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Siddha Kunjika Stotram lyrics in Hindi

(अर्थ सहित)

सिद्धकुं जिका स्तोत्र (siddh kunjika stora) दे वी माहात्म्य के अुंतर्गत परम


कल्याणकारी स्तोत्र है । यह स्तोत्र रुद्रयामल तुंत्र के र्ौरी तुंत्र भार् िे सलया र्या
है । सिद्धकुं जिका स्तोत्र का पाठ पूरी दर्ाग िप्तशती के पाठ के बराबर है । इि
स्तोत्र के मूल मन्त्त्र नवाक्षरी मुंत्र ( ॐ ऐुं ह्ीुं कलीुं चामण्डायै ववच्चे ) के िाथ
प्रार्भ होते है । कुं जिका का अथग है चाबी (key) अथागत कुं जिका स्तोत्र दर्ाग
िप्तशती की शजकत को िार्त
ृ करता है िो महे श्वर सशव के द्वारा र्प्त (lock)
कर दी र्यी है । इि स्तोत्र के पाठ के उपरान्त्त ककिी और िप या पूिा की
आवश्यकता नहीुं होती, कुं जिका स्तोत्र के पाठ मात्र िे िभी िाप सिद्ध हो िाते है ।
कुं जिका स्तोत्र में आए बीिों (बीि मन्त्त्रो) का अथग िानना न िुंभव है और न ही
अततआवश्यक अथागत केवल िप पयागप्त है । सिद्ध कुं जिका स्तोत्र इि प्रकार है :-

सशव उवाच

शण
ृ दे वव प्रवक्ष्यासम कुं जिकास्तोत्रमत्तमम ्।
येन मन्त्त्रप्रभावेण चण्डीिापः शभो भवेत ् ।।१।।
न कवचुं नार्गलास्तोत्रुं कीलकुं न रहस्यकम ्।
न िूकतुं नावप ध्यानुं च न न्त्यािो न च वाचगनम ् ।।२।।

कजजिकापाठमात्रेण दर्ागपाठफलुं लभेत ्।


अतत र्ह्यतरुं दे वव दे वानामवप दलगभम ् ।।३।।

र्ोपनीयुं प्रयत्मनेन स्वयोतनररव पावगतत।


मारणुं मोहनुं वश्युं स्तुंभोच्चाटनाददकम।
पाठमात्रेण िुंसिध्येत ् कुं जिकास्तोत्रमत्तमम ् ।।४।।

अथ मुंत्रः

ॐ ऐुं ह्ीुं कलीुं चामण्डायै ववच्चे। ॐ लौंलह हुं कलीुं िुंू िः


ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐुं ह्ीुं कलीुं चामण्डायै ववच्चे ज्वल हुं िुं लुं क्षुं फट् स्वाहा ।।

। इतत मुंत्रः ।

नमस्ते रुद्ररूवपण्यै नमस्ते मधमददग तन।


नमः कैटभहाररण्यै नमस्ते मदहषाददग तन ।।१।।

नमस्ते श्भहन्त््यै च तनश्भािरघातततन ।


िाग्रतुं दह महादे वव िपुं सिद्धुं करुष्व मे।।२।।

ऐुंकारी िजृ ष्टरुपायै ह्ीुंकारी प्रततपासलका ।


कलीुंकारी कामरूवपण्यै बीिरूपे नमोस्त ते।।३।।

चामण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदातयनी ।


ववच्चे चाभयदा तनत्मयुं नमस्ते मन्त्त्ररूवपणण ।।४।।

धाुं धीुं धूुं धि


ू ट
ग े ः पत्मनी वाुं वीुं वूुं वार्धीश्वरी।
क्ाुं क्ीुं क्ुंू कासलका दे वव शाुं शीुं शूुं मे शभुं करु ।।५।।
हुं हुं हुं काररूवपण्यै िुं िुं िुं ि्भनाददनी।
भ्ाुं भ्ीुं भ्ुंू भैरवी भद्रे भवान्त्यै ते नमो नमः ।।६।।

अुं कुं चुं टुं तुं पुं युं शुं वीुं दुं ऐुं वीुं हुं क्षुं
धधिाग्रुं धधिाग्रुं त्रोटय त्रोटय दीप्तुं करु करु स्वाहा।।७।।

पाुं पीुं पूुं पावगती पूणाग खाुं खीुं खूुं खेचरी तथा ।
िाुं िीुं िुंू िप्तशती दे व्या मुंत्रसिद्धधुं करुष्व मे।।८।।

इदुं त कुं जिकास्तोत्रुं मुंत्रिार्ततगहेतवे।


अभकते नैव दातव्युं र्ोवपतुं रक्ष पावगतत ।।

यस्त कुं जिकया दे वव हीनाुं िप्तशतीुं पठे त ्।


न तस्य िायते सिद्धधररण्ये रोदनुं यथा ।।

इतत श्रीरुद्रयामले र्ौरीतन्त्त्रे सशवपावगतीिुंवादे कुं जिकास्तोत्रुं ि्पूणम


ग ्।
।। ॐ तत्मित ्।।
अथग ( Meaning ) -
सशव िी बोले-
दे वी !िनो। मैं उत्तम कुं जिका स्तोत्र का उपदे श करूूँर्ा, जिि मन्त्त्र के प्रभाव िे
दे वी का िप ( पाठ ) िफल होता है ।।१।।
कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, िक
ू त, ध्यान, न्त्याि यहाूँ तक कक अचगन भी आवश्यक
नहीुं है ।।२।।
केवल कुं जिका के पाठ िे दर्ागपाठ का फल प्राप्त हो िाता है । ( यह कुं जिका )
अत्मयुंत र्प्त और दे वों के सलए भी दलगभ है ।।३।।
हे पावगती ! स्वयोतन की भाुंतत प्रयत्मनपूवक
ग र्प्त रखना चादहए। यह उत्तम
कुं जिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्त्भन और उच्चाटन
आदद ( असभचाररक ) उद्दे श्यों को सिद्ध करता है ।।४।।
मन्त्र -ॐ ऐुं ह्ीुं कलीुं चामण्डायै ववच्चे। ॐ लौंलह हुं कलीुं िूुं िः ज्वालय ज्वालय
ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐुं ह्ीुं कलीुं चामण्डायै ववच्चे ज्वल हुं िुं लुं क्षुं फट्
स्वाहा ।।

( मुंत्र में आये बीिों का अथग िानना न िुंभव है , न आवश्यक और न ही वाुंछनीय


(Desirable)। केवल िप पयागप्त है । )
हे रुद्ररूवपणी ! त्हे नमस्कार। हे मध दै त्मय को मारने वाली ! त्हे नमस्कार है ।
कैटभववनासशनी को नमस्कार। मदहषािर को मारने वाली दे वी ! त्हे नमस्कार है
।।१।।
श्भ का हनन करने वाली और तनश्भ को मारने वाली ! त्हे नमस्कार है
।।२।।
हे महादे वी ! मेरे िप को िाग्रत और सिद्ध करो। 'ऐुंकार' के रूप में िजृ ष्टरूवपणी,
'ह्ीुं' के रूप में िजृ ष्ट का पालन करने वाली ।।३।।
कलीुं के रूप में कामरूवपणी ( तथा अणखल ब्रह्माण्ड ) की बीिरूवपणी दे वी ! त्हे
नमस्कार है । चामुंडा के रूप में तम चण्डववनासशनी और 'यैकार' के रूप में वर दे ने
वाली हो ।।४।।
'ववच्चे' रूप में तम तनत्मय ही अभय दे ती हो। ( इि प्रकार ऐं ह्रं क्रं चामुण्डायै
विच्चे ) तम इि मन्त्त्र का स्वरुप हो ।।५।।
'धां ध ं धं' के रूप में धि
ू ट
ग ी ( सशव ) की तम पत्मनी हो। 'िां ि ं ि'ं के रूप में तम
वाणी की अधीश्वरी हो। 'क्ां क्रं क्ं ' के रूप में कासलकादे वी, 'शां श ं शं' के रूप में
मेरा कल्याण करो ।।६।।
'िुं िुं िुंकार' स्वरूवपणी, 'जं जं जं' ि्भनाददनी, 'भ्ां भ् ं भ्ं' के रूप में हे
कल्याणकाररणी भैरवी भवानी ! त्हे बार बार प्रणाम ।।७।।
'अं कं चं टं तं पं यं शं ि ं दं ु ऐं ि ं िं क्षं धधजाग्रं धधजाग्रं' इन िबको तोड़ो और
दीप्त करो, करो स्वाहा। 'पां प ं प'ं के रूप में तम पावगती पूणाग हो। 'खां ख ं ख'ं के
रूप में तम खेचरी ( आकाशचाररणी ) अथवा खेचरी मद्रा हो।।८।।
'सां स ं सं' स्वरूवपणी िप्तशती दे वी के मन्त्त्र को मेरे सलए सिद्ध करो। यह
सिद्धकुं जिका स्तोत्र मन्त्त्र को िर्ाने के सलए है । इिे भजकतहीन परुष को नहीुं दे ना
चादहए। हे पावगती ! इि मन्त्त्र को र्प्त रखो। हे दे वी ! िो बबना कुं जिका के
िप्तशती का पाठ करता है उिे उिी प्रकार सिद्धध नहीुं समलती जिि प्रकार वन
में रोना तनरथगक होता है ।
( इि प्रकार श्रीरुद्रयामल के र्ौरीतुंत्र में सशव पावगती िुंवाद में सिद्ध कुं जिका स्तोत्र
ि्पूणग हआ )

Benefits of Siddha Kunjika Stotram-


By reciting this Stotra on can easily achieve to overcome murder,
enchants, slavery, paralysing (stambham).
One's all enemies are destroyed and problems are solved by this
Mantra.

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