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Arora IAS
मध्यकालीन
भारत नोट्स
इस्लाम धमम से मराठा साम्राज्य तक
Arora IAS प्राचीन भारत नोट्स की सफलता के बाद मध्यकालीन
भारत नोट्स, जिसको बनाने में करीब हमें 6 महीने लगे ,
आशा करते है आपको यह नोट्स पसंद आएंगे
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Index
अध्याय-1 : इस्लाम धमम - एक विश्लेषण
अध्याय-2 : अरबों का सिन्ध पर आक्रमण - एक विश्लेषण
अध्याय-3 : महमूद गजनिी - एक विश्लेषण
अध्याय-4 : मुहम्मद गौरी का काल (1173-1206 ई.)- एक विश्लेषण
अध्याय-5 : राजपूतों के हार के कारण - एक विश्लेषण
अध्याय-6 : ददल्ली िल्तनत - एक विश्लेषण
अध्याय-7 : ददल्ली िल्तनत- खिलजी िंश
अध्याय-8 : ददल्ली िल्तनत- तग
ु लक िंश
अध्याय-9 : ददल्ली िल्तनत- िैयद िंश
अध्याय-10 : ददल्ली िल्तनत- लोदी िंश
अध्याय-11 : ददल्ली िल्तनत-प्रशािननक प्रणाली
अध्याय-12 : भक्तत आन्दोलन
अध्याय-13 : िफ
ू ी आंदोलन
अध्याय-14 : बहमनी िाम्राज्य -एक विश्लेषण
अध्याय-15 : विजयनगर िाम्राज्य -एक विश्लेषण
अध्याय-16 : मुग़ल िाम्राज्य - एक विश्लेषण
अध्याय-17 : मराठा िाम्राज्य और िंघ
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अध्याय-1
इस्लाम धमम - एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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2. नमाि - प्रत्येक मि
ु लमान को प्रनतददन 5 बार नमाज (प्राथमना) करनी चादहए।
फैक्ट - मग
ु ल बादशाह अकबर ने दै ननक जीिन में प्रयोग की िस्तओ
ु ं पर जकात की ििल
ू ी बन्द करा ददया। उिके उिराधधकारी
जहांगीर ने आयात-ननयामत पर जकात को िमाप्त ककया था। आयात-ननयामत के िम्बन्ध में जकात िस्तओ
ु ं के मल्
ू य का 2% सलया
जाता था। िदका भी एक प्रकार का जकात था जो कक ककिी विशेष ददन या त्यौहार पर ददया जाने िाला दान था।
4. रोिा - व्रत
5. हि - प्रत्येक मि
ु लमान को अपने जीिनकाल में मतका की तीथमयात्रा करनी चादहए।
इस्लासमक राज्य एक धममप्रधान राज्य है क्जिमें कुरान ही राज्य का िंविधान होता है । यह राज्य शरीयत के अनक
ु ू ल होना
चादहए।
िमयािधध में - शरीयत की व्याख्या हे तु 4 विचारधाराओं- मालकपंथी, शफीपंथी, हनबलपंथी और हनीफापंथी का विकाि
हुआ।
इिमें िे केिल अबह
ू नीफा का हनीफी िम्प्रदाय ही इस्लामी राज्य में क्जक्म्मयों के रूप में रहने की अनम
ु नत दे ता है ।
महत्िपण
ू म है कक ददल्ली िल्तनत की वििीय नीनत हनीफी िम्प्रदाय दिारा प्रस्तत
ु कराधान के सिदधांतों पर आधाररत थी।
जब कोई व्यक्तत शरीयत का पालन नहीं करे गा तो उिके विरुदध फतिा जारी होगा।
कुरान, हदीि, इज्मा, एिं कयाि का िमच्
ु चय शरीयत कहलाता है । महत्िपण
ू म है कक यही मक्ु स्लम न्याय के स्रोत भी हैं।
हिरत मह
ु म्मद की मत्ृ यु के बाद इस्लाम सशया और सन्
ु नी दो पंर्ों में बंट गया.
िन्
ु नी उन्हें कहते हैं जो िन्
ु ना में विश्िाि रिते हैं. िन्
ु ना हजरत मह
ु म्मद के कथनों और कायों का वििरण है .
सशया अली की सशक्षाओं में विश्िाि रिते हैं और उन्हें हजरत मह
ु म्मद का उिराधधकारी मानते हैं. अली, हजरत मह
ु म्मद
के दामाद थे.
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Note- Whole Kashmir is the Integral part of India (we took map from Internet which is mention wrong part of
Kashmir)
महत्िपण
ू म शब्दािली
1. कुरान - शब्द इकरा (पाठ करो) िे बना है क्जिे इल्म-ए-अल्लाह (ईश्िर का शब्द) कहा जाता है । इिमें कुल 114 िरु ा (अध्याय
या पंक्ततयां) हैं।
2. सन्
ु ना या हदीस- पैगम्बर िाहब िे जुड़ी परम्पराएँ हैं क्जिके अतंगत
म उनके स्मत
ृ शब्द और कक्रयाकलाप आते हैं।
3. ककयास- िदृशता के आधार पर तकम ।
4. इिमा- इस्लाम के धमामचायों के मध्य मतैतय पर आधाररत मत होते हैं। इिे िमद
ु ाय की िहमनत के रूप में भी पररभावषत
ककया जाता है । मोटे तौर पर मज
ु तदहद अथामत ् विधधशास्त्री दिारा व्याख्या ककया गया कानन
ू इजमा कहलाता था।
5. गािी - इिका अथम विधसममयों का कत्ल करने िाला होता है । गाजी िल्
ु तान की िेना में स्ियंिेिक के रूप में भती होते थे।
इनको राज्य दिारा कोई ननयसमत िेतन न समलकर िम्ि में िे दहस्िा समलता था। गाजी योदधा होने के िाथ-िाथ धमम का
भी रक्षक होता था। इनके ऊपर इस्लाम की रक्षा एिं प्रिार का दानयत्ि था। महमद
ू गजनिी ने गाजी की उपाधध धारण की
थी। धगयािह
ु ीन तग
ु लक ददल्ली िल्तनत का पहला िल्
ु तान था क्जिने अपने नाम के आगे गाजी जोड़ा। 1451 ई. में बहलोल
लोदी ने 'गाजी' की उपाधध धारण की। माचम 1527 ई. को िनिा यद
ु ध के पश्चात ् बाबर ने गाजी की उपाधध धारण की।
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हजरत मह
ु म्मद की बेटी का नाम फनतमा और दामाद का नाम अली हुिैन है .
दे िदत
ू ग्रैबियल ने पैगम्बर मह
ु म्मद को कुरान अरबी भाषा में िंप्रेवषत की.
अली की िन 661 में हत्या कर दी गई थी. अली के बेटे हुिैन की हत्या 680 में कबमला में की गई थी. इन हत्याओं ने सशया
को ननक्श्चत मत का रूप दे ददया.
हजरत मह
ु म्मद के उिराधधकारी िलीफा कहलाए.
इस्लाम जगत में िलीफा पद 1924 ई. तक रहा. 1924 में इिे तक
ु ी के शािक मस्
ु तफा कमालपाशा ने ित्म कर ददया.
इब्न ईशाक ने िबिे पहले हजरत मह
ु म्मद का जीिन चररत्र सलिा था.
हजरत मह
ु म्मद के जन्मददन को ईद-ए-समलाद-उन-नबी के नाम िे मनाया जाता है
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अध्याय-2
अरबों का ससन्ध पर आक्रमण - एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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एक विश्लेषण
भारत और अरब के बीच 7िीं िदी में ही िंपकम आरं भ हो गये थे। लेककन राजनीनतक िंबध
ं 712 ई0 में सिंध पर आक्रमण के
दौरान स्थावपत हुआ। भारत में अरबों के आगमन का राजनीनतक दृक्ष्ट िे उतना महत्ि नहीं है , क्जतना अन्य पक्षों का है ।
अरब आक्रमणकारी भारत में उि प्रकार का िाम्राज्य नहीं बना पाये जैिा कक उन्होंने एसशया, अफ्रीका और यरू ोप के विसभन्न
भागों में बनाया था। यहाँ तक कक सिंध में भी उनकी शक्तत अधधक ददनों तक नहीं बनी रही। ककं तु दीघमकासलक पररणामों
की दृक्ष्ट िे प्रतीत होता है कक अरबों ने भारतीय जनजीिन को अत्यधधक प्रभावित ककया और स्ियं भी प्रभावित हुए।
यदद तात्कासलक राजनीनतक दृक्ष्ट िे दे िा जाये तो कहा जा िकता है कक अरबों ने एक ऐिी चुनौती पेश की क्जिका िामना
करने के सलए ऐिी शक्ततयाँ उददत हुई, जो भारत में आगामी तीन िौ िषों तक बनी रहीं। गज
ु रम -प्रनतहार, राष्रकूट, चालत
ु यों
की प्रनतष्ठा की स्थापना उनके दिारा अरबों का विरोध करने के कारण हुई। अरबों का दीघमकासलक महत्ि यह था कक उन्होंने
भारत में धमम की स्थापना न करके धासममक िदहष्णत
ु ा का प्रदशमन ककया। हालांकक ज़क्जया कर सलया जाता था।
अरबों का भारत आगमन का आधथमक महत्ि व्यापार के क्षेत्र में दे िा जा िकता है । अरब व्यापाररयों के िमर
ु ी एकाधधकार
के िाथ भारतीय व्यापाररयों ने तालमेल बनाया और पक्श्चमी जगत एिं अफ्रीकी प्रदे शों में अपनी व्यापाररक गनतविधधयों
को गनतशील बनाये रिा।
यह अरबों का भारत िे पहला िम्पकम नहीं था। व्यापार-िाखणज्य की दृक्ष्ट िे अरब िाले पहले भी मालाबार तट पर आते थे।
इि बार नया यह था कक उन्होंने व्यापार-िाखणज्य के िाथ धमम एिं राजनीनतक विस्तार का भी लक्ष्य लेकर सिन्ध में प्रिेश
ककया।
अरबों का भारत पर पहला आक्रमण िलीफा उमर के काल में 636 ई. में बम्बई के थाना पर हुआ जो कक अिफल रहा।
इिके बाद 8िीं िदी के प्रथम दशक में इब्नअलहरर अल बदहि ने सिंध के मकरान को जीता क्जििे सिन्ध विजय का मागम
प्रशस्त हो गया।
तात्कासलक कारण-
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सिन्ध में इि िमय िाह्मण िंश का शािन था क्जिका िंस्थापक चाच था। चाच का पत्र
ु दादहर था। दादहर के िमय लंका
िे आने िाले कुछ अरब जहाजों को दे िल के िमर
ु ी डाकुओं ने लट
ू सलया। यही घटना सिन्ध पर अरबों के आक्रमण का
तात्कासलक कारण बनी। िहीं कुछ इनतहािकार का मत है कक आक्रमण का मल
ू कारण इस्लाम का प्रचार-प्रिार था।
ईराक के िब
ू ेदार हज्जाज ने दादहर िे लट
ू का हजामना मांगा क्जिे दादहर ने अस्िीकार कर ददया। अतः हज्जाज ने िलीफा
िादहद िे अनम
ु नत प्राप्त कर क्रमशः तीन िेनापनतयों को भेजा।
ििमप्रथम उबैदल्
ु ला तदप
ु रान्त िदम ल
ु ने सिन्ध पर आक्रमण ककया। हालांकक यह दोनों आक्रमण अिफल रहे । अंततः हज्जाज
ने 17 िषीय मह
ु म्मद बबन कासिम को सिन्ध विजय हे तु भेजा।
711-12 ई. में कासिम ने मकरान मागम िे भारत पर आक्रमण ककया। कासिम की िेना मे ऊँट, अश्िारोही एिं सशला (पत्थर)
फेंकने िाले मंजाननक या मैगनल तथा नौफथा थे।
कासिम की िहायता जाटों, मेड़ों एिं विरोही बौदधों ने की थी।
मह
ु म्
मद-बबन-काससम के प्रमख
ु असभयान
यह ित्य है कक अरब राजनीनतक रूप िे सिन्ध तक ही िीसमत रहें , लेककन विदिान इनतहािकार का यह कहना ताककमक नहीं है कक
यह एक पररणामशन्
ू य विजय थी। तयोंकक, इिके िामाक्जक, धासममक, आधथमक एिं िांस्कृनतक पररणाम दृक्ष्टगोचर होते हैं जो कक
ननम्नसलखित हैं
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अध्याय-3
महमद
ू गिनिी - एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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तक
ु म , अब्बािी िाम्राज्य में 9िीं शताब्दी में महलों के पहरे दारों एिं ककराये के िैननकों के रुप में पहुँचे थे, लेककन शीघ्र ही कर
िहां ककं ग-मेकर की भसू मका में आ गये।
भारत में तक
ु ों का आक्रमण दो चरणों में िम्पन्न हुआ।
प्रथम चरण का नेता महमद
ू गजनिी तो दि
ू रे का मोहम्मद गोरी था।
महमद
ू गजनिी िंश- यासमनी िंश
उपाधध - यमीन-उद-दौला
गजनी राज्य का िंस्थापक- अलप्तगीन
अलप्तगीन िामाननयों का एक तक
ु म दाि अधधकारी था।
अरबों के बाद तक
ु ो ने भारत पर आक्रमण ककया। तक
ु म चीन की उिरी-पक्श्चमी िीमाओं पर ननिाि करने िाली अिभ्य एिं
बबमर जानत थी।
अलप्तगीन नामक एक तक
ु म िरदार ने गजनी में स्ितन्त्र तक
ु म राज्य की स्थापना की।
अलप्तगीन के गल
ु ाम तथा दामाद िब
ु त
ु तगीन ने 977 ई. में गजनी पर अपना अधधकार कर सलया।
महमद
ू गजनी िब
ु त
ु तगीन का पत्र
ु था।
अपने वपता के काल में महमद
ू गजनी िुरािान का शािक था।
िब
ु त
ु तगीन की मत्ृ यु के बाद उिका पत्र
ु एिं उिराधधकारी महमद
ू गजनिी गजनी की गददी पर 998 ई. में बैठा।
इि िमय महमद
ू गजनिी 27 िषम का था। उिकी राजधानी गजनी थी।
आक्रमण के कारण :
धमम का प्रचार - महमद
ू गजनिी के आक्रमण का मख्
ु य उददे श्य दहन्द की दौलत प्राप्त करना था ताकक मध्य एसशया में
िाम्राज्यिाद का दौर चला िके। उिके आक्रमणों का उददे श्य भारत में स्थायी मक्ु स्लम िाम्राज्य की स्थापना करना नहीं
था। इनतहािकार है िेल का कथन है कक 'िह बगदाद को भी िैिे ही ननदम यतापि
ू क
म लट
ू ता जैिे िोमनाथ मंददर को लट
ू ा, यदद
उिे िहां िे इतना धन समलने की आशा होती।'
प्रमि
ु असभयान- हे नरी इसलयट के अनि
ु ार महमद
ू गजनिी ने भारत पर 17 बार आक्रमण ककया। िैबर दराम क्जिे भारत का
प्रिेशदिार कहा जाता था, िब
ु त
ु तगान ने जीता था। इि दरे को पार कर महमद
ू गजनिी ने भारत पर आक्रमण ककया था।
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गजनिी का पहला आक्रमण 1001 ई. में शाहीयों पर हुआ। यह राज्य धचनाब महमद
ू गजनिी के िमय कुछ नदी िे लेकर
दहन्दक
ू ु श पिमत तक विस्तत
ृ था। काबल
ु , पंजाब आदद क्षेत्र इिमें िमकालीन शािक िक्म्मसलत थे।
1010 ई. में महमद
ू ने नगरकोट को लट
ू ा तथा 1010 ई. में तलिाड़ी यद
ु ध में दहन्दओ
ु ं के िंघ को परास्त ककया।
1014 ई. में थानेश्िर के चक्रस्िामी मंददर को लट
ू ा।
1015 ई. में कश्मीर में लोहकोट (लोहाररन) दग
ु म जीतने का अिफल प्रयाि ककया। यह गजनिी की िेना की प्रथम पराजय
थी क्जिका मख्
ु य कारण प्रनतकूल मौिम था। इिके पश्चात उिने 1021 ई. में भी कश्मीर को जीतने का अिफल प्रयत्न
ककया था।
1019 ई. में महमद
ू ने कसलन्जर दग
ु म का घेरा डाला। तयोंकक, यहाँ के शािक विदयाधर चन्दे ल (इिे मक्ु स्लम लेिकों ने
ििामधधक शक्ततशाली शािक बताया है ) ने कन्नौज के नये शािक बत्रलोचनपाल एिं पंजाब के शाही शािक बत्रलोचनपाल
के िाथ समलकर एक िंघ का ननमामण ककया था। इि िंघ का प्रमि
ु विदयाधर था।
महमद
ू गजनिी ने ग्िासलयर (कसलन्जर) के दग
ु म का घेरा डाला, लेककन ननणामयक शक्तत परीक्षण न हो िका। विदयाधर ही
िह चन्दे ल शािक था जो महमद
ू िे पराक्जत नहीं हुआ और दोनों के बीच िंधध हो गयी।
इिी िमय 1022 ई. में पंजाब का गजनी िाम्राज्य में विलय कर सलया। आररयारुक पंजाब का िब
ू ेदार ननयत
ु त हुआ।
1025 ई. में गज
ु रात के िोमनाथ मंददर पर महमद
ू का आक्रमण हुआ। िमकालीन चालत
ु य शािक भीम प्रथम था गजनिी
के चले जाने के बाद इि मंददर का पन
ु ननममामण करिाया।
1027 ई. में सिन्ध के जाटों को दण्ड दे ने हे त िह बार भारत आया। 1030 ई. में महमद
ू गजनिी की मत्ृ यु हो गयी।
महमद
ू गिनिी के दरबार में ननम्नसलखखत विदिान रहते र्े
अबू नस्र उतबी-यही िह हमलािर दरबारी इनतहािकार था क्जिने अपनी पस्
ु तक तारीिे यासमनी या 'ककताब यासमनी' में
1000 ई. िे महमद
ू गजनिी के ज्यादातर हमलों का उल्लेि ककया है ।
ख्िािा अहमद- यह महमद
ू गजनिी का िजीर था। ख्िाजा अहमद ने महमद
ू की अनप
ु क्स्तथी में 18 िषों तक कुशलता िे
प्रशािननक कायों का िंचालन ककया। बाद में महमद
ू गजनिी ने अपने इि िजीर को एक भारतीय ककले में कैद करा ददया
था।
अबल
ु फिल बैहाकी-तारीि ए िब
ु त
ु तगीन का लेिक था। इिको लेनपल
ू ने पि
ू म का पेप्ि कहा है । िल्तनत यगीन धचत्रकला
का िबिे प्रारं सभक उल्लेि बैहाकी दिारा सलखित 'गजनवियों के इनतहाि' िे समलता है ।
कफरदौसी-इि इनतहािकार ने फारिी में पदय में 1000 छन्दों िाली शाहनामा महमद
ू गजनिी के आदे श पर सलिी।
अल्बरूनी-राजज्योनतष था। इिने गजनी में िाह्मण पक्ण्डतों िे िाद-वििाद ककया था।
फराबी-दशमनशास्त्र का विदिान था।
महमद
ू गजनिी के दरबारी कवि फारुिी ने महमद
ू दिारा लाहौर में बनिाये गये ननगारिाना (धचत्र विधथका) का उल्लेि
ककया है । इिमें महमद
ू गजनिी का भी शबीह या व्यक्तत धचत्र (protrait) है । िह पहला िल्
ु तान था क्जिने अपना रूप धचत्र
बनिाया था।
निार नदी पर महमद
ू ने बाढ़-ए-िल्
ु तान बांध तथा गजनी में एक विश्िविदयालय, पस्
ु तकालय एिं अजायबघर बनिाया
था।
मक्ु स्लम शािकों में ििमप्रथम महमद
ू गजनिी ने ही भारतीय ढं ग के सितके चलाया। इन सितकों को ददल्लीिाला कहा गया
क्जनका िजन 56 ग्रेन था।
अलबरूनी
उपनाम-अबू रे हान उपाधध- विदयािागर (भारतीय िाह्मणों दिारा प्रदि);
प्रथम मक्ु स्लम भारतविद
विशेष-अलबरूनी पहले मि
ु लमान थे क्जन्होने िंस्कृत िीिा तथा गीता एिं परु ाणों का अध्ययन ककया।
पस्
ु तक-
ककताब-उर-रे हला या ककताब-उल-दहन्द या तहकीक-ए-दहन्द या समन मकाला। यह पस्
ु तक 11िी शताब्दी का दपमण कहलाता
है ।
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इिोल्का - भारत प्रिाि के बाद इि पस्तक की रचना की। अल्बरूनी ने लगभग 113 कृनतयों की रचना का था।
ककताबस सयदना- यह अलबरूनी दिारा सलखित दिाओं की ककताब है क्जिका फारिी अनि
ु ाद बक्र ने ककया था।
अनि
ु ाद-अरबी में सलिी ककताब-उल-दहन्द का अंग्रेजी अनि
ु ाद 1888 ई. में एडिडम िचाऊ ने िही दहंदी में रजनीकान्त शमाम
ने ककया।
अलबरुनी मामन
ु ी िंश के ख्िाररज्म शाह के राजनैनतक िलाहकार थे।
महमद
ू गजनिी ने जब ख्िाररज्म जीता तो यहीं िे यद
ु ध बन्दी के रूप में अलबरूनी को पाया।
महमद
ू ने अलबरूनी को राजज्योनतष के पद पर ननयत
ु त ककया था।
िह 1018-19 ई. में महमद
ू के िाथ भारत आये थे।
अलबरूनी भारत में 10 िषम रहे और 1030 ई. के आि-पाि 'ककताब उल दहन्द' की रचना की। अलबरूनी दाशमननक, गखणतज्ञ,
िमाजशास्त्री, धचककत्िक एिं ज्योनतषविद थे। इन्होंने पतंजली के योगित्र
ू का अरबी भाषा में अनि
ु ाद ककया। िे योगित्र
ू
को िफ
ू ी मत के िमकक्ष मानते थे। अल्बरूनी ने कवपल के िांख्य एिं ज्योनतष का अध्ययन ककया। अपनी पस्
ु तक में प्लेटो
एिं अरस्तू का भी उल्लेि ककया है । अल्बरूनी गीता िे बहुत अधधक प्रभावित थे।
ककताबल
ु हहंद-अल्बरूनी का भारत सिेक्षण
इि पस्
ु तक में कुल 80 अध्याय हैं क्जिमें ििामधधक िणमन िगोलशास्त्र का हुआ है । स्टे नले लेनपल
ू ने ककताबल
ु दहन्द को
टकराती तलिारों, जलते शहरों और लट
ू े जा रहे मक्न्दरों की दनु नया के बीच पण
ू रू
म पेण ननष्पक्ष अनि
ु ध
ं ान का जादईु दिीप
कहा है । इिमें भारत के कई नगरों का वििरण दे शान्तर िदहत ददया गया है । लेककन, अल्बरूनी ने दक्षक्षण भारत के राज्यों
के विषय में कुछ नहीं सलिा और तत्कालीन राजनीनतक जीिन का बहुत कम उल्लेि करते हैं।
सामाजिक जस्र्नत-
भारतीय िमाज में चति
ु ण
म म िणमव्यिस्था बताते हैं। िे यक्ु ग्मत िणमव्यिस्था का उल्लेि करते हैं। उनके अनि
ु ार िाह्मण एिं
क्षबत्रय एक यग्ु म (जोड़ा) थे तथा िैश्य एिं शर
ू दि
ू रे यग्ु म थे। चार िणों के नीचे अछूतों की श्रेणी 8 अन्त्यज थे क्जन्हें अल्लम-
गल्लम कहा जाता था।
िामाक्जक विभेद इि िमय चरम पर था। िाह्मण को चार पत्नी, क्षबत्रय को तीन, िैश्य को दो एिं शर
ू को एक पत्नी रिने
का अधधकार था। अल्बरूनी बताते हैं कक वििाह में तलाक नहीं था। विधिा पन
ु विमिाह नहीं था। अन्तरजातीय वििाह केिल
अन्त्यजों में प्रचसलत थी।
सशक्षा-
अल्बरूनी के अनि
ु ार इि िमय विक्रमसशला, नालन्दा, उददपरु , कश्मीर एिं बनारि प्रमि
ु सशक्षा केन्र थे। उनके अनि
ु ार,
“विज्ञान के हर एक शािा के िम्बन्ध में दहन्दओ
ु ं के पाि अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं।' बच्चे पाठशाला में िडड़या एिं स्लेट का
प्रयोग करते थे। अल्बरुनी के अनि
ु ार, “उिर-भारत में लोग पेड़ की छाल का उपयोग सलिने में करते थे जबकक दक्षक्षण भारत
में ताड़ के पिों पर सलिा जाता था।'
इि िमय िादहत्य के मल
ू विषय 'कुट्टनी-मतम ्' (मध्यस्थ के विचार) और 'िमय-मत्रक' (िेश्या की आत्मकथा) थे। कश्मीर
के राजा के एक मंत्री दामोदर गप्ु त ने कुट्टनी-मतम ् तथा क्षेमेन्र (990-1065 ई.) ने िमय मत्रक नामक पस्
ु तक सलिी।
धमम-
अल्बरूनी दो प्रमि
ु त्यौहार रामनिमी एिं सशिरात्री बताते हैं। इनके अनि
ु ार धमम में भी विभेदीकरण था तयोंकक सशक्षक्षत
लोग एकेश्िरिादी थे िहीं असशक्षक्षत (आम जन) बहदे ििादी था। िे िैष्णि िम्प्रदाय को ििामधधक लोकवप्रय धमम बताते हैं।
िैश्य एिं शर
ू को िेद पढ़ने का अधधकार नहीं था।
स्र्ापत्य-
अलबरुनी एिं उत्बी के वििरण िे ज्ञात होता है कक कन्नौज अत्यन्त विस्तत
ृ एिं भव्य था।
आर्र्मक जस्र्नत-
इि िमय उन्नत थी। मक्न्दरों में िम्पवि का िंकेन्रण था। यही इि िमय एक प्रकार का बैंक था । यही कारण है कक
आक्रमणकाररयों का पहला ननशाना मंददर ही होती थी। िमाज में िद
ू िोरी िक्जमत थी और केिल शर
ू ों को ही इिकी इजाजत
थी।
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रािनीनतक जस्र्नत-
अल्बरूनी ने राजनीनतक क्स्थनत का नाममात्र का उल्लेि ककया है । इि िमय भारत छोटे -छोटे राज्यों में विभतत था तथा
एक राज्य की कमजोरी दि
ू रे राज्य की शक्तत का िाधन थी।
िस्तत
ु ः अल्बरूनी का ििेक्षण एक िक्ण्डत भारत के, िक्ण्डत िमाज की, िक्ण्डत तस्िीर ही प्रस्तत
ु करता है । यह राजनीनत, िमाज,
धमम यहाँ तक कक प्रिनू त के आधार पर विभेद को ही उजागर करता है । ऐिे में अगर तक
ु म आक्रमण के िामने भारतीय राजा एक-एक
कर हारते चले गये तो इिमें कोई आश्चयम की बात नहीं। तयोंकक, एक िंडडत िमाज िक्ण्डत राजनीनत ही दे िकता है ।
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अध्याय-4
मह
ु म्मद गौरी का काल( 1173-1206 ई -).एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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यही िह सशहाबद
ु दीन उफम मई
ु जद
ु दीन मोहम्मद गोरी था क्जिने 12िीं िदी में भारत पर आक्रमण ककया। मोहम्मद गोरी ने
ििमदा अपने बड़े भाई धगयािद
ु दीन का िम्मान ककया और एक स्ितंत्र शािक होते हुए भी स्ियं को उिके अधीन माना।
1203 ई. में धगयािद
ु दीन की मत्ृ यु के पश्चात मोहम्मद गोरी ने एक स्ितंत्र शािक के रूप में मइ
ु जुददीन की उपाधध धारण
की तथा गोर को राजधानी बनाया।
1205 ई. में मोहम्मद गोरी अन्धिुद यद
ु ध में ईरान के ख्िाररज्म शािक िे भयंकर
मसलक बहाउददीन तग
ु ररल रूप िे हार गया। यह हार गोररयों के सलए नछपा िरदान िाबबत हुआ तयोंकक अब उिका एसशया
िे मोह भंग हुआ और उिे पण
ू त
म या अपना ध्यान भारत पर लगाना पड़ा।
मह
ु म्मद बबन काससम के बाद महमद
ू गजनिी तथा उिके बाद मह
ु म्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण ककया तथा कत्लेआम
कर लट
ू पाट मचाई। भारत में तक
ु म िाम्राज्य का श्रेय मह
ु म्मद गौरी को ददया जाता है ।
मह
ु म्मद गौरी गजनी तथा हे रात के मध्य क्स्थत एक छोटे िे पहाङी क्षेत्र गजनी का शािक था।
12 िी शता .के मध्य में गोरी िंश का उदय हुआ।गोर िंश की नींि अला-उद-दीन जहांिोज ने रिी थी। जहांिोज की मत्ृ यु
के बाद उिके पत्र
ु िैफ-उद-दीन गोरी के सिंहािन पर बैठा।
गोरी िाम्राज्य का आधार उिर – पक्श्चम अफगाननस्तान था। प्रारं भ में गोरी गजनी के अधीन था।
मह
ु म्मद गौरी शंिबनी िंश का था। मह
ु म्मद गौरी का परू ा नाम सशहाबद
ु दीन मह
ु म्मद गौरी था। ग्यािद
ु दीन मह
ु म्मद गौरी
इिका बङा भाई था। ग्यािद
ु दीन मह
ु म्मद गौरी ने 1163 ई.में गोर को राजधानी बनाकर स्ितंत्र राज्य स्थावपत करा।
1173 ई .में ग्यािद
ु दीन ने अपने छोटे भाई मह
ु म्मद गौरी को गोर का क्षेत्र िौंप ददया तथा स्ियं गजनी पर अधधकार कर
ख्िाररज्म के विरुदध िंघषम शरु
ु कर ददया।
मह
ु म्मद गौरी ने भारत की ओर प्रस्थान कर ददया। महम्मद गौरी एक अफगान िेनापनत था। यह एक महान विजेता तथा
िैन्य िंचालक भी था।
मह
ु म्मद गौरी के आक्रमण
मह
ु म्मद गौरी के आक्रमण का उददे श्य महमद
ू गिनिी के आक्रमणों िे अलग था।
यह भारत में लट
ू पाट के िाथ-िाथ इस्लामी िाम्राज्य के विस्तार का भी इच्छुक था। इिीसलए भारत में तक
ु म िाम्राज्य का
िंस्थापक मह
ु म्मद गौरी को ही माना जाता है ।
गौरी ने प्रथम आक्रमण 1175 ई .में मल्
ु तान पर ककया । इि िमय यहाँ पर सशया मत को मानने िाले करामाती शािन कर
रहे थे। ये करामाती मक्ु स्लम बनने िे पहले बौदध थे। गौरी ने मल्
ु तान को जीत सलया था।
गौरी ने 1178 ई .में दवितीय आक्रमण गज
ु रात पर ककया लेककन मल
ू राज दवितीय ने उिे आबू पिमत की तलहटी में पराक्जत
ककया। भारत में मह
ु म्मद गौरी की यह पहली पराजय थी। इि यद
ु ध का िंचालन नानयका दे िी ने ककया था जो मल
ू राज की
पत्नी थी।
इि यद
ु ध िे िबक लेते हुए गौरी ने पहले िंपण
ू म पंजाब पर अपना अधधकार कर भारत पर अधधकार करने के सलये प्रयाि
शरु
ु ककया
1179-86 ई .के बीच पंजाब को जीत सलया था।
1179 में स्यालकोट पर अधधकार कर सलया
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1186 ई .तक गौरी ने लाहौर, श्यालकोट तथा भदटण्डा) तबरदहंद (को जीत सलया था।तबरदहंद पर पथ्
ृ िीराज चौहान तत
ृ ीय
का अधधकार था। तबरदहंद पथ्
ृ िीराज चौहान का िीमािती क्षेत्र था। गौरी ने इि पर अधधकार ककया था क्जि िजह िे गौरी
ि चौहान के बीच यद
ु ध होना अिश्यंभािी हो गया था।
तराइन का प्रर्म यद
ु ध
1191 ई .में तराइन के प्रथम यद
ु ध में पथ्
ृ िीराज तत
ृ ीय ने गौरी को पराक्जत ककया लेककन उिकी शक्तत को िमाप्त नहीं कर
िका।
तराइन का दवितीय यद
ु ध
1192 ई .में गौरी ने पथ्
ृ िीराज तत
ृ ीय को हराकर अजमेर तथा ददल्ली तक के क्षेत्रों को जीत सलया तथा इिी के िाथ चौहान
िाम्राज्य का नाश हुआ। तराइन के दवितीय यद
ु ध में पथ्
ृ िीराज के िामंत तथा ददल्ली के तोमर शािक गोविंदराज की मत्ृ यु
हुई।
चंदबरदाई के अनि
ु ार यद
ु ध में पराजय के बाद पथ्
ृ िीराज तत
ृ ीय को बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया। शब्दभेदी बाण छोङ
कर मह
ु म्मद गौरी को मार ददया गया।
हसम ननिामी के अनि
ु ार यद
ु ध में पराक्जत होने के बाद पथ्ृ िीराज ने अधीनता स्िीकार कर ली और गौरी ने उिे अजमेर
में अपने अधीन रिकर शािन करिाया। आगे गौरी के विरुदध विरोह करने की कोसशश की क्जिमें पथ्
ृ िीराज मारा
गया।)अधधकांश विदिान इिे ही स्िीकार करते हैं, क्जिकी पक्ु ष्ट अजमेर िे प्राप्त सितकों िे होती है क्जिमें एक तरफ घोङे
की आकृनत तथा मह
ु म्मद – बबन – साम सलिा है । तथा दि
ू री तरफ बैल की आकृनत बनी है एिं पथ्
ृ िीराज सलिा हुआ है ।(
1192 ई .के बाद गौरी ने अपने दाि ऐबक को भारतीय क्षेत्रों का प्रशािक घोवषत कर ददया।
1194 ई .के बाद गौरी के दो िेनापनत कुतब
ु द
ु दीन ऐबक तथा बक्ख्तयार खिलजी ने भारतीय क्षेत्रों को जीतना प्रारं भ ककया।
बजख्तयार खखलिी ने बबहार तथा बंगाल का पक्श्चमी क्षेत्र िेन शािक लक्ष्मणिेन िे जीता और इिी दौरान उिने नालंदा
)बबहार (विश्ि विदयालय , विक्रमसशला)बंगाल (एिं ओदं तीपरु ) बंगाल (विश्ि विदयालय को नष्ट कर ददया।
बक्ख्तयार खिलजी को अिम के माघ शािक ने पराक्जत ककया तथा 1205 ई .में बक्ख्तयार खिलजी के ही िैन्य
अधधकारी असलमदामन ने मह
ु म्मद गौरी की हत्या कर दी।
कुतब
ु द
ु दीन ऐबक ने 1195 ई .में अक्न्हलिाङा के शािक भीम दवितीय पर आक्रमण ककया लेककन ऐबक पराक्जत हुआ।
ऐबक ने 1197 में अक्न्हलिाङा पर कफर िे आक्रमण ककया और उिे लट
ू सलया भीम दवितीय ने अधीनता स्िीकार नहीं की
लेककन लगातार यद
ु धों िे उिकी आधथमक क्स्थनत िराब हो गई थी। अतः भीम की मत्ृ यु के बाद गज
ु रात में िोलंकी िंश के
स्थान पर बघेल िंश की स्थापना हुई।
1203 ई .में ऐबक ने चंदेल शािक परमददमदेि िे कालींिर को जीत सलया था।
मह
ु म्मद गौरी की मत्ृ यु
1206 ई. में मह
ु म्मद गौरी ने पंजाब के िोिर जनजानत के विरोह को दबाने के सलये भारत पर अंनतम आक्रमण ककया तथा
इि असभयान के दौरान दमयक) पक्श्चसम पाककस्तान (के पाि गौरी की हत्या कर दी गई।
गौरी ने अपनी मत्ृ यु िे पि
ू म ही अपने दािों को अपना उिराधधकारी ननयत
ु त ककया था।
गौरी ने लक्ष्मी की आकृनत िाले कुछ सितके चलाये थे।
गौरी की मत्ृ यु के बाद उिका िाम्राज्य उिके तीन प्रमि
ु दािों में विभाक्जत हुआ।
1. कुतब
ु द
ु दीन ऐबक – भारतीय क्षेत्र। ऐबक ने ददल्ली को इस्लामी िाम्राज्य का केन्र बनाया।
2. ताजद
ु दीन यल्दोज – गजनी क्षेत्र।
3. नािीरुददीन कुबाचा – उच्च तथा सिंध) पाककस्तान(।
गोरी ने इन्रप्रस्थ में अपने विश्िाि प्राप्त िहायक 'ऐबक' के नेतत्ृ ि में एक िेना रि दी क्जिका कायम दहन्द ू शािकों िे
िक्न्ध करना और विरोह को दबाना था। अतः ऐबक का पहला मख्
ु यालय ददल्ली के पाि इन्रप्रस्थ ही था। इधर अजमेर में
हररराज ने गोविन्दराज को हटा कर चौहानों की स्ितंत्रता के सलए प्रयत्न ककया परन्तु ऐबक िे हार गया
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अब िे (1194 ई.) अजमेर को ऐबक ने अपने प्रत्यक्ष अधीनता में ले सलया। इिी अििर पर ऐबक ने दो स्थापत्य बनिाया
1. ददल्ली में पहली मक्स्जद का ननमामण करिाया क्जिे कुिात उल इस्लाम कहा गया।
2. अजमेर में विग्रहराज चतथ
ु म (िीिलदे ि) दिारा ननसममत िंस्कृत विश्िविदयालय को 1196 ई. में तड़
ु िाकर ढाई ददन का
झोंपड़ा नामक मक्स्जद को बनिाना शरू
ु ककया जो कक 1200 ई. में पण
ू म हुई।
सांस्कृनतक उपलजब्ध
फिरुददीन राजी एिं नाजामी उरुजी गोरी के दरबार में थे।
गोरी ने दहन्द ू दे िी लक्ष्मी एिं नन्दी की आकनत यतत सितके चलाया क्जि पर दे िनागरी सलवप में मोहम्मद बबन िाम सलिा
है ।
भारत में इतता व्यिस्था की शरु
ु आत मोहम्मद गोरी ने की थी।
इक्ता व्यिस्र्ा-
इक्तेदार के कायम
इततेदार अपनी इतता में प्रशािननक ि िैननक कायों को परू ा करता था। इतता िे प्राप्त राजस्ि में िे अपना िेतन तथा
प्रशािननक ि िैननक िचम ननकालकर शेष रकम को िल्
ु तान के राजकोष में जमा कराता था। इि शेष रकम
को फिाजिल कहते थे।
इततेदार अपनी इतता में िल्
ु तान के नाम िे शािन करता था, उिका पद िंशानग
ु त नहीं था। तथा इततेदार को सितके
चलाने का अधधकार भी नहीं था।
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कफरोज तग
ु लक के िमय में इततेदारों का पद िंशानग
ु त कर ददया गया। िंशानग
ु त इिी के काल तक रहा। बाद में नहीं।
इततेदार या इतता प्रथा को प्रशािननक रूप इल्तत
ु समश ने ददया था, तथा उिने पद को स्थानांन्तररत रिा था।
लोदी काल में इततेदार को िजहदार कहा जाता था।
महमद
ू गजनिी जन्मजात िेनापनत था। अपने ककिी भी असभयान में चाहे िह भारत में हो या मध्य एसशया में िह कभी
नहीं हारा। मोहम्मद गोरी अनेक अििरों पर पराक्जत हुआ लेककन इिकी विशेषता थी पराजयों िे उबरने एिं गलनतयों को
िध
ु ारने की अपि
ू म क्षमता का होना।
भारत भसू म में अन्दर तक प्रिेश पाने का श्रेय महमद
ू गजनिी को है । परन्त,ु भारत में मक्ु स्लम राज्य की नींि डालने का श्रेय
मोहम्मद गोरी को प्राप्त हैं। लेककन, िह बनु नयाद महमद
ू गजनिी ने ही रिी क्जि पर गोरी ने तक
ु ी िाम्राज्य रूपी भिन िड़ा
ककया। तयोंकक गजनिी ने पंजाब पर अधधकार करके भारत की अधग्रम िरु क्षा पंक्तत को तोड़ ददया था।
दोनों ने अपने उददे श्यों की पनू तम में धमम का िहारा सलया।
िस्तत
ु ः दोनों के िामने सभन्न-सभन्न पररक्स्थनतयाँ एिं चन
ु ौनतयाँ थीं और दोनों को अपने प्राथसमक उददे श्यों की प्राक्प्त हुई इिसलए
दोनों िफल हैं। जहाँ महमद
ू गजनिी को दहन्द की दौलत प्राप्त करना था िहीं गोरी को दहन्द में िाम्राज्य स्थावपत करना था।
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अध्याय-5
रािपत
ू ों के हार के कारण - एक विश्लेषण
आखखर तक
ु ों से रािपत
ू कैसे हार गए ?
सभन्न-सभन्न विदिानों के सभन्न-सभन्न मतों को दे िते हुए यह जरुरी हो जाता है कक तथ्यों एिं विचारों का गहराई िे परीक्षण
ककया जाय। इिीसलए हम िबिे पहले यह दे िेंगे कक राजपत
ू ों के पराजय के तया कारण नहीं थे तभी पराजय के कारणों की
िही तस्िीर उभरकर िामने आएगी।
तक
ु ों दिारा लोहे के रकाब का प्रयोग करना पराजय का कारण नहीं था। तयोंकक, रकाब भारत में 8 िीं िदी िे ही प्रचसलत थी
जैिा कक िद
ु फोमद
ु ब्बीर के तथ्यों िे भी यह प्रमाखणत होता है ।
ितीश चन्र महोदय का मत है कक हाल के अनि
ु ध
ं ान यहीं ददिाते हैं कक तक
ु ों के पाि भारतीयों िे बेहतर हधथयार भी नहीं
थे। राजपत
ू ों के पराजय के कारण में भौगोसलक एिं आहार िंबध
ं ी तकम भ्रामक एिं पि
ू ामग्रह िे यत
ु त है । राजपत
ू ों में भी मांिाहार
की प्रथा थी।
िार यह है कक भारतीय िैननक भी योदधा प्रिवृ ि के थे और िीरता में तक
ु ों िे कम नहीं थे। इि मत की पक्ु ष्ट इििे भी हो
जाती है कक स्ियं महमद
ू गजनिी एिं उिके उिराधधकारी मिद
ू दोनों ने अपनी बहुजातीय िेना में दहन्दओ
ु ं की ननयक्ु तत की
क्जिमें नतलक एिं िेबन्
े दराय प्रमि
ु थे।
इस्लाम धमम की भसू मका को भी बहुत बढ़ा-बढ़ा कर नहीं दे िा जाना चादहए। यदद मि
ु लमान अल्लाह एिं कुरान के नाम पर
ऊजाम ग्रहण कर रणक्षेत्र में उतरते थे तो राजपत
ू भी काली एिं भैरि के नाम पर यद
ु ध को क्रीड़ा िमझकर प्रस्तत
ु होते थे।
कफर अगर इस्लाम धमम की तक
ु ों की विजय में भसू मका होती तो मोहम्मद गोरी दो बार भारत में तयों हारा?
भारत में व्याप्त जानत प्रथा को भी अनतरं क्जत करके नहीं दे िा जाना चादहए तयोंकक तक
ु म एिं राजपत
ू दोनों िमाज विभाक्जत
थे। यहीं पर इिकी भी चचाम कर दे ना ताककमक कक भारत में कभी भी जानत प्रथा ने ननम्न जानतयों को िेना में शासमल होने िे
नही रोका।
िुद कौदटल्य ने प्राचीन काल में ही शर
ू ों की िेना में भती होने का अधधकार ददया था। यही कारण है कक आकार एिं मानि
िंिाधन की दृक्ष्ट िे राजपत
ू िेना तक
ु म िेना िे बड़ी होती थी।
दि
ू रे भाई-चारे की भािना िे तक
ु म विजेता कभी ओत-प्रोत नहीं थे
तक
ु ों में िामाक्जक भेद-भाि उतना जदटल और गम्भीर नहीं था क्जतना दहन्द ू िमाज में था। भारतीय िमाज में पथ
ृ कतािादी
प्रिवृ ियों का प्रिार था। लोग अपने छोटे -छोटे क्षेत्र को अपना दे श माना थे। िमाज में कसलिण्यम सिदधान्त (विदे श यात्रा
ननषेध) लागू था क्जिके कारण बाहरी दे शों के निीन ज्ञान िे भारतीय िमा लाभ नहा उठा िका।
ितीश चंर के अनि
ु ार यही कारण है कक भारनतयों के बीच िे विदे सशयों का अध्ययन करने िाला कार अलबरूनी नहीं ननकला।
बौदधधक रूप िे तथा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत वपछड़ रहा था।
महमद
ू गजनिी ने अफगाननस्तान एिं पंजाब पर अधधकार करके भारत की बाहरी िरु क्षा पंक्तत को तोड़ ददया। यही िे भारत
को िामररक दृक्ष्ट िे 'बचाि नीनत' (रक्षात्मक रिैया) अपनाने को वििश होना पड़ा।' िास्ति में हार की पटकथा तो यहीं िे
शरु
ु हो गयी जो कक 1192 ई. में जाकर िमाप्त होती है ।
काबल
ु , जाबल
ु और जमींदािर अथामत हलमंद नदी के आि-पाि का क्षेत्र क्जिे अलदहंद कहा जाता था निीं िदी िे ही तक
ु ों
के कब्जे में आ गये थे।
ध्यातव्य है कक राजपत
ू राज्यों ने िामररक अंतदृमक्ष्ट के ननतान्त अभाि का पररचय ददया। िे अफगाननस्तान,पंजाब िे तक
ु ों
को उिाड़ फेंकने के सलए कोई िाझा रणनीनत मोचाम न बना िके।
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राजपत
ू िैन्य ढाँचे पर नजर डाले तो यह िैन्य िंगठन एिं नेतत्ृ ि की दृक्ष्ट िे हीन था। एक तो िामंती प्रथा के कारण राज्य
की आय िीसमत हो गयी थी। तयोंकक भ-ू राजस्ि का विभाजन िामंतों में हो जाता था क्जििे ऊपरी या केन्रीय नेतत्ृ ि को
इिका अल्प भाग ही प्राप्त होता था।
इिका पररणाम यह हुआ कक शािक के हाथ में आधथमक िाधन िीसमत हो गये। िे राज्य की रक्षा के सलए एक शक्ततशाली
िैन्य िंगठन का बोझ उठाने में अिमथम थे।
राजपत
ू शािक जहां िामंतों दिारा जुटाई गयी एक विकेक्न्रत िेना का नेतत्ृ ि करते थे िहीं तक
ु म इततेदारी के माध्यम िे
एक केन्रीय िेना का।
इिीसलए राजपत
ू ों की पराजय के एक कारणों में इततादारी पदधनत का िामंतिादी पदधनत के ऊपर विजय के रुप में भी दे िा
जाना चादहए।
राजपत
ू ों में रणनीनतक दृक्ष्ट की कमी थी। लेककन, इिी के िाथ उनकी रणपदधनत भी तक
ु ों िे बेहतर नहीं थी।
समनहाज के अनि
ु ार, “ििमप्रथम भारत िषम में करिा नामक अस्त्र का प्रयोग मोहम्मद गोरी ने ककया था।" करिा अस्त्र गोरी
का िबिे महत्िपण
ू म उपकरण था।
तक
ु ों को विश्ि में ििामधधक ननपण
ु घड़
ु ििार होने की ख्यानत प्राप्त थी। राजपत
ू जहाँ अपनी िारी िेना एक िाथ झोंक दे ते
थे िहीं तक
ु म अपनी एक छोटी टुकड़ी कौतल
ु ी िेना के रुप में बचाकर रिते थे क्जििे िे अपनी हार को जीत में बदल दे ते थे।
राजपत
ू ों दिारा धममयद
ु ध करना, भागती िेना पर हमला न करना के िाथ-िाथ भारतीय एिं तक
ु म शािकों में हार के कारणों
में दृक्ष्टकोण का भी बनु नयादी फकम था।
भारतीय शािक यद
ु ध में हार को व्यक्ततगत अपमान मानकर कभी-कभी आत्महत्या कर लेते थे जैिे कक महमद
ू गजनिी
एिं ऐबक िे हारने के पश्चात ् क्रमशः जयपाल एिं हररराज दिारा आत्महत्या ककया जाना।
िहीं तक
ु म शािक हार के कारणों का गहन परीक्षण कर एिं स्ियं में महिम िध
ु ार कर पन
ु ः रणक्षेत्र में उपक्स्थत होते थे (जैिे
1192 में मोहम्मद गोरी कफर उिी तराइन में लड़ा जहाँ एक िषम पि
ू म िह हार चक
ु ा था)।
कुल समलाकर राजपत
ू ों के पराजय के कारणों में िैननक िंगठन नेतत्ृ ि की कमजोरी, दोषपण
ू म िामाक्जक िंगठन के िाथ-
िाथ राजपत
ू ों में व्याप्त िह पथ
ृ तकरण का भाि भी था क्जिके कारण िे एक होकर िमह
ू बदध न हो िके और एक-एक करके
पक्श्चम िे होने िाले आक्रमणों के िामने हारते चले गये।
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अध्याय-6
हदल्ली सल्तनत - एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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1. गल
ु ाम िंश / मामलक
ु िंश / इल्बरी िंश (1206 – 1290)
2. खखलिी िंश (1290- 1320)
3. तग
ु लक िंश (1320 – 1414)
4. सैयद िंश( 1414 – 1451)
5. लोदी िंश (1451 – 1526)
इनमें िे चार िंश मल
ू तः तक
ु म थे जबकक अंनतम िंश लोदी िंश अफगान था।
मह
ु म्मद गौरी का गल
ु ाम कुतब
ु द
ु दीन ऐबक, गल
ु ाम िंश का प्रथम िल्
ु तान था।
इि िल्तनत ने न केिल बहुत िे दक्षक्षण एसशया के मंददरों का विनाश ककया िाथ ही अपवित्र भी ककया, पर इिने भारतीय-
इस्लासमक िास्तक
ु ला के उदय में महत्िपण
ू म भसू मका ननभाई।
ददल्ली िल्तनत अपने आप में महत्त्िपण
ू म काल है क्जिमें मदहला ने भी शािन की बागडोर िंभाली थी।
अंत में मग
ु ल िल्तनत दिारा इि इि िाम्राज्य का अंत हुआ।
1.गल
ु ाम िंश( 1206 – 1290 ई).
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गल
ु ाम िंश– प्रारं सभक इनतहािकारों ने इिे गल
ु ाम िंश कहा,तयोंकक इि िंश के कुछ शािक गल
ु ाम रह चुके थे।लेककन यह नाम
ििामधधक उपयत
ु त नहीं है ।
मामलक
ु िंश– यह नाम भी उपयत
ु त नहीं है , तयोंकक मामलक
ु का अथम – ऐिे गल
ु ाम) दाि(िे है क्जनके माता-वपता स्ितंत्र हों या ऐिे
दाि क्जन्हें िैननक कायों में लगाया जाता था।
इल्बरी िंश– यह नाम ििामधधक उपयत
ु त नाम है , तयोंकक कुतब
ु द
ु दीन ऐबक को छोङकर इि िंश के िभी शािक इल्बरी जानत के
तक
ु म थे।
गल
ु ाम िंश के शासक-
1. कुतब
ु द
ु दीन ऐबक) 1206 – 1210 ई .तक(
2. आरामशाह – कुतब
ु द
ु दीन ऐबक का उिराधधकारी उिका अनभ
ु िहीन ि अयोग्य पत्र
ु आरामशाह था, ककन्तु इल्तत
ु समश ने
इिे अपदस्थ करके सिंहािन पर अधधकार कर सलया।
3. इल्तत
ु समश ) 1210 – 1236 ई .तक(
4. रुतनद
ु दीन कफरोजशाह) 1236 ई ( .– इल्तत
ु समश के बाद उिका पत्र
ु रुतनद
ु दीन कफरोजशाह गददी पर बैठा । उिकी माता
शाह तक
ु ामन दािी ती। मक्ु स्लम िरदारों ने शाह तक
ु ामन और रुतनद
ु दीन कफरोज की हत्या कर दी।
5. रक्जया ( 1236 – 1240 ई .तक(
6. मइ
ु जुददीन बहरामशाह ) 1240 – 1242 ई .तक(
7. अलाउददीन मिद
ू शाह ) 1242-1246 ई .तक(
8. नासिरुददीन महमद
ू ) 1246 – 1266 ई .तक(
9. बलबन ) 1266 – 1286 ई .तक(
10. कैकुबाद और कैमि
ू म / तयम
ू िम ) 1286 – 1290 ई .तक(
नोट -अब हम एक एक कर के गल
ु ाम िंश के शासको संक्षक्षप्त सार दें गे ( िो अक्सर प्रश्न IAS/PCS में पछ
ू ें िाते है )– हमने रािनीनत
पक्ष से अर्धक सामाजिक , आर्र्मक और संस्कृनत पक्ष के सभी पहलू को इस नोट्स में किर ककया है
कुतब
ु द
ु दीन ऐबक( 1206 – 1210 ई .तक)
भारत में तक
ु ी राज्य /ददल्ली िल्तनत /मक्ु स्लम राज्य की स्थापना करने िाला शािक ऐबक ही था।
मह
ु म्मद गौरी ने ऐबक को अमीर ए आिूर)अस्तबलों का प्रधान( के पद पर ननयत
ु त ककया।
1192 ई .के तराइन के यद
ु ध में ऐबक ने गौरी की िहायता की।
तराइन के दवितीय यद
ु ध के बाद गौरी ने ऐबक को अपने मख्
ु य भारतीय प्रदे शों का िब
ू द
े ार ननयत
ु त ककया।
मह
ु म्मद गौरी की मत्ृ यु के बाद लाहौर की जनता ने गौरी के प्रनतननधध के रूप में ऐबक को लाहौर पर शािन करने के सलए
आमंबत्रत ककया क्जिे ऐबक ने स्िीकार ककया।
जून 1206 में राज्यासभषेक करिाया तथा िल्
ु तान की बजाय मसलक / सिपहिालार की उपाधध धारण की।
ु बा पढिाया। (िुतबा एक रचना होती थी जो मौलवियों
इिने अपने नाम के सितके भी नहीं चलाये एिं न अपने नाम का खत
िे िुल्तान शुक्रिार की रात को नजदीक की मक्स्जद में अपनी प्रशंिा में पढिाते थे।) खुतबा शािक की िंप्रभत
ू ा का िच
ू क
होता था।
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ऐबक के बाद
ऐबक का उिराधधकारी उिका अनभ
ु िहीन ि अयोग्य पत्र
ु आरामशाह था ककन्तु इल्तत
ु समश ने इिे अपदस्थ करके सिंहािन
पर अधधकार कर सलया।
आरामशाह का वििाद
कुछ इनतहािकार कहते हैं कक आरामशाह ऐबक का पत्र
ु था। िहीं समनहाज के अनि
ु ार ऐबक की केिल तीन पबु त्रयाँ थीं पत्र
ु
नहीं। अबल
ु फजल के अनि
ु ार आरामशाह ऐबक का भाई था। आरामशाह का शािन केिल 8 माह का रहा।
इल्तत
ु समश ने आरामशाह को हरा ददया।
आरामशाह को लाहौर के िरदारों का िमथमन प्राप्त था िहीं इल्तत
ु समश को ददल्ली के िरदारों का।
इल्तत
ु समश ( 1210 – 1236 ई).
मसलक शम्िद
ु दीन इल्तत
ु समश ऐबक का दामाद था, न कक उिका िंशज। इल्तत
ु समश का शाक्ब्दक अथम राज्य का रक्षक
)स्िामी (होता है । उिका िमानाथमक शब्द आलमगीर या जहाँगीर) विश्ि विजेता (भी होता है ।
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रािपत
ू ों से संघषम-
इल्तत
ु समश के िमय ददल्ली ि आिपाि के क्षेत्र में राजपत
ू शािकों ने िंघषम शरु
ु कर ददया था, उिने अनेक असभयानों में
राजपत
ू ों की शक्तत को तोङा।
इल्तुतसमश दिारा ककये गये असभयान ननम्नसलखखत हैं-
िैस–े
1226 में रणथंभौर पर आक्रमण
1227 में नागौर पर आक्रमण
1232 में मालिा पर आक्रमण – इि असभयान के दौरान इल्तत
ु समश उज्जैन िे विक्रमाददत्य की मनू तम उठाकर लाया
था।
1235 में ग्िासलयर का असभयान – इि असभयान के दौरान इल्तत
ु समश ने अपने पत्र
ु ों की बजाय पत्र
ु ी रक्जया को
उिराधधकारी घोवषत ककया।
1236 में बासमयान) अफगाननस्तान( पर आक्रमण। यह इल्तत
ु समश का अंनतम असभयान था।
बंगाल की जस्र्नत
इल्तत
ु समश के िमय बंगाल के अधधकारी इिाजिाँ ने ग्यािद
ु दीन के नाम िे स्ितंत्रता धारण कर ली। ददल्ली ि बंगाल के
बीच दरू ी अधधक थी। क्जि कारण इल्तत
ु समश को बंगाल िंभालने में कई ददतकतों का िामना करना पङा। तयोंकक जैिे ही
इल्तत
ु समश ददल्ली जाता वपछे िे विरोह उठ िङे होते।
इल्तत
ु समश ने अपने पत्र
ु निीरुददीन मह
ु म्मद के नेतत्ृ ि में 1229 ई .में बंगाल को कफर िे जीता।
निीरुददीन की मत्ृ यु होने के कारण बल्का खखलिी नामक अधधकारी ने बंगाल में कफर िे आक्रमण ककया। अंततः 1230 ई .
में बंगाल को इल्तत
ु समश जीत पाया।
मंगोलो की समस्या
1221 ई .में मंगोल शािक तमेधचन) चंगज
े िाँ (ने ख्िाररज्म ) पक्श्चसम एसशया ( पर आक्रमण कर उिे नष्ट ककया और
ख्िाररज्म के राजकुमार जलालद
ु दीन मांगबनी का पीछा करता हुआ 1224 ई .में सिंधु नदी तक आ पहुँचा । जलालद
ु दीन
दिारा इल्तत
ु समश िे िंरक्षण मांगने पर इल्तत
ु समश ने मना ककया इिी के िाथ चंगेज िाँ भी जलालद
ु दीन का वपछा करता
हुआ भारत िे चला गया तथा मंगोल आक्रमण का ितरा टल गया।
हदल्ली को रािधानी बनाया– इल्तत
ु समश प्रथम मक्ु स्लम शािक था क्जिने ददल्ली को राजधानी बनाया।
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इल्तत
ु समश के शरु
इिके िमय अनेक इततेदारों ने विरोध कर ददल्ली को घेर सलया–
कबीरुददीन एयाि ने मल्
ु तान पर अधधकार कर सलया।
मसलक मह
ु म्मद सलारी ने बदायूं पर अधधकार कर सलया।
मसलक सैफूददीन कूची ने हाँिी पर अधधकार कर सलया।
इनके विरोहों को दबाने के सलये रुकनद
ु दीन ददल्ली िे बाहर गया। उिकी अनप
ु क्स्थनत का फायदा उठाते हुये रक्जया ने
ददल्ली की जनता के िमथमन िे शाहतक
ु ामन) रुकनद
ु दीन की माँ ( ि रुकनद
ु दीन की हत्या करिाकर स्ियं शासिका बनी।
इल्तत
ु समश के िमय भी यल्दौज ि कुबाचा के िाथ टकराहट बनी रही। 1215 ई .में इल्तत
ु समश ने तराइन के तीिरे यद
ु ध
में यल्दौज कुबाचा को पराक्जत कर सिंधु नदी में डुबोकर मार डाला।
ननमामण कायम-
स्थापत्य कला के अन्तगमत इल्तत
ु समश ने कुतब
ु द
ु दीन ऐबक के ननमामण कायम) कुतब
ु मीनार (को परू ा करिाया। भारत में
िम्भितः पहला मकबरा ननसममत करिाने का श्रेय भी इल्तत
ु समश को ददया जाता है ।
इल्तत
ु समश ने बदायूँ की जामा मक्स्जद एिं नागौर में अतारककन के दरिाजा का ननमामण करिाया। उिने ददल्ली में एक
विदयालय की स्थापना की।
मत्ृ य-ु
बयाना पर आक्रमण करने के सलए जाते िमय मागम में इल्तत
ु समश बीमार हो गया।इिके बाद इल्तत
ु समश की बीमारी बढती
गई। अन्ततः अप्रैल 1236 में उिकी मत्ृ यु हो गई।
इल्तत
ु समश प्रथम िल्
ु तान था, क्जिने दोआब के आधथमक महत्त्ि को िमझा था और उिमें िध
ु ार ककया था।
इल्तत
ु समश का मकबरा ददल्ली में क्स्थत है , जो एक कक्षीय मकबरा है ।
इल्तत
ु समश के उत्तरार्धकारी-
रक्जया जो िल्
ु तान की पत्र
ु ी थी को इल्तत
ु समश ने अपने क्जन्दा रहते हुए ही उिराधधकारी घोवषत कर ददया था। तयोंकक
िल्
ु तान का बङा पत्र
ु नािीरुददीन महमद
ू प्रनतननधध के रूप में बंगाल में शािन कर रहा था।
यहाँ पर रहते हुये 1229 ई .में नािीरुददीन की मत्ृ यु हो गई तथा अन्य पत्र
ु अयोग्य थे क्जिके कारण रक्जया को उिराधधकारी
घोवषत ककया गया। रक्जया भारत की पहली मक्ु स्लम शासिका थी।
इल्तत
ु समश के प्रशासकीय सध
ु ार
इल्तत
ु समश प्रथम तक
ु म शािक था क्जिने ददल्ली के ननकट दोआब के आधथमक महत्ि को िमझा और िहां पर दो हजार
इतताओं का गठन कर 2000 तक
ु म िैननकों की ननयक्ु तत की।
िल्तनतकालीन प्रशािकीय िंरचनाओं की नींि डालने का श्रेय इल्तत
ु समश को जाता है । फारिी राजतंत्रीय परम्पराओं को
ग्रहण कर उनको भारतीय िातािरण में िमक्न्ित करने िाला िह पहला िल्
ु तान था। इल्तत
ु समश दिारा रक्जया को अपना
उिराधधकारी चुनना यह ईरानी परम्परा ही है जहाँ वपता के बाद पत्र
ु ी को सिंहािनारोहरण के उदाहरण प्राप्त होते हैं।
इल्तत
ु समश ने अपन िभी पत्र
ु ों एिं पत्र
ु ी को राजपद हे तु प्रसशक्षक्षत ककया तयोंकक उिका मानना था कक “राजा का पद, कतमव्य
एिं उिरदानयत्ि का ऐिा पद है क्जिे केिल योग्य व्यक्तत को ही िौंपना चादहए।"
इल्तत
ु समश ददल्ली िल्तनत का पहला िल्
ु तान था क्जिने िल्
ु तान की केन्रीय िेना हश्म-ए-कल्ब का ननमामण ककया। उिके
शािन काल में अहमद अयाज राित-ए-अजम था क्जिने शम्िी दािों के अंतगमत 30 िषों तक इि पद पर कायम कक था।
मर
ु ा प्रणाली में उिका योगदान ददल्ली के िमस्त िल्
ु तानों में ििामधधक है । िह पहला िल्
ु तान था क्जिके सितके पक्श्चमी
दे शों के सितकों के िमान थे। यही िह पहला िल्तान है क्जिने शद
ु ध अरबी के सितके चलाया क्जिमें चाँदी का टं का (175
ग्रेन) एिं तांबे का जीतल प्रमि
ु था। भारत िषम में उिने एक नयी परम्परा यह भी शरू
ु ककया कक टं का पर उि शहर का नाम
भी िुदिाता था क्जि शहर में िह ढाले जाते थे। महत्िपण
ू म है कक िल्
ु तान महमद
ू गजनबी के सितकों पर टकिाल का नाम
महमद
ू परु सलिा है । लेककन, उिने भारत िषम के बाहर इन सितकों को ढलिाया था।
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इल्तत
ु समश की न्यायवप्रयता के विषय में इब्नबतत
ू ा बताता है कक उिने अपने महल के िम्मि
ु िंगमरमर के दो शेर बनिाया
क्जनकी गदम नों में घक्ण्टयाँ बंधी थी। कोई भी व्यक्तत घंटी बजाकर िल्
ु तान िे न्याय की मांग कर िकता था। आगे चलकर
मग
ु ल शािक जहाँगीर ने भी आगरा ककले के शाहबज
ु म में 'जंजीरी न्याय व्यिस्था' शरू
ु की थी। इल्तत
ु समश ने न्याय करने के
सलए िभी शहरों में काजी एिं अमीरदाह की ननयक्ु तत की थी। __
शैक्षक्षक आिश्यकताओं की पनू तम हे तु इल्तत
ु समश ने ददल्ली एिं बदायूँ में म्यक्ू जया या मदरिा मइ
ु ज्जी कालेज िोला। इिमें
ददल्ली का म्यक्ू जया कालेज ििमप्रथम ननसममत हुआ।
इल्तत
ु समश ने अपने पत्र
ु नासिरुददीन महमद
ू का मकबरा ददल्ली के मकबनपरु में बनिाया क्जिे िल्
ु तानगढ़ी कहा जाता
है । "िल्
ु तानगढ़ी भारत में तक
ु ों दिारा ननसममत पहला मकबरा था।" अपने मकबरे का ननमामण उिने ददल्ली में स्ियं करिाया
था। इल्तत
ु समश को मकबरों का वपतामह कहा जाता है ।
इल्तत
ु समश ने भारतीय िामन्तशाही के विनाश के सलए अतता व्यिस्था शरू
ु की जो िाम्राज्य के िद
ु रू क्स्थत प्रदे शों को
जोड़ने में भी िहायक रही। महत्िपण
ू म है कक भारत में ििमप्रथम इतता दे ने की प्रथा का आरम्भ मइजुददीन मोहम्मद गोरी ने
ककया क्जिने ऐबक को कोहराम का इततादार बनाया था। इल्तत
ु समश की विशेषता यह है कक इिने इिे अपने प्रशािन का
आधार बनाया उिके िमय िे इतता प्रदान करने का िामान्य प्रचलन हो गया।
अन्य उपलजब्धयां
इल्तत
ु समश के महल दौलतिाना में दो महल थे- कैिरे िफेद (िफेद महल) एिं कैिरे कफरोजा (हरा महल)
इल्तत
ु समश ने समनहाज एिं मासलक ताजद
ु दीन को िंरक्षण ददया था। इल्तत
ु समश का राजदरबार विसभन्न योग्य व्यक्ततयों
के कारण महमद
ू गजनिी की भाँनत गौरिपण
ू म बन गया था। िंभितः इिी िमय अमीर िुिरो का वपता िेफुददीन मध्य
एसशया िे भागकर ददल्ली आया था। इल्तत
ु समश ने 'नासिरी' नामक कवि को िंरक्षण ददया था।
इल्तत
ु समश के शािन काल में राजननयक सिदधांत तथा राजकीय िंघटन की कला पर तैयार ककया गया मि
ु लमान गौरि
ग्रंथ फिेमद
ु क्ब्बर की आदाबल
ु हबम िा शज
ु ात या आदाब-उल-मल्
ु क है । नरु
ू ददीन मह
ु म्मद और 1231 ई. में इल्तत
ु समश के
दरबार में जिासम-उल-दहकायत की रचना की। ििमप्रथम इिी पस्
ु तक में 'चम्
ु बकीय कंपा का उल्लेि समलता है ।
इल्तत
ु समश के िमय तक ददल्ली इस्लाम के प्रमि
ु केन्र कुव्ित-उल-इस्लाम के रुप में प्रसिदध हुई। इल्तत
ु समश के ही काल
में 1221 ई. में बक्ख्तयार काकी ददल्ली आए। काकी ने उिे शम्िी तालाब के ननमामण में िहायता दी थी। इल्तत
ु समश ने ही
शेि-उल-इस्लाम के पद का शज
ृ न ककया क्जि पर पहली ननयक्ु तत िग
ु रा की हुई।
इल्तत
ु समश के शािन के दौरान 1235 ई. में एक नतब्बती सभक्षु धममस्िासमन ् ने नालन्दा की यात्रा की थी।
ऐबक को हदल्ली सल्तनत का िास्तविक संस्र्ापक नहीं माना िाता है लेककन इल्तत
ु समश को माना िाता है क्यों?
ऐबक ने लाहौर पर शािन ककया ददल्ली िे नहीं। इल्तत
ु समश ने 1211 ई. में ददल्ली को राजधानी बनाया।
ऐबक ने िल्
ु तान की उपाधध भी धारण नहीं की। यही कारण है कक कफरोज तग
ु लक ने उिका नाम िुतबे में िक्म्मसलत नहीं
ककया।
इल्तत
ु समश, ऐबक िे पहले ही दािता िे मक्ु तत पा चुका था। उिने अपने नाम का िुतबा पढ़िाया जबकक ऐबक ने यह िब
नहीं ककया था।
इल्तत
ु समश का चयन ददल्ली के तक
ु म अमीरों एिं िैन्याधधकाररयों ने ककया था जबकक ऐबक का नहीं। यही इल्तत
ु समश दिारा
ििा ग्रहण करने का आधार था।
इल्तत
ु समश ने ददल्ली िल्तनत को न केिल अक्षुण्ण रिा िरन ् उिे एक िि
ु ग
ं दठत एिं िंघननत राज्य बना ददया। उिने
ददल्ली को राजनीनतक, प्रशािननक एिं िांस्कृनतक गनतविधधयों का केन्र बना ददया। यह उिके कायों का ही फल था कक
ददल्ली को हजरत-ए-ददल्ली के रूप में जाना जाने लगा।
ददल्ली िल्तनत में पहली बार िंशानग
ु त राजििा स्थावपत करने का प्रयाि इल्ततसमश ने ही ककया।
फरिरी 1229 ई. को उिकी ििा को बगदाद के िलीफा िे िैधता समली और ददल्ली िल्तनत की स्ितंत्र क्स्थनत को मान्यता
समली। िलीफा ने इिे 'िल्
ु तान-आजम' (महान िल्
ु तान) कहा।
रुकनद
ु दीन कफरोिशाह (1236)
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इल्तत
ु समश एिं िुन्दाबन्दे जहांशाह तक
ु ाम या शाहतक
ु ामन की िन्तान रुकनद
ु दीन कफरोजशाह उिका दि
ू रा पत्र
ु था।
यदयवप इल्तत
ु समश ने अपना उिराधधकारी रक्जया को बनाया था परन्तु प्रान्तीय िब
ू ेदारों एिं शाहतक
ु ामन ने षड्यन्त्र कर
रुकनद
ु दीन को शािक बनिा ददया। उिे शािक बनाने में मख्
ु य भसू मका प्रांतीय िब
ू ेदारों की थी।
शाहतक
ु ामन एक तक
ु म दािी थी
िह ददल्ली िल्तनत की पहली मदहला थी क्जिने शािन को ननयंबत्रत करने का प्रयाि ककया।
सल्
ु ताना रजिया ( 1236-1240 ई.)
िल्
ु ताना रक्जया (उिका परु ा नाम 'जलॉलात उद-ददन-रक्जया' था) का जन्म - 1205 ई. में बदायूँ में हुआ था, उिने उमदत-
उल-ननस्िाँ की उपाधध ग्रहण करी
रक्जया ने पदाम प्रथा को त्यागकर परु
ु षों के िमान काबा) चोगा( पहनकर दरबार में कारिाई में दहस्िा सलया।
रक्जया के काल िे ही राजतंत्र और तक
ु म िरदारों के बीच िंघषम आरं भ हुआ।
ददल्ली की जनता ने उिे 'रक्जया िल्
ु तान' मानकर ददल्ली की गददी पर बैठा ददया। हालांकक िजीर जुनद
ै ी उििे प्रिन्न नहीं
था इिसलए इि िमय उिने ही रक्जया के सिंहािनारोहण का विरोध ककया। रक्जया ने उिके बाद िजीर का पद ख्िाजा
मह
ु ाजबद
ु दीन को ददया।
िह ददल्ली िल्तनत की पहली एिं आखिरी मक्ु स्लम मदहला शासिका थी। 'िल्
ु तान रक्जयत अल दनु नया िाल दीन बबन्त
अल िल्
ु तान' क रूप में सितके ढाले गये।
शािक बनने पर रक्जया ने उदमत-उल-ननस्िां की उपाधध धारण की। रक्जया को भी मसलक मह
ु म्मद िलारी ) बदाय(ूँ , कबीर
िाँ एयाज) मल्
ु तान(, मसलक जानन ) लाहौर( , मसलक िैफूदीन कूची) हाँिी (जैिे इततेदारों का िामना करना पङा। लेककन
रक्जया ने अपनी चालाकी ि कूटनीनत िे इनमें आपिी फूट पङिा दी। तथा विरोह िमाप्त कर ददया।
रक्जया के काल में तक
ु म नरु
ु ददीन (नरू तक
ु म ) के नेतत्ृ ि में ककरासमत (करामाधथयों) एिं अहमददयाँ िम्प्रदाय िालों ने मक्स्जद
में विरोह ककया क्जिे दबा ददया गया।
1238 ई. में गजनी और बासमयान के ख्िाररज्म-िब
ू ेदार मसलक हिन कालग
ुं ने मंगोलों के विरुदध रक्जया िे िहायता मांगी
ककन्तु रक्जया ने उिे 'बरन' की आय दे ने का िादा तो ककया लेककन िैननक िहायता दे ने िे इन्कार कर मंगोल आक्रमण िे
अपने राज्य को बचा सलया।
रक्जया ने प्रथम असभयान 'रणथम्भौर' पर ककया तदप
ु रान्त ग्िासलयर पर हमला ककया गया। हालांकक दोनों असभयान
अिफल रहे ।
रजिया ने तक
ु ामन ए चहलगामी की समस्या का सामना करने के सलए अपने िफादारों को उच्च पद दे ना शरु
ु कर हदया। िास्ति में
रक्जया तक
ु म अमीरों के िमानांतर गैर-तक
ु म अमीरों एक गट
ु बनाना चाहती थी।
िैस–े
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मसलक मह
ु ाजुबद
ु दीन ) िजीर(
िैफूदीन ऐबक िहतू ) िेनाधधकारी(
कुतब
ु द
ु दीन हिन गौरी ) नायब -िेनापनत(
इक्ख्तयारुददीन एतगीन ) अमीर ए हाक्जब(
मसलक अल्तनु नया तबरदहंद ) भदटण्डा ( का इततेदार था।
कबीर िाँ एयाज लाहौर तथा मल्
ु तान का इततेदार था।
रक्जया ने जब एक गैर तक
ु ी अफ्रीकी मक्ु स्लम जलालद
ु दीन याकूत को अमीर ए आखरू ( शाही अस्तबल का प्रधान ( के पद पर स्थावपत
ककया तो चहलगामी रक्जया के और विरोही बन गये तथा उन्होंने रक्जया के विरुदध षङयंत्र शरु
ु कर ददया।
1.नायब-ए-ममलीकात का पद-
2. 1241 ई .में भारत पर पहली बार तैर बहादरु के नेतत्ृ ि में मंगोलों का पंजाब पर आक्रमण–
1241 ई.में मंगोल आक्रमणकाररयों दिारा पंजाब पर आक्रमण के िमय रक्षा के सलए भेजी गयी िेना को बहरामशाह के
विरुदध भड़का ददया गया।
िेना िापि ददल्ली की ओर मड़
ु गई और मई, 1241 ई .में तक
ु म िरदारों ने ददल्ली पर कब्जा कर बहरामशाह का िध कर
ददया।
तक
ु म िरदारों ने बहरामशाह के पौत्र अलाउददीन मसद
ू शाह को अगला िल्
ु तान बनाया।
अलाउददीन मसद
ू शाह )1242 – 1246 ई.(
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मिद
ू का शािन तल
ु नात्मक दृक्ष्ट िे शांनतपण
ू म रहा। इि िमय िल्
ु तान तथा िरदारों के मध्य िंघषम नहीं हुए।
िास्ति में यह काल बलबन की ‘शांनत ननमामण’ का काल था
नाससरुददीन महमद
ू )1246-1265 ई.(
यह एक तक
ु ी शािक था, जो हदल्ली सल्तनत का िल्
ु तान बना। यह भी गल
ु ाम िंश िे था।यह मधरु एिं धासममक स्िभाि का
व्यक्तत था
महमद
ू के शािनकाल में िमस्त शक्तत बलबन के हाथों में थी।प्रारं भ में बलबन चहलगामी का िदस्य था लेककन धीरे -2
बलबन ने अपनी शक्तत का विस्तार ककया तथा 1249 ई .में बलबन ने अपनी पत्र
ु ी का वििाह नासिरुददीन महमद
ू िे कर
ददया। िल्
ु तान ने बलबन को िेना पर पण
ू म ननयंत्रण के िाथ नायब-ए- ममसलकात का पद ददया
नासिरुददीन महमद
ू के शािनकाल में भारतीय मि
ु लमानों का एक अलग दल बन गया था जो बलबन का विरोधी था।
इनका नेता इमामद
ु दीन ररहान था और बाद में हत्या कर दी
बलबन की शक्तत में िद
ृ धध को दे िकर चहलगामी के एक िदस्य ककचलू खााँ /ककश्लू खााँ ने बलबन के विरुदध षङयंत्र शरु
ु
कर ददया। तथा िल्
ु तान को भड़काकर कर बलबन को नायब के पद िे हटा ददया तथा ददल्ली िे दरू भेज ददया।
इन िभी कायों के बाद बलबन को कफर िे नायब-ए-ममसलकात बनाया गया। तथा िारी शक्ततयाँ कफर बलबन ने अपने
हाथों में ले ली।
ू के काल में बलबन ने ग्िासलयर, रणर्ंभौर, मालिा तर्ा चंदेरी के राजपत
नासिरुददीन महमद ू ों का दमन ककया।
नाससरुददीन महमद
ू के समकालीन लेखक-
समनहास उस ससराि–
जियाउददीन बरनी-
ग्यासद
ु दीन बलबन ( 1266-1287 )
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बचपन में बलबन को मंगोल उठा कर ले गये थे और गजनी ले जाकर उन्होंने बिरा के ख्िाजा जमालद
ु दीन के हाथों बेच
ददया, ख्िाजा जमालद
ु दीन उिे ददल्ली ले आये
इल्तत
ु समश ने बलबन को ग्िासलयर विजय के बाद िरीदा और उिकी योग्यता िे प्रिासभत हो कर उिे िािदार का पद िौंपा
ददया
बलबन ने गददी पर बैठते ही ििमप्रथम िल्
ु तान के पद की गररमा कायम की और ददल्ली िल्तनत की िरु क्षा के प्रबंध ककया
जो इल्तत
ु समश ने चालीिा दल बनाया था उिे बलबन ने नष्ट कर ददया तयकुं क उन अमीरों का ििा में दिल बहुत अधधक
था और इल्तक्ु त्मश ननरं कुश शािन चाहता था
बलबन ददल्ली िल्तनत का एक पहला ऐिा व्यक्तत था ,जो िल्
ु तान न होते हुए भी िल्
ु तान के छत्र का प्रयोग करता था और
यह पहला शािक था क्जिने िल्
ु तान के पद और अधधकारों के बारे में विस्तत
ृ रुप िे विचार प्रस्तत
ु ककये
िह कुरान के ननयमों को शािन व्यिथा का आधार मानता था उिके अनि
ु ार िल्
ु तान पथ्
ृ िी पर ईश्िर का प्रनतननधध होता है
बलबन ने िल्
ु तान की प्रनतष्ठा को स्थावपत करने के सलए “रतत और लौह नीनत” अपनाई
बलबन ने कहा कक िल्
ु तान का पद ईश्िर के िमान होता है तथा िल्
ु तान का ननरं कुश होना जरुरी है उिके अनि
ु ार राजा को
शक्तत ईश्िर िे प्राप्त होती है इिसलए उिके कायो की िािमजननक जाँच नही की जा िकती
बलबन ने ईरानी परम्पराओं के अनि
ु ार कई परं पराएं आरं भ करिाई उिने ‘सिजदा’ (भसू म पर लेट कर असभिादन करना)
और ‘पैबोि’ (िल्
ु तान के चरणों को चम
ू ना) जैिी व्यिस्था भी लागू की क्जनका उददे श्य िाफ तौर पर िल्
ु तान की प्रनतष्ठा
में िद
ृ धध करना था
बलबन ने फारिी रहन-िहन की परम्पराओं को भी अपनाया उिने अपने पौत्रो के नाम भी फारिी िम्राटों की तरह कैकुबाद,
कैिुिरों आदद रिे
बलबन के दरबार में प्रत्येक िषम ईरानी त्योहार ‘नौरोज’ काफी धूमधाम िे मनाया जाता था इिकी शरु
ु आत बलबन के िमय
िे ही हुई
बलबन ने निरोज उत्िि शरू
ु करिाया, जो फारिी (ईरानी) रीनत-ररिाज पर आधाररत था।
बलबन के दरबार में फारिी के प्रसिदध कवि अमीर खुसरो एिं अमीर हिन रहते थे अमीर िि
ु रो ने अपना िादहक्त्यक जीिन
शहजादा मह
ु म्मद के िंरक्षण में शरु
ु ककया था।
बलबन की समस्यायें-
जब बलबन शािक बना तो उिे कई िमस्याओं का िामना करना पङा जो इि प्रकार हैं-
1. तक
ु ामन – ए – चहलगानी की महत्िकांक्षा।
2. िल्
ु तान के पद की प्रनतष्ठा स्थावपत करना।
3. मेिानतयों ि राजपत
ू ों का विरोह।
4. मंगोलों का आक्रमण।
उपयत
ुम त दोनों) 1,2 ) िमस्याओं का िमाधान चहलगानी की शक्तत को तोङना था। इिके सलये उिने अनेक कदम उठाये।
बलबन का राित्ि
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चालीसा का दमन
बलबन ने चालीिा का दमन कर ददया तयोंकक यही िंस्था राजनीनतक अक्स्थरता के सलए उिरदायी थी।
चालीिा दिारा इल्तत
ु समश के बाद के 30 िषों में उिके िंश के 5 शािक बनाये गये और मारे गये। यह िाक्जश का केन्र था
और इिी के कारण िल्
ु तान का पद गौरिहीन था।
बलबन स्ियं चालीिा का िदस्य रह चुका था और इिकी हरकतों िे िाककफ था। दमन इिसलए भी जरुरी था कक कहीं इिमें
िे कोई उिकी ििा को चुनौती न दे दे । इनका दमन करने हेतु ििमप्रथम उिने ननम्न कोदट के तक
ु ों को महत्िपण
ू म पद ददया
और उनको चालीिा के िमकक्ष बना ददया। हालांकक इि िमय तक चालीिा के अधधकांश अमीर मत
ृ हो चुके थे और जो
जीवित थे उनको बलबन ने मरिा ददया।
बलबन के प्रशासननक सध
ु ार
दीिान-ए-अिम-बलबन ने ही िबिे पहली बार िैन्य विभाग का गठन ककया । दािान-ए-अजम कहा गया। दीिान-ए-अजम का
पहला प्रमि
ु अमीर िुिरो का नाना इमादल
ु मल्
ु क राित था जो कक पहले राित-ए-अजम था। बलबन िेना को गनतशील बनाए
रिने के सलए बार-बार िैननक अभ्याि पर बल दे ता था।
सशक-बलबन ने ही ििमप्रथम 1279 ई. में क्जलों के रुप में सशक का विकाि ककया। इिका प्रमि सशकदार कहलाता था
बरीद की ननयजु क्त-बलबल की िफलता का एक मख्
ु य आधार उिका गप्ु तचर विभाग था। बलबन ने पर (िब
ू ा) में तथा
जनिाधरण के बीच बरीद (मख्
ु य िंिाददाता) की ननयक्ु तत की।
साहहबे दीिान-बलबन ने इतताओं में ख्िाजा या िादहबे दीिान (प्रान्तीय दीिान) की ननयक्तत की।
िागीदारी व्यिस्र्ा-िैननकों को िैन्य िेिा के बदले जो जागीरें दी जाती थी िे उनकी मत्ृ यु के बाद भी उनके िंशजों के पाि
बनी रहती थी। बलबन को इिके कारण राजस्ि का नक
ु िान हो रहा था। अतः उिने 20 या 30 टं का पें शन के बदले इतताओं
(जागीरों) के पन
ु ग्रमहण का आदे श दे ददया। उिके इि नीनत के विरोध में प्रभावित होने िाले िद
ृ ध एिं विधिायें ददल्ली की
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िड़कों पर उतर गये। बलबन ने अपने समत्र फिरुददीन (ददल्ली का कोतिाल) के िलाह पर इि योजना को िापि ले सलया।
महत्िपण
ू म है कक बलबन के िम्पण
ू म काल में उिकी केिल यही एक नीनत अिफल रही।
खलीफा- बलबन राजनीनतक शक्तत का प्रयोग करने के सलए िलीफा की अनम
ु नत लेने की चचाम करता है । लेककन, िरीफा
की मत्ृ यु हो गयी थी। अतः बलबन ने ददिगंत िलीफा (मस्
ु तिीम) की स्मनृ त में सितके जारी ककये और िुत्बे में उिका नाम
पढ़ा जाता था।
प्रशासननक मल्
ू य या मान्यताएाँ- बलबन का मानना था कक राज्य की अथमव्यिस्था ननयोक्जत होनी चादहए। उिके अनि
ु ार,
राज्य को अपनी आय का आधा व्यय करना चादहए और आधी आय आपातकाल में िरु क्षा के सलए रिी जानी चादहए।
मत्ृ य-ु 1287 में बलबन की मत्ृ यु हो गयी।
गल
ु ाम कालीन िास्तक
ु ला
Part-A : (1.) गल
ु ाम कालीन िास्तक
ु ला-
िल्तनत कालीन िास्तक
ु ला में इस्लामी शैली और भारतीय शैली का िद
ुं र िमन्िय ददिाई दे ता है ।
प्राचीन भारतीय इमारतों को िजाने के सलए उनमें िद
ुं र आकृनतयां और तस्िीरें उकेरी जाती थीं, जबकक इस्लामी िास्तक
ु ला
िादी और िजािट के बबना होती थी।
तक
ु ों ने भारत में आने के बाद यहां के कारीगरों की िेिाएं लीं। इन दे शी कारीगरों ने भारतीय-इस्लामी िास्तक
ु ला का विकाि
ककया।
यह काल स्र्ापत्य कला के विकाि की प्रथम अिस्था माना जाता है ।
इि काल की इमारतें दहन्द ू शैली के प्रत्यक्ष प्रभाि में बनी है , क्जनकी दीिारें धचकनी एिं मज़बत
ू हैं। इि काल में बने स्तम्भ,
मंददरों के प्रतीक होते हैं।
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पहली बार दहन्द ू कारीगरों दिारा बरामदों में मेहराबदार दरिाजे बनाये गये। मस्
ु लमानों दिारा ननसममत मक्स्जदों के चारों
तरफ मीनारें उनके उच्च विचारों का प्रतीक हैं।
िल्तनत काल में स्थापत्य कला के अन्तगमत हुए ननमामण कायों में भारतीय एिं ईरानी शैसलयों के समश्रण का िंकेत समलता
है ।
िल्तन काल के ननमामण कायम जैिे -ककला, मकबरा, मक्स्जद, महल एिं मीनारों में नक
ु ीले मेहराबों-गम्
ु बदों तथा िंकरी एिं
ऊँची मीनारों का प्रयोग ककया गया है ।
इि काल में मंददरों को तोड़कर उनके मलबे पर बनी मक्स्जद में एक नये ढं ग िे पज
ू ा घर का ननमामण ककया गया।
िल्तनत काल में िल्
ु तानों, अमीरों एिं िफ
ू ी िन्तों के स्मरण में मकबरों के ननमामण की परम्परा की शरु
ु आत हुई।
इि काल में ही इमारतों की मजबत
ू ी हे तु पत्थर, कंकरीट एिं अच्छे ककस्म के चूने का प्रयोग ककया गया।
िल्तनत काल में इमारतों में पहली बार िैज्ञाननक ढं ग िे मेहराब एिं गम्
ु बद का प्रयोग ककया गया। यह कला भारतीयों ने
अरबों िे िीिी। तक
ु म िल्
ु तानों ने गम्
ु बद और मेहराब के ननमामण में सशला एिं शहतीर दोनों प्रणासलयों का उपयोग ककया।
िल्तनत काल में इमारतों की िाज-िज्जा में जीवित िस्तओ
ु ं का धचत्रण ननवषदध होने के कारण उन्हें िजाने में अनेक
प्रकार के फूल-पवियाँ, ज्यासमतीय एिं कुरान की आयतें िद
ु िायी जाती थीं। कालान्तर में तक
ु म िल्
ु तानों दिारा दहन्द ू िाज-
िज्जा की िस्तओ
ु ं जैिे -कमलबेल के नमन
ू े, स्िाक्स्तक, घंदटयों के नमन
ू ,े कलश आदद का भी प्रयोग ककया जाने लगा।
अलंकरण की िंयत
ु त विधध को िल्तनत काल में ‘ अरबस्क विधध ’कहा गया। इि काल में बनी इमारतें ननम्नसलखित हैं-
गल
ु ाम काल में बनी कुछ प्रमख
ु इमारतों का िणमन इस प्रकार है -
कुव्ित-उल-इस्लाम मजस्िद–
1192 ई .में तराइन के यद
ु ध में पथ्
ृ िीराज चौहान के हारने पर उनके ककले‘ रायवपथौरा ’पर अधधकार कर िहाँ पर‘ कुव्ित-
उल-इस्लाम मक्स्जद ’का ननमामण कुतब
ु द
ु दीन ऐबक ने करिाया।
िस्तत
ु ः कुतब
ु द
ु दीन ऐबक ने ददल्ली विजय के उपलक्ष्य में तथा इस्लाम धमम को प्रनतक्ष्ठत करने के उदे श्य िे 1192 ई .में
‘कुत्ब ’अथिा‘ कुव्ित-उल-इस्लाम मक्स्जद ’का ननमामण कराया।
कुतब
ु मीनार
यह मीनार ददल्ली िे 12 मील की दरू ी पर मेहरौली गाँि में क्स्थत है । प्रारम्भ में इि मक्स्जद का प्रयोग अजान के सलए होता
था, पर कालान्तर में इिे ‘कीनतम स्तम्भ’ के रूप में माना जाने लगा। 1206 ई .में कुतब
ु द
ु दीन ऐबक ने इिका ननमामण कायम
प्रारम्भ करिाया।
ऐबक इि इमारत में चार मंक्जलों का ननमामण कराना चाहता था, परन्तु एक मंक्जल के ननमामण के बाद ही उिकी मत्ृ यु हो
गई। बाद में इिकी शेष मंक्जलों का ननमामण इल्तत
ु समश ने 1231 ई .में करिाया।
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कुतब
ु मीनार का ननमामण‘ ख्िाजा कुतब
ु द
ु दीन बक्ततयार काकी ’की स्मनृ त में कराया गया था।
विग्रहराज बीिलदे ि ने इि स्थान पर एक िरस्िती मक्न्दर बनिाया था। बीिलदे ि दिारा रधचत‘ हररकेसल ’नामक नाटक
तथा िोमदे ि कृत‘ लसलत विग्रहराज ’की कुछ पंक्ततयाँ आज भी इिकी दीिारों पर मौजद
ू है ।
कुतब
ु द
ु दीन ऐबक ने इिे तड़
ु िाकर मक्स्जद बनिायी। यह मक्स्जद कुब्बत मक्स्जद की तल
ु ना में अधधक बड़े आकार की एिं
आकषमक है । इि मक्स्जद के आकार को कालान्तर में इल्तत
ु समश दिारा विस्तार ददया गया। इि मक्स्जद में तीन स्तम्भों
का प्रयोग ककया गया, क्जिके ऊपर 20 फुट ऊँची छत का ननमामण ककया गया है ।
इिमें पाँच मेहराबदार दरिाज़े भी बनाये गये हैं। मख्
ु य दरिाज़ा ििामधधक ऊँचा है । मक्स्जद के प्रत्येक कोने में चक्रकार एिं
बांिरु ी के आकार की मीनारें ननसममत हैं।
नाससरुददीन महमद
ू का मक़बरा या सल्
ु तानगढी
स्थापत्य कला के क्षेत्र में इि मकबरे के ननमामण को एक निीन प्रयोग के रूप में माना जाता है । चँ कू क तक
ु म िल्
ु तानों
दिारा भारत में ननसममत यह पहला मकबरा था, इिसलए इल्तत
ु समश को मकबरा ननमामण शैली का जन्मदाता कहा जा िकता
है ।
इल्तत
ु समश का मकबरा
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सल्
ु तान बलबन का मकबरा-
िल्
ु तान बलबन का मकबरा िास्तक
ु ला की दृक्ष्ट िे एक महत्त्िपण
ू म रचना है । इि मकबरे का कक्ष िगामकार है । ििमप्रथम
िास्तविक मेहराब का रूप इिी मकबरे में ददिाई दे ता है ।
मइ
ु नद
ु दीन र्चश्ती की दरगाह
इि दरगाह या िानकाह का ननमामण इल्तत
ु समश ने करिाया था। कालान्तर में अलाउददीन खखलजी ने इिे विस्तत
ृ
करिाया। बलबन ने रायवपथौरा ककले के िमीप स्ियं का मकबरा एिं लाल महल नामक मकान का ननमामण
करिाया। ददल्ली में बना उिका मकबरा शद
ु ध इस्लामी शैली में ननसममत है ।
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खखलजी काल में पण
ू त
म ननसममत अन्य ननमामण कायों में कुतब
ु द
ु दीन मब
ु ारक खखलजी दिारा भरतपरु में ननसममत‘ ऊिा
मक्स्जद ’एिं खखज़्र खाँ दिारा ननसममत ननज़ामद
ु दीन औसलया की दरगाह विशेष उल्लेिनीय है ।
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(3.)तग
ु लक काल में िास्तक
ु ला-
तग
ु लक िंश के शािकों ने खखलजी कालीन इमारतों की भव्यता एिं िन्
ु दरता के स्थान पर इमारतों की िादगी एिं विशालता
पर अधधक ज़ोर ददया। अपने पि
ू म शािकों के विरुदध गयािद
ु दीन तग
ु लक ने िादगी एिं समतव्यनयता की नीनत अपनाई।
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक की प्रशािननक िमस्याओं एिं धनाभाि के कारण कफरोज शाह तग
ु लक ने परु ानी विचारधारा के
कारण िाज-िज्जा पर अधधक ध्यान नहीं ददया। इि काल की प्रमि
ु इमारतें ननम्नसलखित हैं-
तग
ु लकाबाद–
गयािद
ु दीन तग
ु लक ने ददल्ली के िमीप क्स्थत पहाडड़यों पर तग
ु लकाबाद नाम का एक नया नगर स्थावपत ककया। रोमन
शैली में ननसममत इि नगर में एक दग
ु म का ननमामण भी हुआ है ।
इि दग
ु म को‘ छप्पन कोट ’के नाम िे भी जाना जाता है । दग
ु म की दीिारें समस्र के वपरासमड की तरह अन्दर की ओर झुकी हुई
हैं। इिकी नींि गहरी तथा दीिारें मोटी हैं।
गयासद
ु दीन का मकबरा-
यह मकबरा चतभ
ुम ज
ुम के आकार के आधार पर क्स्थत है , मकबरे की ऊँचाई लगभग 81 फीट है । मकबरे में ऊपर िंगमरमर
का िन्
ु दर गम्
ु बद बना है , गम्
ु बद की छत कई डाटों पर आधाररत है । मकबरे में आमलक और कलश का प्रयोग दहन्द ू मंददरों
की शैली पर ककया गया है ।
िहााँपनाह नगर-
मह
ु म्मद तग
ु लक ने इि नगर की स्थापना रायवपथौरा एिं िीरी के मध्य करिाई थी। इि नगर के अिशेषों में ‘ ितपत्र
ु ’
अथामत‘् िात मेहराबों का पत्र
ु ’आज भी ितममान में है ।
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अिशेष के रूप में बचा‘ विजय मंडल ’िम्भितः महल का एक भाग था।
शेख़ ननजामद
ु दीन औसलया का मकबरा-
इि मकबरे में िंगमरमर का अच्छा प्रयोग ककया गया है ।
कोटला कफरोिशाह-
िल्
ु तान कफरोजशाह तग
ु लक ने पाँचिी ददल्ली बिायी, क्जिमें एक महल की स्थापना की। यह‘ कोटला कफरोजशाह के नाम
िे विख्यात है ।
िल्
ु तान कफरोजशाह तग
ु लक ने ददल्ली में कोटला कफरोजशाह दग
ु म का ननमामण करिाया।
दग
ु म के अन्दर ननसममत जामा मक्स्जद के िामने िम्राट अशोक का टोपरा गाँि िे लाया गया स्तम्भ गड़ा है । मेरठ िे लाया
गया अशोक का दि
ू रा स्तम्भ‘ कुश्क-ए-सशकार ’महल के िामने गड़ा है ।
इिके िाथ ही दग
ु म के अन्दर एक दो मक्ज़ली इमारत के अिशेष प्राप्त हुए हैं, क्जिका उपयोग विदयालय के रूप में ककया
जाता था।
कफरोिशाह का मकबरा-
यह मकबरा एक िगामकार इमारत है । मकबरे की दीिारों को फूल-पवियों एिं बेल-बट
ू ों िे िजाया गया है । मकबरे में
िंगमरमर का भी प्रयोग ककया गया है ।
सल्
ु तान मब
ु ारक शाह का मकबरा-
यह मकबरा मब
ु ारकपरु नामक गाँि में क्स्थत है । मकबरे के चारों ओर बने बरामदों की ऊँचाई अधधक है । गम्
ु बद के सशिर
को डाटदार दीपक िे िि
ु क्ज्जत करने का प्रयाि ककया गया है ।
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मह
ु म्मद शाह का मकबरा-
इि अष्टभज
ु ीय मकबरे में अत्यधधक ऊँचाई होने के दोष को दरू ककया गया है । मकबरे में कमल आदद प्रनतरूपों की िाज-
िज्जा हे तु चीनी टाइलों का उपयोग ककया गया है ।
मोठ की मजस्िद-
इि मक्स्जद का ननमामण ‘सिकन्दर लोदी’ के िज़ीर समयाँ भआ
ु दिारा करिाया गया।
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िैय्यद एिं लोदी काल में कुछ अन्य मकबरों का भी ननमामण ककया गया, जैिे‘ -बड़ा खाँ एिं छोटे खाँ का मकबरा’, ‘शीश
गम्
ु बद’, ‘दादी का गम्
ु बद’, ‘पोली का गम्
ु बद ’एिं‘ ताज खाँ का गम्
ु बद ’आदद।
संगीत को संरक्षण
अलाउददीन खिलजी के दरबार में तत्कालीन महान ् कवि एिं िंगीतज्ञ अमीर खि
ु रो को िंरक्षण प्राप्त था। अमीर खि
ु रो ने
भारतीय एिं इस्लामी िंगीत शैली के िमन्िय िे अनेक यमन उिाक, मआ
ु कफक, धनय, मक्ुं जर, ़िरगना जैिे राग-रागननयों
को जन्म ददया। उिने दक्षक्षण के महान ् गायक‘ गोपाल नायक ’को अपने दरबार में आमंबत्रत ककया था।
इि काल में प्रचसलत‘ ख्याल गायकी ’के अविष्कार का श्रेय जौनपरु के िल्
ु तान हुसैन शाह शकी को ददया जाता है ।
िंगीत के क्षेत्र में उपलक्ब्ध के कारण इिे‘ नायक ’की उपाधध प्राप्त हुई थी।
कव्िाली गायन शैली का प्रचलन भी िल्तनत काल में ही प्रारम्भ हुआ। िल्तनत काल में अनेक िादययंत्र जैि‘े रबाब’,
‘िारं गी’, ‘सितार ’तथा‘ तबला ’का प्रचलन था।
अमीर खुसरो-
अमीर खुसरो को ससतार और तबले के अविष्कार का श्रेय ददया जाता था। मध्यकालीन िंगीत परम्परा के आदद िंस्थापक
अमीर िुिरों थे। ििमप्रथम उन्होंने भारतीय िंगीत में कव्िाली गायन को प्रचसलत ककया। अमीर िुिरों को‘ तनू तये दहन्द ’
अथामत‘् भारत का तोता ’आदद नाम िे भी जाना जाता था।
इि िमय दक्षक्षण भारत में िंगीत पर आधाररत कुछ महत्त्िपण
ू म पस्
ु तकों की रचना हुई, जैि-े िंगीत रत्नाकर, िंगीत
िमयिार, िंगीत सशरोमखण, िंगीत कौमद ु ी, िंगीत नारायण आदद।
िल्तनत काल में इल्तत
ु समश ि गयािद
ु दीन तग
ु लक दिारा िंगीत के विकाि के क्षेत्र में कोई काम नहीं ककया गया।
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक िंगीत का बहुत बड़ा प्रेमी था।
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अध्याय-7
हदल्ली सल्तनत
खखलिी िंश (1290-1320 ई.)- एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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िंस्थापक-जलालद
ु दीन खिलजी
अक्न्तम शािक-मब
ु ारक खिलजी
खिलजी क्राक्न्त ने यह बता ददया कक ििा, शक्तत के बल पर प्राप्त ककया जाता है न कक अमीर एिं उलेमा के िमथमन पर।
खिलजी शािकों की ििा मख्
ु यतः शक्तत पर आधाररत थी।
यह धमम का राजनीनत िे पथ्
ृ तक रण करने का भी उदघोष है ।
इिने िाम्राज्य विस्तार का एक नया अध्याय िल्तनत के इनतहाि में प्रारम्भ ककया। िस्तत
ु ः दहन्दस्
ु तान में मह
ु म्मद गोरी
दिारा स्थावपत राज्य उिके उिराधधकारी गल
ु ाम िल्
ु तानों (ऐबक िे लेकर कैकुबाद तक) के काल में उतना ही बना रहा
क्जतना गोरी की मत्ृ यु तक था। गल
ु ाम िल्
ु तानों ने केिल उन्हीं क्षेत्रों को पन
ु ः विक्जत ककया क्जिे गोरी ने विक्जत ककया
ककन्तु उिके उिराधधकाररयों के हाथ िे ननकल गये थे।
यह ननम्न िगम के मक्ु स्लमों का उच्च िगम के मक्ु स्लमों के खिलाफ भी विरोह था।
खिलक्जयों ने तक
ु ों को उच्च पदों िे बाहर नहीं रिा लेककन प्रशािन में तक
ु ों के एकाधधकार को अिश्य तोड़ ददया। खिलजी
क्राक्न्त ने तक
ु ों की नस्लिाद की नीनत पर चोट की। उन्होंने भारतीय मि
ु लमानों को भी बड़े पद ददये जाने की परम्परा
आरम्भ की। अब िे कुलीनता के स्थान पर प्रनतभा को महत्ि ददया जाने लगा। ििमप्रथम अलाउददीन खिलजी ने व्यापक
रूप िे भारतीय मि
ु लमानों को प्रशािन िे जोड़ा। अलाउददीन खिलजी का िजीर 'निरत िां जलेिर', मीर अजम ‘जफर िां'
एिं िजीर तथा नायब दोनों पदों पर आिीन ‘मसलक काफूर' गैर-तक
ु म तो थे ही िाथ ही भारतीय मिलमान भी थे।
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खिलक्जयों ने न जनता, न अमीर िगम और न ही उलेमा का िमथमन प्राप्त ककया। उनके राज्यारोहण िे यह अिधारणा सिदध
हो गई कक बबना धासममक िमथमन के न केिल राज्य जीवित रह िकता है बक्ल्क िफलतापि
ू क
म कायम भी कर िकता है ।
खिलजी िंश के ककिी भी िल्
ु तान ने िलीफा िे अपने पद की स्िीकृनत लेने का प्रयाि नहीं ककया (8) खिलजी क्राक्न्त ने
जनमत िंग्रह को भी सिदध ककया था। तयोंकक, जनता के ही दर िे जलालीनी कछ िमय तक ददल्ली नहीं आया।
िलालद
ु दीन कफरोि खखलिी ) 1290-98 ई. (
कैमि
ू म की हत्या कर जलालद
ु दीन ने खखलिी िंश की स्थापना की
1290 ई. में जलालद
ु दीन ने कैकुबाद दिारा ननसममत ककलोिरी ककले में स्ियं को िल्
ु तान घोवषत कर ददया।
जलालद
ु दीन कफरोज खिलजी ने उदार धासममक नीनत अपनाई। उिने घोषणा करी कक शािन का आधार शासितों ) प्रजा ( की
इच्छा होनी चादहए। ऐिी घोषणा करने िाला यह प्रथम शािक था। अपनी उदार नीनत के कारण जलालद
ु दीन ने अपने
शत्रओ
ु ं को भी उच्च पद ददये थे
जलालद
ु दीन 70 िषम (ििामधधक िद
ृ ध िल्
ु तान) की उम्र में िल्
ु तान बना था। यही कारण है कक उिके विचार उिकी उम्र िे
प्रभावित थे।
जलालद
ु दीन कफरोज खिलजी धासममक िदहष्णु व्यक्तत था, लेककन 1291-92 में िल्
ु तान ने ईरानी िंत िीददी मौला
को िल्
ु तान की आलोचना करने पर मत्ृ यु दं ड ददया।
िलालद
ु दीन खखलिी दिारा ककये गये असभयान-
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ददल्ली िल्तनत में ििामधधक मंगोल आक्रमण अलाउददीन खिलजी के काल में हुआ।
अधधकांश इनतहािकारों का मत है कक उिके काल में कुल 6 मंगोल आक्रमण हुए। उिके शािन काल में मंगोल ितरा अपनी
पराकाष्ठा पर पहुँच गया था।
अलाउददीन ने मंगोलों के प्रनत रतत एिं यद
ु ध पर आधाररत अग्रगामी नीनत का अनि
ु रण ककया। ऐिा करने िाला पहला
िल्
ु तान था। महत्िपण
ू म है कक इिी िमय मंगोल शािक दिा िान ने अफगाननस्तान को रौंदने के बाद रािी नदी तक अपने
शािन का विस्तार ककया।
ििमप्रथम उिी ने ददल्ली विजय की नीनत अपनायी और अपने पत्र
ु ों को भारत पर आक्रमण करने हे तु भेजा। मंगोलों की
ददल्ली विजय की नीनत 1306 ई. में दिा िान की मत्ृ यु के बाद ही ित्म हो पायी।
अलाउददीन मंगोल समस्या का स्र्ायी समाधान ढूढने का प्रयास ककया। इसी समय उसने
परु ाने ककलों की मरम्मत कराया और उनको पासशब, गगमज, मंगररबी, मंजनीक, दे लमाि, अरदि तथा चरण जैिे यद
ु ध
उपकरणों िे िि
ु क्ज्जत ककया।
िीरी को नयी राजधानी के रुप में विकसित ककया। पहली बार ददल्ली के चारों ओर एक रक्षात्मक चहारदीिारी बनायी गयी।
िीमान्त प्रदे श की रक्षा सलए एक पथ
ृ क िेना और एक िीमा रक्षक का पद लाया। इि पर पहली ननयक्ु तत गाजी मसलक
(धगयािद
ु दीन तग
ु लक) की हुई। उिे 1305 में पंजाब का िब
ू द
े ार बनाया गया। गाजी मसलक प्रनतिषम मंगोल क्षेत्रों पर आक्रमण
करके उन्हें आतंककत करता था।
1. गज
ु रात -1298 1. दे िधगरर -1307
5. सििान-1308
6. जालौर-1311
आर्र्मक सध
ु ार
बािार व्यिस्र्ा
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1303 ई. में धचिौड़ विजय के पश्चात अलाउददीन ने बाजार व्यिस्था लागू ककया। इिका विस्तत
ृ वििरण बरनी की तारीिए-
कफरोजशाही में समलता हैं। अन्य स्रोतों में इब्नबतत
ू ा, इिामी एिं शेि नासिरुददीन की िफ
ू ी रचना िायरुल मजासलि प्रमि
ु
हैं।
बािार-अलाउददीन ने ददल्ली में बदायूँ दिार के भीतर कूशके िब्ज (हरा राजमहल) के पाि अनाज गल
ु ाम-मिेसशयों के तीन
बाजार बनिाया। इन बाजारों को िराय-ए-अदल कहा गया । ध्यान यह रहे कक यह िरकारी धन िे िहायता प्राप्त बाजार
थे। चँ कू क गल
ु ाम एिं मिेसशयों का बाजार इिीसलए बरनी इनकी कीमत िाथ-िाथ दे ता है ।
बाजार व्यिस्था िे िम्बदध अधधकारी : शहना-ए-मण्डी- बाजार का प्रमि
ु शहना था और तीनों शहना का शहना-ए-मंडी
होता था। अलाउददीन ने इि पद पर मसलक कबल
ू की ननयक्ु तत की थी।
i. िह िौदागरों का रक्जस्टर रिता था। िभी व्यापाररयों को शहना मण्डी के कायामलय में स्ियं को रक्जस्टर
कराना पड़ता था।
ii. िह दक
ु ानदारों एिं कीमतों पर िख्त ननयन्त्रण रिता था।
iii. िह न्याय का भी कायम करता था। शहना-ए-मण्डी जब न्याय का कायम करता तब िह िराय-ए-अदल कहला
था। उिका न्याय कठोर शारीररक दण्ड पर आधाररत था।
दीिान-ए-ररयासत (िाखणज्य मंरी) - बाजार व्यिस्था का ििोच्च अधधकारी था। अलाउददीन ने इि निीन पद का ननमामण
ककया दीिान-ए-ररयाित का कायम व्यापारी िगम पर ननयन्त्रण रिना तथा आधथमक ननयमों को लागू करिाना था।
शहना-ए-मण्डी की िहायता के सलए कुछ और अधधकाररयों की ननयक्ु तत होती थी जैिेबरीद-गप्ु तचरों का प्रमि
ु । मन
ु दहयन
या मन्
ु ही -जािि
ू । यह घरों में प्रिेश कर गौण अपराधों को भी रोक िकता था।
मह
ु तससब-यह जनिाधारण के आचार का रक्षक तथा दे िभाल करने िाला अधधकारी था। यह भी बाजारों पर ननयंत्रण रिता
था और नाप-तौल का ननरीक्षण करता था।
परिानानिीस- व्यापाररयों को परसमट (लाइिेन्ि) जारी करता था। अलाउददीन खिलजी के बाजार व्यिस्था िे िंबधं धत
अक्न्तम अधधननयम इिी की ननयक्ु तत एिं अधधकारों िे िम्बक्न्धत है । कोई भी िस्त्र चाहे िह ककरपाि (ित
ू ी िस्त्र) हो या
िुज्जे ददल्ली (ददल्ली में बना रे शमी िस्त्र) बबना परिानानिीि के अनम
ु नत के नहीं बबकेगा।
बािार व्यिस्र्ा बर-अबर-सिदधान्त (प्रगनतशील उत्पादन लागत सिदधान्त) पर आधाररत थी क्जिके कुल ननयम थे जो कक
ननम्नसलखित हैं
अन्य आर्र्मक सध
ु ार
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सैन्य सध
ु ार
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उिका प्रनतननधध था। िह कभी-कभी अलाउददीन को िलाह दे ता था। अलाउददीन बयाना के काजी मग
ु ीिद
ु दीन िे अतिर
िातामलाप करता था। उिने एक बार इिी काजी को जीिनदान का िचन ददया था।
साम्राज्यिाद-अलाउददीन ने शाक्न्त को विकाि के सलए विनाश बताया जबकक यद
ु ध को व्यक्तत, िमाज और िाम्राज्य के
सलए अननिायम बताकर लगातार यद
ु ध नीनत का अिलम्बन करता रहा। ध्यातव्य है कक आगे चलकर अकबर एिं मि
ु ोसलनी
ने भी इिी मत को िमथमन ददया। मि
ु ोसलनी ने तो यहाँ तक कह ददया कक जैिे एक स्त्री के सलए मात ृ िि
ु अननिायम है िैिे
ही राज्य के सलए यद
ु ध।
राज्य हहत की प्रार्समकता- अलाउददीन की योजना एक नया धमम चलाने की थी ताकक उिे िांिाररक एिं आध्याक्त्मक दोनों
क्स्थनतयों में ििोच्च क्स्थनत प्राप्त हो जाये। दि
ू रे िह सिकन्दर महान का अनि
ु रण कर 'विश्ि विजय' करना चाहता था।
उिने सिकन्दर दवितीय की उपाधध भी धारण की थी परन्तु अला-उल-मल्
ु क के िमझाने पर उिने ये दोनों योजनाएँ त्याग
दी।
अन्य महत्िपण
ू म उपलजब्धयााँ
कुतब
ु द
ु दीन मब
ु ारक खखलिी )1316-1320ई.(
कुतब
ु द
ु दीन खखलिी ददल्ली िल्तनत के खिलजी िंश का शािक।अलाउददीन खिलजी की मत्ृ यु के बाद मसलक काफूर ने
एक ििीयतनामा पेश ककया, क्जिमें अलाउददीन के पत्र
ु ों ) खिज्रिां, शल्दी िां, मब
ु ारक िां ( के स्थान पर खिज्रिां के
नाबासलक पत्र
ु सशहाबद
ु दीन उमर को िल्
ु तान बनाया गया।
तक
ु ी िरदारों ने विरोह ककया तथा मसलक काफूर की हत्या कर मब
ु ारक खिलजी को नाबासलक िल्
ु तान घोवषत कर नायब-
ए-ममसलकात बना ददया।
मब
ु ारक खिलजी ने सशहाबद
ु दीन उमर की हत्या कर दी तथा कुतब
ु द
ु दीन मब
ु ारक खखलिी नाम िे िल्
ु तान बना। इिने स्ियं
को िलीफा घोवषत ककया जो िल्तनत काल का ऐिा करने िाला एकमात्र शािक था।
गददी पर बैठने के बाद ही उिने दे िधगरर के राजा हरपाल दे ि पर चढ़ाई की और यद
ु ध में उिे परास्त ककया
अपने शािन काल में उिने गज
ु रात के विरोह का भी दमन ककया था
कुतब
ु द
ु दीन मब
ु ारक खिलजी ने अपने िैननकों को छः माह का अधग्रम िेतन ददया था। विदधानों एिं महत्त्िपण
ू म व्यक्ततयों
की छीनी गयी जागीरें उन्हें िापि कर दीं।
अलाउददीन खिलजी की कठोर दण्ड व्यिस्था एिं बाज़ार ननयंत्रण आदद व्यिस्था को उिने िमाप्त कर ददया था।
अप्रैल 1320ई .को िुिरो ने िल्
ु तान की हत्या कर दी और नाससरुददीन खुसरोशाह के नाम िे शािक बना।
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अध्याय-8
हदल्ली सल्तनत - एक विश्लेषण
तग
ु लक िंश (1320 से 1414ई)
मध्यकालीन भारत नोट्स
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संस्र्ापक -र्गयासद
ु दीन तग
ु लक
िानत-तक
ु म
तग
ु लक ककिी िंश या नस्ल का नाम न होकर व्यक्ततगत नाम था।
चँ कू क गाजी तग
ु लक, धगयािद
ु दीन तग
ु लक की उपाधध धारण कर िल्
ु तान बना इिी कारण इनतहाि में उिके उिराधधकारी
भी तगलक कहलाये।
महत्िपण
ू म है कक मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के पश्चात ् ककिी भी शािक ने अपने नाम के िाथ तग
ु लक शब्द का प्रयोग नहीं
ककया।
गािी र्गयासद
ु दीन तग
ु लक (1320-1325 ई.)
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गयासद
ु दीन तग
ु लक के समय हुये आक्रमण-
गयासद
ु दीन तग
ु लक के दिारा ननमामण कायम-
र्गयासद
ु दीन तग
ु लक के प्रशासननक सध
ु ार
िल्
ु तान बनने के पश्चात ् धगयािद
ु दीन को विि की िमस्या का िामना करना पड़ा तयोंकक िि
ु रो िां ने राज्य का अमीरों
एिं ननजामद
ु दीन औसलया में बाँट ददया था। अतः धगयािद
ु दीन ने िभी िे कहा कक िह पैिा राजकोष में जमा करें । ने िापि
ककया परन्तु ननजामद
ु दीन औसलया ने िापि नहीं ककया। इिी कारणिश दोनों में मतभेद हो गया।
न्यानयक िध
ु ारों के तहत उिने अलाउददीन की कठोर दं ड-व्यिस्था िमाप्त कर ददया। राजकीय ऋण ििल
ू ने के सलए
शारीररक यातना दे ने की प्रथा बन्द करा दी ककन्तु भ्रष्टाचारनयों को इििे दण्डमक्ु तत नहीं थी।
धगयािद
ु दीन ने शराब बनाने एिं बबक्री तथा जआ
ु िेलना आदद भी रोकने का प्रयाि ककया।
डाक व्यिस्था को पण
ू म रुप िे िंगदठत करने का श्रेय धगयािद
ु दीन तग
ु लक को ही जाता है । इिने प्रत्येक 2/3 मील पर एक
डाक चौकी स्थावपत की। भारत में डाक व्यिस्था का विस्तत
ृ उल्लेि करने िाला इनतहािकार इब्नबतत
ू ा है ।
अधधकाररयों के पथप्रदम शन तथा उनके ननणमयों में एकरुपता लाने के सलए उिने एक विधधिंदहता बनाई।
आर्र्मक सध
ु ार
बरनी के अनि
ु ार धगयािद
ु दीन की आधथमक नीनतयों का आधार रस्मोसमयान (मध्यपंथी नीनत) थी अथामत ् िंयम, िख्ती एिं
नरमी के बीच एक िंतल
ु न ले के चलना।
उिका मानना था कक कृषक न तो इतने धनिान बने कक विदोह कर दें और न इतने ननधमन बन जायें कक कृवष छोड़कर भाग
जायें। धगयािद
ु दीन पहला िल्
ु तान था क्जिने कृषकों के िंबध
ं में िही नीनत अपनायी।
उिने जमींदारों (िुत, मक
ु ददम एिं चौधरी) को उनके परु ाने अधधकार लौटा ददया। उनिे कहा गया कक िे ककिानों को अधधक
उपज के सलए प्रोत्िाहन दें ।
अलाउददीन खिलजी दिारा प्रचसलत मिाहत को छोड़कर बटाई पदधनत (नस्क) का प्रयोग पन
ु ः शरू
ु ककया गया।
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धगयािद
ु दीन ने लगान 1/5 या 1/3 भाग सलया। िह लगान में थोड़ी-थोड़ी बढ़ोिरी के पक्ष में था अकाल के िमय ककिानों को
कर मत
ु त कर ददया जाता था। उिने अपने कममचाररयों को आदे श ददया था कक िे लगान में िद
ृ धध करने के स्थान पर कृवष
योग्य भसू म और उत्पादन िद
ृ धध हे तु प्रयत्न करें । ककिानों िे लगान उिी भसू म पर सलया जाता था क्जि पर िेती की गयी
हो।
धगयािद
ु दीन ने एक ननयमािली जारी की क्जिके अनि
ु ार मत
ु ताओं (िब
ू द
े ारों) को लगान ििली में अत्याचार नहीं करना
चादहए। उिने अमीरों दिारा कृवष के लगान की इजारे दारी (farming system) की भत्िमना की। धगयािद
ु दीन ने ननयम बनाया
। प्रत्येक अततादार (अमीर) अपने िचम ननकालकर फालतू लगान (फिाक्जल) को िजाने में भेजे।
धगयािद
ु दीन ने िड़के ठीक करिायीं, पल
ु ों एि नहरों का ननमामण ककया। महत्िपण
ू म है कक नहरों के क्षेत्र में कायम करन िाला
िह पहला िल्
ु तान था। उिके पश्चात ् कफरोज तग
ु लक ने ही इि क्षेत्र में विस्तत
ृ रूप िे कायम ककया।
िैननक सध
ु ार
धगयािददीन ने िरकारी िचे पर िैननकों के घोड़ों के दे िभाल की व्यिस्था की। अलाउददीन खिलजी दिारा प्रारम्भ की गयी
दाग हसलया को जारी रिा।
धगयािद
ु दीन ने मतता की व्यक्ततगत आय तथा उिके अधीन िैननकों के िेतन के बीच स्पष्ट विभाजन कर ददया। मत
ु ता
लोग अपने िैननकों के िेतन में िे कुछ कमीशन काट लेते थे। धगयािद
ु दीन ने इि कुप्रथा को ित्म ककया।
िैननकों के िेतन रक्जस्टर ििीलात-ए-हश्म की जाँच िह स्ियं करने लगा।
गयासद
ु दीन की मत्ृ य-ु
1325ई .में बंगाल विजय के बाद िावपि ददल्ली लौटते िमय ददल्ली िे कुछ दरू जौना िाँ दिारा िल्
ु तान के स्िागत के सलये
बनाये गये लकङी के महल िे धगर जाने िे िल्
ु तान की मत्ृ यु हो गयी। लेककन इब्नबतत
ू ा के अनि
ु ार यह जौनािाँ का षङयंत्र था
(आज भी एक वििाद का टॉवपक है )
नोट - गयािद
ु दीन तग
ु लक ने लगभग िम्पण
ू म दक्षक्षम भारत को हदल्ली सल्तनत में समला सलया था।
मह
ु म्मद बबन तग़
ु लक़ – Muhammad bin Tughlaq (1325-51 ई.(
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मह
ु म्मद बबन तग
ु लक ने मक्ु स्लम राजस्ि का सिदधांत ददया तथा अपने सितकों पर अल-सल्
ु तान-जिल्ले-इलाही अंककत
कराया।
मोहम्मद बबन तग
ु लक के शासन काल के प्रमख
ु स्रोत –
क्जयाउददीन बरनी दिारा सलखित पस्
ु तक तारीख ए कफरोिशाही
इब्नबतत
ू ा का यात्रा ित
ृ ांत (ररहला(
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक ने अपनी बहु िंख्यक दहंद ू प्रजा के िाथ िदहष्णुता का व्यिहार ककया तथा िह ददल्ली िल्तनत का
प्रथम िल्
ु तान था क्जिने योग्यता के आधार पर लोगो को ननयत
ु त ककया|
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक का एक दहंद ू मंत्री साईंराि था तथा दक्षक्षण का नायब ििीर धारा भी दहंद ू था |
होली के त्योहार में भाग लेने िाला ददल्ली िल्तनत का प्रथम शािक मह
ु म्मद बबन तग
ु लक था|
सबल पक्ष
मह
ु म्मद तग
ु लक ददल्ली. पर बैठने िाले िल्
ु तानों में िबिे अधधक पढ़ा-सलिा था। िह एक अच्छा िलेिक एिं कवि था।
िह अपने पत्रों में फारिी पदयों का उदधरण ककया करता था। िद
ु धमम एिं दशमन का विदिान था। अरबी-फारिी, िगोल,
दशमन, गाणत धचककत्िा आदद पर उिका अधधकार था।कुल समलाकर िह एक बदधधिादी शािक था अथामत ् व्यक्तत जो
धासममक विश्िािों को श्रदधा-भाि िे नहीं अवपतु तकम की किौटी के आधार पर स्िीकार करता हो
मह
ु म्मद ने बबना ककिी भेद-भाि के पदों का आिंटन योग्यता के आधार पर ककया। िद
ु इिामी के अनि
ु ार दहन्दओ
ु ं को ऊंचे
पदों पर ननयत
ु त ककया।
अमीरान िादा - िे विदे शी िरदार जो मध्य एसशया िे आये अमीराने िादा कहलाये। इनमें मंगोल, अफगान आदद थे क्जनकों
मह
ु म्मद तग
ु लक ने दक्षक्षण भारत, गज
ु रात एिं मालिा में ननयत
ु त ककया। मह
ु म्मद बबन तग
ु लक ने अपने अमीर िगम में
बहुत िारे विदे सशयों को िक्म्मसलत कर सलया क्जन्हें िह ऐज्जा एिं अजीज (समत्र) कहता था। महत्िपण
ू म है कक विरोही अमीर
िगम में पररितमन लाने के सलए मह ु म्मद बबन तग
ु लक योग्यता के आधार पर एक नया िगम बनाना चाहता था। दि ू रे उिका
परु ाने अमीरों पर िे विश्िाि भी उठ गया था। मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के नये अमीरों को बरनी 'नछछोरा' एिं 'दीनािस्था िे
बने नए रईि' की िंज्ञा दे ता है। बरनी उनका िूब मजाक उड़ाता है 'जो घोड़ों की पछ
ूं और लगाम के बीच भेद नहीं कर िकते
थे।'
इिामी बताता है कक मह
ु म्मद तग
ु लक पहला िल्
ु तान था जो कक गंगा जल का पान करता था और दहन्द ू त्यौहारों जैिे हाली
आदद को बड़ी धूम-धाम िे मनाता था। इिी आधार पर इिामी ने िल्
ु तान के सिर की मांग की थी। अकाल के कारण, जब
मह
ु म्मद तग
ु लक ने ददल्ली की जगह गंगा के तट पर क्स्थत अपनी नयी राजधानी बनाया तो उिे िंस्कृत नाम स्िगमदआ
ु री
ददया। बनतहागढ़ असभलेि िल्
ु तान दिारा एक गऊ मठ (गाय मंददर) के ननमामण की घोषणा करता है । मह
ु म्मद िफ
ू ी एिं
दहन्द ू के िंपकम में था। िफ
ू ी िंत िालार मिद
ू गाजी (बहराइच) एिं ख्िाजा मइ
ु नद
ु दीन धचश्ती (अजमेर) की दरगाह पर िाला
िह पहला िल्
ु तान था।
तग
ु लक ने बलबन की ही तरह न्याय के िम्मि
ु 'विधध की िमता' का सिदधान्त लागू ककया। इि ननयम को उिने िद पर
भी लागू ककया जैिे िह एक बार स्ियं न्यायालय के िमक्ष उपक्स्तथ हुआ और अपने एक अधधकारी के पत्र
ु िे 21 बेतें िायी।
मह
ु म्मद तग
ु लक ने न्याय विभाग पर िे उलेमा के एकाधधकार को तोड़ ददया। उिने अन्य व्यक्ततयों को भी काजी का पद
ददया जैि-े विदे शी यात्री इब्नबतत
ू ा को ददल्ली का काजी बनाया।
दब
ु ल
म पक्ष
उपयत
ुम त उदाहरणों िे स्पष्ट है कक मह
ु म्मद तग
ु लक एक प्रबद
ु ध शािक था और कई मामलों में तो िह अकबर का पि
ू ग
म ामी
प्रतीत होता है । लेककन, सितके का दि
ू रा पहलू भी है । िस्तत
ु ः उिकी नीनतयों के िैदधाक्न्तक पक्ष तो बहुत बेहतर थे लेककन
उनका व्यािहाररक पक्ष उतना ही िंकीणम।
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उिकी नीनतयों में तो प्रगनतशीलता ददिती है लेककन कक्रयान्ियन में नहीं। िास्ति में उिमें राजनीनतक िझ
ू -बझ
ू का अभाि
था। िह अपनी नीनतयों को लोगों की भािनाओं के अनक
ु ू ल नहीं बना िकता था। दभ
ु ामग्यिश उिमें जल्दबाजी एिं बेििी की
प्रिवृ ि थी। यही कारण है कक एक जन दहतैषी शािक होते हुए भी िह जनदहतैषी नहीं बन पाया। िस्तत
ु ः इि अभागे
आदशमिादी के प्रयोगों की अिफलता के पीछे यही कारण विदयमान थे।
दि
ू रे धासममक उलेमा िगम भी - तालक की अन्य नीनतयों के िाथ-िाथ उिकी विशेष इस्लामी विचारधारा इजतेहाद का विरोधी
था। चँकू क मह
ु म्मद तग
ु लक नई उलेमा, शेिों, िैयदों, िकू फयों एिं कलन्दरों को मत्ृ यद
ु ण्ड ददया था और दहन्द ू योधगयों के
िाथ िम्पकम रिा था। इिी कारणिश काक्जयों ने उिके खिलाफ फतिा जारी कर ककिी भी व्यक्तत को िल्
ु तान के विरुदध
विरोह करने की अनम
ु नत दे दी।
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक पहला मध्यकालीन िल्
ु तान था क्जिने उिर एिं दक्षक्षण भारत के राजनैनतक, प्रशािननक एिं िांस्कृनतक
एकीकरण का प्रयाि ककया। यही कायम आगे चलकर अकबर ने ककया क्जिके सलए उिे 'महान ्' कहा जाता है । यह भी महत्िपण
ू म है कक
क्जतना इि िल्
ु तान ने िैननक असभयान में अपना जीिन व्यतीत ककया उतना ककिी अन्य िल्
ु तान ने नहीं ककया।
रािकीय प्रनतननर्धमंडल-
मह
ु म्मद तग
ु लक पहला िल्
ु तान था क्जिने चीन, ईरान, समस्त्र, िीररया आदद के िाथ िैदेसशक िम्बन्ध स्थावपत कर
राजदत
ू ों का आदान-प्रदान ककया।
1341 ई. में चीन के िम्राट तोगन नतमरू ने बौदध मक्न्दरों के दशमन हे तु अपना एक सशष्टमण्डल उिके दरबार में भेजा था।
चीनी िम्राट ने उििे दहमालय प्रदे श में क्स्थत बौदध मक्न्दरों के जीणोदधार की आज्ञा मांगी थी।
ईरान के िल्
ु तान अबू िईद िाँ ने अज्द-बबन-यज्द को राजदत
ू बनाकर ददल्ली भेजा। मह
ु म्मद तग
ु लक ने बबगदान नामक
दत
ू के माध्यम िे िल्
ु तान के पाि एक करोड़ टं का ईराक के पवित्र नगरों में वितररत करने हे तु भेजा।
अन्य प्रनतननधधमंडल में मि
ू ा दिारा भेजा गया ईराकी प्रनतननधधमंडल, ख्िारज्म के शािक कुतलद
ू मरू की पत्नी दिारा भेजा
गया प्रनतननधधमंडल तथा िीररया के िरदार के पत्र
ु अमीर िैफुददीन का ददल्ली आना आदद है ।
राित्ि-
सितकों के माध्यम िे मह
ु म्मद तग
ु लक ने अपने राजत्ि का प्रदशमन ककया। उिने राजत्ि िे िम्बक्न्धत असभव्यक्ततयों का
सितकों पर उत्कीणम करिाया।
उिके सितकों पर अल-िल्
ु तान-क्जल्ली-अल्लाह; राजा बनना तो ईश्िर की इच्छा पर ननभमर है ; ईश्िर िल्
ु तान का िमथमक
है आदद िातय उत्कीणम हैं।
मह
ु म्मद तग
ु लक के प्रयोग एिं सध
ु ार
मह
ु म्मद तग
ु लक के 5 िध
ु ारों (दोआब में कर िद
ृ धध; राजधानी पररितमन; िांकेनतक मर
ु ा; िरु ािान आक्रमण एिं आभयान)
का िणमन बरनी ने नतधथपि
ू क
म नहीं ककया है बक्ल्क इि इनतहािकार के मन में जो बात पहले आयी िह सलि ददया
कृवष सध
ु ार- िल्
ु तान ने िब
ू ों की आय-व्यय तथा लगान व्यिस्था का दहिाब रिने के सलए एक रक्जस्टर का विकाि क्जिे
हश्म-ए-बदहलास्त कहा गया। इब्नबतत
ू ा के अनि
ु ार मह
ु म्मद ने मत
ु ता िे राजस्ि ििल
ू ी का अधधकार लेकर िली िराज
(राजस्ि िमाहताम) को ददया क्जिकी ननयक्ु तत ििमप्रथम उिी ने की थी। उिने िली एिं अमीर के पद को पथक ददया। दि
ू रे
ििमप्रथम उिी ने राजस्ि ििल
ू ी को ठे के पर अथामत ् इजारे दारी प्रथा दे ना प्रारम्भ ककया।
दोआब में कर िद
ृ र्ध-बरनी के अनि
ु ार उिने दोआब क्षेत्र में 10 या 20 गन
ु ा कर िद
ृ धध कर दी िहीं फररश्ता 3 या 4 गन
ु ा िद
ृ धध
बताता है । लेककन, िमस्या कर िद
ृ धध में नहीं िरन ् अिमय की गयी कर िद
ृ धध में थी तयोंकक इि िमय िहाँ अकाल पड़ा
था। इि अकाल ने महामारी फैला दी थी और हिा इतनी मारक हो गयी कक िद
ु मह
ु म्मद तग
ु लक ददल्ली छोड़कर ढाई िषम
कन्नौज के पाि स्िगमदिारी नामक राजधानी बनानी पड़ी। अतः ककिानों ने विरोह कर ददया क्जिका कठोरता िे दमन
ककया गया। बाद में िही िस्तक्ु स्थनत की जानकारी होने पर उिने (60 िगम मील भसू म पर)
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रािधानी पररितमन
सांकेनतक मद्र
ु ा का प्रचलन
मह
ु म्मद तग
ु लक ददल्ली िल्तनत का पहला िल्
ु तान था क्जिने 1330 ई0 में िांकेनतक मर
ु ा का प्रचलन ककया। िांकेनतक
मर
ु ा का मल्
ू य चाँदी के टं का के िमतल्
ु य रिा। दरअिल 14िीं िदी में िंिार में चांदी की कमी हो गयी जो कक व्यापार के
माध्यम िे भी भारत नहीं आ पा रही थी। दि
ू रे भारत में िैिे भी चाँदी की कमी थी।
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खुसी असभयान
िल्
ु तान का व्यापक जीत का एक िपना था। उिने िि
ु ी और इराक को विजय के चुना और इि कारण एक विशाल िेना को
िकक्रय कर ददया था। उिको इि असभयान िे ननराशा हाथ लगी थी।
कराची असभयान
यह असभयान चीनी हमलों का मक
ु ाबला करने के सलए चलाया गया था। इििे उिके मन में एक विचार ने जन्म सलया
क्जिका उददे श्य कुमाऊं-गढ़िाल क्जलों में कुछ दरु ाग्रही जनजानतयों को िमक्न्ित कर उन्हें ददल्ली िल्तनत के अधीन लाना
था।
इन पररयोजनाओं ने मदरु ै और िारं गल की स्ितंत्रता और विजयनगर और बहमनी की नींि रिने के सलए दे श के कई दहस्िों
में विरोहों को जन्म ददया था।
िल्
ु तान की योजनाओं का उददे श्य िही ि दरू गामी था, लेककन योजनाओं को िही तरीके िे लागू न करने, अधधकाररयों ि
जनता के अिहयोग ि भ्रष्टाचार के कारण उददे श्य में अच्छी होते हुये तथा भी अिफल हो गयी। इििे राज्य को आधथमक
हानन हुई तथा विसभन्न िगों में विरोह भी पनपा क्जिने ददल्ली िल्तनत के पतन को ननसममत कर ददया।
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक ने उलेमाओं को प्रशािन में हस्तक्षेप िे रोका इिके अलािा उनके विशेषाधधकारों को िमाप्त ककया
तथा उन्हें भी न्याय की पररधध में ले आया (उलेमाओं को ननयंबत्रत ककया)।
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक ने प्रशािन में भारतीय मस्
ु लमानों के िाथ-2 विदे शीयों ि दहन्दओ
ु ं को भी शासमल ककया। इििे उलेमा
नाराज हुये।
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के समय हुये विद्रोह-
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक िैन संतों से संपकम रखता र्ा-
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मत्ृ य-ु
मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के जीिन के अंनतम िमय में प्लैग फैला इििे बचने के सलये िल्
ु तान य.ू पी .में कन्नौज के स्िगमनगरी में
रुका तथा 1351 ई .में सिंध असभयान में इिकी मत्ृ यु हो गयी।
कफरोिशाह तग
ु लक
मोहम्मद बबन तग
ु लक की मत्ृ यु के बाद कफरोजशाह तग
ु लक 1351 ई0 में गददी पर बैठा
दक्षक्षण जाने िे पि
ू म मह
ु म्मद तग
ु लक ने 1345 ई. में ददल्ली में एक िंरक्षक पररषद का गठन ककया क्जिका प्रमि
ु कफरोज
तग
ु लक था। कबीर िाँ एिं ख्िाजाजहाँ इि पररषद के अन्य िदस्य थे।
कफरोज स्ियं में इनतहाि एिं धचककत्िाशास्त्र का ज्ञाता था। उिे िल्तनत का जयसिंह भी कहा जाता है । कफरोज ने
कफरोजाबाद (ददल्ली) में नक्षत्रशाला की स्थापना की थी। उिने िमय िच
ू क उपकरणों का प्रयोग ककया था। उिने एक जल
घड़ी (ताि घडड़याल) का विकाि ककया।
उिने अपनी आत्मकथा फुतह
ू ात-ए-कफरोजशाही के नाम िे सलिी क्जिका शाक्ब्दक अथम कफरोज की विजयें हैं हालांकक इिमें
उिकी ककिी भी िाम्राक्ज्यक विजयों का उल्लेि नहीं समलता है ।
लकफं िटन के अनि
ु ार, कफरोजशाह िल्तनत यग
ु का अकबर था
कफरोज तग
ु लक के शािन काल में न ही कोई मंगोल आक्रमण हुआ और न ही अकाल पड़ा
िल्तनत कालीन शािको में कफरोजशाह पहला शािक था क्जिने 1376 ई0 में िाह्मणों पर जक्जया लगाया
कफरोजशाह की न्याय व्यिस्था इस्लासमक ननयमों पर आधाररत थी िह केिल िन्
ु नी मि
ु लमानों को ही उच्च पदों पर
ननयत
ु त करता था
कफरोज एक ननिामधचत िल्
ु तान था। उिके चयन में मख्
ु य भसू मका नासिरुददीन धचराग दे हलिी एिं िरदारों ने ननभायी।
मह
ु म्मद तग
ु लक के अक्न्तम िमय में शािन अव्यिक्स्थत हो गया था -कुलीन (अमीर), िेना-िैननकों तथा रुदढ़िादी
मक्ु स्लम धमशास्त्रीयों के बीच तीव्र अिंतोष था। अतः कफरोज तग
ु लक जब िल्
ु तान बना तो इन्हीं िगों को िन्तष्ु ट करने के
सलए तक्ु ष्टकरण का नीनत का िहारा सलया। प्रजा को िन्तष्ु ट करने के सलए उिने िम्पण
ू म राजकीय ऋण चक
ु ा ददया।
कुलीन एिं िेना-अमीरों एिं िैननकों को िन्तष्ु ट करने के सलए कफरोज तग
ु लक ने िंशानग
ु त सिदधान्त लागू ककया। इतता
का आिंटन क्जि इततेदार को हुआ है िह उिकी मत्ृ यु के पश्चात उिके पत्र
ु , दामाद, गल
ु ाम आदद में िे जो भी उपलब्ध होगा
उिे आिंदटत कर ददया जायेगा।
यह भी महत्िपण
ू म है कक कफरोज ने उलेमा िगम को राज्य की नीनत तय करने की छूट नहीं दी थी। यदयवप िह उनको महत्ि अिश्य दे ता
था जैिे
कफरोज तग
ु लक पहला िल्
ु तान था क्जिने सिंचाई कर, हक-ए-शबम (जो कक कुल उपज का 10% होती थी) लगाया। यह कर
लगाने िे पहले उिने उलेमाओं िे अनम
ु नत ली। यहीं उिके दिारा आरोवपत एकमात्र गैर-इस्लासमक कर था। इि कर िे उिे
प्रनतिषम 2 लाि टं के की आय होती थी। यह धनरासश िह विदिानों के िम्पोषण पर िचम करता था।
िह ददल्ली िल्तनत का पहला िल्
ु तान था क्जिने स्ियं को िसलफा का नायब कहा।
िंतो की मजारों पर मक्ु स्लम क्स्त्रयों के जाने को रोक लगा ददया ताकक मदहला लोगों की कामक नजरा िे बची रहें ।
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जक्जया को पथ
ृ क कर बनाया और उिे िाह्मणों पर भी लगाया क्जििे अभी तक िह मत
ु त थे।
महल के िन्
ु दर सभवि-धचत्रों को समटिा ददया तयोंकक इस्लाम में इिकी मनाही थी। भोजन हे तु िोने एिं चांदी के बतमनों की
मनाही कर दी। उिने शद
ु ध रे शमी या जरीदार िस्त्रों एिं मानि आकृनतयों के धचत्र बने हुए िस्त्रों पर रोक लगा दी।
गैर-मक्ु स्लमों को धमम पररितमन का लालच ददया। अफीफ के अनि
ु ार, "दहन्द ू दरू -दरू िे आते और इस्लाम ग्रहण करते बदले
में िल्
ु तान िे पद एिं धन प्राप्त करते थे।"
कफरोज ददल्ली िल्तनत का पहला िल्
ु तान था क्जिने राज्य का चररत्र इस्लासमक घोवषत ककया।
उिने कफकए-कफरोजशाही कानन
ू ों को कफरोजाबाद की जामी मक्स्जद की दीिारों पर उत्कीणम कराया। िह राज्य के िचम पर
हज की व्यिस्था करने िाला पहला िल्
ु तान था।
यह ित्य है कक कफरोज अपने शािन काल के अक्न्तम ददनों में धमामन्ध हो गया था लेककन, सितके का एक दि
ू रा पहलू भी है तयोंकक
कफरोज ने ऐिे भी कायम ककये जहाँ िह एक योग्य एिं मानितािदी तथा रचनात्मक प्रनतभा का धनी शािक नजर आता है
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उलग
ु िानी नहर (150 मील लम्बी) उिके दिारा ननसममत िबिे बड़ी नहर थी। इिके बाद राजिाही या रजबिाह नहर (96
मील लम्बी) का स्थान आता है। कफरोजशाही नहर ितलज
ु िे ननकाली गयी थी।
कफरोज ने हौज-ए-इलाही (अलाउददीन खिलजी का तालाब) तथा हौज-ए-शम्िी की मरम्मत कराकर पन
ु ः िोल ददया।
कफरोज ने 5 दारुल सशफा (िैराती औषधालय) िुलिाया।
अफीफ कफरोज दिारा ननसममत 7 बांधों (बांधे फतह िाँ, माल्दा, शक्र
ु िाँ, शाहपनाह, िालरू ा, मदहपालपरु और बाद िजीराबाद)
का उल्लेि करता है ।
कफरोज ने िरकारी िचे िे ददल्ली में 120 िरायों का ननमामण ककया। कोई भी यात्री यहाँ परू े िषम मफ्
ु त में रह िकता था।
(vi) कफरोज ने बंजर भसू म को पन
ु ः प्राप्त ककया और इििे प्राप्त आमदनी को धासममक एिं शैक्षक्षक कायों पर व्यय ककया
कफरोज ने दीिान-ए-िैरात स्थावपत ककया ताकक मक्ु स्लम अनाथ क्स्त्रयों एिं विधिाओं को आधथमक मदद हो ि और ननधमन
मक्ु स्लम लड़ककयों का वििाह हो िके।
दीिाने िैरात के अंतगमत ही उिने वििाह विभाग की स्थापना की थी। कफरोज ने राजस्थान के राजस्ि को दीिाने िैरात के
सलए दान ददया था
कफरोज तग
ु लक ने िािमजननक ननमामण विभाग (शोहरत-ए-आम) की भी स्थापना ककया।
उिने कतबसमनार की चौथी मंक्जल की मरम्मत तथा पाँचिीं मंक्जल का ननमामण करिाया।
कफरोज ने लगभग 300 नगरों की स्थापना की क्जिमें फतेहाबाद, फीरोजपरु (ददल्ली के दक्षक्षण में ), फीरोजाबाद आदद प्रमि
ु
हैं।
कफरोज तग
ु लक के पाि ििामधधक गल
ु ाम थे क्जनकी कुल िंख्या 1,80,000 थी। इिमें िे 12000 दाि कारिानों में तथा
40,000 शाही महल में िल्
ु तान की िेिा में ननयोक्जत थे। कफरोज ने गल
ु ामों का भी अलग विभाग बनिाया क्जिे दीिान-ए-
बंदगान कहा गया। इिका प्रमि
ु िकीलेदर होता था।
कफरोज ने 36 कारिाने स्थावपत करिाये। िल्
ु तान ने यद
ु धबंददयों को दाि बनाने की प्रथा को प्रोत्िादहत ककया। प्रान्तीय
िब
ू ेदारों एिं अमीरों को ननदे श था कक िे कर या उपहार के रूप में िल्
ु तान को दाि भेजें। व्याििानयक सशक्षा नीनत लागू करने
िाला िह पहला िल्
ु तान था। उिने मह
ु म्मद बबन तग
ु लक दिारा स्थावपत कारिानों को व्याििानयक सशक्षा िंस्थानों में
बदल ददया।
ििमप्रथम कफरोज ने ही रोजगार विभाग की स्थापना की थी।
कफरोज तग
ु लक ने अशोक के पाषाण स्तम्भों को मीनार-ए-जरीन (स्िणम स्तम्भ) कहा और उिे टोपर (उिर प्रदे श के
िहारनपरु क्जले में क्स्थत) िे ददल्ली मंगाया। ििमप्रथम कफरोज तग
ु लक ने ही ददल्ली के िाह्मणों िे अशोक के असभलेिों
को पढ़िाने का एक अिफल प्रयाि ककया था। शम्ि-ए-सिराज अफीफ जो उि िमय बारह िषम का था बताता है कक कफरोज
ने एक स्तम्भ कफरोजाबाद के कोटला में तथा दि
ू रे को पहाड़ी पर क्स्थत कुश्क-ए-सशकार (सशकारगाह) में िड़ा ककया। अशोक
स्तम्भ को कफरोजशाह की लाट, भीमिेन की लाट, ददल्ली-सशिासलक लाट, िन
ु हरी लाट आदद के नाम िे भी जाना जाता है ।
हालांकक अशोक स्तम्भ मंगाये जाने का ििमप्रथम वििरण िीरत-ए-कफरोजशाही में समलता है ।
सितके-कफरोज के सितकों पर िलीफा का नाम अंककत है ।
कफरोज तग
ु लक ने अदधा एिं बबि नामक तांबा एिं चाँदी के सितके चलाया। उिने सितकों पर अपने नाम के िाथ अपने
उिराधधकारी पत्र
ु फतह िाँ का भी नाम अंककत कराया।
कफरोज ने लोक सशकायतों के ननिारण के सलए एक अलग विभाग दीिान-ए-ररिालत का गठन ककया। िभी यहाँ तक कक
िजीर एिं शहजादें भी अपनी सशकायतों के ननदान के सलए इि विभाग में आिेदन कर िकते थे। िंभितः िकील-एदर इि
विभाग का प्रमि
ु होता था।
कफरोज तग
ु लक के शािन काल में प्रचसलत कुल करों की िंख्या 5 थी।
कफरोज तग
ु लक ददल्ली िल्तनत का पहला िल्
ु तान था क्जिने िद
ृ धािस्था पें शन हे तु दीिान-ए-इक्श्तहाक (पेन्शन विभाग),
शोहरत-ए-आम (िािमजननक ननमामण विभाग), दीिान-ए-िैरात, दीिान-ए-बंदगान (दाि विभाग) एिं बेरोजगारों के सलए
रोजगार ब्यरू ों की स्थापना ककया।
कफरोि तग
ु लक के असभयान
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1. बंगाल- कफरोज ने 1353 एिं 1359 ई. में दो बार बंगाल पर अिफल असभयान ककया।
2. जाजनगर (ओडडिा) -1360 ई.- कफरोज ने परु ी के जगन्नाथ मक्न्दर को लट
ू ा।
3. नगरकोट-1361 ई - कफरोज ने काँगड़ा में क्स्थत नगरकोट पर आक्रमण ककया। कफरोज ने यहाँ के ज्िालामि
ु ी मक्न्दर को
लट
ू ा और यहाँ की मख्
ु य मनू तम को मदीना भेजिा ददया। यही िे 1300 िंस्कृत की ककताबों को पाया क्जिका उिने अनि
ु ाद
कराया था।
4. थट्टा असभयान-1362 ई कफरोज तग
ु लक का अक्न्तम असभयान सिन्ध के थट्टा पर हुआ।
संरक्षण
कफरोि तग
ु लक दिारा ननसममत नगर
इिनें स्थापत्य कला के विकाि पर भी बल ददया तथा इिके सलए उिने दीिाने-इमारत नामक नया विभाग स्थावपत ककया।
इि विभाग दिारा अनेक मदरिों) प्राथसमक सशक्षण(, मकतबों) उच्च सशक्षण (का ननमामण हुआ।
इि विभाग दिारा तग
ु लक ने कुतब
ु मीनार की मरम्मत करिाई।
इल्तुतसमश दिारा ननसममत नािीररया मदरिा, हौज-ए-शम्िी की मरम्मत कफरोज तुगलक ने करिाई थी। इिके िाथ
ही अलाउददीन खिलजी दिारा ननसममत हौज-ए-िाि की मरम्मत भी कफरोज तुगलक ने ही करिाई थी।
कफरोज तग
ु लक ने अनेक नगरों का ननमामण करिाया जैिे – कफरोजपरु , फतेहाबाद, कफरोजाबाद, दहिार)हररयाण-(
कफरोजा, जौनपरु । इिके काल में दो प्रमि
ु स्थावपतविद थे -मसलक-ए-िहना तथा इिी का सशष्य अहमद।
नासिरुददीन के शािन काल में ही मध्य एसशयाई मंगोल नेता तैमरू ने 1398 ई0 में भारत पर आक्रमण ककया इि आक्रमण
के बाद भारतमें िैय्यद िंश की स्थापना हुई
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अध्याय-9
हदल्ली सल्तनत
सैयद िंश( 1414 – 1451 ई).-एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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कफरोि तग
ु लक ( 1351-1388 ई) .– कफरोज तग
ु लक को विराित में कई िमस्यायें समली थी जो इि प्रकार हैं-
ककिानों का विरोह
उलेमा, अमीर, िैन्य आदद िगों का विरोह
राज्य का िाली िजाना
िाम्राज्य का विघटन
कफरोज तग
ु लक ने इन िमस्याओं का तात्कासलक िमाधान ढूढां तथा तष्ु टीकरण की नीनत अपनाई, क्जिके पररणामस्िरूप प्रशािन
का आधथमक , प्रशािननक तथा िैननक भाग कमजोर हो गया जो िल्तनत के पतन का कारण रहा।
कफरोज तग
ु लक का िाम्राज्य गयािद
ु दीन तथा मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के िाम्राज्य िे छोटा था।
तग
ु लक िंश का पतन-
कफरोज तग
ु लक की मत्ृ यु के बाद ददल्ली िल्तनत का विघटन हो गया और उिर भारत छोटे -2 राज्यों में बंट गया
िैिे दे िें तो तग
ु लक 1412ई .तक शािन करते रहे लेककन 1399ई .में तैमरू दिारा ददल्ली पर आक्रमण ककया गया इि
आक्रमण के िाथ ही तग
ु लक िाम्राज्य का अंत हो गया था।
तैमरू के आक्रमण िे तथा उिराधधकारी के अभाि में यह िंश 1414 में िमाप्त हो गया क्जिके बाद सैयद िंश का शािन
स्थावपत हुआ।
सैयद िंश
सैयद िंश )सय्यद िंश( ददल्ली िल्तनत पर शािक करने िाला चौथा िंश था।
इि िंश ने ददल्ली िल्तनत में 1414 िे 1451 ई. तक शािन ककया। उन्होंने तग़
ु लक िंश के बाद राज्य की स्थापना की।
यह िंश मक्ु स्लमों की तक
ु म जानत का यह आखरी राजिंश था।
इि िंश ने ददल्ली िल्तनत में 1414 िे 1451 ई .तक शािन ककया। उन्होंने तग़
ु लक िंश के बाद राज्य की स्थापना की।
यह िंश मक्ु स्लमों की तक
ु म जानत का यह आखरी राजिंश था।
िैय्यद िंश सशया िमद
ु ाय िे िंबधं धत ददल्ली िल्तनत का एकमात्र राजिंश था।
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खख़ज़्र ख़ााँ ने य्यद िंश की स्थापना की । खखज़्र खाँ ने 1414 ई .में ददल्ली की राजगददी पर अधधकार कर सलया। खखज़्र खाँ ने
िल्
ु तान की उपाधध न धारण कर अपने को ‘रै यत-ए-आला’ की उपाधध िे ही िुश रिा। जब भारत को लट
ू कर तैमरू लंग
िापि जा रहा था, उिने खखज़्र खाँ को मल्
ु तान, लाहौर एिं दीपालपरु का शािक ननयत
ु त कर ददया था। खखज़्र खाँ के शािन
काल में पंिाब, मल्
ु तान एिं ससंध पन
ु ः ददल्ली िल्तनत के अधीन हो गये।
सल्
ु तान को रािस्ि िसल
ू ने के सलए भी प्रनतिषम िैननक असभयान का िहारा लेना पड़ता था। उिने अपने सितकों पर
तग़
ु लक िल्
ु तानों का नाम िुदिाया। फ़ररश्ता ने खखज़्र खाँ को एक न्यायवप्रय एिं उदार शािक बताया है ।
मत्ृ यु
मब
ु ारक शाह के कायम
इिने यमन
ु ा नदी के ककनारे 1434 ई0 में मब
ु ारकबाद नामक नगर की स्थापना की।
मब
ु ारक शाह ने ‘शाह’ की उपाधध ग्रहण कर अपने नाम के सितके जारी ककये।
उिने अपने नाम िे ‘ख़ुतबा( प्रशंसात्मक रचना)’ पढ़िाया और इि प्रकार विदे शी स्िासमत्ि का अन्त ककया।
मब
ु ारक शाह के िमय में पहली बार ददल्ली िल्तनत में दो महत्त्िपण
ू म हहन्द ू अमीरों का उल्लेि समलता है ।
उिने विदधान ‘याहहया बबन अहमद सरहहन्दी’ को अपना राज्याश्रय प्रदान ककया था। उिके ग्रंथ ‘तारीख़-ए-
मब
ु ारकशाही’ िे मब
ु ारक शाह के शािन काल के विषय में जानकारी समलती है ।
मत्ृ यु
मब
ु ारक शाह के िजीर सरिर-उल-मल्
ु क ने षड़यन्त्र दिारा 19 ़िरिरी, 1434 ई .को मब
ु ारक शाह की हत्या कर दी।
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मह
ु म्मद शाह (1434 – 1445 ई.(
मब
ु ारक शाह ले दिक पत्र
ु महु म्मद शाह( मह
ु म्मद बबन खरीद खााँ) को िजीर सरिर-उल-मल्
ु क एिं अन्य अमीरों में समलकर 19
फ़रिरी 1434 को ददल्ली का िल्
ु तान बना ददया।
इिने मल्
ु तान के सब
ु द
े ार िहलोल को‘ खान-ए-खाना’ की उपाधध दी। मह
ु म्मद शाह नाममात्र का शािक था। शािन पर पण
ू म
ननयंत्रण िजीर सरिर-उल-मल्
ु क का था।
मह
ु म्मद शाह के शािक बनते ही िजीर ने शस्त्रागार, राजकोष एिं हाधथयों पर आधधपत्य कर सलया। मह
ु म्मद शाह को मरने
के सलए िज़ीर िरिर-उल-मल्
ु क षडयंत्र कर रहा था। इििें पहले ही मह
ु म्मद शाह ने िजीर ि उिके िमथमकों को मार ददया।
मह
ु म्मद शाह ने कमाललमल्
ु क को नया िजीर बनाया।
1440 ई .में महमद
ू खखलिी ने मह
ु म्मद शाह पर आक्रमण ककया, लेककन यद
ु ध के बाद दोनों में िंधध हो गई। बहलोल लोदी को
मह
ु म्मद शाह ने अपने पत्र
ु की िंज्ञा दी।
मत्ृ यु
बहलोल लोदी ने 1443 ई. में ददल्ली पर आक्रमण कर सलया। उिी दौरान उिकी मत्ृ यु हो गई। लेककन कुछ विदिान ्
उिकी मत्ृ यु 1445 ई. में मानते है ।
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अध्याय-10
हदल्ली सल्तनत
लोदी िंश -एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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सैयद िंश का अंत कर बहलोल लोदी ने 1451 ई. में लोदी िंश की ददल्ली िल्तनत में स्थापना की थी। यह िंश 1526 ई. तक ििा में
रहा और िफलतापि
ू क
म शािन ककया। यह राजिंश ददल्ली िल्तनत का अंनतम ििारूढ़ पररिार था, जो अफगान मल
ू िे था।
बहलोल लोदी ने 1451 ई. में लोदी राजिंश की स्थापना की और 1489 ई .तक ददल्ली िल्तनत पर शािन ककया। िैयद
िंश के अंनतम शािक आलम शाह ने बहलोल लोदी के पक्ष में ददल्ली िल्तनत के सिंहािन पर स्िेच्छा िे त्याग ददया था।
बहलोल लोदी अफगान मल
ू का था।
िह एक पश्तन
ू पररिार में पैदा हुआ था। बहलोल लोदी, िय्यद िंश के मह
ु म्मद शाह के शािनकाल के दौरान, िरदहंद का
राज्यपाल था, जो ितममान पंजाब के फतेहगढ़ िादहब में क्स्थत है ।
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बहलोल लोदी ने ददल्ली िल्तनत में बैठने के बाद “बहलोल शाह्गाजी” की उपाधध ली। उिने िरदहन्द के एक दहंद ू िन
ु ार
की बेटी िे शादी की।
मत्ृ यु
बहलोल लोदी की 1489 ई .में मत्ृ यु हो गई। उनकी मत्ृ यु के बाद, उिका पत्र
ु सिकन्दर लोदी ददल्ली िल्तनत के सिंहािन
पर बैठा।
1489 ई. में बहलोल लोदी के मत्ृ यु के बाद सिकंदर लोदी ददल्ली िल्तनत का उिराधधकारी हो गए और लोदी राजिंश के
दि
ू रे शािक बना।
उिके बचपन का नाम ननजाम िान था, लेककन ििा िम्भालने के बाद उिने अपना नाम “िल्
ु तान सिकन्दर शाह” रि
ददया जो बाद में सिकन्दर लोदी के नाम िे प्रसिदध हुआ। उन्होंने 1489 ई .िे 1517 ई. तक ददल्ली िल्तनत पर शािन
ककया। सिकंदर लोदी, बहलोल लोदी का दि
ू रा पत्र
ु था और बारबक शाह, बहलोल लोदी का िबिे बड़ा पत्र
ु था,
जो जौनपरु का िायिराय था।
1494 ई .तक इिने िम्पण
ू म बबहार को जीत सलया। इिने पि
ू ी राजस्थान के राजपत
ू राज्यों पर भी आक्रमण ककया तथा
धौलपरु , नरिर, मंदरे ल, चंदेरी, नागौर, उिरररी को जीत सलया।
इन राजपत
ू राज्यों पर ननयंत्रण स्थावपत करने के सलये 1504ई .में सिकंदर लोदी ने आगरा शहर को बिाया। तथा यहाँ पर
बादलगढ का ककला बनाया।
1506ई .में आगरा को अपनी राजधानी बनाया। सिकंदर लोदी ने ग्िासलयर पर भी आक्रमण ककया तथा कर ििल
ू ा लेककन
िल्तनत में नहीं समला पाया।
इिने कृवष ि िाखणज्य व्यापार के विकाि के सलये कदम उठाये। कृवष उत्पादन को बढािा दे ने के सलये अनाज िे जकात
नामक कर हटाया। तथा राज्य में कठोर कानन
ू व्यिस्था के माध्यम िे व्यापाररयों को िंरक्षण ददया। इिने भसू म
की पैमाइश करिाई इिके सलये गज-ए-सिकंदरी (30 इंच)को पैमाना बनाया।
सिकंदर लोदी ने सशक्षा के विकाि के सलये भी कदम उठाये उिने मदरिों को राजकीय िंरक्षण में सलया तथा उनमें गैर
धासममक सशक्षा भी दी।
सिकंदर लोदी धासममक रूप िे कट्टर था। उिने अपने असभयान के दौरान चंबेरी, मंदरे ल, धौलपरु में मंददरों को नष्ट ककया
तथा एक दहन्द ू और मक्ु स्लम दोनों धमों को ित्य बताकर प्रचार कर रहा था। सिकंदर लोदी ने मोहरम मनाने पर पाबंदी
लगाई। मक्ु स्लम मदहलाओं के मजार दशमन पर भी पाबंदी लगाई। सिकंदर फारिी का ज्ञाता था तथा गल
ु रुिी उपनाम िे
फारिी में सलिता था। इिी के आदे श पर आयि
ु ेद के िंस्कृत ग्रंथ का फारिी में फरहं ग-ए-सिकंदरी के नाम िे अनि
ु ाद
ककया गया। इिी के काल में फारिी भाषा में िंगीत पर लज्जत-ए-सिकंदरी नाम िे ग्रंथ सलिा गया। कबीर इिका
िमकालीन था।
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इिादहम लोदी, सिकंदर लोदी का िबिे छोटा बेटा था। सिकंदर लोदी की मत्ृ यु के बाद इिादहम लोदी 1517 ई. में राजगददी
पर बैठा और 1526 ई. तक ददल्ली िल्तनत पर शािन ककया। िह लोदी राजिंश के अंनतम राजा और ददल्ली िल्तनत का
अंनतम िल्
ु तान था।
इिाहीम लोदी के िमय बबहार का अफगान अमीर दररयाँ िाँ लोहानी स्ितंत्र हो जाता है और इिके बाद दररयाँ िाँ लोहानी
मह
ु म्मदशाह के नाम िे बबहार का स्ितंत्र शािक बनता है ।
इिी प्रकार जौनपरु पर जलाल िाँ) अफगान ( ि पंजाब में दौलत िाँ लोदी की क्स्थनत स्ितंत्र जैिी थी। इिाहीम िाँ के
चचेरा भाई आलम िाँ ने भी िल्
ु तान के विरुदध यद
ु ध ककया तथा गज
ु रात में शरण ली।
1517-18ई .में इिाहीम लोदी ितौनी) बद
ंू ी (के यद
ु ध में राणा िांगा िे पराक्जत हुआ। तज
ु क
ु -ए-बाबरी)बाबर की आत्म
कथा( के अनि
ु ार दौलत िां लोदी आलमिाँ तथा िांगा के दत ू बाबर िे आगरा पर आक्रमण करने हे तु समले थे।
शासन काल में कायम
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अध्याय-11
हदल्ली सल्तनत-प्रशासननक प्रणाली
मध्यकालीन भारत नोट्स
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पष्ृ ठभसू म-
मक्ु स्लम राज्य िैदधांनतक रूप िे धमामिलंबी या धमम प्रधान राज्य था।िलीफा परू े मक्ु स्लम जगत का ििोच्च प्रधान होता
था। िल्
ु तान की उपाधध तक
ु ी शािकों दिारा प्रारं भ की गई।
महमद
ू गिनिी पहला शािक था क्जिने िल्
ु तान की उपाधध धारण की। उिे यह उपाधध बगदाद के िलीफा िे प्राप्त हुई
थी।
खिज्र िाँ को छोङकर ददल्ली िल्तनत के िभी तक
ु ी शािकों ने िल्
ु तान की उपाधध धारण की।खिज्र िाँ ने यह उपाधध महमद
ू
गजनिी िे प्राप्त की थी।
ददल्ली िल्
ु तानों में अधधकांश ने अपने को िलीफा का नायब पक
ु ारा परन्तु कुतब
ु द
ु दीन मब
ु ारक खिलजी ने स्ियं को िलीफा
घोवषत ककया।
खिज्र िाँ ने तैमरू के पत्र
ु शाहरुि का प्रभत्ु ि स्िीकार ककया और रै यत- ए- आला की उपाधध धारण की। अिके पत्र
ु और
उिराधधकारी मब
ु ारकशाह ने इि प्रथा को िमाप्त ककया और शाह ने िल्
ु तान की उपाधध ग्रहण की।
उत्तरार्धकार
मक्ु स्लम शािकों में उिराधधकार का कोई ननक्श्चत सिदधांत नहीं था। इल्तत
ु समश पहला िल्
ु तान था , क्जिने िल्तनत की
िरकार में िंशानग
ु त शािन का सिदधांत लागू ककया। उिने अपनी पत्र
ु ी रक्जया को अपना उिराधधकारी मनोनीत ककया।
खखलिी क्रांनत)1290ई(. िे बलबनी िंश का अंत हुआ, क्जिका ऐनतहासिक महत्ि है । इि क्रांनत िे शक्तत का हस्तांतरण
एक िजातीय िगम िे विषम िगम) भारतीय मस्
ु लाम (के पाि हो गया।
गयासद
ु दीन तग
ु लक के िल्
ु तान बनने में कुलीन तंत्रीय आधार ( जनजातीय एकाधधकार ( पर शािन करने का प्रचलन
िमाप्त हो गया। तग
ु लक कोई जनजातीय नाम नहीं था, बक्ल्क व्यक्ततगत नाम था।
खिज्र िाँ ने िरदारों दिारा चुने गये दोलत िाँ लोदी को हराकर स्ियं ििा हधथया ली तथा िैयद िंश की नींि डाली। बहलोल
लोदी के िल्
ु तान बनते ही कुलीन तंत्रीय शािन) जातीय एकाधधकार ( कफर िे आरं भ हुआ। लोदी शािकों के शािन काल में
राजनीनतक पदों का ही नहीं अवपतु िेना का भी अफगानीकरण कर ददया गया।
राित्ि का ससदधांत– इल्तत
ु समश के शािनकाल के दौरान िल्
ु तान की क्स्थनत कुलीन िरदारों िे बहुत ऊपर नहीं थी। िह
महान तक
ु ी अमीरों को अपने िमकक्ष िमझता था तथा सिंहािन पर बैठने में िंकोच करता था।
बलबन ने इि प्रथा की िासमयों को िमझ सलया तथा इिे दरू करने को दृढ िंकल्प सलया। उिने राजत्ि को अमीर िगम िे
ऊपर रिा। इिने अपने पत्र
ु बगु रा िाँ िे कहा था राजा दे ित्ि का अंश होता है उिकी िमानता कोई भी मनष्ु य नहीं कर
िकता।
अलाउददीन खखलिी ने भी िल्
ु तान पद की गररमा को िदा ििोपरर रिा तथा उिके सलए सिकंदर ए िानी जैिी उपाधधयाँ
धारण की।इिने काजी मग
ु ीिद
ु दीन िे कहा था िह ऐिे आदे श जारी करता है क्जन्हें िह राज्य के सलए उपयोगी तथा
पररक्स्थनत के अनि
ु ार वििेकपण
ू म िमझता है । िह यह नहीं पछ
ू ता कक तया शरीयत में उनकी अनम
ु नत है अथिा नहीं।
अलाउददीन की भाँनत मह
ु म्मद बबन तग
ु लक भी शािन में ककिी िगम या व्यक्तत का हस्तक्षेप पिंद नहीं करता था। प्रारं भ
में न तो उिने अपने िल्
ु तान पद के सलए िलीफा िे स्िीकृनत ली और न ही अपने सितकों पर िलीफा का नाम अंककत
करिाया। न्याय विभाग पर उलेमा िगम के आधधपत्य को मह
ु म्मद बबन तग
ु लक ने ित्म ककया तथा योग्यता के आधार पर
पद बांटे । अपनी दहन्द ू प्रजा के िाथ उिका व्यिहार िदहष्णत
ु ापण
ू म था।
कफरोज तग
ु लक ने हर कायम उलेमा िगम की मजी तथा शरीयत के अनि
ु ार ककया और इि प्रकार िल्
ु तान के पद की गररमा
को ठे ि पहुंचाई।
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लोदीयों के शािनकाल में राजत्ि सिदधांत िरदारों की िमानता पर आधाररत थी और ऐिी क्स्थनत में उनकी शािन
व्यिस्था राजतंत्रीय न होकर कुलीन तंत्रीय थी।
बहलोल लोदी दिारा अफगान अमीरों को दी गई ररयायतों िे शाही ताज की गररमा पतनोन्मि
ु हो गई तथा राजतंत्र की
प्रनतष्ठा घटकर उच्च िगम के िमतल्
ु य हो गई।
केन्द्रीय प्रशासन-
सल्
ु तान- िल्
ु तान प्रशािन, न्याय, िेना का ििोच्च अधधकारी था। औपचाररक रूप िे िल्
ु तान िलीफा का नायब या उिके
अधीन था। िास्तविक रूप िे िह अपने क्षेत्र का िंप्रभु शािक था। तथा िंप्रभत
ु ा के सलये िल्
ु तान दिारा सितके चलाना, िुत्बा
पढाना जैिे कायम ककए जाते थे। िल्
ु तान ननरं कुश शािक होता था, लेककन उिकी ननरं कुशता पर अमीर, उलेमा ि शरीयत का
ननयंत्रण होता था।
िल्तनत कालीन राज्य इस्लामी राज्य नहीं था, िल्
ु तानों दिारा शरीयत को िैधांनतक रूप िे राज्य का आधार घोवषत ककया
गया, परं तु आिश्यकता पङने पर िल्
ु तानों ने शरीयत का उल्लंघन भी ककया तथा धमम ननरपेक्ष कानन
ू बनाये ऐिे कानन
ू जिाबबत
कहलाते थे।
नोट : अपिादस्िरूप कफरोि तग
ु लक ने शरीयत के कानन
ू ों को छोङकर सभी कानन
ू ों का उल्लंघन ककया र्ा।
तक
ु ी राज्य दिारा अलग-2 क्षेत्रों िे अलग-2 शािन पददनतयाँ ग्रहण की गई।िैस-े
1. प्रशासन- तक
ु ी फारिी परं परा िे प्रभावित
2. सैन्य परं परा- तक
ु ी मंगोल परं परा िे प्रभावित
3. रािस्ि व्यिस्र्ा- फारिी ) ईरानी ( परं परा िे प्रभावित
4. ग्रामीण प्रशासन– भारतीय परं परा िे प्रभावित
नोट : केन्रीय प्रशािन में कुछ संस्र्ायें, 4 विभाग ि अनेक सहायक विभाग ि अर्धकारी िल्
ु तान की िहायता करते
हैं। इनका वििरण नीचे ददया जा रहा है ।
संस्र्ायें-
सल्तनत काल में प्रशािन को चलाने में कई िंस्थायें भी िहायक होती थी जो ननम्नसलखित हैं-
बरम -ए-खास- इि िंस्था में महत्त्िपण
ू म अमीर िल्
ु तान को प्रशािननक िहायता दे ते हैं।
बरम – ए -आम- इिमें िल्
ु तान न्याय का कायम ििोच्च न्यायाधधकारी के रूप में करता है ।
मिसलस-ए-खल्बत- इि िंस्था में महत्त्िपण
ू म विदिान, िल्
ु तान के समत्र, िफादार ननयत
ु त ककये जाते हैं।
4 विभाग-
1. दीिान-ए-वििारत ( वित्त विभाग ) – िजीर इि िंस्था का प्रमि
ु होता था। इिके कायम इि प्रकार थे
)i)राज्य की आय एिं व्यय पर ननयंत्रणरिना
(ii) आय-व्यय के िाते ) लेिा( रिना।
(iii) अधधकाररयों को िेतन एिं इतता बाँटना
इस विभाग के अधीन अर्धकारी एिं अन्य विभाग-
नायब ििीर- इिका अपना पथ
ृ क रूप िे विभाग होता था।
मश
ु ररफ-ए-मम
ु ासलक– इिे महालेिाकार भी कहा जाता था।
मस्
ु तईफ-ए-मम
ु ासलक/ मस्
ु तौफी-ए-मम
ु ासलक- इिे िातों को दे िने िाला भी कहा जाता था। अथामत ् लेिा परीक्षक।
खिीन– यह िजांची कहलाता था। तथा कोषाध्यक्ष के नाम िे भी इिे जाना जाता था।
दीिान-ए-िफूफ– यह अधधकारी िलालद
ु दीन खखलिी के िमय था । इिे व्यय के कागजातों की जाँच करनी होती
थी।
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दीिाने- ररयासत- यह विभाग अलाउददीन खिलजी के िमय में था। इिका काम बाजार ननयंत्रण प्रणाली की दे िभाल करना
था।
दीिाने मस्
ु तखराि– यह विभाग भी अलाउददीन के िमय में ही था। इिका कायम राजकीय कममचाररयों िे िरकारी दे नदारी
ििल
ू करना था।) राजकोष िे सलया गया धन जो िमय पर नहीं दे पाते थे।(
दीिाने- अमीर-कोही– यह मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के िमय में था तथा इि विभाग का कायम कृवष क्षेत्र में िध
ु ार करना था।
ििीर का पद- िजीर का पद कफरोज तग
ु लक के िमय ििामधधक महत्ि प्राप्त करता है ।तयोंकक कफरोज तग
ु लक ने प्रशािन
में िहायता के सलये ितममान िजीर के अलािा भत
ू पि
ू म िजीरों िे भी िलाह ली।
नोट : अल मािदी ने ििीरों की दो श्रेखणयााँ बताई हैं -ििीर कफबीद ( असीसमत शजक्तधारक ििीर ) और ििीर तनफीि ( सामान्य
ििीर)
2.दीिाने- आररि( अिम)
यह िैन्य विभाग होता था। इिका प्रारं भ करने का श्रेय बलबन को जाता है । इि विभाग का प्रमि
ु आररज-ए-मम
ु ासलक होता
था।इि विभाग के कायम इि प्रकार थे -िैननकों की ननयक्ु तत, प्रसशक्षण, दाग-हुसलया प्रथा लागू करना तथा िैननकों की
आिश्यकताओं की पनू तम करना। िैिे तो िेना का ििोच्च िेनापनत िल् ु तान होता था तथा यद ु ध का नेतत्ृ ि िल्
ु तान करता
था। लेककन कई बार िल्
ु तान नेतत्ृ ि आररि-ए-मम
ु ासलक या अन्य अमीर को िौंप दे ता था। िल्तनत काल में िेना में –
िल्
ु तान की िेना) इल्तत
ु समश के िमय िे प्रारं भ( िो हश्म-ए-कल्ब कहलाती र्ी, िो तथा अमीरों की िेना शासमल होती थी।
पहली बार अलाउददीन खखलिी ने सल्
ु तान के अधीन एक बङी सेना रखी और उसे नकद िेतन हदया। अलाउददीन के समय
एक घङ
ु सिार सैननक को 234 टं का िावषमक समलता र्ा। अनतररक्त घोङा रखने पर 78 टं का अनतररक्त समलता र्ा।
इल्तत
ु समश के िमय अस्थाई िेना) हश्न-ए-कल्ब (तथा इि विभाग को रिात-ए-आररज कहा गया।
बलबन ने िबिे पहली बार स्थाई िेना स्थावपत करी थी।
सल्तनत कालीन सैन्य व्यिस्र्ा मंगोलों की दशमलि प्रणाली पर आधाररत र्ी।
3.दीिाने इंशा
यह पत्राचार विभाग होता था। इिका प्रमि
ु दबीर-ए -मम
ु ासलक होता था। इि विभाग का कायम दरबारी कायों का लेिन
करना, िल्
ु तान के फरमान ) आदे श ( अमीरों, जनता या कफर ककिी अन्य शािक तक पहुंचाना होता था।इन िब कायों के
अलािा इि विभाग का कायम गप्ु तचर, डाक चौकी आदद को दे िना भी होता था।
दीिाने-बरीद( गप्ु तचर विभाग ) तर्ा िाककयानिीस( संदेशिाहक )इस विभाग के अधीन होते र्े।
4. दीिान-ए-ररयालत( धासममक विभाग)
इिका प्रमि
ु िर-उि-िद
ु रू होता था। इि विभाग का कायम िल्
ु तान को धासममक परामशम दे ना।, शरीयत के कानन
ू ों की पालना
करिाना होता था।, धासममक अनद
ु ान ) ितफ, इनाम, समल्क, इदरार आदद (प्रदान करना।
शरीयत के अााधार पर न्याय करना, काक्जयों की ननयक्ु तत करना भी इि विभाग के ही कायम होते थे।
जब िर-उि-िद
ु रू मख्
ु य न्यायाधीश के रूप में कायम करता था तो उिे काजी-उल-कुजात कहते थे।
कुछ इनतहािकार जैिे हबीबल्
ु ला, कुरै शी इि विभाग को विदे शी विभाग मानते हैं। जबकक अन्य इनतहािकार इि विभाग
को धासममक विभाग मानते हैं।
अन्य अर्धकारी-
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अजम-ए-मम
ु ासलक िेना का प्रभारी मंत्री
बररद िच
ू ना एकत्र करने के सलए राज्य दिारा ननयत
ु त िकु फया
अधधकारी
बररद-ए-मम
ु ासलक राज्य िकु फया िेिा का प्रमि
ु
दाबबर िधचि
दाबबर-ए-मम
ु ासलक मख्
ु य िधचि
दीिान-ए-अजम यद
ु ध मंत्री का कायामलय
दीिान-ए-इंशा मख्
ु य िधचि का कायामलय
हुतम-ए-मश
ु ादहद भ-ू राजस्ि का आकलन) केिल ननरीक्षण के दिारा(
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जक्जया गैर-मि
ु लमानों पर लगाया जाने िाला व्यक्ततगत और िावषमक
कर
मह्
ु तासिब गांि में कानन
ू और व्यिस्था को बनाए रिने के सलए ननयत
ु त
एक अधधकारी, जो गांि का िबिे िररष्ठ नागररक होता थाl
मत
ु ता गिनमर, एक इतता या मध्यकालीन प्रांत का प्रभारी
मस्
ु तौफी-ए-मम्लाकत परू े राज्य का लेिाकार) एकाउं टें ट(
मस्
ु तौफी-ए-मामसलक परू े राज्य का लेिा परीक्षक
नायब-ए-अजम यद
ु ध मंत्री या उिका िहायक
दीिान-ए-मस्
ु तिराज कर िंग्रह करने के सलए कायामलय
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चुंगी-ए-गल्ला अनाज पर कर
आसमर-ए-तारब मनोरं जन कर
नायब-ए-मल्
ु क िाम्राज्य का शािक
काजी-उल-कज्जात मख्
ु य काजी
सिपहिालार िेनापनत
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अध्याय-12
भजक्त आन्दोलन
मध्यकालीनभारतनोट्स
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भजक्त आन्दोलन
मध्यकालीन इनतहाि का ऐिा दौर जहाँ इस्लाम धमम अनेक दहन्दओ
ु ं दिारा अपनाया जा रहा था, दहन्द ू धमम ि िमाज की
क्स्थनत का स्तर भी अधोगनत की ओर अग्रिर थी। उिी िमय भक्तत का विकाि हुआ।
भक्तत आंदोलन दहन्दओ
ु ं का िध
ु ारिादी दहन्दओ
ु ं का िध
ु ारिादी आंदोलन था। इिमें ईश्िर के प्रनत अिीम भक्तत, ईश्िर
की एकता, भाई चारा, िभी धमों की िमानता तथा जानत ि कममकांडों की भत्िमना की गई है । िास्ति में भक्तत आंदोलन का
आरं भ दक्षक्षण भारत में िातिी िे बारहिीं शताब्दी के मध्य हुआ, क्जिका उददे श्य नयनार तथा अलिार िंतों के बीच मतभेद
को िमाप्त करना था। इि आंदोलन के प्रथम प्रचारक शंकराचायम माने जाते हैं।
इस आन्दोलन के प्रचार हे तु संतो दिारा दो प्रकार के उपदे श हदए गये–
उदभि
मख्
ु य रूप िे इन विचारों पर जोर दे ने िाला आंदोलन भक्तत आंदोलन-भगिान के प्रनत िमपमण था। भगिान को भक्तत को
मोक्ष के रूप में स्िीकार ककया गया था।
इिका जन्म दक्षक्षण भारत) सशि नयनार और िैष्णि अलिर (में हुआ और बड़े पैमाने पर परू े भारत) कनामटक और महाराष्र
िे (में बंगाल और उिरी भारत में फैल गया।
अलिर, क्जिका शाक्ब्दक अथम है “ जो लोग ईश्िर में वििक्जमत हैं ”िैष्णि कवि-िंत थे क्जन्होंने विष्णु की प्रशंिा की थी
तयोंकक िे एक स्थान िे दि
ू रे स्थान पर गए थे।
अलिर की तरह, सशि नयनार कवि प्रभािशाली थे। नतरुमरु ाई, सशि पर भजनों का िंकलन तरे िठ नयनार कवि-िंतों दिारा,
शैििाद में एक प्रभािशाली ग्रंथ में विकसित हुआ।
ननगण
ुम और सगण
ु
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विकास
भजक्त आन्दोलन दो भागो में बटा–
1. ननगण
ुम भजक्त क्जिमे प्रेम ि ज्ञान के दिारा लोगो में प्रचार हुआ
2. सगण
ु भजक्त – क्जिमे भगिान की उपक्स्थनत को बताया गया ि यह ि ् दो भागो में बटा–
1. कृष्णा भक्तत – इिके प्रमि
ु िल्लभाचायम, िरू दाि, मीराबाई, रििान जैिे िंत हुए।
2. रामभक्तत – इिके अनय
ु ायी तल
ु िीदाि, अग्रदाि, नाभादाि जैिे िंत हुए।
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कक दहंदओ
ु की जनिंख्या ज्यादा है और िबको इस्लाम कबल
ू कराना मक्ु श्कल है । इि आंदोलन के िाथ ही दोनो िमद
ु ाय
एक दि
ू रे के करीब आए।
दहंदओ
ु की ओर िे पंडड़त और मस्
ु लमानो की ओर िे मौलवियो ने इिकी पहल की। दोनो धमो के अनय
ु ायीयो का मानना था
कक जानतिाद गलत है । ककिी का जन्म भसू म के आधार पर मतभेद गलत है िभी ने एकजुट होकर बरु ाईयो को िमाज िे
हटाने का क्जम्मा सलया। कुछ िफ
ू ी िंतो ने ररश्ते अच्छे बनाने की पहल की और कई दहंदओ
ु िंतो के सशष्य बने परं तु उन्होने
अपना धमम पररितमन नही ककया।
रामानि
ु (-12िी.शता).
रामानि
ु कौन र्े
रामानज
ु 12 िी .शता .के महान िंत थे। भक्तत आंदोलन के प्रारं सभक प्रनतपादक महान िैष्णि गरु
ु रामानि
ु थे। उनका
जन्म तसमलनाडु राज्य में पेरंबदरू में हुआ था। िे िगण
ु ईश्िर में विश्िाि करते थे।
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रामानज
ु ने मनष्ु य की िमानता पर बल ददया और जानत व्यिस्था की भत्िमना की। रामानज
ु के कक्रया कलाप का मख्
ु य
केन्र काँची और श्रीरं गपट्टम था। ककन्तु इनके उपदे शों के प्रनत चोल प्रशािन के विरोध के कारण यह स्थान छोङना पङा।
रामानज
ु ने विसशष्टादिैत दशमन का प्रनतपादन ककया। भक्तत आंदोलन के दि
ू रे नायक रामानज
ु के िमकालीन ननम्बाकम थे।
िे दिैतादिैत दशमन में विश्िाि करते थे तथा ईश्िर के प्रनत िमपमण पर बल दे ते थे।
विसशष्टादिैत दशमन-
रामानज
ु ाचायम के दशमन में परमिता के िम्बन्ध में तीन स्तर माने गये हैं– ब्रह्म , र्चत ् और अर्चत ् ।
िस्तुतः ये िह्म, धचत,् अधचत ् ईश्िर िे पथ
ृ क नहीं हैं बक्ल्क ये विसशष्ट रूप िे िह्म के ही दो स्िरूप हैं एिं िह्म या ईश्िर
पर ही आधाररत हैं। यही रामनुजाचायम का विसशष्टादिैत का सिदधान्त है ।
रामानंद(15िी .शता-).
रामानंद उिरी भारत के पहले महान भतत िंत थे। िे रामानि
ु के सशष्य थे। रामानंद ने दक्षक्षण और उिर भारत के भक्तत
आंदोलन के बीच िेतु का काम ककया अथामत ् भक्तत आंदोलन को दक्षक्षण भारत िे उिर भारत में लाये। उनका जन्म
इलाहबाद में हुआ था। उन्होंने विष्णु के स्थान पर राम की भक्तत आरं भ की।
उन्होंने अपमे उपदे श िंस्कृत के स्थान पर दहन्दी में ददये क्जििे यह आंदोलन लोकवप्रय हुआ और दहन्दी िादहत्य का
ननमामण आरं भ हुआ। रामानंद ने चारों िणों को भक्तत का उपदे श ददया। उन्होंने सिदधांत के आधार पर जानत पथाम का कोई
विरोध नहीं ककया ककन्तु उनका व्यािहाररक जीिन जानत िमानता में विश्िाि करने का था।
रामानंद– के 12 सशष्य र्े- उनमें कई जानतयों के लोग थे, जैिे – रविदाि ) रै दाि ( चमार, कबीर जुलाहा, धन्ना जाट )
ककिान( , िेन नाई, िघना किाई, पीपा राजपत
ू आदद।
िास्ति में मध्ययग
ु का धासममक आंदोलन रामानंद िे आरं भ हुआ।
कबीर-) 1440-1510ई. (
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ये रामानंद के अनत प्रसिदध सशष्यों में िे थे। जे जन्म िे चमार थे लेककन इनका धासममक जीिन क्जतना गढ
ू था, उतना ही
उन्नत और पवित्र था। सितिों के गरू
ु ग्रंथ िादहब में िंग्रहीत रविदाि के तीि िे अधधक भजन हैं। रविदाि के अनि
ु रार
मानि िेिा ही जीिन में धमम की ििोत्कृष्ट असभव्यक्तत का माध्यम है ।
दाद ू ( 1544-1603ई-).
कबीर तथा नानक के िाथ ननगण
ुम भक्तत की परं परा में दाद ू का महत्त्िपण
ू म स्थान है । इनका जम्म अहमदाबाद में एक
जुलाहा के यहाँ हुआ था इऩकी मत्ृ यु 1603ई .में राजस्थान के नराना या नारायण गाँि में हुई जहाँ इनके अनय
ु ानययों ) दाद ू -
पंधथयों ( का मख्
ु य केन्र है ।
गरु
ु नानक) 1469-1538ई.(
इनका जन्म 1469ई .में तलिंडी ) आधुननक ननकाना (पंजाब में एक ित्री पररिार में हुआ। एकेश्िरिाद तथा मानि मात्र
की एकता गरु
ु के मौसलक सिदधांत थे।
चैतन्य ) 1486-1533ई.(-
इनका जन्म 1486ई .में निदिीप या नददया) बंगाल (में हुआ था। चैतन्य का िास्तविक नाम विश्िभर था पर बाल्यािस्था
में इनका नाम ननमाई था। सशक्षा पण
ू म करने के उपरांत इन्हें विदयािागर की उपाधध प्रदान की गई।
िल्लभाचायम)1479-1531ई.(-
मीराबाई)1498-1546ई.(-
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तल
ु सीदास ) 1532-1623ई.(-
तल
ु िीदाि जी मग
ु ल शािक अकबर के िमकालीन थे।
Q-भारत में भजक्त आंदोलन के उदय के कारकों की पहचान कीजिये एिं इसके महत्त्ि की चचाम कीजिये।
दहन्द ू एिं मक्ु स्लम जनता के आपि में िामाक्जक एिं िांस्कृनतक िंपकम िे दोनों के मध्य िदभाि, िहानभ
ु नू त एिं
िहयोग की भािना का विकाि हुआ। इि कारण िे भी भक्तत आंदोलन के विकाि में िहयोग समला।
िफ
ू ी िंतों की उदार एिं िदहष्णुता की भािना तथा एकेश्िरिाद में उनकी प्रबल ननष्ठा ने दहन्दओ
ु ं को प्रभावित ककया;
क्जि कारण िे दहन्द,ू इस्लाम के सिदधांतों के ननकट िम्पकम में आये।
दहन्दओ
ु ं ने िकू फयों की तरह एकेश्िरिाद में विश्िाि करते हुए ऊँच-नीच एिं जात-पात का विरोध ककया। शंकराचायम
का ज्ञान मागम ि अदिैतिाद अब िाधारण जनता के सलये बोधगम्य नहीं रह गया था।
मक्ु स्लम शािकों दिार मनू तमयों को नष्ट एिं अपवित्र कर दे ने के कारण, बबना मनू तम एिं मंददर के ईश्िर की आराधना के
प्रनत लोगों का झक
ु ाि बढ़ा, क्जिके सलये उन्हें भक्तत मागम का िहारा लेना पड़ा।
तत्कालीन भारतीय िमाज की शोषणकारी िणम व्यिस्था के कारण ननचले िणों की क्स्थनत अत्यंत दयनीय थी। भक्तत-
िंतों दिारा ददये गए िामाक्जक िौहारम और िदभाि के िंदेश ने लोगों को प्रभावित ककया।
भजक्त आंदोलन का महत्त्ि-
भक्तत आंदोलन के कई िंतों ने दहन्द-ू मक्ु स्लम एकता पर बल ददया, क्जििे इन िमद
ु ायों के मध्य िदहष्णुता और िदभाि
की स्थापना हुई।
भक्ततकालीन िंतों ने क्षेत्रीय भाषों की उन्ननत में महत्त्िपण
ू म योगदान ददया। दहंदी, पंजाबी, तेलग
ु ,ू कन्नड़, बंगला आदद
भाषाओं में इन्होंने अपनी भक्ततपरक रचनाएँ कीं।
भक्तत आंदोलन के प्रभाि िे जानत-बंधन की जदटलता कुछ हद तक िमाप्त हुई। फलस्िरूप दसलत ि ननम्न िगम के लोगों
में भी आत्मिम्मान की भािना जागी।
भक्ततकालीन आंदोलन ने कममकांड रदहत िमतामल
ू क िमाज की स्थपाना के सलये आधार तैयार ककया।
ननष्कषमतः भक्तत आंदोलन िे दहन्द-ू मक्ु स्लम िभ्यताओं का िंपकम हुआ और दोनों के दृक्ष्टकोण में पररितमन आया।
भक्ततमागी िंतों ने िमता का प्रचार ककया और िभी धमों के लोगों की आध्याक्त्मक और नैनतक उन्ननत के सलये प्रयाि
ककये।
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अध्याय-13
सूफी आंदोलन
मध्यकालीन भारत नोट्स
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क्जि प्रकार मध्यकालीन भारत में दहन्दओ
ु ं में भक्तत-आन्दोलन प्रारम्भ हुआ, उिी प्रकार मुिलमानों में प्रेम-
भक्तत के आधार पर िूफीिाद का उदय हुआ। िूफी शब्द की उत्पवि कहाँ िे हुई, इि विषय पर विदिानों में
विसभन्न मत है ।
कुछ विदिानों का विचार है कक इि शब्द की उत्पवि िफा शब्द िे हुई। िफा का अथम पवित्र है । मुिलमानों में जो
िन्त पवित्रता और त्याग का जीिन बबताते थे, िे िूफी कहलाये। एक विचार यह भी है कक िूफी शब्द की उत्पवि
िूफा िे हुई, क्जिका अथम है ऊन। मुहम्मद िाहब के पश्चात ् जो िन्त ऊनी कपड़े पहनकर अपने मत का प्रचार
करते थे, िे िूफी कहलाये।
कुछ विदिानों का विचार है कक िूफी शब्द की उत्पवि ग्रीक भाषा के शब्द िोकफया िे हुई, क्जिका अथम ज्ञान है।
िूफी िे हैं क्जनका िंबंध इस्लाम की िादगीयता पवित्रता िमानता और उदारता िे हैं िूफी में अल्लाह और िंिार
िे जुड़ी मुख्य दो धाराएं हैं
1. एक ििूहदया धारा
2. दस
ू री सउहदया
यह ठीक उिी प्रकार है जैिे दहंद ू धमम में अदिैतिाद और दिैतिाद थी, भारतीय पररपेक्ष में जो िजूददया रहे अधधक
उदार रहे उनका झुकाि रहस्यिाद की ओर अधधक रहा उनकी कट्टर इस्लाम के प्रनत दरू ी बनी रही इिसलए िह
इस्लाम का प्रचार नहीं करते थे िल्तनत काल के अधधकतर िूफी िंत इिी विचारधारा के थे
ठीक इिके विपरीत िऊददया धारा रुदढ़िादी इस्लाम के अधधक करीब रही इिमें रहस्यिाद पर इतना जोर नहीं
ददया गया क्जतना इस्लाम के प्रचार पर ददया गया
िका प्रभाि भारत में 14िीं शताब्दी के बाद पढ़ना प्रारं भ हुआ और यह अपने प्रभाि में कभी-कभी शािन नीनत
को भी प्रभावित करती थी अथामत 14िीं शताब्दी में ककि धारा के लोग अधधक मजबत
ू रहे तयोंकक इस्लाम का
िचमस्ि अधधक था ऐनतहासिक रूप िे िफ
ू ी धारा का अक्स्तत्ि 8 िीं िे 11 िीं शताब्दी के मध्य रहा है यह धारा
पक्श्चम एसशया अथिा मध्य एसशया िे उत्पन्न हुई मानी जाती है
सूफी मत के विसभन्न सम्प्रदाय
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ननजामुददीन औसलया के बारे कहा जाता है कक िे प्रात:काल उठकर नमाज पढ़ते थे और बाद में िमाधध चले जाते
थे। दोपहर को िे विश्राम करते थे। िे लोगों िे समलते थे और राबत्र के िमय नमाज पढ़ते थे तथा ध्यानमग्न हो
जाते थे।
िूफी िन्त मन की पवित्रता में विश्िाि करते थे। उनका विश्िाि था कक मुक्तत) ननजाद (प्राप्त करने के सलए
मनुष्य का मन बड़ा पवित्र होना चादहए, तयोंकक ईश्िर शुदध मन में ही ननिाि करता है ।
िे ईश्िर-प्राक्प्त के अंह को समटाना आिश्यक िमझते थे, तयोंकक अहं रहते व्यक्तत ईश्िर के दशमन के योग्य नहीं
होता। धचश्ती िन्त उदार विचारों के थे। उनके कई रीनत-ररिाज ऐिे थे जो दहन्दओ
ु ं िे समलते-जल
ु ते थे। उनके
प्रमि
ु सिदधान्त थे -ईश्िर के प्रनत प्रेम और मनष्ु य की िेिा।
िे अदिैतिाद के सिदधान्त में विश्िाि करते थे। इि कारण बहुत िे दहन्द ू उनके भतत बन गये। इन िन्तों की
िादगी और िरल रहन-िहन के ढं ग ने दहन्दओ
ु ं को बड़ा प्रभावित ककया।
ये िन्त मनष्ु य की िेिा को िारी भक्तत िे ऊँचा मानते थे। द:ु िी, दरररों की िेिा करना िे अपना परम कतमव्य
मानते थे। ये िन्त ननजी िम्पवि में विश्िाि नहीं करते थे और िम्पवि का रिना ईश्िर की प्राक्प्त में बाधक
िमझते थे।
शेि कुतुबुददीन बक्ख्तयार काकी िे िुल्तान इल्तुतसमश ने अपने महल के िमीप ही रहने की प्राथमना की थी।
परन्तु शेि ने इिे स्िीकार नहीं ककया। िे शहर के बाहर एक िानकाह में रहने लगे। इल्तुतसमश ने उन्हें शेि-उल-
इस्लाम का उच्च पद दे ना चाहा, परन्तु शेि ने उिे भी अस्िीकार कर ददया।
तब िुल्तान ने इि बडे पद पर माजमुददीन िुगरा को ननयुतत ककया जो शेि िे ईष्याम करने लगा। इि पर शेि
ने ददल्ली छोड़कर अजमेर जाने का ननश्चय ककया, परन्तु ददल्ली की जनता के अनुरोध पर उन्होंने अपना यह
विचार त्याग ददया।
इिी प्रकार ननजामुददीन औसलया ने ददल्ली के िुल्तानों के राज्य-काल दे िे थे, परन्तु िे इनमें िे ककिी के भी
दरबार में कभी नहीं गये। उन्होंने कुतुबुददीन मुबारक शाह के दरबार में उपक्स्थनत होने के आदे श को भी नहीं
माना।
इन िूफी िन्तों ने इस्लाम की कट्टरता को दरू करके उिे उदार बनाने का प्रयत्न ककया। इन्होंने दहन्द ू और
मुिलमानों के बीच की िाई को पाटने का प्रयत्न ककया और दोनों धमों के बीच प्रेम और िदहष्णुता की भािना
को जागत
ृ ककया।
इि प्रकार इन िूफी िन्तों ने िमाज की महान ् िेिा की।
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धचश्ती िम्प्रदाय में मुईनउददीन धचश्ती के अनतररतत जो प्रमुि िन्त हुए, िे थे -ख्िाजा कुतुबुददीन बक्ख्तयार
काकी, ख्िाजा फरीदउददीन मिूद गंज-ए-सशकार, शेि ननजामुददीन औसलया, शेि निीर-उददीन धचराग-ए-
ददल्ली, शेि अब्दल
ु हक, हजरत अशरफ जहाँगीर, शेि हुिम उददीन माननक पुरी और हजरत गेिू दराज।
शेि मुईनुउददीन धचश्ती की अजमेर में िमाधध आज भी तीथमस्थल बना हुआ है , जहाँ प्रनतिषम बड़ी िंख्या में
मुिलमान और दहन्द ू एकत्र होते हैं।मई
ु नउददीन धचश्ती के प्रमुि सशष्य कुतुबुददीन बक्ख्तयार काकी ने धचश्ती
िम्प्रदाय को और अधधक विस्तत
ृ बनाया।
काकी सल्
ु तान इल्तत
ु समश के िमकालीन थे। इल्तत
ु समश उनका बड़ा िम्मान करता था। उिने इन्हें शेख उल
इस्लाम का उच्च पद दे ने का प्रस्ताि ककया, परन्तु इन्होंने िल्
ु तान िे ककिी भी प्रकार का पद और िम्मान लेना
स्िीकार नहीं ककया।
काकी के उिराधधकारी ख्िािा फरीद उददीन मसद
ू गंिे सशकार माया-मोह िे कोिो दरू रहते थे। िह अत्यन्त
िादगी और िंयम का जीिन व्यतीत करते थे। 93 िषम की आयु में 1265 ई .में उनका दे हान्त हो
गया। ननजामद
ु दीन ओसलया बाबा फरीद के सशष्य थे।
उनके कायम को उनके प्रसिदध होनहार सशष्य ननिामुददीन औसलया ने आगे बढ़ाया। शेि ननजामुददीन औसलया
ने अपने मत का केन्र हदल्ली को बनाया और बहुत अधधक प्रसिदधध प्राप्त की। “महबूब ए इलाही” ननजामुददीन
ओसलया को कहा जाता था
शेि ननजामुददीन औसलया ने िात िुल्तानों का शािन काल दे िा था। िे ककिी भी िुल्तान के दरबार में उपक्स्थत
नहीं हुए। िुल्तान ग्यािुउददीन तुगलक उनकी लेाकवप्रयता और उनके बढ़ते प्रभाि िे ईष्याम करता था।
िुल्तान का पुत्र जूना िाँ) मह
ु म्मद तुगलक (भी उनका सशष्य बन गया था। महान ् कवि और लेिक अमीर िि
ु रो
औसलया के सशष्य थे। शेि ननजामुउददीन औसलया के सशष्यों ने उनके कायों को आगे बढ़ाया और धचश्ती िम्प्रदाय
ने भारत में बड़ी लोकवप्रयता अक्जमत की।
अन्य िूफी िम्प्रदायों की अपेक्षा धचश्ती िम्प्रदाय भारत में िबिे अधधक लोकवप्रय हुआ।
इसकी लोकवप्रयता के ननम्नसलखखत कारण र्े-
िफ
ू ी धचश्ती िन्तों ने अपने को जनिाधारण िे जोड़ा। िे गरीबों, अिहायों के िहायक थे। उन्होंने िांिाररक
प्रलोभनों िे अपने को बहुत दरू रिा। ददल्ली के िल्
ु तानों दिारा प्रदान ककये जाने िाले ककिी भी पद, प्रलोभन को
ठुकरा ददया। इि प्रकार िे दररर के िबिे िच्चे दहतैषी सिदध हुए।
िूफी धचश्ती िन्त आडम्बर िे कोिों दरू थे। उन्होंने स्िेच्छा िे ननधमनता को अपनाया। िे घाि-फूि की झोपडडयों
अथिा समट्टी के मकानों में रहते थे। उनकी आिश्यकता बहुत िीसमत थी। िादा जीिन उच्च विचार उनका
आदशम था।
उनके इि आदशम त्यागमय जीिन का जनता पर िीधा प्रभाि पड़ा। िूफी िन्तों का जीिन, िीधा, िादा और
ननयसमत था। क्जन बातों का िे उपदे श करते थे, उन पर स्ियं भी अमल करते थे। ऐिे िन्तों के जीिन िे जनता
प्रेरणा लेती थी।
िूफी िन्तों ने धासममक आधार पर कोई भेद-भाि नहीं ककया। उन्होंने भाईचारे की भािना पर जोर ददया। इनकी
धासममक उदारता िे दहन्द ू भी प्रभावित हुए।
डॉ .ननिामी के शब्दों में - धचक्श्तयों ने भारत में अपने सिलसिलों के विकाि की प्रारक्म्भक अिस्थाओं में दहन्द ू
प्रथाओं और ररिाजों को अपना सलया था। इि कारण दहन्द ू और मुिलमान दोनों ही ने धचश्ती िन्तों िे प्रेरणा और
ददशा ननदे शन प्राप्त ककया।
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ख्िाजा मुईनुउददीन धचश्ती के एक दहन्द ू सशष्य रामदे ि भी थे। धचश्ती िन्तों ने अपने मत का प्रचार करने के
सलए जन िाधारण की भाषा का प्रयोग ककया। इि कारण इनके उपदे शों का आम जनता पर िीधा प्रभाि पड़ा।
धचश्ती िन्तों ने अपने को इस्लाम की कट्टरता िे दरू रिा। इस्लाम में िंगीत का ननषेध है , परन्तु िूफी िन्तों
ने अपनी पूजा-अचमना एिं प्रचार में िंगीत का िल
ु कर प्रयोग ककया।
धचश्ती िन्त व्यिहाररक थे। गह
ृ स्थ जीिन में भी इन्होंने जनिाधारण को िाधना का मागम ददिाने का प्रयाि
ककया। ईश्िर प्राक्प्त के सलए घर का त्याग आिश्यक नहीं है , इि बात का प्रचार करते हुए, इन िन्तों ने
पलायनिादी दृक्ष्टकोण छोड़ने को कहा।
जनता के बीच में रहते हुए, उिकी तकलीफों का अनभु ि करते हुए इन्होंने उिके कल्याण के सलए अपने प्रयाि
जारी रिे। धचश्ती िन्त भक्तत में लीन रहते थे।
शेि ननजामद
ु दीन औसलया के अनि
ु ार ईश्िर भक्तत दो प्रकार की है ) -1) लाजमी) 2) मत
ु ाददी) प्रचाररत(।
प्रथम के अन्तगमत िद
ु ा की इबादत, उपिाि, हज इत्यादद आते हैं और दि
ू री के अन्तगमत गरीब दीन दखु ियों और
अिहाय लोगों की िहायता।दररर नारायण की िेिा ही ईश्िर भक्तत का दि
ू रा रूप है । अपने इि दृक्ष्टकोण के
कारण ही धचश्ती िन्त जनता में लोकवप्रय हुए।
2. सुहरािदी ससलससला –
शेि शहाबुददीन िुहरािदी इिके प्रितमक थे। उन्होंने अपने सशष्यों को भारत जाकर उनके उपदे शों, सिदधान्तों
का प्रचार करने की प्रेरणा दी।उनके सशष्यों ने भारत में अपना प्रचार केन्र सिन्ध को बनाया। शेि हमीदद
ु दीन
नागौरी तथा शेि बहाउददीन जकाररया ने इि िम्प्रदाय के विचारों का बड़ा प्रचार ककया।
उन्होंने मुल्तान में अपनी िानकाह स्थावपत की। जकाररया के पुत्र शदम द
ु दीन आररफ उनके उिराधधकारी बने तथा
उनके एक अन्य सशष्य िैयद जलालुददीन िुिम ने उच्छ में एक केन्र की स्थापना की।
िैयद जलालुउददीन के तीन पुत्र हुए -िैयद अहमद कबीर, िैयद िहाउददीन, िैयद मोहम्मद।
शेि शदम उददीन के पत्र
ु शेि रुकुनद
ु दीन ने िह
ु रािदी सिलसिले को काफी प्रसिदधध अक्जमत कराई। उनकी तल
ु ना
धचश्ती िन्त ननजामद
ु दीन औसलया िे की जा िकती है।
सह
ु रािदी सम्प्रदाय के सन्तों का िीिन-
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3. काहदरी ससलससला –
काददरी िम्प्रदाय के प्रितमक बगदाद के शेि अब्दल
ु काददर क्जलानी) 1077-1166 ई (.थे। भारत में इि िम्प्रदाय
का प्रचार मख्दम
ू मुहम्मद क्जलानी और शाह ननयामतुल्ला ने ककया। िैयद बन्दगी मुहम्मद ने 1482 ई .में
सिन्ध को इि िम्प्रदाय का प्रचार केन्र बनाया।
िहाँ िे कालान्तर में यह िम्प्रदाय कश्मीर, पंजाब, बंगाल और बबहार तक फैला। इि िम्प्रदाय के अनुयायी िंगीत
के विरोधी थे।
4. नक्शबन्दी ससलससला –
तुककमस्तान के ख्िाजा िहाअलदीन नतशबन्द इि िम्प्रदाय के प्रितमक थे। यह िम्प्रदाय भारत में 16िीं शताब्दी
में ख्िाजा मुहम्मद शाकी धगल्लाह िैरंग दिारा आया।
इि िम्प्रदाय के िन्तों ने इस्लाम की कट्टरता का विरोध ककया। िन्तों ने धासममक आडम्बरों का विरोध ककया
और िादा िच्चा जीिन जीने का उपदे श ददया।
इि िम्प्रदाय का दृक्ष्टकोण बद
ु धधिादी होने के कारण यह िम्प्रदाय जन िाधारण को अपनी ओर बड़ी िंख्या में
आकवषमत न कर िका।
कफरदौसी– िह
ु रािदी सिलसिला की ही एक शािा थी। क्जिका कायम क्षेत्र बबहार था इि सिलसिले को शेि
शरीफउददीन याहया ने लोकवप्रय बनाया याहया ख्िाजा ननजामद
ु दीन के सशष्य थे
सत्तारी ससलससला– इिकी स्थापना शेि अब्दल्
ु लाह ििारी की।इन्होंने िद
ु ा के िाथ िीधे िंपकम का दािा
ककया। इिका मख्
ु य केंर बबहार था।
सूफी मत के ससदधांत
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िूफी मत इस्लाम के रहस्यिादी, उदारिादी तथा िमन्ियिादी दशमन की िंज्ञा है । िूकफयों ने कुरान की
रहस्यिादी एिं उदार व्याख्या की क्जिे तरीकत कहा गया । िूफी आन्दोलन का व्यिक्स्थत रूप अब्बासियों के
खिलाफत युग में ददिायी पड़ता है ।
एक धमम के रूप में िूफी मत का विकाि ईिा की निीं शती में हुआ । िूफीिाद में िंिार की िभी प्रमुि धासममक
विचारधाराओं को िक्म्मसलत ककया गया । इस्लाम धमम के अनतररतत इि धमम पर दहन्द ु िेदान्त, बौदध, यूनानी,
ईिाई आदद मतों के सिदधान्तों का भी िमािेश ककया गया था
िफ
ू ी मत भी दार-उल-हबम को दार-उल-इस्लाम में बदलना चाहता था । सिफम अन्तर इतना था कक िफ
ू ी पररितमन
के सलए शाक्न्तपण
ू म एिं नैनतक िाधनों का प्रयोग करना चाहते थे । िफ
ू ी िन्तों तथा फकीरों ने भी दहन्द-ु मक्ु स्लम
िामंजस्य स्थावपत करने की ददशा में महत्िपण
ू म कायम ककया ।
प्रत्येक िफ
ू ी को कुछ अिस्थाओं िे गज
ु रना पड़ता था-उबदू दयत, तरीकत) इश्क(, माररफात, हकीकत, फना) बका (
। मक्ु स्लम रहस्यिाद का जन्म बहादातल
ु बज
ु द
ू ) आत्मा-परमात्मा (की एकता के सिदधान्त िे हुआ । इिमें हक
को परमात्मा और िल्क को िक्ृ ष्ट माना गया है ।
इि सिदधान्त के प्रनतपादक शेि मुहीउददीन इब्नुल अरबी थे । फतुहात-ए-मक्तकया ने इि विचार को इन शब्दों
में व्यतत ककया-ईश्िर के सििा कुछ नहीं है , ईश्िर के सििा िहाँ ककिी का अक्स्तत्ि नहीं हैं, यहाँ तक कक‘ िहाँ ’
जैिा भी कुछ नहीं है , िभी चीजों का िार एक ही हैं । परमात्मा में लीन हो जाने के इि आदशम को िूफी माररफात
या िस्ल कहते हैं ।
ईश्िर को ननविमकार एिं ननविमकल्प मानते हुए उिके िाथ तादात्म स्थावपत करने पर उन्होंने बल ददया । यह प्रेम
के दिारा ही िम्भि है । अहं भाि की िमाक्प्त ही िाधक की िफलता का रहस्य है । इि मत के अनुिार मनुष्य
को अपनी इच्छा-शक्तत का दमन कर अपने को पूणत
म या ईश्िर में िमवपमत कर दे ना चादहए ।
सूफी सम्प्रदाय के प्रमुख संत
ख्िािा मुइनुददीन र्चश्ती–
भारत में धचश्ती िम्प्रदाय के िंस्थापक ख्िाजा मुइनुददीन धचश्ती थे इनका जन्म ईरान के सिस्तान प्रदे श में
हुआ था । बचपन में उन्होंने िन्याि ग्रहण कर सलया िे ख्िाजा उस्मान हिन के सशष्य बन गये और िे अपने गरू ु
के ननदे श में 1190 को भारत आ गये । िे अदिैतिाद एिं एकेश्िरिाद की सशक्षा दे ते हुए मानि िेिा ही ईश्िर की
िच्ची भक्तत है । दहन्द ु के प्रनत उदार थे ।
ननिामुदद
ु ीन औसलयों–
ननजामुदद ु ीन औसलयां का जन्म बदॉयू में 1236 में हुआ था । 20 िषम की आयााु में िे शेि फरीद के सशष्य बन
गये । उन्होंने 1265 में धचश्ती िम्प्रदाय का प्रचार प्रारं भ कर ददया था । िे िभी को ईश्िर प्रेम के लए प्रेररत करते
थे । जो लोग उनके यहां पहुंचते थे उन्हें िे िंशारीक बन्धनों िे मुक्तत ददलाने में िहायता करते थे ।
अमीर खस
ु रो–
अमीर िि
ु रों का जन्म 1253 में एटा क्जले के पदटयाली नामक स्थान में हुआ था । िे एक महान िूफी िंत थे । िे
12 िषम में ही कविता कहने लगे थे । उन्होंने अपने प्रयाि िे‘‘ तग
ु लक नामा ’’की रचना की िे महान िादहत्यकार
थे । िे िंगीत के विशेषज्ञ थे । उन्होंने िंगीत के अनेक प्रणासलयों की रचना की िे िंगीत के माध्यम िे दहन्द ू
मि
ु लमानों में एकता स्थावपत ककया ।
क्या सूफी और भजक्त संत िास्ति में मध्यकालीन भारत में सामाजिक ि धासममक क्रांनत ला सके? चचाम करें ।
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भारतीय इनतहाि में मध्यकालीन युग को प्रारं भ िे ही िंघषों का युग कहा जा िकता है । इस्लाम के आगमन के
बाद दे श की जनता तथा शािकों के सलये अननिायम था कक परस्पर िहयोग तथा िमन्िय की भािना को महत्त्ि
ददया जाए। इिी विचारधारा के पररणाम स्िरूप िूफी तथा भक्तत आंदोलनों का उदय हुआ क्जन्होंने कुप्रथाओं,
आडंबरों तथा पथ
ृ कतािादी तत्िों का विरोध करते हुए पारस्पररक िहयोग का उपदे श ददया।
िंतों तथा िूकफयों के प्रयािों िे जो भक्तत एिं िूफी आंदोलन आरं भ हुए उनिे िामाक्जक एिं धासममक जीिन में
एक निीन शक्तत एिं गनतशीलता का िंचार हुआ। इन आंदोलनों के प्रमि प्रभाि ननम्नित हैं-
लोक भाषाओं में िादहत्य रचना का आरं भ।
इस्लाम तथा दहंद ू धमम के परस्पर िहयोग िे िदहष्णुता की भािना का विकाि हुआ क्जििे जानतगत बंधनों में
सशधथलता आई और विचार तथा कमम दोनों स्तरों पर िमाज का उन्नयन हुआ।
इन्होंने जनमानि को न केिल ईश्िर के प्रनत प्रेम िे पररधचत कराया अवपतु धासममक, िामाक्जक और राजनीनतक
कलह िे वपिती जनता को प्रेररत कर उिमें निीन स्फूनतम का िंचार ककया।
िंतों ने अपने व्यक्ततगत जीिन एिं आचरण िे सिदध कर ददया कक मानि अपने ित्कमों एिं प्रयत्नों िे महान
होता है चाहे िह ककिी भी जानत अथिा कुल का हो।
उपयत
ुम त विशेषताओं के बािजूद ये िंत दहंदओ
ु ं एिं मि
ु लमानों के उच्च िगों को अपने िाथ नहीं जोड़ पाए। इन
िंतों का दृक्ष्टकोण िस्तुतः मानितािादी था। उन्होंने मानिीय भािनाओं के उदान्ततम पक्षों पर बल ददया। िे
जानत प्रथा को िाि कमज़ोर नहीं कर पाये कफर भी उन्होंने उिके दं श को कम अिश्य ककया। िमाज में मदहलाओं
के प्रनत हो रहे भेदभाि को िमाप्त करने के सलये विशेष प्रयािों का भी अभाि दे िने को समलता है ककंतु इन इनिब
के बािज़ूद मध्यकाल की िंघषमशील पररक्स्थनतयों में इन िूकफयों तथा िंतों ने एक ऐिा िामान्य मंच तैयार कर
ददया था क्जि पर विसभन्न िंप्रदायों और धमों के लोग एक हो िकते थे और एक-दि
ू रे को िमझ िकते थे।
िुहरािदी शेख शहाबुददीन सुहरािदी इन लोगों का शािक िगम िे घननष्ठ िंबंध था|
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ििारी अब्दल्
ु लाह सत्तारी िद
ु ा के िाथ िीधे िंपकम का दािा ककया|
सफ
ू ी मत से संबंर्धत शब्द
सूफी शब्द अर्म
तिव्ि़ि
ु िफ
ू ीिाद
मरु ीद सशष्य
िलीफा उिराधधकारी
रति नत्ृ य
़िना स्िविनाश
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अध्याय-14
बहमनी साम्राज्य -एक विश्लेषण
मध्यकालीन भारत नोट्स
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बहमनी िाम्राज्य, मध्यकालीन भारत का मक्ु स्लम िाम्राज्य था क्जिका विस्तार दक्षक्षण भारत के दतकन में
था .
इिकी स्थापना 1347 ईस्िी में तक
ु ी गिनमर अल्लाह-उददीन हिन बहमन दिारा हुई क्जिे कक हिन गंगू के
नाम िे भी जाना जाता है .इिने ददल्ली के िल्
ु तान मह
ु म्मद बबन तग
ु लक के विरुदध िफलता पि
ू क
म विरोह
ककया था.
बहमनी राज्य
बहमनी का मक्ु स्लम राज्य दक्षक्षण के महान व्यक्ततयों दिारा स्थावपत ककया गया, क्जन्
होंने िल्
ु तान मह
ु म्मद
तग
ु लक की दमनकारी नीनतयों के विरुदध बकाित की।
िषम 1347 में हिन अब्दल
ु मुजफ्फर अल उददीन बहमन शाह के नाम िे राजा बना और उिने बहमनी राजिंश
की स्थापना की। यह राजिंश लगभग 175 िषम तक चला और इिमें 18 शािक हुए।
अपनी भव्यता की ऊंचाई पर बहमनी राज्य उिर में कृष्
णा िें लेकर नममदा तक विस्ताररत हुआ और बंगाल की
िाड़ी के तट िे लेकर पूिम - पक्श्चम ददशा में अरब िागर तक फैला।
बहमनी के शािक कभी कभार पड़ोिी दहन्द ू राज्य विजयनगर िे युदध करते थे।
बहमनी राज्य के ििामधधक विसशष्ट व्यक्ततत्ि महमूद गिन थे, जो दो दशक िे अधधक िमय के सलए अमीर
उल अलमारा के प्रधान राज्
यमंत्री रहे ।
उन्
होंने कई लड़ाइयां लड़ी, अनेक राजाओं को पराक्जत ककया तथा कई क्षेत्रों को बहमनी राज्य में जोड़ा। राज्य के
अंदर उन्
होंने प्रशािन में िध
ु ार ककया, वििीय व्यिस्था को िंगदठत ककया, जनसशक्षा को प्रोत्िाहन ददया,
राजस्ि प्रणाली में िुधार ककया, िेना को अनुशासित ककया एिं भ्रष्टाचार को िमाप्त कर ददया। चररत और
ईमानदारी के धनी उन्
होंने अपनी उच्च प्रनतष्
ठा को विसशष्
ट व्यक्ततयों के दक्षक्षणी िमूह िे ऊंचा बनाए रिा,
विशेष रूप िे ननज़ाम उल मल
ु , और उनकी प्रणाली िे उनका ननष्पादन हुआ।
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शािन का प्रधान िुलतान था जो ननरं कुश और स्िेच्छाचारी शािक होता था, जो केंरीय प्रशािन िामान्यत :8
मंबत्रयों के िहयोग िे िंचसलत ककया जाता था |
िकील-उस -सल्तनत– यह प्रधानमंत्री था। िल्
ु तान के िभी आदे श उिके दिारा ही पाररत हात थे |
अमीर-ए-िम
ु ला– यह वििमंत्री था |
ििीर-ए-अशरफ– यह विदे श मंत्री था |
ििीर-ए-कुल– यह िभी मंबत्रयों के कायों का ननरीक्षण करता था
पेशिा– यह िकील के िाथ िंयत
ु त रूप िे कायम करता था |
नाजिर– यह अथम विभाग िे िंलग्न था तथा उपमंत्री की भांनत कायम करता था |
कोतिाल– यह पुसलि विभाग का अध्यक्ष था |
सद-ए-िाहर( राष्र-ए-िहााँ )– यह िुल्तान के पश्चात ् राज्य का मुख्य न्यायाधीश था तथा धासममक कायों तथा
राज्य को ददये जाने िाले दान की भी व्यिस्था करता था |
प्रान्तीय शासन
प्रान्तीय शािन व्यिस्था को ि-ु व्यिक्स्थत करने के सलए अपने राज्य को चार िब
ू ों में विभाक्जत ककया
गल
ु बगाम, दौलताबाद, बरार और बीदर| प्रान्तीय गिनमर अपने-अपने प्रान्त में ििोच्च होता था तथा उिका
प्रमि
ु कायम अपने प्रान्त में राजस्ि ििल
ू ना, िेना िंगदठत करना ि प्रान्त के िभी नागररक ि िैननक क्षेत्र के
कममचाररयों की ननयक्ु तत करना था |
मुहम्मद शाह तत
ृ ीय के िमय में बहमनी िाम्राज्य का ििामधधक विस्तार हुआ। उिके प्रधानमंत्री महमूद गिां ने
प्रशािननक िुधारों के अन्तगमत प्रान्तों को आठ िूबों – बरार को गाविल ि माहुर में , गुलबगाम को बीजापुर ि
गुलबगाम में , दौलताबाद को दौलताबाद ि जुन्नार में तथा बीदरको राजामुंदी और िारं गल में विभाक्जत ककया |
बहमनी राज्य के पतन के कारण
विलासी शासक- बहमनी राज्य के शािक प्राय :विलािी थे । िे िरु ा िुन्दरी में डूबे रहते थे । विजयनगर के िाथ
ननरन्तर िंघषम के कारण प्रबन्ध पर विचार करने के सलए उन्हें अििर नहीं समला ।
दक्षक्षण भारत तर्ा विदे शी अमीरों में संघषम– इि िंघषम ने बहमनी राज्य को दब
ु ल
म बना ददया ।
धमामन्धता- िुल्तानों की धमामन्धता तथा अिदहष्णुता के कारण, िामान्य जनता उनिे घण
ृ ा करती थी ।
महमद
ू गंिा का िध– महमद
ू गिां के िध िे योग्य तथा ईमानदार कममचारी ननराश हुए इििे उनकी राजभक्तत
में कमी आई । महमद
ू गिां की हत्या बहमनी राज्य के सलए एक ऐनतहासिक घटना थी, तयोंकक उिकी हत्या के
पश्चात ् बहमनी राज्य का पतन आरम्भ हो गया ।
कमिोर शासक- महमद
ू शाह कमजोर शािक था । उिराधधकारी के िनु नक्श्चत ननयम नहीं थे तथा राजकुमारों
के िही प्रसशक्षण की व्यिस्था भी नहीं थी ।
कला और िास्तुसशल्प
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मुहम्मद बबन तुगलक के दक्षक्षण के दौलताबाद में राजधानी स्थावपत करने के पश्चात एक नई कला दहन्द-ू मुक्स्लम
कला और िास्तुसशल्प का प्रारम्भ हुआ, तथा बहमनी िाम्राज्य की स्थापना के बाद इिका विकाि तीन चरणों में हुआ |
गुलबगाम काल
बीदर काल
उिरिती बहमनी िाम्राज्य
स्र्ापत्य कला-
साहहत्य
बहमनी शािकों ने अरबी और फ़ारसी विदिानों को अपने राज्य में िंरक्षण प्रदान ककया तथा महमूद गिां ने इन
भाषाओं को प्रोत्िादहत करने के सलए बीदर में एक भव्य पुस्तकालय और मदरिा की स्थापना की |
प्रसिदध िफ
ू ी संत गेसद
ू राि दक्षक्षण के प्रथम विदिान थे उदम ू पस्
ु तक समरात-उल-आसशकी की ़िारिी भाषा में रचना
की |
इिादहम आददलशाह दवितीय प्रथम शािक था क्जिने उदम ू को बीजापरु की राजभाषा के रूप में स्िीकार ककया |
उसके दो ग्रंर् अत्यर्धक प्रससदध हैं–
उरोजात-उन-इंशा
दीिाने अश्र
इि काल में प्रादे सशक तथा ऐनतहासिक िादहत्य का उन्नयन हुआ ।
कक़ले और मजस्िदे -:
बहमनी िुल्तानों ने गाबबलगढ़ और नरनाल में मज़बूत ककले बनिाये और गुलबगम एिं बीदर में कुछ मक्स्जदें
भी बनिायीं। बहमनी िल्तनत के इनतहाि िे प्रकट होता है कक दहन्द ू आबादी को िामूदहक रूप िे ककि प्रकार
जबरन मुिलमान बनाने का िुल्तानों का प्रयाि ककि प्रकार विफल हुआ।
बहमनी िल्तनत की अपने पड़ोिी विजयनगर के दहन्द ू राज्य िे लगातार अनबन चलती रही। विजयनगर
राज्य उि िमय.तग
ुं भरा नदी.के दक्षक्षण और कृष्णा नदी के उिरी क्षेत्र में फैला हुआ था और उिकी पक्श्चमी
िीमा बहमनी राज्य िे समली हुई थी।
विजयनगर राज्य के दो मज़बत
ू ककले मद
ु गल और रायचरू बहमनी िीमा के ननकट क्स्थत थे। इन ककलों पर
बहमनी िल्तनत और विजयनगर राज्य दोनों दाँत लगाये हुए थे।
इन दोनों राज्यों में धमम का अन्तर भी था। बहमनी राज्य इस्लामी और विजयनगर राज्य दहन्द ू था। बहमनी
िल्तनत की स्थापना के बाद ही उन दोनों राज्यों में लड़ाइयाँ शरू
ु हो गई और िे तब तक चलती रहीं जब तक
बहमनी िल्तनत कायम रही।
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बहमनी िुल्तानों के दिारा पड़ोिी दहन्द ू राज्य को नष्ट करने के िभी प्रयाि ननष्फल सिदध हुए यदयवप इन
युदधों में अनेक बार बहमनी िुल्तानों की विजय हुई और रायचरू के दोआब पर विजयनगर के राजाओं के
मुकाबले में बहमनी िुल्तानों का अधधकार अधधक िमय तक रहा।
Q- महमूद गिााँ एक योग्य सेनापनत, कठोर प्रशासक तर्ा कला का महान आश्रयदाता र्ा। हटप्पणी करें ।
महमूद गिााँ को ननम्नसलखखत आधारों पर एक योग्य सेनापनत, कठोर प्रशासक और कला का महान आश्रयदाता कहा िा
सकता है :
महमद
ू गिाँ 20 िषों तक राजकीय कक्रयाकलापों पर हािी रहा। इि दौरान उिने बहमनी िल्तनत की िीमाओं
को परू ब और पक्श्चम में बढ़ाने का प्रयाि ककया क्जिमें उिे काफी हद तक िफलता भी हासिल हुई।
महमूद गिाँ का प्रमुि िैननक असभयान दाभोल एिं गोिा का था। इन क्षेत्रों के हाथ िे ननकल जाने िे जहाँ
विजयनगर को व्यापक क्षनत हुई, िहीं बहमनी की ईरान एिं इराक आदद के िाथ व्यापार में िद
ृ धध हुई। इििे
आतंररक व्यापार एिं उत्पादन में भी उन्ननत हुई।
महमद
ू गिाँ ने अनेक िध
ु ार ककये क्जनमें िे कई तो अमीरों की शक्तत को िीसमत करने के सलये थे। प्रत्येक अमीर
के िेतन एिं दानयत्ि ननधामररत कर ददये गए थे।
महमद
ू गिाँां ने िांस्कृनतक िेतु के रूप में ईरान एिं रोम) टकी (िदहत पक्श्चम एसशया के कुछ प्रमि
ु दे शों के
िाथ ननकट िंबंध स्थावपत ककये क्जििे उिर भारत में सभन्न िंस्कृनत का विकाि हुआ और इिने मग
ु ल िंस्कृनत
को भी प्रभावित ककया।
महमूद गिाँां ने बीदर में एक भव्य मदरिा अथिा महाविदयालय का ननमामण करिाया क्जिमें एक हज़ार सशक्षकों
एिं विदयाधथमयों के रहने की व्यिस्था थी। इिके आग्रह पर ईरान एिं इराक के ििामधधक प्रसिदध विदिान इि
मदरिे िे जुड़े भी थे।
उपयत
ुम त विशेषताओं के बािजूद महमूद गिाँां की अपनी कसमयाँ भी थीं। उिने उन कसमयों को दरू करने का
प्रयाि ककया लेककन दलगत झगड़ों पर अंकुश नहीं लगा पाया क्जििे विरोधधयों को युिा िुल्तान के कान भरने
में िफलता समली, पररणामस्िरूप उिे मत्ृ युदंड दे ददया गया।
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अध्याय-15
विियनगर साम्राज्य
मध्यकालीन भारत नोट्स
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विजयनगर िाम्राज्य) लगभग 1350 ई .िे 1565 ई(. की स्थापना राजा हररहर ने की थी। ‘विजयनगर’ का अथम
होता है ‘जीत का शहर’।
मध्ययुग के इि शक्ततशाली दहन्द ू िाम्राज्य की स्थापना के बाद िे ही इि पर लगातार आक्रमण हुए लेककन इि
िाम्राज्य के राजाओं ने इन आक्रमणों का कड़ा जिाब ददया। यह िाम्राज्य कभी दि
ू रों के अधीन नहीं रहा।
इिकी राजधानी को कई बार समट्टी में समला ददया गया लेककन यह कफर िड़ा कर ददया गया।
हम्पी के मंददरों और महलों के िंडहरों को दे िकर जाना जा िकता है कक यह ककतना भव्य रहा होगा। इिे यन
ू ेस्को
ने विश्
ि धरोहर में शासमल ककया है ।
स्र्ापना
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विियनगर के राििंश
विजयनगर िाम्राज्य पर क्जन राजिंशों ने शािन ककया, िे ननम्नसलखित हैं-
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राज्यारोहण के तुरंत बाद इन्हें कफरोजशाह बहमनी के आक्रमण का िामना करना पड़ा।
इन्हें को कफरोजशाह बहमन ने पराक्जत ककया। इिे बहमनी िुल्तान के िाथ अपनी लड़की का वििाह करना पड़ा तथा
दहे ज के रूप में दोआब क्षेत्र में क्स्थत बाकापुर भी िुल्तान को दे ना पड़ा, ताकक भविष्य में युदध की गुंजाइश न रहे ।
1410 ई .में तुंगभरा पर बाँध बनिाकर अपने राजधानी के सलए जल ननकलिाया।
इिी के काल में इतािली यात्री ननकोलोकोंटी ने विजयनगर की यात्रा की, यहाँ के िामाक्जक जीिन, त्योहारों का भी
िणमन अपने िि
ृ ान्त में ककया है ।
इिके दरबार में हरविलाि तथा तेलग
ु ू कवि श्री नाथ थे।
दे िराय दवितीय (1422-1446 ई.)
यह बत
ु का का पत्र
ु था। इनका असभलेि परु े विजयनगर िाम्राज्य में प्राप्त हुआ है ।
इनके असभलेिों िे ज्ञात होता है कक इन्हें गजबेटकर अथामत ् हाधथयों का सशकारी की उपाधध समली।
इनको इम्माडी दे िराय या प्रौढ़ दे िराय भी कहा जाता था।
पत
ु ग
म ाली यात्री ननू नज ने उल्लेि ककया है कक क्तिलान, श्रीलंका, पल
ु ीकट आदद इन्हें कर दे ते थें।
िेना को शक्ततशाली बनाने के सलए इन्होनें िेना में मुिलमानों को भती ककया तथा उन्हें जागीरें दीं।
फारि के दत
ू अब्दरु म ज्िाक ने विजयनगर िाम्राज्य का 1443 ई .में भ्रमण ककया।
मक्ल्लकाजुन
म (1446-1465 ई.)
यह दे िराय दवितीय का उिराधधकारर एिं ज्येष्ठ पुत्र था।
इिी के शािनकाल में चंरधगरर के िालुि नायक नरसिंह, को ख्यानत प्राप्त हुई और उिने बहमनी और उड़ीिा के
आक्रमणों का प्रनतरोध ककया।
विरूपाक्ष
मक्ल्लकाजन
ुम के उिराधधकारर विरूपाक्ष दवितीय एक अयोग्य शािक था।
विजयनगर िाम्राज्य में गड़बड़ी और अव्यिस्था फैली हुई थी। इिका लाभ उठाकर बहमनी िल् ु तान कृष्णा एिं
तंग
ु भरा दोआब में बढ़ गया तथा उड़ीिा का राजा परु
ु षोिम गजपनत दक्षक्षण में नतरुिन्न्मलय तक बढ़ आया।
सालुि िंश )1485-1505 ई.(
विजयनगर में व्याप्त अराजकता की क्स्थनत को दे िकर एक शक्ततशाली िामन्त नरसिंह िालि
ु ने 1485 ई .
में िालि
ु िंश की स्थापना की। इिे प्रथम बलापहर कहा गया।
नरसिंह िालि
ु के दिारा ननयत
ु त नरिा नायक ने चोल, पाण्ड्य और चेरों पर आक्रमण कर इन्हें विजयनगर
की प्रभि
ु िा स्िीकार करने के सलए बाध्य ककया।
1505 ई .में नरिा नायक के पुत्र िीर नरसिंह ने शािक की हत्या कर तुलुि िंश की स्थापना की।
तुलुि िंश )1505-1570 ई.(
िीर नरसिंह
िीर नरसिंह के इि तरह राजगददी पर अधधकार करने को विजयनगर िाम्राज्य के इनतहाि में दवितीय बलापहार
की िंज्ञा दी गई।
कृष्ण दे िराय (1509-1529 ई.)
कृष्ण दे ि राय न केिल तल
ु ि
ु िंश का अवपतु परू े विजय नगर का ििमश्रेष्ठ शािक था। इिने विजयों अपनी
िांस्कृनतक उपलक्ब्धयों िे विजय नगर िम्राज्य को अपने िमय में ििमश्रेष्ठ बना ददया। यहाँ तक की बाबर ने
अपनी पस्
ु तक बाबरनामा में कृष्ण दे ि राय की प्रशंिा की है ।
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विियें:- गिपनत शासकों के विरूदध वििय:-गजपनतयों का शािन उड़ीिा में स्थावपत था। िे काफी
शक्ततशाली थे कृष्ण दे ि राय के िमकालीन गजपनत नरे श प्रताप रुर दे ि गजपनत था। उिे कृष्ण दे िराय ने
तीन बार पराक्जत ककया तथा उिके कुछ क्षेत्रों पर अधधकार कर सलया। दोनों के बीच एक िैिादहक िम्बन्ध भी
स्थावपत हुआ।
पत
ु ग
म ासलयों से सम्बन्ध
पुतग
म ीज कृष्ण दे ि राय िे शाक्न्त िंधध करना चाहते थे। परन्तु प्रारम्भ में कृष्ण दे ि राय ने कोई िकारात्मक
उिर नहीं ददया। जब पुतग
म ीजों ने 1510 ई0 में बीजापुर िे गोिा छीन सलया तब कृष्णदे ि राय ने उनिे िंधध कर
ली, इिका मूल उददे श्य गोिा बन्दरगाह िे घोड़ों को प्राप्त करना था।
कृष्णदे ि राय की उपार्धयााँ
1. यिन राज्य स्र्ापनाचायम-:कृष्ण दे ि राय ने बहमनी शािक महमूद शाह को दक्षक्षण की लोमड़ी के नाम िे
प्रसिदध बीदर के चंगुल िे मुतत करिाया इिके उपलक्ष्य में उिने यिन राज्य स्थापना चायम की उपाधध धारण
की।
2. आन्रभोि अर्िा असभनिभोि अर्िा आन्रवपतामह-:कृष्ण दे िराय स्ियं प्रसिदध विदिान था। उिे कई
पुस्तकों को सलिने का श्रेय ददया जाता है । इिके दरबार में भी तेलगू िादहत्य के आठ प्रसिदध विदिान रहते थे।
क्जन्हें अष्ट ददग्गज कहा जाता था। इिी कारण कृष्ण दे िराय को आन्र भोज कहा जाता है ।
कृष्ण दे ि राय की पुस्तकें
1. आमक्
ु त माल्यद:-तेलगू भाषा में यह राजनीनत शास्त्र पर सलिी गई पस्
ु तक है। इिे विश्िवििीय भी कहा जाता
है ।
2. ऊषा पररणय:-यह िंस्कृत में सलिी पस्
ु तक है ।
3. िाम्बिती कल्याण-:यह भी िंस्कृत में सलिी पस्
ु तक है।
अष्ट हदग्गि:-कृष्ण दे ि राय के दरबार में तेलगू िादहत्य के आठ प्रससदध विदिान थे क्जन्हें अष्ट ददग्गज कहा जाता
था।
1. अल्सनी पेड्डन:– ये ििामधधक महत्िपूणम विदिान थे। इन्हें तेलगू कविता के वपतामह की उपाधध दी गयी।
इनकी पुस्तक मनु चररत हे। स्िारोधचत्रिंभि, हररकथा िरनिंभू, की भी रचना की।
2. तेनाली रामकृष्ण:-इनकी पस्
ु तक का नाम’’ पाण्डुरं गमहात्म इिकी गणना पाँच महाकाब्यों) तेलगू भाषा के (में
की जाती है ।
3. नदी नतम्मन-:इनकी पुस्तक पराक्जत हरण है।
4. भट्टमूनतम:-अलंकार शास्त्र िे िम्बक्न्धत पुस्तक नरि भू पासलयम ् इनकी रचना है।
5. ध-ू िोटे :-पुस्तक कल हक्स्त महात्म है ।
6. भोदयगीर मल्लनम:-पुस्तक, राजशेिर चररत,
7. अच्युतराि रामचन्द्र:-पुस्तक, रामाभ्युदय, िकलकथा िार िंग्रह
8. जिंगली सूरत-:पुस्तक राघि पाण्डिीय,
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इनके दरबार को तेलुगू के आठ महान ् विदिान ् एिं कवि) क्जन्हें अष्टददग्गज कहा जाता है ।( िुशोसभत करतें थें।
अतः कृष्ण दे िराय को आन्र भोि भी कहा जाता है । अष्टहदग्गि इन्होनें अनेक मक्न्दरों, मण्डपों, तालाबों आदद
का ननमामण कराया।
अपनी राजधानी विजयनगर के ननकट नागलापुर नामक नगर की स्थापना की।
डोसमगो पायि और क्रुआई बाबोि नामक पुतग
म ाली यात्री इन्हीं के शािनकाल में भारत आये थे।
कृष्ण दे िराय ने बंजर और जंगली भसू म को कृवषयोग्य बनाने की कोसशश की।
उन्होंने वििाह कर जैिे अलोकवप्रय करों को िमाप्त ककया।
उन्होंने हिारा मजन्दर तथा विट्ठल स्िामी के मक्न्दर का ननमामण कराया।
वििय नगर कालीन कला
विजय नगर कालीन मंददर रविण शैली के उदाहरण हैं। परन्तु इनकी दो अन्य विशेषताएं भी हैं।
1. कल्याण मंडप-: यह गभम गह
ृ के बगल में एक िल
ु ा प्रांगण होता है । क्जिमें दे िी-दे िताओं िे िम्बक्न्धत िमारोह एिं
वििाहोत्िि आदद आयोक्जत ककये जाते थे।
2. कृष्ण दे ि राय के िमय में हजार स्तम्भों िाले मंडपों का ननमामण हुआ।
कृष्ण दे िराय के िमय के प्रमुि मंददरों में विट्ठल स्िामी का मक्न्दर एिं हजारा राम का मंददर प्रसिदध है ।
नगर ननमामण-: कृष्ण दे ि राय को नागलापुर नामक नगर ननमामण का श्रेय ददया जाता है । इिके अनतररतत हास्पेट नगर
के ननमामण का भी श्रेय दे ते हैं
विदे शी यारी
(1) बारबोसा :- 1508 में स्थान-:पत
ु ग
म ीज
(2) पायस:-1520 ई0 िे 22 ई0 में पत
ु ग
म ीज विजय नगर आये।
वििय नगर के मनोरं िन के साधन
कृष्ण दे ि राय को िंगीत और शंतरांज का बहुत शौक था।
अच्युत दे िराय( 1529-1542 ई).
यह कृष्ण दे िराय का नामजद उिराधधकारी था। नूननज कुछ िमय इिके दरबार में भी रहा था।
इिके शािन की िास्तविक शक्तत आरिीडु िंशीय मंत्री रामराय के हाथों में थी।
इिने िेना में बहुत िारे मुिलमानों की ननयुक्तत की थी।
इिी के काल में तालीकोटा का युदध (23 जनिरी, 1565) हुआ। इि युदध में विजयनगर के विरुदध एक
महािंघ बना, क्जिमें अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा और बीदर शासमल थे, जबकक बरार इि िंघ में
िक्म्मसलत नहीं हुआ।
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केन्द्रीय विभािन
केन्र प्रान्तों में विभाक्जत थे क्जिे राज्य या मंड्लम कहा जाता था। विजय नगर काल में कुल छः प्रान्त थे।
हलांकक पायि ने 200 प्रान्तों का उल्लेि ककया है ।
प्रान्तों के प्रमुि युिराज अथिा दं डनायक होते थे। दं डनायक एक पदिूचक शब्द था। जो विसभन्न अधधकाररयों
के सलए प्रयुतत होता था।
दं डनायक को िेनापनत न्यायधीश गिमनर प्रशािकीय, अधधकारी आदद कुछ भी बनाया जा िकता था।
कायमकताम:-यह प्रशािकीय अधधकाररयों की एक श्रेणी थी।
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1. भंडार िाद ग्राम-: ऐिे ग्राम क्जनकी भूसम राज्य के िीधे ननयंत्रण में होती थी।
2. ब्रम्ह दे य-: िाहमणों को दान में दी गयी कर मुक्तत भूसम।
3. दे ि दे य-:मंददरों को दान में दी गयी कर मत
ु त भूसम।
4. मठीपुर-: मठों को दान में दी गयी कर मत
ु त भूसम।
5. अमरम:– नायकों को दी गयी भूसम।
6. ऊंबसल-: ग्राम के कुछ विशेष िेिाओं के बदले में लगान मक्ु तत भसू म।
7. रक्त कौडगै अर्िा ख्रन्त कोडगै-: यद
ु ध में शौयम प्रदशमन करने िालों को दी गयी भसू म।
8. कुट्टर्ग:- िाहमणों बड़े भ-ू स्िासमयों आदद दिारा ककिानों को पट्टे पर दी गयी भसू म।
9. िारम व्यिस्र्ा:– पट्टे दार एिं भस्
ू िामी के बीच उपज की दहस्िेदारी।
10. कुहद:-कृषक मजदरू ।
व्यापार
विजय नगर काल में विदे शी व्यापार उन्ननत अिस्था में था पायि ने सलिा है कक प्रत्येक गली में मंददर है
तयोंकक ये िभी सशक्ल्पयों तथा व्यापाररयों िे कपड़ा िानों की िद
ु ाई इि िमय के प्रमुि व्यििायों में कपड़ा
िानों की िद
ु ाई गन्धी का पेशा) इत्र (चीनी, मशाले आदद शासमल थे। अब्दरु म ज्जाक ने 300 का कालीकट
अत्यन्त महत्िपण
ू म बन्दरगाह था। भारत के जहाज मालदिीप के दिीपों में बनते थे।
’’प्रमख
ु व्यापाररक दे श’’
पत
ु ग
म ाल, चीन, यरू ोपीय दे श, फारि, दक्षक्षण अफ्रीका, दक्षक्षण पि
ू म एसशया, िमाम, अरब आदद।
’प्रमख
ु ननयामनतत िस्तए
ु ’ं
कपड़ा, मिाले, चीनी, चािल, लोहा, िोना ज्ञदि3 बारूद) जहाजों के िैलेन्ि बनाने के सलए रिते थे (मोती आदद।
’प्रमुख आयानतत िस्तुएं’
घोड़ा, मददरा, मोती, मंग
ू ा, पारा, मलमल आदद।
ससक्के
1. िराह:-यह विजय नगर का ििामधधक प्रसिदध स्िणम सितका था। जो 52 ग्रेन का होता था। इिे विदे शी यात्री पगोड़ा,
हूण, अथिा परदौि के रूप में उल्लेि करते हैं।
2. प्रताप:- 26 ग्रेन के या आधे िराह को प्रताप कहा जाता था।
3. फणम ्:-55 ग्रेन के स्िणम सितकों को फणम ् कहा जाता था।
4. तार ;चाँदी के छोटे सितकों को कहा जाता था। विजय नगर काल में मख्
ु यतः स्िणम एिं ताँबें के सितके ही प्रचसलत थे।
चाँदी के थोड़े ही ज्ञात है । विजय नगर के शािकों के सितकों पर हनमान एिं गरुण की आकृनत ददिाई पड़ती है। तुलुि
िंश के शािकों के सितकों पर बैल, गरुण, सशि, पािमती, कृष्ण आदद की आकृनतयां समलती हैं।
सामाजिक दशा
विजय नगर कालीन असभलेिों में िकल िणामश्रम धमम मंगला-नुपासल िुन्त नामक शब्द का प्रयोग हुआ है ।
इििे पता चलता है कक राजा िभी िणों के मंगल की कामना करता था। िमाज में मख्
ु यतः ननम्नसलखित िगम
प्रचसलत थे-
1. ब्राहमण-: उिर भारत के विपरीत दक्षक्षण भारतीय िाहमण मांि, मददरा, आदद का िेिन करते थे। िमाज में
इनका स्थान ििोच्च था। इन्हें ककिी भी कायम के सलए मत्ृ यद
ु ं ड नहीं ददया जाता था। दं ड नायक आदद पदों पर
अधधकांशतः इन्हीं की ननयक्ु तत होती थी।
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2. चेट्टी अर्िा शेट्टी-: िाहमणों के बाद इि िगम की िामाक्जक क्स्थनत अच्छी थी। अधधकांश व्यापार इिी िगम
के हाथों में था।
3. िीर पंचाल-: चेट्दटयों के ही िमतुल्य व्यापार करने िाले ये दस्तकार िगम के लोग थे। इिमें लोहार, स्िणमकार,
कांस्यकार, बढ़ई, कैकोल्लार) बुनकर (कंबलिर) चपरािी आदद िगम शासमल थे (इन मध्य िगों में लोहारों की
क्स्थत िबिे अच्छी थी। कैकोल्लार अथिा जुलाहे मंददरों के आि-पाि रहते थे। इनका मंददरों के प्रशािन पर
भी अत्यन्त महत्िपण
ू म योगदान होता था। इिके अनतररतत नाइयों की भी अत्यन्त प्रनतष्ठा भी थी।
बडिा िगम-: ये िे लोग थे जो उिर भारत िे आकर दक्षक्षण भारत में बि गये थे। इन्होंने दक्षक्षण के व्यापार पर
अधधकार कर सलया था। इि कारण एक िामाक्जक विदिेष की भािना पनप रही थी।
ननम्न िगम -:विजय नगर काल में कुछ ननम्न िगों का भी उल्लेि समलता है जैि-े डोंबर-जो बाजीगरी का कायम
करते थे। जोगी और मछुआरे की दशा भी िराब थी। कुछ अन्य िगों जैिे परय्यन, कल्लर आदद का भी उल्लेि
है ।
दास प्रर्ा-: दाि प्रथा का उल्लेि ननकालो कोण्टी ने ककया है । परु
ु ष एिं मदहला दोनों प्रकार के दाि थे। दािों के
क्रय-विक्रय को िेििेंग कहा जाता था।
जस्रयों की दशा-: क्स्त्रयों की दशा िामान्यतः ननम्न थी। परन्तु उिर भारत की अपेक्षा कुछ अच्छी थी। ये
अंगरं क्षक्षकाएं भी होती थी। विजय नगर काल में गखणकाओं की क्स्थत उच्च थी। िेश्याओं िे प्राप्त कर िे पुसलि
एिं िैन्य विभाग का िचम चलता था।
िामान्यतः विधिाओं की क्स्थनत िोचनीय थी। परन्तु विधिा वििाह को वििाह कर िे मुतत रिा गया था।
इििे पता चलता है कक विजय नगर के शािक विधिाओं की दशा को िुधारना चाहते थे।
दहे ि प्रर्ा-:इि काल में भी दहे ज प्रथा प्रचसलत थी। दे ि राय दवितीय ने 1424-25 ई0 के एक असभलेि में दहे ज
को अिैधाननक घोवषत कर ददया था।
सती प्रर्ा-: विजय नगर में िती प्रथा भी प्रचसलत थी। इिका िणमन बारबोिा ने ििमप्रथम ककया है । दवितीय
बार िती प्रथा का उल्लेि करने िाले ननकोलो कोण्टी था। इिका प्रमाण असभलेिीय िाक्ष्यों के आधार पर भी
ददया जा िकता है ।
बुतका प्रथम के िमय के 1354 ई0 के एक असभलेि में मालागौड़ा नामक एक मदहला के िती हो जाने का
उल्लेि है । परन्तु असभलेिीय एिं विदे शी याबत्रयों के िणमन में विरोधाभाि ददिाई पड़ता है। जहाँ असभलेिीय
प्रमाणों के अनुिार यह प्रथा नायकों तथा राज पररिारों तक ही िीसमत थी िहीं बारबोिा के अनुिार िाहमणों,
चेट्दटयों, सलंगायतों में यह प्रथा प्रचसलत नहीं थी। िती होने िाली स्त्री के स्मनृ त में पाषाण स्मारक लगाये जाते
थे। क्जिे ितीकल कहा जाता था।
िस्राभूषण-:िामान्य िगम के पुरुष धोती और िफेद कुताम पहनते थे। पगड़ी भी पहनने की प्रथा प्रचसलत थी।
परन्तु िे जत
ू े नहीं पहनते थे। िामान्य िगम की क्स्त्रयाँ िाड़ी पहनती थीं जबकक राज पररिार की क्स्त्रयाँ पािड़
)एक प्रकार का पेटीकोट(। स्त्री एिं परु
ु ष दोनों आभष
ू ण वप्रय थे। इिी तरह उनमें इत्रों के प्रनत लगाि था।
गंड पेद्र-: यद
ु ध में िीरता ददिाने िाले परु
ु ष दिारा पैरों में धारण करने िाला कड़ा जो िम्मान का प्रतीक माना
जाता था।
सशक्षा एिं मनोरं िन-: विजय नगर काल में सशक्षा का कोई विभाग नही था न ही ककिी विदयालय की स्थापना
करिाई गयी थी। यह मल
ू तः मंददरों मठों और अग्रहारों में दी जाती थी। लोक वप्रय विषयों में िेद परु ाण, इनतहाि,
काव्य, नाटक, आयि
ु ेद आदद प्रमि
ु थे।
मनोरं जन के िाधनों में नाटक यक्षगान मंच पर िंगीत और िादयों दिारा असभनय लोकवप्रय थे।
िोम लाट-:एक प्रकार का छाया नाटक था। शतरं ज और पािा भी लोकवप्रय थे। कृष्ण दे िराय स्ियं शतरं ज का
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Q- भारतीय कला, संस्कृनत और स्र्ापत्य के क्षेर में विियनगर साम्राज्य के योगदान की चचाम करें ।
भारतीय कला िंस्कृनत और स्थापत्य के विकाि की दृक्ष्ट िे विजयनगर िाम्राज्य अत्यंत महत्िपण
ू म रहा है । इि
दौरान भारतीय कला तथा िंस्कृनत का बहुआयामी विकाि हुआ। इिे ननम्नसलखित रूपों में दे िा जा िकता है-
विियनगर साम्राज्य में कला एिं संस्कृनत का विकास:
विजयनगर शािकों ने अपने दरबार में बड़े-बड़े विदिानों एिं कवियों को स्थान ददया। इििे इि काल में िादहत्य
के क्षेत्र में अभूतपूिम प्रगनत हुई। राजा कृष्णदे ि राय एक महान विदिान, िंगीतज्ञ एिं कवि थें। उन्होंने तेलुगू भाषा
में ‘ अमुततमाल्यदा’ तथा िंस्कृत में ‘ जांबिती कल्याणम ् ’नामक पुस्तक की रचना की। उनके राजकवि पददन
ने‘ मनुचररत्र ’तथा‘ हररकथा शरणम ् ’जैिी पुस्तकों की रचना की। िेदों के प्रसिदध भाष्यकार‘ िायण ’तथा उनके
भाई माधि विजयनगर के शािन के आरं सभक काल िे िंबंधधत हैं। िायन ने चारों िेदों पर टीकाओं की रचनाकार
िैददक िंस्कृनत को बढ़ािा ददया।
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धचत्रकला के क्षेत्र में ‘ सलपाक्षी शैली ’तथा नाटकों के क्षेत्र में ‘ यक्षगान ’का विकाि हुआ। सलपाक्षी कला शैली के
विषय रामायण एिं महाभारत िे िंबंधधत हैं।
विजयनगर के शािकों ने विसभन्न धमों िाले लोगों को प्रश्रय ददया। बारबोिा ने कहा है “-राजा इतनी स्ितंत्रता
दे ता है कक ......प्रत्येक व्यक्तत बबना इि पूछताछ के कक िह ईिाई है या यहूदी, मूर है या विधमी, अपने मत और
धमम के अनुिार रह िकता है । इििे भारत में एक िमािेशी िंस्कृनत के ननमामण को बढ़ािा समला।
विियनगर साम्राज्य में स्र्ापत्य का विकास:
विजयनगर िाम्राज्य में िंस्कृनत के िाथ-िाथ कला तथा िास्तक
ु ला की भी उन्ननत हुई। कृष्णदे ि राय ने
हजारा एिं विट्ठल स्िामी मंददर का ननमामण करिाया। ये मंददर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमन
ू े हैं। मंडप के
अलािा‘ कल्याण मंडप ’का प्रयोग, विशाल अलंकृत स्तंभों का प्रयोग तथा एकात्मक कला िे ननसममत स्तंभ एिं
मनू तमयाँ विजयनगर स्थापत्य की विसशष्टता को दशामते हैं। स्थापत्य कला की दृक्ष्ट िे विजयनगर ककिी भी
िमकक्ष नगर िे कमतर नहीं था। अब्दल
ु रज्जाक विजयनगर को विश्ि में कहीं भी दे िें या िन
ु े गए ििामधधक
भव्य एिं उत्कृष्ट नगरों में िे एक मानता है । उिका कहना था की नगर इि रीनत िे ननसममत है कक िात नगर-
दग
ु म और उतनी ही दीिारें एक दि
ू रे को काटती हैं। िातिां दग
ु म जो अन्य दग
ु ों के केंर में क्स्थत है , का क्षेत्र विस्तार
दहरात नगर के बाजार केंर िे 10 गुना बड़ा है । बाजारों के िाथ-िाथ राजा के महलों में तराशे हुए धचकने और
चमकीले पत्थरों िे ननसममत अिंख्य बहती धाराएँ और नहरें दे िी जा िकती थीं। ये विजयनगर स्थापत्य की
उत्कृष्टता को दशामते हैं।
स्पष्ट है कक भारतीय िंस्कृनत और स्थापत्य के विकाि में विजयनगर िाम्राज्य का अभूतपूिम योगदान है।
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अध्याय-16
मग़
ु ल साम्राज्य )1526-1707)
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बाबरदिारालडेगएप्रमख
ु यद
ु धर्े
(i) पानीपतकाप्रथमयद
ु ध21 अप्रैल, 1526 ईकोइिादहमलोदीऔरबाबरकेबीचहुआ., क्जिमें बाबरकी
जीतहुई.
(ii) िनिाकायद
ु ध17 माचम1527 ईमें राणािांगाऔरबाबरकेबीचहुआ, क्जिमें बाबरकीजीतहुई.
(iii) चंदेरीकायद
ु ध29 माचम1528 ईमें मेदनीरायऔरबाबरकेबीचहुआ, क्जिमें बाबरकीजीतहुई.
(iv) घाघराकायद
ु ध6 मई1529 ईमें अफगानोऔरबाबरकेबीचहुआ, क्जिमें बाबरकीजीतहुई.
नोट-पानीपतकेप्रर्मयद
ु धमें बाबरनेपहलीबारतग
ु ल्लमायद
ु धनीनतकाइस्तेमालककया
पानीपत का प्रर्म यद
ु ध बाबरकाभारतपरउिकेदिाराककयागया पांचिा आक्रमणथा, क्जिमें उिनेइिादहम
लोदीकोहराकरविजयप्राप्तकीथीऔरमग़
ु लिाम्राज्यकीस्थापनाकीथी।
उिकी विजय का मख्
ु य कारण उिका तोपखाना और कुशल सेना प्रनतननर्धत्ि था। भारत
में तोप का सिमप्रर्म प्रयोगबाबरनेहीककयाथा।
पानीपतके इिप्रथमयद
ु धमें बाबरने उज्बेकों की‘तल
ु गमायद
ु धपदधनत‘तथातोपोंकोिजाने केसलये
‘उस्मानीविर्ध‘क्जिे‘रूमीविर्ध‘भीकहाजाताहै , काप्रयोगककयाथा।
पानीपतकेयद
ु धमें विजयकीिुशीमें बाबरनेकाबल
ु केप्रत्येकननिािीकोएकचाँदीकासितकादानमें
ददयाथा।अपनीइिीउदारताकेकारणबाबरको‘कलन्दर‘भीकहाजाताथा।
बाबरनेददल्लीिल्तनतकेपतनकेपश्चातउनकेशािकों‘को)ददल्लीशािकों(सल्
ु तान‘कहे जानेकीपरम्परा
कोतोड़करअपनेआपको‘बादशाह‘कहलिानाशरू
ु ककया।
पानीपत के यद
ु ध के बाद बाबर का दस
ू रा महत्िपण
ू म यद
ु ध राणा सांगा के विरुदध 17 माचम, 1527
ई० में आगरािे 40 ककमीदरू खानिा नामकस्थानपर हुआथा।क्जिमें विजयप्राप्तकरने केपश्चातबाबर
ने गाजी की उपाधध धारण की थी। इि यद
ु ध के सलये अपने िैननकों का मनोबल बढ़ाने के सलये बाबर ने
‘जिहाद‘ कानाराददयाथा।
िाथहीमि
ु लमानोंपरलगनेिालेकर‘तमगा‘कीिमाक्प्तकीघोषणाकीथी, यहएकप्रकारकाव्यापाररक
करथा। राजपत
ू ोंकेविरुदध इि‘खानिाके यद
ु ध‘काप्रमि
ु कारणबाबरदिाराभारतमें हीरुकनेकाननश्चय
था।
29 िनिरी, 1528 कोबाबरने चंदेरी केशािक मेहदनीराय परआक्रमणकरउिे पराक्जतककयाथा।यह
विजयबाबरको मालिा क्जतनेमें िहायकरहीथी।इिकेबादबाबरने 06 मई, 1529 में ‘घाघराकायद
ु ध‘
लड़ाथा।क्जिमें बाबरने बंगाल और बबहार की संयक्
ु तअफगानसेना कोहरायाथा।
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बाबरनेअपनीआत्मकथा‘बाबरनामा‘काननमामणककयाथा, क्जिे तक
ु ी में ‘ति
ु क
ु े बाबरी‘कहाजाताहै ।क्जिे
बाबरनेअपनी मातभ
ृ ाषा चागताईतक
ु ी में सलिाहै ।इिमें बाबरने तत्कालीनभारतीयदशाकावििरणददया
है । क्जिका फारसी अनि
ु ाद अब्दरु म हीम खानखाना ने ककया है और अंग्रेिी अनि
ु ाद श्रीमती बेबररिदिारा ककया
गयाहै ।
बाबरनेअपनीआत्मकथामें ’बाबरनामा‘ कृष्णदे िराय तत्कालीन विियनगर केशािककोिमकालीनभारत
काशक्ततशालीराजाकहाहै।िाथही पांचमजु स्लम और दोहहन्द ू राजाओं मेिाड और विियनगर काहीक्जक्र
ककयाहै ।
बाबरने ‘ररसालउसि-ए-‘कीरचनाकीथी, क्जिे ‘खतबाबरी-ए-‘भीकहाजाताहै ।बाबरने एकतक
ु ी काव्य
िंग्रह‘हदिान‘कािंकलनभीकरिायाथा।बाबरने‘मब
ु इयान‘नामक पदयशैलीकाविकािभीककयाथा।
बाबर ने संभल और पानीपत में मजस्िद का ननमामण भी करिाया था। िाथ ही बाबर के िेनापनत मीर
बाकी ने अयोध्या में मंहदरों के बीच 1528 िे 1529 के मध्य एक बडी मजस्िद का ननमामण करिाया था,
क्जिे बाबरीमजस्िद[3] केनामिेजानागया।
बाबरने आगरा में एक बाग काननमामणकरिायाथा, क्जिे ‘नरू अफगान-ए-‘कहाजाताथा, क्जिे ितममानमें
‘आरामबाग-‘केनामिेजानाजाताहै ।इिमें चारबागशैली काप्रयोगककयागयाहै । यहीं पर 26 हदसम्बर,
1530 को बाबरकीमत्ृ यु केबादउिको दफनाया गयाथा।परन्तु कुछिमय बादबाबरकेशिकोउिके
दिाराही चुनेगए स्थान काबल
ु में दफनायागयाथा।
बाबरके चार पत्र ु हहन्दाल, कामरान, अस्करी और हुमायूाँ थे।क्जनमें हुमायूँ िबिेबड़ाथाफलस्िरूप बाबरकी
मत्ृ यु केपश्चातउिकािबिेबड़ा पत्र
ु हुमायाँू अगला मग़
ु लशासक बना।
1. खानाबदोश – मानिोंकाऐिािमद
ु ाययािमह
ू , जोएकहीस्थानपररहने केबजाय, एकस्थानिे दि
ू रे
स्थानपरननरन्तरभ्रमणशीलरहतेहैं।
2. जिहाद – इस्लामकीरक्षाकेसलयेककएजानेिालेधममयद
ु धकोक्जहादकहाजाताहै ।
3. बाबरीमजस्िद – यहएकवििादास्पदघटनाहै , जोककितममानमेंभीवििादोंमेंहै ।इिघटनाने दोधमोंके
मध्यझगडेकोपैदाककया।अयोध्यामें राममंददरथायाबाबरीमक्स्जदइिकोलेकरितममानिप्र
ु ीमकोटम में
केिभीचलरहाहै । ()तकननणमयआनेकीउमीदहै 2019अतटूबर18
अगरबाबरभारतनआतातोभारतीयिंस्कृनतकेइंरधनष
ु केरं गफीकेरहतेउनकेअनि
ु ारभाषा., िंगीत,
धचत्रकला, िास्तक
ु ला, कपड़ेऔरभोजनकेमामलोंमेंमग़
ु लयोगदानकोनकारानहींजािकता.
बाबरकेबारे में कुछबातोंपरएकनजर
हरबंि मखु िया कहते हैं कक यह आम ग़लत़िहमी है कक अयोध्या की वििादास्पद बाबरी मक्स्जद बाबर ने
बनिाईथीउनकेमत
ु ाबबक., बाबरीमक्स्जदकाक्ज़क्रउिकेक्ज़ंदारहने तकयाउिकेमरने केकईिौिाल
तकनहींसमलता.
बाबरने 1526 में पानीपतकीलड़ाईमें जीतकीखश
ु ीमें पानीपतमें हीएकमक्स्जदबनिाईथी, जोआज
भीिहीीँिड़ीहै .
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ु लसम्राज्यकीस्र्ापना
मग
बाबरअबभारतमें तेजीिेमुगलिम्राज्यकाविस्तारकररहाथाऔरअबतकबाबरकाशािन
कंधारिेबंगालकीिीमाकेिाथराजपूतरे धगस्तानऔररणथंभौर, ग्िासलयरऔरचंदेरीकेककलेिमेत
दक्षक्षणीिीमाकेअंदरिुरक्षक्षतहोचुकाथा।
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बाबर की मत्ृ यु के बाद उिका पुत्र हुमायूं मुग़ल िंश के शािन पर बैठा।
बाबर के चरों पुत्र-कामरान, अस्करी, दहंदाल और हुमायूं में हुमायूं िबिे बड़ा था।
हुमायूं ने अपने िाम्राज्य का विभाजन भाइयों में ककया था। उिने कामरान को काबुल एिं कंधार, अस्करी को िंभल
तथा दहंदाल को अलिर प्रदान ककया था।
हुमायूं के िबिे बड़े शत्रु अफगान थे, तयोंकक िे बाबर के िमय िे ही मुगलों को भारत िे बाहर िदे ड़ने के सलए
प्रयत्नशील थे।
हुमायूं का िबिे बड़ा प्रनतदिंदी अफगान नेता शेर िां था, क्जिे शेरशाह शूरी भी कहा जाता है।
हुमायूं का अफगानों िे पहला मुकाबला 1532 ई .में ‘ दोहररया ’नामक स्थान पर हुआ। इिमें अफगानों का नेतत्ृ ि
महमूद लोदी ने ककया था। इि िंघषम में हुमायूं िफल रहा।
1532 में हुमायूं ने शेर िां के चन
ु ार ककले पर घेरा डाला। इि असभयान में शेर िां ने हुमायूं की अधीनता स्िीकार कर
अपने पत्र
ु कुतब
ु िां के िाथ एक अफगान टुकड़ी मग
ु लों की िेिा में भेज दी।
1532 ई .में हुमायंू ने ददल्ली में ‘ दीन पनाह ’नामक नगर की स्थापना की।
1535 ई .में ही उिने बहादरु शाह को हराकर गज
ु रात और मालिा पर विजय प्राप्त की।
शेर िां की बढती शक्तत को दबाने के सलए हुमायंू ने 1538 ई .में चन
ु ारगढ़ के ककले पर दि
ू रा घेरा डालकर उिे अपने
अधीन कर सलया।
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1538 ई .में हुमायूं ने बंगाल को जीतकर मुग़ल शािक के अधीन कर सलया। बंगाल विजय िे लौटने िमय 26 जून,
1539 को चौिा के युदध में शेर िां ने हुमायूं को बुरी तरह पराक्जत ककया।
शेर िां ने 17 मई, 1540 को बबलग्राम के युदध में पुनः हुमायूं को पराक्जत कर ददल्ली पर बैठा। हुमायूं को मजबूर
होकर भारत िे बाहर भागना पड़ा।
1544 में हुमायूं ईरान के शाह तहमस्प के यहाँ शरण लेकर पुनः युदध की तैयारी में लग गया।
1545 ई .में हुमायंू ने कामरान िे काबल
ु और गंधार छीन सलया।
15 मई, 1555 को मच्छीिाड़ा तथा 22 जन
ू , 1555 को िरदहंद के यद
ु ध में सिकंदर शाह िरू ी को पराक्जत कर हुमायंू ने
ददल्ली पर पन
ु ः अधधकार सलया।
23 जल
ु ाई, 1555 को हुमायंू एक बार कफर ददल्ली के सिंहािन पर आिीन हुआ, परन्तु अगले ही िषम 27 जनिरी, 1556
को पस्
ु तकालय की िीदढयों िे धगर जाने िे उिकी मत्ृ यु हो गयी।
लेनपल
ू ने हुमायंू पर दटप्पणी करते हुए कहा, “हुमायंू जीिन भर लड़िड़ाता रहा और लड़िड़ाते हुए उिने अपनी जान
दे दी।“
बैरम िां हुमायूं का योग्य एिं िफादार िेनापनत था, क्जिने ननिामिन तथा पुनः राजसिंहािन प्राप्त करने में हुमायूं
की मदद की।
शेरशाह सूरी( 1540 ई- .1545 ई).
बबलग्राम के युदध में हुमायूं को पराक्जत कर 1540 ई .में 67 िषम की आयु में ददल्ली की गददी पर बैठा। इिने मुग़ल
िाम्राज्य की नींि उिाड़ कर भारत में अफगानों का शािन स्थावपत ककया।
इिके बचपन का नाम फरीद था। शेरशाह का वपता हिन िां जौनपरु का एक छोटा जागीरदार था।
दक्षक्षण बबहार के िब
ू ेदार बहार िां लोहानी ने शेर मारने के उपलक्ष्य में फरीद िां की उपाधध प्रदान थी।
बहार िां लोहानी की मत्ृ यु के बाद शेर िां ने उिकी विधिा‘ दद
ू ू बेगम ’िे वििाह कर सलया।
1539 ई .में बंगाल के शािक नि
ु रतशाह को पराक्जत करने के बाद शेर िां ने‘ हजरत-ए-आला ’की उपाधध धारण की।
1539 ई .में चौिा के यद
ु ध में हुमायंू को पराक्जत करने के बाद शेर िां ने‘ शेरशाह ’की उपाधध धारण की।
1540 में ददल्ली की गददी पर बैठने के बाद शेरशाह ने िरू िंश अथिा दवितीय अफगान िाम्राज्य की स्थापना की।
शेरशाह ने अपनी उिरी पक्श्चमी िीमा की िरु क्षा के सलए‘ रोहतािगढ़ ’नामक एक िदृ
ु ढ़ ककला बनिाया।
1542 और 1543 ई .में शेरशाह ने मालिा और रायिीन पे आक्रमण करके अपने अधीन कर सलया।
1544 ई .में शेरशाह ने मारिाड़ के शािक मालदे ि पर आक्रमण ककया। बड़ी मुक्श्कल िे िफलता समली। इि यद
ु ध में
राजपूत िरदार‘ गयता ’और‘ कुप्पा ’ने अफगान िेना के छतके छुड़ा ददए।
1545 ई में शेरशाह ने कासलंजर के मजबूर ककले का घेरा डाला, जो उि िमय कीरत सिंह के अधधकार में था, परन्तु 22
मई 1545 को बारूद के ढे र में विस्फोट के कारण उिकी मत्ृ यु हो गयी।
भारतीय इनतहाि में शेरशाह अपने कुशल शािन प्रबंध के सलए जाना जाता है ।
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शेरशाह ने भूसम राजस्ि में महत्िपूणम पररितमन ककया, क्जििे प्रभावित होकर अकबर ने अपने शािन को प्रबंध का
अंग बनाया।
प्रसिदद ग्रैंड रं क रोड) पेशािर िे कलकिा (की मरम्मत, करिाकर व्यापार और आिागमन को िुगम बनाया।
शेरशाह का मकबरा बबहार के िािाराम में क्स्थत है , जो मध्यकालीन कला का एक उत्कृष्ट नमूना है ।
शेरशाह की मत्ृ यु के बाद भी िूर िंश का शािन 1555 ई .में हुमायूं दिारा पन
ु ः ददल्ली की गददी प्राप्त करने तक कायम
रहा।
अकबर( 1556 ई .– 1605 ई).
1556 ई .में हुमायूं की मत्ृ यु के बाद उिके पुत्र अकबर का कलानौर नामक स्थान पर 14 फरिरी, 1556 को मात्र 13 िषम
की आयु में राज्यासभषेक हुआ।
अकबर का जन्म 15 अतटूबर, 1542 को अमरकोट के राजा िीरमाल के प्रसिदद महल में हुआ था।
अकबर ने बचपन िे ही गजनी और लाहौर के िूबेदार के रूप में कायम ककया था।
भारत का शािक बनने के बाद 1556 िे 1560 तक अकबर बैरम िां के िंरक्षण में रहा।
अकबर ने बैरम िां को अपना िजीर ननयुतत कर िाना-ए-िाना की उपाधध प्रदान की थी।
5 निम्बर, 1556 को पानीपत के दवितीय युदध में अकबर की िेना का मुकाबला अफगान शािक मुहम्मद आददल
शाह के योग्य िेनापनत है मू की िेना िे हुआ, क्जिमें है मू की हार एिं मत्ृ यु हो गयी।
1560 िे 1562 ई .तक दो िषों तक अकबर अपनी धय मां महम अनगा, उिके पुत्र आदम िां तथा उिके िम्बक्न्धयों
के प्रभाि में रहा। इन दो िषों के शािनकाल को पेटीकोट िकामर की िंज्ञा दी गयी है ।
अकबर ने भारत में एक विशाल िाम्राज्य की स्थापना की, जो इि प्रकार है :
मालिा 1561 ई.
चन
ु ार 1561 ई.
गोंडिाना 1564 ई.
गुजरात 1571-72 ई.
काबुल 1581 ई.
सिंध 1591 ई.
बलूधचस्तान 1595 ई.
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कश्मीर 1586 ई.
उड़ीिा 1590-91 ई.
कंधार 1595 ई.
रािपूत राज्य
आमें र 1562
हल्दी घाटी यद
ु ध 1568 ई.
रणथम्बौर 1576 ई.
कासलंजर 1569 ई.
मारिाड़ 1570 ई.
जैिलमें र 1570 ई.
बीकानेर 1570 ई.
अकबर ने दक्षक्षण भारत के राज्यों पर अपना आधधपत्य स्थावपत ककया था। िानदे श) 1591), दौलताबाद) 1599),
अहमदनगर) 1600) और अिीर गढ़) 1601) मुग़ल शािन के अधीन ककये गए।
अकबर ने भारत में एक बड़े िाम्राज्य की स्थापना की, परन्तु इििे ज्यादा िह अपनी धासममक िदहष्णुता के सलए
विख्यात है।
अकबर ने 15 75 ई .में फतेहपुर िीकरी में इबादतिाना की स्थापना की। इस्लामी विदिानों की असशष्टता िे
दि
ु ी होकर अकबर ने 1578 ई .में इबादतिाना में िभी धमों के विदिानों को आमंबत्रत करना शुरू ककया।
1582 ई .में अकबर ने एक निीन धमम‘ तोदहद-ए-इलाही ’या‘ दीन-ए-इलाही ’की स्थापना की, जो िास्ति में
विसभन्न धमों के अच्छे तत्िों का समश्रण था।
अकबर ने िती प्रथा को रोकने का प्रयत्न ककया, िाथ ही विधिा वििाह को कानूनी मान्यता दी। अकबर ने लड़कों
के वििाह की उम्र 16 िषम और लड़ककयों के सलए 14 िषम ननधामररत की।
अकबर ने 1562 में दाि प्रथा का अंत ककया तथा 1563 में तीथमयात्रा पर िे कर को िमाप्त कर ददया।
अकबर ने 1564 में जक्जया कर िमाप्त कर िामाक्जक िदभािना को िदृ
ु ढ़ ककया।
1579 में अकबर ने‘ मजहर ’या अमोघिि
ृ की घोषणा की।
अकबर ने गज
ु रात विजय की स्मनृ त में फतेहपरु िीकरी में ‘ बल
ु ंद दरिाजा ’का ननमामण कराया था।
अकबर ने 1575-76 ई .में िम्पण
ू म िाम्राज्य को 12 िब
ू ों में बांटा था, क्जनकी िंख्या बराड़, िानदे श और
अहमदनगर को जीतने के बाद बढ़कर 15 हो गयी।
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अकबर ने िम्पूणम िाम्राज्य में एक िरकारी भाषा) फारिी(, एक िमान मुरा प्रणाली, िमान प्रशािननक व्यिस्था
तथा बात माप प्रणाली की शुरुआत की।
अकबर ने 1573-74 ई .में ‘ मनिबदारी प्रथा ’की शुरुआत की, क्जिकी िलीफा अब्बा िईद दिारा शुरू की गयी
तथा चंगेज िां और तैमूरलंग दिारा स्िीकृत िैननक व्यिस्था िे समली थी।
िहााँगीर( 1605 ई -.1627 ई).
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जहाँगीर के शािन की िबिे उल्लेिनीय िफलता 1620 मेँ उिरी पूिी पंजाब की पहाडडयोँ पर क्स्थत कांगड़ा के
दग
ु म पर अधधकार करना था।
1626 मेँ महाित िान का विरोह जहाँगीर के शािनकाल की एक महत्िपूणम घटना थी। महाित िां ने जहाँगीर
को बंदी बना सलया था। नूरजहाँ की बुदधधमानी के कारण महाित खाँ की योजना अिफल सिदध हुई।
नूर जहाँ िे िंबंधधत िबिे महत्िपूणम घटना उिके दिारा बनाया गया‘ जुंटा गटु ’था। गुट मेँ उिके वपता
एत्माददद
ु ौला, माता अस्मत बेगम, भाई आिफ िान और शाहजादा िरु म म िक्म्मसलत थे।
जहाँगीर ने‘ तज
ु क
ु -ए-जहांगीरी ’नाम िे अपनी आत्मकथा की रचना की।
नरू जहाँ, जहाँगीर के िाथ झरोिा दशमन दे ती थी। सितकोँ पर बादशाह के िाथ उिका नाम भी अंककत होता था।
जहाँगीर के चररत्र की िबिे मख्
ु य विशेषता उिकी‘ अपररसमत महत्िाकांक्षा ’थी।
जहाँगीर ने तंबाकू के िेिन पर प्रनतबंध लगाया था।
जहाँगीर के शािन काल में इंग्लैड के िम्राट जेम्ि प्रथम ने कप्तान हॉककंि) 1608) और थॉमि) 1615) को भारत
भेजा। क्जििे अंग्रेज भारत मेँ कुछ व्यापाररक िवु िधाएँ प्राप्त करने मेँ िफल हुए।
नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम ने इत्र बनाने की विधध का आविष्कार ककया।
जहाँगीर धासममक दृक्ष्ट िे िदहष्णु था। िह अकबर की तरह िाम्हणों और मंददरोँ को दान दे ता था। उिने 1612 ई .
में पहली बार रक्षाबंधन का त्योहार मनाया।
ककंतु कुछ अििरों पर जहाँगीर ने इस्लाम का पक्ष सलया। कांगड़ा का ककला जीतने के बाद उिने एक गाय
कटिाकर जश्न मनाया।
अकबर िलीम को शेिब
ू ाबा कहा करता था। उिने अकबर दिारा जारी गो हत्या ननषेध की परं परा को जारी रिा।
जहाँगीर ने िूरदाि को अपने दरबार मेँ आश्रय ददया था, क्जिने‘ िूरिागर ’की रचना की।
जहांगीर के शािन काल मेँ कला और िादहत्य का अप्रनतम विकाि हुआ। निंबर 16 27 में जहाँगीर की मत्ृ यु हो
गई। उिे लाहौर के शाहदरा मेँ रािी नदी के ककनारे दफनाया गया।
शाहिहााँ( 1627 ई .1658 ई).
शाहजहाँ) िरु म म (का जन्म 1592 मेँ जहाँगीर की पत्नी जगत गोिाईं िे हुआ।
जहाँगीर की मत्ृ यु के िमय शाह जहाँ दतकन में था। जहाँगीर की मत्ृ यु के बाद नरू जहाँ ने लाहौर मेँ अपने दामाद
शहरयार को िम्राट घोवषत कर ददया। जबकक आि़ि िां ने शाहजहाँ के दतकन िे आगरा िापि आने तक
अंतररम व्यिस्था के रुप मेँ िि
ु रो के पत्र
ु दिार बतश को राजगददी पर आिीन ककया।
शाहजहाँ ने अपने िभी भाइयो एिम सिंहािन के िभी प्रनतदिंददयोँ तथा अंत मेँ दिार बतश की हत्या कर 24
फरिरी 1628 मेँ आगरा के सिंहािन पर बैठा।
शाहजहाँ का वििाह 1612 ई .मेँ आिफ की पत्र
ु ी और नरू जहाँ की भतीजी‘ अजम
ुम ंद बानू बेगम ’िे हुआ था, जो बाद
मेँ इनतहाि मेँ मुमताज महल के नाम िे विख्यात हुई।
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शाहजहाँ को मुमताज महल 14 िंतानेँ हुई लेककन उनमेँ िे चार पुत्र और तीन पुबत्रयाँ ही जीवित रहै । चार पुत्रों मेँ
दारा सशकोह, औरं गजेब, मुराद बख्श और शुजाथे, जबकक रोशनआरा, गौहन आरा, और जहांआरा पुबत्रयाँ थी।
शाहजहाँ के प्रारं सभक तीन िषम बुंदेला नायक जुझार सिंह और िाने जहाँ लोदी नामक अफगान िरदार के विरोह
को दबाने मेँ ननकले।
शाहजहाँ के शािन काल मेँ सितिोँ के छठे गुरु हरगोविंद सिंह िे मुगलोँ का िंघषम हुआ क्जिमें सितिों की हार
हुई।
शाहजहाँ ने दक्षक्षण भारत मेँ ििमप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण कर के 1633 में उिे मग़
ु ल िाम्राज्य मेँ समला
सलया।
फरिरी 1636 में गोलकंु डा के िल्
ु तान अब्दल्
ु ला शाह ने शाहजहाँ का आधधपत्य स्िीकार कर सलया।
मोहम्मद िैय्यद) मीर जम
ु ला(, गोलकंु डा के िजीर ने, शाहजहाँ को कोदहनरू हीरा भें ट ककया था।
शाहजहाँ ने 1636 में बीजापरु पर आक्रमण करके उिके शािक मोहम्मद आददल शाह प्रथम को िंधध करने के
सलए वििश ककया।
मध्य एसशया पर विजय प्राप्त करने के सलए शाहजहाँ ने 1645 ई .में शाहजादा मुराद एिं 1647 ई .मेँ औरं गजेब
को भेजा पर उिको िफलता प्राप्त न हो िकी।
व्यापार, कला, िादहत्य और स्थापत्य के क्षेत्र मेँ चमोत्कषम के कारण ही इनतहािकारोँ ने शाहजहाँ के शािनकाल
को स्िणम काल की िंख्या दी है ।
शाहजहाँ ने ददल्ली मेँ लाल ककला और जामा मक्स्जद का ननमामण कराया और आगरा मेँ अपनी पत्नी मुमताज
महल की याद मेँ तािमहल बनिाया जो कला और स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करते हैं।
शाहजहाँ के शािन काल का िणमन फ्रेंच यात्री बननमयर, टे िरननयर तथा इटासलयन यात्री मनुची ने ककया है ।
शाहजहाँ ने अपने शािन के प्रारं सभक िषोँ में इस्लाम का पक्ष सलया ककंतु कालांतर मेँ दारा और जहाँआरा के प्रभाि
के कारण िह िदहष्णु बन गया था।
शाहजहाँ ने अहमदाबाद के धचंतामखण मंददर की मरमत ककए जाने की आज्ञा दी तथा िंभात के नागररकोँ के
अनुरोध पर िहाँ गो हत्या बंद करिा दी थी।
पंडडत जगन्नाथ शाहजहाँ के राज कवि थे क्जनोने क्जंहोने गंगा लहरी और रस गंगाधर की रचना की थी।
शाहजहाँ के पुत्र दारा ने भगित गीता और योगिाससष्ठ का फारिी मेँ अनुिाद करिाया था। शाहजहाँ ने दारा को
शाहबुलंद इकबाल की उपाधध िे विभूवषत ककया था।
दारा का िबिे महत्िपूणम कायम िेदो का संकलन है , उिने िेदो को ईश्िरीय कृनत माना था। दारा िूकफयोँ की कादरी
परं परा िे बहुत प्रभावित था।
सितंबर 1657 ई .में शाहजहाँ के बीमार पड़ते ही उिके पुत्रों के बीच उिराधधकार के सलए युदध प्रारं भ हो गया।
शाहजहाँ के अंनतम आठ िषम आगरा के ककले के शाहबज ु म मेँ एक बंदी की तरह व्यतीत हुए। शाहजहाँ दारा को
बादशाह बनाना चाहता था ककन्तु अप्रैल 1658 ई .को धममत के यदु ध मेँ औरं गजेब ने दारा को पराक्जत कर ददया।
बनारि के पाि बहादरु परु के यद
ु ध मेँ शाहशज
ु ा, शाही िेना िे पराक्जत हुआ।
जनू 1658 में िामग ू ढ़ के यद
ु ध मेँ औरं गजेब और मरु ाद की िेनाओं का मक
ु ाबला शाही िेना िे हुआ, क्जिका
नेतत्ृ ि दारा कर रहा था। इि यद ु ध मेँ दारा पन
ु ः पराक्जत हुआ।
िामग
ू ढ़ के यद
ु ध मेँ दारा की पराजय का मख्
ु य कारण मि
ु लमान िरदारोँ का विश्िािघात और औरं गजेब का
योग्य िेनापनतत्ि था।
िामग
ू ढ़ की विजय के बाद औरं गजेब ने कूटनीनतक िे मरु ाद को बंदी बना सलया और बाद मेँ उिकी हत्या करिा
करिा दी।
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औरं गजेब और शुजा के बीच इलाहाबाद िंजिा के ननकट जनिरी 1659 मेँ एक युदध हुआ क्जिमें पराक्जत होकर
शुजा अराकान की और भाग गया।
जहाँआरा ने दारा सशकोह का, रोशनआरा ने औरं गजेब का और गौहन आरा ने मुराद बख्श का पक्ष सलया था।
शाहजहाँ की मत्ृ यु के उपरांत उिके शि को ताज महल मेँ मुमताज महल की कि के नजदीक दफनाया गया था।
औरं गिेब (1658-1707 ई).
औरं गजेब का जन्म 3 निंबर 1618 को उज्जैन के ननकट दोहन नामक स्थान पर हुआ था।
उिराधधकार के यद
ु ध मेँ विजय होने के बाद औरं गजेब 21 जल
ु ाई 1658 को मग़
ु ल िाम्राज्य की गददी पर आिीन
हुआ।
एक शािक के िारे गण
ु औरं गजेब में थे, उिे प्रशािन का अनभ
ु ि भी था तयोंकक बादशाह बनने िे पहले औरं गजेब
गुजरात, दतकन, मुल्तान ि सिंधु प्रदे शों का गिनमर रह चक
ु ा था।
औरं गजेब ने 1661 ई .में मीर जुमला को बंगाल का िूबद
े ार ननयुतत ककया क्जिने कूच बबहार की राजधानी को
अहोमो िे जीत सलया। 1662 ई .में मीर जुमला ने अहोमो की राजधानी गढ़गाँि पहुंचा जहां बाद मेँ अहोमो ने
मुगलो िे िंधध कर ली और िावषमक कर दे ना स्िीकार ककया।
1633 मेँ मीर जुमला की मत्ृ यु के बाद औरं गजेब ने शाइस्ता िां को बंगाल का गिनमर ननयत
ु त ककया। शाइस्ता
िां ने 1666 ई .मेँ पत
ु ग
म ासलयोँ को दं ड ददया तथा बंगाल की िाड़ी मेँ क्स्थत िोन दिीप पर अधधकार कर सलया।
कालांतर मेँ उिने अराकान के राजा िे चटगांि जीत सलया।
औरं गजेब शाहजहाँ के काल मेँ 1636 ई .िे 1644 ई .तक दक्षक्षण के िूबेदार के रुप मेँ रहा और औरं गाबाद मुगलोँ
की दक्षक्षण िूबे की राजधानी थी।
शािक बनने के बाद औरं गजेब के दक्षक्षण मेँ लड़े गए युदधों को दो भागोँ मेँ बाँटा जा िकता है – बीजापुर तथा
गोलकंु डा के विरुदध युदध और मराठोँ के िाथ युदध।
ओरं गजेब ने 1665 ई .में राजा जयसिंह को बीजापुर एिं सशिाजी का दमन करने के सलए भेजा। जय सिंह सशिाजी
को पराक्जत कर पुरंदर की िंधध) जून, 1665) करने के सलए वििश ककया। ककंतु जयसिंह को बीजापुर के विरुदध
िफलता नहीीँ समली।
पुरंदर की िंधध के अनुिार सशिाजी को अपने 23 ककले मुगलों को िौंपने पड़े तथा बीजापुर के खिलाफ मुगलों की
िहायता करने का िचन दे ना पड़ा।
1676 में मग
ु ल िुबेदार ददलेर िां ने बीजापुर को िंधध करने के सलए वििश ककया। अंततः 1666 ई .मेँ बीजापुर के
िुल्तान सिकंदर आददल शाह ने औरं गजेब के िमक्ष आत्मिमपमण कर ददया फलस्िरुप बीजापुर को मुग़ल
िाम्राज्य मेँ समला सलया गया।
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1687 ई .मेँ औरं गजेब ने गोलकंु डा पर आक्रमण कर के 8 महीने तक घेरा डाले रिा, इिके बािजूद िफलता नहीीँ
समली। अंततः अतटूबर 1687 मेँ गोलकंु डा को मुग़ल िाम्राज्य मेँ समला सलया गया।
जयसिंह के बुलाने पर सशिाजी औरं गजेब के दरबार मेँ आया जहाँ उिे कैद कर सलया गया, ककंतु िह गुप्त रुप िे
फरार हो गये।
ु लों िे िंघषम जारी रिा ककंतु 1689 ई .मेँ उिे पकड़ कर
सशिाजी की मत्ृ यु के बाद के बाद उनके पुत्र िंभाजी ने मग
हत्या कर दी गई।
िंभाजी की मत्ृ यु के बाद िौतेले भाई राजाराम राजाराम ने भी मग
ु लोँ िे िंघषम जारी रिा, क्जिे मराठा इनतहाि
मेँ‘ स्ितंत्रता िंग्राम ’के नाम िे जाना जाता है ।
औरं गजेब ने राजपत
ू ोँ के प्रनत अकबर, जहांगीर, और शाहजहाँ दिारा अपनाई गई नीनत मेँ पररितमन ककया।
औरं गजेब के िमय आमेर) जयपरु (के राजा जयसिंह, में िाड़ के राजा राज सिंह, और जोधपरु के राजा जििंत
सिंह प्रमि
ु राजपत
ू राजा थे।
मारिाड़ और मग
ु लोँ के बीच हुए इि तीि िषीय यद
ु ध) 1679 – 1709 ई (.का नायक दग
ु ामदाि था, क्जिे कनमल
टॉड ने‘ यूसलसिि ’कहा है।
औरं गजेब ने सितिोँ के निें गुरु तेग बहादरु की हत्या करिा दी।
औरं गजेब के िमय हुए कुछ प्रमुि विरोह मेँ अफगान विरोह) 1667-1672), जाट विरोह) 1669-1681), ितनामी
विरोह) 1672), बुंदेला विरोह) 1661-1707), अकबर दवितीय का विरोह) 1681), अंग्रेजो का विरोह) 1686),
राजपूत विरोह) 1679-1709) और सिति विरोह) 1675-1607 ई (.शासमल थे।
औरं गजेब एक कट्टर िुन्नी मुिलमान था। उिका प्रमुि लक्ष्य भारत मेँ दार-उल-हषम के स्थान पर दार-उल-
इस्लाम की स्थापना करना था।
औरं गजेब ने 1663 ई .मेँ िती प्रथा पर प्रनतबंध लगाया प्रथा दहंदओ
ु ं पर तीथम यात्रा कर लगाया।
औरं गजेब ने 1668 ई .मेँ दहंद ू त्यौहारोँ और उत्ििों को मनाने जाने पर रोक लगा दी।
औरं गजेब के आदे श दिारा 1669 ई .में काशी विश्िनाथ मंददर, मथरु ा का केशिराय मंददर तथा गुजरात का
िोमनाथ मंददर को तोड़ा गया।
औरं गजेब ने 1679 ई .मेँ दहंदओ
ु ं पर जक्जया कर आरोवपत ककया। दि
ू री ओर उिके शािनकाल मेँ दहंद ू
अधधकाररयो की िंख्या िंपूणम इनतहाि मेँ ििामधधक) एक नतहाई (रही।
औरं गजेब की मत्ृ यु 3 माचम 1707 को हो गई।
मग
ु ल प्रशासन
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मीर बख्शी – यह िैन्य प्रशािन की दे िभाल, मनिब दारों का प्रधान, िैननकोँ की भती, हधथयारोँ तथा अनुशािन
का प्रभारी होता था।
िान-ए-िामा – राजमहल तथा कारिानो के अधधकारी होता था।
रुर-उि-िुदरू – यह धासममक मामलोँ का अधधकारी था। दान विभाग भी उिी के अंतगमत था। रुर-उि-िुदरू को
‘शेि-उि-इस्लाम ’कहा जाता था।
केंद्रीय प्रशासन के अन्य अर्धकारी
मुग़ल िाम्राज्य को िूबों) प्रान्तों (मेँ िूबों को िरकारोँ) क्जलो (मेँ, िरकारोँ को परगनोँ) महलोँ (मेँ तथा परगनोँ को
गािों मेँ बाटा गया था।
अकबर के िमय िूबेदार होता था, क्जिे सिपहिालार या नाक्जम भी का कहा जाता था।
दीिान िूबे प्रधान विि एिं राजस्ि अधधकारी होता था।
बख्शी का मुख्य कायम िूबे की िेना की दे िभाल करना था।
प्रांतीय रुर न्याय के िाथ-िाथ प्रजा की नैनतक चररत्र एिं इस्लाम धमम के कानूनों की पालन की व्यिस्था करता
था।
कोतिाल िूबे की राजधानी तथा बड़े-बड़े नगरो मेँ कानन
ू एिं व्यिस्था की दे िभाल करता था।
सरकार या जिले का प्रशासन
मुग़ल िाम्राज्य मेँ अथिा क्जलों मेँ फौजदार, कोतिाल, आसमल, और काजी प्रमुि अधधकारी थे।
मग
ु ल काल मेँ िरकार या क्जले का प्रधान फौजदार था। इिका मख्
ु य कायम क्जले मेँ कानन
ू व्यिस्था बनाए रिना
तथा प्रजा को िरु क्षा प्रदान करना था।
िजानदार क्जले का मख्
ु य िजांची होता था। इिका मख्
ु य कायम राजकीय िजाने को िरु क्षा प्रदान करना था।
आमलगज
ु ार या आसमल क्जले का विि एिं राजस्ि का प्रधान अधधकारी था। काजी-ए-िरकार न्याय िे िंबंधधत
कायम दे िता था।
परगने का प्रशासन
िरकार परगनों में बंटी होती थी। परगने के प्रमुि अधधकाररयोँ मेँ सशकदार, आसमल, फोतदार, कानूनगो और
कारकून शासमल थे।
सशकदार परगने का प्रधान अधधकारी था। परगने की शांनत व्यिस्था और राजस्ि ििूलना इिके प्रमुि कायों
मेँ शासमल था।
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आसमल परगने का प्रधान अधधकारी था। ककिानो िे लगान ििूलना इिका प्रमि
ु कायम था।
फोतदार परगने का िंजाची था।
कानूनगो परगने के पटिाररयोँ का प्रधान था। यह लगान, भूसम और कृवष िे िंबंधधत कागजातों को िंभालता
था।
कारकून सलवपक का कायम दे िता था।
ग्रामप्रशासन
मग
ु ल काल मेँ ग्राम प्रशािन एक स्िायि िंस्था िे िंचासलत होता था। प्रशािन का उिरदानयत्ि प्रत्यक्षतः मग
ु ल
अधधकाररयोँ के अधीन नहीीँ था।
ग्राम प्रधान गांि का प्रमि
ु अधधकारी था, क्जिे‘ ित
ु ’और‘ मक
ु ददमा चौधरी ’कहा जाता था।
गांि में विि राजस्ि और लगान िे िंबंधधत अधधकाररयों को पटिारी कहा जाता था। इन्हें राजस्ि का एक प्रनतशत
दस्तूरी के रुप मेँ ददया जाता था।
मुगल कालीन अर्मव्यिस्र्ा
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हीरा गोलकंु डा और छोटानागपुर की िानों िे प्राप्त होता था। विश्िप्रसिदध कोदहनरू हीरा गोलकंु डा की िान
िे प्राप्त हुआ था।
मुगल कालीन चमड़ा उदयोग भी उन्नत अिस्था मेँ था।
मनसबदारी व्यिस्र्ा
मग़
ु ल िाम्राज्य की िबिे महत्िपण
ू म विशेषता मनिबदारी व्यिस्था थी।
मनिबदारी व्यिस्था मग
ु ल िैननक व्यिस्था की आधार थी। यह व्यिस्था मंगोलोँ की दशमलि प्रणाली पर आधाररत
थी।
मनिबदारी व्यिस्था का आरं भ 1577 ईस्िी मेँ अकबर ने ककया था।
इि व्यिस्था मेँ दशमलि प्रणाली के आधार पर अधधकाररयो के पदों का विभाजन ककया जाता था।
‘मनिब ’की पदिी या पद िंज्ञा नहीीँ थी, िरन ् यह ककिी अमीर की क्स्थनत का बोध कराती थी।
‘जात ’शब्द िे व्यक्तत के िेतन तथा पद की क्स्थनत का बोध होता था, जबकक‘ ििार ’शब्द घुड़ििार दस्ते की िंख्या
का बोध कराता था।
िैननक तथा नागररक दोनो को मनिब प्रदान ककया जाता था। यह पैबत्रक नहीीँ था।
मनिबदारों को नगर अथिा जागीर के रुप मेँ िेतन समलता था। उन्हें भूसम पर नहीीँ बक्ल्क सिफम उि क्षेत्र के राजस्ि
पर अधधकार समलता था।
10 िे 5000 तक के मनिब ददए जाते थे। 5000 के ऊपर के मनिब शहजादों तथा राजिंश के लोगोँ के सलए िुरक्षक्षत
होते थे।
औरं गजेब के िमय मेँ मनिबदारो की िंख्या इतनी बढ़ गई थी कक उन्हें दे ने के सलए जागीर नहीीँ बची।
प्रारं भ मेँ मनिबदारोँ को दोस्त 240 रुपए िावषमक प्रनत ििार समलता था ककंतु जहाँगीर के काल मेँ यह रासश घटाकर
200 रुपए िावषमक कर दी गई।
अकबर के काल मेँ यह ननयम था कक ककिी भी मनिबदार का‘ ििार ’पद उिके‘ जात ’पद िे अधधक नहीीँ हो िकता
है ।
जहाँगीर ने ऐिी प्रथा चलाई, क्जिमे बबना‘ जात ’पद बढ़ाये मनिबदारों को अधधक िेना रिने को कहा जाता था। इि
प्रथा को‘ दहु -आस्था ’अथिा‘ सिंह-आस्था ’कहा जाता था।
मुगल कालीन समाि
मुगल कालीन िमाज दो िगो मेँ विभतत था – धनी या अमीर िगम तथा जनिाधारण िगम, क्जिमें ककिान, दस्तकार
और मजदरू शासमल थे।
उच्च िगम के लोग अधधकतर मनिबदार, जागीरदार एिं जमींदार होते थे।
मग
ु लकाल मेँ कुलीन क्स्त्रयोँ की िम्मानजनक क्स्थनत थी। िमाज मेँ विधिा वििाह, पदाम प्रथा, बाल वििाह आदद का
ननषेध था।
दहे ज प्रथा, िती प्रथा आदद िमाक्जक कुरीनतयाँ प्रचसलत थीं।
भसू महीन ककिानोँ तथा श्रसमकोँ की िामाक्जक क्स्थनत अत्यंत दयनीय थीं।
िमाज िामंतिादी िंस्था के िमान ददिता था क्जिके शीषम पर बादशाह था।
विधिा वििाह महाराष्र के गौड़ िाह्मणों तथा पंजाब एिं यमुना घाटी के जाटो मेँ प्रचसलत था।
बादशाहोँ तथा राज्य के बड़े-बड़े िरदारोँ के हरम मेँ हजारोँ क्स्त्रयाँ रिैलो और दासियोँ के रुप मेँ रहती थीं।
मुगल बादशाहों मेँ एक ओरं गजेब ही था, जो अपनी पत्नी के प्रनत िमवपमत था।
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प्रथम मुग़ल िम्राट क्जिका शािन काल बहुत कम था परन्तु स्थापत्य कला का उच्चकोदट का पारिी होने के
कारण उिे भारतीय भिनों की िमीक्षा करने का अिकाश समल ही गया। उिे तुकम एिं अफगान शािको दिारा
बनिाई गई ददल्ली एिं आगरे की इमारते पिंद नहीं आई और िहां के िास्तु कला के नमूने उिे नीचे स्तर के
प्रतीत हुए।
ककन्तु बाबर को ग्िासलयर की सशल्प कला ने बहुत अधधक प्रभावित ककया और उिने मानसिंह एिं विक्रमजीत
के महलों को अदवितीय बताया। िंभि है अपने महलो के ननमामण में िह ग्िासलयर शैली िे प्रभावित हुआ। बाबर
ने आगरा, फतेहपुर िीकरी, बयाना, धोलपुर, ग्िासलयर, अलीगढ आदद में भिन ननमामण हे तु िैकड़ो कारीगर
ननयुतत ककये थे।
इन क्षेत्रो में उिने भिन ननमामण न करिा कर मंडप,स्नानागार,कूए,तालाब, ़िव्िारे ही बनिाए थे। बाबर के दिारा
ननसममत केिल दो तीन भिन ही उपलब्ध है । ये भिन है पानीपत के काबुली बाग़ में क्स्थत मक्स्जद, दि
ू री िंभल
की जमा मक्स्जद और तीिरी आगरा के ककले के अंदर ननसममत मक्स्जद।
उिके काल की एक अन्य मक्स्जद अयोध्या में भी पाई गई है क्जिे िम्राट की आज्ञा िे अबुल बारी न बनिाया
था। बाबर दिारा ननसममत भिन सशल्प कला की दृक्ष्ट िे बहुत िामान्य है ।
हुमायु (1530ई-.1540ई .और 1555ई-.1556ई).
हुमायु दिारा ननसममत केिल दो मक्स्जदों के अिशेष आज मौजूद है आगरा में ननसममत मक्स्जद एिं दि
ू री फतेहाबाद
की विशाल एिं िंतुसलत मक्स्जद।
फतेहाबाद की मक्स्जद का ननमामण 1540ई .में ककया गया। इिमें फारिी शैली में प्रचसलत प्रस्तर मीना कारी
िज्जा का प्रयोग ककया गया ििमप्रथम यह प्रयोग 15 िी शताब्दी के उिराधम में बहमनी शािकों ने ककया।
उिने 1533ई .में दीनपनाह धमम का शरण स्थल नामक नगर की नीि डाली। इि नगर क्जिे परु ाना ककला के नाम
िे जाना जाता है की दीिारे रोड़ी िे ननसममत थी। इिे बाद में शेर शाह ने तड
ु िा ददया
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शेर शाह ने हुमायूँ के दिारा ननसममत दीन पनाह को नष्ट करिा कर उिके भग्नािशेषों पर पुराने ककले का ननमामण
करिाया। इनमे उिने एक मक्स्जद भी बनिाई थी जो पुराने ककले की मक्स्जद अथिा ककला ए कुहना मक्स्जद के
नाम िे प्रसिदध है ।
अकबर के शािन के पूिम की इंडो मुक्स्लम सशल्प कला का ििमश्रेष्ठ नमूना िहिा राम में झील केंर में एक ऊँचे
टीले पे ननसममत शेरशाह का मकबरा है । बाहय ननमामण की दृक्ष्ट िे शेरशाह का मकबरा इस्लामी ढं ग का बना हुआ
है ककन्तु इिका भीतरी भाग तोरणों या दहन्द ू ढं ग के िम्भों िे िजा हुआ है ।
शेर शाह के उिराधधकाररयो के शािन काल में ककिी उल्लेिनीय भिन का ननमामण नहीं हो पाया।
अकबर( 1556ई-.1605ई).
अकबर ने विसभन्न स्थानों की कारीगरी का उपयोग कर एक नूतन भारतीय अथिा राष्रीय शैली का ननमामण
ककया और इि शैली में उिने आगरा फतेपुर िीकरी, लाहोर,इलाहबाद,अटक आदद विसभन्न स्थानों में अनेक
दग
ु ,म राजप्रिाद,भिन,मक्स्जद,मकबरे आदद बनिाए।
अकबर के शािन काल की पहली इमारत ददल्ली क्स्थत हुमायूँ का मकबरा है । इिका ननमामण हुमायूँ की विधिा
पत्नी हाजी बेगम की दे ि रे ि में हुआ था। यह 1569ई .में बनकर तैयार हुआ और इिमें फारिी ि भारतीय कलाओ
का िुंदर िमन्िय दे िने को समलता है । भारत में ननसममत उभरी हुयी दोहरी गुम्बंद का यह पहला उदाहरण है।
इिके बाद आगरा ,लाहौर के ककले का ननमामण हुआ। आगरे के लाल ककले की दीिारे लगभग 70 फुट ऊँची हैतथा
इिका घेराि डेढ़ मील)2.4 km) है । आगरे के ककले में 2 मख्
ु य दिार है क्जनमे िे एक पक्श्चम की और दि
ू रा इि
िे छोटा अमर सिंह दिार है । ककले के पक्श्चम दिार को ददल्ली ि हाथी दिार के नाम िे जाना जाता है तयोंकक
इिके मख्
ु य मेहराब पर दो हाधथयों की आकृनत उकेरी हुई है ।
इि ककले के भीतर अकबर ने लगभग 500 इमारतों का ननमामण करिाया। अकबर दिारा ननसममत ये इमारते लाल
बलआ
ु पत्थर की थी क्जन्हें शाहजंहा ने तड
ु िा कर इिके स्थान पर िंगमरमर की नई इमारतों का ननमामण
करिाया।
ककले में अकबर दिारा ननसममत ििामधधक महत्िपूणम इमारते जहाँगीरी महल एिं अकबरी महल है । इनके ननमामण
में भी लाल पत्थरों का प्रयोग ककया गया है । जहाँगीरी महल अकबरी महल की अपेक्षा अधधक बड़ा एिं िुंदर है ।
जहाँगीरी महल दहन्द ू डडजाइन का है और इिमें िजािट भी दहन्द ू ढं ग की है । इन कारणों िे इिे िरलता िे दहन्द ू
भिन कहा जा िकता है ।
आगरे ककले की रूप रे िा ग्िासलयर के ककले िे समलती है क्जिे मान सिंह ने बनिाया था। लाहौर के ककले का
ननमामण भी लगभग आगरे के ककले के ननमामण के िमय ही हुआ था। दोनों ककलों में िमरूपता भी है , ककन्तु लाहौर
के ककले की िजािट अपेक्षा कृत घनी है ।
इिके अनतररतत अकबर ने इलाहाबाद एिं अजमेर में भी ककले बनिाए। फतेहपुर िीकरी) स्थापना 1569ई (.
)1571ई-.1585ई .तक राजधानी रही (अकबर ने एक नयी राजधानी फतेपुर िीकरी का ननमामण करिाया। यहाँ भी
उिने राजप्रिाद,बेगमों, शहजादों के महल कायामलय आदद का ननमामण करिाया।
सिकरी में िम्राट ने अनेक भिनों का ननमामण करिाया ककन्तु इनमे मुहाक़िज़ िाना,दीिाने आम,दीिाने
खाि,िजाना महल,पञ्च महल,महारानी मररयम का महल,तुकी िुल्ताना का महल,जोधा बाई का महल और
बीरबल का महल विशेष रूप िे उल्लेिनीय है ।
अधधकांश इमारतो में दहन्द ू मुक्स्लम कलाओ का िुंदर िमन्िय दृक्ष्टगोचर होता है । ककन्तु इनमे दहन्द ू शैली की
प्रधानता है । इनमे िे कुछ की िजािट जैिे दीिाने िाि में लगे हुए िम्भों की शोभा बढ़ाने िाले तोड़े , पंच महल
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और जोधा बाई के महल में लगे हुए उमरे घंटे तथा जंजीर और मररयम के महल में पत्थरों पर िोदे गए पशुओ के
धचत्र आदद दहन्द ू एिं जैन शैसलयों के है ।
ककले के अंदर ननसममत जामा मक्स्जद और उिका प्रिेश दिार क्जिे अकबर ने अपनी दक्षक्षण विजय के बाद नए
सिरे िे बनिाया, बुलंद दरिाजे के नाम िे जाना जाता है। दरिाजे की ऊँचाई 134 फीट ि िीदढ़यों की 72 फीट इि
प्रकार यह 176 फीट ऊंचा है।
िीकरी के ननमामण में 11 िषम लगे। बाद में िलीम धचश्ती की दरगाह आदद बने। इिके अनतररतत अकबर ने मेरटा,
आमेर में मक्स्जद का ननमामण करिाया इलाहबाद में उिने 40 िम्भों का महल तथा सिकंदरा में अपने मकबरे की
योजना तैयार की।
अकबर के मकबरे का ननमामण 1613ई .में उिके पत्र
ु जहाँगीर ने करिाया।
मुग़ल काल में सशक्षा के महत्त्िपूणम केन्र के रूप में आगरा, ़ितेहपुर िीकरी, ददल्ली, गुजरात, लाहौर, सियालकोट,
जौनपुर, अजमेर आदद विशेष रूप िे प्रसिदध थे। मुग़ल काल के शािकों ने‘ ़िारिी ’को अपनी राजभाषा बनाया
था। इि काल का ़िारिी िादहत्य का़िी िमद
ृ ध था। ़िारिी के अनतररतत दहन्दी, िंस्कृत, उदम ू का भी मुग़ल काल
में विकाि हुआ।
डॉक्टर श्रीिास्ति के अनस
ु ार, “यह िनु नक्श्चत करने के सलए कक प्रत्येक बच्चा स्कूल या कॉलेज जाएगा, मग
ु ल
िरकार के पाि सशक्षा का कोई विभाग नहीं था। मग
ु ल शािनकाल के दौरान सशक्षा एक व्यक्ततगत मामले की
तरह था, जहाँ लोगो ने अपने बच्चो को सशक्षक्षत करने के सलए अपने िद
ु के प्रबंध कर रिे थे।”
इिके अनतररतत, दहंदओ
ु ं और मक्ु स्लमों दोनों के सलए अलग – अलग स्कूल थे और बच्चो को स्कूल भेजने की
उनकी सभन्न-सभन्न प्रथाएं थी।
हहन्द ू सशक्षा– दहन्दओ
ु ं के प्राथसमक विदयालयों का रि-रिाि अनद
ु ान या ननधधयों के दिारा ककया जाता था,
क्जिके सलए विदयाधथमयों को शल्
ु क नही दे ना पड़ता था।
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मुजस्लम सशक्षा- मुक्स्लम अपने बच्चों को सशक्षा प्राप्त करने के सलए मततब मे भेजा करते थे, जो मक्स्जदों के
पाि हुआ करते थे एिं इि प्रकार के स्कूल प्रत्येक शहर एिं गाँि मे होते थे। प्राथसमक स्तर पर, प्रत्येक बच्चे को
कुरान िीिना पड़ता था।
महहलाओं कक सशक्षा- िमद
ृ ध लोगो के दिारा उनकी बेदटयों को घर पर ही सशक्षा प्रदान करने के सलए ननजी सशक्षकों
कक व्यिस्था की जा रही थी, मदहलाओं को प्राथसमक स्तर िे ऊपर सशक्षा का कोई अधधकार नहीं था।
फ़ारसी साहहत्य
मुग़लकालीन फ़ारसी साहहत्य की प्रमुख कृनतयााँ इस प्रकार हैं-
बाबरनामा - बाबर दिारा रधचत तुकी भाषा की यह कृनत, क्जिका अकबर ने 1583 ई .में अब्दम रु हमान खानखाना
दिारा अनुिाद करिाया था, भारत की 1504 िे 1529 ई .तक की राजनीनतक एिं प्राकृनतक क्स्थनत पर िणमनात्मक
प्रकाश डालती है
तारीख़-ए-रशीदी– हुमायूँ की शाही ़िौज में कमांडर के पद पर ननयुतत समज़ाम है दर दोगलत दिारा रधचत यह कृनत
मध्य एसशया में तुकों के इनतहाि तथा हुमायूँ के शािन काल पर विस्तारपूिक म प्रकाश डालती है।
क़ानूने हुमायूाँनी- 1534 ई .में ख्िान्दमीर दिारा रधचत इि कृनत में हुमायूँ की चापलूिी करते हुए उिे‘ सिकन्दर-
ए-आजम’, खद
ु ा का िाया आदद उपाधधयाँ दे ने का िणमन है ।
हुमायूाँनामा – दो भागों में विभाक्जत यह पुस्तक‘ गुलबदन बेगम ’दिारा सलिी गयी, क्जिके एक भाग में बाबर
का इनतहाि तथा दि ू रे में हुमायूँ के इनतहाि का उल्लेि है । इिके अनतररतत इि पुस्तक िे तत्कालीन िामाक्जक
क्स्थनत पर भी प्रकाश पड़ता है ।
तिककरातुल िाकयात- 1536-1537 ई .में ‘ जौहर आपताबची ’दिारा रधचत इि पस्
ु तक में हुमायूँ के जीिन के
उतार-चढ़ाि का उल्लेि है ।
िाकयात-ए-मुश्ताकी- लोदी एिं िूर काल के विषय में जानकारी दे ने िाली यह कृनत‘ ररजकुल्लाह मुश्ताकी ’दिारा
रधचत है ।
तोहफ़ा-ए-अकबरशाही– अकबर को िमवपमत इि पुस्तक को‘ अब्बाि खाँ िरिानी ’ने अकबर के ननदे श पर सलिा
था। इि पस्
ु तक िे शेरशाह मे विषय मे जानकारी समलती है ।
तारीख़-ए-शाही– बहलोल लोदी के काल िे प्रारम्भ होकर एिं हे मू की मत्ृ यु के िमय िमाप्त होने िाली यह पस्
ु तक
‘अहमद यादगार ’दिारा रधचत है ।
तिककरा-ए-हुमायाँू ि अकबर- अकबर दिारा अपने दरबाररयों को हूमायँू के विषय में जो कुछ जानते हैं, सलिने
का आदे श दे ने पर अकबर के रिोई प्रबंधक‘ बायजामद बयात ’ने यह पस्
ु तक सलिी थी।
नफाइस-उल-माससर- अकबर के िमय यह प्रथम ऐनतहासिक पस्
ु तक‘ मीर अलाउददौला कजिीनी ’दिारा रधचत
है , क्जििे 1565 िे 1575 ई .तक की क्स्थनत का पता चलता है ।
तारीख़-ए-अकबरी- 9 भागों में विभाक्जत यह पस्
ु तक‘ ननज़ामद
ु दीन अहमद ’दिारा रधचत है । इिके प्रथम दो भाग
मुग़लों के इनतहाि का उल्लेि करते हैं तथा शेष भाग दतकन, मालिा, गुजरात, बंगाल, जौनपुर, कश्मीर, सिंध
एिं मुल्तान की क्स्थनत का आभाि कराते हैं।
इंशा– अबुल ़िज़ल की रचना‘ इंशा) ’अकबर दिारा विदे शी शािकों को भेजे गये शाही पत्रों का िंकलन (
ऐनतहासिक एिं िादहक्त्यक दोनों दृक्ष्टयों िे महत्त्िपूणम है ।
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मुग़ल काल में िंस्कृत का विकाि बाधधत रहा। अकबर के िमय में सलिे गये महत्त्िपूणम िंस्कृत ग्रंथ थे -महे श
ठाकुर दिारा रधचत‘ अकबरकालीन इनतहाि’, पदम िुन्दर दिारा रधचत‘ अकबरशाही शंग
ृ ार-दपमण’, जैन आचायम
सिदध चन्र उपाध्याय दिारा रधचत‘ भानुचन्र चररत्र’, दे ि विमल का‘ हीरा िुभाग्यम’, ‘कृपा कोश ’आदद।
अकबर के िमय में ही‘ पारिी प्रकाश ’नामक प्रथम िंस्कृत-़िारिी शब्द कोष की रचना की गई। शाहजहाँ के
िमय में किीन्र आचायम िरस्िती एिं जगन्नाथ पंडडत को दरबार में आश्रय समला हुआ था। पंडडत जगन्नाथ ने
‘रि-गंगाधर ’एिं‘ गंगालहरी ’की रचना की। पंडडत जगन्नाथ शाहजहाँ के दरबारी कवि थे।
जहाँगीर ने‘ धचत्र मीमांिा िंडन) ’अलंकार शास्त्र पर ग्रंथ (एिं‘ आि़ि विजय) ’नरू जहाँ के भाई आि़ि खाँ की
स्तनु त (के रचनयता जगन्नाथ को‘ पंडडताराज ’की उपाधध िे िम्माननत ककया था। िंशीधर समश्र और हररनारायण
समश्र िाले िंस्कृत ग्रंथ हैं -रघन
ु ाथ रधचत‘ मह
ु ू तम
म ाला’, जो कक मह
ु ू तम िंबंधी ग्रंथ है और चतभ
ु ज
ुम का‘ रिकल्परम ’
जो औरं गज़ेब के चाचा शाइस्ता खाँ को िमवपमत है
हहन्दी साहहत्य
बाबर, हुमायूँ और शेरशाह के िमय में दहन्दी को राजकीय िंरक्षण प्राप्त नहीं हुआ, ककन्तु व्यक्ततगत प्रयािों िे
‘पदमाित ’जैिे श्रेष्ठ ग्रन्थ की रचना हुई। मुग़ल िम्राट अकबर ने दहन्दी िादहत्य को िंरक्षण प्रदान ककया। मग़
ु ल
दरबार िे िम्बक्न्धत दहन्दी के प्रसिदध कवि राजा बीरबल, मानसिंह, भगिानदाि, नरहरर, हररनाथ आदद थे।
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उदम ू का जन्म ददल्ली िल्तनत काल में हुआ। इि भाषा ने उिर मुग़लकालीन बादशाहों के िमय में भाषा के रूप में
महत्ि प्राप्त ककया। प्रारम्भ में उदम ू को ‘जबान-ए-दहन्दिी’ कहा गया। अमीर खि
ु रो प्रथम विदिान ् कवि था, क्जिने
उदम ू भाषा को अपनी कविता का माध्यम बनाया।
मुग़ल बादशाहों में मह
ु म्मद शाह) 1719-1748 ई (.प्रथम बादशाह था, क्जिने उदम ू भाषा के विकाि के सलए दक्षक्षण
के कवि शम्िुददीन िली को अपने दरबार में बुलाकर िम्माननत ककया। िली दकनी को उदम ू पदय िादहतय का
जन्मदाता कहा जाता है । कालान्तर में उदम ू को‘ रे ख्ता ’भी कहा गया। रे ख्ता में गेिद
ू राज दिारा सलखित पुस्तक
‘समरातल
ु आशरीन ’ििामधधक प्राचीन है ।
लसलत कला ) Fine arts )
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िल्
ु तानगढ़ी इल्तत
ु समश ददल्ली
तग
ु लकाबाद गयािद
ु दीन तग
ु लक ददल्ली
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अध्याय-17
मराठा साम्राज्य और संघ
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उदभि
17िीं शताब्दी में मुग़ल िाम्राज्य की विघटन की प्रकक्रया प्रारं भ होने के िाथ ही भारत में स्ितंत्र राज्यों की स्थापना
शुरू हो गयी। अक्स्तत्ि में आ रहै नए स्ितंत्र राज्यों में मराठा का उदभि एक महत्िपूणम घटना है ।
एक शक्ततशाली राज्य के रूप में मराठों के उत्कषम में अनेक कारकों का योगदान रहा, क्जनमें भौगोसलक
पररक्स्थनत, औरं गजेब की दहन्द ू विरोधी नीनतयां, और मराठा िंत कवियों की प्रेरणा महत्त्िपण
ू म करक हैं।
प्रारं भ में मराठा, सिपहिलार और मनिबदार के रूप में बीजापरु और अहमदनगर राज्य में नौकरी करते थे।
सशिािी (1627 ई. -1680 ई.)
सशिाजी का जन्म पूना के ननकट सशिनेर के ककले में 20 अप्रैल, 1627 को हुआ था। सशिाजी शाहजी भोंिले और
जीजाबाई के पुत्र थे।
सशिाजी ने एक स्ितंत्र दहन्द ू राज्य की स्थापना करके‘ दहन्द ू धमोदधारक ’और‘ गैर िाह्मण प्रनतपालक ’जैिी
उपाधध धारण की।
सशिाजी के िंरक्षक और सशक्षक कोंणदे ि तथा िमथम गुरु रामदाि थे।
सशिाजी ने 1656 ई .में रायगढ़ को मराठा राज्य की राजधानी बनाया।
सशिाजी ने अपने राज्य के विस्तार का आरं भ 1643 ई .में बीजापुर के सिंहगढ़ ककले को जीतकर ककया। इिके
पश्चात 1646 ई .में तोरण के ककले पर भी सशिाजी ने अपना अधधपत्य स्थावपत कर सलया।
सशिाजी की विस्तारिादी नीनत िे बीजापुर का शािक िशंककत हो गया, उिने सशिाजी की शक्तत को दबाने के
सलए िरदार अफजल िां को भेजा। सशिाजी ने 1659 ई .में अफजल िां को पराक्जत कर उिकी हत्या कर दी।
सशिाजी की बढती शक्तत िे घबराकर औरं गजेब ने शाइस्ता िां को दक्षक्षण का गिनमर ननयुतत ककया। सशिाजी ने
1663 ई .में शाइस्ता िां को पराक्जत ककया।
औरं गजेब ने शाइस्ता िां के अिफल होने पर सशिाजी की शक्तत का दमन करने के सलए आमेर के समजाम राजा
जय सिंह को दक्षक्षण भेजा।।
जयसिंह के नेतत्ृ ि में परु ं दर के ककले पर मग
ु लों की विजय तथा रायगढ़ की घेराबंदी के बाद जन
ू 1665 में मग
ु लों
और सशिाजी के बीच परु ं दर की िंधध हुई।
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1670 ई .में सशिाजी ने मुगलों के विरुदध असभयान छे ड़कर पुरंदर की िंधध दिारा िोये हुए ककले को पुनः जीत
सलया। 1670 ई .में ही सशिाजी ने िूरत को लूटा तथा मग
ु लों िे चौथ की मांग की।
1674 ई .में सशिाजी ने रायगढ़ के ककले में छत्रपनत की उपाधध के िाथ अपना राज्यासभषेक करिाया।
अपने राज्यासभषेक के बाद सशिाजी का अंनतम महत्िपण
ू म असभयान 1676 ई .में कनामटक असभयान था।
12 अप्रैल, 1680 को सशिाजी की मत्ृ यु हो गई।
सशिािी का प्रशासन
सशिाजी की प्रशािन व्यिस्था अधधकांशतः दतकन की िल्तनतों िे ली गयी थी, क्जिके शीषम पर छत्रपनत होता
था।
सशिाजी ने अष्ट प्रधान नामक मंबत्रयों की एक पररषद की स्थापना की थी। ये मंत्री िधचि के रूप में प्रशािन का
कायम िंभालते थे।
सशिाजी के अष्ट प्रधान ननम्नसलखित थे-
1. पेशिा– यह अष्ट प्रधान में ििोच्च पद था। यह राजा और राज्य का प्रधानमंत्री था।
2. मिूमदार या अमात्य– यह राज्य की आय-व्यय का लेिा-जोिा रिता था।
3. बाककया निीस– यह िूचना, गुप्तचर एिं िंधध विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था।
4. र्चतनीस– यह राजकीय पत्र व्यिहार का कायम दे िता था।
5. दबीर या मुयंत– यह विदे शी मामलों का प्रभारी था।
6. सेनापनत या सर-ए-नौबत– यह िेना की भती िंगठन रिद आदद के प्रबंधन का कायम िंभालता था।
7. पंडडत राि– यह विदिानों एिं धासममक कायों के सलए ददए जाने िाले अनुदानों का दानयत्ि िंभालता था।
8. न्यायधीश– यह मुख्य न्यायधीश होता था।
सशिाजी ने अपने राज्य को चार प्रान्तों में विभतत ककया था।, जो िायिराय के अधीन होते थे।
प्रान्तों को परगनों और तालक
ु ों में विभाक्जत ककया गया था।
सैन्य व्यिस्र्ा
सशिाजी ने अपनी िेना को दो भागों में विभतत ककया था – 1. बरगीर, और 2. सिलेहदार।
बारगीर िेना िह िेना थी, जो छत्रपनत दिार ननयुतत की जाती थी, क्जिे राज्य की और िे िेतन एिं िुविधाएं
प्रदान की जाती थीं।
सिलेहदार स्ितन्त्र िैननक थे, जो स्ियं अस्त्र-शस्त्र रिते थे।
सशिाजी ने नौिेना की भी स्थापना की थी।
गािली िैननक सशिाजी के अंगरक्षक थे। गािली एक पहाड़ी लड़ाकू जानत थी।
सशिाजी की िेना में मुिलमान िैननक भी थे। लेककन उनकी िेना में क्स्त्रयों के सलए स्थान नहीं था।
शाही घुड़ििार िैननकों को‘ पागा ’कहा जाता था।
िर-ए-नौबत िम्पूणम घुड़ििार िेना का प्रधान होता था।
रािस्ि व्यिस्र्ा
सशिाजी की राजस्ि व्यिस्था मसलक अंबर की भूसम कर व्यिस्था िे प्रेररत थी।
भूसम की पैमाइश के सलए काठी या गरीब का इस्तेमाल ककया जाता था।
सशिाजी के िमय में कुल कृवष उपज का 33 प्रनतशत ककया जाता था जो बाद मेँ 40 प्रनतशत हो गया।
चौथ तथा िरदे शमुिी मराठा कराधान प्रणाली के प्रमि
ु कर थे।
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चौर् – िामान्य रुप िे चौथ मुग़ल क्षेत्रों की भूसम तथा पड़ोिी राज्य की आय का चौथा दहस्िा होता था, क्जिे
ििूल करने के सलए उि क्षेत्र पर आक्रमण तक करना पडता था।
सरदे शमुखी– यह कर िंशानुगत रुप िे उि प्रदे श का िरदे शमुिी होने के नाते ििूल ककया जाता था। सशिाजी
के अनुिार लोगोँ के दहतों की रक्षा के सलए करने के बदले उनके िरदे शमुिी लेने का अधधकार था।
यह आय का 10 प्रनतशत था जो कक 1/10 भाग के रूप में होता था।
जदन
ु ाथ िरकार के अनि
ु ार, यह मराठा आक्रमण िे बचने के एिज मेँ ििल
ू ककया जाने िाला कर था।
सशिािी के उत्तरार्धकारी
शंभािी (1680 ई .से 16 89 ई ).सशिाजी की मत्ृ यु के बाद मराठा िाम्राज्य उिराधधकार के िंघषम मेँ उलझ गया।
सशिाजी की पक्त्नयों िे उत्पन्न दो पुत्र िंभाजी और राजाराम के बीच उिराधधकार के सलए िंघषम नछड़ गया।
राजाराम को पदच्युत करके शंभाजी 20 जुलाई 1680 को मराठा िाम्राज्य की गददी पर आिीन हुआ।
शंभाजी ने एक उिर भारतीय िाहमण कवि कलश को प्रशािन का ििोच्च अधधकारी ननयुतत ककया।
शंभाजी ने 1681 ई .मेँ औरं गजेब के विरोही पुत्र अकबर दवितीय को शरण दी।
माचम 1689 मेँ औरं गजेब ने शंभाजी की हत्या कर मराठा राजधानी रायगढ़ पर अपना आधधपत्य स्थावपत कर
सलया। औरं गजेब ने इिी िमय शंभाजी के पुत्र शाहू को रायगढ़ के ककले मेँ बंदी बना सलया।
रािाराम (1689 ई .से 1700 ई).
शंभाजी की मत्ृ यु के बाद राजाराम को मराठा िाम्राज्य का छत्रपनत घोवषत ककया गया।
राजाराम मग़
ु लोँ के आक्रमण के भय िे अपनी राजधानी रायगढ़ िे क्जंजी ले गया। 1698 तक क्जंजी मग
ु लोँ के
विरुदध मराठा गनतविधधयो का केंर रहा। 1699 मेँ ितारा, मराठों की राजधानी बना।
राजाराम स्ियं को शंभाजी के पुत्र शाहू का प्रनतननधध मानकर गददी पर कभी नहीीँ बैठा।
राजा राम के नेतत्ृ ि मेँ मराठों ने मुगलोँ के विरुदध स्ितंत्रता के सलए असभयान शुरु ककया जो 1700 ई .तक चलता
रहा।
राजा राम की मत्ृ यु के बाद 1700 ई .में उिकी विधिा पत्नी तारा बाई ने अपने चार िषीय पुत्र सशिाजी दवितीय
को गददी पर बैठाया और मग
ु लो के विरुदध िंघषम जारी रिा।
शाहू (1707 ई .से 1748 ई).
औरं गजेब की 1707 ई .मेँ मत्ृ यु के बाद उिके पुत्र बहादर
ु शाह – प्रथम ने शाहू को कैद िे मुतत कर ददया।
अतटूबर 1707 मेँ शाहू ताराबाई के मध्य िेड़ा का युदध हुआ, शाहू बालाजी विश्िनाथ की मदद िे विजयी हुआ।
शाहू ने 1713 ई .मेँ बालाजी को पेशिा के पद पर ननयुतत ककया। बालाजी विश्िनाथ की ननयक्ु तत के िाथ ही
पेशिा पद शक्ततशाली हो गया। छत्रपनत नाममात्र का शािक रह गया।
पेशिाओं के अधीन मराठा साम्राज्य
बालािी विश्िनार् (1713 ई .से 1720 ई).
बालाजी विश्िनाथ एक िाहमण था। बालाजी विश्िनाथ ने अपना राजनीनतक जीिन एक छोटे िे राजस्ि
अधधकारी के रुप मेँ शरु
ु ककया था।
बालाजी विश्िनाथ की िबिे बड़ी उपलक्ब्ध मग
ु लों तथा मराठोँ के मध्य एक स्थाई िमझोते की व्यिस्था की थी,
क्जिमेँ दोनोँ पक्षो के अधधकार तथा प्रभाि क्षेत्र की विधधित व्यिस्था की गई थी।
बालाजी विश्िनाथ को िम्राट ननमामता भी कहा जाता है । उिने मग
ु लोँ की राजधानी मेँ अपनी एक बड़ी िेना भेज
कर िैय्यद बंधओ ु ल इनतहाि मेँ‘ ककंगमेकर ’के रुप मेँ प्रसिदध हैं।
ु ं की िहायता की थी, जो मग
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इनतहािकार टोपल ने मुग़ल िूबेदार हुिन ै अली तथा बालाजी विश्िनाथ के बीच 1719 मेँ हुई िंधध को मराठा
िाम्राज्य के मैग्नाकाटाम की िंज्ञा दी है ।
बािीराि प्रर्म (1720 ई– . 1740 ई).
बालाजी विश्िनाथ की 1720 मेँ मत्ृ यु के बाद उिके पुत्र बाजीराि प्रथम को शाहू ने पेशिा ननयुतत ककया।
बाजीराि प्रथम के पेशिा काल मेँ मराठा िाम्राज्य की शक्तत चरमोत्कषम पर पहुँच गई।
1724 मेँ शूकर िेड़ा के युदध मेँ मराठोँ की मदद िे ननजाम-उल-मुल्क ने दतकन मेँ मुगल िूबेदार मुबाररज िान
को परास्त कर एक स्ितंत्र राज्य की स्थापना की।
ननजाम-उल-मुल्क ने अपनी क्स्थनत मजबूत करने के बाद मराठोँ के विरुदध कारम िाई शुरु कर दी। बाजीराि प्रथम
ने 1728 मेँ पालिेड़ा के युदध में ननजाम-उल-मुल्क को पराक्जत ककया।
1728 में ही ननजाम-उल-मल्
ु क बाजीराि प्रथम के बीच एक मुंशी सशिगांि की िंधध हुई क्जिमे ननजाम ने मराठोँ
को चौथ एिं िरदे शमुिी दे ना स्िीकार ककया।
बाजीराि प्रथम ने दहंद ू पादशाही के आदशों के प्रिार के सलए प्रयत्न ककया।
बाजीराि प्रथम ने सशिाजी की गुररल्ला युदध प्रणाली को अपनाया।
1739 ई .में बाजीराि प्रथम ने पुतग
म ासलयोँ िे िालिीट तथा बेिीन छीन सलया।
बालाजी बाजीराि प्रथम ने ग्िासलयर के सिंधधया, गायकिाड़, इंदौर के होलकर और नागपुर के भोंिले शािकों
को िक्म्मसलत कर एक मराठा मंडल की स्थापना की।
बालािी बािीराि (1740 ई .– 1761 ई).
बाजीराि प्रथम की मत्ृ यु के बाद बालाजी बाजीराि नया पेशिा बना। नाना िाहे ब के नाम िे भी जाना जाता है ।
1750 मेँ रघुजी भोंिले की मध्यस्थता िे राजाराम दवितीय के मध्य िंगौला की िंधध हुई। इि िंधध के दिारा
पेशिा मराठा िाम्राज्य का िास्तविक प्रधान बन गया। छत्रपनत नाममात्र का राजा रह गया।
बालाजी बाजीराि पेशिा काल मेँ पूना मराठा राजनीनत का केंर हो गया।
बालाजी बाजीराि के शािनकाल मेँ 1761 ई .पानीपत का तत
ृ ीय युदध हुआ। यह युदध मराठों अहमद शाह
अब्दाली के बीच हुआ।
पानीपत का ततृ ीय युदध दो कारणोँ िे हुआ – प्रथम नाददरशाह की भांनत अहमद शाह अब्दाली भी भारत को
लूटना चाहता था। दि
ू रा, मराठे दहंद ू पद पादशाही की भािना िे प्रेररत होकर ददल्ली पर अपना प्रभाि स्थावपत
करना चाहते थे।
पानीपत के युदध मेँ बालाजी बाजीराि ने अपने नाबासलग बेटे विश्िाि राि के नेतत्ृ ि मेँ एक शक्ततशाली िेना
भेजी ककन्तु िास्तविक िेनापनत विश्िाि राि का चचेरा भाई िदासशिराि भाऊ था।
इि युदध में मराठोँ की पराजय हुई और विश्िाि राि और िदासशिराि िदहत 28 हजार िैननक मारे गए।
माधि राि( 1761 ई– . 1772 ई).
पानीपत के तीिरे यद
ु ध मेँ मराठोँ की पराजय के बाद माधिराि पेशिा बनाया गया।
माधिराि की िबिे बड़ी िफलता मालिा और बंद
ु े लिंड की विजय थी।
माधि ने 1763 मेँ उदगीर के युदध मेँ है दराबाद के ननजाम को पराक्जत ककया। माधिराि और ननजाम के बीच
राक्षि भिन की िंधध हुई।
1771 ई .मेँ मैिूर के है दर अली को पराक्जत कर उिे नजराना दे ने के सलए बाध्य ककया।
माधिराि ने रुहे लों, राजपूतों और जाटों को अधीन लाकर उिर भारत पर मराठोँ का िचमस्ि स्थावपत ककया।
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1771 मेँ माधिराि के शािनकाल मेँ मराठों ननिामसित मुग़ल बादशाह शाहआलम को ददल्ली की गददी पर बैठाकर
पें शन भोगी बना ददया।
निंबर 1772 मेँ माधिराि की छय रोग िे मत्ृ यु हो गई।
नारायण राि (1772 ई – .1774 ई).
माधिराि की अपनी कोई िंतान नहीीँ थी। अतः माधिराि की मत्ृ यु के उपरांत उिके छोटे भाई नारायणराि पेशिा
बना।
नारायणराि का अपने चाचा राघोबा िे गददी को लेकर लंबे िमय तक िंघषम चला क्जिमें अंततः राघोबा ने 1774
मेँ नारायणराि की हत्या कर दी।
माधि नारायण (1774 ई. – 1796 ई).
1774 ई .मेँ पेशिा नारायणराि की हत्या के बाद उिके पुत्र माधिराि नारायण को पेशिा की गददी पर बैठाया
गया।
इिके िमय मेँ नाना फड़निीि के नेतत्ृ ि मेँ एक काउं सिल ऑफ रीजेंिी का गठन ककया गया था, क्जिके हाथों
मेँ िास्तविक प्रशािन था।
इिके काल मेँ प्रर्म आंग्ल–मराठा यद
ु ध हुआ।
17 मई 1782 को सालबाई की संर्ध दिारा प्रथम आंग्ल मराठा यद
ु ध िमाप्त हो गया। यह िंधध बिदटश ईस्ट
इंडडया कंपनी और मराठा िाम्राज्य के बीच हुई थी।
टीपू िल्
ु तान को 1792 मेँ तथा है दराबाद के ननजाम को 1795 मेँ परास्त करने के बाद मराठा शक्तत एक बार कफर
पुनः स्थावपत हो गई।
बािीराि दवितीय (1796 ई .से -1818 ई).
माधिराि नारायण की मत्ृ यु के बाद राघोबा का पुत्र बाजीराि दवितीय पेशिा बना।
इिकी अकुशल नीनतयोँ के कारण मराठा िंघ मेँ आपिी मतभेद उत्पन्न हो गया।
1802 ई .बाजीराि दवितीय के बेिीन की िंधध के दिारा अंग्रेजो की िहायक िंधध स्िीकार कर लेने के बाद मराठोँ
का आपिी वििाद पटल पर आ गया। सिंधधया तथा भोंिले ने अंग्रेजो के िाथ की गई इि िंधध का कड़ा विरोध
ककया।
दवितीय और तत
ृ ीय आंग्ल मराठा युदध बाजीराि दवितीय के शािन काल मेँ हुआ।
दवितीय आंग्ल मराठा युदध मेँ सिंधधया और भोंिले को पराक्जत कर अंग्रेजो ने सिंधधया और भोंिले को अलग-
अलग िंधध करने के सलए वििश ककया।
1803 मेँ अंग्रेजो और भोंिले के िाथ दे िगांि की िंधध कर कटक और िधाम नदी के पक्श्चम का क्षेत्र ले सलया।
अंग्रेजो ने 1803 में ही सिन्धयों िे िरु जी-अजमनगांि की िंधध कर उिे गंगा तथा यमन
ु ा के क्षेत्र को ईस्ट इंडडया
कंपनी को दे ने के सलए बाध्य ककया।
1804 में अंग्रेजों तथा होलकर के बीच तत
ृ ीय आंग्ल-मराठा यद
ु ध हुआ, क्जिमें पराक्जत होकर होलकर ने अंग्रेजो
के िाथ राजपरु पर घाट की िंधध की।
मराठा शक्तत का पतन 1817-1818 ई .मेँ हो गया जब स्ियं पेशिा बाजीराि दवितीय ने अपने को पूरी तरह अंग्रेजो
के अधीन कर सलया।
बाजीराि दवितीय दिारा पन
ू ा प्रदे श को अंग्रेजी राज्य मेँ विलय कर पेशिा पद को िमाप्त कर ददया गया।
स्मरणीय तथ्य
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