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बी.

कॉम ो ाम थम वष : ह द भाषा और सा ह य

रामच रत मानस का ‘केवट संग’ : एक व लेषण

डॉ. ीधरम

(छा पा यपु तक म दए गए गो वामी तुलसीदास के कृ त व और यि त व से भल भाँ त प र चत ह। यहाँ सफ


‘केवट संग’ का पाठ व लेषण दया जा रहा है ता क संद भत न के उ र दे ने म आसानी हो)

तुत पाठ म गो वामी तुलसीदास ने ीराम का जो यि त व हमारे सामने तुत कया है वो


मानवता और ेम से ओत ोत है। तुलसीदास के राम ेम के भूखे ह। वे प ट कहते ह क, “सब
ते अ धक मनुज मो ह भाए”। उनके े मल छाया म मानव से लेकर पशु-प ी, क ट-पतंग, जड़-
जंगम सबको जगह मलती ह। ीराम कमजोर अथात सामा य लोग का साथ दे ने के लए हर
क मत चक
ु ाने को तैयार रहते ह। उनके म म वानर सु ीव, हनम
ु ान, ग ध जटाय,ु द लत ी
सबर , सुमं और केवट सब शा मल ह। तुत पाठ का यह संग ीराम के वनगमन का है।
ीराम अपने पता के लाख मनाने के बावजद
ू चौदह वष के लए अपनी भाया अथात प नी सीता
और अनुज ल मण के साथ वन-या ा पर नकल चुके ह। राजा दशरथ ने अपने सारथी सुमं से
कहा था क राम को थोड़ा जंगल घूमा- फराकर और गंगा नान कराकर सीधे अयो या वापस ले
आना, ले कन राम तो मयादा पु षो म थे। वे तो अपने ाण क क मत पर ‘वचन’ को नभाने
वाले थे। इसी लए वे सारथी सुमं को समझा-बुझाकर कसी तरह वा पस अयो या भेजकर जंगल
क तरफ नकल गए। ले कन जंगल के रा ते म उ ह सबसे पहले गंगा पार करना था जहां उनक
भट भ त केवट से होती है जो कसी भी कार से उनका चरण धो लेना चाहता है , ता क उसका
इहलोक और परलोक, दोन सध
ु र जाए। दरअसल अनपढ़ केवट राम के पाँव धोने के लए जो
भोला-भाला तक दे ता है वह उसके सरल दय और अकंु ठ ेम का माण है । तो आइये दे खते ह
रामच रतमानस के इस अ भत
ु संग का भावाथ स हत मल
ू पाठ और फर उसका व लेषण करते
ह। को ठक म भावाथ दए जा रहे ह ता क श दाथ भी आसानी से समझ म आ जाए-

दो० - रथु हाँकेउ हय राम तन हे र हे र ह हना हं।


दे ख नषाद बषादबस धुन हं सीस प छता हं॥ 99॥

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(सुमं ने रथ को हाँका, घोड़े राम क ओर दे ख-दे खकर हन हनाते ह। यह दे खकर नषाद लोग
वषाद वश सर धुन-पीट-पीटकर पछताते ह। क आज ीराम के साि न य का अवसर मुझे य
नह ं मला)

जासु बयोग बकल पसु ऐस। जा मातु पतु िजइह हं कैस॥


बरबस राम सम
ु ं ु पठाए। सरु स र तीर आपु तब आए॥
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तु हार मरमु म जाना॥
चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष कर न मू र कछु अहई॥
छुअत सला भइ ना र सुहाई। पाहन त न काठ क ठनाई॥
तर नउ मु न घ रनी होइ जाई। बाट परइ मो र नाव उड़ाई॥
ए हं तपालउँ सबु प रवा । न हं जानउँ कछु अउर कबा ॥
ज भु पार अव स गा चहहू। मो ह पद पदम
ु पखारन कहहू॥
(िजस राम के अयो या छोड़ने के वयोग म पशु भी इस कार याकुल ह, उनके वयोग म जा,
माता और पता कैसे जीते रहगे? राम ने जबरद ती सुमं को लौटाया। और फर गंगा के तट पर
आए। राम ने केवट से नाव माँगी, पर उसने हचकते हुए मना कर दया। वह कहने लगा - मने
आपका मम (भेद) जान लया है। आपके चरण कमल क धूल के लए सब लोग कहते ह क
उसम मनु य बना दे नेवाल कोई चम कारपण
ू जड़ी है । िजसके छूते ह प थर क शला संद
ु र ी
हो गई थी और मेर नाव तो लकड़ी क है । काठ प थर से कठोर तो होता नह ं। मेर नाव भी
मु न क ी हो जाएगी और इस कार मेर नाव उड़ जाएगी, म लट
ु जाऊँगा अथात रा ता क
जाएगा, िजससे आप पार न हो सकगे और मेर रोजी मार जाएगी। मेरा कमाने-खाने का ज रया
ह मारा जाएगा। म तो इसी नाव से सारे प रवार का पालन-पोषण करता हूँ। दस
ू रा कोई धंधा नह ं
जानता। हे भु! य द आप अव य ह पार जाना चाहते ह तो मुझे पहले अपने चरण-कमल पखारने
(धो लेने) के लए कह द िजए।)

छं ० - पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चह ।


मो ह राम राउ र आन दसरथ सपथ सब साची कह ॥
ब तीर मारहुँ लखनु पै जब ल ग न पाय पखा रह ।
तब ल ग न तुलसीदास नाथ कृपाल पा उता रह ॥
(तुलसीदास कहते ह क केवट ने ीराम से कहा- हे नाथ! म चरण कमल धोकर आप लोग को
नाव पर चढ़ा लँ ग
ू ा; म आपसे कुछ ‘उतराई’ नह ं चाहता। हे राम! मुझे आपक दह
ु ाई और दशरथ

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क सौगंध है , म सब सच-सच कहता हूँ। ल मण भले ह मुझे तीर मार, पर जब तक म पैर को
पखार न लँ ूगा, तब तक हे कृपालु! म पार नह ं उता ँ गा।)

सो० - सु न केवट के बैन ेम लपेटे अटपटे ।


बहसे क नाऐन चतइ जानक लखन तन॥ 100॥
(केवट के ेम म लपेटे हुए अटपटे वचन सन
ु कर क णाधाम राम जानक और ल मण क ओर
दे खकर हँसे। अथात केवट के ेम क तरफ उन दोन का यान आक षत कया)

कृपा संधु बोले मुसक


ु ाई। सोइ क जे हं तव नाव न जाई॥
बे ग आनु जल पाय पखा । होत बलंबु उतार ह पा ॥
जासु नाम सु मरत एक बारा। उतर हं नर भव संधु अपारा॥
सोइ कृपालु केवट ह नहोरा। जे हं जगु कय तहु पगहु ते थोरा॥
पद नख नर ख दे वस र हरषी। सु न भु बचन मोहँ म त करषी॥
केवट राम रजायसु पावा। पा न कठवता भ र लेइ आवा॥
अ त आनंद उम ग अनुरागा। चरन सरोज पखारन लागा॥
बर ष सुमन सुर सकल सहाह ं। ए ह सम पु यपज
ुं कोउ नाह ं॥
(केवट के ेम भरे भाव से भाव वभोर होकर कृपा के समु राम केवट से मुसकराकर बोले – आप
वह क िजए िजससे आपक नाव बची रहे । ज द पानी लाकर मेरे पैर धो द। दे र हो रह है , पार
उतार द। तुलसीदास कहते ह क एक बार िजनका नाम मरण करते ह मनु य अपार भवसागर
के पार उतर जाते ह और िज ह ने अपने वामनावतार म स पूण जगत को अपने तीन कदम से
भी छोटा कर दया था (दो ह पग म लोक को नाप लया था), वह कृपालु राम गंगा पार करने
के लए केवट का नहोरा अथात वनती कर रहे ह! भु के इन वचन को सुनकर गंगा क बु ध
मोह से खंच गई थी ( क ये सा ात भगवान होकर भी पार उतारने के लए केवट का नहोरा कैसे
कर रहे ह)। परं तु (समीप आने पर अपनी उ प के थान) पदनख को दे खते ह (उ ह पहचानकर)
दे वनद गंगा ह षत हो ग । (वे समझ ग क भगवान नरल ला कर रहे ह, इससे उनका मोह न ट
हो गया; और इन चरण का पश ा त करके म ध य होऊँगी, यह वचारकर वे ह षत हो ग ।)
केवट राम क आ ा पाकर कठौते म भरकर जल ले आया। अ यंत आनंद और ेम म उमंगकर
वह भगवान के चरणकमल धोने लगा। सब दे वता फूल बरसाकर सहाने लगे क इसके समान
पु य क रा श कोई नह ं है ।)

दो० - पद पखा र जलु पान क र आपु स हत प रवार।


पतर पा कर भु ह पु न मु दत गयउ लेइ पार॥ 101॥

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चरण को धोकर और सारे प रवार स हत वयं उस जल (चरणोदक) को पीकर पहले (उस महान
पु य के वारा) अपने पतर को भवसागर से पार कर फर आनंदपूवक भु राम को गंगा के पार
ले गया॥ 101॥

उत र ठाढ़ भए सरु स र रे ता। सीय रामु गह


ु लखन समेता॥
केवट उत र दं डवत क हा। भु ह सकुच ए ह न हं कछु द हा॥
पय हय क सय जान नहार । म न मद
ु र मन मु दत उतार ॥
कहे उ कृपाल ले ह उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई॥
नाथ आजु म काह न पावा। मटे दोष दख
ु दा रद दावा॥
बहुत काल म क ि ह मजूर । आजु द ह ब ध ब न भ ल भूर ॥
अब कछु नाथ न चा हअ मोर। द न दयाल अनु ह तोर॥
फरती बार मो ह जो दे बा। सो साद ु म सर ध र लेबा॥
( नषादराज और ल मण स हत सीता और राम (नाव से) उतरकर गंगा क रे त (बालू) म खड़े हो
गए। तब केवट ने उतरकर दं डवत क । (उसको दं डवत करते दे खकर) भु को संकोच हुआ क
इसको कुछ दया नह ं। प त के दय को जाननेवाल सीता ने आनंद भरे मन से अपनी र न
ज ड़त अँगूठ अंगुल से उतार । उसने कहा - हे नाथ! आज मने या नह ं पाया! मेरे दोष, दःु ख
और द र ता क आग आज बझ
ु गई है। मने बहुत समय तक मजदरू क । वधाता ने आज बहुत
अ छ भरपूर मजदरू दे द । कृपालु राम ने केवट से कहा, नाव क उतराई लो। केवट ने याकुल
होकर चरण पकड़ लए। हे नाथ! हे द नदयाल! आपक कृपा से अब मझ
ु े कुछ नह ं चा हए। लौटती
बार आप मुझे जो कुछ दगे, वह साद म सर चढ़ाकर लँ ग
ू ा।)

दो० - बहुत क ह भु लखन सयँ न हं कछु केवटु लेइ।


बदा क ह क नायतन भग त बमल ब दे इ॥ 102॥
( भु राम, ल मण और सीता ने बहुत आ ह और य न कया, पर केवट ने कुछ नह ं लया।
तब क णा के धाम भगवान राम ने नमल भि त का वरदान दे कर उसे वदा कया। )

पाठ- व लेषण एवं वशेष संदभ


तत
ु पाठ म गो वामी तुलसीदास ने ीराम और केवट के बहाने भ त और भगवान के बीच
सफ ेम को ह सब कुछ माना है िजसके सामने तमाम आ थक, सामािजक और सां कृ तक
द ू रयाँ वतः समा त हो जाती ह। ीराम का पहले सारथी सुमं के साथ पतत
ृ ु य आदरभाव और
फर केवट के ‘ ेम से लपेटे हुए अटपटे ’ बात को सुनकर भावमु ध हो जाना इस बात का माण
है। केवट राम का भ त है । वह राम जो व णु के अवतार ह और क णा, दया और मा के

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तमू त ह। ले कन केवट सीधे मुंह अपनी बात कहने से हचक रहा है । य क राम अयो या के
राजकुमार ह और केवट एक नाचीज इंसान अथात सामा य नाग रक। इसी लए वह अपने दल क
बात कहने के लए एक बहाना ढूँढता है । और वह बहाना है अह या- संग का। इससे पहले ी
राम तरवत हो चक
ु मु न प नी को फर से सजीव और चलायमान कर चक
ु े थे। केवट कहता
है क आपक चरण-धू ल का ये चम कार है क प थर भी ी बन जाती है । अगर मेर नाव ी
बन गई तो म कैसे अपने प रवार का भरण पोषण कर पाऊँगा? यहाँ तल
ु सीदास यह दखाने का
यास करते ह क ीराम ेम के वशीभत
ू होकर ‘सामा य’ और ‘ व श ट’ क दरू और अंतर को
समा त कर दे ते ह।
इस म म यह भी यान दे ने क बात है क गंगा नद आज बहुत स न है , य क आज राम
के चरण का वह पश कर पाएगी। मनु य और कृ त के बीच का यह तादा य वेद से लेकर
पौरा णक युग तक अ ु ण रहा है । ये अलग बात है क मनु य और कृ त के इस भाईचारे को
हम वकास क ब लवेद पर चढ़ा चुके ह और आज गंगा अपने कसी उ धारक राम के लए बाट
जोहते हुए अपनी आँख पथरा चुक है । तुलसीदास के श द म राम कृपा संधु अथात ‘कृपा के
सागर’ ह। उनका धम बांटने वाला नह ं जोड़ने वाला है - ‘ शव ोह मम दास कहवा, सो नर सपनेऊ
मो ह नह ं भावा।’ आप दस
ू रे से ोह और नफरत कर राम को नह ं पा सकते ह। उनका ेम पाने
के लए तो केवट जैसा सरल दय चा हए। और सबसे बड़ी बात भि त या ेम म नल भ होना
पहल शत है। ई वर के बनाए मानव ह नह ं पशु-प ी और कृ त से म
े ह भि त है । सीता
केवट को नद पार कराने के बदले अपनी य अंगूठ दे ना चाहती है ले कन केवट वन ता पूवक
मना कर दे ते ह। इस कार हम दे खते ह क ‘केवट संग’ के बहाने गो वामी तुलसी दास ने
भि त का जो व प हमारे सामने तुत कया है वह स ध सूफ क व जायसी के श द म
‘मानुस पेम भयउ बैकंु ठ ’ है। अथात ई वर ‘वग’, ‘वण’ और सं दाय क दरू को मटाकर सफ
मानव मा से ेम करते ह। और जो मानव जीव मा के साथ-साथ कृ त से भी ेम करता है
वह असल भ त है ।

पाठ व तार के लए दे ख

गो वामी तुलसी दास : रामच रत मानस, गीता स


े , गोरखपुर

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