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॥ वै दक गीता ॥
अथ थमोऽ यायः
अजन
ु वषादयोगः
धत
ृ रा उवाच
धम े े कु े े समवेता यय
ु ु सवः ।
मामकाः पा डवा चैव कमकुवत स जय ॥१॥
स जय उवाच
वा तु पा डवानीकं यढ
ू ं दय
ु धन तदा ।
आचायमप ु स ग य राजा वचनम वीत ् ॥२॥
इस सेनाम बड़े-बड़े धनष ु वाले तथा यु धम भीम और अजनक ु े समान शरू वीर सा य क
और वराट तथा महारथी राजा प ु द, ध ृ टकेतु और चे कतान तथा बलवान ् का शराज,
पु िजत ्, कुि तभोज और मनु य म े ठ शै य, परा मी यध ु ाम यु तथा बलवान ्
उ मौजा, सभ ु ापु अ भम यु एवं ौपद के पाँच पु - ये सभी महारथी ह।
और भी मेरे लये जीवनक आशा याग दे नेवाले बहुत-से शरू वीर अनेक कारके
श ा से सस ु ि जत और सब-के-सब यु धम चतरु ह।
त य स जनय हष कु व ृ धः पतामहः ।
संहनादं वन यो चैः श खं द मौ तापवान ् ॥१२॥
पा चज यं षीकेशो दे वद ं धन जयः ।
पौ ं द मौ महाश खं भीमकमा वक ृ ोदरः ॥१५॥
े ठ धनष
ु वाले का शराज और महारथी शख डी एवं ध ृ ट यु न तथा राजा वराट और
अजेय सा य क, राजा प ु द एवं ौपद के पाँच पु और बड़ी भज
ु ावाले सभ
ु ापु
अ भम य― ु इन सभीने, हे राजन!् सब ओरसे अलग-अलग शंख बजाये।
यावदे ताि नर ऽे हं यो धक
ु ामानवि थतान ् ।
कैमया सह यो ध यमि म णसमु यमे ॥२२॥
दब
ु ु ध दय
ु धनका यु धम हत चाहनेवाले जो-जो ये राजालोग इस सेनाम आये ह, इन
यु ध करनेवाल को म दे खग
ूँ ा।
स जय उवाच
संजय बोले- हे धत
ृ रा ! अजन
ु वारा इस कार कहे हुए महाराज ीकृ णच ने दोन
सेनाओंके बीचम भी म और ोणाचायके सामने तथा स पण ू राजाओंके सामने उ म
रथको खड़ा करके इस कार कहा क हे पाथ! यु धके लये जट ु े हुए इन कौरव को दे ख।
इसके बाद पथ
ृ ापु अजनने
ु उन दोन ह सेनाओंम ि थत ताऊ-चाच को, दाद -परदाद को,
गु ओंको, मामाओंको, भाइय को, पु को, पौ को तथा म को, ससरु को और सु द को
भी दे खा।
उन उपि थत स पण ू ब धओु क
ं ो दे खकर वे कु तीपु अजन
ु अ य त क णासे यु त
होकर शोक करते हुए यह वचन बोले।
अजन
ु उवाच
गा डीवं स
ं ते ह ता व चैव प रद यते ।
न च श नो यव थातंु मतीव च मे मनः ॥३०॥
न म ा न च प या म वपर ता न केशव ।
न च ेयोऽनप
ु या म ह वा वजनमाहवे ॥३१॥
न का े वजयं कृ ण न च रा यं सख ु ानच।
कं नो रा येन गो व द कं भोगैज वतेन वा ॥३२॥
येषामथ का तं नो रा यं भोगाः सख
ु ानच।
त इमेऽवि थता यु धे ाणां य वा धना न च ॥३३॥
गु जन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी कार दादे , मामे, ससरु , पौ , साले तथा और भी
स ब धी लोग ह।
हे मधसु द
ू न! मझ
ु े मारनेपर भी अथवा तीन लोक के रा यके लये भी म इन सबको मारना
नह ं चाहता; फर प ृ वीके लये तो कहना ह या है ?
हे जनादन! धत
ृ रा के पु को मारकर हम या स नता होगी? इन आतता यय को
मारकर तो हम पाप ह लगेगा।
य य येते न प यि त लोभोपहतचेतसः ।
कुल यकृतं दोषं म ोहे च पातकम ् ॥३८॥
कथं न ेयम मा भः पापाद माि नव ततम ु ्।
कुल यकृतं दोषं प य भजनादन ॥३९॥
हा! शोक! हमलोग बु धमान ् होकर भी महान ् पाप करनेको तैयार हो गये ह, जो रा य
और सख ु के लोभसे वजन को मारनेके लये उ यत हो गये ह।
य द मझ
ु श र हत एवं सामना न करनेवालेको श हाथम लये हुए धत ृ रा के पु
रणम मार डाल तो वह मारना भी मेरे लये अ धक क याणकारक होगा।
स जय उवाच
ीभगवानव
ु ाच
इस लये हे अजन!
ु नपसंु कताको मत ा त हो, तझ
ु म यह उ चत नह ं जान पड़ती। हे
परं तप! दयक तु छ दब ु लताको यागकर यु धके लये खड़ा हो जा।
अजन
ु उवाच
इस लये इन महानभ
ु ाव गु जन को न मारकर म इस लोकम भ ाका अ न भी खाना
क याणकारक समझता हूँ; य क गु जन को मारकर भी इस लोकम धरसे सने हुए
अथ और काम प भोग को ह तो भोगँग ू ा।
गु नह वा ह महानभ ु ावा-
े यो भो तंु भै यमपीह लोके ।
ह वाथकामां तु गु नहै व
भु जीय भोगा ु धर द धान ् ॥५२।२।५॥
इस लये कायरता प दोषसे उपहत हुए वभाववाला तथा धमके वषयम मो हत च हुआ
म आपसे पछू ता हूँ क जो साधन नि चत क याणकारक हो, वह मेरे लये क हये; य क
म आपका श य हूँ, इस लये आपके शरण हुए मझ
ु को श ा द िजये।
न ह प या म ममापनु या-
य छोकमु छोषण मि याणाम ् ।
अवा य भम ू ावसप नम ृ धं-
रा यं सरु ाणाम प चा धप यम ् ॥५५।२।८॥
स जय उवाच
एवमु वा षीकेशं गड
ु ाकेशः पर तप ।
न यो य इ त गो व दमु वा तू णीं बभव
ू ह ॥५६।२।९॥
अथ वतीयोऽ यायः
सा ययोगः
हे भरतवंशी धत
ृ रा ! ीकृ ण महाराज दोन सेनाओंके बीचम शोक करते हुए उस
अजनको
ु हँसते हुए-से यह वचन बोले।
तमव
ु ाच षीकेशः हसि नव भारत ।
सेनयो भयोम ये वषीद त मदं वचः ॥१।२।१०॥
ीभगवानव
ु ाच
हे कु तीपु ! सद -गम और सख
ु -दःु खको दे नेवाले इि य और वषय के संयोग तो
उ प - वनाशशील और अ न य ह, इस लये हे भारत! उनको तू सहन कर।
य क हे पु ष े ठ! दःु ख-सख
ु को समान समझनेवाले िजस धीर पु षको ये इि य और
वषय के संयोग याकुल नह ं करते, वह मो के यो य होता है ।
असत ् व तक
ु तो स ा नह ं है और सतका् अभाव नह ं है । इस कार इन दोन का ह त व
त व ानी पु ष वारा दे खा गया है ।
हे पथ ृ ापु अजन!
ु जो पु ष इस आ माको नाशर हत, न य, अज मा और अ यय जानता
है , वह पु ष कैसे कसको मरवाता है और कैसे कसको मारता है ?
जात य ह व ु ो म ृ यु वं
ु ज म मतृ यच।
त मादप रहायऽथ न वं शो चतम ु ह स ॥१७।२।२७॥
हे अजन!
ु स पणू ाणी ज मसे पहले अ कट थे और मरनेके बाद भी अ कट हो जानेवाले
ह, केवल बीचम ह कट ह; फर ऐसी ि थ तम या शोक करना है ?
अ य ताद न भत
ू ा न य तम या न भारत ।
अ य त नधना येव त का प रदे वना ॥१८।२।२८॥
आ चयव प य त कि चदे न -
मा चयव वद त तथैव चा यः ।
आ चयव चैनम यः शण ृ ोत
ु वा येनं वेद न चैव कि चत ् ॥१९।२।२९॥
हे अजन!
ु यह आ मा सबके शर र म सदा ह अव य है । इस कारण स पण
ू ा णय के लये
तू शोक करनेके यो य नह ं है ।
अथ चे व ममं ध य स ामं न क र य स ।
ततः वधम क त च ह वा पापमवा य स ॥२३।२।३३॥
तथा सब लोग तेर बहुत कालतक रहनेवाल अपक तका भी कथन करगे और माननीय
पु षके लये अपक त मरणसे भी बढ़कर है ।
अक त चा प भत
ू ान
कथ य यि त तेऽ ययाम ् ।
स भा वत य चाक त-
मरणाद त र यते ॥२४।२।३४॥
हतो वा ा य स वग िज वा वा भो यसे मह म ् ।
त माद ु ठ कौ तेय यु धाय कृत न चयः ॥२७।२।३७॥
जय-पराजय, लाभ-हा न और सख ु -दःु खको समान समझकर, उसके बाद यु धके लये
तैयार हो जा; इस कार यु ध करनेसे तू पापको नह ं ा त होगा।
सख
ु दःु खे समे कृ वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो यु धाय यु य व नैवं पापमवा य स ॥२८।२।३८॥
अथ तत
ृ ीयोऽ यायः
कमयोगः
योग थः कु कमा ण स गं य वा धन जय ।
स य स योः समो भू वा सम वं योग उ यते ॥८।२।४८॥
िजस कालम तेर बु ध मोह प दलदलको भल भाँ त पार कर जायगी, उस समय तू सनु े
हुए और सन
ु नेम आनेवाले इस लोक और परलोकस ब धी सभी भोग से वैरा यको ा त
हो जायगा।
ु त व तप ना ते यदा था य त न चला ।
समाधावचला बु ध तदा योगमवा य स ॥१३।२।५३॥
॥इ त ीम भगव गीतायां तत
ृ ीयोऽ यायः॥
अथ चतथ
ु ऽ यायः
कमयोगः
ि थत का ल ण
अजन
ु उवाच
अजन
ु बोले― हे केशव! समा धम ि थत परमा माको ा त हुए ि थरबु ध पु षका या
ल ण है ? वह ि थरबु ध पु ष कैसे बोलता है , कैसे बैठता है और कैसे चलता है ?
ीभगवानव
ु ाच
यः सव ान भ नेह त ा य शभ
ु ाशभ
ु म्।
ना भन द त न वेि ट त य ा ति ठता ॥४।२।५७॥
यायतो वषया पस
ंु ः स ग तेषप
ू जायते ।
स गा स जायते कामः कामा ोधोऽ भजायते ॥७।२।६२॥
परं तु अपने अधीन कये हुए अ तःकरणवाला साधक अपने वशम क हुई, राग- वेषसे
र हत इि य वारा वषय म वचरण करता हुआ अ तःकरणक स नताको ा त होता
है ।
हे अजन!
ु यह मको ा त हुए पु षक ि थ त है , इसको ा त होकर योगी कभी मो हत
नह ं होता और अ तकालम भी इस ा मी ि थ तम ि थत होकर मान दको ा त हो
जाता है ।
अथ प चमोऽ यायः
कमयोगः
कम-सं यासक आव यकता
अजन
ु उवाच
ीभगवानव
ु ाच
ीभगवान ् बोले― हे न पाप! इस लोकम दो कारक न ठा मेरे वारा पहले कह गयी
है । उनमसे सां ययो गय क न ठा तो ानयोगसे और यो गय क न ठा कमयोगसे
होती है ।
न कमणामनार भा नै क य पु षोऽ नत
ु े।
न च स यसनादे व स धं सम धग छ त ॥४।३।४॥
न ह कि च णम प जातु त ठ यकमकृत ् ।
कायते यवशः कम सवः कृ तजैगणै
ु ः ॥५।३।५॥
जो मढ़
ू बु ध मनु य सम त इि य को हठपवू क ऊपरसे रोककर मनसे उन इि य के
वषय का च तन करता रहता है , वह म याचार अथात ् द भी कहा जाता है ।
क तु हे अजन!
ु जो पु ष मनसे इि य को वशम करके अनास त हुआ सम त
इि य वारा कमयोगका आचरण करता है , वह े ठ है ।
यि वि या ण मनसा नय यारभतेऽजन
ु ।
कमि यैः कमयोगमस तः स व श यते ॥७।३।७॥
तम
ु लोग इस य के वारा दे वताओंको उ नत करो और वे दे वता तमु लोग को उ नत कर।
इस कार नः वाथभावसे एक-दस ू रे को उ नत करते हुए तम
ु लोग परम क याणको ा त
हो जाओगे।
दे वा भावयतानेन ते दे वा भावय तु वः ।
पर परं भावय तः ेयः परमवा यथ ॥३।३।११॥
इ टा भोगाि ह वो दे वा दा य ते य भा वताः ।
तैद ान दायै यो यो भु ते तेन एव सः ॥४।३।१२॥
य श टा शनः स तो मु य ते सव कि बषैः ।
भु जते ते वघं पापा ये पच या मकारणात ् ॥५।३।१३॥
स पणू ाणी अ नसे उ प न होते ह, अ नक उ प विृ टसे होती है , विृ ट य से होती
है और य व हत कम से उ प न होनेवाला है । कम-समद
ु ायको तू वेदसे उ प न और
वेदको अ वनाशी परमा मासे उ प न हुआ जान। इससे स ध होता है क सव यापी परम
अ र परमा मा सदा ह य म ति ठत है ।
अ ना भवि त भत
ू ा न पज याद नस भवः ।
य ा भव त पज यो य ः कमसमु भवः ॥
कम मो भवं व ध मा रसमु भवम ् ।
त मा सवगतं म न यं य े ति ठतम ् ॥६-७।३।१४-१५॥
अथ स तमोऽ यायः
कमयोगः
ानीके लये कमक आव यकता
हे अजन!
ु मझु े इन तीन लोक म न तो कुछ कत य है और न कोई भी ा त करनेयो य
व तु अ ा त है , तो भी म कमम ह बरतता हूँ।
न मे पाथाि त कत यं षु लोकेषु क चन ।
नानवा तमवा त यं वत एव च कम ण ॥६।३।२२॥
वा तवम स पण
ू कम सब कारसे कृ तके गण ु वारा कये जाते ह तो भी िजसका
अ तःकरण अह कारसे मो हत हो रहा है , ऐसा अ ानी 'म कता हूँ' ऐसा मानता है ।
पर तु हे महाबाहो! गण
ु वभाग और कम वभाग के त व को जाननेवाला ानयोगी स पण
ू
गण
ु ह गण ु म बरत रहे ह, ऐसा समझकर उनम आस त नह ं होता।
त व व ु महाबाहो गण ु कम वभागयोः ।
गण
ु ा गण े
ु ु ष वत त इ त म वा न स जते ॥१२।३।२८॥
कृ तके गण
ु से अ य त मो हत हुए मनु य गण
ु म और कम म आस त रहते ह, उन
पण
ू तया न समझनेवाले म दबु ध अ ा नय को पण ू तया जाननेवाला ानी वच लत न
करे ।
कृतेगणस
ु मढ
ू ाः स ज ते गण
ु कमसु ।
तानकृ न वदो म दा कृ न व न वचालयेत ् ॥१३।३।२९॥
सभी ाणी कृ तको ा त होते ह अथात ् अपने वभावके परवश हुए कम करते ह।
ानवान ् भी अपनी कृ तके अनस
ु ार चे टा करता है । फर इसम कसीका हठ या
करे गा?
इि य-इि यके अथम अथात ् येक इि यके वषयम राग और वेष छपे हुए ि थत
ह। मनु यको उन दोन के वशम नह ं होना चा हये, य क वे दोन ह इसके क याणमागम
व न करनेवाले महान ् श ु ह।
अथ अ टमोऽ यायः
कमयोगः
व ृ का धान कारण
अजन
ु उवाच
ीभगवानव
ु ाच
िजस कार धए ु ँसे अि न और मैलसे दपण ढका जाता है तथा िजस कार जेरसे गभ ढका
रहता है , वैसे ह उस कामके वारा यह ान ढका रहता है ।
धम
ू ेना यते वि नयथादश मलेन च ।
यथो बेनावत
ृ ो गभ तथा तेनेदमावत
ृ म ् ॥३।३।३८॥
आवतृ ं ानमेतन
े ा ननो न यवै रणा ।
काम पेण कौ तेय द ु परू े णानलेन च ॥४।३।३९॥
इि याँ, मन और बु ध― ये सब इसके वास थान कहे जाते ह। यह काम इन मन, बु ध
और इि य के वारा ह ानको आ छा दत करके जीवा माको मो हत करता है ।
इस लये हे अजन!
ु तू पहले इि य को वशम करके इस ान और व ानका नाश
करनेवाले महान ् पापी कामको अव य ह बलपव
ू क मार डाल।
त मा व मि या यादौ नय य भरतषभ ।
पा मानं ज ह येनं ान व ाननाशनम ् ॥६।३।४१॥
अथ नवमोऽ यायः
कमयोगः
कम-सं यासका साधन कम
कम यकम यः प येदकम ण च कम यः ।
स बु धमा मनु येषु स यु तः कृ नकमकृत ् ॥३।४।१८॥
िजसके स पण
ू शा स मत कम बना कामना और संक पके होते ह तथा िजसके
सम त कम ान प अि नके वारा भ म हो गये ह, उस महापु षको ानीजन भी
पि डत कहते ह।
य वा कमफलास गं न यत ृ तो नरा यः ।
कम य भ व ृ ोऽ प नैव कि च करो त सः ॥५।४।२०॥
नराशीयत च ा मा य तसवप र हः ।
शार रं केवलं कम कुव ना नो त कि बषम ् ॥६।४।२१॥
अथ दशमोऽ यायः
कमयोगः
य और ानय क े ठता
दस
ू रे योगीजन दे व य का ह भल भाँ त अनु ठान कया करते ह और अ य योगीजन
पर म परमा मा प अि नम अभेददशन प य के वारा ह आ म प य का हवन
कया करते ह।
दस
ू रे योगीजन इि य क स पण
ू याओंको और ाण क सम त याओंको ानसे
का शत आ म-संयमयोग प अि नम हवन कया करते ह।
य श टामत ृ भज
ु ो याि त म सनातनम ् ।
नायं लोकोऽ यय य कुतोऽ यः कु स म ॥७।४।३१॥
इसी कार और भी बहुत तरहके य वेदक वाणीम व तारसे कहे गये ह। उन सबको तू
मन, इि य और शर रक या वारा स प न होनेवाले जान, इस कार त वसे जानकर
उनके अनु ठान वारा तू कमब धनसे सवथा मु त हो जायगा।
हे परं तप अजन!
ु यमय य क अपे ा ानय अ य त े ठ है , तथा याव मा
स पण ू कम ानम समा त हो जाते ह।
न ह ानेन स शं प व मह व यते ।
त वयं योगसं स धः कालेना म न व द त ॥१०।४।३८॥
िजतेि य, साधनपरायण और धावान ् मनु य ानको ा त होता है तथा ानको
ा त होकर वह बना वल बके― त काल ह भगव ाि त प परम शाि तको ा त हो
जाता है ।
अ चा दधान च संशया मा वन य त ।
नायं लोकोऽि त न परो न सख
ु ं संशया मनः ॥१२।४।४०॥
अथैकादशोऽ यायः
कमयोगः
कमसं याससे कमयोगक े ठता
अजन
ु उवाच
ीभगवानव
ु ाच
े ः स न यस यासी यो न वेि ट न का
य त।
न व वो ह महाबाहो सख
ु ं ब धा मु यते ॥३।५।३॥
सा ययोगौ पथ
ृ बालाः वदि त न पि डताः ।
एकम याि थतः स यगभु यो व दते फलम ् ॥४।५।४॥
पर तु हे अजन!
ु कमयोगके बना सं यास अथात ् मन, इि य और शर र वारा होनेवाले
स पण
ू कम म कतापनका याग ा त होना क ठन है और भगव व पको मनन
करनेवाला कमयोगी पर म परमा माको शी ह ा त हो जाता है ।
हे अजन!
ु िजसको सं यास ऐसा कहते ह, उसीको तू योग जान; य क संक प का याग
न करनेवाला कोई भी पु ष योगी नह ं होता।
यं स यास म त ाहुय गं तं व ध पा डव ।
न यस य तस क पो योगी भव त क चन ॥१४।६।२॥
आ ोमने
ु य गं कम कारणमु यते ।
योगा ढ य त यैव शमः कारणमु यते ॥१५।६।३॥
अथ वादशोऽ यायः
यानयोगः
सा यबु ध और उसका साधन यानयोग
सु ि म ायदासीनम
ु य थ वे यब धष
ु ु।
साधु व प च पापेषु समबु ध व श यते ॥५।६।९॥
शच
ु ौ दे शे त ठा य ि थरमासनमा मनः ।
ना यिु तं ना तनीचं चैलािजनकुशो रम ् ॥७।६।११॥
त क
ै ा ं मनः कृ वा यत च ेि य यः ।
उप व यासने यु या योगमा म वशु धये ॥८।६।१२॥
काया, सर और गलेको समान एवं अचल धारण करके और ि थर होकर, अपनी
ना सकाके अ भागपर ि ट जमाकर, अ य दशाओंको न दे खता हुआ―
म- मसे अ यास करता हुआ उपर तको ा त हो तथा धैययु त बु धके वारा मनको
परमा माम ि थत करके परमा माके सवा और कुछ भी च तन न करे ।
अजन
ु उवाच
अजन
ु बोले― हे मधस
ु द
ू न! जो यह योग आपने समभावसे कहा है , मनके च चल होनेसे म
इसक न य ि थ तको नह ं दे खता हूँ।
ीभगवानव
ु ाच
िजसका मन वशम कया हुआ नह ं है , ऐसे पु ष वारा योग द ु ा य है और वशम कये हुए
मनवाले य नशील पु ष वारा साधनसे उसका ा त होना सहज है ― यह मेरा मत है ।
अजन
ु उवाच
कि च नोभय व टि छ ना मव न य त ।
अ त ठो महाबाहो वमढ
ू ो मणः प थ ॥२१।६।३८॥
एत मे संशयं कृ ण छे म
ु ह यशेषतः ।
वद यः संशय या य छे ा न यप ु प यते ॥२२।६।३९॥
ीभगवानव
ु ाच
पव
ू ा यासेन तेनव
ै यते यवशोऽ प सः ।
िज ासरु प योग य श द मा तवतते ॥२७।६।४४॥
पर तु य नपव
ू क अ यास करनेवाला योगी तो पछले अनेक ज म के सं कारबलसे इसी
ज मम सं स ध होकर स पण
ू पाप से र हत हो फर त काल ह परमग तको ा त हो
जाता है ।
अथ योदशोऽ यायः
यानयोगः
भि त न पण
क वं परु ाणमनश
ु ा सतार -
मणोरणीयांसमनु मरे यः ।
सव य धातारम च य प-
मा द यवण तमसः पर तात ् ॥२।८।९॥
याणकाले मनसाचलेन
भ या यु तो योगबलेन चैव ।
व
ु ोम ये ाणमावे य स यक् -
स तं परं पु षमप
ु ै त द यम ् ॥३।८।१०॥
हे पाथ! िजस परमा माके अ तगत सवभत ू ह और िजस सि चदान दघन परमा मासे यह
सम त जगत ् प रपण ू है , वह सनातन अ य त परम पु ष तो अन य भि तसे ह ा त
होने यो य है ।
अथ चतद
ु शोऽ यायः
ानयोगः
ान तथा ेय न पण
ीभगवानव
ु ाच
ीभगवान ् बोले- तझ
ु दोष ि टर हत भ तके लये इस परम गोपनीय व ानस हत
ानको पन
ु ः भल भाँ त कहूँगा, िजसको जानकर तू दःु ख प संसारसे मु त हो जायगा।
ेयं य व या म य ा वामत
ृ म नतु े।
अना दम परं म न स नासद ु यते ॥६।१३।१२॥
वह सब ओर हाथ-पैरवाला, सब ओर ने , सर और मख
ु वाला तथा सब ओर कानवाला है ;
य क वह संसारम सबको या त करके ि थत है ।
वह स पण
ू इि य के वषय को जाननेवाला है , पर तु वा तवम सब इि य से र हत है
तथा आसि तर हत होनेपर भी सबका धारण-पोषण करनेवाला और नगण ु होनेपर भी
गण
ु को भोगनेवाला है ।
अ वभ तं च भतू ष
े ु वभ त मव च ि थतम ् ।
भत
ू भत ृ च त ेयं स णु भ व णु च ॥१०।१३।१६॥
अथ प चदशोऽ यायः
व ानयोगः
गण
ु काय ववेक तथा गण
ु ातीत ल ण
ीभगवानव
ु ाच
परं भय
ू ः व या म ानानां ानमु मम ् ।
य ा वा मन ु यः सव परां स ध मतो गताः ॥१।१४।१॥
हे अजन!
ु स वगण ु , रजोगण
ु और तमोगण
ु ― ये कृ तसे उ प न तीन गण
ु अ वनाशी
जीवा माको शर रम बाँधते ह।
स वं रज तम इ त गण
ु ाः कृ तस भवाः ।
नब नि त महाबाहो दे हे दे हनम ययम ् ॥२।१४।५॥
त स वं नमल वा काशकमनामयम ् ।
सख
ु स गेन ब ना त ानस गेन चानघ ॥३।१४।६॥
हे अजन!
ु राग प रजोगण
ु को कामना और आसि तसे उ प न जान। वह इस जीवा माको
कम के और उनके फलके स ब धसे म बाँधता है ।
हे अजन!
ु सब दे हा भमा नय को मो हत करने-वाले तमोगण
ु को तो अ ानसे उ प न जान।
वह इस जीवा माको माद, आल य और न ाके वारा बाँधता है ।
हे अजन!
ु स वगण ु सख ु म लगाता है और रजोगण
ु कमम तथा तमोगण
ु तो ानको ढककर
मादम भी लगाता है ।
स वं सख
ु े स जय त रजः कम ण भारत ।
ानमाव ृ य तु तमः मादे स जय यत
ु ॥६।१४।९॥
हे अजन!
ु रजोगण ु और तमोगण
ु को दबाकर स वगणु , स वगण
ु और तमोगण ु को दबाकर
रजोगणु , वैसे ह स वगण
ु और रजोगणु को दबाकर तमोगणु होता है अथात ् बढ़ता है ।
रज तम चा भभय ू स वं भव त भारत ।
रजः स वं तम चैव तमः स वं रज तथा ॥७।१४।१०॥
हे अजन!
ु रजोगण
ु के बढ़नेपर लोभ, व ृ , वाथबु धसे कम का सकामभावसे आर भ,
अशाि त और वषयभोग क लालसा― ये सब उ प न होते ह।
हे अजन!
ु तमोगण
ु के बढ़नेपर अ तःकरण और इंि य म अ काश, कत य-कम म
अ व ृ और माद अथात ् यथ चे टा और न ा द अ तःकरणक मो हनी व ृ याँ― ये
सब ह उ प न होते ह।
जब यह मनु य स वगण
ु क व ृ धम म ृ यक
ु ो ा त होता है , तब तो उ म कम करने-वाल
ा नय के नमल द य वगा द लोक को ा त होता है ।
स वगण
ु से ान उ प न होता है और रजोगण
ु से न स दे ह लोभ तथा तमोगण
ु से माद
और मोह उ प न होते ह और अ ान भी होता है ।
ऊ व ग छि त स व था म ये त ठि त राजसाः ।
जघ यगणु व ृ था अधो ग छि त तामसाः ॥१५।१४।१८॥
गण
ु ानेतानती य ी दे ह दे हसमु भवान ् ।
ज मम ृ यजु रादःु खै वमु तोऽमत
ृ म नत
ु े ॥१६।१४।२०॥
अजन
ु उवाच
कै ल गै ी गणु ानेतानतीतो भव त भो ।
कमाचारः कथं चैतां ी गण
ु ान तवतते ॥१७।१४।२१॥
ीभगवानव
ु ाच
काशं च व ृ ं च मोहमेव च पा डव ।
न वेि ट स व ृ ा न न नव ृ ा न का त ॥१८।१४।२२॥
उदासीनवदासीनो गणु य
ै न वचा यते ।
गण
ु ा वत त इ येव योऽव त ठ त ने गते ॥१९।१४।२३॥
समदःु खसख
ु ः व थः समलो टा मका चनः ।
तु य या यो धीर तु य न दा मसं तु तः ॥२०।१४।२४॥
मानापमानयो तु य तु यो म ा रप योः ।
सवार भप र यागी गण
ु ातीतः स उ यते ॥२१।१४।२५॥
अथ षोडशोऽ यायः
व ानयोगः
दै व-आसरु भाव- ववेक
ीभगवानव
ु ाच
दै वी स पदा मिु तके लये और आसरु स पदा बाँधनेके लये मानी गयी है । इस लये हे
अजन! ु तू शोक मत कर, य क तू दै वी स पदाको लेकर उ प न हुआ है ।
वौ भत
ू सग लोकेऽि म दै व आसरु एव च ।
दै वो व तरशः ो त आसरु ं पाथ मे शण
ृ ु ॥६।१६।६॥
अस यम त ठं ते जगदाहुरनी वरम ् ।
अपर परस भत
ू ं कम य कामहै तकु म ् ॥८।१६।८॥
तथा वे म ृ यप
ु य त रहनेवाल असं य च ताओंका आ य लेनेवाले, वषयभोग के
भोगनेम त पर रहनेवाले और ‘इतना ह सखु है ’ इस कार माननेवाले होते ह।
काम, ोध तथा लोभ― ये तीन कारके नरकके वार आ माका नाश करनेवाले अथात ्
उसको अधोग तम ले जानेवाले ह। अतएव इन तीन को याग दे ना चा हये।
अथ स तदशोऽ यायः
व ानयोगः
गण
ु न ठा
अजन
ु उवाच
अजन
ु बोले― हे कृ ण! जो मनु य शा व धको यागकर धासे यु त हुए उपासना प
कम करते ह, उनक ि थ त फर कौन-सी है ? साि वक है अथवा राजसी कंवा तामसी?
ीभगवानव
ु ाच
स वानु पा सव य धा भव त भारत ।
धामयोऽयं पु षो यो य धः स एव सः ॥३।१७।३॥
साि वक पु ष व वान को पज
ू ते ह, राजस पु ष बलसे ति ठत और पापीलोग को तथा
अ य जो तामस मनु य ह, वे मत
ृ और अ या द भत ू पदाथ को पज
ू ते ह।
आहार व प सव य वधो भव त यः ।
य तप तथा दानं तेषां भेद ममं शण
ृ ु ॥५।१७।७॥
अफलाका भय ो व ध टो य इ यते ।
य ट यमेवे त मनः समाधाय स साि वकः ॥९।१७।११॥
व धह नमस ृ टा नं म ह नमद णम ् ।
धा वर हतं य ं तामसं प रच ते ॥११।१७।१३॥
दे व वजगु ा पज ू नं शौचमाजवम ् ।
मचयम हंसा च शार रं तप उ यते ॥१२।१७।१४॥
जो तप मढ़
ू तापव
ू क हठसे, मन, वाणी और शर रक पीड़ाके स हत अथवा दस
ू रे का अ न ट
करनेके लये कया जाता है ― वह तप तामस कहा गया है ।
मढ
ू ाहे णा मनो य पीडया यते तपः ।
पर यो सादनाथ वा त ामसमद
ु ा तम ् ॥१७।१७।१९॥
य ु यप ु काराथ फलमु द य वा पन ु ः।
द यते च प रि ल टं त दानं राजसं मत ृ म ् ॥१९।१७।२१॥
त मादो म यद
ु ा य य दानतपः याः ।
वत ते वधानो ताः सततं मवा दनाम ् ॥२२।१७।२४॥
स भावे साधभ
ु ावे च स द येत यु यते ।
श ते कम ण तथा स छ दः पाथ यु यते ॥२४।१७।२६॥
य े तप स दाने च ि थ तः स द त चो यते ।
कम चैव तदथ यं स द येवा भधीयते ॥२५।१७।२७॥
हे अजन!
ु बना धाके कया हुआ हवन, दया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ
भी कया हुआ शभ
ु कम है ― वह सम त ‘असत’― ् इस कार कहा जाता है ; इस लये वह
न तो इस लोकम लाभदायक है और न मरनेके बाद ह ।
अजन
ु उवाच
ीभगवानव
ु ाच
न चयं शण
ृ ु मे त यागे भरतस म ।
यागो ह पु ष या वधः स क ततः ॥४।१८।४॥
य दानतपःकम न या यं कायमेव तत ् ।
य ो दानं तप चैव पावना न मनी षणाम ् ॥५।१८।५॥
इस लये हे पाथ! इन य , दान और तप प कम को तथा और भी स पण
ू कत यकम को
आसि त और फल का याग करके अव य करना चा हये, यह मेरा न चय कया हुआ
उ म मत है ।
हे अजन!
ु जो शा व हत कम करना कत य है ― इसी भावसे आसि त और फलका
याग करके कया जाता है ― वह साि वक याग माना गया है ।
न ह दे हभत
ृ ा श यं य तंु कमा यशेषतः ।
य तु कमफल यागी स यागी य भधीयते ॥११।१८।११॥
कमफलका याग न करनेवाले मनु य के कम का तो अ छा, बरु ा और मला हुआ― ऐसे
तीन कारका फल मरनेके प चात ् अव य होता है , क तु कमफलका याग कर दे नेवाले
मनु य के कम का फल कसी कालम भी नह ं होता।
हे महाबाहो! स पण
ू कम क स धके ये पाँच हे तु कम का अ त करनेके लये उपाय
बतलानेवाले सा यशा म कहे गये ह, उनको तू मझ ु से भल भाँ त जान।
त व
ै ं स त कतारमा मानं केवलं तु यः ।
प य यकृतबु ध वा न स प य त दम ु तः ॥१६।१८।१६॥
िजस पु षके अ तःकरणम ‘म कता हूँ’ ऐसा भाव नह ं है तथा िजसक बु ध सांसा रक
पदाथ म और कम म लपायमान नह ं होती, वह पु ष इन सब लोक को मारकरभी
वा तवम न तो मरता है और न पापसे बँधता है ।
गण
ु क सं या करनेवाले शा म ान और कम तथा कता गण ु के भेदसे तीन-तीन
कारके ह कहे गये ह; उनको भी तु मझ
ु से भल भाँ त सन
ु ।
सवभतू ष
े ु येनक
ै ं भावम ययमी ते ।
अ वभ तं वभ तेषु त ानं व ध साि वकम ् ॥२०।१८।२०॥
य ु कामे सन
ु ा कम साह कारे ण वा पन
ु ः।
यते बहुलायासं त ाजसमद
ु ा तम ् ॥२४।१८।२४॥
अनबु धं यं हंसामनपे य च पौ षम ् ।
मोहादार यते कम य ामसमु यते ॥२५।१८।२५॥
जो कता संगर हत, अहं कारके वचन न बोलनेवाला, धैय और उ साहसे यु त तथा कायके
स ध होने और न होनेम हष-शोका द वकार से र हत है ― वह साि वक कहा जाता है ।
रागी कमफल े सल
ु ु धो हंसा मकोऽशु चः ।
हषशोकाि वतः कता राजसः प रक ततः ॥२७।१८।२७॥
बु धेभदं धत
ृ े चैव गण ु ति वधं शण ृ ु।
ो यमानमशेषण े पथृ वे न धन जय ॥२९।१८।२९॥
व ृ ं च नव ृ ं च कायाकाय भयाभये ।
ब धं मो ं च या वे बु धः सा पाथ साि वक ॥३०।१८।३०॥
हे अजन!
ु जो तमोगण
ु से घर हुई बु ध अधमको भी ‘यह धम है ’ ऐसा मान लेती है तथा
इसी कार अ य स पणू पदाथ को भी वपर त मान लेती है , वह बु ध तामसी है ।
हे पाथ! िजस अ य भचा रणी धारण-शि तसे मनु य यानयोगके वारा मन, ाण और
इि य क याओंको धारण करता है , वह ध ृ त साि वक है ।
परं तु हे पथ
ृ ापु अजन!
ु फलक इ छावाला मनु य िजस धारणशि तके वारा अ य त
आसि तसे धम, अथ और काम को धारण करता है , वह धारणशि त राजसी है ।
सख
ु ं ि वदानीं वधं शणृ ु मे भरतषभ ।
अ यासा मते य दःु खा तं च नग छ त ॥
य द े वष मव प रणामेऽमत ृ ोपमम ् ।
त सख ु ं साि वकं ो तमा मबु ध सादजम ् ॥३६-३७।१८।३६-३७॥
जो सख
ु वषय और इि य के संयोगसे होता है , वह पहले― भोगकालम अमत ृ के तु य
तीत होनेपर भी प रणामम वषके तु य है ; इस लये वह सख
ु राजस कहा गया है ।
जो सख
ु भोगकालम तथा प रणामम भी आ माको मो हत करनेवाला है ― वह न ा,
आल य और मादसे उ प न सख ु तामस कहा गया है ।
यद े चानब
ु धे च सख
ु ं मोहनमा मनः ।
न ाल य मादो थं त ामसमद ु ा तम ् ॥३९।१८।३९॥
ा मण य वशां शू ाणां च पर तप ।
कमा ण वभ ता न वभाव भवैगणै ु ः ॥४१।१८।४१॥
यतः व ृ भतानां
ू येन सव मदं ततम ् ।
वकमणा तम य य स धं व द त मानवः ॥४६।१८।४६॥
हे अजन!
ु शर र प य म आ ढ़ हुए स पण ू ा णय को अ तयामी परमे वर अपनी
मायासे उनके कम के अनस
ु ार मण कराता हुआ सब ा णय के दय म ि थत है ।
ई वरः सवभत
ू ानां दे शऽे जन
ु त ठत।
ामय सवभत ू ा न य ा ढा न मायया ॥५२।१८।६१॥
अजन
ु उवाच
स जय उवाच
इ यहं वासद
ु े व य पाथ य च महा मनः ।
संवाद ममम ौषम भत ु ं रोमहषणम ् ॥५७।१८।७४॥