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यि पोस्ट आहित्य हृिय स्तोत्र के बारे में िै जिसका मतिब िै सूया का ह्रिय । सूया िे व कक यि
सबसे प्रभावशािी प्रार्ाना िै । इस स्तोत्र को िपने से पििे ३ बार गायत्री मंत्र का िप करें और इस
स्तोत्र को परू ा िपने के बाि किर से ३ बार गायत्री मंत्र का िप करें । िैसा कक स्तोत्र में भी किा
गया िै कक िो इस स्तोत्र को रोज़ िपता िै उसके सारे िुःख, सब च त
ं ाएं समाप्त िो िाती िैं । वो
अिेय िो िाता िै और शत्र उससे परास्त िो िाते िैं । इसके िप से मानलसक शाजतत, आत्मववश्वास
और समवृ ि लमिती िै । इसके और भी कई अनचगनत िायिे िैं ।
यि िे ख भगवान ् अगस्त्य मनन, िो िे वताओं के सार् यि िे खने के लिए आये र्े, श्रीराम के पास
िाकर बोिे ।
सबके ह्रिय में रमन करने वािे मिाबािो राम ! यि सनातन गोपनीय स्तोत्र सनो ! वत्स ! इसके िप
से तम यि में अपने समस्त शत्रओं पर वविय पा िाओगे ।
आदित्यहृियम ् पण्
ु यम वाशत्र-ु षवनाशनम ।
जयावहम ् जपेस्न्नत्य-मक्षय्यम परमम ् सशवम ् ॥४॥
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम िै 'आहित्यहृिय' । यि परम पववत्र और संपूणा शत्रओं का नाश करने
वािा िै । इसके िप से सिा वविय कक प्राजप्त िोती िै । यि ननत्य अक्षय और परम कल्याणमय
स्तोत्र िै ।
रस्श्ममन्तम मद्
ु यन्तम िे वा ुर-नमस्कृतम ् ।
पज
ू यस्व षववस्वन्तम भास्करम ् भव
ु नेश्वरम ् ॥ 6
भगवान ् सूया अपनी अनंत ककरणों से सशोलभत िैं । ये ननत्य उिय िोने वािे, िे वता और असरों से
नमस्कृत, वववस्वान नाम से प्रलसद्द, प्रभा का ववस्तार करने वािे और संसार के स्वामी िैं । तम
इनका रजश्ममंते नमुः, समद्यतते नमुः, िे वासरनमस्कृताये नमुः, वववस्वते नमुः, भास्कराय नमुः,
भवनेश्वराये नमुः इन मतत्रों के द्वारा पूिन करो।
संपूणा िे वता इतिी के स्वरुप िैं । ये तेज़ की रालश तर्ा अपनी ककरणों से िगत को सत्ता एवं स्िूनता
प्रिान करने वािे िैं । ये अपनी रजश्मयों का प्रसार करके िे वता और असरों सहित समस्त िोकों का
ये िी ब्रह्मा, ववष्ण, लशव, स्कति, प्रिापनत, इंर, कबेर, काि, यम, तरमा, वरुण रूप में प्रनतजष्ित
िैं।
ये िी वपतर , वस, साध्य, अजश्वनीकमार, मरुिगण, मन, वाय, अजनन, प्रिा, प्राण, ऋतओं को प्रकट
करने वािे तर्ा प्रकाश के पंि िैं ।
इनके नाम िैं आहित्य(अहिनतपत्र), सववता(िगत को उत्पतन करने वािे), सूय(ा सवाव्यापक), खग,
पूषा(पोषण करने वािे), गभजस्तमान (प्रकाशमान), सवणासदृश्य, भान(प्रकाशक), हिरण्यरे ता(ब्रह्मांड कक
उत्पजत्त के बीि), हिवाकर(रात्रत्र का अतधकार िरू करके हिन का प्रकाश िैिाने वािे)
तर्ा िररिश्व, सिस्राच ा (िज़ारों ककरणों से सशोलभत), सप्तसजप्त (सात घोड़ों वािे), मरीच मान
(ककरणों से सशोलभत), नतलमरोमंर्न (अतधकार का नाश करने वािे), शम्भू, त्वष्टा, माताण्डक(ब्रह्माण्ड
को िीवन प्रिान करने वािे), अंशमान इत्याहि नामों से भी ये िाने िाते िैं।
तर्ा हिरण्यगभा(ब्रह्मा), लशलशर(स्वभाव से िी सख प्रिान करने वािे), तपन(गमी पैिा करने वािे),
अिस्कर, रवव, अजननगभा(अजनन को गभा में धारण करने वािे), अहिनतपत्र, शंख, लशलशरनाशन(शीत का
इन पावन नामो से भी आतपी, मंडिी, मत्ृ य, वपंगि(भरू े रं ग वािे), सवातापन(सबको ताप िे ने वािे),
कवव, ववश्व, मिातेिस्वी, रक्त, सवाभवोद्भव (सबकी उत्पजत्त के कारण) िाने िाते िैं
नक्षत्रग्रहताराणा-मचर्पो षवश्वभावनिः ।
तेज ामषप तेजस्वी द्वािशात्मन्नमोस्तुते ॥ 15
शाबर तंत्र ग्रप
ु की गौरवशाली प्रस्ततु त द्वारा: रमा कान्त स हं (Devotional Manav)
आदित्य ह्रिय स्तोत्रम ्
6
नक्षत्र, ग्रि और तारों के स्वामी, ववश्वभावन(िगत कक रक्षा करने वािे), तेिजस्वयों में भी अनत
तेिस्वी और द्वािशात्मा िैं। इन सभी नामो से प्रलसद्द सूयि
ा े व ! आपको नमस्कार िै ।
नमिः पव
ू ााय चगरये पस्श्िमायाद्रए नमिः ।
ज्योततगाणानां पतये दिनाचर्पतये नमिः ।। 16
पूवचा गरी उिया ि तर्ा पजश् मचगरी अस्ता ि के रूप में आपको नमस्कार िै । ज्योनतगाणों (ग्रिों और
तारों) के स्वामी तर्ा हिन के अचधपनत आपको प्रणाम िै ।
आप ियस्वरूप तर्ा वविय और कल्याण के िाता िैं । आपके रर् में िरे रं ग के घोड़े िते रिते िैं ।
आपको बारबार नमस्कार िै । सिस्रों ककरणों से सशोलभत भगवान ् सूया ! आपको बारम्बार प्रणाम िै ।
आप अहिनत के पत्र िोने के कारण आहित्य नाम से भी प्रलसद्द िैं , आपको नमस्कार िै ।
ब्रह्मेशानाच्युते ाय ूयाायादित्यविा े ।
भास्वते वाभक्षाय रौद्राय वपु े नमिः ॥ 19
आप अज्ञान और अतधकार के नाशक, िड़ता एवं शीत के ननवारक तर्ा शत्र का नाश करने वािे िैं ।
आपका स्वरुप अप्रमेय िै । आप कृतघ्नों का नाश करने वािे, संपण
ू ा ज्योनतयों के स्वामी और
िे वस्वरूप िैं , आपको नमस्कार िै ।
आपकी प्रभा तपाये िए सवणा के समान िै, आप िरी और ववश्वकमाा िैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप
और िगत के साक्षी िैं, आपको नमस्कार िै ।
नाशयत्ये वै भत
ू म तिे व ज
ृ तत प्रभिःु ।
पायत्ये तपत्ये व त्ा ये गभस्स्तसभिः ॥ 22
रघनतिन ! ये भगवान ् सूया िी संपूणा भूतों का संिार, सजृ ष्ट और पािन करते िैं । ये अपनी ककरणों
ये सब भत
ू ों में अततयाामी रूप से जस्र्त िोकर उनके सो िाने पर भी िागते रिते िैं । ये िी
अजननिोत्र तर्ा अजननिोत्री परुषों को लमिने वािे िि िैं ।
िे वता, यज्ञ और यज्ञों के िि भी ये िी िैं । संपूणा िोकों में जितनी कियाएँ िोती िैं उन सबका िि
॥ििश्रनत॥
राघव ! ववपजत्त में, कष्ट में , िगाम मागा में तर्ा और ककसी भय के अवसर पर िो कोई परुष इन
सूयि
ा े व का कीतान करता िै , उसे िुःख निीं भोगना पड़ता ।
पज्
ू यस्वैन-मेकाग्रे िे विे वम जगत्पततम ।
एतत त्रत्रगुणणतम ् जप्त्वा युद्धे ु षवजतयष्यस ॥ 26
मिाबािो ! तम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे । यि किकर अगस्त्यिी िैसे आये र्े वैसे िी
िे गए ।
उनका उपिे श सनकर मिातेिस्वी श्रीराम तरिी का शोक िरू िो गया । उतिोंने प्रसतन िोकर
शिच त्त से आहित्यहृिय को धारण ककया
तीन बार आ मन करके शि िो भगवान ् सूया की और िे खते िए इसका तीन बार िप ककया ।
इससे उतिें बड़ा िषा िआ । किर परम परािमी रघनार् िी ने धनष धारण ककया।
रावण की और िे खा और उत्सािपूवक
ा वविय पाने के लिए वे आगे बढे । उतिोंने पूरा प्रयत्न करके
अथ रषव-रवि-स्न्नररक्ष्य रामम
मदु ितमनािः परमम ् प्रहृष्यमाण: ।
तनसशिरपतत- क्ष
ं यम ् षवदित्वा
रु गण-मध्यगतो विस्त्वरे तत ॥ 31
उस समय िे वताओं के मध्य में खड़े िए भगवान ् सूया ने प्रसतन िोकर श्रीराम तरिी की और िे खा
और ननशा रराि रावण के ववनाश का समय ननकट िानकर िषापूवक
ा किा - 'रघनतिन ! अब िल्िी
करो' ।
इस प्रकार भगवान ् सय
ू ा कक प्रशंसा में किा गया और वाल्मीकक
रामायण के यि काण्ड में वर्णात यि आहित्य हृियम मंत्र संपतन
िोता िै ।