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काशक—
गीता ेस, गोरखपुर—२७३००५
(गो ब दभवन-कायालय, कोलकाता का सं थान)
फोन : (०५५१) २३३४७२१, २३३१२५०; फै स : (०५५१) २३३६९९७
e-mail : booksales@gitapress.org website : www.gitapress.org
नवम क ध
१-वैव वत मनुके पु राजा सु ु नक कथा
२-पृष आ द मनुके पाँच पु का वंश
३-मह ष यवन और सुक याका च र , राजा शया तका वंश
४-नाभाग और अ बरीषक कथा
५- वासाजीक ःख नवृ
६-इ वाकुके वंशका वणन, मा धाता और सौभ र ऋ षक कथा
७-राजा शंकु और ह र क कथा
८-सगर-च र
९-भगीरथ-च र और गंगावतरण
१०-भगवान् ीरामक लीला का वणन
११-भगवान् ीरामक शेष लीला का वणन
१२-इ वाकुवंशके शेष राजा का वणन
१३-राजा न मके वंशका वणन
१४-च वंशका वणन
१५-ऋचीक, जमद न और परशुरामजीका च र
१६-परशुरामजीके ारा य-संहार और व ा म जीके वंशक कथा
१७- वृ , र ज आ द राजा के वंशका वणन
१८-यया त-च र
१९-यया तका गृह याग
२०-पू के वंश, राजा य त और भरतके च र का वणन
२१-भरतवंशका वणन, राजा र तदे वक कथा
२२-पांचाल, कौरव और मगधदे शीय राजा के वंशका वणन
२३-अनु, , तुवसु और य के वंशका वणन
२४- वदभके वंशका वणन
दशम क ध (उ राध)
५०-जरास धसे यु और ारकापुरीका नमाण
५१-कालयवनका भ म होना, मुचुकु दक कथा
५२- ारकागमन, ीबलरामजीका ववाह तथा ीकृ णके पास मणीजीका स दे शा
लेकर ा णका आना
५३- मणीहरण
५४- शशुपालके साथी राजा क और मीक हार तथा ीकृ ण- मणी- ववाह
५५- ु नका ज म और श बरासुरका वध
५६- यम तकम णक कथा, जा बवती और स यभामाके साथ ीकृ णका ववाह
५७- यम तक-हरण, शतध वाका उ ार और अ ू रजीको फरसे ारका बुलाना
५८-भगवान् ीकृ णके अ या य ववाह क कथा
५९-भौमासुरका उ ार और सोलह हजार एक सौ राजक या के साथ भगवान्का ववाह
६०- ीकृ ण- मणी-संवाद
६१-भगवान्क स त तका वणन तथा अ न के ववाहम मीका मारा जाना
६२-ऊषा-अ न - मलन
६३-भगवान् ीकृ णके साथ बाणासुरका यु
६४-नृग राजाक कथा
६५- ीबलरामजीका जगमन
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६६-पौ क और का शराजका उ ार
६७- वदका उ ार
६८-कौरव पर बलरामजीका कोप और सा बका ववाह
६९-दे व ष नारदजीका भगवान्क गृहचया दे खना
७०-भगवान् ीकृ णक न यचया और उनके पास जरास धके कैद राजा के तका आना
७१- ीकृ णभगवान्का इ थ पधारना
७२-पा डव के राजसूयय का आयोजन और जरास धका उ ार
७३-जरास धके जेलसे छू टे ए राजा क वदाई और भगवान्का इ थ लौट आना
७४-भगवान्क अ पूजा और शशुपालका उ ार
७५-राजसूयय क पू त और य धनका अपमान
७६-शा वके साथ यादव का यु
७७-शा व-उ ार
७८-द तव और व रथका उ ार तथा तीथया ाम बलरामजीके हाथसे सूतजीका वध
७९-ब वलका उ ार और बलरामजीक तीथया ा
८०- ीकृ णके ारा सुदामाजीका वागत
८१-सुदामाजीको ऐ यक ा त
८२-भगवान् ीकृ ण-बलरामसे गोप-गो पय क भट
८३-भगवान्क पटरा नय के साथ ौपद क बातचीत
८४-वसुदेवजीका य ो सव
८५- ीभगवान्के ारा वसुदेवजीको ानका उपदे श तथा दे वक जीके छः पु को लौटा
लाना
८६-सुभ ाहरण और भगवान्का म थलापुरीम राजा जनक और ुतदे व ा णके घर एक
ही साथ जाना
८७-वेद तु त
८८- शवजीका संकटमोचन
८९-भृगुजीके ारा दे व क परी ा तथा भगवान्का मरे ए ा ण-बालक को वापस
लाना
९०-भगवान् ीकृ णके लीला- वहारका वणन
एकादश क ध
१-य वंशको ऋ षय का शाप
२-वसुदेवजीके पास ीनारदजीका आना और उ ह राजा जनक तथा नौ योगी र का
संवाद सुनाना
३-माया, मायासे पार होनेके उपाय तथा और कमयोगका न पण
४-भगवान्के अवतार का वणन
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५-भ हीन पु ष क ग त और भगवान्क पूजा व धका वणन
६-दे वता क भगवान्से वधाम सधारनेके लये ाथना तथा यादव को भास े
जानेक तैयारी करते दे खकर उ वका भगवान्के पास आना
७-अवधूतोपा यान—पृ वीसे लेकर कबूतरतक आठ गु क कथा
८-अवधूतोपा यान—अजगरसे लेकर पगलातक नौ गु क कथा
९-अवधूतोपा यान—कुररसे लेकर भृंगीतक सात गु क कथा
१०-लौ कक तथा पारलौ कक भोग क असारताका न पण
११-ब , मु और भ जन के ल ण
१२-स संगक म हमा और कम तथा कम यागक व ध
१३-हंस पसे सनका दको दये ए उपदे शका वणन
१४-भ योगक म हमा तथा यान व धका वणन
१५- भ - भ स य के नाम और ल ण
१६-भगवान्क वभू तय का वणन
१७-वणा म-धम- न पण
१८-वान थ और सं यासीके धम
१९-भ , ान और यम- नयमा द साधन का वणन
२०- ानयोग, कमयोग और भ योग
२१-गुण-दोष व थाका व प और रह य
२२-त व क सं या और पु ष- कृ त- ववेक
२३-एक त त ु ा णका इ तहास
२४-सां ययोग
२५-तीन गुण क वृ य का न पण
२६-पु रवाक वैरा यो
२७- यायोगका वणन
२८-परमाथ न पण
२९-भागवतधम का न पण और उ वजीका बद रका मगमन
३०-य कुलका संहार
३१- ीभगवान्का वधामगमन
ादश क ध
१-क लयुगके राजवंश का वणन
२-क लयुगके धम
३-रा य, युगधम और क लयुगके दोष से बचनेका उपाय—नामसंक तन
४-चार कारके लय
५- ीशुकदे वजीका अ तम उपदे श
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६-परी त्क परमग त, जनमेजयका सपस और वेद के शाखाभेद
७-अथववेदक शाखाएँ और पुराण के ल ण
८-माक डेयजीक तप या और वर- ा त
९-माक डेयजीका माया-दशन
१०-माक डेयजीको भगवान् शंकरका वरदान
११-भगवान्के अंग, उपांग और आयुध का रह य तथा व भ सूयगण का वणन
१२- ीम ागवतक सं त वषय-सूची
१३- व भ पुराण क ोक-सं या और ीम ागवतक म हमा
ीम ागवतमाहा य
१-परी त् और व नाभका समागम, शा ड य-मु नके मुखसे भगवान्क लीलाके रह य
और जभू मके मह वका वणन
२-यमुना और ीकृ णप नय का संवाद, क तनो सवम उ वजीका कट होना
३- ीम ागवतक पर परा और उसका माहा य, भागवत वणसे ोता को
भगव ामक ा त
४- ीम ागवतका व प, माण, ोता-व ाके ल ण, वण व ध और माहा य
१- ीम ागवत-पाठके व भ योग
२- ीगो व ददामोदर तो म्
३- ीम ागवतक आरती
इ वाकुनृगशया त द धृ क षकान् ।
न र य तं पृष ं१ च नभगं च क व वभुः ।।१२
त श य वच त य भगवान् पतामहः ।
होतु त मं ा वा बभाषे र वन दनम् ।।१९
एतत् संक पवैष यं होतु ते भचारतः ।
तथा प साध य ये ते सु जा वं वतेजसा ।।२०
एवं व सतो राजन् भगवान् स महायशाः ।
अ तौषीदा दपु ष मलायाः पुं वका यया ।।२१
त मै कामवरं१ तु ो भगवान् ह ररी रः ।
ददा वलाभवत् तेन सु ु नः पु षषभः ।।२२
स एकदा महाराज वचरन् मृगयां वने ।
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वृतः क तपयामा यैर मा २ सै धवम् ।।२३
गृ चरं चापं शरां परमाद्भुतान् ।
दं शतोऽनुमृगं वीरो जगाम दशमु राम् ।।२४
स कुमारो वनं मेरोरध तात् ववेश ह ।
य ा ते भगवा छव रममाणः सहोमया ।।२५
त मन् व एवासौ सु ु नः परवीरहा ।
अप यत् यमा मानम ं च वडवां नृप ।।२६
तथा तदनुगाः सव आ म लग वपययम् ।
् वा वमनसोऽभूवन् वी माणाः पर परम् ।।२७
राजोवाच
कथमेवंगुणो दे शः केन वा भगवन् कृतः ।
मेनं समाच व परं कौतूहलं ह नः ।।२८
ीशुक उवाच
एकदा ग रशं ु मृषय त सु ताः ।
दशो व त मराभासाः कुव तः समुपागमन् ।।२९
परी त्! हमारे वृ पतामह भगवान् व स ने उनक यह बात सुनकर जान लया क
होताने वपरीत संक प कया है। इस लये उ ह ने वैव वत मनुसे कहा— ।।१९।। ‘राजन्!
तु हारे होताके वपरीत संक पसे ही हमारा संक प ठ क-ठ क पूरा नह आ। फर भी
अपने तपके भावसे म तु ह े पु ँ गा’ ।।२०।।
परी त्! परम यश वी भगवान् व स ने ऐसा न य करके उस इला नामक क याको
ही पु ष बना दे नेके लये पु षो म भगवान् नारायणक तु त क ।।२१।। सवश मान्
भगवान् ीह रने स तु होकर उ ह मुँहमाँगा वर दया, जसके भावसे वह क या ही सु ु न
नामक े पु बन गयी ।।२२।।
महाराज! एक बार राजा सु ु न शकार खेलनेके लये स धुदेशके घोड़ेपर सवार होकर
कुछ म य के साथ वनम गये ।।२३।। वीर सु ु न कवच पहनकर और हाथम सु दर धनुष
एवं अ य त अद्भुत बाण लेकर ह रन का पीछा करते ए उ र दशाम ब त आगे बढ़
गये ।।२४।। अ तम सु ु न मे पवतक तलहट के एक वनम चले गये। उस वनम भगवान्
शंकर पावतीके साथ वहार करते रहते ह ।।२५।। उसम वेश करते ही वीरवर सु ु नने दे खा
क म ी हो गया ँ और घोड़ा घोड़ी हो गया है ।।२६।। परी त्! साथ ही उनके सब
अनुचर ने भी अपनेको ी पम दे खा। वे सब एक- सरेका मुँह दे खने लगे, उनका च
ब त उदास हो गया ।।२७।।
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! उस भूख डम ऐसा व च गुण कैसे आ गया?
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कसने उसे ऐसा बना दया था? आप कृपा कर हमारे इस का उ र द जये; य क हम
बड़ा कौतूहल हो रहा है ।।२८।।
ीशुकदे वजीने कहा—परी त्! एक दन भगवान् शंकरका दशन करनेके लये बड़े-
बड़े तधारी ऋ ष अपने तेजसे दशा का अ धकार मटाते ए उस वनम गये ।।२९।।
तान् वलो या बका दे वी ववासा ी डता भृशम् ।
भतुरंकात् समु थाय नीवीमा थ पयधात् ।।३०
तु त मै स भगवानृषये यमावहन् ।
वां च वाचमृतां कुव दमाह वशा पते ।।३८
एकदा ा वशद् गो ं शा लो न श वष त ।
शयाना गाव उ थाय भीता ता ब मु जे ।।४
१. ान ः।
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१. चा ।
दश य वा प त त यै पा त येन तो षतौ ।
ऋ षमाम य ययतु वमानेन व पम् ।।१७
क यावरं प र ु ं लोकमपावृतम् ।
आवतमाने गा धव थतोऽल ध णः णम् ।।३०
तं क त् वीक र य तं पु षः कृ णदशनः ।
उवाचो रतोऽ ये य ममेदं वा तुकं वसु ।।६
ममेदमृ ष भद म त त ह म मानवः ।
या ौ ते पत र ः पृ वान् पतरं तथा ।।७
मुकु द लगालयदशने शौ
तद्भृ यगा पशऽङ् गसंगमम् ।
ाणं च त पादसरोजसौरभे
ीम ुल या रसनां तद पते ।।१९
यहाँ य म बचा आ मेरा जो अंश है, यह धन भी म तु ह ही दे रहा ँ; तुम इसे वीकार
करो।’ इतना कहकर स य ेमी भगवान् अ तधान हो गये ।।११।। जो मनु य ातः और
सायंकाल एका च से इस आ यानका मरण करता है वह तभाशाली एवं वेद तो होता
ही है, साथ ही अपने व पको भी जान लेता है ।।१२।। नाभागके पु ए अ बरीष। वे
भगवान्के बड़े ेमी एवं उदार धमा मा थे। जो शाप कभी कह रोका नह जा सका, वह
भी अ बरीषका पश न कर सका ।।१३।।
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! म परम ानी राज ष अ बरीषका च र सुनना चाहता
ँ। ा णने ो धत होकर उ ह ऐसा द ड दया जो कसी कार टाला नह जा सकता;
पर तु वह भी उनका कुछ न बगाड़ सका ।।१४।।
ीशुकदे वजीने कहा—परी त्! अ बरीष बड़े भा यवान् थे। पृ वीके सात प,
अचल स प और अतुलनीय ऐ य उनको ा त था। य प ये सब साधारण मनु य के लये
अ य त लभ व तुएँ ह, फर भी वे इ ह व तु य समझते थे। य क वे जानते थे क जस
धन-वैभवके लोभम पड़कर मनु य घोर नरकम जाता है, वह केवल चार दनक चाँदनी है।
उसका द पक तो बुझा-बुझाया है ।।१५-१६।। भगवान् ीकृ णम और उनके ेमी साधु म
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उनका परम ेम था। उस ेमके ा त हो जानेपर तो यह सारा व और इसक सम त
स प याँ म के ढे लेके समान जान पड़ती ह ।।१७।। उ ह ने अपने मनको ीकृ णच के
चरणार व दयुगलम, वाणीको भगवद्गुणानुवणनम, हाथ को ीह र-म दरके माजन-सेचनम
और अपने कान को भगवान् अ युतक मंगलमयी कथाके वणम लगा रखा था ।।१८।।
उ ह ने अपने ने मुकु दमू त एवं म दर के दशन म, अंग-संग भगवद्भ के शरीर पशम,
ना सका उनके चरणकमल पर चढ़ ीमती तुलसीके द ग धम और रसना ( ज ा)-को
भगवान्के त अ पत नैवे - सादम संल न कर दया था ।।१९।।
पादौ हरेः े पदानुसपणे
शरो षीकेशपदा भव दने ।
कामं च दा ये न तु कामका यया
यथो म ोकजना या र तः ।।२०
ईजेऽ मेधैर धय मी रं
महा वभू योप चतांगद णैः ।
ततैव स ा सतगौतमा द भ-१
ध व य भ ोतमसौ सर वतीम् ।।२२
वग न ा थतो य य मनुजैरमर यः ।
शृ व पगाय म ोकचे तम् ।।२४
त मा अदा र ं यनीकभयावहम् ।
एका तभ भावेन ीतो भृ या भर णम्२ ।।२८
अहो अ य नृशंस य यो म य१ प यत ।
धम त मं व णोरभ येशमा ननः२ ।।४४
तद भ व य५ व यासं च न फलम् ।
वासा वे भीतो द ु ाणपरी सया ।।४९
उस समय वासाजी ब त भूखे थे। इस लये यह जानकर क राजाने पारण कर लया है,
वे ोधसे थर-थर काँपने लगे। भ ह के चढ़ जानेसे उनका मुँह वकट हो गया। उ ह ने हाथ
जोड़कर खड़े अ बरीषसे डाँटकर कहा ।।४३।।
‘अहो! दे खो तो सही, यह कतना ू र है! यह धनके मदम मतवाला हो रहा है।
भगवान्क भ तो इसे छू तक नह गयी और यह अपनेको बड़ा समथ मानता है। आज
इसने धमका उ लंघन करके बड़ा अ याय कया है ।।४४।।
दे खो, म इसका अ त थ होकर आया ँ। इसने अ त थ-स कार करनेके लये मुझे
नम ण भी दया है, क तु फर भी मुझे खलाये बना ही खा लया है। अ छा दे ख, ‘तुझे
अभी इसका फल चखाता ँ’ ।।४५।।
१. शेषणम्।
१. भः वधु य भ ोतवत सर०। २. वे ताः। ३. प यताम्।
१. जव तुषु। २. भूता भ०। ३. षु व णुं। ४. ल ध०। ५. गुणव मधु।
१. त ा यं। २. नम०। ३. शुचौ।
१. या म य। २. ये मा ननः। ३. तपसा न०। ४. ल तीम स०। ५. वमु ०।
१. थावस ं ।
१. मामव व ।
१. द शनः। २. हम्।
स वं जग ाण खल हाणये
न पतः सवसहो गदाभृता ।
व य चा म कुलदै वहेतवे
वधे ह भ ं तदनु हो ह नः ।।९
य त द म ं वा वधम वा वनु तः ।
कुलं नो व दै वं चेद ् जो भवतु व वरः ।।१०
य ाम ु तमा ण
े पुमान् भव त नमलः ।
त य तीथपदः क वा दासानामव श यते ।।१६
कमावदातमेतत् ते गाय त वः यो मु ः ।
क त२ परमपु यां च क त य य त भू रयम् ।।२१
ीशुक उवाच
एवं संक य राजानं वासाः प रतो षतः ।
ययौ वहायसाऽऽम य लोकमहैतुकम् ।।२२
ज ह ने भ व सल भगवान् ीह रके चरण-कमल को ढ़ ेमभावसे पकड़ लया है—
उन साधुपु ष के लये कौन-सा काय क ठन है? जनका दय उदार है, वे महा मा भला,
कस व तुका प र याग नह कर सकते? ।।१५।। जनके मंगलमय नाम के वणमा से जीव
नमल हो जाता है—उ ह तीथपाद भगवान्के चरणकमल के जो दास ह, उनके लये कौन-
सा कत शेष रह जाता है? ।।१६।।
महाराज अ बरीष! आपका दय क णाभावसे प रपूण है। आपने मेरे ऊपर महान्
अनु ह कया। अहो, आपने मेरे अपराधको भुलाकर मेरे ाण क र ा क है! ।।१७।।
परी त्! जबसे वासाजी भागे थे, तबसे अबतक राजा अ बरीषने भोजन नह कया
था। वे उनके लौटनेक बाट दे ख रहे थे। अब उ ह ने वासाजीके चरण पकड़ लये और उ ह
स करके व धपूवक भोजन कराया ।।१८।।
राजा अ बरीष बड़े आदरसे अ त थके यो य सब कारक भोजन-साम ी ले आये।
वासाजी भोजन करके तृ त हो गये। अब उ ह ने आदरसे कहा—‘राजन्! अब आप भी
भोजन क जये ।।१९।। अ बरीष! आप भगवान्के परम ेमी भ ह। आपके दशन, पश,
बातचीत और मनको भगवान्क ओर वृ करनेवाले आ त यसे म अ य त स और
अनुगृहीत आ ँ ।।२०।। वगक दे वांगनाएँ बार-बार आपके इस उ वल च र का गान
करगी। यह पृ वी भी आपक परम पु यमयी क तका संक तन करती रहेगी’ ।।२१।।
ीशुकदे वजी कहते ह— वासाजीने ब त ही स तु होकर राजा अ बरीषके गुण क
शंसा क और उसके बाद उनसे अनुम त लेकर आकाशमागसे उस लोकक या ा क
जो केवल न काम कमसे ही ा त होता है ।।२२।।
संव सरोऽ यगात् तावद् यावता नागतो गतः ।
ढा ः क पला भ ा इ त भारत ।
ढा पु ो हय ो नकु भ त सुतः मृतः ।।२४
ं म ो व धय ो यजमान तथ वजः ।
धम दे श काल सवमेतद् यदा मकम् ।।३६
शश ब दो हत र ब म यामधा ृपः२ ।
पु कु सम बरीषं मुचुकु दं च यो गनम् ।
तेषां वसारः पंचाशत् सौभ र व रे प तम् ।।३८
स ब च ता भरपारणीय-
तपः यान यप र छदे षु ।
गृहेषु नानोपवनामला भः-
सर सु सौग धककाननेषु ।।४५
एक तप हमथा भ स म यसंगात्
पंचाशदासमुत पंचसह सगः ।
ना तं जा युभयकृ यमनोरथानां
मायागुणै तम त वषयेऽथभावः ।।५२
१. े सू०। २. पाहरन्।
१. च ो ः। २. स ग धवः।
१. बाह ासो। २. शा ा य। ३. जायत।
त य स य तः पु शंकु र त व ुतः ।
ा त ा डालतां शापाद् गुरोः कौ शकतेजसा ।।५
रो हत तद भ ाय पतुः कम चक षतम् ।
ाण े सुधनु पा णरर यं यप त ।।१६
शंकुके पु थे ह र । उनके लये व ा म और व स एक- सरेको शाप दे कर
प ी हो गये और ब त वष तक लड़ते रहे ।।७।। ह र के कोई स तान न थी। इससे वे
ब त उदास रहा करते थे। नारदके उपदे शसे वे व णदे वताक शरणम गये और उनसे ाथना
क क ‘ भो! मुझे पु ा त हो ।।८।। महाराज! य द मेरे वीर पु होगा तो म उसीसे
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आपका यजन क ँ गा।’ व णने कहा—‘ठ क है।’ तब व णक कृपासे ह र के रो हत
नामका पु आ ।।९।। पु होते ही व णने आकर कहा—‘ह र ! तु ह पु ा त हो
गया। अब इसके ारा मेरा य करो।’ ह र ने कहा—‘जब आपका यह य पशु (रो हत)
दस दनसे अ धकका हो जायगा, तब य के यो य होगा’ ।।१०।। दस दन बीतनेपर व णने
आकर फर कहा—‘अब मेरा य करो।’ ह र ने कहा—‘जब आपके य पशुके मुँहम
दाँत नकल आयगे, तब वह य के यो य होगा’ ।।११।। दाँत उग आनेपर व णने कहा
—‘अब इसके दाँत नकल आये, मेरा य करो।’ ह र ने कहा—‘जब इसके धके दाँत
गर जायँग,े तब यह य के यो य होगा’ ।।१२।। धके दाँत गर जानेपर व णने कहा—‘अब
इस य पशुके दाँत गर गये, मेरा य करो।’ ह र ने कहा—‘जब इसके बारा दाँत आ
जायँग,े तब यह पशु य के यो य हो जायगा’ ।।१३।। दाँत के फर उग आनेपर व णने कहा
—‘अब मेरा य करो।’ ह र ने कहा—‘व णजी महाराज! यपशु तब य के यो य
होता है जब वह कवच धारण करने लगे’ ।।१४।। परी त्! इस कार राजा ह र पु के
ेमसे हीला-हवाला करके समय टालते रहे। इसका कारण यह था क पु - नेहक फाँसीने
उनके दयको जकड़ लया था। वे जो-जो समय बताते व णदे वता उसीक बाट
दे खते ।।१५।। जब रो हतको इस बातका पता चला क पताजी तो मेरा ब लदान करना
चाहते ह, तब वह अपने ाण क र ाके लये हाथम धनुष लेकर वनम चला गया ।।१६।।
कुछ दनके बाद उसे मालूम आ क व णदे वताने होकर मेरे पताजीपर आ मण
कया है— जसके कारण वे महोदर रोगसे पी ड़त हो रहे ह, तब रो हत अपने नगरक ओर
चल पड़ा। पर तु इ ने आकर उसे रोक दया ।।१७।। उ ह ने कहा—‘बेटा रो हत! य पशु
बनकर मरनेक अपे ा तो प व तीथ और े का सेवन करते ए पृ वीम वचरना ही
अ छा है।’ इ क बात मानकर वह एक वषतक और वनम ही रहा ।।१८।।
पतरं व ण तं ु वा जातमहोदरम् ।
रो हतो ाममेयाय त म ः यषेधत ।।१७
एवंवृ ः प र य ः प ा नेहमपो वै ।
योगै यण बालां तान् दश य वा ततो ययौ ।।१८
शा तमायागुणकम लग-
मनाम पं सदस मु म्३ ।
ानोपदे शाय गृहीतदे ह४ं
नमामहे वां पु षं पुराणम् ।।२५
दशयामास तं दे वी स ा वरदा म ते ।
इ यु ः वम भ ायं शशंसावनतो नृपः ।।३
य जल पशमा ेण द डहता अ प ।
सगरा मजा दवं ज मुः केवलं दे हभ म भः ।।१२
ु ो भगीरथा ज े त य नाभोऽपरोऽभवत् ।
त
स धु प तत त मादयुतायु ततोऽभवत् ।।१६
एष ह ा णो व ां तपःशीलगुणा वतः ।
आ रराध यषु महापु षसं तम् ।
सवभूता मभावेन भूते व त हतं गुणैः ।।२९
जब सवसमथ व स जीने दे खा क परोसी जानेवाली व तु तो नता त अभ य है, तब
उ ह ने ो धत होकर राजाको शाप दया क ‘जा, इस कामसे तू रा स हो जायगा’ ।।२२।।
जब उ ह यह बात मालूम ई क यह काम तो रा सका है—राजाका नह , तब उ ह ने उस
शापको केवल बारह वषके लये कर दया। उस समय राजा सौदास भी अपनी अंज लम जल
लेकर गु व स को शाप दे नेके लये उ त ए ।।२३।। पर तु उनक प नी मदय तीने उ ह
ऐसा करनेसे रोक दया। इसपर सौदासने वचार कया क ‘ दशाएँ, आकाश और पृ वी—
सब-के-सब तो जीवमय ही ह। तब यह ती ण जल कहाँ छोडँ?’ अ तम उ ह ने उस जलको
अपने पैर पर डाल लया। [इसीसे उनका नाम ‘ म सह’ आ] ।।२४।। उस जलसे उनके पैर
काले पड़ गये थे, इस लये उनका नाम ‘क माषपाद’ भी आ। अब वे रा स हो चुके थे।
एक दन रा स बने ए राजा क माषपादने एक वनवासी ा ण-द प तको सहवासके
समय दे ख लया ।।२५।। क माषपादको भूख तो लगी ही थी, उसने ा णको पकड़ लया।
ा ण-प नीक कामना अभी पूण नह ई थी। उसने कहा—‘राजन्! आप रा स नह ह।
आप महारानी मदय तीके प त और इ वाकुवंशके वीर महारथी ह। आपको ऐसा अधम नह
करना चा हये। मुझे स तानक कामना है और इस ा णक भी कामनाएँ अभी पूण नह ई
ह इस लये आप मुझे मेरा यह ा ण प त दे द जये ।।२६-२७।। राजन्! यह मनु य-शरीर
जीवको धम, अथ, काम और मो —चार पु षाथ क ा त करानेवाला है। इस लये वीर!
इस शरीरको न कर दे ना सभी पु षाथ क ह या कही जाती है ।।२८।। फर यह ा ण तो
व ान् है। तप या, शील और बड़े-बड़े गुण से स प है। यह उन पु षो म पर क
सम त ा णय के आ माके पम आराधना करना चाहता है, जो सम त पदाथ म व मान
रहते ए भी उनके पृथक्-पृथक् गुण से छपे ए ह ।।२९।। राजन्! आप श शाली ह।
आप धमका मम भलीभाँ त जानते ह। जैसे पताके हाथ पु क मृ यु उ चत नह , वैसे ही
आप-जैसे े राज षके हाथ मेरे े ष प तका वध कसी कार उ चत नह
है ।।३०।। आपका साधु-समाजम बड़ा स मान है। भला आप मेरे परोपकारी, नरपराध,
ो य एवं वाद प तका वध कैसे ठ क समझ रहे ह? ये तो गौके समान नरीह
ह ।।३१।। फर भी य द आप इ ह खा ही डालना चाहते ह, तो पहले मुझे खा डा लये।
य क अपने प तके बना म मुदके समान हो जाऊँगी और एक ण भी जी वत न रह
सकूँगी’ ।।३२।। ा णप नी बड़ी ही क णापूण वाणीम इस कार कहकर अनाथक भाँ त
रोने लगी। पर तु सौदासने शापसे मो हत होनेके कारण उसक ाथनापर कुछ भी यान न
दया और वह उस ा णको वैसे ही खा गया, जैसे बाघ कसी पशुको खा जाय ।।३३।।
जब ा णीने दे खा क रा सने मेरे गभाधानके लये उ त प तको खा लया, तब उसे बड़ा
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शोक आ। सती ा णीने ोध करके राजाको शाप दे दया ।।३४।। ‘रे पापी! म अभी
कामसे पी ड़त हो रही थी। ऐसी अव थाम तूने मेरे प तको खा डाला है। इस लये मूख! जब
तू ीसे सहवास करना चाहेगा, तभी तेरी मृ यु हो जायगी, यह बात म तुझे सुझाये दे ती
ँ’ ।।३५।। इस कार म सहको शाप दे कर ा णी अपने प तक अ थय को धधकती इ
चताम डालकर वयं भी सती हो गयी और उसने वही ग त ा त क , जो उसके प तदे वको
मली थी। य न हो, वह अपने प तको छोड़कर और कसी लोकम जाना भी तो नह
चाहती थी ।।३६।।
सोऽयं षवय ते राज ष वराद् वभो ।
कथमह त धम वधं पतु रवा मजः ।।३०
त य साधोरपाप य ूण य वा दनः ।
कथं वधं यथा ब ोम यते१ स मतो भवान् ।।३१
अ मका मूलको ज े यः ी भः प रर तः ।
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नारीकवच इ यु ो नः े मूलकोऽभवत् ।।४०
ये व ते य धयो दे वा ते व द थतम् ।
न व द त यं श दा मानं कमुतापरे ।।४६
अथेशमायार चतेषु संगं
गुणेषु ग धवपुरोपमेषु ।
ढं कृ याऽऽ म न व कतु-
भावेन ह वा तमहं प े ।।४७
इ त व सतो बु या नारायणगृहीतया ।
ह वा यभावम ानं ततः वं भावमा तः ।।४८
कामं या ह ज ह व वसोऽवमेहं
ैलो यरावणमवा ु ह वीर प नीम् ।
ब नी ह सेतु मह ते यशसो वत यै
गाय त द वज यनो यमुपे य भूपाः ।।१५
तेऽनीकपा रघुपतेर भप य सव
ं व थ मभप रथा योधैः ।
ज नु मै ग रगदे षु भरंगदा ाः
सीता भमशहतमंगलरावणेशान् ।।२०
र ःप तः वबलन मवे य
आ यानकमथा भससार२ रामम् ।
वः य दने मु त३ मात लनोपनीते
व ाजमानमहन शतैः ुर ैः ।।२१
उस समय वानरराजक सेनाने लंकाके सैर करने और खेलनेके थान, अ के गोदाम,
खजाने, दरवाजे, फाटक, सभाभवन, छ जे और प य के रहनेके थानतकको घेर लया।
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उ ह ने वहाँक वेद , वजाएँ, सोनेके कलश और चौराहे तोड़-फोड़ डाले। उस समय लंका
ऐसी मालूम पड़ रही थी, जैसे झुंड-के-झुंड हा थय ने कसी नद को मथ डाला हो ।।१७।।
यह दे खकर रा सराज रावणने नकु भ, कु भ, धू ा , मुख, सुरा तक, नरा तक, ह त,
अ तकाय, वक पन आ द अपने सब अनुचर , पु मेघनाद और अ तम भाई कु भकणको
भी यु करनेके लये भेजा ।।१८।।
रा स क वह वशाल सेना तलवार, शूल, धनुष, ास, ऋ , श , बाण, भाले,
खड् ग आ द श -अ से सुर त और अ य त गम थी। भगवान् ीरामने सु ीव,
ल मण, हनूमान्, ग ध-मादन, नील, अंगद, जा बवान् और पनस आ द वीर को अपने साथ
लेकर रा स क सेनाका सामना कया ।।१९।। रघुवंश शरोम ण भगवान् ीरामके अंगद
आ द सब सेनाप त रा स क चतुरं गणी सेना—हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदल के साथ
यु क री तसे भड़ गये और रा स को वृ , पवत शखर, गदा और बाण से मारने लगे।
उनका मारा जाना तो वाभा वक ही था। य क वे उसी रावणके अनुचर थे, जसका मंगल
ीसीताजीको पश करनेके कारण पहले ही न हो चुका था ।।२०।।
जब रा सराज रावणने दे खा क मेरी सेनाका तो नाश आ जा रहा है, तब वह ोधम
भरकर पु पक वमानपर आ ढ़ हो भगवान् ीरामके सामने आया। उस समय इ का
सार थ मात ल बड़ा ही तेज वी द रथ लेकर आया और उसपर भगवान् ीरामजी
वराजमान ए। रावण अपने तीखे बाण से उनपर हार करने लगा ।।२१।।
राम तमाह पु षादपुरीष य ः
का तासम मसताप ता वत्१ ते ।
य प य फलम जुगु सत य
य छा म काल इव कतुरलं यवीयः ।।२२
घोषेण च मु ः पठ वा द भः३ ।
वणक पताका भहमै वजै रथैः ।।३७
कभी आपके काम से हम सब और सम त रा सवंश आन दत होता था और आज हम
सब तथा यह सारी लंका नगरी वधवा हो गयी। आपका वह शरीर, जसके लये आपने सब
कुछ कर डाला, आज गीध का आहार बन रहा है और अपने आ माको आपने नरकका
अ धकारी बना डाला। यह सब आपक ही नासमझी और कामुकताका फल है ।।२८।।
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! कोसलाधीश भगवान् ीरामच जीक आ ासे
वभीषणने अपने वजन-स ब धय का पतृय क व धसे शा के अनुसार अ ये कम
कया ।।२९।। इसके बाद भगवान् ीरामने अशोक-वा टकाके आ मम अशोक वृ के नीचे
बैठ ई ीसीताजीको दे खा। वे उ ह के वरहक ा धसे पी ड़त एवं अ य त बल हो रही
थ ।।३०।। अपनी ाण या अधा गनी ीसीताजीको अ य त द न अव थाम दे खकर
ीरामका दय ेम और कृपासे भर आया। इधर भगवान्का दशन पाकर सीताजीका दय
ेम और आन दसे प रपूण हो गया, उनका मुखकमल खल उठा ।।३१।। भगवान्ने
वभीषणको रा स का वा म व, लंकापुरीका रा य और एक क पक आयु द और इसके
बाद पहले सीताजीको वमानपर बैठाकर अपने दोन भाई ल मण तथा सु ीव एवं सेवक
हनुमान्जीके साथ वयं भी वमानपर सवार ए। इस कार चौदह वषका त पूरा हो
जानेपर उ ह ने अपने नगरक या ा क । उस समय मागम ा आ द लोकपालगण उनपर
बड़े ेमसे पु प क वषा कर रहे थे ।।३२-३३।।
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इधर तो ा आ द बड़े आन दसे भगवान्क लीला का गान कर रहे थे और उधर जब
भगवान्को यह मालूम आ क भरतजी केवल गोमू म पकाया आ जौका द लया खाते ह,
व कल पहनते ह और पृ वीपर डाभ बछाकर सोते ह एवं उ ह ने जटाएँ बढ़ा रखी ह, तब वे
ब त ःखी ए। उनक दशाका मरण कर परम क णाशील भगवान्का दय भर आया।
जब भरतको मालूम आ क मेरे बड़े भाई भगवान् ीरामजी आ रहे ह, तब वे पुरवासी,
म ी और पुरो हत को साथ लेकर एवं भगवान्क पा काएँ सरपर रखकर उनक
अगवानीके लये चले। जब भरतजी अपने रहनेके थान न द ामसे चले, तब लोग उनके
साथ-साथ मंगलगान करते, बाजे बजाते चलने लगे। वेदवाद ा ण बार-बार वेदम का
उ चारण करने लगे और उसक व न चार ओर गूँजने लगी। सुनहरी कामदार पताकाएँ
फहराने लग । सोनेसे मढ़े ए तथा रंग- बरंगी वजा से सजे ए रथ, सुनहले साजसे
सजाये ए सु दर घोड़े तथा सोनेके कवच पहने ए सै नक उनके साथ-साथ चलने लगे।
सेठ-सा कार, े वारांगनाएँ, पैदल चलनेवाले सेवक और महाराजा के यो य छोट -बड़ी
सभी व तुएँ उनके साथ चल रही थ । भगवान्को दे खते ही ेमके उ े कसे भरतजीका दय
गद्गद हो गया, ने म आँसू छलक आये, वे भगवान्के चरण पर गर पड़े ।।३४-३९।।
उ ह ने भुके सामने उनक पा काएँ रख द और हाथ जोड़कर खड़े हो गये। ने से आँसूक
धारा बहती जा रही थी। भगवान्ने अपने दोन हाथ से पकड़कर ब त दे रतक भरतजीको
दयसे लगाये रखा। भगवान्के ने जलसे भरतजीका नान हो गया ।।४०।। इसके बाद
सीताजी और ल मणजीके साथ भगवान् ीरामजीने ा ण और पूजनीय गु जन को
नम कार कया तथा सारी जाने बड़े ेमसे सर झुकाकर भगवान्के चरण म णाम
कया ।।४१।। उस समय उ रकोसल दे शक रहनेवाली सम त जा अपने वामी
भगवान्को ब त दन के बाद आये दे ख अपने प े हला- हलाकर पु प क वषा करती ई
आन दसे नाचने लगी ।।४२।। भरतजीने भगवान्क पा काएँ ल , वभीषणने े चँवर,
सु ीवने पंखा और ीहनुमान्जीने ेत छ हण कया ।।४३।। परी त्! श ु नजीने धनुष
और तरकस, सीताजीने तीथके जलसे भरा कम डलु, अंगदने सोनेका खड् ग और
जा बवान्ने ढाल ले ली ।।४४।।
सद ै मस ाहैभटै ः पुरटवम भः ।
ेणी भवारमु या भभृ यै ैव पदानुगैः ।।३८
धु व त उ रासंगान् प त वी य चरागतम् ।
उ राः कोसला मा यैः कर तो ननृतुमुदा ।।४२
अ हीदासनं ा ा णप य सा दतः ।
जाः वधम नरता वणा मगुणा वताः ।
जुगोप पतृवद् रामो मे नरे पतरं च तम् ।।५१
इन लोग के साथ भगवान् पु पक वमानपर वराजमान हो गये, चार तरफ यथा थान
याँ बैठ गय , व द जन तु त करने लगे। उस समय पु पक वमानपर भगवान् ीरामक
ऐसी शोभा ई, मानो ह के साथ च मा उदय हो रहे ह ।।४५।।
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इस कार भगवान्ने भाइय का अ भन दन वीकार करके उनके साथ अयो यापुरीम
वेश कया। उस समय वह पुरी आन दो सवसे प रपूण हो रही थी। राजमहलम वेश करके
उ ह ने अपनी माता कौस या, अ य माता , गु जन , बराबरके म और छोट का
यथायो य स मान कया तथा उनके ारा कया आ स मान वीकार कया। ीसीताजी
और ल मणजीने भी भगवान्के साथ-साथ सबके त यथायो य वहार कया ।।४६-४७।।
उस समय जैसे मृतक शरीरम ाण का संचार हो जाय, वैसे ही माताएँ अपने पु के
आगमनसे ह षत हो उठ । उ ह ने उनको अपनी गोदम बैठा लया और अपने आँसु से
उनका अ भषेक कया। उस समय उनका सारा शोक मट गया ।।४८।। इसके बाद
व स जीने सरे गु जन के साथ व ध-पूवक भगवान्क जटा उतरवायी और बृह प तने
जैसे इ का अ भषेक कया था, वैसे ही चार समु के जल आ दसे उनका अ भषेक
कया ।।४९।। इस कार सरसे नान करके भगवान् ीरामने सु दर व , पु पमालाएँ और
अलंकार धारण कये। सभी भाइय और ीजानक जीने भी सु दर-सु दर व और अलंकार
धारण कये। उनके साथ भगवान् ीरामजी अ य त शोभायमान ए ।।५०।। भरतजीने
उनके चरण म गरकर उ ह स कया और उनके आ ह करनेपर भगवान् ीरामने
राज सहासन वीकार कया। इसके बाद वे अपने-अपने धमम त पर तथा वणा मके
आचारको नभानेवाली जाका पताके समान पालन करने लगे। उनक जा भी उ ह
अपना पता ही मानती थी ।।५१।।
ेतायां वतमानायां कालः कृतसमोऽभवत् ।
रामे राज न धम े सवभूतसुखावहे ।।५२
ते तु यदे व य वा स यं वी य सं तुतम् ।
ीताः ल धय त मै य यदं बभा षरे ।।५
तद यं धनमानीय सव रा े यवेदयत् ।
श ु न मधोः पु ं लवणं नाम रा सम् ।
स यैः पृ ोऽ भ ो वा सं व ोऽनुगतोऽ प वा ।
कोसला ते ययुः थानं य ग छ त यो गनः ।।२२
ततः जा वी य प त चरागतं
द यो सृ गृहाः यो नराः ।
आ ह या यर व दलोचन-
मतृ तने ाः कुसुमैरवा करन् ।।३०
व मो बर ारैव य त भपङ् भः ।
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थलैमारकतैः व छै भात फ टक भ भः ।।३२
च भः प का भवासोम णगणांशुकैः ।
मु ाफलै लासैः का तकामोपप भः ।।३३
श य त मं वी य नव य गु रागतः ।
अशपत् पतताद् दे हो नमेः प डतमा ननः ।।४
य य योगं न वा छ त वयोगभयकातराः ।
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भज त चरणा भोजं मुनयो ह रमेधसः ।।९
शु च त नय त मात् सन ाज ततोऽभवत् ।
ऊ वकेतुः सन ाजादजोऽथ पु ज सुतः ।।२२
अ र ने म त या प ुतायु त सुपा कः ।
तत रथो य य ेम ध म थला धपः ।।२३
य भादहं न ा ताप या च द यु भः ।
यः शेते न श सं तो यथा नारी दवा पुमान् ।।२९
राजन्! जो पु ष प-गुण आ दके कारण शंसनीय होता है, वही य को अभी
होता है। अतः म आपके साथ अव य वहार क ँ गी। पर तु मेरे ेमी महाराज! मेरी एक शत
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है। म आपको धरोहरके पम भेड़के दो ब चे स पती ँ। आप इनक र ा करना ।।२१।।
वीर शरोमणे! म केवल घी खाऊँगी और मैथुनके अ त र और कसी भी समय आपको
व हीन न दे ख सकूँगी।’ परम मन वी पु रवाने ‘ठ क है’—ऐसा कहकर उसक शत
वीकार कर ली ।।२२।। और फर उवशीसे कहा—‘तु हारा यह सौ दय अद्भुत है। तु हारा
भाव अलौ कक है। यह तो सारी मनु यसृ को मो हत करनेवाला है। और दे व! कृपा करके
तुम वयं यहाँ आयी हो। फर कौन ऐसा मनु य है जो तु हारा सेवन न करेगा? ।।२३।।
परी त्! तब उवशी कामशा ो प तसे पु ष े पु रवाके साथ वहार करने
लगी। वे भी दे वता क वहार थली चै रथ, न दनवन आ द उपवन म उसके साथ व छ द
वहार करने लगे ।।२४।। दे वी उवशीके शरीरसे कमल-केसरक -सी सुग ध नकला करती
थी। उसके साथ राजा पु रवाने ब त वष तक आन द- वहार कया। वे उसके मुखक
सुर भसे अपनी सुध-बुध खो बैठते थे ।।२५।। इधर जब इ ने उवशीको नह दे खा, तब
उ ह ने ग धव को उसे लानेके लये भेजा और कहा—‘उवशीके बना मुझे यह वग फ का
जान पड़ता है’ ।।२६।। वे ग धव आधी रातके समय घोर अ धकारम वहाँ गये और उवशीके
दोन भेड़ को, ज ह उसने राजाके पास धरोहर रखा था, चुराकर चलते बने ।।२७।। उवशीने
जब ग धव के ारा ले जाये जाते ए अपने पु के समान यारे भेड़ क ‘ब-ब’ सुनी, तब वह
कह उठ क ‘अरे, इस कायरको अपना वामी बनाकर म तो मारी गयी। यह नपुंसक
अपनेको बड़ा वीर मानता है। यह मेरे भेड़ को भी न बचा सका ।।२८।। इसीपर व ास
करनेके कारण लुटेरे मेरे ब च को लूटकर लये जा रहे ह। म तो मर गयी। दे खो तो सही, यह
दनम तो मद बनता है और रातम य क तरह डरकर सोया रहता है’ ।।२९।।
इ त वा सायकै व ः तो ै रव कुंजरः ।
न श न ंशमादाय वव ोऽ य वद् षा ।।३०
वधायालीक व भम ष े ु य सौ दाः ।
नवं नवमभी स यः पुं यः वैरवृ यः ।।३८
ग धवानुपधावेमां तु यं दा य त मा म त ।
त य सं तुवत तु ा अ न थाल द नृप ।
उवश म यमान तां सोऽबु यत चरन् वने ।।४२
१. हीदसुरोदयम्। २. व राट् ।
१. व ताः। २. व लवः। ३. मुखाः।
१. दे वेशं।
तद् व ाय मु नः ाह प न क मकारषीः ।
घोरो द डधरः पु ो ाता ते व मः ।।१०
तमापत तं भृगुवयमोजसा
धनुधरं बाणपर धायुधम् ।
ऐणेयचमा बरमकधाम भ-
युतं जटा भद शे पुर वशन् ।।२९
अचोदय तरथा प भ-
गदा सबाण शत नश भः ।
अ ौ हणीः स तदशा तभीषणा-
ता राम एको भगवानसूदयत् ।।३०
एक दन सह बा अजुन शकार खेलनेके लये बड़े घोर जंगलम नकल गया था।
दै ववश वह जमद न मु नके आ मपर जा प ँचा ।।२३।। परम तप वी जमद न मु नके
आ मम कामधेनु रहती थी। उसके तापसे उ ह ने सेना, म ी और वाहन के साथ
हैहया धप तका खूब वागत-स कार कया ।।२४।। वीर हैहया धप तने दे खा क जमद न
मु नका ऐ य तो मुझसे भी बढ़ा-चढ़ा है। इस लये उसने उनके वागत-स कारको कुछ भी
आदर न दे कर कामधेनुको ही ले लेना चाहा ।।२५।।
उसने अ भमानवश जमद न मु नसे माँगा भी नह , अपने सेवक को आ ा द क
कामधेनुको छ न ले चलो। उसक आ ासे उसके सेवक बछड़ेके साथ ‘बाँ-बाँ’ डकराती ई
कामधेनुको बलपूवक मा ह मतीपुरी ले गये ।।२६।। जब वे सब चले गये, तब परशुरामजी
आ मपर आये और उसक ताका वृ ा त सुनकर चोट खाये ए साँपक तरह ोधसे
तल मला उठे ।।२७।। वे अपना भयंकर फरसा, तरकस, ढाल एवं धनुष लेकर बड़े वेगसे
उसके पीछे दौड़े—जैसे कोई कसीसे न दबनेवाला सह हाथीपर टू ट पड़े ।।२८।।
सह बा अजुन अभी अपने नगरम वेश कर ही रहा था क उसने दे खा परशुरामजी
महाराज बड़े वेगसे उसीक ओर झपटे आ रहे ह। उनक बड़ी वल ण झाँक थी। वे हाथम
धनुष-बाण और फरसा लये ए थे, शरीरपर काला मृगचम धारण कये ए थे और उनक
जटाएँ सूयक करण के समान चमक रही थ ।।२९।।
उ ह दे खते ही उसने गदा, खड् ग, बाण, ऋ , शत नी और श आ द आयुध से
सुस जत एवं हाथी, घोड़े, रथ तथा पदा तय से यु अ य त भयंकर स ह अ ौ हणी सेना
भेजी। भगवान् परशुरामने बात-क -बातम अकेले ही उस सारी सेनाको न कर
दया ।।३०।।
यतो यतोऽसौ हर पर धो
मनोऽ नलौजाः परच सूदनः ।
तत तत छ भुजो क धरा
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नपेतु ा हतसूतवाहनाः ।।३१
् वा वसै यं धरौघकदमे
रणा जरे रामकुठारसायकैः ।
ववृ णचम वजचाप व हं
नपा ततं हैहय आपतद् षा ।।३२
अथाजुनः पंचशतेषु बा भ-
धनुःषु बाणान् युगपत् स स दधे ।
रामाय रामोऽ भृतां सम णी-
ता येकध वेषु भरा छनत् समम् ।।३३
त े न नद घोराम यभयावहाम् ।
हेतुं कृ वा पतृवधं ेऽमंगलका र ण ।।१८
यो वै ह र मखे व तः पु षः पशुः ।
तु वा दे वान् जेशाद न् मुमुचे पाशब धनात् ।।३१
ये ं म शं च ु वाम व चो वयं म ह ।
व ा म ः१ सुतानाह वीरव तो भ व यथ ।
ये मानं मेऽनुगृ तो वीरव तमकत२ माम् ।।३५
महाराज गा धके पु ए व लत अ नके समान परम तेज वी व ा म जी। इ ह ने
अपने तपोबलसे य वका याग करके तेज ा त कर लया ।।२८।। परी त्!
व ा म जीके सौ पु थे। उनम बचले पु का नाम था मधु छ दा। इस लये सभी पु
‘मधु छ दा’ के ही नामसे व यात ए ।।२९।। व ा म जीने भृगुवंशी अजीगतके पु अपने
भानजे शुनःशेपको, जसका एक नाम दे वरात भी था, पु पम वीकार कर लया और
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अपने पु से कहा क ‘तुमलोग इसे अपना बड़ा भाई मानो’ ।।३०।। यह वही स
भृगुवंशी शुनःशेप था, जो ह र के य म य पशुके पम मोल लेकर लाया गया था।
व ा म जीने जाप त व ण आ द दे वता क तु त करके उसे पाशब धनसे छु ड़ा लया
था। दे वता के य म यही शुनःशेप दे वता ारा व ा म जीको दया गया था; अत: ‘दे वैः
रातः’ इस ु प के अनुसार गा धवंशम यह तप वी दे वरातके नामसे व यात
आ ।।३१-३२।। व ा म जीके पु म जो बड़े थे, उ ह शुनःशेपको बड़ा भाई माननेक बात
अ छ न लगी। इसपर व ा म जीने ो धत होकर उ ह शाप दे दया क ‘ ो! तुम सब
ले छ हो जाओ’ ।।३३।। इस कार जब उनचास भाई ले छ हो गये तब व ा म जीके
बचले पु मधु छ दाने अपनेसे छोटे पचास भाइय के साथ कहा—‘ पताजी! आप
हमलोग को जो आ ा करते ह, हम उसका पालन करनेके लये तैयार ह’ ।।३४।। यह
कहकर मधु छ दाने म ा शुनःशेपको बड़ा भाई वीकार कर लया और कहा क ‘हम
सब तु हारे अनुयायी—छोटे भाई ह।’ तब व ा म जीने अपने इन आ ाकारी पु से कहा
—‘तुम लोग ने मेरी बात मानकर मेरे स मानक र ा क है, इस लये तुमलोग -जैसे सुपु
ा त करके म ध य आ। म तु ह आशीवाद दे ता ँ क तु ह भी सुपु ा त ह गे ।।३५।। मेरे
यारे पु ो! यह दे वरात शुनःशेप भी तु हारे ही गो का है। तुमलोग इसक आ ाम रहना।’
परी त्! व ा म जीके अ क, हारीत, जय और तुमान् आ द और भी पु थे ।।३६।।
इस कार व ा म जीक स तान से कौ शकगो म कई भेद हो गये और दे वरातको बड़ा
भाई माननेके कारण उसका वर ही सरा हो गया ।।३७।।
१. सः सुतः।
१. तु ताना०। २. वीरभावकस माः।
एवं शप त श म ा गु पु ीमभाषत ।
आ मवृ म व ाय क थसे ब भ ु क ।
क न ती सेऽ माकं गृहान् ब लभुजो यथा ।।१६
इ त ल ध व थानः पु ं ये मवोचत ।
यदो तात ती छे मां जरां दे ह नजं वयः ।।३८
त या त जः क दजा वा य छनद् षा ।
ल ब तं वृषणं भूयः स दधेऽथाय योग वत् ।।१०
मा ा व ा ह ा वा ना व व ासनो भवेत् ।
बलवा न य ामो व ांसम प कष त ।।१७
‘ ये! पृ वीम जतने भी धा य (चावल, जौ आ द), सुवण, पशु और याँ ह—वे सब-
के-सब मलकर भी उस पु षके मनको स तु नह कर सकते जो कामना के हारसे
जजर हो रहा है ।।१३।। वषय के भोगनेसे भोगवासना कभी शा त नह हो सकती। ब क
जैसे घीक आ त डालनेपर आग और भड़क उठती है, वैसे ही भोगवासनाएँ भी भोग से
बल हो जाती ह ।।१४।। जब मनु य कसी भी ाणी और कसी भी व तुके साथ राग-
े षका भाव नह रखता तब वह समदश हो जाता है, तथा उसके लये सभी दशाएँ सुखमयी
बन जाती ह ।।१५।। वषय क तृ णा ही ःख का उद्गम थान है। म दबु लोग बड़ी
क ठनाईसे उसका याग कर सकते ह। शरीर बूढ़ा हो जाता है, पर तृ णा न य नवीन ही होती
जाती है। अतः जो अपना क याण चाहता है, उसे शी -से-शी इस तृ णा (भोग-वासना)
का याग कर दे ना चा हये ।।१६।। और तो या—अपनी मा, ब हन और क याके साथ भी
अकेले एक आसनपर सटकर नह बैठना चा हये। इ याँ इतनी बलवान् ह क वे बड़े-बड़े
व ान को भी वच लत कर दे ती ह ।।१७।।
भूम डल य सव य पू मह मं वशाम् ।
अ भ ष या जां त य वशे था य वनं ययौ ।।२३
सत नमु सम तसंग
आ मानुभू या वधुत लगः ।
परेऽमले ण वासुदेवे
लेभे ग त भागवत तीतः ।।२५
वषय का बार-बार सेवन करते-करते मेरे एक हजार वष पूरे हो गये, फर भी ण- त-
ण उन भोग क लालसा बढ़ती ही जा रही है ।।१८।। इस लये म अब भोग क वासना—
तृ णाका प र याग करके अपना अ तःकरण परमा माके त सम पत कर ँ गा और शीत-
उ ण, सुख- ःख आ दके भाव से ऊपर उठकर अहंकारसे मु हो ह रन के साथ वनम
वच ँ गा ।।१९।। लोक-परलोक दोन के ही भोग असत् ह, ऐसा समझकर न तो उनका
च तन करना चा हये और न भोग ही। समझना चा हये क उनके च तनसे ही ज म-
मृ यु प संसारक ा त होती है और उनके भोगसे तो आ मनाश ही हो जाता है। वा तवम
इनके रह यको जानकर इनसे अलग रहनेवाला ही आ म ानी है’ ।।२०।।
परी त्! यया तने अपनी प नीसे इस कार कहकर पू क जवानी उसे लौटा द और
उससे अपना बुढ़ापा ले लया। यह इस लये क अब उनके च म वषय क वासना नह रह
गयी थी ।।२१।। इसके बाद उ ह ने द ण-पूव दशाम , द णम य , प मम तुवसु
और उ रम अनुको रा य दे दया ।।२२।। सारे भूम डलक सम त स प य के यो यतम
पा पू को अपने रा यपर अ भ ष करके तथा बड़े भाइय को उसके अधीन बनाकर वे
वनम चले गये ।।२३।। य प राजा यया तने ब त वष तक इ य से वषय का सुख भोगा
था—पर तु जैसे पाँख नकल आनेपर प ी अपना घ सला छोड़ दे ता है, वैसे ही उ ह ने एक
णम ही सब कुछ छोड़ दया ।।२४।। वनम जाकर राजा यया तने सम त आस य से छु
पा ली। आ म-सा ा कारके ारा उनका गुणमय लगशरीर न हो गया। उ ह ने माया-
मलसे र हत पर परमा मा वासुदेवम मलकर वह भागवती ग त ा त क , जो बड़े-बड़े
भगवान्के ेमी संत को ा त होती है ।।२५।।
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ु वा गाथां दे वयानी मेने तोभमा मनः ।
ीपुंसोः नेहवै ल ात् प रहास मवे रतम् ।।२६
१. नु दवसं। २. स ान्।
त शन मु दतः सं नवृ प र मः ।
प छ कामस त तः हस शल णया गरा ।।१०
का वं कमलप ा क या स दयंगमे ।
क वा चक षतं व भव या नजने वने ।।११
आ यतां र व दा गृ तामहणं च नः ।
भु यतां स त नीवारा उ यतां य द रोचते ।।१४
य त उवाच
उपप मदं सु ु जातायाः कु शका वये ।
वयं ह वृणते रा ां क यकाः स शं वरम् ।।१५
परी त्! उनमसे ऋतेयुका पु र तभार आ और र तभारके तीन पु ए—सुम त,
ुव, और अ तरथ। अ तरथके पु का नाम था क व ।।६।। क वका पु मेधा त थ आ।
इसी मेधा त थसे क व आ द ा ण उ प ए। सुम तका पु रै य आ, इसी रै यका
पु य त था ।।७।।
एक बार य त वनम अपने कुछ सै नक के साथ शकार खेलनेके लये गये ए थे।
उधर ही वे क व मु नके आ मपर जा प ँच।े उस आ मपर दे वमायाके समान मनोहर एक
ी बैठ ई थी। उसक ल मीके समान अंगका तसे वह आ म जगमगा रहा था। उस
सु दरीको दे खते ही य त मो हत हो गये और उससे बातचीत करने लगे ।।८-९।। उसको
दे खनेसे उनको बड़ा आन द मला। उनके मनम कामवासना जा त् हो गयी। थकावट र
करनेके बाद उ ह ने बड़ी मधुर वाणीसे मुसकराते ए उससे पूछा— ।।१०।। ‘कमलदलके
समान सु दर ने वाली दे व! तुम कौन हो और कसक पु ी हो? मेरे दयको अपनी ओर
आक षत करनेवाली सु दरी! तुम इस नजन वनम रहकर या करना चाहती हो? ।।११।।
सु दरी! म प समझ रहा ँ क तुम कसी यक क या हो। य क पु वं शय का च
कभी अधमक ओर नह झुकता’ ।।१२।।
तं र यय व ा तमादाय मदो मा ।
हरेरंशांशस भूतं भतुर तकमागमत् ।।१९
पंचपंचाशता मे यैगगायामनु वा ज भः ।
मामतेयं पुरोधाय यमुनायामनु भुः ।।२५
मह ष क वने वनम ही राजकुमारके जातकम आ द सं कार व धपूवक स प कये।
वह बालक बचपनम ही इतना बलवान् था क बड़े-बड़े सह को बलपूवक बाँध लेता और
उनसे खेला करता ।।१८।।
वह बालक भगवान्का अंशांशावतार था। उसका बल- व म अप र मत था। उसे अपने
साथ लेकर रमणीर न शकु तला अपने प तके पास गयी ।।१९।। जब राजा य तने अपनी
नद ष प नी और पु को वीकार नह कया, तब जसका व ा नह द ख रहा था और जसे
सब लोग ने सुना, ऐसी आकाशवाणी ई ।।२०।। ‘पु उ प करनेम माता तो केवल
ध कनीके समान है। वा तवम पु पताका ही है। य क पता ही पु के पम उ प होता
है। इस लये य त! तुम शकु तलाका तर कार न करो, अपने पु का भरण-पोषण
करो ।।२१।। राजन्! वंशक वृ करनेवाला पु अपने पताको नरकसे उबार लेता है।
शकु तलाका कहना बलकुल ठ क है। इस गभको धारण करानेवाले तु ह हो’ ।।२२।।
परी त्! पता य तक मृ यु हो जानेके बाद वह परम यश वी बालक च वत स ाट्
आ। उसका ज म भगवान्के अंशसे आ था। आज भी पृ वीपर उसक म हमाका गान
कया जाता है ।।२३।। उसके दा हने हाथम च का च था और पैर म कमल-कोषका।
महा भषेकक व धसे राजा धराजके पद-पर उसका अ भषेक आ। भरत बड़ा श शाली
राजा था ।।२४।। भरतने ममताके पु द घतमा मु नको पुरो हत बनाकर गंगातटपर
गंगासागरसे लेकर गंगो ी-पय त पचपन प व अ मेध य कये। और इसी कार
यमुनातटपर भी यागसे लेकर यमुनो ीतक उ ह ने अठह र अ मेध य कये। इन सभी
य म उ ह ने अपार धनरा शका दान कया था। य तकुमार भरतका य ीय अ न थापन
बड़े ही उ म गुणवाले थानम कया गया था। उस थानम भरतने इतनी गौएँ दान द थ क
एक हजार ा ण म येक ा णको एक-एक ब (१३०८४) गौएँ मली थ ।।२५-२६।।
इस कार राजा भरतने उन य म एक सौ ततीस (५५+७८) घोड़े बाँधकर (१३३ य
करके) सम त नरप तय को असीम आ यम डाल दया। इन य के ारा इस लोकम तो
राजा भरतको परम यश मला ही, अ तम उ ह ने मायापर भी वजय ा त क और
दे वता के परमगु भगवान् ीह रको ा त कर लया ।।२७।। य म एक कम होता है
‘म णार’। उसम भरतने सुवणसे वभू षत, ेत दाँत वाले तथा काले रंगके चौदह लाख हाथी
दान कये ।।२८।। भरतने जो महान् कम कया, वह न तो पहले कोई राजा कर सका था
और न तो आगे ही कोई कर सकेगा। या कभी कोई हाथसे वगको छू सकता है? ।।२९।।
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भरतने द वजयके समय करात, ण, यवन, अ , कंक, खश, शक और ले छ आ द
सम त ा ण ोही राजा को मार डाला ।।३०।। पहले युगम बलवान् असुर ने दे वता पर
वजय ा त कर ली थी और वे रसातलम रहने लगे थे। उस समय वे ब त-सी दे वांगना को
रसातलम ले गये थे। राजा भरतने फरसे उ ह छु ड़ा दया ।।३१।। उनके रा यम पृ वी और
आकाश जाक सारी आव यकताएँ पूण कर दे ते थे। भरतने स ाईस हजार वषतक सम त
दशा का एकछ शासन कया ।।३२।। अ तम सावभौम स ाट् भरतने यही न य कया
क लोकपाल को भी च कत कर दे नेवाला ऐ य, सावभौम स प , अख ड शासन और यह
जीवन भी म या ही है। यह न य करके वे संसारसे उदासीन हो गये ।।३३।।
गु र तदे व संकृतेः पा डु न दन ।
र तदे व य ह यश इहामु च गीयते ।।२
वय य ददतो ल धं ल धं बुभु तः ।
न कंचन य धीर य सकुटु ब य सीदतः ।।३
ु ृट् मो गा प र म
दै यं लमः शोक वषादमोहाः ।
सव नवृ ाः कृपण य ज तो-
जजी वषोज वजलापणा मे ।।१३
पु करा ण र य ये ा णग त गताः ।
बृह य पु ोऽभू ती य तनापुरम् ।।२०
मथुनं मुदगलाद्
् भा याद् दवोदासः पुमानभूत् ।
अह या क यका य यां शतान द तु गौतमात् ।।३४
* ीशुकदे वजी असंग थे पर वे वन जाते समय एक छाया शुक रचकर छोड़ गये थे। उस
छाया शुकने ही गृह थो चत वहार कये थे।
दे वा पः श तनु त य बा क इ त चा मजाः ।
पतृरा यं प र य य दे वा प तु वनं गतः ।।१२
े ेऽ ज य वै ातुमा ो ो बादरायणः ।
धृतरा ं च पा डु ं च व रं चा यजीजनत् ।।२५
ले छा धपतयोऽभूव द
ु च दशमा ताः ।
तुवसो सुतो व व े भग ऽथ भानुमान् ।।१६
रोमपादसुतो ब ुब ोः कृ तरजायत ।
उ शक त सुत त मा चे द ै ादयो नृप ।।२
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! राजा वदभक भो या नामक प नीसे तीन पु ए
—कुश, थ और रोमपाद। रोमपाद वदभवंशम ब त ही े पु ष ए ।।१।।
रोमपादका पु ब ु, ब ुका कृ त, कृ तका उ शक और उ शकका चे द। राजन्! इस
चे दके वंशम ही दमघोष एवं शशुपाल आ द ए ।।२।। थका पु आ कु त, कु तका
धृ , धृ का नवृ त, नवृ तका दशाह और दशाहका ोम ।।३।।
क तम तं सुषेणं च भ सेनमुदारधीः ।
ऋजुं स मदनं भ ं संकषणमही रम् ।।५४
अ म तु तयोरासीत् वयमेव ह रः कल ।
सुभ ा च महाभागा तव राजन् पतामही ।।५५
भोजवृ य धकमधुशूरसेनदशाहकैः ।
ाघनीये हतः श त् कु सृंजयपा डु भः ।।६३
जब-जब संसारम धमका ास और पापक वृ होती है, तब-तब सवश मान् भगवान्
ीह र अवतार हण करते ह ।।५६।। परी त्! भगवान् सबके ा और वा तवम असंग
आ मा ही ह। इस लये उनक आ म व पणी योगमायाके अ त र उनके ज म अथवा
कमका और कोई भी कारण नह है ।।५७।। उनक मायाका वलास ही जीवके ज म, जीवन
और मृ युका कारण है। और उनका अनु ह ही मायाको अलग करके आ म व पको ा त
करनेवाला है ।।५८।। जब असुर ने राजा का वेष धारण कर लया और कई अ ौ हणी
सेना इक करके वे सारी पृ वीको र दने लगे, तब पृ वीका भार उतारनेके लये भगवान्
मधुसूदन बलरामजीके साथ अवतीण ए। उ ह ने ऐसी-ऐसी लीलाएँ क , जनके स ब धम
बड़े-बड़े दे वता मनसे अनुमान भी नह कर सकते—शरीरसे करनेक बात तो अलग
रही ।।५९-६०।।
पृ वीका भार तो उतरा ही, साथ ही क लयुगम पैदा होनेवाले भ पर अनु ह करनेके
लये भगवान्ने ऐसे परम प व यशका व तार कया, जसका गान और वण करनेसे ही
उनके ःख, शोक और अ ान सब-के-सब न हो जायँगे ।।६१।। उनका यश या है,
लोग को प व करनेवाला े तीथ है। संत के कान के लये तो वह सा ात् अमृत ही है।
एक बार भी य द कानक अंज लय से उसका आचमन कर लया जाता है, तो कमक
वासनाएँ नमूल हो जाती ह ।।६२।। परी त्! भोज, वृ ण, अ धक, मधु, शूरसेन, दशाह,
कु , सृंजय और पा डु वंशी वीर नर तर भगवान्क लीला क आदरपूवक सराहना करते
रहते थे ।।६३।।
नवृ तष पगीयमानाद्
भवौषधा ो मनोऽ भरामात् ।
क उ म ोकगुणानुवादात्
पुमान् वर येत वना पशु नात् ।।४
पतामहा मे समरेऽमरंजयै-
दव ता ा तरथै त म गलैः ।
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! आपने च वंश और सूयवंशके व तार तथा दोन
वंश के राजा का अ य त अद्भुत च र वणन कया। भगवान्के परम ेमी मु नवर! आपने
वभावसे ही धम ेमी य वंशका भी वशद वणन कया। अब कृपा करके उसी वंशम अपने
अंश ीबलरामजीके साथ अवतीण ए भगवान् ीकृ णके परम प व च र भी हम
सुनाइये ।।१-२।। भगवान् ीकृ ण सम त ा णय के जीवनदाता एवं सवा मा ह। उ ह ने
य वंशम अवतार लेकर जो-जो लीलाएँ क , उनका व तारसे हमलोग को वण
कराइये ।।३।। जनक तृ णाक यास सवदाके लये बुझ चुक है, वे जीव मु महापु ष
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जसका पूण ेमसे अतृ त रहकर गान कया करते ह, मुमु ुजन के लये जो भवरोगका
रामबाण औषध है तथा वषयी लोग के लये भी उनके कान और मनको परम आ ाद
दे नेवाला है, भगवान् ीकृ णच के ऐसे सु दर, सुखद, रसीले, गुणानुवादसे पशुघाती अथवा
आ मघाती मनु यके अ त र और ऐसा कौन है जो वमुख हो जाय, उससे ी त न
करे? ।।४।। ( ीकृ ण तो मेरे कुलदे व ही ह।) जब कु े म महाभारत-यु हो रहा था और
दे वता को भी जीत लेनेवाले भी म पतामह आ द अ तर थय से मेरे दादा पा डव का यु
हो रहा था, उस समय कौरव क सेना उनके लये अपार समु के समान थी— जसम भी म
आ द वीर बड़े-बड़े म छ को भी नगल जानेवाले त म गल म छ क भाँ त भय उ प कर
रहे थे। पर तु मेरे वनामध य पतामह भगवान् ीकृ णके चरणकमल क नौकाका आ य
लेकर उस समु को अनायास ही पार कर गये—ठ क वैसे ही जैसे कोई मागम चलता आ
वभावसे ही बछड़ेके खुरका ग ा पार कर जाय ।।५।। महाराज! मेरा यह शरीर—जो
आपके सामने है तथा जो कौरव और पा डव दोन ही वंश का एकमा सहारा था—
अ थामाके ा से जल चुका था। उस समय मेरी माता जब भगवान्क शरणम गय ,
तब उ ह ने हाथम च लेकर मेरी माताके गभम वेश कया और मेरी र ा क ।।६।।
(केवल मेरी ही बात नह ,) वे सम त शरीरधा रय के भीतर आ मा पसे रहकर अमृत वका
दान कर रहे ह और बाहर काल पसे रहकर मृ युका*। मनु यके पम तीत होना, यह तो
उनक एक लीला है। आप उ ह क ऐ य और माधुयसे प रपूण लीला का वणन
क जये ।।७।।
ौ य व लु मदं मदं गं
स तानबीजं कु पा डवानाम् ।
जुगोप कु गत आ च ो
मातु मे यः शरणं गतायाः ।।६
दे हं मानुषमा य क त वषा ण वृ ण भः ।
य पुया सहावा सीत् प यः क यभवन् भोः ।।११
ा त पधायाथ सह दे वै तया सह ।
जगाम स नयन तीरं ीरपयो नधेः ।।१९
व े यथा प य त दे हमी शं
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मनोरथेना भ न व चेतनः ।
ु ा यां मनसानु च तयन्
त
प ते तत् कम प प मृ तः ।।४१
नब धं त य तं ा वा व च यानक भः ।
ा तं कालं त ोढु मदं त ा वप त ।।४७
अ नेयथा दा वयोगयोगयो-
र तोऽ य न म म त ।
एवं ह ज तोर प वभा ः
शरीरसंयोग वयोगहेतुः ।।५१
अ यै ासुरभूपालैबाणभौमा द भयुतः ।
य नां कदनं च े बली मागधसं यः ।।२
गभसंकषणात् तं वै ा ः संकषणं भु व ।
रामे त लोकरमणाद् बलं बलव यात् ।।१३
स द व
ै ं भगवता तथे यो म त त चः ।
तगृ प र य गां गता तत् तथाकरोत् ।।१४
गभ णीते दे व या रो हण योग न या ।
अहो व ं सतो गभ इ त पौरा वचु ु शुः ।।१५
व ा मा भगवान्ने दे खा क मुझे ही अपना वामी और सव व माननेवाले य वंशी
कंसके ारा ब त ही सताये जा रहे ह। तब उ ह ने अपनी योगमायाको यह आदे श दया
— ।।६।। ‘दे व! क याणी! तुम जम जाओ! वह दे श वाल और गौ से सुशो भत है।
वहाँ न दबाबाके गोकुलम वसुदेवक प नी रो हणी नवास करती ह। उनक और भी प नयाँ
कंससे डरकर गु त थान म रह रही ह ।।७।। इस समय मेरा वह अंश जसे शेष कहते ह,
दे वक के उदरम गभ पसे थत है। उसे वहाँसे नकालकर तुम रो हणीके पेटम रख
दो ।।८।। क याणी! अब म अपने सम त ान, बल आ द अंश के साथ दे वक का पु बनूँगा
भगवान प व ा मा भ ानामभयंकरः ।
आ ववेशांशभागेन मन आनक भेः ।।१६
सा दे वक सवजग वास-
नवासभूता नतरां न रेजे ।
भोजे गेहेऽ न शखेव ा
सर वती ानखले यथा सती ।।१९
ा भव त ै य मु न भनारदा द भः ।
दे वैः२ सानुचरैः साकं गी भवृषणमैडयन् ।।२५
स य तं स यपरं स यं
स य य यो न न हतं च स ये ।
स य य स यमृतस यने ं
स या मकं वां शरणं प ाः ।।२६
एकायनोऽसौ फल मूल-
तूरसः पंच वधः षडा मा ।
स त वग वटपो नवा ो
दश छद खगो ा दवृ ः ।।२७
स त वग वटपो नवा ो
दश छद खगो ा दवृ ः ।।२७
परी त्! भगवान् शंकर और ाजी कंसके कैदखानेम आये। उनके साथ अपने
अनुचर के स हत सम त दे वता और नारदा द ऋ ष भी थे। वे लोग सुमधुर वचन से सबक
अ भलाषा पूण करनेवाले ीह रक इस कार तु त करने लगे ।।२५।। ‘ भो! आप
स यसंक प ह। स य ही आपक ा तका े साधन है। सृ के पूव, लयके प ात् और
संसारक थ तके समय—इन अस य अव था म भी आप स य ह। पृ वी, जल, तेज, वायु
और आकाश इन पाँच यमान स य के आप ही कारण ह। और उनम अ तयामी पसे
वराजमान भी ह। आप इस यमान जगत्के परमाथ व प ह। आप ही मधुर वाणी और
समदशनके वतक ह। भगवन्! आप तो बस, स य व प ही ह। हम सब आपक शरणम
आये ह ।।२६।। यह संसार या है, एक सनातन वृ । इस वृ का आ य है—एक कृ त।
इसके दो फल ह—सुख और ःख; तीन जड़ ह—स व, रज और तम; चार रस ह—धम,
अथ, काम और मो । इसके जाननेके पाँच कार ह— ो , वचा, ने , रसना और
ना सका। इसके छः वभाव ह—पैदा होना, रहना, बढ़ना, बदलना, घटना और न हो जाना।
इस वृ क छाल ह सात धातुए— ँ रस, धर, मांस, मेद, अ थ, म जा और शु । आठ
शाखाएँ ह—पाँच महाभूत, मन, बु और अहंकार। इसम मुख आ द नव ार खोड़र ह।
ाण, अपान, ान, उदान, समान, नाग, कूम, कृकल, दे वद और धनंजय—ये दस ाण ही
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इसके दस प े ह। इस संसार प वृ पर दो प ी ह—जीव और ई र ।।२७।। इस संसार प
वृ क उ प के आधार एकमा आप ही ह। आपम ही इसका लय होता है और आपके
ही अनु हसे इसक र ा भी होती है। जनका च आपक मायासे आवृत हो रहा है, इस
स यको समझनेक श खो बैठा है—वे ही उ प , थ त और लय करनेवाले ाद
दे वता को अनेक दे खते ह। त व ानी पु ष तो सबके पम केवल आपका ही दशन करते
ह ।।२८।। आप ान व प आ मा ह। चराचर जगत्के क याणके लये ही अनेक प
धारण करते ह। आपके वे प वशु अ ाकृत स वमय होते ह और संत पु ष को ब त
सुख दे ते ह। साथ ही को उनक ताका द ड भी दे ते ह। उनके लये अमंगलमय भी
होते ह ।।२९।। कमलके समान कोमल अनु हभरे ने वाले भो! कुछ बरले लोग ही
आपके सम त पदाथ और ा णय के आ य व प पम पूण एका तासे अपना च
लगा पाते ह और आपके चरणकमल पी जहाजका आ य लेकर इस संसारसागरको
बछड़ेके खुरके गढ़े के समान अनायास ही पार कर जाते ह। य न हो, अबतकके संत ने इसी
जहाजसे संसार-सागरको पार जो कया है ।।३०।। परम काश व प परमा मन्! आपके
भ जन सारे जगत्के न कपट ेमी, स चे हतैषी होते ह। वे वयं तो इस भयंकर और
क से पार करनेयो य संसारसागरको पार कर ही जाते ह, क तु और के क याणके लये भी
वे यहाँ आपके चरण-कमल क नौका था पत कर जाते ह। वा तवम स पु ष पर आपक
महान् कृपा है। उनके लये आप अनु ह व प ही ह ।।३१।। कमलनयन! जो लोग आपके
चरणकमल क शरण नह लेते तथा आपके त भ भावसे र हत होनेके कारण जनक
बु भी शु नह है, वे अपनेको झूठ-मूठ मु मानते ह। वा तवम तो वे ब ही ह। वे य द
बड़ी तप या और साधनाका क उठाकर कसी कार ऊँचे-से-ऊँचे पदपर भी प ँच जायँ,
तो भी वहाँसे नीचे गर जाते ह ।।३२।। पर तु भगवन्! जो आपके अपने नज जन ह,
ज ह ने आपके चरण म अपनी स ची ी त जोड़ रखी है, वे कभी उन ाना भमा नय क
भाँ त अपने साधन-मागसे गरते नह । भो! वे बड़े-बड़े व न डालनेवाल क सेनाके
सरदार के सरपर पैर रखकर नभय वचरते ह, कोई भी व न उनके मागम कावट नह
डाल सकते; य क उनके र क आप जो ह ।।३३।। आप संसारक थ तके लये सम त
दे हधा रय को परम क याण दान करनेवाला वशु स वमय, स चदान दमय परम द
मंगल- व ह कट करते ह। उस पके कट होनेसे ही आपके भ वेद, कमका ड,
अ ांगयोग, तप या और समा धके ारा आपक आराधना करते ह। बना कसी आ यके वे
कसक आराधना करगे? ।।३४।। भो! आप सबके वधाता ह। य द आपका यह वशु
स वमय नज व प न हो, तो अ ान और उसके ारा होनेवाले भेदभावको न करनेवाला
अपरो ान ही कसीको न हो। जगत्म द खनेवाले तीन गुण आपके ह और आपके ारा
ही का शत होते ह, यह स य है। पर तु इन गुण क काशक वृ य से आपके व पका
केवल अनुमान ही होता है, वा त वक व पका सा ा कार नह होता। (आपके व पका
सा ा कार तो आपके इस वशु स वमय व पक सेवा करनेपर आपक कृपासे ही होता
है) ।।३५।। भगवन्! मन और वेद-वाणीके ारा केवल आपके व पका अनुमानमा होता
बभ ष पा यवबोध आ मा
ेमाय लोक य चराचर य ।
स वोपप ा न सुखावहा न
सतामभ ा ण मु ः खलानाम् ।।२९
म या क छपनृ सहवराहहंस-
राज य व वबुधेषु कृतावतारः ।
वं पा स न भुवनं च यथाधुनेश
भारं भुवो हर य म व दनं ते ।।४०
२. हासुरैः।
* शेष भगवान्ने वचार कया क ‘रामावतारम म छोटा भाई बना, इसीसे मुझे बड़े
तम तं बालकम बुजे णं
चतुभुजं शंखगदायुदायुधम्२ ।
ीव सल मं गलशो भकौ तुभं
पीता बरं सा पयोदसौभगम् ।।९
स व मयो फु ल वलोचनो ह र
सुतं वलो यानक भ तदा ।
कृ णावतारो सवस मोऽ पृशन्
मुदा जे योऽयुतमा लुतो गवाम् ।।११
वसुदेवजीने दे खा, उनके सामने एक अद्भुत बालक है। उसके ने कमलके समान
कोमल और वशाल ह। चार सु दर हाथ म शंख, गदा, च और कमल लये ए ह।
व ः थलपर ीव सका च —अ य त सु दर सुवणमयी रेखा है। गलेम कौ तुभम ण
झल मला रही है। वषाकालीन मेघके समान परम सु दर यामल शरीरपर मनोहर पीता बर
फहरा रहा है। ब मू य वै यम णके करीट और कु डलक का तसे सु दर-सु दर घुँघराले
बाल सूयक करण के समान चमक रहे ह। कमरम चमचमाती करधनीक ल ड़याँ लटक रही
ह। बाँह म बाजूबंद और कलाइय म कंकण शोभायमान हो रहे ह। इन सब आभूषण से
सुशो भत बालकके अंग-अंगसे अनोखी छटा छटक रही है ।।९-१०।। जब वसुदेवजीने दे खा
क मेरे पु के पम तो वयं भगवान् ही आये ह, तब पहले तो उ ह असीम आ य आ;
स प य समु पा य तेऽनुगता इव ।
ागेव व मान वा तेषा मह स भवः ।।१६
व ोऽ य ज म थ तसंयमान् वभो
वद यनीहादगुणाद व यात् ।
वयी रे ण नो व यते
वदा य वा पचयते गुणैः ।।१९
अयं वस य तव ज म नौ गृहे
ु वा जां ते यवधीत् सुरे र ।
स तेऽवतारं पु षैः सम पतं
ु वाधुनैवा भसर युदायुधः ।।२२
ीशुक उवाच
म य मृ यु ालभीतः पलायन्
लोकान् सवा भयं ना यग छत् ।
व पादा जं ा य य छया
व थः शेते मृ युर मादपै त ।।२७
न द जं शौ र पे य त तान्
गोपान् सु तानुपल य न या ।
सुतं यशोदाशयने नधाय त-
सुतामुपादाय पुनगृहानगात् ।।५१
दे व याः शयने य य वसुदेवोऽथ दा रकाम् ।
तमु य पदोल हमा ते पूववदावृतः ।।५२
* जैसे अ तःकरण शु होनेपर उसम भगवान्का आ वभाव होता है, ीकृ णावतारके
अवसरपर भी ठ क उसी कारका सम क शु का वणन कया गया है। इसम काल,
दशा, पृ वी, जल, अ न, वायु, आकाश, मन और आ मा—इस नौ का अलग-अलग
नामो लेख करके साधकके लये एक अ य त उपयोगी साधन-प तक ओर संकेत कया
गया है।
काल—
भगवान् कालसे परे ह। शा और स पु ष के ारा ऐसा न पण सुनकर काल मानो
ु हो गया था और प धारण करके सबको नगल रहा था। आज जब उसे मालूम
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आ क वयं प रपूणतम भगवान् ीकृ ण मेरे अंदर अवतीण हो रहे ह, तब वह आन दसे
भर गया और सम त सद्गुण को धारणकर तथा सुहावना बनकर कट हो गया।
दशा—
१. ाचीन शा म दशा को दे वी माना गया है। उनके एक-एक वामी भी होते ह—
जैसे ाचीके इ , तीचीके व ण आ द। कंसके रा य-कालम ये दे वता पराधीन—कैद हो
गये थे। अब भगवान् ीकृ णके अवतारसे दे वता क गणनाके अनुसार यारह-बारह
दन म ही उ ह छु टकारा मल जायगा, इस लये अपने प तय के संगम-सौभा यका अनुसंधान
करके दे वयाँ स हो गय । जो दे व एवं दशाके प र छे दसे र हत ह, वे ही भु भारत दे शके
ज- दे शम आ रहे ह, यह अपूव आन दो सव भी दशा क स ताका हेतु है।
२. सं कृत-सा ह यम दशा का एक नाम ‘आशा’ भी है। दशा क स ताका एक
अथ यह भी है क अब स पु ष क आशा-अ भलाषा पूण होगी।
३. वराट् पु षके अवयव-सं थानका वणन करते समय दशा को उनका कान बताया
गया है। ीकृ णके अवतारके अवसरपर दशाएँ मानो यह सोचकर स हो गय क भु
असुर-असाधु के उप वसे ःखी ा णय क ाथना सुननेके लये सतत सावधान ह।
पृ वी—
१. पुराण म भगवान्क दो प नय का उ लेख मलता है—एक ीदे वी और सरी
भूदेवी। ये दोन चल-स प और अचल-स प क वा मनी ह। इनके प त ह—भगवान्,
जीव नह । जस समय ीदे वीके नवास थान वैकु ठसे उतरकर भगवान् भूदेवीके
नवास थान पृ वीपर आने लगे, तब जैसे परदे शसे प तके आगमनका समाचार सुनकर प नी
सज-धजकर अगवानी करनेके लये नकलती है, वैसे ही पृ वीका मंगलमयी होना,
मंगल च को धारण करना वाभा वक ही है।
२. भगवान्के ीचरण मेरे व ः थलपर पड़गे, अपने सौभा यका ऐसा अनुस धान करके
पृ वी आन दत हो गयी।
३. वामन चारी थे। परशुरामजीने ा ण को दान दे दया। ीरामच ने मेरी पु ी
जानक से ववाह कर लया। इस लये उन अवतार म म भगवान्से जो सुख नह ा त कर
सक , वही ीकृ णसे ा त क ँ गी। यह सोचकर पृ वी मंगलमयी हो गयी।
४. अपने पु मंगलको गोदम लेकर प तदे वका वागत करने चली।
जल (न दयाँ)—
१. न दय ने वचार कया क रामावतारम सेतु-ब धके बहाने हमारे पता पवत को हमारी
ससुराल समु म प ँचाकर इ ह ने हम मायकेका सुख दया था। अब इनके शुभागमनके
अवसरपर हम भी स होकर इनका वागत करना चा हये।
२. न दयाँ सब गंगाजीसे कहती थ —‘तुमने हमारे पता पवत दे खे ह, अपने पता
भगवान् व णुके दशन कराओ।’ गंगाजीने सुनी-अनसुनी कर द । अब वे इस लये स हो
गय क हम वयं दे ख लगी।
३. य प भगवान् समु म न य नवास करते ह, फर भी ससुराल होनेके कारण वे उ ह
इस लये वे अपने शेष पसे ीकृ णके छ बनकर जलका नवारण करते ए चले। उ ह ने
सोचा क य द मेरे रहते मेरे वामीको वषासे क प ँचा तो मुझे ध कार है। इस लये उ ह ने
अपना सर आगे कर दया। अथवा उ ह ने यह सोचा क ये व णुपद (आकाश) वासी मेघ
परोपकारके लये अधःप तत होना वीकार कर लेते ह, इस लये ब लके समान सरसे
व दनीय ह।
† १. ीकृ ण शशुको अपनी ओर आते दे खकर यमुनाजीने वचार कया—अहा!
जनके चरण क धू ल स पु ष के मानस- यानका वषय है, वे ही आज मेरे तटपर आ रहे
ह। वे आन द और ेमसे भर गय , आँख से इतने आँसू नकले क बाढ़ आ गयी।
२. मुझे यमराजक ब हन समझकर ीकृ ण अपनी आँख न फेर ल, इस लये वे अपने
वशाल जीवनका दशन करने लग ।
३. ये गोपालनके लये गोकुलम जा रहे ह, ये सह -सह लह रयाँ गौएँ ही तो ह। ये
उ ह के समान इनका भी पालन कर।
४. एक का लयनाग तो मुझम पहलेसे ही है, यह सरे शेषनाग आ रहे ह। अब मेरी या
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ग त होगी—यह सोचकर यमुनाजी अपने थपेड़ से उनका नवारण करनेके लये बढ़ गय ।
‡ १. एकाएक यमुनाजीके मनम वचार आया क मेरे अगाध जलको दे खकर कह
ीकृ ण यह न सोच ल क म इसम खेलूँगा कैसे, इस लये वे तुरंत कह क ठभर, कह
ना भभर और कह घुटन तक जलवाली हो गय ।
२. जैसे ःखी मनु य दयालु पु षके सामने अपना मन खोलकर रख दे ता है, वैसे ही
का लयनागसे त अपने दयका ःख नवेदन कर दे नेके लये यमुनाजीने भी अपना दल
खोलकर ीकृ णके सामने रख दया।
३. मेरी नीरसता दे खकर ीकृ ण कह जल डा करना और पटरानी बनाना अ वीकार
न कर द, इस लये वे उ छृ ं खलता छोड़कर बड़ी वनयसे अपने दयक संकोचपूण रसरी त
कट करने लग ।
४. जब इ ह ने सूयवंशम रामावतार हण कया, तब माग न दे नेपर च माके पता
समु को बाँध दया था। अब ये च वंशम कट ए ह और म सूयक पु ी ँ। य द म इ ह
माग न ँ गी तो ये मुझे भी बाँध दगे। इस डरसे मानो यमुनाजी दो भाग म बँट गय ।
५. स पु ष कहते ह क दयम भगवान्के आ जानेपर अलौ कक सुख होता है। मानो
उसीका उपभोग करनेके लये यमुनाजीने भगवान्को अपने भीतर ले लया।
६. मेरा नाम कृ णा, मेरा जल कृ ण, मेरे बाहर ीकृ ण ह। फर मेरे दयम ही उनक
फू त य न हो? ऐसा सोचकर माग दे नेके बहाने यमुनाजीने ीकृ णको अपने दयम ले
लया।
इ त भा य तं दे वी माया भगवती भु व ।
ब नाम नकेतेषु ब नामा बभूव ह ।।१३
दै वम यनृतं व न म या एव केवलम् ।
य भादहं पापः वसु नहतवा छशून् ।।१७
गो यः सुमृ म णकु डल न कक -
ा बराः प थ शखा युतमा यवषाः ।
न दालयं सवलया जती वरेज-ु
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ालोलकु डलपयोधरहारशोभाः ।।११
न दो महामना ते यो वासोऽलंकारगोधनम्३ ।
सूतमागधव द यो येऽ ये व ोपजी वनः ।।१५
१. दे वा । २. हतां।
१. धना पतृ०। २. षाः सव सा ह र०।
* पौरा णक। † वंशका वणन करनेवाले। ‡ समयानुसार उ य से तु त करनेवाले
भाट। जैसा क कहा है—‘सूताः पौरा णकाः ो ा मागधावंशशंसकाः ।
व दन वमल ाः तावस शो यः ।। ’
१. जीवे त। २. न द जमुपेयु ष। ३. धनैः।
नय वणाद न र ो ना न वकमसु ।
कुव त सा वतां भतुयातुधा य त ह ।।३
अ धकूपगभीरा ं पु लनारोहभीषणम् ।
ब सेतभ
ु ुजोवङ् शू यतोय दोदरम् ।।१६
बालं च त या उर स ड तमकुतोभयम् ।
गो य तूण सम ये य जगृ जातस माः ।।१८
राजे ! पूतनाके शरीरने गरते- गरते भी छः कोसके भीतरके वृ को कुचल
डाला। यह बड़ी ही अद्भुत घटना ई ।।१४।। पूतनाका शरीर बड़ा भयानक था,
उसका मुँह हलके समान तीखी और भयंकर दाढ़ से यु था। उसके नथुने पहाड़क
गुफाके समान गहरे थे और तन पहाड़से गरी ई च ान क तरह बड़े-बड़े थे। लाल-
लाल बाल चार ओर बखरे ए थे ।।१५।। आँख अंधे कूएँके समान गहरी नत ब
नद के करारक तरह भयंकर; भुजाएँ, जाँघ और पैर नद के पुलके समान तथा पेट
सूखे ए सरोवरक भाँ त जान पड़ता था ।।१६।। पूतनाके उस शरीरको दे खकर सब-
के-सब वाल और गोपी डर गये। उसक भयंकर च लाहट सुनकर उनके दय, कान
और सर तो पहले ही फट-से रहे थे ।।१७।। जब गो पय ने दे खा क बालक ीकृ ण
उसक छातीपर नभय होकर खेल रहे ह,* तब वे बड़ी घबराहट और उतावलीके साथ
झटपट वहाँ प ँच गय तथा ीकृ णको उठा लया ।।१८।।
यशोदारो हणी यां ताः समं बाल य सवतः ।
र ां वद धरे स य गोपु छ मणा द भः ।।१९
च य तः सहगदो ह रर तु प ात्
व पा योधनुरसी मधुहाजन ।
कोणेषु शंख उ गाय उपयुपे -
ता यः तौ हलधरः पु षः सम तात् ।।२३
य छृ वतोऽपै यर त वतृ णा
स वं च शु य य चरेण पुंसः ।
भ हरौ त पु षे च स यं
तदे व हारं वद म यसे चेत् ।।२
इ त खरपवनच पांसुवष
सुतपदवीमबला वल य माता ।
अ तक णमनु मर यशोचद्
भु व प तता मृतव सका यथा गौः ।।२४
दतमनु नश य त गो यो
भृशमनुत त धयोऽ ुपूणमु यः ।
रनुपल य न दसूनुं
पवन उपारतपांसुवषवेगे ।।२५
गल हण न े ो दै यो नगतलोचनः ।
अ रावो यपतत् सहबालो सु जे ।।२८
ादाय मा ेत य१ व मताः
कृ णं च त योर स ल बमानम् ।
तं व तम तं पु षादनीतं
वहायसा मृ युमुखात् मु म् ।
गो य गोपाः कल न दमु या
क न तप ीणमधो जाचनं
पूत द मुत भूतसौ दम् ।
य संपरेतः पुनरेव बालको
द ा वब धून् णय ुप थतः ।।३२
् वा ता न ब शो न दगोपो बृह ने ।
वसुदेववचो भूयो मानयामास व मतः ।।३३
या ा करते समय उसने लोमश ऋ षके आ मके वृ को कुचल डाला। लोमश ऋ षने
ोध करके शाप दे दया—‘अरे ! जा, तू दे हर हत हो जा।’ उसी समय साँपके
कचुलके समान उसका शरीर गरने लगा। वह धड़ामसे लोमश ऋ षके चरण पर गर
पड़ा और ाथना क —‘कृपा स धो! मुझपर कृपा क जये। मुझे आपके भावका
ान नह था। मेरा शरीर लौटा द जये।’ लोमशजी स हो गये। महा मा का शाप
भी वर हो जाता है। उ ह ने कहा—‘वैव वत म व तरम ीकृ णके चरण- पशसे तेरी
मु हो जायगी।’ वही असुर छकड़ेम आकर बैठ गया था और भगवान् ीकृ णके
चरण पशसे मु हो गया।
* पा डु देशम सह ा नामके एक राजा थे। वे नमदा-तटपर अपनी रा नय के साथ
इ त सं च तय छ वा दे व या दा रकावचः ।
अ प ह ताऽऽगताशंक त ह त ोऽनयो भवेत् ।।९
न द उवाच
अल तोऽ मन् रह स मामकैर प गो जे ।
कु जा तसं कारं व तवाचनपूवकम् ।।१०
ीशुक उवाच
एवं स ा थतो व ः व चक षतमेव तत् ।
चकार नामकरणं गूढो रह स बालयोः ।।११
गग उवाच
अयं ह रो हणीपु ो रमयन् सु दो गुणैः ।
आ या यते राम इ त बला ध याद् बलं व ः ।
य नामपृथ भावात् संकषणमुश युत ।।१२
गगाचायजीने कहा—न दजी! म सब जगह य वं शय के आचायके पम स
ँ। य द म तु हारे पु के सं कार क ँ गा, तो लोग समझगे क यह तो दे वक का पु
है ।।७।। कंसक बु बुरी है, वह पाप ही सोचा करती है। वसुदेवजीके साथ तु हारी
बड़ी घ न म ता है। जबसे दे वक क क यासे उसने यह बात सुनी है क उसको
मारनेवाला और कह पैदा हो गया है, तबसे वह यही सोचा करता है क दे वक के
आठव गभसे क याका ज म नह होना चा हये। य द म तु हारे पु का सं कार कर ँ
और वह इस बालकको वसुदेवजीका लड़का समझकर मार डाले, तो हमसे बड़ा
अ याय हो जायगा ।।८-९।।
न दबाबाने कहा—आचायजी! आप चुपचाप इस एका त गोशालाम केवल
व तवाचन करके इस बालकका जा तसमु चत नामकरण-सं कारमा कर द जये।
ब न स त नामा न पा ण च सुत य ते ।
गुणकमानु पा ण ता यहं वेद नो जनाः ।।१५
य नादशनीयकुमारलीला-
व त जे तदबलाः गृहीतपु छै ः ।
कृ ण य गो यो चरं वी य कौमारचापलम् ।
शृ व याः कल त मातु र त होचुः समागताः ।।२८
व सान् मुंचन् व चदसमये
ोशसंजातहासः
तेयं वा यथ द ध पयः
क पतैः तेययोगैः ।
मकान् भो यन् वभज त स चे-
ा भा डं भन
ालाभे स गृहकु पतो
या युप ो य तोकान् ।।२९
ह ता ा े रचय त व ध
पीठकोलूखला ै-
छ ं त न हतवयुनः
श यभा डेषु तद् वत् ।
वा तागारे धृतम णगणं
वांगमथ द पं
काले गो यो य ह गृहकृ-
येषु सु च ाः ।।३०
‘अरी यशोदा! यह तेरा का हा बड़ा नटखट हो गया है। गाय हनेका समय न
होनेपर भी यह बछड़ को खोल दे ता है और हम डाँटती ह, तो ठठा-ठठाकर हँसने
लगता है। यह चोरीके बड़े-बड़े उपाय करके हमारे मीठे -मीठे दही- ध चुरा-चुराकर खा
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जाता है। केवल अपने ही खाता तो भी एक बात थी, यह तो सारा दही- ध वानर को
बाँट दे ता है और जब वे भी पेट भर जानेपर नह खा पाते, तब यह हमारे माट को ही
फोड़ डालता है। य द घरम कोई व तु इसे नह मलती तो यह घर और घरवाल पर
ब त खीझता है और हमारे ब च को लाकर भाग जाता है ।।२९।। जब हम दही-
धको छ क पर रख दे ती ह और इसके छोटे -छोटे हाथ वहाँतक नह प ँच पाते, तब
यह बड़े-बड़े उपाय रचता है। कह दो-चार पीढ़ को एकके ऊपर एक रख दे ता है। कह
ऊखलपर चढ़ जाता है तो कह ऊखलपर पीढ़ा रख दे ता है, (कभी-कभी तो अपने
कसी साथीके कंधेपर ही चढ़ जाता है।) जब इतनेपर भी काम नह चलता, तब यह
नीचेसे ही उन बतन म छे द कर दे ता है। इसे इस बातक प क पहचान रहती है क
कस छ केपर कस बतनम या रखा है। और ऐसे ढं गसे छे द करना जानता है क
कसीको पतातक न चले। जब हम अपनी व तु को ब त अँधेरेम छपा दे ती ह, तब
न दरानी! तुमने जो इसे ब त-से म णमय आभूषण पहना रखे ह, उनके काशसे
अपने-आप ही सब कुछ दे ख लेता है। इसके शरीरम भी ऐसी यो त है क जससे इसे
सब कुछ द ख जाता है। यह इतना चालाक है क कब कौन कहाँ रहता है, इसका पता
रखता है और जब हम सब घरके काम-धंध म उलझी रहती ह, तब यह अपना काम
बना लेता है ।।३०।। ऐसा करके भी ढठाईक बात करता है—उलटे हम ही चोर
बनाता और अपने घरका मा लक बन जाता है। इतना ही नह , यह हमारे लपे-पुते
व छ घर म मू आ द भी कर दे ता है। त नक दे खो तो इसक ओर, वहाँ तो चोरीके
अनेक उपाय करके काम बनाता है और यहाँ मालूम हो रहा है मानो प थरक मू त
खड़ी हो! वाह रे भोले-भाले साधु!’ इस कार गो पयाँ कहती जात और ीकृ णके
भीत-च कत ने से यु मुखकमलको दे खती जात । उनक यह दशा दे खकर न दरानी
यशोदाजी उनके मनका भाव ताड़ लेत और उनके दयम नेह और आन दक बाढ़
आ जाती। वे इस कार हँसने लगत क अपने लाड़ले क हैयाको इस बातका उलाहना
भी न दे पात , डाँटनेक बाततक नह सोच पात * ।।३१।।
एवं धा ा युश त कु ते
मेहनाद न वा तौ
तेयोपायै वर चतकृ तः
सु तीको यथाऽऽ ते ।
इ थं ी भः सभयनयन-
ीमुखालो कनी भ-
ा याताथा ह सतमुखी
न पाल धुमै छत् ।।३१
उलूखलाङ् े प र व थतं
मकाय कामं ददतं श च थतम् ।
हैयंगवं चौय वशं कते णं
नरी य प ात् सुतमागम छनैः ।।८
कृतागसं तं द तम णी
कष तमंज म षणी वपा णना ।
उ माणं भय व ले णं
ह ते गृही वा भषय यवागुरत् ।।११
असावधानी नह है। सेवाकमम पूरी त परता है। रेशमी लहँगा इसी लये पहने ह क कसी
कारक अप व ता रह गयी तो मेरे क हैयाको कुछ हो जायगा।
माताके दयका रस नेह— ध तनके मुँह आ लगा है, चुचुआ रहा है, बाहर झाँक रहा
है। यामसु दर आव, उनक पहले मुझपर पड़े और वे पहले माखन न खाकर मुझे ही
पीव—यही उसक लालसा है।
तनके काँपनेका अथ यह है क उसे डर भी है क कह मुझे नह पया तो!
कंकण और कु डल नाच-नाचकर मैयाको बधाई दे रहे ह। यशोदा मैयाके हाथ के कंकण
इस लये झंकार व न कर रहे ह क वे आज उन हाथ म रहकर ध य हो रहे ह क जो हाथ
भगवान्क सेवाम लगे ह। और कु डल यशोदा मैयाके मुखसे लीला-गान सुनकर परमान दसे
हलते ए कान क सफलताक सूचना दे रहे ह। हाथ वही ध य ह, जो भगवान्क सेवा कर
और कान वे ध य ह, जनम भगवान्के लीला-गुण-गानक सुधाधारा वेश करती रहे। मुँहपर
वेद और मालतीके पु प के नीचे गरनेका यान माताको नह है। वह शृंगार और शरीर भूल
चुक ह। अथवा मालतीके पु प वयं ही चो टय से छू टकर चरण म गर रहे ह क ऐसी
वा स यमयी माके चरण म ही रहना सौभा य है, हम सरपर रहनेके अ धकारी नह ।
† दयम लीलाक सुख मृ त, हाथ से द धम थन और मुखसे लीलागान—इस कार
मन, तन, वचन तीन का ीकृ णके साथ एकतान संयोग होते ही ीकृ ण जगकर ‘मा-मा’
पुकारने लगे। अबतक भगवान् ीकृ ण सोये ए-से थे। माक नेह-साधनाने उ ह जगा
दया। वे नगुणसे सगुण ए, अचलसे चल ए, न कामसे सकाम ए; नेहके भूखे- यासे
माके पास आये। या ही सु दर नाम है—‘ त यकाम’! म थन करते समय आये, बैठ -
ठालीके पास नह ।
सव भगवान् साधनक ेरणा दे ते ह, अपनी ओर आकृ करते ह; पर तु मथानी
पीऊँगा’—दोन हाथ से मैयाक कमर पकड़कर एक पाँव घुटनेपर रखा और गोदम चढ़ गये।
तनका ध बरस पड़ा। मैया ध पलाने लगी, लाला मुसकराने लगे, आँख मुसकानपर जम
गय । ‘ई ती’ पदका यह अ भ ाय है क जब लाला मुँह उठाकर दे खेगा और मेरी आँख
उसपर लगी मलगी, तब उसे बड़ा सुख होगा।
सामने प ग धा गायका ध गरम हो रहा था। उसने सोचा—‘ नेहमयी मा यशोदाका ध
कभी कम न होगा, यामसु दरक यास कभी बुझेगी नह ! उनम पर पर होड़ लगी है। म
बेचारा युग-युगका, ज म-ज मका यामसु दरके होठ का पश करनेके लये ाकुल तप-
तपकर मर रहा ँ। अब इस जीवनसे या लाभ जो ीकृ णके काम न आवे। इससे अ छा है
उनक आँख के सामने आगम कूद पड़ना।’ माके ने प ँच गये। दया माको ीकृ णका भी
यान न रहा; उ ह एक ओर डालकर दौड़ पड़ी। भ भगवान्को एक ओर रखकर भी
ः खय क र ा करते ह। भगवान् अतृ त ही रह गये। या भ के दय-रससे, नेहसे उ ह
कभी तृ त हो सकती है? उसी दनसे उनका एक नाम आ—‘अतृ त’।
‡ ीकृ णके होठ फड़के। ोध होठ का पश पाकर कृताथ हो गया। लाल-लाल होठ
ेत- ेत धक दँ तु लय से दबा दये गये, मानो स वगुण रजोगुणपर शासन कर रहा हो,
ा ण यको श ा दे रहा हो। वह ोध उतरा द धम थनके मटकेपर। उसम एक असुर
आ बैठा था। द भने कहा—काम, ोध और अतृ तके बाद मेरी बारी है। वह आँसू बनकर
आँख म छलक आया। ीकृ ण अपने भ जन के त अपनी ममताक धारा उड़ेलनेके
लये या- या भाव नह अपनाते? ये काम, ोध, लोभ और द भ भी आज -सं पश
ा त करके ध य हो गये! ीकृ ण घरम घुसकर बासी म खन गटकने लगे, मानो माको
दखा रहे ह क म कतना भूखा ँ।
ेमी भ के ‘पु षाथ’ भगवान् नह ह, भगवान्क सेवा है। ये भगवान्क सेवाके लये
भगवान्का भी याग कर सकते ह। मैयाके अपने हाथ हा आ यह प ग धा गाय का ध
ीकृ णके लये ही गरम हो रहा था। थोड़ी दे रके बाद ही उनको पलाना था। ध उफन
जायगा तो मेरे लाला भूखे रहगे—रोयगे, इसी लये माताने उ ह नीचे उतारकर धको
सँभाला।
* यशोदा माता धके पास प ँच । ेमका अद्भुत य! पु को गोदसे उतारकर उसके
पेयके त इतनी ी त य ? अपनी छातीका ध तो अपना है, वह कह जाता नह । पर तु
यह सह छट ई गाय के धसे पा लत प ग धा गायका ध फर कहाँ मलेगा?
वृ दावनका ध अ ाकृत, च मय, ेमजगत्का ध—माको आते दे खकर शमसे दब गया।
‘अहो! आगम कुदनेका संक प करके मने माके नेहान दम कतना बड़ा व न कर डाला?
और मा अपना आन द छोड़कर मेरी र ाके दौड़ी आ रही है। मुझे ध कार है।’ धका
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उफनना बंद हो गया और वह त काल अपने थानपर बैठ गया।
† ‘मा! तुम अपनी गोदम नह बैठाओगी तो म कसी खलक गोदम जा बैठँ ू गा’—यही
सोचकर मानो ीकृ ण उलटे ऊखलके ऊपर जा बैठे। उदार पु ष भले ही खल क संग तम
जा बैठ, पर तु उनका शील- वभाव बदलता नह है। ऊखलपर बैठकर भी वे ब दर को
माखन बाँटने लगे। स भव है रामावतारके त जो कृत ताका भाव आ था, उसके कारण
अथवा अभी-अभी ोध आ गया था, उसका ाय करनेके लये!
ीकृ णके ने ह ‘चौय वशं कत’ यान करनेयो य। वैसे तो उनके ल लत, क लत,
छ लत, ब लत, च कत आ द अनेक कारके येय ने ह, पर तु ये ेमीजन के दयम गहरी
चोट करते ह।
‡ भीत होकर भागते ए भगवान् ह। अपूव झाँक है! ऐ यको तो मानो मैयाके वा स य
ेमपर योछावर करके जके बाहर ही फक दया है! कोई असुर अ -श लेकर आता तो
सुदशन च का मरण करते। मैयाक छड़ीका नवारण करनेके लये कोई भी अ -श
नह ! भगवान्क यह भयभीत मू त कतनी मधुर है! ध य है इस भयको।
* माता यशोदाके शरीर और शृंगार दोन ही वरोधी हो गये—तुम यारे क हैयाको य
अ तः व य गंगायाम भोजवनरा ज न ।
च डतुयुव त भगजा वव करेणु भः ।।४
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! आप कृपया यह बतलाइये क नलकूबर और
म ण ीवको शाप य मला। उ ह ने ऐसा कौन-सा न दत कम कया था, जसके कारण
परम शा त दे व ष नारदजीको भी ोध आ गया? ।।१।।
ीशुकदे वजीने कहा—परी त्! नलकूबर और म ण ीव—ये दोन एक तो धना य
कुबेरके लाड़ले लड़के थे और सरे इनक गनती हो गयी भगवान्के अनुचर म। इससे
उनका घम ड बढ़ गया। एक दन वे दोन म दा कनीके तटपर कैलासके रमणीय उपवनम
वा णी म दरा पीकर मदो म हो गये थे। नशेके कारण उनक आँख घूम रही थ । ब त-सी
याँ उनके साथ गा-बजा रही थ और वे पु प से लदे ए वनम उनके साथ वहार कर रहे
थे ।।२-३।।
उस समय गंगाजीम पाँत-के-पाँत कमल खले ए थे। वे य के साथ जलके भीतर
घुस गये और जैसे हा थय का जोड़ा ह थ नय के साथ जल डा कर रहा हो, वैसे ही वे उन
युव तय के साथ तरह-तरहक डा करने लगे ।।४।।
द र ो नरहं त भो मु ः सवमदै रह ।
कृ ं य छयाऽऽ ो त त त य परं तपः ।।१५
न यं ु ामदे ह य द र या कां णः ।
इ या यनुशु य त हसा प व नवतते ।।१६
बतलाओ तो सही, यह शरीर कसक स प है? अ दे कर पालनेवालेक है या
गभाधान करानेवाले पताक ? यह शरीर उसे नौ महीने पेटम रखनेवाली माताका है अथवा
माताको भी पैदा करनेवाले नानाका? जो बलवान् पु ष बलपूवक इससे काम करा लेता है,
उसका है अथवा दाम दे कर खरीद लेनेवालेका? चताक जस धधकती आगम यह जल
जायगा, उसका है अथवा जो कु े- यार इसको चीथ-चीथकर खा जानेक आशा लगाये बैठे
ह, उनका? ।।११।।
यह शरीर एक साधारण-सी व तु है। कृ तसे पैदा होता है और उसीम समा जाता है।
ऐसी थ तम मूख पशु के सवा और ऐसा कौन बु मान् है जो इसको अपना आ मा
मानकर सर को क प ँचायेगा, उनके ाण लेगा ।।१२।।
जो ीमदसे अंधे हो रहे ह, उनक आँख म यो त डालनेके लये द र ता ही सबसे
बड़ा अंजन है; य क द र यह दे ख सकता है क सरे ाणी भी मेरे ही जैसे ह ।।१३।।
जसके शरीरम एक बार काँटा गड़ जाता है, वह नह चाहता क कसी भी ाणीको
काँटा गड़नेक पीड़ा सहनी पड़े; य क उस पीड़ा और उसके ारा होनेवाले वकार से वह
समझता है क सरेको भी वैसी ही पीड़ा होती है। पर तु जसे कभी काँटा गड़ा ही नह , वह
उसक पीड़ाका अनुमान नह कर सकता ।।१४।।
द र म घमंड और हेकड़ी नह होती; वह सब तरहके मद से बचा रहता है। ब क
दै ववश उसे जो क उठाना पड़ता है, वह उसके लये एक ब त बड़ी तप या भी है ।।१५।।
जसे त दन भोजनके लये अ जुटाना पड़ता है, भूखसे जसका शरीर बला-पतला
हो गया है, उस द र क इ याँ भी अ धक वषय नह भोगना चाहत , सूख जाती ह और
फर वह अपने भोग के लये सरे ा णय को सताता नह —उनक हसा नह
वासुदेव य सा यं ल वा द शर छते ।
वृ े वल कतां भूयो ल धभ भ व यतः ।।२२
ीशुक उवाच
एवमु वा स दे व षगतो नारायणा मम् ।
नलकूबरम ण ीवावासतुयमलाजुनौ ।।२३
य प साधु पु ष समदश होते ह, फर भी उनका समागम द र के लये ही सुलभ है;
य क उसके भोग तो पहलेसे ही छू टे ए ह। अब संत के संगसे उसक लालसा-तृ णा भी
मट जाती है और शी ही उसका अ तःकरण शु हो जाता है* ।।१७।। जन महा मा के
च म सबके लये समता है, जो केवल भगवान्के चरणार व द का मकर द-रस पीनेके लये
सदा उ सुक रहते ह, उ ह गुण के खजाने अथवा राचा रय क जी वका चलानेवाले और
धनके मदसे मतवाले क या आव यकता है? वे तो उनक उपे ाके ही पा ह† ।।१८।।
ये दोन य वा णी म दराका पान करके मतवाले और ीमदसे अंधे हो रहे ह। अपनी
इ य के अधीन रहनेवाले इन ी-ल पट य का अ ानज नत मद म चूर-चूर कर
ँ गा ।।१९।। दे खो तो सही, कतना अनथ है क ये लोकपाल कुबेरके पु होनेपर भी
मदो म होकर अचेत हो रहे ह और इनको इस बातका भी पता नह है क हम बलकुल
नंग-धड़ंग ह ।।२०।। इस लये ये दोन अब वृ यो नम जानेके यो य ह। ऐसा होनेसे इ ह फर
इस कारका अ भमान न होगा। वृ यो नम जानेपर भी मेरी कृपासे इ ह भगवान्क मृ त
इ य तरेणाजुनयोः कृ ण तु यमयोययौ ।
आ म नवशमा ेण तय गतमुलूखलम् ।।२६
वमेकः सवभूतानां दे हा वा मे ये रः ।
वमेव कालो भगवान् व णुर य ई रः ।।३०
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वं महान् कृ तः सू मा रजःस वतमोमयी ।
वमेव पु षोऽ य ः सव े वकार वत् ।।३१
पु षम पहले दो नह होते, केवल तीसरा ही दोष रहता है। इस लये स पु ष के संगसे धनक
तृ णा मट जानेपर ध नय क अपे ा उसका शी क याण हो जाता है।
† धन वयं एक दोष है। सातव क धम कहा है क जतनेसे पेट भर जाय, उससे
अ धकको अपना माननेवाला चोर है और द डका पा है—‘स तेनो द डमह त।’
भगवान् भी कहते ह— जसपर म अनु ह करता ँ, उसका धन छ न लेता ँ। इसीसे स पु ष
ायः ध नय क उपे ा करते ह।
‡ १. शाप वरदानसे तप या ीण होती है। नलकूबर-म ण ीवको शाप दे नेके प ात् नर-
नारायण-आ मक या ा करनेका यह अ भ ाय है क फरसे तपःसंचय कर लया जाय।
२. मने य पर जो अनु ह कया है, वह बना तप याके पूण नह हो सकता है, इस लये।
३. अपने आरा यदे व एवं गु दे व नारायणके स मुख अपना कृ य नवेदन करनेके लये।
* भगवान् ीकृ ण अपनी कृपा से उ ह मु कर सकते थे। पर तु वृ के पास
जानेका कारण यह है क दे व ष नारदने कहा था क तु ह वासुदेवका सा य ा त होगा।
† वृ के बीचम जानेका आशय यह है क भगवान् जसके अ तदशम वेश करते ह,
उसके जीवनम लेशका लेश भी नह रहता। भीतर वेश कये बना दोन का एक साथ
उ ार भी कैसे होता।
‡ जो भगवान्के गुण (भ -व स य आ द स ण या र सी) से बँधा आ है, वह तयक्
ग त (पशु-प ी या टे ढ़ चालवाला) ही य न हो— सर का उ ार कर सकता है।
अपने अनुयायीके ारा कया आ काम जतना यश कर होता है, उतना अपने हाथसे
नह । मानो यही सोचकर अपने पीछे -पीछे चलनेवाले ऊखलके ारा उनका उ ार करवाया।
* सवदा म मु रहता ँ और ब जीव मेरी तु त करते ह। आज म ब ँ और मु
जीव मेरी तु त कर रहे ह। यह वपरीत दशा दे खकर भगवान्को हँसी आ गयी।
† य ने वचार कया क जबतक यह सगुण (र सी) म बँधे ए ह, तभीतक हम इनके
दशन हो रहे ह। नगुणको तो मनम सोचा भी नह जा सकता। इसीसे भगवान्के बँधे रहते ही
वे चले गये।
व य तु उलूखल सवदा ीकृ णगुणशाली एव भूयाः ।
‘ऊखल! तु हारा क याण हो, तुम सदा ीकृ णके गुण से बँधे ही रहो।’—ऐसा
ऊखलको आशीवाद दे कर य वहाँसे चले गये।
इ थं यशोदा तमशेषशेखरं
म वा सुतं नेह नब धीनृप ।
ह ते गृही वा सहरामम युतं
नी वा ववाटं कृतव यथोदयम् ।।२०
वृ दावनं सं व य सवकालसुखावहम् ।
त च ु जावासं शकटै रधच वत् ।।३५
तं व स पणं वी य व सयूथगतं ह रः ।
दशयन् बलदे वाय शनैमु ध इवासदत् ।।४२
कृ णं महाबक तं ् वा रामादयोऽभकाः ।
बभूबु र याणीव वना ाणं वचेतसः ।।४९
तं तालुमूलं दह तम नवद्
गोपालसूनुं पतरं जगद्गुरोः ।
च छद स ोऽ त षा तं बक-
तु डेन ह तुं पुनर यप त ।।५०
भगवान्ने दे खा क वह बनावट बछड़ेका प धारणकर बछड़ के झुंडम मल गया
है। वे आँख के इशारेसे बलरामजीको दखाते ए धीरे-धीरे उसके पास प ँच गये। उस
समय ऐसा जान पड़ता था, मानो वे दै यको तो पहचानते नह और उस ह े -क े सु दर
बछड़ेपर मु ध हो गये ह ।।४२।। भगवान् ीकृ णने पूँछके साथ उसके दोन पछले पैर
पकड़कर आकाशम घुमाया और मर जानेपर कैथके वृ पर पटक दया। उसका ल बा-
तगड़ा दै यशरीर ब त-से कैथके वृ को गराकर वयं भी गर पड़ा ।।४३।। यह
दे खकर वालबाल के आ यक सीमा न रही। वे ‘वाह-वाह’ करके यारे क हैयाक
शंसा करने लगे। दे वता भी बड़े आन दसे फूल क वषा करने लगे ।।४४।।
परी त्! जो सारे लोक के एकमा र क ह, वे ही याम और बलराम अब
व सपाल (बछड़ के चरवाहे) बने ए ह। वे तड़के ही उठकर कलेवेक साम ी ले लेते
और बछड़ को चराते ए एक वनसे सरे वनम घूमा करते ।।४५।। एक दनक बात है,
सब वालबाल अपने झुंड-के-झुंड बछड़ को पानी पलानेके लये जलाशयके तटपर ले
गये। उ ह ने पहले बछड़ को जल पलाया और फर वयं भी पया ।।४६।।
वालबाल ने दे खा क वहाँ एक ब त बड़ा जीव बैठा आ है। वह ऐसा मालूम पड़ता
था, मानो इ के व से कटकर कोई पहाड़का टु कड़ा गरा आ है ।।४७।। वालबाल
उसे दे खकर डर गये। वह ‘बक’ नामका एक बड़ा भारी असुर था, जो बगुलेका प
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धरके वहाँ आया था। उसक च च बड़ी तीखी थी और वह वयं बड़ा बलवान् था।
उसने झपटकर ीकृ णको नगल लया ।।४८।। जब बलराम आ द बालक ने दे खा क
वह बड़ा भारी बगुला ीकृ णको नगल गया, तब उनक वही ग त ई जो ाण नकल
जानेपर इ य क होती है। वे अचेत हो गये ।।४९।। परी त्! ीकृ ण लोक पतामह
ाके भी पता ह। वे लीलासे ही गोपाल-बालक बने ए ह। जब वे बगुलेके तालुके
नीचे प ँचे, तब वे आगके समान उसका तालु जलाने लगे। अतः उस दै यने ीकृ णके
शरीरपर बना कसी कारका घाव कये ही झटपट उ ह उगल दया और फर बड़े
ोधसे अपनी कठोर च चसे उनपर चोट करनेके लये टू ट पड़ा ।।५०।। कंसका सखा
बकासुर अभी भ व सल भगवान् ीकृ णपर झपट ही रहा था क उ ह ने अपने दोन
हाथ से उसके दोन ठोर पकड़ लये और वालबाल के दे खते-दे खते खेल-ही-खेलम
उसे वैसे ही चीर डाला, जैसे कोई वीरण (गाँड़र, जसक जड़का खस होता है) को चीर
डाले। इससे दे वता को बड़ा आन द आ ।।५१।। सभी दे वता भगवान् ीकृ णपर
न दनवनके बेला, चमेली आ दके फूल बरसाने लगे तथा नगारे, शंख आ द बजाकर एवं
तो के ारा उनको स करने लगे। यह सब दे खकर सब-के-सब वालबाल
आ यच कत हो गये ।।५२।। जब बलराम आ द बालक ने दे खा क ीकृ ण बगुलेके
मुँहसे नकलकर हमारे पास आ गये ह, तब उ ह ऐसा आन द आ, मानो ाण के
संचारसे इ याँ सचेत और आन दत हो गयी ह । सबने भगवान्को अलग-अलग गले
लगाया। इसके बाद अपने-अपने बछड़े हाँककर सब जम आये और वहाँ उ ह ने
घरके लोग से सारी घटना कह सुनायी ।।५३।।
मु ं बका या पल य बालका
रामादयः ाण मवै यो गणः ।
थानागतं तं प रर य नवृताः
णीय व सान् जमे य त जगुः ।।५३
इ थं सतां सुखानुभू या
दा यं गतानां परदै वतेन ।
माया तानां नरदारकेण
साकं वज ः कृतपु यपुंजाः ।।११
य पादपांसुब ज मकृ तो
धृता म भय ग भर यल यः ।
स एव यद् वषयः वयं थतः
क व यते द मतो जौकसाम् ।।१२
् वाथकान् कृ णमुखानघासुरः
कंसानु श ः स बक बकानुजः ।
अयं तु मे सोदरनाशकृ यो-
योममैनं सबलं ह न ये ।।१४
धराधरो ो जलदो रो ो
दयानना तो ग रशृंगदं ः ।
वा ता तरा यो वतता व ज ः
् वा तं ता शं सव म वा वृ दावन यम् ।
ा ाजगरतु डेन े ते म लीलया ।।१८
अ मान् कम सता न व ा-
नयं तथा चेद ् बकवद् वनङ् य त ।
णादनेने त बकायुश मुखं
वी यो स तः करताडनैययुः ।।२४
अघासुरका ऐसा प दे खकर बालक ने समझा क यह भी वृ दावनक कोई शोभा है। वे
कौतुकवश खेल-ही-खेलम उ े ा करने लगे क यह मानो अजगरका खुला आ मुँह
है ।।१८।। कोई कहता—‘ म ो! भला बतलाओ तो, यह जो हमारे सामने कोई जीव-सा बैठा
है, यह हम नगलनेके लये खुले ए कसी अजगरके मुँह-जैसा नह है?’ ।।१९।। सरेने
कहा—‘सचमुच सूयक करण पड़नेसे ये जो बादल लाल-लाल हो गये ह, वे ऐसे मालूम होते
ह मानो ठ क-ठ क इसका ऊपरी होठ ही हो। और उ ह बादल क परछा से यह जो नीचेक
भू म कुछ लाल-लाल द ख रही है, वही इसका नीचेका होठ जान पड़ता है’ ।।२०।। तीसरे
वालबालने कहा—‘हाँ, सच तो है। दे खो तो सही, या ये दाय और बाय ओरक ग र-
क दराएँ अजगरके जबड़ क होड़ नह करत ? और ये ऊँची-ऊँची शखर-पं याँ तो साफ-
साफ इसक दाढ़ मालूम पड़ती ह’ ।।२१।। चौथेने कहा—‘अरे भाई! यह ल बी-चौड़ी सड़क
तो ठ क अजगरक जीभ-सरीखी मालूम पड़ती है और इन ग रशृंग के बीचका अ धकार तो
उसके मुँहके भीतरी भागको भी मात करता है’ ।।२२।। कसी सरे वालबालने कहा
—‘दे खो, दे खो! ऐसा जान पड़ता है क कह इधर जंगलम आग लगी है। इसीसे यह गरम
और तीखी हवा आ रही है। पर तु अजगरक साँसके साथ इसका या ही मेल बैठ गया है।
और उसी आगसे जले ए ा णय क ग ध ऐसी जान पड़ती है, मानो अजगरके पेटम मरे
ए जीव के मांसक ही ग ध हो’ ।।२३।। तब उ ह मसे एकने कहा—‘य द हमलोग इसके
मुँहम घुस जायँ, तो या यह हम नगल जायगा? अजी! यह या नगलेगा। कह ऐसा
करनेक ढठाइ क तो एक णम यह भी बकासुरके समान न हो जायगा। हमारा यह
क हैया इसको छोड़ेगा थोड़े ही।’ इस कार कहते ए वे वालबाल बकासुरको मारनेवाले
ीकृ णका सु दर मुख दे खते और ताली पीट-पीटकर हँसते ए अघासुरके मुँहम घुस
गये ।।२४।। उन अनजान ब च क आपसम क ई मपूण बात सुनकर भगवान् ीकृ णने
सोचा क ‘अरे, इ ह तो स चा सप भी झूठा तीत होता है!’ परी त्! भगवान् ीकृ ण
जान गये क यह रा स है। भला, उनसे या छपा रहता? वे तो सम त ा णय के दयम ही
नवास करते ह। अब उ ह ने यह न य कया क अपने सखा वालबाल को उसके मुँहम
जानेसे बचा ल ।।२५।। भगवान् इस कार सोच ही रहे थे क सब-के-सब वालबाल
बछड़ के साथ उस असुरके पेटम चले गये। पर तु अघासुरने अभी उ ह नगला नह , इसका
कारण यह था क अघासुर अपने भाई बकासुर और ब हन पूतनाके वधक याद करके इस
बातक बाट दे ख रहा था क उनको मारनेवाले ीकृ ण मुँहम आ जायँ, तब सबको एक साथ
ही नगल जाऊँ ।।२६।। भगवान् ीकृ ण सबको अभय दे नेवाले ह। जब उ ह ने दे खा क ये
तान् वी य कृ णः सकलाभय दो
न यनाथान् वकरादव युतान् ।
द नां मृ योजठरा नघासान्
घृणा दतो द कृतेन व मतः ।।२७
कृ यं कम ा य खल य जीवनं
न वा अमीषां च सतां व हसनम् ।
यं कथं या द त सं व च य त-
ा वा वश ु डमशेष घ रः ।।२८
ततोऽ त ाः वकृतोऽकृताहणं
पु पैः सुरा अ सरस नतनैः ।
गीतैः सुगा वा धरा वा कैः
तवै व ा जय नः वनैगणाः ।।३४
तद त तो सुवा गी तका-
जया दनैको सवमंगल वनान् ।
ु वा वधा नोऽ यज आगतोऽ चराद्
् वा महीश य जगाम व मयम् ।।३५
तथाघवदना मृ यो र वा व सपालकान् ।
स र पु लनमानीय भगवा नदम वीत् ।।४
कृ ण य व वक् पु रा जम डलै-
र याननाः फु ल शो जाभकाः ।
सहोप व ा व पने वरेज-ु
छदा यथा भो हक णकायाः ।।८
ब द् वेणुं जठरपटयोः
शृंगवे े च क े
वामे पाणौ मसृणकवलं
त फला य लीषु ।
त न् म ये वप रसु दो
हासयन् नम भः वैः
वग लोके मष त बुभुजे
य भुग् बालके लः ।।११
इ यु वा दरीकु ग रे वा मव सकान् ।
व च वन् भगवान् कृ णः सपा णकवलो ययौ ।।१४
अ भोज मज न तद तरगतो
मायाभक ये शतु-
ु ं मंजु म ह वम यद प
त सा नतो व सपान् ।
नी वा य कु हा तरदधात्
खेऽव थतो यः पुरा
् वाघासुरमो णं भवतः
ा तः परं व मयम् ।।१५
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भरतवंश शरोमणे! इस कार भोजन करते-करते वालबाल भगवान्क इस रसमयी
लीलाम त मय हो गये। उसी समय उनके बछड़े हरी-हरी घासके लालचसे घोर जंगलम बड़ी
र नकल गये ।।१२।। जब वालबाल का यान उस ओर गया, तब तो वे भयभीत हो गये।
उस समय अपने भ के भयको भगा दे नेवाले भगवान् ीकृ णने कहा—‘मेरे यारे म ो!
तुमलोग भोजन करना बंद मत करो। म अभी बछड़ को लये आता ँ’ ।।१३।। वालबाल से
इस कार कहकर भगवान् ीकृ ण हाथम दही-भातका कौर लये ही पहाड़ , गुफा , कुंज
एवं अ या य भयंकर थान म अपने तथा सा थय के बछड़ को ढूँ ढ़ने चल दये ।।१४।।
परी त्! ाजी पहलेसे ही आकाशम उप थत थे। भुके भावसे अघासुरका मो
दे खकर उ ह बड़ा आ य आ। उ ह ने सोचा क लीलासे मनु य-बालक बने ए भगवान्
ीकृ णक कोई और मनोहर म हमामयी लीला दे खनी चा हये। ऐसा सोचकर उ ह ने पहले
तो बछड़ को और भगवान् ीकृ णके चले जानेपर वाल-बाल को भी, अ य ले जाकर रख
दया और वयं अ तधान हो गये। अ ततः वे जड़ कमलक ही तो स तान ह ।।१५।।
तद णो मे रसा लुताशया
जातानुरागा गतम यवोऽभकान् ।
उ दो भः प रर य मूध न
ाणैरवापुः परमां मुदं ते ।।३३
ीव सांगददोर नक बुकंकणपाणयः ।
नूपुरैः कटकैभाताः क टसू ांगुलीयकैः ।।४८
् वा वरेण नजधोरणतोऽवतीय
पृ ां वपुः कनकद ड मवा भपा य ।
पृ ् वा चतुमुकुटको ट भरङ् यु मं
न वा मुद ुसुजलैरकृता भषेकम् ।।६२
अ या प दे व वपुषो मदनु ह य
वे छामय य न तु भूतमय य कोऽ प ।
नेशे म ह वव सतुं मनसाऽऽ तरेण
सा ा वैव कमुता मसुखानुभूतेः ।।२
ाजीने तु त क — भो! एकमा आप ही तु त करनेयो य ह। म आपके चरण म
नम कार करता ।ँ आपका यह शरीर वषाकालीन मेघके समान यामल है, इसपर थर
बजलीके समान झल मल- झल मल करता आ पीता बर शोभा पाता है, आपके गलेम
घुँघचीक माला, कान म मकराकृ त कु डल तथा सरपर मोरपंख का मुकुट है, इन सबक
का तसे आपके मुखपर अनोखी छटा छटक रही है। व ः थलपर लटकती ई वनमाला
और न ही-सी हथेलीपर दही-भातका कौर। बगलम बत और सगी तथा कमरक फटम
आपक पहचान बतानेवाली बाँसुरी शोभा पा रही है। आपके कमल-से सुकोमल परम
सुकुमार चरण और यह गोपाल-बालकका सुमधुर वेष। (म और कुछ नह जानता; बस, म तो
इ ह चरण पर नछावर ँ) ।।१।। वयं- काश परमा मन्! आपका यह ी व ह
भ जन क लालसा-अ भलाषा पूण करनेवाला है। यह आपक च मयी इ छाका मू तमान्
व प मुझपर आपका सा ात् कृपा- साद है। मुझे अनुगृहीत करनेके लये ही आपने इसे
कट कया है। कौन कहता है क यह पंचभूत क रचना है? भो! यह तो अ ाकृत शु
स वमय है। म या और कोई समा ध लगाकर भी आपके इस स चदान द- व हक म हमा
नह जान सकता। फर आ मा-न दानुभव व प सा ात् आपक ही म हमाको तो कोई
एका मनसे भी कैसे जान सकता है ।।२।। भो! जो लोग ानके लये य न न करके
अपने थानम ही थत रहकर केवल स संग करते ह और आपके ेमी संत पु ष के ारा
गायी ई आपक लीला-कथाका, जो उन लोग के पास रहनेसे अपने-आप सुननेको मलती
है, शरीर, वाणी और मनसे वनयावनत होकर सेवन करते ह—यहाँतक क उसे ही अपना
जीवन बना लेते ह, उसके बना जी ही नह सकते— भो! य प आपपर लोक म कोई
कभी वजय नह ा त कर सकता, फर भी वे आपपर वजय ा त कर लेते ह, आप उनके
ेमके अधीन हो जाते ह ।।३।। भगवन्! आपक भ सब कारके क याणका मूल ोत—
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उद्गम है। जो लोग उसे छोड़कर केवल ानक ा तके लये म उठाते और ःख भोगते
ह, उनको बस, लेश-ही लेश हाथ लगता है, और कुछ नह —जैसे थोथी भूसी
कूटनेवालेको केवल म ही मलता है, चावल नह ।।४।।
ाने यासमुदपा य नम त एव
जीव त स मुख रतां भवद यवाताम् ।
थाने थताः ु तगतां तनुवाङ् मनो भ-
य ायशोऽ जत जतोऽ य स तै लो याम् ।।३
प येश मेऽनायमन त आ े
परा म न व य प मा यमा य न ।
मायां वत ये तुमा मवैभवं
हं कयानै छ मवा चर नौ ।।९
जग या तोद धस लवोदे
नारायण योदरना भनालात् ।
व नगतोऽज व त वाङ् न वै मृषा
क वी र व व नगतोऽ म ।।१३
त चे जल थं तव स जग पुः
क मे न ं भगवं तदै व ।
क वा सु ं द मे तदै व
क नो सप ेव पुन द श ।।१५
अ ैव मायाधमनावतारे
य पंच य ब हः फुट य ।
अ तभवेऽन त भव तमेव
त यज तो मृगय त स तः ।
अस तम य य हम तरेण
स तं गुणं तं कमु य त स तः ।।२८
संसार-स ब धी ब धन और उससे मो —ये दोन ही नाम अ ानसे क पत ह। वा तवम
ये अ ानके ही दो नाम ह। ये स य और ान व प परमा मासे भ अ त व नह रखते।
जैसे सूयम दन और रातका भेद नह है, वैसे ही वचार करनेपर अख ड च व प केवल
शु आ मत वम न ब धन है और न तो मो ।।२६।। भगवन्! कतने आ यक बात है क
आप ह अपने आ मा, पर लोग आपको पराया मानते ह। और शरीर आ द ह पराये, क तु
उनको आ मा मान बैठते ह। और इसके बाद आपको कह अलग ढूँ ढ़ने लगते ह। भला,
अ ानी जीव का यह कतना बड़ा अ ान है ।।२७।। हे अन त! आप तो सबके अ तःकरणम
ही वराजमान ह। इस लये स तलोग आपके अ त र जो कुछ तीत हो रहा है, उसका
प र याग करते ए अपने भीतर ही आपको ढूँ ढ़ते ह। य क य प र सीम साँप नह है,
फर भी उस तीयमान साँपको म या न य कये बना भला, कोई स पु ष स ची र सीको
कैसे जान सकता है? ।।२८।।
तद तु मे नाथ स भू रभागो
भवेऽ वा य तु वा तर ाम् ।
येनाहमेकोऽ प भव जनानां
भू वा नषेवे तव पादप लवम् ।।३०
अहोऽ तध या जगोरम यः
त यामृतं पीतमतीव ते मुदा ।
यासां वभो व सतरा मजा मना
य ृ तयेऽ ा प न चालम वराः ।।३१
तद् भू रभा य मह ज म कम यट ां
यद् गोकुलेऽ प कतमाङ् रजोऽ भषेकम् ।
य जी वतं तु न खलं भगवान् मुकु द-
व ा प य पदरजः ु तमृ यमेव ।।३४
प चं न प चोऽ प वड बय स भूतले ।
प जनतान दस दोहं थतुं भो ।।३७
जान त एव जान तु क ब या न मे भो ।
मनसो वपुषो वाचो वैभवं तव गोचरः ।।३८
भो! इस जभू मके कसी वनम और वशेष करके गोकुलम कसी भी यो नम ज म हो
जाय, यही हमारे लये बड़े सौभा यक बात होगी! य क यहाँ ज म हो जानेपर आपके
कसी-न- कसी ेमीके चरण क धू ल अपने ऊपर पड़ ही जायगी। भो! आपके ेमी
जवा सय का स पूण जीवन आपका ही जीवन है। आप ही उनके जीवनके एकमा सव व
ह। इस लये उनके चरण क धू ल मलना आपके ही चरण क धू ल मलना है और आपके
चरण क धू लको तो ु तयाँ भी अना द कालसे अबतक ढूँ ढ़ ही रही ह ।।३४।। दे वता के
भी आरा यदे व भो! इन जवा सय को इनक सेवाके बदलेम आप या फल दगे? स पूण
फल के फल व प! आपसे बढ़कर और कोई फल तो है ही नह , यह सोचकर मेरा च
मो हत हो रहा है। आप उ ह अपना व प भी दे कर उऋण नह हो सकते। य क आपके
व पको तो उस पूतनाने भी अपने स ब धय —अघासुर, बकासुर आ दके साथ ा त कर
लया, जसका केवल वेष ही सा वी ीका था, पर जो दयसे महान् ू र थी। फर, ज ह ने
अपने घर, धन, वजन, य, शरीर, पु , ाण और मन—सब कुछ आपके ही चरण म
सम पत कर दया है, जनका सब कुछ आपके ही लये है, उन जवा सय को भी वही फल
दे कर आप कैसे उऋण हो सकते ह ।।३५।। स चदान द व प यामसु दर! तभीतक राग-
े ष आ द दोष चोर के समान सव व अपहरण करते रहते ह, तभीतक घर और उसके
स ब धी कैदक तरह स ब धके ब धन म बाँध रखते ह और तभीतक मोह पैरक बे ड़य क
तरह जकड़े रखता है—जबतक जीव आपका नह हो जाता ।।३६।। भो! आप व के
बखेड़ेसे सवथा र हत ह, फर भी अपने शरणागत भ जन को अन त आन द वतरण
करनेके लये पृ वीम अवतार लेकर व के समान ही लीला- वलासका व तार करते
ह ।।३७।। मेरे वामी! ब त कहनेक आव यकता नह —जो लोग आपक म हमा जानते ह,
वे जानते रह; मेरे मन, वाणी और शरीर तो आपक म हमा जाननेम सवथा असमथ
ह ।।३८।। स चदान द व प ीकृ ण! आप सबके सा ी ह। इस लये आप सब कुछ
जानते ह। आप सम त जगत्के वामी ह। यह स पूण पंच आपम ही थत है। आपसे म
और या क ँ? अब आप मुझे वीकार क जये। मुझे अपने लोकम जानेक आ ा
अनुजानी ह मां कृ ण सव वं वे स सव क् ।
वमेव जगतां नाथो जगदे त वा पतम् ।।३९
बह सूननवधातु व च तांगः
ो ामवेणुदलशृंगरवो सवा ः ।
व सान् गृण नुगगीतप व क त-
ग पी गु सव शः ववेश गो म् ।।४७
व तुतो जानताम कृ णं था नु च र णु च ।
भगव प ू म खलं ना यद् व वह कचन ।।५६
स त त ा णप लव या
फल सूनो भरेण पादयोः ।
पृश छखान् वी य वन पतीन् मुदा
मय वाहा जमा दपू षः ।।४
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! अब बलराम और ीकृ णने पौग ड-अव थाम
अथात् छठे वषम वेश कया था। अब उ ह गौएँ चरानेक वीकृ त मल गयी। वे अपने
सखा वालबाल के साथ गौएँ चराते ए वृ दावनम जाते और अपने चरण से वृ दावनको
अ य त पावन करते ।।१।। यह वन गौ के लये हरी-हरी घाससे यु एवं रंग- बरंगे
पु प क खान हो रहा था। आगे-आगे गौएँ, उनके पीछे -पीछे बाँसुरी बजाते ए यामसु दर,
तदन तर बलराम और फर ीकृ णके यशका गान करते ए वालबाल—इस कार वहार
करनेके लये उ ह ने उस वनम वेश कया ।।२।। उस वनम कह तो भ रे बड़ी मधुर गुंजार
कर रहे थे, कह झुंड-के-झुंड ह रन चौकड़ी भर रहे थे और कह सु दर-सु दर प ी चहक रहे
थे। बड़े ही सु दर-सु दर सरोवर थे, जनका जल महा मा के दयके समान व छ और
नमल था। उनम खले ए कमल के सौरभसे सुवा सत होकर शीतल-म द-सुग ध वायु उस
वनक सेवा कर रही थी। इतना मनोहर था वह वन क उसे दे खकर भगवान्ने मन-ही-मन
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उसम वहार करनेका संक प कया ।।३।। पु षो म भगवान्ने दे खा क बड़े-बड़े वृ फल
और फूल के भारसे झुककर अपनी डा लय और नूतन क पल क ला लमासे उनके
चरण का पश कर रहे ह, तब उ ह ने बड़े आन दसे कुछ मुसकरात ए-से अपने बड़े भाई
बलरामजीसे कहा ।।४।।
ीभगवानुवाच
अहो अमी दे ववरामरा चतं
पादा बुजं ते सुमनःफलाहणम् ।
नम युपादाय शखा भरा मन-
तमोऽपह यै त ज म य कृतम् ।।५
नृ य यमी श खन ई मुदा ह र यः
कुव त गो य इव ते यमी णेन ।
सू ै को कलगणा गृहमागताय
ध या वनौकस इयान् ह सतां नसगः ।।७
व च च कलहंसानामनुकूज त कू जतम् ।
अ भनृ य त नृ य तं ब हणं हासयन् व चत् ।।११
य छ ता न नः कृ ण ग धलो भतचेतसाम् ।
वा छा त महती राम ग यतां य द रोचते ।।२६
एवं सु चः ु वा सु य चक षया ।
ह य ज मतुग पैवृतौ तालवनं भू ।।२७
पी वा मुकु दमुखसारघम भृ ै -
तापं ज वरहजं जयो षतोऽ ।
त स कृ त सम धग य ववेश गो ं
स ीडहास वनयं यदपांगमो म् ।।४३
वषा भ त प मृ य दै वोपहतचेतसः ।
नपेतु सवः सव स लला ते कु ह ।।४९
न् भगवत त य भू नः व छ दव तनः ।
गोपालोदारच रतं क तृ येतामृतं जुषन् ।।३
ीशुक उवाच
का ल ां का लय यासीद् दः क द् वषा नना ।
यमाणपया य मन् पत युप रगाः खगाः ।।४
कृ णः कद बम ध ततोऽ ततु -
मा फो गाढरशनो यपतद् वषोदे ।।६
सप दः पु षसार नपातवेग-
सं ो भतोरग वषो छ् व सता बुरा शः ।
पयक् लुतो वषकषाय वभीषणो म-
धावन् धनुःशतमन तबल य क तत् ।।७
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त य दे वहरतो भुजद डघूण-
वाघ षमंग वरवारण व म य ।
आ ु य तत् वसदना भभवं नरी य
च ुः वाः समसर दमृ यमाणः ।।८
तं े णीयसुकुमारघनावदातं
ीव सपीतवसनं मतसु दरा यम् ।
ड तम तभयं कमलोदराङ्
स द य ममसु षा भुजया चछाद ।।९
तं नागभोगप रवीतम चे -
मालो य त यसखाः पशुपा भृशाताः ।
कृ णेऽ पता मसु दथकल कामा
ःखानुशोकभयमूढ धयो नपेतुः ।।१०
तै न म ै नधनं म वा ा तमत दः ।
त ाणा त मन का ते ःखशोकभयातुराः ।।१४
अ त दे भुजगभोगपरीतमारात्
कृ णं नरीहमुपल य जलाशया ते ।
गोपां मूढ धषणान् प रतः पशूं
सं दतः परमक मलमापुराताः ।।१९
इ थं वगोकुलमन यग त नरी य
स ीकुमारम त ः खतमा महेतोः ।
आ ाय म यपदवीमनुवतमानः
थ वा मु तमुद त रंगब धात् ।।२३
परी त्! यह साँपके शरीरसे बँध जाना तो ीकृ णक मनु य -जैसी एक लीला थी।
जब उ ह ने दे खा क जके सभी लोग ी और ब च के साथ मेरे लये इस कार अ य त
ःखी हो रहे ह और सचमुच मेरे सवा इनका कोई सरा सहारा भी नह है, तब वे एक
मु ततक सपके ब धनम रहकर बाहर नकल आये ।।२३।।
त या भगरलमु मतः शर सु
यद् यत् समु म त नः सतो षो चैः ।
नृ यन् पदानुनमयन् दमया बभूव
पु पैः पू जत इवेह पुमान् पुराणः ।।२९
त च ता डव व णफणातप ो
र ं मुखै वमन् नृप भ नगा ः ।
कृ ण य गभजगतोऽ तभरावस ं
पा ण हारप र णफणातप म् ।
् वा हमा मुपसे रमु य प य
आताः थ सनभूषणकेशब धाः ।।३१
क यानुभावोऽ य न दे व व हे
तवाङ् रेणु पशा धकारः ।
न नाकपृ ं न च सावभौमं
न पारमे ं न रसा धप यम् ।
न योग स रपुनभवं वा
वा छ त य पादरजः प ाः ।।३७
ान व ान नधये णेऽन तश ये ।
अगुणाया वकाराय नम तेऽ ाकृताय च ।।४०
वं य ज म थ तसंयमान् भो
गुणैरनीहोऽकृत कालश धृक् ।
त वभावान् तबोधयन् सतः
समी यामोघ वहार ईहसे ।।४९
पं रमणकं ह वा दमेतमुपा तः ।
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य यात् स सुपण वां ना ा म पादला छतम् ।।६३
ीशुक उवाच
एवमु ो भगवता कृ णेना तकमणा ।
तं पूजयामास मुदा नागप य सादरम् ।।६४
द ा बर ङ् म ण भः परा यर प भूषणैः ।
द ग धानुलेपै मह यो पलमालया ।।६५
सकल सु पु ो पम धेजगाम ह ।
तदै व सामृतजला यमुना न वषाभवत् ।
अनु हाद् भगवतः डामानुष पणः ।।६७
ीशुकदे वजी कहते ह—का लय नागक बात सुनकर लीला-मनु य भगवान् ीकृ णने
कहा—‘सप! अब तुझे यहाँ नह रहना चा हये। तू अपने जा त-भाई, पु और य के साथ
शी ही यहाँसे समु म चला जा। अब गौएँ और मनु य यमुना-जलका उपभोग कर ।।६०।।
जो मनु य दोन समय तुझको द ई मेरी इस आ ाका मरण तथा क तन करे, उसे साँप से
कभी भय न हो ।।६१।। मने इस का लयदहम ड़ा क है। इस लये जो पु ष इसम नान
करके जलसे दे वता और पतर का तपण करेगा, एवं उपवास करके मेरा मरण करता आ
मेरी पूजा करेगा—वह सब पाप से मु हो जायगा ।।६२।। म जानता ँ क तू ग डके
भयसे रमणक प छोड़कर इस दहम आ बसा था। अब तेरा शरीर मेरे चरण च से अं कत
हो गया है। इस लये जा, अब ग ड तुझे खायगे नह ।।६३।।
ीशुकदे वजी कहते ह—भगवान् ीकृ णक एक-एक लीला अद्भुत है। उनक ऐसी
आ ा पाकर का लय नाग और उसक प नय ने आन दसे भरकर बड़े आदरसे उनक पूजा
क ।।६४।।
उ ह ने द व , पु पमाला, म ण, ब मू य आभूषण, द ग ध, च दन और अ त
उ म कमल क मालासे जगत्के वामी ग ड वज भगवान् ीकृ णका पूजन करके उ ह
स कया। इसके बाद बड़े ेम और आन दसे उनक प र मा क , व दना क और उनसे
अनुम त ली। तब अपनी प नय , पु और ब धु-बा धव के साथ रमणक पक , जो
समु म सप के रहनेका एक थान है, या ा क । लीला-मनु य भगवान् ीकृ णक कृपासे
यमुनाजीका जल केवल वषहीन ही नह , ब क उसी समय अमृतके समान मधुर हो
गया ।।६५-६७।।
वं वं भागं य छ त नागाः पव ण पव ण ।
गोपीथाया मनः सव सुपणाय महा मने ।।३
तं ता यपु ः स नर य म युमान्
च डवेगो मधुसूदनासनः ।
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! का लय नागने नाग के नवास थान रमणक
पको य छोड़ा था? और उस अकेलेने ही ग डजीका कौन-सा अपराध कया
था? ।।१।।
ीशुकदे वीजीने कहा—परी त्! पूवकालम ग डजीको उपहार व प ा त
होनेवाले सप ने यह नयम कर लया था क येक मासम न द वृ के नीचे ग डको
एक सपक भट द जाय ।।२।।
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इस नयमके अनुसार येक अमाव याको सारे सप अपनी र ाके लये महा मा
ग डजीको अपना-अपना भाग दे ते रहते थे* ।।३।। उन सप म क क ू ा पु का लय
नाग अपने वष और बलके घमंडसे मतवाला हो रहा था। उसने ग डका तर कार
करके वयं तो ब ल दे ना र रहा— सरे साँप जो ग डको ब ल दे त,े उसे भी खा
लेता ।।४।। परी त्! यह सुनकर भगवान्के यारे पाषद श शाली ग डको बड़ा
ोध आया। इस लये उ ह ने का लय नागको मार डालनेके वचारसे बड़े वेगसे उसपर
आ मण कया ।।५।। वषधर का लय नागने जब दे खा क ग ड बड़े वेगसे मुझपर
आ मण करने आ रहे ह, तब वह अपने एक सौ एक फण फैलाकर डसनेके लये
उनपर टू ट पड़ा। उसके पास श थे केवल दाँत, इस लये उसने दाँत से ग डको डस
लया। उस समय वह अपनी भयावनी जीभ लपलपा रहा था, उसक साँस लंबी चल
रही थी और आँख बड़ी डरावनी जान पड़ती थ ।।६।। ता यन दन ग डजी
व णुभगवान्के वाहन ह और उनका वेग तथा परा म भी अतुलनीय है। का लय
नागक यह ढठाई दे खकर उनका ोध और भी बढ़ गया तथा उ ह ने उसे अपने
शरीरसे झटककर फक दया एवं अपने सुनहले बाय पंखसे का लय नागपर बड़े जोरसे
हार कया ।।७।। उनके पंखक चोटसे का लय नाग घायल हो गया। वह घबड़ाकर
वहाँसे भगा और यमुनाजीके इस कु डम चला आया। यमुनाजीका यह कु ड ग डके
लये अग य था। साथ ही वह इतना गहरा था क उसम सरे लोग भी नह जा सकते
थे ।।८।। इसी थानपर एक दन ुधातुर ग डने तप वी सौभ रके मना करनेपर भी
अपने अभी भ य म यको बलपूवक पकड़कर खा लया ।।९।। अपने मु खया
म यराजके मारे जानेके कारण मछ लय को बड़ा क आ। वे अ य त द न और
ाकुल हो गय । उनक यह दशा दे खकर मह ष सौभ रको बड़ी दया आयी। उ ह ने
उस कु डम रहनेवाले सब जीव क भलाईके लये ग डको यह शाप दे दया ।।१०।।
‘य द ग ड फर कभी इस कु डम घुसकर मछ लय को खायगे, तो उसी ण ाण से
हाथ धो बैठगे। म यह स य-स य कहता ँ’ ।।११।।
प ेण स ेन हर यरो चषा
जघान क सू ुतमु व मः ।।७
अ व य ग डो य द म यान् स खाद त ।
स ः ाणै वयु येत स यमेतद् वी यहम् ।।११
कृ णं दाद् व न ा तं द ग धवाससम् ।
महाम णगणाक ण जा बूनदप र कृतम् ।।१३
कृ ण कृ ण महाभाग हे रामा मत व म ।
एष घोरतमो व तावकान् सते ह नः ।।२३
स च वृ दावनगुणैवस त इव ल तः ।
य ा ते भगवान् सा ाद् रामेण सह केशवः ।।३
अगाधतोय दनीतटो म भ-
व युरी याः पु लनैः सम ततः ।
न य च डांशुकरा वषो बणा
भुवो रसं शा लतं च गृ ते ।।६
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! अब आन दत वजन स ब धय से घरे ए एवं
उनके मुखसे अपनी क तका गान सुनते ए ीकृ णने गोकुलम डत गो म वेश
कया ।।१।।
इस कार अपनी योगमायासे वालका-सा वेष बनाकर राम और याम जम डा कर
रहे थे। उन दन ी म ऋतु थी। यह शरीरधा रय को ब त य नह है ।।२।।
पर तु वृ दावनके वाभा वक गुण से वहाँ वस तक ही छटा छटक रही थी। इसका
कारण था, वृ दावनम परम मधुर भगवान् यामसु दर ीकृ ण और बलरामजी नवास जो
करते थे ।।३।।
रामसंघ नो य ह ीदामवृषभादयः ।
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डायां ज यन तां तानू ः कृ णादयो नृप ।।२३
अ वष ं म यमानः कृ णं दानवपुंगवः ।
वहन् ततरं ागादवरोहणतः परम् ।।२५
कृ ण कृ ण महावीर हे रामा मत व म ।
दावा नना द मानान् प ां ातुमहथः ।।९
सा नीला बुदै म स व ु तन य नु भः ।
अ प यो तरा छ ं ेव सगुणं बभौ ।।४
े ा ण स यस प ः२ कषकाणां मुदं द ः ।
ध ननामुपतापं च दै वाधीनमजानताम् ।।१२
बहापीडं नटवरवपुः
कणयोः क णकारं
ब द् वासः कनकक पशं
वैजय त च मालाम् ।
र ान् वेणोरधरसुधया
पूरयन् गोपवृ दै -
वृ दार यं वपदरमणं
ा वशद् गीतक तः ।।५
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! शरद् ऋतुके कारण वह वन बड़ा सु दर हो रहा था।
जल नमल था और जलाशय म खले ए कमल क सुग धसे सनकर वायु म द-म द चल
रही थी। भगवान् ीकृ णने गौ और वालबाल के साथ उस वनम वेश कया ।।१।।
सु दर-सु दर पु प से प रपूण हरी-हरी वृ -पं य म मतवाले भ रे थान- थानपर गुनगुना
रहे थे और तरह-तरहके प ी झुंड-के-झुंड अलग-अलग कलरव कर रहे थे, जससे उस
वनके सरोवर, न दयाँ और पवत—सब-के-सब गूँजते रहते थे। मधुप त ीकृ णने बलरामजी
और वालबाल के साथ उसके भीतर घुसकर गौ को चराते ए अपनी बाँसुरीपर बड़ी मधुर
तान छे ड़ी ।।२।। ीकृ णक वह वंशी व न भगवान्के त ेमभावको, उनके मलनक
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आकां ाको जगानेवाली थी। (उसे सुनकर गो पय का दय ेमसे प रपूण हो गया) वे
एका तम अपनी स खय से उनके प, गुण और वंशी व नके भावका वणन करने
लग ।।३।। जक गो पय ने वंशी व नका माधुय आपसम वणन करना चाहा तो अव य;
पर तु वंशीका मरण होते ही उ ह ीकृ णक मधुर चे ा क , ेमपूण चतवन, भ ह के
इशारे और मधुर मुसकान आ दक याद हो आयी। उनक भगवान्से मलनेक आकां ा और
भी बढ़ गयी। उनका मन हाथसे नकल गया। वे मन-ही-मन वहाँ प ँच गय , जहाँ ीकृ ण
थे। अब उनक वाणी बोले कैसे? वे उसके वणनम असमथ हो गय ।।४।। (वे मन-ही-मन
दे खने लग क) ीकृ ण वालबाल के साथ वृ दावनम वेश कर रहे ह। उनके सरपर
मयूर प छ है और कान पर कनेरके पीले-पीले पु प; शरीरपर सुनहला पीता बर और गलेम
पाँच कारके सुग धत पु प क बनी वैजय ती माला है। रंगमंचपर अ भनय करते ए े
नटका-सा या ही सु दर वेष है। बाँसुरीके छ को वे अपने अधरामृतसे भर रहे ह। उनके
पीछे -पीछे वालबाल उनक लोकपावन क तका गान कर रहे ह। इस कार वैकु ठसे भी
े वह वृ दावनधाम उनके चरण च से और भी रमणीय बन गया है ।।५।। परी त्! यह
वंशी व न जड, चेतन—सम त भूत का मन चुरा लेती है। गो पय ने उसे सुना और सुनकर
उसका वणन करने लग । वणन करते-करते वे त मय हो गय और ीकृ णको पाकर
आ लगन करने लग ।।६।।
पूणाः पु ल
उ गायपदा जराग-
ीकुंकुमेन द यता तनम डतेन ।
त शन मर ज तृण षतेन
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ल प य आननकुचेषु ज तदा धम् ।।१७
आ लु या भ स का ल ा जला ते चो दतेऽ णे ।
कृ वा तकृ त दे वीमानचुनृप सैकतीम् ।।२
भगवां तद भ े य कृ णो योगे रे रः ।
वय यैरावृत त गत त कम स ये ।।८
ढं ल धा पया च हा पताः
तो भताः डनव च का रताः ।
व ा ण चैवाप ता यथा यमुं
ता ना यसूयन् यसंग नवृताः ।।२२
१. वृ दावन डायामेक०।
* चीर-हरणके संगको लेकर कई तरहक शंकाएँ क जाती ह, अतएव इस स ब धम
कुछ वचार करना आव यक है। वा तवम बात यह है क स चदान दघन भगवान्क द
मधुर रसमयी लीला का रह य जाननेका सौभा य ब त थोड़े लोग को होता है। जस कार
भगवान् च मय ह, उसी कार उनक लीला भी च मयी ही होती है। स चदान द रसमय-
सा ा यके जस परमो त तरम यह लीला आ करती है उसक ऐसी वल णता है क
कई बार तो ान- व ान- व प वशु चेतन परम म भी उसका ाक नह होता,
और इसी लये -सा ा कारको ा त महा मा लोग भी इस लीला-रसका समा वादन नह
कर पाते। भगवान्क इस परमो जवल द -रस-लीलाका यथाथ काश तो भगवान्क
व पभूता ा दनी श न य नकुंजे री ीवृषभानुन दनी ीराधाजी और तदं गभूता
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े मयी गो पय के ही दयम होता है और वे ही नरावरण होकर भगवान्क इस परम
म
अ तरंग रसमयी लीलाका समा वादन करती ह।
य तो भगवान्के ज म-कमक सभी लीलाएँ द होती ह, पर तु जक लीला, जम
नकुंजलीला और नकुंजम भी केवल रसमयी गो पय के साथ होनेवाली मधुर लीला तो
द ा त द और सवगु तम है। यह लीला सवसाधारणके स मुख कट नह है, अ तरंग
लीला है और इसम वेशका अ धकार केवल ीगोपीजन को ही है। अ तु, दशम क धके
इ क सव अ यायम ऐसा वणन आया है क भगवान्क प-माधुरी, वंशी व न और ेममयी
लीलाएँ दे ख-सुनकर गो पयाँ मु ध हो गय । बाईसव अ यायम उसी ेमक पूणता ा त
करनेके लये वे साधनम लग गयी ह। इसी अ यायम भगवान्ने आकर उनक साधना पूण क
है। यही चीर-हरणका संग है।
गो पयाँ या चाहती थ , यह बात उनक साधनासे प है। वे चाहती थ — ीकृ णके
त पूण आ मसमपण, ीकृ णके साथ इस कार घुल- मल जाना क उनका रोम-रोम,
मन- ाण, स पूण आ मा केवल ीकृ णमय हो जाय। शरत्-कालम उ ह ने ीकृ णक
वंशी व नक चचा आपसम क थी, हेम तके पहले ही महीनेम अथात् भगवान्के
वभू त व प मागशीषम उनक साधना ार भ हो गयी। वल ब उनके लये अस था।
जाड़ेके दनम वे ातःकाल ही यमुना- नानके लये जात , उ ह शरीरक परवा नह थी।
ब त-सी कुमारी वा लन एक साथ ही जात , उनम ई या- े ष नह था। वे ऊँचे वरसे
ीकृ णका नामक तन करती ई जात , उ ह गाँव और जा तवाल का भय नह था। वे घरम
भी ह व या का ही भोजन करत , वे ीकृ णके लये इतनी ाकुल हो गयी थ क उ ह
माता- पता तकका संकोच नह था। वे व धपूवक दे वीक बालुकामयी मू त बनाकर पूजा
और म -जप करती थ । अपने इस कायको सवथा उ चत और श त मानती थ । एक
वा यम—उ ह ने अपना कुल, प रवार, धम, संकोच और व भगवान्के चरण म सवथा
समपण कर दया था। वे यही जपती रहती थ क एकमा न दन दन ही हमारे ाण के
वामी ह । ीकृ ण तो व तुतः उनके वामी थे ही। पर तु लीलाक से उनके समपणम
थोड़ी कमी थी। वे नरावरण पसे ीकृ णके सामने नह जा रही थ , उनम थोड़ी झझक
थी; उनक यही झझक र करनेके लये—उनक साधना, उनका समपण पूण करनेके लये
उनका आवरण भंग कर दे नेक आव यकता थी, उनका यह आवरण प चीर हर लेना
ज री था और यही काम भगवान् ीकृ णने कया। इसीके लये वे योगे र के ई र भगवान्
अपने म वालबाल के साथ यमुनातटपर पधारे थे।
साधक अपनी श से, अपने बल और संक पसे केवल अपने न यसे पूण समपण
नह कर सकता। समपण भी एक या है और उसका करनेवाला असम पत ही रह जाता
है। ऐसी थ तम अ तरा माका पूण समपण तब होता है जब भगवान् वयं आकर वह
संक प वीकार करते ह और संक प करनेवालेको भी वीकार करते ह। यह जाकर समपण
पूण होता है। साधकका कत है—पूण समपणक तैयारी। उसे पूण तो भगवान् ही करते
ह।
ायः ुत यतमोदयकणपूरै-
य मन् नम नमनस तमथा र ैः ।
अ तः वे य सु चरं प रर य तापं
ा ं यथा भमतयो वज नरे ।।२३
ता तथा य सवाशाः ा ता आ म द या ।
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व ाया खल ा ाह ह सताननः ।।२४
एवं लीलानरवपुनृलोकमनुशीलयन् ।
रेमे गोगोपगोपीनां रमयन् पवाक्कृतैः ।।३६
इ त वाघमनु मृ य कृ णे ते कृतहेलनाः ।
द वोऽ य युतयोः कंसाद् भीता न चाचलन् ।।५२
परी त्! उन ा ण ने ीकृ णका तर कार कया था। अतः उ ह अपने
अपराधक मृ तसे बड़ा प ा ाप आ और उनके दयम ीकृ ण-बलरामके दशनक
बड़ी इ छा भी ई; पर तु कंसके डरके मारे वे उनका दशन करने न जा सके ।।५२।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे पूवाध य प यु रणं
नाम यो वशोऽ यायः ।।२३।।
ा वा ा वा च कमा ण जनोऽयमनु त त ।
व षः कम स ः या था ना व षो भवेत् ।।६
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ ण बलरामजीके साथ वृ दावनम
रहकर अनेक कारक लीलाएँ कर रहे थे। उ ह ने एक दन दे खा क वहाँके सब गोप इ -
य करनेक तैयारी कर रहे ह ।।१।। भगवान् ीकृ ण सबके अ तयामी और सव ह। उनसे
कोई बात छपी नह थी, वे सब जानते थे। फर भी वनयावनत होकर उ ह ने न दबाबा
आ द बड़े-बूढ़े गोप से पूछा— ।।२।। ‘ पताजी! आपलोग के सामने यह कौन-सा बड़ा भारी
काम, कौन-सा उ सव आ प ँचा है? इसका फल या है? कस उ े यसे, कौन लोग, कन
साधन के ारा यह य कया करते ह? पताजी! आप मुझे यह अव य बतलाइये ।।३।।
आप मेरे पता ह और म आपका पु । ये बात सुननेके लये मुझे बड़ी उ क ठा भी है।
पताजी! जो संत पु ष सबको अपनी आ मा मानते ह, जनक म अपने और परायेका
भेद नह है, जनका न कोई म है, न श ु और न उदासीन—उनके पास छपानेक तो कोई
बात होती ही नह । पर तु य द ऐसी थ त न हो तो रह यक बात श ुक भाँ त उदासीनसे
भी नह कहनी चा हये। म तो अपने समान ही कहा गया है, इस लये उससे कोई बात
छपायी नह जाती ।।४-५।। यह संसारी मनु य समझे-बेसमझे अनेक कारके कम का
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अनु ान करता है। उनमसे समझ-बूझकर करनेवाले पु ष के कम जैसे सफल होते ह, वैसे
बेसमझके नह ।।६।। अतः इस समय आपलोग जो यायोग करने जा रहे ह, वह सु द के
साथ वचा रत—शा स मत है अथवा लौ कक ही है—म यह सब जानना चाहता ँ; आप
कृपा करके प पसे बतलाइये’ ।।७।।
त छे षेणोपजीव त वगफलहेतवे ।
पुंसां पु षकाराणां पज यः फलभावनः ।।१०
अ त चेद रः क त् फल य यकमणाम् ।
कतारं भजते सोऽ प न कतुः भु ह सः ।।१४
न दबाबाने कहा—बेटा! भगवान् इ वषा करनेवाले मेघ के वामी ह। ये मेघ उ ह के
अपने प ह। वे सम त ा णय को तृ त करनेवाला एवं जीवनदान करनेवाला जल बरसाते
ह ।।८।। मेरे यारे पु ! हम और सरे लोग भी उ ह मेघप त भगवान् इ क य के ारा
पूजा कया करते ह। जन साम य से य होता है, वे भी उनके बरसाये ए श शाली
जलसे ही उ प होती ह ।।९।। उनका य करनेके बाद जो कुछ बच रहता है, उसी अ से
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हम सब मनु य अथ, धम और काम प वगक स के लये अपना जीवन- नवाह करते
ह। मनु य के खेती आ द य न के फल दे नेवाले इ ही ह ।।१०।। यह धम हमारी
कुलपर परासे चला आया है। जो मनु य काम, लोभ, भय अथवा े षवश ऐसे पर परागत
धमको छोड़ दे ता है, उसका कभी मंगल नह होता ।।११।।
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! ा, शंकर आ दके भी शासन करनेवाले केशव
भगवान्ने न दबाबा और सरे जवा सय क बात सुनकर इ को ोध दलानेके लये अपने
पता न दबाबासे कहा ।।१२।।
ीभगवान्ने कहा— पताजी! ाणी अपने कमके अनुसार ही पैदा होता और कमसे ही
मर जाता है। उसे उसके कमके अनुसार ही सुख- ःख, भय और मंगलके न म क ा त
होती है ।।१३।।
य द कम को ही सब कुछ न मानकर उनसे भ जीव के कमका फल दे नेवाला ई र
माना भी जाय तो वह कम करनेवाल को ही उनके कमके अनुसार फल दे सकता है। कम न
करने-वाल पर उसक भुता नह चल सकती ।।१४।। जब सभी ाणी अपने-अपने कम का
ही फल भोग रहे ह, तब हम इ क या आव यकता है? पताजी! जब वे पूवसं कारके
अनुसार ा त होनेवाले मनु य के कम-फलको बदल ही नह सकते—तब उनसे
योजन? ।।१५।। मनु य अपने वभाव (पूव-सं कार ) के अधीन है। वह उसीका अनुसरण
करता है। यहाँतक क दे वता, असुर, मनु य आ दको लये ए यह सारा जगत् वभावम ही
थत है ।।१६।। जीव अपने कम के अनुसार उ म और अधम शरीर को हण करता और
छोड़ता रहता है। अपने कम के अनुसार ही ‘यह श ु है, यह म है, यह उदासीन है’—ऐसा
वहार करता है। कहाँतक क ,ँ कम ही गु है और कम ही ई र ।।१७।। इस लये पताजी!
मनु यको चा हये क पूव-सं कार के अनुसार अपने वण तथा आ मके अनुकूल धम का
पालन करता आ कमका ही आदर करे। जसके ारा मनु यक जी वका सुगमतासे चलती
है, वही उसका इ दे व होता है ।।१८।। जैसे अपने ववा हत प तको छोड़कर जार प तका
सेवन करनेवाली भचा रणी ी कभी शा तलाभ नह करती, वैसे ही जो मनु य अपनी
आजी वका चलानेवाले एक दे वताको छोड़कर कसी सरेक उपासना करते ह, उससे उ ह
कभी सुख नह मलता ।।१९।। ा ण वेद के अ ययन-अ यापनसे, य पृ वीपालनसे,
वै य वातावृ से और शू ा ण, य और वै य क सेवासे अपनी जी वकाका नवाह
कर ।।२०।। वै य क वातावृ चार कारक है—कृ ष, वा ण य, गोर ा और याज लेना।
हमलोग उन चार मसे एक केवल गोपालन ही सदासे करते आये ह ।।२१।। पताजी! इस
संसारक थ त, उ प और अ तके कारण मशः स वगुण, रजोगुण और तमोगुण ह।
यह व वध कारका स पूण जगत् ी-पु षके संयोगसे रजोगुणके ारा उ प होता
है ।।२२।। उसी रजोगुणक ेरणासे मेघगण सब कह जल बरसाते ह। उसीसे अ और
अ से ही सब जीव क जी वका चलती है। इसम भला इ का या लेना-दे ना है? वह भला,
या कर सकता है? ।।२३।।
स वं रज तम इ त थ यु प य तहेतवः ।
रजसो प ते व म यो यं व वधं जगत् ।।२२
व ोतमाना व ु ः तन तः तन य नु भः ।
ती ैम द्गणैनु ा ववृषुजलशकराः ।।९
न ास इह वः काय म ता नपातने ।
वातवषभयेनालं त ाणं व हतं ह वः ।।२१
ततोऽनुर ै ः पशुपैः प र तो
तोकेनामी लता ण
े पूतनाया महौजसः ।
पीतः तनः सह ाणैः कालेनेव वय तनोः ।।४
व च ै यंगव तै ये मा ा ब उलूखले ।
ग छ जुनयोम ये बा यां तावपातयत् ।।७
ब न स त नामा न पा ण च सुत य ते ।
गुणकमानु पा ण ता यहं वेद नो जनाः ।।१८
दे वे वष त य व लव षा
व ा मपषा नलैः
सीद पालपशु आ मशरणं
् वानुक यु मयन् ।
उ पा ैककरेण शैलमबलो
लीलो छली ं यथा
ब द् गो मपा महे मद भत्
ीया इ ो गवाम् ।।२५
न दबाबा! जो तु हारे इस साँवले शशुसे ेम करते ह, वे बड़े भा यवान् ह। जैसे
व णुभगवान्के करकमल क छ छायाम रहनेवाले दे वता को असुर नह जीत सकते, वैसे
ही इससे ेम करनेवाल को भीतरी या बाहरी— कसी भी कारके श ु नह जीत
सकते ।।२१।। न दजी! चाहे जस से दे ख—गुणसे, ऐ य और सौ दयसे, क त और
भावसे तु हारा बालक वयं भगवान् नारायणके ही समान है, अतः इस बालकके अलौ कक
काय को दे खकर आ य न करना चा हये’ ।।२२।। गोपो! मुझे वयं गगाचायजी यह आदे श
दे कर अपने घर चले गये। तबसे म अलौ कक और परम सुखद कम करनेवाले इस बालकको
भगवान् नारायणका ही अंश मानता ँ ।।२३।। जब जवा सय ने न दबाबाके मुखसे
गगजीक यह बात सुनी, तब उनका व मय जाता रहा। य क अब वे अ मततेज वी
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ीकृ णके भावको पूण पसे दे ख और सुन चुके थे। आन दम भरकर उ ह ने न दबाबा
और ीकृ णक भू र-भू र शंसा क ।।२४।।
जस समय अपना य भंग हो जानेके कारण इ ोधके मारे आग-बबूला हो गये थे
और मूसलधार वषा करने लगे थे, उस समय व पात, ओल क बौछार और च ड आँधीसे
ी, पशु तथा वाले अ य त पी ड़त हो गये थे। अपनी शरणम रहनेवाले जवा सय क यह
दशा दे खकर भगवान्का दय क णासे भर आया। पर तु फर एक नयी लीला करनेके
वचारसे वे तुरंत ही मुसकराने लगे। जैसे कोई न हा-सा नबल बालक खेल-खेलम ही
बरसाती छ ेका पु प उखाड़ ले, वैसे ही उ ह ने एक हाथसे ही ग रराज गोव नको
उखाड़कर धारण कर लया और सारे जक र ा क । इ का मद चूर करनेवाले वे ही
भगवान् गो व द हमपर स ह ।।२५।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे पूवाध
षड् वशोऽ यायः ।।२६।।
ुतानुभावोऽ य कृ ण या मततेजसः ।
न लोकेशमद इ आह कृतांज लः ।।३
इ उवाच
वशु स वं तव धाम शा तं
तपोमयं व तरज तम कम् ।
मायामयोऽयं गुणस वाहो
न व ते तेऽ हणानुब धः ।।४
कुतो नु त े तव ईश त कृता
लोभादयो येऽबुध ल भावाः ।
तथा प द डं भगवान् बभ त
धम य गु यै खल न हाय ।।५
पता गु वं जगतामधीशो
र ययः काल उपा द डः ।
हताय वे छातनु भः समीहसे
मानं वधु व गद शमा ननाम् ।।६
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! जब भगवान् ीकृ णने ग रराज गोव नको धारण
करके मूसलधार वषासे जको बचा लया, तब उनके पास गोलोकसे कामधेनु (बधाई दे नेके
लये) और वगसे दे वराज इ (अपने अपराधको मा करानेके लये) आये ।।१।।
भगवान्का तर कार करनेके कारण इ ब त ही ल जत थे। इस लये उ ह ने एका त-
थानम भगवान्के पास जाकर अपने सूयके समान तेज वी मुकुटसे उनके चरण का पश
कया ।।२।। परम तेज वी भगवान् ीकृ णका भाव दे ख-सुनकर इ का यह घमंड जाता
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रहा क म ही तीन लोक का वामी ँ। अब उ ह ने हाथ जोड़कर उनक तु त क ।।३।।
इ ने कहा—भगवन्! आपका व प परम शा त, ानमय, रजोगुण तथा तमोगुणसे
र हत एवं वशु अ ाकृत स वमय है। यह गुण के वाह पसे तीत होनेवाला पंच केवल
मायामय है; य क आपका व प न जाननेके कारण ही आपम इसक ती त होती
है ।।४।। जब आपका स ब ध अ ान और उसके कारण तीत होनेवाले दे हा दसे है ही नह ,
फर उन दे ह आ दक ा तके कारण तथा उ ह से होनेवाले लोभ- ोध आ द दोष तो आपम
हो ही कैसे सकते ह? भो! इन दोष का होना तो अ ानका ल ण है। इस कार य प
अ ान और उससे होनेवाले जगत्से आपका कोई स ब ध नह है, फर भी धमक र ा और
का दमन करनेके लये आप अवतार हण करते ह और न ह-अनु ह भी करते
ह ।।५।। आप जगत्के पता, गु और वामी ह। आप जगत्का नय ण करनेके लये द ड
धारण कये ए तर काल ह। आप अपने भ क लालसा पूण करनेके लये व छ दतासे
लीला-शरीर कट करते ह और जो लोग हमारी तरह अपनेको ई र मान बैठते ह, उनका
मान मदन करते ए अनेक कारक लीलाएँ करते ह ।।६।। भो! जो मेरे-जैसे अ ानी
और अपनेको जगत्का ई र माननेवाले ह, वे जब दे खते ह क बड़े-बड़े भयके अवसर पर
भी आप नभय रहते ह, तब वे अपना घमंड छोड़ दे ते ह और गवर हत होकर संतपु ष के
ारा से वत भ मागका आ य लेकर आपका भजन करते ह। भो! आपक एक-एक
चे ा के लये द ड वधान है ।।७।। भो! मने ऐ यके मदसे चूर होकर आपका अपराध
कया है; य क म आपक श और भावके स ब धम बलकुल अनजान था। परमे र!
आप कृपा करके मुझ मूख अपराधीका यह अपराध मा कर और ऐसी कृपा कर क मुझे
फर कभी ऐसे अ ानका शकार न होना पड़े ।।८।। वयं काश, इ यातीत परमा मन्!
आपका यह अवतार इस लये आ है क जो असुर-सेनाप त केवल अपना पेट पालनेम ही
लग रहे ह और पृ वीके लये बड़े भारी भारके कारण बन रहे ह, उनका वध करके उ ह मो
दया जाय और जो आपके चरण के सेवक ह—आ ाकारी भ जन ह, उनका अ युदय हो
—उनक र ा हो ।।९।। भगवन्! म आपको नम कार करता ।ँ आप सवा तयामी
पु षो म तथा सवा मा वासुदेव ह। आप य वं शय के एकमा वामी, भ व सल एवं
सबके च को आक षत करनेवाले ह। म आपको बार-बार नम कार करता ँ ।।१०।।
आपने जीव के समान कमवश होकर नह , वत तासे अपने भ क तथा अपनी इ छाके
अनुसार शरीर वीकार कया है। आपका यह शरीर भी वशु - ान व प है। आप सब
कुछ ह, सबके कारण ह और सबके आ मा ह। म आपको बार-बार नम कार करता
ँ ।।११।। भगवन्! मेरे अ भमानका अ त नह है और मेरा ोध भी ब त ही ती , मेरे वशके
बाहर है। जब मने दे खा क मेरा य तो न कर दया गया, तब मने मूसलधार वषा और
आँधीके ारा सारे जम डलको न कर दे ना चाहा ।।१२।। पर तु भो! आपने मुझपर
ब त ही अनु ह कया। मेरी चे ा थ होनेसे मेरे घमंडक जड़ उखड़ गयी। आप मेरे वामी
ह, गु ह और मेरे आ मा ह। म आपक शरणम ँ ।।१३।।
तवावतारोऽयमधो जेह
वय भराणामु भारज मनाम् ।
चमूपतीनामभवाय दे व
भवाय यु म चरणानुव तनाम् ।।९
वयेशानुगृहीतोऽ म व त त भो वृथो मः ।
ई रं गु मा मानं वामहं शरणं गतः ।। १३
ीशुक उवाच
एवं संक ततः कृ णो मघोना भगवानमुम् ।
मेघग भीरया वाचा हस दम वीत् ।।१४
ीभगवानुवाच
मया तेऽका र मघवन् मखभ ोऽनुगृ ता ।
मदनु मृतये न यं म ये या भृशम् ।।१५
वं नः परमकं दै वं वं न इ ो जग पते ।
भवाय भव गो व दे वानां ये च साधवः ।।२०
त ागता तु बु नारदादयो
ग धव व ाधर स चारणाः ।
जगुयशो लोकमलापहं हरेः
सुरा नाः संननृतुमुदा वताः ।।२४
तं तु ु वुदव नकायकेतवो
वा करं ा तपु पवृ भः ।
लोकाः परां नवृ तमा ुवं यो
गाव तदा गामनयन् पयो ताम् ।।२५
कृ णेऽ भ ष एता न स वा न कु न दन ।
नवरा यभवं तात ू रा य प नसगतः ।।२७
न द वती यं ् वा लोकपालमहोदयम् ।
कृ णे च स त तेषां ा त यो व मतोऽ वीत् ।।१०
अ व यमयश यं च फ गु कृ ं भयावहम् ।
जुगु सतं च सव औपप यं कुल याः ।। २६
े ं येतर मव तभाषमाणं
कृ णं तदथ व नव ततसवकामाः ।
ने े वमृ य दतोपहते म क चत्
संर भगद्गद गरोऽ ुवतानुर ाः ।।३०
गो य ऊचुः
मैवं वभोऽह त भवान् ग दतुं नृशंसं
स य य सव वषयां तव पादमूलम् ।
भ ा भज व रव ह मा यजा मान्
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दे वो यथाऽऽ दपु षो भजते मुमु ून् ।।३१
गो पयो! मेरी लीला और गुण के वणसे, पके दशनसे, उन सबके क तन और यानसे
मेरे त जैसे अन य ेमक ा त होती है, वैसे ेमक ा त पास रहनेसे नह होती।
इस लये तुमलोग अभी अपने-अपने घर लौट जाओ ।।२७।।
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ णका यह अ य भाषण सुनकर
गो पयाँ उदास, ख हो गय । उनक आशा टू ट गयी। वे च ताके अथाह एवं अपार समु म
डू बने-उतराने लग ।।२८।। उनके ब बाफल (पके ए कुँद ) के समान लाल-लाल अधर
शोकके कारण चलनेवाली ल बी और गरम साँससे सूख गये। उ ह ने अपने मुँह नीचेक ओर
लटका लये, वे पैरके नख से धरती कुरेदने लग । ने से ःखके आँसू बह-बहकर काजलके
साथ व ः थलपर प ँचने और वहाँ लगी ई केशरको धोने लगे। उनका दय ःखसे इतना
भर गया क वे कुछ बोल न सक , चुपचाप खड़ी रह गय ।।२९।। गो पय ने अपने यारे
यामसु दरके लये सारी कामनाएँ, सारे भोग छोड़ दये थे। ीकृ णम उनका अन य
अनुराग, परम ेम था। जब उ ह ने अपने यतम ीकृ णक यह न ु रतासे भरी बात सुनी,
जो बड़ी ही अ य-सी मालूम हो रही थी, तब उ ह बड़ा ःख आ। आँख रोते-रोते लाल हो
गय , आँसु के मारे ँ ध गय । उ ह ने धीरज धारण करके अपनी आँख के आँसू प छे और
फर णयकोपके कारण वे गद्गद वाणीसे कहने लग ।।३०।।
गो पय ने कहा— यारे ीकृ ण! तुम घट-घट ापी हो। हमारे दयक बात जानते हो।
तु ह इस कार न ु रताभरे वचन नह कहने चा हये। हम सब कुछ छोड़कर केवल तु हारे
चरण म ही ेम करती ह। इसम स दे ह नह क तुम वत और हठ ले हो। तुमपर हमारा
कोई वश नह है। फर भी तुम अपनी ओरसे, जैसे आ दपु ष भगवान् नारायण कृपा करके
अपने मुमु ु भ से ेम करते ह, वैसे ही हम वीकार कर लो। हमारा याग मत
करो ।।३१।। यारे यामसु दर! तुम सब धम का रह य जानते हो। तु हारा यह कहना क
‘अपने प त, पु और भाई-ब धु क सेवा करना ही य का वधम है’—अ रशः ठ क
है। पर तु इस उपदे शके अनुसार हम तु हारी ही सेवा करनी चा हये; य क तु ह सब
उपदे श के पद (चरम ल य) हो; सा ात् भगवान् हो। तु ह सम त शरीरधा रय के सु द् हो,
आ मा हो और परम यतम हो ।।३२।। आ म ानम नपुण महापु ष तुमसे ही ेम करते
ह; य क तुम न य य एवं अपने ही आ मा हो। अ न य एवं ःखद प त-पु ा दसे या
योजन है? परमे र! इस लये हमपर स होओ। कृपा करो। कमलनयन! चरकालसे
तु हारे त पाली-पोसी आशा-अ भलाषाक लहलहाती लताका छे दन मत करो ।।३३।।
मनमोहन! अबतक हमारा च घरके काम-धंध म लगता था। इसीसे हमारे हाथ भी उनम
रमे ए थे। पर तु तुमने हमारे दे खते-दे खते हमारा वह च लूट लया। इसम तु ह कोई
क ठनाई भी नह उठानी पड़ी, तुम तो सुख व प हो न! पर तु अब तो हमारी ग त-म त
नराली ही हो गयी है। हमारे ये पैर तु हारे चरणकमल को छोड़कर एक पग भी हटनेके लये
तैयार नह ह, नह हट रहे ह। फर हम जम कैसे जायँ? और य द वहाँ जायँ भी तो कर
या? ।।३४।। ाणव लभ! हमारे यारे सखा! तु हारी म द-म द मधुर मुसकान, ेमभरी
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चतवन और मनोहर संगीतने हमारे दयम तु हारे ेम और मलनक आग धधका द है। उसे
तुम अपने अधर क रसधारासे बुझा दो। नह तो यतम! हम सच कहती ह, तु हारी
वरह थाक आगसे हम अपने-अपने शरीर जला दगी और यानके ारा तु हारे
चरणकमल को ा त करगी ।।३५।।
य प यप यसु दामनुवृ र
ीणां वधम इ त धम वदा वयो म् ।
अ वेवमेत पदे शपदे वयीशे
े ो भवां तनुभृतां कल ब धुरा मा ।।३२
स चा न वदधरामृतपूरकेण
हासावलोककलगीतज छया नम् ।
नो चेद ् वयं वरहजा युपयु दे हा
यानेन याम पदयोः पदव सखे ते ।।३५
वी यालकावृतमुखं तव कु डल ी-
ग ड थलाधरसुधं ह सतावलोकम् ।
द ाभयं च भुजद डयुगं वलो य
व ः यैकरमणं च भवाम दा यः ।।३९
का य ते कलपदायतमू छतेन
स मो हताऽऽयच रता चले लो याम् ।
ै ो यसौभग मदं च नरी य पं
ल
यद् गो ज ममृगाः पुलका य ब न् ।। ४०
ता भः समेता भ दारचे तः
ये णो फु लमुखी भर युतः ।
उदारहास जकु दद ध त-
रोचतैणांक इवोडु भवृतः ।।४३
बा सारप रर भकरालको -
नीवी तनालभननमनखा पातैः ।
वे यावलोकह सतै जसु दरीणा-
मु भयन् र तप त रमया चकार ।।४६
ग यानुराग मत व मे तै-
मनोरमालाप वहार व मैः ।
आ त च ाः मदा रमापते-
ता ता वचे ा जगृ तदा मकाः ।।२
ग त मत े णभाषणा दषु
याः य य त ढमूतयः ।
असावहं व यबला तदा मका
यवे दषुः कृ ण वहार व माः ।।३
ो वः क चद थ ल य ोध नो मनः ।
न दसूनुगतो वा ेमहासावलोकनैः ।।५
क च ुल स क या ण गो व दचरण ये ।
सह वा लकुलै ब द् तेऽ त योऽ युतः ।।७
(गो पय ने पहले बड़े-बड़े वृ से जाकर पूछा) ‘हे पीपल, पाकर और बरगद! न दन दन
यामसु दर अपनी ेमभरी मुसकान और चतवनसे हमारा मन चुराकर चले गये ह। या
तुमलोग ने उ ह दे खा है? ।।५।। कुरबक, अशोक, नागकेशर, पु ाग और च पा!
बलरामजीके छोटे भाई, जनक मुसकान-मा से बड़ी-बड़ी मा न नय का मानमदन हो जाता
है, इधर आये थे या?’ ।।६।। (अब उ ह ने ीजा तके पौध से कहा—) ‘ब हन तुलसी!
तु हारा दय तो बड़ा कोमल है, तुम तो सभी लोग का क याण चाहती हो। भगवान्के
चरण म तु हारा ेम तो है ही, वे भी तुमसे ब त यार करते ह। तभी तो भ र के मँडराते
रहनेपर भी वे तु हारी माला नह उतारते, सवदा पहने रहते ह। या तुमने अपने परम यतम
यामसु दरको दे खा है? ।।७।। यारी मालती! म लके! जाती और जूही! तुमलोग ने
कदा चत् हमारे यारे माधवको दे खा होगा। या वे अपने कोमल कर से पश करके तु ह
आन दत करते ए इधरसे गये ह?’ ।।८।। ‘रसाल, याल, कटहल, पीतशाल, कचनार,
जामुन, आक, बेल, मौल सरी, आम, कद ब और नीम तथा अ या य यमुनाके तटपर
वराजमान सुखी त वरो! तु हारा ज म-जीवन केवल परोपकारके लये है। ीकृ णके बना
हमारा जीवन सूना हो रहा है। हम बेहोश हो रही ह। तुम हम उ ह पानेका माग बता
दो’ ।।९।। ‘भगवान्क ेयसी पृ वीदे वी! तुमने ऐसी कौन-सी तप या क है क ीकृ णके
चरणकमल का पश ा त करके तुम आन दसे भर रही हो और तृण-लता आ दके पम
अपना रोमांच कट कर रही हो? तु हारा यह उ लास- वलास ीकृ णके चरण पशके
कारण है अथवा वामनावतारम व प धारण करके उ ह ने तु ह जो नापा था, उसके
कारण है? कह उनसे भी पहले वराह भगवान्के अंग-संगके कारण तो तु हारी यह दशा नह
हो रही है?’ ।।१०।। ‘अरी सखी! ह र नयो! हमारे यामसु दरके अंग-संगसे सुषमा-
सौ दयक धारा बहती रहती है, वे कह अपनी ाण याके साथ तु हारे नयन को
परमान दका दान करते ए इधरसे ही तो नह गये ह? दे खो, दे खो; यहाँ कुलप त ीकृ णक
कु दकलीक मालाक मनोहर ग ध आ रही है, जो उनक परम ेयसीके अंग-संगसे लगे ए
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कुच-कुंकुमसे अनुरं जत रहती है’ ।।११।। ‘त वरो! उनक मालाक तुलसीम ऐसी सुग ध है
क उसक ग धके लोभी मतवाले भ रे येक ण उसपर मँडराते रहते ह। उनके एक हाथम
लीलाकमल होगा और सरा हाथ अपनी ेयसीके कंधेपर रखे ह गे। हमारे यारे यामसु दर
इधरसे वचरते ए अव य गये ह गे। जान पड़ता है, तुमलोग उ ह णाम करनेके लये ही
झुके हो। पर तु उ ह ने अपनी ेमभरी चतवनसे भी तु हारी व दनाका अ भन दन कया है
या नह ?’ ।।१२।। ‘अरी सखी! इन लता से पूछो। ये अपने प त वृ को भुजपाशम
बाँधकर आ लगन कये ए ह, इससे या आ? इनके शरीरम जो पुलक है, रोमांच है, वह
तो भगवान्के नख के पशसे ही है। अहो! इनका कैसा सौभा य है?’ ।।१३।।
क ते कृतं
त तपो बत केशवाङ् -
पश सवो पुल कता है वभा स ।
अ यङ् स भव उ म व माद् वा
आहो वराहवपुषः प रर भणेन ।।१०
इ यु म वचो गो यः कृ णा वेषणकातराः ।
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लीला भगवत ता ता नुच ु तदा मकाः ।।१४
आ य रगा य त् कृ ण तमनुकुवतीम् ।
वेणुं वण त ड तीम याः शंस त सा व त ।।१८
त क
ै ोवाच हेगोपा दावा नं प यतो बणम् ।
च ंू या पद वं वो वधा ये ेममंजसा ।।२२
ब ा यया जा का च वी त उलूखले ।
भीता सु क् पधाया यं भेजे भी त वड बनम् ।।२३
एवमु ः यामाह क ध आ ता म त ।
तत ा तदधे कृ णः सा वधूर वत यत ।।३९
शर दाशये साधुजातसत्
सर सजोदर ीमुषा शा ।
सुरतनाथ तेऽशु कदा सका
वरद न नतो नेह क वधः ।।२
वर चताभयं वृ णधुय ते
चरणमीयुषां संसृतेभयात् ।
करसरो हं का त कामदं
शर स धे ह नः ीकर हम् ।।५
ह सतं य ेमवी णं
वहरणं च ते यानम लम् ।
रह स सं वदो या द पृशः
कुहक नो मनः ोभय त ह ।।१०
णतकामदं प जा चतं
धर णम डनं येयमाप द ।
चरणपंकजं श तमं च ते
रमण नः तने वपया धहन् ।।१३
हमारे यारे वामी! तु हारे चरण कमलसे भी सुकोमल और सु दर ह। जब तुम गौ को
चरानेके लये जसे नकलते हो तब यह सोचकर क तु हारे वे युगल चरण कंकड़, तनके
और कुश-काँटे गड़ जानेसे क पाते ह गे, हमारा मन बेचैन हो जाता है। हम बड़ा ःख होता
है ।।११।। दन ढलनेपर जब तुम वनसे घर लौटते हो, तो हम दे खती ह क तु हारे
मुखकमलपर नीली-नीली अलक लटक रही ह और गौ के खुरसे उड़-उड़कर घनी धूल
पड़ी ई है। हमारे वीर यतम! तुम अपना वह सौ दय हम दखा- दखाकर हमारे दयम
मलनक आकां ा— ेम उ प करते हो ।।१२।। यतम! एकमा तु ह हमारे सारे
ःख को मटानेवाले हो। तु हारे चरणकमल शरणागत भ क सम त अ भलाषा को पूण
करनेवाले ह। वयं ल मीजी उनक सेवा करती ह और पृ वीके तो वे भूषण ही ह। आप के
समय एकमा उ ह का च तन करना उ चत है, जससे सारी आप याँ कट जाती ह।
कुंज वहारी! तुम अपने वे परम क याण व प चरणकमल हमारे व ः थलपर रखकर
दयक था शा त कर दो ।।१३।। वीर शरोमणे! तु हारा अधरामृत मलनके सुखको—
आकां ाको बढ़ानेवाला है। वह वरहज य सम त शोक-स तापको न कर दे ता है। यह
गानेवाली बाँसुरी भलीभाँ त उसे चूमती रहती है। ज ह ने एक बार उसे पी लया, उन
लोग को फर सर और सर क आस य का मरण भी नह होता। हमारे वीर! अपना
वही अधरामृत हम वतरण करो, पलाओ ।।१४।। यारे! दनके समय जब तुम वनम वहार
करनेके लये चले जाते हो, तब तु ह दे खे बना हमारे लये एक-एक ण युगके समान हो
जाता है और जब तुम स याके समय लौटते हो तथा घुँघराली अलक से यु तु हारा परम
सु दर मुखार व द हम दे खती ह, उस समय पलक का गरना हमारे लये भार हो जाता है
और ऐसा जान पड़ता है क इन ने क पलक को बनानेवाला वधाता मूख है ।।१५।। यारे
यामसु दर! हम अपने प त-पु , भाई-ब धु और कुल-प रवारका यागकर, उनक इ छा
और आ ा का उ लंघन करके तु हारे पास आयी ह। हम तु हारी एक-एक चाल जानती ह,
संकेत समझती ह और तु हारे मधुर गानक ग त समझकर, उसीसे मो हत होकर यहाँ आयी
ह। कपट ! इस कार रा के समय आयी ई युव तय को तु हारे सवा और कौन छोड़
सकता है ।।१६।। यारे! एका तम तुम मलनक आकां ा, ेम-भावको जगानेवाली बात
करते थे। ठठोली करके हम छे ड़ते थे। तुम ेमभरी चतवनसे हमारी ओर दे खकर मुसकरा
दे ते थे और हम दे खती थ तु हारा वह वशाल व ः थल, जसपर ल मीजी न य- नर तर
नवास करती ह। तबसे अबतक नर तर हमारी लालसा बढ़ती ही जा रही है और हमारा मन
सुरतवधनं शोकनाशनं
व रतवेणुना सु ु चु बतम् ।
इतरराग व मारणं नृणां
वतर वीर न तेऽधरामृतम् ।।१४
रह स सं वदं छयोदयं
ह सताननं ेमवी णम् ।
बृह रः यो वी य धाम ते
मु र त पृहा मु ते मनः ।।१७
जवनौकसां र ते
वृ जनह यलं व म लम् ।
यज मनाक् च न व पृहा मनां
वजन जां य षूदनम् ।।१८
य े सुजातचरणा बु हं तनेषु
भीताः शनैः य दधीम ह ककशेषु ।
तेनाटवीमट स तद् थते न क वत्
कूपा द भ म त धीभवदायुषां नः ।।१९
तु हारे चरण कमलसे भी सुकुमार ह। उ ह हम अपने कठोर तन पर भी डरते-डरते
ब त धीरेसे रखती ह क कह उ ह चोट न लग जाय। उ ह चरण से तुम रा के समय घोर
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जंगलम छपे- छपे भटक रहे हो! या कंकड़, प थर आ दक चोट लगनेसे उनम पीड़ा नह
होती? हम तो इसक स भावनामा से ही च कर आ रहा है। हम अचेत होती जा रही ह।
ीकृ ण! यामसु दर! ाणनाथ! हमारा जीवन तु हारे लये है, हम तु हारे लये जी रही ह,
हम तु हारी ह ।।१९।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे पूवाध रास डायां गोपीगीतं
नामैक शोऽ यायः ।।३१।।
तं का च े र ण
े दकृ य नमी य च ।
पुलका युपगु ा ते योगीवान दस लुता ।।८
त शना ाद वधूत जो
मनोरथा तं ुतयो यथा ययुः ।
वै रीयैः कुचकुंकुमां कतै-
रची लृप ासनमा मब धवे ।।१३
त ोप व ो भगवान् स ई रो
योगे रा त द क पतासनः ।
चकास गोपीप रषद्गतोऽ चत-
ैलो यल येकपदं वपुदधत् ।।१४
या माभजन् जरगेहशृंखलाः
संवृ य तद् वः तयातु साधुना ।।२२
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे पूवाध रास डायां
गोपीसा वनं नाम ा शोऽ यायः ।।३२।।
त ैकांसगतं बा ं कृ ण यो पलसौरभम् ।
च दना ल तमा ाय रोमा चुचु ब ह ।।१२
तत कृ णोपवने जल थल-
सूनग धा नलजु द टे ।
चचार भृ मदागणावृतो
यथा मद युद ् रदः करेणु भः ।।२५
सषेव आ म यव सौरतः
सवाः शर का कथारसा याः ।।२६
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राजोवाच
सं थापनाय धम य शमायेतर य च ।
अवतीण ह भगवानंशेन जगद रः ।।२७
य पादपंकजपराग नषेवतृ ता
योग भाव वधुता खलकमब धाः ।
वैरं चर त मुनयोऽ प न न माना-
त ये छयाऽऽ वपुषः कुत एव ब धः ।।३५
इ यनु ा य दाशाह प र या भव च ।
सुदशनो दवं यातः कृ ा द मो चतः ।।१८
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नशा य कृ ण य तदा मवैभवं
जौकसो व मतचेतस ततः ।
समा य त मन् नयमं पुन जं
नृपाययु तत् कथय त आ ताः ।।१९
तम वधावद् गो व दो य य स धाव त ।
जहीषु त छरोर नं त थौ र न् यो बलः ।।३०
अ व र इवा ये य शर त य रा मनः ।
जहार मु नैवा सहचूडाम ण वभुः ।।३१
ोमयानव नताः सह स ै -
व मता त पधाय सल जाः ।
काममागणसम पत च ाः
क मलं ययुरप मृतनी ः ।।३
ह त च मबलाः शृणुतेदं
हारहास उर स थर व ुत् ।
न दसूनुरयमातजनानां
नमदो य ह कू जतवेणुः ।।४
ब हण तबकधातुपलाशै-
ब म लप रबह वड बः ।
क ह चत् सबल आ ल स गोपै-
गाः समा य त य मुकु दः ।।६
त ह भ नगतयः स रतो वै
त पदा बुजरजोऽ नलनीतम् ।
पृहयतीवय मवाब पु याः
ेमवे पतभुजाः त मतापः ।।७
सर स सारसहंस वह ा-
ा गीत तचेतस ए य ।
ह रमुपासत ते यत च ा
ह त मी लत शो धृतमौनाः ।।११
व वधगोपचरणेषु वद धो
वेणुवा उ धा नज श ाः ।
तव सुतः स त यदाधर ब बे
द वेणुरनयत् वरजातीः ।।१४
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सवनश त पधाय सुरेशाः
श शवपरमे पुरोगाः ।
कवय आनतक धर च ाः
क मलं ययुर न तत वाः ।।१५
म णधरः व चदागणयन् गा
मालया द यतग धतुल याः ।
ण यनोऽनुचर य कदांसे
पन् भुजमगायत य ।।१८
सती शरोम ण यशोदाजी! तु हारे सु दर कुँवर वालबाल के साथ खेल खेलनेम बड़े
नपुण ह। रानीजी! तु हारे लाड़ले लाल सबके यारे तो ह ही, चतुर भी ब त ह। दे खो, उ ह ने
बाँसुरी बजाना कसीसे सीखा नह । अपने ही अनेक कारक राग-रा ग नयाँ उ ह ने नकाल
ल । जब वे अपने ब बाफल स श लाल-लाल अधर पर बाँसुरी रखकर ऋषभ, नषाद आ द
वर क अनेक जा तयाँ बजाने लगते ह, उस समय वंशीक परम मो हनी और नयी तान
सुनकर ा, शंकर और इ आ द बड़े-बड़े दे वता भी—जो सव ह—उसे नह पहचान
पाते। वे इतने मो हत हो जाते ह क उनका च तो उनके रोकनेपर भी उनके हाथसे
नकलकर वंशी व नम त लीन हो ही जाता है, सर भी झुक जाता है, और वे अपनी सुध-बुध
खोकर उसीम त मय हो जाते ह ।।१४-१५।।
अरी वीर! उनके चरणकमल म वजा, व , कमल, अंकुश आ दके व च और सु दर-
सु दर च ह। जब जभू म गौ के खुरसे खुद जाती है, तब वे अपने सुकुमार चरण से
उसक पीड़ा मटाते ए गजराजके समान म दग तसे आते ह और बाँसुरी भी बजाते रहते ह।
उनक वह वंशी व न, उनक वह चाल और उनक वह वलासभरी चतवन हमारे दयम
ेमके, मलनक आकां ाका आवेग बढ़ा दे ती है। हम उस समय इतनी मु ध, इतनी मो हत
हो जाती ह क हल-डोलतक नह सकत , मानो हम जड़ वृ ह ! हम तो इस बातका भी
पता नह चलता क हमारा जूड़ा खुल गया है या बँधा है, हमारे शरीरपरका व उतर गया है
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या है ।।१६-१७।।
अरी वीर! उनके गलेम म णय क माला ब त ही भली मालूम होती है। तुलसीक मधुर
ग ध उ ह ब त यारी है। इसीसे तुलसीक मालाको तो वे कभी छोड़ते ही नह , सदा धारण
कये रहते ह। जब वे यामसु दर उस म णय क मालासे गौ क गनती करते-करते कसी
ेमी सखाके गलेम बाँह डाल दे ते ह और भाव बता-बताकर बाँसुरी बजाते ए गाने लगते ह,
उस समय बजती ई उस बाँसुरीके मधुर वरसे मो हत होकर कृ णसार मृग क प नी
ह र नयाँ भी अपना च उनके चरण पर नछावर कर दे ती ह और जैसे हम गो पयाँ अपने
घर-गृह थीक आशा-अ भलाषा छोड़कर गुणसागर नागर न दन दनको घेरे रहती ह, वैसे ही
वे भी उनके पास दौड़ आती ह और वह एकटक दे खती ई खड़ी रह जाती ह, लौटनेका
नाम भी नह लेत ।।१८-१९।।
व णतवेणुरववं चत च ाः
कृ णम वसत कृ णगृ ह यः ।
गुणगणाणमनुग य ह र यो
गो पका इव वमु गृहाशाः ।।१९
कु ददामकृतकौतुकवेषो
गोपगोधनवृतो यमुनायाम् ।
न दसूनुरनघे तव व सो
नमदः ण यनां वजहार ।।२०
उ सवं म चा प शीना-
मु यन् खुररज छु रत क् ।
द सयै त सु दा शष एष
दे वक जठरभू डु राजः ।।२३
य प त रदराज वहारो
या मनीप त रवैष दना ते ।
मु दतव उपया त र तं
मोचयन् जगवां दनतापम् ।।२५
ीशुक उवाच
एवं ज यो राजन् कृ णलीला नु गायतीः ।
रे मरेऽहःसु त च ा त मन का महोदयाः ।।२६
सखी! दे खो कैसा सौ दय है! मदभरी आँख कुछ चढ़ ई ह। कुछ-कुछ ललाई लये ए
कैसी भली जान पड़ती ह। गलेम वनमाला लहरा रही है। सोनेके कु डल क का तसे वे
अपने कोमल कपोल को अलंकृत कर रहे ह। इसीसे मुँहपर अधपके बेरके समान कुछ
कृ ण कृ णे त ते सव गो व दं शरणं ययुः ।
भगवान प तद् वी य गोकुलं भय व तम् ।।६
य तौ व म े न दे वै या यां ते पु षा हताः ।
नश य तद् भोजप तः कोपात् च लते यः ।।१८
परी त्! भगवान्क लीला अ य त अद्भुत है। इधर जब उ ह ने अ र ासुरको मार
डाला, तब भगव मय नारद, जो लोग को शी -से-शी भगवान्का दशन कराते रहते ह,
कंसके पास प ँच।े उ ह ने उससे कहा— ।।१६।। ‘कंस! जो क या तु हारे हाथसे छू टकर
आकाशम चली गयी, वह तो यशोदाक पु ी थी। और जम जो ीकृ ण ह, वे दे वक के पु
ह। वहाँ जो बलरामजी ह, वे रो हणीके पु ह। वसुदेवने तुमसे डरकर अपने म न दके पास
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उन दोन को रख दया है। उ ह ने ही तु हारे अनुचर दै य का वध कया है।’ यह बात सुनते ही
कंसक एक-एक इ य ोधके मारे काँप उठ ।।१७-१८।।
इ या ा याथत आ य य पु वम् ।
गृही वा पा णना पा ण ततोऽ ू रमुवाच ह ।।२७
भो भो दानपते म ं यतां मै मा तः ।
ना य व ो हततमो व ते भोजवृ णषु ।।२८
उसने वसुदेवजीको मार डालनेके लये तुरंत तीखी तलवार उठा ली, पर तु नारदजीने
रोक दया। जब कंसको यह मालूम हो गया क वसुदेवके लड़के ही हमारी मृ युके कारण ह,
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तब उसने दे वक और वसुदेव दोन ही प त-प नीको हथकड़ी और बेड़ीसे जकड़कर फर
जेलम डाल दया। जब दे व ष नारद चले गये, तब कंसने केशीको बुलाया और कहा—‘तुम
जम जाकर बलराम और कृ णको मार डालो।’ वह चला गया। इसके बाद कंसने मु क,
चाणूर, शल तोशल आ द पहलवान , म य और महावत को बुलाकर कहा—‘वीरवर
चाणूर और मु क! तुमलोग यानपूवक मेरी बात सुनो ।।१९-२२।। वसुदेवके दो पु बलराम
और कृ ण न दके जम रहते ह। उ ह के हाथसे मेरी मृ यु बतलायी जाती है ।।२३।। अतः
जब वे यहाँ आव, तब तुमलोग उ ह कु ती लड़ने-लड़ानेके बहाने मार डालना। अब तुमलोग
भाँ त-भाँ तके मंच बनाओ और उ ह अखाड़ेके चार ओर गोल-गोल सजा दो। उनपर बैठकर
नगरवासी और दे शक सरी जा इस व छ द दं गलको दे ख ।।२४।। महावत! तुम बड़े
चतुर हो। दे खो भाई! तुम दं गलके घेरेके फाटकपर ही अपने कुवलयापीड हाथीको रखना
और जब मेरे श ु उधरसे नकल, तब उसीके ारा उ ह मरवा डालना ।।२५।। इसी
चतुदशीको व धपूवक धनुषय ार भ कर दो और उसक सफलताके लये वरदानी
भूतनाथ भैरवको ब त-से प व पशु क ब ल चढ़ाओ ।।२६।।
परी त्! कंस तो केवल वाथ-साधनका स ा त जानता था। इस लये उसने म ी,
पहलवान और महावतको इस कार आ ा दे कर े य वंशी अ ू रको बुलवाया और
उनका हाथ अपने हाथम लेकर बोला— ।।२७।। ‘अ ू रजी! आप तो बड़े उदार दानी ह। सब
तरहसे मेरे आदरणीय ह। आज आप मेरा एक म ो चत काम कर द जये; य क भोजवंशी
और वृ णवंशी यादव म आपसे बढ़कर मेरी भलाई करनेवाला सरा कोई नह है ।।२८।।
यह काम ब त बड़ा है, इस लये मेरे म ! मने आपका आ य लया है। ठ क वैसे ही, जैसे
इ समथ होनेपर भी व णुका आ य लेकर अपना वाथ साधता रहता है ।।२९।।
आप न दरायके जम जाइये। वहाँ वसुदेवजीके दो पु ह। उ ह इसी रथपर चढ़ाकर यहाँ
ले आइये। बस, अब इस कामम दे र नह होनी चा हये ।।३०।। सुनते ह, व णुके भरोसे
जीनेवाले दे वता ने उन दोन को मेरी मृ युका कारण न त कया है। इस लये आप उन
दोन को तो ले ही आइये, साथ ही न द आ द गोप को भी बड़ी-बड़ी भट के साथ ले
आइये ।।३१।। यहाँ आनेपर म उ ह अपने कालके समान कुवलयापीड हाथीसे मरवा
डालूँगा। य द वे कदा चत् उस हाथीसे बच गये, तो म अपने व के समान मजबूत और
फुत ले पहलवान मु क-चाणूर आ दसे उ ह मरवा डालूँगा ।।३२।। उनके मारे जानेपर
वसुदेव आ द वृ ण, भोज और दशाहवंशी उनके भाई-ब धु शोकाकुल हो जायँग।े फर उ ह
म अपने हाथ मार डालूँगा ।।३३।। मेरा पता उ सेन य तो बूढ़ा हो गया है, पर तु अभी
उसको रा यका लोभ बना आ है। यह सब कर चुकनेके बाद म उसको, उसके भाई
दे वकको और सरे भी जो-जो मुझसे े ष करनेवाले ह—उन सबको तलवारके घाट उतार
ँ गा ।।३४।। मेरे म अ ू रजी! फर तो म होऊँगा और आप ह गे तथा होगा इस पृ वीका
अक टक रा य। जरास ध हमारे बड़े-बूढ़े ससुर ह और वानरराज वद मेरे यारे सखा
ह ।।३५।। श बरासुर, नरकासुर और बाणासुर—ये तो मुझसे म ता करते ही ह, मेरा मुँह
दे खते रहते ह; इन सबक सहायतासे म दे वता के प पाती नरप तय को मारकर पृ वीका
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अक टक रा य भोगूँगा ।।३६।। यह सब अपनी गु त बात मने आपको बतला द । अब आप
ज द -से-ज द बलराम और कृ णको यहाँ ले आइये। अभी तो वे ब चे ही ह। उनको मार
डालनेम या लगता है? उनसे केवल इतनी ही बात क हयेगा क वे लोग धनुषय के दशन
और य वं शय क राजधानी मथुराक शोभा दे खनेके लये यहाँ आ जायँ’ ।।३७।।
अत वामा तः सौ य कायगौरवसाधनम् ।
यथे ो व णुमा य वाथम यगमद् वभुः ।।२९
ग छ न द जं त सुतावानक भेः ।
आसाते ता वहानेन रथेनानय मा चरम् ।।३०
द ता नपेतुभगव ज पृश-
ते के शन त तमय पृशो यथा ।
बा त े हगतो महा मनो
यथाऽऽमयः संववृधे उपे तः ।।७
समेधमानेन स कृ णबा ना
न वायु रणां व पन् ।
व गा ः प रवृ लोचनः
पपात ले डं वसृजन् तौ सुः ।।८
पर तु भगवान्ने उससे अपनेको बचा लया। भला, वह इ यातीतको कैसे मार पाता!
उ ह ने अपने दोन हाथ से उसके दोन पछले पैर पकड़ लये और जैसे ग ड़ साँपको
पकड़कर झटक दे ते ह, उसी कार ोधसे उसे घुमाकर बड़े अपमानके साथ चार सौ
हाथक रीपर फक दया और वयं अकड़कर खड़े हो गये ।।५।। थोड़ी ही दे रके बाद केशी
फर सचेत हो गया और उठ खड़ा आ। इसके बाद वह ोधसे तल मलाकर और मुँह
फाड़कर बड़े वेगसे भगवान्क ओर झपटा। उसको दौड़ते दे ख भगवान् मुसकराने लगे।
उ ह ने अपना बायाँ हाथ उसके मुँहम इस कार डाल दया, जैसे सप बना कसी आशंकाके
अपने बलम घुस जाता है ।।६।। परी त्! भगवान्का अ य त कोमल करकमल भी उस
समय ऐसा हो गया, मानो तपाया आ लोहा हो। उसका पश होते ही केशीके दाँत टू ट-
टू टकर गर गये और जैसे जलोदर रोग उपे ा कर दे नेपर ब त बढ़ जाता है, वैसे ही
ीकृ णका भुजद ड उसके मुँहम बढ़ने लगा ।।७।। अ च यश भगवान् ीकृ णका हाथ
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उसके मुँहम इतना बढ़ गया क उसक साँसके भी आने-जानेका माग न रहा। अब तो दम
घुटनेके कारण वह पैर पीटने लगा। उसका शरीर पसीनेसे लथपथ हो गया, आँख क पुतली
उलट गयी, वह मल- याग करने लगा। थोड़ी ही दे रम उसका शरीर न े होकर पृ वीपर गर
पड़ा तथा उसके ाण-पखे उड़ गये ।।८।। उसका न ाण शरीर फूला आ होनेके कारण
गरते ही पक ककड़ीक तरह फट गया। महाबा भगवान् ीकृ णने उसके शरीरसे अपनी
भुजा ख च ली। उ ह इससे कुछ भी आ य या गव नह आ। बना य नके ही श ुका नाश
हो गया। दे वता को अव य ही इससे बड़ा आ य आ। वे स हो-होकर भगवान्के ऊपर
पु प बरसाने और उनक तु त करने लगे ।।९।।
त े हतः कक टकाफलोपमाद्
सोरपाकृ य भुजं महाभुजः ।
अ व मतोऽय नहता र मयैः१
सूनवष द वष री डतः ।।९
यम तक य च मणेरादानं सह भायया ।
मृतपु दानं च ा ण य वधामतः ।।१९
अथ ते काल प य प य णोरमु य वै ।
अ ौ हणीनां नधनं या यजुनसारथेः ।।२२
भगवान प गो व दो ह वा के शनमाहवे ।
पशूनपालयत् पालैः ीतै जसुखावहः ।।२६
तं व नूनं महतां ग त गु ं
ैलो यका तं शम महो सवम् ।
पं दधानं य ई सता पदं
ये ममास ुषसः सुदशनाः ।।१४
न त य क द् द यतः सु मो
न चा यो े य उपे य एव वा ।
तथा प भ ान् भजते यथा तथा
सुर मो य पा तोऽथदः ।।२२
कचा जो मावनतं य मः
मयन् प र व य गृहीतमंजलौ ।
गृहं वे या तसम तस कृतं
सं यते कंसकृतं वब धुषु ।।२३
ीशुक उवाच
इ त स च तयन् कृ णं फ कतनयोऽ व न ।
त शना ाद ववृ स मः
े णो वरोमा ुकलाकुले णः ।
रथादव क स ते वचे त
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भोरमू यङ् रजां यहो इ त ।।२६
ु वा ू रवचः कृ णो बल परवीरहा ।
ह य न दं पतरं रा ाऽऽ द ं वज तुः ।।१०
य वं द या सतकु तलावृतं
मुकु दव ं सुकपोलमु सम् ।
शोकापनोद मतलेशसु दरं
करो ष पारो यमसाधु ते कृतम् ।।२०
गो पय ने कहा—ध य हो वधाता! तुम सब कुछ वधान तो करते हो, पर तु तु हारे
दयम दयाका लेश भी नह है। पहले तो तुम सौहाद और ेमसे जगत्के ा णय को एक-
सरेके साथ जोड़ दे ते हो, उ ह आपसम एक कर दे ते हो; मला दे ते हो पर तु अभी उनक
आशा-अ भलाषाएँ पूरी भी नह हो पात , वे तृ त भी नह हो पाते क तुम उ ह थ ही
अलग-अलग कर दे ते हो! सच है, तु हारा यह खलवाड़ ब च के खेलक तरह थ ही
है ।।१९।। यह कतने ःखक बात है! वधाता! तुमने पहले हम ेमका वतरण करनेवाले
यामसु दरका मुखकमल दखलाया। कतना सु दर है वह! काले-काले घुँघराले बाल
कपोल पर झलक रहे ह। मरकतम ण-से चकने सु न ध कपोल और तोतेक च च-सी सु दर
ना सका तथा अधर पर म द-म द मुसकानक सु दर रेखा, जो सारे शोक को त ण भगा
दे ती है। वधाता! तुमने एक बार तो हम वह परम सु दर मुखकमल दखाया और अब उसे ही
हमारी आँख से ओझल कर रहे हो! सचमुच तु हारी यह करतूत ब त ही अनु चत है ।।२०।।
हम जानती ह, इसम अ ू रका दोष नह है; यह तो साफ तु हारी ू रता है। वा तवम तु ह
अ ू रके नामसे यहाँ आये हो और अपनी ही द ई आँख तुम हमसे मूखक भाँ त छ न रहे
हो। इनके ारा हम यामसु दरके एक-एक अंगम तु हारी सृ का स पूण सौ दय नहारती
रहती थ । वधाता! तु ह ऐसा नह चा हये ।।२१।।
ू र वम ू रसमा यया म न-
ु ह द ं हरसे बता वत् ।
येनैकदे शेऽ खलसगसौ वं
वद यम ा म वयं मधु षः ।।२१
न न दसूनुः णभंगसौ दः
अ ुवं त शो भ व यते
दाशाहभोजा धकवृ णसा वताम् ।
महो सवः ीरमणं गुणा पदं
य त ये चा व न दे वक सुतम् ।।२५
अहो! न दन दन यामसु दरको भी नये-नये लोग से नेह लगानेक चाट पड़ गयी है।
दे खो तो सही—इनका सौहाद, इनका ेम एक णम ही कहाँ चला गया? हम तो अपने घर-
ार, वजन-स ब धी, प त-पु आ दको छोड़कर इनक दासी बन और इ ह के लये आज
हमारा दय शोकातुर हो रहा है, पर तु ये ऐसे ह क हमारी ओर दे खतेतक नह ।।२२।।
आजक रातका ातःकाल मथुराक य के लये न य ही बड़ा मंगलमय होगा। आज
उनक ब त दन क अ भलाषाएँ अव य ही पूरी हो जायँगी। जब हमारे जराज यामसु दर
अपनी तरछ चतवन और म द-म द मुसकानसे यु मुखार व दका मादक मधु वतरण
करते ए मथुरापुरीम वेश करगे, तब वे उसका पान करके ध य-ध य हो जायँगी ।।२३।।
य प हमारे यामसु दर धैयवान् होनेके साथ ही न दबाबा आ द गु जन क आ ाम रहते ह,
तथा प मथुराक युव तयाँ अपने मधुके समान मधुर वचन से इनका च बरबस अपनी ओर
ख च लगी और ये उनक सल ज मुसकान तथा वलासपूण भाव-भंगीसे वह रम जायँग।े
फर हम गँवार वा लन के पास ये लौटकर य आने लगे ।।२४।। ध य है आज हमारे
यामसु दरका दशन करके मथुराके दाशाह, भोज, अ धक और वृ णवंशी यादव के ने
अव य ही परमान दका सा ा कार करगे। आज उनके यहाँ महान् उ सव होगा। साथ ही जो
लोग यहाँसे मथुरा जाते ए रमारमण गुणसागर नटनागर दे वक न दन यामसु दरका मागम
दशन करगे, वे भी नहाल हो जायँगे ।।२५।।
त ोप पृ य पानीयं पी वा मृ ं म ण भम् ।
वृ ष डमुप य सरामो रथमा वशत् ।।३९
तौ रथ थौ कथ मह सुतावानक भेः ।
त ह वत् य दने न त इ यु म य च सः ।।४२
त ा प च यथापूवमासीनौ पुनरेव सः ।
यम जद् दशनं य मे मृषा क स लले तयोः ।।४३
सुमहाहम ण ात करीटकटकांगदै ः ।
क टसू सू हारनूपुरकु डलैः ।।५१
या पु ा गरा का या क या तु ेलयोजया ।
व या व या श या मायया च नषे वतम् ।।५५
थूल क ट दे श और नत ब, हाथीक सूँडके समान जाँघ, सु दर घुटने एवं पड लयाँ ह।
एड़ीके ऊपरक गाँठ उभरी ई ह और लाल-लाल नख से द यो तमय करण फैल रही
ह। चरणकमलक अंगु लयाँ और अंगूठे नयी और कोमल पँखु ड़य के समान सुशो भत
ह ।।४९-५०।।
अ य त ब मू य म णय से जड़ा आ मुकुट, कड़े, बाजूबंद, करधनी, हार, नूपुर और
कु डल से तथा य ोपवीतसे वह द मू त अलंकृत हो रही है। एक हाथम प शोभा पा
रहा है और शेष तीन हाथ म शंख, च और गदा, व ः थलपर ीव सका च , गलेम
कौ तुभम ण और वनमाला लटक रही है ।।५१-५२।।
न द-सुन द आ द पाषद अपने ‘ वामी’, सनका द परम ष ‘पर ’, ा, महादे व आ द
दे वता ‘सव र’, मरी च आ द नौ ा ण ‘ जाप त’ और ाद-नारद आ द भगवान्के परम
नैते व पं व रा मन ते
जादयोऽना मतया गृहीताः ।
अजोऽनुब ः स गुणैरजाया
गुणात् परं वेद न ते व पम् ।।३
अ ू रजी बोले— भो! आप कृ त आ द सम त कारण के परम कारण ह। आप ही
अ वनाशी पु षो म नारायण ह तथा आपके ही ना भकमलसे उन ाजीका आ वभाव
आ है, ज ह ने इस चराचर जगत्क सृ क है। म आपके चरण म नम कार करता
ँ ।।१।। पृ वी, जल, अ न, वायु, आकाश, अहंकार, मह व, कृ त, पु ष, मन, इ य,
स पूण इ य के वषय और उनके अ ध ातृदेवता—यही सब चराचर जगत् तथा उसके
वहारके कारण ह और ये सब-के-सब आपके ही अंग व प ह ।।२।। कृ त और
कृ तसे उ प होनेवाले सम त पदाथ ‘इदं वृ ’ के ारा हण कये जाते ह, इस लये ये
सब अना मा ह। अना मा होनेके कारण जड ह और इस लये आपका व प नह जान
सकते। य क आप तो वयं आ मा ही ठहरे। ाजी अव य ही आपके व प ह। पर तु
वे कृ तके गुण रजस्से यु ह, इस लये वे भी आपक कृ तका और उसके गुण से परेका
व प नह जानते ।।३।। साधु योगी वयं अपने अ तःकरणम थत ‘अ तयामी’ के पम,
सम त भूत-भौ तक पदाथ म ा त ‘परमा माके’ पम और सूय, च , अ न आ द
दे वम डलम थत ‘इ -दे वता’ के पम तथा उनके सा ी महापु ष एवं नय ता ई रके
पम सा ात् आपक ही उपासना करते ह ।।४।। ब त-से कमका डी ा ण कममागका
उपदे श करनेवाली यी व ाके ारा, जो आपके इ , अ न आ द अनेक दे ववाचक नाम
तथा व ह त, स ता च आ द अनेक प बतलाती है, बड़े-बड़े य करते ह और उनसे
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आपक ही उपासना करते ह ।।५।। ब त-से ानी अपने सम त कम का सं यास कर दे ते ह
और शा त-भावम थत हो जाते ह। वे इस कार ानय के ारा ान व प आपक ही
आराधना करते ह ।।६।। और भी ब त-से सं कार-स प अथवा शु च वै णवजन
आपक बतलायी ई पांचरा आ द व धय से त मय होकर आपके चतु ूह आ द अनेक
और नारायण प एक व पक पूजा करते ह ।।७।। भगवन्! सरे लोग शवजीके ारा
बतलाये ए मागसे, जसके आचाय भेदसे अनेक अवा तर भेद भी ह, शव व प आपक
ही पूजा करते ह ।।८।। वा मन्! जो लोग सरे दे वता क भ करते ह और उ ह आपसे
भ समझते ह, वे सब भी वा तवम आपक ही आराधना करते ह; य क आप ही सम त
दे वता के पम ह और सव र भी ह ।।९।। भो! जैसे पवत से सब ओर ब त-सी न दयाँ
नकलती ह और वषाके जलसे भरकर घूमती-घामती समु म वेश कर जाती ह, वैसे ही
सभी कारके उपासना-माग घूम-घामकर दे र-सबेर आपके ही पास प ँच जाते ह ।।१०।।
वां यो गनो यज य ा महापु षमी रम् ।
सा या मं सा धभूतं च सा धदै वं च साधवः ।।४
स वं रज तम इ त भवतः कृतेगुणाः ।
तेषु ह ाकृताः ोता आ थावरादयः ।।११
व य या मन् पु षे क पता
लोकाः सपाला ब जीवसंकुलाः ।
यथा जले सं जहते जलौकसो-
ऽ यु बरे वा मशका मनोमये ।।१५
या न यानीह पा ण डनाथ बभ ष ह ।
तैरामृ शुचो लोका मुदा गाय त ते यशः ।।१६
सौवणशृंगाटकह य न कुटै ः
ेणीसभा भभवनै प कृताम् ।
वै यव ामलनील व मै-
मु ाह र वलभीषु वे दषु ।।२१
् वा मु ः त
ु मनु तचेतस तं
त े णो मतसुधो णल धमानाः ।
आन दमू तमुपगु शाऽऽ मल धं
य वचो ज रन तम र दमा धम् ।।२८
तयोरासनमानीय पा ं चा याहणा द भः ।
पूजां सानुगयो े क्ता बूलानुलेपनैः ।।४४
१. बा घोषै वत सुः।
का वं वरोवत हानुलेपनं
क यांगने वा कथय व साधु नः ।
दे ावयोरंग वलेपमु मं
ेय तत ते न चराद् भ व य त ।।२
सैर युवाच
दा य यहं सु दर कंसस मता
व नामा नुलेपकम ण ।
म ा वतं भोजपतेर त यं
वना युवां कोऽ यतम तदह त ।।३
द घ जागरो भीतो न म ा न म तः ।
ब यच ोभयथा मृ योद यकरा ण च ।।२७
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अदशनं व शरसः त पे च स य प ।
अस य प तीये च ै यं यो तषां तथा ।।२८
छ ती त छायायां ाणघोषानुप ु तः ।
वण ती तवृ ेषु वपदानामदशनम् ।।२९
पब त इव च ु या लह त इव ज या ।
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ज त इव नासा यां य त इव बा भः ।।२१
व व सारसवागौ म लौ शैले स भौ ।
व चा तसुकुमारांगौ कशोरौ ना तयौवनौ ।।८
या दोहनेऽवहनने मथनोपलेप-
ेङ्खेङ्खनाभ दतो णमाजनादौ ।
गाय त चैनमनुर धयोऽ ुक ो
ध या ज य उ म च यानाः ।।१५
सखी! सच पूछो तो जभू म ही परम प व और ध य है। य क वहाँ ये पु षो म
मनु यके वेषम छपकर रहते ह। वयं भगवान् शंकर और ल मीजी जनके चरण क पूजा
करती ह, वे ही भु वहाँ रंग- बरंगे जंगली पु प क माला धारण कर लेते ह तथा
बलरामजीके साथ बाँसुरी बजाते, गौएँ चराते और तरह-तरहके खेल खेलते ए आन दसे
वचरते ह ।।१३।।
सखी! पता नह , गो पय ने कौन-सी तप या क थी, जो ने के दोन से न य- नर तर
इनक प-माधुरीका पान करती रहती ह। इनका प या है, लाव यका सार! संसारम या
उससे परे कसीका भी प इनके पके समान नह है, फर बढ़कर होनेक तो बात ही या
है! सो भी कसीके सँवारने-सजानेसे नह , गहने-कपड़ेसे भी नह , ब क वयं स है। इस
पको दे खते-दे खते तृ त भी नह होती। य क यह त ण नया होता जाता है, न य
नूतन है। सम यश, सौ दय और ऐ य इसीके आ त ह। स खयो! पर तु इसका दशन तो
और के लये बड़ा ही लभ है। वह तो गो पय के ही भा यम बदा है ।।१४।।
सखी! जक गो पयाँ ध य ह। नर तर ीकृ णम ही च लगा रहनेके कारण ेमभरे
दयसे, आँसु के कारण गद्गद क ठसे वे इ ह क लीला का गान करती रहती ह। वे ध
हते, दही मथते, धान कूटते, घर लीपते, बालक को झूला झुलाते, रोते ए बालक को चुप
कराते, उ ह नहलाते-धुलाते, घर को झाड़ते-बुहारते—कहाँतक कह, सारे काम-काज करते
समय ीकृ णके गुण के गानम ही म त रहती ह ।।१५।।
ात जाद् जत आ वशत सायं
गो भः समं वणयतोऽ य नश य वेणुम् ।
नग य तूणमबलाः प थ भू रपु याः
प य त स मतमुखं सदयावलोकम् ।।१६
त व ह शलः कृ णपदापहतशीषकः ।
धा वद ण तोशलक उभाव प नपेततुः ।।२७
गृ केशेषु चल करीटं
नपा य र ोप र तु म चात् ।
त योप र ात् वयम जनाभः
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पपात व ा य आ मत ः ।।३७
हा नाथ य धम क णानाथव सल ।
वया हतेन नहता वयं ते सगृह जाः ।।४५
* याँ जहाँ बात कर रही थ , वहाँसे नकट ही वसुदेव-दे वक कैद थे, अतः वे उनक
बात सुन सके।
इ यु तौ प र व य न दः णय व लः ।
पूरय ु भन े सह गोपै जं ययौ ।।२५
अब सारे-के-सारे य वंशी भगवान् ीकृ ण तथा बलरामजीके बा बलसे सुर त थे।
उनक कृपासे उ ह कसी कारक था नह थी, ःख नह था। उनके सारे मनोरथ सफल
हो गये थे। वे कृताथ हो गये थे। अब वे अपने-अपने घर म आन दसे वहार करने
लगे ।।१७।। भगवान् ीकृ णका वदन आन दका सदन है। वह न य फु लत, कभी न
कु हलानेवाला कमल है। उसका सौ दय अपार है। सदय हास और चतवन उसपर सदा
नाचती रहती है। य वंशी दन- त दन उसका दशन करके आन दम न रहते ।।१८।।
मथुराके वृ पु ष भी युवक के समान अ य त बलवान् और उ साही हो गये थे; य क वे
अपने ने के दोन से बारंबार भगवान्के मुखार व दका अमृतमय मकर द-रस पान करते
रहते थे ।।१९।।
य परी त्! अब दे वक न दन भगवान् ीकृ ण और बलरामजी दोन ही न दबाबाके
पास आये और गले लगनेके बाद उनसे कहने लगे— ।।२०।। ‘ पताजी! आपने और माँ
यशोदाने बड़े नेह और लारसे हमारा लालन-पालन कया है। इसम कोई स दे ह नह क
माता- पता स तानपर अपने शरीरसे भी अ धक नेह करते ह ।।२१।। ज ह पालन-पोषण न
कर सकनेके कारण वजन-स ब धय ने याग दया है, उन बालक को जो लोग अपने पु के
समान लाड़- यारसे पालते ह, वे ही वा तवम उनके माँ-बाप ह ।।२२।। पताजी! अब
आपलोग जम जाइये। इसम स दे ह नह क हमारे बना वा स य- नेहके कारण
आपलोग को ब त ःख होगा। यहाँके सु द्-स ब धय को सुखी करके हम आपलोग से
मलनेके लये आयगे’ ।।२३।। भगवान् ीकृ णने न दबाबा और सरे जवा सय को इस
कार समझा-बुझाकर बड़े आदरके साथ व , आभूषण और अनेक धातु के बने बरतन
आ द दे कर उनका स कार कया ।।२४।। भगवान्क बात सुनकर न द-बाबाने ेमसे अधीर
होकर दोन भाइय को गले लगा लया और फर ने म आँसू भरकर गोप के साथ जके
लये थान कया ।।२५।।
अथ शूरसुतो राजन् पु योः समकारयत् ।
पुरोधसा ा णै यथावद् जसं कृ तम् ।।२६
तत ल धसं कारौ ज वं ा य सु तौ ।
गगाद् य कुलाचायाद् गाय ं तमा थतौ ।।२९
सव नरवर े ौ सव व ा वतकौ ।
सकृ गदमा ेण तौ संजगृहतुनृप ।।३५
ज तयो तं म हमानम तं
संल य राज तमानुष म तम् ।
स म य प या स महाणवे मृतं
बालं भासे वरया बभूव ह ।।३७
तथे यथा महारथौ रथं
भासमासा र त व मौ ।
वेलामुप य नषीदतुः णं
स धु व द वाहणमाहर योः ।।३८
तथे त तेनोपानीतं गु पु ं य मौ ।
द वा वगुरवे भूयो वृणी वे त तमूचतुः ।।४६
बलरामजी और ीकृ णका परा म अन त था। दोन ही महारथी थे। उ ह ने ‘ब त
अ छा’ कहकर गु जीक आ ा वीकार क और रथपर सवार होकर भास े म गये। वे
समु तटपर जाकर णभर बैठे रहे। उस समय यह जानकर क ये सा ात् परमे र ह, अनेक
कारक पूजा-साम ी लेकर समु उनके सामने उप थत आ ।।३८।।
भगवान्ने समु से कहा—‘समु ! तुम यहाँ अपनी बड़ी-बड़ी तरंग से हमारे जस
गु पु को बहा ले गये थे, उसे लाकर शी हम दो’ ।।३९।।
मनु यवेषधारी समु ने कहा—‘दे वा धदे व ीकृ ण! मने उस बालकको नह लया है।
मेरे जलम पंचजन नामका एक बड़ा भारी दै य जा तका असुर शंखके पम रहता है।
अव य ही उसीने वह बालक चुरा लया होगा’ ।।४०।।
समु क बात सुनकर भगवान् तुरंत ही जलम जा घुसे और शंखासुरको मार डाला।
पर तु वह बालक उसके पेटम नह मला ।।४१।।
* च सठ कलाएँ ये ह—
१ गान व ा, २ वा —भाँ त-भाँ तके बाजे बजाना, ३ नृ य, ४ ना , ५ च कारी, ६
बेल-बूटे बनाना, ७ चावल और पु पा दसे पूजाके उपहारक रचना करना, ८ फूल क सेज
बनाना, ९ दाँत, व और अंग को रँगना, १० म णय क फश बनाना, ११ श या-रचना, १२
जलको बाँध दे ना, १३ व च स याँ दखलाना, १४ हार-माला आ द बनाना, १५ कान
और चोट के फूल के गहने बनाना, १६ कपड़े और गहने बनाना, १७ फूल के आभूषण से
शृंगार करना, १८ कान के प क रचना करना, १९ सुग धत व तुए— ँ इ , तैल आ द
बनाना, २० इ जाल—जा गरी, २१ चाहे जैसा वेष धारण कर लेना, २२ हाथक फुत के
काम, २३ तरह-तरहक खानेक व तुएँ बनाना, २४ तरह-तरहके पीनेके पदाथ बनाना, २५
सूईका काम, २६ कठपुतली बनाना, नचाना, २७ पहेली, २८ तमा आ द बनाना, २९
कूटनी त, ३० थ के पढ़ानेक चातुरी, ३१ नाटक, आ या यका आ दक रचना करना, ३२
सम यापू त करना, ३३ प , बत, बाण आ द बनाना, ३४ गलीचे, दरी आ द बनाना, ३५
बढ़इक कारीगरी, ३६ गृह आ द बनानेक कारीगरी, ३७ सोने, चाँद आ द धातु तथा हीरे-
प े आ द र न क परी ा, ३८ सोना-चाँद आ द बना लेना, ३९ म णय के रंगको पहचानना,
४० खान क पहचान, ४१ वृ क च क सा, ४२ भेड़ा, मुगा, बटे र आ दको लड़ानेक री त,
४३ तोता-मैना आ दक बो लयाँ बोलना, ४४ उ चाटनक व ध, ४५ केश क सफाईका
कौशल, ४६ मु क चीज या मनक बात बता दे ना, ४७ ले छ-का का समझ लेना, ४८
व भ दे श क भाषाका ान, ४९ शकुन-अपशकुन जानना, के उ रम शुभाशुभ
बतलाना, ५० नाना कारके मातृकाय बनाना, ५१ र न को नाना कारके आकार म
काटना, ५२ सांके तक भाषा बनाना, ५३ मनम कटकरचना करना, ५४ नयी-नयी बात
नकालना, ५५ छलसे काम नकालना, ५६ सम त कोश का ान, ५७ सम त छ द का ान,
५८ व को छपाने या बदलनेक व ा, ५९ ूत ड़ा, ६० रके मनु य या व तु का
आकषण कर लेना, ६१ बालक के खेल, ६२ म व ा, ६३ वजय ा त करानेवाली व ा,
६४ वेताल आ दको वशम रखनेक व ा।
ग छो व जं सौ य प ोन ी तमावह ।
गोपीनां म योगा ध म स दे शै वमोचय ।।३
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! उ वजी वृ णवं शय म एक धान पु ष थे। वे
सा ात् बृह प तजीके श य और परम बु मान् थे। उनक म हमाके स ब धम इससे
बढ़कर और कौन-सी बात कही जा सकती है क वे भगवान् ीकृ णके यारे सखा तथा
म ी भी थे ।।१।। एक दन शरणागत के सारे ःख हर लेनेवाले भगवान् ीकृ णने अपने
य भ और एका त ेमी उ वजीका हाथ अपने हाथम लेकर कहा— ।।२।।
‘सौ य वभाव उ व! तुम जम जाओ। वहाँ मेरे पता-माता न दबाबा और यशोदा मैया
ह, उ ह आन दत करो; और गो पयाँ मेरे वरहक ा धसे ब त ही ःखी हो रही ह, उ ह मेरे
स दे श सुनाकर उस वेदनासे मु करो ।।३।।
ता म मन का म ाणा मदथ य दै हकाः ।
मामेव द यतं े मा मानं मनसा गताः ।
ये य लोकधमा मदथ तान् बभ यहम् ।।४
अ प मर त नः कृ णो मातरं सु दः सखीन् ।
गोपान् जं चा मनाथं गावो वृ दावनं ग रम् ।।१८
गोपी और गोप सु दर-सु दर व तथा गहन से सज-धजकर ीकृ ण तथा बलरामजीके
मंगलमय च र का गान कर रहे थे और इस कार जक शोभा और भी बढ़ गयी
थी ।।११।। गोप के घर म अ न, सूय, अ त थ, गौ, ा ण और दे वता- पतर क पूजा क
ई थी। धूपक सुग ध चार ओर फैल रही थी और द पक जगमगा रहे थे। उन घर को
पु प से सजाया गया था। ऐसे मनोहर गृह से सारा ज और भी मनोरम हो रहा था ।।१२।।
चार ओर वन-पं याँ फूल से लद रही थ । प ी चहक रहे थे और भ रे गुंजार कर रहे थे।
वहाँ जल और थल दोन ही कमल के वनसे शोभायमान थे और हंस, ब ख आ द प ी
वनम वहार कर रहे थे ।।१३।।
जब भगवान् ीकृ णके यारे अनुचर उ वजी जम आये, तब उनसे मलकर न दबाबा
ब त ही स ए। उ ह ने उ वजीको गले लगाकर उनका वैसे ही स मान कया, मानो
वयं भगवान् ीकृ ण आ गये ह ।।१४।। समयपर उ म अ का भोजन कराया और जब वे
आरामसे पलँगपर बैठ गये, सेवक ने पाँव दबाकर, पंखा झलकर उनक थकावट र कर
द ।।१५।। तब न दबाबाने उनसे पूछा—‘परम भा यवान् उ वजी! अब हमारे सखा
वसुदेवजी जेलसे छू ट गये। उनके आ मीय वजन तथा पु आ द उनके साथ ह। इस समय
वे सब कुशलसे तो ह न? ।।१६।। यह बड़े सौभा यक बात है क अपने पाप के फल व प
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पापी कंस अपने अनुया यय के साथ मारा गया। य क वभावसे ही धा मक परम साधु
य वं शय से वह सदा े ष करता था ।।१७।। अ छा उ वजी! ीकृ ण कभी हमलोग क
भी याद करते ह? यह उनक माँ ह, वजन-स ब धी ह, सखा ह, गोप ह; उ ह को अपना
वामी और सव व माननेवाला यह ज है; उ ह क गौएँ, वृ दावन और यह ग रराज है, या
वे कभी इनका मरण करते ह? ।।१८।।
अ याया य त गो व दः वजनान् सकृद तुम् ।
त ह याम त ं सुनसं सु मते णम् ।।१९
म ये कृ णं च रामं च ा ता वह सुरो मौ ।
सुराणां महदथाय गग य वचनं यथा ।।२३
एतौ ह व य च बीजयोनी
रामो मुकु दः पु षः धानम् ।
अ वीय भूतेषु वल ण य
ान य चेशात इमौ पुराणौ ।।३१
य म नः ाण वयोगकाले
णं समावे य मनो वशु म् ।
न य कमाशयमाशु या त
आग म य यद घण कालेन जम युतः ।
यं वधा यते प ोभगवान् सा वतां प तः ।।३४
न या त यः क ा यो वा यमा ननः ।
नो मो नाधमो ना प समान यासमोऽ प वा ।।३७
ता द पद तैम ण भ वरेजू
र जू वकष जकंकण जः ।
चल त ब तनहारकु डल-
वष कपोला णकुंकुमाननाः ।।४५
उद्गायतीनामर व दलोचनं
जांगनानां दवम पृशद् व नः ।
द न नम थनश द म तो
नर यते येन दशाममंगलम् ।।४६
इ त गो यो ह गो व दे गतवा कायमानसाः ।
कृ ण ते जं याते उ वे य लौ ककाः ।।९
जब उ ह मालूम आ क ये तो रमारमण भगवान् ीकृ णका स दे श लेकर आये ह, तब
उ ह ने वनयसे झुककर सल ज हा य, चतवन और मधुर वाणी आ दसे उ वजीका
अ य त स कार कया तथा एका तम आसनपर बैठाकर वे उनसे इस कार कहने लग
— ।।३।। ‘उ वजी! हम जानती ह क आप य नाथके पाषद ह। उ ह का संदेश लेकर यहाँ
पधारे ह। आपके वामीने अपने माता- पताको सुख दे नेके लये आपको यहाँ भेजा है ।।४।।
अ यथा हम तो अब इस न दगाँवम—गौ के रहनेक जगहम उनके मरण करने यो य कोई
भी व तु दखायी नह पड़ती; माता- पता आ द सगे-स ब धय का नेह-ब धन तो बड़े-बड़े
ऋ ष-मु न भी बड़ी क ठनाईसे छोड़ पाते ह ।।५।। सर के साथ जो ेम-स ब धका वाँग
कया जाता है, वह तो कसी-न- कसी वाथके लये ही होता है। भ र का पु प से और
पु ष का य से ऐसा ही वाथका ेम-स ब ध होता है ।।६।। जब वे या समझती है क
अब मेरे यहाँ आनेवालेके पास धन नह है, तब उसे वह धता बता दे ती है। जब जा दे खती है
क यह राजा हमारी र ा नह कर सकता, तब वह उसका साथ छोड़ दे ती है। अ ययन
समा त हो जानेपर कतने श य अपने आचाय क सेवा करते ह? य क द णा मली क
ऋ वजलोग चलते बने ।।७।। जब वृ पर फल नह रहते, तब प ीगण वहाँसे बना कुछ
सोचे- वचारे उड़ जाते ह। भोजन कर लेनेके बाद अ त थलोग ही गृह थक ओर कब दे खते
ह? वनम आग लगी क पशु भाग खड़े ए। चाहे ीके दयम कतना भी अनुराग हो, जार
पु ष अपना काम बना लेनेके बाद उलटकर भी तो नह दे खता’ ।।८।।
परी त्! गो पय के मन, वाणी और शरीर ीकृ णम ही त लीन थे। जब भगवान्
ीकृ णके त बनकर उ वजी जम आये, तब वे उनसे इस कार कहते-कहते यह भूल ही
गय क कौन-सी बात कस तरह कसके सामने कहनी चा हये। भगवान् ीकृ णने
बचपनसे लेकर कशोर-अव थातक जतनी भी लीलाएँ क थ , उन सबक याद कर-करके
गो पयाँ उनका गान करने लग । वे आ म व मृत होकर ी-सुलभ ल जाको भी भूल गय
और फूट-फूटकर रोने लग ।।९-१०।।
गाय यः यकमा ण द य गत यः ।
वयमृत मव ज ा तं धानाः
कु लक त मवा ाः कृ णव वो ह र यः ।
द शुरसकृदे त ख पशती -
मर ज उपम न् भ यताम यवाता ।।१९
ऐ रे मधुप! जब वे राम बने थे, तब उ ह ने क पराज बा लको ाधके समान छपकर
बड़ी नदयतासे मारा था। बेचारी शूपणखा कामवश उनके पास आयी थी, पर तु उ ह ने
अपनी ीके वश होकर उस बेचारीके नाक-कान काट लये और इस कार उसे कु प कर
दया। ा णके घर वामनके पम ज म लेकर उ ह ने या कया? ब लने तो उनक पूजा
क , उनक मुँहमाँगी व तु द और उ ह ने उसक पूजा हण करके भी उसे व णपाशसे
बाँधकर पातालम डाल दया। ठ क वैसे ही, जैसे कौआ ब ल खाकर भी ब ल दे नेवालेको
अपने अ य सा थय के साथ मलकर घेर लेता है और परेशान करता है। अ छा, तो अब जाने
दे ; हम ीकृ णसे या, कसी भी काली व तुके साथ म तासे कोई योजन नह है। पर तु
य द तू यह कहे क ‘जब ऐसा है तब तुमलोग उनक चचा य करती हो?’ तो मर! हम
सच कहती ह, एक बार जसे उसका चसका लग जाता है, वह उसे छोड़ नह सकता। ऐसी
दशाम हम चाहनेपर भी उनक चचा छोड़ नह सकत ।।१७।। ीकृ णक लीला प
कणामृतके एक कणका भी जो रसा वादन कर लेता है, उसके राग- े ष, सुख- ःख आ द
सारे छू ट जाते ह। यहाँतक क ब त-से लोग तो अपनी ःखमय— ःखसे सनी ई घर-
गृह थी छोड़कर अ कचन हो जाते ह, अपने पास कुछ भी सं ह-प र ह नह रखते और
प य क तरह चुन-चुनकर—भीख माँगकर अपना पेट भरते ह, द न- नयासे जाते रहते ह।
फर भी ीकृ णक लीलाकथा छोड़ नह पाते। वा तवम उसका रस, उसका चसका ऐसा ही
है। यही दशा हमारी हो रही है ।।१८।। जैसे कृ णसार मृगक प नी भोली-भाली ह र नयाँ
ाधके सुमधुर गानका व ास कर लेती ह और उसके जालम फँसकर मारी जाती ह, वैसे
ही हम भोली-भाली गो पयाँ भी उस छ लया कृ णक कपटभरी मीठ -मीठ बात म आकर
उ ह स यके समान मान बैठ और उनके नख पशसे होनेवाली काम ा धका बार-बार
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अनुभव करती रह । इस लये ीकृ णके त भ रे! अब इस वषयम तू और कुछ मत कह।
तुझे कहना ही हो तो कोई सरी बात कह ।।१९।।
यसख पुनरागाः ेयसा े षतः क
वरय कमनु धे माननीयोऽ स मेऽ ।
नय स कथ महा मान् यज पा
सततमुर स सौ य ीवधूः साकमा ते ।।२०
अ प बत मधुपुयामायपु ोऽधुनाऽऽ ते
मर त स पतृगेहान् सौ य ब धूं गोपान् ।
व चद प स कथा नः ककरीणां गृणीते
भुजमगु सुग धं मू यधा यत् कदा नु ।।२१
ीशुक उवाच
अथो वो नश यैवं कृ णदशनलालसाः ।
सा वयन् यस दे शैग पी रदमभाषत ।।२२
उ व उवाच
अहो यूयं म पूणाथा भव यो लोकपू जताः ।
वासुदेवे भगव त यासा म य पतं मनः ।।२३
ग या ल लतयोदारहासलीलावलोकनैः ।
मा ा गरा त धयः कथं तं व मरामहे ।।५१
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हे नाथ हे रमानाथ जनाथा तनाशन ।
म नमु र गो व द गोकुलं वृ जनाणवात् ।।५२
ीशुक उवाच
तत ताः कृ णस दे शै पेत वरह वराः ।
उ वं पूजयांच ु ा वाऽऽ मानमधो जम् ।।५३
उ वजी! यह वही नद है, जसम वे वहार करते थे। यह वही पवत है, जसके
शखरपर चढ़कर वे बाँसुरी बजाते थे। ये वे ही वन ह, जनम वे रा के समय रासलीला करते
थे, और ये वे ही गौएँ ह, जनको चरानेके लये वे सुबह-शाम हमलोग को दे खते ए जाते-
आते थे। और यह ठ क वैसी ही वंशीक तान हमारे कान म गूँजती रहती है, जैसी वे अपने
अधर के संयोगसे छे ड़ा करते थे। बलरामजीके साथ ीकृ णने इन सभीका सेवन कया
है ।।४९।।
यहाँका एक-एक दे श, एक-एक धू लकण उनके परम सु दर चरणकमल से च त है।
इ ह जब-जब हम दे खती ह, सुनती ह— दनभर यही तो करती रहती ह—तब-तब वे हमारे
यारे यामसु दर न दन दनको हमारे ने के सामने लाकर रख दे ते ह। उ वजी! हम कसी
भी कार मरकर भी उ ह भूल नह सकत ।।५०।।
उनक वह हंसक -सी सु दर चाल, उ मु हा य, वलासपूण चतवन और मधुमयी
वाणी! आह! उन सबने हमारा च चुरा लया है, हमारा मन हमारे वशम नह है; अब हम
उ ह भूल तो कस तरह? ।।५१।।
हमारे यारे ीकृ ण! तु ह हमारे जीवनके वामी हो, सव व हो। यारे! तुम ल मीनाथ
हो तो या आ? हमारे लये तो जनाथ ही हो। हम जगो पय के एकमा तु ह स चे
वामी हो। यामसु दर! तुमने बार-बार हमारी था मटायी है, हमारे संकट काटे ह।
गो व द! तुम गौ से ब त ेम करते हो। या हम गौएँ नह ह? तु हारा यह सारा गोकुल
जसम वालबाल, माता- पता, गौएँ और हम गो पयाँ सब कोई ह— ःखके अपार सागरम
डू ब रहा है। तुम इसे बचाओ, आओ, हमारी र ा करो ।।५२।।
ीशुकदे वजी कहते ह— य परी त्! भगवान् ीकृ णका य स दे श सुनकर
गो पय के वरहक था शा त हो गयी थी। वे इ यातीत भगवान् ीकृ णको अपने
आ माके पम सव थत समझ चुक थ । अब वे बड़े ेम और आदरसे उ वजीका
स कार करने लग ।।५३।।
उवास क त च मासान् गोपीनां वनुद छु चः ।
कृ णलीलाकथां गायन् रमयामास गोकुलम् ।।५४
१. कृ णे।
सा म जनालेप कूलभूषण-
ग धता बूलसुधासवा द भः ।
सा धता मोपससार माधवं
स ीडलीलो मत व मे तैः ।।५
आ य का तां नवसंगम या
वशं कतां कंकणभू षते करे ।
गृ श याम धवे य रामया
रेमेऽनुलेपापणपु यलेशया ।।६
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! तदन तर सबके आ मा तथा सब कुछ दे खनेवाले
भगवान् ीकृ ण अपनेसे मलनक आकां ा रखकर ाकुल ई कु जाका य करने—उसे
सुख दे नेक इ छासे उसके घर गये ।।१।। कु जाका घर ब मू य साम य से स प था।
उसम शृंगार-रसका उ पन करनेवाली ब त-सी साधन-साम ी भी भरी ई थी। मोतीक
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झालर और थान- थानपर झं डयाँ भी लगी ई थ । चँदोवे तने ए थे। सेज बछायी ई थ
और बैठनेके लये ब त सु दर-सु दर आसन लगाये ए थे। धूपक सुग ध फैल रही थी।
द पकक शखाएँ जगमगा रही थ । थान- थानपर फूल के हार और च दन रखे ए
थे ।।२।। भगवान्को अपने घर आते दे ख कु जा तुरंत हड़बड़ाकर अपने आसनसे उठ खड़ी
ई और स खय के साथ आगे बढ़कर उसने व धपूवक भगवान्का वागत-स कार कया।
फर े आसन आ द दे कर व वध उपचार से उनक व धपूवक पूजा क ।।३।। कु जाने
भगवान्के परमभ उ वजीक भी समु चत री तसे पूजा क ; पर तु वे उसके स मानके
लये उसका दया आ आसन छू कर धरतीपर ही बैठ गये। (अपने वामीके सामने उ ह ने
आसनपर बैठना उ चत न समझा।) भगवान् ीकृ ण स चदान द- व प होनेपर भी
लोकाचारका अनुकरण करते ए तुरंत उसक ब मू य सेजपर जा बैठे ।।४।। तब कु जा
नान, अंगराग, व , आभूषण, हार, ग ध (इ आ द), ता बूल और सुधासव आ दसे
अपनेको खूब सजाकर लीलामयी लजीली मुसकान तथा हाव-भावके साथ भगवान्क ओर
दे खती ई उनके पास आयी ।।५।। कु जा नवीन मलनके संकोचसे कुछ झझक रही थी।
तब याम-सु दर ीकृ णने उसे अपने पास बुला लया और उसक कंकणसे सुशो भत
कलाई पकड़कर अपने पास बैठा लया और उसके साथ डा करने लगे। परी त्!
कु जाने इस ज मम केवल भगवान्को अंगराग अ पत कया था, उसी एक शुभकमके
फल व प उसे ऐसा अनुपम अवसर मला ।।६।। कु जा भगवान् ीकृ णके चरण को
अपने काम-संत त दय, व ः थल और ने पर रखकर उनक द सुग ध लेने लगी और
इस कार उसने अपने दयक सारी आ ध- ा ध शा त कर ली। व ः थलसे सटे ए
आन दमू त यतम यामसु दरका अपनी दोन भुजा से गाढ़ आ लगन करके कु जाने
द घकालसे बढ़े ए वरहतापको शा त कया ।।७।। परी त्! कु जाने केवल अंगराग
सम पत कया था। उतनेसे ही उसे उन सवश मान् भगवान्क ा त ई, जो
कैव यमो के अधी र ह और जनक ा त अ य त क ठन है। पर तु उस भगाने उ ह
ा त करके भी जगो पय क भाँ त सेवा न माँगकर यही माँगा— ।।८।। ‘ यतम! आप
कुछ दन यह रहकर मेरे साथ डा क जये। य क हे कमलनयन! मुझसे आपका साथ
नह छोड़ा जाता’ ।।९।।
आ मसृ मदं व म वा व य वश भः ।
इयते ब धा न् ुत य गोचरम् ।।१९
सृज यथो लु प स पा स व ं
रज तमःस वगुणैः वश भः ।
न ब यसे तद्गुणकम भवा
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ाना मन ते व च ब धहेतुः ।। २१
दे हा ुपाधेर न पत वाद्
भवो न सा ा भदाऽऽ मनः यात् ।
अतो न ब ध तव नैव मो ः
यातां नकाम व य नोऽ ववेकः ।।२२
स वं भोऽ वसुदेवगृहेऽवतीणः
वांशेन भारमपनेतु महा स भूमेः ।
अ ौ हणीशतवधेन सुरेतरांश-
रा ाममु य च कुल य यशो वत वन् ।।२४
१. मत्।
अ प मर त नः सौ य पतरौ ातर मे ।
भ ग यो ातृपु ा जामयः स य एव च ।।८
ा ये ो भगवान् कृ णः शर यो भ व सलः ।
पैतृ वसेयान् मर त राम ा बु हे णः ।।९
सम ःखसुखोऽ ू रो व र महायशाः ।
सा वयामासतुः कु त त पु ो प हेतु भः ।।१५
यो वमशपथया नजमाययेदं
सृ ् वा गुणान् वभजते तदनु व ः ।
त मै नमो रवबोध वहारत -
संसारच गतये परमे राय ।।२९
ीशुक उवाच
इ य भ े य नृपतेर भ ायं स यादवः ।
सु ः समनु ातः पुनय पुरीमगात् ।।३०
नरी य त लं कृ ण उ े ल मव सागरम् ।
वपुरं तेन सं ं वजनं च भयाकुलम् ।।५
यो वश यनीका यं भूमेभारमपाकु ।
एवं स म य दाशाह दं शतौ र थनौ पुरात् ।।१५
सुपणताल वज च तौ रथा-
वल य यो ह ररामयोमृधे ।
यः पुरा ालकह यगोपुरं
समा ताः संमुमु ः शुचा दताः ।।२२
ह रः परानीकपयोमुचां मु ः
शलीमुखा यु बणवषपी डतम् ।
वसै यमालो य सुरासुरा चतं
फूजय छा शरासनो मम् ।।२३
गृ न् नषंगादथ स दध छरान्
वकृ य मु च छतबाणपूगान् ।
न नन् रथान् कुंजरवा जप ीन्
नर तरं य दलातच म् ।।२४
भगवान् ीकृ णने कहा—मगधराज! जो शूरवीर होते ह, वे तु हारी तरह ड ग नह
हाँकते, वे तो अपना बल-पौ ष ही दखलाते ह। दे खो, अब तु हारी मृ यु तु हारे सरपर नाच
रही है। तुम वैसे ही अकबक कर रहे हो, जैसे मरनेके समय कोई स पातका रोगी करे। बक
लो, म तु हारी बातपर यान नह दे ता ।।२०।।
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! जैसे वायु बादल से सूयको और धूएस ँ े आगको ढक
लेती है, क तु वा तवम वे ढकते नह , उनका काश फर फैलता ही है; वैसे ही मगधराज
जरास धने भगवान् ीकृ ण और बलरामके सामने आकर अपनी ब त बड़ी बलवान् और
अपार सेनाके ारा उ ह चार ओरसे घेर लया—यहाँतक क उनक सेना, रथ, वजा, घोड़
थ यु वा तं भुवन य य यः
समीहतेऽन तगुणः वलीलया ।
न त य च ं परप न ह-
तथा प म यानु वध य व यते ।।३०
ज ाह वरथं रामो जरास धं महाबलम् ।
हतानीकाव श ासुं सहः सह मवौजसा ।।३१
आयोधनगतं व मन तं वीरभूषणम् ।
य राजाय तत् सवमा तं ा दश भुः ।।४१
अ वं त लं सव वृ णयः कृ णतेजसा ।
हतेषु वे वनीकेषु य ोऽयाद र भनृपः ।।४३
तं ् वा च तयत् कृ णः संकषणसहायवान् ।
अहो य नां वृ जनं ा तं भयतो महत् ।।४६
परी त्! इस कार स ह बार तेईस-तेईस अ ौ हणी सेना इक करके मगधराज
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जरास धने भगवान् ीकृ णके ारा सुर त य वं शय से यु कया ।।४२।। क तु यादव ने
भगवान् ीकृ णक श से हर बार उसक सारी सेना न कर द । जब सारी सेना न हो
जाती, तब य वं शय के उपे ापूवक छोड़ दे नेपर जरास ध अपनी राजधानीम लौट
जाता ।।४३।।
जस समय अठारहवाँ सं ाम छड़नेहीवाला था, उसी समय नारदजीका भेजा आ वीर
कालयवन दखायी पड़ा ।।४४।। यु म कालयवनके सामने खड़ा होनेवाला वीर संसारम
सरा कोई न था। उसने जब यह सुना क य वंशी हमारे ही-जैसे बलवान् ह और हमारा
सामना कर सकते ह, तब तीन करोड़ ले छ क सेना लेकर उसने मथुराको घेर
लया ।।४५।।
कालयवनक यह असमय चढ़ाई दे खकर भगवान् ीकृ णने बलरामजीके साथ मलकर
वचार कया—‘अहो! इस समय तो य वं शय पर जरास ध और कालयवन—ये दो-दो
वप याँ एक साथ ही मँडरा रही ह ।।४६।। आज इस परम बलशाली यवनने हम आकर घेर
लया है और जरास ध भी आज, कल या परस म आ ही जायेगा ।।४७।। य द हम दोन भाई
इसके साथ लड़नेम लग गये और उसी समय जरास ध भी आ प ँचा, तो वह हमारे
ब धु को मार डालेगा या तो कैद करके अपने नगरम ले जायगा; य क वह ब त बलवान्
है ।।४८।। इस लये आज हमलोग एक ऐसा ग—ऐसा कला बनायगे, जसम कसी भी
मनु यका वेश करना अ य त क ठन होगा। अपने वजन-स ब धय को उसी कलेम
प ँचाकर फर इस यवनका वध करायगे’ ।।४९।। बलरामजीसे इस कार सलाह करके
भगवान् ीकृ णने समु के भीतर एक ऐसा गम नगर बनवाया, जसम सभी व तुएँ अद्भुत
थ और उस नगरक ल बाई-चौड़ाई अड़तालीस कोसक थी ।।५०।। उस नगरक एक-एक
व तुम व कमाका व ान (वा तु- व ान) और श पकलाक नपुणता कट होती थी।
उसम वा तुशा के अनुसार बड़ी-बड़ी सड़क , चौराह और ग लय का यथा थान ठ क-ठ क
वभाजन कया गया था ।।५१।। वह नगर ऐसे सु दर-सु दर उ ान और व च - व च
उपवन से यु था, जनम दे वता के वृ और लताएँ लहलहाती रहती थ । सोनेके इतने
ऊँचे-ऊँचे शखर थे, जो आकाशसे बात करते थे। फ टकम णक अटा रयाँ और ऊँचे-ऊँचे
दरवाजे बड़े ही सु दर लगते थे ।।५२।। अ रखनेके लये चाँद और पीतलके ब त-से कोठे
बने ए थे। वहाँके महल सोनेके बने ए थे और उनपर कामदार सोनेके कलश सजे ए थे।
उनके शखर र न के थे तथा गच प ेक बनी ई ब त भली मालूम होती थी ।।५३।। इसके
अ त र उस नगरम वा तुदेवताके म दर और छ जे भी ब त सु दर-सु दर बने ए थे।
उसम चार वणके लोग नवास करते थे। और सबके बीचम य वं शय के धान उ सेनजी,
वसुदेवजी, बलरामजी तथा भगवान् ीकृ णके महल जगमगा रहे थे ।।५४।।
यवनोऽयं न धेऽ मान ताव महाबलः ।
मागधोऽ य वा ो वा पर ो वाऽऽग म य त ।।४७
इ त स म य भगवान् ग ादशयोजनम् ।
अ तःसमु े नगरं कृ ना तमचीकरत् ।।५०
१. वक यमाणो। २. णीनृपः।
ीव सव सं ाज कौ तुभामु क धरम् ।
पृथुद घचतुबा ं नवक ा णे णम् ।।२
ीशुकदे वजी कहते ह— य परी त्! जस समय भगवान् ीकृ ण मथुरा नगरके
मु य ारसे नकले, उस समय ऐसा मालूम पड़ा मानो पूव दशासे च ोदय हो रहा हो।
उनका यामल शरीर अ य त ही दशनीय था, उसपर रेशमी पीता बरक छटा नराली ही थी;
व ः थलपर वणरेखाके पम ीव स च शोभा पा रहा था और गलेम कौ तुभम ण
जगमगा रही थी। चार भुजाएँ थ , जो ल बी-ल बी और कुछ मोट -मोट थ । हालके खले
ए कमलके समान कोमल और रतनारे ने थे। मुखकमलपर रा श-रा श आन द खेल रहा
था। कपोल क छटा नराली ही थी। म द-म द मुसकान दे खनेवाल का मन चुराये लेती थी।
कान म मकराकृत कु डल झल मल- झल मल झलक रहे थे। उ ह दे खकर कालयवनने
न य कया क ‘यही पु ष वासुदेव है। य क नारदजीने जो-जो ल ण बतलाये थे—
व ः थलपर ीव सका च , चार भुजाएँ, कमलके-से ने , गलेम वनमाला और सु दरताक
सीमा; वे सब इसम मल रहे ह। इस लये यह कोई सरा नह हो सकता। इस समय यह बना
कसी अ -श के पैदल ही इस ओर चला आ रहा है, इस लये म भी इसके साथ बना
अ -श के ही लडँगा’ ।।१-५।।
ल णैनारद ो ै ना यो भ वतुमह त ।
नरायुध लन् प यां यो येऽनेन नरायुधः ।।५
म मु चै र तकृ य च तया
वृ लोभं वषयेषु लालसम् ।
वम म ः सहसा भप से
ु ले लहानोऽ ह रवाखुम तकः ।।५०
म ये ममानु ह ईश ते कृतो
रा यानुब धापगमो य छया ।
यः ा यते साधु भरेकचयया
वनं व व रख डभू मपैः ।।५५
न कामयेऽ यं तव पादसेवना-
द क चन ा यतमाद् वरं वभो ।
आरा य क वां पवगदं हरे
वृणीत आय वरमा मब धनम् ।।५६
चर मह वृ जनात त यमानोऽनुतापै-
र वतृषषड म ोऽल धशा तः कथं चत् ।
इस लये भो! म स वगुण, रजोगुण और तमोगुणसे स ब ध रखनेवाली सम त
कामना को छोड़कर केवल मायाके लेशमा स ब धसे र हत, गुणातीत, एक—अ तीय,
च व प परमपु ष आपक शरण हण करता ँ ।।५७।। भगवन्! म अना दकालसे अपने
कमफल को भोगते-भोगते अ य त आत हो रहा था, उनक ःखद वाला रात- दन मुझे
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जलाती रहती थी। मेरे छः श ु (पाँच इ य और एक मन) कभी शा त न होते थे, उनक
वषय क यास बढ़ती ही जा रही थी। कभी कसी कार एक णके लये भी मुझे शा त न
मली। शरणदाता! अब म आपके भय, मृ यु और शोकसे र हत चरणकमल क शरणम
आया ँ। सारे जगत्के एकमा वामी! परमा मन्! आप मुझ शरणागतक र ा
क जये ।।५८।।
शरणद समुपेत व पदा जं परा म-
भयमृतमशोकं पा ह माऽऽप मीश ।।५८
ीभगवानुवाच
सावभौम महाराज म त ते वमलो जता ।
वरैः लो भत या प न कामै वहता यतः ।।५९
१. मा मजेनैव। २. नाशनः।
तत उ प य तरसा द मानतटा भौ ।
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दशैकयोजनो ुंगा पेततुरधो भु व ।।१२
भगवान प गो व द उपयेमे कु ह।
वैदभ भी मकसुतां यो मा ां वयंवरे ।।१६
तं भु व तं व ा तमुपग य सतां ग तः ।
पा णना भमृशन् पादाव तमपृ छत ।।२९
एवं स पृ स ो ा णः परमे ना ।
लीलागृहीतदे हेन त मै सवमवणयत् ।।३६
म युवाच
ु वा गुणान् भुवनसु दर शृ वतां ते
न व य कण ववरैहरतोऽ तापम् ।
पं शां शमताम खलाथलाभं
व य युता वश त च मप पं मे ।।३७
स चा ैः शै सु ीवमेघपु यबलाहकैः ।
यु ं रथमुपानीय त थौ ांज लर तः ।।५
पतॄन् दे वान् सम य य व ां व धव ृप ।
भोज य वा यथा यायं वाचयामास मंगलम् ।।१०
मद यु गजानीकैः य दनैहममा ल भः ।
प य संकुलैः सै यैः परीतः कु डनं ययौ ।।१५
तं वै वदभा धप तः सम ये या भपू य च ।
नवेशयामास मुदा क पता य नवेशने ।।१६
त शा वो जरास धो द तव ो व रथः ।
आज मु ै प ीयाः पौ का ाः सह शः ।।१७
अथ कृ ण व न द ः स एव जस मः ।
अ तःपुरचर दे व राजपु ददश ह ।।२८
सा तं वदनम ा मग त सती ।
आल य ल णा भ ा समपृ छ छु च मता ।।२९
ा तौ ु वा व हतु ाह े णो सुकौ ।
अ यया ूयघोषेण रामकृ णौ समहणैः ।।३२
अ ग धा तैधूपैवासः ङ् मा यभूषणैः ।
नानोपहारब ल भः द पाव ल भः पृथक् ।।४७
शु च मतां ब बफलाधर ु त-
शोणायमान जकु दकुड् मलाम् ।
पदा चल त कलहंसगा मन
शज कलानूपुरधामशो भना ।
वलो य वीरा मुमु ः समागता
अ पृ े गज क धे रथोप थे च को वदाः ।
मुमुचुः शरवषा ण मेघा अ वपो यथा ।।३
ह य भगवानाह मा म भैवामलोचने ।
वनं य यधुनैवैतत् तावकैः शा वं बलम् ।।५
ह यमानबलानीका वृ ण भजयकां भः ।
राजानो वमुखा ज मुजरास धपुरःसराः ।।९
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! इस कार कह-सुनकर सब-के-सब राजा ोधसे
आगबबूला हो उठे और कवच पहनकर अपने-अपने वाहन पर सवार हो गये। अपनी-अपनी
सेनाके साथ सब धनुष ले-लेकर भगवान् ीकृ णके पीछे दौड़े ।।१।। राजन्! जब
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य वं शय के सेनाप तय ने दे खा क श ुदल हमपर चढ़ा आ रहा है, तब उ ह ने भी अपने-
अपने धनुषका टं कार कया और घूमकर उनके सामने डट गये ।।२।। जरास धक सेनाके
लोग कोई घोड़ेपर, कोई हाथीपर, तो कोई रथपर चढ़े ए थे। वे सभी धनुवदके बड़े मम थे।
वे य वं शय पर इस कार बाण क वषा करने लगे, मानो दल-के-दल बादल पहाड़ पर
मूसलधार पानी बरसा रहे ह ।।३।। परमसु दरी मणीजीने दे खा क उनके प त
ीकृ णक सेना बाण-वषासे ढक गयी है। तब उ ह ने ल जाके साथ भयभीत ने से
भगवान् ीकृ णके मुखक ओर दे खा ।।४।। भगवान्ने हँसकर कहा—‘सु दरी! डरो मत।
तु हारी सेना अभी तु हारे श ु क सेनाको न कये डालती है’ ।।५।। इधर गद और
संकषण आ द य वंशी वीर अपने श ु का परा म और अ धक न सह सके। वे अपने
बाण से श ु के हाथी, घोड़े तथा रथ को छ - भ करने लगे ।।६।। उनके बाण से रथ,
घोड़े और हा थय पर बैठे वप ी वीर के कु डल, करीट और पग ड़य से सुशो भत करोड़
सर, खड् ग, गदा और धनुषयु हाथ, प ँच,े जाँघ और पैर कट-कटकर पृ वीपर गरने लगे।
इसी कार घोड़े, ख चर, हाथी, ऊँट, गधे और मनु य के सर भी कट-कटकर रण-भू मम
लोटने लगे ।।७-८।। अ तम वजयक स ची आकां ावाले य वं शय ने श ु क सेना
तहस-नहस कर डाली। जरास ध आ द सभी राजा यु से पीठ दखाकर भाग खड़े
ए ।।९।।
अह वा समरे कृ णम यू च मणीम् ।
कु डनं न वे या म स यमेतद् वी म वः ।।२०
कु या स वसारं मे मु ष वा वां व वः ।
ह र येऽ मदं म द मा यनः कूटयो धनः ।।२५
कृ णा तकमुप य द शु त मणम् ।
ब धुवधाहदोषोऽ प न ब धोवधमह त ।
या यः वेनैव दोषेण हतः क ह यते पुनः ।।३९
ाणावशेष उ सृ ो ड् भहतबल भः ।
मरन् व पकरणं वतथा ममनोरथः ।।५१
स मागा मद यु रा त े भूभुजाम् ।
गजै ा सु परामृ र भापूगोपशो भता ।।५७
ना तद घण कालेन स का ण ढयौवनः ।
जनयामास नारीणां वी तीनां च व मम् ।।९
सा तं प त प दलायते णं
ल बबा ं नरलोकसु दरम् ।
स ीडहासो भत ुवे ती
ी योपत थे र तरंग सौरतैः ।।१०
न ं ु नमायातमाक य ारकौकसः ।
अहो मृत इवायातो बालो द े त हा ुवन् ।।३९
यं वै मु ः पतृस प नजेशभावा-
त मातरो यदभजन् रह ढभावाः ।
च ं न तत् खलु रमा पद ब ब ब बे
कामे मरेऽ वषये कमुता यनायः ।।४०
जस समय मणीजी इस कार सोच- वचार कर रही थ — न य और स दे हके
झूलेम झूल रही थ , उसी समय प व क त भगवान् ीकृ ण अपने माता- पता दे वक -
वसुदेवजीके साथ वहाँ पधारे ।।३५।। भगवान् ीकृ ण सब कुछ जानते थे। पर तु वे कुछ न
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बोले, चुपचाप खड़े रहे। इतनेम ही नारदजी वहाँ आ प ँचे और उ ह ने ु नजीको
श बरासुरका हर ले जाना, समु म फक दे ना आ द जतनी भी घटनाएँ घ टत ई थ , वे सब
कह सुनाय ।।३६।। नारदजीके ारा यह महान् आ यमयी घटना सुनकर भगवान्
ीकृ णके अ तःपुरक याँ च कत हो गय और ब त वष तक खोये रहनेके बाद लौटे ए
ु नजीका इस कार अ भन दन करने लग , मानो कोई मरकर जी उठा हो ।।३७।।
दे वक जी, वसुदेवजी, भगवान् ीकृ ण, बलरामजी, मणीजी और याँ—सब उस
नवद प तको दयसे लगाकर ब त ही आन दत ए ।।३८।। जब ारकावासी नर-
ना रय को यह मालूम आ क खोये ए ु नजी लौट आये ह तब वे पर पर कहने लगे
‘अहो, कैसे सौभा यक बात है क यह बालक मानो मरकर फर लौट आया’ ।।३९।।
परी त्! ु नजीका प-रंग भगवान् ीकृ णसे इतना मलता-जुलता था क उ ह
दे खकर उनक माताएँ भी उ ह अपना प तदे व ीकृ ण समझकर मधुरभावम म न हो जाती
थ और उनके सामनेसे हटकर एका तम चली जाती थ ! ी नकेतन भगवान्के
त ब ब व प कामावतार भगवान् ु नके द ख जानेपर ऐसा होना कोई आ यक बात
नह है। फर उ ह दे खकर सरी य क व च दशा हो जाती थी, इसम तो कहना ही या
है ।।४०।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे उ राध ु नो प न पणं
नाम प चप चाश मोऽ यायः ।।५५।।
स तं ब न् म ण क ठे ाजमानो यथा र वः ।
व ो ारकां राजं तेजसा नोपल तः ।।४
यु ं सुतुमुलमुभयो व जगीषतोः ।
आयुधा म मैद भः ाथ येनयो रव ।।२३
य येष क लतरोषकटा मो ै-
व मा दशत् ु भतन त म गलोऽ धः ।
सेतुः कृतः वयश उ व लता च लंका
र ः शरां स भु व पेतु रषु ता न ।।२८
नश य दे वक दे वी म यानक भः ।
सु दो ातयोऽशोचन् बलात् कृ णम नगतम् ।।३४
भगवान् ीकृ ण जन लोग को गुफाके बाहर छोड़ गये थे, उ ह ने बारह दनतक
उनक ती ा क । पर तु जब उ ह ने दे खा क अबतक वे गुफामसे नह नकले, तब वे
अ य त ःखी होकर ारकाको लौट गये ।।३३।। वहाँ जब माता दे वक , मणी,
वसुदेवजी तथा अ य स ब धय और कुटु बय को यह मालूम आ क ीकृ ण
गुफामसे नह नकले, तब उ ह बड़ा शोक आ ।।३४।। सभी ारकावासी अ य त
ः खत होकर स ा जत्को भला-बुरा कहने लगे और भगवान् ीकृ णक ा तके
लये महामाया गादे वीक शरणम गये, उनक उपासना करने लगे ।।३५।। उनक
उपासनासे गादे वी स और उ ह ने आशीवाद दया। उसी समय उनके बीचम
म ण और अपनी नववधू जा बवतीके साथ सफलमनोरथ होकर ीकृ ण सबको स
करते ए कट हो गये ।।३६।। सभी ारकावासी भगवान् ीकृ णको प नीके साथ
और गलेम म ण धारण कये ए दे खकर परमान दम म न हो गये, मानो कोई मरकर
लौट आया हो ।।३७।।
दा ये हतरं त मै ीर नं र नमेव च ।
उपायोऽयं समीचीन त य शा तन चा यथा ।।४२
योऽ म यं सं त ु य क यार नं वग नः ।
कृ णायादा स ा जत् क माद् ातरम वयात् ।।४
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! य प भगवान् ीकृ णको इस बातका पता था क
ला ागृहक आगसे पा डव का बाल भी बाँका नह आ है, तथा प जब उ ह ने सुना क
कु ती और पा डव जल मरे, तब उस समयका कुल-पर परो चत वहार करनेके लये वे
बलरामजीके साथ ह तनापुर गये ।।१।। वहाँ जाकर भी म पतामह, कृपाचाय, व र,
गा धारी और ोणाचायसे मलकर उनके साथ समवेदना—सहानुभू त कट क और उन
लोग से कहने लगे—‘हाय-हाय! यह तो बड़े ही ःखक बात ई’ ।।२।।
भगवान् ीकृ णके ह तनापुर चले जानेसे ारकाम अ ू र और कृतवमाको अवसर
मल गया। उन लोग ने शतध वासे आकर कहा—‘तुम स ा जत्से म ण य नह छ न
लेते? ।।३।। स ा जत्ने अपनी े क या स यभामाका ववाह हमसे करनेका वचन दया
था और अब उसने हमलोग का तर कार करके उसे ीकृ णके साथ ाह दया है। अब
स ा जत् भी अपने भाई सेनक तरह य न यमपुरीम जाय?’ ।।४।। शतध वा पापी था
और अब तो उसक मृ यु भी उसके सरपर नाच रही थी। अ ू र और कृतवमाके इस कार
बहकानेपर शतध वा उनक बात म आ गया और उस महा ने लोभवश सोये ए
स ा जत्को मार डाला ।।५।। इस समय याँ अनाथके समान रोने- च लाने लग ; पर तु
शतध वाने उनक ओर त नक भी यान न दया; जैसे कसाई पशु क ह या कर डालता है,
वैसे ही वह स ा जत्को मारकर और म ण लेकर वहाँसे च पत हो गया ।।६।।
या यातः स चा ू रं पा ण ाहमयाचत ।
सोऽ याह को व येत व ानी रयोबलम् ।।१४
अ ू रः कृतवमा च ु वा शतधनोवधम् ।
ूषतुभय व तौ ारकायाः योजकौ ।।२९
त सुत त भावोऽसाव ू रो य य ह ।
दे वोऽ भवषते त नोपतापा न मा रकाः ।।३३
तथा प धर व यै व या तां सु ते म णः ।
क तु माम जः स यङ् न ये त म ण त ।।३८
यम तकं दश य वा ा त यो रज आ मनः ।
वमृ य म णना भूय त मै यपयत् भुः ।।४१
का वं क या स सु ो ण कुतोऽ स क चक ष स ।
म ये वां प त म छ त सव कथय शोभने ।।१९
का ल ुवाच
अहं दे व य स वतु हता प त म छती ।
व णुं वरे यं वरदं तपः परममा थता ।।२०
का ल द ने कहा—‘म भगवान् सूयदे वक पु ी ँ। म सव े वरदानी भगवान् व णुको
प तके पम ा त करना चाहती ँ और इसी लये यह कठोर तप या कर रही ँ ।।२०।। वीर
अजुन! म ल मीके परम आ य भगवान्को छोड़कर और कसीको अपना प त नह बना
सकती। अनाथ के एकमा सहारे, ेम वतरण करनेवाले भगवान् ीकृ ण मुझपर स
ह ।।२१।। मेरा नाम है का ल द । यमुनाजलम मेरे पता सूयने मेरे लये एक भवन भी बनवा
दया है। उसीम म रहती ँ। जबतक भगवान्का दशन न होगा, म यह र ँगी’ ।।२२।।
अजुनने जाकर भगवान् ीकृ णसे सारी बात कह । वे तो पहलेसे ही यह सब कुछ जानते थे,
अब उ ह ने का ल द को अपने रथपर बैठा लया और धमराज यु ध रके पास ले
आये ।।२३।।
य पादपंकजरजः शरसा बभ त
ीर जजः स ग रशः सहलोकपालैः ।
लीलातनूः वकृतसेतुपरी सयेशः
काले दधत् स भगवान् मम केन तु येत् ।।३७
अव ती (उ जैन) दे शके राजा थे व द और अनु व द। वे य धनके वशवत तथा
अनुयायी थे। उनक ब हन म व दाने वयंवरम भगवान् ीकृ णको ही अपना प त बनाना
चाहा। पर तु व द और अनु व दने अपनी ब हनको रोक दया ।।३०।। परी त्! म व दा
ीकृ णक फूआ राजा धदे वीक क या थी। भगवान् ीकृ ण राजा क भरी सभाम उसे
बलपूवक हर ले गये, सब लोग अपना-सा मुँह लये दे खते ही रह गये ।।३१।।
परी त्! कोसलदे शके राजा थे न न जत्। वे अ य त धा मक थे। उनक परमसु दरी
क याका नाम था स या; न न जत्क पु ी होनेसे वह ना न जती भी कहलाती थी। परी त्!
राजाक त ाके अनुसार सात दा त बैल पर वजय ा त न कर सकनेके कारण कोई
राजा उस क यासे ववाह न कर सके। य क उनके स ग बड़े तीखे थे और वे बैल कसी वीर
पु षक ग ध भी नह सह सकते थे ।।३२-३३।। जब य वंश शरोम ण भगवान् ीकृ णने
यह समाचार सुना क जो पु ष उन बैल को जीत लेगा, उसे ही स या ा त होगी; तब वे
ब त बड़ी सेना लेकर कोसलपुरी (अयो या) प ँचे ।।३४।। कोसलनरेश महाराज न न जत्ने
बड़ी स तासे उनक अगवानी क और आसन आ द दे कर ब त बड़ी पूजा-साम ीसे
उनका स कार कया। भगवान् ीकृ णने भी उनका ब त-ब त अ भन दन कया ।।३५।।
राजा न न जत्क क या स याने दे खा क मेरे चर-अ भल षत रमारमण भगवान् ीकृ ण
यहाँ पधारे ह; तब उसने मन-ही-मन यह अ भलाषा क क ‘य द मने त- नयम आ दका
पालन करके इ ह का च तन कया है तो ये ही मेरे प त ह और मेरी वशु लालसाको पूण
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कर’ ।।३६।। ना न जती स या मन-ही मन सोचने लगी—‘भगवती ल मी, ा, शंकर और
बड़े-बड़े लोकपाल जनके पदपंकजका पराग अपने सरपर धारण करते ह और जन भुने
अपनी बनायी ई मयादाका पालन करनेके लये ही समय-समयपर अनेक लीलावतार हण
कये ह, वे भु मेरे कस धम, त अथवा नयमसे स ह गे? वे तो केवल अपनी कृपासे ही
स हो सकते ह’ ।।३७।। परी त्! राजा न न जत्ने भगवान् ीकृ णक व ध-पूवक
अचा-पूजा करके यह ाथना क —‘जगत्के एकमा वामी नारायण! आप अपने
व पभूत आन दसे ही प रपूण ह और म ँ एक तु छ मनु य! म आपक या सेवा
क ँ ?’ ।।३८।।
१. कृ णः। २. यः प तः।
ग र गः श गजला य नल गमम् ।
मुरपाशायुतैघ रै ढै ः सवत आवृतम् ।।३
शूलमु य सु नरी णो
युगा तसूयानलरो च बणः ।
सं लोक मव पंच भमुखै-
र य व ा यसुतं यथोरगः ।।७
मुखेषु तं चा प शरैरताडयत्
त मै गदां सोऽ प षा मु चत ।।९
ता ोऽ त र ः वणो वभावसु-
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वसुनभ वान ण स तमः ।
पीठं पुर कृ य चमूप त मृधे
भौम यु ा नरगन् धृतायुधाः ।।१२
या न योधैः यु ा न श ा ा ण कु ह।
ह र ता य छन ी णैः शरैरेकैकश भः ।।१७
अजाय जन य ेऽ य णेऽन तश ये ।
परावरा मन् भूता मन् परमा मन् नमोऽ तु ते ।।२८
वं वै ससृ ू रज उ कटं भो
तमो नरोधाय बभ यसंवृतः ।
थानाय स वं जगतो जग पते
कालः धानं पु षो भवान् परः ।।२९
त या मजोऽयं तव पादपंकजं
भीतः प ा तहरोपसा दतः ।
तत् पालयैनं कु ह तपंकजं
शर यमु या खलक मषापहम् ।।३१
ीशुक उवाच
इ त भू या थतो वा भभगवान् भ न या ।
द वाभयं भौमगृहं ा वशत् सकल मत् ।।३२
ययाच आन य करीटको ट भः
पादौ पृश युतमथसाधनम् ।
स ाथ एतेन वगृ ते महा-
नहो सुराणां च तमो धगा ताम् ।।४१
इ थं रमाप तमवा य प त य ता
ादयोऽ प न व ः पदव यद याम् ।
भेजुमुदा वरतमे धतयानुराग-
हासावलोकनवसंगमज पल जाः ।। ४४
तदन तर भगवान् ीकृ णने एक ही मु तम अलग-अलग भवन म अलग-अलग प
धारण करके एक ही साथ सब राजकुमा रय का शा ो व धसे पा ण हण कया।
सवश मान् अ वनाशी भगवान्के लये इसम आ यक कौन-सी बात है ।।४२।। परी त्!
भगवान्क प नय के अलग-अलग महल म ऐसी द साम याँ भरी ई थ , जनके
बराबर जगत्म कह भी और कोई भी साम ी नह है; फर अ धकक तो बात ही या है।
उन महल म रहकर म त-ग तके परेक लीला करनेवाले अ वनाशी भगवान् ीकृ ण अपने
आ मान दम म न रहते ए ल मीजीक अंश व पा उन प नय के साथ ठ क वैसे ही वहार
करते थे, जैसे कोई साधारण मनु य घर-गृह थीम रहकर गृह थ-धमके अनुसार आचरण
करता हो ।।४३।। परी त्! ा आ द बड़े-बड़े दे वता भी भगवान्के वा त वक व पको
और उनक ा तके मागको नह जानते। उ ह रमारमण भगवान् ीकृ णको उन य ने
प तके पम ा त कया था। अब न य- नर तर उनके ेम और आन दक अ भवृ होती
रहती थी और वे ेमभरी मुसकराहट, मधुर चतवन, नवसमागम, ेमालाप तथा भाव
बढ़ानेवाली ल जासे यु होकर सब कारसे भगवान्क सेवा करती रहती थ ।।४४।।
उनमसे सभी प नय के साथ सेवा करनेके लये सैकड़ दा सयाँ रहत , फर भी जब उनके
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महलम भगवान् पधारते तब वे वयं आगे जाकर आदरपूवक उ ह लवा लात , े
आसनपर बैठात , उ म साम य से पूजा करत , चरणकमल पखारत , पान लगाकर
खलात , पाँव दबाकर थकावट र करत , पंखा झलत , इ -फुलेल, च दन आ द लगात ,
फूल के हार पहनात , केश सँवारत , सुलात , नान करात और अनेक कारके भोजन
कराकर अपने ही हाथ भगवान्क सेवा करत ।।४५।।
युदगमासनवराहणपादशौच-
्
ता बूल व मणवीजनग धमा यैः ।
केश सारशयन नपनोपहाय-
दासीशता अ प वभो वदधुः म दा यम् ।। ४५
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे उ राध
पा रजातहरणनरकवधो नाम एकोनष तमोऽ यायः ।।५९।।
अ प व मनां पुंसामलोकपथमीयुषाम् ।
आ थताः पदव सु ूः ायः सीद त यो षतः ।।१३
त याः सु ःखभयशोक वन बु े -
ह ता छ् लथ लयतो जनं पपात ।
दे ह व लव धयः सहसैव मु न्
र भेव वायु वहता वक य केशान् ।।२४
स यं भया दव गुणे य उ मा तः
शेते समु उपल भनमा आ मा ।
न यं क द यगणैः कृत व ह वं
व सेवकैनृपपदं वधुतं तमोऽ धम् ।।३५
वं य तद डमु न भग दतानुभाव
आ माऽऽ मद जगता म त मे वृतोऽ स ।
ह वा भवद् ुव उद रतकालवेग-
व ता शषोऽ जभवनाकपतीन् कुतोऽ ये ।।३९
जा ं वच तव गदा ज य तु भूपान्
व ा शा ननदे न जहथ मां वम् ।
सहो यथा वब लमीश पशून् वभागं
ते यो भयाद् य द ध शरणं प ः ।।४०
का यं येत तव पादसरोजग ध-
मा ाय स मुख रतं जनतापवगम् ।
ल यालयं व वगण य गुणालय य
म या सदो भयमथ व व ः ।।४२
वक् म ुरोमनखकेश पन म त-
मासा थर कृ म वट् कफ प वातम् ।
जीव छवं भज त का तम त वमूढा
या ते पदा जमकर दम ज ती ी ।।४५
अ व बुजा मम ते चरणानुराग
आ मन् रत य म य चान त र ेः ।
य य वृ य उपा रजोऽ तमा ो
मामी से त ह नः परमानुक पा ।।४६
नैवालीकमहं म ये वच ते मधुसूदन ।
उपल धं प त ेम पा त यं च तेऽनघे ।
य ा यै ा यमानाया न धीम यपक षता ।।५१
न वा श ण यन गृ हण गृहेषु
प या म मा न न यया व ववाहकाले ।
ा तान् नृपानवगण य रहोहरो मे
था पतो ज उप ुतस कथ य ।।५५
ातु व पकरणं यु ध न जत य
ो ाहपव ण च त धम गो ाम् ।
ःखं समु थमसहोऽ मदयोगभी या
नैवा वीः कम प तेन वयं जता ते ।।५६
त वयाऽऽ मलभने सु व व म ः
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था पतो म य चराय त शू यमेतत् ।
म वा जहास इदमंगमन ययो यं
त ेत त व य वयं तन दयामः ।।५७
ीशुक उवाच
एवं सौरतसंलापैभगवान् जगद रः ।
वरतो रमया रेमे नरलोकं वड बयन् ।।५८
चाव जकोशवदनायतबा ने -
स ेमहासरसवी तव गुज पैः ।
स मो हता भगवतो न मनो वजेतुं
वै व मैः समशकन् व नता वभू नः ।।३
मायावलोकलवद शतभावहा र-
ूम डल हतसौरतम शौ डैः ।
प य तु षोडशसह मनंगबाणै-
य ये यं वम थतुं करणैन शेकुः ।।४
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ णक येक प नीके गभसे दस-दस
पु उ प ए। वे प, बल आ द गुण म अपने पता भगवान् ीकृ णसे कसी बातम कम
न थे ।।१।। राजकुमा रयाँ दे खत क भगवान् ीकृ ण हमारे महलसे कभी बाहर नह जाते।
सदा हमारे ही पास बने रहते ह। इससे वे यही समझत क ीकृ णको म ही सबसे यारी ँ।
परी त्! सच पूछो तो वे अपने प त भगवान् ीकृ णका त व—उनक म हमा नह
समझती थ ।।२।। वे सु द रयाँ अपने आ मान दम एकरस थत भगवान् ीकृ णके कमल-
कलीके समान सु दर मुख, वशाल बा , कण पश ने , ेमभरी मुसकान, रसमयी चतवन
और मधुर वाणीसे वयं ही मो हत रहती थ । वे अपने शृंगारस ब धी हावभाव से उनके
मनको अपनी ओर ख चनेम समथ न हो सक ।।३।। वे सोलह हजारसे अ धक थ । अपनी
म द-म द मुसकान और तरछ चतवनसे यु मनोहर भ ह के इशारेसे ऐसे ेमके बाण
चलाती थ , जो काम-कलाके भाव से प रपूण होते थे, पर तु कसी भी कारसे, क ह
साधन के ारा वे भगवान्के मन एवं इ य म चंचलता नह उ प कर सक ।।४।।
इ थं रमाप तमवा य प त य ता
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ादयोऽ प न व ः पदव यद याम् ।
भेजुमुदा वरतमे धतयानुराग-
हासावलोकनवसंगमलालसा म् ।।५
युदगमासनवराहणपादशौच-
्
ता बूल व मणवीजनग धमा यैः ।
केश सारशयन नपनोपहाय-
दासीशता अ प वभो वदधुः म दा यम् ।।६
चा दे णः सुदे ण चा दे ह वीयवान् ।
सुचा ा गु त २ भ चा तथापरः ।।८
इ यु ः कुम त ः वगृहं ा वश ृप ।
ती न् ग रशादे शं ववीयनशनं कुधीः ।।११
सा त तमप य ती वा स का ते त वा दनी ।
सखीनां म य उ थौ व ला ी डता भृशम् ।।१३
एक दन बल-पौ षके घमंडम चूर बाणासुरने अपने समीप ही थत भगवान् शंकरके
चरणकमल को सूयके समान चमक ले मुकुटसे छू कर णाम कया और कहा— ।।६।।
‘दे वा धदे व! आप सम त चराचर जगत्के गु और ई र ह। म आपको नम कार करता ँ।
जन लोग के मनोरथ अबतक पूरे नह ए ह, उनको पूण करनेके लये आप क पवृ
ह ।।७।। भगवन्! आपने मुझे एक हजार भुजाएँ द ह, पर तु वे मेरे लये केवल भार प हो
रही ह। य क लोक म आपको छोड़कर मुझे अपनी बराबरीका कोई वीर-यो ा ही नह
मलता, जो मुझसे लड़ सके ।।८।।
आ ददे व! एक बार मेरी बाह म लड़नेके लये इतनी खुजलाहट ई क म द गज क
ओर चला। पर तु वे भी डरके मारे भाग खड़े ए। उस समय मागम अपनी बाह क चोटसे
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मने ब तसे पहाड़ को तोड़-फोड़ डाला था’ ।।९।। बाणासुरक यह ाथना सुनकर भगवान्
शंकरने त नक ोधसे कहा—‘रे मूढ़! जस समय तेरी वजा टू टकर गर जायगी, उस समय
मेरे ही समान यो ासे तेरा यु होगा और वह यु तेरा घमंड चूर-चूर कर दे गा’ ।।१०।।
परी त्! बाणासुरक बु इतनी बगड़ गयी थी क भगवान् शंकरक बात सुनकर उसे
बड़ा हष आ और वह अपने घर लौट गया। अब वह मूख भगवान् शंकरके आदे शानुसार
उस यु क ती ा करने लगा, जसम उसके बल-वीयका नाश होनेवाला था ।।११।।
परी त्! बाणासुरक एक क या थी, उसका नाम था ऊषा। अभी वह कुमारी ही थी क
एक दन व म उसने दे खा क ‘परम सु दर अ न जीके साथ मेरा समागम हो रहा है।’
आ यक बात तो यह थी क उसने अ न जीको न तो कभी दे खा था और न सुना ही
था ।।१२।। व म ही उ ह न दे खकर वह बोल उठ —‘ ाण यारे! तुम कहाँ हो?’ और
उसक न द टू ट गयी। वह अ य त व लताके साथ उठ बैठ और यह दे खकर क म
स खय के बीचम ँ, ब त ही ल जत ई ।।१३।। परी त्! बाणासुरके म ीका नाम था
कु भा ड। उसक एक क या थी, जसका नाम था च लेखा। ऊषा और च लेखा एक-
सरेक सहे लयाँ थ । च लेखाने ऊषासे कौतूहलवश पूछा— ।।१४।। ‘सु दरी!
राजकुमारी! म दे खती ँ क अभीतक कसीने तु हारा पा ण हण भी नह कया है। फर
तुम कसे ढूँ ढ़ रही हो और तु हारे मनोरथका या व प है?’ ।।१५।।
कं वं मृगयसे सु ूः क श ते मनोरथः ।
ह त ाहं न तेऽ ा प राजपु युपल ये ।।१५
ऊषोवाच
ःक रः व े यामः कमललोचनः ।
पीतवासा बृह ा य षतां दयंगमः ।।१६
इ यु वा दे वग धव स चारणप गान् ।
दै य व ाधरान् य ान् मनुजां यथा लखत् ।।१९
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मनुजेषु च सा वृ णीन् शूरमानक भम् ।
लखद् रामकृ णौ च ु नं वी य ल जता ।।२०
स तं व ं वृतमातता य भ-
भटै रनीकैरवलो य माधवः ।
उ य मौव प रघं व थतो
यथा तको द डधरो जघांसया ।।३३
ा यच ा ं वाय य च पावतम् ।
आ नेय य च पाज यं नैजं पाशुपत य च ।।१३
नानाभावैल लयैवोपप ै-
दवान् साधूँ लोकसेतून् बभ ष ।
हं यु मागान् हसया वतमानान्
ज मैत े भारहाराय भूमेः ।।२७
ततो बा सह णे नानायुधधरोऽसुरः ।
मुमोच परम ु ो बाणां ायुधे नृप ।।३१
तवावतारोऽयमकु ठधामन्
धम य गु यै जगतो भवाय ।
वयं च सव भवतानुभा वता
वभावयामो भुवना न स त ।।३७
तं वा जग थ युदया तहेतुं
समं शा तं सु दा मदै वम् ।
अन यमेकं जगदा मकेतं
भवापवगाय भजाम दे वम् ।।४४
अ ौ ह या प रवृतं सुवासःसमलंकृतम् ।
सप नीकं पुर कृ य ययौ ानुमो दतः ।।५१
दे व! यह बाणासुर मेरा परम य, कृपापा और सेवक है। मने इसे अभयदान दया है।
भो! जस कार इसके परदादा दै यराज ादपर आपका कृपा साद है, वैसा ही
कृपा साद आप इसपर भी कर ।।४५।।
भगवान् ीकृ णने कहा—भगवन्! आपक बात मानकर—जैसा आप चाहते ह, म
इसे नभय कये दे ता ँ। आपने पहले इसके स ब धम जैसा न य कया था—मने इसक
भुजाएँ काटकर उसीका अनुमोदन कया है ।।४६।। म जानता ँ क बाणासुर दै यराज
ब लका पु है। इस लये म भी इसका वध नह कर सकता; य क मने ादको वर दे दया
है क म तु हारे वंशम पैदा होनेवाले कसी भी दै यका वध नह क ँ गा ।।४७।। इसका घमंड
चूर करनेके लये ही मने इसक भुजाएँ काट द ह। इसक ब त बड़ी सेना पृ वीके लये भार
हो रही थी, इसी लये मने उसका संहार कर दया है ।।४८।। अब इसक चार भुजाएँ बच रही
ह। ये अजर, अमर बनी रहगी। यह बाणासुर आपके पाषद म मु य होगा। अब इसको
कसीसे कसी कारका भय नह है ।।४९।।
ीकृ णसे इस कार अभयदान ा त करके बाणासुरने उनके पास आकर धरतीम माथा
टे का, णाम कया और अ न जीको अपनी पु ी ऊषाके साथ रथपर बैठाकर भगवान्के
पास ले आया ।।५०।। इसके बाद भगवान् ीकृ णने महादे वजीक स म तसे
व ालंकार वभू षत ऊषा और अ न जीको एक अ ौ हणी सेनाके साथ आगे करके
ारकाके लये थान कया ।।५१।। इधर ारकाम भगवान् ीकृ ण आ दके शुभागमनका
समाचार सुनकर झं डय और तोरण से नगरका कोना-कोना सजा दया गया। बड़ी-बड़ी
सड़क और चौराह को च दन- म त जलसे स च दया गया। नगरके नाग रक , ब धु-
बा धव और ा ण ने आगे आकर खूब धूमधामसे भगवान्का वागत कया। उस समय
शंख, नगार और ढोल क तुमुल व न हो रही थी। इस कार भगवान् ीकृ णने अपनी
राजधानीम वेश कया ।।५२।।
सउ म ोककरा भमृ ो
वहाय स ः कृकलास पम् ।
स त तचामीकरचा वणः
व य तालंकरणा बर क् ।।६
प छ व ान प त दानं
जनेषु व याप यतुं मुकु दः ।
क वं महाभाग वरे य पो
दे वो मं वां गणया म नूनम् ।।७
वलंकृते यो गुणशीलवद् यः
सीद कुटु बे य ऋत ते यः ।
तपः ुत वदा यसद् यः
ादां युव यो जपुंगवे यः ।।१४
दे वदे व जग ाथ गो व द पु षो म ।
नारायण षीकेश पु य ोका युता य ।।२७
नम ते सवभावाय णेऽन तश ये ।
कृ णाय वासुदेवाय योगानां पतये नमः ।।२९
जरं बत वं भु म नेमनाग प ।
तेजीयसोऽ प कमुत रा ामी रमा ननाम् ।।३२
हन त वषम ारं व र ः शा य त ।
कुलं समूलं दह त वार णपावकः ।।३४
वद ां परद ां वा वृ हरे च यः ।
ष वषसह ा ण व ायां जायते कृ मः ।।३९
पर व रो क ठै ग पैग पी भरेव च ।
रामोऽ भवा पतरावाशी भर भन दतः ।।२
ता नः स ः प र य य गतः सं छ सौ दः ।
कथं नु ता शं ी भन येत भा षतम् ।।१२
व ण े षता दे वी वा णी वृ कोटरात् ।
वं वासुदेवो भगवानवतीण जग प तः ।
इ त तो भतो बालैमन आ मानम युतम् ।।२
या न वम म च ा न मौ ाद् बभ ष सा वत ।
य वै ह मां वं शरणं नो चेद ् दे ह ममाहवम् ।।६
ीशुक उवाच
क थनं त पाक य पौ क या पमेधसः ।
उ सेनादयः स या उ चकैजहसु तदा ।।७
त य का शप त म ं पा ण ाहोऽ वया ृप ।
अ ौ हणी भ तसृ भरप यत् पौ कं ह रः ।।१२
कृ ण तु त पौ कका शराजयो-
बलं गज य दनवा जप मत् ।
गदा सच े षु भरादयद् भृशं
यथा युगा ते तभुक् पृथक् जाः ।।१७
रा ः का शपते ा वा म ह यः पु बा धवाः ।
पौरा हा हता राजन् नाथ नाथे त ा दन् ।।२६
दं ो ुकुट द डकठोरा यः व ज या ।
आ लहन् सृ कणी न नो वधु वं शखं वलन् ।।३३
च ं च व णो तदनु व ं
वाराणस सा सभालयापणाम् ।
सगोपुरा ालकको संकुलां
सकोशह य रथा शालाम् ।।४१
य एत ावये म य उ म ोक व मम् ।
समा हतो वा शृणुयात् सवपापैः मु यते ।।४३
परी त्! भगवान् सबके बाहर-भीतरक जाननेवाले ह। वे जान गये क यह काशीसे
चली ई माहे री कृ या है। उ ह ने उसके तीकारके लये अपने पास ही वराजमान
च सुदशनको आ ा द ।।३८।। भगवान् मुकु दका यारा अ सुदशनच को ट-को ट
सूय के समान तेज वी और लयकालीन अ नके समान जा व यमान है। उसके तेजसे
आकाश, दशाएँ और अ त र चमक उठे और अब उसने उस अ भचार-अ नको कुचल
डाला ।।३९।। भगवान् ीकृ णके अ सुदशनच क श से कृ या प आगका मुँह टू ट-
फूट गया, उसका तेज न हो गया, श कु ठत हो गयी और वह वहाँसे लौटकर काशी आ
गयी तथा उसने ऋ वज् आचाय के साथ सुद णको जलाकर भ म कर दया। इस कार
उसका अ भचार उसीके वनाशका कारण आ ।।४०।। कृ याके पीछे -पीछे सुदशनच भी
काशी प ँचा। काशी बड़ी वशाल नगरी थी। वह बड़ी-बड़ी अटा रय , सभाभवन, बाजार,
नगर ार, ार के शखर, चहारद वा रय , खजाने, हाथी, घोड़े, रथ और अ के गोदामसे
सुस जत थी। भगवान् ीकृ णके सुदशनच ने सारी काशीको जलाकर भ म कर दया
और फर वह परमान दमयी लीला करनेवाले भगवान् ीकृ णके पास लौट
गाय तं वा ण पी वा मद व ललोचनम् ।
व ाजमानं वपुषा भ मव वारणम् ।।१०
ीशुकदे वजीने कहा—परी त्! वद नामका एक वानर था। वह भौमासुरका सखा,
सु ीवका म ी और मै दका श शाली भाई था ।।२।। जब उसने सुना क ीकृ णने
भौमासुरको मार डाला, तब वह अपने म क म ताके ऋणसे उऋण होनेके लये रा -
व लव करनेपर उता हो गया। वह वानर बड़े-बड़े नगर , गाँव , खान और अहीर क
ब तय म आग लगाकर उ ह जलाने लगा ।।३।। कभी वह बड़े-बड़े पहाड़ को उखाड़कर
उनसे ा त-के- ा त चकनाचूर कर दे ता और वशेष करके ऐसा काम वह आनत
(का ठयावाड़) दे शम ही करता था। य क उसके म को मारनेवाले भगवान् ीकृ ण उसी
दे शम नवास करते थे ।।४।। वद वानरम दस हजार हा थय का बल था। कभी-कभी वह
समु म खड़ा हो जाता और हाथ से इतना जल उछालता क समु तटके दे श डू ब
जाते ।।५।। वह बड़े-बड़े ऋ ष-मु नय के आ म क सु दर-सु दर लता-वन प तय को
तोड़-मरोड़कर चौपट कर दे ता और उनके य स ब धी अ न-कु ड म मलमू डालकर
अ नय को षत कर दे ता ।।६।। जैसे भृंगी नामका क ड़ा सरे क ड़ को ले जाकर अपने
बलम बंद कर दे ता है, वैसे ही वह मदो म वानर य और पु ष को ले जाकर पहाड़ क
घा टय तथा गुफा म डाल दे ता। फर बाहरसे बड़ी-बड़ी च ान रखकर उनका मुँह बंद कर
दे ता ।।७।। इस कार वह दे शवा सय का तो तर कार करता ही, कुलीन य को भी षत
कर दे ता था। एक दन वह सुल लत संगीत सुनकर रैवतक पवतपर गया ।।८।।
वहाँ उसने दे खा क य वंश शरोम ण बलरामजी सु दर-सु दर युव तय के झुंडम
वराजमान ह। उनका एक-एक अंग अ य त सु दर और दशनीय है और व ः थलपर
कमल क माला लटक रही है ।।९।।
वे मधुपान करके मधुर संगीत गा रहे थे और उनके ने आन दो मादसे व ल हो रहे थे।
उनका शरीर इस कार शोभायमान हो रहा था, मानो कोई मदम गजराज हो ।।१०।। वह
वानर वृ क शाखा पर चढ़ जाता और उ ह झकझोर दे ता। कभी य के सामने
आकर कलकारी भी मारने लगता ।।११।। युवती याँ वभावसे ही चंचल और हास-
प रहासम च रखनेवाली होती ह। बलरामजीक याँ उस वानरक ढठाई दे खकर हँसने
लग ।।१२।। अब वह वानर भगवान् बलरामजीके सामने ही उन य क अवहेलना करने
लगा। वह उ ह कभी अपनी गुदा दखाता तो कभी भ ह मटकाता, फर कभी-कभी गरज-
तरजकर मुँह बनाता, घुड़कता ।।१३।। वीर शरोम ण बलरामजी उसक यह चे ा दे खकर
ो धत हो गये। उ ह ने उसपर प थरका एक टु कड़ा फका। पर तु वदने उससे अपनेको
बचा लया और झपटकर मधुकलश उठा लया तथा बलरामजीक अवहेलना करने लगा।
उस धूतने मधुकलशको तो फोड़ ही डाला, य के व भी फाड़ डाले और अब वह
हँस-हँसकर बलरामजीको ो धत करने लगा ।।१४-१५।। परी त्! जब इस कार बलवान्
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और मदो म वद बलरामजीको नीचा दखाने तथा उनका घोर तर कार करने लगा, तब
उ ह ने उसक ढठाई दे खकर और उसके ारा सताये ए दे श क दशापर वचार करके
उस श ुको मार डालनेक इ छासे ोधपूवक अपना हल-मूसल उठाया। वद भी बड़ा
बलवान् था। उसने अपने एक ही हाथसे शालका पेड़ उखाड़ लया और बड़े वेगसे दौड़कर
बलरामजीके सरपर उसे दे मारा। भगवान् बलराम पवतक तरह अ वचल खड़े रहे। उ ह ने
अपने हाथसे उस वृ को सरपर गरते- गरते पकड़ लया और अपने सुन द नामक मूसलसे
उसपर हार कया। मूसल लगनेसे वदका म तक फट गया और उससे खूनक धारा बहने
लगी। उस समय उसक ऐसी शोभा ई, मानो कसी पवतसे गे का सोता बह रहा हो। पर तु
वदने अपने सर फटनेक कोई परवा नह क । उसने कु पत होकर एक सरा वृ
उखाड़ा, उसे झाड़-झूड़कर बना प ेका कर दया और फर उससे बलरामजीपर बड़े जोरका
हार कया।
ः शाखामृगः शाखामा ढः क पयन् मान् ।
च े कल कलाश दमा मानं स दशयन् ।।११
त य धा य कपेव य त यो जा तचापलाः ।
हा य या वजहसुबलदे वप र हाः ।।१२
यादवे ोऽ प तं दो या य वा मुसललांगले ।
ज ाव यदय ु ः सोऽपतद् धरं वमन् ।।२५
तं ते जघृ वः ु ा त त े त भा षणः ।
आसा ध वनो बाणैः कणा यः समा करन् ।।७
सोऽप व ः कु े कु भय न दनः ।
नामृ य द च याभः सहः ु मृगै रव ।।८
कथ म ोऽ प कु भभ म ोणाजुना द भः ।
अद मव धीत सह त मवोरणः ।।२८
ीशुक उवाच
ज मब धु यो मदा ते भरतषभ ।
आ ा रामं वा यमस याः पुरमा वशन् ।।२९
वभ र यापथच वरापणैः
शालासभाभी चरां सुरालयैः ।
सं स मागागणवी थदे हल १
पत पताका वजवा रतातपाम्२ ।।६
त षोडश भः स सह ैः समलंकृतम् ।
ववेशैकतमं शौरेः प नीनां भवनं महत् ।।८
स पू य दे वऋ षवयमृ षः पुराणो
नारायणो नरसखो व धनो दतेन ।
वा या भभा य मतयामृत म या तं
ाह भो भगवते करवाम हे कम् ।।१६
नारद उवाच
नैवा तं व य वभोऽ खललोकनाथे
मै ी जनेषु सकलेषु दमः खलानाम् ।
नः य े साय ह जग थ तर णा यां
वैरावतार उ गाय वदाम सु ु ।।१७
द तम ै त ा प यया चो वेन च ।
पू जतः परया भ या यु थानासना द भः ।।२०
वा प स यामुपासीनं जप तं वा यतम् ।
एक चा सचम यां चर तम सव मसु ।।२५
म य तं च क मं म भ ो वा द भः ।
जल डारतं वा प वारमु याबलावृतम् ।।२७
कुव तं व हं कै त् स धं चा य केशवम् ।
कु ा प सह रामेण च तय तं सतां शवम् ।।३१
मृदंगवीणामुरजवेणुतालदर वनैः ।
ननृतुजगु तु ु वु सूतमागधव दनः ।।२०
त क
ै ः पु षो राज ागतोऽपूवदशनः ।
व ा पतो भगवते तीहारैः वे शतः ।।२२
ये च द वजये त य स त न ययुनृपाः ।
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स ा तेनास युते े ग र जे ।।२४
त ो भवान् णतशोकहराङ् यु मो
ब ान् वयुङ् व मगधा यकमपाशात् ।
यो भूभुजोऽयुतमतंगजवीयमेको
ब द् रोध भवने मृगरा डवावीः ।।२९
यो वै वया नवकृ व उदा च
भ नो मृधे खलु भव तमन तवीयम् ।
ज वा नृलोक नरतं सकृ ढदप
यु म जा ज त नोऽ जत तद् वधे ह ।।३०
त उवाच
इ त मागधसं ा भव शनकां णः ।
प ाः पादमूलं ते द नानां शं वधीयताम् ।।३१
ीशुक उवाच
तं ् वा भगवान् कृ णः सवलोके रे रः ।
वव द उ थतः शी णा सस यः सानुगो मुदा ।।३३
अ प वद लोकानां याणामकुतोभयम् ।
ननु भूयान् भगवतो लोकान् पयटतो गुणः ।।३५
वेषधरो ग वा तं भ ेत वृकोदरः ।
ह न य त न स दे हो ै रथे तव स धौ ।।७
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ णके वचन सुनकर महाम त
उ वजीने दे व ष नारद, सभासद् और भगवान् ीकृ णके मतपर वचार कया और फर वे
कहने लगे ।।१।।
उ वजीने कहा—भगवन्! दे व ष नारदजीने आपको यह सलाह द है क फुफेरे भाई
पा डव के राजसूय-य म स म लत होकर उनक सहायता करनी चा हये। उनका यह कथन
ठ क ही है और साथ ही यह भी ठ क है क शरणागत क र ा अव यकत है ।।२।। भो!
जब हम इस से वचार करते ह क राजसूय-य वही कर सकता है, जो दस दशा पर
वजय ा त कर ले, तब हम इस नणयपर बना कसी वधाके प ँच जाते ह क
पा डव के य और शरणागत क र ा दोन काम के लये जरास धको जीतना आव यक
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है ।।३।। भो! केवल जरास धको जीत लेनेसे ही हमारा महान् उ े य सफल हो जायगा,
साथ ही उससे बंद राजा क मु और उसके कारण आपको सुयशक भी ा त हो
जायगी ।।४।। राजा जरास ध बड़े-बड़े लोग के भी दाँत ख े कर दे ता है; य क दस हजार
हा थय का बल उसे ा त है। उसे य द हरा सकते ह तो केवल भीमसेन, य क वे भी वैसे ही
बली ह ।।५।। उसे आमने-सामनेके यु म एक वीर जीत ले, यही सबसे अ छा है। सौ
अ ौ हणी सेना लेकर जब वह यु के लये खड़ा होगा, उस समय उसे जीतना आसान न
होगा। जरास ध ब त बड़ा ा णभ है। य द ा ण उससे कसी बातक याचना करते ह,
तो वह कभी कोरा जवाब नह दे ता ।।६।। इस लये भीमसेन ा णके वेषम जायँ और उससे
यु क भ ा माँग। भगवन्! इसम स दे ह नह क य द आपक उप थ तम भीमसेन और
जरास धका यु हो, तो भीमसेन उसे मार डालगे ।।७।।
न म ं परमीश य व सग नरोधयोः ।
हर यगभः शव काल या पण तव ।।८
दो या प र व य रमामलालयं
मुकु दगा ं नृप तहताशुभः ।
लेभे परां नवृ तम ुलोचनो
य नु व मृतलोक व मः ।।२६
तं मातुलेयं प रर य नवृतो
भीमः मयन् ेमजवाकुले यः ।
यमौ करीट च सु मं मुदा
वृ बा पाः प ररे भरेऽ युतम् ।।२७
परी त्! अब भगवान् ीकृ ण आनत, सौवीर, म , कु े और उनके बीचम
पड़नेवाले पवत, नद , नगर, गाँव, अहीर क ब तयाँ तथा खान को पार करते ए आगे बढ़ने
लगे ।।२१।।
भगवान् मुकु द मागम ष ती एवं सर वती नद पार करके पांचाल और म य दे श म
होते ए इ थ जा प ँचे ।।२२।। परी त्! भगवान् ीकृ णका दशन अ य त लभ है।
जब अजातश ु महाराज यु ध रको यह समाचार मला क भगवान् ीकृ ण पधार गये ह,
तब उनका रोम-रोम आन दसे खल उठा। वे अपने आचाय और वजन-स ब धय के साथ
भगवान्क अगवानी करनेके लये नगरसे बाहर आये ।।२३।। मंगल-गीत गाये जाने लगे,
बाजे बजने लगे, ब त-से ा ण मलकर ऊँचे वरसे वेदम का उ चारण करने लगे। इस
कार वे बड़े आदरसे षीकेशभगवान्का वागत करनेके लये चले, जैसे इ याँ मु य
ाणसे मलने जा रही ह ।।२४।। भगवान् ीकृ णको दे खकर राजा यु ध रका दय
नेहा तरेकसे गद्गद हो गया। उ ह ब त दन पर अपने यतम भगवान् ीकृ णको
दे खनेका सौभा य ा त आ था। अतः वे उ ह बार-बार अपने दयसे लगाने लगे ।।२५।।
भगवान् ीकृ णका ी व ह भगवती ल मीजीका प व और एकमा नवास- थान है।
राजा यु ध र अपनी दोन भुजा से उसका आ लगन करके सम त पाप-ताप से छु टकारा
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पा गये। वे सवतोभावेन परमान दके समु म म न हो गये। ने म आँसू छलक आये, अंग-अंग
पुल कत हो गया, उ ह इस व - पंचके मका त नक भी मरण न रहा ।।२६।। तदन तर
भीमसेनने मुसकराकर अपने ममेरे भाई ीकृ णका आ लगन कया। इससे उ ह बड़ा आन द
मला। उस समय उनके दयम इतना ेम उमड़ा क उ ह बा व मृ त-सी हो गयी। नकुल,
सहदे व और अजुनने भी अपने परम यतम और हतैषी भगवान् ीकृ णका बड़े आन दसे
आ लगन ा त कया। उस समय उनके ने म आँसु क बाढ़-सी आ गयी थी ।।२७।।
अजुनने पुनः भगवान् ीकृ णका आ लगन कया, नकुल और सहदे वने अ भवादन कया
और वयं भगवान् ीकृ णने ा ण और कु वंशी वृ को यथायो य नम कार
कया ।।२८।। कु , सृंजय और केकय दे शके नरप तय ने भगवान् ीकृ णका स मान कया
और भगवान् ीकृ णने भी उनका यथो चत स कार कया। सूत, मागध, वंद जन और
ा ण भगवान्क तु त करने लगे तथा ग धव, नट, व षक आ द मृदंग, शंख, नगारे,
वीणा, ढोल और नर सगे बजा-बजाकर कमलनयन भगवान् ीकृ णको स करनेके लये
नाचने-गाने लगे ।।२९-३०।। इस कार परमयश वी भगवान् ीकृ णने अपने सु द्-
वजन के साथ सब कारसे सुस जत इ थ नगरम वेश कया। उस समय लोग
आपसम भगवान् ीकृ णक शंसा करते चल रहे थे ।।३१।।
अजुनेन प र व ो यमा याम भवा दतः ।
ा णे यो नम कृ य वृ े य यथाहतः ।।२८
मृदंगशंखपटहवीणापणवगोमुखैः ।
ा णा ार व दा ं तु ु वुननृतुजगुः ।।३०
एवं सु ः पय तः पु य ोक शखाम णः ।
सं तूयमानो भगवान् ववेशालंकृतं पुरम् ।।३१
उ तद पब ल भः तस जाल-
नयातधूप चरं वलस पताकम् ।
मूध यहेमकलशै रजतो शृ ै -
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जु ं ददश भवनैः कु राजधाम ।।३३
ा तं नश य नरलोचनपानपा -
मौ सु य व थतकेश कूलब धाः ।
स ो वसृ य गृहकम पत त पे
ु ं ययुयुवतयः म नरे माग ।।३४
इ थ नगरक सड़क और ग लयाँ मतवाले हा थय के मदसे तथा सुग धत जलसे
स च द गयी थ । जगह-जगह रंग- बरंगी झं डयाँ लगा द गयी थ । सुनहले तोरन बाँधे ए थे
और सोनेके जलभरे कलश थान- थानपर शोभा पा रहे थे। नगरके नर-नारी नहा-धोकर
तथा नये व , आभूषण, पु प के हार, इ -फुलेल आ दसे सज-धजकर घूम रहे थे ।।३२।।
घर-घरम ठौर-ठौरपर द पक जलाये गये थे, जनसे द पावलीक -सी छटा हो रही थी। येक
घरके झरोख से धूपका धूआँ नकलता आ ब त ही भला मालूम होता था। सभी घर के
ऊपर पताकाएँ फहरा रही थ तथा सोनेके कलश और चाँद के शखर जगमगा रहे थे।
भगवान् ीकृ ण इस कारके महल से प रपूण पा डव क राजधानी इ थ नगरको
दे खते ए आगे बढ़ रहे थे ।।३३।। जब युव तय ने सुना क मानव-ने के पानपा अथात्
अ य त दशनीय भगवान् ीकृ ण राजपथपर आ रहे ह, तब उनके दशनक उ सुकताके
आवेगसे उनक चो टय और सा ड़य क गाँठ ढ ली पड़ गय । उ ह ने घरका काम-काज तो
छोड़ ही दया, सेजपर सोये ए अपने प तय को भी छोड़ दया और भगवान् ीकृ णका
दशन करनेके लये राजपथपर दौड़ आय ।।३४।। सड़कपर हाथी, घोड़े, रथ और पैदल
सेनाक भीड़ लग रही थी। उन य ने अटा रय पर चढ़कर रा नय के स हत भगवान्
ीकृ णका दशन कया, उनके ऊपर पु प क वषा क और मन-ही-मन आ लगन कया तथा
ेमभरी मुसकान एवं चतवनसे उनका सु वागत कया ।।३५।। नगरक याँ राजपथपर
च माके साथ वराजमान तारा के समान ीकृ णक प नय को दे खकर आपसम कहने
लग —‘सखी! इन बड़भा गनी रा नय ने न जाने ऐसा कौन-सा पु य कया है, जसके कारण
पु ष शरोम ण भगवान् ीकृ ण अपने उ मु हा य और वलासपूण कटा से उनक ओर
दे खकर उनके ने को परम आन द दान करते ह ।।३६।। इसी कार भगवान् ीकृ ण
राजपथसे चल रहे थे। थान- थानपर ब त-से न पाप धनी-मानी और श पजीवी
नाग रक ने अनेक मांग लक व तुएँ ला-लाकर उनक पूजा-अचा और वागत-स कार
कया ।।३७।।
त मन् सुसंकुल इभा रथ प ः
कृ णं सभायमुपल य गृहा ध ढाः ।
नाय वक य कुसुमैमनसोपगु
सु वागतं वदधु मयवी तेन ।।३५
तप य वा खा डवेन व फा गुनसंयुतः ।
मोच य वा मयं येन रा े द ा सभा कृता ।।४५
न णः वपरभेदम त तव यात्
सवा मनः सम शः वसुखानुभूतेः ।
संसेवतां सुरतरो रव ते सादः
सेवानु पमुदयो न वपययोऽ ।।६
ीभगवानुवाच
स यग् व सतं राजन् भवता श ुकशन ।
क याणी येन ते क तल काननु भ व य त ।।७
भीमसेनोऽजुनः कृ णो लगधरा यः ।
ज मु ग र जं तात बृह थसुतो यतः ।।१६
हर ो र तदे व उ छवृ ः श बब लः ।
ाधः कपोतो बहवो ुवेण ुवं गताः ।।२१
ीशुक उवाच
वरैराकृ त भ तां तु को ै याहतैर प ।
राज यब धून् व ाय पूवान च तयत् ।।२२
इ युदारम तः ाह कृ णाजुनवृकोदरान् ।
हे व ा यतां कामो ददा या म शरोऽ प वः ।।२७
ीभगवानुवाच
यु ं नो दे ह राजे शो य द म यसे ।
यु ा थनो वयं ा ता राज या ना कां णः ।।२८
न वया भी णा यो ये यु ध व लवचेतसा ।
मथुरां वपुर य वा समु ं शरणं गतः ।।३१
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अयं तु वयसा तु यो ना तस वो न मे समः ।
अजुनो न भवेद ् यो ा भीम तु यबलो मम ।।३२
म डला न व च ा ण स ं द णमेव च ।
चरतोः शुशुभे यु ं नटयो रव रं गणोः ।।३५
मेरा तो यह प का न य है क यह शरीर नाशवान् है। इस शरीरसे जो वपुल यश नह
कमाता और जो य ा णके लये ही जीवन नह धारण करता, उसका जीना थ
है’ ।।२६।।
परी त्! सचमुच जरास धक बु बड़ी उदार थी। उपयु वचार करके उसने
ा ण-वेषधारी ीकृ ण, अजुन और भीमसेनसे कहा—‘ ा णो! आपलोग मनचाही व तु
माँग ल, आप चाह तो म आपलोग को अपना सर भी दे सकता ’ँ ।।२७।।
भगवान् ीकृ णने कहा—‘राजे ! हमलोग अ के इ छु क ा ण नह ह, य ह;
हम आपके पास यु के लये आये ह। य द आपक इ छा हो तो हम यु क भ ा
द जये ।।२८।। दे खो, ये पा डु पु भीमसेन ह और यह इनका भाई अजुन है और म इन
दोन का ममेरा भाई तथा आपका पुराना श ु कृ ण ँ’ ।।२९।। जब भगवान् ीकृ णने इस
कार अपना प रचय दया, तब राजा जरास ध ठठाकर हँसने लगा। और चढ़कर बोला
—‘अरे मूख ! य द तु ह यु क ही इ छा है तो लो म तु हारी ाथना वीकार करता
ँ ।।३०।। पर तु कृ ण! तुम तो बड़े डरपोक हो। यु म तुम घबरा जाते हो। यहाँतक क मेरे
डरसे तुमने अपनी नगरी मथुरा भी छोड़ द तथा समु क शरण ली है। इस लये म तु हारे
साथ नह लडँगा ।।३१।। यह अजुन भी कोई यो ा नह है। एक तो अव थाम मुझसे छोटा,
सरे कोई वशेष बलवान् भी नह है। इस लये यह भी मेरे जोड़का वीर नह है। म इसके
साथ भी नह लडँगा। रहे भीमसेन, ये अव य ही मेरे समान बलवान् और मेरे जोड़के
ह’ ।।३२।। जरास धने यह कहकर भीमसेनको एक ब त बड़ी गदा दे द और वयं सरी
गदा लेकर नगरसे बाहर नकल आया ।।३३।। अब दोन रणो म वीर अखाड़ेम आकर
एक- सरेसे भड़ गये और अपनी व के समान कठोर गदा से एक- सरेपर चोट करने
लगे ।।३४।। वे दाय-बाय तरह-तरहके पतरे बदलते ए ऐसे शोभायमान हो रहे थे—मानो दो
े नट रंगमंचपर यु का अ भनय कर रहे ह ।।३५।। परी त्! जब एकक गदा सरेक
गदासे टकराती, तब ऐसा मालूम होता मानो यु करनेवाले दो हा थय के दाँत आपसम
भड़कर चटचटा रहे ह या बड़े जोरसे बजली तड़क रही हो ।।३६।।
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तत टचटाश दो व न पेषस भः ।
गदयोः तयो राजन् द तयो रव द तनोः ।।३६
इ थं तयोः हतयोगदयोनृवीरौ
ु ौ वमु भरयः पशर प ाम् ।
श द तयोः हरतो रभयो रवासी-
घातव प ष तलताडनो थः ।।३८
प ह तं गदाशंखरथा ै पल तम् ।
करीटहारकटकक टसू ांगदा चतम् ।।४
ज त इव नासा यां र भ त इव बा भः ।
णेमुहतपा मानो मूध भः पादयोहरेः ।।६
त एव कृ णा गभीररंहसा
र तवीयण वचा लताः यः ।
कालेन त वा भवतोऽनुक पया
वन दपा रणौ मराम ते ।।१३
भव त एतद् व ाय दे हा ु पा म तवत् ।
मां यज तोऽ वरैयु ाः जा धमण र थ ।।२१
भोज य वा वरा न
े सु नातान् समलंकृतान् ।
भोगै व वधैयु ां ता बूला ैनृपो चतैः ।।२६
ग वा ते खा डव थं शंखान् द मु जतारयः ।
हषय तः वसु दो दां चासुखावहाः ।।३२
अ भव ाथ राजानं भीमाजुनजनादनाः ।
सवमा ावयांच ु रा मना यदनु तम् ।।३४
परी त्! जरास धके पु सहदे वसे उनको राजो चत व -आभूषण, माला-च दन आ द
दलवाकर उनका खूब स मान करवाया ।।२५।। जब वे नान करके व ाभूषणसे सुस जत
हो चुके, तब भगवान्ने उ ह उ म-उ म पदाथ का भोजन करवाया और पान आ द व वध
कारके राजो चत भोग दलवाये ।।२६।। भगवान् ीकृ णने इस कार उन बंद राजा को
स मा नत कया। अब वे सम त लेश से छु टकारा पाकर तथा कान म झल मलाते ए
सु दर-सु दर कु डल पहनकर ऐसे शोभायमान ए, जैसे वषाऋतुका अ त हो जानेपर
तारे ।।२७।। फर भगवान् ीकृ णने उ ह सुवण और म णय से भू षत एवं े घोड़ से यु
रथ पर चढ़ाया, मधुर वाणीसे तृ त कया और फर उ ह उनके दे श को भेज दया ।।२८।।
इस कार उदार शरोम ण भगवान् ीकृ णने उन राजा को महान् क से मु कया। अब
वे जग प त भगवान् ीकृ णके प, गुण और लीला का च तन करते ए अपनी-अपनी
राजधानीको चले गये ।।२९।। वहाँ जाकर उन लोग ने अपनी-अपनी जासे परमपु ष
भगवान् ीकृ णक अद्भुत कृपा और लीला कह सुनायी और फर बड़ी सावधानीसे
भगवान्के आ ानुसार वे अपना जीवन तीत करने लगे ।।३०।।
परी त्! इस कार भगवान् ीकृ ण भीमसेनके ारा जरास धका वध करवाकर
भीमसेन और अजुनके साथ जरास धन दन सहदे वसे स मा नत होकर इ - थके लये
चले। उन वजयी वीर ने इ थके पास प ँचकर अपने-अपने शंख बजाये, जससे उनके
इ म को सुख और श ु को बड़ा ःख आ ।।३१-३२।। इ थ नवा सय का मन उस
शंख व नको सुनकर खल उठा। उ ह ने समझ लया क जरास ध मर गया और अब राजा
यु ध रका राजसूय-य करनेका संक प एक कारसे पूरा हो गया ।।३३।। भीमसेन, अजुन
और भगवान् ीकृ णने राजा यु ध रक व दना क और वह सब कृ य कह सुनाया, जो
उ ह जरास धके वधके लये करना पड़ा था ।।३४।।
नश य धमराज तत् केशवेनानुक पतम् ।
आन दा ुकलां मुंचन् े णा नोवाच कचन ।।३५
धमराज यु ध र भगवान् ीकृ णके इस परम अनु हक बात सुनकर ेमसे भर गये,
उनके ने से आन दके आँसु क बूँद टपकने लग और वे उनसे कुछ भी कह न
सके ।।३५।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे उ राध कृ णा ागमने
स त ततमोऽ यायः ।।७३।।
ा णाः या वै याः शू ा य द वः ।
त ेयुः सवराजानो रा ां कृतयो नृप ।।११
इ थं नश य दमघोषसुतः वपीठा-
थाय कृ णगुणवणनजातम युः ।
उ य बा मदमाह सद यमष
सं ावयन् भगवते प षा यभीतः ।।३०
न दां भगवतः शृ वं त पर य जन य वा ।
ततो नापै त यः सोऽ प या यधः सुकृता युतः ।।४०
१. जोऽ ः।
ऋ व सद यब व सु सु मेषु
व ेषु सूनृतसमहणद णा भः ।
चै े च सा वतपते रणं व े
च ु तत ववभृथ नपनं ुन ाम् ।।८
मृदंगशंखपणवधु धुयानकगोमुखाः ।
वा द ा ण व च ा ण ने रावभृथो सवे ।।९
सद य व ज े ा घोषेण भूयसा ।
दे व ष पतृग धवा तु ु वुः पु पव षणः ।।१३
दे व भयो ने नर भ भः समम् ।
मुमुचुः पु पवषा ण दे व ष पतृमानवाः ।।२०
शशुपालसखः शा वो म यु ाह आगतः ।
य भ न जतः सं ये जरास धादय तथा ।।२
ता सौभपतेमाया द ा ै मणीसुतः ।
णेन नाशयामास नैशं तम इवो णगुः ।।१७
व ाध पंच वश या वणपुंखैरयोमुखैः ।
शा व य व जनीपालं शरैः स तपव भः ।।१८
ं मे कथ य य त हस यो ातृजामयः ।
लै यं कथं कथं वीर तवा यैः क यतां मृधे ।।३१
परी त्! शा वके सेनाप तय ने भी य वं शय पर खूब श क वषा कर रखी थी, इससे
वे अ य त पी ड़त थे; पर तु उ ह ने अपना-अपना मोचा छोड़ा नह । वे सोचते थे क मरगे तो
परलोक बनेगा और जीतगे तो वजयक ा त होगी ।।२५।। परी त्! शा वके म ीका
नाम था ुमान्, जसे पहले ु नजीने पचीस बाण मारे थे। वह ब त बली था। उसने
झपटकर ु नजीपर अपनी फौलाद गदासे बड़े जोरसे हार कया और ‘मार लया, मार
लया’ कहकर गरजने लगा ।।२६।। परी त्! गदाक चोटसे श ुदमन ु नजीका
व ः थल फट-सा गया। दा कका पु उनका रथ हाँक रहा था। वह सार थधमके अनुसार
उ ह रणभू मसे हटा ले गया ।।२७।। दो घड़ीम ु नजीक मू छा टू ट । तब उ ह ने सार थसे
कहा—‘सारथे! तूने यह ब त बुरा कया। हाय, हाय! तू मुझे रणभू मसे हटा लाया? ।।२८।।
सूत! हमने ऐसा कभी नह सुना क हमारे वंशका कोई भी वीर कभी रणभू म छोड़कर अलग
हट गया हो! यह कलंकका ट का तो केवल मेरे ही सर लगा। सचमुच सूत! तू कायर है,
नपुंसक है ।।२९।। बतला तो सही, अब म अपने ताऊ बलरामजी और पता ीकृ णके
सामने जाकर या क ँगा? अब तो सब लोग यही कहगे न, क म यु से भग गया? उनके
पूछनेपर म अपने अनु प या उ र दे सकूँगा’ ।।३०।। मेरी भा भयाँ हँसती ई मुझसे
साफ-साफ पूछगी क ‘कहो, वीर! तुम नपुंसक कैसे हो गये? सर ने यु म तु ह नीचा कैसे
दखा दया?’ ‘सूत! अव य ही तुमने मुझे रणभू मसे भगाकर अ य अपराध कया
है!’ ।।३१।।
सार थ वाच
धम वजानताऽऽयु मन् कृतमेत मया वभो ।
सूतः कृ गतं र ेद ् र थनं सार थ रथी ।।३२
१. य०। २. गु ा। ३. तक मषात्।
इ थं गतः कृ ण आ तो धमसूनुना ।
राजसूयेऽथ नवृ े शशुपाले च सं थते ।।६
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! अब ु नजीने हाथ-मुँह धोकर, कवच पहन धनुष
धारण कया और सारथीसे कहा क ‘मुझे वीर ुमान्के पास फरसे ले चलो’ ।।१।। उस
समय ुमान् यादवसेनाको तहस-नहस कर रहा था। ु नजीने उसके पास प ँचकर उसे
ऐसा करनेसे रोक दया और मुसकराकर आठ बाण मारे ।।२।।
चार बाण से उसके चार थोड़े और एक-एक बाणसे सारथी, धनुष, वजा और उसका
सर काट डाला ।।३।। इधर गद, सा य क, सा ब आ द य वंशी वीर भी शा वक सेनाका
संहार करने लगे। सौभ वमानपर चढ़े ए सै नक क गरदन कट जात और वे समु म गर
पड़ते ।।४।।
इस कार य वंशी और शा वके सै नक एक- सरेपर हार करते रहे। बड़ा ही घमासान
और भयंकर यु आ और वह लगातार स ाईस दन तक चलता रहा ।।५।।
उन दन भगवान् ीकृ ण धमराज यु ध रके बुलानेसे इ थ गये ए थे। राजसूय
य हो चुका था और शशुपालक भी मृ यु हो गयी थी ।।६।।
शा व कृ णमालो य हत ायबले रः ।
ाहरत् कृ णसूताय श भीमरवां मृधे ।।१२
नत तं न पतुः कलेवरं
बु आजौ समप यद युतः ।
वा ं यथा चा बरचा रणं रपुं
सौभ थमालो य नह तुमु तः ।।२९
य पादसेवो जतयाऽऽ म व या
ह व यना ा म वपयय हम् ।
लभ त आ मीयमन तमै रं
कुतो नु मोहः परम य सद्गतेः ।।३२
तं श पूगैः हर तमोजसा
शा वं शरैः शौ ररमोघ व मः ।
वद् वा छनद् वम धनुः शरोम ण
सौभं च श ोगदया रोज ह ।।३३
‘मूख! दे ख, यही तुझे पैदा करनेवाला तेरा बाप है, जसके लये तू जी रहा है। तेरे दे खते-
दे खते म इसका काम तमाम करता ँ। कुछ बल-पौ ष हो, तो इसे बचा’ ।।२६।। मायावी
शा वने इस कार भगवान्को फटकार कर मायार चत वसुदेवका सर तलवारसे काट लया
और उसे लेकर अपने आकाश थ वमानपर जा बैठा ।।२७।। परी त्! भगवान् ीकृ ण
वयं स ान व प और महानुभाव ह। वे यह घटना दे खकर दो घड़ीके लये अपने वजन
वसुदेवजीके त अ य त ेम होनेके कारण साधारण पु ष के समान शोकम डू ब गये। पर तु
फर वे जान गये क यह तो शा वक फैलायी ई आसुरी माया ही है, जो उसे मय दानवने
बतलायी थी ।।२८।। भगवान् ीकृ णने यु भू मम सचेत होकर दे खा—न वहाँ त है और
न पताका वह शरीर; जैसे व म एक य द खकर लु त हो गया हो! उधर दे खा तो शा व
वमानपर चढ़कर आकाशम वचर रहा है। तब वे उसका वध करनेके लये उ त हो
गये ।।२९।।
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य परी त्! इस कारक बात पूवापरका वचार न करनेवाले कोई-कोई ऋ ष कहते
ह। अव य ही वे इस बातको भूल जाते ह क ीकृ णके स ब धम ऐसा कहना उ ह के
वचन के वपरीत है ।।३०।। कहाँ अ ा नय म रहनेवाले शोक, मोह, नेह और भय; तथा
कहाँ वे प रपूण भगवान् ीकृ ण— जनका ान, व ान और ऐ य अख डत है, एकरस है
(भला, उनम वैसे भाव क स भावना ही कहाँ है?) ।।३१।। बड़े-बड़े ऋ ष-मु न भगवान्
ीकृ णके चरणकमल क सेवा करके आ म व ाका भलीभाँ त स पादन करते ह और
उसके ारा शरीर आ दम आ मबु प अना द अ ानको मटा डालते ह तथा
आ मस ब धी अन त ऐ य ा त करते ह। उन संत के परम ग त व प भगवान् ीकृ णम
भला, मोह कैसे हो सकता है? ।।३२।।
अब शा व भगवान् ीकृ णपर बड़े उ साह और वेगसे श क वषा करने लगा था।
अमोघश भगवान् ीकृ णने भी अपने बाण से शा वको घायल कर दया और उसके
कवच, धनुष तथा सरक म णको छ - भ कर दया। साथ ही गदाक चोटसे उसके
वमानको भी जजर कर दया ।।३३।। परी त्! भगवान् ीकृ णके हाथ से चलायी ई
गदासे वह वमान चूर-चूर होकर समु म गर पड़ा। गरनेके पहले ही शा व हाथम गदा लेकर
धरतीपर कूद पड़ा और सावधान होकर बड़े वेगसे भगवान् ीकृ णक ओर झपटा ।।३४।।
शा वको आ मण करते दे ख उ ह ने भालेसे गदाके साथ उसका हाथ काट गराया। फर
उसे मार डालनेके लये उ ह ने लयकालीन सूयके समान तेज वी और अ य त अद्भुत
सुदशन च धारण कर लया। उस समय उनक ऐसी शोभा हो रही थी, मानो सूयके साथ
उदयाचल शोभायमान हो ।।३५।। भगवान् ीकृ णने उस च से परम मायावी शा वका
कु डल- करीटस हत सर धड़से अलग कर दया; ठ क वैसे ही, जैसे इ ने व से वृ ासुरका
सर काट डाला था। उस समय शा वके सै नक अ य त ःखसे ‘हाय-हाय’ च ला
उठे ।।३६।। परी त्! जब पापी शा व मर गया और उसका वमान भी गदाके हारसे चूर-
चूर हो गया, तब दे वतालोग आकाशम भयाँ बजाने लगे। ठ क इसी समय द तव
अपने म शशुपाल आ दका बदला लेनेके लये अ य त ो धत होकर आ प ँचा ।।३७।।
तत् कृ णह ते रतया वचू णतं
पपात तोये गदया सह धा ।
वसृ य तद् भूतलमा थतो गदा-
मु य शा वोऽ युतम यगाद् तम् ।।३४
आधावतः सगदं त य बा ं
भ लेन छ वाथ रथांगम तम् ।
वधाय शा व य लयाकस भं
ब द् बभौ साक इवोदयाचलः ।।३५
ना वा भासे स त य दे व ष पतृमानवान् ।
सर वत त ोतं ययौ ा णसंवृतः ।।१८
ऋषेभगवतो भू वा श योऽधी य ब न च ।
से तहासपुराणा न धमशा ा ण सवशः ।।२५
द घमायुबतैत य स व म यमेव च ।
आशा सतं य द् त ू साधये योगमायया ।।३४
ऋषय ऊचुः
अ य तव वीय य मृ योर माकमेव च ।
त ाग यं समासीनं नम कृ या भवा च ।
यो जत तेन चाशी भरनु ातो गतोऽणवम् ।
द णं त क या यां गा दे व ददश सः ।।१७
१. रमयन्।
शर तु त योभय लगमानमे-
दे व यत् प य त त च ुः ।
अंगा न व णोरथ त जनानां
पादोदकं या न भज त न यम् ।।४
राजा परी त्ने कहा—भगवन्! ेम और मु के दाता पर परमा मा भगवान्
ीकृ णक श अन त है। इस लये उनक माधुय और ऐ यसे भरी लीलाएँ भी अन त ह।
अब हम उनक सरी लीलाएँ, जनका वणन आपने अबतक नह कया है, सुनना चाहते
ह ।।१।। न्! यह जीव वषय-सुखको खोजते-खोजते अ य त ःखी हो गया है। वे
बाणक तरह इसके च म चुभते रहते ह। ऐसी थ तम ऐसा कौन-सा र सक—रसका
वशेष पु ष होगा, जो बार-बार प व क त भगवान् ीकृ णक मंगलमयी लीला का
वण करके भी उनसे वमुख होना चाहेगा ।।२।। जो वाणी भगवान्के गुण का गान करती
है, वही स ची वाणी है। वे ही हाथ स चे हाथ ह, जो भगवान्क सेवाके लये काम करते ह।
वही मन स चा मन है, जो चराचर ा णय म नवास करनेवाले भगवान्का मरण करता है;
और वे ही कान वा तवम कान कहनेयो य ह, जो भगवान्क पु यमयी कथा का वण
करते ह ।।३।। वही सर सर है, जो चराचर जगत्को भगवान्क चल-अचल तमा
समझकर नम कार करता है; और जो सव भगव हका दशन करते ह, वे ही ने
वा तवम ने ह। शरीरके जो अंग भगवान् और उनके भ के चरणोदकका सेवन करते ह, वे
ही अंग वा तवम अंग ह; सच पू छये तो उ ह का होना सफल है ।।४।।
प त ता प त ाह लायता वदनेन सा ।
द र ा सीदमाना सा वेपमाना भग य च ।।८
ी ण गु मा यतीयाय त ः क ा स जः ।
व ोऽग या धकवृ णीनां गृहे व युतध मणाम् ।।१६
प ं पु पं फलं तोयं यो मे भ या य छ त ।
तदहं भ युप तम ा म यता मनः ।।४
इ यु ोऽ प ज त मै ी डतः पतये यः ।
पृथुक सृ त राजन् न ाय छदवाङ् मुखः ।।५
इ त त च तय तः ा तो नजगृहा तकम् ।
सूयानले संकाशै वमानैः सवतो वृतम् ।।२१
जु ं वलंकृतैः पु भः ी भ ह रणा भः ।
क मदं क य वा थानं कथं त दद म यभूत् ।।२३
प तमागतमाक य प यु षा तस मा ।
न ाम गृहा ूण पणी ी रवालयात् ।।२५
प त ता प त ् वा मे ो क ठा ुलोचना ।
मी लता यनमद् बु या मनसा प रष वजे ।।२६
प न वी य व फुर त दे व वैमा नक मव ।
दासीनां न कक ठ नां म ये भा त स व मतः ।।२७
नूनं बतैत मम भग य
श र य समृ हेतुः ।
महा वभूतेरवलोकतोऽ यो
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नैवोपप ेत य म य ।।३३
न व ुवाणो दशते सम ं
या च णवे भूय प भू रभोजः ।
पज यव त् वयमी माणो
दाशाहकाणामृषभः सखा मे ।।३४
त यैव मे सौ दस यमै ी
दा यं पुनज म न ज म न यात् ।
महानुभावेन गुणालयेन
वष जत त पु ष संगः ।।३६
इस कार सम त स प य क समृ दे खकर और उसका कोई य कारण न
पाकर, बड़ी ग भीरतासे ा णदे वता वचार करने लगे क मेरे पास इतनी स प कहाँसे
आ गयी ।।३२।। वे मन-ही-मन कहने लगे—‘म ज मसे ही भा यहीन और द र ँ। फर मेरी
इस स प -समृ का कारण या है? अव य ही परमै यशाली य वंश शरोम ण भगवान्
ीकृ णके कृपाकटा के अ त र और कोई कारण नह हो सकता ।।३३।। यह सब कुछ
उनक क णाक ही दे न है। वयं भगवान् ीकृ ण पूणकाम और ल मीप त होनेके कारण
अन त भोग-साम य से यु ह। इस लये वे याचक भ को उसके मनका भाव जानकर
ब त कुछ दे दे ते ह, पर तु उसे समझते ह ब त थोड़ा; इस लये सामने कुछ कहते नह । मेरे
य वंश शरोम ण सखा यामसु दर सचमुच उस मेघसे भी बढ़कर उदार ह, जो समु को भर
दे नेक श रखनेपर भी कसानके सामने न बरसकर उसके सो जानेपर रातम बरसता है
और ब त बरसनेपर भी थोड़ा ही समझता है ।।३४।। मेरे यारे सखा ीकृ ण दे ते ह ब त,
पर उसे मानते ह ब त थोड़ा! और उनका ेमी भ य द उनके लये कुछ भी कर दे , तो वे
उसको ब त मान लेते ह। दे खो तो सही! मने उ ह केवल एक मुट्ठ चउड़ा भट कया था,
पर उदार शरोम ण ीकृ णने उसे कतने ेमसे वीकार कया ।।३५।। मुझे ज म-ज म
उ ह का ेम, उ ह क हतै षता, उ ह क म ता और उ ह क सेवा ा त हो। मुझे
स प क आव यकता नह , सदा-सवदा उ ह गुण के एकमा नवास थान महानुभाव
भगवान् ीकृ णके चरण म मेरा अनुराग बढ़ता जाय और उ ह के ेमी भ का स संग
ा त हो ।।३६।। अज मा भगवान् ीकृ ण स प आ दके दोष जानते ह। वे दे खते ह क
बड़े-बड़े ध नय का धन और ऐ यके मदसे पतन हो जाता है। इस लये वे अपने अ रदश
भ ाय च ा भगवान् ह स पदो
रा यं वभूतीन समथय यजः ।
अद घबोधाय वच णः वयं
प यन् नपातं ध ननां मदो वम् ।।३७
एवं स व ो भगव सु दा
् वा वभृ यैर जतं परा जतम् ।
त यानवेगोद् थता मब धन-
त ाम लेभेऽ चरतः सतां ग तम् ।।४०
द व स ाहाः कल ैः खेचरा इव ।
त ना वा महाभागा उपो य सुसमा हताः ।।९
परी त्! इस महान् तीथया ाके अवसरपर भारतवषके सभी ा त क जनता कु े
आयी थी। उनम अ ू र, वसुदेव, उ सेन आ द बड़े-बूढ़े तथा गद, ु न, सा ब आ द अ य
य वंशी भी अपने-अपने पाप का नाश करनेके लये कु े आये थे। ु नन दन अ न
और य वंशी सेनाप त कृतवमा—ये दोन सुच , शुक, सारण आ दके साथ नगरक र ाके
लये ारकाम रह गये थे। य वंशी एक तो वभावसे ही परम तेज वी थे; सरे गलेम सोनेक
माला, द पु प के हार, ब मू य व और कवच से सुस जत होनेके कारण उनक शोभा
और भी बढ़ गयी थी। वे तीथया ाके पथम दे वता के वमानके समान रथ , समु क
तरंगके समान चलनेवाले घोड़ , बादल के समान वशालकाय एवं गजना करते ए हा थय
तथा व ाधर के समान मनु य के ारा ढोयी जानेवाली पाल कय पर अपनी प नय के साथ
इस कार शोभायमान हो रहे थे, मानो वगके दे वता ही या ा कर रहे ह । महाभा यवान्
य वं शय ने कु े म प ँचकर एका च से संयमपूवक नान कया और हणके
उपल यम न त कालतक उपवास कया ।।५-९।।
द ः व ं जा ्ये यः कृ णे नो भ र व त ।
वयं च तदनु ाता वृ णयः कृ णदे वताः ।।११
अ यो यस दशनहषरंहसा
ो फु ल सरो ह यः ।
य ु तः ु तनुतेदमलं पुना त
पादावनेजनपय वच शा म् ।
भूः कालभ जतभगा प यदङ् प -
पश थश र भवष त नोऽ खलाथान् ।।३०
त शन पशनानुपथ ज प-
श यासनाशनसयौनस प डब धः ।
येषां गृहे नरयव म न वततां वः
वगापवग वरमः वयमास व णुः ।।३१
ीशुक उवाच
न द त य न् ा तान् ा वा कृ णपुरोगमान् ।
त ागमद् वृतो गोपैरनः थाथ द या ।।३२
वसुदेवः प र व य स ीतः ेम व लः ।
मरन् कंसकृतान् लेशान् पु यासं च गोकुले ।।३४
आ ते न लननाभ पदार व दं
योगे रै द व च यमगाधबोधैः ।
संसारकूपप ततो रणावल बं
गेह ुषाम प मन यु दयात् सदा नः ।।४९
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ णने इस कार गो पय को
अ या म ानक श ासे श त कया। उसी उपदे शके बार-बार मरणसे गो पय का
जीवकोश— लगशरीर न हो गया और वे भगवान्से एक हो गय , भगवान्को ही सदा-
सवदाके लये ा त हो गय ।।४८।।
उ ह ने कहा—‘हे कमलनाभ! अगाधबोध-स प बड़े-बड़े योगे र अपने दयकमलम
आपके चरणकमल का च तन करते रहते ह। जो लोग संसारके कूएँम गरे ए ह, उ ह उससे
नकलनेके लये आपके चरणकमल ही एकमा अवल बन ह। भो! आप ऐसी कृपा
क जये क आपका वह चरणकमल, घर-गृह थके काम करते रहनेपर भी सदा-सवदा हमारे
दयम वराजमान रहे, हम एक णके लये भी उसे न भूल ।।४९।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे उ राध वृ णगोपसंगमो नाम
यशी ततमोऽ यायः ।।८२।।
हे कृ णप य एत ो ूत वो भगवान् वयम् ।
उपयेमे यथा लोकमनुकुवन् वमायया ।।७
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! जस समय सरे लोग इस कार भगवान्
ीकृ णक तु त कर रहे थे, उसी समय यादव और कौरव-कुलक याँ एक होकर
आपसम भगवान्क भुवन- व यात लीला का वणन कर रही थ । अब म तु ह उ ह क
बात सुनाता ँ ।।५।।
ौपद ने कहा—हे मणी, भ े , हे जा बवती, स ये, हे स यभामे, का ल द , शै ,े
ल मणे, रो हणी और अ या य ीकृ णप नयो! तुमलोग हम यह तो बताओ क वयं
भगवान् ीकृ णने अपनी मायासे लोग का अनुकरण करते ए तुमलोग का कस कार
पा ण हण कया? ।।६-७।।
म युवाच
चै ाय माप यतुमु तकामुकेषु
राज वजेयभटशेख रताङ् रेणुः ।
न ये मृगे इव भागमजा वयूथात्
त नकेतचरणोऽ तु ममाचनाय ।।८
स यभामोवाच
यो मे सना भवधत त दा ततेन
ल ता भशापमपमा ु मुपाजहार ।
ज व राजमथ र नमदात् स तेन
भीतः पता दशत मां भवेऽ प द ाम् ।।९
जा बव युवाच
अ य मे पादसं पश भवे ज म न ज म न ।
कम भ ा यमाणाया येन त े य आ मनः ।।१६
ल मणोवाच
ममा प रा य युतज मकम
ु वा मु नारदगीतमास ह ।
च ं मुकु दे कल प ह तया
वृतः सुसंमृ य वहाय लोकपान् ।।१७
म व दाने कहा— ौपद जी! मेरा वयंवर हो रहा था। वहाँ आकर भगवान्ने सब
राजा को जीत लया और जैसे सह झुंड-के-झुंड कु मसे अपना भाग ले जाय, वैसे ही
मुझे अपनी शोभामयी ारका-पुरीम ले आये। मेरे भाइय ने भी मुझे भगवान्से छु ड़ाकर मेरा
अपकार करना चाहा, पर तु उ ह ने उ ह भी नीचा दखा दया। म ऐसा चाहती ँ क मुझे
ज म-ज म उनके पाँव पखारनेका सौभा य ा त होता रहे ।।१२।।
स याने कहा— ौपद जी! मेरे पताजीने मेरे वयंवरम आये ए राजा के बल-
पौ षक परी ाके लये बड़े बलवान् और परा मी, तीखे स गवाले सात बैल रख छोड़े थे।
उन बैल ने बड़े-बड़े वीर का घमंड चूर-चूर कर दया था। उ ह भगवान्ने खेल-खेलम ही
झपटकर पकड़ लया, नाथ लया और बाँध दया; ठ क वैसे ही, जैसे छोटे -छोटे ब चे
बकरीके ब च को पकड़ लेते ह ।।१३।। इस कार भगवान् बल-पौ षके ारा मुझे ा त
कर चतुरं गणी सेना और दा सय के साथ ारका ले आये। मागम जन य ने व न डाला,
उ ह जीत भी लया। मेरी यही अ भलाषा है क मुझे इनक सेवाका अवसर सदा-सवदा ा त
होता रहे ।।१४।।
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भ ाने कहा— ौपद जी! भगवान् मेरे मामाके पु ह। मेरा च इ ह के चरण म
अनुर हो गया था। जब मेरे पताजीको यह बात मालूम ई, तब उ ह ने वयं ही भगवान्को
बुलाकर अ ौ हणी सेना और ब त-सी दा सय के साथ मुझे इ ह के चरण म सम पत कर
दया ।।१५।। म अपना परम क याण इसीम समझती ँ क कमके अनुसार मुझे जहाँ-जहाँ
ज म लेना पड़े, सव इ ह के चरणकमल का सं पश ा त होता रहे ।।१६।।
ल मणाने कहा—रानीजी! दे व ष नारद बार-बार भगवान्के अवतार और लीला का
गान करते रहते थे। उसे सुनकर और यह सोचकर क ल मीजीने सम त लोकपाल का याग
करके भगवान्का ही वरण कया, मेरा च भगवान्के चरण म आस हो गया ।।१७।।
उ ीय व मु कु तलकु डल वड्
ग ड थलं श शरहासकटा मो ैः ।
रा ो नरी य प रतः शनकैमुरारे-
रंसेऽनुर दया नदधे वमालाम् ।।२९
् २ प थ केचन ।
तेऽ वस ज त राज या नषेदधु
संय ा उ ते वासा ाम सहा यथा ह रम् ।।३४
ौपद जी! जब मने इस कार अपने वामी यतम भगवान्को वरमाला पहना द , उ ह
वरण कर लया, तब कामातुर राजा को बड़ा डाह आ। वे ब त ही चढ़ गये ।।३१।।
चतुभुज भगवान्ने अपने े चार घोड़ वाले रथपर मुझे चढ़ा लया और हाथम शा धनुष
लेकर तथा कवच पहनकर यु करनेके लये वे रथपर खड़े हो गये ।।३२।। पर रानीजी!
दा कने सोनेके साज-सामानसे लदे ए रथको सब राजा के सामने ही ारकाके लये हाँक
दया, जैसे कोई सह ह रन के बीचसे अपना भाग ले जाय ।।३३।। उनमसे कुछ राजा ने
धनुष लेकर यु के लये सज-धजकर इस उ े यसे रा तेम पीछा कया क हम भगवान्को
रोक ल; पर तु रानीजी! उनक चे ा ठ क वैसी ही थी, जैसे कु े सहको रोकना
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चाह ।।३४।। शा धनुषके छू टे ए तीर से कसीक बाँह कट गयी तो कसीके पैर कटे और
कसीक गदन ही उतर गयी। ब त-से लोग तो उस रणभू मम ही सदाके लये सो गये और
ब त-से यु भू म छोड़कर भाग खड़े ए ।।३५।।
ते शा युतबाणौघैः कृ बा ङ् क धराः ।
नपेतुः धने के चदे के स य य वुः ।।३५
कामयामह एत य ीम पादरजः यः ।
कुचकुंकुमग धा ं मू ना वोढुं गदाभृतः ।।४२
ज यो यद् वा छ त पु ल तृणवी धः ।
गाव ारयतो गोपाः पाद पश महा मनः ।।४३
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे उ राध
यशी ततमोऽ यायः ।।८३।।
१. मयेमे। २. नयोद्धुं।
१. स मतां।
ना नन सूय न च च तारका
न भूजलं खं सनोऽथ वाङ् मनः ।
उपा सता भेदकृतो हर यघं
वप तो न त मु तसेवया ।।१२
त या ते द शमाङ् मघौघमष-
तीथा पदं द कृतं सु वप वयोगैः ।
उ स भ युपहताशयजीवकोशा
आपुभवद्ग तमथोऽनुगृहाण भ ान् ।।२६
ीशुक उवाच
इ यनु ा य दाशाह धृतरा ं यु ध रम् ।
स कष ह म यानामनादरणकारणम् ।
गा ं ह वा यथा या भ त यो या त शु ये ।।३१
च योपशमोऽयं वै क व भः शा च ुषा ।
द शतः सुगमो योगो धम ा ममुदावहः ।।३६
व ैषणां य दानैगृहैदारसुतैषणाम् ।
आ मलोकैषणां दे व कालेन वसृजेद ् बुधः ।
ामे य ै षणाः सव ययुध रा तपोवनम् ।।३८
वं व मु ो ा यां वै ऋ ष प ोमहामते ।
य ैदवणमु मु य नऋणोऽशरणो भव ।।४०
त म ह य मु दता न कक ः सुवाससः ।
द ाशालामुपाज मुरा ल ता व तुपाणयः ।।४५
ने मृदं गपटहशंखभेयानकादयः ।
ननृतुनटनत य तु ु वुः सूतमागधाः ।
जगुः सुक ो ग ध ः संगीतं सहभतृकाः ।।४६
ता भ कूलवलयैहारनूपुरकु डलैः ।
वलंकृता भ वबभौ द तोऽ जनसंवृतः ।।४८
प नीसंयाजावभृ यै र वा ते महषयः ।
स नू राम दे व ा यजमानपुरःसराः ।।५३
नातोऽलंकारवासां स व द योऽदा था यः ।
ततः वलंकृतो वणाना योऽ ेन पूजयत् ।।५४
वसुदेवोऽ सो ीय मनोरथमहाणवम् ।
सु द्वृतः ीतमना न दमाह करे पृशन् ।।६०
वसुदेव उवाच
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ातरीशकृतः पाशो नृणां यः नेहसं तः ।
तं यजमहं म ये शूराणाम प यो गनाम् ।।६१
इसके बाद मह षय ने प नीसंयाज नामक य ांग और अवभृथ नान अथात् य ा त-
नानस ब धी अवशेष कम कराकर वसुदेवजीको आगे करके परशुरामजीके बनाये दम—
राम दम नान कया ।।५३।। नान करनेके बाद वसुदेवजी और उनक प नय ने वंद -
जन को अपने सारे व ाभूषण दे दये तथा वयं नये व ाभूषणसे सुस जत होकर उ ह ने
ा ण से लेकर कु तकको भोजन कराया ।।५४।। तदन तर अपने भाई-ब धु , उनके
ी-पु तथा वदभ, कोसल, कु , काशी, केकय और सृंजय आ द दे श के राजा ,
सद य , ऋ वज , दे वता , मनु य , भूत , पतर और चारण को वदाईके पम ब त-सी
भट दे कर स मा नत कया। वे लोग ल मीप त भगवान् ीकृ णक अनुम त लेकर य क
शंसा करते ए अपने-अपने घर चले गये ।।५५-५६।। परी त्! उस समय राजा धृतरा ,
व र, यु ध र, भीम, अजुन, भी म पतामह, ोणाचाय, कु ती, नकुल, सहदे व, नारद,
भगवान् ासदे व तथा सरे वजन, स ब धी और बा धव अपने हतैषी ब धु यादव को
छोड़कर जानेम अ य त वरह- थाका अनुभव करने लगे। उ ह ने अ य त नेहा च से
य वं शय का आ लगन कया और बड़ी क ठनाईसे कसी कार अपने-अपने दे शको गये।
सरे लोग भी इनके साथ ही वहाँसे रवाना हो गये ।।५७-५८।। परी त्! भगवान् ीकृ ण,
बलरामजी तथा उ सेन आ दने न दबाबा एवं अ य सब गोप क ब त बड़ी-बड़ी साम य से
अचा-पूजा क ; उनका स कार कया; और वे ेम-परवश होकर ब त दन तक वह
रहे ।।५९।। वसुदेवजी अनायास ही अपने ब त बड़े मनोरथका महासागर पार कर गये थे।
उनके आन दक सीमा न थी। सभी आ मीय वजन उनके साथ थे। उ ह ने न दबाबाका हाथ
पकड़कर कहा ।।६०।।
वसुदेवजीने कहा—भाईजी! भगवान्ने मनु य के लये एक ब त बड़ा ब धन बना दया
है। उस ब धनका नाम है नेह, ेमपाश। म तो ऐसा समझता ँ क बड़े-बड़े शूरवीर और
योगी-य त भी उसे तोड़नेम असमथ ह ।।६१।।
१. यः सवा त माद् ा ०।
१. च े०। २. न योपस य च।
का त तेजः भा स ा च ा यक व ुताम् ।
यत् थैय भूभृतां भूमेवृ ग धोऽथतो भवान् ।।७
तपणं ाणनमपां दे व वं ता त सः ।
ओजः सहो बलं चे ा ग तवायो तवे र ।।८
इ यं व याणां वं दे वा तदनु हः ।
अथ त कु े दे वक सवदे वता ।
ु वाऽऽनीतं गुरोः पु मा मजा यां सु व मता ।।२७
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! वसुदेवजीके ये वचन सुनकर य वंश शरोम ण
भ व सल भगवान् ीकृ ण मुसकराने लगे। उ ह ने वनयसे झुककर मधुर वाणीसे
कहा ।।२१।।
भगवान् ीकृ णने कहा— पताजी! हम तो आपके पु ही ह। हम ल य करके आपने
यह ानका उपदे श कया है। हम आपक एक-एक बात यु यु मानते ह ।।२२।।
पताजी! आपलोग, म, भैया बलरामजी, सारे ारकावासी, स पूण चराचर जगत्—सब-के-
सब आपने जैसा कहा, वैसे ही ह, सबको प ही समझना चा हये ।।२३।। पताजी!
आ मा तो एक ही है। पर तु वह अपनेम ही गुण क सृ कर लेता है और गुण के ारा
बनाये ए पंचभूत म एक होनेपर भी अनेक, वयं काश होनेपर भी य, अपना व प
होनेपर भी अपनेसे भ , न य होनेपर भी अ न य और नगुण होनेपर भी सगुणके पम
तीत होता है ।।२४।। जैसे आकाश, वायु, अ न, जल और पृ वी—ये पंचमहाभूत अपने
काय घट, कु डल आ दम कट-अ कट, बड़े-छोटे , अ धक-थोड़े, एक और अनेक-से तीत
होते ह—पर तु वा तवम स ा पसे वे एक ही रहते ह; वैसे ही आ माम भी उपा धय के
भेदसे ही नाना वक ती त होती है। इस लये जो म ँ, वही सब ह—इस से आपका
कहना ठ क ही है ।।२५।।
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ णके इन वचन को सुनकर
वसुदेवजीने नाना व-बु छोड़ द ; वे आन दम म न होकर वाणीसे मौन और मनसे
न संक प हो गये ।।२६।। कु े ! उस समय वहाँ सवदे वमयी दे वक जी भी बैठ ई थ ।
वे ब त पहलेसे ही यह सुनकर अ य त व मत थ क ीकृ ण और बलरामजीने अपने मरे
ए गु पु को यमलोकसे वापस ला दया ।।२७।। अब उ ह अपने उन पु क याद आ गयी,
ज ह कंसने मार डाला था। उनके मरणसे दे वक जीका दय आतुर हो गया, ने से आँसू
बहने लगे। उ ह ने बड़े ही क ण वरसे ीकृ ण और बलरामजीको स बो धत करके
कहा ।।२८।।
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कृ णरामौ समा ा पु ान् कंस व ह सतान् ।
मर ती कृपणं ाह वै ल ाद ुलोचना ।।२८
दे व युवाच
राम रामा मेया मन् कृ ण योगे रे र ।
वेदाहं वां व सृजामी रावा दपू षौ ।।२९
य यांशांशांशभागेन व ो प लयोदयाः ।
भव त कल व ा मं तं वा ाहं ग त गता ।।३१
समहयामास स तौ वभू त भ-
महाहव ाभरणानुलेपनैः ।
ता बूलद पामृतभ णा द भः
वगो व ा मसमपणेन च ।।३७
इद म थ म त ाय तव योगे रे र ।
न वद य प योगेशा योगमायां कुतो वयम् ।।४४
शा य मानी शत ेश न पापान् कु नः भो ।
पुमान् य याऽऽ त ं ोदनाया वमु यते ।।४६
ीभगवानुवाच
आसन् मरीचेः षट् पु ा ऊणायां थमेऽ तरे ।
दे वाः कं जहसुव य सुतां य भतुमु तम् ।।४७
ते नम कृ य गो व दं दे वक पतरं बलम् ।
मषतां सवभूतानां ययुधाम दवौकसाम् ।।५६
१. यो ममाचाय।
ते यः ववी ण वन त म यः
ेमं लोकगु रथ शं च य छन् ।
शृ वन् दग तधवलं वयशोऽशुभ नं
गीतं सुरैनृ भरगा छनकै वदे हान् ।।२१
् वा त उ म ोकं ी यु फु लाननाशयाः ।
कैधृतांज ल भनमुः ुतपूवा तथा मुनीन् ।।२३
वृ भ या उ ष दया ा वले णः ।
न वा तदङ् ीन् ा य तदपो लोकपावनीः ।।२८
तृणपीठबृसी वेतानानीतेषूपवे य सः ।
वागतेना भन ाङ् ीन् सभाय ऽव नजे मुदा ।।३९
फलाहणोशीर शवामृता बु भ-
मृदा सुर या तुलसीकुशा बुजैः ।
आराधयामास यथोपप या
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सपयया स व ववधना धसा ।।४१
द थोऽ य त र थः कम व तचेतसाम् ।
आ मश भर ा ोऽ य युपेतगुणा मनाम् ।।४७
ुतदे वने कहा— भो! आप -अ प कृ त और जीव से परे पु षो म ह।
मुझे आपने आज ही दशन दया हो, ऐसी बात नह है। आप तो तभीसे सब लोग से मले ए
ह, जबसे आपने अपनी श य के ारा इस जगत्क रचना करके आ मस ाके पम इसम
वेश कया है ।।४४।। जैसे सोया आ पु ष व ाव थाम अ व ावश मन-ही-मन व -
जगत्क सृ कर लेता है और उसम वयं उप थत होकर अनेक प म अनेक कम करता
आ तीत होता है, वैसे ही आपने अपनेम ही अपनी मायासे जगत्क रचना कर ली है और
अब इसम वेश करके अनेक प से का शत हो रहे ह ।।४५।। लोग सवदा आपक
लीलाकथाका वण-क तन तथा आपक तमा का अचन-व दन करते ह और आपसम
आपक ही चचा करते ह, उनका दय शु हो जाता है और आप उसम का शत हो जाते
ह ।।४६।। जन लोग का च लौ कक-वै दक आ द कम क वासनासे ब हमुख हो रहा है,
उनके दयम रहनेपर भी आप उनसे ब त र ह। क तु जन लोग ने आपके गुणगानसे
अपने अ तःकरणको सद्गुणस प बना लया है, उनके लये च वृ य से अ ा होनेपर
भी आप अ य त नकट ह ।।४७।। भो! जो लोग आ मत वको जाननेवाले ह, उनके
ा अ व द वैवमवजान यसूयवः ।
गु ं मां व मा मानमचादा व य यः ।।५५
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! शरणागत-भयहारी भगवान् ीकृ णने ुतदे वक
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ाथना सुनकर अपने हाथसे उनका हाथ पकड़ लया और मुसकराते ए कहा ।।५०।।
भगवान् ीकृ णने कहा— य ुतदे व! ये बड़े-बड़े ऋ ष-मु न तुमपर अनु ह करनेके
लये ही यहाँ पधारे ह। ये अपने चरणकमल क धूलसे लोग और लोक को प व करते ए
मेरे साथ वचरण कर रहे ह ।।५१।। दे वता, पु य े और तीथ आ द तो दशन, पश, अचन
आ दके ारा धीरे-धीरे ब त दन म प व करते ह; पर तु संत पु ष अपनी से ही सबको
प व कर दे ते ह। यही नह ; दे वता आ दम जो प व करनेक श है, वह भी उ ह संत क
से ही ा त होती है ।।५२।। ुतदे व! जगत्म ा ण ज मसे ही सब ा णय से े ह।
य द वह तप या, व ा, स तोष और मेरी उपासना—मेरी भ से यु हो तब तो कहना ही
या है ।।५३।।
मुझे अपना यह चतुभुज प भी ा ण क अपे ा अ धक य नह है। य क ा ण
सववेदमय है और म सवदे वमय ँ ।।५४।। बु मनु य इस बातको न जानकर केवल मू त
आ दम ही पू यबु रखते ह और गुण म दोष नकालकर मेरे व प जगद्गु ा णका,
जो क उनका आ मा ही है, तर कार करते ह ।।५५।।
१. मर ु०।
१. ानुसा वतः। २. म ययम्।
त ोप व मृ ष भः कलाप ामवा स भः ।
परीतं णतोऽपृ छ ददमेव कु ह ।।७
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! (भगवान् सवश मान् और गुण के नधान
ह। ु तयाँ प तः सगुणका ही न पण करती ह, पर तु वचार करनेपर उनका
ता पय नगुण ही नकलता है। वचार करनेके लये ही) भगवान्ने जीव के लये बु ,
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इ य, मन और ाण क सृ क है। इनके ारा वे वे छासे अथ, धम, काम अथवा
मो का अजन कर सकते ह ( ाण के ारा जीवन-धारण, वणा द इ य के ारा
महावा य आ दका वण, मनके ारा मनन और बु के ारा न य करनेपर
ु तय के ता पय नगुण व पका सा ा कार हो सकता है। इस लये ु तयाँ सगुणका
तपादन करनेपर भी व तुतः नगुणपरक ह) ।।२।।
का तपादन करनेवाली उप नषद्का यही व प है। इसे पूवज के भी पूवज
सनका द ऋ षय ने आ म न यके ारा धारण कया है। जो भी मनु य इसे ापूवक
धारण करता है, वह ब धनके कारण सम त उपा धय —अना मभाव से मु होकर
अपने परम क याण व प परमा माको ा त हो जाता है ।।३।।
इस वषयम म तु ह एक गाथा सुनाता ँ। उस गाथाके साथ वयं भगवान्
नारायणका स ब ध है। वह गाथा दे व ष नारद और ऋ ष े नारायणका संवाद
है ।।४।।
एक समयक बात है, भगवान्के यारे भ दे व ष नारदजी व भ लोक म
वचरण करते ए सनातनऋ ष भगवान् नारायणका दशन करनेके लये बद रका म
गये ।।५।।
भगवान् नारायण मनु य के अ युदय (लौ कक क याण) और परम नः ेयस
(भगव व प अथवा मो क ा त) के लये इस भारतवषम क पके ार भसे ही
धम, ान और संयमके साथ महान् तप या कर रहे ह ।।६।।
परी त्! एक दन वे कलाप ामवासी स ऋ षय के बीचम बैठे ए थे। उस
समय नारदजीने उ ह णाम करके बड़ी न तासे यही पूछा, जो तुम मुझसे पूछ रहे
हो ।।७।।
ेत पं गतव त व य ु ं तद रम् ।
वादः सुसंवृ ः त
ु यो य शेरते ।
त हायमभूत् वं मां यमनुपृ छ स ।।१०
स दव मन वृ व य वभा यसदामनुजात्
सद भमृश यशेष मदमा मतयाऽऽ म वदः ।
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न ह वकृ त यज त कनक य तदा मतया
वकृतमनु व मदमा मतयाव सतम् ।।२६
तव प र ये चर य खलस व नकेततया
त उत पदाऽऽ म य वगण य शरो नऋतेः ।
प रवयसे पशू नव गरा वबुधान प तां-
व य कृतसौ दाः खलु पुन त न ये वमुखाः ।।२७
यह गुणा मक जगत् मनक क पनामा है। केवल यही नह , परमा मा और
जगत्से पृथक् तीत होनेवाला पु ष भी क पनामा ही है। इस कार वा तवम असत्
होनेपर भी अपने स य अ ध ान आपक स ाके कारण यह स य-सा तीत हो रहा है।
इस लये भो ा, भो य और दोन के स ब धको स करनेवाली इ याँ आ द जतना
भी जगत् है, सबको आ म ानी पु ष आ म पसे स य ही मानते ह। सोनेसे बने ए
कड़े, कु डल आ द वण प ही तो ह; इस लये उनको इस पम जाननेवाला पु ष
उ ह छोड़ता नह , वह समझता है क यह भी सोना है। इसी कार यह जगत् आ माम
ही क पत, आ मासे ही ा त है; इस लये आ म ानी पु ष इसे आ म प ही मानते
ह* ।।२६।। भगवन्! जो लोग यह समझते ह क आप सम त ा णय और पदाथ के
अ ध ान ह, सबके आधार ह और सवा मभावसे आपका भजन-सेवन करते ह, वे
मृ युको तु छ समझकर उसके सरपर लात मारते ह अथात् उसपर वजय ा त कर
लेते ह। जो लोग आपसे वमुख ह, वे चाहे जतने बड़े व ान् ह , उ ह आप कम का
तपादन करनेवाली ु तय से पशु के समान बाँध लेते ह। इसके वपरीत ज ह ने
आपके साथ ेमका स ब ध जोड़ रखा है, वे न केवल अपनेको ब क सर को भी
प व कर दे ते ह—जगत्के ब धनसे छु ड़ा दे ते ह। ऐसा सौभा य भला, आपसे वमुख
लोग को कैसे ा त हो सकता है† ।।२७।।
वजनसुता मदारधनधामधरासुरथै-
व य स त क नृणां यत आ म न सवरसे ।
इ त सदजानतां मथुनतो रतये चरतां
सुखय त को वह व वहते व नर तभगे ।।३४
दध त सकृ मन व य य आ म न न यसुखे
न पुन पासते पु षसारहरावसथान् ।।३५
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सत इदमु थतं
स द त चे नु तकहतं
भचर त व च
व च मृषा न तथोभययुक् ।
भगवन्! जैसे म से बना आ घड़ा म प ही होता है, वैसे ही सत्से बना आ
जगत् भी सत् ही है—यह बात यु संगत नह है। य क कारण और कायका नदश
ही उनके भेदका ोतक है। य द केवल भेदका नषेध करनेके लये ही ऐसा कहा जा
रहा हो तो पता और पु म, द ड और घटनाशम काय-कारण-भाव होनेपर भी वे एक
सरेसे भ ह। इस कार काय-कारणक एकता सव एक-सी नह दे खी जाती। य द
कारण-श दसे न म -कारण न लेकर केवल उपादान-कारण लया जाय—जैसे
कु डलका सोना—तो भी कह -कह कायक अस यता मा णत होती है; जैसे र सीम
साँप। यहाँ उपादान-कारणके स य होनेपर भी उसका काय सप सवथा अस य है। य द
यह कहा जाय क तीत होनेवाले सपका उपादान-कारण केवल र सी नह है, उसके
साथ अ व ाका— मका मेल भी है, तो यह समझना चा हये क अ व ा और सत्
व तुके संयोगसे ही इस जगत्क उ प ई है। इस लये जैसे र सीम तीत होनेवाला
सप म या है, वैसे ही सत् व तुम अ व ाके संयोगसे तीत होनेवाला नाम- पा मक
जगत् भी म या है। य द केवल वहारक स के लये ही जगत्क स ा अभी हो,
तो उसम कोई आप नह ; य क वह पारमा थक स य न होकर केवल ावहा रक
स य है। यह म ावहा रक जगत्म माने ए कालक से अना द है; और
अ ानीजन बना वचार कये पूव-पूवके मसे े रत होकर अ धपर परासे इसे मानते
चले आ रहे ह। ऐसी थ तम कमफलको स य बतलानेवाली ु तयाँ केवल उ ह
लोग को मम डालती ह, जो कमम जड हो रहे ह और यह नह समझते क इनका
ता पय कमफलक न यता बतलानेम नह , ब क उनक शंसा करके उन कम म
लगानेम है* ।।३६।।
व तये वक प
इ षतोऽ धपर परया
मय त भारती त
उ वृ भ थजडान् ।।३६
वदवगमी न वे भव थशुभाशुभयो-
गुण वगुणा वयां त ह दे हभृतां च गरः ।
अनुयुगम वहं सगुण गीतपर परया
वणभृतो यत वमपवगग तमनुजैः ।।४०
इ यशेषसमा नायपुराणोप नष सः ।
समुदधृ
् तः पूवजातै मयानैमहा म भः ।।४३
योऽ यो े क आ दम य नधने
योऽ जीवे रो
यः सृ ् वेदमनु व य ऋ षणा
च े पुरः शा त ताः ।
यं संप जहा यजामनुशयी
सु तः कुलायं यथा
तं कैव य नर तयो नमभयं
यायेदज ं ह रम् ।।५०
दे व ष नारदने कहा—भगवन्! आप स चदान द व प ीकृ ण ह। आपक
क त परम प व है। आप सम त ा णय के परम क याण—मो के लये कमनीय
कलावतार धारण कया करते ह। म आपको नम कार करता ँ ।।४६।।
परी त्! इस कार महा मा दे व ष नारद आ द ऋ ष भगवान् नारायणको और
उनके श य को नम कार करके वयं मेरे पता ीकृ ण ै पायनके आ मपर
गये ।।४७।। भगवान् वेद ासने उनका यथो चत स कार कया। वे आसन वीकार
करके बैठ गये, इसके बाद दे व ष नारदने जो कुछ भगवान् नारायणके मुँहसे सुना था,
वह सब कुछ मेरे पताजीको सुना दया ।।४८।। राजन्! इस कार मने तु ह बतलाया
क मन-वाणीसे अगोचर और सम त ाकृत गुण से र हत पर परमा माका वणन
ु तयाँ कस कार करती ह और उसम मनका कैसे वेश होता है? यही तो तु हारा
था ।।४९।। परी त्! भगवान् ही इस व का संक प करते ह तथा उसके आ द,
म य और अ तम थत रहते ह। वे कृ त और जीव दोन के वामी ह। उ ह ने ही
इसक सृ करके जीवके साथ इसम वेश कया है और शरीर का नमाण करके वे ही
उनका नय ण करते ह। जैसे गाढ़ न ा—सुषु तम म न पु ष अपने शरीरका
अनुस धान छोड़ दे ता है, वैसे ही भगवान्को पाकर यह जीव मायासे मु हो जाता है।
भगवान् ऐसे वशु , केवल च मा त व ह क उनम जगत्के कारण माया अथवा
कृ तका र ीभर भी अ त व नह है। वे ही वा तवम अभय- थान ह। उनका च तन
नर तर करते रहना चा हये ।।५०।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायां दशम क धे उ राध
नारदनारायणसंवादे वेद तु तनाम स ताशी ततमोऽ यायः ।।८७।।
स आह दे वं ग रशमुपाधावाशु स य स ।
योऽ पा यां गुणदोषा यामाशु तु य त कु य त ।।१५
य द व त व भो दानवे जगद्गुरौ ।
त गाशु व शर स ह तं य य तीयताम् ।।३३
न त मै णं तो ं च े स वपरी या ।
त मै चु ोध भगवान् वलन् वेन तेजसा ।।३
नै छ वम यु पथग इ त दे व कोप ह ।
शूलमु य तं ह तुमारेभे त मलोचनः ।।६
सू तकाल आस े भायाया जस मः ।
पा ह पा ह जां मृ यो र याहाजुनमातुरः ।।३६
स उप पृ य शु य भो नम कृ य महे रम् ।
द ा य ा ण सं मृ य स यं गा डीवमाददे ।।३७
न ु नो ना न ो न रामो न च केशवः ।
य य शेकुः प र ातुं कोऽ य तद वते रः ।।४१
ारेण च ानुपथेन त मः
परं१ परं यो तरन तपारम् ।
सम ुवानं समी य फा गुनः
ता डता ो पदधेऽ णी उभे ।।५२
पर तु कह भी उ ह ा णका बालक न मला। उनक त ा पूरी न हो सक । अब
उ ह ने अ नम वेश करनेका वचार कया। पर तु भगवान् ीकृ णने उ ह ऐसा करनेसे
रोकते ए कहा— ।।४५।। ‘भाई अजुन! तुम अपने आप अपना तर कार मत करो। म तु ह
ा णके सब बालक अभी दखाये दे ता ँ। आज जो लोग तु हारी न दा कर रहे ह, वे ही
फर हमलोग क नमल क तक थापना करगे’ ।।४६।।
सवश मान् भगवान् ीकृ ण इस कार समझा-बुझाकर अजुनके साथ अपने द
रथपर सवार ए और प म दशाको थान कया ।।४७।। उ ह ने सात-सात पवत वाले
सात प, सात समु और लोकालोक-पवतको लाँघकर घोर अ धकारम वेश
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कया ।।४८।।
परी त्! वह अ धकार इतना घोर था क उसम शै य, सु ीव, मेघपु प और बलाहक
नामके चार घोड़े अपना माग भूलकर इधर-उधर भटकने लगे। उ ह कुछ सूझता ही न
था ।।४९।। योगे र के भी परमे र भगवान् ीकृ णने घोड़ क यह दशा दे खकर अपने
सह -सह सूय के समान तेज वी च को आगे चलनेक आ ा द ।।५०।।
सुदशन च अपने यो तमय तेजसे वयं भगवान्के ारा उ प उस घने एवं महान्
अ धकारको चीरता आ मनके समान ती ग तसे आगे-आगे चला। उस समय वह ऐसा
जान पड़ता था, मानो भगवान् रामका बाण धनुषसे छू टकर रा स क सेनाम वेश कर रहा
हो ।।५१।।
इस कार सुदशन च के ारा बतलाये ए मागसे चलकर रथ अ धकारक अ तम
सीमापर प ँचा। उस अ धकारके पार सव े पारावारर हत ापक परम यो त जगमगा
रही थी। उसे दे खकर अजुनक आँख च धया गय और उ ह ने ववश होकर अपने ने बंद
कर लये ।।५२।।
त मन् महाभीममन तम तं
सह मूध यफणाम ण ु भः२ ।
व ाजमानं गुणो बणे णं
सताचलाभं श तक ठ ज म्३ ।।५४
वव द आ मानमन तम युतो४
ज णु त शनजातसा वसः ।
तावाह५ भूमा परमे नां भु-
ब ांजली स मतमूजया गरा ।।५८
इसके बाद भगवान्के रथने द जलरा शम वेश कया। बड़ी तेज आँधी चलनेके
कारण उस जलम बड़ी-बड़ी तरंग उठ रही थ , जो ब त ही भली मालूम होती थ । वहाँ एक
बड़ा सु दर महल था। उसम म णय के सह -सह खंभे चमक-चमककर उसक शोभा बढ़ा
रहे थे और उसके चार ओर बड़ी उ वल यो त फैल रही थी ।।५३।। उसी महलम भगवान्
शेषजी वराजमान थे। उनका शरीर अ य त भयानक और अद्भुत था। उनके सह सर थे
और येक फणपर सु दर-सु दर म णयाँ जगमगा रही थ । येक सरम दो-दो ने थे और
वे बड़े ही भयंकर थे। उनका स पूण शरीर कैलासके समान ेतवणका था और गला तथा
जीभ नीले रंगक थी ।।५४।। परी त्! अजुनने दे खा क शेषभगवान्क सुखमयी श यापर
सव ापक महान् भावशाली परम पु षो म भगवान् वराजमान ह। उनके शरीरक का त
वषाकालीन मेघके समान यामल है। अ य त सु दर पीला व धारण कये ए ह। मुखपर
स ता खेल रही है और बड़े-बड़े ने ब त ही सुहावने लगते ह ।।५५।। ब मू य म णय से
ज टत मुकुट और कु डल क का तसे सह घुँघराली अलक चमक रही ह। लंबी-लंबी,
सु दर आठ भुजाएँ ह; गलेम कौ तुभ म ण है; व ः थलपर ीव सका च है और
घुटन तक वनमाला लटक रही है ।।५६।। अजुनने दे खा क उनके न द-सुन द आ द अपने
पाषद, च -सुदशन आ द अपने मू तमान् आयुध तथा पु , ी, क त और अजा—ये चार
श याँ एवं स पूण ऋ याँ ा द लोकपाल के अधी र भगवान्क सेवा कर रही
ह ।।५७।। परी त्! भगवान् ीकृ णने अपने ही व प ीअन त भगवान्को णाम
कया। अजुन उनके दशनसे कुछ भयभीत हो गये थे; ीकृ णके बाद उ ह ने भी उनको
णाम कया और वे दोन हाथ जोड़कर खड़े हो गये। अब ा द लोकपाल के वामी भूमा
पु षने मुसकराते ए मधुर एवं ग भीर वाणीसे कहा— ।।५८।।
इ या द ौ भगवता तौ कृ णौ परमे ना ।
ओ म यान य भूमानमादाय जदारकान् ।।६१
ी भ ो मवेषा भनवयौवनका त भः ।
क का द भह यषु ड ती भ त डद् ु भः ।।२
न यं संकुलमागायां मद यु मतंगजैः ।
वलंकृतैभटै र े रथै कनको वलैः ।।३
कृ ण तु त तन वष जतकुंकुम क्
डा भषंगधुतकु तलवृ दब धः ।
सचन् मु युव त भः त ष यमानो
रेमे करेणु भ रवेभप तः परीतः ।।११
ने े नमीलय स न म ब धु-
वं रोरवी ष क णं बत च वा क ।
दा यं गता वय मवा युतपादजु ां
क वा जं पृहयसे कबरेण वोढु म् ।।१६
यरावपदा न भाषसे
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मृतसंजी वकयानया गरा ।
करवा ण कम ते यं
वद मे व गतक ठ को कल ।।२१
न चल स न वद युदारबु े
तधर च तयसे महा तमथम् ।
अ प बत वसुदेवन दनाङ्
वय मव कामयसे तनै वधतुम् ।।२२
च दे व! तु ह ब त बड़ा रोग राजय मा हो गया है। इसीसे तुम इतने ीण हो रहे हो।
अरे राम-राम, अब तुम अपनी करण से अँधेरा भी नह हटा सकते! या हमारी ही भाँ त
हमारे यारे यामसु दरक मीठ -मीठ रह यक बात भूल जानेके कारण तु हारी बोलती बंद
हो गयी है? या उसीक च तासे तुम मौन हो रहे हो? ।।१८।।
मलया नल! हमने तेरा या बगाड़ा है, जो तू हमारे दयम कामका संचार कर रहा है?
अरे तू नह जानता या? भगवान्क तरछ चतवनसे हमारा दय तो पहलेसे ही घायल हो
गया है ।।१९।।
ीमन् मेघ! तु हारे शरीरका सौ दय तो हमारे यतम-जैसा ही है। अव य ही तुम
य वंश शरोम ण भगवान्के परम यारे हो। तभी तो तुम हमारी ही भाँ त ेमपाशम बँधकर
उनका यान कर रहे हो! दे खो-दे खो! तु हारा दय च तासे भर रहा है, तुम उनके लये
अ य त उ क ठत हो रहे हो! तभी तो बार-बार उनक याद करके हमारी ही भाँ त आँसूक
धारा बहा रहे हो। यामघन! सचमुच घन यामसे नाता जोड़ना घर बैठे पीड़ा मोल लेना
है ।।२०।।
री कोयल! तेरा गला बड़ा ही सुरीला है, मीठ बोली बोलनेवाले हमारे ाण यारेके समान
ही मधुर वरसे तू बोलती है। सचमुच तेरी बोलीम सुधा घोली ई है, जो यारेके वरहसे मरे
ए े मय को जलानेवाली है। तू ही बता, इस समय हम तेरा या य कर? ।।२१।। य
पवत! तुम तो बड़े उदार वचारके हो। तुमने ही पृ वीको भी धारण कर रखा है। न तुम
हलते-डोलते हो और न कुछ कहते-सुनते हो। जान पड़ता है क कसी बड़ी बातक च ताम
म न हो रहे हो। ठ क है, ठ क है; हम समझ गय । तुम हमारी ही भाँ त चाहते हो क अपने
तन के समान ब त-से शखर पर म भी भगवान् यामसु दरके चरण-कमल धारण
क ँ ।।२२।।
कृ ण यैत च ं तभरहरणं
कालच ायुध य ।।४७
जय त जन नवासो दे वक ज मवादो
य वरपष वैद भर य धमम् ।
थरचरवृ जन नः सु मत ीमुखेन
जपुरव नतानां वधयन् कामदे वम् ।।४८
इ थं पर य नजव म रर याऽऽ -
लीलातनो तदनु प वड बना न ।
कमा ण कमकषणा न य म य
ूयादमु य पदयोरनुवृ म छन् ।।४९
भूभारराजपृतना य भ नर य
गु तैः वबा भर च तयद मेयः ।
म येऽवनेननु गतोऽ यगतं ह भारं
यद् यादवं कुलमहो अ वष मा ते ।।३
आ छ क त सु ोकां वत य ंजसा नु कौ ।
तमोऽनया त र य ती यगात् वं पदमी रः ।।७
राजोवाच
यानां वदा यानां न यं वृ ोपसे वनाम् ।
व शापः कथमभूद ् वृ णीनां कृ णचेतसाम् ।।८
य म ः स वै शापो या शो जस म ।
कथमेका मनां भेद एतत् सव वद व मे ।।९
राजन्! भगवान् सवश मान् और स यसंक प ह। उ ह ने इस कार अपने मनम न य
करके ा ण के शापके बहाने अपने ही वंशका संहार कर डाला, सबको समेटकर अपने
धामम ले गये ।।५।।
परी त्! भगवान्क वह मू त लोक के सौ दयका तर कार करनेवाली थी। उ ह ने
अपनी सौ दय-माधुरीसे सबके ने अपनी ओर आक षत कर लये थे। उनक वाणी, उनके
उपदे श परम मधुर, द ा त द थे। उनके ारा उ ह मरण करनेवाल के च उ ह ने छ न
लये थे। उनके चरणकमल लोक-सु दर थे। जसने उनके एक चरण- च का भी दशन कर
लया, उसक ब हमुखता र भाग गयी, वह कम पंचसे ऊपर उठकर उ ह क सेवाम लग
गया। उ ह ने अनायास ही पृ वीम अपनी क तका व तार कर दया, जसका बड़े-बड़े
सुक वय ने बड़ी ही सु दर भाषाम वणन कया है। वह इस लये क मेरे चले जानेके बाद लोग
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मेरी इस क तका गान, वण और मरण करके इस अ ान प अ धकारसे सुगमतया पार
हो जायँगे। इसके बाद परमै यशाली भगवान् ीकृ णने अपने धामको याण
कया ।।६-७।।
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! य वंशी बड़े ा णभ थे। उनम बड़ी उदारता भी
थी और वे अपने कुलवृ क न य- नर तर सेवा करनेवाले थे। सबसे बड़ी बात तो यह थी
क उनका च भगवान् ीकृ णम लगा रहता था; फर उनसे ा ण का अपराध कैसे बन
गया? और य ा ण ने उ ह शाप दया? ।।८।।
भगवान्के परम ेमी व वर! उस शापका कारण या था तथा या व प था? सम त
य वं शय के आ मा, वामी और यतम एकमा भगवान् ीकृ ण ही थे; फर उनम फूट
कैसे ई? सरी से दे ख तो वे सब ऋ ष अ ै तदश थे, फर उनको ऐसी भेद कैसे
ई? यह सब आप कृपा करके मुझे बतलाइये ।।९।।
ीशुक उवाच
ब द् वपुः सकलसु दरस वेशं
कमाचरन् भु व सुमंगलमा तकामः ।
आ थाय धाम रममाण उदारक तः
संहतुमै छत कुलं थतकृ यशेषः ।।१०
त चोपनीय सद स प र लानमुख यः ।
रा आवेदयांच ु ः सवयादवस धौ ।।१९
तमा वासुदेवांशं मो धम वव या ।
क वह रर त र ः बु ः प पलायनः ।
आ वह ोऽथ मल मसः करभाजनः ।।२१
खं वायुम नं स ललं मह च
योत ष स वा न दशो माद न् ।
स र समु ां हरेः शरीरं
यत् क च भूतं णमेदन यः ।।४१
भ ः परेशानुभवो वर -
र य चैष क एककालः ।
प मान य यथा तः यु-
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तु ः पु ः ुदपायोऽनुघासम् ।।४२
इ य युताङ् भजतोऽनुवृ या
भ वर भगव बोधः ।
भव त वै भागवत य राजं-
ततः परां शा तमुपै त सा ात् ।।४३
राजोवाच
अथ भागवतं ूत य म या शो नृणाम् ।
यथा चर त यद् ूते यै ल ै भगव यः ।।४४
ह र वाच
सवभूतेषु यः प येद ् भगव ावमा मनः ।
भूता न भगव या म येष भागवतो मः ।।४५
राजन्! यह आकाश, वायु, अ न, जल, पृ वी, ह-न , ाणी, दशाएँ, वृ -वन प त,
नद , समु —सब-के-सब भगवान्के शरीर ह। सभी प म वयं भगवान् कट ह। ऐसा
समझकर वह जो कोई भी उसके सामने आ जाता है—चाहे वह ाणी हो या अ ाणी—उसे
अन यभावसे—भगव ावसे णाम करता है ।।४१।। जैसे भोजन करनेवालेको येक
ासके साथ ही तु (तृ त अथवा सुख), पु (जीवनश का संचार) और ुधा- नवृ —
ये तीन एक साथ होते जाते ह; वैसे ही जो मनु य भगवान्क शरण लेकर उनका भजन
करने लगता है, उसे भजनके येक णम भगवान्के त ेम, अपने ेमा पद भुके
व पका अनुभव और उनके अ त र अ य व तु म वैरा य—इन तीन क एक साथ ही
ा त होती जाती है ।।४२।। राजन्! इस कार जो त ण एक-एक वृ के ारा
भगवान्के चरणकमल का ही भजन करता है, उसे भगवान्के त ेममयी भ , संसारके
त वैरा य और अपने यतम भगवान्के व पक फू त—ये सब अव य ही ा त होते
ह; वह भागवत हो जाता है और जब ये सब ा त हो जाते ह, तब वह वयं परम शा तका
अनुभव करने लगता है ।।४३।।
राजा न मने पूछा—योगी र! अब आप कृपा करके भगव का ल ण वणन
क जये। उसके या धम ह? और कैसा वभाव होता है? वह मनु य के साथ वहार करते
समय कैसा आचरण करता है? या बोलता है? और कन ल ण के कारण भगवान्का
यारा होता है? ।।४४।।
अब नौ योगी र मसे सरे ह रजी बोले—राजन्! आ म व प भगवान् सम त
ा णय म आ मा पसे— नय ता पसे थत ह। जो कह भी यूना धकता न दे खकर सव
प रपूण भगव स ाको ही दे खता है और साथ ही सम त ाणी और सम त पदाथ
आ म व प भगवान्म ही आधेय पसे अथवा अ य त पसे थत ह, अथात् वा तवम
इ रे तदधीनेषु बा लशेषु ष सु च ।
ेममै ीकृपोपे ा यः करो त स म यमः ।।४६
न य य वः पर इ त व े वा म न वा भदा ।
सवभूतसमः शा तः स वै भागवतो मः ।।५२
जो भगवान्से ेम, उनके भ से म ता, ःखी और अ ा नय पर कृपा तथा भगवान्से
े ष करनेवाल क उपे ा करता है, वह म यम को टका भागवत है ।।४६।।
और जो भगवान्के अचा- व ह—मू त आ दक पूजा तो ासे करता है, पर तु
भगवान्के भ या सरे लोग क वशेष सेवा-शु ूषा नह करता, वह साधारण ेणीका
भगव है ।।४७।।
जो ो -ने आ द इ य के ारा श द- प आ द वषय का हण तो करता है; पर तु
अपनी इ छाके तकूल वषय से े ष नह करता और अनुकूल वषय के मलनेपर ह षत
नह होता—उसक यह बनी रहती है क यह सब हमारे भगवान्क माया है—वह पु ष
उ म भागवत है ।।४८।।
संसारके धम ह—ज म-मृ यु, भूख- यास, म-क , भय और तृ णा। ये मशः शरीर,
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ाण, इ य, मन और बु को ा त होते ही रहते ह। जो पु ष भगवान्क मृ तम इतना
त मय रहता है क इनके बार-बार होते-जाते रहनेपर भी उनसे मो हत नह होता, पराभूत
नह होता, वह उ म भागवत है ।।४९।।
जसके मनम वषय-भोगक इ छा, कम- वृ और उनके बीज वासना का उदय नह
होता और जो एकमा भगवान् वासुदेवम ही नवास करता है, वह उ म भगव
है ।।५०।।
जनका इस शरीरम न तो स कुलम ज म, तप या आ द कमसे तथा न वण, आ म एवं
जा तसे ही अहंभाव होता है, वह न य ही भगवान्का यारा है ।।५१।।
जो धन-स प अथवा शरीर आ दम ‘यह अपना है और यह पराया’—इस कारका
भेद-भाव नह रखता, सम त पदाथ म सम व प परमा माको दे खता रहता है, समभाव
रखता है तथा कसी भी घटना अथवा संक पसे व त न होकर शा त रहता है, वह
भगवान्का उ म भ है ।।५२।।
वसृज त दयं न य य सा ा-
ररवशा भ हतोऽ यघौघनाशः ।
णयरशनया धृताङ् प ः
स भव त भागवत धान उ ः ।।५५
राजन्! बड़े-बड़े दे वता और ऋ ष-मु न भी अपने अ तःकरणको भगव मय बनाते ए
ज ह ढूँ ढ़ते रहते ह—भगवान्के ऐसे चरणकमल से आधे ण, आधे पलके लये भी जो नह
हटता, नर तर उन चरण क स ध और सेवाम ही संल न रहता है; यहाँतक क कोई वयं
उसे भुवनक रा यल मी दे तो भी वह भगव मृ तका तार नह तोड़ता, उस
रा यल मीक ओर यान ही नह दे ता; वही पु ष वा तवम भगव वै णव म अ ग य है,
सबसे े है ।।५३।।
रासलीलाके अवसरपर नृ य-ग तसे भाँ त-भाँ तके पाद- व यास करनेवाले न खल
सौ दय-माधुय- न ध भगवान्के चरण के अंगु ल-नखक म ण-च कासे जन शरणागत
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भ जन के दयका वरहज य संताप एक बार र हो चुका है, उनके दयम वह फर कैसे
आ सकता है, जैसे च ोदय होनेपर सूयका ताप नह लग सकता ।।५४।।
ववशतासे नामो चारण करनेपर भी स पूण अघ-रा शको न कर दे नेवाले वयं भगवान्
ीह र जसके दयको णभरके लये भी नह छोड़ते ह, य क उसने ेमक र सीसे
उनके चरण-कमल को बाँध रखा है, वा तवम ऐसा पु ष ही भगवान्के भ म धान
है ।।५५।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायामेकादश क धे तीयोऽ यायः ।।२।।
पातालतलमार य संकषणमुखानलः ।
दह ू व शखो व वग् वधते वायुने रतः ।।१०
सव ा मे रा वी ां कैव यम नकेतताम् ।
व व चीरवसनं स तोषं येन केन चत् ।।२५
इस लये जो परम क याणका ज ासु हो, उसे गु दे वक शरण लेनी चा हये। गु दे व ऐसे
ह , जो श द —वेद के पारदश व ान् ह , जससे वे ठ क-ठ क समझा सक; और साथ
ही पर म प र न त त व ानी भी ह , ता क अपने अनुभवके ारा ा त ई रह यक
बात को बता सक। उनका च शा त हो, वहारके पंचम वशेष वृ न हो ।।२१।।
ज ासुको चा हये क गु को ही अपना परम यतम आ मा और इ दे व माने। उनक
न कपटभावसे सेवा करे और उनके पास रहकर भागवतधमक —भगवान्को ा त
करानेवाले भ -भावके साधन क या मक श ा हण करे। इ ह साधन से सवा मा एवं
भ को अपने आ माका दान करनेवाले भगवान् स होते ह ।।२२।।
पहले शरीर, स तान आ दम मनक अनास सीखे। फर भगवान्के भ से ेम कैसा
करना चा हये—यह सीखे। इसके प ात् ा णय के त यथायो य दया, मै ी और वनयक
न कपट भावसे श ा हण करे ।।२३।।
म , जल आ दसे बा शरीरक प व ता, छल-कपट आ दके यागसे भीतरक
प व ता, अपने धमका अनु ान, सहनश , मौन, वा याय, सरलता, चय, अ हसा तथा
शीत-उ ण, सुख- ःख आ द म हष- वषादसे र हत होना सीखे ।।२४।।
सव अथात् सम त दे श, काल और व तु म चेतन पसे आ मा और नय ता पसे
ई रको दे खना, एका तसेवन, ‘यही मेरा घर है’—ऐसा भाव न रखना, गृह थ हो तो प व
व पहनना और यागी हो तो फटे -पुराने प व चथड़े, जो कुछ ार धके अनुसार मल
जाय, उसीम स तोष करना सीखे ।।२५।।
ां भागवते शा ेऽ न दाम य चा प ह ।
मनोवा कमद डं च स यं शमदमाव प ।।२६
स वं रज तम इ त वृदेकमादौ
सू ं महानह म त वद त जीवम् ।
ान याथफल पतयो श
ैव भा त सदस च तयोः परं यत् ।।३७
य जनाभचरणैषणयो भ या
चेतोमला न वधमेद ् गुणकमजा न ।
त मन् वशु उपल यत आ मत वं
सा ाद् यथामल शोः स वतृ काशः ।।४०
राजोवाच
कमयोगं वदत नः पु षो येन सं कृतः ।
वधूयेहाशु कमा ण नै क य व दते परम् ।।४१
शु चः स मुखमासीनः ाणसंयमना द भः ।
प डं वशो य सं यासकृतर ोऽचये रम् ।।४९
यह वेद परो वादा मक* है। यह कम क नवृ के लये कमका वधान करता है, जैसे
बालकको मठाई आ दका लालच दे कर औषध खलाते ह, वैसे ही यह अन भ को वग
आ दका लोभन दे कर े कमम वृ करता है ।।४४।।
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जसका अ ान नवृ नह आ है, जसक इ याँ वशम नह ह, वह य द मनमाने
ढं गसे वेदो कम का प र याग कर दे ता है, तो वह व हत कम का आचरण न करनेके
कारण वकम प अधम ही करता है। इस लये वह मृ युके बाद फर मृ युको ा त होता
है ।।४५।।
इस लये फलक अ भलाषा छोड़कर और व ा मा भगवान्को सम पत कर जो वेदो
कमका ही अनु ान करता है, उसे कम क नवृ से ा त होनेवाली ान प स मल
जाती है। जो वेद म वगा द प फलका वणन है, उसका ता पय फलक स यताम नह है,
वह तो कम म च उ प करानेके लये है ।।४६।।
राजन्! जो पु ष चाहता है क शी -से-शी मेरे व प आ माक दय- थ—म
और मेरेक क पत गाँठ खुल जाय, उसे चा हये क वह वै दक और ता क दोन ही
प तय से भगवान्क आराधना करे ।।४७।।
पहले सेवा आ दके ारा गु दे वक द ा ा त करे, फर उनके ारा अनु ानक व ध
सीखे; अपनेको भगवान्क जो मू त य लगे, अभी जान पड़े, उसीके ारा पु षो म
भगवान्क पूजा करे ।।४८।।
पहले नाना दसे शरीर और स तोष आ दसे अ तः-करणको शु करे, इसके बाद
भगवान्क मू तके सामने बैठकर ाणायाम आ दके ारा भूतशु —नाडी-शोधन करे,
त प ात् व धपूवक म , दे वता आ दके याससे अंगर ा करके भगवान्क पूजा
करे ।।४९।।
* जसम श दाथ कुछ और मालूम दे और ता पयाथ कुछ और हो—उसे परो वाद कहते
ह।
*व णुभगवान्क पूजाम अ त का योग केवल तलकालंकारम ही करना चा हये,
पूजाम नह —‘ना तैरचयेद ् व णुं न केत या महे रम।’
धम य द हतयज न मू या
नारायणो नर ऋ ष वरः शा तः ।
नै क यल णमुवाच चचार कम
योऽ ा प चा त ऋ षवय नषे वताङ् ः ।।६
ते दे वानुचरा ् वा यः ी रव पणीः ।
ग धेन मुमु तासां पौदायहत यः ।।१३
भूमेभरावतरणाय य वज मा
जातः क र य त सुरैर प करा ण ।
वादै वमोहय त य कृतोऽतदहान्
शू ान् कलौ तभुजो यह न यद ते ।।२२
वद त तेऽ यो यमुपा सत यो
गृहेषु मैथु यपरेषु चा शषः ।
अब आठव योगी र चमसजीने कहा—राजन्! वराट् पु षके मुखसे स व धान
ा ण, भुजा से स व-रज धान य, जाँघ से रज-तम- धान वै य और चरण से
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तमः धान शू क उ प ई है। उ ह क जाँघ से गृह था म, दयसे चय, व ः थलसे
वान थ और म तकसे सं यास—ये चार आ म कट ए ह। इन चार वण और आ म के
ज मदाता वयं भगवान् ही ह। वही इनके वामी, नय ता और आ मा भी ह। इस लये इन
वण और आ मम रहनेवाला जो मनु य भगवान्का भजन नह करता, ब क उलटा उनका
अनादर करता है, वह अपने थान, वण, आ म और मनु य-यो नसे भी युत हो जाता है;
उसका अधःपतन हो जाता है ।।२-३।। ब त-सी याँ और शू आ द भगवान्क कथा
और उनके नामक तन आ दसे कुछ र पड़ गये ह। वे आप-जैसे भगव क दयाके पा
ह। आपलोग उ ह कथा-क तनक सु वधा दे कर उनका उ ार कर ।।४।। ा ण, य
और वै य ज मसे, वेदा- ययनसे तथा य ोपवीत आ द सं कार से भगवान्के चरण के
नकटतक प ँच चुके ह। फर भी वे वेद का असली ता पय न समझकर अथवादम लगकर
मो हत हो जाते ह ।।५।। उ ह कमका रह य मालूम नह है। मूख होनेपर भी वे अपनेको
प डत मानते ह और अ भमानम अकड़े रहते ह। वे मीठ -मीठ बात म भूल जाते ह और
केवल व तु-शू य श द-माधुरीके मोहम पड़कर चटक ली-भड़क ली बात कहा करते ह ।।६।।
रजोगुणक अ धकताके कारण उनके संक प बड़े घोर होते ह। कामना क तो सीमा ही
नह रहती, उनका ोध भी ऐसा होता है जैसे साँपका, बनावट और घमंडसे उ ह ेम होता
है। वे पापीलोग भगवान्के यारे भ क हँसी उड़ाया करते ह ।।७।। वे मूख बड़े-बूढ़ क
नह , य क उपासना करते ह। यही नह , वे पर पर इकट् ठे होकर उस घर-गृह थीके
स ब धम ही बड़े-बड़े मनसूबे बाँधते ह, जहाँका सबसे बड़ा सुख ी-सहवासम ही सी मत
है। वे य द कभी य भी करते ह तो अ -दान नह करते, व धका उ लंघन करते और
द णातक नह दे ते। वे कमका रह य न जाननेवाले मूख केवल अपनी जीभको स तु करने
और पेटक भूख मटाने—शरीरको पु करनेके लये बेचारे पशु क ह या करते ह ।।८।।
धन-वैभव, कुलीनता, व ा, दान, सौ दय, बल और कम आ दके घमंडसे अंधे हो जाते ह
तथा वे उन भगव ेमी संत तथा ई रका भी अपमान करते रहते ह ।।९।। राजन्! वेद ने
इस बातको बार-बार हराया है क भगवान् आकाशके समान न य- नर तर सम त
शरीरधा रय म थत ह। वे ही अपने आ मा और यतम ह। पर तु वे मूख इस वेदवाणीको
तो सुनते ही नह और केवल बड़े-बड़े मनोरथ क बात आपसम कहते-सुनते रहते ह ।।१०।।
(वेद व धके पम ऐसे ही कम के करनेक आ ा दे ता है क जनम मनु यक वाभा वक
वृ नह होती।) संसारम दे खा जाता है क मैथुन, मांस और म क ओर ाणीक
वाभा वक वृ त हो जाती है। तब उसे उसम वृ करनेके लये वधान तो हो ही नह
सकता। ऐसी थ तम ववाह, य और सौ ाम ण य के ारा ही जो उनके सेवनक
व था द गयी है, उसका अथ है लोग क उ छृ ं खल वृ का नय ण, उनका मयादाम
थापन। वा तवम उनक ओरसे लोग को हटाना ही ु तको अभी है ।।११।। धनका
एकमा फल है धम; य क धमसे ही परम-त वका ान और उसक न ा—अपरो
अनुभू त स होती है और न ाम ही परम शा त है। पर तु यह कतने खेदक बात है क
लोग उस धनका उपयोग घर-गृह थीके वाथ म या कामभोगम ही करते ह और यह नह
यज यसृ ा वधानद णं
वृ यै परं न त पशूनत दः ।।८
या वभू या भजनेन व या
यागेन पेण बलेन कमणा ।
जात मयेना ध धयः सहे रान्
सतोऽवम य त ह र यान् खलाः ।।९
य वा सु यजसुरे सतरा यल म
ध म आयवचसा यदगादर यम् ।
क लयुगम भगवान्का ी व ह होता है कृ ण-वण—काले रंगका। जैसे नीलम म णमसे
उ वल का तधारा नकलती रहती है, वैसे ही उनके अंगक छटा भी उ वल होती है। वे
दय आ द अंग, कौ तुभ आ द उपांग, सुदशन आ द अ और सुन द भृ त पाषद से
संयु रहते ह। क लयुगम े बु स प पु ष ऐसे य के ारा उनक आराधना करते ह
जनम नाम, गुण, लीला आ दके क तनक धानता रहती है ।।३२।। वे लोग भगवान्क
तु त इस कार करते ह—‘ भो! आप शरणागत र क ह। आपके चरणार व द सदा-सवदा
यान करनेयो य, माया-मोहके कारण होनेवाले सांसा रक पराजय का अ त कर दे नेवाले तथा
भ क सम त अभी व तु का दान करनेवाले कामधेनु व प ह। वे तीथ को भी तीथ
बनानेवाले वयं परम तीथ व प ह; शव, ा आ द बड़े-बड़े दे वता उ ह नम कार करते ह
और चाहे जो कोई उनक शरणम आ जाय उसे वीकार कर लेते ह। सेवक क सम त आ त
और वप के नाशक तथा संसार-सागरसे पार जानेके लये जहाज ह। महापु ष! म आपके
उ ह चरणार व द क व दना करता ँ ।।३३।। भगवन्! आपके चरणकमल क म हमा कौन
कहे? रामावतारम अपने पता दशरथजीके वचन से दे वता के लये भी वांछनीय और
यज रा य-ल मीको छोड़कर आपके चरण-कमल वन-वन घूमते फरे! सचमुच आप
धम न ताक सीमा ह। और महापु ष! अपनी ेयसी सीताजीके चाहनेपर जान-बूझकर
आपके चरणकमल मायामृगके पीछे दौड़ते रहे। सचमुच आप ेमक सीमा ह। भो! म
आपके उ ह चरणार व द क व दना करता ँ’ ।।३४।।
वपादमूलं भजतः यय
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य ा यभाव य ह रः परेशः ।
वकम य चो प ततं कथं चद्
धुनो त सव द स व ः ।।४२
नारद उवाच
धमान् भागवता न थं ु वाथ म थले रः ।
जाय तेयान् मुनीन् ीतः सोपा यायो पूजयत् ।।४३
इ ोम भगवाना द या वसवोऽ नौ ।
ऋभवोऽ रसो ा व े सा या दे वताः ।।२
ारकामुपसंज मुः सव कृ ण द वः ।
वपुषा येन भगवान् नरलोकमनोरमः ।
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यशो वतेने लोकेषु सवलोकमलापहम् ।।४
न योतगाव इव य य वशे भव त
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ादय तनुभृतो मथुर मानाः ।
काल य ते कृ तपू षयोः पर य
शं न तनोतु चरणः पु षो म य ।।१४
अ या स हेतु दय थ तसंयमाना-
म जीवमहताम प कालमा ः ।
सोऽयं णा भर खलापचये वृ ः
कालो गभीररय उ मपू ष वम् ।।१५
मायावलोकलवद शतभावहा र-
ूम डल हतसौरतम शौ डैः ।
प य तु षोडशसह मनंगबाणै-
य ये यं वम थतुं करणैन व ः ।।१८
व तवामृतकथोदवहा लो याः
पादावनेजस रतः शमला न ह तुम् ।
आनु वं ु त भरङ् जमंगस ै -
तीथ यं शु चषद त उप पृश त ।।१९
बादराय ण वाच
इ य भ ू य वबुधैः सेशः शतधृ तह रम् ।
अ यभाषत गो व दं ण या बरमा तः ।।२०
ोवाच
भूमेभारावताराय पुरा व ा पतः भो ।
वम मा भरशेषा मं त थैवोपपा दतम् ।।२१
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धम था पतः स सु स यस धेषु वै वया ।
क त द ु व ता सवलोकमलापहा ।।२२
य वंशेऽवतीण य भवतः पु षो म ।
शर छतं तीताय पंच वशा धकं भो ।।२५
मर तः क तय त ते कृता न ग दता न च ।
ग यु मते ण वे ल य ृलोक वड बनम् ।।४९
ीशुक उवाच
एवं व ा पतो राजन् भगवान् दे वक सुतः ।
एका तनं यं भृ यमु वं समभाषत ।।५०
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! जब उ वजीने दे वक न दन भगवान्
ीकृ णसे इस कार ाथना क , तब उ ह ने अपने अन य ेमी सखा एवं सेवक
स य य ते व श आ मन आ मनोऽ यं
व ारमीश वबुधे व प नानुच े ।
सव वमो हत धय तव माययेमे
ादय तनुभृतो ब हरथभावाः ।।१७
अवधूतं जं कं च चर तमकुतोभयम् ।
क व नरी य त णं य ः प छ धम वत् ।।२५
य वाच
कुतो बु रयं कतुः सु वशारदा ।
यामासा भवाँ लोकं व ां र त बालवत् ।।२६
वं तु क पः क वद ः सुभगोऽमृतभाषणः ।
न कता नेहसे क च जडो म पशाचवत् ।।२८
पृ थवी वायुराकाशमापोऽ न मा र वः ।
कपोतोऽजगरः स धुः पतंगो मधुकृद् गजः ।।३३
अ त हत थरजंगमेषु
ा मभावेन सम वयेन ।
पृ वीके ही वकार पवत और वृ से मने यह श ा हण क है क जैसे उनक सारी
चे ाएँ सदा-सवदा सर के हतके लये ही होती ह, ब क य कहना चा हये क उनका ज म
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ही एकमा सर का हत करनेके लये ही आ है, साधु पु षको चा हये क उनक श यता
वीकार करके उनसे परोपकारक श ा हण करे ।।३८।।
मने शरीरके भीतर रहनेवाले वायु— ाणवायुसे यह श ा हण क है क जैसे वह
आहारमा क इ छा रखता है और उसक ा तसे ही स तु हो जाता है, वैसे ही साधकको
भी चा हये क जतनेसे जीवन- नवाह हो जाय, उतना भोजन कर ले। इ य को तृ त
करनेके लये ब त-से वषय न चाहे। सं ेपम उतने ही वषय का उपयोग करना चा हये
जनसे बु वकृत न हो, मन चंचल न हो और वाणी थक बात म न लग जाय ।।३९।।
शरीरके बाहर रहनेवाले वायुसे मने यह सीखा है क जैसे वायुको अनेक थान म जाना
पड़ता है, पर तु वह कह भी आस नह होता, कसीका भी गुण-दोष नह अपनाता, वैसे
ही साधक पु ष भी आव यकता होनेपर व भ कारके धम और वभाववाले वषय म
जाय, पर तु अपने ल यपर थर रहे। कसीके गुण या दोषक ओर झुक न जाय, कसीसे
आस या े ष न कर बैठे ।।४०।। ग ध वायुका गुण नह , पृ वीका गुण है। पर तु वायुको
ग धका वहन करना पड़ता है। ऐसा करनेपर भी वायु शु ही रहता है, ग धसे उसका स पक
नह होता। वैसे ही साधकका जबतक इस पा थव शरीरसे स ब ध है, तबतक उसे इसक
ा ध-पीड़ा और भूख- यास आ दका भी वहन करना पड़ता है। पर तु अपनेको शरीर नह ,
आ माके पम दे खनेवाला साधक शरीर और उसके गुण का आ य होनेपर भी उनसे
सवथा न ल त रहता है ।।४१।।
राजन्! जतने भी घट-मठ आ द पदाथ ह, वे चाहे चल ह या अचल, उनके कारण भ -
भ तीत होनेपर भी वा तवम आकाश एक और अप र छ (अख ड) ही है। वैसे ही
चर-अचर जतने भी सू म- थूल शरीर ह, उनम आ मा पसे सव थत होनेके कारण
सभीम है। साधकको चा हये क सूतके म नय म ा त सूतके समान आ माको अख ड
और असंग पसे दे ख।े वह इतना व तृत है क उसक तुलना कुछ-कुछ आकाशसे ही क
जा सकती है। इस लये साधकको आ माक आकाश पताक भावना करनी चा हये ।।४२।।
आग लगती है, पानी बरसता है, अ आ द पैदा होते और न होते ह, वायुक ेरणासे बादल
आ द आते और चले जाते ह; यह सब होनेपर भी आकाश अछू ता रहता है। आकाशक
से यह सब कुछ है ही नह । इसी कार भूत, वतमान और भ व यके च करम न जाने
कन- कन नाम प क सृ और लय होते ह; पर तु आ माके साथ उनका कोई सं पश
नह है ।।४३।।
ा या व छे दमसंगमा मनो
मु ननभ वं वतत य भावयेत् ।।४२
ओजःसहोबलयुतं ब द् दे हमकमकम् ।
शयानो वीत न नेहत
े े यवान प ।।४
यो ष र याभरणा बरा द-
ेषु मायार चतेषु मूढः ।
लो भता मा पभोगबु या
पतंगव य त न ः ।।८
ना धग छे त् यं ा ः क ह च मृ युमा मनः ।
बला धकैः स ह येत गजैर यैगजो यथा ।।१४
यद थ भ न मतवंशवं य-
थूणं वचा रोमनखैः पन म् ।
र व ारमगारमेतद्
व मू पूण म पै त का या ।।३३
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वदे हानां पुरे म हमेकैव मूढधीः ।
या य म छ यस य मादा मदात् कामम युतात् ।।३४
अ व श ममं त या उपदे शम र दम ।
लोकाननुचर ेताँ लोकत व व व सया ।।९
तदै वमा म यव च ो
न वेद क चद् ब हर तरं वा ।
यथेषुकारो नृप त ज त-
मषौ गता मा न ददश पा ।।१३
यथोणना भ दया णा स त य व तः ।
तया व य भूय तां स येवं महे रः ।।२१
दे हो गु मम वर ववेकहेत-ु
वा ते सकृ मव धनः स दे हः
सृ ् वा य बीजमवसीद त वृ धमा ।।२६
ज ै कतोऽमुमपकष त क ह तषा
श ोऽ यत वगुदरं वणं कुत त् ।
ाणोऽ यत पल क् व च कमश -
ब यः सप य इव गेहप त लुन त ।।२७
ल वा सु लभ मदं ब स भवा ते
मानु यमथदम न यमपीह धीरः ।
तूण यतेत न पतेदनुमृ यु याव-
ः ेयसाय वषयः खलु सवतः यात् ।।२९
वैशारद सा त वशु बु -
धुनो त मायां गुणस सूताम् ।
गुणां स द यदा ममेतत्
वयं च शा य यस मद् यथा नः ।।१३
इ ् वेह दे वता य ैः वल कं या त या कः ।
भुंजीत दे वव भोगान् द ान् नजा जतान् ।।२३
अथ ब य मु य वैल यं वदा म ते ।
व ध मणो तात थतयोरेकध म ण ।।५
सुपणावेतौ स शौ सखायौ
य छयैतौ कृतनीडौ च वृ े ।
एक तयोः खाद त प पला -
म यो नर ोऽ प बलेन भूयान् ।।६
भगवान् ीकृ णने कहा— यारे उ व! आ मा ब है या मु है, इस कारक
ा या या वहार मेरे अधीन रहनेवाले स वा द गुण क उपा धसे ही होता है। व तुतः—
त व से नह । सभी गुण माया-मूलक ह—इ जाल ह—जा के खेलके समान ह। इस लये
न मेरा मो है, न तो मेरा ब धन ही है ।।१।। जैसे व बु का ववत है—उसम बना ए
ही भासता है— म या है, वैसे ही शोक-मोह, सुख- ःख, शरीरक उ प और मृ यु—यह
सब संसारका बखेड़ा माया (अ व ा) के कारण तीत होनेपर भी वा त वक नह है ।।२।।
उ व! शरीरधा रय को मु का अनुभव करानेवाली आ म व ा और ब धनका अनुभव
करानेवाली अ व ा—ये दोन ही मेरी अना द श याँ ह। मेरी मायासे ही इनक रचना ई
है। इनका कोई वा त वक अ त व नह है ।।३।। भाई! तुम तो वयं बड़े बु मान् हो, वचार
करो—जीव तो एक ही है। वह वहारके लये ही मेरे अंशके पम क पत आ है, व तुतः
मेरा व प ही है। आ म ानसे स प होनेपर उसे मु कहते ह और आ माका ान न
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होनेसे ब । और यह अ ान अना द होनेसे ब धन भी अना द कहलाता है ।।४।। इस कार
मुझ एक ही धम म रहनेपर भी जो शोक और आन द प व धमवाले जान पड़ते ह, उन
ब और मु जीवका भेद म बतलाता ँ ।।५।। (वह भेद दो कारका है—एक तो
न यमु ई रसे जीवका भेद, और सरा मु -ब जीवका भेद। पहला सुनो)—जीव और
ई र ब और मु के भेदसे भ - भ होनेपर भी एक ही शरीरम नय ता और नय तके
पसे थत ह। ऐसा समझो क शरीर एक वृ है, इसम दयका घ सला बनाकर जीव और
ई र नामके दो प ी रहते ह। वे दोन चेतन होनेके कारण समान ह और कभी न बछु ड़नेके
कारण सखा ह। इनके नवास करनेका कारण केवल लीला ही है। इतनी समानता होनेपर भी
जीव तो शरीर प वृ के फल सुख- ःख आ द भोगता है, पर तु ई र उ ह न भोगकर
कमफल सुख- ःख आ दसे असंग और उनका सा ीमा रहता है। अभो ा होनेपर भी
ई रक यह वल णता है क वह ान, ऐ य, आन द और साम य आ दम भो ा जीवसे
बढ़कर है ।।६।। साथ ही एक यह भी वल णता है क अभो ा ई र तो अपने वा त वक
व प और इसके अ त र जगत्को भी जानता है, पर तु भो ा जीव न अपने वा त वक
पको जानता है और न अपनेसे अ त र को! इन दोन म जीव तो अ व ासे यु होनेके
कारण न यब है और ई र व ा व प होनेके कारण न यमु है ।।७।। यारे उ व!
ानस प पु ष भी मु ही है; जैसे व टू ट जानेपर जगा आ पु ष व के मयमाण
शरीरसे कोई स ब ध नह रखता, वैसे ही ानी पु ष सू म और थूल-शरीरम रहनेपर भी
उनसे कसी कारका स ब ध नह रखता, पर तु अ ानी पु ष वा तवम शरीरसे कोई
स ब ध न रखनेपर भी अ ानके कारण शरीरम ही थत रहता है, जैसे व दे खनेवाला
पु ष व दे खते समय वा क शरीरम बँध जाता है ।।८।। वहारा दम इ याँ श द-
पशा द वषय को हण करती ह; य क यह तो नयम ही है क गुण ही गुणको हण
करते ह, आ मा नह । इस लये जसने अपने न वकार आ म व पको समझ लया है, वह
उन वषय के हण- यागम कसी कारका अ भमान नह करता ।।९।। यह शरीर ार धके
अधीन है। इससे शारी रक और मान सक जतने भी कम होते ह, सब गुण क ेरणासे ही
होते ह। अ ानी पु ष झूठमूठ अपनेको उन हण- याग आ द कम का कता मान बैठता है
और इसी अ भमानके कारण वह बँध जाता है ।।१०।।
आ मानम यं च स वेद व ा-
न प पलादो न तु प पलादः ।
योऽ व या युक् स तु न यब ो
व ामयो यः स तु न यमु ः ।।७
य यां न मे पावनमंग कम
थ यु व ाण नरोधम य ।
लीलावतारे सतज म वा याद्
व यां गरं तां बभृया धीरः ।।२०
उन त व मु पु ष के शरीरको चाहे हसक लोग पीड़ा प ँचाय और चाहे कभी कोई
दै वयोगसे पूजा करने लगे—वे न तो कसीके सतानेसे ःखी होते ह और न पूजा करनेसे
सुखी ।।१५।। जो समदश महा मा गुण और दोषक भेद से ऊपर उठ गये ह, वे न तो
अ छे काम करनेवालेक तु त करते ह और न बुरे काम करनेवालेक न दा; न वे कसीक
अ छ बात सुनकर उसक सराहना करते ह और न बुरी बात सुनकर कसीको झड़कते ही
ह ।।१६।। जीव मु पु ष न तो कुछ भला या बुरा काम करते ह, न कुछ भला या बुरा
कहते ह और न सोचते ही ह। वे वहारम अपनी समान वृ रखकर आ मान दम ही म न
रहते ह और जडके समान मानो कोई मूख हो इस कार वचरण करते रहते ह ।।१७।।
यारे उ व! जो पु ष वेद का तो पारगामी व ान् हो, पर तु पर के ानसे शू य हो,
उसके प र मका कोई फल नह है वह तो वैसा ही है, जैसे बना धक गायका
पालनेवाला ।।१८।। ध न दे नेवाली गाय, भचा रणी ी, पराधीन शरीर, पु ,
स पा के ा त होनेपर भी दान न कया आ धन और मेरे गुण से र हत वाणी थ है। इन
व तु क रखवाली करनेवाला ःख-पर- ःख ही भोगता रहता है ।।१९।। इस लये उ व!
जस वाणीम जगत्क उ प , थ त और लय प मेरी लोक-पावन लीलाका वणन न हो
और लीलावतार म भी मेरे लोक य राम-कृ णा द अवतार का जसम यशोगान न हो, वह
वाणी व या है। बु मान् पु षको चा हये क ऐसी वाणीका उ चारण एवं वण न
करे ।।२०।।
एत मे पु षा य लोका य जग भो ।
णतायानुर ाय प ाय च क यताम् ।।२७
कामैरहतधीदा तो मृ ः शु चर कचनः ।
अनीहो मतभुक् शा तः थरो म छरणो मु नः ।।३०
म ल म जनदशन पशनाचनम् ।
प रचया तु तः गुणकमानुक तनम् ।।३४
भगवान् ीकृ णने कहा— यारे उ व! मेरा भ कृपाक मू त होता है। वह कसी भी
ाणीसे वैरभाव नह रखता और घोर-से-घोर ःख भी स तापूवक सहता है। उसके
जीवनका सार है स य, और उसके मनम कसी कारक पापवासना कभी नह आती। वह
समदश और सबका भला करनेवाला होता है ।।२९।। उसक बु कामना से कलु षत
नह होती। वह संयमी, मधुर वभाव और प व होता है। सं ह-प र हसे सवथा र रहता है।
कसी भी व तुके लये वह कोई चे ा नह करता। प र मत भोजन करता है और शा त रहता
है। उसक बु थर होती है। उसे केवल मेरा ही भरोसा होता है और वह आ मत वके
च तनम सदा संल न रहता है ।।३०।। वह मादर हत, ग भीर वभाव और धैयवान् होता है।
भूख- यास, शोक-मोह और ज म-मृ यु—ये छह उसके वशम रहते ह। वह वयं तो कभी
कसीसे कसी कारका स मान नह चाहता, पर तु सर का स मान करता रहता है। मेरे
स ब धक बात सर को समझानेम बड़ा नपुण होता है और सभीके साथ म ताका
वहार करता है। उसके दयम क णा भरी होती है। मेरे त वका उसे यथाथ ान होता
म ज मकमकथनं मम पवानुमोदनम् ।
गीतता डववा द गो ी भमद्गृहो सवः ।।३६
ता ना वदन् म यनुषंगब -
धयः वमा मानमद तथेदम् ।
यथा समाधौ मुनयोऽ धतोये
न ः व ा इव नाम पे ।।१२
एवं ग दः कम ग त वसग
ाणो रसो क् पशः ु त ।
संक प व ानमथा भमानः
सू ं रजःस वतमो वकारः ।।१९
य म दं ोतमशेषमोतं
पटो यथा त तु वतानसं थः ।
य एष संसारत ः पुराणः
कमा मकः पु पफले सूते ।।२१
अद त चैकं फलम य गृ ा
ामेचरा एकमर यवासाः ।
हंसा य एकं ब प म यै-
मायामयं वेद स वेद वेदम् ।।२३
एवं गु पासनयैकभ या
व ाकुठारेण शतेन धीरः ।
ववृ य जीवाशयम म ः
स प चा मानमथ यजा म् ।।२४
इस संसारवृ के दो बीज ह—पाप और पु य। असं य वासनाएँ जड़ ह और तीन गुण
तने ह। पाँच भूत इसक मोट -मोट धान शाखाएँ ह और श दा द पाँच वषय रस ह, यारह
इ याँ शाखा ह तथा जीव और ई र—दो प ी इसम घ सला बनाकर नवास करते ह। इस
वृ म वात, प और कफ प तीन तरहक छाल है। इसम दो तरहके फल लगते ह—सुख
और ःख। यह वशाल वृ सूयम डलतक फैला आ है (इस सूयम डलका भेदन कर
जानेवाले मु पु ष फर संसार-च म नह पड़ते) ।।२२।। जो गृह थ श द- प-रस आ द
वषय म फँसे ए ह, वे कामनासे भरे ए होनेके कारण गीधके समान ह। वे इस वृ का
ःख प फल भोगते ह, य क वे अनेक कारके कम के ब धनम फँसे रहते ह। जो
अर यवासी परमहंस वषय से वर ह, वे इस वृ म राजहंसके समान ह और वे इसका
सुख प फल भोगते ह। य उ व! वा तवम म एक ही ँ। यह मेरा जो अनेक कारका
प है, वह तो केवल मायामय है। जो इस बातको गु के ारा समझ लेता है, वही
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वा तवम सम त वेद का रह य जानता है ।।२३।। अतः उ व! तुम इस कार गु दे वक
उपासना प अन य भ के ारा अपने ानक कु हाड़ीको तीखी कर लो और उसके ारा
धैय एवं सावधानीसे जीवभावको काट डालो। फर परमा म व प होकर उस वृ प
अ को भी छोड़ दो और अपने अख ड व पम ही थत हो रहो ।।२४।। *
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायामेकादश क धे ादशोऽ यायः ।।१२।।
* ई र अपनी मायाके ारा पंच पसे तीत हो रहा है। इस पंचके अ यासके कारण
ही जीव को अना द अ व ासे कतापन आ दक ा त होती है। फर ‘यह करो, यह मत
करो’ इस कारके व ध- नषेधका अ धकार होता है। तब ‘अ तःकरणक शु के लये कम
करो’—यह बात कही जाती है। जब अ तःकरण शु हो जाता है, तब कमस ब धी रा ह
मटानेके लये यह बात कही जाती है क भ म व ेप डालनेवाले कम के त आदरभाव
छोड़कर ढ़ व ाससे भजन करो। त व ान हो जानेपर कुछ भी कत शेष नह रह जाता।
यही इस संगका अ भ ाय है।
आगमोऽपः जा दे शः कालः कम च ज म च ।
यानं म ोऽथ सं कारो दशैते गुणहेतवः ।।४
वेणुसंघषजो व द वा शा य त त नम् ।
एवं गुण ययजो दे हः शा य त त यः ।।७
भगवान् ीकृ ण कहते ह— य उ व! स व, रज और तम—ये तीन बु ( कृ त)
के गुण ह, आ माके नह । स वके ारा रज और तम—इन दो गुण पर वजय ा त कर लेनी
चा हये। तदन तर स वगुणक शा तवृ के ारा उसक दया आ द वृ य को भी शा त कर
दे ना चा हये ।।१।। जब स वगुणक वृ होती है, तभी जीवको मेरे भ प वधमक
ा त होती है। नर तर सा वक व तु का सेवन करनेसे ही स वगुणक वृ होती है और
तब मेरे भ प वधमम वृ होने लगती है ।।२।। जस धमके पालनसे स वगुणक
वृ हो, वही सबसे े है। वह धम रजोगुण और तमोगुणको न कर दे ता है। जब वे दोन
न हो जाते ह, तब उ ह के कारण होनेवाला अधम भी शी ही मट जाता है ।।३।। शा ,
जल, जाजन, दे श, समय, कम, ज म, यान, म और सं कार—ये दस व तुएँ य द
सा वक ह तो स वगुणक , राज सक ह तो रजोगुणक और ताम सक ह तो तमोगुणक
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वृ करती ह ।।४।। इनमसे शा महा मा जनक शंसा करते ह, वे सा वक ह,
जनक न दा करते ह, वे ताम सक ह और जनक उपे ा करते ह, वे व तुएँ राज सक
ह ।।५।।
जबतक अपने आ माका सा ा कार तथा थूल-सू म शरीर और उनके कारण तीन
गुण क नवृ न हो, तबतक मनु यको चा हये क स वगुणक वृ के लये सा वक शा
आ दका ही सेवन करे; य क उससे धमक वृ होती है और धमक वृ से अ तःकरण
शु होकर आ मत वका ान होता है ।।६।। बाँस क रगड़से आग पैदा होती है और वह
उनके सारे वनको जलाकर शा त हो जाती है। वैसे ही यह शरीर गुण के वैष यसे उ प आ
है। वचार ारा म थन करनेपर इससे ाना न व लत होती है और वह सम त शरीर एवं
गुण को भ म करके वयं भी शा त हो जाती है ।।७।।
उ व उवाच
वद त म याः ायेण वषयान् पदमापदाम् ।
तथा प भुंजते कृ ण तत् कथं खराजवत् ।।८
ीभगवानुवाच
अह म य यथाबु ः म य यथा द ।
उ सप त रजो घोरं ततो वैका रकं मनः ।।९
जा त् व ः सुषु तं च गुणतो बु वृ यः ।
तासां वल णो जीवः सा वेन व न तः ।।२७
ततः त नव य नवृ तृ ण-
तू ण भवे जसुखानुभवो नरीहः ।
सं यते व च यद दमव तुबु या
य ं माय न भवेत् मृ तरा नपातात् ।।३५
इ त मे छ स दे हा मुनयः सनकादयः ।
सभाज य वा परया भ यागृणत सं तवैः ।।४१
अ कचन य दा त य शा त य समचेतसः ।
मया स तु मनसः सवाः सुखमया दशः ।।१३
न पारमे ं न महे ध यं
न सावभौमं न रसा धप यम् ।
न योग स रपुनभवं वा
म य पता मे छ त मद् वना यत् ।।१४
काल वम ं पर च ा भ ता ।
अ यका बु वषाद नां त भोऽपराजयः ।।८
मह या म न यः सू े धारये म य मानसम् ।
ाका यं पारमे ं मे व दतेऽ ज मनः ।।१४
े पपतौ च ं शु े धममये म य ।
त
धारय वेततां या त षडू मर हतो नरः ।।१८
च ु व र संयो य व ारम प च ु ष ।
मां त मनसा यायन् व ं प य त सू म क् ।।२०
क ा व ा व ा च भवता मधुसूदन ।
य े महीतले दे व वन ं कः व य त ।।६
त वं२ नः सवधम धम व ल णः ।
यथा य य वधीयेत तथा वणय मे भो ।।७
ीशुक उवाच
इ थं वभृ यमु येन पृ ः स भगवान् ह रः ।
ीतः ेमाय म यानां धमानाह सनातनान् ।।८
उ वजीने कहा—कमलनयन ीकृ ण! आपने पहले वणा म-धमका पालन
करनेवाल के लये और सामा यतः मनु यमा के लये उस धमका उपदे श कया था, जससे
आपक भ ा त होती है। अब आप कृपा करके यह बतलाइये क मनु य कस कारसे
अपने धमका अनु ान करे, जससे आपके चरण म उसे भ ा त हो जाय ।।१-२।। भो!
महाबा माधव! पहले आपने हंस पसे अवतार हण करके ाजीको अपने परमधमका
उपदे श कया था ।।३।। रपुदमन! ब त समय बीत जानेके कारण वह इस समय म यलोकम
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ायः नह -सा रह गया है, य क आपको उसका उपदे श कये ब त दन हो गये ह ।।४।।
अ युत! पृ वीम तथा ाक उस सभाम भी, जहाँ स पूण वेद मू तमान् होकर वराजमान
रहते ह, आपके अ त र ऐसा कोई भी नह है, जो आपके इस धमका वचन, व न
अथवा संर ण कर सके ।।५।।
इस धमके वतक, र क और उपदे शक आप ही ह। आपने पहले जैसे मधु दै यको
मारकर वेद क र ा क थी, वैसे ही अपने धमक भी र ा क जये। वयं काश परमा मन्!
जब आप पृ वीतलसे अपनी लीला संवरण कर लगे, तब तो इस धमका लोप ही हो जायगा
तो फर उसे कौन बतावेगा? ।।६।। आप सम त धम के मम ह; इस लये भो! आप उस
धमका वणन क जये, जो आपक भ ा त करानेवाला है। और यह भी बतलाइये क
कसके लये उसका कैसा वधान है ।।७।।
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! जब इस कार भ शरोम ण उ वजीने
कया, तब भगवान् ीकृ णने अ य त स होकर ा णय के क याणके लये उ ह सनातन
धम का उपदे श दया ।।८।।
ीभगवानुवाच
ध य एष तव ो नैः ेयसकरो नृणाम् ।
वणा माचारवतां तमु व नबोध मे ।।९
गृहा मो जघनतो चय दो मम ।
व ः थानाद्४ वने वासो यासः शीष ण सं थतः ।।१४
आ त यं दान न ा च अद भो सेवनम्१ ।
अतु रथ पचयैव य कृतय वमाः ।।१८
शु ष
ू णं जगवां दे वानां चा यमायया ।
त ल धेन स तोषः शू कृतय वमाः ।।१९
अशौचमनृतं तेयं ना त यं शु क व हः ।
कामः ोध तष २ वभावोऽ तेवसा यनाम्३ ।।२०
त हं म यमान तप तेजोयशोनुदम् ।
अ या यामेव जीवेत शलैवा१ दोष क् तयोः ।।४१
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नै क चारी ा ण इन नयम का पालन करनेसे अ नके समान तेज वी हो जाता
है। ती तप याके कारण उसके कम-सं कार भ म हो जाते ह, अ तःकरण शु हो जाता है
और वह मेरा भ होकर मुझे ा त कर लेता है ।।३६।।
यारे उ व! य द नै क चय हण करनेक इ छा न हो—गृह था मम वेश करना
चाहता हो, तो व धपूवक वेदा ययन समा त करके आचायको द णा दे कर और उनक
अनुम त लेकर समावतन-सं कार करावे— नातक बनकर चया म छोड़ दे ।।३७।।
चारीको चा हये क चय-आ मके बाद गृह थ अथवा वान थ-आ मम वेश करे।
य द ा ण हो तो सं यास भी ले सकता है। अथवा उसे चा हये क मशः एक आ मसे
सरे आ मम वेश करे। क तु मेरा आ ाकारी भ बना आ मके रहकर अथवा वपरीत
मसे आ म-प रवतन कर वे छाचारम न वृ हो ।।३८।।
य उ व! य द चया मके बाद गृह था म वीकार करना हो तो चारीको
चा हये क अपने अनु प एवं शा ो ल ण से स प कुलीन क यासे ववाह करे। वह
अव थाम अपनेसे छोट और अपने ही वणक होनी चा हये। य द कामवश अ य वणक
क यासे और ववाह करना हो तो मशः अपनेसे न न वणक क यासे ववाह कर सकता
है ।।३९।। य -यागा द, अ ययन और दान करनेका अ धकार ा ण, य एवं वै य को
समान- पसे है। पर तु दान लेन,े पढ़ाने और य करानेका अ धकार केवल ा ण को ही
है ।।४०।। ा णको चा हये क इन तीन वृ य म त ह अथात् दान लेनेक वृ को
तप या, तेज और यशका नाश करनेवाली समझकर पढ़ाने और य करानेके ारा ही अपना
जीवन- नवाह करे और य द इन दोन वृ य म भी दोष हो—परावल बन, द नता आ द
दोष द खते ह —तो अ कटनेके बाद खेत म पड़े हए दाने बीनकर ही अपने जीवनका
नवाह कर ले ।।४१।। उ व! ा णका शरीर अ य त लभ है। यह इस लये नह है क
इसके ारा तु छ वषय-भोग ही भोगे जायँ। यह तो जीवन-पय त क भोगने, तप या करने
और अ तम अन त आन द व प मो क ा त करनेके लये है ।।४२।।
वव े शरणो म ाव वमलाशयः ।
म
आ मानं च तयेदेकमभेदेन मया मु नः ।।२१
अ वी त
े ा मनो ब धं मो ं च ान न या ।
ब ध इ य व ेपो मो एषां च संयमः ।।२२
ान न ो वर ो वा म ो वानपे कः ।
स लगाना मां य वा चरेद व धगोचरः ।।२८
य छयोपप ा म ा े मुतापरम् ।
तथा वास तथा श यां ा तं ा तं भजे मु नः ।।३५
इ त वधम न ण स वो न ातमद्ग तः ।
ान व ानस प ो न चरात् समुपै त माम् ।।४६
ान व ानसं स ाः पदं े ं व मम ।
ानी यतमोऽतो मे ानेनासौ बभ त माम् ।।३
नवृ े भारते यु े सु धन व लः ।
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ु वा धमान् ब न् प ा मो धमानपृ छत ।।१२
कः प डतः क मूखः कः प था उ पथ कः ।
कः वग नरकः कः वत् को ब धु त क गृहम् ।।३१
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इस कारके धम का पालन करनेसे च म जब स वगुणक वृ होती है और वह
शा त होकर आ माम लग जाता है, उस समय साधकको धम, ान, वैरा य और ऐ य वयं
ही ा त हो जाते ह ।।२५।। यह संसार व वध क पना से भरपूर है। सच पूछो तो इसका
नाम तो है, क तु कोई व तु नह है। जब च इसम लगा दया जाता है, तब इ य के साथ
इधर-उधर भटकने लगता है। इस कार च म रजोगुणक बाढ़ आ जाती है, वह असत्
व तुम लग जाता है और उसके धम, ान आ द तो लु त हो ही जाते ह, वह अधम, अ ान
और मोहका भी घर बन जाता है ।।२६।। उ व! जससे मेरी भ हो, वही धम है; जससे
और आ माक एकताका सा ा कार हो, वही ान है; वषय से असंग— नलप रहना ही
वैरा य है और अ णमा द स याँ ही ऐ य ह ।।२७।।
उ वजीने कहा— रपुसूदन! यम और नयम कतने कारके ह? ीकृ ण! शम या
है? दम या है? भो! त त ा और धैय या है? ।।२८।। आप मुझे दान, तप या, शूरता,
स य और ऋतका भी व प बतलाइये। याग या है? अभी धन कौन-सा है? य कसे
कहते ह? और द णा या व तु है? ।।२९।। ीमान् केशव! पु षका स चा बल या है?
भग कसे कहते ह? और लाभ या व तु है? उ म व ा, ल जा, ी तथा सुख और ःख
या है? ।।३०।। प डत और मूखके ल ण या ह? सुमाग और कुमागका या ल ण है?
वग और नरक या ह? भाई-ब धु कसे मानना चा हये? और घर या है? ।।३१।।
कआ ः को द र ो वा कृपणः कः क ई रः ।
एतान् ान् मम ू ह वपरीतां स पते ।।३२
ीभगवानुवाच
अ हसा स यम तेयमसंगो ीरसंचयः ।
आ त यं चय च मौनं थैय माभयम् ।।३३
शमो म ता बु े दम इ यसंयमः ।
त त ा ःखसंमष ज ोप थजयो धृ तः ।।३६
एत उ व ते ाः सव साधु न पताः ।
क व णतेन ब ना ल णं गुणदोषयोः ।
गुणदोष शद षो गुण तूभयव जतः ।।४५
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायामेकादश क धे एकोन वशोऽ यायः ।।१९।।
वणा म वक पं च तलोमानुलोमजम् ।
दे शवयःकालान् वग नरकमेव च ।।२
न व ण य वर य पु ष यो वे दनः ।
मन यज त दौरा यं च तत यानु च तया ।।२३
यमा द भय गपथैरा वी या च व या ।
ममाच पासना भवा ना यैय यं मरे मनः ।।२४
भ ते दय थ छ ते सवसंशयाः ।
ीय ते चा य कमा ण म य ेऽ खला म न ।।३०
सव म योगेन म ो लभतेऽ सा ।
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वगापवग म ाम कथं चद् य द वा छ त ।।३३
नैरपे यं परं ा नः य
े समन पकम् ।
त मा रा शषो भ नरपे य मे भवेत् ।।३५
कम यो गुणवान् कालो तः वत एव वा ।
यतो नवतते कम स दोषोऽकमकः मृतः ।।९
य शु यशु च ेण वचनेन च ।
सं कारेणाथ कालेन मह वा पतयाथवा ।।१०
शद सु ब धं ाणे यमनोमयम् ।
अन तपारं ग भीरं वगा ं समु वत् ।।३६
एक म प य ते व ानीतरा ण च ।
पूव मन् वा पर मन् वा त वे त वा न सवशः ।।८
पु षे रयोर न वैल यम व प ।
तद यक पनापाथा ानं च कृतेगुणः ।।११
ग् पमाक वपुर र े
पर परं स य त यः वतः खे ।
आ मा यदे षामपरो य आ ः
वयानुभू या खल स स ः ।
एवं वगा द वणा द च -ु
ज ा द नासा द च च यु म् ।।३१
आ मा प र ानमयो ववादो
ती त ना ती त भदाथ न ः ।
थ ऽ प नैवोपरमेत पुंसां
म ः परावृ धयां वलोकात् ।।३३
उ व उवाच
व ः परावृ धयः वकृतैः कम भः भो ।
उ चावचान् यथा दे हान् गृ त वसृज त च ।।३४
व ं मनोरथं चे थं ा नं न मर यसौ ।
त पूव मवा मानमपूव चानुप य त ।।४०
इ यायनसृ ेदं ै व यं भा त व तु न ।
ब हर त भदाहेतुजनोऽस जनकृद् यथा ।।४१
न यदा ग ं भूता न भव त न भव त च ।
कालेनाल यवेगेन सू म वा यते ।।४२
नषेकगभज मा न बा यकौमारयौवनम् ।
वयोम यं जरा मृ यु र यव था तनोनव ।।४६
न तो मू तो वा ैब धैवं क पतः ।
ेय कामः कृ गत आ मनाऽऽ मानमु रेत् ।।५८
उ व उवाच
यथैवमनुबु येयं वद नो वदतां वर ।
सु ःसह ममं म ये आ म यसद त मम् ।।५९
अथ य साधने स े उ कष र णे ये ।
नाशोपभोग आयास ास ता मो नृणाम् ।।१७
मू य त च पा प ाः ीव य य च मूध न ।
यतवाचं वाचय त ताडय त न व चेत् ।।३६
मनोवशेऽ ये भवन् म दे वा
मन ना य य वशं समे त ।
भी मो ह दे वः सहसः सहीयान्
यु याद् वशे तं स ह दे वदे वः ।।४८
ा ण कहता—मेरे सुख अथवा ःखका कारण न ये मनु य ह, न दे वता ह, न शरीर है
और न ह, कम एवं काल आ द ही ह। ु तयाँ और महा माजन मनको ही इसका परम
कारण बताते ह और मन ही इस सारे संसार-च को चला रहा है ।।४३।। सचमुच यह मन
ब त बलवान् है। इसीने वषय , उनके कारण गुण और उनसे स ब ध रखनेवाली वृ य क
सृ क है। उन वृ य के अनुसार ही सा वक, राजस और तामस—अनेक कारके कम
होते ह और कम के अनुसार ही जीवक व वध ग तयाँ होती ह ।।४४।। मन ही सम त चे ाएँ
करता है। उसके साथ रहनेपर भी आ मा न य ही है। वह ानश धान है, मुझ
जीवका सनातन सखा है और अपने अलु त ानसे सब कुछ दे खता रहता है। मनके ारा ही
उसक अ भ होती है। जब वह मनको वीकार करके उसके ारा वषय का भो ा बन
बैठता है, तब कम के साथ आस होनेके कारण वह उनसे बँध जाता है ।।४५।।
दान, अपने धमका पालन, नयम, यम, वेदा ययन, स कम और चया द े त—
इन सबका अ तम फल यही है क मन एका हो जाय, भगवान्म लग जाय। मनका
समा हत हो जाना ही परम योग है ।।४६।। जसका मन शा त और समा हत है, उसे दान
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आ द सम त स कम का फल ा त हो चुका है। अब उनसे कुछ लेना बाक नह है। और
जसका मन चंचल है अथवा आल यसे अ भभूत हो रहा है, उसको इन दाना द शुभकम से
अबतक कोई लाभ नह आ ।।४७।। सभी इ याँ मनके वशम ह। मन कसी भी इ यके
वशम नह है। यह मन बलवान्से भी बलवान्, अ य त भयंकर दे व है। जो इसको अपने
वशम कर लेता है, वही दे व-दे व—इ य का वजेता है ।।४८।। सचमुच मन ब त बड़ा श ु
है। इसका आ मण अस है। यह बाहरी शरीरको ही नह , दया द मम थान को भी बेधता
रहता है। इसे जीतना ब त ही क ठन है। मनु य को चा हये क सबसे पहले इसी श ुपर
वजय ा त करे; पर तु होता है यह क मूख लोग इसे तो जीतनेका य न करते नह , सरे
मनु य से झूठमूठ झगड़ा-बखेड़ा करते रहते ह और इस जगत्के लोग को ही म -श -ु
उदासीन बना लेते ह ।।४९।। साधारणतः मनु य क बु अंधी हो रही है। तभी तो वे इस
मनःक पत शरीरको ‘म’ और ‘मेरा’ मान बैठते ह और फर इस मके फंदे म फँस जाते ह
क ‘यह म ँ और यह सरा।’ इसका प रणाम यह होता है क वे इस अन त
अ ाना धकारम ही भटकते रहते ह ।।५०।।
तं जयं श म
ु स वेग-
म तुदं त व ज य के चत् ।
कुव यस हम म य-
म ा युदासीन रपून् वमूढाः ।।४९
ःख य हेतुय द दे वता तु
कमा मन त वकारयो तत् ।
यदं गमंगेन नह यते व चत्
ु येत क मै पु षः वदे हे ।।५२
है ह यैव वद त पीडां
ु येत क मै पु ष ततोऽ यः ।।५४
य द मान ल क मनु य ही सुख- ःखका कारण है, तो भी उनसे आ माका या स ब ध?
य क सुख- ःख प ँचानेवाला भी म का शरीर है और भोगनेवाला भी। कभी भोजन
आ दके समय य द अपने दाँत से ही अपनी जीभ कट जाय और उससे पीड़ा होने लगे, तो
मनु य कसपर ोध करेगा? ।।५१।। य द ऐसा मान ल क दे वता ही ःखके कारण ह तो भी
इस ःखसे आ माक या हा न? य क य द ःखके कारण दे वता ह, तो इ या भमानी
दे वता के पम उनके भो ा भी तो वे ही ह। और दे वता सभी शरीर म एक ह; जो दे वता
एक शरीरम ह; वे ही सरेम भी ह। ऐसी दशाम य द अपने ही शरीरके कसी एक अंगसे
सरे अंगको चोट लग जाय तो भला, कसपर ोध कया जायगा? ।।५२।। य द ऐसा मान
क आ मा ही सुख- ःखका कारण है तो वह तो अपना आप ही है, कोई सरा नह ; य क
आ मासे भ कुछ और है ही नह । य द सरा कुछ तीत होता है तो वह म या है।
इस लये न सुख है, न ःख; फर ोध कैसा? ोधका न म ही या? ।।५३।। य द ह को
सुख- ःखका न म मान, तो उनसे भी अज मा आ माक या हा न? उनका भाव भी
ज म-मृ युशील शरीरपर ही होता है। ह क पीड़ा तो उनका भाव हण करनेवाले
शरीरको ही होती है और आ मा उन ह और शरीर से सवथा परे है। तब भला वह कसपर
ोध करे? ।।५४।। य द कम को ही सुख- ःखका कारण मान, तो उनसे आ माका या
योजन? य क वे तो एक पदाथके जड और चेतन—उभय प होनेपर ही हो सकते ह।
(जो व तु वकारयु और अपना हता हत जाननेवाली होती है, उसीसे कम हो सकते ह;
अतः वह वकारयु होनेके कारण जड होनी चा हये और हता हतका ान रखनेके कारण
चेतन।) क तु दे ह तो अचेतन है और उसम प ी पसे रहनेवाला आ मा सवथा न वकार
और सा ीमा है। इस कार कम का तो कोई आधार ही स नह होता। फर ोध
कसपर कर? ।।५५।। य द ऐसा मान क काल ही सुख- ःखका कारण है, तो आ मापर
उसका या भाव? य क काल तो आ म व प ही है। जैसे आग आगको नह जला
सकती और बफ बफको नह गला सकता, वैसे ही आ म व प काल अपने आ माको ही
सुख- ःख नह प ँचा सकता। फर कसपर ोध कया जाय? आ मा शीत-उ ण, सुख-
ःख आ द से सवथा अतीत है ।।५६।। आ मा कृ तके व प, धम, काय, लेश,
स ब ध और ग धसे भी र हत है। उसे कभी कह कसीके ारा कसी भी कारसे का
पश ही नह होता। वह तो ज म-मृ युके च म भटकनेवाले अहंकारको ही होता है। जो इस
बातको जान लेता है, वह फर कसी भी भयके न म से भयभीत नह होता ।।५७।। बड़े-
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बड़े ाचीन ऋ ष-मु नय ने इस परमा म न ाका आ य हण कया है। म भी इसीका
आ य हण क ँ गा और मु तथा ेमके दाता भगवान्के चरणकमल क सेवाके ारा ही
इस र त अ ानसागरको अनायास ही पार कर लूँगा ।।५८।।
नराकृतोऽस र प वधमा-
दक पतोऽमुं मु नराह गाथाम् ।।५९
भगवान् ीकृ ण कहते ह—उ वजी! उस ा णका धन या न आ, उसका सारा
लेश ही र हो गया। अब वह संसारसे वर हो गया था और सं यास लेकर पृ वीम
व छ द वचर रहा था। य प ने उसे ब त सताया, फर भी वह अपने धमम अटल रहा,
त नक भी वच लत न आ। उस समय वह मौनी अवधूत मन-ही-मन इस कारका गीत
गाया करता था ।।५९।। उ वजी! इस संसारम मनु यको कोई सरा सुख या ःख नह दे ता,
यह तो उसके च का ममा है। यह सारा संसार और इसके भीतर म , उदासीन और
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श ुके भेद अ ानक पत ह ।।६०।। इस लये यारे उ व! अपनी वृ य को मुझम त मय
कर दो और इस कार अपनी सारी श लगाकर मनको वशम कर लो और फर मुझम ही
न ययु होकर थत हो जाओ। बस, सारे योगसाधनका इतना ही सार-सं ह है ।।६१।।
यह भ ुकका गीत या है, मू तमान् ान- न ा ही है। जो पु ष एका च से इसे
सुनता, सुनाता और धारण करता है वह कभी सुख- ःखा द के वशम नह होता। उनके
बीचम भी वह सहके समान दहाड़ता रहता है ।।६२।।
सुख ःख दो ना यः पु ष या म व मः ।
म ोदासीन रपवः संसार तमसः कृतः ।।६०
अथ त मा का ज े तामसा द या ण च ।
तैजसाद् दे वता आस क
े ादश च वैकृतात् ।।८
य तु य या दर त स वै म यं च त य सन् ।
वकारो वहाराथ यथा तैजसपा थवाः ।।१७
कृ त योपादानमाधारः पु षः परः ।
सतोऽ भ कः कालो त तयं वहम् ।।१९
स पात वह म त ममे यु व या म तः ।
वहारः स पातो मनोमा े यासु भः ।।६
वृ ल णे न ा पुमान् य ह गृहा मे ।
वधम चानु त ेत गुणानां स म त ह सा ।।८
सा व या या मक ा कम ा तु राजसी ।
ताम यधम या ा म सेवायां तु नगुणा ।।२७
बो धत या प दे ा मे सू वा येन मतेः ।
मनोगतो महामोहो नापया य जता मनः ।।१६
वै दक ता को म इ त मे वधो मखः ।
याणामी सतेनैव व धना मां समचयेत् ।।७
यदा व नगमेनो ं ज वं ा य पू षः ।
यथा यजेत मां भ या या त बोध मे ।।८
नानालंकरणं े मचायामेव तू व ।
थ डले त व व यासो व ावा य लुतं ह वः ।।१६
तद दवयजनं ा या मानमेव च ।
ो य पा ा ण ी य तै तै ै साधयेत् ।।२१
सुदशनं पा ज यं गदासीषुधनुहलान् ।
मुसलं कौ तुभं मालां ीव सं चानुपूजयेत् ।।२७
न दं सुन दं ग डं च डं च डमेव च ।
महाबलं बलं चैव कुमुदं कुमुदे णम् ।।२८
च दनोशीरकपूरकुंकुमागु वा सतैः ।
स ललैः नापये म ै न यदा वभवे स त ।।३०
वणघमानुवाकेन महापु ष व या ।
पौ षेणा प सू े न सामभी राजना द भः ।।३१
व ोपवीताभरणप स ग धलेपनैः ।
अलंकुव त स ेम म ो मां यथो चतम् ।।३२
जु या मूलम ेण षोडशचावदानतः ।
धमा द यो यथा यायं म ैः व कृतं बुधः ।।४१
१. अ ा द गीतनृ या द म पव ण यथाहतः।
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१. ो या रा य ा ण ो या नावावहेत माम्।
१. यायोगेन।
पर वभावकमा ण यः शंस त न द त ।
स आशु यते वाथादस य भ नवेशतः ।।२
भगवान् ीकृ ण कहते ह—उ वजी! य प वहारम पु ष और कृ त— ा और
यके भेदसे दो कारका जगत् जान पड़ता है, तथा प परमाथ- से दे खनेपर यह सब
एक अ ध ान- व प ही है; इस लये कसीके शा त, घोर और मूढ़ वभाव तथा उनके
अनुसार कम क न तु त करनी चा हये और न न दा। सवदा अ ै त- रखनी
चा हये ।।१।। जो पु ष सर के वभाव और उनके कम क शंसा अथवा न दा करते ह, वे
शी ही अपने यथाथ परमाथ-साधनसे युत हो जाते ह; य क साधन तो ै तके
अ भ नवेशका—उसके त स य व-बु का नषेध करता है और शंसा तथा न दा उसक
स यताके मको और भी ढ़ करती ह ।।२।। उ वजी! सभी इ याँ राजस अहंकारके
काय ह। जब वे न त हो जाती ह तब शरीरका अ भमानी जीव चेतनाशू य हो जाता है;
अथात् उसे बाहरी शरीरक मृ त नह रहती। उस समय य द मन बच रहा, तब तो वह
सपनेके झूठे य म भटकने लगता है और वह भी लीन हो गया, तब तो जीव मृ युके समान
गाढ़ न ा—सुषु तम लीन हो जाता है। वैसे ही जब जीव अपने अ तीय आ म व पको
भूलकर नाना व तु का दशन करने लगता है तब वह व के समान झूठे य म फँस जाता
है; अथवा मृ युके समान अ ानम लीन हो जाता है ।।३।। उ वजी! जब ै त नामक कोई
व तु ही नह है, तब उसम अमुक व तु भली है और अमुक बुरी, अथवा इतनी भली और
इतनी बुरी है—यह ही नह उठ सकता। व क सभी व तुएँ वाणीसे कही जा सकती ह
अथवा मनसे सोची जा सकती ह; इस लये य एवं अ न य होनेके कारण उनका म या व
तो प ही है ।।४।। परछा , त व न और सीपी आ दम चाँद आ दके आभास य प ह
तो सवथा म या, पर तु उनके ारा मनु यके दयम भय-क प आ दका संचार हो जाता है।
वैसे ही दे हा द सभी व तुएँ ह तो सवथा म या ही, पर तु जबतक ानके ारा इनक
अस यताका बोध नह हो जाता, इनक आ य तक नवृ नह हो जाती, तबतक ये भी
अ ा नय को भयभीत करती रहती ह ।।५।। उ वजी! जो कुछ य या परो व तु है,
वह आ मा ही है। वही सवश मान् भी है। जो कुछ व -सृ तीत हो रही है, इसका वह
न म -कारण तो है ही, उपादान-कारण भी है। अथात् वही व बनता है और वही बनाता
दे हे य ाणमनोऽ भमानो
जीवोऽ तरा मा गुणकममू तः ।
सू ं महा न यु धेव गीतः
संसार आधाव त कालत ः ।।१६
अमूलमेतद् ब प पतं
मनोवचः ाणशरीरकम ।
ाना सनोपासनया शतेन-
छ वा मु नगा वचर यतृ णः ।।१७
व ानमेत यव थमंग
गुण यं कारणकायकतृ ।
सम वयेन तरेकत
येनैव तुयण तदे व स यम् ।।२०
न यत् पुर ता त य प ा-
म ये च त पदे शमा म् ।
भूतं स ं च परेण यद् यत्
तदे व तत् या द त मे मनीषा ।।२१
अ व मानोऽ यवभासते यो
वैका रको राजससग एषः ।
वयं यो तरतो वभा त
े याथा म वकार च म् ।।२२
ना मा वपुः पा थव म या ण
दे वा सुवायुजलं ताशः ।
मनोऽ मा ं धषणा च स व-
महंकृ तः खं तरथसा यम् ।।२४
य द म प य यस द याथ
नानानुमानेन व म यत् ।
न म यते व तुतया मनीषी
वा ं यथो थाय तरोदधानम् ।।३२
क च म युत तवैतदशेषब धो
दासे वन यशरणेषु यदा मसा वम् ।
योऽरोचयत् सह मृगैः वयमी राणां
ीम करीटतटपी डतपादपीठः ।।४
ह त ते कथ य या म मम धमान् सुमंगलान् ।
या याऽऽचरन् म य मृ युं जय त जयम् ।।८
न ंगोप मे वंसो म म यो वा व प ।
मया व सतः स यङ् नगुण वादना शषः ।।२०
य एत या न यम ः शृणुया रः ।
मयभ परां कुवन् कम भन स ब यते ।।२८
म य यदा य सम तकमा
नवे दता मा व चक षतो मे ।
तदामृत वं तप मानो
मयाऽऽ मभूयाय च क पते वै ।।३४
ीशुक उवाच
स एवमाद शतयोगमाग-
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तदो म ोकवचो नश य ।
ब ांज लः ी युप क ठो
न क च चेऽ ुप र लुता ः ।।३५
व य च ं णयावघूण
धैयण राजन् ब म यमानः ।
कृतांज लः ाह य वीरं
शी णा पृशं त चरणार व दम् ।।३६
उ व उवाच
वृ ण मे सु ढः नेहपाशो
दाशाहवृ य धकसा वतेषु ।
सा रतः सृ ववृ ये वया
वमायया ा मसुबोधहे तना ।।३९
म ोऽनु श तं य े व व मनुभावयन् ।
म यावे शतवा च ो म म नरतो भव ।
अ त य गती त ो मामे य स ततः परम् ।।४४
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ीशुक उवाच
स एवमु ो ह रमेधसो वः
द णं तं प रसृ य पादयोः ।
शरो नधाया ुकला भरा धी-
य षचद परोऽ यप मे ।।४५
सु यज नेह वयोगकातरो
न श नुवं तं प रहातुमातुरः ।
कृ ं ययौ मूध न भतृपा के
ब म कृ य ययौ पुनः पुनः ।।४६
तत तम त द सं नवे य
गतो महाभागवतो वशालाम् ।
यथोप द ां जगदे कब धुना
तपः समा थाय हरेरगाद् ग तम् ।।४७
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! भगवान् ीकृ णके व पका ान संसारके
भेद मको छ - भ कर दे ता है। जब उ ह ने वयं उ वजीको ऐसा उपदे श कया तो
उ ह ने उनक प र मा क और उनके चरण पर सर रख दया। इसम स दे ह नह क
उ वजी संयोग- वयोगसे होनेवाले सुख- ःखके जोड़ेसे परे थे, य क वे भगवान्के न
चरण क शरण ले चुके थे; फर भी वहाँसे चलते समय उनका च ेमावेशसे भर गया।
उ ह ने अपने ने क झरती ई अ ुधारासे भगवान्के चरणकमल को भगो दया ।।४५।।
परी त्! भगवान्के त ेम करके उसका याग करना स भव नह है। उ ह के वयोगक
क पनासे उ वजी कातर हो गये, उनका याग करनेम समथ न ए। बार-बार व ल होकर
मू छत होने लगे। कुछ समयके बाद उ ह ने भगवान् ीकृ णके चरण क पा काएँ अपने
सरपर रख ल और बार-बार भगवान्के चरण म णाम करके वहाँसे थान कया ।।४६।।
भगवान्के परम ेमी भ उ वजी दयम उनक द छ ब धारण कये बद रका म प ँचे
और वहाँ उ ह ने तपोमय जीवन तीत करके जगत्के एकमा हतैषी भगवान् ीकृ णके
उपदे शानुसार उनक व पभूत परमग त ा त क ।।४७।। भगवान् शंकर आ द योगे र भी
स चदान द व प भगवान् ीकृ णके चरण क सेवा कया करते ह। उ ह ने वयं ीमुखसे
अपने परम ेमी भ उ वके लये इस ानामृतका वतरण कया। यह ानामृत
आन दमहासागरका सार है। जो ाके साथ इसका सेवन करता है, वह तो मु हो ही
जाता है, उसके संगसे सारा जगत् मु हो जाता है ।।४८।। परी त्! जैसे भ रा व भ
पु प से उनका सार-सार मधु सं ह कर लेता है, वैसे ही वयं वेद को का शत करनेवाले
भगवान् ीकृ णने भ को संसारसे मु करनेके लये यह ान और व ानका सार
या ु ं नयनमबला य ल नं न शेकुः
कणा व ं न सर त ततो यत् सतामा मल नम् ।
राजा परी त्ने पूछा—भगवन्! जब महाभागवत उ वजी बदरीवनको चले गये, तब
भूतभावन भगवान् ीकृ णने ारकाम या लीला रची? ।।१।। भो! य वंश शरोम ण
भगवान् ीकृ णने अपने कुलके शाप त होनेपर सबके ने ा द इ य के परम य
अपने द ी व हक लीलाका संवरण कैसे कया? ।।२।। भगवन्! जब य के ने
उनके ी व हम लग जाते थे, तब वे उ ह वहाँसे हटानेम असमथ हो जाती थ । जब संत
पु ष उनक पमाधुरीका वणन सुनते ह, तब वह ी व ह कान के रा ते वेश करके उनके
च म गड़-सा जाता है, वहाँसे हटना नह जानता। उसक शोभा क वय क का रचनाम
अनुरागका रंग भर दे ती है और उनका स मान बढ़ा दे ती है, इसके स ब धम तो कहना ही
या है। महाभारतयु के समय जब वे हमारे दादा अजुनके रथपर बैठे ए थे, उस समय
जन यो ा ने उसे दे खते-दे खते शरीर- याग कया; उ ह सा यमु मल गयी। उ ह ने
अपना ऐसा अद्भुत ी व ह कस कार अ तधान कया? ।।३।।
इ त सव समाक य य वृ ा मधु षः ।
तथे त नौ भ ीय भासं ययू रथैः ।।१०
पत पताकै रथकु रा द भः
खरो गो भम हषैनरैर प ।
ु नसा बौ यु ध ढम सरा-
व ू रभोजाव न सा यक ।
अ ये च ये वै नशठो मुकादयः
सह ज छत ज ानुमु याः ।
वसजनाः कुकुराः कु तय
मथ तत तेऽथ वसृ य सौ दम् ।।१८
म ा ण म ैः सु दः सु -
ात वह झातय एव मूढाः ।।१९
क टसू सू करीटकटकांगदै ः ।
हारनूपुरमु ा भः कौ तुभेन वरा जतम् ।।३१
वनमालापरीतांगं मू तम नजायुधैः ।
कृ वोरौ द णे पादमासीनं पंकजा णम् ।।३२
दा कः कृ णपदवीम व छ धग य ताम् ।
वायुं तुल सकामोदमा ाया भमुखं ययौ ।।४१
तं त त म ु भरायुधैवृतं
थमूले कृतकेतनं प तम् ।
नेह लुता मा नपपात पादयो
रथादव लु य सबा पलोचनः ।।४२
तम वग छन् द ा न व णु हरणा न च ।
तेना त व मता मानं सूतमाह जनादनः ।।४५
ारकायां च न थेयं भव वब धु भः ।
मया य ां य पुर समु ः लाव य य त ।।४७
वं वं प र हं सव आदाय पतरौ च नः ।
अजुनेना वताः सव इ थं ग म यथ ।।४८
इ यु तं प र य नम कृ य पुनः पुनः ।
त पादौ शी युपाधाय मनाः ययौ पुरीम् ।।५०
भगवान्का यह आदे श पाकर दा कने उनक प र मा क और उनके चरणकमल अपने
सरपर रखकर बार बार णाम कया। तदन तर वह उदास मनसे ारकाके लये चल
पड़ा ।।५०।।
इ त ीम ागवते महापुराणे पारमहं यां सं हतायामेकादश क धे शोऽ यायः ।।३०।।
म यन यो गु सुतं यमलोकनीतं
वां चानय छणदः परमा द धम् ।
ज येऽ तका तकमपीशमसावनीशः
क वावने वरनय मृगयुं सदे हम् ।।१२
भगवान्का ी व ह उपासक के यान और धारणाका मंगलमय आधार और सम त
लोक के लये परम रमणीय आ य है; इस लये उ ह ने (यो गय के समान)
अ नदे वतास ब धी योगधारणाके ारा असको जलाया नह , सशरीर अपने धामम चले
गये ।।६।। उस समय वगम नगारे बजने लगे और आकाशसे पु प क वषा होने लगी।
परी त्! भगवान् ीकृ णके पीछे -पीछे इस लोकसे स य, धम, धैय, क त और ीदे वी भी
चली गय ।।७।।
भगवान् ीकृ णक ग त मन और वाणीके परे है; तभी तो जब भगवान् अपने धामम
वेश करने लगे, तब ा द दे वता भी उ ह न दे ख सके। इस घटनासे उ ह बड़ा ही व मय
आ ।।८।। जैसे बजली मेघम डलको छोड़कर जब आकाशम वेश करती है, तब मनु य
उसक चाल नह दे ख पाते, वैसे ही बड़े-बड़े दे वता भी ीकृ णक ग तके स ब धम कुछ न
जान सके ।।९।। ाजी और भगवान् शंकर आ द दे वता भगवान्क यह परमयोगमयी ग त
दे खकर बड़े व मयके साथ उसक शंसा करते अपने-अपने लोकम चले गये ।।१०।।
परी त्! जैसे नट अनेक कारके वाँग बनाता है, पर तु रहता है उन सबसे नलप;
वैसे ही भगवान्का मनु य के समान ज म लेना, लीला करना और फर उसे संवरण कर लेना
उनक मायाका वलासमा है—अ भनयमा है। वे वयं ही इस जगत्क सृ करके इसम
वेश करके वहार करते ह और अ तम संहार-लीला करके अपने अन त म हमामय
व पम ही थत हो जाते ह ।।११।। सा द प न गु का पु यमपुरी चला गया था, पर तु
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उसे वे मनु य-शरीरके साथ लौटा लाये। तु हारा ही शरीर ा से जल चुका था; पर तु
उ ह ने तु ह जी वत कर दया। वा तवम उनक शरणागतव सलता ऐसी ही है। और तो या
क ,ँ उ ह ने काल के महाकाल भगवान् शंकरको भी यु म जीत लया और अ य त
अपराधी—अपने शरीरपर ही हार करनेवाले ाधको भी सदे ह वग भेज दया। य
परी त्! ऐसी थ तम या वे अपने शरीरको सदाके लये यहाँ नह रख सकते थे? अव य
ही रख सकते थे ।।१२।। य प भगवान् ीकृ ण स पूण जगत्क थ त, उ प और
संहारके नरपे कारण ह और स पूण श य के धारण करनेवाले ह तथा प उ ह ने अपने
शरीरको इस संसारम बचा रखनेक इ छा नह क । इससे उ ह ने यह दखाया क इस
मनु य-शरीरसे मुझे या योजन है? आ म न पु ष के लये यही आदश है क वे शरीर
रखनेक चे ा न कर ।।१३।। जो पु ष ातःकाल उठकर भगवान् ीकृ णके
परमधामगमनक इस कथाका एका ता और भ के साथ क तन करेगा, उसे भगवान्का
वही सव े परमपद ा त होगा ।।१४।।
न यं स हत त भगवान् मधुसूदनः ।
मृ याशेषाशुभहरं सवमंगलमंगलम् ।।२४
इ थं हरेभगवतो चरावतार-
वीया ण बालच रता न च श तमा न ।
अ य चेह च ुता न गृणन् मनु यो
भ परां परमहंसगतौ लभेत ।।२८
मने तु ह दे वता के भी आरा यदे व भगवान् ीकृ णक ज मलीला और कमलीला
सुनायी। जो मनु य ाके साथ इसका क तन करता है, वह सम त पाप से मु हो जाता
है ।।२७।। परी त्! जो मनु य इस कार भ भयहारी न खल सौ दय-माधुय न ध
ीकृ णच के अवतार-स ब धी चर परा म और इस ीम ागवतमहापुराणम तथा सरे
पुराण म व णत परमान दमयी बाललीला, कैशोरलीला आ दका संक तन करता है, वह
परमहंस मुनी के अ तम ा त ीकृ णके चरण म पराभ ा त करता है ।।२८।।
इ त ीम ागवते महापुराणे वैया स याम ादशसाह यां पारमहं यां
सं हतायामेकादश क धे एक शोऽ यायः ।।३१।।
।। इ येकादशः क धः समा तः ।।
।। ह रः ॐ त सत् ।।
जा ा भू य ाः थाप य य त म तः ।
वीयवान् मु सा प व यां स वै पु र ।
अनुगंगामा यागं गु तां भो य त मे दनीम् ।।३७
ु ड
ृ ् यां ा ध भ ैव स त य ते च च तया ।
श श तवषा ण परमायुः कलौ नृणाम् ।।११
असाधुताक —दोषी होनेक एक ही पहचान रहेगी—गरीब होना। जो जतना अ धक
द भ-पाख ड कर सकेगा, उसे उतना ही बड़ा साधु समझा जायगा। ववाहके लये एक-
सरेक वीकृ त ही पया त होगी, शा ीय व ध- वधानक —सं कार आ दक कोई
आव यकता न समझी जायगी। बाल आ द सँवारकर कपड़े-ल ेसे लैस हो जाना ही नान
समझा जायगा ।।५।।
लोग रके तालाबको तीथ मानगे और नकटके तीथ गंगा-गोमती, माता- पता आ दक
उपे ा करगे। सरपर बड़े-बड़े बाल—काकुल रखाना ही शरी रक सौ दयका च समझा
जायगा और जीवनका सबसे बड़ा पु षाथ होगा—अपना पेट भर लेना। जो जतनी ढठाईसे
बात कर सकेगा, उसे उतना ही स चा समझा जायगा ।।६।। यो यता चतुराईका सबसे बड़ा
ल ण यह होगा क मनु य अपने कुटु बका पालन कर ले। धमका सेवन यशके लये कया
जायगा। इस कार जब सारी पृ वीपर का बोलबाला हो जायगा, तब राजा होनेका कोई
नयम न रहेगा; ा ण, य, वै य अथवा शू म जो बली होगा, वही राजा बन बैठेगा।
उस समयके नीच राजा अ य त नदय एवं ू र ह गे; लोभी तो इतने ह गे क उनम और
लुटेर म कोई अ तर न कया जा सकेगा। वे जाक पूँजी एवं प नय तकको छ न लगे।
उनसे डरकर जा पहाड़ और जंगल म भाग जायगी। उस समय जा तरह-तरहके शाक,
क द-मूल, मांस, मधु, फल-फूल और बीज-गुठली आ द खा-खाकर अपना पेट
भरेगी ।।७-९।। कभी वषा न होगी—सूखा पड़ जायगा; तो कभी कर-पर-कर लगाये जायँग।े
कभी कड़ाकेक सद पड़ेगी तो कभी पाला पड़ेगा, कभी आँधी चलेगी, कभी गरमी पड़ेगी
अ माशुगमा दे वद ं जग प तः ।
अ सनासाधुदमनम ै यगुणा वतः ।।१९
तेषां जा वसग थ व ः स भ व य त ।
वासुदेवे भगव त स वमूत द थते ।।२२
स तु ाः क णा मै ाः शा ता दा ता त त वः ।
स वं रज तम इ त य ते पु षे गुणाः ।
कालसंचो दता ते वै प रवत त आ म न ।।२६
भव त यदा स वे मनोबु या ण च ।
तदा कृतयुगं व ा ाने तप स यद् चः ।।२७
प त य य त न ं भृ या अ य खलो मम् ।
भृ यं वप ं पतयः कौलं गा ापय वनीः ।।३६
शू ाः त ही य त तपोवेषोपजी वनः ।
धम व य यधम ा अ ध ो मासनम् ।।३८
य ामधेयंयमाण आतुरः
पतन् खलन् वा ववशो गृणन् पुमान् ।
वमु कमागल उ मां ग त
ा ो त य य त न तं कलौ जनाः ।।४४
व ातपः ाण नरोधमै ी-
तद ते लय तावान् ा ी रा दा ता ।
यो लोका इमे त क प ते लयाय ह ।।३
एष नै म कः ो ः लयो य व सृक् ।
शेतेऽन तासनो व मा मसा कृ य चा मभूः ।।४
पराध व त ा ते णः परमे नः ।
तदा कृतयः स त क प ते लयाय वै ।।५
ीशुकदे वजी कहते ह—परी त्! (तीसरे क धम) परमाणुसे लेकर पराधपय त
कालका व प और एक-एक युग कतने- कतने वष का होता है, यह म तु ह बतला चुका
ँ। अब तुम क पक थ त और उसके लयका वणन भी सुनो ।।१।। राजन्! एक हजार
चतुयुगीका ाका एक दन होता है। ाके इस दनको ही क प भी कहते ह। एक
क पम चौदह मनु होते ह ।।२।। क पके अ तम उतने ही समयतक लय भी रहता है।
लयको ही ाक रात भी कहते ह। उस समय ये तीन लोक लीन हो जाते ह, उनका
लय हो जाता है ।।३।। इसका नाम नै म क लय है। इस लयके अवसरपर सारे व को
अपने अंदर समेटकर—लीन कर ा और त प ात् शेषशायी भगवान् नारायण भी शयन
कर जाते ह ।।४।। इस कार रातके बाद दन और दनके बाद रात होते-होते जब ाजीक
अपने मानसे सौ वषक और मनु य क म दो परा क आयु समा त हो जाती है, तब
मह व, अहंकार और पंचत मा ा—ये सात कृ तयाँ अपने कारण मूल कृ तम लीन हो
जाती ह ।।५।।
न य वाचो न मनो न स वं
तमो रजो वा महदादयोऽमी ।
न ाणबु यदे वता वा
न स वेशः खलु लोकक पः ।।२०
न व जा च तत् सुषु तं
न खं जलं भूर नलोऽ नरकः ।
संसु तव छू यवद त य
त मूलभूतं पदमामन त ।।२१
यथा जलधरा ो न भव त न भव त च ।
णीदं तथा व मवय ुदया ययात् ।।२६
एताः कु े जग धातु-
नारायण या खलस वधा नः ।
लीलाकथा ते क थताः समासतः
का यन नाजोऽ य भधातुमीशः ।।३९
१. तीयते।
न भ व य स भू वा वं पु पौ ा द पवान् ।
बीजांकुरवद् दे हादे त र ो यथानलः ।।३
अ ानं च नर तं मे ान व ान न या ।
भवता द शतं ेमं परं भगवतः पदम् ।।७
सूत उवाच
इ यु तमनु ा य भगवान् बादराय णः ।
जगाम भ ु भः साकं नरदे वेन पू जतः ।।८
पारी त इ त ु वा ाह वज उदारधीः ।
सहे त को व ा ना नौ क म त पा यते ।।२०
पु ान यापय ां तु ष न् को वदान् ।
ते तु धम पदे ारः वपु े यः समा दशन् ।।४५
उसी अनाहत नादसे ‘अ’ कार, ‘उ’ कार और ‘म’ कार प तीन मा ा से यु ॐकार
कट आ। इस ॐकारक श से ही कृ त अ से पम प रणत हो जाती है।
ॐकार वयं भी अ एवं अना द है और परमा म- व प होनेके कारण वयं काश भी
है। जस परम व तुको भगवान् अथवा परमा माके नामसे कहा जाता है, उसके
व पका बोध भी ॐकारके ारा ही होता है ।।३९।। जब वणे यक श लु त हो
जाती है, तब भी इस ॐकारको—सम त अथ को का शत करनेवाले फोट त वको जो
सुनता है और सुषु त एवं समा ध-अव था म सबके अभावको भी जानता है, वही
परमा माका वशु व प है। वही ॐकार परमा मासे दयाकाशम कट होकर वेद पा
वाणीको अ भ करता है ।।४०।। ॐकार अपने आ य परमा मा पर का सा ात्
वाचक है और ॐकार ही स पूण म , उप नषद् और वेद का सनातन बीज है ।।४१।।
शौनकजी! ॐकारके तीन वण ह —‘अ’, ‘उ’, और ‘म’। ये ही तीन वण स व, रज, तम
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—इन तीन गुण ; ऋक्, यजुः, साम—इन तीन नाम ; भूः, भुवः, वः—इन तीन अथ और
जा त्, व , सुषु त—इन तीन वृ य के पम तीन-तीनक सं यावाले भाव को धारण
करते ह ।।४२।। इसके बाद सवश मान् ाजीने ॐकारसे ही अ तः थ (य, र, ल, व),
ऊ म (श, ष, स, ह), वर (‘अ’ से ‘औ’ तक), पश (‘क’ से ‘म’ तक) तथा व और द घ
आ द ल ण से यु अ र-समा नाय अथात् वणमालाक रचना क ।।४३।। उसी
वणमाला ारा उ ह ने अपने चार मुख से होता, अ वयु, उद्गाता और ा—इन चार
ऋ वज के कम बतलानेके लये ॐकार और ा तय के स हत चार वेद कट कये और
अपने पु ष मरी च आ दको वेदा ययनम कुशल दे खकर उ ह वेद क श ा द । वे सभी
जब धमका उपदे श करनेम नपुण हो गये, तब उ ह ने अपने पु को उनका अ ययन
कराया ।।४४-४५।।
यजूं ष त रा भू वा त लोलुपतयाऽऽद ः ।
तै रीया इ त यजुःशाखा आसन् सुपेशलाः ।।६५
मा डू केयके पु का नाम था शाक य। उ ह ने अपनी सं हताके पाँच वभाग करके उ ह
वा य, मुदगल,् शालीय, गोख य और श शर नामक श य को पढ़ाया ।।५७।। शाक यके
एक और श य थे—जातूक यमु न। उ ह ने अपनी सं हताके तीन वभाग करके त स ब धी
न के साथ अपने श य बलाक, पैज, वैताल और वरजको पढ़ाया ।।५८।। बा कलके
पु बा क लने सब शाखा से एक ‘वाल ख य’ नामक शाखा रची। उसे बालाय न, भ य
एवं कासारने हण कया ।।५९।। इन षय ने पूव स दायके अनुसार ऋ वेदस ब धी
ब च शाखा को धारण कया। जो मनु य यह वेद के वभाजनका इ तहास वण करता
है, वह सब पाप से छू ट जाता है ।।६०।।
शौनकजी! वैश पायनके कुछ श य का नाम था चरका वयु। इन लोग ने अपने गु दे वके
ह या-ज नत पापका ाय करनेके लये एक तका अनु ान कया। इसी लये इनका
नाम ‘चरका वयु’ पड़ा ।।६१।। वैश पायनके एक श य या व यमु न भी थे। उ ह ने अपने
गु दे वसे कहा—‘अहो भगवन्! ये चरका वयु ा ण तो ब त ही थोड़ी श रखते ह।
इनके तपालनसे लाभ ही कतना है? म आपके ाय के लये ब त ही क ठन तप या
क ँ गा’ ।।६२।। या व यमु नक यह बात सुनकर वैश पायनमु नको ोध आ गया।
उ ह ने कहा—‘बस-बस’, चुप रहो। तु हारे-जैसे ा ण का अपमान करनेवाले श यक
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मुझे कोई आव यकता नह है। दे खो, अबतक तुमने मुझसे जो कुछ अ ययन कया है उसका
शी -से-शी याग कर दो और यहाँसे चले जाओ ।।६३।। या व यजी दे वरातके पु थे।
उ ह ने गु जीक आ ा पाते ही उनके पढ़ाये ए यजुवदका वमन कर दया और वे वहाँसे
चले गये। जब मु नय ने दे खा क या व यने तो यजुवदका वमन कर दया, तब उनके
च म इस बातके लये बड़ा लालच आ क हमलोग कसी कार इसको हण कर ल।
पर तु ा ण होकर उगले ए म को हण करना अनु चत है, ऐसा सोचकर वे तीतर बन
गये और उस सं हताको चुग लया। इसीसे यजुवदक वह परम रमणीय शाखा ‘तै रीय’ के
नामसे स ई ।।६४-६५।। शौनकजी! अब या व यने सोचा क म ऐसी ु तयाँ ा त
क ँ , जो मेरे गु जीके पास भी न ह । इसके लये वे सूयभगवान्का उप थान करने
लगे ।।६६।।
सुकमा चा प त छ यः सामवेदतरोमहान् ।
सह सं हताभेदं च े सा नां ततो जः ।।७६
* ६७, ६८, ६९—इन तीन वा य ारा मशः गाय ीम के ‘त स वतुवरे यम्,’ ‘भग
दे व य धीम ह’ और ‘ धयो यो नः चोदयात्’—इन तीन चरण क ा या करते ए भगवान्
सूयक तु त क गयी है।
पु षानुगृहीतानामेतेषां वासनामयः ।
वसग ऽयं समाहारो बीजाद् बीजं चराचरम् ।।१२
ा भृगुभवो द ो पु ा ये परे ।
नृदेव पतृभूता न तेनास त व मताः ।।१२
ते वै तदा मं ज मु हमा े ः पा उ रे ।
पु पभ ा नद य च ा या च शला वभो ।।१७
न्! इस सातव म व तरम जब इ को इस बातका पता चला, तब तो वे उनक
तप यासे शं कत और भयभीत हो गये। इस लये उ ह ने उनक तप याम व न डालना
आर भ कर दया ।।१५।।
शौनकजी! इ ने माक डेयजीक तप याम व न डालनेके लये उनके आ मपर ग धव,
अ सराएँ, काम, वस त, मलया नल, लोभ और मदको भेजा ।।१६।। भगवन्! वे सब उनक
आ ाके अनुसार उनके आ मपर गये। माक डेयजीका आ म हमालयके उ रक ओर है।
वहाँ पु पभ ा नामक नद बहती है और उसके पास ही च ा नामक एक शला है ।।१७।।
शौनकजी! माक डेयजीका आ म बड़ा ही प व है। चार ओर हरे-भरे प व वृ क
पं याँ ह, उनपर लताएँ लहलहाती रहती ह। वृ के झुरमुटम थान- थानपर पु या मा
ऋ षगण नवास करते ह और बड़े ही प व एवं नमल जलसे भरे जलाशय सब ऋतु म
एक-से ही रहते ह ।।१८।। कह मतवाले भ रे अपनी संगीतमयी गुंजारसे लोग का मन
आक षत करते रहते ह तो कह मतवाले को कल पंचम वरम ‘कु -कु ’ कूकते रहते ह;
कह मतवाले मोर अपने पंख फैलाकर कलापूण नृ य करते रहते ह तो कह अ य मतवाले
प य का झुंड खेलता रहता है ।।१९।। माक डेय मु नके ऐसे प व आ मम इ के भेजे
ए वायुने वेश कया। वहाँ उसने पहले शीतल झरन क न ह -न ह फु हयाँ सं ह क ।
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इसके बाद सुग धत पु प का आ लगन कया और फर कामभावको उ े जत करते ए
धीरे-धीरे बहने लगा ।।२०।। कामदे वके यारे सखा वस तने भी अपनी माया फैलायी।
स याका समय था। च मा उ दत हो अपनी मनोहर करण का व तार कर रहे थे। सह -
सह डा लय वाले वृ लता का आ लगन पाकर धरतीतक झुके ए थे। नयी-नयी
कोपल , फल और फूल के गु छे अलग ही शोभायमान हो रहे थे ।।२१।। वस तका सा ा य
दे खकर कामदे वने भी वहाँ वेश कया। उसके साथ गाने-बजानेवाले ग धव झुंड-के-झुंड
चल रहे थे, उसके चार ओर ब त-सी वग य अ सराएँ चल रही थ और अकेला काम ही
सबका नायक था। उसके हाथम पु प का धनुष और उसपर स मोहन आ द बाण चढ़े ए
थे ।।२२।।
प ा मालामुत ज तुमाजनं
वेदं च सा ा प एव पणौ ।
तप ड ण पशंगरो चषा
ांशू दधानौ वबुधषभा चतौ ।।३४
ते वै भगवतो पे नरनारायणावृषी ।
् वो थायादरेणो चैननामांगेन द डवत् ।।३५
तयोरासनमादाय पादयोरव न य च ।
अहणेनानुलेपेन धूपमा यैरपूजयत् ।।३८
ना यं तवांङ् यपनयादपवगमूतः
ेमं जन य प रतो भय ईश व ः ।
स वं रज तम इतीश तवा मब धो
मायामयाः थ तलयोदयहेतवोऽ य ।
लीला धृता यद प स वमयी शा यै
ना ये नृणां सनमोह भय या याम् ।।४५
त माययाऽऽवृतम तः स उ एव सा ा-
दा तवा खलगुरो पसा वेदम् ।।४८
तमेव च तय थमृ षः वा म एव सः ।
वस यकसोमा बु भूवायु वयदा मसु ।।८
तं च डश दं समुद रय तं
बलाहका अ वभवन् करालाः ।
अ थ व ा मुमुचु त ड ः
वन त उ चैर भवषधाराः ।।११
ततो य त चतुःसमु ाः
सम ततः मातलमा स तः ।
समीरवेगो म भ न -
महाभयावतगभीरघोषाः ।।१२
सूतजी कहते ह—शौनकजी! जब इस कार माक डेय मु नने भगवान् नर-नारायणक
इ छानुसार तु त-पूजा कर ली एवं वरदान माँग लया, तब उ ह ने मुसकराते ए कहा
—‘ठ क है, ऐसा ही होगा।’ इसके बाद वे अपने आ म बदरीवनको चले गये ।।७।।
माक डेय मु न अपने आ मपर ही रहकर नर तर इस बातका च तन करते रहते क मुझे
मायाके दशन कब ह गे। वे अ न, सूय, च मा, जल, पृ वी, वायु, आकाश एवं अ तःकरणम
—और तो या, सव भगवान्का ही दशन करते ए मान सक व तु से उनका पूजन करते
रहते। कभी-कभी तो उनके दयम ेमक ऐसी बाढ़ आ जाती क वे उसके वाहम डू बने-
उतराने लगते, उ ह इस बातक भी याद न रहती क कब कहाँ कस कार भगवान्क पूजा
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करनी चा हये? ।।८-९।।
शौनकजी! एक दनक बात है, स याके समय पु पभ ा नद के तटपर माक डेय मु न
भगवान्क उपासनाम त मय हो रहे थे। न्! उसी समय एकाएक बड़े जोरक आँधी
चलने लगी ।।१०।। उस समय आँधीके कारण बड़ी भयंकर आवाज होने लगी और बड़े
वकराल बादल आकाशम मँडराने लगे। बजली चमक-चमककर कड़कने लगी और रथके
धुरेके समान जलक मोट -मोट धाराएँ पृ वीपर गरने लग ।।११।। यही नह , माक डेय
मु नको ऐसा दखायी पड़ा क चार ओरसे चार समु समूची पृ वीको नगलते ए उमड़े आ
रहे ह। आँधीके वेगसे समु म बड़ी-बड़ी लहर उठ रही ह, बड़े भयंकर भँवर पड़ रहे ह और
भयंकर व न कान फाड़े डालती है। थान- थानपर बड़े-बड़े मगर उछल रहे ह ।।१२।। उस
समय बाहर-भीतर, चार ओर जल-ही-जल द खता था। ऐसा जान पड़ता था क उस
जलरा शम पृ वी ही नह , वग भी डू बा जा रहा है; ऊपरसे बड़े वेगसे आँधी चल रही है और
बजली चमक रही है, जससे स पूण जगत् संत त हो रहा है। जब माक डेय मु नने दे खा क
इस जल- लयसे सारी पृ वी डू ब गयी है, उ ज, वेदज, अ डज और जरायुज—चार
कारके ाणी तथा वयं वे भी अ य त ाकुल हो रहे ह, तब वे उदास हो गये और साथ ही
अ य त भयभीत भी ।।१३।। उनके सामने ही लयसमु म भयंकर लहर उठ रही थ ,
आँधीके वेगसे जलरा श उछल रही थी और लयकालीन बादल बरस-बरसकर समु को और
भी भरते जा रहे थे। उ ह ने दे खा क समु ने प, वष और पवत के साथ सारी पृ वीको
डु बा दया ।।१४।। पृ वी, अ त र , वग, यो तम डल ( ह, न एवं तार का समूह) और
दशा के साथ तीन लोक जलम डू ब गये। बस, उस समय एकमा महामु न माक डेय ही
बच रहे थे। उस समय वे पागल और अंधेके समान जटा फैलाकर यहाँसे वहाँ और वहाँसे
यहाँ भाग-भागकर अपने ाण बचानेक चे ा कर रहे थे ।।१५।। वे भूख- याससे ाकुल हो
रहे थे। कसी ओर बड़े-बड़े मगर तो कसी ओर बड़े-बड़े त म गल म छ उनपर टू ट पड़ते।
कसी ओरसे हवाका झ का आता, तो कसी ओरसे लहर के थपेड़े उ ह घायल कर दे ते। इस
कार इधर-उधर भटकते-भटकते वे अपार अ ाना धकारम पड़ गये—बेहोश हो गये और
इतने थक गये क उ ह पृ वी और आकाशका भी ान न रहा ।।१६।। वे कभी बड़े भारी
भँवरम पड़ जाते, कभी तरल तरंग क चोटसे चंचल हो उठते। जब कभी जल-ज तु आपसम
एक- सरेपर आ मण करते, तब ये अचानक ही उनके शकार बन जाते ।।१७।। कह
शोक त हो जाते तो कह मोह त। कभी ःख-ही- ःखके न म आते तो कभी त नक
सुख भी मल जाता। कभी भयभीत होते, कभी मर जाते तो कभी तरह-तरहके रोग उ ह
सताने लगते ।।१८।। इस कार माक डेय मु न व णुभगवान्क मायाके च करम मो हत हो
रहे थे। उस लयकालके समु म भटकते-भटकते उ ह सैकड़ -हजार ही नह , लाख -करोड़
वष बीत गये ।।१९।।
अ तब ह ा र त ु भः खरैः
शत दाभी पता पतं जगत् ।
त यैवमु त ऊ मभीषणः
भंजनाघू णतवामहाणवः ।
आपूयमाणो वरष र बुदैः
माम यधाद् पवषा भः समम् ।।१४
स मा त र ं स दवं सभागणं
ैलो यमासीत् सह द भरा लुतम् ।
स एक एवोव रतो महामु न-
ब ाम व य जटा जडा धवत् ।।१५
अयुतायुतवषाणां सह ा ण शता न च ।
तीयु मत त मन् व णुमायावृता मनः ।।१९
त मन् पृ थ ाः ककु द ढं
वटं च त पणपुटे शयानम् ।
तोकं च त ेमसुधा मतेन
नरी तोऽपांग नरी णेन ।।३१
शौनकजी! उस द शशुको दे खते ही माक डेय मु नक सारी थकावट जाती रही।
आन दसे उनके दय-कमल और ने कमल खल गये। शरीर पुल कत हो गया। उस न ह-से
शशुके इस अद्भुत भावको दे खकर उनके मनम तरह-तरहक शंकाएँ—‘यह कौन है’
इ या द—आने लग और वे उस शशुसे ये बात पूछनेके लये उसके सामने सरक
गये ।।२६।। अभी माक डेयजी प ँच भी न पाये थे क उस शशुके ासके साथ उसके
शरीरके भीतर उसी कार घुस गये, जैसे कोई म छर कसीके पेटम चला जाय। उस शशुके
पेटम जाकर उ ह ने सब-क -सब वही सृ दे खी, जैसी लयके पहले उ ह ने दे खी थी। वे
वह सब व च य दे खकर आ यच कत हो गये। वे मोहवश कुछ सोच- वचार भी न
सके ।।२७।। उ ह ने उस शशुके उदरम आकाश, अ त र , यो तम डल, पवत, समु ,
प, वष, दशाएँ, दे वता, दै य, वन, दे श, न दयाँ, नगर, खान, कसान के गाँव, अहीर क
ब तयाँ, आ म, वण, उनके आचार- वहार, पंचमहाभूत, भूत से बने ए ा णय के शरीर
तथा पदाथ, अनेक युग और क प के भेदसे यु काल आ द सब कुछ दे खा। केवल इतना
ही नह जन दे श , व तु और काल के ारा जगत्का वहार स प होता है, वह सब
कुछ वहाँ व मान था। कहाँतक कह, यह स पूण व न होनेपर भी वहाँ स यके समान
तीत होते दे खा ।।२८-२९।। हमालय पवत, वही पु पभ ा नद , उसके तटपर अपना
आ म और वहाँ रहनेवाले ऋ षय को भी माक डेयजीने य ही दे खा। इस कार स पूण
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व को दे खते-दे खते ही वे उस द शशुके ासके ारा ही बाहर आ गये और फर
लयकालीन समु म गर पड़े ।।३०।। अब फर उ ह ने दे खा क समु के बीचम पृ वीके
ट लेपर वही बरगदका पेड़ य -का- य व मान है और उसके प ेके दोनेम वही शशु सोया
आ है। उसके अधर पर ेमामृतसे प रपूण म द-म द मुसकान है और अपनी ेमपूण
चतवनसे वह माक डेयजीक ओर दे ख रहा है ।।३१।।
अथ तं बालकं वी य ने ा यां ध तं द ।
अ ययाद तसं ल ः प र व ु मधो जम् ।।३२
आ म य प शवं ा तं त ड पंगजटाधरम् ।
य १ं दशभुजं ांशुमु त मव भा करम् ।।११
ने े उ मी य द शे सगणं सोमयाऽऽगतम् ।
ं लोकैकगु ं ३ ननाम शरसा मु नः ।।१४
न ते म य युतेऽजे च भदाम व प च ते ।
ना मन जन या प तद् यु मान् वयमीम ह ।।२२
ा णे यो नम यामो येऽ म प
ू ं यीमयम् ।
ब या मसमाधानतपः वा यायसंयमैः ।।२४
अ ाकृतमन ता यमासनं यद ध तः ।
धम ाना द भयु ं स वं प महो यते ।।१३
स व तैजसः ा तुरीय इ त वृ भः ।
अथ याशय ानैभगवान् प रभा ते ।।२२
जऋषभ स एष यो नः वयं क्
वम हमप रपूण मायया च वयैतत् ।
सृज त हर त पाती या ययानावृता ो
ववृत इव न त परैरा मल यः ।।२४
व स ो व णो र भा सहज य तथा ः ।
शु वन ैव शु चमासं नय यमी ।।३६
व ा ऋचीकतनयः क बल तलो मा ।
ापेतोऽथ शत जद् धृतरा इष भराः ।।४३
व रो वसंवादः ृमै य
े यो ततः ।
पुराणसं हता ो महापु षसं थ तः ।।८
ऊ व तयगवा सग सग तथैव च ।
अधनारीनर याथ यतः वाय भुवो मनुः ।।११
शत पा च या ीणामा ा कृ त मा ।
स तानो धमप नीनां कदम य जापतेः ।।१२
नव समु प द य वनाशनम् ।
ुव य च रतं प ा पृथोः ाचीनब हषः ।।१४
द ज म चेतो य त पु ीणां च स त तः ।
यतो दे वासुरनरा तयङ् नगखगादयः ।।१७
य ा म व ा खला ो ा धम व नणयः ।
ततो म यप र याग आ मयोगानुभावतः ।।४२
इ त चो ं ज े ा य पृ ोऽह महा म वः ।
लीलावतारकमा ण क ततानीह सवशः ।।४५
नै क यम य युतभावव जतं
न शोभते ानमलं नरंजनम् ।
कुतः पुनः श दभ मी रे
न पतं कम यद यनु मम् ।।५२
अ व मृ तः कृ णपदार व दयोः
णो यभ ा ण शमं तनो त च ।
स व य शु परमा मभ
ानं च व ान वरागयु म् ।।५४
जस वाणीसे—चाहे वह रस, भाव, अलंकार आ दसे यु ही य न हो—जगत्को
प व करनेवाले भगवान् ीकृ णके यशका कभी गान नह होता, वह तो कौ के लये
उ छ फकनेके थानके समान अ य त अप व है। मानससरोवर- नवासी हंस अथवा
धामम वहार करनेवाले भगव चरणार व दा त परमहंस भ उसका कभी सेवन नह
करते। नमल दयवाले साधुजन तो वह नवास करते ह, जहाँ भगवान् रहते ह ।।५०।।
इसके वपरीत जसम सु दर रचना भी नह है और जो ाकरण आ दक से षत
श द से यु भी है, पर तु जसके येक ोकम भगवान्के सुयशसूचक नाम जड़े ए ह,
वह वाणी लोग के सारे पाप का नाश कर दे ती है; य क स पु ष ऐसी ही वाणीका वण,
गान और क तन कया करते ह ।।५१।।
वह नमल ान भी, जो मो क ा तका सा ात् साधन है, य द भगवान्क भ से
र हत हो तो उसक उतनी शोभा नह होती। फर जो कम भगवान्को अपण नह कया गया
है—वह चाहे कतना ही ऊँचा य न हो—सवदा अमंगल प, ःख दे नेवाला ही है; वह तो
शोभन—वरणीय हो ही कैसे सकता है? ।।५२।।
वणा मके अनुकूल आचरण, तप या और अ ययन आ दके लये जो ब त बड़ा प र म
कया जाता है, उसका फल है—केवल यश अथवा ल मीक ा त। पर तु भगवान्के गुण,
लीला, नाम आ दका वण, क तन आ द तो उनके ीचरणकमल क अ वचल मृ त दान
करता है ।।५३।।
भगवान् ीकृ णके चरणकमल क अ वचल मृ त सारे पाप-ताप और अमंगल को न
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कर दे ती और परम शा तका व तार करती है। उसीके ारा अ तःकरण शु हो जाता है,
भगवान्क भ ा त होती है एवं परवैरा यसे यु भगवान्के व पका ान तथा अनुभव
ा त होता है ।।५४।।
यूयं जा या ् बत भू रभागा
य छ दा म य खला मभूतम् ।
नारायणं दे वमदे वमीश-
मज भावा भजता ववे य ।।५५
अहं च सं मा रत आ मत वं
ुतं पुरा मे परम षव ात् ।
ायोपवेशे नृपतेः परी तः
सद यृषीणां महतां च शृ वताम् ।।५६
तमहमजमन तमा मत वं
जग दय थ तसंयमा मश म् ।
ुप त भरजश शंकरा -ै
रव सत तवम युतं नतोऽ म ।।६६
पृ े ा यदम दम दर ग र-
ावा क डू यना-
ालोः कमठाकृतेभगवतः
ासा नलाः पा तु वः ।
य सं कारकलानुवतनवशाद्
वेला नभेना भसां
यातायातमत तं जल नधे-
ना ा प व ा य त ।।२
सूतजी कहते ह— ा, व ण, इ , और म द्गण द तु तय के ारा जनके
गुण-गानम संल न रहते ह; साम-संगीतके मम ऋ ष-मु न अंग, पद, म एवं उप नषद के
स हत वेद ारा जनका गान करते रहते ह; योगीलोग यानके ारा न ल एवं त लीन मनसे
जनका भावमय दशन ा त करते रहते ह; क तु यह सब करते रहनेपर भी दे वता, दै य,
मनु य—कोई भी जनके वा त वक व पको पूणतया न जान सका, उन वयं काश
परमा माको नम कार है ।।१।।
जस समय भगवान्ने क छप प धारण कया था और उनक पीठपर बड़ा भारी
म दराचल मथानीक तरह घूम रहा था, उस समय म दराचलक च ान क नोकसे
खुजलानेके कारण भगवान्को त नक सुख मला। वे सो गये और ासक ग त त नक बढ़
गयी। उस समय उस ासवायुसे जो समु के जलको ध का लगा था, उसका सं कार आज
भी उसम शेष है। आज भी समु उसी ासवायुके थपेड़ के फल व प वार-भाट के पम
दन-रात चढ़ता-उतरता रहता है, उसे अबतक व ाम न मला। भगवान्क वही
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परम भावशाली ासवायु आपलोग क र ा करे ।।२।।
ा ं दशसह ा ण पा ं पंचोनष च ।
ीवै णवं यो वश चतु वश त शैवकम् ।।४
चतुदश भ व यं या था पंचशता न च ।
दशा ौ वैवत लगमेकादशैव तु ।।६
नम त मै भगवते वासुदेवाय सा णे ।
य इदं कृपया क मै ाचच े मुमु वे ।।२०
इ त ादशः क धः समा तः
स पूण ऽयं थः
वद यं व तु गो व द तु यमेव समपये ।
तेन वदङ् कमले र त मे य छ शा तीम् ।।
हे गो व द! आपक व तु आपको ही समपण कर रहा ँ। इसके ारा आपके
चरणकमल म मुझे शा त ेम दान करनेक कृपा कर।
प र व य स तं वीरः कृ णैकगतमानसः ।
रो ह या ा हरेः प नीवव दायतनागतः ।।७
त मा ा पा प मे च ता ा ं ढमुपेयुषः ।
क वेका परमा च ता त क चद् वचायताम् ।।१४
न या त ल सव ैव दे वा ा े त भेदतः ।
दे वा ा तेषु कृ णेन ारकां ा पताः पुरा ।।३२
व संसेवनाद य उ व वां म ल य त ।
ततो रह यमेत मात् ा य स वं समातृकः ।।४१
गो व दह रदे वा द व पारोपणेन च ।
कृ णैकभ वे रा ये ततान च मुमोद ह ।।६
त छ वा मयमाना सा का ल द वा यम वीत् ।
साप यं वी य त ासां क णापरमानसा ।।१०
का ल ुवाच
आ माराम य कृ ण य ुवमा मा त रा धका ।
त या दा य भावेण वरहोऽ मान् न सं पृशेत् ।।११
व णुरात तु त छ वा स त ुत तदा ।
त ैवाग य तत् सव कारयामास स वरम् ।।२९
वृषभानुसुताका त वहारे क तन या ।
सा ा दव समावृ े सवऽन य शोऽभवन् ।।३१
फर भी एक थान है, जहाँ उ वजीका दशन हो सकता है। गोवधन पवतके नकट
भगवान्क लीला-सहचरी गो पय क वहार- थली है; वहाँक लता, अंकुर और बेल के
पम अव य ही उ वजी वहाँ नवास करते ह। लता के पम उनके रहनेका यही उ े य
है क भगवान्क यतमा गो पय क चरणरज उनपर पड़ती रहे ।।२४।। उ वजीके
स ब धम एक न त बात यह भी है क उ ह भगवान्ने अपना उ सव- व प दान कया
कृ णप नीषु व े च द ा ी तः व तता ।
तवो चत मदं तात कृ णद ांगवैभव ।।३
ीम ागवतं शा ं य भागवतैयदा ।
क यते ूयते चा प ीकृ ण त न तम् ।।१२
ा तु ना भकमला प तं ज पत् ।
ोवाच
नारायणा दपु ष परमा मन् नमोऽ तु ते ।।२३
आ य तके तु संहारे मम श न व ते ।
महद् ःखं ममैत ु तेन वां ाथया यहम् ।।४०
बृह प त वाच
ीम ागवतं त मा अ प नारायणो ददौ ।
स तु संसेवनाद य ज ये चा प तमोगुणम् ।।४१
तत तु वै णव री त गृही वा मासमा तः ।
ीम ागवता वादो मया स यङ् नषे वतः ।।४४
न दन दन प तु ीशुको भगवानृ षः ।
ीम ागवतं तु यं ाव य य यसंशयम् ।।६३
इस लये तुम द वजयके लये जाओ और क लयुगको जीतकर अपने वशम करो। इधर
म तु हारी सहायतासे वै णवी री तका सहारा लेकर एक महीनेतक यहाँ ीम ागवतकथाका
रसा वादन कराऊँगा और इस कार भागवतकथाके रसका सार करके इन सभी
ोता को भगवान् मधुसूदनके न य गोलोकधामम प ँचाऊँगा ।।५५-५६।।
सूतजी कहते ह—उ वजीक बात सुनकर राजा परी त् पहले तो क लयुगपर वजय
पानेके वचारसे बड़े ही स ए; पर तु पीछे यह सोचकर क मुझे भागवतकथाके वणसे
वं चत ही रहना पड़ेगा, च तासे ाकुल हो उठे । उस समय उ ह ने उ वजीसे अपना
अ भ ाय इस कार कट कया ।।५७।।
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राजा परी त्ने कहा—हे तात! आपक आ ाके अनुसार त पर होकर म क लयुगको
तो अव य ही अपने वशम क ँ गा, मगर ीम ागवतक ा त मुझे कैसे होगी ।।५८।।
म भी आपके चरण क शरणम आया ,ँ अतः मुझपर भी आपको अनु ह करना
चा हये।
सूतजी कहते ह—उनके इस वचनको सुनकर उ वजी पुनः बोले ।।५९।।
उ वजीने कहा—राजन्! तु ह तो कसी भी बातके लये कसी कार भी च ता नह
करनी चा हये; य क इस भागवतशा के धान अ धकारी तो तु ह हो ।।६०।। संसारके
मनु य नाना कारके कम म रचे-पचे ए ह, ये लोग आजतक ायः भागवत- वणक बात
भी नह जानते ।।६१।। तु हारे ही सादसे इस भारतवषम रहनेवाले अ धकांश मनु य
ीम ागवतकथाक ा त होनेपर शा त सुख ा त करगे ।।६२।। मह ष भगवान्
ीशुकदे वजी सा ात् न दन दन ीकृ णके व प ह, वे ही तु ह ीम ागवतक कथा
सुनायगे; इसम त नक भी स दे हक बात नह है ।।६३।।
त मा वं ग छ राजे क ल न हमाचर ।
सूत उवाच
इ यु तं प र य गतो राजा दशां जये ।।६५
त व पं माणं च व ध च वणे वद ।
त ु ल णं सूत ोतु ा प वदाधुना ।।२
सूत उवाच
ीम ागवत याथ ीम गवतः सदा ।
व पमेकमेवा त स चदान दल णम् ।।३
भू डः श येद या छ वा न वयमाचरेत् ।
यथा हमवतः शृंगे भू डा यो वहंगमः ।।१७
यः थ वा भमुखं ण य व धव-
य ा यवादो हरे-
ल लाः ोतुमभी सतेऽ त नपुणो
न ोऽथ लृ तांज लः ।
श यो व सतोऽनु च तनपरः
ेऽनुर ः शु च-
न यं कृ णजन यो नग दतः
ोता स वै व ृ भः ।।२१
उभयोवपरी ये तु रसाभासे फल यु तः ।
क तु कृ णा थनां स वल बेना प जायते ।।४०
धना थन तु सं स व धस पूणतावशात् ।
कृ णा थनोऽगुण या प ेमैव व ध मः ।।४१