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अन जोशी
जो खुद को मूल नवासी मानते ह वे यह भी जान ल क ारंभ म मानव हमालय के आसपास ही रहता
था। हमयुग क समा त के बाद ही धरती पर वन े और मैदान का व तार आ तब मानव वहां
जाकर रहने लगा। हर धम म इसका उ लेख मलता है क हमालय से नकलने वाली कसी नद के पास
ही मानव क उ प ई थी। वह पर एक प व ब गचा था जहां पर ारं भक मानव का एक समूह
रहता था। धम के इ तहास के अलावा धरती के भूगोल और मानव इ तहास के वै ा नक प को भी
जानना ज री है।
अगले प े पर पहला ाचीन वंश...
वायंभुव मनु कुल : वायंभुव मनु कुल क कई शाखाएं ह। उनम से एक मुख शाखा क बात करते
ह। वायंभुव मनु सम त मानव जा त के थम संदेशवाहक ह। वायंभुव मनु एवं शत पा के कुल 5
संतान थ जनम से 2 पु य त एवं उ ानपाद तथा 3 क याएं आकू त, दे व त और सू त थे।
आकू त का ववाह च जाप त के साथ और सू त का ववाह द जाप त के साथ आ। दे व त
का ववाह जाप त कदम के साथ आ। च को आकू त से एक पु उ प आ जसका नाम य
रखा गया। इनक प नी का नाम द णा था।
गौरतलब है क दे व त ने 9 क या को ज म दया जनका ववाह जाप तय से कया गया था।
दे व त ने एक पु को भी ज म दया था, जो महान ऋ ष क पल के नाम से जाने जाते ह। भारत के
क पलव तु म उनका ज म आ था और वे सां य दशन के वतक थे। उ ह ने ही सगर के 100 पु को
अपने शाप से भ म कर दया था।
दो पु - य त और उ ानपाद। उ ानपाद क सुनी त और सु च नामक 2 प नयां थ । राजा
उ ानपाद के सुनी त से ुव तथा सु च से उ म नामक पु उ प ए। ुव ने ब त स हा सल क
थी।
वायंभुव मनु के सरे पु य त ने व कमा क पु ी ब ह मती से ववाह कया था जनसे आ नी ,
य बा , मेधा त थ आ द 10 पु उ प ए। य त क सरी प नी से उ म, तामस और रैवत- ये 3
पु उ प ए, जो अपने नाम वाले म वंतर के अ धप त ए। महाराज य त के 10 पु म से क व,
महावीर तथा सवन ये 3 नै क चारी थे और उ ह ने सं यास धम हण कया था।
महाराज मनुने ब त दन तक इस स त पवती पृ वी पर रा य कया। उनके रा य म जा ब त
सुखी थी। इ ह ने 'मनु मृ त' क रचना क थी, जो आज मूल प म नह मलती। उसके अथ का अनथ
ही होता रहा है। उस काल म वण का अथ रंग होता था और आज जा त।
जा का पालन करते ए जब महाराज मनु को मो क अ भलाषा ई तो वे संपूण राजपाट अपने बड़े
पु उ ानपाद को स पकर एकांत म अपनी प नी शत पा के साथ नै मषार य तीथ चले गए, ले कन
उ ानपाद क अपे ा उनके सरे पु राजा य त क स ही अ धक रही। सुनंदा नद के कनारे
100 वष तक तप या क । दोन प त-प नी ने नै मषार य नामक प व तीथ म गोमती के कनारे भी
ब त समय तक तप या क । उस थान पर दोन क समा धयां बनी ई ह।
य त का कुल :राजा य त के ये पु आ नी ज बू प के अ धप त ए। अ नी के 9 पु
ज बू प के 9 खंड के वामी माने गए ह जनके नाम उ ह के नाम के अनुसार इलावृत वष, भ ा वष,
केतुमाल वष, कु वष, हर यमय वष, र यक वष, ह र वष, कपु ष वष और हमालय से लेकर समु के
भू-भाग को ना भ खंड कहते ह। ना भ और कु ये दोन वष धनुष क आकृ त वाले बताए गए ह। ना भ
के पु ऋषभ ए और ऋषभ से 'भरत' एवं बा बली का ज म आ। भरत के नाम पर ही बाद म इस
ना भ खंड को 'भारतवष' कहा जाने लगा। बा बली को वैरा य ा त आ तो ऋषभ ने भरत को च वत
स ाट बनाया। भरत को वैरा य आ तो वे अपने बड़े पु को राजपाट स पकर जंगल चले गए।
वायंभु मनु के काल के ऋ ष मरी च, अ , अं गरस, पुलह, कृतु, पुल य और व श ए। राजा मनु
स हत उ ऋ षय ने ही मानव को स य, सु वधा संप , मसा य और सुसं कृत बनाने का काय कया।
अगले प े पर सरा ाचीन वंश...
क यप कुल :क यप कुल क कई शाखाएं ह। प पल, नीम, कदं ब, कदम, केम, केन, बड़, सूयवंशी,
चं वंशी, नाग आ द उपनाम या गो ह मोची समाज म पाए जाते ह। ये सभी मरी चवंशी है। यहां
मुख शाखा क बात करते ह। ऋ ष क यप ाजी के पु मरी च के व ान पु थे। मरी च के सरे
पु ऋ ष अ थे जनसे अ वंश चला। ऋ ष मरी च पहले म वंतर के पहले स तऋ षय क सूची के
पहले ऋ ष ह। ये द के दामाद और शंकर के साढू थे। इनक प नी द क या संभू त थी। इनक 2 और
प नयां थी- कला और उणा। संभवत: उणा को ही धम ता भी कहा जाता है। द के य म मरी च ने भी
शंकर का अपमान कया था। इस पर शंकर ने इ ह भ म कर डाला था। इ ह ने ही भृगु को दं डनी त क
श ा द है। ये सुमे के एक शखर पर नवास करते ह और महाभारत म इ ह च शखंडी कहा गया
है। इ ह के पु थे क यप ऋ ष।
भृगु कुल :भृगु से भागव, यवन, औव, आ ुवान, जमद न, दधी च आ द के नाम से गो चले। य द हम
ा के मानस पु भृगु क बात कर तो वे आज से लगभग 9,400 वष पूव ए थे। इनके बड़े भाई का
नाम अं गरा था। अ , मरी च, द , व श , पुल य, नारद, कदम, वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनका द
ऋ ष इनके भाई ह। ये व णु के सुर और शव के साढू थे। मह ष भृगु को भी स त ष मंडल म थान
मला है। पारसी धम के लोग को अ , भृगु और अं गरा के कुल का माना जाता है। पारसी धम के
सं थापक जरथु को ऋ वेद के अं गरा, बृह प त आ द ऋ षय का समका लक माना गया है। पार सय
का धम ंथ 'जद अवे ता' है, जो ऋ वै दक सं कृत क ही एक पुरातन शाखा अवे ता भाषा म लखा गया
है।
व कमा वंश : व कमा वंश कह -कह भृगु कुल से और कह अं गरा कुल से संबंध रखते ह। इसका
कारण है क हर कुल म अलग-अलग व कमा ए ह। हमारे दे श म व कमा नाम से एक ा ण समाज
भी है, जो व कमा समाज के नाम से मौजूद है। जांगीड़ ा ण, सुतार, सुथार और अ य सभी श पी
नमाण कला एवं शा ान म पारंगत होते ह। यह ा ण म सबसे े समाज है य क ये नमाता ह।
श प , व कमा ा ण को ाचीनकाल म रथकार वधक , एतब क व, मोयावी, पांचाल, रथप त,
सुह त सौर और परासर आ द श द से संबो धत कया जाता था। उस समय आजकल के सामान
लोहाकार, का कार, सुतार और वणकार जैसे जा त भेद नह थे। ाचीन समय म श प कम ब त
ऊंचा समझा जाता था और सभी जा त, वण समाज के लग ये काय करते थे।
व कमाSभव पूव ण वपराSतनुः। व ः जापतेः पु ो नपुणः सव कमस।।
अथ : य आ द ा व कमा व ा जाप त का पु पहले उ प आ और वह सब काम म
नपुण था।
भास पु व कमा, भुवन पु व कमा तथा व ापु व कमा आ द अनेक व कमा ए ह। यहां
बात करते ह थम व कमा क जो वा तुदेव और अं गरसी के पु थे। व कमा के मुख 5 पु थे- मनु,
मय, व ा, श पी एवं दै व ।
अगले प े पर आठवां ाचीन वंश...
गौतम वंश: भगवान बु को भी कुछ लोग गौतम वंशी मानते ह। हालां क इस वंश म ा ण और
य के समूह स हत कई द लत के समूह भी वक सत ए। ब त से शा यवंशी गौतम बु को
शा यवंशी मानते ह जो क सही नह है। गौतम बु ने शा य को सबसे यादा द त कया था
इसी लए शा य म उनक त ा यादा है। खैर... व ा म और व श के समकालीन मह ष गौतम
याय दशन के वतक भी थे। उ ह अ पाद गौतम के नाम से भी जाना जाता है।
पराशर के पु ही कृ ण ै पायन (वेद ास) थे ज ह ने 'महाभारत' लखी थी। स यवती जब कुंवारी थी,
तब वेद ास ने उनके गभ से ज म लया था। बाद म स यवती ने ह तनापुर महाराजा शांतनु से ववाह
कया था। शांतनु के पु भी म थे, जो गंगा के गभ से ज मे थे।
स यवती के शांतनु से 2 पु ए च ांगद और व च वीय। च ांगद यु म मारा गया जब क व च वीय
का ववाह भी म ने काशीराज क पु ी अ बका और अ बा लका से कर दया, ले कन व च वीय को
कोई संतान नह हो रही थी तब च तत स यवती ने अपने पराशर मु न से उ प पु वेद ास को बुलाया
और उ ह यह ज मेदारी स पी क अ बका और अ बा लका को कोई पु मले। अ बका से धृतरा और
अ बा लका से पांडु का ज म आ जब क एक दासी से व र का। इस तरह दे खा जाए तो पराशर मु न के
वंश क एक शाखा यह भी थी।
धृतरा क प नी गांधारी थी जनके 100 पु थे। दासी पु व र क प नी य वंशी थी जसका नाम
सुलभा था। पांडु का वंश नह चला। पांडु क 2 प नयां कुंती और मा थ ।
पराशर ऋ ष ने अनेक ंथ क रचना क जसम से यो तष के ऊपर लखे गए उनके ंथ ब त ही
मह वपूण रहे। यो तष के होरा, ग णत और सं हता 3 अंग ए जसम होरा सबसे अ धक मह वपूण है।
होरा शा क रचना मह ष पराशर के ारा ई है। ऋ ष पराशर के व ान श य पैल, जै मन,
वैश पायन, सुम तुमु न और रोम हषण थे।
अगले प े पर चौदहवां ाचीन वंश...
कंदपुराण के नागर खंड म का यायन को या व य का पु बतलाया गया है। उ ह ने ' ौतसू ',
'गृ सू ' आ द क रचना क थी। हम ऊपर व ा म और उनके वंश के बारे म लख आए ह, जो एक
मै ेय गो आता है वह भी व ा म से संबं धत है।
अगले प े पर पं हवां ाचीन वंश...
द वंश :पुराण के अनुसार द जाप त परम पता ा के पु थे, जो क मीर घाट के हमालय े
म रहते थे। जाप त द क 2 प नयां थ - सू त और वीरणी। सू त से द क 24 क याएं थ और
वीरणी से 60 क याएं। इस तरह द क 84 पु यां थ । सम त दै य, गंधव, अ सराएं, प ी, पशु सब
सृ इ ह क या से उ प ई। द क ये सभी क याएं दे वी, य णी, पशा चनी आ द कहला । उ
क या और इनक पु य को ही कसी न कसी प म पूजा जाता है। सभी क अलग-अलग
कहा नयां ह।
सू त से द क 24 पु य म से 13 पु य का ववाह धम से कया। इसके अलावा धम से वीरणी क
10 क या का ववाह आ। मह ष क यप से द ने अपनी 13 क या का ववाह कया। इसके
अलावा बची 9 क या का ववाह- र त का कामदे व से, व पा का भूत से, वधा का अं गरा जाप त
से, अ च और दशाना का कृश ा से, वनीता, क ,ू पतंगी और या मनी का ता य क यप से कया।
पुराण क एक अ य मा यता के अनुसार द के सू त नाम क प नी से 16 क याएं ई थ । इनम से 13
उ ह ने जाप त ा को द अत: वे दे व के सुर भी बन गए। उ ह ने वाहा पु ी का ववाह
अ नदे व से कया। उनको सबसे छोट पु ी सती थी, जो यंबक दे व को याही गई। द क कथा
व तार से भागवत आ द अनेक पुराण म वणन क गई है।
द के पु क दा तान :सव थम उ ह ने अ र ा से 10 सह हय नामक पु उ प कए थे। ये
सब समान वभाव के थे। पता क आ ा से ये सृ के न म तप म वृ ए, परंतु दे व ष नारद ने
उपदे श दे कर उ ह वर बना दया। वर होने के कारण उ ह ने कोई ववाह नह कया। वे सभी
चारी रहे।
सरी बार द ने एक सह शबला (सरला ) नामक पु उ प कए। ये भी दे व ष के उपदे श से य त
हो गए। द को ोध आया और उ ह ने दे व ष को शाप दे दया- 'तुम दो घड़ी से अ धक कह थर न रह
सकोगे।'
इनके पु का वणन ऋग् 10-143 म तथा इ ारा इनक र ा ऋग् 1-15-3 म आ नी कुमार ारा
इ ह बृ से त ण कए जाने का कथन ऋग् 10-143-1 म है। राजा द के पु पृषध शू हो गए थे तथा
ाय त व प तप या करके उ ह ने मो ा त कया। उ ह से उनका वंश चला। -( व णु पुराण
4.1.14)
द गो के वर- गो कार ऋ ष के गो म आगे या पीछे जो व श स मा नत या यश वी पु ष होते ह,
वे वरीजन कहे जाते ह और उ ह से पूवज को मा यता यह बतलाती है क इस गो के गो कार के
अ त र और भी व य साधक महानुभाव ए है। द गो के 3 वर ह- 1. आ ेय,े 2. गा व र व 3.
पूवा त थ।
अगले प े पर अठारहवां ाचीन वंश...
व स/वा यायन वंश :व स गो या वंश के वतक भृगवु ंशी व स ऋ ष थे। भारत के ाचीनकालीन
16 जनपद म से एक जनपद का नाम व स था। व स सा ा य गंगा-यमुना के संगम पर इलाहाबाद से
द ण-प म दशा म बसा था जसक राजधानी कौशा बी थी। पाली भाषा म व स को 'वंश' और
त साम यक अधमगधी भाषा म 'व छ' कहा जाता था। चतुभुज चौहान वंशी भी व स वंश से ह। व स वंश
अ नवंश से भी संबंध रखता है।
एक कथा के अनुसार मह ष यवन और महाराज शयातपु ी सुक या के पु राजकुमार
दधी च क 2 प नयां सर वती और अ माला थ । सर वती के पु का नाम सार वत पड़ा
और अ माला के पु का नाम पड़ा व स। युगोपरांत कलयुग आने पर व स वंश संभूत
ऋ षय ने 'वा यायन' उपा ध भी रखी। काल मेण कलयुग के आने पर व स कुल म कुबेर
नामक तप वी व ान पैदा ए। कुबेर के 4 पु - अ युत, ईशान, हर और पाशुपत ए।
पाशुपत को एक पु अथप त ए। अथप त के एकादश पु भृग,ु हंस, शु च आ द ए
जनम अ म थे च भानु। च भानु के वाण ए। यही वाण बाद म वाणभ कहलाए।
भृगु के यवन, यवन के आप वान, आप वान के ओव, ओव के ऋचीक, ऋ चक के
जमद न ए। इसी वंश म आगे चलकर ऋ ष व स ए। इ ह ने अपना खुद का वंश चलाया
इस लए इनके कुल के लोग व स गो रखते ह।
व स गो म कई उपा धयां थ यथा- बा लगा, भागवत, भैरव, भ , दाबोलकर, गांगल, गागकर, घा ेकर,
घाटे , गोरे, गो व ीकर, हरे, हीरे, होले, जोशी, काके कर, काले, म शे, म या, महाल मी, नागेश, सखदे व,
शनॉय, सोहोनी, सोवानी, सु वेलकर, गादे , रामनाथ, शंथेरी, कामा ी आ द।
अगले प े पर उ ीसवां ाचीन वंश...
नारदजी को व का पहला प कार या पो टमैन माना गया है, जो सूचना का आदान- दान करते थे।
यह भी कहा जाता है क वीणा का आ व कार नारदजी ने ही कया था। नारदजी ने ही गीत और भजन
का भी आ व कार भी कया था। नारदजी के कारण ही भु क भ के भ - भ प च लत ए।
नारदजी ने ही द के 10,000 पु को भटकाकर वैरा य धारण करवा दया था।
भारत म ऐसे कई समाज या सं दाय ह, जो खुद को नारद सं दाय का मानते ह। इनम से कुछ नारायण,
न बाक, व लभ, माधव, पंचसखा, चैत य और वै णव सं दाय के ह। व णु भ से जुड़े सभी सं दाय
इसी के अंतगत आते ह। हालां क ये सभी नारद के वंशज ह, यह एक अलग मसला है।
अगले प े पर बावीसवां वंश...
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व ापन
सभी दे ख
ज़ र पढ़
नवरा म इस आराधना से दे वी करगी आपक हर इ छा पूरी