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महाभारत
एक दशन
डॉ. िदनकर जोशी
अनुवाद
ि वेणी साद शु ा

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अथशा ं इदं ो ं धमशा ं इदं मह ।
कामशा ं इदं ो ं यासेनािमतलु रहन॥

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दशन क िदशा
मूल प से ‘समकालीन’ गुजराती दैिनक क रिववारीय सं करण म ऐसे कछ न क िवषय म धारावािहक
ेणी शु क थी। परतु बाद म पाठक ने इसम सि य िच लेकर नए-नए न उठाए, इसिलए यह ेणी
िजतना सोचा था, उससे अिधक लंबी होती गई।
यहाँ जो उ ेख िकए गए ह, उनम ‘भंडारकर ओ रएंटल इ टी यूट, पुणे’ क अिधकत पाठ और गीता ेस,
गोरखपुर क महाभारत क आवृि का आधार िलया ह, यह प कर देता ।
िहदी भाषा क पाठक ने मेरी मूल गुजराती रचना का वागत िकया ह, ऐसी मेरी मा यता बेवजूद नह ह।
आज तक मेरी 20 से अिधक रचनाएँ कािशत हो चुक ह, यह िहदी पाठक क शुभकामना का ही तीक ह।
इस रचना का अनुवाद-कम अपने कधे पर उठानेवाले िम ी ि वेणी साद शु ा और इसे कािशत करने क
िलए भात काशन क ित ध यवाद दिशत करता ।
—डॉ. िदनकर जोशी
102-ए, पाक एवे यू,
महा मा गांधी रोड, दहाणूकर वाड़ी,
कांिदवली (प म), मुंबई-400067
दूरभाष : 09969516745
वेबसाइट : www.dinkarjoshi.com
इ मेल : dinkarjoshi@rediffmail.com

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मानव यवहार का शा त धम
महाभारत क िवषय म भारतीय भाषा म ही नह , िवदेशी भाषा म भी अब तक ब त कछ िलखा
गया ह और अभी भी अिवरत िलखा जा रहा ह। पाठक म भी महाभारत क िवषय म अलग-अलग
ि कोण से उसे सतत पढ़ते रहने का आकषण अ ु ण रहा ह। महाभारत कोई बाइबल या करान
जैसा धम ंथ नह ह, तथािप सिदय से लेखक और पाठक , दोन प म इसम सतत नवीनता बनी
रही ह। इसका या कारण हो सकता ह?

महाभारत धम ंथ नह , यह बात आंिशक स य ह। सही कह तो महाभारत तमाम धम का योग ह। यहाँ ‘धम’


श द एक िवशेष अथ म यु आ ह। धम माने कोई सं दाय नह । अं ेजी म िजसे Religion कहते ह, उस
अथ म ‘धम’ श द का उपयोग महाभारत म नह आ ह। महाभारत का धम मानव यवहार का शा त धम ह।
महाभारत क बराबरी करने क िलए िजनक नाम ायः िलये जाते ह, वे ीक भाषा क ंथ ‘ईिलयड’ और
‘ओिडसी’ िन त राजकल क बात करते ह। इसी कार महाभारत क साथ ही िजसका नाम िलया जाता ह,
उस ंथ ‘रामायण’ म भी क थान पर एक य ह। रामायण क रचियता ‘वा मीिक’ ा से राम क कथा
िलखने का आदेश ा करते ह और एक ऐसे पु ष क कथा का आलेखन करना चाहते ह, जो पु ष धम का
ाता हो, स यिन हो, सफल, ानी, पिव , िजति य, धनुिव ा म वीण तथा सवगुण-संप हो। नारद ने
वा मीिक को ऐसे पु ष क प म राम का प रचय कराया और चवध क बाद यिथत ए किव को ा ने
ही रामकथा िलखने का सुझाव िदया ह। इस रामकथा म इसक सजक को कथानायक राम क जीवन क िकन-
िकन पहलु को समेट लेना ह, इसक भी योरवार सूची नारद ने किव को दी ह। इस कार रामायण क रचना
का आरभ वा मीिक क क णा और यथा क साथ आ ह। इसम इस क णाभाव क उपरांत भ भाव भी
धान थान पर ह। महाभारत क िवषय म ऐसा नह कहा जा सकता।
वेद म एक श द यु आ ह—सािव ी मं । वेद का सािव ी मं ह गाय ी। सािव ी मं माने एक ऐसा
मं , जो सम ंथ क नािभ- थान पर हो, िजस मं को क म रखकर सजक ारा रची गई सृि का रह य
पाया जा सक। आधुिनक संदभ म हम इसे ‘मा टर क ’ कह सकते ह। कई सेफ िडपॉिजट लॉकर कवल एक ही
‘मा टर क ’ से खुलते ह, पर कोई-कोई सेफ िडपॉिजट लॉकर ऐसे होते ह िक िजनम एक अित र चाबी क
यव था क गई होती ह। महाभारत म िजसे हम ‘मा टर क ’ कह सकते ह, ऐसे दो ोक उपल ध ह। इन दोन
को हम महाभारत का सािव ी मं कह सकते ह अथवा एक ही सािव ी मं क दो भाग कह सकते ह। आिदपव
क पहले अ याय म महिष यास महाभारत क रचना क िलए अपने उ े य को प करते ए ा से
िनवेदन करते ह। (रामायण क रचना म भी सजक वा मीिक ा से ही अनु ा ा करते ह और महाभारत क
सजक महामनीषी यास भी अपने सजन क िवषय म सव थम ा से ही अनु ा माँगते ह। इन दोन महा ंथ
क आरभ म ही ा का यह योगदान यान देने यो य ह।) यास कहते ह िक मेर इस महाका य म वेद ,

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उपिनषद , इितहास, पुराण, भूत, वतमान और भिव यकाल, जरा (वृ व), मृ यु, भय, रोग आिद क उपरांत
ा ण, ि य, वै य और शू , इन चार वण का कत यिवधान, तप या, चय, पृ वी, चं मा, सूय, ह,
न , तार, स युग, ेतायुग, ापरयुग और किलयुग, इन सभी का समावेश िकया गया ह।
इसक उपरांत याय, िश ा, िचिक सा, दान, तीथ , देश , निदय , पवत और समु का इसम वणन िकया गया
ह। इस ंथ म यु , शांित, िव ान, लोक- यवहार, आयुवद, थाप य, उ पि और लय, इस संबंध म िवचार
िकया गया ह। महिष यास ने महाभारत क रचना क िलए अपने इन उ े य क सूची ा को दी ह, उसम
कह भी िकसी य -िवशेष या घटना-िवशेष क बात नह ह। इसका अथ यह आ िक यास ने महाभारत म
जो कथानक आ यान, उपा यान कह ह, वे कथन उनक िलए सा य नह ब क मा साधन ही ह। क वंशी
कौरव और पांडव क बात महाभारत म क थान पर ह, ऐसा अव य लगता ह। ीक ण या भी म महाभारत
क कथानायक ह , ऐसा अव य लगता ह। ीक ण या भी प महाभारत क कथानायक ह , ऐसा मानने क िलए
मन अव य ललचा जाता ह, परतु ंथ क आरभ म ही इसक रचियता यास ने अपने उ े य क िवषय म जो
प ता क ह, उसे ल य म रख तो तुरत समझ म आ जाता ह िक महाभारत िकसी य क कथा नह ह।
सािव ी मं का यह पूव-भाग देखने क बाद उसक उ र भाग क भी जाँच कर लेते ह। इस उ र-भाग को
ल य म िलये िबना महाभारत का गंत य थान नह पाया जा सकता। सािव ी मं का यह दूसरा भाग महाभारत
क िब कल अंत म वगारोहण पव क अंितम अ याय का 62वाँ अैर 63वाँ ोक ह। इन ोक म महिष यास
अितशय हताश होकर दोन हाथ ऊचा करक पुकार-पुकारकर कहते ह िक मेरी बात कोई सुनता नह । महिष
वेदना य करते ह िक धम सनातन ह, और सुख-दुःख तो िणक ह और ऐसा होते ए भी लोग धम का
प रसेवन य करते नह ?
महाभारत क लगभग एक लाख िजतने ोक म इस सािव ी मं क पाँच ोक क पास महाभारत को
समझने क ‘मा टर क ’ ह। यह ‘मा टर क ’ यिद एक बार समझ म आ जाए तो िफर आिद और अंत क बीच
फले महासागर समान इस ंथ िशरोमिण क पास जाने का बार-बार मन ए िबना रहगा नह । सामा य प से
मानवसिजत कोई भी कलाकित अपने भो ा को सतत एक जैसा आनंद या संतोष नह दे सकती। िव सािह य
क कोई भी उ म कित हो या िफर मानवरिचत उ म कही जा सक, ऐसे ताजमहल या िफर एिफल टॉवर ह ,
उ म िश प या िच कितयाँ ह , ये सभी पहली बार हम संपक म आएँ, तभी आनंद देती ह। यह आनंद उनक
दूसर या तीसर संपक क समय घटता जाता ह और इस तरह पुनः-पुनः इसका नािव य उनक उपभो ा क िलए
घटता रहता ह। एक ण ऐसा भी आ जाता ह िक वह रचना या कलाकित उस भो ा क मन म िनतांत सहज
(सामा य) कित बन जाती ह। मानव सजन क यह मयादा ह। ाकितक रचना को यह मयादा पश नह
करती।
एक ही सूय दय या सूया त उसक भो ा को रोज-रोज नया-नया ही लगता ह। समु क लहर, जो ार-भाट
का िनमाण करती ह, वे लहर रोज-रोज एक ही होती ह, िफर भी उनका दशन हर रोज नया ही लगता ह। पूनम
क चाँदनी का मह व िकसी िदन कम नह होता। मानव-रिचत कितयाँ हम जो संतपक भाव देती ह, वह सतह क
ऊपर का आनंद ह, इसिलए इस आनंद पर अथशा क घटती उपयोिगता का िनयम लागू होता ह। परतु कित

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सिजत रचना से जो अनुभूित िमलती ह, वह सतह क ऊपर का मजा नह , ब क गहराई म बहता आनंद का
वाह होता ह।
महाभारत कित सृिजत नह , मानवरिचत ह। तथािप ऊपर कहा वह मानव सृिजत सजन नह ब क
कितरिचत सजन का िनयम लागू करना पड़ता ह। यह एक अ ुत और िव मयकारी घटना ह। महाभारत का
स दय कितरिचत स दय ह; य िक इसक रचियता ने िकसी िवशेष य , घटना या भाव को ल य म न रखते
ए सम मानव-जीवन को उसक अिखलता (सम ता) क साथ इस ंथ म समािव कर िलया ह। िजस कार
येक य मूलभूत प से स श होते ए भी िव क कोई भी दो य एक जैसे जनमे नह । इस
िविभ ता का रह य िकसी भी सजक या भावक क िलए एक चुनौती बनी रही ह।
महाभारत क िवषय म जो िलखा जा चुका ह और जो िलखा जा रहा ह, उस सभी क मूल म यह चुनौती रही
ह। कोई भी सजक जब तक िकसी चुनौती को वीकार नह करता, तब तक उसका सजन कम उथला ही रहता
ह। कोई भी भावक या भो ा इस चुनौती क िदशा म चेहरा नह घुमाता ह तो उसका संवेदन किठत रहता ह।
इस कार, सजक और भावक दोन महाभारत क महासागर क पास बैठकर जो तृ पाता ह, वह तृ अ य
कह नह पाई जा सकती।
मनु य का िच अपने उ मकाल से लेकर आज तक जो भी कर सकता ह, िजन िवषय का पश कर
सकता ह, वे सभी महाभारतकार ने आलेिखत िकए ह, और इसीिलए महाभारत म कह -न-कह येक भावक
को, वयं एक प हो गया ह, ऐसा लगे िबना नह रहता। मनु य िजस थल पर अपने आपको अिभ य आ
देखता ह, उस थल क िवषय म उसक भावना सहज ही बदल जाती ह। िकतु भावना क िबंदु तक प चने क
िलए संवेदनशील भावक होना पहली शत ह।
गीता महाभारत का एक अंश ह और महाभारत क रचना वेद तथा उपिनषद क काल क लंबे समय बाद ई
ह। िहदू धम, िजसे वैिदक काल म वैिदक धम का नाम िदया गया ह, यह परपरा महाभारत काल क पहले क ह
और इसक बावजूद महाभरत क अंश- व प ‘भगव ीता’ इस िहदू धम का धम ंथ बन चुक ह। यह आ य
उपजाए, ऐसी एक अबूझ पहली ह। िजस धम का मूल महाभारतकाल क पूव सैकड़ और हजार वष तक फला
ह, उस धम ने अपने ामािणक धम ंथ क प म गीता को ा करने क पहले लंबी ती ा क ह।
रह य महाभारत क पास अपरपार ह। स दय इस येक रह य क साथ जुड़ ए ह। रह य को भेदना और
स दय को ा करना मानव िच क अिवरत ि या ह। यह ि या जब तक जारी ह तब तक महाभारत
मानवजाित क िलए एक अित मू यवान ंथ बना रहगा, इसम कोई शंका नह ।
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नर, नरो म, नारायण


महाभारत म सािव ी मं जैसे िजन दो ोक का हमने उ ेख िकया, उनम से आरभ क ोक म
महाभारत म लेखक ने िजन िवषय क चचा क ह, उनक सूची दी ह, परतु इस सािव ी मं का जो
दूसरा ोक महाभारत क अंितम अ याय म िदया ह, उसम रचनाकार यास वयं हाथ ऊपर उठाकर
आ ोश करते ह िक—मेरी बात कोई सुनता नह । इसका या ऐसा अथ लगाया जा सकता ह िक
महाभारतकार अपनी रचना क उ े य म िन फल िस ए ह? इसक साथ ही महाभारत क सम
रचना का यिद एक ही उ े य बताना हो तो वह कौन सा बताया जा सकता ह?

महाभारत क आरभ का जो सव थम ोक ह, उसे यान म िलये िबना इस सम ि या को नह समझा जा


सकता ह। महाभारत क िवषय म कोई बात िन तता क साथ नह कही जा सकती। महाभारत म ऐसे अनिगनत
संग और कथानक ह िक िज ह ‘दो धन दो बराबर चार’ जैसी सरलता से मू यांिकत नह िकया जा सकता। परा
और अपरा िव ा क बात करते ए उपिनष कार ने वयं वेद को भी अपरा िव ा कहा ह। वेद यिद ई र
किथत ह तो ई र क माणभूत वा य अपरा िव ा कसे हो सकते ह, ऐसा संशय मन म पैदा होता ह। परतु यह
संशय तभी तक िटका रहता ह, जब तक िव ा श द समझ म न आया हो। िव ा ही परािव ा ह और
बाक क तमाम िव ाएँ यिद इस िव ा क िदशा म न ले जाती ह तो अपरािव ा ह। इसी कार महाभारत
म भी अब तक संदभ और बल रह य फट नह होते, जब तक संगतः संशय पैदा होते ही ह।
महाभारत का पहला ोक ब त िस ह। इस ोक का पहला चरण इस कार ह—‘नारायणं नम क यं
नर चैव नरो म ’, सम महाभारत क आधारिशला ये तीन श द ह : नर, नरो म और नारायण। येक मानव
क अभी सा और मनु य क पास से परमा मा क अपे ा भी यही ह िक नर से नारायण क ओर गित कर। इसे
आप िशव म से कट आ जीव पुनः िशव म िमल जाए, ऐसे एक वतुल क बात भी कर सकते ह। जीव का
आरभ िशव से आ ह और जीव का अंितम गंत य थान भी िशव ही हो सकते ह। ‘नर’ श द यहाँ पु षवाचक
नह ह। नर माने येक मानव। िफर वह पु ष हो या ी! नर इस ि या म सव थम नरो म बनने क िदशा म
गित कर और अंितम चरण म वह नारायण को ा कर, तभी यह वतुल पूरा होता ह। इसी ोक का दूसरा
चरण देवी सर वती का मरण करता ह। नर क नरो म और नारायण क िदशा म गित ान क िबना संभव
नह । याद रह िक भगव ीता म ीक ण ने कमयोग और भ योग, इन दोन से ानयोग को ऊपर बताया ह।
यह ान देवी सर वती क कपा क िबना संभव नह । याद रह िक भगवतगीता म ीक ण ने कमयोग और
भ योग, इन दोन क अपे ा ानयोग े बताया ह। यह ान देवी सर वती क कपा क िबना ा नह
होता और इसीिलए देवी सर वती क वंदना करक इस ोक का अंितम चरण वे इस कार पूण करते ह, ‘ततो
जयमुदीरयत’ (तभी जय-जयकार होती ह)।

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इसक बावजूद नर से नारायण क ा तो ब त कम ही होती ह। अिधकतर लोग तो ई र द अपनी नर
वृि म भी नह जी पाते ह और नर से भी नीचे क ेणी म अपना संपूण जीवन िबता देते ह। अनेक य
अपनी नर कित म ही जीवन यतीत करते ह। ब त थोड़ ही लोग नर से नरो म होने क कोिशश करते ह और
मा दो-चार य ही ऐसे पु षाथ होते ह, जो नारायण व ा करते ह। महाभारत इन सभी कार क
य य क कथा-सृि ह। ये पा , महाभारतकार ने आरभ क सािव ी मं म अपने जो उ े य कट िकए ह,
उ ह उ े य से िघर ए जीते ह। महाभारत म यु ह, वैर ह, काम ह, ोध ह, ई या ह, ेम ह, याग ह,
शांित ह, अशांित ह और यह सारा कछ इस कार पर पर ग म होकर फला ह िक इनक अंत म जो
िन प होता ह, वह अितशय रस द हो उठता ह। महाभारत क सबसे मुख पा भी म का जीवन देख या
महाभारत क युग- वतक पा ीक ण का जीवन देख, तो हम अिभभूत ए िबना नह रहते। लेिकन जब उनक
जीवन का अंत देखते ह तो यह सोचने पर िववश हो जाते ह िक ऐसे उदा जीवन का ऐसा दा ण अंत य ?
‘धम क जय और पाप का य’ यह सू वा य महाभारत म हम बार-बार पढ़ने को िमलता ह। परतु महाभारत
म या सचमुच धम क ही िवजय ई ह? महाभारत म धम श द का योग बार-बार आ ह। लगभग हर पा
अपने हर एक क य को धम का नाम लेकर उिचत ठहराने का यास करता ह। ह तनापुर क ूतसभा म ौपदी
को िनव िकए जाने क क य को भी कण और दुय धन धम का सहारा लेकर यायोिचत ठहराने का यास
करते ह। भरी सभा म कलवधू को इस तरह अपमािनत करना अधम ह, ौपदी क ऐसा कहने पर ‘धमत व
अ यंत सू म ह’, यह कहकर भी म लाचारी म अपने हाथ ऊपर उठा लेते ह। परतु िवकण उस समय कहता ह,
‘ ौपदी क साथ अधम िकया जा रहा ह।’ इस कार इस घटना क संदभ म धम क ाता इन सभी पा क
अलग-अलग अिभमत ह।
धम महाभारत का ाणत व ह। यह ाणत व िकसी िन त क म नह हो सकता। ाण का वास तो संपूण
कलेवर और उसक सू माितसू म अंश म समान प से या रहता ह। ाण का अथ ह चैत य और धम का भी
अथ चैत य ही ह। धम क िबना चेतना नह हो सकती। मनु य जाित ने धम का आ य इसिलए िलया ह िक
मनु य को अपना गंत य थान हमेशा शांित क ा ही लगा ह। मनु य धम का अनुसरण इसिलए करता ह िक
उसे ऐसा लगता ह िक धम क अनुसरण से ही उसे शांित िमलेगी। इस कार धम एक साधन ह और शांित सा य
ह। यहाँ यह न उठता ह िक हर बात म धम का नाम लेने वाले इन सभी पा को अंत म शांित ा ई या?
महाभारत म असं य पा म से सभी ने धम का सही अनुसरण नह िकया और इसीिलए वे परा त ए या
अशांित पाए, ऐसा कहना सरल ह। दुय धन, धृतरा , शकिन को हम खलनायक क प म देखते ह, इसिलए
उनक अंत क िलए यह अनुकल अथघटन हम त काल वीकार कर लेते ह िक वे धमिन नह थे, इसिलए
शांित ा नह कर सक और उनका दुःखद अंत आ, परतु िज ह हम धिम मानते ह, ऐसे युिधि र और
अ य पांडव, ौपदी, िवदुर, ये सभी पा भी शांित पाए या? यु क अंत म िवजेता ए युिधि र तो अ यंत
यिथत होकर आ ोश भी करते ह िक ऐसी िवजय ा कर राज करने का या अथ ह? वे वयं आ मह या
करने क िलए भी त पर हो जाते ह। इसक बाद क छ ीस वष तक उ ह ने रा य तो िकया, परतु ये छ ीस वष
उनक ारा क पना म सँजोए सुख या शांित क वष नह रह। छ ीस वष तक मन म उ ेग, उचाट और

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अपराध-बोध का भार सँभालने क बाद पांडव वगारोहण करने क उ े य से अपनी मृ यु को गले लगाने क
िलए जाते ह। एक तरह से देख तो यह आ मह या का ही एक कार ह।
आ मिवलोपन का िवचार जीवन क िनराशा म से ही उ प होता ह। पांडव जो जीवन िपछले छ ीस वष से
जी रह थे, उसम एकमा क ण का ेरणाबल था। जैसे ही क ण ने इस संसार से िवदा ली, वैसे ही क िवहीन
पांडव क िलए जीवन दु कर हो गया और उ ह ने वगारोहण का माग अपनाया। िवदुर जैसा समथ पु ष अपने
जीवन क अंितम िदन म अ , जल, व , मृित, सबकछ यागकर का जैसा बनकर अर य म मृ यु को
ा आ। पु क अपे ा धम क िवजय बड़ी ह, ऐसा माननेवाली और कहनेवाली तथा पित को जो अल य
ह, वह ि अपने िलए भी या य ह, ऐसा जीवन जीनेवली सती गांधारी सदैव धमिन रहकर पित तथा बड़
क सेवा करनेवाली कती और तापी राजा धृतरा , ये सभी र य म दावानल क बीच जलकर भ म हो गए।
भी म ने अ ावन िदन तक शरश या पर सोए रहकर पु और पौ का संहार होते देखा। वयं ीक ण ने भी
अपनी ही आँख से यादव कल का िवनाश देखा और वे वयं भी एक आिदवासी िशकारी क हाथ से पशु क
भाँित तीर लगने से मार गए।
यह सम घटनाच मानो पाठक को यह मानने क िदशा म ख च ले जाता ह िक जीवन यथ ह। जीवन म
भिवत य िन त ह। महाकाल क अपनी वतं गित होती ह और यह महाकाल अपने वाह क बीच जीनेवाले
िकसी पा को िकसी भी िन त ि या िवभावना से मू यांिकत नह करता ह। प म क कई िवचारक, िजसे
Absurd कहते ह, वैसा ही यह जीवन ह। इसम कोई हतु नह । ज म और मृ यु, इन दो िबंदु क बीच हम जो
वष िमले ह, वे वष हम जी कर िनकाल देने वाले ह, पर जीवन क गित हम िन त नह कर सकते। उसका
िन य तो महाकाल ने ही करक रखा होता ह, और यह अंत िकसी को उसक िन त कम क आधार पर
िन त कार से ा होता ह, ऐसा नह कहा जा सकता ह। अंत का संबंध ह, वहाँ तक तो महाकाल मानो
ऐसा संकत देता ह िक जीवन यथ ह और मृ यु ही साथक ह। यह मृ यु कम क अनुसार नह ब क महाकाल
क एकवा यता क अनुसार ा होती ह। इसम जाँघ टट जाने क कारण ल लुहान होकर क े-िब ी क तरह
तड़पता दुय धन हो, जंगल म भड़कती अ न म लाचार होकर जल रह धृतरा , गांधारी और कती ह , या िफर
वगारोहण क नाम पर आ म-िवलोपन कर रह पांडव ह या अनजाने पारिध क हाथ िशकार हो जानेवाले
युगपु ष ीक ण ह , इन सभी क ित महाकाल एक समान ही तट थ और िनमम ह।
महिष यास इस िवरा कथानक म मानो जीवन क िवषमता क बात हम बता रह ह। धम क अनुसरण से
सबकछ ा होता ह, यह कहकर रचनाकार जो यथा य करता ह, वह यह ह िक ऐसा होने पर भी मानव
धम का अनुसरण नह करता। जीवन क िन फलता तो ह ही, पर इस िन फलता को भी संतोष व शांितपूवक
वीकारना हो तो धम का अनुसरण ही एक मा माग ह। िवदुर, युिधि र, भी म या क ण, इनका भी अंत तो
महाकाल क हाथ िनममता से ही आया ह, पर यह अंत इन पा को सहज लगा ह। अंत को ा करने क
समय वे याकल नह ए। उ ह ने ची कार नह िकया। यह यथता समझ गए ह , इस तरह उ ह ने शांित से
अपने अ त व का िवघटन कर डाला ह। जो धम का अनुसरण करने म िन फल हो गए या िस ए, ऐसे पा
दुय धन, अ थामा या धृतरा इन सभी ने अशांत िच से जीवन का अंत ा िकया। इस कार महाभारतकार
ने अपने उ े य क एक तरह से पूित ही क ह, पर मनु य इस रह य को ा नह कर सकता ह, यह उसक
समझने क श क मयादा ह।

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अजुन क आ मह या और युिधि र का वध
महाभारत म भी म क ित ा, कण का औदाय, युिधि र क माभावना, िवदुर क ानचचा, ये
सभी कथानक यावहा रक जीवन से दूर लगते ह। वा तिवक जीवन म य माण िमले और
िजसका वीकार जीवन को बेहतर बनाने म हो सक, ऐसा कोई िविश कथानक आज क संदभ म
उ ृत िकया जा सकता ह या?

महाभारत क िवषय म जब भी िवचार िकया जाता ह तो हमार कथाकार ने हमसे सतत एक बात कही ह िक
महाभारत क कथानक और उसक पा दशनीय ह, परतु अनुकरणीय नह ह। इसक िवपरीत रामायण क िवषय म
जब भी िवचार होता ह तो ये सभी एक ही वर म कोरस म बोल उठते ह िक रामायण क कथानक और पा
अनुसरणीय ह। राम क िपतृभ , सीता क पितपरायणता ल मण या भरत का ातृ ेम, हनुमान का सेवाकम, ये
सभी पहली नजर म ही सरल लगते ह। इन सभी पा म जो गुण किव ने िन िपत िकए ह, उनम एकवा यता भी
ह। इसक िवपरीत महाभारत म जो कथानक और पा ह, उनम प प से बार-बार िवसंवाद िदखाई देते ह।
भी म क िपतृभ राम क िपतृभ क अपे ा अिधक उदा ह। परतु राम क िपतृभ अनुसरण हो सक
अथवा अनुसरण करने क िलए उ ृत कर सक, ऐसी सरल ह और यावहा रक भी ह, जबिक भी म क
िपतृभ अनुसरण करने क िलए उ ृत क जा सक, ऐसी यावहा रक नह लगती। इसी कार कण का
औदाय; युिधि र क माभावना या ौपदी का प नीधम, ये सभी ऐसे संकल कथानक क साथ कट ए ह िक
उनका अनुसरण करने क िलए इस घटना म का मम समझना पड़ता ह। क ण इन सभी म सव थान पर ह।
उनक जीवन म प तः अपार िवसंवाद ह और ऐसा होने पर भी क ण एक ऐसे पा ह िक िजनम वाणी वतन
क चाबी यिद हल क जा सक तो हमार अनेक न आज क संदभ म भी समझे जा सकते ह। महायु क
स हव िदन महारथी कण जब कौरव सेना क सेनापित थे, उस समय जो घटना घिटत ई ह, उस घटना को
अपूव कहा जा सकता ह। कण ने यु क आरभ म माता कती को वचन िदया था िक वह अजुन को छोड़कर
िकसी पांडव का वध नह करगा। इसी कार यिद अजुन उसक हाथ यु म मारा जाएगा तो कण कतीपु क
प म पाँचवाँ पांडव रहगा और यिद वयं कण का ही अजुन क हाथ वध हो गया तो भी कती पाँच पांडव क
माता क प म यथाव रहगी। यु क स हव िदन कण क हाथ म युिधि र फस गए। कण ने युिधि र को
परािजत िकया। इतना ही नह , यिद चाहता तो इस पराजय क ण म वह युिधि र का वध कर सकता था और
यिद ऐसा आ होता तो महाभारत का यु समा हो गया होता, कौरव प िवजयी हो गया होता और क ण
क उप थित होने क बावजूद पांडव प िछ -िभ हो गया होता।
परतु कण ने अपनी िवजय क मू य पर भी जननी कती को िदया अपना वचन िनभाया। उसने अपमािनत
युिधि र को सुरि त जाने िदया। आहत और अपमान क कारण रोष म भरा यह ये पांडव अपने िशिवर म
वापस लौटा। बड़ भाई कण क साथ यु कर रह थे और िफर अचानक रण े से चले गए, इस बात से
िचंितत होकर अजुन ने अपना रथ युिधि र क िशिवर क ओर िलया। ोध और पीड़ा से माणभान चूक
युिधि र ने अजुन को कठोर वचन सुनाए। युिधि र ने कहा, ‘‘ह अजुन, मुझे तो ऐसा लगा िक तुम कण का

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वध करक ही यह शुभ समाचार देने क िलए आए होगे। इसक बदले अकले भीम को लड़ता छोड़कर मेर पीछ
यहाँ तुम दौड़ आए, इसिलए ऐसा लगता ह िक तुम कण से भयभीत हो गए हो। तुम तो कहते थे िक कण का
वध तुम तुरत ही कर सकोगे, पर ऐसा लगता ह िक तुम कण क समक क यो ा नह हो। तुमने कवल शेखी
ही बघारी थी। िध ार ह तु हारी श िवधा को और िध ार ह तु हार गांडीव धनुष को!’’
यह सुनकर अजुन यान म से तलवार ख चकर बड़ भाई का वध करने क िलए झपट पड़ते ह। इस ण क ण
उनसे इसका कारण पृछते ह। जवाब म अजुन ने कहा िक उनक गांडीव धनुष क जो कोई िनंदा करगा, उसका
वध करने क उ ह ने ित ा ली ह।
यह एक अ यंत नाजुक ण था। चंड धमसंकट पैदा आ था। महाभारत क अिधसं य पा बात-बात म
ित ाब होते रह ह और िफर इस ित ा का पालन करने क िलए नई-नई घटनाएँ सिजत होती रही ह। कण ने
युिधि र का वध न करक कौरव को िवजय से वंिचत रखा था। अब इस ण यिद अजुन युिधि र का वध कर
तो िवजय ी एक बार िफर कौरव क भाग म चली जाएगी। इस कार जो काम कण ने नह िकया, वह काम
करने क िलए अजुन उ त ए थे। हर य क जीवन म ऐसे धमसंकट आते ही ह। अजुन क जीवन का यह
ब त बड़ा संकट था।
क ण ने इस धमसंकट का यावहा रक हल सुझाया ह। उ ह ने अजुन को कहा, ‘‘ह अजुन, धम और स य का
पालन उ म ह, िकतु इस त व क आचरण का यथाथ व प जानना अ यंत किठन ह। अस य भी स य बन
जाता ह। आचरण म लाया गया एक स य उसक इस व प म अ य संयोग म भी जो आच रत करता ह, वह
स य क सू म व प को नह जानता’’, यह कहकर क ण ने अजुन से कहा, ‘‘साधु पु ष या व र य को
‘तू’ कहकर अपमािनत करना, उसका वध करने क समान ही ह। िफर युिधि र तो तु हार बड़ भाई ह, इसिलए
िपतातु य ह। इस िपतृतु य बड़ भाई को तुमने सदैव मान िदया ह। आज अब तुम उ ह तूकार क साथ संबोिधत
करक कठोर वचन कहो, इसिलए यह उनका वध आ ही कहा जाएगा।’’ क ण क इस सुझाव क अनुसार
अजुन ने युिधि र को अपमािनत िकया और पांडव क आज तक क तमाम दुःख और ौपदी क अपमान क
िलए युिधि र क ूत ेम को िज मेदार ठहराते ए कहा िक अ य पांडव जब क सहन कर रह थे तो बड़ भाई
ौपदी क श या पर बैठ ए थे, ऐसे अितशय कठोर श द का योग िकया।
एक संकट तो क ण ने अपनी यावहा रक सूझ-बूझ से दूर कर िदया और युिधि र का वध हो, ऐसी नाजुक
प र थित धमसंगत ढग से ह क क , लेिकन बड़ भाई को कठोर वचन कहकर, उनका अपमान करना िपतृह या
क समान बताया जाता ह। ऐसे धम का सहारा लेकर अजुन ने कहा िक म िपतृहता िस आ और इस पाप
से मु होने क िलए अब म वयं अ न वेश करक आ मह या क गा।
िफर एक बार धमसंकट पैदा हो चुका था। अजुन ने आ मह या करने का जो िन य िकया, वह धमसंगत ही
था, य िक िपतृवध क पाप क मु अ न वेश से ही िमलती ह, ऐसा शा ो कथन ह। परतु अब इस धम
क अनुसार अजुन अ न वेश करक आ मह या कर तो िफर एक बार यु िनरथक हो जाएगा और कौरव क
िवजय िन त हो जाएगी।
इस ण क ण शा और धम का अनुसरण करक ही उसका िनराकरण करते ह। क ण ने कहा, ‘‘अजुन,
मने तुमसे पहले ही कहा िक धम का व प ब त ही सू म ह, इसिलए इसे इस तरह ऊपर-ऊपर से नह समझा

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जा सकता ह। िपतृह या क पाप क मु यिद आ मह या हो तो यह आ मह या कोई अ न वेश से ही हो, ऐसा
नह । धम को जाननेवाले समथ पु ष कह गए ह िक आ म ाघा (आ म शंसा) आ मह या का ही एक प ह,
अतः अब तुम अपनी वयं क शंसा करक आ म ाघा ारा आ मह या करक इस िपतृह या क पाप से मु
ा कर लो।’’
क ण ारा सुझाए इस यावहा रक िनराकरण को िफर एक बार अजुन ने वीकार िकया। उसने वयं ही
अपनी शंसा करते ए कहा िक भगवा शंकर क िसवा मेरा ितकार कर सक, ऐसा कोई यो ा इस पृ वी पर
नह ह। मेरी श क कारण ही राजसूय य हो सका था। म तीन लोक का िवनाश कर सक, इतना श शाली

इस कार अजुन ने गांडीव क िनंदा करनेवाले का वध करने क अपनी ित ा का पालन िकया और उसक
साथ ही िपतृह या क पाप से मु भी पाई। इस धमसंकट म से उसे जो मु िमली, वह क ण क
सू माितसू म, पर यावहा रक धमबु क आभारी ह। स य िकसे कहते ह? धम या ह? ये न मा ािनय
क िलए चचा या िववाद क ही मु े नह ह, ब क उ ह यिद सही प र े य म समझा जाए तो यावहा रक जीवन
क सम याएँ भी हल क जा सकती ह।
जैसा इस घटना क िलए कहा जा सकता ह, वैसा ही अ य कथानक क िलए भी समझा जा सकता ह। भी म
क ित ा अितशय दु कर ह, इसीिलए वे भी म बने ह। अपने शरीर पर से कवच-कडल उतारकर िभ ा माँगने
आए ा ण को दान कर देने से मेरी पराजय होगी, यह जानते ए भी कण ारा दिशत औदाय और िच ांगद
गंधव क हाथ बंदी ए दुय धन को मु करवाने क युिधि र क माभावना िन त ही यावहा रक जीवन म
उतारना किठन लगे, ऐसे कथानक ह। परतु िजस तरह यु क स हव िदन अजुन और युिधि र क बीच उ प
ई सम या क ण ने धम का आसरा लेकर ही हल कर दी, उसी तरह भी म क ित ा, क ण का औदाय या
युिधि र क माभावना को भी उनक मूल भावना को समझ ल तो उन पर आचरण करना भले किठन हो,
असंभव नह । इन कथानक को, ये िजस कार कह गए ह, उसी कार उनक श द से िचपट रहकर देखने से
उ ह नह समझा जा सकता ह। उ ह समझने क िलए िकिच िभ कार क ि अपनानी पड़गी। एक बार
यिद यह ि ा हो जाए तो रामायण क ही तरह महाभारत क कथानक और पा भी समझे जा सक, ऐसे
रस द और आ मीय लगने लगगे।
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ा वाले अ थामा क बीच

खोज संयमी अजुन क


दो-दो िव यु क महािवनाश क बाद भी आज क िव म एक भी िदन ऐसा नह गया, जब कोई-
न-कोई सश संघष जारी न हो। मानवजाित पाँच-प ीस बार एक-दूसर का संपूण नाश कर सक,
इतने और ऐसे श िव क महाश य ने एक िकए ह। श से कोई सम या थायी प से
हल नह हो सकती। इस पूवभूिम का संपूण ान होने क बावजूद मानव श क इस दौड़ से बाज
नह आया। उसक इस अंधी श ा को रोक सक और उिचत मागदशन िमल सक, ऐसा कोई
कथानक महाभारत से उ ृत कर सकगे?

महाभारत एक तरह से देख तो समांतर चलती अनेक भावना और कथानक का घटाटोप ह। काम, मो ,
धम, असूया, इस कार िविवध भाव क बात महाभारत हम समय-समय पर अपने अलग-अलग कथानक
ारा सूिचत करता ह। इन सूचना को एक साथ, एक ही संदभ म देखने क िलए महाभारत क सात य को
नजर क सामने रखना पड़गा।
ह तनापुर म आचाय ोण धृतरा -पु और पांड-पु क गु क प म उ ह धनुिव ा िसखा रह थे, उस
समय उनक इस िश यवृंद म कण और अ थामा भी थे। आचाय ोण क मन म अजुन सव े धनुधारी बना
रह और इसक माग म कोई ित पध न रह, ऐसी ोण क इ छा थी। फल व प आचाय ने एकल य का
अँगूठा गु दि णा क प म माँगकर अजुन को िनभय िकया था। कण अजुन क समक यो ा बन सक, ऐसी
पूरी संभावना थी, इसिलए गु ोण अजुन को अलग से कई गु िव ाएँ िसखा रह थे।
आचाय को जैसी अजुन क िलए ीित थी, वैसी ही ीित अपने पु अ थामा क िलए भी थी। आचाय कई
बार पु अ थामा को भी अ य िश य से गु रख-कर श िव ा क कई मं िसखा देते थे। तथािप आचाय
ने ‘ ा ’ नामक अमोघ श मा अजुन को ही िसखाया था। धनुिव ा क े म इस ा क िव ा
अंितम िव ा मानी जाती ह। रावण का वध राम ने ा से ही िकया था। इस ा का योग भी कछ
िन त शत क साथ और िन त प र थितय म ही हो सकता था। राम ा का योग करना जानते थे,
िफर भी इस ा का योग उ ह ने रावण क साथ लंबे समय तक यु करने क बाद अंत म ही िकया था।
जब अ य कोई उपाय शेष बचा ही न हो तो अंितम श क प म ा का योग िकया जा सकता ह।
रावण ा जैसे चंड श क िबना नह मारा जा सकगा, यह िन त प से जानते ए भी राम इस श
का योग ारभ म कह नह करते ह।
अ थामा को जब पता चला िक िपता ने ा क यह िव ा अपने ि य िश य अजुन को िसखाई ह और
उसे नह िसखाई तो उसने रोषपूवक िपता से यह िव ा वयं को िसखाने क माँग क । आचाय ोण पु - ेम से

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िघर थे, यह सही था, परतु उनका यह ेह अभी तक राजा धृतरा क पु मोह िजतना अंधा नह बना था। िपता
ने पु से कहा िक यह िव ा ऐसे हाथ म ही स पी जा सकती ह, जो हाथ मा अधम क िव लड़ने म और
आ मण क िलए नह ब क आ मर ा क िलए ही इसका िविनयोग कर। इस श का उपयोग मा िवजय
ा करने क िलए नह ब क धम क थापना क िलए ही हो सकता ह। इस श का उपयोग मा ित पध
यो ा क िव ही िकया जा सकता ह और उसका शमन भी िकया जा सकता ह। इसक शमन क िलए
ोधरिहत होना अिनवाय शत ह। िपता अपने पु का ोधी और िज ी वभाव भलीभाँित जानते थे और
इसीिलए यह चंड श उसक हाथ म स पने से िझझक रह थे। परतु पु ने िपता क सम हठ िकया और
पु मोह से े रत होकर िपता ने पु को यह िव ा िसखाई भी।
क े क महायु म अजुन पांडवप म थे और अ थामा कौरवप म था। अठारह िदन क महासंहार
क बाद यु समा आ तो कौरवप म तीन यो ा बचे थे। इन तीन यो ा म अ थामा भी एक था।
अठारहव िदन क रात म उसने िवजयी पांडव क िशिवर म घुसकर गहरी न द म सोए पाँच ौपदी पु और
छठव ौपदी ाता धृ ु न क ह या कर दी। इसक बाद क कथा जानी ई ह। ह यार अ थामा को पकड़कर
लाने क िलए अथवा उसका वध करने क िलए अजुन उसक पीछ दौड़ तो अजुन क हाथ से बचने क िलए
अ थामा ने िपता ोणाचाय ारा िसखाई ई उस ा क अमोघ िव ा का योग िकया। िव ा ा क
पूव क जो पूवशत थी, उसका यह खुला उ ंघन था। ा क योग क िलए ोधरिहत होना िजतना
अिनवाय था, उतना ही अिनवाय िनभय होना भी था। यहाँ ‘ ोध’ श द का अथ समझ लेना चािहए। जब
य गत वाथ या िहत क आड़ म ोध आ रहा हो तो हताशा म जो रोष कट होता ह तो वह ोध ह, परतु
समि क िहत क सामने कोई अवरोध उप थत करता हो तो ऐसे िव न क िव वीर पु ष क मन म जो
ोध कट होता ह, उसे हमार शा कार ने ोध नह ‘म यु’ कहा ह। राम ने जब रावण का वध करने क िलए
ा का योग िकया था तो उनक िच म ‘म यु’ या था। यहाँ महाभारत म अ थामा ने जब ा
का योग िकया, उस समय वह ाण बचाने क हताशा से ोिधत आ था; इतना ही नह , अभी अजुन क साथ
उसक भट भी नह हई थी िक यु क आरभ म एकप ी प से उसने ा का योग िकया।
अ थामा क ा का िनवारण करने क िलए अजुन ने यु र म ा छोड़ा। इन दोन ा क
बीच यिद अंत र म संघष होता तो सम सृि और चराचर जीव का नाश होने क संभावना थी। महिष यास
और देविष नारद उस ण इस संभावना से िव को उबार लेने क िलए अजुन को सूिचत करते ह िक वे अपने
ा का शमन कर ल और श को िव क याण हतु वापस ख च ल। अजुन तो त काल इस सुझाव से
सहमत होकर अपने ा को शांत कर देते ह, पर अ थामा ऐसा नह कर पाता ह। वह अपनी िववशता
कट करता ह और पांडव क नाश क िलए छोड़ा गया यह ा , अंत म सम क वंश क एकमा बचे
वंशज समान उ रा क गभ से, िजसका अभी ज म भी नह आ था, ऐसे गभ थ िशशु परीि त का वंस कर
डालता ह। इस कार क कल का पांडव क जीिवत होते ए भी एक तरह से नाश आ ही कहा जा सकता ह।
पांडव क सौभा य से क ण जैसी परम िवभूित वहाँ उप थत थी और क ण व क सं पश से इस न ए
गभ थ िशशु को पुनज वन िमला।

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एक तरह से देख तो संपूण महाभारत श क दौड़ क ही एक पधा ह। आचाय ोण क पास से श
संपादन करने क बाद कण ने और अिधक श ा करने क िलए परशुराम का िश य व वीकार िकया।
दुय धन ने बलराम से गदायु म वीणता ा क । अजुन ने अर यवास क दौरान भगवा शंकर से
पाशुपाता ा िकया। इस कार सम प से श क यह दौड़ अिवरत चलती रही ह। जो श समथ
और समझदार हाथ म िदए गए, वे श हर थित म धमयु क िलए आ ही रह। भी म, ोण या कण चंड
यो ा थे और अिभम यु क वध जैसे इ -दु संग छोड़ द तो दुय धन क अधमप म रहकर लड़ते ए भी
इन यो ा ने अपने श का धम िनिष उपयोग कह नह िकया।
और ऐसा होते ए भी इस चंड श -दौड़ क अंत म िवजेता पांडव क भी महामनीषी यास ने जो दन
कराया ह, श िकसी सम या को थायी प से हल नह कर सकते, इसका ही यह माण ह। श अयो य
हाथ म जा पड़ तो कसा प रणाम आ सकता ह, इसका िदशासूचन महाभारतकार ने अ थामा क ा
योग से िकया ह। आज क जग म श क जो दौड़ चल रही ह, उसम सभी कोई भी म या अजुन जैसे नह
जनमगे। अजुन क ा को रोकने क िलए उस ण तो महिष यास और देविष नारद उप थत थे; इतना ही
नह अ थामा क ा से सम क वंश को न होने से रोकने क िलए ीक ण जैसे महापु ष भी थे।
आज िव म अ थामा तो पया सं या म उपल ध ह, पर यास, नारद या क ण कह भी ि गोचर नह हो
रह ह, और इसीिलए श क आधुिनक दौड़ महाभारत काल क श - पधा से कह अिधक िवकराल और
िवनाशक ह।
पर पर संहार का त व मनु य ने आिदकाल से पाला-पोसा ह। सचराचर सृि म कोई जीव कभी िहसा को
पोसे िबना िटक नह सकता और इसक बावजूद अिहसा से ऊचा कोई आदश नह । िहसा जब तक जीवसृि क
अ त व क िलए अिनवाय ह, तब तक श क दौड़ थमनेवाली नह ह और येक युग म ीक ण, महिष
यास या देविष नारद क हम अपे ा भी नह कर सकते। ऐसी थित म मानवजाित को महाभारत से जो सीखना
ह, वह इतना ही ह िक अजुन क समझदारी और उनक अ ोध अव था हम ा हो।
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तुलसी पौधे और सुगंध


सामा यतः ऐसा कहा जाता ह िक रामायण पा रवा रक जीवन क कथा ह और महाभारत पा रवा रक
ेष क कथा ह। पा रवा रक जीवन कसा होना चािहए, रामायण इसका आदश तुत करती ह और
यह जीवन कसा नह होना चािहए, महाभारत इसक कथा कहता ह। या यह स य ह िक महाभारत म
पा रवा रक जीवन और िवशेष प से दांप य जीवन क आदश क िलए पया माण नह िमलते?
पा रवा रक जीवन क जो ताने-बाने ह, उनम िकस कार क पार प रक संबंध होने चािहए, इस संबंध
म महाभारत या कोई मागदशन आज क संदभ म देता ह?

रामायण म जो पा रवा रक जीवन ह, वह ायः एकसू ी और सरल ह। इसक अनेक पा आदश जीवन जीते
ह तो उसम ऐसे भी कछ पा ह िक िजनका जीवन इस आदश से एकदम िभ ह। भाई का आदश ल मण या
भरत क जीवन से ा िकया जा सकता ह तो उसक साथ ही सु ीव या िवभीषण का इस िवपरीत आचरण भी
आँख क सामने ही ह। राम क एक प न व क आदश क िवपरीत राजा दशरथ क तीन सौ रािनय (तीन नह ,
ब क तीन सौ) से भरा अंतःपुर भी ह। रामायण क ये पा अपने आदश क िवषय म थोड़ी भी चचा नह करते
ह। इसक िवपरीत महाभारत क पा क जीवन से हम इन पार प रक संबंध क आदश थित या होनी चािहए,
इस िवषय म समय-समय पर भरपूर चचाएँ पढ़ने को िमलती ह।
महाभारत क रचियता महिष यास क अनुसार संयु प रवार ब धा वागत यो य ह। ौपदी िवरा पव म
क ण से कहती ह—ह कशव, इतने-इतने भाइय , सुर और पु क होते ए भी म दुःख भोग रही !
लड़िकय क िश ा क िवषय म ौपदी क िश ा क िलए राजा ुपद ने िवशेष आचाय क िनयु क थी, ऐसा
उ ेख िमलता ह। पित का चुनाव करने का अिधकार ब धा क या को रहा हो, ऐसा लगता ह। ौपदी ने
वयंवर म पित ा िकया था और अंबा ने भी शा व को मन-ही-मन पसंद िकया था। शकतला ने राजा दु यंत
क साथ िपता क अनुप थित म गंधव िववाह िकया था। उससे यह संकत िमलता ह िक य को अपने साथी
चुनाव करने का पूरा अिधकार था। इसक साथ ही िपता या ाता को भी क या क िववाह क िलए उ रदायी
ठहराया गया ह। जो िपता अपनी पु ी का िववाह उसक ीधम म आने क बाद तीन वष तक नह करता, उस
क या को वे छया िववाह कर लेने का अिधकार महाभारतकार ने िदया ह।
सास-ससुर का थान ऊचा ह; यह बात बार-बार ि म आती ह। अनुशासन पव म भी म ने ी क िलए
‘ ुः शुरवितनी’ श द का योग िकया ह। इसका अथ ह िक पा रवा रक जीवन म ब ारा सास और
ससुर का अनुसरण करना आदश माना गया ह। अर यवास म अजुन जब पाशुपता पाने क िलए िहमालय जाते
ह तो उस समय उसे िवदा करते ए ौपदी ने कहा ह—‘ह धनंजय, आपक ज म क समय माता कती ने आप से
जो अपे ाएँ रखी थ , वे सभी आपको ा ह ।’ इसका अथ यह आ िक संयु प रवार म ब भी पित से
ऐसी ही अपे ा रखती थी िक पित का जीवन उसक जनेता क अपे ानुसार हो। िपतामह भी म जब शरश या पर
मृ यु क ती ा कर रह थे, उस समय क कल क ‘ ुषाएँ’ उ ह पंख से हवा डला रही थ । इसम मा ब क

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ही सास या ससुर क ित क कत य क बात नह ब क सास को भी कसा यवहार करना चािहए, इसका
उदाहरण कती उ ोग पव म देती ह। कती पांडव को जो संदेशा भेजती ह, उसम कहती ह, ‘ह पु ो, ौपदी जैसा
कह, वैसा ही करना। ौपदी का स मान बना रह, यह भूलना नह ।’ इसक साथ ही कती ौपदी को भी संदेशा
भेजती ह, ‘ह पु ी, तूने मायक और ससुराल इन दोन ही प का नाम उ ल िकया ह। तू य का धम
अ छी तरह जानती ह।’
दांप य जीवन क िवषय म महाभारतकार को जो कहना ह, उसका उ म उदाहरण वन पव म आया ौपदी-
स यभामा संवाद अ यंत उ ेखनीय ह। यहाँ स यभामा ौपदी से पूछती ह—ह ुपदकमारी, तुम ऐसा तो या
करती हो िक िजससे पाँच तापी पित सदैव तु हार वशवत रहते ह। तुम जो कोई िव ा अथवा मं जानती हो,
मुझे बताओ, िजससे मेर पित ीक ण भी मेर वश म रह। इसक उ र म ौपदी ने एक ब त ऊची मनोवै ािनक
बात कही ह। उसने कहा—‘‘बहन स यभामा, आप जो न पूछ रही ह, वह न मूल से ही पित को प नी से
दूर ले जानेवाला ह। जब कोई पित यह जानता ह िक उसक प नी उसे अपने वश म करने क िलए तं , मं या
अ य उपाय का योग कर रही ह तो उस पित क मन म पु ष- कित क अनुसार ऐसी ी क िलए अ िच ही
पैदा होती ह। ‘चरणेषु दासी’ को च रताथ करती हो, इस तरह ौपदी कहती ह िक ‘प नी क प म म अपनी
इ छा से अिधक अपने पित क मन क भावना को मह व देती ।’
‘दास-दािसय क होते ए भी पित क ज रत का ही म हमेशा यान रखती । मेर प रवार म सेवक तक भी
भोजन न कर ल, तब तक म भोजन नह करती। प रवार म म सबसे पहले उठती और सोने क िलए सबसे
अंत म जाती । पित को नापसंद ह , ऐसी बात म नह करती और कभी भी ब त अिधक हसती भी नह तथा
ोध भी नह करती।’ हसना और ोध, इन दोन श द को यहाँ एक ही थान पर रखा ह। जीवन म दोन का
थान ह, परतु ी क िलए ये दोन मयािदत प म आभूषण बन जाते ह। अमयािदत प से हसती ी या िफर
ब त अिधक ोध करनेवाली ी, दोन ही थितयाँ गृह जीवन क िलए िषत ह।
ौपदी पा रवा रक जीवन म ी को मा ‘चरणेषु दासी’ ही नह कहती, ब क ‘कायषु मं ी’ भी कहती ह।
वह कहती ह िक इ थ म युिधि र क महल म जो हजार ा ण भोजन करते थे, उसक यव था वह वयं
ही सँभालती थी। ितिदन य -य ािद कम क िलए जो हजार ा ण आते थे,उनक स कार-पूजन क यव था
भी ौपदी ही करती थी। महल म जो हजार दास-दािसयाँ थ , उनक पूरी जानकारी, उनक काम और नाम क
साथ ौपदी रखती थी। यहाँ येक दास-दासी को वह नाम से पहचानती थी, ऐसा कहने म एक सुंदर
मनोवै ािनक पहलू कट होता ह।
इसक उपरांत ी का ‘शयनेषु रभा’ प भी ौपदी क ल य से बाहर नह । वह कहती ह, ‘ह स यभामा,
आपको अपने पित पर भरपूर िव ास और ेम तो रखना ही चािहए, पर यह िव ास और ेम आपक यवहार
म कट भी होना चािहए। पित ारा कही ई बात भले ही एकदम मामूली हो, िफर भी आपक मुँह से वह बात
दूसर क कान म जानी नह चािहए। पित जब अपने दैिनक काय से िनबटकर घर वापस आए तो सुंदर वेशभूषा
पहनकर उसक ती ा करनी चािहए और स मुख से उसका वागत करना चािहए।’ घर वापस लौट पित
क नजर क सामने सुंदर वेशभूषा क साथ उप थत होने क बात महिष यास दांप य जीवन म कामशा का
िकतना मह व ह, आँकते ह, इसका माण ह।
दांप य जीवन म संतान- ा का मू य ब त ऊचा ह। शांित पव म एक थल पर ऐसा कहा गया ह िक प नी
मा पित ता हो, इतना ही पया नह , उसे संतान क माता भी होना चािहए। िपतामह एक उदाहरण देकर कहते
ह िक जो ी पित को संतु नह कर सकती, वह ी प नी कहलाने क यो य नह । ी क िलए पित का

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मह व आँकते ए िपतामह भी म कहते ह िक िपता क पास से ी को जो कछ ा होता ह, वह सीिमत ह।
माता और पु का सुख भी मयािदत ह, परतु पित क पास से जो सुख ा हो सकता ह, वह असीिमत होता ह।
दूसर प म प नी क अिधकार और पित क कत य क िवषय म भी महाभारतकार जा ह। शांित पव म ही
भी म ने पु युिधि र को प रवार जीवन क धम को समझाते ए कहा ह िक जो पु ष अपनी प नी का पालन
और र ण नह कर सकता, वह पित होने क लायक नह ; इतना ही नह , जो पु ष वैवािहक जीवन क
सहधमाचार ित ा को भंग करक िनंदनीय यवहार करता ह, उसे अपनी प नी क िनंदा करने का अिधकार नह ।
िनं प नी क सेवा करना भी पित का सहज कम माना गया ह। वन पव म ौपदी जब मू छत हो जाती ह तो
पाँच पितय म से सबसे छोट नकल और सहदेव प नी क चरण दबाते ह ओर उसे युिधि र आिद भी वीकार
करते ह। दांप य जीवन म पिव ता का मू य आँकते ए अनुशासन पव म कहा गया ह िक ‘सु े ’ और
‘सुबीज’ क सम वय से ही तापी संतान पैदा होती ह। यहाँ यु ये दोन श द पित और प नी क पिव ता तथा
दोन क बीच क मानिसक ऐ य को सूिचत करते ह।
प रवार म माता का थान ब त ऊचा रहा ह। माता मा संतान क जनेता या ज मदा ी हो, इतना ही पया
नह । बालक क सं कार-िनमाण क िलए माता को ही ेरणादायी माना गया ह। सगभा ी प रवार म आदर क
अिधका रणी होती थी और सबसे पहले उसक भोजन क िलए यव था होती थी। अर यवास क दौरान भीम जब
अजगर क मुँह म जकड़ गए थे और अजगर ने जब उ ह अपना ास बना िलया था तो भीम को सबसे पहले
अपनी माता ही याद आती ह। भीम आ द करते ए कहते ह ‘मुझे मृ यु का दुःख नह , िकतु पु पर अपार ेम
करनेवाली अपनी माता कती क अव था का िवचार करक शोक होता ह।’
माता-िपता का थान संतान क िलए सव बताया गया ह। गभ म रहते ए अ ाव ने िपता क अनुिचत
कम क आलोचना क थी, इसिलए गभाव था म ही उस बालक का शरीर आठ कार से व (टढ़ा) हो गया।
माता-िपता अथवा गु अनुिचत कम कर रह ह तो भी उनका दोष देखना संतान क िलए घोर आचरण माना गया
ह। महाभारत क िवशाल घटाटोप म पा रवा रक जीवन का यह तुलसी पौधा सहसा िदखाई नह देता, पर उसक
सुगंध का आनंद महाभारत म हम जगह-जगह पा सकते ह।
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नकारा मक त व क दा ण पराजय
मनु य म याग, सेवा, ेम, समपण जैसे सकारा मक और अहकार, ई या, ेष, वैर आिद नकारा मक,
इस कार दोन अंितम एक साथ रहते ह। िजस समाज म िजन त व का ता कािलक ाधा य होता ह,
वह समाज उस सीमा तक सकारा मक या नकारा मक होता ह। वतमान युग नकारा मक त व से
या ह, ऐसा हम सभी सामा यतः वीकार करते ह और उससे मु होकर सकारा मक त व का
ाधा य थािपत करना आदश रहा ह। इस संदभ म महाभारत क कथानक हम िकस तरह िदशा-िनदश
कर सकते ह?

सम मानवजाित क इितहास म कोई भी कालखंड पूरा का पूरा सकारा मक हो या पूरा का पूरा नकारा मक हो,
ऐसा कभी आ नह । बीती सदी क प -पि का म किव नमद का ‘डांिडयो’ (गुजराती) देख तो उसम किव ने
उ ता से िशकायत क ह िक यह जमाना ब त बारीक आया ह और लोग म स ुण का स आ ह। चार
हजार वष पुराना एक िशलालेख इिज ट म िमला ह और उसम ऐसी िनराशा य क गई ह िक इस युग म ज म
लेना अितशय किठन काम ह। इस िशलालेख का उ ेख डॉ. राधाक णन ने अपने एक ंथ म िकया ह।
महाभारत काल म जैसे और िजतने कक य ए ह, उतने और वैसे दु क य शायद आज क युग म ढढ़ भी नह
िमलगे। इसक बावजूद आज का युग अिधक नकारा मक मू य से भरा लगता ह तो इसका एक ही कारण हो
सकता ह िक महाभारत क तमाम नकारा मक क य क बीच ीक ण या भी म जैसे उ ुंग िशखर भी थे। आज
हमार बीच ऐसा कोई य व नह , इसक कारण ही हमार जीवन म एक र ता का िनमाण हो गया ह।
एक तरह से देख तो महाभारत ऐसे नकारा मक मू य का ही योग ह। अहकार, ेष, ई या, वैर, ये सब
महाभारत क लगभग सभी पा म और उनक आचरण म इस सीमा तक ितिबंिबत होते ह िक कभी-कभी तो
हम लगता ह िक महामनीषी यास से या, इन सभी क आलेखन क िलए ही यह ंथ रचा ह। इस सतही न
क भीतर जाकर देख तो तुरत खयाल आता ह िक ऐसे नकारा मक त व क िवजय नह ब क दा ण पराजय ही
महाभारतकार को अिभ ेत ह। दुय धन आिद नकारा मक त व क िवजय तो ई और इस तरह ‘धम क जय’
यह सू थािपत तो िकया, परतु ये िवजेता त व भी नकारा मक मू य से मु नह थे और इसीिलए
महाभारतकार ने इन िवजेता से दन कराया ह तथा वगारोहण म आ म िवलोपन (आ मह या) कराया ह।
सामा य प से हम रामरा य को एक आदश थित कहते ह। रामरा य माने सुख, समृ और स ुण का
योगफल, ऐसा हम अिभ ेत होता ह। पर रामरा य म ही जीिवत रहने और तप जैसे अपराध क िलए िशरो छद
का दंड पानेवाले शंबूक को यह रामरा य कसे सकारा मक लगा होगा? इसी कार लंका िवजय क बाद सीता
क सती व क परी ा अ न वेश ारा नजरो-नजर देखने क बाद भी राम ने गभवती प नी को एकमा धोबी क
कवचन क आधार पर वन म असहाय अव था म याग िदया! इस प र य ा प नी क पेट से अवत रत ए दो

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पु लव और कश को िपता का यह रा य िकस तरह का आदश रा य लग सकता ह? इस कार कोई भी
कालखंड का पूणतः सकारा मक अथवा नकारा मक होना संभव ही नह ।
महाभारत म ऐसे नकारा मक मू य का योगदान बड़ा ह। लगभग सभी पा ऐसे त व से ही े रत ह, इसे
वीकार भी करना चािहए। महाभारत का आरभ ही वैर भावना से होता ह। उ ुंग नाम का एक ा ण अपना
िव ा ययन पूण करने क बाद गु से गु दि णा वीकार करने क िलए ाथना करता ह। गु को तो कोई
लालसा नह िकतु गु प नी उ ुंग से कहती ह िक चार िदन क बाद यहाँ आ म म एक उ सव ह और इस उ सव
म सभी अितिथय को भोजन परासेते समय म कान म सुवण कडल पहनना चाहती । राजा पौ य क रानी ने जो
कडल धारण िकए ह, वही कडल पाना चाहती । गु ने गु प नी क यह इ छा पूरी करने क िलए उ ुंग को
कहा। उ ुंग ने राजा पौ य क रानी से ये कडल याचना करक ा तो िकए, िकतु जब वह इन कडल को
लेकर आ म लौट रहा था तो माग म उसक पास से साधुवेशधारी त क नाग ने उ ह चुरा िलया। (साधु क िलए
यहाँ महाभारत म ‘ पणक’ श द यु आ ह और सं कत भाषा म ‘ पणक’ श द िदगंबर या बौ साधु क
िलए ही यु होता रहा ह। इसे यान म रखते ए त क को यहाँ ‘ पणक’ कहा गया ह। यह मु ा रस द
और िवचारणीय ह।)
उ ुंग ब त ही मपूवक यह कडल त क क पास से वापस ा करता ह और गु प नी को दि ण क प
म देकर ऋणमु होता ह। परतु त क ने उसक माग म अकारण ही जो िव न खड़ा िकया था, उससे वह रोष से
भरा था। इस रोष से े रत होकर वह त क से ितशोध लेना चाहता था। ितशोध क अ न म जलता आ वह
ह तनापुर म राजा जनमेजय क पास गया। जनमेजय अथा अिभम यु का पौ । जनमेजय क िपता परीि त क
मृ यु त क नामक नाग क डसने से ई थी।
त क नाग ने परीि त को डसा, वह भी परीि त क ित ऋिषकमार ंग क वैरभाव क कारण ही था।
परीि त ने ंग क िपता शिमक को मृत सप से अपमािनत िकया था और उससे ोध म भर शिमक क पु ंग
ने राजा को त क नाग डसे, ऐसा शाप िदया था। इस शाप क अनुसार त क नाग ारा मृ यु को ा ए
परीि त क पु जनमेजय ने यह बात भुला दी थी। उ ुंग जब त क नाग से ितशोध लेने क िलए जनमेजय क
पास आया, उस समय जनमेजय त िशला गए ए थे। उ ुंग ने जनमेजय क आने तक उसक ती ा क और
िफर अपने वैर क बात करने क बजाय त क ने जनमेजय क िपता को दंश िदया था और इसिलए िपतृभ पु
क प म जनमेजय को इस त क नाग से ितशोध लेना ही चािहए, इस तरह उसे उकसाया। उ ुंग क यह
यु सफल भी ई और राजा जनमेजय ने त क का संहार करने क िलए सपस य आरभ िकया। (यहाँ एक
अ य रस द िनरी ण भी यान करने लायक ह। रामायण का महािवनाश सीता ारा क गई कांचनमृग क माँग
क कारण संभव आ था। इसी कार महाभारत म राजा जनमेजय ारा जो महासंहार होता ह, उसे भी उ ुंग से
सुवणकडल क माँग करनेवाली गु प नी क घटना क साथ जोड़कर देखा जा सकता ह।)
छोट भाई िविच वीय क िलए यो य क या खोज लाने क िलए भी म ने राजा शा व क तीन पुि य का
अपहरण िकया। इन तीन म से बड़ी पु ी अंबा मन-ही-मन अ य वरी जा चुक थी, इसिलए भी म ने उसका
याग िकया। इसक बाद अंबा का कह वीकार नह आ, यह कथा सविविदत ह और अंत म अपनी इस दुदशा
क िलए भी म ही कारणभूत ह, यह मानकर अंबा ने भी म का नाश करने क यास िकए। उसम उसे सफलता

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नह िमली, इसिलए कठोर तप या करक भी म से बदला लेने क िलए उसने दूसरा ज म ा िकया। दूसर
ज म म वह राजा ुपद क पु ी िशखंडी बनी और इस िशखंडी क प म उसने भी म से ितशोध िलया। इसी
कार कण और अजुन क बीच क वैर क कथा िस ह। आचाय ोण ने क कमार क अ -श िव ा क
जब परी ा ली, उस समय कण ने अजुन को चुनौती दी थी, िकतु ‘तू सूतपु ह और अजुन राजकमार ह,’ यह
कहकर उसे भगा िदया गया था। इस अपमान से े रत कण ने आजीवन अजुन क ित मन म रोष रखा था।
इ थ म राजसूय य क समय मयदानव ारा िनिमत महल म जल को थल मानकर और थल को जल
मानकर िमत ए दुय धन को ल त िकया गया था। दुय धन ने ूतसभा म ौपदी को ल त करक इस
अपमान का बदला िलया, परतु ौपदी क इस ल त अव था क कारण ही भीम ने दुय धन क जाँघ तोड़ने
और दुःशासन का िधर पान करने क ित ा क और यह ित ा उसने पूरी भी क ।
इसी कार ोण और ुपद क बीच वैर क बात भी महाभारत क मह वपूण घटना म से एक ह। ुपद
ारा अपमािनत होकर ोण ने अपना ा णधम याग कर ह तनापुर का वैतिनक आचाय पद वीकार िकया
और इस आचाय पद क गु दाि णा क प म उ ह ने अजुन ारा ुपद को परािजत कराया। पराजय क इस
वैर को शांत करने क िलए ुपद ने य वेदी से ोण का वध कर सक, ऐसा पु धृ ु न ा िकया। इस
धृ ु न ने अंत म ोण का वध तो िकया, परतु िपता क वध से रोिषत ए ोण-पु अ थामा ने अठारहव
िदन क रात म सेनापित धृ ुमन क ह या क । उसक ह या क कारण ही अ थामा ने ाण बचाने क िलए
ा का योग िकया और इस ा ने एकमा बचे गभ थ क वंशज परीि त का संहार िकया। परीि त
ने क ण क कपा से पुनज वन तो ा िकया, पर ऊपर कही गई शिमक ऋिष और त क नाग क घटना क
साथ यह वैर-च सतत चलता ही रहा।
त कालीन समाज म या आिथक असमानता का एक उदाहरण भी देखने यो य ह। आचाय ोण ा ण गु
और िश क ह। िव ा भी ह, परतु अपने एकमा पु को दूध क एक बूँद भी िपला सक, ऐसी उनक थित
नह थी। जो समाज एक तरफ समृ म लोटता हो, उसी समाज म दूसर छोर पर िव ा ा ण और
अ यापक ऐसी दा ण िवप ता म जीवन यतीत करता हो, उस समाज म र रिजत सं ांित िन त प से
कट होती ही ह। इस आिथक असुर ा क कारण ही ोण ने अपने ा ण धम क िव जाकर राजा ुपद से
याचना क । ा ण और अ यापक को याचक ही होना चािहए। ोण याचक नह रह और अपने धम का याग
करक याचक बने! फल व प इसक बाद जो घटनाएँ घट , उनका अंत महाभारत क महासंहार क प म आ
ह, यह याद रखने लायक ह, ोण क इस अधम का यु र ुपद ने भी धमिव ‘पु ेि ’ य ारा ोण क
वध क िलए पु ा करक िदया ह। इस कार अधम क यह हारमाला लंबी होती गई ह।
वैरभावना क उपरांत दुय धन का अहकार, ई या, असूया, ेष, ये सभी त व भी महाभारत म भरपूर िदखाई
देते ह। िवशेष प से ई या, ेष और असूया इन तीन मानवसहज दुबलता ने महाभारत क कथानक म जो
भूिमका िनभाई ह, वह यान देने यो य ह। इसे यान म रखने क पहले इन तीन श द को उनक सही अथ म
समझ लेना चािहए। ऊपर से ये तीन श द एक ही अथ देते ह , इस तरह हम इनका उपयोग करते ह, पर
ता वक प से ये तीन श द िभ भाव अिभ य करते ह।

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जो व तु ा करने क मुझे आकां ा हो और उस व तु क िलए म अपने आपको सबसे अिधक यो य य
भी मानता होऊ; वही व तु मुझे ा होने क बदले अ य िकसी को ा हो जाए तो उस य क ित मेर मन
म जो भाव कट होगा, वह ई याभाव ह। इ थ म युिधि र को अपार समृ ा ई और आयाव क
तमाम राजा ने युिधि र क अप रमेय स ा का वीकार भी िकया। इससे दुय धन क मन म चंड ई या
उ प ई और इस ई या क कारण ही युिधि र क पास से सारा कछ छीन लेने क िलए उसने अपने मामा
शकिन क सलाह क अनुसार ूत का आयोजन िकया। इसम दुय धन का यह मानना वाभािवक सही ही था िक
जो ऐ य और स ा युिधि र को ा ई थी, वह सब उसक अपे ा मेर िलए अिधक उिचत कही जाएगी।
यह आ ई याभाव!
राजसूय य म िशशुपाल ने ीक ण क अ पूजा का िवरोध िकया। िशशुपाल का यह क य ई याभाव नह था।
अ पूजा क ण क बदले उसक वयं क होनी चािहए, ऐसा आ ह िशशुपाल का िब कल नह था। वह क ण
क समक नह और अ पूजा का अिधकारी नह , यह बात िशशुपाल मन-ही-मन अ छी तरह जानता ह, पर
मणी का िववाह वयं उसक साथ न होकर ीक ण क साथ आ, इसक कारण उसक मन म क ण क िलए
रोष धधकता था। ऐसी प र थित म आयावत क थम पु ष क प म क ण वीकार िकए जाएँ, यह िशशुपाल
को सहन हो, यह संभव नह था और इसीिलए क ण क बदले भी म, ोण या दूसर िकसी का भी पूजन हो, ऐसा
वह आ ह करता ह। इसम भी म या ोण क िलए िशशुपाल क मन म अहोभाव या आदरभाव नह ह, कवल
क ण को अ पूजा से वंिचत रखने का ेषभाव ही ह। इस कार ेष ई या से अिधक हीन कोिट क िवभावना
ह।
ई या और ेष जैसे ही और ब त कछ इन दोन श द क समान अथ म एक तीसर श द का हम योग
करते ह। यह श द ह : असूया। मूल सं कत भाषा म ‘सू’ धातु से यह श द बना ह। ‘सू’ का अथ ह ज म। इस
पर से ‘सूया’ अथा ‘ज म देना’ और सूयाणी यानी ज म देनेवाली ी, ‘दाई’ ये श द चिलत ए ह। असूया
श द भी इस ‘सू’ धातु पर से ही बना ह। सूया माने ज म देना और असूया माने जो िकसी को भी ज म नह दे
सक वह। ई या या ेष का मूल कारण असमथता ह। य अपनी असमथता इस भाव म कट करता ह।
ई या और ेष से कछ भी नह पाया जा सकता ह। इससे कछ भी नह जनमता ह, इसिलए िजसम से कछ भी
ा नह िकया जा सकता, उस भाव को असूया कहते ह।
दुय धन क ई या या िशशुपाल क ेष क बात हमने देख ली ह। ऐसा ई याभाव मा दुय धन ने ही पाल रखा
था, ऐसा हम कह तो दुय धन क ित अ याय होगा। अजुन जब सुभ ा को याहकर ह तनापुर ले आए तो
ौपदी ने भी अपनी इस सौतन क िव ऐसी ही ई या कट क ह। अर यवास काल म कती जब मं ारा
तीन पु ा करती ह, उस समय मा ी भी ऐसे ई याभाव से पीि़डत होती ह। मा ी क पास कोई मं िस नह
ह और पित पांड राजा संतान पैदा कर सकने म असमथ ह, इसिलए मा ी अपना यह ई याभाव पित क सम
य करक कती क दो मं वयं उसे िमले, ऐसा आ ह करती ह। माता गांधारी जब गभवती थ , उस समय
अर यवास म कती ने ये पांडपु युिधि र को ज म िदया ह, यह बात उ ह ने जानी तो उनक मन म ती
असूया पैदा ई थी। कती का पु पहले जनमा, इसका अथ यह आ िक इसक बाद युवराज भी वही बनेगा और

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गांधारी क पु का थान सामा य राजकमार से िवशेष कछ नह रहगा। इस असूयाभाव से े रत होकर हताश ई
गांधारी ने अपना संपूण रोष अपने गभ पर उतारा और बलपूवक गभ को याग िदया था।
अहकार का सव म उदाहरण दुय धन ह। दुय धन चंड वीर और समथ यो ा था। ह तनापुर म रा यशासन
उसने कशलता और कशा ता से िकया था। उसने कई यु जीते थे। अनेक य िकए थे और ब त अिधक दान
भी िदए थे। वह शा का ाता भी था। इतना ढर सारा ान होते ए भी वह पांडपु क ित अपनी ई या का
याग नह कर सका; इतना ही नह , यु म और अ य भीम या अजुन क हाथ सतत परािजत होते रहने क
बावजूद उसने िनरी वा तिवकता क साथ समझौता नह िकया। उसका अहकार उसे ऐसा करने नह देता और इस
अहकार क कारण ही यु क अठारहव िदन जब पूरी कौरव सेना का नाश हो गया, उस समय वह जल म छप
गया था, परतु क ण ने उसक अहकार को झकझोर कर जल क तल पर िछपा दुय धन सुन सक, इस तरह जोर-
जोर से कहा िक यह दुय धन भीम से डरकर छप गया ह, पर यिद एक बार वह भीम क नजर म पड़ जाए तो
भीम उसे अव य मार डालगे। जल म दुय धन का अहकार इससे आहत आ और वह खुद ही आगे बढ़कर
बाहर आया, फल व प भीम ने उसका वध िकया।
इस कार महाभारत क असं य कथानक ऐसे ना तवाचक (नकारा मक) भाव से े रत ह। यिद ऐसे
नकारा मक भाव का ही आलेखन और ाधा य रखना हो तो महिष यास जैसे ांित ा हम यह कथा य
सुनाएँ? इन तमाम भाव ारा कछ भी िस नह हो सकता; इतना ही नह , जो भी िस होती ई तीत होती
ह, वह ायः सपाटी क ऊपर क कामचलाऊ यव था होती ह। ूतसभा म दुय धन क िवजय या िफर
अर यवास क दौरान ौपदी क ई अवहलना, यह सब सहन करना ही पड़ता ह। एक तरह से देख तो ूत म
परािजत पांडव क िलए दुय धन से भी अिधक युिधि र इसक िलए उ रदायी थे। अर यवास म उ ह ने वयं ही
कहा ह िक मेर मन म ऐसा था िक म ूत क पासा िव ा म वीण , इसिलए दुय धन को हराकर ह तनापुर
का रा य म यु िकए िबना ही ा कर लूँगा। इस कार युिधि र वयं क पापभावना से े रत थे। ौपदी
क ल ा पद अव था क िलए युिधि र क खुद क जवाबदारी भी कम नह थी।
नकारा मक भाव िकसी भी उ म समझे जानेवाले य म भी रह ही ह। इसे अ वीकार करना वा तिवकता
से आँख मूँदने जैसा ही ह। इसे िनमूल नह िकया जा सकता ह। महाभारतकार इन भाव क कथानक से मानो
भावी पीि़ढय को यह बताना चाहते ह िक य को जो भी य न करने ह, उसे ऐसे भाव से यथासंभव कम-
से-कम े रत होकर अपने जीवन का िवकास िस करना चािहए। दुय धन और युिधि र दोन म ही ऐसे
नकारा मक भाव िन त प से रह ह, पर युिधि र ने उसे िनबलता समझकर अपना जीवन म िन त िकया
ह। जब कभी ऐसी िनबलता कट भी ई तो उसे सँभाल लेने क िलए उ ह ने जाग कता भी िदखाई ह, और यही
महाभारतकार को अिभ ेत भी रहा ह।
मनु य काश और अंधकार, इन दो त व का अजीब स म ण ह। कोई मनु य कभी भी पूण नह । पूणता क
ा क िलए या ा, यही मानव जीवन क पराका ा ह। इस या ा-पथ म अनेक िव न ह। मनु य क अपनी
अपार िनबलताएँ ह। येक मनु य अजुन जैसा भा यशाली भी नह होता िक िजसक रथ क लगाम िकसी अ
क ण क हाथ म रखी रहने वाली ह।

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एक अ य गिभत सूिचताथ भी महाभारत क घटनाच से िनकाला जा सकता ह। सकारा मक मू य का
ाधा य बनाए रखकर जो भी सहज वृि याँ यथाश , यथामित आच रत क ई ह , उनक फल व प जो भी
ा होता ह, वह भी कोई सुखद या शा त नह होता ह। सुख सतह पर क ामक क पना ह। यु को
टालने क िलए मनु य से हो सक, वे सभी यास करने क बावजूद क ण और उनका सम यादव प रवार माता
गांधारी ारा शािपत होकर न हो गया। क ण क यादवी सेना दुय धन क प म लड़ी थी और वयं क ण ने
िनःश रहकर पांडव क प म सारिथ का कत य िनभाया था। इसक बावजूद ये सभी यादव शािपत ए और
िवनाश को ा ए।
कोई युग वणयुग नह होता। कोई य पूण नह । कोई क य प रणाम-िवहीन नह । महाकाल येक क य
को तराजू म तौलकर िनणय नह करता। काल एक सतत बहती स रता नह ब क एक थर सरोवर ह और हम
सभी इस सरोवर क िकनार यथ गोल-गोल घूमते रहते ह और अपनी इस दि णा म जो कछ ा होता ह,
उसे अपने भोलेपन से िस मान लेते ह। िस अथ, काम या मो से ा नह होती। यिद धम का अनुसरण
न आ हो तो अथ, काम और मो िनरथक श द बन जाते ह। इन श द का यित म करक मनु य जब धम
का सेवन करता ह, तभी उसका जीवन साथक होता ह। अ यथा दुय धन हो या युिधि र, जीवन एक सम या बन
जाता ह। इस सम या क िनराकरण क िलए अिधकांशतः क ण से और कछ अंश म भी म से हम माग ा
होता ह।
जो समाज अ मेध य क िस को आँख फाड़कर आदश मानता ह, उस समाज को महाभारतकार ने
आधे सुवणदेहवाले नेवले क कथा तुत करक उिचत िदशा-िनदश िकया ह। युिधि र क समृ , िवजय
अथवा दान को नैिमषार य क ा ण प रवार क अ क मह ा क सम नग य माना ह। अिकचन ा ण क
याग से अपनी आधी देह सोने क कर सकनेवाला नेवला युिधि र क इस अ मेध य क ारा भी अपना
शेष आधा शरीर सोने का नह कर पाता ह। समाज म सव थान याग का ह। जीवन म उ तम िशखर तप
का ह। समृ , स ा, िवजय ये सब ज री ह , तो भी उसका म थम नह , तीय ही रहगा।
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महाभारत क पा अथा काम यव था का ऊ व करण


महाभारत क अिधकतर पा क ज म हमार नैितक और सामािजक वीकित क मापदंड क िवपरीत
ी-पु ष संबंध क कारण ही ए ह। िज ह धमा मा या महा मा कहा जा सक, ऐसे पा क ज म भी
सामािजक प से अ वीकत कह जाएँ, ऐसे संबंध से ए ह। इसक बावजूद ये पा आज हजार वष
क बाद भी अपने जीवन- यवहार क आदश पा बने ए ह। इस प िवसंवाद क िवषय म कछ
कहगे?

आदश मानवजीवन क जो पु षाथ हमारी सां कितक परपरा और धम-संिहता म दरशाए ह, उनम धम,
अथ, मो क उपरांत काम का भी समावेश होता ह। ीम गव ीता म वयं ीक ण ने अपना िवभूितयोग
दरशाते ए कहा ह िक ‘ जान म क दपः।’ अथा जा (संतान) को उ प करनेवाला काम म । तैि रीय
उपिनष म िश ाव ी क यारहव अनुवाक म िश ा पूरी करक गृह था म म वेश कर रह िश य को आचाय
जो उपदेश देते ह, उसम ब त प प से कहा गया ह, ‘ जात तु मा य छ सी’ यानी िक संतान उ प
करने का जो तंतु परपरागत प से सँभाला गया ह, उसका उ छद नह करना। इस कार संतान ा को मह व
िदया गया ह। इस संतान ा क िलए काम को एक धमानुचरण माना जाता ह।
जहाँ तक महाभारत का संबंध ह, वहाँ तक इन सभी े पा क ज म क कथा सचमुच जिटल ह। परतु इस
जिटलता क पीछ एक बात जो रह य ह, वह फट हो जाती ह तो उसका स दय और ऊपर िदखाई देता अधम
ह, उसक पीछ जो सू म धम और मानव कित क गहनता होती ह, वह देखी जा सकती ह। वयं महाभारतकार
महिष यास का ज म एक ऐसी घटना से आ ह, िजसका वीकार कोई भी सामािजक मापदंड या धमशा नह
कर सकता। गंगा नदी क एक तट से दूसर तट पर जाने क िलए नाव म वास कर रह महिष पराशर चंड
तप वी और ानी ह। सोलह-स ह वष क कवारी क या म यगंधा यह नाव चला रही ह। म यगंधा क शरीर से
मछली क दुगध आती ह और एक तट से दूसर तट पर जाने म मु कल से दस-पं ह िमनट का समय लगता ह।
दोन तट पर आ म ह और तट पर खड़ या ी इस नाव को देख सकते ह। ऐसी ही प र थित म पराशर ऋिष
कामवश ह , यह िविच घटना लगती ह, परतु काम को थल, समय या अ य मयादाएँ नह होती ह। काम
सवतोमुखी ह। महा बल ह, तप या ान से काम का नाश नह होता, वह तो देह म र क प र मण क तरह
बसा होता ह। इसी क मानो महाभारतकार हम चेतावनी देना चाह रह ह , इस कार ऋिष पराशर इस दुगधमयी
क या से कामतृ क याचना करते ह। काम कसा लंत ह, इसी को मानो ित विनत करती हो, इस तरह वह
अबोध क या भी इस िपतृतु य ऋिष से कहती ह िक इस समय तो काशमय िदन का समय ह और तट पर क
सभी लोग हम देख रह ह। महिष पराशर इस क या क इस तक का यु र दे रह ह , इस तरह सूय क आड़
काले बादल का िनमाण करक तुरत ही चार ओर अंधकार कर देते ह।

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इस कार काल को परािजत कर सकनेवाले महिष पराशर काम क सम अवश हो जाते ह। इन कछ ण
क बाद कौमाय खो चुक उस क या क सम ऋिष अपनी दुबलता और भूल वीकार करते ह और कहते ह िक
इसम जो कछ आ, उसम तुम िनद ष हो, दोष तो मेरा ही कहा जाएगा और इसिलए अपने इस संबंध से जनमे
पु का उ रदािय व तु हार िसर पर नह ब क म अपने िसर पर वीकार कर लेता । इतना ही नह , ब क
तु हारा जो कौमाय मने भंग िकया ह, वह कौमाय भी म तु हार शरीर म थािपत कर देता और इसक बाद से
अब तु हार से दुगध नह ब क सुगंध बहगी और यह सुगंध चार िदशा म एक-एक योजन तक फल जाएगी।
इस तरह महाभारतकार यास का ज म एक अनैितक िदखाई देते संबंध से आ ह। परतु यह संबंध बला कार
नह कहा जा सकता। ी और पु ष का दैिहक सायु य संतान का िनमाण करता ह, यह सही ह, परतु िनर
दैिहक सायु य से जो बालक ज म लेता ह, उसम और दैिहक सायु य क उपरांत मनो- यापार का ऐ य और
संबंध क दौरान एक-दूसर क ित समपण और िवलोपन का भाव यिद कट आ हो तो वह संतान अिधक
उ कोिट क पैदा होती ह। दैिहक संबंध एक थूल ि या ह। सामािजक ढाँचे को िटकाए रखने क िलए इस
थूल ि या को िववाह अथवा अ य यव था का नाम िदया जाता ह, परतु व थ और मेधावी समाजरचना क
िलए जो अिनवाय ह, उस संतानो पि क ण म ी-पु ष क बीच क मानिसक अनुभूित और समपण,
िवलोपन तथा मानिसक ऐ य अिधक मह वपूण ह। इस वा तिवकता को आधुिनक िव ान भी वीकार करता ह।
पराशर और म यगंधा क इस संबंध से जनमे यास क कल का सात य बनाए रखने का िनिम बनते ह, यह
भी महाभारत क एक िविच घटना ह। म यगंधा से स यवती बनकर राजा शांतनु क साथ उसने िववाह िकया
और इस वैवािहक जीवन म उसे दो पु भी ए। बड़ पु िच ांगद क अिववािहत अव था म ही मृ यु हो गई
और अब िवधवा राजमाता स यवती, पु िविच वीय का िववाह अंिबका और अंबािलका नामक दो राजकमा रय
क साथ कराती ह। महाभारतकार ने एक ब त ही सुंदर संदेश यहाँ िदया ह। िविच वीय जवान था और राज-
काज क िचंता बड़ भाई भी म सँभाल रह थे। साथ ही दो सुंदर व युवा प नयाँ थ । ऐसी थित म य यिद
समझकर िनयंि त यवहार न कर तो उसका प रणाम खराब ही आता ह। िविच वीय अमयािदत कामवासना
भोगता ह और उसक इस कामिल सा क कारण ही वह पु हीन रहकर यौवनकाल म ही मृ यु को ा हो जाता
ह। िविच वीय क िवधवा प नय ारा पु ा कर क कल को उबारने क िसवा अब दूसरा कोई िवक प
नह बचा था।
हमार मृितकार ने िजस कार जातंतु का िव छद न करने क िलए कहा ह, उसी तरह जातंतु माने या,
इसक समझ भी दी ह। िविच वीय क िक से म अपने आप ही इस जातंतु का िव छद हो गया ह। परतु ऐसे
असाधारण संयोग म भी मृितकार ने पु ा क अ य िवक प को धम का अनुमोदन िदया ह। ऐसे बारह
कार क पु क धमिविदत सूची दी गई ह। ये बारह कार क पु मानुसार इस कार ह : 1. प रणीता
(िववािहता) ी से पित ारा जनमा—औरस। 2. सुयो य पु ष ारा वप नी से पैदा िकया आ— णीत। 3.
खरीदे अथवा उधार िलये वीय ारा जनमा-प र त (इसे हम ट ट यूब बेबी या िफर कि म गभाधान कहगे)।
4. िवधवा क गभ म अ य पु ष ारा थािपत-यौनभव। 5. क याव था म जनमा—कानीन। 6. वै रणी ी
क गभ से जनमा—गूढ़ अथवा कड। 7. माता-िपता ने िजसका दान िकया हो—दंभ; 8. िजसक खरीदी ई हो,
मू य चुकाया गया हो— त। 9. जो मा कि म हो, वह—उप त; 10. म आपका पु , ऐसा कहकर जो

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वयं पु पद पर थािपत हो—उपागत। 11. भाई या अ य संबंधी क गभवती ी क साथ िववाह करने क बाद
जनमा—जात रता सदोढ़ (इस कार म भाई क सगभा ी क साथ भी िववाह क परो स मित प होती
ह।) 12. हीन जाित क ी ारा उ प िकया आ—हीनयोिनधृत।
िविच वीय क िवधवा प नय क साथ यास क संबंध से क वंश का सात य जारी रखा गया ह। मा
आप म क प म और पु ा क िलए ए इस संबंध क पूव शत यह ह िक इसम कामभावना का अभाव
होता ह; इतना ही नह पु ष को घी जैसा िचकना पदाथ शरीर पर पोतकर क प होकर ी क पास जाना
चािहए, ऐसा भी संकत ह। इसक बावजूद ी क ओर से संपूण समपण और कत यभावना तथा आनंद क
अिभ य ही अपेि त ह। रानी अंिबका तथा अंबािलका यास क सम समपण नह कर सक और शारी रक
संबंध म आनंद भी ा नह कर सक , प रणाम व प उनक संतान अंधे धृतरा और िन तेज पांड जनमे।
तीसरी बार यास क पास शयनक म गई दासी पूरी दैिहक और मानिसक तैया रय क साथ संबंध क इन ण
को आनंदपूवक वीकार करती ह अैर उसक पेट से िवदुर जैसे धमा मा का ज म होता ह; इतना ही नह , ब क
इस संबंध क अंत म यास भी माता स यवती से कहते ह िक आज म तृ आ ।
पांडव और धृतरा क पु क ज म क कथा भी ऐसे ही जाल म गुँथी ह। कौमाय अव था म ही िजस तरह
माता स यवती ने मातृ व ा िकया था, उसी तरह कती भी माता बनी थी। सूय क मं से कमारी अव था म
कती ने कण को ज म िदया था। मा मं ो ार से पु ा क यह बात अ य कार से भी जाँच क यो य ह।
सूय ने कती क साथ शारी रक संबंध थािपत िकया ह, ऐसा प उ ेख महाभारत म ह। भगवा सूय ने कती
क साथ समागम िकया और उससे पु जनमा, ऐसा असंिद ध प से िलखा ह। य िप पराशर ऋिष क तरह
यहाँ भी भगवा सूय ने समागम क बाद कती का कौमाय वापस लौटाया ह। राजा पांड क साथ क वैवािहक
जीवन म संतित संभव नह , यह कती क जान लेने क बाद वयं पांड ही कती को अ य माग से पु ा करने
का सुझाव देते ह। पांड संतानो पि क िलए असमथ ए, इसक पीछ भी एक काम भावना क कथा ह।
असमथ पित क इस सुझाव को वीकार कर कती ने मं ारा आमंि त िकए गए देव क सहायता से एक क
बाद एक, तीन पु क ा क बाद भी राजा पांड जब प नी को और अिधक पु क िलए िनदश देते ह तो
कती जो उ र देती ह, वह अ यंत यान देने क यो य ह। कती कहती ह, ‘‘तीन से अिधक संतान को ज म देना
शा क आ ा क िव ह। इस कार से चौथी संतान ा करनेवाली ी वे छाचा रणी कही जाती ह और
यिद वह पाँचव पु को ज म देती ह तो वह वे या ही कही जाएगी।’’ पित क िसवाय अ य पु ष ारा होने वाले
पु क िवषय म भी जो धमसंगत िनयम ह, ये यान म रखने लायक ह। कती क बाक क दो मं का उपयोग
करक मा ी ने मातृ व धारण िकया।
ह तनापुर म रानी गांधारी अपने पित धृतरा ारा ही गभवती तो ई, पर उसक यह गभाव था दो वष
िजतना समय तक लंबी हो गई थी। दो वष क बाद भी गांधारी ने संतान को ज म नह िदया ब क बलपूवक गभ
का याग िकया। मांस क लोथे जैसे इस गभ क महिष यास ने सौ टकड़ करक अलग-अलग घड़ म उसका
थापन िकया और िफर एक बार इन घड़ क गभाव था और दो वष लंबी चली। इस तरह गभ थापन क बाद
पूर चार वष म इन बालक का ज म आ। इस बीच गांधारी क गभाव था क दौरान महाराज धृतरा क सेवा

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क िलए रखी गई दासी ारा धृतरा एक और पु क िपता बने ह। इदस पु का नाम था युयु स। युयु स का
ज म गांधारी क गभाव था क दौरान ही हो गया था, इसिलए वह सभी कौरव म ये पु कहा जाएगा।
महाभारत म वीकत सामािजक मू य अथवा हमारी ढ़ हो चुक नैितक मा यता को आघात प चाए, इस
तरह जनमे इन सभी पा म ी और पु ष दोन क बीच का सामा य दैिहक यवहार तो अिभ ेत ह ही। िववाह
क बंधन भले ही िशिथल रह ह , परतु सृजन क िलए जो सहज ि या ह, उसका अनुसरण तो इन सब क ज म
म आ ही ह। महाभारत म ऐसे पा का दूसरा एक वग ऐसा भी ह िक िजनक ज म क िलए ऐसी ि या का
भी वीकार नह आ। ऐसे ज म को महाभारतकार ‘अयोिनज मा’ कहता ह। ोण ऐसे अयोिनज मा पा म
थम थान पर ह। ोण क िपता महिष भर ाज गंगातट पर ान करने गए तो वहाँ ान कर रही धृताची
नामक अ सरा को स ः ाता व प म व बदलते ए देखा और यह तप वी ऋिष उसक दशन मा से
िवचिलत हो गए। इसक फल व प उनका वीय खलन आ। खिलत ए इस वीय को उ ह ने अपने साथ ान
और पूजा क िलए लाए ोण यानी िक लोट म एक कर िलया। इस पा म पड़ ऋिष क वीय से कालांतर म
एक बालक का ज म आ। ोण म से जनमे होने क कारण उस बालक का नाम भी िपता भर ाज ने ‘ ोण’
रखा।
ोणाचाय का िववाह िजस क या क साथ आ, उसका नाम कपी था। कपी और उसका भाई कप दोन भी
महाभारत क अयोिनज मा पा ह। महिष शर ान भी महिष भर ाज क तरह उवशी नामक अ सरा को देखकर
खिलत ए और यह खिलत आ वीय घास पर पड़ा तथा इस घास म से दो बालक न ज म िलया िजनक
नाम कप और कपी रखे गए। िपता शरदन तो वीय खलन होने क बाद तुरत ही चल देते ह और उ ह इन संतान
क िवषय म कोई जानकारी नह थी। घास पर पड़ दोन बालक को ह तनापुर क सैिनक ने देखा और उनका
लालन-पालन िपतामह भी म ने राजकल म िकया। मातृ-िपतृ िवहीन परमा मा क कपा से जीिवत रह इन ब
का नामकरण भी म ने ब त ही सोच-समझकर मशः कप और कपी रखा था। आगे जाकर कप कपाचाय
होकर ह तनापुर क कल पुरोिहत क पद पर थािपत ए थे और क या कपी का िववाह ोणाचाय क साथ आ
था। इसक उपरांत महाभारत क दो मह वपूण पा ौपदी और धृ ु न का ज म तो माता या िपता दोन म से
िकसी क भी सहायता क िबना आ ह। पु ेि य हमार शा म इ छत पु क ा क िलए विणत ह।
रामायण म राजा दशरथ ने भी पु ा क िलए पु ेि य िकया था और इस य क फल व प य देवता से
ा ए साद को अपनी तीन प नय को िखलाया था। इस साद क प रणाम व प ये याँ गभवती ई
और कालांतर म उ ह ने पु को ज म िदया। इसम य देवता का साद भले कारणभूत रहा हो, परतु माता-िपता
का अ त व उनक ज म म अिनवाय माना गया ह। महाभारत म ौपदी और धृ ु न का ज म य देवता क
साद क प म आ ह, पर इसम राजा ुपद या उनक प नी का कोई योगदान नह । य वेदी म से ये दोन
भाई-बहन सीधे युवाव था म कट ए थे, ऐसी कथा दी गई ह। इस कार ये दोन पा , पहले िजनका उ ेख
िकया गया ह, उन अयोिनज मा पा से अलग पड़ जाते ह, य िक उनक ज म क िलए िकसी भी दैिहक ि या
का वीकार नह आ था।
यहाँ अब िजस मु े का सवाल पैदा होता ह, वह इतना ही ह िक इस तरह से जनमे पा इतनी सिदय क बाद
हमार धम, इितहास और सं कित क साथ िकस तरह एक व साध सक ह गे? इस कार ज म हो भी सकता ह

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या? यह न अलग ह। शरीरशा क िनयम क िवपरीत कार से ऐसा कसे संभव हो सकता ह, यह सवाल
भी िकया जा सकता ह। परतु िपछले दस-बीस वष म हमार आधुिनक िव ान ने जनन े म जो नए अनोखे
योग िकए ह और उसम जो उपल धयाँ ा क ह, उसे भी यान म रखना चािहए। माता क गभ क िबना
अब हम ट ट यूब बेबी कोई अजायबी नह लगती। इसी तरह वीय बक ारा कोई भी ी इ छानुसार इ छत
बालक ा कर सक, यह वा तिवकता भी आधुिनक िव ान ने अब दूर नह रहने दी ह। िजस तरह आज क
परमाणु श क सव यापी िवनाश क मूल ाचीन धनुिव ा ारा उ िखत ा या अ य श शाली
आयुध म िमलते ह, उसी तरह महाभारत क ये अयोिनज मा पा को समझने क हम कोिशश करनी चािहए।
ज म चाह िजस तरह से आ हो, परतु य का मू य उसक ज म से नह ब क उसक कम से आँकना
चािहए। महाभारतकार को शायद यही अिभ ेत ह। महिष भर ाज या महिष शर ान अपनी तप या क बाद भी
भले िवचिलत ए ह —यह चलायमान मन का ण उनक दुबलता का ण था अथवा वो तपःपूत होने क बाद
भी काम दुधष ह और यह अवांछनीय हो, तो भी ितर करणीय नह ह, ऐसे ही िकसी संकत का इसक पीछ
आयोजन हो, ऐसा माना जा सकता ह। वयं क ण ैपायन यास इस कार जनमे होने क बावजूद महाभारत म
वयं क ण क िलए वंदनीय और पूजनीय रह ह। मनु य हीन ज म से नह ब क हीन कम करक हीन बनता ह।
यह किव किथत स य मानो यहाँ च रताथ आ ह। अ थामा जैसा पा संपूण रीित सुयो य ज म ा करता
ह। िव ा ह, वीर ह और सुपा भी ह, िफर भी अपने जघ य कम क कारण वह ितर करणीय रहा ह।
महाभारतकाल म य िप पु ष धान सं कित का ही ाधा य रहा ह, िफर भी याँ भी जब ऐसे खलन म
सहभागी बनी ह तो उ ह िनं नह माना गया। माता स यवती सम क कल क सबसे अिधक वंदनीय पा ह
और स यवती भी कौमायाव था म माता बन चुक थ ; इतना ही नह , माता स यवती का ज म भी उप रचर
नामक एक वसु क खिलत ए वीय से जल म रही एक मछली क पेट से आ था। यहाँ एक अलग कार क
ज म क कथा ह। ऊपर क सभी पा म तो मानव नर-मादा का संयोग अथवा िवयोग ज म क िलए कारणभूत
रहा ह, परतु स यवती क ज म म तो मानव नर और जलचर ाणी क मादा, इन दोन क ाणी-सृि क िव
सहयोग क कथा ह।
महाभारतकार को जो कहना ह, उसे िपतामह भी म क मा यम से उ ह ने संभवतः सांकितक प से कह िदया
ह। जीवन क अंितम ास शरश या पर ले रह िपतामह से जीवन का ान ा करने क िलए पांडव सप रवार
एक होते ह। पौ युिधि र िपतामह से सभी ीगण, िजसम प नी, अनुज प नी और माताएँ शािमल ह, उनक
उप थित म ही पूछते ह, ‘‘ह िपतामह, काम का मह व या होता ह और काम भोग रह ी-पु ष दोन म कौन
अिधक आनंद ा करता ह?’’ इस न क उ र म, िज ह ने जीवन म कभी यह आनंद ा िकया ही नह ,
ऐसे िपतामह भी म जो कहते ह, वह आधुिनक कामशा क वै ािनक क भी समझने लायक ह।
एक राजा का उदाहरण देकर भी म कहते ह िक वह राजा सौ पु का िपता था। सौ पु क ा क बाद
एक बार मृगया खेलने क िलए वह जंगल म गया और वहाँ एक सरोवर म उसने ान िकया। सरोवर का यह
े िकसी शाप क कारण पु ष क िलए ितबंिधत था। यहाँ ान करने क कारण राजा का शरीर नारी देह म
प रवितत हो गया। ीदेहधारी यह राजा ऐसा ल त हो गया िक उसने पुनः रा य म जाने का िवचार ही छोड़
िदया, और जंगल म ही एकांतवास करने लगा। अर यवास क दौरान िकसी अ य राजा ने इस ीदेहधारी राजा

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को देखकर उस पर मोिहत होकर उसने उसक साथ िववाह िकया। इस नए वैवािहक जीवन से उसे दूसर सौ पु
ा ए। इसक बाद जब ीदेहधारी यह राजा अपना प रचय देता ह, तो िजसक कारण वह सरोवर शािपत
आ था, वह देव राजा को शाप से मु होने क िलए कहता ह। ीदेह म से मु होकर पुनः पु षदेह म वेश
करने से यह राजा अब अ वीकार करता ह और इसका कारण बताते ए कहता ह िक एक ी क प म
वैवािहक जीवन का आनंद अिधक उ कटता से वह उठा सकता ह, इसिलए वह नारीदेह पसंद करता ह।
आज भी इस िवषय म आधुिनक िव ान िव ासपूवक कछ कहने क थित म नह ह। इस िवषय म ढर सार
मतांतर रहनेवाले ही ह। काम ी और पु ष दोन क बीच योिजत एक सामा य त व ह, िफर भी हमने
सहजभाव से यह वीकार कर िलया ह िक पु ष भो ा ह और ी भो य ह। महाभारतकार इस काम यव था
का अ ुत ऊ व करण करक मानो भावी पीि़ढय को संकत देता ह िक यह एक पिव रचना ह। सहज कम ह।
इसम कोई भो ा नह और न ही कोई भो य ह। सृजन ि या कभी कलुिषत नह हो सकती ह। मह व उसक
प रणाम का ह, इसक पीछ क भावना का ह और सृजन क ण ी और पु ष दोन म िकन भाव का ाधा य
ह, यह अिधक मह वपूण ह। दोन क बीच एक-दूसर को आ मसा करने क मनोवृि , िफर रीले ही इन संबंध
को िववाह या ऐसे िकसी सामािजक वीकार का नाम न िमला हो, तो भी इसम िनिहत पिव ता दूिषत नह ।
इसका अथ यह नह िक अमयािदत िवलास या वे छाचारी भोग को वीकित ा होती ह। िविच वीय या पांड
इसक उदाहरण ह। तीन पु क ा क बाद मं होने क बावजूद पित क िसवाय अ य पु ष से पु ा को
िनं समझनेवाली कती इस बात का समथन करती ह।
महाभारत क या म स दय ढढ़ने क िलए पाठक को वयं यास करना पड़ता ह। उसम भी कामभावना तो
एक अ यंत जिटल भावना ह। महाभारत क घटाटोप म जब यह जिटलता िमलती ह तो उसम से सूिचताथ व
संकताथ ा करने क िलए य को सदेह नह , िवदेह बनना पड़गा। जो यह शत पूरी नह कर सकता ह,
उसक िलए ये अनथ ह अ यथा महाअथ ह।
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यापक धम का अनुसरण
सामा य यावहा रक जीवन म कई बार या करना और या नह करना चािहए, ऐसा सवाल पैदा
होता रहता ह। अलग-अलग यावहा रक भूिमका हम िनभाते ह और इसम दो भूिमका क बीच म
कई बार िवसंवाद या घषण (संघष) पैदा होता ह। यहाँ धम का सवाल खड़ा होता ह। धम क बीच
संघष क प र थित पैदा हो जाती ह। ऐसे समय य को अपने और अ य क िहत या अिहत को
समझकर िनणय करना चािहए। इस िवषय म महाभारत क िक ह िवशेष घटना से मागदशन िमल
सकता ह या?

जीवन कदम-कदम पर ं से भरा ह। राग- ेष, पसंद-नापसंद, ेय- ेय, वजन-परजन, इस कार
अनेक ं क बीच य को िकसी एक का चुनाव करना पड़ता ह। यावहा रक जीवन म एक ही य
घटना म क अनुसंधान म अलग-अलग भूिमकाएँ भी िनभाता ह। अनेक बार ये भूिमकाएँ पर पर िभ होती ह
और कह -कह तो िवरोधाभासी भी ह , ऐसी प र थित का िनमाण होता ह। ऐसे संग म िवक प का चुनाव
करने म धम का सवाल खड़ा होता ह। कभी-कभी ऐसा भी होता ह िक ा य िवक प म दोन ही धमसंगत लगते
ह अथवा अधमयु लगते ह। यहाँ चुनाव अिधक िवकट बन जाता ह।
ायः होता यह ह िक य वयं जो माग चुनता ह, उसे धमसंगत मानने और मनवाने क िलए वह तकसंगत
दलील ढढ़ िनकालता ह। धम ह, इसिलए इसका म अनुसरण करता , ऐसा होने क बजाय, म अनुसरण करता
इसिलए यह धम ह, ऐसा य ढढ़ िनकालता ह। इसम रोचक बात तो यह ह िक बड़-से-बड़ दु क य को
भी य धम का सहारा देने म िहचकता नह ह। धम क आड़ िलये िबना उसका िब कल काम नह चलता,
यह हक कत हमार जीवन पर धम ने कसा अनािद, शा त और सावि क भाव डाला ह, इसका ही ोतक ह।
इसक िवपरीत ब त से लोग सही अथ म धम या ह और अधम या ह, इसे शायद ही जानते ह। जीवन क
सबसे िवषम प र थित होती तो यह ह िक हम कभी-कभी धम या ह और अधम या ह, यह जान रह होते ह,
तो भी धम का पालन नह कर सकते ह और अधम का याग नह कर पाते ह। महाभारत म दुय धन ऐसा एक
पा ह। (दुय धन क यह बात महाभारत क अिधकत पाठ म नह ह। पर दाि णा य आवृि य म इसका उ ेख
िमलता ह।)
एक थान पर दुय धन कहता ह—
जानािमधम न च मे वृि ।
जाना यधम न च मे वृि ॥
अथा धम जानता , िकतु पालन नह कर सकता और अधम भी जानता , परतु उससे िनवृ नह हो
सकता। जीवन का यह सबसे क ण पल ह। पर इस क ण पल म ऐसा य अ य सभी से दो अंगुल ऊचा भी
हो जाता ह; य िक यह ान होना और उसका कट वीकार करना, यह भी कोई सामा य बात नह ह।

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महाभारत म अ य एक बार िवदुर क मुँह से और एक बार क ण क मुँह से ऐसे धमसंकट म कौन सा माग
वीकार कर, इस िवषय म एक मागदशक ोक बोलवाया गया ह—
यजदेक कल याथ ाम याथ कलं यजे ।
ामं जनपद याथ आ माथ पृ व यजेत॥
अथा दो धम अथवा कत य क बीच जब प िवरोधाभास खड़ा हो तो यापक धम का अनुसरण करना
चािहए और छोट धम का याग करना चािहए। इस ोक म यह िवभावना इस कार समझाई गई ह। कल क
िलए य का याग करना चािहए, ाम क िलए आव यक होने पर कल का याग करना चािहए, देश क िलए
ाम का याग करने म नह िहचकना चािहए और आ मा क िवशु क िलए तो सम पृ वी को भी तज देना
चािहए।
इस न को महाभारत क संदभ म हम दो भाग म बाँट सकते ह। महाभारत म कई संग वतं प से जाँचे
जा सकते ह। अ य कई संग महाभारत क मु य पा क ारा ली गई ित ा क संदभ क मू यांिकत िकए जा
सकते ह। महाभारत क घटनाच म इन ित ा का िवशेष थान ह। इस ित ापालन क बात हम बाद म
जाँचगे।
राजा धृतरा का थम कत य राजधम का पालन ह। इस राजधम को एक िविश ि अिभ ेत ह। धृतरा
ने इस राजधम का पालन सव िकया ह, परतु राजधम और पु - ेह पु मोह म बदल जाता ह। मोह ेम जैसे
उदा त व का अवमू यन ह। राजा धृतरा ने राजधम क पालन क िव जाकर पु मोह का अनुकरण िकया।
पांडव को वारणा त भेजने क पीछ दुय धन का जो कतक था, उसे अ वीकार करने क बदले पु मोह क कारण
धृतरा ने राजधम म िशिथलता िदखाई। इसी कार पांडव को ूत खेलने क िलए अपने नाम से िनमं ण भेजना
पु मोह था। राजधम का यहाँ भी भोग िलया गया। ह तनापुर क राजा क प म क ण ने जो संिध ताव तुत
िकया था, उसे वीकार करना जनपद क िहत म था, इसक बावजूद धृतरा ने इस यापक धम क र ा करने
क बदले पु मोह का ही संवधन िकया। इसक िवपरीत माता गांधारी ने यु क अठारह िदन क दौरान ितिदन
ातःकाल िवजय ी का आशीवाद लेने क िलए माता को णाम करते पु को एक ही वा य कहा ह—‘‘यतो
धम ततो जयः’’। इसका अथ यह आ िक राजरानी क प म गांधारी ने दो धम क बीच संघष क ण म जो
धम अिधक यापक ह, उसका अनुसरण िकया ह। यहाँ एक रस द िनरी ण भी िकया जा सकता ह। धृतरा -
ज मांघ ह, उसने कभी काश देखा ही नह । गांधारी का अंध व वै छक अंधापन ह। काश क िवषय म उसे
पया अनुभव ह। स य अंघ व क आर-पार भी काश फला सकता ह, परतु उसक पूव शत यह ह िक य
क जीवन म कभी कह काश का सा ा कार आ होना चािहए।
महायु को टालने क अंितम यास क प म क ण जब दूत बनकर ह तनापुर आए तो ौपदी को उ ह ने
आ त िकया था िक िजस तरह तुमने इतने वष दन िकए ह, उसी तरह अब तु हार श ु क याँ आ द
करगी। इसक बावजूद िवि (संिध ताव) म असफल हो जाने क बाद अंितम यास क प म क ण ने कण
को कौरवप से पांडवप म मोड़ने क यास िकए ह। इस यास म कण क सम ौपदी का लोभन देने म
भी क ण ने संकोच नह िकया। कण यिद पांडवप म आ जाए तो ये पांडव क प म रा य तो उसे िमलेगा

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ही, माता कती क अ ानुसार पाँच भाइय क संयु प नी ौपदी अब से छह भाइय क प नी हो जाएगी, यह
कहते ए भी क ण िहचिकचाए नह ।
िन संदेह च क उठ, ऐसी यह बात ह। पर यह क ण क क ण व का रह य िछपा ह। ऊपर उ ृत िकए ए
ोक का स े अथ म अनुसरण भी क ण ने यह िकया ह। यु का िनवारण करना महाधम था। यु म जो
संहार होता, वह सम समाज को और भावी पीि़ढय को भी भािवत करनेवाला था। छोट धम और बड़ धम क
बीच िकसी एक को यहाँ चुनना या। ौपदी का ितशोध शांत हो, यह ौपदी और क ण क िलए य गत
संतोष क बात ह। परतु इस वैर को भूलकर ौपदी अजुन क आजीवन श ु कण क प नी बन जाए, इस ताव
म य क ऊपर समि क धम का भाव रहा ह। भले ौपदी का बिलदान िलया जा रहा हो, भले क ण क
िवषय म आनेवाले कल का इितहास दूसरा कछ कहता हो, पर समि क यापक िहत क सव थम र ा होनी
चािहए, यह बात क ण क इस यवहार का संकत ह।
दो धम क बीच जब संघष पैदा हो, तब िकस धम को बड़ा मानना चािहए और िकस धम को छोटा, यह बात
भी यहाँ प कर देनी चािहए। िजसम य का वयं का िहत िब कल न हो अथवा उसका िनजी िहत कम-
से-कम हो, उस धम को यापक धम मानना चािहए। उदाहरण क प म महायु को रोकने क िलए क ण ने
जो उपयु यवहार िकया ह, उसम क ण क य गत ित ा धूिमल हो, ऐसा ह; इतना ही नह , ि य सखी
ौपदी क मन को असंतोष हो, ऐसी संभावना भी ह; इसक बावजूद क ण ने अपने और ौपदी क मू य पर यिद
सम आयावत का क याण होता हो तो यह माग अपनाने क त परता िदखाई ह।
यु क अंत म महाराज युिधि र अितशय उ न हो गए ह। ऐसा रा य-िसंहासन भोगने क बजाय मृ यु ही
अिधक ेय ह, ऐसा उ ह लगता ह। उस समय महिष यास आिद ऋिष उ ह धम क िवषय म सू म ान देते ह।
यहाँ युिधि र क मन म जो वैरा य या था, वह वैरा य उनक सम क त कालीन राजधम क िव था।
वैरा य ऊचा धम हो तो भी उस समय तो युिधि र क िलए आयावत म जो शू यावकाश िनिमत हो गया था, उसे
भर देना ही सावि क धम था। युिधि र को अपने इस वैरा यभाव का याग करक भी रा य, जा और सम
जनसमूह क िहत क िलए िसंहासना ढ़ होना चािहए। यहाँ न यापक धम क र ा का ह। युिधि र ने इस
यापक धम का अनुसरण िकया।
इसम सवािधक मह व क बात यह ह िक य को ईमानदारी से िन ापूवक अपने वाथ और समि क
िहत क िलए आव यक धमभावना, इन दोन क बीच क िवभाजक रखा समझ लेनी चािहए। ऐसा संभव ह िक
यह समझ लेने क बाद जो अनुसरण हो, उससे अपार य गत नुकसान हो और ता कािलक अपयश भी िमले,
पर धमपालन तो अिसधारा त ह।
महाभारत क घटना म म उसक मु य पा ारा समय-समय पर ली गई ित ा ने मह वपूण योगदान
िकया ह। आज क यावहा रक जग म हम ित ा श द का योग संक प अथवा िन य िवशेष क अथ म
करते ह। अिधक प प म कह तो अमुक काय करने या न करने क मानिसक ितब ता का इसम
समावेश होता ह। इस ितब ता क कारण जो प र थितयाँ जाने-अनजाने िनमाण ई, उनम करने यो य काय,
न करने यो य काय? यानी िक धम और अधम क बीच संघष पैदा होता ह। य गत ितब ता िव
यापक िहत जैसे न पर भी िवचार िकया जा सकता ह।

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भी म ने माता स यवती क िपता दा यराज क सम आजीवन चय क ित ा ली थी। उनक इस भीषण
क य क कारण ही कमार देव त ‘भी म’ कहलाए। घटना म ने ऐसा मोड़ िलया िक ह तनापुर का िसंहासन
उ रािधकारी-िवहीन हो गया। राजा िविच वीय अितशय भोग-िवलास क कारण अकाल और अपु मृ यु को
ा ए। अब ह तनापुर क िसंहासन पर आ ढ़ होने क िलए क वंश क एकमा वंशज भी म ही उपल ध थे।
माता स यवती ने भी म को उनक ित ा से मु करक िववाह कर लेने और िसंहासन सँभाल लेने का अनुरोध
भी िकया था। भी म क ित ा क हतु को यिद ल य म ल तो चय क ित ा माता स यवती क संतान क
राजिसंहासन पर अबािधत अिधकार क हमेशा क िलए र ा करने को थी। अब नई उप थत ई प र थित म
उनक यह ित ा िनरथक थी। िजनक िलए यह ित ा ली गई थी, वही माता स यवती अब वयं उससे मु दे
रही थ । एक ओर भी म का य गत धम था, दूसरी ओर राजधम था। भी म ने महाभारत क उदा भावना क
यहाँ अव ा क ह, ऐसा लगे िबना नह रहता। उ ह ने राजधम क यापक भावना क मू य पर य गत ित ा
क धम को श दाथ म अ ु ण रखा। माता क इ छा क अनुसार यिद उ ह ने ित ा मु को वीकार िकया
होता तो महाभारत का महासंहार आ ही न होता।
जीवन क आरभ म य गत धम को समि क ित अपने धम को अिधक मह व देने क भी म क यह
िवभावना वैसी क वैसी ही अंतकाल म भी देखी जा सकती ह। कौरव सेनापित क प म उनका धम दुय धन क
िलए िवजय ा करने का था। यहाँ भी पूव जीवन म क या रह चुक िशखंडी क सम वे श याग करते ह।
ी क िव श ाघात न हो, यह भी म का य गत धम था। राम ने ताड़का का और क ण ने पूतना का
वध आिखरकार िकया ही था। ये दोन भी तो ी ही थ । धम क सू म त व को पूरा-पूरा जानते ए भी भी म
िशखंडी क आड़ म लड़ रह अजुन क सम ा एक तरह से आ मसमपण ही कर देते ह और इस तरह य गत
धम क र ा करते ह; िकतु प -िवजय का यापक धम तो उपेि त ही रहा, ऐसा कहा जा सकता ह।
आचाय ोण भी म क पतन क बाद कौ सेनपित बने। कौरव सेनापित क प म उनका धम भी दुय धन क
िवजय हो, ऐसा ही करना था। यु क पं हव िदन पु अ थामा क मृ यु हो गई ह, ऐसा कण पकण वृ ांत
जानकर उ ह ने अपने यापक धम को ितलांजिल दी और पु मोह क वश हो गए। पु मोह य गत िवभावना
ह। प िवजय यापक धम ह। ोण ने भी यहाँ यापक धम क मू य पर य गत धम का अनुसरण िकया।
तीसर कौरव सेनापित क प म आ ढ़ आ कण वयं ज मद कवच और कडल से अव य और सुरि त
ह, यह जानते ए भी वह कवच-कडल ा ण वेशधारी इ को दान कर देता ह। कोई भी ा ण कोई भी
याचना कर तो उसक वह याचना वह अव य पूरी करगा, ऐसी य गत ित ा कण ने ली थी। ा ण
वेशधारी इ कण क इस ित ा क श दाथ का दु पयोग करक अनुिचत लाभ लेना चाहता था। कण यह बात
अ छी तरह जानता था। कवच-कडल का यह दान यानी य गत धम क र ा; पर इसका सहज अंत कण क
वध और अजुन क िवजय क प म ही आना था। इस कार यहाँ भी कण ने यापक धम क मू य पर
य गत धम क र ा क ह।
कण क कौरव सेनापित क प म दो िदन क दौरान एक दूसर संग का भी उ ेख िकया जा सकता ह,
िजसम कण ने य गत धम क र ा क ह और यापक धम क अवेहलना क ह। माता कती को उसने यु
क पूवसं या पर वचन िदया ह िक यु म वह अजुन क िसवा िकसी भी अ य पांडव का वध नह करगा। यु

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क स हव िदन युिधि र को गरदन पर श रखकर यह भी कहा िक तेरा घात करना अ यंत सरल ह। कण ने
यिद उसी समय युिधि र का वध कर िदया होता तो उसक य गत वचन का अव य भोग चढ़ गया होता और
कण क ित ा भी धूल धूस रत हो गई होती, परतु िजस प से वह लड़ रहा था, उस प को तो उसने अव य
ही िवजय िदला दी होती।
इसक िवपरीत प म क ण का उदाहरण देखना भारी रस द ह। क ण ने इस यु म िनःश रहने क
ित ा ली थी। क ण अपने इस य गत धम को दो बार छोड़ने क िलए तैयार ए ह। िपतामह भी म भीषण
यु कर रह थे और पांडव सै यदल सव परािजत हो रहा था। उस समय भी म को रोकना अिनवाय था। भी म
का ितकार करने का साम य एकमा अजुन म ही था, परतु िपतामह क ित पु धम से े रत अजुन अभी भी
पूरी तरह मोहमु नह हो सकता था, इसिलए अपने पूर साम य से वह िपतामह का ितकार नह कर रहा था।
क ण क िवल ण ि ने इसे भाँप िलया और यिद यह यु और थोड़ी देर तक चला और भी म इसी तरह
लड़ते रह तो पांडव क हार अंिकत हो जाए, यह असंिद ध था। पांडव क पराजय का अथ था—धम क
पराजय और अधम क िवजय। यहाँ क ण क सम दो िवक प थे। िनःश रहने क अपनी ित ा से श दाथ
और ल याथ दोन ि य से िचपक रहकर य गत धम क र ा कर अथवा ित ा भंग का अपयश अपने
म तक पर लेकर कौरव क , यानी यापक अधम क िवजय को रोक द। क ण ने दूसर िवक प को चुना।
य गत धम क मू य पर उ ह ने यापक धम क र ा क । भी म का ितकार करने क िलए उ ह ने वयं श
हण िकया और उनका वध करने क िलए वे तेजी से आगे बढ़। य क अपे ा समि अिधक महा ह,
इसका क ण ने यहाँ उ ल उदाहरण तुत िकया ह।
कई बार महाभारत यु क दोन प क बलाबल का परी ण करने पर यह न भी पैदा होता ह िक कौरव
प म भी म, ोण, कण, अ थामा, दुय धन जैसे महासमथ यो ा थे। िवप ी पांडव क पास इन सब का
ितकार कर सक, ऐसे मा दो यो ा थे। अजुन और भीम। कौरव क सै य का सं याबल यारह अ ौिहणी
था। िवरोध प म पांडव का सं याबल मा सात अ ौिहणी था। इस कार प प से कौरव प अिधक
बल था। इसक बावजूद िवजय ी ने पांडव का ही वरण िकया, इसका रह य या हो सकता ह? पांडव क
प म क ण थे और यह क ण व ही पांडव को िवजय माग पर ख च ले गया, ऐसा कहा जा सकता ह; पर एक
और वा तिवक तथा यावहा रक िनरी ण करने लायक ह। लगभग सभी कौरव सेनानी अपनी य गत
िवभावना क िलए यु कर रह थे; इतना ही नह , भी म और ोण जैसे सेनानी तो मन-ही-मन पांडव क
िवजय क इ छा भी कर रह थे। िवप म तमाम पांडव यो ा िकसी य गत भावना को अ थान देकर यु
नह कर रह थे। प क सावि क िवजय क एकमा भावना पांडव-प क तमाम सेनािनय म बलव र थी।
कवच-कडल का दान कण क पास से ा करनेवाले इ ने कण को एक अमोघ श का श िदया था।
इस श का उपयोग कण िजस पर भी कर, वह अचूक सफल होगा ही और श ु का वध िन त प से होगा,
ऐसी इस श क श थी, क ण यह जानते थे। वा तव म इस श का योग कण अजुन पर ही करना
चाहता था। परतु कण और अजुन क बीच ं यु हो, उसक पहले ही क ण ने भीम-पु घटो कच का भोग
िदया। घटो कच अ यंत समथ और वीर यो ा था। उसे जुनून क साथ कौरव पर आ मण करने का िनदश
देकर क ण ने एक तरह से कण क उस अमोघ श ही यथ कर डाली ह। यहाँ घटो कच का भोग अजुन क

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िलए िलया ह। अजुन का जीवन पांडव प क िलए घटो कच क अपे ा अिधक उपयोगी था। चुनाव यिद
घटो कच और अजुन, इन दो िवक प क बीच करना हो तो यापक िहत क ि से अजुन का जीवन अिधक
मू यवान था। यह बात क ण िजस कार समझे और उस पर अमल िकया, उसक िवपरीत उसका दशन
कौरवप म आ ह। घटो कच क दुःस आ मण क सामने दुय धन ने थोड़ समय क ता कािलक लाभ का
आकलन करक कण से उसक उस अमोघ श का योग करवाया। कवच-कडल से िवहीन आ कण भी
इस श का मू य समझता था, इसक बावजूद उसने कौरवप क यापक िवजय क आकलन को ल य म
लेने क बावजूद इस श का योग घटो कच क िव िकया। घटो कच मारा गया और अजुन अब अजेय
बन गया। घटो कच क मृ यु वा तव म तो कण क ही मृ यु थी और कण क मृ यु का अथ था—कौरवप क
पराजय। यहाँ भी लंबी अविध क लाभ क मू य पर कम अविध का िहत िस िकया गया था।
जीवन म संघष पैदा ही न ह , ऐसी क पना जीवन को न समझने जैसा भोलापन ह। ऐसे संघष का सहज
वीकार करक, उसम से हल ढढ़ना िस ह, और इस िस को ा करने क िलए महाभारत मागदशक
रखाएँ हमार सम तुत करता ह।
o

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याग का थान सव प र
भी म का याग, क ण क अनास , कण का औदाय, युिधि र ारा अपने शासनकाल म िकए
गए राजसूय और अ मेघ य तथा वयं अनेक य और भूत दान िकए जाने पर दुय धन ारा
मृ यु क समय य िकया गया संतोष, यह सब या ऐसा संकत नह देते ह िक याग, अनास या
दान अपनी सव भूिमका पर िजनक पास कछ ह, उनका ही भूषण ह? िजनक पास कछ नह , ऐसे
िन न तर क लोग या उनक बराबरी कर ही नह सकते? इसका अथ या यह ह िक महाभारत जो
%॥ 1 % ह, उ ह ही गौरव देता ह और जो ॥ 1 - श ह, उनक िवषय म मौन
ह? िजनक पास स ा, संपि या ान जैसा कछ नह अथवा न क बराबर ह, वे इसका अनुसरण कसे
कर सकते ह?

महाभारत क क म मनु य ह और महाभारतकार ने गा-बजाकर कहा ह िक—


मु ं ा तिददं वो वीिम।
न मानुषा छ तर िह िक ॥
अथा , एक अित गु त व कहता िक मनु य से े दूसरा कछ नह । भी म से लेकर अिभम यु तक क
तमाम पा क आलेखन और घटनाच ारा क म थत मनु य को अिधक-से-अिधक यापक व प म
समझने क यह सम रचना ह। मनु य को उसक तमाम सकारा मक और नकारा मक पहलु क साथ परखने
का काय अ यंत दु कर ह। मनु य एक अितशय संकल रचना ह। इसक िवषय म िजतना जाना जा सका ह,
उससे अनेक गुना अिधक अ ात रहता ह। अ ात क इस देश को पहचानने क िलए महाभारतकार ने मु य
कथानक क साथ उपा यान या उपकथानक को भी जोड़ा ह। सही कह तो एक लाख ोक क महा ंथ
महाभारत म बमु कल एक-ितहाई भाग क ोक का ही संबंध मूल कथानक से ह। शेष दो-ितहाई भाग क
ोक ऐसे उपा यान क िलए ही रचे गए ह। परतु अिधकांश भाग क ये उपा यान महाभारत क मूल हाद को
अिधक फट कर, इस कार आलेिखत िकए गए ह।
राग और याग क वैक पक ं म याग को ऊचा थान ा आ ह। राग क अनुभूित का सा ा कार
िकए िबना यिद कोई याग क श त करता ह तो वह झूठ ह। परशुराम ने सम पृ वी को ि य-िवहीन करने
क बाद जीती ई इस तमाम भूिम का दान कर िदया था और वयं अिकचन बनकर िफर एक बार अपने
आ मधम को वीकार कर िलया था। परशुराम क पास भूिम या धन ा करने क लोभ म ोणाचाय अपने पूव
जीवन म गए थे। ोण को जो अभी सत था, ऐसा कोई धन परशुराम क पास बचा नह था। परतु ार पर आया
याचक ा ण खाली हाथ वापस न जाए, इसक िलए परशुराम ने उ ह अपने पास जो श िव ा थी उसका
दान िकया था। इस कार दान क अपार मिहमा का वणन महाभारतकार ने िकया॒ह।

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युिधि र ने अपने शासनकाल क दो चरण म अलग-अलग य िकए थे। इ थ म पहले शासनकाल क
दौरान उ ह ने राजसूय य िकया था और इस य क जो यव था बैठाई गई थी, उसम अपनी ओर से दान करने
का अिधकार उ ह ने लघु ाता दुय धन को िदया था। राजकोष म जो भी धनरािश थी, उस सबको याचक ,
िभ ुक , ा ण को यथे दान देने का अिधकार उ ह ने युिधि र को स पा था और दुय धन को इस तरह
आयोजन म शािमल करने का सुझाव क ण ने ही िदया था। इस यव था क पीछ दो ि िबंदु थे—एक तो
ह तनापुर से िवदा लेने क बावजूद पांडव ने जो अपार धनरािश ा क थी, उसका य माण दुय धन
ा कर सक, उससे उसे अपनी अ प अंतर क ि का अहसास हो। दूसरी ि से देख तो पांडव क यह
अपार संपि पांडव क ित अपने ेष क कारण दुय धन खुले हाथ बाँट देगा तो पांडव को अिधक धमलाभ
होगा। दुय धन क बदले कोई पांडव इस राजकोष का दान करने म िविनयोग कर रहा होता तो उसम लोभ या
मम व पैदा होने क संभावना थी और ऐसा कछ हो तो य क अंत म सव व दान करने क जो भावना होती ह,
वह खंिडत होती। इस कार यहाँ भी दान क उ णािलका का गौरव आ ह।
महायु क अंत म ह तनापुर क िसंहासन पर आ ढ़ ए युिधि र ने अ मेध य िकया ह। इस य क
अंत म उ ह ने अपना संपूण राजकोष ा ण , ऋिषय और तापस को दान कर िदया था; इतना ही नह , ब क
सम रा य क भूिम उ ह ने महिष यास को दान म दे दी थी। महिष यास ने दान म िमली अपनी यह भूिम
शासन करने क िलए युिधि र को वापस स प दी थी। युिधि र ारा यास को दी ई वणमु ाएँ यास ने
अपनी पु वधू कती को भट दी थ । इस कार दान का यह सम च घूमता रहा ह।
युिधि र क य म जो अपार दान आ, उससे स होकर सम त ऋिषय ने और अितिथ राजिवय ने
पांडव क भू र-भू र शंसा क और कहा िक ऐसा य या ऐसा अपूव दान पहले कभी िकसी ने नह िकया।
ठीक इसी समय य भूिम क पास से एक नेवला गुजरा और इस नेवले ने अपना शरीर य भूिम म इधर-ऊधर
रगड़कर अंत म हताश होकर वहाँ से चल िदया। सभी ने आ यचिकत होकर गौर िकया िक उस नेवले का
आधा शरीर वणमंिडत था। इस अध वणमंिडत देह का रह य ऋिषय ने जब पूछा तो इस ाणी ने अपनी जो
कथा कही ह, वह कथा मा सामा यजन क ही नह , वर िनतांत अिकचन य क दान और याग क अपार
मिहमा िस करती ह। कथा कछ इस कार ह—
एक अिकचन ा ण प रवार पहले क े म िनवास करता था। प रवार म ा ण क प नी, उसका पु
और पु वधू, इस कार चार सद य थे। प रवार घोर द र ता म जी रहा था और यथाश तप या म आयु
िनगमन कर रहा था। जीिवका का कोई साधन उपल ध नह था, इसिलए यह ा ण रोज सुबह तड़क उठकर
गाँव क बाहर माग से होकर जानेवाले अ से भर गाड़ म से जो अ िबखर गए ह , उ ह एक कर लेता था।
इस तरह से िमले अ पर प रवार क चार जन दोपहर म एक जून का भोजन ा करते थे। एक बार इस
कार म या भोजन लेने क िलए तैयार ए प रवार को आँगन म एक अितिथ साधु ने दशन िदए। ार पर
आए अितिथ ने भूखे होने क कारण भोजन क माँग क । प रवार क मु य य क प म उस ा ण ने
अितिथ का स कार िकया और अपने भाग का भोजन उनक सामने रख िदया। इतने भोजन से उस अितिथ क
ुधा तृ नह ई और उसने और अिधक भोजन क माँग क ।

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उसक ुधा तृ करने क िलए एक-एक करक ा ण क प नी, पु और पु वधू ने अपने-अपने बरतन म
परोसे भोजन को अितिथ क सामने रख िदया और पूरा प रवार भूखा रहा। दूसर, तीसर और सातव िदन भी ऐसा
ही आ और सात िदन पूरा प रवार भूखा रहा; इतना ही नह , तिनक भी असंतोष का भाव लाए िबना वह प रवार
अितिथ को भोजन कराता रहा। सात िदन क सतत िनराहार अव था क अंत म पूरी तरह ीण हो गए इस प रवार
क सम अब उस अितिथ ने अपना असली प कट िकया। यह अितिथ वयं धमराज थे और उस ा ण
प रवार ने जो िवरा य िकया था, उससे स होकर उ ह सशरीर धमलोक क ा हो, ऐसा आशीवाद
िदया।
इतनी बात कहने क बाद नेवले ने कहा िक वह ठीक उसी समय ा ण क घर क पास से गुजर रहा था।
सात-सात िदन क भूखे प रवारजन ने स िच से अपनी थाली का भोजन जहाँ अितिथ को परोसा था, उस
थान से गुजरने क दौरान उसक धूल क पश से उसक आधी देह सुवणमंिडत हो गई। ा ण प रवार क एक
अितिथ को भोजन-कराने क एक धमकाय से यिद य भूिम इतनी पिव और चाम का रक हो जाती हो तो पृ वी
क अ य राजा और धनवान ारा िकए गए य और दान से उनक य भूिमयाँ िन त ही अिधक
चाम का रक ह गी, यह मानकर वह अनेक वष से पृ वी पर जहाँ-जहाँ ऐसे दानकम या य आयोिजत होते ह,
वहाँ-वहाँ घूम रहा ह। परतु अभी तक कह भी उसका शेष आधा शरीर सुवणमंिडत नह आ। आज युिधि र
का यह अ मेध य पृ वी पर सबसे अलौिकक और सव े ह, यह सुनकर वह वहाँ आया था, परतु इस
य भूिम क धूल म लोटने क बाद भी शेष आधा शरीर वणमंिडत नह आ, इसका अथ ही यह आ िक यह
े कहा जानेवाला य भी उस अिकचन ा ण प रवार क दान क तुलना म िन न कोिट का ही ह।
इतना कहने क बाद महिष यास ने ऋिष वैशंपायन क मुख से इस घटना का सारांश एक ोक म कट
करवाया ह—
अ ोहः सवभूतेषु स तोषः शीलमाजव ।
तपो दम स यं च दानं चेित स मत ॥
अथा ािणमा क ित अ ोह, शील और सदाचार का अनुसरण, सरल यवहार, तप या, मन और इि य
पर संयम, स यवादन और यायपूवक वयं ारा ा क ई व तु का ापूवक दान, ये सार ल ण महा
य क समक ह।
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पूण व क अनुभूित
सम सृि म ी और पु ष, इन दो अ ुत त व का िनमाण आ ह। ये दो घटक त व सहज और
पर पर पूण व क िलए अिनवाय त व होने क बावजूद आज इ सव शता दी क आरभकाल म भी
इन दोन क बीच का संबंध समाज म जो सवसामा य वीकित पानी चािहए, वह नह पाया ह। ल क
संबंध से ऊपर उठकर ी और पु ष क बीच िकसी भी कार क स य को समाज ने नीितम ा या
धम पदेश क मं क दायर म समेट िलया ह। प रणाम व प आज भी ऐसे सहज स य को दूिषत और
अनैितक माना जाता ह। महाभारतकार ने तमाम मानवीय संबंध का आलेखन िकया ह। ल क संबंध
से ऊपर उठकर भी थािपत होनेवाले ऐसे स य को महाभारतकार िकस ि से देखता ह, इस िवषय
म कछ कहा जा सकता ह?

सही कह तो ी और पु ष दोन सृि क कोई दो अलग-अलग घटक नह ब क एक ही घटक क दो अपूण


त व ह। इन दोन अपूण त व क सायु य से ही एक पूण घटक क सं ा होती ह। ी और पु ष इन दोन
श द से कोई िनरी दैिहक िविभ ता ही नह कट होती। दैिहक िविभ ता तो एक थूल प ह और थूलता
क ि से पूण व क ा हो ही नह सकती। मनोजग का संबंध ह, वहाँ तक येक पु ष क शरीर म
ी व का अंश हमेशा खाली होता ह। इसी कार ी क िच तं क अंदर पु ष व का भी एक अंश सदैव
खाली रहता ह। इस खालीपन को भरने क िलए इन दोन त व को पर परावलंबी होना ही पड़ता ह। दैिहक
सायु य थूल भूिमका ह। चैतिसक भूिमका क ऊपर जो पूण व ा होता ह, उस पूण व म देह का पूरा-पूरा
िवगलन न भी हो जाता हो, तो भी उसका अ त व एक साधन िजतना ही रहता ह। इस भूिमका पर प चने क
िलए िकसी भी संबंध को कोई भी नामािमधान करना अिनवाय नह । संबंध को िश ता क इस मागरखा ने कोई-
न-कोई नाम िदया ह। िजन संबंध को िन त नामोिनशान ा नह होता ह, उसे ‘मै ी’ जैसे यापक श द
ारा हम समािहत (आवृ ) कर लेते ह।
यहाँ न का हाद इस मै ी श द क साथ संल न ह। सजातीय ( ी क साथ ी क और पु ष क साथ पु ष
क ) मै ी क अनिगनत उदाहरण महाभारत सिहत िव सािह य क अनेक ंथ म ा होते ह। क ण और ौपदी
क बीच क िवजातीय (पु ष और ी क बीच क ) मै ी जैसा एक भी उदाहरण महाभारत सिहत िव सािह य
म कह भी उपल ध नह ।
संबंध क ि से देख तो ौपदी क ण क बुआ कती क पु क संयु प नी ह। उसे यिद बड़ भाई
युिधि र क ही प नी मान तो वह क ण क भाभी यानी िक माता समान पूजनीय मानी जाएगी और यिद छोट भाई
नकल या सहदेव क प नी मान तो वह पु वधू समान कही जाएगी। क ण क ौपदी क साथ क संबंध म यह
मातृतु य भाभी या पु वधू जैसे िकसी संबंध का कोई अंश दूर-दूर तक कह िदखाई नह देता ह, िफर भी क ण
और ौपदी क बीच का जो संबंध आलेिखत आ ह, उसे ी-पु ष क बीच स य क िसवा दूसरा कोई नाम
नह िदया जा सकता ह। गांधीवादी िवचारक दादा धमािधकारी ने इस स य को अं ेजी भाषा म Brosterhood

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जैसे नाम से नवाजा ह। Brosterhood श द Brother और Sister ये दोन संबंध भी िन त अपे ा क साथ
थािपत ए रहते ह, इसिलए Brosterhood श द म भी वे अ य अपे ाएँ झाँकती ई लगती ह। क ण और
ौपदी क बीच क संबंध ऐसी िकसी भी िन त अपे ा से ऊपर उठ ए ह, इसिलए संभवतः वे Brotherhood
से भी आगे स य क ही अनु प ह।
रस द बात यह ह िक क ण और ौपदी क बीच का थम िमलन ौपदी वयंवर क अंत म आ ह। इस
संग क समय ौपदी ल नो ता कमा रका ह, जबिक क ण, पु , पौ सिहत इस अवसर पर आए ह। म यवेध
क बाद तापस वेशधारी पांडव ौपदी को लेकर पांचाल नगरी क बाहर अपने िठकाने पर जाते ह, उस समय
क ण उनसे पहली बार वहाँ आकर िमलते ह। यहाँ क ण ने बुआ कती तथा युिधि र आिद पांडव क साथ
संवाद िकया ह। उस समय क ण ने ौपदी क साथ कोई संवाद नह िकया। क ण और ौपदी ने एक-दूसर को
इस अवसर पर पहली बार देखा ह, वे िमले नह ।
ह तनापुर क ूतसभा म जब ौपदी का चीरहरण आ तो क ण ने उसक लाज बचाई थी, यह बात
कथाकार ने चिलत क ह। वा तव म व हरण क यह घटना महाभारत म एक ही ोक म पूरी हो जाती ह।
(सभापव, अ याय 61, ोक 41)। इसम मा इतना ही इिगत ह िक ौपदी क व जब ख चे जा रह थे, उस
समय अंदर से अनेक कार क व िनकलने लगे। यहाँ ौपदी ने व पूरा करने क िवनती क थी और क ण
ने उसे पूरा िकया था, ऐसी कोई बात महाभारत म नह ह। क ण और ौपदी क बीच खुले मन से संवाद आ
हो, ऐसी घटना राजसूय य क अंत म खांडव-वन िवहार क अवसर पर िदखाई देती ह। यहाँ भी क ण,
स यभामा, अजुन, ौपदी आिद ण-दो ण इस मु िवहार का आनंद ल, न ल िक उसी समय खांडववन
दहन का करण खड़ा हो गया ह और िफर भी इतना अ प सामी य होने क बावजूद उन दोन क बीच कसी
मानिसक भूिमका पैदा ई थी, इसका माण ूतसभा क अंत म पांडव ने जब अर यवास वीकार िकया ह,
उस समय िमलता ह। अर य (वन) म क ण जब पांडव से िमलने क िलए आते ह तो ौपदी व हरण क
अपनी यथा य करते ए कहती ह—‘‘पाथ क प नी, आपक सखी और धृ ु न क बहन होने क
बावजूद मुझे भरी सभा म ख चकर लाया गया।’’ (यहाँ यान देने यो य बात यह ह िक ौपदी ने वयं को मा
पाथ यानी िक अजुन क प नी बताया ह। क ण और ौपदी क बीच कसा परम स य थािपत आ था, उसका
यह संकत ह।)
उन दोन क संबंध म कह भी संकोच अथवा गोपनीयता नह ह। ौपदी सरआम क ण से कहती ह—‘‘ह
मधुसूदन, पित मेरा नह , पु , िपता या भाई-भतीजे मेर नह और ह क ण! आप भी मेर नह ।’’ इन ‘‘आप भी मेर
नह ’’ श द म जो यथा ह, उसम क ण क ित स य और ा पूण प से कट ई ह। इतना ही नह ,
‘‘क ण, म आपक ि य सखी’’ यह कहने म भी उसे कोई संकोच नह आ। आज हजार वष बाद भी इस मै ी
या स य का शतांश भी समझा जा सक या उसका आ वाद िलया जा सक, ऐसी प र थित का िवचार भी ब त
दूर ह।
क ण- ौपदी क स य क िवषय म कछ बौ क ने ांित भी फलाई ह। यु क पूव सं या पर उपाल य से
ह तनापुर वापस लौट संजय ने ‘उ ोगपव’ म ऐसा कहा ह िक वह जब क ण और अजुन से िमला, उस समय
क ण का म तक स यभामा क गोद म और उनक चरण ौपदी क गोद म थे। वा तव म संजय जब िशिवर म
दािखल आ तो उसने जो देखा, उसक बात इस तरह िलखी गई ह। (उ ोग पव अ याय 58, ोक-6)
—‘‘श ुदमन ये दोन वीर िजन िवशाल आसन पर बैठ थे, वे सुवणमंिडत थे। दोन र नजि़डत और शोभायमान
थे।’’ अब िजस िशिवर म अजुन और क ण िसंहासन पर बैठ ह , वहाँ स यभामा क गोद म िसर और ौपदी

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क गोद म चरण रखने क बात कसे संभव ह? वा तव म ‘उ ोगपव’ म ही एक ऐसा ोक अव य ह िक
िजसम ऐसा िलखा ह िक ीक ण क दोन चरण अजुन क गोद म थे और अजुन का एक पग ौपदी क गोद म
और दूसरा पग स यभामा क गोद म था। यह य नजर क सामने ता य करना मु कल ह। िफर भी अजुन का
एक पग ौपदी क गोद म हो, तो भी इससे कोई अनथ पैदा नह होता ह, य िक क ण अजुन क मन से पूजनीय
थे और इस कार स यभामा भी अजुन क िलए पूजनीय ही ह , इसम घिन ता का दशन होता ह, अपिव ता का
नह । इसम कह भी क ण का म तक स यभामा क गोद म तथा चरण ौपदी क गोद म थे, ऐसा उ ेख नह
ह।
महायु क अंत म अ मेध य क संग म अुजन जब िवजय या ा करता ह तो युिधि र क ण से पूछते ह
—‘‘ह क ण! अजुन म कौन सा ऐसा िविश ल ण ह िक उसे बार-बार या ाएँ ही करनी पड़ती ह? इसक
उ र म क ण ने कहा ह—‘‘ह राजा! अजुन क िपंडिलयाँ अिधक बड़ी ह, इसिलए ऐसा होता ह।’’ वहाँ क ण
क बात सुनकर क णा यानी िक ौपदी ने क ण क ओर ितरछी नजर से देखा, ऐसा ोक ह। (आ मेिधक
पव, अ याय 33, ोक 20)। इसक बाद ौपदी ने ई यालु तथा ितरछी नजर से क ण क ओर देखा। क ण ने
भी ौपदी क इस ि को वीकार िकया, य िक ौपदी क नजर म कशव वयं अजुन का ही प थे। इस
ोक ने कई ांितय को अवकाश िदया ह। परतु इसका समथन हो सक, ऐसा एक भी चरण पूर महाभारत म
अ य कह भी नह िमलता ह। ौपदी क नजर म यिद क ण और अजुन एक प ह , तो इसम कोई आ य
नह ; य िक वयं क ण ने ही आर यक पव म अजुन क साथ क अपनी एकता क बात क ह।
परतु यही तो क ण और ौपदी का अंितम िमलन ह। ौपदी ने उपालंभ से क ण क ओर देखा और क ण-
अजुन उसे एक प से, िकसी भी आयास क िबना एक ण म यह घटना घट गई और इसक साथ क ण ौपदी
का स य भी जैसे समा हो गया। इसक बाद पूर साढ़ तीन दशक तक महाभारत क कथा चली ह, पर उसम
कह भी क ण- ौपदी िमले नह ।
पूण पु ष या पूण ी क संभावना ऐसे िकसी परम स य क िबना कोरी क पना ही बनी रहती ह! यह पूण व
सपाटी पर हमेशा कट ही हो, यह ज री नह । पूणता क अनुभूित आंत रक संवेदना ह। इस संवेदना क
सा ा कार क िबना जीवन सहजभाव से यतीत तो हो जाता ह और अिधकांश मामल म न तो खालीपन का
अहसास होता ह और न ही पूण व का परमा मा ने येक य को ऐसा संवेदना तं िदया नह , इसक पीछ भी
सृि क संतुलन क कोई परम ि ही होगी!
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मनु य क िवनाशक िनबलता


महाभारत क सम घटना म म अहकार, असूया, वैरभावना, लालसा जैसे नकारा मक भाव से े रत
घटना का भाग ब त बड़ा ह। इन घटना क िवषय म उन नकारा मक त वो को मब करक
िनःशंक प से कहा जा सकता ह िक यिद ऐसा न आ होता तो ऐसा न होता। ‘यिद’ और ‘तो’ क
कायकारण ंखला इन भाव क साथ जोड़ना संभव ह। इसक बावजूद ये भाव कित द ह और
मनु य क ज म क साथ ही मूलभूत प म पैदा ए ह। इसक अनुसंधान म ऐसे कोई मानव े रत
िनषेधा मक त व इस घटना म म ह या, िक िज ह आज क संदभ म भी मू यांिकत िकया जा सकता
ह?

एक तरह से देख तो महाभारत क अिधकतर कथानक म िनषेधा मक त व क सफलता क ही बात ह। िफर


भी ये त व अथवा भाव कित द ह और य क सृजन क साथ ही परमा मा ने इन त व को मूलभूत प म
ही उसक रचना म समािव कर िलया ह। न म यु ‘ कित द ’ श द पर थोड़ा िवचार कर लेना
आव यक ह। जो घटक सम रचना क भाग ह , उ ह िनरथक अथवा नकारा मक कसे कहा आ सकता ह, ऐसा
सवाल भी खड़ा होता ह। वैरभावना, अहकार, असूया ये सभी महाभारत म सपाटी पर आकर अनायास ही
ि गोचर ह , ऐसे िनषेधा मक भाव ह, परतु ये मानवीय भाव ह, इसे ल य म लेने क बाद उनम िनिहत
उपयोिगता को भी समझ लेना ज री ह।
अहकार सबसे बड़ा दुगुण माना गया ह। दुय धन क वृि याँ यिद अहकार े रत न होत और अहकार को
वह वश म रख सका होता तो घटनाच दूसरी िदशा म गया होता, ऐसा कहा जा सकता ह। अहकार और
आ मस मान अथवा आ मगौरव क बीच ब त पतली िवभाजक रखा ह। आ मस मान मानव-जीवन म
सकारा मक त व माना गया ह। य क िलए हम िजस भाव को स मान क प म पहचानते ह, वही भाव
समाज या सं कित क िलए गौरव क प म यु िकया जाता ह। कई बार ऐसा भी होता ह िक बात जब
अपनी हो तो हम इसे वमान या आ मगौरव बातते ह, परतु यही बात जब अ य िकसी क हो तो हम इसे
अहकार कहते ह। इसी कार कोई य कोई ऐसा सहतुक अपराध करता ह िक उसे मा नह िकया जा
सकता ह। य गत ल ण म मा-भावना दैवी संपि भले ही मानी जाती ह, पर यिद िकसी य ने समि
क ित अपराध िकया हो तो उसे दंड देना अिनवाय ह। ऐसा दंड समाजसुधार क वृि से े रत होता ह। इसम
माभावना हो ही नह सकती। अपराधी को दंड देने क इस भावना को वैरभावना नह कहा जा सकता ह। परतु
य गत प से अपराधी को दंिडत करक संतोष ा करने क वृि वैरभावना क समक ह। इस तरह
वैरभावना क इस भाव को भी िवभािजत करक समझ लेना चािहए। ऐसा अ य भाव क िवषय म भी कहा जा
सकता ह। आज क संदभ म इस बात को समझने क िलए दो ने दीपक उदाहरण िदए जा सकते ह। िजसक
नाम अनेक ह याएँ थ ऐसे दो अपराधी फलनदेवी और वीर पन को उिचत दंड देने और उसक िलए तमाम य न

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करने म वैरभावना नह ब क सामािजक कत य था। ऐसा न करने म कत य ता और िनल ता ही कट
होती ह।
ूत और म पान ये दोन मानवजाित क बड़ दुगुण माने जाते ह। इसक बावजूद वतमान से लेकर इितहास का
कोई कालखंड इन दो त व से मु नह रहा। ये दोन कितद नह मानवसिजत ह। इस सृजन का अनुसरण
करक उसने वयं ही िवनाश आमंि त िकया ह। महाभारत म भी इन दो त व ने अ यंत उ ेखनीय—एक तरह
से कह तो सवािधक माण म— भाव डाला ह। युिधि र ूति य थे। वयं को वे ूत ड़ा म िनपुण समझते
थे। ूत खेलने क िलए कोई आमं ण दे तो उसे अ वीकार न करना, ऐसा कोई ा धम कह िन िपत नह
िकया गया ह। युिधि र वयं ऐसा अनुिचत धम अपने िलए बनाते ह और उसक अनुसरण को अपना धम कहते
ह। यह वा तव म ूत खेलने क अपनी दुबलता को िछपाने का बहाना ही ह। ूतसभा म दुय धन ने अपनी ओर
से पासा फकने क िलए शकिन को िनयु िकया, उस समय कोई भी समझदार य इस यव था को वीकार
न करता। पर युिधि र ने इस यव था को वीकार िकया, यह जुआरी मनोवृि से े रत य अपनी सामा य
समझ को िकतनी सरलता से गँवा देता ह, इसका उदाहरण ह। खेल क दौरान य, पशुधन आिद एक क बाद
एक येक दाँव हारने क बावजूद युिधि र खेल समा नह कर सकते ह। एक भी दाँव वे जीत नह सक,
िफर भी येक दाँव म अिधक से अिधक गँवा रह ह।
थूल संपि क समा क बाद सामा य समझदार य भी शकिन क िनपुणता वीकार कर क जाता,
परतु जुआरी मनोवृि इस तरह रोक नह जा सकती और इसक बाद क दाँव म वह िन त ही जीत जाएगा,
इस तृ णा क साथ युिधि र ने भाइय और अपने आप को भी परािजत करवा िलया। इसक बाद प नी ौपदी को
दाँव पर लगाने का सुझाव कौरव ने ही िदया ह और कौरव क मनोवृि और हीनता समझने-जानने क बाद भी
धमा मा कह जानेवाले युिधि र ने यह सुझाव वीकार िकया और भरी सभा म ौपदी क अवहलना ई! इतनी
भयानक दुदशा क बाद राजा धृतरा ने भय से े रत होकर पांडव ारा खोए ए रा य और उनक वतं ता
लौटा दी। इस कार पुनः ा ए रा य और वतं ता क साथ जब पांडव वापस लौट रह थे, उस समय िफर
एक बार जुए का एक दाँव खेलने का िनमं ण दुय धन ने िदया और यह दाँव भी उसक ओर से शकिन ही
खेलेगा, यह पुरानी शत भी ताजा क । युिधि र ने िफर एक बार इस बात को वीकार िकया और इस बार एक
ही दाँव म सम रा य गँवाकर तेरह वष का वनवास पाया। मा मूख ही जो बात कर, वही बात युिधि र ने यहाँ
ता य क ह। उनक यह िववेकहीनता जुए से े रत मनोभाव िकस हद तक पितत होता ह, इसका लंत
उदाहरण ह।
वनवास म एक बार ौपदी और भीम युिधि र को उनक इस क य क िलए दोष देते ह तो वह ूत ेमी राजा
अपनी मूखता क साथ अपनी शठता भी कट करता ह। वह कहता ह िक वयं ूत खेलने म िनपुण होने क
कारण दुय धन क समृ और रा य यु िकए िबना ही ा कर लेने क उ े य से ही उसने जुआ खेला
था। इस कार इस संग म युिधि र म बसी अधम भावना ूत ारा कट ई ह। हम िन यपूवक ऐसा कह
सकते ह िक यिद इस ूतसभा का आयोजन न आ होता तो ौपदी का व हरण, दुय धन तथा दुःशासन का
उ घात और िधरपान क भीम क ित ा, तेरह वष का वनवास, यह सारा कछ टाला जा सकता था।

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तू जैसा ही दूसरा नकारा मक त व म पान यादव क सवनाश का कारण बना ह। त कालीन आयावत क दो
समथ राजप रवार ह तनापुर क भरतवंशी और ारका क वृ णवंशी, इन दोन का िवनाश मशः ूत और म
जैसे मानव सिजत दुगुण ने िकया ह, यह इितहास क िवडबना ह। यादव म ि य थे और म पान क अितरक
क भाव म यादव कमार ने ारका म क यप, नारद आिद ऋिषय का उपहास िकया। जो प रवार ा ण
और ऋिषय को पूजनीय और स मा य मानता था, उस प रवार ने म क भाव से इन समथ ऋिषय को
अपमािनत िकया और वयं अपना सवनाश आमंि त कर िलया। सवनाश िन त ह, यह जानने क बाद भी
ारका म महािनषेध घोिषत कराकर क ण ने िजतना अिधक समय संभव आ, यादव क र ा का यास िकया
ह, परतु इस महािनषेध क अवहलना करक यादव ने, वतमान युग म गुजरात जैसे रा य म, जहाँ म िनषेध होने
क बावजूद चोरी-िछपे शराब पीनेवाले म ेिमय क तरह मिदरापान जारी रखा और वयं क ण का भी इस
कार अनादर िकया। िजस क ण ने यादव को कस क अिधनायकवादी आिधप य से मु िकया था, गणतं क
पुन थापना क थी, सोने क ारका म िज ह बसाकर अजेय बनाया था, उ ह क ण क अवहलना करक
म पान जारी रखा। इसक बाद भास े म या ा क दौरान भी म पान का अितरक िकया। ारका म
म िनषेध क घोषणा होने क कारण जो क य चोरी-िछपे करते थे, वह क य भास े म अिनयंि त आ।
व र राजा उ सेन से लेकर पु -पौ सिहत सभी इस म क भाव म िनरकश हो गए और जो समथ
शस धारी थे, वे पशु क भाँित एक-दूसर क साथ लड़कर, दाँत से एक दूसर को काटकर मर िमट।
ूत और म आिदकाल से य क िवनाशक िनबलता रही ह। समय-समय पर मनु य ने इस िनबलता क
िलए भारी दंड भी भोगा ह और इसक बावजूद इसका पुनरावतन इितहास क येक चरण म िदखाई देता ह।
मूलभूत मानवीय ल ण, जो कितद ह, उ ह मनु य िनमूल नह कर सकता ह, परतु जो िवनाशक त व वयं
उसक ारा िनिमत ह, उ ह िववेकपूवक अव य अंकिशत कर सकता ह। महाभारत क उपयु घटनाएँ इस
पदाथपाठ का संकत देती ह।
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𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

 
𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
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भी म िपतामह का असंगत ताट य


देश क िनकट क भूतकाल म देख तो वग य धानमं ी इिदरा गांधी ने जब आपातकाल घोिषत िकया
था और इस तरह लोकतं का गला घ टा था तो जनता क नजर सव थम आचाय िवनोबा भावे पर
गई थी। िवनोबा भावे ने ऐसे समय म देश को जो अपेि त था, ऐसा नेतृ व उपल ध कराकर इिदरा
गांधी को रोकने क बजाय उनका समथन कर रह ह , इस तरह ‘यह आपात काल तो अनुशासन पव ह’
ऐसा कहा था। ूतसभा म जब ौपदी का व हरण आ, उस समय इस िनल य क सा ी क
प म वयं िपतामह भी म थे और ौपदी ने िपतामह से इस अधम क िवरोध म न िकया तो उ ह ने
दोन हाथ ऊपर उठाकर तट थता धारण क थी। भी म का यह आचरण उनक पा क साथ असंगत
लगता ह। भी म ने यिद ऐसा न िकया होता तो महािवनाश संभवतः टाला जा सकता था। इसी कार
क ण क दौ य कम क समय भी भी म ने य िप दुय धन को समझाया तो ह, परतु स ा क िवशेष ताप
से उसे रोका नह । भी म ने चाहा होता तो वे दुय धन और दुःशासन को रोक सकते थे। भी म क इस
तट थता क िवषय म समाधान करना किठन लगता ह। इसक िवषय म कछ अिधक काश डाला जा
सकता ह?

क ण और भी म ये दोन महाभारत क पा क सृि म सबसे उ ुंग िशखर ह। इन दोन क यवहार म


अनेक थल पर िवसंवाद िदखाई देता रहा ह। क ण क यवहार म ऐसे जो िवसंवाद ह, उनक िवषय म ब त
अिधक िलखा गया ह और इन िवसंवाद को क ण क पा क सात य को ि म रखकर मू यांिकत करने का
य न भी आ ह। ऐसे य न अिधकांशतः तािकक होते ह और उनक पीछ यिद कोई माण क अपे ा रखे तो
ऐसे माण महाभारत म नह िमलगे। क ण क प िवसंवादी यवहार को संवादी और यायसंगत ठहराने क जो
िव ेषण ए ह, वे क ण क पा म इतने सुसंगत रह ह िक उनक िवषय म िवशेष अवरोध का अवकाश नह
रहता। इसक िवपरीत, भी म क कई यवहार क िवषय म प तः न पैदा होते ह। परतु इस िवषय म
महाभारत का अ ययन करनेवाले िव ान ने या तो अिधक िवचार नह िकया ह अथवा जो भी िवचार आ ह,
उसे िवशेष िस िमली नह । वा तव म महाभारत क कथानायक पद पर क ण नह ब क भी म रह ह, ऐसा
कहा जा सकता ह; य िक भी म ही एक ऐसे पा ह िक जो इस महाका य महा ंथ म सबसे अिधक बार िदखाई
देते ह; इतना ही नह , इससे भी आगे बढ़कर कह तो आिद क अंत तक उसक या िव तृत ह।
तुत न का िवचार करने क पूव हम िजन प र थितय म शांतनु राजा का यह पु कमार देव त से भी म
बन उस घटना को याद कर लेना चािहए। िपता शांतनु क िलए िनषादराज से उसक पु ी योजनगंधा क माँग क ,
उस समय िनषादराज जो शत रखी, उसम शांतनु राजा क उ रािधकारी क प म पाटिलपु देव त नही, ब क
पु ी योजनागंधा क संतान अिभिष ह , ऐसा कहा ह, कमार देव त ने एक ण का िवलंब िकए िबना िनतांत
िनिल भाव से कह िदया :
ऐवमेतत क र यािम यथा वमनुभीषसे।

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यो यां जिन यते पु ः स नो राजा भिव यित॥
अथा िनषादराज क माँग क अनुसार उनक पु ी योजनगंधा यिद िपता शांतनु क साथ िववाह करगी तो जो
संतित होगी, वही राजा बनेगी, इसे देव त ने वीकार िकया।
परतु िनषादराज चतुर राजनियक था। देव त तो स य ित ह, इसम उसे शंका नह थी, पर इसक बाद उनक
संतान पैदा ह गी, उ ह तो इस ित ा का बंधन होगा ही नह । ऐसी थित म उसक भावी दौिह क िहत क र ा
कसे होगी? राजा मोहांध ह और कमार पु धम म आकठ डबा ह, इसका सा ा कार होते ही उसने अपनी शत म
सहज िव तार िकया—‘‘कमार! आपक स यवािदता पर तो िव ास ह, पर आपक पु का या? आपक पु
यिद आपक इस ित ा को वीकार नह करगे तो मेर दौिह का क याण कसे होगा?’’ और यहाँ भी म क
जीवन का भ यतम ण आता ह। एक ण का भी िवलंब िकए िबना भी म ने कह िदया िक—‘‘ह िनषादराज!
म ित ा करता िक म आजीवन चय का पालन क गा और अपु ाव था म ही जीवन समा क गा।’’
आजीवन चय क पालन क इस ित ा क मूल म माता स यवती क संतित ही ह तनापुर क िसंहासन पर
सदैव थािपत हो, यह उ े य रहा ह, यह याद रखना चािहए। जैसािक ऊपर कहा ह—
‘यो यां जिन यते पु ः स नो राजा भिव यित॥’ भी म का यह वा य इसक बाद क भी म क यवहार को
समझने क िलए मागदशक बनेगा।
एक तरह से देख तो माता स यवती क दो पु िच ांगद और िविच वीय क अकाल और अपु अव था म
मृ यु हो गई और उसक साथ ही क वंश क इित ी हो जाती ह। इन दोन िदवंगत राजपु क िवधवा ारा
जनमे धृतरा और पांड का वा तव म क वंश क र क साथ कोई संबंध नह । इनका ज म माता स यवती क
कौमायाव था क पु महिष यास क साथ ए शारी रक संबंध से आ ह, इसिलए एक तरह से देख तो धृतरा
से शु होती संतित म य िप क वंश का र नह , पर माता स यवती का र अव य बहता ह। दुय धन आिद
कौरव का ज म माता गांधारी क कोख और िपता धृतरा क वीय से आ ह। पांड से पु यानी िक पांडव क
िलए ऐसा कहना संभव नह । युिधि र और उनक भाई िपता पांड क वीय से पैदा नह ए। उनका ज म इ ,
वायु आिद अ य त व से आ ह। इस तरह धम और याय भले ही सतत पांडव क प म रह ह , परतु
स यवती क संतान होने का गौरव तो भले ही ब त कम माण म हो, पर दुय धन और उनक भाइय को ही ा
आ ह। पांडव को यह गौरव ा नह हो सकता।
इस भूिमका क साथ यिद हम भी म क इस असंगत कह जानेवाले बरताव को समझने का यास करगे तो
संभवतः ऊपर से िदखाई देनेवाली इस असंगित क पीछ जो संवािदता रही ह, उसे पूरी-पूरी नह , तो भी ब तांश म
जाना जा सकता ह। ूतसभा म ौपदी-व हरण क समय ौपदी ने िपतामह भी म से जो न िकया ह, उसम
पूछा ह िक ह िपतामह! इस ूत म म जीती ई मानी जाऊ िक नह , इसका प उ र म आपसे जानना चाहती
? भी म क िलए यह ब त ही किठन ण रहा होगा, इसका सहज ही अनुमान िकया जा सकता ह। ौपदी क
इस न का उ र भी म यिद हाँ म द यानी िक दुय धन ने तु ह जीता ह, वह धमपूवक नह , ऐसा कह तो
परािजत पांडव और खास करक भीम और अजुन एक भी ण क िवलंब क िबना पांडव क इस पराजय को
िवजय म बदल डाल, ऐसा उनका साम य था। दुय धन क प म अधम ह, ऐसा कहने का अथ ह तनापुर क
िसंहासन पर से धृतरा क पु को दूर कर देने जैसा ही होता। भी म िजसे अधम मानते ह , उसे ोण भी कसे

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धम मान सकते थे? इस कार कौरव प से यिद भी म और ोण बाहर हो जाते तो उनक पराजय िन त हो
जाती।
दुय धन क पराजय का संकत यही होता िक युिधि र ह तनापुर क िसंहासन पर आ ढ़ ह और यिद ऐसा
होता तो भी म क उस यात वचन ‘यो यां जिन यते पु ः स नो रजा भिव यित’ का फिलताथ यथ जाता। इस
वचन को ल य म रखकर ही संभवतः भी म ने वारणावत क ला ागृहम से लंबा समय अ ातवास म रहकर
वापस लौट पांडव को, युिधि र क युवराज पद पर इसक पूव ही थािपत होने क बावजूद उ ह िसंहासन देने क
बदले इ थ क नई नगरी बसाने क िलए भेज िदया। इसक पहले भरतवंिशय म कभी भी रा य का िवभाजन
नह आ था। इस ण युिधि र क युवराज-पद पर होने क नाते ह तनापुर का रा य उ ह िमले और यिद
िवभाजन करना ही हो तो नया रा य दुय धन को िमले, यह अिधक बु ग य हल लगता ह। ऐसा होने क
बावजूद भी म ने वा तिवकता को वीकार करते ए अपनी ित ा क संदभ म ह तनापुर का रा य तो दुय धन
को ही िदया और नए रा य म पांडव को भेजा। भी म क मन म ऐसा कोई िवचार रहा होगा िक नह , इस िवषय
म महिष यास अपने इस कालजयी ंथ म कोई प उ ेख नह करते ह, पर स यवती क संतान ही शांतनु
राजा का उ रािधकारी बना रहगा, ऐसा जो आ ासन उ ह ने िनषादराज को िदया था, उसक पूर-पूर अथ म
नह , तो भी अ पांश म भी पालन करने का संतोष तो तभी िलया जा सकता था, जब ह तनापुर क िसंहासन पर
दुय धन आ ढ़ होता।
भी म क दुिवधा इन प र थितय म देखने लायक ह। दुय धन क नाम से महाभारत म आगे चलकर एक उ
कही गई ह। यह उ सव वीकत नह , पर महाभारत क िकसी-िकसी म आवृि िमलती ह। दुय धन कहता ह,
‘‘जानािम धम न च मे वृि , जाना यधम न च मे िनवृि ।’’ यह बात दुय धन से भी अिधक भी म क िलए
यु क जा सकती ह।
भी म क संभािवत मनोभूिमका क िवषय म इतना िव ेषण करने क बाद जो िन कष ा होता ह उसक
आधार पर भी म क सम जीवन को और अक पनीय लगते यवहार को समझना सुगम हो जाएगा। िफर एक
बार यह प करना आव यक ह िक भी म क इस मनोगत क िवषय म हम िनरी मनोवै ािनक संभावना क
आधार पर ही ये मनोय न तुत कर रह ह। महाभारत म महामनीषी यास ने हम कह भी ऐसा प संकत नह
िदया ह।
ूतसभा म ौपदी ने जो धारदार न पूछा ह, उसका उ र देते ए भी म ारा ‘पु ष तो अथ का दास ह’
ऐसा कह जाने का उ ेख हमार कथाकार बार-बार करते ह, पर यह बात स य से पर ह। यहाँ िपतामह भी म ने
ऐसा िववश कथन कहा नह । यहाँ तो भी म ने मा इतना ही कहा ह िक—‘‘ह क याणी! धम क गित अित
सू म ह और महा मा पु ष भी धम को पूरा-पूरा नह समझ सकते।’’ यहाँ तक तो भी म का यह कथन
सव वीकाय बन सकता ह, पर इसक बाद उ ह ने जो कहा ह, वह िवदा पद होने क मता रखे, ऐसा ह—
‘‘संसार क समथ य िजसे धम कहते ह, उसे ही बाक क लोग धम मान लेते ह। साम य िवहीन क िलए
तो समथ पु ष ने जो कहा हो, वही धम ह। धम का व प ऐसा सू म और गहन होने क कारण तु हार इस न
का उ र यथाथ देना मेर िलए किठन ह। मुझे लगता ह िक तु हार इस न का िनराकरण करने क िलए धमराज
युिधि र ही सबसे अिधक यो य य ह।’’

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भी म क इस उ र से प समझा जा सकता ह िक उ ह ने धम पांडव क प म ह और ौपदी अधम से
जीती गई ह, ऐसा कहना टाला ह। परतु इसक साथ ही धमिवषयक टीका-िट पणी करक साम य का जो भाव
दरशाया ह, वह एक तरह से देख तो लाचारी म से कट होती वेदना क ही अिभ य ह। बलवान पु ष जो
मागरखा ख च दे, उसे ही यिद धम कह तो िव म अनेक अनथ पैदा हो सकते ह। भी म जैसे महापु ष यह
बात न समझते रह ह , ऐसा कसे कहा जा सकता ह? अतः भी म क इस अिभ य म स ाई से भी अिधक
िवफलता म से कट होती वेदना क बात ित विनत हो रही हो, ऐसा लगता ह।
ूतसभा म भी म क इस यवहार क बाद ‘उ ोगपव’ म जब महायु टालने क िलए वयं ीक ण
िवि कार (संिधदूत) बनकर ह तनापुर आए, उस समय भी म ारा िनभाई गई भूिमका क िवषय म थोड़ा
िवचार करना यायोिचत ह। यु क अंत म महासंहार से त ई माता गांधारी ने इस यु को न टाल सकने
क िलए क ण को दोषी ठहराया तो उस समय क ण कहते ह, ‘‘ह माता! यु का िनवारण करने क िलए तो
आप और िपतामह भी म भी समथ थे ही।’’ क ण ने चाहा होता तो अपने साम य क भाव से दुय धन को
डराकर यु को रोक सकते थे, ऐसा संकत गांधारी देती ह। यहाँ अिधक मह व क बात यह ह िक क ण क
िच म यु क िनवारण क िलए भी म भी सुयो य य थे, ऐसा ितपािदत आ ह। भी म क इस साम य क
िवषय म िकसी कार क शंका को थान नह । जो भी म अकले हाथ सम आयावत क राजा को परािजत
करक छोट भाइय क िलए राजकमा रय को बलपूवक ले आए थे, िजस भी म ने सा ा काल समान परशुराम
को िवजेता नह होने िदया था, उस भी म ने िवि क संग क क सभा म नग य भूिमका िनभाई ह, यह
िनिववाद ह। वय से जज रत होने क बावजूद िवि क समय उनका ताप और साम य वैसा ही चंड था और
उ ह ने यिद दुय धन को अपने इस ताप से डराया होता या ज रत पड़ने पर उसे बंदी बना िलया होता अथवा
उसका वध भी कर िदया होता तो यह महासंहार अव य टाला जा सकता था और भी म क ऐसे किथत क य क
िलए िकसी ने उनपर दोषारोपण भी न िकया होता।
इसक िवपरीत इस ण भी म ने सौ य कही जा सक, इस कार क समझावट का माग वीकारा ह। वे
दुय धन को ूतसभा म ौपदी क ई अवहलना से पांडव को ए ेश क बात याद िदलाते ह और इस समय
पांडव का यवहार यायपूण ह, ऐसा परो संकत भी िदया ह। इसक अित र थोड़ समय पहले ही िवराट
नगरी क सीमा पर अकले अजुन क हाथ भी म, ोण, कण और दुय धन सिहत सम सेना क जो पराजय ई
थी, उसक याद िदलाकर भय का संकत भी िदया ह। यिद दुय धन इ थ का रा य पांडव को वापस लौटाए
तो ह तनापुर क िसंहासन पर दुय धन का साम य आयावत म कई गुना बढ़ जाएगा, ऐसा लालच भी िदया ह।
पर अंत म तो जैसे िवनती कर रह ह , इस तरह इतना ही कहा ह िक यिद तुम मेरी बात नह मानोगे तो हम
युिधि र क िव यु करना पड़गा, यह महा दुःखदायक घटना होगी। इस तरह समझाने क बाद भी भी म
ने दुय धन को डराने क बदले एक कार से अ य प से अभयवचन भी िदया ह िक अंततः यिद यु
अिनवाय होगा तो भी म ह तनापुर क िसंहासन क र ा क िलए दुय धन क प म रहकर लड़गे। इस अंितम
बात म भी म क िच म थत सं ोभ क अनुगूँज मुख रत ई ह। इस अनुगूँज म िफर एक बार हम वष पूव
कमार देव त क िनषादराज क सम कह गए श द क ही विन अब िपतामह बने भी म क रोम-रोम से
ित विनत हो रहा ही जो इस कार सुनाई देती ह :

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एवमेतत क र यािम यथा वमनुभाषसे।
ये यां जिन यते पु ः स नो राजा भिव यित॥
अथा िनषादराज क माँग क अनुसार उनक पु ी योजनगंधा माता स यवती क जो संतित होगी, वही राजा
होगी। माता स यवती क र का य तो नह , परो प से ही सही, जो थोड़ा-ब त योगदान था, वह दुय धन
म ही था। इस योगदान क र ा करने क िलए भी म ने चुपचाप अपने अंतर म घुमड़ती यथा सँभालकर रखी थी
और सपाटी पर ऐसा िदखावा िकया िक िजससे आनेवाली पीि़ढयाँ उनक यवहार पर उगिलयाँ न उठाएँ। भी म
का ित ापालन क श द क िलए िकया गया यह मनोमंथन िकस सीमा तक उिचत कहा जा सकता ह, यह न
अलग चचा का िवषय बन सकता ह, परतु भी म ने िजसे अपने जीवन का एक अिनवाय अंग माना, उस ित ा
का अथघटन उनका वयं का हो सकता ह।
े तर महापु ष को हम हमेशा अपने सामा य मापदंड से मू यांिकत नह कर सकते। िग रराज िहमालय क
उ ुंग िशखर को हम भले ही फट क आँकड़ ारा भूगोल म पढ़ते ह , परतु कोई फटप ी लेकर यिद हम इस
िशखर को इसी तरह मापने जाएँ तो िशखर क ऊचाई कभी हाथ म नह आएगी। बारह इच क फट से शायद ही
िकसी पहाड़ी को नापा जा सकता ह, नगािधराज िहमालय को नह । महापु ष क जीवन म ऐसा सतत होता रहा
ह। हमारी ि त कालीन लाभ अथवा हािन पर कि त रहती ह, परतु महापु ष महामनीषी भी होता ह, इसिलए
उसक ि िनतांत वतमान पर नह िटक होती ह, ब क आनेवाले कल, आनेवाली पीढ़ी, पीि़ढय क बाद क
इितहास पर भी होती ह। इितहास को जो पहचान सकता ह, बीच वह िवशु महापु ष ह। ऐसा पु ष, इसक
िलए अपने समयकालीन क बीच उपेि त हो, ऐसा भी होता ह। यह मयादा मानवजाित क मयादा ह और इसको
वीकार िकए िबना काम नह चलता।
हमार वतमान युग क एक संत, साधक और िवचारक वामी आनंद ने ऐसे महापु ष को ‘लोको र पु ष’
कहा ह और ऐसे लोको र पु ष क िलए ‘सुत, िवत, ारा शीश समिपत’ सहजकम ह। यह सहजकम सब क
िलए समान प से सहज नह होता और इसीिलए लोको र पु ष क िवषय म िवचार करते समय व रत िनणय
करने म समझदारी नह । कवल इितहास ही इसका उिचत याय कर सकता ह। कालपु ष क आँख क िलए
यथासमय यह दशन सुलभ होता ह।
o

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13

मृ यु मीमांसा
य जब समझदार होता ह, उस समय से उसे िजससे सबसे अिधक भय लगता ह, उस भय ेरक
पदाथ का नाम मृ यु ह। मृ यु िन त ह और उससे कोई भी जातक कभी भी उबर नह सकता, यह
जानते ए भी य चाह िजतना ानी हो, िफर भी मृ यु क सा ा कार क बात ये भयभीत हो जाता
ह। इस मानवीय ल ण क िवषय म महाभारत म से कोई िन त ( प ) मागदशन ा िकया जा
सक, ऐसे कथानक क िवषय म कछ कहगे? मृ यु क आगमन क पूव य इस त व को सरलता से
िकिच समझ सक और सा ा कार क ण उसका भय कम हो, ऐसी जो घटनाएँ या िचंतन महाभारत
म कट ए ह , इस िवषय म थोड़ी बात करगे?

‘आ मेिधक पव’ म िपतामह भी म ने शरश या पर लेट ए पौ युिधि र का जो मागदशन िकया ह, उसे


मृ यु और अमर व, इन दोन श द को एक ही ोक म ब त ही मािमक ढग से प िकया ह। वह ोक इस
कार ह—
य ह तु भवे मृ यु य र शा त ।
ममेित य रो मृ युन ममोित च शा त ॥
(आव मेिधक पव, अ. 13, ोक 3)
संसार म तो ‘मम’ अथा मेरापन यानी िक मोह और ममता ही स ी मृ यु ह, और ‘नमम’ यानी िक िकसी भी
पदाथ म मेरापन न होना, अथा मोह का अभाव ही तो अमर व ह और वही ह।
िपतामह क यह बात अ य वासुदेव क ण ने भी कही ह। उ ह ने कहा ह िक ‘मम’ त व मोह ह और मोह ही
मृ यु का स ा कारण ह। मोह का आवरण हट जाने क बाद मृ यु पश नह करती।
मृ यु से मु होने का ऐसा ही एक न ने ‘उ ोगपव’ म राजा धृतरा और ऋिष सन सुजात क बीच क
संवाद म थान पाया ह। धृतरा न पूछता ह िक ह ऋिषवर! आप कहते ह िक मृ यु जैसी कोई चीज ह ही
नह और दूसरी ओर देव व दानव ारा अमर होने क िलए िकए गए उपाय क बात करते ह, तो इन दोन म
स य या ह? ऋिष सन सुजात राजा क इस न क उ र म मोह ही मृ यु ह, ऐसा ुववा य तो कहते ही ह, पर
यह मोह िकससे उ प होता ह, इसे समझाते ए अ माद क बात करते ह, तो इन दोन म स य या ह? ऋिष
सन सुजात राजा क इस न क उ र म मोह ही मृ यु ह, ऐसा ुववा य तो कहते ही ह, पर यह मोह िकससे
उ प होता ह, इसे समझाते ए अ माद क बात करते ह। यह अ माद यानी िक इ छा का नाश। कामना
को उ प ही न होने द, िफर मृ यु का भय ही नह । मृ यु का भय इसिलए ह िक अंितम ण म भी कामना
और इ छा का अंत ही नह । कई कामनाएँ अतृ ह और यह अतृ ही भय क आवरण का िनमाण करती
ह। इस अतृ को जनमने ही न द, िफर यह आवरण रहगा ही कहाँ से? न रहगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।

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महिष यास ने अपने इस कालजयी ंथ क सृजन क पूव िजन उ िवषय क सूची दी ह, उसम यह
प तो िकया ही ह िक—‘जरामृ युभ यािध भावाभाव िविन य ’ अथा जराव था, मृ यु, भय, यािध, भाव
तथा अभाव का यहाँ िवचार िकया गया ह। यहाँ भाव तथा अभाव होने और न होने क पयाय ह। यह नह होना ही
तो मृ यु ह। इस कार यास जैसे मेधावी मनीषी मृ यु क िवषय म िचंतन न कर, यह तो हो ही नह सकता।
इसम भी िजस कथा म अठारह अ ौिहणी सेना अथा लगभग सतालीस लाख जीव का अठारह िदन म नाश
आ हो, उस कथा म मृ यु क िवषय म अव य ही मीमांसा ई होगी।
‘अनुशासन पव’ क पहले ही अ याय म िकसा गौतमी क कथानक ारा महाभारतकार ने इस मृ यु-मीमांसा
क िवषय म ब त ही सुंदर मागदशन सम मानवजाित को अितशय सरलता से िदया ह। यह कथा सम त मृ यु-
मीमांसा पर िवराम लगा दे, ऐसी ह।
गौतमी नाम क एक वृ ा ा णी क पु क सपदंश क कारण मृ यु हो गई। इस िनद ष ा णपु क मृ यु
का कारण बननेवाले उस सप पर अजुनक नाम का एक पारिध (बहिलया) अ यंत ोिधत आ और उसने इस
ह यार सप को अपने जाल म पकड़ िलया। इस सप को उस अभागी माता गौतमी क सम तुत करक
अजुनक ने कहा, ‘‘ह माता! तु हार पु का नाश करनेवाले इस सप का तुम कहो, उस तरह वध क !’’
यह सुनकर सप ने कहा, ‘‘ह मूख अजुनक! इस ा णी क पु क मृ यु क िलए तू मुझे य दोषी ठहरा रहा
ह? म तो िनिम मा । असली कारण तो मृ यु क ेरणा ह। मने तो इस ेरणा से े रत होकर ही यह दंश
िदया ह।’’
सप ने इस तरह मृ यु पर दोषारोपण िकया तो वयं मृ यु ने ही य होकर कहा, ‘‘ह सप! तू मुझ पर
दोषारोपण कर, यह याय नह । वा तव म मेरी ेरणा तो काल ारा े रत होती ह! िजस कार तू इस बालक
क मृ यु का कारण नह , उसी तरह म भी इसका कारण नह । असली कारण तो काल ही ह।’’
काल पर िकए इस दोषारोपण को िनवारने क िलए वयं काल वहाँ सदेह उप थत होता ह। अजुनक याध,
सप और मृ यु इन दोन क बचावनामे को वीकार नह करता। इसक िवपरीत िजस वृ ा क यथा क कारण
अजुनक क मन म रोष और क णा उभरी थी, वह ा णी गौतमी तो याध से िवनती करती ह िक सप को मु
कर देना चािहए, य िक सप का वध करने से उसका पु वापस नह आ जानेवाला ह।
अब काल अपना बचाव करते ए कहता ह—ह याध! इस बालक क मृ यु क िलए तुम समझते हो, उस
तरह सप िज मेदार नह ह। इसी कार, जैसािक सप का मानना ह, इसक िलए मृ यु को भी दोष देना िनरथक ह।
इसक साथ ही इसक अंत क िलए काल को यानी िक मुझे िनिम बताना भी उिचत नह । स ी बात यह ह िक
मरण का सही कारण मा येक जीव क अपने कम ही होते ह! कम मा पर पर का योजन होता ह। कम
और कता का संबंध धूप और छाया क संबंध जैसा होता ह। इस बालक क यह अपमृ यु भी उसक कम क
अधीन ही ह।’’
इस सम संवाद क अंत म वयं गौतमी सभी को िनरपराध ठहराती ह और अजुनक याध का रोष भी शांत
होता ह। यहाँ यह पूरा िचंतन कम को ही ाधा य देता ह।
मृ यु अव यंभावी ह, िन त ह और िफर भी वा तिवक नह ह। मोह और मम व ही मृ यु को भय द बनाते
ह। मृ यु एक इ छत और अिनवाय ि या ह और इसका िनमाण येक मनु य अपने कम ारा ही िन त

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करता ह तथा इस कर यह च अंत म थर होता ह मनु य क अपने ही कम पर ही! मृ यु क सम िनभ कता
अिजत करने क इस मीमांसा क बीच भी ह तनापुर क अंितम तापी क वंशज परीि त क मृ यु क घटना को
परखना रस द होगा। इस घटना क िवषय म महाभारत और भागवत म अलग-अलग कथानक ह।
भागवत क कथानक क अनुसार शिमक ऋिष क पु ंगी ने अपने िपता क राजा ारा क गई अवहलना से
ोिधत होकर जो शाप िदया, उसक अनुसार सातव िदन परीि त को नाग डसेगा और उससे राजा क मृ यु होगी,
ऐसा िन त था। मृ यु क यह बात जानकर राजा ने गंगातट पर बैठकर शुकदेवजी से ीम ागवत क कथा
का वण िकया और शांितपूवक अपना देहधम पूण िकया। यह कथानक मृ यु क सम परीि त क िनभ कता
और व थता को कि त करता ह। इससे एकदम िवपरीत कथानक महाभारतकार हम देता ह। इस कथानक क
अनुसार भी म से लेकर अिभम यु तक क तापी पूवज का यह वंश मृ यु क नाममा से कसा भयभीत हो गया
और कसे बचकाने उपाय से बचने क य न िकए, इसक बात करता ह। शाप क बात जानते ही राजा ने मंि य
क सलाह ली और नगर से दूर एकदंडी महल बनवाकर उसक सबसे ऊचे खंड म िनवास िकया। यहाँ तमाम
कार क औषिधय , वै तथा मं िस ा ण क भी यव था क । इस महल म दािखल ई पा भी बाहर
िनकले तो उसका भी िनयं ण हो सक, ऐसी मु तैदी रखी गई। महल क चार ओर सैिनक ारा सबकछ
सुरि त िकया गया।
सातव िदन एक रस द घटना घटी। क यप नाम का एक ा ण िवषमु क िव ा का ाता था और उसने
राजा को त क क संभािवत दंश से मु करक उसक पास से भूत मा ा म धन ा करने क इ छा क ।
क यप राजा क महल क ओर आ रहा था तो उसक मं ान से प रिचत नागराज त क ने उसका माग रोका।
क यप यिद सफल हो जाएगा तो ंगी ऋिष का शाप यथ जाएगा और त क का राजा को डसना भी िनरथक
हो जाएगा। त क ने क यप से पूछा, ‘‘ह ा ण! अपनी इस िव ा का योग करक आप िकसिलए राजा को
बचा लेना चाहते ह?’’ जवाब म क यप ने अपनी िव ेषणा (िव लालसा) कट क तो त क ने ा ण क
इस िनबलता को पकड़ िलया। संसार का ाचार का सबसे पहला दज िकया आ द तावेज यहाँ हम ा
होता ह। त क ने ाचार क माग से अपना काय िस िकया। धनलोलुप ा ण को उसने उसक अपे ा से
भी अनेक गुना धन देकर राजा को बचाने क उसक िनणय से उसे युत िकया।
अब िनभय हो चुक त क ने फल और फल से भर पा म वेश कर एकदंडी महल क सुरि त क म
राजा क एकदम िनकट अपना थान िन त कर िलया। सातव िदन क साँझ पड़ चुक थी और अब म िनभय
, यह मानकर राजा िन ंत हो गया था। ठीक उसी समय त क ने उसे डस िलया और राजा ची कार करक,
भयभीत होकर ढल पड़ा तथा उसे मरता आ देखकर मंि गण शोकातुर होकर वहाँ से पलायन कर गए।
इस कार मृ यु क िवषय म राजा परीि त क ये दो िभ -िभ कथाएँ हम एक नई िदशा म ख च ले जाती
ह। मृ यु क िन तता जानने क बाद एकदंडी महल हो, पूण सुर ा- यव था हो या मं श क ाता ह , कोई
कछ नह कर सकता। इस कार क बचने क यास यथ तो होते ही ह, पर गौरवहीन और हा या पद भी बन
जाते ह। इसक िवपरीत इसे समझदारी से व थता क साथ वीकार करने से मनु य को गौरव तो ा होता ही
ह, साथ ही िचरकाल तक यह गौरव बना भी रहता ह।
इन दोन म से िकस माग को वीकार कर, यह य क गुणव ा और मता पर आधा रत ह।

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अितरक का अ वीकार
गुजराती क रा किव झवेरचंद मेधाजी ने वतं ता क लड़ाई क समय पुणे म गांधीजी ारा शु
िकए गए अनशन त क संग म ‘अंितम सलाम’ नाम क जो किवता िलखी थी, उसम भारत माता
क संतान ने जाने-अनजाने भूतकाल म जो पाप िकया ह, उसका उ ेख िकया ह। ऐसे पाप क सूची
म अजुन ारा खांडव वन को जलाए जाने क घटना को घोर पाप क प म िन िपत िकया ह। इस
घटना म असं य जीव क आ ित ली गई थी। महाभारतकालीन आयावत म इस कार क अ य कोई
घटना घटी नह । इस घटना को जाितवैमन य क प म पहचान तो इसका संदभ आज क घटना म
िकस सीमा तक ित विनत होता ह? खांडववन क घटना क िविवध पहलु को आज क संदभ म
िकस तरह समझाया जा सकता ह?

महाभारतकालीन समाज ब धा आय क िविभ कल और प रवार से आ छािदत ह। इसक बावजूद त कालीन


आयावत आज का संपूण भारतीय उपमहा ीप होने क संभावना नह । आयकल वाय य िदशा म आज क
अफगािन तान और उससे भी आगे क देश तक फला आ रहा हो, ऐसा लगता ह। ईशा य िदशा म िहमालय
पवतमाला क बीच म आज हम िजसे ित बत कहते ह, उसे ि िव म क प म महाभारत युग ने पहचाना ह।
आय आज क असम यानी िक भौमासुर क ाग योितषपुर तक फले ए थे, पर देश अथवा नमदा क दि ण
का देश उनक भाव से मु रहा होगा, ऐसा लगता ह। हालाँिक पंिडत सातवलेकरजी क कण अथा महारा
क प मी देश को इस काल क आय क साथ अ य जाितय क संघष का क - थान मानते ह। प म म
ारका तक आय फले ए थे।
इसक बावजूद आय क सव प रता का अिवरोध वीकार आ हो, ऐसा लगता नह । ित बत म िनवास करती
देवजाित क साथ आय ने कभी स ावपूण मै ी तो कभी संघष भी िकए ह , ऐसे संग ह। वाय य क गांधार
देश (आज का अफगािन तान) क उस पार आज जहाँ ईरान और इराक बसे ह, वहाँ क जा असुर क प म
जानी जाती रही हो, ऐसा संभव ह। इितहास म ईरान, इराक का यह देश असी रया क प म जाना जाता ह।
वतमान इराक क राजधानी बगदाद से 90 िकलोमीटर दूर थत बेबीलोन नगर ही भ मासुर क शोिणतपुर नगरी
रही हो, ऐसा संभव ह। बेबीलोन श द का अथ थानीय भाषा म ‘ल का नगर’ होता ह और शोिणतपुर म थत
श द ‘शोिणत’ भी र को ही सूिचत करता ह। इसक अलावा त कालीन आयावत म आय क ित श ुता
रखती हो, ऐसी सबसे समथ और समृ जाित क प म नाग लोग का उ ेख ह। एक ऐसी संभावना ह िक
आय क ये प रवार गंगा-यमुना क देश म अपनी सैिनक श क बल पर फलते गए, इस कार उस समय
वहाँ रहती नाग जाित क प रवार पलायन कर गए ह और उनम से कछ उ र-पूव क देश म तथा कछ प रवार
महारा क प मी समु तट पर क कण म जाकर बस गए ह गे। इस नागजाित क शेष प रवार आयावत म ही
खांडव वन म बसे ह , ऐसा लगता ह। खांडव वन का यह देश ह तनापुर क आस-पास रहा हो, ऐसा कहा जा
सकता ह।

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ह तनापुर का रा य जब पांडव और कौरव क बीच िवभािजत आ तो पांडव क िह से म खांडव थ क
प म जाना जानेवाला यह देश आया। यह देश अर य और घने जंगल से भरा आ था तथा पांडव ने यहाँ
इ थ नगर बसाया था, ऐसी प ता महाभारत म ह। अपनी राजधानी इ थ क नजदीक म ही, साथ
आयकल क पूवज ने आिधप य क िलए सतत संघष िकए ह , ऐसे नागकल क जा यिद बसती हो तो र ा क
ि से इ थ सुरि त नह कहा जा सकता।
महाभारत म जो कथा कही गई ह, उसक अनुसार इ थ क बाहर िवहार क िलए यमुनातट पर गए अजुन,
क ण तथा अ य प रवारजन जब इस थल पर िव ांित ले रह थे, उस समय ा ण पधारी अ न ने अजुन क
पास आकर ाथना क िक अजुन खांडव वन का दहन करक उसम रह रह नागजाित क लोग का आहार उ ह
करने द। इसका कारण बताते ए अ न ने कहा िक पूव म ेितक नाम क एक राजा ने सौ वष तक चले, ऐसा
चंड य िकया था और इस य म सतत बारह वष तक अ न क ाला को उसने अिवरत घी क धारा
ारा तृ िकया था। बारह-बारह वष तक सतत घी का पान करने से अ नदेव तृ तो ए, परतु वे जीण और
िन तेज हो गए। अितशयता क कारण जीण और िन तेज हो जाने क बात एक तरह से सूचक भी ह। घी अ न
का उ म-आहार ह, यह सही ह, पर चाह िजतना भी उ म आहार हो, यिद य मा ाभान भूलकर उसे हण
करता ह तो उससे उसक तेज वता बढ़ती नह ब क न होती ह; इतना ही नह , साम य का भी नाश हो जाता
ह और य जीण हो जाता ह। अितशयता का यह अ वीकार ल य म रखने लायक ह। अ न जैसी चंड दैवी
श भी यिद माणमान का खयाल न कर और िववेकपूण ढग से हण न कर तो उसका पतन भी िन त ही
ह।
अपनी इस अव था का िनराकरण खांडव वन म बसनेवाले लोग का आहार करने से हो सकगा, ऐसा
का वचन ा कर अ न ने इस खांडव वन को भ म करक उसम रहनेवाली जा का भ ण करने का इसक
पहले अनेक बार यास िकया था। खांडव वन म रहती नाग जा क अिधपित क प म त क नाग था और इस
त क नाग क इ क साथ मै ीपूण संबंध थे। अ न जब भी खांडव वन को भ म करने का यास करती, तब
त क क िवनती से इ अपने साथी व ण क मा यम से वषा क धारा कराते और उस कार अ न क य न
सफल नह होते थे।
िनराश ए अ नदेव ने अजुन से सहायता क याचना क और अजुन ने इस खांडव वन का दहन करना
वीकार तो िकया, परतु उसक पास श या रथ कछ भी उपल ध नह था। इसक उपाय क प म वयं अ न
ने ही अजुन को कभी कम न ह , ऐसे बाण का तूणीर और गांडीव धनुष िदए तथा िजसक वज म हनुमान
िचि त ह, ऐसा रथ भी िदया। इसक पहले यह सुिव यात गांडीव धनुष और किप वज रथ अजुन क पास नह थे
और क े क महायु म भी इन दोन क ारा ही अजुन ने िवजय ा क थी, इसे भी यान म रखना
चािहए। इस ण धनुिव ा क अिवरत ा को अजुन क आजीवन इ छी रही ह, यह भी याद रखना चािहए।
जब भी अवसर िमला तब जहाँ से भी ा क जा सकती ह, वहाँ से शा ा क िव ा अजुन सतत ा
करता रहा ह। यहाँ भी गांडीव तथा किप वज रथ क बदले म अजुन ने एक तरह से अपनी श ीित और दूसरी
तरह से खांडव वन का नाश करक इ थ को अिधक सुरि त करने क दीघ ि कट क हो, ऐसा मानना
अिधक तािकक ह।
खांडव वन म बसनेवाले नाग लोग क साथ क वंिशय को और िवशेष प से पांडव को कोई वैर रहा हो,
ऐसा कह भी िनिद नह ह। इस संदभ म अजुन ारा िकया गया खांडव वन दहन अिधक देश पर स ा
ा करने क िलए और इ थ क एकदम िनकट बसती आय-िवरोधी जाित का नाश करने क सा ा यवादी

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नीित का ही एक भाग रहा हो, ऐसा कहा जा सकता ह। इसक अलावा खांडव वन का देश ब त घना और
भूलभुलैया भरा था। अ य आयकल क साथ भी यिद िव ह का ण आए तो श ु ऐसे देश म गु प से
सुरि त रहकर इ थ को परशान करगे, ऐसी तकपूण सैिनक गणना भी ल म रखनी चािहए। इन सारी बात
पर िवचार करक अजुन ने अ न क साथ श क बदले म यह क य िकया हो, ऐसा संभव ह।
खांडव वन दहन का जो िच महाभारत क ‘आिद पव’ म आलेिखत आ ह, वह अितशय र तथा बीभ स
ह। अजुन ने इस वन म आग लगाकर बाद म वन क बाहर जानेवाले माग पर खड़ होकर, जो अपना ाण बचाने
क िलए भाग रह थे, ऐसे शतसह सः अथा लाख ािणय को मार डाला तथा िज ह ने अपने ब को गले से
िलपटाया था, ऐसे असं य ी-पु ष क भी ह या कर डाली। अजुन क श ाघात से बचने क िलए भाग रह
अनेक ाणी वापस अ न म कद पड़ तथा असं य प ी और असं य अ य ाणी न हो गए। इ ारा बरसाई
गई वषा का भी अजुन ने अपने िद य अ ारा ितकार िकया और बरसती वषा बादल म ही शोिषत हो गई।
इस कार खांडव वन क आकाश म काले बादल , अजुन क बाण तथा भूिम पर अ न क चंड ाला, इन
दोन क बीच धुएँ क गु बार छा गए और ािणय को घुटकर मरण क शरण म जाना पड़ा।
अजुन ारा िकए गए इस जघ य मानवसंहार का एक िवशेष यान देने यो य पहलू यह ह िक इस िवनाश को
ीक ण का अनुमोदन भी िमला था। इस सम घटना म अजुन िजतने ही क ण भी सहभागी थे। क ण क
उप थित म यह आ ह; इतना ही नह , क ण ने यह क य करने क िलए अजुन को ो सािहत िकया था।
क े क मैदान म एक िनद ष िटिटहरी का ब ा भी न मर, इसक सावधानी रखनेवाले क ण ने खांडव दहन
क घटना म जो ख िलया ह, वह क ण क य व को समझने म जो न अनु रत रहते ह, उनम से एक
ह। सुर ा अथवा अ य राजक य ि से खांडव वन का देश ा करना अिनवाय रहा हो तो भी जो िनमम
और र ह याकांड िकया गया था, उसका बचाव िकया ही नह जा सकता। इसक साथ ही पूव-जीवन म क ण
जब गोकल म रह रह थे, उस समय कािलय नाग क साथ उनका जो वैमन य आ था, उस संग म उनक मन
म य कािलय क बदले सम नागजाित क िलए घृणा पैदा ई हो, ऐसी संभावना ह। इसक बावजूद क ण क
िवरा य व को ल म लेते ए तथा ािणमा क ित उनक का यमयी ेम क संग को यान म रखते
ए ऐसी घृणा उ ह ने पाली हो, यह ज दी वीकार न िकया जा सक, ऐसा तक ह।
इस सम घटना को एक अ य कार से भी मू यांिकत िकया जा सकता ह। आय स िसंधु क देश म
िवजेता बने थे और नाग जा परािजत हो चुक थी। यह परािजत जा अ पसं यक भी थी। िवजेता व ब सं यक
जा कभी-कभी इस तरह परािजत व अ पसं यक जा का रतापूवक संहार करती ह, ऐसे संग मानव
इितहास म जगह-जगह देखने को िमलते ह। आज भी अ का और यूरोप क कई देश म जो आंत रक िव ह
होते ह, उनम इस मनोवृि का मूल देखने को िमलता ह। िवजेता को सदैव यह बात ल म रखनी चािहए िक
परािजत या अ पसं यक का संपूण नाश हमेशा क िलए कभी नह िकया जा सकता ह। इ स बार पृ वी को
ि यिवहीन करने क बाद भी परशुराम अपने अिभयान म सफल नह ए थे। यह बात नाग जा और आय जा
क संघष म भी देखी जा सकती ह।
खांडव वन दहन म से सुरि त बच गए त क नाग तथा उसका पु अ सेन पांडव से ितशोध लेने क िलए
कसे-कसे य न करते ह, इसक कथा भी जानने यो य ह। अ सेन ने अजुन का नाश करने क िलए क े क
यु क दौरान सेनापित कण से िवनती क ह िक यिद कण अ सेन को अपने बाण पर लपेटकर अजुन क रथ
तक प चा दे तो वह अजुन को मार डालेगा। कण ने अ सेन क इस माँग को वीकार नह िकया था और
कहा था िक वह इस कार क दूसर िकसी क सहायता लेकर यिद अजुन का वध करगा तो इसम उसका गौरव

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या? अ सेन क असफलता क बाद भी अजुन और इस तरह सम पांडव क ित वैरवृि रखनेवाली
नाग जा ने अपने वैर का शमन नह िकया। पांडव क जीवनकाल क दौरान वैर-तृ न कर सकनेवाले त क
नाग को जब पांडव क एकमा वंशज परीि त का नाश करने का अवसर ा आ तो उसने वष से अधूरी
रही वैरभावना पूण क ह। परीि त को डसने क िलए जा रह त क ने राजा को पुनज वन दे सकने क िलए
समथ ा ण को माग म ही ढर सारा धन देकर वापस लौटा िदया और अपने आपको पु प और फल क
टोकरी म छपाकर वह परीि त क एकदम पास प च गया और उसका संहार भी िकया।
यह संहार और वैरभावना यह समा नह ई। परीि त क पु जनमेजय ने ‘सपस य आरभ’ िकया और
तमाम नाग उसम होम होकर न हो जाएँ, ऐसा चंड अिभयान शु िकया। इस अिभयान म नाग क शेष
सं या भी भ मीभूत होने लगी तो आ तक ऋिष ने आकर इस संहार क यथता जनमेजय को समझाई और इस
य को रोकने का वचन ा कर िलया। ये आ तक ऋिष भी आय िपता जरतका और नागजाित क ी क
संसग से जनमे थे। इस कार उनम आय तथा नाग, दोन जाित क िम सं कार का िसंचन आ था।
िन त भूखंड म रहती िभ -िभ जा को इस घटना से एक सवमा य संकत हण करने लायक ह िक
जब तक ये िविवध वग िम भाव से एक वा यता का िनमाण नह करते ह, तब तक वैरभावना और पर पर
र िपपासा शांत नह होगी। आज भी िव म कोई भी देश िकसी एक िन त जाित का ही संपूण देश हो,
ऐसा रहा नह । धम, भाषा नृवंश शा क िस ांत, इस कार मानवजाित अलग-अलग वग म बँटी ई ह। इस
िविवधता क बीच यिद एकता का िनमाण न िकया जा सक तो सदैव खांडव वन क ालाएँ धधकती रहगी और
परीि त क वध होते ही रहगे। यिद कोई िवजेता ऐसा मानता हो िक िकसी अ य जा को बा बल से सदा क
िलए परािजत रखा जा सकता ह तो यह धारणा स ाई से ब त दूर ह। कचली ई जा म भी वैरभावना लंत
ही रहती ह और जब भी अवसर ा होता ह तो ह याकांड ए िबना रहते नह ।
खांडव वन क दहन क अंत म अ सेन और त क नाग क अित र नाग जा का थपित (राजगीर) कहा
जा सक, ऐसा मयदानव भी सुरि त बच गया था। मेर ाण क र ा ई, इसम कत ता से े रत होकर उसने
क ण से ाथना क ह िक क ण का कोई भी एक इ छत काम वह कर देगा। इस मयदानव क सम क ण ने
अपनी जो इ छा य क ह, उस इ छा क संदभ म देख तो खांडववन-दहन क अजुन क इस क य को क ण
का िमला यह अनुमोदन और भी गहरा हो जाता ह, और भी गहर न खड़ा करता ह। क ण ने मयदानव से कहा
िक उ ह तो मयदानव से कछ भी नह चािहए, पर मय यिद उनका कोई कम करना ही चाहता ह तो उसे पांडव
ारा नई बसाई ई नगरी इ थ म पांडव क िलए एक महल का िनमाण कर। इस संग म इ क पास से भी
क ण ने अपने िलए कछ नह माँगा और उ ह सतत अजुन का ेम ही िमलता रह, ऐसी भावना कट क ह।
वयं तो वे अजुन क ेम से ही संतु ह, ऐसा कहकर उ ह ने अजुन का तो गौरव िकया ही ह, पर ेम नाम क
पदाथ को भी उ तम भूिमका पर रख िदया ह। िकसी का ेम और वह भी अपने ि य पा का ेम सतत ा
करते रहना दु कर ह और इसिलए उसक ा अिधक मू यवान ह, इसका मानो क ण ने संकत दे िदया ह।
अजुन क ण क ऐसे ेम क िलए इ छा कट करते ह तो यह सहज मानवीय इ छा कही जा सकती ह, पर यहाँ
तो वयं क ण ने ऐसी अभी सा कट करक ेम पदाथ का चंड ऊ वमूलन िकया ह।
भारतीय सं कित क परपरा म हम िजसे घोर नरसंहार कहते ह, ऐसी घटनाएँ ब त कम देखने को या जानने
को िमलती ह। यु जैसे संग म संहार हो, यह समझा जा सकता ह, िफर भी यु क भी अपने िवशेष िनयम
रह ह; हालाँिक ऐसे िनयम क अनुसार अिधकांशतः यु नह ए ह, यह वीकार करना चािहए। िनःश
सैिनक ह , शरण म आया आ श ु हो, वृ बालक या ी हो, ये सभी अव य माने गए ह। इस उ

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सां कितक मू य का स करक खांडव वन का दहन आ ह। इस अथ म रा किव मेघाणी ने इस क य को
‘िहद माता’ क एक पाप क प म आलेिखत िकया ह तो उसम कोई अनौिच य नह । मा भारतीय परपरा म ही
य , सम सुसं कत मानवजाित क इितहास म इस कार का नरसंहार हमेशा िनं माना गया ह। यह संहार
परमाणु बम ारा न ए िहरोिशमा और नागासाक जैसे शहर का हो या िफर कॉ सन शन कप या गैस
चबर म होम ए िनद ष नाग रक ह , इन सब को सदासवदा पाप ही मानना चािहए।
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आयतर य का िववाह-बंधन
महाभारतकालीन िववाह यव था म ब प नी व तो ठीक, ब पित व का भी अ त व िदखाई देता ह।
इसक बावजूद एक पित व अथवा एक प नी व को उ दा आदश क प म थान ा आ ह। उस
समय क िववाह- यव था क संदभ म हमारी वतमान िववाह सं था को िकसी तरह मू यांिकत िकया
जा सकता ह या?

पु ष और ी क दैिहक संबंध को िकसी िन त खाक म बैठाने का ेय यिद िकसी को देना हो तो


महाभारत क ‘आिदपव’ म आए ऋिष उ ालक और उनक पु ेतकतु क कथानक को देना चािहए। उसम
भी यश का अथवा अपयश का असली अिधकार पु ेतकतु क भाग म जाता ह। इस कथा क अनुसार
महाभारत क पहले क ाचीनकाल म मानव-समाज क पास िववाह जैसी कोई िन त यव था नह थी। िजस
काल का यहाँ उ ेख आ ह, उस काल म िववाह- यव था का अभाव ह, पर ान और सं कित क ि से
यह युग कोई षाषाण युग नह लगता। ऋिष उ ालक और उनक पु ेतकतु क बीच जो संवाद होता ह, वह
सां कितक प से आिदयुग का संकत नह देता। िव ा यास करक पु ेतकतु िपता क घर वापस आया ह
और िपता-पु क बीच ानवा ा हो रही ह। उसी समय एक अ य ऋिष ने वहाँ आकर उ ालक से उनक प नी
अथा ेतकतु क माता को थोड़ समय क िलए वयं को स पने क माँग क । इस माँग क कारण क प म
इस ऋिष ने अपनी दैिहक आव यकता क पूित और संतानो पि , इस कार दोहरी बात क और िफर उ ालक
क स मित क भी ती ा िकए िबना ेतकतु क माता का हाथ पकड़कर कहा, ‘चलो, हम जाते ह।’ यह य
और िपता क यह मूक सहमित ेतकतु क िलए अस थी।
पु को शांत करते ए िपता उ ालक ने कहा, ‘‘पु , रोष उिचत नह , य क साथ तो ऐसा ही यवहार
होता ह।’’ िपता क इस बात से पु का रोष और भी भड़क उठा और उसने ित ा ली िक इस वे छाचार को
म अव य िनयंि त क गा। कथा कहती ह िक इसक बाद ेतकतु ने जो यव था क , उसम ी-पु ष क
यवहार क वे छाचार पर ितबंध लगा और ऐसा वे छाचार करनेवाला घोर पातक ह, ऐसा समथन िकया।
इसम भी रोचक बात यह ह िक ेतकतु ने भी इस िनयम म एक छट रखी। उसने कहा िक जो ी पु ा
करने क िलए पित क स मित होते ए भी अ य पु ष सेवन नह करती, वह भी ऐसा पाप करने वाली मानी
जाएगी। अथा पु ा क िलए पित क सहमित लेने क बाद अ य पु ष क साथ का संबंध ध य ही माना गया
ह। इस संदभ म दीघतमा नाम क एक ज मांघ ऋिष क कथा भी याद करने जैसी ह। इस ऋिष ने ेतकतु ारा
िनिमत िकए गए ी-पु ष संबंध क ढाँचे को और भी यव थत िकया ह। दीघतमा ने जो िनयम बनाए, वे
कार ह : अब से कोई भी ी एक से अिधक पित नह रख सकगी और पित क मृ यु क बाद भी यिद कोई
ी दूसर पु ष को वीकार करगी तो वह िनं मानी जाएगी। इसम य क पुनिववाह क छट तो दी गई ह,
परतु ऐसे िववाह को सामािजक वीकित नह दी गई।

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महाभारत काल म जो िववाह- यव था नजर आती ह, उसम मु यतः ब प नी व का ाधा य तो िदखाई देता
ह, इसक बावजूद एक पित या एक प नी, इस यवहार को उ थान पर रखा गया ह। िफर भी महाभारत म
े तर कह जाने वाले तमाम पा एक से अिधक प नयाँ रखे ए ह। युिधि र भी इसक अपवाद नह रह ह।
िजसे हम ब पित व कह, ऐसा तो ौपदी का एक ही उदाहरण हमार सामने ह। हालाँिक ब प न व म भी पूवशत
क प म तो तमाम प नय क ित समान भाव और यवहार अपेि त ह। यह अपे ा चं और द क कथानक
ारा प क ह। चं को 27 प नयाँ थ और उनम से एक रोिहणी क ित उसे अिधक पे्रम होने क कारण
द ने उसे शाम िदया था। (यहाँ करान म चार प नयाँ रखने क मुसलमान को जो छट दी गई ह, उसम भी
पूवशत यही ह िक यिद पु ष इन तमाम प नय क ित एक समान ही ेम रख सक तो ही ऐसे ब प नी व था
वीकाय ह, इसे यान म रखना चािहए।)
महाभारत मु यतः आयकल क कथा ह। अतः इस कथा क अिधसं य पा आयजाितय क बीच ही िववाह-
यवहार से जुड़ ह। इसक बावजूद आयतर जाित क याँ, जैसे िक गंगा, उलूपी, िच ांगदा, िहिडबा, शकतला
आिद क साथ क आय पु ष क िववाह क बात भी आलेिखत ई ह। यहाँ एक तुलना करने का मन िकसी भी
अ ययनकता को हो जाए, ऐसा य नजर म आता ह। आयतर जाित क जो याँ महाभारतकालीन आयपु ष
क साथ िववाह से जुड़ी ह, उ ह ने िववाह क इस बंधन को आजीवन िनभाने जैसा पिव नह माना ह। इतना ही
नह , ऐसी य ने आयकल क पारप रक प रवार था क अवहलना करक अपने वे छाचार का भु व
दरशाया ह, यह बात थोड़ा िव तार से समझने क ज रत ह।
गंगा ि पथगािमनी मानी गई ह। उसका ज म वगलोक म आ ह और वग म से वह पृ वी पर उतरी ह। इस
गंगा ने नारी व प म राजा तीप को नदी क तट पर समािध थ अव था म देखा और वह मोिहत होकर तीप
क जाँघ पर बैठ गई। तीप ने जब इस ी क साथ िववाह करने से इनकार िकया तो गंगा ने ऐसे तक िकया ह
िक कामवश ी का अनादर करना िकसी भी धािमक पु ष को शोभा नह देता। वा तव म आय परपरा म ऐसा
कोई ीपा नह िक जो ऐसा तक करक पु ष क साथ क यवहार म वयं पहल कर। गंगा का यवहार यह
समा नह होता ह। इस घटना क बाद जनमा राजा तीप का पु शांतनु जवान आ, तब भी यही गंगा शांतनु
पर मोिहत ई और शांतुन भी मोहवश ए। इसक बाद शांतनु क साथ िववाह करने क िलए जो शत गंगा ने रखी,
उसम वैवािहक जीवन क दौरान शांतनु को प नी गंगा को िकसी भी काम म रोकना नह था। इतना ही नह , उस
काम क िवषय म कोई न भी नह करना था। इस कार इस िववाह म क या का आिधप य आय िववाह- था
क वीकत परपरा से अलग िदखाई देता ह।
भीमसेन का िहिडबा क साथ का िववाह भी रा सकल क एक नारी क साथ आ था, ऐसा माना जा सकता
ह। िहिडबा भी भीमसेन को देखकर मोिहत ई ह और मोह से े रत होकर उसने त काल दैिहक संबंध क माँग
क ह।
इसक बाद भीमसेन और िहिडबा का िववाह तो आ, पर यह वैवािहक जीवन जब तक िहिडबा क कोख से
संतान जनमे, तब तक ही रह और उसक बाद भीमसेन पांडव क पास चले जाएँ, ऐसा समझौता आ ह। इसका
अथ यह आ िक िहिडबा भी सीता या ौपदी क तरह पित क परछाई बनी रहने क परपरा को वीकार नह

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करती। इसक बाद पु घटो कच का ज म आ, इसिलए एकाध वष क अंतराल क बाद भीम प नी िहिडबा को
तथा पु घटो कच को यागने म देर नह करता ह।
रिसकजन व भ पांडव अजुन ने अर यवास क दौरान नागजाित क दो राजक या उलूपी और िच ांगदा
क साथ िववाह िकए ह। उलूपी क साथ तो उसने बस एक ही रात शयन िकया ह। इस एक रात क शयन म भी
पहल तो उलूपी ने ही क ह। उलूपी ने ही आगे बढ़कर अजुन को अपनी ओर ख चा ह; इतना ही नह , उसे
अपने िपता क घर ले जाकर िपता से िववाह क स मित भी ा कर ली ह। मिणपुर म अजुन ने िच ांगदा क
साथ लगभग तीन वष िजतना समय िबताया ह और उसक बाद इन दोन प नय को छोड़कर वह वापस अपने
पूवजीवन म यव थत हो गया ह। यहाँ भी इन नागक या को एक-एक पु जनमा ह, पर पित-प नी साहचय
से िनखरता पा रवा रक जीवन इन संबंध म चला नह ।
शकतला महाभारत क मु य कथानक से जुड़ा आ पा नह ह; इतना ही नह , उसे िवशु आयतर क या
भी नह कहा जा सकता ह। राजिष िव ािम और वगगािमनी अ सरा मेनका क संबंध से जनमी यह पु ी
मातप से आयतर ह। राजा दु यंत इस क या क साथ िववाह करने क बाद जब ऐसा कोई िववाह होने क बात
को अ वीकार करते ह तो शकतला पित को जो ताना मारती ह, वह आय क ी परपरा से िब कल िभ ह।
शकतला कहती ह, ‘‘ह राजा! म देव भी िजसे ेम करते ह, ऐसी मेनका क पु ी और इसिलए आप से
अिधक े । आप भूिम पर चलते ह परतु म िजस माता क संतान , वह अंत र म भी चलती ह। यिद आप
मेरी स ी बात वीकार नह करगे तो मेरा कोई योजन नह , म चली जाऊगी। परतु मेरा यह पु इस पृ वी का
राजा अव य बनेगा।’’ शकतला क ये वा य कोई भी आय ी अपने पित क हजार अपराध ह , तो भी न
उ ार, ऐसे ह। इसम शकतला क ित अ याय नह आ था, ऐसा कहने का आशय नह , ब क मा
सां कितक भूिमका समझने का यास ह। (राजा दु यंत क खोई ई अँगूठी शकतला क पास देखकर राजा को
सबकछ याद आ गया, यह बात तो सैकड़ वष बाद किव कािलदास ारा उपजाकर िनकाली ई बात ह और
मूल कथानक म इसका कह उ ेख नह ह।)
ौपदी क ब पित व को भी इस संदभ म सहज जाँचा जा सकता ह। पांडव वा तव म आय राजा पांड का
य बीज नह । ये किथत पांडपु हक कत म तो देवजाित क अलग-अलग पु ष क संपक से उ प ए ह।
इस तरह िजस तरह से शकतला िवशु आयतर नह , उसी कार पांडव भी िवशु आय नह । देवलोक क जो
ी-पु ष संबंध क िवभावना ह, इसम ब पित व का कोई ब त आ ह रहा हो, ऐसा लगता नह । देवलोक क
अ सराएँ तथा अ य याँ ऐसे यवहार म एक से अिधक पु ष का वीकार करती ह , ऐसा प प से
िदखाई देता ह। इन पांडपु का पालन-पोषण, िजसे हम ि िव प अथवा िहमालय क पवतमालाएँ कहते ह,
उसम आ ह और िहमालय क इन पवतमाला को हम देव क धाम क प म सदा बताते आए ह। इस
कार परो प से पांडपु पर ब पित व क आयतर सां कितक िवचारधारा फली हो, ऐसा संभव ह। राजा
ुपद क सामने अपने इस ब पित व वाले िववाह को ध य बताते ए युिधि र ने जो तक िकया ह, उसम भी यह
आयतर सां कितक ल ण कट आ हो, ऐसा लगता ह।
ब पित व क इस एकमा अपवाद प वीकार क साथ हम कटब- यव था म पु ा क िलए जो अ य
वीकित माग महाभारत म ि गोचर होता ह, उसे यान म रखना चािहए। राजा पांड क कहने से कती मं ो ार

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ारा देव को एक क बाद एक अपने पास आमंि त करती ह और तीन पु को ज म देती ह। तीसर पु क
ज म क बाद भी जब राजा पांड अभी और अिधक पु क िलए आकां ा करते ह तो कती ने जो कहा ह, वह
अितशय सूचक ह। कती ने कहा ह िक जो ी संतान ा क िलए भी चौथी बार परपु ष क साथ संसग करती
ह, उसे वे छाचा रणी कहा जाता ह और यिद पाँचव बार भी वह दूसर पु ष क साथ ऐसा यवहार कर तो उसे
वे या ही मानना चािहए। इसका अथ ऐसा भी लगाया जा सकता ह िक वैवािहक जीवन म भी पु - ा क िलए
तीन बार अ य पु ष क साथ का यवहार अध य नह माना गया।
पांड का मा ी क साथ िववाह क यािव य का उ म उदाहरण ह। म देश क राजा क पास जब भी म ने पांड
क िलए राजकमारी मा ी का हाथ माँगा तो उस राजा ने कहा िक हमारी कलपरपरा म क यािव य क था ह
और पया धन ा िकए िबना क या का िववाह न करने क अपनी इस कलपरपरा को तोड़ना तो अधम कहा
जाएगा। िपतामह भी म ने इस था का अनुमोदन िकया ह।
वयंवर और अपहरण, ये दोन वीकत था रही ह , ऐसा लगता ह, य िप वयंवर का अथ बदल जाता रहा
हो, ऐसा भी िदखाई देता ह, िजसम क या को अपनी पसंद का वर चुनने का अिधकार िमले, यही वयंवर का
मूलभूत उ े य था। परतु कालांतर म इसम प रवतन आ ह और क या क िपता ारा भावी जामाता (दामाद)
क कसौटी करने क िलए िन त शत पूरी करने का आ ह रखा गया ह। इस आ ह म क या क पसंदगी का
िफर कोई अवकाश नह रहता। श य राजा क तीन पुि य का भी म ारा िकया गया अपहरण िनरा साम य
का ही दशन नह ; य िक इसक बाद वयं क ण ने मणी का अपहरण िकया ह और अजुन ने क ण क
बहन सुभ ा का अपहरण िकया ह। वैसे इन तीन अपहरण म एक ता वक भेद भी ह। भी म ारा िकया गया
अपहरण अपने िलए नह था। दूसर क िलए ॉ सी ारा होनेवाला इस कार का अपहरण िकस सीमा तक
ध य कहा जा सकता ह, यह न उठना वाभािवक ही ह। सुभ ा का अपहरण करने क सलाह देते ए क ण
ने अजुन से कहा ह िक नारी का मन ब त चंचल होता ह और उसक पसंदगी कब, िकसक िलए और िकन
कारण से होगी, यह कहना दु कर ह। अतः ि य क िलए जो ध य ह, उस प ित क अनुसार तुम इसका
अपहरण कर लो। अजुन ने सुभ ा का अपहरण िकया और इसम सुभ ा क पूवस मित थी, ऐसा लगता नह ।
क ण ारा िकए गए मणी क अपहरण म मणी क सहमित थी, यह अंतर यान देने यो य ह।
पु ी ीधम म वेश कर, उसक पहले ही उसका िववाह हो जाए, यह ई ह, पर उसक ीधम म वेश क
बाद अिधक-से-अिधक तीन वष म िपता को उसका िववाह कर देना चािहए। तीन वष क बाद भी यिद िपता
अपने इस कत य का पालन करने म असफल िस होता ह तो पु ी को अपनी इ छानुसार िववाह कर लेने क
शा ो स मित ा ह। (अनुशासन पव 44/16)
इस पूव उ ेख क आधार पर एक बात प प से समझी जा सकती ह िक महाभारतकार ने िववाह था
को िनरी य गत ज रत नह , ब क सामािजक ज रत क प म भी देखा ह। िववाह वा तव म य गत
क अपे ा सामािजक ढाँचे को अिधक सु ढ करने का एक ल ण ह। समाज का वा य उसम बसनेवाले
य य क यवहार एवं िवचार पर आधा रत होता ह। इसक बावजूद य क अपे ा सामािजक वा य
अिधक मह वपूण ह। चय का िवशेष मह व वीकारा गया ह, परतु उसक साथ ही गृह था म को भी ऊचे
और पिव थान पर रखा गया ह। एक तरह से देख तो महाभारतकाल म जो तप वी और ऋिष माने गए ह,

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उ ह ने भी िववाह जीवन वीकारा ही ह। वर-वधू क बीच क आयु क िवषय म ठीक-ठीक िवसंवाद देखने को
िमलता ह। वृ - यवन ऋिष को पित क प म वीकार करनेवाली सुक या क उदाहरण म दोन क आयु म
ब त बड़ा अंतर रहा हो, यह असंिद ध होने क बावजूद िवराट नगरी म अजुन को अपनी बेटी उ रा क साथ
िववाह करने क िलए राजा िवराट ने कहा, उस समय उ रा क आयु गुि़डय से खेलती बािलका से थोड़ी ही
अिधक रही होगी, ऐसा लगता ह। अपनी गुि़डय क िलए, यु म जा रह अजुन से परािजत श ु क शरीर पर
से व लाने क िलए उ रा ने कहा था, इसे याद रखना चािहए। अजुन ने राजा िवराट क इस ताव को
अ वीकार कर िदया और अपने पु अिभम यु का िववाह उ रा क साथ कराया।
ये ाता का िववाह न आ हो, िफर भी यिद छोटा भाई िववाह कर तो यह अधम कहा जाएगा, ऐसा
ौपदी वयंवर क बाद तुरत ही अजुन ने कहा ह और इस कार ौपदी क ब पित व को समथन िदया ह;
हालाँिक इसक पहले ही भीमसेन ने िहिडबा क साथ िववाह िकया ह। उस समय भी युिधि र तो अिववािहत थे,
पर उस समय धम क यह बात िकसी को याद नह आई।
वतमान काल म भी िजस िवषय पर िवचार करने म या तो हम दंभ करते ह अथवा संकोच कट करते ह,
वैवािहक जीवन क ऐसे न को महाभारतकार ने उसक तमाम प र े य म मू यांिकत िकया ह। वग य ि िटश
धानमं ी चिचल ने लोकतांि क शासन णाली क िवषय म एक बार कहा था िक लोकतांि क णाली शासन
क कोई सव म णाली नह , परतु जब तक दूसरी कोई अिधक अ छी णाली हम न िमले, तब तक यह
णाली िटकाए रखनी जैसी ह। वतमान िववाह-जीवन क था क िलए भी चिचल का यह िनरी ण उतना ही
सही ह। दूसरी अिधक कोई उ म यव था, जो ी-पु ष संबंध को थरता दे सक, जब तक खोजी न जा
सक, तब तक सामािजक अनुशासन और यव था क िलए यही िवक प रहता ह। महाभारतकार ने तमाम
िवक प हमार सम िवशु य गत संबंध और सामािजक वा य क प र े य म रखे ह। उसने कछ भी
गोिपत नह रखा ह, कोई दंभ नह िकया। दैिहक और मानिसक संबंध क सव व प से लेकर अिभयांि त
व प म लगभग पशुता क िनकट प च जाए, उस तर पर उसने इन सब क छानबीन क ह। आज सैकड़
वष बाद मनु य ने यिद अपने अनुभव और अपने बौ क तर का िवकास िकया, तो महाभारत क पास
मागदशन ह। य देश और काल क संदभ म िकसी भी कार क जड़ता को ितलांजिल देकर इस िवषय म
थित थापकता धारण कर, यही बेहतर ह।
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शा क उपे ा कर, वह शू
कण सूतपु था, इसिलए ौपदी ने वयंवर म उसे अ वीकार कर िदया था। इसी कार ा ण न होने
क कारण परशुराम ने उसे िव ा दान करने क बाद शािपत िकया था। एकल य को अपने िश य क
प म ोण ने इसिलए अ वीकार कर िदया था, य िक वह िनषाद था। सामािजक े म चिलत
यह वण यव था िश ा क े म भी महाभारतकाल म भी चिलत थी, ऐसा उपयु उदाहरण क
आधार पर कहा जा सकता ह या? िश ा क े म उस काल म य को पया अवसर ा नह
थे, ऐसा कोई मान ले तो इसम कोई त य ह या?

वण यव था भारतीय समाजरचना का वैिदक काल से ही आधार रहा ह। इस वण यव था का, आज हम िजस


कार से िविनयोग करते ह, ऐसा कोई अथ उस समय रहा हो, यह मानना वैिदक परपरा को न समझने क समान
ह। िजस तरह वण यव था क बार म कहा जा सकता ह, उसी तरह ज म आधा रत लिगक अंतर को भी वैिदक
काल म आज क अथ म देखा हो, ऐसा लगता नह । महाभारतकाल वैिदककाल का लगभग अंत हो, ऐसा
उ रकाल ह। इस अथ म महाभारत क समाज- यव था क संदभ म वण यव था और ी व पु ष क िभ -
िभ सामािजक थान क िवषय म िवचार करना आव यक ह।
िश ा का जहाँ तक संबंध ह, वहाँ तक उसक िलए हमार शा ने अ ययन श द का योग िकया ह।
अ ययन श द से मु यतः वेदा ययन का संकत अिभ ेत ह। ी और पु ष दोन क िलए वेद का अ ययन मा
िवशेषता ही नह ब क सहजकम भी माना गया ह। इस अ ययन श द का िव तार उ रकाल म शा का
अ ययन और शा का अ ययन, इस कार दो तर पर आ ह। ा ण अिधकांशतः शा का अ ययन
करते रह ह और उसक साथ ही श का भी अ ययन करते रह ह। ि य ब धा श का ही अ ययन करते
रह ह, िकतु उसक साथ ही शा क अ ययन से भी वंिचत नह रह। िज ह ने मा श का ही अ ययन िकया
हो और शा क ित उपे ा रखी हो, उनक गणना, वीर ह तो भी शू म ही होती थी।
इस पूवभूिमका क साथ महाभारतकाल क कथानक मे जो िश ा यव था इिगत होती ह, उसका थोड़ा
िनरी ण कर लेते ह।
कण ज म से ि य था, पर उसक ज म का रह य गोिपत था। समाज म वह सूत जाित क संतान क प म
पहचाना जाता था। आचाय ोण ह तनापुर क राजकमार क िपतामह भी म ारा िनयु िकए ए िश क थे।
आज क अथ म कह तो ोण पांडव और कौरव क ‘ ाइवेट यूटर’ थे। उस युग म सामा यतः राजकमार भी
िश ा ा करने क िलए अलग-अलग गु क आ म म वष तक िनवास करते थे। िपतामह भी म ने इस
था का अनुसरण नह िकया और अपने पौ क िव ा ययन क िलए आरभ म कलगु कपाचाय क साथ
यव था क और उसक बाद, िजसे हम उ िश ा कहते ह, उसे ा करने क िलए आचाय ोण क िनयु
क ह। इस कार िनजी िश क बने ोणाचाय ने पांडव और कौरव क साथ कण का भी अपने िश य म

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समावेश िकया था। इस तरह राजपु क साथ ही कण को भी िव ादान िदया जा रहा था और यह वा तिवकता
िपतामह भी म सिहत ह तनापुर म सभी को िविदत थी। इसम कह भी कण क सूतपु होने क बाधा आड़ आते
िदखाई नह देती ह। परतु उसका सूतपु होना दो बार बाधा व प बनकर खड़ा आ ह। कण आचाय ोण से
जब वयं को ा िव ा िसखाने क िलए िवनती करता ह तो आचाय उसे अ वीकार कर देते ह। इस
अ वीकार क िलए वे यह कारण देते ह िक ा िव ा मा ि य को ही उपल ध कराई जा सकती ह।
परतु ोण का यह उ र तकपूण नह , य िक यह िव ा उ ह ने अजुन क बाद अपने पु अ थामा को भी ा
कराई थी।
यहाँ इस बात पर भी यान देना चािहए िक अ थामा को यह िव ा िसखाते समय भी आचाय ोण ोभ
अनुभव कर रह थे। पु अ थामा भी इस िव ा को ा करने का अजुन िजतना अिधकारी नह , यह स य
आचाय ोण जानते थे। आचाय क अजुन- ीित अनजानी नह और संभवतः अजुन ही उसक िलए सवािधक
यो य अिधकारी ह, ऐसा उ ह ढ िव ास था। अजुन सव े धनुधर बना रह और अ य कोई उसक समक न
खड़ा हो सक, यह इ छा आचाय ोण क मन म िन त प से थी। इस इ छा से ही े रत होकर उ ह ने कण
को यह ान न देना वीकार िकया हो, यह अिधक तकपूण ह। कण क सूत जाित का सावजिनक प से
उ ेख करक उसे ल त करने का पहला यास तो रगमंच पर ही आ था और वह भी ि य िश य अजुन क
र ा क िलए ही आ था, यह िनिववाद ह।
ौपदी वयंवर म कण म यवेध करने क िलए खड़ा आ तो ‘म इस सूतपु से िववाह नह क गी’ ऐसा
कहकर ौपदी ने उसको म यवेध क पूव ही अ वीकार िकया था। महाभारत को िकसी-िकसी आवृि म कण
म यवेध म असफल िस आ था, ऐसा भी उ ेख िमलता ह। वयंवर क आरभ म ही राजकमार धृ ु न
ने वयंवर क जो पूवशत घोिषत क थी, उसम ब त ही प प से प और बल क साथ ही उ म कल का
होना अिनवाय था। वण यव था पर आधा रत समाज को ल म रख तो कण धृ ु न क इस शत क अनुसार
उ म कल का नह था और इसिलए ौपदी यिद उसे अ वीकार कर तो उसम शु याय न हो, तो भी तक तो
ह ही। िफर भी इतना अव य कहा जा सकता ह िक इसम कोई हीन जाितवाद नह था। यिद ऐसा ही होता तो
राजसूय य म युिधि र जब िनमंि त क सूची तैयार करते ह तो दूत को उ ह ने ऐसी सूचना दी ही न होती िक
तप वी ा ण , ि य राजा और मा य शू को य म िनमं ण देना चािहए। यहाँ ‘मा य’ श द का अथ
िव ावान अथवा श से ही लगाना चािहए। यानी िक मह व ज म का नह ब क िव ा ययन का था। कण
िजस तरह सूत जाित का था, उसी तरह महिष रोमहषण, उनक पु सौित तथा महाराज धृतरा का सारिथ
संजय, तीन क सूत जाित क थे, िफर भी सव उ थान पर वीकार ा िकए थे। सौित ने तो महिष यास
क जो मु य पाँच िश य महाभारत क सार क िलए चुने गए थे, उनम थान ा िकया था।
परशुराम ि य क ित अपनी वैरभावना क िलए िव यात थे। ि य राजा क हाथ िपता जमद न क जो
अवहलना ई थी, उससे संत होकर परशुराम ने सम पृ वी को ि यिवहीन करने क जो ित ा ली थी, वह
ित ा पूरी करने म वे सफल नह ए थे। वैर क इस धधकती अ न क साथ उ ह ने िजस भूिम पर िवजय ा
क थी, उस भूिम का दान करक एकांतवास वीकारा। इस एकांतवास म उ ह ने यो य िश य को िव ा यास
करवाना जारी रखा ह और इसम ोण तथा कण का समावेश होता ह। कण ने िव ा ययन क आरभ म अपना

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प रचय ा ण क प म िदया था और कण क इस अस यवादन को वीकार करक ही परशुराम ने उसे िश य
क प म वीकार िकया था। इसक बाद जब कण क ा ण नह होने क जानकारी उ ह ई, तभी कण को
उ ह ने ि य ही मान िलया था और इस मा यता क अंतगत ही कण को शािपत िकया ह। इस कार कण क
ित परशुराम का यवहार वणभेद से े रत नह , ब क िनजी प से उनक मन म जो ि य ेष था, उसी का
ही यह प रणाम ह।
एकल य, िजस तरह कथाकार उसे आिदवासी जाित क िकसी असं कत और अिशि त भील क प म
प रिचत कराते ह, वैसा नह । िनषाद जाित रामायणकाल म भी रा य भोगनेवाली जाित ह। गंगातट पर राम और
िनषादराज गुह क बीच आ संवाद िस ह। इसी तरह एकल य भी िनषादराज िहर यधनु का पु ह। यह
जाित अर य म रहती ह और वेदा ययन म ब त पारगत हो, ऐसा नह लगता ह। यह जाित अनाव यक ाणी-
ह या करती ह और थूल आमोद- मोद को धानता देती ह, ऐसा उ ेख भी िमलता ह। इस एकल य ने दािहने
हाथ का अँगूठा गँवाने क बाद भी धनुिव ा म अपनी वीणता बनाए रखी थी और उ रकाल म क ण क िव
राजा प ने जब यु िकया, उस समय उसने प क प म रहकर अपनी वीरता और धनुिव ा क िस
दिशत क थी।
एकल य तेज वी और वीण िश य था, यह समझने म ोण जैसे ा को देर लग ही नह सकती थी।
िश य व क कसौटी म एकल य अपनी तेज वता क कारण ऊचे अंक ा कर सकता था और इसीिलए
आचाय ोण ने उसको अ वीकार िकया हो, यह मनोवै ािनक ि से सुसंगत ह। आचाय ोण अपने ि य िश य
अजुन को अ तीय रखना चाहते थे और िजस तरह कण अजुन का सफल ित पध बनने क मता रखता
था, उसी तरह एकल य भी उ म धनुधर ह, इसक तीित होते ही ोण ने पहले उसे अ वीकार िकया और िफर
उसक दािहने हाथ क अँगूठ क गु दि णा माँगकर अपनी अजुन- ीित को ही सािबत िकया ह। िजसे अपने
िश य क प म वीकार िकया हो, उसक पास से गु दि णा माँगने और पाने का दरअसल कोई अिधकार ोण
को था ही नह , इसक बावजूद यह अनिधकार क य उ ह ने िकया तो इसम िकसी वणभेद या जाितभेद का न
नह समाया ह। इसम तो आचाय का अजुन क ित मोह कहा जा सक, ऐसा ेम ही कारणभूत ह।
जहाँ तक नारी-िश ा क बात ह तो महाभारतकाल म कोई िन त िश ा- यव था रही हो, ऐसा िदखाई नह
देता ह। स यवती-गांधारी, कती-मा ी, ौपदी आिद तमाम ीपा शा से भली-भाँित प रिचत ह , ऐसा प
िदखाई देता ह। ये याँ सुिशि त ह और भी म अथवा क ण जैसे धम क परम ाता को भी वाद-िववाद म
परशान कर सक, ऐसी बु धशाली भी ह, इसक अनेक उदाहरण िदए जा सकते ह। इन याँ अपने शा ो
कथन क समथन म बार-बार ऐसा कहती ह िक—‘‘मने सुना ह’’ तथा ‘‘वणधम का उपदेश देनेवाले ा ण क
पास से मुझे जानने को िमला ह िक’’ अथा जो ान उ ह ने संपािदत िकया था, वह ान अपने प रवार म
आनेवाले ऋिषय , तप वय अथवा ा ण क पास से उ ह ने पाया था। इसम कोई गु -िश य परपरा थािपत
ई हो, ऐसा लगता नह । य क िलए कोई गु कल या िश ा का िनधा रत पा य म नह था, ऐसा भी प
तीत होता ह। इसक बावजूद ौपदी क िलए राजा ुपद ने ह तनापुर क राजकमार क तरह ही िनजी िश क
क यव था क थी तथा िवराट नगरी म राजकमारी उ रा को लिलत कलाएँ सीखने क िलए राजा ने बृह ला
क िनयु क थी, यह घटना सविविदत ह।

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एक आ यजनक और रह यमय कहा जा सक, ऐसे उ ेख को भी यहाँ यान रखा जाना चािहए।
ह तनापुर म पांडव और कौरव का अ ययन समा होने क बाद आचाय ोण आयावत क अ य राजकमार
और कमार को िश ा दे रह थे। ये िश य त कालीन िश ा णाली क िनयम क अनुसार गु क यहाँ ही
िनवास करते थे। राजा ुपद और आचाय ोण क बीच का वैमन य सम आयावत म िस था। ोण क
ारा अजुन क हाथ दी गई अपनी पराजय का ितशोध लेने क िलए और ोण का वध करने क िलए राजा
ुपद ने य देवता क पास से पु धृ ु न को ा िकया था, यह घटना भी सुिव यात थी। इस कार धृ ु न
उनक मृ यु का िनिम बननेवाला ह, इसका पूण ान होने क बावजूद आचाय ोण ने धृ ु न को अपने िश य
क प म वयं ोण ने ुपद क पास जाकर माँग क ह। ोण क यह माँग सहसा समझ म न आनेवाली बात ह।
यिद राजा ुपद ोण क पास अपने पु का गु पद वीकार करने क िलए उप थत ए होते तो बात अलग थी,
पर यहाँ तो वयं ोण अपनी मृ यु का कारण बनने जा रह धृ ु न को ऐसी मृ यु क िलए श स करते ह,
यह बात किठन सम या बनी ई ह। परतु महाभारत तो ऐसे न जाने िकतने अकल और किठन रह य का सृजन
करता ह।
o

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स य से बेहतर अस य
भावी पित धृतरा ने हीन ह, यह जानने क बाद गांधारी ने वे छया अंध व वीकार कर िलया था।
यह कथानक सती व क भावना को िकस सीमा तक साथक करता ह? इस तरह का कोई अ य
उदाहरण िदया जा सकता ह या? गांधारी क उपरांत अ थामा भी एक निच खड़ा कर, ऐसा
पा ह। पांडवपु क जघ य ह या करने क बावजूद क ण ने उसका वध रोका था और इसक िलए
वह ा ण ह, गु पु ह, ऐसे तक का सहारा िलया था। ोण ा ण भी थे और वयं गु भी थे,
िफर भी धमयु क िनयम का उ ंघन करक वयं क ण ने उनका वध कराया था और उसक
िवपरीत अ थामा को जीिवत छोड़ देने क िलए कौन सा तक बलव र होगा?

महाभारत म ऐसे अस यं कथानक ह, िज ह तकशा क सामा य िनयम से नह समझा जा सकता ह। इन


िनयम से ऊपर जाकर कई बार य व क सात य को या िफर कथानक क संदभ म उसक औिच य क िवषय
म अनुमान लगाया जा सकता ह। ‘दो धन दो बराबर चार’ क गणतीय गणना से ऐसी सम या क िवषय म
कछ कहा नह जा सकता ह। इसम महाभारतकार क संकत को समझ सक, शायद ऐसी हमारी मता न हो,
ऐसा भी हो सकता ह।
िपतामह भी म राजकमार धृतरा क िलए जब यो य क या क चुनाव क न पर चचा कर रह ह, उस समय
उनक मन म अपु अव था म मृ यु को ा ए अपने भाइय —िच ांगद और िविच वीय क िवषय म कछ
संदेश हो, ऐसी क पना क जा सकती ह। धृतरा ज मांघ ह और पांड रोिग ह। ऐसी थित म उनक भावी
प नय को पसंद करना और इन कलवधु से ह तनापुर क उ रािधकारी ा करना, यह मु य सम या
उनक सामने होगी, ऐसा लगता ह। इसम क या क पसंदगी का सबसे मह वपूण मापदंड वह पु वती हो, ऐसी
संभावना मा ही नह , ब क ढ िव ास क अपे ा ह। गांधारी कौमायाव था म सौ पु क माता होगी, ऐसा
आशीवाद भगवा शंकर से ा कर चुक थी। इस बात का भी म ने िवदुर क साथ क अपनी चचा म उ ेख
भी िकया ह। गांधार का रा य ब त कछ आज का अफगािन तान हो, ऐसा िव ान का मानना ह। इसका अथ
यह आ िक गांधार उस समय आयावत क नाम से जाने जानेवाले देश क उस पार था। आयावत म तो
धृतरा क अंधे होने क बात तो सु िस होगी ही, पर गांधार तक उसक अंध व क कथा शायद न प ची हो,
ऐसे िकसी तक क साथ भी म ने गांधार क क या को ह तनापुर क कलवधू बनाने का ताव भेजा हो, ऐसी
एक संभावना ह। यिद ऐसा हो तो भी म ने िव ासघात करने का यास िकया था, ऐसा आरोप उनपर होगा।
वा तव म गांधार राजप रवार धृतरा क अंधेपन से प रिचत था और भी म क इस ताव को वीकार करते
समय भी धृतरा क इस मयादा से वे अ छी तरह प रिचत थे। इसक बावजूद इस ताव को वीकार करने क
पीछ िकसी राजक य गणना होने क संभावना ह।

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गांधार आयावत क सीमांत पर काराकोरम पवतमाला क उस छोर पर थत देश होने क बावजूद मूलभूत
प से वहाँ क जा और शासक आयवंशी ही थे। ये आयवंशी राजा गंगा-जमुना क देश म अ य आयकल क
साथ िकसी कार का वगदार संबंध थािपत करना चाहते रह ह , यह सहज ह। इसक िलए यिद ह तनापुर का
रा य उ ह आयावत म वेश दे तो इससे अिधक अ छा या हो सकता ह? ऐसी िकसी मा यता से े रत होकर
गांधार ने यह संबंध वीकारा हो, ऐसा संभव ह। लाख पए का सवाल यह पैदा होता ह िक ऐसे संबंध क बाद
गांधार नरश क पाटवीपु शकिन अपने रा य का शासन करने क बजाय आजीवन बहन गांधारी क साथ
ह तनापुर म रहा ह और अपना िवनाश भी आमंि त िकया ह, इसका कोई तकसंगत कारण उपल ध नह होता।
गांधारी ने जब पहली बार जाना िक उसका भावी पित ज मांघ ह तो उसने अपनी दोन आँख पर प ी बाँधकर
वे छया अंधापन वीकार िकया; इतना ही नह , ऐसी वे छया अंधी बनी बहन को ह तनापुर ले जाकर शकिन
ने धृतरा क साथ उसका िववाह भी कराया।
पित िकसी कार से अ म हो, उससे सती ी ारा भी वे छा से ऐसी अ मता को वीकार िकया जाना,
इस बात का जोड़ अ य कह िमले, यह संभव नह । इसक िवपरीत सुक या और यवन ऋिष क कथानक म
राजकमारी सुक या ने वयं ही अनजाने म यवन ऋिष क आँख फोड़ डाली थ और ि हीन ए ऋिष से
ाय क प म िववाह करक उनक सेवा करना वीकार िकया था। इसम पित यिद अंधा हो अथवा अ य
प से अ म हो तो उसक ुिट पूरी करने म सती व का आदश िन िपत िकया गया ह। सुक या ने यवन ऋिष
क आँख बनकर उनक सेवा तो क ही, पर अ नी कमार को स करक पित क खोई ई ि वापस
िदला दी। सुक या क सती व का आदश गांधारी क आदश से िकसी भी ि से छोटा ह, ऐसा कहा नह जा
सकता।
अ थामा का ज म आ तो अ य नवजात िशशु क तरह वह रोया नह था। जनमते ही उसने अ क
तरह िहनिहनाहट क थी, इसीिलए उसका नाम ‘अ थामा’ पड़ गया था। वह ा णपु था और िपतृकल म
ोण तथा भर ाज जैसे ा ण का र उसम बहता था तो मातृप से कपाचाय तथा शर ान जैसे ऋिषय
का वह वंशज था। इसक बावजूद व क ब त ही कम अंश उसम िवकिसत ए, ऐसा उसका च र ह। वह
मह वाकां ी था और अपनी मह वाकां ी क पूित क िलए वह अनुिचत यवहार करने म भी संकोच अनुभव
नह करता था। िपता ने उसक बदले अजुन को ा िसखाया, इसक ई या भी उसम थी। क ण क मह ा
उनक सुदशनच क कारण ह, इस म से े रत होकर क ण क पास से इस सुदशनच को धोखाधड़ी करक
ले लेने का ष यं भी उसने रचा था। यु क अठारहव िदन क म यराि म पांडव िशिवर म चोरी-िछपे
घुसकर िजस तरह से उसने िनःश पांड-पु और सेनापित धृ ु न क ह या क , वह अितशय जघ य और
िनं क य था। पर ऐसे क य क िलए भी उसे तो संतोष ही था और उसने ऐसी िस ा क ह, जो कौरव
प म िकसी सेनापित ने भी ा नह क , ऐसा वह मानता ह, इतना ही नह , ा क जो पूवशत ह, उसक
अनुसार उसका िविनयोग कभी भी आ मण क िलए नह ब क सुर ा क िलए ही होना चािहए, यह जानते ए
भी उसने इस धम का उ ंघन िकया और अजुन पर उसने इस श का योग िकया।
ा का योग करने क दूसरी पूवशत यह ह िक उसका शमन संहार िकए िबना ही हो सक, ऐसी मता
भी धनुधारी म होनी चािहए। अजुन क पास यह मता थी और इसीिलए जब उसने इसका वापसी योग िकया

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तो वह इसका शमन भी कर सका। अ थामा ऐसा नह कर सका और फल व प उ रा क गभ म थत िशशु
का संहार िकया। िशिवर म िन ाव था म सोए श ु का संहार करना, इससे भी यह अघोर क य था। महाभारत
क अठारह अ ौिहणी सेना म यह सवािधक ितर कत क य था। िजस िशशु ने अभी पृ वी पर अवत रत होकर
पहली साँस भी नह ली, उसक ित श ुता से पे्र रत होकर उसका नाश करना सबसे अधम क य था।
और इसक बावजूद क ण ने इस अघोर क य क िलए अ थामा को मृ युदंड नह िदया। उसक म तक पर
से मिण छीनकर उसे जीिवत छोड़ िदया। इतना ही नह , उ ह ने उसे पूर तीन हजार वष क आयु भी दी। िजसे
वरदान कहा जा सकता ह, ऐसी यह लंबी आयु वा तव म चंड अिभशाप था। म तक पर थत मिण का
बु ग य अथ मा इतना ही हो सकता ह िक इस अधम क य क बाद वह ल त हो गया हो और उसक चेहर
क तेज वता क ण ने छीन ली हो और हम ‘िजसे नूर तेज उड़ गया’ कहते ह, ऐसी अव था म अ थामा
प च गया। मनु य का और वह भी िकसी ा ण या ि य का तेज ही उसका जीवन होता ह। िन तेज अव था
मृ यु से भी बदतर ह। अ थामा अब ऐसी ही बदतर अव था म आ गया था। जो अधम क य का आचरण
करते ह, उनका जीवन ऐसा अस और दुगधमय हो जाता ह, इसका संकत भिव य क पीि़ढय को िमले, ऐसे
िकसी उ े य से क ण ने उसे दीघायु िदया हो, ऐसा तक अिधक सुसंगत ह। भावी पीि़ढयाँ अ थामा को
अपनी नजर से सतत देखती रह, िजससे ऐसे घोर क य से दूर रहने क ेरणा उ ह िमलती रह। यह ेरणा शायद
सकारा मक न हो, भय े रत भी हो सकती ह, िफर भय क दुः व न म भी यिद कोई सकारा मक मू य िस हो
तो अ थामा का यह अधम क य भी एक कार का आशीवाद ही हो जाएगा। इस िवचार से े रत होकर क ण
ने उसे छोड़ िदया हो, यह संभव ह। इसक िलए अ थामा ा ण ह और गु पु ह, ऐसा य िनिम उ ह ने
सामने रखा हो।
इस िनिम को यिद वीकार कर तो तुरत आचाय का वध िजस तरह क ण ने कराया था, यह न पैदा होता
ह। कौरव सेनापित क प म ोण ने यु क पं हव िदन दुय धन क सम ित ा ली थी िक आज वे युिधि र
को जीिवत ही पकड़ लगे और समूची पांडव सेना का संहार करक यु क समा भी कर दगे। इस ित ा क
अनुसार उस िदन ोण ने अपना रौ प कट िकया था और उनका ितकार करना िकसी भी पांडव सेनानी क
िलए दुधष था। ऐसी थित म ोण का वध करना अथवा उ ह परा त करना असंभव था। ोण का यह रौ प
यिद चालू रह तो पांडव क पराजय िन त थी। अ य कोई यह स य समझे या न समझे, पर क ण ती ण ि
ने यह प रणाम ताड़ िलया था। भीम क हाथ अ थामा नाम क हाथी को मरवाकर ोण को म म डालने का
ष यं क ण क बु ने ही चलाया। इसम अ थामा मारा गया, यह घटना स य थी, पर अ थामा माने
ोण का पु नह ब क एक हाथी था, यह बात भीम, अजुन, युिधि र या क ण क अित र शायद ही कोई
जानता रहा होगा।
महायु क दौरान हाथी और और अ तो रोज ही मर रह थे, िकतु उनक मृ यु क घोषणाएँ नह होती थ ।
यह घोषणा तो ोण को िमत करने क िलए ही थी और ोण का पु मोह क ण अ छी तरह जानते थे। युिधि र
जब ऐसा अस यवादन करने क िलए संकोच य करते ह तो क ण ने उनसे प तः कहा ह िक ‘‘ह राजन!
यिद ोणाचाय अब आधे िदन भी इस तरह यु करते रह तो आपक पराजय िन त ह। इस िवनाश से अपने

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सै य को बचाना आपका कत य ह। धम क िवजय क िलए यिद अस यवादन कर तो यह स य से भी बेहतर
होता ह।’’
इस कार ोण का वध पांडव क िवजय क िलए अिनवाय था। पांडव क पराजय का अथ था—धम क
पराजय और क ण अधम क पराजय करना चाहते थे। अधम क पराजय क िलए यु क अठारह िदन क
दौरान क ण ने िकतनी ही बार िजसे अधम कह, ऐसे योग िकए ह। ोण ा ण थे और गु थे, इस स य को
वीकार करने क बाद भी ा ण और गु का वध करने से जो अधमाचरण होता था, वह अधमाचरण पांडव
क धमिवजय क िलए अिनवाय आपि थी, क ण ने इस अधम लगती आपि को वीकार िकया ह।
अ थामा का वध करने से वैरतृ क िसवा दूसरा कोई लाभ नह होने वाला था। वैरतृ वध से करने क
अपे ा माभावना से करना और वह भी भावी पीि़ढय क िलए, एक ब त ही उ दा उदाहरण बन सक, इस
कार करने म औिच य ह, यह इन दोन िपता-पु क उदाहरण म क ण ारा िनभाई गई भूिमका का रह य
कट होता ह।
o

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य-अ य क खेल
मृ यु एक ऐसा त व ह िक ािणमा ज म क साथ ही उसक सा ा कार क क पना मा से ही
भयभीत हो जाता ह। महाभारत क तमाम मु य पा घटनाच क िविवध चरण म मृ यु क िवषय म
िनभ कता से िनरी ण और िचंतन करते ह। इस थित म महाभारत क जो िविभ पा िजस तरह
मृ यु क वश म ए ह, उस संदभ म ािणमा म रहता इस भय क िवषय म कोई मागदशन पाया जा
सक, ऐसा िन कष िनकाला जा सकता ह या? मृ यु क िवषय म िनभ कता से िचंतन करनेवाले ये पा
अपने अंतकाल म इस िचंतन क अनु प रह ह या?

ज म और मृ यु येक य क जीवन क दो अिनवाय घटनाएँ ह। इन घटना से कोई य कभी भी


मु नह हो सकता। इसक बावजूद कोई भी य अपने जीवन क इन दोन अिनवाय घटना क अनुभव क
िवषय म कछ भी नह कह सकता ह। मनु य ने ज म और मृ यु क िवषय म जो भी िवचार अथवा िचंतन िकए
ह, उनम कह भी अपने अनुभव का एक अंश भी नह होता। यह सब मा िनरी ण ारा, कछ अंश म तक
ारा और ब धा प र थितय क मू यांकन क आधार पर होता रहा ह। िफर भी इसम स य का अंश नह , ऐसा
नह कहा जा सकता ह। और इसम पूरा-पूरा स य ह, ऐसा भी कोई िव ासपूवक नह कहा जा सकता ह। मृ यु
अिनवाय ह और पैदा होते ही येक मनु य क या ा मृ यु क ओर ही होती ह। वा तव म तो बालक िजस तरह
िकशोराव था ा करता ह, यौवनाव था सँभालता ह, वह उसक वृ या िवकास नह सूिचत करता ह,
ब क वह तेजी से मृ यु क नजदीक प च रहा ह, इसको ही सूिचत करता ह और इसीिलए मानव जीवन का
अंितम येय मृ यु क ा ही ह। ज म और मृ यु क बीच जो भी ा होता ह, वह तो िणक पड़ाव भर ह।
महाभारतकार अपनी इस कालजयी रचना म मृ यु-मीमांसा तो करता ही ह, परतु महाभारत क तमाम मु य पा
िजस तरह अपनी जीवन या ा क समा करते ह, उस घटना का मू यांकन करना आव यक ह।
सही कह तो ीक ण को छोड़कर महाभारत का कोई पा मृ यु को सहज भाव से, जीवनया ा क अंितम
ल य क प म तथा जीवन जीने क तट थभाव से वीकार नह कर सका। ये सार पा मृ यु क िवषय म तरह-
तरह क और भाँित-भाँित क िनरी ण समय-समय पर करते रह ह। इसक बावजूद मृ यु क सा ा कार क ण म
उनक मन- थित उनक इन सभी िनरी ण क अनुसार ही रही हो, ऐसा िव ासपूवक नह कहा जा सकता ह।
महाभारत क सबसे व र पा ह माता स यवती। अ यंत जजर अव था म उ ह ने पा रवा रक ेश क जो य
देखे, उससे यह वृ माता काँप उठी थ और इसीिलए पु यास ने इस माता को ह तनापुर छोड़कर
अर यवास करते ए मृ यु क ती ा करने का सुझाव िदया था। इस सुझाव का गृिहताथ ब त प ह। हम
िजसे आ मह या करने क िलए गृह याग कह सकते ह, ऐसी यह प र थित ह। जीवन इसक बाद और भी किठन
होनेवाला ह। प रवार म इसक बाद और भी अिधक दुस संघष होनेवाला ह और उसका कोई िनवारण नह हो
सकता, यह जानने क बाद इस वृ माता ने प रवार से मुँह फर िलया ह और िकसी िनराधार तथा हताश वृ ा

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क तरह उसने मृ यु क ती ा क ह। इस अव था म उसने मृ यु को िकस मनः थित म वीकार िकया होगा,
यह क पना का िवषय ह।
माता स यवती िजतने ही व र कह जा सक, ऐसे िपतामह भी म क मृ यु तो हर पाठक को िवचार करने क
ेरणा दे, ऐसी ह। भी म को िपता से इ छामृ यु का वरदान ा आ था। इस वरदान क अनुसार भी म ने यु
क दसव िदन जब वयं अजुन क श का ितकार नह िकया और सम देह पर श ाघात सहन िकए तो ढल
पड़। अ य कोई यो ा होता तो उसी ण उसक मृ यु हो गई होती। परतु भी म ने अपने ाण रोक रखे और सूय
क गित उ रायण क ओर हो, तब तक यानी िक भूिम पर ढल पड़ने क प ा अ ावन िदन तक अपार
शारी रक और अक य मानिसक वेदना सहन क । िजनका एक-एक अंग ती ण बाण से िबंध चुका ह, उ ह इन
बाण क साथ ही अित वृ अव था म उस संहार े से कछ ही दूर पूर अ ावन िदन तक उ ह ने मृ यु क
ती ा क । ि क सम महािवनाश देखा और िफर हम िजसे योगसमािध कहते ह और एक तरह से जो
आ मह या का ही एक प ह, उसे वीकार िकया। (आ मह या और योगसमािध को समान बताने का यहाँ कोई
उ े य नह । आ मह या तो नकारा मक मू य ह और योग समािध सकारा मक मू य ह। िफर भी इन दोन म
देह याग का प रणाम एक-समान ही ह।)
भी म क ाण याग क यह घटना महाभारतकार ने िजस तरह से िचि त क ह, उसम वे छया िवदा लेते वृ
क बात क ह। इसक बावजूद भी म क य म जो कछ आ और िजस तरह इस इ छामृ यु क वरदान का
िविनयोग आ, उससे संतोष िन त ही नह आ होगा, यह समझा जा सकता ह। ान क भूिमका पर खड़
िपतामह इस मृ यु को अपनी देह म थत ाण को ऊ व-गित क ओर याण क प म अव य बताते ह और
उनक ाण- याग क साथ ही आकाश से पु पवृि ई, ऐसा आधा चरण भी िलखा गया ह, पर उनक मृ यु क
बाद उनक जनेता गंगा िजस तरह अपने पु क मृ यु पर िवलाप करती ह, वह िवलाप भी म क मृ युिचंतन क
िवषय म हम िवचार करने को े रत कर, ऐसा ह।
स यवती और भी म क बाद िज ह हम महाभारत क व र पा कह सकते ह, ऐसे धृतरा , गांधारी, पांड,
कती और िवदुर ह। पांड क मृ यु जीवन क म य म ही पूण असंतोष क बीच ई ह। यह मृ यु भी एक तरह से
देख तो आ मह या कार क ही ह। ीसंग पांड क िलए व य था और यिद वह ीसंसग करगा तो त काल
उसक मृ यु हो जाएगी, इसक पूरी जानकारी होने से उसने वष तक ीसंगिवहीन अव था सही। युवा और
पवती प नयाँ साथ होने क बावजूद उसने बला चय का पालन िकया और चय का यह पालन
उसक िलए कोई तप या या सहजभाव नह था। यह अिनवाय चय पालन उसक िलए यथा थी, लाचारी
थी। इस लाचारी पर िजस ण उसक सहज िनबलता ने िवजय ा क , वह ण उसक मृ यु का ण बन
गया। पांड तथा मा ी दोन यह प र थित भली-भाँित जानते थे और मा ी ने तो पित को रोकने क िलए भी यास
िकए ह, इसक बावजूद मेरी मृ यु िन त ह, यह जानते ए भी पांड ने िजंदगी क दाँव पर ीसंग का एक ण
चुना था। इस कार उसने जीवन क मू य पर जीवन का अंत अिधक पसंद िकया। उसक मृ यु िकसी भी तरह
से िवचार कर तो व थ और सुखद नह कही जा सकती ह।
राजा धृतरा महायु क बाद अपने पु क ह यार और अपने आजीवन श ु समान पांडपु क आि त क
प म ह तनापुर क राजमहल म ही पूर पं ह वष रह ह। इस कालाविध क दौरान उ ह ने ायः भीमसेन क मुख

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से अपमानसूचक कटा सुने ह। यु क अंत म ही यिद उ ह ने अर यवास वीकार कर िलया होता तो इसम
उनका गौरव बना रहता, पर धृतरा ने ऐसा नह िकया। सम प रवार क संहार क बाद भी उ ह ने महल और
समृ का याग नह िकया। अपमानजनक प र थित म भी उ ह ने जीवन अिधक यारा माना ह। पूर पं ह वष
बाद जब भीमसेन क कटा अस हो गए, तब कह यह अितवृ अंधा राजा प नी गांधारी क साथ संसार
यागकर अर यवास वीकार करता ह। यह वनवास भी कोई वैिदक परपरा क अनुसार संतु जीवन क उपभोग
क बाद का आ मवास नह ह। यहाँ तो सव व हार चुकने क बाद कोई िवक प बचा न होने क कारण बाबा
बन जानेवाले संसारी क मनोवृि िदखाई देती ह। धृतरा क साथ ही गांधारी, कती, िवदुर और संजय भी जुड़
गए ह। ये सभी अर यवास म दो वष रह ह।
इस कालाविध क दौरान िवदुर क मृ यु सबसे पहले ई ह। अंितम िदन म िवदुर ने अ और व दोन को
याग िदया था। िनतांत िनव अव था म मा वायु का भ ण करक िकसी क साथ संपक िकए िबना िवदुर
अर य (वन) क एकांत भाग म जैसे मृ यु क ती ा कर रह थे। एक िदन राजा युिधि र ये िपता धृतरा से
िमलने अर य म आए तो उनह ने िवदुर क िवषय म यह बात जानी और उ ह खोजने क िलए अर य क और भी
गहर भाग म गए। िवदुर इस अव था म अथहीन घूम रह थे और युिधि र को देखते ही एक वृ क तने का टक
लगाकर त ध होकर खड़ रह गए। महाभारतकार ने िवदुर क इस अव था का जो िच ण िकया ह, वह अितशय
क ण ह। िवदुर का शरीर िनरा अ थपंजर बन गया था और इस अ थपंजर पर उनक खाल लटक रही थी।
आँख नीचे धँस गई थ और चेहर पर कोई भाव नह था। युिधि र ने उ ह बुलाया तो भी उ ह ने कोई िति या
य नह क और उसी अव था म, उसी ण उ ह ने देह याग िकया। युिधि र उनका अ नसं कार भी नह
कर सक, य िक कथा कहती ह, उसक अनुसार आकाशवाणी ारा राजा युिधि र को सूचना िमली िक िवदुर
क िलए अ नसं कार जैसे िकसी लौिकक कम क ज रत नह । इसका अथ यह आ िक िजसे हम अं येि
और तेरहव कहते ह, ऐसा कोई सं कार िवदुर का नह आ। अर य म ही पड़ उनक मृतदेह का इसक बाद
या आ, यह हम नह जानते।
राजा धृतरा , सती गांधारी और देवी कती, इन तीन क मृ यु तो महाभारत क तमाम पा क मृ यु क तुलना
म कई गुना अिधक क ण और दय ावक ह। इन तीन क अंितम ण भारी पीड़ादायक और ाकितक याय क
िकसी संकत जैसे। िजस राजा ने पांडपु को वारणावत नगरी म ला ागृह रचकर जीिवत अ न क हवाले कर
देने का परो प से समथन िकया था, वही राजा वयं ही इस अ न का भ य बन जाए, इससे बड़ी िविध क
व ता और या हो सकती ह? ज मांध राजा और वे छया अंधी बनी प नी आ रही मृ यु को देख न सक और
उनक इस असहाय अव था का अवलोकन एकमा कती ही कर सक, यह ण कसा दय-िवदारक रहा होगा,
इसक तो बस क पना ही क जा सकती ह।
िवदुर क मृ यु क बाद राजा धृतरा , गांधारी, कती तथा संजय, चार जन िकसी िन त िनवास- थान म
रहने क बजाय अघोर अर य म सतत मण करते रह ह। इस मण क दौरान एक िदन सुबह तड़क ही अर य
म दावानल कट आ और अ न क इन ाला क बीच वे िघर गए। राजा अंधा होने क कारण वयं भाग
जाने म असमथ थे, पर उ ह ने संजय को अपने ाण क र ा क िलए दूर सुरि त थान म चले जाने का सुझाव
िदया। संजय राजा क आ ानुसार अर य छोड़कर गंगातट पर ऋिषय क आ म क पास आया और दावानल म

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िघर राजा धृतरा , प नी गांधारी और देवी कती तीन ही अ न क ाला क बीच भ मीभूत हो गए। ला ागृह
क िजस अ न म पांडव क बदले िनद ष िनषाद क ाण गए थे, खांडव वन क िजस अ न म िनद ष नाग जा
का संहार आ था, उसी अ न ने इस अर य म कट होकर जैसे अपना एक िनतांत नया प कट िकया।
जंगली समझे जानेवाले िनषाद , देवराज इ ारा रि त माने जानेवाले नाग तथा तापी भी म क पौ और
समथ पांडव क ये िपता धृतरा और कती, इन तीन क ही ित कित मानो सम ि से ही देख रही हो,
ऐसा य यहाँ ि गत होता॒ह।
इन तीन क मृ यु का समाचार ह तनापुर म ब त लंबे समय बाद ा आ ह। इसक बाद युिधि र जहाँ
दावानल जला था, वहाँ जाकर िबखरी अ थयाँ ढढ़ िनकालते ह और इन अ थय को उिचत सं कार करने क
बाद गंगा क वाह म वािहत कर देते ह। दावानल म मा धृतरा , गांधारी और कती क ही मृ यु ई हो, ऐसा
तो संभव नह , अ य अर यवासी ाणी भी इसका भोग बने ही ह गे। अतः दावानल शांत होने क बाद जो
अ थयाँ ा ई ह गी वे मानव अ थयाँ रही ह तो भी िनतांत ाभाव से ही उनका िवसजन हो सकता ह। ये
अंितम ण भी एक तरह से देख तो आ मिवलोपन (आ मह या) जैसे ही ह। धृतरा तो अंधे थे और गांधारी ने
भी अपनी आँख पर प ी बाँध रखी थी, परतु कती अपनी दोन आँख से यह दा ण अंत अव य देखती रही
होगी। राजा धृतरा का पा ालेखन ही ऐसा आ ह िक उनका अंत व थ और साहिजक कदािप नह हो
सकता।
महाभारत क अ य एक व र पा आचाय ोण ह। ोण ज म से ा ण ह, िकतु व क कह जा सक,
ऐसे अ तवाचक (सकारा मक) गुण को उनम अभाव ह। आजीवन संपि - ेम, पु मोह तथा वैरभावना क बीच
ोण िघर रह ह। उनक मृ यु का िनिम भी उनका पु मोह ही बना ह। पु अ थामा मारा गया ह, यह जानते
ही ोण कत य ए और िजस सै य क अिधपित क प म उ ह राजा दुय धन क िवजय करानी थी, उस
सै य और िवजय को भूलकर उ ह ने श याग िकया। इस श याग का अथ वयं क प का पराभव तो होता
ही था, पर उनक वयं क मृ यु भी इस कदम से होगी, यह िन त था। यह जानते ए भी उ ह ने श याग
िकया। पांडव सेनापित धृ ु न उनका वध कर, इसक पहले ही आचाय ोण ने समािध थ अव था ा कर
ली थी, इसिलए िजसे हम ोणवध कहते ह, वह तो उनक देह क ित थी और आ मा तो इसक पूव ही
िन हो चुक थी। इसक बावजूद ोण क इस ाण याग क घटना को भी कमोबेश आ मिवलोपन ही कहा
जा सकता ह। समािध थ होने क पूव अंत र म ोण क िपता भर ाज सिहत अ य ऋिषय ने कट होकर ोण
को श याग करने और ा णधम म वापस आने का सुझाव िदया था। यह सुझाव यानी िक अब और एक भी
संहार िकए िबना मा-भावना अपनानी और श का याग करक िन होना था। ोण ने इस सुझाव को
वीकार िकया, पर इसे वीकार करने म व थता क अपे ा पु मोह से े रत हताशा का ही ाधा य ह।
रा यारोहण क छ ीसव वष म माता गांधारी क शाप क कारण यदुवंश का नाश आ और वयं क ण ने भी
देह याग िदया। यह वृ ांत जब ह तनापुर प चा तो महाराज युिधि र संपूण व थता क साथ, उसक सम
य व म सबसे उ म कहा जा सक, ऐसा वा य बोले ह। ‘महा ा थािनक पव’ क पहले अ याय का तीसरा
ोक इस कार ह :
कालः पचित भूतािन सवा येप महामते।

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कालपाशमह मनये वमिप ुमहिस॥
अथा ािणमा को काल उसक िन त अंत क ओर ख च ले जाता ह। अब म काल क इस चंड बंधन
को वीकार कर रहा और ह अजुन, तुम सब भी इस िदशा म नजर करो।
राजा युिधि र ने सम महाभारत म समय-समय पर मृ यु क िवषय म ढर सारा िचंतन िकया ह, पर मृ यु का
यह वीकार कोई हताशा म से नह ब क जैसे समझदारी म से गट आ हो, इस तरह यहाँ य आ ह।
मृ यु क िवषय म युिधि र क इस व थता का आभास य -युिधि र संवाद क संग म अर यवास क दौरान
हम देखने को िमलता ह। यहाँ अपने चार भाइय क मृत शरीर को देखने क बाद भी युिधि र िवचिलत नह ए
ब क मृ यु क इस रह य का पार पाने क िलए मानो सतक हो गए ह। क ण क िवदा होने क बात जानते ही
अ य सभी जब त ध हो गए ह, उस समय युिधि र मृ यु क पूव तैयारी कर रह ह , इस तरह पूरी शांित क
साथ रा य क यव था करते ह। पु परीि त का ह तनापुर म रा यािभषेक िकया और एकमा बचे यदुवंशी
व को इ थ का रा य स पा तथा महाराज धृतरा क, पर वे या क पु युयु सु को इस संपूण यव था का
भार स पा। इतना करने क बाद युिधि र ने भाइय और ौपदी क साथ िहमालय क ओर याण िकया। िहमालय
क ओर क इस याण का उ े य तो मृ यु क ओर क गित ही थी, इसिलए िफर एक बार इस मृ यु को भी
आ मिवलोपन ही कहा जा सकता ह।
िहमालय क इस या ा म एकमा युिधि र को छोड़कर ौपदी और शेष चार पांडव क शरीर माग म ही ढह
पड़ ह। और भूिम पर पड़ इस शरीर म अभी ास चल रहा ह, तभी अ य सभी आगे बढ़ गए ह। एक क बाद
एक पांडव मृ युवश होते गए और उनक देह का कोई भी सं कार िकए िबना बचे ए पांडपु अपनी या ा म
आगे बढ़ते रह ह। इस कार अंितम ण म एकाक युिधि र सशरीर वगलोक ा करते ह।
इन सब क बीच दुय धन क मृ यु िवशेष थान रखती ह। दुय धन का वध धमयु क िव जाकर भीमसेन
ने िकया था और यह अधमाचरण धम क परम वे ा ीक ण क स मित से आ था, यह जानने क बाद दुय धन
मृ यु क एकदम सम होने क बावजूद य नह आ। उसने क ण क इस अधम क िव िनतांत तकपूण
कहा जा सक, ऐसा आ ोश य िकया ह और जीवन क इस अंितम ण म जब वह अंितम ास ले रहा था
तो महाभारतकार िलखते ह िक उसक त-िव त शरीर पर अंत र से पिव और सुगंिधत पु प क वषा होने
लगी। गंधव ने अंत र म से मनोहर वा यं से सुमधुर संगीत वािहत िकया। अ सराएँ मधुर कठ से दुय धन
क श त करनेवाले गीत गाने लग । चार िदशाएँ कािशत हो गई। आकाश नीलम क भाँित चमकने लगा।
पिव , सुगंिधत तथा शीतल हवा बहने लगी और अंत र म से िस पु ष ‘ध य-ध य’ बोल उठ। उस ण
दुय धन मानो मृ यु को भी चुनौती दे रहा हो, इस तरह कहता ह िक इस अंत का मुझे कोई शोक नह , य िक मने
िविधपूवक िव ा यास िकया ह, पु कल दान िकया ह, य िकए ह, पृ वी पर शासन िकया ह और श ु क
म तक पर पग रखकर खड़ा । मने जीवन का सम ऐ य भोगा ह, इसिलए मृ यु का मुझे शोक नह । ऐसा
उ क अंत दूसर िकसी का हो नह सकता।
यह सबसे उ ेखनीय बात यह ह िक िपतामह भी म क देह याग क संग म पु पवृि क बात मा आधे
चरण म ही समेट लेनेवाले महाभारतकार ने दुय धन क देह याग क संग म पूर तीन ोक इस पु पवृि क
उपरांत अ य पिव ल ण का उ ेख िकया ह। दुय धन अहकारी था, ऐसा कहा जा सकता ह और मृ यु क
ण भी वह अहकार से मु न आ हो, ऐसा यह यवहार ह, ऐसा कहा जा सकता ह। िफर भी युिधि र क

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बाद एकमा दुय धन ने ही संपूण व थता से िकसी भी कार क हताशा या य ता क िबना मृ यु को वीकारा
ह, इस िन कष पर आने म तिनक भी जोिखम नह ह।
इन सब क बीच एकमा क ण क देहधम क समा इन सभी से एकदम अलग िदखाई देती ह। ीक ण
आजीवन सम घटनाच को िनतांत तट थ भाव से ही मू यांिकत करते रह ह। िनयितच का सहजभाव से
वीकार जैसे उनक जीवन का मं रहा ह। दुय धन जब मरणो मुख था, उस समय उसने क ण क बार म जो
उ ार य िकए ह, उनक उ र देते ए क ण एक ही बार अपनी आजीवन व थता और गौरव से िवचिलत
ए ह , ऐसा लगता ह। िशशुपाल वध क समय भी िज ह ने एक भी अपश द नह कहा था, उस क ण ने दुय धन
को सं याब अपश द से नवाजा ह। यह एक अपवाद छोड़ द तो क ण का जीवन सांगोपांग तट थ और
धमपे्र रत ही रहा ह। सम यदुकल को तथा पांड क पु ल जैसे प रवारजन को उ ह ने न होते देखा। इतना
ही नह , यह िवनाश अप रहाय ह, इस परम बु से इसका वीकार भी िकया। मानव जीवन म चाह िजतनी भी
िस ा कर ल या िफर चाह िजतने भी परा म कर ल, पर अंितम ण म तो यह सारा ही यथ हो जाता ह
और सह- व थता से एकाक याण ही उसका उ े य होना चािहए। इसी का संकत देता अंत अथा क ण का
देह याग। ममता वजन क हो या अ य िक ही भावना क हो, परतु उसका प र याग ही मृ यु का प र याग
बन सकता ह। मम व (मेरा होने क भावना) ही मृ यु ह और मम व का याग माने अमर व।
महाभारत क तमाम पा क मृ युिचंतन क िवषय म और उनक वाभािवक अंत क बाद यिद मृ यु क िवषय
म कछ सार प म हण करना हो तो हम इस िवदुर वाणी का उदाहरण देना चािहए। यु क अंत म सव व
गँवा चुक ये ाता धृतरा को सां वना देते ए िवदुर ने कहा ह॒ :
अददशनादावितताः पुन ादशमनं गता।
न ते तब न तेषां वं त का प रवेदना॥
(‘ ी पव’ अ याय 2, ोक 8)
अथा हम सभी अ य म से यहाँ य ए ह और पुनः अ य म ही िवलीन होने वाले ह। जो गए ह, वे
हमार कोई नह थे और हम भी उनक कोई नह ह, िफर शोक का कारण या हो सकता ह?
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आस का अंत नह और

जीवन अनंत नह
महाभारत क रचना क पीछ का मूल उ े य महाकिव ने आरभ म ही प िकया ह। यह उ े य
एकल ी नह , ब ल ी ह। ऐसे उ े य क प रपूित क िलए क वंश का कथानक आधार क
भूिमका पूरी करता ह। इस मूल कथानक क साथ ही महाभारत म सं याब उपकथानक भी जुड़ ह।
ऐसे उपा यान का कोई िन त आशय रहा ह या? इन तमाम उपा यान म क कथा क मूल
आ यान क बाद उ े य क ि से सवािधक मह व का कहा जा सक, ऐसा उपा यान कौन सा ह
और उसका उ े य या ह?

सही कह तो महाभारत का कथा वाह गौमुख म से उ प होती गंगा क उ म- थान जैसा नह ह। गौमुख का
दशन िज ह ने िकया ह, उ ह अ छी तरह पता होगा िक यहाँ से िनकलती गंगा तो एक लघु प म बहता एक
न हा झरना ही ह। यह वाह अपने गंत य- थान समु क िनकट जाकर गंगासागर बनकर िवरा प धारण
करता ह। महाभारत क कथानक का आरभ ही गंगासागर क तरह िवरा प म आ ह। और जैसे-जैसे यह
कथानक आगे बढ़ता जाता ह, वैसे-वैसे उसका व प अिधक यापक बनता जाता ह। िफर भी यह कथानक
जब अपने वाभािवक गंत य थान यानी िक अपने अंत क िनकट आता ह, तब उसक यापकता ीण होती हो
और आकाश क तरह िव तीण ए व प को जैसे िकसी िन त थान पर कि त कर िदया जाता हो, ऐसी
अनुभूित पाठक को होती ह। िजस कार स रता क वाह म बीच-बीच म सं याब झरने िमलकर उसे पु
करते ह और अंत म पूरी स रता अपने अ त व का िवलोपन समु म करक ध य हो जाती ह, उसी तरह
महाभारत म मु य कथानक म अनेक कथानक आते रह ह और उपा यान से पु तथा कभी-कभी तो अदोदला
बना उसका वाह जब अपना िवलय करता ह तो जैसे उसका समपण समु म नह ब क सर वती क भाँित
वसुंधरा क िकसी अग य अंक म चला जाता हो, ऐसा लगता ह।
महाभारत का आरभ ही एक उपा यान से आ ह। उ ुंक और त क नाग क कथा का आ य लेकर
महाभरतकार उ ुंक को जनमेजय क पास भेजता ह और जनमेजय क सपस म पधार ऋिषय क पास से
महाभारत क मूल कथानक का आरभ होता ह। मूल कथानक भी आरभ म सं ेप म कहा गया ह। उसक बाद ही
िव तृत कथानक शु आ ह। उसम भी कई जगह पर लैशबैक प ित का सहारा िलया गया ह। मूल
कथानक म ही पा क सं या िवपुल माण म ह। येक पा क उसक ज म, पूवज म और पुनज म क भी
िवशेष कथाएँ ह,प रणाम व प, िजसे आनुषंिगक कहा जा सक, ऐसे अनेक उपकथानक उसम जुड़ गए ह।
(ऐसे कल 101 कथानक ह, ऐसी गणना क गई ह।) ऐसे उन कथानक को यिद िनकाल द तो महाभारत का
मूल कथानक तो आधे से भी कम पृ म समाकर रह जाएगा। इन उपा यान म रामायण क भी कथा आती ह,

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नल-दमयंती या शकतला आ यान भी तुत ए ह। ययाित, शिम ा और देवयानी क कथा, पु रवा और
उवशी का उपा यान, यवन और सुक या का उपकथानक जैसे अनेक संग इसम िमले ह। इन उपा यान म से
येक उपा यान क पीछ एक नह , अनेक िभ -िभ अथघटन तथा हतु अलग-अलग िव ान ने देखे ह।
एक-एक उपकथानक पर िव ान और िचंतक ने अलग-अलग ंथ भी रचे ह।
इन तमाम उपा यान म राजा ययाित का उपा यान िविश थान रखता ह। रामोपा यान क िवषय म भी ऐसा
कहा तो जा सकता ह, परतु यह रामकथा इसक पहले ही वा मीिक कत ंथ रामायण ारा कही जा चुक ह,
इसिलए रामोपा यान को एक वतं कथा का संि प महाभारत म िदया गया ह, ऐसा ही कहना चािहए।
शकतला और दु यंत का कथानक सबसे अिधक यात ह। यह सही ह, िकतु इस कथानक म जो यात ह,
वह महाकिव यास ारा िवरिचत नह ह, ब क अनुवत सजक कािलदास ने इस उपा यान को वयं िजस
कार से मू यांिकत िकया था, वह मू यांकन ही आज हमार सम अिधक माण म ढ बन गया ह। ययाित क
उपा यान क िवषय म ऐसा कछ नह कहा जा सकता ह।
ययाित महाराज न ष का पु था। न ष ने इ पद भी ा िकया था, परतु यह पद ा करने क बाद अहकार
क कारण वह शािपत आ और सपयोिन म उसे ज म धारण करना पड़ा। ययाित भी अपरािजत और मन तथा
इि य को संयम म रखनेवाला राजा था, ऐसा उ ेख ह। इसक बाद उसने शु ाचाय क पु ी देवयानी क साथ
िववाह िकया। वैवािहक जीवन क दौरान ययाित का अनुराग शिम ा क ित उ प आ। पित क इस यवहार
से अ स होकर देवयानी ने िपता शु ाचाय से िशकायत क । शु ाचाय ने पु ी को स करने क िलए ययाित
को शािपत िकया। देवयानी जैसी प नी होने पर भी ययाित ने अ य य म आस रखी, इसका कारण उसका
यौवन, दैिहक सुखोपयोग क उसक उ कठा और इि य क चंचलता थी। इसे यान म रखते ए शु ाचाय ने
ययाित का यौवन न कर िदया। ययाित ने वृ ाव था ा क । सुखोपभोग भले शरीर क मा यम से उपल ध
होता हो, परतु उसका उ म- थान और गंत य- थान तो मनु य का मन ही होता ह। ययाित क देह भले ीण हो
गई हो, पर उसक िच म ऐसे थूल उपभोग क आस अभी शांत नह ई थी। शु ाचाय से जब शािपत
आ, उस समय ययाित क आयु िन त ही उ रकाल म रही होगी, य िक उस समय भी वह पाँच युवा पु
का िपता तो था ही। जो राजा यौवन क आरभकाल म मन तथा इि य को वश म कर सका था, वही राजा ढलती
उ म िच को वश म नह कर सका। आस यथाव रह और इि याँ ीण हो जाएँ, उस समय य कसी
क ण और दयनीय प र थित से गुजरता ह, इसका उ म उदाहरण यहाँ हम ययाित म देखने को िमलता ह। ऐसा
िवषयांध य िकस सीमा तक िववेकबु भी गँवा देता ह, यह भी हम ययाित क उपा यान म जानने को
िमलता ह।
िजसक िच म वासनाएँ अभी तक शांत नह ई, ऐसे ययाित ने लाचार होकर वमान तथा आ म-गौरव
यागकर शु ाचाय से शापिनवारण करने क िलए ाथना क और पित क यह अब दशा देखकर ु ध ई
देवयानी ने िपता से ाथना क , इसिलए शु ाचाय ने शाप का िनवारण िकया। इस िनवारण क अनुसार यिद
ययाित का कोई एक पु िपता क साथ अपने यौवन क अदला-बदली करगा तो िपता पु क युवाव था ा
करगा और पु को िपता क वृ ाव था वीकार करनी पड़गी। यह शाप-िनवारण तो वा तिवक म मूल शाप से
भी बदतर था, पर िवषयांध िच को कोई संतुलन या िववेक होता ही नह , इसिलए राजा ने यह शाप-िनवारण

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वीकार िकया। इसक बाद लाज-िलहाज यागकर राजा एक क बाद एक, अपने पु से अपनी वृ ाव था क
बदले म उनसे यौवन क माँग करता ह। इसक िलए वह िनल भाव से यह भी कहता ह िक दैिहक सुखोपभोग
से अभी उसका िच भरा नह , इसिलए पु को िपता क संतोष क िलए याग करना चािहए और कत य पालन
करना चािहए।
पु को कत य पालन का ऐसा पाठ िसखाने क िलए धम का सहारा लेता यह िपता वयं कसा अधमाचरण
कर रहा था, इसका उसे तिनक भी खयाल नह रहा था। सबसे बड़ बेट यदु ने िपता क यह याचना वीकारी
नह , इसिलए रोष से भर राजा ने उसे शािपत िकया िक यदु क वंशज रा यिवहीन रहगे। (यादव यदुवंशी कह
जाते ह और यदु क िपता ारा शािपत ए होने क कारण यादव म एकािधकारी राजा का शासन नह रहा और
उनक शासन यव था जनतांि क प ित क थी)। इसक दूसर पु तुवसु ने भी िपता क माँग अ वीकार क ,
इसिलए ध राजा ने उसे ले छ जा म अपना जीवन यतीत करने का शाप िदया। तीसर पु दु ने भी िपता
क यह अनुिचत माँग वीकार नह क , इसिलए रोिषत िपता ने अपने इस पु को उसक मनोरथ कभी िस न
होने का शाप िदया। चौथे पु अनु ने भी िपता क माँग वीकार नह क और िपता ने उसे शाप िदया िक उसक
संतान यौवनाव था ा करने क पहले ही मृ यु को ा करगी। पाँचव पु पु ने िपता क माँग वीकार क
और िपता क जराव था क बदले अपना यौवन समिपत िकया। पु क इस याग से स होकर राजा ने पु को
वरदान िदया िक उसक रा यकाल म उसक जा अपनी सम त कामनाएँ पूरी करगी।
पु को शाप अथवा वरदान दे सक, ऐसा साम य रखनेवाला राजा ययाित भी दैिहक वासना क सम कसा
ीण हो जाता ह, इस पर िवचार िकया जाना चािहए। राजा िनबल नह , उसका अतीत भी संयमी और तपोभूत ह।
शाप अथवा वरदान देने का वह साम य रखता ह। वह पाँच-पाँच युवा पु का िपता ह। दो-दो य क साथ
वष तक संसार भोग चुका ह और िफर शु ाचाय क पास िनल बनकर याचना करता ह और उससे भी
अिधक दयनीय तथा बनकर पु क पास से यौवन ा करने क िलए यास करता ह। आस अथवा
वासना िकतनी चंड ह और देह क अ त व को इनकार कर ा िकया आ ान तथा आ मा-परमा मा क
अनुभूित भी उपल ध क ण म कसे िगर जाती ह, यह इस ांत अ ल समझा जा सकता ह। ान ा
करना एक बात ह और इस ान को यवहार म य करना एकदम दूसरी बात ह। मानव जीवन क यह
किठन सम या ह। आिदकाल से मनु य इस सम या म उलझता रहा ह। वह इसका िनराकरण करना चाहता ह।
इसक िलए वह य नशील भी ह, इसक बावजूद उसक ा उसे नह होती। इतना ही नह , संकट क ण म
वह िवचिलत हो जाता ह और इस तरह मानवजाित का यह अिवरत संघष सतत चलता रहता ह।
पु पु क पास से ा िकए गए उधार क यौवन ारा भी राजा ने पूर एक हजार वष तक भोग िकया,
आनंद ा िकया। परतु एक हजार वष क अंत म भी वे वासनाएँ एक हजार वष पूव जैसी थ , वैसी क वैसी
रह तो राजा को यह परम ान ा आ िक आस का कोई अंत नह और आयु य कभी अनंत होता नह ।
राजा ने बाद म पु पु को उसका यौवन वापस स प िदया और जराव था वीकार क और अर यवास िकया।
यह सम उपा यान मानव जीवन क आधारभूत संघष का सुंदर िच ण करता ह। मनु य पैदा आ, तभी से
उसक िच म अपार आस याँ दबी ई ह और अमाप िवरा य व ा करने क बाद भी यिद इन
आस य पर संयम नह पाला जा सक तो ु अव था म पड़ जाना पड़ता ह। इसक बावजूद िवषयोपभोग क

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उपे ा करने म भी ब मानी नह ह और िवषय क संबंध म लालसा का होना िनं समझा जाता हो, तो भी वह
या य नह , इसे मनु य जीवन म एक ल ण क प म वीकार करना चािहए। इसक साथ ही इसका उ कट
उपभोग करने से कभी भी तृ ा नह होती और यह तृ तो उसक संयिमत उपभोग तथा उस उपभोग क
अंत म समझदारीपूण संतोष म ही ह। यह परम संदेश इस उपा यान म से हम िमलता ह। यह संदेश कालातीत
ह। जब तक मनु य जीता ह, तब तक यह संघष और यह संदेश दोन अिवचल ह।
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संबंध क िशखर से होता संवाद


महाभारत क कथा अपने मूल कथात व को लेकर अनेक थान पर धम पदेश बन जाए, ऐसे
या यान या संवाद से सभर ह। ऐसे िविश संवाद और उनका मह व, थान, कथानक म उनसे
पैदा होती गित अथवा उनक शा त मू य क िवषय म कोई िनरी ण हो सकता ह या?

महाभारत क आरभकाल म ही महिष यास ने जो उ े य ल य म रखा ह, उसम धम सबसे धान थान पर


ह। महाभारत क अंत म भी वह सजक दोन हाथ ऊचा करक कहता ह िक धम क अनुशीलन से ही बाक क
तीन पु षाथ िस होते ह, िफर भी कोई धम का अनुशीलन नह करता। मनु य जाित क यह िवषम और गहरी
क णता ह। एक तरह से देख तो महाभारत इस क णता क कथा ह और समझदारी होने क बावजूद अनुशीलन
न कर सकने से ा होती घोर िन फलता क कथा ह।
धमत व ही जब धान थान पर हो तो कथा वाह क म य म भी यह त व कट या अ कट प म य
होगा ही। पा क यवहार और घटना क वाह म यह त व परो प से कट होता ह, जबिक समय-समय
पर पा क बीच क संवाद ारा यह त व य प म य होता ह। ऐसे संवाद महाभारत का एक िविश
अंग भी ह। इस कार क छोट-बड़ असं य संवाद देखे जा सकते ह। इतना ही नह , ऐसे अनेक पृ ह, िजनम
िनतांत सामा य या नग य लगते संवाद म भी धम का कोई-न-कोई गूढ त व कट होता ह।
िफर भी कई िवशेष कार क संवाद महाभारत म थान पाए ह। शरश या पर पड़ और मृ यु क ती ा कर
रह िपतामह भी म से ान संपादन करने को आतुर पौ ने जो न िकए ह और िपतामह ारा िदए गए उनक
उ र से भरा यह संवाद अनुशासन तथा शांितपव क सैकड़ पृ म फला ह। पौ युिधि र िपतामह को
रा यशासन से लेकर ी-पु ष क बीच क लिगक संबंध तक क अनेक न पूछते ह और िपतामह इन येक
न क उ र म कोई-न-कोई कथानक कहकर उसका िन कष तुत करते ह। यह समूचा संवाद वैसे तो
युिधि र और भी म क बीच आ ह, परतु इस संवाद क समय सभी कौरव-पांडव तथा वयं क ण वहाँ
उप थत रह ह, इसिलए वाभािवक प से ही अ य पा भी बीच-बीच म इस संवाद म भाग लेते ह। उ र देते
समय िपतामह भी म अ य कथानक का आ य लेते ह और इसक कारण अ य पा ारा भी िभ -िभ
संवाद भी ायोिजत ए ह। अ य धम पदेश जब िकसी िन त प र थित या मनोभूिमका को ल य म रखकर
होता ह तो यहाँ यह भी म-युिधि र संवाद तमाम प र थितय से पर जाकर तथा िकसी भी कार क मनोभूिमका
क िबना ही िनर ान क ा क िलए ायोिजत िकया आ एक स हो, ऐसा लगता ह। संपूण क कथा
लगभग समा हो चुक ह और अब जो कछ शेष ह, वह धमाचरण और ान ा ही ह, इसका ही मानो यहाँ
संकत िमलता ह। इन संवाद म िवषय क जो यापकता ह, और ान ा , वह िकसी को भी आ यचिकत
कर दे, ऐसी ह। महाभारत क आरभकाल म जो कहा गया ह िक ‘ यासो छ म जग सव ’ तथा जो यहाँ ह,

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वही सव ह और जो यहाँ नह , वह कह भी नह , इसका ही मानो हम इस नो री जैसे संवाद म सा ा कार
करते ह।
इस कार का दूसरा एक संवाद जो ‘िवदुर-नीित’ अथवा ‘िवदुर-गीता’ क प म िस ह, उसका थान
महाभारत क ‘उ ोगपव’ म आया ह। यु क पूव क संिध-वा ा चल रही ह और राजा धृतरा का संदेश
लेकर पांडव क पास उपल य गया दूत संजय पांडव का यु र संदेश लेकर वापस लौटा ह। जब वह वापस
लौटा, उस समय राि का आरभ हो चुका था, इसिलए महाराज धृतरा को अपने आने क सूचना देकर संजय
यह संदेश वह दूसर िदन क सभा म िव तारपूवक तुत करगा, यह कहकर चला गया और िफर इस संदेश म
पांडव ने यिद यु करने का संदेश भेजा होगा तो संभािवत प रणाम से भयभीत होकर राजा को िन ा नह आती
ह। पु मोह और रा यलोभ क कारण वह स य समझते ए भी याय नह कर सकता ह और ेय समझने क
बावजूद ेय को याग नह सकता ह। मानव-मन क शा त दुबलता यहाँ िववश होकर सवार हो जाती ह। राजा
िन ावश नह हो पाता ह और अिन ाव था म िवदुर को बुलाकर अपने अशांत िच को शांित ा हो, ऐसी कोई
बात करने क सूचना देता ह।
िवदुर एक नाड़ी-पारखी वै क तरह अिन ा क इस रोग को उसक मूल से परखकर शु ूषा करनी हो, इस
तरह राजा से आरभ म ही पूछते ह, ‘‘ह राजा! अिन ा क यह अव था चार कार क होती ह। बलवान श ु क
साथ िजसे वैरभाव आ हो, िजसका सव व न हो गया हो, जो कामी हो, और जो चौयवृि से े रत हो, इन
चार अव था म य िन ावश नह हो सकता। और यहाँ िवदुर राजा से उस वै क तरह ही तुरत पूछते ह
िक महाराज आप इन चार म से िकस अव था म से गुजर रह ह? इसक बाद िवदुर ने धृतरा को जो
धमिववेचना सुनाई ह, उसका थान महाभारत क ऐसे संवाद म ब त ऊचा ह। उस समय ऐसे नीितपूण उपदेश
क बाद िवदुर सन सुजात क प म जाने जानेवाले सनतकमर को कट होने क िलए ाथना करते ह और इस
ाथना क अनुसंधान म उप थत ए सन सुजात ने महाराज धृतरा को जो धम पदेश िकया ह, वह भी इस
िवदुर-गीता का ही एक भाग बना ह।
य -युिधि र संवाद क प म महाभारत क ‘वनपव’ म जो घटना थान पाई ह, वह घटना भी इन संवाद क
संदभ म उ ेखनीय ह। य क प म सरोवर क वािम व का दावा करनेवाले अ य धमराज ने तृषातुर
पांडव को एक क बाद एक मृ युवश कर डाला था। उसक इस सरोवर का जल लेने का अिधकार उसे ही ह,
जो उसक न क उ र दे, ऐसी य क शत पर कान धरने से नकल, सहदेव, अजुन तथा भीम ने अ वीकार
िकया और फल व प इन चार भाइय को एक-एक करक अपने ाण गँवाने पड़। इस दा ण प र थित क
बीच तिनक भी िवचिलत ए िबना युिधि र ने इस अ य य क आ ा वीकार क और य ने जो भी न
पूछ, उनक यथाश , यथामित उ र िदए। इस नो री ने य -युिधि र संवाद क प म धम और त व क
जानकार क बीच स मानपूण थान ा िकया ह। इसम ब त ही कम श द म, छोट-छोट न पूछ गए ह।
कभी-कभी तो एक ही ोक क चार चरण म चार िभ -िभ न पूछ गए ह। और एक चरण क इस न
क पीछ नौका क आड़ म छपते पवत जैसी सम या होने क बावजूद युिधि र ने इन न क तज पर ही उनक
उ र िदए ह। एक ही ोक क चार चरण म युिधि र वैसी ही ग भता उन चार न क से उ र देते ह। इस

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नो र क या भी ‘अनुशासन पव’ क भी म-युिधि र संवाद जैसी ही ह, परतु उसका िव तार बमु कल
चार सग िजतना ही रहा ह।
इन तमाम संवाद म िजसका थान िव भर क त वदशन म सबसे ऊचा रहा ह, वह संवाद ‘क ण-अजुन
संवाद’ अथवा ‘ ीम गव ीता’ क प म सु िस ह। अठारह अ ौिहणी सै य पर पर घात करने क िलए
रण े म उ त हो चुका ह, शंखनाद हो रह ह और बस थम हार क ण क ही ती ा हो रही ह, ाण
तलवे म टग जाने जैसे समय म यह संवाद आ ह। अजुन अपने सारिथ क ण को अपना रथ इस क े क
म य म ले जाने को कहते ह तो यह संवाद भी महाभारत क अठारह पव म ठीक म य म यानी िक नौव पव म
आयोिजत आ ह। महाभारत म अठारह पव ह, क ण-अजुन संवाद का िव तार भी अठारह सग म ह। िजस
यु क िलए अजुन वष से ती ा कर रहा था, वह यु अब स मुख आया ह तो वह अपने कितधम क
िव जाकर मोह त हो गया ह। उसक इस मोह त अव था को दूर करने क िलए सारिथ क ण ने उसे जो
उपदेश िदया, वह उपदेश 700 (या 745?) ोक म थान पाया ह। यहाँ कभी-कभी ऐसा बु ग य न भी
पूछा गया ह िक महािवनाश क अगले ण म क ण और अजुन क बीच इतने अिधक ोक म फलता यह
संवाद हो कसे सकता ह? इतना समय या व थता वहाँ िमल नह सकती और यिद ये दोन जन इतनी अिधक
लंबी बात करते रह तो एक ए अ य यो ा कोई मूक सा ी बनकर यह सारा कछ देखते नह रहगे। एक बात
यहाँ भुला दी जाती ह िक यह संवाद इसी प म नह भी आ होगा। क ण और अजुन क बीच क लोको र
संबंध को ल य म रख तो येक संबंध जब एक भूिमका पर प च जाता ह, तो उ प ए संवाद म श द गौण
बन जाते ह और जो भी संवाद थान पाता ह, उसम मह व अनुभूित का होता ह। इसम अनुभूित दोन प म
एक िवशेष तर पर प च चुक होती ह। क ण ने अजुन को मोहमु करने क िलए जो उपदेश िदया, वह हमार
पास संजय ारा महिष यास ने प चाया ह।
यह सम कथानक उसक सजक ने उसक समा क बाद आलेिखत िकया ह, इसिलए इसम क ण क
संवाद का ाण हो, पर उसका श ददेह तो सजक यास ने ही रचा ह, इसिलए िकसी बु ग य न क िलए
यहाँ कोई अवकाश ही नह । मूल बात जीवन म कदम-कदम पर जब दुिवधा या सम या पैदा होती ह तो इसका
रह य कसे जान और उसका िनराकरण कसे पाया जा सक, इसक तल पश और िवशद या या इस संवाद म
ई ह। सम िव -सािह य म यह एक ही संवाद ऐसा ह िक जो तमाम भाषा म अनूिदत आ ह, सैकड़
भा य उस पर िलखे गए ह, िफर भी इसक एक-एक ोक म एक-एक भा य क मता अभी शेष ह।
यह और ऐसे अ य संवाद महाभारत क मूलभूत उ े य को ल य म रखकर उसक पूित करते ह। शु म ही
कहा, उस तरह आधारभूत उ े य धम का अनुशीलन ह और घटनाएँ, वृ ांत या पा क यवहार जब थूल
बनकर यह उ े य लि त करते ह तो ऐसे संवाद, ऐसी येक घटना को उसक मूल से समझने क िलए
सू माितसू म दाशिनक ि से समझने और उसका पार पाने क यास करते ह। ऐसे संवाद से जो कछ िविश
ह, वह सब त काल ा हो जाता ह, ऐसा तो कोई नह कह सकता, पर नए िसर से ा क िलए िदशा तो वह
खोल ही देती ह।
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शासक सगभा नारी ह


महाभारत क सम कथानक म असं य राजा या राजप रवार क कथाएँ जड़ी ह। त कालीन
आयावत अनेक रा य म बँटा आ था। यूरोप म राजा क दैवी अिधकार का जो िस ांत म ययुग
म चिलत आ था, ऐसा िकसी िस ांत को समिथत करनेवाली महाभारतकालीन रा य था नजर
आती ह या? रा यशासन एकच और अबािधत था या उसक पीछ कोई िन त मागदशक
िस ांत थे? यिद ऐसा कोई हो तो इसका कोई भाव हमारी वतमान शासन प ित म िदखाई देता ह
या?

‘शांितपव’ म िपतामह भी म ने राजा क अथवा रा यशासन क आरभ क िवषय म पु (पौ ) युिधि र


को िव तृत जानकारी दी ह। सृि क आिदकाल म सतयुग म कोई भी रा य प ित नह थी। सभी लोग अपने-
अपने कत य का धमानुसार आचरण करते थे। शासन तभी ज री होता ह, जब कोई य धमलोप करता ह
और उसका आचरण धमिविहत न हो। धम क पुनः थापना हो और अधम करनेवाले य पर अनुशासन रखा
जा सक, ऐसे येय से शासन का आरभ आ ह। इस कार शासन क ज म का आधार-त व ही धम ह। यह धम
माने कोई िन त सं दाय, यह अथ यहाँ अिभ ेत नह ह। धम श द सम मानवजाित को अिधक उ क
भूिमका पर ले जाने क िलए जो आचरण उिचत माने गए ह, वह आचार-संिहता ह। सतयुग क अंत म जब धम
का एक पाया िशिथल आ तो ा ने दंडनीित क रचना क और िशिथल ए पाये क कारण समाज को जो
हािन प ची थी, उसे एक समान करने क िलए राजा को उ प िकया। पृ वी पर जो पहला राजा उ प आ,
उसे पृथु क नाम से जाना गया। एक दूसरी कथा क अनुसार जो पहला राजा पैदा आ, उसका नाम मनु था और
िपतामह ा ने उसे पृ वी पर धम क धुरा का संतुलन बना रह, इस हतु से भेजा था।
यहाँ वतमान युग म काल मा स ने िजस State Less Society क क पना क ह, उसे यहाँ याद कर लेना
ज री ह। मा स रा य िवहीन ऐसे समाज को मानवजाित क अंितम और उ क प र थित कहता ह। मनु य
पर पर समझदारी-पूवक िजए और िकसी क आचरण से िकसी को भय न हो, ऐसे समाज का िनमाण हो, उसे
मा स State Less Society कहते ह। रा य िबना क इस समाजरचना को Anarchyअथवा अराजकता क प म
उसने पहचान कराई ह। इसम अराजकता माने एक उ दा और आदश प र थित, ऐसा अथ अिभ ेत ह। पर रा य
क शासन क िबना हम िजस समाज क क पना करते ह, उस अराजकता का ढ़ अथ हमार िलए तो अंधाधुंधी
या अ यव था ही होता ह। िपतामह भी म ने ‘शांितपव’ म िजस सतयुग का उ ेख िकया ह, उसम कह कोई
राजा नह , कोई शासन नह , िफर भी तमाम य धमानुसार सुखपूवक जीते थे। इस स े अथ म अराजकता
माने रा यिवहीन यव था थी और वह ब त सुखद भी थी।
ऐसा लगता ह िक वेदकालीन रा य परपरा जब महाभारतकाल म प ची तो अिधकांशतः यह था वंश-
परपरागत हो चुक थी। ‘ऐतरय ा ण’ म कल आठ कार क रा यशासन का िस ांत दरशाया ह। इन आठ
म से महाभारत म ब धा राजा और कछ अंश तक गणतं िदखाई देते ह। रा य परपरा वंशानुवंिशक ह, पर राजा

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ये पु ही होना चािहए, यह िस ांत सव प र नह बना। राजा तीप क ये पु देवािप राजा बने, उसक
बाद वे क रोग त होते ह। इसिलए सारी जा ऐसे क रोगी राजा का िवरोध करक उनक छोट भाई शांतनु
को िसंहासन पर थािपत करती ह। इसम राजा का ज मगत और अबािधत अिधकार कर तो मयादा रखी ही ह,
पर जा क आवाज क बात भी खासतौर से उभरकर आती ह। यान देने यो य बात यह ह िक ये पु को
एक या दूसर कारण से िसंहासन से वंिचत रखने क यह परपरा देवािप क बाद भी म और धृतरा तीन पीि़ढय
तक गई ह। राजा क अिधकार तथा उसक मयादा क िवषय म ‘शांितपव और अनुशासन पव’ म िव तारपूवक
वणन िकया गया ह। रा यधम क िवषय म इसक उपरांत आिदपव म धृतरा -किणक सवांद म भी कटनीित क
चचा ई ह।
इसक उपरांत ‘आर यक पव’ म माकडय ऋिष युिधि र को रा यधम क िवषय म ान देते ह। ‘उ ोगपव’
म धृतरा -िवदुर संवाद भी इस राजधम क िवषय म ही ह। ‘सभापव’ म ऐसा नारद-युिधि र संवाद भी ि गत
होता ह। इस कार राजधम और राजनीित इन दोन िवषय पर महाभारत म बड़ी सं या म संकत ा ए ह।
राजा ने पर पर यु िकए ह, पर परािजत राजा का रा य कभी भी िवजेता राजा ने अपने देश म िमला िदया
हो, ऐसा नह आ। परािजत राजा िवजेता का आिधप य वीकार ले और उसे भट दे, यही पया िदखाया ह।
जहाँ िवजेता ने परािजत का वध िकया ह, वहाँ परािजत राजा क पु को रा य वापस स पा जाता रहा ह। जरासंध
क वध क बाद उसक पु का िसंहासन पर वयं ीक ण, भीम तथा अजुन ने अिभषेक िकया था।
राजा क स ा देखने म भले ही अमयािदत लगती हो, पर यवहार म वह वैसी नह थी। राजा क शासन म
सहायता करने क िलए सभा अथवा सिमित या मंि गण उपल ध थे। मंि य क सं या आठ हो, ऐसा संकत
‘शांितपव’ म ह। इन मंि य क िनयु क िवषय म िन त मागदशक िस ांत भी िनधा रत थे। जो सभा राजा
क सहायता करने क िलए िनिमत क जाती थी, उस सभा क रचना क िवषय म भी िन त मागरखा थी। इसक
सद य क सं या सतीस िन त क गई ह और उसम चार िव ा तथा यु प मित (िकसी संकट का िजसे
त काल िनराकरण सूझे, ऐसा य ) ा ण, आठ बलवान ि य, इ स धनवान वै य तथा तीन पिव और
िन य कमाचरणशील शू का समावेश िकया ह। इसक उपरांत पचास अथवा उससे अिधक आयु का तथा
िन यसनी, ऐसा एक सूत जातीय सभासद भी होना चािहए। इस कार इन सतीस सभासद म से आठ को राजा
िनयु करता था। इस सम आयोजन म समाज क येक वग को मता क अनुसार ितिनिध व ा होता
और जा क तमाम वग को शासन म सहभागी होने का अवसर िमलता था। इसक उपरांत येक राजप रवार
का अपना खुद का एक राजपुरोिहत भी रहता था। ह तनापुर म धृतरा तथा दुय धन क रा यकाल म कपाचाय
इस पद पर आसीन थे और इ थ म तथा यु क अंत म ह तनापुर म युिधि र ने इस पद पर धौ य ऋिष
का चयन िकया था। इस पुरोिहत धम क उपरांत राजनीित क िवषय म भी वे राजा को मागदशन देते थे।
इस सभा, सिमित या राजपुरोिहत क सलाह क ऊपर जाना राजा क िलए मु कल था। राजकोष हमेशा बढ़ता
रह, यह अपेि त तो था, पर वान थ लेते समय धृतरा ने युिधि र से कहा ह िक राजकोष क वृ यायतः
होनी चािहए और अथवृ भी अ याय से नह होनी चािहए। जा पर कर-िनधरण उसक साम य क अनुसार ही
करना चािहए और मर िजस तरह फल को ित प चाए िबना उसका रस चूसता ह, उसी तरह राजा को भी
जा से कर लेना चािहए। राजा क कत य क िवषय म िपतामह भी म ने जो उदाहरण िदया ह, वह िकसी भी

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शासक क िलए कालातीत ह। शासक को सगभा (गभवती) ी जैसा बरताव करना चािहए और िजस तरह यह
ी वयं को ेय हो, ऐसा यवहार नह करती, ब क गभ थ िशशु का िजसम ेय होता ह, वैसा ही यवहार
करती ह,उसी तरह राजा को भी जा क साथ संबंध थािपत करना चािहए।
ह तनापुर म जा कल िमलाकर संतु , सुखी और राजप रवार क ष यं क ित उदासीन रही हो, ऐसा
लगता ह। अ य रा य म भी ऐसी ही प र थित कमोबेश िदखाई देती ह। जा क भावना युिधि र और पांडव
क ित थी, इसक पया संकत ह, िफर भी ूतसभा म जो कछ आ, उसक िवरोध म एक भी वर जा म
नह उठा। अर य म जाते समय पांडव को इस जा ने दुःखपूवक िवदा अव य दी ह, परतु इससे अिधक कोई
ितभाव जा ने य नह िकया ह। इसी कार राजा धृतरा जब वान थ वीकार कर ह तनापुर तज देते ह,
तब भी यह जा उ ह दुःखपूवक िवदा देती ह और राजा भी जा क स मित से ही िवदा लेते ह।
वंशानुवंिशक रा य था क िसवा अ य जो एक रा य था का उ ेख महाभारत म से ा होता ह, यह
गणतं अथवा संघरा य का ह। ऐसे गणतं क िवषय म कोई िव तृत जानकारी हम नह िमलती। परतु
संगोपा और सुभ ाहरण क समय ‘शांितपव’ म नारद-क ण संवाद तथा भी म-युिधि र संवाद म ऐसे
गणरा य अथवा संघ जीवन क संकत िमलते ह। ऐसे रा य म मु यतः मालव, िशिब, वृ णी, अंधक, ि गत
आिद का समावेश होता ह। इन गणरा य क मु य अिधपित को भी राजा कह कर संबोिधत िकया जाता था। इस
कार राजा का अथ मा वंशानुवंिशक िसंहासन का वामी जैसा सीिमत अथ अभी तक सवमा य आ हो, ऐसा
नह लगता ह।
रा य का िव तार अथवा समृ को ही रा यधम नह माना गया था। जा क याण सबसे मह वपूण
िवभावना रही ह। ‘शांितपव’ म िपतामह ने यह बात ब त प ता क साथ कही ह—
जा य य िववध ते सरसीव महो पल ।
स सवय फलभा ाजा लोक महीयते॥
अथा सरोवर म िखले शतदल कमल क भाँित िजसक जा सदा विधत रहती ह, वह राजा ही इस जग म
स मा य माना जाता ह।
इस कार राजा सव थम और सम समाज म धान थान पर होने क बावजूद उसका यश जा पर
अवलंिबत ह। आज जब रा य और धम दोन त व को पर पर िवमुख करने का िववाद अ थान पर रहा ह,
तब महाभारतकालीन राजधम क िवषय म िवचार करना उिचत लगता ह। जो राजा जा क समृ या संतोष
का िवचार नह कर सकता, उसका तो सवतः अ वीकार ही आ ह और राजा ‘काल य कारण ’ उ क
अनुसार रा य म जो कछ भी होता ह, उन सभी सकारा मक और नकारा मक त व क िलए उसे ही उ रदायी
ठहराया गया ह। रा य पर धम का शासन अबािधत रहा ह। यास, नारद आिद अनेक ऐसे धमपु ष ह, जो िकसी
भी रोकटोक क िबना िकसी भी रा य म सव िवचरण करते ह और राजा को उिचत उपदेश देकर िनयंि त भी
करते ह। धमानुशासन ही हमेशा रा य का आधारभूत िस ांत माना गया ह, इस संदभ म धम को रा य से मु
रखने क आज क दलील िकतनी नासमझी भरी ह, इस पर िवचार करना रस द ह। महाभारत म भगवा मनु
ारा िन त िकए गए िदशा-िनदश का भी ायः उ ेख आ ह और कोई भी शासन-प ित इन िदशा-

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िनदश क उपे ा नह कर सकती। थल, काल क संदभ म उिचत प रवतन अिनवाय ह, परतु आधारभूत त व
बने रहने चािहए।
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जा ही राजा का ाण ह
महाभारत म लगभग सभी मु य कथानक अथवा उपकथानक राजप रवार क ही ह। इनम अिधकांशतः
राजमहल क बाहर बसती जा क जीवन या उनक आकां ा क िवषय म िवशेष उ ेख नह
ह। जा क िहत या क याण क िलए राजा ने, िफर वह दुय धन हो या युिधि र, िशशुपाल हो या
जरासंघ, िकसी ने िवशेष कछ नह िकया ह या? आज हम िजस अथ म जाक याण को समझते ह,
ऐसे िकसी अथ म लोकक याण क कोई क पना उस समय क राजा ारा अमल म लाई गई थी
या?

महाभारतकालीन कथानक प तः रा य , राजप रवार या राजवंश क बात से भर ह। िज ह हम आज जा


(जनता) क अथ म जानते ह, ऐसा कोई समूह इन कथानक म कह कोई िभ भूिमका िनभाता हो, ऐसा
यमान नह होता ह। िजस अथ म आज हम जा और राजा यानी िक शािसत और शासक जैसे दो िवभाग से
प रिचत ह, ऐसे िवरोधाभासी अथ ाधा य वाले ऐसे िकसी िवशेष वग क कथा महाभारत म नह ह। राजा एक
सामािजक यव था ह और यव था क इस भाग क प म ही राजा भी अंत म तो जा अथा समाज का ही
एक भाग ह। ‘शांितपव’ म तथा ‘आ मवािसक पव’ म राजा और जा दोन िकसी सीमा तक एक प ह और
कोई राजा कभी भी जा क उपे ा करक रा य सँभाल नह सकता, इसका प िनदश िदया ह। पु युिधि र
को रा यधम क िवषय म ान देते हएु मरणो मुख िपतामह ने जो बात कही ह, वह (अ. 68, ोक 18,19,20)
इस कार ह :
‘‘यिद राजा जा का पालन न कर तो धमाचा रय पर अनेक कार क दुःख आ पड़ते ह और अधम ही फल
जाता ह। धनवान पु ष क सदा ह या होती रहती ह। उ ह असामािजक त व बंधन त करते ह और कोई भी
य िकसी भी व तु को अपना समझता ही नह । लोग क अकाल मृ यु होती ह और पूरा संसार डाक क
वश म आ जाता ह।’’
‘आ मवािसक पव’ म राजा धृतरा जब ह तनापुर यागकर अर यवास क िलए िवदा लेता ह तो (अ. 16,
ोक 18,19,20) इस कार कहा गया ह :
—ह राजा! धमपु युिधि र, भीम तथा अजुन सभी िकसी लोक समुदाय को अि य हो, ऐसा कोई आचरण
नह करते ह। पांडव नगरजन क िहते छ ह। वे स न क ित स ाव और दु क ित उ ता िदखाएँगे तथा
अ य कोई भी जाजन क ितकल हो, ऐसा आचरण नह करगे।
वे दोन उ ेख एक िवभावना ब त ही प प से करते ह िक राजा क िलए जाक याण से िभ
अपना कोई क याण हो तो भी उसका थान गौण ही था। आज िजसे हम जाक याण कहते ह, ऐसे कोई अलग
आयोजन भले ही इन राजा ने न िकए ह , पर उनक सम कायसूची म परो प से भी लोकक याण का
हतु हमेशा रहा ह। राजा अिनयंि त न बने, इसक िलए सहायभूत होने क िलए सभा और सिमित महाभारत म

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ायः िदखाई देती ह। तालाब, कएँ या सरोवर खोदवाना, उ ह अ छी तरह सँभालना तथा जलाशय क प म
उनका मु िविनयोग हो, ऐसी यव था करना, ये सब अिनवाय राजकम समझे जाते थे। युिधि र ने इ थ
बसाया, उस समय रा य म ऐसे जलाशय क िवशेष यव था क थी। जा क र ा तथा पयावरण, इन दोन
ि से वृ ो छदन क िवषय म रस द उ ेख ‘शांितपव’ म (अ. 69, ोक 39-40) िकया गया ह, िजसम
श ु गु वास कर सक और िजनक फल, फल, छाया, का आिद यु क समय म श ु उपयोग म ले सक,
ऐसे नगर क नजदीक क वृ का नाश करना, िकतु मंिदर या आ म क वृ को सँभालने क बात यहाँ कही
गई ह। आज हम िजसे नेशनल हाईवे कहते ह या टट हाईवे कहते ह, ऐसे दो कार क थलमाग का उ ेख
महाभारत म ह।
ऐसे माग म एक रा य को दूसर रा य क साथ जोड़ते माग तथा एक नगर को दूसर नगर क साथ जोड़ते माग
ह। वनवासी राजा नल ऐसे तीन माग क ितराह पर खड़ा होकर एक माग पसंद करता ह। इसम इस कार क
माग क संकत िमलते ह। माग पर या ा करनेवाले सामा य य बीच-बीच म िव ाम कर सक, इसक िलए
िवशेष धमशालाएँ, िज ह ‘पांथशाला’ कहा गया ह, उनक उ ेख महाभारत क ‘उ ोगपव’ (अ. 83, ोक-4)
तथा ‘आिदपव’ (अ. 129, ोक 4) म िमलते ह। जा क मनोरजन क िलए िवहार और उ ान भी नजर आते
ह। ऐसे सावजिनक उपयोग म लाए जानेवाले थान को यिद कोई नुकसान प चाए तो उसे धम-िवरोधी क य
माना जाता था। राजा धृतरा अपने वान थ गमन क संग पर पु युिधि र से कहते ह िक ह पु ! जो
सभाभवन, उ ान या जलाशय आिद को न करते ह, ऐसे पापाचा रय को सुवणदंड तथा ाणदंड देना चािहए।
इसम भले भावना धम क हो, सुर ा क हो या कोई और हो, पर अंततः इसम जा का क याण होता रहा ह।
महाराज युिधि र ने इ थ म अलग रा य ारभ िकया, उसक बाद तुरत ही महिष नारद ने युिधि र को
राजनीित क िवषय म जो उपदेश िदया ह, उसम राजा को किष े म भी कसे सतक रहना चािहए और या
उपाय करने चािहए, इसक प ता क ह। जल- यव था क िवषय म निदय को ‘देवमातृक’ अथा पूरी तरह
दैव पर आधा रत हो, इस कार न रखे जाने क सूचना दी ह। वषा यिद समय पर न हो तो किष को पया मा ा
म जल नह िमलता ह। ऐसे समय म किष को जल प चाने क िलए ‘नदीमातृक’ अथा जो वाह देव अथा
व ण ारा नह आ ब क नदी म से िनकालकर ा िकया गया ह, ऐसा होता ह। इसे हम नहर था भी कह
सकते ह। नारद जी युिधि र से कहते ह, उसक अनुसार किष हमेशा सृि पर ही आधा रत हो, ऐसा नह होना
चािहए। एक आ यजनक उ ेख ऐसा भी ह िक वे या यव था भी त कालीन समाज म रा य क हाथ म ही
हो, ऐसा लगता ह। आधुिनक समाजशा ी ऐसी िकसी यव था को समाज क वा य और उसक थरता क
िलए आव यक मानते ह, ऐसा ही कोई िवचार इस रा यह तक यव था म हो, ऐसा लगता ह। अपंग, अनाथ या
वृ का िनवाह करना रा य का कत य माना गया ह (शांितपव अ. 92/34)। जहाँ तक िश ा का संबंध ह,
वहाँ तक त कालीन िश ा- यव था म रा यह तक नह ब क ऋिषय या ा ण क पास उसक वतं
यव था हो, ऐसा लगता ह। ऐसी यव था को पु करना रा य का कत य माना गया ह।
आधुिनक रा य- यव था म धम से िवमुख होना गौरवपूण हो, इस तरह ांित पैदा क जाती ह। परतु
महाभारतकालीन सम रा य- यव था का आधार धम ही ह और इस धम का अथ िकसी-िकसी य िवशेष या
िक िन त जनसमूहक सां दाियक मा यता नह , ब क य गत उ ित ारा सम समाज व थ रह, पु

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हो और एकवा यता का सार हो, यही ल य रहा ह। जा क नाम पर आज जो भी लोकक याण का आयोजन
होता रहता ह, ऐसा प आयोजन महाभारतकाल क राजा ने िकया हो, ऐसा िदखाई नह देता ह। परतु उनका
रा यधम ऐसे जाक याण क भावना से सदैव े रत होता रहता ह, इसम कोई संदेह नह । हमार आधुिनक
शासक को ‘धम’ श द से तिनक भी भड़क िबना इस श द को इसक यथाथ म समझने क कोिशश करनी
चािहए, और यिद एक बार यह समझ म आ जाए तो हमार त कालीन संदभ म यह श द काश फलाने म समथ
ह।
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सं कित का सजन

क पना-कथा से नह होता
क े क महायु क आरभ म ही इस रण े क ीम गव ीता म ‘धम े ’ क प म पहचान
कराई गई ह। इस यु म अधम अथा कौरव क पराजय ई और धम अथा पांडव क िवजय ई,
ऐसा अिभ ेत िकया गया ह। दुय धन या धृतरा ने पांडव क साथ क वैरभाव से े रत होकर जो भी
अधम िकए ह , उसे थोड़ी देर क िलए दरिकनार कर द तो अपने शासनकाल म अ य िकसी पर
अ याय िकया हो या अ याचार िकए ह , ऐसा कोई कथानक नह िमलता। ौपदी का व हरण अव य
अधम कहा जा सकता ह, पर ौपदी क िसवा िकसी भी नारी क िकसी भी मयादा का उ ंघन िकसी
कौरव ने कभी भी नह िकया। ौपदी व हरण भी ूत क प रणाम व प आ ह और यह ूत वयं
िनषेधा मक ह—अधम ह। यह अधम युिधि र ारा वयं ही वीकार जाने क बाद यिद यह प रणाम
आए तो उसका मू यांकन कसे िकया जा सकता ह? युिधि र और उनका प यह यु या मा धम
क िवजय क िलए ही लड़ा था, ऐसा कहा जा सकता ह या? दुय धन ने यिद युिधि र को उनक
माँग क अनुसार पाँच गाँव देकर समझौता कर िलया होता तो इस ‘अधम’ को भी पांडव ने धमिवजय
कहा होता?

‘धम’ श द महाभारत म सैकड़ नह , हजार बार इ तेमाल िकया गया ह और येक बार इसक
अथ छाया तथा भूिमका िभ रही ह। महाभारतकार ने उसक कथानक क आरभ म ही िजन उ े य क िवषय
म प ता क ह, उसम ‘धम’ मुख थान पर ह। कथानक क अंत म इस धमत व का कोई अनुसरण नह
करता, ऐसा कहकर महिष यास ने खेद य िकया ह। पांडव क िवजय से ही यिद धम क िवजय ई ह,
ऐसा ितपािदत करना होता तो महाभारतकार का यह असंतोष िनरथक ही होता, परतु ऐसा आ नह । क े
को धम े कहा ह और पांडव क िवजय धम क िवजय ह, ऐसा भी ितपािदत िकया ह, िफर भी इस िवजय
क अंत म भी महाभारतकार तो हताशा और भ न दय क साथ िनराशा ही कट करता ह—‘धम का अनुसरण
य कोई नह करता?’ यह प िवरोधाभास ह और कोई भी िवचारशील य या पाठक का यह न भी हो
सकता ह—तो िफर महाभारत क यु को धमयु कसे कहा जा सकता ह?
महाभारत म असं य कथानक ह। क वंश क कथा इन सब म मु य कथानक ह। मा क वंश क यह कथा
कहने क िलए ही महिष यास ने एक लाख ोक क या क हो, ऐसा मानना इस ंथ और इसक कता
दोन क ित अ याय करने जैसी बात ह। िजस धम क बात उ ह कहनी ह, वह कोई कोरी दाशिनक या
उपदेशा मक बात नह ह। यह संदेश उ ह ने कथा क प म ढालकर हम िदया ह। यह कथा सौ ितशत इितहास
ही होगा, ऐसा आज क तारीख म िव ासपूवक नह कहा जा सकता ह और इसक बावजूद इसम ऐितहािसक

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त य िब कल नह ह और यह तो मा धम का संदेश अपने अथघटन क साथ देने क िलए रचा गया का पिनक
कथानक ह, यह कहना िब कल सही नह ह। िनरी क पना कथा ारा ंथ रचा जा सकता ह—सं कित नह !
महाभारत क कथा मा ंथ नह , वह तो जीवंत सं कित ह और उसी कार से आज हजार वष बाद भी यह
वीकार ई ह। जो जीवन जा ने वयं न िजया हो, वह जीवन सं कित का अंश नह बन सकता। क वंश ही
इस कथा क उपरांत असं य अ य उपकथानक इसम समािव ए ह और ऐसे सभी उपकथानक क वंश क
कथा क तरह ही सं कित का ही अंश बन गए ह। उदाहरण क िलए, ययाित, शकतला, िव ािम , यादव क
कथा आिद।
क वंश क कथा संपि या उ रािधकार क िलए िकया गया पा रवा रक कलह ही ह, इसे अ वीकार नह
िकया जा सकता। उ रािधकार क इस यु म त कालीन आयावत क अ य राजा भी स मिलत ए ह। इसम
ब धा राजा क बीच िकसी-न-िकसी अ य कारण से पूवकालीन वैर या सम या भी िन त प से ह ही।
ोण- ुपद-धृ ु न या भी म-िशखंडी, कण-अजुन, जय थ-अजुन ऐसे उदाहरण ह, जरासंध का क ण ारा
िकया गया वध भी क ण क जरासंध क साथ क कस वध क िनिम पैदा ए श ुभाव का ही ोतक ह; अ यथा
भीम या अजुन को जरासंध क साथ कोई सम या थी ही नह । िजसे हम आज क अथ म जनसमूह या सामा य
जनता कहते ह, उसे ऐसे िकसी राजा या उसक यु म तिनक भी कोई संबंध हो, ऐसा लगता नह । दुय धन ने
अपनी मृ यु क समय अपने ारा चलाए शासन क ित संतोष ही य िकया ह और राजा धृतरा जब
ह तनापुर छोड़कर अर यवास वीकार करता ह तो ह तनापुर क जा ने उसे िवदाई-स मान िदया ह, उसम भी
राजा क जावा स य और शासन क ित संतोष ही कट िकया ह। इस कार राजा धृतरा ह या दुय धन या
िफर युिधि र, जा एक वग क प म तो इन सभी क ओर से एकसमान ही यायी और संतु यवहार ही
पाई हो, ऐसा ही लगता ह।
क वंश क उ रािधकार का न ही ऐसा जिटल बना ह िक इसम कानून क अलावा सामािजक, आ या मक
और यापक क याण भावना से े रत ह , ऐसे अ य पहलू भी जाने-अनजाने जुड़ गए ह। हर एक पहलू का
अपना तक ह और अपना याय भी ह! रा य का िवभाजन इसक पहले आयावत म िकसी राजा ने िकसी भी
अपने उ रािधका रय क बीच नह िकया था और राजा तो सम रा य का एक ही हो सकता ह, यही िस ांत
यवहार म रहा ह। इितहास म पहली बार वयं भी म ने ह तनापुर को दो भाग म बाँटकर पांडव को इ थ
का देश िदया, यह घटना ही इस बात का संकत देती ह िक इस सम या का कोई प िनराकरण नह , भी म
यह बात जानते थे; इतना ही नह , िकसी एक प म शत- ितशत धम या याय रहा ह, ऐसा कह सकने ही
थित म वयं भी म नह थे। ऐसी िवकट प र थित म जब दोन क प अपने-अपने ढग से समथ ह और
हमार ही प म याय ह, ऐसा मानते ह , तो िव ह और संघष अिनवाय बन जाते ह।
ऐसी थित म न धमबु का ह और यह धमबु माने दोन म से िकस प म धम का अनुशीलन
अिधक मा ा म ह, और यिद िवजय एक या दूसर प को िमले तो कौन सा प िवजय ा करने क बाद धम
को अिधक यापक अथ म उ ल कर सकता ह, यह जानना िववेक-बु का काम ह। ौपदी का चीर-हरण
िन त ही अ यंत ल ा पद घटना ह और यह घटना ही इसक बाद दोन प क बीच सवनाश क िसवाय
समा नह हो सक, ऐसे अंतर क ओर िखंच गई ह, इसम कोई शक नह । इस घटना से कौरवप म अिधक
हािन ई ह, यह भी वीकार करना चािहए। इसक बावजूद ौपदी ने पाठभेद से कछ कथानक क अनुसार इसक
पहले दुय धन (राजसूय य क अवसर पर) को और कण को ( ौपदी वयंवर क समय) िजस तरह से

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अपमािनत िकया था, उस अपमान क आग भी ौपदी को ऐसी िनव अव था म ख च ले गई थी, यह नह
भूलना चािहए। इतना ही नह , इस प र थित क मूल म ूत जैसी िनषेधा मक वृि रही ह, यह भी याद रखना
चािहए। युिधि र भले कहते ह िक उ ह जो भी कोई ूत खेलने िनमं ण दे तो उसे अ वीकार न करने क
उनक ित ा ह िक यह उनक राजनीित ह, पर इसम कोई स ाई नह । अर यवास (वनवास) क दौरान वयं
युिधि र ने अपने ूत खेलने का रह य खोलते ए कहा ह िक वे ूत- ड़ा म ब त वीण ह, ऐसा मानते थे
और दुय धन को इस तरह सरलता से परा त करक उसका रा य छीन लगे, ऐसी धारणा से ही उ ह ने ूत खेलने
का िनमं ण वीकार िकया था। इसका अथ ही यह आ िक युिधि र भले ही धमपु ष माने गए ह , पर उनक
पेट म भी पाप तो था ही!
पाप से े रत ऐसी घटना म िवधेया मक प रणाम क आशा रखी ही नह जा सकती ह। युिधि र को अपने
पाप का फल तुरत ही िमला— ाणि य प नी का अपमान भरी सभा म आ और दुय धन को अपने पाप का फल
तेरह वष क बाद िमला। उसका सवनाश आ।
संपूण धम एक भी प म नह और इसी तरह संपूण अधम भी िकसी भी प म नह , ऐसा सावधानी क साथ
कहा जा सकता ह; सवाल मा धमिवषयक िववेकबु का ह और यह िववेकबु येक समझदार य म
होनी चािहए, यही तो धम का संकत ह। जीवन म कदम-कदम पर धम और अधम दोन िमलते ही रहनेवाले ह।
इसम कभी हम य प से जुड़ ए रहते ह तो कभी अ य प से भी जुड़ ह गे। पर हर बार धम क समझ
होना पूवशत ह। यह संदेश उ ह ने कौरव या पांडव क ारा नह िदया। इस संदेश का वाहक तो बने ह
ीक ण।
धम क अनुशीलन म िनजी वाथ को िनकालना (छोड़ना) सव थम अिनवाय शत ह। जो कोई भी य
िकसी भी घटना को वयं से अलग करक देख सकता ह, वह य धम का दशन कर सकता ह। एक बार
ऐसा दशन हो जाए, उसक बाद यह य वयं को सम घटना से अलग नह कर सकता। धम या ह, कहाँ
ह, िकसक प म ह, ये न वयं से अलग करने क बाद समझ म आ जाएँ, इसक िलए अपने आप को भी
होम कर देना, ऐसे य क िलए अपना धम बन जाता ह। ीक ण ने यह काम िकया ह। मथुरा का कस वध
हो या क े म भी म, ोण कण या दुय धन का वध हो...क ण ने ये तमाम वध, देखने म अधम लग, इस
तरह कराए ह। कौरव और पांडव इस कार दो प म िवभािजत ए धम का पासा पांडवप म थोड़ा अिधक
वजनदार ह, यह तो हर य को मानना पड़गा। यिद धम का त व पांडवप म अिधक संरि त रहा हो तो िफर
उसक र ा करना धम का अनुशीलन कहा जाएगा।
क े को धम े कसे कहा जा सकता ह, यह मु ा भी थोड़ा िवचार कर देख ल। इस श द का योग
महाभारतकार ने गीता क आरभ म ही धृतरा क मुख से कराया ह। गीता क तुित यु क दसव िदन क
बाद ई ह। सेनापित भी म अजुन क हाथ धराशायी ए, यह वृ ांत संजय ने अंधे राजा धृतरा को सुनाया तो
यिथत होकर राजा यु का िव तारपूवक वणन जानना चाहते ह। उस समय Flash Back प ित से संजय ने
यु क पहले िदन—यु आरभ होने क पहले जो आ, उसक बात कही ह। इसम सव थम न धृतरा ने
िकया ह—‘ह संजय! इस धमभूिम क े म मेर पु और पांड क पु ने या िकया, यह मुझे बताओ?’ इसम
धम े िजतना ही मह व का श द ‘मामकाः’ श द ह! धृतरा का पु मोह और इस मोह से े रत अपने प म
उसे जो धम लगता ह, उसी क कारण वह इस रण े को धम े कहता ह! धम अपने प म ह—साम य भी
अपने प म ही ह। इस िव ास से े रत होकर उसने इस श द का योग िकया हो, यह तकसंगत ह। यिद

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अपनी िवजय िन त ही हो तो वह धम क ही िवजय ह, यह बाद म ितपािदत हो सकता ह, इस अवधारणा से
उसने रणभूिम को धम े कहा हो, ऐसा िन त ही संभव ह।
न क अंत म जो शंका उ प क गई ह, उसक िवषय म थोड़ा िवचार कर। यिद दुय धन ने पांडव को
उनक ताव क अनुसार पाँच गाँव दे िदए होते तो यु टाला जा सका होता। ऐसी थित म पांडव क अथा
‘धम क िवजय’ ई ह, ऐसा कहा जा सका होता या? इस न क भूिमका म थोड़ा गहर उतरना चािहए।
पांडव हमार प म धम ह, ऐसा मानते थे। इतना ही नह , इस धम क पुन थापना क िलए िवजय ा कर
सक, ऐसा साम य भी उनक पास था। इसक बावजूद धमिवजय क िलए ऐसे लाख िनद ष लोग का वध हो
जाना अिनवाय था। ये िनद ष भले ‘धम थापनाथाय’ मर थे, ऐसा कहते ह, पर वा तव म इस यु से जो य
लाभ होना था, वह तो युिधि र क रा यारोहण का ही था! अपना यह लाभ छोड़ देने से यिद लाख जीव क
ह या क सकती हो तो यह यापक धम क र ा क िलए संकिचत धम का याग करने जैसा उ दा काम ही
आ कहा जा सकता ह। यहाँ पांडवप म धम क कसी िचंता ह, यही िस होती ह। अपना अिधकार और
आ ह दोन यागकर यापक धमभावना का िहत ल य म रखना, यह सामा य श का काम नह । दुय धन ऐसा
नग य काम भी वे छया नह कर सका और इस तरह धम क ित अव ा, नासमझी या अहकार, जो भी कहो,
वह य आ ह। इसी कारण से उसका प धम से िवमुख आ, इस हद तक पांडव क िवजय को ‘धम क
िवजय’ कह सकते ह।
बाक यु हल नह , सम या ही ह। मानवजाित जब िकसी सम या का िनराकरण मानवीय ढग से नह खोज
पाती ह तो आिदमवृि से े रत होकर वह पशुबल का सहारा लेती ह। इस कार मनु य पर पशु क जीत होती
ह। इसे आप परा म, वीरता, शौय या धमिवजय, ऐसे चाह जो नाम दे सकते ह! युिधि र से लेकर तीय
िव यु क िवजेता मेन-चिचल- टािलन तक क िवजेता यु क अंत म धमिवजय क ही बात करते रह ह!
धम यु का िनवारण करने म ह—यु म िवजय ा करना भले ही अिनवाय आपि बन जाती हो, पर यु
क अंत म जो ा होता ह, उसम कोई िवजय नह होती, और यह बात किथत धमिवजय क बाद भी रहती ह।
पांडव का हताश अव था म वगारोहण या सोमनाथ क समु तट पर यादवकल क आ मिवलोपन ारा यह
बात महिष यास ने इिगत क ह। ऐसे संकल जीवन म म धम का अनुशीलन और इस अनुशीलन ारा ा
होता सुख तभी संभव होता ह, जब तमाम सम या क ण म थूल लाभ म से वयं को उबार िलया जाए
और िफर जहाँ अिधक धम ह, उसक र ा क िलए वयं का पूण समपण करने म कोई संकोच न रह! धमत व
का वीकार इसी तरह से संभव होता ह, अ यथा धम भी वं य वाणीिवलास ही बनकर रह जाता ह।
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