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७- वसुदेवजी तथा मौसलयु म मरे ए यादव का अ ये -सं कार करके अजुनका

ारकावासी ी-पु ष को अपने साथ ले जाना, समु का ारकाको डू बो दे ना और


मागम अजुनपर डाकु का आ मण, अव श यादव को अपनी राजधानीम बसा
दे ना
८- अजुन और ासजीक बातचीत

महा था नकपव
१- वृ णवं शय का ा करके जाजन क अनुम त ले ौपद स हत पा डव का
महा थान
२- मागम ौपद , सहदे व, नकुल, अजुन, और भीमसेनका गरना तथा यु ध र ारा
येकके गरनेका कारण बताया जाना
३- यु ध र इ और धम आ दके साथ वातालाप, यु ध रका अपने धमम ढ़ रहना
तथा सदे ह वगम जाना

वगारोहणपव
१- वगम नारद और यु ध रक बातचीत
२- दे व तका यु ध रको नरकका दशन कराना तथा भाइय का क ण दन सुनकर
उनका वह रहनेका न य करना
३- इ और धमका यु ध रको सा वना दे ना तथा यु ध रका शरीर यागकर द
लोकको जाना
४- यु ध रका द लोकम ीकृ ण, अजुन आ दका दशन करना
५- भी म आ द वीर का अपने-अपने मूल व पम मलना और महाभारतका
उपसंहार तथा माहा य
१- महाभारत वण व ध
२- महाभारत-माहा य
।। ॐ ीपरमा मने नमः ।।

ीमहाभारतम्
महा था नकपव
थमोऽ यायः
वृ णवं शय का ा करके जाजन क अनुम त ले
ौपद स हत पा डव का महा थान
नारायणं नम कृ य नरं चैव नरो मम् ।
दे व सर वत ासं ततो जयमुद रयेत् ।।
अ तयामी नारायण व प भगवान् ीकृ ण, (उनके न य सखा) नर व प नर े
अजुन, (उनक लीला कट करनेवाली) भगवती सर वती और (उन लीला का संकलन
करनेवाले) मह ष वेद ासको नम कार करके जय (महाभारत)-का पाठ करना चा हये ।।
जनमेजय उवाच
एवं वृ य धककुले ु वा मौसलमाहवम् ।
पा डवाः कमकुव त तथा कृ णे दवं गते ।। १ ।।
जनमेजयने पूछा— न्! इस कार वृ ण और अ धकवंशके वीर म मूसलयु
होनेका समाचार सुनकर भगवान् ीकृ णके परमधाम पधारनेके प ात् पा डव ने या
कया? ।। १ ।।
वैश पायन उवाच
ु वैवं कौरवो राजा वृ णीनां कदनं महत् ।
थाने म तमाधाय वा यमजुनम वीत् ।। २ ।।
वैश पायनजीने कहा—राजन्! कु राज यु ध रने जब इस कार वृ णवं शय के
महान् संहारका समाचार सुना तब महा थानका न य करके अजुनसे कहा— ।। २ ।।
कालः पच त भूता न सवा येव महामते ।
कालपाशमहं म ये वम प ु मह स ।। ३ ।।
‘महामते! काल ही स पूण भूत को पका रहा है— वनाशक ओर ले जा रहा है। अब
म कालके ब धनको वीकार करता ँ। तुम भी इसक ओर पात करो’ ।।
इ यु ः स तु कौ तेयः कालः काल इ त ुवन् ।
अ वप त तद् वा यं ातु य य धीमतः ।। ४ ।।
भाईके ऐसा कहनेपर कु तीकुमार अजुनने ‘काल तो काल ही है, इसे टाला नह जा
सकता’ ऐसा कहकर अपने बु मान् बड़े भाईके कथनका अनुमोदन कया ।। ४ ।।
अजुन य मतं ा वा भीमसेनो यमौ तथा ।
अ वप त तद् वा यं य ं स सा चना ।। ५ ।।
अजुनका वचार जानकर भीमसेन और नकुल-सहदे वने भी उनक कही ई बातका
अनुमोदन कया ।।
ततो युयु सुमाना य जन् धमका यया ।
रा यं प रददौ सव वै यापु े यु ध रः ।। ६ ।।
त प ात् धमक इ छासे रा य छोड़कर जानेवाले यु ध रने वै यापु युयु सुको
बुलाकर उ ह को स पूण रा यक दे ख-भालका भार स प दया ।। ६ ।।
अ भ ष य वरा ये च राजानं च प र तम् ।
ःखात ा वीद् राजा सुभ ां पा डवा जः ।। ७ ।।
फर अपने रा यपर राजा परी त्का अ भषेक करके पा डव के बड़े भाई महाराज
यु ध रने ःखसे आत होकर सुभ ासे कहा— ।। ७ ।।
एष पु य पु ते कु राजो भ व य त ।
य नां प रशेष व ो राजा कृत ह ।। ८ ।।
‘बेट ! यह तु हारे पु का पु परी त् कु दे श तथा कौरव का राजा होगा और
यादव म जो लोग बच गये ह उनका राजा ीकृ ण-पौ व को बनाया गया है ।। ८ ।।
पर ा तनपुरे श थे च यादवः ।
व ो राजा वया र यो मा चाधम मनः कृथाः ।। ९ ।।
‘परी त ह तनापुरम रा य करगे और य वंशी व इ थम। तु ह राजा व क
भी र ा करनी चा हये और अपने मनको कभी अधमक ओर नह जाने दे ना
चा हये’ ।। ९ ।।
इ यु वा धमराजः स वासुदेव य धीमतः ।
मातुल य च वृ य रामाद नां तथैव च ।। १० ।।
ातृ भः सह धमा मा कृ वोदकमत तः ।
ा ा यु य सवषां चकार व धवत् तदा ।। ११ ।।
ऐसा कहकर धमा मा धमराज यु ध रने भाइय -स हत आल य छोड़कर बु मान्
भगवान् ीकृ ण, बूढ़े मामा वसुदेव तथा बलराम आ दके लये जला ल द और उन
सबके उ े यसे व धपूवक ा कया ।।
ै पायनं नारदं च माक डेयं तपोधनम् ।
भार ाजं या व यं ह रमु य य नवान् ।। १२ ।।
अभोजयत् वा भो यं क त य वा च शा णम् ।
ददौ र ना न वासां स ामान ान् रथां तथा ।। १३ ।।
य जमु ये य तदा शतसह शः ।
य नशील यु ध रने भगवान् ीकृ णके उ े यसे ै पायन ास, दे व ष नारद,
तपोधन माक डेय, भार ाज और या व य मु नको सु वा भोजन कराया। भगवान्का
नाम क तन करके उ ह ने उ म ा ण को नाना कारके र न, व , ाम, घोड़े और रथ
दान कये। ब त-से ा ण शरोम णय को लाख कुमारी क याएँ द ।।
कृपम य य च गु मथ पौरपुर कृतम् ।। १४ ।।
श यं प र तं त मै ददौ भरतस मः ।
त प ात् गु वर कृपाचायक पूजा करके पुरवा सय -स हत परी त्को श यभावसे
उनक सेवाम स प दया ।।
तत तु कृतीः सवाः समाना य यु ध रः ।। १५ ।।
सवमाच राज ष क षतमथा मनः ।
इसके बाद सम त कृ तय ( जा-म ी आ द)-को बुलाकर राज ष यु ध रने, वे जो
कुछ करना चाहते थे अपना वह सारा वचार उनसे कह सुनाया ।।
ते ु वैव वच त य पौरजानपदा जनाः ।। १६ ।।
भृशमु नमनसो ना यन द त त चः ।
नैवं कत म त ते तदोचु तं जना धपम् ।। १७ ।।
उनक वह बात सुनते ही नगर और जनपदके लोग मन-ही-मन अ य त उ न हो
उठे । उ ह ने उस तावका वागत नह कया। वे सब राजासे एक साथ बोले—,‘आपको
ऐसा नह करना चा हये (आप हम छोड़कर कह न जायँ)’ ।। १६-१७ ।।
न च राजा तथाकाष त् कालपयायधम वत् ।
परंतु धमा मा राजा यु ध र कालके उलट-फेरके अनुसार जो धम या कत ा त था
उसे जानते थे; अतः उ ह ने जाके कथनानुसार काय नह कया ।।
ततोऽनुमा य धमा मा पौरजानपदं जनम् ।। १८ ।।
गमनाय म त च े ातर ा य ते तदा ।
उन धमा मा नरेशने नगर और जनपदके लोग को समझा-बुझाकर उनक अनुम त
ा त कर ली। फर उ ह ने और उनके भाइय ने सब कुछ यागकर महा- थान करनेका
ही न य कया ।। १८ ।।
ततः स राजा कौर ो धमपु ो यु ध रः ।। १९ ।।
उ सृ याभरणा य ा जगृहे व कला युत ।
भीमाजुनयमा ैव ौपद च यश वनी ।। २० ।।
तथैव जगृ ः सव व कला न नरा धप ।
इसके बाद कु कुलर न धमपु राजा यु ध रने अपने अंग से आभूषण उतारकर
व कलव धारण कर लया। नरे र! फर भीमसेन, अजुन, नकुल, सहदे व तथा
यश वनी ौपद दे वी—न सबने भी उसी कार व कल धारण कये ।। १९-२० ।।
व धवत् कार य वे नै क भरतषभ ।। २१ ।।
समु सृ या सु सवऽ नीन् त थुनरपु वाः ।
भरत े ! इसके बाद ा ण से व धपूवक उ सगका लक इ करवाकर उन सभी
नर े पा डव ने अ नय का जलम वसजन कर दया और वयं वे महाया ाके लये
थत ए ।। २१ ।।
ततः ः सवाः यो ् वा नरो मान् ।। २२ ।।
थतान् ौपद ष ान् पुरा ूत जतान् यथा ।
हष ऽभव च सवषां ातॄणां गमनं त ।। २३ ।।
पहले जूएम परा त होकर पा डवलोग जस कार वनम गये थे उसी कार उस दन
ौपद स हत उन नरो म पा डव को इस कार जाते दे ख नगरक सभी याँ रोने लग ।
पर तु उन सभी भाइय को इस या ासे महान् हष आ ।। २२-२३ ।।
यु ध रमतं ा वा वृ ण यमवे य च ।
ातरः प च कृ णा च ष ी ा चैव स तमः ।। २४ ।।
यु ध रका अ भ ाय जान और वृ णवं शय का संहार दे खकर पाँच भाई पा डव,
ौपद और एक कु ा—ये सब साथ-साथ चले ।। २४ ।।
आ मना स तमो राजा नययौ गजसा यात् ।
पौरैरनुगतो रं सवर तःपुरै तथा ।। २५ ।।
न चैनमशकत् क वत वे त भा षतुम् ।
उन छह को साथ लेकर सातव राजा यु ध र जब ह तनापुरसे बाहर नकले तब
नगर नवासी जा और अ तःपुरक याँ उ ह ब त रतक प ँचाने गय ; कतु कोई भी
मनु य राजा यु ध रसे यह नह कह सका क आप लौट च लये ।। २५ ।।
यवत त ततः सव नरा नगरवा सनः ।। २६ ।।
कृप भृतय ैव युयु सुं पयवारयन् ।
धीरे-धीरे सम त पुरवासी और कृपाचाय आ द युयु सुको घेरकर उनके साथ ही लौट
आये ।। २६ ।।
ववेश ग ां कौर उलूपी भुजगा मजा ।। २७ ।।
च ा दा ययौ चा प म णपूरपुरं त ।
श ाः प र तं व या मातरः पयवारयन् ।। २८ ।।
जनमेजय! नागराजक क या उलूपी उसी समय गंगाजीम समा गयी। च ांगदा
म णपूर नगरम चली गयी। तथा शेष माताएँ परी त्को घेरे ए पीछे लौट
आय ।। २७-२८ ।।
पा डवा महा मानो ौपद च यश वनी ।
कृतोपवासाः कौर ययुः ाङ् मुखा ततः ।। २९ ।।
कु न दन! तदन तर महा मा पा डव और यश वनी ौपद दे वी सब-के-सब
उपवासका त लेकर पूव दशाक ओर मुँह करके चल दये ।। २९ ।।
योगयु ा महा मान यागधममुपेयुषः ।
अ भज मुब न् दे शान् स रतः सागरां तथा ।। ३० ।।
वे सब-के-सब योगयु महा मा तथा याग-धमका पालन करनेवाले थे। उ ह ने अनेक
दे श , न दय और समु क या ा क ।। ३० ।।
यु ध रो ययाव े भीम तु तदन तरम् ।
अजुन त य चा वेव यमौ चा प यथा मम् ।। ३१ ।।
आगे-आगे यु ध र चलते थे। उनके पीछे भीमसेन थे। भीमसेनके भी पीछे अजुन थे
और उनके भी पीछे मशः नकुल और सहदे व चल रहे थे ।। ३१ ।।
पृ त तु वरारोहा यामा प दले णा ।
ौपद यो षतां े ा ययौ भरतस म ।। ३२ ।।
भरत े ! इन सबके पीछे सु दर शरीरवाली, यामवणा, कमलदललोचना, युव तय म
े ौपद चल रही थी ।। ३२ ।।
ा चैवानुययावेकः थतान् पा डवान् वनम् ।
मेण ते ययुव रा लौ ह यं स ललाणवम् ।। ३३ ।।
वनको थत ए पा डव के पीछे एक कु ा भी चला जा रहा था। मशः चलते ए
वे वीर पा डव लालसागरके तटपर जा प ँचे ।। ३३ ।।
गा डीवं तु धनु द ं न मुमोच धनंजयः ।
र नलोभान् महाराज ते चा ये महेषुधी ।। ३४ ।।
महाराज! अजुनने द र नके लोभसे अभीतक अपने द गा डीव धनुष तथा दोन
अ य तूणीर का प र याग नह कया था ।। ३४ ।।
अ नं ते द शु त थतं शैल मवा तः ।
मागमावृ य त तं सा ा पु ष व हम् ।। ३५ ।।
वहाँ प ँचकर उ ह ने पवतक भाँ त माग रोककर सामने खड़े ए पु ष पधारी
सा ात् अ नदे वको दे खा ।।
ततो दे वः स स ता चः पा डवा नदम वीत् ।
भो भोः पा डु सुता वीराः पावकं मां नबोधत ।। ३६ ।।
तब सात कारक वाला प ज ा से सुशो भत होनेवाले उन अ नदे वने
पा डव से इस कार कहा—‘वीर पा डु कुमारो! मुझे अ न समझो ।। ३६ ।।
यु ध र महाबाहो भीमसेन परंतप ।
अजुना सुतौ वीरौ नबोधत वचो मम ।। ३७ ।।
‘महाबा यु ध र! श ुसंतापी भीमसेन! अजुन! और वीर अ नीकुमारो! तुम सब
लोग मेरी इस बातपर यान दो ।। ३७ ।।
अहम नः कु े ा मया द धं च खा डवम् ।
अजुन य भावेण तथा नारायण य च ।। ३८ ।।
‘कु े वीरो! म अ न ँ। मने ही अजुन तथा नारायण व प भगवान् ीकृ णके
भावसे खा डव-वनको जलाया था ।। ३८ ।।
अयं वः फा गुनो ाता गा डीवं परमायुधम् ।
प र य य वने यातु नानेनाथ ऽ त क न ।। ३९ ।।
‘तु हारे भाई अजुनको चा हये क ये इस उ म आयुध गा डीव धनुषको यागकर
वनम जायँ। अब इ ह इसक कोई आव यकता नह है ।। ३९ ।।
च र नं तु यत् कृ णे थतमासी महा म न ।
गतं त च पुनह ते कालेनै य त त य ह ।। ४० ।।
‘पहले जो च र न महा मा ीकृ णके हाथम था वह चला गया। वह पुनः समय
आनेपर उनके हाथम जायगा ।। ४० ।।
व णादा तं पूव मयैतत् पाथकारणात् ।
गा डीवं धनुषां े ं व णायैव द यताम् ।। ४१ ।।
‘यह गा डीव धनुष सब कारके धनुष म े है। इसे पहले म अजुनके लये ही
व णसे माँगकर ले आया था। अब पुनः इसे व णको वापस कर दे ना चा हये’ ।। ४१ ।।
तत ते ातरः सव धनंजयमचोदयन् ।
स जले ा प चैत था ये महेषुधी ।। ४२ ।।
यह सुनकर उन सब भाइय ने अजुनको वह धनुष याग दे नेके लये कहा। तब अजुनने
वह धनुष और दोन अ य तरकस पानीम फक दये ।। ४२ ।।
ततोऽ नभरत े त ैवा तरधीयत ।
ययु पा डवा वीरा तत ते द णामुखाः ।। ४३ ।।
भरत े ! इसके बाद अ नदे व वह अ तधान हो गये और पा डववीर वहाँसे
द णा भमुख होकर चल दये ।।
तत ते तू रेणैव तीरेण लवणा भसः ।
ज मुभरतशा ल दशं द णप माम् ।। ४४ ।।
भरत े ! तदन तर वे लवणसमु के उ र तटपर होते ए द ण-प म दशाक ओर
अ सर होने लगे ।।
ततः पुनः समावृ ाः प मां दशमेव ते ।
द शु ारकां चा प सागरेण प र लुताम् ।। ४५ ।।
उद च पुनरावृ य ययुभरतस माः ।
ाद यं चक ष तः पृ थ ा योगध मणः ।। ४६ ।।
इसके बाद वे केवल प म दशाक ओर मुड़ गये। आगे जाकर उ ह ने समु म डु बी
ई ारकापुरीको दे खा। फर योगधमम थत ए भरतभूषण पा डव ने वहाँसे लौटकर
पृ वीक प र मा पूरी करनेक इ छासे उ र दशाक ओर या ा क ।। ४५-४६ ।।
इ त ीमहाभारते महा था नके पव ण थमोऽ यायः ।। १ ।।
इस कार ीमहाभारत महा था नकपवम पहला अ याय पूरा आ ।। १ ।।
तीयोऽ यायः
मागम ौपद , सहदे व, नकुल, अजुन और भीमसेनका
गरना तथा यु ध र ारा येकके गरनेका कारण बताया
जाना
वैश पायन उवाच
तत ते नयता मान उद च दशमा थताः ।
द शुय गयु ा हमव तं महा ग रम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! मनको संयमम रखकर उ र दशाका आ य
लेनेवाले योगयु पा डव ने मागम महापवत हमालयका दशन कया ।।
तं चा य त म त ते द शुवालुकाणवम् ।
अवै त महाशैलं मे ं शख रणां वरम् ।। २ ।।
उसे भी लाँघकर जब वे आगे बढ़े तब उ ह बालूका समु दखायी दया। साथ ही
उ ह ने पवत म े महा ग र मे का दशन कया ।। २ ।।
तेषां तु ग छतां शी ं सवषां योगध मणाम् ।
या सेनी योगा नपपात महीतले ।। ३ ।।
सब पा डव योगधमम थत हो बड़ी शी तासे चल रहे थे। उनमसे पदकुमारी
कृ णाका मन योगसे वच लत हो गया; अतः वह लड़खड़ाकर पृ वीपर गर पड़ी ।। ३ ।।
तां तु प ततां ् वा भीमसेनो महाबलः ।
उवाच धमराजानं या सेनीमवे य ह ।। ४ ।।
उसे नीचे गरी दे ख महाबली भीमसेनने धमराजसे पूछा— ।। ४ ।।
नाधम रतः क द् राजपु या परंतप ।
कारणं क नु तद् ू ह यत् कृ णा प तता भु व ।। ५ ।।
‘परंतप! राजकुमारी ौपद ने कभी कोई पाप नह कया था। फर बताइये, कौन-सा
कारण है, जससे वह नीचे गर गयी?’ ।। ५ ।।
यु ध र उवाच
प पातो महान या वशेषेण धनंजये ।
त यैतत् फलम ैषा भुङ् े पु षस म ।। ६ ।।
यु ध रने कहा—पु ष वर! उसके मनम अजुनके त वशेष प पात था; आज
यह उसीका फल भोग रही है ।। ६ ।।
वैश पायन उवाच
एवमु वानवे यैनां ययौ भरतस मः ।
समाधाय मनो धीमान् धमा मा पु षषभः ।। ७ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर उसक ओर दे खे बना ही
भरतभूषण नर े बु मान् धमा मा यु ध र मनको एका करके आगे बढ़ गये ।। ७ ।।
सहदे व ततो व ान् नपपात महीतले ।
तं चा प प ततं ् वा भीमो राजानम वीत् ।। ८ ।।
थोड़ी दे र बाद व ान् सहदे व भी धरतीपर गर पड़े। उ ह भी गरा दे ख भीमसेनने
राजासे पूछा— ।। ८ ।।
योऽयम मासु सवषु शु ूषुरनहंकृतः ।
सोऽयं मा वतीपु ः क मान् नप ततो भु व ।। ९ ।।
‘भैया! जो सदा हमलोग क सेवा कया करता था और जसम अहंकारका नाम भी
नह था, यह मा न दन सहदे व कस दोषके कारण धराशायी आ है?’ ।। ९ ।।
यु ध र उवाच
आ मनः स शं ा ं नैषोऽम यत कंचन ।
तेन दोषेण प तत त मादे ष नृपा मजः ।। १० ।।
यु ध रने कहा—यह राजकुमार सहदे व कसीको अपने-जैसा व ान् या बु मान्
नह समझता था; अतः उसी दोषसे इसका पतन आ है ।। १० ।।
वैश पायन उवाच
इ यु वा तं समु सृ य सहदे वं ययौ तदा ।
ातृ भः सह कौ तेयः शुना चैव यु ध रः ।। ११ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! ऐसा कहकर सहदे वको भी छोड़कर शेष
भाइय और एक कु ेके साथ कु तीकुमार यु ध र आगे बढ़ गये ।। ११ ।।
कृ णां नप ततां ् वा सहदे वं च पा डवम् ।
आत ब धु यः शूरो नकुलो नपपात ह ।। १२ ।।
कृ णा और पा डव सहदे वको गरे दे ख शोकसे आत हो ब धु ेमी शूरवीर नकुल भी
गर पड़े ।। १२ ।।
त मन् नप तते वीरे नकुले चा दशने ।
पुनरेव तदा भीमो राजान मदम वीत् ।। १३ ।।
मनोहर दखायी दे नेवाले वीर नकुलके धराशायी होनेपर भीमसेनने पुनः राजा
यु ध रसे यह कया— ।। १३ ।।
योऽयम तधमा मा ाता वचनकारकः ।
पेणा तमो लोके नकुलः प ततो भु व ।। १४ ।।
‘भैया! संसारम जसके पक समानता करनेवाला कोई नह था तो भी जसने कभी
अपने धमम ु ट नह आने द तथा जो सदा हमलोग क आ ाका पालन करता था, वह
हमारा यब धु नकुल य पृ वीपर गरा है?’ ।। १४ ।।
इ यु ो भीमसेनेन युवाच यु ध रः ।
नकुलं त धमा मा सवबु मतां वरः ।। १५ ।।
भीमसेनके इस कार पूछनेपर सम त बु मान म े धमा मा यु ध रने नकुलके
वषयम इस कार उ र दया— ।। १५ ।।
पेण म समो ना त क द य य दशनम् ।
अ धक ाहमेवैक इ य य मन स थतम् ।। १६ ।।
नकुलः प तत त मादाग छ वं वृकोदर ।
य य यद् व हतं वीर सोऽव यं त पा ुते ।। १७ ।।
‘भीमसेन! नकुलक सदा ऐसी रही है क पम मेरे समान सरा कोई नह है।
इसके मनम यही बात बैठ रहती थी क ‘एकमा म ही सबसे अ धक पवान् ँ।’
इसी लये नकुल नीचे गरा है। तुम आओ। वीर! जसक जैसी करनी है वह उसका फल
अव य भोगता है ।। १६-१७ ।।
तां तु प ततान् ् वा पा डवः ेतवाहनः ।
पपात शोकस त त ततो नु परवीरहा ।। १८ ।।
ौपद तथा नकुल और सहदे व तीन गर गये, यह दे खकर श ुवीर का संहार
करनेवाले ेत-वाहन पा डु पु अजुन शोकसे संत त हो वयं भी गर पड़े ।। १८ ।।
त मं तु पु ष ा े प तते श तेज स ।
यमाणे राधष भीमो राजानम वीत् ।। १९ ।।
इ के समान तेज वी धष वीर पु ष सह अजुन जब पृ वीपर गरकर ाण याग
करने लगे उस समय भीमसेनने राजा यु ध रसे पूछा ।। १९ ।।
अनृतं न मरा य य वैरे व प महा मनः ।
अथ क य वकारोऽयं येनायं प ततो भु व ।। २० ।।
‘भैया! महा मा अजुन कभी प रहासम भी झूठ बोले ह —ऐसा मुझे याद नह आता।
फर यह कस कमका फल है जससे इ ह पृ वीपर गरना पड़ा?’ ।। २० ।।
यु ध र उवाच
एका ा नदहेयं वै श ू न यजुनोऽ वीत् ।
न च तत् कृतवानेष शूरमानी ततोऽपतत् ।। २१ ।।
यु ध र बोले—अजुनको अपनी शूरताका अ भमान था। इ ह ने कहा था क ‘म एक
ही दनम श ु को भ म कर डालूँगा’; कतु ऐसा कया नह ; इसीसे आज इ ह धराशायी
होना पड़ा है ।। २१ ।।
अवमेने धनु ाहानेष सवा फा गुनः ।
तथा चैत तु तथा कत ं भू त म छता ।। २२ ।।
अजुनने स पूण धनुधर का अपमान भी कया था; अतः अपना क याण चाहनेवाले
पु षको ऐसा नह करना चा हये ।। २२ ।।
वैश पायन उवाच
इ यु वा थतो राजा भीमोऽथ नपपात ह ।
प तत ा वीद् भीमो धमराजं यु ध रम् ।। २३ ।।
वैश पायनजी कहते ह—राजन्! य कहकर राजा यु ध र आगे बढ़ गये। इतनेहीम
भीमसेन भी गर पड़े। गरनेके साथ ही भीमने धमराज यु ध रको पुकारकर
पूछा ।। २३ ।।
भो भो राज वे व प ततोऽहं य तव ।
क न म ं च पतनं ू ह मे य द वे थ ह ।। २४ ।।
‘राजन्! जरा मेरी ओर तो दे खये, म आपका य भीमसेन यहाँ गर पड़ा ँ। य द
जानते ह तो बताइये, मेरे इस पतनका या कारण है?’ ।। २४ ।।
यु ध र उवाच
अ तभु ं च भवता ाणेन च वक थसे ।
अनवे य परं पाथ तेना स प ततः तौ ।। २५ ।।
यु ध रने कहा—भीमसेन! तुम ब त खाते थे और सर को कुछ भी न समझकर
अपने बलक ड ग हाँका करते थे; इसीसे तु ह भी धराशायी होना पड़ा है ।।
इ यु वा तं महाबा जगामानवलोकयन् ।
ा येकोऽनुययौ य ते ब शः क ततो मया ।। २६ ।।
यह कहकर महाबा यु ध र उनक ओर दे खे बना ही आगे चल दये। एक कु ा भी
बराबर उनका अनुसरण करता रहा जसक चचा मने तुमसे अनेक बार क है ।।
इ त ीमहाभारते महा था नके पव ण ौप ा दपतने तीयोऽ यायः ।। २ ।।
इस कार ीमहाभारत महा था नकपवम ौपद आ दका पतन वषयक सरा अ याय
पूरा आ ।। २ ।।
तृतीयोऽ यायः
यु ध रका इ और धम आ दके साथ वातालाप,
यु ध रका अपने धमम ढ़ रहना तथा सदे ह वगम जाना
वैश पायन उवाच
ततः स ादयन् श ो दवं भू म च सवशः ।
रथेनोपययौ पाथमारोहे य वी च तम् ।। १ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! तदन तर आकाश और पृ वीको सब ओरसे
त व नत करते ए दे वराज इ रथके साथ यु ध रके पास आ प ँचे और उनसे बोले
—‘कु तीन दन! तुम इस रथपर सवार हो जाओ’ ।। १ ।।
वभातॄन् प ततान् ् वा धमराजो यु ध रः ।
अ वी छोकसंत तः सह ा मदं वचः ।। २ ।।
अपने भाइय को धराशायी आ दे ख धमराज यु ध र शोकसे संत त हो इ से इस
कार बोले— ।। २ ।।
ातरः प तता मेऽ ग छे यु ते मया सह ।
न वना ातृ भः वग म छे ग तुं सुरे र ।। ३ ।।
‘दे वे र! मेरे भाई मागम गरे पड़े ह। वे भी मेरे साथ चल, इसक व था क जये;
य क म भाइय के बना वगम जाना नह चाहता ।। ३ ।।
सुकुमारी सुखाहा च राजपु ी पुरंदर ।
सा मा भः सह ग छे त तद् भवाननुम यताम् ।। ४ ।।
‘पुर दर! राजकुमारी ौपद सुकुमारी है। वह सुख पानेके यो य है। वह भी हमलोग के
साथ चले, इसक अनुम त द जये’ ।। ४ ।।
श उवाच
ातॄन् य स वग वम त दवं गतान् ।
कृ णया स हतान् सवान् मा शुचो भरतषभ ।। ५ ।।
इ ने कहा—भरत े ! तु हारे सभी भाई तुमसे पहले ही वगम प ँच गये ह। उनके
साथ ौपद भी है। वहाँ चलनेपर वे सब तु ह मलगे ।। ५ ।।
न य मानुषं दे हं गता ते भरतषभ ।
अनेन वं शरीरेण वग ग ता न संशयः ।। ६ ।।
भरतभूषण! वे मानवशरीरका प र याग करके वगम गये ह; कतु तुम इसी शरीरसे
वहाँ चलोगे, इसम संशय नह है ।। ६ ।।
यु ध र उवाच
अयं ा भूतभ ेश भ ो मां न यमेव ह ।
स ग छे त मया साधमानृशं या ह मे म तः ।। ७ ।।
यु ध र बोले—भूत और वतमानके वामी दे वराज! यह कु ा मेरा बड़ा भ है।
इसने सदा ही मेरा साथ दया है; अतः यह भी मेरे साथ चले—ऐसी आ ा द जये; य क
मेरी बु म न ु रताका अभाव है ।।
श उवाच
अम य वं म सम वं च राजन्
यं कृ नां महत चैव स म् ।
सं ा तोऽ वगसुखा न च वं
यज ानं ना नृशंसम त ।। ८ ।।
इ ने कहा—राजन्! तु ह अमरता, मेरी समानता, पूण ल मी और ब त बड़ी स
ा त ई है, साथ ही तु ह वग य सुख भी उपल ध ए ह; अतः इस कु ेको छोड़ो और
मेरे साथ चलो। इसम कोई कठोरता नह है ।।
यु ध र उवाच
अनायमायण सह ने
श यं कतु करमेतदाय ।
मा मे या स मनं तया तु
य याः कृते भ जनं यजेयम् ।। ९ ।।
यु ध र बोले—सह ने धारी दे वराज! कसी आयपु षके ारा न न ण
े ीका काम
होना अ य त क ठन है। मुझे ऐसी ल मीक ा त कभी न हो जसके लये भ जनका
याग करना पड़े ।। ९ ।।
इ उवाच
वग लोके वतां ना त ध य-
म ापूत ोधवशा हर त ।
ततो वचाय यतां धमराज
यज ानं ना नृशंसम त ।। १० ।।
इ ने कहा—धमराज! कु ा रखनेवाल के लये वगलोकम थान नह है। उनके य
करने और कुआँ, बावड़ी आ द बनवानेका जो पु य होता है उसे ोधवश नामक रा स हर
लेते ह; इस लये सोच- वचारकर काम करो। छोड़ दो इस कु ेको। ऐसा करनेम कोई
नदयता नह है ।।
यु ध र उवाच
भ यागं ा र य तपापं
तु यं लोके व याकृतेन ।
त मा ाहं जातु कथंचना
य या येनं वसुखाथ महे ।। ११ ।।
यु ध र बोले—महे ! भ का याग करनेसे जो पाप होता है, उसका अ त कभी
नह होता—ऐसा महा मा पु ष कहते ह। संसारम भ का याग ह याके समान माना
गया है; अतः म अपने सुखके लये कभी कसी तरह भी आज इस कु ेका याग नह
क ँ गा ।। ११ ।।
भीतं भ ं ना यद ती त चात
ा तं ीणं र णे ाण ल सुम् ।
ाण यागाद यहं नैव मो ुं
यतेयं वै न यमेतद् तं मे ।। १२ ।।
जो डरा आ हो, भ हो, मेरा सरा कोई सहारा नह है—ऐसा कहते ए
आतभावसे शरणम आया हो, अपनी र ाम असमथ— बल हो और अपने ाण बचाना
चाहता हो, ऐसे पु षको ाण जानेपर भी म नह छोड़ सकता; यह मेरा सदाका त
है ।। १२ ।।
इ उवाच
शुना ं ोधवशा हर त
य म ं ववृतमथो तं च ।
त मा छु न याग ममं कु व
शुन यागाद् ा यसे दे वलोकम् ।। १३ ।।
इ ने कहा—वीरवर! मनु य जो कुछ दान, य , वा याय और हवन आ द पु यकम
करता है, उसपर य द कु ेक भी पड़ जाय तो उसके फलको ोधवश नामक रा स
हर ले जाते ह; इस लये इस कु ेका याग कर दो। कु ेको याग दे नेसे ही तुम दे वलोकम
प ँच सकोगे ।। १३ ।।
य वा ातॄन् द यतां चा प कृ णां
ा तो लोकः कमणा वेन वीर ।
ानं चैनं न यजसे कथं नु
यागं कृ नं चा थतो मु सेऽ ।। १४ ।।
वीर! तुमने अपने भाइय तथा यारी प नी ौपद का प र याग करके अपने कये ए
पु यकम के फल व प दे वलोकको ा त कया है। फर तुम इस कु ेको य नह याग
दे ते? सब कुछ छोड़कर अब कु ेके मोहम कैसे पड़ गये ।। १४ ।।
यु ध र उवाच
न व ते सं धरथा प व हो
मृतैम य र त लोकेषु न ा ।
न ते मया जीव यतुं ह श या-
तत याग तेषु कृतो न जीवताम् ।। १५ ।।
यु ध रने कहा—भगवन्! संसारम यह न त बात है क मरे ए मनु य के साथ न
तो कसीका मेल होता है न वरोध ही। ौपद तथा अपने भाइय को जी वत करना मेरे
वशक बात नह है; अतः मर जानेपर मने उनका याग कया है, जी वताव थाम
नह ।। १५ ।।
भी त दानं शरणागत य
या वधो ा ण वापहारः ।
म ोह ता न च वा र श
भ याग ैव समो मतो मे ।। १६ ।।
शरणम आये ए को भय दे ना, ीका वध करना, ा णका धन लूटना और म के
साथ ोह करना—ये चार अधम एक ओर और भ का याग सरी ओर हो तो मेरी
समझम यह अकेला ही उन चार के बराबर है ।।
वैश पायन उवाच
तद् धमराज य वचो नश य
धम व पी भगवानुवाच ।
यु ध रं ी तयु ो नरे ं
णैवा यैः सं तवस यु ै ः ।। १७ ।।
वैश पायनजी कहते ह—जनमेजय! धमराज यु ध रका यह कथन सुनकर कु ेका
प धारण करके आये ए धम व पी भगवान् बड़े स ए और राजा यु ध रक
शंसा करते ए मधुर वचन ारा उनसे इस कार बोले— ।। १७ ।।
धमराज उवाच
अ भजातोऽ स राजे पतुवृ ेन मेधया ।
अनु ोशेन चानेन सवभूतेषु भारत ।। १८ ।।
सा ात् धमराजने कहा—राजे ! भरतन दन! तुम अपने सदाचार, बु तथा
स पूण ा णय के त होनेवाली इस दयाके कारण वा तवम सुयो य पताके उ म कुलम
उ प स हो रहे हो ।। १८ ।।
पुरा ै तवने चा स मया पु परी तः ।
पानीयाथ परा ा ता य ते ातरो हताः ।। १९ ।।
बेटा! पूवकालम ै तवनके भीतर रहते समय भी एक बार मने तु हारी परी ा ली थी;
जब क तु हारे सभी भाई पानी लानेके लये उ ोग करते ए मारे गये थे ।।
भीमाजुनौ प र य य य वं ातरावुभौ ।
मा ोः सा यमभी सन् वै नकुलं जीव म छ स ।। २० ।।
उस समय तुमने कु ती और मा दोन माता म समानताक इ छा रखकर अपने
सगे भाई भीम और अजुनको छोड़ केवल नकुलको जी वत करना चाहा था ।।
अयं ा भ इ येवं य ो दे वरथ वया ।
त मात् वग न ते तु यः क द त नरा धपः ।। २१ ।।
इस समय भी ‘यह कु ा मेरा भ है’ ऐसा सोचकर तुमने दे वराज इ के भी रथका
प र याग कर दया है; अतः वगलोकम तु हारे समान सरा कोई राजा नह है ।।
अत तवा या लोकाः वशरीरेण भारत ।
ा तोऽ स भरत े द ां ग तमनु माम् ।। २२ ।।
भारत! भरत े ! यही कारण है क तु ह अपने इसी शरीरसे अ य लोक क ा त
ई है। तुम परम उ म द ग तको पा गये हो ।। २२ ।।
वैश पायन उवाच
ततो धम श म त ा नाव प ।
दे वा दे वषय ैव रथमारो य पा डवम् ।। २३ ।।
ययुः वै वमानै ते स ाः काम वहा रणः ।
सव वरजसः पु याः पु यवा बु क मणः ।। २४ ।।
वैश पायनजी कहते ह—य कहकर धम, इ , म द्गण, अ नीकुमार, दे वता तथा
दे व षय ने पा डु पु यु ध रको रथपर बठाकर अपने-अपने वमान ारा वगलोकको
थान कया। वे सब-के-सब इ छानुसार वचरनेवाले, रजोगुणशू य पु या मा, प व
वाणी, बु और कमवाले तथा स थे ।। २३-२४ ।।
स तं रथं समा थाय राजा कु कुलो हः ।
ऊ वमाच मे शी ं तेजसाऽऽवृ य रोदसी ।। २५ ।।
कु कुल तलक राजा यु ध र उस रथम बैठकर अपने तेजसे पृ वी और आकाशको
ा त करते ए ती ग तसे ऊपरक ओर जाने लगे ।। २५ ।।
ततो दे व नकाय थो नारदः सवलोक वत् ।
उवाचो चै तदा वा यं बृह ाद बृह पाः ।। २६ ।।
उस समय स पूण लोक का वृ ा त जाननेवाले, बोलनेम कुशल तथा महान् तप वी
दे व ष नारदजीने दे वम डलम थत हो उ च वरसे कहा— ।। २६ ।।
येऽ प राजषयः सव ते चा प समुप थताः ।
क त छा तेषां वै कु राजोऽ ध त त ।। २७ ।।
‘ जतने राज ष वगम आये ह, वे सभी यहाँ उप थत ह, कतु कु राज यु ध र अपने
सुयशसे उन सबक क तको आ छा दत करके वराजमान हो रहे ह ।। २७ ।।
लोकानावृ य यशसा तेजसा वृ स पदा ।
वशरीरेण स ा तं ना यं शु ुम पा डवात् ।। २८ ।।
‘अपने यश, तेज और सदाचार प स प से तीन लोक को आवृत करके अपने
भौ तक शरीरसे वगलोकम आनेका सौभा य पा डु न दन यु ध रके सवा और कसी
राजाको ा त आ हो, ऐसा हमने कभी नह सुना है ।।
तेजां स या न ा न भू म ेन वया वभो ।
वे मा न भु व दे वानां प यामू न सह शः ।। २९ ।।
‘ भो! यु ध र! पृ वीपर रहते ए तुमने आकाशम न और तारा के पम
जतने तेज दे खे ह, वे इन दे वता के सह लोक ह; इनक ओर दे खो’ ।।
नारद य वचः ु वा राजा वचनम वीत् ।
दे वानाम य धमा मा वप ां ैव पा थवान् ।। ३० ।।
नारदजीक बात सुनकर धमा मा राजा यु ध रने दे वता तथा अपने प के
राजा क अनुम त लेकर कहा— ।। ३० ।।
शुभं वा य द वा पापं ातॄणां थानम मे ।
तदे व ा तु म छा म लोकान या कामये ।। ३१ ।।
‘दे वे र! मेरे भाइय को शुभ या अशुभ जो भी थान ा त आ हो उसीको म भी
पाना चाहता ँ। उसके सवा सरे लोक म जानेक मेरी इ छा नह है’ ।।
रा तु वचनं ु वा दे वराजः पुरंदरः ।
आनृशं यसमायु ं युवाच यु ध रम् ।। ३२ ।।
राजाक बात सुनकर दे वराज इ ने यु ध रसे कोमल वाणीम कहा— ।। ३२ ।।
थानेऽ मन् वस राजे कम भ न जते शुभैः ।
क वं मानु यकं नेहम ा प प रकष स ।। ३३ ।।
‘महाराज! तुम अपने शुभ कम ारा ा त ए इस वगलोकम नवास करो।
मनु यलोकके नेहपाशको य अभीतक ख चे ला रहे हो? ।। ३३ ।।
स ा तोऽ स परमां यथा ना यः पुमान् व चत् ।
नैव ते ातरः थानं स ा ताः कु न दन ।। ३४ ।।
कु न दन! तु ह वह उ म स ा त ई है जसे सरा मनु य कभी और कह नह
पा सका। तु हारे भाई ऐसा थान नह पा सके ह ।। ३४ ।।
अ ा प मानुषो भावः पृशते वां नरा धप ।
वग ऽयं प य दे वष न् स ां दवालयान् ।। ३५ ।।
‘नरे र! या अब भी मानवभाव तु हारा पश कर रहा है? राजन्! यह वगलोक है।
इन वगवासी दे व षय तथा स का दशन करो’ ।। ३५ ।।
यु ध र तु दे वे मेवंवा दनमी रम् ।
पुनरेवा वीद् धीमा नदं वचनमथवत् ।। ३६ ।।
ऐसी बात कहते ए ऐ यशाली दे वराजसे बु मान् यु ध रने पुनः यह अथयु
वचन कहा— ।। ३६ ।।
तै वना नो सहे व तु मह दै य नबहण ।
ग तु म छा म त ाहं य ते ातरो गताः ।। ३७ ।।
य सा बृहती यामा बु स वगुणा वता ।
ौपद यो षतां े ा य चैव गता मम ।। ३८ ।।
‘दै यसूदन! अपने भाइय के बना मुझे यहाँ रहनेका उ साह नह होता; अतः म वह
जाना चाहता ँ, जहाँ मेरे भाई गये ह तथा जहाँ ऊँचे कदवाली, यामवणा, बु मती
स वगुणस प ा एवं युव तय म े मेरी ौपद गयी है ।। ३७-३८ ।।
इ त ीमहाभारते महा था नके पव ण यु ध र वगारोहे तृतीयोऽ यायः ।। ३ ।।
इस कार ीमहाभारत महा था नकपवम यु ध रका वगारोहण वषयक तीसरा
अ याय पूरा आ ।। ३ ।।

।। महा था नकपव स पूण ।।

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