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कॉम ो ाम थम वष : ह द भाषा और सा ह य
डॉ. ीधरम
1
(सुमं ने रथ को हाँका, घोड़े राम क ओर दे ख-दे खकर हन हनाते ह। यह दे खकर नषाद लोग
वषाद वश सर धुन-पीट-पीटकर पछताते ह। क आज ीराम के साि न य का अवसर मुझे य
नह ं मला)
2
क सौगंध है , म सब सच-सच कहता हूँ। ल मण भले ह मुझे तीर मार, पर जब तक म पैर को
पखार न लँ ूगा, तब तक हे कृपालु! म पार नह ं उता ँ गा।)
3
चरण को धोकर और सारे प रवार स हत वयं उस जल (चरणोदक) को पीकर पहले (उस महान
पु य के वारा) अपने पतर को भवसागर से पार कर फर आनंदपूवक भु राम को गंगा के पार
ले गया॥ 101॥
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तमू त ह। ले कन केवट सीधे मुंह अपनी बात कहने से हचक रहा है । य क राम अयो या के
राजकुमार ह और केवट एक नाचीज इंसान अथात सामा य नाग रक। इसी लए वह अपने दल क
बात कहने के लए एक बहाना ढूँढता है । और वह बहाना है अह या- संग का। इससे पहले ी
राम तरवत हो चक
ु मु न प नी को फर से सजीव और चलायमान कर चक
ु े थे। केवट कहता
है क आपक चरण-धू ल का ये चम कार है क प थर भी ी बन जाती है । अगर मेर नाव ी
बन गई तो म कैसे अपने प रवार का भरण पोषण कर पाऊँगा? यहाँ तल
ु सीदास यह दखाने का
यास करते ह क ीराम ेम के वशीभत
ू होकर ‘सामा य’ और ‘ व श ट’ क दरू और अंतर को
समा त कर दे ते ह।
इस म म यह भी यान दे ने क बात है क गंगा नद आज बहुत स न है , य क आज राम
के चरण का वह पश कर पाएगी। मनु य और कृ त के बीच का यह तादा य वेद से लेकर
पौरा णक युग तक अ ु ण रहा है । ये अलग बात है क मनु य और कृ त के इस भाईचारे को
हम वकास क ब लवेद पर चढ़ा चुके ह और आज गंगा अपने कसी उ धारक राम के लए बाट
जोहते हुए अपनी आँख पथरा चुक है । तुलसीदास के श द म राम कृपा संधु अथात ‘कृपा के
सागर’ ह। उनका धम बांटने वाला नह ं जोड़ने वाला है - ‘ शव ोह मम दास कहवा, सो नर सपनेऊ
मो ह नह ं भावा।’ आप दस
ू रे से ोह और नफरत कर राम को नह ं पा सकते ह। उनका ेम पाने
के लए तो केवट जैसा सरल दय चा हए। और सबसे बड़ी बात भि त या ेम म नल भ होना
पहल शत है। ई वर के बनाए मानव ह नह ं पशु-प ी और कृ त से म
े ह भि त है । सीता
केवट को नद पार कराने के बदले अपनी य अंगूठ दे ना चाहती है ले कन केवट वन ता पूवक
मना कर दे ते ह। इस कार हम दे खते ह क ‘केवट संग’ के बहाने गो वामी तुलसी दास ने
भि त का जो व प हमारे सामने तुत कया है वह स ध सूफ क व जायसी के श द म
‘मानुस पेम भयउ बैकंु ठ ’ है। अथात ई वर ‘वग’, ‘वण’ और सं दाय क दरू को मटाकर सफ
मानव मा से ेम करते ह। और जो मानव जीव मा के साथ-साथ कृ त से भी ेम करता है
वह असल भ त है ।
पाठ व तार के लए दे ख
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