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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मालवा प्ांत

उज्जैन ववभाग
अखण्ड भारत संकल्प विवस ववषय व ंिु २०२३

उत्तरं यत् समुद्रस्य विमाद्रे श्चैव िविणम्।


वषं ति् भारतं नाम भारती यत्र सन्तवतिः ।। (ववष्णु पुराण)
अर्थ : समुद्र के उत्तर में , हिमालय के दहिण में जो भूहम िै , उसका नाम भारत िै । यिाां
के रिने वाले लोगो को भारतीय किते िैं ।
अखांड भारत का अहभप्राय उस अहवभाहजत भारत से िै प्राचीन काल में हजसका
भौगोहलक हवस्तार और साां स्कृहतक प्रभाव बहुत हवस्तृत र्ा और इसमें वतथमान समय के
अफगाहनस्तान, पाहकस्तान, बाां ग्लादे श, श्रीलांका, बमाथ , र्ाईलैंड इत्याहद दे श सम्मिहलत
र्े।
अखण्ड भारत का हवचार उतना िी पुराना िै , हजतना हक सभ्यताओां का इहतिास और
इसका हवस्तृत वणथन प्राचीन भारतीय शास्त्ोां में हकया गया िै । अखण्ड भारत के हवचार
का प्रहतपादन मिान भारतीय अर्थशास्त्ी चाणक्य ने हकया र्ा। तीसरी शताब्दी ईसा
पूवथ, भारतीय उपमिाद्वीप-हजसमे अब अफगाहनस्तान, पाहकस्तान, भारत, नेपाल, बमाथ ,
हतब्बत, भूटान और बाां ग्लादे श जैसे आधुहनक समय के राष्ट्र िैं , ये सभी अखांड भारत के
स्वायत्तशासी राज्ोां मे हवभक्त र्े । चाणक्य ने एक अखांड भारत के हवचार को रे खाां हकत
हकया हजसका अर्थ िै हक इस िेत्र मे म्मथर्त सभी राज् एक िी सत्ता , शासन और प्रशासन
के अधीन िोांगे। मिान स्वतांत्रता सेनानी और हिां दू मिासभा के नेता हवनायक दामोदर
सावरकर ने एक अखांड भारत के सार्-सार् एक हिां दू राष्ट्र की धारणा को प्रहतपाहदत
हकया, हजसमे ‘कश्मीर से रामेश्वरम और हसांध से असम तक’ सम्पूणथ भारतीय
उपमिाद्वीप में हिां दुओां के बीच प्रबल साां स्कृहतक, धाहमथक और राजनीहतक एकता पर
जोर हदया गया। भारतीय स्वतांत्रता आां दोलन के समय, कन्है यालाल मुांशी ने अखांड
हिन्दु स्तान की वकालत की, हजनके इस प्रस्ताव को मोिनदास करमचांद गाां धी ने भी
स्वीकार हकया। 7-8 अक्टू बर 1944 को, हदल्ली में, प्रमुख बुम्मिजीवी राधा कुमुद मुखजी
ने हदल्ली में अखांड हिन्दु स्तान लीडसथ कॉन्रेंस की अध्यिता की।
भारतीय जनसांघ के नेता पंवित िीनियाल उपाध्याय ने आगे चलकर अखांड भारत के
हवचार को पररभाहित हकया। उन्होांने किा “अखण्ड भारत” शब्द में राष्ट्रवाद के सभी
मौहलक मूल्य और एक अहभन्न सांस्कृहत की सांकल्पना हनहित िै ।”
“इन शब्दोां में यि भावना समाहित िै हक अटक से कटक, कच्छ से कामरूप और
कश्मीर से कन्या कुमारी तक की यि पूरी भूहम न केवल िमारे हलए पहवत्र िै , बम्मि
िमारा एक हिस्सा िै । वे लोग जो अनाहद काल से इसमें जन्मे िैं और जो अभी भी इसमें
रिते िैं , उनके थर्ान और समय के आधार पर सतिी रूप से कुछ मतभेद िो सकते िैं ,
लेहकन उनके सांपूणथ जीवन की मूल एकता अखांड भारत के प्रत्येक राष्ट्रभक्त में दे खी जा
सकती िै ।”
ववभाजन एक कथा, एक व्यथा।
आज भारत को स्वाधीन हुए ७५ विथ व्यतीत िो चुके िै । इस बीच में दो ऐसी पीहियाां
भारत में जन्म ले चुकी िै , हजन्होांने आां खें िी खोली स्वतांत्र भारत में। प्रर्म सूयथ दे खा- वि
भी स्वतांत्र भारत का। प्रर्म साां स ली वि स्वतांत्र भारत के वायुमांडल में। उन्होांने स्वतांत्र
जल का सेवन हकया िै , स्वतांत्र दे श का अन्न खाया िै । और इन पीहियोां में अनेक ऐसे िैं
हजन्होांने अपने प्रार्हमक हवद्यालयोां में िर 15 अगस्त को िोने वाले जुलूसो मैं भाग लेकर
भारत माता की जय के नारे लगाए। और दे श की आजादी और अखांडता को बनाए
रखने की प्रहतज्ञाऐ दोिराई िै । अनेक लोगोां ने र्ोड़ा बड़े िो कर यि भी सुना िोगा हक
लगभग 45 साल पिले वि हदन कैसा र्ा, वि रात कैसी र्ी, जब इस दे श में एक युग
पररवतथन हुआ। 14 अगस्त की परतांत्रता की काली रात समाप्त हुई, और स्वतांत्रता का
उद् घोि करने वाला पिला पल प्रारां भ हुआ। 14-15 अगस्त की इस मध्यराहत्र को सांसद
के केंद्रीय कि में उस समय की सारे जन प्रहतहनहधयोां को सांबोहधत करते हुए पांहडत
जवािर लाल नेिरू ने अपना प्रहसि भािण हदया िै । उन्होांने किा हक अपनी हनयहत के
सार् िमने हमलन का जो वायदा हकया र्ा, वायदा आज पूरा हुआ। कौन सा िै वायदा?
भािण में उन्होांने और 17 विथ पिले की याद हदलाई र्ी जब इसी प्रकार 31 हदसांबर
1929 को लािौर काांग्रेस में सारे दे श के प्रहतहनहध समवेत हुए र्े। इन सब प्रहतहनहधयोां
के सार् खड़े िोकर पांहडत नेिरू ने रावी तट पर यि प्रहतज्ञा दोिराई र्ी हक िम इस
दे श में पूणथ स्वराज् प्राप्त करके िी रिें गे। तब तक काां ग्रेस की स्वर में हिलाई र्ी। मगर
वि एक स्वणथ हदवस र्ा जब काां ग्रेस ने इस प्रकार का पूणथ स्वराज् का सांकल्प हलया
र्ा।

“सुिर्शनं प्वक्ष्यावम द्वीपं तु कुरुनन्दन।


पररमण्डलो मिाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थथतिः ॥
यथा वि पुरुषिः पश्येिािर्े मुखमात्मनिः ।
एवं सुिर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
वद्वरं र्े वपप्पलस्तत्र वद्वरं र्े च र्र्ो मिान्।
सवौषविसमापन्निः पवशतैिः पररवाररतिः ”॥ (मिाभारत भीष्म पवश अध्याय ५)
अथाशत -
िे कुरुनन्दन ! अब मैं सुदशथन द्वीप का वणथन करू
ूँ गा।
िे मिान राजा, यि द्वीप एक घेरे से हघरा हुआ िै
क्योांहक जैसे मनुष्य दपथण में अपना मुख दे खता िै ।
इस प्रकार चन्द्रमा की किा में सुदशथन द्वीप हदखाई दे ता िै ।
इसकी दो शाखाओां में एक अांजीर का पेड़ िै और दो शाखाओां में एक बड़ा खरगोश िै
यि सभी प्रकार की जड़ी-बूहटयोां से समृि िै और पिाड़ोां से हघरा हुआ िै ।

एस्जजया ना भारत –
वैज्ञाहनकोां की माने तो लगभग १९ करोड़ साल पिले सभी द्वीपराष्ट्र एक र्े और चारोां
ओर समुद्र र्ा ये सारे द्वीप आपस में जुड़े हुए र्े अर्ाथ त धरती का हसफथ एक टु कड़ा िी
समुद्र से उभरा हुआ र्ा इस इकठ्ठे द्वीप के चारोां ओर समुद्र र्ा और इसे वैज्ञाहनकोां ने
नाम हदया ‘एम्मन्जया’।
विमालयं समारभ्य यावत् इं िु सरे ावरम् |
तं िे ववनवमशतं िे र्ं विं िुथथानं प्चिते ।। ( ृिस्पवत आगम)
हिमालय पवथत से प्रारम्भ िोकर इां दु सरोवर (हिन्द मिासागर) तक फैला हुआ इश्वर
हनहमथत दे श िै "हिां दुथर्ान", यिी वि दे श िै जिाूँ ईश्वर समय - समय पर जन्म लेते िैं
और सामाहजक सभ्यता की थर्ापना करते िैं । हिन्दु थर्ान चन्द्रगुप्त मौयथ काल में र्ा
लेहकन आज िम हजसे हिन्दु थर्ान किते िै वि मात्र उसका एक हिस्सा िै
प्राचीन काल में सम्पूणथ जम्बू द्वीप पर िी आयथ हवचारधारा के लोग रिते र्े जम्बू द्वीप
धरती के मध्य में ६ द्वीपोां से हघरा हुआ र्ा इसके मध्य में इलावृत नामक दे श र्ा तर्ा
इसके मध्य में सुमेरु नामक पवथत र्ा
इलावृत के दहिण में कैलाश पवथत के पास भारतविथ , पहिम में केतुमाल (ईरान के तेिरान
से
रूस के मास्को तक ) पूवथ में िररविथ (जावा से चीन तक का िेत्र ) और भाद्रािविथ(रूस),
उत्तर में रम्यकविथ (रूस), हिरन्यमयविथ(रूस) और उत्तकुरुविथ(रूस) नामक दे श र्े I
ववष्णु पुराण के अनुसार –
जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थथत:, भारतं प्थमं वषं तत: वकंपुरुषं स्मृतम् ,
िररवषं तथैवान्यन् मेरोिश विणतो वद्वज, रम्यकं चोत्तरं वषं तस्यैवानुविरण्यम् ।
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा, नव सािस्त्रमेकैकमेतेषां वद्वजसत्तम् ।
इलावृतं च तन्मध्ये सौवणो मेरुरुस्ित:,भद्राश्चं पूवशतो मेरो: केतुमालं च पवश्चमे।
एकािर् र्तायामा: पािपावगररकेतव:,जं ूद्वीपस्य सांज ूनाशम िेतुमशिामुने।
िरती के सात द्वीप : पुराणोां और वेदोां के अनुसार धरती के सात द्वीप र्े – जम्बूद्वीप,
प्लिद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्ौांचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप, इनमे से जम्बूद्वीप
सभी के बीचोां बीच म्मथर्त िै I
जम्बू द्वीप को बािर से लाखोां योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चरोां ओर से
घेरा हुआ िै जम्बू द्वीप का हवस्तार एक लाख योजन िै जम्बू (जामुन) नामक वृि की इस
द्वीप पर अहधकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया र्ा
जम्बू द्वीप के ९ खंि थे – इलावृत, भद्राश्व, हकांपुरुि, भारत, िरर, केतुमाल, रम्यक, कुरु,
हिरण्यमय
जम्बू द्वीप में मुख्या रूप से ६ पवशत थे – हिमवान, िे मकूट, हनिध, नील, श्वेत, श्रांगावान
I जांबूद्वीप की प्रमुख नहदयाां - भरतिेत्र की गांगा-हसांधु, िै मवतिेत्र की रोहित-रोहितास्या,
िररिेत्र की िररत् -िररकाां ता, हवदे ििेत्र की सीता-सीतोदा, हवभांगा नदी, बत्तीस हवदे ि
दे शोां की गांगा-हसांधु, रम्यकिेत्र की नारी-नरकाां ता, िै रण्यवत िेत्र की सुवणथकूला, ऐरावत
िेत्र की रक्ता-रक्तोदा
चौंतीस कमशभूवम - भरतिेत्र के आयथखांड की एक कमथभूहम, वैसे िी ऐरावत िेत्र के
आयथखांड की एक कमथभूहम तर्ा बत्तीस हवदे िोां के आयथखांड की ३२ कमथभूहम ऐसे चौांतीस
कमथभूहम िैं । इनमें से भरत-ऐरावत में िट् काल पररवतथन िोने से ये दो अशाश्वत कमथभूहम
िैं एवां हवदे िोां में सदा िी कमथभूहम व्यवथर्ा िोने से वे शाश्वत कमथभूहम िैं ।

भारतवषश (वायुपुराण के अनुसार) –


सप्तद्वीपपररक्रान्तं जम्बूिीपं वन ोित। अग्नीध्रं ज्येष्ठिायािं कन्यापुत्रं मिा लम।।
वप्यव्रतोअभ्यवषञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।। तस्य पुत्रा भूवुविश प्जापवतसमौजस:।
ज्येष्ठो नावभररवत ख्यातस्तस्य वकम्पुरूषोअनुज:।। नाभेविश सगं वक्ष्यावम विमाह्व
तवन्न ोित।

वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारां भ में स्वांयभू मनु के पौत्र और हप्रयव्रत के पुत्र ने
भरत खांड को बसाया र्ा। लेहकन राजा हप्रयव्रत के कोई भी पुत्र निीां र्ा हलिाजा उन्होांने
अपनी पुत्री के पुत्र अग्ीांध्र को गोद ले हलया र्ा हजसका लड़का नाहभ र्ा।
नाहभ की एक पत्नी मेरू दे वी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋिभ र्ा और ऋिभ के
पुत्र का नाम भरत र्ा और भरत के नाम पर िी दे श का नाम भारतविथ पड़ा र्ा। उस
वक्त राजा हप्रयव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रोां में से सात पुत्रोां को पूरी धरती के सातोां
मिाद्वीपोां का अलग-अलग राजा हनयुक्त हकया र्ा।
आपको बता दें हक पुराणोां में राजा का अर्थ उस समय धमथ , और न्यायशील राज् के
सांथर्ापक के रूप में हलया जाता र्ा। इस तरि राजा हप्रयव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक
अग्ीांध्र को बनाया र्ा। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज् अपने पुत्र को हदया विी
भारतविथ किलाया। आपको बता दें हक भारतविथ का अर्थ िोता िै राजा भरत का िेत्र
और राजा भरत के पुत्र का नाम सुमहत र्ा।

आयाशवतश –
कई लोगोां में यि भ्रम िै हक भारत को पिले आयाथ वतथ किते र्े या भारत दे श का एक
नाम आयाथ वतथ भी िै , परां तु यि सच निीां िै । बहुत से लोग भारतविथ को िी आयाथ वतथ
मानते िैं जबहक यि भारत का एक हिस्सा मात्र र्ा। वेदोां में उत्तरी भारत को आयाथ वतथ
किा गया िै । आयाथ वतथ का अर्थ आयों का हनवास थर्ान। आयथभूहम का हवस्तार काबुल
की कुांभा नदी से भारत की गांगा नदी तक र्ा।
ऋग्वेद में आयों के हनवास थर्ान को 'सप्तहसांधु' प्रदे श किा गया िै । ऋग्वेद के नदीसूक्त
(10/75) में आयथहनवास में प्रवाहित िोने वाली नहदयोां का वणथन हमलता िै , जो मुख्य िैं :-
कुभा (काबुल नदी), क्ुगु (कुरथ म), गोमती (गोमल), हसांधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज),
हवतस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तर्ा गांगा। उक्त सांपूणथ नहदयोां के आसपास और इसके
हवस्तार िेत्र तक आयथ रिते र्े।
ॐ ववष्णुववशष्णुववश ष्णुिः श्रीमि् भगवतोमिापु रुषस्य ववष्णोराज्ञया प्वत्तशमानस्य अद्य
ब्रह्मणोस्ि वद्ववतय परािे श्रीश्वेतवारािकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्ट्ाववं र्वत
तमे कवलयुगे कवलप्थमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवषे आयाशवतैकिे र्े
ववक्रमनाम संवतरे मासोत्तमे मासे , अमुक मासे अमुक पिे , अमुक वतथौ, अमुक
वासरे श्रुवतस्मृवतपुराणोक्त फलप्ास्प्तकाम: अमुकगोत्रोत्पनोsिममुक नामे,
सकलिु ररतोपर्मनं सवाशपिास्न्त पूवशक अमुक मनोरथ वसद्धयथश यथासपावित
सावमग्रया श्री अमुक िे वता पूजनं कररष्यये।।
उपरोक्त श्लोक यि किता िै हक जम्बूद्वीप के भारतखण्ड के अांतगथत भारतविथ और
भारतविथ के अांतगथत आयावथत दे श िै । इस तरि के कुछ श्लोकोां में आयाथ वतथ दे श के
अांतगथत ब्रह्मावतथक दे श का भी वणथन हमलता िै । यि सांकल्प लेने वाले जातक के थर्ान
को प्रदहशथत करता िै । भारतखांड में आयाथ वतथ मुख्य रूप से आयो के रिने के थर्ान र्ा।
यि बात इस सांकल्प श्लोक से हसि की जा सकती िै जो प्रत्येक पूजा हवहध की पुस्तकोां
में हमलता िै ।

अखण्ड भारत भारत के प्राचीन समय के अहवभाहजत स्वरूप को किा जाता िै । प्राचीन
काल में भारत बहुत हवस्तृत र्ा हजसमें अफगाहनस्तान, पाहकस्तान, बाां ग्लादे श, श्रीलांका,
बमाथ , र्ाइलैंड शाहमल र्े। कुछ दे श जिाूँ बहुत पिले के समय में अलग िो चुके र्े विीां
पाहकस्तान, बाां ग्लादे श आहद अांग्रेजोां से स्वतन्त्रता के काल में अलग हुये।
आज तक हकसी भी इहतिास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख निीां हमलता की बीते
2500 सालोां में हिां दुस्तान पर जो आक्मण हुए उनमें हकसी भी आक्मणकारी ने
अफगाहनस्तान, म्याां मार, श्रीलांका, नेपाल, हतब्बत, भूटान, पाहकस्तान, मालद्वीप या
बाां ग्लादे श पर आक्मण हकया िो। अब यिाां एक प्रश्न खड़ा िोता िै हक यि दे श कैसे
गुलाम और आजाद हुए। पाहकस्तान व बाां ग्लादे श हनमाथ ण का इहतिास तो सभी जानते
िैं । बाकी दे शोां के इहतिास की चचाथ निीां िोती। िकीकत में अांखड भारत की सीमाएां
हवश्व के बहुत बड़े भू -भाग तक फैली हुई र्ीां।
पृथ्वी का जब जल और र्ल इन दो तत्ोां में वगीकरण करते िैं , तब सात द्वीप एवां सात
मिासमुद्र माने जाते िैं । िम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप हजसे आज एहशया द्वीप किते
िैं तर्ा इन्दू सरोवरम् हजसे आज हिन्दू मिासागर किते िैं , के हनवासी िैं । इस जम्बूद्वीप
(एहशया) के लगभग मध्य में हिमालय पवथत म्मथर्त िै । हिमालय पवथत में हवश्व की सवाथ हधक
ऊांची चोटी सागरमार्ा, गौरीशांकर िैं , हजसे 1835 में अांग्रेज शासकोां ने एवरे स्ट नाम
दे कर इसकी प्राचीनता व पिचान को बदल हदया।
अखांड भारत इहतिास की हकताबोां में हिां दुस्तान की सीमाओां का उत्तर में हिमालय व
दहिण में हिां द मिासागर का वणथन िै , परां तु पूवथ व पहिम का वणथन निीां िै । परां तु जब
श्लोकोां की गिराई में जाएां और भूगोल की पुस्तकोां और एटलस का अध्ययन करें तभी
ध्यान में आ जाता िै हक श्लोक में पूवथ व पहिम हदशा का वणथन िै । कैलाश मानसरोवर’
से पूवथ की ओर जाएां तो वतथमान का इां डोनेहशया और पहिम की ओर जाएां तो वतथमान में
ईरान दे श या आयाथ न प्रदे श हिमालय के अांहतम छोर पर िैं ।
एटलस के अनुसार जब िम श्रीलांका या कन्याकुमारी से पूवथ व पहिम की ओर दे खेंगे तो
हिां द मिासागर इां डोनेहशया व आयाथ न (ईरान) तक िी िै । इन हमलन हबांदुओां के बाद िी
दोनोां ओर मिासागर का नाम बदलता िै । इस प्रकार से हिमालय, हिां द मिासागर,
आयाथ न (ईरान) व इां डोनेहशया के बीच का पूरे भू -भाग को आयाथ वतथ अर्वा भारतविथ या
हिां दुस्तान किा जाता िै ।

हिमालय, हिन्द मिासागर, आयाथ न (ईरान) व इण्डोनेहशया के बीच के सम्पूणथ भू -भाग


को भारतविथ अर्वा हिन्दु स्तान किा जाता िै । प्राचीन भारत की चचाथ अभी तक की,
परन्तु जब वतथमान से 3000 विथ पूवथ तक के भारत की चचाथ करते िैं तब यि ध्यान में
आता िै हक हपछले 2500 विथ में जो भी आक्ाां त यूनानी (रोमन ग्रीक) यवन, हूण, शक,
कुिाण, हसरयन, पुतथगाली, फेंच,डच, अरब, तुकथ, तातार, मुगल व अांग्रेज आहद आए, इन
सबका हवश्व के सभी इहतिासकारोां ने वणथन हकया। परन्तु सभी पुस्तकोां में यि प्राप्त िोता
िै हक आक्ान्ताओां ने भारतविथ पर, हिन्दु स्तान पर आक्मण हकया िै । सम्भवत: िी कोई
पुस्तक (ग्रन्थ) िोगी हजसमें यि वणथन हमलता िो हक इन आक्मणकाररयोां ने
अफगाहनस्तान, (म्याां मार),श्रीलांका (हसांिलद्वीप), नेपाल, हतब्बत (हत्रहवष्ट्प), भूटान,
पाहकस्तान,मालद्वीप या बाां ग्लादे श पर आक्मण हकया।
यिाां एक प्रश्न खड़ा िोता िै हक यि भू -प्रदे श कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए।
प्राय: पाहकस्तान व बाां ग्लादे श हनमाथ ण का इहतिास तो सभी जानते िैं । शेि इहतिास
हमलता तो िै परन्तु चहचथत निीां िै । सन 1947 में हवशाल भारतविथ का हपछले 2500 विों
में 24वाां हवभाजन िै । अांग्रेज का 350 विथ पूवथ के लगभग ईस्ट इम्मण्डया कम्पनी के रूप
में व्यापारी बनकर भारत आना, हफर धीरे -धीरे शासक बनना और उसके पिात् सन
1857 से 1947 तक उनके द्वारा हकया गया भारत का 7वाां हवभाजन िै । सन् 1857 में
भारत का िेत्रफल 83 लाख वगथ हक.मी. र्ा। वतथमान भारत का िेत्रफल 33 लाख वगथ
हक.मी. िै । पड़ोसी 9 दे शोां का िेत्रफल 50 लाख वगथ हक.मी. बनता िै ।
भारतीयोां द्वारा सन् 1857 के अांग्रेजोां के हवरुि लड़े गए स्वतन्त्रता सांग्राम (हजसे अांग्रेज
ने गदर या बगावत किा) से पूवथ एवां पिात् के पररदृश्य पर नजर दौडायेंगे तो ध्यान में
आएगा हक ई. सन् 1800 अर्वा उससे पूवथ के हवश्व के दे शोां की सूची में वतथमान भारत
के चारोां ओर जो आज दे श माने जाते िैं उस समय दे श निीां र्े। इनमें स्वतन्त्र राजसत्ताएां
र्ीां, परन्तु साां स्कृहतक रूप में ये सभी भारतविथ के रूप में एक र्े और एक-दू सरे के दे श
में आवागमन (व्यापार, तीर्थ दशथन, ररश्ते, पयथटन आहद) पूणथ रूप से बे -रोकटोक र्ा।
इन राज्ोां के हवद्वान् व लेखकोां ने जो भी हलखा वि हवदे शी याहत्रयोां ने हलखा ऐसा निीां
माना जाता िै । इन सभी राज्ोां की भािाएां व बोहलयोां में अहधकाां श शब्द सांस्कृत के िी
िैं । मान्यताएां व परम्पराएां भी समान िैं । खान-पान, भािा-बोली, वेशभूिा,सांगीत-नृत्य,
पूजापाठ, पांर् सम्प्रदाय में हवहवधताएां िोते हुए भी एकता के दशथन िोते र्े और िोते िैं ।
जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्ोां में भारत इतर याहन हवदे शी पांर् (मजिब-ररलीजन) आये
तब अनेक सांकट व सम्भ्रम हनमाथ ण करने के प्रयास हुए।
सन 1857 के स्वतन्त्रता सांग्राम से पूवथ-मार्क्थ द्वारा अर्थ प्रधान परन्तु आक्ामक व हिां सक
हवचार के रूप में मार्क्थवाद हजसे लेहननवाद, माओवाद, साम्यवाद,कम्यूहनज्म शब्दोां से
भी पिचाना जाता िै , यि अपने पाां व अनेक दे शोां में पसार चुका र्ा।
१. अफगावनस्तान
सन् 1834 में प्रहकया प्रारम्भ हुई और 26 मई, 1876 को रूसी व हब्रहटश शासकोां (भारत)
के बीच गांडामक सांहध के रूप में हनणथय हुआ और अफगाहनस्तान नाम से एक बफर
स्टे ट अर्ाथ त् राजनैहतक दे श को दोनोां ताकतोां के बीच थर्ाहपत हकया गया। इससे
अफगाहनस्तान अर्ाथ त् पठान भारतीय स्वतन्त्रता सांग्राम से अलग िो गए तर्ा दोनोां
ताकतोां ने एक-दू सरे से अपनी रिा का मागथ भी खोज हलया। परां तु इन दोनोां पूांजीवादी
व मार्क्थवादी ताकतोां में अांदरूनी सांघिथ सदै व बना रिा हक अफगाहनस्तान पर हनयन्त्रण
हकसका िो ? अफगाहनस्तान (उपगणस्तान) शैव व प्रकृहत पूजक मत से बौि
मतावलम्बी और हफर हवदे शी पांर् इस्लाम मतावलम्बी िो चुका र्ा। बादशाि शािजिाूँ ,
शेरशाि सूरी व मिाराजा रणजीत हसांि के शासनकाल में उनके राज् में कांधार (गांधार)
आहद का स्पष्ट् वणथन हमलता िै ।
२. नेपाल
मध्य हिमालय के 46 से अहधक छोटे -बडे राज्ोां को सांगहठत कर पृथ्वी नारायण शाि
नेपाल नाम से एक राज् का सुगठन कर चुके र्े। स्वतन्त्रता सांग्राम के सेनाहनयोां ने इस
िेत्र में अांग्रेजोां के हवरुि लडते समय-समय पर शरण ली र्ी। अांग्रेज ने हवचारपूवथक
1904 में वतथमान के हबिार म्मथर्त सुगौली नामक थर्ान पर उस समय के पिाड़ी राजाओां
के नरे श से सांधी कर नेपाल को एक स्वतन्त्र अम्मस्तत् प्रदान कर अपना रे जीडें ट बैठा
हदया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज् िोने पर भी अांग्रेज के अप्रत्यि अधीन िी र्ा।
रे जीडें ट के हबना मिाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमहत निीां र्ी। इस कारण
राजा-मिाराजाओां में जिाां आन्तररक तनाव र्ा, विीां अांग्रेजी हनयन्त्रण से कुछ में घोर
बेचैनी भी र्ी। मिाराजा हत्रभुवन हसांि ने 1953 में भारतीय सरकार को हनवेदन हकया र्ा
हक आप नेपाल को अन्य राज्ोां की तरि भारत में हमलाएां । परन्तु सन 1955 में रूस
द्वारा दो बार वीटो का उपयोग कर यि किने के बावजूद हक नेपाल तो भारत का िी
अांग िै , भारत के तत्कालीन प्रधानमांत्री पां. नेिरू ने पुरजोर वकालत कर नेपाल को
स्वतन्त्र दे श के रूप में यू.एन.ओ. में मान्यता हदलवाई। आज भी नेपाल व भारतीय एक-
दू सरे के दे श में हवदे शी निीां िैं और यि भी सत्य िै हक नेपाल को वतथमान भारत के सार्
िी सन् 1947 में िी स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। नेपाल 1947 में िी अांग्रेजी रे जीडें सी से मुक्त
हुआ।
३. भूटान
सन 1906 में हसम्मिम व भूटान जो हक वैहदक-बौि मान्यताओां के हमले -जुले समाज के
छोटे भू-भाग र्े इन्हें स्वतन्त्रता सांग्राम से लगकर अपने प्रत्यि हनयन्त्रण से रे जीडें ट के
माध्यम से रखकर चीन के हवस्तारवाद पर अांग्रेज ने नजर रखना प्रारम्भ हकया। ये
िेत्र(राज्) भी स्वतन्त्रता सेनाहनयोां एवां समय-समय पर हिन्दु स्तान के उत्तर दहिण व
पहिम के भारतीय हसपाहियोां व समाज के नाना प्रकार के हवदे शी िमलावरोां से युिोां में
पराहजत िोने पर शरणथर्ली के रूप में काम आते र्े। दू सरा ज्ञान (सत्य, अहिां सा,
करुणा) के उपासक वे िेत्र खहनज व वनस्पहत की दृहष्ट् से मित्पूणथ र्े। तीसरा यिाां के
जातीय जीवन को धीरे -धीरे मुख्य भारतीय (हिन्दू ) धारा से अलग कर मतान्तररत हकया
जा सकेगा। िम जानते िैं हक सन 1836 में उत्तर भारत में चचथ ने अत्यहधक हवस्तार कर
नये आयामोां की रचना कर डाली र्ी। सुदूर हिमालयवाहसयोां में ईसाईयत जोर पकड़
रिी र्ी।
४. वतब्बत
सन 1914 में हतब्बत को केवल एक पाटी मानते हुए चीनी साम्राज्वादी सरकार व भारत
के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा जमाए अांग्रेज शासकोां के बीच एक समझौता हुआ।
भारत और चीन के बीच हतब्बत को एक बफर स्टे ट के रूप में मान्यता दे ते हुए हिमालय
को हवभाहजत करने के हलए मैकमोिन रे खा हनमाथ ण करने का हनणथय हुआ। हिमालय
सदै व से ज्ञान-हवज्ञान के शोध व हचन्तन का केंद्र रिा िै । हिमालय को बाां टना और हतब्बत
व भारतीय को अलग करना यि िड्यांत्र रचा गया। चीनी और अांग्रेज शासकोां ने एक-
दू सरोां के हवस्तारवादी,साम्राज्वादी मनसूबोां को लगाम लगाने के हलए कूटनीहतक खेल
खेला। अांग्रेज ईसाईयत हिमालय में कैसे अपने पाां व जमायेगी, यि सोच रिा र्ा परन्तु
समय ने कुछ ऐसी करवट ली हक प्रर्म व हद्वतीय मिायुि के पिात् अांग्रेज को एहशया
और हवशेि रूप से भारत छोड़कर जाना पड़ा। भारत के तत्कालीन प्रधानमांत्री पां. नेिरू
ने समय की नाजकता को पिचानने में भूल कर दी और इसी कारण हतब्बत को सन
1949 से 1959 के बीच चीन िड़पने में सफल िो गया। पांचशील समझौते की समाम्मप्त
के सार् िी अक्टू बर सन 1962 में चीन ने भारत पर िमला कर िजारोां वगथ हक.मी.
अर्क्ाई चीन (लद्दाख याहन जिू -कश्मीर) व अरुणाचल आहद को कब्जे में कर हलया।
हतब्बत को चीन का भू-भाग मानने का हनणथय पां. नेिरू (तत्कालीन प्रधानमांत्री) की भारी
ऐहतिाहसक भूल हुई। आज भी हतब्बत को चीन का भू-भाग मानना और चीन पर हतब्बत
की हनवाथ हसत सरकार से बात कर मामले को सुलझाने िे तु दबाव न डालना बड़ी
कमजोरी व भूल िै । नवम्बर 1962 में भारत के दोनोां सदनोां के सांसद सदस्योां ने एकजुट
िोकर चीन से एक-एक इां च जमीन खाली करवाने का सांकल्प हलया। आियथ िै भारतीय
नेतृत् (सभी दल) उस सांकल्प को शायद भूल िी बैठा िै ।
५. श्रीलंका व म्यांमार
अांग्रेज प्रर्म मिायुि (1914 से 1919) जीतने में सफल तो हुए परन्तु भारतीय सैहनक
शम्मक्त के आधार पर। धीरे -धीरे स्वतन्त्रता प्राम्मप्त िे तु क्ाम्मन्तकाररयोां के रूप में भयानक
ज्वाला अांग्रेज को भस्म करने लगी र्ी। सत्याग्रि, स्वदे शी के मागथ से आम जनता अांग्रेज
के कुशासन के हवरुि खडी िो रिी र्ी। हद्वतीय मिायुि के बादल भी मण्डराने लगे र्े।
सन् 1935 व 1937 में ईसाई ताकतोां को लगा हक उन्हें कभी भी भारत व एहशया से
बोररया-हबस्तर बाां धना पड़ सकता िै । उनकी अपनी थर्लीय शम्मक्त मजबूत निीां िै और
न िी वे दू र से नभ व र्ल से वचथस्व को बना सकते िैं । इसहलए जल मागथ पर उनका
कब्जा िोना चाहिए तर्ा जल के हकनारोां पर भी उनके हितैिी राज् िोने चाहिए। समुद्र
में अपना नौसैहनक बेड़ा बैठाने , उसके समर्थक राज् थर्ाहपत करने तर्ा स्वतन्त्रता
सांग्राम से उन भू -भागोां व समाजोां को अलग करने िे तु सन 1935 में श्रीलांका व सन
1937 में म्याां मार को अलग राजनीहतक दे श की मान्यता दी। ये दोनोां दे श इन्हीां विों को
अपना स्वतन्त्रता हदवस मानते िैं । म्याां मार व श्रीलांका का अलग अम्मस्तत् प्रदान करते िी
मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पिले तैयार र्ा उसे अहधक हवस्तार व सुदृिता भी इन
दे शोां में प्रदान की गई। ये दोनोां दे श वैहदक, बौि धाहमथक परम्पराओां को मानने वाले िैं ।
म्याां मार के अनेक थर्ान हवशेि रूप से रां गून का अांग्रेज द्वारा दे शभक्त भारतीयोां को
कालेपानी की सजा दे ने के हलए जेल के रूप में भी उपयोग िोता रिा िै
६. पावकस्तान, ांग्लािे र् व मालद्वीप
1905 का लॉडथ कजथन का बांग-भांग का खेल 1911 में बुरी तरि से हवफल िो गया। परन्तु
इस हिन्दु मुम्मस्लम एकता को तोड़ने िे तु अांग्रेज ने आगा खाां के नेतृत् में सन 1906 में
मुम्मस्लम लीग की थर्ापना कर मुम्मस्लम कौम का बीज बोया। पूवोत्तर भारत के अहधकाां श
जनजातीय जीवन को ईसाई के रूप में मतान्तररत हकया जा रिा र्ा। ईसाई बने भारतीयोां
को स्वतन्त्रता सांग्राम से पूणथत: अलग रखा गया। पूरे भारत में एक भी ईसाई सिेलन में
स्वतन्त्रता के पि में प्रस्ताव पाररत निीां हुआ। दू सरी ओर मुसलमान तुम एक अलग
कौम िो, का बीज बोते हुए सन् 1940 में मोििद अली हजन्ना के नेतृत् में पाहकस्तान
की माां ग खड़ी कर दे श को नफरत की आग में झोांक हदया। अांग्रेजीयत के दो एजेण्ट
क्मश: पां. नेिरू व मो. अली हजन्ना दोनोां िी घोर मित्ाकाां िी व हजद्दी (कट्टर) स्वभाव
के र्े। अांग्रेजोां ने इन दोनोां का उपयोग गुलाम भारत के हवभाजन िे तु हकया। हद्वतीय
मिायुि में अांग्रेज बुरी तरि से आहर्थक, राजनीहतक दृहष्ट् से इां ग्लैण्ड में तर्ा अन्य दे शोां
में टू ट चुके र्े। उन्हें लगता र्ा हक अब वापस जाना िी पड़े गा और अांग्रेजी साम्राज् में
कभी न अस्त िोने वाला सूयथ अब अस्त भी हुआ करे गा। सम्पूणथ भारत दे शभम्मक्त के
स्वरोां के सार् सड़क पर आ चुका र्ा। सांघ, सुभाि, सेना व समाज सब अपने-अपने िां ग
से स्वतन्त्रता की अलख जगा रिे र्े। सन 1948 तक प्रतीिा न करते हुए 3 जून, 1947
को अांग्रेज अधीन भारत के हवभाजन व स्वतन्त्रता की घोिणा औपचाररक रूप से कर
दी गयी। यिाां यि बात ध्यान में रखने वाली िै हक उस समय भी भारत की 562 ऐसी
छोटी-बड़ी ररयासतें (राज्) र्ीां, जो अांग्रेज के अधीन निीां र्ीां। इनमें से सात ने आज के
पाहकस्तान में तर्ा 555 ने जिू-कश्मीर सहित आज के भारत में हवलय हकया। भयानक
रक्तपात व जनसांख्या की अदला-बदली के बीच 14, 15 अगस्त, 1947 की मध्यराहत्र में
पहिम एवां पूवथ पाहकस्तान बनाकर अांग्रेज ने भारत का 7वाां हवभाजन कर डाला। आज
ये दो भाग पाहकस्तान व बाां ग्लादे श के नाम से जाने जाते िैं । भारत के दहिण में सुदूर
समुद्र में मालद्वीप (छोटे -छोटे टापुओां का समूि) सन 1947 में स्वतन्त्र दे श बन गया,
हजसकी चचाथ व जानकारी िोना अत्यन्त मित्पूणथ व उपयोगी िै । यि हबना हकसी
आन्दोलन व माां ग के हुआ िै ।

सन 1947 के पिात् फेंच के कब्जे से पाां डूचेरी, पुतथगीज के कब्जे से गोवा दे व-


दहम तर्ा अमेररका के कब्जें में जाते हुए हसम्मिम को मुक्त करवाया िै । आज
पाहकस्तान में पख्तून, बलूच, हसांधी, बाल्टीथर्ानी (हगलहगत को हमलाकर), कश्मीरी
मुजफ्फरावादी व मुिाहजर नाम से इस्लामाबाद (लािौर) से आजादी के आन्दोलन चल
रिे िैं । पाककस्तान की 60 % से अहधक जमीन तर्ा 30 % से अहधक जनता पाहकस्तान
से िी आजादी चािती िै । बाां ग्लादे श में बिती जनसूँख्या का हवस्फोट, चटग्राम आजादी
आन्दोलन उसे जजथर कर रिा िै । हशया-सुन्नी फसाद, अिमहदया व वोिरा (खोजा-
मम्मि) पर िोते जुल्म मजिबी टकराव को बोल रिे िैं । हिन्दु ओां की सुरिा तो खतरे में
िी िै । हवश्वभर का एक भी मुम्मस्लम दे श इन दोनोां दे शोां के मुम्मस्लमोां से र्ोडी भी
सिानुभूती निीां रखता। अगर सिानुभूती िोती तो क्या इन दे शोां के 3 करोड से अहधक
मुम्मस्लम (हवशेि रूप से बाां ग्लादे शीय) दर-दर भटकते। ये मुम्मस्लम दे श अपने हकसी भी
सिेलन में इनकी मदद िे तु आपस में कुछ-कुछ लाख बाां टकर सिानपूवथक बसा सकने
का हनणथय ले सकते र्े। परन्तु कोई भी मुम्मस्लम दे श आजतक बाां ग्लादे शी मुसलमाहनयोां
की मदद में आगे निीां आया। इन घुसपेहटयोां के कारण भारतीय मुसलमान अहधकाहधक
गरीब व हपछडते जा रिा िै क्योांहक इनके हवकास की योहजनाओां पर खचथ िोने वाले धन
व नौकररयोां पर िी तो घुसपैहठयोां का कब्जा िोता जा रिा िै । मानवतावादी वेि को
धारण कराने वाले दे शोां में से भी कोई आगे निीां आया हक इन घुसपैठयोां याहन दरबदर
िोते नागररकोां को अपने यिाां बसाता या अन्य हकसी प्रकार की सिायता दे ता। इन दर-
बदर िोते नागररकोां के आई.एस.आई. के एजेन्ट बनकर काम करने के कारण िी भारत
के करोडोां मुम्मस्लमोां को भी सन्दे ि के घेरे में खडा कर हदया िै । आतांकवाद व माओवाद
लगभग 200 समूिोां के रूप में भारत व भारतीयोां को डस रिे िैं । लाखोां उजड चुके िैं ,
िजारोां हवकलाां ग िैं और िजारोां िी मारे जा चुके िैं । हवदे शी ताकतें िहर्यार, प्रहशिण व
जेिादी, मानहसकता दे कर उन प्रदे श के लोगोां के द्वारा विाां के िी लोगोां को मरवा कर
उन्हीां प्रदे शोां को बबाथ द करवा रिी िैं । इस हवदे शी िड्यांत्र को भी समझना आवश्यक िै ।
आवश्यकता िै , वतथमान भारत व पडोसी भारतखण्डी दे शोां को एकजुट िोकर
शम्मक्तशाली बन खुशिाली अर्ाथ त हवकास के मागथ में चलने की। इसहलए अांग्रेज अर्ाथ त
ईसाईयो द्वारा रचे गये िड्यांत्र को ये सभी दे श (राज्) समझें और साझा व्यापार व एक
करन्सी हनमाथ ण कर नए िोते इस िेत्र के युग का सूत्रपात करें । इन १० दे शोां का समूि
बनाने से प्रत्येक दे श का भय का वातावरण समाप्त िो जायेगा तर्ा प्रत्येक दे श का
प्रहतविथ के सैंकडोां-िजारोां-करोडोां रुपये रिा व्यय के रूप में बचेंगे जो इनके हवकास
पर खचथ हकए जा सकेंगे। इससे सभी सुरहित रिें गे व हवकासशील िोांगे।
संकल्प की अिूरी प्ास्प्त
15 अगस्त 1947 को नेिरू ने। हकसी की ओर सांकेत करते हुए किा र्ा की ये सांकल्प
आज पूणथ हुआ िै , लेहकन शायद इन 45 विों में पैदा हुए नौजवानोां को एक बात निीां
बताई गई, निीां बताया गया की हजांस सांकल्प की पूहतथ की बात नेिरू ने की र्ी, वि
पूणथतः पूरा निीां हुआ र्ा। उसकी अधूरी प्राम्मप्त हुई र्ी। अधूरी प्राम्मप्त इस दृहष्ट् से। हक
हजस रावी के तट पर या सांकल्प हलया गया र्ा, उसी 15 अगस्त को विी रावी का तट
िमारे हलए पराया बन चुका र्ा। पराया बन चुका र्ा रामचन्द्र का पुल , लव को बनाया
हुआ लवपुर। जो आगे चलकर अांग्रेजोां को नाकोां चने चवाने वाले मिाराजा रणजीत हसांि
की राजधानी बना। पराया बन चुका र्ा वि तिहशला हवश्वहवद्यालय हजसने एक कीहतथ मान
कायम हकया िै । हवद्या दान के िेत्र में , प्रकाश के, आलोक के हवस्तार के िेत्र में। यि
हवश्वहवद्यालय 1200 साल तक लगातार अखांड रूप में यि कायथ करता रिा। दु हनया का
कोई हवश्वहवद्यालय ऐसा निीां िै हजसने इतने सुदीघथ काल तक हवद्या का आलोक फैलाया
िो। यि भी िमारा निीां रिा र्ा। हिां गलाज माता का मांहदर भी पराया िो गया जिाूँ
मिासती पावथती के एक अांग का पतन हुआ र्ा और इस कारण विाूँ एक शम्मक्तपीठ
बना। झुलेलाल का हसांध पराया िो गया। दाहिर का हसांध पराया िो गया। हजससे सीमा
प्राां त में कई बार िरर हसांि नलवा की हवजय - यात्रा का प्रत्यि दशथन हकया र्ा। वि भी
िमारे हलए पराया बन चुका र्ा, िमारा वि पांजाब, वि हसन्धु नदी हजसके हकनारे बैठकर
ऋहियोां - मुहनयोां ने वेदो का सांकलन हकया र्ा, वि भी पराया िो गया। पांचनद हसफथ
हद्वनद रि गया। ये सारी बातें िमें निीां बताई गई। तब की पीिी से हछपाना तो असां भव
र्ा, क्योांहक उसने उस वेदना का अनुभव हकया र्ा जो हक सीमा के अांग - भांग करने पर
पुत्र के मन को िोती िै । हकांतु उस पीिी को लोररयाूँ दे कर सुलाया गया। उसे किा गया
हक यहद उस समय यि कटी - फटी स्वतांत्रता िम निीां लेते तो सब कुछ िमारे िार् में
चला जाता। ये आजादी भी िमें निीां हमलती।
“आिी छोड़ पूरी को िावे।
आिी वमले ना पूरी पावे।“
इसहलए आज मजबूरी र्ी। पर हचांता मत करो। बाकी हिस्सा भी कुछ हदनोां में आ जायेगा।
लोगोां ने अपने ने ताओां पर भरोसा रखा र्ा। मगर भावी पीिी से ये सारी बातें हछपाई गईां।
क्योांहक िमारे नेताओां को लगा की यहद नई पीिी ये सारी बातें जान जाती तो भी अखांड
सत्ता सुख कैसे भोगते ? अतः सत्ता सुांदरी के मोि में पिकर उन्होांने अपनी माूँ के अांग
भांग िोने हदए, उसकी सारी वेदना को अनदे खा हकया। पटाखोां, आहतशबाहजयोां और
तोपोां की आवाजोां से उसकी कराि को अनसुना हकया। लाखोां सांतानोां की खून से सनी
उसकी आां चल की ओर दु लथक्ष्य हकया - केवल इसहलए हक िम अखांड सत्ता सुख भोग
सकेंगे। स्वयां पांहडत नेिरू ने 1960 में लॉडथ मोपले से चचाथ करते हुए किा र्ा, सच बात
तो यि र्ी की िम बूिे िो चूके र्े , िम र्क गए र्े। और हफर जेल जाने का सािस िममें
से बहुत कम लोगोां में रि गया र्ा। एन वी गॉडहगल ने किा र्ा हक सारे बूिे नेता गाूँ धी,
नेिरू और पटे ल के पास चिर लगाकर हवभाजन स्वीकार करने के हलए दबाव डाल
रिे र्े ताहक उन्हें भी र्ोड़ा सुख हमल सके। इसी सत्ता के हलए उन्होांने इतना भयांकर पाप
हकया। इस मातृ भूहम का हवभाजन कर डाला। िजारोां लाखोां माताओां और बिनोां के
हसांदूर पोांछ जाने हदए। िजारोां बच्ोां को अकाल काल - कवहलत िोते दे खा? िजारोां घर
उजड़ते दे खे। लाखोां को अस्त व्यस्त िोते दे खा, उनकी हजांदगी समाप्त िोते दे खी। रे लें
भर - भर की आ रिी र्ी, लाशोां के अांबार लगे र्े। इन सब को अनदे खा हकया गया।
केवल इसहलए हक िम सत्ता सुख भोग सके।

यि कैसी हवडां बना िै हक हजस लांका पर पुरुिोत्तम श्री राम ने हवजय प्राप्त की ,उसी
लांका को हवदे शी बना हदया। रचते िैं िर विथ रामलीला। वास्तव में दोिी िै िमारा
इहतिासकार समाज ,हजसने वोट-बैंक के भूखे नेताओां से मालपुए खाने के लालच में
भारत के वास्तहवक इहतिास को इतना धूहमल कर हदया िै , उसकी धूल साफ करने में
इन इहतिासकारोां और इनके आकाओां को साम्प्रदाहयकता हदखने लगती िै । यहद इन
तर्ाकहर्त इहतिासकारोां ने अपने आकाओां ने वोट-बैंक राजनीहत खेलने वालोां का सार्
निी छोड़ा, दे श को पुनः हवभाजन की ओर धकेल हदया जायेगा। इन तर्ाकहर्त
इहतिासकारो ने कभी वास्तहवक भूगोल एवां इहतिास से दे शवाहसओां को अवगत करवाने
का सािस निी हकया।
अखांड भारत की पररकल्पना कोई नई निीां िै । िर दे शभक्त अखांड भारत का स्वप्न
सांजोये हुए िै । राष्ट्रीय स्वयां सेवक सां घ के प्रमुख श्री मोिन भागवत के 15 विों में अखांड
भारत का स्वप्न साकार िोने और रास्ते में बाधाएां खड़ी करने वालोां के िट जाने सांबांधी
बयान पर हसयासत गमथ िो गई िै लेहकन सांघ प्रमुख ने ऐसा बयान कोई पिली बार निीां
हदया िै । अखांड भारत की चचाथ राष्ट्रीय स्वयां सेवक सां घ की थर्ापना के सार् िी शु रू िो
गई र्ी। सांघ के भगवा झांडे के सार्-सार् भारत मिाद्वीपीय िेत्र का एक भगवा मानहचत्र
भी प्रस्तुत हकया जाता िै । आज न जम्बूद्वीप िै , न आयाथ वतथ। आज केवल भारत िै ।
अखांड भारत के स्वप्न दृष्ट्ा र्े वीर सावरकर। वीरसावरकर दू रदशी राजनीहतज्ञोां में र्े , जो
समय से पिले िी समय के प्रवाि को अच्छी तरि समझ जाते र्े। हिन्दू मिासभा के नेता
के रूप में उन्होांने अपने भािणोां और अपनी लेखनी के माध्यम से दे श को सावधान
हकया हक भारत हवभाजन का पररणाम हकस रूप में दे श को भुगतना पड़े गा। वीर
सावरकर ने भारत-पाहकस्तान हवभाजन का खुलकर हवरोध हकया र्ा। स्वामी हववेकानांद
और मिहिथ अरहवन्द भी अखांड भारत की पररकल्पना के प्रबल समर्थक रिे । इन सभी
ने 700 विों तक गुलामी में रिे हिन्दू समाज में चेतना उत्पन्न की। सांघ प्रमुख पिले भी
कई बार स्पष्ट् कर चुके िैं हक दु हनया के कल्याण के हलए गौरवशाली अखांड भारत की
जरूरत िै । अखांड भारत का स्वप्न बल से निीां बम्मि हिन्दू धमथ से िी सम्भव िै । भारत
से अलग हुए सभी हिस्सोां, जो स्वयां को अब भारत का हिस्सा निीां मानते , उन्हें भारत से
जुड़ने की आवश्यकता िै ।
अखांड भारत मिज एक सपना निीां हनष्ठा िै
यि राष्ट्र के प्रहत श्रिा िै
िमने आजादी के हलए स्वतांत्रता सांग्राम लड़ा। राजनीहतक स्वतांत्रता तो हमली लेहकन यि
स्वतांत्रता साां स्कृहतक अम्मस्मता पर िावी िो गई।
इसमें कोई सांदेि निीां हक भारत आज शम्मक्तशाली दे श िै और उसके पास सैन्य सामर्थ्थ
िै । िमारा लक्ष्य हकसी दे श पर िमला करके उसे अपने सार् हमलाना निीां िै ।
जब लोगोां का हमलन िोता िै , तभी राष्ट्र बनता िै । अखां डता का मागथ साां स्कृहतक िै न हक
सैन्य कारथ वाई।
अखांड भारत करोड़ोां दे शवाहसयोां की भावना िै और भारत की अखांडता का आधार
भूगोल से ज्ादा साां स्कृहतक और धाहमथक िै ।
अखांड भारत केवल शब्द निीां बम्मि यि िमारी दे शभम्मक्त और सांकल्पोां की भावना िै ।
ऐसी भावना रखना गलत कैसे िो सकता िै । सांघ प्रमुख के वक्तव्य का अर्थ यि निीां हक
भारत अलग हुए दे शोां पर आक्मण करे गा और उनकी सीमाओां को हमलाकर उन पर
शासन करे गा। वैहश्वक पररम्मथर्हतयोां के चलते ऐसा सम्भव िी निीां िै लेहकन मैं उनके
वक्तव्य को हजतना समझ सका हूां , उसके अनुसार उसका अर्थ यिी िै हक भारत
आहर्थक, व्यापाररक, साां स्कृहतक और धाहमथक तौर पर इतना हवकास करे गा हक अखांड
भारत के टु कड़ोां-टु कड़ोां में बांटे अफगाहनस्तान, पाहकस्तान, नेपाल, श्रीलांका, म्याां मार
सहित अन्य दे शोां को भारत की जरूरत पड़े गी। वतथमान में ऐसा िो भी रिा िै । सांकट
की घड़ी में भारत ने अफगाहनस्तान, नेपाल, श्रीलांका, म्याां मार और भूटान की िमेशा
उदार हृदय से सिायता की िै । जिाां तक पाहकस्तान का सांबांध िै , दे श का हवभाजन
धाहमथक आधार पर हुआ र्ा। सीमाएां विाां के हुकमरानोां ने खड़ी की। आतांकवाद और
भारत हवरोध की हसयासत विाां के हुकमरानोां ने खड़ी की िै । पाहकस्तान का क्या िाल
िै , यि सारी दु हनया जानती िै । दीवारें सरकारोां ने खड़ी की िैं । उिीद िै हक यि म्मथर्हत
भी बदल जाएगी। इसहलए िम सबको सशक्त भारत, तेजस्वी भारत के हलए सांकल्पबि
िोकर प्रयास करने िोांगे। जब खांड-खांड हुए दे श भारत से मधुर सांबांध कायम कर लेंगे,
एक सूत्र में हपरो हदए जाएां गे , उसी हदन भारत अखांड बन जाएगा।
क्या अखंि भारत संभव िै ?
भारत का पीर से अखांड िोना असांभव िै (फुल स्टॉप) । इसमें एक
grammaticallyगलती िै पूणथहवराम के थर्ान पर अल्पहवराम िोना चाहिए, उसके बाद
हलखना िै “मेरे जीवन तक.”
व्यम्मक्त के हलए ३०-४० विथ बहुत बड़ा समय िै लगभग आधा जीवन, परन्तु दे श के हलए
३०-४० विथ बहुत छोटा िै । राष्ट्र जीवन तो मेरे जीवन के बाद भी चलता रिे गा । १००-
२०० विो बाद क्या िोगा यहद मई मेरे जीवन में कुछ कुछ करता रहूूँ ।
१८५७ स्वतांत्रता सांग्राम को अांग्रेजो ने पूरी तरि कुचल हदया । कोई सोच भी निीां सकता
र्ा भारत स्वतांत्र िोगा । लोग किते र्े भूल जाओ अब आजादी ! परन्तु तब भी प्रयाश
करने वाले र्े वासुदेव बलबांत खड् गे जानते र्े की मेरे जीते जी तो स्वतांत्रता निीां हमल
सकती परन्तु जान की बाजी लगा दी । चािे हकतनी भी पीहड़याूँ लगे , वे लगे रिे । ऐसे
िी लोगो से इहतिास बनता िै
“अखांड भारत िोगा ऐसे मानने वाले लोगो की सांख्या बिे । करोडो लोगो को इस हवचार
धारा वाला बनायें इस मनो म्मथर्हत में आने पर िी वे आगे सुनने की म्मथर्हत में आयेंगें
(अन्यर्ा वे किें गे – यि सांभव निीां िै और जो सांभव निीां उस पर हवचार करना व्यर्थ िै
३०-३५ करोड़ सांभल निीां रिे २०-२५ करोड़े और आ गए तो)
➢ क्योां न िम यहूहदयोां से सीख ले उनका प्रेरक प्रसांग िमारे सामने िै उन्हें उनके घर से
खदे ड़ हदया गया। 1800 विों तक भी इधर - उधर भटकते रिे । सांसार भर में वे
अकर्नीय दमन के हशकार हुए। हकांतु अांततोगत्ा। वे सफल हुए। उन्होांने अपनी
प्राचीन मातृभूहम में अपना स्वाधीन और स्वतांत्र राष्ट्र थर्ाहपत हकया। पीिी – अनु – पीिी,
सदी – अनु - सदी उनके मन मांहदर में आशा का ये अखण्ड दीप जलता रिा। हक वे
तभी शाां हत से बै ठेंगे जब इजराइल में अपने राष्ट्र की प्रहतमा को पुन थर्ाहपत कर लें गे।
प्रत्येक यहूदी के घर में टां गा येरुशलम की ‘हवहलांग वॉल’ का हचत्र और प्रत्येक हवश्राम -
हदवस पर उनकी प्रार्थना अगले विथ येरुशलम में उन्हें सदा उनकी पहवत्र सांकल्प का
स्मरण हदलाते रिे िैं , भले िी वे सांसार भर में फैले हुए र्े। इस प्रकार 100 पीहियोां का
उनका स्वप्न साकार िो सका। सांसार ने तो उन्हें अपने मन से हनकाल कर इहतिास की
कूड़े दानी में फेंक हदया र्ा, पर वि राष्ट्र पु नः जीहवत िो उठा मानो हचता में से उठकर
खड़ा िो गया िो। क्या भारत के पुनः एकीकरण का स्वप्न इससे भी दु ष्कर िै ?
क्या करें –
धैयथ रखें, अधीर न िोां। यि १०-२०-५०- विथ का भी काम निीां िैं । इसराइल को दे खे ।
पिला प्रयास -अखांड भारत सांभव िै , १०० प्रहतशत ऐसी िमारी सोच बने ।
ऐसी सोच वालोां की सांख्या में उतरोत्तर वृम्मि िो-करोडो में ।
धमथ से मुम्मस्लम, सांस्कृहत से हिन्दू – ऐसी सोच वाले मुसलमानोांकी सांख्या बिाना।
िमारी अगली पीिी भी ऐसी सोच वाली बने (इसराइल से प्रेरणा ) ।निीां तो सब एक दो
पीिी बाद सब समाप्त िो जायेगा ।वेदना /टीस/पीड़ा को बनाये रखना िमारा दाहयत्
िै
अखांड भारत पर िमारे कायथक्म और उन कायथक्मोां में भागीदार बिना चाहिए ।
छोटे बड़े प्रयोगोां / कायथक्मोां (अखांड भारत मानहचत्र, हनबांध, चचाथ , वाद-हववाद ....) से
हवचार को हजांदा रखें ।
िमारे जीवन, िमारे नाती-पोतोां के बच्ो के जीवन में न सिी परन्तु िमारी आने
वाली पीहियाां अखांड भारत का दृश्य दे खेंगीां ।

• मैं स्पष्ट् रूप से हचत्र दे ख रिा हूां हक भारत माता अखांड िोकर हवश्वगुरु के
हसांिासन पर हफर से आरूि िैं . – अरव ंिो घोष
• आइए, िम प्राप्त स्वतांत्रता को सुदृि नीव पर खड़ा करें और अखण्ड भारत
के हलए प्रहतज्ञाबि िोां. -वीर ववनायक िामोिर सावरकर
• अखांड भारत मात्र एक हवचार न िोकर हवचारपूवथक हकया हुआ एक सांकल्प
िै । कुछ लोग हवभाजन को एक पत्थर का स्तांभ मानते िै , उनका ऐसा
दृहष्ट्कोण सवथर्ा अनुहचत िै । ऐसे हवचार केवल मातृभूहम के प्रहत उत्कट
भम्मक्त की कमी का पररचायक िैं . -पंवित िीनियाल उपाध्याय
• िम सब अर्ाथ त भारत पाहकस्तान और बाां ग्लादे श इन तीनोां दे शोां में रिने वाले
लोग वस्तुतः एक िी राष्ट्र भारत के वासी िैं , िमारी राजनीहतक इकाइयाां भले
िी हभन्न िोां परां तु िमारी राष्ट्रीयता एक रिी िै और वि िै भारतीय –
लोकनायक जयप्कार् नारायण
• चाणक्य ने एक “अखांड भारत” के हवचार को प्रहतपाहदत हकया , हजसका
अर्थ िै हक इस िेत्र के सभी राज् एक िी प्राहधकरण, शासन और प्रशासन
के अधीन िैं ।

➢ हिां दू मांहदर वास्तुकला की शैली का उपयोग दहिण पूवथ एहशया में कई प्राचीन
मांहदरोां में हकया गया र्ा, हजसमें अांगकोर वाट भी शाहमल िै , जो हिां दू भगवान
हवष्णु को समहपथत िै और कांबोहडया के ध्वज पर हदखाया गया िै ; मध्य जावा में
प्रम्बानन, इां डोनेहशया में सबसे बड़ा हिां दू मांहदर, हत्रमूहतथ – हशव, हवष्णु और ब्रह्मा
को समहपथत िै ।
➢ मध्य जावा, इां डोनेहशया में बोरोबुदुर, दु हनया का सबसे बड़ा बौि स्मारक िै ।
इसने स्तूपोां के मुकुट वाले एक हवशाल पत्थर को मानवीय स्तूप का आकार
हदया गया िै और माना जाता िै हक यि भारतीय मूल के बौि हवचारोां का
सांयोजन िै , जो मूल ऑस्टर ोनेहशयन चरण हपराहमड की हपछली मिापािाण
परां परा के समतुल्य िै ।
➢ इां डोनेहशया में 15 वीां से 16 वीां शताब्दी की मम्मिदें , जैसे हक डे माक और
कुद् दु स मम्मिद की बड़ी मम्मिदें मजापाहित हिां दू मांहदरोां से हमलती जुलती िैं ।
माजापहिट इां डोनेहशया और दहिण पूवथ एहशया के इहतिास में अांहतम प्रमुख
साम्राज्ोां में से एक र्ा।
➢ मलेहशया में बाटू गुफाएूँ भारत के बािर सबसे लोकहप्रय हिां दू तीर्थथर्लोां में से
एक िैं । यि मलेहशया में वाहिथक हर्पुसम उत्सव का केंद्र हबांदु िै और 1.5
हमहलयन से अहधक तीर्थयाहत्रयोां को आकहिथत करता िै , जो इसे दु हनया के सबसे
बड़े धाहमथक समारोिोां में से एक बनाता िै ।
➢ ब्रह्मा को समहपथत इरावन मठ, र्ाईलैंड के सबसे लोकहप्रय धाहमथक मांहदरोां में
से एक िै ।
हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
िवा बिे गी जब पुरवाई, उस हदन झुमके गाऊांगा मैं
उस हदन खुशी मनाऊांगा मैं… हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
मन तो करता िै मै गाऊां सावन ओर भादो के गीत
राधा गाऊां काना गाऊां और गाऊां अपना मनमीत
हकन्तु माूँ के खांहडत बाजु मुजको बहुत रुलाते िै
आूँ खोां में रक्त उतर आता िै अांगारे िि जाते िै
हजस हदन इन अांगारोां से िर हदल आग लगाऊांगा मैं
उस हदन झुमके गाऊांगा मै उस हदन खु शी मनाऊांगा मैं
हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
पास निीां िै वो ननकाना वो लवपुर लािोर निीां
हिां गलाज माता का मांहदर वो परसन की डोर निीां
बरसोां हजसने ज्ञान हबखेरा तिहशला भी हुआ पराया
हुई परायी धरती हजस पर नलवाने पौरुि चमकाया
हजस हदन सारे मानहबांदु ये लौटाकर ले आऊांगा मैं
उस हदन झुमके गाऊांगा मै उस हदन खु शी मनाऊांगा मैं
हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
रावी का तट बार बार क्यु हफर आवाज लगाता िै
बोल सके तो बोल जवािर शपर् याद हदलाता िै
मेरी लाश पर िोांगे टु कडे बापू ये तेरी वाणी िै
सत्य तुम्हारा हुआ रे झुठा और अहिां सा पानी
हजस हदन रावी अपनी िोगी उस हदन खुशी मनाऊांगा मैं
उस हदन झुमके गाऊांगा मै उस हदन खु शी मनाऊांगा मैं.... हजस हदन दे श अखांहडत
िोगा
राष्ट्र की जय चे तना का गान वांदे मातरम्
राष्ट्रभम्मक्त प्रेरणा का गान वांदे मातरम्

बांसी के बिते स्वरोांका प्राण वांदे मातरम्


झल्लरर झनकार झनके नाद वांदे मातरम्
शांख के सांघोि का सांदेश वांदे मातरम् ॥१॥

सृष्ट्ी बीज मांत्र का िै ममथ वांदे मातरम्


राम के वनवास का िै काव्य वांदे मातरम्
हदव्य गीता ज्ञान का सांगीत वांदे मातरम् ॥२॥

िम्मिघाटी के कणोमे व्याप्त वांदे मातरम्


हदव्य जौिर ज्वाल का िै तेज वांदे मातरम्
वीरोांके बहलदान का हूां कार वांदे मातरम् ॥३॥

जनजन के िर कांठ का िो गान वांदे मातरम्


अररदल र्रर्र काां पे सुनकर नाद वांदे मातरम्
वीर पुत्रोकी अमर ललकार वांदे मातरम् ॥४॥

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