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खबर- यो तष बॉलीवुड लाइफ केट धम- वी डयो साम यक यो तष फोटो अ य Professional


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ह के मुख वंश, जा नए अपने पूवज को

अन जोशी

भारतीय लोग ा, व णु, महेश और ऋ ष मु नय क संतान ह। ा, व णु और महेश के कई


पु और पु यां थी। इन सभी के पु और पु य से ही दे व (सुर), दै य (असुर), दानव, रा स,
गंधव, य , क र, वानर, नाग, चारण, नषाद, मातंग, रीछ, भ ल, करात, अ सरा, व ाधर,
स , नशाचर, वीर, गु क, कुलदे व, थानदे व, ाम दे वता, पतर, भूत, ेत, पशाच, कू मांडा,
रा स, वैताल, े पाल, मानव आ द क उ प ई। 
वंश लेखक , तीथ पुरो हत , प ड व वंश परंपरा के वाचक संवाहक ारा सम त आयावत के नवा सय
को एकजुट रखने का जो आ मीय यास कया गया है, वह न त प से वै दक ऋ ष परंपरा का ही
अ तन आदश उदाहरण माना जा सकता है। पुराण अनुसार वड़, चोल एवं पां जा तय क उ प
म राजा न ष के योगदान को मानते ह, जो इलावत का चं वंशी राजा था। पुराण भारतीय इ तहास को
जल लय तक ले जाते ह। यह से वैव वत म वंतर ारंभ होता है। वेद म पंचनद का उ लेख है। अथात
पांच मुख कुल से ही भारतीय के कुल का व तार आ।
 
वभा जत वंश :संपूण ह वंश वतमान म गो , वर, शाखा, वेद, शम, गण, शखा, पाद, तलक,
छ , माला, दे वता ( शव, वनायक, कुलदे वी, कुलदे वता, इ दे वता, रा दे वता, गो दे वता, भू म दे वता,
ाम दे वता, भैरव और य ) आ द म वभ हो गया है। जैस-े जैसे समाज बढ़ा, गण और गो म भी कई
भेद होते गए। ब त से समाज या लोग ने गुलामी के काल म कालांतर म यह सब छोड़ दया है तो उनक
पहचान क यप गो मान ली जाती है।
 
कुलहंता :आज संपूण अखंड भारत अथात अफगा न तान, पा क तान, बां लादे श, नेपाल और बमा
आ द म जो-जो भी मनु य नवास कर रहे ह, वे सभी न न ल खत मुख ह वंश से ही संबंध रखते ह।
कालांतर म उनक जा त, धम और ांत बदलते रहे ले कन वे सभी एक ही कुल और वंश से ह। गीता म
ीकृ ण अजुन से कहते ह क कुल का नाश तब होता है जब क कोई अपने कुलधम को छोड़ दे ता
है। इस तरह वे अपने मूल एवं पूवज को हमेशा के लए भूल जाते ह। कुलहंता वह होता है, जो अपने
कुलधम और परंपरा को छोड़कर अ य के कुलधम और परंपरा को अपना लेता है। जो वृ अपनी जड़
से नफरत करता है उसे अपने पनपने क गलतफहमी नह होना चा हए।
 
भारत खंड का व तार :महाभारत म ा यो तष (असम), कपु ष (नेपाल), व प ( त बत),
ह रवष (चीन), क मीर, अ भसार (राजौरी), दाद, ण ंजा, अ ब ट आ ब, प तू, कैकेय, गंधार, क बोज,
वा हीक बलख, श व शव थान-सी टान-सारा बलूच े , स ध, सौवीर सौरा समेत स ध का नचला
े दं डक महारा सुर भप न मैसूर, चोल, आं , क लग तथा सहल स हत लगभग 200 जनपद व णत
ह, जो क पूणतया आय थे या आय सं कृ त व भाषा से भा वत थे। इनम से आभीर अहीर, तंवर,
कंबोज, यवन, शना, काक, प ण, चुलूक चालु य, सरो ट सरोटे , क कड़, खोखर, च धा च धड़, समेरा,
कोकन, जांगल, शक, पु , ओ , मालव, ु क, योधेय जो हया, शूर, त क व लोहड़ आ द आय खाप
वशेष उ लेखनीय ह।
 
आज इन सभी के नाम बदल गए ह। भारत क जाट, गुजर, पटे ल, राजपूत, मराठा, धाकड़,
सैनी, परमार, पठा नया, अफजल, घोसी, बोहरा, अशरफ, कसाई, कुला, कुंजरा, नायत,
मडल, मोची, मेघवाल आ द ह , मु लम, ईसाई, बौ क कई जा तयां सभी एक ही वंश
से उपजी ह। खैर, अब हम जानते ह ह (मूलत: भारतीय ) के मुख वंश के बारे म
जनम से कसी एक के वंश से आप भी जुड़े ए ह। आपके लए यह जानकारी मह वपूण
हो सकती।

जो खुद को मूल नवासी मानते ह वे यह भी जान ल क ारंभ म मानव हमालय के आसपास ही रहता
था। हमयुग क समा त के बाद ही धरती पर वन े और मैदान का व तार आ तब मानव वहां
जाकर रहने लगा। हर धम म इसका उ लेख मलता है क हमालय से नकलने वाली कसी नद के पास
ही मानव क उ प ई थी। वह पर एक प व ब गचा था जहां पर ारं भक मानव का एक समूह
रहता था। धम के इ तहास के अलावा धरती के भूगोल और मानव इ तहास के वै ा नक प को भी
जानना ज री है।
 
अगले प े पर पहला ाचीन वंश...

ा कुल : ाजी क मुख प से तीन प नयां थ । सा व ी, गाय ी और सर वती। तन से उनको


पु और पु य क ा त ई। इसके अलावा ा के मानस पु भी थे जनम से मुख के नाम इस
कार ह- 1.अ , 2.अं गरस, 3.भृग,ु 4.कंदभ, 5.व श , 6.द , 7. वायंभुव मनु, 8.कृतु, 9.पुलह,
10.पुल य, 11.नारद, 12. च गु त, 13.मरी च, 14.सनक, 15.सनंदन, 16.सनातन और
17.सनतकुमार आ द।

वायंभुव मनु कुल : वायंभुव मनु कुल क कई शाखाएं ह। उनम से एक मुख शाखा क बात करते
ह। वायंभुव मनु सम त मानव जा त के थम संदेशवाहक ह। वायंभुव मनु एवं शत पा के कुल 5
संतान थ जनम से 2 पु य त एवं उ ानपाद तथा 3 क याएं आकू त, दे व त और सू त थे।
आकू त का ववाह च जाप त के साथ और सू त का ववाह द जाप त के साथ आ। दे व त
का ववाह जाप त कदम के साथ आ। च को आकू त से एक पु उ प आ जसका नाम य
रखा गया। इनक प नी का नाम द णा था।
 
गौरतलब है क दे व त ने 9 क या को ज म दया जनका ववाह जाप तय से कया गया था।
दे व त ने एक पु को भी ज म दया था, जो महान ऋ ष क पल के नाम से जाने जाते ह। भारत के
क पलव तु म उनका ज म आ था और वे सां य दशन के वतक थे। उ ह ने ही सगर के 100 पु को
अपने शाप से भ म कर दया था। 
 
दो पु - य त और उ ानपाद। उ ानपाद क सुनी त और सु च नामक 2 प नयां थ । राजा
उ ानपाद के सुनी त से ुव तथा सु च से उ म नामक पु उ प ए। ुव ने ब त स हा सल क
थी।
 
वायंभुव मनु के सरे पु य त ने व कमा क पु ी ब ह मती से ववाह कया था जनसे आ नी ,
य बा , मेधा त थ आ द 10 पु उ प ए। य त क सरी प नी से उ म, तामस और रैवत- ये 3
पु उ प ए, जो अपने नाम वाले म वंतर के अ धप त ए। महाराज य त के 10 पु म से क व,
महावीर तथा सवन ये 3 नै क चारी थे और उ ह ने सं यास धम हण कया था।
 
महाराज मनुने ब त दन तक इस स त पवती पृ वी पर रा य कया। उनके रा य म जा ब त
सुखी थी। इ ह ने 'मनु मृ त' क रचना क थी, जो आज मूल प म नह मलती। उसके अथ का अनथ
ही होता रहा है। उस काल म वण का अथ रंग होता था और आज जा त।
 
जा का पालन करते ए जब महाराज मनु को मो क अ भलाषा ई तो वे संपूण राजपाट अपने बड़े
पु उ ानपाद को स पकर एकांत म अपनी प नी शत पा के साथ नै मषार य तीथ चले गए, ले कन
उ ानपाद क अपे ा उनके सरे पु राजा य त क स ही अ धक रही। सुनंदा नद के कनारे
100 वष तक तप या क । दोन प त-प नी ने नै मषार य नामक प व तीथ म गोमती के कनारे भी
ब त समय तक तप या क । उस थान पर दोन क समा धयां बनी ई ह। 
 
य त का कुल :राजा य त के ये पु आ नी ज बू प के अ धप त ए। अ नी के 9 पु
ज बू प के 9 खंड के वामी माने गए ह जनके नाम उ ह के नाम के अनुसार इलावृत वष, भ ा वष,
केतुमाल वष, कु वष, हर यमय वष, र यक वष, ह र वष, कपु ष वष और हमालय से लेकर समु के
भू-भाग को ना भ खंड कहते ह। ना भ और कु ये दोन वष धनुष क आकृ त वाले बताए गए ह। ना भ
के पु ऋषभ ए और ऋषभ से 'भरत' एवं बा बली का ज म आ। भरत के नाम पर ही बाद म इस
ना भ खंड को 'भारतवष' कहा जाने लगा। बा बली को वैरा य ा त आ तो ऋषभ ने भरत को च वत
स ाट बनाया। भरत को वैरा य आ तो वे अपने बड़े पु को राजपाट स पकर जंगल चले गए।
 
वायंभु मनु के काल के ऋ ष मरी च, अ , अं गरस, पुलह, कृतु, पुल य और व श ए। राजा मनु
स हत उ ऋ षय ने ही मानव को स य, सु वधा संप , मसा य और सुसं कृत बनाने का काय कया।
 
अगले प े पर सरा ाचीन वंश...
 

क यप कुल :क यप कुल क कई शाखाएं ह। प पल, नीम, कदं ब, कदम, केम, केन, बड़, सूयवंशी,
चं वंशी, नाग आ द उपनाम या गो ह  मोची समाज म पाए जाते ह। ये सभी मरी चवंशी है। यहां
मुख शाखा क बात करते ह। ऋ ष क यप ाजी के पु मरी च के व ान पु थे। मरी च के सरे
पु ऋ ष अ थे जनसे अ वंश चला। ऋ ष मरी च पहले म वंतर के पहले स तऋ षय क सूची के
पहले ऋ ष ह। ये द के दामाद और शंकर के साढू थे। इनक प नी द क या संभू त थी। इनक 2 और
प नयां थी- कला और उणा। संभवत: उणा को ही धम ता भी कहा जाता है। द के य म मरी च ने भी
शंकर का अपमान कया था। इस पर शंकर ने इ ह भ म कर डाला था। इ ह ने ही भृगु को दं डनी त क
श ा द है। ये सुमे के एक शखर पर नवास करते ह और महाभारत म इ ह च शखंडी कहा गया
है। इ ह के पु थे क यप ऋ ष।

मरी चने कला नाम क ी से ववाह कया और उनसे उ ह क यप नामक एक पु मला। क यप क


माता 'कला' कदम ऋ ष क पु ी और ऋ ष क पलदे व क बहन थी। मा यता के अनुसार क यप को ही
अ र नेमी के नाम से भी जाना जाता है। सुर और असुर के मूल पु ष ऋ ष क यप का आ म मे पवत
के शखर पर था। आज भी सुर और असुर क जा त भारतवष म व मान है।
 
ा के पोते ऋ ष क यपने ा के पु द क 13 क या से ववाह कया था। ीम ागवत
के अनुसार द जाप त ने अपनी 60 क या म से 10 क या का ववाह धम के साथ, 13 क या
का ववाह ऋ ष क यप के साथ, 27 क या का ववाह च मा के साथ, 2 क या का ववाह भूत के
साथ, 2 क या का ववाह अं गरा के साथ, 2 क या का ववाह कृशा के साथ कया था। शेष 4
क या ( वनीता, क ,ू पतंगी और या मनी) का ववाह ता य क यप के आ था।
 
*क यप क प नयां :इस कार ऋ ष क यप क अ द त, द त, दनु, का ा, अ र ा, सुरसा, इला,
मु न, ोधवशा, ता ा, सुर भ, सुरसा, त म, वनीता, क ,ू पतांगी और या मनी आ द प नयां बन ।
 
1. अ द त: पुराण के अनुसार क यप ने अपनी प नी अ द त के गभ से 12 आ द य को ज म दया।
माना जाता है क चा ुष म वंतर काल म तु षत नामक 12 े गण ने 12 आ द य के प म ज म
लया, जो क इस कार थे- वव वान्, अयमा, पूषा, व ा, स वता, भग, धाता, वधाता, व ण, म , इ
और व म (भगवान वामन)। ऋ ष क यप के पु व वान से वैव वत मनु का ज म आ। अ द त के
पु ही दे व और सुर कहलाए। इनके राजा इ थे।
 
वैव वत मनु के 10 पु थे-1. इल, 2. इ वाकु, 3. कुशनाम, 4. अ र , 5. धृ , 6. न र यंत, 7.
क ष, 8. महाबली, 9. शया त और 10. पृषध। राजा इ वाकु के कुल मजैन और ह धम के महान
तीथकर, भगवान, राजा, साधु-महा मा और सृजनकार का ज म आ है।
 
वैव वत मनु से ही सूयवंश क थापना ई। मनु के दस पु का वंश अलग-अलग चला और सभी क
रोचक जीवन गाथाएं ह। मनु ने अपने ये पु इल को रा य पर अ भ ष कया और वे वयं तप के
लए वन को चले गए। इ वाकु ने अपना अलग रा य बसाया। भगवान राम इसी कुल म ज मे थे। 
 
इ वाकु का वंश: मनु के सरे पु इ वाकु के 3 पु ए- 1. कु , 2. न म और 3. द डक। इ वाकु
के थम पु कु के पु का नाम वकु था। वकु के पु बाण और बाण के पु अनर य ए।
अनर य से पृथु और पृथु और पृथु से शंकु का ज म आ। शंकु के पु धुंधुमार ए। धुंधुमार के पु
का नाम युवना था। युवना के पु मा धाता ए और मा धाता से सुस ध का ज म आ। सुस ध के
2 पु ए- ुवसं ध एवं सेन जत। ुवसं ध के पु भरत ए।
 
कु के कुल म भरत से आगे चलकर सगर, भागीरथ, रघु, अ बरीष, यया त, नाभाग, दशरथ और
भगवान राम ए। उ सभी ने अयो या पर रा य कया। पहले अयो या भारतवष क राजधानी आ
करती थी, बाद म ह तनापुर हो गई। इ वाकु के सरे पु न म म थला के राजा थे। इसी इ वाकु वंश म
ब त आगे चलकर राजा जनक ए। राजा न म के गु थे- ऋ ष व स । न म जैन धम के 21व तीथकर
बने।
 
2. द त :क यप ऋ ष ने द त के गभ से हर यक यप और हर या नामक 2 पु एवं स हका
नामक 1 पु ी को ज म दया। ीम ागवत् के अनुसार इन 3 संतान के अलावा द त के गभ से क यप
के 49 अ य पु का ज म भी आ, जो क म दण कहलाए। क यप के ये पु न:संतान रहे जब क
हर यक यप के 4 पु थे- अनुह लाद, ह लाद, भ ाद और संह लाद। द त के पु ही दै य
और असुर कहलाए। इनके काल म महान वरोचन और राजा ब ल ए। वतमान म
अ धकतर द लत लोग खुद को द त के कुल का मानते ह, जो क पूणत: सही नह
है। सभी के अलग अलग है।
 
3. दनु :ऋ ष क यप को उनक प नी दनु के गभ से मुधा, श बर, अ र , हय ीव, वभावसु, अ ण,
अनुतापन, धू केश, व पा , जय, अयोमुख, शंकु शरा, क पल, शंकर, एकच , महाबा , तारक,
महाबल, वभानु, वृषपवा, महाबली पुलोम और व च त आ द 61 महान पु क ा त ई।
 
4. अ य प नयां :रानी का ा से घोड़े आ द एक खुर वाले पशु उ प ए। प नी अ र ा से गंधव पैदा
ए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (रा स) उ प ए। इला से वृ , लता आ द पृ वी पर उ प होने
वाली वन प तय का ज म आ। मु न के गभ से अ सराएं ज म । क यप क ोधवशा नामक रानी ने
सांप, ब छु आ द वषैले जंतु पैदा कए।
 
ता ा ने बाज, ग आ द शकारी प य को अपनी संतान के प म ज म दया। सुर भ ने भस, गाय
तथा दो खुर वाले पशु क उ प क । रानी सरसा ने बाघ आ द हसक जीव को पैदा कया। त म ने
जलचर जंतु को अपनी संतान के प म उ प कया। 
 
क ू क कोख सेब त से नाग क उ प ई, जनम मुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासु क, त क,
कक टक, प , महाप , शंख और कु लक। इ ह से नागवंश क थापना ई।
 
ता य क प नी वनीता के गभ से ग ड़ ( व णु का वाहन) और व ण (सूय का सार थ) पैदा ए। रानी
पतंगी से प य का ज म आ। या मनी के गभ से शलभ (पतंग ) का ज म आ। ाजी क आ ा से
जाप त क यप ने वै ानर क 2 पु य पुलोमा और कालका के साथ भी ववाह कया। उनसे पौलोम
और कालकेय नाम के 60 हजार रणवीर दानव का ज म आ, जो क कालांतर म नवातकवच के नाम
से व यात ए।
 
माना जाता है क क यप ऋ ष के नाम पर ही क यप सागर (कै पयन सागर) और क मीर का ाचीन
नाम था। समूचे क मीर पर ऋ ष क यप और उनके पु का ही शासन था। क यप ऋ ष का इ तहास
ाचीन माना जाता है। कैलाश पवत के आसपास भगवान शव के गण क स ा थी। उ इलाके म ही
द राजा का सा ा य भी था। क यप ऋ ष के जीवन पर शोध कए जाने क आव यकता है। इ त।
 
अगले प े पर तीसरा ाचीन वंश...
 
अ वंश :  ा के मानस पु अ से च वंश चला। यह तुत है अ वंशी यया त कुल क
जानकारी...
 
यया त कुल :ऋ ष अ से आ ेय वंश चला। आ ेय कुल क कई शाखाएं ह। इस बारे म व तार से
जानने के लए म य पुराण पढ़। आ ेय नाम क शाखा को छोड़कर यहां अ य कुल क बात करते ह।
अ से च मा, च मा से बुध, बुध से पु रवा (पु वस) का ज म आ।शतपथ ा ण
के अनुसार पु वस को ऐल भी कहा जाता था।पु वस का ववाह उवशी से आ जससे
उसको आयु, वनायु, शतायु, ढ़ायु, घीमंत और अमावसु नामक पु ा त ए।
अमावसु एवं वसु वशेष थे। अमावसु ने का यकु ज नामक नगर क न व डाली और वहां का राजा बना।
आयु का ववाह वरभानु क पु ी भा से आ जनसे उसके 5 पु ए- न ष, वृत (वृदशमा), राजभ
(गय), र ज, अनेना। थम न ष का ववाह वरजा से आ जससे अनेक पु ए जसम यया त, संया त,
अया त, अय त और ुव मुख थे। इन पु म य त और यया त य थे। य त के बारे म फर कभी। अभी
तो जा नए यया त के बारे म।
 
अमावसु ने पृथक वंश चलाया जसम मश: 15 मुख लोग ए। इनम कु शक (कुश ), गा ध, ऋ ष
व ा म , मधु छं दस आ द ए। नय के प चात इस वंश का उ लेख नह मलता। इस वंश म एक
अजमीगढ़ राजा का उ लेख मलता है जससे आगे चलकर इस वंश का व तार आ।
 
यया त जाप त ा क पीढ़ म ए थे। यया त ने कई य से संबंध बनाए थे इस लए
उनके कई पु थे, ले कन उनक 2 प नयां दे वयानी और श म ा थ । दे वयानी गु शु ाचाय क पु ी थी
तो श म ा दै यराज वृषपवा क पु ी थ । पहली प नी दे वयानी के य और तुवसु नामक 2 पु ए और
सरी श म ा से , पु तथा अनु ए। यया त क कुछ बे टयां भी थ जनम से एक का नाम माधवी
था। 
 
यया त के मुख 5 पु थे-1. पु , 2. य , 3. तुवस, 4. अनु और 5. । इ ह वेद म पंचनंद कहा
गया है। एक समय ऐसा था, जब 7,200 ईसा पूव अथात आज से 9,200 वष पूव यया त के इन पांच
पु का संपूण धरती पर राज था। पांच पु ने अपने-अपने नाम से राजवंश क थापना क । य से
यादव, तुवसु से यवन, से भोज, अनु से मले छ और पु से पौरव वंश क थापना ई।
 
यया त ने द ण-पूव दशा म तुवसु को (प म म पंजाब से उ र दे श तक), प म म को, द ण म
य को (आज का स ध-गुजरात ांत) और उ र म अनु को मांड लक पद पर नयु कया तथा पु को
संपूण भू-मंडल के रा य पर अ भ ष कर वयं वन को चले गए। यया त के रा य का े
अफगा न तान के ह कुश से लेकर असम तक और क मीर से लेकर क याकुमारी तक था।
 
महाभारत आ दपव 95 के अनुसार य और तुवशु मनु क 7व पीढ़ म ए थे (मनु-इला-पु रवा-आयु-
न ष-यया त-य -तुवशु)। महाभारत आ दपव 75.15-16 म यह भी लखा है क नाभाने द मनु का पु
और इला का भाई था। नाभाने द के पता मनु ने उसे ऋ वेद दशम मंडल के सू 61 और 62 का
चार करने के लए कहा।
 
1. पु का वंश :पु वंश म कई तापी राजा ए। उनम से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश म
शांतनु ए जनके पु थे भी म। पु के वंश म ही अजुन पु अ भम यु ए। इसी वंश म आगे चलकर
परी त ए जनके पु थे ज मेजय।
 
2. य का वंश :य के कुल म भगवान कृ ण ए। य के 4 पु थे- सह जीत, ो ा, नल और रपुं।
सह जीत से शतजीत का ज म आ। शतजीत के 3 पु थे- महाहय, वेणुहय और हैहय। हैहय से धम,
धम से ने , ने से कु त, कु त से सोहं ज, सोहं ज से म ह मान और म ह मान से भ सेन का ज म
आ। 
 
3. तुवसु का वंश :तुवसु के वंश म भोज (यवन) ए। यया त के पु तुवसु का व , वका भग,
भग का भानुमान, भानुमान का भानु, भानु का उदारबु करंधम और करंधम का पु आ म त।
म त संतानहीन था इस लए उसने पु वंशी यंत को अपना पु बनाकर रखा था, परंतु यंत रा य क
कामना से अपने ही वंश म लौट गए।
 
महाभारत के अनुसार यया त पु तुवसु के वंशज यवन थे।पहले ये य थे, ले कन
छ य कम छोड़न के बाद इनक गनती शू म होने लगी। महाभारत यु म ये कौरव के साथ थे। इससे
पूव द वजय के समय नकुल और सहदे व ने इ ह परा जत कया था।
 
4. अनु का वंश :अनु को ऋ वेद म कह -कह आनव भी कहा गया है। कुछ इ तहासकार के अनुसार
यह कबीला प ण नद (रावी नद ) े म बसा आ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और म कबीले
इ ह आनव से उ प ए थे।
 
अनु के पु सभानर से कालानल, कालानल से सृ जय, सृ जय से पुर जय, पुर जय से ज मेजय,
ज मेजय से महाशाल, महाशाल से महामना का ज म आ। महामना के 2 पु उशीनर और त त ु ए।
उशीनर के 5 पु ए- नृग, कृ म, नव, सु त, श व (औशीनर)। इसम से श व के 4 पु ए केकय, म क,
सुवीर और वृषादक। महाभारत काल म इन चार के नाम पर 4 जनपद थे।
 
5. का वंश : के वंश म राजा गांधार ए। ये आयावत के म य म रहते थे। बाद म को
इ वाकु कुल के राजा मंधातरी ने म य ए शया क ओर खदे ड़ दया। पुराण म राजा चेतस के बाद
का कोई उ लेख नह मलता। चेतस के बारे म लखा है क उनके 100 बेटे अफगा न तान से
उ र जाकर बस गए और' ले छ'कहलाए।
 
यया त के पु से ब ु का ज म आ। ब ु का सेत,ु सेतु का आर ध, आर ध का गांधार, गांधार का
धम, धम का धृत, धृत का मना और मना का पु चेता आ। चेता के 100 पु ए, ये उ र दशा म
ले छ के राजा ए।
 
* य और तुवस को दास कहा जाता था।य और तुवस के वषय म ऐसा माना जाता था क
इ उ ह बाद म लाए थे। सर वती ष ती एवं आपया नद के कनारे भरत कबीले के लोग बसते थे।
सबसे मह वपूण कबीला भरत का था। इसके शासक वग का नाम सु था। संभवतः सृजन और वी
कबीले भी उनसे संब थे। तुवस और से ही यवन और मले छ का वंश चला। इस तरह यह इ तहास
स है क ा के एक पु अ के वंशज ने ही य द , यवनी और पारसी धम क थापना क थी।
इ ह म से ईसाई और इ लाम धम का ज म आ। माना जाता है क य दय के जो 12 कबीले थे उनका
संबंध से ही था। हालां क यह शोध का वषय है।
 
अगले प े पर चौथा ाचीन वंश...
 

भृगु कुल :भृगु से भागव, यवन, औव, आ ुवान, जमद न, दधी च आ द के नाम से गो चले। य द हम
ा के मानस पु भृगु क बात कर तो वे आज से लगभग 9,400 वष पूव ए थे। इनके बड़े भाई का
नाम अं गरा था। अ , मरी च, द , व श , पुल य, नारद, कदम, वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनका द
ऋ ष इनके भाई ह। ये व णु के सुर और शव के साढू थे। मह ष भृगु को भी स त ष मंडल म थान
मला है। पारसी धम के लोग को अ , भृगु और अं गरा के कुल का माना जाता है। पारसी धम के
सं थापक जरथु को ऋ वेद के अं गरा, बृह प त आ द ऋ षय का समका लक माना गया है। पार सय
का धम ंथ 'जद अवे ता' है, जो ऋ वै दक सं कृत क ही एक पुरातन शाखा अवे ता भाषा म लखा गया
है।
 

( ा और सर वती से उ प पु ऋ ष सार वत थे। एक मा यता अनुसार पु रवा और सर वती से


उ प पु सर वान थे। सम त सार वत जाती का मूल ऋ ष सार वत है। कुछ लोग अनुसार दधी च के
पु सार वत ऋ ष थे। दधी च के पता ऋ ष भृगु थे और भृगु के पता ा। एक अ य मा यता अनुसार
इं ने 'अलंबूषा' नाम क एक अ सरा को दधी च का तप भंग करने के लए भेजा। दधी च इस समय
दे वता का तपण कर रहे थे। सु दरी अ सरा को वहाँ दे खकर उनका वीय ख लत हो गया। सर वती
नद ने उस वीय को अपनी कु ी म धारण कया तथा एक पु के प म ज म दया, जो क 'सार वत'
कहलाया।)
 
मा यता है क अ लोग ही स धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उ ह ने य का
चार कया। अ य के कारण ही अ नपूजक के धम पारसी धम का सू पात आ। जरथु ने इस धम
को एक व था द तो इस धम का नाम 'जरथु ' या 'जोरा बयन धम' पड़ गया।
 
मह ष भृगु क पहली प नी का नाम या त था, जो उनके भाई द क क या थी। इसका मतलब या त
उनक भतीजी थी। द क सरी क या सती से भगवान शंकर ने ववाह कया था। या त से भृगु को 2
पु दाता और वधाता मले और 1 बेट ल मी का ज म आ।ल मी का ववाह उ ह ने भगवान
व णु से कर दया था।
 
भृगु पु धाता के आयती नाम क ी से ाण, ाण के धो तमान और धो तमान के वतमान नामक पु
ए। वधाता के नी त नाम क ी से मृकंड, मृकंड के माक डेय और उनसे वेद ी नाम के पु ए।
पुराण म कहा गया है क इ ह से भृगु वंश आगे बढ़ा। भृगु ने ही भृगु सं हता क रचना क । उसी काल म
उनके भाई वायंभुव मनु ने मनु मृ त क रचना क थी। भृगु के और भी पु थे जैसे उशना, यवन आ द।
ऋ वेद म भृगवु ंशी ऋ षय ारा र चत अनेक मं का वणन मलता है जसम वेन, सोमा त, यूमर म,
भागव, आ व आ द का नाम आता है। भागव को अ नपूजक माना गया है। दाशरा यु के समय भृगु
मौजूद थे।
 
भृगु ऋ ष के 3 मुख पु थेउशना, शु एवं यवन। उनम से शु एवं उनका प रवार दै य के प
म शा मल होने के कारण न हो गया। इस कार यवन ऋ ष ने भागव वंश क वृ क । महाभारत म
यवन ऋ ष का वंश म इस कार है। यवन (प नी मनुक या आ षी), औव, औव से ऋचीक, ऋचीक
से जमद न, जमद न से परशुराम। भृगु ऋ ष के पु म से यवन ऋ ष एवं उसका प रवार प म
ह तान म आनत दे श से संबं धत था। उशनस् शु उ र भारत के म य भाग से संबं धत था। इस वंश
ने न न ल खत मुख माने जाते ह- ऋचीक औव, जमद न, परशुराम, इ ोत शौनक, ाचेतस
और वा मी क।वा मी क वंश के कई लोग आज ा ण भी ह और शू ?भी। ऐसा कहा
जाता है क मुगलकाल म जन ा ण ने मजबूरीवश जनेऊ भंग करके उनका मैला ढोना वीकार कया
उनको शू कहा गया। जन य को शू के ऊपर नयु कया गया उ ह मह र कहा गया, जो बाद
म बगड़कर मेहतर हो गया।
 
भागव वंश म अनेक ा ण ऐसे भी थे, जो क वयं भागव न होकर सूयवंशी थे। ये ा ण ' य
ा ण' कहलाए। इम न न ल खत लोग शा मल ह जनके नाम से आगे चलकर वंश चला। 1. म य, 2.
मौ लायन, 3. सांकृ य, 4. गा यावन, 5. गाग य, 6. क प, 7. मै ेय, 8. व , 9. दवोदास। -(म य
पुराण 149.98.100)। य जो भागव वंश म स म लत आ, वह भरतवंशी राजा दवोदास का पु
म यु था। म यु के वंशज मै ेय कहलाए और उनसे मै ेय गण का वतन आ। भागव का तीसरा
य मूल का गण वैतह अथवा या क कहलाता था। या क के ारा ही भागव वंश अलंकृत आ।
खैर...। 
 
दै य के साथ हो रहे दे वासुर सं ाम म मह ष भृगु क प नी या त, जो योगश संप तेज वी म हला
थ , दै य क सेना के मृतक सै नक को जी वत कर दे ती थ जससे नाराज होकर ीह र व णु ने
शु ाचाय क माता व भृगज ु ी क प नी या त का सर अपने सुदशन च से काट दया। अपनी प नी
क ह या होने क जानकारी होने पर मह ष भृगु भगवान व णु को शाप दे ते ह क तु ह ी के पेट से
बार-बार ज म लेना पड़ेगा। उसके बाद मह ष अपनी प नी या त को अपने योगबल से जी वत कर गंगा
तट पर आ जाते ह तथा तमसा नद का नमाण करते ह। 
 
धरती पर पहली बार मह ष भृगु ने ही अ न का उ पादन करना सखाया था। हालां क
कुछ लोग इसका ेय अं गरा को दे ते है। भृगु ने ही बताया था क कस तरह अ न को व लत कया
जा सकता है और कस तरह हम अ न का उपयोग कर सकते ह इसी लए उ ह अ न से उ प ऋ ष मान
लया गया। भृगु ने संजीवनी व ा क भी खोज क थी। उ ह ने संजीवनी बूट खोजी थी अथात मृत
ाणी को जदा करने का उ ह ने ही उपाय खोजा था। परंपरागत प से यह व ा उनके पु शु ाचाय
को ा त ई। भृगु क संतान होने के कारण ही उनके कुल और वंश के सभी लोग को भागव कहा जाता
है। ह स ाट हेमच व मा द य भी भृगव ु ंशी थे।
 
अगले प े पर पांचवां ाचीन वंश...
 

अं गरा वंश :अं गरा क प नी द जाप त क पु ी मृ त (मतांतर से ा) थ । अं गरा के 3 मुख


पु थे। उत य, संवत और बृह प त। ऋ वेद म उनका वंशधर का उ लेख मलता है। इनके और भी पु
का उ लेख मलता है- ह व यत्, उत य, बृह क त, बृह यो त, बृहद् न् बृह मं ; बृह ास और
माकडेय। भानुमती, रागा (राका), सनी वाली, अ च मती (ह व मती), म ह मती, महामती तथा एकानेका
(कु ) इनक 7 क या के भी उ लेख मलते ह। जांगीड़ ा ण नाम के लोग भी इनके कुल के ह। 

अं गरा दे व को ऋ ष मारीच क बेट सु पा व कदम ऋ ष क बेट वराट् और मनु ऋ ष क या प या ये


तीन ववाही ग । सु पा के गभ से बृह प त, वराट् से गौतम, बंध, वामदे व, उत य और उ शर ये 5 पु
ज मे। प या के गभ से व णु, संवत, व चत, अया य, अ सज, द घतमा, सुध वा ये 7 पु ज मे। उत य
ऋ ष से शर ान, वामदे व से बृह क य उ प ए। मह ष सुध वा के ऋ ष व मा और बाज आ द नाम से
3 पु ए। ये ऋ ष पु रथकारम कुशल थे। उ लेखनीय है क महाभारत काल म रथकार को शू माना
गया था। कण के पता रथकार ही थे। इस तरह हर काल म जा तय का उ थान और पतन कम के आधार
पर होता रहा हैै।
 
ऋ ष बृह प त :अं गरा के पु को आं गरस कहा गया। आं गरस ये अं गरावंशी दे वता के गु
बृह प त ह। इनके 2 भाई उत य और संवत ऋ ष तथा अथवा जो अथववेद के कता ह, ये भी आं गरस
ह। मह ष अं गरा के सबसे ानी पु ऋ ष बृह प त थे। महाभारत के आ दपव के अनुसार बृह प त
मह ष अं गरा के पु तथा दे वता के पुरो हत ह। बृह प त के पु कच थे ज ह ने शु ाचाय से संजीवनी
व ा सीखी। दे वगु बृह प त क एक प नी का नाम शुभा और सरी का तारा है। शुभा से 7 क याएं
उप - भानुमती, राका, अ च मती, महामती, म ह मती, सनीवाली और ह व मती। तारा से 7 पु
तथा 1 क या उ प ई। उनक तीसरी प नी ममता से भार ाज और कच नामक 2 पु उ प ए।
बृह प त के अ धदे वता इ और य धदे वता ा ह।
 
भार ाज के पता बृह प त और माता ममता थ ।ऋ ष भार ाज के मुख पु के नाम ह-
ऋ ज वा, गग, नर, पायु, वसु, शास, शरा बठ, शुनहो , स थ और सुहो । उनक 2 पु यां थ रा और
क शपा। इस कार ऋ ष भार ाज क 12 संतान थ । ब त से ा ण, य, वै य एवं द लत समाज के
लोग भार ाज गो लगाते ह। वे सभी भार ाज कुल के ह।
 
अ य आं गरस: आं गरस नाम के एक ऋ ष और भी थे ज ह घोर आं गरस कहा जाता है और जो
कृ ण के गु भी कहे जाते ह। कहते ह क भृगु वंश क एक शाखा ने आं गरस नाम से एक वतं वंश
का प धारण कर लया अत: शेष भागव ने अपने को आं गरस कहना बंद कर दया।
 
आं गरस ऋ ष के ारा था पत कए गए इस वंश क जानकारी ांड, वायु एवं म य पुराण म मलती
है। इस जानकारी के अनुसार इस वंश क थापना अथवन अं गरस के ारा क गई थी। इस वंश क
मुख प से 7 ऋ षय ने वृ क , जो मश: इस कार ह-
 
1. अवा य अं गरस (हरीशच के समकालीन), 2. उ शज अं गरस एवं उनके 3 पु उच य, बृह प त एवं
संवत, जो वैशाली के करंधम, अ व त् एवं म आ व त राजा के पुरो हत थे। 3. द घतमस् एवं
भार ाज, जो मश: उच य एवं बृह प त के पु थे। इनम से भार ाज ऋ ष काशी के दवोदास ( तीय)
राजा के राजपुरो हत थे। द घतमस् ऋ ष ने अंगे दे श म गौतम शाखा क थापना क थी। 4. वामदे व
गौतम, 5. शर त् गौतम, जो उ र पांचाल के दवोदास राजा के अह या नामक बहन के प त थे। 6.
क ीवत् दै घतमस औ शज, 7. भार ाज, जो उ र पांचाल के पृषत् राजा के समकालीन थे।
 
आं गरस का कुल :आं गरस के कुल म अनेक ऐसे ऋ ष और राजा ए ज ह ने अपने नाम से या
जनके नाम से कुलवंश परंपरा चली, जैसे दे वगु बृह प त, अथववेद कता अथवा गरस, महामा यकु स,
ीकृ ण के ा व ा गु घोर आं गरस मु न। भरता न नाम का अ नदे व, पती रगण, गौ म, वामदे व,
गा व र, कौशलप त कौश य ( ीराम के नाना), प शयाका आ द पा थव राज, वैशाली का राजा वशाल,
आ लायन (शाखा वतक), आ नवेश (वै ) पैल मु न प हौरे माथुर (इ ह वेद ास ने ऋ वेद दान
कया), गा धराज, गा यमु न, मधुरावह (मथुरावासी मु न), यामाय न राधाजी के संगीत गु , कारीरथ
( वमान श पी) कुसीद क ( याज खाने वाले) दा (पा नणी ाकरणकता के पता), पतंज ल (पा नणी
अ ा यायी के भा कार), ब ( वाय भु मनु के ब सरोवर के नमाता), भूय स ( ा ण को भूय स
द णा बांटने क परंपरा के वतक), मह ष गालव (जैपुर ग ता तीथ के सं थापक), गौरवी त (गौरहे
ठाकुर के आ दपु ष), त डी ( शव के सामने तांडव नृ यकता गण), तैलक (तैलंग दे श तथा तैलंग
ा ण के आ दपु ष), नाराय ण (नारनौल खंड बसाने वाले), वाय भु मनु ( ष दे श ावत के
स ाट मनु मृ त के आ दमानव धम के समाज रचना नयम के वतक), पगलनाग (वै दक छं दशा
वतक), मा (म दे श मद नवाणा के सा व ी (ज वान) के तथा पांडु पाली मा के पता
अ घोषरामा वा यायन ( याजानी औराद द ण दे श के कामसू कता), हं डदास (कुबेर के अनुचर
ऋण वसूल करने वाले ंडीय य ण के पूवज), बृह थ (वेद क उ थ भाषा के व तारक भाषा
व ानी), वादे व (जनक के राजपुरो हत), कतण (सूत कातने वाले), ज टण (बुनने वाले जुलाहे), व णु
स (खा ा ) (का ट कोठार के सुर ा धकारी), मु ल (मुदगर बड़ी गदा) धारी, अ न ज ह (अ न
मं को ज हा रखने वाले), दे व ज ह (इ के मं के ज हा धार), हंस ज ह ( जा पता ा के
मं के ज हा धारक), म य द ध (मछली भूनने वाले), मृकंडु माकडेय, त र (तीतर धम से
या व य मु न के वमन कए कृ यजु मं को हण करने वाले तैतरेय शाखा के ा ण), ऋ
जामवंत, श ग (शुंगव शीतथा माथुर सैगंवार ा ण), द घतमा ऋ ष (द घपुर डीगपुर ज के बदरी वन म
तप करने वाले), ह व णु (हवसान अ का दे श क हवशी जा के आ दपु ष), अया य मु न (अय क
लौह धातु के आ व कता), कतव (संदेशवाहक प लेखक कताब पु तक तैयार करने वाले दे व त),
क व ऋ ष ( ज कनवारौ े के तथा सौरा के कणवी जा त के पु ष) आ द हजार का आं गरस कुल
म ज म आ। 
 
अगले प े पर छठा ाचीन वंश...
 
व श ऋ ष वंश :ब त से ा ण, य, वै य एवं द लत समाज के लोग व श
गो लगाते ह। वे सभी व श कुल के ह। व श नाम से कालांतकर म कई ऋ ष हो
गए ह। एक व श ा के पु ह, सरे इ वाकु के काल म ए, तीसरे राजा
ह रशचं के काल म ए और चौथे राजा दलीप के काल म और पांचव राजा
दशरथ के काल म ए। 
 पहले ा के मानस पु , सरे म ाव ण के पु , तीसरे अ न के पु कहे जाते ह।

व श क प नी का नाम अ ं धती दे वी था। कामधेनु और सूयवंश क पुरो हताई के कारण


उनका ऋ ष व ा म से झगड़ा आ था। व ा म यया त कुल से थे। व श के 100 से
यादा पु थे। 

अयो या के राजपुरो हत के पद पर कायरत ऋ ष व श क संपूण जानकारी वायु, ांड एवं लग


पुराण म मलती है। इस ऋ षय एवं गो कार क नामावली म य पुराण म दज है। इस वंश म मश:
मुख लोग ए- 1. दे वराज, 2. आपव, 3. अथव न ध, 4. वा ण, 5. े भाज्, 6. सुवचस्, 7. श
और 8. मै ाव ण। एक अ प शाखा भी है, जो जातुकण नाम से है।
 
अगले प े पर सातवां वंश...

व कमा वंश : व कमा वंश कह -कह भृगु कुल से और कह अं गरा कुल से संबंध रखते ह। इसका
कारण है क हर कुल म अलग-अलग व कमा ए ह। हमारे दे श म व कमा नाम से एक ा ण समाज
भी है, जो व कमा समाज के नाम से मौजूद है। जांगीड़ ा ण, सुतार, सुथार और अ य सभी श पी
नमाण कला एवं शा ान म पारंगत होते ह। यह ा ण म सबसे े समाज है य क ये नमाता ह।
श प , व कमा ा ण को ाचीनकाल म रथकार वधक , एतब क व, मोयावी, पांचाल, रथप त,
सुह त सौर और परासर आ द श द से संबो धत कया जाता था। उस समय आजकल के सामान
लोहाकार, का कार, सुतार और वणकार जैसे जा त भेद नह थे। ाचीन समय म श प कम ब त
ऊंचा समझा जाता था और सभी जा त, वण समाज के लग ये काय करते थे।
 
व कमाSभव पूव ण वपराSतनुः। व ः जापतेः पु ो नपुणः सव कमस।।
 
अथ : य आ द ा व कमा व ा जाप त का पु पहले उ प आ और वह सब काम म
नपुण था।
 
भास पु व कमा, भुवन पु व कमा तथा व ापु व कमा आ द अनेक व कमा ए ह। यहां
बात करते ह थम व कमा क जो वा तुदेव और अं गरसी के पु थे। व कमा के मुख 5 पु थे- मनु,
मय, व ा, श पी एवं दै व । 
 
अगले प े पर आठवां ाचीन वंश...
 

अग य वंश :ऋ ष अगस य व श के भाई थे। ऋ ष अग य के वंशज को अग य वंशी कहा गया


है। ऋ ष व श के समान यह भी म ाव णी के पु ह। कुछ लोग इ ह ा का पु मानते ह। हालां क
ये भगवान शंकर से सबसे े 7 श य म से एक थे। इनक गणना भी स त ऋ षय म क जाती है।
इनक प नी का नाम लोपमु ा था। अग य क प नी लोकामु ा वदभराज न म क क या थी। ऋ वेद म
इनका उ लेख मलता है। 
 
ऋ ष अग य ने ही इ और म त म सं ध करवाई थी। अग य ऋ ष ने ही व ांचल क पहाड़ी म से
द ण भारत म प ंचने का रा ता बनाया था। मह ष अग य समु थ रा स के अ याचार से दे वता
को मु दलाने हेतु सारा समु पी गए थे। इसी कार इ वल तथा वातापी नामक दै य ारा हो रहे
ऋ ष-संहार को इ ह ने ही बंद करवाया था। द ण भारत म ऋ ष अग य सवा धक पू् यनीय ह। ीराम
अपने वनवास काल म ऋ ष अग य के आ म म पधारे थे।
 
अग य वंश के गो कार करंभ (करंभव) कौश य, तुवंशो व, गांधारकावन, पौल य, पौलह, मयोभुव,
शकट (करट), सुमेधस ये गो कार अग य, मयोभुव तथा महे इन 3 वर के ह। अग य, पौ णमास ये
गो कार अग य, पारण, पौ णमास इन 3 वर के ह। 
 
अगले प े पर नौवां ाचीन वंश. . . 
 

कौ शक वंश :ऋ वेद के तृतीय मंडल म 30व, 33व तथा 53व सू म मह ष व ा म


का वणन मलता है। वहां से ान होता है क ये कु शक गो ो प कौ शक थे। कहते ह क
ये कौ शक लोग सारे संसार का रह य जानते थे।
हालां क खुद व ा म तो क यप वंशी थे इस लए कौ शक या कु शक भी क यप वंशी
ए। क यप वंश का ववरण हम ऊपर दे आए ह। कु शक तो व ा म के दादा थे। यवन
के वंशज ऋचीक ने कु शक पु गा ध क पु ी से ववाह कया जससे जमद न पैदा ए।
उनके पु परशुराम ए।
 
जाप त के पु कुश, कुश के पु कुशनाभ और कुशनाभ के पु राजा गा ध थे। व ा म जी उ ह गा ध
के पु थे। कहते ह क कौ शक ऋ ष कु े के नवासी थे।
 
अगले प े पर दसवां ाचीन वंश... 
 
भार ाज वंश :भार ाज गो आपको सभी जा त, वण और समाज म मल जाएगा।
ाचीन काल म भार ाज नाम से कई ऋ ष हो गए ह। ले कन हम बात कर रहे ह ऋ वेद के
छठे मंडल के ा ज ह ने 765 मं लखे ह। वै दक ऋ षय म भार ाज ऋ ष का अ त
उ च थान है।
अं गरावंशी भार ाज के पता बृह प त और माता ममता थ । बृह प त ऋ ष का अं गरा के पु होने के
कारण ये वंश भी अं गरा का वंश कहलाएगा। ऋ ष भार ाज ने अनेक ंथ क रचना क उनम से यं
सव व और वमानशा क आज भी चचा होती है।
 
चरक ऋ ष ने भार ाज को 'अप र मत' आयु वाला कहा है। भार ाज ऋ ष काशीराज दवोदास के
पुरो हत थे। वे दवोदास के पु तदन के भी पुरो हत थे और फर तदन के पु का भी उ ह ने य
संप कराया था। वनवास के समय भु ीराम इनके आ म म गए थे, जो ऐ तहा सक से ेता-
ापर का सं धकाल था। उ माण से भार ाज ऋ ष को अप र मत वाला कहा गया है।
 
भार ाज के पता दे वगु बृह प त और माता ममता थ ।ऋ ष भार ाज के मुख पु के
नाम ह- ऋ ज वा, गग, नर, पायु, वसु, शास, शरा बठ, शुनहो , स थ और सुहो । उनक 2 पु यां थी
रा और क शपा। इस कार ऋ ष भार ाज क 12 संतान थ । सभी के नाम से अलग-अलग वंश चले।
ब त से ा ण, य, वै य एवं द लत समाज के लोग भार ाज कुल के ह।
 
अगले प े पर यारहवां ाचीन वंश... 
 

गग वंश :ब त से लोग का गो गग है और ब त से लोग का उपनाम गग है। सभी का संबंध गग ऋ ष


से है। वै दक ऋ ष गग आं गरस और भार ाज के वंशज 33 मं कार म े थे। गगवंशी लोग ा ण
और वै य (ब नये) दोन म मल जाएंगे। एक गग ऋ ष महाभारत काल म भी ए थे, जो य के
आचाय थे ज ह ने 'गग सं हता' लखी।
 
ा ण पूवज क परंपरा को दे ख तो गग से शु ल, गौतम से म , ीमुख शां ड य से तवारी या पाठ
वंश काश म आता है। गग ऋ ष के 13 लड़के बताए जाते ह ज ह गग गो ीय, पंच वरीय, शु ल
वंशज कहा जाता है, जो 13 गांव म वभ हो गए थे। यह कहना क गो और ऋ ष तो सफ ा ण
के ही है गलत होगा। इन सभी ऋ षय से द लत समाज का भी ज म आ है। इनक एक शाखा द लत
म मलती है तो सरी य और वै य म।
 
अगले प े पर बारहवां ाचीन वंश...
 

गौतम वंश: भगवान बु को भी कुछ लोग गौतम वंशी मानते ह। हालां क इस वंश म ा ण और
य के समूह स हत कई द लत के समूह भी वक सत ए। ब त से शा यवंशी गौतम बु को
शा यवंशी मानते ह जो क सही नह है। गौतम बु ने शा य को सबसे यादा द त कया था
इसी लए शा य म उनक त ा यादा है। खैर... व ा म और व श के समकालीन मह ष गौतम
याय दशन के वतक भी थे। उ ह अ पाद गौतम के नाम से भी जाना जाता है। 
 

गौतम ऋ ष क प नी का नाम अ ह या था। इ ारा छलपूवक कए गए अ ह या के शीलहरण क


कथा सभी जानते ह गे। इसके बाद ऋ ष ने उसे श ला बन जाने का शाप दे दया था। ेतायुग म अवतार
लेकर जब ीराम ऋ ष व ा म के साथ जनकपुरी प ंचे तो वहां उ ह ने गौतम ऋ ष का आ म भी
दे खा। वह राम के चरण पश से अ ह या शाप मु होकर पुनः मानवी बन ग ।
 
गौतम ऋ ष के 6 पु बताए जाते ह, जो बहार के इन 6 गांव के वासी थे-चंचाई,
मधुबनी, चंपा, चंपारण, वडरा और भ टयारी। इसके अलावा उप गौतम यानी गौतम के अनुकारक 6 गांव
भी ह, जो इस कार ह- कालीडीहा, ब डीह, वालेडीहा, भभयां, पतनाड़े और कपीसा। इन गांव से उप
गौतम क उ प मानी जाती है। गौतम ऋ षय के वंशज ने बहार से बाहर नकलक भी अपने वंश का
व तार कया था।
 
अगले प े पर तेरहवां कुल... 
 

पराशर वंश :श के पु पराशर मु न मह ष व श के पौ , गो वतक, वै दक सू के ा और


ंथकार ह। ऋ ष पराशर के पता का दे हांत इनके ज म के पूव हो चुका था अतः इनका पालन-पोषण
इनके पतामह व श जी ने कया था। इनक माता का नाम अ यं त था, जो क उ य मु न क पु ी थी।
 

पराशर के पु ही कृ ण ै पायन (वेद ास) थे ज ह ने 'महाभारत' लखी थी। स यवती जब कुंवारी थी,
तब वेद ास ने उनके गभ से ज म लया था। बाद म स यवती ने ह तनापुर महाराजा शांतनु से ववाह
कया था। शांतनु के पु भी म थे, जो गंगा के गभ से ज मे थे।
 
स यवती के शांतनु से 2 पु ए च ांगद और व च वीय। च ांगद यु म मारा गया जब क व च वीय
का ववाह भी म ने काशीराज क पु ी अ बका और अ बा लका से कर दया, ले कन व च वीय को
कोई संतान नह हो रही थी तब च तत स यवती ने अपने पराशर मु न से उ प पु वेद ास को बुलाया
और उ ह यह ज मेदारी स पी क अ बका और अ बा लका को कोई पु मले। अ बका से धृतरा और
अ बा लका से पांडु का ज म आ जब क एक दासी से व र का। इस तरह दे खा जाए तो पराशर मु न के
वंश क एक शाखा यह भी थी।
 
धृतरा क प नी गांधारी थी जनके 100 पु थे। दासी पु व र क प नी य वंशी थी जसका नाम
सुलभा था। पांडु का वंश नह चला। पांडु क 2 प नयां कुंती और मा थ । 
 
पराशर ऋ ष ने अनेक ंथ क रचना क जसम से यो तष के ऊपर लखे गए उनके ंथ ब त ही
मह वपूण रहे। यो तष के होरा, ग णत और सं हता 3 अंग ए जसम होरा सबसे अ धक मह वपूण है।
होरा शा क रचना मह ष पराशर के ारा ई है। ऋ ष पराशर के व ान श य पैल, जै मन,
वैश पायन, सुम तुमु न और रोम हषण थे।
 
अगले प े पर चौदहवां ाचीन वंश... 
 

का यायन वंश :ऋ ष का यायन क पु ी ही का यायनी थ । यह नव गा म से एकदे वी


का यायनीहै। का यायन ऋ ष को व ा म वंशीय कहा गया है।

कंदपुराण के नागर खंड म का यायन को या व य का पु बतलाया गया है। उ ह ने ' ौतसू ',
'गृ सू ' आ द क रचना क थी। हम ऊपर व ा म और उनके वंश के बारे म लख आए ह, जो एक
मै ेय गो आता है वह भी व ा म से संबं धत है।
 
अगले प े पर पं हवां ाचीन वंश... 
 

शा ड य वंश :शा ड य मु न क यप वंशी मह ष दे वल के पु थे। वे मृ त के प र चत रच यता


शंख और ल खत के पता भी ह। हालां क शा ड य के 12 पु बताए गए ह जनके नाम से कुलवंश
परंपरा चली। मह ष क यप के पु अ सत, अ सत के पु दे वल मं ा ऋ ष ए। इसी वंश म शां ड य
उ प ए। म य पुराण म इनका व तृत ववरण मलता है। 
 

महाभारत अनुशासन पव के अनुसार यु ध र क सभा म व मान ऋ षय म शा ड य का नाम भी है।


उ ह ेतायुग म राजा दलीप का राजपुरो हत बताया गया है, वह ापर म वे पशु के समूह के राजा नंद
के पुजारी ह। एक समय म वे राजा शंकु के पुजारी थे तो सरे समय म वे महाभारत के नायक भी म
पतामह के साथ वातालाप करते ए दखाए गए ह। कलयुग के ारंभ म वे ज मेजय के पु शतानीक के
पु े त य को पूण करते दखाई दे ते ह। इसके साथ ही व तुत: शा ड य एक ऐ तहा सक है
ले कन कालांतार म उनके नाम से उपा धयां शु जैसे व श , व वा म और ास नाम से उपा धयां
होती ह। 
 
अगले प े पर सोलहवां ाचीन वंश...
 

धौ य वंश :दे वल के भाई और पांडव के पुरो हत धौ य ऋ ष, जो महाभारत के अनुसार


पद नामक ऋ ष के पु थे, शव क तप या करके ये अजर, अमर और द ान
संप हो गए थे। धौ य के आ ण, उपम यु और वेद नामक 3 श य थे।

आ ण उ ालक क कथा जगत स है। धौ य का पूरा नाम आपोद धौ य था। धौ य क यप के वंश


के थे। धौ य वंश म लायसे, भरतवार, घरवारी, तलमने, शु ल, पु र, आ मोती, मौरे, चंदपेरखी आ द
अनेक नाम से गो नाम ए।
 
अलगे प े पर स हवां ाचीन वंश... 
 

द वंश :पुराण के अनुसार द जाप त परम पता ा के पु थे, जो क मीर घाट के हमालय े
म रहते थे। जाप त द क 2 प नयां थ - सू त और वीरणी। सू त से द क 24 क याएं थ और
वीरणी से 60 क याएं। इस तरह द क 84 पु यां थ । सम त दै य, गंधव, अ सराएं, प ी, पशु सब
सृ इ ह क या से उ प ई। द क ये सभी क याएं दे वी, य णी, पशा चनी आ द कहला । उ
क या और इनक पु य को ही कसी न कसी प म पूजा जाता है। सभी क अलग-अलग
कहा नयां ह।
 
सू त से द क 24 पु य म से 13 पु य का ववाह धम से कया। इसके अलावा धम से वीरणी क
10 क या का ववाह आ। मह ष क यप से द ने अपनी 13 क या का ववाह कया। इसके
अलावा बची 9 क या का ववाह- र त का कामदे व से, व पा का भूत से, वधा का अं गरा जाप त
से, अ च और दशाना का कृश ा से, वनीता, क ,ू पतंगी और या मनी का ता य क यप से कया।
 
पुराण क एक अ य मा यता के अनुसार द के सू त नाम क प नी से 16 क याएं ई थ । इनम से 13
उ ह ने जाप त ा को द अत: वे दे व के सुर भी बन गए। उ ह ने वाहा पु ी का ववाह
अ नदे व से कया। उनको सबसे छोट पु ी सती थी, जो यंबक दे व को याही गई। द क कथा
व तार से भागवत आ द अनेक पुराण म वणन क गई है।
 
द के पु क दा तान :सव थम उ ह ने अ र ा से 10 सह हय नामक पु उ प कए थे। ये
सब समान वभाव के थे। पता क आ ा से ये सृ के न म तप म वृ ए, परंतु दे व ष नारद ने
उपदे श दे कर उ ह वर बना दया। वर होने के कारण उ ह ने कोई ववाह नह कया। वे सभी
चारी रहे।
 
सरी बार द ने एक सह शबला (सरला ) नामक पु उ प कए। ये भी दे व ष के उपदे श से य त
हो गए। द को ोध आया और उ ह ने दे व ष को शाप दे दया- 'तुम दो घड़ी से अ धक कह थर न रह
सकोगे।' 
 
इनके पु का वणन ऋग् 10-143 म तथा इ ारा इनक र ा ऋग् 1-15-3 म आ नी कुमार ारा
इ ह बृ से त ण कए जाने का कथन ऋग् 10-143-1 म है। राजा द के पु पृषध शू हो गए थे तथा
ाय त व प तप या करके उ ह ने मो ा त कया। उ ह से उनका वंश चला। -( व णु पुराण
4.1.14)
 
द गो के वर- गो कार ऋ ष के गो म आगे या पीछे जो व श स मा नत या यश वी पु ष होते ह,
वे वरीजन कहे जाते ह और उ ह से पूवज को मा यता यह बतलाती है क इस गो के गो कार के
अ त र और भी व य साधक महानुभाव ए है। द गो के 3 वर ह- 1. आ ेय,े 2. गा व र व 3.
पूवा त थ।
 
अगले प े पर अठारहवां ाचीन वंश...
 

व स/वा यायन वंश :व स गो या वंश के वतक भृगवु ंशी व स ऋ ष थे। भारत के ाचीनकालीन
16 जनपद म से एक जनपद का नाम व स था। व स सा ा य गंगा-यमुना के संगम पर इलाहाबाद से
द ण-प म दशा म बसा था जसक राजधानी कौशा बी थी। पाली भाषा म व स को 'वंश' और
त साम यक अधमगधी भाषा म 'व छ' कहा जाता था। चतुभुज चौहान वंशी भी व स वंश से ह। व स वंश
अ नवंश से भी संबंध रखता है। 
 
एक कथा के अनुसार मह ष यवन और महाराज शयातपु ी सुक या के पु राजकुमार
दधी च क 2 प नयां सर वती और अ माला थ । सर वती के पु का नाम सार वत पड़ा
और अ माला के पु का नाम पड़ा व स। युगोपरांत कलयुग आने पर व स वंश संभूत
ऋ षय ने 'वा यायन' उपा ध भी रखी। काल मेण कलयुग के आने पर व स कुल म कुबेर
नामक तप वी व ान पैदा ए। कुबेर के 4 पु - अ युत, ईशान, हर और पाशुपत ए।
पाशुपत को एक पु अथप त ए। अथप त के एकादश पु भृग,ु हंस, शु च आ द ए
जनम अ म थे च भानु। च भानु के वाण ए। यही वाण बाद म वाणभ कहलाए। 
भृगु के यवन, यवन के आप वान, आप वान के ओव, ओव के ऋचीक, ऋ चक के
जमद न ए। इसी वंश म आगे चलकर ऋ ष व स ए। इ ह ने अपना खुद का वंश चलाया
इस लए इनके कुल के लोग व स गो रखते ह।
 
व स गो म कई उपा धयां थ यथा- बा लगा, भागवत, भैरव, भ , दाबोलकर, गांगल, गागकर, घा ेकर,
घाटे , गोरे, गो व ीकर, हरे, हीरे, होले, जोशी, काके कर, काले, म शे, म या, महाल मी, नागेश, सखदे व,
शनॉय, सोहोनी, सोवानी, सु वेलकर, गादे , रामनाथ, शंथेरी, कामा ी आ द। 
 
अगले प े पर उ ीसवां ाचीन वंश... 
 

च गु त वंश : च गु त के बारे म सभी जानते ह गे। च गु त यमराज के यमलोक म यायालय के


लेखक ह। ा क काया से उ प होने के कारण इ ह 'काय थ' भी कहा जाता है। काय थ समाज के
लोग ा ण वग म े होते ह। ग ड़ पुराण म यमलोक के नकट ही च लोक क थ त बताई गई है।
काय थ समाज के लोग भाई ज के दन ी च गु त जयंती मनाते ह। इस दन पर वे कलम-दवात पूजा
(कलम, याही और तलवार पूजा) करते ह जसम पेन, कागज और पु तक क पूजा होती है। यह वह
दन है, जब भगवान ी च गु त का उ व ाजी के ारा आ था।
च गु त के अ ब , माथुर तथा गौड़ आ द नाम से कुल 12 पु ए। मतांतर से च गु त के पता म
नामक काय थ थे। इनक बहन का नाम च ा था। पता के दे हावसान के उपरांत भास े म जाकर
सूय क तप या क जसके फल से इ ह ान आ। वतमान समय म काय थ जा त के लोग च गु त के
ही वंशज कहे जाते ह।
 
क मीर म लभ बधन काय थ वंश, काबुल और पंजाब म जयपाल काय थ वंश, गुजरात म ब लभी
काय थ राजवंश, द ण म चालु य काय थ राजवंश, उ र भारत म दे वपाल गौड़ काय थ राजवंश तथा
म यभारत म सतवाहन और प रहार काय थ राजवंश स ा म रहे ह। काय थ को मूलत: 12 उपवग म
वभा जत कया गया है। यह 12 वग ी च गु त क प नय दे वी शोभावती और दे वी नं दनी के 12
सुपु के वंश के आधार पर है। भानु, वभानु, व भानु, वीयभानु, चा , सुचा , च ( च ा य),
म तभान (ह तीवण), हमवान ( हमवण), च चा , च चरण और अती य ( जत य)।
 
उपरो पु के वंश अनुसार काय थ क 12 शाखाएं हो ग - ीवा तव, सूय वज, वा मी क, अ ाना,
माथुर, गौड़, भटनागर, स सेना, अ ब , नगम, कण और कुल े । ी च गु तजी के 12 पु का
ववाह नागराज वासु क क 12 क या से आ जससे क काय थ क न नहाल नागवंशी मानी जाती
है। माता नं दनी के 4 पु क मीर म जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पु गौड़ दे श के
आसपास बहार, ओ डशा तथा बंगाल म जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ दे श कहलाता था। 
 
अगले प े पर बीसवां वंश... 
 
पुल य, पुलह एवं तु का वंश :कदम जाप त क क या ह वभुवा से पुल य का ववाह आ
था। इ ह द का दामाद और शंकर का साढू भी बताया गया है। द के य वंस के समय ये जलकर
मर गए थे। वैव वत म वंतर म ा के सभी मानस पु के साथ पुल य का भी पुनज म आ था।

वैशाली के राजा क क या इड वला का पुल य से ववाह आ और उसने व वा नामक पु को ज म


दया। व वा प म नमदा के कनारे रहते थे। इस व वा के पु ही रावण थे। पुल य ऋ ष ने
महाराजा शव से नवेदन करके लंका म अपना एक तप थान नयु कया था, तब राजा म हदं त
च वत राजा थे। ाजी क आ ा से पुल य ऋ ष ने भी म को ान दया था। 
 
पुल य ऋ ष ने ही गोवधन पवत को शाप दया था। गोवधन पवत को ग रराज पवत भी कहा जाता है।
5,000 साल पहले यह गोवधन पवत 30,000 मीटर ऊंचा आ करता था और अब शायद 30 मीटर ही
रह गया है। पुल य ऋ ष के शाप के कारण यह पवत एक मु रोज कम होता जा रहा है। इसी पवत को
भगवान कृ ण ने अपनी च ट अंगल ु ी पर उठा लया था। ी गोवधन पवत मथुरा से 22 कमी क री पर
थत है।
 
कदम जाप त क क या ह वभुवा से पुल य का ववाह आ था। इ ह द का दामाद और शंकर का
साढू भी बताया गया है। द के य वंस के समय ये जलकर मर गए थे। वैव वत म वंतर म ा के
सभी मानस पु के साथ पुल य का भी पुनज म आ था। 
 
वैशाली के राजा क क या इड वला का पुल य से ववाह आ और उसने व वा नामक पु को ज म
दया। व वा प म नमदा के कनारे रहते थे। इस व वा के पु ही रावण थे। पुल य ऋ ष ने
महाराजा शव से नवेदन करके लंका म अपना एक तप थान नयु कया था तब राजा म हदं त
च वत राजा थे। ाजी क आ ा से पुल य ऋ ष ने भी म को ान दया था। 
 
पुलह ऋ ष : व के 16 जाप तय म पुलह ऋ ष का भी नाम आता है। इ ह ने मह ष कदम क
पु य तथा द जाप त क 5 बे टय से ववाह रचाए। उनसे सतान पैदा क । इनक संतान अनेक यो न
व जा तय क ह। इनके गु सनंदन और इनके श य मह ष गौतम थे। 
 
तु ऋ ष : तु ऋ ष भी 16 जाप तय म से एक ह। द जाप त क प नी या से उ प पु ी
स त से तु ऋ ष ने ववाह कया। इस दं प त से 60,000 'बाल ख य' नाम के पु भी ए। इन
बाल ख य का आकार अंगठ ू े के बराबर माना जाता है। पुराण के अनुसार बाल ख य मु नय के वरदान
से ही मह ष क यप के यहां ग ड़ का ज म आ। यही ग ड़ व णु का वाहन बने थे।
 
तु ऋ ष ही बाद म वेद ास ए जनका वणन वाराहक प म आता है। ास एक पदवी है। जो
धम ंथ को फर से संपा दत कर पुनज वत करे, उसे वेद ास कहते ह। महाभारतकाल म जो वेद ास
थे उनका नाम कृ ण ै पायन था। ुव के आसपास एक तारा च कर लगाता है, उसे तु ही कहा जाता
है। 
 
रा स वंश :वायु पुराण (70.51.65) म रा स को पुलह, पुल य, क यप एवं अग य ऋ ष क
संतान माना गया है। दै य म से हर यक शपु एवं हर या का वतं वंश वणन है। पौरा णक सा ह य
म असुर (दै य), दानव एवं रा स जा तय का वणन मलता है, जो सभी क यप ऋ ष क संतान ह।
 
वानर वंश : ांड पुराण म वानर को पुलह एवं ह रभ ा क संतान कहा गया है और इनके 11 मुख
कुल दए गए ह- 1. पन्, 2. शरभ, 3. सह, 4. ा , 5. नील, 6. श वक, 7. ऋ , 8. माजार, 9.
लोभास, 10. लोहास, 11. मायाव।
 
अगले प े पर इ क सवां वंश... 
 
नारद वंश : ा के मानस पु म से एक नारद मु न के बारे म सभी जानते ह। व णु के भ नारद
मु न को दे व ष कहा गया है। नारद को बृह प त का श य भी माना गया है। वे ास, वा मी क और
शुकदे व के गु थे। वराह पुराण म नारदजी को उनके पूव ज म म सार वत नामक एक ा ण बताया
गया है। नारद पुराण म नारदजी के बारे म संपूण जानकारी मलती है।

नारदजी को व का पहला प कार या पो टमैन माना गया है, जो सूचना का आदान- दान करते थे।
यह भी कहा जाता है क वीणा का आ व कार नारदजी ने ही कया था। नारदजी ने ही गीत और भजन
का भी आ व कार भी कया था। नारदजी के कारण ही भु क भ के भ - भ प च लत ए।
नारदजी ने ही द के 10,000 पु को भटकाकर वैरा य धारण करवा दया था।
 
भारत म ऐसे कई समाज या सं दाय ह, जो खुद को नारद सं दाय का मानते ह। इनम से कुछ नारायण,
न बाक, व लभ, माधव, पंचसखा, चैत य और वै णव सं दाय के ह। व णु भ से जुड़े सभी सं दाय
इसी के अंतगत आते ह। हालां क ये सभी नारद के वंशज ह, यह एक अलग मसला है।
 
अगले प े पर बावीसवां वंश...
 

व णक कुल : वैसे हम वंश के बारे म उपर लख आएं है। यह अ त र जानकारी है।


एक ही कुल गो का ा ण-वै य भी हो सकता है। य भी हो सकता है और
द लत भी। जो लोग ह समाज को चार वण म वभा जत करके दे खते ह वे ह धम के
कुल वंश क परंपरा को अ छे से नह जानते। जहां तक सवाल वै य का है तो यह मु यत:
सूय और चं वंश के अलावा ऋ ष वंश म वभा जत ह। इनम मु यत: महे वरी, अ वाल,
गु ता, ओसवाल, पोरवाल, खंडेलवाल, से ठया, सोनी, आ द का ज होता है।

महे री समाज का संबंध शव के प महे र से है। यह सभी य कुल से ह। शाप त 72 य के


नाम से ही महे री के कुल गो का नाम चला। माहे रय के मुख आठ गु ह- 1. पारीक, 2. दाधीच,
3.गुजर गौड़, 4.खंडल े वाल, 5. सखवाल, 6.सार वत, 7.पालीवाल और 8.पु करणा।
 
ये 72 उप कुल :आगीवाल, अगसूर, अजमेरा, आसावा, अटल, बाहेती, बरला, बजाज, बदली, बागरी,
बलदे वा, बांदर, बंग, बांगड़, भै या, भंडारी, भंसाली, भ ड़, भ ानी, भूतरा, भूतड़ा, भूता रया, बदाड़ा,
बहानी, बयानी, चा डक, चौखारा, चेचानी, छपरवाल, चतलं गया, दा या, द लया, दाद, डागा, द माणी,
डांगरा, दारक, दरगर, दे वपूरा, धूपर, धूत, धानी, फलोद, गा दया, ग ानी, गांधी, गलदा, गोदानी, हेडा,
रकत, ईनानी, जाजू, जखो तया, झंवर, काबरा, कचौ लया, काह या, कलानी, कललं ी, कंकानी,
करमानी, करवा, कसत, खटोड़, कोठारी, ल ा, लाहोट , लखो टया, लो हया, मालानी, माल, मालपानी,
मालू, मंधाना, मंडोवरा, म नयान, मं ी, मरदा, मा , ममानी, मेहता, मेहाता, मुंदड़ा, नागरानी, ननवाधर,
नथानी, नवलखाम, नवल या नुवल, याती, पची सया, परतानी, पलोड़, पटवा, पनपा लया, पे ड़यावाल,
परमाल, फूमरा, राठ , साबू, सनवाल, सारड़ा, शाह, सकाची, सघई, सोडानी, सोमानी, सोनी, तप रया,
ताओरी, तेला, तेनानी, थरानी, तोशनीवाल, तोतला, तुवानी और जवर।
 
खाप का गो कुल :इसके अलावा सोनी (धु ांस), सोमानी ( लयांस), जाखे टया (सीलांस), सोढानी
(सोढास), रकुट (क यप), याती (नागसैण), हेडा (धनांस), करवा (करवास), कांकाणी (गौतम), मालूदा
(खलांस), सारडा (थो बरास), काह या (कागायंस), गरडा (गौ म), जाजू (वलांस), बाहेती (गौकलांस),
बदादा (गजांस), बहाणी (वालांस), बजाज (भंसाली), कलं ी (क यप), चावड़ा (चावड़ा माता), कासट
(अचलांस), कलाणी (धौलांस), झंवर (धु ), मनमंस (गायल माता), काबरा (अ च ांस), डाड़
(अमरांस), डागा (राजहंस), ग ानी (ढालांस), राठ (क पलांस), बड़ला (वालांस), दरक (ह र ास),
तोषनीवाल (कौ शक), अजमेरा (मानांस), भंडारी (कौ शक), भूतड़ा (अचलांस), बंग (सौढ़ास), अटल
(गौतम), इ ाणी (शैषांश), भरा डया (अ च ), भंसाली (भंसाली), ल ा (सीलांस), सकची (क यप),
लाहोट (कांगास), गदहया गोयल (गौरांस), गगराणी (क यप), खटोड (मूगांस), लखो टया (फफडांस),
आसवा (बालांस), चेचाणी (सीलांस), मनधन (जेसलाणी, माणधनी माता), मूंधड़ा (गोवांस), चांडक
(चं ास), बलदे वा (बालांस), बा द (लौरस), बूब (मूसाइंस), बांगड़ (चूडांस), मंडोवर (बछांस), तोतला
(क पलांस), आगीवाल (चं ास), आगसूंड (क यप), परतानी (क यप), नावंधर (बु दा लभ), नवाल
(नानणांस), ताप डया (पीपलांस), म णयार (कौ शक), धूत (फाफडांस), धूपड़ ( सरसेस), मोदाण
(सांडास), दे वपुरा (पारस), मं ी (कंवलांस), पोरवाल/परवाल (नानांस), नौलखा (क यप गावंस), टावरी
(माकरण), दरगढ़ (गोवंस), का लया (झुमरंस), खावड (मूंगास), लो हया, रांदड (क यप) आ द। इसके
अलावा महे री समाज क और भी खाप और ख े ह जैसे द माणी, करनाणी, सुरजन, धूरया, गांधी,
राईवाल, कोठारी, मालाणी, मूथा, मोद , मो ा, फाफट, ओझा, दायमा आ द।
 
इसके अलावा मधे शया, मधेशी, रो नयार, दौसर, कलवार, भंडारी, पटे ल, ग नया तेली (कनाटक), ग नया
गा दला कनाटक, पटवा, माहे री, चौर सया, पुरवाल (पोरवाल), सरावगी, ओसवाल, कां , मा री,
स रया या काय थ ब नया, वाणी महारा और कनाटक, ओमर, उनई सा , कपाली बंगाल, गंध ब नया
बंगाल, माथुर, वा नया चे यार त मलनाडु , केसरवानी, ख ी, बोहरा, कपोल, मोढ् ह, तेलगु, आय आं
त मल और कनाटक, असाती, र तोगी, वजयवग , खंडल े वाल, सा तेली, अ ोहा, अ सेन, अ वाल,
लोहाना, महाजन, अरोरा, अ हरी, सोनवाल सहारे, कमलापुरी, घांची, कानू, क कणी, गु त, गदहया
(गोयल) आ द सभी वतमान म वै य से संबंध रखते ह। नभागाजी माहे री वै य के ाचीन पु ष ह। 
 
इसके अलवा कालांतार म ापार के आधार पर यह उपनाम रख गए- अठब रया, अनव रया, अरबहरया,
अलापु रया, ओहावार, औ रया, अवध, अधरखी तथा अगराहरी, कसेर,े पगो रया, पचाधरी, पनब रया,
प ीवार, पपरैया, सुरैया, सुढ़ , सोनी, संवा सत, सुदैसक, सकड़ा, सा ड य, समा सन साकरीवार,
श नचरा, श या, शरोइया, रैपु रया, रैनगु रया, रमपु रया, रैदे आ, रामबे रया, रेवाड़ी, बगुला, बरैया,
बगबुलार, बलाईवार, बंसलवार, बारीवार, बासो रया, बाबरपु रया, ब दे सया, बादलस, बाम नयां, बादउआ,
वरे आ, वरथ रया, वरो रया, गजपु रया, गदौ लया, गांगलस, गु लया, गणप त, गुटे रया, गोतनलस,
गोलस, जटु आ, जबरेवा, जगा रया, जरौ लया, जगरवार, कठै रया, काशीवार, केशरवानी, कुटे रया,
कुतव रया, क छलस, कतरौ लया, कनक तया, कातस, को ठया, गु पु रया, ठठै रा, पंसारी, नबौ रया,
नौगैया, नरजावार, मोह नय , मोद , मैरो ठया, माठे सु रया, मुरवा रया महाम नय , महावार, माडलस,
म री, भेसनवार, भतरको ठया, भभालपु रया, भदरौ लया, चॉदलस, चौदहराना, चौ सया, लघउआ,
तैरहम नया, तैनगु रया, घाघरवार, खोब ड़या, खुटै टया, फंजो लया, फरसैया, हलवाई, हतक तया,
जयदे वा, दोने रया, स रया आ द। 
  
अ ोहा :  अ वाल समाज के सं थापक महाराज अ सेन एक य सूयवंशी राजा थे। सूयवंश के बारे
म हम पहले ही लख आएं ह अत: यह समाज भी सूयवंश से ही संबंध रखता है। वैव वत मनु से ही
सूयवंश क थापना ई थी। महाराजा अ सेन ने जा क भलाई के लए काय कया था। इनका ज म
ापर युग के अं तम भाग म महाभारत काल म आ था। ये तापनगर के राजा ब लभ के ये पु थे।
वतमान 2016 के अनुसार उनका ज म आज से करीब 5187 साल पहले आ था।
 
अपने नए रा य क थापना के लए महाराज अ सेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवष का
मण कया। इसी दौरान उ ह एक जगह शेर तथा भे ड़ए के ब चे एक साथ खेलते मले। उ ह लगा क
यह दै वीय संदेश है जो इस वीरभू म पर उ ह रा य था पत करने का संकेत दे रहा है। वह जगह आज के
ह रयाणा के हसार के पास थी। उसका नाम अ ोहा रखा गया। आज भी यह थान अ वाल समाज के
लए तीथ के समान है। यहां महाराज अ सेन और मां वै णव दे वी का भ मं दर है।
 
महाराज ने अपने रा य को 18 गण म वभा जत कर अपने 18 पु को स प उनके 18 गु के नाम
पर 18 गो क थापना क थी। हर गो अलग होने के बावजूद वे सब एक ही प रवार के अंग बने रहे।
 
अ वाल कुल गो :-गग, गोयल, गोयन, बंसल, कंसल, सहल, मंगल, जदल, तगल,
ऐरण, धारण, मधुकुल, बदल, म ल, तायल, भ दल, नागल और कु ल।
 
पोरवाल समाज :माना जाता है क राजा पु के वंशज पोरवाल कहलाए। राजा पु के चार भाई कु ,
य , अनु और थे। यह सभी अ वंशी है य क राजा पु भी अ वंशी थे। बीकानेर तथा जोधपुरा
रा य ( ा वाट दे श) के उ री भाग जसम नागौर आ द परगने ह, जांगल दे श कहलाता था। जांगल
दे श म पोरवाल का ब त अ धक वच व था। वदे शी आ मण से, अकाल, अनावृ और लेग जैसी
महामा रय के फैलने के कारण अपने बचाव के लए एवं आजी वका हेतू जांगल दे श से पलायन करना
ारंभ कर दया। अनेक पोरवाल अयो या और द ली क ओर थान कर गए। म यकाल म राजा
टोडरमल ने पोरवाज जा त के उ थान और सहयोग के लए ब त सराहनीय काय कया था जसके चलते
पोरवाल म उनक क त है।
 
द ली म रहने वाले पोरवाल 'पुरवाल' कहलाए जब क अयो या के आसपास रहने वाले 'पुरवार' कहलाए।
इसी कार सैकड़ प रवार वतमान म य दे श के द ण- म े (मालवांचल) म आकर बस गए।
यहां ये पोरवाल वसाय/ ापार और कृ ष के आधार पर अलग-अलग समूह म रहने लगे। इन समूह
वशेष को एक समूह नाम (गौ ) दया जाने लगा और ये जांगल दे श से आने वाले जांगडा पोरवाल
कहलाए। राज थान के रामपुरा के आसपास का े और पठार आमद कहलाता था। आमदगढ़ म रहने
के कारण इस े के पोरवाल आज भी आमद पोरवाल कहलाते ह।
 
ीजांगडा पोरवाल समाज म उपनाम के प म लगाई जाने वाली 24 गो कसी न कसी कारण वशेष
के ारा उ प ई और चलन म आ गई। जांगल दे श छोड़ने के प ात् पोरवाल समाज अपने-अपने
समूह म अपनी मानमयादा और कुल पर परा क पहचान को बनाए रखने के लए आगे चलकर गो का
उपयोग करने लगे।
 
जैसे कसी समूह वशेष  म जो पोरवाल लोग अगवानी करने लगे वे चौधरी नाम से स बो धत होने लगे।
जो लोग हसाब- कताब, लेखा-जोखा, आ द ावसा यक काय म द थे वे मेहता कहलाए। या ा आ द
सामू हक मण, काय म के अवसर पर जो लोग अगुवाई करते और अपने संघ-सा थय क सुख-
सु वधा का यान रखते थे वे संघवी कहलाए। मु ह त से दान दे ने वाले दानगढ़ कहलाए। असा मय से
लेन-दे न करने वाले, धन उपाजन और संचय म द प रवार से ठया और धन वाले धनो तया पुकारे जाने
लगे। कलाकाय म नपुण प रवार काला कहलाए, राजा पु के वंश पोरवाल और अथ व था को
गोपनीय रखने वाले गु त या गु ता कहलाए। कुछ गौ अपने नवास थान (मूल) के आधार पर बनी जैसे
उ दया-अंतरवेदउ दया (यमुना तट पर), भैसरोड़गढ़ (भैसोदाम डी) म कने वाले भैसोटा, मंडावल म
म डवा रया, मजावद म मुजाव दया, मांदल म मांद लया, नभेपुर केनभेपु रया, आ द।
 
इस तरह ये गो न मत हो गए-से ठया, काला, मुजाव दया, चौधरी, मेहता, धनो तया, संघवी,
दानगढ़, मांद लया, घा टया, मु या, घ रया, र नावत, फर या, वेद, खर डया, म डवा रया, उ दया,
काम रया, डबकरा, भैसोटा, भूत, नभेपु रया, ीखं डया। येकगो के अलग- अलग भे जी होते ह।
जनक थापना उनके पूवज ाराकभी कसी सु वधाजनक थान पर क गई थी।
 
दोसर समाज :ऋ ष मरी च के पु क यप थे। डॉ. मोतीलाल भागव ारा लखी पु तक 'हेमू और
उसका युग' से पता चलता है क सर वै य ह रयाणा म सी गांव के मूल नवासी ह, जो क गु गांव
जनपद के उपनगर रवाड़ी के पास थत है।
 
खंडेलवाल समाज :खंडल
े वाल के आ दपु ष ह खा डल ऋ ष। एक मा यता के अनुसार खंडल
े ा के
सेठ धनपत के 4 पु थे। 1.खंडू, 2.महेश, 3.सुंडा और 4. बीजा इनम खंडू से ख डेलवाल ए, महेश से
माहे री ए सुंडा से सरावगी व बीजा से वजयवग । ख डेलवाल वै य के 72 गो है। गो क उ प त
के स बंध म यही धारणा है क जैसे जैसे समाज म बढ़ोतरी ई थान वसाय, गुण वशेष के आधार पर
गो होते गए।
 
अगले प े पर 23वां कुल...
 

द लत कुल वंश : वैसे हम द लत के कुल के बारे म उपर लख आएं ह यह तो महज ट पण भर है।


आज जतने भी द लत है वे सभी एक काल वशेष म ा ण या छ य कम करने वाले थे। वतमान म
अ धकतर द लत लोग खुद को द त के कुल का मानते ह, जो क पूणत: सही नह है। सभी के अलग
अलग कुल है।  ह धम ंथ म द लत नाम का कोई श द नह है और न ही ह रजन नाम का। यह श द
वतमान राजनी त क दे न है। शू या ु श द धम ंथ म च लत है। शू कसी जा त वशेष का नाम
नह ब क ऐसे को कहा जाता था जो खोटे या छोटे कम करता था या जो नीच कम करता था।
इसी तरह पशाच, चांडाल और नशाचर और रा के कम करने वाले तां का द को शू कहा जाता था।
दास श द ब त बाद म चलन म आया। दास था के पूरे इ तहास को जानना ज री है, य क यह हर
दे श धम और काल म भ - भ प म रही है।

वतमान क जा तवाद व था गुलाम काल क दे न होने के साथ ही पछले 70 वष क वभाजनकारी


राजनी त क दे न है। भारतीय इ तहास और धम को अ छे से नह जानने के कारण मतभेद और म है।
जा तय के उ थान और पतन के इ तहास को नह जानने के कारण ही कुछ लोग और संगठन ह धम
के खलाफ नफरत का चार करते ह।
 
हमारे-आपके पूवज ने जन 'भंगी' और 'मेहतर' जा त को अ पृ य करार दया, जनके हाथ का छु आ
तक नह खाते, असल म वे सभी मुगलकाल म ा ण थे। मुगल काल म ा ण और य पर जो
अ याचार ए उसक दा तां कम ही लोग जानते ह। उस काल म ा ण एवं य के सामने दो ही
रा ते दए गए थे- या तो इ लाम कबूल करो या फर हम मुगल और मुसलमान का मैला ढोओ।
 
आप कसी भी मुगल कले म चले जाओ वहां आपको शौचालय नह मलेगा। य ? य क मुगल जहां
से आए थे वहां शौचालय नह होते थे वे इसी तरह मैला फकवाते थे। ह क उ त सधु घाट स यता
म रहने वाले कमरे से सटा शौचालय होता था, जब क मुगल बादशाह के कसी भी महल म चले जाओ,
आपको शौचालय नह मलेगा। ऐसे म मुगल ने ा ण और छ य से ये काम कराया।
 
जारा सो चए भारत म 1000 ई वी म केवल एक फ सद अछू त जा त थी, ले कन मुगल वंश क समा त
होते-होते इनक सं या-14 फ सद से यादा हो गई। आपने सोचा क ये 13 तशत क बढ़ोतरी मुगल
शासन म कैसे हो गई। इसके बाद अं ेज ने इस ऊंच और नीच क व था को और बढ़ावा दया। कैसे
और कस तरह यह एक अलग वषय है। जारी...ध यवाद।

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व ापन

आप को जीवनसंगी क तलाश है? तो आज ही भारत मै मोनी पर र ज टर कर- नःशु क


र ज े शन!

सभी दे ख
ज़ र पढ़
नवरा म इस आराधना से दे वी करगी आपक हर इ छा पूरी

तपदा क 15 पौरा णक मा यताएं, आपको ज र पता होना चा हए

सां कृ तक सुंदरता का शुभ पव है गुड़ी पड़वा

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