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मा य मक तं -सा ह य

ाचीन आगम या तं का नाम नदश अ य कया गया


है। यहाँ मा य मक तं सा ह य के वषय म बताया गया
है।

त का भेद न पण

दे वता के उपासनासंबंध से तं का भेद न पण


सं ेप म कुछ इस कार होगा-

1. काली (भैरव; महाकाल) के नाना कार के भेद ह,


जैस,े द णाकाली, भ काली। काली द णा वय क
दे वता ह। यमशान काली उ रा वय क दे वता ह।
इसके अ त र कामकला काली, धन-काली,
स काली, चंडीकाली भृ त काली के भेद भी ह।
2. महाकाली के कई नाम स ह। नारद, पांचरा ,
आ द ंथ से पता चलता है क व ा म ने काली के
अनु ह से ही य-लाभ कया था। काली के
वषय म 'श संगम तं ' के अनुसार काली और
पुरा व ा का सा य दखाई दे ता है।
3. दस महा व ा म 'स मोहन तं ' के अनुसार ये
भेद ह -
छ ा, बाला, कमला, सुमुखी, भुवने री, ल मी, तारा,
बगला, सुंदरी, तथा राजमातंगी।

स थ
काली से स ब धत
काली के वषय म कुछ स तं ंथ के नाम इस
कार ह-

1. महाकाल सं हता, (50 सह ोका मक अथवा


अ धक), 2. परातं (यह काली वषयक ाचीन तं
ंथ है। इसम चार पटल ह, एक ही महाश
पÏट् सहाना ढा षडा वया दे वी ह। इस ंथ के
अनुसार पूवा वय क अ ध ातृ दे वी पूण री,
द णा वय क व े री, पूवा य क कु जका,
उ रा वय क काली, ऊ वा वय क ी व ा।), 3.
काली यामल; 4. कुमारी तं ; 5. काली सुधा नध; 6.
का लका मत; 9. काली क पलता; 8. काली
कुलाणव; 5. काली सार; 10 कालीतं ; 11.
का लका कुलस ाव; 13. कालीतं ; 14.। 15.
काल ान और काल ान के प र श प म कालो र;
16. काली सू ; 17. का लकोप नषद्; 18. काली
त व (रामभटटकृत); 19. भ काली चताम ण; 20.
कालीत व रह य; 21. काली म कालीक प या
यामाक प; 22. कालीऊ वा वय; 23. कालीकुल;
24. काली म; 25. का लको व; 26. काली वलास
तं ; 27. कालीकुलाव ल; 28. वामकेशसं हता; 29.
काली त वामृत; 30. का लकाचामुकुर; 31. काली या
यामारह य ( ी नवास कृत); 33. का लका म;
34. का लका दय; 35. काली खंड (श संगम तं
का);36. काली-कुलामृत; 37. का लकोप नषद् सार;
38. काली कुल माचन ( वमल बोध कृत); 39.
काली सपया व ध (काशीनाथ तकालंकार भ ाचाय
कृत); 40. काली तं सुध सधु (काली साद कृत);
41. कुलमु क लो लनी (अ दानंद कृत); 24.
काली शाबर; 43. कौलावली; 44. कालीसार; 45.
का लकाचन द पका (लगदानंद कृत); 46. यामचन
तरं गणी ( व नाथ कृत); 47. कुल काश; 48.
काली त वामृत (बलभ कृत); 49. काली भ
रसायन (काशीनाथ भ कृत); 50. कालीकुल सव व;
51. काली सुधा न ध; 52. का लको व (?); 53.
कालीकुलाणव; 54. का लकाकुल सव व; 56.
कालोपरा; 57. का लकाचन चं का (केशवकृत)
इ या द।

तारा से स ब धत

तारा : तारा के वषय म न न ल खत तं थ वशेष


उ लेखनीय ह-

1 तारणीतं ; 2. तोडलतं ; 3- ताराणव; 4- नील-तं ;


5- महानीलतं ; 6- नील सर वतीतं ; 7- चीलाचार;
8- तं र न; 9- ताराशाबर तं ; 10- तारासुधा; 11-
तारमु सुधाणव (नर सह ठाकुर कृत); 12-
तारक पलता; - ( ी नवास कृत) ; 13- तारा द प
(ल मणभ कृत) ; 14- तारासू ; 15- एक जट तं ;
16- एकजट क प; 17- महाचीनाचार म(
यामल थत) 18- तारारह य वृ त; 19- तारामु
तरं गणी (काशीनाथ कृत); 20- तारामु तरं गणी
( काशनंद कृत); 21- तारामु तरं गणी ( वमलानंद
कृत); 22- महा तारातं ; 23- एकवीरतं ; 24-
तारणी नणय; 25- ताराक पलता प त ( न यानंद
कृत); 26- ता रणीपा रजात ( व त् उपा याय कृत);
27- तारासह नाम (अभेद चताम णनामक ट का
स हत); 28- ताराकुलपु ष; 29- तारोप नषद्; 30-
तारा वलासोदय) (वासुदेवकृत)।

'तारारह यवृ ' म शंकराचाय ने कहा है क वामाचार,


द णाचार तथा स ा ताचार म सालो यमु संभव
है। परंतु सायु य मु केवल कुलागम से ही ा य है।
इसम और भी लखा गया है क तारा ही परा व प
ू ा,
पूणाहंतामयी है। श संगमतं म भी तारा का वषय
व णत है। यामल के अनुसार लय के अनंतर सृ
के पहले एक वृहद् अंड का आ वभाव होता है। उसम
चतुभुज व णु कट होते ह जनक ना भ म ा ने
व णु से पूछा- कसी आराधना से चतु वेद का ान
होता है। व णु ने कहा से पूछो- ने कहा मे के
प म कुल म चोल द म वेदमाता नील सर वती का
आ वभाव आ। इनका नगम के ऊ व व से है।
यह तेज प से नकलकर चौल द म गर पड़ और
नीलवण धारण कया। द के भीतर अ ो य ऋ ष
व मान थे। यह यामल क कथा है।

ीव ा

ी व ा से स ब धत त थ के बारे म जानने के
लये
पर जाएँ।

ी व ा का नामा तर है 'षोडशी'। पुरसु दरी, पुरा,


ल लता, आ द भी उ ह के नाम है। इनके भैरव ह- पुर
भैरव (दे व श संगमतं )। महाश के अनंत नाम
और अनंत प ह। इनका परम प एक तथा अ भ ह।
पुरा उपासक के सतानुसार आ द दे वगण पुरा
के उपासक ह। उनका परम प इं य तथा मन के
अगोचर है। एकमा मु पु ष ही इनका रह य समझ
पाते ह। यह पूणाहंता प तथा तुरीय ह। दे वी का
परम प वासना मक है, सू म प मं ा मक है,
थूल प कर-चरणा द- व श है। उनके उपासक म
थम थान काम (म मथ) का है। यह दे वी गुहय व ा
वतक होने के कारण व े री नाम से स ह। दे वी
के बारह मुख और नाम स ह। - यथा, मनु, चं ,
कुबेर, लोपामु ा, म मथ, अग य, अ न, सूय, इं , कंद,
शव, ोध भ ारक (या वासा)। इन लोग ने ी व ा
क साधना से अपने अ धकार के अनुसार पृथक् फल
ा त कया था।

दस महा व ा

इस महा व ा म पहली श य का त ान जन
ंथ म है उनम से सं ेप म कुछ ंथ के नाम ऊपर दए
गए ह।

भुवने री के वषय म 'भुवने रीरह य' मु य ंथ है।


यह 26 पटल म पूण है। पृ वीधराचाय का भुवने री
अचन प त एक उ कृ ंथ है। ये पृ वीधर
गां व दपाद के श य शंकराचाय के श य प से
प र चत ह। भुवने रीतं नाम से एक मूल तं ंथ भी
मलता ह। इसी कार राज थान पुरा व थमाला म
पृ वीधर का भुवने री महा तो मु त आ है।

पुरभैरवी के वषय म भैरवीतं धान ंथ है। यह


ाचीन ंथ है। इसके अ त र 'भैरवीरह य', 'भैरवी
सपया व ध' आ द ंथ भी मलते ह। पुर याणव नामक
ंथ म भैरवी यामल का उ लेख है। भैरवी के नाना
कार के भेद ह- जैस,े स भैरवी, पुरा भैरवी, चैत य
भैरवी, भुवने र भैरवी, कमले री भैरवी, संपदा द
भैरवी, कौले र भैरवी, कामे री भैरवी, षटकुटा भैरवी,
न याभैरवी, भैरवी, भ भैरवी, इ या द। ' स भैरवी'
उ रा वय पीठ क दे वता है। पुरा भैरवी ऊ वा वय क
दे वता है। न या भैरवी प मा वय क दे वता है। भ
भैरवी महा व णु उपा सका और द णा सहासना ढा
है। पुराभैरवी चतुभुजा है। भैरवी के भैरव का नाम
बटु क है। इस महा व ा और दशावतार क तुलना करने
पर भैरवी एवं नृ सह को अ भ माना जाता है।

बगलामुखी का मु य ंथ है - सां यायन तं । यह 30


पटल म पूण है। यह ई र और च भेदन का संबं
प है। इस तं को 'षट् व ागम' कहा जाता है।
बगला म क पव ली नाम से यह ंथ मलता है
जसम दे वी के उ व का वणन आ है। स है क
सतयुग म चारचर जगत् के वनाश के लये जब
वाती ीम आ था उस समय भगवान तप या करते ए
पुरा दे वी क तु त करने लगे। दे वी स होकर
सौरा दे श म वीर रा के दन माघ मास म चतुदशी
तथक कट ई थ । इस वगलादे वी को ैलो य
तं भनी व ा जाता है।
धूमावती के वषय म वशेष ापक सा ह य नह है।
इनके भैरव का नाम कालभैरव है। कसी कसी मत म
धूमावती के वधवा होने के कारण उनका कोई भैरव नह
है। वे अ य तृतीया को द प काल म कट ई थ । वे
उ रा वय क दे वता ह। अवतार म वामन का धूमावती
से तादा य है। धूमवती के यान से पता चलता है क वे
काक वज रथ म आ ढ़ ह। ह त म शु प (सूप) ह। मुख
सूत पपासाकातर है। उ चाटन के समय दे वी का
आवाहन कया जाता है। ' ाणतो षणी' ंथ म धूमावती
का आ वभाव व णत आ है।

मातंगी का नामांतर सुमुखी है। मातंगी को


उ छ चांडा लनी या महा पशा चनी कहा जाता है।
मातंगी के व भ कार के भेद ह- उ छ मातंगी,
राजमांतगी, सुमुखी, वै यमातंगी, कणमातंगी, आ द। ये
द ण तथा प म अ वय क दे वता ह। यामल के
अनुसार मातंग मु न ने द घकालीन तप या ारा दे वी को
क या प म ा त कया था। यह भी स है क घने
वन म मातंग ऋ ष तप या करते थे। ू र वभू तय के
दमन के लये उस थान म पुरसुंदरी के च ु से एक
तेज नकल पड़ा। काली उसी तेज के ारा यामल प
धारण करके राजमातंगी प म कट । मातंगी के
भैरव का नाम सदा शव है। मातंगी के वषय म मातंगी
सपया, रामभ का मातंगीप त, शवान द का
मं प त है। मं प त स ांत सधु का एक अ याय
है। काशीवासी शंकर नामक एक स उपासक सुमुखी
पूजाप त के रच यता थे। शंकर सुंदरानंद नाथ के
श य (छठ पीढ़ म) स व ार य वामी क
श यपरंपरा म थे।

इ ह भी दे ख
ाचीन तं सा ह य

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Last edited 11 months ago by हमांश…


साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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