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भूषण ( ह द क व)

भूषण (१६१३-१७०५) री तकाल के तीन मुख क वय


म से एक ह, अ य दो क व ह बहारी तथा केशव। री त
काल म जब सब क व शृंगार रस म रचना कर रहे थे,
वीर रस म मुखता से रचना कर भूषण ने अपने को
सबसे अलग सा बत कया। 'भूषण' क उपा ध उ ह
च कूट के राजा साह के पु दयराम ने दान क
थी। ये मोरंग, कुमायूँ, ीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ,
शवाजी और छ साल आ द के आ य म रहे, पर तु
इनके पसंद दा नरेश शवाजी और बुंदेला थे।
भूषण

जीवन प रचय
क ववर भूषण का जीवन ववरण वह जाती के भ
अथवा राव थे उनके ज म मृ यु, प रवार आ द के वषय
म कुछ भी न त प से नह कहा जा सकता राव
भूषण का ज म संवत 1670 तदनुसार ई वी 1613 म
आ। उनके पता का नाम र नाकर राव भ था। वे
चंङ सा राव थे-[1]

भूषण का वा त वक नाम घन याम था। शवराज भूषण


ंथ के न न दोहे के अनुसार 'भूषण' उनक उपा ध है
जो उ ह च कूट के राज दयराम के पु शाह ने द
थी -
कुल सुलं क च कूट-प त साहस सील-समु ।
क व भूषण पदवी दई, दय राम सुत ॥

कहा जाता है क भूषण क व म तराम और चताम ण के


भाई थे। एक दन भाभी के ताना दे ने पर उ ह ने घर छोड़
दया और कई आ म म गए। यहां आ य ा त करने
के बाद शवाजी के आ म म चले गए और अंत तक
वह रहे।

प ा नरेश छ साल से भी भूषण का संबंध रहा। वा तव


म भूषण केवल शवाजी और छ साल इन दो राजा
के ही स चे शंसक थे। उ ह ने वयं ही वीकार कया
है-

और राव राजा एक मन म न याऊं अब।


सा को सराह कै सराह छ साल को॥
संवत 1772 तदनुसार ई वी 1715 म भूषण
परलोकवासी हो गए।

रचनाएँ
व ान ने इनके छह ंथ माने ह - शवराजभूषण,
शवाबावनी, छ सालदशक, भूषण उ लास, भूषण
हजारा, षनो लासा। पर तु इनम शवराज भूषण,
छ साल दशक व शवा बावनी ही उपल ध ह।
शवराजभूषण म अलंकार, छ साल दशक म छ साल
बुंदेला के परा म, दानशीलता व शवाबवनी म शवाजी
के गुण का वणन कया गया है।

शवराज भूषण एक वशालकाय थ है जसम 385


प ह। शवा बावनी म 52 क वत म शवाजी के शौय,
परा म आ द का ओजपूण वणन है। छ शाल दशक म
केवल दस क वत के अ दर बु दे ला वीर छ साल के
शौय का वणन कया गया है। इनक स पूण क वता वीर
रस और ओज गुण से ओत ोत है जसके नायक
शवाजी ह और खलनायक औरंगजेब। औरंगजेब के
त उनका जातीय वैमन य न होकर शासक के पम
उसक अनी तय के व है। [2]

शवराज भूषण से कुछ छ द


इ ज म जंभ पर , वाडव सुअंभ पर।
रावन सदं भ पर , रघुकुल राज है ॥१॥
पौन ब रबाह पर , संभु र तनाह पर।
य सहसबाह पर , राम जराज है ॥२॥
दावा मदं ड पर , चीता मृगझुंड पर।
भूषण वतु ड पर , जैसे मृगराज है ॥३॥
तेजतम अंस पर , का ह ज म कंस पर।
य ले छ बंस पर , शेर सवराज है ॥४॥
ऊंचे घोर मं दर के अ दर रहन बारी ||5||
शवा जो न होत तो सुनत हो सबक ||6|

का गत वशेषताएँ
री त युग था पर भूषण ने वीर रस म क वता रची। उनके
का क मूल संवेदना वीर- श त, जातीय गौरव तथा
शौय वणन है।[3] नरीह ह जनता अ याचार से
पी ड़त थी। भूषण ने इस अ याचार के व आवाज
उठाई तथा नराश ह जन समुदाय को आशा का
संबल दान कर उसे संघष के लए उ सा हत कया।
इ ह ने अपने का नायक शवाजी व छ साल को
चुना। शवाजी क वीरता के वषय म भूषण लखते ह :

भूषण भनत महाव र बलकन ला यो सारी पातसाही


के उड़ाय गये जयरे।
तमके के लाल मुख सवा को नर ख भये याह मुख
नौरंग सपाह मुख पयरे॥
इ ह ने शवाजी क यु वीरता, दानवीरता, दयावीरता व
धमवीरता का वणन कया है। भूषण के का म उ साह
वश भरी ई है। इसम ह जनता क भावना को
ओजमयी भाषा म अंकन कया गया है। भूषण ने कहा
क य द शवाजी न होते तो सब कुछ सु त हो गया
होताः

दे वल गरावते फरावते नसान अली ऐसे डू बे राव


राने सबी गये लबक ,
गौरागनप त आप औरन को दे त ताप आप के मकान
सब मा र गये दबक ।
पीरा पयग बरा दग बरा दखाई दे त स क सधाई
गई रही बात रबक ,
का स ते कला जाती मथुरा मसीद होती सवाजी न
होतो तौ सुन त होत सबक ॥
सांच को न मानै दे वीदे वता न जानै अ ऐसी उर आनै
म कहत बात जबक ,
और पातसाहन के ती चाह ह न क अकबर
साहजहां कहै सा ख तबक ।
ब बर के त बर मायूं ह बा ध गये दो म एक
करीना कुरान बेद ढबक ,
का स क कला जाती मथुरा मसीद होती सवाजी न
होतो तौ सुन त होत सबक ॥
कु भकन असुर औतारी अवरंगज़ेब क ही क ल
मथुरा दोहाई फेरी रबक ,
खो द डारे दे वी दे व सहर मोह ला बांके लाखन तु क
क हे छू ट गई तबक ।
भूषण भनत भा यो कासीप त ब वनाथ और कौन
गनती मै भूली ग त भव क ,
चारौ वण धम छो ड कलमा नेवाज प ढ सवाजी न
होतो तौ सुन त होत सबक ॥
भूषण के का म सव उदारता का भाव मलता है। वे
सभी धम को समान कोण से दे खते ह। इनके
सा ह य म ऐ तहा सक घटना का यथाथवाद च ण
मलता है। इ ह ने शवाजी को धमर क के प शंसा
क है तो जसवंत सह, करण सह आ द क आलोचना
भी क है। भूषण ने सारा का जभाषा म रचा था।
ओजगुण से प रपूण जभषा का योग सव थम इ ह ने
ही कया था। इ ह ने श तयाँ भी लखी है।

आज गरीब नवाज मही पर तो सो तुही सवराज


वरजै

भूषण ने मु क शैली म का क रचना क । इ ह ने


अलंकार का सु दर योग कया है। क व व सवैया,
छं द का मुखतया योग कया है। व तुतः भूषण
ब मुखी तभा के धनी थे। वे क व व आचाय थे।
भूषण वीर रस के े कवह

भूषण का वीरका ह द सा ह य क वीर का


परंपरा म लखा गया है। इनक क वता का अंगीरस वीर
रस है। इनक रचनाएँ शवराज भूषण, शवाबावजी और
छ साल दशक वीर रस से ओत ोत है। ये तीन कृ तयाँ
भूषण क वीर भावना क स ची नदशक है। यह का
अपने युग के आदश नायक के च र को तुत करने
वाला है। इनम शवाजी और छ साल के शौय-साहस,
भाव व परा म, तेज व ओज का जीवंत वणन आ है।
भूषण के वीरका क मु य वशेषता यह है क उसम
क पना और पुराण क तुलना म इ तहास क सहायता
अ धक ली गई है। का का आधार ऐ तहा सक है।
इसके अ त र , इस वीरका म दे श क सं कृ त व
गौरव का गान है। भूषण ने अपने वीरका म औरंगजेब
के त आ ोश सव कया है।
भूषण क वीरभावना का वणन ब आयामी है। इसे हम
यु मूलक, धममूलक, दानमूलक, तु तमूलक आ द
प म दे ख सकते ह।

यु मूलक

वीर रस के थायी भाव उ साह का उ कृ प यु भू म


म श ु को ललकारते ए उजागर होता ह शवाजी वंय
वीर थे और उनक ेरणा से ह सै नक के मन म
वीरता का भाव उ प आ था। भूषण ने उन सै नक
क वीरता का वणन करते ए कहा हैः

घूटत कमान अ तीर गोली बानन के मुस कल हो त


मुरचान क ओट म।
ता ह समै सवराज कम के ह ल कयो दावा बां ध
पर ह ला वीर भट जोट म॥
यु का सजीव च ण
भूषण का यु वणन बड़ा ही सजीव और वाभा वक
है। यु के उ साह से यु सेना का रण थान यु
के बाज का घोर गजन, रण भू म म ह थयार का घात-
तघात, शूर वीर का परा म और कायर क भयपूण
थतआद य का च ण अ यंत भावशाली ढं ग से
तुत कया गया है। शवाजी क सेना का रण के लए
थान करते समय का एक च दे खए -

सा ज चतुरंग बीररंग म तुरंग च ढ़।


सरजा सवाजी जंग जीतन चलत है॥
भूषन भनत नाद वहद नगारन के।
नद नद मद गैबरन के रलत ह॥
ऐल फैल खैल भैल खलक म गैल गैल,
गाजन क ठे ल-पेल सैल उसलत ह।
तारा स तर न घू र धरा म लगत जम,
धारा पर पारा पारावार य हलत ह॥ -- ( शवा
बावनी)
धममूलक

क व ने शवाजी को धम व सं कृ त के उ ायक के प
म अं कत कया है। शवाजी ने मुसलमान से ट कर ली
तथा ह क र ा क । उ ह ने शवराज और शाल
क म हमा का वणन कया है

क व ने शवाबावनी म कहा है :-

वेद राखे व दत पुराने राखे सारयुत,


राम नाम रा य अ त रसना सुधार म,
ह न क चोट रोट राखी है सप हन क ,
कांधे म जनेऊ रा यो माला राखी गर म॥
दानमूलक

वीर रस के क वय ने अपने नायक को अ य धक


दानवीर दखलाया है। भूषण ने शवाजी क दानवीरता
का अ त यो पूण वणन कया है। पाचक को अपनी
इ छा से यादा दान मलता है। शवा तु त म क व ने
शवाजी क अपूव दानशीलता का वणन कया है।

जा हर जहान सु न दान के बखान आजु,


महादा न सा हतनै ग रब नेवाज के।
भूषण जवा हर जलूस जरबाक जो त,
दे ख-दे ख सरजा क सुक व समाज के॥
दयामूलक

भूषण के अनुसार, शवाजी दया के सागर ह। वे


शरणागत पर दया करते थे। उ ह ने अपने सै नक को
य व ब च को तंग न करने का नदश दया आ
था। व तुतः भूषण ने शवाजी के परा म, शौय व
आतंक का भावशाली वणन कया है। उ ह ने शवाजी
के धमर क, दानवीर व दयावान, प को कट कया
है। इनके वीररस से संबं धत पद मु क ह। इनम
ओजगुण का नवाह है। ह द के अ य वीर रस के क व
शृंगार का वणन भी साथ म करते ह। जब क भूषण का
का शृंगार भावना से बचा आ है। अतः कहा जा
सकता है क भूषण वीररस के े क व ह।

भाषा

भूषण ने अपने का क रचना ज भाषा म क । वे


सव थम क व ह ज ह ने ज भाषा को वीर रस क
क वता के लए अपनाया। वीर रस के अनुकूल उनक
ज भाषा म सव ही आज के दशन होते ह।
भूषण क ज भाषा म उ , अरबी, फ़ारसी आ द
भाषा के श द क भरमार है। जंग, आफ़ताब, फ़ौज
आ द श द का खुल कर योग आ है। श द का चयन
वीर रस के अनुकूल है। मुहावर और लोको य का
योग सुंदरता से आ है।

ाकरण क अ व था, श द को तोड़-मरोड़, वा य


व यास क गड़बड़ी आ द के होते ए भी भूषण क
भाषा बड़ी सश और वाहमयी है। हां, ाकृत और
अप ंश के श द यु होने से वह कुछ ल अव य
हो गई है।

शैली

भूषण क शैली अपने वषय के अनुकूल है। वह


ओजपूण है और वीर रस क ंजना के लए सवथा
उपयु है। अतः उनक शैली को वीर रस क ओज पूण
शैली कहा जा सकता है। भावो पादकता, च ोपमता
और सरसता भूषण क शैली क मु य वशेषताएं ह।

'=== रस === भूषण क क वता क वीर रस के वणन


म भूषण हद सा ह य म अ तीय क व ह। वीर के साथ
रौ भयानक-वीभ स आ द रस को भी थान मला है।
भूषण ने ृंगार रस क भी कुछ क वताएं लखी ह, कतु
ृंगार रस के वणन ने भी उनक वीर रस क एवं च
का प भाव द ख पड़ता है -

'न क नरादर पया सौ मल सादर ये


आए वीर बादर बहा र मदन के

छं द

भूषण क छं द योजना रस के अनुकूल है। दोहा, क व ,


सवैया, छ पय आ द उनके मुख छं द ह।
अलंकार

री त कालीन क वय क भां त भूषण ने अलंकार को


अ य धक मह व दया है। उनक क वता म ायः सभी
अलंकार पाए जाते ह। अथालंकार क अपे ा
श दालंकार को धानता मली है। यमक अलंकार का
एक उदाहरण दे खए-

ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,


ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती ह।
कंद मूल भोग कर कंद मूल भोग कर
तीन बेर खात , ते वे तीन बेर खाती ह।
भूषन श थल अंग भूषन श थल अंग,
बजन डु लात ते वे बजन डु लाती ह।
‘भूषन’ भनत सवराज बीर तेरे ास,
नगन जड़ात ते वे नगन जड़ाती ह॥
अथ -
(१) ऊंचे घोर मंदर – ऊंचे वशाल घर-महल / ऊंचे
वशाल पहाड़
(२) कंद मूल – राजघराने म खाने के योग म लाये
जाने वाले जायकेदार कंद-मूल वगैरह / जंगल म कंद
क मूल या न जड़
(३) तीन बेर खात – तीन समय खाती थ / [मा ]
तीन बेर [फल] खाती ह
(४) भूषन श थल अंग – अंग भूषण के बोझ से
श थल हो जाते थे / भूख क वजह से उन के अंग
श थल हो गए ह
(५) बजन डु लात – जनके इद गद पंखे डु लाये
जाते थे / वे जंगल-जंगल भटक रही ह
(६) नगन जड़ात – जो नग से जड़ी ई रहती थ /
न न दखती ह।
भूषण क रा ीय चेतना
भूषण रा ीय भाव के गायक है। उनक वाणी पी ड़त
जा के त एक अपूव आ सान ह। इनका समय
औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब के समय से मुगल
वैभव व स ा क पकड़ कमजोर होती जा रही थी।
औरंगजेब क कटु रता व ह के त नफरत ने उसे
जनता से र कर दया था। संकट क इस घड़ी म भूषण
ने दो रा ीय पु ष - शवाजी व छ साल के मा यम से
पूरे रा म रा ीय भावना संचा रत करने का यास
कया।[4] भूषण ने त कालीन जनता क वाणी को
अपनी क वता का आधार बनाया है। इ ह ने
वदे शानुराग, सं कृ त अनुराग, सा ह य अनुराग,
महापु ष के त अनुराग, उ साह आ द का वणन
कया है।
वदे शानुराग

भूषण का अपने दे श के त गहरा लगाव था। उनक


पूरे दे श पर थी। उ ह ने दे खा क औरंगजेब दे वालय
को न कर रहा है तो उनका मन व ोह कर उठा।
शवाजी के मा यम से उ ह ने अपनी वाणी कट क -

दे वल गरावते फरवाते नसान अली ऐसे समय राव-


राने सबै गये लबक ।
गौरा गनप त आय, औरंग क दे ख ताप अपने मुकाम
सब मा र गये दबक ॥

सं कृ त अनुराग

भूषण ने सं कृ त का उपयोग ह को खोया आ


बल दलाने के लए कया। इ ह ने अनेक दे वी-दे वता
के काय का उ लेख कया तथा उन महान् काय क
को ट म शवाजी के काय क गणना क है। शवाजी
काे धम व सं कृ त के उ ायक प म अं कत कया
गया है-

मी ड़ राखे मुगल मरो ड़ राखे पातसाह बैरी पी स


राखे बरदान रा यौ कर म।
राजन क ह राखी तेग-बल सवराज दे व राखे दे वल
वधम रा यो घर म ॥

सा ह य अनुराग

भूषण ने वेदशा का गहन अ ययन कया है। इ ह ने


ाचीन सा ह य के आधार पर ही अपने का क रचना
क उनका सा ह य ेम उनक रा ीय भावना का
प रचायक है।

महापु ष के त ा
भूषण ने अतीत व वतमान के महापु ष व जननायक
के त ृ ा क है। इ ह ने शवाजी और
छ साल बु दे ला या अ य कोई पा सभी का उ लेख
केवल उ ह संग म कया है जो रा ीय भावना से
संबं धत थे। जैस े :

रैयाराव चंप त को छ साल महाराज भूषण सकत को


बरवा न य बलन के।

उ साह

रा ीय सा ह य म चेतना का भाव होता है। भूषण के


सा ह य म सजीवता, फू त व उमंग का भाव है। मुगल
के साथ शवाजी के संघष का क व उ साहपूण शैली म
वणन कया हैः-

दावा पातसाहन स क ह सवराज बीर,


जेर क ह दे स दय बां यो दरबारे से।
हठ मरहठ ताम रा यौ न मवास कोऊ,
छ ने ह थयार डोल बन बनजारे से॥

न संदेह, भूषण का का रा ीय चेतना से ओत- ोत


है। वे स चे अथ म रा ीय भावना के क व ह।

सा ह य म थान
भूषण का हद सा ह य म एक व श थान ह। वे वीर
रस के अ तीय क व थे। री त कालीन क वय म वे
पहले क व थे ज ह ने हास- वलास क अपे ा रा ीय-
भावना को मुखता दान क । उ ह ने अपने का
ारा त कालीन असहाय ह समाज क वीरता का पाठ
पढ़ाया और उसके सम र ा के लए एक आदश
तुत कया। वे न संदेह रा क अमर धरोहर ह।

सारांश
ज म संवत तथा थान - 1670
मृ यु - संवत 1772।
ंथ - शवराज भूषण, शवा बावनी, छ साल दशक।
व य वषय - शवाजी तथा छ साल के वीरतापूण
काय का वणन।
भाषा - ज भाषा जसम अरबी, फ़ारसी, तुक
बुंदेलखंडी और खड़ी बोली के श द मले ए ह।
ाकरण क अशु दयां ह और श द बगड़ गए ह।
शैली - वीर रस क ओजपूण शैली।
छं द - क व , सवैया।
रस - धानता वीर, भयानक, वीभ स, रौ और ृंगार
भी है।
अलंकार - ायः सभी अलंकार ह।

स दभ
1. शवराजभूषण (नवल कशोर ेस लखनऊ)
2. का गौरव (पृ ८७) (लेखक-राम दरश म )
3. का गौरव (पृ ८६) (स पादक-डॉ रामदरश
म )
4. म य दे श (भूषण क रा ीय भावना, पृ १९१)

इ ह भी दे ख
शवा बावनी
शवराज भूषण
चंद बरदाई
हद सा ह य
री त काल
बहारी
केशव
बाहरी क ड़याँ
भूषण थावली (गूगल पु तक)
भूषण को कन मायन म रा ीय कह? (सजना,
ह द च ा)

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साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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