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सीता-- म थला क यो ा
आई.आई.एम. (कोलकाता) से श त, 1974 म पैदा ए अमीश एक बो रग बकर से
सफल लेखक तक का सफर तय कर चुके ह। अपने पहले उप यास मेलूहा के मृ युंजय ( शव
रचना य क थम पु तक) क सफलता से ो सा हत होकर आप फ़ाइन शयल स वस का
14 साल का क रयर छोड़कर लेखन म लग गए। इ तहास, पौरा णक कथा एवं दशन के
त आपके जुनून ने आपको व के धम क ख़ूबसूरती और अथ समझने के लए े रत
कया। अमीश क कताब क 40 लाख से अ धक तयां बक चुक ह और उनका 19 से
अ धक भाषा म अनुवाद हो चुका है।
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www.facebook.com/authoramish
www.twitter.com/@authoramish
अमीश
अनुवाद
उ मला गु ता
westland publications ltd
61, II Floor, Silverline Building, Alapakkam Main Road, Maduravoyal,
Chennai 600095
93, I floor, Sham Lal Road, Daryaganj, New Delhi 110002
www.westlandbooks.in
10 9 8 7 6 5 4 3 2 1
ISBN: 978-93-86224-85-9
वो धम क र ा करगी।
वो हमारी र ा करगी।
च र सूची और मह वपूण कबीले
(वण मानुसार)
वा ल: क कंधा के राजा।
वेतकेतु: सीता के गु ।
www.facebook.com/authoramish
www.twitter.com/@authoramish
आभार
जब कोई कताब लखता है, तो अपनी आ मा कागज पर उंड़ेल दे ता है। कहते ह क इसम
ब त ह मत लगती है। ये भी कहा जाता है क ह मत अपने साथ खड़े ब त से लोग से ही
मलती है। म अपने साथ खड़े उ ह लोग का आभार करना चा ंगा: ज ह ने मुझे
हौसला दया: ज ह ने अहसास कराया क म अकेला नह ं।
मेरा 8 साल का बेटा, नील, मेरी खुशी और मेरा गव। वो अभी से काफ पढ़ने लगा
है। मुझे उस दन का बेस ी से इंतजार है, जब वो मेरी कताब पढ़े गा!
मेरी प नी, ी त; बहन, भावना; जीजा जी, हमांश,ु मेरे भाई, अनीश और आशीष,
कहानी म अपना योगदान दे ने के लए। उ ह ने पहला ा प पढ़ा, हर अ याय को। और
उनके साथ मने कई दशन पर व तार से चचा क । मने इस कताब का काफ भाग द ली
म, अनीश और मीता के घर पर लखा। मने पछले ज म म ज र कुछ अ छे काम कए
ह गे क मुझे ऐसे र तेदार मले।
मेरा बाक का प रवार: ऊषा, वनय, मीता, डोनेटा, शरनाज़, मता, अनुज, ता।
उनके यार और व ास के लए।
मेरी संपादक, ावणी। वो मेरी कहा नय के त उतनी ही तब है, जतना म।
उतनी ही कठोर, जतना म। वो ब त पढ़ती है, मेरी ही तरह। उसे तकनीक से परहेज है, मेरी
ही तरह। हम ज र पछले ज म म भाई-बहन रहे ह गे!
गौतम, कृ णकुमार, नेहा, द त, सतीश, संघ म ा, जयंती, सुधा, व पन, ीव स, श ुघन,
स रता, अ णमा, राजू, संयोग, नवीन, जयशंकर, सतीश, द ा, मधु, स य ीधर,
ट ना, ी त और वै टलड, मेरे काशक क बेहतरीन ट म। मेरे वन वचार म, वो
भारत के े काशक ह।
मेरे एजट, अनुज। शु आत से ही एक दो त और साझेदार। अ भजीत, पुराने म
और व र कॉप रेट ए जी यू टव, जो वै टलड के साथ काम करते ए इस कताब क
माक टग दे खते ह। वो बे मसाल ह!
मोहन और मे ल, मेरे नजी मैनेजस, जो सबकुछ संभाल लेते ह, जससे म लखने
के लए समय नकाल पाता ं।
अ भजीत, सोनाली, ु त, रॉय, कस ा, जोशुआ, पूवा, न लन, नवे दता, नेहा, नेहल
और साइडवेज क पूरी ट म। बजनेस के हर पहलु को संभालने म वो कंपनी बे मसाल है।
साइडवेज बजनेस पर नजर रखते ए इसक माक टग रणनी त तैयार करते ह। वो
अ धकांश माक टग मैटे रयल के साथ ही साथ, कवर भी तैयार करते ह। मुझे लगता है क ये
कवर मेरे दे खे गए सरे कवर से े है। कवर डजाइन म उनक मदद क अरहत ट म
( जते , दे वल, जॉनसन) ने, जो बे मसाल डजाइनस ह।
मयंक, यंका जैन, द पका, नरेश, वशाल, दा नश और मोज आट ट म, ज ह ने
कताब के लए मी डया संपक और माक टग एलाइं सस को संभाला। वो एक मजबूत
साझेदार और े एजसी ह।
हेमल, नेहा और ऑ टोबज ट म जो सोशल मी डया पर कताब क ए ट वट
संभालती है। मेहनती, सुपर माट और गंभीरता से तब । उनका होना कसी भी ट म के
लए गव क बात है।
मृणा लनी और वृशाली, सं कृत व ान, जो मेरे शोध काय पर मेरे साथ काम करती
ह। उनके साथ मेरी चचाएं ब त ानव क रह । उनक मदद से मुझे अपनी कताब म कई
स ांत को वक सत करने म मदद मली।
और अंत म, ले कन अमू य योगदान आपका, मेरे पाठक का। आप ही के सहयोग
से म ऐसा जीवन जी पा रहा ं; जहां म अपनी पसंद का काम कर सकता ं और उसी से
अपनी आजी वका कमा पा रहा ं। आपका म तहे दल से आभारी !ं
अ याय 1
3400 ईसापूव, भारत म कह गोदावरी नद के पास सीता अपने तेज़ चाकू से, ब त
बेहतरीन तरीके से प के मोटे तने को काट रही थ । केले के छोटे पेड़ सीता के कद जतने
ही लंबे थे। उ ह यादा को शश नह करनी पड़ रही थी। उ ह ने ककर अपना काम दे खा।
फर उ ह ने एक नज़र मकरंत पर डाली, मलयपु सपाही, जो उनसे थोड़ी ही री पर था।
वो अब तक शायद सीता के मुकाबले आधे ही प े काट पाया था।
मौसम शांत था। कुछ ही दे र पहले, तेज़ हवा ने जंगल के इस भाग को हला दया
था। इस बेमौसम बरसात ने पूरे इलाके को भगो दया। सीता और मकरंत खुद को बा रश से
बचाने के लए घने पेड़ क छांव म खड़े रहे। हवा का वेग इतना तेज़ था क उनके लए
आपस म बात कर पाना मुम कन ही नह हो रहा था। और फर अचानक, एक स ाटा सा
पसर गया। बरसात और हवा मानो थम गए। वो तेज़ी से केले के छोटे -छोटे पेड़ से घरे
इलाके क ओर बढ़ गए। वे यहां सफ इन प का इंतज़ाम करने आए थे।
‘इतना काफ है, मकरंत,’ सीता ने कहा।
मकरंत पलटा। नमी ने प को काटना मु कल बना दया था। इन प र थ तय के
बीच कए गए अपने काम से वह संतु था। अब उसक नज़र सीता के पास रखे प के ढे र
पर पड़ी। और फर अपने छोटे से ढे र पर। वह ख सया सा गया।
सीता खुलकर मु कुरा । ‘इतना काफ रहेगा। चलो वापस श वर म चलते ह। राम
और ल मण भी ज द ही शकार से लौट आएंग।े आशा है, उ ह कुछ मल गया होगा।’
सीता अपने प त, अयो या के राजकुमार राम और दे वर ल मण के साथ, लंका के
रा स राजा रावण के तशोध को टालने के लए दं डकार य म वचर रही थ । अ धप त
जटायु, मलयपु वा सय क टु कड़ी के साथ, अयो या के राजप रवार के तीन सद य क
सुर ा के लए साथ थे। उ ह ने सुझाव दया था क इस मुठभेड़ को टालने का एकमा
ज़ रया यहां से भागना ही था। रावण न त तौर पर अपनी बहन, राजकुमारी शूपणखा का
बदला लेने के लए अपनी टु क ड़य को जंगल भेजेगा। शूपणखा को ल मण ने घायल कया
था।
गु तता अ नवाय थी। वो अपना खाना भी ज़मीन म गहरे गड् ढे म बनाते थे। आग के
लए, वो खास क म के प थर के कोयले का इ तेमाल कर रहे थे जससे बना धुएं क आग
उ प होती थी। अ त र सावधानी के लए, गड़े ए खाने के बतन को केले के प क
मोट परत से ढं क दया जाता था। केले के प क परत से गलती से भी धुएं का कोई अंश
बाहर नह नकलता था। इस तरह वो खुद को छपाए रख पा रहे थे। इसी लए सीता और
मकरंत केले के प े लेने गए थे। उस दन खाना बनाने क बारी सीता क थी।
मकरंत ने मोटा ढे र उठाने पर ज़ोर दया; और सीता ने उसे उठाने दया। इससे
मलयपु सपाही को काम म अपना योगदान दे ने का अहसास हो रहा था। ले कन यह काम
बेचारे मकरंत के लए जानलेवा सा बत आ।
सीता ने आवाज़ को पहले सुना। जसे तेज़ हवा के चलते कुछ ण पहले सुनना
मु कल था। ले कन अब वो साफ सुनाई दे रही थी: तीर छोड़ने के लए कमान ख चने क
आवाज़। एक साधारण धनुष। ब त से व श सपाही और व र अ धकारी एक खास
क म के धनुष का इ तेमाल करते थे। ले कन अ रेखा के सपाही धनुष क साधारण
क म को ही काम म लेते थे, जो पूरी तरह से लकड़ी का बना होता था। ये धनुष सामा य
प से यादा कड़े होते थे और ख चने पर एक खास व न उ प करते थे।
‘मकरंत, झुको!’ सीता अपने हाथ के प े गराकर, ज़मीन पर छलांग लगाते ए
च ला ।
मकरंत ने भी तुरंत छलांग लगाई, ले कन भारी सामान क वजह से वह उलझ गया।
एक तीर ने तेज़ी से उसके दा हने कंधे को चीर दया और वह आगे क तरफ गरा। इससे
पहले क वो कोई त या दे पाता, एक सरा तीर उसके गले म आकर धंस गया। सट क
वार।
ज़मीन पर गरी सीता तेज़ी से पलटते ए पेड़ के पीछे जाकर छप ग । वे नीचे
झुक रह , अपनी पीठ पेड़ से सटाए, अभी के लए सुर त। उ ह ने अपनी दा हनी ओर
दे खा। बद क मत मकरंत ज़मीन पर पड़ा था, अपने ही खून म डू बते ए। तीर क न क
उसके गले के पार हो गई थी। ज द ही उसके ाण नकलने वाले थे।
सीता गु से म बड़बड़ा । फर अहसास आ क इससे कुछ हा सल नह होने वाला।
उ ह ने गहरी सांस ली। अपनी धड़कन को थामा। हालात पर यान दया। सावधानी से
आसपास दे खा। कोई भी उनके सामने नह था। तीर सरी दशा से आए थे, उस पेड़ क
वपरीत दशा से जहां वह अभी छपी थ । वह जानती थ क मन कम से कम दो थे।
कोई भी धनुधर इतनी ज द सरा तीर नह चला सकता था।
उ ह ने फर से मकरंत को दे खा। उसका हलना अब बंद हो चुका था। उसक आ मा
नवा सत हो गई थी। जंगल भयानक प से शांत था। यक़ न करना भी असंभव था क
महज़ कुछ ही पल पहले यहां ऐसी भयानक हसा ई थी।
अल वदा वीर मकरंत। तु हारी आ मा फर से अपना मकसद हा सल करे।
उ ह र से आती फुसफुसाने क आवाज़ सुनाई द । ‘जाओ… वामी कुंभकण के
पास… उ ह बता दो… वो यहां ह… यहां…’
फर कसी के भागते कदम क आहट आई। अब यहां सफ एक मन ही बचा
था। वह ज़मीन क तरफ दे खकर बुदबुदा , ‘मेरी र ा करो, मां। र ा करो।’
उ ह ने अपनी कमर पर बंधी यान से, अपना चाकू नकाला। आंख बंद क । वह पेड़
के पीछे से झांककर, खुद को द शत करने का जो खम नह ले सकती थ । ऐसे म कोई तीर
उ ह भी अपना शकार बना सकता था। आंख का कोई काम नह था यहां। उ ह अपने
कान पर ही भरोसा करना था। ऐसे महान धनुधर थे, जो आवाज़ सुनकर ही तीर चला सकते
थे। ले कन आवाज़ के अंदाज़े पर चाकू फकने वाले ब त कम थे। सीता उन लभ यो ा
म से थ ।
सीता को एक तेज़, ले कन वन वर सुनाई दया। ‘बाहर आ जाइए, राजकुमारी
सीता। हम आपको कोई नुकसान नह प ंचाएंग।े बेहतर होगा क…’
आवाज़ आधे वा य पर ही क गई। वो फर से नह सुनाई दे ने वाली थी। य क
आवाज़ का जो ोत होता है, उस गले म एक चाकू धंस चुका था। खुद को बना दखाए
सीता तेज़ी से मुड़कर, मारक सट कता से अपना वार कर चुक थ । गले म धंसते चाकू ने
एक पल को लंका के सै नक को हैरान कया। उसक मौत तुरंत हो गई। मकरंत क ही तरह।
सीता ने इंतज़ार कया। वो न त करना चाहती थ क वहां और कोई नह था।
उनके पास सरा ह थयार नह था। ले कन मन को ये बात नह पता थी। वो चौक ी थ ।
कोई आवाज़ नह आने पर उ ह ने खुद को ज़मीन पर गरा दया, और नचली झा ड़य म
लुढ़ककर आगे बढ़ने लग । अभी भी कसी के होने का कोई संकेत नह था।
आगे बढ़ो। इसके साथ और कोई नह है!
सीता तेज़ी से पैर पर खड़ी हो, हताहत लंकावासी क तरफ बढ़ , और ये दे खकर
हैरान रह ग क उसके धनुष पर तीर नह टं गा था। उ ह ने अपना चाकू ख चने क को शश
क , ले कन वो मृत सै नक क रीढ़ म गहरे तक धंसा था। वो हलने का नाम नह ले रहा था।
श वर खतरे म है! ज द चलो!
सीता ने उस सै नक का तरकश ले लया। उसम कुछ तीर बचे थे। उ ह ने उसे अपनी
कमर और कंधे पर बांध लया। फर वह धनुष उठाकर दौड़ने लग । और तेज़! अपने
अ थायी श वर क ओर। उ ह सरे लंकावासी को सूचना प ंचाने से पहले ख म करना था।
जब पूरा भारत रावण के हाथ ई दशरथ क पराजय के प रणाम को झेल रहा था, ऐसे
म म थला पर इसका वैसा कोई प रणाम नह पड़ा था। वैसे भी उनके यहां कोई ापार चल
नह रहा था। सुनयना ने भी कुछ सुधार क शु आत कर द थी, जनका अ छा प रणाम
मलने लगा था। उदाहरण के लए, थानीय कर सं ह और शासन को उ ह ने गांव के तर
पर भी लागू करा दया था। इससे म थला के नौकरशाह पर दबाव कम आ और द ता म
सुधार आया।
कृ ष से बढ़ते राज व से उ ह ने नौकरशाही के अ तरेक को पुन श त कया और
म थला के पु लस बल को व तृत कया, जससे सा ा य क सुर ा म सुधार आ।
म थला क अपनी कोई सेना नह थी और उसक ज़ रत भी नह थी; सं ध के अनुसार
ज़ रत पड़ने पर कसी बाहरी मन से र ा करने के लए संक या क सेना म थला क
मदद करेगी। ये बड़े बदलाव नह थे और इ ह लागू करवाना आसान था, इससे
म थलावा सय क रोजमरा क ज़दगी भा वत नह ई थी। य प सरे सा ा य म बड़े
तर पर उथल-पुथल मची ई थी, जनम रावण ारा वसूले जाने वाले कर को बदलना ब त
ज़ री था।
शाही आदे श के मुता बक सीता के ज म दन को समारोह के प म मनाया जाता
था। वो उनक वा त वक ज म त थ नह जानते थे। तो वो उसी दन को उनके ज म दन के
प म मनाते थे, जब धरती के आंचल से वो उ ह ा त ई थ । आज उनका छठा ज म दन
था।
इस दन शहर के गरीब को उपहार और दान दए जाते थे। जैसा क हर खास दन
पर कया जाता था। ले कन एक अलग तरीके से। जब तक सुनयना ने शासन क कमान
नह संभाली थी, तब तक दान का बड़ा ह सा मक वग दबा जाता था, जो धनी तो नह
था, ले कन वा तव म नधन भी नह था। सुनयना के शास नक सुधार ने सु न त कया
था क दान वा तव म नधन और ज़ रतमंद को ही दया जाए; उन लोग को जो कले क
सरी द वार द णी दरवाज़े के समीप, झु गय म रहते थे।
सावज नक समारोह के बाद, शाही दं पती भु के वशाल मं दर म प ंचा।
भु का मं दर लाल बलुआ प थर से बना था। ये म थला क लंबी संरचना म
से था, जो शहर के लगभग हर ह से से दखाई दे ती थी। इसके चार ओर वशाल बगीचा
था--शहर के भीड़ भरे ह से म एक शां तपूण जगह। बगीचे के पास झु गयां थ , कले क
द वार के साथ-साथ फैले ए। मं दर के गभ गृह म, भु और दे वी मो हनी क तमाएं
था पत थ । ान, शां त और दशन के ेम के तीक शहर के अनु प ही, वैसे यहां लगी
भु क तमा उनके सामा य रौ प से भ थी। इस तमा म, वो नरम, सौ य
दखाई दे रहे थे। उ ह ने अपने समीप बैठ रमणीय दे वी मो हनी का हाथ पकड़ रखा था।
ाथना के बाद, मं दर के पुजारी ने शाही प रवार को साद दया। सुनयना ने पुजारी
के पैर छु ए और फर सीता को गभ गृह म द वार के कोने क तरफ ले ग । द वार पर उस
ग क याद म धातु क एक त वीर लगी थी, जसने भे ड़य के झुंड से लड़ते ए सीता क
जान बचाई थी। प ी के सस मान सं कार से पहले उसके चेहरे का एक मुखौटा बनाया गया
था। उसे धातु म ढालकर, उस पर ग के अन र शरीर के चेहरे का आखरी भाव उकेरा
गया था। वो न भुलाई जा सकने वाली नज़र थ : ढ़ और नेक। सीता कई बार अपनी मां से
ये कहानी सुन चुक थ । सुनयना बड़ी खुशी से ये बतात । वह चाहती थ क उनक बेट ये
याद रखे क भलाई कसी भी प और चेहरे म आ सकती है। सीता ने स मान से उस
मुखौटे को छु आ। और हमेशा क तरह, खुद को ज़दगी दे ने वाले क याद म उनक आंख
नम हो आ ।
‘शु या,’ सीता फुसफुसा । उ ह ने महान पशुप त, पशु के भु के लए छोट
सी ाथना फुसफुसाई। उ ह उ मीद थी क ग क बहा र आ मा को दोबारा अपना
मकसद मल गया होगा।
जनक ने हो शयारी से अपनी प नी को इशारा कया और शाही प रवार धीरे-धीरे
भु के मं दर से बाहर आने लगा। पुजारी प रवार को सी ढ़य तक ले गया। उस तल से
झु गयां साफ दखाई दे रही थ ।
‘आप मुझे वहां य नह जाने दे त , मां?’ सीता ने झु गय क तरफ इशारा करते
ए कहा।
सुनयना ने मु कुराकर अपनी बेट का सर थपथपाया। ‘ज द ही।’
‘आप हमेशा यही कहती हो,’ सीता ने वरोध कया, उनके चेहरे पर शकायती भाव
थे।
‘और म ज द ही जाने ं गी,’ सुनयना हंसी। ‘ज द ही। बस ये नह कह सकती क
कतनी ज द !’
‘ ब कुल ठ क,’ जनक ने सीता के बाल सहलाते ए कहा। ‘अब जाओ भागो। मुझे गु जी
से बात करनी है।’
सात वष य सीता अपने पता के साथ उनके नजी कायालय म खेल रही थ , जब
जनक के मुख गु , अ ाव अंदर आए। जनक ने परंपरानुसार गु को णाम कया और
उनसे अपने आसन के समीप वाले आसन पर बैठने का आ ह कया।
म थला, स त सधु के राजनी तक दौर म अब बड़ा खलाड़ी नह रहा था, तो उनके
पास कोई थायी राज गु नह थे। ले कन जनक के दरबार म भारत के एक से बढ़कर एक
व ान , छा , वै ा नक और दाश नक का खुले दल से वागत कया जाता था।
बु जी वय को ान और श ा से भरी म थला क हवा से लगाव था। और उ ह म से
एक थे, ये महान चतक: ऋ ष अ ाव , जनक के मुख गु । यहां तक क मलयपु
जा त के मुख, महान मह ष व ा म भी अ सर वहां आते रहते थे।
‘महाराज, आपक इ छा हो तो हम बाद म बात कर सकते ह,’ अ ाव ने कहा।
‘नह , नह । ब कुल नह ,’ जनक ने कहा। ‘मुझे एक सवाल का जवाब पूछना था,
जो मुझे परेशान कर रहा था, गु जी।’
अ ाव का शरीर आठ जगह से वकृत था। गभाव था के दौरान उनक मां एक
घटना का शकार हो गई थ । ले कन क मत और कम ने उनक शारी रक अ मता को
असाधारण दमाग के साथ संतु लत कर दया था। अ ाव ने बचपन से अपनी वल णता
सा बत कर द थी। युवाव था म एक बार वो जनक के दरबार म आए थे और राजा के
त कालीन धमगु , ऋ ष बांद को शानदार वाद- ववाद म हरा दया था। ऐसा करके उ ह ने
अपने पता, ऋ ष कहोड़ क हार का बदला भी ले लया था, जो एक बार पहले ऋ ष बांद
से हार चुके थे। ऋ ष बांद ने सस मान अपनी हार वीकार क और पूव समु के पास के
आ म म और ान हण करने चले गए। इस कार युवा अ ाव जनक के धान गु बन
गए।
अ ाव क वकृ त धमपरायण राजा, जनक क नगरी म थला के उदारवाद
माहौल म कसी का यान आक षत नह करती थी। ऋ ष का वल ण म त क ही सर
को स मो हत करने के लए पया त था।
‘म आपसे शाम को मलूंगी, बाबा,’ कहकर सीता ने अपने पता के पैर छु ए।
जनक ने उ ह आशीवाद दया। सीता ने ऋ ष अ ाव के पैर भी छु ए और कायालय
से बाहर आ ग । चौखट पार करके सीता क और दरवाज़े क पीछे छप ग । जनक क
नज़र से र, ले कन उनक बात सुनी जा सकने लायक री पर। वह सुनना चाहती थ क
उनके पता को कौन सा सवाल परेशान कर रहा था।
‘हम कैसे जानगे क सचाई या है, गु जी?’ जनक ने पूछा।
छोट सीता भौचक खड़ी थ । वधा म। उ ह ने महल के बरामद म फुसफुसाहट
सुनी थ क उनके पता लगातार क होते जा रहे थे। क वो लोग खुश क मत थे क
उनके सा ा य क दे खभाल सुनयना जैसी बु मान रानी कर रही थ ।
सचाई या है?
वह मुड़ और अपनी मां के श वर क ओर भाग ग । ‘मां!’
सीता अपने हाथ पीछे बांध खड़ी थ । उनका सर झुका आ था। झु गी क क चड़ और धूल
उनके सारे कपड़ पर लगी थी। उनके चेहरे पर भी म थी। उनक उंगली म पड़ी
बेशक मती अंगूठ गायब थी। वह डर से कांप रही थ । उ ह ने अपनी मां को इतना नाराज
कभी नह दे खा था।
सुनयना अपनी बेट को घूर रही थ । उ ह ने एक श द तक नह कहा था। बस नज़र
म अ वीकृ त थी। और उससे भी यादा, नराशा थी। सीता को महसूस हो रहा था क
उ ह ने अपनी मां को ब त यादा नराश कया था।
‘मुझे माफ कर दो, मां,’ सीता ने रोते ए कहा, आंसू उनके चेहरे को भगो रहे थे।
वो चाह रही थ क उनक मां कुछ तो बोल। या, उ ह थ पड़ मार। या उ ह तकार।
ये खामोशी ब त भयानक थी।
‘मां…’
सुनयना जड़ बनी बैठ थ । गु से से अपनी बेट को घूरते ए।
‘दे वी!’
सुनयना ने अपने श वर के दरवाज़े क ओर दे खा। म थला का एक पु लसवाला
वहां खड़ा था। उसका सर झुका आ था।
‘ या खबर है?’ सुनयना ने खाई से पूछा।
‘पांच लड़के गायब ह, दे वी,’ पु लसवाले ने कहा। ‘वो शायद भाग गए ह।’
‘पांच ?’
‘मेरे पास घायल लड़के क कोई खबर नह है, दे वी,’ पु लसवाले ने उस लड़के क
बात करते ए कहा, जसे सीता ने सर पर मारा था। ‘कुछ गवाह भी सामने आए। उ ह ने
बताया क उसे सरे लड़के उठाकर ले जा रहे थे। उसका ब त खून बह चुका था।’
‘ब त?’
‘ह म… एक गवाह ने कहा क हैरानी होगी अगर वो…’
पु लसवाले ने हो शयारी से बात बीच म ही रोक द , ‘बच गया’ उसने नह कहा।
‘हम अकेला छोड़ दो,’ सुनयना ने आदे श दया।
पु लसवाला तुरंत नम कार कर, मुड़ा और वहां से चला गया।
सुनयना ने वापस अपना यान सीता पर लगाया। उन कठोर नज़र के नीचे सीता
दबी जा रही थ । फर रानी ने सीता के पीछे , द वार के पास खड़ी, एक मैली सी कशोरी पर
नज़र डाली।
‘तु हारा नाम या है, ब चे?’ सुनयना ने पूछा।
‘समी च, दे वी।’
‘समी च, तुम वापस झु गी म नह जाओगी। अबसे तुम यह महल म रहोगी।’
समी च मु कुराई और नम ते क मु ा म अपने हाथ जोड़े। ‘ज र, दे वी। ये मेरे लए
गव…’
सुनयना ने अपना दा हना हाथ उठाकर समी च क बात को बीच म ही रोक दया।
रानी अब सीता क तरफ मुड़ चुक थ । ‘अपने श वर म जाओ। नान करो। वै जी तु हारे
घाव का न र ण करगे; और समी च के घाव का भी। हम कल बात करगे।’
‘मां….’
‘कल।’
‘हनु भैया!’ अपने बड़े भाई के गले लगते ए रा धका चहक । या कह क उसके चचेरे बड़े
भाई।
रा धका अपने चहेते र तेदार से मलवाने के लए सीता को भी साथ लेकर आई थी।
मलने क जगह गु कुल से एक घंटा री पर तय क गई थी, द ण के जंगल म, जो कसी
को दखाई न दे । यह चचेरे भाई-बहन मलते थे। छपकर। गु कुल के ा धकरण से
छपकर रहने क उसके भाई के पास वा जब वजह थी।
वह नागा था; ऐसा इंसान जो वकृ तय के साथ ज मा था।
उ ह ने गहरे भूरे रंग क धोती और एक सफेद अंगव म् पहन रखा था। गोरी रंगत।
कद लंबा और रोयदार। उनक कमर के नचले ह से से एक अंग, कुछ पूंछ जैसा नकला
आ था। वो अपने आप ही इधर-उधर घूम रही थी, मानो उसका अपना ही दमाग हो।
उनक मज़बूत कदकाठ और ब ल मांसपे शयां उनक उप थ त को दमदार बना रही थ ।
उन पर एक द तेज छाया आ था। उनक चपट नाक चेहरे म धंसी जान पड़ रही थी,
जस पर चेहरे के बाल बा रेखा के प म दख रहे थे। अजीब था क उनके मुंह के ऊपर
और नीचे क वचा बालर हत, चकनी और कुछ गुलाबी रंगत लए थी; वो कुछ फूली ई सी
दख रही थी। उनके ह ठ पतले थे, महज़ एक रेखा के प म। मोट भव मोहक और
बु मानी क झलक लए, शांत आंख को कला मक उभार दे रही थ । ब कुल ऐसा लग
रहा था मानो उस सवश मान ने आदमी के सर के थान पर बंदर का सर लगा दया हो।
उ ह ने रा धका को पतृ व नेह से दे खा। ‘कैसी हो तुम, मेरी छोट बहन?’
रा धका ने दखावट गु से म अपना नचला ह ठ बाहर नकाल लया। ‘आपसे मले
ए कतना समय हो गया? जबसे पताजी ने उस नए गु कुल को अनुम त…’
रा धका के पता शोन नद के पास एक गांव के मु खया थे। उ ह ने अभी हाल ही म
अपने गांव के पास एक गु कुल था पत करने क आ ा द थी। उसम चार लड़क ने
नामांकन भी करा लया था। उसम और कोई छा नह था। सीता सोचती थ क रा धका
अभी भी य ऋ ष ेतकेतु के गु कुल म पढ़ रही थी जब क उसके घर के पास एक
गु कुल बन गया था। शायद छोटा, चार छा वाला गु कुल गु जी के नामी गु कुल क
तुलना म उतना अ छा नह होगा।
‘ मा करना, रा धका, म ब त त था,’ उ ह ने कहा। ‘मुझे एक नया काम दे दया
गया और…’
‘मुझे आपके नए काम से कोई मतलब नह है!’
रा धका के भाई ने ज द से वषय बदल दया। ‘तुम मुझे अपनी नई दो त से नह
मलवाओगी?’
रा धका ने कुछ पल उ ह घूरा, फर मु कुराकर हार मानते ए अपनी दो त क तरफ
मुड़ी। ‘यह सीता ह, म थला क राजकुमारी। और ये मेरे बड़े भैया, हनु भैया।’
वो अपने नए मेहमान क तरफ मु कुराए और हाथ जोड़कर नम ते क । ‘हनु भैया
तो मुझे ये रा धका बुलाती है, वैसे मेरा नाम हनुमान है।’
सीता ने भी अपने हाथ जोड़े और उस वन चेहरे को दे खा। ‘म भी आपको हनु
भैया ही क ंगी।’
हनुमान नेह से हंसे। ‘तो ठ क है, हनु भैया ही सही!’
‘कौ शक, ये अ छा वचार नह है,’ दवोदास ने कहा। ‘भरोसा करो, मेरे भाई।’
कौ शक और दवोदास अपने गु कुल के बाहर, कावेरी नद के कनारे पर बड़े से
ल े पर बैठे थे। उ के तीसरे दशक म प ंचे दोन दो त, स त ष उ रा धकारी, मह ष
क यप के गु कुल म श क थे। बचपन म कौ शक और दवोदास एक ही गु कुल म पढ़ते
थे। नातक के बाद उनके रा ते अलग हो गए। दवोदास ने एक गुणी श क क या त
अ जत क और कौ शक ने शाही य के प म नाम कमाया। दो दशक बाद, दोन एक
साथ एक नामी सं थान म मले, इस बार श क के प म। बचपन क उनक दो ती फर
से जी वत हो उठ । दरअसल, वो दोन एक- सरे के भाई समान थे। नजी प से, वो अभी
भी एक- सरे को अपने छा दन के गु कुल नाम से ही बुलाते थे।
‘ये अ छा वचार य नह है, दवोदास?’ कौ शक ने पूछा, उनका भारी शरीर
उ ेजना से कुछ आगे झुका। ‘वो वानर के खलाफ प पाती ह। हम भारत के भले के लए
इस कुरी त के खलाफ आवाज़ उठानी ही होगी!’
दवोदास ने इंकार म अपना सर हला दया। ले कन उ ह अहसास था क आगे क
बात तकहीन ही ह गी। वो कौ शक के ज वभाव को बदलने क पहले भी काफ को शश
कर चुके थे। ये द वार म सर पटकने समान था। सही वचार नह था!
उ ह ने अपने पास रखा म का याला उठाया। उसम ध जैसा झागदार था।
अपनी नाक पकड़कर उ ह ने घूंट भरा। ‘छ !’
कौ शक अपने दो त क पीठ पर हाथ मारते ए खल खलाकर हंस दए। ‘इतने
साल बाद भी इसका वाद घोड़े के मू समान ही है!’
दवोदास ने हाथ के पीछे क तरफ से अपना मुंह साफ कया और मु कुरा दए।
‘तु ह कोई नई बात कहनी चा हए थी! और वैस,े तु ह कैसे पता क इसका वाद घोड़े के मू
जैसा है? या तुमने कभी घोड़े का मू पया है?’
कौ शक ने ज़ोर से हंसते ए अपने दो त का कंधा पकड़ लया। ‘मने कई बार
सोमरस पया है। और म बता सकता ं क उसका वाद घोड़े के मू से भी बुरा होता है!’
दवोदास ने खुलकर मु कुराते ए अपना हाथ दो त के कंधे पर रख दया। वे दोन
शां त से बैठे ए प व कावेरी नद के वाह को दे खने लगे, जो उनके गु कुल, मयूरम् शहर
से होते ए गुजर रही थी। ये शहर समु से थोड़ा र था और कसी बड़े गु कुल के लए
आदश था, जहां सैकड़ छा पढ़ते थे। इस गु कुल ान के े म व भ वषय पर उ च
श ा दान क जाती थी। समु के नज़द क होने के कारण, उ र म स त सधु के छा
आराम से नौका के ज रए यहां आ जाते थे। इस तरह, उ ह नमदा नद को उ र से द ण म
पार भी नह करना पड़ता था, जो क एक बुरा अपशकुन माना जाता था। इसके अ त र ,
यह गु कुल ऐ तहा सक भू म, संगमत मल के करीब था। संगमत मल प मी भारत क
ारका के साथ पानी म समा गई थी। वै दक सं कृ त क दो पैतृक भू मय म से एक। ये सब
चीज छा के लए इस जगह के मह व को और बढ़ा दे ती थ ।
दवोदास ने अपने कंधे सीधे कए, मानो कोई संक प कर लया हो।
कौ शक अपने दो त के इस अनकहे इशारे को समझ गए। ‘ या?’
दवोदास ने गहरी सांस ली। वह जानते थे क इस बारे म बात करना क ठन था।
ले कन उ ह ने एक और बार को शश करने का फैसला कया। ‘कौ शक, मेरी बात सुनो। म
जानता ं क तुम शंकु क मदद करना चाहते हो। और, म तुमसे सहमत ।ं उसे मदद क
ज़ रत है। वह भला इंसान है। शायद अप रप व और वाभा वक, ले कन एक अ छा
आदमी और कुछ नह । वह वायुपु नह बन सकता। वह अपनी परी ा म असफल रहा है।
उसे ये मानना होगा। इससे कोई फक नह पड़ता क वह कैसा दखता है, या कहां पैदा
आ। बात उसक यो यता क है।’
वायुपु पछले महादे व, भु क छोड़ी ई जा त थी। वह भारत क प मी
सीमा के परे, प रहा नामक थान पर रहते थे। वायुपु का काम अगले व णु (भले ही वो
दे व ह या दे वी) के आगमन के समय उनक मदद करना था। और हां बुराई के सर उठाने क
हालत म उ ह म से कसी एक को अगला महादे व बन जाना था।
कौ शक अपनी बात पर अड़े रहे। ‘तुम जानते हो क वायुपु वानर के त
असहनशील ह।’
वानर कावेरी के उ र म, तुंगभ ा नद के कनारे बसी बड़ी, श शाली और बैरागी
जा त थी। तुंगभ ा कावेरी नद के उ र म एक उपनद थी। जा त दे खने म ब कुल
अलग लगती थी: नाटे , गठ ले और ब ल , उनम से कुछ वशालकाय भी थे। उनके चेहरे पर
बाल थे और दाढ़ वाला फूला आ जबड़ा। उनका मुंह आगे को नकला आ था और मुंह
के आसपास क वचा चकनी और बालर हत थी। उनका रोएंदार शरीर लगभग पूरी तरह
झ बरदार था। कुछ पूवा ही लोग को वानर बंदर क तरह लगते थे और इस लए वो उ ह
इंसान से कमतर मानते थे। ऐसा कहा जाता था क प रहा के र प म म भी ऐसी ही
जा त रहती थी। इनक सबसे बड़ी और ाचीन आबाद नअंडरथल या नअंडर क घाट
म भी पाई जाती थी।
‘तुम कस तरह क असहनशीलता क बात कर रहे हो?’ दवोदास ने पूछा, उनका
हाथ पूछने के लए उठ गया था। ‘उ ह ने अपने घेरे म छोटे मा ती को भी वीकार कया
था, था क नह ? मा ती भी वानर है। ले कन उसके पास पहचान है। शंकु के पास नह !’
कौ शक नह के। ‘ शंकु मेरा वफादार है। उसने मुझसे मदद मांगी है। म उसक
मदद क ं गा!’
‘ले कन कौ शक, तुम प रहा का अपने जैसा ही सं करण कैसे बना सकते हो? ये
समझदारी नह …’
तभी र से एक म हला क आवाज़ सुनाई द । ‘हे, दवोदास!’
कौ शक और दवोदास ने मुड़कर दे खा। वो नं दनी थी। गु कुल क ही श का।
और उन दोन क म । कौ शक ने गहरी, खी नज़र से दवोदास को दे खा और धीरे से
अपने दांत पीसे।
‘गु जी…’
व ा म क आंख खुली और वो पुराने समय से वतमान म लौट आए। वो याद एक
शतक से भी पुरानी थ ।
‘ मा कर गु जी, अगर मने आपको परेशान कया हो तो,’ अ र नेमी ने अपने हाथ
जोड़ते ए कहा। ‘ले कन आप ही ने कहा था क छा के आने के बाद आपको बता ं ।’
व ा म उठ बैठे और अपना अंगव सही कया। ‘ या सीता आ गई ह?’
‘जी, गु जी।’
े केतु र कोने म रखे आसन पर बैठे थे। खुले चौक म बैठे अपने प चीस छा को दे ख
त
वो सच म फु लत थे। व ा म पीपल के पेड़ के गद बने चबूतरे पर बैठे थे। वो जगह
श क के लए नयत थी। महान मलयपु मुख आज उनके छा को पढ़ाने वाले थे, सफ
एक ही क ा म। ये ेतकेतु और उनके छा के लए स मान क बात थी।
गु कुल के श क और मलयपु ेतकेतु के पीछे खामोशी से खड़े थे।
‘आप लोग ने हमारे महान चीन सा ा य के बारे म सुना है?’ व ा म ने पूछा।
‘और उनके उ थान व पतन के बारे म भी?’
सभी छा ने हां म सर हलाया।
‘तो ठ क है, आपम से कोई मुझे बताए क महान स ाट भरत के वंशज के सा ा य
के पतन क या वजह रही? जो सा ा य स दय तक फलता-फूलता रहा, वो महज़ दो
पी ढ़य म ही ख म हो गया। य ?’
का ल राज ने अपना हाथ उठाया। ेतकेतु क आह नकल गई।
‘हां?’ व ा म ने पूछा।
‘गु जी,’ का ल ने जवाब दया, ‘उन पर वदे शय ने हमले कए और उसी समय वे
अंद नी व ो हय से भी जूझ रहे थे। वो उन कंच क तरह थे, जनसे हम खेलते ह। हर
कोई एक- सरे को बार-बार मार रहा था। तो ऐसे म सा ा य कहां बच पाता?’
इतना कहकर, का ल बेवकूफ क तरह हंसने लगा, जैसे उसने मानव इ तहास का
सबसे मजेदार उपहास कया हो। बाक सब लोग खामोश रहे। पीछे के कुछ छा ने
श मदगी से अपने सर नीचे कर लए। व ा म ने खे भाव से का ल को घूरा। इसी भाव
से उ ह ने ेतकेतु को दे खा।
ऐसा पहली बार नह था क ेतकेतु के मन म इस लड़के को घर वापस भेजने क
इ छा सर उठा रही हो। वो सच म अजीब और अ नयं त बालक था।
व ा म ने का ल को जवाब दे ना भी ज़ री नह समझा और फर से अपना
सवाल दोहराया, इस बार सीधे सीता को दे खते ए। ले कन म थला क राजकुमारी ने
जवाब नह दया।
‘भू म, आप जवाब य नह दे त ?’ व ा म ने उनका गु कुल वाला नाम लेते ए
पूछा।
‘ य क म सु न त नह ं, गु जी।’
व ा म ने पहली पं क तरफ इशारा करते ए कहा। ‘यहां आओ, ब चे।’
पछली बार म थला से आने के बाद, सीता अकेले रहने पर ही ज़ोर दे ती थ । वो
अ सर क ा म पीछे बैठत । उनक दो त रा धका ने उनक पीठ थपथपाते ए उ ह आगे
जाने के लए ो सा हत कया। जब सीता आगे आ , तो व ा म ने उ ह बैठने का इशारा
कया। फर वो उनक आंख म दे खने लगे। ब त कम मु नय के पास आंख के मा यम से
इंसान का मन पढ़ने क यो यता होती है। व ा म उन लभ मु नय म से एक थे।
‘बताओ मुझ,े ’ व ा म ने अपनी आंख से उनका मन पढ़ते ए कहा। ‘भारत,
स ाट भरत के वंशज का यूं अचानक वघटन य हो गया?’
सीता ब त असहज महसूस कर रही थ । उनका मन वहां से उठकर भाग जाने का
कर रहा था। ले कन वो जानती थ क वो ऐसे मह ष का अपमान नह कर सकती थ । तो
उ ह ने जवाब दे ने का नणय कया। ‘भारत क ब त बड़ी सेना थी। वो आराम से अनेक
यु लड़ सकते थे। ले कन उनके यो ा…’
‘वो बेकार थे,’ व ा म ने सीता के वचार को पूरा करते ए कहा। ‘और, वो
बेकार य थे? उनके पास धन क कोई कमी नह थी, न श ण क , न उपकरण क और
न ही ह थयार क ।’
सीता ने कभी समी च से सुनी ई बात दोहरा द । ‘बात ह थयार क नह है, ब क
उनके इ तेमाल क है।’
व ा म अनुमोदन म मु कुराए। ‘और उनके यो ा ह थयार के उपयोग म असमथ
य थे? ये मत भूलो क उनके ह थयार उनके मन के ह थयार से यादा अ याधु नक
थे।’
सीता ने इस बारे म नह सोचा था। वो खामोश रह ।
‘पतन के समय के भारत समाज का वणन करो,’ व ा म ने कहा।
सीता इसका जवाब जानती थ । ‘वो शां तपूण समाज था। उदारवाद और वन
समाज। कला, सं कृ त, संगीत, संवाद, वाद- ववाद के लए वो समाज ज त था… वो न
सफ अ हसा का पालन करते थे, ब क उसे पूजते थे। मौ खक और शारी रक प से। वो
एक आदश समाज था। वग क तरह।’
‘स य है। ले कन कोई था, जसके लए वो समाज जह ुम था।’
सीता ने कुछ नह कहा। ले कन उनके मन म सवाल उठ रहा था: कौन?
व ा म ने उनका मन यूं पढ़ लया मानो उ ह ने ज़ोर से अपना सवाल पूछा हो।
उ ह ने जवाब दया, ‘यो ा।’
‘यो ा?’
‘यो ा क मु य वशेषताएं या होती ह? उ ह या चीज े रत करती है? या
श उ ह संचा लत करती है? हां, ब त से लोग होते ह जो गव के लए, अपने दे श के लए,
और कानून के लए लड़ते ह। ले कन इसी तरह वो भी लोग होते ह जो ह या के लए
सामा जक अनुम त चाहते ह। अगर उ ह ऐसा माहौल नह मले, तो ऐसे लोग आसानी से
अपराध क तरफ मुड़ जाते ह। ब त से महान यो ा, ज ह मानवता पूजती है, सामा जक
प तत के प म याद कए जाने से नाममा को ही बच पाते ह। या चीज उ ह अपराधी
होने से बचाकर, सपाही बना दे ती है? जवाब है यो ा क सं हताः ह या करने क सही
वजह।’
ब चे के लए यथाथता के सामने समपण करती कड़वी सचाई को वीकार करना
मु कल होता है। आ खरकार, सीता महज़ तेरह साल क ही तो थ ।
‘यो ा शंसा और नायक क तरह पूजे जाने के भूखे होते ह। इनके बना यु क
भावना और यु क सं हता दम तोड़ दे ती है। खद प से, भारत समाज म अपने
सपा हय को तर कृत करके उनके काम को हेय नज़र से दे खा जाने लगा। सेना क हर
ग त व ध क ज़ोरदार ढं ग से नदा क जाती। हसा का कोई भी प, यहां तक क धा मक
हसा का भी वरोध कया गया। यु भावना को कसी शैतानी श के प म दे खकर उसे
भी नयं त कया गया। ये यह नह का। अ भ क वतं ता को भी सी मत कया
गया, जससे मौ खक हसा पर भी लगाम लग सके। असहम तय को हतो सा हत कया
गया। भारत सा ा य के वा सय को लगा क इसी तरह पृ वी पर वग बनाया जा सकता
था; ताकतवर को कमज़ोर करके और कमज़ोर को ताकतवर बनाकर।’
व ा म क आवाज़ ब त धीमी हो गई, मानो वो सीता से ही बोल रहे ह । पूरी
सभा को गहन यान लगाकर उनक बात सुननी पड़ रही थी।
‘सार प से, भारत सा ा य के वा सय ने अपने य वग को जबरद त प से
तबं धत कया। पु ष व को भावहीन कया गया। ाचीन काल के अ हसा और ेम के
उपदे श दे ने वाले महामु नय को खूब स मान दया गया और उनके उपदे श का चार कया
गया। ले कन जब, वदे शी भू म से क र हमलावर आने लगे, तो भारत के ये अ हसा य
ी-पु ष उनके यु का जवाब दे ने म स म नह रह गए थे। ये स य लोग वदे श से आए
बबर यो ा के लए कमज़ोर कड़ी बनकर रह गए।’ ं य से हंसते ए व ा म ने
अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘अनपे त ढं ग से, भारत समाज के लोग के ेम संदेश का
हर यलोमन मले छ यो ा के लए कोई मह व नह था। उनके यार का जवाब नरसंहार
से दया गया। वो गंवा लोग थे, जो अपना सा ा य बनाने म असमथ थे। ले कन उ ह ने
भारत क श और त ा को तहस-नहस कर दया। आंत रक वरोध ने इस आग म घी
का काम कया।’
‘गु जी, आप कह रहे ह क वदे शी हैवान से लड़ने के लए, हम हमारे हैवान क
ज़ रत होती है?’
‘नह । म बस यह कह रहा ं क समाज को कसी भी चीज क अ त से बचना
चा हए। इसे हमेशा त पध आदश म संतुलन बठाने का यास करना चा हए। समाज से
अपरा धय को हटाया जाना चा हए और अथहीन हसा पर रोक लगनी चा हए। ले कन
यो ा क भावना को हतो सा हत नह करना चा हए। ऐसा समाज मत बनाओ जो पु ष व
को नीचा दखाए। कसी भी चीज क अ त जीवन म अंसतुलन लाती है। आप नह जानते
क कब बदलाव क हवा चल जाए; कब हमारे समाज को बचाने के लए हसा क ज़ रत
आन पड़े, या अपना अ त व बचाने के लए ही।’
वहां गहन स ाटा था।
अब समय आ गया था।
व ा म ने वो सवाल पूछा, जससे वो संवाद को आगे बढ़ाना चाहते थे। ‘ या
स त सधु के आ मसमपण और रावण को यूं उ ह हरा दे ने म भी कोई अ तवाद था?’
सीता ने सावधानी से सवाल को सोचा। ‘हां, ापा रक वग के त नफरत और
बेचैनी।’
‘ ब कुल सही। अतीत म, यो ा म कुछ शैतान होने क वजह से, भारत सा ा य
के वा सय ने सम य जीवनशैली पर हार कया। वो तकहीन प से अ हसक बन
गए। ऐसे भी समाज ए ज ह ने ा ण जीवनशैली पर हार कया और गव से गैर-बौ क
बन गए, य क उनके कुछ ा ण तंग दमाग, उ छ वगवाद और एकांतवाद थे। और
हमारे समय म स त सधु ने खुद ापार को तु छ दखाया, य क उनके कुछ ापारी
वाथ , आडंबरपूण और धन हड़पने वाले हो गए थे। हमने धीरे-धीरे ापार को अपने हाथ
से जाने दया और अपने समाज के ‘बुर-े पूंजीप तय ’ को स प दया। कुबेर, और फर रावण,
ने धीरे-धीरे पैसा इक ा कया, और वाभा वक प से आ थक श उनके पास चली गई।
करछप का यु तो बस औपचा रकता थी, उस लंबे ऐ तहा सक चलन पर मुहर लगाने के
लए। एक समाज को हमेशा संतुलन का ल य रखना चा हए। इसम बौ क, यो ा ,
ापा रय , कलाकार , और ह त कारीगर सभी क ज़ रत होती है। अगर ये एक समूह को
यादा स म बनाए और सरे को कम, तो इससे कोलाहल ही बढ़ना होता है।’
सीता को अपने पता क धमसभा म सुनी कोई बात याद आई। ‘म सफ एक ही
“वाद” म यक़ न करती ं और वो है यथाथवाद।’
ये चावाक दाश नक ने कहा था।
‘ या तुम चावाक दशन को मानती हो?’ व ा म ने पूछा।
चावाक दशन का नाम इसके ाचीन सं थापक और अनी रवाद के नाम पर रखा
गया, जो यथाथवाद म यक़ न रखते थे। वह प व गंगा के ोत, गंगो ी के समीप रहते थे।
चावाक सफ भौ तक अनुभव से महसूस क जाने वाली चीज पर ही यक़ न करते थे।
उनके अनुसार, न कोई आ मा है, न ही कोई परमा मा। यह शरीर ही एकमा सचाई है, जो
त व का म ण है, जो मरणोपरांत वापस त व म ही वलीन हो जाएगा। वे वतमान म जीते
ए अपने जीवन का आनंद लेते थे। उनके शंसक उ ह उदारवाद , वाद और गैर-
आलोचना मक के प म दे खते थे। सरे हाथ पर, उनके आलोचक उ ह अधम , वाथ
और गैर- ज मेदार मानते थे।
‘नह , गु जी, म चावाक को नह मानती। अगर म यथाथवाद ं तो मुझे दशन के हर
प को मानने के लए तैयार रहना चा हए। और उनके उस भाग को वीकार करना चा हए,
जनका मेरे लए कुछ मतलब हो, और जो बेमतलब ह उ ह नकार दे ना चा हए। मुझे ऐसे
कसी भी दशन से ान लेना चा हए जो मेरे कम को संपूण करता हो।’
व ा म मु कुराए। हो शयार, अपनी उ के हसाब से ब त हो शयार।
अ याय 7
सीता तालाब के पास बैठे ए यायसू पढ़ रही थ , जो भारतीय दशन, याय दशन का
प रचय था। व ा म को ऋ ष ेतकेतु के गु कुल म आए कुछ महीने बीत चुके थे।
‘भू म,’ रा धका ने सीता के गु कुल नाम को पुकारते ए कहा, ‘तु हारे घर से कोई
तुमसे मलने आया है।’
सीता ने झुंझलाते ए आह भरी। ‘वो इंतज़ार नह कर सकते?’
वह ऋ ष ेतकेतु से पूछने के लए सवाल क सूची तैयार कर रही थ । अब इस
काम म दे र हो जानी थी।
‘तुम मुझे कहां ले जा रही हो, रा धका?’ सीता ने उनका हाथ पकड़कर ले जाती सखी से
मु कुराकर पूछा।
वो गु कुल से द ण क ओर घने जंगल म जा रहे थे।
‘हनु भैया!’ थोड़े से वृ हीन े म वेश करते ही सीता खुशी से च ला द ।
हनुमान अपने घोड़े के पास खड़े, उस थके ए पशु क गदन सहला रहे थे। घोड़ा
एक पेड़ से बंधा आ था।
‘मेरी बहन!’ हनुमान ने नेह से कहा।
वशालकाय ाणी उनक तरफ बढ़ा। उ ह ने दोन को नेह से बांह म भर लया।
‘और तुम दोन कैसी हो?’
‘आप ब त दन के लए र चले गए थे!’ रा धका ने शकायत क ।
‘जानता ं,’ हनुमान ने आह भरी। ‘मुझे अफसोस है। म वदे श म…’
‘आप कहां जाते रहते हो?’ सीता ने पूछा, उ ह हनुमान का रह यमयी जीवन ब त
उ सा हत करता था। ‘इन काम पर आपको कौन भेजता है?’
‘सही समय आने पर म आपको बताऊंगा, सीता… ले कन अभी नह ।’
हनुमान घोड़े क पीठ पर बंधी खुरजी तक गए और उसम से सोने का बना खूबसूरत
सा हार नकाला, उसक शैली से ही वो वदे शी मालूम पड़ रहा था।
रा धका खुशी से च ला द ।
‘तुमने सही अंदाज़ा लगाया,’ हनुमान ने हार को उसे दे ते ए कहा। ‘ये तु हारे लए
है…’
रा धका हाथ म बार-बार उलट-पलटकर दे खते ए हार क शैली क तारीफ करने
लगी।
‘और मेरी गंभीर बहन के लए,’ हनुमान ने सीता से कहा। ‘जो आपको हमेशा से
चा हए था…’
सीता क आंख हैरानी से फैल ग । ‘एकमुखी ा ?!’
ा श द का मतलब वयं भु के अ ु ही है। वा तव म यह भूरे रंग का,
अंडाकार बीज है। महादे व, भु के सभी भ ा क माला पहनते ह या ा को
अपने पूजाघर म रखते ह। एक सामा य ा बीज म ब त सी रेखाएं होती ह। एकमुखी
ा को लभ माना जाता है, इसक सतह पर बस एक ही रेखा होती है। इसे ा त करना
ब त मु कल होता है। और बेशक मती भी। भु क भ सीता के लए यह अनमोल
था।
हनुमान ने मु कुराकर दोबारा अपना हाथ खुरजी म डाला।
अचानक, घोड़ा बेचैन होकर घबराने लगा, उसके कान आगे-पीछे फड़फड़ाने लगे।
पलभर म ही उसक सांस फूलने लगी। घबराहट को दशाते ए।
हनुमान ने सावधानी से आसपास दे खा। और उ ह ने खतरे को भांप लया।
ब त धीरे से, बना कसी चेतावनी के, उ ह ने रा धका और सीता को अपने पीछे
ख च लया।
लड़ कयां जानती थ क ऐसे म कुछ बोलना सही नह था। वो भी खतरे को महसूस
कर सकती थ । कुछ तो गलत था।
अचानक हनुमान ने ज़ोर से ची कार क ; जैसे गु से म बंदर करते ह। पेड़ के पीछे
छपा बाघ समझ गया क उनको चकमा दे ने से वो चूक गया था। वो धीरे से बाहर आया।
हनुमान ने अपने कमरबंद म बंधी यान म से घुमावदार कटार नकाली। खूंखार गोरख क
खुखरी क शैली म बनी ई कटार। बस इसका फलक सीधा नह था। यह बीच म से मोट
थी और फर वो मोटा भाग नीचे क तरफ मुड़ जाता था। कसी ढलावदार कंधे क तरह।
मूठ के अंत तक, धारदार फलक दांतेदार हो जाती थी। उसका आकार गाय के पैर जैसा था।
इसका खास मकसद था। इससे फलक पर लगा खून नीचे ज़मीन पर गरता था, बजाय क
ह थे के ज रये पकड़ने वाले के हाथ तक प ंचकर उ ह रपटवां बनाता। गाय के पैर क
आकृ त का मह व था क इस ह थयार का इ तेमाल कभी भी प व गाय को मारने म नह
कया जाएगा। उसका ह था हाथीदांत का बना था। उसके आधे म मूठ के हर भाग से
अ हभाग उभर रहा था। वहां म यमा और अना मका के म य एक अवलंब सा था, जो बेहतर
पकड़ के काम आता था। खुखरी पर आगे हाथ फसलने से बचाने के लए कोई सुर ा नह
थी। कम द ता वाले यो ा का हाथ रपटकर इसके फलक पर जाने का डर था। इससे चाकू
चलाने वाले का अपना ही हाथ घायल हो सकता था।
ले कन कोई भी बु मान आदमी हनुमान को कम-द ता वाला नह कह सकता
था।
‘मेरे पीछे ही रहना,’ हनुमान ने लड़ कय को धीरे से कहा, जब बाघ उनक तरफ
बढ़ने लगा।
हनुमान अपने पैर को थोड़ा फैलाकर, झुककर, संतुलन बनाते ए खड़े हो गए।
आगे होने वाली घटना के इंतज़ार म। अपनी सांस को थर करते ए।
बाघ ज़ोर से दहाड़ा, इतनी तेज़ क कान के पद फट जाएं, और उसने आगे क
तरफ छलांग लगाई, अपने पछले पैर का सहारा लेकर अगली टांग उठाते ए। वशालकाय
हनुमान को अपनी पकड़ म लेने के लए तैयार। उसका बड़ा सा मुंह खुला, और वो सीधा
हनुमान के गले पर लपका।
बाघ का तरीका ढ़ था: अपने भारी वजन के साथ मनु य पर छलांग लगाओ, अपने
पंज से उसे ज़मीन पर गराओ और बाक का काम ख म करने के लए अपने जबड़ पर
व ास रखो।
कसी कमतर मन पर तो ये कारगर हो जाता। ले कन बद क मती से उसने
श शाली हनुमान पर हमला कर दया था।
वशालकाय नागा का डील-डौल लगभग बाघ जतना ही बड़ा था। एक पैर पीछे
करके, उ ह ने अपनी रीढ़ को मोड़ा, अपनी श शाली मांसपे शय को ख चा और अपने
पैर पर डटे रहे। अपने बाय हाथ से उ ह ने बाघ का गला पकड़ते ए, उसके खतरनाक
जबड़े को र कर दया। हनुमान ने बाघ को अपनी पीठ न चने द । इससे कम नुकसान
होता। उ ह ने अपना दा हना हाथ पीछे ख चा, अपने कंधे क मांसपे शय को ख चते ए
अपनी खुखरी बाघ के पेट म उतार द । फलक के बेरहम दांत आराम से अंदर उतर गए।
जानवर दद से दहाड़ा। उसक आंख सदमे से फैल ग ।
हनुमान ने गहरी सांस भर दा हनी ओर से लगे उस कटाव को और नीचे उतारते ए
जानवर के पेट को चीर दया। एक सरे से सरे सरे तक। वीभ स, ले कन भावशाली। उस
चाकू ने जानवर के सफ पेट के अंग को ही नह काटा, ब क थोड़ा रीढ़ को काटते ए,
अंदर क सुर त नस को भी काट दया।
बाघ क आंत कटे ए उदर से बाहर नकल आ , इससे उसक पछली टांगे लकवे
से जड़ हो ग । हनुमान ने जानवर को पीछे धकेल दया। वो ज़मीन पर जाकर गरा, गु से से
अपने आगे क टांग को हर दशा म फकता आ।
हनुमान उसके पंजे से लगे बाद के घाव से बच सकते थे, अगर वो उसके कमज़ोर
पड़ने का इंतज़ार करते। और उसके अगले पैर को नीचे गरने दे त।े ले कन जानवर दद से
तड़प रहा था। वो अपनी तकलीफ को ज द से ज द ख म करना चाहता था। हनुमान उसके
समीप झुके, बाघ के पंजे उनके कंध म गड़ रहे थे। नागा ने अपना चाकू जानवर के सीने म
उतार दया। फलक उसके दल म गहरे तक उतर गया। वो कुछ पल तड़पा और फर उसक
आ मा शरीर से आज़ाद हो गई।
हनुमान ने अपना चाकू बाहर नकाल लया और धीमे से ाथना क , ‘तु हारी आ मा
फर से अपना मकसद हा सल करे, भले पशु।’
‘ऐसा होता रहता है, रा धका,’ हनुमान ने कहा। ‘हम जंगल के बीच म ह। यहां तु ह और
या मलेगा?’
रा धका अभी भी डर से कांप रही थी।
सीता ने खुरजी से ज द से दवाइयां नकाल और हनुमान के घाव पर मलहम
लगाने लग । वो घाव जानलेवा तो नह थे ले कन उनम से कुछ गहरे थे। सीता ने एक दो
घाव को टांका भी लगा दया। उ ह उस वृ -र हत े म कुछ ऊजा दे ने वाली बू टयां भी
मल ग , ज ह उ ह ने प थर पर पीसकर, पानी के साथ पीने के लए हनुमान को दे दया।
हनुमान ने दवाई लेकर, अपना मुंह हाथ से प छकर सीता को दे खा।
वह घबराई ई नह ह… वह भयभीत भी नह ह… ये लड़क कुछ खास…
‘म क पना भी नह कर सकती थी क बाघ को इतनी आसानी से प त कया जा
सकता है,’ सीता फुसफुसा ।
‘मेरे कद ने मेरी मदद क !’ हनुमान हंसे।
‘आपको भरोसा है क आप घुड़सवारी कर पाओगे? आपके घाव गंभीर तो नह ह,
ले कन…’
‘म यहां तो वैसे भी नह क सकता। मुझे वापस जाना ही होगा…’
‘अपने और कसी रह यमयी योजन पर?’
‘मुझे जाना होगा।’
‘आपको जो करना है, वो करो, हनु भैया।’
हनुमान मु कुराए। ‘अपना ा मत भूल जाना।’
सीता खुरजी तक ग और उसम से रेशम क थैली नकाली। उ ह ने धीरे से उसे
खोला, और सावधानी से एकमुखी ा उठा लया। वह हैरानी से उसे दे खने लग । फर
स मान से उसे माथे पर लगाया और संभालकर अपने कमरबंद से बंधी थैली म रख लया।
अ याय 8
सीता धीरे-धीरे गु कुल के मु य चौक क तरफ बढ़ । उनका दल ज़ोर से धड़क रहा था।
गु कुल के घाट के रा ते म दो हाथी बंधे ए थे। वह जानती थ क उनक मां को अपने साथ
हाथी लाना पसंद था। सुनयना के यहां आने पर वो और सीता हाथी पर बैठकर जंगल क
सैर करते थे। सुनयना को खुली कृ त के बीच अपनी बेट को पशु के बारे म बताना
पसंद था।
सीता क जानकारी म सुनयना कसी और से अ धक पशु के बारे म जानती थ ।
जंगल के वो सफर सीता क सबसे सुखद याद म से थे। उस सफर म वो अपने जीवन को
दो मह वपूण सा थय के साथ होती थ : धरती मां और उनक अपनी मां।
उनके सीने म दद आ।
उनक वजह से, कुश वज ने म थला पर ापार के कड़े तबंध लगा दए थे।
उनके चाचा का सा ा य, संक या ही मु य प से उनके पता के सा ा य के साथ ापार
करता था; और खरीद जाने वाली ज़ री चीज़ के दाम भी आसमान छू रहे थे। अ धकांश
म थलावासी इसके लए सीता को दोष दे ते थे। सब जानते थे क सीता ने कुश वज क
शाही मुहर तोड़ द थी। और फर ये प रणाम तो मलना ही था। ाचीन परंपरा के अनुसार,
शाही मुहर राजा का त न ध व करती थी; यह राज-ह या के बराबर था।
दोष यक़ नन उनक मां, सुनयना को भी दया जा रहा था। सभी जानते थे क सीता
को गोद लेने का नणय उनक रानी सुनयना का था।
मने उ ह परेशा नय के अलावा कुछ नह दया। मने वो पल भर म तबाह कर दया,
जसे बनाने म उ ह ने अपना पूरा जीवन लगा दया।
मां को मुझे भूल जाना चा हए।
चौक तक प ंचने पर सीता अपने नणय पर और ढ़ होती जा रही थ ।
कसी शाही अ त थ आने के हसाब से भी आज वहां कुछ यादा ही भीड़ थी। एक
भारी सी, खाली पालक के पास आठ आदमी खड़े थे। ये पालक उ ह ने पहले कभी नह
दे खी थीः इतनी लंबी, चौड़ी। ऐसा लग रहा था क ये कसी के लेटकर सफर करने के लए
तैयार क गई थी। बा ओर उ ह ने अशोक वृ के गद बनाए गए नचले चबूतरे के पास
आठ म हला को खड़े दे खा। वह हर तरफ अपनी मां को ढूं ढ़ रही थ , ले कन वो उ ह कह
दखाई नह द ।
वह म हला क तरफ मुड़ , और उनसे अपनी मां के बारे म पूछा। तभी उनम से
कुछ म हलाएं एक ओर हट और रानी सुनयना दखाई द ।
सीता को ज़ोर का आघात लगा।
उनक मां अपनी ही परछा लग रही थ । वह मा खाल और ह ड् डय का ढांचा भर
रह गई थ । उनका गोल, चं ाकार चेहरा सूख गया था और गाल अंदर धंस गए थे। वह हमेशा
से बली-पतली रही थ , ले कन कभी भी अ व थ नह दखती थ । अब उनक मांसपे शयां
पूरी तरह घुल गई थ और उनके शरीर ने रही-सही वसा भी उतार द थी। उनक आंख के
नीचे गहरे ग े पड़ गए थे। उनके लंबे, घने काले बाल सफेद हो गए थे। वह बमु कल खुद
को उठा पा रही थ । उ ह उठने म भी सहायक क मदद क ज़ रत थी।
जैसे ही सुनयना ने अपनी यारी बेट को दे खा, उनका चेहरा खल गया। वो वही
नेहभरी मु कान थी, जसम सीता ने हमेशा से आराम और सहारा पाया था।
‘मेरी ब ची,’ सुनयना ने धीमी सी आवाज़ म कहा।
म थला क रानी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, उनके जानलेवा पीलेपन ने मां के यार
भरे दल के सामने कुछ दे र के लए घुटने टे क दए।
सीता अपनी जगह पर जड़ खड़ी रह । वो चाह रही थ क धरती फट जाती और वो
उसम समा जाएं।
‘यहां आओ, मेरी ब ची,’ सुनयना ने कहा। उनक बांह, कमज़ोरी से उठ नह पा रही
थ और नीचे ढह ग ।
सुनयना को खांसी आई। एक सहा यका ने ज द से दौड़कर एक माल से उनका
मुंह प छा। सफेद कपड़े पर खून के लाल ध बे साफ दखाई दे रहे थे।
सीता लड़खड़ाती सी अपनी मां क तरफ बढ़ । बेसुध। वह अपने घुटन पर गर
और अपना सर सुनयना क गोद म टका दया। वो गोद जो हमेशा इतनी नरम रही थी, जैसे
बा रश के बाद पृ वी मां क गोद। आज वो उतनी ही स त महसूस हो रही थी, मानो उसने
कतने साल का सूखा झेला हो।
सुनयना ने अपनी उंग लयां सीता के बाल म फरा ।
सीता ख और डर से सहर ग , जैसे एक छोटा सा कबूतर वशाल बरगद के पेड़
को दे खकर हो जाता है, जसने न सफ उसके शरीर को ब क उसक आ मा को भी छांव
द होती है।
सीता के बाल म हाथ फराते ए, सुनयना ने झुककर उनके माथे को चूमा और
धीमे से कहा, ‘मेरी ब ची…’
सीता फूट-फूटकर रो द ।
म थला के वै कड़ा वरोध जता रहे थे। इतनी कमज़ोरी के बाद भी सुनयना से जीतना
संभव नह था। वो अपनी बेट के साथ हाथी पर बैठकर जंगल क सैर जाने का आ ह छोड़
ही नह पा रही थ ।
वै ने अपना आखरी दांव खेला। उसने रानी के कान म फुसफुसाया, ‘महारानी, हो
सकता है यह आपक आखरी सवारी बन जाए।’
और सुनयना ने जवाब दया, ‘इसी लए तो मेरा जाना और भी ज़ री है।’
रानी पालक म आराम कर रही थ , जब क दो हा थय को सैर के लए तैयार कया
जा रहा था। एक हाथी पर वै और कुछ सहायक जाने वाले थे, जब क एक सुनयना और
सीता के लए तैयार हो रहा था।
जाने के समय पर, सुनयना को बैठे ए हाथी के हौदे तक ले जाया गया। एक
सहा यका ने रानी के हौदे पर चढ़ने क को शश क ।
‘नह !’ सुनयना ने ढ़ता से मना कर दया।
‘ले कन, दे वी…’ सहा यका ने वनती क , उसके हाथ म माल और पीने के लए
पानी था। रानी को ऊजा के लए खास जड़ी-बू टय क भभक सुंघाई गई थी।
‘मेरी बेट मेरे साथ है,’ सुनयना ने कहा। ‘मुझे और कसी क ज़ रत नह है।’
सीता ने तुरंत सहा यका से माल और पानी ले लया और हौदे पर चढ़ ग ।
सुनयना ने महावत को इशारा कया, जसने अपने पैर से हाथी के कान के पीछे
थपथपाया। हाथी ब त धीरे से उठा, जससे सुनयना को कम से कम तकलीफ हो।
‘चलो,’ उ ह ने आदे श दया।
दोन हाथी जंगल क ओर बढ़ चले, उनके साथ म थला के पचास सश सपाही
पैदल भी चल रहे थे।
अ याय 10
पशु के धीरे-धीरे चलने से हौदा पालने क तरह हल रहा था। सीता ने अपनी मां का हाथ
पकड़कर उसे खुद से चपका लया। महावत हाथी को पेड़ क छांव म ही चला रहा था।
इसके बावजूद भी हवा खु क और गम थी।
हालां क, सीता सहर रही थ । पछतावे से। डर से।
सुनयना ने अपना हाथ थोड़ा सा उठाया। सीता समझ ग क उनक मां या चाहती
थ । उ ह ने सुनयना का हाथ ऊपर उठाया और उनके पास सरक ग । और अपनी मां का
हाथ अपने कंध पर लपेट लया। सुनयना संतु से मु कुरा और सीता के माथे को चूमा।
‘ मा करना, सीता, आपके पता नह आ पाए,’ सुनयना ने कहा। ‘उ ह काम क
वजह से घर पर ही कना पड़ा।’
वो जानती थ क उनक मां झूठ कह रही थ । वो अपनी बेट का दद और नह
बढ़ाना चाहती थ ।
शायद, यह सही ही था।
सीता ने, गु से म पछली बार म थला जाने पर जनक से कह दया था क उ ह
अ या म म समय बबाद न करके शासन चलाने म सुनयना क मदद करनी चा हए। क यही
उनका कत था। सीता के व फोट से पता से यादा सुनयना नाराज़ ई थ ।
और, सीता क चार वष य बहन उ मला क भी त बयत सही नह रहती थी। मां के
ेतकेतु के गु कुल म आने पर, जनक शायद उ मला क दे खभाल करने के लए घर पर रह
गए ह गे। सुनयना इतनी बीमारी म भी यहां आई थ । अपनी परेशान करने वाली बड़ी बेट से
मलने के लए। और, उसे वापस घर ले जाने के लए।
सीता ने अपनी आंख बंद कर ल , पछतावे का एक और आंसू उनक आंख से
ढु लक गया।
सुनयना ने खांसी क । सीता ने ज द से माल से अपनी मां का मुंह प छा। उ ह ने
कपड़े पर लाल ध बे दे ख;े उनक मां के धीरे-धीरे मौत के मुंह म समाने क नशानी।
आंसू तेज़ धारा के प म बहने लगे।
‘सभी को कसी न कसी दन मरना है, मेरी लाड़ली,’ सुनयना ने कहा।
सीता रोती रह ।
‘ले कन खुश क मत वही होते ह जो अपन के बीच मरते ह।’
दोन हाथी अपने कुशल महावत के संचालन म अपनी जगह पर थर थे। म थला के
पचास सै नक भी खामोशी से खड़े थे। वहां सुनाई दे रही ह क सी आवाज़ खतरे का इशारा
कर रही थी।
दस मनट बाद, सुनयना ने वो य दे खा जो मनु य क आंख के लए वरला थाः
हा थय के बड़े से झुंड म बूढ़ मां क मृ यु।
सीता को हा थय के झुंड पर पढ़ाया गया अपनी मां का सबक याद था। वे महामाता
के पीछे चलते थे, जसक अगुआ सबसे बड़ी मादा हाथी होती थी। अ धकांश झुंड म
क मादाएं, उनके नर और मादा ब चे होते थे, जनका समान प से पोषण कया जाता
था। नर हा थय को अ सर समय आने पर झुंड से न का सत कर दया जाता था।
महामाता उस समूह के लए कसी नेता से यादा अह मयत रखती थी। वो उन
सबक मां होती थी।
इसी लए, महामाता क मृ यु पूरे समूह के लए सबसे ददनाक घटना होती थी। इस
ख क क पना क जा सकती थी।
‘मुझे लगता है यह वही समूह है, जो हमने कुछ साल पहले दे खा था,’ सुनयना
फुसफुसा ।
सीता ने हां म सर हलाया।
वो एक सुर त री से दे ख रहे थे, पेड़ के पीछे से छपकर।
हाथी महामाता के मृत शरीर के पास घेरा बनाकर खड़े थे। शोक त। बना हले।
शांत। दोपहर क सौ य हवा उस सभा पर पड़ती सूरज क स त करण से राहत दे ने क
को शश कर रही थी। हाथी के दो ब चे घेरे के अंदर खड़े थे, मृत शरीर के पास। एक छोटा
था, सरा ज़रा बड़ा।
‘हमने उस छोटे वाले को पैदा होते दे खा था, सीता,’ सुनयना ने कहा।
सीता ने हां म सर हलाया।
सीता को महामाता के ब चे का ज म याद था। जसे उ ह ने कुछ साल पहले अपनी
मां के साथ यूं ही हाथी पर घूमते ए दे खा था।
आज, वो ब चा, नर हाथी अपनी मृत मां के पास घुटन के बल बैठा था। उसक सूंड
मां क सूंड से गुथी थी, उसका शरीर कांप रहा था। थोड़ी-थोड़ी दे र म वो अपनी सूंड से मां
क लाश को हलाकर, उसे जगाने क को शश कर रहा था।
उसी के पास उसक बड़ी बहन खड़ी थी। शांत। थर। समूह के सरे सद य क
तरह।
‘अब दे खो…’ सुनयना फुसफुसाई।
एक क मादा हाथी धीरे-धीरे लाश क तरफ आई। वो शायद समूह क नई
महामाता थी। उसने अपनी सूंड बढ़ाकर, पूरे स मान से मृत शरीर का माथा छु आ। फर
उसने मृत शरीर के गद च कर लगाया और वहां से चली गई।
घेरे म खड़े सरे हा थय ने भी एक-एक कर अपनी नेता का अनुसरण कया। वही
दोहराते ए--अपनी सूंड से भूतपूव मृत महामाता का माथा छु आ और उसके गद च कर
लगाकर, वहां से चल दए।
पूरे स मान से। पूरे आदर से।
उनम से कसी ने भी पीछे मुड़कर नह दे खा। एक बार भी नह । एक बार भी नह ।
छोटा नर हाथी, हालां क वहां से हटने से इंकार कर रहा था। वह अपनी मां से
चपका रहा। अधीरता से। वो लाचारगी से उसे ख चने क को शश करता रहा। उसक बहन
शां त से उसके पास खड़ी थी।
बाक का समूह एक री पर जाकर क गया था, बना पीछे मुड़े। स से, वो
इंतज़ार कर रहे थे।
कुछ दे र बाद, बहन ने अपने छोटे भाई को अपनी सूंड से छु आ।
नर ब चे ने उसे हटा दया। वह नई ऊजा से अपने पैर पर खड़ा आ और फर से
अपनी सूंड को मां क सूंड पर लपेट दया। और ज़ोर लगाकर ख चने लगा। वो फसला।
फर से उठ खड़ा आ। अपनी मां क सूंड पकड़ी और ख चने लगा। और ज़ोर से। उसने
मनुहार करती नज़र से अपनी बहन को दे खा, उसक मदद मांगते ए। फर ज़ोर से रोते ए
अपनी मां क तरफ मुड़ा, उससे खड़े होने क उ मीद करते ए।
ले कन उसक मां अब गहरी न द म सो चुक थी। वो अब अपने अगले जीवन म ही
उठने वाली थी।
ब चा हार मानने को तैयार नह था। पहलू बदलते ए, वो अपनी मां क सूंड ख चे
जा रहा था। बार-बार।
आ खरकार, बहन मां क लाश के पास आई और अपनी सूंड से उसका माथा छु आ,
जैसे क सर ने कया था। फर उसने अपनी मां के शरीर के गद च कर लगाया। वो अपने
भाई के पास आई, उसक सूंड उठाई और उसे वहां से ख चने क को शश क ।
नर ब चा दल तोड़ने वाली आवाज़ म रो रहा था। वह अपनी बहन के पीछे गया।
ले कन पीछे दे खता रहा। बार-बार। मुड़-मुड़कर। हालां क, अपनी बहन के साथ जाते ए वो
कोई वरोध नह कर रहा था।
बहन, झुंड के सरे लोग क तरह, थरता से आगे बढ़ती रही। उसने पीछे मुड़कर
नह दे खा। एक बार भी नह । एक बार भी नह ।
सीता ने अपनी मां को दे खा, उनके गाल पर आंसू बह रहे थे।
‘समाज चलता रहता है, मेरी ब ची,’ सुनयना फुसफुसा । ‘दे श चलते रहते ह।
ज़दगी चलती रहती है। जैसे वो चलनी चा हए।’
सीता कुछ नह बोल सक । वो अपनी मां को नह दे ख पा रही थ । उ ह ने सुनयना
को कसकर पकड़ लया, उनक छा तय म अपना सर छपाते ए।
‘ददभरी याद से चपके रहना बेकार है, सीता,’ सुनयना ने कहा। ‘आपको आगे
बढ़ना होगा। आपको जीना होगा…’
सीता सुन रही थ । ले कन उनके आंसू कने का नाम नह ले रहे थे।
‘सम या और चुनौ तय से भागने क कोई राह नह है। वो जीवन का ह सा ह।
म थला को अनदे खा करने का ये मतलब नह है क परेशा नयां गायब हो जाएंगी। इसका
यही मतलब है क कोई सरी चुनौ तयां आपके सामने आएंगी।’
सीता ने अपनी मां को और कसकर पकड़ लया।
‘भागना कभी भी कोई हल नह होता। अपनी सम या का सामना करो। उ ह
संभालो। यही यो ा का तरीका है।’ सुनयना ने सीता क ठोड़ी उठाई और उनक आंख
म दे खा। ‘और, आप एक यो ा हो। ये बात कभी मत भूलना।’
सीता ने हां म सर हलाया।
‘आप जानती ह क आपक छोट बहन कमज़ोर ही पैदा ई थ । उ मला यो ा नह
ह। आपको ही उनका यान रखना होगा, सीता। और, आपको ही म थला क दे खभाल
करनी होगी।’
सीता ने मन ही मन एक वादा कर लया था। हां। म क ं गी।
सुनयना ने सीता के चेहरे पर हाथ फराया और मु कुरा । ‘आपके पता हमेशा
आपको यार करते ह। आपक छोट बहन भी। इसे याद रखना।’
म जानती ं।
‘जहां तक मेरा सवाल है, म सफ आपको यार ही नह करती, सीता, मुझे आपसे
ब त उ मीद भी ह। आपके कम ही नधा रत करगे क हमारे प रवार का नाम कई स दय
तक जी वत रह पाए। आप ही इ तहास बनाओगी।’
सीता ने गु कुल म अपनी मां को दे खने के बाद से अपने पहले श द कहे। ‘मुझे
मा कर दो, मां। मुझे मा कर दो। म…’
सुनयना ने मु कुराकर, सीता को कसकर गले लगा लया।
‘माफ…’ सीता ने सुबकते ए कहा।
‘मुझे आप पर पूरा भरोसा है। आप ऐसा जीवन जओगी, जससे मुझे आप पर गव
होगा।’
‘ले कन म आपके बना नह जी सकती, मां।’
सुनयना ने सीता को पीछे ख चकर, उनका चेहरा ऊपर उठाया। ‘आप जी सकती हो
और आप जओगी।’
‘नह … म आपके बना नह जी पाऊंगी…’
सुनयना के भाव ढ़ थे। ‘मेरी बात सु नए, सीता। आप अपना जीवन मेरा शोक
मनाते ए बबाद नह करगी। आप बु मानी से जएंगी और मुझे आप पर गव होगा।’
सीता रोती रह ।
‘अतीत को मत दे खो। भ व य को दे खो। अपना भ व य बनाओ, अपने अतीत पर
मलाल मत करो।’
सीता म बोलने क ताकत नह थी।
‘मुझे वचन दो।’
सीता ने अपनी मां को दे खा, उनक आंख छलछला रही थ ।
‘मुझे वचन दो।’
‘म वचन दे ती ं, मां। म वचन दे ती ं।’
सुनयना को ेतकेतु के गु कुल म गए चार स ताह बीत गए थे। सीता अपनी मां के साथ घर
लौट आई थ । सुनयना सीता को म थला क धान मं ी बनाने क जुगत लगा रही थ ,
सा ा य के शासन क सारी श य को मलाते ए।
सीता अब अपना अ धकांश समय सुनयना के साथ बता रही थी, अपनी मां के
गरते वा य का याल रखते ए। सुनयना अपने नजी श वर म, ब तर पर लेटे ए ही
सा ा य के मं य के साथ सीता क सभा का संचालन कर रही थ ।
सीता जानती थ क सुनयना उनके छोट बहन के साथ संबंध को लेकर खास
सजग थ । इस लए, सीता भी उ मला के साथ भावशाली संबंध बनाने को लेकर सतक थ ।
म थला क रानी चाहती थ क उनक बे टय म मज़बूत र ता रहे जससे आगे के मु कल
साल म उ ह मदद मले। सुनयना ने उ ह एक- सरे के साथ खड़े रहने क ज़ रत के बारे म
भी बताया था। और उनके आपसी यार और भरोसे पर भी चचा क थी।
एक शाम, सुनयना के श वर म लंबी मुलाकात के बाद, सीता उ मला के क म
ग । उ मला का क अपनी मां के श वर के सामने ही था। सीता ने एक सहा यका से बतन
म काले अंगूर लेकर आने को कहा। उ मला को काले अंगूर पसंद थे। सहा यका को बाहर
भेजकर बतन अपने हाथ म लेकर वह क म ग ।
क म म म रौशनी थी। सूय अ त हो चुका था ले कन फर भी वहां थोड़े ही द ये
जल रहे थे।
‘उ मला!’
वह ब तर पर नह थ । सीता अपनी बहन को ढूं ढ़ने लग । वह बड़े छ जे पर ग ,
जहां से महल का बगीचा दखाई दे ता था।
वह कहां ह?
वह वापस क म आ । म म रौशनी से वह ख थ और कसी को द ये जलाने
का आदे श दे ने ही वाली थ क उ ह कोने म कोई गठरी बना बैठा दखाई दया।
‘उ मला?’
सीता उनक तरफ बढ़ ।
उ मला कोने म बैठ थ , अपने घुटने छाती से सटाए। उनका सर नीचे घुटन पर था।
सीता ने तुरंत अंगूर क थाली एक ओर रख द और ज़मीन पर उ मला के सामने बैठ
ग । उ ह ने अपनी छोट बहन को बांह म भर लया।
‘उ मला…’ उ ह ने यार से कहा।
उ मला ने चेहरा उठाकर अपनी बड़ी बहन को दे खा। उनके आंसु से भरे चेहरे पर
चता क लक र थ ।
‘द द …’
‘मुझे बताओ, बेटा,’ सीता ने कहा।
‘ या…’
सीता ने उ मला के कंधे ह के से दबाए। ‘हां…’
‘ या मां हम छोड़कर वग जाने वाली ह?’
सीता ने मु कल से थूक नगला। वह चाह रही थ क काश मां यहां होत इस सवाल
का जवाब दे ने के लए। तभी उ ह अहसास आ क ब त ज द सुनयना वा तव म वहां नह
ह गी। उ मला उनक ज़ मेदारी थ । उ ह ही उ मला के हर सवाल का जवाब दे ना होगा।
‘नह , उ मला। मां हमेशा यहां रहगी।’
उ मला ने उ ह दे खा। वधा से। आशा से। ‘ले कन सब मुझे बता रहे थे क मां र
चली जाएंगी। क मुझे उनके बना…’
‘हर कोई वो नह जानता जो तुम और म जानते ह, उ मला। मां बस सरी जगह
रहगी। वो अब इस शरीर म नह रहगी।’ सीता ने उ मला के दल क ओर इशारा कया और
फर अपने। ‘मां इन दो जगह पर रहगी। वो हमेशा हमारे दल म रहगी। और, जब भी हम
दोन साथ ह गे, वो पूण हो जाएंगी।’
उ मला ने अपने सीने को दे खा, और अपने दल क धड़कन को महसूस कया। फर
उ ह ने सीता को दे खा। ‘वो कभी हम छोड़कर नह जाएंगी?’
‘उ मला, अपनी आंख बंद करो।’
उ मला ने वही कया जो उनक बहन ने कहा।
‘तु ह या दखाई दे रहा है?’
वह मु कुरा । ‘मुझे मां दखाई दे रही ह। वो मुझे पकड़ रही ह। मेरा चेहरा सहला
रही ह।’
सीता ने अपनी उंग लयां उ मला के चेहरे पर फरा । उ ह ने अपनी आंख खोल द ,
और खुलकर मु कुरा द ।
‘वो हमेशा हमारे साथ रहगी।’
उ मला ने सीता को कसकर पकड़ लया। ‘द द …’
‘अब हम दोन ही हमारी मां ह।’
मु य पं डत सीता के पास आए, अपने दा हने हाथ म मशाल पकड़े ए। बाक पं डत पीछे
एक पं म खड़े ए, ग ड़ पुराण से मं ो चारण कर रहे थे। ‘समय आ गया है, दे वी।’
सीता ने उनक तरफ सर हलाया। सुनयना क मृ यु के बाद से ही उ मला का रोना
बंद नह आ था। उ ह ने दोन हाथ से सीता क बांह पकड़ी ई थी। सीता ने अपनी बांह
छु ड़ाने क को शश क , ले कन उनक बहन और मज़बूती से उनसे लपट ग । सीता ने
अपने पता को दे खा, ज ह ने आगे आकर उ मला को गोद म उठा लया और अपनी बड़ी
बेट के पीछे खड़े हो गए। जनक भी उ मला क तरह ब त थत नज़र आ रहे थे। उ ह ने
अपना इंसानी सुर ा कवच खो दया था, जो उनके दाश नक ऊंचाइय को ा त करने म
उनके स मुख ढाल बनकर खड़ा था। वा त वकता ने बड़ी बेरहमी से उनके जीवन पर वार
कया था।
सीता पं डत क तरफ मुड़ और उनके हाथ से मशाल ले ली।
सुनयना को गु कुल गए महज़ तीन महीने ही ए थे।
सीता चाह रही थ क उ ह सुनयना के साथ बताने के लए कुछ और समय मल
पाता। उनसे सीखने के लए। उनके साथ जीने के लए। उ ह यार करने के लए।
ले कन ऐसा नह होना था।
ईशावा योप नषद् म से पं डत का मं ो चार सुनकर वो आगे बढ़ ।
वायुर अ नलम अमृतम; अथेदं भ मा तं शरीरम्
इस अ थायी शरीर को जलकर भ म होने दो। ले कन ाणा मा तो पारलौ कक है।
उसे अन र सांस म समा जाने दो।
सीता चंदन क चता क तरफ बढ़ , जहां उनक मां का शरीर रखा गया था। उ ह ने
आंख बंद कर अपनी मां का चेहरा दे खा। वह नह रोएंगी। यहां नह । सबके सामने नह । वह
जानती थ क ब त से म थलावासी अ य प से उनक मां क खराब हालत का
ज़ मेदार उनके गु कुल के सफर को ही मान रहे थे। वह जानती थ क कुश वज क तरफ
से मल रही तकलीफ का भी ज़ मेदार उ ह ही माना जाता है।
उ ह मज़बूत रहना होगा। अपनी मां के लए। उ ह ने अपनी दो त, समी च को दे खा,
जो वहां से कुछ री पर खड़ी थ । उ ह के पास रा धका खड़ी थी, गु कुल क उनक दो त।
उ ह अपने समथक को दे ख बल ा त आ।
उ ह ने वो जलती मशाल चता पर रख द । घी म डू बी लक ड़य ने तुरंत ही आग
पकड़ ली। चता ओज से रौशन हो गई, मानो अ न खुद उस महाना मा का स मान कर रही
हो।
अल वदा, मां।
सीता पीछे आ ग और आसमान को दे खा, उस भगवान, को।
अगर कोई मो के का बल है, तो वो मेरी मां ह।
सीता को महामाता हाथी के शोक पर कहे अपनी मां के श द याद आए।
अतीत को मुड़कर मत दे खना। भ व य को दे खना।
सीता चता को दे खते ए बुदबुदा । ‘म पीछे दे खूंगी, मां। म कैसे न दे ख?
ूं आप मेरी
ज़दगी हो।’
उ ह अपनी मां से क ई आखरी बात याद आई। सुनयना ने सीता को चेताया था
क अगर उ ह व णु होने क अपनी नयती को जीना है तो मलयपु या वायुपु , कसी पर
भी पूरा भरोसा नह करना है। दोन जा तय का अपना मकसद है। उ ह साझेदार क
ज़ रत होगी।
मां क आवाज़ उनके कान म गूंज रही थी। ऐसा साथी ढूं ढ़ना जस पर तुम भरोसा
कर सको; जो तु हारे मकसद के त वफादार रहे। नजी वफादारी ज़ री नह है। ले कन
मकसद के त ज़ र वफादार होना चा हए।
सीता को अपनी मां का आखरी वा य याद आ रहा था।
मेरी नज़र हमेशा आप पर होगी। मुझे ग वत करना।
सीता ने गहरी सांस ली और अपनी मु यां भ चकर, शपथ ली।
‘म ज़ र क ं गी, मां। ज़ र क ं गी।’
अ याय 11
सीता और समी च कले क बाहरी द वार के कनारे पर बैठ थ । सीता आगे बढ़कर, नगर
के चार ओर क गहरी खाई को दे खने लग । वो ब त गहरी थी। ऐसा पहली बार नह था,
जब वह सोच रही थ क नीचे गरना कैसा लगता होगा। या उससे तकलीफ होती होगी?
या वो तुरंत ही अपने शरीर को छोड़कर नकल जाएंगी? या वो सच म मु हो जाएंगी?
मृ यु के बाद या होगा?
ये बचकाने सवाल उसके मन म य आ रहे थे?
‘सीता…’ खामोशी को तोड़ते ए समी च फुसफुसा ।
वो काफ दे र से साथ बैठ थ । उन दोन के बीच कोई बात नह ई थी, य क
वच लत सीता क नज़र द वार के पार लगी ई थ । समी च सीता का दद समझ सकती थ ।
आ खरकार, अपनी मां क मृत दे ह को अ न दए अभी एक ही दन तो बीता था। अपनी
हाल ही म कम ई लोक यता के बावजूद भी, लगभग पूरे सा ा य म अपनी रानी सुनयना
के लए शोक मनाया जा रहा था। सफ सीता ही नह , ब क पूरे म थला ने अपनी मां खो
द थी।
सीता ने जवाब नह दया।
‘सीता…’
अचानक से चेतना ने साथ दया। समी च ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर सीता के आगे
कर दया। कसी अनकहे डर को रोकने क को शश। बुरे याल क ताकत को समी च
ब त अ छ तरह समझती थ ।
सीता ने न म सर हलाया। अनाव यक सवाल को अपने मन से झटकते ए।
समी च फर से फुसफुसा , ‘सीता…’
सीता ने बे यानी से कहा। खुद से ही। ‘मां, हमेशा क तरह, सही थ … मुझे एक
साथी क ज़ रत है… म अपने कम को पूरा क ं गी… ले कन म इसे अकेले नह कर
सकती। मुझे एक साथी क ज़ रत है…’
समी च क सांस अटक गई, ये सोचते ए क सीता ने उनके लए कोई योजना
बनाई थी। उ ह ने सोचा क सीता उसी बारे म बात कर रही थ जो सुनयना भी म थला के
लए चाहती थ । और, जो मरती ई रानी के कम ने उनसे कहलवाया था। ले कन वा तव
म, सीता उससे जूझ रही थ जो काम उ ह मलयपु मुख ने स पा था।
सीता ने अपने बाय हाथ क हथेली पर पड़े नशान को छु आ, खून से ली गई उस
शपथ को याद करते ए जो व ा म ने उ ह दलवाई थी। उ ह ने खुद से कहा, ‘म भु
और भु परशु राम क सौगंध लेती ं।’
समी च ने यान नह दया था क सीता ने पहली बार, भु परशु राम के नाम पर
शपथ ली थी। आमतौर पर, राजकुमारी हमेशा भु के नाम क शपथ लेती थ । ले कन
वो कैसे इस बदलाव पर यान दे सकती थ ? उनके अपने वचार भी बंटे ए थे; अपने भु
इराइवा के नाम पर।
या सीता मुझे म थला म सहायक अ य बनाना चाहती थ ? इराइवा कृपा कर…
इराइवा स ह गे…
व श अपनी पीठ एक पेड़ से टकाए, शां त से ज़मीन पर बैठे ए थे। वह सुबह सवेरे के
एकांत म डू बे ए, र से अपने आ म को दे ख रहे थे। वह र बहती सौ य धारा को दे ख रहे
थे। पानी क सतह पर प यां बह रही थ , अजीब था क उनके बीच का अंतराल सम था,
मानो कोई शांत सवारी नकल रही हो। वृ , पानी, प यां… पूरी कृ त म ही मानो उनक
गहरी संतु झलक रही थी।
उनके श य, अयो या के चार राजकुमार--राम, भरत, ल मण और श ु न--उनक
योजना के मुता बक ढलकर अ छ तरह बड़े हो रहे थे। लंका के रा स राजा, रावण के हाथ
दशरथ क अनथकारी हार को बारह साल बीत चुके थे। उस एक हार ने स त सधु का
भ व य बदलकर रख दया था।
अब व श को भरोसा हो चला था क व णु के उदय का समय आ गया था।
व श ने एक बार फर अपने सादगी भरे गु कुल को दे खा। यही वो जगह थी जहां
उनके मह ष शु ाचाय ने अ धकारहीन भारतीय राजवंश के समूह को श त कर उ ह
नायक बनाकर ऐसे श शाली सा ा य क न व रखी थी जसे नया ने कभी नह दे खा
थाः असुरस व , असुर सूय।
इसी प व धरा से एक और महान सा ा य का उदय होगा। एक नए व णु का उदय
यह से होगा।
व श ने अब तक तय नह कया था। वो ये न य नह कर पा रहे थे क राम या
भरत म से कसे वो अगला व णु बनाने के लए तैयार कर। एक चीज़ तो न त थी;
वायुपु उनका साथ दे ने वाले थे। ले कन भु क जा त क एक सीमा थी। वायुपु
और मलयपु क ज़ मेदा रयां बंट ई थ ; आ खरकार, व णु को औपचा रक मा यता दे ने
का हक मलयपु का था। और मलयपु मुख… उनके भूतपूव म …
ठ क है…
म उसे संभाल लूंगा।
‘गु जी।’
व श ने मुड़कर दे खा। राम और भरत शां त से उनके पास खड़े थे।
‘हां,’ व श ने पूछा। ‘आपने या पता लगाया?’
‘वो वहां नह ह, गु जी,’ राम ने कहा।
‘वो?’
‘ सफ मु खया व ण ही नह , उनके कई सलाहकार भी गांव से गायब ह।’
व ण उस जा त के मु खया थे जो इस आ म क दे खरेख संभालती थी। यह
आ म शोन नद के कनारे प म क ओर बसा आ था। उनक जा त वा मी क समय-
समय पर यह आ म गु को कराए पर दे ती रही थी। व श ने यह आ म अयो या के
राजकुमार को श त करने के लए कराए पर लया था।
व श ने वा मी कय से अपने श य क वा त वक पहचान छपाई थी। ले कन
बाद म उ ह संदेह होने लगा था क शायद जा त वाले उनके श य क वा त वक पहचान
जान गए थे। उ ह ये भी लगने लगा था क वा मी क भी अपने कुछ राज छपाए ए थे।
उ ह ने राम और भरत को ये पता करने भेजा था क मु खया व ण गांव म थे या
नह । अब उनसे बात करने का समय आ गया था। तब व श को नणय लेना था क
गु कुल को यहां से हटाना होगा या नह ।
ले कन व ण जा चुके थे। बना व श को बताए। जो असामा य बात थी।
‘वो कहां गए ह गे?’ व श ने पूछा।
‘शायद म थला।’
व श ने हां म सर हलाया। वह जानते थे क व ण ान के ेमी और खोजी थे,
खासकर आ या मकता के। म थला ऐसे लोग के लए वाभा वक थान था।
‘ठ क है, ब चो,’ व श ने कहा। ‘अपनी पढ़ाई म लग जाओ।’
‘मु खया व ण,’ व श ने खड़े होकर हाथ जोड़कर, स मान से णाम करते ए कहा।
व ण म थला से लौटे ही थे। और गु व श उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे।
व श कद म व ण से लंबे थे। ले कन मज़बूत मु खया क तुलना म बले-पतले।
‘गु व श ,’ व ण ने भी वन ता से अ भनंदन का जवाब दया। ‘हम अकेले म
बात करनी है।’
व श तुरंत ही सचेत हो गए। वह मु खया को एक शांत थान पर ले गए।
कुछ पल बाद ही वो अपने चार छा और सरे लोग से र आ म के पास बहती
शांत धारा के पास बैठे ता क कोई उनक बात न सुन सके।
‘बात या है, मु खया व ण?’ व श ने वन ता से पूछा।
व ण मलनसा रता से मु कुराए। ‘आप और आपके छा यहां कई साल से रह रहे
ह, गु जी। मुझे लगता है क अब समय आ गया है, जब हम ठ क तरह से एक- सरे को
अपना प रचय दे दे ना चा हए।’
व श ने सावधानी से अपनी लंबी दाढ़ म हाथ फराया और न समझने का दखावा
कया। ‘आप कहना या चाहते ह?’
‘मेरा मतलब… जैसे अब अयो या के राजकुमार को कसी ापारी या धनी
क संतान होने का दखावा नह करना चा हए।’
व श का मन अचानक से चार लड़क क तरफ गया। वो थे कहां? या व ण के
यो ा ने उ ह बंद बना लया था? अपने पारंप रक कानून के हसाब से मु खया व ण क
जा त को अयो या के राजवं शय को शरण दे ने क इजाज़त नह थी।
शायद, मने समझदारी से काम नह लया। मने सोचा था क लंका या मलयपु के
े से बाहर रहकर हम सुर त रहगे।
व श आगे झुके। ‘अगर आपको अपने कानून क चता है, तो आपको याद रखना
चा हए क आप अपने मेहमान या शरण म आए लोग को नुकसान नह प ंचा सकते।’
व ण मु कुराए। ‘म आपको या आपके श य को कोई नुकसान प ंचाना भी नह
चाहता, गु जी।’
व श ने चैन क सांस ली। ‘ मा कर, अगर मने आपको तकलीफ प ंचाई हो तो।
ले कन मुझे एक सुर त थान क ज़ रत थी। हम तुरंत यहां से चले जाएंग।े ’
‘इसक भी ज़ रत नह है,’ व ण ने शां त से कहा। ‘म आपको बाहर नह
नकालना चाहता। म आपक मदद करना चाहता ं, गु जी।’
व श हैरान रह गए। ‘ या आपके लए अयो या राजवं शय क मदद करना गैर-
कानूनी नह है?’
‘हां, है। ले कन हमारी जा त का एक सव च कानून भी है, जसके सामने सरे
सारे नयम र हो जाते ह। और वही हमारे अ त व का मु य मकसद है।’
व श ने समझने का दखावा करते ए हां म सर हलाया, हालां क वह वधा म
थे।
‘आप हमारा यु नारा जानते ह गेः हर क मत पर वजय… जब हमारे सर पर यु
के बादल मंडराते ह तो हम अपने सारे नयम को अनदे खा कर दे ते ह। और, अब यु शु
होने ही वाला है, म …’
व श उ ह दे ख रहे थे, पूरी तरह से घबराए ए से।
व ण मु कुराए। ‘कृपया ये मत सो चए क मुझे नह पता मेरा वायुपु भतीजा,
आ म म रात को या करने आता है। वो सोचता है क वो अपने काका को मूख बना
सकता है।’
व श पीछे को ए, मानो उनक आंख से कोई पदा उठा हो। ‘हनुमान?’
‘हां। उसके पता मेरे चचेरे भाई ह।’
व श च क गए, ले कन उ ह ने संयत लहज़े म सवाल कया। ‘ या वायु केसरी
आपके भाई ह?’
‘हां।’
व ण को हनुमान और व श के बीच का संबंध पता था। ब त साल पहले गु ने
उनके भतीजे क मदद क थी। उ ह ने उस बारे म कुछ नह कहा। वो जानते थे क अभी
हालात ज टल ह।
‘आप कौन हो?’ व श ने आ खरकार पूछा।
‘मेरा पूरा नाम व ण र नाकर है।’
अचानक, हर बात समझ आ गई। व श उनके सरे नाम क मह ा जानते थे। उ ह
म मल गए थे। श शाली म । वो भी संयोगवश।
अब सफ एक ही काम करना रह गया था। व श ने अपनी दा हनी कोहनी को बाय
हाथ से पकड़ते ए, दा हने हाथ क मु से माथा छू कर, व ण जा त को परंपरागत तरीके
से णाम कया। उ ह ने स मान से ाचीन अ भवादन भी दोहराया। ‘जय दे वी मो हनी!’
व ण ने एक भाई क तरह, व श क बांह पकड़ ल और जवाब दया, ‘जय दे वी
मो हनी!’
जब सीता क आंख खुली तब तक अंधेरा हो चुका था। उनक पलक भारी हो रही थ ।
उनके ह ठ से ह क सी कराह नकली।
उ ह एक घबराहट भरी चीख सुनाई द । ‘द द … आप ठ क तो हो न…? मुझसे बात
करो…’
वो उ मला थी।
‘म ठ क ं, उ मला…’
उनके पता ने धीमे से छोट ब ची को डांटा। ‘उ मला, अपनी बहन को आराम करने
दो।’
सीता ने अपनी आंख खोलकर, कई बार पलक झपका । ब त सी मशाल क
रौशनी से कमरा भरा पड़ा था। उससे उनक आंख च धया ग । उ ह ने अपनी पलक बंद
होने द । ‘ कतनी दे र… म यूं…’
‘पूरा दन, द द ।’
सफ एक दन? मुझे तो काफ समय लग रहा था।
उनके पूरे बदन म दद हो रहा था। सवाय उनके बाय कंधे के। और उनक कमर के।
वो सु थे।
दद नवारक। शायद अ नी कुमार ने औष ध द ह गी।
सीता ने फर अपनी आंख खोल । धीरे से। रौशनी को धीरे से अपनी आंख म आने
दे ते ए। अपनी पुत लय को व थत करते ए।
उ मला ब तर के पास खड़ी थी, दोन हाथ से चादर को पकड़े ए। उसक गोल
आंख आंसु से भरी थ । आंसू उसके चेहरे पर बह रहे थे। उनके पता, जनक, अपनी
छोट बेट के पीछे खड़े थे। सामा यतः उनके शांत चेहरे पर आज चता क लक र थ । वो
अभी एक गंभीर बीमारी से उबरे थे। उ ह ऐसा तनाव नह लेना चा हए था।
‘बाबा…’ सीता ने अपने पता से कहा। ‘आपको आराम करना चा हए… आप अभी
भी कमज़ोर…’
जनक ने न म अपना सर हलाया। ‘तुम मेरी ताकत हो। ज द से व थ हो जाओ।’
‘आप अपने क म जाइए, बाबा…’
‘म चला जाऊंगा। तुम आराम करो। बात मत करो।’
सीता ने अपने प रवार से परे दे खा। समी च वहां खड़ी थी। और अ र नेमी भी।
सफ वही थे जो शांत दखाई दे रहे थे। परेशान ए बना।
सीता ने गहरी सांस ली। उ ह अपना बढ़ता गु सा महसूस हो रहा था। ‘समी च…’
‘जी, राजकुमारी,’ समी च ने तुरंत ब तर के पास आकर कहा।
‘मेरा, रथ…’
‘जी, राजकुमारी।’
‘मुझे वो… दे खना है…’
‘जी, राजकुमारी।’
सीता ने यान दया क अ र नेमी सहज हो गए थे। उनके चेहरे पर ह क सी
मु कान थी। शंसा वाली मु कान।
‘आपको या लगता है, कौन आपको मारना चाहता है?’ अ र नेमी ने पूछा।
रथ घटना को पांच दन हो चुके थे। सीता ब तर पर बैठने लायक हो गई थ ।
थोड़ा ब त चल भी लेती थ । वो एक सपाही क तरह खा रही थ , जससे ज द से अपना
ऊजा तर बढ़ा, सजग हो सक। पूरी तरह सही होने म कुछ स ताह लगने वाले थे।
उनक बा बांह पर गलप बंधी थी। उनक कमर पर नीम का गाढ़ा लेप लगा आ
था, जसम को शका को त करने क बूट भी मली ई थी। उनके शरीर पर कई
जगह छोट -छोट प यं बंधी थ , जससे उनके घाव और खर च ज द से ठ क हो सक।
‘इसका पता लगाने के लए ोमकेश होने क ज़ रत नह है,’ सीता ने
लोककथा के लोक य जासूस का नाम लेते ए कहा।
अ र नेमी ह के से हंस दए।
रथ सीता के अयुरालय के बड़े से श वर म लाया गया था। सीता ने पूरी तरह उसक
जांच क थी। काम ब त सफाई से कया गया था।
सरी कार क लकड़ी से दो मु य छड़ को बदल दया गया था। वो लकड़ी दे खने
म रथ क बाक लकड़ी के ही समान थी। दख तो मज़बूत रही थी। ले कन, वा तव म थी
कमज़ोर। उन छड़ पर जो क ल ठ कने के नशान थे वो ताज़े थे, हालां क जानबुझकर
पुरानी क ल का ही इ तेमाल कया गया था। जब प हये स त ज़मीन पर तेज़ी से मुड़ रहे
थे, तो उनसे पड़ने वाले दबाव से वो छड़ टक से टू ट गई। छड़ क क ल नीचे ज़मीन पर
जाकर धंसी, जससे तेज़ी से घूमते प हये अचानक से जाम हो गए। और रथ उन छड़ पर से
पलटकर र जाकर का।
काम ब त सफाई से कया गया था।
जसने भी ये कया था उसम ब त स रहा होगा। ये ज़ र कई महीन पहले कया
गया होगा, या शायद साल पहले। इसका पुराना दखना ब त ज़ री था, जससे कमी
पकड़ म न आ सके। जससे मृ यु को घटना का नाम दया जा सके। न क ह या का। सीता
ने महज़ क ल ठु कने के नशान दे खकर पूरे षड् यं को समझ लया था।
रथ सीता का था। तो यक़ नन ल य भी वही थ । वही एक अकेली थ जो म थला
और इसके मन के बीच क राह क कावट थ । उ मला शाद करके वैसे भी चली ही
जानी थ । और जनक… खैर। सीता के जाने के बाद, बस कुछ ही समय क बात होती।
वो वाकई खुश क मत रही थ । घटना आखरी मोड़ पार करने के तुरंत बाद घट
थी, जससे घुमाव क वजह से सीता का शरीर रथ क दशा से वपरीत जाकर गरा था।
नह तो, वो रथ के प हय और धातु के नीचे कुचल जात । इससे घटना थल पर ही उनक
मृ यु हो गई होती।
‘आप या करना चाहती ह?’ अ र नेमी ने पूछा।
सीता के मन म इस घटना के पीछे षड् यं कारी को लेकर कोई शंका नह थी। ‘म
तो उनक तरफ दो ती का हाथ बढ़ाने वाली थी। सच क ं तो वो शाही प रवार के मुख भी
बन सकते थे। आ खरकार, मेरी योजना बड़ी है। मुझे या चा हए था, सफ अपने पता और
बहन क सुर ा और अ छ दे खभाल। और मेरे नाग रक क दे खभाल। बस इतना है।
उ ह ने ऐसा य कया?’
‘इंसान लालची होते ह। वो मूख होते ह। वो हालात को गलत आंकते ह। और वैसे
भी, याद रखो, मलयपु के अलावा और कोई आपक वशेष नय त के बारे म नह
जानता। शायद, वो आपको भ व य के शासक और बड़े खतरे के प म दे खते ह गे।’
‘गु व ा म कब वापस आने वाले ह?’
अ र नेमी ने कंधे उचकाए। ‘म नह जानता।’
तो इसे हम खुद ही सुलझाना होगा।
‘आप या करना चाहती ह?’ अ र नेमी ने दोहराया।
‘गु व ा म सही थे। उ ह ने एक बार मुझसे कहा था… कभी इंतज़ार मत करो।
पहले अपना हसाब चुकता करो।’
अ र नेमी मु कुराए। ‘घर म घुसकर मारना?’
‘म इसे सावज नक प से नह कर सकती। म थला एक यु का भार नह झेल
सकता।’
‘आपके मन म या है?’
‘ये एक घटना ही जान पड़नी चा हए, जैसे मेरी घटना थी।’
‘हां, ऐसा ही होगा।’
‘और हमला मु य आदमी पर नह हो सकता।’
अ र नेमी ने योरी चढ़ा ।
‘मु य आदमी बस रणनी तकार है। और वैसे भी, म उस पर सीधे हार नह कर
सकती… मेरी मां ने मना कया था… हम उसके दा हने हाथ पर वार करना चा हए। जससे
वो योजनाएं पूरी कराने का साम य खो बैठे।’
‘सुलोचन।’
सुलोचन संक या का धान मं ी था। सीता के चाचा कुश वज का व ासपा । वो
आदमी जो अपने राजा का हर काम करता था। सुलोचन के बना कुश वज अपा हज हो
जाएगा।
सीता ने हां म सर हलाया।
अ र नेमी का चेहरा प थर क तरह स त हो गया था। ‘काम हो जाएगा।’
सीता ने कोई त या नह द ।
अब, आप वाकई व णु बनने के का बल ह, अ र नेमी ने सोचा। जो व णु अपने
लए नह लड़ सकता, वो अपने लोग के लए कैसे लड़ेगा।
जब सीता सरी ओर प ंची तो बादल छं टने लगे। वो अचानक से ठहर ग , अपने घोड़े को
रोकते ए। उनका मुंह खुला रह गया। आ य और स मोहन म।
‘ भु के नाम पर, इसे बनाया कैसे गया होगा?’
जटायु सीता क ओर मुड़कर मु कुराए और उ ह हाथ से आगे बढ़ने का इशारा
कया। उ ह ने ज द से आगे मुड़कर चलना शु कर दया। उ ह पुल पर सावधान रहने का
श ण मला था।
आगे उस च ान म एक वशालकाय गुफा बनी ई थी। लगभग पं ह मीटर ऊंची
और लगभग पचास मीटर गहरी गुफा च ान के बाहरी कनारे पर बनी थी, एक सतत पं
म, उसका आधार और छत धीरे-धीरे ऊपर क तरफ बढ़ रहे थे, य क यह ढांचे के शीष
तक जा रही थी। इस लए ये उस च ान म सड़क का काम कर रही थी। इसक घुमावदार
सड़क मशः नीचे से शु होकर च ान म दो सौ मीटर ऊपर शीष तक प ंच रही थी।
ले कन इस लंबी गुफा, जो च ान क सतह पर घुमावदार पं म अंदर ही अंदर बढ़ रही थी,
के लए च ान का अंद नी भाग उसके सड़क और छत का काम कर रहा था। वो सफ एक
रा ता ही नह थी। गुफा के अंदर ब त से नमाण काय भी ए थे, वही च ान क घुमावदार
रेखा म ही। इनम नाग रक के लए घर, कायालय, कान और सरी इमारत बनी ई थ ।
यह आ व कारक नमाण, च ान के अंद नी भाग म गहराई तक जा रहा था, जसम
अग यकूटम म रहने वाले दस हज़ार मलयपु नवास करते थे। बाक के मलयपु च ान के
शीष पर रहते थे। इसके अ त र न बे हज़ार मलयपु भारत क महान भू म पर अपने
व भ श वर म रह रहे थे।
‘कोई फ टक जैसे कठोर प थर म ऐसा नमाण कैसे कर सकता है?’ सीता ने
पूछा। ‘वो भी च ान क सतह पर, जो पूरी तरह सीधी खड़ी है? ये तो भगवान का ही काय
हो सकता है!’
‘मलयपु भगवान, वयं भु परशु राम का ही त न ध व करते ह,’ जटायु ने कहा।
‘हमसे बाहर कुछ नह है।’
जैसे ही पुल से उतरकर जटायु च ान म बनी गुफा के वेश ार पर प ंचे, वे फर से
अपने घोड़े पर सवार हो गए। गुफा क छत इतनी ऊंची थी क उसम आराम से घुड़सवार
सै नक वेश कर सकता था। उ ह ने सीता को भी अपने घोड़े पर चढ़ते ए दे खा। ले कन वो
आगे नह चल । वह शंसा से गुफा के कनारे पर बनी मुंडेर को दे ख रही थ , जो सड़क के
दा हनी ओर बनी थी। उन पर क गई कलाकारी कसी का भी यान उस गहरी खाई से हटा
सकती थी, जससे बचने के लए ये मुंडेर बनाई गई थी। मुंडेर अपने आप म लगभग दो
मीटर ऊंची थी। इसके बीच-बीच म तंभ बने थे, जनके बीच का थान रौशनी आने के लए
खुला छोड़ा गया था। हर तंभ के बीच म म य क च अं कत था।
‘बहन,’ जटायु फुसफुसाए।
सीता अपना घोड़ा बा ओर बने चार मं ज़ला घर क ओर बढ़ा चुक थ , जो गुफा
क अंद नी ओर था। उ ह ने वापस अपना यान जटायु पर क त कया।
‘वचन दो, बहन,’ जटायु ने कहा, ‘आप न तो झझकोगी न पीछे मुड़ोगी, भले आगे
कुछ भी हो जाए।’
‘ या?’ सीता ने योरी चढ़ा ।
‘मुझे लगता है अब म आपको समझ गया ं। आप जो दे खने वाली ह, हो सकता है
उससे आप भावुक हो जाएं। ले कन आप क पना भी नह कर सकत क हम मलयपु के
लए आज का दन कतना खास है। कसी भी चीज़ से पीछे मत ह टएगा। वनती है।’
इससे पहले क सीता आगे कोई सवाल पूछ पात , जटायु आगे बढ़ गए। जटायु ने
अपना घोड़ा दा हनी ओर बढ़ाया, जहां से सड़क आराम से घूमते ए ऊपर क ओर जा रही
थी।
सीता ने भी अपने घोड़े को उसी दशा म ड़ लगाई।
और तभी, नगाड़ क आवाज़ आने लगी।
जैसे ही रा ता आगे खुला, उ ह ने सड़क क दोन ओर ब त से लोग को पं म
खड़े दे खा। उनम से कसी ने भी अंगव नह पहन रखा था। केरल के लोग ऐसा तब करते
ह जब वो कसी मं दर म दे वी या दे वता क पूजा करने जाते ह। अंगव नह पहनने का
मतलब होता है क वो अपने दे व और दे वी के दास ह। और, आज उ ह ने वो इस लए नह
पहना था य क उनक जी वत दे वी आज अपने घर पधार रही थ ।
नय मत अंतराल पर, ढोल वाले कपड़े क र सी के सहारे अपने कंध पर बड़े-बड़े
ढोल टांगे खड़े थे। सीता को दे खते ही उ ह ने एक लय म, उद्बोधक वर म ढोल बजाना
शु कर दया। हर ढोल वाले के सामने एक वीणा वादक भी खड़ा था, जो ढोल क ताल से
ताल मलाकर अपने तार के सुर छे ड़ रहे थे। बाक क भीड़ अपने घुटन पर झुक ई थी,
अपना सर झुकाए। और, वो मं ो चार कर रहे थे।
उनके श द हवा म तैर रहे थे। प और सट क।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै सा णे नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, उनके सा य को णाम
सीता, अपलक उनको दे ख रही थ । उ ह समझ नह आ रहा था क या कर।
उनका घोड़ा भी ठहर गया था।
जटायु ने अपने घोड़े को ख चा और सीता के पीछे आ गए। उ ह ने टक- टक क
आवाज़ नकाली और सीता के घोड़े ने चलना शु कर दया। आगे, शीष क तरफ ह क
सी उतराई-चढ़ाई थी।
और इस कार, सीता, आगे बढ़ने लग ।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै म यये नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, भु म य को णाम
सीता का घोड़ा धीरे-धीरे, ले कन बना झझके आगे बढ़ रहा था। भीड़ म अ धकांश
चेहर पर भ के भाव थे। कुछ क आंख से आंसू भी बह रहे थे।
कुछ लोग आगे आए, टोकरी म गुलाब क पंखु ड़यां लए। उ ह ने वो हवा म उछाल
द । अपनी दे वी सीता पर फूल क बरसात करते ए।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै कुमाया नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, भु कुमा को णाम
एक म हला आगे आई, अपने नवजात पु को गोद म उठाए। वो ब चे को घोड़े क
रकाब के पास लाकर, उसका माथा सीता के पैर पर लगाने लगी।
घबराई और ाकुल सीता ने पूरी को शश करके खुद को पीछे हटने से रोका।
सीता के नेतृ व वाला दल सड़क पर आगे बढ़ता जा रहा था, च ान के शीष क
ओर।
नगाड़े, वीणा, मं ो चार… सब लगातार चल रहा था।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै वारा यई नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, दे वी वाराही को णाम
उनके आगे, घुटन के बल बैठे कुछ लोग ने अपना सर ज़मीन पर रखा आ था,
उनके हाथ आगे क तरफ फैले ए थे। भावना के आवेग म उनका शरीर कांप रहा था।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै नर स हाया नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, भु नर स हा को णाम
ह क ढलानदार गुफा आगे च ान के शीष पर खुल रही थी। मुंडेर वशालकाय शीष
के गद घूम गई। मोह से बंधे लोग गुफा के रा ते सीता के पीछे आ रहे थे।
च ान के शीष के बड़े भाग म सु नयो जत सड़क और ब त सी कम ऊंचाई क
इमारत बनी ई थ । ग लय के दोन ओर आटे से कनारी बनाकर, उ ह फूल और नीचे
घाट से बड़ी मेहनत से लाई गई खास म से सजाया गया था। नय मत अंतराल पर आटा
और गहराई तक, बड़े पेड़ क जड़ तक जा रहा था। इस च ानी, कठोर पयावरण म
सावधानी से वृ उगाकर सहजता लाने का यास कया गया था।
शखर पर दो वशाल मं दर आमने-सामने थे। ये दोन मलकर परशुरामे र मं दर
का प रसर बना रहे थे। एक लाल रंग का मं दर महादे व, भु को सम पत था। सरा,
सफेद मं दर छठे व णु, भु परशु राम को सम पत था।
उस े क सरी इमारत को जानबूझकर कम ऊंचाई का रखा गया था, कोई भी
परशुरामे र मं दर से ऊंची नह थी। कुछ म कायालय थे और कुछ म घर। मह ष व ा म
का घर शीष के कोने म था, हरी-भरी वाद के ठ क ऊपर।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै वामनाये नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, भु वामन को णाम
मं ो चार जारी था।
एक कृशकाय वृ म हला को दे खकर जटायु क सांस क ग । उनके खुले ए
सफेद बाल हवा म लहरा रहे थे, वह री पर एक चबूतरे पर बैठ थ । उनक ग वत,
आ या मक आंख सीता पर टक थ । जब क आनं दत उंग लयां वीणा के तार छे ड़े ए
थ । अ पूणा दे वी। पछली बार उ ह तब ही दे खा गया था, जब वो कई साल पहले
अग यकूटम म आई थ । आज वो अपने घर से बाहर नकली थ । वो सावज नक प से
अपनी वीणा बजा रही थ , अपनी कसम को तोड़ते ए। एक भयानक कसम, जो उनके प त
ने उ ह दलाई थी। ले कन आज कसम तोड़ने क खास वजह थी। महान व णु कोई रोज़-
रोज़ अपने घर नह पधारते ह।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै मो हनीयाई नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, दे वी मो हनी को णाम
कुछ शु तावाद मानते ह क महादे व और व णु एक ही समय पर अ त व म नह
आ सकते। एक समय पर या तो पछले व णु क जा त के साथ महादे व अ त व म रह
सकते ह, या पछले महादे व क जा त के साथ व णु। एक ही समय पर बुराई के वनाश
और अ छाई के चार क या ज़ रत आन पड़ेगी? इस लए कुछ लोग दे वी मो हनी को
व णु के प म वीकार नह करते। यक़ नन, मलयपु ब मत के साथ थे और वो दे वी
मो हनी को व णु के प म मानते थे।
मं ो चार जारी था।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त मै परशुरामाया नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, भु परशु राम को णाम
सीता ने व ा म के नज़द क आने पर, अपने घोड़े क लगाम ख चकर उसे रोका।
सर से अलग, उ ह ने अपना अंगव पहना आ था। अग यकूटम के सारे मलयपु अब
च ान के शखर पर थे।
सीता ने घोड़े से उतरकर, स मान से झुकते ए व ा म के पैर छु ए। उ ह ने सीधे
खड़े होकर णाम क मु ा म अपने हाथ जोड़े। व ा म ने अपना दा हना हाथ उठाया।
संगीत, मं ो चार, हर हरकत तुरंत बंद हो गई।
शीष पर सौ य हवा चल रही थी। हवा क मधुर आवाज़ सब सुन पा रहे थे। ले कन
अगर कोई मन से सुनना चाहता, तो शायद दस हज़ार धड़कते दल क धड़कन को सुन
सकता था। और, अगर कसी के पास द श होती, तो एक भावुक म हला के रोते दल
क आवाज़ सुन पाता, जो खामोशी से अपनी खो चुक मां को याद कर रही थी।
एक मलयपु पं डत व ा म के पास अपने हाथ म दो कटोरे लए आया। एक म
गाढ़ा लाल लेप था; और सरे म उतना ही गाढ़ा सफेद लेप। व ा म ने अपनी तजनी और
अना मका उंग लयां सफेद लेप म डु बो और फर म यमा उंगली लाल लेप म।
फर उ ह ने अपनी कलाई अपनी छाती पर रखी और बुदबुदाये, ‘महादे व, भु
और व णु, भु परशु राम क कृपा से।’
उ ह ने रंग वाली अपनी तीन उंग लयां सीता क भ ह के बीच रख , और उ ह
ऊपर बाल क तरफ ले गए, बाहरी उंग लय को खोलते ए। एक शूल के आकार का
तलक सीता के माथे पर उभर आया था। उसक दोन बाहरी रेखाएं सफेद थ , और बीच क
रेखा लाल।
अपने हाथ के इशारे से, व ा म ने मं ो चार शु करने का संकेत दया। दस
हज़ार आवाज़ एक सुर म मं ो चार कर रही थ । हालां क इस बार मं भ था।
ऊं नमोः भगवते व णुदेवाय
त यै सीतादे वीयायी नमोः नमः
महान भु व णु को णाम
णाम, दे वी सीता को णाम
अ याय 15
दे र शाम को, सीता शां त से भु परशु राम मं दर म बैठ थ । अकेली। उ ह ने अकेले रहने
क वनती क थी।
वशाल परशुरामे र मं दर का प रसर फ टक च ान के शीष पर करीब एक सौ
पचास एकड़ म फैला आ था। क म मानव न मत, वगाकार झील थी, जसके तल म वही
लाल-जामुनी शैवाल उगी ई थी। इससे उ ह ‘खून से भरी’ वही तीन धाराएं याद आ ग , जो
उ ह ने गु त झील म दे खी थ । शैवाल को यहां उगाया गया था, जससे वो इस थर जल म
बची रह सक। इस झील म इस च ान पर बसे पूरे शहर का पानी जमा कया जाता था। घर
तक पानी को घुमावदार रा ते पर बछ न लय के मा यम से प ंचाया जाता था।
परशुरामे र प रसर के दोन मं दर इस झील के सामने बने ए थे। एक भु को
सम पत था और सरा भु परशु राम को।
भु के मं दर के फ टक ढांचे पर लाल प थर क पतली परत चढ़ाई गई थी,
जसे बड़ी र से जहाज़ के मा यम से यहां लाया गया था। इसका आधार मज़बूत था,
लगभग दस मीटर ऊंचाई का, पी ठका के प म, जस पर मु य मं दर का ढांचा खड़ा कया
गया था। आधार क बाहरी द वार पर ऋ षय और ऋ षका क आकृ त बनी थी। क म
बनी चौड़ी सी ढ़यां वशालकाय बरामदे तक ले जाती थ । मु य मं दर के आसपास खूबसूरत
जाली लगी ई थी, जो ता म ण क पतले तार से बनी थी; इसका रंग वाभा वक लाल-
नारंगी के बजाय भूरे रंग का था। जाली म छोटे , वगाकार आले बने थे, जनम धातु के द ये
रखे थे। उसम एक साथ जलते ऐसे हज़ार द ये आसमान म झल मलाते तार के समान लग
रहे थे।
अलौ कक।
हज़ार धातु के द य के अलावा, वहां सौ तंभ वाला वशाल क भी था। ब त
बलशाली यं के मा यम से हर तंभ को सट क गोलाकार बनाया गया था। इन भावशाली
तंभ ने मु य मं दर क मीनार को थाम रखा था, जो लगभग पचास फुट ऊंची थी। ऊंचे
मं दर क मीनार पर चार तरफ अतीत के महान पु ष और म हला क आकृ तयां उकेरी
गई थ । इनम हर समूह के लोग थे, जैसे संगमत मल, ारकावासी, मानसकुल, आ द य,
दै य, वसु, असुर, दे व, रा स, गंधव, य , सूयवंशी, चं वंशी, नागा और सरे समूह से भी।
भारत क इस वै दक सं कृ त के पूवज।
क के बीच बीच गभ-गृह था। यह पर भु और दे वी मो हनी, ज ह वो ेम
करते थे, क मानवाकार मू तयां था पत थ । उनक सामा य मू तय से भ इन मू तय के
हाथ म कोई ह थयार नह थे। उनके भाव शांत, सौ य, ेमपूण और आकषक थे। भु
और दे वी मो हनी ने एक- सरे के हाथ पकड़े ए थे।
वगाकार झील के सरी तरफ, भु के मं दर के सामने, भु परशु राम का मं दर
था। वो लगभग भु के मं दर जैसा ही था, बस खास भ ता थी-- भु परशु राम के
मं दर के फ टक ढांचे पर सफेद संगमरमर क परत चढ़ ई थी। सौ तंभ वाले क के
गभ-गृह म छठे व णु और उनक प नी धारणी क मानवाकार मू तयां लगी ई थ । और, ये
मू तयां सश थ । भु परशु राम ने अपना भयानक फरसा और दे वी धारणी अपने बाय
हाथ म लंबा सा धनुष और दा हने हाथ म एक तीर थामे बैठ थ ।
अगर सीता ने यान दया होता, तो वह दे वी धारणी के हाथ म पकड़े धनुष पर लगा
नशान पहचान जात । ले कन वो अपने ही याल म खोई थ । एक तंभ के सहारे बैठ ई।
भु परशु राम और दे वी धारणी क मू तय को दे खते ए।
उ ह मह ष व ा म के कहे श द याद आ रहे थे, जो आज उ ह ने सीता का
अग यकूटम म वागत करते ए कहे थे। क वो नौ साल तक इंतज़ार करगे। जब तक क
तारे मलयपु यो त षय क गणना के हसाब से पं ब नह हो जाएंग।े और फर, उ ह
पूरी नया के सामने व णु घो षत कर दया जाएगा। उ ह बताया गया क तब तक उनके
पास तैयारी करने का समय होगा। श ण का। ये समझने का क उ ह करना या है। और
इस सबम मलयपु उनका मागदशन करगे।
यक़ नन, वो प व पल आने तक इसे गु त रखना हर मलयपु का कत था।
जो खम ब त यादा था।
उ ह ने मुड़कर दे खा। वेश ार क तरफ। कोई भी मं दर म नह आया था। उ ह
अकेला छोड़ दया गया था।
उ ह ने भु परशु राम क मू त को दे खा।
वह जानती थ क हर मलयपु व णु के प म उनक संभावना से सहमत नह
था। ले कन ो धत व ा म के स मुख ये बात कहने का साहस कसी म नह था।
गु व ा म मुझे लेकर इतने व त य ह? वो ऐसा या जानते ह, जो म नह
जानती?
सीता को अग यकूटम म आए ए एक महीना हो चुका था। व ा म और उनके बीच कई
लंबे संवाद ए।
उनम से कुछ पूण प से शै णक थे; व ान पर, यो तषी और औष ध पर। सरे
कुछ उनक शंका , सवाल , पु ष व और ी व, समानता और अनु म, याय और
आज़ाद , उदारवाद और आदे श जैसे मु पर थे। वाद- ववाद सीता के नज़ रये से ब त
ानव क थे। ले कन जा त था पर आधा रत एक चचा ब त भावशाली थी।
श क और छा ा दोन का मानना था क वतमान म था पत जा त था को पूरी
तरह से ख म कर दे ना चा हए। क ये पूरे भारत को नुकसान प ंचा रही है। अतीत म, कसी
क जा त का नधारण उसके गुण, यो यता और काय पर आधा रत था। ये था लचीली थी।
ले कन समय के साथ, पा रवा रक ेम ने इस थापना क न व हला द । अ भभावक
सु न त करने लगे क उनके ब चे उ ह क जा तय म रह। यहां तक क गुण पदानु म भी
जा तय , समूह के व ीय और राजनी तक भाव से नधा रत होने लगा। कुछ जा तयां
‘ऊंची’ और कुछ जा तयां ‘नीची’ बन ग । समय के साथ, जा त था कठोर और ज म-
आधा रत हो गई। यहां तक क व ा म को भी य पैदा होने पर कई मु कल का
सामना करना पड़ा, जब उ ह ने ा ण, वा तव म ऋ ष बनने का नणय लया। इस
कठोरता ने समाज म मतभेद पैदा कर दया। रावण ने इस मतभेदता का फायदा उठाते ए
स त सधु पर क ज़ा कर लया।
ले कन इसका समाधान या हो सकता था? मह ष का मानना था क पूरी तरह से
समानता आधा रत समाज बनाना संभव नह था। ये आकषक हो सकता है, ले कन हमेशा
का प नक आदश ही रहेगा। लोग शै क और वहा रक मता म भ - भ होते ह।
तो उनके काम के े और उपल धयां भी भ ही ह गी। समय-समय पर समानता के लए
कए जाने वाले यास से हसा और कोलाहल ही उ प होगा।
व ा म का ज़ोर आज़ाद पर था। उनके सपने को साकार करने क लए पहले
कसी इंसान को उ ह समझना होगा। उनक योजना के मुता बक अगर शु अ भभावक
के घर ज मी संतान म ा ण बनने क द ता हो तो उसे ा ण बनने क अनुम त होनी
चा हए। अगर य पता क संतान म ापा रक गुण हो तो, उसे वै य का श ण
मलना चा हए।
उनका मानना था क बजाय अकृ म समानता था पत करने के इस ज म
आधा रत प रचय-प को ख म करना चा हए। समाज म हमेशा से पदानु म रहा है। वो तो
कृ त म भी है ले कन वो वाही हो सकते ह। ऐसा भी हो सकता है क य यो ा म
कुलीनता हो, और ऐसे ही, द शु म भी। समाज म अंतर यो यता के आधार पर होना
चा हए। इतना ही। न क ज म आधा रत।
इसे हा सल करने के लए, व ा म पा रवा रक ढांचे को पुन न मत करने का
ताव रखते ह। इसके लए यो यता के खलाफ जाने वाले वंशानु म ढांचे से समाज को
मु कराना होगा।
वो सुझाते ह क ज म के समय ही ब च को दे श ारा आव यक प से गोद ले
लेना चा हए। ब च को ज म दे ने वाले अ भभावक को उ ह सा ा य को स पना ही होगा।
रा य ही उन ब च को खलाएगा, श ा दे गा और उनक तभा का पोषण करेगा। फर,
पं ह साल क उ म, उनका शारी रक, मान सक और बौ क यो यता का इ तेहान
लया जाएगा। प रणाम के मुता बक, उ ह उ चत जा त उपल ध करा द जाएगी। आगे के
श ण से उनक वाभा वक यो यता को नखारा जाएगा। समय आने पर उ ह नयु
जा त के अ भभावक ारा एक इ तेहान के मा यम से गोद ले लया जाएगा। ब चे कभी
अपने ज म दे ने वाले अ भभावक को नह जान पाएंगे, सफ गोद लए ए अपने जा त-
अ भभावक को ही अपना मानगे। ज म दे ने वाले अ भभावक भी अपनी संतान क नय त
नह जान पाएंगे।
सीता मान रही थ क यह यायो चत व था होगी। ले कन वो ये भी महसूस कर
रही थ क यह क ठन और अवा त वक होगी। वो क पना भी नह कर पा रही थ क
अ भभावक अपनी मज़ से सा ा य को ब चा स पने को तैयार ह गे। हमेशा के लए। या
क वो कभी यह जानने क को शश बंद कर पाएंगे क उनके ब च का या आ। यह
अ वाभा वक था। दरअसल, समय तो ऐसा था क भारतीय से सबक भलाई के लए
आधारभूत कानून का पालन कराना भी मु कल था। ये तो सोचना याली पुलाव पकाने
जैसा लग रहा था क समाज हत म वो इतना बड़ा याग करगे।
व ा म ने ज़ोर दया क समाज म ये बदलाव लाना व णु का काम है। समाज को
इसके लए तैयार करना। सीता ने जवाब दया क पहले व णु तो इससे सहमत हो पाएं। गु
ने भरोसा दलाया क वो ज़ र सहमत ह गे। उ ह ने शत लगाई क एक समय सीता खुद
इससे सहमत होकर, इसे ‘ यायपूण समाज के हत’ म लागू भी करवाएंगी।
जब उ ह ने जा त था पर अपनी चचा ख म क , तो सीता उठकर इसी वषय म
सोचते ए बगीचे के छोर क तरफ बढ़ । बगीचा च ान के शीष के कनारे पर था। उ ह ने
गहरी सांस ली, उन त य को सोचते ए जनसे वो अपने गु क ता वत णाली को
चुनौती दे सक। उ ह ने नीचे घाट को दे खा, आठ सौ पचास फुट नीचे। था मराव णी के बारे
म कुछ दे खकर वह हैरान रह ग । उ ह ने सोचना बंद कर दया। और घूरने लग ।
मने इस पर पहले यान य नह दया?
नद घाट से बाहर नकलती दखाई नह दे रही थी। घाट के अंडाकार पूव छोर पर
जाकर, था मराव णी धरती म ही कह गायब हो रही थी।
भु के नाम पर यह या है…
‘नद गुफा म जा रही है, सीता,’ व ा म शां त से अपनी छा ा क तरफ बढ़ आए
थे।
व ा म और सीता ाकृ तक गुफा के मुहाने पर खड़े थे, जो च ान क सतह पर शीष थ
बनी ई थी।
था मराव णी के बहाव से भा वत होकर, सीता ने वो थान दे खने क इ छा जताई
थी, जहां घाट के पूव छोर पर नद यूं जा ई प से गायब हो रही थी। र से दे खने पर ऐसा
लग रहा था मानो नद धरती पर बने कसी छे द म समा रही हो। ले कन, जब वो कुछ
नज़द क आ तो उ ह गुफा का संकु चत मुहाना दखाई दया। लंबवत गुफा। यह अतुलनीय
था क एक पूरी नद इस छोटे से छ म जा रही थी। गुफा से आती नद क गड़गड़ाती
आवाज़ जता रही थी मानो ज़मीन के नीचे बांस धड़ाधड़ गर रहे ह ।
‘ले कन यह पानी जाता कहां है?’ सीता ने पूछा।
सीता और व ा म के पीछे मलयपु सपा हय क एक टु कड़ी खड़ी थी। उनक
बात सुनने क सीमा से बाहर। ले कन इतने समीप क ज़ रत पड़ने पर तुरंत हा ज़र हो
सक।
‘नद पूव क तरफ ही बह रही है,’ व ा म ने कहा। ‘वह म ार क खाड़ी म
गरती है, जो भारत और लंका को अलग करता है।’
‘ले कन यह इस छे द से कैसे नकलती है, जहां ये जाकर गर रही है?’
‘यह लगभग इस दस कलोमीटर लंबी भू मगत गुफा से होकर बाहर नकलती है।’
सीता क आंख हैरानी से फैल ग । ‘ या ये गुफा इतनी लंबी है?’
व ा म मु कुराए। ‘आओ। म आपको दखाता ं।’
व ा म सीता को गुफा के मुंह क तरफ लेकर गए। वह झझक । यह वेश ब
से महज प चीस मीटर र था। इस अ वाभा वक नमाण ने नद क ग त नाटक य प से
बढ़ा द थी। यह चंडता से भू मगत माग पर दहाड़ती तीत हो रही थी।
व ा म ने गुफा के मुहाने के बा ओर सी ढ़य क तरफ इशारा कया। वो यक़ नन
मानव न मत थ । सीढ़ यां ढलावदार द वार को काटकर बनाई गई थ । दा हनी ओर एक
मुंडेर बनाई गई थी, जससे सी ढ़य से उतरते समय फसलने से बचा जा सके।
तेज़ी से उतरती नद से नकले पानी और झाग क ब छार आंख को धुंधला रही थ ।
इससे सी ढ़यां खतरनाक प से फसलनी भी हो गई थ ।
व ा म ने पानी क छ ट से खुद को बचाने के लए अपना अंगव सर पर रख
लया। सीता ने भी ऐसा ही कया।
‘संभलकर आना,’ व ा म ने सी ढ़य क तरफ जाते ए कहा। ‘सी ढ़यां
फसलभरी ह।’
सीता हां म सर हलाते ए अपने गु के पीछे चल । मलयपु सपाही भी उनके
पीछे ही थे।
वे खामोशी से अपने रा ते बढ़ते जा रहे थे। सावधानी से उतरते ए। गुफा म और
नीचे उतरते ए। सीता अपने अंगव म समट ई थ । सूरज क रौशनी छनती ई सी
नीचे आ रही थी। ले कन सीता क उ मीद थी क आगे उतरने पर उ ह अंधेरा मलेगा।
लगातार पड़ती ब छार उ ह मशाल तक जलाने का अवसर नह दे ने वाली थ ।
सीता हमेशा से अंधेरे डरती रही थ । और यहां डर के साथ यह फसलभरी जगह भी
थी। च ान का अ प सा दखता ढांचा और उतरती नद क ज़ोरदार गजना वहां के माहौल
को डरावना बना रही थी।
उनक मां क आवाज़ उ ह बुला रही थी। उनके मन म दबी एक याद से।
अंधेरे से मत डरो मेरी ब ची। काश का एक ोत होता है। वो कभी भी छन
सकता है। ले कन अंधेरे का कोई ोत नह होता। उसका अपना अ त व होता है। यही
अंधेरा उसका माग है, जसका कोई ोत नह हैः ई र।
ानपूण श द। ले कन ये श द सीता को इस समय कोई राहत नह प ंचा रहे थे।
उनके दय को भय क सहरन पकड़ती जा रही थी। बचपन क कोई याद उनके ज़ेहन म
ताज़ा हो रही थी। अंधेरे भूतल म बंद होने पर चूह क आवाज़ उनके दल क धड़कन को
बढ़ा रही थ । वो सांस भी नह ले पा रही थ । उ ह ने अपनी चेतना को वतमान म ख चा।
बीच-बीच म दखती व ा म के सफेद कपड़ क झलक वहां के खालीपन को भर रही
थी। अचानक, सीता ने उ ह बाय मुड़ते दे खा। वह भी उनके साथ मुड़ । सीता के हाथ मुंडेर
को छोड़ ही नह रहे थे।
अचानक तेज़ काश से अ व थत ई उनक आंख ने कुछ दे र बाद अपने सामने
खड़े व ा म को पहचाना। उनके हाथ म मशाल थी। उ ह ने मशाल सीता को पकड़ाई।
उ ह ने दे खा क एक मलयपु सै नक ने व ा म को सरी मशाल द ।
व ा म ने फर से आगे चलना शु कर दया, नीचे उतरते ए। अब सी ढ़यां
यादा चौड़ी हो गई थ । हालां क नद क आवाज़ द वार से टकराते ए हर ओर गूंज रही
थी।
छोट गुफा के हसाब से ब त तेज़ आवाज़ है।
ले कन सीता को यादा कुछ दखाई नह दे रहा था य क उनके पास सफ दो
मशाल थ । ज द ही, सारे मलयपु सपा हय ने अपनी-अपनी मशाल से उस जगह को
रौशनी से भर दया।
सीता क सांस अटक गई।
भु कृपा कर!
छोट सी गुफा एक कंदरा म खुल रही थी। और, यह काफ बड़ी थी। सीता क अब
तक दे खी ई हर गुफा से बड़ी। शायद चौड़ाई छह सौ मीटर रही होगी। सी ढ़यां आगे नीचे
उतरती जा रही थ , जब क छत क ऊंचाई लगभग वही रही। जब वो कंदरा के आधार म
प ंचे तो वहां से छत लगभग दो सौ मीटर क ऊंचाई पर थी। इस भू मगत जगह म तो कसी
राजा के रहने के लए महल भी बन सकता था। और तब भी जगह बची रह जाएगी। इस
कंदरा म था मराव णी दा हनी ओर बह रही थी, पूरे वेग से नीचे गरती ई।
‘जैसा क आप दे ख सकती ह नद इस गुफा को साल से कांट-छांट रही है,’
व ा म ने समझाया। ‘इस लए यह आकार म बड़ी है, है न?’
‘मने अब तक इससे बड़ी गुफा नह दे खी!’ सीता ने आ य से कहा।
वहां बा ओर एक बड़ा सफेद पहाड़ था। वही वहां क रौशनी का राज़ था। उस पर
पड़ती असं य मशाल का काश त ब बत हो पूरी गुफा को रौशन कर रहा था।
‘म हैरान ं क यह पहाड़ कस चीज़ का बना होगा, गु जी,’ सीता ने कहा।
व ा म मु कुराए। ‘यहां ब त से चमगादड़ रहते ह।’
सीता ने तुरंत घूमकर ऊपर दे खा।
‘वो सब अभी सो रहे ह,’ व ा म ने कहा। ‘अभी दन का समय है। वो रात म
जागते ह। और ये पहाड़ स दय से यहां आते चमगादड़ के एक होने से ही बना है।’
सीता ने मुंह बनाया। ‘छ !’
व ा म क हंसी वहां के खालीपन म गूंज गई।
तब सीता क नज़र व ा म के पीछे कसी चीज़ पर पड़ । र सी क ब त सी
सी ढ़यां द वार पर लटक ई थ ; इतनी सारी क सीता ने उ ह गनने का याल छोड़ दया।
ऊंचाई पर कसी जगह पर लटक ई, नीचे ज़मीन तक।
सीता ने इशारा कया। ‘वो या है, गु जी?’
व ा म पीछे मुड़े। ‘ऊपर कोन म प य के कुछ सफेद, अ गोलाकार घ सले
ह। वो घ सले ब मू य ह। वो जस पदाथ से बने ह, वो ब मू य है। इन सी ढ़य से हम उन
तक प ंच पाते ह।’
सीता हैरान थ । ‘वो घ सले ऐसे कौन से ब मू य पदाथ से बने ह गे? ये सी ढ़यां तो
ब त ऊपर तक जा रही ह। इतनी ऊंचाई से गरने से तो मृ यु न त ही होगी।’
‘वा तव म कुछ मारे भी जा चुके ह। ले कन फर भी वो ब लदान बेकार नह गया।’
सीता ने योरी चढ़ा ।
‘हम रावण पर कसी नयं ण क आव यकता थी। घ सल का वो पदाथ हम वो
ताकत दे ता है।’
सीता अपनी जगह जम ग । जो याल उ ह पछले कुछ समय से परेशान कर रहा
था, वापस सर उठा रहा थाः मलयपु और लंकावा सय के बीच या संबंध है?
‘म कसी दन आपको इस बारे म समझाऊंगा,’ व ा म ने हमेशा क तरह उनके
वचार को पढ़ते ए कहा। ‘अभी मुझ पर भरोसा रखो।’
सीता खामोश रह । ले कन उनके चेहरे से पता चल रहा था क वो परेशान थ ।
‘हमारी यह भू म,’ व ा म ने आगे कहा, ‘प व है। उ र म हमालय से जुड़ी ई,
भारतीय महासागर म अपने पैर धोने वाली और प मी व पूव सागर इसक भुजाएं ह, और
इस दे श क म प व है। इस धरती म पैदा होने वाला हर इंसान अपने शरीर म भारत
माता क इस प व भू म को धारण करता है। यह दे श यूं बुरी हालत म नह रहना चा हए। ये
हमारे महान पूवज का अपमान है। हम फर से भारत को महान बनाना ही होगा। अपने
महान पूवज क इस भू म को महान बनाने के लए म कुछ भी क ं गा। और, व णु भी।’
एक और साल बीत गया था। सीता अब चौबीस साल क थ । पछले साल वह भारत के
प मी कनारे पर अ छ तरह घूम चुक थ । बलू च तान के समु कनार से लेकर केरल,
जहां अग यकूटम था। आ खरकार वो म थला लौट आई थ और वहां अपने शासन के
काय म लग गई थ । उनके पास जो भी समय बचता, उसे वो अपनी छोट बहन, उ मला
और पता, जनक के साथ बताना पसंद करत ।
कुश वज काफ समय से म थला नह आए थे। वो संक या म भी नह थे। ये
अजीब बात थी। सीता ने उनके बारे म पता लगाने क को शश भी क , ले कन उ ह कुछ
पता नह चल पाया था। उ ह बस यही पता था क अपने भावशाली धान मं ी क दल
का दौरा पड़ने से ई मृ यु के बाद, संक या का काय काफ भा वत आ था।
अब तक सीता को रा धका के बन बताए आने क आदत हो गई थी। और वो
अपनी दो त से मलकर खुश थ , जो कई महीन बाद उनसे मलने आई थी।
‘अयो या के राजकुमार के जाने के बाद, तु हारे गांव म अब या हाल है?’
रा धका हंसी। ‘सब ठ क है...’
‘ या तुम ठ क हो?’
‘म वहां...’
‘और राम अयो या म कैसा कर रहे ह?’
‘उ ह नाग रक सुर ा अ धकारी बना दया गया है। और, भरत राजनै तक संबंध के
मुख।’
‘ह म... तो रानी कैकेयी क अभी भी अयो या पर पकड़ है। भरत को अभी से
युवराज बनाने क तैयारी शु हो गई है। नाग रक सुर ा अ धकारी मुख होना क ठन और
कृत न काय है।’
‘ये तो महज़ दखने म। ले कन राम ब त ही बेहतरीन काम कर रहे ह। उ ह ने
अपराध दर को भी काफ सी मत कर दया है। इससे वो लोग के बीच लोक य हो गए ह।’
‘उ ह ने यह चम कार कैसे कर दखाया?’
‘उ ह ने बस कानून का पालन कया। हां!’
सीता खुद पर हंसी। ‘राम के कानून पालन करने से कैसे कोई फक आ सकता है?
लोग को भी तो उसे मानना होगा न। और भारतीय तो यह कभी नह कर सकते। दरअसल,
मुझे लगता है क हम नयम तोड़ने म मज़ा आता है। बना बात के। ऐसे ही मज़े के लए।
भारतीय को ये बात समझाने म तो कोई पागल ही हो सकता है। हां, कानून का पालन
करना चा हए। ले कन इसी से सब ख म नह हो जाता। कभी-कभी अपना मकसद हा सल
करने के लए आपको कानून का गलत उपयोग भी करना पड़ता है।’
‘म असहमत ं। राम ने एक नया ही रा ता दखाया है। बस ये सु न त करके क
वो भी कानून के त जवाबदे ह ह। अयो या के शाही प रवार को भी इसम कोई छू ट नह है।
इससे आम लोग म बड़ा फक पड़ा। अगर कानून राजकुमार से बढ़कर है, तो फर उनसे
बढ़कर य नह ?’
सीता आसन पर पीठ टकाकर बैठ ग । ‘ दलच प...’
‘वैसे,’ रा धका ने पूछा, ‘गु व ा म कंहा ह?’
सीता झझक ।
‘म बस इस लए पूछ रही ं क हम लगता है गु व श व णु के प म राम के
नाम का ताव रखने प रहा गए ह।’
सीता हैरान रह ग । ‘गु व ा म भी प रहा म ही ह।’
रा धका ने आह भरी। ‘चीज़ ज द ही बगड़ जाएंगी। तु ह अपने मन म कोई योजना
तैयार रखनी होगी, जससे तुम गु व ा म को समझा सको क राम व णु बन जाएं और
तुम उनक साझेदार।’
सीता ने गहरी सांस ली। ‘कोई खबर क वायुपु या करगे?’
‘मने तु ह पहले ही बता दया था। वे गु व श का साथ दगे। सवाल बस ये ह क
वो गु व ा म से या कहगे। आ खरकार, वो मलयपु मुख ह, और पछले व णु के
त न ध।’
‘म हनु भैया से बात क ं गी।
अ याय 17
‘ले कन द द ,’ उ मला ने मुंह फुलाते ए कहा। अपनी बड़ी बहन सीता से बात करते ए
उ ह ने अपनी आवाज़ धीमी कर रखी थी। ‘आप वंयवर के लए तैयार य ? म नह
चाहती क आप जाएं। म आपके बना या क ं गी?’
उ मला और सीता पेड़ पर बनी, अ छ तरह से ढक ई मचान पर बैठ थ । उनके
पैर एक ओर लटके ए थे। सीता का धनुष उनके हाथ क प ंच म था, और उसी के पास
तीर से भरा आ तरकश। गम दोपहर म जंगल काफ शांत और उन दा था। ऐसा लग रहा
था, मानो अ धकांश जानवर सोने चले गए थे।
सीता ने मु कुराकर उ मला को अपने पास ख च लया। ‘मुझे कभी तो शाद करनी
ही होगी, उ मला। अगर पताजी ऐसा ही चाहते ह, तो मेरे पास उनक इ छा मानने के
अलावा कोई चारा नह है।’
उ मला नह जानती थ क सीता ने अपने पता को वयंवर क तैयारी करने के लए
राजी कर लया था। वयंवर एक ाचीन परंपरा थी, जसम हन के पता संभा वत वर
को एक छत के नीचे एक करते थे; और हन को उन उप थत वर म से एक वर चुनना
होता था। या, फर वहां एक तयो गता आयो जत क जाती थी। यहां सीता ने सारे बंध
संभाल लए थे। उ ह ने व ा म को भी मना लया था क वो कसी भी तरह राम को
वयंवर के लए म थला ले आएं। म थला से गए कसी औपचा रक आमं ण को अनदे खा
कया जा सकता था। आ खरकार, अयो या य म थला जैसे अपने से छोटे सा ा य के
साथ संबंध बनाना चाहेगा? ले कन अयो या श शाली मलयपु मुख क वयंवर म भाग
लेने क वनती को मना नह कर सकता था। और वयंवर, जसका आयोजन खुद सीता के
गु , व ा म संभाल रहे थे, वहां सीता राम को वर के प म चुन सकती थ । व ा म को
भी यह वचार पसद आया था। इस तरह, वो व श को हटाकर, उनके अनुयायी राम पर
य भाव डाल सकते थे। यक़ नन, उ ह सीता क सरी योजना के बारे म नह पता था।
राम के साथ साझेदारी के प म व णु का कत नभाना।
भला हो हनु भैया का! उ ह ने कतना जबरद त सुझाव दया।
उ मला ने अपना सर सीता के कंधे पर टका दया। हालां क, अब वो युवती थ ,
ले कन उनके लाड़ भरे पालन-पोषण ने उ ह हमेशा अपनी बड़ी बहन पर नभर रखा था। वो
अपनी पोषक और संर क के बना जीने क सोच भी नह सकती थ । ‘ले कन...’
सीता ने उ मला को मज़बूती से पकड़ लया। ‘तु हारी भी शाद होगी। ज द ही।’
उ मला ने शरमाकर सरी तरफ मुंह फेर लया।
सीता को तभी कोई आवाज़ सुनाई द । उ ह ने जंगल क तरफ गौर से दे खा।
सीता, समी च और म थला से बीस सपा हय का एक दल, म थला से एक दन
र जंगल म एक आदमखोर बाघ का शकार करने आए थे, जो आसपास के े म
गांववाल को परेशान कर रहा था। उ मला ने सीता के साथ आने क जद क थी। जंगल के
बीच म पांच मचान बनाई गई थ । हर मचान पर म थला के सपाही तैनात थे। खुली जगह
पर, चारे के प म बकरी को बांधा गया था। मौसम को दमाग म रखते ए, पास ही म एक
गड् ढा खोदकर, उसम पानी भर दया गया था। अगर मांस नह तो, बाघ पानी के लालच म
वहां आ सकता था।
‘सुनो द द ,’ उ मला फुसफुसा , ‘म सोच रही थी... ’
सीता के ह ठ पर उंगली दे खकर उ मला खामोश हो ग । फर, सीता ने मुड़कर
दे खा। दो सपाही मचान के सरी छोर पर बैठे थे। हाथ से इशारा करते ए सीता ने उ ह
नदश दए। वो खामोशी से उनके पास खसक आए। उ मला पीछे हट ग ।
सीता ने अपना धनुष उठा लया और बना आवाज़ कए तरकश से तीर ख च लया।
‘आपने कुछ दे खा, दे वी?’ एक सपाही फुसफुसाया।
सीता ने न म सर हला दया। और फर, अपने बाएं कान पर हाथ लगाकर कुछ
सुनने क को शश क ।
सपा हय ने भी अपने कान पर ज़ोर डाला ले कन कुछ सुनाई नह दया। उनम से
एक ने धीमी आवाज़ म कहा, ‘मुझे कोई आवाज़ नह सुनाई दे रही।’
सीता ने तीर कमान पर चढ़ा लया और फुसफुसा , ‘आवाज़ के खामोश हो जाने म
ही कुछ बात है। बकरी ने म मयाना बंद कर दया है। वह डर से जम गई है। म शत लगा
सकती ं क बकरी कसी सामा य खतरे क वजह से नह जम गई है।’
सपा हय ने भी अपने धनुष आगे करके उन पर तीर चढ़ा लए। तेज़ी और शां त से।
सीता को लगा क उ ह प य के पीछे धा रय क झलक दखाई द । उ ह ने दे र
तक यान लगाया। धीरे-धीरे उ ह पेड़ के पीछे छाया म भूरी-संतरी और काली धा रयां
दखाई दे ने लग । उ ह ने अपनी आंख को टकाया। धा रय म हलचल ई।
उ ह ने हलचल क तरफ इशारा कया।
सपा हय ने भी उसे दे ख लया। ‘वो अ छ तरह छपा आ...’
सीता ने हाथ से चुप रहने का इशारा कया। उ ह ने कमान पकड़कर, धीरे से ख ची,
मौका मलते ही तीर चलाने को तैयार।
कुछ भारी, लंबे पल के बाद, बाघ नज़र म आ गया, धीरे से पानी के गड् ढे क तरफ
बढ़ता आ। उसने बकरी को दे खा, ह के से दहाड़ा और वापस अपना यान पानी पर लगा
दया। बकरी आतंक से ज़मीन पर गर पड़ी, उसके मू ाशय से पेशाब नकल गया। उसने
अपनी आंख बंद करके खुद को नय त के हवाले कर दया। हालां क, बाघ क उस लालच म
दलच पी नह थी। वो पानी क तरफ छलांग लगाने वाला था।
सीता ने कमान को पूरी तरह पीछे ख च लया।
अचानक, दा हनी ओर वाली मचान से कोई ह क सी आवाज़ आई।
बाघ ने तुरंत चौक ा होकर ऊपर दे खा।
सीता ने मन ही मन कोसा। उनका कोण सही नह था। ले कन वो जानती थ क
पल भर म ही बाघ वहां से भाग जाएगा। उ ह ने तीर चला दया।
तीर साफ कए ए जंगल से नकलता ए पशु के कंधे म जा धंसा। जो उसे गु सा
दलाने के लए तो काफ था, ले कन हताहत करने के लए नह ।
बाघ ज़ोर से दहाड़ा। ले कन अचानक ही उसक दहाड़ बीच म बंद हो गई। एक तीर
ने जानवर के गले म गहरे उतरते ए उसका मुंह बंद कर दया। लगभग आधे पल म ही
अठारह तीर उस बाघ म जा धंस।े कुछ आंख पर, कुछ पेट म। तीन तीर ने उसक जांघ म
धंसकर, उ ह अलग कर दया। पछले पैर बेकार हो जाने से, बाघ ज़मीन पर ढह गया।
म थला के सै नक ने ज द से दोबारा अपने तीर तैयार कर हमला कर दया। बीस और तीर
पहले से ही घायल पशु म जा लगे। बाघ ने आखरी बार अपना सर उठाया। सीता को
महसूस आ क वो अपनी एक सलामत आंख से सीधे उ ह ही दे ख रहा था।
भले पशु मुझे मा करना। ले कन बात तु हारे और मेरी शरण म आए गांववाल के
बीच थी।
बाघ का सर गर गया। फर कभी न उठने के लए।
भगवान करे तु हारी आ मा को फर से मकसद ा त हो।
सीता, उ मला और समी च समूह के साथ वापस लौट रहे थे। सपाही उनसे कुछ कदम पीछे
चल रहे थे। इसका ज वापस राजधानी प ंचकर मनाया जाना था।
बाघ का स मान से दाह सं कार कर दया गया था। सीता ने पहले ही प कर दया
था क पशु क खाल नह नकाली जाएगी। वह जानती थ क बहा री क नशानी के तौर
पर खाल नकालने को लेकर उनके सपा हय को हो शयारी से तीर चलाने ह गे। वो खाल
पर तीर चलाकर उसे नुकसान नह प ंचा सकते थे। इसके लए बाघ को मारने के बजाय
घायल करना पड़ता।
सीता का मकसद साफ था। वो बाघ के हमले से गांववाल को बचाना चाहती थ ।
घायल पशु इंसान के लए और यादा खतरनाक सा बत हो सकता था। सीता ने सु न त
कया था क सभी सपाही मारने के मकसद से ही तीर चलाएंगे। और बाघ का स मान से
दाह-सं कार कर दया जाएगा।
‘म समझ सकती ं क आपने वो आदे श य दया, धान मं ी,’ समी च ने कहा,
‘ले कन ये ख क बात है क हम बाघ क खाल को घर नह ले जा रहे ह। ये आपक
बहा री क महान नशानी सा बत होती।’
सीता ने समी च को दे खा, फर अपनी बहन क तरफ मुड़ । ‘उ मला, कृपया जरा
पीछे जाना।’
उ मला ने तुरंत अपने घोड़े क लगाम ख ची और उन दोन से थोड़ा पीछे चली ग ।
समी च अपना घोड़ा सीता के घोड़े के नज़द क ले आई। ‘मुझे वो कहना पड़ा,
सीता। इससे उ मला को आपक बहा री सुनाने और...’
सीता ने सर हलाकर समी च को बीच म टोका। ‘ चार और मथक गढ़ना शासन
का एक अ भ अंग होते ह। म ये समझती ।ं ले कन ऐसी कहा नयां भी मत फैला
जनक आसानी से हवा नकाली जा सके। इस शकार म मने कोई बहा री नह दखाई।’
‘ले कन...’
‘मेरा नशाना उतना अ छा नह था। वहां मौजूद लोग ये जानते ह।’
‘ले कन, सीता...’
‘हर कोई जानता है,’ सीता ने दोहराया। ‘इससे पहले भी, तुमने शकार का सारा
ेय मुझे दे दया था। सपा हय के बजाय।’
‘ले कन आप उसक हकदार...’
‘नह , म नह थी।’
‘ले कन...’
‘तु ह लगता है क तुम मेरी सेवा कर रही हो। नह समी च, ऐसा नह है। ऐसी
अनाव यक शंसा से म उन लोग म अपना स मान खो ं गी।’
‘ले कन...’
‘अपनी वफादारी को अंधभ मत बनने दो। ये मेरे लए सबसे बुरा होगा।’
समी च ने बहस करनी बंद कर द । ‘मुझे खेद है।’
सीता मु कुरा । ‘कोई बात नह ।’ फर उ ह ने पीछे मुड़कर अपनी छोट बहन को
बुला लया। वो तीन शां त से अपने रा ते बढ़ने लगे।
सीता शकार से कुछ ही दन पहले लौट थ । वयंवर क तैयारी ज़ोर-शोर से चल रही थी।
वो खुद हर काम को दे ख रही थ , जसम समी च और उनक छोट बहन, उ मला सहयोग दे
रही थ ।
सीता अपने श वर म बैठ कुछ कागजात दे ख रही थ क एक त के आने क
घोषणा ई।
‘उसे अंदर लाओ।’
दो सपाही एक त को लेकर अंदर आए। सीता ने आदमी को पहचान लया। वो
रा धका के कबीले का था।
सीता का अ भवादन करके, उसने एक संदेश सीता को पकड़ा दया। सीता ने मुहर
क जांच क । वो टू ट नह थी।
उ ह ने त को भेज दया और मुहर तोड़कर रा धका का संदेश पढ़ने लग ।
आखरी श द तक प ंचने से पहले ही उनका रोष बढ़ गया था। ले कन गु से म भी
वो नह भूली थ क उ ह या करना था। उ ह ने संदेश को आग के हवाले कया और उसे
पूरी तरह राख म बदलते दे खा।
काम हो जाने के बाद वो अपना दमाग शांत करने के लए छ जे पर आ ।
राम... गु जी के जाल म मत फंसना।
घबराई ई समी च जंगल के बीच म एक साफ कए े म खड़ी थी। अंधेरी रात म घने
जंगल से आती अ न कारी आवाज़ डर का माहौल पैदा कर रही थ ।
अतीत क याद वतमान को घेर रही थ । काफ समय बीत गया था। ब त साल।
उसने सोचा था क लोग उसे भुला चुके थे। उसे अपने हाल पर छोड़ दया गया था।
आ खरकार, म थला स त सधु म छोटा और अमह वपूण सा ा य था। उसे इसक उ मीद
नह थी। आभार का भार इस असहज पल के साथ मलकर उसके दमाग पर हावी हो रहा
था।
उसका बायां हाथ यान म रखी तलवार के मूंठ पर था।
‘समी च, तु ह समझ आया मने या कहा?’ आदमी ने पूछा। उसक भारी आवाज़
खास थी। साल से तंबाकू और म दरा के सेवन का प रणाम। साथ ही बेकाबू होकर च लाने
का भी उसम योगदान था।
आदमी प तया धनी था। महंगे कपड़े। अ छ तरह तहाए ए। नरम, करीने से
काढ़े ए, सफेद बाल। उंग लय पर अंगू ठय का जमावड़ा। उसके चाकू और तलवार पर भी
र न जड़े ए थे। यहां तक क यान पर भी सोने का पानी चढ़ा था। उसके झुर दार माथे के
बीच म गाढ़ा, काले रंग का तलक लगा आ था।
काली वद पहने बीस लोग क एक टु कड़ी कुछ री पर खड़ी थी। उनक बात
सुनने से र। उनक तलवार सुर ा से यान म थ । वो जानते थे क समी च से कोई खतरा
नह था।
वो अगले दन गु व ा म को संक या म लेने के लए प ंची थी। उसे इस
आक मक मुलाकात के लए कोई यास नह करने पड़े थे। अभी नह । वो अपने भु को
याद कर रही थी क वो अक पन को वापस भेज दे ।
‘ले कन, भु अक पन...’ समी च ने अहसजता से कहा। ‘...इराइवा का संदेश...’
‘जो पहले बताया गया था उसे भूल जाओ,’ अक पन ने कहा। ‘अपना वचन याद
रखो।’
समी च ने अकड़ से कहा। ‘म कभी अपना वचन नह भूलूंगी, भु अक पना।’
‘पता है क तुम नह भूलोगी।’ अक पन ने अपने हाथ उठाए और उदासीनता से
अपने संवरे ए नाखून दे खे। अ छ तरह कटे ए, रंगे ए। उन पर ह का, धया रंग लगा
आ था। पतली, गुलाबी उंग लय को हालां क काले रंग से रंगा गया था। ‘तो, राजकुमारी
सीता का वयंवर होगा...’
‘आपको बात दोहराने क ज़ रत नह है,’ समी च ने बीच म बात काट । ‘वो हो
जाएगा। वो राजकुमारी सीता के हत म है।’
अक पन मु कुराया। शायद समी च के मोटे दमाग म कुछ आ गया था। ‘हां, वो तो
है।’
म थला का शाही बगीचा अयो या के शाही बगीचे जतना आलीशान तो नह था। इसम
थानीय पेड़-पौध और फूल को ही लगाया गया था। इस बगीचे क खूबसूरती का ेय
इसके माली को दया जा सकता था, इसे धन से नह लगन से सजाया गया था। इसका
ा प लय म और करीने से तराशा गया था। घास का मखमली कालीन, उस पर भ रंग के
फूल क सजावट और खासतौर से तराशे गए वृ इसक सुंदरता म चार चांद लगा दे ते थे।
कृ त ने तालमेल म खुद को तुत कया था।
सीता और उ मला बगीचे के पछले भाग म इंतज़ार कर रही थ । सीता अपनी छोट
बहन को भी अपने साथ ले आई थ , जससे उ मला को ल मण के साथ समय बताने का
मौका मल सके। इससे उ ह भी राम के साथ अकेले समय बताने को मलता, बना ल मण
के।
समी च दरवाजे पर अयो या के राजकुमार को लेकर आने के लए गई थी। ज द ही
वो राम और ल मण को लेकर आ प ंची।
शाम का आसमान स री हो चला था... सीता ने तुरंत अपने भटकते मन और
धड़कते दल पर लगाम लगाई।
‘नम ते, राजकुमारी,’ राम ने सीता से कहा।
‘नम ते, राजकुमार,’ कहकर सीता अपनी बहन क ओर मुड़ । ‘ या मने अपनी
छोट बहन, उ मला का प रचय आपसे करवाया?’ राम और ल मण क ओर इशारा करते
ए, सीता ने कहा, ‘उ मला, ये अयो या के राजकुमार राम और राजकुमार ल मण ह।’
‘म कल इनसे मला था,’ ल मण ने बड़ी सी मु कान के साथ कहा।
उ मला ने ल मण क ओर न ता से मु कुराकर हाथ जोड़े, और फर राम का
अ भनंदन कया।
‘म राजकुमार से अकेले म बात करना चाहती ं, फर से,’ सीता ने कहा।
‘जी,’ समी च ने तुरंत कहा। ‘म उससे पहले आपसे कुछ नवेदन कर सकती ? ं ’
समी च ने सीता को एक ओर ले जाकर, उनके कान म कहा, ‘सीता, कृपया याद
र खए, मने जो कहा। राम ब त सीधे ह। और उनका जीवन सच म खतरे म है। कृपया उ ह
घर जाने के लए कह द जए। ये हमारा आखरी मौका है।’
सीता समी च क बात अनसुनी करते ए, ह के से मु कुरा ।
समी च ने चलने से पहले, एक नज़र राम पर डाली, और फर उ मला का हाथ
पकड़कर चली गई। ल मण भी उ मला के पीछे -पीछे चले गए।
राम सीता क तरफ बढ़े । ‘राजकुमारी, आप मुझसे य मलना चाहती थ ?’
सीता ने समी च और बाक लोग के जाने का इंतज़ार कया। उनक नज़र राम क
कलाई पर बंधे उसी लाल धागे पर ग । वह मु कुरा ।
उ ह ने वो पहन लया।
‘एक ण ठह रए, राजकुमार,’ सीता ने कहा।
सीता एक वृ के पीछे ग , झुक और वहां से, कपड़े से ढक ई भारी व तु ले
आ । राम उ सुकता से च के। सीता ने कपड़ा हटाया, और एक खास, सामा य से लंबा धनुष
नकाला। ब त आलीशान था वह धनुष, उसके सरे अंदर क ओर मुड़े ए थे, यानी इसक
लंबाई और भी यादा रही होगी। राम ने सावधानी से धनुष क पकड़ के दोन ओर बने
उभार को दे खा। उन पर अ न को त ब बत करती ई आकृ त बनी ई थी। अ न दे वता
को ऋ वेद के पहले अ याय म भी पूजनीय दे वता के प म व णत कया गया है। हालां क,
अ न क यह खास आकृ त राम को कुछ प र चत लग रही थी, जस तरह से इसके कनारे
फैले ए थे।
सीता ने कपड़े के थैले से लकड़ी का एक आधार नकाला और उसे ज़मीन पर रख
दया। उ ह ने राम को दे खा। ‘इस धनुष को ज़मीन पर नह रखा जा सकता।’
राम पूरी तरह स मो हत थे। वो सोच रहे थे क इसम ऐसी या खास बात है। सीता
ने धनुष का नचला सरा लकड़ी के आधार पर टकाया, अपने पैर से संतुलन बनाते ए।
सरे सरे को नीचा करने के लए सीता ने अपने दा हने हाथ का इ तेमाल कया। सीता के
कंध और मांसपे शय म आए खचाव से राम समझ सकते थे क धनुष काफ भारी था।
अपने बाएं हाथ से सीता ने कमान को ख चते ए ऊपर बांधा। उसे ऊपरी सरे तक प ंचाने
से पहले सीता ने कुछ पल ककर सांस ली। श शाली धनुष पर कमान चढ़ाना भी काफ
मु कल होता है। सीता ने बाएं हाथ से धनुष को पकड़कर, उंग लय से कमान ख ची,
जससे ज़ोरदार व न उ प ई।
कमान क आवाज़ से राम समझ गए क यह धनुष ब त खास था। ‘वाह। यह तो
कमाल का धनुष है।’
‘यह सव े है।’
‘ या यह आपका है?’
‘ऐसा धनुष मेरा नह हो सकता। म सफ इसक भारी ं। जब म म ं गी, तब
इसक ज़ मेदारी कसी सरे उपयु पा को स प द जाएगी।’
धनुष के उभार पर अ न क आकृ त को दे खते ए राम ने अपनी आंख सकोड़ ।
‘यह अ न कुछ कुछ... ’
सीता ने बीच म कहा। ‘यह धनुष कभी उनका था, जनक हम दोन आराधना करते
ह। आज भी यह उ ह का है।’
राम ने सदमे और हैरानी से धनुष को दे खा, उनका संदेह अब पु ता हो चुका था।
सीता मु कुरा । ‘हां, यह पनाक है।’
पनाक महादे व, भु का यात धनुष, जसे सबसे ताकतवर माना जाता था।
कहा जाता था क इसे कई धातु के म ण से बनाया गया था, जसे बाद के भा रय ने
इतने संभालकर रखा था क वह कसी भी कार के रण से बच पाया था। यह भी माना
जाता था क इस धनुष क साज-संवार काफ ज टल थी। इसक पकड़, उभार और घुमाव
पर नय मत प से खास कार का तेल लगाना पड़ता। सीता ने यक़ नन काम को ब त
अ छे से कया था, य क धनुष आज भी नया तीत हो रहा था।
‘ म थला को पनाक का संर ण कैसे मला?’ राम ने खूबसूरत धनुष से नज़र हटाए
बना पूछा।
‘यह लंबी कहानी है,’ सीता ने कहा। ‘ले कन म चाहती ं क आप इसके साथ
अ यास कर ल। इसी धनुष का इ तेमाल कल वयंवर क तयो गता म होने वाला है।’
राम ने अपने क़दम पीछे कर लए। वयंवर के कई तरीके थे। कभी-कभी हन
वयं वर का चयन कर लेती थी। या फर वह कसी तयो गता का आयोजन कर सकती
थी। वजेता का ववाह हन से होता। ले कन कसी उ मीदवार को मदद के उ े य से लाभ
प ंचाना अपारंप रक था। दरअसल, यह नयम के व था।
राम ने इंकार म सर हलाया। ‘ पनाक को छू पाना एक गवपूण अवसर होगा, उस
धनुष को छू ना, जसे कभी भु ने छु आ था। ले कन म यह कल ही क ं गा। आज नह ।’
सीता ने योरी चढ़ा । या? या यह वा तव म मुझसे शाद करना चाहते ह?
‘मुझे लगा क आप मुझसे ववाह करना चाहते हो।’ सीता ने कहा।
‘म क ं गा। ले कन म कानून पर चलते ए ही ऐसा क ं गा। म नयम के अनुसार
ही जीतूंगा।’
सीता अपना सर हलाते ए मु कुरा । यह आदमी सच म खास ह। या तो ये
इ तहास म ऐसे इंसान के प म दज ह गे, जनका सबने शोषण कया हो। या, इ तहास के
महान पु ष म इनका नाम लया जाएगा।
वो खुश थ क उ ह ने शाद के लए राम को चुना था। ले कन दल के एक कोने म
उ ह चता भी थी। इस लए क वो जानती थ क ये इंसान खी होगा। ये नया इ ह ख
प ंचाएगी। और जतना वो उनके जीवन के बारे म जानती थ , वो काफ ख सह भी चुके
थे।
‘ या आप असहमत ह?’ राम ने कुछ नराशा से पूछा।
‘नह , म नह ।ं म आपसे भा वत ं। राजकुमार राम, आप खास ह।’
राम शरमा गए।
वो फर से शरमा रहे ह...!
‘म कल सुबह, आपके तीर चलाने क ती ा क ं गी,’ सीता ने मु कुराते ए कहा।
‘अ र नेमी जी, या वयंवर के बारे म मलयपु क योजना के बारे म मुझे वो सब पता है,
जो पता होना चा हए?’ सीता ने पूछा।
अ र नेमी सवाल से हैरान थे।
‘म कुछ समझा नह , सीता,’ उ ह ने संभलते ए कहा।
‘रावण को नमं ण कैसे मला?’
‘हम भी इस बारे म आपक तरह कुछ नह पता है, सीता। आप ये बात जानती ह।
हम इसम आपके चाचा क करामात दखाई दे रही है। ले कन कोई सबूत नह है।’
सीता ने संदेह से दे खा। ‘सही है... कोई सबूत नह है।’
अ र नेमी ने गहरी सांस ली। ‘आप अपने मन क बात कह य नह दे त , सीता...’
सीता आगे झुक और सीधे अ र नेमी क आंख म दे खते ए कहा, ‘म जानती ं
क रावण का प रवार क ौज से है।’
अ र नेमी च के। ले कन ज द ही संभल गए। उ ह ने अपना सर हलाया, उनके
चेहरे पर आहत होने के भाव थे। ‘महान भु परशु राम के नाम पर, सीता। आप ऐसा सोच
भी कैसे सकती ह?’
सीता उदासीन थ ।
‘आपको या लगता है गु व ा म क अब मलयपु मुख के अलावा कोई और
पहचान भी है? सच म?’
अ र नेमी कुछ उ े जत लग रहे थे। ये उनका गुण नह था। सीता जानती थ क
उ ह ने कमज़ोर कड़ी पर वार कया था। वो इस तरह का वातालाप व ा म से नह कर
सकती थ । उ ह इसके लए सही जगह पर वार करना था। अ र नेमी उन थोड़े लोग म से
थे, जो व ा म को मना सकते थे। उ ह उन पर अगला वार खामोश रहकर करना था।
अभी के लए।
‘हम कभी भी रावण को ख म कर सकते ह,’ अ र नेमी ने कहा। ‘हमने उसे जी वत
रखा है य क हम उसक मृ यु से आपको मदद प ंचाना चाहते ह। सारे भारतीय म
आपक पहचान व णु के प म करवाने के लए।’
‘मुझे आप पर भरोसा है।’
अब अ र नेमी खामोश हो गए। वधा से।
‘और म ये भी जानती ं क आपने राम के लए कोई योजना बनाई है।’
‘सीता, सु नए...’
सीता ने अ र नेमी क बात काट द । अब धमक दे ने का समय आ गया था। ‘राम
का जीवन भले ही मेरे हाथ म नह है। ले कन मेरा अपना जीवन मेरे हाथ म है।’
घबराए ए अ र नेमी नह जानते थे क या कह। सीता के बना मलयपु क
सारी योजना म म मल जाएगी। उ ह ने सीता म काफ कुछ नवेश कया था।
‘मने चुन लया है,’ सीता ने ढ़ता से कहा। ‘अब आपको फैसला करना है।’
‘सीता...’
‘मुझे और कुछ नह कहना है, अ र नेमी जी।’
वयंवर का आयोजन शाही दरबार क बजाय, धम भवन म कया गया था। य क म थला
म शाही दरबार सबसे बड़ा दरबार नह था। महल प रसर क मु य इमारत, जसम धम
भवन था, को राजा जनक ने म थला व व ालय को दान दे दया था। धम भवन म
नय मत प से व भ वषय पर वाद- ववाद और चचाएं आयो जत क जाती थ , जैसे
धम क कृ त, कम का धम से संबंध, दै वीय कृ त, मानव या ा का उ े य इ या द...
धम भवन एक वृताकार इमारत म था, जो प थर और चूने से न मत थी, जसम एक
वशाल गुंबद था। गुंबद का मह व था क उसे ैण का त न ध व माना जाता था, जब क
भारत के पारंप रक मं दर शखर पौ ष का त न ध व करते थे। भवन को वृताकार म
बनाया गया था। सभी ऋ ष समान थान पर बैठते, उनम कोई ‘ मुख’ नह होता, और वे
बना कसी भय के सभी वषय पर खुलकर चचा करते।
हालां क, आज का माहौल कुछ भ था। धम भवन वयंवर क मेजबानी करने के
लए तैयार था। वेश ार के नकट तीन-परत वाली अ थायी दशक द घा लगा द गई थी।
सरे सरे पर, लकड़ी के आधार पर राजा का सहासन लगाया गया था। महान राजा म थ,
म थला के सं थापक क तमा सहासन के पीछे , एक पी ठका पर लगी थी। दो और
सहासन, जो उतने आलीशान नह थे, मु य सहासन के दाएं-बाएं रखे थे। आरामदायक
आसन क एक पं भवन के बीच म बनाई गई थी, जहां तयोगी राजा और राजकुमार
बैठने वाले थे। जब राम और ल मण, अ र नेमी के साथ वहां प ंच,े तब तक दशक द घा
पूरी तरह भर चुक थी। अ धकांश तयोगी भी अपने थान हण कर चुके थे। सं यासी के
कपड़े पहने ए, अयो या के राजकुमार को लोग पहचान नह पा रहे थे। एक ारपाल ने
उ ह दशक द घा क ओर जाने का इशारा कया, जहां पर म थला के संप और शाही लोग
बैठे थे।
अ र नेमी ने उसे बताया क वह तयोगी के साथ आए थे। ारपाल हैरान था,
ले कन वह व ा म के सेनाप त, अ र नेमी को पहचानता था, तो उसने उ ह आगे जाने
दया। आ ख़रकार, भ राजा जनक के लए, अपनी बेट के वयंवर म, य के साथ-
साथ ा ण ऋ षय को भी बुलाना असामा य नह था।
राम अ र नेमी के पीछे अपने आसन पर बैठने के लए बढ़े । वह आसन पर बैठ गए,
और अ र नेमी व ल मण उनके पीछे खड़े हो गए। सभी क नगाह उनक ओर घूम आ ।
तयोगी हैरान थे क ये साधारण से सं यासी कौन थे, जो दे वी सीता को हा सल करने क
तयो गता म भाग लेने आए थे। य प, उनम से कुछ अयो या के राजकुमार को पहचान
गए थे। तयो गय के बीच से फुसफुसाहट क आवाज़ आने लगी थ ।
‘अयो या...’
‘अयो या म थला के साथ य संबंध बनाना चाहेगा?’
हालां क, राम, सभा म चल रही खुसफुस और घूरने से अनजान थे।
उनक आंख बस भवन के क म लगी थ ; जहां एक आलीशान पी ठका पर पनाक
रखा आ था। इस पर कमान नह चढ़ थी। एक पं म कई बाण, धनुष के पास रखे ए
थे। पी ठका के सामने, ज़मीन के तर पर, एक बड़ा सा ता का मुल मा चढ़ा, जल कुंड
रखा था।
तयो गय को पहले धनुष उठाकर, उस पर कमान चढ़ानी थी, जो अपने आपम
आसान काम नह था। ले कन वा त वक चुनौती तो उसके बाद शु होनी थी। तयोगी को
जल कुंड के पास आना था। वह पानी से भरा था, जसम कुंड के कनारे से लगातार पानी
क कुछ बूंद गर रही थ । कुंड के कनारे पर एक पतली सी न लका लगी थी। पानी के
अ धक होने क थ त म, कुंड के आधार म लगी, एक सरी न लका के मा यम से जल
बाहर नकल रहा था। इससे कुंड म लगातार तरंग उ प हो रही थ , जो क से होते ए
कनार तक जा रही थ । यादा द कत यह थी क पानी अ नय मत अंतराल पर नकल
रहा था, जससे तरंग यादा और अ या शत प से बन रही थ ।
एक हलसा मछली को प हये पर लगाकर, र सी से गुंबद के सरे पर बांधा गया था।
र सी के सहारे ज़मीन से सौ मीटर क री पर मछली लटक रही थी। कम से कम, प हया
नय मत ग त से घूम रहा था।
तयोगी को नीचे अ थर पानी म मछली का त बब दे खकर, पनाक से मछली
क आंख म तीर मारना था। मछली जो ऊपर प हये के साथ घूम रही थी, और नीचे पानी म
लगातार लहर उ प हो रही थ । इस तयो गता म जो वजयी रहेगा, उसका ववाह
राजकुमारी सीता के साथ संप होगा।
सीता दरबार भवन से जुड़े तीय तल के क म बैठ थ , जो सीधे म थला के
शाही सहासन के ऊपर था, वो जाली क खड़क से छपा आ था। सीता ने राम को
तयो गय के घेरे म बैठे दे खा।
अयो या के बड़े राजकुमार इधर-उधर दे ख रहे थे। सीता को महसूस आ मानो वह
उ ह ही ढूं ढ़ रहे थे। वो मु कुरा । ‘म यहां ं, राम। आपका इंतज़ार कर रही ं। आपक जीत
का इंतज़ार...’
सीता ने यान दया क समी च वेश ार से कुछ र नाग रक अ धकारी के प म
खड़ी थी। समी च राम को घूर रही थी। उसने जालीदार खड़क क तरफ दे खा, जहां सीता
सबक नज़र से छपी बैठ थ । उसके चेहरे पर असहम त थी।
सीता ने झुंझलाहट से आह भरी। समी च को आराम क ज़ रत है। म इस हालात
को संभाल सकती ं। राम के जीवन को कोई खतरा नह है।
सीता ने वापस अपना यान अयो या के राजकुमार पर लगाया। उ ह ने दे खा क
ल मण अपने भाई के पास झुककर, कुछ फुसफुसा रहे थे। उनके चेहरे पर शरारत झलक
रही थी। राम ने अपने भाई को घूरा। ल मण ने दांत दखा दए, और कुछ और बोलकर,
पीछे सरक गए।
सीता मु कुरा । भाइय म सच म ब त ेम है। हैरानी है क पा रवा रक राजनी त के
बावजूद।
उनका यान दरबार के उद्घोषक पर गया।
‘ म थ वंश के वामी, बु मान म बु मान, ऋ षय के य, राजा जनक पधार रहे
ह!’
सभासद अपने मेजबान, म थला के राजा, जनक के स मान म खड़े हो गए। वह
दरबार के सरे ार से अंदर आए। दलच प था क परंपरा से भ , वह व ा म के पीछे
चल रहे थे। जनक हमेशा ानी पु ष और म हला का स मान करते थे। इस खास दन
भी उ ह ने अपनी परंपरा का पालन कया था। जनक के पीछे उनके छोटे भाई, संक या के
राजा कुश वज थे। जो जनक और उनके छोटे भाई के तनावपूण संबंध को जानते थे, वो
म थला के राजा क महानता से भा वत थे। उ ह ने सारे मतभेद भुलाकर इस समारोह पर
पूरे प रवार को एक कया था। बद क मती से, कुश वज ऐसा नह सोचते थे। उ ह लगता
था क उनके भाई भोले थे। वैस,े कुश वज ने अपने प े चल दए थे...
राजा जनक ने, मह ष व ा म से म थला के सहासन पर बैठने का आ ह कया,
और खुद दा हनी ओर रखे छोटे सहासन पर बैठ गए। कुश वज ने मह ष के बा ओर
आसन हण कया। ये सब सीता के जालीदार खड़क के पीछे छपे क से ठ क दो तल
नीचे था। वहां फैले अ धका रय के लए यह श ाचार म भारी भूल थी। राजा ने अपना
सहासन कसी और को दे दया था।
बैठने के अपारंप रक बंध से वहां एक हलचल सी मच गई, ले कन सीता का यान
कह और ही था।
रावण कहां है?
वो मु कुरा ।
तो मलयपु ने लंका के राजा को संभाल लया था। वो नह आने वाला था। अ छा
है।
तभी हरकारे ने वेश ार पर लगे घंटे पर ज़ोर से डंडा मारते ए सबको चुप रहने
का संकेत दया।
व ा म खंखारते ए तेज़ आवाज़ म बोले। धम भवन म व न के लए क गई
खास व था से उनक आवाज़ वहां उप थत सभी जन तक साफ-साफ प ंच पा रही थी।
‘भारत के सबसे यादा आ या मक और ववेक राजा जनक ारा नमं त सभी स मा नत
अ त थय का वागत है।’
जनक मलनसा रता से मु कुराए।
व ा म ने बोलना जारी रखा। ‘ म थला क राजकुमारी, सीता ने इस वयंवर को
गु त बनाने का नणय लया है। वह हमारे साथ यहां दरबार म उप थत नह रहगी। महान
राजा और राजकुमार, तयो गता म भाग...’
मह ष क बात शंख क ती , ककश व न से बीच म ही क गई; हैरानी क बात
थी क आमतौर पर शंख क व न मधुर होती थी। सभी ने आवाज़ क दशा म मुड़कर
दे खाः भवन के वेश ार क ओर। पं ह लंब,े बलशाली यो ा, हाथ म काला वज लए,
भवन म दा खल ए। वज पर दहाड़ते शेर का च अं कत था, मानो धधकती वाला से
बना हो। यो ा कड़े अनुशासन से चल रहे थे।
उनके पीछे दो डरावने आदमी थे। एक वशालकाय और लंबा था, ल मण से भी
यादा लंबा। वह मांसल था, ले कन उसक मांसपे शयां कसी ई, चु त थ । उसका बड़ा सा
पेट, चलते ए हल रहा था। उसके पूरे शरीर पर असामा य प से बाल थे--वह इंसान से
यादा भालू नज़र आता था। वहां उप थत जन के लए उसके अ त र बड़े कान और
कंधे परेशानी का सबब थे। वह एक नागा था। रावण का छोटा भाई, कुंभकण।
उसके पीछे गव ली चाल से चलता आ रावण था, उसका सर तना आ, पर चाल
म कुछ झुकाव था; शायद यह उसक बढ़ती उ क वजह से था। झुकाव के बावजूद, रावण
का लंबा कद और मज़बूत मांसपे शयां भावशाली थ । मांसपे शयां भले ही कुछ ढ ली और
वचा म ह क झु रयां दख रही ह , ले कन उनक ताकत अब भी वही थी। यु के घाव से
शो भत उसक वचा पर चेचक के दाग थे, शायद बचपन क कसी बीमारी के कारण। काले
और सफेद बाल वाली लंबी दाढ़ वीरतापूवक उसके भ े नशान को छपाने क को शश
कर रही थी, जब क घुमावदार मूंछ उसके डरावने चेहरे को और उभार रही थ । उसने बगनी
रंग क धोती और अंगव पहना आ था, जो नया का सबसे महंगा रंग था। उसके मुकुट
म धमकाते ए से, छह इंच लंबे दो स ग लगे थे, जो वपरीत दशा म नकल रहे थे।
दोन आद मय के पीछे पं ह और यो ा, या यूं कह क अंगर क ने भवन म वेश
कया।
रावण का दल भवन के क म गया और भु के धनुष के सामने क गया। आगे
वाले अंगर क ने ऊंची आवाज़ म घोषणा क । ‘राजा के राजा, स ाट के स ाट, तीन
जगत के शासक, भु के य, वामी रावण पधार रहे ह।’
रावण पनाक के समीप बैठे एक छोटे राजा क ओर मुड़ा। उसने धीमी गुराती
आवाज़ म, सर हलाकर इशारा कया, जसे वह अ छ तरह समझ गया। राजा तुरंत उठा,
और वहां से कसी सरे तयोगी के पीछे जाकर खड़ा हो गया। रावण आसन के पास
आया, ले कन बैठा नह । उसने अपना दा हना पैर आसन पर रखा, और घुटने पर अपना
हाथ टे ककर खड़ा हो गया। उसके अंगर क, और वह वशालकाय दै य उसके पीछे पं
बनाकर खड़े हो गए।
रावण ने आ ख़रकार एक उड़ती ई नज़र व ा म पर डाली। ‘महान मलयपु ,
अपनी बात जारी रखो।’
व ा म , मलयपु मुख ोध से तमतमा गए। उनका कभी कसी ने यूं अपमान
नह कया था। ‘रावण...’ वह गुराए।
रावण ने श थल उ ं डता से व ा म को दे खा।
मह ष ने अपने ोध को संभाल लया; उनके हाथ म एक मह वपूण काय था। वह
रावण को बाद म दे ख लगे। ‘राजकुमारी सीता वजयी राजा या राजकुमार के गले म
वरमाला पहना दगी।
व ा म अभी बोल ही रहे थे क रावण ने पनाक क ओर जाना शु कर दया।
मलयपु मुख ने रावण के पनाक के नज़द क जाते ही अपनी घोषणा पूरी क । ‘पहले
तयोगी, रावण तुम नह हो। वह राम ह, अयो या के राजकुमार।’
रावण का हाथ धनुष से कुछ इंच क री पर का। उसने व ा म को दे खा, और
फर मुड़कर दे खा क यह ऋ ष कसका नाम ले रहा था। उसने एक युवक को सं यासी के
साधारण सफेद कपड़े पहने ए दे खा। उसके पीछे एक और युवक खड़ा था, य प वह
वशाल था, और उसी के साथ अ र नेमी थे।
रावण ने पहले अ र नेमी को घूरा और फर राम को। अगर दे खने से ही कोई मर
जाता, तो रावण न त तौर पर अब तक कुछ लोग को मार चुका होता। वह व ा म ,
जनक और कुश वज क ओर मुड़ा, उसक उंग लयां गले म लटके उंगली क ह य वाले
ताबीज पर थ । वह तेज़ आवाज़ म गुराया, ‘मेरा अपमान कया जा रहा है! मुझे यहां बुलाया
ही य गया अगर आपको इन अनाड़ी लड़क को ही मेरे सामने खड़ा करना था तो?!’
जनक ने रावण से बात करने से पहले, झुंझलाते ए कुश वज को दे खा, और फर
कुछ कमज़ोर वर म कहा, ‘ये वयंवर के नयम ह, लंका के महान राजा...’
वहां एक आवाज़ गूंजी, जो बादल क गड़गड़ाहट से भी तेज़ थी; यह कुंभकण क
आवाज़ थी। ‘ब त हो गई यह बकवास!’ वह रावण क ओर मुड़ा। ‘दादा, चलो चलते ह।’
रावण ने अचानक झुककर पनाक उठा लया। इससे पहले क कोई कुछ कर पाता,
वह उस पर कमान चढ़ाकर, बाण रख चुका था। जब उसने तीर का नशाना व ा म क
ओर कया, तो वहां उप थतजन को मानो लकवा मार गया।
व ा म अपना अंगव एक तरफ फकते ए खड़े ए, इससे उप थत भीड़ डर
से जड़ हो गई। अपनी छाती पर हाथ मारते ए वह च लाए। ‘मारो, रावण!’ ऋ ष क
आवाज़ भवन म गूंज उठ । ‘बढ़ो! मारो मुझ,े अगर तुमम दम है तो!’
भीड़ के मुंह से आह नकली। डर से।
सीता सकते म थ । गु जी!
रावण ने तीर छोड़ दया। तीर व ा म के पीछे , म थ क तमा म लगा, इससे
उस तमा क नाक टू ट गई। नगर के सं थापक का अपमान। अक पनीय था।
सीता अवाक् रह ग । उसक ह मत कैसे ई?
‘रावण!’ सीता अपनी जगह से उठते ए गुरा , उनका हाथ खुद अपनी तलवार पर
प ंच गया था। उ ह एक सहा यका ने रोका, जो सी ढ़य तक उनके पीछे -पीछे आई।
‘नह , दे वी सीता!’
‘रावण रा स है...’
‘आप ाण खो दोगी...’
‘दे खए, वो जा रहा है...’ सरी सहा यका ने कहा।
सीता वापस जालीदार खड़क पर आ ग । उ ह ने रावण को धनुष, प व पनाक
को वापस पी ठका पर पटककर, ार क ओर बढ़ते दे खा। उसके पीछे -पीछे उसका
अंगर क दल भी बाहर नकल गया। इस हलचल म, कुंभकण ने, पनाक क कमान उतारी
और दोन हाथ म उठाकर उसे नमन कया; मानो वह धनुष से मा मांग रहा हो। वह तुरंत
मुड़कर, तेज़ी से भवन से बाहर चला गया। रावण के पीछे ।
जब आख़री लंकावासी भी वहां से बाहर चला गया, तो सभासद ने एक साथ
सहासन पर बैठे व ा म , जनक और कुश वज क ओर नज़र घुमा ।
व ा म ने ऐसे बात शु क मानो कुछ आ ही नह था। ‘ तयो गता क
शु आत करते ह।’
भवन म लोग यूं बैठे थे मानो वे बुत बन गए ह । व ा म ने फर से कहा, इस बार
तेज़ आवाज़ म। ‘ तयो गता क शु आत करते ह। राजकुमार राम, कृपया आगे आइए।’
राम अपने आसन से उठकर, पनाक क ओर बढ़े । उ ह ने स मान म सर झुकाया,
अपने हाथ जोड़कर णाम कया। सीता को लगा क उनके ह ठ कोई मं जप रहे थे।
ले कन इतनी र से उ ह कुछ पता नह चल रहा था।
राम ने अपनी दा हनी कलाई उठाकर, उसम बंधे लाल धागे को अपनी दोन आंख
पर लगाया।
सीता मु कुरा । क याकुमारी आपक मदद कर, राम। और वो आपके साथ मेरे
ववाह को अपना आशीवाद द।
राम ने धनुष को छु आ और कुछ दे र के रहे। फर उ ह ने म तक झुकाकर, धनुष
पर लगाया; मानो उससे आशीवाद मांग रहे ह । उ ह ने थर सांस से, सहजता से धनुष
उठाया। सीता बड़े मन से राम को दे ख रही थ , सांस रोके।
राम ने धनुष का एक सरा लकड़ी के आधार पर रखा। उनके कंध , कमर और बांह
पर पनाक के ऊपरी सरे को झुकाने के कारण तनाव साफ दे खा जा सकता था। उ ह ने
धनुष पर यंचा चढ़ा द । उनके शरीर पर यास के नशान दख रहे थे, ले कन चेहरा
भावशू य था। उ ह ने कुछ और यास से धनुष के ऊपरी सरे को झुकाया, और धनुष पर
पकड़ को मज़बूत कया। उ ह ने यंचा को कान तक ख चा; उसक टं कार बेहतरीन थी।
उ ह ने एक तीर उठाया और कुंड तक ढ़ क़दम से चलते ए गए। बना ज द के।
वह एक घुटने पर झुके, धनुष को आकाश क ओर उठाया, और सर झुकाकर पानी म दे खा;
जसम ऊपर घूमती ई मछली का त बब दखाई दे रहा था। कुंड म उठती जल तरंग,
मानो उनके मन क परी ा ले रही थ । राम ने मछली के त बब पर यान क त कया।
उ ह ने यंचा पर चढ़े ए बाण को, अपने दा हने हाथ से कुछ ख चा, उनक मांसपेशी भी
कुछ खची। उनक सांस थर और लय म थ ।
उ ह ने, बना कसी घबराहट या उ ेजना के, शां त से, यंचा को ख चकर, तीर को
छोड़ दया। क म मौजूद लोग के ने के साथ-साथ, मानो वहां सबकुछ ठहर गया था।
भवन म तीर के लकड़ी म घुसने क सट क आवाज़ आई। तीर सीधा मछली क दा हनी
आंख म लगा, जो लकड़ी के प हये पर टक थी। हवा म घूमते प हये के साथ-साथ, बाण
भी ताल मला रहा था।
सीता राहत से मु कुरा । पछले कुछ दन क सारी चताएं मट गई थ । पछले
पल का गु सा ख म हो गया था। उनक आंख राम पर टक थ , जो कुंड के पास घुटन के
बल बैठे थे, सर झुकाए, जल तरंग को दे खते ए; उनके चेहरे पर एक शांत मु कुराहट थी।
सीता का एक भाग, जो साल पहले उनक मां क मौत के साथ ही मर गया था,
धीरे-धीरे सांस लेने लगा।
म अब और अकेले नह र ंगी।
सीता को अपनी मां के बारे म सोचते ए ख े -मीठे दद का अहसास आ। क वो
उस समय सीता के साथ नह थ , जब उ ह उनका जीवनसाथी मला था।
मां क मौत के बाद से, वो पहली बार अपनी मां को बना रोये याद कर रही थ ।
संताप अकेलेपन म आप पर हावी हो जाता है। ले कन जीवनसाथी मलने पर आप
सबकुछ संभाल सकते ह।
ददभरी याद अब ख -मीठ चुभन बन गई थी। हां, उदासी का ोत तो था। ले कन
साथ ही, खुशी और ताकत का भी।
उ ह अपनी मां सामने खड़ी ई महसूस । मु कुराते ए। पोषण दे त।े नेहपूण।
मातृ व से भर । मां कृ त क तरह।
वो फर से प रपूण हो गई थ ।
काफ समय बाद, वो उन श द को फुसफुसा रही थ , जो उनक चेतना म कह गहरे
दबे थे। वो श द जो उ ह ने सोचा था क मां के जाने के बाद नह बोल पाएंगी।
र से ही राम को दे खते ए, वो फुसफुसा , ‘म आपको ब त ेम करती ।ं ’
अ याय 22
‘ध यवाद, अ र नेमी जी,’ सीता ने कहा। ‘मलयपु ने मेरा साथ दया। गु जी ने तो अपनी
ज़दगी को भी खतरे म डाल लया। म आपक ब त आभारी ।ं ’
राम और सीता का ववाह साधारण व ध- वधान से, वयंवर वाली दोपहर को ही
संप होना था। राम हैरान हो गए, जब सीता ने उसी मंडप म ल मण और उ मला के ववाह
का सुझाव दया। और ल मण को उ साह से राजी होते दे ख तो उनके अ व ास का ठकाना
ही नह रहा। यह नणय लया गया क दोन युगल का ववाह म थला म होगा-- जससे
सीता और उ मला, राम व ल मण के साथ अयो या जा सक--और रघुवं शय के अनु प
उनका भ समारोह अयो या म कया जाएगा। जो इ वाकु के वंशज क त ा के
अनु प होगा।
ववाह समारोह क तैया रय के बीच अ र नेमी ने सीता से मलने का अवसर ढूं ढ़
लया था।
‘आशा है इससे मलयपु क वफादारी पर से सारे संशय मट गए ह गे,’ अ र नेमी
ने कहा। ‘हम हमेशा से व णु के साथ रहे ह, और उ ह के साथ रहते रहगे।’
आप तब तक व णु के साथ हो, जब तक म वो करती ं जो आप कराना चाहते हो।
तब नह जब म कुछ ऐसा क ं जो आपक योजना म सट क न बैठे।
सीता मु कुरा । ‘आप संदेह करने के लए मुझे मा कर, अ र नेमी जी।’
अ र नेमी मु कुराए। ‘गलतफह मयां नज़द क य म ही होती ह। ले कन वो
या कहते ह, अतं भला तो सब भला।’
‘गु व ा म कहां ह?’
‘आपको या लगता है?’
रावण।
‘रा स राज इस सबको कैसे लगे? सीता ने पूछा।
व ा म रावण को वयंवर म रोकने के लए सारी हद पार कर गए थे। लंका के
राजा को इसम अपना अपमान महसूस आ था। इसके बुरे प रणाम हो सकते थे। उसक
यु भावना और नदयता के साथ ही उसका अहंकार भी मश र था। ले कन या वो
मलयपु से भी बदला लेने क सोच सकता था?
अ र नेमी कुछ सोचते ए नीचे दे ख रहे थे, फर उ ह ने अपनी नज़र वापस सीता
पर क त क । ‘रावण न ु र और नदयी इंसान है, जो अपने सारे फैसले मु कल हसाब—
कताब लगाकर लेता है। ले कन उसका अहंकार... उसका अहंकार अ सर नुकसान-फायदा
नह दे खता।’
‘ न ु र और नदयी हसाब- कताब उसे मलयपु से न भड़ने क सलाह दे गा,’
सीता ने कहा। ‘उसे था मराव णी क कंदरा से जो चा हए वो तो मल ही जाएगा न।’
‘वो तो वो करता है। ले कन जैसा मने कहा, उसका अहंकार कभी-कभी उसके आड़े
आ जाता है। आशा है गु व ा म इसे संभाल ल।’
अ र नेमी हैरान थे क सीता ने यह पता नह लगाया था क मलयपु रावण को
या दे ते थे। शायद, सीता के संदेह क यो यता से परे भी कुछ चीज़ थ । ले कन उ ह ने
हैरानी को अपने चेहरे पर नह आने दया।
‘समी च कहां है?’ सीता ने हैरानी से पूछा। म थला क नाग रक सेवा और श ाचार मुख
अपने कायालय म नह थी।
सूया त हो चुका था। सीता रावण के अपे त हमले के लए अपनी सेना को तैयार
कर रही थी। उ ह नह लगता था क लंका का राजा यु क सवमा य औपचा रकता का
पालन करेगा। संभव था क वो रात म ही हमला करेगा। समय मह वपूण था।
‘दे वी,’ एक अ धकारी ने कहा। ‘हम नह जानते वो कहां गई ह। वो आपके ववाह
समारोह के तुरंत बाद ही नकल गई थ ।’
‘उसे ढूं ढ़ो। उसे कले क द वार पर आने को कहो। मधुकर नवास पर।’
‘जी, दे वी।’
‘अभी!’ सीता ने ताली बजाते ए आदे श दया। जैसे ही अ धकारी वहां से भागा,
सीता सरे लोग क ओर मुड़ । ‘नगर के सारे अ धका रय को इक ा करो। उन सबको
मधुकर नवास ले आओ। अंद नी द वार पर।’
जैसे ही सपाही भागे, सीता अपने नजी अंगर क क ओर बढ़ --जो मलयपु ने
म थला के पु लस बल म भत कराए थे। उ ह ने सु न त कया क और कोई तो नह सुन
रहा था। फर, उ ह ने एक भरोसेमंद र क, मकरंत से कहा। ‘क तान जटायु को ढूं ढ़ो। उ ह
बताओ क म चाहती ं वो पूव दशा क तरफ, अंद नी द वार क गु त गुफा क र ा कर।
वो जानते ह गुफा कहां है। हो सके तो गुफा बंद कर दो।’
‘दे वी, आपको लगता है रावण...’
‘हां, मुझे लगता है,’ सीता ने बात बीच म काट । ‘गुफा को बंद कर दो। घंटेभर म
बंद हो जानी चा हए।’
‘जी, दे वी।’
दन का तीसरा हर भी लगभग ख म होने वाला था। दोपहर होने म तीन घंटे बाक थे, दन
पूरी तरह नकल आया था। ले कन यह रौशनी नगरवा सय के लए ान का उजाला लेकर
नह आई थी। म थला के हजार बहा र सपा हय क मौत और मधुकर नवास पर ए
वनाश क खबर से नाग रक का खून गु से से नह खौला था। म थलावा सय के कम
सं या, कम उपकरण के बावजूद, अपने धान मं ी क अगुवाई म लड़ने क कहानी उ ह
े रत नह कर रही थी। दरअसल, माहौल म समपण, समझौते या मोल-तोल क बात सुनाई
दे ने लगी थ ।
सीता ने बाज़ार चौक म ापा रय को एक कर लंका क फौज के सामने नाग रक
सेना बनाने का ताव रखा था। इस बात को कुछ घंटे बीत चुके थे। अमीर लोग का अपनी
मातृभू म के लए अपनी जान या संप को दांव म न लगाना हैरानी क बात नह थी। इससे
यादा सदमा तो इस बात का था क वो गरीब, जनक ज़दगी सुनयना और सीता के सुधार
काय क वजह से संदर रही थी, वो भी अपने सा ा य के लए लड़ने को तैयार नह थे।
म थला के सरे अ धका रय तक जो कुतक इस मामले म प ंच रहे थे, उ ह
सुनकर सीता का सर फटा जा रहा था। वो सब कायर के बहाने थे।
‘हम यथाथवाद होना चा हए...’
‘हमने गरीबी से उबरकर, पैसा कमाकर, संप बनाकर, अपने ब च को अ छ
श ा इस लए नह दलवाई थी क एक दन यु म यूं अपनी जान गवां द...’
‘सच म, या हसा से कसी सम या का समाधान नकला है? हम ेम का अ यास
करना चा हए न क यु का...’
‘यु महज़ पैतृक, उ चवग य षड् यं है...’
‘लंकावासी भी हमारी तरह इंसान ह। मुझे पूरा यक़ न है क अगर हम उनसे बात
कर, तो वो हमारी बात सुनगे...’
‘सच म, या हमारा मन साफ है? हम लंकावा सय के बारे म कुछ भी कह सकते
ह, ले कन हम स ाट रावण का अपमान नह करना चा हए था...’
‘ब त से पु लस अ धकारी मर गए तो या आ? हमारी र ा करना तो उनका काम
है। और हमारे लए जान दे ना। ऐसा तो नह है क वो मु त म ऐसा कर रहे ह। हम कर य
चुकाते ह? कर क बात कर तो, लंका म कर क दर हमसे काफ कम ह...’
‘मुझे लगता है हम लंकावा सय के साथ सौदा करना चा हए। चल इस पर मतदान
करो...’
अपनी तरफ से भरसक को शश करने के बाद, सीता ने जनक और उ मला को भी
नाग रक को ो सा हत करने के लए कहा। जनक, म थला के स मा नत ने भी उ ह
लड़ने के लए उकसाने क ब त को शश क । कोई फायदा नह आ। उ मला, जो
म हला के बीच लोक य थ , भी कोई भाव नह छोड़ पा ।
सीता ने गु से से अपनी मु भ च ली। वो ऐसे कायर नाग रक को खरा-खरा सुनाने
ही वाली थ क तभी उनके कंधे पर कसी ने हाथ रखा। उ ह ने मुड़कर दे खा तो समी च को
खड़े पाया।
सीता ज द से उसे एक ओर ख च ला । ‘बताओ, वो कहां ह?’
समी च को व ा म और अ र नेमी को खोजने के लए भेजा गया था। सीता मान
ही नह सकती थ क मलयपु उ ह ऐसे समय म छोड़कर चले जाएंग,े जब उनके नगर पर
हमले का खतरा हो। वो जानते थे क नगर के साथ उनक जान भी जा सकती थी। और वो
जानती थ क उनका ज़दा रहना उनके लए कतना ज़ री था।
‘मने सब जगह दे खा, सीता,’ समी च ने कहा। ‘वो मुझे कह नह मले।’
सीता ने नीचे दे खकर मन ही मन अपश द कहे।
समी च मु कल से बोल पाई। ‘सीता...’
सीता ने अपनी दो त को दे खा।
‘म जानती ं आप ये नह सुनना चाहत , ले कन हमारे पास कोई वक प नह है।
हम लंकावा सय के साथ सौदा करना ही होगा। अगर हम भु रावण को...’
सीता क आंख वाला उगल रही थ । ‘तुम मेरे सामने ऐसी बात नह ...’
मधुकर नवास से सुनाई पड़े ज़ोरदार धमाके से सीता क बात बीच म ही रह गई।
मधुकर नवास के उस वभाग पर ज़ोरदार धमाका आ था, जहां से अभी कुछ दे र
पहले वो छपकर लंकावा सय के साथ लड़ रहे थे। कुछ ही पल बाद उसी वभाग से कोई
ेपा नकलता दखाई दया। वो वकराल चाप म आगे बढ़ रहा था। नगर क खाई क
तरफ, जहां लंकावा सय के श वर थे।
बाज़ार चौक म उप थत सभी लोग क नगाह उसी दशा म जमी थ । ले कन
कसी को नह पता था क या आ था। कसी को नह , सवाय सीता के।
सीता तुरंत समझ ग क मलयपु पूरी रात कहां थे। वो या तैयारी कर रहे थे।
उ ह ने या कया था।
असुरा ।
ेपा खाई क झील पर से उड़ा, उसम छोटे -छोटे व फोट हो रहे थे। एक पल म
असुरा लंका के श वर पर छा गया। और फर नाटक य अंदाज़ से फट गया।
म थला म दे खने वाल को फटते ेपा से चमक ली हरी रौशनी नकलती
दखाई द । वो ज़ोरदार धमाके से फटा था, जैसे आग का गोला हो। ेपा से अवयव नीचे
गरते दखाई दे रहे थे।
जब वो आसमान म इस भयानक नज़ारे के सा ी बन रहे थे, तब कान-फोड धमाके
ने म थला क द वार को हला दया। बाज़ार चौक म जो नाग रक कुछ पल पहले तक
आपस म बहस कर रहे थे, वो अपनी जगह जड़ खड़े थे।
म थवा सय ने हाथ से अपने कान ढं क लए। कुछ रहम के लए ाथना करने लगे।
भीड़ म भयानक खामोशी छा गई थी। कई बके ए नाग रक वधा से इधर-उधर
दे ख रहे थे।
ले कन सीता जानती थ क म थला को बचा लया गया था। वो ये भी जानती थ
क या होगा। ये वनाश रावण और उसके सा थय पर आ था। जससे वो अस म हो
जाएंग।े सु क थ त म। कुछ दन , या फर कुछ स ताह के लए। उनम से कुछ मर भी
जाएंग।े
ले कन उनका नगर सुर त था। उसे बचा लया गया था।
मधुकर नवास पर ए वनाश के बाद, ये शायद रावण को रोकने का एकमा रा ता
था।
उनक नस म राहत क एक लहर दौड़ गई, वो फुसफुसा , ‘मलयपु और गु
व ा म पर भु कृपा कर।’
फर, एक झटके क तरह, उनक चेतना जागृत ई। उनके दल म एक घबराहट
ई।
असुरा चलाया कसने था?
वह जानती थ क असुरा र से चलाया जाने वाला ह थयार था। सही री से एक
स म धनुधारी ही सफलतापूवक इसे चला सकता था। अभी म थला म ऐसे तीन इंसान थे,
जो ये कर सकते थे, जो ेपा चलाने वाले अ न बाण को मार सकते थे। व ा म ,
अ र नेमी और...
राम... नह ... नह ... भु रहम करो।
सीता मधुकर नवास क तरफ दौड़ । उनके पीछे समी च और उनके अंगर क थे।
अ याय 24
सीता मधुकर नवास क सी ढ़यां, एक बार म तीन-तीन फलांगती ई दौड़ रही थ । पथराए
चेहरे वाली समी च भी उनके पीछे ही थी। उ ह ज द से ज द छत पर प ंचना था। इतनी र
से भी वो लंका के श वर पर ए वनाश को दे ख सकती थ । हज़ार सै नक ज़मीन पर गरे
पड़े थे। मौत क तरह खामोश। हरी वा प का दै याकार बादल लकवा मारे उन लंका के
सै नक को अपने आगोश म ले रहा था।
हवा म कोई फुसफुसाहट नह थी। इंसान खामोशी से पड़े थे। जानवर भी। प य ने
चहचहाना बंद कर दया था। वृ भी नह हल रहे थे। यहां तक क हवा भी मर चुक थी।
सब उस वनाशकारी ह थयार के असर म थे, जो अभी कुछ दे र पहले चला था।
बस एक ही आवाज़ थी, कसी भयानक सांप के हस हसाने क आवाज़। ये वो
आवाज़ थी, जो उस हरी वा प से नकल रही थी, बीच-बीच म हो रहे छोटे व फोट के
साथ।
सीता ने डर से अपना ा पकड़ लया। भु , रहम कर।
उ ह ने बीच म खड़े ए अ र नेमी और व ा म को दे खा। वो दौड़कर उनके पास
ग ।
‘ कसने चलाया?’ सीता ने पूछा।
अ र नेमी सर झुकाकर एक ओर हट गए; और, राम सीता क आंख के आगे
आए। सफ उनके प त के हाथ म ही धनुष था।
व ा म ने राम पर दबाव डालकर उनसे असुरा चलवा ही लया था। और इस
तरह, भु का नयम टू ट गया था।
अपने प त क ओर दौड़कर जाती ई सीता, ज़ोर से च ला ।
उ ह आता दे ख, व ा म मु कुराए। ‘सीता, अब सब नयं ण म है! रावण क
फौज ख म हो चुक है। म थला अब सुर त है।’
सीता ने ोध से व ा म को दे खा, गु से से उनके मुंह से श द नह नकल पा रहे
थे।
सीता ने सीधा राम के पास जाकर, उ ह बांह म भर लया। त ध राम का धनुष
उनके हाथ से छू ट गया। उ ह ने कभी सीता को गले नह लगाया था। अभी तक नह ।
सीता ने उ ह कसकर पकड़ लया। वो राम के दल क धड़कन को बढ़ते ए
महसूस कर पा रही थ । ले कन उनके हाथ नीचे ही थे। उ ह ने पलटकर सीता को गले नह
लगाया।
सीता ने अपना सर पीछे करके, सीधे राम क खाली आंख म झांका।
अपराधबोध ने उ ह जकड़ लया। वह जानती थ क राम से यह अपराध जबरन
कराया गया होगा। उनके यार के लए। नै तक मू य और कत का हवाला दे कर, जससे
उ ह अपनी प नी और उसक जा क ज़दगी बचाने के लए यह क़दम उठाना पड़ा होगा।
उ ह ने राम को पकड़कर उनक खाली आंख म झांका। उनके चेहरे पर चता क
लक र थ । ‘म आपके साथ ं, राम।’
राम ख़ामोश थे। ले कन उनके भाव बदल गए थे। अब उनक आंख म खालीपन
नह था। ब क उनम कोई वाब सा था, मानो वो सरी ही नया म खो गए थे।
भु इनक मदद करने क मुझे ह मत दे ना। इस भावशाली इंसान को सहारा
दे ने क । मेरे कारण जो इ ह ख प ंचा है, उससे उबरने क ।
सीता ने मज़बूती से राम को बांह म भर रखा था। ‘राम, म आपके साथ ं। हम एक
साथ हालात का सामना करगे।’
राम ने अपनी आंख बंद क । उ ह ने भी सीता के गद अपनी बांह डाल द । उ ह ने
अपना सर सीता के कंध पर रख दया। वो उनक आह नकलते महसूस कर सकती थ ।
मानो उ ह ने शरण पा ली थी। अपने उपवन म।
सीता ने अपने प त के कंध से परे व ा म को दे खा। उनक आंख म गु सा था,
जैसे दे वी मां चंड रोष म ह ।
व ा म क नज़र बेदद उ ह को दे ख रही थ ।
एक तेज़ आवाज़ ने उन सबका यान भंग कया। सभी ने म थला क द वार के
पार दे खा। रावण का पु पक वमान गरज रहा था। उसक बड़ी-बड़ी पंखु ड़यां घूमने लगी
थ । पलभर म उसने ग त पकड़कर, उड़ान भरी। बढ़ती आवाज़ के साथ, ज़मीन से ऊपर
उठता आ, पु पक वमान म थला से र, उस वनाश से र, आसमान म नकल गया।
म थला से र। असुरा के उस वनाश से र।
रावण बच गया था। रावण भाग नकला था।
बाद का दन नगर के बाहर एक जुगाडु अयुरालय बनाने म गुज़र गया। लंका के सपा हय
को बड़े-बड़े श वर म लाया गया। मलयपु म थला के च क सक को उस घातक ह थयार
के प रणाम से नबटने के लए श त कर रहे थे। उ ह तब तक जी वत रखना ज़ री
था, जब तक क उनका ये सु पन वाभा वक प से न ख म हो; इसम कुछ दन या कुछ
स ताह भी लग सकते थे। उनम से कुछ कभी होश म नह आने वाले थे और हमेशा के लए
गहरी न द म चले जाने वाले थे।
सीता अपने कायालय म बैठकर अयो या जाने से पहले म थला के ज़ री
शास नक काम नबटा रही थ । ब त कुछ संभालना था और समी च से बात करने का भी
कोई फायदा नह नकल रहा था।
उनक पु लस और श ाचार सुर ा अ धकारी, वहां खड़ी प े क तरह कांप रही
थी। सीता ने अपनी दो त को कभी इतने घबराए ए नह दे खा था। वो सच म डरी ई थी।
‘ चता मत करो, समी च। म राम को बचा लूंगी। उ ह कुछ नह होगा। उ ह सज़ा नह
होगी।’
समी च ने अपना सर हलाया। उसके मन म कुछ और चल रहा था। उसने
लड़खड़ाती आवाज़ म कुछ कहा। ‘ भु रावण बच गए... लंकावासी... वापस आएंगे...
म थला, आप, म... ख म हो...’
‘पागल मत बनो। कुछ नह होगा। लंकावा सय को सबक सखा दया गया है, जसे
वो ज द नह भूल पाएंग।े ’
‘वो याद रखगे... वो हमेशा याद... अयो या... करछप... च लका...’
सीता ने समी च के कंधे पकड़े और ज़ोर से कहा, ‘खुद को संभालो। तु ह हो या
गया है? कुछ नह होगा!’
समी च खामोश हो गई। उसने अपने हाथ ाथना म जोड़े। वनती करते ए। वो
जानती थी उसे या करना था। वो दया क भीख मांगेगी। स चे ई र से।
सीता ने समी च को घूरकर सर हलाया। नराशा से। उ ह ने अपने पता, जनक के
शासन म म थला क ज़ मेदारी समी च को स पने का नणय लया था। ले कन, अब वो
सोच रही थ क या समी च इस अ त र कायभार को संभाल भी पाएगी। उ ह ने इससे
पहले अपनी दो त को इतना परेशान नह दे खा था।
अयो या क सड़के अपने युवराज का इंतज़ार कर रहे लोग से भरी पड़ी थ । उनक हन
के वागत ने वहां जोश और बड़ा दया था। उनका का फला ब त धीमी ग त से आगे बढ़ पा
रहा था। आगे के रथ पर राम और सीता थे। सड़क पर हो रहे ज़ोरदार अ भनंदन से
राजकुमार थोड़े असहज थे। उनके पीछे दो और रथ थे। एक पर भरत और श ु न थे,
जब क सरे पर ल मण और उनक प नी उ मला। भड़क ले भरत भीड़ का अ भवादन
करना जानते थे, वो अपने हाथ को हला रहे थे, लोग क तरफ चुंबन उछाल रहे थे।
ल मण अपनी लंबी बांह को सावधानी से हला रहे थे, जससे उनके पास खड़ी कोमल
उ मला को कम से कम त प ंच।े श ु न हमेशा क तरह, बना हले, सीधे खड़े थे। भीड़
को घूरते ए। जैसे वो भीड़ का अकाद मक अ ययन कर रहे ह ।
भीड़ का शोर तेज़ और प था।
राम!
भरत!
ल मण!
श ु न!
उनके चार चहेते राजकुमार, सा ा य के संर क, एक बार फर से साथ मल रहे
थे। और यादा मह वपूण, उनके राजकुमार लौट आए थे। वजयी होकर! सबके मन
रावण को परा जत करके लौटे थे!
फूल क बरसात हो रही थी, प व चावल फके जा रहे थे, सब फु लत और खुश
थे। हालां क दन का समय था, ले कन म के जलते बड़े-बड़े द य ने सारे माहौल को
उ सव म त द ल कर दया था। ब त से लोग ने अपने घर क मुंडेर पर द ये जलाए ए थे।
मानो वो सूरज को भी अपनी रौशनी से रौशन कर रहे थे, वयं सूय दे वता के महान वंश के
राजकुमार का अ भवादन करते ए!
आमतौर पर आधे घंटे के सफर को तय करने म रथ को चार घंटे लग गए थे।
आ खरकार, वो महल म राम के लए सु न त क गई शाखा म प ंच।े
कमज़ोर से दखाई दे रहे दशरथ अपने सफर म इ तेमाल होने वाले सहासन पर बैठे
थे, उ ह के पास अपने बेट के इंतज़ार म कौश या खड़ी थ । नई हन के वागत म
उ चत प से वागत क र म अदा क जानी थ । सबसे बड़ी रानी परंपरा और रवाज
को अपनी नगरानी म पूरा करवा रही थ ।
कैकेयी ने कौश या ारा भेजे वागत समारोह के नमं ण का कोई जवाब नह दया
था। शां त- य काशी नगरी क सु म ा दशरथ के सरी ओर खड़ी थ । कौश या हमेशा
सहारे के लए उ ह ही दे खती थ । यक़ नन, सु म ा भी तो अपनी एक ब का वागत करने
आई थ !
वागत र म के तहत महल के ार पर बड़े-बड़े शंख बजाए जा रहे थे।
अयो या के चार राजकुमार और म थला क दोन राजकुमा रयां, आ खरकार
कोलाहल के बीच से बाहर नकले। अयो या के शाही अंगर क ने, जो अब तक कसी गम
धातु पर रखी ब ली क तरह छटपटा रहे थे, राजकुमार के महल के ांगण म वेश के बाद
चैन क सांस ली। भीड़भाड़ से र।
शाही का फला प रसर म संगमरमर के प थर लगे रा ते से गुज़र रहा था। रा ते के
दोन तरफ हरा-भरा बगीचा था। वे राजकुमार राम के वभाग के वेश ार के बाहर जाकर
के।
कौश या पर नज़र पड़ते ही सीता जरा झझक । ले कन उ ह ने तुरंत ही अपने मन
म आ रहे याल को झटक दया।
कौश या हाथ म पूजा क थाली लेकर दहलीज क ओर बढ़ । उसम एक जलता
आ द या, थोड़े से चावल और स र था। उ ह ने सीता के चेहरे के चार ओर थाली को सात
बार घुमाया। उ ह ने कुछ चावल लेकर उनके सर पर डाले। फर एक चुटक स र उठाकर
सीता क मांग म भर दया। सीता ने नीचे झुककर स मान से कौश या के पैर छु ए। कौश या
ने थाली अपनी सहा यका को पकड़ा द , और सीता के सर पर हाथ रखकर उ ह आशीवाद
दया। ‘आयु मान भव, मेरी ब ची।’
जैसे ही सीता खड़ी , कौश या ने दशरथ क तरफ इशारा कया। ‘अपने ससुर का
भी आशीवाद ले लो।’ फर सु म ा क तरफ इशारा करके कहा, ‘और फर, अपनी छोट मां
का। बाक क र म हम बाद म करगे।’
सीता कौश या के नदश का पालन करने के लए बढ़ । राम ने आगे आकर अपनी
मां के पैर छु ए। उ ह ने उ ह भी आशीवाद दया और अपने पता से आशीवाद लेने का इशारा
कया।
फर उ ह ने उ मला और ल मण को आगे बुलाया। उ मला, सीता क तरह अपने
मन म आए याल को झटक नह सक ; उनके भी मन म वही याल आया था, जो थोड़ी दे र
पहले सीता के मन म आया था।
कौश या को दे खकर उ ह अपनी मां सुनयना क याद आ गई। वो वैसे ही कद म
छोट , शांत और सौ य नज़र वाली थ । बेशक कौश या क रंगत कुछ गहरी और नैन-न श
ब कुल अलग थे। कोई भी नह कह सकता था क उनका चेहरा मलता था। ले कन उनम
कुछ समानता थी। अ या मक झुकाव वाले लोग इसे आ मा का संबंध मानते ह।
उ मला कौश या के आरती ख म करने का इंतज़ार कर रही थ , फर उ ह ने
झुककर उनके पैर छु ए। कौश या ने म थला क छोट राजकुमारी को आशीवाद दया।
उ मला जैसे ही खड़ी , आगे बढ़कर कौश या के गले लग ग । अयो या क रानी ऐसे
अपारंप रक वहार पर हैरान थ , वो कोई त या नह कर पा ।
उ मला पीछे हट , उनक आंख गीली थ । उ ह ने धीमी आवाज़ म वो श द कहा, जो
सुनयना के जाने के बाद बना रोये उनके मुंह से नह नकला था। ‘मां।’
उ मला क मासू मयत से कौश या भा वत हो ग । शायद पहली बार रानी कद म
खुद से छोट कसी म हला से मल रही थ । उ ह ने उ मला का ब च जैसा गोल चेहरा और
बड़ी-बड़ी आंख दे ख । उनके मन म एक कबूतर क छ व उभर आई जो अपने पास के बड़े
प य से बचने के लए शरण ढूं ढ़ रहा हो। उ ह ने यार से मु कुराते ए उ मला को वापस
अपनी बांह म भर लया। ‘मेरी ब ची… घर म तु हारा वागत है।’
रानी कौश या के महल क एक दासी सर झुकाए खड़ी थी। खुद को मलने वाले नदश का
इंतज़ार करते ए।
वो अयो या क सबसे धनी, संभवतः स त सधु क सबसे धनी म हला मंथरा के
आवासीय कायालय म थी। अफवाह तो ये भी थी क वो स ाट दशरथ से भी यादा अमीर
थी। उसका करीबी वफादार ह्यु कसम खाकर बता सकता था क वो अफवाह सच थ ।
वा तव म।
‘दे वी,’ दासी फुसफुसाई, ‘मेरे लए या नदश ह?’
ह्यु के इशारा करने पर वो चुप हो गई। और इंतज़ार करने लगी।
ह्यु वन ता से मंथरा के सामने खड़ा था। खामोश।
मंथरा लंगड़ाते ए अपनी पी ठका के पास आई और अपने खास तैयार कए गए
आसन पर बैठ गई, जो उसक पीठ के कूबड़ के लए आरामदायक था। मंथरा के चेहरे के
दाग, बचपन म ई चेचक क बीमारी क याद दलाते थे, जो उसके चेहरे पर ज़दगी भर
डराने वाले नशान छोड़ गई। यारह साल क उ म उसे पो लयो हो गया, जो दा हने पैर म
पो लयो अपना भाव छोड़ गया था। गरीबी म पैदा ई मंथरा पर शारी रक कमी ने
सहानुभू त क बजाय और कठोरता दखाई। पूरी युवाव था उसने सर के ताने सुने और
आज भी वह इस अवहेलना को झेल रही है। अब य क वो धनी और ताकतवर थी, तो बस
कसी क सामने कहने क ह मत नह थी, ले कन वह जानती थी क उसक पीठ पीछे सब
उसे या कहते थे। अब लोग उससे सफ शारी रक अ मता के लए ही नह , ब क
ापारी होने क वजह से भी नफरत करते थे; एक धनी ापारी होने क वजह से।
मंथरा ने खड़क से अपनी आलीशान जायदाद के बड़े से बगीचे को दे खा।
दासी खड़ी-खड़ी बेचैन हो रही थी। इतनी दे र तक अनुप थत रहने से वो सबक
नज़र म आ सकती थी। उसे ज द ही वापस लौटना था। उसने वनती भरी नज़र से ह्यु
को दे खा। उसने भी उसे घूरा।
हयु को अब मंथरा का वफादार बने रहने पर शक होने लगा था। मंथरा अपनी
यारी बेट रौशनी को सामू हक बला कार और नृशंस ह या म खो चुक थी। उन लोग को
यायालय ने सज़ा सुनाकर फांसी पर चढ़ा दया था। हालां क, धेनुका, उस समूह का नेता
और सबसे यादा खूंखार कानून क तकनीक खा मय के चलते बच गया था। वो नाबा लग
था; और अयो या के कानून के मुता बक, नाबा लग को मौत क सज़ा नह द जाती थी।
अयो या के राजकुमार और नाग रक सुर ा अ धकारी, राम ने ज़ोर दया था क कानून का
पालन कया जाए। चाहे जैसे भी हो। हालां क मंथरा अपना बदला ले चुक थी। उसने ब त
पैसा खच करके धेनुका को जेल से नकलवाया, और फर उसक नृशंस ह या करवा द ।
ले कन बदले क उसक यास अभी भी नह बुझी थी। अब उसका ल य राम थे। वो बड़ी
स से सही मौके का इंतज़ार कर रही थी। और एक मौका मानो उसके सामने खुद उप थत
हो गया था।
ह्यु अपनी माल कन को दे ख रहा था, उसका चेहरा भाव वहीन था। बूढ़ चमगादड़
अपने बदले पर ब त यादा पैसे खच कर रही है। इससे वसाय पर असर पड़ रहा है। वो
पूरी तरह उसे म म मला दे गी। ले कन म या कर सकता ं? स चे भु क हालत कसी
को नह पता है। म अभी इसके साथ फंस गया … ं
मंथरा तय कर चुक थी। उसने ह्यु क तरफ दे खकर सर हला दया।
ह्यु को ज़ोर का झटका लगा, ले कन उसने खुद को संभाल लया।
एक हजार वण मु ाएं! इस कंगाल महल क दासी दस साल म भी इतना नह
कमा पाएगी!
ले कन वो जानता था क बहस म कुछ नह धरा था। उसने तुरंत नगद के बदले एक
ंडी बना द । दासी इसे कह भी भुना सकती थी। आ खरकार, मंथरा क मुहर लगी इस
ंडी को कौन ठु करा सकता था?
‘दे वी…’ ह्यु फुसफुसाया।
मंथरा आगे झुक , अपनी धोती म बंधी थैली म से मुहर नकाली, और उसे कागज
पर लगा दया।
ह्यु ने ंडी दासी को दे द , जसका चेहरा तुरंत ही खल उठा।
ह्यु तुरंत ही उसे ज़मीन पर ख च लाया। खी नज़र से उसे दे खते ए वो
फुसफुसाया, ‘याद रखना, अगर खबर समय पर नह मली या वो झूठ नकली, तो हम
जानते ह तुम कहां रहती हो…’
‘म असफल नह र ंगी, ीमान,’ दास ने कहा।
जैसे ही दासी जाने को मुड़ी, मंथरा ने कहा, ‘मुझे खबर मली है क ज द ही
राजकुमार राम रानी कौश या के वभाग म राजा दशरथ से बात करने आने वाले ह।’
‘म आपको उनक पूरी बातचीत का य रा दे ं गी, दे वी,’ दासी ने सर झुकाते ए
कहा।
ह्यु ने मंथरा को दे खा और फर दासी को। उसने गहरी सांस ली। वो जानता था क
ज द ही और भी पैसा खच होने वाला था।
सीता और जटायु जंगल के बीच थोड़ी साफ क ई जगह म खड़े थे। ये जंगल म उनका
पूव नधा रत मलन थल था, नगर से एक घंटे क री पर। सीता आधे घंटे म ही वहां प ंच
गई थी। उ ह ने एक लंबे अंगव से अपना शरीर और चेहरा ढं क रखा था, जससे कोई उ ह
पहचान न सके। उ ह जटायु से काफ बात करनी थ । सफ मंथरा से ई मुलाकात के बारे म
ही नह ।
‘आप इस बारे म सु न त ह, महान व णु?’ जटायु ने पूछा।
‘हां। शु म मने सोचा था क नगर राम के लए यादा खतरनाक ह गे। उनके यहां
ब त से मन ह। ले कन अब मुझे लगता है क जंगल म वा त वक खतरा होगा।’
‘तो नगर म ही य नह रहते?’
‘नह हो सकता। मेरी प त नह मानगे।’
‘ले कन… य नह ? सर के बारे म कौन सोचता…’
सीता ने जटायु को टोका, ‘म आपको अपने प त के च र क खा सयत बता दे ती
।ं सेनाप त मृग य, अयो या के सबसे ताकतवर आद मय म से एक ह, वो चाहते ह क राम
पताजी दशरथ क जगह राजा बन जाएं। दरअसल, मेरे ससुर खुद राम के लए याग करना
चाहते ह। ले कन मेरे प त ने मना कर दया। उ ह ने कहा क यह नयम के व है।’
जटायु अपना सर हलाकर मु कुराए। ‘आपके प त लभ इंसान म से एक ह।’
सीता मु कुरा । ‘वो तो ह।’
‘तो, आपको लगता है क मंथरा…’
‘हां। उनक सहासन के खेल म दलच पी नह है। वो बदला चाहती ह, खासकर
राम से ज ह ने कानून क राह चुनी थी; और उस नाबा लग बला कारी-ह यारे को फांसी
नह द थी। ये नजी मामला है।’
‘उसक योजना का कुछ अंदाज़ा है?’
‘वो अयो या म कुछ नह करेगी। लोक य राजकुमार क नगर म ह या जो खम
भरी हो सकती है। मुझे लगता है क वो जंगल म को शश करेगी।’
‘म पहले भी अयो या आया ं। म उसे और उसके दल को जानता ं। म उसके
भरोसेमंद आदमी को भी जानता ं।’
‘ ह्यु?’
‘हां। मुझे लगता है क वही ह या का बंदोब त करेगा। और ये भी जानता ं क
कसे ये काम स पेगा। म उसे संभाल लूंगा।’
‘मुझे मंथरा और ह्यु पर संदेह है। मुझे लगता है क वो…’
‘हां, महान व णु,’ जटायु ने टोका। ‘वो रावण के वफादार ह।’
सीता ने गहरी सांस ली। अब चीज़ साफ होने लगी थ ।
‘आप चाहती ह क हम मंथरा का भी बंदोब त कर ल?’ जटायु ने पूछा।
‘नह ,’ सीता ने जवाब दया। ‘ म थला म जो आ उसके बाद रावण को पलटवार
करने से रोकना ब त मु कल था। मंथरा अयो या म उसक खास है, उ र म उसका नकद
ापार इसी के ज रए चलता है। अगर हमने उसे मार दया था तो हो सकता है वो मलयपु
के साथ क गई म थला पर हमला न करने क सं ध तोड़ दे ।’
‘तो… बस ह्यु।’
सीता ने हामी भरी।
‘कल मलते ह। मुझे तब तक और कुछ भी पता चल जाना चा हए।’
‘ज र, जटायु जी,’ सीता ने कहा। ‘ध यवाद। आप एक सुर ा मक बड़े भाई क
तरह हो।’
‘म और कुछ नह बस आपका सेवक ं, महान व णु।’
सीता ने मु कुराकर अपने हाथ जोड़ दए। ‘अल वदा। भु परशु राम के संर ण म
रहो भाई।’
‘ भु आपको आशीवाद द, बहन।’
सीता ज द से अपने घोड़े पर सवार होकर वहां से नकल ग । जटायु ने उनके
चरण क धूल उठाई और उसे अपने माथे पर लगाया। उ ह ने धीमे से कहा, ‘ऊं नमो भगवते
व णुदेवाय। त यै सीतादै वयी नमो नमः।’
वो भी अपने घोड़े पर सवार होकर नकल गया।
सीता अपनी छोट बहन, उ मला के साथ बैठ थ , जो लगातार रोये जा रही थ ।
पछले दन जो भी आ, उसके बावजूद, सीता बार-बार समय नकालकर उ मला
से मलने आती रही थ । ल मण भी राम और सीता के साथ चौदह साल वनवास पर आने
का ज़ोर दे रहे थे। शु आत म, ल मण ने सोचा था क उ मला भी साथ चल लगी। बाद म,
उ ह अहसास आ क नाजुक उ मला भयंकर जंगल म बच नह पाएंगी। चौदह साल उनके
लए ब त मु कल हो जाएंग।े जंगल म आप तभी रह सकते ह, जब आप मज़बूत और
कठोर ह । न क नाजुक और श । ये ल मण के लए भी मु कल था, ले कन उ ह ने
उ मला से कह दया था। वो बेमन से उन तीन के साथ नह आने के लए मान गई थ ।
हालां क वो इससे ब कुल भी खुश नह थ ।
सीता भी ये मानने को मजबूर थ क ल मण सही कह रहे थे। और वो बार-बार
अपनी बहन से मलने आकर उ ह समझा रही थ ।
‘पहले मां मुझे छोड़ ग ,’ उ मला सुबक । ‘अब आप और ल मण मुझे छोड़कर जा
रहे हो। म या क ं गी?’
सीता ने यार से अपनी बहन को पकड़ा, ‘उ मला, अगर तुम आना चाहती हो, तो म
इसका आ ह कर सकती ं। ले कन ऐसा करने से पहले मुझे तु ह समझाना होगा क जंगल
का जीवन आ खर होता या है। हमारे सर पर कोई ढं ग क छत तक नह होगी। हम ज़मीन
पर रहना होगा, मांस खाना होगा; और म जानती ं क तुम इससे कतनी नफरत करती हो।
ये छोट चीज़ ह और म जानती ं क ज़ रत पड़ने पर तुम इ ह अपना लोगी। ले कन जंगल
म लगातार खतरा बना रहेगा। द ण म नमदा नद का अ धकांश कनारा रावण के नयं ण
म आता है। तो, हम वहां नह जा सकते, जब तक क हम अपनी जान जो खम म न डालना
चाह।’
उ मला ने बात बीच म काट , ‘ऐसी बात मत कहो, द द ।’
‘हम तट पर नह जा सकते। तो, हम जंगल म ही रहना होगा। खासकर, दं डकार य
म। सफ ई र ही जानते ह क वहां या- या खतरे हमारा इंतज़ार कर रहे ह गे। हम हर रात
जागते ए ही सोना होगा, अपने ह थयार अपने पास रखे ए, अगर कसी जंगली जानवर ने
हम पर हमला कर दया तो। वो रात म ही शकार पर नकलते ह। ब त से ज़हरीले फल और
पेड़ भी होते ह; कोई भी गलत चीज़ खाकर हम मर सकते ह। मुझे यक़ न है क ऐसे भी
खतरे ह गे, जनका हम अहसास तक नह है। हम ज़दा रहने के लए हमेशा चौक ा रहना
होगा। और इस सबके बीच, अगर तु ह कुछ हो गया, तो म मरने के बाद मां को या मुंह
दखाऊंगी? तु हारी सुर ा का भार उ ह ने मुझे स पा था… और, तुम यहां सुर त हो…’
उ मला सीता के गले लगे सुबकती रह ।
‘ या आज कौश या मां आई थ ?’
उ मला ने ऊपर दे खा और आंसु के बीच भी मु कुरा द । ‘वो ब त अ छ ह। मुझे
लगता है क हमारी मां लौट आई ह। उनके साथ म सुर त महसूस करती ।ं ’
सीता ने फर से कसकर उ मला को पकड़ लया। ‘भरत भले इंसान ह। और श ु न
भी। वो कौश या मां क मदद करगे। ले कन उनके ब त से ताकतवर मन ह, कुछ तो
राजा से भी यादा ताकतवर ह। तु ह यहां रहकर कौश या मां का यान रखना होगा।’
उ मला ने हामी भरी। ‘हां, ल मण ने भी मुझसे यही कहा था।’
‘ ज़दगी सफ हमारे चाहने भर जतनी ही नह है, ब क हम वो भी करना होता है,
जो ज़ री होता है। हमारे पास सफ अ धकार ही नह ह। हमारे कत भी ह।’
‘जी, द द ,’ उ मला ने कहा। ‘म समझती ं। ले कन इससे तकलीफ तो कम नह
होती न।’
‘म जानती ं, मेरी छोट राजकुमारी,’ सीता ने उ मला को पकड़कर, उनक पीठ
सहलाते ए कहा। ‘म जानती ं…’
‘महान भु कृपा कर,’ राम फुसफुसाए। ‘ये तो ब कुल वृषबंधन उ सव जैसा जान पड़
रहा है… ले कन अब स त सधु म थोड़े ही लोग इसे खेलते ह।’
राम, सीता, ल मण, जटायु और उनके अंगर क ने इं पुर म वेश कया। वे सीधा
नगर म झील के पास जाकर खड़े हो गए। उसके आसपास अगले दन ज लीक क तैयारी
के लए बाड़ लगा द गई थी। भीड़ उस बाड़ के आसपास मंडरा रही थी, जससे अंदर के
य और आवाज़ को सुन सके। कसी को भी उन द वार को पार करने क अनुम त नह
थी। ज द ही वहां कल क तयो गता के लए बैल को ले जाकर खड़ा कर दया जाएगा।
जटायु उ ह ज लीक खेल के बारे म बताने लगे। सुनने म तो ये ब त ही सीधा खेल
मालूम पड़ रहा था। इसका शा दक अथ है स क का बंधा आ थैला। यहां इसका मतलग
वण मु ा का थैला था। तयोगी को वजेता बनने के लए यह थैला ा त करना होता
है। बस? नह ! चुनौती इस थैले को बांधने क जगह म है। इसे बैल के स ग पर बांधा जाता
है। यान रहे वो कोई साधारण बैल नह होता है। ये बैल खासकर उ े जत, मज़बूत और
जुझा जा त के होते ह।
‘हां, यह वृषबंधन जैसा ही है,’ जटायु ने समझाया। ‘जैसा क आप जानते ही ह क
ये खेल ब त पुराना है। दरअसल, कुछ तो कहते ह यह ारका और संगमत मल के पूवज से
आया है।’
‘ दलच प,’ सीता ने कहा। ‘मुझे नह पता था क यह इतना ाचीन है।’
ज लीक म भाग लेने वाले बैल क जा त को खासतौर पर आसपास के गांव
और खुद इं पुर म भी पाला जाता था। थानीय गाय से सव े जा त के बैल ा त करने
वाला मा लक गव से फूल जाता था। और इससे भी यादा गव उ ह उसके पालन-पोषण,
श ण और खानपान के मा यम से पशु से भावशाली यो ा बनाने म होता था।
जटायु ने बताया, ‘भारत क सीमा के बाहर, पूव क धरती पर भी बैल-यु क
तयो गताएं आयो जत क जाती थ । ले कन उनम बैल के लए यादा जो खम होता है।
वो लोग तयो गता से कुछ दन पहले बैल को भूखा रखते ह, उ ह कमज़ोर बनाने के लए।
मुख यो ा के मैदान म आने से पहले उसका दल पशु को लगातार कमज़ोर करता रहता
है। ऐसा वो बेचारे बैल को खूब र चलवाकर और बार-बार लंबे भाल से गोदकर करते ह।
और बैल को कमज़ोर करने के बावजूद, यो ा अपने साथ ह थयार लेकर मैदान म उतरता
है, और आ खरकार पशु को मार दे ता है।’
‘कायर,’ ल मण ने कहा। ‘इस लड़ाई म य वाली बात या ई।’
‘यही तो,’ जटायु ने कहा। ‘दरअसल, और मान लो कसी मामले म बैल बच भी
जाए तो भी वो उसे दोबारा लड़ाई म नह उतारते, य क वो लड़ना सीख जाता है। और इस
तरह पलड़ा यो ा-बैल के हक म झुक सकता है। इस लए वो हर लड़ाई म अनुभवहीन बैल
को उतारते ह।’
‘और, यक़ नन, ये ज लीक म नह होता…’ राम ने कहा।
‘ ब कुल नह । यहां, बैल को अ छ तरह खलाकर उ ह मज़बूत और व थ रखा
जाता है। कसी को भी उ ह भाले मारने या कमज़ोर करने क अनुम त नह होती। अनुभवी
बैल, जो पछली बार भाग ले चुके थे, उ ह भी भाग लेने क अनुम त होती है।’
‘ये आ न सही तरीका,’ ल मण ने कहा। ‘ये यायपूण लड़ाई है।’
‘इसे और यायपूण बनाया जाता है,’ जटायु ने बताया। ‘बैल से लड़ रहे आद मय
को अपने साथ कोई ह थयार ले जाने क अनुम त नह होती। यहां तक क छोटा चाकू भी
नह । वो बस अपने हाथ का इ तेमाल कर सकते ह।’
ल मण ने धीरे से सीट बजाई। ‘इसम लगती है असली ह मत।’
‘हां, सच है। वो भारत से बाहर होने वाली सरी तयो गता म बैल लगभग मर
जाते ह और जो बुरी तरह घायल होते ह उ ह भी मरने के लए छोड़ दया जाता है। ले कन
ज लीक म बैल कभी नह मरते। आद मय के गंभीर प से घायल होने का ज र जो खम
होता है, कभी-कभी जान भी चली जाती है।’
एक नम, ब चे क सी आवाज़ सुनाई द । ‘यही तो मद के लड़ने का तरीका है।’
राम, सीता, ल मण और जटायु ने लगभग एक साथ मुड़कर दे खा। कोई छह-सात
साल का छोटा ब चा उनके सामने खड़ा था। उसक रंगत गोरी और आंख छोट थ । अपनी
कम उ के हसाब से उसके बदन पर ब त बाल थे। उसका सीना गव से फूला आ था।
उसने हाथ कमर पर रखे ए थे मानो वो बाड़ के पीछे क ज़मीन का नरी ण कर रहा हो।
वह ज र वानर होगा।
सीता घुटन पर झुक और पूछा, ‘ या तुम भी कल होने वाली इस तयो गता म
ह सा ले रहे हो, युवक?’
ब चे का मुंह उतर गया। आंख झुकाकर वो बोला, ‘म लेना चाहता था। ले कन
उ ह ने कहा क म नह ले सकता। ब च को अनुम त नह है। भु क कृपा से, अगर म
भाग लेता तो सबको हरा दे ता।’
सीता खुलकर मु कुरा । ‘मुझे यक़ न है तुम ज र हरा दे ते। तु हारा नाम या है,
बेटा?’
‘मेरा नाम अंगद है।’
‘अं-ग-द!’
र से पुकारने क आवाज़ आई।
अंगद ज द से मुड़ा। उसक आंख म डर था। ‘मेरे पता आ रहे ह… मुझे जाना
होगा…’
‘ को…’ सीता ने अपना हाथ आगे बढ़ाया।
ले कन अंगद वहां से ज द से भाग गया।
सीता उठ और जटायु क तरफ मुड़ । ‘नाम से कुछ याद आया न?’
जटायु ने हामी भरी। ‘म चेहरा तो नह पहचान पाया था। ले कन नाम जानता ं। वो
राजकुमार अंगद ह। क कंधा के राजा वा ल के पु ।’
राम ने योरी चढ़ाई। ‘वो सा ा य तो दं डकार य के द ण म है न? ये वहां नह …’
राम क बात कसी सरी आवाज़ से क । ‘म दे ख लूंगा!’
भीड़ ने इं पुर के मु खया, श वेल के आने के लए जगह बनाई। उसक आवाज़
उ े जत थी। ‘तुम मेरे नगर आए और कसी ने मुझे बताया तक नह ?’
श वेल लंबा-चौड़ा आदमी था। सांवले रंग का। लंबा। कसी बैल क तरह
श शाली, बड़ा पेट, उसक बांह और टांग कसी छोटे पेड़ के तने समान लग रही थ ।
उसके व म सबसे भावशाली उसक कुछ यादा ही लंबी मूंछे थ , जो गाल से नीचे
लटक रही थ । अपने मज़बूत शरीर के बावजूद उसक उ ढलने लगी थी, उसके सर और
मूंछ के सफेद बाल इसे बयां कर रहे थे। और माथे पर आ झु रयां।
जटायु ने शां त से कहा, ‘हम बस अभी आए है, श वेल। नाराज होने क ज़ रत
नह है।’
वहां मौजूद लोग, श वेल क आंख म भयानक गु सा दे ख पा रहे थे। अचानक,
वो ज़ोर से हंसने लगा। ‘जटा, मूख, बेवकूफ! आ मेरे गले लग जा!’
जटायु ने हंसते ए श वेल को गले लगाया। ‘तुम हमेशा बु गधे ही रहोगे,
श !’
सीता ने राम क तरफ मुड़कर भ ह चढ़ा । दो दो त को ऐसे गाली दे कर यार
जताता दे ख वो हैरान थ । राम ने मु कुराकर अपने कंधे उचका दए।
उनके आसपास खड़ी भीड़ दो दो त को ऐसे गले लगा दे ख ज़ोर से च लाने लगी।
साफ था, उनका र ता खास था। ये भी प था क वो दो त से बढ़कर, भाई क तरह थे।
आ खरकार, श वेल और जटायु ने एक- सरे को छोड़ा, ले कन अभी भी हाथ पकड़े रहे।
‘तु हारे मेहमान कौन ह?’ श वेल ने पूछा। ‘ य क अब ये मेरे मेहमान ह!’
जटायु मु कुराए और अपने दो त का कंधा पकड़कर बताया, ‘राजकुमार राम,
राजकुमारी सीता और राजकुमार ल मण।’
श वेल क आंख अचानक फैल ग । उ ह ने तुरंत हाथ जोड़कर नम ते क ।
‘वाह… वयं अयो या का शाही प रवार। ये तो मेरे लए गव क बात है। आपको रात मेरे
महल म ही बतानी होगी। और, आपको कल ज लीक भी दे खने आना होगा।’
राम ने वन ता से श वेल के अ भवादन का जवाब दया। ‘आपक
मेहमाननवाजी के लए ध यवाद। ले कन हमारे लए महल म ठहरना उ चत नह होगा। हम
नज़द क म ही जंगल म कगे। ले कन न त तौर पर कल तयो गता दे खने आएंगे।’
श वेल ने राम क सज़ा के बारे म सुन रखा था, इस लए उ ह ने बात को यादा
नह बढ़ाया। ‘कम से कम आपको हम अपने साथ भोजन करने का आनंद तो दे ना ही
होगा।’
राम झझके।
‘मेरे महल का सजीला खाना नह । जंगल म आपके साथ साधारण भोजन।’
राम मु कुराए। ‘उसके लए आपका वागत है।’
वा ल बाड़ वाले वेश ार के बाहर खड़ा था। बोदा-ज़ेबु बैल बस खुलने ही वाला था। ार
दरवाजे से ढं का था और बैल नह जानता था क दरवाजे के सरी तरफ कौन इंतज़ार कर
रहा था। तीन बैल पहले ही भाग चुके थे। दो हार गए थे, और उनक वण मु ाएं वजेता
ने ले ली थ । ले कन एक बैल सफलतापूवक अपना थैला बचाकर भाग नकला था। ये एक
तुरंत खेल था। येक को मु कल से एक मनट से भी कम समय दौड़ना था। अभी कम से
कम सौ बैल को और दौड़ना था। ले कन हर कोई खास इस त पधा का प रणाम जानना
चाहता था।
थानीय मं दर के पुजारी ने घोषणा क । ‘वृषांक सब वृषांक से ऊपर रहे, भु ,
आदमी और पशु को अपना आशीवाद दो!’
इं पुर म ज लीक त पधा शु करने क यह मानक घोषणा थी। और हमेशा क
तरह ही, इसके बाद, ज़ोरदार शंखनाद आ।
एक पल क खामोशी के बाद, धातु के दरवाजे खुलने क आवाज़ सुनाई द ।
‘जय ी !’ भीड़ ने ंकार लगाई।
ढं के ए दरवाजे के पीछे से वो पशु नकलकर आया। आमतौर पर, बैल एक ओर से
अपना कूबड़ पकड़ने क को शश करते ए आदमी को ध कयाते ए आगे नकलते थे।
बैल पर सामने से चढ़ाई करना खतरनाक हो सकता है, वो आपको अपने स ग से
कुचल भी सकता है। बैल के पीछे भी रहना उतना ही खतरनाक होता है, य क उसके
पछले पैर से मारने का डर रहता है। उसका कनारा ही सुर त होता है। इस लए बैल को
इस तरह श ण दया जाता है क वो आदमी को अपने कनारे आने का कम से कम
मौका ही द।
ले कन बोदा-ज़ैबू बैल आराम से टहलते ए बाहर नकला। उसे अपनी यो यता पर
पूरा भरोसा था। दरवाजे के पास छपा आ वा ल बैल के नकलते ही उस पर उछला। वा ल
के बैल से एक डेढ़ फुट छोटे कद को दे खते ए ये उसक शारी रक फुत ही कही जाएगी क
वो बैल के कूबड़ म अपनी बांह डालने म कामयाब रहा। बैल च क गया। कसी ने उसका
कूबड़ पकड़ने क को शश क थी। उसने ज़ोर से उछलना शु कर दया। ज़ोर से चघाड़ते
ए। अपने खुर को ज़ोर से ज़मीन पर मारते ए। अचानक, सबक सांस थमाते ए, उसने
तेज़ ग त से च कर मारना शु कर दया। वा ल क पकड़ छू ट गई। वो र जाकर गरा।
बैल तुरंत ही शांत हो गया। उसने घायल वा ल को दे खा, ज़ोर से चघाड़ा और फर
आराम से चलने लगा। धीरे-धीरे। नकास ार क तरफ। लापरवाही से भीड़ को घूरते ए।
भीड़ म से कोई वा ल को ो सा हत करने के लए च लाने लगा। ‘वीर पु ष! खड़े
हो जाओ!’
बैल ने भीड़ को दे खा और फर क गया। फर वो झील क तरफ मुड़ा, अपना
पछवाड़ा भीड़ क तरफ करते ए। फर उसने धीरे से अपनी पूंछ उठाकर मूत दया। फर,
उसी शान से, उसने दोबारा चलना शु कर दया। नकास ार क तरफ। आलस से।
ल मण धीमे से हंसे, अपना सर हलाते ए। ‘इस बैल पर दावं लगाना भूल जाओ।
दरअसल, ये बैल हम पर दावं लगा रहा है!’
राम ने ल मण के कंधे को थपथपाया। ‘वा ल को दे खो। वो खड़ा हो रहा है।’
वा ल अपने पैर पर खड़ा हो गया और अपनी छाती पर हाथ मारते ए ज़ोर से
च लाया। अपने पैर पर उछलते ए। उसके लंबे बाल हवा म लहरा रहे थे। वो बैल के पीछे
आया।
‘ये आदमी पागल है!’ ल मण ने चता से कहा। ‘वो बैल अपनी ल ी से ही इसक
सीना चूर कर दे गा!’
वा ल बैल के पास आया और ज़ोर क छलांग लगा द । वो बैल के ऊपर जाकर
गरा। हैरान पशु ने वा ल को पीछे से आते ए नह दे खा था, वो अब ज़ोर से अपनी पछली
टांग उठाने लगा। राजा को हलाकर गराने के लए। वा ल ने ढ़ता से उसे पकड़ लया। ज़ोर
से च लाते ए!
गु साया बैल भी चघाड़ा। अपने पर बैठे आदमी से कह यादा तेज़। अपने अगले
पैर ज़मीन पर झुकाते ए, अपना सर नीचे कर ज़ोर से उछलने लगा। ले कन वा ल पकड़े
बैठा रहा, पूरा समय च लाते ए।
बैल अचानक हवा म उछलकर अपना शरीर हलाने लगा। वो अभी भी अपने कूबड़
से चपके आदमी को गरा नह पाया।
भीड़ म खामोशी छा गई। सबके मुंह खुले रह गए थे। उ ह ने कोई भी ज लीक
त पधा इतनी दे र तक चलते ए नह दे खी थी। वहां सफ चघाड़ते बैल और च लाते
वा ल क आवाज़ ही सुनाई दे रही थ ।
बैल फर से उछला और कनारा लेते ए गरने लगा। उसका वजन वा ल को मार
सकता था। वो तेज़ी से बैल पर से उतरा। ले कन उतना भी तेज़ नह ।
बैल कनारे लेते ए गरा। वा ल बैल से उतरा, ले कन वा ल क बा बांह बैल के
अगले पैर के नीचे आ गई। ल मण को अपनी जगह से हड् डी टू टने क आवाज़ सुनाई द ।
वा ल को दद से च लाता न दे ख ल मण के मुंह से तारीफ नकली। बैल बना समय गवाएं
वापस खड़ा हो गया था। र खड़ा वो वा ल को दे ख रहा था। उसक आंख गु से से जल रही
थ । ले कन वो र ही खड़ा रहा।
‘बैल नाराज हो रहा है,’ राम फुसफुसाए। ‘मुझे लगता है उसने आदमी को कभी
इतनी ह मत करते ए नह दे खा है।’
‘बैठे रहो,’ सीता ने मानो मन ही मन वा ल से ज़मीन पर ही बैठे रहने क वनती क ।
ल मण खामोशी से वा ल को घूर रहे थे।
अगर वो आदमी ज़मीन पर ही लेटा रहता, बना हले, तो बैल सामा यतः हमला नह
करते। ले कन अगर वो खड़ा हो जाए…
‘बेवकूफ!’ वा ल को दोबारा खड़ा होता दे ख, सीता फुफकारी। वा ल क खून से
लथपथ बांह उसके एक ओर लटक ई थी। ‘बैठे रहो!’
ल मण का मुंह हैरानी से खुल गया। या आदमी है!
बैल भी सकते म दख रहा था और गु से म आदमी पर चघाड़ने लगा। उसने अपना
सर हलाया।
वा ल बार-बार अपने दा हने हाथ क मु सीने पर मारता आ उसे ललकार रहा
था, ‘वा ल! वा ल!’
भीड़ भी नारे लगाने लगी।
‘वा ल!’
‘वा ल!’
बैल आगे को झुका और अपने अगले खुर ज़ोर से ज़मीन पर पटके। मानो चेतावनी
दे रहा हो।
वा ल ने फर से अपने सीने पर हाथ मारा, उसक घायल बां बांह लापरवाही से
लटक ई थी। ‘वा ल!’
बैल पछली टांग पर खड़े होते ए, फर से चघाड़ा। इस बार और ज़ोर से। कान
को बहरा बना दे ने वाली आवाज़।
और फर, पशु आगे बढ़ा।
ल मण ने बाड़ पार कर द और उसी समय बैल क तरफ भागने लगा।
‘ल मण!’ राम और सीता भी बाड़ फांदकर ल मण के पीछे भागते ए च लाए।
ल मण वा ल और बैल के बीच क जगह क ओर भाग रहे थे। ये अयो या के
राजकुमार क खुश क मती थी क बैल ने उ ह अपनी ओर आता नह दे खा था।
ल मण वा ल से कह यादा लंबे थे। वो उससे यादा मज़बूत भी थे। ले कन
ल मण भी जानते थे क इस गु साए पशु के सामने कोई ताकत काम नह आने वाली। वो
जानते थे क उ ह बस एक ही मौका मलेगा। बैल के स ग शु ज़ेबु न ल के नह थे; ज़ेबु के
स ग सीधे सामने क तरफ चाकू के प म नकले होते ह। जब क सरी तरफ इस बोदा-
ज़ेबु क स ग बाहर क तरफ मुड़े ए थे, उसके सर पर खोखले याले क जगह बनाते ए।
बैल का यान वा ल पर था। वो अपना सर नीचे करके उसक तरफ गरजने लगा।
उसने अचानक ल मण के कनारे से आने पर यान नह दया। ल मण ने आगे छलांग
लगाई, अपनी छलांग को सट क करने के लए, अपने पैर को ख चते ए। जैसे ही उ ह ने
बैल के सर पर छलांग लगाई, ज द से एक हाथ बढ़ाकर उसके स ग से थैला उतार लया।
एक पल के लए बैल ल मण को अपने सर पर उठाकर ही आगे बढ़ा। ल मण ने अपने पैर
को पीछे ध का दया। बैल के सर को उ ोलन क तरह इ तेमाल करते ए वो पीछे क
तरफ उछल गए। ल मण के शरीर का वजन और आकार बैल का सर नीचे झुकाने के लए
काफ था। जैसे ही वो ज़मीन पर पलटे मारते ए उछले, बैल का सर नीचे ज़मीन पर आकर
लगा।
राम और सीता ने इस हलचल का फायदा उठाते ए ज द से वा ल को उठा लया
और द वार क तरफ भागे।
‘छोड़ दो, मुझ!े ’ वा ल ने उन दोन के बीच से नकलने का संघष करते ए
च लाया। ‘छोड़ दो, मुझ!े ’
वा ल के संघष क वजह से उसक टू ट बांह से और खून बहने लगा। उससे दद भी
अचानक बढ़ गया। ले कन राम और सीता नह के।
इस बीच, बैल ज द से अपने पैर पर खड़ा हो गया और ज़ोर से चघाड़ा। ल मण ने
अपना हाथ उठाकर थैला दखाया।
बैल को हमला करना चा हए था। ले कन उसे ब ढ़या श ण मला था। जैसे ही
उसने मु ा वाला थैला दे खा, अपना सर नीचे करके गुराने लगा। उसने अपने पीछे
मा लक को दे खा, जो नकास ार के पास खड़ा था। मा लक ने मु कुराकर कंधे उचकाकर
कहा, ‘आप कुछ जीतते हो। कुछ हारते हो।’
बैल ने वापस ल मण को दे खा, गुराया और अपना सर नीचे कर लया। मानो वह
स मान से अपनी हार वीकार रहा हो। ल मण ने अपने हाथ जोड़कर णाम कया और उस
शानदार पशु के सामने सर झुकाया।
बैल फर मुड़ा और धीरे-धीरे चलने लगा। अपने मा लक क तरफ।
इस बीच, वा ल बेहोश हो चुका था और राम और सीता उसे बाड़ के पार ले आए थे।
अ याय 29
दे र शाम को, श वेल जंगल म आया, जहां राम और उनका दल व ाम कर रहा था।
मु खया के पीछे कुछ आदमी भी थे, जनके हाथ म ह थयार के ग र थे।
राम ने खड़े होकर हाथ जोड़े। ‘वीर श वेल का वागत है।’
श वेल ने भी राम का अ भवादन कया। ‘ णाम, महान राजकुमार।’ उसने अपने
आद मय क तरफ इशारा कया क ग र को संभालकर ज़मीन पर रख द। ‘जैसा क
आपने कहा था, आपके ह थयार को चमकाकर, उन पर धार लगा द गई है।’
राम ने एक तलवार उठाई और उसक धार जांचकर मु कुराए। ‘ये तो ब कुल नई
जैसी हो गई है।’
श वेल का सीना गव से फूल गया। ‘हमारे पास भारत के सव े लौहार ह।’
‘ये तो सच है,’ सीता ने एक भाले को जांचते ए कहा।
‘राजकुमार राम,’ श वेल ने कुछ नज़द क आते ए कहा। ‘एक नजी बात करनी
थी।’
राम ने श वेल के साथ जाते ए सीता को आने का इशारा कया।
‘आपको ज द ही यहां से नकल जाना चा हए,’ श वेल ने कहा।
‘ य ?’ सीता ने हैरानी से पूछा।
‘वा ल।’
‘कोई उसे मारना चाहता था?’ राम ने पूछा। ‘जो अब वो हमसे नाराज ह?’
‘नह , नह । वा ल ही आपसे और राजकुमारी सीता से नाराज ह।’
‘ या? हमने तो उसक ज़दगी बचाई थी।’
श वेल ने आह भरी। ‘वो इसे ऐसे नह दे खता। उसके अनुसार आप दोन और
राजकुमार ल मण ने उससे उसका स मान छ न लया। वो कसी और के ारा बचाए जाने
से ज लीक म मर जाना पसंद करता।’
राम ने सीता को दे खा, उनक आंख हैरानी से फैल ग ।
‘दो शाही प रवार का यहां आपस म लड़ना मेरे नगर के हत म नह होगा,’
श वेल ने मा म अपने हाथ जोड़ते ए कहा। ‘दो हा थय क लड़ाई म कुचली तो घास
ही जाती है न।’
सीता मु कुरा । ‘म ये वा य जानती ं।’
‘ये उन लोग म लोक य वा य है, जो कुलीन नह ह,’ श वेल ने कहा।
राम ने अपना हाथ श वेल के कंधे पर रखा। ‘आप हमारे मेजबान हो। और हमारे
म भी। हमारी वजह से आपको कोई परेशानी नह होगी। हम कल दन नकलने से पहले
यहां से चले जाएंग।े आपक मेहमाननवाजी के लए ध यवाद।’
रात हो गई थी, जब जटायु और उनके तीन साथी समु तट के कनारे प ंचे। एक संक ण
जलडम म य के पार उ ह ने सात प को सा सेट प से सटे ए दे खा। घर म जलती
मशाल , ऊंचे काश तंभ , ग लय -सड़क के ढांच सा सेट प के पूव कनारे को रौशन
कर रहे थे। यक़ नन, इस बड़े प पर अब बसावट पहले से बढ़ गई थी। ये द ण के सात
प से दस गुणा बड़ा था। तो यक़ नन यहां ही बसावट अ धक बढ़नी थी। प के क म
ताजे पानी क झील भी थी। और नगर बनाने के लए पया त खुला े । यहां से मु य े
पर जाना भी आसान था, य क इसे अलग करने वाली खाड़ी संक ण और उथली थी।
एक समय ऐसा भी था जब सा सेट प के सात प स यता का क आ करते
थे। मु बादे वी प के पूव कनारे पर जबरद त बंदरगाह था, जहां बड़े-बड़े जहाज का
आना-जाना लगा रहता था। बंदरगाह पर बने प न अभी भी बरकरार थे। और प था क
वो ब त त रहते थे। जटायु को पूव छोर के चार छोटे प पर भी रौशनी जली दखाई
दे रही थीः परेल, मझगांव, छोटा कोलाबा और कोलाबा। ले कन प मी प मा हम और
वल दखाई नह दे रहे थे।
मु बादे वी के प मी पहा ड़यां, जहां वाके र थत था, इतने लंबे और सीधे थे क
दन के समय साफ दखाई दे ते थे। दरअसल, रात के समय पहाड़ पर बस कुछ ही चीज़
दखाई दे ती थ । मु य महल, मं दर और पुराने नगर का ढांचा। और वो रौशन होने क वजह
से दखाई दे रहे थे।
ले कन जटायु को वहां कुछ नह दखाई दे रहा था। कोई मशाल नह । कोई काश
तंभ नह । रहायश का कोई नशान नह ।
वाके र उजड़ा आ ही था। वहां बसावट नह ई थी।
जटायु उन भयानक दन को याद कर कांप गए। वो समय जब वो युवा सपाही
आ करते थे। जब रावण के फौजी आते थे… उसे अ छ तरह से याद था। वो भी तो कभी
उसका सपाही था।
भु परशु राम, मुझे मा कर… मेरे पाप के लए मुझे मा कर…
‘अ धप त,’ एक मलयपु सपाही ने कहा। ‘हम अभी पार करना चा हए या…’
जटायु मुड़े। ‘नह । हम सुबह पार करगे। हम रात म यहां आराम करगे।’
जटायु सोने क को शश म करवट बदल रहे थे। वो याद जो उ ह ने अपनी चेतना म दबा द
थ । उसके भूले ए अतीत के भयानक सपने।
उनक जवानी क याद। ब त ब त साल पहले क ।
रावण ने हम पर वजय के लए हमारे ही लोग का इ तेमाल कया।
जटायु उठ बैठे। उ ह खाड़ी के पार प दखाई दे रहा था।
कशोराव था म, जटायु म नागा होने के अपमान का दद और गु सा भरा था। जैसे
कोई वकृ त हो। ले कन सफ नागा ही नह थे, जनका अपमान हो रहा था। कई समुदाय
स त सधु के घमंडी कुलीन क कठोरता और घृणा का शकार बन रहे थे। और रावण उन
सबके लए एक व ोही नायक के प म उभरकर सामने आया। उसने उस ताकत का
उपयोग कया। उन उपे त लोग क ताकत का। अपने लए लड़ने के लए। उ ह ही मारने
के लए।
और उनका इ तेमाल कया।
उस समय जटायु बदले क इस भावना का मज़ा लेते थे। अपने घमंड म डू बे लोग
को नफरत से मारने का। जब तक क उसक टु कड़ी को अ हरावण इकाई म शा मल होने
को नह कहा गया।
रावण क फौज दो भाग म बंट गई थ । एक समूह को भू म सीमा क ज़ मेदारी
स पी गई, उसे म हरावण भारी कहा गया। और सरा समूह जसे समु और प न का
कायभार स पा गया उसे अ हरावण कहा गया।
ऐसे ही एक ह त नामक अ हरावण के साथ जटायु को मु बादे वी और इसके सात
प पर आने का आदे श मला।
उस समय इन सात प पर दे वे ार समुदाय रहता था, जसका नेतृ व इं न नाम
का एक रहम दल इंसान करता था। मु बादे वी और सरे सात प का इ तेमाल सामान के
आयात- नयात के गोदाम के प म कया जाता था, जनका सीमा शु क नाममा का था।
उदारमना दे वे ार हर ना वक को बना कसी भेदभाव के आपू त और शरण दया करते थे।
वो सबके साथ अ छा बताव करते थे। उनका मानना था क ऐसा करना उनका कत था।
ऐसा ही एक ना वक, जसे वहां कुछ समय तक शरण मली थी, जटायु था। वो ब त युवा
था। उ ह आज भी वो रहम दली याद थी। ये भारत म एक लभ थान था, जहां जटायु के
साथ भेदभाव भरा बताव नह कया गया था। उनका वागत सामा य इंसान क तरह ही
आ था। इस बताव से वो इतना अ भभूत थे क मु बा म ठहरने क पहली रात सो ही नह
पाए थे। भावना के आवेग म पूरी रात उनके आंसू बहते रहे थे।
और कई साल बाद वो वहां लौटे थे, उसी मु बादे वी प पर एक सै नक के प म।
रावण क रणनी तयां ब त प थ । वो भारत के सारे समु ापार पर अपना
एकछ नयं ण चाहता था। वै क ापार के गढ़ पर। जसका भी समु ापार पर डंका
होता, उसक तूती पूरी नया म बोलती। और एकछ नयं ण के बाद ही रावण मनमाने
कर लगा सकता था। उसने भारत के सभी मुख बंदरगाह के साथ, अरब, अ का और
द ण-पूव ए शया के अ धकांश समु े पर नयं ण था पत कर लया था। उन भाग
पर उसका नयम चलता था।
ले कन मु बादे वी ने उसक ऊंची दर और कसी ना वक को शरण न दे ने के आदे श
को पूरी तरह से ठु करा दया था। यहां के नवा सय का मानना था सेवा ही उनका कत है।
उनका धम है। रावण को सधु-सर वती और लंका के बीच पड़ने वाले इस प न पर नयं ण
था पत करना था।
अ हरावण ह त को इसका समाधान खोजने के लए भेजा गया। और ज़ रत
पड़ने पर बल योग के लए भी। लंका क फौज मु बादे वी के पूव तट पर लंगर डाले अपने
जहाज म श वर लगाए बैठ थी। एक स ताह तक। कुछ नह आ। आ खरकार उ ह
वाके र जाने का आदे श मला। वाके र मु बादे वी के प मी भाग म था, जहां महल और
भु को सम पत मं दर था। उसी के ठ क सामने ाकृ तक ोत वाली वो झील भी थी।
जटायु, क न सपाही होने के नाते पछली पं म थे।
वह जानते थे क दे वे ार यु नह करगे। वो ना वक , अ भयंता , च क सक ,
दाश नक और कहानीकार का शां त य समुदाय था। उनम ब त ही कम यो ा थे। जटायु
बेस ी से चाह रहे थे क समझौता हो जाए।
महल के ठ क सामने, नगर के मु य चौक म जो य उ ह ने दे खा उसने उ ह हला
दया।
वो पूरी तरह उजाड़ था। कोई भी इंसान नज़र नह आ रहा था। सारी कान खुली
पड़ी थ । सामान बखरा पड़ा था। ले कन उनक दे खभाल करने वाला कोई नह था।
चौक के बीचोबीच पेड़ क छाल का बड़ा सा ढे र रखा था, चंदन के चूरे से मला
आ। वो कसी धातु क जाली म फंसाकर रखा गया था। पूरी तरह से घी म डू बा आ। उसे
यक़ नन अभी हाल ही म बनाया गया था। शायद, पछली रात ही।
वो कसी वशाल, बना जली चता के समान लग रहा था। भयानक। इतना बड़ा क
सैकड़ लाश को समा ले।
उसम एक पगडंडी थी, जो ऊपर शीष तक जाती थी।
ह त ने कहा था क वो वहां आ मसमपण और फर शां त से दे वे ार का
न कासन क उ मीद से आया था। ये अनपे त था। उसने तुरंत अपने दल को यु संरचना
म तैयार कर दया।
महल क द वार के पीछे से सं कृत के ोक पढ़े जा रहे थे। उनके साथ घं टय
और ढोल क प व व न भी सुनाई दे रही थी। लंकावा सय को उन ोक का मतलब
समझने म कुछ समय लगा।
वो ग ड़ पुराण से थे। वो ोक जो मृ यु के समय पढ़े जाते थे।
दे वे ार सोच या रहे थे? उनके महल क द वार इतनी मज़बूत नह थी क हमले
को झेल सक। उनके पास इतने सै नक नह थे जो लंका के पांच हजार सै नक का मुकाबला
कर सक।
अचानक महल के प रसर से धुंआ उठने लगा। गाढ़ा, कसैला धुंआ। लकड़ी का
महल जलने लगा था।
और फर, झटके से दरवाज़ा खुल गया।
ह त का आदे श तेज़ और प था। ‘ नकाल लो! और पकड़ लो!’
सारे लंकावा सय ने तुरंत अपने ह थयार नकाल लए थे। अपनी जगह पकड़े ए।
सै नक अनुशासन म। हमले क उ मीद म…
दे वे ार के राजा, इं न अपनी जा के आगे महल से नकले। सबके साथ। उनका
पूरा प रवार। पूजारी, ापारी, कारीगर, बौ क, च क सक, कलाकार। आदमी, औरत,
ब चे। उनके सारे नाग रक।
सारे दे वे ार।
उन सबने भगवा व पहन रखे थे। अ न दे वता के तीक व प। अं तम या ा का
रंग।
हरेक के चेहरे पर पुरसुकून दखाई दे रहा था।
वो अभी भी मं ो चार कर रहे थे।
हरेक दे वे ार के पास वण और आभूषण था। हरेक अपनी संप लए जा रहा
था। और सभी के पास एक छोट बोतल थी।
इं न पगडंडी तक गए, जो ऊपर चता तक जा रही थी। उ ह ने अपने लोग क
तरफ सर हलाया।
उ ह ने अपनी वण मु ाएं और आभूषण लंका के सै नक क तरफ फक दए।
इं न क आवाज़ तेज़ और प थी। ‘तुम हमारी सारी संपदा ले सकते हो! तुम
हमारी ज़दगी ले सकते हो! ले कन तुम हम अधम करने पर मजबूर नह कर सकते!’
लंका के सपाही सु खड़े थे। वो नह जानते थे क या त या द। वो नदश के
लए अपने अ धप त को दे ख रहे थे।
ह त ज़ोर से च लाए। ‘राजा इं न, कुछ भी करने से पहले अ छ तरह सोच लो।
भु रावण तीन लोक के वामी ह। यहां तक क भगवान भी उनसे डरते ह। तु हारी आ मा
तु ह कोसेगी। अपना माल लो और यहां से चले जाओ। आ मसमपण कर दो, तुम पर दया
क जाएगी।’
इं न दयालुता से मु कुराए। ‘हम कभी अपने धम का समपण नह कर सकते।’
फर राजा दे वे न ने लंका के सपा हय को दे खा। ‘अपनी आ मा को बचा लो। तुम
अपने कम का फल ही लेकर जाओगे। कोई और नह । आप कम से सफ ये कहकर नह
बच सकते क हम तो बस आदे श नभा रहे थे। अपनी आ मा को बचाओ। अपनी भलाई
चुनो।’
लंका के कुछ सै नक हलते दखे। उनके ह थयार वाले हाथ कांप रहे थे।
‘अपने ह थयार पकड़ो!’ ह त च लाया। ‘ये एक चाल है।’
इं न ने अपने मु य पुजारी क तरफ सर हलाया। पुजारी लकड़ी के ढे र के पास
आया और उसे आग दखाई। ढे र ने तुरंत ही आग पकड़ ली। चता तैयार थी।
इं न ने अपनी छोट शीशी उठाई और एक झटके म उसे पी गए। उसम शायद कोई
दद नवारक होगा।
‘म बस इतना ही क ंगा क हमारे भगवान का अपमान नह करना। हमारे मं दर को
अशु मत करना।’ इं न ने दया से ह त को दे खा। ‘बाक जो आपक मज हो करना।’
ह त ने फर से अपने सपा हय को आदे श दया। ‘ थर। कोई भी अपनी जगह से
न हले!’
इं न ने अपने हाथ जोड़कर णाम कया और आसमान को दे खा। ‘जय ! जय
परशु राम!’
इतना कहकर, इं न ने आग म छलांग लगा द ।
जटायु दद से च ला उठे । ‘नह !’
लंका के सपाही आतंक से जड़ खड़े थे।
‘ हलना नह !’ ह त फर से अपने सपा हय पर च लाया।
सरे सभी दे वे ार अपनी औष ध पीकर, पगडंडी पर चढ़ने लगे। वशाल चता म
एक-एक कर कूदने के लए। तेज़ी से। समूह म। येक। आदमी, औरत, ब चे। अपने नेता
के पीछे । अपने राजा के पीछे ।
तकरीबन एक हजार दे वे ार थे। उन सबको कूदने म कुछ समय लगा।
कोई भी लंकावासी आगे बढ़कर उ ह बचाने नह आया। ह त के पास खड़े कुछ
अ धका रय ने तो मयादा क सारी सीमाएं लांघ द , वो दे वे ार ारा फके आभूषण उठाने
लगे। उनम से े अपने लए छांटते ए। आपस म उनक क मत क चचा करते ए।
जब क दे वे ार अभी सामू हक आ मह या कर ही रहे थे। ले कन लंका के अ धकांश सै नक
जड़ खड़े थे। सकते म जड़।
जैसे ही आखरी दे वे ार ने चता म छलांग लगाई, ह त ने अपने आसपास दे खा।
वो अपने सपा हय के चेहरे के सदमे को समझ सकता था। वो ज़ोर से हंसने लगा। ‘उदास
मत हो, मेरे सपा हय । सारा वण तुम सबम बराबरी से बांटा जाएगा। तुम सफ आज ही म
पूरी ज़दगी से यादा कमाई कर लोगे! मु कुराओ अब तुम धनी हो गए!’
श द ने अपे त भाव नह डाला। ब त से अपनी आ मा क ध कार म दब गए।
उस पीड़ा म जसके वो सा ी बने थे। स ताह भर म ही ह त के आधे से यादा सपाही
उसे छोड़कर चले गए। जटायु भी उ ह म से एक थे।
वो अब और रावण के लए नह लड़ सकते थे।
लहर के च ान से टकराने क आवाज़ जटायु को उन ददभरी आवाज़ से वतमान
म ले आई।
उनका शरीर कांप रहा था। उनक आंख से आंसू झर रहे थे। उ ह ने माफ म अपने
हाथ जोड़ते ए, सर झुकाया। उ ह ने मु बादे वी क सी ढ़य को दे खने का साहस दखाया।
वाके र क पहा ड़य पर।
‘मुझे माफ कर दो, राजा इं न… माफ कर दो…’
ले कन वहां पछतावे के अलावा कुछ नह था।
‘बस!’ सीता ने झुंझलाहट से कहा। ‘तुम उतनी साफ हो गई हो, जतना हो सकती थी। अब
पानी से बाहर नकल आओ। हम जा रहे ह।’
शूपणखा ने फर से जंगल को दे खा।
सीता ने च पू उठा लए। ‘म जा रही ं। तुम चाहे तो यह रहो या अकेले आना।’
शूपणखा गु से से कांप गई, ले कन समपण कर दया।
सीता ज द ही नाव ले आई थ । अब वहां से श वर तक क दस मनट क चढ़ाई
थी। उ ह ने शूपणखा के नाव से उतरने का इंतज़ार कया।
सीता ने न तो उ मीद क थी, न ही उ ह शूपणखा क तरफ से नाव को कनारे तक
ख चकर, र सी से बंधवाने म कोई मदद मली। शूपणखा सीता के पीछे ही खड़ी थी, जब
सीता झुककर, अपने सीधे हाथ म र सी लपेटकर, नाव का कनारा पकड़ उसे बांधना शु
करने वाली थ ।
उनका यान अपने काम पर था, और नाव को अपनी तरफ ख चे रखने म ज़ोर भी
लगाना पड़ रहा था, तो वो यान नह दे पा क शूपणखा अपने थैले से बू टयां नकालकर
उनके मुंह पर रगड़ने आ रही थी।
शूपणखा एक खास क म का साबून और सुगंधी इ तेमाल करती थी, जो वो अपने
साथ थैले म रखकर ले गई थी। उसक महक खास थी। जंगल क सामा य खुशबू से कुछ
अलग।
यही वह सुगंध थी, जसने सीता को बचाया था।
वो एकदम समय पर संभल गई थ , नाव छोड़ते ए। तभी जब शूपणखा वो बू टयां
सीता के मुंह म ठू सने के लए उन पर कूद थी। सीता ने मुड़कर लंका क राजकुमारी पर
कोहनी से वार कया। शूपणखा पीछे जाकर गरी और गु से से च लाने लगी। सीता लंका
क राजकुमारी क तरफ बढ़ , ले कन हाथ म लपट र सी ने उनका संतुलन बगाड़ दया।
मौके का फायदा उठाकर शूपणखा ने सीता को पानी म ध का दे दया। ले कन गरते ए भी
सीता ने शूपणखा पर फर से कोहनी से वार कया। शूपणखा ज द से उठते ए सीता के
पीछे पानी म कूद , और दोबारा से उनके मुंह म बूट ठूं सने क को शश करने लगी।
शहरी शूपणखा के मुकाबले सीता लंबी, मज़बूत और चु त थ । उ ह ने शूपणखा को
ज़ोर से ध का दया, वो कुछ र जाकर गरी। उ ह ने बू टयां थूक द और तुरंत अपने यान
से चाकू नकालकर र सी काट डाली। उ ह ने पानी म तैरती बू टय को दे खा, वो उ ह
पहचान ग । वो शूपणखा तक प ंचने के लए पानी म बढ़ ।
तब तक, शूपणखा संभल चुक थी। वो सीता क तरफ तैरकर आई और अपनी
मु य से उ ह मारने लगी। सीता ने उसके दोन हाथ अपने बाएं हाथ म पकड़े; फर इतनी
ज़ोर से च ला क लंका क राजकुमारी को पीछे मुड़ना पड़ा। फर सीता ने शूपणखा के
गले म बांह डालते ए उसे अपने करीब भ च लया।
फर सीता ने उसके गले पर चाकू रख दया। ‘एक और हरकत, और बगड़ैल
राजकुमारी, म तु हारा गला चीर ं गी।’
शूपणखा खामोश हो गई और संघष करना बंद कर दया। सीता ने चाकू वापस यान
म रख लया। फर उ ह ने र सी के टु कड़े उठाकर शूपणखा के हाथ बांध दए। उ ह ने
उसका अंगव लेकर उसके मुंह पर बांध दया।
उ ह ने शूपणखा का थैला दे खा और उ ह उसम थोड़ी और बूट मली।
‘अगर अब तुमने कुछ और हरकत क तो म ये तु हारे मुंह म डाल ं गी।’
शूपणखा खामोश रही।
सीता उसे श वर क तरफ ख चकर चलने लगी।
श वर से कुछ र रहने पर शूपणखा के मुंह पर बंधा अंगव ढ ला होकर गर
गया। उसने तुरंत च लाना शु कर दया।
‘चुप रहो!’ उसे ख चते ए सीता च लाई।
य प शूपणखा पूरी जान लगाकर च लाती रही।
कुछ ही दे र म वो श वर पर प ंच गए थे। सीता, लंबी, शाही ले कन भीगी और
ो धत। शूपणखा को ख चकर लाने के कारण उनक मांसपे शयां अकड़ी ई थ । लंका क
राजकुमारी के हाथ बंधे ए थे।
राम और ल मण ने तुरंत अपनी तलवार बाहर ख च ली, वहां उप थत सरे लोग ने
भी तलवार तान ली थ ।
सबसे पहले अयो या के छोटे राजकुमार ही कुछ पूछ पाने क थ त म आए।
वभीषण को गु से से दे खते ए उ ह ने पूछा, ‘यहां या हो रहा है?’
वभीषण दोन म हला से अपनी आंख नह हटा पा रहा था। वह वा तव म घबरा
गया था, ले कन तुरंत ही साहस बटोरकर उसने जवाब दया। ‘आपक भाभी मेरी बहन के
साथ या कर रही ह? यक़ नन उ ह ने ही शूपणखा पर हमला कया होगा।’
‘बंद करो यह नाटक!’ ल मण च लाए। ‘भाभी ऐसा कुछ नह करगी, अगर तु हारी
बहन ने सामने से हमला नह कया होता तो।’
इस दौरान, सीता लोग के बीच प ंच ग , उ ह ने शूपणखा को छोड़ दया था। लंका
क राजकुमारी के होश उड़े ए थे, और वह पूरी तरह से नयं ण से बाहर थी।
वभीषण तुरंत अपनी बहन क ओर बढ़ा, और एक चाकू से उसक र सी काट द ।
उसने शूपणखा के कान म कुछ कहा। ‘मुझे संभालने दो। चुप रहो।’
शूपणखा ने वभीषण को घूरा, मानो ये सब उसक गलती हो।
सीता राम क ओर मुड़ और शूपणखा क ओर इशारा करके बोल । उनके हाथ म
कुछ बू टयां थ । ‘यह नीच लंकावासी मेरे मुंह म यह डालकर, मुझे पानी म धकेलने वाली
थी!’
राम उन बू टय को पहचान गए। आमतौर पर यह श य च क सा से पहले, रोगी को
बेहोश करने के लए द जाती थी। उ ह ने वभीषण को दे खा, उनके ने ोध से जल रहे थे।
‘यह या हो रहा है?’
वभीषण तुरंत खड़ा हो गया, उसका वहार वनती वाला था। ‘ज़ र कुछ
ग़लतफहमी ई है। मेरी बहन ऐसा कुछ नह कर सकती।’
‘ या तुम कहना चाहते हो क यह मेरी क पना थी क वह मुझे पानी म ध का दे
रही थी?’ सीता ने उ े जत हो पूछा।
वभीषण ने शूपणखा को घूरा, जो अब तक खड़ी हो चुक थी। वह उससे चुप रहने
क वनती कर रहा था। ले कन वह उसका इशारा समझना ही नह चाहती थी।
‘यह झूठ है!’ शूपणखा च लाई। ‘मने ऐसा कुछ नह कया है!’
‘तो या तुम मुझे झूठा कह रही हो?’ गरजते ए सीता ने पूछा।
आगे जो आ, उसम कसी के पास सोचने का समय नह बचा था। शूपणखा दौड़ती
ई सीता क ओर आई, उसने अपना चाकू नकाल लया था। सीता के पास खड़े ल मण
च लाते ए आगे बढ़े , ‘भाभी!’
सीता तुरंत हमले से बचने के लए वपरीत दशा म घूम । पल भर म ही ल मण
आगे आए, और उ ह ने भागकर आती ई शूपणखा के दोन हाथ पकड़कर, उसे पीछे
धकेला। लंका क बली सी राजकुमारी, उछलते ए पीछे गरी, और उसके खुद के हाथ
का चाकू गरते व उसके मुंह पर आ लगा। चाकू सीधा गरा था, इससे उसक नाक कट
गई। अब चाकू और शूपणखा दोन ज़मीन पर पड़े थे, सदमे क वजह से उसे कसी दद का
अहसास नह आ।
खून तेज़ी से बहने लगा था, ले कन उसका दमाग़ अभी या आ, उसे समझने क
को शश कर रहा था। उसने अपने चेहरे को छु आ, और हाथ पर खून के नशान दे ख।े वह
समझ गई थी क उसके चेहरे पर गहरा नशान पड़ा था। उसे हटाने के लए उसे ददनाक
श य च क सा करवानी पड़ेगी।
वह नफरत से च लाई और फर से आगे भागी, इस बार उसका नशाना ल मण थे।
वभीषण ने आगे बढ़कर अपनी पगलाई ई बहन को पकड़ लया।
‘उ ह मार दो!’ शूपणखा गु से से च लाई। ‘सबको मार दो!’
‘ठहरो!’ घबराए ए वभीषण ने उसे संभालते ए कहा। वह जानता था क वो
सं या म यादा थे। वह मरना नह चाहता था। और उसे मृ यु से यादा कसी भयानक
अनहोनी का भय था। ‘ को!’
राम ने अपना बायां हाथ उठाया, उनक मु भची ई थी, यह अपने लोग को
कने, ले कन सचेत रहने का इशारा था। ‘राजकुमार, इसी ण चले जाओ। नह , तो इसक
क मत चुकानी पड़ेगी।’
‘भूल जाओ हम या कहा गया था!’ शूपणखा च लाई। ‘उन सबको मार डालो!’
राम ने ढ़ता से वभीषण से कहा, जो पूरे बल से शूपणखा को रोकने क को शश
कर रहा था। ‘राजकुमार वभीषण, इसी ण चले जाओ।’
‘वापस चलो,’ वभीषण ने कहा।
उसके सपाही पीछे हटने लगे, उनक तलवार अभी भी जंगलवा सय क ओर उठ
ईथ।
‘उ ह मार दो, कायर!’ शूपणखा ने अपने भाई को झड़कते ए कहा। ‘म तु हारी
बहन ं! मेरा बदला लो!’
वभीषण ने छटपटाती ई शूपणखा को ख चा, उसक आंख राम पर थ , वह
अक मात् घटना के लए सचेत था।
‘उ ह मार दो!’ शूपणखा च लाई।
वभीषण वरोध करती ई बहन को ख चकर पंचवट से बाहर ले गया, और
लंकावा सय ने भी श वर छोड़ दया।
राम, ल मण और सीता अपने थान पर जड़ खड़े थे। जो भी आ वह अक पनीय
तबाही थी।
‘हम यहां और नह ठहर सकते,’ जटायु ने कहा। ‘हमारे पास कोई वक प नह है।
हम अभी यहां से नकलना होगा।’
राम ने जटायु को दे खा।
‘हमने लंका का शाही खून बहाया है, भले ही वे शाही व ोही ह ,’ जटायु ने कहा।
‘उनके नयम के मुता बक रावण के पास बदले के अ त र और कोई वक प नह है। ऐसा
ही स त सधु के सरे शाही लोग भी करते, है न? रावण ज़ र आएगा। इस बारे म कोई
संदेह नह है। वभीषण कायर है, ले कन रावण और कुंभकण नह । वे हज़ार सपा हय को
लेकर आएंगे। यह म थला से भी भयंकर होगा। वहां तो सपा हय म लड़ाई ई थी; यु का
ही एक भाग, उ ह ने उसे मान लया होगा। ले कन यहां मामला गत है। उसक बहन,
प रवार क सद य, पर हमला आ है। खून बहा है। अब बात उसके स मान क है।’
ल मण ने अकड़ते ए कहा। ‘ले कन मने उस पर हमला नह कया। वह…’
‘रावण इसे ऐसे नह दे खेगा,’ जटायु ने उनक बात काटते ए कहा। ‘वह आपसे
ववरण नह मांगेगा, राजकुमार ल मण। हम भागना होगा। अभी, इसी व ।’
अ याय 32
… मशः