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ऋषल ण
ऋ ष :- 'ऋ ष' श द क ु प ऋ ष गतौ धातु' से मानी
जाती है। ऋष त ा ो त सवान् म ान्, ानेन प य त
संसारपारं वा। ऋषु+इगुपधात् कत् इ त उणा दसू ण
े इन्
क चः । इस ु प का संकेत वायु पुराण, म य पुराण
तथा ा ड पुराण म कया गया है। ा ड पुराण क
ु प इस कार है।
ग यथा षतेधातोनाम नवृ रा दतः ।
य मादे व वयंभतू त मा ा यृ षता मृता।।
वायु पुराण म ऋ ष श द के अनेक अथ बताए गए ह-
ऋ ष येव गतौ धातुः ुतौ स ये तप यथ ।
एतत् सं नयत त मन् णा स ऋ ष मृतः ।।
इस ोक के अनुसार ऋ ष' धातु के चार अथ होते ह-
ग त, ु त, स य तथा तपस् । ा ारा जस म ये
चार व तुएँ नयत कर द जाय, वही 'ऋ ष' होता है।
वायु पुराण का यही ोक म य पुराण म भी कु छ भेद से
ा त होता है। या काचाय क न है ऋ षदशनात् ।
इस न से ऋ ष का ु प ल य अथ है, दशन करने
वाला, त व क सा ात् अपरो अनुभू त रखने वाला
व श पु ष। न कार या काचाय का कथन
'सा ा कृ तधमाणः ऋषयो बभूवुः' इस न का
तफ लताथ है। ऋ षगण धम (वै दक ान) का
सा ा कार कए ए थे, उ ह ने धम का सा ा कार न
कए ए सरे लोग को उपदे श ारा मं दए। तै रीय
आर यक के अनुसार इस श द क ा या इस कार है
क सृ के आर म तप या करने वाले अयो नसंभव
य के पास वयंभू वयं ा त हो गया। वेद का
इस वतः ा त के कारण, वयमेव आ वभाव होने के
कारण ही ऋ ष का 'ऋ ष व' है। इस ा या म ऋ ष
शदक न 'तुदा दगण ऋष् गतौ' धातु से मानी गयी
है। अपौ षेय वेद ऋ षय के ही मा यम सं व म
आ वभूत आ और ऋ षय ने वेद के वणमय व ह को
अपने द ो से वण कया, अतः वेद को ु त भी
कहा गया है। सं कृ त क व भवभू त के नाटक
उ ररामच रतम् के अनुसार आ द ऋ षय क वाणी के
पीछे अथ दौड़ता है, ऋ ष अथ के पीछे कभी नह दौड़ते
'ऋषीणां पुनरा ानां वाचमथ ऽनुधाव तः ।
न कष यह है क तप या से प व 'अंत य त स
म ा य क ही सं ा ऋ ष है। क प के आ द म
सव थम इस अना द वै दक श द-रा श का थम उपदे श
ा जी के दय म आ और ा से पर रागत
अ ययन-अ यापन होता रहा, जसका नदश 'वंश ा ण
आद म उपल होता है। अतः सम त वेद क
पर रा के मूल पु ष ा (ऋ ष) ह। इनका मरण
परमे ी जाप त ऋ ष के प म कया जाता है। परमे ी
जाप त क पर रा क वै दक श दरा श के कसी अंश
के श द त व का जस ऋ ष ने अपनी तप या के ारा
कसी वशेष अवसर पर य दशन कया, वह भी उस
मं का ऋ ष कहलाया। उस ऋ ष का यह ऋ ष व
श दत व के सा ा कार का कारण माना गया है। एक ही
मं का श दत व-सा ा कार अनेक ऋ षय को भ -
भ प से या सामू हक प से आ था। अतः वे सभी
उस मं के ऋ ष माने गये ह। क प के नदश म
ऐसे य को भी ऋ ष कहा गया है, ज ह ने उस मं
या कम का योग तथा सा ा कार अ त ापूवक कया
है।
वै दक वशेषतया पुराण- के मनन से यह भी
पता लगता है क जन य ने कसी मं का एक
वशेष कार के योग तथा सा ा कार से सफलता ा त
क है, वे भी उस मं के ऋ ष माने गये ह।
ऋ षय के कार :- वेद, ान का थम व ा,
परो दश , द वाला। जो ान के ारा मं को
अथवा संसार क चरम सीमा को दे खता है, वह ऋ ष
कहलाता है। उसके सात कार ह- ासा द ासा द
मह ष, भेला द परम ष, क वा द दे व ष, व स ा द ष,
सु ुता द ुत ष, ऋतुपणा द राज ष और जै म न आ द
का ड ष । र नकोष म भी कहा गया है-
सत ष-दे व ष-मह ष-परमषयः ।
का ड ष ुत ष राज ष कमावराः ।।
अथात् ष, दे व ष, मह ष, परम ष, का ड ष, ुत ष,
राज ष ये सात कम अवर है। ऋ ष वै दककालीन कु ल ,
राजसभा तथा सं ा त लोग से स ब त होते थे।
कु छ राजकु मार भी समय -समय पर ऋचा का दशन
करते थे, उ ह राज य ष कहते थे। आजकल उसका शु
प राज ष है।
महाभारत म ऋ ष :- महाभारत म स त षय क दो
नामाव लयां ा त होती ह। एक नामावली म क यप, अ ,
भार ाज, व ा म , गौतम, जमद न और व स के नाम
आते ह तो सरी नामावली म क यप, व स , मरी च,
अं गरस, पुल य, पुलह और कतु के नाम आते ह।
वैखानस:-ऋ षय का यह समूह ा जी के नख से
उ प आ था।
वाल ख य :- ऋ षय का यह समूह ा जी के रोम से
कट आ था।
सं ाल :- ऋ षय का यह समूह भोजन के बाद बतन धो
-पोछकर रख दे त,े सरे समय के लए कु छ नह बचाते ह।
मरी चप:- सूय और च क करण का पान करके रहते
ह।
ब सं यक अ मकू ट:- क े अ को प र से कू टकर
खाते ह।
प ाहार :- मा प का आहार करते ह।
दं तोलूखली:- दांत से ही ऊखल का काम करते ह।
उम क :- कं ठ तक पानी म डू ब कर तप या करते ह।
गा श य:- शरीर से ही श या का काम लेते ह, भुजा पर
सर रख कर सोते ह।
अ य :- श या के साधन से र हत, सोने के लए नीचे
कु छ भी नह बछाते ह।
अनवका शक:- नर तर स कम म लगे रहते ह और ये
कभी छु नह लेते ह। सामा जक प रवतन और वकास
करते ह।
स ललाहार :- जल पीकर रहते ह।
वायुभ :-हवा पी कर रहते ह।
आकाश नलय:- खुले मैदान म रहते ह, बा रश होने पर
वृ के नीचे आ य लेते ह।
ड लाशायी- ये ऋ ष वेद पर सोने वाले होते ह।
उ वासी:- ये ऋ ष पवत, शखर या ऊंचे ान पर रहने
वाले होते ह।
दांत :- ये ऋ ष मन और इ य को वश म रखने वाले
होते ह।
आ पटवासा:- ऋ षय के ये समूह हमेशा भीगे कपड़े
पहनता ह।
सजप :- ऋ षय के ये समूह हमेशा और नरंतर जप करते
रहते ह।
तपो न :- ऋ षय के ये समूह हमेशा तप या या ई र के
वचार म त रहते वाले होते ह।
श कः- व ऋ ष वे होते ह जो आ म बनाकर रहते ह
और आ म म श ण दे ते ह।
वै दक नामावली के अनुसार वैव वत मनु के काल म ज म
सात महान ऋ षय का सं त प रचय। आकाश म सात
तार का एक म डल नजर आता है उ ह स त षय का
म डल कहा जाता है। उ म डल के तार के नाम महान्
सात ऋ षय के आधार पर ही रखे गए ह। येक
म व तर म सात-सात ऋ ष ए ह।
व स :- राजा दशरथ के कु लगु ऋ ष व स सु स
है। ये दशरथ के चार पु के गु थे। व स क
आ ानुसार दशपु ने ऋ ष व ा म के आ म म
जाकर असुर का वध कया था। व स ने राजस ा पर
अंकुश का वचार दया तथा उ ह के कु ल के मै ाव ण
व स ने सर वती नद के तट पर सौ (100) सू एक
साथ दशनकर इ तहास बनाया।
व ा म :- ऋ ष होने के पूव व ा म राजा थे और
ऋ ष व स से कामधेनु गाय को हड़पने के लए उ ह ने
यु कया था, पर तु वे वजयी नह ए। इस हार ने ही
उ ह घोर तप हेतु े रत कया। व ा म क तप या और
मेनका ारा उनक तप या भंग करने क कथा जगत
स है। व ा म ने तप या के बल पर शंकु को
सशरीर वग भेज दया था।
क व :- क व वै दक कालीन ऋ ष थे। दे श के अतीव
मह वपूण सोमय को क व ने व त कया। इ ह
के आ म म ह तनापुर के राजा यंत क प नी
शकु तला एवं उनके पु भरत का पालन-पोषण आ था।
भार ाज :- वै दक ऋ षय म भार ाज ऋ ष का उ
ान है। भार ाज के पता बृह त और माता ममता
थी। ऋ वेद के ष म डल के ा भार ाज ऋ ष ह। इस
म डल म भार ाज के 756 मं ह। अथववेद म भी
भार ाज के 23 मं मलते ह।
अ :- ऋ वेद के पंचम म डल के ा मह ष अ ा
के पु , सोम के पता और कदम जाप त व दे व त क
पु ी अनुसूया के प त थे। अ ऋ ष का आ म च कू ट
म था। अ -द त क तप या और दे व क स ता
के फल व प व णु के अंश से महायोगी द ा ये , ा
के अंश से च मा तथा शंकर के अंश से महामु न वासा
मह ष अ एवं दे वी अनुसूया के पु प म ज मे ।
वामदे व:- वामदे व ने इस दे श को सामगान (संगीत) दया।
वामदे व ऋ वेद के चतुथ म डल के ा, गौतम ऋ ष के
पु तथा ज म यी के त ववे ा माने जाते ह।
शौनक:- वै दक आचाय और ऋ ष जो शुनक ऋ ष के पु
थे। शौनक ने दस हजार व ा थय के गु कु ल को
चलाकर कु लप त का वल ण स मान हा सल कया ।
एतद त र अग य, क यप, अ ावक, या वल य,
का यायन, ऐतरेय, क पल, जै मनी, गौतम आ द सभी
ऋ ष उ सात ऋ षय के कु ल के होने के कारण इ ह भी
वही ेणी ा त है।