने ल मण को पवत से एक फूल क माला लाने के लए कहा। उ ह ने वह माला
सु ीव को पहना द । बाली के हाथ बुरी तरह पटने और ल लुहान होने के बाद भी सु ीव
ने अपमान का घूँट पी लया और फर क कंधा क ओर चल पड़ा। राम, ल मण, हनुमान
और उसके कुछ म भी उसके पीछे चल दए।

े ी ो ो ी ो ौ ी े े ो
राम ने सु ीव को नभय होकर बाली को चुनौती दे ने को कहा य क उ ह व वास था
क इस बार उनका बाण नशाने पर लगेगा।
सु ीव, फर से क कंधा के ार के सामने खड़े होकर च लाया। बाली अपने क म
अपनी प नय के साथ आनंद मना रहा था। तभी उसने सु ीव क आवाज़ सुनी। उसे अपने
कान पर व वास नह आ। उसका कामुक मन अचानक हसक हो उठा। सु ीव, जसे
उसने अभी कुछ ही घंटे पहले बुरी तरह पीटा था, फर से वहाँ आकर उसे चुनौती दे ने का
साहस कैसे कर सकता है! वह ोध से उ म हो गया। उसने अपने भाई को हमेशा के
लए समा त करने का ण कया। ब त लंबे समय से सु ीव उसके माग का काँटा बना आ
था और उसके मरने के बाद, बाली सु ीव क प नी मी के साथ ला नर हत भाव के
आनंदपूवक रह सकता था। वह अपने छोटे भाई के जी वत होने के बावजूद, उसक प नी
के साथ रहने के अपराध से भली-भाँ त अवगत था। य प बाली क अपनी प नी तारा
ब त सुंदर और समझदार थी, फर भी वह मी के त अ धक आकृ था। इसके लए
उसने अपनी अंतरा मा का भी दमन कर दया था। सु ीव के माग से हटने के बाद, वह बना
कसी ल जा अथवा पीड़ा के, मी को ा त कर सकता था य क उन दन नयमानुसार,
कोई अपने भाई क मृ यु के प चात, उसक प नी क र ा हेतु उससे ववाह कर
सकता था! यह सोचकर, बाली ने घृणा और ोध से भरकर भीषण गजना क और बाहर
क ओर दौड़ा।
उसक सुंदर प नी तारा ने उसे रोकना चाहा और बाहर जाते समय उसे एक सुझाव भी
दया।
“ वामी!” वह बोली, “आपका यह भाई कुछ ही दे र पहले आपके हाथ बुरी तरह मार
खाकर गया था। वह बना कसी श शाली सहयोगी ारा सहायता के आ वासन के बना
लौटकर इस तरह च लाने का साहस कैसे कर सकता है? आपके पु और राजकुमार अंगद
ने मुझे यह सूचना द है। उसने बताया क दो युवा एवं कुशल यो ा तथा राजा दशरथ के
पु , राम और ल मण ने इस वन म वेश कया है और सु ीव के साथ मै ी था पत कर ली
है। मुझे व वास है क सु ीव उ ह क सहायता से इतना साहसी हो गया है क वह आपको
इस तरह चुनौती दे रहा है। आप अभी मत जाइए। आप उसको क हए क वह कल सुबह
आए और तब य द आप चाह तो उससे यु कर ल। वैसे, इससे भी बेहतर यह होगा क
आप सु ीव से म ता कर ली जए तथा उसे रा य म लौटने क अनुम त दे द जए। उसके
साथ दयापूण वहार क जए। उसक प नी उसे लौटा द जए। मी वयं भी यहाँ स न
नह है। पता नह य मेरा दय बैठा जा रहा है और मुझे केवल अपशकुन दखाई दे रहे
ह। म आपसे वनती करती ँ क अभी मत जाइए!”
बाली का अंत समय आ प ँचा था, इस लए उसने कुछ नह सुना। इसके अ त र , वह
मी को पाने के लए ब त उ सुक था। उसने तारा का हाथ हटाकर उसे अ य य के
पास लौट जाने का आदे श दया। तारा ने बाली के गले म इं क द ई व णम माला डाल
द और उसने खी दय से बाली का आ लगन कर लया। उसे यह पूवाभास हो गया था
क वह बाली को फर कभी नह दे ख पाएगी!
ी े ो ओ औ े े े ी ो
बाली ने तारा को एक ओर झटक दया और बाहर चला गया। उसने ग़ से से सु ीव को
दे खा और फर उसक ओर ु साँड़ क तरह दौड़ा। वे दोन एक सरे को मार डालने का
यास कर रहे थे। सु ीव क श ीण पड़ रही थी और उसक हताश राम को खोज
रही थी। वह सोच रहा था क राम अब तक उसक सहायता के लए य नह आए। बाली
ने सु ीव को उठा लया। वह उसे च ान पर पटककर मार दे ना चाहता था! बाली के गले म
व णम माला चमक रही थी। उसे पहचानने म राम को कोई परेशानी नह ई। उ ह ने
सु ीव का भयभीत चेहरा दे खा। राम ने अपने श शाली धनुष पर एक बाण चढ़ाया और
उसे पूरी श के साथ छोड़ दया। वह बाण, सीधा बाली क छाती म लगा और उसके
हार से बाली उसी तरह गर पड़ा जैसे वे साल के वृ गर गए थे। पू णमा के चं मा का
काश बाली के वशालकाय शरीर पर पड़ रहा था। बाली का तन र रं जत एवं कमज़ोर
होता जा रहा था। बाली ने एक पल के लए भी यह नह सोचा था क वग या पृ वी पर
कोई ऐसा अ या श है जो उसे यु म परा जत कर सके। दे वता के वरदान के बाद
वह अभे था और उसके बावजूद, वह अपनी ही भू म पर मा एक बाण के हार से धरती
पर गरा पड़ा था। वह सचमुच यह जानने के लए उ सुक था क ऐसा कौन असाधारण
यो ा है, जसने एक ही बाण से उसे मार गराया था। उसका नाम बाण पर अव य होगा।
उसने अपनी बची ई श से अपनी छाती से बाण को ख चकर नकाल लया। उसके
दय से र क धारा फूट पड़ी। उसके मरणशील ने के सामने, सब कुछ धुँधला पड़ता
जा रहा था। वह बाण को अपनी आँख के ब त पास ले आया और तब वह उसके ऊपर
लखा नाम “राम” पढ़ सका। एक पल के लए उसका दय कृत ता से भर उठा। सब
ा णय को एक दन मरना होता है और कसी रा स या असुर अथवा व य जीव ारा मारे
जाने से, भगवान व णु के अवतार राम के हाथ मरना कह अ धक े है। परंतु वध करने
के ढं ग के बारे म सोचकर, उसके मन म शी ही ोध का भाव जागृत हो गया। उसने बड़ी
मु कल से ऊपर दे खा। राम और ल मण उसक ओर आ रहे थे। अपनी बल पड़ रही
श का आ ान करते ए उसने राम के इस कृ य के लए उनक नदा क ।
“आपको इ वाकु कुल का वंशज माना जाता है तथा आप धम न समझे जाते ह।
आप इस तरह पेड़ के पीछे छपकर मुझे कैसे मार सकते ह, जब क म अपने भाई के साथ
यु कर रहा था? जब सु ीव ने मुझे सरी बार ललकारा तो मेरी प नी तारा ने मुझे चेताया
था क म लड़ने न जाऊँ य क उसे डर था क आप सु ीव क सहायता कर रहे ह, कतु
मने कहा क मुझे आपसे कोई डर नह है य क म जानता था क आप न न तर का
अधा मक कृ य नह करगे। मने ऐसा या कया था जो आपने मुझे पीछे से छपकर मारा?
मने सुना क आप अपनी प नी को खोज रहे ह। म अकेले उस रावण को मारकर
आपक प नी को छु ड़ा लाता। म पहले भी एक बार रावण को परा जत करके, बाद म
जीवनदान दे चुका ँ कतु म इस बार उसे नह छोड़ता। आपको इस अयो य सु ीव से
म ता करने क या आव यकता थी?”
बाली इतना बोलकर थक चुका था। वह गर पड़ा और उसक साँस कने लग । राम ने
धैय से बाली को अपनी बात समा त करने का अवसर दया य क वे जानते थे क बाली
ो े ी े ो ो
को उ ह फटकारने का पूरा अ धकार था। अंत म जब बाली ने बोलना बंद कर दया तो राम
क णामयी से उसे दे खकर बोले, “बाली! तुम कस मुँह से मेरे साथ धम-अधम क बात
करते हो, जब क तु हारा अपना जीवन पाप म ल त है? तु ह अपने छोटे भाई सु ीव के
साथ, जो स ण से भरपूर है और तुमसे ब त ेम करता है, अपने पु क तरह वहार
करना चा हए था। उसक बात को ठ क से सुने बना तुमने उसे मारकर ऋ यमूक पवत पर
भगा दया ता क तुम उसक प नी के संग रह सको। इस रा य के कानून के अनुसार, जो
अपने भाई के जी वत रहते ए उसक प नी के साथ भचार करने का दोषी होता
है, उसे मृ युदंड दया जाता है! तुमने सफ़ अपनी कामवासना क पू त हेतु अपने भाई के
साथ श ुता जारी रखी। सु ीव, मुझे अपने भाई ल मण के समान य है। मने इसे म ता
का वचन दया है और तु ह मारकर, इसका रा य व प नी लौटाने का सावज नक प से
वचन दया है। य द म अपना वचन पूरा नह करता, तो मुझे कस तरह का म कहा
जाता?”
बाली ने राम के श द पर वचार कया तो उसे लगा क वे स य कह रहे थे। उसे अपने
छोटे भाई के साथ, जो उसके पु के समान था, कए वहार पर ब त अफ़सोस हो रहा
था। वह यह भी जानता था क सु ीव क प नी को चुराने का काय अ यंत घृ णत था।
“राम!” वह बोला, “तुमने स य कहा है। मुझे अपनी चता नह है। मृ यु तो
अव यंभावी है कतु मुझे अपने पु अंगद क चता हो रही है। आप कृपया उसे अपने पु
के समान समझ तथा उसक दे खभाल क उ चत व था कर द। आप कृपया यह भी
सु न चत कर क सु ीव के हाथ मेरी प नी तारा का अपमान न होने पाए। तारा ब त
अ छ और समझदार ी है। मुझे एहसास हो रहा है क मेरी मृ यु आपके हाथ लखी थी,
इस लए मने उसक बात नह मानी जब उसने मुझे लड़ने जाने से रोका था।”
अपनी अं तम वास के साथ बाली ने गले से अ त श य से यु अपनी व णम
माला उतारी और सु ीव के गले म डाल द । उसने अपने कम के लए सु ीव से मा माँगी
तथा उसे, तारा एवं अंगद क , उसके अपने पु क भाँ त दे खभाल करने क ाथना क ।
सु ीव को अपने कए पर इतना पछतावा हो रहा था क वह एक भी श द नह बोल सका।
राम ने बाली को वचन दया क सु ीव क ओर से अंगद और तारा को सव े वहार
ा त होगा। अपने प त क मृ यु का समाचार मलते ही, तारा अपने पु अंगद के साथ
दौड़ती ई वहाँ प ँची। वह बाली के शरीर के ऊपर गरकर अपनी नय त पर वलाप करने
लगी। राम ने तारा को उठाकर उसे बाली क अं ये का बंध करने के लए कहा कतु वह
अपने थान से नह हट । उसने राम के बाण को, जससे उसके प त का वध आ था, अपने
हाथ म लेकर धमक द क वह उस बाण को अपने दय म भ क लेगी, कतु अनुचर ने
उसे ऐसा करने से रोक लया।
तारा का वलाप तथा अपने भाई के वन श द को सुनकर सु ीव का शेष साहस भी
समा त हो गया और उसने राम से कहा क वह भाई क चता के साथ ही आ म-दाह कर
लेगा और अब अंगद ही सीता को खोजने म राम क सहायता करेगा। इसके बाद न तो राम
और न ही कोई अ य, सु ीव को सां वना दे पाया।
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अंत म हनुमान ने तारा को वन ढं ग से समझाया, “आ मा सदा अपने पूव कम के
अ छे और बुरे फल भोगती है। यह शरीर पानी पर तैरते बुलबुले के समान है। यह कभी भी
न हो सकता है और इस लए यह शोक करने यो य नह है। अब आपका क अपने पु
अंगद क दे खभाल करना है जो पूरी तरह आपके ऊपर नभर है। यह दे खना आपका
दा य व है क आपके प त क अं ये उ चत तरीक़े से संप न हो जाए। अब आप उनके
लए सफ़ यही कर सकती ह।”
राम ने सु ीव से कठोरतापूवक कहा क उ ह ने यह सब कुछ उसके लए कया था और
अब पूरे मामले से हाथ झाड़कर इस तरह अलग होना, उसे शोभा नह दे ता। उसे अपने भाई
क चता म न जलकर, उसका अं तम सं कार संप न करवाना चा हए। राम ने सु ीव को
एक पालक मँगवाकर अपने भाई के शव को नद -तट पर ले जाने का आदे श दया। सु ीव
ने वैसा ही कया जैसा उसे कहा गया था। वानर एक राजसी अथ ले आए जो बना प हय
के रथ जैसी लग रही थी। उ ह ने अपने मृत राजा के शव को आभूषण और व से
सजाया और फर उसे फूल से सजे ताबूत म रखकर तैयार क गई चता पर लटा दया।
अंगद ने चता को अ न द और सबने जल दे कर वे सामा य सं कार पूरे कए जो क
मृता मा के लए कए जाते ह।
जंगल के नयमानुसार, बाली क मृ यु के बाद, उसे मारने वाला क कंधा का राजा
बनने का अ धकारी था तथा उसके पास बाली क संतान को मारकर उसक प नय को
अपने साथ रख लेने का अ धकार भी था।
परंतु राम चाहते थे क वानर अपने पुराने नयम को यागकर धम का माग अपनाएँ।
इस लए उ ह ने सु ीव से कहा क वह वयं वानर से पूछे क या वे उसे अपना राजा
वीकार करते ह। जब वानर ने उसक बात मान ली, तो सु ीव ने तारा से पूछा क या वह
उसक रानी बनकर रहना चाहेगी। तारा ने अपनी वीकृ त दे द , तो सु ीव ने अंगद को गोद
लेकर उसे राज सहासन का उ रा धकारी बना दया। इस तरह राम ने वानर को उनके
तरीक़े बदलकर उ ह धम का माग अपनाने के लए े रत कया।
हनुमान अपनी पशु- वृ पर वजय पाने के लए तब थे और उ ह ने चय एवं
सेवा का त लया था। चय त ारा उ ह ने अपनी कामवासना का दमन कर लया था
और सेवा ारा अपने अहं को बढ़ने से रोक लया था।
इसके बाद, हनुमान राम के पास आए और हाथ जोड़कर उनसे बोले, “हे भु, आपक
कृपा से यह रा य सु ीव को मल गया है। म ाथना करता ँ क आप कृपया महल के
भीतर वेश कर और सु ीव का रा या भषेक कर।”
राम ने नगर म वेश करने से मना कर दया य क उ ह ने अपने पता को वचन दया
था क चौदह वष क अव ध पूरी होने से पहले वे कसी नगर के भीतर नह जाएँगे। उ ह ने
नदश दए क कस कार सु ीव का रा या भषेक होना चा हए और कस तरह अंगद को
उस रा य का उ रा धकारी नयु कया जाना चा हए। उ ह ने सु ीव को राजा के क
के वषय म बताया। “आप जो भी काय कर, वह स कम के वीकृत नयम पर आधा रत

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होना चा हए। अपने श द से कसी को आहत न कर, फर चाहे वह आपका श ु ही य न
हो।”
सु ीव ने कहा, “म आपक सेवा करना चाहता ँ। कृपया मुझे आदे श द।”
राम ने कहा, “वषा ऋतु आरंभ होने वाली है। वषा समा त होने के बाद, आप अपनी
सेना लेकर आइए और सीता को खोजने म मेरी सहायता क जए।”
हनुमान ने ाथना क क वे वषा ऋतु के चार महीने राम के साथ रहकर उनक सेवा
करना चाहते ह। राम को फर से उनक वनती अ वीकार करनी पड़ी।
“आपक उप थ त सु ीव के लए ब त आव यक है। उ ह आपके सहयोग और
ववेक क ज रत पड़े गी। आप मेरे पास चार महीने के बाद आना और तब म आपको
बताऊँगा क आप मेरे लए या कर सकते ह।” राम और ल मण ने वषा ऋतु के आगामी
चार महीने नकट क एक गुफा म तीत करने का नणय कया। सु ीव ने चार महीने बाद
सम त वानर के साथ आकर सीता क खोज पर नकलने का वचन दया।
सु ीव ने नगर म वेश कया। वह क कंधा का राजा बन गया तथा अंगद को रा य
का उ रा धकारी बना दया गया। तारा को भी इस बात का थोड़ा संतोष था क कम से कम
उसके पु क दे खभाल ठ क से हो रही थी।

तुम उपकार सु ीव ह क हा।


राम मलाय राजपद द हा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

राम ताय नमः

अ याय 11

राम त
राम के त

अंजना गभ संभूत कपी स चवो म।


राम य नम तु यं हनुमन् र सवदा।।

म राम य को णाम करता ँ,


जनका ज म अंजना के गभ से आ,
जो वानर म े ह,
हनु मान! आप सबका यान रख!

राम और ल मण ने जुलाई से अ ू बर तक वषाऋतु के चार महीने ा वण नामक पवत क


गुफा म बताए। सूय अब द ण क ओर जाने लगा था। जल से भरे काले बादल ने
आकाश को इस तरह ढँ क लया क सूय बलकुल दखाई नह दे रहा था। बादल फटे और
पानी पवत से बहकर नीचे मैदान म भर गया। पं छय ने चहचहाना छोड़ दया। वषा के
दौरान पशु ने हरकत बंद कर द । वन प त जगत क वकट लता व बेल ने पूरे भू य
को ढँ क दया था। आकाश म हमेशा बादल घरे रहते थे। राम के दय म नरंतर ख और
अवसाद ा त था।
“आकाश भी मेरी तरह मेरी य प नी के लए दन कर रहा है,” राम ने सोचा। चार
महीन तक दोन भाई उस गुफा तक सी मत हो गए और उनके पास बाहर हो रही नरंतर
वषा को दे खने के अ त र कोई वक प नह था। ये चार महीने राम के लए अ यंत पीड़ा
से भरे थे य क वे सदा अपनी य प नी के वषय म सोचते थे क वह इस चता से
कतनी परेशान होगी क उसके प त कहाँ ह और या वे उसे छु ड़ाने के लए आएँगे। परंतु
वे इस वषय म अभी कुछ नह कर सकते थे य क वषा ऋतु कसी भी कार क या ा के
लए उपयु नह होती।

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आ ख़रकार बा रश का मौसम समा त आ और आकाश साफ़ होने लगा। राम
उ सुकता से सु ीव क ती ा करते रहे कतु एक महीना बीत जाने के बाद भी सु ीव का
कुछ पता न था। राम क उदासी दे खकर ल मण ने कहा, “भैया, मुझे लगता है क यह
कृत न वानर आपको दया आ अपना वचन भूल गया है। म वहाँ जाकर उसे उसका
दा य व बलपूवक याद दलाता ँ!”
ल मण, वभाव से शांत नह थे और चार महीने तक गुफा म रहने से उनके वहार म
कोई प रवतन नह आ था। अपने भाई क ता दे खकर उनका ख़ून खौलने लगा!
उ ह ने अपना तरकश कंधे पर बाँधा और धनुष उठाकर बादल क भाँ त गजना करते ए
क कंधा क ओर नकल पड़े । राम ने ल मण को ोध न करने तथा सु ीव के साथ
मै ीपूण तरीक़ा अपनाने का सुझाव दया।
हनुमान सदै व अपने क के त सजग रहते थे और उनसे भी यह वलंब सहन नह
आ। सु ीव हर समय अपनी प नय के साथ भोग- वलास और खाने-पीने व आनंद-मंगल
म डू बा रहता था। उसे समय बीतने का भान ही नह था। उसका शयनक इतना ब ढ़या व
सु वधाजनक था क वह पछले चार महीने से उसम से बाहर नह नकला था। वह लंबी
चोट तथा भारी व वाली सुंदर प नय से घरा रहता था जो उसे सब कार के सुख दे त
तथा उसके लए गाती व नाचती थ । ब त लंबे समय तक क सुख से वं चत रहने के
कारण भोजन व संभोग से सु ीव का मन नह भरता था। हनुमान ने जब सु ीव के क म
वेश कया, जहाँ वे पहले कभी नह गए थे, तो सु ीव वहाँ आनंद म डू बा, म न पड़ा आ
था।
“सु ीव!” हनुमान ने कहा, “यह आपको शोभा नह दे ता क आप राम को दया आ
वचन इस तरह भूल जाएँ। उ ह के कारण आप इन सुख-सु वधा का आनंद ले पा रहे ह।
वषा ऋतु को समा त ए काफ़ समय बीत गया है, कतु आपने अब तक अपना वचन पूरा
नह कया। इस लए, आप तुरंत वानर को आदे श द जए क वे सीता को खोजने के काय
के लए एक हो जाएँ।”
अपने यो य मं ी क बात सुनकर सु ीव थोड़ा-सा उठा और उसने हनुमान से अपने
रा य के सभी वानर एवं भालु को यह संदेश भेजने के लए कहा क वे सब एक स ताह
के भीतर क कंधा दे श म एक हो जाएँ।
“मेरे सेनाप तय के नेतृ व म मेरी संपूण सेना को अ वलंब एक करो ता क राम को
यह न लगे क म अपने दा य व को पूरा करने म लापरवाही कर रहा ँ।” ऐसा कहकर
सु ीव फर से अपनी प नय क बाँह म गर पड़ा।
इस बीच, ल मण अपने उ े य क पू त हेतु क कंधा आ प ँचे। उनके ु क़दम के
भाव से धरती काँप रही थी। नगर का वेश ार, एक गुफा के भीतर से होकर नकलता
था जस पर वानर पहरा दे ते थे ता क कोई बना अनुम त के भीतर न चला जाए। ल मण
को दे खकर उन सब वानर ने वृ उठा लए और ल मण को रोकने का यास कया। यह
दे खकर ल मण का ग़ सा दो गुना हो गया। उनका यह ोध दे खकर वानर यहाँ-वहाँ भागने
लगे। वे भागकर सु ीव के पास प ँचे और उसे ल मण के ोध के बारे म सू चत कया।
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सु ीव पूरी तरह नशे म डू बा आ था और उसने अपने भाई क प नी क बाँह म सारे संसार
को भुला दया था। उसे समझ ही नह आया क वानर या कह रहे ह। इसके बाद, सभी
वानर अंगद के पास आए। अंगद दौड़कर ल मण से मलने और उ ह शांत करने बाहर
आया। ल मण ने उसे त काल सु ीव को बुलाने के लए कहा। ल मण, वायु म मधुर संगीत
क हलक धुन और मौज-म ती के वर प महसूस कर रहे थे। उ ह ने जब अपने भाई
राम ारा पछले चार महीन म भोगे क के बारे म सोचा तो उनका ख़ून उबलने लगा।
अंगद बुरी तरह भयभीत हो गया और सु ीव व अपनी माता को इस वषय म बताने के लए
भीतर दौड़ा।
हनुमान भी उसके साथ गए और उ ह ने भी उसे थ त क गंभीरता से प र चत
करवाया। “राम ब त अ छे म ह कतु उ ह ग़ सा आ गया तो वे कसी वनाशकारी
उ का पड क भाँ त हो सकते ह। आपक लापरवाही के कारण ही ल मण को यहाँ आना
पड़ा है। आपको जाकर उ ह शांत करना होगा।”
सु ीव पूरी तरह नशे म था और वह ल मण से मलने क थ त म बलकुल नह था।
“मने या अपराध कया है? उ ह मुझ पर ोध य आ रहा है?” नशे म धु राजा ने
पूछा।
“आपक भूल यह है क आपने समय बीत जाने दया। आप अपने उ साह म, ऋतु
के बारे म भूल गए ह। राम अपनी प नी को खोजने के लए दन गन रहे ह। उनके दय
और बु को इतना क हो रहा है, इसी लए उ ह ने ल मण को आपके पास वचन याद
दलाने के लए भेजा है। कृपया जाइए और उनसे मधुरता से बात क जए।”
सु ीव म ल मण के सामने जाने और उनसे बात करने का साहस नह था, इस लए
उसने तारा से ाथना क ता क वह ल मण के पास जाकर उ ह शांत करे य क उसे पता
था क ल मण कसी ी पर ग़ सा नह करगे। तारा भी नशे क हालत म थी। उसक चाल
अ थर तथा केश व व अ त- त थे।
इस बीच, ल मण ज़बरद ती महल म घुस आए और उ ह ने वहाँ धन एवं वैभव क
चुरता को दे खा, जससे उनका दय ोध से जलने लगा क उनके भाई क कैसी दशा
हो रही थी और यह कृत न वानर, अपने वामी क पीड़ा से बेख़बर, यहाँ आनंद मना रहा
था।
ल मण सु ीव के क म वेश करने म ज़रा भी नह हचके।
क के बाहर उनक भट तारा से ई जसने उ ह अपने मधुर वचन से शांत करने का
यास कया।
“हे राजकुमार!” वह बोली, “आप इतने ो धत य ह? कसने आपका ोध जगाने
क मूखता क है?”
ल मण ने उ र दया, “ऐसा लगता है क तु हारा प त, धम के सब नयम भूल गया है।
वह कामवासना म ल त होकर मेरे भाई को दया वचन भी भूल गया है। य द तुम उसका
भला चाहती हो तो उसे जाकर कहो क वह वासना के दलदल से बाहर नकले और राम क

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सहायता करे। कृत नता, सव े पु ष के नाश का कारण बन जाती है। हमने जसे अपना
म माना है, वही हमारे साथ व वासघात कर रहा है!”
तारा ने मधुर और नेही वर म उ र दया, “हे राजकुमार! कृपया सु ीव पर नाराज़ न
ह । आप जानते ह क काम अ यंत श शाली भाव है। यहाँ तक क ऋ षगण भी इसके
भाव से बच नह पाते तो एक वानर क या बात, जो वैसे भी वभाव से चंचल होता है
और जसे अनेक वष तक इन सुख से वं चत रखा गया हो। कृपया उसक लापरवाही के
लए, जो वह अपनी बलता के कारण कर बैठा है, उसे मा कर द जए। वा तव म उसने
पहले ही सेना को एक होने का आदे श दे दया है और ज द ही दे शभर से हज़ार वानर
यहाँ एक होकर सीता क खोज के लए अपनी या ा आरंभ करगे। आप कृपया वापस
जाकर अपने अपने य भाई को थ त से अवगत करवा द जए।”
यह बात सुनकर ल मण थोड़ा शांत हो गए और उ ह ने पलटकर हनुमान से पूछा या
यह स य है क वानर के समूह को यहाँ आने के लए कह दया गया है। हनुमान ने उ ह
आ वासन दया क उ ह ने वयं इस उपमहा प के सभी े वानर समूह को संदेश
भजवाया है और ज द ही वे सब यहाँ एक हो जाएँगे।
इतनी दे र म सु ीव ने वयं को सँभाल लया और वह ल मण के साथ राम से मलने
गया तथा उ ह णाम करके उनके चरण म गरकर अपनी लापरवाही के लए मा माँगी।
राम सदा से क णामयी रहे ह। उ ह ने त काल सु ीव को मा करके उसे गले लगा लया।
उसी समय, भालु का राजा, जांबवंत वहाँ आ प ँचा। वह एक वृ और काले रंग का
भालू था जसके सर पर सोने का मुकुट और कान म सोने क बा लयाँ थ । उसक आँख
भूरी, ब त बड़े पंजे तथा लंबे हाथ थे और वह दोन पैर पर खड़ा था। उसने राम को बताया
क संसार भर से वानर, वहाँ प ँचने लगे थे। समूचा पवत वानर से भर गया था। वे लाख
क सं या म थे। उनक शेर जैसी पूँछ थी तथा मुँह काले, लाल- नतंब, सफ़ेद और सुनहरे
बाल थे और वे हमालय से लेकर द णी समु के छोर तक दे शभर से वहाँ एक ए थे।
व व क समूची वानर जा त सु ीव के आ ान पर एक हो गई और अपने राजा के आदे श
क ती ा करने लगी।
सु ीव ब त स न आ और उसने राम को व भ न कार के वानर के बारे म बताया।
“उन पेड़ पर रहने वाले वेत वानर को दे खए, जो अपनी इ छा से अपना प बदल
सकते ह। वे ऊँचे क़द के नीले ना रकेल वानर, हाथी क तरह बलशाली होते ह और पैने
दाँत वाले पीले रंग के मधु-म दरा वानर, गंधव क पु य से उ प न काले वानर, जो सूय
क उपासना करते ह। वे संसार के सरे छोर से आए भूरे और शानदार वानर ह, जो सफ़
बदरीफल खाते ह, गंगा तट क गुफा से आए वे सप जैसी पूँछ वाले काले वानर और वे
सह-सी अयाल वाले लाल वानर ह तथा धरती के सभी भूरे, काले और भयानक भालू, जो
भीषण यो ा ह, यहाँ आ चुके ह। ये सभी मेरे आ ान पर यहाँ एक ए ह और आपके
कसी भी आदे श का पालन करने के लए त पर ह।”
उन सबको दे खकर राम ब त स न ए। चूं क सु ीव को लंका क सट क थ त का
पता नह था, राम ने सु ीव को बना दे र कए चार सेनाप तय को चुनकर, उ ह चार
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दशा म भेजने और सीता का पता लगाने का सुझाव दया। वनत नामक सेनाप त को
पूव े को खोज करने करने के लए भेजा गया।
“सुबह का शानदार काश, पूव म होता है और वह के लोग सबसे पहले सुनहरे
दखाई दे ते ह। वहाँ येक थान को खोजो ले कन आज से आरंभ करके एक महीने से
अ धक बलकुल नह कना।” एक चौथाई वानर उसके पीछे चल पड़े । उनके चलने से
घरती डोल रही थी।
उसके वसुर सुषेण के नेतृ व म, एक अ य समूह प चम दशा म चल पड़ा।
“सीता को प चम म खोजो। वहाँ सूय अ त होता है और वहाँ रात क दे वी का नवास
है। ऊँचे शीत तालाब से बहत ठं डी वन जलधारा का पीछा करो, सब रा य म तलाश
करो, पठार और उजाड़ थान पर, सब जगह दे खो। वहाँ गंधव रहते ह। परंतु यान रहे कोई
तु ह न दे ख पाए। सूय से आगे मत जाना तथा एक महीने के भीतर यह लौट आना।”
सफ़ेद बाल वाले भालू शतबली को उ र दशा म जाने का आदे श आ।
“ हमालय के सुंदर दे श म जाओ, जहाँ कैलाश पवत चं मा के समान चाँद -सा सफ़ेद
दखता है और धन के दे वता कुबेर क भू म पर जाओ। हमालय क बफ़ ले ढलान म दे खो
और अ सरा के संगीत को सुनो तथा ज़मीन के नीचे रहने वाले नाग को दे खो। एक
महीने के भीतर दे श क उस भयानक उ री सीमा से वापस लौट आना।” उसके साथ एक
चौथाई लड़ाकू वानर का तीसरा ज था चल पड़ा।
अंत म, सु ीव ने हनुमान और अंगद को बुलाया और उ ह द ण दशा म जाने के लए
कहा। जांबवंत भी उनके पीछे चल पड़ा तथा वे सब सु ीव के सामने बछे कालीन पर बैठ
गए।
सु ीव ने कहा, “हमने रावण को सीता के साथ द ण दशा क ओर जाते दे खा था। म
राजकुमार अंगद को इस ज थे का मु खया नयु करता ँ। मुझे व वास है क पवनपु
सीता को अव य खोज लगे।” उसके बाद उसने एक संदेशप नकाला और हनुमान को दे ते
ए कहा, “इसे याद कर लो और यह संदेश रा सराज को मलकर उसे दे दे ना।”
हनुमान ने सु ीव के पास बैठे राम क ओर दे खा और उ ह णाम कया तथा आशीवाद
माँगा। राम ने अपनी कमल-सी हथे लयाँ हनुमान के सर पर रख और उ ह आशीवाद
दया। उसके बाद राम उ ह एक ओर ले गए और उ ह सीता का सट क ववरण बताया ता क
हनुमान सीता को दे खते ही पहचान सक।
“हे हनुमान,” राम ने कहा, “मुझे व वास है क सीता को तु ह खोज सकोगे। उसके
पैर क ओर दे खना, तो तुम पाओगे क उसके अँगूठे के नाख़ून मा ण य के समान ह।
उसक ए ड़याँ तरकश के समान ह। सीता क कमर इतनी पतली है क वह दखाई नह दे ती
है। हालाँ क तु हारे लए उसके पैर दे खना ही पया त होगा। वे अतुलनीय ह। जब तुम उससे
मलो तो उसे मेरी यह मु का दे ना, जसे दे खकर उसे व वास हो जाएगा क तुम कोई
गु तचर नह , ब क मेरे त हो! यह इ वाकु कुल क च ह्नत मु का है और सीता इसे
दे खते ही पहचान जाएगी।” इसके बाद राम ने बताया क सीता कैसे बोलती है, कैसे चलती
है तथा उसक आवाज़ कैसी है। राम ने हनुमान को कुछ क से भी सुनाए जो सफ़ राम
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और सीता को ही पता थे ता क सीता को पूण व वास हो जाए क हनुमान, राम के त ही
ह।
हनुमान ने राम का कहा आ येक श द अ यंत आदरपूवक सुना। अब उनके
म त क म सीता का ब त प च बन गया था और उ ह व वास हो गया क य द वे
सीता को दे खगे, तो वे उ ह प र चत लगगी। हनुमान ने मु का को स मानपूवक अपने सर
पर रख लया। फर हनुमान ने राम को णाम कया और द ण दशा म चले गए। उनके
पीछे अंगद एवं नील के नेतृ व म ब त-से अ य वानर भी थे।
जन सेनाप तय को पूव, प चम और उ र दशा म भेजा गया था, वे सब एक माह
पूरा होने से पहले ही लौट आए और उ ह ने खी होकर बताया क उ ह सीता के बारे म
कोई सूचना नह मल पाई। उन सभी को व वास था क हनुमान अव य ही उस असंभव
काय को पूण कर लगे।
हनुमान अपने दल के साथ द ण दशा म चले गए और उ ह ने अनेक वन और न दयाँ
पार कर ल । एक महीने का नधा रत समय पूरा होने वाला था और सभी वानर भूखे थे तथा
थक गए थे क तभी वे ऐसे एक वन से गुज़रे, जो कसी ऋ ष के शाप के कारण कंद-मूल
और फल से र हत था। उ ह ने ब त-सी खाइयाँ, घा टयाँ, जंगल और झा ड़याँ पार क थ ।
उ ह पानी क एक बूँद भी नह मली थी। वानर, थके और न सा हत होने के कारण पवत
क ढलान से नीचे गरने लगे। उसी समय हनुमान को एक गुफा के भीतर से दो प ी
नकलते दखाई दए जनके पंख से पानी टपक रहा था। हनुमान ने वानर से कहा क
गुफा के भीतर अव य ही फल व पानी होगा। उन सबने प य का पीछा करने का नणय
कया। गुफा के भीतर घोर अंधकार था, इस लए वे सब एक- सरे क पूँछ पकड़कर एक
पं बनाकर चलने लगे। चलते ए, वे एक उपवन म प ँच गए जहाँ के पेड़ सोने के बने थे
और उनके नीचे एक तप वनी बैठ ई थी। पहले उ ह लगा क वह सीता है, कतु हनुमान
को उसम राम ारा बताया गया एक भी संकेत नह दखाई पड़ा। हनुमान वन ता के साथ
उस ी के पास गए और उससे गुफा व उस अ त थान क कथा सुनाने क ाथना क ।
उसने बताया क उसका नाम वयं भा है और वह गुफा क र क है। वह गुफा, हेमा
नाम क उसक एक अ सरा सखी क है। रावण ने हेमा क पु ी, मंदोदरी से ववाह कया
था। इसके बाद वयं भा ने सभी वानर को खाने के लए फल व मेवे और पीने के लए
वा द पेय पदाथ दए जससे सभी तृ त हो गए। वह ब त अकेली थी और उसने वानर
को वहाँ रोकने के कई यास कए। यहाँ तक क जांबवंत जैसा समझदार और वृ भालू
भी उसके आकषण म उलझकर अपना उ े य भूल गया। केवल हनुमान को सब कुछ याद
था और उ ह ने वयं भा को सारी कथा सुनाई और फर सदाशयता से पूछा क उसक
सेवा-स कार के बदले म, वे उसके लए या कर सकते ह। उसने हनुमान से ववाह करने
क ाथना क और बोली क वह हनुमान क हर इ छा पूण कर दे गी। हनुमान ने
कठोरतापूवक मना कर दया और कहा क वे अपने सा थय को लेकर अथवा उनके बना
भी, वहाँ से चले जाएँगे कतु वे ववाह नह कर सकते। हनुमान क न ा दे खकर वयं भा
ने उनक सहयता करने का वचन दया। उसने कहा क वह मायावी गुफा है और उसम
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वेश करने वाला , जी वत नह लौट सकता। परंतु उसे, उनके ऊपर दया आ गई और
उसने कहा क वे अपनी आँख बंद करगे तो वह उनको गुफा से बाहर प ँचा दे गी। जब
उ ह ने अपनी आँख खोल तो वे सब द णी सागर के तट पर खड़े थे। वे मलय पवत के
ऊपर से आ रही चंदन क सुगंध को महसूस कर सकते थे। उनके सामने वृ -र हत नज व
रेत फैली ई थी और उसके आगे तज तक प ने-सा हरा समु फैला आ था। लंका
प कह दखाई नह दे रहा था।
अंगद ने सूय क ओर दे खा तो उसे लगा क उ ह ने गुफा के भीतर एक माह से अ धक
का समय बता दया था। वह ब त नराश हो गया। उनम से कसी को पता नह था क अब
उ ह या करना चा हए। भूखे और असहाय वानर च लाने लगे। अंगद ने उन हताश वानर
को दे खकर कहा, “म भूखा मर जाऊँगा ले कन ख़ाली हाथ लौटकर सु ीव का ोध नह
सहन क ँ गा!”
शेष वानर व भालु ने भी अपने हाथ ऊपर उठाकर कहा, “हम आपके साथ मरगे!”
हनुमान ने अंगद को समझाया क कायर क तरह ाण गँवाने से सु ीव के पास वापस
लौटना बेहतर होगा। वह न चत ही दयापूण वहार करेगा। अंगद ने सभी वानर के
सामने सु ीव का डरावना च तुत कया था, जस कारण वे सभी इस बात पर सहमत थे
क भूखे रहकर जान दे ना बेहतर होगा। उनके ऊपर, हनुमान क बात का कोई असर नह
आ।
वे सब द ण क ओर मुख करके समु -तट पर लेट गए।
इस बीच संपाती नाम का एक वशाल ग , उनक बात सुनकर अपनी गुफा म से बाहर
नकल आया। वानर को पं बनाकर तट पर लेटा दे खकर, उसने अपने भा य को सराहा
क दयालु दे वता ने उसके भोजन का बंध कर दया है।
“आज भा य सचमुच मेरे साथ है। मने कई दन से भोजन नह कया है और ब त-से
वा द वानर यहाँ पं बनाकर लेटे मेरी ती ा कर रहे ह क म आऊँ और उ ह खा
जाऊँ!” ऐसा कहकर, वह प ी उछल-उछलकर उनके पास जाने लगा य क उसके पंख
नह थे।
वानर ने जब उस वशालकाय प ी को उछलते ए अपनी ओर आते दे खा तो वे अपने
भा य को कोसने लगे। वही वानर, जो भूखे रहकर अपनी जान दे ने क बात कर रहे थे, अब
जी वत नगले जाने के भय से घबरा गए!
अंगद रोने लगा, “हमारे भा य को दे खो। यह प ी मृ यु के दे वता, यम जैसा दखाई
पड़ता है जो हमारा अंत करने के लए आ रहा है। कहते ह क सभी पशु-प ी राम से ेम
करते ह। यहाँ तक क वह वृ ग जटायु भी राम के लए अपने जीवन का अंत करने को
तैयार हो गया था! तो फर यह प ी हम राम क सहायता करने से रोकने और हम खाने का
यास य कर रहा है?”
वा तव म संपाती, जटायु का भाई था, जसने राम के वनवास के दौरान उनक सहायता
क थी और जस समय रावण सीता का हरण करके ले जा रहा था, उस समय जटायु ने
रावण को रोकने के लए उसके साथ यु कया था, कतु वह उस लड़ाई म मारा गया था।
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संपाती ने य ही अपने भाई ‘जटायु’ का नाम सुना, वह तुरंत क गया और उसने अंगद से
अपने छोटे भाई जटायु के वषय म पूछा। संपाती ने उसे च ान से नीचे उतारने के लए कहा
य क उसके पंख जल गए थे। अंगद ने थोड़ा साहस करके उस वृ ग को च ान पर से
नीचे उतारने म मदद क । फर उसने संपाती को राम क पूरी कथा तथा उनके ारा सीता
क खोज क बात सुनाई।
अपने भाई जटायु क मृ यु का समाचार सुनकर, संपाती क आँख म आँसू आ आए।
वह फूट-फूटकर रोने लगा। अंगद ने उससे जटायु के वषय म पूछा, तो संपाती ने उसे अपनी
कथा सुनाई।
“जटायु मेरा छोटा भाई था। जब हम युवा थे तो हम दोन के बीच इस बात को लेकर
त प ा ई क कौन अ धक ऊँचा उड़ सकता है। हम दोन उड़ते ए सूय के नकट चले
गए। जब मने दे खा क जटायु सूय क गम से जल रहा है, तो म उड़कर उसके ऊपर आ
गया और अपने पंख से उसे बचा लया। इससे जटायु तो बच गया ले कन मेरे पंख पुरी
तरह जल गए और म धरती पर गर पड़ा। म फर कभी उड़ नह सका और न ही म उसके
बाद अपने भाई से कभी मल पाया। मेरा जीवन क से भरा आ है और म सफ़ इस लए
जी वत ँ य क मुझे कहा गया था क राम क कथा सुनने के बाद ही मुझे मु
मलेगी।”
संपाती ने जैसे ही अंगद के मुख से राम क कथा सुनी, उसके पंख नकल आए और
वह कसी युवा पंछ क तरह आकाश म उड़ गया, जसे दे खकर सभी वानर दं ग रह गए। वे
सब राम-कथा क चम कारी श को दे खकर आ चयच कत थे। संपाती शी ही नीचे
उतर आया और उसने बताया क उसने रावण को सीता का हरण करके ले जाते ए दे खा
था। अंगद ने संपाती से उ ह पूरी बात व तार से बताने क ाथना क ।
संपाती बोला, “एक दन म च ान पर बैठा था तो मने दे खा क एक रा स, जो न चत
ही, नशाचर का राजा रावण था, अ यंत सुंदर सीता को बलपूवक अपने साथ ले जा रहा
था। वह उसक पकड़ से छू टने का भरपूर यास कर रही थी ले कन उसने सीता को
कसकर पकड़ा आ था। वह रोते ए राम और ल मण को सहायता के लए पुकार रही
थी।”
यह सुनकर वानर के दय म आशा क करण जाग उठ और वे सब उस वृ ग के
आस-पास एक हो गए तथा उससे कहा क वह जो कुछ जानता हो, सब कुछ उ ह बताए।
संपाती ने कहा, “रावण स त षय म से एक ऋ ष, पुल य के पु , व वा का पु है।
व वा क दो प नयाँ थ । एक य णी थी, जसने कुबेर को ज म दया और सरी रा सी
थी, जससे रावण का ज म आ। वह लंका नगरी, जसे म अपनी पैनी ग से दे ख पा
रहा ँ, कुबेर ने बनाई थी। रावण अपने भाई से ई या करता था। उसने शव क उपासना
करके उनसे एक तलवार ा त क थी, जसक सहायता से उसने अपने भाई कुबेर को
परा जत करके लंका से भगा दया और वहाँ वयं क ज़ा कर लया। रावण ने कुबेर का
पु पक वमान भी छ न लया। इसी वमान पर सवार होकर और हाथ म अपनी द
तलवार लेकर रावण बला कार और लूटपाट म ल त हो गया। एक बार उसने एक तप वी
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को लात मार द और उसे ‘बंदर’ बोल दया। ोध म आकर तप वी ने रावण को शाप दे
दया क वानर ही उसक मृ यु का कारण बनगे।”
अपनी ग से द ण दशा म दे खते ए संपाती ने बताया क सीता लंका के एक
उपवन म, रा सय से घरी बैठ ह। संपाती ने वानर को आशीवाद दया और कहा क वे
अव य ही अपने उ े य म सफल ह गे। उसने यह भी कहा क वानर को अपने समूह म से
कसी एक को चुनना होगा जो समु पार करके लंका जा सके और वहाँ से सीता का
समाचार ला सके।
अंगद तथा अ य वानर आशावान हो उठे क सीता को खोजने का उनका उ े य सफल
हो जाएगा तथा वे इस बात पर वचार करने लगे क वह कौन है जो छलाँग लगाकर लंका
जा सकेगा और सीता का समचार ला सकेगा। अंगद ने एक-एक करके सब वानर से पूछना
शु कया क कौन कतनी लंबी छलाँग लगा सकता है। कसी ने कहा क वह दस मील
तक कूद सकता है, सरे ने बीस और तीसरे ने तीस मील इ या द। परंतु उनम से कोई भी सौ
योजन याने आठ सौ मील क छलाँग लगाने म असमथ था। अंगद ने कहा क वह लंका
तक जा तो सकता है, कतु उसे डर है क वह वापस नह आ पाएगा।
सबसे वृ भालू, जांबवंत अपनी व ता और बल के लए स था। व णु ारा राम
के प म अवतार लेने का मु य उ े य रावण का वध करना था, ले कन अवतार लेने से
पूव, व णु ने सृ के रच यता ा से कहा क वे ब त-से वानर क रचना कर जो उनके
इस उ े य म राम क सहायता करगे। ा ने कुछ दे र वचार कया और फर उ ह न द
आने लगी। तभी उनके मुख से एक छोटा-सा जीव नकला और यही बाद म ववेकशील
भालू - जांबवंत के नाम से व यात आ।
उसके ज म से संबं धत एक अ य कथा भी है। एक बार जब ा अपने कमल-पु प के
आसन पर व ाम कर रहे थे तो वहाँ दो भयानक रा स, मधु और कैटभ आ गए। उ ह
दे खकर ा भयभीत हो गए और उ ह पसीना आ गया। कहते ह, उनके पसीने क द
बूँद से जांबवंत का ज म आ। वह व णु का ब त बड़ा भ था और उसने व णु के
येक अवतार म उनके साथ ज म लया है। इस अवतार के समय, उसने राम क सहायता
हेतु भालू के प म ज म लया था। य प पहले जांबवंत म भी ज़बरद त श थी, कतु
अब वह वृ और बल हो गया था तथा समु पार जाने और लौटने का अ त काय करने
म असमथ था।
इस बीच, हनुमान र बैठकर समु को दे ख रहे थे और राम का नाम जप रहे थे। एक
ओर, जहाँ अ य वानर अपनी श य का बखान कर रहे थे, हनुमान शांत अव था म बैठे
अपनी ही नया म खोए ए थे।
उसी समय, जांबवंत हनुमान के पास आया और बोला, “हे वानर े ! आप चुप य
ह? या आप नह जानते क आप पवनपु ह? आप जतना र चाह, छलाँग लगा सकते
ह। वा तव म, आपने बचपन म सूय को पकड़ने के लए बीस हज़ार मील लंबी छलाँग
लगाई थी! केवल आपके पास ही यह असंभव काय करने क मता है। उ ठए और
आकाश म उड़कर समु के पार जाइए य क आप यह काय सरलता से कर सकते ह।”
ो ी ँ
हनुमान को ऋ षय ारा शाप मला आ था क उ ह अपनी असाधारण श याँ याद
नह रहगी, ब क कसी को उन श य का मरण करवाना पड़े गा और तभी वे उन
श य का उपयोग कर सकगे। हनुमान ने यान से जांबवंत क बात सुनी - “केवल आपके
भीतर बल, बु और साहस है। केवल आप, थान और समय क अ याव यकता को
अपने अनुकूल बनाने क मता रखते ह। आप नी त म नपुण ह और स च र म आपके
समान कोई सरा नह है।” वा मी क ने मा त को वशाल समु पार करने का असंभव
काय करने के लए े रत करते ए जांबवंत से यही श द कहलवाए ह। हनुमान अपने
वभावगत वन भाव से उठे और जांबवंत को णाम कया। उ ह ने जांबवंत को कहा क
उनके लए जो भी आदे श है, वे उसे पूरा करने के लए तैयार ह।
“आपके श द से मुझे इतना साहस मला है क लगता है, जैसे म अकेले ही सम त
रा स जा त का संहार कर ँ गा, य द उ ह ने राम क नद ष प नी सीता को लौटाने से मना
कर दया। इस समु क चौड़ाई मुझे ब त कम लग रही है। आपके आशीवाद और भु क
आ ा, मेरे लए दो पंख ह जनक सहायता से म सरलता से इस वशाल समु को पार कर
जाऊँगा। म राघव ारा छोड़े गए बाण क तरह फुत से लंका प ँच जाऊँगा। य द म लंका
म सीता को नह खोज सका तो म उसी तेज़ी से दे वलोक चला जाऊँगा।” हनुमान को अपने
ऊपर इतना व वास था क वे बताए गए काय को पूरा करने क मता रखते ह और यह
आ म- व वास, अपने वामी के त पूण न ा से आता है।
दे वता ने उनके वचन सुनकर उनक शंसा क , “ जसके अंदर आपक भाँ त
नभयता, साहस, र , म त क का संतुलन और कौशल मौजूद है, उसे कसी भी तरह
का काय पूरा करने म कोई परेशानी नह होगी।”
हमारे म त क के लए द साम य तथा इस त य क नरंतर याद दलाना आव यक
होता है क य द वह अपनी नय त को जान ले तो अ त काय कर सकता है। उसे यह याद
दलाना भी ज री होता है क कोई काय अपने आप पूण नह हो जाता, ब क येक काय
हमारी द श के कारण होता है। हनुमान, आदश म त क के तीक ह तथा े एवं
ा य मता को दशाते ह।

संकट त हनुमान छु ड़ावै।


मन म बचन यान जो लावै।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

महाकायाय नमः

अ याय 12

सुंदर
सुंदर कांड

अतु लतबलधामं हेमशैलाभदे हं,


दनुजवनकृशानुं ा ननाम ग यं।
सकलगुण नधानं वानराणामधीशं,
रघुप त यभ ं वातजातं नमा म।

म पवन-पु को णाम करता ँ,


जनका बल अतुल नीय है, जनका तन,
सूय के वण समान सुनहरा है,
जो ववेक शील ा णय म े ह,
जनम सभी स ण मौजूद ह,
जो वानर म े ह,
जो राम के य भ ह।
— ी हनुमत तो

हनुमान को जैसे ही उनक श य का मरण करवाया गया, वे त काल ऊजा से भर उठे


और उ ह ने अपना आकार इतना बढ़ा लया क उनका म तक आकाश को छू ने लगा।
उनका चेहरा उदय होते सूय क भाँ त चमक रहा था, उनके बलशाली अंग म ऊजा का
संचार हो रहा था और उनके ने ह क भाँ त दमक रहे थे। उनक वास के चलने से ऐसा
लग रहा था मानो कोई वालामुखी फटने वाला हो। उनक पूँछ, यु के दे वता का तकेय
क पताका क भाँ त उनके सर के ऊपर लहरा रही थी। उ ह दे खकर सभी भयभीत हो
गए। प ी चीख़ते ए इधर-उधर भागने लगे, व य पशु अपनी गुफा म जा छपे और
मछ लयाँ भी समु तल म चली ग । सफ़ वानर थे, जो भयभीत नह ए तथा हनुमान के
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इस शानदार करतब को हैरानी से दे खते रहे। वे स नता से च लाने और ऊपर-नीचे
उछलने लगे।
अपने वराट प म हनुमान बोले, “वानर , भयभीत न होओ! म वायुदेव का पु ँ,
जनक श असी मत है। म मे पवत क प र मा कर सकता ँ तथा चल चलाते सूय
को भी पीछे छोड़ सकता ँ। जब म समु के पार छलाँग लगाऊँगा तो मेरा प भगवान
व णु के व म अवतार ( जसने तीन पग म पूरी धरती नाप ली थी) जैसा दखाई दे गा। म
कुछ ही ण म समु को लांघ जाऊँगा और राम क प नी को खोजकर और य द संभव
आ तो, उ ह साथ लेकर लौटूँ गा। म अब इस पवत शखर पर जा रहा ँ य क छलाँग
लगाने पर, सफ़ यही है, जो मेरे भार को सहन कर सकता है।” उ लास म भरकर हनुमान
ने एक शखर से सरे पर छलाँग लगाई और उन शखर को फूल क डाल क तरह मसल
दया! उनके श - दशन को दे खकर अ य वानर के मुख आ चय से खुले रह गए। इसके
बाद हनुमान ने मह पवत पर छलाँग लगाई, जो उस तट का सबसे ऊँचा थान था और वहाँ
से समु के पार छलाँग लगाने क तैयारी करने लगे। उनके भार के नीचे, वह पवत काँप रहा
था। उसका पानी बाहर नकल गया तथा पशु-प ी भयभीत होकर वहाँ से भागने लगे।
हनुमान ने राम का यान करके वयं को शांत कया तथा “राम, राम” का जा ई मं जपने
लगे। उ ह ने अपने हाथ जोड़े और पूव दशा क ओर दे खकर अपने पता वायुदेव का
अशीवाद ा त कया। उ ह ने अपने अंग को खोला और पहलवान क भाँ त उ ह
थपथपाया। इसके बाद वे थोड़ा-सा झुके, फर अपने हाथ को धरती पर रखा और धावक
क तरह एक पैर पीछे ख चकर आकाश म जोरदार छलाँग लगा द । उनक छलाँग के वेग
से वृ और झा ड़याँ उखड़ गए और उनसे झड़े फूल, हनुमान पर आ गरे मानो उ ह
आशीवाद दे रहे ह । उनक पूँछ, पताका क भाँ त, उनके सर के ऊपर से मुड़ी ई लहरा
रही थी। वायुदेव के इस वल ण पु को माग दे ने के लए बादल भी हट गए। इस
आ चयजनक करतब को दे खने के लए समु के जीव-जंतु सागर क सतह पर आ गए।
हनुमान अपने ऊपर आकाश को छू रहे थे और नीचे, टम टमाते समु को दे ख रहे थे।
जंबू प (भारत) और लंका के बीच म, मैनाक नाम का एक पवत था। समु के दे वता
व णदे व ने जब हनुमान को ऊपर से गुज़रते ए दे खा तो उनके मन म उस राम- त क
सहायता करने का वचार आया। व णदे व ने मैनाक पवत को, जो सागर म डू बा आ था,
थोड़ा ऊपर उठने को कहा ता क आंजनेय उसके ऊपर ठहरकर कुछ दे र व ाम कर सक।
मैनाक ने त काल आ ा का पालन कया। अचानक हनुमान ने मैनाक पवत के सुनहरे
शखर को सागर से ऊपर उठते दे खा। शखर ने उनका माग रोक लया था। पवत ने मनु य
का प धारण कया और हनुमान से आ ह कया क वे मैनाक व समु -दे वता का स कार
वीकार कर तथा अपनी या ा पर आगे बढ़ने से पूव कुछ दे र व ाम कर ल।
क के त न ा के कारण हनुमान ने पवत का आ ह अ वीकर कर दया और उसे
कहा क उनके पास ब त कम समय है और उ ह अपना काय समा त करके यथाशी
लौटना है। इस लए हनुमान ने पवत ारा कए गए वागत को वीकारते ए सफ़ उसे एक
बार पश कया और फर तेज़ी से आगे चले गए य क उ ह सूय के अ त होने से पहले,
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लंका प ँचने क ज द थी। मैनाक पवत समु के नीचे चला गया और उसने फर से अपना
पहले वाला थान ले लया।
इसके बाद दे वता ने हनुमान क परी ा लेने का नणय कया। उ ह ने सप क माता
सुरसा को हनुमान का माग रोकने तथा उनके बल क परी ा लेने को कहा। सुरसा ने
त काल अपना आकार बढ़ाया और कमर पर हाथ रखकर हनुमान का माग रोककर खड़ी
हो गई।
“दे वता का यह आदे श है क कोई ाणी मेरे मुख म वेश कए बना इस द णी
समु को पार नह कर सकता। उ ह ने आज, तु ह मेरा भोजन बनाकर भेजा है, इस लए म
अब तु ह खाऊँगी।” यह भी एक कारण था क अब तक कोई ाणी रावण के नवास तक
नह प ँच पाया था।
ऐसा कहकर सुरसा ने अपना भयंकर मुख खोला और हनुमान को नगलने लगी।
हनुमान ने सुरसा से वन तापूवक यह कहकर क वे राम के त ह और उ ह एक अ यंत
आव यक काय से आगे जाना है, सुरसा से जाने क अनुम त माँगी। हनुमान ने सुरसा को
यह वचन भी दया क काय पूरा होने के बाद, वे वयं उसके पास वापस आ जाएँगे। परंतु
सुरसा ने हठ कया और कहा क आगे बढ़ने से पहले हनुमान को उसके मुख म वेश
करना पड़े गा। हनुमान को उसक नासमझी पर ब त ग़ सा आया और उ ह ने अपना
आकार दो गुना बढ़ा लया। सुरसा ने भी अपना मुख खोल दया। हनुमान ने फर से अपना
आकार दो गुना बढ़ाया तो सुरसा ने भी अपना मुख दो गुना अ धक फैला लया। यह दे खकर
बु मान हनुमान ने तुरंत अपना आकार घटाकर अँगूठे जतना कया और तेज़ी से सुरसा के
मुख म वेश करके उसके नथुन से बाहर नकल आए!
“मने आपक शत पूरी कर द है क कोई आपके मुख म वेश कए बना आगे नह जा
सकता। अब आप कृपया मुझे जाने द जए!” हनुमान ने कहा।
हनुमान क बु और सूझबूझ दे खकर दे वता स न हो गए और उ ह ने सुरसा से
हनुमान का माग छोड़ दे ने के लए कह दया। सुरसा ने कहा, “हे उ चा मा हनुमान! अपने
माग पर आगे बढ़ो तथा राम क सीता से मलवाने म सहायता करो!”
हनुमान ने सुरसा को णाम कया और बादल को पीछे छोड़ते ए पवन ग त से
आकाश माग म उड़ गए।
उस समय, स हका नाम क एक रा सी भी समु म रहती थी जो ाणी क पानी पर
पड़ने वाली परछा को पकड़कर शकार करती थी। उसने हनुमान को ऊपर से उड़ते दे खा
तो यह सोचकर ब त ख़ुश ई क दे वता ने उसके लए ब ढ़या भोजन का बंध कया
है। उसने जैसे ही हनुमान क परछा को पकड़ा तो हनुमान को लगा कोई उ ह पानी के
भीतर ख च रहा है। वे यह सोच ही रहे थे क उनके साथ या हो रहा है क तभी वह
रा सी उ ह नगलने के लए पानी से बाहर नकल आई। हनुमान ने तुरंत अपना आकार
बढ़ा लया कतु उस रा सी ने भी अपना मुख फैला लया और हनुमान पर झपट । तब
हनुमान ने अपना आकार घटा लया और उसके मुख म वेश कर गए तथा उसके अंग को
अपने नाख़ून से फाड़ दया। फर उ ह ने भीतर ही अपना आकार बढ़ाया और उस रा सी
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के शरीर के टु कड़े करके, बाहर नकल गए जससे उसक मृ यु हो गई। समु क मछ लय
ने झटपट आकर उसके मृत शरीर को खाना आरंभ कर दया।
हनुमान य ही फर से आकाश म उड़े , दे वता और द ा मा ने उनक शंसा
क । “आपने इस भयंकर जीव का वध करके सचमुच ब त अ छा काय कया है। जसके
पास ढ़ता, सही , समझ और कौशल है, वह कसी भी काय म असफल नह हो
सकता। हे वायुपु , आपका उ े य पूण हो और आप शी लौटकर आएँ!”
इसके बाद शी ही, हनुमान को समु के दय म आभूषण-सा चमकता आ लंका
प दखाई पड़ा। वह वन , न दय तथा जल पात व फूल के उपवन से घरा आ था।
लंका नगरी तीन शखर वाले कूट पवत के उ चतम शखर के बलकुल नीचे समतल
थान पर बसी ई थी और ऐसा लगता था मानो वह बादल पर थत है। दरअसल यह
शखर, कथा म व यात मे पवत का ही एक अंश था। कहते ह, एक बार प व नाग
वासु क का, जसके ऊपर व णु व ाम करते ह, वायुदेव के साथ मुक़ाबला हो गया।
अपनी श का दशन करने के लए वासु क ने वयं को मे पवत के आस-पास लपेट
लया और वहाँ से हलने से मना कर दया। वायुदेव को ब त ोध आया और उ ह ने पूरी
श से बहना आरंभ कया जसके कारण पूरे व व म भगदड़ मच गई। दे वतागण भागे-
भागे व णु के पास प ँचे और उनसे ह त ेप करने क याचना क । व णु ने वासु क को
मे पवत को छोड़ दे ने का आदे श दया। य ही सप ने अपनी एक कुंडली खोली, उसी
समय वायु ने पवत का एक टु कड़ा, जो ऊपर दखाई दे रहा था, तोड़ दया और उसे उड़ाकर
समु म फक दया। वह टु कड़ा द णी समु म गरा और समय के साथ यही कूट पवत
कहलाया। उसी दौरान, ऋ ष व वा का पु कुबेर एक नगर का नमाण करना चाहता था।
उसके पता ने दे वता के श पकार व वकमा को कूट पवत के ऊपर नगर का नमाण
करके को कहा। यह ब त सुंदर शहर था और इसे ‘लंका’ नाम दया गया। व वा का एक
पु था - रावण। उसे ा से अनेक वरदान ा त थे और इस कारण वह अ यंत अहंकारी
हो गया। उसने अपने भाई कुबेर के व यु छे ड़ दया और उसे लंका से भगाकर वहाँ
अपना आ धप य था पत कर लया।
हनुमान एक पहाड़ी शखर पर उतरे और उ ह ने वह से उस शानदार लंका नगरी को
दे खा। सूया त के समय उसक छत वणमं डत लग रही थ । रावण क नगरी का वैभव
दे खकर हनुमान त ध रह गए। उ ह ने सोचा क वह बाहर से इतनी सुंदर है तो भीतर से
कतनी भ होगी। उ ह ने दे खा क लंका समु से घरी होने के कारण चार ओर से
सुर त थी। उसम चार ार थे जो चार दशा म खुलते थे और उसक चारद वारी सोने
क बनी ई थी। लंका क मोचाबंद , अ यंत ढ़तापूवक क गई थी तथा उसके चार ओर
खाइयाँ और खंदक थ , जनम वषैले सप तैरते थे। पवत क ढलान, वृ व प ल वत
झा ड़य से आ छा दत थी और उसके भवन सं या- काश म चमक रहे थे। हनुमान ने दे खा
क वहाँ के माग साफ़, सफ़ेद थे जनके कनार पर हरी और वा द घास लगी ई थी।
पवत के ऊपर थत होने के कारण लगता था मानो लंका बादल के बीच हवा म तैर रही
हो। हनुमान के चेहरे से टकराने वाले वायु के झ के म मच, ल ग और मसाल क सुगंध आ
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रही थी। मा त फुत से एक शला से सरी शला पर छलाँग लगाते ए उ री ार तक
प ँच गए। उसक द वार के चार ओर बनी खाई म आदमखोर मछ लयाँ तैर रही थ ।
प थर से बने ार-तोरण के नीचे हाथी खड़े थे और भयभीत करने वाले रा स धनुधर,
छत व बु जय पर तैनात थे। हनुमान ने सोचा, य द राम अपनी वानर सेना के साथ कसी
तरह समु पार करके यहाँ तक प ँच भी गए तो या उनके लए इस नगर के ाचीर को
पार कर पाना संभव होगा। उ ह ने सोचा, “यहाँ तक क मेरे पता वायुदेव के लए भी इस
नगर म छपकर वेश करना क ठन होगा।” परंतु फर उ ह ने सोचा क उनका ता का लक
काय सीता का पता लगाना और उसका समाचार अपने वामी को दे ना है। भीषण रा स
पहरेदार होते ए, उनके लए अपने मौजूदा प म लंका म वेश करना असंभव था। वे इस
बात पर वचार करने लगे क सीता को खोजने का काय कस तरह पूण कया जाए। वे
अँधेरा होने क ती ा करने लगे। जो शी ही, लंका नगरी पर अँधकार का आवरण छा
गया। फ का चं मा अपने कुछ सहयोगी तार के साथ आकाश म तैर रहा था और लंका
नगरी कसी व क भाँ त उसके ऊपर छाई ई थी। हनुमान ने अपना आकार घटाकर
ब ली जतना कर लया और उ री ार से अंदर वेश करने लगे। “ ब ली, रात के समय,
कह भी घूम सकती है,” उ ह ने सोचा।
लं कनी नाम क एक यो ा युवती, कसी समय लोक क र क रह चुक थी।
उसके अहंकारी हो जाने पर ा ने उसे शाप दया था क उसे दे वता क नगरी को
छोड़ना तथा रा स क नगरी का र क बनकर रहना होगा। उसे एक वानर ारा परा जत
होने के बाद ही शाप से मु मलेगी। वह लंका के ार पर सजगता से पहरा दे रही थी
जब क शेष सभी लोग आराम से सो रहे थे। वह कमर पर हाथ रखकर मा त के सामने
उसका माग रोककर खड़ी हो गई।
“वनवासी, तुम कौन हो?” उसने पूछा। “रावण क श ारा सुर त और सभी ओर
से घरे इस ार से मेरी अनुम त के बना कोई भीतर वेश नह कर सकता।”
हनुमान ने लं कनी से उ टा न पूछा। “हे दयालु दे वी, आप कौन ह? आप मुझे रोकने
के लए इतनी आतुर य ह?”
लं कनी, हनुमान के वन वहार अथवा छ वेश से भा वत नह ई और बोली,
“वानर, म लंका नगरी का मानवीकृत प ँ और लंका म घुसने वाल को रोकना ही मेरा
दा य व है। मरने के लए तैयार हो जाओ य क म अब तु ह मार डालूँगी।”
लं कनी क बात से घबराए बना हनुमान ने धीरे से कहा, “म इस नगरी को सफ़ दे खने
आया ँ य क मने यहाँ के अनेक अ त क से सुने ह।”
लं कनी क आँख से वाला नकल रही थी और उसके बलशाली हाथ म अनेक
कार के अ -श थे। वह हनुमान के मधुर वचन से भा वत नह ई और उपहास
करते ए बोली, “वानर, मुझे परा जत कए बना तुम अपने उ े य म सफल नह हो
सकते!” यह कहकर लं कनी ने हनुमान के गाल पर मु का जड़ दया।
इससे हनुमान को ग़ सा आ गया और उ ह ने बना कुछ कहे अपनी बा मुट्ठ बंद क
और एक ज़ोरदार वार कया जससे लं कनी धरती पर गर पड़ी।
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हनुमान के हार तथा अपने स मान पर लगी चोट से त ध लं कनी ने कहा, “हे वानर
े ! कृपया मुझे छोड़ द जए। म यहाँ से हट जाती ँ और आपको वेश करने क
अनुम त दे ती ँ। संसार के रच यता ा ने जब मुझे यहाँ नयु कया था तो ये श द कहे
थे, ‘एक दन एक वानर तु ह परा जत करके नीचे गरा दे गा। जस दन ऐसा हो, तो समझ
लेना क इस नगर और यहाँ के राजा रावण का सवनाश नकट है!’ म समझ गई ँ क ा
ारा क गई भ व यवाणी के स य होने का समय आ चुका है। आप नगर म वेश करके
अपना काय पूरा क जए। आपको राजा जनक क धम न पु ी अव य मल जाएगी।”
यह कहकर लं कनी सदा के लए लंका छोड़कर चली गई।
लंका के पहरेदार के वषय म एक अ य कथा आती है। रावण, भगवान शव का इतना
महान भ था क एक बार शव और पावती दोन लंका म रहने के लए आए थे, जसके
कारण लंका अभे हो गई। जब इं के नेतृ व म दे वता ने ा से रावण के अ याचार क
शकायत क तो ा ने लंका जाकर शव-पावती से उनके ारा लंका को द सुर ा वापस
लेने क ाथना क । तब शव ने वानर प म ज म लेने और रावण के वनाश म मह वपूण
भू मका नभाने के लए अपनी सहम त दान क तथा पावती ने काली का प धारण कर
लया और उनक तमा को ारा पर था पत कया गया। लंका म व होते समय,
हनुमान ने ने धारी दे वी का मं दर दे खा, जसम दे वी ने अनेक द अ -श पकड़े ए
थे तथा उनके नकट आठ यो ग नयाँ मौजूद थ । दे वी ने हनुमान को चुनौती द और सृ
क माता के प म अपने सम त भयावह व प को कट कर दया। हनुमान ने भी
सम त दे वता क ऊजा से यु अपने द प को कट करके उ र दे दया। दे वी ने
हनुमान को पहचान लया क वे भगवान शव के पु के प ह और उ ह णाम कया।
मा त ने दे वी से ाथना क क वे उस प को छोड़कर चली जाएँ य क उनके रहते,
कोई उस प को अपने अधीन नह कर सकता। दे वी माँ वह थान छोड़ने पर सहमत हो
ग और उ ह ने हनुमान को आदे श दया क शरद ऋतु के समय नौ रात तक होने वाली
उनक पूजा (नवरा ) वसंत ऋतु के समय भी क जानी चा हए। हनुमान ने उनक बात
वीकार कर ली। उसके बाद, दे वी सदा के लए लंका से वदा हो ग ।

भु मु का मे ल मुख माह ।
जल ध लाँ घ गये अचरज नाह ।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

कपी वराय नमः

अ याय 13

पवन-पु
सीता क खोज

उ लं य स धो, स ललं, स ललम्,


या शोकवाह नम, जनका मजाय,
अदाय तेनैव ददः लंकाम्,
नमा म तम, ांज लर-अंजनेयम्।

म आंजनेय को णाम करता ँ,


ज ह ने समु के ऊपर से छलाँग लगाई,
और जनक-पु ी सीता का ख र कया
और लंक ा नगरी को जला दया।

— ी हनुमत तो

नगर हरी से छु टकारा पाने के बाद, हनुमान सरलता से ाचीर पर प ँच गए और उ ह ने


वह से न द म ल त लंका नगरी का अवलोकन कया, जो उनके नीचे कालीन क भाँ त
बछ ई थी। शहर का नमाण अ यंत सावधानीपूवक कया गया था। उसके माग ब त
साफ़ थे। चार ओर शानदार भवन बने ए थे, जनसे खल खलाती हँसी और व भ न वा
यं का संगीत सुनाई पड़ रहा था। उनक जालीदार खड़ कयाँ म हीरे जड़े थे, जो चं मा
के काश म झल मला रहे थे। चं मा क चाँद जैसी रोशनी म लंका के महल दमक रहे
थे। व छ व साफ़ सड़क पर गुलाब क पँखु ड़याँ बखरी ई थ और उन पर चंदन का तेल
छड़का आ था। माग के दोन ओर व भ न आकृ तय व आकार क भ इमारत खड़ी
थ । हनुमान इन माग पर छपकर आगे बढ़ते रहे। वह शरद ऋतु क अं तम पू णमा थी
तथा चं मा अपने पूण वैभव के साथ आकाश म काशमान था। अ -र के समय
नशाचर, शकार का माँस खाने व र पान के लए बाहर नकलते ह। लंका म, वह समय
ो औ ो ो े े ो ेऔ े
मनोरंजन और आमोद- मोद मनाने, म दरापान करने, संभोग करने और स न रहने का
था। हनुमान को सब तरह क वला सतापूण आवाज़, वीणा एवं तुरही का संगीत तथा
ढोलक के मंद वर, बातचीत और रा स के ताली पीटने क आवाज़ सुनाई दे रही थ ।
इसके साथ ही ा ण ारा कए जा रहे वै दक मं ो चारण के मधुर वर भी सुनाई दे रहे
थे, ज ह इसी काय के लए रखा गया था। हनुमान ने रा स यो ा को दे खा, जो हाथ म
मशाल लए रा म ग त लगा रहे थे। उनम से कुछ ने शानदार और राजसी च -यु व
पहने ए थे, कुछ ने पंख से बने व पहने थे, कुछ ने ाकृ तक, सड़ी-गली चम लपेट ई
थी और कुछ सर मुँडाकर नंगे घूम रहे थे। उनके हाथ म ला ठयाँ, छु रे, भाले और बरछे थे।
इन यो ा ने रावण के पु इं जत के साथ मलकर आकाश और पाताल दोन को अपने
अधीन कर लया था।
अपनी दै वक वजय-या ा के दौरान रावण ने अनेक वै दक दे वता को परा त कर
दया था और वह उनसे अपने सेवक क तरह काम करवाता था। उसने इनम से दो सबसे
ख़तरनाक दे वता के साथ ब त वहार कया और उ ह लंका के द णी छोर पर बंद
बना लया। द ण दशा सबसे अशुभ मुख दशा मानी जाती है। नगर के नरी ण के
दौरान जब हनुमान द णी छोर पर आए तो उ ह एक च ान के साथ, कु प व काले रंग
क आकृ त बंधी ई दखाई पड़ी। हनुमान उसके पास गए और पूछा क वह कौन है तथा
बे ड़य से य बँधा आ है।
“म मृ यु का राजा, काल ँ और रावण ने मुझे इस पेट से बाँध रखा है और ये मं
से अ भमं त है।”
हनुमान वयं के अवतार थे। उ ह ने जैसे ही समीप जाकर पेट को छु आ, वह तुरंत
खुल गई और काल उस बंधन से मु हो गया। काल ने स न होकर हनुमान को वरदान
दया क जो हनुमान का मरण करेगा, उसे काल का भय नह रहेगा।
उस समय हनुमान ने एक क ण पुकार सुनी। वह आवाज़ का पीछा करते ए आगे गए
तो उनक भट अ न कारी ह श न से ई। उसे भी रावण ने बंद बना रखा था। रावण ने
उसे बाँधकर पैर से छत पर चमगादड़ क तरह उलटा लटका रखा था। उसका मुँह द वार
क ओर था ता क उसक कु , कसी पर न पड़े । मा त ने उसक बे ड़याँ काटकर उसे
भी मु कर दया।
कृत तापूवक श न ने हनुमान से कहा क य प, नीलम ारा उसके भाव से बचा
जा सकता है, याम वण के भगवान व णु सम त नीलम णय म े ह, इस लए व णु के
सभी भ , श न के कोप से सुर त रहगे। उसके बाद श न ने हनुमान को वरदान दया क
उनक पूजा करने वाले लोग को श न नह सताएगा और उ ह “संकट मोचन” क उपा ध
दान क । हालाँ क बाद क कथाएँ दशाती ह क जब े षपूण ह श न ने भलाई करने वाले
को भी सताया तो हनुमान को फर से उसके साथ कठोरता से नपटना पड़ा था।
हनुमान ने नगर के बीच म प ँचकर दे खा क एक छोट द वार से सोलह कार के
गुलाबी व णम रंग का बड़ा-सा वृ बना आ था, जसने रा सराज के महल और
उ ान को घेरा आ था। वे द वार के ऊपर से कूदकर उ ान म प ँच गए। व णम तंभ
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पर द पक चमक रहे थे और माग पर र न के चूरे से बनी बजरी बछ ई थी। आस-पास
छोटे -छोटे मं दर बने थे, जनसे अगरब ी क सुगंध आ रही थी। मं दर के चार ओर कुंज
एवं मंडप बने ए थे। उ ान के बीच म एक आवताकार थान था, उसके ऊपर व णम
गुंबद एवं र नज ड़त द वार तथा हीरे बखरे पड़े थे। हनुमान टोपीदार ह रय तथा
ख़तरनाक नशाचर प य से, जो परेशान कए जाने पर च लाने के लए श त थे,
बचते ए वहाँ से नकल गए। उ ह ने महल के चार ओर घूमकर दे खा। उ ह बड़े -से ांगण
म रावण का व यात पु पक वमान खड़ा दखाई पड़ा, जो उसने अपने भाई कुबेर से छ ना
था। वह फूल से बना आ था और ब त सुंदर था। वह वसंत-रथ, मन क ग त से चलता
था और धरती से दो अंगुल ऊपर हवा म खड़ा रहता था। हनुमान उस पर चढ़ गए और उसे
अंदर से दे खने लगे। उसे पूरी तरह दे खने के लए एक माह चा हए था। उसके अंदर पहाड़,
उ ान और पु प तथा वण के बने आसन थे और वह सब कुछ था, जसक क पना क जा
सकती है। उसके अंदर एक तरणताल और छ टे उड़ाता फ वारा भी था!
अंत म, हनुमान ने वमान से उतरकर महल के भीतर मैदान का नरी ण करने का
नणय कया य क यह प था क सीता उस वमान म नह थ । उ ह ने एक और ब त
बड़ा आंगन दे खा जहाँ रावण क सेना रहती थी। उ ह ने रावण के सेनाप तय के महल के
अंदर झाँका। वहाँ बड़ी सं या म घोड़े और हाथी खड़े थे।
उसके बाद हनुमान ने अपनी नाक के सहारे चलने का फैसला कया य क व भ न
कार के ंजन और पेय पदाथ क सुगंध ने उनके नथुन पर धावा बोल दया था। वे नडर
होकर उस क के भीतर चले गए जहाँ से वह वा द सुगंध आ रही थी। वहाँ क व णम
द वार अनमोल र न से ज ड़त थ । वह महल अ यंत सुदंर राजकुमा रय ने भरा आ था,
ज ह रावण उठा लाता था। पूरा महल व णम द पक से इस तरह का शत था मानो दन
का समय हो। वहाँ का य पूण आमोद- मोद और वला सता से यु था। सैकड़ कामुक
याँ अ त- त अव था म घूम रही थ । कुछ बाल खोलकर बखरे ए र न के बीच
कालीन पर लेट ई थ , कुछ नृ य कर रही थ एवं कुछ म दरापान म डू बी ई थ । उनके
माथे क बद उनके ेमी के हाथ फैल जाती, कमरबंद ढ ले हो जाते, व मसल जाते थे
और मालाएँ कुचल जाती थ । उनके भारी व के बीच झूलते मोती, द प- काश म जगमगा
रहे थे और भारी-भारी वण बा लयाँ कान म लटक ई थ । कुछ याँ, अपने व अपने
े मय के तन पर चंदन का लेप लगा रही थ और कुछ अपने े मय के गले म बाँहे डाले
ए थ । वे सभी अ -मादक अव था म थ और उनक वास से ल ग से बनी म दरा क
गंध आ रही थी। वे सभी आकषक, सुस जत, सुगंध से भर , घुमावदार आँख एवं लंबी
पलक व तरछ नज़र वाली थ और अपने प से पु ष को रझाने म पारंगत थ । रावण
ने संसार के व भ न थान क सबसे सुंदर य को पकड़कर लंका म रखा आ था।
ऐसा लग रहा था क अपने वमान म बैठकर संसार-भर के नागा , गंधव , दै य तथा
ऋ षय क कुँवारी क या को पकड़ना ही रावण का मु य काय था! अपने हरण के
समय, वे सब रोई व च लाई थ और आ म-ह या करने का ण कया था, कतु अंत म वे
सब उसके घातक आकषण के सामने हार ग य क रावण, ेम- ड़ा म पारंगत होने के
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लए भी स था। रावण को, उन क या ने, ज ह वह ज़बरद ती उठा लाता था तथा
उनके माता- पता ने, अनेक बार को शाप दया था। हनुमान ने उन सभी को दे खा और
सहज ही जान लया क उनम कोई भी ी सीता नह है। उनक क पना म, सीता
कां तहीन और बल थ , जो अपने प त क ती ा म बैठ , बादल से झाँकते पू णमा के
चं मा क भाँ त दख रही थ ।
हनुमान सफ़ेद प थर पर चढ़े और म णकार व चमकती वण सीढ़ पर कूदते ए क
के अंत तक जा प ँचे जो चाँद से मं डत था। उसके अंत म ह रता म ार था, जसम
जंबुम ण के द ते लगे ए थे। यह रावण के शयनक का वेश ार था। हनुमान ने धीरे से
ार का द ता घुमाया और अंदर चले गए। वह क व णम द पक के काश और सोती
ई य से भरा था। येक ी, सरी से अ धक सुंदर थी। वे सब म दरापान, नृ य और
संगीत से भरी शाम के बाद गहरी न द म सो रही थ । उनके सुगं धत बाल खुले ए और र न
बखरे ए थे। कमरबंद ढ ले हो गए थे और उनके रेशमी व इधर-उधर गरे पड़े थे।
अचानक हनुमान ने नशाचर के राजा रावण को दे खा जो फ टक, हाथीदाँत, चंदन
और वण के बने ब तर पर सो रहा था। वह ब तर असाधारण प से सुंदर था और
हनुमान उसे कुछ पल दे खते और उसक शंसा करते रहे। उसके ऊपर भु व क वेत
छतरी लगी ई थी। रा सराज अपने ब तर पर गहरी न द म सो रहा था। वह अ यंत
तेज वी था और उसक बाँह वशाल व बलशाली थ । उसका चौड़ा सीना वेत रेशम से
ढँ का था। उसके दस सर थे, जो ब त सुंदर थे और उसके कान म लंबी, भारी वण
बा लयाँ लटक ई थ । वह वेत व पहने, आराम से सो रहा था। एक ओर मेज़ पर रात
का बचा आ वा द भोजन पड़ा था। हनुमान उसके नकट गए और उ ह ने वहाँ से कुछ
फल उठाकर खा लए। वानर होने के कारण, उ ह ने पके ए भोजन क ओर यान नह
दया। अपना वा द भोजन करने के बाद, हनुमान शेष क का नरी ण करने लगे।
चार सुंदर याँ रावण के ब तर के चार कोन पर खड़ी उसे धीरे-धीरे पंखा झाल रही
थ । अनेक आकषक याँ प र य अव था म उसके आस-पास सोई ई थ । उनम से
कुछ ने हाथ म वा यं पकड़े ए थे जो शायद उ ह ने सोने से पूव रावण के लए बजाए
ह गे। अचानक हनुमान ने एक सबसे सुंदर ी को अलग श या पर सोते ए दे खा। वह
इतनी सुंदर थी क एक पल के लए हनुमान को लगा क वही सीता है, कतु फर उ ह ने
सोचा क सीता न तो इस तरह आभूषण से स जत ह गी और न ही वह इतने आराम से सो
सकती ह। हनुमान ने जान लया क वह ी लंका क रानी, मय क पु ी और रावण क
मु य प नी, मंदोदरी होगी जो अपनी सुंदरता और शु चता के लए व यात थी।
ब त पहले, रावण ने सुना था क शव क प नी, पावती संसार क सबसे सुंदर ी ह।
उ ह ा त करने क इ छा से रावण ने शव को स न करने के लए कठोर तप या क ।
शव ने स न होकर उसे वरदान माँगने को कहा। रावण ने तुरंत पावती को माँग लया!
शव को ववश होकर उसे पावती को लंका ले जाने क अनुम त दे नी पड़ी। जब पावती ने
रावण को अपनी ओर आते दे खा तो उ ह ने रावण को सबक़ सखाने का नणय कया।
उ ह ने एक मादा मंडूक को पकड़ा और उसे सुंदर ी म बदलकर उसका नाम मंदोदरी रख
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दया। रावण ने जब मंदोदरी को दे खा तो वह उसे पावती समझकर अपने साथ लंका ले गया
और अपनी रानी बना लया। अ य मादा मंडूक क भाँ त, मंदोदरी भी रावण के साथ केवल
वषा ऋतु के समय ही र त या करती थी, कतु वह अ यंत न ावान थी और उसने सदा
रावण को बना शत अपना पूण सहयोग दया।
एक अ य कथा के अनुसार, मंदोदरी, सीता क माता ह। एक बार रावण ने एक वशाल
य कया जसम उसने ऋ षय के र क आ त द । रावण ने हज़ार ऋ षय के सर
काटकर, उनके र को एक मतबान म रखा और उसे मंदोदरी को सँभालकर रखने के लए
दे दया। रा के समय, यास से ाकुल होकर मंदोदरी क न द खुली तो उसने भूल से उस
मतबान म रखा र पी लया। शरीर म ऋ षय का र व होने के बाद, मंदोदरी
गभवती हो गई। नयत समय पर, उसने एक क या को ज म दया। उस समय, यह
भ व यवाणी ई क वह क या रावण क मृ यु का कारण बनेगी। अपने प त से अ य धक
ेम होने के कारण, मंदोदरी ने उस क या को समु म फक दया। जल के दे वता व णदे व ने
उस क या को बचा लया और उसे दे वी पृ वी को स प दया। यही वह क या थी जो
वदे हराज जनक को एक य के आरंभ म खेत म हल चलाते समय मली थी। जनक ने
इस क या का नाम सीता रख दया य क वह खेत म हल चलाने से बनी लक र म से ा त
ई थी।
हनुमान ने जब पहली बार क म वेश कया था तो, उ ह कामुक मु ा म लेट
आकषक य को दे खने म शम महसूस हो रही थी। परंतु, बाद म उ ह महसूस आ क
असाधारण सुंद रय के बीच घूमने के बाद भी उनका म त क पूरी तरह वर और
अ भा वत था। वानर जा त संयम रखने के लए व यात नह है! परंतु अ य वानर से
अलग, हनुमान चारी थे। उ ह ने कसी ी के साथ प नी जैसा वहार करने के वषय
म कभी नह सोचा।
समय न कए बना, हनुमान, च द घा से होते ए अ य कई थान पर गए कतु
उ ह सीता नह मल । वह नराश हो गए और उ ह समझ म नह आ रहा था क सीता को
कहाँ खोज। उ ह यह भी संदेह आ क कह रावण ने सीता क ह या न कर द हो। जतनी
जगह संभव हो सकता था, वे सीता को खोजने का यास कर चुके थे। उ ह ने सोचा क इस
खद समाचार के साथ राम के पास लौटने से अ छा होगा क वे अपने ाण याग द। यह
वचार मन म आते ही उनक आँख म आँसू आ गए। जस ण वे यह सोच रहे थे क उ ह
काय पूण कए बना वापस लौटना पड़े गा, उ ह एक उ ान दखाई पड़ा, जो उ ह ने अभी
तक नह दे खा था। उसम वैसे तो अनेक कार के वृ थे, कतु अशोक के पेड़ अ धक
सं या म थे। उ ह ने चारद वारी पर छलाँग लगाई और उ ान को दे खने लगे। वह उ ान
सुगं धत फूल से लदे अनेक कार के वृ से भरा था। उन पेड़ पर फूल से लद लताएँ
लपट ई थ और सब तरफ़ ठ क उसी तरह क ताज़ी व शानदार सुगंध ा त थी, जैसी
महल के भीतर कृ म इ से आ रही थी। वहाँ र न से मं डत, एक अ यंत सुंदर तालाब था
और उसक सतह कमल के फूल से ढँ क ई थी। वह उ ान जस अ छे ढं ग से व थत
था, उससे पता लगता था क वह रावण का सबसे य थान था। हनुमान, छलाँग लगाकर
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एक अशोक वृ पर चढ़ गए तथा वयं को उसके घने प म छपा लया और वह से
उ ान का नरी ण करने लगे। रात बीतने वाली थी और उ ह सीता का अभी तक पता नह
लग पाया था। प य ने उठकर चहचहाना और आकाश म उड़ना शु कर दया था और
वे हनुमान क चपलता से परेशान होकर ग़ से से चहक रहे थे। कूट पवत से सूय नीचे
उतरकर लंका म वेश कर गया और उसने लंका क व णम द वार को मानो व लत
कर दया था। मं दर क घं टयाँ बजने लग और रावण के शयनक म चारण, लंकाप त को
जगाने के लए राजा क तु त गाने लगे।
राम ने हनुमान को बताया था क सीता को फूल ब त पसंद थे, इस लए हनुमान को इस
बात क आशा थी क सीता घूमती ई उस मनमोहक वा टका म आ सकती ह। ऐसा लग
रहा था क प ल वत झा ड़य और झरन व तालाब से यु वह वा टका, सीता के लए ही
बनाई गई थी। अ त होते चं मा के काश म, हनुमान को सफ़ेद तंभ वाला एक मं दर
दखाई दया। उसक सी ढ़याँ मूँगे क बनी थ जनके ऊपर वण क पत चढ़ थी। वह
मं दर चं मा क रोशनी म चमक रहा था। हनुमान, जैसे ही उसके पास गए, उ ह वहाँ एक
ी दखाई पड़ी। उ ह व वास हो गया क वे ही राम क प नी सीता ह। वे ज के चाँद क
तरह कां तहीन और लान दखाई दे रही थ । वे उपवास रखने के कारण ब त बल हो गई
थ । उ ह ने गंदे-से पीले व पहने ए थे और उनके तन पर कोई आभूषण नह था। उनक
सुंदर आँख म आँसू थे, जो लगातार ज़मीन पर गर रहे थे। ख उनका साथी बन गया था।
उनके लंबे काले केश एक चोट म बँधे थे, जो उनक जाँघ पर लटक रही थी। सीता,
जनका आज तक ख से सामना नह आ था, अब सफ़ ख के साथ रहती थ । वे गंद
और अ त- त अव था म धुएँ से ढँ क अ न शखा जैसी लग रही थ । हनुमान तुरंत जान
गए क वे राम क प नी और वदे ह क राजकुमारी सीता ही ह। उ ह चार ओर से रा सय
ने घेर रखा था। हनुमान को अयो या क रानी को ऐसी बुरी दशा म दे खकर ब त ख आ।
अब तक जनक र ा कमल-लोचन राम करते थे, आज उ ह क र ा व आँख और
वकृत शरीर वाली रा सयाँ कर रही थ ! वे भयंकर रा सय से घरी ई थ जनम से
कुछ क एक आँख थी या एक कान था और कुछ के कान ही नह थे, तो कुछ क नाक
उनके माथे पर लगी ई थी। कुछ के बाल थे, कुछ गंजी थ , कुछ कुबड़ी तो कुछ के चेहरे
बकरी, लोमड़ी, ऊँट और घोड़े जैसे थे। कुछ के कान इतने बड़े थे क उनका पूरा शरीर ढँ क
गया था, तो कसी क तीन आँख थ । कुछ के पेट लटके ए और फड़फड़ाते ए ह ठ और
रेती जैसी ककश आवाज़ थी। कुछ धूत और कुछ नदय दखाई दे रही थ । वे सब ब त ही
कु प और डरावनी थ । रावण ने उ ह वशेष प से चुनकर वहाँ भेजा था ता क वे सीता
को डराकर रावण क इ छा पूण करवा सक। इन भयानक रा सय से घर सीता, वृ के
नीचे बैठ अपने चेहरे को हाथ म थामे, हताशा क तमा लग रही थ ।
हनुमान ने सोचा, “यह न चय ही सीता ह। आभूषण का अभाव और गंदे व तथा
बल और कमज़ोर होने के बाद भी उनक सुंदरता छप नह रही है। राम ने जैसा बताया था
- उ कृ भँव, मनोहर, गोल तन, बेरी के समान लाल ह ठ, मोर के समान नीला कंठ,

ी ी ै े े े े ँ े े े ी
पतली कमर, कमल क पंखुड़ी जैसे ने - ये सब वशेषताएँ उनके ख के आवरण म से भी
प दखाई दे रही ह।”
सीता, खी अव था म टू ट आशा क तमा क भाँ त, तप वनी प म नीचे बैठ
थ । हालाँ क उ ह ू रतापूवक उनके प त से अलग कर दया गया था, ले कन उनका मन
सफ़ अपने प त म रमता था। उनके ह ठ हर पल ‘राम, राम’ का मं जपते थे। राम को इसी
ी क तलाश थी। हनुमान ने प दे खा क तन, मन और आ मा से सीता, सफ़ राम क
ह।
“ये सफ़ राम के लए ह और राम सफ़ इनके लए ह। ये दोन , एक- सरे से अ य धक
ेम करते ह, और इसी लए दोन अब तक जी वत ह। आकाश के सम त तारे टू टकर नीचे
गर सकते ह, धरती फट सकती है, अ न ठं डी हो सकती है और जल नीचे से ऊपर क ओर
वा हत हो सकता है, कतु सीता कभी राम से वमुख नह हो सकत !” हनुमान ने मन म
राम को णाम कया और धीरे-से कहा, “ भु, मने सीता को खोज लया है!”
हनुमान, वदे हकुमारी क दशा दे खकर ब त खी थे। “ नय त सवश मान है,”
उ ह ने मन म सोचा, “अ यथा इस नद ष ी को इस कार क य भोगना पड़ता।
इनक र ा तो राम जैसे उ कृ प त और ल मण कर रहे थे। इनके प त ने इनके लए
जन थान म हज़ार रा स का वध कया था य क रावण क बहन, इ ह परेशान कर रही
थी और अब उसी रावण ने इ ह बंद बना लया है। इतनी भयानक रा सय ने इ ह घेर रखा
है तथा इनके पास रोने के लए एकांत थान भी नह है। इ ह यह वा टका भी मनोहर नह
लग रही। इनक इनके दय म है और इनका दय राम के पास है।”
हनुमान अभी सोच ही रहे थे क वे सीता के सामने कस तरह जाएँ क तभी उ ह महल
के भीतर से संगीत का आवाज़ सुनाई पड़ी। वह मु त का समय था। सुबह होते ही,
वेद के उ चारण ारा चारण, लंका के रा सराज को जगाते थे। भोर के वागत के लए
ढोल और वीणा बजने लग । सव हो रहे य व अनु ान से नकलती धूपब ी क सुगंध
पूरे नगर म फैल गई थी। घी के द पक से रावण का स कार कया गया। सुबह उठते ही,
रावण के मन म सबसे पहले सीता का वचार आया। वह सीता के अ त र कुछ और नह
सोच पाता था। य प, उसके महल म तीन लोक से लाई ग अनेक सुंदर याँ मौजूद थ
जो उसक इ छा पूण करने को सदा त पर रहती थ , उसका मन उसी एक ी म रमा आ
था, जो उसे दे खती नह थी तथा उसका तर कार भी करती थी! रावण ने अपने जीवन म
कसी ी ारा इतना वरोध नह झेला था। उसे हर कार क ी के साथ वहार का
ब त अनुभव था। सीता ारा कए जा रहे वरोध से रावण क ुधा बढ़ती जा रही थी। यह
उसके लए चुनौती थी और वह उस ग को कसी भी मू य पर अपने अधीन करना चाहता
था। उसे व वास था क कोई भी ी अ धक समय उसका वरोध नह कर सकती और
कुछ समय बाद सीता भी अ य य क भाँ त उसक इ छा के सामने झुक जाएगी। रावण
बलपूवक भी अपनी इ छा पूरी कर सकता था ले कन उसे शाप मला आ था क य द
उसने कसी ी के साथ, बना उसक सहम त के संभोग कया तो उसके सर के टु कड़े हो
जाएँगे, इस लए वह सीता के साथ ऐसा नह कर सकता था। त दन सुबह सोकर उठते ही,
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अशोक वा टका उसे आक षत करती थी और वह कोई अ य काय करने से पहले, सीधा
वह आता था।
जैसे ही तुरही व करताल क व न नकट आ गई, आंजनेय ने ऊपर दे खा क रावण
सुंदर य के दल के साथ आ रहा था। उनम से अ धकतर रात के नशे के कारण अभी
तक न द म थ , परंतु वे सब पंखे, व णम द पक, मसनद तथा म दरा के घड़े लेकर तेज़ी से
अपने वामी के पीछे चल रही थ । वह जैसे ही उस वृ के नकट प ँचा, जसका सहारा
लेकर सीता बैठ थ , उसने वहाँ उप थत रा सय को वहाँ से हट जाने को कहा और
अपनी प रचा रका को र खड़े रहने का नदश दया ता क वे उसके णय नवेदन को न
सुन सक! हनुमान वृ से थोड़ा नीचे उतर आए ता क लंकेश को नकट से दे ख सक।
उ ह ने वयं को छपा लया और प के बीच से दे खने लगे। उ ह ने रावण को सफ़ सोते
ए दे खा था। वह इस समय और भी शानदार लग रहा था। उसने े क़ म के सफ़ेद व
पहने ए थे, जो उसके पीछे बादल क तरह लहरा रहे थे और उसने ब त-से शानदार
आभूषण पहन रखे थे जो कसी भी ी को रझाने के लए पया त थे।
रावण क पदचाप सुनकर सीता भय और घृणा से काँपने लग । इतनी बुरी थ त के
बावजूद, उनका स दय बादल म पू णमा के चं मा क भाँ त चमक रहा था। उनक एक
चोट बाएँ कंधे पर लटक ई थी। वे अपने व के द न अवशेष से वयं को ढँ कने लग ।
उ ह ने अपने हाथ आगे क ओर मोड़कर अपने व थल को रावण क पैनी और कामुक
से बचाने का यास कया।
सीता ारा वयं को ढँ कने के द न यास को दे खकर रावण ने कहा, “ म थला क
राजकुमारी! तुम अपने स दय को मेरी से छपाने का यास य कर रही हो? मुझे
व वास है क तीन लोक म तुमसे अ धक सुंदर और कोई नह है। तुम मुझसे आँख
चुराकर मुँह य फेरती हो? तु ह सव े रेशमी व और मू यवान आभूषण पहनने
चा हए, फर भी तुम नीचे बैठती हो, मैले, गंदे व पहनती हो, कुछ खाती नह हो, और
अपने हाथ को मोड़कर मुझसे अपना स दय छपाती हो। इसके बाद भी मेरे महल क
सम त याँ तु हारे सामने ल जत हो जाती ह। म तु हारी एक मु कान के लए इन
सबको छोड़ सकता ँ! मने तु हारा हरण सफ़ इसी लए कया था य क म तु हारी
अ व वसनीय सुंदरता पर मो हत हो गया था। म तुमसे ाथना करता ँ क तुम मेरे नवेदन
को वीकार कर लो। तु हारा प त कायर है, अ यथा वह तु ह यहाँ से छु ड़ाने के लए ब त
पहले आ गया होता। उसक ती ा म अपना यौवन और स दय न मत करो। मुझे
वीकार कर लो। म तु ह अपनी रानी बना लूँगा और य द तुम चाहोगी, तो ये पूरा संसार तु ह
दे ँ गा! तु हारे सुंदर बाल कड़े हो गए ह, तु हारे व मैले और फटे ए ह और तुम भूखी व
बल हो, फर भी म तु हारी ओर आक षत हो रहा ँ। मुझे रात- दन तु हारा चेहरा दखता
है। या तु ह पता नह चल रहा क म तु हारे ेम म द वाना हो गया ँ? तुमसे मलने के
बाद, मेरी अ य रा नय को दे खने क भी इ छा नह होती। यौवन और स दय ब त कम
समय के लए मलते ह। इ ह थ खी होकर न मत करो। आओ, खी होना छोड़ो और
मेरे ेम को वीकार करो। उठो और सुंदर रेशम व साटन के व पहन लो। आभूषण पहनो
औ ओ े ौ े ै े ेऔ
और इ लगाओ। तु हारे वलंत यौवन के लए यह फ़श उपयु नह है। तुमने मुझे और
मेरे वैभव को दे खा है। इसक तुलना म राम के पास या है? वह सफ़ एक भ ुक है, जो
व कल व पहनता है और जसके पास कहने के लए अपना रा य तक नह है। तुम मेरी
बात का व वास करो क तुम उसे अब कभी नह दे ख पाओगी। तु ह मेरा यह कृ य शायद
अनु चत लगता होगा, कतु रा स के नयमानुसार, कसी अ य पु ष क प नी को अपना
लेना पूरी तरह वीकाय है। तुम वयं को इस तरह य क दे रही हो? म बड़ी सरलता से
अपनी इ छा पूरी कर सकता ँ, कतु मने धैय रखा आ है य क म चाहता ँ क तुम
वे छा से मेरे पास आओ। म सफ़ तु हारा शरीर नह , ब क तु हारा ेम पाना चाहता ँ।
मने ये सब पहले कभी कसी अ य ी से नह कहा। परंतु तु हारा समय और मेरा धैय
समा त हो रहा है। मने तु ह सोचने के लए एक वष का समय दया था और वह अव ध अब
समा त होने वाली है!”
रावण के इस उ भाषण के दौरान सीता ने एक बार भी उसक ओर नह दे खा। य प,
वे उससे डरती थ और उसक कामुक बात से परेशान थ , उ ह ने अपने फटे -पुराने व
के साथ अपने जीण-शीण वा भमान को भी कसकर पकड़ रखा था। सीता ने बना आँख
उठाए, नीचे से एक तनका उठाया और उसे अपने सामने रखकर इस तरह बात क मानो वे
लंकेश से बात कर रही ह ! यह उनके वहार का च ा मक अनु मारक था क उ ह रावण
क कोई चता नह थी!
घृणा के गहन भाव म भरी सीता ने कहा, “मूख हो तुम! म रघुकुल के राम क प नी ँ।
मेरे वषय म मत सोचो। अपनी प नय पर यान दो। षत दय वाले राजा क यह नगरी
लंका और इसका सम त रा स कुल, मेरे प त के ोध क वाला म भ म हो जाएँगे! राम
स ण के भंडार ह। म उनक प नी होने के नाते, कसी अ य पु ष क ओर कैसे दे ख
सकती ँ? य द तुम अपनी और अपने कुल क र ा करना चाहते हो तो राम को स न
करने का यास करो। उनके सामने जो समपण कर दे ता है, वे उसके त उदारता एवं
क णा का भाव रखते ह। परंतु य द तुम समपण नह करोगे तो वे जतने उदार ह, उतने ही
कठोर भी ह। उनके बाण सप क भाँ त तुम पर हार करगे और तु ह न कर दगे! याद
करो, उ ह ने जन थान म कस कार तु हारी सेना का अकेले ही संहार कर दया था। तुम
अपने कुल का नाश य करवाना चाहते हो? य द कोई शासक अपनी इ छा का दास हो
जाए तो उसका पूरा रा य न हो जाता है। लंका का वनाश न चत है। तुम कतने मूख
हो, जो मुझे धन और आभूषण का लालच दे रहे हो? मेरे लए राम वैसे ही ह, जैसे काश
के लए सूय है। य द तुम मुझे राम को वापस लौटा दोगे, तो तु ह मेरी कृपा मल सकती है
कतु मेरा ेम पाने क आशा मत करो य क वह पूण पूरी तरह राम के लए है! तुमने
उनक य प नी का हरण कया है, वे य तु हारा वध नह करगे? तुम वयं को साहसी
कहते हो, परंतु तुम वेश बदलकर आ म म घुसे और तुमने उस समय मेरा हरण कया,
जस समय मेरे प त वहाँ नह थे! या कोई साहसी ऐसा करता है? शी ही, मेरे
वामी यहाँ प ँचकर मुझे मु करवाएँगे और अपने बाण से तु हारा नाश करगे। इस लए
सावधान रहो! तुम और तु हारा वंश पूरी तरह समा त हो जाओगे!”
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सीता क बात सुनकर रावण को ोध आ गया। वह बोला, “म तुमसे जतना अ धक
वन होकर बात करता ँ, तुम उतनी ही अ धक अस हो जाती हो। तु हारे त मेरा ेम
और तु हारा ी होना ही सफ़ कारण ह क मने तु हारा वध नह कया। मने तु ह सोचने के
लए बारह मास का समय दया है। उसम से अब केवल दो माह शेष रह गए ह। उसके बाद
तु ह या तो मेरे साथ सोना पड़े गा अथवा मेरा ना ता बनना पड़े गा!”
सीता अंदर से घबरा ग कतु उ ह ने ो धत वर म उ र दया, “अभागे, ! न चय
ही, अब तेरे दन गनती के रह गए ह। या यहाँ कोई नेक नह है, जो तुझे समझा
सके? मुझे आ चय होता है क जब तू मुझे कामुक नज़र से दे खता है तो तेरी ये भ आँख
न य नही हो जात । ऐसे श द बोलते ए तेरी ज ा न य नह हो जाती?”
रावण ने ग़ से से धधकती आँख से सीता क ओर दे खा और कहा, “अरे ी! तू एक
ऐसे पु ष के त सम पत है, जो भा य से त और संसाधन से वं चत है। म आज ही
तुझे समा त कर ँ गा। तू दया क पा नह है!”
ऐसा कहकर रावण सीता क र ा हेतु तैनात रा सय क ओर मुड़ा और
कठोरतापूवक बोला, “यह सु न चत करना तु हारा दा य व है क यह ी आज दन
समा त होने से पूव मेरी इ छा को वीकार कर ले। इसे डराओ, फुसलाओ और य द कोई
तरीक़ा काम न करे तो बल का योग करो अथवा जो तु ह ठ क लगे ले कन इसे मेरी इ छा
के लए तैयार करो!” ऐसा कहकर, ग़ से म भरा रावण, अपने महल क ओर चला गया,
जहाँ उसक अनेक प नयाँ सेवा-स कार के लए उसक ती ा कर रही थ , जो उसे अब
बलकुल पसंद नह आती थ ।
कुछ य को, जो रावण के पीछे आई थ , सीता के लए ख हो रहा था। परंतु उनम
रावण से कुछ कहने का साहस नह था। उनम से कुछ ने इस अवसर का लाभ उठाते ए
रावण के गले म अपनी कोमल बाँह डालकर उसे रझाने तथा सीता का थान लेने का
यास कया, कतु रावण ने उ ह झड़क दया और भारी-भरकम क़दम से फ़श को
हलाता वहाँ से चला गया।

राम रसायन तु हरे पासा।


सदा रहो रघुप त के दासा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

सीता शोक वनाशकाय नमः

अ याय 14

संकट मोचन
क के वनाशक

मकटे य महो साः,


सवशोक वनाशका,
श ुन् संहार, मम र ा,
ीयम् दपाय-मे भो।

हे ई वर! म आपसे सम त
शुभाशीष क ाथना करता ँ,
आप वानर म े ह,
आप सम त ख को हरने वाले ह,
मेरी संक ट से र ा क जए।

—हनुमत तु त

रा सयाँ, जो रावण के आगमन के समय सो रही थ , अब पूरी तरह जाग ग थ और दए


गए आदे श का पालन करने के लए तैयार थ । उ ह ने इतने समय तक वयं को सीता को
हा न प ँचाने से रोका आ था य क यही रावण क इ छा थी, कतु अब उ ह मनचाहे
तरीक़े से काम करने क छू ट थी। वे सब सीता क ओर भाग । वे व पत और कु प थ ।
कसी का एक कान था या दो कान थे, जो कमर तक लटके ए थे, कसी क एक आँख
अथवा तीन आँख थ और कुछ के सर और पैर हाथी, घोड़े या गाय जैसे थे। कुछ के
वशाल सर या वशाल मुँह, वशाल ज ा और मुड़े ए नाख़ून थे। वे सब हँसती ई सीता
पर टू ट पड़ और अपनी तीखी बात से सीता को परेशान करने लग ।
“तुम कैसी मूख ी हो, जो रावण जैसे महान पु ष क बात नह मानती। वे अपनी
प नी मंदोदरी को भूलकर तु ह अपनी मु य रानी बनाने को तैयार ह। तुम कतनी मूख हो
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जो उनका इतना अ छा ताव ठु करा रही हो। उ ह के आदे श से वृ पर फूल आते ह
और बादल वषा करते ह। य द वे न चाह, तो सूय और चं मा चमकना छोड़ द। उनक बात
न मानकर तुम ब त बड़ी मूखता कर रही हो!”
सीता ने ोध म भरकर उ र दया, “तुम लोग मुझे घ टया और पाप से भरी सलाह दे
रहे हो। य प मेरे प त इस समय असहाय ह तथा रा य से वं चत ह, फर भी म उ ह के
त न ावान र ँगी। य द तुम चाहो तो मुझे मारकर खा जाओ, कतु म अपने ण का याग
नह क ँ गी!”
एक अ य रा सी ने ज़ोर से घोषणा क , “मने जस दन से इसे दे खा है, तभी से मेरी
इ छा इसका वा द व थल और बेरी जैसे ह ठ और इसका यकृत व त ली खाने क है।
आओ, हम सब मलकर दावत उड़ाएँ। म दरा ले आओ और फर हम इसके टु कड़े करके
इसे मज़े से खाएँगे!” ऐसा कहकर उसने बोट चाट और अपने काले, मोटे ह ठ से लार
टपकाने लगी। सीता डर और घृणा से पीछे हट ग तथा बुरी तरह रोने लग ।
प म छपे बैठे हनुमान, उन रा सय के हाथ सीता को इस तरह परेशान होता दे ख
अपने ोध को रोक न सके। परंतु वे जानते थे क अभी सामने आने का उ चत समय नह
था।
सीता पी ड़त हरण क तरह वलाप कर रही थ । रावण के आने से पूव, उनके मन म
जतनी भावनाएँ दबी ई थ , वे सब बाहर आ ग और वे दय- वदारक ढं ग से रोने लग ।
“हे राम! हे ल मण! आप कहाँ ह? आप मुझे मु करवाने कब आएँगे? मेरा यह दय
अव य ही लौह धातु से न मत है, तभी यह इतना खी होने के बाद भी फटता नह है! म
कतनी अभागी और ँ, जो अपने प त से अलग होने और क सहने के बाद भी जी वत
ँ। मुझे अब यह व वास हो गया है क नयत समय से पूव मृ यु भी नह आती, अ यथा म
अपने य राम से अलग होकर, इस कामुक पु ष के महल म, इन भयानक ा णय के
बीच भी कैसे जी वत ँ?” ऐसा कहकर सीता फ़श पर गर पड़ और फूट-फूटकर रोने
लग ।
संदेह से त होने के कारण, सीता फर उठ । “मेरे प त को कस तरह पता लगेगा क
म यहाँ ँ और वे कस कार समु लाँघकर यहाँ प ँचगे? मेरी मृ यु नकट है। परंतु म
भयभीत नह ँ। इस रावण के लोभन म फँसने से मर जाना बेहतर है! ऐसा तीत
होता है क मुझे कमल-नयन राम को दे खने से पूव यम के दशन हो जाएँगे!”
सीता के खभरे वचन तथा रा सय के ू र श द सुनकर, जटा नाम क एक वृ
रा सी सीता के पास आई। उसने अ य रा सय को वहाँ से र कर दया और फर उसने
उ ह एक व सुनाया जो उसने दे खा था।
“सुनो रा सय ! मने कुछ दे र पहले एक व म, राम को व णम पालक म बैठकर
आते दे खा था। उ ह ने वेत व और द मालाएँ पहनी थ । इसके बाद सीता का अपने
प त से मलन हो गया। मने दे खा क रावण का सर मुँडा आ था और वह अपने वमान से
नीचे गर रहा था। उसके शरीर से तेल टपक रहा था, उसने काले व पहने थे और उसके
गले म लाल व लपटा आ था। मने यह भी दे खा क गध से जुते रथ म बैठ एक ी
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उसे ख च रही थी। वह पूरी तरह मदहोश था और उसक बु काम नह कर रही थी। काले
व पहने वह ी, उसे द ण दशा म ले जा रही थी। उसका पु , इं जत तथा भाई
कुंभकण भी उसके पीछे जा रहे थे। केवल उसका सबसे छोटा भाई, वभीषण पीछे रह गया
था। मने दे खा क राम का त बनकर आया एक चपल वानर लंका को जला रहा था।”
“इस लए म तुम लोग से अनुरोध करती ँ क सीता का यान रखो। दे खना, इसे कोई
हा न न प ँचे अ यथा तु हारा भी वही हाल होगा, जो रावण और उसके कुल का होने वाला
है!”
यह सुनकर, रा सयाँ वहाँ से हट ग और अपने-अपने थान पर लौट ग । सीता वृ
के नीचे अकेली रह ग । वे अपने बंधन के अं तम छोर तक प ँच गई थ और उससे अ धक
आगे जाना संभव नह था। वे शारी रक व मान सक प से अ यंत बल महसूस कर रही
थ और उ ह ने रावण के दोबारा आने से पूव अपने ाणांत करने का नणय कर लया।
इससे पहले क रावण उ ह परेशान करके मार दे , सीता ने अपनी कमर पर बँधा व
नकालकर पेड़ से लटक जाने का फैसला कर लया। हालाँ क, उसी ण सीता को अपने
शरीर म कुछ अ छे संकेत होते महसूस ए। उनक बा आँख, बाँह और जाँघ फड़कने
लग । इ ह ी के संदभ म अ यंत शुभ माना जाता है, इस लए सीता ने फर से साहस
जुटाया और वयं को वह नराशाजनक यास करने से रोक लया।
हनुमान अपने थान पर बैठे सब कुछ दे ख रहे थे। उ ह लगा क वयं को कट करने
और राम क प नी को सां वना दे ने का यही उ चत समय है।
उ ह ने सोचा, “मुझे सीता को खोजने तथा श ु के बल का अनुमान लगाने के लए
कहा गया है, कतु य द मने जाने से पूव सीता को सां वना नह द तो म अपने दा य व म
सफल नह माना जाऊँगा। यह भी संभव है क राम के यहाँ प ँचने से पहले ही, जनक-
पु ी अपने ाण का अंत कर ल। य द म अपने वानर प म नीचे कूदा तो ये डर जाएँगी
य क ये इन रा सय के कारण पहले से भयभीत ह।”
हनुमान ने इस मामले पर गंभीरता से वचार कया और सीता के भय को कम करने क
योजना बना ली। उ ह ने ब त मधुर वर म राम के जीवन क कथा को गाना आरंभ कर
दया और अंत म कहा क वे वयं राम के त बनकर आए ह। सीता इस कथा को सुनकर
ब त सन और उ सुक होकर इधर-उधर दे खने लग क वह आवाज़ कहाँ से आ रही
थी। अपने बखरे बाल को ठ क करते ए उ ह ने वृ के ऊपर दे खा और उस ाणी को
खोजने का य न करने लग जो उनके पी ड़त दय म आशा क करण लेकर आया था। वे
घने प के पीछे हनुमान को नह दे ख सक । उनक चार ओर घूम रही थी ले कन
उ ह कोई दखाई नह दया। इस बीच, रा सय ने सीता को मनाने के यास छोड़ दए थे।
कुछ रावण को बताने चली ग और शेष रा सयाँ, वृ के नीचे भ मु ा म गहरी न द
सो रही थ ।
हनुमान ने इसे उ चत समय जानकर धीरे-से नीचे क शाखा पर छलाँग लगाई जहाँ से
उ ह दे खा जा सकता था। आ ख़र म, सीता क उ सुक राम- त हनुमान पर पड़ गई,
जो उनके लए आशा व स नता के संदेशवाहक बनकर आए थे। उ ह ने सफ़ेद बाल और
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लाल मुँह के एक छोटे -से यारे वानर को नकट से दे खा जो उ ह प के बीच से दे ख रहा
था। हनुमान क आँख तरल वण क भाँ त थ और वे सीता को दे खकर मु करा रहे थे। यूँ
तो उ ह दे खकर नह लगता था क वे कसी तरह क हा न प ँचा सकते ह, कतु सीता के
मन म संदेह था। पछले कुछ माह म सीता को इतनी बार परेशान कया व छला जा चुका
था क उ ह येक व तु एवं पर संदेह होने लगा था। सीता को लगा क वे व दे ख
रही ह, इस लए उ ह ने सहायता के लए राम को पुकारा।
“इस म का या कारण हो सकता है? यह न चय ही उस रावण क कोई नई
चाल है।”
हनुमान समझ गए क सीता या सोच रही ह। उ ह लगा क अब उ ह सीता के सम
कट हो जाना चा हए। वे धीरे-से नीचे कूदे और हाथ जोड़कर सीता के सम खड़े हो गए।
उ ह ने अपने हाथ उठाए और सीता क शंसा करने लगे।
“हे सुंदर अंग वाली दे वी, आप कौन ह? आप कोई दे वी ह या अ सरा ह? मुझे बताइए
क आप कसके लए खी हो रही ह? मुझे बताइए, या आप सचमुच राम क प नी सीता
ह, ज ह रावण उठाकर ले गया था?”
ये श द सुनकर सीता ब त स न और उ ह ने कहा, “हाँ, म महराज दशरथ क
पु -वधू और राम क प नी ँ। मेरे पता वदे ह नरेश ह तथा मेरा नाम सीता है। म अपने
प त के साथ वन म गई थी, जहाँ रावण ने मेरा हरण कर लया और मुझे यहाँ ले आया।
रावण ने मुझे उसक इ छा मान लेने के लए दो माह का समय और दया है। य द उससे
पहले राम यहाँ नह आए तो म अपना जीवन समा त कर लूँगी। परंतु मुझे बताओ क मेरे
लए राम नाम का अमृत लाकर मुझे नया जीवन दे ने वाले, तुम कौन हो?”
हनुमान ने यान से सीता क बात सुनी और फर वन तापूवक कहा, “हे दे वी! म यहाँ
आपके प त का त बनकर आया ँ। आपके प त जी वत ह और व थ ह और वे मुझसे
आपका हाल-चाल जानने के लए मेरी ती ा कर रहे ह। वे आपके लए रात- दन खी
होते ह और उ ह ने मुझे त बनाकर आपके पास यह कहने को भेजा है क वे शी ही,
रावण को मारकर आपको यहाँ से मु करने के लए आएँगे।”
आंजनेय के मुख से ऐसे सुखदायी वचन सुनकर सीता के भीतर ख़ुशी क लहर दौड़
गई। वे कई महीन से नराशा के अंधेरे म जी रही थ और उ ह ने अपनी मु क आशा
लगभग छोड़ द थी। परंतु य ही हनुमान थोड़ा नकट गए तो सीता को, जो रावण ारा
अनेक बार छली गई थ , फर से संदेह होने लगा क कह रावण वेश बदलकर उ ह पथ
न कर रहा हो। सीता का मुँह सूखने लगा और उनके हाथ-पैर बल पड़ने लगे। वे जस
शाखा को पकड़कर खड़ी थ , उसे छोड़कर फ़श पर बैठ ग ।
“हे रा वनपाल! म जानती ँ क तुम अनेक प धारण कर सकते हो। तथा प, मेरा
मन कहता है क तुम रावण नह हो। म इसे ठ क से प तो नह कर सकती, कतु मेरे मन
म ख़ुशी जागृत ई है, जो मुझे आ व त करती है क तुम वही हो, जो तुम होने का दावा कर
रहे हो। य द ऐसा है, तो ई वर तु हारा भला कर। मुझे राम के वषय म फर से बताओ। म

ो ी ँ े ी ो ो
दोबारा सुनना चाहती ँ, चाहे वह व ही य न हो! राम का वचार जब संपूण ांड को
स न करता है, तो मुझे य नह करेगा?”
सीता के मन को शांत करने के लए हनुमान ने उ ह लेटकर णाम कया और ऊपर
नह दे खा।
“हे दे वी! आप ड रए मत मुझे आपके य प त ने आपको दलासा दे ने के लए ही
भेजा है। वे शी ही वीर ल मण के साथ यहाँ प ँचगे। वे सदा आपके वषय म वचार एवं
बात करते ह। उ ह ने वानर के राजा सु ीव के साथ सं ध क है और म सु ीव का मं ी
हनुमान ँ।”
अंत म, सीता को भरोसा हो गया क हनुमान सचमुच राम के त ह। इसके बाद सीता ने
हनुमान से ल मण तथा राम के ल ण बताने को कहा। हनुमान ारा ल ण बताए जाने पर
सीता ब त स न ।
“राम के चौड़े कंधे, मज़बूत बाँह, मनोहर आकृ त और उनक आँख कमल क
पंखु ड़य के समान ह। उनक आवाज़ मेघ के गजन क तरह गहन है तथा उनका वण
गहरा नीला है। वे अ यंत भ लगते ह और जो उनसे मलता है, भा वत हो जाता है।
उनका आचरण पूरी तरह शु है। वे स य व सदाचार के त पूण प से सम पत ह। उनके
भाई ल मण, बल और प म राम के समान ह तथा उनका वण सोने जैसा है। ऋ यमूक
पवत पर सु ीव से ई भट से पहले, वे आपको खोजते ए पृ वी पर भटक रहे थे। जब राम
ने आपके ारा धरती पर गराए गए आभूषण दे खे तो वे ख़ुशी से झूम उठे । मने उ ह कसी
तरह सँभाला था। हे दे वी! रघुवंशी राम भी आपके लए उसी कार ाकुल ह, जस तरह
आप यहाँ उनके लए परेशान ह। आप बलकुल मत ड रए। पु ष म सह के समान वीर
राम न चय ही यहाँ आएँगे और आपको मु करवाएँगे। अब आप मुझे बताइए क म
लौटने से पहले, आपक या सेवा कर सकता ँ?”
य प राम का मान सक क जानकर सीता ब त ाकुल कतु उ ह यह सुनकर
ब त अ छा लगा क उनक याद म उनके प त खी हो रहे ह। वे अपने प त का समाचार
सुनने के लए ाकुल थ और उ ह ने हनुमान से हरण के बाद क पूरी कथा व तार से
सुनाने को कहा। सीता ने पूछा क बाद म, राम ने या कया, वे कहाँ गए और उ ह लंका
प ँचने म कतना समय लगेगा। हनुमान ने जो कुछ बताया, सीता ने तुरंत उन बात को
आ मसात कर लया। हनुमान भी अपने भु राम के वषय म बात करके स न थे। उ ह ने
बताया, वानर ने कस कार रावण को सीता का हरण करके ले जाते ए तथा उ ह
आभूषण नीचे गराते ए दे खा था। हनुमान ने सीता को खोजने तक क सम त घटनाएँ कह
सुना । यह सब कहने के बाद, हनुमान हाथ जोड़कर सीता के सामने खड़े हो गए। सीता
ब त स न । अब उ ह पूरी तरह व वास हो गया था क राम ने ही हनुमान को भेजा
है। सीता के गाल पर, ख क जगह, ख़ुशी के आँसू बहने लगे। बाद म, हनुमान ने सीता
को राम क च हत मु का भी दखाई, जो राम ने उ ह सीता को व वास दलाने के लए
द थी। सीता ने अपने प त क मु का लेकर उसे हाथ से दबाया और अपनी छाती से लगा
लया। वे इतनी स न थ क कुछ बोल नह पा । उनके हाव-भाव ऐसे थे मानो कई माह
े ो े े ी े ौ े ो ी ो ी े ी
से वषा न होने के बाद कसी यासे पौधे को पानी मल गया हो। सीता ने कृत ता-भरी
आँख से उस छोटे -से वानर को दे खा, जो उनके बंजर दय म आशा क नई करण लेकर
आया था।
“तुम सचमुच वानर म े हो! उस वशाल सागर को पार करके, बना कसी क
म आए, तुमने लंका म वेश कैसे कया? तुम सामा य वानर नह हो! ई वर तुम पर कृपा
कर। अब तुम मुझे मेरे भु के वषय म और कुछ बताओ। या वे इतने लंबे वरह के कारण
मेरे त अनास हो गए ह अथवा वे मेरे लए उसी कार खी ह जैसे म उनके लए
ाकुल ँ?”
हनुमान ने सीता को दो कथाएँ सुना , जो सफ़ उ ह और राम को पता थ तथा जो राम
ने हनुमान को गु त प से सुनाई थ ता क सीता को पूरी तरह यह व वास हो जाए क
हनुमान राम के ही त ह।
ववाह के उपरांत जब राम और सीता रथ म बैठकर जा रहे थे तो राम ने धीरे से सीता
के पैर पर अपना पैर रगड़ा था। वे यह जानकर डर गए क सीता के कमल-समान पैर
हलक -सी रगड़ से लाल हो गए थे। वन म रहते समय, राम ने सीता से पूछा, “ य
राजकुमारी! तु ह याद होगा जब मने ववाह के बाद रथ म अपना पैर, तु हारे पैर पर रगड़ा
था तो वह सूज गया तथा लाल हो गया था। ऐसा कैसे आ क अब तु ह इन प थर और
काँट पर चलने म कोई परेशानी नह होती?”
हनुमान ने एक अ य घटना का उ लेख भी कया जो राम-सीता के ववाह के तुरंत बाद
ई थी। राम ने सीता को उनके पैर क मा लश करने के लए कहा। ऐसा करने से पहले
सीता ने अपनी र न-ज ड़त चू ड़याँ उतार द । राम ने जब कारण पूछा तो वे बोल , “ भु!
मने सुना है क जब व वा म आपको गौतम ऋ ष के आ म म ले गए थे तो आपने पैर से
एक प थर को पश कया था, जो बाद म अ ह या नाम क ी म बदल गया। अ ह या को
यह शाप मला आ था क जब तक आप उसे पैर से पश नह करगे, वह प थर बनी
रहेगी। मुझे यही चता हो रही थी क य द आपने मेरी र न-ज ड़त चू ड़य को अपने पैर से
पश कर दया तो उनका या होगा?”
इन बात को सुनकर, जो सफ़ उ ह व राम को पता थ , सीता भाव- वभोर हो उठ और
फर उ ह व वास हो गया क मा त न चत प से राम के त ह।
हनुमान उन दोन क अंतरंग बात को जानकर वयं को सौभा यशाली मान रहे थे।
उ ह ने एक बार फर सीता को धीरज बँधाया, “आपके वामी यहाँ सफ़ इस लए नह आए
ह य क उ ह आपके थान क जानकारी नह है। उनका मन सदा आप म रमा रहता है,
इस लए कृपया उस से आप न चंत रह। वे एक गुफा म रहते ह और न अ धक खाते ह
और न ही सोते ह। उ ह अ य कसी बात क चता नह है और वे सदा वचार म खोए रहते
ह। य द उ ह थकानवश थोड़ी न द आ भी जाए, तो वे रोते ए उठ बैठते ह और ‘सीता!
सीता!’ पुकारने लगते ह। उ ह जब भी आपक पसंद क कोई व तु दखाई दे जाती है, तो वे
आह भरते ह और फर उ ह सां वना दे पाना क ठन हो जाता है। म य ही लौटूँ गा, वे

औ े े ँ ँ े
वानर और भालु क वशाल सेना लेकर यहाँ आ जाएँगे। आप बलकुल मत ड रए।
कृपया नराश न ह । आपक मु नकट है!”
यह सुनकर सीता ह षत हो ग क राम भी उनसे मलने के लए उ ह क तरह आतुर
ह। “ य वानर! तु हारे श द को सुनकर मुझे स नता और ख दोन हो रहे ह। उनके
ख के वषय म सोचकर, म भी खी हो जाती ँ। सुख और ख दोन ही मनु य के
पूवज म के कम का प रणाम ह। कृपया मेरे वामी को बताना क मेरे पास समय ब त कम
है। मेरे जीवन के केवल दो माह शेष ह। उसके बाद, म उस नशाचर का भोजन बन
जाऊँगी। रावण के भाई वभीषण और एक अ य रा स अ व य ने उसे मेरा हरण करने के
प रणाम के वषय म चेताया था और मुझे राम को लौटाने के लए भी कहा था। परंतु
रावण का अंत नकट आ रहा है और इसी लए उसे अ छा परामश पसंद नह आता। कृपया
मेरे वामी को बताना क उनके बना मेरे लए यह जीवन असहनीय हो गया है।”
इस क ण याचना को सुनकर हनुमान का दय वत हो गया और वे बोले, “हे दे वी!
कृपया आप खी न ह । आप मेरी पीठ पर सवार हो जाइए। म इसी ण आपको राम के
पास ले चलता ँ। आप बलकुल न डर!”
सीता न ह वानर के ताव को सुनकर भावुक हो ग और उ ह हँसी भी आई। वे
हनुमान को शशु वानर समझ रही थ और उ ह हनुमान क श का अनुमान नह था।
“ य वानर!” वे बोल , “तुमने सदाचारवश यह असंभव बात कही है। तु हारे जैसा
न हा ाणी मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर इतना वशाल समु कैसे पार कर सकता है?” यह
सुनकर हनुमान ने सीता के भीतर व वास जागृत करने का नणय कया और सीता के
सामने अपना आकार बढ़ाना आरंभ कया।
“य द म चा ँ तो इस पूरी लंका नगरी को सागर पार ले जा सकता ँ, इस लए मुझे
कसी इस बात का भय नह है। म आपको सरलता से उस पार ले जा सकता ँ!”
हनुमान का अ त वशाल आकार दे खकर सीता त ध रह ग और बोल , “म यह
समझ गई ँ क तुम कोई साधारण वानर नह हो, और वायुदेव के पु हो। परंतु मुझे लगता
है क मेरा तु हारे साथ जाना उ चत नह है। जब ये रा स मुझे तु हारे साथ जाता दे खगे
तो वे तु हारा पीछा करगे और ऐसा करते ए म नीचे समु म गर जाऊँगी। इसके अ त र ,
इस रावण ने मेरा हरण करके कई माह से मुझे यहाँ रखा आ है। ऐसे म मेरे प त के
लए यही उ चत होगा क वे वयं यहाँ आएँ और रावण को मारकर मुझे ले जाएँ अ यथा
उनक क त कलं कत हो जाएगी। मने सदा अपने प त को दय म थान दया है, इस लए
म वे छा से कसी अ य पु ष को पश नह करना चाहती। रावण ने बलपूवक मुझे पश
कया, कतु उस समय म असहाय थी। इस लए, हे वीर वानर! राम को ती ग त से यहाँ
लेकर आओ य क मुझे तु हारे साथ जाना उ चत नह लगता!”
हनुमान उनक बात से सहमत हो गए और बोले क उ ह ने सीता को राम से प त से
मलवाने क उ सुकतावश वह अनु चत सुझाव दया था। वे सीता ारा कसी अ य पु ष
को पश न करने क ववशता को समझते थे। इसके बाद, हनुमान ने सीता से ाथना क

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क वे भी उ ह कोई ऐसा च द जससे वे राम को व वास दला सक क उनक भट
सचमुच सीता से ई थी।
उस भट के माण के प म सीता ने हनुमान को अपने बाल का आभूषण चूड़ाम ण
दया और कहा, “इस आभूषण को दे खकर मेरे प त को जीवन के तीन सबसे मह वपूण
लोग का यान आ जाएगा - मेरे पता, उनके अपने पता और म। यह आभूषण ववाह के
समय मुझे, मेरे पता ने दहेज के प म राम के पता क उप थ त म दया था।” ऐसा
कहकर, सीता ने वह आभूषण हनुमान को स प दया जसे उ ह ने सावधानी से अपने व
म छपा रखा था।
इसके बाद सीता ने हनुमान को दो घटनाएँ बता जो केवल उ ह एवं राम को पता थ ।
ँ धे गले से सीता ने कहा, “उ ह उस समय का मरण करवाना जब हमने च कूट पवत
के पास एक नद म नान कया था और उ ह ने मेरी गोद म सर रखकर व ाम कया था।
उ ह न द आ गई थी और उसी समय एक कौवे ने आकर मेरे व थल पर च च मारी थी।
मने उसके ऊपर म का ढे ला फककर उसे उड़ाने का यास कया कया, कतु वह नह
गया और बार-बार च च मारता रहा। म रोने लगी तो राम उठ गए और मेरा उपहास करने
लगे। उसके बाद उ ह ने मुझे सँभाला और हम एक- सरे क बाँह म वहाँ लेट गए तथा हम
न द आ गई। परंतु वह कौवा अवसर क ती ा कर रहा था। नीचे उतरा तथा फर से
मेरे व पर च च मारने लगा। गम र क बूँद मेरे प त के चेहरे पर गर तो वह उठ गए।
उ ह ोध आ गया और वे इधर-उधर दे खने लगे। तभी उ ह वह शरारती कौवा दखाई पड़
गया। उ ह ने उस कौवे को पहचान लया। वह इं का पु जयंत था। राम ने तुरंत नीचे से
कुशा उठाई और उसके भीतर मं ारा क श का आ ान करके, उसे कौवे पर
छोड़ दया। वह कौवा डर के वहाँ से उड़ गया कतु वह अ उसका पीछा करता रहा। जब
उसे कह शरण नह मली तो वह लौटकर राम के पास आया और उनसे अपना अ वापस
लेने क वनती करने लगा। राम ने कहा क ा का आ ान करने पर वह कुछ न कुछ
त करने के बाद ही लौटता है। राम ने अपने ा से कौवे क दा हनी आँख फोड़ द
और फर उसे ाणदान दे दया। हनुमान! ऐसा कैसे हो सकता है क वह पु ष जसने मुझे
हा न प ँचाने वाले एक कौवे पर ा छोड़ दया, वह इस रा स ारा मेरा हरण कए
जाने पर शांत बैठा है?”
इसके बाद, सीता ने कहा, “राम को वह ण भी मरण करवाना जब उ ह ने मेरे
म तक पर लाल बद लगाई थी और एक लाल प थर का चूरा करके उपहास म मेरे गाल
पर भी लाल बद लगा द थी!”
हनुमाने को ये दो घटनाएँ, जो सफ़ राम व सीता को पता थ , सुनाते ए सीता क
आँख म आँसू आ आए। आँसु के कारण ँ धे गले से सीता ने कहा, “तुमने मुझे, मेरा
जीवन लौटाया है, म तु ह या पुर कार ँ ? म अपने तु छ जीवन को समा त करने ही वाली
थी क तुम आ गए और मेरे भीतर आ म- व वास तथा आशा क करण जगा द । तुम
सचमुच मेरे पु के समान हो। हे नेक वानर! तुम मेरे वामी से कहना क म एक माह तक

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जी वत नह रह सकूँगी। य द वे एक माह पूरा होने से पहले नह आए, तो म अपना जीवन
समा त कर लूँगी ता क वह रावण मुझे पश न कर सके।”
इस उ ेजना-भरी याचना को सुनकर हनुमान ने सीता को फर से व वास दलाया क
राम उनके अ त र अ य कसी के वषय म नह सोचते। “आप घबराइए मत दे वी! राम
तथा उनके भाई शी ही यहाँ आकर रा स को मारकर आपको मु करवाएँगे। मने वयं
अपनी आँख से दे खा है क राम आपके बना कतने अकेले ह, इस लए आप न चंत
र हए। आपको पता लगने से पूव, राम यहाँ अपनी वानर सेना लेकर आ जाएँगे और इन
भयानक नशाचर को पूरी तरह समा त कर दगे!”
हनुमान ने सीता का आभूषण लेकर अपनी छाती से लगा लया। उसके बाद उ ह ने
तीन बार सीता क प र मा क और फर उ ह णाम करके वहाँ से जाने क आ ा माँगी।
“आप स न र हए! म शी ही राम और वानर सेना के साथ लौटूँ गा तथा इन रा स
को मारकर आपको यहाँ से मु करवाऊँगा। आप नराश न ह । कृपया आशा बनाए रख
य क इस संसार म ऐसा कोई नह है, जसे राम परा त नह कर सकते!” ऐसा कहकर
हनुमान ने एक बार फर सीता को णाम कया और जाने क अनुम त माँगी।
हनुमान ने सीता के चरण पश कए। सीता ने उ ह आशीवाद दे ते ए कहा, “हे
आंजनेय! इस संसार म जब तक राम और सीता का नाम रहेगा, तब तक तु हारा नाम और
यश भी रहेगा। हम ऐसी कसी पूजा को वीकार नह करगे, जसम तु हारा उ लेख न हो।”
सीता ने हनुमान के सर पर हाथ रखकर उ ह आशीवाद दया और उ ह लौटने क अनुम त
दान क ।
आ मा का परमा मा से मलन ही सम त आ या मक लालसा का उ े य है। चौदहव
अथवा पं हव शता द के एक सं कृत पाठ, अ या म रामायण म सीता को जीवा मा
बताया गया है, जो राम पी परमा मा से अलग हो गई है। इस अ यंत सुंदर ा या म,
हनुमान को भ ारा अहंकार (रावण) को न करते तथा जीवा मा व परमा मा का
पुन मलन दशाया गया है।

सब सुख लहै तु हारी शरना।


तुम र क का को डरना।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

व काय नमः

अ याय 15

बजरंगबली
लंका दहन

ी राम भ कुला, मौ ल-अ च य-वीयम्,


ी राम सेवक जनवना लोला च म्
ी राम नाम जपा लना दं कुमारम्,
व दे भंजन सुतमं रघुराम दासम्।

हे अंजना पु ! राम के त, आपक जय हो!


राम भ म सव े , अ व वसनीय श य वाले,
जनका मन सदा राम क सेवा से
और राम का नाम लेने से स न होता है।

—हनुमान तु त

हनुमान क इ छा सीता को छोड़कर जाने क नह थी और सीता को भी हनुमान से अलग


होना अ छा नह लग रहा था य क हनुमान ने ही उ ह इतने माह के क पूण समय के बाद
जीने के लए कारण और आशा दान क थी। हनुमान ने नणय कया क हालाँ क उ ह ने
सीता को खोजने का अपना मुख उ े य पूरा कर लया है, फर भी उ ह सीता को साहस
बँधाने के लए कुछ करना चा हए। उ ह रावण पर इतना ोध आ रहा था क उ ह ने जाने
से पूव, उसक य वा टका को उजाड़ने का मन बना लया। उ ह ने इस वनाश को
यथा म तरीक़े से पूरा कया।
कसी भयानक तूफ़ान क भाँ त, उ ह ने येक वृ को उखाड़ कर अपने वशाल पैर
के नीचे र द डाला। उ ह ने सरोवर को गंदा कर दया और वहाँ क च ान को मसलकर
रावण को सुखदायी लगने वाली उस वा टका को न कर दया। लता को पेड़ से अलग
कर दया, मं दर तोड़ दया, सरोवर म अशोक वृ के भूरे प े बखेर दए और उनके जल
ो ै ो ो
को मथकर मटमैला बना दया। छोट पहा ड़य को मसलकर चूरा कर दया तथा रावण का
य उपवन उजाड़कर पूरी तरह बबाद कर दया। उपवन को उजाड़ने के बाद हनुमान
वा टका के तोरण ार पर चढ़ गए। उ ह कुछ होने क याशा थी। उ ह अ धक समय
ती ा नह करनी पड़ी। वा टका म ब त हलचल होने लगी थी। प ी भयभीत होकर शोर
मचाने लगे तथा हरण व मोर क ण पुकार करते और च लाते, इधर-उधर भागने लगे।
रा सयाँ भी हनुमान क तूफ़ान जैसी आवाज़ सुनकर उठ ग । वे दौड़कर सीता के पास ग
और उनसे पूछा क वह वशालकाय वानर कौन है जसने वा टका को न कर दया है।
सीता ने कहा क उ ह इस वषय म कोई जानकारी नह है। वे फर रावण के पास प ँच
और उसे सारी बात बताई। उ ह ने रावण से कहा क उ ह संदेह है क सीता को उस वानर
के वषय म पता है कतु वह बता नह रही है। उ ह ने रावण को यह भी बताया क वानर ने
सीता वाले थान को छोड़कर, सारी वा टका उजाड़ द है।
रावण ने जब अपनी य वा टका के वनाश के बारे म सुना तो वह ब त ो धत हो
गया तथा उसने महल के ह रय को उस ाणी को पकड़ने का आदे श दया। रावण क
सेना हनुमान के पास प ँची। वे उस समय भी वा टका के तोरण ार पर बैठे थे। सै नक को
अपनी ओर आते दे ख, हनुमान बड़े ख़ुश ए। उ ह ने अपनी पूँछ को ज़ोर से धरती पर
पटका, जसक भीषण आवाज़ से पूरी लंका गूँज उठ । चार ओर से सै नक, हनुमान क
ओर दौड़े और उनके ऊपर व भ न कार के अ -श से आ मण करने लगे। उ ह ने
अपना आकार बढ़ा लया और पहलवान क भाँ त अपने कंधे थपथपाकर गजना करते ए
बोले, “म राम का सेवक, हनुमान ँ। एक सह रावण मलकर भी मेरा मुक़ाबला नह कर
सकते। म लंका को न करके ही लौटूँ गा।” फर उ ह ने तोरण से नकली ई एक शलाका
तोड़ ली और उससे रा स को मारने लगे। वे सब अपने ाण बचाकर वहाँ से भागे।
रावण को व वास नह आ क एक वानर ने उसके सै नक को परा त कर दया।
उसने अपने सेनाप त के पु , जंबुमाली को वानर को पकड़कर लाने का आदे श दया।
जंबुमाली अपने दो प हए वाले रथ पर सवार आ जसे सफ़ेद रंग के तीन पहाड़ी ट
ख चते थे। उसके पास व णम फूल से से सजा, लाल रंग का धनुष था। हनुमान ने ज द
ही सै नक को परा त कर दया और फर मं दर क मीनार पर चढ़कर उसे तोड़ने लगे।
सै नक ने उ ह भगाने क को शश क , कतु हनुमान ने एक तंभ उखाड़कर सै नक पर दे
मारा। इसके बाद, वे गूँजती ई तेज़ आवाज़ म बोले, “राम क जय! जय ी राम!”
उसी समय जंबुमाली ने हनुमान पर हज़ार बाण से आ मण कर दया। उसने कुछ
बाण हनुमान के मुख पर चलाए थे। हनुमान ने एक वृ उखाड़कर जंबुमाली पर फका,
कतु उस रा स ने उसे अपने बाण से काट दया। ोध म आकर, हनुमान ने अपनी
शलाका से जंबुमाली क छाती पर हार कया। उस शलाका ने रा स क छाती को भेद
दया और वह मारा गया।
यह समाचार सुनकर रावण ोध से उ म हो गया और उसने अपने मु यमं ी के सात
पु को उस वानर को मार डालने का आदे श दया। हनुमान हवा म उछले और उन सात के
बाण से बच नकले। इसके बाद, हनुमान ने उन सात के सर पर च ान फककर उ ह मार
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गराया। हनुमान ने रावण ारा भेजे गए पाँच और सेनाप तय को भी परा त कर दया।
महल तक जाने वाले लंका के मु य राजमाग पर र क धाराएँ बहने लग , जनम मृतक
के त- व त शरीर, कटे ए पाँव एवं हाथ बह रहे थे। रावण इस अ या शत घटना से
अचं भत था तथा अपनी प नी मंदोदरी ारा वरोध कए जाने के बावजूद, उसने अपने
सबसे छोटे पु अ य कुमार को भेजा और हनुमान को बंद बनाकर लाने का आदे श दया।
आठ अ व वाले सुंदर रथ म सवार होकर राजकुमार, अपनी श को स करने के
उ े य से महल से चल पड़ा। उसने वण कवच पहना आ था तथा वह उ दत होते सूय के
समान लग रहा था। उसने हनुमान पर अनेक र रं जत बाण चलाए जो वाला-से तीत हो
रहे थे। हनुमान उसक शंसा कए बना न रह सके य क वह बलकुल अपने पता रावण
का त प था। हनुमान उसके साथ लड़ना नह चाहते थे, कतु उनके पास यु के
अ त र कोई वक प नह था। हनुमान ने उसका रथ न करके उसे मैदान से डराकर भगा
दे ने का नणय कया। वे हवा म उछले और अ य कुमार के अ व पर कूद गए तथा उ ह
मु का मारकर नीचे गरा दया और उसका रथ न कर दया। राजकुमार भी हवा म उठा
और उसने हनुमान पर बाण चलाने आरंभ कर दए। हनुमान का मन अ य कुमार के त
शंसा से भरा था, कतु वे कसी तरह क उदारता नह दखा सकते थे। उ ह ने अ य
कुमार को पैर से पकड़कर कई बार घुमाया और उसे इस तरह र उछाला क वह जी वत
बच जाए और वहाँ से भाग जाए। परंतु राजकुमार गरा और मारा गया। उसके बाद, हनुमान
फर से तोरण ार पर चढ़ गए तथा रावण ारा भेजे जाने वाले अगले क ती ा
करने लगे।
रावण को व वास नह आ क उसका य पु उस भयानक ाणी के हाथ मारा
गया। उसे राजकुमार को यु म भेजने पर ब त ख आ। फर उसने नणय कया क वह
अपने ये व साहसी पु इं जत को भेजकर, उस वानर को जी वत पकड़े गा ता क उससे
पूछा जा सके क वह कौन है और इस तरह वनाश य कर रहा है। उसे संदेह आ क वह
कोई असाधारण वानर है, और इसी लए उसक सेना थ त को सँभाल नह पा रही है।
रावण, नगर क द वार के नीचे बनी सुरंग से होकर, गु त ार तक प ँचा, जो वन म थत
एक गु त उपवन म खुलता था। वहाँ एक वट-वृ के नीचे बैठा, उसका पु इं जत साधना
कर रहा था। रावण कुछ पल शांत खड़ा रहा। बाद म इं जत उठा और उसने अपने पता
को णाम कया। रावण ने कहा, “पु ! तुम हमारे कुल के गौरव और उसक आशा हो। तुम
अजेय हो! तुम न केवल अ व ा म नपुण हो, ब क सभी तरह क मायावी श य म
भी पारंगत हो। एक वशालकाय वानर ने उप व मचाया आ है और उसने हमारे अनेक
े यो ा को मार डाला है। मुझे लगता है क वह कोई असाधारण वानर है तथा उसे
सामा य अ -श से परा त नह कया जा सकता। इस लए, तुम जाओ और अपनी
श य का योग करके, उसे जी वत पकड़कर लाओ!”
“ पताजी, आप न चंत र हए! म उसे पकड़कर आपके पास ले आऊँगा!”
ऐसा कहकर मंदोदरी का पु इं जत अपने द रथ म बैठ नभय होकर चल दया।
उसके कौवे जैसे बाल थे और उसने नीले व पीले रंग के रेशमी व पहने ए थे। वह गहरे
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लाल वण का था और उसने बाल म पीला फूल लगाया आ था। उसक हरी आँख के
बीच म, ब ली-सी पुत लयाँ थ तथा उसक कमर पर वण-माला, नौ बार लपट ई थी।
उसके एक हाथ म नीले रंग क फ़ौलाद ढाल थी और सरे म व णम सप से यु धनुष
था। उसक कमर म चाँद क यान म तलवार लटक ई थी। इं को परा त करने के
कारण, उसे इस बात का पूण व वास था क एक वानर को पकड़ने म उसे कोई परेशानी
नह होगी। उसे पता था क वह कोई साधारण वानर नह था और उसे सामा य अ -श
से नह मारा जा सकता। इं जत भी, हनुमान क भाँ त, एक ऊँचे थान पर चढ़ गया।
उसने एक बाण लया और उसे नागपाश नाम के मं से अ भमं त करके हनुमान पर छोड़
दया। वे वा तव म सप क बनी ई र सयाँ थ । बाण के हार से हनुमान नीचे गर पड़े ।
उनके हाथ-पैर अ य प से बँध गए और वे हल पाने म असमथ थे।
आंजनेय को पाश क मायावी श का पता चल गया, जसने उ ह बाँध रखा था और
फर उ ह ने शांत रहने का नणय कया। इं जत क मूख सेना उस सू म पाश को नह दे ख
पाई और उ ह ने सचमुच क र सयाँ लाकर हनुमान को बाँध लया। उन र सय ने जैसे ही
हनुमान के शरीर को पश कया, मं का सू म भाव समा त हो गया। इं जत अपनी
सेना क भूल को दे खकर ो धत हो गया कतु उसे समझ नह आया क हनुमान ने वयं
को मु करने का यास य नह कया। उसने इस मामले से हाथ झाड़ लए और वन म
लौटकर साधना म त हो गया। हनुमान वयं भी रावण के सम तुत होना चाहते थे,
इस लए उ ह ने रावण के सै नक को, वयं को लंका क सड़क पर घुमाने से नह रोका।
कुछ लोग हनुमान को अपश द बोल रहे थे, तो कुछ उन पर प थर फक रहे थे और कुछ
उनका उपहास कर रहे थे। हनुमान ने कोई त या नह क । सै नक ने उ ह घसीटा,
परेशान कया और पीड़ा द , कतु हनुमान ने सारा अपमान सहन कर लया।
आ ख़रकार हनुमान को दशानन रावण के सम लाया गया, जो अपने व व
आभूषण म ब त शानदार लग रहा था। उसने अ यंत कोमल रेशमी व धारण कए ए
थे जो सागर म उठने वाली लहर के समान लग रहे थे। वह मृगचम से ढँ के सहासन पर
बैठा था, जो एक लंबे भीतरी म से भरी वण वे दका के बीच म रखा था। उसने गहरे
लाल रंग के फूल और चमचमाते वण के बने दस मुकुट पहन रखे थे। उसके गले म एक
मोट , भारी क ड़य वाली माला पहनी थी, जसम हीरे क आँख तथा मा ण य के बने
खुले ह ठ एवं लंबे, चमकदार, ह तदं त के बने व णम शैतानी मुख लटक रहे थे। उसक
हरी आँख व च ढं ग से चमक रही थ । उसने घूरकर हनुमान क ओर दे खा। कुछ दे र के
लए मा त उसके प से भा वत हो गए थे और उ ह लगा, य द रावण ू र न होता तो
वह तीन लोक पर शासन करने म समथ था।
हनुमान के पीले भूरे ने को दे खकर, रावण के मन म एक अ ात भय उ प न हो गया।
उसे वह घटना याद हो आई जब उसने अपने इ दे व भगवान शव के पास जाने का य न
कया था और शव के वृष ने उसे रोका था। इससे रावण को इतना ोध आया क उसने
च लाकर कहा, “नंद , तुम बंदर हो! तुमने मुझे रोकने का साहस कैसे कया?”

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इसके बदले म नंद ने रावण को शाप दया, “सावधान रावण! तुमने मुझे बंदर बोला है
और एक दन एक बंदर ही तु हारे पतन का कारण बनेगा!”
यह सुनकर रावण को और ोध आ गया और घमंड के चलते, उसने शव के नवास
थान कैलाश पवत के नीचे अपनी उँगली रखी और उसे एक ओर झुका दया। पावती
भयभीत हो ग । उ ह दलासा दे ने और रावण का घमंड चूर करने के लए शव ने अपने पैर
के अँगूठे से पवत को नीचे दबा दया जसके कारण रावण क उँगली पवत के नीचे कुचल
गई! तब शव को शांत एवं स न करने के लए रावण ने “ शव तांडव तो ” नामक
असाधारण तु त क रचना क ।
तुलसीदास ने रावण के दरबार म हनुमान के वेश का इस कार वणन कया हैः “वानर
ने रावण के दरबार क भ ता को दे खा। यहाँ तक क दे वता और द पाल भी हाथ जोड़कर
सहमे ए उसके बदलते ए हाव-भाव को दे ख रहे थे।”
परंतु हनुमान वशालकाय मू त क भाँ त खड़े रहे। वे श शाली रा सराज को
दे खकर परेशान नह थे!
“ जस तरह ग ड़ सप को दे खकर भयभीत नह होते, उसी कार हनुमान भी रावण
को दे खकर भयभीत नह ए!”
रावण, हनुमान का अपमान करना चाहता था और इस लए उसने हनुमान को बैठने के
लए आसन नह दया जो क, अ यथा एक त का अ धकार होता है। शेष सभी लोग के
पास आसन थे। हनुमान को लगा क यह अपमान उनका नह , अ पतु उनके वामी का था।
उ ह ने सप के श ु और भगवान व णु के वाहन, ग ड़ का मरण कया और उनका मं
पढ़ा। उनका शरीर, जो अब तक सप से बँधा आ था, त काल नागपाश से मु हो गया।
हनुमान ने अपने शरीर को झटका और फर अपनी पूँछ को लंबा करना आरंभ कर दया।
उ ह ने पूँछ को बढ़ाकर उसे घुमाते ए अपने लए, रावण से भी अ धक ऊँचा कुंडलीदार
आसन बना लया। फर वे गव से अपने बनाए ए आसन पर बैठ गए और उस ऊँचे थान
से नीचे रावण को दे खने लगे!
एक ण के लए य ही रावण ने हनुमान क वलंत आँख म दे खा तो उसे लगा क
नंद ारा दए गए शाप के पूरा होने का समय आ चुका है, परंतु फर उसने उस घटना को
अ धक मह व न दे ते ए अपने मं ी से कहा क वह उस वानर से लंका आने का कारण
पूछे। मं ी ने कहा, “वानर! य द तुम स य बोल दोगे तो तु ह भयभीत होने क आव यकता
नह है। या तु ह दे वराज इं ने भेजा है? इस अभे ग म वेश करने और उस वा टका
को उजाड़ने का तु हारा उ े य या है? य द तुम स य कहोगे तो तु ह छोड़ दया जाएगा!”
हनुमान ने रावण के न का ढ़ता और साहस के साथ उ र दया। उनका उ े य
केवल रावण का दय-प रवतन करना था ता क वह सीता को छोड़ दे और यु को टाला
जा सके।
मा त ने यान से रावण को दे खा और कहा, “म अयो या के राजकुमार और पु षो म
भगवान राम का त ँ। म यहाँ तुमसे बात करने आया ँ। तुमने राम क य प नी का
हरण कर लया है और उ ह ने मुझे सीता का पता लगाने के लए कहा है। मने तु हारी
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वा टका को सफ़ इस लए उजाड़ा ता क मुझे तु हारे सम लाया जा सके। मुझे पाश से
बाँधा या अ से मारा नह जा सकता। मने वयं को केवल इस लए बँधने दया य क म
तुमसे मलना चाहता था। तुम उ च को ट के धम हो और तु ह पता है क कसी अ य
क संप को चुराना कतना हा नकारक होता है। अपने कठोर तप से तुमने अनेक
वरदान ा त कए ह जनम से एक यह भी है क तु ह दे वता, दै य, य या कोई अ य द
ाणी नह मार सकता, कतु तुमने इस सूची म मनु य को नह जोड़ा। याद रखो, राम
मनु य ह और उ ह वानर का सहयोग ा त है और वानर भी तु हारी सूची म स म लत नह
ह! इस लए म तुमसे कहता ँ क ववेक से काम लो और सीता को उनके प त को लौटा दो,
अ यथा मेरे वामी तु ह और तु हारे पूरे वंश को नदयता से समा त कर दगे! वे बल म
भगवान व णु के समान ह और तुमने उनके साथ जो वहार कया है, उसके लए वे तु ह
कभी मा नह करगे। मेरी बात मान लो और सीता को छोड़ दो तथा वयं को एवं अपने
रा य को बचा लो! सीता तु हारे और तु हारे वंश के नाश का कारण बनगी। उ ह मु करके
अपनी र ा कर लो, य क तुम ऐसा कर सकते हो!”
अपने सभी उ र म हनुमान ने इस बात पर ज़ोर दया क वे वयं कसी भी काय को
करने म अस म थे और राम ही वा तव म उनक श और ेरणा का ोत ह!
रावण क आँख ोध से लाल हो ग । उनम से लाल एवं व णम वाला फूटने लगी।
उसने वानर को मार डालने का आदे श दया। परंतु तभी रावण के छोटे भाई वभीषण ने
ह त ेप करते ए कहा, “भैया, आप तो जानते ह क धम के अनुसार, त क ह या करना
अनु चत है। य द आपने ऐसा कम कया तो इससे न चत ही आपके यश व क त पर
कलंक लगेगा।”
यह सुनकर रावण को और ग़ सा आ गया। उसने कहा क ऐसे वानर को, जसने नगर
को इतनी त प ँचाई है और उसके पु को मार डाला, मृ युदंड ही मलना चा हए।
वभीषण ने रावण को अपने नणय पर पुन वचार करने क ाथना क और कहा क राम व
ल मण को लंका लाने और उ ह पकड़ने का एकमा तरीक़ा यही है क इस वानर को उनके
पास लौटने दया जाए।
रावण ने वचार कया और फर वह इस बात से सहमत हो गया, परंतु वह वानर को
त- व त करके दं डत करने पर अड़ा रहा। “वानर को अपनी पूँछ सबसे य होती है,
इस लए इसक पूँछ म तुरंत आग लगा द जाए और इसे अपने म व संबं धय के पास
जली ई पूँछ के साथ अपमानजनक थ त म वापस भेजा जाए!”
रावण ने आदे श दया क वानर क पूँछ म आग लगाकर उसे नगर म घुमाया जाए ता क
लंकावा सय को, ज ह कसी को भी ता ड़त होते दे खना अ छा लगता था, उस वानर को
दे खकर आनंद आए।
रा स इस आदे श को सुनकर ब त स न ए य क उ ह इसम बड़ा आनंद आ रहा
था। जस समय हनुमान को घसीटकर दरबार म लाया जा रहा था, वे सभी रा स च ला
रहे थे, “इसे मार दो! इसे जला दो! इसे खा जाओ!” वे सब स न होकर हनुमान क पूँछ

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पर टू ट पड़े और उसे जलाने से पहले, उसके ऊपर तेल म डू बे चथड़े लपेटने लगे। उनके
ऐसा करते समय, हनुमान ने अपनी पूँछ को लंबा करना शु कर दया।
हनुमान क पूँछ बढ़ती जा रही थी। वह इतनी लंबी हो गई क उसने लंका नगरी को
चार ओर से दस बार लपेट लया। रा स परेशान होकर गोल-गोल भाग रहे थे और पूँछ पर
कपड़ा लपेटने क को शश कर रहे थे। लंका के सम त व -भंडार से कपड़ा लेने के बाद
भी, वे हनुमान क वशाल पूँछ पर पूरी तरह कपड़ा नह लपेट पाए। पूँछ, लगातार लंबी
होती जा रही थी! अंत म लंका के पु ष ने अपने व और य ने अपनी सा ड़याँ भी दे
द । जब वे थक गए और लंका का सारा कपड़ा समा त हो गया, तो उ ह समझ नह आया
क वे या कर।
हनुमान हँसने लगे और फर उ ह ने अपनी पूँछ पर कपड़ा लपट जाने दया। उसके
बाद, रा स तेल से भरे वशाल कड़ाह लाए और हनुमान क पूँछ को तेल म डु बाकर उसम
आग लगा द । हनुमान स न हो गए और उ ह ने पूँछ को झटका दे कर अपने आस-पास
खड़े सभी रा स को मार डाला! इसके बाद उ ह ने वयं को नयं त करके बँध जाने दया
और नगर म घूमने लगे। ऐसा करते ए, उ ह ने अपने दमाग़ म पूरे नगर का मान सक च
बना लया और उन सब चीज़ को भी यान से दे खा, जो उ ह पहले रा के अंधकार म
घूमते समय दखाई नह पड़ी थ ।
रा स, अपनी प नय के साथ, लंका क ग लय म खड़े होकर उ सुकता से यह य
दे खने लगे। कुछ रा सयाँ स न होकर सीता के पास दौड़ और उ ह सारा हाल सुना
दया। यह सुनकर सीता को ब त ख आ। उ ह ने आँख बंद करके अ नदे व से ाथना
क क वे हनुमान क पूँछ के ताप को कम कर द। इसके बाद, हनुमान को यह दे खकर
आ चय आ क उनक पूँछ म लगी आग से उ ह कोई त नह प ँच रही थी!
अपने म त क म नगर का मान सक च बनाने के बाद, हनुमान ने अपनी माँस-
पे शय को झटका दया और सरलता से बे ड़य को तोड़ दया। वे जलती ई पूँछ के साथ
नगर के ाचीर पर कूदने लगे। उ ह लगा क लंका को न करने से रावण का घमंड कम हो
सकता है। “इस आग को, जसे मुझे दं ड दे ने के लए लगाया गया है, अपना आहार नह
मल रहा है, इस लए म इसे भोजन दान क ँ गा।”
अपनी -समान वनाशकारी लीला को द शत करते ए, हनुमान ने उ का पड क
भाँ त लंका क इमारत क छत पर कूदना आरंभ कर दया। एक घर से सरे पर कूदते
ए, वे मब तरीक़े से येक घर को जलाते गए। अंत म, पूरी लंका नगरी को आग क
लपट ने घेर लया। उ ह ने केवल वभीषण का महल और सीता क अशोक वा टका को
छोड़ दया था। शी ही आग क लपट ने लंका को मशान म बदल दया। चार ओर
अफरा-तफरी मच गई।
लोग च लाते ए इधर-उधर भाग रहे थे, याँ और ब चे रो रहे थे, घोड़े और हा थय
ने भगदड़ फैला द थी। वायु के वाह से आग पूरी लंका म फैल गई। आग क लपट
आकाश को छू रही थ , मानो वह अ न पूरे संसार का वनाश कर दे गी।

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वण के बने जालीदार तथा मो तय व र न से ज ड़त महल, तेज़ आवाज़ के साथ
टू टकर ग े के बने घर क तरह नीचे आ गरे। इमारत पर चढ़ सोने क पत पघलने लगी
और पघले ए सोने क धाराएँ समु क ओर बहने लग । सड़क के कनारे बने घर ढह
गए तथा उनके ार और झंझ रयाँ टू टकर धुआँ बन गए। आग से बचकर भाग रहे लोग क
घबराहट भरी चीख़-पुकार वायु म फैल गई थी। पूरी लंका जलती ई मशाल लग रही थी।
वह ज़बरद त य था।
रा स चलाए, “ न चत ही यह सफ़ वानर नह , ब क है जो महाकाल का प
धरकर आया है!” हनुमान नगर क ाचीर के ऊपर बैठकर अपने कारनामे को स नता से
दे ख रहे थे। उ ह जब यह व वास हो गया क उ ह ने लंका को पूरी तरह न कर दया है,
तब उ ह ने समु म कूदकर अपनी पूँछ म लगी आग बुझाई और वयं को ठं डा कया।
यही एक घटना है, जहाँ हम हनुमान का वानर वभाव दे खने को मलता है और जहाँ
वे अ नयं त वनाश करते ह। जब उनका ोध थोड़ा शांत आ तो उ ह अपने कए पर
पछतावा भी होता है।
“यह मने या कया?” उ ह ने मन म सोचा। “ ोध म कोई भी अपराध कर
बैठता है। स चा साधु वही है, जो उ े जत होने क थ त म भी ोध न करे और तशोध
का भाव न जागृत होने दे । मने अव य ही पाप कया है। य द इस आग म सीता भी जल गई
ह गी तो मेरे वामी उनके बना एक ण भी जी वत नह रह पाएँगे मेरी या ा असफल हो
जाएगी। समूची लंका राख का ढे र बन गई है। या यह संभव है क सीता अब तक जी वत
ह? उनके तप और प त के त पूण न ा के बल पर यह संभव है क अ न ने उ ह पश
तक न कया हो।”
वे ख म डू बे यह सब सोच ही रहे थे क उ ह ने कुछ द लोग को अपने ऊपर से
बात करते ए जाते दे खा। “यह कतने आ चय क बात है क सारी लंका आग क लपट
म है, कतु वह वा टका, जहाँ सीता बैठ ह, पूरी तरह सुर त है!”
यह सुनकर हनुमान ब त ख़ुश ए और तुरंत लपककर अशोक वा टका म यह दे खने
के लए जा प ँचे क या यह सचमुच स य था। वहाँ प ँचकर उ ह ने दे खा क वे सीता को
जस थ त म छोड़ गए थे, वे बलकुल उसी तरह वृ के नीचे बैठ थ । दोन एक- सरे
को दे खकर ब त स न ए और सीता ने हनुमान से एक और दन वह कने क ाथना
क।
“हे वानर! तु हारे दशन मा से मेरे मन को सां वना मलती है। य द तुम चले जाओगे
तो मुझे संदेह और ब त ख होगा क तुम वापस कब आओगे। या अ य वानर भी तु हारी
तरह छलाँग लगाकर समु पार करने म स म ह? मेरे वामी इस काय को कैसे करगे?”
हनुमान ने उ ह फर से धैय बँधाया और यह आ वासन दया क सु ीव कोई सामा य
वानर नह है और वह भी असाधारण काय करने म समथ है। उ ह ने सीता को यह भी कहा
क वे ब त ज द समु पार से आने वाले वानर समूह को दे ख पाएँगी। इसके बाद सीता ने
अ न छापूवक हनुमान को लौटने क अनुम त दे द ।
सू म प ध र सय ह दखावा।
बकट प ध र लंक जरावा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

पगला ाय नमः

अ याय 16

शूर
न ावान सेवक

य य त रामक णामृता वैभवेन,


लोकावसान समयाव ध द घ-आयुर,
तम वीर पु षा कल णमअ ेयम्,
व दे भंजनासुतं रघुराम दासम्।

हे पवन-पु ! राम के सेवक, आपक जय हो,


हे आंजनेय, आप न चय ही अ यंत बलशाली ह,
जो राम क म हमा और उनके आशीवाद से,
इस संसार के रहने तक जी वत रहगे!

—रघुरामदासशतकम

दे वतागण, हनुमान के साह सक काय से अ यंत स न ए और परम पता ा ने वयं


लखकर हनुमान को राम के लए एक प दया जसम लंका म कए गए काय का ववरण
था। उनके ारा साह सक काय के इस उ लेख म यह भी व णत है क सीता ने अपने
आभूषण के साथ, राम क मु का भी लौटा द थी। इस तरह मा त के पास राम को दे ने के
लए तीन मू यवान चीज़ थ । दे वता तथा सीता से ा त शंसा के बाद, हनुमान को
अपनी उपल धय पर थोड़ा गव हो जाना वाभा वक था।
वे राम के पास लौटने को उ सुक थे। वे उस नगरी क अं तम झलक पाने के लए पीछे
मुड़कर दे खने लगे। वह शानदार लंका नगरी, जो आकाश- दय पर चमचमाते मोती के
झुमके जैसी लगती थी, अब जजर पड़ी थी। उसे दे खकर हनुमान को ब त ख़ेद आ और
पीड़ा भी महसूस ई, कतु फर उ ह लगा क रावण उस दं ड का अ धकारी था। वे लंका के
सव च शखर पर चढ़ गए और अपना आकार बढ़ा लया। उ ह ने अपना मन राम पर
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क त कया ज ह वे दे खने को ाकुल थे। उ ह ने राम नाम का श शाली मं जपना
आरंभ कर दया और फर उस शखर से समु के उ री छोर क दशा म ज़ोरदार छलाँग
लगा द । आकाश म उड़ते ए हनुमान कसी पंखयु पवत के समान तीत हो रहे थे।
उ ह ने उ र दशा म जाते समय अपने नीचे समु को उफनते दे खा और अपनी ग त बढ़ा
द । वे लाल रंग के बादल के बीच म से आसानी से नकल गए। आकाश म कसी बाण क
भाँ त, हनुमान त ग त से जा रहे थे। मु य भू म तक प ँचते-प ँचते, उ ह यास लग आई।
उ ह नीचे एक आ म दखाई दया जसके नकट एक सरोवर भी था। वे नीचे उतर आए।
वहाँ एक साधु बैठा था जो यान म लीन था। हनुमान उसके पास प ँचे और वन तापूवक
उससे सरोवर से जल पीने क अनुम त माँगी। योगी ने सर हलाकर वीकृ त दे द । हनुमान
ने अपनी तीन मू यवान चीज़ योगी के पास रख और पानी पीने के लए सरोवर के पास
चले गए। सरोवर से जल पीते समय एक साधारण वानर आया और उसने राम क मु का
उठाकर साधु के घड़े म डाल द । जब मा त लौटे तो उ ह ने दे खा मु का वहाँ नह थी।
उ ह ने साधु से उसके बारे म पूछा। योगी ने मुँह से कुछ नह कहा, ब क उस घड़े क ओर
संकेत कर दया। जब हनुमान ने घड़े म हाथ डाला तो वे त ध रह गए। वह घड़ा राम क
जैसी मु का से भरा था। हनुमान ने योगी से कहा क वह असली मु का पहचानने म
उनक सहायता करे। अंत म योगी ने अपना मौन तोड़ा और कहा क वे सभी मु काएँ राम
क ह। हनुमान को इस बात पर ब त आ चय आ। योगी ने बताया क येक ेता युग म,
हनुमान आते थे और और इस सरोवर से पानी पीते थे और कोई बंदर आकर मु का घड़े म
डाल दे ता था। हनुमान ने त ध होते ए बल वर म पूछा, “घड़े म कतनी मु काएँ ह?”
साधु ने मु कराते ए उ र दया, “तुम वयं य नह गन लेते?”
हनुमान ने मु काएँ गनने का यास कया तो उ ह पता लगा क वे असं य थ ! तब
उ ह एहसास आ क उनम कोई व श बात नह है। ई वर क रचना म, एक के बाद एक
युग आते ह। उनसे पहले भी अनेक युग आए थे और उनके बाद भी अनेक युग आएँगे।
हनुमान के भीतर अपनी उपल धय को लेकर जो थोड़ा दप उ प न आ था, उसे न
करने के लए यह पया त था! बाद म, वे राम से मले तो उ ह ने दे खा क मु का पहले से
ही उनक उँगली म थी। राम ने मु कराते ए यह वीकार कया क अपने भ के मन म
उ प न दप को न करने के लए उ ह ने वयं योगी का प धारण कया था। हनुमान
उनके चरण म गर पड़े और राम से याचना क क वे दोबारा कभी उनके भीतर घमंड
उ प न न होने द। राम ने हनुमान को यह वरदान भी दया।
उसके बाद हनुमान फर से आकाश म उड़े और अपनी या ा पर आगे बढ़ गए। जब वे
उस थान के नकट प ँचने वाले थे, जहाँ उ ह ने अपने म को छोड़ा था, तो उ ह ने
गजना करके अपने आगमन का संकेत दया।
“आह! हनुमान क गजना से प है क वे अपने उ े य म सफल होकर लौटे ह,”
वानर ने कहा। हषा तरेक म, वे सब एक पेड़ से, सरे तथा एक शखर से, सरे शखर पर
उछलते रहे, जैसा क वानर वाभा वक प से करते ह। अपने नायक का वागत करने के
लए उनम होड़ लग गई। हनुमान, मह पवत पर उतर आए, जहाँ से उ ह ने जाते समय
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छलाँग लगाई थी। शेष सभी वानर ह षत होकर उनके आस-पास एक हो गए तथा शंसा
व प कंद-मूल एवं फल के छोटे -छोटे उपहार तुत करने लगे। उ ह ने हनुमान को
बैठाकर उ ह घेर लया तथा उनके सामने न क झड़ी लगा द । हनुमान ने जांबवंत तथा
राजकुमार अंगद को णाम कया और उ ह पूरी कथा सुनाई। वानर ने ख़ुश होकर उ ह गले
लगा लया और अपनी पूँछ उठाकर ख़ुशी से एक च ान से सरी पर उछलने लगे।
अंगद ने हनुमान क शंसा करते ए कहा, “हनुमान! आपके समान सरा कोई नह
है। आपने हम जीवनदान दया है और आपके कारण ही राम एवं सीता का पुन मलन हो
पाएगा।”
हनुमान को स न हो रहे वानर के सम अनेक बार उस कथा को दोहराना पड़ा।
वानर ने येक ववरण को ब त यान से सुना। अंगद ने कहा क अब उ ह तुरंत लंका
प ँचकर, वदे ह क राजकुमारी को मु करवाकर उ ह भु राम को लौटा दे ना चा हए।
जांबवंत ने इस ताव को अ वीकार करते ए कहा क सीता को मु करवाना, भु राम
का क है और उनके ऊपर सफ़ सीता को खोजने का दा य व था। वे जतनी ज द
राम को संदेश दगे, उतना ही अ छा होगा।
उन सबने नणय कया क जांबवंत सही कह रहे ह और फर पूरा सै य दल वहाँ से
लौट गया। उनके उ साह से उनके पैर को मानो पंख लग गए और उन सबने क कंधा तक
क या ा आधे समय म पूण कर ली। वे सब शी प ँचने और राम को शुभ समाचार दे ने के
लए अ य धक उ सुक थे। नगर के वेश ार पर मधुवन नाम का एक उ ान था, जो रसदार
फल और फूल के वृ से भरा था। वह मधुम खय का आवास था, जो फूल का रस
एक करने और अपने छ े बनाने के लए वहाँ घूमती रहती थ । वह सु ीव का उ ान था
और उसके चाचा उस उ ान के हरी थे।
वानर ने अंगद से ाथना क और वहाँ के फल तथा शहद खाने क अनुम त माँगी।
अंगद ने उनक बात मान ली। उ ह तो यही चा हए था! उ ह ने उ ान को न कर दया और
ढे र-सा शहद पीकर मदहोश हो गए जसे दे खकर हरी को बुरा लगा। वानर को सामा य
तौर पर नयं त करना क ठन होता है और इन वानर ने, जो बड़ी मा ा म शहद पीकर उसी
रंग के हो गए थे, एक- सरे पर मधुम खी के छ े फककर तथा फल को तोड़कर और बुरी
तरह वंस मचाकर, उस उ ान को उजाड़ दया।
सु ीव का चाचा उस उ ान का हरी था। उसने वानर को ब त रोका कतु उ ह ने
उसक एक न सुनी। पूरा उ ान मदहोश वानर से भरा आ था जो नशे म इधर-उधर घूम
रहे थे। अंत म उसने वानर को धमक द क वह यह पूरी बात सु ीव को बता दे गा। सु ीव
उस समय राम और ल मण के साथ बैठा आ था। जब हरी ने पूरी घटना उसे बताई और
वानर को दं ड दे ने के लए कहा तो उसक आशा के वपरीत सु ीव ने उसे चता न करने के
लए कहा, ब क वह स न दखाई पड़ रहा था।
राम क ओर दे खकर सु ीव ने कहा, “ भु, मुझे लगता है क इन वानर ने आपका
काय पूरा कर लया है और इसी लए इ ह ने राजा का उ ान उजाड़ने का साहस कर लया
है। इसम कोई संदेह नह है क हनुमान ने सीता को खोज लया है!”
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यह सुनकर राम और ल मण ब त स न ए। सु ीव ने अपने चाचा को मधुवन लौट
जाने तथा हनुमान एवं अ य वानर को तुरंत उनके सम तुत होने को कहा।
वह तुरंत मधुवन गया और अंगद को णाम करके बोला, “आप राजकुमार ह और मुझे
सु ीव ने कहा था क आपको पेट-भर शहद पीने ँ । मने और मेरे सै नक ने आपको ऐसा
करने से रोका, इसके लए कृपया हम मा कर द जए। आपको त काल क कंधा प ँचने
का आदे श दया गया है।”
यह सुनते ही, गुलेल से नकले प थर क भाँ त, अंगद ने हवा म छलाँग लगाई। हनुमान
तथा शेष वानर भी उसके पीछे चल पड़े । उ ह आता दे ख, सु ीव ने राम से कहा, “मुझे
व वास है क हनुमान ने सीता का पता लगा लया है। उनके अ त र कोई अ य इस काय
को पूण नह कर सकता। वे बु मान, साहसी और समथ ह। इसके अ त र , य द अंगद ने
अपना दा य व पूण न कया होता, तो वह उस मधुवन को कभी न उजाड़ता, जो मुझे मेरे
दादाजी ने दान कया था।”
राम के पास प ँचने से पहले ही हनुमान च लाए, “मने सीता को दे ख लया!” उ ह ने
इस बात को इस तरह इस लए बोला य क वे जानते थे क राम का दय आशा से प रपूण
था और जब तक वह “दे खा” श द नह सुनगे उनका क र नह होगा। हनुमान नह
चाहते थे क राम को एक ण भी और क हो और इसी लए वे च लाए थे, “मने सीता को
दे ख लया!”
हनुमान उस थान के नकट उतरे जहाँ सु ीव और राम बैठे ए थे। हनुमान ने राम को
सर झुकाकर णाम कया। उ ह ने बताया क सीता का पता लग गया है और वे व थ ह
तथा उनका मन अपने प त के त समपण से प रपूण है। इस बीच, अंगद और अ य वानर
भी अपनी बात कहना चाहते थे। वे सब हनुमान के मुख से सुनी कथा को दोहराने के लए
उ सुक थे और उसे राम को सुनाने के लए पर पर ध का-मु क कर रहे थे। राम ने उनक
ओर नेहपूवक दे खा और कहा, “मुझे व वास है तुम सबने ब त अ छा काय कया है,
कतु इस समय म सीता के वषय म जानना चाहता ँ। उसने या कहा? या उसने मेरे
लए कोई संदेश या च भेजा है?”
यह सुनकर सब वानर ने हनुमान क ओर दे खा और उनसे आगे क कथा सुनाने क
वनती करने लगे।
हनुमान ने राम को णाम कया और फर लंका पर वजय क पूरी कथा सुनाई। उ ह ने
राम क य व अकेली प नी सीता से ई भट के वषय म भी बताया, जो अपने य प त
से मलने के लए ाकुल थ ।
“हे वीर राजकुमार! आपक प नी को उस नशाचर रावण ने एक वा टका म बंद बना
रखा है। वे असहाय ह और हर समय आपके वचार म खोई रहती ह। वे कठोर फ़श पर
सोती ह और उनका प शरद ऋतु से पूव कु हलाए कमलपु प क भाँ त हो गया है।
उ ह ने मुझे दो घटनाएँ बता जो सफ़ आपको पता ह।” हनुमान, राम के पास गए और
उनके कान म धीरे से कहा, “एक घटना जयंत कौवे के बारे म है जसने सीता के व पर
च च मारी थी और सरी लाल बद से संबं धत है जो आपने मज़ाक म, उनके गाल पर लगा
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द थी। उ ह ने मुझे आपको यह आभूषण भी दे ने के लए कहा है जो वे अपने बाल म
पहनती थ । इसे, उ ह ने रा सय क नज़र से बचाकर सँभाल रखा था। मने उ ह अपनी
पीठ पर बैठाकर वापस लाने का ताव भी दया था कतु उ ह ने इस तरह गोपनीय ढं ग से
भाग नकलने के लए मना कर दया। उ ह ने कहा है क वे अपने प त के आने क ती ा
करगी ता क वे उ ह सताने वाले रा स को मारकर उ ह मु करवाएँ। अंत म, उ ह ने मुझे
आपको यह बताने को कहा है, ‘हे दशरथ पु ! म इस के चंगुल म फँसी ई ँ और म
एक माह से अ धक जी वत नह र ँगी!’”
हनुमान जस समय यह बात बता रहे थे, तब पूरे समय राम क आँख से आँसू बहते
रहे। उ ह ने सीता के आभूषण को अपनी छाती से लगा लया। उनके भीतर मानो मृ तय
क बाढ़-सी आ गई। वे बोले, “इस आभूषण को दे खकर मेरा दय पघल रहा है। यह हमारे
ववाह के समय मेरे वसुर राजा जनक ने सीता को दया था और उसक माता ने यह उसके
सर पर बाँधा था। यह अ यंत मू यवान आभूषण है, जो जनक को दे वराज इं ने दया था।
मुझे याद है, सीता इस आभूषण को अपने सर पर धारण करके कतनी सुंदर दखती थी।
हनुमान, तुम मुझे उनसे ई भट क येक बात फर से बताओ। उसके वषय म सुनकर
मेरा मन नह भर रहा। सीता ने कहा है क वह मेरे बना एक माह से अ धक जी वत नह
रह सकेगी, कतु म तो अपनी य प नी के बना एक ण भी जी वत नह रह सकता!”
“वायुपु के अ त र कौन है, जो इस मह वपूण काय को पूरा कर सकता था? तुमने
न सफ़ सागर को लाँघकर सीता को सां वना द है, ब क लंका नगरी को भी न कर दया!
े सेवक वही है जो न सफ़ अपने वामी ारा बताए गए काय को पूरा करता है, अ पतु
अपनी बु का योग करके, उससे अ धक कुछ करता है।”
(वा मी क के श द म) “हे हनुमान! कसी भी जीव ने, चाहे कोई दे वता, मनु य या
ऋ ष ने, मुझ पर इतना उपकार नह कया जतना तुमने कया है। म तु हारे सम तु छ
महसूस कर रहा ँ य क इस समय मेरे पास तु ह इस उपकार के बदले म दे ने के लए कुछ
नह है।”
राम ने कहा, “सुनो पु ! मने इस बात पर वचार कया है और म इस न कष पर प ँचा
ँ क म तुमसे कभी उऋण नह हो सकता! म इस समय तु ह गले लगाने के अ त र कुछ
नह कर सकता।”
ऐसा कहकर राम ने हनुमान को अपनी छाती से लगा लया। अपने वामी का नेह
दे खकर हनुमान क आँख भर आ । वे राम के चरण म गर पड़े और बोले, “हे भु! आपने
मुझे सव च उपहार दे दया है। मुझे और या चा हए?”
राम ने ल मण को दे खकर कहा, “हम जब यह पता लग चुका है क सीता कहाँ है तो
हम एक ण भी थ नह करना चा हए।”
राम ने फर सु ीव से पूछा क या उसके पास समु को पार करने क कोई यु है।
सु ीव ने राम से कहा क नराश होने क कोई बात नह है। उसके वानर आसानी से समु
पर सेतु बना दगे, जसक सहायता से सभी आसानी से समु पार कर सकगे। राम ने तब

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सु ीव से अपनी सेना को लंका कूच करने का आदे श दे ने को कहा य क उनके पास केवल
एक माह का समय शेष था!
द ण क ओर अपनी या ा आरंभ करने से पूव, राम ने एक बार फर हनुमान से लंका
क कलेबंद , उसके वेश ार क सं या और रावण के पास मौजूद अ -श के वषय
म पूछा।
हनुमान ने उ र दया, “ भु! लंका चार ओर से समु से घरी ई है, जो अपने आप म
एक ाकृ तक कलाबंद है। वह घने वन और नद से घरे एक ऊँचे पवत पर न मत है।
उसम खाइय और द वार क कृ म कलेबंद भी है। हीर से जड़ी ऊँची व णम द वार ने
नगर को चार ओर से घेरा आ है। इन द वार के आस-पास अथाह खाइयाँ बनी ई ह,
जनम वषैले साँप और मगरम छ रहते ह। येक ार पर एक पुल है जसक सहायता से
उन खाइय को पार कया जा सकता है। उ री ार वाला पुल सबसे अ धक सुर त व
मज़बूत है। नगर के चार मु य ार ह, जन पर मज़बूत दरवाज़े ह और उ ह बड़ी-बड़ी
शलाका से रोका गया है। ार के वेश पर वशाल शला ेपक था पत ह, जो अ त
वशाल तीर और प थर फकने म स म ह। येक ार पर लौह-क ल से यु सैकड़
वशाल पैने फ़ौलाद अ रखे ह। रावण वयं अपनी सेना का जब-तब नरी ण करता
रहता है। इस लए, लंका म वेश करना अ यंत क ठन है।”
“भीतर, लंका म मदम त घोड़ और हा थय का जमावड़ा है। पूव ार पर हज़ार
रा स, वषैले तीर और तलवार के साथ तैनात रहते ह। द णी ार पर पैदल सेना, घोड़े ,
हा थय व रथ के साथ तैनात है। इसी तरह लाख रा स, तलवार और ढाल के साथ
प चमी ार पर रहते ह। रावण के लाख सै नक उ री ार पर भी ह। क य सै य बैरक
म, सैकड़ हज़ार सै नक पहरा दे ते ह। मने इन पुल , ार और द वार को तोड़ दया है
तथा अनेक महल न कर दए। वा तव म, पूरी वानर सेना को लंका ले जाने क
आव यकता नह है। हम कुछ ही लोग जाकर सीता को वापस ला सकते ह य क मने
लंका क अ धकांश कलेबंद व त कर द है। हालाँ क, यह संभव है क उनक दोबारा
मर मत क जा चुक हो। य द आप चाह, तो सभी वानर को साथ ले जा सकते ह। हम
आपके आदे श क ती ा है!”
राम ने तुरंत सु ीव को आदे श दया क सूय क थ त के अनुसार, उ ह शुभ मु त म
थान करना चा हए। यह अ यंत शुभ समय है जसे “अ भजीत” कहते ह और इस समय
आरंभ कए गए येक काय म सफलता मलती है।
“आज अ यंत शुभ दवस है और यह शुभ घड़ी है, इस लए हम और वलंब नह करना
चा हए। मेरी दा हनी आँख क पलक फड़क रही है, जो सवा धक शुभ ल ण है। नील
नामक वानर के नेतृ व म एक लाख वानर क सेना को आगे भेजकर उपयु माग नधा रत
कया जाए। नील को फलदार तथा कंद-मूल और शहद एवं शु जलयु माग से सेना का
नेतृ व करने दया जाए। हम सावधान रहना होगा य क श ु हमारे जल ोत म वष मला
सकता है। य द कोई बल और वृ हो तो उसे यह क कंधा म रहना दया जाए य क
हमारे सामने अ यंत क ठन ल य है। सव े सेनाप तय को, सेना के बा और दा हनी ओर
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से र ा का दा य व दया जाए। बलशाली जांबवंत तथा कुछ अ य यो ा को पीछे से
र ा का कायभार स पा जाएगा। म वयं, हनुमान क पीठ पर और ल मण, अंगद क पीठ
पर सवार होकर बीच म रहगे ता क हम ज द आगे बढ़ सक!”
सु ीव ने त काल राम के नदशानुसार आदे श जारी कर दए और वानर के वग कृत
समूह, भीषण उ साह के साथ आगे बढ़ने लगे। वे सब द ण दशा म चल पड़े । कुछ वानर,
सेना को चार ओर से सुर ा दे ने के उ े य से सब दशा म कूदते ए चल रहे थे। कुछ,
शाखा को तोड़कर माग बनाते ए आगे बढ़ रहे थे। वे सभी उ साहपूवक च लाते और
शोर मचाते ए फल एवं सुगं धत शहद खाते चलते रहे। नील उनक सेना का धान
सेनाप त था। वह उन पर नयं ण रखता था ता क वे माग म गाँव से गुज़रते ए कसी
कार क शरारत न कर। वह वशाल सेना आगे बढ़ते ए समु म उठे वार के समान लग
रही थी। द णी सागर क ओर चलते समय, माग म उ ह ने अनेक पवत , न दय और
म थल को पार कया।
वानर समूह म ज़बद त उ साह था और वे पेड़ पर कूदते, शोर मचाते और अपनी पूँछ
लहराते ए अ यंत हष के साथ आगे बढ़ रहे थे। वे उछलते, कूदते, शाखा पर झूलते,
वृ पर लटकते, पु प-लता को हलाते, एक- सरे के साथ मौज-म ती करते ए तथा
फल व शहद खाते ए बढ़ते गए। वे अ य धक उ सा हत थे। वे बना थके री तय करते
चले गए और द णी सागर पर प ँचने तक बीच-बीच म उ ह ने कई बार सरोवर के नकट
पड़ाव डाला तथा अनेक पवत व वन को पार कया।
इस बीच, ल मण ने राम को अनेक शुभ और अ छे संकेत दखाए तथा अपने भाई के
उ साह को बनाए रखा। आ ख़रकार, वे मह पवत तक प ँच गए। राम और ल मण पवत
के ऊपर चढ़े तो उ ह ने दे खा क उनके सामने, जहाँ तक दे ख सकती है, हर तरफ़
उफनता आ सागर दखाई पड़ रहा था।
राम ने वानर को समु -तट पर पड़ाव डालने का आदे श दया ता क इस बीच वे सागर
पार करने के तरीक़े पर वचार कर सक। वानर के शोर ने सागर क आवाज़ को भी दबा
दया! हज़ार हज़ार वानर वहाँ आ प ँचे और सागर-तट पर पड़ाव डाल दया। वा तव म,
वे वयं एक समु क भाँ त लग रहे थे। वे सागर म उठ रही तूफ़ानी लहर को दे खकर
अचं भत थे और सोच रहे थे क उस वशाल सागर को कैसे पार करगे!
उस भयंकर समु को दे खकर राम ने अपने भाई से कहा, “ल मण! कहते ह, समय के
साथ ख कम हो जाता है, कतु मेरे साथ तो इसका वपरीत हो रहा है। अपनी य प नी से
र रहकर त पल मेरा क बढ़ रहा है। सीता ारा दया गया समय तेज़ी से बीत रहा है।
येक ण अनमोल है और मुझे नह पता क हम कस तरह इस वशाल सेना को सागर
पार ले जाएँगे। म सफ़ इस लए जी वत ँ य क म जानता ँ क सीता जी वत है!”
ल मण ने राम को धीरज बँधाया। उ ह ने वह रा तट पर तीत कर द ।
अपने चेहरे पर हवा को महसूस करते ए राम ने कहा, “हे मंद पवन, कृपया मेरी य
प नी के चेहरे को भी पश करो और फर लौटकर मेरा पश करो ता क उसका गम पश
तु हारे साथ आ सके। जब उसे इस सागर के ऊपर से ले जाया गया होगा तो उसने मुझे बार-
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बार पुकारा होगा। मुझे उसक असहाय थ त के बारे म सोचकर ब त पीड़ा हो रही है।
अब जब क मुझे पता है क वह कहाँ है, म उसे दे खने के लए अ यंत ाकुल ँ। मुझे
उसक मु कान दे खनी है, उसके चेहरे के भाव दे खने ह और उसक मधुर आवाज़ सुननी है।
वह पहले ही पतली थी। अब तो नरंतर त से वह अव य ही बल व ीण हो गई होगी। म
उस दन क अधीरता से ती ा कर रहा ँ, जब म उस रावण को मारकर सीता को गले
से लगा सकूँगा!”

रघुप त क ही ब त बड़ाई।
तुम मम य भरत ह सम भाई।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

महा मने नमः

अ याय 17

महा मा
रावण क यु -प रषद्

श ु छे दैक-म म्
सकलमुप नष ा य स पू य म म्
संसारो र म म्
समु चत समये
संग नयाण म म्।

श ु का नाश करने वाला एकमा मं


उप नषद म व णत सभी कार के
स य को समा हत करने वाला मं
भव-सागर को पार करवाने वाला एकमा मं ,
हम मृ यु के समय बचाने वाला एकमा मं ।

— ी हनुमत तो

हनुमान ारा लंका को प ँचाई गई भारी त को दे खकर रावण को ब त ख आ। उसने


अपने सलाहकार को बुलाया और उनसे आगे क योजना बनाने को कहा। उसके गु तचर
ने उसे वानर सेना के आगमन क सूचना दे द थी। उसे व वास था क राम समु पार करने
म सफल हो जाएँगे। रावण ने अपनी यु -प रषद् को बुलवाया और कहा, “एक ु वानर
ने हमारे अभे और भ ग को न कर दया है और हमारे कुछ सव े यो ा मारे गए
ह। हम आगे या करना चा हए? श ु के तट तक प ँचने से पूव, हम ज द कोई नणय
लेना होगा य क उनका यहाँ प ँचना न चत है।”
भा य से, रावण यह नह जान पाया क उसके आस-पास चाटु कार और चापलूस का
जमघट था। उ ह रावण के पहले से व धत अहंकार को बढ़ाने के अ त र , कुछ नह आता
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था। रावण के एक सेनाप त ने आ म व वास से कहा, “हे श शाली शासक! आपने वग
से लेकर पाताल तक, सब पर वजय ा त कर ली है। तीन लोक म ऐसा कोई नह है, जो
आपके नाम से काँपता न हो। आपको राम से डरने क या आव यकता है? उसक सेना म
सफ़ बंदर और भालू ह। आपका पु इं जत तो अजेय है। आपको तो अपने थान से
हलने क भी ज रत नह है। वह अकेला ही, श ु के सागर पार करने से पहले, उनक
सेना का संहार कर दे गा। यही सव म माग है।”
रावण के धान सेनाप त ह त ने कहा, “ वामी, आप सफ़ मुझे आदे श द और म
वयं समु पार जाकर वानर क सेना को समा त कर ँ गा।”
“एक वानर ारा हमारे नगर पर कया आ मण सहन नह कया जा सकता,” एक
अ य रा स ने कहा। “म राम और उसक सेना को आज ही समा त करके रा तक वापस
लौट आऊँगा। आप केवल आदे श द जए!”
रावण क सेना के अनेक वीर यो ा ने यही दावा कया और सबने यही कहा क वे
अकेले जाकर राम क सेना को न कर सकते ह।
अपने सव च यो ा ारा कहे इन सां वनापूण वचन से रावण का आ म व वास
बढ़ गया। उसने उनक बात का अनुमोदन करते ए उन सबक ओर दे खा।
उनक अहंकारी बात को सुनने के बाद, रावण के भाई वभीषण ने कहा, “ य भैया!
हम ऐसे खोखले दाव से मत नह होना चा हए। श ु क ताक़त को कम आँकना उ चत
नह है। जब से सीता आई है, यहाँ अनेक अपशकुन हो चुके ह। राजन, आपके दरबार म
ब त-से चाटु कार ह, जो आपको कु टल सलाह ारा स न रखते ह। सीता को लौटा
द जए और वयं क तथा अपने रा य क र ा क जए। हम सब लोग शां त एवं सौहाद के
साथ रहना चाहते ह। आप, राम को साधारण श ु मत सम झए! वह ख़तरनाक त ं
ह।”
रावण ने वभीषण क सलाह को तर कारपूण ढं ग से अ वीकार कर दया। “मुझे
अनाड़ी बंदर के सहयोग से चल रहे राम जैसे सामा य मनु य क ओर से कोई ख़तरा
दखाई नह पड़ता। हमारी श त और श शाली सेना के सम वे असहाय हो
जाएँगे।” ऐसा कहकर उसने अपने भाई को अपमानजनक तरीक़े से शांत कर दया।
सब लोग कसी ऐसी योजना पर वचार करने लगे जससे रावण, तशोध ले सके।
रावण ने मायावी बजकाया को आदे श दया क वह सीता का प धारण करके मृत होने का
ढ ग करे। ऐसा करने के बाद, उसके शव को सागर म राम के पड़ाव क दशा म बहा दया
गया। वह शव जब राम के पास प ँचा तो उनका रंग पीला पड़ गया य क उ ह ने शव के
गले म पड़े सीता के हार को पहचान लया था।
“रावण ने अव य ही सीता को मार डाला और शव को पानी म बहा दया,” राम ऐसा
कहकर, पीड़ा से धरती पर गर पड़े ।
परंतु हनुमान को लगा क कुछ गड़बड़ है। उ ह ने वानर को कहा क वे चता बनाकर
शव को उसके ऊपर रख द और फर उसे अ न दे द। जैसे ही आग क लपट ने बजकाया

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के शरीर को जलाना आरंभ कया, वह उठ बैठ और समु क ओर भागने लगी! हनुमान ने
उसे पकड़ लया और फर पूरा नाटक, राम के सामने बताने के लए कहा।
राम को पूरी बात बताने के बाद बजकाया, हनुमान के चरण म गर पड़ी। उसने
हनुमान से आ ह कया क वे उससे ववाह कर ल य क अब उसके लए लंका लौटना
संभव नह था। हनुमान ने ववाह करने से मना कर दया कतु उसे क कंधा म रहने क
अनुम त दे द । इस तरह, बजकाया ने अपना शेष जीवन क कंधा म र क के प म
शंसा-गीत गाते ए तीत कर दया!
जब रावण को पता लगा क उसक चालाक पकड़ी गई, तो उसने अपने यु -प रषद्
को थ गत कर दया। अपने महल म लौटने के बाद, वह अपने भाई ारा कहे श द पर
वचार करने लगा कतु सीता के त आस होने के कारण वह वभीषण का ताव
वीकार नह कर पाया। वा तव म, वह रात- दन सीता के अ त र और कुछ नह सोच
पाता था। वह सीता के वषय म जतना अ धक वचार करता, सीता को कसी भी तरह
अपने पास रखने का उसका संक प उतना ही अ धक ढ़ होता जाता था।
रावण ने जान लया क अब यु होना न चत है। उसने एक अ य यु -प रषद्
बुलाई। दस सर वाला रा सराज रावण अपने व णम रथ पर सवार होकर रा य के
सभाक म प ँचा, जहाँ ं भ बजाकर उसका वागत कया गया। उसके सव े सै य-
दल अपने राजा के स मान म माग के दोन ओर खड़े थे। उसने अपने सेनाप तय स हत
छोटे भाई कुंभकण, जो वष म छह माह सोता था, को जगाकर अपने सामने उप थत करने
का आदे श दया। वे सब एक-एक करके आए और रावण को णाम कया।
रावण ने धान सेनाप त ह त को आदे श दया क सेना के चार अंग को - घुड़सवार,
हाथी सवार, रथ और पैदल सै नक - चार ार पर तैनात कया जाए और कसी भी ण
आ मण के लए तैयार रखा जाए। इसके बाद, उसने रा स क उस सभा से बात क जो
हर तरह से उसे स न करने को आतुर रहती थी।
“तुम सभी को पता होगा क मने राम क प नी सीता का हरण कया है। ऐसा लगता है
क मय दानव ने अपनी भरपूर जा ई यु य ारा सीता जैसी मनोहर ी का नमाण
कया है। सीता के गौर वण तथा आकषक प को दे खकर म उसके ेम का दास हो गया ँ
और अब म वयं अपना वामी नह रहा। हनुमान क बात से ऐसा लगता है क राम और
ल मण ने अपनी वानर सेना के साथ पहले ही समु -तट पर पड़ाव डाल दया है। म जानता
ँ क हम कुछ लापरवाह बंदर का नेतृ व कर रहे उन मनु य से डरने क ज रत नह है।
फर भी, हम कसी भी प र थ त के लए तैयार रहना चा हए और इस लए हम उन
भाइय को मारने क त काल कोई योजना बनानी होगी।”
रावण का भाई कुंभकण न द से जगाए जाने के कारण पहले से ही चढ़ा आ था और
जब उसे रावण क सीता के त आस के वषय म पता लगा तो वह भीषण गजना
करता आ ोध म भर उठा।
“ कसी अ य पु ष क प नी का हरण करने से पूव तुमने कसी से सलाह नह ली थी!
तु ह उस समय हमसे परामश करना चा हए था। एक राजा ारा धम के व कया गया
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आचरण, न चत ही प रणाम लाता है! चूं क म तु हारा भाई ँ, इस लए जो भूल तुमने
क है, म उसे ठ क करने का यास क ँ गा! उ ह आने दो, म उनसे नपट लूँगा! राम और
ल मण को मारने के बाद, म उन बंदर का भोजन क ँ गा! मुझे व वास है क राम के जाने
के बाद, सीता तु हारी इ छा वीकार कर लेगी! ले कन यह याद रखो, म इस काय को उ चत
नह मानता!”
रावण को अपने भाई ारा कही प बात क बलकुल चता नह थी, कतु वह शांत
रहा। वह जानता था क उसक सेना के साथ कुंभकण का होना अ नवाय है, इस लए उसने
शां त बनाए रखी।
इसके बाद महापा व नाम के एक अ य बलशाली सेनाप त ने कहा, “हे लोक
अ धप त! वह कौन है, जो आपको परा त करने का साहस कर सकता है? वह कौन है, जो
शहद का घट पाने के बाद उसे पीने से मना कर दे गा? य द आव यक हो तो बल का योग
क जए, कतु सीता को आपक बात माननी ही होगी। इस बीच, हम सब मलकर आपके
श ु का संहार कर दगे!”
रावण ने फर अपना रह य उन सबको बताया। “ब त पहले, मने पुं चक थला नाम क
एक अ सरा का बला कार कया था। वह भयभीत हरण क भाँ त भागती ई ा के पास
प ँची। ा को पता था क मने या कया है, इस लए उ ह ने मुझे शाप दया क य द
तुमने कसी ी क इ छा क व , मयादा का उ लंघन कया तो तु हारे सर के सौ
टु कड़े हो जाएँगे। यही कारण है क मने बलपूवक वदे ह क मनोहर राजकुमारी के साथ
संभोग नह कया है। परंतु इसम कोई संदेह नह है क राम को मेरी श य का एहसास
नह है, इस लए वह वयं चलकर मृ यु-पाश म फँसने आ रहा है। मुझे दे वता भी परा जत
नह कर सकते, तो फर बंदर और भालु क सहायता लेने वाले उस सामा य मनु य का
या कहना!” ऐसा कहकर वह भीषण गजना के साथ हषपूवक खड़ा हो गया। उसके दोन
भाइय के अ त र पूरा दरबार उसके साथ उठ खड़ा आ और उन सबने बंदर व भालु
के झुंड ारा रावण को परा त करने के हा या पद य पर ज़ोरदार ठहाका लगाया! परंतु
रावण, ा से मले वरदान को भूल गया। उसने वरदान म सभी कार के द एवं दै य
ेणी के ा णय से सुर ा माँगी थी। अपने अहंकार के चलते, उसने मनु य और वानर को
अपना त ं मानने से ही मना कर दया और अब वही अपने उ े य के साथ तेज़ी से
उसक ओर बढ़ रहे थे।
कहते ह, पुं चक थला ने रावण से तशोध लेने का ण कया और यही कारण था क
उसके पु हनुमान ने रावण क अनमोल नगरी को न कर दया। हनुमान ने सफ़ रावण का
ही नह , अ पतु उसके समूचे कुल का नाश करने म अ यंत मह वपूण भू मका नभाई थी।
रावण तथा अ य लोग क दं भपूण बात सुनकर वभीषण ने अं तम बार उसे बचाने का
यास कया। “भैया, म आपसे ाथना करता ँ क उन वानर के लंका पर आ मण करने
से पहले, सीता को लौटा द जए। आपने दे खा क सफ़ एक वानर आपके इस शानदार नगर
म या कर गया। जब उसके जैसे हज़ार वानर भीतर घुस आएँगे तो सो चए क हमारा या
होगा! सीता एक घातक सप है, जो आपके दय से लपट गई है। वह आपक मृ यु का
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कारण बनेगी! इससे पहले क आप और आपके लोग, पूरी तरह समा त हो जाएँ, सीता को
लौटा द जए!”
इसके बाद वभीषण ने अ य मं य को संबो धत करते ए कहा, “यह मं ी का क
है क वह राजा को बु म ापूण परामश दे और य द संभव हो, तो उसके ारा क गई भूल
के प रणाम से उसक र ा करे। तुम सब लोग मलकर इनका पतन और अपने कुल का
नाश य चाहते हो?”
रावण का पु इं जत, कठोर वर म बोला, “रा स के कुल म, मेरे ये छोटे चाचा ही
ऐसे ह जनम साहस, शौय, बल और धैय का अभाव है। इनका वभाव हमसे बलकुल
अलग है। ये कायर ह और य द आपने इनक बात सुनी तो आपका नाम धूल म मल
जाएगा। ये हम डरा य रहे ह? यहाँ तक क व धारी इं भी मेरे हाथ परा जत हो चुका
है! मने उसके हाथी को धरती पर गराकर उसक सम त अ सरा को भयभीत कर दया
था! या आपको लगता है, म दो साधारण मनु य को परा त नह कर सकता?”
वभीषण ने अपने भतीजे क बात को बना व े ष भाव के सुना। “पु , मुझे लगता है
क तुम उ चत और अनु चत म भेद नह कर पा रहे हो। तुम अभी छोटे हो और तु हारी बु
थर नह है। य प तुम अपने पता के त नेहवश ऐसा कह रहे हो, कतु वा तव म तुम
उनक भूल के लए उ ह ो सा हत करके हा न प ँचा रहे हो!”
रावण अपने भाई के सदाचार भरे श द सुनकर ो धत हो गया।
“ई या करने और त प ँचाने हेतु, गु त प से काय करने वाले कसी संबंधी क
अपे ा कसी श ु के साथ रहना बेहतर है! मुझे आग और अ -श से भय नह लगता,
कतु अपने नकट संबंधी अ धक ख़तरनाक ह। मधुम खयाँ, फूल के पराग क अं तम बूँद
चूसकर उड़ जाती ह, इसी तरह अपा लोग भी कसी संबंध के लाभकारी न रहने पर,
उसका याग कर दे ते ह। तुम, मेरे भाई हो, कतु संसार-भर म फैली मेरी क त से स न
नह हो! य द तुम मेरे भाई न होते तो इस समय तुम जी वत न होते। तु ह घ कार है! तुम,
हमारे कुल पर कलंक हो!”
वभीषण वहाँ ठहरकर अ धक अपश द नह सुनना चाहता था। वह बोला, “आप मेरे
बड़े भाई ह, इस लए म आपका स मान करता ँ। मने जो कुछ कहा, आपके हत के लए
कहा। मीठे बोल ारा आपको स न करने वाले लोग को खोजना ब त सरल होता है,
कतु राजा के सामने शु स य बोलने वाले लोग ब त कम होते ह। मुझे ख़ेद है क म अब
आपका अ याय सहन नह कर सकता। आपको चाटु कार और मूख ने घेर रखा है। मृ यु के
पाश म फँसा , अपने हतैषी ारा द गई नेक सलाह पर यान नह दे ता। परंतु म
आपके मंगल क कामना करता ँ। ई वर कर, आप समृ बने रह। जहाँ तक मेरा न है,
म अधम के साथ नह रह सकता!” ऐसा कहकर वभीषण अपने चार अ य मं य के
साथ हवा म उड़ा और सागर पार जाकर राम के पड़ाव के ऊपर मँडराने लगा।
कहते ह, वे तीन भाई - रावण, कुंभकण और वभीषण तीन कार के गुण अथवा
कृ त को दशाते ह - स व, रज और तम। वभीषण, सतोगुण अथात् सामंज य और

ई ी ो े ो
अ छाई का तीक था। रावण, रजोगुण अथात आवेश का तथा कुंभकण, तमोगुण अथात
न यता, आल य एवं उदासीनता का तीक था।

तु हरो मं वभीषण माना।


लंके वर भय सब जग जाना।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

भ व सलाय नमः

अ याय 18

भ व सल
राम ने आ य दया

अंजना-नंदनं वीरं जानक -शोकनाशनं।


कपीशं-अ ह तारं वंदे लंका-भयंकरं।।

अंजना के य पु को णाम
ज ह ने सीता का ख र कया,
वानर के राजा, जनके पात से ही
सैक ड़ का नाश हो जाता है,
और जो लंक ा क वकट नगरी पर
वजय ा त कर सकते ह।

—हनुमान क तु त

आकाश म लघु पवत के समान मँडराते पाँच रा स को दे खकर, सु ीव को संदेह हो गया।


उसे लगा क दशानन ने उ ह मारने के लए उन रा स को भेजा था।
वभीषण ने हवा म उड़ते ए कहा, “म रावण का छोटा भाई, वभीषण ँ। मने उसे
बार-बार समझाया क वह सीता को राम को लौटा दे , कतु मेरी बात उसक समझ म नह
आई। इस लए म राम क शरण म आ गया ँ!”
यह सुनकर सु ीव, दौड़कर राम के पास गया और उ ह सावधान कया क वे उस पर
व वास न कर य क वह भी रा स है।
“इन नशाचर पर कभी व वास नह करना चा हए। यह रावण का भाई है। यह रावण
का भेजा आ गु तचर भी हो सकता है, जो हमारी श व बलता को जानने आया
हो। यह अ -रा म हमारे ऊपर आ मण भी कर सकता है य क इसके साथ चार
बलशाली रा स और भी ह। यह हमारे साथ मल जाएगा और फर उस उलूक क भाँ त,
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जसने सही अवसर क ती ा क और फर कौव का पूरा वंश समा त कर दया, रा होने
पर हम सबको मार डालेगा। मुझे लगता है क इससे पहले ये हम कोई हा न प ँचाए, हम
इसे और इसके सा थय को मार डालना चा हए।”
अ य सभी वीर वानर जैसे अंगद, नील इ या द भी वभीषण को संदेह क से दे ख
रहे थे और उ ह ने भी यही सलाह द क वभीषण पर तथा उसक हरकत का यान रखा
जाए और कसी भी तरह का संदेह होने पर, उसक सूचना त काल राम को द जाए।
राम ने न-भरी से हनुमान को दे खा जो हमेशा क तरह शांत थे। राम ारा पूछे
जाने पर आंजनेय ने कहा, “मुझे वभीषण, दे खने से कपट नह लगता। उसक मुखाकृ त
और आवाज़ उ मु एवं सौ य है। मेरे वचार से इसने यह नणय कर लया है क इसके
भाई जैसे नकृ के साथ रहना धम के व है। इसके अ त र , इसने अव य ही
आपके गौरव एवं धम न ा के वषय म सुना होगा। इसी लए यह अलग हो गया है। कोई
गु तचर इस तरह अपने आने क घोषणा नह करता, जैसा क इसने क है। रावण के दरबार
म भी केवल यही था, जसने रावण के सामने, मेरा प लया था और वा टका उजाड़ने के
बाद भी, रावण से मुझे न मारने क ाथना क थी। भु, यह मेरा वन मत है, अब आप
जो चाह, नणय ले सकते ह।”
राम उस वषय पर हनुमान के मत को सुनकर ब त स न ए और बोले, “य प म
जानता ँ क आप सभी लोग पूरी तरह मेरे त सम पत ह और इसी लए आप मुझे यह
परामश दे रहे ह, कतु म सदाशय हनुमान क बात से सहमत ँ। इसके अ त र , मने यह
ण लया आ है क म अपने सम समपण करने वाले अथवा अपनी शरण म आए कसी
भी को नराश नह क ँ गा। उसक नीयत कुछ भी हो, य द वह मै ी भाव से मेरे पास
आता है, तो उसे वीकार करना मेरा क है।”
ववेकशील सु ीव ने, एक बार फर, रावण के भाई को, जसका व वासघाती और
अ व वसनीय होना न चत था और जो त काल मृ यु दं ड का अ धकारी था, अपने साथ
स म लत करने के ख़तरे से राम को सावधान कया।
राम ने मु कराते ए कहा, “कोई धा मक भी रा स के कुल म ज म ले सकता
है। हमारे ंथ, हम ार पर सुर ा माँगने आए श ु का भी वागत करने क श ा दे ते ह।
अपने ाण दे कर भी, ऐसे क र ा करनी चा हए। य द मने इसे शरण नह द , तो
मुझसे ब त बड़ा अपराध हो जाएगा।”
ऐसा कहकर राम ने ायः कही जाने वाली बात दोहराई, “म सम त जीव क , जो मेरे
पास आकर सुर ा माँगते ह, र ा करने का वचन दे ता ँ। य द रावण वयं भी आ जाए, तो
म यही क ँ गा! हे सु ीव! वभीषण को त काल मेरे सम तुत कया जाए और उसे मेरे
बराबर का थान दया जाए।”
सु ीव ने कहा, “ भु! आप अ यंत उदा ह। मुझे व वास है क वह गु तचर है। उसे
मार डालना अ धक सुर त है।”
राम ने मु कराते ए उ र दया, “म जानता ँ क तुम यह बात नेहवश बोल रहे हो,
कतु धम का नयम यही है क शरणाथ को कभी नराश नह करना चा हए। मेरा यह
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स ांत है क जो भी मेरे पास आकर कहेगा क वह मुझसे जुड़ना चाहता है, म उसक
सहायता क ँ गा। मेरे लए उसके च र का कोई मह व नह है। जाओ, और उसे यहाँ
लेकर आओ।”
सु ीव ने राम को णाम कया और वभीषण को सुर ा का आ वासन दया। यह सुनते
ही वभीषण तुरंत नीचे तट पर उतर आया और राम के चरण म गर पड़ा।
“म रावण का छोटा भाई वभीषण ँ और आपके चरण म शरण चाहता ँ य क
आप संसार के सम त ा णय को शरण दे ने म स म ह। म अपने नगर, म और
संबं धय को यागकर आपके पास आया ँ। अब आप ही मेरे सब कुछ ह। मेरा जीवन और
क याण आपके हाथ म है। मने अपने सुख, ख और अपना जीवन भी आपके शुभ चरण
म अ पत कर दया है। कृपया मुझे अपने न ावान दास के प म वीकार क जए।”
वभीषण क न ा दे खकर राम भावुक हो गए। वे उसे दे खकर धीरे-से मु कराए और
उसका वागत कया तथा अपने पास रहने क अनुम त दान कर द । उसके बाद, राम ने
उससे रावण क श और उसक बलता के वषय म पूछा।
वभीषण ने अ यंत हष के साथ इस अनु ह को वीकार कर लया। “म आपको रावण
तथा उसके सेनाप तय के वषय म अनेक बात बता सकता ँ। मेरे भाई को यह वरदान
मला है क उसे दे व, दानव, गंधव अथवा सप या प ी नह मार सकते। मेरा सरा भाई
कुंभकण, असाधारण यो ा है। धान सेनाप त ह त, अजेय है। रावण के ये पु ,
इं जत के पास अभे कवच है और वह वयं गोह-चम पहनता है जसे बाण भी नह भेद
सकते। अ नदे व से मले वरदान के कारण, इं जत अ य रहकर यु कर सकता है।
रावण क सेना म कई हज़ार रा स ह, जो माँस व र पर जी वत रहते ह तथा वे छा से
प बदल सकते ह। रावण, वयं यु म दे वता को भी परा जत कर चुका है।”
राम ने ये सब बात ब त यान से सुन और फर मु कराते ए कहा, “म न चय ही
रावण के कारनाम से प र चत ँ, जो मुझे अनेक लोग ने सुनाए ह। परंतु, म तु ह वचन दे ता
ँ क म उस रा स को, जसने मेरी प नी को चुराया है, मारे बना वापस अयो या नह
लौटूँ गा। इसके बाद, म तु ह लंका का राजा बना ँ गा! वह भागकर कसी भी लोक म कह
भी चला जाए, रावण को मेरे बाण के कोप से अब कोई नह बचा सकता। म इस काय को
पूण कए बना, अयो या नह जाऊँगा। म अपने तीन भाइय के नाम क शपथ लेकर यह
बात कहता ँ।”
वभीषण ने राम के चरण पकड़ लए और उ ह आ वासन दया क वह इस महान
काय म उ ह हर संभव सहायता दान करेगा। “म धम क शपथ लेता ँ क म अपनी
मतानुसार, आपक पूरी सहायता क ँ गा, कतु एक काय है, जो म नह क ँ गा - म अपने
लोग को नह मा ँ गा!”
राम ने वभीषण को गले लगा लया और ल मण को समु से जल लाने के लए कहा,
जससे वे रा स के राजा के प म वभीषण का अ भषेक कर सक। ल मण तुरंत समु
से जल ले आए और सम त वानर क उप थ त म, वभीषण के सर पर डालकर उसका
अ भषेक कर दया और उसे नशाचर का राजा घो षत कर दया!
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इस बीच, रावण ने अपना गु तचर भेजकर सु ीव से म ता था पत करने तथा उसे राम
का काय छोड़कर, क कंधा लौट जाने के लए े रत करने का यास कया। उसके
गु तचर ने बंदर का प धारण करके सु ीव को स न करने क को शश क । जब उसे लगा
क उसे सु ीव का व वास ा त हो गया है तो उसने सु ीव को एक ओर ले जाकर कहा क
उसका वामी, रावण है और वह उसके भाई, बाली का म होने के कारण सु ीव से भी
मै ी करना चाहता है। उसने सु ीव को कहा क वह अपनी सेना लेकर क कंधा लौट
जाए। ऐसा करने से उसे सदा के लए रावण का अनु ह ा त हो जाएगा। यह सुनकर
सु ीव को इतना ग़ सा आया क वह उस गु तचर के ऊपर चढ़ बैठा और उसका लगभग दम
घ ट दया। यह हलचल दे खकर अ य वानर भी वहाँ आ गए और जब उ ह अपने बीच
गु तचर के होने का पता लगा तो उ ह ने उसे मारकर, उसके टु कड़े करने का यास कया।
कतु वह च लाता आ राम के पास भागा और त होने के नाते, उसने राम से उसक र ा
करने क ाथना क । राम ने तुरंत वानर को उसे छोड़ने का आदे श दया। वह भय से
काँपता आ भागा और उसने जाकर सारी बात रावण को बताई।
इसके बाद, राम ने वभीषण से समु पार करने क योजना के वषय म पूछा। वभीषण
ने उनसे कहा क इसके लए उ ह सागर दे वता से बात करनी चा हए ता क वे सेना को सागर
पार जाने के लए समु पर सेतु बनाने म उनक सहायता कर।
“इस समु का अ त व ही सागर बंधु के कारण है, जो इ वाकु कुल के ह और इस
नाते आपके पूवज ह। इस लए, वे अव य आपक सहायता करगे।”
राम ने जब ये नेक सलाह सुनी तो वे पूव दशा क ओर मुख करके, कुशासन पर अपने
हाथ का त कया बनाकर तट पर लेट गए और सागर दे वता का यान करने लगे। जब तीन
दन और तीन रात तक यान म लीन रहने के बाद भी सागर दे वता कट नह ए तो राम
को ोध आ गया। उ ह ने ल मण से कहा, “दे खा ल मण! मेरे वन नवेदन के बाद भी
यह घमंडी सागर कट नह हो रहा। इस संसार म वन ता और सहनशीलता को क
बलता समझा जाता है। परंतु, म आज इस समु को, इसक संप नता से वं चत कर ँ गा।
म अपने बाण से इसे पूरी तरह सुखा ँ गा और ये फर सूखा ही रहेगा, जसके बाद मेरी सेना
बना क ठनाई के इसे पार कर लेगी!”
ऐसा कहकर, राम ने अपने धनुष से बाण छोड़ दया जससे समु जीव म हलचल
पैदा हो गई। उसम पवत जतनी ऊँची लहर उठने लग । पीड़ा से पूरी पृ वी काँपने लगी।
आकाश काला हो गया और बजली कड़कने लगी तथा आकाश म उ का पड चमचमाने
लगे। भीषण क से समु कराहने व काँपने लगा। तभी ल मण ने राम क बाँह पकड़कर
उ ह सरा बाण चलाने से रोक लया। परंतु धनुष पर चढ़ाने के बाद उसे चलाना आव यक
था।
“इसे वपरीत दशा म छोड़ द जए,” हनुमान ने कहा। राम ने उस बाण को उ र दशा
म छोड़ दया और जहाँ वह बाण गरा, वह थान अब थार रे ग तान कहलाता है!
जल म हलचल होती दे खकर, सागर दे वता लाल व तथा मो तय व लाल फूल क
माला पहने समु म से बाहर नकले। सागर के गले म पड़े मा ण य क चमक ने राम के
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ोध से उ प न अंधकार को र कर दया। सागर दे वता के बाल समु शैवाल से ढँ के ए थे
और उनके लंबे, सफ़ेद बाल एवं दाढ़ से पानी लगातार गर रहा था। वे एक लहर पर सवार
होकर सागर क सतह पर आ गए। वे धीरे-धीरे तट पर प ँचे और हाथ जोड़कर
वन तापूवक राम के सामने खड़े हो गए। उ ह ने अनेक आभूषण पहने ए थे।
वे राम के नकट आकर बोले, “ भु, आप सदाशयता एवं दया के धाम ह। म पहले ही,
आपके स मुख इस लए नह कट आ य क म अपने वभाव के व नह जा
सकता। जैसा क आप जानते ह पृ वी, अ न, वायु और जल क अपनी-अपनी वशेषताएँ
ह। म इनका वरोध नह कर सकता। म अथाह ँ और मुझे कोई पार नह कर सकता।
परंतु, म आपके वानर को अपने ऊपर सेतु बनाने क अनुम त दे ँ गा और प थर को डू बने
नह ँ गा। म आपको सुर त माग भी ँ गा ता क पानी म रहने वाले मगरम छ एवं अ य
सरीसृप आपको त न प ँचाएँ। आप सेतु बनाने का काय नल और नील नामक वानर को
द जए। उ ह यह वरदान मला है क उनके ारा पानी पर डाला गया प थर तैरता रहेगा।”
ऐसा कहकर सागर दे वता समु म वलीन हो गए।
नल और नील आगे आए और उ ह ने राम को कहा क वे वानर को सेतु नमाण के
लए आव यक साम ी जुटाने का आदे श द।
राम का आदे श पाकर वानर ब त ख़ुश ए और वे तुरंत वन से वृ तथा च ान
उखाड़कर तट पर ख च लाए तथा समु म फकने लगे। दोन भाई, नल और नील, शानदार
अ भयंता थे और उ ह ने वानर ारा लाए गए वृ तथा च ान को सही थान पर लगा
दया।
उ साह से भरे वानर, वृ और बड़े -बड़े प थर लाते रहे। वे अपने कंध पर पहा ड़य
जतनी च ान ढोकर लाते और उ ह समु म फक दे ते। परंतु वे यह दे खकर नराश हो गए
क य प च ान पानी पर तैरती थ , कतु वे पानी क सतह पर बखरकर एक- सरे से
अलग हो जाती थ । हनुमान ने शी ही एक शानदार यु सोची। उ ह ने प थर के ऊपर,
एक-एक प थर छोड़कर “र” और “म” लखना आरंभ कर दया तथा दो प थर क बीच
क दरार को “आ” क मा ा क तरह योग कया।
मा त बोले, “ भु का नाम सबसे बड़ा मं है तथा राम मं क अखं डत पं से वह
सेतु पूरा हो जाएगा!”
हनुमान के नरी ण म सारा काय संतोषजनक ढं ग से चल रहा था और वे वयं सबसे
अ धक काय कर रहे थे। परंतु बीच म यह दे खकर उ साह कम होने लगा क प थर फर से
अलग होकर व भ न दशा म बखर जाते थे! हनुमान ने इसका कारण खोजने का
न चय कया। उ ह ने समु म गोता लगाया तो दे खा क मछ लयाँ उन प थर को अलग
कर दे ती थ । उ ह ने अपनी पूँछ को ज़ोर से पानी पर झटका तो मछ लय को प ाघात हो
गया।
उसके बाद उ ह ने मछ लय क रानी, वण-म य के पास जाकर इसका कारण पूछा।
उसने कहा, “मुझे रावण ने प थर को ततर- बतर करने को कहा है। उसने हनुमान को
यान से दे खकर मो हत वर म कहा, “तुम कौन हो? तुम अ यंत बलशाली, मनोहर और
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बु मान लगते हो। राम और रावण के बीच के इस यु से तु हारा या संबंध है? तुम
मुझसे ववाह कर लो और जीवन का आनंद लो। हम दोन मलकर, ऊपर के संसार क
परेशा नय से न चंत होकर, समु पर शासन करगे!”
हनुमान ने उ र दया, “मेरे बल, स दय और ववेक का या लाभ, य द ये सर के
काम न आ सक? जो अपनी मता का उपयोग केवल संचय के लए करता है, वह मूख
है। जहाँ तक मेरा न है, म तो केवल अपने वामी - राम के लए जी वत ँ। उनके बना
मेरे जीवन का कोई औ च य नह है।” ऐसा कहकर, हनुमान ने वण-म य का ताव
अ वीकार कर दया। म य रानी हनुमान के न वाथ भाव से स न हो गई और उसने सभी
जीव को सेतु बनाने म सहायता करने का आदे श दया। इसके बाद, मछ लयाँ, सप,
ऊद बलाव और सभी समु जीव ने प थर को जोड़े रखने म सहयोग दया तथा लंका तक
बनने वाला सेतु आकार लेने लगा।
हनुमान, सर क अपे ा दो गुना काय कर रहे थे। वे येक प थर को सही जगह पर
रखने के साथ-साथ लगातार राम नाम का जा ई मं भी जप रहे थे और उससे यह काय
त ग त से चल रहा था। वह सेतु सौ योजन लंबा और दस योजन चौड़ा था। पहले ही दन
उसका पाँचवाँ भाग तैयार हो गया। इस तरह नल और नील के मागदशन म वानर ने सफ़
पाँच दन म समु पर सेतु बनाकर तैयार कर दया! आज भी इस सेतु के कुछ अवशेष समु
म धनुषको ड-तट से, जो ीलंका के सबसे नकट एक आधु नक नगर है, थोड़ी री पर
दे खे जा सकते ह।
राम, उन तैरते ए प थर का चम कार दे खकर हैरान रह गए और उ ह ने वानर से
पूछा क यह उ ह ने कैसे कया। उ ह ने बताया क वह राम के ही नाम का चम कार था
जसे हनुमान ने येक प थर पर खोदकर लखा था। राम को कौतुहल आ और उ ह ने
सोचा क य द उनके नाम से ऐसा हो सकता है तो न चत ही वे वयं भी उस चम कार को
कर सकते ह। वे तट के सरे भाग म गए और पानी म प थर फकने लगे। परंतु उ ह ब त
नराशा ई क एक भी प थर पानी पर नह तैरा और सभी प थर डू ब गए। उ ह ने मुड़कर
दे खा तो हनुमान पीछे खड़े शां तपूवक यह सब दे ख रहे थे। राम को थोड़ा संकोच आ।
उ ह ने हनुमान से इसका कारण पूछा क उनके पास, उनके नाम जैसी श य नह है।
हनुमान का उ र उनक न ा के अनुसार था।
“ भु!” वे बोले, “आप जस भी व तु को हाथ म थाम लगे वह बच जाएगी और आप
जसे छोड़ दगे, वह वाभा वक तौर पर नीचे ही गरेगी। जो प थर आपके हाथ से छू ट
जाएगा, उसका डू बना तो न चत है!”
अब राम भी, ल मण के साथ सेतु के नकट खड़े होकर काय दे खने लगे। कहते ह क
एक छोट -सी गलहरी राम क सहायता करने को उ सुक थी। वह बार-बार पानी म कूदती,
फर रेत म लोट लगाती और फर अपने शरीर पर चपक रेत को सेतु के ऊपर झाड़ आती
थी। उसके लए, इतना ही यास कर पाना संभव था। हनुमान ने उसे धीरे से उठाया और
पूछा क वह या कर रही है। उस छोट -सी गलहरी ने बलशाली हनुमान को उ र दया,
“यह सेतु च ान के टु कड़ से बना है। भु के पैर इस पर चलते ए छल जाएँगे, इस लए
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म इसके ऊपर रेत क नरम पत बछा रही ँ ता क उ ह चलने म क ठनाई न हो!” हनुमान
को यह सुनकर ब त आ चय आ य क उस छोटे -से जीव क न ा उ ह अपनी न ा से
अ धक तीत हो रही थी। हनुमान उसे राम के पास ले गए। उ ह ने उसे अपनी गोद म
बैठाया। राम ने नेहपूवक उसक पीठ पर अपनी तीन उँग लयाँ फेर । तभी से, भारतीय
गलह रय क पीठ पर आज भी राम क उँग लय के चह्न के प म, तीन धा रयाँ अं कत
होती ह। राम ने उसका भय र करते ए कहा क उसका यास भी वानर क भीषण
उपल धय के समान ही मू यवान है। उसके ारा लाई गई रेत भी वानर ारा लाई ग
च ान जतनी ही अनमोल है। इस तरह, उस छोट -सी गलहरी ने राम के दय म थान
बना लया।
एक अ य रोचक कथा म हनुमान का श न नामक ह के साथ संबंध दशाया गया
है। कहते ह, श न येक के जीवनकाल म साढ़े सात वष के लए कम-से-कम, एक
बार अव य आता है। जस दौरान सेतु का नमाण काय चल रहा था, ठ क उसी समय
हनुमान क कुंडली म श न के आगमन का समय हो गया। हनुमान ने श न से आ ह कया
क वह उनक कुंडली म अपने आगमन को सीता को वापस लाने तक थ गत कर दे ।
य प, एक बार हनुमान ने श न को रावण के बंद घर से मु कया था, फर भी श न
अपनी वृ के कारण अड़ा रहा। इस कारण हनुमान को कृ त का नयम मानना
पड़ा। चूं क हनुमान, सेतु के लए प थर उठाने और वृ उखाड़ने के काय म त थे तथा
श न जैसे उ नत ह को अपने पैर म थान दे ना उ ह उ चत नह जान पड़ा, इस लए
हनुमान ने श न को अपने सर पर बैठने क अनुम त दे द ।
श न स नतापूवक हनुमान के सर पर बैठकर सारा याकलाप दे खता रहा। इस
बीच, हनुमान भारी-भरकम च ान और प थर को अपने सर पर रखकर सहज भाव से
नमाण के थान पर ले जाते रहे। कुछ दे र बाद, श न के लए अपने ऊपर उन भारी प थर
के बोझ को सँभालना असंभव हो गया और उसने नीचे उतरने क इ छा क । हनुमान
ने श न से कहा क उसे अपनी साढ़े सात वष क अव ध पूरी करनी पड़े गी। श न अपनी
मु के लए गड़ गड़ाने लगा और बोला क हनुमान के सर पर साढ़े सात मनट क
अव ध भी उसके लए साढ़े सात वष के समान हो गई है। हनुमान मु कराए और श न को
छोड़ दया। तभी से, ऐसी मा यता है क जन लोग पर श न के साढ़े सात वष क अव ध
का भाव होता है, उ ह हनुमान क पूजा करने से न चय ही उससे मु मल जाती है।
नमाण के चौथे दन तक, वानर ने द ण भारत के सभी पवत और च ान उखाड़ दए
थे और अब उ र दशा क ओर, वहाँ के पवत शखर को उखाड़ने के लए जाने लगे।
हनुमान, हमालय क ओर उड़ गए जहाँ उ ह ोणाचल नाम का अ यंत ऊँचा शखर
दखाई दया। परंतु, वे उसे उखाड़ नह पाए और बाद म उ ह पता लगा क वह शा ल ाम
नाम के काले प थर का बना आ था, जसे व णु क पूजा के लए योग कया जाता है।
हनुमान ने पवत से कहा क वे व णु के अवतार, राम क सहायता के लए उसक सहायता
चाहते ह और वयं राम, अपने चरण से उसका पश करगे। यह सुनकर ोणाचल ने
हनुमान को उसे उठाने क अनुम त दे द कतु माग म हनुमान को नल और नील मले,
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ज ह ने बताया क सेतु नमाण का काय पूरा हो गया है, इस लए राम ने सभी वानर को
कहा है क वे जस भी पवत शखर को लेकर आ रहे ह , उसे वह छोड़कर तुरंत अपने
थान पर लौट आएँ। उस समय अनेक वानर, पवत शखर को लेकर आ रहे थे। राम का
आदे श सुनकर उन सबने अपने-अपने पवत शखर समूचे द ण भारत म छोड़ दए। इसी
कारण, उस भू म क वतमान भू- थ त का गठन आ। हालाँ क, हनुमान उस समय सु र
उ र म ही थे और जब उ ह राम का आदे श ा त आ तो उ ह ने ोणाचल पवत को यमुना
नद के तट के नकट वृंदावन के वन म छोड़ दया। राम क पूजा से वं चत रह जाने के
कारण पवत को ब त ख आ और उसने हनुमान को राम के पास ले जाने का उनका
वचन याद दलाया।
मा त वधा म पड़ गए। वे पवत को दया वचन तोड़ द अथवा राम के आदे श का
उ लंघन कर! वे वापस उड़कर राम के पास गए और उ ह पूरी बात सुनाई। राम ने उ ह यह
कहकर सां वना द , “उस पवत के पास जाओ और उससे कहो क अभी हमारा मलने का
समय नह आ है। म ापर युग म कृ ण के अवतार म फर ज म लूँगा और तब अपने
म के साथ उस पवत पर खेलूँगा। म उसे अपनी क न उँगली पर भी उठाऊँगा। तब मुझे
गोवधन के नाम से जाना जाएगा और उसी प म मेरी पूजा होगी।”
हनुमान ने यह संदेश पवत को दे दया, जसे सुनकर वह संतु हो गया तथा ापर युग
म भगवान के कृ ण प म आने क ती ा करने लगा।
राम, सेतु पार करने से पहले, अपने उ म म सफलता हेतु शव लग क थापना करके
उसक पूजा करना चाहते थे। नल और नील ने एक दन म, एक छोटा मंच तैयार कर दया
जसके ऊपर शव लग क थापना होनी थी। हनुमान तुरंत कैलाश पवत क ओर चल पड़े ,
जहाँ उ ह आशा थी क वे वयं भगवान शव से पूजा के लए शव लग ा त कर सकगे।
हालाँ क, वे अपे त समय तक वापस नह आ सके। पुजारी ने राम को बताया क पूजा क
शुभ घड़ी जाने वाली थी। तब राम ने वयं, रेत का अ यंत सुंदर शव लग बनाया और वह
उ चत समय पर बनकर तैयार भी हो गया। यह दे खकर सभी वानर उ साह से भर उठे । इसी
बीच आंजनेय, शव ारा दए प थर का एक अ यंत सुंदर शव लग लेकर लौट आए कतु
उ ह यह दे खकर ब त नराशा ई क पूजा का काय म उनके बना ही पूरा हो गया था।
हनुमान को हताश दे खकर, राम ने उनसे कहा क वे रेत का शव लग हटाकर, कैलाश से
लाया गया शव लग था पत कर द। आंजनेय ने ब त यास कया, कतु वे उस रेत के
शव लग को हटाने म सफल नह हो सके। उ ह ने उस शव लग को अपनी पूँछ म लपेटकर
उखाड़ने का भी यास कया कतु ऐसा करते समय, उनक पूँछ भी टू ट गई। राम ने
नेहपूवक हनुमान क पूँछ पर हाथ फेरकर उसे फर से पहले जैसा सुंदर बना दया।
राम ने कहा, “हे वायुपु ! नराश न होओ। य द हमने शव लग क पूजा उ चत समय
पर न क होती तो हम अपने काय म सफल नह हो पाते। इस लए म तु हारी ती ा नह
कर सका। मेरे ारा था पत शव लग को तोड़ा नह जा सकता। म तु ह तु हारे लाए ए
शव लग को भी इस मंच के पूव म था पत करने क अनुम त दे ता ँ। इसका मु य ार
इसी ओर होगा। जो , मेरे बनाए शव लग क पूजा करने आएगा, उसे पहले तु हारे
ी ो ी”
लाए ए शव लग क पूजा करनी होगी।” यह सुनकर हनुमान ब त स न ए। वह
थान, जहाँ राम ने वह शव लग था पत कया था, रामे वरम कहलाता है और वह आज
भी एक स तीथ थल है।
शव लग क थापना के वषय म एक अ य बड़ी व च कथा है जो भारतीय सं कृ त
क इस वशेषता को दशाती है क य द आव यकता पड़े , तो हम अपने श ु को भी ेय दे ने
क मता रखते ह। कहते ह, राम को शव लग क पूजा के लए एक ा ण क
आव यकता थी। उ ह ने हनुमान से कहा क वे उड़कर लंका जाएँ और रावण से, जो
भगवान का शव का भ और ा ण भी था, शव लग क पूजा करवाने क ाथना कर।
रावण ने इस ताव को वीकार कर लया कतु उसने कहा क उसके लए सीता को भी
चलना होगा, य क पूजा करवाने वाले क प नी का भी पूजा म साथ बैठना
आव यक है। इसके बाद, सीता को अशोक वा टका से लाया गया और फर रावण अपने
पु पक वमान म, सीता एवं हनुमान को साथ लेकर आया था। राम ने रावण से शव लग का
उ चत ोत पूछा तो उसने कैलाश का नाम लया। हनुमान को कैलाश भेजा गया कतु वे
समय पर नह लौट सके। रावण ने पूजा को नधा रत समय पर आरंभ करने पर ज़ोर दया
तो फर सीता ने रेत का शव लग तैयार कया। रावण ने पूरे व ध- वधान के साथ पूजा
स प न करवाई और यहाँ तक क राम के संक प को - रावण का वध और सीता क मु -
लयब ढं ग से पढ़ा! शेष कथा वैसी ही है, जैसे ऊपर बताई गई है।
सेतु तैयार था और शव लग क थापना पूण हो चुक थी। दे वतागण भी उसका
नरी ण करने के लए आए। वह सेतु ऊपर से दे खने पर कसी ी के बाल म नकली
मनोहर और सुंदर माँग क भाँ त लग रहा था! अब उसे पार करने का ण आ गया था। राम
और ल मण ने शंखनाद कया और फर यु क दे वी, गा को णाम कया। हनुमान ने
यु का आ ान करके वानर के दय म आ म व वास भर दया। सु ीव ने राम को
हनुमान क पीठ पर बैठने के लए कहा और ल मण अंगद क पीठ पर सवार हो गए। वे
आगे चलते गए और उनके पीछे नाचते-कूदते वानर के समूह चल रहे थे। वे बीच-बीच म
हवा म उछलकर समु म छलाँग लगाते और कुछ पल पानी म तैर लेते थे। उनके शोर म
समु का शोर भी दब गया था! ऐसा लग रहा था, मानो सेना ारा सेतु पार करते समय,
समु ने अपनी वास रोक ली हो!
उनके गंत पर प ँचने से पहले, रावण ने दो अ चलाकर सेतु के दोन छोर न कर
दए। राम और उनक सेना बीच म ही फँस गए। वे न तो लंका प ँच सकते थे और न ही
वापस जंबू प लौट सकते थे। हनुमान ने त काल एक यु बताई। उ ह ने अपना आकार
बढ़ाकर उस अंतराल को भर दया तथा अपने दोन हाथ लंका तट पर तथा पैर सेतु के छोर
पर टका दए। वानर उनक पीठ पर चढ़कर रावण क नगरी म वेश कर गए। जब राम
हनुमान क पीठ से गुज़रे तो मा त ने कहा, “म सचमुच अ यंत भा यशाली ँ जो मेरे
वामी के चरण मेरी पीठ पर पड़े ह।”
अंत म उ ह ने श ु के दे श म पैर रख दया। वानर के उ साह और न ा एवं उनके
न छल ेम को दे खकर राम भावुक हो उठे । सु ीव ने फल, कंद-मूल तथा साफ़ पानी से
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प रपूण थान पर पड़ाव डालने क तैयारी कर ली। राम ने वहाँ अनेक अपशकुन दे खे,
जनके पृ वी के लए भीषण प रणाम हो सकते थे। उ ह ने सु ीव से कहा क उ ह उस
मनोहर थान पर मन बहलाने क अपे ा तुरंत लंका क ओर थान कर दे ना चा हए। यह
सुनकर, वानर समूह ने उस थान को छोड़कर, आगे बढ़ना जारी रखा। शी ही उ ह लंका
के ाचीर दखाई दे ने लगे। रा का समय होने के बावजूद, वे सै य व यास बनाकर आगे
बढ़ते गए। धीरे-धीरे पू णमा का चं मा उदय हो गया और उसके काश म पवत क ओर
पड़ाव डाले बैठ वानर क भारी सेना दखाई दे ने लगी।
राम ने उठाकर लंका के सोने व चाँद के बुज दे खे तो उ ह उस घृणा क नगरी म
ेम के बंधन म बंद बनी अपनी य प नी सीता क याद आ गई। वे बैठकर ब त दे र तक
सीता के वचार म डू बे रहे। अंत म, वे उठे और फर उ ह ने सु ीव एवं अपने सेनाप तय से
अगले दन क योजना पर वचार करना आरंभ कर दया।

राम आरे तुम रखवारे।


होत न आ ा बनु पैसारे।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

महातेजसे नमः

अ याय 19

महातेज वी
लंका क घेराबंद

दे ह ा तु दासोहम्,
जीव ा वदं शकम्।

य द म अपने शरीर के कोण से दे खूँ,


तो म आपका सेवक ँ,
य द म अपने अहंक ार के कोण से दे खूँ
तो म आपका अंश ँ।

इस बीच, रावण ारा भेजे गए गु तचर ने लौटकर उसे श ु के बारे म सूचना द और यह भी


बताया क अ से सेतु के व त हो जाने के बाद, कस तरह हनुमान ने उ ह समु पार
करवाया। यह सुनकर रावण को थोड़ी नराशा ई और उसने वयं श ु के पड़ाव का
नरी ण करने का नणय कया। वह अपने महल के बुज पर चढ़ गया, जो एक के ऊपर
एक खड़े दस ना रयल पेड़ जतना ऊँचा था। उसने द वार के ऊपर से झुककर दे खा तो वह
हैरान रह गया क उसके ग के सामने क सम त भू म, हर प और आकार के वानर से
भरी ई थी। उसने गु तचर को बुलाया और उनसे पूछा क उनका सेनाप त कौन है।
एक वानर क ओर संकेत करते ए उ ह ने कहा, “वह मोट गदन और व णम बाल
वाला वशाल वानर, जो अ यंत वाचाल है और हमारी ओर मुख कए है, वह सूय का पु
सु ीव है। वह पीले बाल वाला वानर, जो सह क भाँ त गजना करता आ अपनी पूँछ को
बार-बार फटकार रहा है, अंगद है। उस वीर सेना से घरा आ वानर नील है, जसने यह
सेतु बनाया है। वह सफ़ेद वानर केसरी-पु हनुमान है, जसे वायु-पु भी कहते ह। जैसा
क आप जानते ह, यही वानर समु पार कर लंका दहन करके गया था। यह वे छा से
अपना प बदल सकता है और अ यंत बलशाली और मनमोहक है। जस कार वायु क
दशा को प रव तत नह कया जा सकता, उसी तरह इसे भी इसके माग से हटा पाना
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असंभव है। बचपन म, इसने सूय को उदय होते दे खा तो उसे फल समझकर पकड़ने के
लए इसने तीन सौ योजन क छलाँग लगाई थी। आपको यह भी पता है क यह पूण प से
राम के त सम पत है और अपने श ु के लए वप से कम नह है।”
उसके बाद, गु तचर ने वानर सेना के अ य सेनाप तय के वषय म रावण को बताया।
“हे राजन! उन काले रंग के ख़तरनाक भालु को दे खए जो पहाड़ पर रहते ह। उनका
नेता वह बूढ़ा, गंदा-सा भालू जांबवंत है, जसने असुर के व यु म इं क सहायता
क थी। उसके सै नक अ यंत ख़तरनाक ह। वे बड़े -बड़े पवत पर भी चढ़ सकते ह और
अ यंत नडर ह। वे सब वीर, श शाली और जुझा ह तथा राम के लए अपने ाण
योछावर करने को त पर रहते ह!”
“राजन, उस जटाधारी नीले वण वाले साहसी राजकुमार को दे खए। उसक कमल
जैसी आँख ह। वह वेद के आरं भक ाता, इ वाकु कुल का वंशज है। यह ा के
योग म पारंगत है तथा आपने जन थान से, इसी क प नी सीता का हरण कया है। इसके
बाण पृ वी को काट सकते और आकाश को चीर सकते ह। इसे यान से दे खए य क यही
आपका मुख श ु राम है। यह आपका वध करने के लए आगे बढ़ रहा है!”
“राम क दा ओर गौर वण, चौड़ी छाती, भूरी आँख तथा घुंघराले बाल वाला राम का
छोटा भाई ल मण है। यह अपने भाई के त पूरी तरह सम पत है। यह श के योग म
सबसे आगे है और राम के श ु को मा नह करता। यह अपने भाई के लए, हर समय
ाण दे ने के लए त पर है। यान से दे खए, राजन! राम के पास आपका भाई वभीषण भी
खड़ा है, जसे उ ह ने पहले ही लंका का राजा मनोनीत कर दया है! वह आपसे नाराज़ है
और आपके श ु के साथ मल गया है!”
रावण अपने गु तचर पर ो धत हो गया, जो उसके श ु क सेना का इतना गुणगान
कर रहे थे। “तुम लोग मुझसे कस कार बात कर रहे हो? तुम मुझ पर आ त हो। म तु ह
श ु का गुणगान करने के लए मृ युदंड दे सकता ँ। मेरे सामने से र हो जाओ और मुझे
फर कभी अपना मुँह मत दखाना!”
ऐसा कहकर रावण ने उ ह चले जाने का आदे श दया और कुछ गु तचर को राम क
उस दन क योजना का पता लगाने के लए भेज दया। परंतु उ ह भी वभीषण ने पहचान
लया और य द राम बीच म ह त ेप न करते, तो वानर ने उ ह ब त क दया होता। परंतु
राम ने उ ह छोड़ दया। वे लोग राम का गुणगान करते ए लौट आए।
रावण ने सीता को लुभाने के लए अं तम चाल चली! उसने अपने दरबार के जा गर को
बुलाया और उसे राम के सर तथा उनके स कोदं ड धनुष का त प तैयार करने को
कहा। जा गर ने वे दोन चीज़ बना द और फर वह उ ह लेकर रावण के साथ अशोक
वा टका प ँच गया, जहाँ सीता नराशा क तमा बनी बैठ थ ।
सीता को राम का सर दखाते ए रावण ने कहा, “तु हारा वह बेकार प त लंका के ार
के सामने पड़ाव डालते समय मेरे सेनाप त के हाथ मारा गया। इससे प है क तु हारे
आ या मक गुण का उसे कोई लाभ नह मला। उसके साथ ल मण तथा उसके सेनाप त
भी मारे गए।”
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रावण ने अपनी हरे रंग क चमचमाती आँख से सीता को घूरा और बोला, “मुझे लगता
है क तु ह मेरी बात पर व वास नह हो रहा। मुझे इस बात का पता था और इसी लए म
यह मा णत करने के लए राम का सर लाया ँ!”
उसने जा गर को अपने पास बुलाया। वह तुरंत एक डं डे पर टँ गा राम का सर लेकर
आ गया। उस भयानक व तु को सीता के सामने रख दया गया। उसके बाद, रावण ने धनुष
लेकर सीता के सामने फक दया और कहा, “यह राम का स धनुष है। न चय ही,
तुमने इसे पहचान लया होगा।” वह आगे क ओर झुका और सीता के कान म धीरे-से
बोला, “ या अब तु ह मेरी रानी बनना वीकार है?”
सीता उस कृ म सर को दे खकर च ला पड़ी, “हे मेरे य भु! या आप मुझे
छोड़कर चले गए? यो त षय ने तो आपक अ यंत लंबी आयु क भ व यवाणी क थी।
यु कौशल म पारंगरत होने के बावजूद आपक असमय मृ यु कैसे हो गई? आप मेरी ओर
य नह दे खते? आप मेरी बात का उ र य नह दे ते?”
सीता ने रावण क ओर मुड़कर कहा, “मुझे भी उसी अ से मार डालो जससे मेरे
प त का वध आ है और मेरे शरीर को रणभू म म उनके शरीर के ऊपर रख दो। वे जहाँ
जाएँगे, म उनके साथ र ँगी।” यह कहकर सीता नीचे गर पड़ी और रोने लग ।
उसी समय रावण का एक सेनाप त वहाँ आया और उसने एक अ यंत मह वपूण वषय
पर चचा के लए रावण से सभागर म उप थत होने क ाथना क । सीता को दे खकर ब त
आ चय आ क रावण के वहाँ से हटते ही, वे जा ई सर और धनुष भी ग़ायब हो गए।
उसी समय वभीषण क प नी वहाँ आई और उसने सीता को बताया क वह रावण क
चाल है तथा उसके प त जी वत ह और लंका पर आ मण क तैयारी कर रहे ह। सीता ने
वभीषण क प नी का आभार कया और उससे रावण क योजना का पता लगाने
और यह जानने को कहा क चूं क अब राम ने नगर के बाहर ही पड़ाव डाला आ था तो
या रावण सीता को लौटाने के वषय म वचार कर रहा है। वभीषण क प नी शी ही
लौट आई और उसने सीता को थ त से अवगत करवाया।
“ म थला क राजकुमारी! रावण अपने जी वत रहने तक तु ह छोड़ने को तैयार नह
है। वह भयभीत होकर तु ह नह छोड़े गा। वह तु हारे त अ य धक आस हो चुका है।
परंतु तुम घबराओ मत, य क तु हारे प त शी ही दशानन को मारकर तु ह यहाँ से मु
करवाकर ले जाएँगे!”
इस बीच, राम ने ल मण तथा कुछ अ य सेनाप तय के साथ सुवेल पवत पर चढ़कर
लंका नगरी को नकट से दे खने का नणय कया जो कूट पवत पर बसी ई थी। अचानक
उ ह ने ग के ाचीर पर रावण को दे खा जो आभूषण एवं लाल रंग के व म खड़ा वानर
के श वर का नरी ण कर रहा था और उसके दोन ओर सुंदर याँ खड़ , उसे पंखा झल
रही थ ।
यह दे खकर सु ीव वयं को रोक नह पाया और वह अचानक एक शखर से सरे पर
कूदता आ रावण के पास प ँच गया।

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“म राम का सेवक और उनका म , सु ीव ँ। म आज तु ह नह छोडँ गा!” यह
कहकर, सु ीव ने रावण के ऊपर छलाँग लगा द और उसका मुकुट छ नकर नीचे फक
दया।
रावण को ब त आ चय आ। वह बोला, “म अभी तु हारी इस सुंदर गदन को तुमसे
अलग कर दे ता ँ।” यह कहकर रावण ने सु ीव को पकड़ा और नीचे गरा दया। सु ीव गद
क तरह वापस उछला और वहाँ उनके बीच एक छोट -सी मुठभेड़ हो गई। सु ीव को
अपनी भूल का एहसास हो गया और वह त काल कूदकर सुवेल पवत पर लौट आया।
वानर ने अपने नेता का जयघोष कया, कतु राम ने सु ीव को इस तु छ कृ य के लए धीरे-
से डाँटा तथा उसे दोबारा ऐसा न करने के लए कहा। य द वह पकड़ा या मारा जाता तो
उनके लए, इसका प रणाम अ यंत ख़तरनाक हो सकता था।
राम ने सु ीव से कहा क वह अंगद को शां त त बनाकर रावण को अपने रा य व लोग
क र ा करने का एक अं तम अवसर दे । ऐसा करना धमपरायण यु के नयम के अनुसार
है। हनुमान ने कहा क धरती क कोई श अब रावण को अपना मन बदलने पर ववश
नह कर सकती। परंतु राम ने कहा क उ ह अपनी ओर से धम के माग से वच लत नह
होना चा हए और वे उस रा स को अं तम ण तक, य द वह चाहे तो दय प रवतन का
अवसर दे ना चाहते ह।
अंगद रावण को नकट से दे खने के लए आतुर था और उसे जैसे ही वहाँ जाने का
आदे श मला, वह लपककर दरबार म प ँच गया, जहाँ रावण अपने मं य के साथ बैठा
बात कर रहा था।
सूय क रोशनी म जब अंगद रा सराज के सामने उतरा तो वह चमकता आ वण का
गोला लग रहा था।
“तुम कौन हो?” रावण ने पूछा।
“म बाली का पु और अयो या के युवराज राम का त ँ।” रावण ने जैसे ही सुना, वह
उठा और उसने अंगद का गमजोशी से वागत कया।
“ य पु ! तुम मेरे अ छे म बाली के पु हो। तुम मेरे भी पु के समान हो। परंतु
मुझे यह बात समझ म नह आई क तुमने ऐसे के साथ म ता य क , जसने
तु हारे पता को अनु चत ढं ग से मार डाला था। तुम मेरे साथ रहो। म तु ह अपने पु ,
इं जत क तरह रखूँगा और सभी सुख-सु वधाएँ ँ गा। तुम एक नेक पता क संतान हो,
इस लए तु ह ऐसे न न वग के के साथ मै ी नह करनी चा हए!”
“रा सराज! मुझे परामश दे ने वाले तुम कौन होते हो, जब क तुम वयं पाप म ल त
हो! म तु ह केवल राम का संदेश दे ने आया ँ। उ ह ने तु ह अं तम चेतावनी द है। तुम या
तो वदे ह क राजकुमारी को लौटा दो अ यथा महल के ार से बाहर नकलो और राम के
साथ नणायक यु करो। तुम स मान से जीना चाहते हो या ल जत होकर मरना चाहते
हो - यह तु हारी इ छा है!”
यह संदेश सुनकर रावण ो धत हो गया। उसने उस शां त त को, जसके त उसने
कुछ ण पहले अपना शा वत ेम कया था, पकड़कर तुरंत मृ युदंड दे ने का आदे श

दे दया!
“म कोई द पक का काश नह , जो तु हारे श द क आँधी म बुझ जाऊँगा!” रावण ने
कहा।
वह नीचे झुका और अंगद को नकट से घूरने लगा। उसक आँख से अंगार नकल रहे
थे। उसक भँव तन ग । उसने भय से काँपते अंगद को पकड़ना चाहा ले कन अं तम ण म
वह र हट गया और अपने सुर ाक मय को उसे पकड़ने के लए कहा।
अंगद ने अपनी ओर आते चार ह रय को पकड़ लया और उ ह लेकर महल क
द वार पर कूदा और उन चार को ज़मीन पर पटक दया। उसने फर महल के बुज पर
छलाँग लगाई और उसके दो टु कड़े कर दए। वह वह खड़ा होकर ु साँड़ क तरह
गरजा और फर धीरे-से राम एवं अ य वानर के सामने उतर आया। वे सब उसका करतब
दे खकर ब त स न ए। उसके बाद उसने रावण के दरबार म ई बात उ ह सुना द ।
“हनुमान ने स य कहा था,” राम ने सोचा, “रावण न तो सीता को लौटाएगा और न ही,
जब तक उसे ववश नह कया जाता, स मानजनक यु के लए सामने आएगा।”
हनुमान ने वानर तथा भालु को ज़ोर से च लाने और शोर करके रा स को यु के
लए आमं त करने का आदे श दे दया। उनके ारा नकाले गए भयंकर वर ने
लंकावा सय को डरा दया। वे लोग कामुक भचार भरे जीवन के अ य त थे और उ ह
लड़ना बलकुल पसंद नह था। उ ह ने अपनी आवाज़ उठाई और रावण से सीता को
लौटाने तथा उ ह शां तपूवक ढं ग से रहने दे ने का अनुरोध कया।
“य द हमारे राजा ने हमारी इ छा नह वीकार क ,” वे बोले, “तो हमारा जीवन समा त
हो जाएगा।”
रावण यह सुनकर ग़ सा हो गया। “वे सफ़ वानर और भालु का समूह ह,” वह
च लाया। हम उनके सर अपनी द वार पर पुर कार क भाँ त लटकाएँगे। उनके शरीर क
चमड़ी, तु हारी प नय के लए व का काय करेगी और उनका माँस तु हारे ब च के लए
भोजन बनेगा। अपने रथ पर सवार हो जाओ, अपने कु को खोल दो। आओ, हम
मलकर राम के दल को यहाँ से भगा द!”
राम ने सु ीव को अपने सेनाप तय को चुनने के लए कहा, ज ह व भ न ार से
आ मण करना था।
शी ही, द वार और खाइय के बीच क ख़ाली जगह वानर से पट गई। वा तव म,
उ ह ने लंका के चार ओर एक ठोस द वार बना ली थी। जब यह समाचार रावण ने सुना तो
उसने तुरंत अपनी सेना को आदे श दया क श ु को ार के भीतर आने से रोका जाए। वह
वयं ग क ाचीर पर चढ़ा तो दे खकर हैरान रह गया क सामने का पूरा मैदान वानर से
भर गया था, जो यु के आतुर हो रहे थे। घास के हरे मैदान भूरे रंग के दखाई दे रहे थे।
अचानक उसने राम को दे खा जो हनुमान क पीठ पर बैठकर वानर को कलेबंद तोड़ने
और नगर पर धावा बोलने के लए े रत कर रहे थे। उसने कभी इस बात क क पना नह
क थी क एक साधारण मनु य वानर के दल के साथ उसके अनमोल नगर के इतने नकट
आ जाएगा और अब ऐसा लग रहा था क वह शी ही ार के भीतर भी वेश कर जाएगा।
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उसी ण ल मण ने अपना धनुष लंका क दशा म साध लया, रावण ने भी अपनी गदा
उठा ली और उसके सेनाप तय ने अपनी तलवार नकाल ल । रावण ने ार खोलने तथा
अपने सैकड़ कु को छोड़ने का आदे श दे दया तथा उनके पीछे भयानक रा स, अपने
रथ पर सवार होकर चल पड़े । उसे व वास था क उसक श त सेना आसानी से वानर
दल को समा त कर दे गी। लंका का वशाल उ री ार खुला और रा स क सबसे युवा
एक- तहाई सेना बाहर क ओर भागी।
वानर डरकर पीछे हट गए कतु हनुमान ने आ मण म उनका नेतृ व करते ए रा स
के अगुआ पर बड़ी-सी च ान फककर उसे गरा दया। यह दे खकर वानर का साहस बढ़
गया और वे हाथ म डं डे और प थर लेकर नशाचर क सेना पर क़ाबू पाने हेतु आगे भागे।
भालु ने कु को भयभीत और अ व को च का दया। वानर, रा स के रथ पर कूद
गए और उ ह लात और मु क से मारा तथा काट लया। रा स इस कार के यु के लए
बलकुल तैयार नह थे।
वानर खाइय को प थर और वृ क शाखा से पाटने लगे ता क सेना उसे आसानी
से पार कर सके। उसके बाद उ ह ने व भ न थान से, द वार पर चढ़ना आरंभ कर दया।
वे वृ , ल और प थर को अ -श क तरह हाथ म लए लंका क सड़क पर कूदने-
च लाने लगे, “राम क वजय हो! रा स का अंत हो!” शी ही सव , कूदते, च लाते
और व वंस मचाते वानर का झुंड दखाई पड़ने लगा।
नशाचर क सेना ने वानर को आगे बढ़ने से रोकने का यास कया। वे सब व णम
कवच पहने ए और हाथ म तलवार एवं धनुष-बाण लए ए थे। वे र जमा दे ने वाली
गजना करते ए आगे दौड़े और वानर पर टू ट पड़े । उ ह ने वानर पर जलती सलाख ,
भाल , बरछ और कु हा ड़य से हमला कर दया वानर ने बदले म वृ , च ान तथा अपने
नाख़ून व दाँत से धावा बोल दया!
रावण के युवा सेनाप त वशाल घोड़ , हा थय और रथ पर सवार होकर आगे भागे।
सभी अ व व हा थय ने सोने क जीन पहनी ई थ और उनके सवार के शरीर पर सोने व
चाँद के आवरण थे जब क वानर के शरीर पर बाल के अ त र कुछ नह था!
चूं क राम के पास रथ नह था, इस लए वे हनुमान के कंधे पर तथा ल मण, अंगद के
कंधे पर सवार थे। शी ही रणभू म धूल से ढँ क गई। भू म पर वानर और रा स क र म
धाराएँ बहने लग । वातावरण म ढोल, बगुल तथा यु क चीख़-पुकार के वर गूँज रहे थे।
पताकाएँ फट ग थ , रथ व त हो गए थे और अ -श यहाँ वहाँ बखरे पड़े थे। वानर
रा स को न च-खसोट रहे थे, उनके ऊपर कूद रहे थे, जससे रा स क ह डयाँ चटक
रही थ , माँस छतर रहा था और आँख बाहर नकल आ थ ।
रावण लंका के सव च थान पर खड़ा वनाश के इस य को दे ख रहा था। उसक
सेना को ग के भीतर धकेल दया गया था और उसे भय था क नंद ारा क गई पुरातन
भ व यवाणी स य होने वाली थी। वह वानर के हाथ परा त हो रहा था। हनुमान ने रावण
को दे खा तो वे एक छलाँग म उसके सर पर जा चढ़े । उ ह ने रावण के दस सर पर नृ य
कया और उसके सभी मुकुट नीचे गरा दए। वानर शोर मचाकर अपनी सहम त दशा रहे थे
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जब क रा स के सर ल जा से झुक गए थे। इससे पहले क रावण, हनुमान को पकड़
पाता, वे कूदकर फर से रणभू म म लौट आए।
पहले दन का यु रा तक चलता रहा, जो ऐसा समय था जब नशाचर अ धक
श शाली हो जाते ह। रा के अंधकार म आकाश व णम न क वाले बाण क चमक से
जगमगा रहा था। रा होने से नशाचर ब त स न थे।
रावण ने कहा, “युवा रा स को आराम करने दो। अनुभवी रा स को तैयार करो।”
रा स यो ा, अ न के सम नतम तक होकर वजय क कामना करने लगे। उ ह ने
अपने धनुष पर टं कार द उ ह ने कवच पहने और गले म पुजारी ारा वजय हेतु
अ भमं त मालाएँ डाल ल । रावण ने अपने सेनाप त ह त को सोमरस क कुछ बूँद
पला और उसे आशीवाद दया। ह त क आँख से छोट -छोट लपट नकलने लग ।
उसने रावण को णाम कया और कहा, “म वानर को भगाकर राम को अकेला कर ँ गा
और फर उसके माँस का भ ण क ँ गा।”
उसने रावण को णाम करके उसका आशीवाद लया और फर अपने रथ पर सवार
होकर चल पड़ा। उसके रथ के प हए सोने के थे जो घूमते ए ज सूय का आभास दे ते
थे। च सठ स ग वाले सप, उसके रथ को ख चते थे जो तलवार और काँटेदार बर छय से
सुस जत था। उसक पताका के लाल रेशमी व पर प न का सप और पुखराज का सह
सला आ था। ह त ने अपने हाथ-पैर खोले तथा अपनी लाल आँख को घुमाने लगा।
उ री ार खुला और अनुभवी रा स क सेना का दल बाहर नकल आया। उनके पीछे
हाथ और पैर म घं टयाँ बाँधे सै नक चलने लगे। वे पशु के पीछे दौड़े तो वे सब डर के
भागने लगे। नल ने अकेले ही, ह त के रथ का सामना कया। उसने वयं को हज़ार बाण
से बचाकर ह त के रथ पर एक बड़ी-सी च ान फक , जससे उसका रथ पलट गया।
रा स रथ से बाहर नकल आया और अपनी गदा लेकर नल पर झपटा। नल उस वार से
बच गया। उसने रथ का एक प हया उखाड़ा और ह त क छाती पर वार कया। ह त के
हाथ से गदा छू ट गई और वह नीचे गरकर मर गया। वह अ -रा का समय था। रा स ने
ल जा से अपने बाल न च लए और वे सब सेनाप त के बना लंका लौट आए।
वानर और भालु ने अपने मृतक को उठाया तथा वन म ले जाकर उनका सं कार
कया। अनेक रा स भी मारे गए थे कतु रावण नह चाहता था क कसी को मृत रा स
क सही सं या का पता लगे, इस लए उसने उन सबके शव को समु म फकने का आदे श
दया।
रावण ने तुरंत अपने पु , इं जत तथा अपने मु य सेनाप तय को वानर सेना से लड़ने
के लए कहा। उ ह ने ल मण एवं अ य लोग को ं क चुनौती द । इं जत ने अंगद से,
ल मण ने व पा से तथा हनुमान ने जंबुमाली के साथ यु कया। ये दोन रावण के
सबसे व वसनीय सेनाप त थे।
अंगद रावण के पु , इं जत को परा त करने का इ छु क था। इं जत का वा त वक
नाम मेघनाद था कतु यु म इं को परा जत करने के बाद उसका नाम इं जत पड़ गया
था। वह ब त ब ढ़या जा गर तथा मायावी कला म पारंगत था। वह रावण का करामाती
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पु था जो अपनी इ छा से कोई भी प धारण कर सकता था। कहते ह, केवल उसक
माता, मंदोदरी को उसके असली प का पता था। अंगद ने इं जत को घायल कर दया
और उसके घोड़ व सारथी को मार डाला। राम ने अंगद के परा म क शंसा क य क
वे सब इं जत क श से प र चत थे। इस बीच, रावण का चालाक पु हवा म उछला
और बादल म ओझल हो गया। अपने थान से उसने नागपाश चलाकर दोन भाइय को
बाँध लया। वह नागपाश, राम एवं ल मण क गदन के चार ओर लपट गया जससे उनका
दम घुटने लगा और वे मू छत हो गए। इं जत के घातक बाण के कारण राम और ल मण
उन जा ई र सय से बँधे ए थे तथा उनके शरीर र म भीगे ए थे। उनके तन म ाण
का संचार लगभग समा त होने लगा था और बीच-बीच म उनके शरीर म हलका-सा झटका
महसूस होता था। वानर सेना घबरा गई। अपने नायक क ऐसी दयनीय थ त दे खकर वे
सब बुरी तरह नराश हो गए। वे आकाश म उछलकर इं जत क एक झलक पाने का
यास कर रहे थे कतु वह उ ह कह दखाई नह पड़ा। उ ह केवल उसका उपहास-भरा
अ हास सुनाई दे ता रहा। केवल वभीषण ही इं जत को दे ख पा रहा था कतु नागपाश के
सामने वह भी असहाय था। इं जत ब त ह षत आ य क उसे व वास था क उसने
दोन भाइय को मार डाला है। वह वानर सेना म व वंस मचाकर, अपने पता के पास लौट
आया और उसने रावण को कोसल बंधु क मृ यु का शुभ समाचार सुनाया।
इधर, सभी वानर दोन भाइय के आस-पास एक हो गए और खी होने लगे। उ ह
लगा क यु का थम दन इतना बुरा बीता, जो उनके लए अपशकुन है। परंतु, वभीषण
ने उ ह समझाया क वे खी न ह य क राम व ल मण क मृ यु नह ई थी। उसने
वानर को दोन भाइय क दे खभाल करने को कहा। उसे व वास था क वे दोन केवल
मू छत ए ह। जांबवंत ने सबको बताया क राम वयं व णु के अवतार ह और उ ह कोई
नह मार सकता।

भीम प ध र असुर संहारे।


रामचं के काज सँवारे।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

रावण-मदनाय नमः

अ याय 20

वा मज
यु जारी है

न मुखे ने ायोवा प
ललाटे च ुवो तता,
अ ये व प च गा ेषु,
दोषा सं व तत व चत्।

मुझे उनके चेहरे अथवा ने , म तक,


भँव अथवा उनके शरीर के कसी भी
अंग म कोई दोष दखाई नह पड़ता।

—वा मक रामायण

राम क मृ यु का समाचार सुनकर रावण ब त स न आ। उसने तुरंत आदे श दया क


सीता को वमान म बैठाकर वह य दखाया जाए ता क उसे वयं व वास हो जाए।
“सीता को कहो क वह अपने प त को भूल जाए और मेरे पास आ जाए य क अब उसके
पास मेरा ेम वीकार करने तथा मेरी प नी बनने के अ त र कोई वक प शेष नह है!”
सीता को रा सय क बात पर व वास नह आ इस लए उ ह बलपूवक वमान म
बैठाकर रणभू म म ले जाया गया। वे रण म ए वनाश और इतनी बड़ी सं या म मारे गए
वानर को दे खकर रोने लग । उन मृत वानर और शव के उस सागर के बीच, उ ह ने अपने
य प त को और उनके भाई को न य एवं र रं जत अव था म लेटे दे खा। सीता को
कुछ भी प नह द ख रहा था य क उनक आँख से आँसु क धार लगी ई थी।
सीता ने रोना और अपने भा य को कोसना आरंभ कर दया।
“ऐसा कैसे हो सकता है क मेरे राम, ज ह ने जन थान पर अकेले ही सब रा स को
मार डाला था, रावण के उस पु के बाण का सामना नह कर सके? हमारे गु व स ने
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यह भ व यवाणी क थी क राम अनेक अ वमेध य करगे और राजा के प म ब त
या त अ जत करगे। म कभी वधवा नह बनूँगी और मेरे पु वीर ह गे। ये सारी बात ग़लत
कैसे स हो सकती ह? मेरे पैर पर बने कमल- च कस काम के ह, जो यह दशाते ह क
मुझे रानी बनना है? मेरे शरीर पर उ च ेणी क ी के सभी बारह ल ण व मान ह। मेरा
शरीर सुडौल है, मेरे दाँत एक समान ह, मेरी ना भ मेरे पेट के भीतर है। मेरा व उ नत है,
मेरी वचा व केश मुलायम ह। मेरा वण मोती जैसा है और मेरी ए ड़याँ चलते समय धरती
को पश करती ह। इन सबके के बावजूद मुझ पर यह संकट आ गया है!”
एक रा सी ने, जो अ य से अ धक दयावान थी और जसने सीता के साथ मै ी कर ली
थी, सीता को दलासा दे ते ए बोली, “दे वी, तुम रोओ मत! तु हारे वामी क मृ यु नह ई
है, ब क इन दोन म से कसी क मृ यु नह ई है। दे खो, वे वानर कस तरह उनके शरीर
क दे खभाल कर रहे ह। वे उन दोन के ठ क होने क ती ा कर रहे ह। उनके चेहरे पर
अब भी चमक है जो मरने के बाद नह होती है। इस अवसर का लाभ उठाओ और अपने
वामी को दे ख लो, जनसे तुम इतने समय से र हो। ख मत करो और साहस रखो!”
यह सुनकर सीता रोमां चत हो ग । उ ह ने यान से दोन को दे खा तो यह मान लया
क वह रा सी ठ क ही कह रही थी। सीता ने हाथ जोड़कर राम को णाम कया और लौट
आ ।
“अब केवल प ीराज ग ड़ ही इन र सय को काटकर दोन भाइय को मु कर
सकते ह,” जांबवंत ने कहा।
हनुमान शां तपूवक खड़े रहे य क उ ह व वास था क राम और ल मण जी वत ह।
वे पूव दशा क ओर मुख करके ग ड़ मं का जाप करने लगे। ग ड़, भगवान व णु के
वाहन ह और सप के श ु ह। हनुमान ने जाप समा त ही कया था क अचानक आकाश म
तूफ़ानी ग त से हवा चलने लगी जसके भाव से समु म ऊँची-ऊँची लहर उठने लग ।
वृ , सूखी टह नय क तरह उखड़कर समु म गरने लगे और पशु-प ी इधर-उधर भागने
लगे। तभी उ ह ने प ीराज ग ड़ को दे खा जो तूफ़ान से लदे आकाश के बीच से दहकती
ई वाला के समान तेज़ी से आ रहे थे। वह तूफ़ान उ ह के वशाल पंख से उ प न आ
था। उ ह दे खते ही, सारे सप ज ह ने राम और ल मण को बाँध रखा था, भयभीत होकर
भागने लगे। दोन भाई हड़बड़ाकर उठ बैठे मानो गहरी न द से जागे ह । ग ड़ उनके नकट
आए और अपने पंख से दोन के चेहर को नेहपूवक सहलाया, जससे उनके घाव तुरंत
भर गए और चेहर क आभा लौट आई। उनक कां त और वभू त पहले से दोहरी हो गई।
ग ड़ ने उ ह बड़े ेम से गले लगाया तो राम बोले, “जब आपने मुझे अपने पंख से
छु आ तो मुझे ऐसा लगा मानो मेरे पता मुझे लार कर रहे ह । आपक कृपा से हम इस
घातक नागपाश से बच गए ह। कृपया बताएँ क आप कौन ह?”
ग ड़ ने कहा, “म वनता का पु ग ड़ ँ और म भगवान व णु का वाहन ँ। म सदा
आपके साथ ँ और आपके जाने बना भी आपके नकट रहता ँ। ये सप इं जत के
मायावी मं से बाण म प रव तत हो गए थे। केवल म ही आपको इस पाश से मु कर
सकता था। म उनका पुराना श ु ँ और इसी लए मुझे दे खते ही वे सब भाग गए। हे राम,
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आप चता मत क जए! यह न चत है क आप और आपके भाई, श ु का नाश कर
दगे तथा आपका भ व य अ यंत उ वल है। आपक धमपरायणता ही आपक श है
तथा आपके श ु कतनी भी धूतता कर, कतु आपक वजय न चत है। कृपया मुझे जाने
क अनुम त द जए। आपको जब भी मेरी आव यकता हो, मुझे याद कर, म त काल
उप थत हो जाऊँगा।”
राम व ल मण के चम कारी वा य लाभ को दे खकर वानर स नता से चीख़ने-
च लाने लगे। वे ख़ुशी से पूँछ पटकने, नगाड़े पीटने तथा म के ढोलक बजाने लगे और
नाचने-कूदने लगे। रावण उनक आवाज़ सुनकर वधा म पड़ गया। “ये सब राम क मृ यु
पर इतने स न कैसे हो रहे ह?” उसने सोचा। उसने अपने गु तचर को भेजकर सचाई
जानने को कहा और उसे दोन भाइय के चम कारी ढं ग से जी वत बचने का समाचार
सुनकर ब त आ चय आ।
रावण ने अपने सव े सेनाप त व चंड ने वाले धू ा को एक बड़ी सै य टु कड़ी
को साथ लेकर श ु क सेना को समा त करने भेजा। उसक आवाज़ रकते ए गधे के
समान थी और वह गध से जुते रथ पर सवार था जसक लगाम सोने क और उनके सर
भे ड़ए और सह से मलते थे। वह कुछ रा स के साथ, जो कवच पहने ए ऊपर तक
अ -श से सुस जत थे, प चमी ार से बाहर नकला जहाँ हनुमान पहरा दे रहे थे।
वानर दल यु के लए आतुर था और वे रा स क सेना के आते उन पर टू ट पड़े । धू ा
ने, जो सबसे आगे था, अपने बाण क वषा से वानर को ततर- बतर कर दया। ोध म
आकर हनुमान ने एक बड़ी शला उठाकर धू ा के रथ पर दे मारी। रथ और उसम जुते
गधे, शला के नीचे कुचले गए कतु धू ा अं तम ण म बच नकला। हनुमान रा स पर
शलाएँ और वृ फकने लगे। उ ह ने सेनाप त पर धावा बोल दया। घू ा ने पैने काँट
वाली वशाल गदा उठाई और हनुमान के सर पर वार कया। हनुमान उस वार से बच गए।
उ ह ने अपने त ं पर ब त बड़ी च ान फक । उससे रा स का अंत हो गया। उसके
मू छत होकर नीचे गरते ही शेष रा स, यह समाचार दे ने रावण को यह समाचार दे ने।
इसके बाद, रावण ने अपने अगले यो ा और हीरे के समान दाँत वाले व दं त को
रणभू म म भेजा। उसके हीरे जैसे दाँत ब त लंबे और पैने थे तथा उसके नचले ह ठ पर
लटके ए थे। अनेक हा थय , घोड़ , गध व ऊँट पर सवार सै नक उसके साथ थे। उसने
अ यंत सुंदर बाजूबंद पहने थे और उसके मुकुट पर कवच क पत थी। उसक सेना द णी
ार से बाहर नकली जहाँ राजकुमार अंगद तैनात खड़ा था। वह तुरंत उस रा स का
सामना करने के लए आगे बढ़ गया। वहाँ व दं त और वानर क सेना के बीच घमासान
यु आ। उसने अंगद पर हज़ार बाण क वषा कर द और अंगद ने भी उसके ऊपर वृ
फका। फर उसने व दं त का रथ तोड़ दया और उसे नीचे उतरकर समान तर पर आकर
लड़ने को ववश कर दया। रा स के पास वशाल तलवार और ढाल थी जब क अंगद के
हाथ म केवल एक वृ था। दोन एक- सरे के आस-पास घूमते रहे और वार करने के लए
अवसर क ती ा करते रहे। जैसे ही रा स नीचे गरा, अंगद ने उछलकर उसक तलवार

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छ न ली और उसका सर धड़ से अलग कर दया। रा स क घबराई ई सेना वापस ग
क ओर दौड़ी और सारा समाचार रावण को सुनाया।
रावण का अगला सेनाप त अकंपन था। वह अपने र न-ज ड़त वशाल वण रथ पर
सवार होकर अपनी सेना को लेकर रणभू म म प ँच गया। उसने वानर सेना को ब त त
प ँचाई और उनके सारे मुख सेनाप त घबराकर भाग गए। यह दे खकर हनुमान यु म
कूद गए। हनुमान का बलशाली प और नभय वहार दे खकर वानर स न हो गए और
भागकर उनके पीछे आ खड़े ए। अकंपन ने हनुमान का वागत बाण वषा से कया।
हनुमान ने बना घबराए, एक शला तोड़ी और अकंपन पर दे मारी कतु रा स ने उसे अपने
बाण से चूर-चूर कर दया। इससे हनुमान को ोध आ गया और वे एक वशाल वृ
उखाड़कर अकंपन क ओर दौड़े । अकंपन भी उनके ऊपर लगातार बाण चलाता रहा।
हनुमान ने वह वृ उठाकर ज़ोर से अकंपन के सर पर पटक दया जससे उसक त काल
मृ यु हो गई। शेष रा स सेना पूरी तरह अ त- त हो गई। हनुमान क अ त वशाल काया
दे खकर रा स अपने खुले बाल लए, भय से चीख़ते ए वहाँ से भाग नकले। स नता से
भरे वानर ने हाथ म टह नयाँ और प थर लेकर उनका पीछा कया।
रावण को धीरे-धीरे यह महसूस हो रहा था क उसका सामना कसी साधारण श ु से
नह है। एक के बाद एक, उसके वीर सेनाप त मारे जा रहे थे। अब उसने अपने धान
सेनाप त को बुलाया जसने उसे राम से यु करने क सलाह द थी और उसे श ु को
परा त करने का आदे श दया। वह र न से सजे अपने अ त वशालकाय रथ पर बैठकर
हज़ार कवचधारी सै नक के साथ ढोल और तुरही क भयंकर आवाज़ करता आ ग से
बाहर नकल आया। वे सब अपनी तलवार, भाले, धारी तलवार, बरछे , मुदगर, ् गदा,
फौलाद सलाख, कु हाड़े और धनुष-बाण लेकर वानर पर टू ट पड़े , जब क बेचारे वानर के
पास वृ और शला के अ त र कुछ नह था।
उनका सामना सु ीव के सेना के धान सेनाप त नील से आ। दोन क ज़बरद त
भड़ं त ई। नील ने आँख बंद करके उसक बाण क वषा सहन कर ली और फर उसने
एक वशाल वृ फककर रा स के रथ और धनुष को तोड़ डाला। रा स अपना मुदगर ्
लेकर नील क ओर दौड़ा और उसके सर पर ज़ोर से हार कया। उस हार से नील
ल लुहान हो गया, ले कन फर भी उसने एक बड़ी शला उठाकर रा स के सर पर मारी
जससे उसका सर चूर-चूर हो गया। अपने धान सेनाप त क मृ यु से रा सी सेना हताश
हो गई और वापस लंका क ओर भाग गई।
रावण ने अब वयं रणभू म म उतरने का नणय कया। उसक प नी मंदोदरी ने उसे
अपने नणय पर पुन वचार करने का और राम के साथ सं ध करने का आ ह कया जसे
सुनकर रावण को ोध आ गया।
“रावण ने कभी कसी के सामने, सर नह झुकाया और वह अब भी ऐसा नह करेगा।
घबराओ मत मंदोदरी! म आज सं याकाल तक उन कोसल बंधु को मारकर अपने
सेनाप तय क ह या का तशोध लूँगा।”

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रावण, पवत जैसे दखने वाले अजेय यो ा क वशाल सेना लेकर रणभू म म जा
प ँचा। उसक सेना को आगे बढ़ता दे खकर, राम ने सु ीव से उनके सेनाप तय के वषय म
पूछा। वभीषण ने रावण के व भ न सेनाप तय के बारे म बताया, “वह वेत छ वाले रथ
म नशाचर का राजा, रावण है। उसके साथ बाघ, ऊँट, हाथी और घोड़ के सर और घूमती
आँख वाले अनेक प म भूत और पशाच भी ह। उसने मुकुट धारण कया आ है और
उसके कान म वशाल बा लयाँ झूल रही ह। वह इं को परा त करके उसके दप को व त
कर चुका है।”
राम ब त दे र तक रावण क ओर दे खते रहे और बोले, “वह सचमुच शानदार दखता
है। या चमक है! बलकुल दोपहर के सूय क भाँ त! उसके भीतर एक वीर नायक के सभी
ल ण व मान ह। परंतु मुझे उस पर दया आ रही है य क वह मृ यु के नकट बढ़ रहा
है!”
रावण अपनी ओर आते वानर पर बाण क वषा कर रहा था। उसे दे खकर सु ीव वयं
को रोक न पाया और उसने एक शला तोड़कर रावण के ऊपर फक , कतु रावण ने उसे
अपने बाण से छ न- भ न कर दया। फर रावण ने सु ीव के ऊपर अपना भाला फका
जसके हार से सु ीव धरती पर गर पड़ा। यह दे खकर वानर सहायता के लए राम के पास
दौड़े तो राम ने अपना धनुष बाण उठाकर रावण का वयं सामना करने का नणय कया।
ल मण ने उ ह रोका और राम से आ ह कया क वे यु म उ ह जाने द। राम ने ल मण
क बात मान ली य क उ ह लगा क रावण के साथ नकट से यु करने का समय अभी
नह आया था।
इस बीच, हनुमान रावण के रथ क ओर दौड़े और बोले, “तु ह ब त-से वरदान ा त ह
कतु ऐसा एक भी नह है जो वानर से तु हारी र ा कर सके। अब म तु ह अपने दा हने
हाथ से सबक़ सखाता ँ।”
रावण ने उ र दया, “एक बार यास करके दे खो। तुम रावण पर वार करने के लए
थायी प से स हो जाओगे और फर म तु हारा अंत क ँ गा।”
हनुमान ने अपनी मु उठाई और रावण क छाती पर वार कया। रावण उस वार से
चकरा गया और फर उसने भी हनुमान पर उसी तरह का हार कया।
रावण ने कहा, “ब त ब ढ़या बंदर! तुम एक शंसनीय त ं हो।”
हनुमान ने उ र दया, “मेरी वीरता को ध कार है क तुम अभी तक जी वत हो। तुम
एक बार फर मुझ पर वार य नह करते, ता क म तु ह यमलोक प ँचा ँ !”
रावण क आँख वाला उगलने लग । उसने अपनी दा हनी मु से पूरी श के साथ
हनुमान क छाती पर हार कया। हनुमान को पीड़ा से कराहता दे ख, रा सराज वहाँ और
अ धक नह का तथा वह राम के धान सेनाप त नील के सामने प ँच गया। उसने नील
पर अनेक बाण चलाए। नील, अ नदे व का पु था। उसने अ यंत फुत के साथ अपना
आकार छोटा कर लया और रावण के रथ के ऊपर जा चढ़ा और फर रावण के मुकुट पर
कूद गया। वह इसी तरह इधर-उधर कूदता आ रावण के बाण से बचता रहा। राम और
ल मण, उसके करतब दे खकर ब त हैरान ए। अंत म रावण ने नील पर आ नेया चला
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दया जसके हार से वह नीचे गर गया। परंतु अ नपु होने के कारण आ नेया के हार
से नील क मृ यु नह ई। नील को मृत आ मानकर रावण, ल मण क ओर चल पड़ा।
उन दोन के बीच भी घमासान यु आ। अंत म रावण ने एक श शाली मं से
अ भमं त एक भाला ल मण पर फका। वह ल मण क छाती म लगा जससे वे मू छत
होकर गर गए।
ोध म आकर हनुमान ने रावण क छाती पर पूरी श से मु का मारा जससे रावण
अपने रथ से नीचे गरकर अचेत हो गया। हनुमान ने ल मण को उठाया और उ ह राम के
पास ले आए। शी ही दोन क मूछा र हो गई। राम ने अब रावण से वयं यु करने का
नणय कया। ग ड़ जस तरह व णु के ऊपर सवार होते ह, उसी कार हनुमान ने राम को
अपने कंधे पर बैठा लया।
वशालकाय हनुमान क पीठ पर सवार होकर राम ने रावण पर आ मण कर दया
और कहा, “तुम कह भी चले जाओ, कतु अब तुम मेरे हाथ से जी वत नह बचोगे।”
रावण ने इसके उ र म व णम न क वाले बाण क वषा कर द , जसने राम और
हनुमान को ढँ क लया। हनुमान क यह थ त दे खकर, राम को ब त ोध आया और
उ ह ने एक अ यंत श शाली बाण रावण क छाती पर मारा जससे वह चकरा गया और
उसका धनुष उसक बल पकड़ से छू ट गया। राम ने अगले बाण से रावण का मुकुट काट
दया और उसे रथ से नीचे गरा दया। रावण को त ध और नर अव था म दे खकर राम
को उस पर दया आ गई और उ ह ने रावण को लंका जाकर कुछ दे र आराम करके नए रथ
पर सवार होकर आने के लए कहा।
रावण अपने खं डत दप, टू टे धनुष, व त मुकुट, यु म मारे गए घोड़ और सारथी
तथा राम के बाण से छलनी शरीर को लेकर लंका लौट आया।

आपन तेज़ स हारो आपै।


तीन लोक हाँक त काँपै।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

दै यकुलांतकाय नमः

अ याय 21

दै यकुलांतक
कुंभकण

जीवन के सम त संक ट र हो रहे ह,


सभी बाधाएँ समा त हो रही ह,
न ावान के सुखदाता, हमारी र ा क जए!
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

रावण के साथ जो कुछ अभी आ था, वह उससे पूरी तरह हताश हो चुका था। वह राम
ारा छोड़ दए जाने क उदारता क शंसा न करके, अपमान और तशोध के भाव से
भरा आ था। वह अपने व णम सहासन पर बैठकर वचार करने लगा और अपने जीवन
क उन सब पीड़ाजनक घटना को याद करने लगा जब उसने अनेक लोग को अपमा नत
कया था और उन लोग ने उसे शाप दए थे। उसे ा के वचन याद आए जब उ ह ने उसे
मनु य से सावधान रहने क चेतावनी द थी य क उसने वरदान म मनु य से सुर ा क
माँग नह क थी! उसे पुं चक थला और शव के वाहन नंद तथा कई अ य के दए शाप भी
याद आए। उसके मं ीगण, आस-पास आकर खड़े हो गए और उसके आदे श क ती ा
करने लगे। अंत म वह उन नराशाजनक वचार को यागकर उठ गया और बोला क अब
कुंभकण को न द से जगाने के अ त र कोई वक प नह है। उसे नौ दन पहले प रषद् क
बैठक के लए बुलाया गया था जसके बाद वह दोबारा जाकर सो गया था।
कुंभकण को नयत अव ध से पूव उठाने म रा स को डर लग रहा था। परंतु राजा के
आदे श का पालन होना आव यक था। य ही वे कुंभकण के भू मगत आवास के नकट
प ँचे, उसके नथुन से नकलती वास ने उ ह वापस पीछे उड़ा दया! उसका मुख जँभाई
लेती गुफा क भाँ त था और उसके खराट से शहतीर भी काँपते थे। उसक वास म से नौ
दन पूव गहरी न द म सोने से पहले पेटभर कर पी गई म दरा एवं र क गंध आ रही थी।
उसे जगाने के लए रा स अपने साथ गा ड़याँ भर-भरकर भस व शूकर का माँस तथा

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बा टयाँ भरके र व म जा और पीपे भर के म दरा लाए थे। उ ह ने कुंभकण के भ डे तन
पर चंदन का लेप कया तथा इ एवं मालाएँ डाल । उ ह ने उसे जगाने के लए भीषण शोर
कया जब क कुछ ने शंख, बगुल और तुरही बजाकर आवाज़ नकाल । कुछ ने उसे डं ड
और सलाख से उठाने का यास कया कतु अपने शरीर के साथ कए जा रहे अ याचार से
अन भ , कुंभकण मज़े से सोता रहा! उसके बाद उ ह ने उसके कान पर काटा, उसके बाल
ख चे और उसके पेट पर ऊपर-नीचे कूदने लगे। अंत म, वह दै य थोड़ा-सा हला और उसने
एक ज़ोरदार जँभाई ली। जो लोग उस समय कुंभकण क दाढ़ न च रहे थे, वे उसके गुफा
जैसे मुख म गर गए और उसके मुख बंद करने से पूव, उ ह ज द से बाहर नकालना पड़ा।
सफ़ नौ दन क न द लेने के बाद उसे ज द जगाने पर वह बुरी तरह ो धत हो गया और
ज़ोर से च लाया। इससे पहले क वह, उन लोग को पकड़कर खाने लगता, वे सब डर के
वहाँ से भाग नकले। परंतु जब उसने अपने सामने भोजन के पवत-से ढे र रखे दे खे तो वह
थोड़ा शांत हो गया और झटपट खाने लगा। रा स ने धीरे-से उसके पास आकर उसे सू चत
कया क उसका भाई, रावण त काल उससे मलना चाहता है। कुंभकण वहाँ रखे घड़ को
चाट गया और भोजन से भरी गा ड़य को ख चकर लाने वाले भस को भी खा गया। इसके
बाद, वह राजा से मलने जाने के लए व पहनने लगा। उसके हर क़दम से धरती काँपती
थी। उसका वशालकाय तन पूरे माग क चौड़ाई घेर रहा था।
उसे दे खकर रावण ब त स न आ और उसने कुंभकण को, जस बीच वह गहरी न द
म सो रहा था, लंका म ए घटना म के वषय म सू चत कया। रावण ारा वानर सेना के
ववरण को सुनकर कुंभकण ब त हँसा और बोला, “मेरे य भाई! मने सफ़ दस दन पूव
तु ह ी के त आकषण के प रणाम के बारे म चेताया था, कतु तुमने मेरी बात नह
मानी। जो राजा धम के नयम का पालन करता है और ववेकशील लोग के परामश पर
यान दे ता है, उसे सदा अपने स कम के सुप रणाम मलते ह, कतु जो उस परामश क
उपे ा करता है तथा अपनी षत बु के अनुसार काय करता है, उसे अपने कम के
प रणाम भुगतने पड़ते ह। मने और वभीषण ने तु ह यह बात समझाई थी कतु तुमने उसे
नह माना। अब भी दे र नह ई है। इस मूखतापूण यु को रोक दो और राम से मै ी कर
लो। मने सुना क तु हारे े सेनाप त मारे जा चुके ह और तुम सावज नक तौर पर
अपमा नत हो चुके हो। या तुम अपना सर धड़ से अलग हो जाने तक नह कोगे?”
ोध से रावण के ह ठ थराने लगे और उसक आँख जलते ए कोयले के समान
दहकने लग । वह कुंभकण पर च लाया, “बड़े भाई को पता क तरह स मान दे ना
चा हए। तुमने मुझे परामश दे ने का साहस कैसे कया? जो हो गया, वह हो गया। मने जो
कुछ कया है, मुझे उस पर कोई पछतावा नह है। य द तुम मुझसे ेम या मेरा स मान करते
हो तो मुझे बताओ क अब या करना चा हए? मेरे ारा पूव म ई असावधा नय क चचा
करने क अपे ा उनके प रणाम को सुधारने का यास करो!”
कुंभकण समझ गया क उसके श द, साँड़ के सामने लाल रंग के व जैसा भाव
दखा रहे थे, इस लए उसने रावण को शांत करने के लए मधुर वचन का योग कया।

“ ो ई े ी ी ँ
“ चता मत करो, भाई! म सफ़ उनके बीच चलकर ही उ ह मसल ँ गा। म उन न ह
राजकुमार के टु कड़े कर ँ गा। मुझे एक बार उनसे मलने दो। म उ ह अपने हाथ से ही
चीर ँ गा। मुझे अ -श क आव यकता नह है। चता छोड़ो और अपने क म जाकर
अपनी प नय के साथ आनंद मनाओ। एक बार राम मारा गया, तो फर सीता तु हारी हो
जाएगी।”
यह सुनकर रावण स न हो गया और उसने कुंभकण को ब त-से अनमोल हार
पहनाए तथा आशीवाद दे कर वदा कर दया।
उस रात, राम ने द वार के पीछे चलती कुंभकण क याह और भयावह छाया को
दे खा। वह चलती- फरती मृ यु के समान लग रही थी। कुंभकण क आँख बैलगाड़ी के
प हय क तरह और उसके दाँत ह तदं त के समान द ख रहे थे। उसने कां य का कवच
और सोने का मुकुट पहना आ था। उसका कमरबंद पुल बाँधने क जंजीर जतना मोटा
था। वह यु के लए दो हज़ार पीपे म दरा और कई हज़ार पीपे भस का गम र पीकर
आया था। उसम वकट का उ साह था और हाथ म वाला उगलता फ़ौलाद भाला था।
उसके आगे चलने वाले के हाथ म काले रंग का वज था जस पर मृ यु-च बना
आ था। कुंभकण के पीछे रा स, उ सा हत और शोर मचाते चल रहे थे जनके हाथ म
शूल, भाले और ब छयाँ थ । लंका के ार से आने के बजाय, जब वह द वार को लांघकर
रणभू म म उतरा। वह वशाल, काले बादल जैसा द ख रहा था। उसे दे खते ही वानर डर के
भाग खड़े ए।
कुंभकण को दे खकर राम ने वभीषण से पूछा, “यह वशालकाय कौन है, जो
अभी आया है?”
वभीषण ने उ र दया, “वह ऋ ष व वा का पु और रावण का छोटा भाई, कुंभकण
है। उसक भूख इतनी ज़बरद त है क जब वह शशु था, उस समय भी ना ते म हज़ार
कार के जीव खाता था और उतने ही फर से दोपहर और फर रा के भोजन म भी खाता
था। उसे बीच-बीच म भी कुछ खाने को चा हए होता था। अंत म सम त ा णय ने ा से
ाथना क । परम पता ा ने कुंभकण को शाप दया क वह अपना शेष जीवन सोता
रहेगा। परंतु फर रावण ने अपने भाई क ओर से ह त ेप कया तो ा ने अपने शाप म
सुधार करते ए कहा क कुंभकण छह माह तक सोएगा और फर एक दन के लए उठे गा
तथा अपनी भूख को शांत करके फर से छह माह के लए सो जाएगा! य द उसे इस तरह
का शाप न दया जाता तो उसने ब त पहले धरती के सम त ा णय को खाकर समा त कर
दया होता। वह आसानी से एक ही बार म हमारी पूरी सेना खा सकता है!”
ा ने यह वचन दया था क वह छह माह के बाद जस दन भी उठे गा, उस दन उसे
दे वता भी परा त नह कर सकगे। परंतु य द कसी अ य दन, उसे न द से जगाया गया तो
वह मारा जाएगा!
अपने भाई को अपने प म यु लड़वाने क उ सुकता म रावण इस चेतावनी को भूल
गया और उसने अपने भाई को छह माह से पूव जगाकर बुला लया था।

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कुंभकण ने द वार लांघी और चलते ए पवत के समान आगे बढ़ने लगा। उसक आँख
क पुत लयाँ रथ के प हय के समान घूम रही थ । जब उसने वभीषण को राम क सेना क
ओर से लड़ते दे खा तो उसे ब त ग़ सा आया और वह उसके ऊपर ज़ोर से च लाया।
“रावण का दोष कुछ भी हो, कतु फर भी वह हमारा भाई है। श ु के प म यु
करने से, तुम अपने प रवार का वरोध कया है। मुझे, तु हारे व वासघात के कारण तुमसे
घृणा हो रही है!”
ऐसा कहकर वह वभीषण क ओर दौड़ा। वभीषण तुरंत राम के पीछे छप गया।
कुंभकण को आगे बढ़ता दे ख उसक बादल जैसी वशाल आकृ त से घबराकर वानर इधर-
उधर भागने लगे।
अंगद ने भय से भागते वानर को रोकने और उ ह समझाने का यास कया क
कुंभकण सफ़ यु क मशीन है जसे लड़ना सखाया गया है और वे सब मलकर उसे
आसानी से परा जत कर सकते ह। वे उसके ऊपर प थर, वृ और शलाएँ फकने लगे कतु
वे कुंभकण से टकराकर ऐसे गर रहे थे मानो पंख, च ान से टकरा रहे ह । वानर ने उसके
ऊपर कूदने और उसे काटने क भी चे ा क ले कन उसने उन सबको म खय क तरह
भगा दया। वा तव म, उसने उनके ऊपर यान ही नह दया और अपने पैर के नीचे उ ह
र दता चला गया। जो वानर डर कर भाग रहे थे, अंगद ने उन सबको रोकने क को शश क
और उनसे लौटकर उस रा स का सामना करने को कहा ले कन वे सब इतने भयभीत थे क
वे नह के। हनुमान ने ऊपर से कुंभकण के सर पर पवत शखर, शलाएँ और वृ फके
ले कन उसने उन सबको आसानी से अपने अ से रोक लया। अब हनुमान नीचे उतर आए
और उ ह ने उसक छाती पर ज़ोरदार हार कया। उस वार से एक पल को कुंभकण को
झटका लगा कतु उसने भी पलटकर अपने ह थयार से हनुमान क छाती पर वार कया।
वह हार इतना तेज़ था क हनुमान पीड़ा से चीख़ उठे जससे रा स अ यंत स न ए
और वानर को ब त नराशा ई।
हनुमान शी ही सँभल गए और एक जोरदार छलाँग लगाकर, कुंभकण के कंध पर
चढ़ गए तथा उसका एक कान काट लया। कुंभकण दद से करहाने लगा।
सभी वानर यो ा ने कुंभकण को घेर लया और वे उसे मारने लगे कतु उस
वशालकाय रा स ने उन सब पर हार कया और उ ह धरती पर गरा दया। वानर समूह
ो धत हो गया और वे सब मलकर कुंभकण पर हर तरफ़ से टू ट पड़े और उसे अपने दाँत
व नाख़ून से काटने-न चने लगे। वे सब ट य क भाँ त उसके सूँड़ जैसे पैर पर चढ़ गए
और उसे न चने-खसोटने लगे। कुंभकण ने उ ह उठाया और मुँह म डाल लया। कुछ उसके
नथुन के रा ते वापस नकलकर बच नकले और कुछ कान से बाहर आ गए। इसके बाद
अंगद ने उसे चुनौती द , कतु उस रा स ने हाथ के एक ही वार से अंगद को मू छत कर नीचे
पटक दया।
इसके बाद, सु ीव आगे आया और उसने कुंभकण को ललकारा। कुंभकण ने ोध म
भरकर उसपर अ से वार कया। य द वह सु ीव के लग जाता तो उसक न चत ही मृ यु
हो जाती, कतु हनुमान ने उस अ को बीच म पकड़ लया और, य प वह पवत जतना
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भारी था, उसके दो टु कड़े कर डाले। यह दे खकर वानर ब त ख़ुश ए और आगे क ओर
भागे। कुंभकण ने एक भारी शला का टु कड़ा तोड़कर सु ीव पर दे मारा जससे वह मू छत
होकर गर पड़ा। कुंभकण ने सु ीव को उठाया और उसे अपनी काँख म दबाकर चल पड़ा।
हनुमान सोचने लगे क या उ ह अपना आकार बढ़ाकर सु ीव को छु ड़ाना चा हए। परंतु
फर उ ह लगा क सु ीव होश म आकर वयं को बचाए तो अ छा होगा अ यथा वह
कुंभकण के हाथ परा जत होने पर नराश हो जाएगा। शी ही, सु ीव को होश आ गया
और उसने ज़ोर से रा स के कान को न चा और उसक नाक पर काट लया तथा नाख़ून
से उसक जाँघ खस ट ल । कुंभकण ने चीख़ते ए सु ीव को नीचे पटक दया। इससे पहले
क वह रा स उसे फर से पकड़ता, सु ीव पीड़ा से तड़पता आ राम के पास जा प ँचा।
इतनी दे र म, कुंभकण को भूख लगने लगी और उसने वानर , रा स और भालु को
खाना आरंभ कर दया। वानर , भालु और रा स को हाथ म भरकर वह उ ह अपने
वशाल मुख म ठूँ सने लगा।
वानर सेना म घबराहट को दे खकर ल मण ने कुंभकण पर बाण चलाकर उसे रोकने का
यास कया कतु उनके बाण उसके वशाल शरीर पर कवचर हत थान पर मौजूद कड़े
और घुँघराले बाल को भी नह भेद सके। कुंभकण ने ल मण क उपे ा करते ए कहा,
“म तु हारे भाई को मारने के बाद तुमसे नपटूँ गा।” ऐसा कहकर वह आगे चला गया।
ल मण ने उसे आगे नह जाने दया और उस पर बाण क बौछार करते रहे। आ ख़रकार,
कुंभकण के हाथ से उसक गदा छू ट गई, कतु वह भीमकाय रोलर क भाँ त माग म पड़ने
वाली येक व तु को र दता चला गया। य प, उसके पास कोई अ नह था, उसने
अपने हाथ और मु के हार से ही वानर सेना म भयंकर व वंस मचा दया। अंत म,
उसका सामना राम से आ, ज ह दे खकर उसने इतनी भीषण गजना क क सब वानर
मू छत होकर गर पड़े ।
राम ने मुड़ी ई न क वाला एक बाण चलाया जो कुंभकण के कवच को भेदकर उसक
छाती म घुस गया। कुंभकण के घाव से र बहने लगा। उसे इतना ोध आया क उसके
मुख से वाला नकलने लगी। य प वह घाव घातक स होने वाला था, परंतु राम के त
घृणा ने उसे जी वत रखा और वह पीड़ा व ोध से चीख़ता आ राम क ओर बढ़ा।
ल मण ने राम से कहा, “यह जीव पूरी तरह नबु हो गया है। इसे यह भी पता नह
लग रहा क यह हमारे लोग को मार रहा है या अपनी सेना का संहार कर रहा है। बेहतर
होगा क हमारे वानर इसके शरीर पर चढ़कर इसे परेशान कर ता क यह धरती पर चलने
वाल को न मार सके।”
इस आदे श को सुनकर वानर ब त ख़ुश ए और वे हर तरफ़ से कुंभकण के ऊपर चढ़
गए और उसे अपनी हरकत से परेशान कर दया। इस बीच, वभीषण गदा लेकर अपने
भाई के सामने आ गया। कुंभकण ने उसे दे खकर कहा, “इससे पूव क म तु ह मार डालूँ,
मेरे माग से हट जाओ। म न द और भूख के अभाव एवं अपने शरीर पर लगे हज़ार घाव से
इतना परेशान ँ क म म और श ु म भेद नह कर पा रहा ँ। परंतु, मुझे पता क तुम मेरे
छोटे भाई हो। केवल तुम ही हो, जसने रावण के व खड़ा होकर स य और
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धमपरायणता का प लेने का साहस कया है। हमारे कुल का अंत करने के लए सफ़ तुम
उ रदायी हो। तुम राम क कृपा के कारण हम लोग म े कहे जाओगे और हमारी परंपरा
को थामे रखोगे।”
यह सुनकर वभीषण क आँख म आँसू भर आए और वह रणभू म के एक कोने म
चला गया।
कुंभकण ने एक वशाल शला उठाई और राम पर फक । राम ने उसे पाँच बाण मारकर
चूर कर दया और कहा, “वीर रा स! म राजा दशरथ का पु राम ँ। मुझे ठ क से दे ख लो
य क शी ही तु हारी आँख कुछ नह दे ख पाएँगी!”
कुंभकण हँसा और बोला, “म कोई तु छ रा स नह ँ जसे तुम सरलता से मार दोगे।
म दे वता का वनाशक, कुंभकण ँ।” यह कहकर उसने अपनी गदा उठाई और हज़ार
वानर को मार गराया। राम ने वायुदेव का आ ान कया और एक चौड़े फाल का बाण
चलाकर कुंभकण का वह हाथ काट डाला जसम उसने गदा पकड़ी ई थी। गदा समेत
हाथ कटकर गरने से ब त-से वानर उसके नीचे दबकर मर गए। वह दै य फर भी नह
घबराया और उसने अपने सरे हाथ से एक वृ उखाड़ा और राम क ओर फका। राम ने
एक और बाण चलाकर कुंभकण का सरा हाथ भी काट दया। उस हाथ के गरने से
दोबारा ब त-से रा स और वानर नीचे दब गए। उसके बाद भी वह रा स आगे बढ़ता गया
और च लाया, “मुझे कोई नह मार सकता। मुझे कोई नह रोक सकता!” उसने अपने
वशाल पैर से सैकड़ वानर को लात मारी, उ ह र दा और मसल डाला। इसके बाद, राम ने
दो अ चं बाण चलाकर कुंभकण के दोन पैर भी काट दए।
कुंभकण फर भी नह का और अपने कटे पैर के ठूँ ठ के सहारे रगड़ता आ आगे
चलता रहा। उसका वशाल मुख आग उगल रहा था। राम ने उसके खुले मुख म व णम
बाण भर दए, जससे वह न तो बोल सकता था और न ही उसे बंद कर सकता था। अंत म,
राम ने एक अ यंत तीखा बाण चलाकर कुंभकण का भीमकाय सर काट दया। मुकुट व
सुंदर कणकुंडल से सजा उसका वशाल सर, भीषण आवाज़ के साथ धरती पर गरा।
उसक धमक से सेतु पर बनी अनेक इमारत तथा सुर ा द वार के ब त-से अंश टू टकर गर
गए।
वहाँ से र, लंका म रावण ने यह भीषण आवाज़ सुनी तो वह भयभीत हो गया। वह
क पना भी नह कर सकता था क उसका वशालकाय भाई मारा जा सकता है। कुंभकण
का वशाल सर पवत से नीचे लुढ़कता आ र रं जत समु म जा गरा। उसके गरने से
सागर म वकट लहर उठ और ब त-से वशाल म य मारे गए। सूय दय होने को था और
पूव क ओर मुख करके खड़े राम क छाया बन रही थी। वानर व रा स के शव तथा उनके
कटे सर व हाथ-पैर से पट रणभू म म, संसार के लए आतंक तथा रावण क अं तम
आशा कुंभकण, र व म जा के सरोवर म मृत पड़ा था!

साधु संत के तुम रखवारे।


असुर नकंदन राम लारे।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

ल मण ाणदाताय नमः

अ याय 22

ल मण ाणदाता
ल मण के र क

ीराम के चरण कमल को दय म रखकर,


पवनपु हनु मान आ म- व वास के साथ चल पड़े।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

रा स भागकर लंका लौटे और रावण को यह सामाचार सुनाया।


“हे राजन!” वे बोले, “ वनाश के संदभ म, मृ यु के दे वता यम को चुनौती दे ने वाले
आपके भाई का सर और उसके हाथ-पैर कट गए ह। उसका सर समु म आधा डू बा पड़ा
है और उसके धड़ से लंका का मु य ार बंद हो गया है!”
अपने य भाई क मृ यु का समाचार सुनकर रावण मू छत हो गया। जब उसे होश
आया तो वह भागकर ाचीर के पास गया और उसने वहाँ से दे खा क उसके भाई के अंग ने
ार को अव कया आ था। उसने अपना सर पकड़ लया और उस त पर शोक
करने लगा। उसे व वास नह आ क एक साधारण मनु य ने उसके वशालकाय भाई को
मार डाला था।
“यह सारी मेरी भूल है। मने वभीषण को नकाल दया। वह मेरी अंतरा मा था और
मेरा य भाई कुंभकण भी, जो मुझसे इतना ेम करता था, मारा गया।”
रावण सर झुकाकर रोने लगा। उसे इस कार रोता दे ख, उसके चार छोटे पु आए
और उसे समझाने लगे।
“ पताजी! आप इस कार खी य हो रहे ह? परम पता ा ने वयं आपको अभे
कवच, धनुष-बाण और सह गध के मुख वाले पशाच से जुता रथ दया आ है।
आपको भयभीत होने क या आव यकता है? आज हम यु भू म म जाएँगे और आपके
श ु का संहार कर दगे।”
उसके सभी पु हवा म उड़ सकते थे और मायावी थे। वे रणभू म म प ँच गए और
उनम श दशन करने क होड़ लग गई। वाला उगलते बरछे व छु रे लेकर वे वानर के
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बीच घुस गए और व वंस मचाने लगे। य प, वे सब वीर थे, उ ह एक-एक करके अंगद
और हनुमान ने मार डाला। अंगद ने नरांतक को तथा हनुमान ने दे वांतक व शरा को मारा
तथा ल मण ने अ तकाय के साथ भीषण यु करके उसे मार डाला।
जो वीर सुबह अ यंत उ साह के साथ आए थे, वे सभी कटे ए वृ क भाँ त रणभू म
म मृत पड़े थे। रावण इस समाचार को सहन नह कर सका। वह सोचने लगा क उसने जो
कुछ राम के वषय म सुना था, वह है - क वे नारायण के अवतार ह और उ ह ने पृ वी पर
रावण को मारने के लए ही अवतार लया है - या वह स य है! उसे लंका क सुर ा क
चता सताने लगी और उसने आदे श दए क वानर को नगर के भीतर घुसने से रोकने के
लए सभी सावधा नयाँ बरती जाएँ।
वह जस समय, सर झुकाए नराशा म डू बा बैठा था, उसका करामाती पु एवं
मनपसंद प नी मंदोदरी का पु , इं जत वहाँ आ गया और उसे स न करने का यास
करने लगा। रावण ने इं जत क शांत आँख म दे खा तो उसे ब त राहत मली।
“ पताजी!” वह बोला, “मेरे होते ए आपको चता करने क या आव यकता है?
आज सूय और चं मा तथा सम त दे वतागण मेरी असी मत श य को दे खगे। म इसी ण
जाता ँ और आपके श ु को दं ड दे ता ँ। आज सूया त होने से पूव आपक वजय
होगी!”
यह सुनकर रावण ब त स न आ। उसने अपने पु को नेहपूवक दे खा। उसक
वचा और बाल सुनहरे थे और उसक आँख म सुनहरे ध बे थे। उसके कवच और
शर ाण के अ त र , उसका कमरबंद और जूते भी सोने के थे। वह अपनी माता के
समान सुंदर था। उसक बात सुनकर रावण ह षत हो गया।
“धरती पर ऐसा कोई नह है, जो मेरे पु को परा त कर सके। मेरा आशीवाद तु हारे
साथ है।”
इं जत ने अपने पता को णाम कया और उसने अपने मनोहर उ ान म जाकर अ न
व लत क तथा अपने इ अ नदे व को आ त अ पत क । इसके तुरंत बाद, अ न म से
चार बाघ वाला एक वण रथ कट आ। वह शानदार रथ, दै य व हरण क सुनहरी
मुखाकृ तय से सुस जत था। उसक पताका पर नीलम क आँख वाला सह बना आ
था। इं जत ने अपना अ य कवच पहना और मायावी रथ पर सवार हो गया और सब
कार के अ -श के साथ त काल अपनी वशाल सेना को लेकर, जसम हाथी, घोड़े
और गधे स म लत थे, नकल पड़ा।
वभीषण ने अपनी आँख मल और नीले आकाश क ओर दे खा कतु उसे भी इं जत
दखाई नह दया। राम एवं अ य वानर को, बादल के बीच से रथ के प हय क चरमराहट
सुनाई तथा व णम श के चमक दखाई पड़ रही थी। उ ह पताका क घं टय और बाघ
के गरजने का शोर भी सुनाई दया, कतु कह कोई यो ा नज़र नह आ रहा था।
इं जत ने आकाश से वानर के ऊपर बाण क वषा करनी आरंभ कर द जससे
हज़ार क सं या म वानर गरने लगे। कुछ ही दे र म, पूरी रणभू म म वानर के शव बखरे
पड़े थे। वानर सेनाप तय ने अपना सव च यास कया कतु वे इं जत को दे ख नह सके
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य क वह मायावी यु लड़ने म पारंगत था। वे अ य श ु से कस कार लड़ते? जा ई
बादल के बीच से उ ह रथ क आवाज़ और धनुष क टं कार सुनाई दे रही थी। कभी-कभी
उ ह उसका सुनहरा कवच और उसके सुनहरे भाले क चमक भी नज़र आती थी कतु वह
वयं दखाई नह पड़ रहा था।
हनुमान और जांबवंत को छोड़कर एक के बाद एक सभी वीर वानर, इं जत के घातक
बाण का शकार हो गए। तभी आकाश माग से एक जलती ई कु हाड़ी आई जसने सु ीव
को मार गराया। उसने ततीस अ चं ाकार बाण से अंगद को मार दया तथा फ़ौलाद कुंडे
से नील क छाती भेद द । हीरे क आकृ त वाले दस बाण ने भालु के राजा जांबवंत को
भी मार दया। एक काँटेदार भाले से वभीषण का कंधा छल गया। हनुमान ने बादल म
छलाँग लगा द । उ ह अपना श ु नह दखाई दया, कतु काश क ग त से अपनी ओर
आती एक तेज़ चमचमाती तलवार नज़र आई। उ ह ने उसे पकड़ लया। परंतु वह तलवार,
एक युवती म प रव तत हो गई जो दया के लए पुकार रही थी। हनुमान ने जैसे ही उसे
छोड़ा, वह फर से तलवार म बदल गई और उसने हार करके हनुमान को नीचे गरा दया।
पूरा मैदान मृतक से भरा आ था।
राम अपने म के शव के बीच खड़े होकर अ य श ु पर बाण चला रहे थे कतु
उसका कोई लाभ नह था। अंत म, वहाँ सफ़ राम और ल मण रह गए। इं जत उनके
ऊपर लगातार बाण-वषा करता रहा। उनके शरीर पर कोई ऐसा थान नह बचा जहाँ पर
घाव न आ हो।
राम ने ल मण को सावधान रहने को कहा। राम ने अभी इतना कहा ही था क इं जत
ने एक वष-बुझा बाण चलाया जो ल मण के कंधे पर लगा। उनक वचा तुरंत नीली होने
लगी और वे मू छत होकर भू म पर गर पड़े । एक और बाण से राम भी मू छत हो गए।
अपने दन भर के काय से ह षत इं जत ने लंका जाकर अपने पता को यह समाचार
सुनाकर स न कर दया। उसके बाद वह रथ से उतरकर अपने उ ान म लौट गया। उसके
उतरते ही बाघ स हत उसका रथ, अ न के गोले म समा गया और ग़ायब हो गया। इं जत
वट-वृ के नीचे बैठकर समा ध म लीन हो गया।
रात ई तो वभीषण हलने लगा। उसने दोन हाथ से भला पकड़ा और उसे बाहर
ख च लया। वह पीड़ा से काँप रहा था। वह धीरे-से उठा और उसने मृत वानर से भरी
रणभू म को दे खा। वह जानता था क हनुमान मर नह सकते, इस लए वह मैदान म उ ह
ढूँ ढ़ने लगा। आ ख़रकार, उसे धुँधला-सा सफ़ेद रंग दखाई पड़ा। वह उस दशा म गया तो
दे खा क हनुमान घायल अव था म बैठे थे। वे दोन ने मलकर रणभू म म घूमने लगे तो
उ ह जांबवंत दखाई पड़ा जो मृ यु के ब त नकट था। वभीषण ने उसे पानी पलाया और
पूछा, “हे भालूराज! या तुम जी वत हो?”
“म जी वत ँ कतु मुझे कुछ दखाई नह पड़ रहा। मुझे बताओ, या हनुमान जी वत
ह?”
वभीषण ोध म गुराया और बोला, “तु ह राम क कोई चता नह है, तुम सफ़ उस
सफ़ेद वानर के लए च तत हो!”
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जांबवंत ने कहा, “य द हनुमान जी वत ह गे, तो हमारी सेना भी जी वत रहेगी। य द वे
मर गए तो हम सब समा त हो जाएँगे।”
उसके बाद वे तीन मैदान म घूमते ए अचेत पड़े राम और ल मण के पास प ँच गए।
वे उस य को दे खकर ब त उदास ए। कुछ दे र के बाद राम को होश आया। परंतु ल मण
फर भी अचेत और न ाण अव था म लेटे ए थे। यह दे खकर राम ब त खी ए।
“य द ल मण मर गया तो मेरी जीने क इ छा नह रहेगी। मुझे सीता के समान सरी
प नी मल सकती है कतु ल मण जैसा भाई नह मल सकता। म इसके बना अयो या नह
लौट सकता। म माता सु म ा को या उ र ँ गा? म भी इसके साथ परलोक चला जाऊँगा।
अपने य भाई के बना मेरे जीवन का कोई अथ नह है।”
वभीषण ने राम से कहा क वे हताश न ह । वह बोला क रावण के राजवै को तुरंत
बुलाना होगा य क उसे ब त-सी रह यमयी औष धय एवं जड़ी-बू टय के वषय म पता
है। रा हो चुक थी। हनुमान, बना कुछ कहे, त काल उड़कर लंका गए और वहाँ उ ह ने
गहरी न ा म सो रहे राजवै को जगाया। वभीषण ने हनुमान को बताया था क हालाँ क
राजवै भी रा स है, कतु वह पहले एक च क सक है जो अपने क के त न ावान
है और अपने पास आए येक को, चाहे वह म हो या श ु, अपनी ओर से े
उपचार दे ता है। हनुमान ने वै को सारी बात बताई।
इससे पहले क राजवै कुछ सोच पाता, हनुमान ने उसे उठाया और लाकर वभीषण
के सम तुत कर दया। वभीषण ने उससे ल मण को होश म लाने का उपचार पूछा।
वै ने ल मण को यान से दे खा और कहा, “अब केवल मृतसंजीवनी बूट ही ल मण को
बचा सकती है। उससे मृत भी जी वत हो जाता है। ल मण के पूरे शरीर म वष फैल
चुका है। य द सूय दय से पूव उपचार नह आ तो इनक अव य ही, मृ यु हो जाएगी।”
राम एवं अ य लोग यह सुनकर ख़ुश हो गए क उसे उपचार मालूम था। उ ह ने वै को
तुरंत औष ध लगाने के लए कहा।
वह बोला, “मुझे ख़ेद है, वह औष ध मेरे पास नह है। वह हमालय पवत पर कैलाश
और मानसरोवर के म य, ोण ग र शखर पर पाई जाती है। वह पवत जड़ी-बू टय से भरा
पड़ा है और चार ओर से चमकता है। उस शखर के ऊपर चार चमकती ई बू टयाँ ह।
मृतसंजीवनी बूट , मृत को पुनज वत कर सकती है, वशा यकरणी बूट , अ -
श से ए घाव को ठ क कर दे ती है, सुवणकरणी बूट से तन क वाभा वक कां त लौट
आती है तथा संधनी नाम क बूट से कटे ए अंग और टू ट अ थय को जोड़ा जा सकता
है। य द आप म से कोई, वहाँ जाकर इन चार औष धय को ला सकता है तो म यहाँ पड़े
सभी मृत एवं घायल लोग को ठ क कर ँ गा, कतु वह बू टयाँ चं मा के अ त होने एवं
सूय दय से पूव लानी ह गी। येक ण मू यवान है। य द कोई उन बू टय को ले आए तो
राजकुमार ल मण तथा अ य लोग के ाण बच सकते ह।”
यह सुनकर सभी हनुमान क ओर आशा भरी से दे खने लगे। जांबवंत ने कहा, “हे
अंज न पु ! केवल तुम ल मण और अपने असं य म के ाण बचा सकते हो। तुम
त काल उस औष धय से भरे पवत शखर पर जाओ और उन जा ई बू टय को ले आओ।”
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जांबवंत के भीतर, सरे लोग को उनका साम य मरण करवाने क शानदार मता
थी। उसके श द को सुनकर लोग को लगता था क वे कुछ भी कर सकते ह। ब त कम
लोग म यह मता होती है। हम म से अ धकतर लोग सर क नदा अथवा उनका
उपहास करने का यास करते ह और इस तरह हम सामने वाले को उसक वा त वक
थ त क अपे ा तु छ बना दे ते ह!
हनुमान ने, एक ण का वलंब कए बना, अपना आकार बढ़ाया और वे इतने ऊँचे हो
गए क वहाँ खड़े लोग उनका सर दे ख नह पा रहे थे। उसके बाद, राम का नाम लेकर
उ ह ने कूट पवत पर छलाँग लगाई और फर वहाँ से वे एक वशाल बादल क तरह
हमालय क दशा म उड़ गए। उ ह ने काश क ग त से, समु पार कर लया और फर
क कंधा, दं डक एवं व य पवत को पार करते ए आयावत म वेश कर गए। कोसल
रा य के ऊपर से उड़ते ए, अयो या के लोग ने उ ह भूल से उड़ने वाला दै य समझ
लया। उ ह ने भरत से र ा करने क ाथना क । भरत ने बाण चलाकर हनुमान को नीचे
उतरने पर ववश कर दया।
“तुम कौन हो?” भरत ने कठोरता से पूछा। जब मा त ने भरत को अपना प रचय
दया और अपने उ े य के वषय म बताया तो भरत क आँख भर आ । भरत ने हनुमान
को गले से लगा लया और बोले, “म राम का भा यशाली भाई भरत ँ। मुझे उनके वषय
म समाचार सुनकर ख़ुशी ई है, कतु ल मण के बारे म सुनकर मुझे ब त ख हो रहा है।
काश, म आपक कुछ सहायता कर पाता, कतु म अयो या को छोड़कर नह जा सकता।”
हनुमान ने कहा, “य द आप मुझे शी ोण ग र प ँचने म सहायता कर सक और मेरे
न ए समय क तपू त कर द, तो भी पया त होगा!”
भरत ने राम के नाम का जाप करके अपने धनुष पर बाण का संधान कया। फर उ ह ने
मा त से उस बाण के फल पर बैठने को कहा। मं पढ़कर भरत ने य ही वह बाण
चलाया, वह अ यंत ती ग त से बादल को चीरता आ सीधा ोण ग र पवत के पठार म
जा प ँचा।
इस बीच, रावण के गु तचर ने उसे, हनुमान के बचाव काय क सूचना दे द थी। यह
सुनते ही, रावण ने अपने म कालने म को बुलाया जो एक शानदार जा गर था। उसने
कालने म को ोण ग र प ँचकर हनुमान को, कसी भी तरह, बू टयाँ लाने से रोकने का
आदे श दया।
कालने म हनुमान से पहले पवत पर प ँच गया। उसने वहाँ एक आ म बना लया और
वयं वृ तप वी का प धरकर, तप म लीन होने का ढ ग करने लगा। हनुमान को ब त
ज़ोर से यास लगी थी। उ ह ने नीचे दे खा तो उ ह सरोवर के नकट एक आ म दखाई
दया। उ ह ने नीचे उतरकर पानी पीने का नणय कया। उ ह वहाँ एक योगी को बैठे दे ख
आ चय आ और उ ह ने उससे वन तापूवक पानी पीने क अनुम त माँगी। योगी ने
हनुमान का वागत कया और यह भ व यवाणी क क उ ह अपने यास म सफलता
मलेगी। फर उसने हनुमान को अपने घड़े म से पानी दया। उस पानी म पहले से वष
मला आ था। हनुमान ने उस रखे ए जल को पीने से मना कर दया और सरोवर म नान
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करने और वह से जल पीने क अनुम त माँगी। योगी ने उनक बात मान ली और कहा क
वह उ ह एक मं दे गा जसक सहायता से वे उन चम कारी बू टय को आसानी से पहचान
लगे। हनुमान को यह जानकर आ चय आ क योगी को उनके वहाँ आने के उ े य के बारे
म पता था और फर वे सरोवर पर चले गए। उ ह ने य ही पानी म पैर रखा, एक मगरम छ
ने उनका पैर पकड़ लया और पानी के भीतर ख चने लगा। हनुमान को लगा क वह जीव
ब त बड़ा और श शाली था। समय बीत रहा था, इस लए हनुमान ने पूरी श लगाकर
अपना पैर छु ड़ा लया। उसके बाद उ ह ने मगरम छ का मुँह पकड़कर उसे खोला और दो
भाग म चीरकर र उछाल दया। मगरम छ के मरते ही उसके शरीर म से एक सुंदर अ सरा
नकली और बोली, “हे पवनपु ! आपक जय हो! म वा तव म एक अ सरा ँ जसे एक
तप वी ने मगरम छ बनने का शाप दया था। उसने मुझे बताया था क पवनपु के हाथ
मरने के बाद ही मुझे मु मलेगी। म आपक अ यंत आभारी ँ, कतु आपको सावधान
करना चाहती ँ क आप संकट म ह। वह जो यहाँ योगी बनकर बैठा है, वा तव म
एक मायावी रा स है। उसका नाम कालने म है और उसे रावण ने आपको बू टयाँ ले जाने
से रोकने के लए यहाँ भेजा है। आप सावधान र हए और उसके घड़े का पानी हण मत
क जए।” ऐसा कहकर, वह अ सरा अ य हो गई।
हनुमान योगी क कु टया के पास गए और उसे णाम कया। उ ह ने योगी के सामने
जल रहे द पक को उठाया और अचानक उसके सर पर दे मारा। फर उ ह ने उसे धरती पर
पटककर मार डाला। उसके मरते ही, वह कु टया तथा अ य सभी चीज़, जो उसने माया से
रची थ , ग़ायब हो ग । हनुमान रा के अंधकार म उस पवत शखर पर अकेले खड़े थे।
इस बीच, रावण को भय लगा क हनुमान समय पर लौट सकते ह। इस लए उसने
चं मा को समय से पहले ही अ त होने और सूय को उदय होने क आ ा द । चं मा को
तेज़ी से तज क ओर डू बता दे खकर मा त को चता होने लगी। वह समझ गए क यह
भी रावण क कोई चाल है। वे भागकर तज तक प ँचे और चं मा को अपने मुँह म रख
लया तथा सूय को अपनी काँख म दबा लया!
समय तेज़ी से बीत रहा था। हनुमान ने बना एक ण गँवाए, ोण ग र पवत शखर पर
छलाँग लगा द । उनह ने, उसके ऊपर से गुज़रते समय दे खा क समूचा पवत शखर द
तेज़ से जगमगा रहा था। वे समझ गए क यही वह थान है जहाँ बू टयाँ उगती ह गी, कतु
वे जैसे ही नीचे उतरे, बू टय क चमक ग़ायब हो गई। उ ह जन बू टय क तलाश थी, वे
उ ह नह मल य क वै ने केवल एक ही पहचान बताई थी क वे बू टयाँ अंधकार म
चमकती ह। ऐसा लगता था क वे बू टयाँ जाना नह चाहती थ और इसी लए उ ह ने वयं
को छपा लया था। हनुमान को उन बू टय के वभाव पर ब त ग़ सा आया और उ ह ने
वह पूरा पवत शखर तोड़कर अपने साथ ले जाने का नणय कया य क सूय दय का
समय हो रहा था और उनके य ल मण के ाण संकट म थे। कुछ सोच- वचार करने का
समय नह था। उ ह ने तुरंत अपना आकार बढ़ा लया। उनका सर आकाश को छू ने लगा।
फर उ ह ने उस शखर को यूं उखाड़ लया मानो कसी टहनी से फूल तोड़ा हो और फर वे
पूरा पवत लेकर लंका उड़ चले, जहाँ सभी उनके आगमन क आशा लए बैठे थे। सभी
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दे वता, प ी, पशु, सरीसृप और मछ लय ने दे खा क हनुमान एक हाथ म पवत उठाए
जंबू प के ऊपर से समु पार करके लंका जा रहे ह। वे सभी इस शानदार य को दे खकर
आ चयच कत हो गए।
हनुमान ने एक वशाल बाज क भाँ त रणभू म क प र मा क और धीरे-धीरे नीचे
उतरने लगे। उन बू टय म इतनी श थी क जैसे ही मृतसंजीवनी बूट क सुगंध, ल मण
क नाक म प ँची, वे हले और करवट लेने लगे मानो गहरी न द म ह । शेष सभी वानर क
हालत म भी सुधार होने लगा। हनुमान रणभू म के ऊपर च कर लगा रहे थे य क उ ह
समझ नह आ रहा था क वे उस मू यवान बोझ को कहाँ रख। राजवै सुषेण ने उ ह पवत
को रखने का उ चत थान बताया। फर उसने झटपट पहाड़ पर चढ़कर जीवनदायक बूट
खोज ली।
“मुझे अब केवल द खरल व मूसल चा हए, जो रावण अपने आंत रक क म रखता
है,” वह बोला।
हनुमान तुरंत रावण के नवास क ओर चल पड़े । रावण को पता था क सुषेण को
मूसल व खरल क आव यकता पड़े गी, और इस लए उसने वह अपनी श या के नकट,
आँख के सामने रख लया। मा त ने दे खा क मंदोदरी रावण के नकट सो रही थी, तो
उ ह ने रावण का यान भंग करने क यु सोच ली। वे रावण क श या के नीचे घुस गए
और उ ह ने रावण के बाल को पलंग के डं डे से बाँध दया। फर उ ह ने मूसल-खरल
उठाया और ारा क ओर भागे। रावण भी हड़बड़ाकर उठा और हनुमान के पीछे भागने
लगा ले कन उसके बाल पलंग से बँधे ए थे। उसने अपने बाल क गाँठ खोलने क
को शश क कतु वह उसम सफल नह आ य क हनुमान ने उसम यह जा कर दया
था क मंदोदरी ारा रावण के सर पर लात मारने के बाद ही वह गाँठ खुल सकेगी!
रावण हड़बड़ाकर अपनी प नी को जगाने लगा। यह दे खकर हनुमान हँसने लगे। उसने
अपने सर को मंदोदरी के सम झुकाया और उससे अपने सर पर लात मारने क ाथना
करने लगा। हनुमान ब त हँसे और फर उ ह ने दौड़कर वह खरल उठाकर सुषेण को दे
दया।
सुषेण ने त काल बूट को खरल म पीसा और ल मण के शरीर पर लगा दया। बूट का
रस ल मण क वचा म समा गया और फर उसने र म मलकर इं जत के वष का
तकार कर दया। कुछ ही पल म, ल मण उठ बैठे मानो गहरी न द से जागे ह और पहले
से भी अ धक फू तवान द खने लगे।
अचानक राम ने दे खा क आकाश से चं मा और सूय दोन ही ग़ायब थे।
“इन ांडीय ह को या आ?” राम ने पूछा।
हनुमान ने सकुचाते ए अपना मुँह खोलकर चं मा को तथा काँख म से सूय को मु
कर दया। उन दोन के आकाश म जाते ही राम और ल मण ने हनुमान को गले से लगा
लया। उनके पास हनुमान का आभार करने के लए श द नह थे।
जांबवंत ने मा त से कहा क अब वे उस पवत शखर को वापस उसके थान पर रख
आएँ य क य द वह रणभू म म ही रखा रहा तो रा स भी उसका लाभ ले लगे। हनुमान,
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उस शखर को लेकर फर से हमालय गए और उसे जगह पर रखकर सुबह होने से पूव
समु पार करके लंका लौट आए। यह पूरी घटना केवल राम, वभीषण, जांबवंत, हनुमान
और राजवै सुषेण को, जसे बाद म वापस उसके घर प ँचा दया गया था, पता थी।
राम इतने स न ए क उ ह ने हनुमान को गले से लगाकर उ ह आशीवाद दया और
कहा, “तु हारे बना न राम होते, न सीता और न ही रामायण! तु ह सदा ई वर का आशीवाद
ा त हो और तुम अमर हो जाओ!”
कोई यह सोच सकता है क ऐसा कैसे आ क बूट के भाव से एक भी रा स जी वत
नह आ। ऐसा इस लए आ य क रावण ने यह आदे श दया था क सभी मृत रा स के
शव को समु म फक दया जाए ता क कोई उनक गनती करके रावण क क त को
कलं कत न कर सके।
वानर व थ होकर ब त स न ए। उस पूरे दन कोई रा स यु के लए नह आया
य क उ ह व वास था क उनके नायक मर चुके थे। रात होने तक वानर ने वजय का
संक प ले लया था। सु ीव के कहने पर पूरा वानर दल जलती ई ला ठयाँ और मशाल
लेकर ग के अंदर घुस गया और वहाँ व वंस मचाना आरंभ कर दया। उ े जत वानर ने
एक घर से सरे पर और एक महल से सरे महल पर कूदना तथा उ ह जलाना शु कर
दया। इस तरह एक बार फर लंका आग क लपट से घर गई। लोग क चीख़-पुकार और
धुएँ क गध से रावण क न द खुल गई। उसे व वास नह आ क वानर सेना राम के
बना यु कर रही है। उसने सोचा क उसके भाई कालने म ने न चय ही, हनुमान को बूट
लाने से रोक दया होगा, तो फर वानर इतने स न य थे और अपने वामी के बना
उनक लंका क चारद वारी म घुसने क ह मत कैसे ई? तभी उसके मं य ने उसे
समाचार दया क राम और ल मण जी वत ह तथा यु के लए तैयार ह। रावण ने यह
सुना तो उसने तुरंत कुंभकण के पु कुंभ और नकुंभ को बुलाया तथा उनसे यु म जाने
और अपने पता क मृ यु का बदला लेने के लए कहा।
दोन नशाचर भाई, त काल अपने पता के ह यार से यु करने चल पड़े । वे दोन
अ यंत श शाली यो ा थे तथा उनके सामने वानर, पतझड़ म प क भाँ त गरने लगे।
अंगद स हत वानर के तीन सेनाप त अचेत हो चुके थे। यह दे खकर सु ीव आगे बढ़कर कुंभ
का सामना करने लगा।
“म तु हारी श व ा से भा वत ँ। तु हारे भीतर, तु हारे पता और चाचा दोन के
गुण ह - एक क ढ़ता तथा सरे क नपुणता! म तु ह मारना नह चाहता य क तुम
न चय ही अपने कुल के भूषण हो। परंतु हम दोन पर पर वरोधी ह, इस लए मेरे पास
कोई अ य वक प नह है। आओ और मेरे साथ यु करो।”
कुंभ, सु ीव ारा क गई शंसा से स न आ कतु उसे यह कटा पसंद नह आया
क सु ीव यु म उससे बेहतर है। वह गरजता आ सु ीव पर झपटा और उन दोन के बीच
ं आरंभ हो गया। उनके यु से पृ वी हलने लगी और वृ से प े झड़ने लगे। अंत म,
एक श शाली हार से सु ीव ने कुंभ को धरती पर गराकर मार डाला।

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अपने वीर भाई क मृ यु दे खकर, नकुंभ वानर क ओर दौड़ा तथा उसने सैकड़ क
सं या म वानर को मार डाला। वानर क दशा दे खकर हनुमान उसक सहायता के लए
आ गए और उ ह ने नकुंभ क छाती पर वार कया। नकुंभ ने हनुमान पर एक वशाल
लौह मूसल दे मारा। सबने सोचा क उस हार से हनुमान गर जाएँगे कतु वे दे खकर त ध
रह गए क हनुमान क अभे छाती से टकराकर मूसल के असं य टु कड़े हो गए। इसके
बाद, हनुमान उस पर झपटे और कुछ दे र लड़ने के बाद, उ ह ने नकुंभ को धरती पर गरा
दया। फर वे उसक छाती पर चढ़कर बैठ गए और दम घुटने से उसक मृ यु हो गई। वानर
म हष लास छा गया।
यह समाचार सुनने के बाद, रावण को समझ नह आया क वह या करे। उसे व वास
नह आ क टह नयाँ और प थर लए उन लंबी पूँछ और पेड़ पर रहने वाले वानर के
सामने उसक सेना के श शाली और आधु नक अ -श वफल हो गए थे। उनम से
कोई भी तलवार या धनुष नह चला सकता था और फर भी वे उसक सेना पर हावी थे।
अंत म, रावण अपने य पु मेघनाद के पास गया उससे, एक बार फर रणभू म म
जाकर राम व ल मण को मारने के लए कहने लगा।
इं जत ने कहा, “ पताजी! आपके लए मने उ ह एक बार मार दया, कतु ऐसा तीत
होता है क सम त कृ त उनक सहायता कर रही है, अ यथा वे जी वत कैसे बच सकते
ह? याद क जए, अपनी युवाव था म, आपने सफ़ धम के सहारे पूरे व व पर शासन कया
है, कतु अब आप केवल अधम के सहारे शासन कर रहे ह। वे सब दे वता, जो आपके नाम
से काँपते ह और उन संत के शाप, जनक आपने ह या क है, इस यु म आपके व
हो गए ह और यु म आपका अंत हो जाएगा। आपने अपने अ याय से पूरी कृ त को
पीड़ा प ँचाई है। यह आपक भूल ही है, जसने हम बबाद कर दया है। असहाय लोग के
भय और ोध ने पशु क सेना का प ले लया है। जस दन आपने सीता का हरण
कया था, उसी दन आपने मृ यु को अपनी गोद म शरण दे द थी। धम, राम के साथ है।
केवल धम के ारा ही संसार पर शासन कया जा सकता है। जो लोग धम के व जाते
ह, वे एक न एक दन न हो जाते ह। परंतु, म आपका पु ँ और आपक आ ा का पालन
क ँ गा। मने आपको कोसल बंधु को मारने का वचन दया है और म उसे अव य पूरा
क ँ गा।”
रावण ने कहा, “तुम मेरे य पु हो और तुमने दे वता पर भी वजय ा त क है।
जस तरह तुमने दे वलोक म यु कया था, उसी तरह अब तुम पृ वी पर मेरे लए यु
करो।”

लाए सजीवन लखन जयाए।


ीरघुबीर हर ष उर लाए।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

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ॐ ी हनुमते नमः

परायाय नमः

अ याय 23

कप
इं जत-वध

धरती तु हारा आसन होगा,


वृ क छाल तु हारे व ह गे,
कं द, मूल और फल ही तु हारा भोजन होगा,
यह मत सोचो क ये सब चीज़ त दन मल जाएँगी,
ये भी के वल उ चत ऋतु के समय ही ा त ह गी।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस म, राम कहते ह सीता से।

इसके बाद इं जत ने राम के साथ छल करने का नया तरीक़ा सोचा। उसने अपनी मायावी
श से सीता क जीवंत छ व तैयार क और अपने रथ म बैठाकर श ु से घरी रणभू म
म ले गया। वानर आगे बढ़कर उससे मलने का यास करने लगे। उनके आगे हनुमान एक
वशाल शला लेकर चल रहे थे। अचानक, वे सीता क दयनीय व ऐसी दशा दे खकर क
गए। सीता ने वही गंदा-सा पीला व पहना आ था, जो उ ह ने अं तम बार सीता को पहने
दे खा था, ले कन उनके शा वत स दय क आभा म कोई कमी नह आई थी। वे अकेली और
उदास बैठ थ मानो उ ह आस-पास होने वाली कसी बात क चता नह थी। हनुमान,
सीता के खी चेहरे से अपनी नह हटा पाए। उ ह नह पता था क इं जत, सीता को
रथ म बैठाकर वहाँ य लाया था। हनुमान ऐसी थ त म इं जत पर आ मण करने का
साहस नह कर सके य क उ ह डर था क कह सीता को चोट न लग जाए। हनुमान को
दे खकर इं जत ने सीता के बाल पकड़े और उ ह अपनी तलवार से डराने लगा। वे ज़ोर से
च ला , “राम! राम!” और फर बुरी तरह रोने लग ।
वदे ह क राजकुमारी के साथ ऐसा ू र वहार होता दे ख, हनुमान क आँख से र
के आँसू टपकने लगे। “अरे ू र! म थला कुमारी ने तेरा या बगाड़ा है, जो तू उ ह इस

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तरह सता रहा है? कोई बबर भी ऐसा वहार नह करता और तू ऋ ष व वा का पु होने
का दावा करता है!”
यह सुनकर इं जत ने उपहासपूण अट् टहास कया और वह राम के नकट चला गया।
फर उसने राम को कहा क वे यान से दे ख, वह कस कार उस ी का अंत करने वाला
है जो रा स के वनाश का तथा उसके पता के मोह का मु य कारण बन गई है। फर
उसने सीता को बाल से पकड़कर उठाया और उनका सर काट दया। वह ज़ोर से हँसा और
बोला, “दे खो राम! मने तु हारी य प नी को मार डाला। अब इसे पाने का तु हारा सम त
यास वफल हो गया। यु समा त हो गया है। अपने दे श वापस लौट जाओ!” यह
वीभ स य दे खकर राम ने जीने क इ छा याग द । वे धरती पर गर पड़े और रोते ए
अपनी प नी क मृ यु का शोक मनाने लगे।
हनुमान से यह सहन नह आ। वह एक वशाल शला लेकर इं जत के पीछे दौड़े ।
सब वानर भी उनके पीछे भागे। उनके बीच भीषण यु आ कतु इं जत रणभू म से
अ य हो गया। हनुमान तुरंत समझ गए क वह सब राम को परा त करने के लए इं जत
ारा रची गई चाल थी। वे तुरंत म खी का प धारण करके अशोक वा टका प ँचे जहाँ
सीता सर झुकाए बैठ थ । हनुमान आ व त हो गए क सीता जी वत ह। वे त काल राम के
पास लौटे और उ ह शुभ समाचार सुना दया।
इसी बीच, वभीषण आ गया और उसने वहाँ हो रही हलचल के वषय म जानना चाहा
और पूछा क राम इतने उदास य ह। उसने पूरी बात सुनी तो वह ज़ोर से हँसा और बोला,
“आप इस बात पर कैसे व वास कर सकते ह? या आपको रावण के मन म सीता के त
मोह का पता नह है? वह सीता के लए अपने दे श, अपने पु और अपनी जा क भी
ब ल दे ने के लए तैयार है। आपके मन यह वचार भी कैसे आया क वह उस ी को मार
डालेगा जो उसके पता को इतनी य है? यह सारी योजना उस मायावी इं जत क बनाई
ई है। उसने यह वांग इस लए रचा था, ता क वह य कर सके जसके संप न होने के
बाद, वह अजेय हो जाएगा। य द उसने वह अनु ान पूण कर लया तो उसे परा त करना
असंभव होगा। फर उसे कोई नह मार सकेगा। हम एक ण भी न नह करना चा हए।
आप मेरे साथ ल मण को भेज द जए। म इ ह उस थान पर ले जाऊँगा, जहाँ मेरे भाई का
वह पथ पु य कर रहा है। ा ने उसे यह वरदान दया है क उस य को पूण करने
के बाद वह अजेय एवं पूरी तरह सुर त हो जाएगा। यही कारण है क उसने आपको
मत करके यह व वास दला दया क सीता क मृ यु हो गई है!”
राम ने तुरंत ल मण को वभीषण के साथ जाकर य रोकने का आदे श दया। ल मण
तैयार हो गए और उ ह ने चलने से पहले राम का आशीवाद लया। उनके साथ वभीषण,
हनुमान और कुछ अ य वानर भी थे।
वभीषण ने हनुमान को कहा क वह कुछ मं पढ़े गा जससे इं जत का अ य उ ान
दखाई दे ने लगेगा। अचानक पवत वाली दशा म अंधकार छा गया मानो उसके ऊपर कसी
ने काले रंग का वशाल छ रख दया हो। तभी ल मण को ाचीन, टे ढ़े वृ वाला उ ान
दखाई दया जो अंधकार व छाया म डू बा आ था। वभीषण उस उ ान क ओर बढ़ा जहाँ
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इं जत द श य के आ ान हेतु काले जा का अनु ान कर रहा था। य थल और
वानर क सेना के बीच इं जत क अपनी सेना तैनात थी। हनुमान ने त काल यु आरंभ
करके श ु को उसम उलझा दया और इस बीच वभीषण, ल मण को अपने साथ गु त
उ ान म ले गया जसे केवल कोई रा स ही दे ख सकता था। “अ नदे व, उसे बाघ से यु
एक जा ई रथ दे ने वाले ह जससे वह अजेय हो जाएगा। ज द करो! हम इस अनु ान को
रोकना है।”
वभीषण ने ल मण को पश कया तो उ ह भी इं जत दखाई दे ने लगा। वह उ ान
के भीतर हवन-वेद के सम घुटन के बल बैठकर अपने इ दे व का आ ान कर रहा था।
वह काली धातु क कलछ से घी क आ त दे रहा था और मं ो चारण कर रहा था।
उसक पीठ उनक ओर थी। उसके नकट ब ल हेतु एक काली बकरी बँधी ई थी जो
दयनीय प से म मया रही थी। इं जत ने गहरे लाल रंग के व पहने थे और उसके बाल
बखरे ए थे। उसने अपने भाले से धरती को पीटा तो भीतर से हज़ार सप नकल आए
और वेद के नकट रखे उसके बाण पर लपट गए। इं जत ने कु हाड़ी से बकरी क गदन
पर एक सट क हार कया और वह कटकर ख़ून के तालाब म लुढ़क गई। उसने कलछ को
बकरी के र से भरा और ऊपर उठाकर वह अं तम आ त के लए तैयार हो गया। जैसे-
जैसे अ न क लपट ऊँची उठ रही थ , पीले रंग के गुराते, गरजते बाघ दखाई दे ने लगे, जो
अजेय रथ को ख चकर बाहर कूदने के लए तैयार थे। वभीषण के संकेत करते ही ल मण
ने कलछ पर बाण मारा और अं तम आ त से पूव ही उसके दो टु कड़े कर दए।
ल मण के बाण से बाज जैसा वर नकला, जो सप का जानी मन होता है और
सभी नाग पीछे हटकर दोबारा पाताल लोक म चले गए, जहाँ से वे आए थे। प व य -कुंड
से अ नदे व कट ए और उनके मुख से स त ज ा वाली अ न नकली। उ ह ने आँख
घुमाकर आस-पास का य दे खा। एक रह यमयी मु कान के साथ उनका प धुँधला हो
गया और वे दोबारा वेद म समा गए। अब रथ या बाघ का वहाँ कोई च शेष नह था।
इं जत ोध म भरकर पीछे घूमा और वभीषण पर गुराया। “दे श ोही! तुमने मेरे साथ
व वासघात कया है। तुम वयं को मेरा चाचा कहते हो और फर भी तुमने मेरे सब रह य
श ु को बता दए। तु हारी सहायता के बना ये इस थान को कभी नह खोज सकते थे।
तुमने मेरे पता का नमक खाया और श ु के साथ मल गए! तुम हमारे कुल पर कलंक हो!
श ु के तलवे चाटकर, वहाँ का वामी बनने से अपने दे श म दास बनकर रहना बेहतर है।
जो अपने लोग को छोड़कर अपने श ु के साथ मल जाता है, वह दे श ोही
कहलाता है। म ल मण को मारने से पूव तु ह मा ँ गा! पुराने म क मृ यु के बाद, तु हारे
नए म भी तु हारा साथ छोड़ दगे!”
वभीषण ने उ र दया, “तुम मेरे भाई क संतान हो और मेरा, तुम दोन से
कोई संबंध नह है। इतने वष से मेरा भाई पापकम म ल त है। उसके ोध और अहंकार
से सब प र चत ह। म उसे सहन करता रहा य क म उस समय असहाय था। य प मेरा
ज म रा स कुल म आ, मेरा वभाव सदा से मनु य जैसा था। मने तुम लोग को इस लए
याग दया, य क म अधम का साथ दे ते-दे ते थक गया ँ और अब म सदाचार के माग पर
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चलना चाहता ँ। तुम मूख, आवेगी और अहंकारी हो, कतु सावघान रहो! तुम और तु हारे
पता अ भश त हो और साथ ही, तु हारी यह शानदार लंका नगरी भी!”
इतनी दे र म जांबवंत और उसक भालू सेना भी वहाँ आ गए और उ ह ने हनुमान के
साथ मलकर इं जत क सेना को परेशान करना शु कर दया। वहाँ हलचल इतनी बढ़
गई क इं जत को ववश होकर अपने चाचा के साथ चल रही मौ खक लड़ाई को रोककर
गु त सुरंग से खुले वन म बाहर आना पड़ा। रा सकुमार वह अनु ान बा धत होता दे खकर
अ यंत ो धत हो गया। वह बाहर नकला तो मृ यु के दे वता के समान दखाई पड़ रहा था।
उसने चाँद का कवच पहना था और हाथ म चाँद क तलवार पकड़ी थी। चाँद के
शर ाण और चाँद के धनुष से काश नकल रहा था। चाँद के बाण का तरकश तथा
चाँद का छु रा एक ओर लटक रहे थे। वह अ यंत सुंदर ढं ग से सजे रथ पर सवार आ। उसे
भी चाँद -से वेत घोड़े ख च रहे थे। उसके बाल पीछे क ओर उड़ रहे थे और उसका धनुष
तैयार था। उसने दे खा क ल मण, हनुमान के कंधे पर बैठे ह और वे हाथ म धनुष लेकर
वार करने के लए तैयार ह। इं जत ने ल मण को अपश द कहे और सूया त होने से पूव
उ ह मार दे ने का ण कया।
ल मण ने चढ़कर कहा, “रावणपु ! अपने अहंकार को ठ क से स करो। तुमने
अभी तक का पूरा यु अ य रहते ए, छपकर लड़ा है। यह वीर का नह , ब क कायर
और चोर का तरीक़ा है! अपने अहंकार को यहाँ खुले थान पर स करो। म तु हारे
सामने खड़ा ँ और फर दे खते ह क कौन अ धक बलशाली है।”
इं जत ने कहा, “आज तुम मेरी श दे खोगे। मुझे सफ़ यु का एक अवसर
चा हए!”
“ठ क है,” ल मण ने कहा।
इं जत ने त काल, ल मण पर बाण चलाने आरंभ कर दए। उसके घातक बाण ने
ल मण के तन पर गहरे घाव कर दए जनसे र बहने लगा।
“सु म ानंदन! आज गीदड़ और ग को शानदार भोजन मलने वाला है। मृ यु के
लए तैयार हो जाओ!”
“अरे मानव माँसाहारी! खोखली बात न कर। उ ह या वत करके दखा!”
ऐसा कहकर, दोन एक सरे पर सुनहरे पंख वाले लंबे और पैने घातक तीर चलाने
लगे। इं जत अपने रथ से कूदा और उसने ल मण पर एक हज़ार बाण चलाए ज ह
ल मण ने बीच म ही काट दया। इसके बाद ल मण ने इं जत पर सात बाण चलाए और
उसका कवच काट दया, जसके कारण वह सतार के समूह क तरह नीचे आ गरा। दोन
ही धनुधर समान प से अ छे थे और दोन ही इतने फुत ले थे क वे एक सरे को बाण
चलाते ए नह दे ख पाते थे। वे इतनी त ग त से बाण चला रहे थे क आकाश म अंधेरा छा
गया। इं जत ने एक वषैला भाला उठाकर ल मण पर मारा, कतु उ ह ने उसे बीच म ही
काट दया। इं जत ने फर से अपना धनुष उठाया, ले कन इससे पहले क वह तीर चला
पाता ल मण ने उसका धनुष काट डाला। इसके बाद, रावण-पु ने एक दै य-बरछा फका
जो व छ न हो गया और उसके टु कड़े से ल मण का पूरा शरीर बध गया। परंतु, इं जत म
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इस तरह के उ मु यु का साम य नह था। उसने हमेशा अ य रहकर ही यु लड़े थे
और इस लए, शी ही वह ल मण के ढ़ आ मण के सामने कमज़ोर पड़ने लगा।
वभीषण ने ल मण को अ धक आ ामक ढं ग से यु करने का सुझाव दया य क उनका
बलशाली श ु अब बल होने लगा था।
ल मण आगे बढ़े तो इं जत ने हँसते ए उपहास कया, “ या तुम हमारा पछला यु
भूल गए हो जब मने तु ह और तु हारे भाई को धरती पर गरा दया था? इस बार, म तु ह
इतनी सरलता से बचने नह ँ गा और तु ह शी ही यमपुरी प ँचा ँ गा!”
ऐसा कहकर इं जत ने सात बाण ल मण पर और दस बाण हनुमान पर चलाए। उसके
बाद, उसने अपने चाचा पर सौ तीर चलाए। इस तरह, उनके बीच फर से भीषण यु आरंभ
हो गया जो कई घंट तक चलता रहा और सब उसे आ चयच कत होकर दे खते रहे।
वभीषण ने अ य वानर सेनाप तय को कहा क वे यु दे खने म समय न न कर और इस
बीच इं जत क सेना को मार भगाने का यास कर।
दोन धुरंधर के म य नणायक यु चल रहा था। उनके शानदार अ भमं त बाण
आकाश म उ का क भाँ त उड़ते थे और पृ वी को डगा दे ने वाली भीषण गजना के
साथ पर पर टकराकर न हो जाते थे। पशु-प ी इधर-उधर भागने लगे और वायु ने भी
मानो भय से अपनी वास रोक ली थी। ल मण ने चार चाँद क न क वाले बाण चलाकर
इं जत के रथ के अ व को मार गराया। अ व के मरने से रथ तेज़ी से घूमने लगा और
इसी बीच, ल मण ने एक अ चं ाकार बाण चलाकर सारथी का सर धड़ से अलग कर
दया। एक पल के लए इं जत लड़खड़ाया, कतु फर बना घबराए, उसने दोबारा धनुष
उठाया और ल मण क सेना पर एक सह बाण चला दए।
सारे वानर शी ही ल मण के पीछे जा छपे। अंधकार मे छपकर, इं जत अपनी
नगरी म गया और सरा रथ लेकर लौट आया। वह जस फुत से लौटा था, उसे दे खकर
ल मण च कत रह गए। परंतु, कुछ ही पल म, ल मण ने इं जत का सरा रथ भी व त
कर दया। वह नशाचर अपने भाले को सर के ऊपर उठाकर ज़ोर-ज़ोर से घुमाने लगा
जसके कारण वह जलता आ प हया लग रहा था। ल मण ने उसके भाला चलाने क
ती ा नह क , ब क उसे सौ बाण मारकर न कर दया। रा होने वाली थी। तभी
वभीषण ने ल मण को सुझाव दया क वे ज द इं जत को मार द य क अंधेरा होने पर
वह अ धक बलशाली हो जाएगा।
अंत म, ल मण ने मह ष अग य ारा दया बाण नकाला जो इं क श से
ऊजा वत था। उ ह ने उस बाण से ाथना क , “य द यह स य है क दशरथनंदन, राम
कभी धम के माग से युत नह ए ह, य द यह स य है क वे सदै व न ावान व स यमाग
रहे ह तथा वे अ तीय ह, तो इस बाण से रावण-पु इं जत क मृ यु हो जाए!”
यह कहकर, ल मण ने वह अ भमं त बाण इं जत पर छोड़ दया। वह बाण व शरा
क भाँ त सीधा अपने ल य तक प ँच गया। इससे पहले क इं जत उसे अपने बाण से
काट पाता, ल मण के बाण ने इं जत का सर काट दया, जो नीचे गरकर चाँद के कमल-

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पु प सा लग रहा था। पवत के पीछे डू बते द तमान सूय जैसे मंदोदरी के गौरवशाली पु
का सर कट चुका था।
इं को परा त करने वाला, वयं इं के अ से मारा गया! एक पल के लए उसका
शरीर दोबारा खड़ा हो गया, कतु फर वह धड़ाम से धरती पर गर गया। मृ यु के बाद,
उसका शरीर अपने वा त वक रा सी व प म लौट आया। उसम अब कोई स दय नह
था। लंबे एवं बाहर को नकले दाँत के साथ उसका चेहरा गुराता आ लग रहा था। उसक
मृ यु से दे वता अ त स न ए य क इं जत उन सबके लए महा वप का प था।
वानर हष से च लाने लगे और इस शोर को राम तथा रावण, दोन ने सुना। रा स सेना ने
अपने अ -श वह छोड़ दए और भयभीत होकर भाग खड़ी ई।
वानर व भालु ने एक- सरे को गले लगा लया। वभीषण, हनुमान तथा जांबवंत
लौटकर राम के पास आए तथा उ ह उस शानदार यु का समाचार दया जसका अंत
रावण के व यात पु के वध के साथ आ था। राम ने अपने भाई को गले लगाया और
शानदार वजय के लए उनक शंसा क । उ ह ने त काल वै बुलवाकर, उसे ल मण के
घाव पर मरहम लगाने को कहा।
इं जत का ढँ का आ शव, लंका के राजमहल म ले जाया गया, कतु कसी म रावण
को कुछ बताने का साहस नह था। अंत म, रावण के मं ी शुक ने कहा, “ल मण ने आपके
पु को मार डाला!”
रावण खी होकर नीचे फ़श पर बैठ गया। फर वह उठकर रोने लगा और बोला, “मेरे
पु ! मेरे य पु ! इस संसार म तु हारे समान कोई सरा नह था। तुम कसी को भी
परा जत कर सकते थे, फर भी तुम एक बल-से मनु य के हाथ मारे गए! यह कैसे संभव
है? मुझे, तु हारे बना यह पूरी धरती र नज़र आती है। मेरे लए अब जीवन म कोई रस
शेष नह है। तुम, मुझे और अपनी माता एवं अपनी य प नी को छोड़कर कहाँ चले
गए?”
इं जत क प नी का नाम सुलोचना था। वह अनंत नामक द सप क , जसके ऊपर
भगवान व णु शयन करते ह, पु ी थी। हम यह पहले से जानते ह क राम, भगवान व णु
के और ल मण, अनंत के अवतार थे।
जब सुलोचना को पता लगा क उसका य प त अपने पता के ही अवतार के हाथ
मारा गया है, तो वह ब त खी ई। वह भागती ई रावण के सभागार म गई और कहा क
रावण ही उसके प त क मृ यु का कारण था। रावण को ज़बरद त आघात लगा था। उसे यह
व वास नह हो रहा था क उसका अजेय पु मारा गया। वह अपने पु के शव से ऐसे बात
करता रहा मानो वह जी वत हो। इं जत, जसने एक बार इं को बे ड़य म बाँध, उसे बंद
बनाकर, अपने पता के सम तुत कर दया था, वही इं जत, वयं इं क श से
अ भमं त बाण ारा मारा गया था। इं जत क माता मंदोदरी और प नी सुलोचना, उसके
शव पर गरकर रोने लगे। अं ये के समय, सुलोचना ने अपने प त क चता पर बैठकर
वयं को अ न के सुपुद कर दया था।

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इस बीच, रावण लाप करने और ड ग मारने लगा। वह भूल गया क अपने पु क
मृ यु का वही उ रदायी था। उसका शोक, शी ही ोध म प रव तत हो गया, जैसा क
उसके साथ सामा य तौर पर होता था और उसने सचमुच सीता को मार डालने का नणय
कया य क उसे लगा क सीता के कारण ही यह सब हो रहा था। वह भूल गया क इस
सबका कोई अ य नह , ब क वह वयं उ रदायी था। अपने ू र और अनु चत कृ य के
कारण, जैसा क वभीषण ने भ व यवाणी क थी, उसके कुल का नाश हो गया था। उसक
आँख से अ ु तरल अ न के समान बहने लगे। वह तलवार उठाकर अशोक वा टका क
ओर दौड़ा। सीता अब भी सफ़ राम के त सम पत थ । उसके मं य के साथ उसक
प नयाँ भी पीछे भाग । उ ह ने अब से पहले रावण को इतना ोध म कभी नह दे खा था।
वह शु ह क ओर बढ़ते कसी उ का क भाँ त हाथ म तलवार लए सीता क ओर
भागा। सीता ने उसे दे खा तो वह समझ ग क इस बार वह ेमपूण श द के साथ नह ,
ब क घृणा क तलवार लेकर आया था और जतनी सहजता से उसने सीता के सम ेम
ताव रखा था, वह उसी सहजता से उ ह मारना चाहता था। लोग का मन कतनी
आसानी से बदल जाता है! एक दन वे ेम दशाते ह और अगले दन घृणा करने लगते ह।
सीता ने मान लया क राम क मृ यु हो गई है, इस लए वे भी मरने के लए तैयार थ ।
सौभा य से, रावण का एक मं ी, जो शेष मं य से अ धक बु मान था, रावण के
पास आया और बोला, “ वामी! आप यह पापकम कैसे कर सकते ह? आपने यही बुरा
कया जो इनका हरण कर लया। अब ये असहाय ह और आपक दया पर नभर ह। इस
असहाय व अर त ी को अकेला छोड़ द जए और अपना ोध उनके ऊपर नका लए,
ज ह ने आपके पु को मारा है। आज कृ ण प का चौदहवां दन है। कल अमाव या है
और हम नशाचर के लए सबसे शुभ समय है। तब आपको राम पर आ मण करना
चा हए तथा दोन भाइय को मारने के बाद आप वजयी होकर सीता को अपना सकते ह!”
सीता के सौभा य से, रावण को यह सुझाव अ छा लगा। वह क गया और सोचने
लगा। इसके बाद, बना कसी से कुछ कहे, वह मुड़ा और अपने सभागार म लौट गया।

सहस बदन तु हरो जस गाव।


अस क ह ीप त कंठ लगाव।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

बंद-मो दाय नमः

अ याय 24

महाबल
पाताल क या ा

वैदेही को अपनी माता और


राम को अपना पता समझना,
जस तरह, जहाँ भी सूय का काश होता है,
वह दन होता है, उसी कार,
जहाँ भी राम का वास हो, वह अयो या होगी।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस म,

सु म ा कहती ह, ल मण से।

रावण, अपने सबसे य पु क मृ यु से पूण प से नराश हो गया था। उसे समझ म नह


आ रहा था क वह या करे। उसे फर अचानक अपने दो अ य पु - म हरावण और
अ हरावण क याद आई, जो सात लोक म सबसे न न, याने पाताल लोक पर शासन करते
थे। उनका ज म मंदोदरी से ही आ था कतु उनक सपाकृ त इतनी भयावह थी क उ ह
दे खकर रावण डर गया और उ ह समु म फक दया। वहाँ स हका नाम क एक सप
रा सी उ ह अपने साथ नागलोक ले गई तथा उनका पालन-पोषण कया। उन दोन ने
महाकाली क घोर तप या क और अनेक द श याँ ा त कर ल । उ ह यह वरदान भी
मला क उनका पता रावण, जसने उ ह अपमा नत करके याग दया था, एक दन उ ह
सहायता के लए बुलाएगा। उ ह ने पाताल लोक के राजा क पु ी से ववाह कर लया और
फर वहाँ के राजा बन गए। रावण को जब उनका वचार आया तो उसने पाताल लोक
जाकर उनसे सहायता माँगी।
उन दोन ने कहा, “अपने श ु को कम मत आँ कए। वह व णु का अवतार ह। यही
बेहतर होगा क उनके साथ सं ध कर ली जए।”

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दोन भाई दे वी काली के महान भ थे। रावण ने उनके साथ भी धूतता क और कहा
ऐसा बोलकर दो सुंदर एवं साहसी राजकुमार के सर क ब ल ारा वे दे वी को स न करने
का अवसर खो रहे ह!
“य द तुम ये ब ल दे दो, तो सोचो तु ह कतनी श याँ ा त हो सकती ह!” वह बोला।
यह सुनकर म हरावण और अ हरावण ने अपने पता क सहायता करने का नणय
कया। इस बीच, वभीषण ने, जो सदा सतक रहता था, रावण क पाताल-या ा के वषय म
सुना। उसने हनुमान को सावधान रहने को कहा य क वे दोन नशाचर काला जा तथा
इं जाल म पारंगत थे तथा लोग को मूख बनाने के लए कोई भी प धारण कर सकते थे।
हनुमान ने वभीषण को न चंत रहने को कहा और बोला क वे राम व ल मण पर कोई
संकट नह आने दगे।
हनुमान ने अपनी पूँछ को ब त लंबा कर लया और उसे श वर को चार घुमाकर ग
बना लया। इसके बाद, वे वयं सामने बैठ गए ता क कोई उनक अनुम त के बना भीतर
वेश न कर सके। कुछ दे र म, दोन मायावी भाई वहाँ प ँचे कतु उ ह श वर म घुसकर
राम-ल मण का हरण करने का कोई माग नह मला। उ ह ने जा से सभी वानर ह रय
को सुला दया। परंतु, हनुमान जाग रहे थे और ार पर पहरा दे रहे थे। तब, उ ह एक यु
सूझी। म हरावण ने वभीषण का प धारण कर लया और फर उसने हनुमान से पूँछ
उठाकर उसे भीतर जाने दे ने के लए कहा। हनुमान ने, वाभा वक प से, जानना चाहा क
इतनी रात को वभीषण कहाँ गया था य क हनुमान सोच रहे थे क वभीषण भीतर ही
होगा। वभीषण ने हनुमान को कहा क समु -तट पर नान करने गया था। हनुमान को
वभीषण का रा को नान करने जाना व च लगा कतु उ ह ने अपनी पूँछ उठाकर उसे
भीतर जाने दया। म हरावण ने अंदर जाकर अपनी माया से सबको मू छत कर दया। जस
समय हनुमान ने अपनी पूँछ उठाई थी, उसी समय अ हरावण भी अ य प से श वर म
वेश कर गया। इसके बाद, दोन भाइय ने आसानी से राम और ल मण को कंधे पर उठाया
और वह से सुरंग बनाकर उ ह अपने साथ पाताल लोक ले गए।
माया का भाव समा त होने पर वानर उठे तो उ ह ने दे खा क राम और ल मण वहाँ
नह थे। श वर म हलचल मच गई और वे सब यह समाचार दे ने हनुमान के पास भागे।
सु ीव ने हनुमान से पूछा, “ या रात म कसी अनजान ने तु हारी पूँछ से बनाए
इस ग म वेश कया था?”
“केवल वभीषण भीतर गए थे,” हनुमान ने उ र दया।
यह सुनकर वभीषण ने आगे बढ़कर कहा, “म तो रात म ग से बाहर नह गया। म
पूरा समय भीतर ही था। वे अव य ही अ ह और म हरावण ह गे जनके बारे म मने तु ह
सावधान कया था। वे ही राजकुमार को पाताल लोक ले गए ह गे। हनुमान, सफ़ तुम ही
उ ह वापस ला सकते हो! वलंब न करो। त काल जाओ!”
“आप चता न कर। उस नशाचर ने उ ह जहाँ भी छपाया होगा, म पता लगाकर उ ह
शी ही वापस ले आऊँगा,” हनुमान ने उ र दया।

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उसी समय, उ ह ने वह सुरंग दे खी जो अ ह-म हरावण ने बनाई थी। हनुमान ने बना
कुछ सोचे, उसके भीतर छलाँग लगा द । वह सुरंग एक वन म खुलती थी। वहाँ उ ह ने दो
प य के बीच संवाद सुना। मादा प ी उदास थी और नर उसे स न करने का यास कर
रहा था।
“ य!” वह बोला, “तुम मुझसे नाराज़ मत होओ। कल रात अ हरावण और म हरावण
पाताल के काली मं दर म दो मनु य क ब ल दगे। म तु ह वचन दे ता ँ क ब ल संप न होने
के बाद, म तु हारे लए मनु य के माँस के कुछ वा द टु कड़े अव य लाऊँगा।”
यह सुनकर हनुमान तुरंत समझ गए क दोन रा स भाइय ने राम-ल मण को तहख़ाने
म बंद बना रखा है। वे अपनी व यात पवन ग त से पाताल लोक प ँचे, जो उन असुर का
नवास थान था। वहाँ उ ह ने एक वशाल ग दे खा। वे उसके भीतर वेश करने का
तरीक़ा सोचने लगे। उ ह ने अपना आकार घटाकर ार के बीच क जगह से घुसने का
नणय कया। तभी कुछ याँ बाहर नकल और हनुमान ने उ ह कहते सुना क काली को
ब ल चढ़ाने के लए दो आकषक राजकुमार लाए गए ह। हनुमान यह जानने के लए
उ सुक थे क उनके वामी को कहाँ बंद बनाकर रखा गया है।
ग के भीतर घूमते ए हनुमान ने अचानक दे खा क ार पर एक वानर पहरा दे रहा
था। वे उसके पास गए और उससे भीतर जाने क अनुम त माँगी।
“तुम कौन हो और यहाँ य आए हो?” युवा वानर ने हनुमान से पूछा।
“म अपने वामी राम और उनके भाई को छु ड़ाने आया ँ ज ह तु हारे वामी अ ह-
म हरावण यहाँ लेकर आए ह।”
“तु ह भीतर जाने से पूव मुझसे यु करना पड़े गा। परंतु, यान रहे क म हनुमान का
पु मकर वज ँ और मुझे परा त करना सरल नह है!”
यह सुनकर हनुमान ज़ोर से हँसने लगे। “तुम अ यंत मूख हो जो मुझे इस तरह क
कहानी सुना रहे हो। म ही हनुमान ँ और म सनातन चारी ँ। मेरी न प नी है और न ही
संतान!”
यह सुनकर युवा वानर हनुमान के चरण के गर गया और उनसे आशीवाद माँगने लगा।
“आपके दशन से मेरा जीवन सफल हो गया,” वह बोला।
हनुमान ने उसे झटके से र कया और कहा, “तुम अव य ही कोई रा स हो, जसे
अ हरावण ने मेरे माग म बाधा उ प न करने के लए तैनात कया है। अब उठो और मुझे
बताओ क राम एवं ल मण को कहाँ छपा रहा है अ यथा म तु ह मार डालूँगा।”
हनुमान ने मकर वज से उसक ज म क कथा सुनाने को कहा, जो उसे दे व ष नारद ने
सुनाई थी।
“जब आप सीता का पता लगाकर समु के ऊपर से जा रहे थे, तो आपके पसीने क
एक बूँद समु म गर गई थी। उसे एक मादा मगरम छ ने नगल लया और वह आपके उस
अंश से गभवती हो गई। वह मगरम छ एक मछली पकड़ने वाले के जाल म फँस गई, और
फर उसे मेरे वामी दरबार म ले आए। जब उसका पेट काटा गया तो, म उसके भीतर से

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नकला। उ ह ने मुझे वीकार कर लया और यहाँ ार पर तैनात कर दया। इस लए मेरा
नाम मकर वज (आधा मकर, आधा वानर) पड़ गया।”
“यह सचमुच ब त रोचक कथा है,” हनुमान ने कहा। “मुझे लगता है, य द यह कथा
तु ह नारद मु न ने सुनाई है तो यह अव य ही स य होगी। मुझे तुमसे मलकर ब त स नता
ई, कतु मेरे पास अभी बलकुल समय नह है, इस लए तुम मुझे ज द से बताओ क
तु हारे वामी ने उन राजकुमार को कहाँ छपाया है। या तु ह पता था क वह राम और
ल मण को पकड़कर यहाँ लाया है?”
“मुझे नह पता क वे कौन ह कतु म यह जानता ँ क वह दो सं या सय को मू छत
अव था म लाया था और उ ह मं दर ले जाने के लए बंद बनाकर रखा गया है। कल सुबह,
दे वी काली के सम , उन दोन क ब ल द जाएगी,” मकर वज ने कहा।
हनुमान बोले, “मुझे तुरंत उन दोन को मु करवाना होगा।”
“ पताजी, आप मुझे मा कर कतु ग म वेश करने के लए आपको मुझसे यु
करना पड़े गा और मुझे बाँध दे ना होगा ता क मेरे वामी, मुझ पर व वासघात करने का
संदेह न कर। आपक तरह, मेरी भी अपने वामी के त न ा है,” युवा वानर ने नभय
होकर कहा।
उसके बाद, पता और पु के बीच यु आ, जसम हनुमान ने मकर वज को परा त
करके उसे बाँध दया और फर उस मं दर म गए जहाँ राम एवं ल मण क ब ल द जानी
थी। मकर वज ने हनुमान को यह भी बताया था क उसके वामी को मारने से पूव मं दर क
पाँच व भ न दशा म रखे पाँच द पक को बुझाना होगा। प था क उन नशाचर के
ाण उन द पक म थे और सफ़ उनका सर काटने से उ ह समा त नह कया जा सकता
था।
हनुमान ने उसे ध यवाद दया और म खी का प धरकर, वे ार के छ म से भीतर
घुस गए। फर वे काली मं दर म गए और छोटे -से वानर प म वयं को, दे वी काली क
तमा के भीतर छपा लया।
धीरे-धीरे मं दर म लोग दे वी को अ पत करने हेतु व भ न कार क पूजा-अचना क
साम ी लेकर आने लगे। कुछ दे र म, अ ह और म हरावण कोसल राजकुमार को मू छत
अव था म लेकर आए और उ ह काली के चरण म डाल दया। वे दोन धीरे-घीरे मूछा से
बाहर आ रहे थे। दोन असुर ने दे वी से उन मनु य क ब ल वीकार करने क ाथना क ,
ता क उनक सभी मनोकामनाएँ पूण हो जाएँ। हनुमान को ोध आ गया। उ ह ने दे वी के
सामने रखी साम ी को खाना शु कर दया, जसे दे खकर वहाँ उप थत सभी लोग हैरान
हो गए।
“दे वी अव य ही हम ब त पसंद करती ह,” उ ह ने सोचा। “हमने, इससे पहले, कभी
इ ह मठाई खाते नह दे खा।” उ ह ने और मठाई लाने का आदे श दया और हनुमान ने वे
सब मठाइयाँ भी खाकर समा त कर द ।
दोन असुर ने अ यंत प व वर म कहा, “अब हम आपको इन दोन मनु य का र
भट करगे।” यह कहकर एक ने राम क तथा सरे ने ल मण क चोट पकड़ी और उनके
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सर काटने क तैयारी करने लगे। इसी बीच, हनुमान दे वी क तमा के अंदर से बोलने
लगे।
“सब कुछ यहाँ छोड़ दो और यहाँ से चले जाओ। मं दर को ख़ाली कर दो। म वयं इन
मनु य को खाऊँगी!”
दोन भाई काली के इन श द को सुनकर च कत हो गए। परंतु उ ह ने त काल मं दर
को ख़ाली करवा दया और ार बंद करके बाहर चले गए।
हनुमान दे वी क तमा के अंदर से नकले और राम व ल मण को णाम कया।
उनक मूछा लगभग समा त हो गई थी। शी ही दोन को पूरी तरह होश आ गया। हनुमान
ने सर झुकाकर राम को णाम कया और उ ह सारी कथा सं ेप म सुना द य क समय
कम था तथा सभी लोग उ सुकता से उनक ती ा कर रहे थे।
य ही वे मं दर के ार से बाहर नकले, बाहर खड़े असुर ने उ ह दे ख लया। उ ह
समझ म आ गया क उनके साथ छल कया गया है। वे हनुमान पर झपटे । हनुमान ने दोन
राजकुमार को नीचे उतारा और असुर भाइय से लड़ने लगे। परंतु भरपूर यास करने के
बाद भी वे उ ह परा त नह कर पा रहे थे। राम और ल मण, जो क अब पूरी तरह अपनी
मूछा से बाहर आ गए थे, हनुमान क सहायता के लए आगे आ गए। परंतु दोन असुर भाई,
अजेय तीत हो रहे थे। येक वार के साथ, वे पहले से भी अ धक बलशाली हो जाते थे।
वे हनुमान के चेहरे पर अचरज के भाव दे खकर उपे ापूण ढं ग से हँसने लगे। फर अचानक
हनुमान को अपने पु के श द याद आए। उ ह ने राम व ल मण से कहा क वे असुर
भाइय को रोके रह। ऐसा कहकर, हनुमान वयं दोबारा मं दर क ओर भागे। वहाँ उ ह ने
मकर वज के बताए अनुसार पाँच द पक रखे दे खे। उ ह ने तुरंत पंचमुख प धारण कया
और पाँच द पक को एक साथ बुझा दया। उनके इन पाँच मुख म से तीन व णु के
अवतार थे - वराह (शूकर), नर सह (अ नर-अ सह तथा हय ीव-अ व)। हनुमान का
चौथा मुख, व णु के वाहन ग ड़ का और पाँचवां, उनका अपना मुख था। द पक को
बुझाने के बाद, हनुमान ने लौटाकर अ ह एवं म हरावण को सरलता से मार दया। उ ह ने
शेष असुर को भी मार डाला जो उ ह रोकने का यास कर रहे थे।
उन असुर भाइय क अभे ता का वणन करने वाली एक अ य कथा से मलती है।
राम, ल मण और हनुमान जतनी बार भी अ ह-म हरावण को मारते थे, दोन भाई फर से
जी वत होकर लड़ना आरंभ कर दे ते थे। हनुमान वधा म पड़ गए और फर वे उनके
अमर व का रह य जानने के लए उड़कर वापस नगर म गए। वहाँ उ ह एक नाग क या
मली, जो म हरावण क रानी थी। उसने हनुमान को इस शत पर रह य बताने क बात कही
क दोन भाइय के मरने के बाद, राम को उससे ववाह करना पड़े गा। हनुमान ने उसक शत
मान ली कतु उसके सामने भी एक शत रख द क राम जस श या पर बैठगे, य द वह टू ट
गई तो राम ववाह के लए बा य नह ह गे। नाग क या ने वह शत मान ली और फर
हनुमान को बताया क उसके प त के ाण सात वशाल म खय म बसे ह, जो तीस योजन
र एक छ े म रहती ह। उन म खय ारा तैयार पराग से दोन असुर जी वत रहते ह।
हनुमान उड़कर उस थान पर गए और छह म खय को मार डाला। उ ह ने सातव म खी
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को इस शत पर छोड़ दया क वह रानी के क म घुसकर उसके पलंग को खोखला कर
दे गी। उसके बाद, उ ह ने लौटकर राम व ल मण के साथ असुर को आसानी से मार दया।
हनुमान ने राम को सारा रह य बता दया। राम हनुमान ारा दए गए वचनानुसार उस रानी
के क म गए। वे जैसे ही उसके पलंग पर बैठे, पलंग टू ट गया। राम ने रानी को आशीवाद
दया और उसे अगले युग - ापर युग म अपनी प नी बनाने का वचन दया।
इसके बाद हनुमान, राम और ल मण को अपने कंधे पर बैठाकर वापस उड़ चले। वे
जब बंद बने मकर वज के ऊपर से जा रहे थे तो राम ने हनुमान से उसके वषय म पूछा।
हनुमान ने उनसे कहा क वह एक वानर है जो उनका पु होने का दावा करता है। राम ने
नीचे उतर कर उसे बंधन मु कया। उ ह ने उसे पाताल का राजा भी बना दया और कहा
क वह धमानुसार शासन करे ता क असुर ने जस वै दक धम न कर दया था, वह फर से
था पत हो सके।
मकर वज ने राम के चरण पकड़कर उनसे और अपने पता से आशीवाद लया।
इसके बाद हनुमान राम और ल मण के साथ लंका लौट आए। उनके आने से सभी
वानर क आशा फर से सजीव हो उठ , जो उनके लौटने क ती ा कर रहे थे।

भूत पशाच नकट न ह आवै।


महाबीर जब नाम सुनावै।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

स यसंदाय नमः

अ याय 25

-पु
नणायक यु

प ी और हरण मेरे प रचारक ह गे,


वन मेरा नगर और वृ क छाल मेरे नमल व ह गे,
हे भु, आपके संग पणकु ट र वग के समान लगेगी,
और सब कु छ सुखमय होगा।
—तुलसीदास ारा र चत रामच रतमानस म सीता कहती ह राम से।

रावण यह सोचकर ह षत हो रहा था क अब तक तो उसके पु ने काली के सम कोसल


बंधु क ब ल चढ़ा द होगी क तभी उसे अपने कले के बाहर शोरगुल सुनाई पड़ा। वह
यह जानने के लए क बाहर या हो रहा है, ाचीर पर चढ़ा तो उसने दे खा क राम और
ल मण वानर के बीच उ सव मना रहे थे। उसे व वास नह आ। नय त एक के बाद एक,
उसे म और उसक आशा से वं चत करती जा रही थी। परंतु उसने वयं को सँभाला
और अपने अं तम सेनाप त को यु भू म म भेजने का नणय कया। अगले दन उसने कुछ
चुने ए सै नक क टु कड़ी, जो अपने साहस के लए स थी, यु भू म म भेज द ।
उनके साथ कुछ बचे ए सेनाप त - महोदर, महापा व और व पा भी चले गए। उन सभी
को अजेय यो ा माना जाता था।
सूय दय के साथ ही वह अभागी सेना, अपने समय के सव कृ ह थयार से लैस होकर
प चमी ार पर एक त हो गई। उनक गोलाबारी से घना धुआँ नकल रहा था। सड़ा माँस
खाने वाले प ी, आकाश म मँडरा रहे थे और सयार चीख़ रहे थे। लंका नगरी के ऊपर,
राख के बादल तैर रहे थे। व णम द वार के बाहर धमाके के साथ इं जत के मनोहर कुंज
म व फोट आ। प चमी ार खुला और वहाँ का पुल गड़गड़ाता आ नीचे आ गरा।
द वार पर तैनात पहरेदार ने दे खा क भालू और बंदर उनक ओर ताक रहे थे, परंतु वे
रा स घबराए नह और उ ह ने चरचराती आवाज़ के साथ अपनी तलवार ख च ल । दोन

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सेनाएँ भयंकर तरीक़े से भड़ ग और र मानो नद क तरह बहने लगा। अब राम ने
वानर को एक ओर हटने के लए कहा। वे उनसे अकेले ही नपटने लगे जैसा क उ ह ने
जन थान पर सेना के साथ कया था।
बाण-वषा ने सेना को पूरी तरह ढँ क लया और वह दखाई नह दे रही थी। इसके बाद
राम ने गंधव नाम का अ उठाया, जसके योग से ऐसा म उ प न हो गया क चार
ओर सैकड़ राम दखाई दे ने लगे। एक घंटे के भीतर राम ने रावण क उस सै य टु कड़ी को
समा त कर दया।
इस बीच, रावण के तीन शानदार सेनाप त, सु ीव और अंगद के साथ ं कर रहे थे।
अ यंत कड़े मुकाबले के बाद, सु ीव ने व पा और महोदर को तथा अंगद ने महापा व
को मार डाला।
उन तीन मृतक क प नयाँ ज़ोरदार वलाप करने लग जो धीरे-धीरे सम त लंका म
फैल गया। उ ह ने अपने सब क के लए शूपणखा को दोषी ठहराया। लंका का येक
घर शोक म डू ब गया। वे घर, जहाँ से कसी समय म, सफ़ संगीत एवं आमोद- मोद के
वर सुनाई दे ते थे, अब वलाप और सस कय के शोर से गूँज रहे थे।
रावण ने जब यह समाचार सुना तो उसका मन पूवाभास और उदासी से भर उठा। उसने
अपने दरबार के यो त षय से परामश कया, ज ह ने उसक कुंडली पढ़कर यह नणय
सुनाया क ह क थ त उसके प म नह थी। भारतीय यो तष नव ह कहे जाने वाले
नौ ह से संचा लत होता है। रावण ने सोचा क उन ह क थ त बदलने से वह अपने
भा य को बदल सकता है। वह अपने उड़ने वाले रथ पर सवार आ और आकाश म जाकर
उसने सभी नव ह को बंद बना लया। फर वह उ ह अपनी राजधानी म ले आया तथा
जंज़ीर म बाँध दया। उसके बाद, उसने कुछ अनु ान करने शु कए, जनके सफल होने
पर ह क थ त उसके प म बदल सकती थी।
वभीषण सदा चौक ना रहता था। उसने जैसे ही रावण क य शाला से, जहाँ वह य
हो रहा था, धुआँ उठता दे खा तो तुरंत हनुमान को सावधान करते ए य रोकने के लए
कहा। वह हनुमान और वानर क टोली को गु त माग से रावण क य शाला तक ले गया।
उ ह ने दे खा क दशानन आँख मूँदे य -वेद के पास बैठा मं ो चारण कर रहा था। सभी
वानर कणभेद वर नकालते ए सभागार म घुस गए और वहाँ व वंस मचा दया। उ ह ने
य ा न को बुझा दया और आस-पास रखे पा को लात मारी तथा ज़मीन पर बने गूढ़
च को मटा दया। रावण गहरे यान म था। वह इस शोरगुल से वच लत नह आ।
“हम इसे कसी भी क़ मत पर रोकना होगा,” वभीषण ने कहा, “अ यथा यह अपना
भा य बदलने म सफल हो जाएगा।”
हनुमान ने एक योजना बनाई। उ ह ने वानर से कहा क वे भीतरी कमर म जाकर
रावण क प नय को डराएँ। वानर ने, अ यंत त परता से, रावण क रा नय और उप-
प नय पर हमला कर उनके बाल ख चे, मुँह न च लए तथा व फाड़ डाले।
वे रोती , दौड़कर रावण के पास उसक य शाला म प ँची। इतने पर भी रावण ने
अपनी आँख नह खोल । अब वानर ने मंदोदरी को घेर लया और वे ख से नपोरने तथा
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व थल पीटने लगे और गुराकर उसे धमकाने लगे। मंदोदरी क दयनीय चीख़-पुकार
सुनकर रावण ने आँख खोल और उसक सहायता के लए दौड़ा। रावण के वहाँ से हटते
ही, हनुमान दौड़कर य - थल पर प ँचे और बंद बनाए नव ह को मु कर दया।
रावण ारा अपना भा य पलटने के यास को सफलतापूवक रोक दे ने के लए, सभी
ह सदा के लए हनुमान के कृत हो गए। इसी कारण माना जाता है क हनुमान का इन
ह पर यथे नयं ण है। जनके ह क दशा तकूल होती है, वे लोग हनुमान क पूजा
करते ह। कुछ च म हनुमान को एक ी को अपने पैर के नीचे र दते ए दखाया गया
है। यह ी पनवती, याने क कारी यो तषीय भाव का मानवीकृत प समझी जाती है।
अपनी मृ यु से एक दन पूव रावण ने वजय ा त करने का अं तम यास कया था।
वह अपने गु के पास गया और उनसे कोई ऐसा तरीक़ा बताने को कहा जससे वह
अमाव या क रा के बाद होने वाले यु म वजयी हो सके। उसके गु ने उसे दे वी काली
का एक और य करने क सलाह द ता क वह अजेय हो सके। गु ने उसे यह कहकर
सावधान भी कया क वह ऐसा कुछ न करे जससे दे वी उसक वरोधी हो जाएँ य क जो
भी उनक आराधना करता है, दे वी उसक र ा करने म समथ ह। उसने सब ा ण को
एक कया, ज ह उसने बंद बना रखा था और जो सब तरह के तां क अनु ान के ाता
थे। उसने उ ह दे वी काली के सवा धक हसक प का आ ान करने का आदे श दया।
उसने सोचा, य द दे वी उसके प म हो ग तो उसक वजय न चत थी। उन ा ण को
एक व श ोक का एक हज़ार बार उ चारण करना था, येक उ चारण के साथ अ न
म उ चत आ त दे नी थी और साथ ही, रावण क इ छापू त के लए दे वी से ाथना करनी
थी।
वभीषण को रावण क इस योजना क पूवसूचना मल गई। उसने तुरंत हनुमान को यह
बात बता द । हनुमान ने ा ण का प धारण कया और जाकर अनु ान क तैयारी म
अ य ा ण क सहायता करने लगे। यह दे खकर ा ण स न ए य क उ ह सामा य
तौर पर, लंका म इस तरह क सहायता नह मलती थी। उन सेवा के बदले ा ण ने
हनुमान को वरदान माँगने को कहा। हनुमान ने बड़े नाटक य ढं ग से कहा क उ ह सेवा के
बदले म कुछ नह चा हए। परंतु ा ण ने ज़ोर दे कर हनुमान से वरदान माँगने को कहा।
तब हनुमान ने अ यंत भोलेपन से उनसे कहा क दे वी को स न करने हेतु पढ़े जाने वाले
अं तम मं का एक अ र बदल दया जाए। ा ण त काल उस बदलाव के गंभीर भाव
को समझ गए। वे समझ गए क एक अ र को बदलने मा से पूरे मं का अथ बदल
जाएगा तथा दे वी से आशीवाद मलने के बजाय, अनु ान म वघान उ प न हो जाएगा!
उ ह ने एक- सरे को अथपूण ढं ग से दे खा, कतु वे अपने वचन से बा य थे और इस लए
उ ह ने हनुमान क बात मान ली।
वह अनु ान पूरी रात चलता रहा, कतु ग़लत मं के कारण एक सह एक मं पूण
हो जाने के बाद भी दे वी कट नह । ा ण ने इधर-उधर दे खा कतु वह न हा ा ण
ग़ायब हो गया था। रावण को ब त ग़ सा आया और उसने ा ण से पूछा क उनसे कहाँ

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भूल ई। उ ह ने उ र दया क दे वी उसके अधा मक कृ य से ह, इसी लए उ ह ने
उसक ाथना अ वीकार कर द है।
यह अ चकर बात सुनकर रावण अ यंत ो धत हो गया और तलवार उठाकर ा ण
को मारने के लए दौड़ा, कतु उसक प नी मंदोदरी ने उसे यह घृ णत कृ य करने से रोक
लया।
मंदोदरी ने रावण को राम से सं ध करने का सुझाव दया। “ ा ण ने या कया है?
उ ह ने तो केवल स य कहा है। आपके सब भाई, हमारे पु , म , मं ीगण और सेनाप त
मारे जा चुके ह। या आप यह उप व अपने सम त लोग के मारे जाने तक नह रोकगे?
हमारे पास अब जीने के लए या शेष है? जहाँ तक मेरा न है, म अपने य पु क
मृ यु के बाद जी वत नह रहना चाहती! या आप अब भी ववेक से काम नह लगे?”
उसने ाथना क , याचना क , परंतु रावण पीछे हटने को तैयार नह था और उसने
मंदोदरी क बात को अनसुना कर दया। फर वह कोसल बंधु को मारने क नई योजना
बनाने लगा। “मंदोदरी ने जो कुछ कहा है, वह स य है। मेरे सभी यजन मुझे छोड़कर जा
चुके ह। कल मुझे अपने श ु से अकेले ही यु करना होगा। परंतु, मने कसी के आगे
सर नह झुकाया और अब भी नह झुकाऊँगा!”
मंदोदरी ने रावण क सभी रा नय को उपवास और पूण शु चता का ण लेने और पूरी
रात सावधान रहने को कहा ता क दे वी उनके प त क र ा कर। जांबवंत को भी यह बात
पता लगी। वह जानता था क कम से ही नह , अ पतु केवल वचार से भी भचार हो
जाए तो ऐसा ण न फल हो जाता है। उसने हनुमान से कहा क वे अपना सव कृ प
धारण करके रावण क प नय के महल क खड़क के पास से नकल। रावण क प नय
ने जब हनुमान के सुगढ़ अंग और उनक आकषक चाल दे खी तो उनके मन म हनुमान के
आ लगन म बँधने क इ छा जागृत हो उठ ! इस मान सक भचार ने रावण क र ा हेतु
उनके ण क श को ीण कर दया और इस कारण रावण भी राम के बाण से
असुर त हो गया।
ह क थ त बदलने का यास करने के लए कए जा रहे उस य म वधान पड़ने
के बाद, रावण को महसूस आ क अपनी नय त को नह बदल सकता! उस रात
जब वह उदास थ त म अपने शयनक क ओर जा रहा था तो, माया के रच यता मय
दानव क पु ी मंदोदरी ने अपनी बाँह उसके गले म डाल द ।
“ वामी!” वह बोली, “आपको कल यु के लए जाना है। या आप अपना वचार
नह बदल सकते?”
उसने धीरे-से मंदोदरी को वयं से र कया और कहा, “ य, तुम जानती हो क मुझे
जाना है, परंतु मेरा व वास करो। म तु ह नराश नह क ँ गा।”
“आपने मुझे कभी नराश नह कया, वामी। जस दन से हमारा ववाह आ है,
आपने मुझे हमेशा सुख दान कया है। म यह कैसे भूल सकती ँ?”
“तुम मेरा व वास करो,” रावण बोला, “तुम एक बार फर व वास और आशा करो -
सफ़ एक और बार! म तु ह नराश नह क ँ गा।”
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“आप मेरे प त ह। मुझे पता है क आप मुझे नराश नह करगे।”
रावण ने मंदोदरी का हाथ थामा और कहा, “ वदा लेता ँ, य!”
वह उदास से रावण को अं तम बार ग के ाचीर पर चढ़ते ए दे खने लगी। वह
सामवेद क ऋचाएँ गाने लगा, जनम वह पारंगत था और ज ह गाकर उसने एक बार
महादे व शव को इतना स न कर दया था क उ ह ने उसक सम त इ छाएँ पूण कर द
थ । वायु क सरसराहट, लहर का वर तथा वृ क चरचराहट समेत सम त कृ त मानो
गायन म सुर से सुर मलाकर, उसका साथ दे रही थी। वह अपने पैर उठाता, रखता नाच रहा
था। उसक वास तेज़ चल रही थी, कतु वह शांत था। उसने अपना सर पीछे कया, हाथ
को हलाया और घूम गया। वायु उसके चार ओर घूम रही थी तथा दे वतागण भी उसे दे खने
आ प ँचे। उसक आकृ त के आस-पास नीले रंग क लपट, लंका से भी ऊपर उठ रही थ
और उसके लंबे खुले बाल म व ुत चटचटा रही थी। राम और उनके साथी, नीचे से रावण
के बलशाली व क छ व को, संगीत पर झूमते-नाचते दे खकर मो हत हो गए।
आ ख़रकार, अ रा होने पर अमाव या के समय, हवा क गई, लहर शांत हो ग
और रावण नणायक यु के लए नीचे उतर आया।
उसने अपने अं तम सेनाप तय को यु के लए तैयार होने का आदे श दया तो पहली
बार, उसके वर म भय का पुट था। उसने वयं यु म जाकर अपने यजन क मृ यु का
तशोध लेने का नणय कया। उसने काले इ पात से बना अपना रा कवच पहना और
शर ाण धारण कया जसने उसके मुख को छपा लया। उसके रथ के सुनहरे व पर
लंका क यु -पताका फहरा रही थी। पताका के दं ड पर दस बाण बँधे ए थे जो उसके
रा य क दस दशा को दशाते थे। उसका रथ, ढाल व पीतल क प य से सुर त था।
उसम रखे आधु नक अ व आभूषण जगमगा रहे थे। उसम ंगी क न क वाले बाण,
सीधी लंबी तलवार और एक अ भुजा गदा रखी थी। रथ के ार के नकट प ँचते ही,
रावण उसम बाघ क फुत से कूदकर चढ़ गया और लगाम वयं सँभाल ली। वह माग से
होकर गुज़रा तो आस-पास खड़े रा स ने शोर मचाया तथा ता लयाँ बजा । उसने बाहर
नकलने के लए पाँचवां ार चुना, जो माया का ार था। वह अ रा के काले आकाश
म, वशाल काले राजहंस क भाँ त कट आ।
वानर चार ार पर तैनात थे, कतु रावण आकाश- थत मायावी एवं पाँचव ार से
बाहर आया और जोरदार आवाज़ के साथ सबके बीच म उतर गया। कहते ह, उसके ार से
बाहर नकलते ही वायु बहने लगी। अमाव या होने के कारण सब तरफ़ गहन अंधकार था।
उ लू बोल रहे थे और सयार चीखने लगे। बादल से र क बूँद टपकने लग तथा अ व
लड़खड़ाकर गरने लगे। रावण के चेहरे का तेज़ समा त हो रहा था और उसका वर ककश
होने लगा। उसक बा आँख और हाथ फड़कने लगे। ये सब मृ यु के संकेत थे।
उसने इन अपशकुन क चता नह क तथा अपने शेष सेनाप तय के साथ तेज़ी से
वानर क सेना के बीच म से गुज़रा। उसे थोड़ी री पर, राम के धनुष क सुनहरी न क
दखाई दे रही थी। राम धरती पर नभय खड़े थे। रावण वानर-दल को धकेलता आ उ म
होकर यु कर रहा था। उसके ोधपूण आ मण को सहन करने का साहस कसी म नह
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था। जस कार ी म ऋतु के आगमन पर सरोवर सूखने लगता है, उसी तरह वानर सेना
क सं या भी कम होती जा रही थी। वे बड़ी सं या म मर रहे थे। रावण ने उनक ओर ज़रा
भी यान नह दया य क वह राम तक प ँचना चाहता था। राम ने जब रावण को अपनी
ओर आते दे खा तो उ ह ने सभी पशु को अपने पीछे चले जाने को कहा य क यही वह
ण था, जसक उ ह ती ा थी और वे अपने श ु का सामना अकेले करना चाहते थे।
रावण ने अपने सारथी को राम के पास चलने का आदे श दया। वह राम के साथ ई
अपनी पहली मुठभेड़ को भूल जाना चाहता था जसम राम ने उसे उदारतापूवक छोड़ दया
था। राम ने अपना कोदं ड धनुष हाथ म पकड़ा आ था और ल मण उनके साथ खड़े थे।
रावण ने जब राम को दे खा तो उसे लगा क उसके सामने भगवान नारायण खड़े ह और
दे वराज इं उनके साथ खड़े ह। चूं क रावण रथ पर सवार था, हनुमान ने राम को उठा लया
ता क वे भी रावण के समान तर पर आ जाएँ। उसके बाद जो यु आरंभ आ, उसम
हनुमान बड़ी कुशलता से रावण के चलाए येक अ से बच जाते थे और राम को खर च
तक नह आती थी! राम ने बाण से रावण का सर काट दया कतु उ ह यह दे खकर ब त
आ चय आ क उस थान पर त काल एक नया सर नकल आया। ऐसा अनेक बार
आ। राम के त ध चेहरे को दे खकर रावण उपहास करता व हँसता रहा। इस बात से
परेशान होकर, राम ने यु क कमान ल मण को स प द और वयं वभीषण से सलाह
लेने चले गए।
वभीषण ने कहा, “म व वास के साथ तो नह कह सकता कतु ऐसा कहते ह क
रावण के उ ान म एक सरोवर है जसम कसी समय पर, जब जयंत उसके उस सरोवर के
ऊपर से अमृत ले जा रहा था, तो अमृत क एक बूँद सरोवर म गर गई थी। उस सरोवर म
उगने वाले कमल के फूल म तन को संजी वत करने और घातक घाव को तक भर दे ने क
श है। रावण हर बार घायल होने पर अव य ही, कमल के फूल को खाता होगा और
उसी से वह पुनज वन ा त करता है।”
हनुमान ने तुरंत म खी का प धारण कया और उस सरोवर का पता लगा लया।
उ ह ने उसम उगे सारे कमल-पु प खा लए और सरोवर के जल को भी शी ा तशी ख़ाली
कर दया। ऐसा करने के बाद, वह जस तेज़ी से गए थे, उसी तेज़ी से लौट आए।
इस बीच, ल मण ने रावण पर अनेक अ न बाण चलाए य क वे उसे परा त करना
चाहते थे। रावण ने उन सबको आसानी से रोक लया और उ ह बीच म से चीर दया। फर
वह ल मण के ऊपर से उड़ता आ राम के सम प ँच गया और उनके ऊपर अनेक बाण
चलाए। राम ने भी यु र म बाण चलाए और ज द ही, सारा आकाश दोन के ारा
चलाए जा रहे व भ न तरह के बाण से भर गया। दोन के बाण ग के पंख से सजे और
ब त ही पैने थे तथा अ यंत तेज़ ग त से चलते थे। दोन यो ा समान प से कुशल थे और
व भ न कार के अ के योग म पारंगत थे। रावण के बाण के फल पर सह, बाघ,
हंस, ग , सयार व भे ड़ये बने ए थे। राम ने उसके सभी बाण को आसानी से अपने
बाण ारा काट दया जसे दे खकर वानर को ब त ख़ुशी ई। इसके बाद, ल मण ने आगे
बढ़कर एक बाण से हवा म फहराती, रावण क शानदार पताका काट द । ल मण को अब
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तक अपनी भाभी का क ण चेहरा याद था, जब सीता ने पंचवट म ल मण को अपनी
कु टया के बाहर राम के पीछे जाने के लए कहा था। वह य यान म आते ही, ल मण ने
अपने बाण से रावण के सारथी का सर काट डाला। उसके बाद, उ ह ने पाँच तीखे बाण
चलाकर रावण का वशाल धनुष काट दया, जो हाथी क सूँड़ जैसा दखता था। इसके
बाद, वभीषण ने अपनी वशाल गदा से रावण के अ व पर वार करके उ ह मार डाला।
रावण को ब त ग़ सा आया और उसने वभीषण पर श नामक अ का योग कर
दया। परंतु ल मण ने बीच म आकर उसक र ा कर ली। रावण ने मन म न चय कया क
अब राम के धृ भाई को समा त करने का समय आ चुका है। कां या न क भाँ त
चमचमाती हरी आँख वाले और सह के समान गरजते ए रावण ने मय दानव का मायावी
श य से बना भाला ल मण क ओर फका। वह भीषण आवाज़ करता आ कसी
ख़तरनाक उ का पड क भाँ त अपने ल य क ओर बढ़ गया। राम ने जब उसे अपने य
भाई क ओर जाते दे खा तो उ ह ने तुरंत यह संक प कया, “तु हारा यास न फल हो
जाए। ल मण को मारने का तु हारा यास वफल हो जाए।” य प राम के इस संक प से
उस अ क मारने क श समा त हो गई, तथा प वह इतना श शाली था क उसने
ल मण को आहत करके मू छत कर दया।
ल मण को र के तालाब म पड़ा दे ख, राम बुरी तरह घबरा गए। उ ह ने दौड़कर
ल मण को छाती से लगा लया य प, रावण तब भी अपने श शाली बाण से राम के
ऊपर हार करता रहा। उ ह ने च लाकर हनुमान व सु ीव को बुलाया और ल मण क
दे खभाल करने को कहा य क वे उस दशानन रा स को समा त कए बना वहाँ से जाने
वाले नह थे। उ ह रावण से अनेक बात का तशोध लेना था।
“यह प है क इस संसार म हम दोन नह रह सकते। वह मरेगा अथवा मेरे ाण
जाएँगे। तुम सब लोग पवत पर अपना थान ले लो और यान से दे खो, य क जब तक
यह संसार रहेगा, जब तक समु के ऊपर यह पृ वी टक रहेगी और जब तक पृ वी पर
ाणी रहगे, तब तक इस यु क चचा होती रहेगी!”
रावण के व राम के मन म जो ोध पछले यारह माह से उफन रहा था, अब
उठकर सतह पर आ गया। वे उ म हाथी क तरह यु करने लगे।
उसके बाद, उन दोन के बीच भीषण सं ाम आ। चूं क रा स नशाचर होते ह,
इस लए वे सुबह होने के साथ बल होने लगते थे। रावण क श भी ीण होने लगी थी।
राम व रावण का यह यु , उनक पछली मुठभेड़ से भी अ धक भयंकर था तथा दे खने
वाल को, सफ़ धनुष क टं कार और बाण छू टने पर ता लय क आवाज़ सुनाई दे ती थी।
अंत म राम के वलंत धनुष से चले सुनहरी न क वाले बाण से घायल होने के बाद, रावण
रणभू म छोड़कर भाग गया। राम ने स नतापूवक अपने भाई क ओर दे खा जो मू छत पड़ा
था। उ ह ने सु ीव के राजवै से ल मण को बचाने के यास करने का आ ह कया।
“य द मेरा भाई मारा गया तो फर मुझे इस यु म हार या जीत से कोई अंतर नह
पड़ता। मुझे न रा य चा हए और न ही अपना जीवन। सीता को मु करवाने क मेरी इ छा
भी अब समा त हो गई है। सीता जैसी प नी तो शायद फर मल सकती है, कतु ल मण
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जैसा भाई, मुझे फर कभी नह मलेगा। इसका ज म मेरे साथ आ और यह छाया क
तरह मेरे साथ रहता है। इन ख के दन म यही मेरा सहारा रहा है।” ऐसा कहकर, राम रोते
ए ल मण के शरीर पर गर पड़े ।
वै ने कहा, “ भु! ल मण के चेहरे का तज़ गया नह है, इस लए मुझे व वास है क
ये अभी जी वत ह। इनक वचा पर कालापन नह है, जो मृ यु का संकेत होता है। इनक
हथे लयाँ अब तक गुलाबी व नम ह। इसके अ त र , इनके तन पर द घायु होने के सभी
ल ण व मान ह। इस लए आप कृपया खी न ह !”
वै ने हनुमान को त काल हमालय से मृतसंजीवनी तथा वशा यका रणी नाम क
बू टयाँ लाने के लए कहा जससे क मूछा तुरंत र हो जाती है। वै का वा य पूण
होने से पहले, हनुमान उ र दशा क ओर उड़ चुके थे, कतु पहले क भाँ त वे फर से बूट
को नह पहचान सके और दोबारा पूरा पवत ले आए ता क वै आव यकतानुसार, बू टय
का योग कर सके। वै बू टय को पीसकर य ही ल मण क नाक के नकट ले गया, वे
उसक सुगंध से उठ गए मानो गहरी न ा से जागे ह । उनके चेहरे पर थकान अथवा ऊजा
के लोप का कोई ल ण नह था। उ ह पूरी तरह व थ दे खकर राम ब त स न ए।
उ ह ने रोते ए ल मण को गले से लगा लया और बोले, “मेरे य भाई! तु हारे बना मेरा
जीवन बेकार है। मेरे लए सीता या रा य का कोई अथ नह है।”
यह सुनकर ल मण बोले, “हे राम, आपने आज रावण को मारने और वदे ह क
राजकुमारी को मु करवाने का ण लया है। अब आपका यही ल य होना चा हए। मेरी
चता मत क जए। रावण को यु के लए चुनौती द जए। आपको सूय दय होने से पूव
उसका वध करना है।”
इसके बाद, दोन ने हनुमान को गले से लगा लया और सरी बार ल मण के ाण
बचाने के लए उ ह आशीवाद दया।

संकट कटै मटै सब पीरा।


जो सु मरै हनुमत बलबीरा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

धू केतवे नमः

अ याय 26

व प
रावण-वध

रणभू म म राम क सम त म हमा द शत हो रही थी,


उनके अतु य बल और उनके अपार स दय के प म,
उनके कमल-समान चेहरे पर प र म क बूँद थ ,
उनके अनु पम ने एवं तन र से सना था,
अपने दोन हाथ म उ ह ने धनु ष व बाण पकड़े ए थे,
उनके आस-पास भालू एवं वानर एक त थे।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

राम को पता था क उनके भाई ने स य कहा था कतु वे दवा व म चले गए और एक ण


के लए उ ह ऐसा लगा क वे रावण को परा त नह कर सकगे। उ ह थका आ और गहन
चतन म दे खकर, मह ष अग य उनके पास आए और उ ह “आ द य दयम्” नाम क
महान ऋचा दे कर बोले, “यह ऋचा सूयदे व क तु त है और इससे सभी बाधाय र हो
जाती ह।”
“हे सूयवंश के राजकुमार, बलशाली राम!” अग य ने कहा, “इस ाचीन मं को
सु नए, जससे आप यु म अपने सभी श ु को परा त कर सकगे। इस ऋचा के इ
सूयदे व ह और य द उ साहपूवक इसका उ चारण कया जाए, तो यह आपके श ु का
नाश करने और आपको वजय एवं अनंत सुख दान करने म स म है। यह न चत प
से सभी पाप को न करके सम त चता को र करती है। इस लए, आप इस ऋचा के
साथ सुनहरे गोलाकार सूयदे व क अचना क जए य क सम त द ा णय क सम ता
के, वही एकमा त न ध ह।”
अग य मु न सव थे और जानते थे क राम, नारायण का अवतार ह कतु उ ह यह भी
पता था क वे अपनी द ता से अन भ ह। इसी लए अग य मु न ने, सामा य ाणी के
े ो े
गु के समान, राम को उस मं क द ा दान क । इस प व ऋचा के न ापूण उ चारण
से न केवल सभी तरह क भौ तक बाधाएँ, अ पतु सनातन स य क खोज करने वाले के
माग क भी सम त बाधाएँ र हो जाएँगी। अग य मु न ने राम को कहा क य द वे सूय क
ओर दे खकर उस ऋचा का उ चारण करगे तो उनक यु म न चय ही वजय होगी। यह
सुनकर, राम को उ साह आ गया और वे सूय क ओर दे खकर पूण ा और न ा के साथ
मं का उ चारण करने लगे।
“हे वजय के वामी! पूव दशा के वामी! प चम दशा के वामी! आप असी मत ह!
आप दे द यमान ह! आप सुनहरे अंग वाले एवं ांड के रच यता ह! आप सम त ा णय
के कम के सा ी ह! म आपको बारंबार णाम करता ँ!”
राम वयं सूयवंशी थे, इस लए य ही उ ह ने तीन बार मं का उ चारण कया, सूयदे व
अपनी सम त आभा के साथ राम के ऊपर द तमान होने लगे, मानो राम के नणय क
शंसा कर रहे ह । उ ह ने राम को त काल उस काय को पूण करने का आ ह कया, जो
राम ने उस समय अपने हाथ म लया आ था!
सं याकाल के समय रावण ने भी अपने इ , भगवान शव से ाथना क और फर यु
म जाने क तैयारी करने लगा।
आ द य दयम् का उ चारण करने के बाद, राम उ साह से भर उठे और उ ह ने रावण
को बाहर नकलने के लए चुनौती द । उसने व कल व पहने थे तथा जटा धारण क ई
थी और वह पैदल चल रहा था।
वह उपे ापूण से दे खता आ तप वी के समान आगे बढ़ रहा था। अचानक
आकाश म कोई तारा टू टा। राम ने दे खा क वह एक चमकता आ वमान था, जसम चाँद
के रंग के दस अ व जुते थे। उसम रखे अ -श जगमगा रहे थे। उसक पंखु ड़याँ घूम
रही थ और प हये चमक रहे थे। वह वाहन धीरे-से राम के नकट उतरा। उसके सारथी ने
नीचे उतरकर राम को णाम कया और कहा, “म इं का सारथी मातली ँ। ये इं के
यु ा व ह और आकाश म धुँध के समान दौड़ते ह। हे सूयवंशी, मुझे इं ने आपको वजय
दलाने म सहायता हेतु यहाँ भेजा है।”
“आपका वागत है।” यह कहकर राम रथ पर सवार हो गए।
मातली ने अ व को पश करके, उ ह चलने का संकेत दया। वे अपनी चाँद क
जगमगाती नाल के साथ आगे चल पड़े ।
रावण भी उ ह रोकने के लए अपने रथ म आगे बढ़ा। उन दोन के बीच भयंकर यु
आरंभ हो गया। इस नणायक य को दे खने के लए आकाश म दे वतागण एक हो गए।
सभी पशु व रा स ने भी इस अं तम य को दे खने के लए सुर त थान हण कर
लए।
दोन सारथी अपने-अपने रथ को कौशल व अचं भत करने वाले ढं ग से चला रहे थे।
राम और रावण ने एक- सरे पर व भ न श शाली मं से यु घातक बाण चलाए।
रावण ारा चलाए अचूक नाग बाण अपने खुले मुख से वष उगलते राम क ओर आते थे,
कतु राम के ग ड़ बाण उ ह बीच म ही समा त कर दे ते थे। हवा म उड़ते बाण से आकाश
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म अंधेरा छा गया और उनके पर पर टकराने से व ुत क गड़गड़ाहट जैसी भयंकर आवाज़
पैदा होती थ । राम का कोप दे खने के लए सारा संसार एक हो गया था। सूय का तेज़
ीण पड़ गया और समु अपनी वशाल लहर के साथ इस भयावह य को दे खने के लए
उमड़ने लगा। सामा य तौर पर, राम क यो रयाँ ब त कम चढ़ नज़र आती थ , कतु
उस दन उ ह उस अव था म दे खकर रावण भी घबरा गया। पशु-प ी डरकर इधर-उधर
भागने लगे। वा मी क कहते ह, जस तरह समु क तुलना सफ़ समु से, आकाश क
तुलना सफ़ आकाश से क जा सकती है, उसी तरह राम-रावण यु क तुलना केवल राम
व रावण के यु से ही क जा सकती है!
अंत म, रावण ने अपना शूलयु भाला उठाया। उसक न क अ यंत पैनी थी और वह
वाला उगल रहा था मानो राम क छाती भेदने को उतावला हो। उसने वह भाला राम के
ऊपर छोड़ दया।
वह च लाया, “रघुवंशी! यह तु ह और तु हारे भाई को न कर दे गा!”
राम ने उसे काटने के लए अनेक बाण चलाए कतु वे सब रावण के भाले से नकलती
अ न म भ म हो गए। राम ने त काल रथ म रखा, इं ारा भेजा भाला उठाया और उसे
रावण के अ के ऊपर चला दया। दोन अ बीच हवा म टकराए और रावण का भाला,
श हीन हो हज़ार टु कड़ म टू टकर बखर गया। रावण ने एक अ य अ चलाकर राम
क पताका व त कर द । राम ने हनुमान से कहा, “हे वायुपु ! तुम तुरंत एक और पताका
लाओ और वयं उस पर वराजमान होकर श ु को आतं कत करो!”
हनुमान ने तुरंत साल वृ क एक डाल तोड़ी और उसे रथ म लगाकर वयं उसके
ऊपर बैठ गए। उस थान से उ ह ने चार ओर घुमाई और अ यंत उ व भयंकर गजना
क।
राम ने रावण से कहा, “तुमने सीता का हरण कया, जब वह आ म म अकेली व
असहाय थी और ऐसा करके तुम वयं को वीर कहते हो। वह तु हारे पशुबल के सम कैसे
टक पाती? तुम चोर तथा कामी पु ष व कायर से अ धक कुछ नह हो। परंतु सावधान हो
जाओ! आज सूया त से पूव, तु हारा सर, भूखे ग का भोजन बनेगा और भे ड़ये तु हारे
र से अपनी यास बुझाएँगे!” यह कहकर, राम ने रावण पर सैकड़ बाण चला दए।
राम के अ वरत उ साह एवं बाण क वषा को दे खकर रावण थोड़ा हतो सा हत होने
लगा उसे मूछा आने लगी। अपने वामी क थ त को दे खते ए, रावण का सारथी,
कुशलता से उसे राम से र ले गया। य ही रावण क मूछा र ई, वह अपने सारथी को
अपश द कहने लगा और उसे रथ को तेज़ी से यु भू म के म य ले जाने के लए कहा।
“रावण कभी अपने श ु को पीठ नह दखाता,” वह बोला। “वह अपने श ु को
समा त कए बना नह लौटता!”
“ वामी,” उसके सारथी ने कहा, “अपने वामी क र ा करना सारथी का कत है।
हमारे अ व थक गए थे तथा आपको भी थकान एवं मूछा आ रही थी। मुझे अपशकुन होते
दखाई पड़े , इस लए मने आपको वहाँ से र ले आना उ चत समझा।”

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रावण ने उसक न ा से स न होकर उसे अपना कंगन भट कर दया। सारथी ने अपने
वामी के आदे शानुसार, अ व को चाबुक लगाई और उ ह फर से राम के सामने ले आया।
राम ने मातली से रथ को कसी अ छे थान पर ले चलने का अनुरोध कया। उसने
अ व को सीधा रावण के रथ के सामने दौड़ाया और उनके पर पर टकरा जाने से पल-भर
पूव उ ह बा ओर मोड़ दया। वहाँ से नकलते समय, राम ने एक बाण मारा जो रावण के
कंधे म गहरा धँस गया। वयं को गरने से बचाने के लए रावण को अपना वज दं ड
पकड़ना पड़ा। दोन रथ एक बार फर आमने-सामने आ गए। शेष सेना च त आकृ त क
भाँ त खड़ी उस शानदार य को दे खकर मु ध हो रही थी। रावण ने इं क द पताका
को गराने का यास कया कतु वह सफल नह हो पाया, जब क राम ने अपने बाण से
रावण क पताका को काट दया। राम को आहत करने के अपने सभी वार वफल जाते
दे ख, रावण अपने ह ठ काटने लगा और आँख से तेज़ चगा रयाँ छोड़ने लगा। इसके
वपरीत, राम ल य को भेदने म सफल होने पर मु करा रहे थे।
इसके बाद, दोन के बीच पुनः घमासान यु आ। मातली ने राम से कहा क सूया त
होने से पूव उ ह दशानन का अंत कर दे ना चा हए। तब राम ने अपने धनुष पर वषैले नाग
के समान एक बाण चढ़ाया और वशाल बा लयाँ पहने ए अपने श ु का द तमान सर
काट दया। परंतु, सबके सामने यह आ चयजनक य था क रावण के पहले वाले सर के
थान पर एक नया सर नकल आया। इस तरह हर बार, सर काटने के बाद, उसी थान पर
नया सर नकल आता था।
रावण के दस सर चुर अहंकार के तीक थे। हम लोग का एक सर होता है, ले कन
हमारे लए अपने अहंकार पर नयं ण पाना अ यंत क ठन हो जाता है, तो ऐसे के
वषय म सो चए जसके दस सर ह ! जतनी बार भी उसका अहंकारी सर कटता था,
उसक जगह एक नया दं भी सर कट हो जाता था। हमारे साथ भी ऐसा ही होता है। जब
हमारे अहंकार को कसी थान पर चोट प ँचती है तो हम त काल, वयं को मह वपूण
स करने हेतु कोई अ य थान अथवा प र थ त खोजने लगते ह।
य प, राम का चेहरा शांत था, उ ह चता होने लगी थी और वे अपने धनुष से नरंतर
बाण छोड़ते जा रहे थे। तब वभीषण ने धीरे-से राम के नकट आकर उनके कान म कहा
क ा ने रावण को एक ा दया था और उसे केवल उसी अ से मारा जा सकता
है। वह अ , मंदोदरी के क म छपाया आ है और उसके बना यह यु अनंत काल
तक चलता रहेगा। हनुमान तुरंत वृ ा ण का वेश बनकर लंका प ँच गए और
लड़खड़ाते ए मंदोदरी के सम उप थत हो गए। वह ा ण को दे खकर स न हो गई
और उसका वागत-स कार करने लगी। ा ण प म आए हनुमान ने मंदोदरी से कहा क
वभीषण ने राम को उस द ा के वषय म बता दया है जससे उसके प त का वध हो
सकता है। हनुमान ने मंदोदरी को उस अ को कसी अ य सुर त थान पर छपाने क
सलाह भी द ।
मंदोदरी घबरा गई और वह भागकर उस अ को फ टक तंभ से नकाल लाई, जहाँ
उसने वह अ छपा रखा था। उसी समय हनुमान अपने असली प म आ गए और अ
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छ न लया तथा मंदोदरी को रोता छोड़कर वहाँ से उड़ गए।
हनुमान ने वह अ राम के हाथ म दे ते ए धीरे-से कहा, “ भु! याद क जए, आप
कौन ह। रावण का अंत समय आ गया है। यह ा चलाकर उसे ज द मार द जए।
उसके सर पर नह , ब क उसक छाती पर वार क जएगा!”
रावण क मृ यु का नधा रत ण आ गया था। परंतु कहते ह, जब राम ने रावण क
छाती क ओर दे खा तो उ ह, उसके दय म सीता त ा पत ई नज़र आ और उ ह ने
सीता के दय म वयं को दे खा। वे वधा म पड़ गए। ऐसे म, वे या करते? उ ह ने ती ा
क और जस ण रावण के दय म राम के त ोध उ प न आ और सीता, वहाँ से
ओझल , उसी ण राम ने ा का आ ान कया तथा वह सुनहरी न क वाला अ
सीधा रावण क छाती पर चला दया।
वह अ मनु य व दे वता दोन के लए सवश शाली था और ब त कम मनु य
को उस अ क श य का ान दया जाता था य क उसक व वसंक श इतनी
अ धक थी क जसने वयं पर नयं ण करना नह सीखा, वह इस अ का ान पाने का
पा नह था। इस लए, ाचीन भारत म, व ान केवल उन लोग को सखाया जाता था,
जनम सदाचार व नै तकता के गुण होते थे और जो मानवता क भलाई के लए उसका
योग करने म समथ थे!
वह बाण सम त त व के सार से न मत था। ांडीय वनाश क अ न के समान
व लत तथा समय क श के समान घातक, वह बाण राम के धनुष से व ुत- शखा
क भाँ त छू टा और सीधा रावण क छाती म घुस गया। वह रावण के शरीर को भेदकर पार
नकल गया और धरती म समा गया तथा फर से मुड़ा और वनीत सेवक क भाँ त राम के
हाथ म लौट आया! बाण लगते ही, रा सराज के नबल हाथ से उसका अजेय धनुष छू ट
गया तथा उसका द तमान शरीर व क भाँ त रथ से नीचे गर पड़ा। उसे गरता दे ख, सारे
नशाचर भय से चीख़ते- च लाते चार दशा म भागने लगे।
इस य को दे ख रहे दे वता ने आकाश से पु प-वषा क और सूयदे व भी बादल के
पीछे से नकल आए। रावण के ाण तेज़ी से नकल रहे थे। रा स का बलशाली राजा,
जसने अपने बा बल से सम त संसार पर शासन कया था, अब रणभू म म मृत पड़ा था
और वहाँ से गुज़रने वाले येक ग व सयार का शकार बन चुका था।
वीरता और बल म जसके समान कोई न था, पूरा संसार जससे भयभीत रहता था तथा
इसी कारण उसका नाम “रावण” (भयभीत करने वाला) पड़ा था, सामवेद के े उ चारण
से जसने महादे व शव को स न कर लया था, वह रावण भ व यवाणी के अनु प एक
मनु य के हाथ मारा गया। पर-पु ष क प नी के त वासना और उन सब य के शाप,
जनके साथ उसने बला कार कया था, रावण के अंत का कारण बन गए। मृ यु के बाद भी
उसक चमक कम नह ई थी। मृ यु होने पर भी, वह अ त ए सूय क भाँ त शानदार
दख रहा था।
ल मण, सु ीव और अ य सभी ने राम के आस-पास एक होकर उ ह बधाई द ।
वभीषण को अचानक प चाताप आ और वह अपने गौरवशाली भाई के ऐसे खदायी
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अंत पर रोने लगा। राम ने उसे यह कहकर सां वना द क रावण क मृ यु, एक वीर यो ा
क भाँ त ई थी।
“ ाचीन वीर इसी माग पर चलते ह,” राम ने कहा। “एक य के लए जीने और
मरने दोन का एक सही तरीक़ा होता है और रावण ने जीने का नह कतु यु भू म म मरने
का सही ढं ग चुना है। वभीषण! सारी श ुता मृ यु के साथ समा त हो जाती है। अब जाओ
और नयमानुसार, जो भी अं तम सं कार कए जाने चा हए, वह करो य क तु हारे सवाय
अब यह काय करने वाला कोई शेष नह है।”
रावण क सव य रानी और वीर इं जत क माँ, मंदोदरी भागती ई रणभू म म आई।
उसके बाल खुले ए थे और उसके चेहरे से अ ुधारा बह रही थी। वह अपने मृत प त के
शरीर पर गरकर रोने लगी।
“मेरे वामी! आपके ऊपर यह वपदा कैसे आ गई? एक साधारण मनु य कस कार
आपको मार सकता है? ये राम अव य ही कोई द पु ष ह। इ ह ने जब खर और षण
को अकेले मार डाला था, तभी आपको समझ लेना चा हए था क ये कोई सामा य मनु य
नह ह। मने जब यह सुना था क इ ह ने समु पर सेतु बानाया है तो म समझ गई थी क वे
कोई साधारण मनु य नह ह। मुझे अब पता है क राम कौन ह। वे वयं भगवान नारायण ह
- पु षो म! इ ह ने संसार क र ा हेतु साधारण मनु य का प धारण कया है और वयं
दे वता ने वानर का प धरा है। आपको, कसी साधारण मनु य ने नह , ब क नारायण
ने मारा है। आप इस तरह धरती पर धूल म कैसे लेटे ए ह, जब क आपको सबसे
आरामदायक और नम श या पर लेटने क आदत है? आप मुझ अभागे ाणी से बात य
नह करते? एक बार आपने इं य पर पूण संयम रखते ए घोर तप या क थी और आज
उ ह इं य ने अ नयं त अ व क भाँ त, आपको घसीटकर मृ यु तक प ँचा दया है।
सीता सदाचा रणी ी है जो पूणतः अपने प त के त सम पत है। आपको उसका स मान
करना चा हए था, कतु आपने उसका अपमान कया। आपको राम के बाण ने नह , अ पतु
सीता के नराशा व ल जा यु अ ु ने मारा है। उसके पास ऐसा या है जो मेरे पास
नह है? म ज म से उसके समान ँ, वह स दय म मुझसे े नह है, तथा प वासना के
अधीन होकर आपने अपने भयंकर अंत को आमं त कया। आप जस दन उसे लंका
लेकर आए थे, उसी दन आप अपनी मृ यु यहाँ ले आए थे। अब वह तो अपने वामी से
मलकर, स नतापूवक रहेगी जब क मुझे खी रहते ए, आपके बना श या पर अकेले
सोना पड़े गा। आपक मु कान कहाँ चली गई वामी? मेरी ओर दे खते ए आपक आँख म
जो ेम उमड़ता था, वह कहाँ चला गया? मुझे अपने सौभा य पर कतना गव था! म असुर
के श पकार क पु ी तथा रा सराज क प नी ँ और मेरा पु संसार म सबसे बलशाली
यो ा था। म यह कस तरह वीकार क ँ क मृ यु ने एक झटके म मुझसे मेरी सभी य
चीज़ छ न ली ह?”
इस तरह, ख मनाती ई मंदोदरी अपने प त के मृत शरीर पर गरकर मू छत हो गई।
अय य को उसे वहाँ से ले जाना पड़ा। वह बार-बार मुड़कर अपने प त के चेहरे के
अं तम दशन हेतु आ जाती थी, जसे वह फर कभी नह दे ख पाएगी। मंदोदरी वहाँ से हटने
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के लए तैयार नह हो रही थी और वह रावण के पास बैठकर उसका सर अपनी गोद म
रखकर उससे मधुर श द म बात करने लगी।
रावण क हज़ार सुंदर याँ भी मंदोदरी के पीछे आ प ँची, ज ह उनके व यात
स दय के चलते, संसार भर से लाया गया था और ज ह सूय ने भी कभी नह दे खा था
य क उ ह कभी बाहर नह नकलने दया गया। वे सब भागकर उस वीभ स रणभू म म
आ ग और रावण के र रं जत शव पर सर रखकर दयनीय ढं ग से वलाप करने लग ।
“भगवान ा ने हमारे वामी को अमरता का वरदान दया था और आज इ ह एक
साधारण मनु य ने मार दया! आपने हमारी बात य नह मानी? हमारे परामश के बाद भी
आपने सीता का हरण कर लया। वही हमारे रा स कुल के वनाश क उ रदायी है। य द
उसे राम को लौटा दया जाता तो यह सब नह होता। आपने वभीषण क बात को भी
अ वीकार कर दया। व ध न चय ही सवश मान है। यही न चत हो गया था क
राजा म सव े रावण, वानर एवं भालु के सहयोग से एक मनु य के हाथ मारा
जाएगा!”
जस समय शेष वानर उ सव मना रहे थे, हनुमान राम के नकट आए और बोले,
“रावण अधम था, कतु वह अ यंत व ान था। उसके मरने से पहले, हम उसके ान का
लाभ उठाना चा हए।” राम और ल मण दोन , रावण के पास गए। ल मण उसके सर क
ओर खड़े होकर बोले, “मने सुना क तुम ब त व ान हो। हम वजयी ए ह, इस लए तु ह
मरने से पहले, अपना ान हम दे दे ना चा हए!”
रावण ने पीड़ाजनक ढं ग से चुपचाप अपना सर सरी ओर घुमा लया और ल मण क
बात का कोई उ र नह दया।
तब राम आगे आए और मरणास न राजा रावण के पैर के सामने घुटने टकाकर धीरे-से
बोले, “रावण! मने तु ह भावनावश नह , अ पतु अपनी प नी क र ा हेतु मारा है। परंतु म
तु हारे चुर ान का स मान करता ँ और मुझे हा दक स नता होगी य द तुम अपनी मृ यु
से पूव वह ान हमारे साथ बाँट सको ता क यह संसार उस ान से वं चत न रह जाए!”
रावण ने अपनी आँख खोल और कहा, “म तु ह अपना श य वीकार करता ँ। राम!
तुमने मेरे पैर के पास बैठकर अ यंत वन ता से श य क भाँ त बात क है। म अपना ान
तु ह दे ने को तैयार ँ।”
उसके बाद, वहाँ एक लोग को ब त आ चय आ, जब रावण ने मंदोदरी क गोद म
अपना सर रखकर अपने श ु राम को दशन, राजनी त, अथशा , ल लत कला, नृ य,
संगीत, ना एवं शासन कला क बारी कयाँ बता । इस तरह कुछ दे र के लए एक
खलनायक, गु तथा एक नायक, श य बन गया!
रावण क वास कने लगी थी और वह केवल फुसफुसा पा रहा था। आ ख़रकार, वह
बलशाली वीर शांत हो गया। उसक न ावान रानी ने रावण का नज व सर कसकर पकड़ा
आ था और उसक आँख से आँसु क गम बूँद लगातार, रावण के चेहरे पर गर रही
थ।

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राम ने वभीषण को रावण का अं तम सं कार करने को कहा। उसके लए चंदन तथा
व भ न कार क सुगं धत लक ड़य और बू टय क चता तैयार क गई। उसके शरीर को
कृ ण मृग के चम म लपेटा गया और फर उसके कंध पर दही एवं घृत डाला गया। उसके
बाद उसक जाँघ के बीच लकड़ी का खरल फँसाया गया। उसके शव पर व भ न कार के
रेशमी व और मालाएँ डाली ग । फर उसके ऊपर भुना आ अ न बखेरा गया। सबने
उसे उठाकर सुगं धत लकड़ी क चता पर लटाया। वभीषण ने अ यंत आदर के साथ
अपने भाई के पा थव शरीर को अ न द । उसने सं कार से संबं धत सभी अनु ान पूरे कए
तथा दवंगत आ मा को ांज ल अ पत क । उसके बाद, वभीषण ने राम को णाम
कया और कहा क उनक इ छानुसार, सभी सं कार पूण कर दए गए ह।
राम ने इं के रथ को णाम कया तथा मातली को ध यवाद दया और उ ह वापस भेज
दया। उसके बाद, उ ह ने ल मण और सु ीव को कहा क वे वभीषण को नगर के भीतर
ले जाएँ तथा उसका रा या भषेक कर। राम वयं उनके साथ नह गए य क उनके चौदह
वष पूरे नह ए थे। ल मण, वभीषण को अपने साथ लंका ले गए और उसे राज सहासन
पर बैठाकर उसके सर पर त त जल डालकर अ भषेक कया और वभीषण को लंका
का राजा घो षत कर दया। नए राजा का अ भवादन करने के लए वहाँ ब त कम लोग रह
गए थे। कसी समय घनी आबाद वाली एवं समृ शाली लंका, उजाड़ व सुनसान नगरी म
प रव तत हो गई थी। यहाँ तक क अंत म, राजसी वैभव भी उस महान रा य से वमुख हो
गया।
राम और रावण का महान यु चौथे दन, अमाव या क थम रा के उपरांत, ी म
अयनांत के नकट समा त हो गया, जस समय सूय दशा बदलकर उ र क ओर अपनी
या ा आरंभ करता है।

सब पर राम तप वी राजा।
तन के काज सकल तुम साजा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

उ माय नमः

अ याय 27

उ म
अ न परी ा

सीता ने अ न म वेश कया,


तो वह चंदन के समान शीतल थी,
वे अपने भु का यान कर रही थ ,
कोसलराज क जय हो, जनके चरण क
भगवान शव सदा वंदना करते ह,
मेरी उन राम के त स ची न ा है।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

हालाँ क, राम के मन म सबसे पहले सीता का वचार आया होगा, कतु उ ह ने उसे नयं त
कर लया और अपने दय के सबसे य वषय पर यान दे ने से पहले, उ ह ने रावण क
अं ये तथा वभीषण के रा या भषेक एवं लंकावा सय के हत के काय पूरे कए।
राम ने हनुमान को कहा क वे सीता के पास जाकर उनका हाल पता कर तथा उ ह
शुभ समाचार सुनाएँ। हनुमान यह जानकर ब त स न ए क उ ह चकर काय करने
को मला था।
वे पलक झपकते अशोक वा टका म जा प ँचे। उनके तन के सफ़ेद बाल हष से लहरा
रहे थे। उ ह ने सीता को रा सय से गरे ए उदास मु ा म बैठे दे खा य क कसी ने उ ह
अब तक यह समाचार नह दया था।
हनुमान ने हाथ जोड़कर सीता को णाम कया और उ ह शुभ समाचार सुनाया।
“दे वी! आप स न हो जाइए। राम और ल मण पूरी तरह कुशल व स न ह तथा मुझे
आपके पास सुभ संदेश सुनाने के लए भेजा है। आपके प त ने दशानन का वध कर दया
है! लंका का शासन अब वभीषण के पास है, जो शी ही आपके पास आएँगे।” यह
सुनकर सीता इतनी स न हो ग क उनके मुख से कोई श द नह नकला।
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अंत म उ ह ने काँपते वर म कहा, “ य वानर, मुझे नह पता क म यह शुभ समाचार
दे ने के लए कस तरह तु हारा आभार क ँ ! सोना, चाँद , मू यवान र न और न ही
तीन लोक का रा य इस संदेश के बराबर हो सकता है, जो तुमने मुझे दया है।”
“माते! आपके ये नेहपूण वचन ही मेरे लए सबसे मू यवान उपहार ह। आपके इन
श द से मुझे सम त दे वी-दे वता का आशीवाद ा त हो गया है।”
सीता ने अ तशय भावुकता म हनुमान से कहा, “वायुपु ! तुम सदै व वीरता, बल, बु ,
ओजस, साहस, कौशल, धैय, ढ़ता, थरता और वन ता के क माने जाओगे। तु हारे
भीतर ये सब तथा अनेक और शानदार गुण व मान रहगे!”
सीता के सामने मृ ल भाव से खड़े हनुमान ने कहा, “दे वी! मेरा व वास क जए, मने
आपक दयनीय थ त के वषय म वचार करते ए असं य रात जागते ए काट ह और
यह मेरा सौभा य है क आपको यह शुभ समाचार दे ने के लए हमारे वामी ने मुझे चुना है।
माता! य द आप मुझे अनुम त द तो म इन रा सय को अभी मार डालता ँ जो आपको
इतने समय से परेशान कर रही ह।”
सीता ने मधुर वर म कहा, “ वामी के आदे श क अनुपालना के लए सेवक को दोष
य दया जाए? इसके अ त र , यह मेरा भा य था क मुझे यह क भोगना था। मने
अव य ही, पूवज म म कोई पाप कया होगा, जसका दं ड मुझे इस प म मला है। येक
को पूव म कए कम का फल भोगना पड़ता है। इस लए, य वानर, इ ह छोड़ दो।
सभी से भूल होती है। ग़लती करना मनु य का वभाव है। सदाचारी लोग बुराई के बदले
बुराई नह करते। यह मेरा क है क म इ ह, इनके आचरण के लए मा कर ँ , य क
इ ह ने वह सब कुछ अपने वामी के कहने पर कया था।”
हनुमान ने सीता को णाम कया और रा सय को छोड़ दया। उ ह ने सीता से राम
के लए कोई संदेश दे ने को कहा। सीता ने कहा क वे जाकर राम से कह क उनके मन म
राम से मलने के लए ती इ छा है। हनुमान ने फर से उ ह णाम कया और कहा, “आप
न चय ही रघुवंशी राम को शी दे ख सकगी।”
हनुमान ने हवा म छलाँग लगाई और राम के पास लौटकर कहा, “ म थला क
राजकुमारी को आपक वजय का समाचार मल गया है। आपका नाम सुनते ही वे अ यंत
स न हो ग और उनक आँख म आँसू आ गए। वे ख से बल व पीली पड़ गई ह और
उ ह ने मुझसे आपको यह संदेश दे ने के लए कहा है क वे आपसे मलने क इ छु क ह।
आप कृपया उनके पास चले जाइए।”
यह सुनकर राम क आँख म आँसू उमड़ आए कतु वे कुछ पल के लए वचार म डू ब
गए। अंत म उ ह ने वभीषण से कहा क जब सीता शुभ नान कर ल एवं सुंदर व ा द
पहन ल, उसके बाद वह जाकर सीता को ले आए।
वभीषण ने अशोक वा टका म जाकर सीता को राम का संदेश दे दया। सीता ने उ र
दया, “म इस ण अपने प त से मलना चाहती ँ और मुझे नान करने तथा सजने-सँवरने
म समय न नह करना है।”

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वभीषण ने सीता से कहा क राम के आदे श का पालन करना उसका क है तथा
वह सीता को उस थ त म राम के पास नह ले जा सकता। सीता ने अपनी अधीरता को
नयं त कया और फर वभीषण क प नी को अनुम त दे द क वह उ ह नान करवा दे
तथा चंदन का लेप लगाकर, मू यवान व पहना दे । उ ह ने पीले रंग के रेशमी व पहने
तथा सर पर ताजे व सुगं धत फूल का मुकुट धारण कया। वे ल मी से भी अ धक सुंदर
लग रही थ । इसके बाद, वे अ यंत सजीली पालक म बैठ ग , जो उनके लए पहले से
तैयार खड़ी थी। वे राम के सम आ ग । राम तब भी वचार म डू बे ए थे और उनक
धरती पर टक ई थी।
सभी वानर और रा स पालक के चार ओर उस सुंदरी क झलक पाने को एक हो
गए, जसके लए इतना क उठाया गया था और रा स के पूरे कुल का वनाश कर दया
गया! वभीषण ने उ ह पीछे धकेलकर वहाँ से हटने के लए कहा य क राम अपनी प नी
से अकेले म मलना चाहते थे और वैसे भी आम लोग के लए राजप रवार क ी को
दे खना अनु चत था।
राम ने वभीषण को झड़कते ए कहा, “ ी क र ा, कसी द वार या पद से नह ,
अ पतु उसक शु चता व मयादा से होती है। वे जहाँ खड़े ह, उ ह वहाँ खड़ा रहने दो और
य द वे सीता को दे खना चाह, तो भी कोई बात नह है। उ ह वदे ह क राजकुमारी के स दय
को मन-भर के दे ख लेने दो। इसके अ त र , सीता को दे खना उनका अ धकार है, ज ह ने
सीता के लए यु कया है और अपने ाण गँवाए ह। सीता से कहो, वे पालक से बाहर
नकलकर अकेले मेरे पास आएँ।”
ल मण, हनुमान और वभीषण सभी को राम के व च वहार पर आ चय हो रहा
था। वभीषण, सीता को लेकर आए। सीता ने राम से पदा करने के उ े य से अपना चेहरा
ढँ का आ था। जस कार चकोर प ी चं मा से टपकती अमृत क बूँद का पान करता है,
उसी कार सीता ने अपना घूँघट हटाया और अपने यतम के चेहरे को ेमपूवक दे खने
लग । उ ह ने राम का चेहरा कई माह से नह दे खा था और उ ह दे खते ही, सीता को लगा
क उनके अंग का खोया बल वापस आ गया तथा चेहरे क आभा लौट आई।
राम ने मुँह फेरकर अ वाभा वक प से, कठोर वर म कहा, “म जस काय को पूरा
करने नकला था, वह हो गया है। मने अपने स मान पर लगा कलंक मटा दया है और
इ वाकु कुल क क त को सुर त रखा है। मने अपने अपमान को भी धो दया है और
जसने तु हारा अपहरण कया था, उसे भी मार दया है। म हनुमान को, जसने समु पार
छलाँग लगाकर लंका को व त कया तथा वभीषण को भी, जो अपने भाई को यागकर
मेरी शरण म आया था, पुर कार दे चुका ँ। म सु ीव तथा अ य सभी वानर का, ज ह ने
इस काय म मेरी सहायता क , आभार कर चुका ँ।”
सीता एक वष से इस ण क ती ा कर रही थ , जब उनके प त उ ह मु करवाकर
उ ह अपनी बाँह म लगे और दलासा दगे तथा प त से मलकर सीता ने जो पीड़ा व ख
सहा है, उसे वे भूल जाएँगी। उ ह समझ नह आया क राम, ज ह ने पहले कभी कठोर
वर म बात नह क , इस समय ऐसी वाणी का योग य कर रहे थे तथा वे उनसे न
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मलकार इन सब घटना का उ लेख य कर रहे थे। सीता ने राम को नेहमयी आँख से
दे खा जो थोड़ी-थोड़ी अ ुपू रत होने लगी थ । राम का दय पीड़ा व ेम से फटा जा रहा
था कतु वे अपने वाभा वक मनोभाव को नयं ण म रखकर उसी तरह कठोर वर म
बोलते रहे।
“यह मत समझना क मने यह यु तु हारे लए लड़ा है। मने यह यु केवल आ म-
स मान व अपने कुल क त ा को बचाने के लए लड़ा है। रावण जैसे भचारी के
नगर म, यारह माह रहने के बाद, या तुम मुझसे इस बात का व वास करने क अपे ा
रखती हो क रावण ने तु हारे साथ बला कार नह कया होगा, जब क तुम इतनी सुंदर व
आकषक हो? उस कामुक रावण ने तुम पर कु डाली और वह तु ह अपनी बाँह म
उठाकर ले गया था। तु हारे बारे म शी ही ये अफ़वाह फैल जाएँगी, इस लए म अब तु ह
वीकार नह कर सकता। जानक ! तुम अपनी इ छा से कह भी जाने के लए वतं हो। म
अब तु ह दे ख नह सकता। क द आँख म, जस कार सूय का काश चुभता है, उसी
कार तु ह दे खने से मुझे पीड़ा हो रही है। मने तु ह मु करके अपना दा य व पूरा कर
दया है और अब मेरे ऊपर कोई ऋण शेष नह है। म उ च कुल का ँ, इस लए तु ह वापस
लेकर जाना मुझे शोभा नह दे ता। या उ च कुल म ज मा कोई पु ष कसी ऐसी ी को
वापस वीकार करेगा, जो यारह माह कसी अ य पु ष के घर म रह चुक हो?”
अपने प त से, जसने आज तक ेमपूण श द के अ त र कुछ नह कहा, ऐसे ू र
वचन सुनकर सीता उस बेल क भाँ त हलने लग , जससे उसका सहारा छ न लया गया
हो। उनक आँख से आँसू गरने लगे और वे मुरझाए फूल-सी दखने लग । इस मा मक
य के सा ी वहाँ खड़े संवेद लोग क उप थ त ने थ त को और भी गंभीर बना दया।
सीता को लगा क उनका दय रावण ारा उनका अपहरण करने पर टू टा था, कतु अब
उ ह यह एहसास आ क इस भयानक व कटु अनुभव के सामने वह पीड़ा कुछ भी नह
थी।
आ ख़रकार, सीता ने लड़खड़ाती आवाज़ म कहा, “आप मुझसे इतने कठोर श द म
बात य कर रहे ह? इस तरह क भाषा एक सामा य , कसी वे या से करता है और
न तो आप, साधारण ह और न ही म वे या ँ। य द आपको मुझ पर संदेह था तो
आप मुझे ढूँ ढ़ने ही य आए और आपने हनुमान को अपनी मु का दे कर य भेजा?
आपने हनुमान से यह य नह कहा क आपको मेरी अब कोई आव यकता नह है?
आपने समु पार करने और रावण को मारने का क य उठाया? आपने यहाँ आकर
अपना और अपने सा थय का जीवन संकट म डाला। आप यह क उठाने से बच जाते।
मने अपना जीवन वह उसी समय समा त कर लया होता और फर, मुझे आपके ये कठोर
वचन भी नह सुनने पड़ते। य द मेरा हरण करते समय उस पापी ने मुझे छु आ, तो वह भी
सफ़ इस लए क उस समय म बल व असहाय थी और अपनी र ा नह कर सकती थी।
उसके लए आप मुझे दोष य दे रहे ह? ऐसा लगता है, इतने वष मेरे साथ रहने के बाद भी
आप मुझे समझ नह पाए। मेरा ेम, मेरे वचार, एक पल के लए भी आपसे वमुख नह
ए। जनक क पु ी होने के कारण मेरा नाम जानक अव य है, कतु म वा तव म, पृ वी
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क संतान सीता ँ। मेरे वषय म इस तरह के न कष पर प ँचने से पूव या आपको मेरे
उ च कुल का यान नह आया? या आपके लए मेरे ेम और सती व का कोई अथ नह
है? य द ऐसा है, तो आप यहाँ य आए ह? आपको मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे ना चा हए
था। अब सफ़ एक ही थान है, जहाँ म जाना चाहती ँ और वह थान है अ न!”
सीता ने ल मण को दे खकर कहा, “ल मण, मेरे लए एक चता तैयार करो। मुझे जो
पीड़ा भीतर से जला रही है, उसका अब केवल यही एकमा उपचार है। मुझ पर म या
आरोप लगाया गया है, इस लए म अब और जीना नह चाहती। मेरे प त ने इतने लोग के
सामने मेरा याग कया है और मुझे वे छा से कह भी जाने के लए कह दया है। अब मेरे
जाने के लए सफ़ एक ही थान शेष है और वह यमलोक है!” सीता इतनी भावुक हो ग
क उनका गला ँ ध गया और वे इसके आगे कुछ न कह सक ।
ल मण ने ग़ से से राम क ओर दे खा, जो मू त के समान अपना सर झुकाए खड़े थे।
कसी म राम से बात या तक करने का साहस नह था। राम ने हाथ से संकेत कया तो
ल मण अ न छा से चता तैयार करने लगे।
राम का चेहरा भावशू य था। उनक भयानक ढं ग से यो रयाँ चढ़ थ । सीता ने
उनक तीन बार प र मा क और फर धीरे-धीरे जलती ई चता क ओर चल पड़ । वे
उसके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो ग और बोल , “य द यह स य है क मेरे मन म अपने
प त के अ त र अ य कसी का वचार नह आया तो येक घटना क सा ी यह प व
अ न, मेरी र ा करे। य द मेरी न ा म, स ण के भंडार मेरे प त राम के त मन, वचन
और कम से कोई कमी नह आई तो अ नदे व मेरी र ा कर। य द सूयदे व, चं दे व तथा मेरी
माता पृ वी और चार दशा के द पाल जानते ह क मेरा च र न कलंक है, तो
अ नदे व मेरी र ा कर।”
यह कहकर, सीता ने अ न क तीन बार प र मा क और फर वे वहाँ उप थत
भय त दशक के सामने अ न के बीच म कूद ग । वहाँ खड़े सभी वानर और रा स ने
वरोध म शोर मचाया। पीले रेशमी व तथा वणाभूषण से सजी सीता, अ न के म य
पघलते वण के समान तीत हो रही थ । राम ने अपना मुँह फेर लया य क उनसे वह
दयनीय य दे खना सहन नह आ। उनका दय वद ण हो रहा था तथा आँख से नरंतर
आँसू बह रहे थे, कतु उ ह ने सीता को, जो उ ह अपने जीवन से भी अ धक य थ , बचाने
के लए कुछ नह कया।
उसी समय, हवा म दो रथ कट ए और गंधव ने सुगं धत फूल क वषा क । ा
नीचे आए और उ ह ने राम से कहा, “सीता के इस तरह आ म-दाह करने पर भी, आप इस
तरह चुपचाप कैसे खड़े रह सकते ह? या आपको पता नह क आप आ दयुगीन पु ष
नारायण ह और सीता, आपक सनातन सं गनी ल मी ह? आपका ज म रावण को मारने
तथा पृ वी पर शां त था पत करने के लए आ था। आपका काय पूण हो गया है और धम
क थापना हो गई है।”
ा ने अपनी बात समा त ही क थी क उस जलती चता म से, सीता को हाथ म
उठाए अ नदे व कट ए। सीता ने लाल व पहने ए थे और वे सुबह के सूय क तरह
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काशमान लग रही थ । यहाँ तक क उनक माला भी आग म नह जली थी।
अ नदे व ने राम को सीता को स पते ए कहा, “ये आपक प नी और वदे ह क
राजकुमारी ह जो पूरी तरह न कलंक ह। इनक न ा म मन, वचन अथवा से कभी
कमी नह ई है। मेरी बात का व वास क जए और य म े अपनी प नी, सीता को
वीकार क जए!”
अ नदे व अभी बोल ही रहे थे क तभी दे वराज इं , सीता के नकट कट हो गए।
उ ह ने सतार से सजा धुँधलके का पतला शाला ओढ़ रखा था। वे नंगे पैर, धरती से एक
अंगुल ऊपर खड़े थे। उनके शरीर क कोई छाया नह थी और वे अपने कृ ण वण वाले ने
को कभी नह झपकाते थे।
इं ने राम को णाम कया और कहा, “हे नारायण! आप आ दयुगीन पु ष ह।
आपका ज म राम के प म पृ वी को रावण के अ याचार से बचाने के लए आ था। सीता
आपक द सं गनी, ल मी ह। आप दोन कभी अलग नह हो सकते, इस लए इ ह
वीकार कर अपने साथ अपने दे श ले जाइए और शां तपूवक रा य क जए।”
इं ने राम से वरदान माँगने को कहा य क उ ह ने रावण को, जो ब त समय से इं के
माग का शूल था, मारकर ब त बड़ा उपकार कया था। राम ने तुरंत उन सब वानर के ाण
वापस माँग लए ज ह ने उनक सहायता हेतु अपने ाण गँवाए थे।
“इन सब लंबी पूँछ वाले वानर तथा भालु के घाव भर जाएँ और ये फर से, जीवन
एवं उ साह से भरकर खड़े हो जाएँ। इन वानर के नवास- थान पर चुर मा ा म फल एवं
फूल उग जाएँ!”
इं को यह ाथना वीकार करने म ब त स नता ई तथा सभी घायल व मृत पड़े
वानर एवं भालू उठ खड़े ए, मानो गहरी न द से जागे ह ।
राम ने अपनी प नी का हाथ, अपने हाथ म लया तो उनक आँख से आँसू बहने लगे।
“म जानता ँ क मेरी प नी नमल बफ़ क भाँ त शु व न कलंक है। मने इसके ऊपर
एक ण के लए भी संदेह नह कया, कतु य द सीता ने यह अ न-परी ा न द होती तो
लोग इनके और मेरे वषय म भला-बुरा कहते रहते। वे कहते क दशरथ का पु , अपनी
प नी के ेम म इतना मु ध हो गया क उसने सीता को, इतने समय तक पर-पु ष के नवास
पर रहने के बाद भी, वीकार कर लया। मेरे साथ सीता, उसी तरह रहती है, जस तरह सूय
के साथ काश रहता है। जस कार कोई स पु ष अपना यश नह याग सकता, उसी
तरह म सीता को नह याग सकता। य द मने कठोर वचन कहे और इ ह आ म-दाह करते
ए चुपचाप खड़ा दे खता रहा, तो यह केवल सबके सामने उ ह न कलंक स करने के
लए था।”
ऐसा कहकर, राम ने सीता का चेहरा ऊपर उठाया और उनक मनोहर आँख म दे खा,
जैसा क वे इतने समय से करने के इ छु क थे। जब सीता ने राम को उलाहना-भरी,
अ ुपू रत से दे खा तो राम ने उ ह धीरे-से झड़का, जसे कोई नह सुन सका। “हे पृ वी
क या! मेरी यारी सीता! तुमने एक ण के लए भी यह कैसे सोच लया क तु हारे ऊपर
संदेह कर सकता ँ? तु ह या लगता है क म, तु हारे मनोहर प क झलक पाने के लए
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नह , अ पतु इस दे श के एक छोर से सरे छोर तक पैदल घूमने नकला ँ? तु ह या लगता
है, य द मुझे तुमसे मलने क इ छा न होती, तो म अपना जीवन संकट म डालकर
रा सराज रावण के ोध का सामना य करता? ये! मने तु ह याग दे ने क बात
इस लए कही ता क कोई सरा कभी मेरी प नी पर कोई आरोप न लगा सके।”
यह ेमपूण वचन सुनकर, सीता को थोड़ी शां त मली और उ ह ने राम को ेम- व ल
ने से दे खा। वे दोन ब त दे र तक जगत से अंजान, एक- सरे क आँख म दे खते रहे।
वहाँ उप थत सभी लोग, राम व सीता को दे खकर ब त स न ए।
इसके बाद, वहाँ भगवान शव कट ए तथा उ ह ने भी राम को कहा क संसार को
रावण के अ याचार से मु दलवाने के लए पूरा संसार राम का ऋणी है। उ ह ने राम को
अपने जीवन म, सफलतापूवक कोसल दे श का राजा बनाने का आशीवाद दया।
राम, सीता और ल मण जस समय वहाँ खड़े थे, तभी उ ह ने अपने पता दशरथ को
दे खा, ज ह एक हवाई वमान म वहाँ लाया गया था ता क उन सभी का पुन मलन हो सके।
गंधव ने राम से कहा क अब वे तुरंत अयो या लौट जाएँ य क उनके चौदह वष के
वनवास क अव ध पूण होने वाली है तथा भरत, अ यंत उ सुकता से उनके आगमन क
ती ा कर रहे ह।
वानर एवं रा स के बीच वैर समा त करने के उ े य से हनुमान ने यह सुझाव दया
क सु ीव के पु का ववाह, वभीषण क पु ी से कर दया जाए। सभी लोग इस वचार से
सहमत थे और उन दोन का ववाह हो गया। राम और सीता ने दोन को आशीवाद दया।

अ स नव न ध के दाता।
अस बर द न जानक माता।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

सह वदनाय नमः

अ याय 28

सह वदन
अयो या वापसी

हे सु ीव, सुनो! यह नगरी इतनी प व है


तथा यह दे श इतना सुंदर है क य प,
लोग वैकुं ठ को सबसे सुंदर थान मानते ह,
वह भी मुझे अयो या के समान य नह है।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

वभीषण हाथ जोड़कर राम के पास आया और उनसे लंका नगरी म वेश करने क ाथना
करने लगा, जहाँ उनके राजसी वागत क सब तैया रयाँ पूण हो गई थ ।
“ भु! मने अनेक कार के नान एवं तैल व सुगं धत तैयार कए ह, जनसे
आपका ताज़ा महसूस करगे। व भ न कार के व व मालाएँ भी रखी ई ह। वापस जाने
से पहले, कृपया आप ये सब पहन ली जए।”
राम मु कराए और बोले, “तुम ये सब व तुएँ सु ीव को दे दो य क मेरा मन तो अपने
य भाई भरत म रमा आ है। अयो या वापस लौटने का माग ब त लंबा व क ठन है।
चौदह वष भी समा त होने वाले ह और भरत ने यह ण कया है क य द म नघा रत समय
तक वापस नह लौटा तो वह अपना जीवन समा त कर लेगा।”
वभीषण ने कहा, “ वामी! म एक ही दन म अयो या प ँचने म आपक सहायता
क ँ गा। मेरे भाई रावण ने अपने भाई कुबेर से, ज़बरद ती उसका पु पक वमान छ न लया
था। वह अ यंत अनमोल है। आप कुछ दन मेरा स कार वीकार क जए और फर आप
उस वमान से अयो या लौट सकते ह।”
राम उसक न ा से भावुक हो उठे और बोले, “ वभीषण, म जानता ँ क तु हारे मन
म मेरे लए ब त नेह है, कतु अयो या लौटकर अपने भाइय , माता तथा रा य के लोग
से मलना चाहता ँ जो मेरे आगमन क उ सुकता से ती ा कर रहे ह। तुम चाहो तो,

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हनुमान को रावण के महल क आ चयजनक व तु को दखाने भीतर ले जा सकते हो
और हम लोग इस बीच यु के बाद थोड़ा व ाम कर लगे।” यह कहकर राम ने सीता का
हाथ थामा और उ ह लेकर समु -तट पर चले गए। वहाँ नकट बैठकर सीता ने राम को
लंका म भोगी पीड़ा के वषय म व तार से बताया।
हनुमान लंका नगरी के रह य जानने को ब त उ सुक थे। वभीषण उ ह सुनसान पड़ी
सड़क से राजमहल ले गया। वह उ ह एक गु त ार से भंडारगृह म ले गया। उसके ार पर
व भ न कार क व च व पेचीदा बनावट वाले एक हज़ार एक ताले लगे ए थे। उनक
चाबी के छ अलग-अलग माप के थे, कतु वभीषण ने उन सबको एक ही चाबी से खोल
दया! वह ार एक वशाल क म खुलता था, जसके भीतर काँच के गुंबद म रखे द पक
जल रहे थे। हनुमान ने दे खा क वह क , कूट पवत के अंतरतम थान को खोदकर
बनाया गया था। उसक द वार म अनेक खाने बने ए थे जनके ऊपर उ कृ सन, अ त
सुंदर रेशम तथा बाघ, त ए, सह और भे ड़य क खाल रखी ई थ । वहाँ प थर क बनी
अनेक पु तक और गु त ख़ज़ाने का मान च भी था। इ क अ यु म शी शयाँ और सोने व
चाँद के आभूषण के ढे र लगे ए थे।
वभीषण ने कहा, “यह हमारे कुल का ाचीन व अनमोल ख़ज़ाना है। इस तहख़ाने म
आरं भक समय से एक ाचीन व ा रखी ई है। यह तहख़ाना दे वता के श पकार
व वकमा ने बनाया था। रा स के पास ऐसी ब त-सी व ाएँ है ज ह समा त नह होने
दया जा सकता। आप, पहले और अं तम बाहरी ाणी ह जसने यह सब दे खा है।”
हनुमान ने उ सुकता से क के चार ओर दे खा और पूछा, “आपने मुझ पर यह अनु ह
य कया है?”
वभीषण ने उ र दया, “वह इस लए य क आप ही मेरे थम व एकमा वजातीय
म ह। इसके अ त र , आप बु मान और न ावान ह। आप येक काय को पूरे मन से
करते ह और आपके मन म कोई वाथ नह है। म आपको म प म पाकर ब त स न
ँ। मुझे पता है क आपका दय केवल राम म रमता है और आप उनके साथ चले जाएँगे
कतु यान र खए क आपका यहाँ सदै व वागत है और आप, जब चाह, यहाँ आ सकते
ह।”
हनुमान ने वभीषण को ध यवाद दया और क पर फर से ताला लगाकर वापस लौट
आए जहाँ राम, सीता तथा ल मण अ य वीर वानर और भालु के साथ उनक ती ा
कर रहे थे।
राम ने वभीषण से वह वमान लाने को कहा जो उ ह एक ही दन म अयो या प ँचा
सकता था य क वे अपने भाइय और माता से मलने के लए बेचैन थे। वभीषण लंका
गया और वहाँ से पु पक वमान लेकर लौट आया।
वह फूल से सजा एक शानदार रथ था जसे वेत हंस ख चते थे। सोने व चाँद से
दमकता वह रथ, एक छोटे -से नगर के समान था जसम हर कार और मौसम के फूल
खलते थे। उसके ढाँचे के ऊपर इं धनुष से रंगीन गाँठ बनी ई थ । उसके भीतर
ी मकालीन घर और सरोवर तथा भोजनशालाएँ थ । उसम बैठने के आसन, शै या और
ोई ी े ँ े ो ी े
रसोईघर भी थे जहाँ हर कार के भोजन क व था थी। वह रथ मन क ग त से चलता
था और उसे रावण ने बलपूवक अपने भाई कुबेर से छ न लया था। वह रथ हज़ार प हय
पर दौड़ता आ बाहर आ गया तथा उसके ऊपर सभी वज फहरा रहे थे और वायु से हलने
वाली घं टयाँ बज रही थ । वभीषण ने उसके सामने आकर राम को णाम कया और
उनसे रथ पर सवार होने का आ ह कया।
राम, ल मण और सीता बना कुछ और बात कए रथ पर सवार हो गए। य प पु पक
वमान महल के समान वशाल था, तथा प राम अपनी प नी सीता के नकट बैठे। उ ह ने
हनुमान, वभीषण, सु ीव और अ य सभी वानर को अ ुपू रत से दे खा और बोले,
“मुझे नह पता क म आपके नेह और न ा के लए आपका कस तरह आभार
क ँ । सु ीव! तुम कृपया अपनी सेना लेकर वापस क कंधा लौट जाना। मेरा आशीवाद
सदा तु हारे साथ है। मेरे य पु अंगद, म तु हारे साहस को नह भूल सकता। हनुमान, म
तु हारे लए या क ँ! तु हारे कारण ही, हम दोन को जीवन मला। अब कृपया हम अपने
नगर लौटने क अनुम त दो। मने इतना लंबा वनवास काटा है ले कन अब मेरा दय लौटने
के लए ाकुल है।”
सु ीव ने राम को णाम कया और कहा, “ वामी, आप कृपया हम अपने साथ
अयो या चलने क अनुम त दे द जए। हम वचन दे ते ह क हम वहाँ कसी कार का
व वंस नह मचाएँगे, जैसा क हम वाभा वक तौर पर करते ह। हम आपका रा या भषेक
दे खने के लए उ सुक ह।”
राम को उनके साथ चलने क आतुरता तथा वहाँ शां तपूवक रहने के उनके वचन को
सुनकर हँसी आ गई और वे बोले, “मुझे इस बात से ब त स नता होगी क जन लोग ने
मेरी सबसे अ धक सहायता क है, वे मेरे पैतृक नगर मेरे साथ चल। सु ीव, तुम अपने
सा थय से कहो क वे रथ म बैठ जाएँ।”
वभीषण तथा अ य रा स ने भी यही इ छा क । राम ने उनको भी सहष
अनुम त दे द और वे सब पु पक पर सवार हो गए, तथा उसके बाद भी उसम इतनी जगह
थी क एक और सेना आ सकती थी!
राम का सम त पशु-प य के त ेम उनका गुण था। उनके जीवन-वणन के पृ म
वानर, भालू और प य का उ लेख मलता रहता है मानो वह उनके लए वाभा वक बात
थी। अपने पशु व प ी म के त नेह तथा स मान उनके च र क वल ण वशेषता
है।
राम ने हनुमान से पूछा क उ ह अपने अनमोल सेवा के बदले या पुर कार चा हए।
हनुमान ने उ र दया, “ भु! आप मुझे शेष जीवन अपनी सेवा करने क अनुम त दे
द जए!” राम ने मु कराते ए उनक बात मान ली।
चार सफ़ेद हंस ने उस द वमान को सहजता से हवा म उठा लया। वह जब ऊपर
उठा तो आकाश से पु प-वषा ई। वानर ख़ुशी से चीख़ने लगे और वमान के कनारे से नीचे
धरती को झाँकने लगे, जो तेज़ी से पीछे छू टती जा रही थी।

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राम ने सीता को माग म पड़ने वाले अनेक रोचक थल दखाए जहाँ से वे अपनी लंबी
और पीड़ादायक खोज करते ए लंका प ँचे थे। सीता वह सब दे खकर ब त स न ।
सबसे पहले, उ ह ने सीता को रणभू म दखाई जहाँ रावण का वध आ था। उसके बाद,
उ ह ने सीता को नल ारा बनाया वह शानदार सेतु दखाया जसके ऊपर से उ ह ने समु
पार कया था। वे बीच-बीच म इस बात को दोहराते रहे क यह सब सीता के लए कया
गया था मानो वे पहले बोले गए अपने कठोर वचन क भरपाई कर रहे ह ।
“ वदे ह राजकुमारी! इस भड़कते, उफनते सागर को दे खो जसम व णु के अ धकार
े म पड़ने वाले सब कार के सरीसृप और मछ लयाँ रहते ह। अब हम सागर-तट पर
उतरगे ता क तुम उस शव मं दर म पूजा कर सको जो मने था पत कया था।”
वह वमान, धीरे-से सेतु के सरे छोर पर उतर गया ता क राम और सीता उस मं दर म
पूजा कर सक, जो उ ह ने और हनुमान ने वहाँ था पत कया था। उस समय, उ ह ने
भगवान ने को यह वचन दया था क वे अपनी प नी सीता के साथ लौटकर ा-सुमन
अ पत करगे।
“यहाँ, इसी थान पर महादे व भगवान शव ने मुझ पर कृपा क थी और रामे वर (राम
के ई वर) के प म मेरी पूजा-अचना वीकार क थी। यह थान, जहाँ सेतु बनाया गया
था, सेतुबंध के नाम से स होगा और तीन लोक म पू य होगा। इस थान को अ यंत
प व माना जाएगा तथा यहाँ आने से सभी पाप का नाश होगा। इसी थान पर मेरी पहली
बार वभीषण से भट ई थी।”
वे सब एक बार फर वमान म बैठे। उ ह ने वह से संकेत ारा सीता को सु ीव क
क कंधा नगरी दखाई गई। सीता ने वमान को नीचे उतारने के लए कहा ता क वे सु ीव
क प नय तारा एवं मी को तथा अ य वानर क प नय को भी साथ ले जा सक।
वमान नीचे उतरा और सभी याँ भी सहष उस समूह म स म लत हो ग । बाद म,
राम ने ऋ यमूक पवत दखाया, जहाँ उनक हनुमान से पहली बार भट ई थी।
“वह कमल-पु प से भरा, पंपा सरोवर है जहाँ मुझे तु हारी ब त याद आती थी। यह
हम महान संत शबरी से मले थे।”
“दे खो सीता! वह पंचवट म हमारा आ म है, जहाँ से तु हारा अपहरण आ था। वह
हमारी कु टया है, जो ल मण ने हमारे लए गोदावरी नद के नकट प य से बनाई थी।
तु हारे अपहरण के तुरंत बाद, हमने यह थान छोड़ दया था य क तु हारे बना वहाँ रहना
असहनीय था।” यह कहकर राम कुछ पल के लए शांत हो गए और बीते ख को मरण
करने लगे। सीता भी राम के कंधे पर अपना सर रखकर रोने लग ।
“यह च कूट का मनोहर वन है, जहाँ हमने सुखद समय बताया और जहाँ भरत हमसे
मलने आया था। अब हम भर ाज मु न के आ म प ँच गए ह, जहाँ गंगा, यमुना और
सर वती का प व संगम होता है।”
राम ने पु पक वमान से नीचे उतरने क ाथना क । भर ाज मु न, राम व सीता से
मलकर ब त स न ए। राम को यह सुनकर ब त ख़ुशी ई क अयो या म सब कुशल-
मंगल है। मु न ने उ ह बताया क उ ह अपनी द श य के बल पर सीता के हरण तथा
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उनके सम त ख क और रावण के वध क पूण जानकारी थी। भर ाज ने राम से अनुरोध
कया क वे उस दन वह आ म म ठहर तथा अगले दन सुबह चले जाएँ। राम ने हनुमान
से यह बात कही।
“म ऋ षवर का आ ह अ वीकार नह कर सकता, इस लए तुम नंद ाम जाकर भरत
को सारा समाचार बता दो और यह भी कहना क म कल सुबह अयो या प ँच जाऊँगा।
य द तु ह भरत का चेहरा दे खकर ज़रा-सा भी ऐसा आभास हो क उसे मेरे आगमन क बात
से हताशा हो रही है अथवा वह अयो या का रा य अपने पास रखने का इ छु क है, तो तुरंत
लौटकर मुझे बताना। म उसके माग म नह आऊँगा। सव े भी, कभी न कभी, सुख
व वैभव के लोभन म आ जाता है।”
अयो या जाते समय, हनुमान एक क़बीले के मु खया, गु के पास के, जसने राम
को वन जाते समय गंगा पार करवाने म सहायता क थी। फर वे उड़कर नंद ाम प ँच गए
और उ ह ने ऊपर से भरत को दे खा। भरत के बाल जटा प म सर पर बँघे ए थे और
उनक काली लंबी दाढ़ उग आई थी। उ ह ने केवल व कल व कृ ण मृग के चम-व पहने
थे। वे अ यंत बल हो गए थे य क पछले चौदह वष से वह अपने भाई राम क तरह
केवल कंद मूल व फल पर जी वत थे। उ ह ने अपने भाई के लौटने तक रा य क सुर ा का
ण लया था तथा उस काय को अपनी मतानुसार अ छे ढं ग से नभाया था। वे अयो या
से बाहर थत नंद ाम नाम के एक छोटे -से गाँव से रा य का काय चलाते थे। उ ह ने राम
क पा काएँ सहासन पर रखी ई थ और उ ह से आदे श पाकर वह सब काय करते थे। वे
वयं को केवल राजा का त न ध मानते थे। वे सफ़ इसी उ े य के लए जी वत थे।
वा तव म वे कसी ष जैसे दखाई पड़ते थे, जो आँख आधी मूँदकर, गहन यान म लीन
बैठे रहते थे। उनके ह ठ नरंतर “राम, राम!” जपते थे। उनक थ त को दे खकर मा त
को ब त स नता ई। हनुमान ने ा ण के वेश बनाया और वन भाव से भरत के पास
प ँचे य क उ ह पता था क वे अ यंत े के सम खड़े थे, जो वयं धम का प
था, जसने अपनी इं य पर संयम पा लया था और जसे भौ तक सुख क कोई इ छा नह
थी तथा जसके मन म केवल राम का ही वचार समाया था!
हनुमान ने भरत का यान आकृ करने के लए ज़ोर से राम का नाम पुकारा। भरत ने
तुरंत अपनी आँख खोल और हनुमान क ओर आ चय से दे खा।
हनुमान बोले, “राजकुमार! म आपके पास आपके भाई राम का समाचार लाया ँ,
जनके लए आपने यह प धारण कया है और जनके लए आपने सम त सुखमय जीवन
के वचार का याग कर दया है, जनका आप अ यथा भोग कर सकते थे। वे, जनके वरह
म आप दन-रात खी होते ह, जनक आप हर समय तु त गाते ह, रघुकुल के गौरव,
सदाचारी लोग पर उपकार करने वाले, संत के उ ारक सुर त लौट आए ह। यु म
अपने श ु को परा त करने के बाद, दे वता ारा यशोगान अ जत के उपरांत भु राम
अपनी प नी सीता और भाई ल मण के साथ वापस आ रहे ह। उ ह ने मुझे आपके पास यह
समाचार दे ने के लए भेजा है क वे शी ही यहाँ प ँचने वाले ह।”

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भरत क परी ा लेने के उ े य से हनुमान ने कहा, “परंतु, आपको यह सुझाव दे ना मेरा
कत है। आपक माता ने इतनी क ठनाई से आपके लए जो रा य ा त कया है, आप
उसे छोड़ य रहे ह? आपको सहासन वीकार करने म ला न का अनुभव य हो रहा
है? इस तरह का याग केवल बल करते ह!”
ा ण क बात सुनकर भरत को ोध आ गया।
“ ा ण, यहाँ से चले जाओ! म भी, अपने भाई क तरह, धम का र क ँ। मुझे
मरना वीकार है, कतु म अपनी मह वाकां ा क वेद पर धम क ब ल नह दे सकता!”
यह सुनकर हनुमान ब त स न ए और उ ह ने भरत के सामने अपना असली प
कट कर दया तथा राम के आगमन का शुभ समाचार भी सुना दया।
भरत को पछले चौदह वष से इसी ण क ती ा थी। यह समाचार सुनकर वे ख़ुशी
से अचेत हो गए। उ ह ने वयं को सँभाला और हनुमान को गले लगाकर बोले, “मुझे नह
पता क आप कौन ह कतु आपने मेरे जीवन का सव े समाचार सुनाया है, इस लए आप
मेरे सबसे अ छे म ह। कई वष पूव, मेरे भाई वन म चले गए थे और म इतने वष से उ ह
के लौटने क ती ा कर रहा ँ। मुझे बताइए क म आपको या पुर कार ँ ?”
भरत का ऐसा समपण दे खकर हनुमान क आँख म आँसू आ गए। उ ह लगता था क
उनसे अ धक राम को कोई ेम नह करता था, कतु अब उ ह पता लगा क ऐसे अनेक लोग
ह, जनके मन म राम के त वैसा ही ेम भाव है। “म वायुपु , वानर हनुमान ँ और
रघुप त का गौरवमयी सेवक ँ।”
यह सुनकर भरत उठे और हनुमान को गले से लगा लया। उनक आँख से नरंतर
आँसू बह रहे थे और उनसे अपनी स नता सँभल नह रही थी।
“हे वानर! अब मुझे याद आया क वह तु ह थे, जो ल मण को बचाने हेतु जा ई बूट
लाते समय यहाँ ठहरे थे। तु हारे दशन मा से ही मेरे सम त ख र हो गए ह य क मने
राम के सखा को गले लगाया है। अब तुम मुझे राम के अनुभव के वषय म बताओ। या
मेरे भाई ने अपने इस दास का कोई उ लेख कया था?”
भरत क वन ता दे खकर हनुमान त ध रह गए।
“ वामी, राम के लए आप उनके अपने जीवन के समान ही य ह। व वास क जए,
यह पूरी तरह स य है!” हनुमान घास पर भरत के साथ बैठ गए और उ ह राम के जीवन से
संबं धत ववरण सुनाने लगे। अंत म, उ ह ने भरत को बताया क राम इस समय भर ाज
मु न के आ म म ह तथा शी ही अयो या प ँच जाएँगे।
भरत ने श ु न एवं अ य सभी को बुलाया और उ ह राम के आगमन के लए नगर म
तैया रयाँ करने को कहा। इतने वष से जो अयो या नगरी नज व थी, वह अचानक सजीव
हो उठ । एक बार फर राजमहल क ाचीर पर पताकाएँ व वज फहराने लगे। संगीतकार
ने फर से अपनी वीणा को साध लया। वृ पर फर से, फूल खल गए। सड़क पर
गुलाब जल और अ त छड़का गया और उ ह शुभ आकृ तय से सजाया गया। एक बार
फर फ़ वारे चलने लगे और जलधाराएँ बहने लग । हवा म फर हँसी और स नता गूँजने
लगी। नगरवा सय ने सुंदर व धारण कए, जो उ ह ने पछले चौदह वष से अलमा रय
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म बंद रखे थे और उ ह पहनकर सड़क पर नकल आए। याँ, सोने क था लय म दही,
ुव घास, ह द का लेप, फल, फूल तथा प व तुलसी क मंज रयाँ और कई शुभ व तुएँ
रखकर सूमह-गान करती ई घूमने लग । पूरा नगर अपने वामी के आगमन क ती ा
करने लगा। नंद ाम से लेकर नगर तक का राजमाग रंगीन चूण और गुलाब जल से बनी
शुभ आकृ तय से सजा दया गया। राम क पा काएँ सजावट वाले सफ़ेद हाथी पर रखी
गई थ और उसके ऊपर े ता के तीक के प म, वेत छ लगा आ था। भरत और
श ु न ने अपनी दाढ़ व बाल कटवाए और राजकुमार वाले व पहन लए।
वधवा रा नयाँ ज द से उठ और उ ह ने भरत से, राम क कुशलता के वषय म पूछा।
भरत ने उ ह बताया क राम शी ही प ँचने वाले ह।
सब कुछ तैयार था और सब लोग उ सुकता से ती ा कर रहे थे। तभी पु पक वमान
नंद ाम प ँच गया, जहाँ भरत ने चौदह वष से न ा क लौ जला रखी थी। याँ घर क
छत से रथ को उतरते ए दे खने के लए एक हो ग । वह रथ कुछ दे र हवा म ही मँडराता
रहा य क उस बीच राम उ सा हत वानर व रा स को व भ न प र चत थान दखा रहे
थे।
“वह, मेरे पता क नगरी और सूयवंश के राजा का ग अयो या है। यह नगर मुझे
व णु के धाम, वैकुंठ से भी अ धक य है। यहाँ के नगरवासी भी मुझे अ यंत य ह। यहाँ
सरयू नद है जसक गोद म अयो या नगरी बसी ई है और वहाँ मेरे य भाई भरत व
श ु न ह जो मुझे नीचे से ही णाम कर रहे ह। वे मेरी माताएँ ह - कौश या, कैकेयी और
सु म ा, जो राजमहल के ाचीर पर खड़ी ह।”
वमान को दे खते ही, हनुमान च लाए, “ ी रामचं आ गए!” नगरवा सय ने उस वर
को और तेज़ कर दया तथा “जय ी राम!” के नारे लगने लगे।
वमान के उतरते ही राम नीचे आ गए और अपना धनुष बाण छोड़कर, अपने गु
व स एवं वामदे व तथा अ य ा ण के चरण म गर पड़े ।
भरत आगे प ँचे और उ ह ने राम को णाम कया। राम ने जब भरत से उनक
कुशलता जाननी चाही तो भरत कुछ नह बोल सके।
“म ख के सागर म डू ब रहा था, कतु अब आपके दशन हो गए तो सब ठ क हो गया
है।”
भाइय का यह भावुक मलन दे खकर वानर क आँख म आँसू आ गए। भरत ने राम
क पा काएँ उठा जनके सहारे उ ह ने चौदह वष शासन कया था और उ ह घीरे-से राम
के प व चरण म पहना दया।
उ ह ने कहा, “म आपका रा य आपको लौटाता ँ, जसक दे खभाल करने का
दा य व मुझे दया गया था। यह मेरे ऊपर भारी बोझ था कतु मने इसक सावधानीपूवक
र ा क है। आज मेरी माता के नाम पर लगा कलंक भी धुल गया है और मने उनके पाप
का ाय चत पूरा कर लया है। अब आप कृपया हम रा या भषेक करने द जो चौदह वष
पूव हो जाना चा हए था।”

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भरत का ातृ- नेह दे खकर सु ीव और वभीषण भावुक हो गए और उ ह अपने
भाइय , बाली तथा रावण के वहार के बारे म सोचकर ब त क आ।
राम ने भरत क बात मान ली और पु पक वमान को उसके असली वामी, कुबेर को
लौटा दया। फूल से सजा वह रथ, धीरे-से हवा म उठा और फर राम क तीन बार प र मा
करने के बाद उ र दशा क ओर चला गया। इसके बाद, राम ने नगर के येक से
भट क जससे वे सब अ यंत स न हो गए। उसके बाद, वे राजमहल गए जहाँ उनक
माताएँ उनक ती ा कर रही थ । उ ह ने राम को अ ुपू रत ने से गले लगा लया।
ल मण क प नी का नाम उ मला था। न ा दे वी ने उसे यह वरदान दया था क वह
अपने प त के वनवासकाल के दौरान चौदह वष तक सोती रहेगी। कहते ह, इस अव ध के
दौरान ल मण बलकुल नह सोए ता क वे रात- दन अपने भाई क सेवा कर सक! जैसे ही
राम और ल मण अयो या क सीमा पर प ँचे, उ मला क न द खुल गई और वह अपने प त
से मलने के लए तैयार हो गई।
राम और ल मण ने भी अपनी जटाएँ कटवा द और व कल व याग दए। तीन
माता ने उ ह परंपरागत नान करवाया। उनके तन से व य जीवन का येक नशान हटा
दया तथा तैल, चंदन और ह द का लेप कया। उसके बाद उ ह ध, दही, म खन व
सुगं धत जल से नान करवाया गया। उ ह पीले रेशमी व पहनाए और मालाएँ एवं
र नज ड़त वणाभूषण पहनने को दए। कौश या, सु म ा और कैकेयी ने जानक को बड़े
ेम से नान करवाया। सीता को मनोहर व पहनाए और उनके तन का येक अंग,
आभूषण से सजा दया। कौश या ने वानर क प नय के केश भी सजाए, जससे उ ह
अ यंत स नता ई।
इसके बाद, सारथी सुमं , राजसी रथ ले आया और राम तथा सीता उसम बैठ गए और
फर उ ह वहाँ से मु य महल ले जाया गया। भरत ने सुमं से अनुम त लेकर रथ क लगाम
वयं सँभाल ली। श ु न ने राम के सर पर वेत छ पकड़ा और ल मण एवं वभीषण
उनके दोन ओर खड़े होकर वेत पंखा झलने लगे। हनुमान उनके चरण म बैठे ए थे।
उनके पीछे सु ीव, हाथी पर सवार होकर आ रहा था। माग के कनारे खड़े नगरवासी ख़ुशी
से मतवाले हो रहे थे और “जय ी राम! जय सीता! जय ल मण!” क जय-जयकार
करते जा रहे थे। वे लोग, ऐसा करते-करते राजमहल आ प ँचे जहाँ अनेक शता दय से
इ वाकु वंश के राजा शासन करते आए थे। राम ने चौदह वष म पहली बार नगर म वेश
कया था। उ ह ने जान-बूझकर इतने वष कसी नगर म वेश करना वीकार नह कया
था। उ ह ने क कंधा और लंका को भी भीतर से नह दे खा था।
राम ने भरत से कहा क वभीषण और सु ीव को अपनी प नय के साथ रहने के लए
राजमहल के सव े क दए जाएँ। भरत ने सु ीव से कहा क वे अपने वानर को भू म
क सम त प व न दय एवं समु से जल लाने के लए कह, जससे राम का रा या भषेक
कया जा सके। उनके इस आदे श का पालन करते ए, पाँच सौ वानर त काल पाँच सौ
व भ न ोत से जल ले आए! मह ष व स , सूयवंश के कुल गु थे और वे ही इस पूरे
काय म के भारी थे।
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उ ह ने राम को सीता संग इ वाकु कुल के र नज ड़त सहासन पर बैठाया। सभी महान
ऋ षय ने धरती के सम त पावन समु व न दय से से लाए गए जल को राम के ऊपर
डाला और साथ ही वै दक ऋचाएँ भी पढ़ । श ु न ने राम के ऊपर वेत छ थामा आ
था। ल मण और भरत उनके दोन ओर खड़े थे। सु ीव तथा वभीषण राजसी चँवर डु ला
रहे थे। हनुमान उनके चरण म बैठे थे तथा उ ह ने अपना पैर राम के पायदान क तरह
योग कया आ था। इसके बाद, व स ने राम को मू यवान र न से जड़ा मुकुट पहनाया,
जो वयं ा ने बनाया था।
वायुदेव ने वयं राम को एक व णम हार भट कया, जसम सोने के सौ कमल तथा
मो तय क अ यंत आकषक माला गुँथी ई थी। इस मनोहर य को दे खने के लए
आकाश म दे वतागण और गंधव भी उप थत थे।
इसके बाद, राम ने यो य ा ण को एक लाख गाय और घोड़े भट कए। उ ह ने सु ीव
को र नज ड़त वणमाला द तथा बाली के पु , अंगद को हीरे व अ य मू यवान र न से बने
सुंदर बाजूबंद का एक जोड़ा दान कया। फर उ ह ने सीता को मो तय का हार दया जो
उ ह समु दे वता व णदे व ने दया था, जसम चं मा क करण जैसी चमक थी। राम ने
सीता को अनेक शानदार व व आभूषण भी दए। सभी वानर तथा रा स को भी
शानदार उपहार दए गए। उ ह ने हनुमान को कोई उपहार नह दया।
सीता ने हनुमान को नेहमयी से दे खा और फर अपने प त क ओर दे खा। राम
समझ गए क सीता के मन म या वचार चल रहा था। उ ह ने सीता से कहा, “जानक ,
तुम अपना मो तय का हार उसे दे ने के लए वतं हो, जससे तुम सबसे अ धक स न हो।
इसे कसी ऐसे को भट करो, जसम महानायक के सभी गुण जैसे न ा, स य,
कौशल, श ाचार, रद शता, बल और बु व मान ह ।”
सीता ने राम ारा दया मो तय का वह मू यवान हार बना पल भर सोचे वायुपु के
गले म डाल दया। हनुमान ने सीता को सादर णाम कया और अपने थान पर लौट आए।
हनुमान ने फर वह हार अपने गले से उतारा और उसे यान से दे खने लगे। उ ह ने उसे
सूँघा, खर चा तथा अपनी नाक व कान के नकट लगाया मानो कुछ सुनने का यास कर रहे
ह । उ ह ने उसके येक मोती को अपने दाँत से तोड़ दया और उसके चमक ले टु कड़ के
भीतर झाँकने के बाद उसे थ समझकर फक दया! उनके इस व च वहार को दे खकर
सभी लोग डर गए। “यह रानी का कैसा अपमान है?” कसी ने कहा। “एक वानर से और
या अपे ा क जा सकती है?” एक अ य बोला।
सीता को भी हनुमान का यह वहार अ छा नह लगा। वे हनुमान से इतना ेम करती
थ ज ह ने उनके लए इतना कुछ कया था। सीता ने हनुमान से ऐसा करने का कारण
पूछा।
हनुमान ने आ चयच कत होकर उ र दया, “मेरे लए केवल राम का नाम मू यवान
है। कोई भी ऐसी व तु जसम राम का नाम नह है, मेरे लए बेकार है। मने उन मो तय को
यान से दे खा क कह उनम राम का नाम हो, फर मने उन मो तय को सूँघा क उसम कह
राम क सुगंध हो, परंतु उन मो तय म कुछ नह था। वह साधारण मो तय का हार था और
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मेरे जैसा वानर उस हार का या करेगा? म न चत प से वयं को भा यशाली मानता ँ
क आपने उसे भट दे ने के लए मुझे चुना परंतु, म उसे पहन नह सकता, इस लए कृपया
मुझे मा कर।”
हनुमान क बात सुनकर वहाँ खड़े लोग हैरान रह गए। सीता ने उनसे पूछा, “हनुमान!
तु हारे तन का या? या यह पंच त व से नह बना है? या इसम राम ह?”
हनुमान ने सु ीव को उनके दय के नकट अपना कान लगाने को कहा। सु ीव ने जब
ऐसा कया तो वह आ चयच कत हो गया य क हनुमान के दय म से नरंतर “राम, राम”
क आवाज़ आ रही थी।
इसके बाद, इस ववाद को थायी प से अंत करने के लए, कहते ह राम के उस
महान भ ने अपने नाख़ून से अपनी छाती चीर द । वहाँ उप थत सम त जनता यह
दे खकर त ध रह गई क हनुमान क छाती के भीतर भी राम और सीता व मान थे! सबने
आ चय से वास भरी और च लाने लगे, “जय ी राम! जय हनुमान!”
राम अपने सहासन से नीचे उतरकर आए और उ ह ने हनुमान को नेहपूवक गले लगा
लया और उनके घाव पर अपना हाथ रख दया। उनके पश करते ही हनुमान का घाव
चम कारी ढं ग से भर गया। इसके बाद उ ह ने हनुमान से कोई भी उपहार माँगने को कहा।
हनुमान ने उ र दया, “ भु! मेरे मन म सदै व आपके त अगाध ेम बना रहे। आपके
त मेरी न ा थायी हो। मेरा मन कसी अ य चीज़ क ओर आकृ न हो। जब तक
आपक कथा इस पृ वी पर रहेगी, तब तक मेरे शरीर म ाण रह। म सदा आपके सम रह
सकूँ। जहाँ भी आपका नाम लया जाए और आपके भजन गाए जाएँ, म वहाँ उप थत रह
सकूँ। मुझे केवल यही वरदान चा हए।” राम ने आंजनेय के सर पर हाथ रखा और उ ह वे
सभी वरदान दान कर दए।
“वानर शरोम ण, तथा तु! इसम कोई संदेह नह है क जब तक पृ वी पर यह कथा
रहेगी, तु हरा यश और तु हारे शरीर म ाण रहगे। मेरी यह कथा संसार समा त होने तक
रहेगी। य द म उन सेवा के वषय म सोचूँ, जो तुमने मुझे, सीता और ल मण को दान
क ह, तो मुझे यह इसी ण अपने ाण तु हारे लए योछावर कर दे ने चा हए। परंतु म
सदै व तु हारा ऋणी रहना चाहता ँ! य प, कोई भी केवल संकट के समय ही
उऋण होना चाहता है, कतु म यह ाथना करता ँ क मेरे जीवन म कोई ऐसा अवसर न
आए जब मुझे तु हारी सेवा से उऋण होना पड़े !”
राम ने हनुमान को गले लगाकर उ ह बारंबार आशीवाद दया।
इसके बाद, राम ने सबको अनमोल उपहार भट कए। कोई नह छू टा। यहाँ तक क
कुबड़ी मंथरा को भी, जो इस सबका कारण थी और जसने कैकेयी के मन म राम के लए
वष घोला था तथा उ ह अयो या से बाहर भेज दया था, राम ने उपहार दए। पूरा दन
नगरवा सय और वानर ने जी-भर के खाया- पया और आनंद मनाया। उस रात चौदह वष
के बाद, पहली बार ल मण अपनी प नी उ मला क बाँह म सोए थे।
राम चाहते थे क तशासक का कायभार ल मण को मले कतु ल मण ने प तौर
पर यह भू मका नभाने से मना कर दया और इस बात पर ज़ोर दया क यह काय भरत को

ही दया जाए।
सभी वानर ब त स न थे। वे लोग अपने घर को भूल चुके थे और अपने वामी के
साथ रह रहे थे। आ ख़रकार, एक दन राम ने उ ह बुलाकर अपने घर लौटने तथा अपने-
अपने दा य व का नवहन करने और अपनी न ा बनाए रखने को कहा। राम ने एक-एक
र नज ड़त शाला सु ीव और वभीषण को भट कया। सु ीव तथा उसका वानर-दल,
खी मन से क कंधा लौट आए। वभीषण तथा उसके लोग भी लंका वापस चले गए।
हनुमान ने राम के साथ रहना पसंद कया य क वे राम से अलग होना सहन नह कर
सकते थे।
आज भी राम रा य का गौरवशाली काल, समूचे व व म व यात है। वहाँ कसी को
पशु, सप या रोग का भय नह था। कोई चोरी नह करता था य क सबके पास पया त धन
उपल ध था। वहाँ असमय मृ यु नह होती थी और नगर म कोई वधवा ी नह थी।
येक ाणी स न था और सबक धम के त न ा थी। लोग जजर अव था को ा त
कए बना, अपनी पूण आयु जीते थे। सं यासी के अ त र , कोई हाथ म लाठ म नह
पकड़ता था और नृ य के दौरान समय नधा रत करने के अ त र ‘आघात’ श द का कोई
अथ नह था। वयं पर वजय पाने को ही असली वजय माना जाता था। रा य म समृ
थी, लोग पूरी तरह ख़ुश थे और वे राम को ई वर का अवतार मानते थे।
नगर म कृ त का ाचुय था। वन के वृ फल व फूल से लगे थे। हाथी और बाघ
साथ म, मलकर रहते थे। शहद-भरी मधुम खयाँ उड़ती और मधुर वर करती फरती थ ।
धरती पर फसल क चादर बछ थी तथा न दयाँ व छ जल से भरी रहती थ ।

संकट कटै मटै सब पीरा।


जो सु मरै हनुमत बलबीरा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

शुभांगाय नमः

अ याय 29

शुभांग
धम क वजय

स दय के धाम, राम क जय हो,


दया नधान, शरणागत के र क,
तरकश तथा धनु ष-बाण से सुस जत,
अपनी बलशाली भुजा ारा वजयी!
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

अयो या लौटने के शी बाद, हनुमान ने राम से ाथना क वे उनके साथ उनक माता से
मलने हमालय चल, जो वहाँ तप वनी का जीवन जी रही थी तथा सदै व यान एवं ाथना
म लीन रहती थी। राम ने उनक बात मान ली और वे लोग अंजना के आ म म गए। अंजना
राम को दे खकर ब त स न ई और उसने राम का वागत कया तथा उ ह वशेष आसन
पर बैठाया। इसके बाद, उसने अपने पु को रावण के साथ ए यु क सारी घटना तथा
उसम हनुमान क भू मका के बारे म पूछा। आ चय क बात थी क वह उस कथा को
सुनकर भा वत नह ई। जब हनुमान ने अपनी भू मका के वषय म बताया तो अंजना क
भँव तन ग और उसका चेहरा काला पड़ने लगा। अंत म, उसने ोध म आकर अपने मन
क बात कह डाली।
“तुम मेरे पु होने के यो य नह हो। तुमने अपनी माता के ध का अपमान कया है।
ऐसा लगता है क तु ह ज म दे ना और ध पलाना थ गया है। या तुम वयं लंका को
व त करके और रावण को मारकर, वह यु नह रोक सकते थे? फर तुम वयं ही सीता
को मु करके उ ह राम के पास वापस ले आते। राम इतना क उठाने से बच जाते! मुझे
लगता है मेरा ध थ गया है। म तु हारे कारण ल जत हो रही ँ!”
हनुमान को अपनी माता क फटकार सुनकर आनंद आ रहा था। उ ह ने ेमपूवक कहा
क उ ह ने केवल राम व सीता ारा दए गए आदे श का पालन कया था।

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“य द मने वदे हकुमारी को मु करवा दया होता तो एक दास के प म यह मेरी
धृ ता कहलाती। सीता का भी यही मत था क उनके प त को वयं दशानन का वध करके
उ ह मु करवाना चा हए और एक राजा के प म अपने स मान क र ा करनी चा हए!”
यह सुनकर अंजना थोड़ी शांत हो गई और बोली, “ओह! फर मुझे ख़ुशी है क मेरा
ध थ नह गया।”
वहाँ उप थत सभी लोग , वशेष प से ल मण को, यह सोचकर बड़ा अचरज हो
रहा था क अंजना के ध म ऐसी या वशेषता है जसका वह बार-बार उ लेख कर रही
है। ल मण के बना पूछे ही अंजना ने उनके मन म उठा समझ लया और बोली, “म
यह स कर ँ गी क मेरा ध सचमुच ब त वशेष है।”
ऐसा कहकर, अंजना ने अपने तन दबाए। उनम से ध क एक पतली धार नकली
और हवा म लहराती ई सामने वाले पवत शखर पर गरी। उसके गरने कणभेद
गड़गड़ाहट ई और लोग यह दे खकर च कत रह गए क वह पवत शखर टू टकर दो भाग
म बखर गया!
वह हँसी और बोली, “ या अब आपको मेरी बात पर व वास हो गया है? मा त का
पोषण इसी श शाली ध से आ है। या आपको इसक श पर संदेह है?”
अंजना के साथ कुछ समय बताने के बाद पूरा दल लौट गया। राम ने सीता के साथ,
तथा अपने भाइय व मं य और सदै व न ावान हनुमान के सहयोग से, अयो या पर अनेक
वष शासन कया। इस दौरान मा त से जुड़ी अनेक कथाएँ मलती ह जनसे उनके अनोखे
व का पता लगता है। वे सदै व राजसी युगल के चरण म बैठते थे और उनके ारा
कहे गए येक श द को ब त यान से सुनते थे। उनक न ा से स न होकर राम-सीता के
द युगल ने उ ह अपने अवतार का रह य सुनाया।
राम ने कहा, “हे वानर! म जो म कह रहा ँ, उसे यान से सुनो य क तुमने यह स
कर दया है क तुम इस गूढ़ स य को जानने के पा हो। म पु षो म, शा वत,
अप रवतनशील और अनंत परमा मा ँ। म ही परम चेतना तथा अ वभा य ँ। येक
व तु, चेतना के अ त र और कुछ नह है।”
इसके बाद सीता ने कहा, “म कृ त, ांड का त व ँ तथा सम त व तु का परम
व प ँ। म ही समय व थान का उदग ् म ँ और सभी व तुएँ मुझ म थत ह। राम परम
े ह और म उनक श का य प ँ। म ही रचना, पालन और संहार के य
कृ य का स ांत ँ। वा तव म, अभी तक जतनी भी घटनाएँ ई ह, वे सब ई वर क
लीलाएँ ह। उ ह राम क े अव था नह समझा जाना चा हए, जो अप रवतनीय, सनातन
एवं अ वनाशी है।”
राम ने आगे कहा, “हम दोन को मलाकर यह ांड बना है। हम एक- सरे के
अ त व को मा यता दे ते ह और हम एक- सरे के साथ रहने म स नता होती है। म
परमा मा ँ और सीता जीवा मा है। रावण, अहंकार है, जो हम दोन को अलग करता है।
भ के ारा हमारा मलन संभव है। तुम भ का अवतार हो और इसी लए यह गु त
स य तु ह बताया गया है।”
े ो े े े ँ े ो
हनुमान ने इस वचन को ब त यान से सुना। अगले दन, जब वे दरबार म प ँचे तो
राम ने उनसे पूछा।
“तुम कौन हो?”
मा त समझ गए क यह न उनक परी ा लेने के लए पूछा गया है। उ ह ने उ र
दया, “शरीर के कोण से म आपका सेवक ँ, मन एवं बु के कोण से म आपका
अंश ँ, परंतु आ मा के कोण से म आपका ही प ँ!”
हनुमान का सुंदर प ीकरण सुनकर राम और सीता मु ध हो गए।
भरत और श ु न, कभी-कभी हनुमान को अपने महल म ले जाते थे और उनसे बार-
बार राम क आ चयजनक बात सुनते थे य क उन घटना को सुनने से उनका मन नह
भरता था। परंतु हनुमान कसी के पास भी अ धक समय नह कते थे। उ ह सदा राम के
चरण म लौटने क ज द रहती थी। वे राम क येक आव यकता का पहले ही पूवानुमान
लगा लेते थे और उस काय को कसी अ य के करने से पहले ही कर दे ते थे।
हनुमान के इस वभाव सीता और राम के अ य भाई, उनसे चढ़ने लगे य क उनके
पास करने के लए कोई काय शेष नह रह गया। आ ख़रकार, राम के तीन भाई, सीता के
पास गए और उनसे हनुमान क शकायत क और कहा क हनुमान के अ य धक सतक
रहने के कारण कसी के पास करने को कोई काम नह रह गया है। वे सब भी राम क सेवा
करना चाहते ह। सीता को यह बात माननी पड़ी य क यह बात स य थी, इस लए उन
सबने मलकर राम के काय क सूची बनाई और सबको कुछ न कुछ काय स प दया गया।
इस तरह, अब हनुमान के पास करने के लए कुछ नह रह गया। यह कायसूची अनुमोदन
एवं मुहर लगने हेतु राम के सम तुत क गई।
राम ने जब दे खा क उस सूची म हनुमान का नाम नह है तो उ ह संदेह आ। परंतु, वे
कुछ नह बोले। अगले दन, जब दरबार लगा तो हनुमान ने हमेशा क तरह राम के पैर
दबाने आरंभ कर दए। ल मण ने तुरंत उ ह यह कहकर टोक दया क वह काय कसी और
को दया गया है। फर उ ह ने हनुमान के सामने वह सूची रख द । हनुमान को यह दे खकर
ब त नराशा ई क उनका नाम उस सूची म नह था। ल मण ने हनुमान से कहा क य द
कोई काय छू ट गया हो तो वे उसे कर सकते ह। मा त ने उस सूची को यान से पढ़ा और
दे खा क राम के सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक येक काय कसी न कसी को
स पा जा चुका था। अंत म, उ ह एक शानदार यु सूझी।
“इसम जँभाई सेवा का तो उ लेख ही नह है!” हनुमान ने कहा।
“जँभाई सेवा या होती है?” ल मण ने पूछा।
“आपको पता ही होगा क जब भी कोई जँभाई लेता है तो वह अपने खुले मुँह के
सामने चुटक बजाता है ता क खुले मुँह म कोई रा मा वेश न कर सके। इस लए म यह
चुटक बजाने का काय ले लेता ँ ता क मेरे भु क उँग लय को क न हो!”
“हाँ, य नही!” ल मण ने कहा।
“तो मुझे यह बात ल खत म चा हए और उसके ऊपर मेरे भु क मुहर भी होनी
चा हए!” ल मण ने तुरंत यह काय करवा दया परंतु उ ह ने हनुमान क इस माँग के
प रणाम पर वचार नह कया!
जँभाई कसी भी ण आ सकती है, इस लए मा त को हर समय राम के साथ रहना
पड़ता था! वे हमेशा राम के नकट बैठकर आँख उनके चेहरे पर टकाए रखते ता क जँभाई
आने क थ त म चुटक बजाने का अवसर नकल न जाए! उस दन, उ ह ने भोजन भी
बाएँ हाथ से कया ता क उनका दा हना हाथ चुटक बजाने के लए वतं रहे! रात को
उ ह ने राम और सीता के साथ शयनक म वेश करने का यास कया कतु सीता ने उ ह
ऐसा करने क अनुम त नह द और कहा क वे जाकर व ाम कर। इस बात से हनुमान
उदास हो गए य क रात के समय अ धकतर लोग को जँभाई आती है और वे अपने ह से
का काय पूरा करना चाहते थे। परंतु वे या करते? वे राम के शयनक के ठ क ऊपर के
बुज पर जाकर बैठ गए और अपनी आँख बंद करके राम का नाम लेने लगे ता क उ ह न द
न आ जाए। इस बीच, वे अपने दा हने हाथ से चुटक बजाते जा रहे थे ता क राम को आने
वाली जँभाई पहले ही क जाए। इधर, क के भीतर राम को जँभाई का ज़बरद त दौरा
पड़ गया जो कता ही नह था। एक के बाद एक लगातार जँभाई आने से राम का मुँह बुरी
तरह खने लगा य क वे मुँह बंद ही नह कर पा रहे थे। वे थककर ब तर पर गर पड़े ।
सीता डर ग और उ ह ने तुरंत वै , मं य और राजगु व स को बुलाया। कोई कुछ नह
कर सका। तभी व स ने दे खा क वहाँ एक कम था। वे तुरंत हनुमान को खोजने के
लए चल पड़े । उ ह पता था क हनुमान कह र नह ह गे। उ ह ने हनुमान को बुज पर
बैठकर राम का नाम जपते तथा चुटक बजाते दे खा। फर उ ह ने हनुमान को उठाया और
राम के पास लेकर आए। राम क थ त दे खकर मा त ब त खी ए और चुटक बजाना
भूल गए। इसका त काल भाव आ। राम क जँभाई क गई। सबको बात समझ म आ
गई। सीता और राम के भाइय को इस बात का प चाताप आ क उ ह ने राम के महान
भ के साथ ब त अ याय कया था। वे सब राम के चरण म गर पड़े और उ ह वचन
दया क उ साही हनुमान को उनक इ छा से काय करने दया जाएगा।
हनुमान जतना राम से नेह करते थे, उतना ही ेम उ ह सीता से भी था और वे सीता
के भी सभी काय को बड़ी सावधानी से दे खते थे। येक सुबह, वे सीता को म तक पर
लाल बद और माँग म स र लगाते दे खते थे जो भारत म ववा हत य का
वशेषा धकार है। एक दन उ ह ने सीता से इसका कारण पूछ लया।
“म यह काय, सभी ववा हत य क भाँ त, अपने प त के अ छे वा य के लए
करती ँ,” सीता ने मधुर मु कान के साथ कहा। भु के वनीत सेवक, हनुमान ने सोचा,
“य द सीता जैसी सदाचा रणी ी को भी भु राम क भलाई के लए स र लगाना पड़ता
है, तो मुझ जैसे सामा य वानर को तो इससे अ धक करना चा हए।” यह सोचकर, वे बाज़ार
गए और वहाँ से एक बोरी स र ले आए। उ ह ने उसम थोड़ा तेल मलाकर लेप बना लया
और उसे अपने पूरे शरीर पर लगा लया। वे उसी प म दरबार म प ँच गए और राम के
चरण म अपना थान ले लया। उनके व च प को दे खकर सभी हँसने लगे। राम को
भी उ ह दे खकर आनंद आया और फर उ ह ने हनुमान से उसका कारण पूछा। हनुमान ने
आँख म आँसू भरकर कहा, “ भु! आपके इस दास के तन पर जतने बाल ह, आप उतने
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वष जएँ!” सीता ने तुरंत उनके व च वहार का कारण बूझ लया और अपने प त के
कान म धीरे-से बता दया। राम और सीता, हनुमान के दय क शु चता को दे खकर भावुक
हो गए। राम ने सहासन से उतरकर हनुमान को गले लगा लया और बोले, “आज
मंगलवार है और जो भी मेरे इस य भ को इस दन तेल व स र अ पत करेगा, उसे
आशीवाद मलेगा तथा उसक सभी इ छाएँ पूण ह गी!” तभी से, हनुमान क तमा पर
लाल स र लगाया जाता है।
चूं क सीता क अपनी कोई संतान नह थी, वे अपना सारा मातृ ेम हनुमान पर
छड़कती थ । सामा य तौर पर, हनुमान राम का बचा आ जूठा भोजन ही खाते थे। एक
दन सीता ने हनुमान के लए कुछ वशेष बनाने का नणय कया। उ ह ने हनुमान को अपने
पास बैठाकर अपने हाथ से बनाई ई सभी चीज़ उ ह खला । हनुमान ब त भूखे थे और
सीता उ ह जतना भोजन परोसत , उनक भूख उतनी ही अ धक बढ़ती जाती थी। सीता
परेशान हो ग य क उ ह ने जतना भी भोजन पकाया था, वह सारा समा त हो गया। तब
उ ह समझ म आया क उनका “पु ” तो वा तव म भगवान महे वर का अवतार है, जो
लय के समय पूरी सृ को नगल सकते ह! सीता घूमकर धीरे-से हनुमान के पीछे ग
और उनक पीठ पर पाँच अ र वाला भगवान शव का मं (ॐ नमः शवाय) लख दया।
ऐसा करके उ ह ने हनुमान के वा त वक प को वीकार कर लया! हनुमान, त काल तृ त
हो गए और उ ह डकार आ गई। उ ह ने उठकर कु ला कर लया।
एक दन हनुमान बाज़ार म घूम रहे थे जब एक मूख ापारी ने उ ह पुकारा। “मा त!
जब तुमने लंका नगरी जलाई तो वह कैसी लग रही थी?”
हनुमान ने कहा क वे उस बात को श द म नह बता सकते कतु करके दखा सकते
ह। उ ह ने ापारी से कहा क वह उनक पूँछ पर कपड़ा लपेटकर, उसे तेल म भगोकर
आग लगा दे । ापारी ने य ही ऐसा कया, हनुमान ने तुरंत उसक कान जला द । फर
उ ह ने तालाब म जाकर अपनी पूँछ क आग बुझा ली।
अगले दन, वह ापारी राम के दरबार म गया और उसने हनुमान क शकायत क ।
“आपके वानर ने मेरी कान जला द !”
राम ने हनुमान से उनके वहार का प ीकरण माँगा तो हनुमान ने सारी बात बता द ।
राम ने ापारी से पूछा क या यह स य है तो उसने उसे वीकारा कतु यह भी कहा,
“परंतु मुझे यह उ मीद नह थी क यह वानर मेरी ही कान जला दे गा!”
“ओह! तो तु ह कसी और क कान जलने से स नता होती?”
ापारी ने ल जा से सर झुका लया और राम ने मामले को ख़ा रज कर दया।
हनुमान कभी-कभी साधारण वानर बनकर अयो या के उ ान पर धावा बोल दे ते थे।
कोई उ ह कुछ कहने का साहस नह करता था य क लोग इसी वधा म रहते क वह
कोई साधारण वानर है या फर राम के य वानर, हनुमान ह। वे रसीले फल खाने, नय मत
प से एक वशेष उ ान म जाते थे। कुछ लोग उस उ ान क रखवाली करते थे ता क
फल पक जाने पर उ ह तोड़ सक। वे लोग इस वानर क हरकत से ब त परेशान थे तो
उ ह ने एक दन उसे फंदा लगाकर पकड़ लया और राजदरबार म ले गए। राम ने हनुमान
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को पहचान लया कतु ऐसे दखावा कया मानो वे उसे जानते नह ह। उ ह ने उ ान वाले
लड़क से कहा क वे वानर को अपने साथ ले जाएँ और जो चाहे उसे दं ड द। हनुमान अपने
बल से फंदा तोड़कर भाग गए, कतु राम के पास लौटने से पूव उ ह ने अपने पूरे शरीर पर
कोड़ के बड़े -बड़े नशान बना लए और उदास चेहरा लेकर लड़खड़ाते ए दरबार म आ
गए। उनक ऐसी दशा दे खकर राम का मन ला न से भर उठा और उ ह ने हनुमान को गले
लगा लया। तब हनुमान ने हँसकर कहा, “आपने मेरे साथ मज़ाक कया, तो मने भी
आपके साथ यह चाल खेली!”
एक दन, दरबार म राम क हनुमान को छे ड़ने क इ छा ई। उ ह ने सबसे पूछा क
कौन उनका सबसे न ावान सेवक है। वाभा वक तौर पर, सब ने अपने-अपने दोन हाथ
उठा लए, कतु हनुमान ने अपने हाथ के साथ अपनी पूँछ भी उठा ली जो वा तव म,
वानर के लए हाथ के समान होती है। अ य दरबारी हनुमान से चढ़ते थे, तो उ ह ने
हनुमान के ववाह का ताव तुत करने का नणय कया, जब क वे जानते थे क हनुमान
ने आजीवन चय का त लया है। मज़ाक क तरह आरंभ ई बात ने आ ाका रता क
गंभीर परी ा का प ले लया।
“मा त! अब यु समा त हो चुका है। या अब तु ह चारी जीवन यागकर ववाह
नह कर लेना चा हए?” राम ने हनुमान को चढ़ाते ए कहा।
हनुमान को पता था क राम उनके साथ मज़ाक कर रहे ह, इस लए उ ह ने भी मज़ाक
म उ र दे दया, “ भु! ऐसी कौन सुंदरी होगी, जो मुझसे ववाह करना तो र, मेरी ओर
दे खना भी पसंद करेगी?”
राम ने तुरंत उ र दया, “य द म कसी को खोज लूँ, जो तुमसे ववाह के लए तैयार हो
जाए, तो या तु ह वीकार है?”
हनुमान वधा म पड़ गए। उनके सामने उनके चय त तथा उनके वामी क
आ ा के बीच नै तक संकट खड़ा हो गया। “य द वह ी पूरी तरह मान जाए तो मुझे
लगता है क मुझे वीकार करना होगा य क यह आपक भी इ छा है।”
कसी ने कहा, “चूं क वर व पत है, इस लए क या कुबड़ी हो सकती है। म, हनुमान
के लए रानी कैकेयी क दासी, मंथरा के नाम का ताव करता ँ!”
हनुमान त ध रह गए और बोले, “ भु! उस ी ने आपको चौदह वष के लए वन म
भेज दया था! सो चए, वह मेरा या हाल करेगी?”
राम ने हँसते ए कहा, “ चता मत करो। वह अब सुधर गई है। हम कल उसे दरबार म
बुलाएँगे दे खते ह, शायद वह मान जाए!”
हनुमान उस रात, मंथरा के क म गए और उसे उस दन सुबह दरबार म ई चचा के
वषय म बताया। आ चयजनक प से, वह इस बात को सुनकर ब त ख़ुश ई और उसने
ववाह के लए हामी भी भर द । य द उसे कोई पु ष नह मल सका, तो वानर सबसे
ब ढ़या वक प था। मा त ने उसे ब त समझाया कतु उसने हठ नह छोड़ा। अंत म,
हनुमान को ग़ सा आ गया। उ ह ने अपना आकार बढ़ाकर अपनी पूँछ उसके गले म लपेट
द और कहा क उनसे ववाह करने का यही प रणाम होगा! वह भयभीत हो गई और उसने
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वचन दया क अगले दन दरबार म बुलाए जाने पर वह ववाह के लए मना कर दे गी।
अगले दन जब वह सुबह दरबार प ँची तो राम ने उसके सामने यह ताव रखा। सभा म
या शत मौन छा गया। हनुमान ने मंथरा को घूरा तो उसने तुरंत ववाह करने से मना कर
दया। हनुमान ने राहत क साँस ली और राम क ओर दे खा तो राम भी उ ह शरारती ढं ग दे
दे ख रहे थे। तब हनुमान को एहसास आ क उनके साथ मज़ाक कया गया था।
एक दन राम और सीता म नेह भरा तक छड़ गया क हनुमान क न ा दोन म
कसके त अ धक है। उ ह ने हनुमान से सीधे यह न कर लया। हनुमान भी चालाक
से यह कहकर बच नकले क उनक न ा सीता-राम के त संयु प से है। सीता ने
त काल हनुमान से एक घड़े म पानी लाने को कहा य क उ ह ब त ज़ोर से यास लगी
थी। तभी राम ने गम से मू छत होने का वांग कया और हनुमान से पंखा झलने को कहा।
वे दोन याशा से दे खने लगे क हनुमान कसक बात पहले मानते ह। बु मान हनुमान ने
अपने हाथ लंबे कर लए और एक हाथ से पानी ले आए तथा सरे से पंखा झलने लगे।
इससे उनके दोन वामी स न हो गए।
एक बार दे व ष नारद, जो महान व णु भ माने जाते ह, घूमते ए अयो या आ गए।
उ ह ने हनुमान से पूछा क या राम अपने सव े भ का हसाब रखते ह। हनुमान को
इसका पता नह था, इस लए नारद वयं राम के पास चले गए। राम ने उ ह एक ब त बड़ा
बही-खाता दखाया, जसके येक थम पृ पर नारद का नाम सबसे ऊपर लखा था।
यह दे खकर नारद ब त स न ए कतु हनुमान का नाम न पाकर वे वधा म पड़ गए।
उ ह ने हनुमान को यह बात बताई तो हनुमान ने कहा, “आप उनसे क हए क वे आपको
अपना छोटा गुटका भी दखाएँ।”
नारद लौटकर राम के पास गए और उनसे छोटा गुटका दखाने को कहा। उसम हर
जगह हनुमान का नाम पहले था और नारद का कह नाम नह था। वाभा वक था क नारद
ने राम से दोन का अंतर पूछा। राम ने कहा क बड़े खाते म उन सबके नाम ह जो हर समय
भगवान को याद करते ह, जब क छोटे गुटके म उन लोग के नाम ह जनको भु हर समय
याद करते ह! यह सुनकर नारद का अहंकार चूर हो गया य क वे हमेशा वयं को भगवान
का सबसे बड़ा भ समझते थे।
इसके बाद, नारद ने भगवान के नाम क म हमा दशाने के लए एक और नाटक रचा।
एक बार काशी का राजा अपने पूरे दल के साथ अयो या जा रहा था। नारद ने उसे माग म
रोक लया य क वे सदा ही भगवान क लीला हेतु थ तयाँ खड़ी करते रहते थे। उ ह ने
राजा से कहा क राजदरबार प ँचने पर वह व वा म को छोड़कर सभी को णाम करे।
राजा ऐसा करने का बलकुल इ छु क नह था कतु उसने वचन दे दया था। व वा म
अपने ोधी वभाव के लए स थे। राजा का वहार दे खकर उ ह ग़ सा आ गया और
उ ह ने राम से उसक शकायत क । राम ने अपने तरकश से तीन बाण नकाले और काशी
नरेश को सूया त से पहले मारने का ण कर लया। राजा को यह समाचार मला तो वह
घबराकर नारद के पास प ँचा और उनसे र ा क गुहार लगाई य क इसम उसका कोई
दोष नह था। नारद ने बड़ी स नतापूवक उ र दया क राम के हाथ मरने से बेहतर या
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हो सकता है! यह सुनकर राजा बलकुल भा वत नह आ और वह राम के ोध से बचने
के लए नद क ओर भागा। नारद उसके पीछे गए और उसे न चंत रहने को कहा। उ ह ने
राजा से कहा क वह उनक वीणा पर बैठ जाए और फर वे उसको कंचन पवत ले जाएँगे।
“वहाँ उस पवत पर ऐसा कौन है जो मुझे राम के ोध से बचा सकता है?” राजा ने
पूछा।
“हनुमान क माता, अंजना वहाँ तप या कर रही ह। तुम उनके चरण म गरकर ाथना
करो। जब तक वे तु ह बचाने का वचन न द, तब तक उठना मत!” नारद ने कहा।
नारद के आदे शानुसार, राजा अंजना के चरण म गर पड़ा और उनसे र ा करने क
याचना करने लगा। अंजना ने उसे अपनी शरण म ले लया और आ वासन दया क उनके
रहते, कोई राजा को त नह प ँचा सकता। उसके बाद उ ह ने राजा से उस का
नाम पूछा जससे डरकर वह भाग रहा था।
राजा ने धीरे-से कहा, “राम ने सूया त से पहले मेरा वध करने का ण कया है!”
“राम!” अंजना च ला , “वे तो दया के धाम ह! तुमने ऐसा या अपराध कर दया जो
उ ह इस तरह क त ा लेनी पड़ी?”
बेचारे राजा ने अंजना को पूरी घटना सुना द । अंजना ने फर अपने पु को मरण
कया य क वह राजा को बचाने का वचन दे चुक थी। हनुमान तुरंत अपनी माता से
मलने आ गए।
हनुमान को दे खकर उनक माता ब त ख़ुश और उ ह बताया क वे ब त बड़ी
वधा म फँस गई ह और हनुमान से मदद करने क ाथना क । हनुमान ने पूरी बात जाने
बना ही माता को वचन दे दया क कुछ भी हो, वे उसे पूरा करगे। अंजना ने हनुमान को
रह य बताने से पहले उनसे तीन बार वचन दे ने को कहा। हनुमान उस कथा को सुनकर
ब त हैरान ए कतु वे अपनी माता को वचन दे चुके थे इस लए उनके पास उसे पूरा करने
के अ त र कोई अ य वक प नह था। वे त काल काशी नरेश को अयो या के बाहर बह
रही सरयू नद के पास ले गए। उ ह ने राजा से नद के जल म कमर तक डू बकर नरंतर राम
नाम का जाप करने को कहा।
“याद रहे, म जब तक न क ँ, जल से बाहर नह नकलना और बना के ‘राम, राम’
बोलते जाना है।”
राजा खी था कतु इसे मानने के अ त र कोई अ य रा ता नह था। हनुमान शी ही
राम के पास प ँचे और उ ह णाम कया।
राम ने हनुमान क ओर दे खा और पूछा, “तु ह कुछ चा हए?”
हनुमान ने कहा, “ भु, कृपया मुझे यह वरदान द जए क जो भी आपका नाम
ले, म उसक र ा कर सकूँ।”
“ य मा त! म यह वरदान तु ह पहले ही दे चुका ँ। तुम यह फर से य माँग रहे
हो?”
हनुमान ने ज़ोर दे कर राम से वह वरदान दोबारा दे ने को कहा तो राम ने हँसते ए उनक
बात मान ली। अब आंजनेय नद तट पर लौट आए और वहाँ अपनी गदा लेकर काशी नरेश
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क र ा के लए खड़े हो गए, जो अ यंत न ापूवक और ज़ोर-ज़ोर से राम का नाम जप रहा
था। शी ही, यह समाचार फैल गया क जसे राम ने सूया त से पहले मारने क त ा क
है, उसक र ा वयं हनुमान कर रहे ह!
राम को ज द ही राजा के थान का पता लग गया और वे ऋ ष व वा म को साथ
लेकर नद -तट पर आ गए। हनुमान ने उ ह आते दे खा तो राजा से कहा क कुछ भी हो
जाए, वह राम का नाम लेना बंद न करे। राम ने अपना बाण धनुष पर चढ़ाया और राजा पर
चला दया। परंतु उस बाण ने राजा क प र मा क और तरकश म लौट आया। राम उस
बाण क आवाज़ सुनकर हैरान रह गए, “ भु! म कसी ऐसे को नह मार सकता जो
हनुमान क उप थ त म आपका नाम जप रहा हो।”
राम ने उसक बात नह मानी और राजा पर सरा बाण चलाया। वह बाण भी लौट
आया और बोला, “राजन! आपने अपने भ हनुमान को यह वचन दया है क जो भी
आपका नाम लेगा, वे उसक र ा करगे। हम आपके वचन क मयादा बचाने के लए
आपक सहायता कर रहे ह।”
इस बार व वा म ो धत हो गए तो राम ने अपना तीसरा बाण धनुष पर चढ़ा लया।
हनुमान ने काशी नरेश को सावधान करते ए कहा क वह बना साँस लए राम का नाम
जपता रहे। ठं ड से राजा के दाँत कट कटा रहे थे कतु वह नरंतर मं जाप करता रहा।
राम अपना तीसरा बाण छोड़ने ही वाले थे क तभी उनके कुल गु व स वहाँ आ गए
और हनुमान से वनती करने लगे क वे हट जाएँ ता क राम अपनी त ा पूरी कर सक।
“राम के हाथ मरने से राजा को वग मलेगा, इस लए उ ह रोकने का यास मत
क जए।”
हनुमान ने कहा, “परंतु म तो राम ारा दए गए वचन क र ा कर रहा ँ क जो भी
उनका नाम लेगा, म उसक र ा कर सकता ँ!”
वस वधा म पड़ गए क इस सम या को कैसे सुलझाया जाए। उ ह ने कहा क
इसका समाधान केवल व वा म ही कर सकते ह। वे व वा म के पास गए और उनसे
काशी नरेश को मा करने और राम को उनक त ा से मु करने क वनती करने लगे।
व वा म ने कहा क वे राजा को इस शत पर मा कर सकते ह य द वह वचन दे क
भ व य म फर कभी कसी का, वशेषकर कसी ऋ ष का, अपमान नह करेगा।
हनुमान ने अपने शरणाथ को नद से बाहर नकल कर ऋ ष के चरण म गरकर,
उनसे मा माँगने को कहा। राजा ठं ड से इतनी बुरी तरह काँप रहा था क वह बड़ी
क ठनाई से नद से बाहर नकल पाया। उसने राम का नाम जपते ए ऋ ष के चरण म
णाम कया। उसने ऋ ष के चरण पकड़ लए और उनसे मा माँगने लगा। यह सारा
नाटक नारद मु न ने रचा था और वे अब भी इस पूरे य को दे खकर बड़े आनं दत हो रहे
थे।
व स ने राम को अपना तीसरा बाण वापस तरकश म रखने को कहा। ऐसा करते ही,
सूय भी प चम म अ त हो गया। हनुमान अपने वामी के चरण म गरकर मा माँगने
लगे। वे केवल संसार को भु नाम क म हमा बताना चाहते थे।
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इस वषय पर एक अ य कथा आती है जसका यहाँ उ लेख कया जाना चा हए।
काशी के राजा का नाम यया त था। वह राम भ था। एक बार, वह आखेट पर गया
और वहाँ उसक भट ऋ ष व वा म से हो गई कतु वह आखेट क ज द म, उ ह णाम
करना भूल गया। आशा के अनुसार, ऋ ष ने उसे शाप दे दया, “म तु हारा सर अपने
चरण म झुकाकर र ँगा!”
यया त ऋ ष के पीछे दौड़ा और उनसे मा माँगते ए कहा क वह नद ष है तथा
आखेट म यान होने के कारण उसने ऋ ष पर यान नह दया। व वा म शांत नह ए।
अयो या लौटकर उ ह ने यह बात राम को बताई।
“राम! य द तुम मेरे स चे श य हो तो, जसने मेरा अपमान कया है, उसका सर मेरे
चरण म झुकाना तु हारा क है!”
“ भु, वह कौन है जसने आपका अपमान करने क धृ ता क है? आप मुझे उसका
नाम बताइए। म तुरंत आपक इ छा पूण क ँ गा।”
राम ने जब यया त का नाम सुना तो वे हैरान रह गए य क वे जानते थे क यया त
उनका स चा भ था, कतु उ ह ने मामले पर गंभीरता से वचार करने के बाद यह नणय
कया क अपने गु क आ ा का पालन करना उनका क है। उ ह ने अपने मं ी को
काशी भेजा और यया त को यु के लए तैयार होने को कहा। राजा को समझ नह आया
क वह या करे। उसने सोचा क अपने भु क आ ा का पालन करना उसका क है,
इस लए वह अयो या क ओर चल पड़ा ता क राम को काशी आने का क न करना पड़े ।
माग म, उसे नारद मु न मले जो सदा भगवान क लीला दे खने के इ छु क रहते थे। मु न
जानते थे क पूरा जीवन परमा मा क लीला है और वे हमेशा इस जीवन के नाटक को
रोचक मोड़ दे ते रहते थे।
“राजन!” नारद ने कहा, “म दे ख रहा ँ क आप अयो या क ओर जा रहे ह ता क
भगवान को आपके पास आने का क न उठाना पड़े । परंतु आप इतनी ज द पराजय य
वीकार कर रहे ह? या आप अपना जीवन नह बचाना चाहते?”
बेचारे राजा ने सर हलाते ए कहा क उसे समझ नह आया क वह इस संकट क
घड़ी म या करे। उसे आशा है क वह राम को इस बात के लए समझा पाएगा क वह
नद ष है।
नारद बोले, “राम यह बात जानते ह कतु उ ह ने अपने गु के आदे श पर यह त ा
ली है, इस लए मेरा सुझाव है क आप अयो या न जाएँ।”
“ फर मुझे या करना चा हए?” परेशान होकर राजा ने पूछा।
“आप कंचन पवत पर जाइए और वहाँ आंजनेय क माता, अंजना क शरण ली जए।
अब केवल वही आपक सहायता कर सकती ह।”
“अब मज़ा आएगा!” नारद ने सोचा और फर वे अंजना के आ म क ओर चल पड़े ।
यया त भी शी ा तशी अंजना के आ म प ँच गया और उसके चरण म गरकर
शरण माँगने लगा। अंजना ने उसे नभय रहने को कहा और आ व त कया क उस थान

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पर कोई उसे हा न नह प ँचा सकता। उसने फर अपने पु के वषय म सोचा और उसे
सहायता के लए बुलाया।
हनुमान अपनी माता ारा भेजी गई मान सक तरंग से वच लत हो गए और तुरंत
आ म प ँच गए।
हनुमान ने अपनी माता तथा काशी नरेश को णाम कया। उ ह ने तुरंत यया त को
पहचान लया क वह राम का महान भ था और फर उ ह ने अपनी माता से पूछा क
उ ह य याद कया। अंजना ने हनुमान को सारी बात बताई। हनुमान ने राजा क र ा का
वचन दया। इसके बाद उ ह ने राजा से पूछा क उसका श ु कौन है। ‘राम’ का नाम सुनकर
दोन अंजना और हनुमान च कत रह गए। उ ह समझ नह आया क वे या कर, कतु
अंजना ने कहा क उसके वचन क र ा के लए य द आव यक हो, तो हनुमान को राम से
यु भी करना पड़े गा। नारद भी अपनी वीणा बजाते ए और अ यंत स न मु ा म वहाँ आ
गए।
राम और व वा म भी वहाँ आ प ँचे। हनुमान ने राजा को अपने पीछे कर लया और
राम से बोले क उ ह ने अपनी माता को राजा क र ा का वचन दया जसे वे अव य पूरा
करगे।
भ और भगवान एक- सरे को दे ख रहे थे। आ ख़रकार, राम ने अपना अ नबाण
नकाला और हनुमान पर छोड़ दया। आंजनेय ने उसे एवं राम के अ य सभी बाण को
सहजता से सहन कर लया। उनके ऊपर कसी बाण का कोई भाव नह हो रहा था। राम
ने अंत म अपना स बाण नकाला और कहा, “मेरे पास अब इसका योग करने के
अ त र कोई वक प शेष नह है। राजा यया त को मुझे स प दो और यह स करो क
तुम मेरे स चे भ हो य क मुझे अपने गु को दया वचन नभाना है।”
हनुमान ने उ र दया, “ भु! म न चय ही आपका स चा भ व श य ँ इस लए
मुझे भी अपनी माता को दया वचन नभाना है। मेरा व आपके सामने है। मुझ पर बाण
चलाइए।”
यह कहकर उ ह ने अपनी छाती सामने कर द और राम मं का जाप करने लगे।
राम का बाण छू टा और मा त क छाती को चीरकर उनके दय म वलीन हो गया।
वहाँ सबको यह दे खकर आ चय आ क हनुमान के दय के भीतर राम व सीता क छ व
व मान थी।
नारद ने राजा से कहा क वह भागकर व वा म के चरण म अपना सर रख दे । अपने
ाण बचाने का यही उ चत अवसर था। हालाँ क, यया त सामने आने से डर रहा था, उसने
नारद मु न क बात मान ली और व वा म के चरण म सर झुकाकर उससे अंजाने म ए
कसी भी अपराध के लए मा माँगने लगा।
राम घूमकर यया त का सर काटने ही वाले थे, कतु नारद ने रोक दया और कहा,
“ भु, कृपया यया त को मत मा रए। आपके गु क इ छा पूण हो गई है। उ ह ने आपके
केवल यया त का सर उनके चरण म झुकाने क माँग क थी और वह माँग पूरी हो गई है।
इस लए अब आप अपने गु के आदे श के उ लंघन के दोषी नह ह।”
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राम ने न-भरी से व वा म को दे खा। वे ज द म कए गए कृ य के लए
पछता रहे थे और राजा को ब त दे र पहले मा कर चुके थे। उ ह ने कहा,” नारद ने ठ क
कहा है। राजा ने अपना सर मेरे चरण म झुका दया है, इस लए आप यह मान ली जए क
मेरे आदे श का पालन हो गया है।”
राम ने अपना तीर वापस तरकश म रख लया। फर वे हनुमान को दे खकर बोले,
“आंजनेय! तुमने मुझे जीत लया। तुम मेरे स चे भ हो। अपना वचन पूरा करने के लए
तुम मुझसे भी लड़ने के लए तैयार हो गए। भ व य म तुम ‘वीर हनुमान’ के नाम से जाने
जाओगे।”
हनुमान ने राम को णाम कया और कहा, “ भु, वा तव म जस दन से आपक कृपा
मुझ पर पड़ी है, आपने मुझे जीत लया है। आप सदा मेरे दय म वास करते ह और
दरअसल, आपने वयं ही अपना बाण रोककर मेरी र ा क है। मने कुछ नह कया।”
हनुमान क एक अ य कथा आती है, जससे भगवान के नाम क म हमा स होती है।
कहते ह, एक बार राम ने कुवचन नाम के को, जसने उनके पूवज का अपमान
कया था, मारने के लए अपना धनुष उठा लया। वह तुरंत हनुमान क शरण म
गया। उसका अपराध जाने बना ही हनुमान ने उसे र ा का वचन दे दया।
हनुमान ने जब राम को धनुष बाण हाथ म लेकर आते दे खा तो वे समझ गए क उनके
साथ छल आ है। चूं क उ ह ने वचन दे दया था, वे कमर पर हाथ रखकर राम और
कुवचन के बीच खड़े हो गए।
राम का नाम जपते ए, हनुमान ने अपनी पूँछ से कुवचन के चार ओर एक सुर ा च
बना दया। वह च राम नाम से गूँज रहा था। राम ने ब त यास कया कतु वे उस च
को नह तोड़ सके।
“राम से बड़ा राम का नाम!” हनुमान ने कहा।
इस परेशानी को समा त करने के लए दे वता को ह त ेप करना पड़ा। दे वता ने
राम को कुवचन को उनके पूवज का अपमान करने के लए मारने क अनुम त दान कर
द , और साथ ही, हनुमान को राम नाम क म हमा से कुवचन को पुनज वत करने क श
दान कर द !

और मनोरथ जो कोई लावै।


सोइ अ मत जीवन फल पावै।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

संसार-भयनाशनाय नमः

अ याय 30

वीर
सीता का याग

म बार बार आपसे वरदान माँगता ँ,


कृ पालु बनकर मुझे यह वरदान द जए -
आपके चरणकमल म मेरी अटू ट आ था रहे,
और मुझे सदै व संत क संग त ा त हो।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

अपनी पु तक के अं तम अ याय म ‘उ र कांड’ म वा मी क ने नशाचर के राजा रावण के


पूव इ तहास का उ लेख कया है। इसी पु तक म राम ारा सीता को ता ड़त करने क
क द घटना भी द गई है। हम ऐसा करने के पीछे मह ष के उ े य पर आ चय हो सकता
है। वे शायद सीता को अ य धक ेम करने वाले दो पु ष के वल ण व के ुवीय
अंतर क तुलना करना चाहते थे। एक कामुक वृ वाला श शाली रा स रावण था, जो
पर-पु ष क प नी के त अपनी वासना को तृ त करने के लए अपने कुल, अपने भाइय ,
म और यहाँ तक क अपने पु को मरवाने के लए भी तैयार था! सरी ओर, राम का
द व है, ज ह ने धमप नी के त अपने ेम का दमन करके अपनी जा के त
दा य व को ाथ मकता द तथा धम- स ांत क वेद पर अपने सव य क ब ल चढ़ाने को
तैयार हो गए थे। इससे यह स होता है क राजा को सबसे पहले ई वर, फर अपना दे श
तथा अंत म अपनी गत इ छा को थान दे ना चा हए। रावण अपने समूचे कुल के साथ
समा त हो गया जब क अपने संत समान राजा के शासन म कोसल दे श समृ होता गया!
तप वीजन, सब थान से राम और सीता को आशीवाद दे ने अयो या आते थे। राम उ ह
सोने के सहासन पर बैठाते और उनका स कार करते थे। एक बार राम ने रावण के इ तहास
के बारे म पूछा क वह इतना श शाली कैसे बन गया तथा उसके पु मेघनाद क या
कहानी थी, इ या द।

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अग य ने रावण क पूरी कथा सुनाई। वह शव का ब त बड़ा भ था। उसने ा
क कठोर तप या क और उनसे अनेक वरदान ले लए। उसने अपने लए सभी दे वता ,
रा स , पशु तथा गंधव से सुर ा माँग ली कतु वह मनु य और वानर को भूल गया। ये
सब वरदान पाने के बाद, वह अहंकारी हो गया और दे वता स हत, सभी से लड़ता रहता
था। उसने अहंकार म कैलाश पवत को भी उठाने क को शश क थी, कतु शव ने अपने
पैर के अँगूठे से पवत को दबाकर रावण का हाथ उसके नीचे दबा दया था। उसके बाद ही,
रावण ने ‘ शव तांडव तो ’ नाम क स तु त क रचना क , जसे सुनकर शव इतने
स न हो गए क उ ह ने रावण का हाथ छोड़ दया और उसे ब त-से वरदान भी दए।
रावण को वापस लौटते समय, एक आ म म अ यंत सुंदर तप वनी दखाई पड़ी।
उसने कोई आभूषण नह पहने थे। वह व कल व पहनकर और जटा को बाँधकर,
गहन तप या म लीन थी। वह आभूषण के बना भी अ यंत सुंदर लग रही थी। रावण
उसका स दय दे खकर मु ध हो गया। वह उसके पास गया और पूछा क वह कौन है और
तप या य कर रही है।
उसने उ र दया, “मेरा नाम वेदवती है और म दे वता के गु बृह प त क पु ी ँ।
मेरे पता ने ववाह के सभी ताव अ वीकार कर दए तथा इस बात पर बल दया क म
तप या क ँ और भगवान व णु को वर के प म ा त क ँ । मेरे माता- पता को एक
रा स ने मार डाला था और म तभी से, व णु को प त प म पाने के लए कठोर तप कर
रही ँ।”
रावण ने उपहास करते ए कहा, “तु हारे पता मूख थे और तुम भी मूख हो जो उनके
मूखतापूण सुझाव को मानकर अपना यौवन न कर रही हो। म व णु जतना नह , ब क
व णु से भी अ धक बड़ा ँ और तुम मेरी प नी बनकर सुखी रहोगी।” ऐसा कहकर उसने
उस ी पर छलाँग लगा द । वह अपने ाण बचाने के लए भागी कतु रावण ने उसका
पीछा कया और उसे बाल से पकड़ लया।
उसने कसी तरह वयं को मु करवा लया और बोली, “ रा स! म इस शरीर का
अंत कर रही ँ जसे तूने अपने पश से गंदा कर दया है। परंतु म दोबारा शरीर ा त
क ँ गी, और तेरे पतन का कारण बनूँगी।” ऐसा कहकर उसने रावण के सामने अपने ाण
का अंत कर लया।
तप वय ने राम से कहा, “उसी वेदवती ने सीता के प म ज म लया और आप वयं
भगवान व णु के अवतार ह।”
अग य ने राम को रावण क एक और कथा सुनाई जसम सीता के हरण का कारण
बताया गया था। रावण ने अपने जीवन म अनेक अ छे काय कए थे और इस तरह, वह
वग जाने का अ धकारी बन गया था। परंतु उसके अ याचार ने उसके स कम का भाव
न कर दया। सतयुग के दौरान, रावण ने सन कुमार नाम के एक महान तप वी से पूछा क
दे व म कौन-से दे वता मो दान कर सकते ह। तप वी ने उसे बताया क व णु ही
एकमा दे वता ह, जो मो दान कर सकते ह। उ ह ने यह भी कहा क व णु के हाथ
जसक मृ यु होती है, उसे त काल मु मल जाती है। यह सुनकर रावण क आँख म
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चमक आ गई। उसने सन कुमार से पूछा क व णु का अगला अवतार कब होगा ता क वह
कुछ ऐसा कर सके क उसक मृ यु उनके हाथ हो सके। सन कुमार ने रावण को बताया क
ेता युग म भगवान व णु इ वाकु वंशज, राम के प म तथा उनक प नी ल मी, वदे ह
नरेश क पु ी के प म अवतार लगी और राम से ववाह करगी।
रावण ने इस बात पर वचार कया और न चय क राम के प म व णु के हाथ मु
पाने का एकमा तरीक़ा यही है क वह उ ह इतना ोध दला दे क राम उसे मारने के लए
ववश हो जाएँ। ऐसा करने का सबसे अ छा तरीक़ा उनक प नी का हरण करना था।
अग य ने राम को बताया क यही सीता के हरण का रह य था! उ ह ने राम को रावण के
पु मेघनाद और प नी मंदोदरी के पूवज म के वषय म भी बताया। इस तरह, ज टल धाग
को बुनकर नय त ने उनके जीवन का च पट तैयार कया गया और उसे राम के सम
तुत कया गया था।
राम ने अनेक वष तक सीता के साथ, अपने कुशल मं य और य भाइय के साथ
राज कया। एक बार वे अपने तीन भाइय व हनुमान के साथ बैठे ए थे, तो भरत ने उनसे
न करना चाहा, कतु फर भरत ने हनुमान को बोलने के लए कहा य क राम उ ह
अ धक पसंद करते थे।
“ भु!” मा त ने कहा, “भरत चाहते ह क आप स पु ष और के वभाव
म अंतर को व तार से समझाएँ।”
राम ने उ र दया, “स पु ष और के सद्भाव म उतना ही अंतर होता है जतना
चंदन क लकड़ी और कु हाड़ी म होता है। चंदन क लकड़ी उस कु हाड़ी को भी अपनी
सुगंध दे दे ती है जो उसे काटती है! इस लए चंदन को सब चाहते ह और उसे दे वता के
सर पर चढ़ाए जाने का सौभा य मलता है। सरी ओर, कु हाड़ी क धार को आग म
तपाया जाता है और उसे ठोक-पीटकर चपटा कया जाता है!”
“भैया! दान के समान कोई धम नह है और घृणा से बढ़कर कोई पाप नह है। लोग
अनेक कार के अ छे और बुरे कम करते ह, कतु स चा स णी येक व तु को
समभाव एवं ेम से दे खता है।”
राम के भाई और हनुमान उनके वचन सुनकर मु ध हो गए।
राजमहल के नकट एक अशोक वा टका थी, जो लंका क अशोक वा टका से भी सुंदर
थी। उसम चंपक, कदं ब, अशोक और चंदन के वृ थे तथा आम और अनार जैसे फल
लगते थे। अपना काय समा त करने के बाद, राम अपनी प नी के साथ उस वा टका म
टहलते थे। एक दन, जब वे दोन वहाँ बात कर रहे थे तो राम ने यान दया क उनक
प नी गभवती ह। सीता ने लाल रंग के चमकते व पहने थे और उनक वचा शा वत
स दय के साथ कां तमान द ख रही थी। राम यह दे खकर ब त स न ए तथा वे सीता का
हाथ पकड़कर उ ह वा टका-कुंज म ले गए और उ ह आराम से र नज ड़त आसन पर
बैठाया। राम ने उ ह अनेक फूल के पराग से बना रस पलाया, जसे मधुम खय ने पश
भी नह कया था। उ ह ने अपने हाथ से रस का याला सीता के ह ठ से लगाकर, वह रस
उ ह पलाया। उ ह ने अपनी प नी का ब त ेम से आ लगन कया और उनसे पूछा।
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“ य! तुम कतनी सुंदर लग रही हो! म दे ख सकता ँ क तुम गभवती हो। हमारे
जीवन म केवल एक पु का अभाव है। मुझे इसम कोई संदेह नह है क हमारी संतान
अ यंत वल ण होगी। मुझे बताओ, य, म तु ह कस कार स न कर सकता ँ? या
तु हारी कोई इ छा है, जो अभी पूरी नह ई है? तुम जो चाहोगी, तु ह मलेगा।”
यह सुनकर सीता ने कमल-सा चेहरा उठाया और धीरे-से कहा, “ वामी! म वयं सबसे
सौभा यशाली ी मानती ँ। आपक प नी क इससे बड़ी या इ छा हो सकती है क वह
सदा आपके साथ रहती है?”
परंतु राम ने ज़ोर दे कर कहा, “ य, य द संभव हो तो, म तु ह और भी अ धक ख़ुश
रखना चाहता ँ। मुझे बताओ क म तु हारे लए या कर सकता ँ। म तुम पर अपना सब
कुछ योछावर करने को तैयार ँ य क कहते ह, गभवती ी क सब इ छाएँ पूण करनी
चा हए।”
सीता ने उ ह मु कराकर ेम-भरी से दे खा और कहा, “ या आपको वह च कूट
का वन याद है जहाँ हम लोग हाथ म हाथ डालकर घूमते थे? या आपको वहाँ के ऋ ष-
मु न, उनक प नयाँ तथा उनके आ म म होने वाली शां त याद है? म एक बार फर वहाँ
जाकर उनसे मलना चाहती ँ तथा वन के कंद-मूल, फल खाना और गंगा का शु जल
पीना और वहाँ एक-दो दन रहना चाहती ँ।”
राम ने अपनी प नी को ेम से दे खा। वे सीता को कसी बात के लए मना नह कर
सकते थे। इतने वष म उनका अपनी प नी के लए ेम बढ़ गया था। उनके मन म, अ य
राजा क भाँ त, कभी अ त र रा नयाँ रखने क इ छा जागृत नह ई। वा तव म, यह
वचार ही उ ह घनौना लगता था। उनके लए सीता सबसे आकषक ी थ और उ ह ने
कभी कसी अ य ी को नह पसंद नह कया।
सीता का हाथ अपने हाथ म लेकर, राम ने उनक छौने जैसी आँख म दे खा और बोले,
“वैदेही! य, य द यही तु हारी इ छा है तो तुम वहाँ अव य जाओगी। म तु ह कल ही वहाँ
भेजने का बंध कर दे ता ँ।”
सीता को वचन दे कर, राम उ ह वहाँ छोड़कर अपने सा थय के साथ बात करने लगे
और सीता अपने नवास पर चली ग जहाँ उनक नई दासी उनक ती ा कर रही थी।
दरअसल, यह ी रावण क बहन शूपणखा थी, जो अपने भाई क मृ यु का तशोध लेने
के उ े य से दासी का वेश धारण करके महल म घुस गई थी।
उसने सीता से म ता कर ली और उसे दे खने के बाद, उसने मज़ाक म पूछा क रावण
दे खने म कैसा था।
सीता ने कहा, “मुझे नह पता क वह कैसा दखता था य क मने कभी उसका चेहरा
नह दे खा। लंका आते समय, एक बार उसक परछा दे खी थी जो समु पर पड़ रही थी।”
दासी ने सीता को द वार पर रावण क छ व बनाने के लए कहा। सीता ने भी भोलेपन
म उसक छ व का च बना दया। सीता य ही क से बाहर नकली, शूपणखा ने उस
च को पूरा कर दया और महल से बाहर नकल गई। उसने यह समाचार चार ओर फैला
दया क सीता के नजी क क द वार पर रावण का च बना आ है। न चय ही, लोग
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अपने राजा के अवगुण दे खने को सदा त पर रहते ह तो उस समाचार ने पूरी कहानी का प
ले लया जसम लोग के अपने ववरण भी जुड़ते चले गए!
सीता को वा टका म छोड़ने के बाद, राम अपने म से बात करने बाहर आँगन म चले
गए थे। बातचीत के दौरान, उ ह ने अपने म भ से पूछा, “भ , मुझे बताओ क
अयो यावासी, मेरे वषय म, मेरी प नी और मेरे भाइय के बारे म या बात करते ह? राजा
लोग हमेशा सामा य जनता के लए नदा का वषय होते ह और राजा के लए यह जानना
आव यक होता है क वे लोग या सोचते ह।”
भ ने हाथ जोड़कर कहा, “लोग सदा आपक शंसा करते ह। कभी-कभी वे पहले के
समय क बात करते ह जब आपने दशानन को मारकर, वैदेही को छु ड़ाकर असंभव काय
कर दखाया था। आपके काय को सभी लोग बड़े उ साह से याद करते ह।”
“वे और या कहते ह, भ ? मुझे सब कुछ बताओ। तुम अपना मुँह य छपा रहे हो?
या ऐसा कुछ है जो तु ह लगता है क मुझे नह बताया जाना चा हए? तुम घबराओ मत।
म अ छा और बुरा दोन जानना चाहता ँ। कोई राजा अपनी जा के वचार क उपे ा
नह कर सकता, इस लए मुझे सब कुछ प प से बताओ।”
भ ने धीमी और लड़खड़ाती आवाज़ म कहा, “लोग यह भी कहते ह क हालाँ क
आपका उस रा स रावण को मारना शंसनीय काय है, कतु अपनी प नी के साथ आपका
वहार ल जा द है। एक राजा कसी ऐसी ी को कैसे वीकार कर सकता है जसे
रावण ने अपनी गोद म बैठाया, और जो उसके पास इतने समय रहकर आई है? रानी अपना
अनादर कैसे भूल सकती ह? हम भी अपनी प नी का ऐसा वहार सहन करना पड़े गा। वे
वे छा से एक पु ष से सरे के पास जाएँगी और हम ववश होकर इसे वीकार करना
पड़े गा। ‘यथा राजा, तथा जा!’ लोग अ ानतावश यही कहते ह।”
अपने और अपनी न कलंक प नी के व ऐसा अपमानजनक आरोप सुनकर राम
के चेहरे के भाव प रव तत हो गए। वे कुछ नह कह सके। उनके सा थय ने उ ह दलासा
दे ते ए कहा, “राजन! उ च कुल के लोग के वषय म बुरा बोलना सामा य जनता का
वभाव होता है। राजा को ऐसे नरथक आरोप पर यान नह दे ना चा हए।”
राम ने उनक कोई बात नह सुनी। अपने सहज और श ाचारी तरीक़े से वदा लेकर, वे
वा टका म जा बैठे और वचार म डू ब गए। उ ह ने न चय कया क कोई नणय लेने से
पहले उ ह इस मामले क जाँच करनी चा हए। उस दन उ ह ने सामा य अयो यावासी जैसे
व पहने और नगर के गु त दौरे पर नकल पड़े । संयोग से, वे नगर क एक पीछे वाली
गली म एक धोबी के घर के पास से गुज़रे तो उ ह घर म से कसी पु ष के ग़ से होने का
वर सुनाई पड़ा। वे ार के नकट गए और बाहर खड़े होकर बात सुनने लगे। पु ष अपनी
प नी को फटकार रहा था।
“मने तु हारे अनु चत वहार क बात सुनी ह। तु ह इस माग म आने वाले एक े
पु ष से बातचीत करते दे खा गया है। तुम अपने घर वापस चली जाओ। म अब तु ह यहाँ
नह रख सकता। म उ च कुल का ँ और कसी च र हीन ी को अपनी प नी बनाकर
नह रख सकता। तुम जहाँ जाना चाहो, जा सकती हो।”
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बेचारी ी ने याचना क क वह नद ष है और उसने केवल पु ष ारा पूछ गई कसी
बात का उ र दया था। धोबी ने कठोर वर म उ र दया, “ या तु ह ऐसा लगता है क म
राम ँ, जो ऐसा वहार सहन क ँ गा? वे राजा ह और जो चाहे कर सकते ह। जहाँ तक
मेरा न है, म ऐसी ी को अपनी प नी बनाना नह वीकार कर सकता जो कसी अ य
पु ष से बातचीत करती हो।”
राम कुछ ण के लए मानो जड़ हो गए। उ ह लगा वे वृ ह जस पर व पात आ
है। लंका से लौटने के बाद, उनके दय म अंकु रत ए आशा के प े व क लयाँ जल गई थ
तथा वग से गुहार लगात मूक व जली ई, नंगी और काली शाखाएँ कट हो गई थ । उ ह
लगा उनका तन जल रहा था। वे कसी तरह लड़खड़ाते ए महल लौट आए। वे अपने
नजी क म प ँचे और उ ह ने अपने भाइय को तुरंत बुलवाया। उनके भाई उनके वहार
से त ध थे और वे त काल उप थत हो गए। राम ार क ओर पीठ कए खड़े , बाहर
शीतकालीन उ ान को दे ख रहे थे। उनका चेहरा पीला और आँख भावशू य थ । उ ह ने
मुड़कर अपने भाइय को दे खा। उनके हाथ हलके काँप रहे थे।
ल मण उनके सम घुटने के बल बैठ गए और बोले, “भैया, या बात है? मुझे
बताइए। आपका श ु कहाँ है? आप जानते ह क आपको केवल आदे श दे ना है और म
त काल उसका पालन क ँ गा।”
राम ने भाव शू य वर म उ र दया, “ या तु ह पता है क नगरवासी, मेरे और सीता
के वषय म या बोल रहे ह?”
सभी ने अपने सर झुका लए। राम ने कहा, “मुझे लग रहा है क तुम सबको इस बात
का पता था कतु तुमने इतने वष तक यह स य मुझसे छपाया। ल मण! तुम तो इस बात
के सा ी हो क मने अ न परी ा ारा सीता क शु चता स हो जाने तक उसे वीकार
करने से मना कर दया था। फर भी, ये लोग इस तरह बोल रहे ह मानो मने कोई ब त बड़ा
अपराध कया है। मेरा दय खी और आहत है। म ख म डू बा जा रहा ँ, तथा प राजा
होने के नाते मुझे अपने क का भान है। राजा का सबसे पहला दा य व, अपने लए
नह अ पतु अपनी जा के लए होता है। सीता मुझे अपने ाण से भी अ धक य है, कतु
अपनी जा के लए मुझे सीता का याग करना होगा।”
“ल मण, तुम सुमं के साथ सीता को रथ म बैठाकर गंगा पार तमसा नद के नकट
छोड़ दो, जहाँ हम ब त समय साथ रह चुके ह। कल सुबह ही उसने मुझसे वहाँ जाने के
लए कहा था। उसक इ छा भी पूरी हो जाएगी और उसे कसी कार का संदेह नह
होगा।”
ल मण आ चय से उछल पड़े और बोले, “भैया, आप उनके साथ ऐसा नह कर
सकते! वे आग से नकले कंचन क भाँ त शु ह। आप कृपया मुझे ऐसा करने के लए मत
क हए। आप और कुछ कहगे तो म करने को तैयार ँ कतु यह मुझसे नह होगा। या
आपको नह पता क उनके गभ म आपक संतान पल रही है? आप यह करना कैसे सहन
कर सकते ह? या आप अपनी संतान के ज म क ती ा नह कर सकते?”

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राम का चेहरा प थर-सा भावशू य था। उ ह ने कठोर वर म कहा, “संतान के ज म के
बाद तुम कहोगे क उसे ब चे के तनपान क अव ध तक कने द जए, फर तुम कहोगे क
ब चे को पाँच वष का हो जाने द जए और इस तरह यह अ न चत प से चलता रहेगा
और अंत म राम, अपने आनंद के लए अपनी जा के साथ व वासघात का दोषी बन
जाएगा।”
भरत और श ु न ने भी अपनी याचना जोड़ द ।
राम ने तेज़ और तीखे वर म कहा, “म कसी क कोई बात नह सुनना चाहता। मुझे
कसी का सुझाव नह चा हए। म तु हारा राजा ँ और न ववाद आ ापालन क अपे ा
रखता ँ।”
कुछ पल क त धता के बाद, मौन छा गया। राम ारा अपने भावावेश को नयं त
करने के यास के कारण उनके वास का वर भारी हो गया था और केवल वही वर सुनाई
पड़ रहा था।
आ ख़रकार, ववण अव था म, चेहरे पर छद्मभाव के साथ राम ने कहा, “जाओ
ल मण! सीता को गंगा कनारे, तमसा नद के तट पर एकांत थान पर कसी आ म के
समीप छोड़कर, वहाँ से तुरंत लौट आना। तु ह उससे बात करने के लए कना नह है। उसे
कुछ समझाना भी नह है। वह मेरे बारे म जो चाहे, उसे सोचने दो, अ यथा उसका दय टू ट
जाएगा और वह मर जाएगी। मेरी ओर इस तरह आ ेप भरी से मत दे खो। जो भी मेरे
नणय पर आप करेगा, वह मेरा श ु बन जाएगा। ल मण! उसे इसी ण ले जाओ। मेरे
लए उसे एक बार भी दे ख लेना अपराध है। म अपने ही आदे श का पालन नह कर सकूँगा।
य द मने उसक छौने जैसी आँख म वनती का भाव दे ख लया तो म उसम खो जाऊँगा
और संसार भर क नदा के बावजूद, म उसे यहाँ से जाने क अनुम त नह दे सकूँगा।
इस लए, इससे पहले क मेरा दय मुझे धोखा दे जाए और म भावुक होकर अपना ण
तोड़ ँ , तुम उसे लेकर चले जाओ। तुम इतना झझक य रहे हो? म, यहाँ का नरेश, तु ह
ऐसा करने क आ ा दे ता ँ!”
राम के तीन भाई एक श द भी न कह सके। ल मण अपने भा य को कोस रहे थे क
उ ह इस क दायक आ ा का पालन करना था।
राम क आँख से आँसू बह रहे थे। वे लड़खड़ाते ए बाहर उ ान म एकांत थान पर
चले गए, जहाँ से सीता को न दे ख सक।
उ ह ने वह रात, उ ान म ही तार को दे खते काट द । य द वे अपने क म जाकर
अपनी यतमा को बाँह म ले लेते तो उ ह पता था क वे सीता को कभी नह भेज पाएँगे।
कौन जानता है क उनके म त क म कैसे कटु वचार चल रहे थे! परंतु उ ह ने अपना
ण नह तोड़ा। धम उनका ई वर था और धम क र ा के लए, वे अपनी प नी और
अज मी संतान क ब ल दे ने को तैयार थे। उस रात सीता को अकेले सोना पड़ा। उ ह अपने
वामी क अनुप थ त पर आ चय हो रहा था कतु उ ह ने सोचा क वे अव य कसी
मह वपूण काय म उलझ गए ह गे। वे, ब चे के समान, अगले दन सुबह मलने वाले
उपहार के वषय म सोचकर ख़ुश हो रही थ । उ ह ने अपने जीवन के कुछ सव े पल
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अपने प त के साथ वन म बताए थे और वे एक और रा ऋ षय क प नय के साथ
आ म म बताने को लेकर ब त उ सा हत थ । उ ह ने आ मवा सय के लए पहले से ही
कुछ उपहार बाँध लए थे और वे जाने को तैयार थ क तभी ल मण ने उनका ार
खटखटाया।
सीता क ओर बना दे खे, भावर हत वर म ल मण ने कहा, “आपके प त और हमारे
राजा ने मुझे यह आदे श दया है क म गंगा कनारे आ म जाने क आपक इ छा को पूण
क ँ । या आप चलने को तैयार ह?”
सीता अ यंत स न हो ग और वे ल मण के साथ बाहर ती ा कर रहे रथ पर सवार
हो ग । दोन , सुबह क धुंध म नकल पड़े । सुमं और ल मण म से कसी ने भी सीता क
ओर नह दे खा। सीता अकेले ही स न हो रही थ । सीता ने मुड़कर अपने पीछे सो रहे नगर
को दे खा। उ ह यह बलकुल नह पता था क वे उसे अं तम बार दे ख रही थ । सहसा, उनके
दय म आशंका उ प न हो गई।
उ ह चार ओर अपशकुन दखाई दे रहे थे। उनके दाएँ अंग और आँख फड़क रही थी
और उ ह अचानक बलता का एहसास होने लगा।
सीता ने ु ध वर म पूछा, “सु म ानंदन! मुझे बताओ, या तु हारे भैया कुशल ह?
मने उ ह कल रात से नह दे खा है। वे कहाँ ह? मुझे लग रहा है क कुछ सं द ध घट रहा
है।”
ल मण ने ँ धे गले से उ र दया, “आपके प त बलकुल ठ क ह। यह उनका आदे श
था क आपको रात म बलकुल परेशान न कया जाए य क आपको सुबह लंबी और
क ठन या ा करनी थी। उ ह ने आपके लए मंगलकामना भेजी है।” ल मण, इससे अ धक
कुछ नह कह सके।
दोपहर तक वे गोमती नद के तट पर प ँच गए थे और उ ह ने एक आ म के नकट
पड़ाव डाल दया। अगले दन सुबह, वे रथ म बैठकर आगे चले और शी ही प व गंगा
नद के तट पर प ँच गए। यहाँ प ँचकर, ल मण वयं को सँभाल नह पाए और ब चे क
तरह रोने लगे।
“ल मण, तुम रो य रहे हो?” सीता ने पूछा। “तु ह दे खकर मुझे घबराहट हो रही है।
मेरी यहाँ आने क ब त इ छा थी और अब जब तुम मुझे यहाँ ले आए हो तो तुम इस तरह
रोकर मुझे खी कर रहे हो। या तु ह यह ख राम से दो दन अलग होने के कारण हो रहा
है? फर मेरा या होगा? मुझे कतना रोना चा हए? म तो उनके बना जी वत ही नह रह
सकती। चलो, हम लोग ज द से आ म चल और वहाँ सबको उपहार बाँटकर हम वापस
लौट जाएँगे। मुझे भी असहज महसूस हो रहा है। मुझे डर लग रहा है क मेरे वामी परेशान
ह।”
ल मण ने अपने आँसू प छे और फर वे एक नाव ले आए। उ ह ने उसम सीता को
बैठाया तथा नद पार कर ली। उसके बाद, वे सीता के चरण म गर पड़े और फूट-फूटकर
रोने लगे। सुमं भी एक ओर अलग खड़ा आ चुपचाप रो रहा था। यह दे खकर सीता
सचमुच ब त हो उठ ।
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“ल मण, मुझे बताओ, या बात है? या मेरे य प त को कुछ हो गया है? वे हमारे
साथ य नह आए? मुझे आशा थी क वे भी हमारे साथ आएँगे।” अंत तक, सीता का
वचार राम पर ही क त था, जो उनके लए सब कुछ थे। उ ह ने यह क पना नह क थी
क माग म होने वाले सारे अपशकुन उ ह के संदभ म हो रहे थे।
ल मण ने आँसु से धुँधली पड़ी आँख से, सीता को वनती-भरी नज़र से दे खा। “हे
रानी! मुझे जो कुछ करना पड़ रहा है, कृपया मुझे उसके लए मा क जए। राम ने
आपको यहाँ छोड़ दे ने का नदनीय काय मुझे स पा है। मेरे लए बेहतर होता क म उनक
इस आ ा का पालन करने क अपे ा अपने ाण याग दे ता।” यह कहकर ल मण, सीता
के चरण म गर पड़े ।
सीता ने झुककर धीरे-से ल मण को उठाया, “ या आ ल मण? तुम या कहना
चाहते हो? मेरे प त के इस अचानक लए नणय का या कारण है?” सीता को अपने कान
पर व वास नह हो रहा था।
“दे वी, चार ओर आपके और राम के वषय म अफ़वाह फैल गई है। म आपको सब
कुछ नह बता सकता। राम ने मुझे आपको बताने के लए मना कया है। म केवल इतना ही
कह सकता ँ क आपके ऊपर लगे कु टल आरोप को सुनकर उनका दय वच लत हो
गया है। परंतु वे राजा ह। वे धम के अवतार ह। राजा का कत अपनी जा के हत क
र ा करना होता है। अयो या क महारानी! कृपया उ ह और मुझे मा कर द जए। म
इससे अ धक कुछ नह कह सकता। रात होने वाली है। म आपको यहाँ अकेले छोड़कर
कैसे जा सकता ँ? राम ने मुझे कहकर भेजा है क म आपक सुर ा का बंध कए बना
आपको एक ण के लए भी अकेला न छोडँ । हम दोन केवल एक बार आपको अकेला
छोड़ गए थे और तभी रा सराज आपका हरण कर ले गया था। अब यहाँ कौन आपक
दे खभाल करेगा? म ाथना करता ँ क आपक माता, पृ वी आपक र ा कर, आकाश
आपका छ बने और यह प व नद आपक सम त इ छा को पूण करे। यान र खए,
दे वी क आपके गभ म इ वाकु कुल क संतान है। हर ण, उसक र ा करना आपका
क है।”
ल मण को डर था क सीता परेशान होकर अपने ाण का अंत न कर ल।
सीता कसी भयभीत हरण क भाँ त ल मण क बात सुन रही थ । उसके बाद, उ ह ने
आ चय-भरे वर म कहा, “मने या अपराध कया है, जसके लए मेरे प त ने बना कसी
कारण, मुझे दो बार ता ड़त कया है? न चय ही, मेरा ज म ख सहने के लए आ है।
ख ही मेरा थायी साथी है। है। मुझे सहनशील बनकर, राम के असहाय चेहरे को दे खते
रहना है। म सबको छोड़कर, अपने प त के साथ वन म गई, व य पशु एवं रा स के बीच
रही। मने जो कया, वैसा कोई ी नह करती, और फर भी उ ह ने मुझे याग दया! वह
रा स मुझे उठा ले गया, या यह मेरी भूल थी? जब ये तप वी मुझसे पूछगे क मने या
अपराध कया है, जसके लए मेरे प त ने मुझे याग दया है तो म उ ह या उ र ँ गी?
मुझसे या भूल ई है? म इस प व नद म कूदकर अपने ाण याग दे ने का सरल माग भी
नह चुन सकती, अ यथा मुझे इ वाकु वंश क उ च वंशावली को खं डत करने का दोषी
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माना जाएगा। ल मण, तुम खी मत होओ। मुझे यहाँ छोड़कर तुम अपने राजा और मेरे
प त के पास लौट जाओ और उ ह कहना क उनक प नी ने उनके मंगल क कामना क
है। एक ी के लए उसका प त भगवान होता है और मने भी उ ह इसी प म माना है।
ई वर कर क राजधम का पालन करने से राम को सनातन क त ा त हो। मेरे क से
अ धक मह वपूण यह है क उनका स मान अ ु ण रहे। राम के अपयश का दोष, सीता पर
कभी नह आना चा हए। तुम अब जाओ, ल मण! तुम मेरे लए भाई से भी बढ़कर हो। मेरे
मन म तु हारे लए अगाध स मान है। म तु ह कसी बात का दोषी नह मानती। शी ही रात
हो जाएगी। अब तु ह जाना चा हए ता क मेरे वामी तुम पर ो धत न ह ।”
ल मण ने एक बार फर सीता के चरण म गरकर उ ह णाम कया। वे एक श द भी
नह कह सके। वे धीरे-धीरे नाव क ओर गए और नद पार लौट गए। उ ह ने मुड़कर सीता
को दे खा। वे अपनी माता, पृ वी के व पर लेट रो रही थ मानो उनका दय वद ण हो
जाएगा।
सीता ने उठाकर दे खा। ल मण का रथ ब त र जा चुका था। एक मोर ारा अपने
साथी के लए क ण पुकार सुनकर सीता क बल नस काँप उठ । गंगा शांत भाव से बह
रही थी मानो उ ह दलासा दे रही हो। वे नद के झल मलाते जल को दे खकर मु ध हो ग
और सोचने लग क वह जल उनके सर के ऊपर कसी मरहम के समान बहता आ कैसा
लगेगा, कतु तभी उ ह अपने भीतर हलते ए जीवन का एहसास आ। उ ह पता था क
वे उस सरल माग को नह चुन सकती थ ।

जै जै जै हनुमान गोसा ।
कृपा कर गु दे व क ना ।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

रामायण- याय नमः

अ याय 31

राम य
रामायण

जस कार कसी श द और
उसके अथ को अलग नह कया जा सकता,
और जस कार एक लहर को जल से
अलग नह कया जा सकता, उसी कार,
पी ड़त के शरणदाता राम और सीता ह,
जनसे म अ तशय ेम करता ँ।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

सीता को जस जगह छोड़ा गया था, वहाँ से मह ष वा मी क का आ म ब त पास था।


उस दन सुबह जब ऋ ष अपने न यकम के लए नद तट पर गए तो उ ह ने वहाँ दो सारस
प य को संसग करते दे खा। उनके सहज ेम को दे खकर ऋ ष का मन स न हो गया।
उसी समय, ाध ने तीर चलाया जो धम के व था। उस तीर ने नर-प ी को आहत कर
दया। ू रता से चलाए गए उस बाण से आहत, अपनी र त- ड़ा के म य, वह प ी दय-
वदारक चीख़ के साथ धरती पर गर पड़ा। अपने ेमी से अलग होने पर, मादा-प ी
दयनीय ढं ग से रोने लगी। अपने पंख से अपने व को पीटती ई, वह घबराई और परेशान
फड़फड़ाती रही। उसके दयनीय दन को सुनकर ऋ ष के मन म क णा क लहर उठ और
उ ह ने ाध को शाप दे दया। शाप दे ने के बाद, उ ह ब त पछतावा आ। वे घबरा गए क
उस प ी के त उनके मन म जागृत ई क णा के कारण उ ह ने अपने अ हसा- त को
तोड़ दया था। ाध तो वयं अपने कम से पी ड़त एक असहाय मनु य था। मह ष को इस
पूरी घटना का ब त ख आ। उ ह बाद म यह एहसास आ क उनके मुँह से वह शाप
आठ अ र वाली चार पं य के ोक के प म नकला था। वे उस ोक के स दय को
दे खकर च कत रह गए और उ ह ने अपने श य को उस ोक को याद कर लेने के लए
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कहा। उसके बाद, ऋ ष न यकम पूरा करके आ म लौट आए। उस दन सं या के समय,
दो युवा चारी मह ष के पास दौड़ते ए आए और उ ह बताया क नद -तट पर एक सुंदर
ी प र य अव था म बैठ है। उसे दे खकर ऐसा लगता है क वह नद म कूदकर अपने
ाण दे ने के बारे म सोच रही है। वा मी क समझ गए क वे राम क प नी सीता ह, जैसा क
नारद ने उ ह पहले बताया था। वे दौड़कर नद -तट पर गए और सीता को अपने साथ
आ म म ले आए। उ ह ने ऋ ष प नय को सीता क दे खभाल करने को कहा य क
उनके गभ म इ वाकु कुल का वंशज था।
बाद म, यान म बैठते समय भी उ ह दो सारस प य तथा ाध को दए गए
अनै छक शाप क घटना से कारण पछतावा होने लगा। ा उनके सम कट ए और
ऋ ष से कहा क उस घटना के लए अ धक परेशान होने क आव यकता नह है य क
उ ह इसी घटना से राम और सीता क कथा लखने क ेरणा ा त होगी।
ा बोले, “ऋ षवर, आपको राम के जीवन क घटना पर आधा रत एक महाका
लखने क ेरणा मलेगी। उनका सम त जीवनच रत आपके सामने कट हो जाएगा। आप
उस महाका म जो कुछ लखगे, वह आपके ारा सा य त य पर आधा रत होगा। आप
व णु के इस महान अवतार के जीवन क येक गौरवमयी घटना को दे ख सकगे। इस
महाका क रचना के लए आप आ द क व के प म स ह गे। राम क यह कथा,
पृ वी पर पवत व न दय के रहने तक रहेगी। आपके यश का डं का धरती के ऊपर और
नीचे सम त लोक म गूँजेगा।”
वा मी क को यह आशीवाद दे कर ा अपने लोक को लौट गए। इसके बाद वा मी क
यान म बैठकर भगवान का चतन करने लगे और उनके मुख से अमर का रामायण-राम
क कथा क रचना ई।
इस कार, उन दो प य क नय त के फल व प, जो एक- सरे से ब त ेम करते
थे और अ यंत ू रतापूवक अलग कर दए गए थे, वा मी क के मन म उ प न ख से
रामायण लखी गई। उन प य क कथा और राम-सीता क नय त क कथा म, जहाँ
अगाध ेम के बावजूद उ ह बार-बार एक- सरे से अलग होना पड़ा, समानता को समझने
के लए अ धक क पना क आव यकता नह है।
इस महाका को लखने म बारह वष का समय लगा और इस दौरान सीता के पु
बारह वष के हो गए थे। उनक दे खभाल वा मी क के आ म क एक म हला ने क । सीता
ने आ म म आने के नौ माह के बाद, दो जुड़वाँ ब च को ज म दया। वा मी क ने उनके
नाम लव और कुश रखे। वे दोन तप वय क भाँ त बड़े होने लगे। उ ह अपने माता- पता
के वषय म जानकारी नह थी।
राम और सीता के जीवन पर आधा रत चौबीस हज़ार ोक वाले इस शानदार
महाका क रचना करने के बाद, वा मी क को वल ण मृ त वाले कसी क
तलाश थी जो उस पूरे का को याद कर सके। उसी समय, तप वय के वेश म, लव-कुश
उनके सामने आ गए। ऋ ष जानते थे क वे दोन अ यंत बु मान और संगीत म पारंगत थे,
इस लए वा मी क ने लव-कुश को वह महाका सखाने का नणय कया। वे दोन सचमुच
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उस महाका को सीखकर उसम अ यंत सरलता से पारंगत हो गए। ऋ ष-मु नय के एक
पावन स मेलन म, दोन बालक ने पूरा महाका अ यंत सुंदर ढं ग से एक वर म सुना
दया। ऋ ष-मु न उनसे ब त स न ए और दोन को अनेक वरदान दए।
उधर, सीता को याग दे ने के बाद, राम अंतमुखी एवं शोकाकुल हो गए थे। अपने
आ धका रक काय को नपटाने के बाद, वे अ धकांश समय अकेले तीत करते थे। वे सीता
क वण तमा को रानी के सहासन पर बैठाकर अपना राजकाय कया करते थे। उनक
जा ने जब भी उनसे पुन ववाह करने क वनती क , उ ह ने प तौर पर मना कर दया।
“मने तुम लोग क सनक के कारण उस ी को याग दया, जससे म ेम करता था।
परंतु म उस ी के त, जो मेरे जीवन का अंग है, आजीवन न ावान र ँगा!”
राम ने राजसी जीवन क सु वधाएँ याग द और अपने महल म तप वी क भाँ त रहने
लगे। य प, वे वयं गत सुख से वं चत थे, कतु उ ह ने रा य म सदै व शां त बनाए
रखी और अपने नगरवा सय के घर म पया त व तु क व था करवाई।
राम क ऐसी मनोदशा दे खकर, हनुमान ने हमालय म जाकर रहने तथा राम का नाम
जपने का नणय कर कया। हालाँ क ऐसा करने का ता पय, अपने य राम से अलग होना
था, फर भी उ ह दरबार के ज टल जीवन से आ म का जीवन अ धक सुखद लगता था।
उ ह ने वयं को यह दं ड इस लए दया य क वे उस वेदना को महसूस करना चाहते थे जो
अपने प त से ू रतापूवक अलग कए जाने पर सीता ने भोगी होगी। वे तप या म लीन थे
और उ ह संसार म होने वाली ग तव धय क अथवा सीता ारा वा मी क के आ म म
जुड़वाँ बालक के ज म क कोई जानकारी नह थी।
उसी समय, राम के पु के ज म के बारह वष बाद अग य मु न अयो या आए। राम ने
उनसे यु के समय इतने लोग क , वशेषकर रावण क जो क ा ण था, मृ यु के पाप से
मु का उपाय पूछा। अग य ने उ ह अ वमेध य करने का सुझाव दया जो वै दक
परंपरा के अनुसार सबसे बड़ा य माना जाता है। राम के गु व स ने इस सुझाव को
अनुमो दत कर दया तथा एक शुभ- चह्न वाले अ व को य हेतु त त करके उसके
सर पर एक वण मुकुट पहना दया जसम एक शाही उद्घोषणा बँधी ई थी। उसम
लखा था क जो राजा वयं को उस अ व के वामी से अ धक श शाली समझता हो, वह
उस अ व को रोकने का यास करे। जो राजा, अ व के वामी का आ धप य वीकार करता
हो, वह उसे आगे जाने दे । उस शाही अ व को एक वष तक पूरे दे श म घूमने के लए वतं
छोड़ दया गया और राजा क सेना उसके पीछे चलती रही। यह न भी उठा क राम का
कौन-सा भाई उस अ व के साथ जाएगा। इसका समाधान भी राम ने कर दया। उ ह ने
कहा क उनके वनवास के दौरान भरत ने ब त-से क सहे ह तथा ल मण को उस दौरान
उनके साथ रहने का सौभा य मला है, तो राम ने अपने सबसे छोटे भाई श ु न और उसके
पु पु कल को यह आदे श दया क वे दोन सेना के चार दल लेकर, कुछ वीर वानर के
साथ ज ह ने यु म उनक सहायता क थी, शाही अ व के साथ जाएँ।
शाही अ व को एक वष तक पूरे दे श म घूमने दया गया। भू म के उन सब भाग पर,
जहाँ वह अ व न वरोध घूमता रहा, राम का भु व होता गया। जो भी अ व को रोकने का
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साहस करता, उसे राम क सेना से यु करना पड़ता था। अ व के अबा धत प से लौट
आने के बाद ही य आरंभ हो सकता था।
उस समय, राम के मन म वचार आया क आंजनेय क उप थ त से य क ग रमा म
वृ हो सकती है। चूं क हनुमान सदा राम के यान म लीन रहते थे, उ ह तुरंत पता लग
गया क उ ह याद कया गया है। वे त काल राम के पास प ँच गए और उनसे आदे श दे ने
को कहा। राम ने हनुमान को श ु न के साथ जाने और उनक दे खभाल करने को कहा।
य का समाचार आग क तरह सव फैल गया। वह समाचार वा मी क के आ म म प ँचा
और सीता को भी सुनाया गया।
य का अ व, दे श के अनेक भाग म घूमता रहा और येक थान पर वहाँ के राजा
ारा उसका स मान कया गया। राम क सेना उसके पीछे चलती रही तथा वे लोग अनेक
आ म पर कते ए वहाँ के ऋ ष-मु नय से आशीवाद लेते ए आगे बढ़ते गए। अंत म, वे
यवन ऋ ष के आ म म प ँच गए। श ु न ने उ ह णाम कया तो ऋ ष ने राम को व णु
का अवतार बताकर उनक ब त शंसा क । उ ह ने यह भी कहा क वे अपने प रवार के
साथ अयो या जाकर राम के दशन करना चाहते ह। हनुमान ने श ु न ने अनुम त माँगी
ता क वे ऋ ष को अयो या प ँचा सक ता क उ ह पैदल जाने का क न उठाना पड़े ।
श ु न ने उनक बात मान ली। हनुमान ने अपना आकार बढ़ाया और ऋ ष को सप रवार
एक पल म राम के पास प ँचा दया। यवन मु न ने स न होकर राम को आशीवाद दया।
इसके बाद, वह अ व और सेना च ांक नगरी प ँचे जहाँ राजा सुबा का शासन था।
वह भगवान व णु का अ यंत महान भ था। उसका पु दमन, आखेट पर नकला आ
था। उसने अ व को दे खा तो बना कुछ जाने, उसे पकड़ लया। राम क सेना ने दमन पर
धावा बोल दया कतु वह उसे परा त नह कर सक । उसके बाद, दमन और श ु न पु
पु कल के बीच ं आ। पु कल एक शानदार यो ा था और उसने शी ही दमन को
परा जत कर दया। यह सुनकर राजा सुबा अपने भाई और भतीजे च ांग के साथ ग से
बाहर आ गया। उनके बीच भीषण यु आ जसम दोन प क भारी त ई। अंत म,
पु कल ने च ांग को मार डाला। सुबा ने हनुमान पर बाण क वषा आरंभ कर द । इस
पर, हनुमान ने सुबा को अपनी पूँछ म बाँधकर धरती पर पटक दया। इससे भी राजा नह
घबराया और वह फर से उठ खड़ा आ। तब हनुमान ने उसक छाती पर छलाँग लगाकर
उसे मू छत कर दया। सुबा ने मू छत अव था म एक शानदार व दे खा जसम राम
द ासन पर बैठे थे और उनके चार ओर गंधव खड़े थे। जब उसे होश आया तो उसने
हनुमान को बुलाकर उनक शंसा क और अपनी सेना को लौटा लया। उसे याद आया
क उसे कसी ऋ ष से एक बार सफ़ इस लए शाप मला था य क उसने यह संदेह कया
क भगवान व णु मनु य प म अवतार ले सकते ह। ऋ ष ने यह भ व यवाणी क थी क
सुबा का अ ान तब र होगा जब भगवान का दास उसक छाती पर वार करेगा। सुबा ने
श ु न को अपने महल म आमं त कया और उसका स मान कया। फर उसने हनुमान
को भी णाम कया य क उ ह के कारण उसक अ ानता र ई तथा उसे भगवान के
दशन ए थे।
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इसके बाद वह अ व, दे वपुर नगर प ँचा जहाँ के राजा वीरम ण ने एक बार शव को
स न करके उनक सुर ा ा त कर ली थी। उसके पु मांगद ने य का घोड़ा
पकड़कर बाँध लया। हनुमान और श ु न ने उसे घोड़े को छोड़ने के लए कहा। जब उसने
ऐसा करने से मना कर दया तो उ ह ववश होकर यु करना पड़ा। शी ही उसका पता
वशाल सेना लेकर अपने पु क सहायता के लए आ गया। हनुमान ने आगे बढ़कर उसे
और उसके भाइय को चुनौती द । हनुमान का यु करने का तरीक़ा बड़ा अनोखा था। वे
सै नक को उनके रथ और घोड़ स हत अपनी पूँछ म लपेटकर धरती पर पटक दे ते थे।
वीरम ण ने अपनी सेना का संहार होते दे खा तो उसने तुरंत भगवान शव से ाथना क ।
शव त काल अपने भूत- पशाच के साथ अपने भ क र ा हेतु आ प ँचे। शव के सेवक
वीरभ ने पु कल को पैर से पकड़कर उसे इतनी ज़ोर से ज़मीन पर पटका क वह मर
गया। उ म ढं ग से हँसते ए शव ने अपना शूल उठाया और राजकुमार का सर काट
डाला। अपने पु क मृ यु से ो धत श ु न ने शव को ललकारा। वह अ यंत वीरतापूवक
लड़ा, कतु महादे व से उसका कोई मुक़ाबला नह था और छाती म तीर लगने से वह नीचे
गरकर मर गया। हनुमान को ोध आ गया और उ ह ने शव पर धावा बोल दया। उ ह ने
शव को, भगवान व णु के अवतार राम के भाई और उसके पु के वध का दोषी ठहराते
ए, अपश द कहे। शव ने हनुमान से कहा क वे अपने भ को दए वचन क र ा करने
के लए तब ह। दोन फर से गुने उ साह से लड़ने लगे। हनुमान ने शव पर वृ और
पवत को उखाड़कर फकना आरंभ कर दया, जसके उ र म शव ने हनुमान क छाती पर
अ नबाण चलाए। अंत म, हनुमान ने शव को भी अपनी पूँछ म बाँध लया और उ ह कई
बार धरती पर पटका। यहाँ तक क शव का वृष, नंद भी इस य को दे खकर भयभीत हो
गया। शव ने वयं को मु करने के बाद हनुमान से कहा क वे उनसे स न ह और उ ह
वरदान माँगने को कहा। हनुमान ने शव से मु कराते ए कहा क उनके पास राम क कृपा
से सब कुछ है, परंतु उ ह ने शव से श ु न और उसके पु क दे खभाल करने ाथना क
ता क इस बीच, वे ोण पवत पर जाकर वहाँ से संजीवनी बूट ला सक जससे ल मण के
ाण बचे थे।
वे हमालय पवत पर थत ोण शखर को उखाड़ने ही वाले थे, तभी य ने उ ह ऐसा
करने से रोक दया य क उस पवत शखर पर उनका अ धकार था और उसी क श से
वे अमर थे। हनुमान ने उनक बात मान ली और बू टय का थोड़ा अंश लेकर ही लौट गए।
उ ह ने रणभू म म लौटकर, वे बू टयाँ मृतक तथा घायक सै नक क छाती पर रखी और
उसी बूट से उ ह ने पु कल का कटा सर भी जोड़ दया। हनुमान बोले, “य द राम के त
मेरी न ा अटू ट है तो राजकुमार जी वत हो जाएँ!”
ऐसा कहते ही, पु कल व थ होकर उठ बैठा। हनुमान ने ऐसे ही श ु न को भी जी वत
कर दया। व थ होते ही, पता और पु दोबारा शव एवं वीरभ से यु करने लगे। उ ह
कमज़ोर पड़ता दे ख, हनुमान ने श ु न से राम का यान करने को कहा य क अब केवल
राम ही उ ह बचा सकते थे। राम, अपने हाथ म मृग- ंग लेकर त काल वहाँ कट हो गए।
सबने उ ह णाम कया तथा परमा मा प म उनक तु त क । राम ने कहा क उनम और
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शव म कोई भेद नह है। “वे मेरे दय म वास करते ह और म उनके दय म रहता ँ।
केवल बु ही हम दोन को अलग समझता है।” शव ने अपना हाथ मृतक और
घायल के ऊपर रखकर सबको व थ व जी वत कर दया। सबने मलकर राम क तु त
क । राजा वीरम ण ने य का अ व श ु न को लौटा दया और फर वे अपनी या ा पर
आगे बढ़ गए।
शाही सेना अ व के पीछे चलते ए हेमकूट पवत पर प ँच गई। सहसा अ व श हीन
होकर नीचे गर पड़ा। उसे दोबारा खड़ा करने के सब यास वफल हो गए। श ु न नकट
के एक आ म म गया। वहाँ उसे एक ऋ ष मले जनसे उसने ऐसा होने का कारण पूछा।
ऋ ष ने बताया क उस अ व को कसी आ मा ने अपने वश म कर लया है जो पहले
ा ण था और कसी तप वी के शापवश आ मा बन गया है। जब उसने शाप से मु का
माग पूछा तो तप वी ने कहा क राम क कथा सुनने के बाद वह उस यो न से मु हो
जाएगा और ऐसा तब होगा जब वह राम ारा छोड़े गए य के अ व को अपने वश म कर
लेगा। इसके बाद, हनुमान ने अ व के नकट बैठकर उ ह कान म बड़े ेम से राम क पूरी
कथा सुनाई। कथा पूरी होने के बाद हनुमान ने उस भटकती ई आ मा का आ ान कया
और उसे अपने गंत पर लौट जाने के लए कहा। तभी एक द ा मा कट ई और उसने
शाप से मु करवाने के लए हनुमान को ध यवाद दया। उसी ण अ व उठ खड़ा आ
और स नतापूवक मैदान क घास चरने लगा।
अ व को रोकने और उनके ऊपर आ मण करने वाला अगला रावण का संबंधी
व ुनमाली था। वह धुआँ उ प न करके सबके सामने से अ व को चुरा ले गया। उसके बाद
उसने उस धुएँ के बीच श ु न और अ य लोग पर धावा बोल दया। हनुमान ने श ु न को
राम नाम का जाप करने का सुझाव दया ता क वह न चत प से रा स पर वजय ा त
कर सके। श ु न ने मोहा चलाकर रा स ारा फैलाए धुएँ को हटा दया। इसके बाद,
श ु न ने आसानी से व ुनमाली को मारकर अ व को छु ड़ा लया।
इसके बाद, य का अ व घूमता आ कुंडलपुर नगर म प ँच गया, जहाँ का राजा
सुरथ, राम का एक महान भ था। उसने मृ यु के दे वता यमराज से यह वरदान ा त कया
था क राम के दशन होने तक उसे कोई नह मार सकेगा। जब सुरथ को अपने नगर के बाहर
वचरते उस अ व के बारे म पता लगा तो उसने उसे पकड़ने का नणय कया ता क वह राम
के दशन कर सके। जब श ु न को इस बात का पता लगा तो उसने अंगद को भेजकर सुरथ
को अ व छोड़ने का संदेश दया। सुरथ ने अंगद को प तौर पर कह दया क जब तक
उसे राम के दशन नह ह गे, वह अ व को नह छोड़े गा। अंगद ने राजा के त सहानुभू त
क परंतु उसे प श द म यह भी कहा क अ व क र ा करना उसका क है
और य द सुरथ ने अ व को नह छोड़ा तो उसे राम क सेना के कोप का सामना करना
पड़े गा। सुरथ ने कहा क य द ऐसा आ तो वह उन सबको बंधक बना लेगा और राम के
दशन के बाद ही, उ ह छोड़े गा! अंगद ने लौटकर सुरथ का संदेश सुनाया और फर यु क
तैयारी आरंभ हो गई।

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राजा सुरथ अपने दस पु और सेना के साथ यु के लए चल पड़ा। सुरथ के पु ,
चंपक ने पु कल को बंद बना लया। हनुमान ने उसे यु के लए ललकारा और उसे
मारकर मू छत कर दया। फर हनुमान ने जब सुरथ को दे खा तो उ ह ने पहचान लया क
वह राम का भ है। राजा ने हनुमान को बंद बनाने का ण कया और हनुमान ने उसे
मु कराते ए कहा क य द उसने ऐसा कर लया तो राम उ ह मु करवाने अव य आएँगे।
इस बीच, वे सुरथ से लड़ते रहे और उसके सभी द ा का आसानी से सामना करते रहे।
राजा को उस समय ब त आ चय आ जब हनुमान पर ा का भी कोई भाव नह
पड़ा। उसने तब इस महान भ को पकड़ने क एक चाल चली। उसने एक अ के ऊपर
सब जगह राम का नाम लखकर हनुमान पर छोड़ दया। हनुमान ने इस अ का मान
रखते ए उसे णाम कया और वयं को बंद बन जाने दया। हनुमान को बंद बना लेने के
बाद, सुरथ के लए शेष सेना को परा त करना आसान हो गया। हनुमान स हत सभी बड़े
यो ा बंद बनाकर सुरथ के दरबार म लाए गए। राजा ने हनुमान को कहा क वे राम का
मरण कर और उ ह वहाँ सहायता के लए बुलाएँ। तब हनुमान ने राम क तु त करते ए
एक लंबी क वता क रचना क और उसम अपनी गाथा बताते ए राम को सहायता के लए
बुलाया। राम त काल कुंडलपुर के राजदरबार म कट हो गए। सुरथ ब त स न आ और
उसने राम के चरण म गरकर उनसे उसके लोग को बंद बनाने के लए मा माँगी। राम ने
मु कराते ए व णु के प म सुरथ को दशन दए और उसे बाँह म भर लया। उ ह ने जैसे
ही हनुमान और अपने अ य लोग क ओर दे खा, उन सबके बंधन कटकर गर गए। तब
राजा सुरथ ने अपने सम त नाग रक के साथ राम और हनुमान क अचना क और उसक
इ छा पूरी करने के लए उनका आभार कया।
इसके बाद, अ वमेध य का घोड़ा घूमता आ नमदा के तट पर एक आ म म प ँच
गया। वहाँ एक पणकुट र म अर यक नाम के ऋ ष रहते थे जो सदै व राम क वंदना करते
थे। जब शाही दल ने उ ह णाम कया तो ऋ ष ने स न होकर राम के गौरव पर वचन
दया और लोमश ऋ ष ारा ा त ान का उपदे श भी दया।
“एक ही ई वर ह - राम; एक ही माग है - राम क भ ; एक ही मं है - राम का नाम;
एक ही ंथ है - राम क तु त!”
यह सुनकर सभी ब त स न ए कतु हनुमान रोमां चत हो उठे । ऋ ष ने उ ह सगो
प म पहचानकर गले से लगा लया। दोन परमानंद म डू ब गए।
अचानक, वह अ व वा मी क के आ म क ओर चल पड़ा। उधर, कुछ बालक के
साथ, लव वन म खेल रहा था। उसने वह अ व दे खा और उसम बँधी शाही घोषणा को पढ़ने
के बाद, उसके मन म श दशन क इ छा जागृत हो गई। उसने अ व को पकड़कर उसे
बाँध लया। राम क सेना ने लव को घोड़ा छोड़ दे ने के लए कहा, कतु लव ने मना कर
दया। सेना लड़ने के लए आगे बढ़ तो लव ने बाण से उनके हाथ काट डाले। श ु न को
जब यह समाचार मला तो उसने अपने सेनाप तय को यु के लए भेजा। सेनाप त ने लव
से बात करनी चाही तो लव ने उसे बताया क घोड़े म बँधी घोषणा ने उसक उ सुकता को
बढ़ा दया और इसी लए उसने यह चुनौती वीकार क है। इसके बाद उनके बीच यु आ,
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जसम लव ने सेनाप त और अ धकांश सै नक को मार दया। हनुमान और पु कल वहाँ
आए तो लव ने पु कल को भी घायल करके मू छत कर दया। हनुमान, लव को दे खते ही
पहचान गए क भगवान राम का पु है, कतु राम का आदे श अ व क र ा करने का था।
हनुमान ने एक वृ और एक शला उखाड़कर लव के ऊपर फके, परंतु बालक लव ने उनके
टु कड़े कर दए। हनुमान ने लव को अपनी पूँछ म लपेटकर हवा म उछाल दया, कतु लव ने
तुरंत अपनी माता का मरण करके वयं को बंधन-मु कर लया। उसके बाद, लव ने
हनुमान पर इतनी ज़ोर से हार कया क वे नीचे गर पड़े और ब त आ चयच कत ए।
फर श ु न को आना पड़ा और उसने ब त क ठनाई से लव को घायल करके उसे बाँधा
और रथ म अपने साथ ले गया।
लव के साथ वहाँ आए शेष बालक यह सब दे खकर व मत हो रहे थे। जब उ ह ने लव
को बंद बनाकर ले जाते दे खा तो वे दौड़कर गए और सीता को सू चत कया। यह सुनकर
सीता ब त परेशान तो उनके सरे पु कुश ने कहा क वे न चंत रह और वह जाकर
अपने भाई को ले आएगा। उसके रणभू म प ँचने तक लव क मूछा र हो गई। अपने भाई
को दे खकर, लव ने वयं को छु ड़ा लया और वह रथ से नीचे कूद गया। दोन भाइय ने
थ त को सँभाला और सेना का संहार करना आरंभ कर दया। सै नक ने बताया क वे
राजा के सै नक ह तो दोन बालक हँसने लगे और उ ह ने ज द ही सेना को परा त कर
दया। यहाँ तक क हनुमान भी उनसे जीत नह सके। लव-कुश ने हनुमान को मारा नह ,
कतु उ ह नाग-पाश म बाँध लया और फर उ ह पकड़कर पालतू बनाने के लए अपनी
माता के पास ले आए!
सीता अपने पु को दे खकर ब त स न । उ ह ने हनुमान को तुरंत पहचान लया
और उ ह बंद बना दे खकर वे भयभीत हो ग । दोन ने अपनी माता को ब त ख़ुशी से पूरी
घटना सुनाई क कस तरह उ ह ने कसी राम नाम के राजा का शाही अ व पकड़कर बाँध
लया और कस कार उ ह ने ब त-से सै नक स हत श ु न और पु कल नाम के कुछ
लोग को भी मार दया! यह सुनकर सीता रोने लग और बोल , “मेरे ब च ! या तुम
जानते हो, वे कौन ह? वे तु हारे चाचा और उनके पु ह। यह वानर जसे तुम बाँधकर लाए
हो, या तु ह पता है क ये कौन है? यही वीर हनुमान ह, जो राम के सबसे महान भ ह।
इनम असीम बल है।”
लव और कुश ने कहा, “माता, या आपको पता है क उस अ व के गले म या संदेश
बँधा आ था? उसम लखा था, ‘कोई भी य य द इस अ व को पकड़ने का साहस
करेगा तो उसे दं ड भोगना पड़े गा।’ माता! हम जानते ह क हम य ह और इसी लए हम
लगा क यह हमारा कत है क हम उस अ व को पकड़कर अपना साम य स कर।”
सीता ने उ ह तुरंत उस अ व छोड़ दे ने के लए कहा य क वह उनके पता का अ व
था। यह सुनकर दोन बालक च कत रह गए य क उ ह ने अपने पता के वषय म अ धक
वचार नह कया ज ह ने उनक माता को याग दया था। परंतु, उ ह ने अपनी माता क
आ ा का पालन कया। इस बीच, सीता ने हनुमान से बातचीत क और तब हनुमान ने उ ह
बताया क वे य आए थे।
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“इन बालक ने तु हारे जैसे वीर को कैसे परा त कर दया?” सीता ने हनुमान से पूछा।
हनुमान ने उ र दया, “माता! पु , अपने पता क आ मा होता है। इन दोन अनमोल
बालक के द तमान और तेज वी चेहरे बलकुल मेरे य वामी के समान ह। इस लए
जब इ ह ने मुझे पकड़कर बाँधा तो मुझे लगा क मेरे भु, मेरे साथ ड़ा कर रहे ह। म सब
कुछ भूलकर उनके मधुर वचार म डू ब गया और मुझे कुछ नह पता।” इस घटना म,
वा मी क ने महान भ हनुमान क वन ता और न ा को अ यंत सुंदर ढं ग से च त
कया है।
सीता ने अपनी शु चता के बल पर भगवान से ाथना क और सभी मृत यो ा को
जी वत कर दया। सभी लोग उठ बैठे तथा हनुमान और राम क शेष सेना, नै मषार य लौट
आए जहाँ वह य होना था।

और दे वता च न धरई।
हनुमत सेई सब सुख करई।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

शा वताय नमः

अ याय 32

लोकबंधु
अ वमेध य

तुलसीदास के लए राम क भ उसी कार है,


जस कार धान के खेत के लए वषा ऋतु!
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

श ु न और हनुमान के साथ अ व के वजयी होकर लौटने के बाद, अ वमेध य अ यंत


वराट तर पर एक वष तक चला।
इस बीच, सौ सर वाले एक भयानक रा स, सह मुख रावण ने दे श म हाहाकार मचा
रखा था। दरअसल, वह रावण का ही पु था जो अपने पता क मृ यु के समय ब त छोटा
था। वय क होने के बाद, उसने कठोर तप कया और ा से यह वरदान माँग लया क
उसक मृ यु केवल उसी ी के ारा होगी, जो मन, वचन और कम से पूरी तरह प व
होगी। यह वरदान मलने के बाद उसने लंका म अपने चाचा वभीषण और क कंधा म
सु ीव को परेशान करना आरंभ कर दया। उसका अगला ल य अयो या था और उसने इस
उ े य से कोसल रा य म वेश कया। उसे परा त करने के लए राम को अपनी सेना
भेजनी पड़ी परंतु राम क सेना अपने श ु के सम अश स ई। जब अयो या के
लोग को रा स के वरदान का पता लगा तो वहाँ क याँ उसे आगे बढ़ने से रोकने के
लए यास करने लग । परंतु पूरे नगर म एक भी ी ऐसी नह थी, जो उस वरदान के
मानदं ड पर खरी उतर पाती! इस तरह, उनम से कोई ी रा स को नह रोक सक । राम
को पता था क केवल सीता ही उस नगर को बचा सकती ह कतु वे जानते थे क सीता उस
नगर म वेश करने के लए तैयार नह ह गी, जस नगर ने उनका याग कर दया था। राम
ने हनुमान को सीता के पास यह संदेश दे कर भेजा क राम ब त अ व थ ह। यह सुनते ही,
वाभा वक तौर पर, सीता दौड़कर अयो या आ ग । वह रा स नगर के ार पर खड़ा था
और उसने सीता का माग रोक लया। जब उसने सीता को भीतर घुसने से रोका तो वे
ो धत हो ग । उ ह ने घास का एक तनका उठाया और उसे अपनी प व ता के बल से
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ऊजा वत करके रा स पर छोड़ दया, जसके लगते ही वह मारा गया। नगरवा सय ने
सीता को अपना र क मान लया। परंतु सीता ने लोग ारा दए मान पर यान नह दया।
उ ह अपने प त के वा य क चता थी। जब उ ह पता लगा क राम बलकुल व थ और
स न ह, तो वे समझ ग क उनके साथ छल कया गया था।
उ ह ने हनुमान को दे खकर कहा, “तु हारे कहने के कारण ही, मुझे अपने प त क मृ यु
का संदेह हो गया था। तुम राम के परलोक गमन के बाद भी जी वत रहोगे और मेरी तरह
उनसे अलग होने क पीड़ा भोगते रहोगे!” यह कहकर, वे अपने आ म लौट ग ।
सीता क प व ता का साम य दे खकर, जो वहाँ के नगरवा सय म से कसी क भी
प नी म नह था, अयो यावासी अपनी रानी सीता के दोबारा वागत के लए उ सुक हो उठे
और उ ह ने राम से उ ह वापस लाने क वनती क । राम क भी यही इ छा थी कतु उ ह
समझ नह आया क वे ऐसा कैसे कर। इस बीच भी अ वमेध य चल रहा था।
वा मी क ने सोचा क लव-कुश के लए अपने पता से मलने का यह अ छा अवसर
है। उ ह ने दोन बालक को य म स म लत होने तथा राम के सम संपूण रामायण गाकर
सुनाने को कहा। बालक ने ऐसा ही कया और उ ह ने सबके सामने अपनी मधुर आवाज़ म
बीस सग गाकर सुनाए। उन दोन तप वी बालक को दे खकर और उनक मधुर आवाज़
सुनकर अयो यावासी मं मु ध हो गए। वे उन बालक क राम से समानता दे खकर भी
त ध थे य क राम भी जब अनेक वष पूव व कल व पहने और जटाएँ बनाकर वन को
गए थे, तो बलकुल वैसे ही दखाई दे ते थे। राम उन बालक से ब त स न ए। उ ह ने
ल मण से बालक को बीस हज़ार वण मु ाएँ तथा मू यवान व भट करने को कहा परंतु
बालक ने यह कहकर व तुएँ लेने से मना कर दया क तप वी लोग कंद-मूल पर रहते ह
तथा उ ह इन सब व तु क कोई आव यकता नह होती।
यह सुनकर राम च कत हो गए और उनसे पूछा, “यह क वता कसने लखी है और
इसम कतने सग ह?”
बालक ने उ र दया, “इस महाका क रचना मह ष वा मी क ने क है जसम
आपके जीवनच रत का वणन है। इस म बीस हज़ार लोक तथा छह कांड ह। सातवां कांड,
उ र कांड है जो अभी चल रहा है। आपक अनुम त से हम यह संपूण महाका , अ वमेध
य के अनु ान के बीच म गाकर सुनाएँगे।”
“अनुम त है!” राम ने कहा।
राम और उनके भाइय के साथ ऋ षय के दल, राजा तथा वानर ने कई दन तक
राम क संपूण कथा का वण कया। उस गायन को सुनकर सभी मु ध हो गए। कथा
समा त होने तक, राम को यह व वास हो गया क दोन बालक उनके और सीता के ही पु
ह। इतने वष से उनके भीतर दबी ई भावनाएँ फर से स य हो उठ और उनके मन म
सीता से मलने क ती इ छा उ प न हो गई। जस दन उ ह ने सीता का याग कया था,
उसी दन राम ने सीता को अपने दय के मं दर म था पत करके उसक चाबी फक द थी।
परंतु, इन दोन बालक ने, जो उनके जैसे दखते थे और सीता क तरह मु कराते थे, उनके
दय के ार तोड़कर उनके भीतर क भावना का सागर फर से उ मु छोड़ दया था।
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उसके वाह क ती ता म राम को अपने बह जाने का संकट महसूस होने लगा था। उनक
मु कान से राम को सीता का मनमोहक चेहरा याद आने लगा। सीता को दे खने क उ कट
इ छा बढ़ती जा रही थी। उ ह लगा क न चय ही, उनक नय त, उ ह सुख के इन अं तम
ण से वं चत नह रखेगी। नगरवा सय ने पहले ही राम को सीता को वापस बुलाने का
अपना नणय बता दया था। राम ने वा मी क क कुट र म अपने त भेजकर अपना
अनुरोध भजवा दया।
“य द अयो या क महारानी इस सभा के सम शपथ लेकर अपने नद ष होने का
माण दे ने के लए तैयार है, तो म उ ह वीकार करने को तैयार ँ।”
वा मी क ने उनक बात मान ली।
अगले दन सभी लोग तथा य के आमं त सभी अ त थगण नै मषार य क य शाला
म अपने राजा और रानी के जीवन के नाटक और उसके अं तम य को दे खने के लए
एक हो गए। याशी दशक क उस मौन सभा म वा मी क ने पृ वी क पु ी, सीता के
साथ वेश कया। सीता का सर न ा से झुका आ था, उनके हाथ ाथना भाव से जुड़े
ए थे, उनक आँख म अ ु तथा दय म राम थे। तप वनी क भाँ त, व कल व म भी
अ यंत सुंदर लगने वाली अपनी महारानी को दे खकर वहाँ एक भीड़ सहज ही वागत
करतल व न से करने लगी। राम ारा सीता का याग करते समय जन लोग ने कोई
आप नह क थी, वे सब आज उ ह फर से वीकार करने को त पर थे।
वा मी क ने सीता और उनके दोन पु के साथ, जो अपने पता क त छाया थे,
य शाला म वेश कया और कहा, “दशरथ पु ! आपने इस प व ी को लोक नदा के
भय से मेरे आ म के नकट छोड़ दया था। अपनी जा के हत के लए आपने अपनी
प त ता प नी को याग दया, जससे आप ब त ेम करते थे। तथा प, ये अ न से भी
अ धक प व ह। इनके पश से अ न भी ठं डी हो जाती है। य द सीता षत ह, तो मेरा
सारी तप या थ है। ये दोन जुड़वाँ बालक आपक संतान ह और इ ह ने अपने शौय से
यह स भी कर दया है। म आपको यह आ वासन दे ता ँ क सीता कंचन क भाँ त शु
ह और इनक न ा पूरी तरह केवल आपके त है। आप अब इ ह वीकार कर सकते ह
और आपके इस नणय के व कोई कुछ नह बोलगा!”
राम बोले, “दे वता को सा ी मानकर, सीता पहले भी लंका म अपनी प व ता स
कर चुक है, कतु फर भी लोग ने बात बनाई और इनक नदा क और इसी लए राजधम
के अनुसार मुझे सीता का याग करना पड़ा। सीता ने ब त पहले, वानर और रा स के
सम अ न परी ा द थी। म यह वचन दे ता ँ क य द, सीता उसी तरह एक बार फर
अयो यावा सय के सामने अ न परी ा दे दे गी, तो म उसे अपनी प नी के प म तथा लव-
कुश को अपने पु के प म वीकार कर लूँगा।”
यह कहते ए, राम ने एक बार फर अपनी य प नी क ओर दे खा। आभूषण एवं
ंगार के बना, व कल व म और सर के ऊपर जटाजूट धारण कए उनक रानी,
अयो या क महारानी और उनके दय क वा मनी उनके सामने खड़ी थी। सीता क ओर
दे खते ए उनका दय उ ह कचोट रहा था। अनजाने म ही, उनका हाथ सीता क ओर बढ़
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गया। सीता ने भी बना कुछ सोचे, अपने कोमल गुलाबी हाथ राम के हाथ पर रख दए।
ंगार के बना भी, वे अ यंत सुंदर द ख रही थ । राम उनसे अपनी नह हटा सके। उन
दोन क और उनके हाथ पर पर एक- सरे का आ लगन कर रहे थे। उ ह ऐसा महसूस
हो रहा था मानो वे आँख म तैर रहे ेम के सागर म डू ब रहे थे। उ ह ने अपने हाथ म
अनंतता एवं आँख म असीमता को पकड़ रखा था।
उनके चार ओर उ सुक दशक का घेरा बन गया था, कतु राम और सीता उस घेरे के
बीच म अकेले खड़े , एक- सरे को नहार रहे थे मानो अब उ ह अलग होना वीकार नह
था। वे दोन बारह वष से इस सुख से वं चत थे। पर पर आँख म दे खते ए, वे कसी अ य
लोक म प ँच गए थे। समय थम गया था। एक- सरे को दे खते ए, उनका संपूण जीवन,
उनके सामने से कसी व न क भाँ त गुज़र रहा था और फर भी वे एक- सरे से नह
हटा पा रहे थे।
आ ख़रकार, सीता ने उस स मोहन को तोड़ा और धीरे-से कहा, “ वामी! या मुझे
सावज नक प से अ न परी ा दे ने क अनुम त है?”
राम ने हामी भरी। तप वनी वाले व पहने ए, वधू क भाँ त सुंदर लग रही, पृ वी-
पु ी सीता ने उस घेरे के बीच म वेश कया और हाथ जोड़कर अपनी माता पृ वी को
णाम करके बोल , “हे माधवी! पृ वी माता! य द आपको पता है क मने अपने प त के
अ त र एक ण के लए भी, कसी अ य पु ष को ेम नह कया तो कृपया अपनी बाँह
खोलकर मुझे, अपनी पु ी को वीकार क जए य क म अब अ ु क इस घाट म
रहना सहन नह कर सकती। इस जीवन म ख ही केवल मेरा साथी रहा है और अब माता,
म आपक बाँह म चैन से रहना चाहती ँ। जस तरह आपने मुझे अपने गभ से नकालकर,
मेरे पता जनक के मैदान म थान दया था, उसी तरह अब आप मुझे फर से अपने दय म
थान दे द जए!”
सीता ने अपनी बात अभी पूरी भी नह क थी क भयंकर गड़गड़ाहट के साथ घरती
फट और उसक दरार म से सुंदर फूल से सजा एक आसन कट आ। उसके ऊपर अपने
ाचुय से भरी, फूल से स जत तथा हाथ म नौ कार के अनाज के गट् ठर लए दे वी
पृ वी वराजमान थ ।
दे वी ने अपनी बाँह खोल और सीता दौड़कर अपनी माता के साथ उनके आसन पर बैठ
ग । दशक क मं मु ध भीड़ के सामने, धरती का मुख एक बार फर खुला और सीता एवं
उनक माता के साथ वह आसन धीरे-धीरे नीचे चला गया और धरती क गोद म समा गया।
आकाश से दे वतागण पु प-वषा कर रहे थे। भीषण गड़गड़ाहट और कराहती वायु के झ के
के साथ धरती क वह दरार बंद हो गई। इसके बाद, सभी लोग अपनी मु घाव था से बाहर
आ गए। येक के मुख से आह नकल रही थी।
सीता के ओझल होने के बाद, राम भी घबराहट क चपेट से बाहर आ गए। वे भागकर
उस थान पर गए जहाँ सीता अ य ई थ और उ ह दयनीय ढं ग से पुकारने लगे।
उ ह ने य शाला क जगह से सहारे के लए एक लाठ उठा ली य क उनम खड़े
रहने का बल शेष नह था। उस थान पर खड़े होकर वे ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगे, “हे
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जानक ! हे वैदेही! हे सीता! तुम मुझे छोड़कर य चली ग , जब क म तु ह वापस बुला
रहा था? एक बार तु ह रावण ले गया तो म तु ह वापस लेकर आया और फर मुझे तु ह
फर से वयं से र भेजना पड़ा। उस समय, म इस वरह को केवल इस लए सहन कर पाया
य क मुझे पता था क तुम जी वत हो और कसी थान पर तु हारी दे खभाल हो रही है।
परंतु अब म जी वत नह रह सकता य क मुझे पता है क म तु ह कभी नह दे ख सकूँगा।
मुझे लगता है क मुझे यह दं ड तु हारा याग करने के कारण मला है।”
उनका शोक ोध म प रव तत हो गया और वे उस लाठ को धरती पर पीटने लगे और
बोले, “दे वी पृ वी, आप मेरी प नी तुरंत लौटा द जए। म ब त क भोग चुका ँ। अब म
सीता के बना नह रह सकता। अ यथा, आप एक बार फर अपनी बाँह खो लए और मुझे
भी वीकार कर ली जए। मुझे यहाँ राजा बनकर रहने क अपे ा सीता के साथ धरती क
गोद म रहना वीकार है। याद र खए, म आपका दामाद ँ, कृपया मुझ पर दया क जए।
आप मेरी मता को जानती ह। य द आपने मेरी इस उ चत ाथना को अ वीकार कर दया
तो म आपको न कर ँ गा, आपके वन जला ँ गा, आपके पवत को चकनाचूर कर ँ गा
और येक व तु को तरल बना ँ गा!”
राम के वर म ोध और पीड़ा को सुनकर सम त लोक घबरा गए। कसी म उनसे कुछ
कहने का साहस नह था।
अंत म, सृ के रच यता ा राम के पास आए और बोले, “राम! याद क जए, आप
कौन ह। म आपको आपके दे व व क याद दलाता ँ। प व सीता से आपक दोबारा वग
म भट होगी य क वे आपक ही प नी ल मी का अवतार ह। ख मत क जए। अपने पु
के साथ सुख से र हए तथा अपने जीवन क शेष कथा सु नए जसे कल सुबह आपके पु
आपको गाकर सुनाएँगे। यह एक शानदार ढं ग से लखा आ सुंदर महाका है जसम एक
धमपरायण राजा के जीवन क कथा व णत है। आप इसे सुनने वाले थम ह य क
यह आपके लए ही लखी गई है। हे राम! आप न केवल राजा म, अ पतु सम त ऋ षय
म भी े ह।” यह कहकर, ा अंत यान हो गए।
राम और उनके पु ने वह क भरी रा , वा मी क क कु टया म सीता के लए रोते
ए बताई। वा मी क उन तीन को शांत करने का यास करते रहे। एक मादा प ी के शोक
से आरंभ ई क वता से यही अपे त है क उसका अंत ेमी युगल के शोक से हो। जस
समय वा मी क ने नर-प ी को बाण से घायल होकर मरते दे खा था, उस समय उ ह लगा
मानो उस बाण ने वयं उ ह ही ब ध दया था। अब क म फँसे राजा को असीम रा क
लंबी व अकेली अव ध के दौरान शोकाकुल होते दे खकर, उ ह कतना ख आ होगा?
अगले दन, एक त भीड़ के सामने, राम ने दोन बालक को महाका का अं तम
अंश सुनाने को कहा। उसके बाद, उ ह ने वहाँ आए सभी लोग , ा ण , नगरवा सय ,
वानर , भालु और लंका से आए नशाचर को धन आ द वत रत कया। य संप न हो
गया और लोग लौट गए। समारोह के लए साफ़ कए उस थान पर फर से जंगल उग
आया।

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राम अयो या लौट आए और उ ह ने अपना शेष जीवन तप वी क भाँ त बताया।
उनके लए सीता के बना जीवन का कोई अथ नह था। उ ह ने पुन ववाह नह कया। वे
सदा अपने साथ सीता क वण तमा रखते थे और उसी के साथ उ ह ने अपने गु तथा
जा को स न करने के लए दस हज़ार अ वमेध य आयो जत कए। उनके शासनकाल
को आदश माना जाता है। रा य समृ होता गया और वहाँ रहने वाले लोग भी हमेशा ख़ुश
रहते थे। राम और सीता ने नरंतर अपने आँसू बहाकर इस गौरव का मू य चुकाया था। वे
दोन क भोगते रहे ता क उनक जा स न, समृ और ख़ुशहाल रह सके। नगरवा सय
ने यह कभी नह सोचा क उनक समृ का मू य उनक रानी ने अपना ब लदान दे कर
चुकाया था। सीता ने उनक भू म को अपने आँसु से स चा था, उनक स नता को अपने
ख से ख़रीदा था। सीता य क स मधा थ , जो उन लोग क भावना के साथ बँधी थ ।
लोग क वषैली ज ा के कारण, उ ह वन भेजा गया था और उ ह के संदेह के कारण,
सीता को धरती ने नगल लया था! नगरवासी अपनी प नय के साथ आनंद से रहते थे,
जब क उनका राजा येक रा को अपने क म अकेला, केवल मृ तय के साथ सोता
था। राम ने शेष जीवन, अपना क , अपने वभाव के अनुसार धमपरायण रहकर
बताया और वे सबके साथ हँसी-ख़ुशी रहते थे। केवल ल मण जानते थे क यह सफ़
दखावा है। वा तव म, राम इस पछतावे से जल रहे थे क उ ह ने अपनी प नी के साथ या
कया! वे उस दन क उ सुकता से ती ा कर रहे थे जब वग म उनक भट दोबारा से
सीता से हो पाएगी।
अनेक वष शासन करने के बाद, राम ने यह लोक याग दे ने का नणय कया। ा
तथा अ य दे वतागण राम के पास आए और बोले, “हे राम! आपने पृ वी पर अपना कम पूरा
कर लया है तथा अब आपके वापस अपने धाम जाने का समय हो गया है।”
“तथा तु,” राम ने कहा। उ ह पृ वीलोक को छोड़कर जाने म ब त स नता हो रही
थी य क सीता के बना उ ह यहाँ कोई सुख नह था।
ा बोले, “हनुमान ने काल के लए आपका ार बंद कर रखा है, इस लए आप
हनुमान को जाने के लए क हए।”
राम ने सर झुकाकर णाम कया। उ ह ने अपनी मु का को धरती के एक छ म
गरा दया और फर हनुमान से कहा क वे मु का को लेकर आएँ। मा त, राम क मु का
लाने के लए त काल छ म वेश कर गए। वे उसे खोजते ए नागलोक म प ँच गए। वहाँ
उ ह ने एक वशाल थाली म राम क मु का जैसी असं य मु काएँ रखी दे ख ।
नागराज ने हनुमान से कहा, “समय का च चलता रहता है और जब भी ेता युग
आता है तो भगवान व णु, राम के प म अवतार लेते ह। जब पृ वी पर उनका समय पूरा
हो जाता है तो उनक मु का यहाँ गर जाती है और वे उसे लाने के लए तु ह भेजते ह। यह
इस लए होता है ता क तुम इस बात को वीकार कर सको क पृ वी पर तु हारे वामी का
समय पूरा हो गया है।” अपने वामी का अंत समय आने क बात सुनकर हनुमान
शोकाकुल हो गए कतु उ ह सनातन नयम का पालन करना था।

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इस बीच जब हनुमान गए ए थे, राम के महल म काल ने ा ण के प म वेश
कया। राम उसक ती ा कर रहे थे। उ ह ब त लंबे समय से काल क ती ा थी। उ ह ने
ा ण को वणासन पर बैठाया और पूछा क वह या चाहता है।
“य द आप मेरा और दे वता का स मान करना चाहते ह तो आपको यह वचन दे ना
होगा क हमारी यह भट गु त रहेगी। जो भी हमारे बीच म ह त ेप करेगा, उसक त काल
मृ यु हो जाएगी।”
“तथा तु,” राम ने कहा। “चूं क हनुमान यहाँ नह है, इस लए म ल मण को ारा पर
खड़ा होने को कह दे ता ँ जससे क बीच म कोई वधान न उ प न कर सके।”
राम ने ल मण को ार पर तैनात कर दया और कहा क कोई भी भीतर आए तो उसे
मृ युदंड दे दया जाए। इसके बाद, उ ह ने ा ण से कहा क वह वतं होकर जो कहना
चाहता है, कह सकता है य क अब उनके बीच म कोई वधान उ प न नह होगा।
“सु नए राजन,” काल ने कहा, “मुझे ा ने आपके धाम वापस ले जाने के लए भेजा
है। पृ वी पर आपका समय पूरा हो गया है। आपको जो काय करने थे, वे सब आपने पूण
कर लए ह। आप वयं व णु ह! सनातन, अचल, सव ापी और सृ के पालनहार ह।
मनु य के बीच आपका समय पूरा हो गया है। अब अपने धाम लौटने का समय आ गया
है।”
राम मु कराते ए बोले, “म आपके आगमन से ध य और आपके संदेश से स न आ
ँ। म वैसा ही क ँ गा जैसा आप कहगे।”
जस समय वे लोग बात कर रहे थे, ोधी वभाव वाले ऋ ष वासा वहाँ आ गए। वे
तुरंत राम से मलना चाहते थे। ल मण ने वन तापूवक उनका माग रोक लया और उ ह ने
कहा क राम का आदे श है क कोई भीतर न जाए य क उस समय राम कसी अ य से
गत प से भट कर रहे थे। यह सुनकर वासा को ोध आ गया और वे च लाए,
“राम को त काल मेरे आगमन का समाचार दो, अ यथा म तु ह, तु हारे भाइय और तु हारे
सम त कुल एवं कोसल रा य को शाप दे ँ गा और फर कोई भी यह कथा सुनाने के लए
जी वत नह बचेगा!”
ल मण ने एक पल के लए सोचा और फर यह नणय कया क अपने रा य क र ा
के लए अपने जीवन का ब लदान दे ना उ चत होगा, इस लए वे भीतर चले गए और राम को
ऋ ष के आगमन का समाचार सुनाया। राम उ ह दे खकर ब त भयभीत हो गए कतु वे
त काल सब कुछ छोड़कर ऋ ष से मलने बाहर चले गए।
उ ह ने ऋ ष से वन तापूवक पूछा क वे या चाहते ह। ऋ ष ने राम को कहा क
उ ह ने अभी-अभी अपना सौ वष से चल रहा उपवास समा त कया है, इस लए वे भरपेट
भोजन करना चाहते ह। राम ने उनके भरपेट भोजन का बंध कर दया। वासा स न हो
गए और उ ह ने शाप दे ने के थान पर रा य को अपना आशीवाद दया और फर अपने
आ म लौट गए। राम को अपना वचन याद आया जो उ ह ने काल को दया था और वे
तुरंत सर झुकाकर भीतर गए। या यह उनका अं तम य होने वाला था? या उ ह धम
क वेद पर अपने भाई का, अपने अंतरंग म का ब लदान दे ना होगा?
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ल मण समझ गए क राम के दमाग़ म या वचार चल रहा था। उ ह ने हँसकर कहा,
“भैया! आप संकोच मत क जए। मुझे इसी ण मार द जए। म इसके लए तैयार ँ। मने
सोचा क पूरे रा य को ऋ ष का शाप लगवाने से बेहतर वयं मरना है। य द आप
धमपरायण ह तो मुझे त काल मार द जए। अपने वचन का पालन न करने वाला नरक म
जाता है। अपने पता के वचन पूरा करने के लए, आप रा य का याग करने को तैयार हो
गए थे। उसक तुलना म मेरा या मह व है!”
राम ने कुछ नह कहा। उ ह ने अपने मं य और पुरो हत को बुलाकर उनसे परामश
माँगा य क उ ह ने उस ा ण को वचन दया था क जो भी उनके बीच म बाधा उ प न
करेगा, उसे मार दया जाएगा। उ ह यह यान नह रहा क यह उनक अं तम परी ा थी।
पुरो हत और मं ीगण चुप रहे य क उ ह पता था क राजा के मन म कतनी पीड़ा
थी। अंत म व स बोले, “य द राजा अपना वचन पूरा नह करता तो धम होता है और
रा य के आदश का पतन होता है। परंतु मृ यु के थान पर रा य से नवा सत कया जा
सकता है, इस लए ल मण को नवा सत करना आपका क है!”
ल मण सर उठाकर नभय भाव से राम क आँख म दे खते रहे। राम ने ल मण क
उनसे ेम करने वाली नेहमयी आँख म दे खा, उ ह ने ल मण के प को दे खा जसे वे
बचपन से दे खते आए थे और जो परछा क भाँ त सदा राम के साथ रहता था। वे जानते थे
क अपनी छाया से अलग होकर कसी क मृ यु नह होती, कतु छाया का या? या शरीर
से अलग होकर, वह भी समा त नह हो जाएगी? राम क आँख से दद और ल मण क
आँख से ेम बह रहा था।
“इससे कुछ नह होता भैया,” ल मण ने धीरे से कहा, “मुझे उसी कठोर भाव से जाने
क आ ा द जए जस भाव से आपने मुझे सीता को ले जाकर उ ह वन म छोड़ने का
आदे श दया था।”
राम को ब त पीड़ा हो रही थी। वे बार-बार बोल रहे थे, “सब समा त हो जाएगा, कुछ
भी शेष नह रहेगा। समय सबसे बलवान है। समय क तेज़ धारा म सब कुछ बह जाएगा।
मुझे अपना वचन पूरा करना है। मुझे केवल एक चीज़ का पालन करना है, जसका मने
आजीवन पालन कया है - धम! मेरी बार-बार परी ा ली गई कतु म कभी उसम असफल
नह आ। मुझे अब भी असफल नह होना चा हए।”
वे ल मण के सामने खड़े थे कतु ल मण से आँख नह मला पा रहे थे। उ ह ने ल मण
के सर के ऊपर एक ब पर अपनी को क त करते ए पूरी तरह भावर हत आवाज़
म कहा, “मने स य और धम का सदै व पालन कया है और उ ह का स मान करते ए, म
तु ह सदा के लए रा य से नवा सत करता ँ। ल मण, तुम अपने अंत काल तक अब कभी
कोसल रा य म नह आ सकोगे!”
ल मण ने नेहपूवक अपने भाई को दे खा जनक आ ा का उ ह ने सदा पालन कया
था और बोले, “ य भैया, आप ख मत क जए। मने आपको हमेशा ेम कया है और
चुपचाप आपक आ ा का पालन कया है। अब भी आपक इ छा का पालन होगा। मुझे

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जाने क अनुम त द जए! आप सदा स न रह! हम इस जीवन म फर कभी नह मलगे।
आपसे अब वग म भट होगी।”
ऐसा कहकर ल मण ने राम क तीन बार प र मा क और बना मुड़े महल के ार से
बाहर नकल गए। वे सरयू नद के तेज़ धारा के पास आ गए जो अयो या नगरी के चार
ओर वृ ाकार म बहती थी। उनके लए राम के बना, जीवन क क पना करना क ठन था।
ऐसे जीवन से मृ यु बेहतर थी। उ ह ने उसके वषय म ऐसा वचार भी नह कया। वे सरयू
के तट पर योग म लीन हो गए। उ ह ने अपनी ाणवायु को रोक लया और अपनी आ मा
को भीतर ख चकर उसे म लीन कर लया। इस तरह उ ह ने समा ध ले ली। दे वराज इं
का रथ, व णु के चौथे अंश, ल मण को अपने साथ वग ले गया जहाँ वे परमा मा म
वलीन हो गए।
उधर अयो या म, राम जानते थे क ल मण उनके बना जी वत नह रह सकगे और वे
वयं भी उस नरथक जीवन को जीने के इ छु क नह थे। उ ह लगा क अपने धा मक
अनुशासन के ण पर अ डग रहने के कारण, एक-एक करके उनके यजन उनसे बछड़ते
जा रहे थे। वे यही मानते थे क जीवन एक व है, नाटक है जसम उ ह अपनी भू मका
नभाने के लए कहा गया है। उनक भू मका पूण हो चुक थी। यह अं तम य था और
उ ह पहले ही, मंच छोड़ने के लए कहा जा चुका है। उ ह ने अपने मं य तथा पुरो हत
को बुलाकर, उ ह अपना नणय बता दया।
“म भरत को अयो या का राजा नयु करता ँ। कोसल रा य का द णी भाग कुश
का होगा तथा उ री भाग लव को दया जाएगा। म ल मण के पीछे जा रहा ँ।”
भरत और श ु न ने राम के बना रहने से मना कर दया और उ ह ने भी राम के साथ
चलने का नणय कर लया। ब त-से नगरवासी, जनके लए उ ह ने अपना सव व याग
दया था, अपने य राजा के बना वहाँ नह रहना चाहते थे। राम ारा संसार छोड़ने के
नणय को सुनकर वानर, भालू तथा समु -पार से वभीषण भी वहाँ आ गए और उ ह ने भी
राम के साथ चलने का हठ कया। हनुमान भी नागलोक से लौट आए, जहाँ वे राम क
मु का लेने गए थे।
राम ने वभीषण से कहा, “रा सराज! आप लंका म ही र हए और अपना दा य व पूरा
क जए। धम के माग पर शासन क जए। धरती पर जब तक लोग मुझे याद रखगे, तब तक
आपका शासन भी चलेगा।”
वीर जांबवंत को दे खकर राम बोले, “हे ववेकशील जांबवंत! आप य कुल म कृ ण के
प म मेरे वापस आने तक पृ वी पर रहगे। उस समय तक, आपक पराजय नह होगी।
आप जस समय कसी से परा जत हो जाएँगे, तब आपको पता लग जाएगा क म वापस
आ चुका ँ।”
राम ने शेष लोग से कहा, “जो लोग मेरे साथ चलना चाहते ह, वे आ सकते ह। इस
दन आप सब मेरे साथ वग म वेश कर सकगे।”
“मेरा या होगा?” हनुमान ने अ ुपू रत ने से पूछा।

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“आयु मान भव, हनुमान! जहाँ भी मेरी कथा होगी, जहाँ भी मेरा नाम मरण कया
जाएगा, उसे सुनने के लए तुम वहाँ उप थत रहोगे। सूय और चं मा के रहने तक, जब तक
पृ वी पर लोग रहगे, यह कथा कही जाती रहेगी और तुम उसे सुनने के लए यहाँ रहोगे!”
अयो या के अ धकतर लोग ेम व न ापूवक राम के साथ चले गए। यहाँ तक क गाएँ,
बक रयाँ, हाथी, वानर और भालू समेत पशु-प ी भी उनके साथ चले गए। अयो या क
सड़क पर पड़े प थर रोने लगे य क वे उनके साथ नह जा सकते थे। माग के वृ ने
झुककर राम के सर का पश कया। जो भी ाणी चल- फर सकता था अथवा नाच या
लड़खड़ा सकता था, वह राम के साथ चला गया। पूरा जुलूस, अयो या के चार ओर चाँद -
से कमरबंद के समान बहती पावन सरयू नद के पास प ँच गया। वहाँ सुमं लाल रंग के
चार अ व के साथ खड़ा था और उसने अ व को रथ से अलग कर दया था। नषादराज
गु भी वहाँ उप थत था। राम सभी लोग के साथ नद के बफ़ ले पानी म उतर गए। धीरे-
धीरे पानी क धारा आशीवाद के समान उनके सर के ऊपर से बहने लगी।
हनुमान, तट पर परमानंद म डू बे आँख मूँदे खड़े थे। तभी वग का ार खुला और
आकाश से पु प वषा होने लगी।
ा ने कहा, “हे व णु! अपने धाम म आपका वागत है। आप सब जीव क आ मा
ह - आप अजर, अमर और सनातन ह। माया के इस प को यागकर अपने व प को
ा त क जए।”
उनक बात समा त होते ही, जल म से भगवान व णु अपने अ यंत मनोहर प म
कट हो गए। उनके हाथ म च , शंख, गदा और पदम ् सुशो भत हो रहे थे। जो लोग उनके
साथ गए थे, वे सब भी द प म जल से बाहर कट हो गए और मख़मली सां य काश
म ांड क संगीत लह रय के बीच, वग क ओर थान कर गए।
राम के अपने धाम लौट जाने के बाद, चौबीस हज़ार ोक पूरे हो गए। उधर, वीरान
पड़ी अयो या नगरी म लव और कुश ने अ य ोता के सम महाका के अं तम
प ांश गाकर आ द क व वा मी क ारा र चत आ द का रामायण का समापन कर दया।

अंत काल रघुबर पुर जाई।


जहाँ ज म ह र-भ कहाई।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

स यवचाय नमः

अ याय 33

तप वी
ापर युग

ी राम रामे त रामे त रमे रामे मनोरमे।


सह नाम त ु यं रामनाम वरानने।।

राम नाम का जाप भगवान व णु के सह नाम जपने के बराबर है।


सीता क भ व यवाणी के अनुसार, हनुमान को राम का इस पृ वी से याण दे खना पड़ा
और उसके बाद होने वाली दय- वदारक पीड़ा को भी झेलना पड़ा। उसके बाद, वे
हमालय पवत म अपने व य आवास म लौट गए। समय के साथ उ ह अपने सभी म व
यजन क मृ यु का समाचार मलता रहा - उनक माता, सु ीव, अंगद, वभीषण, लव
और कुश। यही उनके चरंजीवी होने का मू य था! परम स य को अनुभव करने हेतु वे पूरा
समय हमालय शखर पर यान म लीन रहे। उ ह सीता ारा दया गया परामश याद
आया।
“राम पु षो म ह, सनातन ह और सीता कृ त एवं ांडीय त व और जगत के
व प क अभ ह। उन दोन के मलने से ही समूचा ांड बना है।” वे त व के
अनंत पांतरण - ज म व मृ यु, सुख और ख, अ भलाषा और नराशा, मलन तथा वरह
के सा ी बने। इस सम त प रवतन के म य वे आ मा क न श दता म थर बने रहे।
उ ह ऐसा महसूस आ क उ ह अपने वामी के गौरवमयी च र को, जसे उ ह ने
वयं दे खा है, ल पब करना चा हए। जस पवत शखर के नीचे उनक गुफा थी, वह
चमकते ए फ टक क स लय से बनी ई थी। वे अपने हीरे के समान तेज़ नाख़ून से
राम क कथा को उन प थर पर उ क ण करने लगे। उ ह ने सं कृत भाषा म अपने वामी व
भगवान राम के गौरवशाली कम को अपने ढं ग से लखना आरंभ कर दया। उ ह ने उस
कथा को बड़ी मेहनत से अपने नाख़ून से उन शला पर दज कया। यह काय ब त
समय तक चलता रहा और उस कथा क गूढ़ता म खोए हनुमान को समयाव ध का भान ही
नह रहा।

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एक दन वा मी क को पता लगा क हनुमान ने शला पर नाख़ून से खोदकर राम के
च र को लखा है। वे वयं उसे दे खने के लए उ सुकतावश हमालय पवत पर गए जहाँ
हनुमान इस काय म लगे ए थे। हनुमान न संदेह राम के जीवन क अ धकांश घटना के
सा ी थे, कतु या वे क व भी थे? वा मी क ने हनुमान से यह पूछा क या सचमुच
उ ह ने अपनी अलग रामायण तैयार क है। हनुमान, वा मी क को अपने साथ ले गए और
उ ह एक शला पर बैठा दया जहाँ से वे उनक लखी रामायण को पढ़ सकते थे। वा मी क
उन शला को ऊपर से नीचे दे खते ए, हनुमान क लखी राम कथा पढ़ते गए। उ ह
ठ क से पढ़ने के लए वा मी क को कई बार उन शला पर चढ़ना-उतरना पड़ा। वे उ ह
पढ़ते ए कभी हँसने लगते तो कभी उनक आँख म आँसू आ जाते थे। हनुमान क असीम
श और उनक न ा के अ त ववरण को पढ़कर भावुक हो गए। वह न चय ही, ेम से
े रत उ कृ ेणी का काय था। उनके चेहरे पर ख़ुशी और उदासी के भाव आ-जा रहे थे।
वे स न इस लए थे य क उ ह कला के उस अ यु म काय को पढ़ने का सौभा य ा त
आ था और उ ह ख इस बात का था क हनुमान क रामायण उनके ारा ल खत
रामायण से न संदेह े थी।
हनुमान ने वन तापूवक उनक उदासी का कारण पूछा। “हे मह ष! या इसम कुछ
भूल ई है? या मेरे का म ु टयाँ अ धक ह?”
वा मी क ने हनुमान से कहा, “यह न चय ही शानदार कृ त है। येक छ व, येक
श द जीवंत एवं न ा से प रपूण है। इसक कसी से न बराबरी है और न भ व य म हो
सकती है। मेरी कृ त का, जो मने बारह वष क लंबी अव ध म तैयार क थी, आपक इस
शानदार रचना से कोई मुक़ाबला नह है और इस लए, मेरी रचना क सदा नदा क
जाएगी।”
एक पल के लए हनुमान च कत रह गए, और फर बोले, “ या आप केवल इतनी सी
बात से परेशान ह?” उ ह ने वे शलाएँ त काल तोड़ डाल जनके ऊपर उ ह ने रामकथा
लखी थी। इसके बाद, उ ह ने उन शला को अपने एक कंधे पर और मह ष को सरे
कंधे पर उठा लया तथा समु क ओर उड़ चले। समु के बीच म प ँचकर हनुमान ज़ोर से
बोले, “ये भु के चरण म मेरी ओर से भट है!” ऐसा कहकर, उ ह ने वे शलाएँ समु म
फक द । उनके गरने से सागर म वशाल लहर उठ और फर वे शलाएँ समु क गहराइय
म समा ग । मह ष वा मी क, शम और ला न से भरे, मूक बने दे खते रह गए। उ ह ने
सोचा, “बेहतर होता, य द हनुमान ने मुझे समु म फककर उस शानदार कथा को बचा
लया होता!”
हनुमान न चंत और स न दखाई दे रहे थे। उसके बाद, उ ह ने वा मी क को एक
पल म उनके आ म प ँचा दया। “आप बलकुल चता न कर,” हनुमान ने कहा, “वह
सब तो मने अपना समय काटने के लए कया था!”
रामायण क कथा, याग पर आधा रत है और हनुमान के व का यह प उनक
वा कला से कह अ धक मह वपूण माना जाता है। उनक न वाथ व क णामयी न ा,
कथा सुनाने म नह , अ पतु सदा अपने वामी के त थी और इसी लए उ ह ने एक क व के
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आहत वा भमान को बचाने के लए अपनी उ कृ कृ त पानी म डु बो द । वह थम और
सव े रामायण थी, जसे हनुमद् रामायण कहा जाता है, जो मूल वेद क भाँ त लु त हो
गई और फर टु कड़ म ा त ई।
हनुमान ने वा मी क को णाम कया। मह ष ने उ ह आशीवाद दे ते ए भ व यवाणी
क , “हे वायुपु ! म अगले युग म फर से ज म लेकर आपक सेवा क ँ गा। म आपक
तु त गाऊँगा और अ य लोग को भी उसक श ा ँ गा। म आपक कही ई कथा को
आम लोग क भाषा म फर से क ँगा ता क सब लोग उसे समझ सक।”
हनुमान ने मु कराकर कहा, “जय ी राम!”
कहते ह, संत तुलसीदास, ज ह ने रामच रतमानस क रचना क , कोई अ य नह ब क
मह ष वा मी क ही थे, ज ह ने अपनी इ छा पूरी करने के लए फर से ज म लया।
कहते ह, बाद म का लदास के समय एक शला बहकर तट पर आ गई थी और उसे
सावज नक थान पर द शत कया गया था। वह कोई वलु त ल प म लखी गई थी जसे
फर का लदास ने पढ़ा और बताया क यह हनुमान ारा ल खत हनुमद् रामायण का अंश
है। का लदास ने वयं को अ यंत भा यशाली माना क वे कम से कम हनुमान क उस अमर
कृ त का एक प दे ख पाए।
हनुमान का दय राम से इतना ओत- ोत था क उसका संगीत के प म बाहर
नकलना न चत था। उ ह ने भगवान क तु त म अनेक पद लखे और उ ह लयब
कया। वे उन पद को अपनी श शाली आवाज़ म गाते थे तो उनका वर हमालय क
पहा ड़य और घा टय म गूँजता था। प ी अपनी उड़ान रोक दे ते थे तथा पशु भी हनुमान
को गाते तथा बना वास लए नरंतर राम का नाम जपते ए सुनने के लए क जाते थे।
ेता युग, जसम राम का अवतार आ था, ब त समय पहले पूरा हो गया था। वा तव
म, अगले युग, ापर युग का भी अंत होने को था, जसम व णु ने पृ वी पर कृ ण के प
म अवतार लया था। कृ ण ने अपने अनेक अनुचर का अहंकार तोड़ने के लए हनुमान को
साधन बनाया। कृ ण क अनेक प नयाँ थ , कतु स यभामा को लगता था क कृ ण उ ह
सबसे अ धक पसंद करते थे। स यभामा ने यह नह सोचा क कृ ण सभी को समान प से
ेम करते थे। उ ह अपनी कोई प नी वशेष प से पसंद अथवा नापसंद नह थी। वह वयं
को ब त सुंदर समझती थी और उसने एक बार कृ ण से पूछा क या वह सीता से अ धक
सुंदर नह है, जनसे कृ ण अपने पछले अवतार म इतना ेम करते थे। कृ ण का वाहन
ग ड़ था और सुदशन च उनका अ था। उन सभी को अपने ऊपर ब त घमंड हो गया
था, इस लए कृ ण ने उन सबको सबक़ सखाने का नणय कया। इनके साथ, कृ ण नारद
मु न और तुंब को भी सबक़ सखाना चाहते थे, जो वयं को ब त बड़ा संगीत समझते
थे।
एक बार, दोन दे व मु न कृ ण के पास आए और उनसे पूछा क उन दोन म सव े
संगीतकार कौन है। कृ ण मु कराए और उन दोन को हमालय पर जाकर हनुमान का
गायन सुनने को कहा। दोन ने उनक बात मान ली और हमालय प ँच गए जहाँ उ ह ने
हनुमान को गाते सुना। मा त ने सहज वन ता के साथ कहा क उ ह संगीत क समझ
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नह है और वे तो केवल भगवान राम क तु त करते ह। परंतु उनके आ ह करने पर,
हनुमान ने अपनी वीणा उठाकर गाना आरंभ कर दया। नारद और तुंब उनका गायन
सुनकर मु ध हो गए। हनुमान के वर म इतनी श थी क उनके गायन से बफ़ पघलने
लगी और जब उ ह ने गाना बंद कया तो वह फर से जमकर बफ़ बन गई। नारद और तुंब
ने दे खा क वे दोन भी बफ़ के साथ जम गए थे। उ ह ने हनुमान से उ ह मु करवाने क
ाथना क ।
“आप दोन वयं ही य नह गा लेते ता क यह बफ़ पघल जाए और आप मु हो
जाएँ?” हनुमान ने कहा।
उ ह ने ब त यास कया कतु उनके गायन से बफ़ नह पघली। उ ह महसूस आ
क उनका वर अहंकार से भरा था जब क हनुमान वशु न ा से गाते थे। तब उ ह समझ
म आया क कृ ण ने उ ह हनुमान के पास य भेजा था।
इसी तरह, एक बार नारद अपनी वीणा बजाते ए कृ ण को णाम करने ारका चले
गए। नारद महान भ थे, इस लए कृ ण ने उनका स कार कया और पूछा क या वे कृ ण
को कुछ बताना चाहते ह।
नारद ने कहा, “म दरअसल, आपको यह बताने आया था क आपके वाहन, ग ड़ ने
कस कार मेरा अपमान कया है। म इं क राजसभा म गया था और वहाँ, ग ड़ को
छोड़कर, सबने मुझे णाम कया। उसने मुझे कहा क वह मेरे जैसे को, जो सबके
लए परेशा नयाँ खड़ी करता रहता है, णाम के यो य नह समझता! मने उसे शाप नह
दया य क मुझे पता है क उसने यह बात अ ानतावश कही है, कतु मुझे लगा क मुझे
यह बात आपको बता दे नी चा हए य क समय आ चुका है क ग ड़ को पाठ पढ़ाया
जाए।”
कृ ण अपने वाभा वक रह यमयी अंदाज म मु करा दए य क वे जानते थे क
उनके तीन मनपसंद लोग दं भ से भरे ए थे और उ ह सबक़ सखाना आव यक था।
उ ह ने नारद से स यभामा को बुलाकर लाने को कहा। नारद को बड़ा आ चय आ और वे
सोचने लगे क स यभामा, जो वयं अहंकार के लए जानी जाती है, या सहायता कर
पाएगी। परंतु, उ ह ने वही कया जो उनसे कहा गया था और वे स यभामा के नवास पर
प ँच गए। उ ह ने कसी से कहा क स यभामा को उनके आने क सूचना द जाए। तब
उ ह बताया गया क स यभामा अपने ंगार म ब त त है और अभी उनसे नह मल
सकेगी। वाभा वक था क नारद चढ़ गए और उ ह ने जाकर यह बात भी कृ ण को बताई।
“नारद, आप चता मत क जए!” कृ ण ने सामा य ढं ग से मु कराते ए कहा, “य द
वह नह आती तो आप हमालय चले जाइए और हनुमान से यहाँ आने को क हए। जैसा
क आप जानते ह क वे ेतायुग म राम के अवतार के समय से वहाँ तप या कर रहे ह।”
नारद फर वधा म पड़ गए क उ ह हनुमान के पास य भेजा जा रहा था जब क
एक बार पहले हनुमान ने नारद का घमंड तोड़ा था। परंतु वे भगवान क लीला दे खना
चाहते थे, इस लए वे हमालय पर चले गए जहाँ हनुमान यान म लीन थे।

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नारद ने हनुमान के नकट जाकर ज़ोर से कहा, “मुझे भगवान कृ ण ने आपको ारका
बुलाने के लए भेजा है!”
हनुमान गहरे यान म लीन थे और उ ह ने आँख भी नह खोल । नारद ने अपना संदेश
ज़ोर से दोहराया तो मा त ने आँख खोलकर पूछा, “कृ ण कौन है? म इस नाम के कसी
को नह जानता।” ऐसा कहकर, हनुमान ने आँख मूँद और फर से समा ध म लीन
हो गए।
नारद च कत हो गए और सोचने लगे। तब उ ह समझ म आया क हनुमान तो राम के
भ ह। उ ह तो इस बात का भी नह पता है क अब ापर युग चल रहा है। उनका संसार
से कोई संपक नह था और शायद उ ह कृ ण के आगमन क भी सूचना नह थी। नारद को
एक यु सूझी। वे हनुमान के नकट गए और अपनी वीणा बजाते ए राम नाम क धुन
गाने लगे। हालाँ क हनुमान यान क अ यंत गहन अव था म लीन थे, राम का नाम सुनकर
वे उठे और अनायास ही नारद के नकट आ गए। नारद ने राम क तु त आरंभ कर द और
वहाँ से चल पड़े । मा त बंद आँख से ही नारद के पीछे चलते गए। नारद चलते-चलते
ारका प ँच गए और उ ह ने गाना बंद कर दया। इसके बाद, वे कृ ण को समाचार दे ने चले
गए। गाना बंद हो गया तो हनुमान ने आँख खोल तो वयं को एक सुंदर उ ान म खड़ा दे ख
उ ह ब त आ चय आ। उ ह लगा क उनके साथ छल कया गया है तो उ ह ने ग़ से म
उ ान को न करना शु कर दया। जब उ ान के र क उ ह रोकने आए तो हनुमान ने
उ ह भी मार भगाया। एक वानर ारा उ ान उजाड़े जाने का समाचार कृ ण को मला तो
उ ह ने ग ड़ को बुलाया और उस वानर को भगाने का आदे श दया।
ग ड़ उ ान म गया तो दे खा क एक वानर उसक ओर पीठ कए बैठा, मज़े से फल
खा रहा था।
“ !” ग ड़ च लाया, “तुम कौन हो? तुमने भगवान कृ ण का उ ान य उजाड़ा
है?”
हनुमान ने बना मुड़े उ र दया, “जैसा क तुम दे ख रहे हो, म एक वानर ँ और वही
कर रहा ँ जो सब वानर करते ह!” ऐसा कहकर, हनुमान ने फल खाना जारी रखा। ग ड़
इस तरह का वहार दे खकर ो धत हो गया और उसने हनुमान पर आ मण कर दया।
हनुमान ने फुत से ग ड़ को अपनी पूँछ म लपेटा और गला दबाकर उसका दम घ टने लगे।
ग ड़ ने कसी तरह अपनी साँस बचाकर कहा, “मुझे भगवान कृ ण ने भेजा है।”
“वह कौन ह?” हनुमान ने अपनी पकड़ थोड़ी ढ ली करते ए कहा, “म केवल
भगवान राम को जानता ँ।”
“मूख, वे दोन एक ही ह!” ग ड़ क साँस क रही थी।
“हो सकता है तुम सही कह रहे हो,” हनुमान बोले, “ कतु म केवल राम क पुकार
सुनता ँ।”
हनुमान क ग ड़ को मारने क कोई मंशा नह थी, इस लए उ ह ने उसका सर समु म
डु बोया और फर उसे द णी पहाड़ पर उछाल दया।

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समु का ब त सारा पानी ग ड़ म मुँह म चला गया। कुछ दे र बाद जब ग ड़ को होश
आया तो वह उदास चेहरा लेकर राजदरबार म कृ ण के पास लौट आया। उसके पंख से
पानी टपक रहा था।
“म दे ख रहा ँ क तुम समु म नहाकर आ रहे हो!” कृ ण ने बड़े भोलेपन से कहा।
ग ड़ भगवान के चरण म गर पड़ा और बोला, “वह कोई साधारण वानर नह है।
उसने मुझे अपनी पूँछ म बाँधकर समु म फक दया था।”
कृ ण ने उसे दलासा दे ते ए कहा, “वह वानर, राम भ हनुमान है। तुम द ण म
मलय पवत पर जाओ और उसे दोबारा बुलाकर लाओ। इस बार उससे कहना क ी राम
तु ह बुला रहे ह!”
ग ड़ को अपनी ग त पर भी बड़ा गव था। वह हनुमान को खोजने तेज़ी से उड़ता आ
द णी पवत क ओर चला गया। उसने थोड़ा घबराते ए हनुमान को कृ ण का संदेश
दया। हनुमान उसे सुनकर ब त स न ए। उ ह ने ग ड़ को कहा क वह आगे चले और
वे उसके पीछे आ जाएँगे। ग ड़ ने सोचा, “यह वानर बलवान अव य है कतु यह न चय
ही मुझसे ग त म नह जीत सकता! य द यह प ँचा भी, तो पता नह कब तक ारका प ँच
पाएगा!” यह सोचकर ग ड़ मन ही मन मु कराया और अगले ही पल पूरी ग त से ारका
क ओर उड़ गया।
कृ ण ने राम के प म हनुमान का वागत करने का नणय कया।
उ ह ने हनुमान को स न करने के लए अपनी प नी स यभामा से सीता का प
धारण करके साथ चलने को कहा। स यभामा को यह दे खकर आ चय आ क कृ ण, हाथ
म धनुष-बाण लेकर पहले ही राम का प धारण कर चुके थे। उसके बाद, कृ ण ने अपने
सुदशन च को बुलाया और कहा क वह ार पर पहरा दे य क वे कसी मह वपूण
अ त थ से भट करने वाले थे। अहंकार से भरा, सुदशन च ार पर खड़ा हो गया। इस
बीच, स यभामा को ंगार पूरा करके सीता का प धारण करने म ब त समय लगा।
इधर, ग ड़ से बात करने के बाद, हनुमान ने राम का मरण कया और अगले ही पल म
ारका प ँच गए। वे राजक म वेश करने ही वाले थे क सुदशन च ने उनका माग रोक
लया। हनुमान थ बातचीत म समय नह गँवाना चाहते थे, इस लए उ ह ने सुदशन च
को पकड़ा और अपने मुँह म रख लया और बना वलंब कए, भीतर वेश कर गए। राम
और सीता को ती ा करते दे खकर हनुमान को व वास नह आ। उ ह दे खकर हनुमान
च कत रह गए। वे भागकर आगे गए और उ ह णाम कया।
“ भु!” वे बोले, “अब मुझे समझ म आया क मेरा यान भंग करके मुझे इस व च
थान पर य बुलाया गया है। म इस परमानंद से भरे ण का ब त लंबे समय से ती ा
कर रहा था।” तभी कृ ण के बा ओर खड़ी स यभामा को दे खकर हनुमान बोले, “ भु!
मेरी पू य माता कहाँ ह? आपके पास खड़ी यह ी कौन है? यह वैदेही जैसी तो बलकुल
नह है।”
यह सुनकर स यभामा डर गई। वह वयं को सीता से उ कृ समझती थी। उसका सर
ल जा से झुक गया।
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कृ ण ने तरछ से स यभामा को दे खा और फर आगे बढ़कर हनुमान को गले
लगाते ए बोले, “मेरे य भ ! या तु ह पता है क यह ापर युग चल रहा है। तु हारे
राम ने इस युग म कृ ण के प म अवतार लया है।”
ऐसा कहकर भगवान ने हनुमान को अपना कृ ण प दखाया। यह दे खकर हनुमान
ब त स न ए और कृ ण चरण म गरकर णाम कया तथा उनसे उ ान को उजाड़ने के
लए मा माँगी। नारद इस रोचक य को दे ख रहे थे। उसी समय ग ड़ भी अपने पंख
फड़फड़ाता, हाँफता आ वहाँ आ प ँचा। हनुमान को कृ ण के सम खड़ा दे खकर,
उसका सर भी ल जा से झुक गया।
कृ ण ने ग ड़ पर तरछ डाली और हनुमान से पूछा, “क म वेश करते समय,
तु ह कसी ने रोका था?”
हनुमान ने श मदा होते ए कहा, “हाँ! धातु से न मत कोई व तु ार पर भन भना रही
थी और उसने मुझे रोकने का यास कया था। मुझे आपसे मलने क ज द थी, इस लए
मने उससे झगड़ा नह कया और उसे चुपचाप अपने मुँह म रख लया था।”
यह कहते ए, हनुमान ने सुदशन च को मुँह से बाहर थूक दया। सुदशन च ,
न चय ही, ब त नराश हो गया था। कृ ण ने जान-बूझकर सरी ओर दे खा ता क उन तीन
को अ धक श मदा न होना पड़े । वे तीन वयं को कृ ण का नज़द क मानकर घमंडी हो गए
थे और उ ह सबक़ सखाना आव यक था।
कृ ण ने हनुमान से कहा, “हनुमान, मने संसार म एक बार फर धम क थापना के
लए अवतार लया है। इसके लए मने कु वंश के पांडव को चुना है। वे कुल पाँच भाई ह
और उनम से सरा, जसका नाम भीम है, वायुदेव का पु होने के कारण तु हारा भी भाई
है। उ ह रा य से नवा सत कर दया गया है और वे शी ही हमालय पर प ँचगे। तु ह
भीम और अजुन से मलने का अवसर मलेगा। तु ह धमयु म उनक सहायता के लए
पुकारा जाएगा। कु े क रणभू म म हमारी फर से भट होगी!”
हनुमान ने कृ ण से आ ा ली और वे अपने पवतीय ग पर लौट आए।
कृ ण ने ग ड़ पर हाथ रखा और उसे उठाया। उ ह ने नकट खड़े नारद मु न को हा य-
भरी से दे खा।
ग ड़ ने ल जा से अपना सर झुका लया और नारद से उनका अपमान करने के लए
मा माँगी।
“ भु!” ग ड़ बोले, “म समझ गया क यह सब आपक लीला है और आप मुझे सबक़
सखाना चाहते थे क म आपके भ के साथ कभी वहार न क ँ । म अब जान गया ँ
क नारद आपके सव े भ म से एक ह!”
इस बीच, सुदशन च भी समझ गया क उसका घमंड तोड़ने के लए भगवान ने यह
लीला रची थी। वह भी ब त ल जत महसूस कर रहा था। कृ ण ने फर स यभामा को
दे खा कतु वह उनसे आँख नह मला पाई और सर झुकाकर नीचे दे खने लगी। उसे समझ
म आ गया क उसका स दय, जसका उसे ब त घमंड था और जसके सहारे वह सोचती
थी क कृ ण को अपना दास बना लेगी, सीता के स दय के सामने कुछ नह था! उसे धीरे-
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धीरे अपने वामी क भुता समझ म आ गई थी और यह भी समझ म आ गया था क
कृ ण सव े ह और वे कसी के दास नह ह!
इन तीन से संबं धत एक अ य कथा है जसम हनुमान को इस तीन का अहंकार तोड़ने
का दा य व मलता है। कृ ण क प नी स यभामा ने हमालय म थत राम के पावन उ ान
से पु प लाने क माँग क । उस उ ान क र ा हनुमान करते थे। कृ ण ने पु प लाने ग ड़
को भेजा। वहाँ उसे हनुमान ने वेश करने से रोक दया।
“ये पु प केवल राम और सीता के लए ह!” हनुमान ने कहा।
ग ड़ ने हनुमान क बात पर यान नह दया और पु प लेने के लए ज़बरद ती उ ान
म घुस गया। हनुमान ने ग ड़ को पकड़कर अपनी काँख म दबा लया और वे इतनी तेज़ी से
उड़कर ारका गए क उनक ती चाल से तूफ़ान आ गया जससे नगरवासी घबरा गए।
हनुमान को हवा म उड़ता दे खकर उ ह लगा क वह कोई रा स है। वे सब भागकर कृ ण के
पास गए और उनसे र ा करने क ाथना क । हालाँ क कृ ण जानते थे क वह कौन है,
कतु उ ह ने हनुमान को रोकने के लए अपना सुदशन च छोड़ दया। हनुमान ने च को
अपनी सरी कांख म दबा लया और महल क छत पर उतर गए। कृ ण ने लोग को बताया
क वे रामभ हनुमान ह और य द उ ह शांत नह कया गया तो वे ारका को भी उसी
तरह न कर दगे जैसे उ ह ने लंका को व त कया था। कृ ण ने स यभामा को सीता क
तरह व पहनने के लए कहा, कतु जब स यभामा ने तैयार होने म ब त समय लगाया तो
कृ ण ने मणी को सीता का प धारण करने के लए कह दया। मणी ने तुरंत आँख
बंद करके कृ ण से ाथना क और उनसे पछले युग म अपनी प नी जैसा प धारण करने
क अनुम त माँगी। मणी ने स कर दया क वे सीता का स चा त प ह।
कृ ण ने भी राम का प धारण कर लया और फर दोन हनुमान के पास गए। हनुमान
ने उ ह दे खते ही णाम कया तथा उनके चरण म पु प अ पत कर दए।
कृ ण ने मा त का वागत कया और शरारती ढं ग से उनसे पूछा क उ ह ने कांख म
या छपा रखा है।
मा त ने उ र दया, “मेरे वामी के उ ान म एक प ी आया था और वह पु प तोड़ने
क को शश कर रहा था और जब म वहाँ प ँचा तो एक धातु न मत प हए ने मुझे रोकने का
यास कया, इस लए मने उन दोन को अपनी कांख म दबा लया।”
यह कहते ए, हनुमान ने ग ड़ और च को मु करके कृ ण के सामने रख दया।
दोन का अहंकार चूर हो गया और वे श मदा होकर सर झुकाए खड़े हो गए। इस बीच,
स यभामा को पता लगा क मणी ने अ यंत सरलता से सीता का प धारण कर लया
था। उसे यह भी समझ म आ गया क यह सारा नाटक भगवान ने उसका दं भ तोड़ने के
लए रचा था।

जो सत बार पाठ कर सोई।


छू ट ह बं द महा सुख होई।।

ी ी
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

वीराय नमः

अ याय 34

भीम
महाभारत

तव माया बस फरउँ भुलाना।


ताते म न ह भु प हचाना।।

आपक माया के वशीभूत,


म, जीव, तो अपनी कृ त भी भूल गया ँ
इस लए, हे भु, म आपको
मानव प म पहचान नह पाया।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

चरंजीवी होने के कारण, हनुमान अनेक युग तक जी वत रहे। उनका ज म ेता युग म
आ था और उसके बाद ापर युग आया। ेता म राम के प म अवतार लेने वाले भगवान
व णु ने ापर म कृ ण के प म फर से अवतार लया। कृ ण क भ व यवाणी के
अनुसार, हनुमान ने ापर युग म अनेक जगह अपनी भू मका नभाई और उ ह पांडव क
र ा करने का अवसर भी मला।
भगवद्गीता म कृ ण ने कहा क जब भी संसार म धम का पतन होगा, वे धम क र ा
हेतु अवतार लगे और धम का पालन न करने वाल को दं ड दगे। अधम के व होने वाले
यु म, कृ ण ने पांडव का साथ दया, जो उस समय शासन कर रहे कु वंश के वंशज थे।
वे कुल पाँच थे और उन सबम वल ण गुण थे। उनम ये यु ध र था जो कु
राज सहासन का असली उ रा धकारी था। सरा भीम, तीसरा अजुन, तथा नकुल व
सहदे व चौथे और पाँचव थे। उनके चचेरे भाई तथा ये पता के पु , सं या म एक सौ थे,
कतु वे पांडव को मार डालना चाहते थे ता क उनसे सहासन का रा या धकार छ ना जा
सके। मह ष ास ारा र चत महाभारत , पांडव और कौरव के बीच ए यु का कारण
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बनी घटना क कथा है। इस यु म कृ ण ने पांडव का साथ दया और कौरव को, जो
सं या म अ धक थे, परा जत कर दया। भगवद्गीता यु के आरंभ से पूव कृ ण ारा
अजुन को दया गया उपदे श है और यह ह धम का सव े धा मक ंथ माना जाता है।
येक पांडव का ज म कसी न कसी दे वता से आ था। भीम, जो पाँच म सबसे
बलशाली था, वायुदेव का पु था। इस कोण से, “वायु-पु ” होने के कारण हनुमान,
भीम के भाई थे।
उन पाँच भाइय को जुए के खेल म छल से हराया गया था और उ ह कौरव ारा
चौदह वष के लए वन म नवा सत कर दया गया था। इस बीच, अजुन, भगवान शव को
स न करने और उनसे वरदान म द ा ा त करने के उ े य से हमालय के उ च
शखर पर कठोर तप करने चला गया। शेष चार भाई, अपनी प नी ौपद के साथ अजुन
के पीछा करते ए ब त र नकल गए। उ ह इस संकट भरे माग पर लोमश ऋ ष ले गए
थे, जहाँ तेज़ हवाएँ चलती थ और तूफ़ान आते रहते थे। ऐसे ही एक तूफ़ान के दौरान,
ौपद मू छत हो गई। यु ध र वहाँ से लौटना चाहता था, कतु भीम ने आगे बढ़ने पर ज़ोर
दया और उसने अपने रा स-पु घटो कच को बुलाया। वह थके ए पांडव को वायु-माग
से, नर व नारायण के नवास ब का म ले गया। यहाँ उ ह ने छह दन व ाम कया। यह
ौपद ने सह प य वाले कमल का फूल दे खा जो हवा से बहता आ र जा रहा था।
उस फूल के द सुगंध से ौपद मो हत हो गई और उसने भीम को वैसे ही कमल पु प
लाने के लए कहा।
भीम सदा ही ौपद क इ छा पूण करने को त पर रहता था। वह शोर करता आ,
अपनी गदा से पेड़-पौध को तोड़ता, वन के बीच से जा रहा था। उसने ज़ोर से अपना शंख
बजाया और पहलवान क भाँ त अपनी जाँघ पर थपक द । हनुमान उसी वन म रहते थे।
उ ह ने जब यह हलचल सुनी तो अपने भाई का दं भ तोड़ने का नणय कया।
काफ़ र चलने के बाद, भीम एक ऊँची पहाड़ी पर चढ़ गया और उसने एक ब त
सुंदर केले का बाग दे खा जो अनंत तक फैला आ था। वह उ म हाथी के समान उस बाग
को र दने लगा और वृ को उखाड़ने और तोड़ने के कारण वहाँ के सभी पशु-प ी
घबराकर भागने लगे। सहसा, माग के बीच बीच, भीम ने लाल आँख वाले एक वशाल और
सुनहरे वानर को दे खा जो आराम से केले खा रहा था। भीम के चलने से हो रही हलचल को
सुनकर वानर ने अपनी पूँछ को ज़मीन पर पटका जससे ज़ोरदार गजना ई। भीम ने भी
यह आवाज़ सुनी और उसने इसे चुनौती समझ लया। वह आगे बढ़ा और शी ही माग के
बीच म लेटे ए वानर के सामने आ खड़ा आ।
“उनक छोट , कतु मोट गदन, उनके बँधे ए हाथ के ऊपर टक ई थी, नतंब से
ऊपर उनक कमर वशाल व चौड़े कंध के नीचे पतली थी और वे हाथ म पताका लए
दमक रहे थे। उनक लंबे बाल वाली सीधी पूँछ छोर पर थोड़ी मुड़ी ई थी। उनका चेहरा
चं मा के समान द तमान था और उनके लाल ह ठ, ता जैसी लाल ज ा, गुलाबी कान,
तीखी भँव थी और मुख म शानदार सफ़ेद दाँत चमक रहे थे। उनक गदन पर भारी बाल
वाली अयाल, प ल वत अशोक गु छ क भाँ त लहरा रही थी। वे केले के सुनहरे वृ के
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म य दहकती अ न के समान दे द यमान हो रहे थे और मधु के समान पीले व नभय ने
से दे ख रहे थे।” महाभारत म ास ने हनुमान का यही ववरण दया है।
हनुमान ने भीम को वन के ा णय के त लापरवाह होने के लए फटकारा, कतु
घमंडी भीम ने हनुमान से कहा क वे उसका माग छोड़कर एक तरफ़ हो जाएँ अ यथा उ ह
भी उसके ोध का सामना करना पड़े गा। हनुमान ने कहा क वे अ यंत बल और बूढ़े ह
इस लए भीम य द चाहे तो उनके ऊपर से कूदकर आगे जा सकता है।
भीम ने वरोध करते ए कहा, “म मानता ँ क सभी ा णय म, ई वर का वास होता
है। तु हारे जैसे वृ एवं श हीन वानर म भी उनका वास है, इस लए म यह काम नह
क ँ गा। अ यथा, म तु हारे ऊपर से उसी सहजता से कूद जाता जैसे हनुमान समु के ऊपर
से कूदकर लंका चले गए थे।”
वृ वानर क आँख म एक पल के लए चमक आ गई और फर उ ह ने बल वर म
पूछा, “हनुमान! वह कौन है?”
भीम ने नदनीय ढं ग से उ र दया, “सभी जानते ह क हनुमान, भगवान राम के
अन य भ थे। वे वायु-पु होने के नाते मेरे भी भाई ह! म पांडव म सरा भाई भीम ँ।
दै य मेरे नाम से काँपते ह और क वय ने मेरे अद य बल पर क वताएँ लखी ह। इससे पहले
क म तु ह लात मारकर एक तरफ़ कर ँ , तुम मेरे माग से हट जाओ।”
हनुमान पर इस बात का कोई भाव नह पड़ा और वे आराम से केला छ लने लगे।
उ ह ने बल अवाज म कहा, “म ब त थका आ ँ और हल नह सकता, कतु य द तुम
चाहो तो मेरी पूँछ को खसकाकर आगे जा सकते हो। य द तु ह लगता है क तुम ऐसा नह
कर सकते तो एक केला खा लो, य क इससे तु ह बल मलेगा!”
यह सुनकर भीम को ोध आ गया ले कन वह पूँछ को लांघना या उसे छू ना नह
चाहता था, इस लए उसने सोचा क वह अपनी गदा से पूँछ को थोड़ा-सा उठाकर उसे और
वानर को हवा म उछल दे गा! उसने जब अपनी गदा को पूँछ के नीचे डाला तो उसे बड़ा
आ चय आ य क वह पूँछ लौह के समान कठोर थी। उसने जब झुककर पूँछ को उठाने
का यास कया तो वह वयं ही लड़खड़ा गया। उसने कई बार यास कया। उसके चेहरे
से पसीना टपकने लगा और माथे क नस फूल ग । तब उसे एहसास आ क वह कोई
साधारण वानर नह , अ पतु कोई श शाली जीव है, जो उससे भी अ धक बलशाली है।
उसका अहंकार चूर-चूर हो गया और वह हाथ जोड़कर वानर के सम खड़ा हो गया।
उसने वानर से उसक पहचान बताने को कहा।
“आप न चत प से कोई साधारण वानर नह ह, अ पतु वानर के प म कोई दे वता
ह। कृपया मुझे अपना नाम बताएँ।”
हनुमान खड़े हो गए और बोले, “म वायु-पु हनुमान ँ और तुम मेरे भाई हो। म यहाँ
लेटकर तु हारी ती ा कर रहा था य क म तुमसे मलना चाहता था।”
यह सुनकर भीम ब त स न आ और दोन भाई बड़े ेम से एक- सरे के गले लग
गए। भीम ने हनुमान को बताया क बचपन से वे उसके आदश रहे ह और वह उ ह दे खना
चाहता था। दोन भाई फर से गले लगे और तब हनुमान ने भीम से वन म घूमने का कारण
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पूछा। भीम ने उ ह बताया क वह अपनी प नी ौपद के लए द सुगं धत पु प लेने
आया है।
हनुमान बोले, “उस तरह के सुनहरे कमल-पु प य राज कुबेर के सरोवर म खलते ह।
वहाँ उनक सुर ा क जाती है। उन पु प को ा त करने तु ह उनसे लड़ना पड़ सकता है।”
भीम ने उ र दया, “म ौपद के लए पु प लाने के लए कसी से भी लड़ सकता ँ।
मुझे व वास है क आपके आशीवाद से म अव य सफल होऊँगा!” हनुमान ने भीम को
आशीवाद दया और कहा क वह सरोवर पर जाकर उनका नाम लेगा तो वहाँ के हरी य
उसे ख़ुशी-ख़ुशी, जतने उसे चा हए, उतने पु प दे दगे।
भीम ने एक अ य ाथना क । “मने सदा आपके युवा प म क पना क है, जब
आपने सीता को खोजने के लए समु पार कया था। कृपया मुझे द द जए क म
आपका वह प दे ख सकूँ।”
हनुमान ने कहा, “मेरा वह प ेता युग का है और अब ापर युग चल रहा है।
हालाँ क म अमर ँ कतु मुझे वतमान युग के मानदं ड के अनुसार चलना पड़ता है। इसके
अ त र , य द म वह प धारण कर भी लूँ, जो मने समु लांघते समय धारण कया था,
तो तुम उसे सहन नह कर पाओगे।”
भीम फर भी वनती करता रहा और अंत म हनुमान को उसक बात माननी पड़ी। वह
बात समा त होने से पूव, हनुमान ने वृ और सफ़ेद दाढ़ वाले वानर से अपना प
बदलकर युवा और आकषक वानर का प धारण कर लया। फर उ ह ने अपना आकार
बढ़ाना आरंभ कर दया और वे भीम के सामने इतने ऊँचे हो गए क उनका सर आकाश को
छू ने लगा। भीम को हनुमान का सर दखाई नह दे रहा था य क वह सूय क भाँ त चमक
रहा था। भीम उस आभा को सहन नह कर पाया। उसने हनुमान के चरण मे णाम कया
और उनसे अपने पहले वाले आकार म लौटने क वनती क । हनुमान अपने सामा य
आकार म आ गए और उ ह ने भीम को आशीवाद दया तथा अकारण हसा से बचने का
सुझाव दया। उ ह ने भीम को कुबेर के सरोवर का रह य बताया और उसे वरदान भी दया।
हनुमान ने भीम से कहा क य द वह चाहे, तो वे कौरव को मारकर पांडव को उनका रा य
लौटा सकते ह। भीम ने कहा क सफ़ उनसे भट हो जाने से ही उसे अपने सफल होने का
व वास हो गया है। हनुमान ने यु के दौरान अजुन और भीम का साथ दे ने का वचन
दया। यह कहकर, हनुमान अंत यान हो गए। हनुमान से ान और अनुशासन का पाठ
पढ़ने के बाद भीम सरोवर क ओर चल पड़ा और बना कसी परेशानी के ौपद के लए
पु प लेकर लौट आया।
हनुमान क पांडव के मंझले भाई अजुन से भट पर भी एक रोचक कथा है। भगवान
कृ ण ने अजुन को कु े क रणभू म म भगवद्गीता का उपदे श दया था। महाभारत के
यु के समय अजुन क पताका पर वयं हनुमान वराजमान थे। इस घटना से जुड़ी एक
रोचक कथा मलती है।
चौदह वष के वनवास के दौरान, अजुन तप या करने हमालय पवत पर चला गया
ता क भगवान शव को स न करके उनसे द ा ा त कर सके य क वह जानता था
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पांडव और कौरव के म य यु होना न चत था। एक दन, वन म घूमते ए अजुन ने
एक वल ण वानर को दे खा जो पेड़ के नीचे बैठकर तप या कर रहा था। वह वानर को
दे खकर च कत रह गया और उसके नकट बैठकर उसक आँख खोलने क ती ा करने
लगा। वानर ने जब आँख खोल तो अजुन ने उससे पूछा क वह कौन है और वहाँ तप या
य कर रहा है।
वानर ने उ र दया, “वानर का वाभा वक आवास वन होता है। म भगवान राम का
दास हनुमान ँ। या अब तुम अपना प रचय दोगे?”
अजुन ने हनुमान के चरण छु ए और कहा, “यह मेरा सौभा य है क मेरी आपसे भट
ई। म पांडव का मंझला भाई अजुन ँ और यहाँ तप या करके भगवान शव को स न
करने और उनसे द ा ा त करने आया ँ। यह ब त अ छ बात है क आपसे मलना
हो गया य क भगवान राम को लेकर मेरे मन म एक संदेह है। मने सुना है क भगवान राम
एक े धनुधर थे, तो मुझे यह सोचकर आ चय हो रहा था क उ ह ने समु पर बाण का
सेतु न बनाकर वानर क सहायता से प थर का पुल य बनाया।”
हनुमान ने अजुन के न म छपे अहंकार को पढ़ लया। वह वयं को े धनुधर
स करना चाहता था। हनुमान ने उ र दया, “मेरे वामी के लए बाण का पुल बनाना
अ धक सरल था, कतु यान रखो क उसके ऊपर से सैकड़ वशालकाय वानर को पार
होना था और इस बात पर संदेह था क वह पुल उन सबका भार उठा सकेगा अथवा नह ।”
अजुन ने गव से उ र दया, “मुझे व वास है क म आसानी से ऐसा पुल बना सकता
था जो कतने भी वानर का बोझ उठा सकता था।”
हनुमान ने मु कराते ए कहा, “यहाँ एक तालाब है। तुम उसके ऊपर बाण का पुल
बना दो। य द वह पुल सफ़ मेरा भार सहन कर पाया तो भी म संतु हो जाऊँगा और तु हारे
दावे को स य मान लूँगा। परंतु य द वह मेरा भार नह झेल सका तो तुम या करोगे?”
अजुन ने चढ़कर कहा, “मुझे भरोसा है क यह पुल आपके भार से नह टू टेगा, कतु
य द यह टू ट गया तो म आ म-दाह कर लूँगा। अब आप बताइए क य द पुल नह टू टा तो
आप या करगे?”
हनुमान ने कहा, “य द तुम सफल हो गए तो म तु ह वचन दे ता ँ क यु म तु हारी
पताका पर वराजमान रहकर तु ह वजय दलवाऊँगा!”
बात म समय न न करते ए, अजुन ने अपना व यात गांडीव धनुष उठाया और
अपने अ य तरकश से व ुत ग त से बाण छोड़ना आरंभ कर दया। उसने उन बाण को
जोड़कर कुछ ही ण म तालाब के ऊपर पुल बना दया। अपने कौशल से स न होकर
अजुन एक ओर हट गया और उसने हनुमान को पुल पार करने के लए आमं त कया।
हनुमान ने कहा क वे पुल पर चढ़कर ठं डे पानी म गरने क अपे ा अपना एक पैर रखकर,
पहले पुल क जाँच करगे। यह सुनकर अजुन को ग़ सा आ गया ले कन उसने अपने ोध
को नयं त कर लया। हनुमान आगे बढ़े और उ ह ने सावधानी से अपना एक पैर पुल पर
रखा। अजुन को यह दे खकर आ चय आ क हनुमान के पैर रखते ही पुल धड़धड़ाया,

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उसके सभी बाण बखरकर अलग हो गए और वह चरमराकर ढह गया। अजुन को व वास
नह आ क सफ़ एक वानर के पैर रखने मा से उसका बनाया शानदार पुल टू ट गया।
“अजुन,” हनुमान बोले, “तु हारा बनाया आ पुल, मेरे एक पैर का भार नह उठा
सका, तो तुमने यह कैसे सोच लया क यह सैकड़ वानर का भार उठा सकता है?”
अजुन पूरी तरह हतो सा हत हो गया। परंतु वह अपने वचन का प का था। उसने
चुपचाप लक ड़याँ एक क और अपने लए चता तैयार करने लगा। वह उस चता म
कूदने ही वाला था क तभी हाथ म डं डा और पानी का घड़ा लए खड़े एक जटाधारी योगी
ने उसे ऐसा करने से रोक लया।
“तु ह दे खने से लगता है क तुम युवा और बु मान हो। मुझे बताओ क तुम इस तरह
आ म-दाह य कर रहे हो?”
अजुन ने उसे पूरी बात सुनाई। योगी ने हनुमान से पूछा, “ या इस ण के सा ी के प
म यहाँ कोई तीसरा था? जीवन और मृ यु के ऐसे मामल म, सामा य तौर पर, कसी
को सा ी रखा जाता है।”
हनुमान ने सर हलाकर कहा क इस मामले म कसी सा ी क आव यकता नह थी
य क उ ह पता है क अजुन आ म-स मान वाला है और वह अपना वचन अव य
नभाएगा। योगी ने फर से इस बात पर ज़ोर दया क इस तरह क वकट थ तय म सा ी
का होना अ नवाय है। उसने यह भी कहा क अजुन को पुल बनाने का एक और अवसर
मलना चा हए और सा ी के प म वह वयं वहाँ रहेगा। दोन ने इस बात को मान लया।
अजुन ने फर से अपना धनुष उठाया कतु इस बार आरंभ करने से पूव उसने मन म कृ ण
को मरण कया और उनसे सहायता माँगी। उसने फर एक और पुल बनाया जो पछले
वाले से अ धक मज़बूत था। हनुमान ने अपना दायाँ पैर जान-बूझकर ज़ोर से रखा कतु उ ह
यह दे खकर आ चय आ क इस बार पुल बलकुल नह हला। इसके बाद, वे आसानी से
पुल पर चढ़कर चलने लगे। वे मुड़े और पुल के बीच म खड़े होकर उसपर ज़ोर-ज़ोर से
कूदने लगे, परंतु फर भी पुल नह हला। उ ह ने अपना आकार बढ़ाया और पूरी श से
पुल के ऊपर कूद गए। परंतु वह पुल फर भी नह हला। हनुमान को ब त अचरज आ।
उ ह ने एक पल के लए सोचा और फर बैठकर पुल के नीचे झाँकने लगे। उ ह ने दे खा क
एक वशाल कछु ए ने उस पुल को अपनी पीठ पर उठा रखा था। हनुमान ने मुड़कर सं यासी
क ओर दे खा कतु उसके थान पर वहाँ भगवान कृ ण खड़े मु करा रहे थे।
हनुमान दौड़कर गए और उ ह णाम कया। तब उ ह समझ म आया क कृ ण के प
म दरअसल राम उनके सामने खड़े थे और उ ह ने ही कछु ए का प धारण करके अजुन के
बनाए पुल को टू टने से बचाया ता क उसे आ म-दाह करने से रोका जा सके। जस तरह का
ेम राम के मन म हनुमान के लए था, कृ ण के मन म वैसा ही ेम अजुन के लए था।
अपने सखा का वह प दे खकर, अजुन भागकर कृ ण के पास गया और उ ह णाम
कया। उसने समझ लया क कृ ण एक बार फर उसक सहायता के लए आए थे, जैसा
क उ ह ने पहले भी कई बार कया था। कृ ण ने अजुन को उठाया और उसक ओर ेम से

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दे खते ए बोले, “याद रखो अजुन अहंकार को सदा नयं ण म रखना चा हए। य द म
समय पर न प ँचता तो तु ह इस अहंकार के लए ब त भारी मू य चुकाना पड़ता।”
अजुन ने ल जा से अपना सर झुका लया और भगवान क मता पर संदेह करने के
लए मा माँगी।
कृ ण ने फर हनुमान से कहा, “वायुपु ! मुझे आशा क तुम अपना वचन पूरा करोगे
और आगामी यु म अजुन क सहायता करोगे। तु ह, यु म बना स य प से भाग
लए, अजुन क पताका पर वराजमान होकर उसक हर संभव सहायता करनी है।”
हनुमान ने अपना वचन पूरा करने का आ वासन दया। अजुन ने हनुमान को ध यवाद दया
और शव को स न करने के लए अपनी तप या पूरी करने चला गया और हनुमान भी
सं याकाल क पूजा करने अपनी गुफा म लौट गए।
पांडव ने सफलतापूवक अपना वनवास काट लया, कतु कौरव ने उ ह फर भी
उनका रा य लौटाने से मना कर दया। यु ध र ने यु को टालने का ब त यास कया
ले कन य धन ज़रा-सी भू म भी दे ने के लए तैयार नह आ। कृ ण त बनकर कु
राजदरबार म गए और उ ह ने सम त वृ जन से य धन को समझाने का अनुरोध कया,
परंतु वह यास भी असफल हो गया। आ ख़रकार, दोन प कु े के मैदान म यु के
लए तैयार हो गए। कृ ण ने अजुन का सारथी बनना वीकार कर लया और हनुमान ने
अजुन क पताका पर बैठकर भयंकर मुखाकृ तयाँ बना और भीषण आवाज़ नकाल ,
जससे उनका सामना करने वाल के पसीने छू ट गए। ऐसे भी उ लेख मलते ह क कृ ण ने
अजुन को वजय ा त करने के लए एक लाख बार हनुमान मं का जाप करने को कहा।
इस तरह, हनुमान क ई वर प म वंदना करने वाला थम अजुन था। कृ ण ने
हनुमान को अगले युग, क लयुग म इस तरह क पूजा को वीकार करने को कहा।
यु आरंभ होते ही, अजुन ने कृ ण को अपना रथ, दोन सेना के म य म ले जाने
को कहा ता क वह श ु के सै य व यास का नरी ण कर सके। परंतु जब उसने श ु सेना म
अपने गु , वृ जन और भाइय को दे खा तो वह अ यंत नराश हो गया और उसके हाथ
से धनुष छू ट गया तथा उसने यु करने से मना कर दया। उस समय, कृ ण ारा अजुन को
दया गया उपदे श ही ीम गवद्गीता के नाम से व यात है। यह ंथ अ या म का
वहा रक प उजागर करता है और यह बताता है क प र थ त कतनी भी वकट हो,
उससे कस तरह नपटना चा हए।
“यह यु कसी रा य के लए नह , अ पतु धम क र ा के लए हो रहा है, जसे तु ह
घृणार हत भाव से लड़ना है य क असली श ु तु हारे भीतर है। जो अपने ऊपर
वजय ा त कर लेता है, वही स चा नायक होता है। सफलता और असफलता म, ख व
सुख म, स मान एवं अपमान म को सम रहना चा हए। ऐसा करने से सदा पाप
करने से बचा रहता है। इस लए, हे अजुन! उठो और द ा बनकर यु करो!”
कृ ण का अजुन को दया गया यह उपदे श सभी भावी पी ढ़य के लए था और यह
आज भी उतना ही मा य है जतना पाँच हज़ार वष पहले कु े क रणभू म पर था।

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अजुन क पताका पर व मान होने के कारण, हनुमान कु े के मैदान म
भगवद्गीता के इस पूरे उपदे श को सुनने वाले थम ाणी थे। वे कृ ण के वराट प के भी
सा ी थे। बाद म, कृ ण ने अजुन को बताया क उसका रथ कण के बाण से इस लए
जलकर भ म नह आ य क उसके पर वयं हनुमान बैठे थे। यु के अंत म, जैसे ही
हनुमान रथ से नीचे उतरे, अजुन के रथ म व फोट आ और वह तुरंत जलकर भ म हो
गया!

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।


होय स साखी गौरीसा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

शुभकराय नमः

अ याय 35

शुभम्
क लयुग

सो सब तव ताप रघुराई।
नाथ न कछु मो र भुताई।।

हे रघुनाथ! यह तो सब आपका ही ताप है।


इसम मेरी भुता (बड़ाई) कुछ भी नह है।
—तुलसीदास कृत रामच रतमानस

ापर के बाद क लयुग आरंभ हो गया और हनुमान हमालय पवत पर अपने भु क


तप या म लीन रहे।
उस समय, सूय के पु एवं श न- ह का वामी, श न हनुमान के पास आया। हनुमान ने
उसे पहचान लया य क उ ह ने एक बार उसे रावण के तहख़ाने से मु करवाया था।
श न का रंग काला और आकृ त वकृत थी। उसक गदन टे ढ़ थी जसके कारण उसका सर
नीचे झुका रहता था। उसक जसके ऊपर पड़ जाती, वह बबाद हो जाता था। श न ने
हनुमान को सूचना द क ापर युग समा त हो गया है और भगवान कृ ण अपने अ य द
सहचर के साथ, ज ह ने उनके साथ अवतार लया था, पृ वी को छोड़कर जा चुके ह।
क लयुग के दौरान, श न को लोग को सताने और उ ह क दे ने के लए अ त र श याँ
ा त हो गई थ । इसके लए वह लोग क कुंडली म उनक रा शय म साढ़े सात वष के
लए वेश कर जाता था। उसे, वशेषकर वृ लोग को लंबे समय तक रोग व क और
पीड़ा दे ने म आनंद आता था। अपनी श य का दशन करते ए, श न ने हनुमान से कहा
क अब वे बूढ़े हो चुके ह और उनका बल भी ीण हो गया है, इस लए वह अब सीधा उनके
तन को भा वत करेगा।

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हनुमान को न श न का और न, उसके भाई यम का कोई भय था। “मेरे शरीर म राम के
अ त र कसी के लए थान नह है,” वे बोले, “इस लए मेरा सुझाव है क तुम कह और
चले जाओ।”
श न हँसा और बोला, “उस वषय म हम बाद म दे खगे!” इसके बाद उसने अपनी
सामा य योजना बनाई। इसम वह ढाई वष तक सर पर सवार होकर म त क को बल
करता था, फर उतना ही समय उदर के भीतर रहकर पाचन को तथा सामा य प से
वा य को कमज़ोर करता था। अंत के ढाई वष म घुटन व पैर को न य कर दे ता था।
इस बीच पी ड़त , श न के भाई, यम के पास जाने के लए तैयार हो जाता था!
हनुमान ने अपने सर क ओर संकेत करते ए कहा, “ठ क है, तो फर शु हो जाओ।
हम उदर और पैर को बाद म दे खगे!”
श न स नतापूवक हनुमान के सर पर चढ़ गया। शी ही हनुमान के सर म खुजली
होने लगी। हनुमान को बेचैनी ई तो उ ह ने एक बड़ी-सी शला को तोड़कर अपने सर पर
रख लया।
“अरे! यह या कर रहे हो?” श न च लाया।
“म खुजली और सरदद का उपचार इसी तरह करता ँ,” हनुमान ने उ र दया।
इसके बाद भी जब खुजली होती रही तो हनुमान ने एक और प थर उठाया और ज़ोर से
पहले वाले के ऊपर पटक दया। श न पीड़ा से काँप गया और बड़ी मु कल से बोला, “हम
लोग बैठकर बात कर लेते ह। म तु ह थोड़ी छू ट दे सकता ँ और साढ़े सात वष को साढ़े
सात स ताह या साढ़े सात दन भी कर सकता ँ!”
“मुझे कोई परेशानी नह है,” हनुमान ने कहा, “तुम अपना काम करो और म अपना
करता ँ!” यह कहकर हनुमान ने पहले से भी भारी, तीसरी शला उठाकर पहले दो के
ऊपर रख ली।
श न कराहने लगा और फर उसके मुँह से ख़ून क उ ट ई। “मुझे जाने दो! कृपया
मुझे छोड़ दो। म फर कभी तु ह परेशान नह क ँ गा!”
“म तु ह अ छ तरह जानता ँ!” हनुमान बोले, “तुम जाकर कसी और को परेशान
करोगे!” यह कहते ए, हनुमान ने एक और प थर अपने सर पर रख लया।
श न दया क याचना करने लगा और बोला, “मुझे बचाओ, वायुपु ! हे राम के त,
मुझे छोड़ दो! म तु ह वचन दे ता ँ क जो भी तु हारा मरण करेगा, म उसे कभी परेशान
नह क ँ गा!”
यह सुनकर, वशेषकर अपने वामी के नाम से, हनुमान स न हो गए और उ ह ने
अपने सर पर से शलाएँ हटा ल । श न नीचे उतर आया और उसने अपना वचन नभाने का
संक प कया।
इस कथा का एक अ य व प है जसका यहाँ उ लेख करना आव यक है।
एक दन सं या के समय, हनुमान समु -तट के नकट अपनी पसंद के एक थान पर,
जहाँ कई युग पूव वानर ने पुल बनाया था, यान म लीन थे। तभी श न घूमता आ वहाँ
आ प ँचा। उसक श याँ पहले से अ धक हो गई थ और लोग उससे डरते थे, इस लए
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उसे ब त अ छा लगता था। उसे हनुमान क या त के बारे म पता था, इस लए उसने सोचा
य द वह हनुमान को वश म कर ले, तो उसक अपनी स ब त बढ़ जाएगी। वह मा त
के नकट गया और च लाया, “वानर! म ह म सवश मान श न ँ। योगी बनने का ढ ग
छोड़कर उठो और मेरे साथ यु करो!”
हनुमान ने आदरपूवक श न का वागत कया और कहा क वे ब त बूढ़े और बल हो
गए ह और राम का मरण करने के अ त र उनक कसी अ य काय म च नह है,
इस लए उसे कसी और यो य त ं से यु करना चा हए। श न ने उ र दया क एक
बार अपना शकार चुन लेता है तो फर वह उसे पूरी तरह न करने के बाद ही छोड़ता है।
उसने नकट जाकर हनुमान का पंजा पकड़ लया। हनुमान ने उठकर अपने पंजे का
आकार बड़ा कया और उसम श न को जकड़ लया। इसके बाद, उ ह ने श न को सर से
पैर तक अपनी पूँछ म बाँध लया। श न ने ब त यास कया कतु वह वयं को मु नह
कर सका और उसका दम घुटने लगा।
हनुमान ने उसक उपे ा करते ए अ त होते ए सूय को दे खा और बोले, “मुझे
भगवान के सेतु क प र मा करने जाना है!”
यह कहकर वे कूदे और ऊबड़-खाबड़ पुल पर चढ़ गए और फर त ग त से भागने
लगे। लंका तक दो सौ योजन जाना और फर वापस आना! भागते ए, वे बीच-बीच म,
चाल को धीमी करके अपनी पूँछ को न कदार प थर पर पटकते थे। उनक पूँछ व के
समान थी और उसे उनक इस हरकत से कोई त नह प ँची, कतु पूँछ के अंदर लपटे
या ी के लए ऐसा नह कहा जा सकता था। या ा पूरी होने तक श न का कचूमर नकल
गया और वह दया क याचना करने लगा। हनुमान रेत पर लेट गए और बोले, “य द तुम मेरे
भ क कुंडली से बाहर रहने का वचन दो तो म तु ह छोड़ ँ गा!”
श न बोलने क थ त म नह था। उसने धीरे-से सर हलाकर हामी भर द तो हनुमान
ने उसे छोड़ दया। वह लड़खड़ाते ए चलने लगा। उसने अपने घाव पर लगाने के लए
थोड़ा तल का तेल माँगा। आज दन तक, येक श नवार को, जो श न का दन माना
जाता है, श न के भ उसे तेल अ पत करते ह।
राम के समय ेता युग म, वै णवी नाम क एक ी राम से ववाह करना चाहती थी
कतु राम ने उसका ताव अ वीकार कर दया य क वे ववा हत थे। परंतु उ ह ने उसे
वचन दया क वे क लयुग म उससे ववाह करगे, इस लए वै णवी ने क लयुग आने तक
हमालय म तप या करने का नणय कया।
एक बार, भैर नाम का मायावी वै णवी के आ म म आया। परंपरा के अनुसार, वै णवी
ने उसे भोजन दया। परंतु भैर क शाकाहारी भोजन म च नह थी और उसने म दरा,
मांस और संभोग क इ छा क ता क वह अपनी तं साधना आरंभ कर सके।
वै णवी का समपण राम के त था इस लए उसने भैर क इ छा नह मानी। जब उसने
बल का योग कया तो वह भाग गई। भैर ने उसका पीछा कया। वै णवी भागती ई
पहाड़ पर चली गई। कई दन तक भागने के कारण वह ब त थक गई और उसे यास लगने
लगी। उसने राम से सहायता माँगी। तभी उसके सामने हनुमान कट हो गए। उ ह ने एक
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शला को लात मारी तो वहाँ से पानी क धारा फूट पड़ी। उ ह ने पवत म मु का मारकर एक
गुफा भी बना द । वै णवी ने पानी पया और नौ माह तक उस गुफा म व ाम करते ए
कठोर तप कया। इस बीच, हनुमान गुफा के बाहर भैर से लड़ते रहे। यह अव ध पूरी होने
के बाद, वै णवी ने अपना मानव शरीर याग कर, अ ारह अ के साथ दे वी माता, आ द
श का प धारण कर लया। उ ह ने फर अपना शूल उठाया और भैर का सर काट
दया।
उ ह ने हनुमान को समय पर सहायता करने के लए ध यवाद दया और उ ह अपने
मं दर के र क के प म वीकार कया। हमालय म थत वै णो दे वी के मं दर के बाहर
हनुमान क तमा भी था पत है।
एक बार, महान योगी म य नाथ ने दे वी के मं दर म वेश करके तं - व ा का ान
ा त करना चाहा। हनुमान ने उ ह ार पर रोककर यु कया। उ ह ने योगी को यो य
त ं मानकर भीतर जाने क अनुम त दे द । म य नाथ इतने स न हो गए क उ ह ने
हनुमान को वरदान दया क वे जो चाह, कर सकते ह। हनुमान ने योगी क परी ा लेने का
नणय कया और उ ह ी रा य नामक थान पर जाकर, जहाँ केवल याँ रहती थ ,
य के साथ रहने को कहा! भगवान का ऐसा आदे श था क जो भी पु ष ी रा य म
वेश करेगा, उसक त काल मृ यु हो जाएगी।
म य नाथ इस व च अनुरोध को सुनकर च कत हो गए तो हनुमान ने उस थान से
संबं धत कथा सुनाई और यह बताया क उ ह ने य क र ा करने का ण य कया
था। यह घटना ब त पहले क है जब वे अयो या म राम क सेवा करते थे। हनुमान, राम
क येक आव यकता का इतना यान रखते थे क सीता को उनसे चढ़ होने लगी। उ ह ने
हनुमान को कुछ समय राम से र रखने के लए कहा, “मेरी इ छा क तुम एक संतान
उ प न करो! अयो या छोड़कर जाओ और यह काय पूण करके ही लौटना।” न चत प
से, सीता का आदे श सुनकर हनुमान घबरा गए य क उ ह ने चय का त लया आ
था। उ ह लगा क वे कभी संतान उ प न नह कर सकगे और इस लए कभी वापस अयो या
नह लौट सकगे! वे नराश होकर पृ वी पर सव घूमते ए राम क तु त गाते रहे।
ी रा य क य ने हनुमान को गाते सुना। हनुमान के गायन म इतनी श थी क
वे सब उसे सुनने से ही गभवती हो ग । समय पूरा होने पर, उ ह ने अनेक संतान को ज म
दया और जब वे उन संतान को लेकर हनुमान को दे ने लग तो हनुमान ने यह कहकर लेने
से मना कर दया क वे गृह था मी नह ह।
य ने हनुमान से कहा, “अब आप अयो या लौट सकते ह य क आपने चय
त को तोड़े बना संतान उ प न कर द ह!”
हनुमान उनसे इतने स न हो गए क उ ह ने य को वरदान माँगने के लए कहा।
य ने त काल उनसे कहा क वे कसी पु ष को उनके पास भेज द जससे वे भी पु ष-
संग त का सुख भोग सक। हनुमान ने उ ह वरदान दे दया और म य नाथ को इस काय के
लए चुना य क वे जानते थे क केवल म य नाथ म ही दे वता के दए शाप को काटने
का साम य था! उस महान योगी के पास इतनी श थी क वह उस व च थान पर
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जाकर अनेक वष रह पाया और इस तरह उसने हनुमान ारा दया वरदान साथक कया।
दे वता के शाप का योगी पर कोई भाव नह पड़ा!
तुलसीदास ारा र चत रामायण , जसे रामच रतमानस कहा जाता है, वा मी क क
रामायण के बाद लखी गई सव े रामकथा मानी जाती है। ऐसा भी कहते ह, वा मी क ने
ही तुलसीदास के प म ज म लया य क उ ह लगता था क उ ह ने अपनी रामायण म
हनुमान के साथ यथो चत याय नह कया था। यह कथा क वा मी क ने हनुमान ारा
शला पर लखी रामकथा को कस कार पढ़ा, पहले बताई जा चुक है।
मुगलकाल म, अकबर के शासन के दौरान, उसका एक ब त अ छा ह मं ी था
जसका नाम आ माराम था। उसके पु का नाम तुलसीराम था और वह उस बालक से
ब त यार करता था। वह बालक जब बड़ा हो गया तो उसका ववाह ममता दे वी नाम क
क या से हो गया। उसके बाद, आ माराम अपनी प नी को अपने पु क दे खरेख म
छोड़कर, वयं ई वर का यान करने काशी (वाराणसी) चला गया। आ माराम से अ तशय
ेम के कारण, अकबर ने उसके पु तुलसीराम को उसके पता के पद पर नयु कर दया।
भा य से, तुलसीराम ग़लत संग त म पड़ गया और उसका च र ही बदल गया। उसे
म दरापान, जुए और च रत य के साथ रहने क आदत पड़ गई। यह सुनकर
आ माराम वापस आ गया और उसने अपने पु को ब त समझाया कतु उसने अपने पता
क बात पर बलकुल यान नह दया। आ माराम, अपने पूरे प रवार को मुगल स तनत
क राजधानी द ली से ले गया और मथुरा के पास, यमुना नद के तट पर एक छोटे -से गाँव
म रहने लगा।
तुलसीराम अब अपना सारा समय अपनी प नी के साथ रहने लगा और उसने अपने
उ रदा य व और आ या मक अ भ चय पर भी यान दे ना छोड़ दया। उसक प नी
उसे ब त समझाती थी क वह अपने काम पर यान दे कतु वह प नी के स दय पर इतना
मो हत था क सदा उसके साथ बैठा रहता था। अकबर ने उसके पास संदेश भेजा क वह
वापस राजधानी लौट आए य क राजा को कोई आव यक काय था। तुलसीराम ने उसे
लेने आए अ धका रय से मलने से मना कर दया। प नी ममता के ज़ोर दे ने पर वह मान
गया और द ली चला गया। द ली प ँचने के बाद, उसे फर बेचैनी होने लगी य क
उसक इ छा अपनी प नी के साथ रहने क थी। उसने राजा से कहा क वह वापस जाना
चाहता है य क चलते समय, वह अपनी माता और प नी से मलकर नह आया था। उसने
शी ही लौटने का वचन दया।
राजा से अनुम त मलते ही, उसने एक घोड़ागाड़ी ली और तेज़ ग त से अपने गाँव क
ओर चल पड़ा जब क उस समय तक दन ढलने लगा था। शी ही, आकाश म काले बादल
छा गए और वषा होने लगी। गाड़ीवान ने तुलसीराम से कई बार कहा क रात म कह ठहर
जाना चा हए, ले कन तुलसीराम ने उसक एक न सुनी और घोड़ को चाबुक मारकर और
तेज़ चलाने को कहा। तूफ़ान नह का और बेचारे घोड़े तेज़ बा रश और हवा म भागते रहे।
अंत म, वे बुरी तरह थक गए और गाँव क सीमा से पहले ही गर पड़े । तुलसीराम ने
गाड़ीवान और घोड़ को ब त बुरा-भला कहा और गाड़ी से कूदकर, पैदल ही अपने घर क
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ओर भागने लगा। उसक माँ रात को दो बजे उसे इस तरह भीगा और बुरी थ त म ार पर
खड़ा दे खकर हैरान रह गई।
“ या बात है?” उसक माँ ने पूछा। “तुम इतनी रात को यहाँ य आए हो?”
तुलसीराम ने अपनी माँ क बात का उ र दे ना भी आव यक नह समझा। “मेरी प नी
कहाँ है?” वह बोला, “मुझे तुरंत उससे मलना है!”
“वह नद पार अपने पता के घर गई है,” उसक माँ ने उ र दया।
तुलसीराम बना समय गँवाए, नद क ओर भागा। तूफ़ान और वषा के कारण नद
उफन रही थी। वहाँ न कोई नाव थी और न ना वक था। वह अपनी प नी से मलने के लए
तड़प रहा था। उसने अपने ाण क परवाह कए बना, उफनती ई यमुना नद म छलाँग
लगा द और तेज़ बहाव के व तैरने लगा। उसे लगा क वह ठ क से तैर नह पा रहा
था। तभी उसे लगा क उसक ाथना के उ र म वहाँ एक ल ा तैरता आ आ गया।
तुलसीराम ने उसे थाम लया और नद पार कर ली। वह कूदकर कनारे पर आ गया। उसी
समय ज़ोर से बजली चमक और उस काश म वह दे खकर घबरा गया क उसने जस
व तु को लकड़ी का ल ा समझा था, वह कसी का शव था!
इस वषय पर अ धक सोच- वचार न करते ए, वह अपनी प नी के घर क ओर दौड़ा।
वहाँ प ँचकर उसने दे खा क घर का ार बंद था। घर क द वार ब त ऊँची थी और उनके
ऊपर चढ़ने के लए पैर रखने क जगह भी नह थी। उसने च ला- च लाकर अपनी प नी
को पुकारा और उससे ारा खोलने क याचना करने लगा, कतु तेज़ तूफ़ान और वषा क
आवाज़ म उसका वर दब गया। इतनी दे र म वह कामवासना से बुरी तरह उ म हो गया
था और उसे कुछ नह सूझ रहा था। वह पागल क तरह घर के च कर लगाने लगा। तभी
उसे घर क द वार पर एक र सी लटकती दखी। वह उसे पकड़कर ज द से द वार के ऊपर
चढ़ गया और फर घर के भीतर आँगन म कूद गया। उसने ार पीट-पीटकर सबको जगा
दया। घर के लोग उसक उ म अव था को दे खकर च कत रह गए और सोचने लगे क
उसने कस तरह नद पार करके घर क द वार लाँघी होगी। उसने उ ह बताया क उसने एक
ल े के सहारे नद पार क और र सी पकड़कर द वार लाँघ ली। वे लोग जब उस र सी को
दे खने गए तो उ ह ने दे खा क वह वा तव म एक अजगर था!
शयनक म प ँचते ही, वह कामवासना पर नयं ण नह रख पाया और उसने अपनी
प नी को बाँह म ले लया। उसक प नी ने उसे झड़ककर र कर दया और फर ोध
और ख म भरकर उसे जमकर फटकार लगाई।
“यह तुम कस तरह वहार कर रहे हो? या तु ह शालीनता और श ाचार का
बलकुल ान नह है? यह शरीर, जसके लए तुमने उफनती नद पार क और साँप को
पकड़कर द वार लाँघी है, केवल र , माँस और अ थय का बना आ है और शी ही बूढ़ा
होकर जजर हो जाएगा। तुम जतना ेम मुझसे करते हो, उसका आधा भी य द ई वर से
करो तो तुम संत बन सकते हो! तुम जतना मुझे दे खने के लए बेचैन हो, उतना य द राम
को दे खने के लए बेचैन हो जाते, तो अभी तक तु ह उनके दशन हो गए होते! दरअसल,
तु ह मुझसे नह , मेरे इस माँस-म जा के शरीर से ेम है! तु हारा ज म उ च कुल म आ है
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और तु हारे अंदर इसी जीवन म परम ान ा त करने के गुण व मान ह। इस जीवन को
कामुक भोग- वलास म न मत करो। राम का नाम जपो और मो ा त करो!”
यह सुनकर तुलसीराम त ध रह गया। प नी के वचन ने उसके ऊपर गहरा भाव
डाला। उसे लगा मानो उसके सर पर हार आ था और भीतर एक व फोट हो गया।
सुबह होते-होते, उसके म त क म काश फूटने लगा। वह बना कुछ कहे, घर छोड़कर
चला गया और काशी जाकर कठोर तप करने लगा। वह अपनी प नी को दे खने के लए
जतना बेचैन था, अब वह उतना ही अपने इ भगवान राम को दे खने लए बेचैन हो गया।
उसक न द और भूख- यास समा त हो गई। वह मतवाला-सा घूमता आ राम को खोजने
लगा। अंत म, कसी ने उसे बताया क केवल हनुमान ही उसक इ छा पूरी कर सकते ह।
“मुझे हनुमान कहाँ मलगे?” उसने पूछा।
“जहाँ भी राम क कथा होती है, हनुमान वहाँ उप थत होते ह। इस समय कसी थान
पर रामायण का पाठ हो रहा है। तु ह वहाँ हनुमान अव य मल जाएँगे। परंतु यान रहे क
वे अपने सामा य प म नह ह गे। मने ायः दे खा है क फटे -पुराने व म कोई ा ण
पाठ म अव य बैठा होता है। वह सबसे पहले आता है और सबसे बाद म जाता है। कोई
नह जानता क वह कौन है और कहाँ रहता है। मुझे लगता है क वही हनुमान है। उसे
पकड़ लेना। उसे मत छोड़ना। वही तु ह ई वर के दशन करवा सकता है।”
तुलसीराम त दन वचन सुनने जाने लगा। वहाँ उसे एक ा ण दखाई दे ता था।
तुलसीराम उस ा ण का पीछा भी करता, कतु वह अचानक अ य हो जाता था। परंतु
तुलसी क राम से मलने क उ सुकता कम नह ई। जो इ छाश तुलसी के मन म
अपनी प नी से मलने क थी, जसके लए उसने तूफ़ानी रात म अपने ाण को संकट म
डाल दया था, वही इ छाश अब उसे राम से मलने क थी! एक दन तुलसी ने उछलकर
उस ा ण क कमर पर बँधी धोती पकड़ ली और उससे अपना हाथ बाँध लया। वह वृ
ब त तेज़ी से जंगल म भागने लगा, कतु तुलसीराम उस ग त से नह दौड़ पा रहा
था। परंतु उसने धोती नह छोड़ी और तुलसी उसके साथ ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर घसटता
चला गया। उसके कपड़े फट गए और शरीर से ख़ून बहने लगा। वह लगातार राम का नाम
जपता रहा। उसने न चय कर लया था क जब तक उसक इ छा पूरी नह होगी, वह
ा ण को नह छोड़े गा। आ ख़रकार, ा ण क गया।
तुलसीराम ने ा ण के पैर पकड़ लए और कहा, “ भु, म जानता ँ क आप कौन
ह। म आपको तब तक नह जाने ँ गा जब तक आप मुझे ई वर के दशन नह करवाएँगे!”
आंजनेय ने अपना असली प कट कर दया। उ ह ने तुलसी को उठाया और बोले,
“म तु हारी लगन से स न ँ। तु ह कल भगवान के दशन ह गे!”
ऐसा कहकर, हनुमान अंत यान हो गए। तुलसीराम भी अपने घर लौट आया और वह
रात भर अगले दन के वषय म सोचकर स न होता रहा। अगले दन, उसने अपनी कु टया
और आँगन व छ कए तथा भगवान क ती ा करने लगा। परंतु केवल दो शकारी आए
ज ह ने हरे व पहने ए थे और वे घोड़ पर सवार थे। उस दन सं या म, तुलसी ा ण

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के पास गया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा य क उसे हनुमान के वचनानुसार भगवान के
दशन नह ए थे।
हनुमान ने उ र दया, “भगवान तुमसे मलने आए थे कतु तुमने उ ह नह पहचाना
य क वे साधारण शकारी के प म आए थे! परंतु तुम चता मत करो। वे कल सं या के
समय तु ह अव य दशन दगे।”
ब त-से लोग ने यह सुना तो वे सब तुलसी क कु टया के बाहर खड़े हो गए। रात होने
लगी और तुलसी का आँगन लोग से भर गया। सब लोग “राम! राम!” का जाप कर रहे थे।
अचानक सबने दे खा क भगवान राम, ल मण और सीता के साथ उसी ओर आ रहे थे।
तुलसी भागकर भगवान राम के चरण म गर पड़ा और फर उठ नह सका। राम ने उसे
धीरे-से उठाया और कहा, “पु , तु हारा ेम मुझे यहाँ ख च लाया है। तुम सचमुच महान
हो। आज से तुम तुलसीदास के नाम से जाने जाओगे। तु हारा यह उ रदा य व है क तुम
रामायण क कथा को सरल भाषा म लखो ता क आम जनता उसे आसानी से समझ
सके।”
तुलसीदास च कत रह गए। वे बोले, “ भु! म इस महान वषय पर कुछ लखने म
बलकुल अ म ँ। म तो केवल आपका नाम जप सकता ँ। म आपके आदे श का पालन
कैसे क ँ गा?”
राम ने तुलसीदास को नेहपूवक दे खा और बोले, “तुम चता मत करो। हनुमान तु हारा
मागदशन करगे। ये न केवल व ान ह, ब क अ यंत न ावान भी ह। ये मेरे जीवन-गाथा
के सजीव सा ी ह। तु हारा पथ द शत करने के लए हनुमान सबसे उपयु ह।”
इस कार तुलसीदास ने सामा य लोग क भाषा अवधी म, जो हद भाषा क ही बोली
है, रामायण लखना आरंभ कया। इसे संवत् 1575 म लखा गया था। जस समय
वा मी क ने रामायण लखी थी, उस समय भारत का सां कृ तक प र कार अपने चरम पर
था, जब क तुलसीदास ने रामायण ऐसे समय पर लखी, जब सव नै तक मू य का पतन
हो रहा था। व भ न मा यता और सं दाय म पर पर मतभेद थे। राम क कथा के
मा यम से, तुलसीदास ने लोग को ह धम ंथ म मौजूद े मू य से अवगत करवाया
तथा व भ न धा मक वचारधारा के बीच सम वय एवं सामंज य था पत करने का
यास कया। उ री भारत म, तुलसीदास क रामकथा मक , ापा रय और घर-
प रवार के बीच समान प से च लत ई और इसे ‘रामच रतमानस ’ के नाम से जाना
गया।
तुलसीदास के साथ अनेक चम कार भी जुड़े ह। उ ह सुनकर, मुगल शासक अकबर ने
तुलसीदास को बुलाया और कुछ चम कार दखाने को कहा। इस पर तुलसीदास ने उ र
दया, “म तो राम का मामूली सेवक ँ। चम कार करने वाले तो राम ह!”
“तो फर मुझे अपने राम दखाओ,” अकबर ने कहा।
तुलसीदास ने कुछ नह कहा। तुलसी के मौन रहने से अकबर को ग़ सा आ गया और
उसने तुलसीदास को कारागृह म डाल दया। कहते ह, तुलसीदास ने ‘हनुमान चालीसा’ क
रचना फतेहपुर सीकरी थर अकबर के कले म बंद रहकर क थी। उन चालीस दन के
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दौरान, जब वे कारागृह म बंद थे, उ ह ने हनुमान से र ा करने क ाथना क । चालीसव
दन, अकबर का पूरा कला वानर से भर गया। उ ह ने लोग को न चा, उनके व फाड़े ,
घर और उ ान म घुसकर उ ह न कर दया। अंत म, राजा को लगा क ये सब
तुलसीदास को बंद बनाने का प रणाम है। वह दौड़कर तुलसीदास के पास गया और उनके
पैर म गरकर वहाँ से वानर को हटाने क ाथना क । तुलसीदास ने हनुमान का मरण
कया तो त काल सारे वानर ग़ायब हो गए, कतु तुलसी ने अकबर से कहा, “आपको यह
थान छोड़कर कसी अ य थान पर रहना चा हए य क यह राम का नवास है और यहाँ
वानर के अ त र कसी को रहने क अनुम त नह है।”
यह सुनकर, अकबर ने अपने कले का थान बदल लया। तुलसीदास क मृ यु 1624
म ई। उनके हाथ से लखी रामायण क दो तयाँ आज भी व मान ह। एक त राजपुर
म, तथा सरी त, काशी म उ ह के ारा न मत राम-सीता के मं दर म सुर त है। य प
तुलसीदास के अनेक समकालीन सं कृत पं डत ने तुलसी पर स ती बोली के योग ारा
उस वषय क ग रमा को गराने का आरोप लगाया, परंतु स य यह है क तुलसीदास क
लखी पु तक राजगृह से लेकर कु टया तक, सव मलती है तथा उसे ह समुदाय के
येक उ च, न न, ग़रीब, अमीर, युवा और वृ वग ारा पढ़ा-सुना और पसंद कया जाता
है।

तुलसीदास सदा ह र चेरा।


क जै नाथ दय महँ डेरा।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा

ॐ ी हनुमते नमः

मंगलाय नमः

अ याय 36

मंगल मू त
मंगल व प

सीता ने तब धीरे से स न होकर कहा,


मेरा वचन है क हे पवन-पु , तुम जहाँ भी रहोगे,
तु ह चुर साम ी अ पत क जाएगी,
गाँव , खेत , शहर और गोशाला म,
सड़क के कनारे, गाँव और घर म,
ग और वन म, पहाड़ पर और मं दर म,
न दय एवं तीथ पर, टं कय तथा नगर के कनारे,
उपवन और उ ान म,
अंजीर तथा बरगद के वृ के नीचे,
और प व थल पर, लोग अपने क को र
करने के लए तु हारी तमा क पूजा करगे,
तु हारा नाम लेने से भूत, ेत,
बेताल और पशाच भाग जाएँगे।
—आनंद रामायण

सीता ारा हनुमान को दए गए सभी वरदान वा तव म, भ व यवा णयाँ थ य क वे सब


आशीवाद कालांतर म, स य स ए। हनुमान के मं दर उनके व से मेल खाते ह
और उनम ंगार बलकुल नह होता। वे सब सामा य लोग ारा, बना कसी पं डत क
सहायता के बनाए गए साधारण ढाँचे ह। उ ह सामा य तौर पर खुले म, पेड़ के नीचे अथवा
मं दर , कल व महल क द वार पर ही दे खा जाता है। हनुमान क मू तयाँ सामा य तौर
पर, प थर अथवा वृ क जड़ आ द को काटकर बनाई गई होती ह जनम कोई अ प

ो ै े े े ैऔ
वानर प दशाया गया होता है। उसके ऊपर स र अथवा केस रया लेप चढ़ा रहता है और
कभी-कभी उसे चाँद क पण से भी सजाया जाता है। तमा म हनुमान को ायः
बू टय वाला पवत ले जाते ए अथवा राम मं दर के बाहर गदा पकड़े ए दशाया जाता है।
उ ह यान करते ए योगी वाली मु ा म ब त कम दे खा जाता है।
हनुमान क तमाएँ आवास- थल और गाँव के ार पर ा मा को र रखने के
लए अथवा चौराह पर भी दे खने को मलती ह, जहाँ ेत भटकते ह। उ ह कल , महल ,
मं दर , मठ व ायामशाला के बाहर भी दे खा जा सकता है। राज थान म नाथ ारा के
स कृ ण मं दर के चार ार के सामने हनुमान हरी के प म खड़े रहते ह। जयपुर
और वृंदावन म भी हनुमान के अनेक मं दर ह। बीसव शता द के आरंभ म, हनुमान के
अनेक छोटे -छोटे मं दर अचानक स हो गए। वाराणसी म ऐसे अनेक मं दर ह। सड़क के
कनारे बने नीची बाग और कबीर चौरा के मं दर म मंगलवार और श नवार को इतनी भीड़
होती है क उस े का सारा यातायात क जाता है। एक द लत ब ती के म य, अ सी घाट
के पीछे वाली एक गली म हनुमान का छोटा-सा मं दर उस समय स हो गया, जब
रा ीय राजनेता, मदन मोहन मालवीय घाट पर सुबह नाना द के बाद उस मं दर म रोज
जाने लगे। उ ह ने बनारस ह व व व ालय क थापना हेतु हनुमान का आशीवाद ा त
करने के लए चालीस दन का जागरण कया, और न चत प से, मा त के आशीवाद
से, 1916 म उस व व स व व व ालय क थापना हो गई।
वाराणसी के संकट मोचन मं दर म हनुमान क वशाल मू त है। इसक कथा तुलसीदास
से संबं धत है। कहते ह, वे त दन गंगा म नाना द से नवृ होने के बाद एक पीपल के
वृ क जड़ के नीचे छोटे -से हनुमान क पूजा करते थे। उस वृ पर एक पी ड़त आ मा
का नवास था जो तुलसीदास का आभार मानती थी य क तुलसी उस वृ पर त दन
जल चढ़ाते थे। उसके बदले, उस आ मा ने तुलसीदास को वरदान माँगने को कहा। तुलसी
ने राम के दशन क अ भलाषा क , परंतु ऐसा करना बेचारी आ मा के लए संभव नह
था। उस आ मा ने तुलसी से कहा क केवल हनुमान ही इस काय म उनक सहायता कर
सकते ह। आ मा ने तुलसी को यह भी बताया क हनुमान एक वृ कोढ़ के प म
त दन गंगा के घाट पर रामायण सुनने आते ह। वे सबसे पीछे बैठते ह और सबसे अंत म
जाते ह। तुलसी ने कोढ़ का पीछा करते ए वन म प ँच गए और उसके पैर म गरकर उ ह
‘वायु पु !’ कहकर संबो धत कया। कोढ़ ने कहा क वह एक साधारण बूढ़ा व बीमार
इंसान है कतु तुलसीदास ने उसक बात नह मानी। आ ख़र हनुमान ने तुलसी को अपने
असली प म दशन दए। हनुमान ने अपना एक हाथ उठाकर द ण-प चम दशा म
संकेत करते ए कहा, “ च कूट जाओ!” और सरा सरा हाथ अपने दय पर रखकर
कहा, “म वचन दे ता ँ क तु ह राम राम के दशन ह गे!” कहते ह, यह घटना उसी थान
पर ई जहाँ आज संकट मोचन मं दर थत है और हनुमान क मू त क मु ा वैसी ही है
जैसी यहाँ बताई गई है।
कहते ह, तुलसीदास ने हनुमान से उनके भ के लाभ के लए उसी मु ा म वहाँ थत
रहने क वनती क । मा त ने बात तो मान ली कतु वे धरती म समा गए और ओझल हो
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गए। यह दे खकर, तुलसीदास ने ज़मीन को खोदना आरंभ कर दया और पूरी रात म
खोदते रहे और आ ख़रकार, सुबह होते-होते, उ ह अंदर से उसी मु ा म हनुमान क वयंभू
मू त मली जस मु ा म हनुमान ने तुलसीदास से बात क थी। तुलसीदास ने हनुमान क यह
मू त वह था पत करके हनुमान का थम मं दर बनवाया। यह चम कार 1550 म
मागशीष माह (नवंबर/ दसंबर) के कृ ण प के आठव दन आ था। नगर के हनुमान घाट
पर बड़ा हनुमान क इस तमा को दे खा जा सकता है।
मेहंद पुर बालाजी का स मं दर आगरा-जयपुर राजमाग से पाँच कलोमीटर क री
पर एक छोट -सी घाट म थत है। यही वह थान है, जहाँ वायुदेव ने बाल हनुमान को
उनक माता को लौटाया था जब इं ने हनुमान पर सूय को नगलने का यास करने के बाद
व से घायल कर दया था। इस लए उ ह बालाजी कहा जाता है। इस थान से जुड़ी
अनेक कथाएँ ह। कहते ह, एक ा ण को व न म बालाजी क तमा के दशन ए।
सहसा उसे सैकड़ टम टमाते द पक अपनी ओर आते दखाई दे ने लगे। जब वे नकट आ
गए तो उसने दे खा क अ व और हा थय के साथ आ रही एक वशाल सेना के हाथ म वे
द पक थे। उ ह ने बालाजी क प र मा क और उ ह सर झुकाकर णाम कया। ऐसा
करने के बाद, वे सब उसी माग से वापस लौट गए जहाँ से आए थे। उसी थान पर ा ण
को तीन मू तयाँ दखाई पड़ और एक आवाज़ आई, “उठो और मेरी पूजा म भाग लो। म
यहाँ अनेक चम कार क ँ गा!” ा ण क न द खुल गई और उसने उठकर उस थान को
खोजना शु कर दया। आ ख़र म उसे वह थान मल गया जो उसने व न म दे खा था।
उसे वे तीन मू तयाँ भी मल ग और फर उसने वहाँ पूजा व अनु ान आ द करने आरंभ
कर दए। शी ही उस मं दर म चम कार होने लगे और वहाँ ब त-से लोग आने लगे।
मु लम शासन के दौरान, उस मं दर का मह व कम हो गया और एक राजा ने तो उस मू त
को उखाड़ने का यास भी कया कतु वह मू त का मूल नह खोज सका। बाद म, उसे पता
लगा क वह समूचा पवत, उस मू त का शरीर है! समय के साथ, उस मं दर ने फर से अपनी
म हमा और क त ा त कर ली।
दरअसल, यहाँ तीन मू तयाँ ह। पहली मू त, वयं बालाजी क है। यह मू त चट् टान म
से काटकर बनी है और स र व चाँद के पण से ढँ क है। ऊपर के सभागार म, भूत के
वामी, ेतराज क मू त है। उ ह कभी-कभी मृ यु का दे वता, यमराज भी कहा जाता है।
लोग को ा मा के भाव से मु करवाने के लए बालाजी को सबसे श शाली
दे वता माना जाता है। जन लोग पर ेता मा का भाव होता है, उनके लए बालाजी के
पास ाथना क जाती है और फर अनेक कार से उनका उपचार होता है। ऐसा
आ मा क आवाज़ म बात करता है और फर बालाजी एवं ेतराज मलकर उस को
आ मा के बंधन से मु करके शां त दान करते ह।
कहते ह, राम ने पृ वीलोक छोड़ते समय अयो या नगरी हनुमान को स प द थी और
इस लए हनुमान ही अयो या के वतमान राजा ह। वहाँ हनुमान गढ़ और नागे वरनाथ,
हनुमान के मुख मं दर ह।

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लखनऊ के अलीगंज े म दो मुख मं दर ह। यहाँ का हनुमान मं दर सबसे स है
और यहाँ लगने वाले महावीर मेले म सभी धा मक समुदाय के लोग बड़ी सं या म आते ह।
इस योहार के दौरान, पु ष भ केवल लाल लंगोट पहनकर दं डवत करके अथवा मट् ट
म लुढ़कते ए मं दर क प र मा करते ह।
सु स लेटे ए हनुमान क तमा वेणी संगम के पास है, जहाँ आधु नक शहर
इलाहाबाद के नकट याग म गंगा, यमुना और अ य सर वती नद का मलन होता है।
हनुमान क यह वशाल मू त आधी तट य रेत म दबी ई है और कुछ सी ढ़याँ उतरने के बाद
दखाई पड़ती है। कहते ह, दो सौ वष पूव जब एक धनी ापारी इस मू त को लेकर जा रहा
था, तो उसक नाव तट पर आ प ँची और वह मू त रेत म गर गई। ापारी ारा मू त को
उठाने के सभी यास वफल हो गए और फर हनुमान ने उसे व न म दशन दे कर कहा क
वे उस आ या मक प से श शाली संगम थल पर ही रहना चाहते ह।
इलाहाबाद से स र मील द ण म, च कूट के तीथ थल के नकट, पहाड़ी पर एक
और मं दर है जहाँ प ँचने के लए साढ़े तीन सौ सी ढ़याँ चढ़नी पड़ती ह। इस जगह को
हनुमान धारा कहते ह और यहाँ से उस पूरे े का वहंगम य दखाई दे ता है, जहाँ राम,
सीता व ल मण ने बारह वष तीत कए थे। हनुमान क यह मू त पहाड़ी क काली द वार
म बनी ई है और उसके ऊपर से एक धारा नकलती है जसका जल, लगातार हनुमान
मू त को नान करवाता है।
ओ डशा के जग नाथ पुरी मं दर म, हनुमान मं दर के चार ार पर पहरा दे ते ह और
समु के शोर को मं दर के भीतर घुसकर भु को परेशान करने से रोकते ह। उन चार ार
पर थत हनुमान के मं दर के अ त र पुरी म मा त के अनेक मं दर ह। समु के नकट
द रया हनुमान क थापना भी क गई थी ता क नगर को समु के कोप से बचाया जा
सके। परंतु, मा त अपने उस थान को छोड़कर भु के दशन के लए चले गए। जब
नाग रक ने भगवान जग नाथ से शकायत क तो भु ने लोग से कहा क हनुमान को
उनके थान पर बे ड़य से बाँध दया जाए। चूं क, साधारण बे ड़य से हनुमान को बाँधना
असंभव था, उ ह सोने क एक मोट जंजीर से बाँधा गया जसके ऊपर राम का नाम ख़ुदा
आ था।
ओ डशा म हनुमान का सबसे यात मं दर पुरी-भुवने वर माग पर स ली गाँव म
थत है। इसका नाम महावीर है। यह काले प थर क बनी तमा है और माना जाता है क
यह पृ वी के अंदर से नकली है। इसक बा आँख एक छोटे -से झरोखे से पुरी क दशा म
दे खती है और दा आँख द ण दशा म लंका को दे खती है।
द ली शहर के बीच बीच, कनॉट लेस नाम के भीड़-भाड़ वाले इलाके म, हनुमान का
सबसे शानदार मं दर है, जो ी हनुमानजी महाराज के नाम से व यात है। इसक मु य
तमा हाल ही म, सफ़ेद संगमरमर क बनी है, कतु मूल तमा एक ओर, राम व सीता क
मू तय के दा हनी ओर थत है। सामा य तौर पर, हनुमान पर स र का मोटा लेप चढ़ा
रहता है, कतु इस तमा म वह स र थोड़ी-थोड़ी दे र म नीचे गर जाता है और इससे
हनुमान के प के दशन हो जाते ह। यह वानर प क न क़ाशी है। इसका सर द ण
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दशा म ह और इसके दाँत दखाई दे ते ह। एक हाथ क मुट् ठ ऊपर उठ ई है और सरा
हाथ उनके दय पर रखा है। सर पर ऊपर को पतला होता मुकुट है, दाएँ कंधे पर जनेऊ
पहना आ है और छोटे -छोटे पैर के बीच लंगोट लटक रहा है। कहते ह, यह मू त पांडव
ारा अपनी राजधानी इं थ म, जो क अब वतमान द ली है, था पत क थी।
हनुमान का एक और स मं दर पुरानी द ली म, मशान घाट के नकट यमुना
बाज़ार म है। यह मरघट बाबा हनुमान के नाम से स है। एक वशाल पीपल के वृ के
नीचे छोटे -से अहाते म बना यह मं दर बाहर से मु कल से दखाई पड़ता है। यह मं दर ब त
छोटा है और इसका ार नीचा व सी ढ़याँ भी सँकरी ह। ये सी ढ़याँ नीचे एक मं दर म
उतरती ह जसम बलकुल सामने दे खती ई हनुमान क मू त है। ज़मीन के नीचे बने इस
मं दर का वातावरण अ यंत रह यमयी है। वषाकाल के समय, मं दर म यमुना का जल भर
जाता है और हनुमान क मू त गदन तक पानी म डू बी रहती है, कतु यह मं दर कभी बंद
नह होता। यह मं दर श - थल है और इसे सबसे बलशाली पांडव, भीम ने था पत
कया था। द ली के ये दोन हनुमान मं दर एक- सरे से बलकुल अलग ह। ये हनुमान के
दो गुण - भ व श के तीक ह।
महारा म हनुमान के ब त मं दर ह और इनक सं या गणेश के मं दर से भी अ धक
बताई जाती है। कहते ह, द ण भारत का म यकालीन शहर वजयनगर ही ाचीनकाल
का वानर रा य क कंधा है। वहाँ थत छोटा-सा पवत अजंदरी (अंजना पवत) हनुमान का
ज म थान है।
त मलनाडु के सु च म नामक थान पर हनुमान का उनके सबसे मह वपूण मं दर म से
एक मं दर है। कहते ह, वहाँ हनुमान क बीस फ़ ट ऊँची मू त है जो नरंतर बढ़ रही है। उस
मू त का अ भषेक करने के लए पुजा रय को सीढ़ लगाकर ऊपर चढ़ना पड़ता है। ऐसा
कहा जाता है क हनुमान ने सीता को आ वासन दे ते समय वही प घारण कया था।
सु च म के नकट, क याकुमारी म भारतीय उपमहा प के अं तम छोर पर भी हनुमान का
एक मं दर है। द ण भारत म ही, हनुमान का एक और मह वपूण मं दर सेलम के नकट
नम कल नामक थान पर है। यहाँ क वशाल तमा पर येक श नवार को म खन का
लेप कया जाता है और ब त तेज़ गम वाले दन पर भी म खन अगले दन सुबह तक
पघलता नह है। वहाँ के पुजारी म खन पर फूल और प य क शानदार आकृ तयाँ
बनाते ह। हनुमान क मू त, व णु के चौथे अवतार नर सह क मू त के ठ क सामने बनी ई
है। चूं क नर सह के सर पर छत नह है, हनुमान ने भी अपने सर के ऊपर छत रखने से
मना कर दया था और इसी लए उनक तमा भी खुले म खड़ी रहती है।
उडु प के स कृ ण मं दर म, भ गण कृ ण के मु य मं दर म जाने से पहले
हनुमान के दशन करते ह।
गुजरात के कुछ मं दर म हनुमान को अ यंत मोटा दशाया गया है और उनक मोट मूँछ
भी दखाई जाती है। सौरा म, प व गरनार पवत पर चढ़ाई के लए बनी एक हज़ार पाँच
सी ढ़य के कनारे मा त क अनेक मू तयाँ पाई जाती ह।

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अनेक पु तक म आंजनेय के स मं दर क सूची मल जाती है। उपरो सूची भी
पूण नह है। इस बात म संदेह है क कोई हनुमान को सम पत सभी मं दर व
तमा क , जनम से कुछ म चम कारी श याँ व मान ह, पूरी गणना कर सकता है।
अनेक बोलने और हलने वाले हनुमान ह, कुछ भू म के अंदर ह और कुछ पानी के भीतर
तथा कुछ च ान से नकले ह तथा कुछ सीता क भाँ त धरती क हलचल म बाहर आए ह।
जो लोग हनुमान के मं दर क तीथ या ा करने के इ छु क ह, उनके लए सबसे सुर त
तरीक़ा यह है क उ ह रामायण म बताए गए अयो या से लंका तक राम ारा तय कए गए
माग पर चलना चा हए। इस माग पर आंजनेय के अनेक मह वपूण मं दर व मान ह।
श और भ , हनुमान क दो मुख वशेषताएँ ह। इसी लए हनुमान क मू तयाँ भी
दो कार क ह। जो मू तयाँ भ क तीक ह, उनम हनुमान का दास भाव दशाया गया है
और जो श क तीक ह, उनम हनुमान का वीर भाव दखाई पड़ता है। दास भाव वाली
मू तय पर सा वक साम ी जैसे फल और मेवे आ द अ पत करने चा हए, जब क सरी
कार क मू तय पर राज सक व तुएँ अ पत क जाती ह जनम म दरा भी शा मल हो
सकती है। वीर भाव वाली तमाएँ हनुमान के के 11 व अवतार का तीक ह और वे
प थर क बनी ह जनके ऊपर केवल स र चढ़ा रहता है। ऐसा दे खने म आता है क
हनुमान क मू त का दायाँ पैर आगे हो तो वह उनके भ प का तीक है और य द
उनका बायाँ पैर आगे हो तो वह हनुमान के दै य-संहार वाले श प का तीक है। श
के तीक के प म, हनुमान का त व पर नयं ण तथा सृ के संहारा मक प से है, जो
शव व उनक प नी श क वशेषताएँ ह। भ अथवा न वाथ ेम के उदाहरण
व प, हनुमान वयं को राम के ेम पी नद म डु बो दे ते ह।
हनुमान को वतमान क लयुग म य दे वता या सवा धक भावी दे वता माना जाता है
य क वे अभी भी जी वत ह। उ ह जीवन के चार ल य (धम, अथ, काम और मो ) को
दान करने म स म माना जाता है और यही वजह है क उनके इस क लयुग म अ धक से
अ धक मं दर बनाए जाते ह।
भगवान व णु के स मं दर ब नाथ जाते समय, पांडुके वर नाम के एक छोटे -से
गाँव से होकर गुज़रना पड़ता है। उसके ऊपर हेमकूट पवत है। यह बैठकर ल मण ने
तप या ारा इं जत-वध के पाप का ाय चत कया था। यहाँ स ख ने एक वशाल
मं दर बनाया है जो व व का सबसे ऊँचा मं दर माना जाता है। इसे हेमकुंट साहेब कहते ह।
“ वण पवत” हेमकूट के उ च पवत शखर के ऊपर, कपु ष का वास है, जो आधे मनु य
एवं आधे पशु के प म द जीव ह। कहते ह, आज भी हनुमान यहाँ रहते ह और अनेक
यो गय ने उ ह वहाँ दे खा भी है।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूर त प।


राम लखन सीता स हत, दय बस सुर भूप।।
—तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा
ॐ ी े
ॐ ी हनुमते नमः
क वताएँ

अ भवादन तु हारा पवन सुत!


हे राम त!
आशा और जीवन के अ त!
तुमने द आशा सीता को,
और दया ल मण को जीवन,
मेरे कली-सम कोमल अंतर म,
आकर बनाया उसे प ल वत कमल!

ॐॐॐॐॐॐ
भ से थी म अनजान तुमने मेरे दय म बसकर,
करना सखाया भ
श से थी म अनजान अंग म बल भरकर तुमने,
कया मुझे तुमने बलवान
अ त तुम आशा - ेम के,
लंका म जब कया वेश, तुम अपना वह प दखाओ
छोट -सी यारी ब ली बनकर तुमने सीता को ख़ूब रझाया,
हटाकर प े, सीता को तकते यतम का उ ह
गीत सुनाया ह षत कर दया तुमने सीता को।
वशाल प तु हारा सोचकर, काँप उठता है मेरा अंतर,
लंका को राख का ढे र बनाया
हे वनयशील! कहते लोग तु ह बलवान,
तु ह संभव नह वश म करना
कतु म तो सदा दे खती, बैठे रहते राम-चरण म
वनमाली के चरण मने, रखे बसा अपने दय म।

ॐॐॐॐॐॐ
हे ई वर!
मुझे करो न तुम भयभीत अपनी वचारशील से,

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उस भयंकर मुखाकृ त से, जससे ए भयभीत दै य भी
डु बो दो मुझको अपने अंगार-से ने म
बध जाए आ मा मेरी भीतर तक
तुम क णा से भरे ए हो
म अभागी एक आ मा
तड़फड़ाती इस भव-सागर म।

ॐॐॐॐॐॐ
मुझे दो क तु ह दे ख सकूँ
मुझे अपने नवास ले चलो वण शखर के अंतर म
उन कपु ष क भू म म अ -पु ष और अ -पशु जो,
बखेर दो मुझको रह यमयी पवत क बाँह म
घरा आ जो गंधव से दे खूँ मुड़कर पता को तु हारे
चेहरे पर महसूस क ँ उनका मोहक पश
म कृ त क गोद म लेट तु हारे नकट
म ताकूँ ई वर के चेहरे को तुम हो वह , जहाँ राम ह
और राम ही मेरे केवल यतम,
वनमाली!
इस लए हे वानर!
मुझे वनमाली के पास ले चलो!
म उनको खोजा सव तुम आदश हो मेरे वाहन
मेरे यारे मा त मेरी यह वनती मत टालो
म ँ तु हारी शा वत से वका उसने ही तो मुझको भेजा
म जान चुक क वो और तुम हो अलग नह , तुम दोन एक
भगवान थम या पहले भ ,
कोई न जाने, ह अनंत म दोन एक।

ॐॐॐॐॐॐ
म अपने उपवन के वानर को दे खती
या तुम इनम हो सकते हो,
ये सोचती तु हारी तरह ये उपवन उजाड़ते
फल खाते ये जल को गंदा करते
या म इनके अ याय को सह लूँगी?
या ये सब ह तु हारे कुल के?
े े ओ
हे द वानर, तुम मुझे बताओ!
य यह हसा, य यह चता?
या तुम बचा सकते हो मुझको?
या म दासी यूं ही तु हारी?
उ ह सखाओ तुम संयम रखना
जैसे रहते थे तुम वयं संयम से
फर म तुमसे ेम क ँ गी पहले से, और भी यादा!

ॐॐॐॐॐॐ
मेरे हनुमान महान, जानने म तुम करो सहायता
वानर च क मौज-म ती मेरी तरंग को करो नयं त
ई वर क मुझे दशा दखाओ ेरणा पाते तुम जहाँ से
थाम मुझे लो जैसे तुमने थामा था वह पवत वशाल
ले चलो मुझे वैकुंठ, वनमाली का जो है नवास
हे वानर! बनकर मेरे त जाओ तुम वनमाली के पास
कान म उनके कहना ऐसे, जैसे चुपके से कहा राम को
राम के त ेम सीता का वनमाली के त ेम दे वी का!

ॐॐॐॐॐॐ

ॐ ी हनुमते नमः
हनुमान के अ य नाम
ॐ ी हनुमते नमः
अनुवादक क ओर से

सामा य ह प रवार के ब च क भाँ त, मेरा बचपन भी रामायण और महाभारत के


क से-कहा नयाँ सुनकर बीता। यूँ तो सम भारतीय वाङ् मय अ त उ म है, कतु आज
भी, संत तुलसीदास कृत रामच रतमानस को भारतीय सं कृ त क े रचना माना जाता
है। भ - धान होने के कारण इसम, न संदेह, रस और माधुय क चुरता है। इसम,
तुलसीदास ने भगवान ीराम का मयादा-पु षो म व प तुत कया है और साथ ही,
उ ह ने एक और नायक क रचना क है - वानर- े , भ शरोम ण पवन-पु हनुमान!
राम-कथा का संपूण अ ययन करने से पता लगता है क हनुमान इतने श शाली और
साम यवान थे क य द वे चाहते तो, अकेले ही बाली को मार सकते थे, लंका जाकर रावण
का वध करके, सीता को वापस ला सकते थे। परंतु उ ह ने इतना साम यवान होने के
बावजूद, कभी अपने दा य भाव का अ त मण नह कया और अपने अ त कारनाम का
संपूण ेय सदा अपने वामी ीराम को ही दया।
‘ ी हनुमान लीला’ नामक इस पु तक म ले खका वनमाली ने हनुमान के ज म, उनके
कारनाम , गुण और उनक सेवा व न ा का अ यंत सुंदर और भावुक च ण कया है।
हनुमान के च र को समझने और आ था एवं न ा का असली अथ सीखने के लए यह
एक आदश पु तक है। मुझे हा दक स नता है क मुझे इस पु तक के अनुवाद का काय
मला। इस काय से न केवल मेरे अनुवाद-कौशल एवं अनुभव म वृ ई है, अ पतु इसने
मेरे भीतर राम और हनुमान दोन के त ा और भ के भाव को भी बल कया है।
इस अनुपम कृ त के लए वनमाली जी को हा दक शुभकामनाएँ तथा मंजुल प ल शग
हाउस का आभार!
अनुवादक के बारे म

आशुतोष गग का ज म 1973 म द ली म आ। इ ह ने एम.ए. ( हद ), नातको र


ड लोमा (अनुवाद, प का रता) तथा एम.बी.ए. कया है। लेखन- तभा अपने पता डॉ.
ल मी नारायण गग से वरासत म मली। कूल के दन म का -लेखन से लेखन का सफ़र
आरंभ कया और अब तक इनक कई पु तक का शत हो चुक ह। आशुतोष अं ेज़ी व
हद दोन भाषा पर समान प से अ धकार रखते ह तथा अनुवाद के े म एक
प र चत नाम ह। इ ह ने लेखन व संपादन के े म भी सराहनीय काय कया है। श ाथ
हद योग कोश, भाषी शास नक श द- योग कोश, एक सौ एक रोचक पहे लयाँ तथा
म ऐ बट आइं टाइन बोल रहा ँ इनक मौ लक पु तक ह। इसके अ त र ौपद क
महाभारत, आनंद का सरल माग, दशराजन् तथा द लाइफ़ ड टाइ स ऑफ़ थॉमस अ वा
ए डसन इनके मुख अनुवाद ह। इनक कुछ अ य पु तक काशनाधीन ह। समाचार-प व
प का म नय मत प से लखते ह। आजकल रेल मं ालय म उप- नदे शक के पद पर
कायरत ह।

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