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रामायण

ह धम ंथ,सं कृत महाका , bhojram

रामायण ह रघुवंश के राजा राम क गाथा है। । यह


आ द क व वा मी क ारा लखा गया सं कृत का एक
अनुपम महाका , मृ त का वह अंग है। इसे
आ दका [1] तथा इसके रच यता मह ष वा मी क को
'आ दक व'[2] भी कहा जाता है। रामायण के सात
अ याय ह जो का ड के नाम से जाने जाते ह, इसके
२४,००० ोक[ख] ह।
ह धम
ेणी

इ तहास · दे वता

स दाय · पूजा ·

आ थादशन

पुनज म · मो

कम · माया
दशन · धम

वेदा त ·योग

शाकाहार  · आयुवद

युग · सं कार

भ {{ ह दशन}}

थशा

वेदसं हता · वेदांग

ा ण थ · आर यक
उप नषद् · ीम गव ता

रामायण · महाभारत

सू  · पुराण

श ाप ी · वचनामृत

स ब धत

व म ह धम

गु  · म दर दे व थान

य  · म
श दकोष ( ह धम)|श दकोष  · ह पव

व ह

वेश ार: ह धम

ह मापन णाली

रचनाकाल
कुछ भारतीय कहते ह क यह ६०० ईपू से पहले लखा
गया।[3] उसके पीछे यु यह है क महाभारत जो इसके
प ात आया बौ धम के बारे म मौन है य प उसम
जैन, शैव, पाशुपत आ द अ य पर परा का वणन
है।[4] अतः रामायण गौतम बु के काल के पूव का होना
चा हये। भाषा-शैली से भी यह पा ण न के समय से पहले
का होना चा हये।
रामायण का पहला और अ तम कांड

“ संभवत: बाद म जोड़ा गया था। अ याय


दो से सात तक यादातर इस बात पर
बल दया जाता है क राम व णु[ग] के
अवतार थे। कुछ लोग के अनुसार इस
महाका म यूनानी और कई अ य
स दभ से पता चलता है क यह पु तक
सरी सद ईसा पूव से पहले क नह हो
सकती पर यह धारणा ववादा पद है।
६०० ईपू से पहले का समय इस लये भी
ठ क है क बौ जातक रामायण के
पा का वणन करते ह जब क रामायण
म जातक के च र
है।[3]
का वणन नह „
ह कालगणना के अनुसार रचनाकाल …

रामायण का समय ेतायुग का माना जाता है। ह


कालगणना चतुयुगी व था पर आधा रत है जसके
अनुसार समय अव ध को चार युग म बाँटा गया है-
सतयुग, ेतायुग, ापर युग एव क लयुग जनक येक
चतुयुग (४३,२०,००० वष) के बााद पुनरावृ होती है।
एक क लयुग ४,३२,००० वष का, ापर ८,६४,००० वष
का, ेता युग १२,९६,००० वष का तथा सतयुग
१७,२८,००० वष का होता है। इस गणना के अनुसार
रामायण का समय यूनतम ८,७०,००० वष (वतमान
क लयुग के ५,118 वष + बीते ापर युग के ८,६४,०००
वष) स होता है।
रामायण मीमांसा के रचनाकार धमस ाट वामी
करपा ी, गोवधन पुरी शंकराचाय पीठ, पं० वाला साद
म , ीराघव च रतम् के रचनाकार ीभागवतानंद गु
आ द के अनुसार ीराम अवतार ेतवाराह क प के
सातव वैव वत म व तर के चौबीसव ेता युग म आ था
जसके अनुसार ीरामचं जी का काल लगभग पौने दो
करोड़ वष पूव का है। इसके स दभ म वचार पीयूष,
भुशु ड रामायण, प पुराण, ह रवंश पुराण, वायु पुराण,
संजीवनी रामायण एवं पुराण से माण दया जाता है।

राम कथा
सनातन धम के धा मक लेखक तुलसीदास जी के
अनुसार सव थम ी राम क कथा भगवान ी शंकर ने
माता पावती जी को सुनायी थी। जहाँ पर भगवान शंकर
पावती जी को भगवान ी राम क कथा सुना रहे थे वहाँ
कागा (कौवा) का एक घ सला था और उसके भीतर
बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने
के पहले ही माता पावती को न द आ गई पर उस प ी ने
पूरी कथा सुन ली। उसी प ी का पुनज म
काकभुशु ड[घ] के प म आ। काकभुशु ड जी ने
यह कथा ग ड़ जी को सुनाई। भगवान ी शंकर के मुख
से नकली ीराम क यह प व कथा अ या म रामायण
के नाम से यात है। अ या म रामायण को ही व का
सव थम रामायण माना जाता है।

दय प रवतन हो जाने के कारण एक द यु से ऋ ष बन


जाने तथा ान ा त के बाद वा मी क ने भगवान ी
राम के इसी वृता त को पुनः ोकब कया। मह ष
वा मी क के ारा ोकब भगवान ी राम क कथा
को वा मी क रामायण के नाम से जाना जाता है।
वा मी क को आ दक व कहा जाता है तथा वा मी क
रामायण को आ द रामायण के नाम से भी जाना जाता
है।

दे श म वदे शय क स ा हो जाने के बाद सं कृत का


ास हो गया[कृपया उ रण जोड़] और भारतीय लोग उ चत
ान के अभाव तथा वदे शी स ा के भाव के कारण
अपनी ही सं कृ त को भूलने लग गये।[कृपया उ रण जोड़]

ऐसी थ त को अ य त वकट जानकर जनजागरण के


लये महा ानी स त ी तुलसीदास जी ने एक बार फर
से भगवान ीराम क प व कथा को दे शी (अवधी)
भाषा म ल पब कया। स त तुलसीदास जी ने अपने
ारा ल खत भगवान ीराम क क याणकारी कथा से
प रपूण इस ंथ का नाम रामच रतमानस[ङ] रखा।
सामा य प से रामच रतमानस को तुलसी रामायण के
नाम से जाना जाता है।

काला तर म भगवान ीराम क कथा को अनेक व ान


ने अपने अपने बु , ान तथा मतानुसार अनेक बार
लखा है। इस तरह से अनेक रामायण क रचनाएँ ई
ह।

सं ेप म रामायण-कथा
ह शा के अनुसार भगवान राम, व णु के अवतार
थे। इस अवतार का उ े य मृ युलोक म मानवजा त को
आदश जीवन के लये मागदशन दे ना था। अ ततः
ीराम ने रा स जा त[च] के राजा रावण का वध कया
और धम क पुन थापना क ।

बालका ड …

अयो या नगरी म दशरथ नाम के राजा ये जनक


कौश या, कैकेयी और सु म ा नामक प नयाँ थ ।
स तान ा त हेतु अयो याप त दशरथ ने अपने गु ी
व श क आ ा से पु कामे य करवाया[5] जसे क
ऋंगी ऋ ष ने स प कया।
दे व त ारा दशरथ को खीर दे ना , च कार सैन न काश और
बासवान , अकबर क जयपुर रामायण से

भ पूण आ तयाँ पाकर अ नदे व स ये और


उ ह ने वयं कट होकर राजा दशरथ को ह व यपा
(खीर, पायस) दया जसे क उ ह ने अपनी तीन
प नय म बाँट दया। खीर के सेवन के प रणाम व प
कौश या के गभ से राम का, कैकेयी के गभ से भरत का
तथा सु म ा के गभ से ल मण और श ु न का ज म
आ।
सीता वंयवर ( च कार: र व वमा)

राजकुमार के बड़े होने पर आ म क रा स से र ा


हेतु ऋ ष व ा म राजा दशरथ से राम और ल मण को
मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबा
जैसे रा स को मार डाला और मारीच को बना फल
वाले बाण[6] से मार कर समु के पार भेज दया। उधर
ल मण ने रा स क सारी सेना का संहार कर डाला।
धनुषय हेतु राजा जनक के नम ण मलने पर
व ा म राम और ल मण के साथ उनक नगरी
म थला (जनकपुर) आ गये। रा ते म राम ने गौतम मु न
क ी अह या का उ ार कया। म थला म राजा
जनक क पु ी सीता ज ह क जानक के नाम से भी
जाना जाता है का वयंवर का भी आयोजन था जहाँ क
जनक त ा के अनुसार शवधनुष को तोड़ कर राम ने
सीता से ववाह कया। राम और सीता के ववाह के
साथ ही साथ गु व श ने भरत का मा डवी से, ल मण
का उ मला से और श ु न का ुतक त से करवा
दया।[7]

अयो याका ड …
राम के ववाह के कुछ समय प ात् राजा दशरथ ने राम
का रा या भषेक करना चाहा। इस पर दे वता को
च ता ई क राम को रा य मल जाने पर रावण का
वध अस भव हो जायेगा। ाकुल होकर उ ह ने दे वी
सर वती से कसी कार के उपाय करने क ाथना क ।
सर वती ने म थरा, जो क कैकेयी क दासी थी, क
बु को फेर दया। म थरा क सलाह से कैकेयी
कोपभवन म चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो
कैकेयी ने उनसे वरदान[8] मांगे क भरत को राजा
बनाया जाये और राम को चौदह वष के लये वनवास म
भेज दया जाये।

राम के साथ सीता और ल मण भी वन चले गये।


ऋंगवेरपुर म नषादराज गुह ने तीन क ब त सेवा क ।
कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीन को गंगा
नद के पार उतारा। याग प ंच कर राम ने भार ाज
मु न से भट क । वहां से राम यमुना नान करते ये
वा मी क ऋ ष के आ म प ंचे। वा मी क से ई
म णा के अनुसार राम, सीता और ल मण च कूट म
नवास करने लगे।

दशरथ क मृ यु , च कार म क न और भोरा


अयो या म पु के वयोग के कारण दशरथ का वगवास
हो गया। व श ने भरत और श ु न को उनके न नहाल
से बुलवा लया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता
कैकेयी क , उसक कु टलता के लये, ब त भत ना क
और गु जन के आ ानुसार दशरथ क अ ये या
कर दया। भरत ने अयो या के रा य को अ वीकार कर
दया और राम को मना कर वापस लाने के लये सम त
नेहीजन के साथ च कूट चले गये। कैकेयी को भी
अपने कये पर अ य त प ाताप आ। सीता के माता-
पता सुनयना एवं जनक[9] भी च कूट प ंचे। भरत
तथा अ य सभी लोग ने राम के वापस अयो या जाकर
रा य करने का ताव रखा जसे क राम ने, पता क
आ ा पालन करने और रघुवंश क री त नभाने के लये,
अमा य कर दया।

भरत अपने नेही जन के साथ राम क पा का को साथ


लेकर वापस अयो या आ गये। उ ह ने राम क पा का
को राज सहासन पर वरा जत कर दया वयं न द ाम
म नवास करने लगे।[10]

अर यका ड …

कुछ काल के प ात राम ने च कूट से याण कया


तथा वे अ ऋ ष के आ म प ँचे। अ ने राम क
तु त क और उनक प नी अनसूया ने सीता को
पा त त धम के मम समझाये। वहाँ से फर राम ने आगे
थान कया और शरभंग मु न से भट क । शरभंग मु न
केवल राम के दशन क कामना से वहाँ नवास कर रहे
थे अतः राम के दशन क अपनी अ भलाषा पूण हो
जाने से योगा न से अपने शरीर को जला डाला और
लोक को गमन कया। और आगे बढ़ने पर राम को
थान थान पर ह य के ढे र दखाई पड़े जनके वषय
म मु नय ने राम को बताया क रा स ने अनेक मु नय
को खा डाला है और उ ह मु नय क ह याँ ह। इस पर
राम ने त ा क क वे सम त रा स का वध करके
पृ वी को रा स वहीन कर दगे। राम और आगे बढ़े और
पथ म सुती ण, अग य आ द ऋ षय से भट करते ये
द डक वन म वेश कया जहाँ पर उनक मुलाकात
जटायु से ई। राम ने पंचवट को अपना नवास थान
बनाया।
सीता हरण ( च कार: र व वमा)

पंचवट म रावण क बहन शूपणखा ने आकर राम से


णय नवेदन- कया। राम ने यह कह कर क वे अपनी
प नी के साथ ह और उनका छोटा भाई अकेला है उसे
ल मण के पास भेज दया। ल मण ने उसके णय-
नवेदन को अ वीकार करते ये श ु क बहन जान कर
उसके नाक और कान काट लये। शूपणखा ने खर- षण
से सहायता क मांग क और वह अपनी सेना के साथ
लड़ने के लये आ गया। लड़ाई म राम ने खर- षण और
उसक सेना का संहार कर डाला।[11] शूपणखा ने जाकर
अपने भाई रावण से शकायत क । रावण ने बदला लेने
के लये मारीच को वणमृग बना कर भेजा जसक
छाल क मांग सीता ने राम से क । ल मण को सीता के
र ा क आ ा दे कर राम वणमृग पी मारीच को
मारने के लये उसके पीछे चले गये। मारीच के हाथ
मारा गया पर मरते मरते मारीच ने राम क आवाज बना
कर ‘हा ल मण’ का दन कया जसे सुन कर सीता ने
आशंकावश होकर ल मण को राम के पास भेज दया।
ल मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने
छलपूवक हरण कर लया और अपने साथ लंका ले
गया। रा ते म जटायु ने सीता को बचाने के लये रावण
से यु कया और रावण ने उसके पंख काटकर उसे
अधमरा कर दया।[12]

सीता को न पा कर राम अ य त ःखी ये और वलाप


करने लगे। रा ते म जटायु से भट होने पर उसने राम को
रावण के ारा अपनी दशा होने व सीता को हर कर
द ण दशा क ओर ले जाने क बात बताई। ये सब
बताने के बाद जटायु ने अपने ाण याग दये और राम
उसका अ तम सं कार करके सीता क खोज म सघन
वन के भीतर आगे बढ़े । रा ते म राम ने वासा के शाप
के कारण रा स बने ग धव कब ध का वध करके
उसका उ ार कया और शबरी के आ म जा प ँचे
जहाँ पर क उसके ारा दये गये जूठे बेर को उसके
भ के वश म होकर खाया। इस कार राम सीता क
खोज म सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये।

क क धाका ड …

राम ऋ यमूक पवत के नकट आ गये। उस पवत पर


अपने म य स हत सु ीव रहता था। सु ीव ने, इस
आशंका म क कह बा ल ने उसे मारने के लये उन दोन
वीर को न भेजा हो, हनुमान को राम और ल मण के
वषय म जानकारी लेने के लये ा ण के प म भेजा।
यह जानने के बाद क उ ह बा ल ने नह भेजा है हनुमान
ने राम और सु ीव म म ता करवा द । सु ीव ने राम को
सा वना द क जानक जी मल जायग और उ ह
खोजने म वह सहायता दे गा साथ ही अपने भाई बा ल के
अपने ऊपर कये गये अ याचार के वषय म बताया।
राम ने बा ल का छलपूवक वध कर के सु ीव को
क क धा का रा य तथा बा ल के पु अंगद को
युवराज का पद दे दया।[13]

रा य ा त के बाद सु ीव वलास म ल त हो गया और


वषा तथा शरद् ऋतु तीत हो गई। राम क नाराजगी
पर सु ीव ने वानर को सीता क खोज के लये भेजा।
सीता क खोज म गये वानर को एक गुफा म एक
तप वनी के दशन ये। तप वनी ने खोज दल को
योगश से समु तट पर प ंचा दया जहां पर उनक
भट स पाती से ई। स पाती ने वानर को बताया क
रावण ने सीता को लंका अशोकवा टका म रखा है।
जा बव त ने हनुमान को समु लांघने के लये उ सा हत
कया।

सुंदरका ड …

हनुमान ने लंका क ओर थान कया। सुरसा ने


हनुमान क परी ा ली[14] और उसे यो य तथा
साम यवान पाकर आशीवाद दया। माग म हनुमान ने
छाया पकड़ने वाली रा सी का वध कया और लं कनी
पर हार करके लंका म वेश कया। उनक वभीषण
से भट ई। जब हनुमान अशोकवा टका म प ँचे तो
रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर
जटा ने सीता को सा तवना द । एका त होने पर
हनुमान ने सीता से भट करके उ ह राम क मु का द ।
हनुमान ने अशोकवा टका का व वंस करके रावण के
पु अ य कुमार का वध कर दया। मेघनाथ हनुमान को
नागपाश म बांध कर रावण क सभा म ले गया।[15]
रावण के के उ र म हनुमान ने अपना प रचय राम
के त के प म दया। रावण ने हनुमान क पूँछ म तेल
म डू बा आ कपड़ा बांध कर आग लगा दया इस पर
हनुमान ने लंका का दहन कर दया।[16]

हनुमान सीता के पास प ँचे। सीता ने अपनी चूड़ाम ण दे


कर उ ह वदा कया। वे वापस समु पार आकर सभी
वानर से मले और सभी वापस सु ीव के पास चले गये।
हनुमान के काय से राम अ य त स ये। राम वानर
क सेना के साथ समु तट पर प ँचे। उधर वभीषण ने
रावण को समझाया क राम से बैर न ल इस पर रावण ने
वभीषण को अपमा नत कर लंका से नकाल दया।
वभीषण राम के शरण म आ गया और राम ने उसे लंका
का राजा घो षत कर दया। राम ने समु से रा ता दे ने
क वनती क । वनती न मानने पर राम ने ोध कया
और उनके ोध से भयभीत होकर समु ने वयं आकर
राम क वनती करने के प ात् नल और नील के ारा
पुल बनाने का उपाय बताया।

लंकाका ड (यु का ड) …

जा बव त के आदे श से नल-नील दोन भाइय ने वानर


सेना क सहायता से समु पर पुल बांध दया।[17] ी
राम ने ी रामे र क थापना करके भगवान शंकर क
पूजा क और सेना स हत समु के पार उतर गये। समु
के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम
के समु के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन म
अयत ाकुल आ। म दोदरी के राम से बैर न लेने के
लये समझाने पर भी रावण का अहंकार नह गया। इधर
राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल पवत पर नवास
करने लगे। अंगद राम के त बन कर लंका म रावण के
पास गये और उसे राम के शरण म आने का संदेश दया
क तु रावण ने नह माना।

शा त के सारे यास असफल हो जाने पर यु आर भ


हो गया। ल मण और मेघनाद के म य घोर यु आ।
श बाण के वार से ल मण मू छत हो गये। उनके
उपचार के लये हनुमान सुषेण वै को ले आये और
संजीवनी लाने के लये चले गये। गु तचर से समाचार
मलने पर रावण ने हनुमान के काय म बाधा के लये
कालने म को भेजा जसका हनुमान ने वध कर दया।
औष ध क पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पवत
को ही उठा कर वापस चले। माग म हनुमान को रा स
होने के स दे ह म भरत ने बाण मार कर मू छत कर दया
पर तु यथाथ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस
लंका भेज दया। इधर औष ध आने म वल ब दे ख कर
राम लाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औष ध
लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से ल मण व थ हो
गये।[18]

रावण ने यु के लये कु भकण को जगाया। कु भकण


ने भी रावण को राम क शरण म जाने क असफल
म णा द । यु म कु भकण ने राम के हाथ परमग त
ा त क । ल मण ने मेघनाद से यु करके उसका वध
कर दया। राम और रावण के म य अनेक घोर यु ऐ
और अ त म रावण राम के हाथ मारा गया।[19]
वभीषण को लंका का रा य स प कर राम, सीता और
ल मण के साथ पु पक वमान पर चढ़ कर अयो या के
लये थान कया।[20]

उ रका ड …

उ रका ड राम कथा का उपसंहार है। सीता, ल मण


और सम त वानरसेना के साथ राम अयो या वापस
प ँचे। राम का भ वागत आ, भरत के साथ
सवजन म आन द ा त हो गया। वेद और शव क
तु त के साथ राम का रा या भषेक आ। अ यागत
क वदाई द गई। राम ने जा को उपदे श दया और
जा ने कृत ता कट क । चार भाइय के दो दो पु
ये। रामरा य एक आदश बन गया।

उपरो बात के साथ ही साथ गो वामी तुलसीदास जी


ने उ रका ड म ी राम-व श संवाद, नारद जी का
अयो या आकर रामच जी क तु त करना, शव-
पावती संवाद, ग ड़ मोह तथा ग ड़ जी का
काकभुशु ड जी से रामकथा एवं राम-म हमा सुनना,
काकभुशु ड जी के पूवज म क कथा, ान-भ त
न पण, ानद पक और भ त क महान म हमा,
ग ड़ के सात न और काकभुशु ड जी के उ र आ द
वषय का भी व तृत वणन कया है।
जहाँ तुलसीदास जी ने उपरो वणन लखकर
रामच रतमानस को समा त कर दया है वह आ दक व
वा मी क अपने रामायण म उ रका ड म रावण तथा
हनुमान के ज म क कथा,[21] सीता का नवासन,[22]
राजा नृग, राजा न म, राजा यया त तथा रामरा य म
कु े का याय क उपकथाय,[23] लवकुश का ज म,[24]
राम के ारा अ मेघ य का अनु ान तथा उस य म
उनके पु लव तथा कुश के ारा महाक व वा मी क
र चत रामायण गायन, सीता का रसातल वेश,[25]
ल मण का प र याग,[26] 515 518 का भी वणन कया
है। वा मी क रामायण म उ रका ड का समापन राम के
महा याण के बाद ही आ है।[27]

रामायण क सीख
इस (धा मक वचार कृपया हटाएँ। कृपया त य पर आधा रत
होकर पुनलखन कर)। को व कफ़ाइ करने क आवLearn
यकताmore
हो

रामायण के सारे च र अपने धम का पालन करते ह।

राम एक आदश पु ह। पता क आ ा उनके लये


सव प र है। प त के प म राम ने सदै व एकप नी त
का पालन कया। राजा के प म जा के हत के
लये वयं के हत को हेय समझते ह। वल ण
व है उनका। वे अ य त वीयवान, तेज वी,
व ान, धैयशील, जते य, बु मान, सुंदर,
परा मी, का दमन करने वाले, यु एवं
नी तकुशल, धमा मा, मयादापु षो म, जाव सल,
शरणागत को शरण दे ने वाले, सवशा के ाता एवं
तभा स प ह।
सीता का पा त त महान है। सारे वैभव और ऐ य
को ठु करा कर वे प त के साथ वन चली ग ।
रामायण भातृ- ेम का भी उ कृ उदाहरण है। जहाँ
बड़े भाई के ेम के कारण ल मण उनके साथ वन
चले जाते ह वह भरत अयो या क राज ग पर, बड़े
भाई का अ धकार होने के कारण, वयं न बैठ कर
राम क पा का को त त कर दे ते ह।
कौश या एक आदश माता ह। अपने पु राम पर
कैकेयी के ारा कये गये अ याय को भूला कर वे
कैकेयी के पु भरत पर उतनी ही ममता रखती ह
जतनी क अपने पु राम पर।
हनुमान एक आदश भ ह, वे राम क सेवा के लये
अनुचर के समान सदै व त पर रहते ह। श बाण से
मू छत ल मण को उनक सेवा के कारण ही ाणदान
ा त होता है।
रावण के च र से सीख मलती है क अहंकार नाश
का कारण होता है।

रामायण के च र से सीख लेकर मनु य अपने जीवन


को साथक बना सकता है।

रामायण ारा े रत अ य सा ह यक
महाका
वा मी क रामायण से े रत होकर स त तुलसीदास ने
रामच रतमानस जैसे महाका क रचना क जो क
वा मी क के ारा सं कृत म लखे गये रामायण का
हद सं करण है। रामच रतमानस म ह आदश का
उ कृ वणन है इसी लये इसे ह धम के मुख ंथ होने
का ेय मला आ है और येक ह प रवार म
भ भाव के साथ इसका पठन पाठन कया जाता है।

रामायण से ही े रत होकर मै थलीशरण गु त ने पंचवट


तथा साकेत नामक खंडका क रचना क । रामायण
म ल मण क प नी उ मला के उ लेखनीय याग को
शायद भूलवश अनदे खा कर दया गया है और इस भूल
को साकेत खंडका रचकर मै थलीशरण गु त जी ने
सुधारा है।

राम स ब धी कथानक से े रत होकर ीभागवतानंद


गु ने सं कृत महाका ीराघव च रतम् क रचना क
जो अ त एवं गु त कथा संग से भरा आ है। इस ंथ
म 20 से अ धक कार के रामायण क कथा का
समावेश है।

नेपाल के राजदरबार से स मा नत क ववर ी राधे याम


जी क राधे याम रामायण, ेमभूषण जी क ेम
रामायण, मह ष क बन क क ब रामायण के अलावा
और भी अनेक सा ह यकार ने रामायण से ेरणा ले कर
अनेक कृ तय क रचना क है।

इ ह भी दे ख
भगवान महावीर का साधना काल
रामायण और च कला
व भ भाषा म रामायण
ी रामच रत मानस
महाभारत
राम तांडव तो
ीराघव च रतम्
राम
भगवद गीता
महाका
ह सा ह य
वेद

ट का- ट पणी
   क.    ^ ‘रामायण’ का सं ध व छे द करने है ‘राम’ +
‘अयन’। ‘अयन’ का अथ है ‘या ा’ इस लये रामायण का
अथ है राम क या ा।
   ख.    ^ इसम ४,८०,००२ श द ह जो महाभारत का
चौथाई है।
   ग.    ^ प पुराण, ीम ागवत पुराण, कूमपुराण,
महाभारत, आन द रामायण, दशावतारच रत एवं
रामच रतमानस म राम के व णु का अवतार होने का
प उ लेख है, क तु वा मी क रामायण म केवल
इसका संकेत मा ही है।
   घ.    ^ काकभुशु ड क व तृत कथा का वणन
तुलसीदास जी ने रामच रतमानस के उ रका ड के दोहा
मांक ९६ से दोहा मांक ११५ तक म कया है।
   ङ.    ^ रामच रतमानस = राम + च रत + मानस,
रामच रतमानस का अथ है राम के च र का सरोवर।
रामच रतमानस के बालका ड के दोहा मांक ३५ से
दोहा मांक ४२ म तुलसीदास जी ने इस सरोवर के
व प का वणन कया है।
   च.    ^ “आचाय चतुरसेन” ने अपने ंथ ‘वयं र ामः’
म रा सजा त एवं रा स सं कृ त का व तृत वणन
कया है।

स दभ
1. 'रामायणमा दका म्', ी क दपुराणे उ रख डे
रामायणमाहा ये- १-३५ तथा ५-६१,
ीम ा मीक य रामायण भाग-१, गीता ेस
गोरखपुर, सं करण-१९९६ ई०, पृ -९ एवं २५.
2. व यालोकः, १-५ (का रका एवं वृ ) तथा ४-५
(वृ ), व यालोक, ह द ा याकार- आचाय
व े र स ा त शरोम ण, ानमंडल ल मटे ड,
वाराणसी, सं करण-१९८५ ई०, पृ -२९-३० एवं
३४५ तथा व यालोकः (लोचन स हत) ह द
अनुवाद- जग ाथ पाठक, चौख बा व ाभवन,
वाराणसी, सं करण-२०१४, पृ -८६ एवं ८९ तथा
पृ०-५७०.
3. सह, बी.पी. (2001)। गो व द च पा डे: Life,
Thought and Culture of India — “The
Valmiki Ramayana: A Study”। Centre
of Studies in Civilizations, नई द ली।
आइएसबीएन 81-87586-07-0। 
4. "How did the 'Ramayana' and
'Mahabharata' come to be (and what
has 'dharma' got to do with it)?" .
5. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ १६३
. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ १८०
7. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ ९२-९३
. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 120-128
9. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
528-533
10. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
554-557
11. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 251-263
12. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
603-606
13. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
634-638
14. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
658-659
15. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
668-672
1 . ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
678-679
17. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
709-711
1 . ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
751-759
19. ‘रामच रतमानस’, ट काकार: हनुमान साद पो ार,
काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर पृ
802-807
20. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 455-459
21. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 463-475
22. ‘वा मीक य रामायण’‘, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 480-483
23. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 485-491
24. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 495-496
25. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 508-512
2 . ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 515-518
27. ‘वा मीक य रामायण’, काशक: दे हाती पु तक
भंडार, द ली पृ 518-520

थसूची …

रामच रतमानस, ट काकार: हनुमान साद पो ार,


काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर
ीम ा मीक य रामायण ( थम एवं तीय खंड),
स च , हद अनुवाद स हत, काशक एवं मु क:
गीता ेस, गोरखपुर
क वतावली, काशक एवं मु क: गीता ेस, गोरखपुर
रामायण के कुछ आदश पा , काशक एवं मु क:
गीता ेस, गोरखपुर
वा मीक य रामायण, काशक: दे हाती पु तक भंडार,
द ली

बाहरी क ड़याँ
ारं भक सा ह य
व क ोत से रामायण
अनुवाद

1.Ramayan full information

एक वा मी क रामायण जालपृ अं ेज़ी मतलब के


साथ म (सं कृत), (अं ेज़ी)
तुलसीदास का रामायण ( ह द ), (अं ेज़ी)
ी रामायण जी क आरती
सु दरकांड — अनुवादक : वामी स यान द, दे वी
म द र (आइएसबीएन 1-877795-15-9)
थ लेन लटल क ा या के साथ लन जेसप
र चत रामायण (आइएसबीएन 1-928875-02-
05)
ऑनलाइन त य
15 त वीर जो ये सा बत करती ह क रामायण क
येक घटना बलकुल सच है
भारत के हद तर रामका
राम कथा क वदे श-या ा
व म रमे राम - व भ भाषा और दे श म राम-
कथा
वा मी क-रामायण क यूटर क कसौट पर
गुजराती तुलसी रामायण एवं रामायण के पा का
चर च ण साँचा:गुजराती च , (अं ेज़ी)
रामायण से स बं धत त य
1899 म आर.सी. द र चत सं त रामायन और
महाभारत
ऑनलाइन रामायण (रे ज े शन ज़ रत है)
पा क े ट का नैसा शटल च राम सेतु का
सैटलाइट च
ले सं कृत पु तकालय महाभारत और रामायण के
साथ ाचीन भारतीय सा ह य का शत करने वाली
सं था। सा ह य अनुवाद पृ के साथ खोजनीय
वा य और डाउनलोड साम ी भी उपल ध है।
रामायण से े रत काय (अं ेज़ी)
रामायण ा या रामायण से े रत च कला,
श पकला तथा अ य भारतीय कला क समा व
बानन के रामायण उपाय
महाक व ग.द. माडगूळकर एवं सुधीर फड़के र चत
मराठ गीतरामायण
सीता का वयोग-गान - सीता से स बं धत इ सव
शता द क अनु ा णत च तथा कतरन का सं ह
ऐ टकुस कनाडाई एक ए पक पावर मेटल बड
कनाडा से उसका डे यू ऐलबम म गान का ल र स
रामायण के बारे म है।
अनुसंधानकाय से स बं धत नब ध (अं ेज़ी)
ववध सं कृ तय एवं स यता पर रामायण का
भाव — (पी.डी.एफ़. सं प म)
रामायण कथा सं ह - अ य दे श म रामायण के
अनुकूलन पर चचा
अव गत जालपृ (अं ेज़ी)
वै दक राग, म , वै दक अ या म तथा पौरा णक
कथा का तुतीकरण — एक सा ता हक
पॉडका ट
ह व क.कॉम — एक व क जालपृ ह धम के
वषय म।
सं त वा मी क रामायण ( ह द )
अ तररा ीय रामायण सं थान, उ री अमे रका
सं ेपरामायणम् (मह षवा मी क णीत-रामायण-
बालका ड- थमसग- पम्)

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title=रामायण&oldid=4482886" से लया गया

इस पृ के संपादन इ तहास को दे ख।

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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