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॥ ओ३म ् ॥

॥ वै दक गीता ॥

अथ थमोऽ यायः
अजन
ु वषादयोगः

धत
ृ रा उवाच

धतृ रा बोले― हे संजय! धमभू म कु े म एक त, यु धक इ छावाले मेरे और


पा डुके पु ने या कया?

धम े े कु े े समवेता यय
ु ु सवः ।
मामकाः पा डवा चैव कमकुवत स जय ॥१॥

स जय उवाच

संजय बोले― उस समय राजा दय


ु धनने यह
ु रचनायु त पा डव क सेनाको दे खकर और
ोणाचायके पास जाकर यह वचन कहा।

वा तु पा डवानीकं यढ
ू ं दय
ु धन तदा ।
आचायमप ु स ग य राजा वचनम वीत ् ॥२॥

हे आचाय! आपके बु धमान ् श य प ु दपु ध ृ ट यु न वारा यह


ू ाकार खड़ी क हुई
पा डुपु क इस बड़ी भार सेनाको दे खये।

प यैतां पा डुपु ाणामाचाय महतीं चमम


ू ्।
यढ
ू ां पु दपु ण
े तव श येण धीमता ॥३॥

इस सेनाम बड़े-बड़े धनष ु वाले तथा यु धम भीम और अजनक ु े समान शरू वीर सा य क
और वराट तथा महारथी राजा प ु द, ध ृ टकेतु और चे कतान तथा बलवान ् का शराज,
पु िजत ्, कुि तभोज और मनु य म े ठ शै य, परा मी यध ु ाम यु तथा बलवान ्
उ मौजा, सभ ु ापु अ भम यु एवं ौपद के पाँच पु - ये सभी महारथी ह।

अ शरू ा महे वासा भीमाजनसमा


ु यु ध ।
ययु ुध ानो वराट च प
ु द च महारथः ॥४॥
ध ृ टकेतु चे कतानः का शराज च वीयवान ् ।
पु िज कुि तभोज च शै य च नरपु गवः ॥५॥
यध ु ाम यु च व ा त उ मौजा च वीयवान ् ।
सौभ ो ौपदे या च सव एव महारथाः ॥६॥
हे ा मण े ठ! अपने प म भी जो धान ह, उनको आप समझ ल िजये। आपक
जानकार के लये मेर सेनाके जो-जो सेनाप त ह, उनको बतलाता हूँ।

अ माकं तु व श टा ये ताि नबोध वजो म ।


नायका मम सै य य स ाथ ता वी म ते ॥ ७॥

आप- ोणाचाय और पतामह भी म तथा कण और सं ाम वजयी कृपाचाय तथा वैसे ह


अ व थामा, वकण और सोमद का पु भू र वा।

भवा भी म च कण च कृप च स म त जयः ।


अ व थामा वकण च सौमद तथैव च ॥८॥

और भी मेरे लये जीवनक आशा याग दे नेवाले बहुत-से शरू वीर अनेक कारके
श ा से सस ु ि जत और सब-के-सब यु धम चतरु ह।

अ ये च बहवः शरू ा मदथ य तजी वताः ।


नानाश हरणाः सव यु ध वशारदाः ॥९॥

भी म पतामह वारा र त हमार वह सेना सब कारसे अजेय है और भीम वारा र त


इन लोग क यह सेना जीतनेम सग
ु म है ।

अपया तं तद माकं बलं भी मा भर तम ् ।


पया तं ि वदमेतष
े ां बलं भीमा भर तम ् ॥१०॥

इस लये सब मोच पर अपनी-अपनी जगह ि थत रहते हुए आपलोग सभी नःस दे ह


भी म पतामहक ह सब ओरसे र ा कर।

अयनेषु च सवषु यथाभागमवि थताः ।


भी ममेवा भर तु भव तः सव एव ह ॥११॥

कौरव म व ृ ध बड़े तापी पतामह भी मने उस दय


ु धनके दयम हष उ प न करते हुए
उ च- वरसे संहक दहाड़के समान गरजकर शंख बजाया।

त य स जनय हष कु व ृ धः पतामहः ।
संहनादं वन यो चैः श खं द मौ तापवान ् ॥१२॥

इसके प चात ् शंख और नगारे तथा ढोल, मद


ृ ग और नर संघे आ द बाजे एक साथ ह बज
उठे । उनका वह श द बड़ा भयंकर हुआ।

ततः श खा च भेय च पणवानकगोमख


ु ाः ।
सहसैवा यह य त स श द तम
ु ल
ु ोऽभवत ् ॥१३॥

इसके अन तर सफेद घोड़ से यु त उ म रथम बैठे हुए ीकृ ण महाराज और अजनने


ु भी
अलौ कक शंख बजाये।

ततः वेतहै यैयु ते मह त य दने ि थतौ ।


माधवः पा डव चैव द यौ श खौ द मतःु ॥१४॥

ीकृ ण महाराजने पा चज यनामक, अजनने


ु दे वद नामक और भयानक कमवाले
भीमसेनने पौ नामक महाशंख बजाया।

पा चज यं षीकेशो दे वद ं धन जयः ।
पौ ं द मौ महाश खं भीमकमा वक ृ ोदरः ॥१५॥

कु तीपु राजा यु धि ठरने अन त वजयनामक और नकुल तथा सहदे वने सघ


ु ोष और
म णपु पकनामक शंख बजाये।

अन त वजयं राजा कु तीपु ो यु धि ठरः ।


नकुलः सहदे व च सघ
ु ोषम णपु पकौ ॥१६॥

े ठ धनष
ु वाले का शराज और महारथी शख डी एवं ध ृ ट यु न तथा राजा वराट और
अजेय सा य क, राजा प ु द एवं ौपद के पाँच पु और बड़ी भज
ु ावाले सभ
ु ापु
अ भम य― ु इन सभीने, हे राजन!् सब ओरसे अलग-अलग शंख बजाये।

का य च परमे वासः शख डी च महारथः ।


ध ृ ट यु नो वराट च सा य क चापरािजतः ॥१७॥

ु दो ौपदे या च सवशः प ृ थवीपते ।
सौभ च महाबाहुः श खा द मःु पथ ृ क् पथ
ृ क् ॥१८॥

और उन भयानक श दने आकाश और प ृ वीको भी गँज


ु ाते हुए धातरा के अथात ् आपके
प वाल के दय वद ण कर दये।

स घोषो धातरा ाणां दया न यदारयत ् ।


नभ च प ृ थवीं चैव तम
ु ल
ु ो यनन
ु ादयन ् ॥१९॥

हे राजन!् इसके बाद क प वज अजनने ु मोचा बाँधकर डटे हुए धत


ृ रा -स बि धय को
दे खकर, उस श चलनेक तैयार के समय धनष ु उठाकर षीकेश ीकृ ण महाराजसे यह
वचन कहा― हे अ यत ु ! मेरे रथको दोन सेनाओंके बीचम खड़ा क िजये।

अथ यवि थता वा धातरा ान ् क प वजः ।


व ृ े श स पाते धनु य य पा डवः ॥२०॥
षीकेशं तदा वा य मदमाह मह पते ।
अजन
ु उवाच
सेनयो भयोम ये रथं थापय मेऽ यत
ु ॥२१॥

और जबतक क म यु ध े म डटे हुए यु धके अ भलाषी इन वप ी यो धाओंको


भल कार दे ख लँ ू क इस यु ध प यापारम मझ
ु े कन- कनके साथ यु ध करना यो य है
तबतक उसे खड़ा र खये।

यावदे ताि नर ऽे हं यो धक
ु ामानवि थतान ् ।
कैमया सह यो ध यमि म णसमु यमे ॥२२॥

दब
ु ु ध दय
ु धनका यु धम हत चाहनेवाले जो-जो ये राजालोग इस सेनाम आये ह, इन
यु ध करनेवाल को म दे खग
ूँ ा।

यो यमानानवे ऽे हं य एतेऽ समागताः ।


धातरा य दब
ु ु धेयु धे य चक षवः ॥२३॥

स जय उवाच

संजय बोले- हे धत
ृ रा ! अजन
ु वारा इस कार कहे हुए महाराज ीकृ णच ने दोन
सेनाओंके बीचम भी म और ोणाचायके सामने तथा स पण ू राजाओंके सामने उ म
रथको खड़ा करके इस कार कहा क हे पाथ! यु धके लये जट ु े हुए इन कौरव को दे ख।

एवमु तो षीकेशो गडु ाकेशेन भारत ।


सेनयो भयोम ये थाप य वा रथो मम ् ॥२४॥
भी म ोण मख ु तः सवषां च मह ताम ् ।
उवाच पाथ प यैता समवेता कु न त ॥२५॥

इसके बाद पथ
ृ ापु अजनने
ु उन दोन ह सेनाओंम ि थत ताऊ-चाच को, दाद -परदाद को,
गु ओंको, मामाओंको, भाइय को, पु को, पौ को तथा म को, ससरु को और सु द को
भी दे खा।

त ाप यि थतान ् पाथः पतॄनथ पतामहान ् ।


आचाया मातल ु ा ातॄ पु ा पौ ा सखीं तथा ॥२६॥
वशरु ा सु द चैव सेनयो भयोर प ।

उन उपि थत स पण ू ब धओु क
ं ो दे खकर वे कु तीपु अजन
ु अ य त क णासे यु त
होकर शोक करते हुए यह वचन बोले।

ता समी य स कौ तेयः सवा ब धन


ू वि थतान ् ॥२७॥
कृपया परया व टो वषीदि नदम वीत ् ।

अजन
ु उवाच

अजन ु बोले― हे कृ ण! यु ध े म डटे हुए यु धके अ भलाषी इस वजनसमद ु ायको


दे खकर मेरे अ ग श थल हुए जा रहे ह और मख ु सखू ा जा रहा है तथा मेरे शर रम क प
एवं रोमांच हो रहा है ।

वेमं वजनं कृ ण यय ु ु संु समपु ि थतम ् ॥२८॥


सीदि त मम गा ा ण मख ु ं च प रश ु यत।
वेपथु च शर रे मे रोमहष च जायते ॥२९॥

हाथसे गा डीव धनष ु गर रहा है और वचा भी बहुत जल रह है तथा मेरा मन मत-सा


हो रहा है ; इस लये म खड़ा रहनेको भी समथ नह ं हूँ।

गा डीवं स
ं ते ह ता व चैव प रद यते ।
न च श नो यव थातंु मतीव च मे मनः ॥३०॥

हे केशव! म ल ण को भी वपर त ह दे ख रहा हूँ तथा यु धम वजनसमद


ु ायको मारकर
क याण भी नह ं दे खता।

न म ा न च प या म वपर ता न केशव ।
न च ेयोऽनप
ु या म ह वा वजनमाहवे ॥३१॥

हे कृ ण! म न तो वजय चाहता हूँ और न रा य तथा सख


ु को ह । हे गो वंद! हम ऐसे
रा यसे या योजन है अथवा ऐसे भोग से और जीवनसे भी या लाभ है ?

न का े वजयं कृ ण न च रा यं सख ु ानच।
कं नो रा येन गो व द कं भोगैज वतेन वा ॥३२॥

हम िजनके लये रा य, भोग और सख


ु ा द अभी ट ह, वे ह ये सब धन और जीवनक
आशाको यागकर यु धम खड़े ह।

येषामथ का तं नो रा यं भोगाः सख
ु ानच।
त इमेऽवि थता यु धे ाणां य वा धना न च ॥३३॥

गु जन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी कार दादे , मामे, ससरु , पौ , साले तथा और भी
स ब धी लोग ह।

आचायाः पतरः पु ा तथैव च पतामहाः ।


मातल
ु ाः वशरु ाः पौ ाः यालाः स बि धन तथा ॥३४॥

हे मधसु द
ू न! मझ
ु े मारनेपर भी अथवा तीन लोक के रा यके लये भी म इन सबको मारना
नह ं चाहता; फर प ृ वीके लये तो कहना ह या है ?

एता न ह तु म छा म नतोऽ प मधस ु द


ू न।
अप ल ै ो यरा य य हे तोः कं नु मह कृते ॥३५॥

हे जनादन! धत
ृ रा के पु को मारकर हम या स नता होगी? इन आतता यय को
मारकर तो हम पाप ह लगेगा।

नह य धातरा ा नः का ी तः या जनादन । पापमेवा येद मा ह वैतानातता यनः ॥३६॥

अतएव हे माधव! अपने ह बा धव धत


ृ रा के पु को मारनेके लये हम यो य नह ं ह;
य क अपने ह कुटु बको मारकर हम कैसे सख
ु ी ह गे?

त मा नाहा वयं ह तंु धातरा ा वबा धवान ् ।


वजनं ह कथं ह वा सु खनः याम माधव ॥३७॥

य य प लोभसे ट च हुए ये लोग कुलके नाशसे उ प न दोषको और म से वरोध


करनेम पापको नह ं दे खते, तो भी हे जनादन! कुलके नाशसे उ प न दोषको जाननेवाले
हमलोग को इस पापसे हटनेके लये य नह ं वचार करना चा हये?

य य येते न प यि त लोभोपहतचेतसः ।
कुल यकृतं दोषं म ोहे च पातकम ् ॥३८॥
कथं न ेयम मा भः पापाद माि नव ततम ु ्।
कुल यकृतं दोषं प य भजनादन ॥३९॥

कुलके नाशसे सनातन कुल-धम न ट हो जाते ह, धमके नाश हो जानेपर स पण


ू कुलम
पाप भी बहुत फैल जाता है ।

कुल ये ण यि त कुलधमाः सनातनाः ।


धम न टे कुलं कृ नमधम ऽ भभव यत
ु ॥४०॥

हे कृ ण! पापके अ धक बढ़ जानेसे कुलक ि याँ अ य त द ू षत हो जाती ह और हे


वा णय! ि य के द ू षत हो जानेपर वणसंकर उ प न होता है ।

अधमा भभवा कृ ण द ु यि त कुलि यः ।


ीषु द ु टासु वा णय जायते वणस करः ॥४१॥
वणसंकर कुलघा तय को और कुलको नरकम ले जानेके लये ह होता है । लु त हुई भोजन
और जलक यासे वि चत इनके बज़
ु ग
ु लोग भी अधोग तको ा त होते ह।

स करो नरकायैव कुल नानां कुल य च ।


पति त पतरो येषां लु त प डोदक याः ॥४२॥

इन वणसंकरकारक दोष से कुलघा तय के सनातन कुल-धम और जा त-धम न ट हो जाते


ह।

दोषैरेतःै कुल नानां वणस करकारकैः ।


उ सा य ते जा तधमाः कुलधमा च शा वताः ॥४३॥

हे जनादन! िजनका कुलधम न ट हो गया है , ऐसे मनु य का अ नि चत कालतक नरकम


वास होता है , ऐसा हम सन
ु ते आये ह।

उ स नकुलधमाणां मनु याणां जनादन ।


नरकेऽ नयतं वासो भवती यनश
ु ु म
ु ॥४४॥

हा! शोक! हमलोग बु धमान ् होकर भी महान ् पाप करनेको तैयार हो गये ह, जो रा य
और सख ु के लोभसे वजन को मारनेके लये उ यत हो गये ह।

अहो बत मह पापं कतु यव सता वयम ् ।


य ा यसखु लोभेन ह तंु वजनमु यताः ॥४५॥

य द मझ
ु श र हत एवं सामना न करनेवालेको श हाथम लये हुए धत ृ रा के पु
रणम मार डाल तो वह मारना भी मेरे लये अ धक क याणकारक होगा।

य द माम तीकारमश ं श पाणयः ।


धातरा ा रणे ह यु त मे ेमतरं भवेत ् ॥४६॥

स जय उवाच

संजय बोले― रणभू मम शोकसे उ व न मनवाले अजन


ु इस कार कहकर, बाणस हत
धनषु को यागकर रथके पछले भागम बैठ गये।

एवमु वाजनःु स ये रथोप थ उपा वशत ् ।


वस ृ य सशरं चापं शोकसं व नमानसः ॥४७॥

उस कार क णासे या त और आँसओ ु स


ं े पण
ू तथा याकुल ने वाले शोकयु त उस
अजनक
ु े त भगवान ् मधस
ु द
ू नने यह वचन कहा।
तं तथा कृपया व टम पु ण
ू ाकुले णम ् ।
वषीद त मदं वा यमव ु ाच मधस ु द
ू नः ॥४८।२।१॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― हे अजन!


ु तझ
ु े इस असमयम यह मोह कस हे तस ु े ा त हुआ? य क
न तो यह आय पु ष वारा आच रत है , न वगको दे नेवाला है और न क तको करनेवाला
ह है ।

कुत वा क मल मदं वषमे समप


ु ि थतम ् ।
अनायजु टम व यमक तकरमजन ु ॥४९।२।२॥

इस लये हे अजन!
ु नपसंु कताको मत ा त हो, तझ
ु म यह उ चत नह ं जान पड़ती। हे
परं तप! दयक तु छ दब ु लताको यागकर यु धके लये खड़ा हो जा।

लै यं मा म गमः पाथ नैत व यप


ु प यते ।
ु ं दयदौब यं य वो ठ पर तप ॥५०।२।३॥

अजन
ु उवाच

अजनु बोले- हे मधस


ु द
ू न! म रणभू मम कस कार बाण से भी म पतामह और
ोणाचायके व ध लड़ूँगा? य क हे अ रसद ू न! वे दोन ह पज
ू नीय ह।

कथं भी ममहं स ये ोणं च मधसु द ू न।


इषु भः तयो या म पजू ाहाव रसदू न ॥५१।२।४॥

इस लये इन महानभ
ु ाव गु जन को न मारकर म इस लोकम भ ाका अ न भी खाना
क याणकारक समझता हूँ; य क गु जन को मारकर भी इस लोकम धरसे सने हुए
अथ और काम प भोग को ह तो भोगँग ू ा।

गु नह वा ह महानभ ु ावा-
े यो भो तंु भै यमपीह लोके ।
ह वाथकामां तु गु नहै व
भु जीय भोगा ु धर द धान ् ॥५२।२।५॥

हम यह भी नह ं जानते क हमारे लये यु ध करना और न करना― इन दोन मसे कौन-सा


े ठ है , अथवा यह भी नह ं जानते क उ ह हम जीतगे या हमको वे जीतगे। और िजनको
मारकर हम जीना भी नह ं चाहते, वे ह हमारे आ मीय धतृ रा के पु हमारे मक
ु ाबलेम
खड़े ह।
न चैत व मः कतर नो गर यो-
य वा जयेम य द वा नो जयेयःु ।
यानेव ह वा न िजजी वषाम-
तेऽवि थताः मख ु े धातरा ाः ॥५३।२।६॥

इस लये कायरता प दोषसे उपहत हुए वभाववाला तथा धमके वषयम मो हत च हुआ
म आपसे पछू ता हूँ क जो साधन नि चत क याणकारक हो, वह मेरे लये क हये; य क
म आपका श य हूँ, इस लये आपके शरण हुए मझ
ु को श ा द िजये।

काप यदोषोपहत वभावः


प ृ छा म वां धमस मढ ू चेताः ।
य े यः याि नि चतं ू ह त मे
श य तेऽहं शा ध मां वां प नम ् ॥५४।२।७॥

य क भू मम न क टक, धन-धा यस प न रा यको और दे वताओंके वामीपनेको


ा त होकर भी म उस उपायको नह ं दे खता हूँ, जो मेर इि य के सख
ु ानेवाले शोकको दरू
कर सके।

न ह प या म ममापनु या-
य छोकमु छोषण मि याणाम ् ।
अवा य भम ू ावसप नम ृ धं-
रा यं सरु ाणाम प चा धप यम ् ॥५५।२।८॥

स जय उवाच

संजय बोले― हे राजन!् न ाको जीतनेवाले अजन ु ीकृ ण महाराजके त इस कार


कहकर फर ी गो व दभगवानसे ् 'यु ध नह ं क ँ गा' यह प ट कहकर चपु हो गये।

एवमु वा षीकेशं गड
ु ाकेशः पर तप ।
न यो य इ त गो व दमु वा तू णीं बभव
ू ह ॥५६।२।९॥

॥इ त ीम भगव गीतायां थमोऽ यायः॥

अथ वतीयोऽ यायः
सा ययोगः

हे भरतवंशी धत
ृ रा ! ीकृ ण महाराज दोन सेनाओंके बीचम शोक करते हुए उस
अजनको
ु हँसते हुए-से यह वचन बोले।

तमव
ु ाच षीकेशः हसि नव भारत ।
सेनयो भयोम ये वषीद त मदं वचः ॥१।२।१०॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― हे अजन!


ु तू न शोक करनेयो य मनु य के लये शोक करता है और
पि डत के-से वचन को कहता है ; परं तु िजनके ाण चले गये ह, उनके लये और िजनके
ाण नह ं गये ह उनके लये भी पि डतजन शोक नह ं करते।

अशो यान वशोच वं ावादां च भाषसे ।


गतासन
ू गतासं ू च नानशु ोचि त पि डताः ॥२।२।११॥

न तो ऐसा ह है क म कसी कालम नह ं था, तू नह ं था अथवा ये राजालोग नह ं थे और न


ऐसा ह है क इससे आगे हम सब नह ं रहगे।

न वेवाहं जातु नासं न वं नेमे जना धपाः ।


न चैव न भ व यामः सव वयमतः परम ् ॥३।२।१२॥

जैसे जीवा माक इस दे हम बालकपन, जवानी और व ृ धाव था होती है , वैसे ह अ य


शर रक ाि त होती है ; उस वषयम धीर पु ष मो हत नह ं होता।

दे हनोऽि म यथा दे हे कौमारं यौवनं जरा ।


तथा दे हा तर ाि तध र त न मु य त ॥४।२।१३॥

हे कु तीपु ! सद -गम और सख
ु -दःु खको दे नेवाले इि य और वषय के संयोग तो
उ प - वनाशशील और अ न य ह, इस लये हे भारत! उनको तू सहन कर।

मा ा पशा तु कौ तेय शीतो णसख


ु दःु खदाः ।
आगमापा यनोऽ न या तांि त त व भारत ॥५।२।१४॥

य क हे पु ष े ठ! दःु ख-सख
ु को समान समझनेवाले िजस धीर पु षको ये इि य और
वषय के संयोग याकुल नह ं करते, वह मो के यो य होता है ।

यं ह न यथय येते पु षं पु षषभ ।


समदःु खसख
ु ं धीरं सोऽमत
ृ वाय क पते ॥६।२।१५॥

असत ् व तक
ु तो स ा नह ं है और सतका् अभाव नह ं है । इस कार इन दोन का ह त व
त व ानी पु ष वारा दे खा गया है ।

नासतो व यते भावो नाभावो व यते सतः ।


उभयोर प टोऽ त वनयो त वद श भः ॥७।२।१६॥
नाशर हत तो तू उसको जान, िजससे यह स पण
ू जगत ्― यवग या त है । इस
अ वनाशीका वनाश करनेम कोई भी समथ नह ं है ।

अ वना श तु त व ध येन सव मदं ततम ् ।


वनाशम यय या य न कि च कतमहु त॥
८।२।१७॥

इस नाशर हत, अ मेय, न य व प जीवा माके ये सब शर र नाशवान ् कहे गये ह।


इस लये हे भरतवंशी अजन!
ु तू यु ध कर।

अ तव त इमे दे हा न य यो ताः शर रणः ।


अना शनोऽ मेय य त मा यु य व भारत ॥९।२।१८॥

जो इस आ माको मारनेवाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है , वे दोन ह नह ं


जानते; य क यह आ मा वा तवम न तो कसीको मारता है और न कसीके वारा मारा
जाता है ।

य एनं वे ह तारं य चैनं म यते हतम ् ।


उभौ तौ न वजानीतो नायं हि त न ह यते ॥१०।२।१९

यह आ मा कसी कालम भी न तो ज मता है और न मरता ह है तथा न यह उ प न


होकर फर होनेवाला ह है ; य क यह अज मा, न य, सनातन और परु ातन है ; शर रके
मारे जानेपर भी यह नह ं मारा जाता।

न जायते यते वा कदा च-


नायं भू वा भ वता वा न भय
ू ः।
अजो न यः शा वतोऽयं परु ाणो-
न ह यते ह यमाने शर रे ॥११।२।२०॥

हे पथ ृ ापु अजन!
ु जो पु ष इस आ माको नाशर हत, न य, अज मा और अ यय जानता
है , वह पु ष कैसे कसको मरवाता है और कैसे कसको मारता है ?

वेदा वना शनं न यं य एनमजम ययम ् ।


कथं स पु षः पाथ कं घातय त हि त कम ् ॥१२।२।२१॥

जैसे मनु य परु ाने व को यागकर दस ू रे नये व को हण करता है , वैसे ह जीवा मा


परु ाने शर र को यागकर दस
ू रे नये शर र को ा त होता है ।

वासां स जीणा न यथा वहाय


नवा न ग ृ णा त नरोऽपरा ण ।
तथा शर रा ण वहाय जीणा-
य या न संया त नवा न दे ह ॥१३।२।२२॥

इस आ माको श नह ं काट सकते, इसको आग नह ं जला सकती, इसको जल नह ं गला


सकता और वायु नह ं सख
ु ा सकता।

नैनं छ दि त श ा ण नैनं दह त पावकः ।


न चैनं लेदय यापो न शोषय त मा तः ॥१४।२।२३॥

यह आ मा अ य त है , यह आ मा अ च य है और यह आ मा वकारर हत कहा जाता


है । इससे हे अजन!
ु इस आ माको उपयु त कारसे जानकर तू शोक करनेको यो य नह ं है
अथात ् तझु े शोक करना उ चत नह ं है ।

अ य तोऽयम च योऽयम वकाय ऽयमु यते ।


त मादे वं व द वैनं नानश
ु ो चतम
ु ह स ॥१५।२।२५॥

क तु य द तू इस आ माको सदा ज मनेवाला तथा सदा मरनेवाला मानता हो, तो भी हे


महाबाहो! तू इस कार शोक करनेको यो य नह ं है ।

अथ चैनं न यजातं न यं वा म यसे मत ृ म्।


तथा प वं महाबाहो नैवं शो चतम
ु ह स ॥१६।२।२६॥

य क इस मा यताके अनस ु ार ज मे हुएक म ृ यु नि चत है और मरे हुएका ज म


नि चत है । इससे भी इस बना उपायवाले वषयम तू शोक करनेको यो य नह ं है ।

जात य ह व ु ो म ृ यु वं
ु ज म मतृ यच।
त मादप रहायऽथ न वं शो चतम ु ह स ॥१७।२।२७॥

हे अजन!
ु स पणू ाणी ज मसे पहले अ कट थे और मरनेके बाद भी अ कट हो जानेवाले
ह, केवल बीचम ह कट ह; फर ऐसी ि थ तम या शोक करना है ?

अ य ताद न भत
ू ा न य तम या न भारत ।
अ य त नधना येव त का प रदे वना ॥१८।२।२८॥

कोई एक महापु ष ह इस आ माको आ चयक भाँ त दे खता है और वैसे ह दसू रा कोई


महापु ष ह इसके त वका आ चयक भाँ त वणन करता है तथा दस ू रा कोई अ धकार
पु ष ह इसे आ चयक भाँ त सन
ु ता है और कोई-कोई तो सन
ु कर भी इसको नह ं जानता।

आ चयव प य त कि चदे न -
मा चयव वद त तथैव चा यः ।
आ चयव चैनम यः शण ृ ोत
ु वा येनं वेद न चैव कि चत ् ॥१९।२।२९॥

हे अजन!
ु यह आ मा सबके शर र म सदा ह अव य है । इस कारण स पण
ू ा णय के लये
तू शोक करनेके यो य नह ं है ।

दे ह न यमव योऽयं दे हे सव य भारत ।


त मा सवा ण भत
ू ा न न वं शो चतम ु ह स ॥२०।२।३०॥

तथा अपने धमको दे खकर भी तू भय करनेयो य नह ं है अथात ् तझ


ु े भय नह ं करना
चा हये; य क यके लये धमयु त यु धसे बढ़कर दस ू रा कोई क याणकार कत य
नह ं है ।

वधमम प चावे य न वकि पतम


ु हस।
ध या ध यु धा े योऽ य य य न व यते ॥२१।२।३१॥

हे पाथ! अपने-आप ा त हुए और खल


ु े हुए वगके वार प इस कारके यु धको
भा यवान ् यलोग ह पाते ह।

य छया चोपप नं वग वारमपावत ृ म्।


सु खनः याः पाथ लभ ते यु धमी शम ् ॥२२।२।३२॥

क तु य द तू इस धमयु त यु धको नह ं करे गा तो वधम और क तको खोकर पापको


ा त होगा।

अथ चे व ममं ध य स ामं न क र य स ।
ततः वधम क त च ह वा पापमवा य स ॥२३।२।३३॥

तथा सब लोग तेर बहुत कालतक रहनेवाल अपक तका भी कथन करगे और माननीय
पु षके लये अपक त मरणसे भी बढ़कर है ।

अक त चा प भत
ू ान
कथ य यि त तेऽ ययाम ् ।
स भा वत य चाक त-
मरणाद त र यते ॥२४।२।३४॥

और िजनक ि टम तू पहले बहुत स मा नत होकर अब लघत ु ाको ा त होगा, वे


महारथीलोग तझ
ु े भयके कारण यु धसे हटा हुआ मानगे।
भया णादप ु रतं मं य ते वां महारथाः ।
येषां च वं बहुमतो भू वा या य स लाघवम ् ॥२५।२।३५॥

तेरे वैर लोग तेरे साम यक न दा करते हुए तझ


ु े बहुत-से न कहने यो य वचन भी कहगे;
उससे अ धक दःु ख और या होगा?

अवा यवादां च बहू व द यि त तवा हताः ।


न द त तव साम य ततो दःु खतरं नु कम ् ॥२६।२।३६॥

या तो तू यु धम मारा जाकर वगको ा त होगा अथवा सं ामम जीतकर प ृ वीका रा य


भोगेगा। इस कारण हे अजन!ु तू यु धके लये न चय करके खड़ा हो जा।

हतो वा ा य स वग िज वा वा भो यसे मह म ् ।
त माद ु ठ कौ तेय यु धाय कृत न चयः ॥२७।२।३७॥

जय-पराजय, लाभ-हा न और सख ु -दःु खको समान समझकर, उसके बाद यु धके लये
तैयार हो जा; इस कार यु ध करनेसे तू पापको नह ं ा त होगा।

सख
ु दःु खे समे कृ वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो यु धाय यु य व नैवं पापमवा य स ॥२८।२।३८॥

॥इ त ीम भगव गीतायां वतीयोऽ यायः॥

अथ तत
ृ ीयोऽ यायः
कमयोगः

हे पाथ! यह बु ध तेरे लये सां ययोगके वषयम कह गयी और अब तू इसको कमयोगके


वषयम सन ु ― िजस बु धसे यु त हुआ तू कम के ब धनको भल भाँ त याग दे गा
अथात ् सवथा न ट कर डालेगा।

एषा तेऽ भ हता सा ये बु धय गे ि वमां शण


ृ ु।
बु या यु तो यया पाथ कमब धं हा य स ॥१।२।३९॥

इस कमयोगम आर भका अथात ् बीजका नाश नह ं है और उलटा फल प दोष भी नह ं है ,


बि क इस कमयोग प धमका थोड़ा-सा भी साधन ज म-म ृ यु प महान ् भयसे र ा कर
लेता है ।

नेहा भ मनाशोऽि त यवायो न व यते ।


व पम य य धम य ायते महतो भयात ् ॥२।२।४०॥
हे अजन!
ु इस कमयोगम न चयाि मका बु ध एक ह होती है ; क तु अि थर वचारवाले
ववेकह न सकाम मनु य क बु धयाँ न चय ह बहुत भेद वाल और अन त होती ह।

यवसायाि मका बु धरे केह कु न दन ।


बहुशाखा यन ता च बु धयोऽ यवसा यनाम ् ॥३।२।४१॥

हे अजन! ु जो भोग म त मय हो रहे ह, जो कमफलके शंसक वेदके वाद- ववादम रत ह,


िजनक बु धम वग ह परम ा य व तु है और जो वगसे बढ़कर दस ू र कोई व तु ह
नह ं है ― ऐसा कहनेवाले ह, वे अ ववेक जन इस कारक िजस पिु पत अथात ् दखाऊ
शोभायु त वाणीको कहा करते ह जो क ज म प कमफल दे नेवाल एवं भोग तथा
ऐ वयक ाि तके लये नाना कारक बहुत-सी याओंका वणन करनेवाल है , उस
वाणी वारा िजनका च हर लया गया है , जो भोग और ऐ वयम अ य त आस त ह,
उन पु ष क परमा माम नि चयाि मका बु ध नह ं होती।

या ममां पिु पतां वाचं वद य वपि चतः ।


वेदवादरताः पाथ ना यद ती त वा दनः ॥
कामा मानः वगपरा ज मकमफल दाम ् ।
या वशेषबहुलां भोगै वयग तं त ॥
भोगै वय स तानां तयाप तचेतसाम ् ।
यवसायाि मका बु धः समाधौ न वधीयते ॥ ४-६।२।४२-४४॥

तेरा कम करनेम ह अ धकार है , उसके फल म कभी नह ं। इस लये तू कम के फलका हे तु


मत हो तथा तेर कम न करनेम भी आसि त न हो।

कम येवा धकार ते मा फलेषु कदाचन ।


मा कमफलहे तभ
ु मा
ू ते स गोऽ वकम ण ॥७।२।४७॥

हे धनंजय! तू आसि तको यागकर तथा स ध और अ स धम समान बु धवाला


होकर योगम ि थत हुआ कत यकम को कर, सम व ह योग कहलाता है ।

योग थः कु कमा ण स गं य वा धन जय ।
स य स योः समो भू वा सम वं योग उ यते ॥८।२।४८॥

इस सम व प बु धयोगसे सकाम कम अ य त ह न न ेणीका है । इस लये हे


धनंजय! तू समबु धम ह र ाका उपाय ढूँढ़ अथात ् बु धयोगका ह आ य हण कर;
य क फलके हे तु बननेवाले अ य त द न ह।

दरू े ण यवरं कम बु धयोगा धन जय ।


बु धौ शरणमि व छ कृपणाः फलहे तवः ॥९।२।४९॥
समबु धयु त पु ष पु य और पाप दोन को इसी लोकम याग दे ता है अथात ् उनसे मु त
हो जाता है । इससे तू सम व प योगम लग जा; यह सम व प योग ह कम म कुशलता है
अथात ् कमब धनसे छूटनेका उपाय है ।

बु धयु तो जहातीह उभे सक


ु ृ तद ु कृते ।
त मा योगाय यु य व योगः कमसु कौशलम ् ॥१०।२।५०॥

य क समबु धसे यु त ानीजन कम से उ प न होनेवाले फलको यागकर ज म प


ब धनसे मु त हो न वकार परमपदको ा त हो जाते ह।

कमजं बु धयु ता ह फलं य वा मनी षणः ।


ज मब ध व नमु ताः पदं ग छ यनामयम ् ॥११।२।५१॥

िजस कालम तेर बु ध मोह प दलदलको भल भाँ त पार कर जायगी, उस समय तू सनु े
हुए और सन
ु नेम आनेवाले इस लोक और परलोकस ब धी सभी भोग से वैरा यको ा त
हो जायगा।

यदा ते मोहक ललं बु ध य तत र य त ।


तदा ग ता स नवदं ोत य य त ु य च ॥१२।२।५२॥

भाँ त-भाँ तके वचन को सन


ु नेसे वच लत हुई तेर बु ध जब परमा माम अचल और
ि थर ठहर जायगी, तब तू योगको ा त हो जायगा अथात ् तेरा परमा मासे न य संयोग
हो जायगा।

ु त व तप ना ते यदा था य त न चला ।
समाधावचला बु ध तदा योगमवा य स ॥१३।२।५३॥

॥इ त ीम भगव गीतायां तत
ृ ीयोऽ यायः॥

अथ चतथ
ु ऽ यायः
कमयोगः
ि थत का ल ण

अजन
ु उवाच

अजन
ु बोले― हे केशव! समा धम ि थत परमा माको ा त हुए ि थरबु ध पु षका या
ल ण है ? वह ि थरबु ध पु ष कैसे बोलता है , कैसे बैठता है और कैसे चलता है ?

ि थत य का भाषा समा ध थ य केशव ।


ि थतधीः कं भाषेत कमासीत जेत कम ् ॥१।२।५४॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― हे अजन!


ु िजस कालम यह पु ष मनम ि थत स पण ू कामनाओंको
भल भाँ त याग दे ता है और आ मासे आ माम ह संतु ट रहता है , उस कालम वह
ि थत कहा जाता है ।

जहा त यदा कामा सवा पाथ मनोगतान ् ।


आ म येवा मना तु टः ि थत तदो यते ॥२।२।५५॥

दःु ख क ाि त होनेपर िजसके मनम उ वेग नह ं होता, सख


ु क ाि तम जो सवथा
नः पह ृ है तथा िजसके राग, भय और ोध न ट हो गये ह, ऐसा मु न ि थरबु ध कहा
जाता है ।

दःु खे वनु व नमनाः सख


ु ेषु वगत पह
ृ ः।
वीतरागभय ोधः ि थतधीमु न यते ॥३।२।५६॥

जो पु ष सव नेहर हत हुआ उस-उस शभ ु या अशभ


ु व तक
ु ो ा त होकर न स न होता
है और न वेष करता है उसक बु ध ि थर है ।

यः सव ान भ नेह त ा य शभ
ु ाशभ
ु म्।
ना भन द त न वेि ट त य ा ति ठता ॥४।२।५७॥

और कछुवा सब ओरसे अपने अ ग को जैसे समेट लेता है , वैसे ह जब यह पु ष इि य के


वषय से इि य को सब कारसे हटा लेता है , तब उसक बु ध ि थर है (ऐसा समझना
चा हये)।

यदा संहरते चायं कूम ऽ गानीव सवशः ।


इि याणीि याथ य त य ा ति ठता ॥५।२।५८॥

इि य के वारा वषय को हण न करनेवाले पु षके भी केवल वषय तो नव ृ हो जाते


ह, पर तु उनम रहनेवाल आसि त नव ृ नह ं होती। इस ि थत पु षक तो आसि त
भी परमा माका सा ा कार करके नव ृ हो जाती है ।

वषया व नवत ते नराहार य दे हनः ।


रसवज रसोऽ य य परं वा नवतते ॥६।२।५९॥
वषय का च तन करनेवाले पु षक उन वषय म आसि त हो जाती है , आसि तसे उन
वषय क कामना उ प न होती है और कामनाम व न पड़नेसे ोध उ प न होता है ।

यायतो वषया पस
ंु ः स ग तेषप
ू जायते ।
स गा स जायते कामः कामा ोधोऽ भजायते ॥७।२।६२॥

ोधसे अ य त मढ़ ू भाव उ प न हो जाता है , मढ़


ू भावसे म ृ तम म हो जाता है , म ृ तम
म हो जानेसे बु ध अथात ् ानशि तका नाश हो जाता है और बु धका नाश हो जानेसे
यह पु ष अपनी ि थ तसे गर जाता है ।

ोधा भव त स मोहः स मोहा म ृ त व मः ।


मृ त श
ं ा बु धनाशो बु धनाशा ण य त ॥८।२।६३॥

परं तु अपने अधीन कये हुए अ तःकरणवाला साधक अपने वशम क हुई, राग- वेषसे
र हत इि य वारा वषय म वचरण करता हुआ अ तःकरणक स नताको ा त होता
है ।

राग वेष वयु तै तु वषया नि यै चरन ् ।


आ मव यै वधेया मा सादम धग छ त ॥९।२।६४॥

अ तःकरणक स नता होनेपर इसके स पणू दःु ख का अभाव हो जाता है और उस


स न च -वाले कमयोगीक बु ध शी ह सब ओरसे हटकर एक परमा माम ह
भल भाँ त ि थर हो जाती है ।

सादे सवदःु खानां हा नर योपजायते ।


स नचेतसो याशु बु धः पयव त ठते ॥१०।२।६५॥

न जीते हुए मन और इि य वाले पु षम न चयाि मका बु ध नह ं होती और उस


अयु त मनु यके अ तःकरणम भावना भी नह ं होती तथा भावनाह न मनु यको शाि त
नह ं मलती और शाि तर हत मनु यको सखु कैसे मल सकता है ?

नाि त बु धरयु त य न चायु त य भावना ।


न चाभावयतः शाि तरशा त य कुतः सख
ु म ् ॥११।२।६६॥

जैसे नाना न दय के जल सब ओरसे प रपण ू अचल त ठावाले समु म उसको वच लत


न करते हुए ह समा जाते ह, वैसे ह सब भोग िजस ि थत पु षम कसी कारका
वकार उ प न कये बना ह समा जाते ह, वह पु ष परमशाि तको ा त होता है ,
भोग को चाहनेवाला नह ।ं
आपयू माणमचल त ठं -
समु मापः वशि त य वत ् ।
त व कामा यं वशि त सव
स शाि तमा नो त न कामकामी ॥१२।२।७०॥

जो पु ष स पण ू कामनाओंको यागकर ममतार हत, अहं कारर हत और पह ृ ार हत हुआ


वचरता है , वह शाि तको ा त होता है अथात ् वह शाि तको ा त है ।

वहाय कामा यः सवा पम


ु ां चर त नः पह
ृ ः।
नममो नरह कारः स शाि तम धग छ त ॥१३।२।७१॥

हे अजन!
ु यह मको ा त हुए पु षक ि थ त है , इसको ा त होकर योगी कभी मो हत
नह ं होता और अ तकालम भी इस ा मी ि थ तम ि थत होकर मान दको ा त हो
जाता है ।

एषा ा मी ि थ तः पाथ नैनां ा य वमु य त ।


ि थ वा याम तकालेऽ प म नवाणम ृ छ त ॥१४।२।७२॥

॥इ त ीम भगव गीतायां चतथ


ु ऽ यायः॥

अथ प चमोऽ यायः
कमयोगः
कम-सं यासक आव यकता

अजन
ु उवाच

अजनु बोले― हे जनादन! य द आपको कमक अपे ा ान े ठ मा य है तो फर हे


केशव! मझ
ु े भय कर कमम य लगाते ह?

यायसी चे कमण ते मता बु धजनादन ।


ति कं कम ण घोरे मां नयोजय स केशव ॥१।३।१॥

आप मले हुए-से वचन से मेर बु धको मानो मो हत कर रहे ह। इस लये उस एक बातको


नि चत करके क हये िजससे म क याणको ा त हो जाऊँ।

या म ेणेव वा येन बु धं मोहयसीव मे ।


तदे कं वद नि च य येन ेयोऽहमा नयु ाम ् ॥२।३।२॥

ीभगवानव
ु ाच
ीभगवान ् बोले― हे न पाप! इस लोकम दो कारक न ठा मेरे वारा पहले कह गयी
है । उनमसे सां ययो गय क न ठा तो ानयोगसे और यो गय क न ठा कमयोगसे
होती है ।

लोकेऽि म व वधा न ठा परु ा ो ता मयानघ ।


ानयोगेन सा यानां कमयोगेन यो गनाम ् ॥३।३।३॥

मनु य न तो कम का आर भ कये बना न कमताको यानी योग न ठाको ा त होता है


और न कम के केवल यागमा से स ध यानी सां य न ठाको ह ा त होता है ।

न कमणामनार भा नै क य पु षोऽ नत
ु े।
न च स यसनादे व स धं सम धग छ त ॥४।३।४॥

नःस दे ह कोई भी मनु य कसी भी कालम णमा भी बना कम कये नह ं रहता;


य क सारा मनु यसमद ु ाय कृ तज नत गण
ु वारा परवश हुआ कम करनेके लये बा य
कया जाता है ।

न ह कि च णम प जातु त ठ यकमकृत ् ।
कायते यवशः कम सवः कृ तजैगणै
ु ः ॥५।३।५॥

जो मढ़
ू बु ध मनु य सम त इि य को हठपवू क ऊपरसे रोककर मनसे उन इि य के
वषय का च तन करता रहता है , वह म याचार अथात ् द भी कहा जाता है ।

कमि या ण संय य य आ ते मनसा मरन ् ।


इि याथाि वमढ
ू ा मा म याचारः स उ यते ॥६।३।६॥

क तु हे अजन!
ु जो पु ष मनसे इि य को वशम करके अनास त हुआ सम त
इि य वारा कमयोगका आचरण करता है , वह े ठ है ।

यि वि या ण मनसा नय यारभतेऽजन
ु ।
कमि यैः कमयोगमस तः स व श यते ॥७।३।७॥

तू शा व हत कत यकम कर; य क कम न करनेक अपे ा कम करना े ठ है तथा


कम न करनेसे तेरा शर र- नवाह भी नह ं स ध होगा।

नयतं कु कम वं कम यायो यकमणः ।


शर रया ा प च ते न स येदकमणः ॥८।३।८॥

॥इ त ीम भगव गीतायां प चमोऽ यायः॥


अथ ष ठोऽ यायः
कमयोगः
य के लये कमक आव यकता

य के न म कये जानेवाले कम से अ त र त दस ू रे कम म लगा हुआ ह यह


मन
ु यसमदु ाय कम से बँधता है । इस लये हे अजन!
ु तू आसि तसे र हत होकर उस य के
न म ह भल भाँ त कत यकम कर।

य ाथा कमणोऽ य लोकोऽयं कमब धनः ।


तदथ कम कौ तेय मु तस गः समाचर ॥१।३।९॥

जाप त माने क पके आ दम य स हत जाओंको रचकर उनसे कहा क तम ु लोग इस


य के वारा व ृ धको ा त होओ और यह य तम
ु लोग को इि छत भोग दान
करनेवाला हो।

सहय ाः जाः स ृ वा परु ोवाच जाप तः ।


अनेन स व य वमेष वोऽि व टकामधक ु ् ॥२।३।१०॥

तम
ु लोग इस य के वारा दे वताओंको उ नत करो और वे दे वता तमु लोग को उ नत कर।
इस कार नः वाथभावसे एक-दस ू रे को उ नत करते हुए तम
ु लोग परम क याणको ा त
हो जाओगे।

दे वा भावयतानेन ते दे वा भावय तु वः ।
पर परं भावय तः ेयः परमवा यथ ॥३।३।११॥

य के वारा बढ़ाये हुए दे वता तम


ु लोग को बना माँगे ह इि छत भोग न चय ह दे ते
रहगे। इस कार उन दे वताओंके वारा दये हुए भोग को जो पु ष उनको बना दये वयं
भोगता है , वह चोर ह है ।

इ टा भोगाि ह वो दे वा दा य ते य भा वताः ।
तैद ान दायै यो यो भु ते तेन एव सः ॥४।३।१२॥

य से बचे हुए अ नको खानेवाले े ठ पु ष सब पाप से मु त हो जाते ह और जो


पापीलोग अपना शर र-पोषण करनेके लये ह अ न पकाते ह, वे तो पापको ह खाते ह।

य श टा शनः स तो मु य ते सव कि बषैः ।
भु जते ते वघं पापा ये पच या मकारणात ् ॥५।३।१३॥
स पणू ाणी अ नसे उ प न होते ह, अ नक उ प विृ टसे होती है , विृ ट य से होती
है और य व हत कम से उ प न होनेवाला है । कम-समद
ु ायको तू वेदसे उ प न और
वेदको अ वनाशी परमा मासे उ प न हुआ जान। इससे स ध होता है क सव यापी परम
अ र परमा मा सदा ह य म ति ठत है ।

अ ना भवि त भत
ू ा न पज याद नस भवः ।
य ा भव त पज यो य ः कमसमु भवः ॥
कम मो भवं व ध मा रसमु भवम ् ।
त मा सवगतं म न यं य े ति ठतम ् ॥६-७।३।१४-१५॥

हे पाथ! जो पु ष इस लोकम इस कार पर परासे च लत सिृ टच के अनक ु ू ल नह ं


बरतता अथात ् अपने कत यका पालन नह ं करता, वह इि य के वारा भोग म रमण
करनेवाला पापायु पु ष यथ ह जीता है ।

एवं व ततं च ं नानव


ु तयतीह यः ।
अघायु रि यारामो मोघं पाथ स जीव त ॥८।३ १६॥

॥इ त ीम भगव गीतायां ष ठोऽ यायः॥

अथ स तमोऽ यायः
कमयोगः
ानीके लये कमक आव यकता

पर तु जो मनु य आ माम ह रमण करने-वाला और आ माम ह त ृ त तथा आ माम ह


स तु ट हो, उसके लये कोई कत य नह ं है ।

य वा मर तरे व यादा मत ृ त च मानवः ।


आ म येव च स तु ट त य काय न व यते ॥१।३।१७॥

उस महापु षका इस व वम न तो कम करनेसे कोई योजन रहता है और न कम के न


करनेसे ह कोई योजन रहता है । तथा स पण
ू ा णय म भी इसका कि च मा भी
वाथका स ब ध नह ं रहता।

नैव त य कृतेनाथ नाकृतेनेह क चन ।


न चा य सवभत ू ष
े ु कि चदथ यपा यः ॥२।३।१८॥

इस लये तू नर तर आसि तसे र हत होकर सदा कत यकमको भल भाँ त करता रह।


य क आसि तसे र हत होकर कम करता हुआ मनु य परमा माको ा त हो जाता है ।

त मादस तः सततं काय कम समाचर ।


अस तो याचर कम परमा नो त पू षः ॥३।३।१९॥

जनका द ानीजन भी आसि तर हत कम वारा ह परम स धको ा त हुए थे।


इस लये तथा लोकसं हको दे खते हुए भी तू कम करनेके ह यो य है अथात ् तझ
ु े कम
करना ह उ चत है ।

कमणैव ह सं स धमाि थता जनकादयः ।


लोकस हमेवा प स प य कतमहु स ॥४।३।२०॥

े ठ पु ष जो-जो आचरण करता है , अ य पु ष भी वैसा-वैसा ह आचरण करते ह। वह जो


कुछ माण कर दे ता है , सम त मनु यसमद ु ाय उसीके अनस ु ार बरतने लग जाता है ।

य यदाचर त े ठ त दे वेतरो जनः ।


स य माणं कु ते लोक तदनव ु तते ॥५।३।२१॥

हे अजन!
ु मझु े इन तीन लोक म न तो कुछ कत य है और न कोई भी ा त करनेयो य
व तु अ ा त है , तो भी म कमम ह बरतता हूँ।

न मे पाथाि त कत यं षु लोकेषु क चन ।
नानवा तमवा त यं वत एव च कम ण ॥६।३।२२॥

य क हे पाथ! य द कदा चत ् म सावधान होकर कम म न बरतँू तो बड़ी हा न हो जाय;


य क मनु य सब कारसे मेरे ह मागका अनस ु रण करते ह।

य द यहं न वतयं जातु कम यति तः ।


मम व मानवु त ते मनु याः पाथ सवशः ॥७।३।२३॥

इस लये य द म कम न क ँ तो ये सब मनु य न ट- ट हो जायँ और म संकरताका


करनेवाला होऊँ तथा इस सम त जाको न ट करनेवाला बनँ।ू

उ सीदे यु रमे लोका न कुया कम चेदहम ् ।


स कर य च कता यामप ु ह या ममाः जाः ॥८।३।२४॥

हे भारत! कमम आस त हुए अ ानीजन िजस कार कम करते ह, आसि तर हत


व वान ् भी लोकसं ह करना चाहता हुआ उसी कार कम करे ।

स ताः कम य व वांसो यथा कुवि त भारत ।


कुया व वां तथास ति चक षल ु कस हम ् ॥९।३।२५॥
परमा माके व पम अटल ि थत हुए ानी पु षको चा हये क वह शा व हत कम म
आसि तवाले अ ा नय क बु धम म अथात ् कम म अ धा उ प न न करे । क तु
वयं शा व हत सम त कम भल भाँ त करता हुआ उनसे भी वैसे ह करवावे।

न बु धभेदं जनयेद ानां कमस गनाम ् ।


जोषये सवकमा ण व वा यु तः समाचरन ् ॥१०।३।२६॥

वा तवम स पण
ू कम सब कारसे कृ तके गण ु वारा कये जाते ह तो भी िजसका
अ तःकरण अह कारसे मो हत हो रहा है , ऐसा अ ानी 'म कता हूँ' ऐसा मानता है ।

कृतेः यमाणा न गणु ःै कमा ण सवशः ।


अह कार वमढ
ू ा मा कताह म त म यते ॥११।३।२७॥

पर तु हे महाबाहो! गण
ु वभाग और कम वभाग के त व को जाननेवाला ानयोगी स पण

गण
ु ह गण ु म बरत रहे ह, ऐसा समझकर उनम आस त नह ं होता।

त व व ु महाबाहो गण ु कम वभागयोः ।
गण
ु ा गण े
ु ु ष वत त इ त म वा न स जते ॥१२।३।२८॥

कृ तके गण
ु से अ य त मो हत हुए मनु य गण
ु म और कम म आस त रहते ह, उन
पण
ू तया न समझनेवाले म दबु ध अ ा नय को पण ू तया जाननेवाला ानी वच लत न
करे ।

कृतेगणस
ु मढ
ू ाः स ज ते गण
ु कमसु ।
तानकृ न वदो म दा कृ न व न वचालयेत ् ॥१३।३।२९॥

सभी ाणी कृ तको ा त होते ह अथात ् अपने वभावके परवश हुए कम करते ह।
ानवान ् भी अपनी कृ तके अनस
ु ार चे टा करता है । फर इसम कसीका हठ या
करे गा?

स शं चे टते व याः कृते ानवान प ।


कृ तं याि त भत
ू ा न न हः कं क र य त ॥१४।३।३३॥

इि य-इि यके अथम अथात ् येक इि यके वषयम राग और वेष छपे हुए ि थत
ह। मनु यको उन दोन के वशम नह ं होना चा हये, य क वे दोन ह इसके क याणमागम
व न करनेवाले महान ् श ु ह।

इि य येि य याथ राग वेषौ यवि थतौ ।


तयोन वशमाग छे ौ य य प रपि थनौ ॥१५।३।३४॥

अ छ कार आचरणम लाये हुए दसू रे के धमसे गण


ु र हत भी अपना धम अ त उ म है ।
अपने धमम तो मरना भी क याणकारक है और दस ू रे का धम भयको दे नेवाला है ।

ेया वधम वगणु ः परधमा वनिु ठतात ् ।


वधम नधनं ेयः परधम भयावहः ॥१६।३।३५॥

॥इ त ीम भगव गीतायां स तमोऽ यायः॥

अथ अ टमोऽ यायः
कमयोगः
व ृ का धान कारण

अजन
ु उवाच

अजन ु बोले― हे कृ ण! तो फर यह मनु य वयं न चाहता हुआ भी बलात ् लगाये हुएक


भाँ त कससे े रत होकर पापका आचरण करता है ?

अथ केन यु तोऽयं पापं चर त पू षः ।


अ न छ न प वा णय बला दव नयोिजतः ॥१।३।३६॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― रजोगणु से उ प न हुआ यह काम ह ोध है , यह बहुत खानेवाला


अथात ् भोग से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है , इसको ह तू इस वषयम वैर जान।

काम एष ोध एष रजोगणु समु भवः ।


महाशनो महापा मा व येन मह वै रणम ् ॥२।३।३७॥

िजस कार धए ु ँसे अि न और मैलसे दपण ढका जाता है तथा िजस कार जेरसे गभ ढका
रहता है , वैसे ह उस कामके वारा यह ान ढका रहता है ।

धम
ू ेना यते वि नयथादश मलेन च ।
यथो बेनावत
ृ ो गभ तथा तेनेदमावत
ृ म ् ॥३।३।३८॥

और हे अजन!ु इस अि नके समान कभी न पण


ू होनेवाले काम प ा नय के न य वैर के
वारा मनु यका ान ढका हुआ है ।

आवतृ ं ानमेतन
े ा ननो न यवै रणा ।
काम पेण कौ तेय द ु परू े णानलेन च ॥४।३।३९॥
इि याँ, मन और बु ध― ये सब इसके वास थान कहे जाते ह। यह काम इन मन, बु ध
और इि य के वारा ह ानको आ छा दत करके जीवा माको मो हत करता है ।

इि या ण मनो बु धर या ध ठानमु यते ।


एतै वमोहय येष ानमाव ृ य दे हनम ् ॥५।३।४०॥

इस लये हे अजन!
ु तू पहले इि य को वशम करके इस ान और व ानका नाश
करनेवाले महान ् पापी कामको अव य ह बलपव
ू क मार डाल।

त मा व मि या यादौ नय य भरतषभ ।
पा मानं ज ह येनं ान व ाननाशनम ् ॥६।३।४१॥

इि य को थल ू शर रसे पर यानी े ठ, बलवान ् और सू म कहते ह; इन इि य से पर


मन है , मनसे भी पर बु ध है और जो बु धसे भी अ य त पर है वह आ मा है ।

इि या ण परा याहु रि ये यः परं मनः ।


मनस तु परा बु धय बु धेः परत तु सः ॥७।३।४२॥

इस कार बु धसे पर अथात ् सू म, बलवान ् और अ य त े ठ आ माको जानकर और


बु धके वारा मनको वशम करके हे महाबाहो! तू इस काम प दज
ु यश क
ु ो मार डाल।

एवं बु धेः परं बु वा सं त या मानमा मना ।


ज ह श ंु महाबाहो काम पं दरु ासदम ् ॥८।३।४३॥

॥इ त ीम भगव गीतायां अ टमोऽ यायः॥

अथ नवमोऽ यायः
कमयोगः
कम-सं यासका साधन कम

कम या है ? और अकम या है ?― इस कार इसका नणय करनेम बु धमान ् पु ष भी


मो हत हो जाते ह। इस लये वह कमत व म तझ ु े भल भाँ त समझाकर कहूँगा, िजसे
जानकर तू अशभ ु से अथात ् कमब धनसे मु त हो जायगा।

कं कम कमकम त कवयोऽ य मो हताः ।


त े कम व या म य ा वा मो यसेऽशभ
ु ात ् ॥१।४।१६॥

कमका व प भी जानना चा हये और अकमका व प भी जानना चा हये तथा वकमका


व प भी जानना चा हये; य क कमक ग त गहन है ।
कमणो य प बो ध यं बो ध यं च वकमणः ।
अकमण च बो ध यं गहना कमणो ग तः ॥२।४।१७॥

जो मनु य कमम अकम दे खता है और जो अकमम कम दे खता है , वह मनु य म


बु धमान ् है और वह योगी सम त कम को करनेवाला है ।

कम यकम यः प येदकम ण च कम यः ।
स बु धमा मनु येषु स यु तः कृ नकमकृत ् ॥३।४।१८॥

िजसके स पण
ू शा स मत कम बना कामना और संक पके होते ह तथा िजसके
सम त कम ान प अि नके वारा भ म हो गये ह, उस महापु षको ानीजन भी
पि डत कहते ह।

य य सव समार भाः कामस क पविजताः ।


ानाि नद धकमाणं तमाहुः पि डतं बध
ु ाः ॥४।४।१९॥

जो पु ष सम त कम म और उनके फलम आसि तका सवथा याग करके संसारके


आ यसे र हत हो गया है और परमा माम न य त ृ त है , वह कम म भल भाँ त बतता
हुआ भी वा तवम कुछ भी नह ं करता।

य वा कमफलास गं न यत ृ तो नरा यः ।
कम य भ व ृ ोऽ प नैव कि च करो त सः ॥५।४।२०॥

िजसका अ तःकरण और इि य के स हत शर र जीता हुआ है और िजसने सम त


भोग क साम ीका प र याग कर दया है , ऐसा आशार हत पु ष केवल शर र-स ब धी
कम करता हुआ भी पाप को नह ं ा त होता।

नराशीयत च ा मा य तसवप र हः ।
शार रं केवलं कम कुव ना नो त कि बषम ् ॥६।४।२१॥

जो बना इ छाके अपने-आप ा त हुए पदाथम सदा स तु ट रहता है , िजसम ई याका


सवथा अभाव हो गया हो, जो हष-शोक आ द व व से सवथा अतीत हो गया है ― ऐसा
स ध और अ स धम सम रहनेवाला कमयोगी कम करता हुआ भी उनसे नह ं बँधता।

य छालाभस तु टो व वातीतो वम सरः ।


समः स धाव स धौ च कृ वा प न नब यते ॥७।४।२२॥
िजसक आसि त सवथा न ट हो गयी है , जो दे हा भमान और ममतासे र हत हो गया है ,
िजसका च नर तर परमा माके ानम ि थत रहता है ― ऐसा केवल य स पादनके
लये कम करनेवाले मनु यके स पण
ू कम भल भाँ त वल न हो जाते ह।

गतस ग य मु त य ानावि थतचेतसः ।


य ायाचरतः कम सम ं वल यते ॥८।४।२३॥

॥इ त ीम भगव गीतायां नवमोऽ यायः॥

अथ दशमोऽ यायः
कमयोगः
य और ानय क े ठता

दस
ू रे योगीजन दे व य का ह भल भाँ त अनु ठान कया करते ह और अ य योगीजन
पर म परमा मा प अि नम अभेददशन प य के वारा ह आ म प य का हवन
कया करते ह।

दै वमेवापरे य ं यो गनः पयपासते


ु ।
मा नावपरे य ं य ेनव ै ोपजु व त ॥१।४।२५॥

अ य योगीजन ो आ द सम त इि य को संयम प अि नय म हवन कया करते ह


और दस
ू रे योगीलोग श दा द सम त वषय को इि य प अि नय म हवन कया करते
ह।

ो ाद नीि या य ये संयमाि नषु जु व त ।


श दाद ि वषयान य इि याि नषु जु व त ॥२।४।२६॥

दस
ू रे योगीजन इि य क स पण
ू याओंको और ाण क सम त याओंको ानसे
का शत आ म-संयमयोग प अि नम हवन कया करते ह।

सवाणीि यकमा ण ाणकमा ण चापरे ।


आ मसंयमयोगा नौ जु व त ानद पते ॥३।४।२७॥

कई पु ष यस ब धी य करनेवाले ह, कतने ह तप या प य करनेवाले ह तथा


दस
ू रे कतने ह योग प य करनेवाले ह और कतने ह अ हंसा द ती ण त से यु त
य नशील पु ष वा याय प ानय करनेवाले ह।

यय ा तपोय ा योगय ा तथापरे ।


वा याय ानय ा च यतयः सं शत ताः ॥४।४।२८॥
दस
ू रे कतने ह योगीजन अपानवायम ु ाण-वायकु ो हवन करते ह, वैसे ह अ य योगीजन
ाणवायमु अपानवायक ु ो हवन करते ह तथा अ य कतने ह नय मत आहार करनेवाले
ाणायाम-परायण पु ष ाण और अपानक ग तको रोककर ाण को ाण म ह हवन
कया करते ह। ये सभी साधक य वारा पाप का नाश कर दे नेवाले और य को
जाननेवाले ह।

अपाने जु व त ाणं ाणेऽपानं तथापरे ।


ाणापानगती वा ाणायामपरायणाः ॥
अपरे नयताहाराः ाणा ाणेषु जु व त ।
सवऽ येते य वदो य पतक मषाः ॥५-६।४।२९-३०॥

हे कु े ठ अजन! ु य से बचे हुए अमत ृ का अनभु व करनेवाले योगीजन सनातन पर म


परमा माको ा त होते ह और य न करनेवाले पु षके लये तो यह मनु यलोक भी
सख ु दायक नह ं है , फर परलोक कैसे सखु दायक हो सकता है ?

य श टामत ृ भज
ु ो याि त म सनातनम ् ।
नायं लोकोऽ यय य कुतोऽ यः कु स म ॥७।४।३१॥

इसी कार और भी बहुत तरहके य वेदक वाणीम व तारसे कहे गये ह। उन सबको तू
मन, इि य और शर रक या वारा स प न होनेवाले जान, इस कार त वसे जानकर
उनके अनु ठान वारा तू कमब धनसे सवथा मु त हो जायगा।

एवं बहु वधा य ा वतता मणो मख


ु े।
कमजाि व ध ता सवानेवं ा वा वमो यसे ॥८।४।३२॥

हे परं तप अजन!
ु यमय य क अपे ा ानय अ य त े ठ है , तथा याव मा
स पण ू कम ानम समा त हो जाते ह।

ेया यमया य ा ानय ः पर तप ।


सव कमा खलं पाथ ाने प रसमा यते ॥९।४।३३॥

इस संसारम ानके समान प व करनेवाला नःसंदेह कुछ भी नह ं है । उस ानको कतने


ह कालसे कमयोगके वारा शु धा तःकरण हुआ मनु य अपने-आप ह आ माम पा लेता
है ।

न ह ानेन स शं प व मह व यते ।
त वयं योगसं स धः कालेना म न व द त ॥१०।४।३८॥
िजतेि य, साधनपरायण और धावान ् मनु य ानको ा त होता है तथा ानको
ा त होकर वह बना वल बके― त काल ह भगव ाि त प परम शाि तको ा त हो
जाता है ।

धावाँ लभते ानं त परः संयतेि यः ।


ानं ल वा परां शाि तम चरे णा धग छ त ॥११।४।३९॥

ववेकह न और धार हत संशययु त मनु य परमाथसे अव य ट हो जाता है । ऐसे


संशययु त मनु यके लये न यह लोक है , न परलोक है और न सख
ु ह है ।

अ चा दधान च संशया मा वन य त ।
नायं लोकोऽि त न परो न सख
ु ं संशया मनः ॥१२।४।४०॥

हे धन जय! िजसने कमयोगक व धसे सम त कम का परमा माम अपण कर दया है


और िजसने ववेक वारा सम त संशय का नाश कर दया है , ऐसे वशम कये हुए
अ तःकरणवाले पु षको कम नह ं बाँधते।

योगस य तकमाणं ानसि छ नसंशयम ् ।


आ मव तं न कमा ण नब नि त धन जय ॥१३।४।४१॥

इस लये हे भरतवंशी अजन!


ु तू दयम ि थत इस अ ानज नत अपने संशयका
ववेक ान प तलवार वारा छे दन करके सम व प कमयोगम ि थत हो जा और यु धके
लये खड़ा हो जा।

त माद ानस भत ू ं थं ाना सना मनः ।


छ वैनं संशयं योगमा त ठो ठ भारत ॥१४।४।४२॥

॥इ त ीम भगव गीतायां दशमोऽ यायः॥

अथैकादशोऽ यायः
कमयोगः
कमसं याससे कमयोगक े ठता

अजन
ु उवाच

अजनु बोले― हे कृ ण! आप कम के सं यासक और फर कमयोगक शंसा करते ह।


इस लये इन दोन मसे जो एक मेरे लये भल भाँ त नि चत क याणकारक साधन हो,
उसको क हये।
स यासं कमणां कृ ण पन ु य गं च शंस स ।
य े य एतयोरे कं त मे ू ह सु नि चतम ् ॥१।५।१॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले- कमसं यास और कमयोग― ये दोन ह परम क याणके करनेवाले ह,


पर तु उन दोन म भी कमसं याससे कमयोग साधनम सगु म होनेसे े ठ है ।

स यासः कमयोग च नः ेयसकरावभु ौ।


तयो तु कमस यासा कमयोगो व श यते ॥२।५।२॥

हे अजन!ु जो पु ष न कसीसे वेष करता है और न कसीक आकां ा करता है , वह


कमयोगी सदा सं यासी ह समझने यो य है ; य क राग- वेषा द व व से र हत पु ष
सख ु पव
ू क संसारब धनसे मु त हो जाता है ।

े ः स न यस यासी यो न वेि ट न का
य त।
न व वो ह महाबाहो सख
ु ं ब धा मु यते ॥३।५।३॥

उपयु त सं यास और कमयोगको मख


ू लोग पथ
ृ क् -पथ
ृ क् फल दे नेवाले कहते ह न क
पि डतजन; य क दोन मसे एकम भी स यक् कारसे ि थत पु ष दोन के फल प
परमा माको ा त होता है ।

सा ययोगौ पथ
ृ बालाः वदि त न पि डताः ।
एकम याि थतः स यगभु यो व दते फलम ् ॥४।५।४॥

ानयो गय वारा जो परमधाम ा त कया जाता है ; कमयो गय वारा भी वह ा त


कया जाता है । इस लये जो पु ष ानयोग और कमयोगको फल- पम एक दे खता है , वह
यथाथ दे खता है ।

य सा यैः ा यते थानं त योगैर प ग यते ।


एकं सा यं च योगं च यः प य त स प य त ॥५।५।५॥

पर तु हे अजन!
ु कमयोगके बना सं यास अथात ् मन, इि य और शर र वारा होनेवाले
स पण
ू कम म कतापनका याग ा त होना क ठन है और भगव व पको मनन
करनेवाला कमयोगी पर म परमा माको शी ह ा त हो जाता है ।

स यास तु महाबाहो दःु खमा तम


ु योगतः ।
योगयु तो मु न म न चरे णा धग छ त ॥६।५।६॥
िजसका मन अपने वशम है , जो िजतेि य एवं वशु ध अ तःकरणवाला है और स पण

ा णय क आ मा ह िजसक आ मा है , ऐसा कमयोगी कम करता हुआ भी ल त नह ं
होता।

योगयु तो वशु धा मा विजता मा िजतेि यः ।


सवभतू ा मभत
ू ा मा कुव न प न ल यते ॥७।५।७॥

त वको जाननेवाला सां ययोगी तो दे खता हुआ, सन


ु ता हुआ, पश करता हुआ, सँघ ू ता
हुआ, भोजन करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, वास लेता हुआ, बोलता हुआ,
यागता हुआ, हण करता हुआ तथा आँख को खोलता और मँद ू ता हुआ भी सब इि याँ
अपने-अपने अथ म बरत रह ह― इस कार समझकर नःस दे ह ऐसा माने क म कुछ
भी नह ं करता हूँ।

नैव कि च करोमी त यु तो म येत त व वत ् ।


प य श ृ व पशृ ि ज न न ग छ वप वसन ् ॥
लपि वसज ृ ग ृ ण निु मषि न मष न प ।
इि याणीि याथषु वत त इ त धारयन ् ॥८-९।५।८-९॥

जो पु ष सब कम को परमा माम अपण करके और आसि तको यागकर कम करता है ,


वह पु ष जलसे कमलके प ेक भाँ त पापसे ल त नह ं होता।

म याधाय कमा ण स गं य वा करो त यः ।


ल यते न स पापेन प मप मवा भसा ॥१०।५।१०॥

कमयोगी मम वबु धर हत केवल इि य, मन, बु ध और शर र वारा भी आसि तको


यागकर अ तःकरणक शु धके लये कम करते ह।

कायेन मनसा बु या केवलै रि यैर प ।


यो गनः कम कुवि त स गं य वा मशु धये ॥११।५।११॥

कमयोगी कम के फलका याग करके भगव ाि त प शाि तको ा त होता है और


सकामपु ष कामनाक ेरणासे फलम आस त होकर बँधता है ।

यु तः कमफलं य वा शाि तमा नो त नैि ठक म ् ।


अयु तः कामकारे ण फले स तो नब यते ॥१२।५।१२॥

जो पु ष कमफलका आ य न लेकर करनेयो य कम करता है , वह सं यासी तथा योगी है


और केवल अि नका याग करनेवाला सं यासी नह ं है तथा केवल याओंका याग
करनेवाला योगी नह ं है ।
अना तः कमफलं काय कम करो त यः ।
स स यासी च योगी च न नरि नन चा यः ॥१३।६।१॥

हे अजन!
ु िजसको सं यास ऐसा कहते ह, उसीको तू योग जान; य क संक प का याग
न करनेवाला कोई भी पु ष योगी नह ं होता।

यं स यास म त ाहुय गं तं व ध पा डव ।
न यस य तस क पो योगी भव त क चन ॥१४।६।२॥

योगम आ ढ़ होनेक इ छावाले मननशील पु षके लये योगक ाि तम न कामभावसे


कम करना ह हे तु कहा जाता है और योगा ढ़ हो जानेपर उस योगा ढ़ पु षका जो
सवसंक प का अभाव है , वह क याणम हे तु कहा जाता है ।

आ ोमने
ु य गं कम कारणमु यते ।
योगा ढ य त यैव शमः कारणमु यते ॥१५।६।३॥

िजस कालम न तो इि य के भोग म और न कम म ह आस त होता है , उस कालम


सवसंक प का यागी पु ष योगा ढ़ कहा जाता है ।

यदा ह नेि याथषु न कम वनष


ु जते ।
सवस क पस यासी योगा ढ तदो यते ॥१६।६।४॥

॥इ त ीम भगव गीतायां एकादशोऽ यायः॥

अथ वादशोऽ यायः
यानयोगः
सा यबु ध और उसका साधन यानयोग

अपने वारा अपना संसार-समु से उ धार करे और अपनेको अधोग तम न डाले; य क


यह मनु य आप ह तो अपना म है और आप ह अपना श ु है ।

उ धरे दा मना मानं ना मानमवसादयेत ् ।


आ मैव या मनो ब धरु ा मैव रपरु ा मनः ॥१।६।५॥

िजस जीवा मा वारा मन और इि य स हत शर र जीता हुआ है , उस जीवा माका तो वह


आप ह म है और िजसके वारा मन तथा इि य -स हत शर र नह ं जीता गया है ,
उसके लये वह आप ह श क ु े स शश त
ु ाम बतता है ।

ब धरु ा मा मन त य येना मैवा मना िजतः ।


अना मन तु श ु वे वतता मैव श व
ु त ् ॥२।६।६॥

सरद -गरमी और सख ु -दःु खा दम तथा मान और अपमानम िजसके अ तःकरणक व ृ याँ


भल भाँ त शा त ह, ऐसे वाधीन आ मावाले पु षके ानम सि चदान दघन परमा मा
स यक् कारसे ि थत है अथात ् उसके ानम परमा माके सवा अ य कुछ है ह नह ं।

िजता मनः शा त य परमा मा समा हतः ।


शीतो णसख
ु दःु खेषु तथा मानापमानयोः ॥३।६।७॥

िजसका अ तःकरण ान- व ानसे त ृ त है , िजसक ि थ त वकारर हत है , िजसक


इि याँ भल भाँ त जीती हुई ह और िजसके लये म ट , प थर और सव
ु ण समान ह, वह
योगी यु त अथात ् भगव ा त है , ऐसे कहा जाता है ।

ान व ानत ृ ता मा कूट थो विजतेि यः ।


यु त इ यु यते योगी समलो टा मका चनः ॥४।६।८॥

सु , म , वैर , उदासीन, म य थ, वे य और ब धग ु ण म, धमा माओंम और


पा पय म भी समानभाव रखनेवाला अ य त े ठ है ।

सु ि म ायदासीनम
ु य थ वे यब धष
ु ु।
साधु व प च पापेषु समबु ध व श यते ॥५।६।९॥

मन और इि य स हत शर रको वशम रखने-वाला, आशार हत और सं हर हत योगी


अकेला ह एका त थानम ि थत होकर आ माको नर तर परमा माम लगावे।

योगी यु जीत सततमा मानं रह स ि थतः ।


एकाक यत च ा मा नराशीरप र हः ॥६।६।१०॥

शु ध भू मम, िजसके ऊपर मशः कुशा, मग


ृ छाला और व बछे ह, जो न बहुत ऊँचा है
और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसनको ि थर थापन करके―

शच
ु ौ दे शे त ठा य ि थरमासनमा मनः ।
ना यिु तं ना तनीचं चैलािजनकुशो रम ् ॥७।६।११॥

उस आसनपर बैठकर च और इि य क याओंको वशम रखते हुए मनको एका


करके अ तःकरणक शु धके लये योगका अ यास करे ।

त क
ै ा ं मनः कृ वा यत च ेि य यः ।
उप व यासने यु या योगमा म वशु धये ॥८।६।१२॥
काया, सर और गलेको समान एवं अचल धारण करके और ि थर होकर, अपनी
ना सकाके अ भागपर ि ट जमाकर, अ य दशाओंको न दे खता हुआ―

समं काय शरो ीवं धारय नचलं ि थरः ।


स े य ना सका ं वं दश चानवलोकयन ् ॥९।६।१३॥

संक पसे उ प न होनेवाल स पण


ू कामनाओंको नःशेष पसे यागकर और मनके वारा
इि य के समदु ायको सभी ओरसे भल भाँ त रोककर―

स क प भवा कामां य वा सवानशेषतः ।


मनसैवेि य ामं व नय य सम ततः ॥१०।६।२४॥

म- मसे अ यास करता हुआ उपर तको ा त हो तथा धैययु त बु धके वारा मनको
परमा माम ि थत करके परमा माके सवा और कुछ भी च तन न करे ।

शनैः शनै परमे बु या ध ृ तगह


ृ तया ।
आ मसं थं मनः कृ वा न कि चद प च तयेत ् ॥११।६।२५॥

यह ि थर न रहनेवाला और च चल मन िजस-िजस श दा द वषयके न म से संसारम


वचरता है , उस-उस वषयसे रोककर यानी हटाकर इसे बार-बार परमा माम ह न ध
करे ।

यतो यतो न चर त मन च चलमि थरम ् ।


तत ततो नय यैतदा म येव वशं नयेत ् ॥१२।६।२६॥

वह पापर हत योगी इस कार नर तर आ माको परमा माम लगाता हुआ सख


ु पव
ू क
पर म परमा माक ाि त प अन त आन दका अनभ ु व करता है ।

यु ज नेवं सदा मानं योगी वगतक मषः ।


सखु ेन मसं पशम य तं सख ु म नत
ु े ॥१३।६।२८॥

सव यापी अन त चेतनम एक भावसे ि थ त प योगसे यु त आ मावाला तथा सबम


समभावसे दे खनेवाला योगी आ माको स पण
ू भत
ू म ि थत और स पण
ू भतू को आ माम
दे खता है ।

सवभतू थमा मानं सवभतू ा न चा म न ।


ई ते योगयु ता मा सव समदशनः ॥१४।६।२९॥
हे अजन!
ु जो योगी अपनी भाँ त स पण ू भतू म सम दे खता है और सख
ु अथवा दःु खको भी
सबम सम दे खता है , वह योगी परम े ठ माना गया है ।

आ मौप येन सव समं प य त योऽजन ु ।


सख
ु ं वा य द वा दःु खं स योगी परमो मतः ॥१५।६।३२॥

अजन
ु उवाच

अजन
ु बोले― हे मधस
ु द
ू न! जो यह योग आपने समभावसे कहा है , मनके च चल होनेसे म
इसक न य ि थ तको नह ं दे खता हूँ।

योऽयं योग वया ो तः सा येन मधस


ु द
ू न।
एत याहं न प या म च चल वाि थ तं ि थराम ् ॥१६।६।३३॥

य क हे ीकृ ण! यह मन बड़ा च चल, मथन वभाववाला, बड़ा ढ़ और बलवान ् है ।


इस लये उसको वशम करना म वायकु ो रोकनेक भाँ त अ य त द ु कर मानता हूँ।

च चलं ह मनः कृ ण मा थ बलव ढम ् ।


त याहं न हं म ये वायो रव सद
ु ु करम ् ॥१७।६।३४॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― हे महाबाहो! नःस दे ह मन च चल और क ठनतासे वशम होने वाला


है ; पर तु हे कु तीपु अजन!
ु यह अ यास और वैरा यसे वशम होता है ।

असंशयं महाबाहो मनो द ु न हं चलम ् ।


अ यासेन तु कौ तेय वैरा येण च ग ृ यते ॥१८।६।३५॥

िजसका मन वशम कया हुआ नह ं है , ऐसे पु ष वारा योग द ु ा य है और वशम कये हुए
मनवाले य नशील पु ष वारा साधनसे उसका ा त होना सहज है ― यह मेरा मत है ।

असंयता मना योगो द ु ाप इ त मे म तः ।


व या मना तु यतता श योऽवा तम ु प
ु ायतः ॥१९।६।३६॥

अजन
ु उवाच

अजनु बोले― हे ीकृ ण! जो योगम धा रखनेवाला है ; क तु संयमी नह ं है , इस कारण


िजसका मन अ तकालम योगसे वच लत हो गया है , ऐसा साधक योगक स धको
अथात ् भगव सा ा कारको न ा त होकर कस ग तको ा त होता है ।
अय तः धयोपेतो योगा च लतमानसः ।
अ ा य योगसं स धं कां ग तं कृ ण ग छ त ॥२०।६।३७॥

हे महाबाहो! या वह भगव ाि तके मागम मो हत और आ यर हत पु ष छ न- भ न


बादलक भाँ त दोन ओरसे ट होकर न ट तो नह ं हो जाता?

कि च नोभय व टि छ ना मव न य त ।
अ त ठो महाबाहो वमढ
ू ो मणः प थ ॥२१।६।३८॥

हे ीकृ ण! मेरे इस संशयको स पणू पसे छे दन करनेके लये आप ह यो य ह, य क


आपके सवा दस ू रा इस संशयका छे दन करनेवाला मलना स भव नह ं है ।

एत मे संशयं कृ ण छे म
ु ह यशेषतः ।
वद यः संशय या य छे ा न यप ु प यते ॥२२।६।३९॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― हे पाथ! उस पु षका न तो इस लोकम नाश होता है और न परलोकम


ह । य क हे यारे ! आ मो धारके लये अथात ् भगव ाि तके लये कम करनेवाला कोई
भी मनु य दग ु तको ा त नह ं होता।

पाथ नैवेह नामु वनाश त य व यते ।


न ह क याणकृ कि च दग ु तं तात ग छ त ॥२३।६।४०॥

योग ट पु ष पु यवान के लोक को ा त होकर, उनम बहुत वष तक नवास करके फर


शु ध आचरणवाले ीमान ् पु ष के घरम ज म लेता है ।

ा य पु यकृतां लोकानु ष वा शा वतीः समाः ।


शचु ीनां ीमतां गेहे योग टोऽ भजायते ॥२४।६।४१॥

अथवा वैरा यवान ् पु ष उन लोक म न जाकर ानवान ् यो गय के ह कुलम ज म लेता है ,


पर तु इस कारका जो यह ज म है , सो संसारम नःस दे ह अ य त दल ु भ है ।

अथवा यो गनामेव कुले भव त धीमताम ् ।


एत ध दल ु भतरं लोके ज म यद शम ् ॥२५।६।४२॥

वहाँ उस पहले शर रम सं ह कये हुए बु ध-संयोगको अथात ् समबु ध प योगके


सं कार को अनायास ह ा त हो जाता है और हे कु न दन! उसके भावसे वह फर
परमा माक ाि त प स धके लये पहलेसे भी बढ़कर य न करता है ।
त तं बु धसंयोगं लभते पौवदे हकम ् ।
यतते च ततो भय
ू ः सं स धौ कु न दन ॥२६।६।४३॥

वह ीमान के घरम ज म लेनेवाला योग ट पराधीन हुआ भी उस पहलेके अ याससे ह


नःस दे ह भगवान ् क ओर आक षत कया जाता है , तथा समबु ध प योगका िज ासु
भी कृ तके ब धन को उ ल घन कर जाता है ।

पव
ू ा यासेन तेनव
ै यते यवशोऽ प सः ।
िज ासरु प योग य श द मा तवतते ॥२७।६।४४॥

पर तु य नपव
ू क अ यास करनेवाला योगी तो पछले अनेक ज म के सं कारबलसे इसी
ज मम सं स ध होकर स पण
ू पाप से र हत हो फर त काल ह परमग तको ा त हो
जाता है ।

य ना यतमान तु योगी संशु ध कि बषः ।


अनेकज मसं स ध ततो या त परां ग तम ् ॥२८।६।४५॥

योगी तपि वय से े ठ है , शा ा नय से भी े ठ माना गया है और सकाम कम


करने-वाल से भी योगी े ठ है ; इससे हे अजन!
ु तू योगी हो।

तपि व योऽ धको योगी


ा न योऽ प मतोऽ धकः ।
क म य चा धको योगी
त मा योगी भवाजनु ॥२९।६।४६॥

॥इ त ीम भगव गीतायां वादशोऽ यायः॥

अथ योदशोऽ यायः
यानयोगः
भि त न पण

हे पाथ! यह नयम है क परमे वरके यानके अ यास प योगसे यु त, दस


ू र ओर न
जानेवाले च से नर तर च तन करता हुआ मनु य परम द य पु षको अथात ्
परमे वरको ह ा त होता है ।

अ यासयोगयु तेन चेतसा ना यगा मना ।


परमं पु षं द यं या त पाथानु च तयन ् ॥१।८।८॥
जो पु ष सव , अना द, सबके नय ता, सू मसे भी अ त सू म, सबके धारण-पोषण
करनेवाले अ च य व प, सय ू के स श न य चेतन काश प और अ व यासे अ त परे ,
शु ध सि चदान दघन परमे वरका मरण करता है ।

क वं परु ाणमनश
ु ा सतार -
मणोरणीयांसमनु मरे यः ।
सव य धातारम च य प-
मा द यवण तमसः पर तात ् ॥२।८।९॥

वह भि तयु त पु ष अ तकालम भी योगबलसे भक


ृ ु ट के म यम ाणको अ छ कार
था पत करके, फर न चल मनसे मरण करता हुआ उस द य परम पु ष परमा माको
ह ा त होता है ।

याणकाले मनसाचलेन
भ या यु तो योगबलेन चैव ।

ु ोम ये ाणमावे य स यक् -
स तं परं पु षमप
ु ै त द यम ् ॥३।८।१०॥

वेदके जाननेवाले व वान ् िजस सि चदान दघन प परमपदको अ वनाश कहते ह,


आसि तर हत य नशील सं यासी महा माजन, िजसम वेश करते ह और िजस
परमपदको चाहनेवाले मचार लोग मचयका आचरण करते ह, उस परमपदको म तेरे
लये सं ेपसे कहूँगा।

यद रं वेद वदो वदि त


वशि त य यतयो वीतरागाः ।
य द छ तो मचय चरि त
त े पदं स हे ण व ये ॥४।८।११॥

हे पाथ! िजस परमा माके अ तगत सवभत ू ह और िजस सि चदान दघन परमा मासे यह
सम त जगत ् प रपण ू है , वह सनातन अ य त परम पु ष तो अन य भि तसे ह ा त
होने यो य है ।

पु षः स परः पाथ भ या ल य वन यया ।


य या तः था न भत ू ा न येन सव मदं ततम ् ॥५।८।२२॥

योगी पु ष इस रह यको त वसे जानकर वेद के पढ़नेम तथा य , तप और दाना दके


करनेम जो पु यफल कहा है , उन सबको नःस दे ह उ लंघन कर जाता है और सनातन
परमपदको ा त होता है ।
वेदेषु य ेषु तपःसु चैव
दानेषु य पु यफलं द टम ् ।
अ ये त त सव मदं व द वा
योगी परं थानमप ु ै त चा यम ् ॥६।८।२८॥

॥इ त ीम भगव गीतायां योदशोऽ यायः॥

अथ चतद
ु शोऽ यायः
ानयोगः
ान तथा ेय न पण

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले- तझ
ु दोष ि टर हत भ तके लये इस परम गोपनीय व ानस हत
ानको पन
ु ः भल भाँ त कहूँगा, िजसको जानकर तू दःु ख प संसारसे मु त हो जायगा।

इदं तु ते गु यतमं व या यनसय


ू वे ।
ानं व ानस हतं य ा वा मो यसेऽशभ ु ात ् ॥१।९।१॥

े ठताके अ भमानका अभाव, द भाचरणका अभाव, कसी भी ाणीको कसी कार भी न


सताना, माभाव, मन-वाणी आ दक सरलता, धा-भि तस हत गु क सेवा,
बाहर-भीतरक शु ध, अ तःकरणक ि थरता और मन-इि य -स हत शर रका न ह।

अमा न वमदि भ वम हंसा ाि तराजवम ् ।


आचाय पासनं शौचं थैयमा म व न हः ॥२।१३।७॥

इि य के स पणू भोग म आसि तका अभाव और अह कारका भी अभाव, ज म, म ृ य,ु


जरा और रोग आ दम दःु ख और दोष का बार-बार वचार करना।

इि याथषु वैरा यमनह कार एव च ।


ज मम ृ यज
ु रा या धदःु खदोषानद
ु शनम ् ॥३।१३।८॥

पु , ी, घर और धन आ दम आसि त का अभाव; ममताका न होना तथा य और


अ यक ाि तम सदा ह च का सम रहना।

असि तरन भ व गः पु दारगह


ृ ा दषु ।
न यं च सम च व म टा न टोपप षु ॥४।१३।९॥

अ या म ानम न य ि थ त और त व ानके अथ प परमा माको ह दे खना― यह सब


ान है और जो इसके वपर त है वह अ ान है ― ऐसा कहा है ।
अ या म ान न य वं त व ानाथदशनम ् ।
एत ान म त ो तम ानं यदतोऽ यथा ॥५।१३।११॥

जो जाननेयो य है तथा िजसको जानकर मनु य परमान दको ा त होता है , उसको


भल भाँ त कहूँगा। वह अना दवाला परम म न सत ् ह कहा जाता है , न असत ् ह ।

ेयं य व या म य ा वामत
ृ म नतु े।
अना दम परं म न स नासद ु यते ॥६।१३।१२॥

वह सब ओर हाथ-पैरवाला, सब ओर ने , सर और मख
ु वाला तथा सब ओर कानवाला है ;
य क वह संसारम सबको या त करके ि थत है ।

सवतः पा णपादं त सवतोऽ शरोमख ु म्।


सवतः ु तम लोके सवमाव ृ य त ठ त ॥७।१३।१३॥

वह स पण
ू इि य के वषय को जाननेवाला है , पर तु वा तवम सब इि य से र हत है
तथा आसि तर हत होनेपर भी सबका धारण-पोषण करनेवाला और नगण ु होनेपर भी
गण
ु को भोगनेवाला है ।

सवि यगण ु ाभासं सवि य वविजतम ् ।


अस तं सवभ ृ चैव नगणं
ु गण
ु भो त ृ च ॥८।१३।१४॥

वह चराचर सब भत ू के बाहर-भीतर प रपण


ू है और चर-अचर भी वह है । और वह सू म
होनेसे अ व ेय है तथा अ त समीपम और दरू म भी ि थत वह है ।

ब हर त च भतू ानामचरं चरमेव च ।


सू म वा द व ेयं दरू थं चाि तके च तत ् ॥९।१३।१५॥

वह परमा मा वभागर हत एक पसे आकाशके स श प रपण ू होनेपर भी चराचर स पण



भत
ू म वभ त-सा ि थत तीत होता है ; तथा वह जाननेयो य परमा मा व णु पसे
भतू को धारण-पोषण करनेवाला और पसे संहार करनेवाला तथा मा पसे सबको
उ प न करनेवाला है ।

अ वभ तं च भतू ष
े ु वभ त मव च ि थतम ् ।
भत
ू भत ृ च त ेयं स णु भ व णु च ॥१०।१३।१६॥

वह पर म यो तय का भी यो त एवं मायासे अ य त परे कहा जाता है । वह परमा मा


बोध व प, जाननेके यो य एवं त व ानसे ा त करनेयो य है और सबके दयम
वशेष पसे ि थत है ।
यो तषाम प त यो त तमसः परमु यते ।
ानं ेयं ानग यं द सव य वि ठतम ् ॥११।१३।१७॥

॥इ त ीम भगव गीतायां चतद


ु शोऽ यायः॥

अथ प चदशोऽ यायः
व ानयोगः
गण
ु काय ववेक तथा गण
ु ातीत ल ण

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― ान म भी अ त उ म उस परम ानको म फर कहूँगा, िजसको


जानकर सब मु नजन इस संसारसे मु त होकर परम स धको ा त हो गये ह।

परं भय
ू ः व या म ानानां ानमु मम ् ।
य ा वा मन ु यः सव परां स ध मतो गताः ॥१।१४।१॥

हे अजन!
ु स वगण ु , रजोगण
ु और तमोगण
ु ― ये कृ तसे उ प न तीन गण
ु अ वनाशी
जीवा माको शर रम बाँधते ह।

स वं रज तम इ त गण
ु ाः कृ तस भवाः ।
नब नि त महाबाहो दे हे दे हनम ययम ् ॥२।१४।५॥

हे न पाप! उन तीन गण ु म स वगण


ु तो नमल होनेके कारण काश करनेवाला और
वकारर हत है , वह सख
ु के स ब धसे और ानके स ब धसे अथात ् उसके अ भमानसे
बाँधता है ।

त स वं नमल वा काशकमनामयम ् ।
सख
ु स गेन ब ना त ानस गेन चानघ ॥३।१४।६॥

हे अजन!
ु राग प रजोगण
ु को कामना और आसि तसे उ प न जान। वह इस जीवा माको
कम के और उनके फलके स ब धसे म बाँधता है ।

रजो रागा मकं व ध त ृ णास गसमु भवम ् ।


ति नब ना त कौ तेय कमस गेन दे हनम ् ॥४।१४।७॥

हे अजन!
ु सब दे हा भमा नय को मो हत करने-वाले तमोगण
ु को तो अ ानसे उ प न जान।
वह इस जीवा माको माद, आल य और न ाके वारा बाँधता है ।

तम व ानजं व ध मोहनं सवदे हनाम ् ।


मादाल य न ा भ ति नब ना त भारत ॥५।१४।८॥

हे अजन!
ु स वगण ु सख ु म लगाता है और रजोगण
ु कमम तथा तमोगण
ु तो ानको ढककर
मादम भी लगाता है ।

स वं सख
ु े स जय त रजः कम ण भारत ।
ानमाव ृ य तु तमः मादे स जय यत
ु ॥६।१४।९॥

हे अजन!
ु रजोगण ु और तमोगण
ु को दबाकर स वगणु , स वगण
ु और तमोगण ु को दबाकर
रजोगणु , वैसे ह स वगण
ु और रजोगणु को दबाकर तमोगणु होता है अथात ् बढ़ता है ।

रज तम चा भभय ू स वं भव त भारत ।
रजः स वं तम चैव तमः स वं रज तथा ॥७।१४।१०॥

िजस समय इस दे हम तथा अ तःकरण और इि य म चेतनता और ववेकशि त उ प न


होती है , उस समय ऐसा जानना चा हये क स वगण
ु बढ़ा है ।

सव वारे षु दे हेऽि म काश उपजायते ।


ानं यदा तदा व या वव ृ धं स व म यत ु ॥८।१४।११॥

हे अजन!
ु रजोगण
ु के बढ़नेपर लोभ, व ृ , वाथबु धसे कम का सकामभावसे आर भ,
अशाि त और वषयभोग क लालसा― ये सब उ प न होते ह।

लोभः व ृ रार भः कमणामशमः पह ृ ा।


रज येता न जाय ते वव ृ धे भरतषभ ॥९।१४।१२॥

हे अजन!
ु तमोगण
ु के बढ़नेपर अ तःकरण और इंि य म अ काश, कत य-कम म
अ व ृ और माद अथात ् यथ चे टा और न ा द अ तःकरणक मो हनी व ृ याँ― ये
सब ह उ प न होते ह।

अ काशोऽ व ृ च मादो मोह एव च ।


तम येता न जाय ते वव ृ धे कु न दन ॥१०।१४।१३॥

जब यह मनु य स वगण
ु क व ृ धम म ृ यक
ु ो ा त होता है , तब तो उ म कम करने-वाल
ा नय के नमल द य वगा द लोक को ा त होता है ।

यदा स वे व ृ धे तु लयं या त दे हभत


ृ ्।
तदो म वदां लोकानमला तप यते ॥११।१४।१४॥
रजोगण
ु के बढ़नेपर म ृ यक
ु ो ा त होकर कम क आसि तवाले मनु य म उ प न होता है ;
तथा तमोगणु के बढ़नेपर मरा हुआ मनु य क ट, पशु आ द मढ़
ू यो नय म उ प न होता है ।

रज स लयं ग वा कमस गषु जायते ।


तथा ल न तम स मढू यो नषु जायते ॥१२।१४।१५॥

े ठ कमका तो साि वक अथात ् सख


ु , ान और वैरा या द नमल फल कहा है ; राजस
कमका फल दःु ख एवं तामस कमका फल अ ान कहा है ।

कमणः सकु ृ त याहुः साि वकं नमलं फलम ् ।


रजस तु फलं दःु खम ानं तमसः फलम ् ॥१३।१४।१६॥

स वगण
ु से ान उ प न होता है और रजोगण
ु से न स दे ह लोभ तथा तमोगण
ु से माद
और मोह उ प न होते ह और अ ान भी होता है ।

स वा स जायते ानं रजसो लोभ एव च ।


मादमोहौ तमसो भवतोऽ ानमेव च ॥१४।१४।१७॥

स वगण ु म ि थत पु ष वगा द उ चको जाते ह, रजोगण


ु म ि थत राजस पु ष म यम ह
रहते ह और तमोगणु के काय प न ा, माद और आल या दम ि थत तामस पु ष
अधोग तको ा त होते ह।

ऊ व ग छि त स व था म ये त ठि त राजसाः ।
जघ यगणु व ृ था अधो ग छि त तामसाः ॥१५।१४।१८॥

यह पु ष शर रक उ प के कारण प इन तीन गण ु को उ लंघन करके ज म, म ृ य,ु


व ृ धाव था और सब कारके दःु ख से मु त हुआ परमान दको ा त होता है ।

गण
ु ानेतानती य ी दे ह दे हसमु भवान ् ।
ज मम ृ यजु रादःु खै वमु तोऽमत
ृ म नत
ु े ॥१६।१४।२०॥

अजन
ु उवाच

अजनु बोले― इन तीन गणु से अतीत पु ष कन- कन ल ण से यु त होता है और कस


कारके आचरण वाला होता है ; तथा हे भो! मनु य कस उपायसे इन तीन गण
ु से अतीत
होता है ?

कै ल गै ी गणु ानेतानतीतो भव त भो ।
कमाचारः कथं चैतां ी गण
ु ान तवतते ॥१७।१४।२१॥
ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― हे अजन!


ु जो पु ष स वगणु के काय प काशको और रजोगण ु के
काय प व ृ को तथा तमोगण ु के काय प मोहको भी न तो व ृ होनेपर उनसे वेष
करता है और न नव ृ होनेपर उनक आकां ा करता है ।

काशं च व ृ ं च मोहमेव च पा डव ।
न वेि ट स व ृ ा न न नव ृ ा न का त ॥१८।१४।२२॥

जो सा ीके स श ि थत हुआ गण ु के वारा वच लत नह ं कया जा सकता और गण


ु ह
गण
ु म बरतते ह― ऐसा समझता हुआ जो सि चदान दघन परमा माम एक भावसे ि थत
रहता है एवं उस ि थ तसे कभी वच लत नह ं होता।

उदासीनवदासीनो गणु य
ै न वचा यते ।
गण
ु ा वत त इ येव योऽव त ठ त ने गते ॥१९।१४।२३॥

जो नर तर आ मभावम ि थत, दःु ख-सख ु को समान समझनेवाला, म ट , प थर और


वणम समान भाववाला, ानी, य तथा अ यको एक-सा माननेवाला और अपनी
न दा- तु तम भी समान भाववाला है ।

समदःु खसख
ु ः व थः समलो टा मका चनः ।
तु य या यो धीर तु य न दा मसं तु तः ॥२०।१४।२४॥

जो मान और अपमानम सम है , म और वैर के प म भी सम है एवं स पण


ू आर भ म
कतापनके अ भमानसे र हत है , वह पु ष गण
ु ातीत कहा जाता है ।

मानापमानयो तु य तु यो म ा रप योः ।
सवार भप र यागी गण
ु ातीतः स उ यते ॥२१।१४।२५॥

॥इ त ीम भगव गीतायां प चदशोऽ यायः॥

अथ षोडशोऽ यायः
व ानयोगः
दै व-आसरु भाव- ववेक

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― भयका सवथा अभाव, अ तःकरणक पण


ू नमलता, त व ानके लये
यानयोगम नर तर ढ़ ि थ त और साि वक दान, इि य का दमन, भगवान ्, दे वता
और गु जन क पज ू ा तथा अि नहो आ द उ म कम का आचरण एवं वेद-शा का
पठन-पाठन तथा भगवान ् के नाम और गण
ु का क तन, वधमपालनके लये क टसहन
और शर र तथा इि य के स हत अ तःकरणक सरलता।

अभयं स वसंशु ध ानयोग यवि थ तः ।


दानं दम च य च वा याय तप आजवम ् ॥१।१६।१॥

मन, वाणी और शर रसे कसी कार भी कसीको क ट न दे ना, यथाथ और य भाषण,


अपना अपकार करनेवालेपर भी ोधका न होना, कम म कतापनके अ भमानका याग,
अ तःकरणक उपर त अथात ् च क च चलताका अभाव, कसीक भी न दा द न
करना, सब भत
ू ा णय म हे तरु हत दया, इि य का वषय के साथ संयोग होनेपर भी
उनम आसि तका न होना, कोमलता, लोक और शा से व ध आचरणम ल जा और
यथ चे टाओं का अभाव।

अ हंसा स यम ोध यागः शाि तरपैशन ु म्।


दया भतू े वलोलु वं मादवं रचापलम ् ॥२।१६।२॥

तेज, मा, धैय, बाहरक शु ध एवं कसीम भी श भु ावका न होना और अपनेम


पू यताके अ भमानका अभाव― ये सब तो हे अजन!
ु दै वी स पदाको लेकर उ प न हुए
पु षके ल ण ह।

तेजः मा ध ृ तः शौचम ोहो ना तमा नता ।


भवि त स पदं दै वीम भजात य भारत ॥३।१६।३॥

हे पाथ! द भ, घम ड और अ भमान तथा ोध, कठोरता और अ ान भी― ये सब आसरु


स पदाको लेकर उ प न हुए पु षके ल ण ह।

द भो दप ऽ भमान च ोधः पा यमेव च ।


अ ानं चा भजात य पाथ स पदमासरु म ् ॥४।१६।४॥

दै वी स पदा मिु तके लये और आसरु स पदा बाँधनेके लये मानी गयी है । इस लये हे
अजन! ु तू शोक मत कर, य क तू दै वी स पदाको लेकर उ प न हुआ है ।

दै वी स प वमो ाय नब धायासरु मता ।


मा शच ु ः स पदं दै वीम भजातोऽ स पा डव ॥५।१६।५॥
हे अजन!
ु इस लोकम भत ू क सिृ ट यानी मनु यसमद ु ाय दो ह कारका है , एक तो दै वी
कृ तवाला और दस
ू रा आसरु कृ तवाला। उनमसे दै वी कृ तवाला तो व तारपव ू क कहा
गया, अब तू आसरु कृ तवाले मनु यसमद ु ायको भी व तारपवू क मझ
ु से सन ु ।

वौ भत
ू सग लोकेऽि म दै व आसरु एव च ।
दै वो व तरशः ो त आसरु ं पाथ मे शण
ृ ु ॥६।१६।६॥

आसरु वभाववाले मनु य व ृ और नव ृ ― इन दोन को ह नह ं जानते। इस लये


उनम न तो बाहर-भीतरक शु ध है , न े ठ आचरण है और न स यभाषण ह है ।

व ृ ं च नव ृ ं च जना न वदरु ासरु ाः ।


न शौचं ना प चाचारो न स यं तेषु व यते ॥७।१६।७॥

वे आसरु कृ तवाले मनु य कहा करते ह क जगत ् आ यर हत, सवथा अस य और


बना ई वरके, अपने-आप केवल ी-पु षके संयोगसे उ प न है , अतएव केवल काम ह
इसका कारण है । इसके सवा और या है ?

अस यम त ठं ते जगदाहुरनी वरम ् ।
अपर परस भत
ू ं कम य कामहै तकु म ् ॥८।१६।८॥

इस म या ानको अवल बन करके― िजनका वभाव न ट हो गया है तथा िजनक


बु ध म द है , वे सबका अपकार करनेवाले ु रकम मनु य केवल जगतक
् े नाशके लये ह
समथ होते ह।

एतां ि टमव ट य न टा मानोऽ पबु धयः ।


भव यु कमाणः याय जगतोऽ हताः ॥९।१६।९॥

वे द भ, मान और मदसे यु त मनु य कसी कार भी पण


ू न होनेवाल कामनाओंका
आ य लेकर, अ ानसे म या स धा त को हण करके ट आचरण को धारण करके
संसारम वचरते ह।

काममा य द ु परू ं द भमानमदाि वताः ।


मोहा गह
ृ वास ाहा वत तेऽशु च ताः ॥१०।१६।१०॥

तथा वे म ृ यप
ु य त रहनेवाल असं य च ताओंका आ य लेनेवाले, वषयभोग के
भोगनेम त पर रहनेवाले और ‘इतना ह सखु है ’ इस कार माननेवाले होते ह।

च तामप रमेयां च लया तामप


ु ा ताः ।
कामोपभोगपरमा एताव द त नि चताः ॥११।१६।११॥
वे आशाक सैकड़ फाँ सय से बँधे हुए मनु य काम- ोधके परायण होकर वषय भोग के
लये अ यायपव
ू क धना द पदाथ का सं ह करनेक चे टा करते ह।

आशापाशशतैब धाः काम ोधपरायणाः ।


ईह ते कामभोगाथम यायेनाथस चयान ् ॥१२।१६।१२॥

वे सोचा करते ह क मने आज यह ा त कर लया है और अब इस मनोरथको ा त कर


लँ ग
ू ा। मेरे पास यह इतना धन है और फर भी यह हो जायगा।

इदम य मया ल ध ममं ा ये मनोरथम ् ।


इदम तीदम प मे भ व य त पन
ु धनम ् ॥१३।१६।१३॥

वह श ु मेरे वारा मारा गया और उन दस


ू रे श ओ
ु क
ं ो भी म मार डालँ ग
ू ा। म ई वर हूँ,
ऐ वयको भोगनेवाला हूँ। मै सब स धय से यु त हूँ और बलवान ् तथा सख ु ी हूँ।

असौ मया हतः श हु न ये चापरान प ।


ई वरोऽहमहं भोगी स धोऽहं बलवा सख ु ी ॥१४।१६।१४॥

म बड़ा धनी और बड़े कुटु बवाला हूँ। मेरे समान दस


ू रा कौन है ? म य क ँ गा, दान दँ ग
ू ा
और आमोद- मोद क ँ गा। इस कार अ ानसे मो हत रहनेवाला तथा अनेक कारसे
मत च वाले मोह प जालसे समावत ृ और वषयभोग म अ य त आस त आसरु लोग
महान ् अप व नरकम गरते ह।

आ योऽ भजनवानि म कोऽ योऽि त स शो मया ।


य ये दा या म मो द य इ य ान वमो हताः ॥
अनेक च व ा ता मोहजालसमावत ृ ाः ।
स ताः कामभोगेषु पति त नरकेऽशच ु ौ ॥१५-१६।१६।१५-१६॥

वे अपने-आपको ह े ठ माननेवाले घम डी पु ष धन और मानके मदसे यु त होकर


केवल नाममा के य वारा पाख डसे शा व धर हत यजन करते ह।

आ मस भा वताः त धा धनमानमदाि वताः ।


यज ते नामय ै ते द भेना व धपव
ू कम ् ॥१७।१६।१७॥

काम, ोध तथा लोभ― ये तीन कारके नरकके वार आ माका नाश करनेवाले अथात ्
उसको अधोग तम ले जानेवाले ह। अतएव इन तीन को याग दे ना चा हये।

वधं नरक येदं वारं नाशनमा मनः ।


कामः ोध तथा लोभ त मादे त यं यजेत ् ॥१८।१६।२१॥
हे अजन!
ु इन तीन नरकके वार से मु त पु ष अपने क याणका आचरण करता है , इससे
वह परमग तको जाता है ।

एतै वमु तः कौ तेय तमो वारै ि भनरः ।


आचर या मनः ेय ततो या त परां ग तम ् ॥१९।१६।२२॥

जो पु ष शा व धको यागकर अपनी इ छासे मनमाना आचरण करता है , वह न


स धको ा त होता है , न परमग तको और न सख
ु को ह ।

यः शा व धमु स ृ य वतते कामकारतः ।


न स स धमवा नो त न सख ु ं न परां ग तम ् ॥२०।१६।२३॥

इससे तेरे लये इस कत य और अकत यक यव थाम शा ह माण है । ऐसा जानकर


तू शा व धसे नयत कम ह करनेयो य है ।

त मा छा ं माणं ते कायाकाय यवि थतौ ।


ा वा शा वधानो तं कम कतु महाह स ॥२१।१६।२४॥

॥इ त ीम भगव गीतायां षोडशोऽ यायः॥

अथ स तदशोऽ यायः
व ानयोगः
गण
ु न ठा

अजन
ु उवाच

अजन
ु बोले― हे कृ ण! जो मनु य शा व धको यागकर धासे यु त हुए उपासना प
कम करते ह, उनक ि थ त फर कौन-सी है ? साि वक है अथवा राजसी कंवा तामसी?

ये शा व धमु स ृ य यज ते धयाि वताः ।


तेषां न ठा तु का कृ ण स वमाहो रज तमः ॥१।१७।१॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― मनु य क वह शा ीय सं कार से र हत केवल वभावसे उ प न


धा साि वक और राजसी तथा तामसी― ऐसे तीन कारक ह होती है । उसको तू
मझ
ु से सन
ु ।

वधा भव त धा दे हनां सा वभावजा ।


साि वक राजसी चैव तामसी चे त तां शण
ृ ु ॥२।१७।२॥

हे भारत! सभी मनु य क धा उनके अ तः-करणके अनु प होती है । यह पु ष


धामय है , इस लये जो पु ष जैसी धावाला है , वह वयं भी वह है ।

स वानु पा सव य धा भव त भारत ।
धामयोऽयं पु षो यो य धः स एव सः ॥३।१७।३॥

साि वक पु ष व वान को पज
ू ते ह, राजस पु ष बलसे ति ठत और पापीलोग को तथा
अ य जो तामस मनु य ह, वे मत
ृ और अ या द भत ू पदाथ को पज
ू ते ह।

यज ते साि वका दे वा य र ां स राजसाः ।


ेता भत
ू गणां चा ये यज ते तामसा जनाः ॥४।१७।४॥

भोजन भी सबको अपनी-अपनी कृ तके अनस ु ार तीन कारका य होता है । और वैसे ह


य , तप और दान भी तीन-तीन कारके होते ह। उनके इस पथ
ृ क् -पथ
ृ क् भेदको तू मझ
ु से
सन
ु ।

आहार व प सव य वधो भव त यः ।
य तप तथा दानं तेषां भेद ममं शण
ृ ु ॥५।१७।७॥

आय,ु बु ध, बल, आरो य, सखु और ी तको बढ़ानेवाले, रसयु त, चकने और ि थर


रहनेवाले तथा वभावसे ह मनको य― ऐसे आहार अथात ् भोजन करनेके पदाथ
साि वक पु षको य होते ह।

आयःु स वबलारो यसख ु ी त ववधनाः ।


र याः ि न धाः ि थरा या आहाराः साि वक याः ॥६।१७।८॥

कड़वे, ख टे , लवणयु त, बहुत गरम, तीखे, खे, दाहकारक और दःु ख, च ता तथा


रोग को उ प न करनेवाले आहार अथात ् भोजन करनेके पदाथ राजस पु षको य होते
ह।

क व ललवणा यु णती ण वदा हनः ।


आहारा राजस ये टा दःु खशोकामय दाः ॥७।१७।९॥

जो भोजन अधपका, रसर हत, दग


ु धयु त, बासी और उि छ ट है तथा जो अप व भी है ,
वह भोजन तामस पु षको य होता है ।

यातयामं गतरसं पू त पयु षतं च यत ् ।


उि छ टम प चामे यं भोजनं तामस यम ् ॥८।१७।१०॥

जो शा व धसे नयत, य करना ह कत य है ― इस कार मनको समाधान करके,


फल न चाहनेवाले पु ष वारा कया जाता है , वह साि वक है ।

अफलाका भय ो व ध टो य इ यते ।
य ट यमेवे त मनः समाधाय स साि वकः ॥९।१७।११॥

पर तु हे अजन!ु केवल द भाचरणके लये अथवा फलको भी ि टम रखकर जो य कया


जाता है , उस य को तू राजस जान।

अ भस धाय तु फलं द भाथम प चैव यत ् ।


इ यते भरत े ठ तं य ं व ध राजसम ् ॥१०।१७।१२॥

शा व धसे ह न, अ नदानसे र हत, बना म के, बना द णाके और बना धाके


कये जानेवाले य को तामस य कहते ह।

व धह नमस ृ टा नं म ह नमद णम ् ।
धा वर हतं य ं तामसं प रच ते ॥११।१७।१३॥

दे वता, ा मण, गु और ानीजन का पज ू न, प व ता, सरलता, मचय और अ हंसा―


यह शर र-स ब धी तप कहा जाता है ।

दे व वजगु ा पज ू नं शौचमाजवम ् ।
मचयम हंसा च शार रं तप उ यते ॥१२।१७।१४॥

जो उ वेग न करनेवाला, य और हतकारक एवं यथाथ भाषण है तथा जो वेद-शा के


पठनका एवं परमे वरके नाम-जपका अ यास है ― वह वाणी-स ब धी तप कहा जाता है ।

अनु वेगकरं वा यं स यं य हतं च यत ् ।


वा याया यसनं चैव वा मयं तप उ यते ॥१३।१७।१५॥

मनक स नता, शा तभाव, भगवि च तन करनेका वभाव, मनका न ह और


अ तःकरणके भाव क भल भाँ त प व ता― इस कार यह मनस ब धी तप कहा जाता
है ।

मनः सादः सौ य वं मौनमा म व न हः ।


भावसंशु ध र येत पो मानसमु यते ॥१४।१७।१६॥
फलको न चाहनेवाले योगी पु ष वारा परम धासे कये हुए उस पव
ू त तीन कारके
तपको साि वक कहते ह।

धया परया त तं तप ति वधं नरै ः ।


अफलाका भयु तैः साि वकं प रच ते ॥१५।१७।१७॥

जो तप स कार, मान और पज ू ाके लये तथा अ य कसी वाथके लये भी वभावसे या


पाख डसे कया जाता है , वह अ नि चत एवं णक फलवाला तप यहाँ राजस कहा गया
है ।

स कारमानपजू ाथ तपो द भेन चैव यत ् ।


यते त दह ो तं राजसं चलम व ु म ् ॥१६।१७।१८॥

जो तप मढ़
ू तापव
ू क हठसे, मन, वाणी और शर रक पीड़ाके स हत अथवा दस
ू रे का अ न ट
करनेके लये कया जाता है ― वह तप तामस कहा गया है ।

मढ
ू ाहे णा मनो य पीडया यते तपः ।
पर यो सादनाथ वा त ामसमद
ु ा तम ् ॥१७।१७।१९॥

दान दे ना ह कत य है ― ऐसे भावसे जो दान दे श तथा काल और पा के ा त होनेपर


उपकार न करनेवालेके त दया जाता है , वह दान साि वक कहा गया है ।

दात य म त य दानं द यतेऽनप ु का रणे ।


दे शे काले च पा े च त दानं साि वकं मत ृ म ् ॥१८।१७।२०॥

क तु जो दान लेशपव ू क तथा यप ु कारके योजनसे अथवा फलको ि टम रखकर


फर दया जाता है , वह दान राजस कहा गया है ।

य ु यप ु काराथ फलमु द य वा पन ु ः।
द यते च प रि ल टं त दानं राजसं मत ृ म ् ॥१९।१७।२१॥

जो दान बना स कारके अथवा तर कारपव ू क अयो य दे श-कालम और कुपा के त


दया जाता है , वह दान तामस कहा गया है ।

अदे शकाले य दानमपा े य च द यते ।


अस कृतमव ातं त ामसमद ु ा तम ् ॥२०।१७।२२॥

ओम,् तत,् सत―


् ऐसे यह तीन कारका सि चदान दघन मका नाम कहा है ; उसीसे
सिृ टके आ दकालम वेदवे ा और वेद तथा य ा द रचे गये।
ओं त स द त नदशो मणि वधः मत ृ ः।
ा मणा तेन वेदा च य ा च व हताः परु ा ॥२१।१७।२३॥

इस लये वेद-म का उ चारण करनेवाले े ठ पु ष क शा व धसे नयत य , दान


और तप प याएँ सदा ‘ओ३म ्’ इस परमा माके नामको उ चारण करके ह आर भ होती
ह।

त मादो म यद
ु ा य य दानतपः याः ।
वत ते वधानो ताः सततं मवा दनाम ् ॥२२।१७।२४॥

तत ् अथात ् ‘तत’् नामसे कहे जानेवाले परमा माका ह यह सब है ― इस भावसे फलको न


चाहकर नाना कारक य , तप प याएँ तथा दान प याएँ क याणक इ छावाले
पु ष वारा क जाती ह।

त द यन भस धाय फलं य तपः याः ।


दान या च व वधाः य ते मो का भः ॥२३।१७।२५॥

् इस कार यह परमा माका नाम स यभावम और े ठभावम योग कया जाता


‘सत’―
है तथा हे पाथ! उ म कमम भी ‘सत’् श दका योग कया जाता है ।

स भावे साधभ
ु ावे च स द येत यु यते ।
श ते कम ण तथा स छ दः पाथ यु यते ॥२४।१७।२६॥

तथा य , तप और दानम जो ि थ त है , वह भी ‘सत’् इस कार कह जाती है और उस


परमा माके लये कया हुआ कम न चयपव ू क सत―् ऐसे कहा जाता है ।

य े तप स दाने च ि थ तः स द त चो यते ।
कम चैव तदथ यं स द येवा भधीयते ॥२५।१७।२७॥

हे अजन!
ु बना धाके कया हुआ हवन, दया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ
भी कया हुआ शभ
ु कम है ― वह सम त ‘असत’― ् इस कार कहा जाता है ; इस लये वह
न तो इस लोकम लाभदायक है और न मरनेके बाद ह ।

अ धया हुतं द ं तप त तं कृतं च यत ् ।


अस द यु यते पाथ न च त े य नो इह ॥२६।१७।२८॥

॥इ त ीम भगव गीतायां स तदशोऽ यायः॥

अथा टादशोऽ यायः


व ानयोगः
गण
ु न ठा

अजन
ु उवाच

अजनु बोले― हे महाबाहो! हे षकेश! हे के श नषद


ू न! म सं यास और यागके त वको
पथ
ृ क् -पथ
ृ क् जानना चाहता हूँ।

स यास य महाबाहो त व म छा म वे दतम


ु ्।
याग य च षीकेश पथ
ृ के श नषद
ू न ॥१।१८।१॥

ीभगवानव
ु ाच

ीभगवान ् बोले― कतने ह पि डतजन तो का य कम के यागको सं यास समझते ह


तथा दस
ू रे वचारकुशल पु ष सब कम के फलके यागको याग कहते ह।

का यानां कमणां यासं स यासं कवयो वदःु ।


सवकमफल यागं ाहु यागं वच णाः ॥२।१८।२॥

कई एक व वान ् ऐसा कहते ह क कममा दोषयु त ह, इस लये यागनेके यो य ह और


दस
ू रे व वान ् यह कहते ह क य , दान और तप प कम यागनेयो य नह ं ह।

या यं दोषव द येके कम ाहुमनी षणः ।


य दानतपःकम न या य म त चापरे ॥३।१८।३॥

हे पु ष े ठ अजनु ! सं यास और याग, इन दोन मसे पहले यागके वषयम तू मेरा


न चय सन ु । य क याग साि वक, राजस और तामस भेदसे तीन कारका कहा गया
है ।

न चयं शण
ृ ु मे त यागे भरतस म ।
यागो ह पु ष या वधः स क ततः ॥४।१८।४॥

य , दान और तप प कम याग करनेके यो य नह ं है , बि क वह तो अव य कत य है ;


य क य , दान और तप― ये तीन ह कम बु धमान ् पु ष को प व करनेवाले ह।

य दानतपःकम न या यं कायमेव तत ् ।
य ो दानं तप चैव पावना न मनी षणाम ् ॥५।१८।५॥
इस लये हे पाथ! इन य , दान और तप प कम को तथा और भी स पण
ू कत यकम को
आसि त और फल का याग करके अव य करना चा हये, यह मेरा न चय कया हुआ
उ म मत है ।

एता य प तु कमा ण स गं य वा फला न च ।


कत यानी त मे पाथ नि चतं मतमु मम ् ॥६।१८।६॥

( न ष ध और का य कम का तो व पसे याग करना उ चत ह है ) पर तु नयत कमका


व पसे याग करना उ चत नह ं है । इस लये मोहके कारण उसका याग कर दे ना तामस
याग कहा गया है ।

नयत य तु स यासः कमणो नोपप यते ।


मोहा य प र याग तामसः प रक ततः ॥७।१८।७॥

जो कुछ कम है वह सब दःु ख प ह है ― ऐसा समझकर य द कोई शार रक लेशके भयसे


कत यकम का याग कर दे , तो वह ऐसा राजस याग करके यागके फलको कसी कार
भी नह ं पाता।

दःु ख म येव य कम काय लेशभया यजेत ् ।


स कृ वा राजसं यागं नैव यागफलं लभेत ् ॥८।१८।८॥

हे अजन!
ु जो शा व हत कम करना कत य है ― इसी भावसे आसि त और फलका
याग करके कया जाता है ― वह साि वक याग माना गया है ।

काय म येव य कम नयतं यतेऽजन ु ।


स गं य वा फलं चैव स यागः साि वको मतः ॥९।१८।९॥

जो मनु य अकुशल कमसे तो वेष नह ं करता और कुशल कमम आस त नह ं होता―


वह शु ध स वगणु से यु त पु ष संशयर हत, बु धमान ् और स चा यागी है ।

न वे यकुशलं कम कुशले नानष ु जते ।


यागी स वसमा व टो मेधावी छ नसंशयः ॥१०।१८।१०॥

य क शर रधार कसी भी मनु यके वारा स पण ू तासे सब कम का याग कया जाना


श य नह ं है ; इस लये जो कमफलका यागी है , वह यागी है ― यह कहा जाता है ।

न ह दे हभत
ृ ा श यं य तंु कमा यशेषतः ।
य तु कमफल यागी स यागी य भधीयते ॥११।१८।११॥
कमफलका याग न करनेवाले मनु य के कम का तो अ छा, बरु ा और मला हुआ― ऐसे
तीन कारका फल मरनेके प चात ् अव य होता है , क तु कमफलका याग कर दे नेवाले
मनु य के कम का फल कसी कालम भी नह ं होता।

अ न ट म टं म ं च वधं कमणः फलम ् ।


भव य या गनां े य न तु स या सनां व चत ् ॥१२।१८।१२॥

हे महाबाहो! स पण
ू कम क स धके ये पाँच हे तु कम का अ त करनेके लये उपाय
बतलानेवाले सा यशा म कहे गये ह, उनको तू मझ ु से भल भाँ त जान।

प चैता न महाबाहो कारणा न नबोध मे ।


सा ये कृता ते ो ता न स धये सवकमणाम ् ॥१३।१८।१३॥

इस वषयम अथात ् कम क स धम अ ध ठान और कता तथा भ न- भ न कारके


करण एवं नाना कारक अलग-अलग चे टाएँ और वैसे ह पाँचवाँ हे तु दै व है ।

अ ध ठानं तथा कता करणं च पथ ृ ि वधम ् ।


व वधा च पथृ चे टा दै वं चैवा प चमम ् ॥१४।१८।१४॥

मनु य मन, वाणी और शर रसे शा ानक


ु ू ल अथवा वपर त जो कुछ भी कम करता है ―
उसके ये पाँच कारण ह।

शर रवा मनो भय कम ारभते नरः ।


या यं वा वपर तं वा प चैते त य हे तवः ॥१५।१८।१५॥

पर तु ऐसा होनेपर भी जो मनु य अशु ध बु ध होनेके कारण उस वषयम यानी कम के


होनेम केवल शु ध व प आ माको कता समझता है , वह मल न बु धवाला अ ानी
यथाथ नह ं समझता।

त व
ै ं स त कतारमा मानं केवलं तु यः ।
प य यकृतबु ध वा न स प य त दम ु तः ॥१६।१८।१६॥

िजस पु षके अ तःकरणम ‘म कता हूँ’ ऐसा भाव नह ं है तथा िजसक बु ध सांसा रक
पदाथ म और कम म लपायमान नह ं होती, वह पु ष इन सब लोक को मारकरभी
वा तवम न तो मरता है और न पापसे बँधता है ।

य य नाह कृतो भावो बु धय य न ल यते ।


ह वाऽ प स इमाँ लोका न हि त न नब यते ॥१७।१८।१७॥
ाता, ान और ेय― ये तीन कारक कम- ेरणा ह और कता, करण तथा या― ये
तीन कारका कम-सं ह है ।

ानं ेयं प र ाता वधा कमचोदना ।


करणं कम कत त वधः कमस हः ॥१८।१८।१८॥

गण
ु क सं या करनेवाले शा म ान और कम तथा कता गण ु के भेदसे तीन-तीन
कारके ह कहे गये ह; उनको भी तु मझ
ु से भल भाँ त सन
ु ।

ानं कम च कता च धैव गणु भेदतः ।


ो यते गणु स याने यथाव छृणु ता य प ॥१९।१८।१९॥

िजस ानसे मनु य पथृ क् -पथ ृ क् सब भत


ू म एक अ वनाशी परमा मभावको वभागर हत
समभावसे ि थत दे खता है , उस ानको तू साि वक जान।

सवभतू ष
े ु येनक
ै ं भावम ययमी ते ।
अ वभ तं वभ तेषु त ानं व ध साि वकम ् ॥२०।१८।२०॥

क तु जो ान अथात ् िजस ानके वारा मनु य स पण ू भत


ू म भ न- भ न कारके
नाना भाव को अलग-अलग जानता है , उस ानको तू राजस जान।

पथृ वेन तु य ानं नानाभावा पथ ृ ि वधान ् ।


वे सवषु भत ू ष
े ु त ानं व ध राजसम ् ॥२१।१८।२१॥

पर तु जो ान एक काय प शर रम ह स पण ू के स श आस त है तथा जो बना


यिु तवाला, ताि वक अथसे र हत और तु छ है ― वह तामस कहा गया है ।

य ु कृ नवदे कि म काय स तमहै तक ु म्।


अत वाथवद पंच त ामसमद ु ा तम ् ॥२२।१८।२२॥

जो कम शा व धसे नयत कया हुआ और कतापनके अ भमानसे र हत हो तथा फल न


चाहनेवाले पु ष वारा बना राग- वेषके कया गया हो― वह साि वक कहा जाता है ।

नयतं स गर हतमराग वेषतः कृतम ् ।


अफल े सन
ु ा कम य साि वकमु यते ॥२३।१८।२३॥

पर तु जो कम बहुत प र मसे यु त होता है तथा भोग को चाहनेवाले पु ष वारा या


अहं कारयु त पु ष वारा कया जाता है , वह कम राजस कहा गया है ।

य ु कामे सन
ु ा कम साह कारे ण वा पन
ु ः।
यते बहुलायासं त ाजसमद
ु ा तम ् ॥२४।१८।२४॥

जो कम प रणाम, हा न, हंसा और साम यको न वचारकर केवल अ ानसे आर भ कया


जाता है , वह तामस कहा जाता है ।

अनबु धं यं हंसामनपे य च पौ षम ् ।
मोहादार यते कम य ामसमु यते ॥२५।१८।२५॥

जो कता संगर हत, अहं कारके वचन न बोलनेवाला, धैय और उ साहसे यु त तथा कायके
स ध होने और न होनेम हष-शोका द वकार से र हत है ― वह साि वक कहा जाता है ।

मु तस गोऽनहं वाद ध ृ यु साहसमि वतः ।


स य स यो न वकारः कता साि वक उ यते ॥२६।१८।२६॥

जो कता आसि तसे यु त, कम के फलको चाहनेवाला और लोभी है तथा दस


ू र को क ट
दे नेके वभाववाला, अशु धाचार और हष-शोकसे ल त है ― वह राजस कहा गया है ।

रागी कमफल े सल
ु ु धो हंसा मकोऽशु चः ।
हषशोकाि वतः कता राजसः प रक ततः ॥२७।१८।२७॥

जो कता अयु त, श ासे र हत घमंडी, धत


ू और दसू र क जी वकाका नाश करनेवाला
तथा शोक करनेवाला, आलसी और द घसू ी है ― वह तामस कहा जाता है ।

अयु तः ाकृतः त धः शठो नै कृ तकोऽलसः ।


वषाद द घसू ी च कता तामस उ यते ॥२८।१८।२८॥

हे धनंजय! अब तू बु धका और ध ृ तका भी गण ु के अनस


ु ार तीन कारका भेद मेरे वारा
स पण ू तासे वभागपवू क कहा जानेवाला सन
ु ।

बु धेभदं धत
ृ े चैव गण ु ति वधं शण ृ ु।
ो यमानमशेषण े पथृ वे न धन जय ॥२९।१८।२९॥

हे पाथ! जो बु ध व ृ माग और नव ृ -मागको, कत य और अकत यको, भय और


अभयको तथा ब धन और मो को यथाथ जानती है ― वह बु ध साि वक है ।

व ृ ं च नव ृ ं च कायाकाय भयाभये ।
ब धं मो ं च या वे बु धः सा पाथ साि वक ॥३०।१८।३०॥

हे पाथ! मनु य िजस बु धके वारा धम और अधमको तथा कत य और अकत यको भी


यथाथ नह ं जानता, वह बु ध राजसी है ।
यया धममधम च काय चाकायमेव च ।
अयथाव जाना त बु धः सा पाथ राजसी ॥३१।१८।३१॥

हे अजन!
ु जो तमोगण
ु से घर हुई बु ध अधमको भी ‘यह धम है ’ ऐसा मान लेती है तथा
इसी कार अ य स पणू पदाथ को भी वपर त मान लेती है , वह बु ध तामसी है ।

अधम धम म त या म यते तमसावत ृ ा।


सवाथाि वपर तां च बु धः सा पाथ तामसी ॥३२।१८।३२॥

हे पाथ! िजस अ य भचा रणी धारण-शि तसे मनु य यानयोगके वारा मन, ाण और
इि य क याओंको धारण करता है , वह ध ृ त साि वक है ।

ध ृ या यया धारयते मनः ाणेि य याः ।


योगेना य भचा र या ध ृ तः सा पाथ साि वक ॥३३।१८।३३॥

परं तु हे पथ
ृ ापु अजन!
ु फलक इ छावाला मनु य िजस धारणशि तके वारा अ य त
आसि तसे धम, अथ और काम को धारण करता है , वह धारणशि त राजसी है ।

यया तु धमकामाथा ध ृ या धारयतेऽजन


ु ।
स गेन फलाका ी ध ृ तः सा पाथ राजसी ॥३४। १८।३४॥

हे पाथ! द ु ट बु धवाला मनु य िजस धारण-शि तके वारा न ा, भय, च ता और


द:ु खको तथा उ म ताको भी नह ं छोड़ता अथात ् धारण कये रहता है ― वह धारणशि त
तामसी है ।

यया व नं भयं शोकं वषादं मदमेव च ।


न वमु च त दम
ु धा ध ृ तः सा पाथ तामसी ॥३५।१८।३५॥

हे भरत े ठ! अब तीन कारके सख ु को भी तू मझ


ु से सन
ु । िजस सख
ु म साधक मनु य
यम- नयमा दके अ याससे रमण करता है और िजससे दःु ख के अ तको ा त हो जाता
है ― जो ऐसा सखु है , वह आर भकालम य य प वषके तु य तीत होता है , परं तु
प रणामम अमत ृ के तु य है ; इस लये वह परमा म वषयक बु धके सादसे उ प न
होनेवाला सख
ु साि वक कहा गया है ।

सख
ु ं ि वदानीं वधं शणृ ु मे भरतषभ ।
अ यासा मते य दःु खा तं च नग छ त ॥
य द े वष मव प रणामेऽमत ृ ोपमम ् ।
त सख ु ं साि वकं ो तमा मबु ध सादजम ् ॥३६-३७।१८।३६-३७॥
जो सख
ु वषय और इि य के संयोगसे होता है , वह पहले― भोगकालम अमत ृ के तु य
तीत होनेपर भी प रणामम वषके तु य है ; इस लये वह सख
ु राजस कहा गया है ।

वषयेि यसंयोगा य द ेऽमत ृ ोपमम ् ।


प रणामे वष मव त सख
ु ं राजसं मतृ म ् ॥३८।१८।३८॥

जो सख
ु भोगकालम तथा प रणामम भी आ माको मो हत करनेवाला है ― वह न ा,
आल य और मादसे उ प न सख ु तामस कहा गया है ।

यद े चानब
ु धे च सख
ु ं मोहनमा मनः ।
न ाल य मादो थं त ामसमद ु ा तम ् ॥३९।१८।३९॥

प ृ वीम या द य-लोकम अथवा दे वताओंम तथा इनके सवा और कह ं भी ऐसा कोई भी


स व नह ं है जो कृ तसे उ प न इन तीन गण
ु से र हत हो।

न तदि त प ृ थ यां वा द व दे वेषु वा पन


ु ः।
स वं कृ तजैमु तं यदे भः याि भगणै ु ः ॥४०।१८।४०॥

हे परं तप! ा मण, य और वै य के तथा शू के कम वभावसे उ प न गण


ु वारा
वभ त कये गये ह।

ा मण य वशां शू ाणां च पर तप ।
कमा ण वभ ता न वभाव भवैगणै ु ः ॥४१।१८।४१॥

अ तःकरण का न ह करना; इि य का दमन करना; धमपालनके लये क ट सहना;


बाहर-भीतरसे शु ध रहना; शि त-स प न होकर भी सहनशील रहना; मन, इि य और
शर रको सरल रखना; वेद, शा , ई वर और परलोक आ दम धा रखना; वेद-शा का
अ ययन-अ यापन करना और परमा माके त वका अनभ ु व करना― ये सब-के-सब ह
ा मणके वाभा वक कम ह।

शमो दम तपः शौचं ाि तराजवमेव च ।


ानं व ानमाि त यं मकम वभावजम ् ॥४२।१८।४२॥

शरू वीरता, तेज, धैय, चतरु ता और यु धम न भागना, दान दे ना और वा मभाव― ये


सब-के-सब ह यके वाभा वक कम ह।

शौय तेजो ध ृ तदा यं यु धे चा यपलायनम ् ।


दानमी वरभाव च ा ं कम वभावजम ् ॥४३।१८।४३॥
खेती, गोपालन और य- व य प स य यवहार― ये वै यके वाभा वक कम ह। तथा
सब वण क सेवा करना शू का भी वाभा वक कम है ।

कृ षगौर यवा ण यं वै यकम वभावजम ् ।


प रचया मकं कम शू या प वभावजम ् ॥४४।१८।४४॥

अपने-अपने वाभा वक कम म त परतासे लगा हुआ मनु य भगव ाि त प परम


स धको ा त हो जाता है । अपने वाभा वक कमम लगा हुआ मनु य िजस कारसे कम
करके परम स धको ा त होता है , उस व धको तू सन
ु ।

वे वे कम य भरतः सं स धं लभते नरः ।


वकम नरतः स धं यथा व द त त छृणु ॥४५।१८।४५॥

िजस परमे वरसे स पणू ा णय क उ प हुई है और िजससे यह सम त जगत ् या त


है , उस परमे वरक अपने वाभा वक कम वारा पजू ा करके मनु य परम स धको ा त
हो जाता है ।

यतः व ृ भतानां
ू येन सव मदं ततम ् ।
वकमणा तम य य स धं व द त मानवः ॥४६।१८।४६॥

अ छ कार आचरण कये हुए दसू रे के धमसे गण


ु र हत भी अपना धम े ठ है ; य क
वभावसे नयत कये हुए वधम प कमको करता हुआ मनु य पापको नह ं ा त होता।

ेया वधम वगण ु ः परधमा वनिु ठतात ् ।


वभाव नयतं कम कुव ना नो त कि बषम ् ॥४७।१८।४७॥

अतएव हे कु तीपु ! दोषयु त होनेपर भी सहज कमको नह ं यागना चा हये, य क


धए
ू ँसे अि नक भाँ त सभी कम कसी-न- कसी दोषसे यु त ह।

सहजं कम कौ तेय सदोषम प न यजेत ् ।


सवार भा ह दोषेण धम
ू ेनाि न रवावत
ृ ाः ॥४८।१८।४८॥

सव आसि तर हत बु धवाला, पह ृ ार हत और जीते हुए अ तःकरणवाला पु ष


सां य-योगके वारा उस परम नै क य स धको ा त होता है ।

अस तबु धः सव िजता मा वगत पह ृ ः।


नै क य स धं परमां स यासेना धग छ त ॥४९।१८।४९॥
जो तू अहं कारका आ य लेकर यह मान रहा है क ‘म यु ध नह ं क ँ गा’ तो तेरा यह
न चय म या है ; य क तेरा वभाव तझ ु े जबद ती यु धम लगा दे गा।

यदह कारमा य न यो य इ त म यसे ।


म यैष यवसाय ते कृ त वां नयो य त ॥५०।१८।५९॥

हे कु तीपु ! िजस कमको तू मोहके कारण करना नह ं चाहता, उसको भी अपने पव


ू कृत
वाभा वक कमसे बँधा हुआ परवश होकर करे गा।

वभावजेन कौ तेय नब धः वेन कमणा ।


कतु ने छ स य मोहा क र य यवशोऽ प तत ् ॥५१।१८।६०॥

हे अजन!
ु शर र प य म आ ढ़ हुए स पण ू ा णय को अ तयामी परमे वर अपनी
मायासे उनके कम के अनस
ु ार मण कराता हुआ सब ा णय के दय म ि थत है ।

ई वरः सवभत
ू ानां दे शऽे जन
ु त ठत।
ामय सवभत ू ा न य ा ढा न मायया ॥५२।१८।६१॥

हे भारत! तू सब कारसे उस परमे वरक ह शरणम जा। उस परमा माक कृपासे ह तू


परम शाि तको तथा सनातन परमधामको ा त होगा।

तमेव शरणं ग छ सवभावेन भारत ।


त सादा परां शाि तं थानं ा य स शा वतम ् ॥५३।१८।६२॥

इस कार यह गोपनीयसे भी अ त गोपनीय ान मने तम ु से कह दया। अब तू इस


रह ययु त ानको पण
ू तया भल भाँ त वचारकर, जैसे चाहता है वैसे ह कर।

इ त ते ानमा यातं गु या गु यतरं मया ।


वम ृ यैतदशेषण
े यथे छ स तथा कु ॥५४।१८।६३॥

हे पाथ! या इस (गीताशा )― को तनू े एका च से वण कया? और हे धनंजय! या


तेरा अ ानज नत मोह न ट हो गया?

कि चदे त तं पाथ वयैका ेण चेतसा ।


कि चद ानस मोहः न ट ते धन जय ॥५५।१८।७२॥

अजन
ु उवाच

अजनु बोले― हे अ यतु ! आपक कृपासे मेरा मोह न ट हो गया और मने म ृ त ा त कर


ल है , अब म संशयर हत होकर ि थत हूँ, अतः आपक आ ाका पालन क ँ गा।
न टो मोहः म ृ तल धा व सादा मया यत ु ।
ि थतोऽि म गतस दे हः क र ये वचनं तव ॥५६।१८।७३॥

स जय उवाच

संजय बोले― इस कार मने ीवासद


ु े वके और महा मा अजनक
ु े इस अ भत
ु रह ययु त,
रोमा चकारक संवादको सन
ु ा।

इ यहं वासद
ु े व य पाथ य च महा मनः ।
संवाद ममम ौषम भत ु ं रोमहषणम ् ॥५७।१८।७४॥

ी यासजीक कृपासे मने इस परम गोपनीय योगको अजनक


ु े त कहते हुए वयं
योगे वर भगवान ् ीकृ णसे य सन ु ा।

यास सादा तवानेत गु यमहं परम ् ।


योगं योगे वरा कृ णा सा ा कथयतः वयम ् ॥५८।१८।७५॥

हे राजन ्! जहाँ योगे वर भगवान ् ीकृ ण ह और जहाँ गा डीव-धनष


ु धार अजन
ु ह, वह ंपर
ी, वजय, वभू त और अचल नी त है ― ऐसा मेरा मत है ।

य योगे वरः कृ णो य पाथ धनधु रः ।


त ी वजयो भू त वाु नी तम तमम ॥५९।१८।७८॥

॥इ त ीम भगव गीतायां अथा टादशोऽ यायः॥

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