You are on page 1of 5

मै थल शरण गु त

रा क व मै थल शरण गु त (३ अग त १८८६ – १२ दस बर १९६४) ह द के


स ध क व थे। ह द सा ह य के इ तहास म वे खड़ी बोल के थम मह वपूण क व
ह।[2] उ ह सा ह य जगत म 'द दा' नाम से स बो धत कया जाता था। उनक कृ त भारत-
भारती (1912) भारत के वत ता सं ाम के समय म काफ भावशाल स ध हुई थी और
और इसी कारण महा मा गांधी ने उ ह 'रा क व' क पदवी भी द थी।[3] उनक जय ती ३
अग त को हर वष 'क व दवस' के प म मनाया जाता है । सन १९५४ म भारत सरकार ने
उ ह प मभूषण से स मा नत कया।[4]

महावीर साद ववेद जी क ेरणा से गु त जी ने खड़ी बोल को अपनी रचनाओं का


मा यम बनाया और अपनी क वता के वारा खड़ी बोल को एक का य-भाषा के प म
न मत करने म अथक यास कया। इस तरह जभाषा जैसी सम ृ ध का य-भाषा को छोड़कर
समय और संदभ के अनुकूल होने के कारण नये क वय ने इसे ह अपनी का य-अ भ यि त
का मा यम बनाया। ह द क वता के इ तहास म यह गु त जी का सबसे बड़ा योगदान
है। घासीराम यास जी उनके म थे। प व ता, नै तकता और परं परागत मानवीय स ब ध
क र ा गु त जी के का य के थम गुण ह, जो 'पंचवट ' से लेकर 'जय थ वध', 'यशोधरा'
और 'साकेत' तक म ति ठत एवं तफ लत हुए ह। 'साकेत' उनक रचना का सव च शखर
है।

जीवन प रचय
मै थल शरण गु त का ज म ३ अग त १८८६ म पता सेठ रामचरण कनकने और माता
काशी बाई क तीसर संतान के प मउ र
दे श म झांसी के पास चरगांव म हुआ। माता
और पता दोन ह वै णव थे। व यालय म खेलकूद म अ धक यान दे ने के कारण पढ़ाई
अधरू ह रह गयी। राम व प शा ी, दग
ु ाद पंत, आ द ने उ ह व यालय म पढ़ाया। घर म
ह ह द , बंगला, सं कृत सा ह य का अ ययन कया। मुंशी अजमेर जी ने उनका मागदशन
कया। १२ वष क अव था म जभाषा म कनकलता नाम से क वता रचना आर भ कया।
आचाय महावीर साद ववेद के स पक म भी आये। उनक क वताय खड़ी बोल म मा सक
"सर वती" म का शत होना ार भ हो गई।

थम का य सं ह "रं ग म भंग" तथा बाद म "जय थ वध" का शत हुई। उ ह ने बंगाल के


का य थ "मेघनाथ वध", " जांगना" का अनुवाद भी कया। सन ् 1912 - 1913 ई. म
रा य भावनाओं से ओत- ोत "भारत भारती" का काशन कया। उनक लोक यता सव
फैल गई। सं कृत के स ध थ " व नवासवद ा" का अनुवाद का शत कराया। सन ्
१९१६-१७ ई. म महाका य 'साकेत' क रचना आर भ क । उ मला के त उपे ा भाव इस
थ म दरू कये। वतः ेस क थापना कर अपनी पु तक छापना शु कया। साकेत तथा
पंचवट आ द अ य थ सन ् १९३१ म पण
ू कये। इसी समय वे रा पता गांधी जी के
नकट स पक म आये। 'यशोधरा' सन ् १९३२ ई. म लखी। गांधी जी ने उ ह "रा टक व" क
सं ा दान क । 16 अ ैल 1941 को वे यि तगत स या ह म भाग लेने के कारण
गर तार कर लए गए। पहले उ ह झाँसी और फर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप
स ध न होने के कारण उ ह सात मह ने बाद छोड़ दया गया। सन ् 1948 म आगरा
व व व यालय से उ ह डी. लट. क उपा ध से स मा नत कया गया। १९५२-१९६४
तक रा यसभा के सद य मनोनीत हुये। सन ् १९५३ ई. म भारत सरकार ने उ ह प म
वभूषण से स मा नत कया। त काल न रा प त डॉ॰ राजे साद ने सन ् १९६२ ई. म
अ भन दन थ भट कया तथा ह द ू व व व यालय के वारा डी. लट. से स मा नत कये
गये। वे वहाँ मानद ोफेसर के
प म नयु त भी हुए। १९५४ म सा ह य एवं श ा े
म प म भूषण से स मा नत कया गया। चरगाँव म उ ह ने १९११ म सा ह य सदन नाम से
वयं क ैस शु क और झांसी म १९५४-५५ म मानस-मु ण क थापना क ।

इसी वष याग म "सर वती" क वण जय ती समारोह का आयोजन हुआ िजसक अ य ता


गु त जी ने क । सन ् १९६३ ई० म अनज
ु सयाराम शरण गु त के नधन ने अपण
ू नीय आघात
पहुंचाया। १२ दस बर १९६४ ई. को दल का दौरा पड़ा और सा ह य का जगमगाता तारा
अ त हो गया। ७८ वष क आयु म दो महाका य, १९ ख डका य, का यगीत, ना टकाय आ द
लखी। उनके का य म रा य चेतना, धा मक भावना और मानवीय उ थान त बि बत है ।
'भारत भारती' के तीन ख ड म दे श का अतीत, वतमान और भ व य च त है। वे मानववाद ,
नै तक और सां कृ तक का यधारा के व श ट क व थे। ह द म लेखन आर भ करने से पव

उ ह ने र सके नाम से जभाषा म क वताएँ, दोहा, चौपाई, छ पय आ द छं द लखे। ये रचनाएँ
1904-05 के बीच वै योपकारक (कलक ा), वकटे वर (ब बई) और मो हनी (क नौज) जैसी
प काओं म का शत हु । उनक ह द म लखी कृ तयाँ इंद,ु ताप, भा जैसी प काओं म
छपती रह ं। ताप म वद ध दय नाम से उनक अनेक रचनाएँ का शत हु ।

जय ती
म य दे श के सं कृ त रा य मं ी ल मीकांत शमा ने कहा है क रा क व मै थल शरण
गु त क जयंती दे श म तवष तीन अग त को 'क व दवस' के प म यापक प से
मनायी जायेगी। यह नणय रा य शासन ने लया है । युवा पीढ़ भारतीय सा ह य के व णम
इ तहास से भल -भां त वा कफ हो सके इस उ दे य से सं कृ त वभाग वारा दे श म
भारतीय क वय पर केि त करते हुए अनेक आयोजन करे गा।
कृ तयाँ

 महाका य- साकेत, यशोधरा

 ख डका य- जय थ वध, भारत-भारती, पंचवट , वापर, स धराज, नहुष, अंज ल


और अ य, अिजत, अजन और वसजन, काबा और कबला, कसान, कुणाल गीत,
गु तेग बहादरु , गु कुल , जय भारत, यु ध, झंकार , प ृ वीपु , वक संहार [क],
शकंु तला, व व वेदना, राजा जा, व णु या, उ मला, ल ला[ग], द णा,
दवोदास [ख], भू म-भाग

 नाटक - रं ग म भंग , राजा- जा, वन वैभव [क], वकट भट , वर हणी , वैता लक,
शि त, सैर ी [क], वदे श संगीत, ह ड़ बा , ह द,ू चं हास

 मै थल शरण गु त थावल

 फुटकर रचनाएँ- केश क कथा, वगसहोदर, ये दोन मंगल घट (मै थल शरण


गु त वारा लखी पु तक) म सं ह त ह।
 अनू दत (मधुप के नाम से)-

 सं कृत- व नवासवद ा, तमा, अ भषेक, अ वमारक (भास) (गु त जी के


नाटक दे ख), र नावल (हषवधन)

 बंगाल - मेघनाथ वध, वह रणी व ांगना (माइकल मधस


ु द
ू न द ), पलासी
का यु ध (नवीन चं सेन)

 फारसी- बाइयात उमर ख याम (उमर ख याम) [घ]

 का वताओं का सं ह - उ छवास

 प का सं ह - प ावल

गु त जी के नाटक
उपरो त नाटक के अ त र त गु त जी ने चार नाटक और लखे जो भास के
नाटक पर आधा रत थे। न न ता लका म भास के अनू दत नाटक और उन पर
आधा रत गु त जी के मौ लक नाटक दए हुए ह:-
गु जी के मौिलक नाटक भास जी के अनूिदत नाटक

अनघ वासवद ा

चरणदास ितमा

ितलो मा अिभषेक

िन य ितरोध आिवमारक

का यगत वशेषताएँ
गु त जी वभाव से ह लोकसं ह क व थे और अपने युग क सम याओं के
त वशेष प से संवेदनशील रहे । उनका का य एक ओर वै णव भावना से
प रपो षत था, तो साथ ह जागरण व सुधार युग क रा य नै तक चेतना से
अनु ा णत भी था। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तलक, व पनचं
पाल, गणेश शंकर व याथ और मदनमोहन मालवीय उनके आदश रहे । महा मा
गांधी के भारतीय राजनी तक जीवन म आने से पूव ह गु त जी का युवा मन
गरम दल और त काल न ाि तकार वचारधारा से भा वत हो चक
ु ा था। 'अनघ'
से पव
ू क रचनाओं म, वशेषकर जय थ-वध और भारत भारती म क व का
ाि तकार वर सन
ु ाई पड़ता है । बाद म महा मा गांधी, राजे साद,
और वनोबा भावे के स पक म आने के कारण वह गांधीवाद के यावहा रक प
और सध
ु ारवाद आ दोलन के समथक बने।

गु त जी के का य क वशेषताएँ इस कार उ ले खत क जा सकती ह -[5]

 (१) रा यता और गांधीवाद क धानता


 (२) गौरवमय अतीत के इ तहास और भारतीय सं कृ त क मह ा
 (३) पा रवा रक जीवन को भी यथो चत मह ा
 (४) नार मा को वशेष मह व
 (५) ब ध और मु तक दोन म लेखन
 (६) श द शि तय तथा अलंकार के स म योग के साथ मुहावर का
भी योग
 (७) प त वयु ता नार का वणन

रा यता तथा गांधीवाद


मै थल शरण गु त के जीवन म रा यता के भाव कूट-कूट कर भर गए थे। इसी
कारण उनक सभी रचनाएं रा य वचारधारा से ओत ोत है। वे भारतीय
सं कृ त एवं इ तहास के परम भ त थे। पर तु अ ध व वास और थोथे आदश
म उनका व वास नह ं था। वे भारतीय सं कृ त क नवीनतम प क कामना
करते थे।

गु त जी के का य म रा यता और गांधीवाद क धानता है। इसम भारत के


गौरवमय अतीत के इ तहास और भारतीय सं कृ त क मह ा का ओजपण

तपादन है। आपने अपने का य म पा रवा रक जीवन को भी यथो चत मह ा
दान क है और नार मा को वशेष मह व दान कया है। गु त जी ने बंध
का य तथा मु तक का य दोन क रचना क । श द शि तय तथा अलंकार के
स म योग के साथ मुहावर का भी योग कया है ।

You might also like