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राघवयादवीयम्

वंदेऽहं दे वं तं ीतं र तारं कालं भासा यः।


रामः रामाधीः आ यागः लीलाम् आर अयो ये
वासे ॥ १॥

म उन भगवान ीराम के चरण म णाम करता ं


ज ह ने अपनी प नी सीता के संधान म मलय और
सहया क पहा ड़य से होते ए लंका जाकर रावण
का वध कया तथा अयो या वापस लौट द घ काल
तक सीता संग वैभव वलास संग वास कया।
सेवा येयो रामालाली गो याराधी मारामोराः।
य साभालंकारं तारं तं ीतं व दे ऽहं दे वम् ॥ १॥

म भगवान ीकृ ण - तप वी व यागी, मणी


तथा गो पय संग ड़ारत, गो पय के पू य - के
चरण म णाम करता ं जनके दय म मां ल मी
वराजमान ह तथा जो शु आभूषण से मं डत ह।

साकेता या यायामासीत् या व ाद ता
आयाधारा।
पूः आजीत अदे वा ा व ासा अ या सावाशारावा
॥ २॥

पृ वी पर साकेत, या न अयो या, नामक एक शहर था


जो वेद म नपुण ा ण तथा व णको के लए
स था एवं अजा के पु दशरथ का धाम था जहाँ
होने वाले य म अपण को वीकार करने के लए
दे वता भी सदा आतुर रहते थे और यह व के
सव म शहर म एक था।

वाराशावासा या सा ा व ावादे ताजीरा पूः।


राधाय ता द ा व ासीमा या या याता के सा
॥ २॥

समु के म य म अव थत, व के मरणीय शहर म


एक, ारका शहर था जहाँ अन गनत हाथी-घोड़े थे,
जो अनेक व ान के वाद- ववाद क तयो गता
थली थी, जहाँ राधा वामी ीकृ ण का नवास था,
एवं आ या मक ान का स क था।

कामभार थलसार ीसौधा असौ घ वा पका।


सारसारवपीना सरागाकारसुभूर रभूः ॥ ३॥

सवकामनापूरक, भवन-ब ल, वैभवशाली ध नक का


नवास, सारस प य के कूँ-कूँ से गुंजायमान, गहरे
कु से भरा, व णम यह अयो या शहर था।

भू रभूसुरकागारासना पीवरसारसा।
का अ प व अनघसौध असौ ीरसाल थभामका
॥ ३॥

मकान म न मत पूजा वेद के चं ओर ा ण का


जमावड़ा इस बड़े कमल वाले नगर, ारका, म है।
नमल भवन वाले इस नगर म ऊंचे आ वृ के
ऊपर सूय क छटा नखर रही है।

रामधाम समानेनम् आगोरोधनम् आस ताम्।


नामहाम् अ ररसं ताराभाः तु न वेद या ॥ ४॥

राम क अलौ कक आभा - जो सूयतु य है, जससे


सम त पाप का नाश होता है – से पूरा नगर
का शत था। उ सव म कमी ना रखने वाला यह
नगर, अन त सुख का ोत तथा तार क आभा से
अन भ था (ऊंचे भवन व वृ के कारण)।

यादवेनः तु भाराता संरर महामनाः।


तां सः मानधरः गोमान् अनेमासमधामराः ॥ ४॥

यादव के सूय, सब को काश दे ने वाले, वन ,


दयालु, गऊ के वामी, अतुल श शाली के
ीकृ ण ारा ारका क र ा भलीभां त क जाती
थी।

यन् गाधेयः योगी रागी वैताने सौ ये सौ ये असौ।


तं यातं शीतं फ तं भीमान् आम अ ीहाता
ातम् ॥ ५॥

गाधीपु गाधेय, यानी ऋ ष व ा म , एक न व न,


सुखी, आनददायक य करने को इ ुक थे पर
आसुरी श य से आ ा त थे; उ ह ने शांत, शीतल,
ग रमामय ाता राम का संर ण ा त कया था।

तं ाता हा ीमान् आम अभीतं फ तं शीतं


यातं।
सौ ये सौ ये असौ नेता वै गीरागी यः योधे गायन
॥ ५॥

नारद मु न – दै द यमान, अपनी संगीत से यो ा


मश संचारक, ाता, स ण से भरपूर, ाहमण के
नेतृ वकता के प म व यात – ने व के क याण
के लए गायन करते ए ीकृ ण से याचना क
जनक या त म वृ एक दयावान, शांत परोपकार
को इ ुक, के प म दनो दन हो रही थी।

मारमं सुकुमाराभं रसाज आप नृता तं।


का वरामदलाप गोसम अवामतरा नते ॥ ६॥
ल मीप त नारायण के सु दर सलोने, तेज वी मानव
अवतार राम का वरण, रसाजा (भू मपु ी) - धरातु य
धैयशील, नज वाणी से असीम आन द दाता, सु ध
स यवाद सीता – ने कया था।

तेन रातम् अवाम अस गोपालात् अमरा वक।


तं त नृपजा सारभं रामा कुसुमं रमा ॥ ६॥

नारद ारा लाए गए, दे वता के र क, नज प त के


प म ा त, स यवाद कृ ण, के ारा े षत, त वतः
(वा तव म) उ जवल पा रजात पु प को नृपजा
(नरेश-पु ी) रमा ( मणी) ने ा त कया।

रामनामा सदा खेदभावे दयावान् अतापीनतेजाः


रपौ आनते।
का दमोदासहाता वभासा रसामे सुगः
रेणुकागा जे भू मे ॥ ७॥
ी राम - ः खय के त सदै व दयालु, सूय क तरह
तेज वी मगर सहज ा य, दे वता के सुख म व न
डालने वाले रा स के वनाशक - अपने बैरी -
सम त भू म के वजेता, मणशील रेणुका-पु
परशुराम - को परा जत कर अपने तेज- ताप से
शीतल शांत कया था।

मे भूजे गा काणुरे गोसुमे सा अरसा भा वता हा


सदा मो दका।
तेन वा पा रजातेन पीता नवा यादवे अभात्
अखेदा समानामर ॥ ७॥

अपराजेय मे (सुमे ) पवत से भी सु दर रैवतक


पवत पर नवास करते समय मणी को व णम
चमक ले पा रजात पु प क ा त उपरांत धरती के
अ य पु प कम सुग धत, अ य लगने लगे। उ ह
कृ ण क संगत म ओज वी, नवकलेवर, दै वीय प
ा त करने क अनुभू त होने लगी।
सारसासमधात अ भू ना धामसु सीतया।
साधु असौ इह रेमे ेमे अरम् आसुरसारहा ॥ ८॥

सम त आसुरी सेना के वनाशक, सौ यता के


वपरीत भावशाली ने धारी र क राम अपने
अयो या नवास म सीता संग सानंद रह रहे है थे।

हारसारसुमा र य ेमेर इह वसा वसा।


य अतसीसुमधा ना भू ता धाम ससार सा ॥
८॥

अपने गले म मो तय के हार जैसे पा रजात पु प को


धारण कए ए, स ता व परोपकार क अ ध ा ी,
नभ क मणी, आतशी पु पधारी कृ ण संग नज
गृह को थान कर गयी।

सागसा भरताय इभमाभाता म युम या।


स अ म यमय तापे पोताय अ धगता रसा ॥ ९॥
पाप से प रपूण कैकेयी पु भरत के लए ोधा न से
पागल तप रही थी। ल मी क का त से उ जव लत
धरती (अयो या) को उस म यमा (मझली प नी) ने
पापी व ध से भरत के लए ले लया।

सारताग धया तापोपेता या म यम सा।


या म युमता भामा भयेता रभसागसा ॥ ९॥

सू मक ट (पतले कमर वाली), अ त व षी,


स यभामा कृ ण ारा उतावलेपन म भेदभावपूवक
पा रजात पु प मणी को दे ने से आहत होकर
ोध और घृणा से भर गई।
तानवात् अपका उमाभा रामे काननद आस सा।
या लता अवृ सेवाका कैकेयी महद अहह ॥
१०॥

ीणता के कारण, लता जैसी बनी, पीतवण , सम त


आन द से परे कैकेयी, राम के वनगमन का कारण
बन, उनके अ भषेक को अ वीकारते ए, वृ राजा
क सेवा से वमुख हो गयी।

हह दाहमयी केकैकावासे वृतालया।


सा सदाननका आमेरा भामा कोपदवानता ॥
१०॥

सुमुखी (सु दर चहरे वाली) स यभामा, अ यंत


वच लत और अशांत होकर दावा न (जंगल क
आग) क तरह ोध से लाल हो अपने भवन, जो
मयूर का वास और डा थल था, उनके कपाट को
बंद कर दया ता क से वका का वेश अव हो
जाए।

वरमानदस यास ीत प ादरात् अहो।


भा वरः थरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ ॥
११॥
वन , आदरणीय, स य के याग से और वचन पालन
ना करने से ल जत होने वाले, पता के स मान म
अ त राम – तेजोमय, मु ाहारधारी, वीर, साहसी -
वन को थान कए।

सौ यगानवरारोहापरः धीरः थर वभाः।


हो दरात् अ आ पत ी स यासदनम् आर वा ॥
११॥

संगीत क धनी, या न स यभामा, के त सम पत


भु (कृ ण) – वीर, ढ़ च – कदा चत भय व
ल जा से आ ांत हो स यभामा के नवास पं चे।

या नयानघधीतादा रसायाः तनया दवे।


सा गता ह वयाता ीसतापा न कल ऊनाभा ॥
१२॥
अपने शरणागत को शा ो चत स दे ने वाली,
धरती पु ी सीता, इस ल जाजनक काय से आहत,
अपनी का त को बना गँवाए, वन गमन का साहस
कर ग ।

भान् अलो क न पाता सः ीता या व हतागसा।


वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया ॥ १२॥

तेज वी र क कृ ण - वैभवदाता, जनका वाहन


ग ड़ है – उनक ओर, गूढ़ ान से प रपूण
स यभामा ने अपने को नीचा दखाने से अपमा नत,
( मणी को पु प दे ने से) दे खा ही नह ।

रा गराधु तगवादारदाहः महसा हह।


यान् अगात भर ाजम् आयासी दमगा हनः ॥
१३॥
तामसी, उप वी, द भी, अ नयं त श ुदल को अपने
तेज से दहन करने वाले शूरवीर राम के नकट,
भार ाज आ द संयमी ऋ ष, थकान से लांत पँ च
याचना क ।

नो ह गाम् अदसीयामाजत् व आरभत गा; न या।


हह सा आह महोदारदावाग तधुरा गरा ॥ १३॥

स यभामा, अदासी पु पधारी कृ ण, के श द पर ना


तो यान ही द ना तो कुछ बोली जब तक क कृ ण
ने पा रजात वृ को लाने का संक प ना लया।

यातुरा जदभाभारं ां व मा तग धगम्।


सः अगम् आर पदं य तुंगाभः अनघया या ॥
१४॥

असं य रा स का नाश अपने तेज ताप से


करनेवाले (राम), वगतु य सुग धत पवन संचा रत
थल ( च कूट) पर य राज कुबेर तु य वैभव व
आभा संग लए पं चे।

या या घनभः गातुं यदं परमागसः।


ग धगं त म् आव ां रंभाभाद जरा तु या ॥ १४॥

मेघवण के ीकृ ण, स यभामा को घोर अ याय से


शांत करने हेतु, अ सरा से शोभायमान, र भा जैसी
सुंद रय से चमकते आँगन, वग को गए ता क वे
सुग धत पा रजात वृ तक प ँच सक।

द डकां दमो राजा या हतामयका रहा।


सः समानवतानेनोभो याभः न तदा आस न ॥
१५॥

दं डकवन म संयमी (राम) - व थ नरेश के श ु


(परशुराम) को परा जत करनेवाले, मानवयो न वाले
य (मनु य ) को अपने न कलंक क त से
आन दत करनेवाले - ने वेश कया।

न सदातनभो याभः नो नेता वनम् आस सः।


हा रकायमताह याजारामोद का डदम् ॥ १५॥

सदा आनंददायी जननायक ीकृ ण न दनवन को


जा प ंचे, जो इं के अ तआनंद का ोत था – वही
इ जो आकषक काया वाली अ ह या का ेमी था,
जसने (छलपूवक) अ ह या क सहम त पा ली थी।

सः अरम् आरत् अन ाननः वेदेराक ठकुंभजम्।


तं सारपटः अनागाः नानादोष वराधहा ॥ १६॥

वे राम शी ही महा ानी - जनक वाणी वेद है,


ज ह वेद कंठ थ है - कु भज (मटके म ज मने के
कारण अग य ऋ ष का एक अ य नाम) के नकट
जा पं चे। वे नमल वृ व कल (छाल) प रधानधारी
ह, जो नाना दोष (पाप) वाले वराध के संहारक ह।

हा धरा वषदह नानागानाटोपरसात् तम्।


ज भकु ठकराः दे वेनः अ ानदरम् आर सः ॥
१६॥

हाय, वो इं , पृ वी को जल दान करने वाले, क र -


ग धव के सुरीले संगीत रस का आनंद लेने वाले,
दे वा धप त ने य ही ज बासुर संहारक (कृ ण) का
आगमन सुना, वे अनजाने भय से सत हो गए।

सागमाकरपाता हाकंकेनावनतः ह सः।


न समानद मा अरामा लंकाराज वसा रतम् ॥
१७॥

वेद म नपुण, स त के र क (राम) का ग ड़


(जटायु) ने झुक कर नमन कया जनके त अपूण
कामयाचना चुड़ैल, लंकेश क बहन (शूपणखा), को
भी थी।

तं रसासु अजराकालं म आरामादनम् आस न।


स हतः अनवनाकेकं हाता अपारकम् आगसा ॥
१७॥

वे (कृ ण) - वृ ाव था व मृ यु से परे - पा रजात वृ


के उ मूलन क इ छा से गए, तब इं - वग म रहते
ए भी कृ ण के हतैषी – को अपार ःख ा त
आ।

तां सः गोरमदो ीदः व ाम् असदरः अतत।


वैरम् आस पलाहारा वनासा र ववंशके ॥ १८॥

पृ वी को य ( व णु या न राम) के दा हनी भुजा व


उ ह गौरव दे ने वाले, नडर ल मण ारा नाक काटे
जाने पर, उस माँसभ ी नासा वहीन (शूपणखा) ने
सूयवंशी (राम) के त वैर पाल लया।

केशवं वरसाना वः आह आलापसमारवैः।


ततरोदसम् अ ा वदः अ ीदः अमरगः असताम् ॥
१८॥

उ लास, जीवनीश और तेज के ास होने का भान


होने पर केशव (कृ ण) से म वत वाणी म इं –
जसने उ त पवत को परा त कर मह वहीन कया
(उ ं ड उड़नशील पवत के पंख को इं ने अपने
व ायुध से काट दया था), जसने अमर दे व के
नायक के पम असुर को ी वहीन कया - ने
धरा व नभ के रच यता (कृ ण) से कहा।

गो ुगोमः वमायः अभूत् अ ीगखरसेनया।


सह साहवधारः अ वकलः अराजत् अरा तहा ॥
१९॥
पृ वी व वग के सु र कोने तक ा त क त के
वामी राम ारा खर क सेना को ी वहीन परा त
करने से, उनक एक गौरवशाली, नडर, श ु संहारक
के प म शालीन छ व चमक उठ ।

हा अ तरादजरालोक वरोधावहसाहस।
यानसेरखग ीद भूयः म वम् अगः ुगः ॥ १९॥

हे (कृ ण), सवकामनापू त करने वाले दे व के गव का


शमन करने वाले, जनका वाहन वेदा मा ग ड़ है, जो
वैभव दाता ीप त ह, ज ह वयं कुछ ना चा हए,
आप इस द वृ को धरती पर ना ले जाएँ।

हतपापचये हेयः लंकेशः अयम् असारधीः।


र जरा वरतेरापः हा हा अहम् हम् आर घः ॥
२०॥
पापी रा स का संहार करनेवाले (राम) पर आ मण
का वचार, नीच, वकृत लंकेश – सदै व जसके संग
म दरापान करनेवाले ू र रा सगण व मान ह – ने
कया।

घोरम् आह हं हाहापः अरातेः र वरा जराः।


धीरसामयशोके अलं यः हेये च पपात हः ॥ २०॥

था सत हो, श ु के श को भूल, उ ह (कृ ण


को) बंद बनाने का आदे श ग धवराज इं – सूय क
तरह शु वणाभूषण अलंकृत मगर कु सत बु से
त - ने दे दया

ताटकेयलवादत् एनोहारी हा र गर आस सः।


हा असहायजना सीता अना तेना अदमनाः भु व
॥ २१॥
ताड़कापु मारीच को काट मारने से स , अपनी
वाणी से पाप का नाश करने वाले, जनका नाम
मनभावन है, हाय, असहाय सीता अपने उस वामी
राम के बना ाकुल हो ग (मारीच ारा राम के
वर म सीता को पुकारने से)।

वभुना मदना तेन आत आसीनाजयहासहा।


सः सराः ग रहारी ह नो दे वालयके अटता ॥ २१॥

ु न संग दे वलोक म वचरण कर रहे कृ ण को


रोकने म, पु जयंत के श ु ु न के अ हास को
अपनी बाणवषा से काट कर शांत करनेवाले, अथाह
संप के वामी, पवत के आ मणकता इं ,
असमथ हो गए।

भारमा कुदशाकेन आशराधीकुहकेन हा।


चा धीवनपालो या वैदेही म हता ता ॥ २२ ॥
ल मी जैसी तेज वी का, अंत समय आस होने के
कारण नीच छली नीच रा स (रावण) ारा, उ च
वचार वाले वनदे वता के सामने ही उस
सवपू जता सीता का अपहरण कर लया गया।

ताः ताः ह महीदे व ऐ य अलोपन धी चा।


हानकेह कुधीराशा नाकेशा अदकुमारभाः ॥ २२॥

तब, एक ा ण क मै ी से उस लु त अ वनाशी,
चर थायी ान व तेज को पुन ा त कर नाकेश
( वगराज, इं ) – जनक इ छा पलायन करने वाले
दे वता क र ा करने क थी – ने आकुल कुमार
ु न का ताप हर लया।

हा रतोयदभः रामा वयोगे अनघवायुजः।


तं माम हतः अपेतामोदाः असार ः आम यः ॥
२३॥
मनोहारी, मेघवण य (राम) – को सीता से वयोग के
प ात संग मला न वकार हनुमान का और सु ीव
का जो अपनी प नी मा के े य थे, जो बाली ारा
सताए जाने के कारण अपना सुख गवाँ वचारहीन,
श हीन हो राम के शरणागत हो गए थे।

यः अमरा ः असादोमः अतापेतः हममा तम्।


जः युवा घनगेयः वम् आर आभोदयतः अ रहा ॥
२३॥

तब दे वता से यु का प र याग कर चुके, अतु य


साहसी ( ु न), आकाश म संचा रत शीतल पवन से
पुनज वत हो गु जन का गुणगान अजन कया जब
उनके ारा श ु को मार वजय ा त कया गया।

भानुभानुतभाः वामा सदामोदपरः हतं।


तं ह तामरसाभ ः अ तराता अकृत वास वम् ॥
२४॥
सूय से भी तेज म शं सत, रमणीक प नी (सीता) को
नरंतर अतुल आनंद दाता, जनके नयन कमल जैसे
उ जवल ह – उ ह ने इं के पु बाली का संहार
कया।

व सः वातकृतारा त ोभासारमताहतं।
तं हरोपदमः दासम् आव आभातनुभानुभाः ॥
२४॥

उस कृ ण ने – जनके तेज के सम सूय भी गौण है


– जसने अपने उ े जत सेवक ग ड़ क र ा क ,
जस ग ड़ ने अपने डैन क फड़फड़ाहट मा से
श ु क श और गव को ीण कया था – जस
(कृ ण) ने कभी शव को भी परा जत कया था।

हंसजा बलजा परोदारसुभा अज न।


रा ज रावण र ोर वघाताय रमा आर यम् ॥ २५॥
हंसज, या न सूयपु सु ीव, के अपराजेय सै यबल
क महती भू मका ने राम के गौरव म वृ कर रावण
वध से वजय ी दलाई।

यं रमा आर यताघ वर ोरणवरा जर।


नजभा सुरद रोपजालब जासहम् ॥ २५॥

उस कृ ण के ह से नमल वजय ी क या त आई
जो बाण क वषा सहने म समथ ह, जनका तेज
यु भू म को असुर- वहीन करने से चमक रहा है,
उनका वाभा वक तेज दे वता पर वजय से दमक
उठा।
सागरा तगम् आभा तनाकेशः असुरमासहः।
तं सः मा तजं गो ता अभात् आसा गतः
अगजम् ॥ २६॥

समु लांघ कर सहया पवत तक जा समु तट तक


प ंचने वाले क ा त त हनुमान के प म होने से,
इं से भी अ धक तापी, असुर क समृ को
असहनशील, उस र क राम क क त म वृ हो
गई।

जं गतः गद असादाभा ता गोजं त म् आस तं।


हः समारसुशोकेन अ तभामाग तः आगस ॥ २६॥

जो गदाधारी ह, अप र मत तेज के वामी ह, वो कृ ण


– ु न को दए क से अ य धक कु पत हो - वग
म उ प वृ को झपट कर वजयी ए।

वीरवानरसेन य ात अभात् अवता ह सः।


तोयधो अ रगोयाद स अयतः नवसेतुना ॥ २७॥

वीर वानर सेना के ाता के प म व यात राम, उस


सेतुसमु पर चलने लगे, जो अथाह व तृत सागर के
जीव-जंतु से भी र ा कर रहा था।
ना तु सेवनतः य य दयागः अ रवधायतः।
स ह तावत् अभत ासी अनसेः अनवारवी ॥
२७॥

जो , भु ह र क सेवा म रत, उनका यशगान


करता है, वह भु क दया ा त कर श ु पर
वजय पाता है। जो ऐसा नह करता है वह नह थे
श ु से भी भयभीत होकर का त वहीन हो जाता है।

हा रसाहसलंकेनासुभेद म हतः ह सः।


चा भूतनुजः रामः अरम् आराधयदा तहा ॥ २८॥

चम का रक प से साहसी उस राम ारा रावण के


ाण हरने पर दे वता ने उनक तु त क । वे
पवती भू मजा सीता के संग ह, तथा शरणागत का
क नवारण करते ह।
हा आ तदाय धराम् आर मोराः जः नुतभूः चा।
सः हतः ह मद भे सुनाके अलं सहसा अ रहा ॥
२८॥

वे, ु न को यु के क से उबारने के प ात ल मी
को नज व थली रखने वाले, क तय के
शरण थल जो ु न के हतैषी कृ ण, ऐरावत वाले
वगलोक को जीत कर पृ वी को वापस लौट आए।

ना लकेर सुभाकारागारा असौ सुरसा पका।


रावणा र मेरा पूः आभेजे ह न न अमुना ॥ २९॥

ना रयल वृ से आ छा दत, रंग- बरंगे भवन से


न मत अयो या नगर, रावण को परा जत करने वाले
राम का, अब समु चत नवास थल बन गया।

ना अमुना न ह जेभेर पूः आमे अ रणा वरा।


का अ प सारसुसौरागा राकाभासुरके लना ॥
२९॥

अनेक वजयी गजराज वाली भू म ारका नगर म


धम के वाहक सता य कृ ण, द वृ पा रजात से
द तमान, का वेश ड़ारत गो पय संग आ।

सा अ यतामरसागाराम् अ ामा घनभा आर गौः।


नजदे अपर ज त आस ीः रामे सुगराजभा ॥
३०॥

अयो या का समृ थल, तामरस (कमल) पर


वराजमान रा यल मी का सव म नवास बना।
सव व योछावर करानेवाले अजेय राम के तापी
शासन का उदय आ।

भा अजराग सुमेरा ीस या जरपदे अज न।


गौरभा अनघमा ामरागा स अरमत अ यसा ॥
३०॥
ीस य (स यभामा) के आँगन म अव थत पा रजात
म पु प फु टत ए। स यभामा, इस नमल संप
को पा कृ ण क थम भाया मणी के त
इ याभाव का याग कर, कृ ण संग सुखपूवक रहने
लगी।

बाहरी क डयांँ
राघवयादवीयम्
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